एक अनोखा बंधन - पुनः प्रारम्भ
04-16-2020, 05:30 PM, (This post was last modified: 04-16-2020, 06:28 PM by hotaks.)
#1
एक अनोखा बंधन - पुनः प्रारम्भ
एक अनोखा बंधन - पुनः प्रारम्भ

नमस्ते दोस्तों!


ये मेरी सबसे पहली कहानी थी जिसे मैंने Xossip पर शुरू किया था| वहाँ मुझे इस कहानी का बहुत ही जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली थी, सभी रीडर्स ने इसे बहुत सरहाया था यहाँ तक की मुझे इसका दूसरा पार्ट भी लिखने को कहा गया था, पर कुछ कारणों से मैं उसे पूरा नहीं कर पाया....

इसबार ये कहानी मैं दुबारा शुरू कर रहा हूँ, क्योंकि ये मेरी पहली कहानी थी तो उस समय इस कहानी में काफी त्रुटियाँ रह गई थीं! अब आपको इस कहानी के बारे में कुछ ख़ास बातें बता दूँ, ये कहानी मेरे दिमाग की उपज नहीं है बल्कि ये कहानी मेरे जीवन का अटूट हिस्सा है| चूँकि ये मेरी आप बीती है तो कृपया कमेंट करते समय धैर्य रखें तथा शब्दों का सही चुनाव कर के कमेंट करें| मैं इस कहानी के प्रति बहुत संवेदनशील हूँ! इसलिए कृपया अपने सवालों को सोच समझ कर पूछें!

कहानी में आगे चल कर एक ऐसा मोड़ आएगा जहाँ से मेरी असली जिंदगी बहुत ज्यादा प्रभावित हुई थी और ठीक इसी जगह से कहानी में काल्पनिक बदलाव आएंगे| वो मोड़ कौन सा था ये आपको कहानी के अंत में पता लगेगा!

इस कहानी को मैंने INCEST की केटेगरी में इसलिए डाला है क्योंकि इसमें रिश्ते बने ही ऐसे थे| बाकी ये एक पूरी तरह से रोमांटिक कहानी है! ये कहानी पूरे तरीके से समाज के नियमों के खिलाफ जाती है इसलिए अपनी कुर्सी की पेटियाँ बाँध कर बैठिएगा!
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07-12-2020, 08:31 PM,
#2
RE: एक अनोखा बंधन - पुनः प्रारम्भ
पात्र 

इससे पहले की मैं कहानी शुरू करूँ मैं पहले आपको इसके पत्रों से रूबरू करना चाहता हूँ| सभी पात्रों के नाम काल्पनिक हैं, सिवाए दो मुख्य पात्रों के!

तो चलिए शुरू करते हैं, मेरे पिता के दो भाई हैं और एक बहन जिनके नाम इस प्रकार हैं :

. बड़े भाई - राकेश (जिन्हें में 'बड़के दादा' कहता हूँ|)
. मझिल* - मुकेश (*बीच वाले भाई, जिन्हें मैं मझोले दादा कहता हूँ|)
. सुरेश (मेरे पिता)
. बड़ी बहन - रेणुका


बड़े भाई राकेश के पाँच पुत्र हैं| उनके नाम इस प्रकार हैं :

. चन्दर
. अशोक - मधु (पत्नी) - राकेश (पुत्र)
. अजय - रसिका (पत्नी) वरुण (पुत्र)
. अनिल
. गटु



मझिले दादा के तीन पुत्र और तीन पुत्रियाँ हैं| उनके नाम इस प्रकार हैं


. रामु (बड़ा लड़का)
. शिवु
. पंकज
. सोनिया (बड़ी बेटी)
. सलोनी
. सरोज

इस कहानी में केवल और केवल बड़के दादा और उनके परिवार के ही नाम जर्रूरी हैं, कारन आपको आगे पता चल जायेगा|
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07-12-2020, 08:33 PM,
#3
RE: एक अनोखा बंधन - पुनः प्रारम्भ
प्रथम अध्याय : पारिवारिक कलह

हमारा गाओं उत्तर प्रदेश के एक छोटे से प्रांत में है| एक हरा भरा गाओं जिसकी खासियत है उसके बाग़ बगीचे और हरी भरी फसलों से लह-लहाते खेत परन्तु मौलिक सुविधाओं की यदि बात करें तो वह के बराबर है| सड़क, बिजली और ही शौचालय! शौचालय की बात आई है तो आप को शौच के स्थान के बारे में बता दूँ की हमारे गावों में मूँज नामक पौधा होता है, जो झाड़ की तरह फैला होता है| सुबह-सुबह लोग अपने खेतों में इन्ही मूँज के पौधों की ओट में सौच के लिए जाते हैं, आदमी और औरतों के लिए अलग-अलग जगह है शौच की| अस्पताल गाँव से एक घंटा दूर है, अगर कोई इंसान बीमार होता तो कई बार अस्पताल पहुँचने से पहले ही मर जाता| चूँकि गाँव में सड़कें नहीं हैं तो आने-जाने के बस तीन ही साधन हैं; साइकिल, रिक्शा या बैल गाडी! प्रमुख सड़क जो घर से करीब 20 मिनट दूर है वहाँ से जीप, टाटा बस या फिर एक पुराने जमाने का ऑटो चलता है|

पाँचवीं तक पढ़े मेरे पिताजी ने जवानी में कदम रखते ही घर छोड़ दिया था, शहर कर उन्होंने नौकरी ढूँढी और फिर एक दिन उनकी मुलाक़ात मेरी माँ से हुई| मेरी माँ का पूरा परिवार एक हादसे में मर गया था, शहर में माँ को एक घर में आया की नौकरी मिल गई थी और वो वहीं रहा करती थी| जल्द ही माँ-पिताजी को प्यार हुआ और हालात कुछ ऐसे बिगड़े की दोनों को शहर में ही शादी करनी पड़ी| शादी कर के जब पिताजी गाँव लौटे तो उनका बहुत तिरस्कार हुआ! कारन था माँ का दूसरी ज़ात का होना! बड़के दादा ने उन्हें बड़ा जलील किया और गन्दी-गन्दी गालियाँ देकर घर से निकाल दिया| पिताजी ने चुप-चाप उनका तिरस्कार सहा और सर झुकाये हुए दिल्ली वापस गए| वो बड़के दादा को अपने पिताजी की तरह पूजते थे और उनका हर हुक्म उनके लिए आदेश होता था जिसकी अवहेलना वो कभी नहीं कर सकते थे| जिंदगी में पहलीबार उन्होंने बिना बताये प्यार किया और उसके नतीजन उन्हें घर निकाला मिला!
मेरे माझिले दादा बहुत लालची प्रवित्ति के थे और पिताजी को घर से निकालते ही उन्होंने उनके हिस्से की जमीन पर कब्ज़ा कर लिया| बड़के दादा को पता चले उसके पहले ही उन्होंने वो जमीन तथा अपने हिस्से की जमीन बेच कर रेवाड़ी गए| बड़के दादा को ये पता तब चला जब साहूकार जमीन पर अपना कब्ज़ा लेने आया| बड़के दादा का दिल बहुत दुखा पर वो अब कुछ नहीं कर सकते थे, क्योंकि माझिले दादा रेवाड़ी में कहाँ थे इसका उन्हें कुछ पता नहीं था|

इधर इन सब बातों से अनजान, पिताजी ने शहर में अपनी नई जिंदगी शुरू कर दी थी| माँ से शादी करने के बाद उनकी किस्मत ने बहुत बड़ी करवट ली थी| पिताजी ने बहुत ही छोटे स्तर पर ठेकेदारी शुरू कर दी थी, छोटे-मोटे काम जैसे की कारपेन्टरी, प्लंबिंग का काम करवाना| इससे घर में आमदनी शुरू हो गई थी और गुजर-बसर आराम से हो जाता था| फिर पिताजी को पता चला की माँ पेट से हैं तो वो बहुत खुश हुए पर तब तक काम इतना फ़ैल चूका था की उनके पास माँ के लिए समय नहीं होता था| माँ को रक्तचाप की समस्या थी इसलिए डॉक्टर ने माँ को कुछ ख़ास हिदायतें दी थीं जैसे की चावल ना खाना, नमक ना खाना, अधिक से अधिक आराम करना आदि| पर पिताजी की अनुपस्थिति में माँ लापरवाह हो गईं और उनके चोरी-छुपे उन्होंने वो सारी चीजें की जो उन्हें नहीं करनी चाहिए थी| इसके परिणाम स्वरुप जब मेरा जन्म हुआ तो मैं शारीरिक रूप से बहुत कमजोर था, मेरे जिस्म का तापमान काफी ज्यादा था और माँ-पिताजी की रक्तचाप की अनुवांशिक बिमारी मुझे सौगात में मिली| मेरे जन्म के दो महीने तक पिताजी मुझे गोद में नहीं उठाते थे, उन्हें डर था की कहीं उनके सख्त हाथों से मुझे कोई चोट ना लग जाए! मेरी माँ मुझे बड़ा लाड-प्यार करती थी और दिनभर में नाजाने कितने नामों से पुकारती| तीन महीने बाद जब पिताजी ने मुझे गोद में लिया तो उनके दुलार की कोई सीमा नहीं थी, उनके प्यार के आगे माँ का लाड-प्यार कम था| पिताजी ने काम-धाम छोड़ कर बस मुझे गोद में खिलाना शुरू कर दिया| सिवाए दूध पिलाने के, पिताजी सारे काम करते थे| जो सबसे ज्यादा उन्हें पसंद था वो था मेरी मालिश करना, उनकी जितनी मालिश कभी किसी ने अपने बच्चे की नहीं की होगी| पिताजी मुझे प्यार से लाड-साहब कहा करते और मेरी माँ तो मेरे प्यार से इतने सारे नाम रखती की पिताजी हँस पड़ते थे|

