अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
07-03-2020, 01:21 PM,
#31
RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
सुबह का समय था. रोज की ही तरह आज भी माला छत पर चारपाई पर बिछाने वाले कपड़े लेने गयी थी. साथ ही उसे मानिक को देखने का भी मन हो रहा था. भागती हुई छत पर पहंची तो देखा मानिक आज चारपाई पर बैठा उसी की छत की तरफ देख रहा था.

आज मानिक अन्य दिन से जल्दी उठ गया था. माला के छत पर दिखाई देते ही सावधान हो बैठ गया. माला की नजर उससे मिली. देखते ही मुस्कुरा पड़ी. इशारों में हैरत करते हुए कुछ बोली. मानो कहना चाहती हो कि आज इतनी जल्दी उठ गये.

मानिक भी कम रसीला नही था. उसने भी मुस्कुरा कर, थोडा शरमाकर इशारे में कहा, "बस ऐसे ही आज जल्दी उठ गया था.” माला जानती थी कि मानिक उसी को देखने के लिए आज जल्दी उठा है और मानिक भी जानता था कि माला जानती है कि वह आज इतनी जल्दी क्यों उठा है?

लेकिन जानबूझ कर अनजान बनने का आनंद भी तो पूरी तरह निराला होता है. जिसका अनुभव ये दो प्यार के पंक्षी किये जा रहे थे. न रत्ती भर इधर कम था और न रत्ती भर उधर कम था. और जब कोई तराजू दोनों तरफ बराबर होती है तो उसका कांटा कांटे की सीध पर होता है. ___

माला ने इशारों में ही मानिक से पूछा, “तुम आज दोपहर में आओगे न?”

मानिक थोडा मुस्कुराया और इशारे में ही बोला, "हाँ मुझे ध्यान है. मैं जरुर आऊंगा. तुम चिंता मत करो."

माला उसकी तरफ देख मुस्कुरा पड़ी. मानो उसे धन्यबाद कह रही हो.

मानिक से जब से माला मिली थी तब से उसके अंदर जीवन जीने की एक नई कला उत्पन्न हो गयी थी. समझदारी का भरपूर विकास हो गया था. खुशियाँ तो मानो उसे छप्पर फाड़ कर मिलीं थीं. शायद इस अनपढ़ अभागन लडकी का भाग्य ही बहुत तेज था. सच बात तो ये थी कि इस लडकी का दिल राणाजी का अदब तो करता था लेकिन मानिक से जो उसका बंधन शुरू हो चुका था वो राणाजी से कभी बंधा ही नही था. राणाजी पैसे दे उसके शरीर को खरीद लाये थे लेकिन मानिक ने विना किसी कीमत के उसका दिल खरीद लिया था.

वास्तव में ये बात सच है कि आदमी को पैसे से खरीदा जा सकता है लेकिन उसका मन. मन तो वेमोल होता है. अनमोल होता है. लेकिन मिले तो मुफ्त में भी मिल जाए और न मिले तो सारा शरीर बिक जाने पर भी मन न मिल पाए.

माला ने मानिक से इशारे में कहा, "अच्छा मैं अब जा रही हूँ. दोपहर में आना नहीं भूलना. वरना देख लेना."

मानिक इशारे में अपने कानो पर हाथ ले गया. मानो कहना चाहता हो कि ऐसी गुस्ताखी मैं नही कर सकता माला रानी. भला तुम से बैर मोल ले में कहाँ रहूँगा.

माला उसकी इस हरकत पर मुस्कुरायी. अपनी चोटी को झटका और चारपाई के कपड़े समेट नीचे जाने को हुई. लेकिन जाते हुए मुस्कुराकर मानिक को देख लिया और सीढियों से नीचे चली गयी. मानिक भी फटाफट चारपाई से खड़ा हुआ और नीचे घर में चला गया.

दोपहर का समय होने को था. राणाजी तो सुबह खाना खा कर ही घर से निकल गये थे और महरी भी खाना बना और बर्तन धो जा चुकी थी. माला अपने कमरे में बैठी खुद को सजाने संवारने में लगी हुई थी. वैसे सजने संवरने का तो उसे बचपन से ही शौक था लेकिन अपने पिता के घर की तंगी के कारण कभी दो रूपये की नाखूनी खरीद कर भी न लगा सकी.

राणाजी के घर में तो इन सब चीजों में से किसी चीज की कमी ही नही थी. नाखूनी से लेकर बिंदी, खुसबू का पाउडर और सर में डालने का बढिया महक वाला तेल सब कुछ मौजूद था.

माला को आज इसलिए भी सजना था क्योकि आज मानिक आने वाला था, मानिक जो उसके दिल का चोर था. माला नही जानती थी कि वो ये सब गलत कर रही है. जो आदमी उसको पैसे दे उसके पिता से खरीद कर लाया था. जिसने उसे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकारा था. दरअसल उससे माला को कोई दिली मोहब्बत थी ही नही. माला को राणाजी की फिक्र रहती थी. उनकी हर बात का वो खयाल रखती थी. राणाजी की हर बात उसके सर माथे रहती थी लेकिन उनसे मन का मेल नही हो पाया था.
Reply
07-03-2020, 01:21 PM,
#32
RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
अजीब सी दीवार थी माला के दिल में, जिसने प्यार और सम्मान के मायने ही बदल कर रख दिए थे. राणाजी को अपना सर्वस्व अपनी ख़ुशी से सौंप चुकी लडकी अभी तक उनसे मोहब्बत नही कर सकी थी. शायद ये एक गुरवत की मारी लडकी का अभाग्य था या भगवान का कोई नया खेल लेकिन माला के दिल को इसमें सुकून बहुत मिल रहा था. जो इस उम्र में होना चाहिए था वो हो रहा था लेकिन इस सब के लिए समय गलत पड़ गया था. किस्मत का पाशा गलत पड़ गया था.

माला अभी आधे कपड़ों में ही बैठी थी कि दरवाजे पर आहट हुई. दरवाजा हल्का बंद था लेकिन कुण्डी बंद नही थी. माला अभी उठकर देखती उससे पहले ही गुल्लन ने कमरे में प्रवेश किया. माला ने गुल्लन को देखते ही हड्वड़ा कर पलंग पर पड़ी हुई चादर अपने ऊपर डाल ली.

गुल्लन ने देख लिया था कि माला आधे कपड़ों में खड़ी है लेकिन फिर भी वापस लौट कर न गये. मुस्कुराते हुए आगे बढे और पलंग पर बैठते हुए बोले, "और माला रानी क्या हाल चाल हैं? हमारे दोस्त कहाँ भेज दिए?"

