मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
07-22-2021, 12:52 PM,
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
" तनिक रुकिए राजकुमार... ". बड़ी बड़ी आँखे किये हुये हर्षपाल ने चादर अपने कमर से बांधा और नंगे बदन ही सैया से उठकर नीचे उतर आएं, देववर्मन के विपरीत दिशा में थोड़ी दूर तक टहल कर गएँ, फिर रुकें, और पीछे मुड़कर बोलें. " तो आप ये कह रहें हैं राजकुमार, की आपकी छोटी बहन और छोटे भाई में अनैतिक सम्बन्ध है, वही छोटी बहन जिससे हमारा विवाह तय हुआ था, और अब दोनों पति पत्नि हैं, और इस घिनौने बंधन को स्वीकार कर राजा नंदवर्मन अब हमें ही मूर्ख बना कर मुझे अपमानित कर रहें हैं, वो भी हमें पूरी सच्चाई से अवगत कराये बिना ??? ".

नाटकिय तरीके से देववर्मन ने अपना सिर झुका लिया, मानो हर्षपाल की बात का उत्तर देने का साहस उनमें ना हो !

" अगर आपका कथन सत्य है तो फिर आप ही हमें एक कारण बताईये राजकुमार, की क्यूँ ना हम अभी यहीं आपका वध करके अपने अपमान का प्रतिशोध ले लें ??? ".

" अगर ऐसा करने से आपका प्रतिशोध पूर्ण होता है राजन, तो आप अवश्य ही ऐसा करें ! ".

" चिंता ना करें राजकुमार, सिर्फ आपके प्राण लेकर हमारी प्रतिशोध की अग्नि शांत ना होगी. आपके बाद आपके पिताश्री, आपकी छोटी बहन और आपके छोटे भाई कि भी यही स्थिति होगी ! ".

" मैं यहाँ निहत्था ही आया हूँ राजन... हमारे परिवार ने आपके साथ जो कुछ भी किया है उसके बाद आपका विरोध करने का साहस मुझमें तो नहीं रहा ! ".

हर्षपाल ने धीरे से अपना सिर हिलाया, मानो सब कुछ समझने कि चेष्टा कर रहें हों, और पूछ बैठे.

" आपको हमसे क्या चाहिए राजकुमार, अपने परिवार के विरुद्ध जाकर आपने हमें ये सब क्यूँ बताया ? ".

" इसके तीन प्रमुख कारण हैं राजन... ". देववर्मन समझ चुके थें कि उनका तीर निशाने पर लग गया है, तो अब वो हर्षपाल को समझाते हुये बोलें. " प्रथमत: मेरी छोटी बहन और छोटे भाई ने भाई बहन के पवित्र रिश्ते का अपमान किया है, द्वितीय, आपने हमारा कुछ नहीं बिगाड़ा है, सो आपको धोखा देना मुझे स्वीकार नहीं, और तृतीय कारण ये है राजन, कि मैं स्वयं भी पूर्ण रूप से स्वार्थ से परे नहीं हूँ !!! ".

" तो फिर आपका स्वार्थ क्या है राजकुमार ? ". हर्षपाल ने देववर्मन के समीप आकर धीरे से पूछा.

" मुझे राजसिंहासन चाहिए, मैं चाहता हूँ कि आप इसमें मेरी सहायता करें ! ".

" भला वो कैसे ? ".

" हमारे राज्य पर आक्रमण करके... ".

" वो तो हम यूँ भी कर ही सकते हैं... परन्तु आपकी सहायता करके हमें क्या लाभ होगा ? ".

" आपके अपमान का प्रतिशोध पूर्ण होगा ! ".

" फिर आपको हम राजा घोषित क्यूँ करें राजकुमार, आपका राज्य स्वयं ना हड़प लें ? ". हर्षपाल ने ब्यंग से मुस्कुराते हुये पूछा.

" मेरी सहायता के बिना आप कभी भी हमारे राज्य को पराजित नहीं कर पाएंगे राजन ! ". देववर्मन ने दृढ़ स्वर में कहा.

" और इसका कारण ? ".

" हमारे राजमहल कि बनावट ही ऐसी है कि लाख कोशिशों के बावजूद भी आप प्रवेशद्वार के फाटक तक भी नहीं पहुँच पाएंगे, फिर या तो आपके सारे सैनिक मार गिराए जायेंगे, या फिर आपको पराजय स्वीकार करके वापस लौट जाना पड़ेगा... ".

हर्षपाल ध्यानपूर्वक देववर्मन कि बात सुनते रहें.

" सिर्फ मुझे राजमहल का एक गुप्त द्वार ज्ञात है, जो कि मैं आपके लिए खोल सकता हूँ, ताकि आप और आपकी सेना अंदर प्रवेश कर सके. जो युद्ध आप तीन दिन तक लगातार लड़ कर भी हार जायेंगे, वही युद्ध आप मेरी सहायता से कुछेक क्षणो में ही जीत सकतें हैं राजन ! ".

हर्षपाल के चेहरे पर अभी भी शंका के बादल मंडराते देख देववर्मन समझ गएँ कि शायद उन्हें हमले के लिए मनाना इतना आसान नहीं होगा, तो वो उठ खड़े हुये, और अपना अंतिम दाँव फेंका.

" ठीक है राजन, मुझे कुछ नहीं चाहिए. आप मुझे सिंहासन सौंप दें, फिर मैं अपने राज्य को आपके अधीन घोषित कर दूंगा, यानि हमारा राज्य आपके राज्य का ही हिस्सा हुआ समझिये, केवल नाममात्र का राजा बने रहने में मुझे कोई आपत्ति नहीं !!! "

हर्षपाल कुछ नहीं बोलें, पीछे मुड़कर टहलते हुये कुछ सोचने लगें, कुछ देर बाद वापस देववर्मन के पास आएं, और अपना चेहरा देववर्मन के चेहरे के एकदम समीप लेजाकर उनकी आँखों में आँखे डालकर अपनी आँखे बड़ी बड़ी करते हुये बोलें.

" आपका परिवार हमें पहले ही अत्यंत अपमानित कर चुका है, धोखा किया है हमारे साथ, ऐसी परिस्थिति में आपके परिवार के किसी भी व्यक्ति पर भरोसा करना अब मेरे प्रति संभव नहीं रहा. फिर भी हमें आपकी बात पर भरोसा करने का मन कर रहा है . परन्तु एक बात स्मरण रखिये राजकुमार, अगर आपने हमारे साथ किसी प्रकार का छल कपट करने का दुस्साहस किया, तो आपका राज्य भले ही हम ना जीत पाएं, आपके प्राण लेने से हमें स्वयं यमराज भी नहीं रोक पाएंगे !!! ".

हर्षपाल कि कठोर धमकी से एक क्षण के लिए देववर्मन भी सहम से गएँ, फिर हल्का सा मुस्कुरायें, और बोलें.

" मेरा वध करने का विकल्प आपके पास हमेशा रहेगा राजन ! ".

" हम्म्म्म... मेरी भी एक शर्त है राजकुमार देववर्मन... ".

" अवश्य राजन... ".

" अवंतिका और विजयवर्मन का वध मैं स्वयं अपने हाथों से करूँगा !!! ".

" अगर वो दोनों मेरे हाथों मृत्यु को प्राप्त होने से बच गएँ, तो अवश्य ही राजन !!! ". देववर्मन ने दाँत पीसते हुये कहा.

" और मैंने सुना है कि आपकी पत्नि चित्रांगदा भी रूप सौंदर्य में कुछ कम नहीं !!! ". हर्षपाल ने घृणित तरीके से मुस्कुराते हुये कहा.

देववर्मन ने अपनी आँखे नीचे कर ली, एक क्षण को रुकें, कुछ सोचा, और फिर आँखे ऊपर करके मुस्कुराते हुये उत्तर दिया.

" मेरी बहन अवंतिका जैसी सुंदर तो नहीं, जिसमें आपकी पत्नि बनने के गुण हों, परन्तु युद्ध के उपरांत अगर आप उसे अपनी दासी भी बना लें तो अवश्य ही ये उसका सौभाग्य होगा, जिसके लिए वो आजीवन आपकी ऋणी रहेगी ! ".

हर्षपाल ने मुस्कुराकर देववर्मन को दोनों कंधो से पकड़ कर मित्रता का अस्वासन दिया.

" परन्तु आपको एक दो दिन के अंदर ही आक्रमण करना होगा, अवंतिका और विजयवर्मन राज्य छोड़कर भागने कि तैयारी में हैं ! ". देववर्मन ने कहा.

" हमारी सेना सर्वदा तैयार रहती है राजकुमार... बस आप अपनी सहायता वाली बात पर अडिग रहें ! ".

" जी राजन... ". देववर्मन ने कहा, फिर थोड़ा मुस्कुराकर विषय बदलते हुये बोलें. " अब तनिक मदिरा मंगवाईये राजन, आपके भय से मेरा गला सूख गया है ! ".

इतना सुनते ही हर्षपाल ज़ोर से अट्टहास करते हुये हँस पड़ें, और द्वार की ओर देखकर ताली बजाई, तो एक दासी तुरंत कक्ष के अंदर आई, और सिर झुकाकर खड़ी हो गई.

" मूर्ख स्त्री... देख क्या रही हो, मदिरा लाओ... मदिरा !!! ". हर्षपाल ज़ोर से चिल्लायें.

दासी के बाहर जाते ही देववर्मन ने हर्षपाल से कहा.

" वैसे आपके राजमहल में और भी सुंदर नर्तकीयां हैं क्या ??? ".

हर्षपाल एक बार पुनः ठहाका मारकर हँस पड़ें, और बोलें.

" अवश्य राजकुमार...अवश्य, अभी उपस्थित करता हूँ !!! ".
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07-22-2021, 12:52 PM,
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" आप दोनों को इतने दिन यहाँ नहीं रुकना चाहिए. जल्द से जल्द ये नगरी छोड़कर चले जाना ही उचित रहेगा ! ". चित्रांगदा ने अवंतिका से कहा.

वो अवंतिका के कक्ष में बैठी उन्हें उनकी और विजयवर्मन की यात्रा के लिए सारे साजो सामान एकजुट करने में मदद कर रही थी. और अब दोनों थक हारकर सैया पर सहेलियों की भांति एक साथ बैठी विश्राम कर रहीं थीं.

" परन्तु भाभी... देशनिकाला के आदेश के पश्चात् तो अपराधी को एक सप्ताह भर का समय दिया जाता है ना ??? फिर आज तो अभी तीसरा दिन ही है... ". अवंतिका ने पूछा.

" आप समझ नहीं रहीं हैं राजकुमारी... इस राजमहल से आपलोग जितनी जल्दी पलायन कर जायें, उतना ही अच्छा है. यहाँ अब आपके लिए कुछ भी नहीं बचा है... ".

