08-15-2023, 08:15 PM,
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aamirhydkhan
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RE: महारानी देवरानी
महारानी देवरानी
अपडेट 51 B
मायके चलने का अनुरोध
सेनापति: (बूढ़ी हो गई है पर आज भी मुंह छुपाती है देवरानी "अपने मन में फुसफुसाता है। )
ये बात बलदेव अपने तेज कान से सुन लेता है।
बलदेव अपने पिता के सामने खड़े हो कर पुकारता है ।
"मां आजाओ अंदर सेनापति चला गया! "
देवरानी दरवाजे की आड़ से बाहर आती है और जो परदा उसने सेनापति को देख कर लीया था उसे उठा लेती है।
देवरानी एक अंदाज़ से मुस्कुराती हुई अंदर प्रवेश करती है ।
बलदेव;( मन में- गधे सेनापति अच्छा हुआ तूने परदा के उठने के बाद का दृश्य नहीं देखा । नहीं तो देवरानी की जवानी की गर्मी से जल कर राख हो जाता ! मेरी मां तो अब जा कर जवान हुई है इसे मैं अभी और जवान करूंगा।
"महाराज देवराज भैया का पारस से पत्र आया है। "
राजपाल अपने आसन से उठ खड़ा होता है।
"अच्छा साले साहब ने क्या लिखा है पत्र में? "
देवरानी पत्र खोल कर -"आपको प्रणाम कहा है और मेरे साथ आपको पारस आने का निमंत्रण दिया है।"
"देवरानी तुम्हें तो पता है ना मैं पिछले 18 साल में पारस नहीं गया क्यू के हमारे शत्रु बहुत हैं।"
"महाराज पता है पर. आप ये पत्र पढ़ें"
राजपाल पत्र पढ़ कर-"हां इसमें तो उसने अनुरोध तो किया है मिलने के लिए पर ये पत्र शमशेरा के दूत से आया है। इसका तुम्हे कुछ मतलब समझ में आता हो देवरानी? "
"नहीं महाराज !"
"हम कह नहीं सकते पर सूत्रों से पता चला है के पारस पर अब शमशेरा के पिता सुल्तान मीर वाहिद का राज है और उनकी नज़र में कुबेरी का खजाना है। "
"महाराज इस से तो वो राजा रतन सिंह का दुश्मन हो जाएगा ।"
"देवरानी पूरी दुनिया राजा रतन और मेरी मित्रता से परिचित है। संभावना है कि कुबेरी को प्राप्त करने के लिए हमरे घटराष्ट्र पर भी आक्रमण किया जा सकता है।"
परन्तु महाराज मुझे वर्ष हो गए मेरे परिवार से मिले । "
"देवरानी वो बात है अपनी जगह पर सही है कि शमशेरा हम पर हमला करेगा या नहीं हमे नहीं पता , पर दिल्ली के बादशाह शाहजेब ने तो तयारी भी शुरू कर दी है घाटराष्ट्र और कुबेरी पर हमला करने के लिए और कुछ सैनिक इस ओर आ रहे हैं। "
"ऐसे समय में देवरानी हमारा जाना खतरे से खाली नहीं होगा हमारे राष्ट्र पर कभी भी कोई आक्रमण कर सकता है और अगर हम पश्चिम की ओर जाते हैं तो इस हमले की सम्भावना बढ़ जायेगी । "
20 die
ये सब बात सुन कर देवरानी का खुश चेहरा मुर्झा जाता है और अपने पास बलदेव और उसका साथ अपने पास महसुस कर उससे भी आज रहा नहीं जाता।
"महाराज आपने पिछले मुझे 18 वर्ष से हमले के डर के कारण ही मेरे परिवार से दूर रखा है और आज भी…"
गुस्से में ये शब्द देवरानी के मुँह से फूट पड़ते है।
राजपाल अपना दया हाथ देवरानी को मारने के लिए उठाता है।
राजपाल: देवरानी अपनी मर्यादा में रहो, हम से ऊंची स्वर में बात करने का परिणाम जानती हो !
