RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
जमुनिया भी आनंद में सरोवार थी और हल्के हल्के सिसकारियाँ ले रही थी – मालिक क क क, बहुत मज़ा जा आ रहा है.. !! आह आँह.. !! फूह यान्ह.. !! आ आ आ आ आ आ आ आ उंह.. !! आआ ज़ोर से चूसो ना.. !! ये मादार चोद, राघव तो कभी भी मेरी चूत नहीं चाटता है.. !! इयान्ह ह ह ह ह ह आह आ आ आ आह ह हा.. !! आप ना मिले होते तो, मैं इस आनंद से वंचित ही रह जाती.. !! ओ मेरी माँ मज़ा गया, मेरे मालिक.. !! उफ्फ मा ह उंह आह.. !! आप मुझे, अपने पास ही रख लीजिए.. !! मैं आपकी दासी बन के रहूंगी, मेरे मालिक.. !! और ज़ोर से.. !! हाँ.. !! और ज़ोर से.. !! और फिर, वो चाचा के मुँह मे ही झड़ गई।
झर झर, जैसे झरना बहता है उसका रस वैसे ही फुट पड़ा और चाचा ने एक बूँद भी बाहर जाने नहीं दी।
सब का सब ही, चाट गये।
मैं इस बीच मौका देख कर, श्रुति के पीछे से चिपक कर खड़ा हो गया था।
श्रुति थोड़ा हिली, पर मैं पीछे से ना हटा।
श्रुति ने फिर से, अपनी आँख छेद में लगा दी।
मैंने धीरे धीरे, उसकी पीठ सहलाना शुरू किया।
फिर आगे बढ़ते हुए, उसकी गर्दन भी सहलाने लगा।
मैं समझ रहा था की श्रुति की साँसे और तेज हो रही थीं।
मैंने धीरे से उसका लहंगा उठा कर, उसकी कमर तक चढ़ा दिया और उसकी गाण्ड पर हाथ फेरने लगा।
श्रुति, चिहुंक उठी और उसने गुस्से से मेरी तरफ देखा और अपना लहंगा नीचे कर लिया।
मैं भी मौके की नज़ाकत को समझते हुए, 2 मिनट के लिए चुप चाप खड़ा हो गया और श्रुति को भीतर का मज़ा लेने दिया।
अंदर चाचा और जमुना, पलंग पर पड़े हाँफ रहे थे।
फिर चाचा उठे और जमुना से चिपक गये और फिर से, उसका दूध पीने लगे।
थोड़ी देर बड़ा, उन्होंने अपना लण्ड जमुना के मुँह में पेल दिया और जमुना उसे मज़े लेकर चूसने लगी।
चाचा का हथियार तो पहले से ही तैयार था।
चाचा ने जमुना को उठाया और बिस्तर पर पटक दिया और खुद भी, जमुना के ऊपर चढ़ गये।
चाचा ने अपना हथियार सेट किया और एक झटके में उसे, जमुना की चूत में पेल दिया।
जमुना, गरगरा उठी।
ओह!! मेरे मालिक.. !! अन्म आह इस्स.. !! आह आह अहहहाहा आह अह आ आ अहहा.. !! इयै याया आ आ या अय हेया.. !! आह आह अहहाहा हहाहा आइ इह इयाः आह.. !! आ आ आ आ स स स स स स स स स.. !! इनहया याः इया या या या या या ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह.. !! उई माआअ.. !! आहा आहा अया।
चाचा ने उसके दूध को बेदर्दी से निचोड़ते हुए, धक्का लगाना शुरू कर दिया।
जमुना, सिसकारियाँ ले रही थी।
उसकी चूत तो वैसे भी गरम ही थी और ऊपर से चाचा का लण्ड, जबरदस्त धौंक रहा था।
कमरे में फूच फूच की आवाज़ गूँज रही थी।
जमुनिया अब “जल बिन मछली” की तरह, तड़प रही थी।
मेरे मालिक.. !! और ज़ोर से.. !! फाड़ दो, इसको आज.. !! चोद दो, सारी ताक़त लगा के.. !! ज़ोर लगा के, मेरी जान.. !! ज़ोर से, ज़ोर से.. !! मार डाल, मुझे.. !! छोड़ना मत और चोदो.. !! और ज़ोर से, दम लगा के.. !! आह आँह.. !! फूह यान्ह.. !! आ आ आ आ आ आ आ आ उंह.. !! इयान्ह ह ह ह ह ह आह आ आ आ आह ह हा.. !! उफ्फ मा ह उंह आह.. !!