माला का दिल धुकुर धुकुर कर रहा था. उसका शरीर तो गुल्लन को देखते ही जम गया था. ब्लाउज और पेटीकोट में पलंग की चादर ओढ़े खड़ी लडकी का सारा शरीर काँप रहा था लेकिन गुल्लन की बात का जबाब न देना गुस्ताखी भी तो हो सकती थी.

आखिर ये वही गुल्लन थे जो उसको अपने दोस्त से व्याह कर यहाँ लाये थे. साथ ही उसकी बड़ी बहन की शादी भी इन्ही गुल्लन ने करवाई थी. माला हकलाती सी बोली, "वो..बाहर..गये हैं किसी काम से."

गुल्लन को पहले से पता था कि राणाजी घर पर नही हैं लेकिन फिर भी इस तरह पूंछ कर माला को ये जता रहे थे कि उन्हें पता ही नही था कि राणाजी घर पर नही हैं. इतनी देर से खड़ी सिमटी हुई माला को एकटक देखे जा रहे गुल्लन की आँखों में कुछ अजीब सा मंजर था. __

और माला एक स्त्री होने के कारण उस मंजर को ठीक से पढ़े जा रही थी. यही कारण था कि उसका शरीर पीपल के पत्ते की भांति कांप रहा था. इस वक्त मजबूर लडकी की असली कहानी देखने को मिल रही थी.

गुल्लन अपनी वहशी नजरों से माला के खिले हुए मुखड़े को देखे जा रहे थे. जो आगे पीछे काले रेशमी बालों से ढका हुआ था. गुल्लन मुस्कुरा कर बोले, “माला तुम पहले से बहुत खूबसूरत हो गयी हो. रंगत भी पहले से बहुत निखर गयी है. शरीर भी बहुत कोमल हो गया है." __

माला की नजरें शर्म से झुक गयीं. उस लडकी को गुल्लन से इस तरह की तारीफ़ की उम्मीद ही नही थी. वो तो गुल्लन की बहुत इज्जत करती थी. अपने पति का दोस्त मान बड़ा भाई मानती थी.

माला कमरे से निकल कर जाने को हुई लेकिन गुल्लन ने पलंग से उठ उसका हाथ पकड़ लिया. माला की तो जान ही निकल गयी. आँखें आंसुओं से छलछला उठी. डरी हुई नजरों से गुल्लन की तरफ देखा लेकिन गुल्लन की नजरों में वहशीपना था.

गुल्लन ने उस लडकी की मजबूरी और लज्जा को तनिक भी तवज्जो न दी. माला अपनी बांह को छुड़ाने के लिए हल्का प्रयत्न भी कर रही थी लेकिन उसका प्रयत्न देख लगता था कि वो मन में यह भी सोच रही थी कि कही गुल्लन इसे अपना अपमान न सोचने लगे..

गुल्लन ने माला के शरीर को अपनी बाहों में भर पलंग पर धकेल दिया. उसके शरीर पर पड़ी पलंग की चादर खींच एक तरफ कर दी. माला जिस अवस्था में इस वक्त हो गयी थी वो बहुत भयावह थी. उसकी सिसकियों का सैलाव छूट गया.

गुल्लन का दिल भी उसकी सिसकियों से थोडा डर गया लेकिन सिकुड़ी सी पलंग पर लेटी माला के बगल में बैठते हुए बोले, "माला रोती क्यों है? मैं क्या तुझे जान से मार रहा हूँ. अरे पगली मैं ही तो तेरी शादी अपने दोस्त के साथ कराकर लाया हूँ. तो उस एहसान को समझ कर ही एक बार मुझे अपने मन की कर लेने दे?"
Reply
07-03-2020, 01:21 PM,
#33
RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
माला को पता था गुल्लन का कितना एहसान है. कमिशन खाकर दोस्त की दुल्हन को खरीदवा लाने का एहसान. ऐसे एहसान से बढिया तो एहसान ही न किया जाय. माला तडप कर पलंग से उठ खड़ी हुई और गुल्लन से बोली, “क्या भाड का एहसान है आपका? इनसे पन्द्रह हजार ले मेरे बापू को दस हजार रुपए दे देने पर आपका एहसान हो गया? एक लडकी के बिकने का भी पैसा खा गये आप. अपने जिगरी दोस्त से छुप कमिशन खा लिया. इसे एहसान कहते हुए आपको शर्म आनी चाहिए. इससे अच्छा तो आप एहसान करते ही नही. एक बाप अपनी बेटी को पैसों के लिए क्यों बेचता है जानते हैं आप? एकबार अपनी बेटी को बेचकर देखना आपको अपने आप पता पड़ जाएगा? आप उस पैसे में से भी अपना हिस्सा ले चुके हैं. मैं फिर भी आपकी इज्जत करती हूँ. मैं आपको अपने बड़े भाई की तरह मानती हूँ. मैने आज तक आपके दोस्त को ये बात नही बताई कि आपके दिए हुए पैसों से आपके दोस्त ने कमिशन खा लिया था."

इतना कह माला हिल्की भर भर कर रोने लगी. माला की पूरी बात सुन गुल्लन की सारी रसियागिरी धरी रह गयी. मुंह की रंगत उड़ चुकी थी. मुंह से एक भी जबाब नही फूटा. आँखों में वहशीपन की जगह अपमान की ग्लानी थी. उन्हें नही पता था कि माला को उनके कमिशन खाने वाली बात पता है क्योंकि माला के बाप से उन्होंने इस बात को किसी से भी बताने के लिए मना किया था. गुल्लन को डर था कि कही माला राणाजी को ये बात न बता दे. उनकी टाँगे इस बात को सोच सोच कर काँपे जा रही थी.

गुल्लन ने सामने जमीन पर अर्धनग्न अवस्था में बैठी माला के ऊपर फिर से पलंग की चादर डाल दी. माला ने हिल्कियों को रोक गुल्लन की तरफ देखा. इस वक्त गुल्लन की आँखें अपने बुरे कृत्य पर शर्मिंदा थीं.

गुल्लन घुटनों के बल अपने हाथ जोड़ माला के सामने बैठ गये और बोले, “माला बहन मुझे इस घृणित कार्य के लिए माफ़ कर देना. मैं अँधा हो गया था जो ये काम करने की दिमाग में सोच डाली. तुम भी आज से मेरी छोटी बहन हो. अगर तुम भी मुझे अपना बड़ा भाई मानती हो तो कभी इस बात को किसी से न कहना और न ही मेरे कमिशन खाने की बात को कभी राणाजी से कहना. तुम नही जानती इस बात से कितना बड़ा अनर्थ हो जायेगा. मेरी बर्षों की दोस्ती पल भर में खंडित हो जाएगी. मैं राणाजी की नजरों में गिर जाऊंगा लेकिन तुम इस वात को होने से रोक सकती हो. मुझे उम्मीद है तुम ऐसा कुछ नही करोगी."

