मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
12-23-2014, 05:30 PM,
#21
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
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माँ - बेटियों ने एक दुसरे के सामने मुझे चुदवाया
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भाग 08 
मैं उठा और रीता से पूछा, "अब सीख समझ गई सब?"

उसके "जी" कहने पर मैंने कहा, "फ़िर चलो अब मुझे गुरु दक्षिणा दो.."।

रीता मुस्कुराते हुई पूछे, "कैसे...?"

मैंने मुस्कुरा कर कहा, "मेरे लन्ड को चाट कर साफ़ कर दो, बस....."।

और घोर आश्चर्य.....रीता खुशी-खुशी झुकी और मेरे लन्ड को चाटने लगी। रागिनी सब देख रही थी पर चुप थी। मैंने रीता के मुँह में अपना लन्ड घुसा दिया और फ़िर उसका सर पीचे से पकड़ कर उसकी मुँह में लन्ड अंदर-बाहर करने लगा। एक तरह से अब मैं उस लड़की की मुँह मार रहा था और रीता भी आराम से अपना मुँह मरा रही थी। तभी बाहर से दरवाजा खटखटाने की आवाज आई। सब लोग आ गए थे।

रीता तुरन्त अपनी पेंटी ले कर किचेन में भाग गई फ़िर वहाँ से आवाज दी, "खोल रही हूँ...रूको जरा।"

मैं दो कदम में नल पर पहुँच गया एक तौलिया को लपेट कर। रागिनी कपड़े पहनने लगी। दरवाजा खुला तो सब सामान्य था। मैं नास्ते के बाद घुमने निकल गया। मैंने रागिनी और रीता को साथ ले लिया क्योंकि रूबी और रीना पहले हीं दो घन्टे के करीब चल कर थक गए थे।

उस दिन मैंने तय किया कि अब एक बार रीना को सब के सामने चोदा जाए, और फ़िर इस जुगाड़ में मैंने रागिनी और रीता को भी अपने साथ मिला लिया। रागिनी ने मुझे इसमें सहयोग का वचन दिया।
घर लौटने के बाद मैंने दोपहर के खाने के समय कहा, "बिन्दा, अभी खाने के बाद दो घन्टे आराम करके रीना को फ़िर से चोदुँगा, अभी जाने में दो दिन है तो इस में 4-5 बार रीना को चोद कर उसको फ़िट कर देना है ताकि शहर जाकर समय न बेकार हो, और वो जल्दी से जल्दी कमाई कर सके।

रागिनी भी बोली, "हाँ अंकल, उसकी गाँड़ भी तो मारनी है आपको, क्या पता पहला कस्टमर हीं गाँडू मिल गया तो...."।

बिन्दा चुप थी, और थोड़ा परेशान भी कि वहाँ उसकी दोनों छोटियाँ भी थीं। रीता अब बोली, "दीदी, अब तो तुम्हारे मजे रहेंगे, खुब पैसा मिलेगा तुम्हें।"

मैं बोला, "हाँ एक रात का कम से कम 5000 तो जरुर मिलेगा रीना का रेट। सप्ताह में 5 दिन भी गई तो 25000 हर सप्ताह, या क्या पता कुछ ज्यादा भी।"
अब पहली बार रूबी कुछ प्रभावित हो कर बोली, "वाह .....5 दिन काम का महिने का 1 लाख....यह तो बेजोड़ काम है...हैं न माँ..."।

मैंने कहा, "हाँ पर उसके लिए मर्द को खुश करने आना चाहिए, तभी इसके बाद टिप भी मिलेगा। यही सब तो रीना को अभी सीखना है शहर जाने से पहले।"
बिन्दा चुप चाप वहाँ से ऊठ गई, मैं उसके जाते जाते उसको सुना दिया, "आज जब दोपहर में तुम्हारी दीदी चुदेगी, तब तुम भी रहना साथ में सीखना....साल-दो साल बाद तो तुम्को भी जाना हीं है, पैसा कमाने।"

दोपहर करीब 3 बजे मैंने रीना को अपने कमरे में पुकारा। रागिनी और रीता मेरे साथ थीं। दो बार आवाज देने के बाद रीना आ गई, तो मैंने रूबी को पुकारा, "रूबी आ जाओ देख लो सब, अभी शुरु नहीं हुआ है जल्दी आओ..." और कहते हुए मैंने रीना के कपड़े उतारने शुरु कर दिए। जब रूबी रूम में घुसी उस समय मैं रीना की पैन्टी उसकी जाँघों से नीचे सरार रहा था। रूबी पहली बार ऐसे यह सब देख रही थी, सो वो भौंचक रह गई। रीना ने नजर नीचे कर लीं, तब रागिनी ने रूबी को अपने पास बिठा लिया और मुझसे बोली, अंकल आज इसकी एक बार गाँड़ मार दीजिए न पहले, अगर दर्द होगा भी तो बाद में जब उसको चोदिएगा तो उस मजे में सब भूल जाएगी।"

मुझे उसका यह आईडिया पसन्द आया। उसको इस तरह के दर्द और मजे का पूरा अनुभव था। सो मैंने जब रीना को झुकाया तो वो बिदक गई, कि वो अपने पिछवाड़े में नहीं घुसवाएगी। मैं और रागिनी उसको बहुत समझाए पर वो नहीं मानी तो रागिनी बोली, "ठीक है तुम देखो कि मैं कैसे गाँड़ मरवाती हूँ अंकल से, इसके बाद तुम भी मराना। अगर शहर में रंडी बनना है तो यह सब तो रोज का काम होगा तुम्हारा।" कहते हुए वो फ़टाक से नंगी हो कर झुक गई। मैंने उसकी गाँड़ की छेद पर थुका और फ़िर अपनी ऊँगली से उसकी गाँड़ को खोलने लगा। थुक और मेरे प्रयास ने उसकी गाँड़ को जल्दी हीं ढ़ीला कर दिया। तब एक बार भरपूर थुक को अपने लन्ड पर लगा कर मैंने अपने टन्टनाए हुए लन्ड को उसकी गाँड़ में दबा दिया। रागिनी तो एक्स्पर्ट थी, सो जल्द हीं अपने मस्ल्स को ढीला करते हुए मेरा पूरा लन्ड 8" अपने गाँड़ के भीतर घुसवा ली। रूबी और रागिनी का मुँह यह सब देख कर आश्चर्य से खुला हुआ था। 8-10 धक्के हीं दिए थे मैंने कि रागिनी एक झटके से अपने गाँड़ को आजाद कर ली और फ़िर रीना को पकड़ कर कहा कि अब आओ और गाँड़ मरवाओ।
रीना भी सकुचाते हुए झुक गई, और एक बार फ़िर मैं थुक के साथ उसकी गाँड़ पे ऊँगली घुमाने लगा। रागिनी भी कभी उसकी चूत सहालाती तो कभी अपने चूत से निकल रहे गिलेपने से तो कभी अपने थुक से उसकी गाँड़ को गीला करने में लग गयी थी। जब मुझे लगा कि अब रीना की गाँड़ को मेरे उँगली की आदत पर गई है तो मैं ने उसकी गाँड़ में अपना एक फ़िर दुसरा उँगली घुसा दिया। दर्द तो हुआ था पर रीना बर्दास्त कर ली। इसके बाद उसके रजामन्दी से मैं उपर उठा और अपले लन्ड को उसकी गाँड़ की गुलाबी छेद पर टिका कर दबाना शुरु किया। रागिनी लगातार उसकी चूत में ऊँगली कर रही थी ताकि मजे के चक्कर में उसको दर्द का पता न चले, और मैं उसकी कमर को अपने अनुभवी हाथों में जकड़ कर उसकी कुँवारी गाँड़ का उद्घाटन करने में लगा हुआ था। जल्द हीं मैं उसकी गाँड़ मार रहा था। अब मैंने रूबी और रीता को देखा, दोनों अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से अपनी दीदी की गाँड़ मराई देख रही थी। करीब 7-8 मिनट के बाद मैं उसकी गाँड़ में हीं झड़ गया और जब लन्ड बाहर निकला तो उसकी गाँड़ से सफ़ेद माल बह चला उसकी चूत्त की तरफ़....तभी बिना समय गवाँए, मैंने अपना लन्ड उसकी चूत में ठाँस दिया। लन्ड अपने साथ मेरा सफ़ेद माल भी भीतर ले कर चला गया।

रूबी अब बोली, "अरे ऐसे तो दीदी को बच्चा हो जाएगा..."
मैने जोश में भरकर कहा, "होने दो...होने दो....होने दो....और हर होने दो के साथ हुम्म्म्म्म करते हुए अपना लन्ड जोर से भीतर पेल देता। बेचारी की अब चुदाई शुरु थी, जबकि वो चक्कर में थी कि गाँड़ मरवा कर आराम करेगी।

वो थक कर कराह उठी....पर लड़की को चोदते हुए अगर दया दिखाया गया तो वो कभी ऐसे न चुदेगी, यह बात मुझे पता थी। सो मैं अब उसके बदन को मसल कर ऐसे चोद रहा था जैसे मैं उसके बदन से अपना सारा पैसा वसूल कर रहा होऊँ। रीना कराह रही थी....और मैं उसकी कराह की आवाज के साथ ताल मिला कर उसकी चूत पेल रहा था। मेरा लन्ड दूसरी बार झड़ गया, उसकी चूत के भीतर हीं। इसके बाद मैं भी थक कर निढ़ाल हो एक तरह लेट गया। रागिनी झुक कर मेरे लन्ड को चूस चाट कर साफ़ करने लगी।

मैने उस रात रीना को अपने पास ही सुलाया और रात मे एक बार फ़िर चोदा, पर इस बार प्यार से, और इस बार उसको मजा भी खुब आया। वो इस बार पहली बार मुझे लगा कि सहयोग की और ठीक से बेझिझक चुदी। सुबह जब हुम जगे तो सब पहले से जाग गए थे। रीना कमरे से बाहर जाने लगी तो मैंने उसको पास खींच लिया और चुमने लगा।

वो बोली, "ओह अब सुबह में ऐसे नहीं कैसा गंदा महक रहा है बदन...पसीना से।"

मैंने कहा, "अब मर्द के बदन की गन्ध की आदत डालो, बाजार में सब नहा धो कर नहीं आएँगे चोदने तुम्हें...और तुम भी तो महक रही हो, पर मुझे तो बुरा नहीं लग रहा....मैं तो अभी तुम्हारी चूत भी चाटूँगा और गाँड भी।"
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12-23-2014, 05:30 PM,
#22
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भाग 09 
फ़िर उसके देखते देखते मैं उसकी चूत चुसने चाटने लगा और वो भी गर्म होने लगी। जल्द हीं उसकी आह आह कमरे में गुंजने लगी, और शायद आवाज बाहर भी गयी, क्योंकि तभी बिन्दा बोली, "उठ गई तो बेटी तो जल्दी से नहा धो लो और तैयार हो जाओ आज बाजार जा कर सब जरुरत का सामान ले आओ, कल तुमको रागिनी के साथ शहर जाना है, याद है ना।"

रीना बोली-"हाँ माँ, पर अब ये मुझे छोड़े तब ना...इतना गन्दा हैं कि मेरा बदन चाट रहे हैं।"

मैंने जोर से कहा, "बदन नहीं बिन्दा, आपकी बेटी की चूत चाट रहा हूँ....आप चाय बनवा कर यहीं दे दीजिए....तब तक मैं एक बार इसको चोद लूँ जल्दी से।" यह कह कर मैंने रीना को सीधा लिटा कर उसके घुटने मोड़ कर जाँघों को खोल दिया। और अपना लन्ड भीतर गाड़ कर उसकी चुदाई शुरु कर दी। आह्ह्ह्ह्ह आह्ह्ह्ह का बाजार गर्म था। और जैसे हीं मैं उसकी चूत में हीं झड़ा...घोर आश्चर्य......बिन्दा खुद चाय ले कर आ गई।

बिन्दा यह देख कर मुस्कुराई...तो मैंने अपना लन्ड पूरा बाहर खींच लिया...पक्क की आवाज हुई और रीना की चूत से मेरा सफ़ेदा बह निकला।
बिन्दा यह देख कर बोली, "अरे इस तरह इसके भीतर निकालिएगा तब तो यह बर्बाद हो जाएगी" . वो जल्दी-जल्दी अपने साड़ी के आँचल से उसकी चूत साफ़ करने लगी। रीना भी उठ बैठी तो बिन्दा उसकी चूत की फ़ाँक को खोल कर पोछी। मैं बिना कुछ बोले बाहर निकल गया हाथ में चाय ले कर, और थोड़ी देर में रीना और बिन्दा भी आ गई। फ़िर हम लोग सब जल्दी-जल्दे तैयार हुए। आज बिन्दा ने अपने हाथ से सारा खाना बनाना तय किया और रीना और रागिनी को मेरे साथ बाजार जा कर सामान सब खरीद देने को कहा। हमें अगले दिन वहाँ से निकलना था और मैंने तय किया कि आज की रात को रीना की चुदाई जरा पहले से शुरु कर दुँगा, क्योंकि आज मैं उसको वियाग्रा खा कर सबके सामने चोदने वाला था। अब जबकि बिन्दा सुबह अपनी बेटी की चूत से मेरे सफ़ेदा को साफ़ कर हीं ली थी तो मैं पक्का था कि आज के शो में वो एक दर्शक जरुर बनेगी। मैंने बाजार में हीं रीना को इसका ईशारा कर दिया था कि आज की रात मैं उसको रंडियों को जैसे चोदा जाता है वैसे चोदुँगा।

मैंने उससे कहा, "रीना बेटी, आज की रात तुम्हारी स्पेशल है। आज मैं तुम्हें सब के सामने एक रंडी को जैसे हम मर्द चोदते हैं वैसे चोदुँगा। अभी तक मैं तुम्हें अपनी बेटी की तरह से चोद रहा था और तुम्हें भी मजा मिले इसका ख्याल रख रहा था, पर आज की रात मैं तुम्हारे मजे की बात भूल कर केवल एक मर्द बन कर एक जवान लड़की के बदन को भोगुँगा तो तुम इस बात के लिए तैयार रहना। शहर में लोगों को तुम्हारे खुशी का ख्याल नहीं रहेगा। उन्हें तो सिर्फ़ तुम्हारे बदन से अपना पैसा वसूल करना रहेगा। करीब 2 बजे हम लोग घर आए और फ़िर खाना खा कर आराम करने लगे।

रीना अपनी माँ और बहनों के पास थी और रागिनी मेरे पास। हम दोनों अब आगे की बात पर विचार कर रहे थे। मैंने कहा भी कि अब अगले एक सप्ताह तक मुझे काम से छुट्टी नहीं मिलेगी सो आज रात मैं अपना कोटा पूरा कर लुँगा तब रागिनी बोली हाँ और नहीं तो क्या...अब वहाँ जाने के बाद सूरी तो रीना की लगातार बूकिंग कर देगा, जब उसको पता चलेगा कि यह शहर सिर्फ़ कौल-गर्ल बनने आई है। एक तरह से ठीक हीं है आज रात में रीना को जरा जम कर चोद दीजिए कि उसको सब पता चल जाए कि वहाँ हम लोग क्या-क्या झेलते हैं अपने बदन पर।"

मैंने आज शाम की चाय के समय हीं सब को कह दिया कि आज रात में मैं रीना को बिल्कुल जैसे एक रंडी को कस्टमर चोदता है वैसे से चोदुँगा और आप सब वहाँ देखिएगा और रागिनी मेरे रूम में रीना को वैसे हीं लाएगी जैसे रीना को दलाल लोग मर्दों की रुम तक छोड़ कर आएँगे। सबसे पहले सबसे छोटी बहन रीता की मुँह से निकला "वाह ... मजा आएगा आज तो",

फ़िर मैंने बिन्दा को कहा, "अपनी बेटी की पहली दुकानदारी पर वहाँ रहोगी तो उसका हौसला रहेगा...अगर साथ में घरवालें हों तो।" उसके चेहरे से लगा कि अब वो भी अपना सिद्धान्त वगैरह भूल कर, "जो हो रहा है अच्छा हो रहा है", समझ कर सब स्वीकार करने लगी है। उन सब के आश्वस्त चेहरों के देख मैं मन हीं मन खुश हुआ...आजकल मेरी चाँदी है, अब एक बार फ़िर मैं एक माँ के सामने उसकी बेटी को चोदने वाला था...और ऐसी चुदाई के बारे में सोच-सोच कर हीं लन्ड पलटी खाने लगा था। मैंने करीब 8 बजे खाना खाया हल्का सा और रीना को भी हल्का खाना खाने को कहा। फ़िर करीब 9 बजे मैंने वियाग्रा की एक गोली खा ली, रागिनी मुझे वियाग्रा खाते देख मुस्कुराई...वो समझ गई थी कि आज कम से कम 7-8 घन्टे का शो मैं जरुर दिखाने वाला हूँ उसकी मौसी और मौसेरी बहनों को।
करीब पौने दस बजे मैंने रीना को आवाज लगाई जो अपनी बहनों के साथ अपना सामान पैक कर रही थी। जल्द हीं जब सब समेट कर वो आई तो मैंने उसी को जाकर सब को बुला लाने को कहा और फ़िर खुद सब के लिए नीचे जमीन पर हीं दरी बिछाने लगा। कमरे में एक तरफ़ मैंने बेड को बिछा दिया था। करीब दस मिनट में सब आ गए, सबसे बिस्तर से लगे दरी पर बैठ गए तब रागिनी अपने साथ रीना को लाई।