दिन बड़े प्यार-मोहब्बत से बीत रहे थे और मैं अब 3 साल का हो गया था| की तभी एक दिन...........
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07-12-2020, 08:38 PM,
#4
RE: एक अनोखा बंधन - पुनः प्रारम्भ
द्वितीय अध्याय : घर वापसी
 

मैं तीन साल का था तब एक दिन गाँव से पिताजी को तार आया| दिल्ली में जहाँ पिताजी शादी से पहले रहा करते थे, वहीं से बड़के दादा ने पिताजी का नया पता ढूँढ निकाला था और आज तीन साल बाद उन्होंने तार दे कर उन्हें मिलने बुलाया था| तार पढ़ते ही पिताजी फूले नहीं समाये और तुरंत मुझे और माँ को ले कर गाँव पहुँच गए| मैं तब माँ की गोद में था, बड़की अम्मा (बड़के दादा की पत्नी) ने मुझे देखते ही अपनी गोद में ले लिया था और मेरे चेहरे को चूमना शुरू कर दिया था| बड़के दादा ने माँ-पिताजी को माफ़ कर दिया था और ख़ुशी-ख़ुशी अपना लिया था| पिताजी को जब माझिले दादा की करनी का पता लगा तो उन्हें बहुत बड़ा झटका लगा और उन्होंने सोच लिया की कभी न कभी वो उन्हें ढूँढ कर उनसे बात अवश्य करेंगे|
             बड़के दादा के पाँचों बच्चे बड़े हो गए थे और एक-एक कर सब ने माँ-पिताजी के पाँव छुए और आशीर्वाद लिया| मैं चूँकि घर में सबसे छोटा था तो मुझे सब का लाड-प्यार मिलने लगा था| बड़के दादा के साथ मेरा उतना लगाव नहीं था जितना होना चाहिए था, पर देखा जाए तो उनका लगाव बच्चों से अधिक था भी नहीं! बहरहाल बड़के दादा का मेरे पिताजी को घर बुलाने का कारन कुछ और था| दरअसल उन्हें एक बड़ा घर बनाना था और सिवाए मेरे पिताजी के और कोई नहीं था जो उनकी मदद करता| मेर पिताजी तो थे ही अपने भाई के प्यार में अंधे तो जैसे-जैसा बड़के दादा कहते गए वैसे-वैसे पिताजी करते गए और इस तरह 5 कमरों का एक बड़ा घर तैयार हुआ जिसे बनाने में पिताजी की पाई-पाई लगी| एक कमरा हमारा था, एक बड़के दादा और बड़की अम्मा का, एक कमरा चारों भतीजों का क्योंकि अभी उनकी शादी नहीं हुई थी, और बाकी में अनाज भर दिया गया था|      
 
खेर मैं बड़ा होने लगा था और अब स्कूल जाने लगा था| धीरे-धीरे मैं बड़ी क्लास में आगया और पिताजी का बर्ताव मेरे प्रति कठोर होता गया| पिताजी मुझे हिंदी और गणित पढ़ाया करते और ऐसा पढ़ाते की मेरे आँसू निकाल दिया करते! जब भी मैं गलती करता तो पिताजी बहुत झाड़ते, इतना झाड़ते के पड़ोसियों तक को पता चल जाता की पिताजी मेरी क्लास ले रहे हैं! माँ चुप-चाप देखती रहती, कहती भी क्या क्योंकि पिताजी के आगे तो उनकी चलती नहीं थी!  पढ़ाई के साथ-साथ पिताजी ने मेरे अंदर शिष्टाचार कूट-कूट कर भरने शरू कर दिए थे, कूट-कूट के भरने से मेरा मतलब है पीट-पीट कर! अपने से बड़ों से कैसे बात करते हैं, कोई पैसे दे तो नहीं लेना, अपने से बड़ों के पाँव छूना और हाथ जोड़ कर उन्हें नमस्ते कहना, तू-तड़ाक से बात न करना, गालियाँ या अपशब्द इस्तेमाल न करना, सबसे 'जी' लगा कर बात करना, खाना बर्बाद न करना, मन लगा कर पढ़ना, आवारागर्दी नहीं करना, बिना बताये कोई काम नहीं करना आदि! पिताजी की सख्ती के कारन ही मैं खेल में कम और पढ़ाई में ज्यादा मन लगाया करता, पर इस सब के बावजूद कभी-कभी गलती कर दिया करता और पिताजी बहुत भड़क जाते| पर एक गुण अवश्य था मुझमें, जो गलती एक बार कर देता था उसे दुबारा कभी नहीं करता था| मेरे जैसा आज्ञाकारी बच्चा पूरे मोहल्ले में नहीं था, जब कभी पिताजी मुझे मेरी की गलती पर सब के सामने डाँटते तो मेरी गर्दन शर्म से झुक जाती जो ये दर्शाता था की मैं अपने पिताजी का कितना मान करता हूँ| यही कारन था की मोहल्ले वाले पिताजी की बड़ाई करते नहीं थकते थे की उन्होंने कैसे आज्ञाकारी पुत्र की परवरिश की है और पिताजी को ये सुन कर खुद पर बहुत गर्व होता| 
                      स्कूल में जब गर्मियों की छुटियाँ होती तो पिताजी मुझे और माँ को गाँव ले जाय करते और वहाँ के लोग जब मेरा आचरण देखते तो पिताजी की छाती गर्व से चौड़ी हो जाती| वहाँ के बच्चों के उलट मैं सबसे बड़े प्यार और आदर से बात करता था| जिद्दी नहीं था, शर्मीला था, धुल-मिटटी में नहीं खेलता था, माँ-पिताजी की सारी बातें सुना और माना करता था|
 
 
मैं 4 साल का था की बड़के दादा ने चन्दर भैया की शादी के लिए पिताजी को घर बुलाया| शादी का सारा इंतजाम उन्होंने मेरे पिताजी के सर डाल दिया जिसे मेरे पिताजी ने अच्छी तरह से निभाया| गाँव में शादी-ब्याह के अवसर पर घर में रिश्तेदारों का ताँता लग जाता है| फिर मेरे पिताजी जो की दिल्ली में रहते थे, जिनका अपना घर था दिल्ली में और जिनका ठेकेदारी का काम अब काफी बढ़ और फ़ैल चूका था| उनकी बराबरी करने वाला पूरे खानदान में कोई नहीं था, जब शादी का सारा इंतजाम उनके सर पड़ा तो परिवार में उनकी इज्जत कई गुना बढ़ गई, घर का हर काम उनसे पूछ कर किया जाने लगा| इतनी इज्जत और शोहरत के बाद भी पिताजी का अपने बड़े भाई और भाभी के प्रति आदर भाव बना रहा| इधर बड़की अम्मा ने मुझे एक दिन अपने पास बिठाया और बोलीं; "मुन्ना बहुत जल्द तोहार खतिर एक ठो नीक-नीक भौजी आई!" (बहुत जल्दी तेरे लिए एक सुन्दर-सुन्दर भाभी आएगी|)
मुझे तब गाँव की भाषा समझ नहीं आती थी और अगर मुझे से कोई देहाती में बात करता तो मैं अपने माँ-पिताजी की तरफ देखने लगता था ताकि वो मुझे अनुवाद कर के बतायें| आज जब बड़की अम्मा ने मुझसे ये बात कही तो मेरे पल्ले नहीं पड़ी और मैं अपनी माँ की तरफ देखने लगा; "बड़की अम्मा कह रही हैं की अब बहुत जल्दी तेरी सुन्दर-सुन्दर भौजी आएँगी!" माँ ने बड़की अम्मा की बात का अनुवाद किया| बाकी सब तो मैं समझ गया पर ये 'भौजी' शब्द सुन मैं उलझ गया और सवालिया आँखों से माँ से पुछा; "भौजी मतलब?" ये सुन कर माँ और बड़की अम्मा हँस पड़े| "बेटाभौजी का मतलब होता है भाभी|" माँ ने हँसते हुए कहा| अब ये ऐसा शब्द था जो मैंने पहले सुन रखा था और मेरे छोटे से दिमाग के अनुसार इसका मतलब होता था अपने से किसी बड़े भैया की पत्नी पर पत्नी क्या होती ये मुझे नहीं पता था! ये कौन से वाला भैया की पत्नी होंगी इससे मुझे कोई मतलब नहीं था, मैं तो यही सोच कर खुश था की कोई नई-नई चीज घर में आने वाली है| खेर धीरे-धीरे मुझे पता चल ही गया की चन्दर भैया की शादी होने वाली है|    
            
