वासना का नशा
08-28-2021, 06:15 PM,
#1
वासना का नशा
वासना के अतिरेक में अखिल ने कमली के हाथ अपने कांपते हाथों में ले लिये. जब उसने कोई विरोध नहीं किया तो उन्होंने रोमांचित हो कर उसे अपनी तरफ खींचा. झिझकते हुए कमली उनके इतने नजदीक आ गई कि उसकी गर्म सांसे उन्हें अपने गले पर महसूस होने लगी. अखिल ने उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों में ले कर उठाया और उसकी नशीली आंखों में झांकने लगे. कमली ने लजाते हुए पलकें झुका लीं पर उनसे छूटने की कोशिश नहीं की. उससे अप्रत्यक्ष प्रोत्साहन पा कर अखिल ने अपने कंपकंपाते होंठ उसके नर्म गाल पर रख दिए. तब भी कमली ने कोई विरोध नहीं किया तो उन्होने एक झटके से उसे बिस्तर पर गिराया और उसे अपनी आगोश में ले लिया. कमली के मुंह से एक सीत्कार निकल गई.
... तभी दरवाजे पर दस्तक हुई तो अखिल की नींद खुल गई. उन्होंने देखा कि बिस्तर पर वे अकेले थे. वे बुदबुदा उठे ... इसी वक़्त आना था .... पर वे घड़ी देख कर खिसिया गए. सुबह हो चुकी थी. दुबारा दस्तक हुई तो उन्होंने उठ कर दरवाजा खोला. बाहर कमली खड़ी थी, उनकी कामवाली, जो एक मिनट पहले ही उनके अधूरे सपने से ओझल हुई थी. उसके अन्दर आने पर अखिल ने दरवाजा बंद कर दिया.
जबसे उनकी पत्नी शर्मिला गई थी वे बहुत अकेलापन महसूस कर रहे थे. शर्मिला की दीदी शादी के पांच वर्ष बाद गर्भवती हुई थी. वे कोई जोखिम नही उठाना चाहती थीं इसलिए दो महीने पहले ही उन्होंने शर्मिला को अपने यहाँ बुला लिया था. पिछले माह उनके बेटा हुआ था. जच्चा के कमजोर होने के कारण शर्मिला को एक महीने और वहां रुकना था. इसलिये अखिल इस वक्त मजबूरी में ब्रह्मचर्य का पालन कर रहे थे.
काफी समय से उनका मन अपने घर पर काम करने वाली कमली पर आया हुआ था. कमली युवा थी. उसके नयन-नक्श आकर्षक थे. उसका बदन गदराया हुआ था. अपनी पत्नी के रहते उन्होंने कभी कमली को वासना की नज़र से नहीं देखा था. शर्मिला थी ही इतनी खूबसूरत! उसके सामने कमली कुछ भी नहीं थी. पर अब पत्नी के वियोग ने उन की मनोदशा बदल दी थी. कमली उन्हें बहुत लुभावनी लगने लगी थी और वे उसे पाने के लिए वे बेचैन हो उठे थे. अखिल जानते थे कि कमली बहुत गरीब है. वो मेहनत कर के बड़ी मुश्किल से अपना घर चलाती है. उसका पति निठल्ला है और पत्नी की कमाई पर निर्भर है. उन्होंने सोचा कि पैसा ही कमली की सबसे बड़ी कमजोरी होगी और उसी के सहारे उसे पाया जा सकता है. अखिल जानते थे कि पैसे के लोभ में अच्छे-अच्छों का ईमान डगमगा जाता है. फिर कमली की क्या औकात कि उन्हें पुट्ठे पर हाथ न रखने दे.
कमली को हासिल करने के लिए उन्होंने एक योजना बनाई थी. आज उन्होंने उस योजना को क्रियान्वित करने का फैसला कर लिया. कमली के आने के बाद वे अपने बिस्तर पर लेट गए और कराहने लगे. कमली अंदर काम कर रही थी. जब उसने अखिल के कराहने की आवाज सुनी तो वो साड़ी के पल्लू से हाथ पोछती हुई उनके पास आयी. उन्हें बेचैन देख कर उसने पूछा, ‘‘बाबूजी, क्या हुआ? ... तबियत खराब है?’’  
दर्द का अभिनय करते हुए अखिल ने कहा, “सर में बहुत दर्द है.”
“आपने दवा ली?”
“हां, ली थी पर कोई फायदा नहीं हुआ. जब शर्मिला यहाँ थी तो सर दबा देती थी और दर्द दूर हो जाता था. पर अब वो तो यहाँ है नहीं.”
कमली सहानुभूति से बोली, ‘‘बाबूजी, आपको बुरा न लगे तो मैं आपका सर दबा दूं?’’
‘‘तुम्हे वापस जाने में देर हो जायेगी! मैं तुम्हे तकलीफ़ नहीं देना चाहता ... पर घर में कोई और है भी नहीं,’’ अखिल ने विवशता दिखाते हुए कहा.
“इसमें तकलीफ़ कैसी? और मुझे घर जाने की कोई जल्दी भी नहीं है,” कमली ने कहा.
कमली झिझकते हुए पलंग पर उनके पास बैठ गई. वो उनके माथे को आहिस्ता-आहिस्ता दबाने और सहलाने लगी. एक स्त्री के कोमल हाथों का स्पर्श पाते ही अखिल का शरीर उत्तेजना से झनझनाने लगा. उन्होंने कुछ देर स्त्री-स्पर्श का आनंद लिया और फिर अपने शब्दों में मिठास घोलते हुए बोले, ‘‘कमली, तुम्हारे हाथों में तो जादू है! बस थोड़ी देर और दबा दो.’’
कुछ देर और स्पर्श-सुख लेने के बाद उन्होंने सहानुभूति से कहा, ‘‘मैंने सुना है कि तुम्हारा आदमी कोई काम नहीं करता. वो बीमार रहता है क्या?’’
‘‘बीमार काहे का? ... खासा तन्दरुस्त है पर काम करना ही नहीं चाहता!’’ कमली मुंह बनाते हुए बोली.
‘‘फिर तो तम्हारा गुजारा मुश्किल से होता होगा?’’
‘‘क्या करें बाबूजी, मरद काम न करे तो मुश्किल तो होती ही है,’’ कमली बोली.
‘‘कितनी आमदनी हो जाती है तुम्हारी?’’ अखिल ने पूछा.
‘‘वही एक हजार रुपए जो आपके घर से मिलते हैं.’’
“कहीं और काम क्यों नहीं करती तुम?”
“बाबूजी, आजकल शहर में बांग्लादेश की इतनी बाइयां आई हुई हैं कि घर बड़ी मुश्किल से मिलते हैं.” कमली दुखी हो कर बोली.
“लेकिन इतने कम पैसों में तुम्हारा घर कैसे चलता होगा?
“अब क्या करें बाबूजी, हम गरीबों की सुध लेने वाला है ही कौन?” कमली विवशता से बोली.
थोड़ी देर एक बोझिल सन्नाटा छाया रहा. फिर अखिल मीठे स्वर में बोले, ‘‘अगर तुम्हे इतने काम के दो हज़ार रुपए मिलने लगे तो?’’
कमली अचरज से बोली, ‘‘दो हज़ार कौन देता है, बाबूजी?’’
‘‘मैं दूंगा.’’ अखिल ने हिम्मत कर के कहा और अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया.
कमली उनके चेहरे को आश्चर्य से देखने लगी. उसे समझ में नहीं आया कि इस मेहरबानी का क्या कारण हो सकता है. उसने पूछा, ‘‘आप क्यों देगें, बाबूजी?’’
कमली के हाथ को सहलाते हुए अखिल ने कहा, ‘‘क्योंकि मैं तुम्हे अपना समझता हूँ. मैं तुम्हारी गरीबी और तुम्हारा दुःख दूर करना चाहता हूँ.”
“और मुझे सिर्फ वो ही काम करना होगा जो मैं अभी करती हूँ?”
“हां, पर साथ में मुझे तुम्हारा थोड़ा सा प्यार भी चाहिए. दे सकोगी?’’ अखिल ने हिम्मत कर के कहा.
कुछ पलों तक सन्नाटा रहा. फिर कमली ने शंका व्यक्त की, ‘‘बीवीजी को पता चल गया तो?’’
‘‘अगर मैं और तुम उन्हें न बताएं तो उन्हें कैसे पता लगेगा?’’ अखिल ने उत्तर दिया. अब उन्हें बात बनती नज़र आ रही थी.
‘‘ठीक है पर मेरी एक शर्त है ...’’
यह सुनते ही अखिल खुश हो गए. उन्होंने कमली को टोकते हुए कहा, ‘‘मुझे तुम्हारी हर शर्त मंजूर है. तुम बस हां कह दो.’’
‘‘मैं कहाँ इंकार कर रही हूं पर पहले मेरी बात तो सुन लो, बाबूजी.’’ कमली थोड़ी शंका से बोली.
अब अखिल को इत्मीनान हो गया था कि काम बन चुका है. उन्होंने बेसब्री से कहा, ‘‘बात बाद में सुनूंगा. पहले तुम मेरी बाहों में आ जाओ.’’
कमली कुछ कहती उससे पहले उन्होंने उसे खींच कर अपनी बाहों में भींच लिया. उनके होंठ कमली के गाल से चिपक गए. वे उत्तेजना से उसे चूमने लगे. कमली ने किसी तरह खुद को उनसे छुड़ाया, “बाबूजी, आज नहीं. ... आपको दफ्तर जाना है. कल इतवार है. कल आप जो चाहो कर लेना.”
अगले चौबीस घंटे अखिल पर बहुत भारी पड़े. उन्हें एक-एक पल एक साल के बराबर लग रहा था. वे कमली की कल्पना में डूबे रहे. उनकी हालत सुहागरात को दुल्हन की प्रतीक्षा करते दूल्हे जैसी थी. किसी तरह अगली सुबह आई. रोज की तरह सुबह आठ बजे कमली भी आ गई. जब वो अन्दर जाने लगी तो अखिल ने पीछे से उसे अपनी बांहों में जकड़ लिया. वे उसे तुरंत बैडरूम में ले जाना चाहते थे लेकिन कमली ने उनकी पकड़ से छूट कर कहा, “ये क्या, बाबूजी? मैं कहीं भागी जा रही हूँ? पहले मुझे अपना काम तो कर लेने दो.”
“काम की क्या जल्दी है? वो तो बाद में भी हो सकता है!” अखिल ने बेसब्री से कहा.
“नहीं, मैं पहले घर का काम करूंगी. आपने कहा था ना कि आप मेरी हर शर्त मानेंगे.”
अब बेचारे अखिल के पास कोई जवाब नहीं था. उन्हें एक घंटे और इंतजार करना था. वे अपने बैडरूम में चले गए और कमली अपने रोजाना के काम में लग गई. अखिल ने कितनी कल्पनाएं कर रखी थीं कि वे आज कमली के साथ क्या-क्या करेंगे! एक घंटे तक वही कल्पनाएं उनके दिमाग में घूमती रहीं. बीच-बीच में उन्हें यह भी लग रहा था कि कमली आज काम में ज्यादा ही वक़्त लगा रही है! अखिल का एक घंटा बड़ी बेचैनी से बीता. कभी वे बिस्तर पर लेट जाते तो कभी कुर्सी पर बैठते ... कभी उठ कर खिड़की से बाहर झांकते तो कभी अपनी तैय्यारियों का जायज़ा लेते (उन्होंने तकिये के नीचे एक लग्जरी कन्डोम का पैकेट और जैली की एक ट्यूब रख रखी थी.)
नौ बज चुके थे. धूप तेज हो गई थी. पंखा चलने और खिड़की खुली होने के बावजूद कमरे में गर्मी बढ़ गई थी. पर अखिल को इस गर्मी का कोई एहसास नहीं था. उन्हें एहसास था सिर्फ अपने अन्दर की गर्मी का. वे खिड़की के पर्दों के बीच से बाहर की तरफ देख रहे थे कि उन्हें अचानक कमरे का दरवाजा बंद होने की आवाज सुनाई दी. उन्होंने मुड़ कर देखा. कमली दरवाजे के पास खड़ी थी. उसकी नज़रें शर्म से झुकी हुई थीं.
कमली के कपडे हमेशा जैसे ही थे पर अखिल को लाल रंग की साडी और ब्लाउज में वो नयी नवेली दुल्हन जैसी लग रही थी. वे कामातुर हो कर कमली की तरफ बढे. उनकी कल्पना आज हकीकत में बदलने वाली थी. पास पहुँच कर उन्होने कमली को अपने सीने से लगा लिया और उसे बेसब्री से चूमने लगे. उन्होने अब तक अपनी पत्नी के अलावा किसी स्त्री को नहीं चूमा था. कमली को चूमने में उन्हें एक अलग तरह का मज़ा आ रहा था. जैसे ही उनका चुम्बन ख़त्म हुआ, कमली थोड़ा पीछे हट कर बोली, "ऐसी क्या जल्दी है, बाबूजी? ... खिड़की से किसी ने देख लिया तो?"
“खिड़की के बाहर तो सुनसान है. वहां से कौन देखेगा?”
“मर्द लोग ऐसी ही लापरवाही करते हैं. उनका क्या बिगड़ता है? बदनाम तो औरत होती है. ... हटिये, मैं देखती हूँ.”
कमली खिड़की के पास गई. उसने पर्दों के बीच से बाहर झाँका. इधर-उधर देखने के बाद जब उसे तसल्ली हो गई तो उसने पर्दों को एडजस्ट किया और अखिल के पास वापस आ कर बोली, “सब ठीक है. अब कर लीजिये जो करना है.”
“करना तो बहुत कुछ है. पर पहले मैं तुम्हे अच्छी तरह देखना चाहता हूँ.”
“देख तो रहे हैं मुझे, अब अच्छी तरह कैसे देखेंगे?”
“अभी तो मैं तुम्हे कम और तुम्हारे कपड़ों को ज्यादा देख रहा हूँ. अगर तुम अपने कपडों से बाहर निकलो तो मैं तुम्हे देख पाऊंगा.” अखिल ने कहा.
"मुझे शर्म आ रही है, बाबूजी. पहले आप उतारिये," कमली ने सर झुका कर कहा.
नौकरानी के सामने कपडे उतारने में अखिल को भी शर्म आ रही थी पर इसके बिना आगे बढ़ना असंभव था. अखिल अपने कपड़े उतारने लगे. यह देख कर कमली ने भी अपनी साडी उतार दी. अखिल अपना कुरता उतार चुके थे और अपना पाजामा उतार रहे थे. कमली को उनके लिंग आकार अभी से दिखाई देने लगा था. उसने अपना ब्लाउज उतारा. अखिल की नज़र उसकी छाती पर थी. जैसे ही उसने अपनी ब्रा उतारी, उसके दोनो स्तन उछल कर आज़ाद हो गये. फिर उसने अपना पेटीकोट भी उतार दिया. उसने अन्दर चड्डी नही पहनी थी. ... उसका गदराया हुआ बदन, करीब 36 साइज़ के उन्नत स्तन, तने हुए निप्पल, पतली कमर, पुष्ट जांघें और जांघों के बीच एक हल्की सी दरार ... यह सब देख कर अखिल की उत्तेजना सारी हदें पर कर गई. उन्होंने अनुभव किया कि कमली का नंगा शरीर शर्मिला से ज्यादा उत्तेजक है. वो अब उसे पा लेने को आतुर हो गये.
