मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
07-22-2021, 12:50 PM,
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
अपनी पत्नि की बात बीच में ही काटते हुए राजकुमार देववर्मन अचानक से चिल्ला उठें. उन्होंने चित्रांगदा की जाँघों को कस कर पकड़ लिया, उनका पूरा शरीर कांपने लगा, फिर अकड़ कर कठोर हो गया, उनका सिर तकिये से लुढ़क कर नीचे गिर गया, और ठीक उसी पल अतिउत्तेजना की अग्नि में जल रहे उनके लण्ड ने अपनी पत्नि की चूत को वीर्य की गाढ़ी उल्टीयों से भर दिया. वीर्य की गरम धारों की चोट चूत की नरम अंदरूनी दीवारों पर पड़ी, तो चित्रांगदा की बच्चेदानी में जमा पानी भी उमड़ पड़ा, और चूत के रास्ते होते हुए अंदर फंसे लण्ड के किनारों से रिस रिस कर बाहर बहने लगा ! चित्रांगदा की चूत ने इतनी ढेर सारी मलाई छोड़ी थी की उसके पूरे बदन में एक कंपकंपी सी दौड़ गई, और वो मूर्छित होकर अपने पति के शरीर पर गिर पड़ी !!!

बिस्तर पर बेजान पड़े राजकुमार देववर्मन का अपने शरीर पर कोई नियंत्रण ना रहा, अपने ऊपर किसी निर्जीव प्राणी की भांति लेटी हुई अपनी पत्नि की चूत में वो करीब दस मिनट तक अपना वीर्य निकालते रहें ! आज से पहले कभी भी उनका वीर्यस्खलन इतना लम्बा नहीं चला था !!!

काफ़ी देर तक दोनों पति पत्नि उसी तरह बिस्तर पर पड़े रहें, चित्रांगदा की चूत का सारा रस जब झड़ गया, तो उसकी बेहोशी टूटी. अब वो राजकुमार देववर्मन से लिपटी हुई उनकी बाहें और छाती सहला सहला कर उन्हें शांत करने लगी.

इस दौरान राजकुमार विजयवर्मन बिस्तर के पास खड़े चुपचाप उन दोनों के उठने का इंतज़ार करते रहें.

दस मिनट के बाद चित्रांगदा ने अपने पति के सीने पर से अपना चेहरा उठाकर राजकुमार विजयवर्मन को देखा और हल्के से मुस्कुरा दी, चरमसुख प्राप्ति से उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक आ गई थी. उसने अपनी एक टांग ऊपर राजकुमार देववर्मन के पेट तक उठा दी, तो उसकी चूत से उनका झड़ा हुआ लण्ड ढीला पड़कर बाहर फिसल कर निकल आया, और उनकी अपनी ही जाँघ पर पसर गया. लण्ड के निकल जाने से चूत का छेद खाली होते ही उसमें से ढेर सारा वीर्य और चूत का मिला जुला पानी छलक कर बाहर बह निकला और राजकुमार देववर्मन के जाँघों और उनके अंडकोष को भीगोते हुए नीचे बिस्तर के चादर पर फ़ैल गया !

" हठ छोड़िये ना देवर जी, आ जाइये. आपके भैया अब सो जायेंगे, पर मेरी आँखों में अभी दूर दूर तक निद्रा नहीं ! ". चित्रांगदा ने अलसाई हुई आवाज़ में राजकुमार विजयवर्मन की ओर अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा.

राजकुमार विजयवर्मन ने अपनी भाभी की बात अनसुनी करते हुए राजकुमार देववर्मन से पूछा.

" क्या अब मुझे आज्ञा है ??? ".

वीर्यपात की थकान से चूर राजकुमार देववर्मन में इतनी भी शक्ति नहीं बची थी की वो अपने छोटे भाई को हाँ या ना में कोई उत्तर दे पाते, या फिर शायद अब उनका मन ही नहीं था बात करने का. उन्होंने अपना एक हाथ उठाकर अपने भाई की ओर देखे बिना ही उसे जाने का इशारा भर कर दिया.

राजकुमार विजयवर्मन अपने वस्त्र पहनने लगें. अपने पति के शरीर से लिपटी हुई चित्रांगदा अपनी होंठों पर हल्की मुस्कान लिए उन्हें कपड़े पहनते हुए देखती रही. फिर जब उनका कपड़ा पहनना हो गया तो उसने पास ही पड़ी चादर खींच कर खुद का और राजकुमार देववर्मन का नंगा शरीर ढंक लिया !

राजकुमार विजयवर्मन तैयार होकर जब जाने को हुए तो पीछे से राजकुमार देववर्मन की आवाज़ आई.

" जाइये अनुज... आपका आभारी हूँ की आप हमारी क्रीड़ा देखने हेतु इतनी देर रुकें. वैसे अब से हमें शायद आपकी आवश्यकता ही ना पड़े, अवंतिका की बातें ही हमारे लिए पर्याप्त होंगी ! आपने तो देखा ही ना की आपकी भाभी ने कैसे अवंतिका की प्यारी प्यारी बातें करके हमारी सहायता की ??? ".

राजकुमार विजयवर्मन बस एक क्षण को रुकें, अपने भाई की बात सुनने के लिए, मगर पीछे मुड़कर नहीं देखा, और और ना ही अपने मुँह से एक भी शब्द निकाले, और फिर अपने बड़े भाई की बात ख़त्म होते ही तेज़ कदमो से शयनकक्ष का दरवाज़ा खोलकर बाहर चले गएँ !!!

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अपने भैया भाभी के शयनकक्ष से निकलकर राजकुमार विजयवर्मन अपने कक्ष की ओर चल पड़े. उनके मन में कई सारे ख्यालों का उधेड़बुन चल रहा था - अपने बड़े भाई का आपत्तिजनक व्यवहार, भाभी की मीठी मीठी बातों में छिपी कुटिलता, और सबसे बड़ी बात, उनका और अवंतिका का भविष्य ! उनका मन अभी तय कर ही रहा था की वो एक बार अपनी छोटी बहन राजकुमारी अवंतिका से मिलते चलें, की उनके कदम अवंतिका के शयनकक्ष की ओर ऐसे बढ़ चले, मानो सब कुछ पहले से ही तय हो चुका हो.

राजकुमार विजयवर्मन को आते देख राजकुमारी अवंतिका के शयनकक्ष के बाहर खड़ी दासी दौड़ कर अंदर चली गई, और फिर राजकुमार विजयवर्मन के द्वार तक पहुँचते पहुँचते वापस जल्दी से बाहर आ गई, और उनसे कहा.

" आपका स्वागत है राजकुमार... परन्तु राजकुमारी अवंतिका ने आपसे क्षमा मांगी है, उनके सोने का समय हो चला है ! ".

" अगर ऐसी बात है तो मुझे स्वयं उनसे मिलकर उन्हें क्षमा करना होगा ! ". राजकुमार विजयवर्मन ने ब्यंग भरी मुस्कान के साथ कहा, और दरवाज़े से अंदर दाखिल होने के लिए आगे बढे तो दासी सिर झुकाकर एक ओर खड़ी हो गई और उन्हें अंदर प्रवेश करने का रास्ता दे दिया.

कमरे के अंदर एक बड़े से आईने के सामने राजकुमारी अवंतिका बैठी हुई थी और उनके अगल बगल दो दासीयां उनके बाल बना रही थीं. राजकुमारी अवंतिका ने बिना पीछे मुड़े आईने में राजकुमार विजयवर्मन के प्रतिबिम्ब से नज़रें मिलाते हुए कहा.

" औरतों के शयनकक्ष में दासीयों के रहने का कोई तो उद्देश्य होगा ना भैया ??? ".

" अवश्य ! राजकुमारी की सेवा करना, ना की अपने ही प्रियजनों को उनसे मिलने से रोकना... ". विजयवर्मन तपाक से बोलें.

अवंतिका ने उठ कर खड़े होते हुए अपनी दोनों दासीयों को बाहर जाने का इशारा किया, तो उन दोनों के साथ साथ बाकि की दासीयां भी बाहर चली गईं. अवंतिका टहलते हुए विजयवर्मन के समीप जा खड़ी हुई और बोली.

" लगता है आपको मेरी दासी के कथन पर यकीन नहीं हुआ ! ".

" अब हो गया... ". विजयवर्मन ने अपनी बहन को चिढ़ाने के मकसद से घूरते हुए कहा. " आपकी आँखे देखकर ! सचमुच में आपको नींद आ रही है... ".

" अगर कोई अति आवश्यक बात है तो कहिये भैया, नहीं तो सुबह होने की प्रतीक्षा कीजिये... आँख खुलते ही सबसे पहले आपसे ही मिलूंगी ! ". अवंतिका ने अपना मुँह घुमाते हुए कहा.

विजयवर्मन अपनी छोटी बहन की रग रग से वाकिफ थें, उन्हें पता था की उनके मन में क्या चल रहा है, जिस वजह से वो ऐसा ब्यवहार कर रही है. फिर भी उन्होंने अवंतिका की बांह पकड़कर उन्हें अपनी ओर घुमाते हुए पूछा.

" इतना रुखापन किसलिए अवंतिका ??? कम से कम मेरा दोष क्या है, यही बता दीजिये ! ".

" रात्रि को मैं स्नान नहीं करती राजकुमार... मुझे हाथ लगाकर गंदा ना कीजिये ! ". अवंतिका ने अपने भाई की पकड़ से अपनी बांह छुड़ाते हुए कहा.

" और इस रोष का कारण ??? ".

" आप अभी कहाँ से और क्या करके आ रहें हैं, ये शायद आपको सामान्य लगता हो, पर मुझे नहीं ! ".

अवंतिका की बात सुनकर विजयवर्मन थोड़ी देर शांत रहें, और फिर बोलें.

" आपको तो ये हमेशा से पता था अवंतिका... मैंने तो ये बात आपसे कभी नहीं छुपाई. फिर अचानक आज ही मुझसे इतनी घृणा क्यूँ ??? ".

" मेरी बात रहने दीजिये भैया... परन्तु क्या आपको खुद से घृणा नहीं होती ? ".

" नहीं होती अवंतिका, क्यूंकि मुझे पता है की मैं ये सब क्यूँ करता हूँ... ". विजयवर्मन ने कठोर स्वर में कहा. " और ये आपको भी ज्ञात है, मगर चुंकि आपने फिर से उस बात को उठाया है, तो मैं फिर से आपके सामने सब कुछ स्पष्ट किये देता हूँ. भैया देववर्मन नपुंसक हैं !!! वो एकमात्र उपाय जिससे उनके शरीर में कामोत्तेजना आती है, ये है की मैं उनकी पत्नि के साथ सम्भोग करूँ और वो ये देखें. भैया भाभी के वैवाहिक जीवन में मेरी भूमिका तय करने वाला ना ही मैं स्वयं हूँ, ना ही भैया, और ना ही भाभी. ये सारा कुछ तो नियति का किया धरा है... ये ही सत्य है, अवंतिका !!! ".

" आप इस बात पर विश्वास करते हैं की बड़े भैया नपुंसक हैं ??? ". अवंतिका ने ब्यंग भरी मुस्कान के साथ कहा. " नहीं... मैं तो नहीं मानती ! अपनी घृणित और विकृत मानसिकता को नपुंसकता की आड़ में छुपाने का ये एक छलावा मात्र है... एक बहाना... बस एक षड़यंत्र ! ".

विजयवर्मन को अपनी बहन की बात में सच्चाई दिखी, उन्हें याद आ गया, की कुछ देर पहले कैसे राजकुमार देववर्मन अपनी पत्नि के मुख से अवंतिका के बारे में अभद्र बातें सुनकर वासना से भर गएँ थें, और फिर उन्होंने अपनी पत्नि के साथ सफलतापूर्वक सहवास भी किया ! एक नपुंसक ब्यक्ति के लिए ये संभव होगा ??? कदापि नहीं. मतलब ये, की अपनी पत्नि को अपने ही छोटे भाई के साथ सोते हुए देखने की लालसा, नपुंसकता नहीं, बल्कि मानसिक विकृति है ! आज तक विजयवर्मन को लग रहा था की वो बस अपने भैया भाभी का वैवाहिक जीवन बचाने में उन दोनों की सहायता कर रहें हैं , परन्तु असल में तो देववर्मन मात्र अपनी विकृत इच्छाओ की पूर्ति हेतु उनका उपयोग कर रहे थें. और इन सारे घटनाक्रम में चित्रांगदा का कितना योगदान है, ये भी मात्र समझने भर की बात है !
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07-22-2021, 12:50 PM,
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विजयवर्मन ने एक ठंडी आह भरी, जैसे की वो हार चुके हों, और फिर अवंतिका की दोनों बांहे पकड़कर नरमी के साथ बोलें.

" मुझे पूरा यकीन है की आपका कथन ही सत्य है. परन्तु शायद अब मैं इस भंवर में फंस चुका हूँ ! "

अवंतिका चुपचाप खड़ी रही, उन्होंने अपनी नज़रें दूसरी ओर घुमा रखी थीं, और उनके सुंदर मुखड़े पर आक्रोश साफ झलक रहा था. उनका गुस्सा देखकर ना जाने क्यूँ विजयवर्मन को अचानक से हँसी आ गई, और उन्होंने आगे बढ़कर अवंतिका के गाल चूम लिए. अवंतिका कुछ ना बोली, तो विजयवर्मन ने उनका चेहरा अपने दोनों हाथों में लेकर अपनी ओर घुमाया और उनके होंठ अपने होंठों से स्पर्श करने गये, मगर अवंतिका ने इस बार अपना चेहरा परे हटा लिया.

" अब इन सब बातों का कोई अर्थ नहीं भैया... ". अवंतिका ने विजयवर्मन के हाथों से अपना चेहरा छुड़ाते हुए कहा. " मेरा विवाह तय हो चुका है ! ".

" क्या आप ख़ुश हैं राजकुमारी ? ". विजयवर्मन ने पूछा.

" राजघरानों में विवाह के मामले में औरतों की ख़ुशी कब से पूछी जाने लगी भैया ??? ". अवंतिका ब्यंगात्मक हँसी हँसते हुए बोली.

" मैं आपके विवाह के बारे में नहीं पूछ रहा अवंतिका... ". विजयवर्मन बोलें. " क्या आप मुझसे अलग होकर खुश रह पाएंगी ? ".

" इस प्रश्न का उत्तर आप स्वयं ढूंढिये भैया... ". अवंतिका ने कहा और फिर जाने के लिए मुड़ते हुए सख़्त स्वर में बोली. " रात बहुत हो चुकी है... अब आप जाइये ! "

विजयवर्मन से और नहीं सहा गया, उन्होंने लपक कर अवंतिका का हाथ पकड़ कर उन्हें अपनी ओर खींच लिया, और उन्हें अपनी बाहों में जकड़ कर उनके होंठों से अपने होंठ सटा दियें. अवंतिका कुछ देर तक तो खुद को उनकी पकड़ से छुड़ाने का भरसक प्रयास करती रही, लेकिन फिर उनका विरोध ढीला पड़ने लगा और अंततः उन्होंने अपने हाथ विजयवर्मन के पीठ से लपेट दियें, और चुम्बन में उनका साथ देने लगीं..................................

मन भर कर एक दूसरे को चूमने के बाद जब दोनों अलग हुए तो विजयवर्मन ने देखा की अवंतिका की आँखे आंसुओं से झिलमिला रहीं हैं.

" आप रो रहीं हैं बहन ??? ". विजयवर्मन ने पूछा.

अवंतिका अपने आप को और ज़्यादा कठोर नहीं रख पाई, झट से अपने भाई से लिपट गई और उनके सीने में अपना चेहरा छुपा कर सुबक सुबक कर रोने लगी, मगर आवाज़ दबा कर, ताकि कोई सुन ना ले.

" रो लीजिये राजकुमारी... आज मैं आपको नहीं रोकूंगा ! ". विजयवर्मन ने अवंतिका का सिर सहलाते हुए कहा.

कुछ देर बाद अवंतिका ने अपने भाई के सीने से अपना चेहरा बाहर निकाला तो विजयवर्मन उसके गाल पर से उसके आंसू पोंछने लगें.