"बलदेव पुत्र अपनी माँ से कहो हम से तर्क वितरक ना करे नहीं तो हम से बुरा कोई नहीं होगा!"
देवरानी के ऊपर जैसे वह राजपाल हाथ ऊँचा कर उसे डांटता है वो उसका दुख से गला भर जाता है और उसकी आंखों में आंसू गिर जाते हैं।
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"महाराज आपने हाथ उठाया है तो मार लो मैं मना नहीं करूंगी!"
"मां होश में आओ हम इस पर कुछ सोचेंगे!"
"चुप कर तू मेरे पिता ने कभी मेरे ऊपर हाथ नहीं उठाया, ना कभी पहले गुस्सा हुए । कभी मैं रानी थी पारस की। पर यहाँ आ कर बस नौकरानी बना दी गयी । मेरी चाहत के बारे में कोई नहीं सोचता! "
"चुप हो जाओ देवरानी तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने पर है ना। "
देवरानी रोती हुई बोली -"नहीं होना चुप मुझे! मैं बहुत चुप रह ली । जब तुम रजाओ में इतना दम नहीं होता, जब सबकी इच्छा का सम्मान नहीं कर सकते, तो 10 विवाह क्यू करते हो ? "
"देवराआआआआआआआआआआआअनी! अगर मेरे हाथ में तलवार होती तो अभी मैं तुम्हारा सर धड से अलग कर देता! "
"बलदेव इस पागल को ले जाओ यहां से इसको बुढ़ापे के साथ इसका दिमाग भी काम करना बंद हो गया है ।" ले जाओ इसे बलदेव ! नहीं तो मैं धक्के मार कर भगाऊंगा इसे। "
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बलदेव:बस पिता जी!
देवरानी रोते हुए अब ज़मीन पर नीचे बैठने लगती है।
बलदेव झट से अपनी माँ को अपनी बाहो में पकड़ लेता है।
"चलो माँ ! "
देवरानी सिसकते हुए बलदेव के कंधों पर अपना सर रखती है और बलदेव देवरानी को उसके कक्ष में ले जाता है।
राजपाल वापस आसन पर बैठ कर-"आआआहहहह देवराअअअअअअणि " और एक जोरदार चीख से साथ अपने हाथ गद्दे पर मारता है और अपने गुस्से पर काबू करने का प्रयास करता है ।
बलदेव इधर अपनी मां को ला कर बिस्तर पर बैठाता है फिर अपने हाथो पर थोड़ा गुलाब जल ले कर मां का चेहरा जो आंसू से भरा था उसे धोता है और फिर कपड़े से पूंछता है।
बलदेव: माँ रोना बंद करो!
देवरानी: तुमने सुना ना कैसे मुझे अपमानित कर के भगाया उसने!
बलदेव अपनी माँ की आँखों पर हाथ फेरते हुए कहता है -"रोते नहीं मेरी रानी चुप हो जाओ! "
"अगर तुम सच में मेरे साथ प्रेम करती हो तो चुप हो जाओ, अब मैं नहीं कहूँगा चुप हो जाऊँगा ।"
ये सुन कर देवरानी बलदेव से गले लग जाती है और थोड़ी देर आखे बंद कर दोनों एक दूसरे के दिल की धड़कन सुनते रहते हैं।
कुछ देर बाद बलदेव चुप्पी तोड़ता है।
बलदेव: माँ तुम चिंता मत करो तुम्हारे हर अपमान का बदला लिया जाएगा।
देवरानी:मुझसे अब और सहन नहीं होता! बलदेव बहुत सह लीया ! देखा ना तुमने कैसे बात कर रहा था । वो मुझसे कह रहा है "इसे भगा दूंगा! " सृष्टि को आप कहता हैं "उनको" कहता है। जैसे वो बहुत बुद्धिमान हो।
बलदेव: आपको सम्मान राजपाल जैसे व्यक्ति से लेने की जरूरत नहीं, मैं आपका सम्मान करता हूं । एक दिन आपका हर कोई सम्मान करेगा। किसी की भी हिम्मत नहीं होगी वो आपको "तुम" कह दे। इसको, उसको उनको नहीं कहेगा । और अपमान करना तो बहुत दूर की बात है बस आप थोड़ा धैर्य रखो ।
देवरानी: बलदेव अब क्या करे हम?