वो बकती जा रही थी और चाचा, पेलते जा रहे थे।
चूत और लण्ड के बीच “घमासान युद्ध” हो रहा था और हम दोनों, मूक दर्शेक बन कर इस युद्ध का मज़ा ले रहे थे।
मैं अपनी मंज़िल की तरफ, धीरे धीरे बढ़ रहा था।
मैंने फिर से, श्रुति का लहंगा ऊपर उठना शुरू किया।
श्रुति की साँस धौकनी की तरह चल रही थी। लेकिन, उसने छेद से आँख नहीं हटाई।
मैंने धीरे से, उसकी गाण्ड पर हाथ रखा।
उसने, कोई पैंटी नहीं पहनी थी।
नंगी गाण्ड को छूने से, मुझे जैसे एक ज़ोर का झटका लगा।
पहली बार, किसी की गाण्ड पर हाथ रखा था।
उफ!! कितनी नरम थी, गाण्ड।
धीरे धीरे, मैंने उसको सहलाना शुरू कर दिया।
श्रुति ने इस पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया और वो अंदर की तरफ ही देखती रही।
मैं थोड़ी देर तक, गाण्ड सहलाने के बाद उसके पैरों के बीच में अपना हाथ ले गया।
एकदम से मुझे हाथ हटाना पड़ा क्योंकि वो जगह तो भट्टी की तरह दहक रही थी।
श्रुति भी थोड़ा सा मचली, पर फिर से स्थिर हो गई।
मैं धीरे धीरे, उसकी चोली की गाँठ ढीली करने लगा।
अब मेरा हाथ आराम से, उसकी चोली के भीतर जा सकता था।
मैंने एक लंबी साँस भरी और अपना हाथ धीरे धीरे, उसकी चूची की तरफ बड़ाने लगा।
मेरा लण्ड एक दम तन गया था और शॉर्ट में एक टेंट बन रहा था।
जब मेरी उंगली ने उसकी निप्पल को छुआ तो श्रुति के मुँह से, सिसकारी निकल पड़ी।
मैंने फ़ौरन उसका मुँह अपने हाथ से दबा दिया और उसके कान में फुसफुसाया – कोई आवाज़ नहीं, वरना मारे जाएँगे.. !!
अंदर चाचा ने, अपनी रफ़्तार बढ़ा दी थी।
जमुना अपने दोनों पैरो को फैला कर लेटी थी और चाचा उस पर चढ़े हुए थे।
घच घच.. !! पच पच.. !! फॅक फूच.. !! आवाज़ हो रही थी।
चाचा दे दाना दान, दे दाना दान चोद रहे थे और जमुना चीख रही थी।
वो आनंद के सागर में, पूरी तरह डूबी हुई थी।
बहुत मज़ा आ रहा है, मालिक.. !! और ज़ोर से, करो ना.. !! और फिर जमुना का जिस्म अकडने लगी वो चिल्लाई – अन्म आह इस्स.. !! आह आह अहहहाहा आह अह आ आ अहहा.. !! इयै याया आ आ या अय हेया.. !! आह आह अहहाहा हहाहा आइ इह इयाः आह.. !! आ आ आ आ स स स स स स स स स.. !! इनहया याः इया या या या या या ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह.. !! उई माआअ.. !!
चाचा, अब पूरी रफ़्तार से जमुना की चूत को रौंदने लगे।
फिर, एक साथ दोनों की साँस रुक गई और चिल्लाते हुए दोनों झड़ गये।
चाचा जमुना के ऊपर ही, निढाल हो कर गिर पड़े।
जमुना ने अपने पैरों को चाचा की कमर से लपेट लिया आर चाचा को अपनी बाहों में भर लिया और लेटे लेटे हाँफने लगे।
जमुना ने उनको एक प्यारा सा चुंबन दिया और पस्त हो कर, लेट गई।
ये सब देख कर, श्रुति की हालत खराब हो रही थी।
उसको लग रहा था की उसकी चूत में जैसे, “आग” लगी हो।
मेरा सहलाना उसको, अच्छा लग रहा था।
मैंने जब उसकी एक चूची को दबोचा तो वो तिलमिला गई और फिर जब मैंने उसके निप्पल को टच किया तो वो थरथरा गई और उठ कर खड़ी हो गई।
मेरा हाथ उसकी चूची पर ही था, मैंने हौले से उसको फिर से दबाया तो उसने मेरा हाथ हटा दिया और वहाँ से निकल गई।
वो ठीक से, चल नहीं पा रही थी।
शायद इतना सब कुछ देख कर, खुद को संभाल पाना उसके लिए संभव ना था।
मैं भी उसके पीछे पीछे, वहाँ से निकल आया।
वो सीढ़ियों पर सहारा ले कर, चढ़ रही थी।
मैं भी उसके पीछे पीछे, ऊपर चढ़ा।
वो मेरे कमरे के सामने थोड़ा रुकी और आगे बढ़ गई।
मैने सोचा – आज नहीं तो फिर कभी नहीं.. !!