" कल सुबह पिताश्री ने अपने कक्ष में एक छोटी सी सभा बुलाई है... ". अवंतिका ने अपनी भींगी पलकें ऊपर उठाकर विजयवर्मन की आँखे में देखते हुए कहा. " हम सभी परिवार के लोगों को आमंत्रित किया है, मुझे, आपको, बड़े भैया, भाभी ! "

" अच्छा ??? मगर किसलिए ? ". विजयवर्मन ने आश्चर्य से पूछा.

" पता नहीं भैया... पुरोहित जी आने वाले हैं. कुछ विचार विमर्श करने हेतु, मेरे विवाह से सम्बंधित ! ".

" हाँ... मगर किसलिए ??? ".

" पता नहीं... ".

" कल उस पुरोहित की कहीं मेरे हाथों हत्या ही ना हो जाये ! ". विजयवर्मन ने गुस्से से दाँत पिसते हुए कहा.

रोते रोते भी अवंतिका को अचानक से हँसी आ गई.

" अरे... ये क्या भैया... भला इसमें पुरोहित जी का क्या दोष ? ".

" मैं सारा जीवन ना ही किसी से विवाह करूँगा और ना ही किसी से प्रेम ! ".

विजयवर्मन ने कहा, तो अवंतिका ने तुरंत उनके होंठों पर अपनी उंगलियां रख कर उन्हें चुप करा दिया और बोलीं.

" ये आप क्या कह रहें हैं भैया ? ".

" सच कह रहा हूँ अवंतिका... ".

" आप पुरुष हैं... आपको अधिकार है. मैं तो ऐसा कह भी नहीं सकती ! ". अवंतिका ने नज़रें झुकाते हुए कहा.

विजयवर्मन चुप हो गएँ, तो फिर अवंतिका ने विषय बदलने हेतु हँसते हुए उनसे कहा.

" वैसे आपको विवाह की आवश्यकता भी क्या है राजकुमार ? विवाह के सारे आनंद तो चित्रांगदा भाभी आपको दे ही रहीं हैं. है ना ? ".

" ठिठोली ना कीजिये राजकुमारी... मुझे ये बिल्कुल पसंद नहीं ! ". विजयवर्मन ने गुस्से में अवंतिका को अपनी बाहों से अलग करते हुए कहा.

" अरे अरे... ये क्या... आप मुझे तंग करें तो ठीक है ??? ये तो न्याय नहीं... ". अवंतिका ने विजयवर्मन का हाथ पकड़ लिया.

विजयवर्मन थोड़े से शांत हुए, तो उन्होंने अपना हाथ अवंतिका की गर्दन पर रखते हुए उनके ललाट को चूम लिया, और बोलें.

" अपना ध्यान रखियेगा राजकुमारी... ".

अवंतिका ने झट से आगे बढ़कर विजयवर्मन के गाल पर एक चुम्बन जड़ दिया, और मुस्कुराते हुए कहा.

" ये पुरोहित जी के प्राण ना लेने के लिए ! ".

विजयवर्मन ने एक नज़र मन भर कर अपनी बहन को देखा, और फिर बिना कुछ कहे शीघ्रता से शयनकक्ष से बाहर निकल गएँ !
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07-22-2021, 12:50 PM,
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" राजकुमार विजयवर्मन कहाँ हैं ? ". महाराजा नंदवर्मन ने पूछा.

सभाकक्ष में सभी कोई मौजूद थें, महाराजा नंदवर्मन, महारानी वैदेही, राजकुमारी अवंतिका, राजकुमार देववर्मन और उनकी पत्नि चित्रांगदा. परिवारजनों को छोड़ कर और किसी को भी वहाँ उपस्थित रहने की आज्ञा नहीं थी, दास दासी को भी बाहर भेज दिया गया था. पुरोहित जी अपनी बात शुरू करने के लिए बस राजकुमार विजयवर्मन की प्रतीक्षा कर रहें थें.

महाराजा नंदवर्मन अभी विजयवर्मन को बुलाने के लिए किसी को भेजनें की सोच ही रहें थें, की उन्होंने कक्ष में तेज़ कदमो से प्रवेश किया.

" विलम्ब के लिए क्षमा चाहता हूँ... ". कहते हुए विजयवर्मन ने अपना स्थान ग्रहण कर लिया .

अवंतिका ने सबसे नज़रें चुरा कर उन्हें देखा.

चित्रांगदा ने मन ही मन मुस्कुराते हुए उन्हें सिर से लेकर पांव तक एक बार निहारा.

देववर्मन ने उन्हें द्वेषपूर्ण तीरछी नज़रों से घूरा.

परन्तु विजयवर्मन ने किसी को ना देखा और ना ही उनपर ध्यान दिया.

" आज्ञा हो तो सभा शुरू की जाये महाराज... ". पुरोहित जी ने कहा.

" अवश्य पुरोहित जी... ". महाराजा नंदवर्मन बोलें, फिर सबकी ओर देखते हुए उन्होंने कहना शुरू किया. " जैसा की आप सबों को ज्ञात है की राजकुमारी अवंतिका का ब्याह मरूराज्य नरेश हर्षपाल से तय हो चुका है. महाराजा हर्षपाल ने स्वयं स्वीकार किया है की हमारे राज्य से रिश्ता जोड़ना उनके लिए अपार सौभाग्य की बात होगी. वहीँ दूसरी ओर इस सम्बन्ध से हमारे राज्य का गौरव और मर्यादा तो बढ़ेगी ही, साथ ही हमारे राज्य की शक्ति में भी अपार बढ़ोतरी होगी. परन्तु... ". महाराजा नंदवर्मन एक क्षण के लिए रुकें, पुरोहित जी की ओर देखा, और फिर कहा. " परन्तु पुरोहित जी ने हमें एक अत्यंत अदभुत बात बताई है, जो की हमारी चिंता और दुविधा का कारण है. एक ऐसी विचित्र बात जो की हमने ना कभी सुनी ना कभी देखी है. और उसी बात पर विचार विमर्श करने के लिए हमने आप सबों को यहाँ आने का कष्ट दिया है. "

महारानी वैदेही ने महाराज के रुकते ही पुरोहित जी से कहा.

" पुरोहित जी, हम चाहते हैं की आप ही वो बात हम सभी को बतायें... ".

विजयवर्मन, देववर्मन, चित्रांगदा और अवंतिका, सबके चेहरे पर कौतुहल साफ झलक रहा था, सभी की नज़रें अब पुरोहित जी पर टिकी हुई थी, तो पुरोहित जी ने कहना शुरू किया.

" जैसा की महाराज ने कहा, ये एक अदभुत बात है, मगर ऐसा कुछ भी नहीं जो पंडितों और पुरोहितों को ज्ञात ना हो. ये बात और है की ऐसा देखने में बहुत ही कम मिलता है ! "

" पहेलियाँ ना बुझाईये पुरोहित जी, स्पष्ट कहिये की आखिर बात क्या है. " देववर्मन ने अधीर होते हुए कहा.

" अवश्य राजकुमार... ". पुरोहित जी मुस्कुराये, फिर कहा . " राजकुमारी में एक दोष है... ".

" दोष ??? तनिक संभल कर बोलिये पुरोहित जी... आप हमारी छोटी राजकुमारी के बारे में बात कर रहें हैं ! ". चित्रांगदा ने बीच में ही टोका.

" कुलवधु चित्रांगदा... पुरोहित जी को अपनी बात समाप्त तो करने दीजिये. ". महाराजा नंदवर्मन ने चित्रांगदा को देखते हुए कहा, तो उसने विनम्रता से अपनी नज़रें झुका ली.

पुरोहित जी ने आगे कहा.

" मुझे ये दुखद बात राजकुमारी की कुंडली देखकर पता चली. इसे मरणमान्यवर दोष कहते हैं. ये एक अत्यंत शक्तिशाली और जटिल दोष है... ".

सभी ध्यान से सुनने लगें.

" जिस कन्या में ये दोष होता है, अगर उस कन्या का विवाह किसी पुरुष से हो जाये, तो अत्यंत कम समय में उस पुरुष के प्राण जाना सुनिश्चित है ! "

इतना कहकर पुरोहित जी इस बार स्वयं ही रुक गएँ, और वहाँ मौजूद परिवार के लोगों के प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करने लगें. सबसे पहले देववर्मन की ओर से प्रश्न आया.

" यानि आप कह रहें हैं की हमारी बहन का विवाह नहीं हो सकता ? ".

" बिलकुल सटीक राजकुमार... ". पुरोहित जी ने कहा.

" और इसका उपाय... मेरा तात्पर्य है की कोई पूजा पाठ ? ". चित्रांगदा ने पूछा.

" नहीं बहुरानी... ".

अवंतिका और विजयवर्मन चुप रहें.

" परन्तु हम ये कैसे मान लें की आप जो कुछ भी कह रहें हैं वो सत्य है ? ". देववर्मन ने क्षोभ भरे स्वर में कहते हुए विजयवर्मन की ओर देखा.

" मैं झूठ नहीं बोलता राजकुमार... ". पुरोहित जी मुस्कुराये.

देववर्मन की गलती समझते ही महारानी वैदेही ने तुरंत कहा.

" नहीं नहीं पुरोहित जी, देववर्मन का ये मतलब कदापि नहीं था. वो शायद ये पूछना चाह रहें हैं की कुंडली देखने में अगर कोई गलती हुई हो या फिर इस दोष का तात्पर्य वैसा ना हो जैसा आपने बताया... ".

" आपको मेरे कथन पर विश्वास करने की कोई आवश्यकता नहीं राजकुमार...परन्तु मैंने जो देखा है वो कोई भी झुठला नहीं सकता ! ". पुरोहित जी ने कहा.

चित्रांगदा उठ खड़ी हुई और अवंतिका के समीप जाकर उसके कंधे पर सांत्वनापूर्वक अपने दोनों हाथ रखते हुए बोली.

" कृपया अब आप ही इस दोष का निवारण निकालिये पुरोहित जी... ".

" इसका कोई हल नहीं है बहुरानी... ". पुरोहित जी ने कहा, फिर थोड़ा रूककर सोचते हुए बोलें. " सिवाय एक उपाय के ! "

" तो फिर जल्दी बताइये ना पुरोहित जी... ". देववर्मन की ख़ुशी वापस लौट आई.

अवंतिका और विजयवर्मन भली भांति जानते थें की इस वक़्त देववर्मन के मन में क्या चल रहा है.

पुरोहित जी ने महाराजा और महारानी की ओर देखा, मानो की अपनी अगली बात कहने की आज्ञा मांग रहें हों. महाराजा नंदवर्मन ने धीरे से अपना सिर हिलाकर स्वीकृति दे दी. ऐसा लग रहा था की पुरोहित जी जो बात बताने वाले थें, वो बात महाराजा और महारानी को पहले से ही ज्ञात था, और उसी बात पर विचार विमर्श करने के लिए परिवारजनों की ये सभा बुलाई गई थी !

पुरोहित जी ने अपने एक एक शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा.

" अगर कन्या का प्रथम विवाह उसके अपने ही भाई से हो जाये तो ये दोष अमान्य होकर टल सकता है !!! ".
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07-22-2021, 12:50 PM,
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
देववर्मन और चित्रांगदा को जैसे सांप सूंघ गया हो. पहली बार विजयवर्मन और अवंतिका ने अपनी नज़रें उठाकर पुरोहित जी को देखा. महाराजा और महारानी चुप रहें.

" ये आप क्या कह रहें हैं पुरोहित जी ??? ". चित्रांगदा के मुँह से धीरे से निकला, जैसे की वो पुरोहित जी से नहीं, खुद अपने आप से ही ये प्रश्न पूछ रही हो.

" यही वो अदभुत और विचित्र बात है जिसके बारे में आप सबों की राय जानने हेतु आपलोगों को यहाँ बुलाया गया है, ना की अवंतिका के दोष वाली बात के लिए ! ". महाराजा नंदवर्मन ने स्पष्ट किया.

" तनिक ठहरिये पुरोहित जी... ". देववर्मन ने कहा. " तो अगर कन्या अपने ही भाई से विवाह कर ले तो फिर इस दोष का मतलब क्या रहा ??? ".

" मैंने कहा प्रथम विवाह !!! ". पुरोहित जी समझाते हुए बोलें. " यानि की दोष काटने के लिए किये जाने वाला विवाह, ना की संसार बसाने के लिए किये जाने वाला ! भाई बहन इस विवाह के बंधन में केवल मात्र सत्ताईस दिनों के लिए बंधे रहेंगे. अट्ठाईसवे दिन एक छोटी सी पूजा होगी, जिसके उपरांत उन दोनों का सम्बन्ध विच्छेद हो जायेगा, और फिर कन्या को पहले की भांति कुंवारी होने की मान्यता मिल जाएगी. उसका दोष सत प्रतिशत नष्ट हो जायेगा. फिर कन्या अपने मन चाहे वर या अपने माता पिता द्वारा तय किये गये पुरुष से विवाह कर सकती है !!! ".

पुरोहित जी की बात पूरी होते ही सभाकक्ष में चुप्पी छा गई. फिर कुछ देर बाद चित्रांगदा ने पूछा.

" और जिस कन्या का कोई भाई ही ना हो ??? ".

" अच्छा प्रश्न है बहुरानी... ". पुरोहित जी ने मुस्कुरा कर कहा. " फिर तो वो अभागन कन्या आजीवन कुंवारी ही रह जाएगी. कम से कम उसके दोष के बारे में जान कर तो कोई उससे विवाह करने को प्रस्तुत नहीं होगा. ".

" लेकिन अपना भाई ही क्यूँ पुरोहित जी ??? ". इस बार महाराजा नंदवर्मन ने पूछा.

" भाई बहन का रिश्ता पवित्र होता है महाराज. अगर उनमें किसी कारणवश विवाह हो भी जाये तो सामजिक तौर पर वो कभी भी मान्य नहीं हो सकता. कन्या का भाई भला उसका पति कैसे हो सकता है ? इस दोष वाली कन्या के प्रथम पति की मृत्यु तय है. परन्तु जब प्रथम पति उसका अपना भाई ही हो, तो वो सम्बन्ध तो वैसे भी अमान्य ही है, फिर किसकी और कैसी मृत्यु ??? "

" मैं आपका क्षमाप्रार्थी हूँ पुरोहित जी, मैंने आपके ज्ञान पर संदेह किया ! ". देववर्मन ने हाथ जोड़ कर मुस्कुराते हुए कहा, फिर विजयवर्मन की ओर देखा, और फिर अवंतिका की ओर, और ऊँचे स्वर में कहा. " अवंतिका की भलाई हेतु मैं उनसे विवाह करने को तैयार हूँ !!! ".

चित्रांगदा ने चौंकते हुए अपने पति को देखा, राजकुमार देववर्मन का चेहरा वासना और हवस से चमक रहा था.

" यानि आप सबों को ये प्रस्ताव मंजूर है ? ". पुरोहित जी ने पूछा.

" जी पुरोहित जी... ". महाराजा नंदवर्मन बोलें.

" हमने तो पहले ही इसकी स्वीकृति दे दी थी, बस बाकि सबों का मत जानना था ! ". महारानी वैदेही ने कहा.

" क्षमा कीजिये माते... परन्तु मुझे लगता है की ये जिसके भविष्य की बात है, उसकी इस बारे में राय सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण है ! ". पहली बार विजयवर्मन ने अपना मुँह खोला, तो अवंतिका उनको देखने लगी.

" अवश्य ही राजकुमार... ". महाराजा नंदवर्मन ने कहा, फिर अवंतिका से पूछा. " बेटी अवंतिका, आप निःसंकोच होकर अपने मन की बात कह सकती हैं ! "

" दोष तो मेरा ही है ना पिताश्री... ". अवंतिका ने बिना नज़रें उठाये ही कहा. " मुझे आप बड़े जनों का कहा मानने में कोई आपत्ति नहीं ! ".

देववर्मन की ख़ुशी का ठिकाना ना रहा, उन्होंने हँसते हुए चित्रांगदा की ओर देखा, तो उसने अपना मुँह फेर लिया.

" और हाँ राजकुमार देववर्मन... ". पुरोहित जी ने देववर्मन से कहा. " आप अवंतिका से विवाह नहीं कर सकतें !!! ".