रागिनी एकदम सूरी के अंदाज में बोली, "लीजिए सर जी, एक दम नया माल है। आपके लिए हीं इसको बुलाया है सर जी, पहाड़न की बेटी है...खुब मजा देगी। रात भर चोदिएगा तब भी सुबह कड़क हीं मिलेगी। अभी तो इसकी चूचियाँ भी नहीं खिली हैं देखिए कैसी कसक रही है"....कह कर उसने रीना की बायीं चूची को जोर से दबा दिया। वहाँ बैठी सभी लोग रागिनी की ऐसी भाषा सुन कर सन्न थे और उसकी अदाकारी का फ़ैन हो रहा था। फ़िर उसने रीना को मेरी तरफ़ ठेल दिया जिसे मैंने बिना देर किए अपनी तरफ़ खींचा। वियाग्रा खाए करीब एक घन्टा हो गया था सो मेरा लन्ड लगभग टन्टनाया हुआ था। बिना देर किए मैंने रीना के बदन से कपड़े उतारने शुरु कर दिए। पहले दुपट्टा, फ़िर कुर्ती इसके बाद सलवार....। रीना को ऐसी उम्मीद न थी सो मेरी फ़ुर्ती पर वो हैरान थी, और बिना देर किए मैंने उसकी पैन्टी नीचे सरार दी और जब तक वो समझे मैंने उस पैन्टी को उसके ताँगों से निकाल दिया और एक धक्के के साथ उसे नीवे बिछे बिछावन पर लिटा दिया। उसकी दोनों टाँगों को घुटने के पास से पकड़कर खोल दिया और फ़िर उसकी चूत में अपना टनटनाया हुआ लन्ड घुसा कर चोदने लगा। बेचारी सही से गीली भी नहीं हुई थी और उसको मेरे लन्ड पर लगे मेरे थुक के सहारे हीं अपनी चूत मरानी पड़ी सो वो कराह उठी। पर लौन्डिया नया-नया जवान हुई थी सो 5-6 धक्के के बाद हीं गीली होने लगी और मेरा लन्ड अब खुश हो कर मस्ती करने लगा। रीना की माँ और उसकी दोनों बहने वहीं बैठ कर सब देख रही थी। करीब 10 मिनट तक लगातार कभी धीरे तो कभी जोर से मैं उसको चोदा और फ़िर उसकी चूत में झड़ गया। किसी को इसका अंदाजा न था, पर जब मैंने अपना लन्ड बाहर खींचा तो रीना की चूत में से मेरा सफ़ेद माल बह चला।

मैंने बिना देरी किए रीना के मुँह में अपना लन्ड घुसा दिया जो ईशारा था उसके लिए, जिसको समझ कर वो मेरे लन्ड को चुस-चाट कर साफ़ की तो मैंने उसको पलट दिया और फ़िर उसकी गाँड़ मारने लगा। उस दिन लगातार चार बार मैं झड़ा, दो बार उसकी चूत में और एक-एक बार उसकी गाँड़ और मुँह में। इसके बाद मैंने पानी माँगा। बेचारी रीना थक कर चूर थी और वो मुँह से न बोल कर ईशारे से अपने लिए भी पानी माँगी।
बिन्दा हमारे लिए पानी लेने चली गई तो मैंने ईशारा किया और रीता मेरे पास आ कर मेरे लन्ड को चुसने लगी। बिन्दा जब पानी ले कर आई तो यह देख सन्न रह गई कि उसकी सबसे लाडली और छोटी बेटी अपने से 31-32 साल बड़े एक मर्द का लन्ड चूस रही है, वो भी उस मर्द का जो उसकी माँ के साथ अभी-अभी उसके सामने उसकी बड़ी बहन को चोदा था। वो गुस्से से भर कर रीता को मेरे ऊपर से हटाई तो रागिनी मेरे सामने बैठ कर लन्ड चूसने लगी और जैसे हीं बिन्दा ने एक थप्पड़ रीता को लगाया रुँआसी हो कर बोल पड़ी, "ये सब देख कर मन हो गया अजीब तो मैं क्या करूँ, तुम तो अंकल से चुदा ली और दीदी को भी चुदा दी और मुझे जो मन में हो रहा है उसका क्या? एक बार अंकल का छू ली तो कौन सा पाप कर दी, कुछ समय के बाद मुझे भी तो ऐसे हीं चुदाना होगा तो आज क्यों नहीं?"
अब रीना तो मैं अगले दौर के लिए खींच लिया था और रागिनी उन माँ-बेटी में सुलह कराने के ख्याल से बोली, "रीता अभी तुम छोटी हो, अभी कुछ और बड़ी हो जाओ फ़िर तो यह सब जिन्दगी भी करना हींहै} अभी से उतावली होगी तो तुम्हारा समय से पहले हीं ढ़ीला हो जाएगा फ़िर किसी को मजा नहीं आएगा न तुमको और न हीं जो तुमको चोदेगा उसको। अभी तो ठीक से झाँट भी नहीं निकला है तुमको।"
मैंने कहा - देखिये बिंदा जी. आज मैंने वियग्रा खाया है. मेरा लंड अभी शांत नही होगा. आपकी रीना तो अभी ही पस्त हो गयी है. अब मै किसे चोदुं?

बिंदा ने कहा - आप मुझे चोद लीजिये.

मैंने कहा - आईये , कपडे उतार कर आ कर नीचे लेट जाईये.
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12-23-2014, 05:31 PM,
#23
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भाग 10 
बिंदा ने सिर्फ साड़ी पहन रखी थी. उसने झट अपनी साड़ी उतारी. साड़ी के नीचे उसने ना ब्रा पहनी थी ना ही पेंटी. वो रागिनी और अपनी सभी बेटियों के सामने नंगी हो कर मेरे लंड को चूसने लगी. रीना ने लेटे लेटे ही अपनी चूत में अपनी उंगली डाल कर अपनी माँ को मेरा लंड चूसते हुए देख रही थी. अब मैंने देर करना उचित नही समझा. मैंने बिंदा को पटक कर जमीन पर लिटाया और उसकी टांगों को मोड़ कर अलग कर उसके बुर को फैलाया और अपना विशाल लंड उसके चूत में घचाक से डाल दिया. कई मर्दों से चुदा चुकी बिंदा को भी मेरे इस मोटे लंड का अहसास नही था. वो दर्द के मारे बिलबिला गयी. लेकिन वो मेरे झटके को सह गयी. अब मै उसकी चूत को पलना चालु कर दिया. उसकी बेटियां अपनी माँ की चुदाई काफी मन से देख रही थी. करीब १५ मिनट की चुदाई में बिंदा ने 3 बार पानी छोड़ा. लेकिन मेरे लंड से 15 वें मिनट पर माल निकला जो उसकी चूत में ही समा गयी. अब बिंदा भी पस्त हो कर जमीन पर लेट गयी थी. लेकिन मै पस्त नहीं हुआ था. अब रागिनी की बारी थी. वो तो पेशेवर रंडी थी. मैंने सिर्फ उसे इशारा किया और वो बिंदा के बगल में जमीन पर नंगी लेट गयी.
लेकिन मैंने कहा - रागिनी तेरी गांड मारनी है मेरे को.
रागिनी मुस्कुराई और खड़ी हो कर एक टेबल पकड़ कर नीचे झुक गयी. मैंने उसकी कई बार गांड मारी थी. इसलिए मेरे लंड को उसके गांड के अन्दर जाने में कोई परेशानी नही हुई. तक़रीबन 200 बार उसके गांड में लंड को आगे -पीछे करता रहा. लेकिन वो सिर्फ मुस्कुराते रही. बिंदा और उसकी बेटियां मुझे रागिनी की गांड मारते हुए देख रही थी.

मैंने कहा - देखा बिंदा, इसे कहते हैं गांड मरवाना, देखो इसे दर्द हो रहा है?
रूबी ने कहा - रागिनी दीदी तो रोज़ 10-12 बार गांड मरवाती हैं तो दर्द क्या होगा?
मैं रागिनी की गांड मारते हुए हंसने लगा. रागिनी ने भी मुस्कुराते हुए रूबी से कहा - आजा, तू भी गांड मरवा के देख ले अंकल से. तुझे भी दर्द नहीं होगा.
रूबी ने कहा - ना बाबा ना. मै तो सिर्फ चूत चुदवा सकती हूँ आज. गांड नही.

यह सुन कर मेरी तो बांछें खिल गयी. मैंने कहा - खोल दे अपने कपडे , आज तेरी भी चूत की काया पलट कर ही दूँ. क्यों बिंदा क्या कहती हो?
बिंदा ने कहा - जब चुदाई देख कर रीता की चूत पानी छोड़ने लगी है तो रूबी तो उस से बड़ी ही है. उस की तमन्ना भी पूरी कर ही दीजिये. लेकिन प्यार से. रूबी, अपने कपडे उतार कर तू भी हमारी बगल में लेट जा.

माँ की परमिशन मिलते ही रूबी ने अपनी कुर्ती और सलवार उतार दिया. अन्दर उसने सिर्फ पेंटी पहन रखी थी. जो पूरी तरह गीली हो चुकी थी. सीने पर माध्यम आकार के स्तन विकसित हो चुके थे. रूबी पेंटी पहने हुए ही अपनी माँ के बगल में लेट गयी. बिंदा ने उसकी पेंटी को सहलाते हुए कहा - क्यों री , तेरी चूत से इतना पानी निकल रहा है?
रागिनी ने अपनी गांड मरवाते हुए कहा - क्यों नहीं निकलेगा पानी मौसी? इतनी चुदाई देखने के बाद तो 100 साल की बुढ़िया की चूत भी पानी छोड़ देगी . ये तो 16 साल की जवान है.

जवाब सुन कर हम सभी को हँसी आ गयी. बिंदा ने रूबी की पेंटी खोल दी. और उसकी चिकनी गीली चूत सहलाने लगी.
बिंदा बोली - क्यों री रूबी, ये चूत तुने कब शेव किया? दो दिन पहले तक तो बाल थे तेरी चूत पर.

रूबी - उस रात को जब अंकल तुम्हे चोद रहे थे ना तब तू अंकल से कह रही थी कि मेरी चूत के बाल फँस गए हैं . तभी मै सजग हो गयी थी. और उसी रात को चूत की शेव की थी मैंने. मुझे पता था कि क्या पता कब मौका लग जाए चुदाने का? 

बिंदा - अच्छा किया कि तुने चूत की शेव कर ली. नहीं तो तेरे अंकल का लंड इतना मोटा है की चुदाई में बाल फँस जाते हैं और बहुत दुखता है. अच्छा , मै जो मोटा वाला मोमबत्ती खरीद कर लायी थी वो इसमें डालती हो कि नही आजकल?
रूबी - क्या माँ, अब तेरी उस मोमबत्ती से काम नहीं चलने वाला . अब तो पतला वाला बैगन भी डाल लेती हूँ.
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12-23-2014, 05:31 PM,
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भाग 11 
बिंदा - पूरा घुसा लेती हो?
रूबी - नहीं , आधा डाल कर ही मुठ मार लेती हूँ.

बिंदा - अच्छा ठीक है, आज अपने अंकल का लंड ले कर अपनी प्यास बुझा लो.

मैंने जितना सोचा था उस से भी कहीं अधिक यह परिवार आगे था. मैंने झटाझट रागिनी की गांड मारी और अपना माल उसकी गांड में गिराया. अब मेरी वियाग्रा का प्रभाव कम होना शुरू हुआ. मैंने रागिनी के गांड में से अपना लंड निकला और रूबी के बगल में लेट गया. रागिनी भी नंगी ही मेरे बगल में लेट गयी. अब बिंदा उसकी दो बेटी- रूबी और रीना , रागिनी और मैं सभी एक साथ जमीन पर पूरी तरह नंगे पड़े हुए थे. अब मुझे रूबी की चूत का भी सील तोड़ना था.
मैंने रूबी को अपने से सटाया और अपने ऊपर लिटा दिया. उसका होंठ मेरे होंठ के ऊपर था. मैंने उसके सर को अपनी सर की तरफ दबाया और उसका होठ का रस चूसने लगा. वो भी मेरे होठ के रस को चूसने लगी. उसके हाथ मेरे लंड से खेल रहे थे. मैंने उसे वो सब करने दिया जो उसकी इच्छा हो रही थी. वो मेरे मोटे लंड को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर मसल रही थी. उसकी माँ और बहन उसके बगल में लेट कर हम दोनों का तमाशा देख रही थी. थोड़ी देर में मैंने उसके होठों को अपने होठ से आजाद किया. उसे जमीन पर पीठ के बल लिटाया और उसकी माध्यम आकार की चुचियों से खेलने लगा. रूबी को काफी मज़ा आ रहा था. 
बिंदा - अरे भाई, जल्दी कीजिये न? कब से बेचारी तड़प रही है.
मैंने भी अब देर करना उचित नही समझा. मैंने कहा - क्यों री रूबी, डाल दूँ अपना लंड तेरी चूत में?
रूबी - हाँ, डाल दो.

मैंने - रोवेगी तो नहीं ना?
रूबी - पहाड़न की बेटी हूँ. रोवुंगी क्यों?
मैंने उसके दोनों टांगों तो मोड़ा और फैला दिया. उसकी एक टांग को उसकी माँ बिंदा ने पकड़ा और दूसरी टांग को रागिनी ने. मैंने अपने लंड को उसकी चूत की छेद के सामने ले गया और घुसाने की कोशिश की. लेकिन रूबी की चूत की छेद छोटी थी और मेरा लंड मोटा. फलस्वरूप उसकी चूत पर चिकनाई की वजह से मेरा लंड उसकी चूत में ना घुस कर फिसल गया.

बिंदा ये देख कर हंसी और बोली - अरे भाई संभल कर. पहली बार चूत में लंड घुसवा रही है. रुक जाईये. मै डलवाती हूँ.

उसने एक हाथ की उँगलियों से अपनी बेटी रूबी की चूत चौड़ी करी और एक हाथ से मेरा लंड पकड़ कर उसकी चूत की छेद पर सेट किया. फिर मेरा लंड को कस कर पकड़ लिया ताकि फिर फिसल न जाये. बोली - हाँ , अब सही है. अब धीरे धीरे .

मैंने अपना लंड काफी धीरे धीरे रूबी की चूत में ससारना शुरू किया. उसकी चूत काफी गीली थी. इसलिए बिना ज्यादा कष्ट के उसने अपने चूत में मेरे लंड को घुस जाने दिया. करीब आधा से ज्यादा लंड मैंने उसके चूत में डाल दिया था, लेकिन रूबी को कोई तकलीफ नहीं हो रही थी.

बिंदा को थोडा आश्चर्य हुआ. बोली - क्यों री, पहले ही चुदवा ली है क्या किसी से?
रूबी - नही माँ. इस लंड के इतना मोटा बैगन तो मै रोज डालती हूँ ना.

मैंने कहा - आप चिंता क्यों करती हो बिंदा जी. अभी टेस्ट कर लेता हूँ.

मैंने कह कर कस के अपने लंड को उसके चूत में पूरा डाल दिया. रूबी चीख पड़ी. --माआआ
उसकी चूत की झिल्ली फट गयी. उसके चूत से हल्का सा खून निकल आया. खून देख कर बिंदा का संतोष हुआ कि रूबी को इस से पहले किसी ने नहीं चोदा था.
मैंने अपना काम तेजी से आरम्भ किया. उस दुबली पतली रूबी पर मै पहाड़ की तरह चढ़ उसे चोद रहा था. लेकिन वो अपनी इबादी बहन से ज्यादा सहनशील थी. उसने तुरंत ही मेरे लंड को अपने चूत में और मेरे भारी भरकम शरीर के धक्के को अपने दुबले शरीर पर सहन कर लिया. फिर मैंने उसकी 10 मिनट तक दमदार चुदाई करी. उसकी माँ इस दौरान अपनी बेटी के बदन को सहलाती रही तथा ढाढस बंधाती रही. 10 मिनट के बाद जब मेरे लंड ने माल निकलने का सिग्लन दिया तो मैंने झट से लंड को उसके चूत से निकाला और रूबी को उठा कर उसके मुह में अपना लंड डाल दिया. वो समझ गयी की मेरे लंड से माल निकलने वाला है. वो मेरे लंड को चूसने लगी. मेरे लंड ने माल का फव्वारा छोड़ दिया. रूबी ने सारा माल बिना किसी लाग लपेट के पी गयी. और मेरे लंड को चूस चूस कर साफ़ करी.

अब मै फिर एक- एक बार रीना और उसकी माँ बिंदा को चोदा .
रात दो बज गए थे. अंत में हम सभी थक गए. सबसे छोटी रीता हमारी चुदाई का खेल देखते देखते वहीँ सो गयी. बिंदा की गांड मारने के बाद मैं थक चुका था. हम सभी जमीन पर नंगे ही सो गए. लेकिन एक घंटे के बाद ही मेरी नींद खुली. मेरा लंड कोई चूस रही थी . मै लगभग नींद में था. अँधेरे में पता ही नही था की उन चार नंगी औरोतों में कौन मेरे लंड को चूस रही थी. मेरा लंड खड़ा हो चुका था. वो कौन थी मुझे पता नहीं था. मैंने नींद में ही और अँधेरे में ही उसकी जम के चुदाई की. इसी दौरान मेरी पीठ पर भी कोई चढ़ चुकी थी. ज्यों ही मैंने नीचे वाली के चूत में माल निकाला त्यों ही मेरी पीठ पर चढी औरत ने मुझे अपने ऊपर लिटाया और अपनी चूत में मेरे लंड को घुसा कर चोदने का इशारा किया. फिर मै उसे भी चोदने लगा. तभी मुझे अहसास हुआ की मेरी दोनों तरफ से दो और महिला भी मेरे से सट गयी हैं और मेरे चुदाई का आनंद उठा रही है. यानि मै इस वक़्त तीन औरतों के कब्जे में था. कोई मेरे होठों को चूम रही थी तो कोई मेरे अंडो को चूस रही थी. कोई मेरे लंड को अपने चूत में डलवा रही थी. ये प्रक्रम सुबह होने तक चलता रहा. जब थोड़ा थोडा उजाला हुआ तो मैंने देखा की मुझे से बिंदा, रीना और रूबी लिपटी हुई हैं. मेरे लंड इस वक़्त बिंदा के चूत में थे. बगल में रागिनी बेसुध सोयी पड़ी थी. मैंने अभी भी इन तीनो के साथ चुदाई करना चालु रखा. सुबह के नौ बज चुके थे. और तीनो माँ बेटी मुझे अभी तक नही छोड़ रही थी. ठीक नौ बजे सबसे छोटी रीता जग गयी. उस वक़्त रूबी मुझसे चुदवा रही थी और बिंदा मेरी पीठ पर चढी हुई थी. उधर रीना अपनी माँ की चूत चूस रही थी. जब मैंने रूबी के चूत में माल निकाला तो कुछ भी नही निकला सिर्फ एक बूंद पानी की तरह निकला. इस में भी मुझे घोर कष्ट हुआ. मजाक है क्या एक रात में 24-25 बार माल निकालना?