अब तक अखिल भी नंगे हो चुके थे. कमली ने लजाते हुए उनके लिंग को देखा. उसे वो कोई खास बड़ा नहीं लगा. उससे बड़ा तो उसके मरद का था. वो सोच रही थी कि यह अन्दर जाएगा तो उसे कैसा लगेगा. ... शुरुआत उसने ही की. वो अखिल के पास गई और उनके लिंग को अपने हाथ में ले कर उसे सहलाने लगी. उसके हाथ का स्पर्श पा कर लिंग तुरंत तनाव में आ गया. अखिल ने भी उसके स्तनो को थाम कर उन्हें मसलना शुरू कर दिया.
थोड़ी देर बाद अखिल कमली को पलंग पर ले गए. दोनो एक दूसरे को अपनी बाहों में भर कर लेट गये. दीपक ने अपने एक हाथ से उसके निपल को मसलते हुए कहा, "कमली, ... तुम नही जानती कि मैं इस दिन का कब से इंतजार कर रहा था!"
"मैं खुश हूं कि मेरे कारण आपको वो सुख मिल रहा है जिसकी आपको जरूरत थी," कमली ने अखिल के लिंग को मसलते हुए कहा.
अखिल फुसफुसा कर बोले, "तुम्हारे हाथों में जादू है, कमली."
कमली बोली, "अच्छा? लेकिन यह तो मेरे हाथ में आने से पहले से खड़ा है."
अखिल भी नहीं समझ पा रहे थे कि आज उनके लिंग में इतना जोश कहाँ से आ रहा है. वो भी अपने लिंग के कड़ेपन को देख कर हैरान थे और कामोत्तेजना से आहें भर रहे थे. ... कमली ने अपनी कोहनी के बल अपने को उठाया और वो अखिल की जांघों के बीच झुकने लगी. अखिल यह सोच कर रोमांचित हो रहे थे कि कमली उनके लिंग को अपने मुह में लेने वाली है. उन्हें कतई उम्मीद नहीं थी कि कमली जैसी कम पढ़ी स्त्री मुखमैथुन से परिचित होगी. उनकी पढ़ी-लिखी मॉडर्न पत्नी ने भी सिर्फ एक-दो बार उनका लिंग मुंह में लिया था और फिर जता दिया था कि उन्हें यह पसंद नहीं है.
“ओह! ... कितना उत्तेजक होगा यह अनुभव!” अखिल ने सोचा और धीमे से कमली के सर के पीछे अपना हाथ रखा. उसके सर को आगे की तरफ धकेल कर उन्होंने यह जता दिया कि वे भी यही चाहते है. कमली ने उनके लिंगमुंड को चूमा. उसके होंठ लिंग के ऊपरी हिस्से को छू रहे थे और तीन-चार बार चूमने के बाद कमली ने अपनी जीभ लिंग पर फिरानी शुरू कर दी .... अखिल आँखें बंद कर के इस एहसास का आनंद ले रहे थे. कमली ने अपना मुंह खोला और लिंग को थोड़ा अंदर लेते हुए अपने होंठों से कस लिया. उसके ऐसा करते ही अखिल को अपने लिंग पर उसके मुह की आंतरिक गरमाहट महसूस हुई. उन्हें लगा कि उनका वीर्य उसी समय निकल जाएगा.
उन्होंने अपना पूरा ध्यान केंद्रित कर के अपनी उत्तेजना और रोमांच पर काबू किया. फिर उन्होंने अपने हिप्स उसके मुह की तरफ उठा दिये जिससे कि ज्यादा से ज्यादा लिंग उसके मुह मे जा सके और वो उसके पूरे मुह की गरमाहट अपने लिंग पर महसूस कर सके. लेकिन उनकी उत्तेजना इतनी बढ़ गई थी कि वे कमली का सर पकड़ कर उसे अपने लिंग पर ऊपर नीचे करने लगे. अब कमली का मुह पूरे लिंग को अपने अंदर समा चुका था.
कमली कुछ देर और उनके लिंग को अपने मुह में लिए चूसती रही पर अखिल का यौन-तनाव अब बर्दाश्त के बाहर हो गया था. उन्होंने माला को चित लिटा दिया. वो समझ गई कि अब वक्त आ चुका है. उसने अपनी टाँगे चौड़ी कर दी. अखिल उस की फैली हुई टाँगों के बीच आये और उसके ऊपर लेट गये. वे उसके गरम और मांसल शरीर का स्पर्श पा कर और भी कामातुर हो गए. उनका उत्तेजित लिंग कमली की योनि से टकरा रहा था. उनकी बाँहें कमली के गिर्द भिंच गयीं और उनके नितम्ब बरबस ऊपर-नीचे होने लगे. कमली ने अपनी टांगें ऊपर उठा दी. लिंग ने अनजाने में ही अपना लक्ष्य पा लिया और योनी के अन्दर घुस गया.
अखिल अपने लिंग पर योनि की गरमाहट को पूरी तरह से महसूस कर पा रहे थे. योनी की जकड़ उतनी मजबूत नहीं थी जितनी उनकी पत्नी की योनी की होती थी. लेकिन लिंग पर नई योनी कि गिरफ्त रोमांचकारी तो होती ही है और अखिल भी इसका अपवाद नहीं थे. लिंग पर नई योनी का स्पर्श, शरीर के नीचे नई स्त्री का शरीर और आँखों के सामने एक नई स्त्री का चेहरा – इन सब ने अखिल को उतेजना की पराकाष्ठ पर पंहुचा दिया.
उनका लिंग जल्दी वीर्यपात न कर दे इसलिये अपना ध्यान योनी से हटाने के लिए अखिल ने कमली के निचले होंठ को अपने होंठों में दबाया और उसे चूसने लगे. कमली ने भी उनका साथ दिया और वो उनका ऊपर वाला होंठ चूसने लगी. अब अखिल ने अपनी जीभ कमली के मुह में घुसा दी. कमली भी पीछे नहीं रही. दोनों की जीभ एक-दूसरी से लड़ने लगीं. इसका परिणाम यह हुआ कि अखिल अपनी उत्तेजना पर काबू खो बैठे. उनके नितम्ब उन के वश में नहीं रहे और बेसाख्ता फुदकने लगे. उनका लिंग सटासट योनि के अंदर-बाहर हो रहा था. उसमे निरंतर स्पंदन हो रहा था. उनकी साँसे तेज हो गई थी. उनके मचलने के कारण लिंग योनि के बाहर निकल सकता था.
कमली ने इस सम्भावना को ताड़ लिया. उसने अपने पैर उनके नितम्बों पर कस कर उनके धक्कों को नियंत्रित करने की कोशिश की. वह सफल भी हुई पर एक मिनट बाद अखिल का लिंग फिर से बेलगाम घोड़े की तरह सरपट दौड़ने लगा. उनका मुंह खुला हुआ था और उससे आहें निकल रही थी. लिंग तूफानी गति से अंदर बाहर हो रहा था. अचानक अखिल का शरीर अकड़ गया और उनके लिंग ने योनी में कामरस निकाल दिया. वे कमली के ऊपर एक कटी हुई पतंग की तरह गिर गए. ... वे अपने आप को बहुत भाग्यशाली समझ रहे थे कि एक लम्बे अर्से के बाद आज उन्हें एक पूर्ण तृप्ति देने वाले संभोग का अनुभव हुआ था.
जब अखिल कामोन्माद से उबरे तो उन्हें एहसास हुआ कि कमली ने तो उन्हें तृप्ति दे दी थी पर वे उसे तृप्त नहीं कर पाए थे. वे कमली के ऊपर से उतर कर उसकी बगल में लेट गए. लंबी साँसे लेते हुए वे बोले, “कमली, बहुत जल्दी हो गया ना! तुम तो शायद प्यासी ही रह गई.”
कमली उनके सीने पर हाथ फेरते हुए बोली, “पहली बार नई औरत के साथ ऐसा हो जाता है. पर अभी हमारे पास वक़्त है. आप थोड़ी देर आराम कीजिये, मैं चाय बना कर लाती हूं.”
 
क्रमशः
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08-28-2021, 06:17 PM,
#2
RE: वासना का नशा
वो सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज पहन कर पहले बाथरूम में गई और फिर किचन में. उसके जाने के दो मिनट बाद अखिल बाथरूम में गये. वापस आ कर उन्होने अंडरवियर पहना और कुर्सी पर बैठ गये. पिछले कुछ मिनटों में जो उनके साथ हुआ था वो उनके दिमाग में एक फिल्म की तरह चलने लगा. उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि उन्होंने अपनी पत्नी के अलावा किसी और स्त्री के साथ सम्भोग किया था! पर सामने पड़े कमली के कपड़े बता रहे थे कि यह सच था. वे थोड़े लज्जित भी थे – एक तो इसलिये कि उन्होंने एक नौकरानी के साथ यह काम किया था और दूसरे इसलिये कि वे उसे तुष्ट नहीं कर पाए.
अखिल अपने ख्यालों में खोये हुए थे कि कमली उनके लिए चाय ले कर आ गई. उन्हें चाय का कप दे कर वह उनके सामने जमीन पर बैठ कर चाय पीने लगी. उनको उदास देख कर वह बोली, “दुखी क्यों हो रहे हैं, बाबूजी? मैंने कहा ना कि हमारे पास वक्त है. इस बार सब ठीक होगा!”
“इस बार?” अखिल निराशा से बोले. “... अब दुबारा होना तो बहुत मुश्किल है!”
“क्या बात करते हैं, बाबूजी?” कमली विश्वास से बोली. “आप चाय पी लीजिये. फिर मैं आपके लंड को तैयार न कर दूं तो मेरा नाम कमली नहीं.”
यह सुन कर अखिल चौंक गए, न सिर्फ कमली के आत्मविश्वास से बल्कि उसकी भाषा से भी. वे ऐसे शब्दों से अनभिज्ञ नहीं थे, अनभिज्ञ तो कोई भी नहीं होता. पर उन्होंने अब तक किसी भी स्त्री के साथ ऐसी भाषा में बात नहीं की थी. किसी स्त्री के मुंह से ऐसे शब्द सुनना तो और भी विस्मयकारी था. उनकी पत्नी तो इतनी शालीन थी कि उनके सामने ऐसी भाषा का प्रयोग करना अकल्पनीय था.
उनको चकित देख कर कमली फिर बोली, “आपको यकीन नहीं हो रहा है, बाबूजी? अभी देख लेना ... आपके लंड की क्या मजाल कि मेरे मुंह में आ जाए और खड़ा न हो!”
अब अखिल समझ गए कि कमली जिस तबके की थी उसमे मर्दों और औरतों द्वारा ऐसी भाषा में बोलना सामान्य होता होगा. चाय ख़त्म हो चुकी थी. कमली किचन में कप रख आई. उसने अखिल के सामने बैठ कर उनका अंडरवियर उतारा. उनके लंड को हाथ में ले कर वो बोली, “मुन्ना, बहुत सो लिए. अब उठ जाओ. अब तुम्हे काम पर लगना है.”
थोड़ी देर लंड को हाथ से सहलाने के बाद उसने सुपाडा अपने मुंह में ले लिया और उस पर अपनी जीभ फिराने लगी. जल्द ही उसकी जादुई जीभ का असर दिखा. निर्जीव से पड़े लंड में जान आने लगी. धीरे धीरे उसकी लम्बाई और सख्ती बढ़ने लगी. कमली ने पूरे लंड को अपने मुंह में लिया और उसे कस कर चूसने लगी. अखिल ने उसके सिर पर हाथ रख कर अपनी आँखे बंद कर ली. ... उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि उनका लंड इतनी जल्दी दुबारा खड़ा हो गया था! कमली उनके लंड को ऐसे चूस रही थी जैसे वो उसके रस को चूस कर ही निकालना चाहती हो. अखिल इस सुखद एहसास का भरपूर मज़ा ले रहे थे, ''sssह...! कमली ... थोड़ा धीरे ... आsssह्ह ...!''
कमली पांच मिनट तक उनका लंड चूसती रही. जब उसे यकीन हो गया कि अब लंड से काम लिया जा सकता है तो उसने अखिल को पलंग पर लेटने को कहा. जब अखिल लेट गए तब उसने अपना ब्लाउज़ और पेटीकोट उतारना शुरू किया. अखिल कामविभोर हो कर उसे निर्वस्त्र होते हुए देख रहे थे. नंगी होने के बाद कमली उनकी जांघों पर सवार हो गई. वो आगे झुक कर उनके होंठों को चूसने लगी. अखिल ने उसके स्तनों को अपने हाथों में लिया और उन्हें हल्के हाथों से दबाने लगे. कमली ने अपना मुंह उठा कर कहा, “बाबूजी, जोर से दबाओ ना. मेरी चून्चियां बीवीजी जितनी नाज़ुक नहीं हैं!”
अखिल उसकी चून्चियों को तबीयत से दबाने और मसलने लगे. कमली ने फिर से अपने रसीले होंठ उनके होंठों पर रख दिए और उनसे जीभ लड़ाने लगी. अखिल को ऐसा लग रहा था मानो वो स्वप्नलोक की सैर कर रहे हों. पलंग पर स्त्री का ऐसा सक्रिय और आक्रामक रूप वे पहली बार देख रहे थे. जब वे बुरी तरह काम-विव्हल हो गए तो उन्होंने कमली से याचना के स्वर में कहा, “बस कमली, ... अब अन्दर डालने दो.”
कमली ने शरारत से उन्हें देखा और पूछा, “कहाँ डालना चाहते हो, बाबूजी? ... मुंह में या मेरी चूत में?”
... अखिल ने शर्मा कर कहा, “तुम्हारी चूत में.”
कमली ने अपनी चूत पर थूक लगाया और उसे अखिल के लंड से सटा दिया. लंड को अपने हाथ से पकड़ कर उसने अपनी कमर को नीचे धकेला. एक ही धक्के में चूत ने पूरे लंड को अपने अन्दर निगल लिया. अब कमली हौले-हौले धक्के लगाने लगी.
कमली की गर्म चूत में जा कर अखिल के लंड में जैसे आग सी लग गयी. उनके नितम्ब अनायास ही उछलने लगे पर इस बार कमान कमली के हाथों में थी. उसने अखिल की जाँघों को अपनी जाँघों के नीचे दबाया और उन्हें उछलने से रोक दिया. उसने अखिल से कहा, “बाबूजी, आप आराम से लेटे रहो और मुझे अपना काम करने दो.”
अखिल ने समर्पण कर दिया. जब कमली ने देखा कि अखिल अब उसके कंट्रोल में हैं तो उसने धक्कों की ताक़त बढ़ा दी. अखिल लेटे-लेटे कमली के धक्कों का मज़ा लेने लगे. कमली एक-दो मिनट धक्के मारती और जब उसे लगता कि अखिल झड़ने वाले हैं तो वो रुक जाती. ऐसे ही वो एक बार धक्कों के बीच रुकी तो उसने पूछा, “बाबूजी, कभी बीवीजी भी आपको ऐसे चोदती हैं या वे सिर्फ चुदवाती हैं?”