शादी का दिन आया और बरात ले कर हम नई भाभी के घर पहुँचे, भाभी का घर यानी चन्दर भैया का ससुराल बहुत दूर नहीं था| यही कोई २-३ किलोमीटर होगा, पर पिताजी ने शादी का इंतजाम बिलकुल शहरी तरीके से किया था| हमारे यहाँ बरात में औरतें नहीं जाती, केवल मर्द जाते हैं| इसलिए घर पर सभी औरतें रुकी हुई थीं और पिताजी मुझे अपनी गोद में लेकर बड़के दादा के साथ चल रहे थे| गाजे-बाजे के साथ हम पहुँचे और वहाँ हमारा बहुत स्वागत हुआ| भाभी के परिवार में मेरा परिचय 'दिल्ली वाले काका' के लड़के के रूप में हुआ| सभी रस्में निभाई गईं और इस पूरे दौरान मैं पिताजी के साथ रहा| नई जगह थी और मैं किसी को जानता भी नहीं था, जिसे जानता भी था मतलब की मेरे बुआ के बच्चे या मौसा के बच्चे उनके साथ खो जाने के डर से नहीं गया| विवाह की रस्में खत्म होने के बाद भोजन हुआ जिसमें सारे भाई साथ बैठे थे| मैं चूँकि सबसे छोटा था और पिताजी से चिपका हुआ था इसलिए मैं वहाँ नहीं बैठा| मैंने पिताजी के साथ बैठ कर ही भोजन किया और उन्हीं के साथ सो गया| अगली सुबह सब उठे, मुँह-हाथ धो के सब तैयार हुए और सब ने चाय-नाश्ता किया| अब बारी थी विदा लेने की पर भाभी की विदाई नहीं हुई थी| सारे बाराती ख़ुशी-ख़ुशी वापस आ गए थे और मैं सोच-सोच कर हैरान था की आखिर नई वाली भाभी को क्यों नहीं लाये? घर आ कर कुछ रस्में निभाई गईं और मैं अपने दोस्तों के साथ खेलने लगा| शाम को जब माँ मुझे दूध पिला रही थीं तो बुआ बुआ बोली; "छोटी! मुन्ना इतना बड़ा हो गया है और तू इसे अब भी दूध पिला रही है?" तभी पिताजी वहाँ आ गए और बोले; "दीदी मानु को अब भी माँ के दूध की आदत है, ना दो तो रोने लगता है!" ये सुन बुआ और कुछ नहीं बोलीं पर मेरा दूध पीना हो गया था तो मैं उठ के बैठ गया और बोला; "पिताजी....नई भाभी कहाँ है?" मेरी बात सुन कर सारे लोग हँस पड़े और तब मुझे मेरे पिताजी ने गौने के बारे में समझाया| "बेटा शादी के बाद शहर की तरह बहु को घर नहीं लाया जाता| यहाँ के रिवाज के अनुसार ३ साल या ५ साल के बाद ही बहु को घर लाया जाता है|" पिताजी की ये बात मेरे सर के ऊपर से गई पर उन्हें दिखाने के लिए मैंने हाँ में सर हिलाया जैसे मैं सब समझ गया हूँ जबकि ये बात मुझे बड़ा होने के बाद समझ आई| गाँव में कम उम्र में ही शादी कर दिया करते थे, जिस वक़्त चन्दर भैया की शादी हुई वो मात्र १६ साल के थे और भाभी की उम्र १४ साल थी| इस उम्र में लड़के और लड़की का जिस्म पूरी तरह परिपक्व नहीं होता और इसी कारन से गौना किया जाता था, ताकि गौना होने तक दोनों ही व्यक्ति पूरी तरह परिपक्व हो जाएँ और अपने जीवन की गाडी चला सकें|            
है तो ये अन्याय ही पर गाँव-देहात में इन कानूनों को कोई नहीं मानता! उनके लिए तो लड़की का जन्म एक बोझ माना जाता है और लड़के का जन्म वंश बेल को आगे बढ़ाने वाला समझा जाता है| इसी कारन से लड़कियों की शादी जल्दी कर दी जाती है ताकि शादी के कर्ज से पिता निजात पा सके, वरना बढ़ती महँगाई में एक गरीब बाप कैसे अपनी बेटी की शादी करेगा?
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07-12-2020, 08:42 PM,
#5
RE: एक अनोखा बंधन - पुनः प्रारम्भ
तृतीय अध्याय : प्रथम मिलन
भाग - 1 


शादी निपटने के बाद हम दिल्ली लौट आये, पिताजी ने काम संभाला और मैंने थोड़ी मस्ती और पढ़ाई करनी शुरू की| साल दर साल हम गर्मियों की छुट्टियों में गाँव जाया करते, मैं बड़ा होने लगा था तो अब वहाँ की बोली-भाषा समझने लगा था और कुछ-कुछ बोलने भी लगा था| इस तरह तीन साल निकल गए और फिर वो समय आया जब भाभी का गौना हुआ| मुझे लगा था की बहुत बड़ा समारोह होगा जिसमें बहुत सारे लोग आएंगे, पार्टी होगी पर हुआ ऐसा कुछ भी नहीं| खेर गौना बड़ा ही शांत तौर पर हुआ और नई भाभी के आते ही सारी औरतें उन्हें घेर कर बैठ गईं| मैं अब 7 साल का हो गया था और मेरे कुछ दोस्त गाँव में बन गए थे जिनके साथ मैं खेलता था| कुछ देर बाद बड़की अम्मा ने मुझे और गट्टू दोनों को बुलाया और नई भाभी से मिलवाया| 
 
मैं और गट्टू दोनों ही बड़े घर पहुँचे, गट्टू तो पूरे आत्मविश्वास से खड़ा था और मैं शर्म से लाल हो गया था| सफ़ेद कुरता पजामा पहने हुए मैं अपने हाथ पीछे बांधे खड़ा था, मेरी नजरें सबसे पहले भाभी पर पड़ी जो लाल साडी पहने, डेढ़ हाथ का घूँघट काढ़े आँगन के बीचों बीच बैठी थीं| उस एक पल के लिए मेरे मन में नजाने क्यों मेरे पेट में तितलियाँ उड़ने लगी थीं| पूरा घर औरतों से भरा हुआ था और मुझे बहुत ज्यादा ही शर्म आ रही थी इसलिए भाभी को घूँघट में देखने के बाद मेरी नजरें झुक गई| बड़की अम्मा ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे सब औरतों के बीच से होते हुए भाभी के सामने खड़ा कर दिया| गट्टू मेरी बाईं तरफ खड़ा था और उत्सुकता भरी आँखों से उन्हें देख रहा था| मेरी नजरें बस जमीन में गाड़ी हुई थीं, मानो यहाँ दुल्हन भाभी नहीं मैं हूँ!
                 अम्मा ने पहले गट्टू का परिचय भाभी से कराया, बड़की अम्मा के कहने पर उसने भाभी के पाँव छुए और फिर बाहर चला गया| अब बारी थी मेरी; " दुल्हिन! ई तोहार सबसे छोट देवर है!" इतना कह कर बड़की अम्मा ने मुझे उनकी बगल में बिठा दिया और मैं शर्म से सर झुकाये बैठ गया| भाभी ने मुड़ कर मेरी तरफ देखा और अपने दाहिने हाथ को मेरे गाल पर फेरा| ये भाभी और मेरा पहला स्पर्श था, उनका तो मुझे नहीं पता पर मेरे शरीर में जर्रूर कुछ अजीब सा हुआ था जिसे उस समय व्यक्त कर पाना मेरे लिए सम्भव नहीं था| वहाँ बैठी सभी औरतें हँसने लगी और कहने लगीं की कितना शर्मिला लड़का है, इतनी देर से बैठा पर इसने आँख उठा कर किसी को देखा तक नहीं! बड़की अम्मा ने सबसे मेरी बड़ी तारीफ करते हुए कहा की ये यहाँ के बच्चों की तरह नहीं है, बड़ा ही संस्कारी लड़का है जो किसी से लड़ाई-झगड़ा या गाली-गलौज नहीं करता! मेरी तारीफ सुन जहाँ माँ को बड़ा गर्व हो रहा था वहीं मेरे गाल और भी लाल हो रहे थे| जब कुछ औरतें इधर-उधर हुईं तो मैं माँ के पास चला गया, माँ को लगा की मैं दूध पीने आया हूँ तो उन्होंने मुझे कमरे में दूध पिलाना शुरू कर दिया| वहाँ मौजूद जिस किसी ने भी ये देखा वो हैरान था क्योंकि गाँव में बच्चे माँ का दूध ज्यादा दूध नहीं पीते थे| बुआ ने फिर से माँ को टोका तो बड़की अम्मा बीच में बोल पड़ीं; "दीदी रहय दिओ! बच्चा है, धीरे-धीरे सीख जाई!"  और बुआ को अपने साथ ले गईं, मैं मन ही मन सोच रहा था की दूध मैं अपनी माँ का पी रहा हूँ और मिर्ची इन्हें लग रही है?! पर सब औरतों को बात करने के लिए एक नया विषय मिल गया था तो सबने अपने-अपने नुस्खे बताने शुरू कर दिए| कोई कहता की माँ अपने स्तन पर मिर्ची लगा ले तो कोई कहता की गोबर लगा लें| माँ ने कहा भी की ये एक ऐसी जिद्द है जो इसने अभी तक नहीं छोड़ी है, पिताजी ने कितनी बार डाँटा पर मैं नहीं माना और खूब रोने लगता तो हार कर उन्हें दूध पिलाना पड़ता है| भाभी आंगन में बैठी ये सब सुन रही थी और घूँघट के अंदर से मुस्कुराये जा रही थी| खेर भाभी के सामने अपनी बेइज्जती करवा कर मैं बाहर भाग आया और खेलने लगा| वो पूरा दिन मैं भाभी के आस-पास भी नहीं भटका, बस अपने मौसा, मामा या बुआ के बच्चों संग खेलता रहा| मौसा और मामा सब बड़की अम्मा की तरफ के थे पर मुझसे बिलकुल वैसे ही प्यार करते थे जैसा वो बड़की अम्मा के बच्चों से करते थे| इधर चन्दर भैया अपनी सुहागरात के लिए मरे जा रहे थे, दिन भर वो अपने दोस्तों के साथ खेतों में पेड़ के नीचे चारपाई डाल कर बैठे थे| वहाँ उनकी अपनी ही अलग महफ़िल सजी हुई थी जिससे मुझे दूर रखा गया था| गाँव में एक कमरे और आँगन के साथ हमारा पुराण घर था, जिसे अब चन्दर भैया का निजी घर बना दिया गया था| भाभी को वहीं बिठाया गया था और उनके पास आस-पड़ोस की भाभियाँ बैठी थीं| खेर रात हुई और खाना खाने के बाद चन्दर भैया उस घर में घुसे और दरवाजा बंद हुआ| बाकी सब तो प्रमुख आँगन में फैले पड़े थे और औरतें बड़े घर में सोइ थीं|
 