बलदेव: माँ आप आराम करो! मैं कुछ सोचता हूं और प्रयास करता हूं। दोपहर के भोजन के बाद मैं राजपाल और सृष्टि दोनों से मिलूंगा ।
दोपहर के भोजन पर देवरानी और बलदेव गुमसुम हो भोजन कर के उठ जाते है और बलदेव कुछ सोच कर अपने पिता के कक्ष में जाता है।
बलदेव:पिता जी!
राजपाल: आओ बलदेव!
थोड़ा धीरे से उठ कर कहता है।
"पिता जी बात ये है कि मेरे पास एक सुझाव है इस समस्या का। "
"क्या सुझाव है बलदेव! "
"देखिये आप के हिसाब से शत्रु आप पर आक्रमण कर सकता है पर शत्रु मुझे या माँ को तो नहीं जानता। "
"तुम्हारे कहने का अर्थ क्या है? "
"यही पिता जी आप अगर नहीं जाते हैं पारस और माँ के साथ मैं जाऊं तो। "
"अभी तुम बालक हो मैंने ये पहले सोचा था कि पर शत्रु हम से कहीं ज्यादा शक्तिशाली है। वो तुम दोनों को अगवा भी कर सकते हो या तुम दोनों की प्राण भी ले सकते हैं । "
बलदेव (मन मैं - ये बालक अब इतना बड़ा हो गया है कि तुम्हारी पत्नी को संभाल सकता है और तुम्हारे हाथ में जब पत्नी मेरा बालक देगी तब देखूंगा क्या कहते हो। )
राजपाल:तुम्हारी बात पूरी हो गई हो तो जाओ अब सीमा पर और मैंने जो सेनापति को बताया था और देखो की उस पर कितना काम हो रहा है । हमारे देश की सुरक्षा का प्रबंध करो । जाओ दिन रात अपनी बूढ़ी मां की बातों पर दिमाग मत लगाओ।
बलदेव: जो आज्ञा पिता जी !
बलदेव अपना सर झुकाता है।
मन में : महाराज राजपाल तुमने अपनी कुल्हाडी खुद अपने पैरो और दिमाग पर मारी है और देवरानी और बूढ़ी! हाहा! सठिया तुम गए हो वो नहीं।
कहानी जारी रहेगी
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08-15-2023, 08:16 PM,
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aamirhydkhan
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RE: महारानी देवरानी
महारानी देवरानी
अपडेट 52 A
पारस जाने की अनुमति
बलदेव को सीमा पार भेज कर राजपाल अपने कक्ष में जा कर आज की हुई घटना के बारे में सोचता है और देवरानी की बढ़ती हुई हिम्मत राजपाल को गहरी सोच में डूबो देती है।
इधर बलदेव अपने घोड़े पर बैठ के जाता है और सोच रहा था। के क्या युक्ति निकली जाए जिस से माँ को मैं पारस ले जा सकूँ। बलदेव कुछ समय सोचने के बाद अपना घोड़ा फिर महल की ओर घुमा देता है।
बलदेव मन में: मेरे पिता राजपाल अपने ऊपर या राष्ट्र पर हमले के डर से पारस जाना नहीं चाहते अगर मुझे बड़ी माँ सृष्टि के कानो में ये बात डाल दू की माँ पारस जाना चाहती है और अकेली जाने को भी त्यार है तो-तो वह पक्की चाहेगी के अपने जान जोखिम में डाल कर देवरानी पारस जाए क्यू के हमें पारस जाने के लिए दिल्ली के रास्ते से जाना होगा जहाँ हमारा दुश्मन बादशाह शाहजेब है।
यहीं सब बातें सोचते हुए बलदेव महल में आता है और सीधे अपनी बड़ी माँ को ढूँढने लगता है।
"बड़ी माँ...बड़ी माँ कहा हो आप?"