अखिल ने थोडा शरमाते हुए कहा, “वे तो सिर्फ नीचे लेटती हैं. बाकी सब मैं ही करता हूं.”
“बाबूजी, मेरा मरद तो मुझे हर तरह से चोदता है - कभी नीचे लिटा कर, कभी ऊपर चढ़ा कर, कभी घोड़ी बना कर तो कभी खड़े-खड़े,” कमली ने कहा.
अखिल को लगा कि उसे चुदाई के साथ-साथ कमली की अश्लील बातें सुनने में भी मज़ा आ रहा है. ... चुदाई और कमली की बातें दो-तीन मिनट और चलीं. फिर अखिल को लगा कि वे आनन्दातिरेक में आसमान में उड़ रहे है. जब आनंद का एहसास अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया तो उन्होने कमली की कमर पकड़ ली. उनके नितंब अपने आप तेज़ी से फुदकने लगे. वैसे भी उन्होंने बहुत देर से अपने को रोक रखा था. उन्होंने कमली को अपनी बाहों में भींच लिया. उन्हें अपने लंड पर उसकी चूत का स्पंदन महसूस हो रहा था जिसे वे सहन नहीं कर पाये. उनका लंड कमली की चूत में वीर्य की बौछार करने लगा. जब कमली की चूत ने उनके वीर्य की आखिरी बूंद भी निचोड़ ली तो उनका लंड सिकुडने लगा. दोनों एक दूसरे को बाहों में समेटे लेटे रहे. ... कुछ देर बाद जब अखिल की साँसे सामान्य हुईं तो उन्होंने कहा, "कमली, तुमने आज जो आनंद मुझे दिया है वो मैं कभी नहीं भूलूंगा."
 
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महीना समाप्त हुआ. कमली को तनख्वाह देनी थी. अखिल ने वादे के मुताबिक उसे एक की बजाय दो हज़ार रुपये दिए. पर कमली ने एक हज़ार रुपये वापस करते हुए उन्हें कहा, “बाबूजी, मेरे मर्द ने मना किया है. मैं एक हज़ार ही लूंगी.”
यह सुन कर अखिल चौंक गए. उन्होंने आश्चर्य से कहा, “क्या? ... तुमने उसे यह बता दिया?”
कमली ने गर्दन झुका कर जवाब दिया, “इतनी बड़ी बात मैं उससे कैसे छुपाती. उसके हाँ करने पर ही मैं आपकी इच्छा पूरी करने को तैयार हुई थी.”
अखिल को यकीन नहीं हो रहा था कि कमली का पति यह कर सकता है. उन्होंने विस्मय से पूछा, “तुम्हारा पति यह मान गया? उसने तुम्हे मेरे से चुदने की इजाज़त दे दी ... और इसके बदले में वो कुछ नहीं चाहता?”
‘‘आपने मेरे मरद को ग़लत समझा है ... वह कोई धर्मात्मा नहीं है ... वो भी आपकी तरह औरतों का रसिया है. उसे सिर्फ इतना चाहिए कि जैसे उसने आपकी इच्छा पूरी की वैसे ही आप उसकी इच्छा पूरी कर दें.’’
कमली की बात से अखिल चकरा गए. वे यह तो समझ गये कि कमली का पति एक नई औरत चाहता है और कमली को इस में कोई ऐतराज़ नहीं है पर उन्हें यह समझ में नहीं आया कि इसमें वो क्या कर सकते हैं. उन्होंने कहा, “लेकिन इस के लिए तो एक हज़ार काफी होंगे! ... मेरा मतलब है कि इतने में तो वो एक अच्छी-खासी औरत का इंतजाम कर सकता है.”
“क्या कह रहे हैं, बाबूजी?” कमली ने नाराज़गी से कहा. “मेरा मरद ऐसा नहीं है. वो बाज़ारू औरतो के पास नहीं जाता.”
“तो ... तो फिर क्या चाहता है वो?”
“बीवी के बदले बीवी! ... बीवीजी के आने में अभी टाइम है पर वो इतना इंतजार कर लेगा. जिस दिन वो वापस आयें, उस दिन आप उन्हें मेरे मरद के पास भेज देना.”
यह सुन कर अखिल का चेहरा गुस्से से तमतमा उठा. उन्होंने क्रोध से कहा, ‘‘जानती हो क्या कह रही हो तुम?’’
‘‘अदला-बदली की ही तो बात कर रही हूं. एक हज़ार में बाज़ारू औरत तो आप भी ला सकते थे ... फिर आप मुझे एक हज़ार रुपये क्यों दे रहे थे? ... इसीलिये ना कि मैं धंधा करने वाली बाज़ारू औरत नहीं हूं!”
“यह तो धोखाधड़ी है! तुमने यह पहले क्यों नहीं बताया?” अखिल ने तमतमा कर पूछा.
“बाबूजी, मैंने तो कहा था कि मेरी एक शर्त है,” कमली ने कहा. “पर आपने उसे सुने बिना ही कह दिया कि आपको मेरी हर शर्त मंजूर है.”
अखिल को याद आया कि कमली की बात सच थी. पर वो अब भी अपने आपे से बाहर थे. वे गुस्से से बोले, “एक हज़ार कम हैं तो दो हज़ार ले लो.”
अब कमली भी उसी लहज़े में बोली, “बाबूजी, आप बीवीजी को मेरे मरद के पास भेज देना, मैं आपको दो हज़ार रुपये दे दूंगी!”
अखिल अब गुस्से से पागल हो गए.  वे बोले, ‘‘तू अपनी औकात भूल गई है! अपने पैसे ले और जा. ... और हां, कल से काम पर नहीं आना.’’
कमली को उन पर गुस्सा भी आया और दया भी. वो सहज स्वर में बोली, ‘‘मैं तो आपकी औकात देख रही हूँ, बाबूजी! आपकी बीवी सती सावित्री और गरीब की बीवी रंडी! ... यह है बड़े लोगों की औकात! ... ठीक है, जाती हूं अब.’’
कमली जाने के लिए मुड़ी. अखिल का वासना का नशा अब पूरी तरह से उतर चुका था. कमली को जाती हुई देख कर वे सोच रहे थे कि आज वे बाल-बाल बचे हैं. तभी कमली फिर मुड़ी. उसने अपना मोबाइल ऑन किया और उसे अखिल के सामने कर दिया. उसे देख कर अखिल का सर घूमने लगा. उन्हें लगा कि वे गश खा कर गिरने वाले हैं. ... मोबाइल में उनकी और कमली की चुदाई का वीडियो था. वे किसी तरह संभले और उनके मुंह से निकला, “ ये...! ये कैसे...!!!”
कमली को उनकी हालत देख कर मज़ा आ रहा था. उसने उनकी दुविधा दूर करते हुए कहा, “आपको याद है कि जब आपने पहली बार मुझे दबोचा था, तब मैने क्या कहा था? ... ‘आज नहीं, कल इतवार है. कल आप जो चाहो कर लेना.’ ... अगले दिन आपके कमरे में आ कर मैंने खिड़की से बाहर देखा था और पर्दों को खिसकाया था. मैंने पर्दों के बीच थोड़ी जगह छोड़ दी थी. ... बस, बाकी काम बाहर से मेरे मरद ने कर दिया.”
अब अखिल की हालत ऐसी थी कि काटो तो खून नहीं. वे अवाक् थे कि यह क्या हो गया? हुआ भी है या नहीं? एक पल उन्हें यह सपना लगता पर दूसरे पल सामने खड़ी कमली उन्हें हकीकत लगती. उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें?
कमली ने मोबाइल बंद कर के कहा, “आप ठीक तो हैं, बाबूजी? आपकी तबियत कुछ बिगड़ी हुई सी लग रही है!”
अखिल जैसे नींद से जागे, “हूं? ... मैं! ... हां, ... ठीक हूं ... तुम ... तुम क्या करोगी? ... मतलब अब ...?”
अब स्थिति पूरी तरह कमली के काबू में थी. वह खुश हो कर बोली, “अब तो तीन ही रास्ते हैं. ... आप आराम से बैठ जाइए ना. ... पहला रास्ता यह है कि मैं बीवीजी को यह वीडियो दिखा दूं और आगे क्या करना है यह उन्ही पर छोड़ दें. ... दूसरा रास्ता यह है यह वीडियो बाज़ार में बिके और इसे हर कोई देखे. ...”
अखिल अब एक हारे-पिटे जुआरी की तरह दिख रहे थे. अगर उनकी पत्नी ने यह वीडियो देख लिया तो न जाने वो उनके साथ क्या करेगी! और यह बाज़ार में बिकने लगा तो उनके सामने आत्महत्या करने के सिवा कोई चारा नहीं बचेगा! वे डरे हुए स्वर में बोले, “और तीसरा रास्ता?”
“वो तो मैंने पहले ही बता दिया था. आप बीवीजी को राज़ी करके मेरे मरद के पास भेज दें. वो उन्हें चोद लेगा तो यह किस्सा ही ख़तम हो जाएगा. ... और हां, आप चाहें तो यह अदला-बदली आगे भी चल सकती है. ...अब चलती हूँ मैं. कल आऊंगी. तब तक आप सोच लीजिये कि आपको क्या करना है!”
 
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कमली चली गई और अखिल गहरे सोच में डूब गए. सोच क्या, वे तो एक गहरे गर्त में थे जिससे निकलना असंभव सा लग रहा था. कमली के बताये पहले दो रास्तों का तो एक ही अंजाम था – उनकी निश्चित बर्बादी! तीसरा रास्ता उन्हें बचा सकता था पर ... अपनी संभ्रांत पत्नी को एक नौकरानी के पति को सौंपना!!!
उनके दिल से आवाज आई, “तुम्हारे जैसा इज्ज़तदार आदमी यह घटिया काम करेगा?”
तभी दिल के दूसरे कोने ने कहा, “बड़ा इज्ज़तदार बनता है! अगर अपनी बीवी को उसके पास नहीं भेजा तो तेरी इज्ज़त बचेगी?”
पहले कोने ने जवाब दिया, “क्या करूँ फिर? एक तरफ कुआँ है और दूसरी तरफ खाई! अगर शर्मिला को भेजा तो भी इज्ज़त जायेगी और नहीं भेजा तो भी!”
दूसरे कोने ने समझाया, “तू यह क्यों नहीं सोचता कि उस घटिया आदमी ने शर्मिला को चोद भी लिया तो बात सिर्फ चार लोगों तक ही सीमित रहेगी. दुनिया के सामने तो इज्ज़त बनी रहेगी.”
पहले कोने ने कहा, “हां, यह तो है. मुझे कमली को सख्ती से कहना होगा कि यह बात हम चार लोगों तक ही सीमित रहनी चाहिए.”
दूसरे कोने ने कहा, “अब हिम्मत रख और शर्मिला के आने पर उसको तैयार कर.”
पहला कोना अब भी शंकित था, “पर शर्मिला मानेगी? उसने इंकार कर दिया तो?”
दूसरे कोने ने उसकी शंका दूर की, “मूर्ख, शर्मिला एक भारतीय पत्नी है. रोज़ तो अखबारों में पढता है कि पति अगर बलात्कार भी कर आये तो पत्नी उसे बचाने की कोशिश करती है, यहाँ तक कि उसे निर्दोष साबित करने के लिए उसे नपुंसक भी बता देती है!”
‘ठीक है,” पहले कोने ने थोडा आश्वस्त हो कर कहा. “शर्मिला के आने पर उससे बात करता हूं.”
 
क्रमशः
 
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08-28-2021, 06:19 PM,
#3
RE: वासना का नशा
अखिल ने मन ही मन तय तो कर लिया था कि शर्मिला के लौटने पर वे उससे बात करेंगे पर ऐसी बात करना कोई आसान काम नहीं था. वे अच्छी तरह जानते थे कि स्थिति उस के सामने रखने में उन्होंने ज़रा भी गलती कर दी तो परिणाम भयानक हो सकता है. वे शर्मिला को खो भी सकते हैं. वैसे शर्मिला क्रोधी स्वाभाव की नहीं थीं पर अपने पति की बेवफाई कौन स्त्री बरदाश्त करेगी. अखिल समझते थे कि उनको एक-एक शब्द तौल कर बोलना होगा और साथ ही उन्हें अच्छी खासी एक्टिंग भी करनी होगी. उन्हें अपने कॉलेज के दिन याद आ गए जब वे नाटकों में अभिनय किया करते थे. गनीमत थी कि शर्मिला के लौटने में तीन दिन थे. इन तीन दिनों में उन्हें पूरा रिहर्सल करना था. लेकिन मुश्किल यह थी कि यहाँ कोई संवाद लेखक और निर्देशक नहीं था. सब कुछ उन्हें स्वयं करना था. अखिल दिन-रात सोचते रहते थे कि उन्हें क्या और कैसे बोलना है.
कमली रोज़ काम करने आती थी और अखिल से पूछती रहती थी कि बीवीजी कब आएँगी. कमली और उसके पति ने उनका वासना का भूत ऐसा उतारा था कि कमली को देख कर अब उन्हें रोमांच के बजाय वितृष्णा होती थी. उन्होंने तय कर लिया था कि इस बार वे बच जाएँ तो भविष्य में किसी परायी स्त्री कि तरफ आँख उठा कर भी नहीं देखेंगे.
बार-बार सोचने पर भी अखिल के समझ में नहीं आ रहा था कि वे शर्मिला को क्या कहें. उन्होंने मन ही मन कई तरह के वाक्य बनाए पर हरेक में कुछ न कुछ कमी नज़र आ जाती थी. अंत में उन्होंने सोचा कि शर्मिला को कोई गहरा शॉक देना ही एक मात्र रास्ता था जो उन्हें उसके गुस्से से बचा सकता था. शॉक कैसा हो यह भी उन्होंने सोच लिया. रिहर्सल का तो वक़्त ही नहीं मिला क्योंकि शर्मिला के लौटने का दिन आ गया था. ट्रेन पहुँचने से पहले उन्होंने शर्मिला को फ़ोन से बताया कि तबियत ख़राब होने के कारण वे स्टेशन नहीं आ सकेंगे. शर्मिला ने उनको कहा कि वे ओटो रिक्शा ले कर आ जायेंगी. वे अपनी तबियत का ध्यान रखें.
छुट्टी का दिन था. कमली काम करके जा चुकी थी. शर्मिला घर पहुंचीं तो उन्होंने देखा कि ड्राइंग रूम का दरवाजा खुला हुआ था. उन्हें लगा कि अखिल की तबियत जितना उन्होंने सोचा था उससे ज्यादा ख़राब है. वे सूटकेस नीचे रखने के लिए झुकीं तो उन्हें मेज पर पेपर वेट से दबा एक बड़ा कागज़ दिखा जो हवा से फडफडा रहा था. मेज पर और कुछ नहीं था. उन्होंने आगे बढ़ कर वो कागज़ उठाया. जैसे ही उन्होंने उसे पढना शुरू किया, उनकी आँखों के आगे अँधेरा छा गया.
किसी तरह मेज़ पर अपने हाथ रख कर वे गिरने से बचीं. उन्होंने बड़ी हिम्मत कर के खुद को संभाला और वे बिजली की तेज़ी से अन्दर की ओर दौड़ पडीं. बैडरूम के दरवाजे पर पहुँचते ही वे एक पल के लिए ठिठकीं और फिर चिल्ला उठीं, “नहीं. रुको.”
