05-21-2023, 01:58 PM,
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aamirhydkhan
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RE: महारानी देवरानी
महारानी देवरानी
अपडेट 11
प्लान
कमला: युवराज अभी भोजन करने चलें। आप मुझे शाम में झील के पास मिलिए मुझे आपसे कुछ बात करनी है।
उस शाम सूर्य ढलते ही बलदेव ये सोचते हुए पता नहीं कमला क्या बात करना चाहती है, कहीं वह मेरे इज्जत और सम्मान को बचाये रखने के बदले में कुछ मांग तो नहीं करेगी? वह जा कर झील किनारे बैठ जाता है और प्रतीक्षा करने लगता है। हलका अँधेरा छाने लगा था। सूर्यस्त देखते-देखते उसे पता ही नहीं चलता की उसके बगल में कमला आ कर बैठ गयी है। ये पहली बार था जब युवराज के बराबर में कमला बैठी थी। फिर बलदेव उसे देख कर पूछता है ।
बलदेव: मुर्झाया-सा मुह ले कर "तुम कब आई?"
कमला: आप किसके याद में थे जो आपको मेरे आने का पता नहीं चला?
बलदेवः किसी की नहीं।
कमला: कहीं महारानी की याद में तो नहीं?
बलदेव हल्का क्रोधित हो कर कमला को देखता है।
"बोलो क्यों बुलाया क्या काम है?"
कमला: जब मैंने पहली बार आपको और महारानी को देखा था तभी समझ गई थी कि आप दोनों में कुछ खिचड़ी पक रही है"जैसे आप दोनों एक दुसरे को घूर रहे थे फिर आप दोनों का गले लगना। सहलाना।"
बलदेव: इसमें माँ की कोई गलती नहीं है। वह तो मैं ही बेहक गया था।
कमला: बड़ी चिंता है माँ की। पूरा दोष अपने ऊपर ले रहे हो।
बलदेव: हम्म!
कमला: देखे युवराज में अपने आप से ज्यादा महारानी को चाहती हूँ। मैं उनको दुख में बिलकुल नहीं देख सकती।
बलदेव: हम्म!
कमला: मैंने आप दोनों में सच्चे प्यार का दिया जलता हुआ देखा है और मुझे इस से कोई आपत्ति भी नहीं है।
अब बलदेव के सांस में सांस आती है।
कमला: पिछले 18 साल में कभी उन्हें इतना खुश और चैन कि नींद सोते हुए नहीं देखा है जितना अब देख रही हूँ, मैंने उनको खून के आसु रोते देखा है, उन्हें ना पति का प्यार मिला ना, उनके भाई या बाप का, ना ससुराल वालों का, सबने उनका सिर्फ समय-समय पर इस्तेमाल ही किया है।
उन्होंने अपने पति के प्यार के बिना इतने साल गुजारे हैं सिर्फ तुम्हारा मुह देख कर, नहीं तो किसी औरत के बस की बात नहीं कि वह अपने आप पर, अपनी इच्छाऔ पर काबू कर ले और महाराज को तुम्हारी बड़ी माँ ने तुम्हारी माँ के साथ मिलन से रोक दिया। फिर महाराज ने भी तुम्हारी माँ से ऐसी दूरी बना ली जैसी कि वह दुनिया की सब से बदसूरत औरत हो।
कमला: बोलिए युवराज आप मेरे बेटे जैसे है "क्या आपको देवरानी पसंद है"।
बलदेव चुप चाप एक गहरी सोच में डूबा था कि वह क्या कहे और करे"।
बलदेव: मैं क्या कहू मेरे पास उत्तर नहीं है।
कमला: वही जो आपका दिल कहे।
बलदेव: हाँ में उनसे प्रेम करने लगा हूँ! उनकी बोली से, उनके अंदाज से, उनकी सोच से, मेरा प्रेम सिर्फ शरीर तक सिमित नहीं है, मेरी आत्मा में बस चुकी है वो।
कमला: (हल्का मुस्कुराते हुए) हा-हा मैं समझ सकती हूँ दिन में महारानी की ऐसी प्रस्तुति के बाद आप फिसल गए और उनका शरीर ही ऐसा है कि कोई भी उन्हें ऐसे देख कर फिसल जाए।
बलदेव: हाँ वह तो है में तो उनके सामने कुछ भी नहीं हूँ।
कमला: नहीं युवराज आप जैसा भी कोई नहीं है। महारानी जैसी शरीर की मलिकिन के उपयुक्त आपका शरीर ही है।
बलदेव इस बत पर हल्का मुस्कुरा देता है और अपनेमूछ पर ताव देता है।
कमला: इतना भी नहीं है आपको संयम बरतने और व्यवहार के बारे में अभी बहुत कुछ सीखना होगा। महारानी के जिम्मेदरी उठाने लायक बनने के लिए भी अभी आपको बहुत कुछ सीखना है।
बलदेव: तो क्या करें हम कमला जी।
कमला: अब तो सब ठीक है पर आज एक नया मोड़ आ गया है वह नहीं बताया आपको।
बलदेव: कैसा मोड।।
कमला: थोड़ा चिन्तित होते हुए, बात ये है कि महारानी आज मुझे मिलीतो उन्होंने मुझे कुछ कहा। और उसके बाद युवराज को वह सब बात बता दी जो महारानी ने सुबह की थी।
ये सून के उसकी माँ अपनी प्यास बुझाने के लिए कोई और पुरुष ढूँढ रही है बलदेव की आँख भर आई।
बलदेव: शायद वह अभी मुझे एक पुरुष के रूप में नहीं देखती।
कमला: नहीं ऐसा नहीं उनकी सेहन शक्ति हम से कोई गुना ज्यादा है और इतने सालो सब कुछ सहन करती आई है, वह इतनी संस्कारी है कि वह चाहते हुए भी समाज विरुद्ध नहीं जा सकती। जिस स्त्री ने इतने सालो से कभी गैर मर्द की ख्वाहिश नहीं की, मुझे लगता है कि वह किसी और से सम्बंध रख कर, आपके के लिए अपने प्यार को दबाना चाहती है।
बलदेव: अगर ऐसा न हुआ तो और वह सच में उन्हें मैं नहीं चाहिए और वह सचमुच किसी अन्य पुरुष से सम्बंध रखना चाहती है, ना कि मेरे प्यार को दबाने के लिए फिर?
कमला: तुम्हारा दिल क्या कहता है? जैसे हमारे सामने दिन में आधी नंगी आ गई जैसे तुमसे चिपकती है। वह सब क्या है? क्या एक बेटे से ऐसा करते हैं?
बलदेव: दिल तो कहता है कि उसे भी प्यार है पर दिमाग नहीं मानता।
कमला: दिल की सुनो और वैसे भी एक बारी प्रयास कर देखो पता लगा लो कि आखिर वह चाहती क्या है?
बलदेव: हाँ ये ठीक रहेगा।
कमला: अगर सब कुछ सही रहा तो महारानी का भार संभलने के लिए त्यार रहो, विशेष तौर पर वैसे जैसे उस पुस्तक के चित्र में था।
बलदेव: याद करते हुए उस चित्र जिस्मे स्त्री को पुरुष खड़े-खड़े अपने गोद में बैठा अपना लैंड पेल रहा था उसके चेहरे पर एक मुस्कान फ़ैल जाती है "नहीं कमला वह सब कला है ऐसा सच में नहीं होता है"।
कमला: होता है, युवराज होता है> जब उतनी उर्जा हो तब होता है और मझे यकीन है आप वह कर लोगे और हसने लगती है।
बलदेव शर्मा के मारे अपना सर झुका देता है।
बलदेव: वह छोड़ो ये बताओ अब आगे क्या करना है?
कमला: में महारानी के कहे अनुसर उसके लिए एक पुरुष ढूँढूंगी।
बलदेव: (विचलित हो कर) क्या?
कमला: पूरी बात सुनिये युवराज, वह पुरुष कोई और नहीं तुम ही हो। मैं उनके पास पत्र पहुँचाउंगी की कोई उनसे प्रेम करता है। तुम्हे बस अपना नाम बदल कर पत्र देना है फिर आप दोनों पत्र के द्वारा बात आगे बढ़ाओ।
बलदेव: फिर?
कमला: आगे की बात आगे बताऊंगी।
कल पत्र दे देना और हा अपना नाम शेर सिंह लिख देना। आज में उन्हें बताउंगी कि कोई शेर सिंह ने कुश्ती मैदान में उन्हें देखा था और वह उनको देख कर पागल हो गया है, समझ गए न तुम? उन्हें पटाओ पर किसी और नाम का प्रयोग करो।
बलदेव: ठीक है कमला जासूस। करते हैं ।
फिर दोनों उठ जाते हैं कमला देवरानी की ओर चली जाति है और बलदेव वैध जी कक्ष में चला जाता है।
जारी रहेगी
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05-24-2023, 06:56 PM,
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aamirhydkhan
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RE: महारानी देवरानी
महारानी देवरानी
अपडेट 12
प्रेम प्रस्ताव
युवराज बलदेव सीधा वैध जी के पास जाता है जहाँ पर वैध जी अपने कक्ष में बैठ कर योग कर रहे थे।
बलदेवः प्रणाम गुरु देव!