उसके बाद तो मै उन सब को अपने आप से हटाया और नंगा ही किसी तरह आँगन में जा चारपाई पर गिर पड़ा. शायद तब उन तीनों को समय और अपनी परिस्थिती का ज्ञान हुआ. वे तीनो कपडे पहन बाहर आयीं. रागिनी को भी जगाया. हमारी आज की बस छुट चुकी थी. रागिनी बेहद अफ़सोस कर रही थी. लेकिन मुझे नंगा चारपाई पर पड़ा देख उसे काफी आश्चर्य हुआ? उसने बिंदा से पूछा - मौसी, इन्हें क्या हुआ?
बिंदा - रात भर हम लोगों ने इस से चुदवाया. अभी अभी इस को हमने छोड़ा.

रागिनी - माई गाड, इतना तो बेचारा एक महीने में भी नहीं चोदता होगा. और तुम पहाड़नियों माँ बेटियों ने एक ही रात में इसका भुरता बना दिया. हा हा हा हा ...खैर.. इस चारपाई को पकड़ो और इसे अन्दर ले चलो. कोई आ गया तो मुसीबत हो जायेगी.

उन चारों ने मेरी चारपाई को पकड़ा और मुझे अन्दर ले गयी. मै दिन भर नंगा ही पड़े रहा. शाम को मेरी नींद खुली तो मैंने खाना खाया.

हालांकि हमें अगले दिन ही लौट जाना था लेकिन उन माँ बेटियों ने हमें जबरदस्ती 10 दिन और रोक लिया. और वो तीनों माँ-बेटी और रागिनी हर रात को पूरी रात मेरा सामूहिक बलात्कार करती थी .
जब बिंदा और रूबी का मन पूरी तरह तृप्त हो गया तब उसने मुझे रीना के साथ शहर वापस आने की अनुमती दी. रीना तो पहले से ही रंडी बन चुकी थी. शहर आते ही उसने रंडियों में काफी ऊँचा स्थान बना लिया. छः महीने में ही उसने कार और फ़्लैट खरीद कर बिंदा , रूबी और रीता को भी शहर बुला लिया. बिंदा और रूबी भी इस धंधे में कूद पडीं.

मुझे आश्चर्य हुआ कि बिंदा की डिमांड भी मार्केट में अच्छी खासी हो गयी . अब ये तीनो इस धंधे में काफी कम रही है.
हाँ, सबसे छोटी रीता को इस दलदल से दूर रखा है और उसे शहर से दूर बोर्डिंग स्कूल में पढ़ाया जा रहा है. 
समाप्त 
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06-08-2021, 12:45 PM,
#25
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
भर डाल अपनी माँ की चूत

मेरा नाम रणजीत है। मैं कॉलेज में अन्तिम वर्ष में पढ़ता हूँ। मेरी उम्र २४ है। मैं बीच की छुट्टियों में मेरे गाँव गया। गाँव में हमारा बड़ा घर है। वहाँ मेरी माँ और पापा रहते हैं। मेरे पापा एक बिल्डर हैं, और माँ एक गृहिणी। हम बहुत अमीर घराने से हैं। हमारे घर में नौकर-चाकर बहुत हैं।
मैं मेरे गाँव गया। दोपहर में मेरे घर पहुँचा। खाना हुआ और थोड़ी देर सोया। शाम को माँ के साथ थोड़ी बातें कीं और गाँव घूमने चला गया। रात क़रीब मैं ८ बजे घर आया। माँ का मूड ठीक नहीं था। मैंने माँ को पूछा,”माँ, पापा कहाँ हैं?”

माँ ने कुछ जवाब नहीं दिया। मेरी माँ बहुत गुस्सेवाली है। वह जब गुस्से में होती है तब वह गन्दी गालियाँ भी देती है। लेकिन वह नौकरों के साथ ऐसा नहीं करती, गालियाँ नहीं देती। माँ ने कहा,”चल, तू खाना खा ले… आज अपना बेटा आया, फिर भी यह घर नहीं आए… तू खा… हम बाद में फार्म-हाउस पर जाएँगे… वहाँ पर तेरे पापा का काम चल रहा है…”

मैंने खाना खाया और हम निकले। पापा ने मेरी माँ को स्कूटर दी थी। हमारा फार्म-हाउस हमारे घर से एक घन्टे पर ही था। माँ ने स्कूटर निकाली, मैं माँ के पीछे बैठ गया। हाँ मेरे माँ का नाम रीमा है, उसकी उम्र ४५ है लेकिन वो सुन्दर है, वो एक सामान्य गृहिणी है… सेहत से तन्दुरुस्त… थोड़ी मोटी सी।

“चलो चलें…” – माँ ने पंजाबी पोशाक पहनी थी… मैं माँ के पीछे था… हम चल दिए… मैंने मेरे हाथ से स्कूटर के पीछे टायर को पकड़ रखा था। माँ बीच-बीच में कुछ कह रही थी लेकिन कुछ सुनाई नहीं दे रहा था। शायद बहुत ही गुस्से में थी… एक घन्टे में हम फार्म-हाउस पर पहुँच गए। फार्म-हाउस के दरवाज़े पर चौकीदार था। उसने माँ को टोका… और कहा,”साहब यहाँ नहीं हैं… वो शहर गए हैं।” वह हमें दरवाज़े के अन्दर जाने से रोक रहा था।

माँ ने कहा,”ठीक है।” और स्कूटर चालू की… हम थोड़ी ही आगे गए और माँ ने स्कूटर रोक दी। उसे कुछ शक हुआ…
उसने मुझसे कहा,”तू यहीं रुक, मैं आती हूँ।”

माँ बंगले की तरफ चली गई। और चौकीदार का ध्यान बचाकर अन्दर चली गई। बंगले में जाकर खिड़कियों में ताक-झाँक करने लगी। मैंने देखा कि माँ क्यों नहीं आ रही है, और मैं भी वहाँ चला गया। मैंने देखा – माँ बहुत देर तक वहाँ खड़ी थी और खिड़की से अन्दर देख रही थी। वह क़रीब १०-१५ मिनट वहीं खड़ी थी। मैं थोड़ा आगे गया। माँ ने मुझे देखकर कहा,”साले तुझे वहीं रुकने को कहा था तो तू यहाँ क्यों आया? चल वापिस चल, हमें घर जाना है।” माँ को इतने गुस्से में मैंने कभी नहीं देखा था।

मैं फिर से स्कूटर पर बैठ गया। रास्ते में बारिश चालू हुई। मेरे हाथ पीछे टायर पर थे। गाँव में रास्ते में लाईट नहीं थी। तभी माँ की गाँड मेरे लण्ड को लगने लगी। मैं थोड़ा पीछे आया। लेकिन माँ भी थोड़ा पीछे आई और कहा,”ऐसे क्यों बैठा है, ठीक से मुझे पकड़ कर बैठ।”
मैंने मेरे दोनों हाथ माँ के कन्धों पर रखे, लेकिन ख़राब रास्ते के कारण हाथ छूट रहे थे।

माँ ने कहा,”अरे, पकड़, मेरी कमर को, और आराम से बैठ।” मैंने माँ के कमर पर पकड़ा, लेकिन धीरे-धीरे मेरा हाथ उसकी चूचियोँ पर लगने लगे। वाह! उसकी चूचियाँ… क्या नरम-नरम मुलायम मखमल की तरह लग रहे थे। और मेरा लण्ड भी ९० डिग्री तक गया। वो मेरी माँ की गाँड से चिपकने लगा। माँ भी थोड़ी पीछे आई। ऐसा लग रहा था कि मेरा लण्ड माँ की गाँड में घुस रहा है।

हमारा घर नज़दीक आया। हम उतर गए। क़रीब रात ११:४५ को हम घर आए। माँ ने कहा,”तू ऊपर जा… मैं आती हूँ।”
माँ ऊपर आई… वो अभी भी गुस्से में लग रही थी। मालूम नहीं, वो क्यों बीच-बीच में कुछ गालियाँ भी दे रही थी। लेकिन वो सुनाई नहीं दे रहा था।

माँ ने कहा,”आ, मैं तुझे बिस्तर लगा दूँ।” उसने उसकी चुन्नी निकाली और वह मेरे लिए बिस्तर लगाने लगी। मैं सामने खड़ा था। वह मेरे सामने झुकी और मैं वहीं ढेर हो गया। उसकी चूचियाँ इतनी दिख रहीं थीं कि मेरी आँखें बाहर आने लगीं। उसकी वो चूचियाँ देखकर मैं पागल हो उठा। उसने काली ब्रा पहन रखी थी। उसकी निप्पल भी आसानी से दिख रही थी।

तभी माँ ने अचानक देखा और कहा,”तू यहाँ सो जा।”
लेकिन मेरा ध्यान नहीं था। वो सामने झुकी… और मेरा ध्यान उसकी चूचियों पर था। वो यह बात समझ गई और ज़ोर से चिल्लाई,”रणजीत, मैंने क्या कहा ! सुनाई नहीं देता क्या? तेरा ध्यान किधर है? साले मेरी चूचियाँ देख रहा है?”

यह सुनकर मैं डर गया लेकिन मैं समझ गया कि माँ को लड़कों की भाषा मालूम है।
उसने बिस्तर लगाया और कहा… “मैं आती हूँ अभी।”
वह नीचे गई। मैंने देखा उसने हमारे बंगले के चौकीदार को कुछ कहा और ऊपर मेरे कमरे में आ गई। हम दोनों अभी बारिश की वज़ह से गीले थे। माँ मेरे कमरे में आई, दरवाज़े की कड़ी लगाई और उसने अपनी पंजाबी पोशाक की सलवार निकाल कर बिस्तर पर रख दी, मैं मेरी कमीज़ निकाल ही रहा था, इतने में माँ मेरे सामने खड़ी हो गई।

माँ ने मेरी शर्ट की कॉलर पकड़ी और मुझे घसीट कर मेरे बाथरूम में ले गई। मेरे कमरे में ही एक बाथरूम था। माँ फिर बाहर गई और मेरे कमरे की बत्ती बन्द करके मेरे सामने आ के खड़ी हो गई। उसने मेरी तरफ देखा, एक कपड़ा लिया और मेरे बाथरूम की खिड़की के शीशे पर लगा दिया। इसके पीछ वज़ह होगी कि बाथरूम में रोशनी थी और खिड़की से कोई अन्दर ना झाँक सके। फिर से उसने मेरी ओर देखा… वो अभी भी गुस्से में लग रही थी। तुरन्त ही उसने मेरे गालों पर एक ज़ोर का तमाचा मारा…. मैं माँ की तरफ ही गाल पर हाथ रख कर देख रहा था। लेकिन तुरन्त ही उसने मेरे गालों को चूमा और अचानक उसने उसके होंठ मेरे होंठों पर लगा कर मुझे चूमना चालू कर दिया… मैं थोड़ा हैरान था लेकिन मैंने भी माँ की वो बड़ी-बड़ी चूचियाँ देखीं थीं और माँ के साथ मेरे विचार गन्दे हो चुके थे। चूमते-चूमते उसने फिर से मेरी ओर देखा, वो रुक गई… फिर अपनी पूरी ताकत लगा कर उसने अपनी ही ड्रेस फाड़ डाली। फिर तुरन्त उसने मेरी कमीज़ भी खोल दी।

जब उसने अपनी ड्रेस फाड़ी… ओओओहहहहहह…. मैं तो सोच भी नहीं सकता था कि माँ की चूचियाँ इतनी बड़ी होंगीं। वो तो उसकी ब्रा से बाहर आने के लिए आतुर दिख रहीं थीं। फिर वो मुझे चूमने-चाटने लगी..

उसने मुझे चड्डी उतारने को कहा… “साले, अपनी चड्डी तो उतार !”
मैंने अपनी चड्डी उतार दी, और मैं अपनी माँ पर चढ़ गया… मैं भी उसकी चूचियों को चाटने लगा-चूमने लगा और ज़ोरों से दबाने लगा… मैंने भी माँ की ब्रा फाड़ डाली। मैं भी एकदम पागलों की तरह माँ की चूचियाँ दबाने लगा… और माँ के मुँह से आहें निकलने लगीं… “आआआआआ ओओओओओओ ईईईमममम ओओओओओ…. साआआआलेएएएए आआआआआ… ओओओओईईईईएएए”। इतने में उसने मुझे धक्का दिया और एक कोने में छोटी बोतल पड़ी थी उसमें उसने साबुन का पानी बनाया और शावर चालू किया और कहा… “मैं जैसा बोलती हूँ… वैसा ही कर।” वह पूरी तरह से ज़मीन पर झुकी और दोनों हाथों से अपनी गाँड को फैलाया और कहा… “वो पानी मेरी गाँड में डाल।”

मैंने वैसा ही किया। साबुन का पानी माँ की गाँड में डाला। माँ उठी और मेरे लंड को पकड़ा और साबुन लगाया। दीवार की तरफ मुँह करके खड़ी हुई और कहा,”साले, भँड़वे, चल तेरा लंड अब मेरी गाँड में घुसा।” जैसा आप पहले पढ़ चुके हैं कि मेरी माँ कभी-कभी गालियाँ बहुत देती है। मैंने मेरा लंड माँ की गाँड पर रखा और ड़ोर का झटका मार दिया।

माँ चिल्लाई,”आआआआ म्म्म्मममममउउऊऊऊऊऊऊ… आआआआ, साले भँड़वे बता तो सही तू डाल रहा है”

साबुन की वज़ह से मेरा लंड पहले ही आधे से अधिक घुस गया, और मैं भी माँ को ज़ोरों के झटके देने लगा। माँ चिल्लाई… “साले, भँड़वे… आआआ… उउउऊऊऊऊ… उईईईईई….. आआआआ”

मैं भी थोड़ा रुक गया।

माँ बोली,”दर्द होता है, इसका मतलब यह नहीं कि मज़ा नहीं आताआआआआआ… मार और ज़ोर से मार… बहुत मज़ा आता है… भँड़वे बहुत सालों के बाद मैं आज चुदाई के मज़े ले रही हूँ…. आआआआईईईई आआईईईईईई… आआउउऊऊऊऊऊ…. मार… मार…. मार… आआआआ”
वो भी ज़ोरों से कमर हिला कर मुझे साथ दे रही थी और मेरे झटके एकदम तूफ़ानी हो रहे थे। मेरा क़द ५.५ और माँ का ५… हम खड़े-खड़े ही चोद रहे थे… उसकी गाँड मेरी तरफ, मैं उसकी गाँड मार रहा था… उसका मुँह उस तरफ और हाथ दीवार पर थे… मैं एक हाथ की ऊँगली उसकी चूत में डाल रहा था.. और दूसरी ओर दूसरे हाथ से उसकी चूचियाँ दबा रहा था।

तभी उसने मेरी तरफ मुँह किया और एक हाथ से मेरे गाल पकड़े और मेरे होंठों पर उसके होंठ लगाए। हम कामसूत्र के एक आसन में खड़े थे। वह भी मेरे होंठों को चूम कर बोली… “तू… थोड़ी देर पहले मेरी चूचियाँ देख रहा था ना… मादरचोओओओओओदददद… हाय रे तू… मैं अभी तुझे पूरा मादरचोद बनाऊँगीईईई… .आआआ…”

तभी मैं माँ को बोला… “आज इतने गुस्से में क्यों हो?”

माँ बोली… “साले… सब मर्द एक जैसे ही होते हैं। आआईईई उउओओओओउउऊऊऊ… जानता है… जब हम फार्म-हाऊस पर गए… ओओईईईई…. मैंने क्या देखा… खिड़कीईईईई…ईईई सेएएए…”

मैं एक तरफ झटके दे रहा था इसलिए माँ बीच-बीच में ऐसी आवाज़ें निकालती हुई बात कर रही थी।
मैंने पूछा “क्या देखा तूने?”

माँ ने कहा,”तेरा बाप किसी और औरत को चोद रहा था। ईईई ओओओओओ…. आआआआ… मैं हमेशा इन्तज़ार करती थी… अब मुझे समझ आया … वो बाहर चोद लेता है… आआआ… ईईईई…. ओओओओओओ”

मैं रुक गया। वह बोली “तू रुक मत… चोद मुझे भँड़वे… अपनी माँ को चोद। आज से तेरी माँ… हमेशा के लिए तेरी हो गई है। आज़…”
मैंने चोदना चालू कर दिया, माँ कहती रही – “ओओओआआआआईईईम्म्म तू ही मेरा सामान है…. आआओओओओईईईम्म्म्मममम… अच्छा लग रहा है।”

तभी मैंने माँ की गाँड में ओर ज़ोर का झटका मारा… वो भी उसकी गाँड ज़ोरों से आगे-पीछे हिला रही थी… आख़िर में मैंने ज़ोर का झटका दिया और मेरे लंड का पानी माँ की गाँड में डाल दिया… माँ चिल्लाई… “आआआओओओओओम्म्म्म्ममम ईईईईईई… कितना पानी है तेरे में…. खत्म ही नहीं हो रहा है। आआउउऊऊऊ… क्या मस्त लग रहा है… साआआआला मादरचोद… सही चोदा तूने मुझे।”

थोड़ी देर हम एक-दूसरे से ऐसे ही चिपके रहे और फिर पलंग पर चले गए और सो गए।
थोड़ी देर के बाद मेरी नींद खुली… माँ मेरे पास ही सोई थी। हम दोनों अभी भी नंगे ही थे। मैं माँ की चूत में ऊँगली देने लगा। तभी माँ की नींद खुली और वो बोली,”क्या फिर से चोदेगा?”