अखिल ने चौंक कर उन्हें देखा और कहा, “मत रोको मुझे. मेरे लिये और कोई रास्ता नहीं बचा है. हो सके तो मुझे माफ़ कर देना.”
इससे पहले कि वे कुछ करते, शर्मिला ने दौड़ कर उनकी टांगों को पकड़ लिया. उन्होंने हाँफते हुए कहा, “ये क्या पागलपन है! नीचे उतरो. तुन्हें मेरी कसम है. अगर तुम्हे कुछ हो गया तो मैं भी आत्महत्या कर लूंगी.”
(आप समझ ही गए होंगे कि अखिल ने क्या किया था. उन्होंने ड्राइंग रूम में एक पत्र लिख छोड़ा था जिसमे लिखा था –
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मेरे प्राणों से प्रिय शर्मिला,
जब तुम यह पत्र पढ़ोगी तब तक मेरी आत्मा मेरे अधम शरीर से विदा हो चुकी होगी. मैंने जो पाप किया है उसका कोई प्रायश्चित नहीं है. तुम्हे मुंह दिखाना तो दूर, मैं तो तुम से माफ़ी मांगने के लायक भी नहीं रहा हूं.
तुम्हारा गुनहगार,
अखिल
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पत्र पढ़ते ही किसी अनहोनी की आशंका से त्रस्त शर्मिला तुरंत अन्दर दौड़ पडी थीं. बैडरूम के दरवाजे पर पहुंचते ही उन्होंने देखा कि अखिल एक स्टूल पर खड़े थे. उनके हाथ में एक रस्सी का फंदा था जिसे वे गले में डालने ही वाले थे. रस्सी का दूसरा छोर ऊपर पंखे से बंधा हुआ था.)
शर्मिला ने फिर लगभग रोते हुए कहा, “अगर तुमने ये पागलपन नहीं छोड़ा तो मैं सच कहती हूँ, इस घर से एक साथ दो अर्थियां उठेंगी.
अब अखिल क्या करते! वे अपनी प्राणों से प्रिय पत्नी को कैसे मरने देते! उन्हें नीचे उतरना ही पड़ा. नीचे उतरे तो उनका सर झुका हुआ था. शर्मिला ने रोते हुए उन्हें अपनी बांहों में भर लिया. पर शर्मिला की आँखों से अधिक आंसू अखिल की आँखों से बह रहे थे. पति-पत्नी का करुण रुदन काफी समय तक चलता रहा. ... किसी तरह शर्मिला ने दिलासा दे-दे कर अपने पति को चुप कराया. जब अखिल कुछ सामान्य हुए तो शर्मिला ने आशंकित मन से उन्हें पूछा कि हुआ क्या था. अब अखिल क्या जवाब देते? पर वे सच्चाई को छुपाते भी कब तक! जब शर्मिला ने पूछना जारी रखा तो उन्हें अटकते-अटकते रुआंसी आवाज में सब बताना पड़ा. गर्दन उठाने की हिम्मत उनमे नहीं थी.
अखिल से सब कुछ सुनते समय शर्मिला की मनोदशा अजीब थी. उन्हें कभी अखिल पर क्रोध आ रहा था, कभी उनसे घृणा हो रही थी और कभी अपने दुर्भाग्य पर रोना आ रहा था. जब अंत में उन्होंने कमली की विचित्र शर्त सुनी तो वे जैसे आसमान से गिरीं. एक नौकरानी की यह मजाल! ... फिर उन्हे लगा कि सारी मूर्खता तो उनके पति की थी. कमली और उसके पति ने अपनी चालाकी से अखिल की बेवकूफ़ी का फायदा उठाया था. कुछ भी हो, अब इस मूर्खता का परिणाम तो उन्हें भुगतना था. ... वे एक भारतीय नारी थीं. उन्होंने सोचा कि उनके लिए पति के जीवन से कीमती कुछ भी नहीं है. उन्होंने आज समय पर पहुँच कर अखिल को आत्महत्या करने से तो रोक दिया था पर उन्हें आगे आत्महत्या से रोकना भी उन्ही का दायित्व था.
जब उन्होंने अपने जज्बात पर काबू पा लिया तो उनकी बुद्धि ने भी काम करना शुरू कर दिया. उन्होंने अखिल से कहा, “जो हो चुका सो हो चुका. उसे मिटाया नहीं जा सकता है. हमें आगे के बारे में सोचना है. कोई न कोई रास्ता जरूर होगा.”
उनकी बात सुन कर अखिल को सबसे पहले तो यह तसल्ली हुई कि शर्मिला ने उनको माफ़ कर दिया है. जो हो गया उसे उन्होंने एक भारतीय पत्नी की तरह अपनी नियति समझ कर स्वीकार कर लिया है. फिर जब उन्होंने कहा कि ‘हमें’ आगे के बारे में सोचना है, तो उनका मतलब था कि अब जो भी करना है वे दोनों मिल कर करेंगे. अखिल ने सोचा कि उनका शर्मिला को शॉक देने का नुस्खा कारगर साबित हुआ था. उन्होंने मन ही मन अपनी एक्टिंग को दाद दी. एक्टिंग जारी रखते हुए उन्होंने हताशा से कहा, “मैं तो हर पल यही सोच रहा हूँ पर मुझे कमली की बात मानने के अलावा कोई रास्ता नहीं दिख रहा है.”
शर्मिला ने जवाब में कहा, “ये लोग गरीब नौकर हैं. इन्हें पैसों का लालच न हो, यह हो ही नहीं सकता. पर एक-दो हज़ार से बात नहीं बनेगी. तुम उसे ज्यादा पैसों का लालच दो. जरूरत पड़े तो हम दस-बीस हज़ार तक भी जा सकते हैं.”
अखिल ने सोचा कि वे कोई अफसर नहीं बल्कि एक क्लर्क हैं. उनके लिए दस-बीस हज़ार रुपये ऐसे ही दे देना कोई मामूली बात नहीं थी. पर अपने घर की लाज बचाने के लिए वे कुछ भी करने को तैयार थे. उन्होंने बुझे स्वर में कहा, “ठीक है, मैं कल कमली से बात करता हूँ.”
शर्मिला ने दृढ़ता से कहा, “इससे ज्यादा भी देने पड़ें तो संकोच मत करना. जरूरी हुआ तो मैं अपने गहने भी बेच दूँगी.”
अखिल शर्मिंदगी से बोले, “तुम्हारे पास है ही क्या? जो है वो भी मेरे कारण चला जाएगा!”
शर्मिला ने कहा, “तुम्हारी जान और घर की इज्ज़त के सामने गहने और पैसे क्या हैं!”
अखिल का अभिनय तो अब ऑस्कर अवार्ड के लायक हो चला था. उनकी आँखों से आंसू बह रहे थे. उन्होंने रुंधे गले से कहा, “पता नहीं पिछले जन्म में मैंने क्या पुण्य किया था कि भगवान ने मुझे तुम्हारे जैसी पत्नी दे दी! ... और मैं फिर भी यह नीच काम कर बैठा. ... अगर भगवान की कृपा और तुम्हारे भाग्य ने इस बार मुझे बचा लिया तो मैं भगवान की कसम खाता हूं कि किसी परायी स्त्री की तरफ आँख उठा कर भी नहीं देखूँगा.”
शर्मिला ने द्रवित हो कर अपने पति को गले से लगा लिया. अखिल के आंसू उनके कंधे को भिगो रहे थे ... पर अब अगले दिन का इंतजार करने के अलावा कोई चारा न था.
 
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अगली सुबह तक का समय बहुत मुश्किल से बीता. अखिल आशंकित थे पर शर्मिला के मन में आशा थी. दोनों ने मिल कर तय किया कि कमली के आने के बाद शर्मिला मंदिर चली जायेंगी ताकि अखिल अकेले में कमली से बात कर सकें. वैसे भी मंदिर में शर्मिला को भगवान से बहुत विनती करनी थी.
बहरहाल अगली सुबह आई और नियत समय पर कमली भी आ गई. जब उसने शर्मिला को घर में पाया तो वह बहुत खुश हुई. अब उसके पति का उधार चुकता हो जाएगा, वो उधार जो कई दिनों से अखिल बाबू पर था. शर्मिला ने अपने आप को सामान्य दिखाते हुए उससे थोड़ी औपचारिक बात की. शर्मिला को सामान्य देख कर कमली को आश्चर्य हुआ. उसे शंका हुई कि शायद बाबूजी ने उनसे ‘वो’ बात नहीं की थी. जब कमली का काम ख़त्म होने को था, शर्मिला ने अखिल को कहा कि वे मंदिर जा रही हैं, और वे पूजा का कुछ सामान ले कर घर से निकल गयीं. कमली जल्दी से अपना काम ख़त्म कर के अखिल के पास पहुंची और उनसे बोली, “बाबूजी, कितने बजे भेज रहे हैं बीवीजी को? उन्हें आप पहुंचाएंगे या मैं लेने आऊँ?”
अखिल के सामने वो मुश्किल घडी आ गई थी जिसे वे टालना चाहते थे. उन्होंने फिर एक्टिंग का सहारा लिया और बोले, “कमली, मैं कई दिनों से तुम्हारी बात पर गौर कर रहा हूँ और मुझे समझ में आ गया है कि मैं कितना मूर्ख था!”
कमली सोच रही थी कि इनको अब अक्ल आई है. अखिल बोलने के साथ-साथ कमली के मनोभावों को पढने का भी प्रयास कर रहे थे. उन्होंने अपनी बात जारी रखी, “मैं जानता हूं कि तुम्हारी ज़िन्दगी में कितने अभाव हैं. एक-दो हज़ार रुपये ज्यादा मिलने से तुम्हारे अभाव दूर नहीं होंगे. लेकिन सोचो कि तुम्हे दस-पंद्रह हज़ार रुपये एकमुश्त मिल जाएँ तो तुम्हारी कौन-कौन सी जरूरतें पूरी हो सकती हैं!”
उनकी आशा के विपरीत उन्हें कमली के चेहरे पर कोई ख़ुशी या सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दिखी. वे समझ गए कि इतने से बात नहीं बनेगी. वे आगे बोले, “बल्कि मैं तो सोचता हूँ कि यह भी कम हैं. अगर बीस-पच्चीस हज़ार ...”
कमली उनकी बात को काटते हुए बोली, “बाबूजी, मैंने न तो इतने रुपये देखे हैं और न ही मैं जानती हूं कि इतने रुपयों से क्या-क्या हो सकता है. ये बातें मेरा मरद ही समझ सकता है. आप कहें तो मैं उसे पूछ कर आपको जवाब दे दूं.”
कमली न तो खुश दिख रही थी और न दुखी. अखिल को लग रहा था कि उनका दाव बेकार गया. फिर उन्होंने सोचा कि शायद कमली के घर में इतने बड़े फैसले करने का अधिकार उसके मर्द को ही होगा. उन्होंने कहा, “ठीक है, तुम उसे पूछ लो.”
कमली चली गई.
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शर्मिला जब घर वापस आयीं तो उन्हें कमली नहीं दिखी. उन्होंने बेताबी से अखिल से पूछा, “क्या हुआ? वो मान गई?”
“नहीं,” अखिल ने सर झुकाए हुए कहा.
“नहीं!” शर्मिला ने आश्चर्य से कहा. “तुमने कितने तक की बात की? कहीं कंजूसी तो नहीं दिखाई?”
“तुम जैसा सोच रही हो वैसा कुछ नहीं है,” अखिल ने कहा. “मैंने बीस-पच्चीस हज़ार तक की बात की थी.”
“फिर?”
“उसने कहा कि वो यह सब नहीं समझती,” अखिल ने उत्तर दिया. “वो अपने पति से बात कर के जवाब देगी.”
“कब?”
“उसने यह नहीं बताया.”
“उसने रुपयों के अलावा किसी और चीज़ की बात तो नहीं की?” शर्मिला ने पूछा.
“नहीं.”
“लगता है बात बन जायेगी,” शर्मिला थोड़ी आश्वस्त हुईं. “लेकिन हो सकता है कि उसका पति तेज-तर्रार हो और इतने में भी न माने. सुनो, जरूरी लगे तो तुम चालीस-पचास तक भी चले जाना!”
“चालीस-पचास हज़ार!” अखिल ने विस्मय से कहा. “कहाँ से लायेंगे हम इतने रुपये?”
“तुम चिंता मत करो,” शर्मिला ने कहा. “मैंने कहा था न कि जरूरत हुई तो मैं अपने गहने भी बेच दूँगी. भगवान सब ठीक करेंगे. मैं तो मंदिर में प्रसाद भी बोल कर आई हूं.”
 
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शाम को पति-पत्नी दोनों अपने-अपने खयालों में खोये थे कि किसी ने दरवाजा खटखटाया. शर्मिला ने जा कर दरवाजा खोला. बाहर कमली खड़ी थी.
“नमस्ते बीवीजी, बाबूजी हैं?” उसने शर्मिला से पूछा.
“हां, तुम रुको. मैं उन्हें भेजती हूँ.”
शर्मिला उसे ड्राइंग-रूम में छोड़ कर अन्दर गई तो अखिल ने बेचैनी से पूछा, “कौन था?”
“कमली है,” शर्मिला ने कहा. “ड्राइंग रूम में आप का इंतजार कर रही है.”
“इतनी जल्दी आ गई,” अखिल ने उत्तर दिया. वे डर रहे थे कि अब क्या होगा! जिस घड़ी को वे टालना चाहते थे वो आ गई थी.
शर्मिला ने कहा, “जाओ और होशियारी से बात करना.”
अखिल ड्राइंग रूम में पहुंचे तो कमली खड़ी हुई थी. उन्होंने बैठते हुए कहा, “तुम खड़ी क्यों हो?”
कमली उनके सामने फर्श पर बैठने लगी तो उन्होंने उसे सोफे पर बैठने को कहा. पर कमली ने नीचे बैठ कर कहा, “मैं यहीं ठीक हूं, बाबूजी. आप जैसे बड़े लोगों के बराबर बैठने की हिम्मत मुझ में कहाँ!”
अखिल समझ गए कि उन्होंने जितना सोचा था कमली उससे कहीं ज्यादा चालाक है. कुछ दिन पहले उनके नीचे और ऊपर लेटने वाली औरत आज कह रही है कि वो उनके बराबर बैठने के लायक नहीं है! उन्हें वास्तव में होशियारी से बात करनी पड़ेगी.
उन्होंने झिझकते हुए पूछा, “कुछ बताया तुम्हारे पति ने?”
कमली ने कहा, “हां बाबूजी, उसने कहा कि हमारे बड़े भाग हैं कि बाबूजी ने तुम्हे अपनी सेवा करने का मौका दिया. उसने कहा कि बड़े लोगों की सेवा करने का फ़ल भी बड़ा मिलता है. इसलिए अब हमारे भी दिन फिरने वाले हैं.”
अखिल को लगा कि कमली की तरह यह आदमी भी बहुत चालाक है. उन्होंने सावधानी से पासा फेंका, “हां, मैं सोच रहा था कि इस महंगाई के ज़माने में बीस-पच्चीस हज़ार रुपये से भी क्या होता है!”