वैध: आओ बालक, तुम भी बैठो और आसन करो।
बलदेव वैध के सामने बैठ कर अपनी टाँगे मोड़ के आसान करने लगता है । दोनों कुछ देर योग करने के बाद डोनो उठ कर कुर्सी पर बैठते हैं और वैध जी बलदेव को कुछ आसन और जड़ी बूटी की ज्ञान देने के बाद वैध जी उसे कुछ बूटीया खाने को देते हैं।
वैध: लो बालक इस से तुमहारी उर्जा में बहुत वृद्धि होगी।
कमला देवरानी के कक्ष में पहुँचती है तो देखती है कि वह अपने कक्ष में बने छोटे से मंदिर के सामने हाथ जोड़ कर पूजा कर रही है।
कमला भी चुप चाप उसके पीछे खड़े हो कर उसके भजन सुनने लगती है, इतने मधुर आवाज में देवरानी गा रही थी की पूजा खतम होते ही प्रसाद ले कर देवरानी कमला को देती है और फिर खुद खाती है।
कमला: कृष्ण कन्हैया। आपकी बरसों की तपस्या से खुश हो गए हैं महारानी।
देवरानी: तुमहे कैसे पता।
कमला: क्योंकि में एक ऐसी खबर ले कर आई हूँ जिसे सुन कर आप खुशी से पागल हो जाएंगी।
देवरानी: बोलो फिर।
कमला: (कमला झूटी कहानी बनाने लगी।) बात ये है कि आज में झील के पास जा रही थी तभी वहा पर एक घोडे से एक लंबा ऊंचा कद का कोई राजा आया और मुझे देख कर बोला, सुनो तुम रानी देवरानी की दासी हो ना। मेने कहा।
कमला: जी हाँ आप कौन हो।
उसने अपना नाम शेर सिंह बताया।
शेर सिंह: मेरा नाम शेर सिंह है। कमला मझे तुमसे जरूरी काम है।
कमला: बोलो क्या काम है।
शेर सिंह: मुझे तुम्हारी रानी देवरानी पसंद आ गई है और मैं उन्हें कल अपना पत्र देना चाहता हूँ तुम उन्हें बता देना और कल इसी समय यहाँ आजाना।
कमला: पर तुम हो कौन और महारानी को कैसे देखा।
शेरसिंह: मैं पड़ोस का राजा हूँ और देवरानी को मैंने कुश्ती मैदान में देखा था जहाँ में भी उपस्थित था।
इतना कह कर वह अपना घोड़ा दौड़ाते हुए वापस चला गया।
देवरानी: वैसे दिखने में कैसा था? क्या कोई पागल लग रहा था?
कमला: बहुत ही बलवान, मैं तो कहूंगी महारानी आप ये मौका न छोड़ो।
देवरानी: पर कुछ उल्टा हो गया तो!
कमला: भगवान ने उसे तुम्हारे पास तुम्हारी खुशियाँ ले कर भेजा है।
देवरानी: हम्म! ठीक है देखती हूँ ये शेर सिंह क्या चीज है और कल तुम जा कर उसका पत्र ले आओ और अंदर ही अंदर उसे शर्म भी आ रही थी कि आज वह किस मोड़ पर है, फिर कमला चली जाती है।
देवरानी तुरंत अपना दरवाजा बंद कर के अपने बिस्तर के नीचे से कामसूत्र के पुस्तक निकल कर चित्र देखने लगती है और पढ़ने लगती है।
"हाए! ये कैसा मिलन है ये स्त्री लिंग पर बैठी है और पुरुष सीधा लेटा हुआ है"
फिर पन्ने को पलटती है तो देखती है
"ये स्त्री तो अपनी योनी को पुरुष के मुह में दे कर बैठी है" ,
और
"इसमें तो इस्त्री लिंग को अपना मुह में भरा है" ये लोग ऐसे कैसे कर रहे हैं। विचित्र है। आज तक मैंने ऐसा तो सुना भी नहीं है
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"इसमें तो कुत्ते की तरह चोद रहा है" और वह एक हाथ ले जा कर अपनी बुर पर रगड़ती है।
इधर सृष्टि महारानी महाराज राजपाल को अपने आलिंगन में ले कर उनसे चिपकी हुई थी।
सृष्टि: महाराज आप क्या सोच रहे हैं।
राजपाल: यही के राजा रतन का फिर पत्र आया है और उन्हें अंदेशा है कि उनके राज्य पर फिर आक्रमण हो सकता है इसलिए हमें तैयार रहने को कहा है, हमें कभी भी उनके पास जाना होगा।
शिष्टि: जब जाना होगा तब आप चले जाना । आज क्यों इस बारे में इतना सोचना।
और रानी सृष्टि अपनी टाँगे महाराज की टांगो पर बंद कर लेती है और अपना बड़े-बड़े वक्ष को महाराज के कंधे से रागदने लगती है। महाराज एक हाथ से उसके वक्ष को दबाते हुए दुसरे से उसका उभरा हुआ पेट सेहला रहे थे, तब रानी सृष्टि राजा राजपाल के ऊपर बैठ जाती है और अपना ब्लाउज़ और साड़ी खोल कर अपने वक्ष राजपाल के मुँह पर रगड़ती है। फिर उसकी धोती को खोल उसका 2 इंच का लिंग जो सोया था उसे हाथ से थपथपाकर जगाने की कोशिश करती है, बहुत मुश्किल के बाद लिंग हल्का-सा खड़ा होता है और अब वह सिर्फ 4 इंच का हो गया था। अब सृष्टि एक हाथ से लंड पकड कर धीरे से अपनी योनि में सटा कर बैठ जाती है और राजा का लंड योनि में घुस जाता है, वह अभी दो बार ही ऊपर निचे अभी हुई की राजा राजपाल के हाथ पैर ठन्डे पड़ जाते है और वह अपनी आँखे मूँद लेता है।
सृष्टि: अब आप महाराज ऊपर आ जाईये।
राजपाल: जी और सृष्टि को नीचे लिटा कर खुद उसके ऊपर आ जाता है और लंड योनि में डाल कर दो धक्के लगाता है और झड़ जाता है। सृष्टि जो अभी 49 वर्ष की भी नहीं हुई थी राजपाल से ठंडी और संतुष्ट नहीं हो पाती थी और उसकी आंखों के आसूं उसकी आंखों में ही सूख गए थे और इस 60 वर्षीय बूढ़े से और उम्मीद भी क्या की जा सकती थी इसलिए वह अपना मन मार कर लेट जाती है।
इधर वैध जी अपने कक्ष में अपने पूरे बदन की मालिश कर रहे थे और तेल मल रहे थे। अब वह तेल अपने लिंगपर मल रहे थे पर उनको ध्यान नहीं रहा कि उनके कक्ष की खिड़की खुली हुई है जहाँ से कोई भी उन्हें देख सकता था और हो भी ऐसा ही रहा था। कमला जो महारानी जीविका की औषधि खत्म होने पर और औषधि लेने आई थी। उसकी दोनों आँखे वही जम गई थी, जब उसने वैध जी को आपने लिंग का मर्दन करते हुए देखा।
वैध जी निरंतर अपने लिंग को जड़ी बूटीयो के तेल से मलिश किये जा रहे थे और अब उनका लिंग खड़ा हो कर लगभाग 7 इंच का हो गया था जिसे देख कमला के मुह से "हाय राम! इतने बूढ़े में ऐसी शक्ति" और फिर उसने अपने मुह पर हाथ रख लिया ।
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कमला की आयु अभी 50 वर्ष की थी पर काम काज करते रहने से उसका बदन गठीला था और उसकी लम्बाई सिर्फ 5. 4 की थी। लम्बाई के हिसाब से उसे वक्ष इतने बड़े थे के नाभी तक लटक जाते थे। उसके पति को मरे पूरे तीन साल हो गए थे।
कमला कुछ सोच कर वापस जाने लगती है फिर उसके दिल में कुछ आता है और वह मुस्कान के साथ वैध जी के कक्ष के दरवाजे पर जा कर दरवाजा खटखटा देती है जो की बंद था।
वैध जी तुरंत अपना धोती पहने हैं और दरवाजा खोलते हैं।
वैध: कहो क्या काम है।
कमला: अंदर से मुस्कुराए हुए "वो महारानी जीविका की औषधि खत्म हो गई थी।"
वैध: अच्छा अंदर आओ।
कमला अंदर आती है पर उसकी नज़र सिर्फ धोती पहनने वैध पर थी। उनका बदन तेल से चमकते हुए देखने से कमला की नज़र नहीं हट रही थी, जिसे वैध भांप लेता है।
वैध: ये पलंग के निचे बरतन में जो औषधि हैं उसे ले जाओ।
कमला वैध के सामने झुकती है और अपनी बड़ी गांड को निकाल कर वैध के लिंग से रगड़ती हुई निचे बैठती है और औषधि उठा कर फिर उठाते समय पुनः अपनी गांड उनके लिंग से रगड़ती है इस बार खड़े कंद को जोर से रगड़ने के कारण कमला कर मुह से "आह" निकल जाती है।
कमला औषधि ले कर जाने लगती है और दरवाजा पर जा कर मुड़ती है और मुस्कुरा कर बोलती है "बाबाजी ये खिड़की बंद कर लिया करो ठंडी हवा चल रही है।"
बदले में वैध भी एक मुस्कान देता है और कमला खिलखिलाकर जल्दबाजी में चलो जाती है।
वैध जी को समझते हुए देर नहीं लगती के इसने मेरा लौड़ा देख लीया है क्योंकि ये खिड़की खुली हुई थी। इसी लिए ये खिड़की बंद करने के लिए कह कर गई है और वह अंदर ही अंदर कमला की गांड से जमीन रगड़ कर खुश था।
अगला दिन सामान्य गुज़रता है और शाम को कमला युवराज से अकेले में मिल कर एक पत्र जो शेर सिंह बन कर लिखा था वह ले लेती है।
कमला: देखते हैं के वह शेर सिंह को चयन कृति है या अपने बेटे बलदेव सिंह का।
बलदेव: अगर माँ शेर सिंह से मिलाप करने के लिए राजी हो जाति है तो उनको हमेशा के लिए भूल जाऊंगा, भूल जाऊंगा के मैंने प्रेम क्या था कभी।
या कमला पत्र ले कर देवरानी के कक्ष की ओर चल देती है।
कहानी जारी रहेगी
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05-26-2023, 05:00 PM,
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aamirhydkhan
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RE: महारानी देवरानी
महारानी देवरानी
अपडेट 13
प्रेम पत्र, वैध और दासी
शेर सिंह के तरफ से जो प्रेम पत्र बलदेव ने लिखा था उसका उदेशय यही था कि वह अपनी माँ के दिल का हाल जाननेा चाहता था। क्या उसकी माँ ने उससे सच में प्यार किया है या सिर्फ उसे एक पुरुष की जरूरत है जिसे वह अपनी शारीरिक जरूरतों के लिए इस्तेमाल करें। तो वह बेटे के बारे में कभी सोचेगी भी नहीं।
कमला वह प्रेम पत्र ले कर देवरानी के पास जाती है और कमला को देख देवरानी की सांसे बढ़ जाती है और वह मुस्कुराती है।
देवरानी: पत्र लेते हुए और यहाँ आने तक किसी ने तुम्हे देखा तो नहीं?