अचानक से देववर्मन के चेहरे का रंग उड़ गया, उन्होंने मूर्ख की तरह सभाकक्ष में बैठे सभी लोगों को देखा, और फिर धीरे से पूछा.

" मतलब पुरोहित जी ??? ".

" आप पहले से ही विवाहित हैं राजकुमार... ".

" हाँ तो ??? अवंतिका के होने वाले पति मरूराज्य नरेश हर्षपाल की भी तो 23 पत्नियां हैं... फिर भी वो हमारी बहन से विवाह कर रहें हैं ! ". देववर्मन ने कहा. " और वैसे भी मैं ज्येष्ठ पुत्र हूँ... इस नाते हमारी बहन की सहायता करने का अधिकार केवल मात्र मेरा ही तो हुआ ना पुरोहित जी ? ".

" ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते आपका अनेक चीज़ो पर अधिकार हो सकता है राजकुमार...परन्तु इस सन्दर्भ में नहीं !!! विधि अनुसार कन्या का विवाह उसके कुंवारे भाई से होना होगा. " पुरोहित जी ने कहा, फिर विजयवर्मन की ओर दिखाकर बोलें. " राजकुमारी अवंतिका का प्रथम विवाह राजकुमार विजयवर्मन से होगा !!! ".

चित्रांगदा के चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान दौड़ गई. देववर्मन का चेहरा क्रोध से तमतमा उठा, गुस्से में उनके मुँह से शब्द नहीं निकले, फिर वो एकाएक खड़े हो गएँ, और अत्यंत ऊँचे स्वर में कहा.

" आप सबों की मति भ्रष्ट हो गई है ! अपने सगे भाई से विवाह ??? ये क्या मूर्खता है ? मैं इस घृणित प्रस्ताव का विरोध करता हूँ !!! ".

किसी ने भी देववर्मन की बात का कोई जवाब नहीं दिया.

" आप सभी इस पाप के भागी बनेंगे ! ". देववर्मन ने जब देखा की उनकी बात का किसी पर कोई असर नहीं पड़ा है, तो वो चिल्लाकर बोलें, और गुस्से से कांपते हुए सभाकक्ष से बाहर चले गएँ.

अपने पति के बाहर जाते ही चित्रांगदा ने राहत की एक ठंडी साँस ली और अवंतिका के कंधे को दबा कर उसे आस्वस्त किया.

कक्ष में कुछ देर की शांति के बाद महाराजा नंदवर्मन ने कहा.

" कल रात ही हमने ये समाचार मरूराज्य नरेश हर्षपाल को भिजवा दिया था. उन्होंने जवाब देने में काफ़ी शीघ्रता दिखाई. आज सुबह ही हमारा दूत वापस सन्देश लेकर आया है की उन्हें इस विधि से कोई आपत्ति नहीं. विधि के पूरा होते ही वो अवंतिका से विवाह करके उसे अपनी पत्नि के रूप में स्वीकार कर लेंगे !!! ".

" ये तो बहुत अच्छी बात है... ". चित्रांगदा ने नीचे झुककर अवंतिका की आँखों में आँखे डालकर कहा. मगर अवंतिका कुछ ना बोली.

" अवंतिका और विजयवर्मन के विवाह की तैयारी कीजिये महाराज. मैं स्वयं सारी प्रक्रिया पूरी करुंगा... चिंता ना करें ! ". पुरोहित जी ने महाराजा और महारानी की ओर देखते हुए कहा.

" धन्यवाद पुरोहित जी... ". महाराजा नंदवर्मन और महारानी वैदेही ने एक साथ हाथ जोड़कर कहा.

" अब तो खुश हो ना राजकुमारी अवंतिका ??? ". चित्रांगदा ने बहुत ही धीमे स्वर में अवंतिका की पीठ पर चिकोटी काटते हुए उसके कान में फुसफुसा कर कहा. अवंतिका मन ही मन मुस्कुरा उठी, पर अपनी भाभी को कोई जवाब नहीं दिया.

पुरोहित जी ने अब विजयवर्मन और अवंतिका को सम्बोधित करते हुए कहा.

" याद रखियेगा राजकुमार विजयवर्मन और राजकुमारी अवंतिका... ये विवाह केवल अवंतिका के मरणमान्यवर दोष को काटने का हथियार मात्र है. आप दोनों विवाह के उपरांत सत्ताईस दिनों तक पति पत्नि के रूप में एक साथ एक ही कक्ष में रहेंगे, परन्तु वैवाहिक सुख का उपभोग नहीं करेंगे. अगर आपने ऐसी कोई भी गलती की तो राजकुमार विजयवर्मन के प्राण भी जा सकते हैं, अगर आप सत्ताईस दिन से एक दिन भी ज़्यादा एक दूसरे के साथ पति पत्नि की तरह रहें, तो भी राजकुमार विजयवर्मन के प्राण जा सकतें हैं !!! इस बात का ध्यान रहे... ".

विजयवर्मन और अवंतिका ने विनम्रता से सिर हिला कर पुरोहित जी की बात को मानने और समझने की हामी भरी, और फिर एक साथ पुरोहित जी और महाराजा तथा महारानी के चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद लिया.

सभा भंग हुई.

जाते जाते विजयवर्मन और अवंतिका की नज़रें एक दूसरे से मिली, विजयवर्मन के चेहरे पर तो एक मुस्कान थी, परन्तु अवंतिका के सुंदर मुखड़े पर किसी कारणवश चिंता की काली छाया मंडरा रही थी !!!

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07-22-2021, 12:51 PM,
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
राजकुमार विजयवर्मन और राजकुमारी अवंतिका के विवाह की तिथि बारह दिन बाद तय हुई. इस दौरान पुरोहित जी के बताये नियमानुसार इन बारह दिनों तक दोनों भाई बहन को एक दूसरे से मिलने या उनके निकट तक जाने की अनुमति नहीं थी, ऐसा अगर किसी कारणवश हो जाये तो वो बहुत बड़ा अपशकुन होगा, और सारी विधि वृथा हो जाएगी. यही नहीं, अगर दोनों ने एक दूसरे को देख भी लिया, तो फिर ये विवाह नहीं होगा, फलस्वरुप, अवंतिका का दोष निवारण नहीं हो पायेगा और उसे आजीवन कुंवारी ही रहना पड़ेगा. विवाह का दिन आने तक अवंतिका को प्रत्येक दिन हल्दी लगाई जाती थी और उसे दूध से नहलाया जाता था.

विजयवर्मन ने पहले की भांति हर रात अपनी भाभी चित्रांगदा को चोदने के लिए अपने बड़े भाई देववर्मन के शयनकक्ष में जाना छोड़ दिया. देववर्मन ने उन्हें आने के लिए बुलावा भी भेजा, मगर विजयवर्मन ने साफ इंकार कर दिया. ऐसा आज तक नहीं हुआ था की देववर्मन कुछ बोले और विजयवर्मन उनकी आज्ञा का पालन ना करें - परन्तु अब देववर्मन को अपने भाई में आ रहा परिवर्तन स्पष्ट दिख रहा था. ईर्ष्या और द्वेष की अग्नि में जल रहे देववर्मन ने अपने कक्ष से बाहर निकलना बंद कर दिया, यहाँ तक की महाराजा और महारानी तक से भी बात करना छोड़ दिया. बस हर वक़्त अपने कक्ष में बैठे मदिरा में डूबे रहने लगें.

दूसरी ओर चित्रांगदा अब अधिकतर समय अवंतिका के साथ उसकी सहेली की तरह रहने लगी, उसे हल्दी लगाने, मेहंदी लगाने और स्नान कराने में वो बाकि दासीयों के साथ ही रहा करती थी.

विजयवर्मन तो अपनी बहन के साथ विवाह होने की प्रतीक्षा में दिन गिन रहें थें , परन्तु अवंतिका का हाल इसके बिल्कुल ही विपरीत था, उन्हें समझ नहीं आ रहा था की उन्हें खुश होना चाहिए या दुखी - पुरोहित जी के वैवाहिक सुख से परहेज करने के विचित्र शर्त ने उन्हें असमंजस में डाल दिया था !

आखिर विवाह की घड़ी निकट आ ही गई.

अवंतिका और विजयवर्मन का विवाह राजमहल में ही अवस्थित कुलदेवता के मंदिर में बिना किसी धूम धाम के मात्र परिवारजनों की उपस्थिति में और स्वयं पुरोहित जी की देख रेख में पूरे विधि विधान से संपन्न हुआ. ये विवाह कम, और किसी पूजा पाठ का आयोजन ज़्यादा लग रहा रहा था. देववर्मन विवाह में उपस्थित नहीं थें.

सुहागरात के लिए एक बड़े से भव्य शयनकक्ष को मुख्य रूप से सजाया गया था.

विवाह के उपरांत अवंतिका की कुछ खास दासीयां और चित्रांगदा उन्हें और विजयवर्मन को सुहागकक्ष तक ले आई. द्वार पर पहुँच कर दासीयां वर वधु से हँसी ठिठोली करने लगीं. राजमहल में सभी को विजयवर्मन और अवंतिका के प्रेम प्रसंगों के बारे में पता था, सिवाय महाराजा और महारानी के. यही कारण था की इस विवाह से अवंतिका की सभी दासीयां अत्यंत प्रसन्न थीं, परन्तु विवाह के कठोर नियम और शर्त वहाँ उस वक़्त मौजूद लोगों में से केवल मात्र विजयवर्मन, अवंतिका, और चित्रांगदा को ही मालूम थें !

" हमारी राजकुमारी बहुत कोमल हैं... अपने कठोर हाथ उनसे दूर ही रखियेगा राजकुमार ! ". एक दासी ने कहा.

" और नहीं तो क्या, नहाने के पानी में अगर गुलाब के फूलों की मात्रा तनिक अधिक हो जाये, तो राजकुमारी के अंग छिल जाते हैं ! ". तो दूसरी दासी बोली.

" मुझे नहीं लगता की राजकुमार पूरी रात सिर्फ मीठी मीठी बातें करके ही कटायेंगे ! ". और एक दासी बोली.

" अब तो सुबह राजकुमारी के स्नान के समय ही पता चलेगा की उनके किस किस अंग में क्या क्या और कितनी क्षति हुई है ! ". चौथी दासी ने कहा.

सभी दासीयां खिलखिला कर हँसने लगीं.

" निर्लज्ज लड़कियों... अब भागो यहाँ से. राजकुमार और राजकुमारी के विश्राम का समय हो चला है ! ". चित्रांगदा ने दासीयों को डांट डपट लगाई.

" हमें तो नहीं लगता की राजकुमार और राजकुमारी जी पूरी रात सिर्फ विश्राम करेंगे ! ". फिर से किसी दासी ने कहा तो सभी दासीयां हँस पड़ी.

" देवर जी... इन ढीठ लड़कियों को कुछ उपहार दे दीजिये, वर्ना ये लोग यहाँ से जायेंगी नहीं और आपको ऐसे ही तंग करती रहेंगी ! ". चित्रांगदा ने विजयवर्मन से कहा.

विजयवर्मन ने अपने शरीर से कुछ आभूषण और मोतीयों की मालायें उतार कर दासीयों को भेंट दी, तो वो सभी हँसती खिलखिलाती वहाँ से चली गई.

विजयवर्मन और अवंतिका अब जब अंदर प्रवेश करने को आगे बढे तो चित्रांगदा ने उन्हें रोका.

" अरे अरे... ये क्या ? नववधु का सुहागकक्ष में अपने पैरों पर चल कर जाना अशुभ माना जाता है. चलिए देवर जी, अवंतिका को अपनी गोद में उठाइये ! "

विजयवर्मन ने अवंतिका को देखा तो वो लजा गई.

" जैसी भाभी जी की आज्ञा... ". विजयवर्मन ने मुस्कुराते हुए कहा, और अपनी बहन को अपने मजबूत बाहों में उठाकर कक्ष की दहलीज पार करके अंदर दाखिल हो गएँ.

सुहागसेज को गुलाब और अन्य कई सारे फूलों से इस कदर सजाया गया था की बिस्तर की चादर तनिक भी नज़र नहीं आ रही थी और ऐसा प्रतीत हो रहा था की मानो पूरा बिछावन फूलों से ही निर्मित हो. पूरा कक्ष इत्र की खुशबु से सुगंधित हो पड़ा था.

" और भी कोई सेवा हो तो बता दीजिये भाभी जी... ". विजयवर्मन ने अवंतिका को बिस्तर पर उतारते हुए मज़ाक में कहा.

" नहीं... बस... आभारी हैं हम दोनों आपके. ". चित्रांगदा ने हँसते हुए कहा, फिर बिस्तर पर बैठी अवंतिका के कान में अपने होंठ सटाकर एकदम धीमे स्वर में बुदबुदाते हुए बोली. " मुझे पता है की आप दोनों इस घड़ी का शायद स्वप्न में बरसों से प्रतीक्षा कर रहें होंगे, परन्तु बहक मत जाइएगा... पुरोहित जी के वचन याद हैं ना ??? ".

अवंतिका ने घूँघट में धीरे से सिर हिला दिया. चित्रांगदा अब उसे छोड़ चल कर विजयवर्मन के पास आई और उनसे कहा.

" वैसे आप चाहें तो आज की रात मैं यहीं रुक जाती हूँ देवर जी... अवंतिका की ना सही, आपकी सुहागरात तो मन जाएगी !!! ".

" आपका ह्रदय बहुत विशाल है भाभी जी... परन्तु मुझे लगता है की आज की रात भैया देववर्मन को आपकी अधिक आवश्यकता पड़ेगी ! ". विजयवर्मन ने हँसते हुए कहा और चित्रांगदा को उनके कंधो से पकड़ कर दरवाज़े तक ले गएँ, और बोलें. " भैया को हम दोनों का प्रणाम कहियेगा भाभी जी ! ".

" प्रेम में अपने प्राण ना गवां बैठियेगा राजकुमार !!! ". चित्रांगदा ने अपना हाथ विजयवर्मन की छाती पर रख कर उन्हें हल्का सा धक्का दिया और मुस्कुराते हुए कक्ष से बाहर जाते हुए दरवाज़ा बंद कर गई.

अंदर से दरवाज़े की कुंडी लगाकर विजयवर्मन वापस कक्ष में आ गएँ और जाकर सुहागसेज पर अवंतिका के बगल में बैठ गएँ.

" ना जाने कितने दिन हो गएँ आपका मुखड़ा देखे हुए अवंतिका... आज्ञा हो तो घूँघट उठा कर एक बार देख लूं ? ".

" भाभी जी का प्रस्ताव ठुकराते हुए तो अत्यंत कष्ट हुआ होगा ना राजकुमार ? ". अवंतिका ने झूठी नाराज़गी दिखाते हुए कहा.

अवंतिका की बात पर विजयवर्मन हँस पड़े.

" ईर्ष्या हो रही है ? हो भी क्यूँ ना ... स्वाभाविक है. अब आप केवल मेरी बहन ही नहीं, पत्नि भी हैं ! ". कहते हुए विजयवर्मन ने अवंतिका का घूँघट ऊपर उठा दिया.
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07-22-2021, 12:51 PM,
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
घूँघट के ऊपर उठते ही अवंतिका की आँखे चौंधिया गईं, उसने झट से अपनी आँखे बंद कर ली, और फिर कुछ क्षण रुक कर एकदम धीरे धीरे वापस से अपनी आँखे खोली, तो देखा की उसके भैया - पति उसके सामने हीरे की एक बड़ी सी चमकदार अंगूठी थामे बैठे हुए हैं.

" इतना निर्लज्ज नहीं हूँ मैं कि आपको बिना कोई उपहार भेंट किये आपका चेहरा देखता ! ". विजयवर्मन बोलें, तो अवंतिका ने मुस्कुरा कर अपना हाथ आगे बढ़ा दिया.

" वैसे चिंता ना कीजिये अवंतिका... आपका चुम्बन लेने के लिए मेरे पास और एक दूसरा उपहार भी है ! ". अवंतिका कि उंगली में अंगूठी पहनाते हुए विजयवर्मन ने कहा, और अपना चेहरा आगे बढ़ा दिया.

परन्तु अवंतिका ने अपनी हथेली विजयवर्मन के होंठों पर रखकर उन्हें रोका, और बोली.