उनकी बात पूरी होने से पहले ही कमली ने कहा, “सच है, बाबूजी. मेरा मरद भी यही कहता है. आजकल बीस-पच्चीस हज़ार से कुछ नहीं होता! कोई सरकार हम गरीबों के बारे में नहीं सोचती. यह तो भगवान की कृपा है कि आप जैसे दयालु लोग हम गरीबों की फ़िक्र करते हैं.”
अखिल समझ गए थे कि उनका पाला एक पहुंचे हुए इन्सान से पड़ा है. अब बीस-पच्चीस हज़ार से काफी आगे जाना पड़ेगा. उन्होंने सोचा कि आगे बढ़ने से पहले उन्हें कमली की थाह लेने की कोशिश करनी चाहिए. उन्होंने सतर्कता से कहा, “तो तुमने भी कुछ तो सोचा होगा. मैं कोई अमीर आदमी नहीं हूं पर जितना हो सकता है उतना करने की कोशिश करूंगा.”
“बाबूजी, अब आपसे क्या छिपाना,” कमली ने अपनी आवाज नीची कर के अपनी बात आगे बढाई. “सच तो यह है कि मेरे मरद के मन में लालच आ गया था. हमारे मुहल्ले में एक आदमी है जो हर तरह के उलटे-सीधे धंधे करता है – चरस, गांजा, स्मैक, गन्दी फिलमें – वो सब कुछ खरीदता और बेचता है. मेरा मरद उसके पास पहुँच गया. उसने उस आदमी से कहा कि मेरे एक दोस्त के पास एक शरीफ और घरेलू किस्म के मरद-औरत की गन्दी फिलम है. वो कितने में बिक सकती है? उस आदमी ने कहा कि आजकल कोई नैट नाम का बाज़ार बना है जहाँ ऐसी चार-पांच मिनट की फिल्म के भी एक लाख रुपये तक मिल सकते हैं. सुना आपने, बाबूजी? एक छोटी सी फिलम के एक लाख रुपये!”
अब अखिल की बोलती बंद हो गई. वे चालीस-पचास हज़ार रुपये भी मुश्किल से जुटा पाते लेकिन यहां तो बात एक लाख की हो रही थी. उन्हें लगा कि बाज़ी हाथ से निकल चुकी है. अब कुछ नहीं हो सकता. लेकिन फिर उन्हें याद आया कि अभी कमली ने यह नहीं कहा था कि उसके पति ने फिल्म बेच दी. शायद कोई रास्ता निकल आये! उन्होंने डरी हुई आवाज में कहा, “फिर तुम्हारे मरद ने क्या किया?”
“एक लाख की बात सुन कर उसके मुंह में पानी आ गया पर फिर कुछ सोच कर उसने वो फिलम न बेचना ही ठीक समझा. वापस आ कर उसने मुझे सारा किस्सा सुनाया और कहा ‘कमली, रुपये तो हाथ का मैल है. किस्मत में लिखे हैं तो कभी न कभी जरूर आयेंगे. पर तुम्हारी मालकिन जैसी एक नम्बर की मेम दुबारा नहीं मिलेगी. मैं कितना ही मुंह मार लूं पर मुझे औरत मिलेगी तो तेरे दर्जे की ही. मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मेमसाहब जैसा टनाटन माल मेरी किस्मत में हो सकता है! अब किस्मत मुझ पर मेहरबान हुई है तो मैं ये मौका क्यों छोडूं? तू तो बस एक दिन के लिए मेमसाहब को मुझे दिला दे.’ सुना आपने, बाबूजी? उस मूरख ने बीवीजी के लिए एक लाख रुपये छोड़ दिए!”
यह सुन कर अखिल स्तब्ध रह गये. यही हाल शर्मिला का था जो परदे के पीछे खडी सब सुन रही थीं. दोनों सन्न थे. दोनों के समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करें. शर्मिला किसी तरह दीवार का सहारा ले कर खड़ी रह पायीं. अखिल गुमसुम से खिड़की की तरफ देख रहे थे. तभी कमली ने सन्नाटा तोडा, “क्या हुआ, बाबूजी? आपकी तबियत ठीक नहीं लग रही है. ... गर्मी भी तो इतनी ज्यादा है. मैं आपके लिए पानी लाती हूँ.”

क्रमशः
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08-28-2021, 06:23 PM,
#4
RE: वासना का नशा
अखिल ने मन ही मन तय तो कर लिया था कि शर्मिला के लौटने पर वे उससे बात करेंगे पर ऐसी बात करना कोई आसान काम नहीं था. वे अच्छी तरह जानते थे कि स्थिति उस के सामने रखने में उन्होंने ज़रा भी गलती कर दी तो परिणाम भयानक हो सकता है. वे शर्मिला को खो भी सकते हैं. वैसे शर्मिला क्रोधी स्वाभाव की नहीं थीं पर अपने पति की बेवफाई कौन स्त्री बरदाश्त करेगी. अखिल समझते थे कि उनको एक-एक शब्द तौल कर बोलना होगा और साथ ही उन्हें अच्छी खासी एक्टिंग भी करनी होगी. उन्हें अपने कॉलेज के दिन याद आ गए जब वे नाटकों में अभिनय किया करते थे. गनीमत थी कि शर्मिला के लौटने में तीन दिन थे. इन तीन दिनों में उन्हें पूरा रिहर्सल करना था. लेकिन मुश्किल यह थी कि यहाँ कोई संवाद लेखक और निर्देशक नहीं था. सब कुछ उन्हें स्वयं करना था. अखिल दिन-रात सोचते रहते थे कि उन्हें क्या और कैसे बोलना है.
कमली रोज़ काम करने आती थी और अखिल से पूछती रहती थी कि बीवीजी कब आएँगी. कमली और उसके पति ने उनका वासना का भूत ऐसा उतारा था कि कमली को देख कर अब उन्हें रोमांच के बजाय वितृष्णा होती थी. उन्होंने तय कर लिया था कि इस बार वे बच जाएँ तो भविष्य में किसी परायी स्त्री कि तरफ आँख उठा कर भी नहीं देखेंगे.
बार-बार सोचने पर भी अखिल के समझ में नहीं आ रहा था कि वे शर्मिला को क्या कहें. उन्होंने मन ही मन कई तरह के वाक्य बनाए पर हरेक में कुछ न कुछ कमी नज़र आ जाती थी. अंत में उन्होंने सोचा कि शर्मिला को कोई गहरा शॉक देना ही एक मात्र रास्ता था जो उन्हें उसके गुस्से से बचा सकता था. शॉक कैसा हो यह भी उन्होंने सोच लिया. रिहर्सल का तो वक़्त ही नहीं मिला क्योंकि शर्मिला के लौटने का दिन आ गया था. ट्रेन पहुँचने से पहले उन्होंने शर्मिला को फ़ोन से बताया कि तबियत ख़राब होने के कारण वे स्टेशन नहीं आ सकेंगे. शर्मिला ने उनको कहा कि वे ओटो रिक्शा ले कर आ जायेंगी. वे अपनी तबियत का ध्यान रखें.
छुट्टी का दिन था. कमली काम करके जा चुकी थी. शर्मिला घर पहुंचीं तो उन्होंने देखा कि ड्राइंग रूम का दरवाजा खुला हुआ था. उन्हें लगा कि अखिल की तबियत जितना उन्होंने सोचा था उससे ज्यादा ख़राब है. वे सूटकेस नीचे रखने के लिए झुकीं तो उन्हें मेज पर पेपर वेट से दबा एक बड़ा कागज़ दिखा जो हवा से फडफडा रहा था. मेज पर और कुछ नहीं था. उन्होंने आगे बढ़ कर वो कागज़ उठाया. जैसे ही उन्होंने उसे पढना शुरू किया, उनकी आँखों के आगे अँधेरा छा गया.
किसी तरह मेज़ पर अपने हाथ रख कर वे गिरने से बचीं. उन्होंने बड़ी हिम्मत कर के खुद को संभाला और वे बिजली की तेज़ी से अन्दर की ओर दौड़ पडीं. बैडरूम के दरवाजे पर पहुँचते ही वे एक पल के लिए ठिठकीं और फिर चिल्ला उठीं, “नहीं. रुको.”
अखिल ने चौंक कर उन्हें देखा और कहा, “मत रोको मुझे. मेरे लिये और कोई रास्ता नहीं बचा है. हो सके तो मुझे माफ़ कर देना.”
इससे पहले कि वे कुछ करते, शर्मिला ने दौड़ कर उनकी टांगों को पकड़ लिया. उन्होंने हाँफते हुए कहा, “ये क्या पागलपन है! नीचे उतरो. तुन्हें मेरी कसम है. अगर तुम्हे कुछ हो गया तो मैं भी आत्महत्या कर लूंगी.”
(आप समझ ही गए होंगे कि अखिल ने क्या किया था. उन्होंने ड्राइंग रूम में एक पत्र लिख छोड़ा था जिसमे लिखा था –
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मेरे प्राणों से प्रिय शर्मिला,
जब तुम यह पत्र पढ़ोगी तब तक मेरी आत्मा मेरे अधम शरीर से विदा हो चुकी होगी. मैंने जो पाप किया है उसका कोई प्रायश्चित नहीं है. तुम्हे मुंह दिखाना तो दूर, मैं तो तुम से माफ़ी मांगने के लायक भी नहीं रहा हूं.
तुम्हारा गुनहगार,
अखिल
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पत्र पढ़ते ही किसी अनहोनी की आशंका से त्रस्त शर्मिला तुरंत अन्दर दौड़ पडी थीं. बैडरूम के दरवाजे पर पहुंचते ही उन्होंने देखा कि अखिल एक स्टूल पर खड़े थे. उनके हाथ में एक रस्सी का फंदा था जिसे वे गले में डालने ही वाले थे. रस्सी का दूसरा छोर ऊपर पंखे से बंधा हुआ था.)
शर्मिला ने फिर लगभग रोते हुए कहा, “अगर तुमने ये पागलपन नहीं छोड़ा तो मैं सच कहती हूँ, इस घर से एक साथ दो अर्थियां उठेंगी.
अब अखिल क्या करते! वे अपनी प्राणों से प्रिय पत्नी को कैसे मरने देते! उन्हें नीचे उतरना ही पड़ा. नीचे उतरे तो उनका सर झुका हुआ था. शर्मिला ने रोते हुए उन्हें अपनी बांहों में भर लिया. पर शर्मिला की आँखों से अधिक आंसू अखिल की आँखों से बह रहे थे. पति-पत्नी का करुण रुदन काफी समय तक चलता रहा. ... किसी तरह शर्मिला ने दिलासा दे-दे कर अपने पति को चुप कराया. जब अखिल कुछ सामान्य हुए तो शर्मिला ने आशंकित मन से उन्हें पूछा कि हुआ क्या था. अब अखिल क्या जवाब देते? पर वे सच्चाई को छुपाते भी कब तक! जब शर्मिला ने पूछना जारी रखा तो उन्हें अटकते-अटकते रुआंसी आवाज में सब बताना पड़ा. गर्दन उठाने की हिम्मत उनमे नहीं थी.
अखिल से सब कुछ सुनते समय शर्मिला की मनोदशा अजीब थी. उन्हें कभी अखिल पर क्रोध आ रहा था, कभी उनसे घृणा हो रही थी और कभी अपने दुर्भाग्य पर रोना आ रहा था. जब अंत में उन्होंने कमली की विचित्र शर्त सुनी तो वे जैसे आसमान से गिरीं. एक नौकरानी की यह मजाल! ... फिर उन्हे लगा कि सारी मूर्खता तो उनके पति की थी. कमली और उसके पति ने अपनी चालाकी से अखिल की बेवकूफ़ी का फायदा उठाया था. कुछ भी हो, अब इस मूर्खता का परिणाम तो उन्हें भुगतना था. ... वे एक भारतीय नारी थीं. उन्होंने सोचा कि उनके लिए पति के जीवन से कीमती कुछ भी नहीं है. उन्होंने आज समय पर पहुँच कर अखिल को आत्महत्या करने से तो रोक दिया था पर उन्हें आगे आत्महत्या से रोकना भी उन्ही का दायित्व था.
जब उन्होंने अपने जज्बात पर काबू पा लिया तो उनकी बुद्धि ने भी काम करना शुरू कर दिया. उन्होंने अखिल से कहा, “जो हो चुका सो हो चुका. उसे मिटाया नहीं जा सकता है. हमें आगे के बारे में सोचना है. कोई न कोई रास्ता जरूर होगा.”
उनकी बात सुन कर अखिल को सबसे पहले तो यह तसल्ली हुई कि शर्मिला ने उनको माफ़ कर दिया है. जो हो गया उसे उन्होंने एक भारतीय पत्नी की तरह अपनी नियति समझ कर स्वीकार कर लिया है. फिर जब उन्होंने कहा कि ‘हमें’ आगे के बारे में सोचना है, तो उनका मतलब था कि अब जो भी करना है वे दोनों मिल कर करेंगे. अखिल ने सोचा कि उनका शर्मिला को शॉक देने का नुस्खा कारगर साबित हुआ था. उन्होंने मन ही मन अपनी एक्टिंग को दाद दी. एक्टिंग जारी रखते हुए उन्होंने हताशा से कहा, “मैं तो हर पल यही सोच रहा हूँ पर मुझे कमली की बात मानने के अलावा कोई रास्ता नहीं दिख रहा है.”
शर्मिला ने जवाब में कहा, “ये लोग गरीब नौकर हैं. इन्हें पैसों का लालच न हो, यह हो ही नहीं सकता. पर एक-दो हज़ार से बात नहीं बनेगी. तुम उसे ज्यादा पैसों का लालच दो. जरूरत पड़े तो हम दस-बीस हज़ार तक भी जा सकते हैं.”
अखिल ने सोचा कि वे कोई अफसर नहीं बल्कि एक क्लर्क हैं. उनके लिए दस-बीस हज़ार रुपये ऐसे ही दे देना कोई मामूली बात नहीं थी. पर अपने घर की लाज बचाने के लिए वे कुछ भी करने को तैयार थे. उन्होंने बुझे स्वर में कहा, “ठीक है, मैं कल कमली से बात करता हूँ.”
शर्मिला ने दृढ़ता से कहा, “इससे ज्यादा भी देने पड़ें तो संकोच मत करना. जरूरी हुआ तो मैं अपने गहने भी बेच दूँगी.”
अखिल शर्मिंदगी से बोले, “तुम्हारे पास है ही क्या? जो है वो भी मेरे कारण चला जाएगा!”
शर्मिला ने कहा, “तुम्हारी जान और घर की इज्ज़त के सामने गहने और पैसे क्या हैं!”
अखिल का अभिनय तो अब ऑस्कर अवार्ड के लायक हो चला था. उनकी आँखों से आंसू बह रहे थे. उन्होंने रुंधे गले से कहा, “पता नहीं पिछले जन्म में मैंने क्या पुण्य किया था कि भगवान ने मुझे तुम्हारे जैसी पत्नी दे दी! ... और मैं फिर भी यह नीच काम कर बैठा. ... अगर भगवान की कृपा और तुम्हारे भाग्य ने इस बार मुझे बचा लिया तो मैं भगवान की कसम खाता हूं कि किसी परायी स्त्री की तरफ आँख उठा कर भी नहीं देखूँगा.”