कमला: नहीं महारानी जी कमला इतनी बेवकूफ नहीं है।
देवरानी: अच्छा!
कमला: जी ये लो अपने आशिक का पत्र और हाँ अपने पति से छुपा कर पढ़ना।
देवरानी: मुस्कान देती है।
कमला: मैं आती हूँ फिर आगे क्या करना है आप बताना।
कमला उसके बाद सीधी सीढ़ियों से होते हुए ऊपर बलदेव के कक्ष में प्रवेश करती है और बलदेव को गहरी सोच में देखती है।
कमला: क्या हुआ इतना क्या सोच रहे है आप युवराज?
बलदेव: क्या कहा माँ ने?
कमला: महारानी ने कहा वह बताएंगी उत्तर देना है के नहीं?
ये सुन कर बलदेव की जान में जान आती है। फिर कमला वापस नीचे आ कर अपने काम में लग जाती है।
देवरानी पत्र लेकर अपना दरवाजा बंद कर के उत्साह के साथ पलंग पर बै के पत्र को खोलती है और पढ़ने लगती है।
प्रिये देवरानी,
में हू शेर सिंह आपके राज्य के पास ही मेरा राज्य है। बात उस दिन है जब तुम कुश्ती देखने आई थी और वहा पर अनेक राजो के साथ में भी निमंत्रन पर कुश्ती देखने आया था। जब पहली बार तुमको देखा तो एहसास हुआ के स्त्री ही है जिसे भगवान ने सबसे ज्यादा सुंदर बनाया है और मैंने अपने जीवन में कभी भी इतनी सुंदर स्त्री नहीं देखी है। तुम्हारी मुस्कान ने मेरे दिल पर ऐसा कब्ज़ा किया है कि अब में तुमसे प्रेम करने लगा हूँ और तुम्हे अपनी महारानी बनाने का इच्छा रखता हूँ, अगर तुम साथ दो तो ऐसा बहुत जल्दी हो सकता है और मुझे पता है तुम अपने इस जीवन से खुश नहीं हो और दिन रात भगवान की साधना में लगी रहती है। लेकिन अब और नहीं अब तुम्हे प्यार की साधना में डूब जाना है।
उत्तर की प्रतीक्षा में।
शेर सिंह।
ये पढ़ कर देवरानी गदगद हो जाति है। उसने अपने जीवन में पहली बार प्रेम पत्र पढ़ा था। तभी उसके कानो में कमला की आवाज गूंजती है और वह होश में आते हुए दरवाजा खोलती है।
कमला: आप क्या कर रही थी महारानी?
महारानी: कुछ नहीं।
कमला: अपने पत्र पढ़ा।
महारानी: हाँ और मुस्कुरा कर बोलती है हम अभी उत्तर लिखने के लिए समय लेंगे। अगर तुमसे वह आज मिले तो उन्हें कह देना।
कमला: मन में मन। (ये कामिनी गांड बेटे से रगड़वाती है। प्रेम के भूत ने इसको बलदेव के कारण पकड़ा है और अपनी चुत की कुटाई इसको किसी और से करवानी है, मैं ये होने नहीं दूंगी महारानी! और मुस्कुरा देती है और मेरे रहते हुए तो ये कतई सम्भव नहीं होगा! ")
कमला: ठीक है महारानी!
फिर वह वहा से ऊपर बलदेव के कक्ष में आती है, बलदेव कमला को देख झट से उठा खड़ा होता है।
बलदेव: क्या प्रतिक्रिया है माँ की?
कमला थोड़ा उदास होते हुए।
कमला: वह उत्तर देने के लिए मान गई है।
बलदेव ये सुन कर फिर से वही कुर्सी पर बैठ जाता है और उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे। "
कमला: चुप क्यों हो युवराज?
बलदेव: अब ये साफ हो गया उनके दिल में मेरे लिए कोई प्रेम नहीं है उन्हें सिर्फ एक पुरुष की जरूरत जो कोई भी मिल जाए तो उसके साथ वह चली जाएगी। मुझे छोड़ देगी।
कमला: ऐसा नहीं है युवराज।
बलदेवः बस करो अब कमला ये। मैं भी अब ये सब बंद करूँगा अब और नहीं और तुम भी (थूक गुटकते हुए) माँ के लिए कोई देख लो और ये पत्र में उसे शामिल कर लो और बुझा लेने दो देवरानी को अपनी प्यास। (हल्का क्रोधित हो कर बोला।)
कमला: युवराज। तमने दुनिया नहीं देखी है अभी, प्यास तो वही बुझती है जहाँ प्यार होता है और तुम बड़े प्रेमी बन रहे थे मजनू बन रहे थे और अब इतनी जल्दी हार गए?
बलदेव: हा हाँ में हार गया।
कमला: तुम्हें नहीं हारना है बलदेव। ये प्रेम में पागल लोगों को सहना पड़ता है और प्रेम की आग में कूदे हो तो जल कर नहीं इससे खेल के निकलो, डरो मत, डट के मुकाबला करो। तुम बलदेव हो बलदेव।
बलदेव: क्या करे हम।
कमला: सुनो ये जंग अब तुम्हारी यानी के एक बेटे के प्रेम और एक अनजान व्यक्ति शेर सिंह की है, तुम्हें शेर सिंह को हराना होगा, तुम अपने माँ को इतना प्यार दो कि वह शेरसिंह से मिलाप के लिए तैयार नहीं हो और डरो नहीं। मुझे यकीन है महारानी जो अपनी और अपने प्रेम की बली देने जा रही है। इसे समझ कर डर से वह नहीं कर पाएगी।
बलदेव: हम्म!
कमला: मुझे पूरा यकीन है कि वह एक अंजान व्यक्ति के साथ कभी नहीं जाएगी और तुम्हें ही अपना वर चुनेगी। बस तुम्हें अब अपना पुरुष कला से अपनी माँ को पटाना होगा। हर कदम पर एहसास दिलाना होगा कि तुम ही हो जो उसे हर प्रकार से खुश रख सकते हो।
बलदेव: तुम सही कहती हो मुझे हार नहीं माननी है।
कमला: और युवराज आप इतने समझदार हैं कि पुरुष कला आपको सीखाने की जरूरत नहीं है और मुस्कुराती है।
बलदेव भी बदले में एक मुस्कान देता है।
कमला: और हाँ अगर महारानी तुम्हारी हुई और घाटराष्ट्र ने स्वीकार कर लिया तो अगले महाराज तुम ही हो।
बलदेव आश्चर्य से दर्शाता है।
कमला: हाँ महारानी को उड़ा लो और अगर राज्यवासी विद्रोह नहीं करे तो, घटकराष्ट्र के नियमों के अनुरूप फिर तुम ही राजा होंगे।
कमला: ठीक है तुम अपने का पर ध्यान दो और प्रेम पत्र का भी तुम शेर सिंह बन के उत्तर देते रहना परन्तु स्मरण रहे शेरसिंह की और महारानी के मिलने की स्थिति ना आए. उससे पहले अपना काम कर लो और फिर कमला वहा से चली आती है।
बलदेव अपने मन में सोचते हुए "शेरसिंह क्या मेरी देवरानी को मुझसे कोई नहीं छीन सकता, वह सिर्फ मेरी है सिर्फ मेरी।"
और जोश में आकर "मैं यानी के महाराजा बलदेव सिंह ये शपथ लेता हु की में देवरानी को अपनी बना के रहूँगा। मेरी बात यानी के पत्थरों की लकीर।"
ऐसे ही रात हो जाती है और चारो तरफ दियो की रोशनी जग मग करने लगती है। घाटराष्ट्र में कमला और जितने भी दास दासिया थे वह भोजन बना कर राज महल से बाहर आने लगते हैं और अपने-अपने घर जाने लगते हैं। कोई पास [b]के गाव में रहता है तो कोई दूर के गाँव में। रात भर महल के चारो तरफ सैनिकों का पहरा होता है। पर राज महल में सिर्फ राज परिवार ही रहता है बाकी लोगों के लिए अलग से राज दरबार के पास जहाँ सभा लगती है वहाँ पर निवास के महल थे। उसके बगल में सैनिकों का गृह और भोजन घर था और अतिथि गृह भी उधर ही था।[/b]
वही अतिथि गृह था जो महल से निकलते ही सीधा दिखता था।
अतिथि गृह के पास बैठ वैध जी छत पर कुछ जड़ बूटी बिछा रहे थे जिस जाती हुई कमला देख लेती है और उनके पास जा कर आचार्य से बोलती है।
कमला: वैध जी ये आधी रात में क्या सुखा रहे हो, उन्हें धुप में सुखाना होता है।
वैधः अरे कमला तुम।
कमला: हाँ हम! हमने जो पूछा है उसके बारे में बताईये।
वैध मुस्कुराते हुए.