" नहीं भैया... हमें ये सब नहीं करना चाहिए ! "

" क्यूँ अवंतिका ? ".

" मुझे आपके प्राणो का भय है... ".

विजयवर्मन मुस्कुरा दियें, और अपनी उंगली से अवंतिका कि ठुड्डी ऊपर करके उनका चेहरा उठाया, और उनकी आँखों में देखते हुए बोलें.

" अट्ठाईसवे दिन तो वैसे भी मेरे प्राण निकल ही जायेंगे, जब आप मुझसे अलग हो जाएंगी राजकुमार... फिर आज मृत्यु का आलिंगन क्यूँ करूँ ??? मृत्यु को मेरी प्रतीक्षा करने दीजिये... ".

" आप ये सब कैसे कर लेते हैं भैया... भय नहीं लगता आपको ??? ". अवंतिका ने कहा, उनकी बात पूरी होते होते विजयवर्मन ने आगे बढ़कर अपने होंठ उनके होंठों से सटा दियें. कुछ पल के बाद जब दोनों के होंठ अलग हुए तो अवंतिका कि आँखों में आंसू आ चुके थें. उन्होंने विजयवर्मन का चेहरा अपने हाथ से सहलाते हुए कहा. " मैं आपसे दूर चली जाउंगी तो क्या, आप सकुशल रहेंगे, यही मेरे लिए बहुत बड़ी बात होगी ! "

" एक बार सोच कर देखिये अवंतिका.... ". विजयवर्मन ने कहा. " हम दोनों तो प्रायः अलग हो ही चुके थें कि नियति ने ये अदभुत खेल खेला. क्या आपको नहीं लगता कि ये अपने आपमें कोई साधारण बात नहीं. हमें एक मौका मिला है संग रहने का और अपने प्रेम को पवित्र साबित करने का. और फिर पुरोहित जी ईश्वर तो नहीं जो उनका हरेक वचन सत्य हो !!! ".

अवंतिका कि आँखों में इतनी देर से रुके आंसू अनायास ही छलक पड़े और उनके गालों पर बह चलें. वो बिस्तर पर से अचानक उठी और नीचे उतरकर खड़ी हो गई. विजयवर्मन मुड़ कर उन्हें अचंभित नज़रों से देखकर ये समझने का प्रयास करने लगें कि उनके मन में क्या चल रहा है और वो क्या करना चाहती हैं !

अवंतिका एकटक विजयवर्मन को देखती रही और फिर उनके ऊपर से अपनी नज़रें हटाए बिना अपने कान कि बालीयों को खोलने लगीं. कान कि बालीयों के बाद नाक के नथ कि बारी आई, फिर मांगटीका, और फिर मंगलसूत्र और गले का बेशकीमती हार - एक एक करके अवंतिका ने अपने सारे गहने और आभूषण अपने शरीर से अलग कर दियें !

अपनी बहन - पत्नि कि मंशा समझते ही विजयवर्मन अब आराम से बिस्तर पर बैठ गएँ और उनकी हर एक हरकत को बारीकी से निहारने लगें.

इस दौरान अवंतिका ने एक क्षण के लिए भी विजयवर्मन कि आँखों में देखना बंद नहीं किया था. अब वो अपने शादी का लाल जोड़ा उतारने लगी - उन्होंने पहले अपना ब्लाउज़ खोला और फिर अंदर पहनी महीन कपड़े से बनी अंगिया खोल कर अपनी चूचियों को रिहाई दिलाई, फिर अपने घाघरे के नाड़े को हल्का सा ढीला किया तो उनका घाघरा सरसरा कर उनकी पतली कमर का साथ छोड़ कर नीचे सरकते हुए उनके पैरों पर गिर पड़ा. घाघरा खुलते ही विजयवर्मन कि नज़र सीधे अवंतिका कि नाभी के नीचे उनकी दोनों जाँघों के बीच गई, परन्तु उन्हें निराशा ही हाथ लगी - अवंतिका ने अपनी कमर में सोने कि एक मोटी सी करधनी पहन रखी थी, जिससे झूलते हुए सफ़ेद चमकीले झालरदार मोतीयों ने उनकी चूत को इस कदर ढंक रखा था मानो उसकी पहरेदारी कर रहें हो. कुछ भी देख पाना संभव नहीं था और विजयवर्मन को अफ़सोस हो रहा था काश सुहागकक्ष में कुछेक ज़्यादा दीये और मोमबत्तीयां जली हुई होतीं !

ना चाहते हुए भी विजयवर्मन को उस रात अपनी भाभी द्वारा दिए गये अवंतिका के शारीरिक वर्णन कि बात याद आ गई -

(( उनकी सुराहीदार गर्दन नीचे छोटे कंधो से होती हुई उनकी छाती तक पहुँचती है, जहाँ उनके कसे हुए वक्ष सदैव ऊपर कि ओर ही उठे हुए रहते हैं. ऊँचे वक्षस्थल नीचे की ओर पतली लचकदार कमर में परिवर्तित हो गई है. उनकी नाभी गोल नहीं, बल्कि एक लम्बी संकरी छोटी सी लकीर मात्र है. उनकी नाभी से होते हुए उनका पेट नीचे ढलान से मुड़ कर उनकी योनि में जाकर विलीन हो जाता है, और पीछे की ओर विशालकाय, मगर गोल और सुडॉल नितंब में बदल कर बाहर की ओर पुनः निकल पड़ता है. उनकी कोमल मांसल जांघे आपस में हमेशा सटी हुई रहती हैं और इसी कारणवश अगर वो आपके सामने आकर पूर्णतः नंगी भी खड़ी हो जायें, तो उनकी योनि उनकी जंघा के बीच इस भांति छुप जाती है की उसके दर्शन हो पाना दुर्लभ है ))

नग्नावस्था में अवंतिका बिल्कुल वैसी ही दिख रही थी, जैसा कि चित्रांगदा ने वर्नित किया था !!!

अवंतिका जो अब तक विजयवर्मन से नज़रें मिलाये खड़ी थी, अपने वस्त्रहीन शरीर पर उनकी नज़रों कि कटाक्ष से विचलित होने लगी, और लज्जा से अपनी नज़रें झुका ली. कलाईयों में कांच कि चूड़ियों, कमर में करधनी, और पैरों में सोने कि पायल के सिवाय वो अब पूर्णत: नग्न अवस्था में थी ! उन्होंने अपने घाघरे से अपने पैर निकाल कर उसे वहीँ ज़मीन पर छोड़ दिया, और धीरे धीरे कदम बढ़ाते हुए वापस बिस्तर पर आ चढ़ी. सुहागसेज पर चढ़ते समय और अपने भैया - पति के समीप बैठते समय अवंतिका ने इस बात का पूरा ध्यान रखा था कि उसकी नंगी चूत ना दिख जाये !

विजयवर्मन समझ गएँ कि उनकी नवविवाहिता बहन - पत्नि उन्हें तंग करने के उद्धेश्य से ऐसा कर रही है. अपनी बहन कि शरारत पर उन्हें हँसी तो बहुत आ रही थी, परन्तु उन्होंने अपनी हँसी पर काबू रखा, और अवंतिका का हाथ अपने हाथों में लेकर धीरे से बोलें.

" मुझे अपनी योनि के दर्शन नहीं कराईयेगा अवंतिका ??? ".

अपने भाई के मुँह से " योनि " शब्द सुनकर अवंतिका लजा गई, उसके गोरे गालों पर लाली छा गई, और उसकी झुकी हुई पलकें डबडबाने लगीं.

पर विजयवर्मन अपनी बहन को मनाने से कहाँ रुकने वालें थें, उन्होंने अवंतिका का हाथ चूम लिया और फिर से कहा.

" मेरे संयम कि और परीक्षा ना लीजिये राजकुमारी... विनती है मेरी ! ".

" अच्छा भैया... अब समझी मैं. आपकी अधीरता बता रही है कि मेरे साथ सहवास करने हेतु ये सारा कुछ था ! ". अवंतिका ने मुँह बनाते हुए कहा. " अभी अभी तो पवित्र प्रेम कि बातें कर रहें थें ना !!! ".

जवाब में विजयवर्मन कुछ नहीं बोलें.

उन्होंने चुपचाप अवंतिका के दोनों पाँव अपने हाथ में लेकर थोड़ा सा ऊपर उठाया, और नीचे झुक कर उन्हें चूम लिया. अवंतिका अभी ये समझने कि चेष्टा कर ही रही थी कि वो क्या करने वालें हैं, कि उन्होंने ऐसा कुछ किया कि जिसकी उसने कल्पना भी नहीं कि थी - अवंतिका के पाँव अपने एक हाथ में थामे अपने दूसरे हाथ से विजयवर्मन ने अपनी रेशमी धोती से हठात अपना लण्ड बाहर निकाल लिया !!!

" हाय भैया !!! ये क्या ??? ".

अपने भैया - पति का लण्ड इस तरह से अनायास ही एकदम सामने देखकर अवंतिका चिंहुक उठी, शर्म के मारे उसने झट से अपने दोनों हाथों से अपनी आँखे और अपना चेहरा छुपा लिया. तब से वो अपने भाई को इतना परेशान कर रही थी - अब उसकी खैर नहीं. उसे पता था कि अब क्या होने वाला है !!!

परन्तु विजयवर्मन के मन में तो कुछ और ही चल रहा था !

लज्जा से अपने हाथों में अपना मुँह छुपाये अवंतिका अपने भाई के अगले कदम कि प्रतीक्षा करने लगी. उसकी साँसे अनियमित होकर तेज़ चलने लगीं तो उसकी गोल चूचियाँ उसकी छाती पर ऊपर - नीचे ऊपर - नीचे होने लगीं. खुद को अपने भाई के हाथों समर्पण कर देने के सिवाय अब अवंतिका के पास और कोई चारा नहीं बचा था.

अवंतिका कि गहरी चल रही साँसे अचानक से अब रुक गई और उसके दिल कि धड़कन बढ़ गई. आँखे बंद होने के कारण उन्हें कुछ दिखाई तो नहीं दे रहा था, परन्तु वो कल्पना कर सकती थीं कि उनके भाई अभी क्या कर रहें होंगे. अब तक तो शायद उन्होंने अपनी धोती उतार दी होगी, और अब उसकी ओर बढ़ रहें होंगे !!!

ठीक तभी अवंतिका ने अपने पैरों पर कोई गरम गरम सा लस्सेदार गाढ़ा तरल पदार्थ गिरता हुआ महसूस किया ! अचंभित होकर डरते डरते उसने अपने हाथ अपने चेहरे से हटाए, और नीचे देखा तो दंग रह गई !

उनके दोनों पाँव अभी भी विजयवर्मन के हाथ में थें, समीप ही बैठे विजयवर्मन कि धोती से बाहर निकला उनका लण्ड अवंतिका के पाँव पर लुढ़का पड़ा बुरी तरह से फड़क रहा था, और पाँव और पाँव के पायल पूरी तरह से उनके लण्ड से अभी अभी निकले वीर्य से सराबोर भींगे सने पड़े थें !!!

" लीजिये... मैंने आपके चरणों में अपना वीर्यपात कर दिया राजकुमारी. अब मेरा लिंग सहवास के लायक नहीं रहा ! अब आपको मुझसे घबराने कि कोई आवश्यकता नहीं !!! ". विजयवर्मन ने बड़ी ही सावधानी से अपना झड़ा हुआ लण्ड अपने हाथ में पकड़ कर अवंतिका के पाँव से नीचे उतारा, उसके लाल मोटे सुपाड़े से वीर्य कि एक पतली सी धार चू कर नीचे चादर पर गिर पड़ी . " अब तो आपको मेरे प्रेम पर संदेह नहीं ना अवंतिका ??? ".

" ये आपने क्या कर डाला राजकुमार ??? ". अवंतिका ने विजयवर्मन का ढीला पड़ चुका लण्ड आगे बढ़कर अपने हाथ में लेते हुए अफ़सोस जताते हुए कहा. " मैं तो बस आपसे यूँ ही हठ कर रही थी !!! ".

अपने भैया के इस बलिदान से अवंतिका गदगद हो उठी. उसने उनके होंठ चूम लियें, उनका हाथ पकड़ कर अपने जाँघ पर रखा, और फिर उनकी आँखों में आँखे डाल कर सख़्त स्वर में बोली.

" मुझे अब किसी भी बात का भय नहीं रहा भैया. परन्तु एक बात स्मरण रखियेगा...अगर मेरे दोष कि वजह से आपको कुछ भी हुआ, तो मैं भी अपने प्राण त्याग दूंगी !!! "
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07-22-2021, 12:51 PM,
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
सुबह औरतों के स्नानागार में जब दासीयां अवंतिका को नहलाने के लिए उनके वस्त्र उतारने लगीं तो उनकी नज़रें सबसे पहले राजकुमारी कि चूत पर गई. चूत को सही सलामत पाकर उन सभी का मुँह उतर गया.

" ये क्या राजकुमारी जी... हम तो आपसे यूँ ही ठिठोली कर रहीं थीं, आपने क्या कल रात राजकुमार को सचमुच में अपने स्पर्श से वंचित रखा ??? ". एक दासी ने पूछा.

" तुम्हें क्यूँ बताऊँ ? ". अवंतिका ने झूठा अहंकार दिखाते हुए मुस्कुरा कर कहा, और नंगी होकर पानी में उतरने लगी.

" और नहीं तो क्या... ". दूसरी दासी ने सबको बताते हुए कहा. " प्रातःकाल ज़ब मैं राजकुमारी के सुहागकक्ष में बिछावन बदलने गई तो देखा कि सुहागसेज के सारे फूल ज्यों के त्यों पड़े हुए हैं और चादर भी मैली नहीं हुई !!! ".

" तुमलोग कुछ ज़्यादा ही वाचाल होती जा रही हो, प्राणो का भय नहीं रहा क्या ? ". चित्रांगदा, जो कि पहले से ही पानी में डूबी नहा रही थी, ने ऊँचे स्वर में गुस्से से कहा तो सारी दासीयां एक दूसरे को देखते हुए एकदम से चुप हो गईं.

चित्रांगदा पानी में तैरते हुए अवंतिका के समीप आई और धीरे से कहा, ताकि सिर्फ वही सुन सके.

" आपने सही निर्णय लिया राजकुमारी... ".

अवंतिका ने आँखे उठा कर चित्रांगदा को एक नज़र देखा, हल्की सी मुस्कुराई, परन्तु कुछ बोली नहीं....................................

उस दिन के पश्चात् प्रतिदिन रात्रि को सोने से पहले विजयवर्मन मूठ मार कर अपना वीर्य अपनी बहन - पत्नि अवंतिका के कदमो में अर्पित कर देतें, ताकि उनकी चोदने कि लालसा समाप्त हो जाये. फिर दोनों पति पत्नि नग्न अवस्था में एक दूसरे कि बाहों में लिपट कर सो जातें. पूर्णत: नंगी होने के बावजूद भी अवंतिका कभी भी अपनी करधनी नहीं उतारती, विजयवर्मन ने अभी तक उनकी चूत कि एक हल्की सी झलक मात्र भी नहीं देखी थी, अवंतिका को भय था कि उसकी चूत देखने के बाद राजकुमार शायद अपना धैर्य खो बैठें. विजयवर्मन भी इस बात को भली भांति समझते थें, और इसलिए उन्होंने भी कभी किसी प्रकार कि ज़िद नहीं कि. उनका ये व्यवहार और रवैया देखकर अवंतिका के ह्रदय में उनके लिए प्रेम और सम्मान कि भावना और भी बढ़ गई थी !

इसी प्रकार धीरे धीरे सात दिन कैसे ब्यतीत हो गएँ, पता ही ना चला.

आठवी रात्रि को जब विजयवर्मन अपने वस्त्र खोल कर बिस्तर पर आएं और अपना लण्ड हाथ में थामे वीर्यस्खलन कि तैयारी करने लगें, तो अवंतिका ने अचानक से उनका हाथ पकड़ कर उन्हें रोका, और बोली.

" राजकुमार... मुझे और पाप कि भागी ना बनाइये ! ".

" ये आप क्या कह रहीं हैं राजकुमारी ? ". विजयवर्मन ने उन्हें आश्चर्य से घूरते हुए पूछा.