अगली सुबह हुई, मेरे लिए तो ये एक आम सुबह थी पर भाभी और मेरे रिश्ते की शुरुआत आज ही के दिन से हुई थी| मैं आज कुछ ज्यादा लेट उठा था, उठते ही मैं नहाया-धोया और प्रमुख आंगन में चारपाई पर बैठ गया| कुछ देर बाद भाभी ने खाना बनाया और सब आदमियों और बच्चों ने बैठ कर खाया, सब ने भाभी को पहली रसोई के लिए बहुत आशीर्वाद दिए! शाम होने तक सब अपने-अपने घर को जा चुके थे और अब घर में केवल माँ-पिताजी, बड़के दादा-बड़की अम्मा, चन्दर भैया, अशोक भैया, अजय भैया, अनिल भैया, गट्टू, मैं और भाभी ही रह गए थे| रात के भोजन के समय मैं रसोई के पास छप्पर के नीचे चुप चाप बैठा था| भाभी ने मेरी तरफ घूँघट किये हुए देखा और मुझे इशारे से अपने पास बुलाया| मैं मुस्कुराता हुआ उठा और भाभी के सामने जा कर शर्म से सर झुका बैठ गया| मुझे देखते ही भाभी की हँसी छूट गई और आज मुझे घूँघट के भीतर से भाभी के गुलाबी होंठ और मोती से सफ़ेद दांतों का दीदार हुआ| "तुम्हारा नाम क्या है?" भाभी ने धीरे से पुछा| उनकी मिश्री सी मीठी आवाज सुन मैं कुछ पल के लिए खामोश हो गया और फिर अनायास ही मुँह से निकला; "मानु"| भाभी को मेरा नाम बहुत पसंद आया जो उनकी मुस्कराहट से पता चल रहा था| "तुम शहर में पढ़ते हो?" भाभी ने पुछा तो मैंने बस हाँ में गर्दन हिलाई| "कौन सी क्लास में हो?" भाभी ने अपनी मधुर आवाज में पुछा और जवाब में मैंने; "फर्स्ट क्लास में" कहा| इतने में माँ आ गई और भाभी से बोली; "दुल्हिन देवर से बतुआत हो?" ये सुन भाभी बोलीं; "चाची ये कछु बोलते नहीं!" ये सुन माँ मुस्कुराने लगी और बोलीं; "तोह से सरमात है!" इसके आगे भाभी कुछ बोलती मैं उठ कर भाग गया| आज भाभी की बात सुन कर दिल में अजीब सी गुदगुदी हुई थी, ऐसी गुदगुदी मुझे पहले कभी नहीं हुई थी|
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07-12-2020, 08:46 PM,
#6
RE: एक अनोखा बंधन - पुनः प्रारम्भ
तृतीय अध्याय : प्रथम मिलन
भाग - 2 

                         फिर रात हुई और खाना खाने के बाद सब अपनी-अपनी जगह लेट गए, चन्दर भैया और भाभी अपने घर में थे की तभी कुछ ही देर में मुझे लड़ाई-झगड़े की आवाज सुनाई दी| घर के सारे लोग उठ गए थे और मैं भी, चीखने की आवाज सिर्फ चन्दर भैया की थी और वो भाभी को गन्दी-गन्दी गालियाँ दे रहे थे| बड़की अम्मा अंदर पहुँची और चन्दर भैया को बाहर ले आईं, बड़के दादा और पिताजी ने बहुत पुछा की क्या हुआ पर भैया ने कुछ नहीं बताया| मेरे कदम अनायास ही मुझे भाभी के घर की तरफ ले जा रहे थे की तभी माँ बीच में गई और मुझे पिताजी के पास जाने को बोला|मैं चुप-चाप पिताजी के पास खड़ा हो गया तो उन्होंने मुझे गट्टू के साथ दूर जाने को कहा क्योंकि वहाँ होने वाली बात सुनने के लिए मैं परिपक्व नहीं हुआ था| धीरे-धीरे बात सुलझी और चन्दर भैया रात को बाहर सोये और सुबह होते ही मामा के घर निकल गए| इधर मैं सुबह आँख मलता हुआ उठा और माँ-पिताजी के पाँव छू कर दैनिक कार्यों से निपटा और रसोई में आया| भाभी वहाँ चाय बना रही थी, उन्होंने मुस्कुराते हुए मुझे चाय दी और फिर बड़की अम्मा के पास चली गईं| मैं चाय पी कर बासी खा कर गट्टू के साथ गाय चराने निकल गया|

       हमारे गाँव में सुबह नाश्ता बनाना का रिवाज नहीं है, बल्कि रात का बासी खाना ही नाश्ते के रूप में खाया जाता है| ये बासी सभी नहीं खाते, केवल छोटे बच्चे ही खाते हैं| बड़े लोग चाय पी कर, या कभी दही-चिवड़ा खा कर ही खेतों पर काम करने चले जाते हैं| छोटे बच्चे खेतों में काम नहीं करते, बल्कि वो गाय-भैंस चराने जाते थे, मैं भी सभी बच्चों के साथ गाय चराने चला जाता था| गाय बेचारी चरती रहती और हम सारे गिल्ली-डंडा या क्रिकेट खेलते रहते| दोपहर को जब मैं गाय चरा कर आया तो खाना खाने के बाद भाभी ने मुझे आवाज दे कर अपने पास बुलाया| मैं और भाभी पुराने घर के आंगन में बैठे थे, भाभी ने अब भी घूँघट कर रखा था और मैं उनके सामने सर झुका कर बैठा था|

भाभी: मानु आप मुझसे बात क्यों नहीं करते? क्या मैं तुम्हें पसंद नहीं?

मैं: नहीं...ऐसा तो कुछ नहीं

भाभी: फिर?

मैं: वो....वो मुझे ....शर्म....आती है!

भाभी: अरे मुझसे कैसा शर्माना?

मैं: हम्म्म्म....

भाभी: तुमने तो अभी तक मेरा नाम तक नहीं पुछा?

मैं: मुझे पता है|

मैंने पूरे आत्मविश्वास से कहा|

भाभी: अच्छा? क्या नाम है मेरा?

मैं: भौजी !!!

