11-12-2023, 06:20 AM,
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aamirhydkhan
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RE: महारानी देवरानी
महारानी देवरानी
अपडेट 61 B
इधर सेनापति की खोटी नियत, उधर पारस में ख़ुशामदीद बहना
दोपहर का समय हो गया था और पारस की ओर तेजी से जा रहे थे बलदेव देवरानी श्याम और बद्री के साथ अपने अश्वो पर ।
श्याम: बद्री यार मुझे भूख सताए जा रही है। ये पारस कब आएगा?
बद्री: धीरज रखो हम पहुँचने ही वाले हैं।
तभी बलदेव को दूर एक बाज़ार नज़र आता है।
बलदेव: माँ देखो वहाँ बस्ती है और बाज़ार भी है ।
ये सुन कर देवरानी की खुशी का ठिकाना नहीं था।
देवरानी: हाँ बलदेव हम पारस पहुच गए हैं।
श्याम: हाँ! मौसी हम पहुच गए।
बलदेव श्याम और बद्री अपने घोड़े को तेजी से बाज़ार की तरफ बढ़ाते है और वहाँ पर अपने घोड़े रोक देते हैं ।
श्याम: कितना सुंदर बाज़ार है।
सब घोड़े से उतरते हैं। देवरानी उतर कर अपने वस्त्र ठीक करती है। बलदेव देखता है देवरानी अपनी गांड को सहलते हुए अपने वस्त्र ठीक कर रही थी । बाज़ार में बहुत शोर था।
पास में एक बूढ़ा व्यक्ति कुछ बेच रहा था । बलदेव उसके पास जाता है।
ग्राहक: ये अंजीर कितने सिक्के के दिए ।
दुकानदार: 10 सिक्के के।
बलदेव अंजीर ले कर सिक्के देता है और बलदेव दुकानदार से पूछता है ।
"श्रीमान ये कौन-सा बाज़ार है?"
"लगता है मुसाफिर हो । तुम पारस में हो बच्चे!"
तभी वहा पर श्याम बद्री तथा देवरानी भी आजाते हैं और सब ये सुन कर खुश हो जाते हैं।
बद्री: श्रीमान हमें महल जाना है।
दुकंदर: बेटा यहाँ बहुत महल है।
देवरानी: हमे सुल्तान मीर वाहिद के महल जाना है।
ये सुन कर दुकानदार और आसपास खड़े ग्राहक डर के देवरानी को देखने लगते हैं।
बलदेव: या फिर आप के महाराज देवराज के महल ।
ग्राहक: लगता है आप लोग सुल्तान के करीबी हो। वैसे सुल्तान का महल, जहाँ वह रहते हैं यहाँ से जुनूब में है और महाराज देवराज का महल सोमल में है ।
देवरानी: नहीं आप हमें सुल्तान के यहाँ जाने का रास्ता बताएँ।
बलदेव: आप कहें हमे सुल्तान के महल जाने के लिए कौन-सी दिशा में जाना है।
दुकन्दर: यहाँ से सीधा चले जाओ।
बलदेव दिशा समझ कर अपने घोड़े पर बैठता है और अपनी माँ को भी सहारा दे कर बैठाता है।
बद्री और श्याम भी अपने-अपने घोड़ों पर बैठ जाते हैं । फिर उस दिशा में घोड़े दौड़ने लगते हैं।
कुछ देर भगाने के बाद गाँव और घर दिखाई देने लगते हैऔर हर तरफ सेना दिखने लगती है । तभी सामने से दो घुड़सावर आकर उन्हें रोकते हैं ।
"ए तुम लोग कौन हो? और महल की ओर जाने की वजह क्या है?"
बलदेव समझ जाता है कि ये पारस के सुरक्षा कर्मी है।
देवरानी: मैं देवरानी हूँ! सुल्तान की खास मित्र की देवराज की बहन!
सैनिक: माफ़ करना मोहतरमा, आप सबका ख़ुश आमदीद!
सैनिक चिल्ला कर-"ए लोगों रास्ता सुरक्षित करो। हिंद से हमारे मेहमान आये हैं।"
बलदेव देवरानी आगे बढ़ते है और देखते हैं सामने बहुत बड़ा महल दिखता है।
देवरानी: कितना विशाल और सुंदर महल है।
श्याम: ओह क्या चमत्कारी महल है।
बद्री: अधभुत!
बलदेवःअति सुन्दर!