शर्मिला ने द्रवित हो कर अपने पति को गले से लगा लिया. अखिल के आंसू उनके कंधे को भिगो रहे थे ... पर अब अगले दिन का इंतजार करने के अलावा कोई चारा न था.
 
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अगली सुबह तक का समय बहुत मुश्किल से बीता. अखिल आशंकित थे पर शर्मिला के मन में आशा थी. दोनों ने मिल कर तय किया कि कमली के आने के बाद शर्मिला मंदिर चली जायेंगी ताकि अखिल अकेले में कमली से बात कर सकें. वैसे भी मंदिर में शर्मिला को भगवान से बहुत विनती करनी थी.
बहरहाल अगली सुबह आई और नियत समय पर कमली भी आ गई. जब उसने शर्मिला को घर में पाया तो वह बहुत खुश हुई. अब उसके पति का उधार चुकता हो जाएगा, वो उधार जो कई दिनों से अखिल बाबू पर था. शर्मिला ने अपने आप को सामान्य दिखाते हुए उससे थोड़ी औपचारिक बात की. शर्मिला को सामान्य देख कर कमली को आश्चर्य हुआ. उसे शंका हुई कि शायद बाबूजी ने उनसे ‘वो’ बात नहीं की थी. जब कमली का काम ख़त्म होने को था, शर्मिला ने अखिल को कहा कि वे मंदिर जा रही हैं, और वे पूजा का कुछ सामान ले कर घर से निकल गयीं. कमली जल्दी से अपना काम ख़त्म कर के अखिल के पास पहुंची और उनसे बोली, “बाबूजी, कितने बजे भेज रहे हैं बीवीजी को? उन्हें आप पहुंचाएंगे या मैं लेने आऊँ?”
अखिल के सामने वो मुश्किल घडी आ गई थी जिसे वे टालना चाहते थे. उन्होंने फिर एक्टिंग का सहारा लिया और बोले, “कमली, मैं कई दिनों से तुम्हारी बात पर गौर कर रहा हूँ और मुझे समझ में आ गया है कि मैं कितना मूर्ख था!”
कमली सोच रही थी कि इनको अब अक्ल आई है. अखिल बोलने के साथ-साथ कमली के मनोभावों को पढने का भी प्रयास कर रहे थे. उन्होंने अपनी बात जारी रखी, “मैं जानता हूं कि तुम्हारी ज़िन्दगी में कितने अभाव हैं. एक-दो हज़ार रुपये ज्यादा मिलने से तुम्हारे अभाव दूर नहीं होंगे. लेकिन सोचो कि तुम्हे दस-पंद्रह हज़ार रुपये एकमुश्त मिल जाएँ तो तुम्हारी कौन-कौन सी जरूरतें पूरी हो सकती हैं!”
उनकी आशा के विपरीत उन्हें कमली के चेहरे पर कोई ख़ुशी या सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दिखी. वे समझ गए कि इतने से बात नहीं बनेगी. वे आगे बोले, “बल्कि मैं तो सोचता हूँ कि यह भी कम हैं. अगर बीस-पच्चीस हज़ार ...”
कमली उनकी बात को काटते हुए बोली, “बाबूजी, मैंने न तो इतने रुपये देखे हैं और न ही मैं जानती हूं कि इतने रुपयों से क्या-क्या हो सकता है. ये बातें मेरा मरद ही समझ सकता है. आप कहें तो मैं उसे पूछ कर आपको जवाब दे दूं.”
कमली न तो खुश दिख रही थी और न दुखी. अखिल को लग रहा था कि उनका दाव बेकार गया. फिर उन्होंने सोचा कि शायद कमली के घर में इतने बड़े फैसले करने का अधिकार उसके मर्द को ही होगा. उन्होंने कहा, “ठीक है, तुम उसे पूछ लो.”
कमली चली गई.
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शर्मिला जब घर वापस आयीं तो उन्हें कमली नहीं दिखी. उन्होंने बेताबी से अखिल से पूछा, “क्या हुआ? वो मान गई?”
“नहीं,” अखिल ने सर झुकाए हुए कहा.
“नहीं!” शर्मिला ने आश्चर्य से कहा. “तुमने कितने तक की बात की? कहीं कंजूसी तो नहीं दिखाई?”
“तुम जैसा सोच रही हो वैसा कुछ नहीं है,” अखिल ने कहा. “मैंने बीस-पच्चीस हज़ार तक की बात की थी.”
“फिर?”
“उसने कहा कि वो यह सब नहीं समझती,” अखिल ने उत्तर दिया. “वो अपने पति से बात कर के जवाब देगी.”
“कब?”
“उसने यह नहीं बताया.”
“उसने रुपयों के अलावा किसी और चीज़ की बात तो नहीं की?” शर्मिला ने पूछा.
“नहीं.”
“लगता है बात बन जायेगी,” शर्मिला थोड़ी आश्वस्त हुईं. “लेकिन हो सकता है कि उसका पति तेज-तर्रार हो और इतने में भी न माने. सुनो, जरूरी लगे तो तुम चालीस-पचास तक भी चले जाना!”
“चालीस-पचास हज़ार!” अखिल ने विस्मय से कहा. “कहाँ से लायेंगे हम इतने रुपये?”
“तुम चिंता मत करो,” शर्मिला ने कहा. “मैंने कहा था न कि जरूरत हुई तो मैं अपने गहने भी बेच दूँगी. भगवान सब ठीक करेंगे. मैं तो मंदिर में प्रसाद भी बोल कर आई हूं.”
 
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शाम को पति-पत्नी दोनों अपने-अपने खयालों में खोये थे कि किसी ने दरवाजा खटखटाया. शर्मिला ने जा कर दरवाजा खोला. बाहर कमली खड़ी थी.
“नमस्ते बीवीजी, बाबूजी हैं?” उसने शर्मिला से पूछा.
“हां, तुम रुको. मैं उन्हें भेजती हूँ.”
शर्मिला उसे ड्राइंग-रूम में छोड़ कर अन्दर गई तो अखिल ने बेचैनी से पूछा, “कौन था?”
“कमली है,” शर्मिला ने कहा. “ड्राइंग रूम में आप का इंतजार कर रही है.”
“इतनी जल्दी आ गई,” अखिल ने उत्तर दिया. वे डर रहे थे कि अब क्या होगा! जिस घड़ी को वे टालना चाहते थे वो आ गई थी.
शर्मिला ने कहा, “जाओ और होशियारी से बात करना.”
अखिल ड्राइंग रूम में पहुंचे तो कमली खड़ी हुई थी. उन्होंने बैठते हुए कहा, “तुम खड़ी क्यों हो?”
कमली उनके सामने फर्श पर बैठने लगी तो उन्होंने उसे सोफे पर बैठने को कहा. पर कमली ने नीचे बैठ कर कहा, “मैं यहीं ठीक हूं, बाबूजी. आप जैसे बड़े लोगों के बराबर बैठने की हिम्मत मुझ में कहाँ!”
अखिल समझ गए कि उन्होंने जितना सोचा था कमली उससे कहीं ज्यादा चालाक है. कुछ दिन पहले उनके नीचे और ऊपर लेटने वाली औरत आज कह रही है कि वो उनके बराबर बैठने के लायक नहीं है! उन्हें वास्तव में होशियारी से बात करनी पड़ेगी.
उन्होंने झिझकते हुए पूछा, “कुछ बताया तुम्हारे पति ने?”
कमली ने कहा, “हां बाबूजी, उसने कहा कि हमारे बड़े भाग हैं कि बाबूजी ने तुम्हे अपनी सेवा करने का मौका दिया. उसने कहा कि बड़े लोगों की सेवा करने का फ़ल भी बड़ा मिलता है. इसलिए अब हमारे भी दिन फिरने वाले हैं.”
अखिल को लगा कि कमली की तरह यह आदमी भी बहुत चालाक है. उन्होंने सावधानी से पासा फेंका, “हां, मैं सोच रहा था कि इस महंगाई के ज़माने में बीस-पच्चीस हज़ार रुपये से भी क्या होता है!”
उनकी बात पूरी होने से पहले ही कमली ने कहा, “सच है, बाबूजी. मेरा मरद भी यही कहता है. आजकल बीस-पच्चीस हज़ार से कुछ नहीं होता! कोई सरकार हम गरीबों के बारे में नहीं सोचती. यह तो भगवान की कृपा है कि आप जैसे दयालु लोग हम गरीबों की फ़िक्र करते हैं.”
अखिल समझ गए थे कि उनका पाला एक पहुंचे हुए इन्सान से पड़ा है. अब बीस-पच्चीस हज़ार से काफी आगे जाना पड़ेगा. उन्होंने सोचा कि आगे बढ़ने से पहले उन्हें कमली की थाह लेने की कोशिश करनी चाहिए. उन्होंने सतर्कता से कहा, “तो तुमने भी कुछ तो सोचा होगा. मैं कोई अमीर आदमी नहीं हूं पर जितना हो सकता है उतना करने की कोशिश करूंगा.”
“बाबूजी, अब आपसे क्या छिपाना,” कमली ने अपनी आवाज नीची कर के अपनी बात आगे बढाई. “सच तो यह है कि मेरे मरद के मन में लालच आ गया था. हमारे मुहल्ले में एक आदमी है जो हर तरह के उलटे-सीधे धंधे करता है – चरस, गांजा, स्मैक, गन्दी फिलमें – वो सब कुछ खरीदता और बेचता है. मेरा मरद उसके पास पहुँच गया. उसने उस आदमी से कहा कि मेरे एक दोस्त के पास एक शरीफ और घरेलू किस्म के मरद-औरत की गन्दी फिलम है. वो कितने में बिक सकती है? उस आदमी ने कहा कि आजकल कोई नैट नाम का बाज़ार बना है जहाँ ऐसी चार-पांच मिनट की फिल्म के भी एक लाख रुपये तक मिल सकते हैं. सुना आपने, बाबूजी? एक छोटी सी फिलम के एक लाख रुपये!”
अब अखिल की बोलती बंद हो गई. वे चालीस-पचास हज़ार रुपये भी मुश्किल से जुटा पाते लेकिन यहां तो बात एक लाख की हो रही थी. उन्हें लगा कि बाज़ी हाथ से निकल चुकी है. अब कुछ नहीं हो सकता. लेकिन फिर उन्हें याद आया कि अभी कमली ने यह नहीं कहा था कि उसके पति ने फिल्म बेच दी. शायद कोई रास्ता निकल आये! उन्होंने डरी हुई आवाज में कहा, “फिर तुम्हारे मरद ने क्या किया?”
“एक लाख की बात सुन कर उसके मुंह में पानी आ गया पर फिर कुछ सोच कर उसने वो फिलम न बेचना ही ठीक समझा. वापस आ कर उसने मुझे सारा किस्सा सुनाया और कहा ‘कमली, रुपये तो हाथ का मैल है. किस्मत में लिखे हैं तो कभी न कभी जरूर आयेंगे. पर तुम्हारी मालकिन जैसी एक नम्बर की मेम दुबारा नहीं मिलेगी. मैं कितना ही मुंह मार लूं पर मुझे औरत मिलेगी तो तेरे दर्जे की ही. मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मेमसाहब जैसा टनाटन माल मेरी किस्मत में हो सकता है! अब किस्मत मुझ पर मेहरबान हुई है तो मैं ये मौका क्यों छोडूं? तू तो बस एक दिन के लिए मेमसाहब को मुझे दिला दे.’ सुना आपने, बाबूजी? उस मूरख ने बीवीजी के लिए एक लाख रुपये छोड़ दिए!”
यह सुन कर अखिल स्तब्ध रह गये. यही हाल शर्मिला का था जो परदे के पीछे खडी सब सुन रही थीं. दोनों सन्न थे. दोनों के समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करें. शर्मिला किसी तरह दीवार का सहारा ले कर खड़ी रह पायीं. अखिल गुमसुम से खिड़की की तरफ देख रहे थे. तभी कमली ने सन्नाटा तोडा, “क्या हुआ, बाबूजी? आपकी तबियत ठीक नहीं लग रही है. ... गर्मी भी तो इतनी ज्यादा है. मैं आपके लिए पानी लाती हूँ.”

क्रमशः
Reply
08-28-2021, 06:25 PM,
#5
RE: वासना का नशा
शर्मिला ने चौंक कर खुद को संभाला. उन्हें डर था कि कहीं कमली अन्दर आ कर उनका हाल न देख ले. तभी उन्हें अखिल की आवाज सुनाई दी, “नहीं नहीं, ... मैं ठीक हो जाऊंगा.”
“अन्दर से बीवीजी को बुलाऊं?” कमली ने हमदर्दी दिखाते हुए कहा. उसकी बात सुन कर शर्मिला तेज़ी से बेडरूम में चली गयीं.
अखिल ने कहा, “नहीं, कोई जरूरत नहीं है. मुझे अब थोडा ठीक लग रहा है.”
“पर फिर भी आपको उनसे बात तो करनी होगी न!” कमली उनका पीछा नहीं छोड़ रही थी.
“बात? ... हां, मैं बात करूंगा. ... कमली, क्या तुम अभी जा सकती हो? कल तक के लिए?”
“ठीक है बाबूजी, इतने दिन बीत गए तो एक दिन और सही! मैं चलती हूँ.” कमली उठ कर दरवाजे की ओर चल दी. बाहर निकलने से पहले उसने कहा, “जो भी तय हो वो आप कल मुझे बता देना.”
उसके जाने के बाद अखिल किंकर्तव्यविमूढ से बैठे रहे. वे जानते थे कि अब कमली के पति की बात मानने के अलावा कोई चारा नहीं था. पर उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि वे यह बात शर्मिला को कैसे बताएं. ... शर्मिला को भी भान हो गया था कि कमली जा चुकी थी. उन्हें यह भी ज्ञात हो गया था कि पति की इज्ज़त और जान बचाने के लिए उन्हें उस घटिया आदमी की इच्छा पूरी करनी ही पड़ेगी. वे जानती थीं कि अखिल के लिए उनसे यह बात कहना कितना कठिन होगा. उन्होंने अपना जी कड़ा किया और ड्राइंग रूम में पहुँच गयीं. उन्होंने देखा कि अखिल की सर उठाने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी.
शर्मिला ने उनके कंधे पर हाथ रख कर दृढता से कहा, “तुम चिंता छोडो. मैं कर लूंगी.”
“कर लोगी?” अखिल ने आश्चर्य से कहा. “... क्या कर लोगी?”
“वही जो कमली की शर्त है और जो उसका पति चाहता है,” शर्मिला ने कहा.
यह सुन कर अखिल को अपनी पत्नी की इज्ज़त लुटने का दुःख कम और अपना पिंड छूटने की ख़ुशी ज्यादा हुई. उन्हें पता था कि वो फिल्म इन्टरनेट पर आ जाये तो वे किसी को मुंह दिखाने के लायक नहीं रहेंगे. पर उन्होंने अपने चेहरे पर संताप और ग्लानि की मुद्रा लाते हुए कहा, “मैं कितना मूर्ख हूं! मैंने यह भी नहीं सोचा कि मेरी मूर्खता की कीमत तुम्हे चुकानी पड़ेगी. अगर मैं अपनी जान दे कर...”