" आप सत्य कह रही हैं भाभी... अब यहाँ हमारे लिए रहा ही क्या ? जब पिताश्री और माताश्री ने ही हमें तिरस्कृत कर दिया तो अब किसी और से क्या आशा रखी जाये ! ". अवंतिका ने चिंतित स्वर में कहा, फिर चित्रांगदा के दोनों हाथ अपने हाथों में थामकर पूछ बैठी. " अच्छा भाभी... सच सच बताइये... क्या हमने सचमुच में कोई पाप या अपराध किया है जो हमें इतना कठोर दंड दिया जा रहा है ??? ".

" इस प्रश्न का उत्तर इतना आसान नहीं अवंतिका ! ".

" हाँ... ये कथन भी सत्य ही है ! मुझे पता है भाभी की हमने जो किया है वो इस राज्य में पहले कभी भी नहीं हुआ, इस राज्य की छोड़िये, दूर दूर तक ऐसा कभी कहीं सुनने में नहीं आया. परन्तु मैं करती भी क्या भाभी, जो मुझे अपने ही भाई से प्रेम हो गया ! ".

" आप दोनों की स्थित अब इस तर्क वितर्क से कहीं आगे निकल चुकी है राजकुमारी, पीछे मुड़कर ना देखिये और ना ही सोचिये, इससे बस मन विचलित ही होगा, और कुछ नहीं ! समाज के रचे इस चक्रव्युह में गोल गोल घूम कर अब कोई लाभ नहीं, द्वार खुला है... निकल जाइये !!! ".

अवंतिका चुप हो गई, फिर चित्रांगदा के हाथ अपने हथेलीयों में दबाते हुये कहा.

" मैंने आपको सारा जीवन गलत समझा भाभी... मुझे क्षमा कर दीजिये ! ".

" अरे अरे... ऐसा भी क्या अवंतिका ! ".

" मुझे आपकी बहुत याद आएगी भाभी... ". अवंतिका रुआंसा होकर बोली, फिर मुस्कुराते हुये कहा. " और मेरे पति को भी ! "

विजयवर्मन की बात उठते ही चित्रांगदा ऐसे हँस पड़ी कि उनकी आँखों से आंसू टपक पड़ें .

" एक बात पूछूँ भाभी ? ".

चित्रांगदा ने अपने आंसू पोछते हुये स्वीकृती में सिर हिला दिया.

" आप विजयवर्मन से प्रेम करतीं हैं ना ??? ".

" अब इन बातों का क्या अर्थ रहा... ". कहते हुये चित्रांगदा सैया पर से उठने को हुई, तो अवंतिका ने ज़बरदस्ती उन्हें खींचकर वापस से बैठा लिया.

" बताइये ना भाभी... अब तो हम वैसे भी बिछड़ने वालें हैं... फिर शायद ही कभी मिल पाएं और ये सारी बातें हो सकें ! ".

चित्रांगदा ने एक ठंडी आह भरी, और फिर अवंतिका से नज़रें चुराते हुये बोली.

" प्रारम्भ में तो बस अपने पति के कहने पर मैं देवर जी के साथ सोती रही, परन्तु... परन्तु बाद में चलकर मुझे खुद भी ये सब अच्छा लगने लगा. और फिर एक समय आया जब उनसे मिला शारीरिक सुख मेरे लिए गौण हो गया, उसका कोई अर्थ ही ना रहा, मुझे उनके मन से और उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व से प्रेम होने लगा. परन्तु उन्होंने मुझे कभी भी प्रेम नहीं किया, शारीरिक रूप से मेरे साथ होते हुये भी वो तो बस आपके बारे में ही सोचा करतें थें. मेरे साथ सम्भोग करना तो जैसे उनके दिनचर्या का एक हिस्सा मात्र था, अपने ज्येष्ठ भ्राता कि आज्ञा का पालन जो करना था ! ". चित्रांगदा कुछ क्षण को रुकी, फिर अपनी नज़रें उठाकर अवंतिका कि आँखों में आँखे डालकर बोली. " और सच कहूँ तो प्रारम्भ में मुझे आपसे बड़ी ईर्ष्या होती थी, सोचती थी कि आपमें ऐसा क्या है जो मुझमें नहीं, रूप, सौंदर्य, काया... आखिर क्या ??? फिर कभी कभी प्रसन्न भी होती थी, ये सोचकर कि जिस पुरुष से आप प्रेम करतीं हैं, वो पुरुष हर रात्रि मेरी बाहों में सोता है... तो जीत तो मेरी ही हुई ना ??? परन्तु नहीं, जहाँ ईर्ष्या होगी वहाँ प्रेम कैसे रह सकता है, ये बात मुझे बहुत बाद में जाकर समझ में आई... अब उसी का प्रयश्चित करने कि चेष्टा कर रहीं हूँ !!! ".

" आपको किसी भी चीज़ के लिए प्रयश्चित करने कि कोई आवश्यकता नहीं भाभी... ". कहते हुये अवंतिका ने आगे बढ़कर चित्रांगदा को गले से लगा लिया. फिर ठिठोली करते हुये बोली. " वैसे मैं भी तो आपसे ईर्ष्या करती हूँ भाभी... आप मुझसे कहीं ज़्यादा गोरी जो हैं ! ".

अवंतिका कि बात सुनकर रोते रोते भी चित्रांगदा कि हँसी छूट गई. मन भर कर एक दूसरे से गले मिलने के पश्चात् चित्रांगदा अवंतिका से अलग हुई, और अपने आंसू पोछते हुये पूछा.

" अच्छा ये सब छोड़िये राजकुमारी... ये बताइये कि आपकी योनि कैसी है अब ??? ".

" रक्त निकलना तो बंद हो गया है भाभी, परन्तु अभी तक सूज कर फूली हुई है, पीड़ा तो अब भी है, पहले से थोड़ी राहत अवश्य है ! ". अवंतिका ने लजाते लजाते बताया.

" देवर जी ने फिर तो आपको तंग नहीं किया ना ? ".

उत्तर में अवंतिका ने शर्माते हुये धीरे से ना में सिर हिला दिया.

" मैंने जो औषधि दी है, उसका लेप प्रतिदिन अपनी योनि पर लगाते रहिएगा... जल्द ही आपकी योनि पहले जैसी स्वस्थ हो उठेगी ! ". चित्रांगदा ने समझाया, और फिर अवंतिका कि ओर अपनी उंगली उठाते हुये बोली. " और हाँ... याद रहे, अभी दो मास तक देवर जी को अपने आप को छूने भी ना दीजियेगा ! ".

" दो मास ??? भाभी... ". अवंतिका ने आँखे बड़ी बड़ी करते हुये बड़े ही भोलेपन से पूछा.

" अच्छा ठीक है... परन्तु एक मास से एक दिन भी कम नहीं ! ". चित्रांगदा ने हँसते हुये कहा.

" और अगर वो ... ".

अवंतिका ने अभी अपनी बात समाप्त भी नहीं की थी, की कक्ष में अचानक से दौड़ती हुई एक दासी आई और हाँफ़ते हुये बोली.

" राजकुमारी जी... राजकुमारी जी... ".

" क्या हुआ सुमन ? तू इतनी घबराई हुई क्यूँ है ??? ". अवंतिका ने पूछा.

" बहुत बुरी खबर है राजकुमारी जी... ". कहकर दासी फिर रुक गई और हाँफने लगी.

" अरे बोल भी... ". चित्रांगदा ने झिड़क लगाई.

" राजकुमारी के मंगेतर राजा हर्षपाल ने हमारे राज्य पर आक्रमण कर दिया है !!! ".

ये खबर सुनते ही अवंतिका और चित्रांगदा एक क्षण के लिए जड़ हो गएँ.

" अब आप समझीं राजकुमारी, मैं क्यूँ कह रही थी कि आप दोनों का यहाँ रहना उचित नहीं ? ". चित्रांगदा धीरे से बोली.

" हर्षपाल ने आक्रमण कर दिया ??? परन्तु क्यूँ ? ". अवंतिका ने दासी को और फिर चित्रांगदा को देखते हुये कहा.

" प्रतिशोध... ". चित्रांगदा बोली.

" परन्तु उन्हें ये सब पता कैसे चला ? ". अवंतिका ने प्रश्न किया.
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07-22-2021, 12:52 PM,
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चित्रांगदा कुछ सोचकर चुप रही, परन्तु उनका चेहरा देखकर लग रहा था कि शायद वो सब कुछ समझ गईं हों.

" सावधान ! महाराजा नंदवर्मन पधार रहें हैं... ". तभी कक्ष के बाहर से आवाज़ आई.

अवंतिका और चित्रांगदा घबराकर सैया पर से उठ खड़े हुये और अपने शरीर के वस्त्र ठीक करने लगें.

अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित राजा नंदवर्मन ने कक्ष में तेज़ी से प्रवेश किया तो अवंतिका और चित्रांगदा ने एक साथ उनका अभिवादन किया.

" महाराज कि जय हो... ".

राजा नंदवर्मन ने अवंतिका कि ओर देखा तक नहीं, और उन दोनों के अभिनन्दन का उत्तर दिए बिना ही चित्रांगदा को सम्बोधित करते हुये बोलें.

" कुलवधु चित्रांगदा... राज्य पर संकट आन पड़ी है... परन्तु चिंता कि कोई बात नहीं. आप दोनों यहाँ सुरक्षित है, बाहर आपकी सुरक्षा हेतु मैंने कुछ सैनिकों को खड़े रहने का आदेश दे दिया है. कक्ष से बाहर निकलने कि कोई आवश्यकता नहीं ! ".

इतना कहकर राजा नंदवर्मन जाने के लिए मुड़े ही थें कि कक्ष में विजयवर्मन ने लगभग दौड़ते हुये प्रवेश किया और महाराज से बोलें.

" महाराज कि जय हो ! क्या मुझे युद्ध में जाने कि आज्ञा है ? ".

" ये युद्ध किसकी वजह से हो रहा है राजकुमार ??? जो राजा हमारे यहाँ बारात लेकर आने वाले थें , आज वो राजमहल के बाहर अनगिनत सैनिक लिए धमक पड़ा है !!! ". राजा नंदवर्मन ने क्रोधित स्वर में कहा.

विजयवर्मन चुप हो गएँ .

" उचित होगा कि आप भी यहाँ इसी कक्ष में स्त्रीयों के साथ रहें... हमारे सैनिक बाहर हैं, आप भी सुरक्षित रहेंगे ! ". कहते हुये राजा नंदवर्मन मुड़कर जाने लगें, फिर कक्ष के द्वार को पार करने से पहले रुकें और कहा. " मेरा ज्येष्ठ पुत्र देववर्मन है हमारी सहायता करने के लिए !!! ".

राजा नंदवर्मन के कक्ष से बाहर जाते ही विजयवर्मन धीमे कदमो से चलते हुये अवंतिका और चित्रांगदा के समीप पहुँच खड़े हुये. अपने पिताश्री के कहे शब्दों से वो अत्यंत अपमानित महसूस कर रहें थें, परन्तु फिर उन्होंने खुद को संभाला, और हँसते हुये बोलें.