वैध: बात ये है कि इसे धूप की नहीं ओस की आवश्यकता है जब रात में ओस का पानी इन ख़ास जड़ बूटी पर लगेगा तो इसका प्रभाव मनुष्यो के लिए दुगना हो जाएगा। वैसे वैध मैं हूँ तुम नहीं।
कमला: तुनक के, वैध! " मैं सब जनती हु वैध जी आप क्या करते हैं इन जड़ बूटियो का।
वैध जी: शर्माते हुए ऊपर से नीचे तक कमला को देखता है ऊपर से नीचे तक सावला गोल चेहरा बड़े पपीते जैसे लटके हुए वक्ष मोटी कमर और नाभि के नीचे मोटी गोल गांड।
वैध: कमला जिस काम से सेहत अच्छी हो वैध जी वही करते हैं। "
कमला: हा हाँ वैध जी ठीक है।
वैध: वैसे तुम कहा रहती हो?
कमला: पास के गाँव में, मुझे पानी की प्यास लग गई है।
वैध: कमला पानी अंदर है जा कर मटका से जल ले कर पी लो।
फिर वैध अपने काम में लगा रहता और कमला पानी पीने वैध जी के कक्ष में घुस जाती है वही पर उसे वह तेल की शीशी और बिस्तर दिखता है जहाँ पर वैध अपने लिंग पर तेल लगा कर मालिश कर रहे थे वह याद आते ही उसकी चूत में चींटी रंगने लगती है और मटका जो के कपडा ढका हुआ था, उसके पास खड़ी हो कर वह जोर से बोली।
कमला: "वैध जी ओ वैध जी आपका मटका कहा है?"
वैध जी तुरत अंदर आते हैं "यही पर तो था तुम्हे दिखाता है नहीं"
और देखता है कि कमला अपना गांड निकले खड़ी थी और कपडे से ढका मटका और ग्लास वही उसके सामने था।
"कमला तुम्हें कुछ नहीं दिखता, वह तुम्हारे सामने है मटका"
कमला कहती है "कहा है?"
वैध जी थोड़ा झल्लाते हुए, कमला के पीछे जाते हैं और हाथ आगे बढ़ा कर कपडा हटा के मटके पर से ग्लास उठाते है और पानी निकले के लिए जैसे ही ग्लास अंदर डालते हैं, वैध जी कमला से पीछे से चिपकते हैं और उनका लंड बिना देरी किए, खड़ा हो कर कमला के गांड से सट के अंदर घुस जाता है और कमला की आंखे बंद हो जाती हैं।
कमला: "आह!"
कमला की तीन साल प्यासी चुत ऐसे तड़प जाती है जिसे एक मुसल लौड़ा ही बुझा सकता है।
वैध जी अब ग्लास पीछे ले कर कमला के हाथ में देते है तभी उनका हाथ कमलाकी उन्नत चूचो से टकरा जाता है। कमला का हाथ अभी अपने नीचे अपने घाघरे को पकड़े मसल रहा था, वैध जी थोड़ा पीछे से जोर लगाते है और लंड को थोड़ा और गहराई में घिसते हैं और अपने एक हाथ को कमला के कंधे पर रखते हैं दूसरे से ग्लास के साथ अपना हाथ कमला के बिना अंतर वस्त्र के दूध को पीसते है।
तभी कमला अपने बंद आखे खोलती है और पानी का ग्लास ले कर एक सांस में गटक जाती है और थोड़ा झल्लाते ते हुए एक झटका पीछे मारती है और वैध जी के लंड पर इतनी मोटे गांड का झटका लगता है और झटके से वैध जी अपने आप पर काबू नहीं रख पाते हैं और वही बिस्तर पर गिर जाते हैं कमला: बड़ा आया मुझे पानी पिलाने वाला!
वैध: आह में मर गया! और वैध झूठ मूठ की दर्द की चीखे निकालने लगता है!
कमला: सब समझती थी के ये बुड्ढा नाटक कर रहा है और मन में सोचती है "अभी अपना लंड मेरी गांड में पल रहा था और इसकी गांड फट रही है!"
कमला: क्या हुआ वैध जी?
वैध: तम्हारे धक्के की वजह से नस चढ़ गयी है आआ! कोई मेरी मदद करो!
कमला: अब तो सभी दास दासी अपनेअपने घर जा चुके है और पूरा घाटराष्ट्र सो चुका होगा तुम खुद क्यों नहीं मदद कर लेते अपनी! वैध तो तुम ही हो?
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वैध: सब नहीं है पर तुम तो हो यहा, तुम बड़ी निर्दायी हो! आह!
कमला ( (मन में) बुड्ढा लगता है मेरी चुत खोले बिना मनेगा नहीं और वैसे भी में अच्छे लंड के लिए तड़पती रहती हूँ और इसका तो मैने देखा ही है, मुझे ये मौका नहीं खोना चाहिए) : पर वैध जी मुझे मेरे घर में भी तो जाना देरी हो रही है।
वैध: तुम्हारी मर्जी। आह! हाय! में मर गया।
कमला कुछ सोचती है ठीक है "बताओ कहाँ की नस चड्ढी है?"
वैध: कमर से नीचे की।
कमला कमर पर हाथ लगा कर यहा?
वैध: हाँ! कमला दरवाजा बंद कर दो ठंडी हवा आ रही है। कहीं मेरी जान न चली जाए!
कमला: (मन में) बुढ़े तेरी जान तो नहीं पर दरवाजा बंद नहीं किया तो मेरी गांड तो चली ही जाएगी। फिर कमला हल्का मुस्कुराते हु बाहर आकर अपने समान की पोटली कमरे की अंदर रखती है और दरवाजे बंद कर खिड़की के दोनों पट्ट सटा देती है।
वैध जी: सामने रख शीशी में तेल है वह लगाओ उससे मुझे राहत मिलेगी।
कमला उठ कर मेज़ से वह तेल उठा कर बिस्तर पर आती है जहाँ वैध सिर्फ धोती और कुर्ता पहनने पेट के बल लेटा हुआ था।
कमला एक कातिल मुस्कान के साथ अपने हाथ में तेल लगा कर कुर्ता उठा कर वैध के कमर पर तेल लगाती है।
वैध जी: अरे ऐसे मेरा कुर्ता खराब हो जाएगा। इसे निकल दो!
कमला कुर्ता को दोनों ओर से पकड़कर सर के तरफ खींचती है और वैध हलका उठ कर कुर्ता निकालने में मदद करता है, अब कमला के सामने था एक 63 वर्ष पुरुष जिसके बाल सफेद होने चाहिए थे।
कमला: आपके बाल और दाढ़ी इतनी उमर होने पर भी सफेद नहीं हुए कितनी उमर है आपकी?
और वैध की कमर पर हल्का-हल्का तेल लगाने लगती है।
वैध: 63 है पर ये सब मेरे योग और जड़ बूटीयो का कमाल है और जवानी आयु से नहीं हृदय में होती है और शक्ति में होती है।
कमला: हा मैं 50 कि हूँ और अभी से आधे बाल सफेद हो गए हैं।
वैध: मैं तुम्हे नुस्खा बताऊंगा जिससे शक्ति मिलेगी खुशी मिलेगी और सफेद बाल काले हो जाएंगे।
कमला: हा बड़े आए जवान मर्द!
वैध: आह और दर्द बढ़ रहा है। थोड़ा निचे मलिश करो!
कमला धोती के अंदर हाथ डाल वैध की गांड की दरार पर मलिश करती है।
वैधः धोती निचे कर दो नहीं तो ये ख़राब हो जायेगी।
कमला भी मर्द को छूने और ऐसी बाते करने से उत्तेजित हो गई थी और इस बार वह बिना नखरा दिखाये धोती निचे कर के मलिश करती है।
वैध एक बार फिर जोर से चिल्लाता है।
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कमला: अब क्या हुआ?
वैध: दर्द अब नाभि की तरफ पेट पर हो रहा है।
कमला: आखो में वासना ला कर बोली तो पलट जाओ.
जैसे हे वैध पलटता है उसका 7 इंच का लंड धोती में साफ दिख रहा था।
कमलाखे फाड़ कर देखते हुए-
कमला: कहा हैं दर्द?
वैध अपने आंखों से इशारे अपने लंडकी तरफ करता है, कमला अपने नीचे की होठ काटते हुए उसके लौड़े को अपने हाथों से पकड़ लेती है, वैध अपने आंखों को बंद कर लेता है और कहता है"इस्पे तेल लगाओ!"
कमला झट से धोती खोल कर निचे फेक देती है और अपने तेल भरे हाथ से उसके लौड़े पर मंथन करने लगती है, कमला के आंखो में वासना की लाली छा जाती है। कुछ दो मिंट रगड़ने से लौडा सख्त हो जाता है। तब वैध जी और कमला झट से उथ के बैठते है और कमला को बैठे-बैठे अपनी गोद में ले लेते हैं।"
कमला: वैध के सर पर हाथ रखते हैं सिस्की लेती है और वैध उसके घाघरा की नाड़े को खींच कर कमला को नीचे से नग्न कर देता है और उसे अपने खड़े लंड ऊपर बैठा कर। उसके दोनों आम जैसे वक्षो का मर्दन करने लगता है, कमला आँख बंद किये होती है।
वैध: आखे खोलो कमला!
कमला: हममम! और कमला घूम कर सीधी हो कर वैध की साथ गले लग जाती है और अपना दूध वैध की सीने से रगड़ने लगती है, वैध हल्का नीचे की तरफ गिर कर पलंग के सिरहाने की तरफ टेक लगा लेता है और पीछे हाथ ले जा कर कमला की पहाड़ जैसी गांड पर दो जोरदार थपड लगाता है।
कमला: आआहहह नहीं वैध जी!