" ठीक ही तो कह रही हूँ राजकुमार. आप मेरे भाई और प्रेमी बाद में हैं, परन्तु अब सबसे पहले आप मेरे पति, मेरे प्राणनाथ हैं. फिर आप जैसे तेजस्वी पुरुष का वीर्य प्रतिदिन इस प्रकार नष्ट करवाना मुझ जैसी एक साधारण स्त्री को शोभा नहीं देता !!! ".

" मेरा कामरस व्यर्थ कहाँ हो रहा हैं अवंतिका... मैं तो उन्हें आपके चरणों में समर्पित करता हूँ, जैसे कोई पुजारी किसी देवी को श्रद्धांजलि देता है, ताकि उससे कभी कोई भूल ना हो जाये ! "

" मैं एक सामान्य स्त्री हूँ भैया... देवीतुल्य नहीं ! आपने मेरे पैरों पर स्खलित होकर मुझे जो सम्मान प्रदान किया है, उसका ऋण मैं आजीवन चुका नहीं पाऊँगी ! ".

विजयवर्मन ने एक नज़र नीचे अपने हाथ में थामे हुए लण्ड को देखा, जो कि तन कर खड़ा हो चुका था, और फिर अवंतिका को देखा, उनके चेहरे पर झलकता कौतुहल देखकर अवंतिका उनके मन के सवाल को समझ गई, और आदरपूर्वक बोली.

" पुरुष के वीर्य का स्थान स्त्री कि योनि में होता है भैया. मैं आपको अपनी योनि तो प्रदान नहीं कर सकती परन्तु ऐसा कुछ ज़रूर कर सकती हूँ कि आपके पुरुषार्थ का भी अनुचित अपमान ना हो ! "

विजयवर्मन के चेहरे का प्रश्नचिन्ह और भी गहरा हो गया, अवंतिका ने अपने दोनों हाथ उनके सामने ऐसे रखा जैसे कोई प्रशाद ग्रहण करता हो, और उनकी आँखों में देखकर कहा.

" आप मेरे हाथों में वीर्यस्खलन कीजिये भैया... ".

" जैसी मेरी धर्मपत्नि कि इच्छा ! ". कहते हुए विजयवर्मन ने आगे बढ़कर अवंतिका को चूम लिया, और फिर अपने घुटनों के बल खड़े होकर उनकी हथेलीयों के ऊपर अपना लण्ड हिलाने लगें.

अवंतिका ने सीधे बैठते हुए अपनी चूचियाँ ऊपर उठा ली, ताकि उनके स्तन देखकर राजकुमार को अपना वीर्य गिराने में सुविधा हो. जल्दी ही विजयवर्मन के लण्ड का सुपाड़ा फूल कर लाल हो गया, उन्होंने अपने दूसरे हाथ से अवंतिका के कंधे को पकड़ कर सहारा लिया, ताकि चरमोत्कर्ष कि इस घड़ी में वो गिर ना जायें, और उनके लण्ड ने ढेर सारा गाढ़ा लस्सेदार वीर्य उगल दिया. अवंतिका ने पूरी कोशिश कि की उनकी छोटी छोटी हथेलीयों में सारा का सारा वीर्य इकठ्ठा हो जाये, और बड़ी ही मुश्किल से उन्होंने वीर्य की एक बूंद मात्र को भी अपनी नन्ही हथेलीयों से बाहर छलकने से रोका. जब विजयवर्मन ने लण्ड का सारा का सारा रस झटक झटक कर झाड़ दिया, तो अवंतिका ने ऊपर नज़रें उठाकर उन्हें देखा, मुस्कुराई, अपनी हथेलीयों में जमा वीर्य को अपने माथे चढ़ाया, फिर अपने होंठों से लगाया, और एक ही घूंट में पूरा वीर्य पी गई !!!

" ये क्या किया आपने अवंतिका ??? ". अचंभित होकर विजयवर्मन ने पूछा.

" आपकी पत्नि होने का केवल मात्र एक छोटा सा कर्तव्य निभाया, भैया !!! ". अवंतिका ने अपनी हथेलीयों में लगे हुए बचे खुचे वीर्य को अपने माथे पर सिर के बालों में पोतते हुए कहा.

प्रेमभावना से सराबोर हो चुके विजयवर्मन के मुँह से एक शब्द भी ना निकल पाया, उन्होंने अवंतिका के कंधे पकड़ कर उन्हें बिस्तर पर लिटा दिया और खुद भी उनके बगल में लेट गएँ. अवंतिका ने राजकुमार का झड़ा हुआ ढीला पड़ चुका लण्ड अपने हाथ में पकड़ कर अपनी नाभी पर रख लिया और उन्हें अपने बाहों में भरकर सो गई !!!

उस दिन के बाद से अवंतिका ने फिर कभी विजयवर्मन को उनका कामरस अपने पैरों पर नष्ट नहीं करने दिया, अब हर रात विजयवर्मन उन्हें अपना वीर्य पिलाते.......................

बिछड़ने की घड़ी जैसे जैसे निकट आ रही थी, अवंतिका और विजयवर्मन की चिंता और प्रेम दोनों बढ़ते ही जा रहें थें.

आखिरकार भाई बहन के इस अजीबोगरीब, परन्तु पवित्र विवाह - बंधन की अंतिम रात्रि आ ही गई.

आज अवंतिका और विजयवर्मन का विवाह हुए पूरे सत्ताईस दिन पूरे हुए. भोर होते ही अट्ठाईसवां दिन चढ़ जायेगा और उन दोनों का वैवाहिक सम्बन्ध विच्छेद हो जायेगा !!!

रात को सोने के समय रोज़ की भांति अवंतिका और विजयवर्मन नंगे होकर बिस्तर पर बैठे हुए थें.

" आज आप इतनी उदास क्यूँ हैं प्रिये अवंतिका... भोर होने में अभी समय है ! ". अवंतिका को चिंतित देख विजयवर्मन बोलें.

" भैया... क्या हमारे प्रेम को कोई भी नहीं समझेगा ? हमारी कहानी का अंत क्या इतना दुखद होगा ? ". अवंतिका ने पूछा.

" नहीं राजकुमारी... आपको तो ईश्वर का आभार व्यक्त करना चाहिए की उन्होंने हमेशा हमेशा के लिए बिछड़ने से पहले हमें ये सत्ताईस दिन दियें ताकि इन दिनों में बिताये हर एक क्षण की स्मृति हमारे साथ आजीवन बनी रहे ! ".

" इन सत्ताईस दिनों में मैंने आपको स्मरण रखने लायक दिया ही क्या है राजकुमार ? ".

" ऐसा तो ना कहिये राजकुमारी... ".

" मैं सत्य वचन कह रह हूँ भैया ! पुरुष और स्त्री की चाहत में बहुत भेद होता है ! ".

" भेद उनकी लालसा में नहीं बहन, उस लालसा की अभिव्यक्ति में होता है ! ".

" आपका कथन सत्य है भैया. अगर इच्छा की बात करें, तो मैं भी आपसे मिलन के लिए उतनी ही आतुर हूँ जितनी की आप, या फिर कहीं उससे अधिक ! ". कहते हुए अवंतिका ने विजयवर्मन का ढीला लण्ड अपने हाथ में पकड़ लिया. " विवाह के उपरांत इतने दिनों मैं आपके साथ इतनी कठोर रही क्यूंकि मुझे आपके प्राणो का भय सता रहा था. पर अब जब हमारे एक दूसरे से हमेशा हमेशा के लिए दूर होने की घड़ी निकट है तो मेरा संयम कमज़ोर पड़ते जा रहा है !!! "

विजयवर्मन अभी अवंतिका के मन की मंशा भांपने की चेष्टा कर ही रहें थें, की अवंतिका ने अपने एक हाथ से विजयवर्मन के सिर के लंबे केश प्यार से सहलाये, अपनी नंगी टांगें खोल कर फैला ली, और दूसरे हाथ में पकड़ा उनका लण्ड छोड़कर अपनी कमर से बंधी सोने की करधनी से झूलते हुए सफ़ेद चमकीले झालरदार मोतीयों को अपनी चूत पर से हटा दिया !!!

विजयवर्मन की आँखे बड़ी हो गईं, मानो बाहर ही निकल आने को हो , और उनके दोनों होंठों का साथ छूटते ही उनका मुँह अपने आप ही खुल गया - हो भी क्यूँ ना, सामने का दृश्य ही कुछ ऐसा था !

सामने बैठी राजकुमारी अवंतिका की चौड़ी खुली जाँघों के मध्य अवस्थित उनकी चूत को काले घने रेशमी घुँघराले झांटों ने इस भांति ढंक रखा था की ना तो चूत के होंठ दिखाई पड़ रहें थें और ना ही उसका छेद ! अपनी नवविवाहिता बहन के अनमोल चूत के दर्शन करने का सौभाग्य आज राजकुमार विजयवर्मन को जीवन में पहली बार मिल रहा था !

विजयवर्मन के ढीले लण्ड में आहिस्ते आहिस्ते आ रहा तनाव अवंतिका की चपल आँखों से छुप ना पाया. देखते ही देखते उनकी आँखों के सामने विजयवर्मन का लण्ड बिना किसी छुवन के अपने आप ही ठनक कर खड़ा हो गया. लण्ड के पूरी तरह से खड़ा होते ही उसके मुँह कि चमड़ी खुद ब खुद मुड़ कर पीछे खिसक गई और बड़ा सा गुलाबी सुपाड़ा एकदम से बाहर निकल आया. अपने भाई के लण्ड के मोटे सुपाड़े को यूँ एकदम नज़दीक से देखकर अवंतिका के गाल शर्म से सुर्ख लाल हो गएँ और लजा कर उसने अपनी पलकें एक क्षण के लिए नीचे झुका ली, फिर मुस्कुराते हुए नज़रें वापस से उठाई, और ठीक उसी समय विजयवर्मन के अतिउत्तेजित हो चुके लण्ड ने वीर्य कि पिचकारी छोड़ दी !!!

" हाय... तनिक धैर्य रखिये भैया !!! ". अवंतिका के मुँह से अकस्मात ही निकल पड़ा, फिर वो हँस पड़ी, और आगे बढ़कर विजयवर्मन को गले से लगा लिया.

एक दूसरे से लिपटे रहने के करीब दो तीन मिनट बाद जब दोनों अलग हुए तो अवंतिका ने देखा कि विजयवर्मन का लण्ड अभी भी पहले जैसा ही खड़ा है और ज़ोर ज़ोर से फड़क रहा है. उसके ठीक नीचे चादर पर ढेर सारा वीर्य छिटका पड़ा है. यूँ तो रोज़ाना बस एक बार स्खलित होने के पश्चात् उनका लण्ड शांत और ढीला पड़ जाता था, परन्तु आज अपने भैया - पति के झड़ने के बाद भी लण्ड में रह गये तनाव को देखकर अवंतिका समझ गई कि उन दोनों के पावन मिलन कि बेला आ चुकी है और उसे अब कोई भी नहीं टाल सकता !!!

" इतनी अधीरता क्यूँ भैया ??? आज रात्रि तक तो मैं आपकी अर्धांगिनी हूँ ही !!! ". अवंतिका ने विजयवर्मन कि चौड़ी छाती को सहलाते हुए मुस्कुरा कर कहा.

" आज आपको पता चलेगा राजकुमारी, कि अपने पति को इतनी निष्ठुरता से सताने का परिणाम क्या होता है !!! ". विजयवर्मन ने शरारती तरीके से मुस्कुराते हुए कहा, और अपना मुँह अवंतिका कि खुली टांगों के बीच झुका कर ऊपर देखते हुए पूछा. " आज्ञा है देवी ??? ".

अवंतिका हँस पड़ी.

उन्हें पता था कि विजयवर्मन किस बात कि आज्ञा मांग रहें हैं. उन्होंने लजाते हुए धीरे से हाँ में सिर हिला दिया.

अपनी बहन - पत्नि कि स्वीकृति मिलते ही विजयवर्मन ने अपने दोनों हाथों से उनकी रुई से भी मुलायम झांटों को दोनों तरफ हटाया, ताकि घुँघराले केश में छुपे चूत कि झलक मिल सके. घने झांटों के परे हटते ही दूध जैसी गोरी चूत के नरम होंठ और उनके बीच का पतला नन्हा सा लकीरनुमा छिद्र उदघाटित हो उठा.

अवंतिका ने अपने भाई को मन भर कर अपनी चूत के दर्शन करने दिए.

विजयवर्मन बिना अपनी पलक एक बार भी झपकाये अपनी बहन कि चूत एकटक निहारते नहीं थक रहें थें. उन्होंने जी भर कर अपनी उंगलीयों से उनकी रेशमी झांटों के साथ खेला. फिर ऊपर उठ कर अवंतिका के होंठों से अपने होंठ सटा दियें, मानो इतनी मनमोहक चूत भेंट करने हेतु उनके प्रति अपनी कृतज्ञता ज़ाहिर कर रहें हों. अपने शरीर पर विजयवर्मन के शरीर का भार महसूस करते ही अवंतिका चुम्बन में लिप्त धीरे धीरे पीछे गिरते हुए अपने पीठ के बल लेट गई, तो विजयवर्मन उसके शरीर के ऊपर आ गएँ. उन्होंने अपने होंठ अवंतिका के होठों से अलग कियें, और उनकी जाँघों के मध्य अपनी कमर घुसा कर धीरे धीरे हिलाते हुए अपने लण्ड के नुकिले सुपाड़े से उनकी चूत का छेद ढूंढ़ने लगें ! परन्तु अवंतिका के झांट इतने घने थें कि उनका सुपाड़ा बस झांट के ऊपर ऊपर ही रगड़ खाता रह गया !!!

अवंतिका हँसने लगी, और बोली.

" चित्रांगदा भाभी ने आपको स्त्री का योनिद्वार खोजना नहीं सिखाया क्या... भैया ??? ".

" ऐसी बात नहीं है राजकुमारी... बस आपके योनि के ये पहरेदार, ये केश बड़े ढीट हैं ! ". विजयवर्मन ने अवंतिका कि नाक चूमते हुए मुस्कुरा कर कहा.

" तनिक ठहरिये फिर... ". कहते हुए अवंतिका ने अपनी नंगी टांगें पूरी तरह से खोलकर हवा में फैला लियें, अपना हाथ नीचे अपने और विजयवर्मन के चिपके हुए पेट के बीच से डाल कर अपनी चूत के छेद पर से अपने झांटों को परे हटाया, और विजयवर्मन के लण्ड का सुपाड़ा अपनी उंगलीयों से टटोल कर पकड़ लिया और अपनी चूत के छेद पर टिका लिया.

नरम छेद का सुपाड़े पर स्पर्श पाते ही विजयवर्मन ने तनिक देर भी और प्रतीक्षा किये बिना ही एक धीमा, परन्तु सख़्त झटका लगाया, और पूरे के पूरे सुपाड़े को राजकुमारी कि चूत में प्रवेश करा दिया !

" हाय राजकुमार... मेरी योनि !!! ". दर्द से बिलबिला उठी अवंतिका ने अपने ऊपर चढ़े विजयवर्मन के पीठ पर अपने लंबे नुकीले नाख़ून गड़ा दियें.

विजयवर्मन ने घबरा कर अपना सुपाड़ा अवंतिका कि चूत से बाहर खींच निकाला.

" मेरी पीड़ा कि चिंता ना कीजिये भैया... ". अनियमित रूप से साँस लेते हुए अवंतिका बोली.