“मैंने कहा था न कि तुम ऐसी बात सोचना भी नहीं,” शर्मिला ने उनकी बात काटते हुए कहा. “सब ठीक हो जाएगा. ... मुझे तो बस एक ही बात का डर है.”
अखिल ने थोड़े शंकित हो कर पूछा, “डर? ... कैसा डर?”
“यही कि इसके बाद मैं तुम्हारी नज़रों में गिर न जाऊं!” शर्मिला ने कहा. “कहीं तुम मुझे अपवित्र न समझने लगो!”
यह सुन कर अखिल की चिंता दूर हो गई. उन्होंने शर्मिला को गले लगा कर कहा, “कैसी बात करती हो तुम! इस त्याग के बाद तो तुम मेरी नज़रों इतनी ऊपर उठ जाओगी कि तुम्हारे सामने मैं बौना लगने लगूंगा.”
अब यह तय हो गया था कि शर्मिला को क्या करना था. दोनों कुछ हद तक सामान्य हो गए थे. अब अगला सवाल था कि यह काम कहाँ, कब और कैसे हो? कमली का पति कालू (उसका नाम कालीचरण था पर सब उसे कालू ही कहते थे) एक-दो बार इनके घर आया था, यह बताने के लिए कि कमली आज काम पर नहीं आ सकेगी. दोनों को याद था कि वो एक मजबूत कद-काठी वाला पर काला-कलूटा और उजड्ड टाइप का आदमी था. उसकी सूरत कुछ कांइयां किस्म की थी. उसका ज्यादा देर घर के अन्दर रुकना पड़ोसियों के मन में शंका पैदा कर सकता था क्योंकि वो किसी को भी उनका रिश्तेदार या दोस्त नहीं लगता.
दूसरा रास्ता था कि शर्मिला उनके घर जाये. पर इसमें भी जोखिम था. उस मोहल्ले में शर्मिला का कमली के घर एक-दो घन्टे रुकना भी शक पैदा कर सकता था. काफी सोच-विचार के बाद उन्हें लगा कि यदि शर्मिला रात के अँधेरे में वहां जाएँ और भोर होते ही वापस आ जाएँ तो किसी के द्वारा उन्हें देखे जाने की संभावना बहुत कम हो जायेगी. साथ ही वे साधारण कपडे पहनें और थोडा सा घूंघट निकाल लें तो वे कमली और कालू की रिश्तेदार लगेंगी. यह भी तय हुआ कि रात होने के बाद शर्मिला एक निर्दिष्ट स्थान पर पहुँच जायेंगी और वहां से कमली उन्हें ले जायेगी. अगली सुबह तडके कमली उन्हें वापस पंहुचा देगी. अखिल ने कमली से एक दिन का समय मांगा था इसलिए यह काम अगली रात को करना तय हुआ.
खाना खाने के बाद पति-पत्नी सोने के लिए चले गए पर नींद उनकी आँखों से कोसों दूर थी. शर्मिला की आँखों के सामने बार-बार कालू का चेहरा घूम रहा था. उन्हें याद था कि वो जब-जब यहाँ आया, उन्हें लम्पट दृष्टि से देखता था. उन्हें ऐसा लगता था जैसे वो अपनी आँखों से उन्हें निर्वस्त्र करने की कोशिश कर रहा हो. उन्हें यह सोच कर झुरझुरी हो रही थी कि कहीं उसने वास्तव में उन्हें नग्न कर दिया तो उन्हें कैसा लगेगा! उसकी बोलचाल भी गंवार किस्म की थी. न जाने वो उनके साथ कैसे पेश आएगा! शर्मिला को उससे अखिल जैसे सभ्य व्यवहार की आशा नहीं थी. और वो बिस्तर पर उनके साथ जो करेगा ... उसकी तो वे कल्पना भी नहीं करना चाहती थीं.
उधर अखिल का भी यही हाल था. शुरू में तो उन्हें भय और तनाव से मुक्त होने की ख़ुशी हुई थी पर बाद में उनका मन न जाने कहाँ-कहाँ भटकने लगा. उन्हें लग रहा था कि उनका कमली को भोगना तो एक सामान्य बात थी पर कालू जैसा आदमी उनकी पत्नी को भोगे ... यह सोच कर उन्हें वितृष्णा हो रही थी. फिर उन्हें महसूस हुआ कि कालू ही क्यों, किसी भी पर-पुरुष को अपनी पत्नी सौंपनी पड़े तो उन्हें इतना ही बुरा लगेगा. उन्हें यह सर्वमान्य पुरुष स्वभाव लगा कि अपनी पत्नी को दूसरों से बचा कर रखो पर दूसरों की पत्नी मिल जाए तो बेझिझक उसका उपभोग करो. ... फिर अखिल के मन में विचार आया कि कालू भी तो यही कर रहा है. दूसरे की पत्नी मिल सकती है तो वो उसे क्यों छोड़ेगा. ... पर वे वे हैं और कालू कालू!
एक और डर अखिल को सताने लगा. कालू कहीं शर्मिला को शारीरिक नुकसान न पहुंचा दे! वो ठहरा एक हट्टा-कट्टा कड़ियल मर्द जबकि शर्मिला एक कोमलान्गी नारी थीं. उन दोनों में कोई समानता न थी. शारीरिक समानता तो दूर, उनके मानसिक स्तर में भी जमीन आसमान का फर्क था. शर्मिला एक सुसंस्कृत और संभ्रांत स्त्री थीं. रतिक्रिया के समय पर भी उनका व्यवहार शालीन और सभ्य रहता था. जबकि कालू से सभ्य आचरण की अपेक्षा करना ही निरर्थक था. अखिल कमली का यौनाचरण देख चुके थे. कहीं कालू ने भी शर्मिला के साथ वैसा ही व्यवहार किया तो?
अपने-अपने विचारों में डूबते-तरते पता नहीं कब वे दोनों निद्रा की गोद में चले गए.
 
अगली रात को -
 
शर्मिला एक पूर्व-निर्धारित स्थान पर पहुँच गयीं जो उनके घर से थोड़ी ही दूर था. कमली वहां उनका इंतजार कर रही थी. जब वे दोनों कमली के घर की ओर चल पडीं तो रास्ते में कमली ने शर्मिला को कहा, “बीवीजी, मैने अपने एक-दो पड़ोसियों को बताया है कि रात को मेरी भाभी इस शहर से गुज़र रही है. वो हम लोगों से मिलने कुछ घंटों के लिये हमारे घर आएगी. उसे जल्दी ही वापस जाना है इसलिए वो अपना सामान स्टेशन पर जमा करवा के आयेगी. अब आप बेफिक्र हो जाइये. किसी को कोई शक नहीं होगा. कल सुबह आप सही-सलामत अपने घर पहुँच जायेंगी और मेरे मरद की इच्छा भी पूरी हो जाएगी.”
आखिरी वाक्य सुन कर शर्मिला को फिर झुरझुरी सी हुई. लेकिन अब वे लौट नहीं सकती थीं! उन्होंने स्वीकार कर लिया कि जो होना है वो तो हो कर रहेगा. और वो होने में ज्यादा देर भी नहीं थी क्योंकि बातों-बातों में वे कमली के घर पहुँच गए थे. घर के अन्दर पहुँच कर शर्मिला एक और समस्या से रूबरू हुईं. उस घर में एक कमरा, एक छोटा सा किचन और एक बाथरूम था. सवाल था कि कमली कहाँ रहेगी!
कालू एक कुर्सी पर लुंगी और बनियान पहने बैठा था. जैसे ही कमली ने दरवाजा बंद किया, कालू लपक कर शर्मिला के पास गया और उसने अपने दोनों हाथ उनकी कमर पर रख दिए. उसकी भूखी नज़रें उनके चेहरे पर जमी हुई थीं. लगता था कि वो उन्हें अपनी आँखों से ही खा जाना चाहता हो. वो उन्हें लम्पटता से घूरते हुए कमली से बोला, “कमली, बाबूजी के पास ऐसा जबरदस्त माल था फिर भी तू उनकी नज़रों में चढ़ गई! पर जो भी हो, इसके कारण मेरी किस्मत खुल गई. अब मैं इस चकाचक माल की दावत उड़ाऊंगा.
उसने अपना मुंह शर्मिला के होंठों की ओर बढाया पर वे अपनी गर्दन पीछे कर के बोलीं, “नहीं, यहाँ कमली है.
तो क्या हुआ, मेमसाहब?” कालू ने कहा. इसके साथ बाबूजी ने जो किया, वो मैंने देखा. अब मैं आपके साथ जो करूंगा, वो इसे देखने दीजिये. हिसाब बराबर हो जाएगा.
कमली ने अपने पति का परोक्ष समर्थन करते हुए कहा, “अरे, हिसाब की बात तो अलग है. पर अब मैं जाऊं भी तो कहाँ? इस घर में तो जगह है नहीं और मैं किसी पडोसी के घर गई तो वो सोचेगा कि यह रात को अपनी भाभी को अपने मरद के पास छोड़ कर हमारे घर क्यों आई है? ... बीवीजी, आपको तकलीफ तो होगी पर मेरा यहाँ रहना ही ठीक है.
अब शर्मिला के पास कोई चारा न था. और कमली जो कह रही थी वह ठीक भी था. उन्होंने हलके से गर्दन हिला कर हामी भरी. अब कालू को जैसे हरी झंडी मिल गई थी. उसने उनके होंठों पर ऊँगली फिराते हुए कहा, “ओह, कितने नर्म हैं, फूल जैसे! ... और गाल भी इतने चिकने!
उसका हाथ उनके पूरे चेहरे का जुगराफिया जानने की कोशिश कर रहा था. पूरे चेहरे का जायजा लेने के बाद उसका हाथ उनके गले और कंधे पर फिसलता हुआ उनके सीने पर पहुँच गया. उसने आगे झुक कर अपने होंठ उनके गाल से चिपका दिए. वो अपनी जीभ से पूरे गाल को चाटने लगा. साथ ही उसकी मुट्ठी उनके उरोज पर भिंच गई. शर्मिला डर रही थी कि वो उनके स्तन को बेदर्दी से दबाएगा पर उसकी मुट्ठी का दबाव न बहुत ज्यादा था और न बहुत कम.
कालू ने अपने होंठों से उनके निचले होंठ पर कब्ज़ा कर लिया और वो उसे नरमी से चूसने लगा. कुछ देर उनके निचले होंठ को चूसने के बाद उसने अपने होंठ उनके दोनों होठों पर जमा दिये. उनके होंठों को चूमते हुए वो कपड़ों के ऊपर से ही उनके स्तन को भी मसल रहा था. शर्मिला ने सोचा था कि कालू जो करेगा, वे उसे करने देंगी पर वे स्वयं कुछ नहीं करेंगीं. वैसे भी काम-क्रीडा में ज्यादा सक्रिय होना उनके स्वभाव में नहीं था.
उनके होंठों का रसपान करने के बाद कालू ने अपनी जीभ उनके मुंह में घुसा दी. जब जीभ से जीभ का मिलन हुआ तो शर्मिला को कुछ-कुछ होने लगा. वे निष्काम नहीं रह पायीं. वे भी कालू की जीभ से जीभ लड़ाने लगीं. उनके स्तन पर कालू के हाथ का मादक दबाव भी उनमे उत्तेजना भर रहा था. उन्हें लगा जैसे वे तन्द्रा में पहुंच गयी हों. उसी तन्द्रा में वे अपनी प्रकृति के विपरीत कालू को सहयोग करने लगीं. उनकी तन्द्रा कमली के शब्दों ने तोड़ी जब वो कालू से बोली, “अरे, ऊपर-ऊपर से ही दबाएगा क्या? चूंची को बाहर निकाल ना. पता नहीं ऐसी चूंची फिर देखने को मिलेगी या नहीं!
कमली के शब्दों और उसकी भाषा से शर्मिला यथार्थ में वापस लौटीं. उन्हें पता था कि निचले तबके के मर्दों द्वारा ऐसी भाषा का प्रयोग असामान्य नहीं था पर एक स्त्री के मुंह से चूंचीजैसा शब्द सुनना उन्हें विस्मित भी कर गया और रोमान्चित भी. कालू ने उनकी साड़ी का पल्लू गिराया और वो कमली से बोला, “आ जा, तू ही बाहर निकाल दे. फिर दोनों देखेंगे.
कमली ने उनके पीछे आ कर पहले उनका ब्लाउज उतारा और फिर उनकी ब्रा. जैसे ही उनके उरोज अनावृत हुए, कालू बोल उठा, “ओ मां! कमली देख तो सही, क्या मस्त चून्चियां हैं, रस से भरी हुई!
अब कमली भी उनके सामने आ गई और मियां-बीवी दोनों उनके उरोजों को निहारने लगे. दोनों मंत्रमुग्ध से लग रहे थे. उनकी दशा देख कर शर्मिला को अपने स्तनों पर गर्व हो रहा था. उनकी नज़र अपने वक्षस्थल पर गई तो उन्हें भी लगा कि उनकी चून्चियांवास्तव में चित्ताकर्षक हैं. फिर उन्होंने तुरंत मन ही मन कहा, ‘यह क्या? मैं भी इन लोगों की भाषा में सोचने लगी!पर उन्हें यह बुरा नहीं लगा.
कालू ने उनकी साड़ी उतार कर उन्हें पलंग पर लिटा दिया. उसने कहा, “मेमसाहब, अब तो मैं जी भर कर इन मम्मों का रस पीऊंगा.
यह नया शब्द सुन कर शर्मिला की उत्तेजना और बढ़ गई. कालू ने उनका एक मम्मा अपने हाथ में पकड़ा और दूसरे पर अपना मुँह रख दिया. अब वह एक मम्मे को अपने हाथ से सहला रहा था और दूसरे को अपनी जीभ से. कमरे में लपड़-लपड़ की आवाजें गूंजने लगीं. शर्मिला की साँसें तेज़ होने लगीं. उनका चेहरा लाल हो गया. जब कालू की जीभ उनके निप्पल को सहलाती, उनका पूरा शरीर कामोत्तेजना से तड़प उठता. उन्हें लग रहा था कि कालू इस खेल का मंजा हुआ खिलाडी है. उनकी आँखें बंद थीं और वे कामविव्हल हो कर मम्मे दबवाने और चुसवाने का आनंद ले रही थीं.
कमली एक बार फिर उन्हें यथार्थ के धरातल पर ले आई. उसने पूछा, “बीवीजी, आपको तकलीफ तो नहीं हो रही है? यह ठीक तरह से दबा रहा है?”
शर्मिला ने आँखें खोल कर सिर्फ इशारे से जवाब दिया. कमली समझ गई कि वे खुश हैं. उसने कालू से पूछा, “और तुझे कैसा लग रहा है रे? ऐसे चूस रहा है जैसे खाली कर देगा!
तेरी कसम कमली, ऐसी रसीली चून्चिया भगवान किसी किसी को ही देता है. तू चूस के देख. तू भी मान जायेगी.
सच?” कमली के कहा. चल, एक तू चूस और एक मुझे चूसने दे.