सब अपने घोड़े को धीरे-धीरे ले जा रहे थे या । जैसे-जैसे घोड़े महल के करीब जा रहा थे वह चारो महल की ख़ूबसूरती में डूब जाते हैं।
महल के रास्ते में दोनों तरफ से कतार में खड़े सैनिक थे। बलदेव धीरे-धीरे घोड़ा आगे बढ़ रहा था। उसके पीछे श्याम या उसके पीछे बद्री था ।
सामने दो सैनिक आकर खड़े हो जाते हैं।
"बहोशियार हिन्द के महाराजा राजपाल और महारानी देवरानी महल में तशरीफ़ ला रहे हैं।"
बद्री देखता है सामने से राजसी पोषक पहने एक बूढ़ा पर हट्टा कट्टा व्यक्ति कुछ सैनिकों के साथ आ रहा था।
"खैरमकदम मेरी बहन देवरानी आओ!"
देवरानी देखती है ये तो मेरा भाई नहीं है फिर कौन है?
बलदेव सैनिक के कहे अनुसार घोड़े को एक तरफ ले जाता है, फिर देवरानी को पहले उतारता है फिर खुद उतारता है।
सैनिक: आइए आपका स्वागत करने खुद सुल्तान करने आए हैं।
देवरानी: (मन में:-ओह! तो ये है सुल्तान मीर वाहिद!)
देवरानी अपने हाथ जोड़ कर प्रणाम करती है और फिर बारी-बारी सब प्रणाम करते है।
सुलतान: आइए! आप सबको महल ढूँढने में कोई परेशानी तो पेश नहीं आई!
बलदेव देवरानी के साथ चलता हैं ।
"नहीं सुल्तान !"
सब चल कर महल के द्वार पर आते हैं।
सुलतान: सुनो जा कर सब से कह दो के हमारे मेहमान आ गए हैं ।
सैनिक: जी सुल्तान !
सुल्तान के बाए बलदेव और गाते हाथ देवरानी चल रही थी।
उनके पीछे श्यामऔर बद्री चल रहे थे। इन चारो को ले कर सुल्तान सभा में पहुँच जाते जहाँ पर दोनों तरफ से बड़े कुर्सी सोफ़े पर मंत्री बैठे थे सुल्तान को आता देख पूरी सभा में मौजूद सभी खड़े हो जाते है।
और दोनों तरफ से लोग बलदेव देवरानी के ऊपर फुलो की बारिश कर देते हैं ।
"ख़ुशामदीद ख़ुशामदीद!"
श्याम और बद्री अपना स्वागत देख गदगद हो जाते हैं।
सुल्तान जा कर अपने आसन पर बैठ जाते हैं।
सुलतान: आप यहाँ बैठिए राजा राजपाल जी! और देवरानी बहन आप यहाँ पर बैठें।
बद्री: (मन में:-ये बूढ़ा बलदेव को राजपाल बुला रहा है।)
जगह देख कर बद्री और श्याम भी बैठ जाते हैं ।
बलदेव: सुल्तान वह मैं वह नहीं...।
सुलतान: अरे हमारी आँखे आप दोनों को घोड़े पर बैठे देख ही समझ गई थी के आप ही देवराज के जीजा राजपाल और ये हमारी बहना देवरानी है।
ये सुन कर देवरानी शर्मा जाती है और बलदेव को भी अंदर से अच्छा लगता है। पर लोगों को दिखाने के लिए झूठा नाटक करता है।
बलदेव: नहीं सुलतान!
देवरानी: आप से भूल हुई ये मेरा बेटा है!
सुल्तान को जैसा एक झटका लगता है।
"मुआफ़ करना बहना!"
देवरानी: अरे कोई बात नहीं सुल्तान आप पहली बार ही तो मिले हैं। वैसे मेरे पति कोई कारणवश मेरे साथ नहीं आ सके।
देवरानी: (मन में:-जब मेरा असली पति यहीं है तो लगेंगे ही हम पति पत्नी ।)
और उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है जिसे बलदेव देख लेता है तो वह भी मुस्कुराता है।
बलदेव: (मन में;-माँ बस मेरी पत्नी कहलाकर इतना खुश है, सच में बना लूंगा तो कितनी खुश होगी।)
देवरानी: सुल्तान...भैया देवराज कहा रह गए?
सुल्तान: देवराज शहजादे शमशेरा के साथ शिकार पर गए हैं हमने खबर भेजवा दी है।
सुलतान: दोस्तो ये हिंद से आए हमारे मेहमान है मैं चाहता हूँ कि इनको पारस में किसी भी चीज़ की तकलीफ़ न हो ।
सुल्तान: बहन देवरानी! आप सब अंदर जाएँ! देवराज को आने में समय लग सकता है।
सुलतान: सुनो!
सैनिक: जी जहाँ पनाह!
सुल्तान: सबके रहने और खाने का बंदोबस्त करो। इनसब की मल्लिका जहाँ से मुलाकात करवाओ!