माला ने पलंग की चादर अपने चारो तरफ लपेट ली. अपने आंसू पोंछे और बोली, “मैं कहना चाहती तो कब का कह सकती थी लेकिन मुझे आप से ज्यादा अपनी बस्ती के उन भूखे नंगे लोगों की ज्यादा फ़िक्र है जो अपनी बेटियों को बेचकर अपना पेट भरते हैं. मुझे उन लडकियों की भी फ़िक्र है जो अपने बिकने का इन्तजार करती रही हैं. जिससे उनके माँ बाप और बाकी के भाई बहिन आराम से रह सकें. अपना पेट भर सकें. और जिससे लडकियाँ भी अपनी जिन्दगी को चैन से जी सकें. अगर मैं आपकी ये बात अपने पति से कह देती तो आप फिर कभी किसी लडकी को पैसे दे खरीदवाने नही जाते. जिससे वहां रहने वाली लडकियों की दशा और ज्यादा गिरती. और यही मैं नहीं चाहती हूँ. आप मुझे नोंच भी। डालते तो भी यह बात आपके दोस्त को न बताती. क्योंकि एक मेरे मरने से वहां की बस्ती के लिए कुछ अच्छा हो सकता है तो मेरे लिए ये गर्व की बात होगी."
Reply
07-03-2020, 01:21 PM,
#34
RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
गुल्लन मियां की नजरें शर्म से झुकी हुईं थी. माला को बेवकूफ समझने की गलती कर बैठे गुल्लन नही जानते कि एक स्त्री कितनी भी बेवकूफ क्यों न हो लेकिन उसके त्याग और समर्पण की भावना हमेशा उसमें बनी रहती है. वो भूल गये थे कि अपनी जिन्दगी को दांव पर लगाकर दूसरे का भला करना ही एक स्त्री होना होता है. उन्हें यह भी ध्यान न रहा कि वो खुद एक स्त्री की कोख से जन्में हुए हैं और इस वक्त वो अपनी जीवन संगिनी के साथ रहते हैं जो उनके हर सुख दुःख में उनका साथ निस्वार्थ हो देती है और वो खुद भी एक स्त्री है. जैसे माला एक स्त्री है.

गुल्लन ग्लानी की लम्बी साँस ले उठ खड़े हुए और माला की तरफ हाथ जोड़ते हुए बोले, “बहन ये तुम्हारा एहसान में जिन्दगी भर न भूलूंगा. अब तुम अपने कपड़े पहन लो. मैं जा रहा हूँ. मेरी गलती को माफ़ कर सको तो कर देना."

यह कह गुल्लन कमरे से बाहर निकल गये. माला फिर से सिसक पड़ी. उसे अपनी माँ की याद आ गयी जो दुःख के हर वक्त में उसका साथ देती थी लेकिन आज माँ का साया भी उसके साथ न था. माँ की यादों से तो सारा दिल भरा पड़ा था. दिल का कोई ऐसा कोना खाली नही था जिसमे इस वक्त माँ से मिलने की तडप न थी.

कितनी अजीब जिन्दगी थी इस बस्ती की लडकियों की और कुछ वैसी ही जिन्दगी उन लडकियों के माँ बाप की. लोग उन माँ बाप को अपनी लडकियों को पैसे ले बेचने पर धिक्कारते थे. लेकिन वो खुद उन लोगों के लिए कुछ नही करना चाहते. न ही खुद चार दिन उस बस्ती में रह उनके जीवन को जीना चाहते हैं. भूख से मरते माँ बाप. हर रोज इकाई और दहाई के आंकड़े में बिकती लडकियाँ इस वेवश जिन्दगी को कैसे जीती थीं ये कोई जानना नही चाहता.

एक माँ या बाप अपनी बेटी को पैसे ले किस हालत में बेच देता है ये कोई जानना नही चाहता. सब उन्हें धिक्कारते थे. सब को 'सोशल वर्कर' बनने की पड़ी थी. चार गालियां किसी गरीब को दी और उसी दिन अखबार में उनका फोटो छप गया. रातोंरात वे 'सामाजिक कार्यकर्ता बन गये. न तो उन्होंने उनकी गरीबी और भुखमरी देखी और न ही उनकी बेरोजगारी.

बस उन्हें ये पता है कि लडकियों को बेचा नही जाना चाहिए. उन्हें नही पता फिर लडकियों का इस बस्ती वाले क्या करेंगे? कौन उनकी शादी अच्छी जगह करने के लिए दहेज का इंतजाम करेगा? क्योंकि वे तो सामाजिक कार्यकर्ता हैं उन्हें इन बातों से क्या मतलब?

दोपहर हो चुकी थी. माला को याद आया कि दोपहर में उससे मानिक मिलने आएगा. मानिक के आने के ख्याल से मन भूल गया कि अभी थोड़ी देर पहले ही वो किस हालत से गुजरी है. चंचल निश्छल मन की ये लडकी उस निस्वार्थ प्रेम की तलाश में अपने मन को उत्तेजित किये जा रही थी. भागकर अलमारी से साड़ी निकाल पहनने लगी. होठों पर खुशी थी और हल्की आवाज में कोई भोजपुरी भाषा का मधुर गाना. मन के साथ साथ देह भी झूम रही थी. वो देह जो चंद मिनटों पहले तक एक पुरुष को देख काँप रही थी. वही देह किसी दूसरे पुरुष के खयाल से झूम रही थी. एक वो भी पुरुष था और एक ये भी पुरुष था. वो पुरुष समाज को कलंकित कर चुका था लेकिन ये लड़का उस समाज को फिर से ऊपर उठाये जा रहा था.

माला लाल काली सी लगने वाली साड़ी अपने सांवले सलोने बदन पर लपेट चुकी थी. होठों पर लाली की रंगत. आँखों में गाँव की तरह बड़ा बड़ा काजल.सर पर साड़ी का पल्लू. ये सब चीजें करने के बाद दर्पण में अपने को निहारा और झट से झूमती हुई द्वार पर पहुंच गयी. चंचल हिरनी ने इधर उधर निहारा. द्वार पर तो कोई नही था लेकिन सामने की सडक पर मानिक पेड़ से टिका खड़ा उसे ही देखे जा रहा था.
Reply
07-03-2020, 01:21 PM,
#35
RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
माला उसे देखते ही ख़ुशी के मारे झूम उठी. मन किया भागकर मानिक के पास पहुंच जाए और उसके छाती से लिपट मन को तृप्त कर ले लेकिन कोई देख ले तो बैठे बिठाये मुसीबत आ जाये. माला ने मुस्कुराकर मानिक को अपने पास आने का इशारा कर दिया. मानिक भी शायद उसके इशारे के इन्तजार में खड़ा था. वो इधर उधर देखता हुआ तेज कदमों से माला की तरफ बढ़ गया. माला का मन बागों में मोर हो मानिक को आते हुए देखने लगा.