वैध: इन्हे पहाड़ो ने मझे बहुत तड़पाया है। में इनकी भुर्जी बना दूंगा।
कमला ये पहाड़ भी टूटने के लिए त्यार हैं। चकना चूर कर दो इन्हे अपने हाथों से।
वैध ने अब उसकी चोली को उतार फेंकी और उसके दूध मुह में ले कर चूसने लगता है और एक हाथ से उसके दुसरा दूध को दबाता है और दुसरे से उसकी गांड को दबोचता है, कमला की चुत अपना रस छोड़ रही थी, उसे वैध के लौड़े से रगड रही थी, कुछ देर ऐसी ही दूध और गांड को बारी से रगड़ने के बाद वैध और कमला एक दूसरे को बाहो में जकड कर होठ चुसने लगते हैं।
फिर वैध कमला को अपने नीचे ले कर अपना लंड उसकी चुत पर रगड़ता है और एक बार में कमला की चुत में घुसा देता है कमला बस "उह्ह्ह कर रह जाती है" और अपना हाथ वैध के सर पर रख देती है।
अब वैध गति से कमला की चुत चुदाई करने लगता है और उसकी "उह आह" के सिस्की निकलती रहती है के 20 मिंट की चुदाई के खराब वैध निधल हो जाता है कमला पर गिर जाता है।
वैध: कमला मेरी जान तुम कितनी अच्छी हो!
कमला: हम्म्म वैध जी!
वैध: वैसे तो तुम बहुत बोलती हो पर चुदाई की दौरान तो एक दम शांत अवतार धारण कर लिया तुमने।
कमला: हम्म मेरे राजा मेरे सरताज आज तीन साल की बाद चुदी हूँ।
वैध: क्यों इतने दिन खराब किये?
कमला उन्हें बताती है कैसे उसका पति तीन वर्ष पहले मर गया और वैध जी उसको वादा करते हैं के वह उसे अपनी पत्नी की तरह रखेंगे। फिर उस रात एक बार और वैध जी कमला की चुदाई करते है और दोनों वही सो जाते हैं।
कहानी जारी रहेगी
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05-27-2023, 05:54 AM,
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aamirhydkhan
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RE: महारानी देवरानी
Maharani-Devrani
Update 3
Raja rajpal devrani ko le kr apne rajya ghatrashtra aa jata hai jaha use smaj aur gharwalo k kai tane sehne padte hai q k wo niyam ka ullanghan kr k dusra vivah kr lye uski pehli patni shrushti us se vachan leti hai k wo pehle shrushti ko prathimikta dega uske bad he wo dusri patni devrani ko.shrushti ne saf kr dya tha bina uske aagya k devrani k pas na jaye majburan wo uski baat man leta hai.idhar devrani ko puri khabar uski dasi Kamla deti hai aur devrani pe jaise pahad toot padta hai.udhar raja ratan apne rajya ko badhane me lage the aur yudha me na chahte hue bhi raja raj pal ko jana padta tha islye raja raj pal kam samay apne rajya me beetate ,deen raat yudha karne k wajah se unhe sharab ki lat lag gai aur unhe kabhi kabhi apne mahal me rehne ka sawbhagya milta to shrushti use nahi chhorti aur devrani akeli jeevan yapn karne lagi.mushkil se 6 mahine me ek ya do bar devrani se raja raj pal chhupe chhupaye milap kr lete bina apne pehli patni k bhanak lage.Vivah k 9 mahine bad he paras ki rajkumari aur ghatrashtra ki rani ,rani devrani ne ek sundar balak ko janam dya jiska nam rakha gaya BALDEV singh.
18 saal baad
Aaj pure mahal me diye jalaye gaye aur har traf khushi ka mahaul tha .ho bhi q na aaj rajkumar BALDEV singh ka janamdin jo tha aur aaj he k din wo apne pichle paanch varsh ka siksha grahan kr apne guru k aashram se aaya tha.ab raja raj pal ki aayu lagbhag 58 varsh ho gai thi.Raja raj pal ki pehli patni k aayu ab lagbhag 48 varsh ki thi pr lambai kam hone k karan abhi bhi badan dhala nahi tha par jaha sb budhe ho rhe the wahi devrani din ba din jawan hote ja rhi thi ,Devrani ab lagbhag 35 varsh ki he thi aur 5.10 wali patli chharhari ladki ab ek unche lambe kad ki stree ka rup dharan kr lya tha,devika k vaksha sambhale nahi smbhalte the jo 44 dd the jo do bade gubbare ki trah chalne pr hilte pr thos the kamar patli aur niche do matke ki trah gand upar se doodh jaisa rang sipahi se le kr pandit tk usko dekh kr aahe bharte the.aaj devrani ne kaale rang ka blouse aur sadi pehni thi blouse itne tight k do pani se bhare gubbare kisi sharabi ki trah ladkhadate jab bhi devirani chalti thi.
Devrani pooja ki thali tayyar kr rhi thi tbhi uski dasi kamla aati hai aur uske kehti hai "maharani yuvraj aagaye"itna sunte bhar se devrani khushi k mare thali le kr darwaze pe chali jati hai jaha pr sidhe nazar yuvraj pr padti hai jo apne pita raja rajpal se gale mil raha tha devrani apne putra ko kai varsho bad dekh k ek dam uske aakh patthar se jam jate hai aur man me "kitna bada ho gaya mera yuvraj mene iska nam Baldev sahi rkha tha kitna uncha lamba aur chauda ho gaya hai fir bhi kitna hasmukh hai ,isne to muchhe bhi rkh lye hai,(tabhi Baldev apne muchho pr tav deta hai) dekho kaise muchho pr tav de rha hai jaise kahi ka maharaja ho ise dekh kr kaun kahega k ye kewal 18 varsh ka hai,dikhne me 30 varshiya purush raja lag rha hai "aise apne ap ko dekhte dekh Baldev ka bhi sneh chhlak jata hai apne maa k prati aur apne paas khade apne pita aur badi maa ki tulna apne maa se krta hai "Meri maa to in dono k samne in dono ki beti lag rhi hai,upar uske teekhe nain naksh ,chamakti twacha,uske niche gatheela badan ,lamba kad kathi,meri maa ko dekh kr koi ye nahi keh skta k ye meri maa hai ,koi agyat log dekhe to sb sochenge meri chhoti behan hai aur inki aayu bhi 25 se zyada nahi lagti"
tabhi raja raj pal tokte hue kehta hai
raja raj pal:bhagywan dono maa aur putra ne ek dusre ko dekh lya ho to aage ki karwayi ki jaye,Baldev apne maa k pair chhuo.
Baldev turant apne maa k paas ja kr unke sundar pair chhuta hai aur devrani use aashirwad deti
Pooja karyakaram der raat tak chalta hai,pooja khatm hone k baad sb uth kr jane lagte hai devrani aur kamla meethai aas paas batwane lagti hai aur baldev uth kr apne kaksha ki ore chal deta hai tbhi use kuch baatcheet krne ki aawaz sunai deti hai aur wo us traf chal deta hai aur antim me apne badi maa shrushti k k kaksha k pas ruk jata hai
shrushti:aaj to ye baldev bhi aagya apni siksha puri kr k
radha:Han mahrani mene dekha aj bhut khush lag rhi thi ,kahi wo aap se badla ka shadyantra to nahi bana rhi
Rani shrushti:Radha ho skta hai tm sahi ho q k mene us se uske pati ka sukh chheena hai aur wo parasi budhi, lagta hai k zarur mere lye khadda khodegi
radha:to hume kya karna chahiye mahrani
Shrushtiahi samay ka intezar ,me bataungi k tmhe kya karna hai radha abhi tm jao maharaj aate he honge.
Sb kam khatm krne k bad baldev ko le kr raja rajpal apne maa yani k Mahrani jeevika jo apne zindagi k aakhiri din gin rahi thi unke kaksh me jata hai aur baldev apne dadi jo k ek bistar pr leti jinka pair kaam krna band kr dya tha islye wo chal nahi skti thi pr wo hath se theek aur bol b pati thi pr mushkil se,baldev dadi ko dekh khush hota hai aur unke charan sparsh kr aashirwad leta hai aur unke bagal me baith jata hai.
Dadi:Beta baldev
Baldev:ji dadi
Dadi:mjhe muaf kr de me tera swagat krne duwar pr na aaski,ab me chal nahi skti
Baldev:aap is rajya ki maharani hai aur hum sb apke santan hai apki aagya pr hum himalaya chadh k aa skte hai apse milne.
Dadi:bas beta ,mjhe tmse yahi umeed thi,tm Ghatrashtra k bhavishya ho,bhagwan tmhe ek acha aur mahan raja banaye,or tm itihas banao.