" चलो ये भी सटीक ही है... महाराज मुझे दो वीर तेजस्वीनी स्त्रीयों कि देख रेख में छोड़ गएँ हैं, अब भला मुझे क्या चिंता हो सकती है ! ".

" हमारी हँसी उड़ाने कि आवश्यकता नहीं देवर जी... ". चित्रांगदा ने मुँह बनाते हुये कहा.

" क्षमा कीजिये भाभी... मेरी ऐसी मंसा कतई ना थी ! मैं तो सिर्फ इतना जानना चाहता था कि आप दोनों ने कभी अपने हाथों में तलवार उठाई भी है या नहीं ??? ". मुँह दबाकर हँसते हुये विजयवर्मन बोलें.

" तलवार कि क्या आवश्यकता राजकुमार... ". चित्रांगदा ने अपनी कमर में खोंसी हुई एक चाकू बाहर निकालते हुये कहा. " ये है ना मेरे पास ! ".

चाकू के आकार को देखकर विजयवर्मन और अपनी हँसी दबा नहीं पाएं, तो उनके साथ अवंतिका भी ज़ोर से खिलखिला कर हँस पड़ी.

" राजकुमारी ??? आप भी ??? मैंने सोचा हम सहेलियां हैं ! ". चित्रांगदा ने झूठा गुस्सा दिखाते हुये अवंतिका से कहा.

अवंतिका ने तुरंत आगे बढ़कर अपनी भाभी को गले से लगा लिया.

" आप सदैव इसे अपने साथ रखती हैं भाभी ? ". विजयवर्मन ने अपनी हँसी रोकते हुये पूछा.

" और नहीं तो क्या... ना जाने कब दरकार पड़ जाये ! ".

" परन्तु इससे क्या होगा ??? ".

" बड़े बड़े राजाओ कि भांति, भले ही मैं हज़ारों लाखों सैनिको को ना मार गिरा पाउँ, परन्तु कम से कम उस प्रथम व्यक्ति कि जीवनलीला तो अवश्य ही इस चाकू से समाप्त कर सकती हूँ जो मुझे छूने का दुस्साहस करेगा !!! ".

विजयवर्मन मुस्कुराते हुये आगे बढ़ें और अवंतिका तथा चित्रांगदा को उनके कंधो से पकड़ कर सैया पर बैठाते हुये अस्वासन भरे स्वर में बोलें.

" आप दोनों चिंतित ना हों... हर्षपाल कि सेना कभी भी राजमहल के मुख्यद्वार तक नहीं पहुँच पायेगी. "

" ये तो होना ही था... हर्षपाल भला चुप कैसे बैठता ? ". चित्रांगदा ने मन ही मन कुछ सोचते हुये धीरे से कहा.

" हमारे साथ तनिक बैठिये ना भैया... ". अवंतिका ने विजयवर्मन का हाथ पकड़कर उन्हें सैया पर खींचते हुये कहा.

" अरे राजकुमारी... आप देवर जी को अभी भी भैया कहकर ही सम्बोधित करतीं हैं ??? अब तो वो आपके पति हैं ना ? ". चित्रांगदा अपने ख्यालों से बाहर आई और मुस्कुराते हुये बोली.

" हम हमेशा से भाई बहन थें, और रहेंगे भाभी. ये विवाह तो बस हमें समाज कि नज़रों में एक साथ प्रेमी प्रेमिका कि भांति रहने देने के लिए साधन मात्र है ! ". विजयवर्मन अपनी बहन और भाभी के मध्य सैया पर बैठते हुये बोलें.

" वैसे आप अवंतिका को लेकर जायेंगे कहाँ राजकुमार ? ". चित्रांगदा ने पूछा.

" पता नहीं भाभी... ".

" आने वाले दिन अत्यंत कठिन गुजरने वालें हैं राजकुमार... ".

" हाँ भाभी... मुझे ज्ञात है ! ".

बातचीत के दौरान विजयवर्मन ने गौर किया कि उनकी भाभी चित्रांगदा अंदर ही अंदर कुछ सोच रहीं हैं, ये हर्षपाल के आक्रमण कि बात को लेकर उत्पन्न हुई चिंता नहीं, बल्कि कुछ और ही था.

" बड़ी देर से देख रहा हूँ भाभी... कुछ तो है जिसने आपको विचलित कर रखा है... हमें ना बताइयेगा ? ". विजयवर्मन ने अंततः पूछ ही लिया .

" राजकुमार... मुझे एक बात समझ में नहीं आ रही, आखिर हर्षपाल ने हमपर आक्रमण क्यूँ किया ? ". चित्रांगदा ने अपना गहन चिंतन ज़ाहिर किया .

" अपने अपमान का प्रतिशोध लेने हेतु... स्पष्ट है भाभी ! ". विजयवर्मन बोलें.

" अपमान का प्रतिशोध तो मैं समझी राजकुमार... परन्तु उन्हें वो सब कैसे पता चला जो कि यहाँ हमारे राजमहल में हुआ ??? ".

" आपका क्या तात्पर्य है भाभी ? ".

" अर्थ ये है राजकुमार, कि महाराज ने तो आपकी और अवंतिका के प्रेम प्रसंग और हर्षपाल से अवंतिका का विवाह टूट जाने के बारे में उन्हें कोई सन्देश नहीं भेजा ! फिर उन्हें ये सब ज्ञात कैसे हुआ, जो उन्होंने इतनी जल्दी हमपर आक्रमण कि योजना भी बना डाली ??? ".

" गुप्तचर... भाभी ! हर राज्य में उस राज्य के खास व्यक्तियों के अपने गुप्तचर होतें हैं, फिर हर्षपाल तो स्वयं ही राजा हैं, उनके गुप्तचरों कि निपुणता का आकलन आप कर भी नहीं सकतीं ! ".

" और ये गुप्तचर भी तो कोई व्यक्ति ही होगा ना ? ".

" अवश्य ही व्यक्ति होगा... ".

" वही तो राजकुमार... आखिर यह व्यक्ति फिर कौन हो सकता है ??? ".

" कोई भी हो सकता है भाभी... धोबी से लेकर दास दासी, पहरेदार और सैनिक, सिपाही, मंत्री तक कोई भी ! अनुमान लगा पाना कठिन ही क्यूँ, असंभव भी है ! ".
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07-22-2021, 12:52 PM,
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" परन्तु एक बात सोचिये देवर जी... जो कुछ भी हुआ वो किसी आम सभा में नहीं हुआ था, उस दिन सभा में केवल परिवार के लोग और पुरोहित जी ही तो थें !!! और फिर हर्षपाल हमसे इस बात पर विचार विमर्श भी तो कर सकतें थें ना, सीधे आक्रमण ही क्यूँ ??? ".

विजयवर्मन मुस्कुराये, फिर चित्रांगदा के हाथ को पकड़कर उनकी मुट्ठी में थमी उनके चाकू को वापस से उनकी कमर से लिपटे घाघरे में खोस दिया, और वार्तालाप को बदलने के उदेश्य से बोलें.

" राजनीती कि ये सारी बातें महाराज और सेनापति पर छोड़ दीजिये भाभी... आप तो बस इस बात कि चिंता कीजिये कि आप और अवंतिका मिलकर कैसे मेरी सुरक्षा करेंगी ! स्मरण रहे, कि महाराज मुझे यहाँ कक्ष में आप दोनों कि निगरानी में छोड़कर युद्ध के लिए गएँ हैं. "

इसपर अवंतिका भी ठिठोली करती हुई बीच में बोल पड़ी.

" पता है भैया... भाभी कह रहीं थीं कि हमारे जाने के उपरांत उन्हें आपकी बहुत याद आएगी... मुख्य रूप से रात्रि को सोने के समय !!! ".

" नहीं नहीं राजकुमार...मैंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा... सच्ची ! ". चित्रांगदा घबराकर बोली, फिर अवंतिका कि बाँह पर चिकोटी काटते हुये कहा. " विवाह के उपरांत आप कुछ अधिक ही लज्जाहीन हो गईं हैं राजकुमारी !!! ".

" अच्छा... मैं लज्जाहीन हो गई हूँ ??? ". अवंतिका ने हँसते हुये कहा.

" और नहीं तो क्या राजकुमारी ? और याद रखिये, अभी आपके अंग का घाव भरा नहीं है, आगे भी मेरी आवश्यकता पड़ेगी आपको ! ". शैतानी मुस्कान के साथ चित्रांगदा ने कहा.

चित्रांगदा का स्पष्ट इशारा उसकी घायल योनि कि ओर है, ये बात समझ में आते ही अवंतिका बुरी तरह से झेंप गई, और शर्म से उनके गालों में खून चढ़ गया.

" किस अंग का घाव अवंतिका ??? आप आहात हैं क्या... कहाँ चोट लगी है... दिखाइए ! ". विजयवर्मन ने घबराकर अवंतिका से पूछा.

लज्जा से मुरझाई हुई अवंतिका ने चित्रांगदा को आँखों ही आँखों में इशारा करके निवेदन किया कि वो विजयवर्मन को उनकी फटी हुई चूत के बारे में कुछ ना बतायें, और फिर विजयवर्मन से बहाना करते हुये बोली.

" कुछ नहीं भैया... वो बस मेरे पैर में हल्की सी मोच आ गई थी !!! ".

विजयवर्मन ने राहत कि एक ठंडी साँस ली, और फिर चित्रांगदा कि ओर मुड़कर उनके चेहरे को अपने हाथों में लिया, और उनके ललाट पर एक चुम्बन जड़ते हुये प्यार से बोलें.

" अवंतिका सत्य कह रही थी भाभी... मुझे आपकी बहुत याद आएगी. आपका स्थान मेरे जीवन में सदैव महत्वपूर्ण रहेगा, परन्तु इस जन्म में मैं अवंतिका के अलावा और किसी से प्रेम नहीं कर पाउँगा !!! "..............................

अवंतिका, विजयवर्मन और चित्रांगदा इसी प्रकार काफ़ी देर तक आपस में बातचीत और हँसी ठिठोली करतें रहें. वे तीनों युद्ध कि ओर से निश्चिन्त थें, क्यूंकि उन्हें पता था कि इस युद्ध का परिणाम क्या होने वाला है. वे तो बस अब हर्षपाल के पराजय और राजा नंदवर्मन कि जीत का समाचार सुनने भर कि प्रतीक्षा कर रहें थें !.............................................

करीब दो घंटे के पश्चात् अचानक से कक्ष में एक सैनिक घुस आया और अवंतिका, विजयवर्मन तथा चित्रांगदा को वार्तालाप में मग्न पाकर क्षमा मांगते हुये घबराकर बोला.

" क्षमा कीजिये... एक अत्यंत अशुभ समाचार है !!! ".

" क्या हुआ सैनिक ??? ". विजयवर्मन ने पूछा.

" हर्षपाल और उसके सैनिक हमारे राजमहल में घुस आएं हैं ! ".

" राजमहल के अंदर ??? ". विजयवर्मन उठ खड़े हुये. " और महाराज ??? ".