मानिक जैसे ही माला के पास पहुंचा तैसे ही वो किसी छोटी बच्ची की तरह उससे लिपट पड़ी. मानिक को कसकर अपने कलेजे से लगा लिया. मानिक हतप्रभ हो इधर उधर देखने लगा. आसपास कोई नहीं था. माला अब भी उससे लिपटी खड़ी थी. उसके बदन से उठने वाली झीनी सी सुगंध मानिक को मदहोश किये जा रही थी.

मानिक भी तो चाहता था कि वो माला को अपने गले से लगाये लेकिन माला किसी और की बीबी थी. यह सोच मानिक ने अपने दिल से ये खयाल निकाल दिया था लेकिन आज माला को अपने शरीर से लिपटे देख उसे ये बात ही ध्यान न रही. उसने भी अपने हाथों को माला के शरीर से लपेट लिया. दोनों को मोहनभोग से अच्छा स्वाद और गुलाब के फूलों से अच्छी खुसबू का एह्साह हो रहा था. आनंद का अतिरेक सिर्फ शारीरिक वासना से ही नहीं मिलता. ये आपकों आपके मीत से लिपटने से भी मिल सकता है. उसको देखने से भी मिल सकता है. उसकी याद से भी मिल सकता है.

थोड़ी देर में माला को जब ध्यान आया कि वो कुछ गलती कर गयी है तो उसने झट से मानिक से अपने आप को अलग कर लिया. नजरें जमीन की तरफ से उठ नही पा रहीं थी. मानिक भी अपने आप में शर्मिंदा था लेकिन उतना नही जितना कि माला थी. माला सोचती थी कि सबसे ज्यादा उसकी खुद की गलती है जो मानिक के आते ही ख़ुशी से उससे लिपट पड़ी लेकिन करती क्या?

मानिक को आया देख रुका ही न गया. मन मानिक का मुरीद था और तन तोरण की ताल. न मन ने उसकी मानी और न ही तन ने उसका खयाल रखा. लेकिन जो तृप्ति और संतुष्टि मानिक के स्पर्श से मिली वो अलौकिक आनंद की अनभूति थी. जिसका शर्मोहया से कोई वास्ता नही था.

फिर उसे ये भी ध्यान आया कि मानिक उसके पास खड़ा है. शर्माती सी उससे बोली, “मानिक बैठ जाओ. तुम इस तरह क्यों खड़े हो?” यह कह उसने कुर्सी मानिक की तरफ खिसका दी. मानिक उसकी बात पर हंस पड़ा. मानो वो विना बात इतनी देर से खड़ा था.

मानिक कुर्सी पर बैठ गया और माला उसके सामने खड़े पेड़ के तने से टिककर बैठ गयी. गाँव में स्त्रियाँ किसी भी मर्द के सामने कुर्सी या चारपाई पर नही बैठती. ये बात अलग है कि अकेले कमरे में होने पर पति प्यार से अपनी पत्नी के पैर तक दबा देता है लेकिन लोगों के सामने उसे अपने बराबर तक बिठाने को तैयार नही होता.

माला की शर्म धीरे धीरे कम हो रही थी और मानिक भी अभी थोड़ी देर पहले माला के द्वारा की गयी हरकत को भूलता जा रहा था लेकिन दोनों के शरीर में उस बात की सिरहन अभी तक हो रही थी. तभी अचानक माला बोल पड़ी, "मानिक तुम्हें बुरा तो नही लगा. हम तो ख़ुशी के मारे तुमसे लिपट बैठे. कसम से हमारे मन में कोई बुरी भावना नही थी.”

मानिक जानता था कि माला इतनी गिरी हुई लडकी नही है. बोला, “अरे नही नही कभी कभी ऐसा हो जाता है. मुझे वैसे भी इन बातों से बुरा नही लगता. भला तुम भी कोई बाहर की हो जो बुरा मान जाऊं?"

माला से आज मानिक तुम कहकर बोल रहा था. क्योकि खुद माला ने उसे तुम कहकर और उसका नाम लेकर बोलने के लिए कहा था. माला को ये बात अच्छी लग रही थी. उसे ये बात भी अच्छी लगी जो मानिक ने उसे अपने घर की समझा. बोली, "स्कूल गये थे आज. पढने में मन लगता है तुम्हारा?"
Reply
07-03-2020, 01:21 PM,
#36
RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
मानिक मुस्कुराता हुआ बोला, “मन तो अपने आप लग जाता है. पढाई आदमी के लिए बहुत जरूरी होती है. वैसे मैं एक भी दिन पढाई नही छोड़ता इसलिए आज भी गया था."

माला को मानिक से बात करने के लिए कोई बात नही सूझ रही थी. मन वावला सा हुआ जा रहा था. डर था कि उससे कुछ का कुछ और न बोल जाए. ख़ुशी के मारे जीभ भी तो सीधी नही पड रही थी लेकिन कुछ बोलना तो था ही. बोली, “अच्छा. स्कूल से सीधे यहीं आये या खाना खा कर आये?" ____

मानिक सच में स्कूल से घर पहुंचा था और घर में स्कूल का बस्ता रख सीधा इधर आ गया था. बोला, “स्कूल से सीधा ही समझो. क्योंकि घर पर स्कूल का बस्ता रखने के अलावा कोई काम नहीं किया. सीधा इधर भागा चला आया."

माला को आश्चर्य हुआ कि मानिक को यहाँ आने की इतनी जल्दी थी जो कि घर पर विना रुके सीधा इधर भागा चला आया. बोली, "तो घर पर तुम खाना भी खाकर नहीं आये. सुबह के भूखे होगे तुम तो. कहो तो तुम्हारे लिए थोडा खानाले आऊँ?"

मानिक हड्वड़ाते हुए बोला, “अरे नही नही. मुझे कतई भूख नही है. मैं तो तुमसे बात करने आया था. सोचा देर हुई या न जा पाया तो तुम बुरा मान जाओगी. और तुम तो ये भी कह रही थी कि अगर में न आया तो बोलना ही बंद कर दोगी. इसलिए जल्दी से भगा चला आया."