or baldev k sar pr hath rkh kr aashirwad dete hai aur baldev aur raja raj pal bahar aate hai
Rajpal:putra ab kal subah milte hai apne kaksha me ja kr aaram karo
Baldev fir ek bar rajpal k pair chhuta hai to rajpal apne putra ko gale laga leta hai aur kehta hai
rajpal:tu kitna lamba ho gaya dekhte dekhte
baldev:kaha pita jee,bass 6.3 fitt he hu
rajpal:tere dada ki kadd kathi bhi tere jitni nahi thi tu apne maa pr gaya hai,or dono hasne lagte hai aur baldev apne ek ungli se apne muchh pr taav deta hai apni prashansha sun kr
Rajpal:beta apni mata ko khila kr sona tmhe to pata hai wo tmhare bina nahi khati
Baldev:ji pita ji
or baldev apne kaksha aur Baldev apne maa k kaksha ki ore chal deta hai
To be continued
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05-30-2023, 08:05 AM,
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aamirhydkhan
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RE: महारानी देवरानी
महारानी देवरानी
अपडेट 15
कैसी पत्नी चाहिए
घाटराष्ट्र में सैनिक अभ्यास में जुट जाते हैं और तैयारी कर रहे थे राजा रतन सिंह के राज्य जाने की क्योंकि आज ही महाराजा को संदेश मिला था कि राजा रतन को अपने राज्य की सुरक्षा के लिए सैनिक बल की आवश्यकता होगी।
सैनिको को इकठ्ठा कर सेनापति उन्हें जरूरी बाते बता रहा था और दूसरी तरफ राजा राजपाल राज दरबार में अपने मंत्रियों और अपनी पत्नी सृष्टि के साथ बैठ अपने रणनीति पर बात कर रहे थे।
कुछ देर पूरी तयारी हो जाती है और राजा राजपाल के जाने का समय हो गया था तो वहा पर राजा राजपाल एक ऐलान करता है।
राजपाल: राज दरबार के मंत्री गण आज में दूर देश की यात्रा पर जा रहा हूँ। जहाँ भीषण युद्ध होने की संभावना है, इस लिए मेरी अनुपस्थिति में मेरा हर कार्य महारानी सृष्टि करेगी।
राजा के ये कहते ही तालियो की गूंज राज सभा में होती है। इस बीच दरबार में देवरानी और बलदेव भी आ जाते हैं और इस बात को सुन दोनों के दिल को ठेस पंहुचती है।
सेनापति राजपाल को कहते हैं "महाराज चलें" और राजपाल को शुभ कामना दे कर जाने लगते हैं। राजा राजपाल अपनी पहली पत्नी शुष्टि के पास जा कर उसको कार्य समझते हुए विदा ले कर आगे बढ़ता है पर उसे पास बैठी देवरानी नहीं दिखती, देवरानी खड़ी हो कर जैसे ही राजा राजपाल के पास आने लगती है तो।
सृष्टि: महाराज समय ज्यादा हो गया है अब आप जाए और सेनापति की आवाजाही का इशारा करती है वह राजपाल को लेकर जल्दी से सैनिक बल के पास ले जाता है।
नियम अनुसर बलदेव भी घोडे पर सवार हो कर अपने पिता और सेना को घाटराष्ट्र की सीमा तक छोड़ने जाता है और सीमा तक पाहुच कर अपने घोडे से नीचे से उतर कर अपने पिता के चरण छू कर आज्ञा लेता है।
राजपाल: बलदेव तुम्हें महारानी सृष्टि जो काम देगी वह तुम्हें करना है और तुम हमेशा राज्य सेवा के लिए खड़े रहना है।
राजपाल: जी महाराज।
राजपाल: जाओ अब।
ये कह कर राजपाल आगे की ओर बढ़ता जाता है पर वही खड़ा बलदेव सोचता है।
"जाते जाते पिता जी ने मुझे पुत्र का स्नेह नहीं दिया न गले से लगाया उनकी नजर में सिर्फ परिवार का एक सदस्य हूँ। मेरे से बात भी कि पर माँ को तो जैसे नजरअंदाज कर बिना कुछ बोले विदा हो गए और सब कुछ बड़ी माँ सृष्टि को सौंप दिया, जैसे मेरा और मेरी माँ का कोई हक नहीं है।"
और बलदेव एक जोर से चीख निकल कर चिल्लाता है और कहता है "इन सब अपमानो का बदला लिया जाएगा!" और फिर अपने घोडे को घाटराष्ट्र की ओर मोड़ देता है।
महल पहुच कर सीधा अपने माँ देवरानी के कक्ष में जाता है जहाँ देवरानी बैठ कर कुछ सोच रही थी।
"क्या में इतनी बुरी हूँ जो महाराज मुझसे बोले बिना ही चले गए और हर बार मुझे राज दरबार में सबके सामने बेइज्जत कर देते हैं?" देवरानी की आंखों के आंसू अब सूख चुके थे। देवरानी जैसे ही ध्यान से आईने में देखती है तो पाती है उसे बलदेव निहार रहा था।
बलदेव: क्या हुआ मां?
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देवरानी मुस्कुराते हुए "कुछ नहीं पुत्र।"
बलदेव समझ जाता है कि वह क्यों अंदर से उदास है।
बलदेव देवरानी के पास आ कर उसके कंधो पर हाथ रख कर "मां तुम कितनी सुंदर हो कितनी अच्छी हो!"
देवरानी: चुप कर कुछ भी कहता है और लज्जा जाती है।
बलदेव: सच माँ मेरा बस चले तो मैं तुम्हें घाटराष्ट्र क्या पूरी दुनिया की महारानी बना दूं।
देवरानी: महारानी में समझबूझ होनी चाहिए।
बलदेव: तुम हर एक कार्य अपनी सूझ से कर सकती हो। यहाँ तक तुम पिता जी से भी ज्यादा सूझबूझ रखती हो।
ये सूर्य कर देवरानी मुस्कुरा देती है।
तभी एक सोने का हार निकल कर बलदेव आपने माँ जो कुर्सी पर बैठी थी उसके गले में बाँध देता है, अचानक से ऐसे हार पहचानने से वह समझ नहीं पाती वह क्या प्रतिक्रिया दे और वह सोने की हार की बनावट और कला में खो-सी जाती है।
बलदेव: अब तुम सच में पूरी दुनिया की सबसे प्यारी महारानी लग रही हो।
इतने सालो बाद अपने जिस्म पर ये हार की छुअन भर से देवरानी की रूह सीहर-सी जाती है। देवरानी होश में आते हुए।
देवरानी: ये कह से लाए तुम।
बलदेव: कहा से लाया ये मत पूछो तुम्हें पसंद आया या नहीं ये बताओ।
देवरानी: धन्यवाद बेटा तुम बिना कहे मेरे दिल की बात समझ गए।
बलदेव: हम्म! (प्यार से देखता है) ।
देवरानी: में कैसी लग रही हूँ इस हार में।
बलदेव: एक दम देवी जैसी. साक्षात् देवी जी आ गयी हो ऐसा लगता है।
ये सुन कर देवरानी खुश होते हुए।...
देवरानी: ठीक है कमला और राधा का भोजन बनाने में हाथ बटाने मैं रसोई में जा रही हूँ और बलदेव पीछे खड़े रह कर खुशी से इठलाती उसकी बड़े 44 की गांड को हिलते हुए देख रहा था।
देवरानी अपनी प्रशंसा से खुश होते हुए रसोई घर की ओर चलने लगती है।
देवरानी कोई बच्ची नहीं थी अपने बेटे को चुप चाप अपने पीछे खड़े देख निहारते देख वह समझ जाती है वह क्या देख रहा है और अंदर ही अंदर शर्मा से गड जाती है और उसके मन में कुछ भाव आता है और वह पलटती है।
देवरानी: मस्कुरते हुए बेटा वहा खड़े-खड़े क्या कर रहे हो?
बलदेव: हड़बड़ा जाता है "कुछ नहीं माँ।"
देवरानी: तुम्हें कुछ काम है?
बलदेव: नहीं।
देवरानी: तो तुम चाहो तो मेरे साथ रसोई में आ सकते हो ।
बलदेव: आप चलिए माँ मैं आता हूँ।
फिर देवरानी सोचते हुए "लगता है मुझे इसके लिए कन्या तलाशनी पड़ेगी। ये तो मेरे चूतड़ ऐसे घूरता है जैसे खा ही जाएगा।" और उसके चेहरे पर एक मुस्कान फेल जाती है "राम राम मैं ये क्या सोच रही हूं" बेटा है वह मेरा। इसने अभी-अभी जवानी की दहलीज पर कदम रखा है फिसल जाता है आदमी जवानी में। "
तभी उसके कान की आहट आती है पर वह अपने काम में लगी होती है, ये आहट किसी और की नहीं बलदेव की थी जो रसोई घर में आ जाता और जैसे वह रसोई घर में आता है, वैसे ही उसकी नजर बड़े चूतड़ों वाली रानी देवरानी पर पड़ती है।
बलदेव: (मन में-उह! क्या तगड़ी गांड है।) और फिर मुस्कराते हुए अपने माँ के पीछे लग जाता है और उसके आंखों पर अपने हाथ लगा कर बंद कर देता है।
देवरानी को मरदाना हाथ लगते हैं वह समझते देर नहीं लगती के ये बलदेव है।
देवरानी: खिल खिला के "बलदेव! ये तुम हो।"
बलदेव: माँ आप कैसे इतनी जल्दी समझ गई और अपना हाथ निचे कर लेता है, पर बलदेव एक दम देवरानी के पीछे होने की वजह से उसके हाथ देवरानी के दोनों चुतडो को छू लेता है और देवरानी फिर से अपने दोनों आँख मीच लेती है।
बलदेव अब साइड में खड़े हो कर माँ से बाते करने लगता है।
देवरानी: कैसे ना समझु भला तू मेरे जिगर का टुकड़ा है। कितनी ही रातो में तेरे बीमार होने पर जग कर बितायी है और कभी तू रोने लगता तो में नींद से भी उठ जाती थी।
बलदेव: पर अब तो तुम्हें मेरा ध्यान ही नहीं रखती।
देवरानी: क्यों बोला मेरे बेटे ने ऐसा?
बलदेव: दिखता है।
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देवरानी: बहुत जल्द मेरे बलदेव की पत्नी आ जाएगी जो मेरे बेटों का ध्यान रखेगी।
बलदेवः नहीं मुझे शादी नहीं करनी मां।
देवरानी: क्यों बेटा अब तो तुम बड़े भी हो गए हो।
बलदेव: पर माँ मुझे नहीं करनी।
देवरानी: नखरे ना करो बताओ तुम्हे कैसी पत्नी चाहिए में ढूँढूंगी।
बलदेव: मुझे नहीं चाहिए।
देवरानी: फिर भी।
बलदेव: आप जैसी।
देवरानी की आखे फटी की फटी रह जाती है।
देवरानी: बात संभलते हुए ठीक है में मेरी जैसी ही ढूँढूंगी और वैसे तुम्हे मेरी जैसी ही क्यों चाहिए?
बलदेव: क्योंकि माँ आपके अंदर हर एक वह गुण न है जो एक स्त्री में होने चाहिए।
देवरानी: जैसे की?