सैनिक चारो को अंदर ले जाते हैं।
बद्री श्याम के कान में।
"ये क्या नौटंकी है? तुम जाओ उन दोनों के साथ, मैं यहीं रुक रहा हूँ।"
"हाँ यार बद्री मुझे भी प्यास लगी है।"
बद्री: सुनो हमें पानी पीना है।
एक सैनिक बद्री और श्याम को पानी पिलाने ले जाता है, बाकी सैनिक बलदेव और देवरानी के साथ चल रहे थे।
मल्लिका जहाँ के कक्ष के पास रुक कर सैनिक बोलता है ।
सैनिक: गुस्ताख़ी मुआफ़ हो! मल्लिका जहाँ! हमारे मेहमान आपसे मिलने आये हैं।
मल्लिका जहाँ: इजाज़त है।
बलदेव और देवरानी सैनिकों के इशारे पर अंदर आते हैं। सैनिक वही रुक जाते हैं । एक बड़ा-सा कक्ष था जिसमें जड़े हीरे सोने जवाहरात चमक रहे थे । कक्ष के बीचो बीच में पलंग था जिसपर मखमली बिस्तर लगा हुआ था । सामने नकाब में खड़ी थी मल्लिका जहाँ।
बलदेव और देवरानी दोनों हाथ जोड़ कर मलिका का इस्तकबाल करते हैं ।
"प्रणाम मल्लिका जहाँ!"
मल्लिका जहाँ भी उनका स्वागत करती है ।
"सलाम आप दोनों को!"
मल्लिकाजहाँ: तुम दोनों की जोड़ी बेहद खूबसूरत है।
देवरानी: मुआफ़ कीजिए! पर क्या आप सुल्तान मीर वाहिद की मल्लिका है?
मल्लिकाजहाँ: जी हा मैं उनकी बीवी हूर-ए-जहाँ हू। प्यार से मुझे हुरिया भी कहते हैं।
देवरानी: आप भी हम दोनों को गलत समझ रही हैं। मल्लिका जी!
मल्लिकाजहाँ: मतलब?
देवरानी: मतलब ये मेरे पति नहीं है।
मल्लिकाजहाँ: यानी तुम कह रही हो कि ये आप शौहर नहीं है तो फिर कौन है?
देवरानी: ये मेरा बेटा है।
मल्लिकाजहाँ: तौबा तौबा! मुआफ़ करना! मेरी बहन । तुम दोनों की जोड़ी देख कोई भी धोखा खा सकता है।
देवरानी: कोई बात नहीं दीदी, तो क्या आप हमेशा अपने चेहरे को ढके रहती हैं?
मल्लिकाजहाँ: नहीं मेरी बहन। में सिर्फ गैर मर्द से, भले से वह रिश्तेदार ही हो उनसे पर्दा करती हूँ।
देवरानी: तो क्या, आपको देखने के लिए बलदेव को बाहर भेजना होगा?
मल्लिकाजहाँ: नहीं, नहीं, ये तुम्हारा बेटा है, तो फिर मेरे भी बेटा जैसा ही है, सिर्फ ये मेरा चेहरा देख ले, तो कोई हर्ज़ नहीं।
मल्लिकाजहाँ उर्फ हूर-ए-जहाँ हुरिया अपना नकाब अपने चेहरे से हटाती है तो देवरानी और बलदेव उसे देखते रह जाते हैं।
देवरानी: वाह! क्या सुंदरता है! आपका नाम हूर-ए-जहाँ बिलकुल सही रखा गया है । आप हूर से कम नहीं हैं ।
हुरिया: देवरानी शुक्रिया मेरी बहन! तुम भी कोई कम सुंदर नहीं ही । लगता ही नहीं के हिंद की हो।
देवरानी: दीदी! मैं पारस में ही पेदा और पली बड़ी हुई हूँ। इसीलिए आपको ऐसा लगा।
बलदेव देख रहा था कि दोनों बहुत जल्दी घुल मिल गई थी।
हुरिया: बेटा तुम क्यू चुप चाप हो?
बलदेव (मन में: बेटा तुम यहाँ से निकलो ही लो। दो औरतें के बीच में फ़सना ठीक नहीं ।)
बलदेव: मल्लिका जहाँ मैं आपको मौसी बुलाऊँ तो चलेगा ना।
हुरिया: हाँ बेटा तुम बहन देवरानी के बेटे हो इसलिए मुझे खाला (मौसी) बुला सकते हो, बड़ा शरीफ बेटा है आपकी बहन देवरानी।
देवरानी बलदेव की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए बोली -"बहुत नटखट है।"
बलदेव: मैं ये बद्री और श्याम को देखता हूँ, कहाँ रह गए । आप लोग बात करो।
हुरिया: आओ बैठो देवरानी खड़ी क्यों हो।
बलदेव वहा से बाहर आ जाता है और देवरानी वहाँ एक सोफे पर बैठ जाती है।
जारी रहेगी ।
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