माला को मानिक की यह बात सुन बहुत खुशी हुई कि उसने इस बात को गम्भीरता से लिया था कि अगर वोन आया तो मैं उससे बात करना बंद कर दूंगी. बोली, “अच्छा तुम्हें इतनी चिंता थी मेरी बात की. अगर सचमुच में मैं तुमसे बात करना बंद कर देती तो तुम दुखी होते क्या?"

मानिक ने तडप कर माला की तरफ देखा. उसकी आँखों में माला के प्रति अगाध प्रेम था. बोला, "मैं इस बात को सोच भी नही सकता. लगता है जैसे ये सब करना मेरे लिए कम से कम अब सम्भव नही है.या तो ये सब तब होता जब मैं तुमसे मिला ही नही था या फिर अब ऐसा होता ही नही. क्योंकि किसी से मिलकर बिछड़ना बहुत मुश्किल होता है. हाँ किसी से आप मिले ही नही तो बिछड़ने का दर्द आपको होगा ही नही.” ___ माला को भी ऐसा ही लगता था. वो खुद अब मानिक से अलग होने की सोच भी नही सकती थी. जिस दिन से छत पर मानिक को देखा था उस दिन से आज तक मानिक के प्रति प्रेम बढ़ ही रहा था न कि रत्तीभर भी कम हुआ हो.
वो मानिक की तरफ उदास नजरों से देख बोली, "सच कहते हो मानिक. मुझे भी ऐसा ही लगता है. जिस दिन तुम मुझे छत पर दिखाई दिए थे उस दिन से मैं सिर्फ तुम्हें ही याद करती रहती थी. लगता था कि तुम बहुत पहले से मुझे जानते हो और मैं तुम्हें बहुत पहले से जानती हूँ.” ___

मानिक उसकी बातों को चुपचाप बैठा सुन रहा था. वो जानता था कि माला कितने दुखी जीवन से निकल कर आई है. जिस उम्र में उसे अपने जीवन में उडान भरनी थी उस उम्र में वो पिता की उम्र के व्यक्ति के साथ व्याह दी गयी. और व्याह होते ही कोख भी बच्चे से भर दी गयी. जिम्मेदारी पर जिम्मेदारी आदमी को बोझ तले दबाती चली जाती है और ऐसे ही बोझ को ढोता वो आदमी अपने जीवन की सारी सीढियाँ पूरी कर चुका होता है. फिर एक दिन वो इस दुःख भरी दुनिया को छोड़ चला जाता है.

मानिक के दिल में थोडा डर भी था. बोला, "माला कहीं राणाजी चाचा को इस बात का पता चला तो कुछ बुरा न सोचने लग जाएँ? मुझे थोडा सा डर भी लगता है." माला को भी ये डर था लेकिन उसे राणाजी का शांत व्यवहार भी पता था. पता नही उसे ऐसा क्यों लगता था कि राणाजी को इस बात का बुरा नही लगेगा. बोली, "नही मानिक. वो इस बात का बुरा नही मानेंगे. अरे हम कोई बुरा काम थोड़े ही न कर रहे हैं. साथ बैठकर बातें करना कोई गुनाह तो है नही जो वो नाराज़ होने लगें?"

मानिक को पता था कि ऐसा नहीं है. किसी की बीबी के पास अकेले में बैठना. बातें करना किसी को भी अच्छा नही लगेगा. बोला, "लेकिन हम अकेले में बैठ बातें करेंगे तो कोई भी बुरा तो सोचेगा न और तुम खुद सोचो कि अगर एक लड़का और एक लडकी इस तरह मिल रहे हैं तो क्या बात होगी?

फ़ालतू में तो नही मिल रहे होंगे. कुछ न कुछ तो होगा दोनों के बीच. क्या तुम नही ऐसा सोचतीं. खुद मैं अगर किसी को ऐसे मिलते देखता तो मैं भी उसके बारे में यही सोचता कि जरुर दोनों के बीच कुछ होगा."
Reply
07-03-2020, 01:21 PM,
#37
RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
माला की नजरें झुकी हुईं थी. सच में उसे भी ऐसा ही लगता था कि वो मानिक से प्रेम कर बैठी है. वेशक मुंह से नही कहा था लेकिन दिल जानता था कि मानिक उसका है. बोली, "मैं क्या कहूँ मानिक. मैं तो इस रिश्ते को कोई नाम ही नहीं दे पा रही हूँ. दिल को तुम अच्छे लगे बस इससे ज्यादा मैं कुछ नही जानती लेकिन किसी की वजह से मैं तुमसे मिलना भी तो नही छोड़ सकती हूँ. अब इसका जो भी मतलब होता हो वो होता रहे. मुझे इससे कोई फर्क नही पड़ता."

मानिकको आज यकीन हो गया कि माला उससे सचमुच में प्यार करती है. बोला, "तो इसका मतलब तुम राणाजी चाचा से...मेरा मतलब उनको प्यार नही करतीं. तो उनके साथ ये सब...ऐसे साथ रहना और बच्चा भी...?"

मानिक ने माला की दुखती रग पर हाथ रख दिया था. वो सच में राणाजी से प्यार नही करती थी लेकिन राणाजी को वो अच्छा आदमी मान इज्जत जरुर करती थी. बोली, "ये बात सच है मानिक, मैं आज तक उनसे प्यार नही कर पायी. मेरे दिल ने उन्हें शुरू से आज तक उन्हें बहुत अच्छा इन्सान माना है. वेशक मैं उन्हें अपना सर्वस्व सौप चुकी हूँ. उनके बच्चे की माँ भी बनने वाली हूँ लेकिन आज तक मेरा दिल उनसे मोहब्बत नहीं कर पाया है. उन्हें देखकर मेरे दिल में इज्जत का भाव तो आता है लेकिन वैसा नही लगता जैसा.."

मानिक जानता था माला उसका नाम लेने वाली थी. माला भी जानती थी कि मानिक को पता है कि मैं उसका ही नाम लेने वाली थी. प्यार की वयार वह निकली निकली थी. जिसको दोनों ही महसूस कर रहे थे. माला चोरी चोरी मानिक को देख लेती थी और मानिक माला को. लेकिन दोनों को ही अपने दिलों की बात कबूलने में बहुत मुश्किल हो रही थी.