मैंने गर्दन उठा कर भाभी की तरफ देखते हुए कहा| मेरे मुँह से भौजी सुन कर भाभी एक दम से खामोश हो गईं| दरअसल मैं उस वक़्त इतना सीधा था की मुझे माँ-पिताजी जो रिश्ता बता देते मेरे लिए वही नाम हो जाता था| अगर पिताजी ने कहा की ये तुम्हारे भैया हैं तो मैं उनसे उस व्यक्ति का नाम तक नहीं पूछता था और उस व्यक्ति को बस भैया कह कर सम्बोधित करता था| इसीलिए जब बड़की अम्मा ने मुझे कहा की ये तेरी भौजी हैं तो मेरे मन में बस वही नाम बस गया|

भाभी: ये मेरा नाम थोड़े ही है? ........ पर आज से तुम मुझे यही कह कर बुलाना|

मुझे ये सुन कर थोड़ा अजीब लगा क्योंकि मेरे आलावा बाकी सब भैया भी भाभी को भौजी ही कहते थे!

मैं: आपको तो अशोक भैया, अजय भैया और गट्टू भैया भी आपको भौजी ही कहते हैं, तो .....

मेरे आगे कुछ कहने से पहले ही भाभी बोल पड़ीं;

भौजी: तुम्हारी बात अलग है, तुम्हारे मुँह से भौजी शब्द बड़ा मीठा लगता है!

मैंने भाभी की बात निर्विरोध मान ली, ये सोच कर की शायद मैं दिल्ली से आया हूँ और मेरे मुँह से भौजी सुनने में उन्हें अच्छा लगता है| खेर भाभी ....मतलब भौजी ने मुझे अपना असली नाम नहीं बताया और ही मैंने उनसे उनका नाम पुछा| मैंने उस दिन से उन्हें भौजी बुलाना शुरू कर दिया|

 

मैं: भौजी..... ये....घूँघट.....जर्रूरी है?

भौजी: ये लाज के लिए है, अपने से बड़ों का मान रखने के लिए|

मैं: पर मैं तो आपसे छोटा हूँ? मेरे से भी आपको लाज़ आती है?

मैंने उत्सुकतावश सवाल पुछा पर भौजी को लगा की मैं उनका चेहरा देखना चाहता हूँ|

भौजी: मेरे छोटे देवर को मेरा चेहरा देखना है?

मैं: वो....मैं....

ये सुन कर मेरे मुँह से शब्द नहीं फुट रहे थे और भाभी को इसमें बड़ा मजा रहा था इसलिए वो हँसने लगीं| भाभी को हँसता हुआ देख मेरा सर फिर शर्म से झुक गया| भाभी ने मेरी ठुड्डी पकड़ कर ऊपर उठाई और मेरी नजरें उनके घूँघट पर टिक गईं, भाभी ने अपना घूँघट उठाया और तब मुझे उनके हुस्न का दीदार हुआ| माँग में लाल सिन्दूर, आँखों में काजल, नाक में नथनी, गुलाबी होंठ ये देख कर दिल में अचानक ही हलचल पैदा हो गई| मुँह सूखने लगा और जुबान जैसे पत्थर की बन गई, आँखों को मिलने वाला ये सुख इतना अद्भुत था की उसे बताने के लिए शब्द नहीं! उस समय मैं नहीं जानता था की प्रेम क्या होता है? अगर जानता होता तो कह देता की भौजी मुझे आपसे पहली नजर में प्रेम हो गया है

                               जब मैं बिना कुछ बोले भाभी को इस कदर देखने लगा तो भाभी से ये ख़ामोशी बर्दाश्त नहीं हुई और वो बोल पड़ीं;

भौजी: ऐसे क्या देख रहे हो?

मेरे पास उनकी बात का कोई जवाब नहीं था, इसलिए मैंने शर्म से फिर अपना सर झुका लिया| पर भाभी को मेरे मुँह से जवाब सुन्ना था;

भौजी: बोलो ना? क्या देख रहे थे?

मैं: वो....आप.....

मैं सर झुकाये हुए ही बोला, पर भाभी को जवाब चाहिए था सो उन्होंने मेरी ठुड्डी पकड़ कर ऊपर की और बोलीं;

भौजी: मेरी आँखों में देखो और कहो?

मैं: आप....बहुत सुन्दर हो!

इतना कह कर मेरे गाल और कान शर्म से सुर्ख लाल हो गए और मैने गर्दन फिर से झुका ली|

भौजी: सच?

मैंने सर झुकाये हुए ही हाँ कहा|

भौजी: तो मुझे मुँह दिखाई में क्या दोगे?

भौजी ने अचानक से कहा और मैं सोच में पड़ गया की मैं उन्हें क्या दूँ? मेरे पास तो कुछ था नहीं? बड़ी हिम्मत कर के मैंने उनकी तरफ देखा और कहा;

मैं: भौजी....मेरे पास तो कुछ नहीं! मैं माँ से ले आऊँ?

इतना कह कर मैं उठने लगा तो भाभी ने मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझे जाने से रोक दिया|भौजी: पहले सुन तो लो की मुझे चाहिए क्या?

भौजी ने हँसते हुए कहा|

“मुझे तुम्हारी एक पप्पी चाहिए|” ये सुन कर मेरे कान एक बार फिर लाल हो गए पर दिल ने कहा की एक पप्पी ही तो है, इसलिए मैंने हाँ में सर हिला दिया| भौजी ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे धीरे से अपने पास खींचा, फिर अपने बाएँ हाथ को मेरे सर के पीछे रखा और दाएँ हाथ से मेरी ठुड्डी पकड़ कर मुझे अपने होठों के नजदीक लाईं| भौजी ने अपना मुँह थोड़ा खोला और मेरे दाएँ गाल को अपने मुँह में भर कर थोड़ा चूसा और फिर धीरे से काट लिया| जैसे ही भाभी ने मेरे गालों को छुआ मेरी आँखें बंद हो गईं, मेरे पूरे जिस्म में जैसे आतिशबाजी शुरू हो गई और पेट में तितलियाँ उड़ने लगी| कुछ सेकण्ड्स बाद उन्होंने मेरे गाल को अपने होटों की गिरफ्त से छोड़ दिया, पर इस एहसास ने मेरे शरीर में क्रान्ति छेड़ दी! जिंदगी में पहले बार किसी ने मुझे इस तरह से चूमा था|

“तुम्हें दर्द तो नहीं हुआ?” भौजी ने चिंता जताते हुए पुछा, तो मैंने मुस्कुराते हुए ना में गर्दन हिला दी| भाभी ने अपने दाएँ हाथ से मेरे गाल पर लगे उनके रस को साफ़ कर दिया और मुस्कुराने लगी| पर मेरे मन में अब लालच जाग गया था, मुझे मेरे दूसरे गाल पर भी भाभी के होठों की छाप चाहिए थी पर कहूँ कैसे? जब कुछ नहीं सूझा तो मैं एक दम से भाभी की गोद में सर रख कर लेट गया| पर भाभी मेरी हरकत नहीं समझी, या फिर वो मुझे और तड़पाना चाहती थीं| उन्होंने मेरे बालों में ऊँगली फेरना शुरू कर दिया, पहले तो मन किया की उन्हें बोल दूँ पर फिर हिम्मत नहीं हुई की कुछ कह सकूँ| इसलिए मैं आँख बंद किये हुए लेटा रहा और कुछ ही देर में मेरी आँख लग गई| शाम को 4 बजे गट्टू मुझे बुलाने आया तो भौजी ने उसे इशारे से मना कर दिया और वो अकेला ही गाय चराने निकल गया| 5 बजे चाय बानी और तब मैं आँख मलता हुआ बाहर आया, जब मैंने देखा की गाय नहीं बंधी है तो मैं समझ गया की गट्टू गाय चराने जा चूका है| अब मैं कहाँ जाता इसलिए मैं कुएँ के पास बैठ गया और ढलते हुए सूरज को देखने लगा| कुछ देर बाद भौजी मेरी चाय ले कर आईं; "मानु....चाय पी लो!" भौजी ने मुझे चाय दी और फिर मेरे ही पास बैठ गईं| भाभी को देखते ही मुझे दोपहर का समय याद गया और मन में फुलझड़ी छूटने लगी, तभी एक सवाल टूट-फूट के बाहर आया;

मैं: भौजी.....वो ...दोपहर में......वो क्या था?   

भौजी: वो ना....एक रस्म होती है! गाल काटने की!

भाभी ने हँसते हुए कहा|

मैं: तो आपने गट्टू को भी.....

मेरी बात पूरी होने से पहले ही भाभी बोल पड़ीं;

भौजी: नहीं...वो सिर्फ....सबसे छोटे देवर के लिए होती है!

भौजी की बात सुन कर मुझे मेरे सबसे छोटे होने पर गर्व होने लगा" मतलब ये ख़ास सुख सिर्फ और सिर्फ मुझे मिलेगा! कुछ देर बाद बड़के दादा और पिताजी खेतों की तरफ से आते हुए दिखाई दिए तो भौजी उठ कर चली गईं| मुझे कुएँ के पास बैठा देख पिताजी ने मुझे डाँट दिया; "तुझे बैठने को कोई और जगह नहीं मिली?" मैं सर झुका कर उठा और रसोई के पास छप्पर के नीचे बैठ गया| कुछ देर बाद गट्टू भैया गाय ले कर गए और गाय को पानी पिलाने के बाद मेरे पास बैठ गए| "मुझे साथ क्यों नहीं ले गए?" मैंने थोड़ा गुस्से से पुछा तो वो हैरान होते हुए बोले; "तू सोवत रहेओ!" और भाभी की तरफ इशारा किया| मैं समझ गया की भौजी ने जानबूझ कर मुझे नहीं उठाया था| मैं उस समय चुप रहा और रात को जब भौजी मसाला पीस रही थी तब मैंने भौजी से पुछा;

मैं: भौजी ... गट्टू भैया जब मुझे उठाने आये थे तो आपने मुझे उठाया क्यों नहीं?