"सुनो लगता है। बलदेव आ गया है।"
"तुम जाओ यहाँ से"
बलदेव जैसा कक्ष में प्रवेश करता है तो देखता है। की महारानी रहृष्टि किसी पुरुष से बात कर रही थी और उसके आते ही वह चुप हो गई.
"बड़ी माँ आप यहाँ हो।"
"आओ बलदेव क्या हुआ बेटा?"
बलदेव जाते हुए पुरुष को ऊपर से नीचे तक देखता है।
"बड़ी माँ ये कौन था। इसे घटराष्ट्र में आज से पहले कभी नहीं देखा।"
"बलदेव ये हमारे घटराष्ट्र के पुराने गुप्तचर है।"
"अच्छा बड़ी माँ आपसे कुछ बात करनी थी।"
"तो कहो क्या बात है।"
"बड़ी माँ वह मामा देवराज ने हमें पत्र लिख कर न्योता दिया है, पारस आने का और मुझे भी बुलाया है । मेरा भी ननिहाल देखने का जी चाह रहा था।"
"तो समस्या क्या है, बलदेव?"
"वो बड़ी माँ आप ही हैं। जो मेरी मदद कर सकती हो।"
"वो कैसे बलदेव?"
"बड़ी माँ पिता जी पारस नहीं जाना चाहते क्यू के उनको डर है कोई हम पर या उनकी अनुपस्थिति में राष्ट्र पर हमला ना कर दे, क्यू के दिल्ली से बादशाह शाहजेब सैनिकों को उत्तर की ओर आने की सूचना मिली है।"
"पर बड़ी माँ मैं चाहता हूँ कि आप पिता जी को मनाएँ और वह कम से कम मुझे और माँ को जाने की आज्ञा दे-दे ।"
"अच्छा तो बलदेव ये बात है।"
शुरष्टि (मन में-में तो मनाऊंगी राजपाल को इस के लिए की वह तुम दोनों को जाने की आज्ञा दे ताकि जब तुम दोनों घटराष्ट्र से बाहर जाओ और तुम दोनों पारस पहुँचने से पहले स्वर्ग लोक पहुँच जाओ । ")
"बड़ी माँ कृपा कर के मेरे लिए इतना कर दीजिये"
बलदेव (मन में-महारानी सृष्टि तुम यही सोच रही हो ना की हम बहार जाए और शत्रु हम पर हमला कर दे और हम रास्ते में ही मर जाए.")