अभी दो ही दिन तो हुए थे दोनों को मिले हुए और दो दिन की मुलाकात में कोई कितना कह सकता है. लेकिन प्यार की बात अलग होती है. उसे कितने दिन और कितने समय से कोई मतलब नही होता. वो तो बस मौका देखता है किसी से होने का. जैसे ही कोई अपने मेल का मिलता है बस वो उससे प्यार कर बैठता है. यही तो हुआ था इन दोनों मानिक बात को ज्यादा टालना नही चाहता था. वो ये भी नहीं चाहता था कि माला को बिना बात किसी संकट में डाले.बोला, "माला मैं ये चाहता हूँ कि तुम जो भी करो सोच समझ कर करना. मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से तुम्हें कोई भी परेशानी हो. जो मेरे दिल में है या जो तुम्हारे दिल में उससे बहुत बड़ा फर्क पड़ता है लेकिन हमें अपने बुरे भले का भी सोचना चाहिए. मैं तो लड़का हूँ मुझे कोई कुछ नहीं कहेगा लेकिन तुम लडकी हो और एक घर की बहू भी तुम्हें इस बात से बहुत फर्क पड़ेगा. इसलिए इस बात को बढ़ाने से पहले ठीक से सोच लेना."

माला बास्तव में अपने प्यार पर भरोसा करती थी. उसका दिल भी मोहब्बत करने का दृढ निश्चय कर चुका था. बोली, "मानिक तुम अगर चाहो तो पीछे हट सकते हो लेकिन मैं अपनी तरफ से एक कदम भी पीछे नही हटूंगी. मैंने जो भी किया है वो बहुत सोच समझ कर तो नही किया लेकिन मेरे मन से यह सब करना इतना गलत भी नही होता. अगर गलत होता तो इसे कोई भी नहीं करता. मेरे पति मुझे खरीद लाये हैं लेकिन मेरे मन पर उनका नियत्रण नही हो सकता है. वो आज भी मेरा है और पहले भी मेरा ही था. मैं अपने मन से तुम्हें अपना मानती हूँ. बाकी तुम्हारा तुम जानो."

मानिक इस बात को सुन कब पीछे रहता. बोला,
"माला पीछे तो मैं भी हटना नही चाहता लेकिन तुम्हारे बारे में सोच पीछे हटने का मन करता है. पता नहीं गाँव में ये बात फैलने पर क्या होगा? वैसे ही लोग राणाजी चाचा का बुरा देखने को हर वक्त लालयित रहते हैं. मुझे तुम्हारा डर न होता तो मैं पीछे हटने की बात को सोचता तक नहीं लेकिन आज तुम कहती हो कि तुम पीछे नही हटोगी तो मैं भी तुमसे वादा करता हूँ कि मैं भी मरते दम तक तुम्हारा साथ नही छोडूंगा. ये बात मैं तुम्हारे सामने खड़ा हो पूरे होशोहवास से कहता हूँ.”

दोनों अपने अपने प्यार का दृढ निश्चय कर चुके थे. दोनों की शर्म कम होती जा रही थी. बातों बातों में शाम का वक्त होने जा रहा था. जिसकी खबर माला को भी थी और मानिक को भी थी. मानिक उठ खड़ा हुआ और बोला, "अच्छा माला मैं चलता हूँ. पता नही किस वक्त राणाजी चाचा आ जाय. साथ ही मेरे पिता भी मेरा रास्ता देखते होंगे." ___

माला के दिल में धुकधुकी चल पड़ी. मानिक को खुद से दूर करने का तो मन करता ही नहीं था. बूंद बूंद इश्क को तरसी माला अपने मानिक को दिल से दूर नही करना चाहती थी. बोली, “मानिक तुम जाने को होते हो तो हमे बैचेनी होने लगती है. लगता है तुम हमे छोड़कर जाओगे और फिर कभी हमसे मिलने न आओगे. कही तुम हमें छोड़ तो नही जाओगे?"

मानिक को माला की आवाज में बड़ी तड़पन महसूस हुई. बोला, “तुम्हारी कसम खाकर कहता हूँ माला. जब तक तुम मुझे धक्का मार कर न भगाओगी तब तक मैं तुम्हें छोड़कर नही जाऊँगा. या जिस दिन तुम खुद ये कह दोगी कि तुम्हें मेरे साथ नही रहना. उस दिन ही मैं तुम्हारे पास नही आऊंगा. नही तो मेरा मन कभी तुमसे अलग न होगा."

माला को मानिक की बात पर पूरा भरोसा था. वो जानती थी मानिक कभी उसे धोखा नहीं देगा. माला उठ खड़ी हुई और मानिक को एक बार फिर से सीने से लगा लिया. दोनों बेहया हो एक दूसरे से लिपट गये. माला की कोख में राणाजी का दिया गर्भ था लेकिन मन में मानिक बसा जा रहा था. क्या करे अभागन लडकी? अपने दिल की न सुने तो किसकी सुने. न कोई समझाने वाला और न कोई सहारा देने वाला घर में मौजूद था. बेतरतीब अकेलापन और मन में किसी के न होने का खालीपन.
Reply
07-03-2020, 01:21 PM,
#38
RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
मानिक ने इस सब की कमी को पूरा कर दिया था. वो तो टूटकर प्यार करेगी उसे. अब जो बुरा माने सो मानता रहे. __मानिक ने समय का तकाजा महसूस कर माला को अपने से अलग किया. माला की आँखें भीगी हुई थी. मानिक ने उसके आंसुओं को अपनी हथेली से साफ़ किया और बोला, "रोती क्यों हो पगली? अब तो सब कुछ ठीक है. फिर ये आंसू क्यों?" ___

माला भर्राए हुए गले से बोली, “ये तुमसे अलग होने के कारण हो रहा है. अच्छा कल फिर से आओगे न? अगर न आये तो मेरा तो मन ही नही लगेगा. तुम कल भी आना और रोज आना, देख लेना एक भी दिन न आये तो मैं खुद तुम्हारे घर चली आउंगी.” ___

मानिक माला की बात सुन मुस्कुरा पड़ा और बोला, "ठीक है बाबा. कल भी आऊंगा और रोज आया करूँगा. और तुम क्या समझती हो कि मैं तुम्हारे पास न आया तो में खुश रहूँगा. अरे मुझे भी तुम्हारी उतनी ही याद आएगी। जितनी कि तुम्हें मेरी. में कल जरुर आऊंगा. अच्छा अब मैं चलता हूँ. कोई आ गया तो ठीक नही रहेगा."