बलदेव: तुम्हारे अंदर संयम है, तुम मेहनती हो, सच्ची हो, दिल की अच्छी हो और तुम से सुंदर कोई और नहीं है।
देवरानी: थोड़ा शर्मा जाती है, बस बेटा। में तेरे लिए ऐसी ही लड़की ढूँढूंगी।
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बलदेव: पर मझे शादी नहीं करनी, मैं तो चाहता हूँ आपको देवी की तरह पूजू और आपकी बाकी जिंदगी से हर एक दर्द से दूर रखू।
देवरानी: तू मेरी रक्षा विवाह के बाद भी कर सकता है।
बलदेव: नहीं माँ आज देखा ही न तुम्हें कैसे पिता जी अपनी माता से बिना मिले जल्दबाजी में निकल गए।
देवरानी को याद आता है वह हमसे भी नहीं मिले।
बलदेव: बस यही होता है माँ को लोग भूल जाते हैं।
तभी वहा पर कमला आ जाती है।
कमला: महारानी मैं ले आई सब्जी।
कमला रसोइगर में दोनों को देख समझ जाति है कि यहाँ पर क्या चालू है और वह बलदेव को देख के आँख मरती है जिस पर बलदेव समझ कर मुस्कुरा देता है।
बलदेव: तो ठीक है माँ आप भोजन त्यार करो मैं आता हूँ।
कह कर बलदेव अपने कक्ष की और निकल जाता है।
रात के भोजन के बाद कमला देवरानी का पत्र ले कर बलदेव के कक्ष में जाती है।
कमला: ये लो आपकी देवरानी का उत्तर शेर सिंह।
बलदेव: हंसते हुए हाथ आगे बढ़ा कर पत्र देता है और अपने पास रख लेता है।
बलदेव: में बाद में पढ़ लूंगा।
कमला: क्या बात है तुम तो मेरे सामने पत्र पढ़ने में भी शर्मा रहे हो।
बलदेव: नहीं ऐसा नहीं है।
कमला: शर्माओगे तो देवरानी जैसी शेरनी की सवारी नहीं कर पाओगे।
बलदेव: चुप चाप देखता है कमला को।
कमला: सही कहती हूँ तुम्हें करिश्मा दिखाना होगा नहीं तो मालुम पड़ा तुम ही कुछ दिन बाद अपनी माँ के लिए वर ढूँढ रहे हो। और हसती है।
बलदेव: ऐसी बात मत करो।
कमला: अच्छा एक बात कहो तुम्हें सच में प्यार है ना देवरानी से।
बलदेव: कमला पहले मैं उनके दर्द दुख से जुड़ा और उनके करीब गया। फिर उनकी सुंदरता का कायल हो कर मेरा दिल उन पर फिदा हो गया, फिर उनके शरीरिक सुख की कमी देख उत्तेजना हुई पर मुझे अब ये सब मुझे बकवास लगता है।
कमला: फिर?
बलदेव: अब मझे उनके सोच, उनके संयम, उनके सत्य और उनके भक्ति, उनके हृदय से प्रेम हो गया है और मुझे लगता है कैसे में उनसे बस दिन रात बाते करता रहूँ।
कमला: तो ऐसा है पर बात करो । साथ में तुम्हें उनके दर्द को दूर करना होगा, उनके शरीर से भी प्रेम करना होगा और उसे तुम्हें बताना होगा कि उसका शरीर कोई सामान्य नहीं और आखिरी उसके शरीर का इच्छा जो इतनी वर्षो से अधूरी ई है उसकी कमी भी दूर करनी होगी।
बलदेव इतना सब अपने और माँ के बारे में सुन शर्मा जाता है।
कमला: ठीक है आराम से पत्र पढ़ लो और जैसे तुम्हें महारानी को मनाना है मनाओ. कल मिलते हैं।
वह चली जाती है।
कहानी जारी रहेगी
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05-30-2023, 08:08 AM,
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RE: महारानी देवरानी
Maharani-devrani
Update 4
Baldev singh man me kai bhav lye hue apne maa k kaksha ki traf badh raha tha , use uske badi maa ka apne maa k khilaf baat sun kr jaise pareshan ho gaya tha aur use samajh nahi aarha tha k kya kare. jaise he wo pahuchta hai dekhta hai devrani 56 bhog saja rhi hai apne bete k lye aur apne bete ka aabhash pa kr kehti hai
Devrani: aa gaye bete . . bada der kr dya aane me
Baldev: Mata shree aap thakti nahi ho ?
Devrani: aisa q puch rha hai?
Baldev: Q k mjhe pata hai aap ek subah se kaam kr rhi ho, aap vishram q nahi krti. .
Devrani: Baldev. . Jiska beta itne varsho baad aya hai , wo kaise thak skti hai?
Baldev. Dasiya hai na yaha. .
Or to aur log bhi hai ghar me. . badi maa bhi hai. . .
Devrani: wo Maharani hai(man me: ye kya nikal gaya muh se .
Baldev jo pehle se he sb kuch sun k aa rha tha uska dimag kharab ho gaya aur kaha
Baldev: Maa, agar badi maa maharani hai to kya aap dasi ho ?
Devrani;baat ko smbhalte hue)ary nahi nahi. . beta , mera matlab tha k niyam anusar badi patni ko he maharani ki upadhi milti hai aur aisa har rajya me hai.
(man me: Mjhe maharani kya kabhi rani bhi nahi smjha gaya)
Baldev bhi chehra padhne me der nahi lagaya aur man me (Koi baat nahi maa ab tk kaun kya tha mjhe nahi pata par Ab Maharani sirf tm rahogi, tmahre paas wo har kuch hai jo ek maharani k paas hona chahiye)ye soch he raha tha k devrani ne kaha
Devrani: Beta ab khana kha le . .
Dono baith k 56 bhog pakwan ka aanand lene lage
Baldev: Maa aaj aisa lag rha hai varsho baad bhojan kiya hu, kya swadisht bhojan hai
Devrani: sb mere kunwar kanhaiya k lye hai. . pet bhar k khana hai tjhe ab. . ab kahi nahi jane dungi tjhe
Baldev: Par maa mere kuch mitra gan to videsh jayenge waha maha vidyalay hai
Devrani: Har vidya to aa he gai hai tmko ab aur kya seekhna hai
Baldev: Maa log france jate hai aur england jate hai , suna hai waha naye naye avishkar krne ki siksha di jati hai, aur wo hum se kai 100 saal aage hai
Devrani: Wo kaise . .
Baldev: jaise waha pr bina chitrakar k kuch yantra se chitra nikalte hai , bina ghode k sawari ki jati hai aur paani me bade bade nav jo koso door tk hazaro logo k le ja skte hai
Devrani;achambhit ho kr) Me to paras tk he dekhi hu dunya bete . . aise aisi dunya bhi hai
Baldev: han unke vesh bhusha bhi alag hai boli chali bhi alag
Jis din me Maharaja ban jaunga us din aapki yatra krwaunga zarur
Devrani: Bholu. . . bina Maharani k maharaja ban jaoge
Baldev: Ary ha ye to me socha he nahi
Devrani: haste hue . . budhu kahi k
Isi beech dono khana kha lete hai aur baldev bhi thaka tha to shubh ratri keh k apne kaksha me chala jata hai aur so jata hai idhar devrani bhi thaki thi aur so jati hai.
(MAHAL)
Agli subah sb uth jate hai . Baldev sbse pehle uth ta hai aur mahal muayna krta hai. use mahal pehle se aur sundar aur saja hua dikhta hai. Mahal k aage darbar hai jaha par do badi badi singhasan rkhe hui aur dono singhasan k agal bagal ek ek chhota aasan tha. dono traf se 5 , 5 aasan the jo mantrio k lye the. Darbar k ek taraf sainik k abhyas k lye jagah aur ashtra aur shashtra k kaksha the aur ek traf atithi gruh aur rasoi tha jaha pr bhandara banta tha rajya ka, singhasan k piche se darwaza tha raj mahal ka jaha pr anek sainik din rat pahredari dete the. Baldev mahal k lye raja raj pal ne upar ek manzil banaya niche wo khud ka kaksha aur sath he maharani aur raja raj pal apne maa ko bhi niche he rkha tha, upar sirf baldev rehta tha. seedhi chadhte he samne darwaza khulta jo ek aalishan kaksha ki ore jata tha beech me palang jo ki kisi bhi smanay palang se 3 guna zyada bada tha, bistar bhi aisi k bacha bhi baithe to dhas jaye itna naram tha. palang k charo traf keemti motiyo se saja hua tha, paas me rakhe aaram kursi aur mej , mej pr rkhe kuch alag kism k jug wahi kone me snaan ghar aur shauch jo raja raj pal ne parsio raja k madad se banwaya tha. aur kaleen bhi paras se he mangwaya tha jo pure mahal ko alag he roop dete. /Mahal)
Baldev apna mahal dekh andar he andar khush ho rha tha fir use kahi koi na dikhne pr wo mahal k mukhya duwar se bahar aaya aur senapati ko pucha sb kaha hai
Senapati: yuvraj wo aaj sabha chal rhi h
Baldev: acha thek hai
Senapati: aap bhi tayar ho kr aa jaye
Baldev: han hum aate hai
Baldev jata hai aur apne vastra pehanta hai aur fir uspr motio k har pehanta hai aur darbar ki ore chal deta hai.