विजयवर्मन ने अपनी कमर हिला कर वापस से अवंतिका कि चूत का छेद खोज निकाला, और इस बार थोड़ी ज़्यादा सख़्ती के साथ आगे कमर उचका कर धक्का लगाया, तो लण्ड का सुपाड़ा अवंतिका कि चूत कि नरम पतली झिल्ली को फाड़ कर सट से अंदर दाखिल हो गया. झिल्ली के फटते ही अवंतिका कि चूत से रक्त निकल पड़ा. असहनीय दर्द के मारे बेचारी चिंहुक उठी, परन्तु अपने दांतो से अपने होंठ दबाकर अपनी चीख रोके रखी, और आवेग में आकर विजयवर्मन के पीठ को अपने नाख़ूनों से खरोच डाला. अपने लण्ड, अंडकोष और जाँघों पर कुछ गरम गरम और गीला गीला सा महसूस करते ही विजयवर्मन समझ गएँ कि उनकी बहन कि क्षतिग्रस्त चूत से खून गिरना शुरू हो चुका है, परन्तु वो रुके नहीं, उन्होंने अवंतिका के दोनों कंधे कस कर पकड़ रखें थें ताकि वो छटपटाये नहीं, और उनके ऊपर चढ़े हुए, धीरे धीरे ठूंस ठूंस कर अपना लण्ड उनकी चूत में भरने लगें. राजकुमारी अवंतिका कि चूत इतनी संकुचित और चुस्त थी, कि पूरे बीस मिनट लगें विजयवर्मन को अपना पूरा का पूरा लण्ड उनकी चूत कि गहराईयों में उतारने में !!!

आखिरकार जब लण्ड का सुपाड़ा अवंतिका कि बच्चेदानी से ठोकर खाकर रुक गया तो विजयवर्मन ने चैन कि साँस ली. परन्तु चूत कि गहराईयों तक दाखिल होने में उन्होंने इतना अधिक समय लगा दिया था कि लण्ड कि उत्तेजना चरमसीमा तक पहुँच चुकी थी, और लण्ड चूत के अंदर वीर्य कि उल्टीयां करने लगा. इतने कम समय में दो दो बार शीघ्रपतन हो जाने कि वजह से विजयवर्मन का शरीर सिथिल पड़ गया, और वो अवंतिका के नंगे बदन पर गिर कर पसर गएँ !

अवंतिका ने अपने भाई के शरीर के भार को धीरे से धकेल कर अपने ऊपर से हटाया, तो विजयवर्मन का लण्ड उनकी चूत से फिसल कर बाहर निकल आया. इसके साथ ही अवंतिका कि चूत से ढेर सारा वीर्य और थोड़ा सा रक्त फलफला कर बाहर निकल कर बिस्तर पर बहने लगा ! विजयवर्मन का आधा खड़ा लण्ड अवंतिका कि चूत के रक्त में सना लाल चमक रहा था. अवंतिका ने ओढने के लिए पास में पड़ी हुई एक सफ़ेद चादर से विजयवर्मन के फड़कते हुए लण्ड को ढंक दिया, और अपनी एक चूची हाथ में थाम कर उनके मुँह से लगाते हुए हँस कर बोली.

" तनिक स्तनपान कर लीजिये भैया, सहवास के लिए शक्ति मिलेगी !!! ".

विजयवर्मन ने लपक कर अवंतिका के लाल चूचुक को अपने मुँह में भर लिया, और ज़ोर ज़ोर से चप चप कि आवाज़ करते हुए चूसने लगें. चूचुक को दो तीन बार ही उन्होंने मुँह के अंदर चूस कर टाना होगा, कि अवंतिका कि चूची से गरम ताज़ा दूध निकल आया. विजयवर्मन को अत्यंत आश्चर्य हुआ कि उनकी बहन माँ बने बिना ही ना जाने कैसे इतनी दुधारू हो गई. अब उन्हें यकीन हो गया कि अवंतिका कोई साधारण राजकुमारी नहीं, वरन साक्षात् कामदेवी ही है !!!

जब एक चूची का दूध समाप्त हो गया तो अवंतिका ने अपनी दूसरी चूची अपने भैया - पति के मुँह में दे दी, और इस तरह से बारी बारी से अपनी बहन - पत्नि कि दोनों चूचियों का मीठा दूध पीने के बाद विजयवर्मन के शरीर में पुनः जान आई. लण्ड कि नसों में वापस से रक्त संचार होते ही लण्ड पहले से भी ज़्यादा अकड़ कर खड़ा हो गया. अवंतिका कि चूची से निकले दूध के अंतिम धार को गटकने के पश्चात् विजयवर्मन फिर से पलट कर उसके ऊपर चढ़ गएँ. उनके कमर से लिपटी चादर खिसक गई तो ठनका हुआ लण्ड छिटक कर बाहर निकल आया. अवंतिका अभी ठीक से अपनी टांगें खोल भी नहीं पाई थी, कि विजयवर्मन उनकी जाँघों के बीच घुस आएं, और बिना किसी चेतावनी के सरसरा कर धड़ल्ले से अपना लण्ड उनकी पहले से ही लहूलुहान हो रखी चूत में घुसेड़ दिया !!!

दर्द से तिलमिलाई अवंतिका ने अपनी आँखे भींच कर बंद कर ली, तो आँखों के कोनों से आंसूओ कि बूंदे टपक पड़ी. जैसे तैसे उन्होंने अपने चूतड़ इधर उधर खिसका कर विजयवर्मन के लण्ड के लिए अपनी कोरी चूत में जगह बनाई, और अपनी मांसल टांगें उनके कमर से लपेटकर उन्हें अपनी बाहों में भर लिया.

विजयवर्मन ने आव देखा ना ताव, लगे अवंतिका को ताबड़तोड़ पेलने !!!

" अअअअअहहहहहह... मममम... मेरे भैया, मेरे प्राणनाथ... तनिक धीरे... आअह्ह्ह... सम्भोग के लिए इतनी आतुरता उचित नहीं... हाय... आआहहहहहहह... माना कि मैंने आपके साथ सात फेरे लिए हैं और अब आपकी अर्धांगिनी हूँ, परन्तु हूँ तो आपकी छोटी बहन ही ना !!! कुछ तो तरस खाइये... कुछ तो दया कीजिये... मेरी योनि को यूँ तो क्षतविक्षत ना कीजिए भैया... दुहाई है आपको... हाय !!! ".

अवंतिका रोती बिलखती, सिसकती गिड़गिड़ाती रही, परन्तु विजयवर्मन ने उनकी हरेक प्रार्थना, हरेक विनती अनसुनी कर दी !

" इतनी सुंदर योनि कि मालकिन हैं आप राजकुमारी... इतने दिनों मुझे इससे क्यूँ वंचित रखा ??? बोलिये... आअह्ह्हघघघघ... बोलिये ना अवंतिका !!! ".

विजयवर्मन अवंतिका को किसी तरह अपनी बातों से बहला फुसला कर चोदते रहें, उनके कमर से लिपटे अवंतिका के पैरों ने इतने झटके खाएं कि उनके पैरों के दोनों पायल खुल कर गिर गएँ.

जल्द ही विजयवर्मन का लण्ड फिर से अवंतिका कि चूत में उबल पड़ा. परन्तु इस बार विजयवर्मन एक क्षण को भी नहीं रुकें और ना ही उन्होंने अपना लण्ड बाहर निकाला. उन्होंने अपना लण्ड अवंतिका कि चूत में अंदर बाहर अंदर बाहर करना तब तक जारी रखा जब तक कि लण्ड में पुनः तनाव नहीं आ गया !

विजयवर्मन ने अवंतिका को चूमते चाटते हुए अब नये सिरे से फिर से चोदना प्रारम्भ कर दिया. चूत में लण्ड के लगातार घर्षण से अवंतिका का योनिद्वार अब पूर्णत: खुल गया तो लण्ड बिना किसी प्रयास के भीतर बाहर होने लगा. अवंतिका ने अपनी बच्चेदानी में इतने ठोकर सहें, कि उसका पानी निकल आया. अपने जीवन के प्रथम कामरस के प्रवाहित होते ही अवंतिका सहवास के चरम आनंद में गोते लगाने लगी, उसकी हर दर्द, हर पीड़ा अब जाती रही.

" अअअअअहहहहहह भैया... कितने मूर्ख हैं हम जो हमने ये सत्ताईस दिन यूँ ही नष्ट कर दियें... हाय... ये कैसा सुख है भैया !!! ".

अनवरत चुदाई से आनंदविभोर हुई अवंतिका अब अपने नितंब उछाल उछाल कर विजयवर्मन का लण्ड अपनी चूत में गीलने लगी. विजयवर्मन का अंडकोष फिर से वीर्य के गरम बुलबुलों से भर गया. चरमोत्कर्ष के अंतिम क्षणो में उन्होंने अवंतिका को इतनी शक्ति से चोदा कि अवंतिका कि कमर कि सोने कि मोटी करधनी टूट गई, और करधनी के झालर और मोती टूट टूट कर पूरे बिस्तर पर बिखर गएँ.

पसीने से तर बतर हुए विजयवर्मन ने एक बार फिर अवंतिका कि चूत को अपने वीर्य से सींच दिया और उनके शरीर पर निढाल होकर गिर पड़े.

" पुष्पनगरी के छोटे राजकुमार कि केवल इतनी ही क्षमता है क्या ??? ". अवंतिका ने अपने भाई के लंबे केश सहलाते हुए उन्हें चिढ़ाने के उदेश्य से पूछा.

अवंतिका कि चूचियों के मध्य से अपना मुँह बाहर निकालकर विजयवर्मन ने उनकी आँखों में देखा और हँस पड़े, फिर लम्बी लम्बी साँसे लेते हुए करीब करीब हाँफ़ते हुए बोलें.

" प्रश्न ये है कि पुष्पनगरी कि छोटी राजकुमारी मेरा कितना प्रेम ग्रहण कर सकती है !!! ".

" हाय... राजकुमार...नहीं !!! ".

विजयवर्मन कि शरारत समझते ही अवंतिका उन्हें धक्के देते हुए उनके शरीर के नीचे से निकलने कि चेष्टा करने लगी, परन्तु विजयवर्मन ने उन्हें अच्छी तरह से अपनी मज़बूत बाहों में जकड़ रखा था, सो बेचारी हिल भी नहीं पाई !

विजयवर्मन ने हँसते हुए फिर से अपनी कमर हिलानी शुरू कर दी !!!

ये सुखद रात्रि कहीं व्यतीत ना हो जाये, इसी भय से अवंतिका और विजयवर्मन पूरी रात नहीं सोएं. भोर होने तक विजयवर्मन ने अवंतिका को अनगिनत बार चोद दिया था.

प्रातः के सूर्य कि पहली किरण के साथ ही दोनों फिर थके मांदे एक दूसरे कि बाहों में योनि - रक्त से लथपथ बिस्तर पर सो गएँ !!!
Reply
07-22-2021, 12:51 PM,
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
" खुद ही देख लीजिये पिताश्री... मैंने क्यूँ उस दिन इसका विरोध किया था !!! ".

अपने ज्येष्ठ भ्राता देववर्मन कि आवाज सुनकर विजयवर्मन कि नींद उचट गई. आँखे खुलते ही उन्होंने सामने जो कुछ भी देखा उसपर यकीन कर पाना मुश्किल था.

शयनकक्ष के अंदर सामने दरवाजे पर, महाराजा नंदवर्मन, महारानी वैदेही और राजकुमार देववर्मन खड़े थें. महाराजा नंदवर्मन का चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ लाल हो रखा था और महारानी ने अपनी नज़रें नीचे झुका रखी थी.

और तब विजयवर्मन को स्मरण हो आया कि वो अभी भी शैया पर अपनी बहन राजकुमारी अवंतिका के साथ पूरी तरह नग्न अवस्था में लिपटे पड़े सोये हुए हैं !!!

विजयवर्मन अवंतिका से अपनी बांहें छुड़ाकर झट से उठ बैठें, तो उनके शरीर से लगे ठोकर से अवंतिका कि भी नींद खुल गई, और आँखे खुलते ही अपने परिवारजनों को इस प्रकार कक्ष में देख कर वो घबराकर उठ बैठी.

अवंतिका के उठते ही रानी वैदेही ने अपनी आँखे उठाकर उन दोनों को देखा - उनकी पुत्री कि नंगी जाँघों पर रक्त लीपा पुता हुआ था, जो कि अब तक सूख चुका था, और उनके पुत्र का लण्ड सूखे रक्त से सना हुआ तन कर खड़ा हो रखा था. शैया पर बिछी चादर पर जगह जगह रक्त के निशान थें. समझने समझाने कि आवश्यकता ना थी कि वहाँ उन दोनों भाई बहन के बीच रात भर क्या हुआ था !!! रानी वैदेही ने तुरंत अपनी आँखे लज्जावश फिर से नीचे कर ली.

अवंतिका ने एक हाथ से किसी प्रकार अपनी नंगी चूचियों को ढंका तो दूसरे हाथ से अपनी खुली हुई चूत कि गरिमा बचाने कि कोशिश करने लगी. दोनों अभी ठीक से समझ भी नहीं पाएं थें कि क्या हो रहा है और उन्हें क्या करना चाहिए, कि तभी महाराजा, महारानी और देववर्मन के पीछे से दौड़ती हुई चित्रांगदा ने कक्ष में प्रवेश किया. उनके हाथों में एक ओढने के लिए उपयोग कि जाने वाली बड़ी सी चादर थी. चित्रांगदा दौड़ कर बिस्तर तक पहुँची, और अपने हाथों में लिए चादर को नंगी अवंतिका और विजयवर्मन के ऊपर फेंक दिया. अवंतिका और विजयवर्मन ने तुरंत वो चादर अपने शरीर पर खींच कर समेट लिया और खुद को पूरी तरह से ढंकते हुए अपना सिर नीचे झुका लिया.

" क्षमा चाहती हूँ पिताश्री !!! ". चित्रांगदा ने अपने ससुर महाराजा नंदवर्मन कि ओर देखकर आदरपूर्वक सिर झुकाते हुए कहा, और फिर गुस्से से अपने पति देववर्मन को घूरते हुए बोली. " आपका साहस कैसे हुआ राजकुमारी के कक्ष में इस प्रकार घुसपैठ करने कि ??? ".

" ना करता तो ज्ञात कैसे होता कि दोषनिवारण के लिए सबकी सहमति से किये गये इस पवित्र विवाह कि आड़ में कैसे घृणित कर्म हो रहें हैं !!! ". देववर्मन ने कुटिल मुस्कान के साथ कहा, फिर महाराजा और महारानी कि तरफ इशारा करके बोलें. " और फिर पूज्य पिताश्री और माताश्री को भी तो ये सब बताना आवश्यक था ना प्रिये ! ".

चित्रांगदा अपने पति के कपटी आचरण को भली भांति समझती थी. वो समझ गई कि जिस दिन से अवंतिका और विजयवर्मन का विवाह हुआ था, उसी दिन से ईर्ष्या और द्वेष कि अग्नि में तिल तिल जल रहे देववर्मन ने अवश्य ही उनके पीछे अपने खास गुप्तचर लगा दिए होंगे, ताकि उन दोनों कि एक छोटी सी गलती पर भी कोई बड़ा सा बखेड़ा खड़ा किया जा सके, और अपने अपमान का प्रतिशोध लिया जा सके.

" इस राजमहल में और भी कई घृणित कर्म होतें आ रहें हैं... मैं अगर बताने पर तुल जाऊं तो कइयों का पुरुषार्थ आहत हो सकता है ! ". चित्रांगदा ने देववर्मन कि आँखों में आँखे डालकर ऊँचे स्वर में कहा.

अपनी पत्नि के कथन का अर्थ समझकर देववर्मन एकदम से चुप हो गएँ, फिर शांत परन्तु सख़्त स्वर में कहा.

" इस स्त्री ने खुद अपना सम्मान खोया है... इसका पक्ष लेने वाला भी समान रूप से पाप का भागीदार होगा. ".

" पुरोहित जी को बुलाओ पुत्र... ". राजा नंदवर्मन ने देववर्मन को बीच में ही टोकते हुए हिदायत दी, फिर चित्रांगदा कि ओर देखते हुए बोलें. " बहु... इन दोनों का शुद्धिकरण करवा कर जल्द से जल्द हमारे सामने उपस्थित किया जाये ! ".

चित्रांगदा ने धीरे से अपना सिर झुकाकर आज्ञापालन कि स्वीकृति दी.

महाराजा नंदवर्मन मुड़कर तेज़ कदमो से बाहर निकल गएँ, और उनके पीछे पीछे महारानी वैदेही.

देववर्मन ने जाने से पहले अवंतिका और विजयवर्मन को मुस्कुराते हुए घूरा, और फिर कक्ष से बाहर चले गएँ.

सबके चले जाते ही चित्रांगदा, अवंतिका और विजयवर्मन से चिंतित स्वर में बोली .