भौजी: क्यों? शहर से तुम यहाँ गाय चराने आये हो? या फिर दिल्ली जा कर गाय खरीदनी है? मैं अभी नई-नई आई हूँ, मेरे से कोई बात करने वाला भी नहीं, खाली बैठे-बैठे ऊब जाती हूँ| मैंने सोचा की तुम मेरे पास बैठोगे कुछ बात करोगे, पर तुम्हें तो गाय चरानी है, ठीक है जाओ कल से नहीं रोकूँगी!
भौजी ने ये बात बड़े हक़ से बोली थी, ऐसा नहीं था की घर में कोई उनसे बात करने वाला नहीं था बल्कि वो खुद हमेशा मा या बड़की अम्मा के पास बैठी रहती थीं, ये बात उन्होंने सिर्फ और सिर्फ मुझे सुनाने के लिए कही थी! मैं इन सब बातों से अनजान था और भाभी की बात मुझे सच्ची लगी| इसलिए जब वो नीचे बैठ कर मसाला पीस रही थीं तो मैं पीछे से जाकर उन पर अपना बोझ डाले झुक गया और अपने हाथों को उनकी गर्दन के आगे कस लिया; "माफ़ कर दो भौजी! अब से मैं सिर्फ और सिर्फ आपके साथ रहूँगा, आपके साथ खाऊँगा, आपके साथ पीयूँगा और आप ही के साथ सोऊँगा|" मैंने एक बच्चे की भाँती ये सब बोला और भाभी मेरा बचपना देख हँस पड़ी|
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07-12-2020, 08:49 PM,
#7
RE: एक अनोखा बंधन - पुनः प्रारम्भ
तृतीय अध्याय : प्रथम मिलन
भाग - 3


रात का खाना बना और भाभी ने मुझे भी सब के साथ खाना परोस दिया; "भौजी मैं आपके साथ खाऊँगा!" मैंने बड़े भोलेपन से कहा तो भौजी बड़की अम्मा को देखने लगीं| "ठीक है मुन्ना!" अम्मा ने मुस्कुराते हुए कहा| पर भौजी, मा और बड़की अम्मा को सबसे अंत में खाना था क्योंकि ये ही हमारे गाँव की रीत थी| मैंने बड़े इत्मीनान से सबके खाने का इंतजार किया और अंत में भौजी ने पहले बड़की अम्मा उसके बाद माँ को खाना परोस कर अपना और मेरा खाना एक थाली में लिए हुए मेरे पास बैठ गईं| भौजी के चेहरे पर एक मुस्कराहट थी और वही मुस्कराहट मेरे चेहरे पर भी थी| हम दोनों चुप-छाप खाना खा रहे थे और बीच-बीच में एक दूसरे को देख मुस्कुरा भी रहे थे| तभी भौजी ने मुझे खिलाने के लिए एक कौर मेरी तरफ बढ़ाया| मैंने बिना कुछ सोचे वो कौर खा लिया, भौजी 2 सेकंड के लिए मुझे देखती रही| पर मेरी नजर उन पर नहीं थी, भौजी ने एक और कौर मुझे खिलाया और मैंने वो भी खा लिया पर इस बार जब मैंने भौजी की तरफ देखा तो उनके चेहरे पर मुझे संतोष नजर आया| ये कैसा संतोष था ये मैं समझ नहीं पाया, पर अब मेरे मन में भी विचार आया की मैं भौजी को एक कौर खिलाऊँ| मैंने अगला कौर उन्हें खिलाया तो उन्होंने मुस्कुराते हुए खा लिया| बड़की अम्मा की नजर मेरे ऊपर पड़ी तो वो मुस्कुराते हुए बोलीं; "लागत है मानु का नई दुल्हिन भा गई!" ये सुन कर मेरे गाल शर्म से लाल हो गए और माँ, बड़की अम्मा और भौजी हँस पड़े| खाना खाने के बाद सोने की बारी आई, अब मेरा मन भौजी के साथ लग गया था और मुझे अब उनके साथ सोना था| पर ये बड़ी टेढ़ी खीर साबित हुआ क्योंकि चन्दर भैया की गैरमौजूदगी में बड़की अम्मा ने भौजी को अपने और माँ के साथ रसोई के पास छापर के नीचे सोने को कहा| मैंने सोचा की कोई बात नहीं, कल दिन भर तो मुझे भौजी के साथ ही रहना है, ये सोचते हुए मैं सो गया|
                       अगली सुबह हुई और आज मुझे भौजी ने खुद उठाया, मैं आँख मलते हुए उठा और उनका चेहरा देखा पर आज उनके चेहरे पर एक बेचैनी थी| दरअसल चन्दर भैया सुबह ही धमके थे, मैं उनसे कुछ पूछ पाता उससे पहले ही भौजी ने मुझे जल्दी से तैयार हो कर आने को कहा| मैं जल्दी से तैयार हो कर आया और भौजी के पास रसोई में घुस गया वो भी चप्पल पहने, भौजी ने मुझे जल्दी से चप्पल दूर उतार आने को कहा| हमारे गाँव में रसोई में बिना नहाये-धोये जाने नहीं दिया जाता, गलती से कोई अगर चप्पल पहन कर रसोई में घुस जाए तो उसे बड़ी डाँट पड़ती है और किसी ने अगर खाना बनाने वाले को बिना नहाये-धोये छू लिया तो वो रसोई घर के बड़े नहीं छूते| जब तक पूरी रसोई गोबर से नहीं लीपी जाती तब तक उसका बना खाना नहीं खाया जाता| माँ ने मुझे चप्पल पहने अंदर जाते देख लिया था इसलिए उन्होंने मुझे बड़ी जोर से डाँटा, तभी अम्मा वहाँ गईं और उन्होंने माँ से कहा; "अरे मुन्ना है...छोट है...!" बड़की अम्मा ने मेरा बचाव किया और फिर मुझे अच्छे से समझाया; "मुन्ना चूल्हा पूजा जात है, हियाँ बिना नहाये-धोये नहीं आवा जात है! तोहार भौजाई खाना बनात है और अइसे में तू अगर का छू लिहो तो फिर खाना कोई खाई!" बड़की अम्मा की बात बड़ी सीधी थी तो और मेरे पल्ले पड़ गई, इसलिए मैंने हाँ में सर हिलाया और कान पकड़ कर उनसे माफ़ी माँगी| उस दिन के बाद मैं कभी भी रसोई में चप्पल पहन कर या बिना नहाये धोये नहीं घुसा| अब डाँट पड़ी थी इसलिए मैं सर झुकाये रसोई के बाहर बैठ गया|
भौजी: क्या हुआ मानु? तुम्हें पता नहीं था की रसोई में चप्पल पहन कर नहीं आते?
मैं: आज तक मुझे कभी रसोई में आने की जर्रूरत ही नहीं पड़ी|
भौजी ये सुन कर मुस्कुराने लगी, दोपहर का खाना बना और भौजी ने जानबूझ कर मुझे खाना नहीं परोसा| सब के खाने के बाद मैं और भौजी साथ खाने बैठे और कल रात की ही तरह भौजी ने मुझे खाना अपने हाथ से खिलाया| मैंने भी उन्हें खिलाना चाहा पर उन्होंने बस 1-2 कौर ही खाये| खाने के बाद गट्टू भैया भौजी से बात आकर रहे थे| उस समय मैंने एक बात गौर की, वो ये की भौजी गट्टू से देहाती भाषा में बात की जबकि मेरे से तो वो हिंदी में बात करती थीं?! जब गट्टू भैया चले गए तब मैंने उनसे ये सवाल पुछा;
मैं: भौजी ... आप बाकी सब के साथ तो देहाती भाषा में बात करते हो और मेरे साथ हिंदी में ऐसा क्यों?
भौजी: क्योंकि तुम्हें हिंदी अच्छे से समझ आती है|
भौजी की बात बड़ी साफ़ थी पर मेरा दिल कह रहा था की भौजी का रवैय्या मेरे प्रति कुछ अलग है| मुझसे वो बाकियों के मुक़ाबले बड़े अच्छे से बात करतीं थीं और ये मुझे ख़ास बनाता था|
 