Darbar pahuchte he dekhta hai k bari bari se sb log apne baat keh rhe hai aur mantri sb ki fariyad ko likh rha tha. jaise he kisi ki yuvraj pr nazar padti hai sb jay jay kar lagane lagte hai. Baldev dekhta hai k ek bade singhasan pr uske pita aur dusre bade sighasan pr uske badi maa baithi hai aur chhote singhasan pr uski maa baithi hai. jise dekh kr baldev ko ajeeb lagta hai aur wo bhi chhote aasan pr apne maa k bagal me ja kr baith jata hai. ghanto tak sabha chalti hai rajya k har vishay pr tark rkha jata hai aur sbki duvidha pareshani suni jati. tabhi Maharani shurushti uth kr darbar se jane lagti hai to sb darbari uth khade hote hai aur jay jay kar krne lagte hai. "maharani shrushti padhar rhi h"), , Devrani jan bujh kr nahi uth ti jis se ye baat chhupai ja ske baldev se pr achanak Maharaja rajpal kehta hai
Rajpal;devrani . aap mahal me jaye vishram kare
Devrani[img=16x16]file:///C:/Users/91981/AppData/Local/Temp/msohtmlclip1/01/clip_image001.gif[/img]na chahte hue bhi)ji
or devrani uth kr jane lagti hai pr is bar koi devrani ki jay jay kar nahi krta bass ek mahal ka pahredar kehta hai "rani devrani padhar rahi hai"
baldev[img=16x16]file:///C:/Users/91981/AppData/Local/Temp/msohtmlclip1/01/clip_image001.gif[/img]man me)yehi pahredar badi maa ko maharani keh k sambodhit krta hai)aakhir ye bhed bhav q?Na unko pita ji k sath sinhasan na jay kar na he koi maharani kehta h.
Raj pal: putra
Baldev: aagya pita shree
Rajpal: kis soch me doobe ho
Baldev: kuch nahi
Rajpal: sutro se khabar mili hai k angrez uttar se bharat k seema ko aur laanghne k prayas me hai
(har mantri aascharya chakit hota hai aur sath he baldev bhi)
Mantri: To maharaj iska kya upay hai
Rajpal: abhi tak to nahi hai
Mantri: hum to aaj tak is uche parvat aur iske charo aur ghane van ne hamari raksha kya hai pr angrez k pas to aadhunik yantra hai aur shashtra bhi
Rajpal: hum padosi rajyo se baat kar rhe hai dekhte hai kya nishkarsh nikalta hai
mantri : jo hukm
fir uske baad sabha khatm kr di jati hai aur har mantri alag alag bane hu mantri mahal me chale jate haj aur raja raj pal aur baldev kuch sainiko k sath piche rajmahal me aa jate aur saink wahi dwar pr pehra dene lagte hai.
To be continued
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05-30-2023, 08:09 AM,
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aamirhydkhan
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RE: महारानी देवरानी
Maharani-Devrani
Update 5
Dupahar k bhojan k baad Baldev apne daadi k kaksha me jata hai aur unke charan chhu kr aashirwad leta hai
Dadi: jeeta reh beta
Baldev: dadi aap kaisi hai
Dadi: Meri umar ho gai ab ab to bas jane ka waqt aa gaya hai
Baldev: dadi aisa mat kaho abhi aap 100 sal aur jeeyoge
Or ye aapke ek pair me takleef hai na
Dadi: han
Baldev: to aap theek ho skte h
or chal bhi skte hai
Dadi: wo kaise
Baldev: Me aise vaidh ko janta hu jo aisa rog theek kr dya hai aur tb tk aap vaishakhi se chal he skti ho , me kal he aapke lye us vaidh ko lata hu
Dadi: dhanywad beta mere lye itna sochne k lye
Baldev: ye mera farz hai, dadi aapse kuch baat jaan ni thi
Dadi: bol na
Baldev: ye maa k sath ye du vyavahar q aur usne sari man ki baat dadi ko bata dya
Dadi: ye jeevan aisa he hai beta, teri pita ko tere maa se chheena gaya , uska haq cheenaa gaya lekin me chah k bhi tere maa ki madad nahi kr ski aur rone lagi
baldev: ro mat dadi ab me aa gaya hu na me ab sb theek kr dunga
Dadi: baldev k sar per hath rkh k "TU HAI MAHARAJA BALDEV SINGH GHATRASHTRA KA RAJA TERI HAR BOLI HOGI PATTHAR KI LAKEER"
ye sun kar Baldev ko ek alag he urza mili aur usne dadi ka hath me le kr kaha "ha mai yani k Ghatrashtra ka Maharaja RAJA BALDEV SINGH aur MERI HAR BOLI AB SE HAI PATHHAR KI LAKEER"or ye keh kar use ek alag he urja ki anubhati hui.
Dadi: Beta mjh se ek wada kar
Baldev: han boliye dadi ji aagya
Dadi: Tere maa kabhi muh se nahi kahegi k use kya zarurat hai kya takleef hai usne bhut takleef sahi hai, me aurat hu uska dard smjh skti hu, me chahti hu tu uska har kadam pe sath de uske bina bole uske zarurat ko smjh kr pura kr de jitna usne dukh saha hai uska 10 guna sukh use mile wada kro
Baldev: me wada karta hu me puri koshish krunga unko har prakar se khush rakhne ki
Dadi: Koshish nahi. . . Beta mjhe tm pr pura yaqeen hai tmhare aakho me ye jalti jyoti isbat ki gawahi de rhi hai k tm sb zimmedari utha loge. . . Bass apne dill ki sunna aur kisi ki nahi . . . tbhi mere marne k bad meri aatma shant hogi. . .
Baldev: sochte hue)par dadi kya karu kaise kru?
Dadi: apne aakho me dekh, k tu kya kar skta hai
Or uske bhi aakho me dekh use kya chahiye
Baldev: theek hai dadi , aashirwad banaye rkhe
Dadi: jeete raho
or baldev apne man me kai sara toofan le kr apne kamre me aakr sone ki koshish krne lagta hai
Idhar devrani ek jhini sa libas pehan kar ulta leti thi uske gori bahe aazad uske ghagre me uske mote gol tarboob jaise gand ek dam laraz rahe the jise dekh uski dasi kamla k muh me bhi pani aa gaya tha, kamla pichle 10 mint se devrani ka malish kr rhi thi , jaitoon k tel se , Devrani k dono traf apne pair rkh k malish kr rhi thi
Kamla he thi jo devrani ko maharani kehti thi
Kamla: maharani aap ka badan tap rha hai
Devrani: humm huu(siski lete hue)
Kamla: kahi aapko bukhar to nahi
or ghagra k niche uske pair aur jangh tk tel laga k malish kr rhi thi
Devrani : nahi. . hm kamla
thoda upar aur kamla ka hath pakar kr apne chutar pr rkh deti hai
kamla: hay ram itna gol aur itna bada dono hatho me to maharani ka kuch aata he nahi hai
Devrani: kya boli
kamla: kuch nahi, maharani agar me purush hoti to aapke haaal bura kr deti
Devrani: tu abhi mahila hai to tere se malish nahi hoti purush hoti to aur kuch nahi kr pati aur muskura deti ha
Kamla: ab palat jao
or devrani apne peeth pr chhota sa kapde ka tukda jis se doodh dhak rhe the kas leti hai aur seedhi ho jati hai
Kamla: jitni chaudi peeth hai, utni moti doodh bhi hai iske aur gand to mano bade do tarbooze ho(man me badbadti hai)
kamla pet se le kr kandhe tk malish krti hai aur tel ki shish le kr sapat pet ki nabhi me tel udhel deti hai or
kamla: haye ram kitna tel nabhi me ruk gaya itni gehri nabhi hai to (man me chut ki khai kitni gehri hogi. aur gand to mano surang se hogi)
Devrani jab se vyah k aai thi tb se apne aag bujhane k lye kamla ka sahara lete aai rahi hai aur kamla se dosti si ho gai thi devrani ko.
Devrani ab kamla ka hath le kr apne bade bade gendo pe le jati hai aur dant se apne hoth kat ti hai
kamla dono hath se ek doodh ko pakar kr marorti hai aur us se reha na jata aur uske doodh. ko choom leti hai
kamla: haye dayya itna bada doodh hai maharani apa do hath me nahi aarhe iske lye to alag se hath banwana hoga(or uske doodh ko dabate rehti hai)
Devrani: aisa nahi hai kamla dunya me mai akeli nahi hu jiska badan aisa hai
Kamla: par aur aurato ko to uske hisab k naap ka mil jata hai pr aap jaisi Ghodi ko raja rajpal jaise derh futiya mil gaya
Devrani: Koi nahi, hota hai
kamla: kaash aapke hisab ka apko hath aur wo mil jata to
devrani: sapna mt dekho
kamla: sapna nahi mene to Ghatrashtra me he kisi na kisi ka itna lamba chauda hath dekhi jisme apka aakar baith jayega aur hath itna bada hai to wo bhi utna bada he hoga to aapke aage ka darya aur piche ka samundar paar kr dega. . pr mjhe yad nahi aarha kaun tha wo hath wala
(or devika k doodh ko masalti rehti hai)
Devrani ab apne charam pr thi aur uttezna se aakh band kye sisak rhi thi)
kamla jo k bhullakar thi
Kamla: ary han yad aya wo hath to yuvraj baldev ka he tha
devrani ye soch kr utna bada hath uske bete ka he hai uske chut se pichkari chhuti aur wo hafne lagi
Thode der bad use hosh aaya
Devrani: Anpadh hai tu kamla gawar gussa hote hue
kamla: ary wo us din yuvraj ghod sawari krne ja rhe the to achanak ghoda mimiyaya to yuvraj ne uske pure sar ko apne ek he hath se daboch lya itna bada hath aur wo ghoda shant ho gaya
Devrani: Kamla tu gawar he rahegi tjhe nahi pata hai kab kya baat krte hai aur waise wo ghoda nahi tha jise baldev ne chup kraya tha wo Ghodi thi(or uske chehre pe ek muskurahat aa jati hai)or devrani jhat se snan ghar me ghus jati hai. apne antar vastra nikal k ek dam nangi ho jati hai aur aaine k samne chali jati jaise he use apne tarbooze jaise doodh pr jati hai patli kamar mote gol matke jaise chootar gora badan apne lambai aur chaurai dekh kr ekak uske muh se nikalta hai "Ghodi kahi ki"or fir wo snan le kr ek laal rang ka sadi aur kale rang ka blouse pehanti hai jo mewar se mangwaya tha aur tayyar ho kr apne bete se milne nikal padti hai.
To be continued
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