" महाराज तो रणभूमि में हैं, उन्हें ज्ञात नहीं ! ".

" और भैया देववर्मन ??? ".

" उन्हें किसी से नहीं देखा राजकुमार... ".

" माताश्री ??? ".

" उनके कक्ष में... उनके कक्ष में हर्षपाल के सैनिक घुस चुके हैं ! ".

" ये तुम क्या बोल रहे हो सैनिक ? ". विजयवर्मन को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि अनायास ही ये क्या हुआ.

" हमारी अधिकतर सेना तो अभी भी युद्धभूमि में है. महल के अंदर हुये इस विश्वासघाती हमले के लिए यहाँ अवस्थित सेना तैयार नहीं थी राजकुमार. शत्रु ने पीछे से आक्रमण किया. शत्रु कि सेना हमारे सैनिकों को मौत के घाट उतारती हुई पूरे महल में फ़ैल रही है !!! ". सैनिक ने एक ही साँस में पूरी बात बताई.

तभी चित्रांगदा उठ खड़ी हुई और सैनिक से पूछा.

" शत्रु कि सेना राजमहल के अंदर कैसे पहुँची सैनिक ??? ".

" किसी ने... ". भय से काँपते हुये सैनिक ने कहा. " किसी ने अंदर से राजमहल का गुप्तद्वार खोल दिया है देवी !!! ".

चित्रांगदा के होंठ विस्मय से खुले के खुले ही रह गएँ, और उनसे दूसरा कोई शब्द ना निकला !

अवंतिका भी घबराकर उठ खड़ी हुई.

किसी अनिष्ट कि आशंका से विजयवर्मन सोच में पड़ गएँ.

" इस कक्ष के बाहर द्वार पर हम कुछेक सैनिक अभी भी हैं राजकुमार. महाराज कि आज्ञा थी कि हम यहाँ से किसी भी मूल्य पर ना हटें. जब तक हममें से एक सैनिक भी जीवित रहेगा, ना ही हर्षपाल और ना ही उसका कोई सैनिक इस कक्ष में प्रवेश करने का दुस्साहस कर पायेगा !!! ". सैनिक ने कहा, और सिर झुका कर आज्ञा लेते हुये कक्ष से बाहर चला गया.

" ये क्या अमंगल हो गया भैया ??? ". अवंतिका ने काँपती आवाज़ में कहा और चित्रांगदा से लिपट कर खड़ी हो गई.

" सोचिये मत राजकुमार...आपलोग यहाँ से चले जाइये... अभी समय है ! ". चित्रांगदा ने कहा.

" और भाभी आप ??? ". विजयवर्मन ने पूछा.

चित्रांगदा कि आँखों से आंसुओ कि धारा बह निकली, उन्होंने अपनी कमर में खोसा हुआ अपना छोटा सा चाकू बाहर निकाला, और लड़खड़ाते हुये स्वर में जबरन हल्के से मुस्कुराते हुये बोली.

" ये है ना मेरे पास राजकुमार !!! ".

" विपत्ति कि इस घड़ी में मैं आपको छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगा भाभी ! ". क्रोध से काँपती आवाज़ में विजयवर्मन ने कहा.

" हठ ना कीजिये राजकुमार... अवंतिका को लेकर चले जाइये. हर्षपाल आप दोनों के लिए ही आया है !!! ". चित्रांगदा लगभग रोते रोते बोली.

" भैया ठीक कह रहें हैं भाभी... हम आपको एकांत छोड़कर नहीं जायेंगे ! ". अवंतिका ने कहा.

" मैं आप दोनों से बड़ी हूँ ... इस राज्य कि कुलवधु ! ये मेरी आज्ञा है !!! मेरी आज्ञा का उल्लंघन करके आप दोनों को मेरा इस भांति अपमान करने का कोई अधिकार नहीं !!! ". चित्रांगदा ने अपने आंसू पोछते हुये सख़्त स्वर में कहा.

" आपकी आज्ञा का पालन हम अवश्य ही करेंगे भाभी... ". विजयवर्मन बोलें. " परन्तु आज नहीं !!! ".

चित्रांगदा हार चुकी थी, उन्होंने अवंतिका को गले से लगा लिया, तो दोनों एक दूसरे से लिपट कर रोने लगीं.

बाहर सैनिकों के कोलाहाल और तलवारों के आपस में टकराने से उत्पन्न झनझनाहट कि ध्वनि से विजयवर्मन समझ गएँ कि हर्षपाल के सैनिक द्वार तक पहुँच चुके हैं. बाहर से आने वाली चीख पुकार उनके अपने ही सैनिकों कि थी, ये पहचानते उन्हें देर ना लगी. वो समझ गएँ कि कक्ष के द्वार का रास्ता रोके खड़े उनके निष्ठावान सैनिक एक एक करके वीरगति को प्राप्त हो रहें हैं !!!

कक्ष के द्वार पर टंगे ज़रीदार परदे ने बाहर चल रही निर्मम निर्दयता को अब तक ढँक रखा था, परन्तु ऐसा अब ज़्यादा देर तक रहने वाला नहीं था !

विजयवर्मन को पता था कि एक पूरी सेना के विरुद्ध वो अकेले ना ही स्वयं कि रक्षा कर पाएंगे, और ना ही कक्ष में उपस्थित दोनों स्त्रीयों कि !!!

मृत्यु तो तय है !!!

परन्तु वो हैं तो पुष्पनगरी के राजनिष्ट छोटे राजकुमार ही ना !!! यूँ ही भयभीत कैसे हो जायें, यूँ ही पराजय कैसे स्वीकार कर लें !!!

निर्णय हो चुका था !!!

विजयवर्मन ने अपनी म्यान से अपनी तलवार बाहर निकाली और अवंतिका तथा चित्रांगदा को अपने पीछे हो लेने का इशारा किया.

अत्यंत धारदार चमकती हुई तलवार को अपनी सख़्त मुट्ठी में थामे, अपनी चौड़े छाती से लेकर अपने उन्नत सिर के ऊपर तक उठाये, अवंतिका और चित्रांगदा को अपने बलशाली शरीर के पीछे लगभग पूर्णत: छुपाये, विजयवर्मन कक्ष के द्वार कि ओर नज़र गड़ाये क्रूर हर्षपाल और उसके सैनिकों के अंदर प्रवेश करने कि प्रतीक्षा करने लगें !!!
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07-22-2021, 12:52 PM,
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
प्रथमत: कक्ष के द्वार पर टंगे परदे में एक साथ दो तीन तलवारें घुसी, फिर पूरा पर्दा ही फट कर चीथड़े चीथड़े होकर नीचे ज़मीन पर गिर पड़ा, इसके साथ ही परदे के चीथड़ों को अपने धूल धूसरित पैरों तले रौदते हुये एक साथ अनगिनत सैनिकों का एक पूरा जत्था ही कक्ष में वायु से भी तेज़ गति के साथ प्रवेश कर गया !!!

हर्षपाल के सैनिको के शरीर और तलवारों पर लगे खून के छींटे और धब्बे बता रहें थें कि बाहर उन्होंने मृत्यु का कैसा तांडव मचाया हुआ होगा !

इतने सारे सैनिकों को एक साथ कक्ष में प्रवेश करते देखकर अवंतिका और चित्रांगदा को भय से भी पहले साक्षात् मृत्यु के दर्शन हो गएँ. फेफड़ों में जितनी क्षमता थी, उतनी ताकत लगाकर दोनों एक साथ ज़ोर से चीख उठी, आँखे बंद कर ली, और एक दूसरे से लिपट पड़ी !!!

परन्तु अवंतिका के कक्ष में घुसपैठ करने वाले हर्षपाल के सैनिकों को ये ज्ञात नहीं था कि अंदर कोई साधारण सा सिपाही, कोई सैनिक, मंत्री, सेनापति, या राजा नहीं, वरन स्वयं विजयवर्मन उपस्थित हैं - वो विजयवर्मन जो वैसे तो मधुरभाषी हैं और कभी भी अनायास ही अपना स्वर ऊँचा करके बात भी नहीं करतें, परन्तु समय कि मांग हो तो अपने परिजनों कि रक्षा हेतु यमराज से भी भिड़ने से पीछे ना हटें, और इस समय स्पष्ट मायनों में अवंतिका और चित्रांगदा ही उनके परिजन थें !!!

अवंतिका और चित्रांगदा को जब अनुभूति हुई कि उनकी ओर आती हुई शत्रु सेना कि लहर अचानक से थम गई है, तो दोनों ने साहस करके अपनी आँखे धीरे धीरे खोली !

उनके सामने विजयवर्मन का भारी शरीर अभी भी अडिग खड़ा था. वो अपने स्थान से एक इंच तक नहीं हिले थें. रक्त से सनी उनकी तलवार हवा में उन्नत उठी हुई थी. उनके सामने ज़मीन पर तीस सैनिकों कि कटी फटी निर्जीव लाशें पड़ी हुई थीं. ये हर्षपाल के वो तीस सैनिक थें जिन्होंने कक्ष में प्रवेश करने के उपरांत उन तीनों कि ओर सबसे पहले बढ़ने का असीम साहस दिखाया था !!!

एक ही स्थान पर खड़े खड़े जब विजयवर्मन ने इतने सारे सैनिकों को पलक झपकते ही मौत के घाट उतार दिया, तो उन सैनिकों के पीछे घुसने वाले सैनिक खुद ब खुद ठिठक कर रुक गएँ ! भय से थर्राते हुये सैनिकों के तलवारों पर उनकी हाथों कि पकड़ ढीली पड़ने लगी. विस्मय से बाहर निकल आई उनकी आँखे कभी नीचे पड़े हुये उनके मरे हुये साथी सैनिकों को देखते, तो कभी सामने खड़े पुरुष को, जिसका नाम विजयवर्मन था !!!

हर्षपाल के ये सैनिक निडर थें या नहीं, ये तो समझ पाना कठिन था, परन्तु इतना तो स्पष्ट था कि वो वफ़ादार और स्वामीभक्त अवश्य ही थें, क्यूंकि अगर ऐसा ना होता तो फिर अपनी नियति ज्ञात होते हुये भी वो अपने सामने खड़ी मृत्यु के आलंगन को आगे कदम ना बढ़ाते ! उनकी मुट्ठीयों में थमी तलवार पर उनकी पकड़ फिर से जम गई, और सारे सैनिक एक साथ विजयवर्मन के ऊपर टूट पड़ें !!!

अवंतिका और चित्रांगदा ने पुनः अपनी आँखे बंद कर ली.

अगले कुछेक क्षणों तक अपने पैर ज़मीन पर एक ही जगह अडिग टिकाये हुये मात्र अपने हाथ और उसमें थमी तलवार को हवा में लहराते हुये विजयवर्मन अपनी ओर आ रहे हर्षपाल के सैनिकों को काटते रहें. उन्हें उनकी जगह से हटाना तो दूर, उन्हें अब तक कोई सैनिक स्पर्श भी ना कर पाया था. पूरे कक्ष कि ज़मीन सैनिकों कि लाशों और लाल रक्त कि छोटी सी नदी से भर गया !!!