मैंने कहा,”मुझे तेरी चूत चाहिए, तेरी गाँड तो मिल गई, लेकिन तेरी चूत चाहिए…”
और फिर से उसकी चूत में ऊँगली डालने लगा, उसे सहलाने लगा। मुझसे नियंत्रण नहीं हुआ। मैंने माँ के दोनों पाँव ऊपर किए और मेरा लंड माँ की चूत पर रखा और ज़ोर से धक्का मारने लगा। मैंने झटके देना चालू किया। तभी माँ भी कमर हिला कर मुझे साथ देने लगी। मेरे झटके बढ़ने लगे… माँ चिल्लाने लगी… “आआआहहहह चोददद.. और चोद.. फाड़ डाल मेरी चूत… तेरे बाप ने तो कभी चोदा नहीं… लेकिन तू चोद… और चोद… मज़े ले मेरीईईईई चूत के… आआआओओओओउउऊऊऊ… ईईईई… और तेज़…., और तेज…, आआआआआआईईईमईईईईईओओआआआ… आआआआआ… ओओओओओ….”

माँ भी ज़ोरों से कमर हिलाने लगी और मैं माँ की चूचियों और ज़ोरों से दबा रहा था। माँ बोली “चोद रे… मादरचोद, और चोद… दबा मेरी चूचियाँ… और दबा… और चाट और काट मेरी चूचियों को… और उन्हें बड़े कर दे, ताकि वे मेरी ब्लाऊज़ से बाहर आ जाएँ। दबा और दबा… चल डाल पानी अब… भर डाल अपनी माँ की चूत… पानी से… आआओओओओ… तेरे गरम पानी से…. आआआओओओ…”

तभी मैंने ज़ोर का झटका दिया और मेरे लंड का पानी माँ की चूत में डाल दिया। माँ चिल्लाई… “आआआ… ईईई…. क्याआआआ गरम पानी है…. जैसे असली जवानी… आज से तू मेरा बेटा नहीं… मेरा ठोकया है…. आज से तू मुझे ठोकेगा… आआआओओओईईईई… क्या पानी है… सालों बाद मिलाआआआआ…. आज के बाद अच्छी हो गई… तेरे पाप उस रण्डी के साथ गए… लेकिन उनकी ही वज़ह से मुझे मेरा ठोकया मिल गया…” आज से तू ही मुझे ठोकेगा…”

थोड़े दिनों के बाद मैं शहर चला गया और मेरे कॉलेज में रम गया। माँ और मैं छुट्टियों की प्रतीक्षा करते, और मौक़ा मिलते ही हम एक-दूसरे की चुदाई करते।
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06-08-2021, 12:45 PM,
#26
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
पलंग तोड़ कबड्डी और पलंग पोलो

मैं बिहार के एक गाँव का हूँ।
पुणे में, इंजिनियरिंग कर रहा हूँ।
उम्र 22 साल, रंग गोरा और मजबूत कद काठी।
सेक्स के बारे में, उस समय मैं ज़्यादा कुछ नहीं जानता था।
बस कभी कभार पेड़ पर, झाड़ियों में छुप कर गाँव की लड़कियों और औरतों को नहाते और उनको अपनी छातियों को मलते देखा है।
मेरी गाँव में, काफ़ी लंबी चौड़ी जमींदारी है।
बड़ी सी हवेली है। नौकर चाकर।
घर में, वैसे तो कई लोग हैं। पर, मुख्य हैं – मेरे पापा, माँ, चाचा और चाची।
राघव, हमारी हवेली का मुख्य नौकर है और उसकी पत्नी, जमुना मुख्य नौकरानी।
मेरे पापा, करीब 52 के होंगे और माँ करीब 48 की।
मेरा जन्म, इस हवेली में हुआ है और यहीं पर मैंने अपना पूरा बचपन और जवानी के कुछ साल बिताए हैं।
राघव की उम्र, तकरीबन 42 की होगी और जमुना की करीब 36–37 की।
उनकी बेटी श्रुति की उम्र, तकरीबन 17-18 की होगी। जो की, मेरे से करीब 5 साल छोटी थी।
बचपन में, श्रुति मेरे साथ ही ज़्यादातर रहती थी।
मैं उसे पढ़ाता था और हम साथ में खेला भी करते थे।
हमारा पूरा परिवार, राघव और जमुना को बहुत मानता था।
मैं तांगे पर बैठा था और तांगा, अपनी रफ़्तार से दौड़ रहा था।
मेरे गाँव का इलाक़ा, अभी भी काफ़ी पिछड़ा हुआ है और रास्ते की हालत तो बहुत ही खराब थी।
जैसे तैसे, मैं अपने गाँव के करीब पहुँचा।
यहाँ से मुझे, करीब पाँच किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी थी।
शाम हो आई थी।
मैंने जल्दी जल्दी, चलना शुरू कर दिया।
गाँव पहुँचते पहुँचते, रात हो गई थी।

मेरे घर का दरवाजा, खुला हुआ था।
मुझे ताजूब नहीं हुआ क्योंकि मेरे परिवार का यहाँ काफ़ी दबदबा है।
मैं अंदर घुसा और सोच रहा थे की सब कहाँ गये और तभी मुझे, श्रुति दिखाई पड़ी।
मैंने उसको आवाज़ लगाई।
वो तो एकदम से हड़बड़ा गई और खुशी से दौड़ कर, मेरे सीने से आ लगी।
उसने मुझे, अपने बाहों में भर लिया।
मैंने भी उसको अपनी बाहों में भर कर, ऊपर उठा लिया और उसे घुमाने लगा।
वो डर गई और नीचे उतारने की ज़िद करने लगी।
मैंने उसकी एक ना सुनी और उसे घूमता ही रहा।
तभी एकदम अचानक से, मुझे उसकी “जवानी” का एहसास हुआ।
एकदम से गदराई हुई छाती, मेरे सीने से दबी हुई थी।
एक करेंट सा लगा, मुझे।
रोशनी हल्की थी, इसलिए मैं चाह कर भी उसकी चूचियाँ नहीं देख पाया पर देखने की क्या ज़रूरत थी।
मैं उसके बूब्स का दबाव, भली भाँति समझ रहा था।
मैंने धीरे से, श्रुति को उतार दिया।
श्रुति खड़ी होकर, अपनी उखड़ी हुई साँस को व्यवस्थित करने लगी।
मैं उस साधारण रोशनी में भी, उसके सीने के उतार चढ़ाव को देख रहा था।
एक मिनट बाद, वो मेरी तरफ झपटी और मेरे सीने पे मुक्के मारने लगी।
मैं हंसता हुआ, उसकी तरफ लपका तो वो भागने लगी।
मैंने पीछे से, उसको दबोच लिया।
वो, हंस रही थी।
मुझे उसकी निश्चल हँसी, बहुत ही प्यारी लगी लेकिन मेरे मन में “शैतान” जागने लगा था।
जब मैंने उसको दबोचा तो जान बुझ कर, मैं उसके पीछे हो गया और पीछे से ही उसको अपने बाहों के घेरे में ले लिया।
बचपन के साथी थे, हम इसलिए उसको कोई एतराज नहीं था।
ऐसा, मैं सोच रहा था।
मैंने धीरे से, अपना उल्टा हाथ उसके सीधे मम्मे पर रख दिया और बहुत ही हल्के से दबा भी दिया।
हे भगवान!! मैंने कभी भी सोचा ना था की लौंडिया की चूची दबाने में, इतना मज़ा आता है।
मेरे मुँह से एक सिसकारी, निकलते निकलते रह गई।
मैंने उसे यूँ ही दबाए हुए पूछा – घर के सब लोग, कहाँ गये हैं.. !!
उसने उसी मासूमियत से जवाब दिया की सब लोग पास के गाँव में शादी में गये हैं और घर पर उसके माँ और पिताजी के अलावा और कोई नहीं है.. !!
बात करते हुए, मैं उसकी चूची को सहला रहा था।
वो घाघरा चोली में थी और उसने कोई ब्रा नहीं पहनी थी।
मैं बता नहीं सकता, साहब की मैं कौन से आसमान पर उड़ रहा था।

उसकी मस्त चूची का ये एहसास ही, मुझे पागल किए दे रही थी।

पर मैं हैरान था की उसकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया क्यूँ नहीं हो रही है।
हम आँगन में खड़े थे और मैं बहुत हल्के हल्के, उसकी चूचियों को सहला रहा था और वो हंस हंस के मुझसे बात किए जा रही थी।
उसने खुद को मुझसे छुड़ाने की ज़रा भी कोशिश नहीं की।
मुझे एक झटका सा लगा।
क्या श्रुति एकदम इनोसेंट (मासूम) है और उसे सेक्स के बारे में कुछ भी नहीं पता।
मेरे मन ने मुझे धिक्कारा और मैं एक दम से, जैसे होश में आया और श्रुति को छोड़ दिया।
फिर उसने मेरा सूटकेस उठाया और हम दोनों, मेरे कमरे की तरफ चल पड़े।
नहा धो कर, मैंने शॉर्ट और बनियान पहन लिया और अपने कमरे की खिड़की पर खड़ा हो गया।
हमारे गाँव में लाइट कम ही आती है, इसलिए लालटेन से ही ज़्यादातर काम होता है।
बरामदे की लालटेन की रोशनी आँगन में पड़ रही थी और चाँद की रोशनी भी।
तभी मैंने जमुना को, आँगन में आते हुए देखा।
उसके हाथ में, कुछ सामान था।
वो सामान को एक तरफ रख कर खड़ी हुई थी की आँगन में, मेरे चाचा ने प्रवेश किया।
चाचा – क्या रे, जमुना.. !! भैया भाभी, सब आए की नहीं.. !!
जमुना – कहाँ मालिक, अभी कहाँ.. !! उनको तो लौटने में, काफ़ी देर हो जाएगी.. !!
चाचा – और राघव.. !!
जमुना – वो तो शहर गये हैं.. !! कुछ कोर्ट का काम था.. !! बड़े मालिक ने भेजा है.. !! शायद, आज ना आ पाए.. !!
चाचा – हूँ.. !! तो फिर आज पूरे घर में कोई नहीं है.. !!
जमुना – जी मालिक.. !!
चाचा – अच्छा, ज़रा पानी पिला दे.. !!
मैं अपनी खिड़की पर ही खड़ा था, जो की दूसरी मंज़िल पर है।
उन दोनों को ही, मेरे आगमन का पता नहीं था।
चाचा खटिया पर बैठ कर, अपने मूँछो पर ताव दे रहे थे।
अचानक, वो उठे और उन्होंने धीरे से दरवाजा बंद कर दिया।
उनकी ये हरकत, मुझे बड़ी अजीब लगी।
दरवाज़ा बंद करने की क्या ज़रूरत थी।
मेरा माथा ठनका।
मैं कुछ सोच पता इसके पहले ही, जमुना एक प्लेट में गुड और जग में पानी ले कर आई।
चाचा ने पानी पिया और उठ खड़े हुए।
जमुना जैसे ही जग लेकर घूमी, चाचा ने उसका हाथ पकड़ लिया।
कहानी को बीच में रोकते हुए, मैं जमुना के बारे मैं कुछ बता दूँ।

एकदम, “मस्त माल” है।
5 फीट 4 इंच की लंबाई, मेहनत कश शरीर, पतली कमर, भरा पूरा सीना – 36 साइज़। एकदम से उठाव लिया हुआ, मानो उसके स्तन आपको चुनौती दे रहे हो की आओ और ध्वंस कर दो, इन गगनचुंबी पर्वत की चोटियों को।
भारी भारी गाण्ड, मानो दो बड़े बड़े खरबूजे।
जब चलती है तो गाँव वालों में, हलचल मच जाती है।
सारे गाँव वाले राघव से जलते थे की साले ने क्या तक़दीर पाई है।
मस्त चोदता होगा, यह जमुना को और जमुना भी इसे निहाल कर देती होगी।
मैंने खुद कई बार लोगों को उसकी छातियों की तरफ या फिर, उसके गाण्ड की तरफ ललचाई नज़रों से घूरते हुए देखा है।
मैं तब, इसका मतलब नहीं जानता था।
खैर, चाचा के इस बर्ताव से जमुना हड़बड़ा गई।
चाचा ने उसे अपनी तरफ खींचा तो वो जैसे होश में आए।
जमुना – मालिक, ये आप क्या कर रही हैं.. !!
चाचा – क्यों क्या हुआ.. !! तू मेरी नौकरानी है.. !! तुझे मुझे हर तरह से, खुश रखना चाहिए.. !!
जमुना – नहीं मालिक.. !! मैं और किसी की बीवी हूँ.. !!
चाचा – साली, रांड़.. !! नखरे मारती है.. !! सालों से, कम से कम 100 बार तुझे चोद चुका हूँ.. !! कौन जाने, श्रुति मेरी बेटी है या राघव की.. !!
जमुना ने ठहाका लगाया और बोली – अरे मालिक, आपको तो गुस्सा आ गया.. !! आओ, मेरे मालिक मेरा दूध पिलो और अपना दिमाग़ ठंडा करो.. !! असल में, मैं तो खुद कब से इस घड़ी का इंतज़ार कर रही थी की किसी दिन यह घर खाली मिले और श्रुति के बापू भी घर में ना रहें.. !! उस दिन आप के साथ, “पलंग कबड्डी” खेला जाए.. !! पर मालिक, मैं औरत हूँ.. !! थोड़ा नखरा दिखना तो बनता है.. !! आपने तो मुझे रांड़ बना दिया.. !! वैसे, सच में मालिक आप बड़ा मस्त चोदते हैं.. !! मैं तो आपके चोदने के बाद, 2–3 दिन श्रुति के बापू को छूने भी नहीं देती.. !! इतना “नशा” रहता है, आपसे चुद कर.. !!
इतना कहते कहते, जमुना ने चाचा की धोती में हाथ डाल दिया।
चाचा भी उसकी दोनों मस्त चूचियों पर पिल पड़े और ज़ोर ज़ोर से, उसे दबाने और मसलने लगे।
जमुना ने चाचा का हथोड़ा बाहर निकाला और उसे ज़ोर से चूमने लगी।
मैं खिड़की पर खड़ा सब देख रहा था और मन ही मन, सोच रहा था की कैसे इस जमुना को चोदा जाए।

अगर मौका मिले तो उसको “ब्लैक मेल” किया जा सकता है।
घर पर शायद संभव ना हो सके पर बहाने से, उसे खेत में ले जाकर तो चोद ही सकते हैं।
अभी भी साली, क्या मस्त माल लगती है।
मेरे मुँह में, जैसे पानी आ गया।
मेरा लण्ड, हरकत करने लगा था।
तभी जमुना ने, चाचा से कहा – मालिक, आज तो घर में कोई नहीं है.. !! क्यों ना आज, कमरे में आराम से “चुदाई चुदाई” खेले.. !! हर बार, आप मुझे खेत में ही चोदे हैं.. !! वो भी हड़बड़ी में.. !! आज मैं, आपको पूरा सुख देना चाहती हूँ और पूरा सुख लेना भी चाहती हूँ.. !!
चाचा भी फ़ौरन तैयार हो गये और जमुना को गोद में उठा कर, अपने कमरे की तरफ चल दिए।
मैं थोड़ा दुखी हो गया क्यों की अब ये चुदाई देखने को नहीं मिलेगी।
चाचा का कमरा, आँगन के पास निचली मंज़िल में था।
मेरे कमरे के बाहर, छत के दूसरे कोने में दो कमरे और एक बाथरूम बना हुआ था।
राघव का परिवार, उसी में रहता था।
मैंने श्रुति को अपने कमरे की तरफ, आते हुए सुना।
मैंने झट से अपना लण्ड शॉर्ट के अंदर किया और बाहर की तरफ आया।
श्रुति सामने से, आ रही थी।
मैं तुरंत दरवाजे के पीछे छुप गया और जैसे ही, श्रुति मेरे कमरे के सामने से निकली मैंने पीछे से उसको दबोच लिया।
मैं सावधान था इसलिए मेरा एक हाथ, उसके मुँह पर और एक हाथ उसके सीने पर रखा और ज़ोर से उसकी लेफ्ट चूची को दबा दिया।
श्रुति के मुँह से एक घुट घुटि चीख निकल गई पर मुँह पे हाथ होने की वजह से, चीख बाहर नहीं निकली।
जब उसने मुझे देखा तो राहत की साँस लेते हुए, बोली – छोटे मालिक.. !! अपने तो मुझे डरा ही दिया था.. !!
मैने उसके मुँह से अपना हाथ हटाया और फिर पीछे से दोनों हाथ, उसकी दो चूचियों पर रखा और ज़ोर से दबा दिया।
वो हड़बड़ा गई और बोली – क्या करते हो.. !! दर्द होता है.. !!