" ये आप दोनों ने क्या अनर्थ कर डाला ??? इसका परिणाम किसी के लिए भी अच्छा नहीं होगा... ".

अवंतिका और विजयवर्मन के पास कोई भी उत्तर ना था, दोनों दोषियों कि भांति सिर झुकाये बैठे रहें.

चित्रांगदा अवंतिका को स्नानागार में स्नान कराने के लिए ले गई, सारी दासीयों को बाहर जाने कि आज्ञा दी ताकि किसी को कुछ पता ना चले, और स्वयं राजकुमारी को स्नान करवाने लगी.

अवंतिका अत्यंत डरी, सहमी और घबराई हुई थी. ऊपर से रात कि अनवरत चुदाई कि वजह से उसकी चूत बुरी तरह से फट कर करीबन एक मुट्ठी भर खुल कर फ़ैल गई थी. खून से भींग कर चूत कि झांटे आपस में उलझ गई थीं. राजकुमारी का रक्तस्राव थमने का नाम ही ना ले रहा था. चलना तो दूर, बेचारी ठीक से खड़ी भी नहीं हो पा रही थी.

" आपकी करधनी कहाँ गई राजकुमारी ??? ". नंगी अवंतिका के पानी में उतरते ही उसकी सूनी पड़ी कमर पर चित्रांगदा कि नज़र पड़ी तो वो पूछ बैठी.

" रात उन्होंने तोड़ दी !!! ". लाज से मरी जा रही अवंतिका ने मुँह नीचे झुका लिया.

" हाय... यही लाज रात को राजकुमार के सामने आई होती तो शायद वो आपको छोड़ देते ! ". चित्रांगदा ने अपने हाथ के अंगूठे को अवंतिका कि ठुड्डी से टिकाकर उसका शर्माता हुआ लाल चेहरा ऊपर उठाते हुये कहा, और हँस पड़ी.

" धत्त भाभी... ".

" और देखो तो... इतनी निर्दयता से कोई किसी स्त्री को भोगता है क्या ??? ". चित्रांगदा ने अवंतिका कि कमर के नीचे नज़र दौड़ाते हुये कहा तो अवंतिका ने लज्जावश अपनी टांगों को एक दूसरे से चिपका कर अपनी फटी हुई चूत को उनके मध्य दबा लिया. चित्रांगदा आगे बोली. " ये पुरुष भी ना !!! संसर्ग कि ऐसी भी क्या अधीरता कि इतनी सुंदर योनि को क्षतविक्षत ही कर डाले ??? ".

अवंतिका समझ गई कि उसकी भाभी उसे सहज़ करने के लिए ये सब बोल रही है, सो उसने उनकी बात अनसुनी करते हुए पूछा.

" भाभी... अब क्या होगा ??? ".

" राजद्रोह... ". चित्रांगदा ने कहा.

" राजद्रोह ??? लेकिन हमने तो ऐसा कुछ भी नहीं किया ? ".

" मुझे पता है राजकुमारी... परन्तु आप तो अपने बड़े भैया देववर्मन को जानती ही हैं, वो पूरा प्रयास करेंगे कि आप दोनों पर राजद्रोह का आरोप लगाया जाये. और आपको तो पता ही है कि राजद्रोह का दंड क्या है ! ".

" मृत्युदंड !!! ". अवंतिका ने धीरे से कहा, मानो खुद को ही बता रही हो.

चित्रांगदा ने जब देखा कि अवंतिका अत्यंत विचलित हो रही है तो उसने जानबूझकर फिर से बात बदलने के उद्धेश्य से पूछा.

" वैसे कितने दिनों से चल रहा था ये सब ? ".

" बस कल रात्रि ही हमारा प्रथम समागम हुआ भाभी... ".

" एक ही रात्रि में योनि कि ऐसी अवस्था ??? यकीन करना कठिन हो रहा है ननद जी !!! "

" सच कहती हूँ भाभी ... ".

" अच्छा ??? फिर तो ज़रूर आप ही ने अपने मनमोहक रूप से देवर जी को हद से ज़्यादा उत्तेजित कर दिया होगा... ".

" नहीं भाभी... मैंने तो उन्हें बहुत रोका पर उन्होंने मेरी एक ना सुनी ! ". अवंतिका ने कहा, फिर अपने झूठ पर खुद ही हँस पड़ी.

" मैं नहीं मानती आपकी बात... राजकुमारी ! देवर जी इतने निर्दयी तो नहीं... ". चित्रांगदा ने कहा, फिर पानी में ही अपना घाघरा उठाकर अवंतिका को अपनी नंगी चूत दिखाते हुए बोली. " खुद देख लीजिये राजकुमारी... मैं तो दो दो पुरुषो का लिंग एक साथ संभालती हूँ... मेरा योनिद्वार तो अभी तक कुंवारी लड़कीयों कि योनि से भी ज़्यादा संकुचित है !!! ".

अपनी भाभी कि बात सुनकर अवंतिका सब कुछ भूलकर खिलखिला कर हँस पड़ी, तो चित्रांगदा भी हँसने लगी.

चित्रांगदा ने अवंतिका कि लहूलुहान चूत को अच्छे से साफ किया, उसकी जाँघों और नितंब पर से रक्त को पोछा, गरम पानी से भींगे कपड़े से चूत को सेंक लगाई, और फिर स्नान के उपरांत चूत पर एक लेप लगाते हुए बोली.

" इस औषधि से आपकी घायल योनि को थोड़ा आराम मिलेगा, रक्तस्राव रुक जायेगा और पीड़ा कि टीस भी कम हो जाएगी. और उन सब बातों कि चिंता ना कीजिये राजकुमारी... सबकुछ ठीक ही होगा. ईश्वर है ना... ".

राजा नंदवर्मन ने जो आपातकालीन गुप्त सभा बुलाई थी उसमें सभी परिवारगण के अलावा पुरोहित जी भी मौजूद थें. अवंतिका और विजयवर्मन को बैठने कि अनुमति नहीं थी, तो दोनों दोषियों कि भांति सिर झुकाये खड़े रहें.

राजा नंदवर्मन ने धीमे स्वर में, मानो उन्होंने खुद ही कोई अपराध किया हो, पुरोहित जी से कहना शुरू किया.

" अनर्थ हो गया पुरोहित जी, अत्यंत लज्जाजनक घटना है !इन दोनों मूर्ख भाई बहन ने आपकी बात का अनादर करते हुये आपस में... ". राजा नंदवर्मन एक क्षण को रुके, फिर कहा. "... आपस में सम्भोग कर लिया !!! ".

इतना सुनना ही था कि पुरोहित जी खड़े हो गएँ और क्रोध से तिलमिलाते हुए बोलें.

" राजन... जिस जगह ईश्वर के प्रतिनिधि कि बात का सम्मान ना हो, वहाँ उसका कोई स्थान नहीं ! ".

" सभा छोड़ कर ना जाइये पुरोहित जी... कृपया बैठ जाइये, और कोई उपाय बताइये ! ". रानी वैदेही ने आदरपूर्वक कहा.

" एक दोषनिवारण का उपाय मैंने बताया था, जिसका आपलोगों ने अनादर किया है. अब मेरे पास और कोई उपाय नहीं... मैं ईश्वर नहीं हूँ !!! ". पुरोहित जी ने बिना अपना स्थान ग्रहण किये ही कहा.

" इन दोनों के साथ अब क्या किया जाये पुरोहित जी ? ". राजा नंदवर्मन ने शांत स्वर में पूछा.

" आप राजा हैं... जो आप उचित समझें. इसमें अब पंडित पुरोहित का कोई हस्तक्षेप नहीं ! "
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07-22-2021, 12:52 PM,
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
" और इनका विवाह विच्छेद ??? ". रानी वैदेही ने पूछा.

" कैसा विवाह महारानी ? भला भाई बहन में भी कोई विवाह होता है क्या ? ये तो बस एक पूजा मात्र, एक पवित्र यज्ञ ही था, ताकि आपकी पुत्री दोषमुक्त हो सके. इन दोनों कि कामवासना से सब अपवित्र हो चुका है अब ! ". पुरोहित जी ने ब्यंगात्मक हँसी हँसते हुये कहा.

" आपने सत्य कहा पुरोहित जी... आप ईश्वर नहीं हैं ! ". इतनी देर से चुपचाप खड़े विजयवर्मन हठात से बोल पड़ें. " देखिये, मैं ये पाप करने के पश्चात् भी आप सबों के सामने जीवित खड़ा हूँ, आपके कथन अनुसार तो अब तक मेरी मृत्यु हो जानी चाहिए थी ना ? ".

" राजकुमार !!! ". राजा नंदवर्मन ने ऊँचे स्वर में विजयवर्मन को चुप रहने का इशारा किया.

विजयवर्मन ने अपने पिता कि बात जैसे सुनी ही ना हो, उन्होंने कहना जारी रखा.

" अवंतिका अब मेरी पत्नि है... कोई साधारण पुरोहित तो क्या, स्वयं ईश्वर भी अब हमारा सम्बन्ध विच्छेद नहीं कर सकतें ! ".

" और पुत्री तुम ? ". वैदेही ने अवंतिका को देखते हुए पूछा.

" हम दोनों सर्वदा ही एक दूसरे से प्रेम करतें थें माताश्री. ". अवंतिका ने नज़रें उठाकर धीरे से कहा. " भैया से उचित वर मेरे लिए और कोई हो ही नहीं सकता था ! ".

अवंतिका कि बात सुनकर पुरोहित जी क्रोध और घृणा से हँस पड़े, और बोलें.

" ये दोनों महापापी हैं... इनकी मृत्यु तय है अब !!! जब तक ये दोनों इस राजमहल में हैं, मुझे दुबारा यहाँ ना बुलाईयेगा ! ".

फिर पुरोहित जी एक क्षण भी वहाँ रुके बिना कक्ष से बाहर चलें गएँ.

" राजद्रोह... ". पुरोहित जी के जाते ही देववर्मन ने महाराजा और महारानी से कहा. " इनपर राजद्रोह का आरोप सिद्ध होता है पिताश्री, इन दोनों को मृत्युदंड दिया जाये ! ".

" राजद्रोह कैसे नाथ ??? ". चित्रांगदा ने देववर्मन को देखते हुए कहा. " ये दोनों नियमानुसार पति पत्नि हैं. भाई बहन के मध्य संसर्ग अनुचित होगा, परन्तु पति पत्नि के बीच तो ये एक अत्यंत स्वाभाविक सी बात है ! ".

" आपने अवश्य ही अपनी बुद्धि खो दी है प्रिये, वर्ना चरित्रहीनता कि पराकाष्ठा पार करने वाली इस स्त्री के पक्ष में आप ना बोलती ! ". देववर्मन ने मुस्कुराते हुए ब्यंग कसा.

" चरित्रहीन व्यक्तियों कि पहचान करना मुझे भली भांति आता है नाथ ! रही बात ननद जी और देवर जी कि, तो ये दोनों अग्नि को साक्षी मान कर विवाह के बंधन में बंधे हैं. यहाँ उपस्थित लोगों के लिए और पुरोहित जी, जो कि अभी अभी गएँ हैं, के लिए शायद ये सब एक क्रीड़ा, एक यज्ञ, या फिर एक पूजा पाठ से ज़्यादा कुछ ना रहा हो, परन्तु था तो ये एक विवाह ही ना !!! ".

चित्रांगदा के इस कथन के उपरांत कक्ष में पूरी तरह से सन्नाटा छा गया. कुछ देर कि चुप्पी के बाद राजा नंदवर्मन बोलें.

" मुझे ज्ञात नहीं बहु कि आप कुलवधु होकर भी इन दोनों अपराधीयों का साथ क्यूँ दे रहीं हैं, परन्तु इतना तो अवश्य ही स्पष्ट है कि ना ही इनके विवाह को कोई मान्यता दी जा सकती है और ना ही इनके मध्य स्थापित हुए किसी भी प्रकार के अप्राकृतिक यौन सम्बन्ध को ! साथ ही ये भी सत्य है कि ये राजद्रोह नहीं !!! ".

" राजद्रोह नहीं ??? ये आप क्या कह रहें हैं पिताश्री ? ". देववर्मन ने भड़कते हुए कहा.

" राजद्रोह का अपराध मुझे ज्ञात है पुत्र... मैं राजा हूँ ! ". राजा नंदवर्मन धीरे से बोलें.

" अवश्य पिताश्री... ". देववर्मन ने सिर झुकाकर कहा. " राजद्रोह ना सही, परन्तु ये दोनों मृत्युदंड के तो भागी निसंदेह ही हैं ! "

" ये मुझे तय करने दीजिये राजकुमार ... ". कहते हुए राजा नंदवर्मन अपनी पत्नि वैदेही से अत्यंत धीमे स्वर में विचार विमर्श करने लगें.

देववर्मन ने गुस्से से पहले चित्रांगदा को देखा, फिर अवंतिका और विजयवर्मन को.

सभी चुपचाप खड़े महाराजा के फैसले कि प्रतीक्षा करने लगें.

कुछ समय उपरांत, विचार विमर्श समाप्त करके राजा नंदवर्मन ने सीधे अवंतिका और विजयवर्मन को सम्बोधित करते हुए पूछा.

" राजकुमार विजयवर्मन और राजकुमारी अवंतिका... क्या आप दोनों को अपने ऊपर लगाया गया आरोप समझ में आया और अगर हाँ, तो क्या आप दोनों अपना अपराध स्वीकार करतें हैं ??? ".

" पूज्य पिताश्री और माताश्री... हमें... ". विजयवर्मन ने कहना शुरू ही किया था कि रानी वैदेही ने उन्हें रोकते हुए कहा.

" हमारे निजी रिश्तों का अब कोई मोल नहीं रहा राजकुमार विजयवर्मन. उचित होगा कि आप दोनों हमें महाराजा और महारानी कि तरह सम्बोधित करें... ".

" जो आज्ञा ! ". विजयवर्मन ने सिर झुकाकर कहा, फिर बोलें. " आदरणीय महाराज और महारानी, हमें अपना अपराध ज्ञात है जो आप सबों के अनुसार एक अपराध है, परन्तु मैं अपना अपराधी स्वीकार करने कि स्थिति में नहीं हूँ ! ".

राजा नंदवर्मन और रानी वैदेही ने अवंतिका कि ओर देखा, तो उसने नज़रें उठाई, और बोली.

" मैं अपने पति से सहमत हूँ... मैं भी अपना अपराध स्वीकार नहीं करती ! ".

" जैसा कि हमने पहले ही अनुमान लगा लिया था ! ". राजा नंदवर्मन ने ठंडी आह भरते हुए इस प्रकार कहा जैसे कि मानो उन्हें इसी उत्तर कि आशा थी. फिर सिर उठाकर ऊँचे सशक्त आवाज में कहना शुरू किया. " राजकुमार विजयवर्मन और राजकुमारी अवंतिका... समाज द्वारा स्वीकृत भाई बहन के रिश्ते के अलावा अगर उनमें और कोई भी रिश्ता स्थापित होता है, तो वो गलत है. राजकुमारी अवंतिका ने कहा कि आप दोनों सर्वदा ही एक दूसरे से प्रेम करतें थें, जो कि अनुचित है. कामोन्नमाद और वासना कि आड़ में भाई बहन के अप्राकृतिक सम्बन्ध को प्रेम कि झूठी परिभाषा देना स्वयं में एक घृणित अपराध है, फिर आप दोनों ने तो उससे बढ़ कर ही सारी सीमाओ को लाँघ कर कुछ ऐसा करने का दुस्साहस कर डाला कि जो भाई बहन के पवित्र सम्बन्ध को दूषित करता है. साथ ही सामाजिक तौर पर यह एक अक्षम्य पाप भी है. परन्तु फिर भी मुझे ना ही आपसी रिश्तों का मोह है और ना ही समाज कि चिंता... मुझे केवल मात्र अपने राज्य से मतलब है. राज्य से ऊपर कुछ भी नहीं... मैं भी नहीं ! "

अवंतिका और विजयवर्मन सिर उठाये महाराजा नंदवर्मन का कथन सुनते रहें.