एक के बाद एक सैनिकों का झुंड अंदर आता गया, परन्तु केवल अपनी मृत्यु से भेंट करने !

ना हिंसा, ना द्वेष, ना भय, ना घृणा, चेहरे पर कोई भी भाव लिए बिना विजयवर्मन शत्रु सेना का वध करतें गएँ !

बिजली से भी तेज़ गति से हवा में लहराती उनकी तलवार से और भी ना जाने कितने शत्रु धराशायी होतें, परन्तु तभी अचानक से विजयवर्मन कि कलाई एक मजबूत मुट्ठी कि जकड़ में आ गई, तो उनकी तलवार का वार रुक गया. इतने ताकतवर हाथ कि पकड़ आज तक विजयवर्मन ने महसूस नहीं कि थी. उनकी ओर बढ़ रहे सारे सैनिक भी रुक गएँ, तो विजयवर्मन ने सामने अपनी नज़रें उठाकर अपने इस सशक्त शत्रु को देखा.

क्रूर हर्षपाल से विजयवर्मन कि ये पहली मुलाक़ात थी !!!

सिर से लेकर पांव तक लोहे के कवच से सुसज्जित चौड़े शरीर वाले हर्षपाल ने विजयवर्मन कि आँखों में आँखे डालकर कहा.

" आप चाहें तो पूरा दिन हमारे सैनिकों का वध कर सकतें हैं राजकुमार, और हमें पूरा विश्वास है कि वो आपको हाथ तक ना लगा पाएंगे. परन्तु जब आपकी मृत्यु तय है तो फिर हम अपने वीर सैनिकों कि संख्या मात्र यूँ ही कम क्यूँ होने दें ??? ".

विजयवर्मन जब कुछ ना बोलें तो हर्षपाल ने धीरे से उनका हाथ और हाथ में थमी हुई तलवार को नीचे करते हुये कहा.

" अपना भाग्य स्वीकार करो राजकुमार ! हम वचन देते हैं कि इन स्त्रीयों को ना ही हम और ना ही कोई और स्पर्श करेगा !!! ".

स्त्रीयों को ना छूने वाली हर्षपाल कि बात मानकर विजयवर्मन थोड़े शांत हुये और उन्होंने अपनी तलवार नीचे कर ली.

" धन्यवाद राजकुमार... ". हर्षपाल ने मुस्कुराते हुये सिर झुकाकर कहा, और पीछे मुड़कर अपने सैनिकों को इशारा किया.

कपटी हर्षपाल कि चाल जब तक विजयवर्मन समझ पाते, तब तक देर हो चुकी थी !

हर्षपाल के पीछे से चार सैनिक निकल कर आगे बढ़ें, और दौड़ते हुये विजयवर्मन को पार करके अवंतिका और चित्रांगदा कि ओर लपकें !!!

अवंतिका और चित्रांगदा चीख पड़ी.

स्थिति का आकलन करते ही विजयवर्मन अत्यंत तीव्र गति से अपने पैरों पर पीछे मुड़े, और एक ही वार में झटके से अपनी तलवार चलाई !

अवंतिका और चित्रांगदा कि ओर बढ़ रहे चारों सैनिकों का एक एक हाथ उन दोनों को स्पर्श करने से पहले ही सूखी लकड़ी कि भांति कटकर ज़मीन पर गिर पड़ा, और चारों घायल लहूलुहान सैनिक वहीँ ज़मीन पर गिरकर छटपटाने लगें.

" अरे मूर्ख, पहले इसे पकड़ो ! ". हर्षपाल ने ज़ोर से चिल्लाते हुये विजयवर्मन कि ओर इशारा किया.

ध्यान भटक जाने कि वजह से विजयवर्मन इसके लिए तैयार ना थें. सैनिकों के एक पूरे झुंड ने उन्हें धर दबोचा तो उनके हाथ से उनकी तलवार छूटकर नीचे ज़मीन पर गिर गई. विजयवर्मन के काबू में आते ही कुछ सैनिकों ने अब अवंतिका और चित्रांगदा को भी पकड़ लिया, और तीनों को एक साथ हर्षपाल के सामने ला खड़ा किया !

" हमारे पिताश्री कहाँ हैं हर्षपाल ??? ". सैनिकों के हाथों बंधे खड़े विजयवर्मन ने शांत होकर पूछा.

" महाराज हर्षपाल कहो राजकुमार !!! अब हम ही आपके राजा हैं. मेरा तात्पर्य है कि जितनी देर भी आप जीवित हैं, उतनी देर तक तो अपने राज्य के इस नये राजा का सम्मान करें . और नंदवर्मन के बारे में हमें कुछ भी ज्ञात नहीं ! हमें तो युद्धभूमि में जाने कि आवश्यकता ही नहीं पड़ी ! हाँ... आपकी माताश्री को अवश्य ही बंदी बना लिया गया है ! ". हर्षपाल ने हँसते हुये कहा.

" क्या चाहिए तुम्हें ??? ".

" आपको नहीं लगता कि हमसे ये प्रश्न करने का समय अब निकल चुका है राजकुमार ? ". हर्षपाल ने अवंतिका कि ओर देखते हुये ब्यंग किया.

तभी कक्ष में देववर्मन ने प्रवेश किया !

" भैया ??? कहाँ थें आप ??? ". अपने बड़े भाई को इस प्रकार सकुशल और जीवित देख ख़ुशी से विजयवर्मन चिल्ला उठें.

" लीजिये राजकुमार... आपके ज्येष्ठ भ्राता भी आ गएँ, अब उन्ही से सारा समाचार पूछ लीजिये ! " हर्षपाल ने कहा, फिर देववर्मन से बोलें " राजा नंदवर्मन जीवित हैं या... ".
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07-22-2021, 12:52 PM,
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
" युद्धभूमि में उन्हें बंदी बना लिया गया है मित्र ! ". देववर्मन ने सिर झुकाकर हर्षपाल से कहा.

" भैया ??? आप... आप इस अधम के साथ ??? ". विजयवर्मन के तो मानो पैरों तले ज़मीन ही खिसक गई हो.

अवंतिका और चित्रांगदा ने एक दूसरे को देखा तो चित्रांगदा ने अपनी नज़रें नीचे कर ली.

" और हाँ राजकुमार विजयवर्मन... हमने आपसे मिथ्या कहा था. " . हर्षपाल ने देववर्मन को अपने पास बुलाकर उनके कंधे पर हाथ रखते हुये विजयवर्मन से कहा. " इस राज्य के नये सम्राट हम नहीं, देववर्मन हैं !!! ".

देववर्मन ने सिर झुकाकर अपनी कृतज्ञता ज़ाहिर की.

" केवल मात्र एक राजसिंहासन के लिए ??? ". क्षोभ और घृणा से भरे विचलित स्वर में विजयवर्मन ने कहा.

" अपने ज्येष्ठ भ्राता को गलत ना समझिये राजकुमार... ". हर्षपाल ने अवंतिका की ओर इशारा करते हुये कहा. " ये सब राजसिंहासन की लालसा के फलस्वरुप नहीं, बल्कि इस निर्लज्ज स्त्री की वजह से हुआ है !!! ".

विजयवर्मन ने एक बार अवंतिका को देखा और फिर देववर्मन को.

हर्षपाल धीमे कदमो से चलते हुये अवंतिका के समीप जा खड़े हुये, और गर्दन घुमाकर पीछे खड़े देववर्मन से कहा.

" अत्यंत साधारण दिखने वाली इस स्त्री में ऐसा क्या है जो इसका अपना ही भाई इसका प्रेमी बन गया ??? ये जानने को हमारा ह्रदय व्याकुल हो रहा है मित्र देववर्मन. तनिक अपनी छोटी बहन के वस्त्र तो उतारिये !!! हमने राजकुमार विजयवर्मन को वचन दिया है की हम इन्हे स्पर्श नहीं करेंगे ! ".

" जैसी आपकी आज्ञा मित्र हर्षपाल ! ". कहते हुये देववर्मन आगे बढ़ें, फिर रुक गएँ, और बोलें. " वैसे क्षमा करें महाराज, परन्तु ये स्त्री अब अशुद्ध हो चुकी है. ये अब आपके किस काम की ??? ".

" सत्य वचन मित्र ! ". हर्षपाल ने सहमति जताई, फिर कुछ सोचकर बोलें. " परन्तु आप चाहें तो अपनी बहन को पाने की लालसा आज पूरी कर सकतें हैं... आपको भी इससे प्रेम था ना ??? ".

" प्रेम नहीं मित्र... एक समय था जब इस स्त्री के लिए मेरे मन में कामवासना की अग्नि सदैव ही मुझे उद्विग्न किया करती थी... दिन रात ! परन्तु अब इस स्त्री के लिए मेरे मन में केवल घृणा और द्वेष है ! ".

हर्षपाल ने बिना कुछ कहे अपना सिर हिलाकर देववर्मन की भावनाओं को समझने का संकेत दिया. अब वो धीरे धीरे चलते हुये चित्रांगदा के समीप पहुंचे और देववर्मन की ओर देखकर पूछा.

" और इस स्त्री के बारे में आपके क्या विचार हैं मित्र ? ".

" जैसा की मैंने कहा था महाराज, इसे अपनी दासी बनाकर इसका उद्धार करें !!! ". देववर्मन बोलें.

आंसुओं से भरी क्रोधित नज़रों से चित्रांगदा ने अपने पति देववर्मन को देखा, परन्तु कुछ बोली नहीं !

हर्षपाल अपना चेहरा चित्रांगदा के मुँह के एकदम समीप लेजाकर उसे ध्यान से देखते हुये बोलें.

" आपने मिथ्या कहा था मित्र देववर्मन... ".

" ये आप क्या कह रहें हैं मित्र ??? ". देववर्मन ने घबराकर पूछा.

" और नहीं तो क्या ? आपकी पत्नि अत्यंत सुंदर है, हमारी दासी बनने लायक तो बिल्कुल भी नहीं... ये तो इनका अपमान होगा ! ". हर्षपाल ने थोड़ा रुककर धीमे स्वर में कहा. " इन्हे तो हमारे राज्य की महानगरी के सबसे प्रसिद्ध वेश्यालय में स्थान मिलना चाहिए, ताकि हमारी नगरी के सारे नागरिक इनके रूप यौवन का समान रूप से भोग कर सकें !!! ".

" जैसा आप उचित समझें महाराज... आपका इसे जीवनदान देना ही काफ़ी है ! ". देववर्मन ने कहा.

देववर्मन की बात सुनकर हर्षपाल एकदम से ठहाका मारकर हँस पड़ें. वो स्वयं और उनके सैनिक भी इस बात से इतने प्रसन्न हुये की उन्हें चित्रांगदा कि अगली हरकत दिखाई ही नहीं दी.

चित्रांगदा ने पूरी शक्ति के साथ अपना दायां हाथ सैनिकों कि गिरफ्त से झटक कर छुड़ा लिया, और अपनी कमर में खोसा हुआ अपना छोटा सा चाकू बाहर निकाला, और हर्षपाल के चेहरे पर एक भरपूर वार किया !!!