"ठीक है बलदेव। सिर्फ तुम्हारे लिए मैं महराज से बात करती हूँ क्यू के तुम मेरे सब से दुलारे पुत्र हो।"
सृष्टि मन में अगर मेरा शक ठीक है और उस दिन जो घुसपैठिया चादर छौड कर भागा था, वह चादर देवरानी की ही थी। तो बेटा बलदेव देवरानी का इतनी बरस बाद खुशी और हंसी का राज तुम हो।)
सृष्टि मुस्कुराति है। और बलदेव को देखती है। और ये सोच कर मन में कहती है।
"देवरानी तुम्हें भी अपनी आग बुझाने के लिए अपना बेटा ही मिला । तुम दोनों जाओ तो सही, पारस से वापस लौट के नहीं आओगे।"
"बलदेव अब तुम जाओ खड़े क्यू हो मैं तुम्हारा काम करवा दूंगी।"
बलदेव: "जी बड़ी माँ आप बहुत अच्छी हैं ।"
बलदेव (मन में-बड़ी माँ तुम्हारी मनो कामना कभी पूरी नहीं होगी कभी। मैं मेरी माँ के ऊपर, आंच भी नहीं आने दूंगा।)
बलदेव प्रणाम कर उसके कक्ष से निकल जाता है।
शुरष्टि जाते हुए बलदेव को देख मन में
"देवरानी आखिर कैसे ना अपने पुत्र पर मोहित होती, इतने लंबे चौड़े कद काठी का जो है। ऊपर से महाराज ने पिछले 17 साल से देवरानी को छुए भी नहीं है।"
और हसती है। हाहाहा देवरानी तुम्हें तो मैं तड़पा-तड़पा के मारूंगी, अगर तुम्हें घातराष्ट्र के शत्रु नहीं मार पाएंगे तो मैं मारूंगी। "
इधर बलदेव कक्ष से निकल कर जा रहा था। की उसे कुछ याद आता है और वह वापस अपनी बड़ी माँ सृष्टि के कक्ष की ओर आता है और उसकी हंसी सुन कर वही छिप कर सब देखने लगता है।
जल्दबाजी में सृष्टि पास रखी एक पेटारी को खोलती है और हमसे सांप निकाल कर बोलती है ।
"ये सांप तुम्हारे जीवन का अंत करेगा देवरानी, महल में तो इसके उपयोग करने से लोग तुम्हें बचा लेते पर अब ये तुम्हारे समान के साथ पारस जाएगा और रास्ते में तुम्हें ये डसेगा और वहाँ पर तुम्हें बचाने वाला कोई नहीं होगा ना कोई वैध ना कोई जड़ी।"
बलदेव तो ये देख और सृष्टि की बात सुन कर हैरान और परेशान हो जाता है और उसके माथे पर पसीना आने लगता है।
शुरष्टि: "पिछली काई बार तू बच गई है। इस बार मैं तेरे प्राण ले कर रहूंगी देवरानी।"
बलदेव दबे पाँव वहाँ से खिसक जाता है।
सृष्टि वापस से सांप को पेटारे में रख कर मुस्कुराती है।
"बेचारी देवरानी जीवन में खुशियाँ ढूँढने लगी हुई थी और बलदेव के साथ रंगरेलियाँ भी मनाने लगी थी, तुम्हे जीवन भर तड़पने का मेरा सपना पूरा हुआ और अब तुम्हें मरना होगा देवरानी, तुम्हारी हर एक हंसी हर खुशी मेरे जिस्म पर कांटे की तरह चुभती है। मैं नहीं चाहती कि तुम एक पल भी खुशी से जियो और जब तुम ने अपनी खुशी खोज निकली है बलदेव में तो अब तुम्हें मरना होगा और साथ में मैं बलदेव को भी नहीं छोड़ूंगी।"
ये सब सोचते हुए शुरू हुई महाराज राजपाल की कक्षा में आती है।
"आओ महारानी आप को ही याद कर रहा था।"
"महाराज आप की याद में हम यहाँ आये पर आप हमारी याद में हम कभी हमारी कक्ष में नहीं आते।"
"कहो महारानी श्रुष्टि आप की हम क्या सेवा कर सकते हैं?"
"महाराज हमने सुना है के देवराज का पत्र आया है।"
"हाँ महारानी हमारे साले साहब का पत्र आया है और उन्होंने हमें और देवरानी को पारस आने के लिए अमंत्रित किया है। पर हम ऐसी स्थिति में नहीं जा पाएंगे ।"
शुरष्टि (मन में आपका साला नहीं देवराज अब बलदेव का साला हो गया है। ") और एक मुस्कान के साथ-" महाराज हम समझ सकते हैं कि युद्ध कभी भी हो सकता है और आप अगर जाएंगे तो आप पर हमारे शत्रु से आक्रमण का भी खतरा है। "
"आप बिलकुल ठीक समझी महारानी"
"पर महाराज आप ना जा कर बलदेव और देवरानी को भेज सकते हैं ना।"
ये सब बात अपना कान लगाए बलदेव सुन रहा था। क्यू के वह अपनी माँ के ऊपर हमले के योजना जानना चाहता था और वह सृष्टि का पीछा करते हुए आ गया था।
"पर महारानी हमारे पास पहले ही कम सैनिक है। ये दोनों गए तो हम इनकी सुरक्षा के लिए इन्हें सैनिक कहाँ से देंगे?"