मैंने फिर से, उसकी दोनों चूचियों को ज़ोर से दबाया।
उसने सवालिया निगाहों से मुझे देखा और कहा – आज, आपको हुआ क्या है.. !! ऐसे भी कोई दबाता है क्या.. !! मुझे लगता नहीं क्या.. !! और झट से, मेरे से दूर चली गई।
मेरे मुँह में, पानी भरा हुआ था।
क्या मस्त चुचे थे, यार।
एकदम.. !! एकदम.. !! अब क्या बोलूं। आप समझ जाइए।
मेरा मन तो उसका दूध पीने का कर रहा था।
लेकिन, उसकी बातों ने ये सिद्ध कर दिया था की वो एकदम भोली है और सेक्स के बारे में कुछ नहीं जानती।
मुझे लगा की मेरी किस्मत खुलने वाली है।
आज तो मैं इसको, चोद कर ही रहूँगा।
ज़्यादा से ज़्यादा, ये अपनी माँ से शिकायत करेगी और मेरे पास जमुना को काबू में रखने का “तुरुप का इक्का” तो था ही।
साली, नीचे कमरे में चाचा से चुदवाने की तैयारी कर रही थी।
मैंने श्रुति से पूछा – तुझे दुख रहा है.. !!
श्रुति – हाँ.. !!
मैं – ला, अच्छे से दबा दूँ.. !! नहीं तो हमेशा, ऐसा ही दुखेगा.. !!
श्रुति झट से, मेरे पास आ गई।
मैंने उसकी छातियों को, हौले हौले दबाया।
वो कुछ ना बोली, बस ऐसे ही खड़ी रही।
कोई “एक्सप्रेशन” भी नहीं था, चेहरे पर।
मुझे पूरा विश्वास हो गया की सचमुच, उसे कुछ पता नहीं है।
मैंने एक प्लान बनाया और उससे बोला – एक मिनट, मेरे कमरे में बैठ और मैं अभी आता हूँ.. !!
मैं नीचे उतरा।
मुझे पता ही था की चाचा और जमुनिया के अलावा, घर मैं सिर्फ़ मैं और श्रुति ही थे।
चाचा और जमुनिया की लापरवाही की मुझे पूरी आशा थी इसलिए मैंने बगल के कमरे में जा कर, दरवाजे के की होल से अंदर झाँका।
सिर्फ़ चाचा ही दिख रही थे और वो हाथ में ग्लास ले कर, पलंग पर बैठे थे।
जमुनिया, शायद नहाने गई थी।
मैं घूम कर बाथरूम के पीछे गया और खिड़की के साइड से झाँक कर देखा तो मेरा अंदाज़ा सही निकला।
जमुनिया, पूरी नंगी हो कर नहा रही थी।
बाथरूम में, कमरे की रोशनी आ रही थी।
वो पर्याप्त तो नहीं थी पर फिर भी मैं जमुनिया को उस रूप मैं देख कर पगला गया।
हाय!! क्या मस्त लग रही थी।
पानी उसके जिस्म पर गिर रहा था और पूरा बदन एकदम “मलाई मक्खन” की तरह दिख रहा था।
वो बड़ी बड़ी चूचियाँ, जो आज तक सबके लिए सपना थीं, मेरे आँखों के सामने “नंगी” थीं।

बड़ी मुश्किल से, मैंने अपने आप को संभाला और और आगे बढ़ कर पीछे के स्टोर रूम में चला गया।
खोजते खोजते, मुझे दरवाजे में एक बड़ा छेद दिखाई दिया।
आँखें गड़ाई तो अंदर चाचा के कमरे का पूरा सीन दिखाई पड़ रहा था।
मेरी इच्छा तो वही रुक कर, चाचा से जमुनिया की चुदाई की पूरी फिल्म देखने का था पर ऊपर श्रुति बैठी थी।
उसको चोदने की इच्छा, इस फिल्म से ज़्यादा मायने रखती थी।
मैं ये सोच रहा था की श्रुति को कैसे पटाया जाए।
वो तो सेक्स के बारे में, कुछ भी नहीं जानती थी।
जब ऊपर पहुँचा तो देखा, वो मेरे कमरे पर कुर्सी पर बैठी है।
मैंने उससे, बात चीत शुरू की।
मैं – श्रुति और सुना.. !! आज कल, क्या हो रहा है.. !!
श्रुति – कुछ नहीं.. !! बस, ऐसे ही.. !!
मैं – तो सारा दिन बस मटरगस्ति हो रही है.. !! पढ़ाई लिखाई का क्या हुआ.. !!
श्रुति – नहीं.. !! अब, मैं स्कूल नहीं जाती.. !! घर पर ही रहती हूँ.. !!
मैं धीरे से उसके पीछे खड़ा हो गया और उसके कंधों पर हाथ रख कर बोला – और सेक्स.. !! कभी सेक्स किया है.. !!
श्रुति – क्या बोले.. !! मैं कुछ समझी नहीं.. !!
मैं – तुझे सेक्स के बारे में, कुछ नहीं पता.. !!
श्रुति – नहीं.. !! ई क्या होता है.. !!
मैं – वो जिंदगी का सबसे बड़ा आनंद होता है.. !! अच्छा, एक बात बता.. !! तेरे माँ बापू, तेरी शादी की बात नहीं करते.. !!
श्रुति (शरमाते हुए) – हाँ करते हैं ना.. !! जब तब, मुझे टोकते रहते हैं.. !! ये मत करो, वो मत करो.. !! अब तेरी शादी होने वाली है.. !! वहाँ ससुराल में, यही सब करेगी क्या.. !! ऐसे.. !! मेरे को तो, उसकी कोई बात ही समझ में नहीं आती है.. !!
मैंने उसे धीरे से अपनी ओर खींचा और उसे अपने बाहों में भर कर बोला – तू तो बहुत भोली है.. !!
इतनी बड़ी हो गई पर है बिल्कुल बच्ची ही.. !!
वो मेरे से चिटक गई और गुस्से से बोली – मैं बच्ची नहीं हूँ.. !!
मैंने कहा – अच्छा.. !! और हँसने लगा।
तो उसने तुरंत साँस भर कर अपना सीना फूला लिया और बोली – देखो.. !! क्या मैं बच्ची लगती हूँ.. !! नहीं ना.. !! मैं अब बड़ी हो गई हूँ.. !!
मैंने हंसते हंसते, उसको अपनी बाहों में भर लिया और उसका सिर चूम लिया।
मैंने फिर धीरे धीरे उसके होठों पर एक छोटा सा किस किया तो वो बोली – छोड़िए ना.. !! क्या करते हो.. !!
मैंने उससे कहा – तुम बड़ी तो हो गई हो.. !! पर, अब तुम्हें बड़े वाले काम भी करने होंगे.. !! वो मेरी तरफ देखने लगी.. !!
मैंने पूछा – सच बता, कभी क्या तूने अपने माँ पापा को “पलंग पोलो” खेलते देखा है.. !!
श्रुति – क्या.. !! मैं समझी नहीं.. !!
मैं – तेरे माँ पापा, रात को साथ सोते हैं.. !!
श्रुति – हाँ.. !!
मैं – तो फिर, तू कहाँ सोती है.. !!
श्रुति – बगल वाले, कमरे में.. !!
मैं – तूने कभी रात को माँ पापा के कमरे में उनको बिना बताए, झाँक कर देखा है.. !!
श्रुति – नहीं.. !! मैं जब रात को सोती हूँ तो फिर सुबह ही मेरी नींद खुलती है, वो भी माँ के जगाने पर.. !! बहुत चिल्लाती है, वो.. !! कहती है की मैं एकदम बेहोश सोती हूँ.. !! रात को कोई अगर, मेरा गला भी काट जाएगा तो मुझे पता भी नहीं चलेगा.. !! और वो हंसने लगी।
मैंने अपना जाल फेंका – तू जानना चाहेगी की रात को तेरे सोने के बाद, तेरे माँ पापा कैसे “पलंग पोलो” खेलते हैं.. !!
श्रुति – सच में, आप मुझे दिखाएँगें.. !!
मैं – हाँ!! पर एक शर्त है की तू एकदम मुँह पे ताला लगा कर रहेगी.. !! चाहे कुछ भी हो जाए, एक आवाज़ नहीं निकलेगी.. !!
श्रुति – ठीक है.. !!
मैं – खा, मेरी कसम.. !!
श्रुति (झिझकते हुए) – आपकी कसम.. !!
मैं श्रुति को लेकर, नीचे उतरा।
मैंने इशारा कर दिया था की कोई आवाज़ ना हो।
मैं श्रुति को, उसकी “माँ की चुदाई” दिखाने ले जा रहा था।
उसके बाद, मैं उसको आज की रात ही भरपूर चोद कर युवती से औरत बनाने वाला था।
दबे पाँव, हम स्टोर रूम में आ गये।
मैंने छेद में आँख लगाई तो देखा, जमुनिया एकदम नंगी हो कर चाचा के लिए जाम बना रही थी और चाचा बिस्तर पर बैठ कर, अपने हथियार में धार दे रहे थे।
जमुनिया के हाथ से ग्लास लेकर, चाचा ने साइड टेबल पर रखा और जमुनिया को अपनी तरफ खींच लिया।
जमुनिया मुस्कुराते हुए, उनके पास आ गई।
चाचा ने अपने दोनों हाथों से उसके दोनों “अमृत कलश” को थाम लिया और उसे सहलाते हुआ बोले – आज तो बहुत मज़ा आएगा.. !! लगता है, आज तेरी जवानी फिर से वापस आ गई है, जमुना.. !! मां कसम, बड़ा मज़ा आ रहा है.. !!
फिर दोनों, एक दूसरे के लिप्स चूसने लगे।
मैं धीरे से हटा और श्रुति को भीतर देखने का इशारा किया।
श्रुति ने छेद में आँख डाल कर, देखना शुरू किया।
मैं तैयार था।
जैसे ही, श्रुति ने भीतर देखा उसकी तो जैसे साँस ही रुक गई।
वो झटके से ऊपर उठी तो मैंने उसके मुँह पर हाथ रख दिया और स्टोर रूम से बाहर ले आया।
श्रुति के पैरों मैं जैसे जान ही नहीं रह गई थी।
मैं उसे खींचता हुआ, थोड़ी दूर पर ले गया।
फिर, मैंने उसके मुँह से हाथ हटाया।

उसने बड़ी अजीब सी नज़रों से मुझे देखा और कहा – ये क्या हो रहा था, भीतर.. !! माँ, कैसे मालिक के सामने ऐसे खड़ी थी और मालिक ये क्या कर रहे थे.. !!
अब मैं, वाकई दंग रह गया।
एक जवान गाँव की 16-17 साल की लड़की और उसे सेक्स के बारे में, कुछ भी नहीं पता।
सच में.. !! ???
मैंने श्रुति के चेहरे को अपने दोनों हाथों में भर कर उसके हाथ पर एक चुंबन लगा दिया और बोला – इसे ही “पलंग पोलो” कहते हैं.. !!
वो दोनों “जवानी का खेल” खेल रहे हैं। जो की हर मर्द एक औरत के साथ खेलता है।
तुम भी खेलोगी, एक दिन और तुम्हें बहुत ही मज़ा आएगा।
ये इंसान की जिंदगी का, सबसे बड़ा आनंद होता है।
और देखना चाहोगी.. !! – मैंने पूछा।
वैसे तुम्हें बता दूँ अभी तो ये बस शुरुआत ही है.. !! इस खेल में, अभी दोनों खिलाड़ी बड़े बड़े पैंतरे दिखाएँगें.. !!
श्रुति के चेहरे पर, अजीब सा “भाव” था।
वो आगे बढ़ी और फिर से, छेद में आँख गड़ा कर देखने लगी।
चाचा पलंग पर पैर फैला कर बैठे थे और जमुनिया का स्तन चूस रहे थे।
एक हाथ में, एक स्तन दबोचे हुए थे और दूसरे हाथ से, उसकी गाण्ड सहला रहे थे।
उनका मुँह, दूध पीने में व्यस्त था।
जमुनिया, अपने दोनों हाथों से चाचा का लण्ड सहला रही थी।
फिर उसने अपने आप को छुड़ाया और चाचा के लौड़े पर टूट पड़ी।
उसने पूरा लण्ड अपने मुँह में ले लिया और “चुसूक चुसूक” चूसने लगी, जैसे जिंदगी में पहली बार, लोलीपोप चूस रही हो।
चाचा की आँखें आनंद से बंद हुई जा रही थीं और उनके मुँह से आनंद की सीत्कार निकल रही थी – आह ओफफ्फ़.. !! और ज़ोर से, मेरी रानी.. !! और ज़ोर से.. !! कितना मज़ा आ रहा है.. !!
करीब पाँच मिनट तक, ये चलता रहा।
फिर मैंने श्रुति को हटाया और खुद आँख लगा के देखने लगा।

चाचा अब जमुनिया को पलंग पर लिटा कर, उसकी चूत चूस रहे थे।
तभी श्रुति ने मुझे हटाया और खुद, फिर से देखने लगी।
उसका चेहरा तमतमा रहा था और उसकी साँसें तेज हो रही थीं।
मैं उसके सीने के उतार चढ़ाव को बखूबी महसूस कर रहा था।
Reply
06-08-2021, 12:45 PM,
#27
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
जमुनिया भी आनंद में सरोवार थी और हल्के हल्के सिसकारियाँ ले रही थी – मालिक क क क, बहुत मज़ा जा आ रहा है.. !! आह आँह.. !! फूह यान्ह.. !! आ आ आ आ आ आ आ आ उंह.. !! आआ ज़ोर से चूसो ना.. !! ये मादार चोद, राघव तो कभी भी मेरी चूत नहीं चाटता है.. !! इयान्ह ह ह ह ह ह आह आ आ आ आह ह हा.. !! आप ना मिले होते तो, मैं इस आनंद से वंचित ही रह जाती.. !! ओ मेरी माँ मज़ा गया, मेरे मालिक.. !! उफ्फ मा ह उंह आह.. !! आप मुझे, अपने पास ही रख लीजिए.. !! मैं आपकी दासी बन के रहूंगी, मेरे मालिक.. !! और ज़ोर से.. !! हाँ.. !! और ज़ोर से.. !! और फिर, वो चाचा के मुँह मे ही झड़ गई।
झर झर, जैसे झरना बहता है उसका रस वैसे ही फुट पड़ा और चाचा ने एक बूँद भी बाहर जाने नहीं दी।
सब का सब ही, चाट गये।
मैं इस बीच मौका देख कर, श्रुति के पीछे से चिपक कर खड़ा हो गया था।
श्रुति थोड़ा हिली, पर मैं पीछे से ना हटा।
श्रुति ने फिर से, अपनी आँख छेद में लगा दी।
मैंने धीरे धीरे, उसकी पीठ सहलाना शुरू किया।
फिर आगे बढ़ते हुए, उसकी गर्दन भी सहलाने लगा।
मैं समझ रहा था की श्रुति की साँसे और तेज हो रही थीं।
मैंने धीरे से उसका लहंगा उठा कर, उसकी कमर तक चढ़ा दिया और उसकी गाण्ड पर हाथ फेरने लगा।
श्रुति, चिहुंक उठी और उसने गुस्से से मेरी तरफ देखा और अपना लहंगा नीचे कर लिया।
मैं भी मौके की नज़ाकत को समझते हुए, 2 मिनट के लिए चुप चाप खड़ा हो गया और श्रुति को भीतर का मज़ा लेने दिया।
अंदर चाचा और जमुना, पलंग पर पड़े हाँफ रहे थे।
फिर चाचा उठे और जमुना से चिपक गये और फिर से, उसका दूध पीने लगे।
थोड़ी देर बड़ा, उन्होंने अपना लण्ड जमुना के मुँह में पेल दिया और जमुना उसे मज़े लेकर चूसने लगी।
चाचा का हथियार तो पहले से ही तैयार था।
चाचा ने जमुना को उठाया और बिस्तर पर पटक दिया और खुद भी, जमुना के ऊपर चढ़ गये।
चाचा ने अपना हथियार सेट किया और एक झटके में उसे, जमुना की चूत में पेल दिया।
जमुना, गरगरा उठी।
ओह!! मेरे मालिक.. !! अन्म आह इस्स.. !! आह आह अहहहाहा आह अह आ आ अहहा.. !! इयै याया आ आ या अय हेया.. !! आह आह अहहाहा हहाहा आइ इह इयाः आह.. !! आ आ आ आ स स स स स स स स स.. !! इनहया याः इया या या या या या ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह.. !! उई माआअ.. !! आहा आहा अया।
चाचा ने उसके दूध को बेदर्दी से निचोड़ते हुए, धक्का लगाना शुरू कर दिया।
जमुना, सिसकारियाँ ले रही थी।