अचानक से हुये इस हमले से तिलमिलाकर हर्षपाल ने तुरंत अपना चेहरा अपने हाथों से ढंक लिया और दर्द से चिल्लाते हुये लड़खड़ाकर पीछे हट गएँ.

सैनिकों ने वापस से चित्रांगदा को धर दबोचा और उनका खून से सना हुआ चाकू नीचे ज़मीन पर गिर पड़ा.

" आप ठीक तो हैं ना मित्र !!! ". घबराये हुये देववर्मन ने दौड़कर हर्षपाल को थाम लिया, और उनके हाथ उनके चेहरे पर से हटाते हुये उनका घाव देखा.

हर्षपाल के दाएं जबड़े और गाल से होते हुये चाकू का एक लम्बा, सीधा, गहरा चीरा उनकी नाक को पार करके ऊपर बाएँ तरफ उनके माथे तक गया था. पूरा चेहरा खून से लथपथ हो चुका था. बस उनकी बायीं आँख किसी प्रकार से बच गई थी.

" चलो ये भी अच्छा है मित्र... शरीर पर कोई घाव तो लगा. "
अपने आप को संभालते हुये हर्षपाल ने क्रूरता भरी हँसी हँसते हुये अपने रक्तरंजीत दोनों हाथों को वहाँ मौजूद सभी लोगों को दिखाते हुये कहा. " वर्ना लोग समझते कि हमने ये राज्य बिना किसी परिश्रम के छल कपट से जीता है !!! ".

" बहुत हुआ मित्र... ये खेल अब समाप्त हो ! ". देववर्मन ने अपनी तलवार म्यान से निकालते हुये अवंतिका और विजयवर्मन कि ओर संकेत करके कहा. " आज्ञा हो तो इन दोनों प्रेमीयों को ईश्वर के पास भेंज दूँ !!! ".

" अपने भाई बहन का वध करने के लिए आपको हमारे आदेश कि प्रतीक्षा करने कि कोई आवश्यकता नहीं मित्र देववर्मन... वैसे भी अब तो आप ही यहाँ के सम्राट हैं !!! ". हर्षपाल ने पास खड़े अपने एक सैनिक के वस्त्र पर अपने लहूलुहान हाथ पोछते हुये कहा.

देववर्मन अपनी तलवार लेकर आगे बढ़ें तो चित्रांगदा ने रोते हुये विनती कि.

" सबकुछ तो अब आपका ही है देववर्मन. बस इनके प्राण ना लीजिये ... इतनी घृणा क्यूँ ??? "

अपनी पत्नि कि बात अनसुनी कर देववर्मन आगे बढ़ें तो हर्षपाल ने उन्हें रोकते हुये कहा.

" मित्र... कम से कम इन्हे अपने चेहरे पर कौतुहल लेकर तो मृत्यु का आलिंगन ना करने दीजिये, आखिर ये आपके परिजन हैं. मरने से पूर्व इन्हे पूरा अधिकार है सच्चाई जानने का... ".

फिर अवंतिका और विजयवर्मन को देखते हुये बोलें.

" आपके राज्य कि सेना अत्यंत समर्थ है. हम तो क्या, कोई भी उन्हें सीधे युद्ध में पराजित नहीं कर सकता. आपके ज्येष्ठ भ्राता देववर्मन ने ना सिर्फ हमारी ओर मित्रता का हाथ बढ़ाया, बल्कि हमारी मित्रता के पुरस्कार स्वरुप हमारे लिए राजमहल का गुप्त द्वार भी खोल दिया, ताकि हम और हमारी सेना अंदर प्रवेश कर सकें ! और देखिये... परिणाम आपके सामने है !!! "

अवंतिका और विजयवर्मन ने अविश्वास और घृणा से अपने भाई देववर्मन को एक नज़र देखा.

चित्रांगदा का चेहरा लज्जा और क्रोध से लाल हो गया, परन्तु उनके चेहरे के भाव बता रहें थें कि उन्हें ये बात जानकार कोई खास आश्चर्य नहीं हुआ था.

देववर्मन ने हर्षपाल कि ओर देखकर एक बार सिर झुकाया.

" हम आपके ऋणी हैं मित्र देववर्मन ! ". कहते हुये हर्षपाल देववर्मन कि ओर बढ़ें. " हमें अपना आभार व्यक्त करने का मौका दीजिये ! ".

हर्षपाल कि बात सुनकर देववर्मन ने घमंड से अपनी गर्दन ऊपर कर ली, मानो उन्होंने कोई अत्यंत विशाल कार्य किया हो.

कक्ष में उपस्थित किसी भी व्यक्ति के कुछ समझ पाने से पहले ही हर्षपाल ने म्यान से अपनी तलवार निकाली और बाघ कि सी तेज़ गति से देववर्मन कि गर्दन पर वार कर दिया !!!

अपने ऊपर हुये इस आकस्मिक हमले से देववर्मन संभल ना पाएं और अपने पीठ और सिर के बल ज़मीन पर गिर पड़ें. उनकी गर्दन में गहरा घाव हुआ था, परन्तु सिर धड़ से अलग नहीं हुआ था. देववर्मन अपने दोनों हाथों से अपनी गर्दन का घाव दबाकर रक्त रोकने का असफल प्रयास करने लगें. उनके हाथों कि पकड़ से होते हुये खून का फव्वारा ऊपर कि ओर छूटने लगा, और उनके शरीर को भींगोते हुये पूरे ज़मीन पर फ़ैलने लगा !

" भैया !!! ". विजयवर्मन के मुँह से निकला.

अवंतिका और चित्रांगदा एक साथ चीख पड़ी और अपनी आँखे बंद कर ली !

अपनी खून से सनी तलवार ज़मीन पर घिसटते हुये हर्षपाल धीमे कदमो से चलते हुये घायल देववर्मन के करीब पहुँचे, और उनके पास बैठ गएँ.

" हर्ष... हर्षपाल !!! आखिर क्यूँ ??? ". अटकती हुई साँसों को किसी प्रकार काबू में करके देववर्मन ने फटी आँखों से हर्षपाल को देखते हुये पूछा.
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07-22-2021, 12:53 PM,
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
" मन में कोई बैर ना रखियेगा मित्र देववर्मन... हो सके तो हमें क्षमा कर दीजियेगा ! ". हर्षपाल ने दुखी सा मुँह बनाते हुये कहा. " परन्तु हम आप पर भरोसा नहीं कर सकतें. जो व्यक्ति अपने परिवार, अपने राज्य का ना हुआ, वो भला हमारा क्या होता !!! ".

देववर्मन को वहीँ ज़मीन पर मरता हुआ छोड़कर हर्षपाल उठें, और विजयवर्मन के पास जाकर कहा.

" यानि हमने सत्य ही कहा था राजकुमार. अब लगता है इस राज्य का कारोभार हमें ही संभालना पड़ेगा !!! ". फिर ज़मीन पर घायल पड़े देववर्मन कि ओर उंगली दिखाकर बोलें. " और देखिये, राजा होने का प्रथम कर्तव्य भी हमने पूरा कर दिया, इस राजद्रोही को सजा देकर ! ".

" महाराज... महाराज... क्षमा महाराज... ". दर्द से छटपटाते देववर्मन के समीप खड़े एक सैनिक ने कहा. " ये तो अभी भी जीवित है ! ".

" पता है राजकुमार... लोग हमें दयालु राजा कहकर क्यूँ बुलाते हैं ??? ". हर्षपाल ने अपने उस सैनिक कि ओर देखा, और फिर विजयवर्मन कि आँखों में देखते हुये कहा. " क्यूंकि हम अपने शत्रु को सदैव एक ही बार में समाप्त कर देतें हैं, उसे तड़पाते नहीं ! ".

हर्षपाल चलकर ज़मीन पर गिरे पड़े असहाय देववर्मन के समीप गएँ, और उन्हें एक नज़र देखा. देववर्मन ने अभी तक अपने हाथ अपनी गर्दन से नहीं हटाए थें, खून का बहना ज़ारी था. मृत्यु के भय से उनकी आँखे बाहर निकल आई थीं और उनके मुँह से ऐसी आवाज़े निकल रहीं थीं, मानो उनके गले में कुछ फंसा हुआ हो.

हर्षपाल ने मुड़कर एक एक नज़र चित्रांगदा, विजयवर्मन, और अवंतिका को देखा, और फिर दोनों हाथों से अपनी तलवार हवा में अपने सिर के ऊपर तक उठाकर तलवार का नुकिला मुँह देववर्मन कि दाई आँख में घोप कर उनकी जीवनलीला एक ही बार में समाप्त कर दी !!!

अवंतिका और विजयवर्मन ने अपना अपना चेहरा तुरंत दूसरी ओर घुमा लिया, परन्तु चित्रांगदा चेहरे पर बिना कोई भाव लिए ये निर्मम दृश्य देखती रही !!!

मृत देववर्मन के रक्त के छीटों से सने हर्षपाल ने देववर्मन के आँख से अपनी तलवार खींचकर बाहर निकाली, और वापस से आकर अवंतिका और विजयवर्मन के सामने खड़े हो गएँ, और कहा.

" इच्छा तो हमारी बहुत हो रही है कि या तो हम पहले बहन का वध करें और भाई को देखने दें, या फिर भाई को मौत के घाट उतारें तो बहन देखे ! परन्तु अगर हमने ऐसा किया तो हमारी दयावान सम्राट कि छवि धूमिल हो जाएगी. और फिर हम इतने कठोर भी तो नहीं... ".

हर्षपाल कि बात बीच में ही काटकर चित्रांगदा ज़ोर से रोते गिड़गिड़ाते हुये चिल्ला पड़ी.

" ऐसा अनर्थ ना करो... इन्हे जीवनदान दे दो हर्षपाल ! मैं आजीवन अपनी इच्छा से आपकी दासी, आपकी नगरवेश्या बनकर रहूंगी... परन्तु इन्हे छोड़ दो... ये दोनों अभी के अभी ये राज्य छोड़कर चले जायेंगे... ऐसा ना करो हर्षपाल !!! ".

" अपने ऊपर आने वाले संकट के बारे में सोचो चित्रांगदा... ". हर्षपाल ने मुस्कुराते हुये चित्रांगदा कि ओर देखकर कहा. " दो दिनों बाद तुम खुद पछताओगी कि हमने तुम्हें जीवित क्यूँ रखा !!! ".

फिर हर्षपाल ने वापस से अवंतिका और विजयवर्मन कि ओर मुड़कर कहा.

" तो हमने ये तय किया है कि आप दोनों को हम एक साथ मृत्यु प्रदान करेंगे, ताकि ना भाई को बहन का और ना ही बहन को भाई का कष्ट देखना पड़े ! इतना तो हम कर ही सकतें हैं !!! ".