मैं और भौजी उनके घर के आंगन में बैठे थे और बातें कर रहे थे की मुझे कल भौजी द्वारा किये उस चुंबन की याद आई, अब खुल कर कुछ कहने की हिम्मत नहीं थी तो मैंने बात घुमा कर कहने की सोची; "भौजी मुझे नींद रही है, आप सुला दो ना!" ये कह कर मैं उनकी गोद में सर रख कर लेट गया और उम्मीद करने लगा की कम से कम इस बार वो मेरी बात समझ जाएँ| मैंने फ़ौरन अपनी आँखें मूँद ली और तभी मुझे भौजी गर्म साँस मेरे चेहरे पर महसूस हुई! भौजी ने मेरे चेहरे को बायीँ तरफ घुमाया और अपने गुलाबी होंठ मेरे दाएँ गाल पर रख दिए| पहले उन्हें मुझे केवल चूमा और इतने से ही मेरे जिस्म में हलचल शुरू हो गई थी| फिर भौजी ने धीरे से मेरे दाएँ गाल को अपने मुँह में भरा और उसे चूसा मानो जैसे कोई टॉफ़ी चूस रही हूँ और अंत में 'कच' से काट लिया| "सससस'....आह!" मेरे मुँह से दर्द भरी सीत्कार निकली जिसे सुन भौजी को एहसास हुआ की मुझे दर्द हुआ है और उन्होंने तुरंत मेरा गाल छोड़ दिया और उस पर से अपने रस को साफ़ किया और उसे धीरे-धीरे सहलाने लगी| मानो उन्हें दुख हो रहा हो की उन्होंने मुझे दर्द दिया है, पर ये दर्द तो दिल को मिलने वाले सूख के आगे कुछ नहीं था| कुछ ही सेकंड में मेरे चेहरे पर मुस्कराहट गई जिसे देख भौजी को तसल्ली हुई की मैं रोने वाला नहीं हूँ! अब शरारत कहो या मस्ती पर मैंने अपना बायाँ गाल भौजी को दिखा दिया जो ये दर्शा रहा था की मुझे इस गाल पर भी पप्पी चाहिए! मेरा बचपना देख भौजी हँस पड़ी और उन्होंने ठीक पहले की तरह मेरे बाएँ गाल को पहले चूमा, फिर चूसा और अंत में धीरे से काट लिया! इतने भर से मेरे जिस्म में तरंगें छूटने लगी थीं और मैं आँखें मूंदे इस सुख के सागर में गोते लगाने लगा था| गोते लगते-लगाते मैं नींद के आगोश में चला गया और फिर आँख सीधा शाम को 5 बजे खुली| मैं बाहर उठ कर आया तो देखा भौजी चाय बना रही है, मैं उन्ही के सामने बैठ गया और मुस्कुराते हुए उन्हें देखने लगा| भौजी मेरी मुस्कराहट का कारन जानती थी और वो भी मंद-मंद मुस्कुरा रही थीं| वो पूरी शाम और रात मैं भौजी के साथ रहा और अब समय था सोने का और मेरा मन भौजी के साथ सोने का था| "भौजी आज रात मैं आपके पास सो जाऊँ?" बड़े भोलेपन से कहा और भौजी ने हाँ में गर्दन हिलाई| मैं सीधा माँ के पास दौड़ा और उन्हें बता कर भौजी के पास सोने उनके घर में आया पर वो वहाँ नहीं थी| मैं बाहर कर उन्हें ढूँढने लगा की तभी भौजी मुझे बड़े घर की तरफ से आती हुई नजर आईं| उन्होंने बताया की आज सब छत पर सोयेंगे और वो मुझे ही लेने आई थीं| मैं भौजी के साथ छत पर आया, वहाँ जमीन पर सबका बिस्तर लगा हुआ था| मैं अपने सोने की जगह तय करने में लगा था की तभी वहाँ माँ और बड़की अम्मा गए| "तू यहाँ क्या कर रहा है?" माँ ने पुछा तो मैंने बड़े भोलेपन से जवाब दिया; "मैं आज यहीं सोऊँगा!"
                            बड़की अम्मा और माँ दोनों बिस्तर के एक-एक किनारे पर लेट गईं और बीच में बची जगह पर हमें सोना था| मैं माँ की तरफ लेटा और भौजी बड़की अम्मा की तरफ, अब उनकी मौजूदगी में तो कुछ होने से रहा इसलिए मैं सीधा लेटा रहा| भौजी ने मेरी तरफ करवट ली और उनके चेहरे पर आई मुस्कान ये दर्शा रही थी की उन्हें मेरी हालत देख कर कितना मजा रहा है| उन्होंने अपना दाहिना हाथ मेरी छाती पर रख दिया और अपनी आँखें बंद कर ली| मैं भी सोने लगा पर चूँकि दिन में सो चूका था इसलिए नींद जल्दी आने वाली तो थी नहीं| मैंने लेटे-लेटे अपने और भौजी के बारे में सोचने लगा, इन कुछ ही दिनों में मैं और भौजी अच्छे दोस्त बन गए थे| उनके होते हुए मुझे अब किसी दोस्त की कमी नहीं होती थी, फिर उनका मुझे इस कदर प्यार से चूमना ये सब मेरे लिए सब कुछ था| तभी भौजी ने अम्मा की तरफ करवट ली और उनका हाथ हट जाने से मुझे उनकी कमी महसूस हुई| मैंने तुरंत उनकी तरफ करवट की और अपना हाथ उनकी गोरी-गोरी कमर पर रख दिया| मेरा स्पर्श पाते ही वो थोड़ा सिहर गईं और मेरी तरफ मुँह कर के देखने लगीं| मेरी आँखें उस वक़्त खुली थी तो जैसे ही उन्होंने मुझे देखा मैं मुस्कुरा दिया| भौजी ने वापस अम्मा की तरफ करवट ली और मेरा बायाँ हाथ जो उनकी कमर पर था उसे पकड़ कर अपनी छाती पर रख लिया| मुझे नहीं पता था की मेरा हाथ कहाँ पर है, मुझे तो अब नींद आने लगी थी इसलिए मैं सो गया|सुबह हुई और मैं जब उठा तो देखा की मैं अकेला ही छत पर सो रहा हूँ, मैं उठ कर नीचे आया और चाय पीने रसोई आया पर वहाँ चाय खत्म हो गई थी| सुबह-सुबह मामा-मामी आये थे और तब से वहाँ किसी बात पर बातचीत हो रही थी| मैं भौजी को ढूंढता हुआ उनके घर में आया तो वहाँ माँ, मामी, बड़की अम्मा और भौजी बैठे थे और बात कर रहे थे| मुझे देखते ही वो चुप हो गये और मामी जी उठ कर बाहर चली गईं| मैं जा कर माँ की गोद में बैठ गया और उनसे कहा की मुझे भूख लगी है| माँ ने मुझे दूध पिलाना शुरू कर दिया, पर पता नहीं क्यों भौजी मुझे हैरानी से देखने लगी
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07-12-2020, 09:15 PM,
#8
RE: एक अनोखा बंधन - पुनः प्रारम्भ
तृतीय अध्याय : प्रथम मिलन
भाग - 4

शाम तक मामा-मामी चले गए थे और मैं फिर से भौजी के पास बैठ गया था| भौजी उस वक़्त खाना बना रही थीं, और मुझे वहाँ बैठा देख उनके चेहरे पर फिर से मुस्कराहट गई|

भौजी: मानु तुम अब भी दूध पीते हो?

मैं: हाँ...क्यों?

भौजी: अब तुम बड़े हो गए हो!

मैं: भौजी मन करता है दूध पीने का, अब आप भी बाकियों की तरह मुझे सुनाना शुरू मत कर देना|

मैंने नाराज होते हुए कहा, अब भौजी भला अपने प्यारे देवर को नाराज कैसे करतीं!

भौजी: अच्छा मेरा दूध पियोगे?