"बिना सैनिक के भी जा सकते हैं वह दोनों तो ।"
"पर महारानी उनकी जान को खतरा हो सकता है।"
"महाराज अब उन्हें अपनी जान जोखिम में डालनी है तो हमें क्या और वैसे भी आपको उनकी चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है।"
सृष्टि ये बोल कर राजपाल के पास आती है और उससे चिपक कर गले लग जाती है।
"महाराज अगर वह दोनों मर भी जाये तो ठीक होगा झंझट ख़तम हो जाएगा ।"
कहानी जारी रहेगी
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09-03-2023, 09:03 AM,
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RE: महारानी देवरानी
महारानी देवरानी
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मायके चलने का अनुरोध
सेनापति: (बूढ़ी हो गई है पर आज भी मुंह छुपाती है देवरानी "अपने मन में फुसफुसाता है। )
ये बात बलदेव अपने तेज कान से सुन लेता है।
बलदेव अपने पिता के सामने खड़े हो कर पुकारता है ।
"मां आजाओ अंदर सेनापति चला गया! "
देवरानी दरवाजे की आड़ से बाहर आती है और जो परदा उसने सेनापति को देख कर लीया था उसे उठा लेती है।
देवरानी एक अंदाज़ से मुस्कुराती हुई अंदर प्रवेश करती है ।
बलदेव;( मन में- गधे सेनापति अच्छा हुआ तूने परदा के उठने के बाद का दृश्य नहीं देखा । नहीं तो देवरानी की जवानी की गर्मी से जल कर राख हो जाता ! मेरी मां तो अब जा कर जवान हुई है इसे मैं अभी और जवान करूंगा।
"महाराज देवराज भैया का पारस से पत्र आया है। "
राजपाल अपने आसन से उठ खड़ा होता है।
"अच्छा साले साहब ने क्या लिखा है पत्र में? "
देवरानी पत्र खोल कर -"आपको प्रणाम कहा है और मेरे साथ आपको पारस आने का निमंत्रण दिया है।"
"देवरानी तुम्हें तो पता है ना मैं पिछले 18 साल में पारस नहीं गया क्यू के हमारे शत्रु बहुत हैं।"
"महाराज पता है पर. आप ये पत्र पढ़ें"
राजपाल पत्र पढ़ कर-"हां इसमें तो उसने अनुरोध तो किया है मिलने के लिए पर ये पत्र शमशेरा के दूत से आया है। इसका तुम्हे कुछ मतलब समझ में आता हो देवरानी? "
"नहीं महाराज !"