उसकी चूत तो वैसे भी गरम ही थी और ऊपर से चाचा का लण्ड, जबरदस्त धौंक रहा था।
कमरे में फूच फूच की आवाज़ गूँज रही थी।
जमुनिया अब “जल बिन मछली” की तरह, तड़प रही थी।
मेरे मालिक.. !! और ज़ोर से.. !! फाड़ दो, इसको आज.. !! चोद दो, सारी ताक़त लगा के.. !! ज़ोर लगा के, मेरी जान.. !! ज़ोर से, ज़ोर से.. !! मार डाल, मुझे.. !! छोड़ना मत और चोदो.. !! और ज़ोर से, दम लगा के.. !! आह आँह.. !! फूह यान्ह.. !! आ आ आ आ आ आ आ आ उंह.. !! इयान्ह ह ह ह ह ह आह आ आ आ आह ह हा.. !! उफ्फ मा ह उंह आह.. !!
वो बकती जा रही थी और चाचा, पेलते जा रहे थे।
चूत और लण्ड के बीच “घमासान युद्ध” हो रहा था और हम दोनों, मूक दर्शेक बन कर इस युद्ध का मज़ा ले रहे थे।
मैं अपनी मंज़िल की तरफ, धीरे धीरे बढ़ रहा था।
मैंने फिर से, श्रुति का लहंगा ऊपर उठना शुरू किया।
श्रुति की साँस धौकनी की तरह चल रही थी। लेकिन, उसने छेद से आँख नहीं हटाई।
मैंने धीरे से, उसकी गाण्ड पर हाथ रखा।
उसने, कोई पैंटी नहीं पहनी थी।
नंगी गाण्ड को छूने से, मुझे जैसे एक ज़ोर का झटका लगा।
पहली बार, किसी की गाण्ड पर हाथ रखा था।
उफ!! कितनी नरम थी, गाण्ड।
धीरे धीरे, मैंने उसको सहलाना शुरू कर दिया।
श्रुति ने इस पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया और वो अंदर की तरफ ही देखती रही।
मैं थोड़ी देर तक, गाण्ड सहलाने के बाद उसके पैरों के बीच में अपना हाथ ले गया।
एकदम से मुझे हाथ हटाना पड़ा क्योंकि वो जगह तो भट्टी की तरह दहक रही थी।
श्रुति भी थोड़ा सा मचली, पर फिर से स्थिर हो गई।
मैं धीरे धीरे, उसकी चोली की गाँठ ढीली करने लगा।
अब मेरा हाथ आराम से, उसकी चोली के भीतर जा सकता था।
मैंने एक लंबी साँस भरी और अपना हाथ धीरे धीरे, उसकी चूची की तरफ बड़ाने लगा।
मेरा लण्ड एक दम तन गया था और शॉर्ट में एक टेंट बन रहा था।
जब मेरी उंगली ने उसकी निप्पल को छुआ तो श्रुति के मुँह से, सिसकारी निकल पड़ी।
मैंने फ़ौरन उसका मुँह अपने हाथ से दबा दिया और उसके कान में फुसफुसाया – कोई आवाज़ नहीं, वरना मारे जाएँगे.. !!
अंदर चाचा ने, अपनी रफ़्तार बढ़ा दी थी।
जमुना अपने दोनों पैरो को फैला कर लेटी थी और चाचा उस पर चढ़े हुए थे।
घच घच.. !! पच पच.. !! फॅक फूच.. !! आवाज़ हो रही थी।
चाचा दे दाना दान, दे दाना दान चोद रहे थे और जमुना चीख रही थी।
वो आनंद के सागर में, पूरी तरह डूबी हुई थी।
बहुत मज़ा आ रहा है, मालिक.. !! और ज़ोर से, करो ना.. !! और फिर जमुना का जिस्म अकडने लगी वो चिल्लाई – अन्म आह इस्स.. !! आह आह अहहहाहा आह अह आ आ अहहा.. !! इयै याया आ आ या अय हेया.. !! आह आह अहहाहा हहाहा आइ इह इयाः आह.. !! आ आ आ आ स स स स स स स स स.. !! इनहया याः इया या या या या या ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह.. !! उई माआअ.. !!
चाचा, अब पूरी रफ़्तार से जमुना की चूत को रौंदने लगे।
फिर, एक साथ दोनों की साँस रुक गई और चिल्लाते हुए दोनों झड़ गये।
चाचा जमुना के ऊपर ही, निढाल हो कर गिर पड़े।
जमुना ने अपने पैरों को चाचा की कमर से लपेट लिया आर चाचा को अपनी बाहों में भर लिया और लेटे लेटे हाँफने लगे।
जमुना ने उनको एक प्यारा सा चुंबन दिया और पस्त हो कर, लेट गई।
ये सब देख कर, श्रुति की हालत खराब हो रही थी।
उसको लग रहा था की उसकी चूत में जैसे, “आग” लगी हो।
मेरा सहलाना उसको, अच्छा लग रहा था।
मैंने जब उसकी एक चूची को दबोचा तो वो तिलमिला गई और फिर जब मैंने उसके निप्पल को टच किया तो वो थरथरा गई और उठ कर खड़ी हो गई।
मेरा हाथ उसकी चूची पर ही था, मैंने हौले से उसको फिर से दबाया तो उसने मेरा हाथ हटा दिया और वहाँ से निकल गई।
वो ठीक से, चल नहीं पा रही थी।
शायद इतना सब कुछ देख कर, खुद को संभाल पाना उसके लिए संभव ना था।
मैं भी उसके पीछे पीछे, वहाँ से निकल आया।
वो सीढ़ियों पर सहारा ले कर, चढ़ रही थी।
मैं भी उसके पीछे पीछे, ऊपर चढ़ा।
वो मेरे कमरे के सामने थोड़ा रुकी और आगे बढ़ गई।
मैने सोचा – आज नहीं तो फिर कभी नहीं.. !!
उसने अभी अभी, अपनी “माँ” को चुदते देखा है।
इंसान ही तो है।
ज़रूर “गरम” हो गई होगी।
इससे अच्छा मौका, मुझे मिलने वाला नहीं था।

मैंने उसका हाथ पकड़ कर, अपनी तरफ खींचा और बिना विरोध के वो मेरी बाहों में आ गई।
मैंने उसे धकेलते हुए, अपने कमरे में ले आया और अपने बेड की तरफ धकेला।
वो मेरे बिस्तर पर, भड़भाड़ा कर गिर पड़ी।
जैसे उसमें, कोई जान ही नहीं बची हो।
मैंने उसे पानी पिलाया और उसकी तरफ देखने लगा।
वो मारे शरम के, आँखें बंद कर के लेटी हुई थी।
मैंने हिम्मत की और आगे बढ़ा।
मैंने उसकी चुचियों को उसकी चोली के ऊपर से ही सहलाने लगा।
उसने एक बार आँख खोल कर, मेरी तरफ देखा और फिर आँखें बंद कर लीं।
मेरा हौसला अब बढ़ गया।
मैंने उसे एक साइड मैं धकेला और फिर उसकी चोली की सारी डोरी खोल दी।
उसने आँखें बंद कर रखीं थीं और उसी तरह उसने अपने हाथों को आगे सीने पर बाँध लिया।
मैंने उसकी बाहों को सहलाते हुए, उसके हाथों को हाटने की कोशिश की पर उसने नहीं हटाए।
मैं मुस्काराया।
वो शर्मा रही थी।
मैंने झुक कर, उसके होंठो पर अपने होंठ रख दिए और उसे चूसने लगा।
श्रुति ने, कोई प्रतिक्रिया नहीं की।
मैंने फिर और ज़ोर से, उसके होठों को अपने होठों में दबाते हुए एक लंबा सा किस किया।
मैं उसके होंठ, ज़ोर ज़ोर से चूस रहा था।
फिर मैंने अपनी जीभ उसके होठों को ज़ोर दे कर खोलते हुए, उसके मुँह में डाल दी।
मुझे भी उसकी जीभ की हरकत महसूस हुई और फिर तो जैसे, हम एक दूसरे के होठों से ही पीने की कोशिश कर रहे थे।
मैं उसकी जीभ चूस रहा था तो कभी, वो मेरी जीभ चूस रही थी।
मैं धीरे से उसकी बगल में लेट गया और मेरे हाथ, उसके जिस्म पर चारों तरफ फेरने लगा।
मेरी साँसें गरम हो रही थी।
मैं बिल्कुल पगला गया था और श्रुति की साँस भड़क रही थी।
उसकी पहली सिसकारी सुनाई दी, मुझे – उन्म:
मैं और जोश में आ गया और ज़ोर लगा कर, उसका हाथ उसके सीने से हटा दिया और पीछे हाथ डाल कर, उसकी चोली निकाल फेंकी।
उसने झट से, अपने हाथों से अपना सीना ढँक लिया।
मैंने उसकी आँखों में आँखें डाल कर, उसका हाथ वहाँ से हटा दिया।
जैसे, एक “बिजली” सी चमकी।
उसके दोनों “अमृत कलश” मेरे सामने थे। पूरे नंगे।
मैंने उसकी आँखों में झाँका और अपने होंठ उसके गोल, गोरे, बेहद मुलायम स्तन पर गड़ा दिए।
उसकी अन्ह: निकल गई और वो – इस्स स स स स स.. !! सिसकारियाँ लेने लगी।
मेरे दोनों हाथ, उसके नग्न उरेज को मसल रहे थे।
साहब, कितना मज़ा आ रहा था की मैं बयान नहीं कर सकता।
मैं पहले तो धीरे से और फिर पागलों की तरह उसके चुचक चूसने और मसलने लगा।
श्रुति, हाँफती हुई बोली – धीरे.. !! धीरे.. !! बहुत दर्द होता है.. !!
लेकिन, मुझे होश कहाँ था।
मन कर रहा था की उसकी पूरी चूची को ही, अपने मुँह में घुसा लूँ।
उसके निप्पल, एकदम सख़्त हो गये थे।
एक “किशमिश के दाने” के बराबर पर उसे चूसने और काटने में बड़ा ही आनंद आ रहा था।
श्रुति के मुँह से लगातार सिसकारियाँ फुट रही थीं – नहीं स स स स स.. !! उन्हम्मह म म म म म.. !! आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ.. !!
उसके हाथ, मेरे बालों में घूम रहे थे और वो अपने हाथों से मेरा सिर अपने छाती में दबा रही थी।
अचानक, श्रुति ने अपने दोनों पैर ऊपर उठाए और मेरी कमर पे लपेट दिए।
उसकी साँस, धौकनी की तरह चल रही थी।
हम दोनों ही, पसीने में नहा चुके थे।
मैं धीरे धीरे, नीचे की तरफ बढ़ रहा था।
मेरे हाथ, उसके जिस्म को चूमते ही जा रहे थे।
मैं नाभि पर आ कर रुक गया।
एक छोटा सा छेद था।
नाभि का छेद, बहुत ही संवेदनशील होता है।
मैंने अपनी जीभ उस छेद में घुमाई तो श्रुति कराह उठी – उन्हम्म.. !! इनयः इस्स उफ्फ फूहस आह हह आ आ आ आह उन्म आह आ हह आह.. !!
मैं धीरे धीरे से उसकी नाभि को काट रहा था और चूस रहा था।
हम दोनों काफ़ी गरम हो चुके थे और हमारे मुँह पूरे लाल हो गये थे।
मैं फिर ऊपर आ गया और कभी उसके होठों को तो कभी उसके दूध को चूस रहा था।
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06-08-2021, 12:45 PM,
#28
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
श्रुति की कराह भी बढ़ती जा रही थी।
लेकिन वो, गाँव की “शरीफ” लड़की थी।
उसकी आँखें, अभी भी बंद थीं।
मैं उसके ऊपर से उठ पड़ा और बगल में बैठ कर चाँद की रौशनी में उसका चेहरा निहार रहा था।
वो आनंद में डूबी हुई, अपने हाथ खुद ही चबा रही थी।
मैंने धीरे से पुकारा – श्रुति.. !!
उसने अपनी आँखें खोली और मेरी तरफ देखा।
मैंने उसके चेहरे को अपने हाथों में लिया और बोला – आई लव यू.. !!
वो बोली – क्या.. !! ??
मैंने कहा – मैं तुमसे प्यार करता हूँ, श्रुति.. !!
वो एक टक मुझे ताकती रही और फिर एक झटके में उठ कर, मेरे से लिपट गई।
मैंने अपने होंठ उसकी तरफ बढ़ाए और उसने भी वही किया।
हम फिर से एक दूसरे के होठों को चूस रहे थे।
मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाली तो फ़ौरन उसने उसे अपने दांतो से दबा लिया और हल्के हल्के काटने लगी और चूसने लगी।
मैंने उसे लिटा दिया और उसके ऊपर चढ़ गया।
अपना हाथ मैंने, उसके घाघरे के ऊपर से ही उसकी चूत पर रख दिया।
वो जैसे, बिल्कुल तिलमिला गई।
मैंने महसूस किया की वो नीचे पूरी गीली हो गई है।
मैंने उसके घाघरे का नाडा खींचा तो उसने एक हल्का सा विरोध किया और अपने घाघरे को पकड़ कर लेटी रही।
मैंने फिर से कोशिश की तो वो सिर हिला कर “ना ना” करने लगी।
मैं हंस पड़ा और ज़बरदस्ती उसकी डोरी खींच दी और घाघरे को नीचे सरका दिया।
मेरे सामने “जन्न्त की गुफा का दरवाजा” दिखाई पड़ रहा था।
गुफा के बाहर हल्की हल्की झाड़ियाँ उगी हुई थीं, जो की मुलायम रेशमी बालों की थीं।
उफ्फ!!
नंगी चूत.. !!
मैंने अपना हाथ उसकी नंगी चूत पर रख दिया और धीरे धीरे रगड़ने लगा।
एक बार मैंने सोचा की अपना लण्ड उसके मुँह में दूँ पर फिर मैंने फ़ैसला किया की पहली बार है, पहले चोद ही लेता हूँ।
“चूसना चूसाना” अगली बार, कर लेंगे।
मैंने उसकी टाँगों को खोल दिया और अपनी एक उंगली, उसकी चूत में डाल दी।
नहीं गई, जनाब।
बड़ा ही तंग रास्ता था, उस जन्नत की गुफा का।
मैं उठा और तेल की शीशी ले कर, फिर से पलंग पर आ गया।
मैंने अपने लण्ड पर बढ़िया से तेल लगाया और फिर श्रुति की चूत में भी तेल लगाने लगा।
श्रुति, कसमसा रही थी।
मैंने निशाना लगाया और धीरे से, अपने लण्ड को उसकी चूत पर रख कर सहलाने लगा।
श्रुति, अब घबराने लगी थी।
मैंने धीरे से पुश किया।
मैं जानता था की इसकी चूत बहुत ही ज़्यादा टाइट होगी और अगर, मैंने ज़ोर ज़बरदस्ती की तो ये चिल्लाने लगेगी, दर्द के मारे।
फिर तो, बवाल होने की पूरी संभावना थी।
नीचे चाचा और जमुना चोदा चादी करने के बाद, एक ही बिस्तर में एक दूसरे से गुथम गुत्था सो रहे थे।
अगर, वो उठ जाते तो मेरी तो खैर नहीं थी।
इसलिए, मैंने श्रुति से कहा – श्रुति, अब मैं तुझे चोदने जा रहा हूँ.. !! मेरी बात ध्यान से सुनो.. !! जब मैं अपना लण्ड तुम्हारी चूत में डालूँगा तो तुम्हें थोड़ा दर्द होगा.. !! क्योंकि ये तुम्हारा पहली बार हैं.. !! इसलिए.. !! लेकिन, कुछ देर बाद ये दर्द चला जाएगा और तुम्हें मैं भरपूर मज़ा और आनंद दूँगा.. !! तो प्लीज़, एकदम आवाज़ नहीं करना.. !! ठीक है.. !! क्यूंकी अगर किसी ने सुन लिया तो बड़ी गड़बड़ हो जाएगी.. !!
श्रुति ने कोई जवाब नहीं दिया। बस “हाँ” में सिर हिला दिया।
मैंने फिर कहा – श्रुति, ये मेरा वादा है मैं तुम्हें भरपूर सुख दूँगा.. !! इतना मज़ा तुम्हें पहले कभी नहीं आया होगा.. !! तुमने तो खुद जमुना को आनंद में चीखते हुए, सुना ही है.. !!
श्रुति ने फिर सिर हिलाया।
मैं अब तैयार था।
मैंने अपने लण्ड को उसकी चूत पर रखा और रगड़ने लगा।
श्रुति, सनसना रही थी।
उसका शरीर मारे उत्तेजना के काँप रहा था।
मैंने फिर शुभारंभ किया।

टोपी को घुसने में ही, मुझे बहुत तकलीफ़ हो रही थी।
ना जाने, आगे क्या होने वाला था।
मैंने अपने तेल लगे हुए लण्ड को, छेद पर रखा और एक ज़ोर का झटका लगाया।
साथ ही, मैंने श्रुति के मुँह पर अपना हाथ ढक्कन की तरह चिपका दिया।
श्रुति के मुँह से, घुट घुटि चीख निकल गई।
उसको लगा जैसे, किसी ने उसकी चूत में एक “दो धारी तलवार” डाल दी है।
उसकी आँखों से, आँसू छलक आए।
मैंने अपना हाथ नहीं हटाया और एक और झटका लगाया।
अभी तक सिर्फ़ सुपाड़ा ही अंदर गया था।
मुझे खुद, काफ़ी जलन हो रही थी।
श्रुति मेरे नीचे से निकलने के लिए तड़प रही थी और पूरे ज़ोर से, मुझे धकेलने की कोशिश कर रही थी।
मैं जानता था की अगर, आज मैं हार गया तो ये चिड़िया कभी मेरे फंदे में नहीं आईगी।
उसकी चूत भी, बहुत ज़्यादा टाइट थी।
मैंने अपने दाँतों को दबाते हुए, एक और धक्का मारा।
करीब 80% तक, मेरा लण्ड उसकी चूत में धँस गया था।
मैंने अपना हाथ नहीं हटाया था।
श्रुति जैसे, रहम की भीख माँग रही थी।
मैंने उसको फुसफुसा के बोला – एकदम शांत पड़ी रहो, वरना और दर्द होगा.. !! अभी 2-3 मिनट में, सब ठीक हो जाएगा.. !!
मैं उसके ऊपर लेट गया और उसके दूध को चूसने लगा और उसके निप्पल को अपने दाँतों से सहलाने लगा।
थोड़ी देर बाद, श्रुति का जिस्म थोड़ा ढीला पड़ा और वो थोड़ा शांत हुई तो मैंने फाइनल धक्का मारा।
मेरा लण्ड पूरी तरह, श्रुति की चूत की गिरफत में था।
मैं फिर शांत पड़ा रहा।
थोड़ी देर बाद, मैंने अंदर बाहर करना शुरू किया।
बहुत धीरे धीरे।
श्रुति के जिस्म में भी, हरकत होने लगी थी।
उसने अपनी बाहों का हार, मेरी गर्देन के चारों तरफ डाल दिया था और अपनी कमर भी थोड़ा थोड़ा उठाने लगी थी।
मैं समझ गया की शिकार अब चुदवाने के लिए, तैयार है।
मैंने दूसरा गियर डाला और स्पीड थोड़ी और बढ़ा दी।