उसने अभी अभी, अपनी “माँ” को चुदते देखा है।
इंसान ही तो है।
ज़रूर “गरम” हो गई होगी।
इससे अच्छा मौका, मुझे मिलने वाला नहीं था।
मैंने उसका हाथ पकड़ कर, अपनी तरफ खींचा और बिना विरोध के वो मेरी बाहों में आ गई।
मैंने उसे धकेलते हुए, अपने कमरे में ले आया और अपने बेड की तरफ धकेला।
वो मेरे बिस्तर पर, भड़भाड़ा कर गिर पड़ी।
जैसे उसमें, कोई जान ही नहीं बची हो।
मैंने उसे पानी पिलाया और उसकी तरफ देखने लगा।
वो मारे शरम के, आँखें बंद कर के लेटी हुई थी।
मैंने हिम्मत की और आगे बढ़ा।
मैंने उसकी चुचियों को उसकी चोली के ऊपर से ही सहलाने लगा।
उसने एक बार आँख खोल कर, मेरी तरफ देखा और फिर आँखें बंद कर लीं।
मेरा हौसला अब बढ़ गया।
मैंने उसे एक साइड मैं धकेला और फिर उसकी चोली की सारी डोरी खोल दी।
उसने आँखें बंद कर रखीं थीं और उसी तरह उसने अपने हाथों को आगे सीने पर बाँध लिया।
मैंने उसकी बाहों को सहलाते हुए, उसके हाथों को हाटने की कोशिश की पर उसने नहीं हटाए।
मैं मुस्काराया।
वो शर्मा रही थी।
मैंने झुक कर, उसके होंठो पर अपने होंठ रख दिए और उसे चूसने लगा।
श्रुति ने, कोई प्रतिक्रिया नहीं की।
मैंने फिर और ज़ोर से, उसके होठों को अपने होठों में दबाते हुए एक लंबा सा किस किया।
मैं उसके होंठ, ज़ोर ज़ोर से चूस रहा था।
फिर मैंने अपनी जीभ उसके होठों को ज़ोर दे कर खोलते हुए, उसके मुँह में डाल दी।
मुझे भी उसकी जीभ की हरकत महसूस हुई और फिर तो जैसे, हम एक दूसरे के होठों से ही पीने की कोशिश कर रहे थे।
मैं उसकी जीभ चूस रहा था तो कभी, वो मेरी जीभ चूस रही थी।
मैं धीरे से उसकी बगल में लेट गया और मेरे हाथ, उसके जिस्म पर चारों तरफ फेरने लगा।
मेरी साँसें गरम हो रही थी।
मैं बिल्कुल पगला गया था और श्रुति की साँस भड़क रही थी।
उसकी पहली सिसकारी सुनाई दी, मुझे – उन्म:
मैं और जोश में आ गया और ज़ोर लगा कर, उसका हाथ उसके सीने से हटा दिया और पीछे हाथ डाल कर, उसकी चोली निकाल फेंकी।
उसने झट से, अपने हाथों से अपना सीना ढँक लिया।
मैंने उसकी आँखों में आँखें डाल कर, उसका हाथ वहाँ से हटा दिया।
जैसे, एक “बिजली” सी चमकी।
उसके दोनों “अमृत कलश” मेरे सामने थे। पूरे नंगे।
मैंने उसकी आँखों में झाँका और अपने होंठ उसके गोल, गोरे, बेहद मुलायम स्तन पर गड़ा दिए।
उसकी अन्ह: निकल गई और वो – इस्स स स स स स.. !! सिसकारियाँ लेने लगी।
मेरे दोनों हाथ, उसके नग्न उरेज को मसल रहे थे।
साहब, कितना मज़ा आ रहा था की मैं बयान नहीं कर सकता।
मैं पहले तो धीरे से और फिर पागलों की तरह उसके चुचक चूसने और मसलने लगा।
श्रुति, हाँफती हुई बोली – धीरे.. !! धीरे.. !! बहुत दर्द होता है.. !!
लेकिन, मुझे होश कहाँ था।
मन कर रहा था की उसकी पूरी चूची को ही, अपने मुँह में घुसा लूँ।
उसके निप्पल, एकदम सख़्त हो गये थे।
एक “किशमिश के दाने” के बराबर पर उसे चूसने और काटने में बड़ा ही आनंद आ रहा था।
श्रुति के मुँह से लगातार सिसकारियाँ फुट रही थीं – नहीं स स स स स.. !! उन्हम्मह म म म म म.. !! आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ.. !!
उसके हाथ, मेरे बालों में घूम रहे थे और वो अपने हाथों से मेरा सिर अपने छाती में दबा रही थी।
अचानक, श्रुति ने अपने दोनों पैर ऊपर उठाए और मेरी कमर पे लपेट दिए।
उसकी साँस, धौकनी की तरह चल रही थी।
हम दोनों ही, पसीने में नहा चुके थे।
मैं धीरे धीरे, नीचे की तरफ बढ़ रहा था।
मेरे हाथ, उसके जिस्म को चूमते ही जा रहे थे।
मैं नाभि पर आ कर रुक गया।
एक छोटा सा छेद था।
नाभि का छेद, बहुत ही संवेदनशील होता है।
मैंने अपनी जीभ उस छेद में घुमाई तो श्रुति कराह उठी – उन्हम्म.. !! इनयः इस्स उफ्फ फूहस आह हह आ आ आ आह उन्म आह आ हह आह.. !!
मैं धीरे धीरे से उसकी नाभि को काट रहा था और चूस रहा था।
हम दोनों काफ़ी गरम हो चुके थे और हमारे मुँह पूरे लाल हो गये थे।
मैं फिर ऊपर आ गया और कभी उसके होठों को तो कभी उसके दूध को चूस रहा था।
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