भौजी की बात सुनते ही मेरी आँखों में चमक गई| मैंने फ़ौरन हाँ में गर्दन हिलाई और ये देख भौजी के चेहरे पर मुस्कान गई| उन्होंने मुझे हाथ-मुँह धो के आने को कहा, मैं फ़ौरन हाथ-मुँह साबुन से रगड़-रगड़ कर धो आया| भौजी चूल्हे से थोड़ी दूरी पर बैठ गईं और मुझे उनकी गोद में बैठने को कहा| मैं उनकी गोद में बैठ गया पर पता नहीं क्यों  मेरा दिल आज बड़ी जोर से धड़कने लगा था| मन में गलत विचार नहीं था बस एक ललक थी की आज मुझे भौजी का दूध पीने को मिलेगा| देखते ही देखते भौजी ने अपना ब्लाउज के दायें तरफ का एक बटन खोला और अपना दायाँ चुचुक मेरे होठों के सामने कर दिया| मेरे होंठ स्वतः ही खुले और मैंने भौजी के दायें चुचुक को मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगा| मेरी दिल की धड़कन अब शांत हो गई थी, पर भौजी के दिल की धड़कन अचानक ही बढ़ गई थी| उनके मुँह से एक मादक सिसकारी निकली; "ससससस" और भौजी ने मेरे बालों में हाथ फेरना शुरू कर लिया| मैंने बड़ी कोशिश की पर इतना चूसने के बाद भी भौजी के चुचुक से दूध नहीं निकला, अब मुझे ये बिलकुल समझ नहीं आया की भला ऐसा क्यों हुआ? माँ को तो दूध आता है, फिर भौजी को क्यों नहीं आता? मेरे दिमाग में बस यही सवाल गूँज रहा था, मैंने भौजी का चुचुक अपने मुँह से निकाल दिया और तभी बड़की अम्मा और माँ गए| मुझे भौजी की गोद में देख कर वो समझ गए की मैं दूध पी रहा हूँ, ये देख माँ और बड़की अम्मा हँसने लगे| उनकी हँसी सुन मैं भौजी की गोद से उतरने को छटपटाने लगा, भौजी ने मुझे अपनी गोद से जाने दिया पर बड़की अम्मा ने मुझे पकड़ कर अपने पास बिठा लिया| "मुन्ना अपनी भौजी का दूध पीत रहेओ? " बड़की अम्मा बोलीं| पर मेरे कुछ कहने से पहले ही भौजी बोल पड़ीं; "हाँ अम्मा, कहे लागे की भौजी हमका दूध पिलाओ!" भौजी ने बड़ी चालाकी से सारी बात मेरे ऊपर डाल दी| अब मैं भौजी को झूठा नहीं बनाना चाहता था इसलिए मैंने सर झुका लिया और उनकी बात का मान रखा| भौजी की बात सुन माँ और बड़की अम्मा हँस पड़े और मैं सर झुकाये सोच रहा था की दूध पिया ही नहीं फिर भी मज़ाक बन गया| इधर बड़की अम्मा की हँसी सुन पिताजी और बड़के दादा भी गए और उनके आते ही भौजी ने तुरंत घूँघट कर लिया और खाना बनाने लगी| माँ ने उन्हें सारी बात बताई तो वो भी मेरे इस भोलेपन पर हँस पड़े| मैं चुप-चाप सर झुकाये खड़ा रहा और सबकी हँसी सुनता रहा|  

रात को जब मैं और भौजी खाने बैठे तब मैंने उनसे अपने मन में गूँज रहे सवाल का जवाब माँगा;
मैं: भौजी माँ को तो दूध आता है पर आपको दूध क्यों नहीं आता?
मेरा सवाल सुन कर भौजी एक दम से खामोश हो गईं, कुछ देर पहले जो उनके चेहरे पर मुस्कराहट थी वो अब गायब हो गई और वो बिना कुछ बोले खाना खाने लगी| खाना खा कर वो सीधा अपने घर में सोने चली गईं, मुझे लगने लगा की मैंने शायद उनके दिल को चोट पहुँचाई है इसलिए मैं उनके पीछे-पीछे पहुँच गया| भौजी अपने घर के आंगन में चारपाई पर बैठी थीं, मैं उनके सामने खड़ा हो गया| मैं जब भी कोई गलती करता था तो पिताजी मुझसे अक्सर कान पकड़ कर उठक-बैठक करवाते| यही सोच कर मैंने अपने कान पकडे और उनके सामने उठक-बैठक करने लगा| अभी बस तीन ही उठक-बैठक हुई होगी की भौजी ये देख मुस्कुरा दीं और अपनी बाहें खोल कर मुझे उनके गले लगने को कहा| मैं तुरंत जा कर भौजी के गले लग गया; "Sorry भौजी!" मैंने कहा पर तभी याद आया की भौजी को कहाँ अंग्रेजी आती होगी, इसलिए मैंने हिंदी में उनसे माफ़ी माँगी; "भौजी मुझे माफ़ कर दो!" ये सुन कर भौजी हँस पड़ी और उन्होंने मुझे माफ़ कर दिया पर मुझे अपनी नाराजगी का कोई कारन नहीं बताया| मेरे लिए उनकी माफ़ी ही काफी थी तो मैंने उनसे इस बारे में कुछ नहीं कहा| रात को मुझे उनके पास सोने का मौका नहीं मिला क्योंकि आज पिताजी ने मुझे अपने पास सोने को कहा था| पर आधी रात को फिर से लड़ाई-झगड़ा हुआ और इस बार भी मुझे भौजी के पास जाने नहीं दिया गया| जितने दिन हम गाँव में रहे ये लड़ाई-झगड़ा होता रहता, कभी दिन में तो कभी रात को| मुझे इससे दूर रखा जाता, मैंने एक आध बार माँ से पूछना भी चाहा तो माँ ने मुझे ये कह कर चुप करा दिया की ये बड़ों की बात है और मैं अभी बहुत छोटा हूँ| मुझ में हिम्मत नहीं होती थी की मैं भौजी से कुछ पूछ सकूँ, मैं तो बस अपने भोलेपन और प्यार से उन्हें हँसा दिया करता था| कभी-कभी जब भौजी खाना बना रही होती तो मैं चप्पल पहन कर उनसे जान बूझ कर उन्हें चिढ़ाता; "भौजी मैं आपको छू लूँ?" और ये सुन कर भौजी एकदम पीछे हट जातीं क्योंकि अगर मजाक-मजाक में मैं उन्हें छू लेटा तो मुझे बहुत डाँट पड़ती

           दिन इसी तरह प्यार-मोहब्बत से बीतने लगे थे और फिर हमारे दिल्ली वापस जाने का समय आया| जब भौजी को ये पता चला तो वो उदास हो गईं, मैं उनके पास आया और बड़े भोलेपन से कहा; "भौजी आप मेरे साथ दिल्ली चलो!" ये सुन कर उनके चेहरे पर मुस्कराहट गई और फिर मैंने उन्हें दिल्ली के बारे में, हमारे घर के बारे में, टी.वी के बारे में (गाँव में तो टी.वी. होता नहीं था!) सब बताना शुरू कर दिया| तभी वहाँ बड़की अम्मा गईं, भौजी ने बड़की अम्मा को उलहाना देते हुए कहा; "मैं चल तो लूँ तुम्हारे साथ पर बड़की अम्मा जाने नहीं देंगी!" बड़की अम्मा ये सुन कर मुस्कुरा दीं, पर मैं हार मानने वालों में से नहीं था इसलिए मैंने उनसे मिन्नतकी; "अम्मा जाने दो ना भौजी को मेरे साथ!"

"मुन्ना ..तू अगर आपन भौजी को ले जाबू तो हियाँ घर के संभाली?!" ये ऐसा सवाल था जिसका मेरे पास कोई जवाब नहीं था, मैं उन्हें ये नहीं कह सकता था की आप संभाल लेना! वो हँसते हुए चली गईं पर मेरे दिमाग में आज खुराफात शुरू हो गई; "भौजी मैं आपको भगा कर ले जाऊँगा! जब हम निकलेंगे तो आप ये वाली दिवार फांद कर मुझे सड़क पर मिलना और फिर आप, मैं, माँ-पिताजी सब शहर चले जायेंगे|" मेरी बात सुन भौजी हँस पड़ी, तभी माँ गईं और उन्होंने जब उनकी हँसी का कारन पुछा तो भौजी ने उन्हें सब बता दिया| ये सुन कर वो भी हँस पड़ीं और मेरी भोली बातों में गईं और मेरी ही तरफदारी करने लगी| उस समय मेरे छोटे से दिमाग ने भागने का मतलब दिल्ली दौड़ कर जाना निकाला था, भौजी को मेरे इसी अबोधपने से प्यार था!

खेर वो दिन आ ही गया जब हमें दिल्ली वापस जाना था, सारा समान रिक्शे पर रखा जा चूका था| मैं सबसे मिल लिया था बस एक भौजी ही रह गईं थीं, जैसे ही मैं उनके पास आया उन्होंने मुझे कस कर अपने गले लगा लिया| पर उनके दिल को इस आलिंगन से करार नहीं मिला था, उन्होंने मेरे पूरे चेहरे पर अपने चुम्मियों की झड़ी लगा दी| बड़ा संभाला पर आखिर मेरे आँसू निकल ही गए और मुझे रोता हुआ देख भौजी भी रो पड़ीं!
            हमें रोता हुआ देख माँ आगे आईं; "बस बेटा, अगले साल फिर आना है!" माँ ने मेरे सर पर हाथ फेरते हुए कहा| ये सुन कर मेरा दिल तो मान गया पर भौजी का दिल अब भी नहीं मान रहा था| उन्होंने एक आखरी बार मुझे गले लगाया और फिर हम सब से विदा ले कर दिल्ली गए| दिल्ली कर मेरे सर पर गर्मियों की छुट्टियों का गृहकार्य का पहाड़ था इसलिए मैं उसे पूरा करने में लग गया| कुछ दिन लगे और मैं पढ़ाई में व्यस्त हो गया, पर मैं वो हसीन दीं नहीं भुला था| भौजी का वो हँसता हुआ चेहरा मेरे दिलों-दिमाग में बस गया था, रात को सोते समय उन्हें एक बार याद जर्रूर करता और उम्मीद करता ये समय जल्दी से बीते ताकि मैं उनसे फिर मिल पाऊँ|
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