कसम लण्ड के बाल की!! इतना मज़ा मैंने कभी भी महसूस नहीं किया था।
मैं नहीं जानता था की लौंडिया को चोदने में इतना मज़ा आता है।
हम “मिशनरी पोज़िशन” में चुदाई कर रहे थे।
श्रुति भी हाँफ रही थी और सिसकारी भर रही थी।
उसका दर्द अब ख़त्म हो गया था और वो अपनी जवानी लूटा कर, जवानी के मज़े लूट रही थी।
उसके हाथ मेरी पीठ पर काफ़ी तेज़ी से घूम रहे थे और मैं “जबरदस्त चुदाई” कर रहा था।
मेरी रफ़्तार टॉप गियर पर थी और हम दोनों के मुँह से, आहें निकल रही थीं।
मैं बीच बीच में झुक कर, उसकी चूचियों को अपने मुँह में दबोच लेता था और ज़ोर ज़ोर से चूसते हुए उसको चोद रहा था।
श्रुति की सिसकारियाँ, अब चीख में बदल रही थीं पर वो मेरे कहे मुताबिक, सावधान थी और हल्के हल्के ही चीख रही थी।
आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ आ.. !! उन्हम्म.. !! इनयः इस्स उफ्फ फूहस आह हह आ आ आ आह उन्म आह आ हह आह.. !! आह आह अहह.. !! नहीं स स स स स.. !! उन्हम्मह म म म म म.. !! आहम्म उईईए सस्स्शह.. !! अहहआहम्म.. !! मर र र र र र गई ई ई ई ई ई.. !! या या आह आ आ आ ह ह ह ह ह.. !!
अचानक श्रुति का शरीर अकड़ने लगा और वो ज़ोर से मचलने लगी।
उसकी बाहों का दायरा कसने लगा और वो ज़ोर से मेरी छाती में चिपक कर, झड़ गई।
मैंने अपने लण्ड पर उस के उबाल की गरमी को महसूस किया।
श्रुति अब, निढाल पड़ी थी ।
मैंने और रफ़्तार बड़ाई और उसको दबा दबा के चोदने लगा।
उसका “कामरस” उसकी चूत में मेरे लण्ड के घर्षण से फूच फूच की आवाज़ पैदा कर रहा था।
मैं तो सातवें आसमान की सैर कर रहा था और धक्के लगाए जा रहा था।
1-2 मिनट के बाद, मेरी साँस भी रुकने लगी।
मेरी गोलियों में तनाव पैदा होने लगा और मैं भी गया।
मैंने दना दना कई फव्वारे खोल दिए, श्रुति की चूत में और गले सा अजीब सी आवाज़ निकालते हुए, श्रुति के ऊपर ही गिर पड़ा।
मैं आनंद के सागर में हिलोरे ले रहा था और मुझे पता था की श्रुति भी हिलोरे ले रही होगी।
थोड़ी देर बाद, श्रुति कसमासने लगी और मुझे धकेलने लगी।
मैं उठा और पलट कर वहीं सो गया।
सुबह भोर में जब मेरी आँखें खुली तो सुबह हो गये थी और पेट में चूहे दौड़ रहे थे।
भूख के मारे, बुरा हाल था।
अचानक, मुझे होश आया की श्रुति बिल्कुल “नंगी” मेरे पास ही सो रही थी।
उसकी नंगी काया को देखते ही, मेरा लण्ड फिर से जोश में आने लगा।
उसके होठों पर, एक प्यारी सी मुस्कान तैर रही थी।
उसके दूध, खुली रौशनी में बहुत ही प्यारे लग रहे थे।
मैं अपने को रोक ना पाया और उसकी एक निप्पल को चूसने लगा और दूसरी छाती को, अपने हाथों से मसलने लगा।
श्रुति की आँख खुल गई।
उसने भी तुरंत प्यार से मुझे अपनी बाहों में समेट लिया और फिर, हम एक दूसरे के होठों का रस पीने लगे।
अचानक, मुझे झटका लगा और मैं हड़बड़ा के उठ गया।
श्रुति से बोला – जल्दी कपड़े पहनो और निकलो.. !!
किसी ने देख लिया तो गजब हो जाएगा।
वो भी हड़बड़ा के उठी और अपनी चोली और लहंगा पहन कर, धीरे से वहाँ से निकल गई।
शुक्र था की अभी घर के लोग सो कर नहीं उठे थे क्योंकि सब रात को शादी से, बहुत देर से आए थे।
समाप्त.. .. .. ..
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06-08-2021, 12:45 PM,
#29
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
मुंबई की बारिश और माँ बेटे का प्यार--1

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और मस्त कहानी राजशर्मास्टॉरीजडॉटकॉम पर लेकर हाजिर हूँ कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे . दोस्तो ये कहानी एक माँ बेटे की कहानी है जिन्हे इस तरह की कहानी पढ़ने में अरुचि होती हो कृपया इस कहानी को ना पढ़े
रश्मि अपने ऑफीस की बिल्डिंग के बाहर कदम रखते ही गहरी साँस लेते हुए खुद को कोस्ती है. आसमान में काली घटा छाई हुई थी. काले बादलों के कारण सितंबर के महीने की दोपहर भी रात जैसे लग रही थी. आसमान से गिर रही हल्की बूँदों के कारण बिल्डिंग के द्वार पर लगी चम चमाति वाइट टाइल्स दागदार सी हो गयी थी. यह उन पलों में से एक पल था जब रश्मि कामना करती कि वो टेबल के पीछे कुर्सी पर बैठने वाली कोई जॉब करती ना कि दौड़ धूप करते हुए क्लाइंट्स को मिलने वाली यह जॉब जो वो कर रही थी.

एक ठंडी साँस छोड़ते हुए वो फिर से खुद को कोस्ती है कि उसने कुछ रुपये बचाने के लिए अपनी कार को बिल्डिंग से थोड़ी दूर बनी ओपन एर कार पार्किंग में खड़ा किया था जो कि फ्री थी ना कि बेसमेंट में बनी पैड कार पार्किंग में. वो खुद को कोस रही थी मगर उसके कानो में उसके पिता के लफ़्ज गूँज रहे थे जो वो अक्सर दोहराया करते थे "एक रुपया बचाना एक रुपया कमाने के बरोबर होता है" और इसी बात को अपनी धारणा बनाते हुए और उस पर चलते हुए उसने जिंदगी में बहुत कुछ बना लिया था. अपनी उँची पढ़ाई से लेकर अपने बच्चों की बढ़िया परवरिश करने और उन्हे दूसरे सहर में बढ़िया कॉलेजस में पढ़ा रही थी जो कि उसके पति की दो साल पहले हुए अकस्मात इंतकाल के बाद लगभग नामुमकिन ही था.

अपने पति का ध्यान आते ही रश्मि ने अपनी आखों में उमड़ आए आँसुओं को बड़ी मुश्किल से बाहर निकलने से रोका. एक नशे में धुत ड्राइवर ने उसके पति को उससे हमेशा हमेशा के लिए छीन लिया था. उसके पहले और एकलौते प्यार को उससे छीन लिया था, एक तरह से उससे उसकी जिंदगी ही छीन ली थी. मगर फिर भी उसने धैर्य और हिम्मत से काम लेते हुए अपने बच्चों के सहारे अपनी जिंदगी की एक नयी शुरुआत की थी. उसने लाइफ इन्स्योरेन्स और म्यूचुयल फंड्स का काम करना सुरू कर दिया था और इससे उसे आमदनी भी अच्छी हो रही थी हालाँकि काम काफ़ी कठिन था. मगर इससे एक अच्छी बात यह थी कि वो अब काफ़ी वयस्त रहती थी और उसका ध्यान अपनी सूनी जिंदगी के एकाकीपन से हट जाता था और इस नौकरी से घर भी अच्छे तरीके से चल रहा था.

बादलों की जोरदार गड़गड़ाहट के कारण रश्मि अतीत से निकलकर फिर से वर्तमान में आती है. वो अपना ब्रीफकेस अपने सिर के उपर रखकर वो आगे कदम बढ़ाती है. तेज़ तेज़ चलने के कारण उसकी हाइ हील के सॅंडल उँची तीखी आवाज़ पैदा करते हैं. हवा बहुत तेज़ चल रही थी जिस कारण उसे अपने एक हाथ से अपनी ड्रेस को दबाकर रखना पड़ रहा था उसे उपर की ओर से उड़ने से बचाने के लिए. उसकी चलने की रफ़्तार तेज़ हो गयी थी क्योंकि बारिश की बूंदे भारी हो गयी थी.

"उफ़फ्फ़! इसको भी अभी आना था" भूनभुनाते हुए वो अपना ब्रीफकेस अपने सिर से हटाकर उसे अपनी छाती से लगा लेती है. बारिश अब काफ़ी तेज़ हो गयी थी और रश्मि फिर से खुद को कोस्ती है जब उसे महसूस होता है कि उसके बाल गीले होकर उसके गर्दन से चिपक रहे थे. वो मुश्किल से अपनी कार से पचास मीटर की दूरी पर थी जब बादल एक दम ज़ोर से गरजे और फिर अगले ही पल एक प्रचंड वेग से मुसलाधार बारिश होने लगी और वो सिर से पावं तक बुरी तरह से भीग गयी.

हल्का हल्का काँपते हुए रश्मि ने बाकी की दूरी दौड़ते हुए पार की और तेज़ी से कार का दरवाजा खोल कर अपना ब्रीफकेस अंदर फेंका और फिर ड्राइविंग सीट पर बैठ गयी. उसके बदन की गर्मी और बाहर के तापमान से फरक होने के कारण कार के सीसे धुंधला गये थे. रश्मि ने एर कंडीशन चालू किया और विंड्स्क्रीन के शीशे पर से धुन्दलका हटने लगा. जूतों में पानी भरा होने के कारण उसे थोड़ी बैचैनि सी महसूस होती है और वो उन्हे उतार देती है. वो शुक्र मनाती है कि उसके पास ऑटोमेटिक कार थी. हल्का हल्का काँपते हुए वो गाड़ी को गियर में डालती है और उसे रोड पर लाते हुए चलाने लगती है.

भारी मुसलाधार बारिश कार की छत को ड्रम की तरह पीट कर शोर उत्पन्न कर रही थी. बारिश की पूरी लहर सी विंड्स्क्रीन पर गिर रही थी और उसे रोड देखने में बहुत दिक्कत हो रही थी. वो अपनी घड़ी पर नज़र दौड़ाती है और महसूस करती है कि उसे अपनी अपायंटमेंट कॅन्सल करनी पड़ेगी क्योंकि ना सिर्फ़ वो लेट थी बल्कि जिस अवस्था में वो थी उस अवस्था में क्लाइंट्स से मिलना नामुमकिन था.

उसने मोबाइल उठाकर अपनी अपायिटमेंट मंडे के लिए फिक्स कर दी क्योंकि आज शनिवार था और सनडे वो काम करती नही थी. रश्मि थोड़ी राहत महसूस करती है यह देखकर कि रोड पर ट्रॅफिक काफ़ी कम हो गया था. वो सावधानी से गाड़ी चलाते हुए घर पहुँच जाती है और गाड़ी को मेन डोर के सामने खड़ा कर देती है. वो घूमते हुए बॅक सीट पर अपनी छतरी को ढूँढती है जिसे वो अक्सर गाड़ी में साथ रखती है. मगर वो मिलती नही और उसे याद आता है कि उसने उसे कल ही एस्तेमाल किया था और फिर वापिस रखना भूल गयी थी.

"लानत है! में भी कितनी बेवकूफ़ हूँ. अब फिर से भीगना पड़ेगा" रश्मि खुद पर झल्ला उठती है.

वो बारिश के थोड़ा सा कम होने की प्रतीक्षा करती है और झट से कार का दरवाजा खोलकर भागती हुई मेन डोर पर पहुँचती है. चाबियों से थोड़ा उलझते हुए उसे थोड़ा वक़्त लगता है मेन डोर खोलने में मगर उतने टाइम में वो फिर से पानी से सारॉबार हो चुकी थी. अंदर दाखिल होते ही वो मैन डोर बंद कर देती है उसके बदन और कपड़ों से बह रहे पानी के कारण फर्श पर पानी का तालाब सा बन जाता है.

"उम्म्म......हाई मोम!"

रश्मि आवाज़ सुन कर घूम जाती है और सामने अपने बेटे रवि को तीन और लड़कों और दो लड़कियों के साथ बैठा हुआ देखती है. उनके सामने टेबल पर बहुत सारी किताएँ बिखरी पड़ी थीं.

"माँ तुम तो...बिल्कुल..भीग गयी हो..." रवि अपनी माँ से कहता है जबकि उसके दोस्त नज़रें फाडे उसकी माँ को घूर रहे थे. "अच्छा है तुम जल्दी से चेंज कर लो"

"हाँ! हाँ! मैं बस अभी चेंज करने ही जा रही हूँ" रश्मि धीरे से उत्तर देती है जब उसे एहसास होता है कि सब आँखे उसे ही घूर रही हैं. जल्दी से घूमते हुए उपर की सीढ़ियों पर चढ़ने लगती है.

"ओह माइ गॉड! तूने हमे आज तक नही बताया तेरी मोम इतनी सेक्सी है"

" तुम लोगों ने देखा उसके गोल मटोल मम्मे कितने मोटे और तने हुए थे"

"और उसकी गान्ड ....वाआह! उसकी गान्ड तो शिखा देखने में तुमसे भी टाइट लग रही थी"

"बकवास बंद करो राजन में कहे देता हूँ...."

"और उसकी टांगे देखी तुम लोगों ने? क्या जबरदस्त माल है तेरी मम्मी"

"अब बस भी करो! भगवान के लिए..वो मेरी मम्मी है"

रश्मि सीढ़ियो के बिल्कुल ऊपर खड़ी यह सब बातें सुन रही थी. उसे बेहद ताज्जुब हो रहा था यह सब सुन कर. उसे इस बात से ख़ुसी हुई कि उसका बेटा उसके लिए अपने दोस्तों पर गुस्सा होने लगा है मगर इस बात से हल्की सी निराशा भी कि अब उसने उसकी प्रशंसा भी बंद करवा दी थी चाहे वो अश्लील भाषा में ही हो रही थी. उसे लगता था अब उसमे पहले वाली वो बात नही रही मगर आज जब उसने बहुत समय बाद अपने लिए ऐसे शब्द सुने तो उसे एक अलग रोमांच का एहसास हुआ एक सुखद और मन को आनदित कर देने वाला एहसास था. वो अपने बेडरूम की ओर बढ़ जाती है और एक टवल उठाकर अपने लंबे काले बालों को पोंछने लगती है.

नीचे अभी भी रश्मि के खूबसूरत और कामुकता से लबरेज बदन पर कयि टिप्पणियाँ हो रही थीं मगर अब वो उन्हे स्पष्ट तौर पर सुन नही पा रही थी. उसे ज़ोर से हँसने और फिर किसी के उँचा चिल्लाने की आवाज़ें सुनाई दी. उसने अपने अंदर एक रोमांच, एक थरथराहट सी महसूस की--उसे समझ नही आया कि यह बारिश में भीगने के कारण लगने वाली सर्दी के कारण है या फिर उसे नीचे हो रही अपनी अश्लील तारीफ उसे इतनी अच्छी लगी थी. चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए उसने अपना टवल फेंका और दर्पण के सामने खड़ी हो गयी.

अपना अक्श शीसे में देखते ही उसके चेहरे से मुस्कान गायब हो गयी. हल्के आसमानी रंग की उसकी गर्मियों में पहनने की ड्रेस बारिश में गीली होकर बुरी तरह उसके बदन से चिपकी हुई थी. उसकी ड्रेस लगभग पूरी तरह से पारदर्शी हो गयी थी और उसकी लंबी टाँगो, पतली सी कमर और भारी स्तनों को पूरी तरह से रेखांकित कर रही थी. उसकी नीले रंग की कच्छि और ब्रा आसानी से देखे जा सकते थे और गीली ड्रेस ने उपर से उसके मम्मों का उपरी हिस्सा नंगा कर दिया था. ध्यान से देखने पर वो अपने निपल अपनी ड्रेस के उपर उभरे हुए देख सकती थी.

"ओओह माइ गॉड!" अपनी हालत आईने में देख कर वो चकित रह जाती है और उसका हाथ उसके मुँह पर चला जाता है. "में तो वास्तव में नंगी ही दिख रही हूँ"

"हाँ मम्मी ......तुम लगभग नंगी ही हो और.....उन सब ने तुम्हे इस रूप में देख लिया."

आवाज़ सुन कर रश्मि एक दम से पलटी और अपने बेटे को दरवाजे की चौखट से टेक लगा कर खड़े हुए देखा. जलते हुए अंगारो जैसी उसकी आँखे उसे घूर रही थी, उसकी लगभग नंगी काया में गढ़ी जा रही थी. रश्मि की आँखे अबचेतन मन से नीचे की ओर जाती हैं जहाँ वो अपने बेटे की कमर पर एक बड़ा सा टेंट बना हुआ देखती है. प्रतिक्रिया में उसके हाथ उसके स्तन और जाँघो के जोड़ को ढकने के लिए उठ जाते हैं.

"तुम...तुम्हारे दोस्त कहाँ हैं?" वो सामान्य दिखने की कोशिश करते हुए उससे पूछती है.

"वो तो चले गये"

"मगर बाहर तो अभी भी बहुत जोरदार बारिश हो रही है.....एसी बारिश में वो कैसे....?" रश्मि ने आश्चर्य से पूछा.

"मैने उन्हे जाने को कहा था." रवि चेहरे पर एक अजीब सी भावना लिए हुए था. वो कुछ परेशान सा दिखाई देने के साथ साथ कुछ निडर सा भी दिखाई दे रहा था.

"आइ आम सॉरी बेटा, मुझे मालूम नही था घर पर कोई है, तुम भी अक्सर इस समय घर से बाहर होते हो." रश्मि धीरे से बोलती है "इसमे मेरा दोष नही है कि बारिश के कारण मैं भीग गयी"

"नही वो बात नही है मम्मी...." रवि धीरे से फुसफुसाता है "बात तो बस यह है..... क्या आपने सुना था वो आपके बारे में क्या बोल रहे थे?"

"पूरा नही, कुछ-कुछ, जो वो पहले पहल बोल रहे थे." रश्मि मुस्कराती है. "असल में मुझे काफ़ी ताज्जुब हुआ वो सब सुन कर"

"और फिर वो इससे भी बदतर बोलने लगे"

"क्या कह रहे थे वो?" रश्मि उत्सुकता में पूछती है.

"वो...वो...बोल रहे थे...कि...नही मम्मी में नही बता पाऊँगा. वो बहुत भद्दे शब्दों का इस्तेमाल कर रहे थे"

"एसा क्या कह रहे थे वो? मुझे ठीक ठीक बताओ क्या बोल रहे थे वो?" रश्मि धृड़ता से और ज़ोर देते हुए पूछती है.

"वो ...वो कह रहे थे...कैसे मैं आपके साथ इस घर में रह सकता हूँ बिना.. बिना...?"

"मुझे तुम्हारी बात की कोई समझ नही आ रही है. बिना क्या?" रश्मि पूछती है

"बिना आपको चोदे!!!! उन्होने कहा आप देखने में इतनी गर्म और कामुक दिखती हैं तो मैं आपके साथ एक ही घर में बिना आपको चोदे कैसे रह रहा हूँ? रवि ने तपाक से बोल दिया . "उनके इतना कहते ही मैने उन्हे घर से चले जाने को कह दिया. और तब.. तब...."