इतना कह मानिक वहां से चल दिया. पैर तो आगे को न पड़ते थे लेकिन जाना जरूरी था. मुड मुड कर माला की तरफ देखा. माला भी भीगी आँखों से अपने मन को जाते हुए देख रही थी. थोड़ी ही देर में मानिक उसकी आँखों से ओझल हो गया. माला अभी भी उसी तरफ देख एक ही जगह जमी हुई थी. लगता था जैसे उसे मानिक के फिर से लौट आने का इन्तजार था.
Reply
07-03-2020, 01:22 PM,
#39
RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
भाग -5
सुन्दरी कौशल्या देवी के घर बैठी हुई चाय पी रही थी. कौशल्या देवी ने अचानक ही उससे पूछ लिया, “अरे सुन्दरी तुम कभी अपने गाँव नही जातीं. मैंने कभी सुना नही कि तुम कभी अपने गाँव गयी हो?" सु

न्दरी का चाय पीना रुक गया. आंगें डबडबा गयीं. गला दुःख से दर्द कर उठा. मुंह से बात बड़ी मुश्किल से निकली, "जीजी मन तो करता है लेकिन घरवालों ने मना कर दिया था. कहते थे जहाँ तक संभव हो वापस लौटकर न आना. यहाँ का पता भी ले लिया था लेकिन आज तक एक चिट्ठी भी न लिखी. मैं भी सोचती हूँ कि क्या करूंगी जाकर. वहां एक समय भूखा सोना पड़ता था और कभी कभी महीनों चावल खाकर ही गुजर जाते थे. चावल में सिर्फ नमक था डालने के लिए. मसालेदार चावल खाने के लिए महीनों तरसना पड़ता था. रोटी सब्जी तो मैने ठीक से यहीं आकर खायी है. अब तुम ही बताओ जब उन लोगों पर खुद ही खाने को नही तो मैं वहां जाकर क्या खाऊँगी?"

वाबली सी दिखने वाली सुन्दरी के दिल में दर्द का भंडार था. आँखों से आंसुओं की धार वह रही थी. शायद फिर से उसे अपने घर का भुखमरी का मंजर याद आ गया था. कौशल्यादेवी की आँखें भी उसकी गरीबी का किस्सा सुन रो पड़ी थीं. उन्हें सुन्दरी के बारे में और ज्यादा जानने की जिज्ञासा हो उठी. बोली, "अच्छा सुन्दरी ये संतराम से तुम्हारी शादी कैसे हुई? क्या कोई जान पहचान थी तुम्हारे घरवालों से संतराम की?"

सुन्दरी ने अपनी आँखों से आंसू पोंछे और बोली, “न जीजी. हमारे घर का कोई तो इस गाँव का नाम तक पहले नही जानता था. मेरे बाबूजी एक दिल्ली की फैक्ट्री में नौकरी करते थे. वहां उन्हें कोई बीमारी लग गयी. नौकरी छोड़ घर पर आ गये. इलाज के पैसे ही नही थे. बस जिसने भी कोई देसी रुखड़ी बताई वही लाकर खिला दी और एकदिन मेरे बाबूजी हम सब को छोड़कर चल बसे. अब हमारे घर में हम तीन बहनें और दो छोटे भाई रह गये थे. जिन्हें हमारी माँ जैसे तैसे पाल रही थी. मेरी बहनें एक मुझसे बड़ी और एक मुझसे छोटी थी. माँ को हमारी शादी और छोटे भाइयों की जिन्दगी की बहुत चिंता थी. हमारी बस्तियों में लडकियों की शादी एक अलग ही तरीके से होती है. बाहर के लोग आकर बस्ती की सारी लडकियों को देखते हैं और जो अच्छी लगती है उसे उसकी कीमत दे अपने साथ ले जाते हैं.

मेरी माँ से भी बस्ती के लोगों ने हम तीनों बहनों के साथ यही सब करने के लिए कहा. माँ का मन तो नही करता था लेकिन हमारी बढती उम्र और अपने घर की आर्थिक हालत को सोच उन्होंने हमें इसी तरह बेच देने का सोच ली.

मैं पहली बार इस तरह के हालात से गुजर रही थी. मेरी शक्ल देख कोई मुझे खरीदने को तैयार नहीं होता था लेकिन तभी ये संतराम ने मेरी और देख मेरी कीमत पूंछ ली. जो लोग लडकियों का सौदा करते हैं वही लोग लडकियों के माँ बाप को पूंछ कर उनकी कीमत रख देते हैं. मेरी कीमत पांच हजार रखी गयी थी लेकिन कोई भी इस कीमत पर मुझे खरीदने को राजी नही हुआ था. संतराम ने मुझे चार हजार में तय कर लिया.

मेरी माँ भी इस कीमत पर मान गयी लेकिन उसकी आँखें मुझे छोड़ने को तैयार दिखाई नही देती थीं. मेरी बहनों की कीमत मुझसे ज्यादा लगाई गयी थी. वो दोनों मुझसे सुंदर दिखती थीं. छोटी बहन हम तीनों से ज्यादा कीमत में तय हुई थी. उसकी छह हजार कीमत लगी और बड़ी बहन की पांच हजार. एक ही दिन में तीनों बहनों का सौदा हो गया था.

वहीं का पंडित एक साथ बिठा सबकी शादी करा देता है. ऐसा ही हमारे साथ भी हुआ था. जब हम तीनों बहने उन आदमियों के साथ जा रहीं थीं जिन्होंने हमारे रूपये दिए थे तो हम तीनों बहनें माँ से लिपट कर बहुत रोयीं थी. माँ भी खूब फूट फूट कर रोई थी. मेरे भाई तो हम तीनों बहनों के साथ भागने को रोते थे. कहते थे कि हम तो अपनी जीजी के साथ ही जायेंगे लेकिन माँ ने उनकी पिटाई कर घर में बंद कर दिया और हम लोगों को विदा करते वक्त माँ ने हमें समझा समझा कर कहा कि हम फिर से उसके पास न आयें, शायद वो हमें फिर से भूखा और नंगा रहते नही देखना चाहती थी. मुझे आज तक अपनी माँ की याद आती है. मैं अपने भाइयों को देखने के लिए तो मरी जाती हूँ,

माँ को जो पैसे मिले थे उसमें से कुछ तो बीच के लोग खा गये होंगे लेकिन जो पैसा उन्हें मिला होगा उससे वो ठीक से अपना जीवन काट पायी होंगी. मैं चलते समय माँ से कहकर आई थी कि इन पैसों से छोटे भाइयों की पढाई जरुर करवाए. जिससे पढ़ लिख कर वो सरकारी बाबू बनें. फिर घर में किसी बात की कमी न होगी. ___मैं अपनी माँ से ये भी कहकर आई थी कि जब ये दोनों भाई पढ़ लिखकर बड़े हो जाएँ तो मुझे वुलवा लेना. पता नही आज मेरे दोनों भाई क्या करते होंगे, माँ कैसे रहती होगी. शायद वो भी मेरी याद कर कर के रोते होंगे. मेरी बहनें भी मुझे याद करती होंगी." इतना कहते सुन्दरी हिल्की भर भर के रो पड़ी.