"हम कह नहीं सकते पर सूत्रों से पता चला है के पारस पर अब शमशेरा के पिता सुल्तान मीर वाहिद का राज है और उनकी नज़र में कुबेरी का खजाना है। "
"महाराज इस से तो वो राजा रतन सिंह का दुश्मन हो जाएगा ।"
"देवरानी पूरी दुनिया राजा रतन और मेरी मित्रता से परिचित है। संभावना है कि कुबेरी को प्राप्त करने के लिए हमरे घटराष्ट्र पर भी आक्रमण किया जा सकता है।"
परन्तु महाराज मुझे वर्ष हो गए मेरे परिवार से मिले । "
"देवरानी वो बात है अपनी जगह पर सही है कि शमशेरा हम पर हमला करेगा या नहीं हमे नहीं पता , पर दिल्ली के बादशाह शाहजेब ने तो तयारी भी शुरू कर दी है घाटराष्ट्र और कुबेरी पर हमला करने के लिए और कुछ सैनिक इस ओर आ रहे हैं। "
"ऐसे समय में देवरानी हमारा जाना खतरे से खाली नहीं होगा हमारे राष्ट्र पर कभी भी कोई आक्रमण कर सकता है और अगर हम पश्चिम की ओर जाते हैं तो इस हमले की सम्भावना बढ़ जायेगी । "
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ये सब बात सुन कर देवरानी का खुश चेहरा मुर्झा जाता है और अपने पास बलदेव और उसका साथ अपने पास महसुस कर उससे भी आज रहा नहीं जाता।
"महाराज आपने पिछले मुझे 18 वर्ष से हमले के डर के कारण ही मेरे परिवार से दूर रखा है और आज भी…"
गुस्से में ये शब्द देवरानी के मुँह से फूट पड़ते है।
राजपाल अपना दया हाथ देवरानी को मारने के लिए उठाता है।
राजपाल: देवरानी अपनी मर्यादा में रहो, हम से ऊंची स्वर में बात करने का परिणाम जानती हो !
"बलदेव पुत्र अपनी माँ से कहो हम से तर्क वितरक ना करे नहीं तो हम से बुरा कोई नहीं होगा!"
देवरानी के ऊपर जैसे वह राजपाल हाथ ऊँचा कर उसे डांटता है वो उसका दुख से गला भर जाता है और उसकी आंखों में आंसू गिर जाते हैं।
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"महाराज आपने हाथ उठाया है तो मार लो मैं मना नहीं करूंगी!"
"मां होश में आओ हम इस पर कुछ सोचेंगे!"
"चुप कर तू मेरे पिता ने कभी मेरे ऊपर हाथ नहीं उठाया, ना कभी पहले गुस्सा हुए । कभी मैं रानी थी पारस की। पर यहाँ आ कर बस नौकरानी बना दी गयी । मेरी चाहत के बारे में कोई नहीं सोचता! "
"चुप हो जाओ देवरानी तुम्हारा दिमाग तो ठिकाने पर है ना। "
देवरानी रोती हुई बोली -"नहीं होना चुप मुझे! मैं बहुत चुप रह ली । जब तुम रजाओ में इतना दम नहीं होता, जब सबकी इच्छा का सम्मान नहीं कर सकते, तो 10 विवाह क्यू करते हो ? "
"देवराआआआआआआआआआआआअनी! अगर मेरे हाथ में तलवार होती तो अभी मैं तुम्हारा सर धड से अलग कर देता! "
"बलदेव इस पागल को ले जाओ यहां से इसको बुढ़ापे के साथ इसका दिमाग भी काम करना बंद हो गया है ।" ले जाओ इसे बलदेव ! नहीं तो मैं धक्के मार कर भगाऊंगा इसे। "
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बलदेव:बस पिता जी!
देवरानी रोते हुए अब ज़मीन पर नीचे बैठने लगती है।
बलदेव झट से अपनी माँ को अपनी बाहो में पकड़ लेता है।
"चलो माँ ! "
देवरानी सिसकते हुए बलदेव के कंधों पर अपना सर रखती है और बलदेव देवरानी को उसके कक्ष में ले जाता है।
राजपाल वापस आसन पर बैठ कर-"आआआहहहह देवराअअअअअअणि " और एक जोरदार चीख से साथ अपने हाथ गद्दे पर मारता है और अपने गुस्से पर काबू करने का प्रयास करता है ।
बलदेव इधर अपनी मां को ला कर बिस्तर पर बैठाता है फिर अपने हाथो पर थोड़ा गुलाब जल ले कर मां का चेहरा जो आंसू से भरा था उसे धोता है और फिर कपड़े से पूंछता है।
बलदेव: माँ रोना बंद करो!