" ये राजद्रोह तो नहीं, परन्तु राजद्रोह से कम भी नहीं, यह हमारे राज्य का अपमान है ! इसलिए आप दोनों को देशनिकाला कि सजा सुनाई जाती है ! ".

अवंतिका और विजयवर्मन ने एक दूसरे को देखा.

" और अगर राजकुमार विजयवर्मन और राजकुमारी अवंतिका ने दुबारा कभी भी इस राज्य कि सीमा में कदम रखने कि कोशिश कि, तो उन्हें बिना किसी चेतावनी के मौत के घाट उतार दिया जायेगा !!! ".

" परन्तु ये अन्याय है... ". राजा नंदवर्मन का कथन पूर्ण होते ही चित्रांगदा लगभग चिल्ला उठी.

" हाँ पिताश्री... ये सरासर अन्याय है ! ". क्रोधित देववर्मन उठ खड़े हुये. " देशनिकाला ??? ऐसे पाप कि सजा केवल देशनिकाला ??? इन्हे अभी के अभी मृत्युदंड दिया जाये ! ".

" राजा का कथन ही अंतिम न्याय है पुत्र ... ". रानी वैदेही बोली.

" मैं नहीं मानता ! अगर आपमें अपने पुत्र और पुत्री के प्रति अभी भी मोह माया बची है तो मुझे आज्ञा दीजिये !!! ". कहते हुये देववर्मन ने अपने म्यान को हाथ लगाया ही था कि राजा नंदवर्मन उच्च स्वर में बोलें.

" राजा कि आज्ञा ना मानना अवश्य ही राजद्रोह है राजकुमार देववर्मन !!! ".

देववर्मन ने बड़ी मुश्किल से अपने गुस्से पर काबू पाया, उनका पूरा शरीर क्रोध से थर्रा रहा था, उन्होंने अपनी तलवार को म्यान में छोड़ कर आँखे बड़ी बड़ी करते हुये एक नज़र सभा मैं मौजूद हर व्यक्ति पर डाली, और फिर धमकी भरे स्वर में बोलें.

" याद रहे, इसका परिणाम अत्यंत बुरा होगा, फिर ना कहियेगा कि मैंने चेतावनी नहीं दी थी ! ".

इतना कहकर देववर्मन अपने कंधे पर लिपटे दुशाले को झटकते हुये सभा से बाहर चले गएँ.

राजा नंदवर्मन ने दो बार ताली बजाई तो तुरंत दो सिपाही कक्ष में दाखिल हो गएँ, और महाराज का इशारा समझते ही उन्होंने अवंतिका और विजयवर्मन को उनके बाहों से पकड़ लिया.

" इसकी आवश्यकता नहीं महाराज... हम स्वयं चले जायेंगे. ". विजयवर्मन ने राजा नंदवर्मन कि ओर देखकर मुस्कुराते हुये कहा, फिर जिस सिपाही ने अवंतिका कि बांह पकड़ रखी थी, उससे कठोर स्वर में बोलें. " अब अवंतिका को अगर किसी ने स्पर्श भी किया तो वो अपने प्राणो कि आहुति देने को तैयार रहे !!! ".

सिपाही ने अवंतिका कि बांह छोड़ दी और भय से कांपते हुये राजा नंदवर्मन को देखने लगा. महाराज ने धीरे से सिर हिला कर इशारा किया तो दोनों सिपाही अवंतिका और विजयवर्मन को छोड़ कर एक तरफ हाथ बांधे खड़े हो गएँ. अवंतिका और विजयवर्मन ने सिर झुकाकर महाराजा और महारानी से आज्ञा ली, और कक्ष से बाहर निकल गएँ. दोनों सिपाही उनके पीछे पीछे हो लियें.

अवंतिका, विजयवर्मन, और दोनों सिपाहीयों के प्रस्थान करते ही चित्रांगदा ने हारे हुये कमज़ोर स्वर में कहा.

" पिताश्री... माताश्री... इतने कठोर ना बनिए... तनिक करुणा से कार्य लीजिये. वे आपके अपने पुत्र और पुत्री हैं !!! ".

राजा नंदवर्मन अपने सिंहासन से उठ खड़े हुये, और चलते हुये चित्रांगदा के पास पहुँचे, उसके दोनों कंधो को अपने हाथों से पकड़ा, और उसकी आंसूओ से झिलमिलाती आँखों में आँखे डालकर नरमी से बोलें.

" घर कि कुलवधु को वासना में लिप्त ऐसे घोर पापी भाई बहन के पक्ष में बोलना शोभा नहीं देता !!! ".

चित्रांगदा ने चुपचाप अपनी आँखों में आये आंसूओ को अपने गालों पर बह जाने दिया - वो समझ चुकी थी इस राजपरिवार में अवंतिका और विजयवर्मन के प्रेम सम्बन्ध को स्वीकारने वाला कोई ना था !

राजा नंदवर्मन के पीछे सिंहासन से उठ आई रानी वैदेही ने उनके कंधे पर हाथ रखकर चिंता जताते हुये कहा.

" मुझे तो ये चिंता सताए जा रही है कि जब मरूराज्य नरेश हर्षपाल को इन सबके बारे में पता चलेगा, तो ना जाने क्या होगा !!! ".

राजा नंदवर्मन उत्तर देने कि स्थिति में नहीं थें, सो चुप रहें.

अपने गालों पर बह चले आंसूओ को पोछे बिना ही चित्रांगदा ने महाराजा और महारानी से प्रस्थान कि आज्ञा ली, और वहाँ से बाहर निकल आई. अपने कक्ष कि ओर जाते हुये वो कुछ सोचने लगी - उन्हें मरूराज्य नरेश हर्षपाल कि कोई चिंता नहीं थी, उन्हें तो केवल अपने पति के चेतावनी भरे शब्द खटक रहें थें ( " याद रहे, इसका परिणाम अत्यंत बुरा होगा, फिर ना कहियेगा कि मैंने चेतावनी नहीं दी थी ! " )

क्यूंकि उन्हें पता था कि देववर्मन कोरी धमकी देने वालों में से नहीं थें !!!

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07-22-2021, 12:52 PM,
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
" क्षमा कीजिये महाराज, पुष्पनगरी के राजा नंदवर्मन के ज्येष्ठ पुत्र राजकुमार देववर्मन आपके दर्शनाभिलाशी हैं... ". मरूराज्य नरेश हर्षपाल के शयनकक्ष में प्रवेश करते ही एक सैनिक ने कहा. " उन्होंने कहा है ये बहुत... ".

हर्षपाल अपने सैनिक कि बात बीच में ही काटकर ज़ोर से चिल्लायें.

" मूर्ख... बातें मत कर, उन्हें तत्काल आदरपूर्वक अंदर ले आ !!! ".

सैनिक डरते डरते सिर झुकाकर बाहर चला गया. एक पल के बाद ही कक्ष में देववर्मन ने प्रवेश किया, परन्तु अंदर सामने का दृश्य देखते ही वो ठिठक कर रुक गएँ, और सिर नीचे करके कहा.

" क्षमाप्रार्थी हूँ राजा हर्षपाल... मुझे ज्ञात ना था कि आप अपनी पत्नियों के संग हैं, वर्ना मैं किसी और समय पधारता ! ".

सामने एक विशालकाय सैया पर हर्षपाल पूरी तरह से निर्वस्त्र लेटे हुये थें, एक नग्न स्त्री उनकी फैली हुई टांगों के मध्य अपना मुँह घुसाये अपना चेहरा ऊपर नीचे कर रही थी. उसका चेहरा उसके काले लंबे केश से पूर्णत: ढंका हुआ था, सो कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था, परन्तु उसकी हरकते देखकर कोई भी अनुमान लगा ही लेता कि वो मुखमैथून में लिप्त है. एक दूसरी स्त्री हर्षपाल के समीप नंगी लेटी उनका बालों से भरा सीना सहला रही थी !

" पत्नि ??? ". हर्षपाल ठहाका मारकर हँस पड़े, और बोलें. " अरे नहीं नहीं... ये तो हमारी नर्तकी हैं. जब हमें ज्ञात हुआ की ये दोनों सुंदर नर्तकीयां नृत्य के अलावा और भी कई सारी कलाओ में निपुण हैं, तो हमने तुरंत ही इन्हे नृत्यालय से निकालकर अपने शयनकक्ष की सेविका बना लिया ! ".

देववर्मन अंदर ही अंदर क्रोधित होते हुये चुपचाप खड़े हर्षपाल की बकवास सुनते रहें.

" चार दिनों से हम अपने कक्ष से बाहर नहीं निकले हैं राजकुमार देववर्मन, अपनी पत्नियों से भी नहीं मिलें. अब तो लगता है की आपकी बहन राजकुमारी अवंतिका से विवाहोपरांत ही हमारा इन सुंदरीयों से साथ छूटेगा ! ".

देववर्मन कुछ ना बोलें.

" परन्तु आप चिंता ना करें राजकुमार... आपकी बहन के हमारे राजभवन में वधु बनकर आते ही हमारी ये सारी आदतें अपने आप छूट जाएंगी ! ".

" अवश्य राजा हर्षपाल... आप राजा हैं, आपको हर कुछ शोभा देता हैं ! ". देववर्मन ने हर्षपाल को चुप कराने के उदेश्य से खींझ कर कहा. फिर बोलें. " मुझे आपसे कुछ ज़रूरी बात करनी थी ! ".

" अवश्य... अवश्य ! तभी तो आप इतनी दूर की यात्रा करके हमारे राज्य में पधारें हैं, आपका स्वागत है ! ".

" मेरा मतलब था, मुझे आपसे एकांत में बात करनी है... ".

" एकांत में ??? ". हर्षपाल ने वापस से प्रश्न किया, फिर कुछ सोचा, और फिर जो नर्तकी उनका लण्ड चूस रही थी, उससे कहा. " जल्दी करो रोहिणी... मेहमान को प्रतीक्षा कराना घोर पाप है ! ".

हर्षपाल की बात समझकर दूसरी नर्तकी उनके पास से उठी, और पहली नर्तकी के मुँह में घुसे उनके लण्ड के अंडकोष को अपनी मुट्ठी में पकड़ कर दबाने लगी. हर्षपाल के चरमोत्कर्ष की अवधी को कम करने की उसकी ये तरकीब काम आई, जल्द ही वो छटपटाने लगें, उनके पैर अकड़ गएँ, और वो पहली नर्तकी के मुँह में अपना वीर्य भरने लगें.

देववर्मन चुपचाप खड़े इस नाटक को ना चाहते हुये भी देखते रहें.

पहली नर्तकी ने हर्षपाल के जाँघों के बीच से अपना चेहरा उठाया तो उनका झड़ा हुआ लण्ड उसके मुँह से फिसल कर बाहर निकल आया और ज़ोर ज़ोर से फड़कने लगा. स्पष्ट था की पहली नर्तकी उनका सारा का सारा वीर्य निगल चुकी थी ! दूसरी नर्तकी खिलखिलाकर हँसने लगी, फिर दोनों ने एक साथ हर्षपाल के लण्ड को चूमा. फूलते हुये साँस के साथ हर्षपाल उठें और दोनों नर्तकीयों के चूतड़ों पर एक साथ हल्के से थप्पड़ मारा, तो इशारा समझकर दोनों नर्तकीयां बिस्तर से उतरकर दौड़ते हुये कक्ष से बाहर भाग गईं.

हर्षपाल के चेहरे पर चरमसुख का संतोष साफ झलक रहा था. उन्होंने पास पड़े चादर से अपना ढीला पड़ रहा लण्ड ढंक लिया, परन्तु बिस्तर पर से उठें नहीं, और बोलें.

" आसन ग्रहण कीजिये राजकुमार... ".

देववर्मन बिस्तर के समीप रखे एक सिंहासन पर विराजमान हो गएँ.

" पहले जल ग्रहण कीजिये, भोजन कीजिये, थोड़ी मदिरा लीजिये... ".

" इन सबका समय नहीं है राजन !!! ".

" समय नहीं है ??? किसके पास समय नहीं है, आपके या हमारे ??? ". हर्षपाल ने आश्चर्य से पूछा.

" मैं आपको सारी बात बता देता हूँ राजन, फिर आप ही तय करें की इस परिस्थिति में समय का अधिक मूल्य किसके लिए है...आपके या मेरे ! ".

" ऐसी क्या बात हो गई ??? महाराज ठीक तो हैं ना... और अवंतिका ? ".

" अगर पिताश्री को पता चल गया की मैं आपसे मिलने आया हूँ तो उनके गुप्तचर मेरे प्राण हर लेंगे ! ".

" आपको यहाँ किसी का भय नहीं राजकुमार. परन्तु महाराजा नंदवर्मन आपके प्राण क्यूँ लेना चाहेंगे ??? पहेलियाँ ना बुझाईये... बताईये ! ".

" आपके साथ धोखा हुआ है राजा हर्षपाल !!! ".

" धोखा ??? कैसा धोखा ? ".

देववर्मन ने ऐसा नाटक किया मानो भय से उनकी साँस अटक रही हो, फिर बताने लगें.

" ध्यान से सुनिए राजन ! आपको तो ज्ञात ही है की मेरी बहन अवंतिका का आपके साथ विवाह होने से पहले उसके दोषनिवारण हेतु उसका विवाह सत्ताईस दिनों के लिए मेरे छोटे भाई विजयवर्मन से कर दिया गया था... ".

" हाँ राजकुमार... और मुझे इस पवित्र दोषनिवारण पूजा पाठ विधि से कोई आपत्ति नहीं थी... ".

" वही तो राजन, अवंतिका का दोष, उसका विवाह, ये सारा कुछ एक षड़यंत्र था ! सब मिथ्या था ! ये सारा का सारा नाट्य विजयवर्मन का रचा हुआ था. असल में मेरे छोटे भाई का... ". कहते कहते देववर्मन जानबूझकर रुकें, ये दर्शाने के लिए की वो आगे की बात बताने में हिचक रहें हैं, फिर बोलें. " मेरे छोटे भाई का हमारी बहन अवंतिका से अवैध सम्बन्ध था. ये बात हमारे परिवार में किसी को भी ज्ञात ना था. दोनों भाई बहन ने अपनी कामाग्नि जीवन भर के लिए मिटाने हेतु पुरोहित जी के साथ मिलकर ये स्वांग रचा. पुरोहित जी ने झूठमूठ अवंतिका का कोई अदभुत दोष बताकर दोनों भाई बहन के सत्ताईस दिन के लिए विवाह बंधन में बंधने का उपाय बताया. विजयवर्मन को पता था की अगर एक बार उसका अपनी बहन से विवाह हो जाये तो फिर दोनों को कोई भी अलग नहीं कर सकता. ".

हर्षपाल जड़ होकर देववर्मन की बात सुनते रहें.

" ये सत्ताईस दिन पूरे होने के बाद स्वयं विजयवर्मन ने ये बात हम सबों को बताई. परन्तु सबसे दुख और लज्जा की बात ये है की अब सारी बात जानने के बाद पिताश्री और माताश्री ने भी इस घृणित सम्बन्ध को स्वीकृती दे दी है, ये कहकर की अब जब दोनों का विवाह हो ही गया है तो फिर और किया भी क्या जा सकता है. जब मैंने इस बात का विरोध किया और कहा की हमें महाराज हर्षपाल को इस भांति अंधकार में रखकर उनके साथ छल नहीं करना चाहिए, तो पिताश्री ने ये कहकर मुझे सदैव के लिए चुप रहने का आदेश दिया, की राजपरिवार के मान सम्मान और गौरव की रक्षा के लिए हमें ये बात राजा हर्षपाल से किसी भी हालत में छुपानी पड़ेगी. वे लोग एक दो दिन में अवंतिका और विजयवर्मन को राज्य से बाहर दक्षिण में हमारे मामाश्री के साम्राज्य में भेंज देंगे. उनकी योजनानुसार कहें तो उसके कुछ दिन बाद आपको ये सन्देश दे दिया जायेगा की पुरोहित जी ने कहा है की अवंतिका का दोषनिवारण असफल रहा, और अब वो कभी भी किसी से विवाह नहीं कर सकती, क्यूंकि विवाहोपरांत उसके पति की मृत्यु तय है. इस बात को सुनकर आप खुद ही भय से पीछे हट जायेंगे और... ".
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