पूरा गाँव इस अभागन को पागल समझता था लेकिन इसके सीने में जो दर्द था उसे शायद ही कोई जानता था. पागल औरत अपने आप पागल नही हुई थी. उसके साथ बीती दर्दनाक घटना और उसकी गुरवत ने उसे पागल कर दिया था. शादी हुए कितना समय हुआ लेकिन माँ की तरफ से कोई खबर खोज नहीं थी. यहाँ भी कोई ऐसा नहीं था जिसे सुन्दरी से माँ कहने का मौका मिलता.
Reply
07-03-2020, 01:25 PM,
#40
RE: अन्तर्वासना - मोल की एक औरत
कौशल्या देवी का दिल भी उसकी बातों को सुन बैठ गया था. सोचती थी कितनी अभागिन है ये स्त्री जो किसी सामान की तरफ कीमतों से तुलकर आई है. कितना दुःख इस लडकी को मिला है. बोली, “अच्छा सुन्दरी तुम्हारी बहन कौन से गाँव में रहती हैं? क्या उनसे तुम्हारा मिलना हो पाया?"

सुन्दरी फिर आँखें भर लायी और भर्राए हुए गले से बोली, "नही जीजी. मुझे तो ये तक नहीं पता कि वो किस गाँव में गयी हैं. शायद माँ को उनका कोई पता मालूम हो और जब में कभी उनसे मिलने न जा पाई तो वो कैसे मुझसे मिलने आ पातीं. हमारे यहाँ की सारी लडकियों की यही हालत होती है. जो एकबार गयी वो दोबारा लौटकर नही आती. खरीदने वाले समझते हैं कि वे वापस गयी तो लौटकर नही आएँगी और लडकियों के माँ बाप सोचते हैं कि लडकी वापस आई तो कैसे उसका खर्चा उठाएंगे? बस यही सब होता है जिससे कोई लडकी कभी वापस नही आ पाती. पता नही जाने कौन सा ऐसा दिन आएगा जिस दिन ये सब होना बंद हो जाएगा. पता नही कब वहां की गरीबी दूर होगी. मैं तो आज तक इसी इन्तजार में बैठी हूँ.” *
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

बल्ली के घर कोहराम मचा हुआ था. लोगों का हुजूम उसके घर में घुस गया. अंदर जाकर देखा तो बल्ली अपना सर पकड़ कर रोये जा रहा था. थोड़े आगे उसकी औरत जमीन पर मुंह फाड़े पड़ी हुई थी. मुंह से खून सा वह रहा था. पेट को देखकर लगता था कि वो गर्भवती है लेकिन पैरों की तरह बहुत सारा खून और पानी सा निकला पड़ा था. मोहल्ले की औरतों ने आकर बल्ली से पूछा कि ये सब क्या हुआ है.

बल्ली जोर जोर से रोते हुए बोला, "कुछ नही भाभी. मैं तो लुट गया. मैं जब घर आया तो इससे छोटी सी बात पर मेरी कहा सुनी हो गयी. मैंने इसको बहुत समझाया लेकिन ये मानी नही और बात बात में इससे मेरी धक्का मुक्की हो गयी. इसी बीच ये जमीन पर पेट के बल गिर पड़ी और मर गयी. मैं तो लुट गया भाई लोगो. इसे सात हजार में लाया था. मेरा पूरा पैसा डूब गया. अब मैं क्या करूँगा. मेरे हाथ से तो औरत भी गयी और पैसा भी गया."

बल्ली गाँव के लोगों से झूठ बोल रहा था. दरअसल उसने अपनी बीबी को गुस्से में आ पेट पर लात मर दी थी. चूँकि वो स्त्री गर्भवती थी तो पेट पर लात पड़ते ही उसके प्राणों पर बन आई. गर्भाशय पर लात लगने से उसमें से श्राव होने लगा और दर्द के अतिरेक से उस अभागन के प्राण चले ही गये. लेकिन बल्ली को उससे ज्यादा अपने पैसों की फिकर थी. जो उसने भीख मांग मांग कर जोड़े थे और उनसे इस औरत को खरीद कर लाया था,

आसपास खड़े लोगों में से एक आदमी ने बल्ली को डपट दिया, “चुप रह रे बल्ली. वो औरत मर गयी और तुझे अपने पैसों की पड़ी है. तेरे अंदर दिल है कि नही? कम से कम इस वक्त तो ये बातें मत कर. चल अब जल्दी से इसके माँ बाप को खबर कर दे. वो लोग आयेंगे तो इसका क्रिया कर्म हो पायेगा." बल्ली उसके माँ बाप को कहाँ से खबर करता. बल्ली तो उस औरत को पैसे देकर लाया था. फिर अब उनसे उस का क्या मतलब.

बल्ली उस आदमी से बोला, "दद्दा मैं तो इसको पैसे दे कर लाया था. इसके माँ बाप का तो मुझे खबर ही नही कौन हैं. मुझे तो दलाल ने ये औरत दी थी." गाँव के हर आदमी औरत के मुंह पर आश्चर्य था. मरी पड़ी औरत का इस दुनियां में कोई नही था. उसकी सुध लेने के लिए कोई आ ही नही सकता था. लोगों ने पुलिस तक को कोई खबर न दी. सोचते थे गाँव का बल्ली बेकार में फंस जाएगा इसलिए चुपचाप इस औरत का क्रिया कर्म कर देते हैं.

सब लोगों ने मिलकर उस औरत को चिता के हवाले कर दिया. बिहार में बैठे उसके माँ बाप और भाई बहनों को पता तक नही था कि उनके घर की लडकी का क्या हश्र हुआ है. बल्ली ने तो झूट बोल दिया था कि इसका कोई नही है. हकीकत में तो उसका पूरा परिवार था. शायद ही जिन्दगी भर उन्हें पता पड़ पाए कि उनकी लडकी अब इस दुनियां में नहीं है. ऐसा ही होता है इन लड़कियों के साथ. हजारों लडकियाँ ऐसे ही बेच दी गयीं लेकिन कितनी उसमे से जिन्दा हैं और कितनी मर गयीं ये बात कोई नही जानता. अपनी पत्नी की चिता में आग देकर लौटा बल्ली आज फिर सोच रहा था कि अब फिर से मन लगाकर सीधा(भीख) मांगेगा और दोबारा एक दुल्हन लायेगा. फिर कभी उसके पेट पर लात नही मारेगा जिससे वो मर जाए और उसके खुद के पैसों का नुकसान हो जाय. बल्ली ने यह सोच दूसरे दिन से फिर मन लगा कर सीधा मांगने की सोच डाली.
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,413,955 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 534,694 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,197,038 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 904,755 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,605,187 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,039,154 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,882,210 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 13,826,729 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 3,944,987 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 276,906 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 2 Guest(s)