अवंतिका और विजयवर्मन को पकड़ रखे सैनिकों को हर्षपाल ने संकेत दिया, तो सैनिकों ने तुरंत दोनों को धकेल कर ज़मीन पर उनके घुटनों के बल गिराकर बैठा दिया !

" हर्षपाल... मेरी विनती है तुमसे... इन्हे मत मारो... इन्हे मारकर तुम्हें क्या मिलेगा ??? क्या तुम्हारे अपमान का प्रतिशोध अभी भी पूरा नहीं हुआ ??? ". चित्रांगदा ने रोते बिलखते हुये अवंतिका और विजयवर्मन को बचाने का अंतिम प्रयास किया.

परन्तु अवंतिका और विजयवर्मन को पता था कि चित्रांगदा कि गुहार सुनने वाला अब वहाँ कोई ना था, वो बेचारी तो बस खुद को दिलासा दे रही थी कि उसने अपनी असहाय ननद और देवर के प्राण बचाने का हर संभव प्रयास किया !

" मुझे क्षमा कर दीजिये भाभी... ". विजयवर्मन ने गर्दन घुमाकर चित्रांगदा को देखते हुये कहा. " मैं आपकी रक्षा नहीं कर सका !!! ".

कोई और उपाय ना देखकर हार चुकी चित्रांगदा फफक फफक कर रो पड़ी !

" हमारा साथ बस यहीं तक का था भाभी... ". आँसुओ से डबडबाती आँखों से मुश्किल से अपनी भाभी को अंतिम बार निहारते हुये अवंतिका ने कहा. " मैं ईश्वर से प्राथना करुँगी कि अगले जनम में हम दोनों सगी बहनों के रूप में जन्म लें !!! "

चित्रांगदा ने सुबकते सुबकते अपने आंसुओं को किसी प्रकार रोककर सिर हिलाकर अवंतिका कि बात पर स्वीकृती ज़ाहिर कि.

हर्षपाल ने कुछ सोचकर चित्रांगदा को पकड़ रखे सैनिकों को इशारा किया, तो उनमें से एक सैनिक ने नीचे ज़मीन पर चित्रांगदा का गिरा हुआ चाकू अपने पैर से ठोकर मारकर वहाँ से दूर सरका दिया. हर्षपाल ने ऐसा इसलिए करवाया था कि कहीं चित्रांगदा आवेश में आकर आत्महत्या कि चेष्टा ना करे !!!

हर्षपाल का अगला संकेत अवंतिका और विजयवर्मन को पकड़ रखे सैनिकों के लिए था. आदेश मानकर उन सैनिकों ने अवंतिका और विजयवर्मन के दोनों हाथ उनके पीठ पर मोड़ कर उन्हें सख़्ती से जकड़ लिया और उन्हें उनकी गर्दन झुकाने पर विवश कर दिया !

" अगर कोई अंतिम इच्छा हो तो बताने का यही उचित समय है !!! ". हर्षपाल ने अपनी उंगलियों से अपनी तलवार कि धार कि जाँच करते हुये कहा.

" तुमसे क्या मांगना हर्षपाल... ". विजयवर्मन ने अपनी नज़रें ऊपर उठाकर हर्षपाल को देखते हुये व्यंग्य से मुस्कुराकर कहा. " अब तो हम साक्षात् ईश्वर से मिलने वाले हैं !!! ".

चाकू से कटे हुये रक्तरंजीत घाव वाले हर्षपाल के चेहरे पर एक तीरछी मुस्कुराहट खेल गई. अवंतिका और विजयवर्मन के बगल में आकर उसने अपनी तलवार ऊपर उठा ली और इस भांति तैयार होकर खड़ा हो गया कि एक ही वार में दोनों भाई बहन के सिर उनके धड़ से अलग हो जायें !

चित्रांगदा ने अपना चेहरा दूसरी ओर घुमाकर अपने कंधे में छुपा लिया.

पास पास घुटनों के बल बैठे अवंतिका और विजयवर्मन ने अंतिम बार अपनी गर्दन घुमाकर एक दूसरे को देखा !

अवंतिका के चेहरे पर एक संतोष का भाव था, क्यूंकि उसे पता था कि मृत्यु के उस पार वो फिर से विजयवर्मन से मिलने वाली है - उन्हें कभी कोई अलग नहीं कर सकता !!!

परन्तु विजयवर्मन का चेहरा निडर लेकिन चिंताग्रस्त लग रहा था, क्यूंकि वो जानते थें कि मृत्यु के परे वाली दुनिया एक मिथ्या है , बस खुद को सांत्वना देने का एक जरिया मात्र - और वो दोनों इस एकमात्र जीवन में अब हमेशा हमेशा के लिए एक दूसरे से बिछड़ने वाले हैं !!!
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07-22-2021, 12:53 PM,
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
" सावधान हर्षपाल !!! तुम्हारी मृत्यु में अभी समय है ! ".

अवंतिका और विजयवर्मन कि गर्दन पर अपनी तलवार से वार करने ही वाले थें हर्षपाल, कि एक अत्यंत आक्रामक आधिकारिक आदेश ने उन्हें ठिठक कर रुकने पर विवश कर दिया. इतने सशक्त स्वर में चेतावनी देने वाले का चेहरा देखने के लिए हर्षपाल ने अपनी गर्दन कक्ष के द्वार कि ओर घुमाई ही थी, कि उन्हें रोकने हेतु किये गये अगले प्रयास के तहत एक तीर तेज़ गति से आकर उनके हाथों में लगा, फलस्वरुप उनके हाथ से उनकी तलवार छिटक कर उनसे दूर नीचे ज़मीन पर जा गिरी.

वाण चलाने वाले ने इतनी निपुणता से वार किया था कि तीर हर्षपाल के दोनों हथेलीयों को भेद कर बीच में ही अटक कर थम गया था, मानो तीरंदाज़ का उद्देश्य ही क्रूर हर्षपाल के दोनों हाथ बांधना हो !

अपने प्राणो कि आहुति देने के लिए बैठे अवंतिका और विजयवर्मन ने अचंभित होकर सिर उठाया और द्वार कि ओर देखने लगें. सामने से किसी अज्ञात स्रोत से छूटते हुये हवा में एक साथ अनगिनत वाण उनकी ओर बढ़ें तो उन्होंने तुरंत अपने सिर नीचे झुका लियें. अपने पीछे खड़े सैनिकों, जिनकी गिरफ्त में वो दोनों अब तक थें, के तलवारों कि खनक और फिर तलवारों के नीचे ज़मीन पर गिरने का स्वर अपने कानों से सुनते ही दोनों समझ गएँ कि वो सारे सैनिक उन तीरों से धराशायी होकर गिर मर चुके हैं !

ऐसा ही कुछ चित्रांगदा को पकड़ रखे सैनिकों के साथ भी हुआ, ज़हरीले तीरों ने पलक झपकते ही उन्हें नर्कलोक में धकेल दिया था. चित्रांगदा अब मुक्त थी !

बंधनमुक्त होते ही चित्रांगदा कक्ष में हो रहे तीरों के बौछार के बीच से भागते हुये अवंतिका और विजयवर्मन के पास पहुँची और उन्हें अपने हाथों का सहारा देकर उठाकर खड़ा किया. तीनों अब तक इतना तो समझ ही चुके थें कि तीरों कि ये बारिश उन्हें नुकसान पहुँचाने के लिए नहीं थी !

बेबस हर्षपाल इधर उधर मुड़कर चारों तरफ अपने आतंकित सैनिकों को उस कक्ष के अंदर ही अपने प्राण बचाने हेतु भागते और फिर विवश होकर मरते हुये देखते रहें !

" कौन है ये दुस्साहसी ??? सामने क्यूँ नहीं आता ??? ". भय मिश्रीत क्रोध से तिलमिलाये हर्षपाल ज़ोर से चिल्लाते हुये बोलें.

कक्ष में ना जाने कहाँ से अज्ञात सैनिकों का एक पूरा गिरोह घुस आया था, किसी के हाथ में तलवार था, तो किसी के हाथ में भाला, और तीर धनुष. हर्षपाल के मरे पड़े सैनिकों के अलावा जितने भी बचे खुचे सैनिक वहाँ मौजूद थें, उस हरेक सैनिक के पीछे करीब दो से तीन ये अज्ञात सैनिक आ धमकें. कक्ष में अभी अभी जो कुछ भी हुआ था, उसके भय और आतंक से ग्रसित हर्षपाल के इन सैनिकों ने मरने से बेहतर अपने हथियार डालने का निर्णय उचित समझा !

" भाग क्यूँ रहे हो मूर्खो ??? शत्रु का सामना करो... ". हर्षपाल फिर से चिल्लाये, और अपने आस पास दौड़ते भागते सैनिकों को जबरन पकड़ पकड़ कर सामने द्वार कि ओर धकेलने लगें जिस ओर से ये अज्ञात मुसीबत आ धमकी थी . परन्तु फिर वो अपने ही ऊपर मानो लज्जित होकर रुक गएँ , क्यूंकि चारों ओर नज़र दौड़ाकर देखने पर उन्हें पता चला कि वहाँ अब उनके ऐसे सैनिक बचे ही नहीं थें जो कि लड़ सकें. उनके सैनिक या तो ज़मीन पर गिरे मरे पड़े थें, या फिर भय से कांपते खड़े हथियार डाले अपने प्राणो कि रक्षा हेतु प्राथना कर रहें थें !

सैनिकों का कोलाहल और वाणों कि वर्षा जब थोड़ी शांत हुई तो अवंतिका, विजयवर्मन और चित्रांगदा ने देखा कि कक्ष में वो अज्ञात सैनिक अब पूरी तरह से भर चुके थें.

क्रोध से आगबबूला हुये हर्षपाल ने अपने दोनों हाथों को इतने ज़ोर से झटका कि हथेलीयों में चुभा हुआ तीर दो टुकड़े होकर नीचे ज़मीन पर छिटककर गिर पड़ा, और उसके दोनों हाथ आज़ाद हो गएँ. वो ज़ोर से गुर्राते हुए उस अज्ञात सैनिकों कि टुकड़ी कि ओर निहत्था ही अकेले लड़ने के लिए दौड़ पड़ा, परन्तु तभी ना जाने कहाँ से सैनिकों कि भीड़ में से एक वाण तीव्र गति से लहराते हुये आकर उसके दाएं जंघा पर लगा, और वो आधे रास्ते ही लड़खड़ाकर अपने घुटनों के बल ज़मीन पर गिरकर पीड़ा से चिल्लाने लगा !!!

अज्ञात सैनिकों का झुंड तुरंत किनारे किनारे होकर सिर झुकाकर खड़ा हो गया और बीच से किसी के आगमन के लिए रास्ता बना दिया !

अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित, हाथ में धनुष थामे, पीठ पर वाणों से लदा तूनीर लटकाये, छाती पर लोहे का कवच और सिर पर राजसी सोने का मुकुट पहने एक वृद्ध, परन्तु ह्रष्ट पुष्ट तथा बलशाली दिखने वाला शख्स सैनिकों के बनाये बीच के मार्ग से अंदर कक्ष में दाखिल हुआ, और अंदर आते ही रुककर सबसे पहले अपनी पैनी नज़र वहाँ मौजूद हरेक व्यक्तिविशेष पर दौड़ाई !!!
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07-22-2021, 12:53 PM,
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
उस शख्स को सामने खड़ा देख, अवंतिका, विजयवर्मन और चित्रांगदा ने अविश्वास, मगर प्रसन्न आँखों से एक दूसरे को देखा !

" कौन है तू मूर्ख ??? ". अपनी जंघा में धसे हुये वाण को अपने दोनों घायल हाथों से निकालने का असफल प्रयास करते हुये हर्षपाल ने अपनी गर्दन ऊपर उठाकर उस व्यक्ति को देखते हुये चिल्लाकर पूछा. " क्या तू इस बात से अवगत नहीं कि हमने अभी अभी ये राज्य जीता है ??? हम यहाँ के सम्राट हैं !!! ".

" अशिष्ट हर्षपाल... तनिक संभल कर ! तुम्हारी अभद्रता ही कहीं तुम्हारी मृत्यु का कारण ना बन जाये ! ". एक अन्य व्यक्ति ने कक्ष में प्रवेश करते हुये कहा. " तुम कुम्भिक राज्य के महाराजाधिराज ऋषभनंदन के सामने हो !!! ".

" रहने दो सेनापति कीर्तिमान... जो व्यक्ति आजीवन शिष्टाचार ना सिख पाया हो, उसे उसकी मृत्यु के समय शिक्षित करना मूर्खता है ! ". उस वृद्ध व्यक्ति, राजा ऋषभनंदन ने अपना हाथ उठाकर अपने सेनापति कीर्तिमान को रोकते हुये कहा.

" क्षमा महाराज, मैं तो केवल ये चाहता था कि इस अधम को ज्ञात हो जाये कि इसकी मृत्यु किसके हाथों होने वाली है ! ". सेनापति कीर्तिमान ने सिर झुकाकर कहा.

राजा ऋषभनंदन अपने सेनापति को देखकर मुस्कुरायें, और फिर हर्षपाल कि ओर देखकर बोलें.

" युद्ध में जीत तब तक ही बनी रहती है हर्षपाल, जब तक कि तुम्हें मारने वाला कोई जीवित ना बचा हो !!! ".

सेनापति कीर्तिमान ने अपने सैनिकों को संकेत दिया, तो चार सैनिक भीड़ से निकल आएं, और जाकर हर्षपाल को पकड़कर वहीँ ज़मीन पर उसके घुटनों के बल बैठा दिया. कुछ भी समझ पाने में असमर्थ हर्षपाल ने पहले उन सैनिकों को देखा, और फिर राजा ऋषभनंदन और सेनापति कीर्तिमान को, तो सेनापति कीर्तिमान ने उसे बताया.

" हम यहाँ महाराज नंदवर्मन कि सहायता हेतु आएं हैं. हमारी सेना ने तुम्हारी सेना को रणभूमि में पराजित कर दिया है हर्षपाल, और इस राजमहल के अंदर भी अब तुम्हारे सैनिक नहीं बचें रहें. अब तुम हमारे बंदी हो... "

" पिताश्री !!! ". चित्रांगदा दौड़कर आई, और अपने पिता, राजा ऋषभनंदन से लिपट पड़ी और रोने लगी.

" मुझे क्षमा करना पुत्री... हमें आने में विलम्ब हुआ ! ". राजा ऋषभनंदन ने अपनी पुत्री चित्रांगदा को अपने सीने से लगा लिया.

अवंतिका और विजयवर्मन ने आकर राजा ऋषभनंदन के पैर छूकर आशीर्वाद लिया तो उन्होंने चित्रांगदा को छोड़ उन दोनों को अपने दोनों हाथों से पकड़कर उठाया और गले लगा कर बोलें.

" आयुष्मानभव: !!! आप दोनों ने बहुत कष्ट सहें हैं... अब और नहीं ! ".

" परन्तु आप हमारी सहायता हेतु यहाँ पहुँचे कैसे महाराज ??? ". अवंतिका पूछ बैठी.

" गुप्तचर... ". राजा ऋषभनंदन ने एक शब्द में उत्तर दिया.

" हम आपके आभारी हैं राजन. इसमें कोई संदेह नहीं कि आपकी गुप्तचर प्रणाली अत्यंत प्रवीण है, जो इतने कम समय में उन्होंने आप तक ये समाचार पहुँचाया, और आप हमारी सहायता को प्रस्तुत हुये ! ". विजयवर्मन ने विनम्रता से सिर झुकाकर कहा.

" नहीं नहीं राजकुमार... ". राजा ऋषभनंदन ने कहा, और फिर चित्रांगदा कि ओर संकेत करके मुस्कुराते हुये बोलें. " वो तो हमारी पुत्री का कोई घुड़सवार गुप्तचर था जो हमारे पास ये अशुभ समाचार लेकर आया था !!! ".

ये कथन सुनकर अवंतिका और विजयवर्मन कि आँखे बड़ी हो गईं, और उन्होंने घूमकर चित्रांगदा को देखा, तो चित्रांगदा हल्के से मुस्कुराकर बोली.

" मुझे राजनीती कि समझ नहीं... पर इस राजमहल में रहकर कुटिलता अवश्य ही सिख गई हूँ !!! ".

" आपका गुप्तचर ??? ". विजयवर्मन ने आश्चर्यचकित हो कहा. " और कहाँ मैं आपको गुप्तचर प्रणाली के विषय में शिक्षा दे रहा था भाभी !!!

अवंतिका और चित्रांगदा दोनों एक साथ हँस पड़ी.
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07-22-2021, 12:53 PM,
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
तभी राजा ऋषभनंदन कि नज़र पास ही पड़े देववर्मन के शव पर गई, तो उनके कुछ पूछने से पहले ही चित्रांगदा उत्तर में बोली.

" घरेलु क्लेश कि वजह से देववर्मन राजद्रोही निकलेंगे ऐसा हममें से किसी ने भी नहीं सोचा था पिताश्री. उन्हें उनके किये कि फलप्राप्ति हो गई... ".

" आपलोग अब इस रक्तरंजीत स्थान से जाइये... ". राजा ऋषभनंदन ने चित्रांगदा के सिर पर हाथ फेरते हुये अवंतिका और विजयवर्मन को देखते हुये कहा.

" पिताश्री और माताश्री तो ठीक हैं ना ? ". अवंतिका ने चिंतित स्वर में पूछा.

" उन्हें हमारी सेना ने सकुशल बंदीगृह से निकाल लिया है राजकुमारी... ". राजा ऋषभनंदन ने आस्वस्त किया.

" फिर तो केवल एक ही कार्य पूर्ण करना बाकि रह गया है... ". चित्रांगदा ने अपने आप में कुछ सोचते हुये धीरे से कहा, और पीछे मुड़ी.

राजा ऋषभनंदन, अवंतिका, और विजयवर्मन उन्हें प्रश्नवाचक नज़रों से देखते रहें.

पीछे जाकर चित्रांगदा ने ज़मीन पर गिरा हुआ अपना चाकू उठाया, और धीमे कदमो से चलकर हर्षपाल के समीप पहुँची, जिसे अभी भी सैनिकों ने धर दबोच रखा था. अपने पास चित्रांगदा को खड़ा पाकर हर्षपाल ने गर्दन उठाकर उन्हें देखा, और भद्दी हँसी हँसते हुये बोला.

" हम अपनी योजना पर अभी भी अडिग हैं चित्रांगदा ! परन्तु आप जैसी तेजस्वीनी स्त्री का स्थान हमारे नगरवेश्यालय में नहीं, ये बात हम समझ चुके हैं. आप चाहें तो स्वेक्षा से हमारी दासी बनकर रह सकतीं हैं... हमारी पत्नियों को भी इससे प्रसन्नता ही होगी !!! ".

बिना एक शब्द भी कहे चित्रांगदा ने अपने चाकू कि नोक हर्षपाल कि ठुड्डी पर गड़ा कर उसे उठने का संकेत दिया, तो सैनिकों ने उसे खींचकर खड़ा कर दिया.

" स्त्रीयों के लिए तो कई सारे विकल्प हैं ... परन्तु पुरुषों का क्या ??? ". चित्रांगदा अपना चेहरा हर्षपाल के चेहरे के एकदम समीप लेजाकर बोली. " आप पुरुष हैं, अन्यथा हम आपको अपने नगर के वेश्यालय में अवश्य ही स्थान देतें. तुम्हारे पास विकल्प कम हैं हर्षपाल !!! ".

अपनी अटल नियति समीप देख हर्षपाल के कटे हुये चेहरे पर एक तीरछी मुस्कुराहट खेल गई. उसने एक बार भी चित्रांगदा कि आँखों में देखना बंद नहीं किया. हर्षपाल क्रूर और दुराचारी सही, परन्तु इतना तो तय था कि वो डरपोक नहीं था, उसे मृत्यु का भय भी नहीं था !

" और वैसे भी तुम्हारा चेहरा अर्ध विकृत हो चुका है... ". चित्रांगदा ने कहा. " आओ... इसकी विकृति पूर्ण कर देती हूँ !!! ".

चित्रांगदा ने हर्षपाल कि ठुड्डी के नीचले हिस्से में गर्दन में चाकू का नुकीला मुँह अंदर घोप दिया. भयहीन हर्षपाल चित्रांगदा कि आँखों में तब तक देखकर मुस्कुराता रहा, जब तक कि चाकू उसके चेहरे के भीतर भीतर चीरा लगाते हुये उसके सिर को चीरकर सिर से बाहर ना निकल गया. हर्षपाल कि आँखे बंद हो गई, तो चित्रांगदा ने अपना दूसरा हाथ उसकी छाती पर टिकाकर, अपनी पूरी शक्ति लगाकर चाकू को हर्षपाल के चेहरे के अगले हिस्से से खींचकर बाहर निकाल लिया, हर्षपाल का चेहरा बीच से अगल बगल में दो हिस्सों में कट कर लटक गया, और उसकी जीवनलीला वहीँ समाप्त हो गई !!!

सैनिकों ने हर्षपाल के भारी हो चुके शरीर को वहीँ ज़मीन पर नीचे गिर जाने दिया !

वापस राजा ऋषभनंदन, अवंतिका, और विजयवर्मन के पास आकर चित्रांगदा ने रक्त से सना अपना चाकू अपनी कमर से लिपटे घाघरे में खोस लिया और बोली.

" अब हम चलने के लिए प्रस्तुत हैं ... ".

विजयवर्मन ने एक नज़र अपनी भाभी चित्रांगदा कि कमर में खोसी हुई चाकू पर डाली, फिर उनके चेहरे को देखा, मन ही मन कुछ याद करके मुस्कुरायें, और उन्हें और अवंतिका को लेकर राजा ऋषभनंदन कि आज्ञा लेने के उपरांत कक्ष से बाहर निकल गएँ !.......................................
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