देवरानी: तुमने सुना ना कैसे मुझे अपमानित कर के भगाया उसने!
बलदेव अपनी माँ की आँखों पर हाथ फेरते हुए कहता है -"रोते नहीं मेरी रानी चुप हो जाओ! "
"अगर तुम सच में मेरे साथ प्रेम करती हो तो चुप हो जाओ, अब मैं नहीं कहूँगा चुप हो जाऊँगा ।"
ये सुन कर देवरानी बलदेव से गले लग जाती है और थोड़ी देर आखे बंद कर दोनों एक दूसरे के दिल की धड़कन सुनते रहते हैं।
कुछ देर बाद बलदेव चुप्पी तोड़ता है।
बलदेव: माँ तुम चिंता मत करो तुम्हारे हर अपमान का बदला लिया जाएगा।
देवरानी:मुझसे अब और सहन नहीं होता! बलदेव बहुत सह लीया ! देखा ना तुमने कैसे बात कर रहा था । वो मुझसे कह रहा है "इसे भगा दूंगा! " सृष्टि को आप कहता हैं "उनको" कहता है। जैसे वो बहुत बुद्धिमान हो।
बलदेव: आपको सम्मान राजपाल जैसे व्यक्ति से लेने की जरूरत नहीं, मैं आपका सम्मान करता हूं । एक दिन आपका हर कोई सम्मान करेगा। किसी की भी हिम्मत नहीं होगी वो आपको "तुम" कह दे। इसको, उसको उनको नहीं कहेगा । और अपमान करना तो बहुत दूर की बात है बस आप थोड़ा धैर्य रखो ।
देवरानी: बलदेव अब क्या करे हम?
बलदेव: माँ आप आराम करो! मैं कुछ सोचता हूं और प्रयास करता हूं। दोपहर के भोजन के बाद मैं राजपाल और सृष्टि दोनों से मिलूंगा ।
दोपहर के भोजन पर देवरानी और बलदेव गुमसुम हो भोजन कर के उठ जाते है और बलदेव कुछ सोच कर अपने पिता के कक्ष में जाता है।
बलदेव:पिता जी!
राजपाल: आओ बलदेव!
थोड़ा धीरे से उठ कर कहता है।
"पिता जी बात ये है कि मेरे पास एक सुझाव है इस समस्या का। "
"क्या सुझाव है बलदेव! "
"देखिये आप के हिसाब से शत्रु आप पर आक्रमण कर सकता है पर शत्रु मुझे या माँ को तो नहीं जानता। "
"तुम्हारे कहने का अर्थ क्या है? "
"यही पिता जी आप अगर नहीं जाते हैं पारस और माँ के साथ मैं जाऊं तो। "
"अभी तुम बालक हो मैंने ये पहले सोचा था कि पर शत्रु हम से कहीं ज्यादा शक्तिशाली है। वो तुम दोनों को अगवा भी कर सकते हो या तुम दोनों की प्राण भी ले सकते हैं । "
बलदेव (मन मैं - ये बालक अब इतना बड़ा हो गया है कि तुम्हारी पत्नी को संभाल सकता है और तुम्हारे हाथ में जब पत्नी मेरा बालक देगी तब देखूंगा क्या कहते हो। )
राजपाल:तुम्हारी बात पूरी हो गई हो तो जाओ अब सीमा पर और मैंने जो सेनापति को बताया था और देखो की उस पर कितना काम हो रहा है । हमारे देश की सुरक्षा का प्रबंध करो । जाओ दिन रात अपनी बूढ़ी मां की बातों पर दिमाग मत लगाओ।
बलदेव: जो आज्ञा पिता जी !
बलदेव अपना सर झुकाता है।
मन में : महाराज राजपाल तुमने अपनी कुल्हाडी खुद अपने पैरो और दिमाग पर मारी है और देवरानी और बूढ़ी! हाहा! सठिया तुम गए हो वो नहीं।
कहानी जारी रहेगी
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