रश्मि को एक झटका सा लगा था ये सब जानकर मगर साथ ही उसमे कौतूहल भी जगा था अपने बेटे के दोस्तों के द्वारा हुई उन भड़कीली अश्लील टिप्पणियों को सुन कर.

"और फिर वो सब मुझ पर हँसने लगे और मुझसे बोले कि मैं मन ही मन आपको चोदने की इच्छा रखता हूँ इसलिए सच सुन कर मैं इतना घबरा रहा हूँ और मुझे इतना गुस्सा आ रहा है"

रश्मि की आँखे फिर से नीचे जाते हुए रवि के लौडे पर ठहर जाती है. पूरे दो साल हो गये थे उसे लौडा देखे हुए, चूत में लेने की बात तो अलग रही. वो अपनी नज़रें तेज़ी से उपर उठाती है जब उसे एहसास होता है कि वो अपने सगे बेटे के लौडे को घूर रही है. रश्मि का दिल बहुत जोरों से धड़क रहा था.

"और...क्या तुमने वाकई में...वाकई में कभी एसा सोचा है?" रश्मि लगभग ना सुन सकने स्वर में बोलती है. "क्या तुम वाकई में मुझे चोदना चाहते हो?"

"माँ....आप....आप मुझे एसा कैसे पूछ सकती हो?" रवि धीरे से बिना साँस लिए फुसफुसाता है.

"बताओ मुझे! मैं जानना चाहती हूँ! क्या तुम वाकई मे मुझे चोदना चाहते हो?" रश्मि किसी अग्यात भावना के तहत अति कौतूहल से और बैचैनि से अपने बेटे के जवाब का इंतजार कर रही थी.

"हां...हां! मैं चाहता हूँ." आख़िर में रवि जवाब देता है, उसकी आँखे नीचे फर्श पर टिकी हुई थी. "तुम इतनी सुंदर हो माँ....और तुम्हारे बदन की मादकता मुझे इतनी उत्तेजित कर देती है कि बस मैं खुद पर नियंत्रण नही रख पाता और मैं आप के बारे में वो सब सोचने लग जाता हूँ जो मुझे कतयि भी नही सोचना चाहिए"
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06-08-2021, 12:45 PM,
#30
RE: मस्तराम की मस्त कहानी का संग्रह
मुंबई की बारिश और माँ बेटे का प्यार--2

रश्मि को अपने बेटे की आवाज़ में एक अजब सी प्यास एक अजब सा दर्द महसूस होता है. वो अपने बेटे को कड़ाई से घूरती है. वो दरवाजे से टेक लगाए नीचे देख रहा था. वो उसे उसके पति राजिंदर की याद दिलाता था. असलियत में वो बिल्कुल वैसा ही था जैसा उसका बाप 18 वर्ष की आयु में था. अपने बेटे में अपने पति का अक्श देखकर उसके मन में एक बिजली सी कौंध जाती है. उसे वो समय याद आता है जब राजिंदर उसे पूरी रात चोदा करता था और उसे उत्तेजना और आनद के मारे सिसकियाँ भरने पर मजबूर कर देता था. वो अपने जिस्म में एक दर्द की लहर सी दौड़ती हुई महसूस करती है जो उसकी चूत तक पहुँचकर उसमे आग लगा रही थी.

रश्मि धीरे से अपने बेटे की आँखो में देखते हुए अपने हाथ अपने मम्मों और जाँघो पर से हटा लेती है और गीले और बदन से चिपके वस्त्रो में क़ैद अपनी लगभग नंगी काया अपने बेटे की आँखो के सामने कर देती है.

"क्या तुम्हे...क्या तुम्हे अच्छा लग रहा है जो तुम इस समय देख रहे हो?" वो धीरे से फुसफुसाती है

"माँ...आप..आप अंदाज़ा भी नही लगा सकती!" रवि धीरे से उखड़ते स्वर में जवाब देता है.

"क्या तुमने कभी चोरी छिपे मुझे देखने की भी कोशिश की है?"

"हां ...कुछ एक बार मेने झाँका है" रवि बुदबुदाता है. "केयी बार जब आप नीचे बैठती हैं और आपकी स्कर्ट उपर हो जाती है तो मेने आपकी कच्छि देखी है और कयि बार आपके सूट्स में जब आप नीचे झुकती हैं तो आपके गले में झाँका है"

इसके अलावा और क्या क्या किया है तुमने? बताओ मुझे?" कुतूहलवश और उत्तेजना में वो अपने बेटे के हर राज़ को जानना चाहती थी.

"उम्म...मम्मी... वो मेने आपकी कच्छि के साथ कयि बार.......उनको सूँघा है ...और उनमे अपना....अपना माल गिराया है. में यह सब जान बूझकर नही करता बस अपने आप हो जाता है, मुझसे कंट्रोल नही होता" रवि की आवाज़ अभी भी लड़खड़ा रही थी.

अपने बेटे की मुख से पाप स्वीकृति ने रश्मि के बदन की मादक तपिश को और भी भड़का दिया था. यह जानकर कि उसका सगा बेटा उसे चोदने के सपने देखता है और अपनी सग़ी माँ की कच्छि अपने लौडे पर लपेटकर मूठ मारता है और उसमे अपना माल गिराता है, उसे अपना जिस्म उत्तेजना से काँपता हुआ महसूस हो रहा था. उसके निपल बढ़ कर कड़े हो गये थे और गीली ब्रा में से उभरे हुए नज़र आ रहे थे. उसके मन पर जैसे किसी और का अधिकार हो गया हो और जो भी वो इस वक़्त कर रही थी उसमे उसे कोई शर्म या संकोच महसूस नही हो रहा था. उसे इसमे कुछ भी ग़लत नही लग रहा था बल्कि उसे एसा लग रहा था जैसे वो अपने जिस्म की एक मूल माँग पूरी कर रही थी जिसका कि उसे पूर्णतया अधिकार था.

"अब तक सिर्फ़ काल्पनिक मज़ा ही लिए हो?" रश्मि अपने बेटे की आँखो की गहराई में देखते हुए बोलती है उसके चेहरे पर एक कुटिल और रहस्यमयी मुस्कान थी जैसे उसके दिमाग़ में कोई साज़िश चल रही थी. और तब उसने वो लफ़्ज कहे जिनकी रवि ने कभी अपने सपने में भी आशा नही की थी.

"उम्म्म..म्मथम्म....अगर में तुम्हे एक मौका दे दूं जिसका तुमने आज तक सिर्फ़ सपना ही देखा है.....अगर तुम्हे वाकई में अपनी मम्मी चोदने को मिल जाए तो......" रश्मि बड़े ललचाने वाले अंदाज़ में अपने होन्ट चाटते हुए पूछती है.

"माँ....माँ...आप..सच में...मगर"

रवि की ज़ुबान लड़खड़ा रही थी, उसे यकीन नही हो पा रहा था मगर उस समय उसकी आँखे अविश्वास से फैल जाती हैं जब वो माँ को अपनी ड्रेस की ज़िप खोलते हुए देखता है. ज़िप खुलते ही ड्रेस नीचे फर्श पर गिर जाती है. उसकी मम्मी उसके सामने सिर्फ़ ब्रा और कच्छि पहने खड़ी थी. रश्मि की त्वचा गीली होने के कारण चमक रही थी. वो अपने बेटे की ओर बढ़ती है और उसका हाथ अपने हाथों में लेकर बेड पर जाती है.

रश्मि बेड पर बैठ कर रवि की शर्ट उतारती है और अपने बेटे की मर्दाना छाती पर हाथ फेरते हुए उसकी तारीफ करती है. वो अपनी उंगलियाँ उसके पेट पर नाज़ुकता से घुमाती है और उसके बदन को कसते हुए महसूस करती है जब वो उसे सहलाती है. रवि एक गहरी साँस लेता है जब रश्मि उसकी पेंट की हुक खोल कर उसे नीचे खींचते हुए पैरों से बाहर निकाल देती है. उसका लंड अंडरवेर में एक लोहे की रोड की तरह सख़्त होकर झटके मार रहा था जैसे बहुत गुस्से में हो.

रश्मि अपने बेटे के लंड से निकलने वाले प्रेकुं की मस्की स्मेल को सूंघति है तो उसकी चूत में करेंट दौड़ जाता है. वो अपनी उंगलियाँ उसके अंडरवेर में फँसा कर उसे नीचे खींचते हुए बाहर निकाल फेंकती है. अपने बेटे के उस तगड़े लौडे पर पहली नज़र पड़ते ही उसके मुँह खुला का खुला रह जाता है. रवि का लंड काफ़ी लंबा होने के साथ साथ बहुत मोटा भी था और बुरी तेरह से झटके मार रहा था. उसका लॉडा उसके बाप के लौडे से बड़ा और मोटा था.

रश्मि अपने बेटे के टट्टों को बड़ी नाज़ुकता से सहलाती है और अपना मुँह उसके फूले हुए लंड के बिल्कुल सामने लाती है. वो गहरे लाल सुपाडे को चूमती है और फिर उसका मुँह अपने बेटे के लौडे के अग्रभाग पर कस जाता है. वो धीरे धीरे अपने होंठो को उसके लंड पर पीछे की ओर ले जाती है और साथ ही सुपाडे की चमड़ी को खींच कर पूरी तरह से नंगा कर देती है.

रश्मि अपने बेटे के लौडे को चूस्ते हुए1

अपनी सग़ी मम्मी द्वारा अपना लंड चूसे जाने पर रवि कराहने लगता है. उसकी माँ! उसकी अपनी सग़ी माँ! उसने आज तक किसी सपने में भी नही सोचा था कि एसा मुमकिन हो सकता है मगर यह हो रहा था. उसकी अति सुंदर अति मोहक माँ जिसके बदन के अंग अंग से मादकता टपकती है आज उसके लंड को चूस रही थी. वहाँ हो रहे उस अनुचित कार्य ने उसकी काम पिपासा को कयि गुना बढ़ा दिया और उसका लंड अपनी माँ के मुँह में झटके मारने लगा. उसके हाथ रश्मि की पीठ पर पहुँचते है और उसकी ब्रा की हुक खोल कर उसके उन संदर मम्मों को क़ैद से आज़ाद कर देती हैं.

रवि अपनी मम्मी के मम्मो को हाथों में भरते हुए कस कर मसलता है और हल्के से उसके निप्प्लो को मरोडता है तो रश्मि के मुँह से सिसकियाँ फूटने लगती हैं. उसके निप्प्लो से कामुकता की तरंगे निकल कर उसकी चूत तक फैल जाती हैं और वो अपनी टाँगे कस कर बंद करते हुए अपनी चूत के होंठो को आपस में रगड़ती है.

"आअहह...उफ़फ्फ़...बहुत मज़ा आ रहा है मम्मी. चूसो मेरा लंड.....ज़ोर से चूसो मम्मी!" रवि कराहते हुए बोलता है.

रश्मि अपने हाथ पीछे ले जाकर रवि के चुतड़ों को कस कर पकड़ती है और फिर उसे आगे अपनी ओर खींचती है और अपना मुँह तेज़ी से उसके लौडे पर चलती है. बेटे के लौडे का स्वाद रश्मि को इतना टेस्टी लगा था कि वो लगभग तीन चौथाई लंड मुँह में लेकर चूस रही थी, शायद वो पूरा लंड मूँह में ले लेती अगर यह मुमकिन होता, मगर इतना लंबा मोटा लंड पूरा मुँह में लेकर चूसना उसके बस के बाहर की बात थी. दो साल से भी ज़यादा समय बाद आज वो एक लंड चूस रही थी वो भी आने बेटे का. लंड की रब्बर जैसी त्वचा और उसके मुख से निकलने वाले हल्के हल्के नमकीन रस का वो भरपूर मज़ा ले रही थी.

अपनी माँ द्वारा अपना लंड पूरी कठोरता से चूसे जाने पर रवि संतुष्टि भरी गहरी साँसे लेता है. वो उसके बाल पकड़ कर अपना लंड धीरे धीरे उसके मुँह में आगे पीछे करते हुए अपनी माँ का मुँह चोदने लगता है.

रश्मि अपना हाथ नीचे ले जाकर अपनी चूत को कच्छि के उपर से सहलाती है जिससे उसकी कामुकता और उत्तेजना और भी बढ़ जाती है. कच्छि के अंदर हाथ डालकर वो एक उंगली चूत के होंठो पर फेरती है और फिर अंदर डालकर दाने को मसलती है. रवि अपनी मम्मी को अपनी चूत में उंगली करते हुए देख कर आनंदित होता है और उसका चेहरा और भी जोरों से चोदने लग जाता है, उसे अपने टट्टों में अपना वीर्य उबलता हुआ महसूस होता है.

रवि रश्मि के सिर को पकड़े हुए तेज़ तेज़ धक्के लगाने लगता है. उसका लॉडा उसकी मम्मी के मुँह में झटके मारते हुए ऐंठने लगा था. रश्मि भी बेटे के लंड पर तेज़ी से जीभ चलाते हुए ज़ोरों से सुपर्र सुपर्र कर चूस रही थी. रवि का बदन अकड़ जाता है और फिर एक उँची कराह भरते हुए उसका लंड अपना रस उगलने लगता है.

रश्मि को अपने बेटे के लंड में ऐंठन महसूस होती है और वो खुद को तैय्यार करती है. अपने गालों को फुलाते हुए वो उसके लौडे को ज़ोर से चूस्ति है जब उसका लंड फूलता है और फिर गर्म और गाढ़े रस की पिचकारियाँ उसके मुँह में छूटने लगती हैं. एक के बाद एक गर्म रस की धारा उसके मुँह में फूटती है और वो हर्षौल्लासित होकर अपने बेटे के नमकीन रस का आनंद उठाती है. जब उसे यकीन हो जाता है कि उसके लंड से पूरा रस निकल चुका है तो वो धीरे से अपना मुँह उसके लंड से हटा लेती है.

रवि आँखे फाडे अपनी माँ को अपने लंड से मुँह हटाते हुए देखता है. वो आँखे उठाकर उसे देखती है और अपना मुँह खोलती है और अपने मुँह में भरा वीर्य उसको दिखाती है. और उसी तरह मुँह खुला रखकर वो सिर थोड़ा पीछे की ओर झुकाती है और उसका सारा वीर्य निगल जाती है.

रश्मि द्वारा लंड की जबरदस्त चुसाइ के पश्चाताप रवि अपना रस अपनी मम्मी के मुँह में छोड़ देता है

"एम्म्म....बहुत ही स्वादिष्ट था" रश्मि अपने बेटे की आँखों में बेलगाम कामवासना देखते हुए उत्तेजक स्वर में बोलती है. राजिंदर के मरने के बाद आज उसने पहली बार वीर्य का स्वाद चखा था और राजिंदर के अलावा यह एकमात्र लंड था जिसे उसने देखा था, छुआ था, अपने मुँह में लेकर उसे चूसा और चाटा तभी था.

"ओह मम्मी! आप तो कमाल का लॉडा चुस्ती हो. आज तक किसी ने भी मेरा लॉडा इतने जबरदस्त तरीके से नही चूसा था. मुझे इतना मज़ा आया कि मैं बता नही सकता. आप तो लाजवाब हो!" रवि अत्यधिक उत्तेजित स्वार में बोलता है. यह जानकर के उसके बेटे का लंड किसी ने पहले भी चूसा है, रश्मि का दिल जल उठता है. मगर वो उसकी ओर देखकर मुस्कराती है.

"तो अब तैयार हो मेरी चूत मारने के लिए. अपनी सग़ी माँ की चूत में अपना लंड डालकर उसे ठोकने के लिए" रश्मि बड़े ही नखरीले अंदाज़ में रवि से पूछती है. रवि का लंड झड़ने के बाद कुछ छोटा ज़रूर हो गया था मगर अभी भी पूरी तरह से कठोर था. उसे सेक्स करते हुए गंदे लफ़्ज बोलने में बहुत मज़ा आता था और यह राजिंदर को भी बहुत पसंद था. बेड पर चुदाई के समय वो बहुत सेक्सी अश्लील बातें बोलती थी जिससे चुदाई का मज़ा और भी बढ़ जाता था. वो जानने को उत्सक थी कि क्या उसका बेटा भी अपने बाप की तेरह उसकी इन अश्लील गंदी बातों से उत्तेजित होता है?

रश्मि अपनी टांगे उँची उठाती है और रवि के सामने पूरा नज़ारा पेश करती है अपनी कच्छि उतारने का. वो कच्छि को धीरे धीरे अपनी गान्ड से नीचे खिसकाती है और फिर अपनी गान्ड उपर उठाकर धीरे धीरे टाँगो से नीचे करती जाती है. अब उसकी कच्छि उसके पावं के अंगूठे में झूल रही थी. रवि आगे झुकते हुए उसकी कच्छि उसके पावं से खींच लेता है और उसे अपनी नाक से लगा कर गहरी साँस लेते हुए उसकी खुसबु सूँघता है. अपने बेटे द्वारा अपनी गंदी कच्छि को सूँघते हुए देखकर रश्मि के अंदर का कामवासना का तूफान और भी तेज़ हो जाता है.

"उन्हे फेंक दो रवि और इधर आकर इसे चखो और बताओ इसका स्वाद कैसा है" रश्मि सीसियाते हुए बोलती है.

रवि उसकी टाँगो के बीच में देखता है . उसकी माँ की चूत पर गहरे काले रंग के छोटे छोटे बाल थे. उसकी चूत के होंठ मोटे और सूजे हुए नज़र आ रहे थे और रवि अब और इंतज़ार नही कर सकता था. उसका लॉडा अब बुरी तरह से झटके मार रहा था और अब वो बस उसकी गीली चूत में अपना लॉडा घुसेड देना चाहता था.

अपनी माँ की फैली टाँगो को पकड़ कर वो उसे बेड के किनारे की ओर खींचता है और फिर उन्हे पूरी तरह से फैला देता है. अब रवि अपनी माँ की चूत के अंदर का गुलाबीपन देख रहा था, उसकी चूत बुरी तरह से पानी छोड़ रही थी. वो अपना लॉडा चूत के मुहाने पर टिकाटा है और उसे अंदर की ओर घुसेड़ता है. उसकी चूत काफ़ी संकरी थी.
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