अब मियां-बीवी दोनों टूट पड़े शर्मिला की छाती पर. एक चूंची कालू के मुंह में और एक कमली के मुंह में! दोनों ऐसे चूस रहे थे जैसे अपनी जन्म-जन्म की प्यास बुझाना चाहते हों. और इस दोहरे हमले तले शर्मिला को ऐसे लग रहा था जैसे वे आसमान में उड़ रही हों. उन्हें पता ही नहीं चला कि कब उनका पेटीकोट उतरा और कब चड्डी. उन्हें केवल यह पता था कि किसी की उँगलियाँ उनकी जाँघों के बीच थिरक रही हैं और उन्हें स्वप्नलोक में ले जा रही हैं. उनकी तन्द्रा फिर कमली के शब्दों से टूटी. वो कह रही थी, “अब दोनों चूंचियां मैं सम्भालती हूं और तू बीवीजी की चूत को संभाल.
इस बार कमली की भाषा ने उन्हें विस्मित नहीं किया. साथ ही वे यह भी समझ गईं कि अब कालू का असली हमला झेलने का समय आ गया है. पर उनकी उत्तेजना उन्हें इस हमले के लिए तैयार कर चुकी थी. तैयार ही नहीं, वे कामातुर हो कर इस आक्रमण की प्रतीक्षा कर रही थीं. पर हुआ कुछ और ही. उन्हें अपने भगोष्ठों पर कालू के कठोर हथियार की बजाय एक कोमल स्पर्श महसूस हुआ, एक गीला और मादक स्पर्श! उन्होंने अपनी आँखें खोल कर नीचे की ओर झाँका. कमली उनके सीने पर झुकी हुई थी पर फिर भी उन्हें अपनी जाँघों के बीच कालू का सर नज़र आ रहा था. उन्होंने सोचा, ‘हे भगवान! यह अपनी जीभ से वहां क्या कर रहा है?’ फिर उन्होंने मन ही मन सोचा, ‘वो जो भी कर रहा है, मुझे बहुत अच्छा लग रहा है.उनके लिए यह एक नया अनुभव था जो उन्हें कामोन्माद की ओर धकेल रहा था.
ऊपर कमली जुटी हुई थी. उसने शर्मिला के मम्मों को चूस-चूस कर बिल्कुल गीला कर दिया था. उसका मम्मे चूसने का अंदाज़ उनकी कामोत्तेजना को नई ऊंचाइयों पर ले जा रहा था. जल्द ही वो घडी आ गई जिसका उनको आभास नहीं था. उनका बदन लरजने लगा. वे बेबसी में इधर-उधर हाथ पैर मारने लगीं. और फिर उत्तेजना की पराकाष्ठा पर पहुँच कर उनका शरीर धनुष की तरह अकड़ गया. कमली और कालू की सम्मिलित कामचेष्टा ने उन्हें यौन-आनंद के चरम पर पहुंचा दिया था.
जब शर्मिला की चेतना लौटी, वे अपने आप को बहुत हल्का महसूस कर रही थीं. उनको ऐसा अनुभव हो रहा था जैसे उन्हें एक असह्य तनाव से मुक्ति मिली हो. उन्होंने आँखें खोलीं तो पाया कि कमली और कालू उन्हें विस्मय से देख रहे हैं. कमली बोली, “बीवीजी, आपको झड़ते देख कर तो मुझे भी मज़ा आ गया. आपको मज़ा आया?”
शर्मिला खुश तो थीं पर वे थोड़ी शर्मिंदा भी थीं कि वे इन दोनों के सामने इतने जोर से झड़ीथीं (यह शब्द उनके लिए नया था). मगर वे इंकार कैसे करतीं? मज़ा तो उन्हे आया ही था. उन्होंने शर्माते हुए हां में सर हिलाया तो कमली ने कालू की तरफ इशारा करते हुए कहा, “तो अब इसका भी काम कर दीजिये न!
शर्मिला अब इन लोगों की भाषा समझने लगी थीं. वे समझ गयी थीं कि कमली किस कामकी बात कर रही थी. यहां आने से पहले इस कामकी कल्पना भी उनको डरावनी लग रही थी पर कालू से यौनसुख पाने के बाद उनका डर काफी हद तक कम हो गया था. बल्कि उन्हें उसका प्रतिदान करना भी न्यायोचित लग रहा था. उन्होंने स्वीकृति में सर हिलाया तो कमली ने कालू को निर्वस्त्र कर दिया.
कालू शर्मिला के पास लेट कर उनसे लिपट गया. वो उनके पूरे बदन पर हाथ फेरने लगा. उसने उनकी चून्चियों, कमर, रानों और चूतड़ों को अपने हाथ से सहलाया. एक बार फिर उसका हाथ उनकी चूत पर और उसका मुँह उनकी चूंची पर पहुंच गया. कमली ने उनके पास लेट कर अपना मुंह उनकी दूसरी चूंची पर जमा दिया. शर्मिला का कामावेग फिर बढ़ने लगा. कमली ने उनका हाथ कालू के यौनांग पर रख दिया. एक बार तो वे उस बलिष्ठ अंग के स्पर्श से चिहुंक उठीं. उन्होंने अपना हाथ पीछे खींचना चाहा पर कमली ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया. फिर स्वतः ही उनकी मुट्ठी उस पर भिंच गई. अब कालू ने अपनी ऊँगली उनकी योनी में घुसा दी. दोनों के हाथ अपना काम करने लगे. कालू उनकी योनी को अन्दर से सहला रहा था और वे उसके लिंग को बाहर से मसल रही थीं. कमली और कालू के प्रयासों ने जल्द ही उन्हें पूर्णतया कामातुर कर दिया. कमली को उनकी तेज होती सांसों का भान हुआ तो उसने पूछा, “बीवीजी, पनिया गईं या अभी देर है?”
शर्मिला को उसकी बात समझ में नहीं आई. उन्होंने उसकी तरफ सवालिया नज़र से देखा तो कमली ने कहा, “आपकी चूत पानी छोड़ रही है क्या?”
शर्मिला ने शर्मा कर हां कहा तो कमली बोली, “ठीक है. अब इसे भी तैय्यार कर दीजिये.
शर्मिला ने नासमझी से पूछा, “कैसे?”
वैसे तो ये तैय्यार ही लगता है,” कमली ने कहा. पर आप थोड़ी देर इसका लंड चूस देंगी तो ये आपको पूरा मज़ा देगा.
 
क्रमशः
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08-28-2021, 06:27 PM,
#6
RE: वासना का नशा
इस बार शर्मिला को उसकी भाषा पर तो अचम्भा नहीं हुआ पर वो जो करने के लिए कह रही थी उस पर उन्हें हिकारत महसूस हुई. अखिल के बहुत इसरार करने पर उन्होंने एक-दो बार यह करने का प्रयास किया था पर उन्हें यह बिलकुल अच्छा नहीं लगा. उनकी यह धारणा बन चुकी थी कि जो मर्द औरत को यह काम करने के लिए कहते हैं वे उस औरत को जलील करना चाहते हैं! लेकिन साथ ही उनको यह एहसास भी था कि कालू ने मुखमैथुन के द्वारा ही उनको चरमसुख दिया था इसलिए उनको भी इसका प्रतिदान करना चाहिए. पर वे अपनी धारणा के कारण मजबूर थीं. उन्होंने धीमी आवाज में उत्तर दिया, “कमली, यह मेरे से नहीं होगा.
क्यों नहीं होगा, बीवीजी?” कमली ने पूछा. आप बाबूजी का भी तो चूसती होंगी.
नहीं,” उन्होंने जवाब दिया.
अच्छा? बाबूजी आपसे नहीं चुस्वाते?” कमली ने आश्चर्य से कहा. पर मैंने तो उनका लंड चूसा था और उन्हें बहुत अच्छा लगा था. आप ज़रा कोशिश तो कीजिये.
नहीं कमली, मेरे से नहीं होगा,” उन्होंने फिर इंकार में कहा.
रहने दे, कमली,” इस बार कालू बोला. मेमसाहब बड़े घर की औरत हैं. ये मेरे जैसे छोटे आदमी का लंड अपने मुंह में कैसे ले सकती हैं!
यह बात नहीं है, कालू,” शर्मिला ने फ़ौरन उसकी बात काटी. मुझे सच में यह अच्छा नहीं लगता ... मेरा मतलब है किसी का भी चूसना.
पर बीवीजी, मुझे तो लंड चूसने में बहुत मज़ा आता है,” कमली ने कहा. पता नहीं आपको अच्छा क्यों नहीं लगता!
अब छोड़ न कमली,” कालू ने कहा. ज़रा तू ही चूस दे.
कमली उठ कर कालू की जाँघों पर बैठ गई. उसने अपना सर झुकाया. कालू का लंड किसी डंडे की तरह तन कर खड़ा हुआ था. शर्मिला पहली बार उसके खड़े लंड को देख रही थीं. बड़ा तंदरुस्त और सुडौल लंड था, अखिल के लंड से कम से कम दो इंच लम्बा और गोलाई में भी बड़ा. उन्होंने सोचा कि इस मूसल को मुंह में लेने से वे भले ही बच गईं पर उन्हें इस को अपनी योनी में तो लेना ही होगा. और उन्हें यह कोई आसान काम नहीं लग रहा था.
कमली ने एक हाथ से कालू के लंड को पकड़ा और दूसरे हाथ से लंड की टोपी को पीछे कर के उसके सुपाड़े को नंगा कर दिया. सुपाड़ा बहुत चिकना दिख रहा था. कमली उसे अपनी जीभ से चाटने लगी. उसकी लपलपाती जीभ सुपाडे के चारों ओर घूम रही थी, कभी नीचे, कभी ऊपर, कभी बांयें तो कभी दायें. कालू को शायद अपने लंड पर कमली की जीभ का फिसलना बहुत अच्छा लग रहा था. उसके मुंह से सिस्कारियां निकल रही थीं.
शर्मिला कमली के कृत्य के अलावा उसकी मुखमुद्रा को आश्चर्य से देख रही थीं. वो बड़ी आनंदमग्न दिख रही थी. कुछ देर सुपाडे को चाटने के बाद कमली ने अपना मुंह खोला और पूरे सुपाडे को अपने मुंह में ले लिया. उसके होंठ लंड पर भिंच गए. वह अपने सर को धीरे-धीरे ऊपर नीचे करने लगी. कालू के नितम्ब भी हौले-हौले ऊपर उठने लगे. शर्मिला ने आश्चर्य से देखा कि कुछ ही देर में कालू का समूचा लंड कमली के मुंह में समा गया. कमली अपना सर ऊपर नीचे करने लगी तो कालू मज़े से सीत्कार कर उठा. अब वो पूरी तरह कमली के वश में दिख रहा था. तभी कमली की नज़र उनकी नज़रों से मिली. उसकी गर्वीली आंखें मानो कह रही थीं, ‘देखो, यह ताक़तवर मर्द अब मेरे काबू में है!यह देख कर शर्मिला को कमली से ईर्ष्या होने लगी. उन्होंने मन ही मन सोचा काश, मैं भी यह कर पाती.
कमली ने शायद उनके मन की बात पढ़ ली. उसने लंड को अपने मुंह से बाहर निकाल कर उनसे पूछा, “बीवीजी, अब आप कोशिश करेंगी?”
शर्मिला को कमली की बात एक चुनौती जैसी लगी. उन्होंने सोचा कि अगर कमली जैसी अनपढ़ औरत इस तरह मर्द पर काबू कर सकती है तो वे क्यों नहीं! वे इंकार नहीं कर सकीं. वे बैठ कर कालू के लंड की ओर झुकीं. कमली ने उन्हे लंड चूसने का तरीक़ा समझाया. अपनी उंगली को लंड का प्रतीक बना कर उसने दिखाया कि इसे कैसे चाटना और चूसना है. उसे देखते हुए शर्मिला ने कालू का लंड अपने हाथ में लिया और उसे चाटने लगीं. उन्हे उसका जायका कोई खास बुरा नहीं लगा. कुछ ही देर में उन्होंने लंड का सुपाड़ा अपने मुंह में लेने की कोशिश की. इतने बड़े सुपाड़े को मुँह के अंदर लेने में उन्हें मुश्किल तो हुई पर उन्होंने हार नहीं मानी क्योंकि यह उनकी इज्ज़त का सवाल बन गया था. पूरा सुपाड़ा उनके मुंह में चला गया तो उन्होने कमली की ओर विजयी दृष्टि से देखा. कमली ने भी आँखों ही आँखों उनकी प्रशंसा की. शर्मिला अपनी मनोदशा से चकित भी थीं. वे सोच रही थीं कि कल तक जिस पुरुष के साथ यौनाचरण करना उन्हें अपनी बेईज्ज़ती लग रही थी आज उसी के लंड को मुंह में लेना उन्हे गर्व की अनुभूति दे रहा है (अब उन्हें लंडजैसा शब्द भी वर्जनीय नहीं लग रहा था). कमली की सलाह पर उन्होंने अपनी जीभ को सुपाड़े के गिर्द घुमाना शुरू कर दिया. इसका तुरंत असर हुआ और कालू के मुंह से सिसकारियां निकलने लगीं.
धीरे-धीरे उन्होंने अपने मुख को नीचे धकेला और वे आधा लंड अपने मुंह में लेने में सफल हो गयीं. वे उसे आम की गुठली की तरह चूसने लगीं. अब उन्हें लंड का जायका भी रास आ रहा था. यह सिलसिला चलता रहा और कालू लंड-चुसाई का मज़ा लेता रहा. वो समय आने में देर न लगी जब कालू झड़ने के कगार पर पहुँच गया. उसने किसी तरह शर्मिला के हठीले मुंह को अपने लंड से दूर धकेला और हाँफते हुए उनसे गुज़ारिश की, “बस मेमसाहब, अब चोदने दीजिये.
शर्मिला ने जब पहली बार कालू का लंड देखा था तब वे उसके साइज से डर गयी थीं पर अब उनकी कामोत्तेजना इतनी तीव्र हो चुकी थी कि वे चुदने के लिए अधीर थीं. उन्होंने अपनी आँखों से कालू को मौन निमन्त्रण दिया. कालू ने उन्हें पीठ के बल लिटा दिया. वो उनकी जाँघों को फैला कर उनके बीच आ गया. उसने अपना लंड हाथ में ले कर उसे शर्मिला की जांघों के बीच फिराया. लंड चूत की फांकों को सहलाते हुए चूत के मुहाने पर आया पर वहां थोड़ी छेड़खानी करने के बाद क्लाइटोरिस पर पहुँच गया. कालू ने थोड़ी देर सुपाडे से क्लाइटोरिस को मसला और फिर उसे चूत के द्वार पर पहुंचा दिया. इस बार उसकी चूत के साथ छेड़छाड़ कुछ लम्बी चली. चूत अनवरत पानी छोड़ कर लंड का प्रवेश सुगम बना रही थी पर लंड था कि टालमटोल किये जा रहा था. अनुभवी कालू अपनी चेष्टा से शर्मिला को कामावेग के शिखर पर ले गया था. इस बार जब उसने लंड को चूत से हटाया तो शर्मिला बेसाख्ता बोल उठीं, “ऐसे क्यों तरसा रहे हो? अब घुसा भी दो.
चालाक कालू ने लंड को उनकी गांड से सटा कर पूछा, “कहाँ, मेमसाहब?”
शर्मिला को अपनी गांड पर चिकने और गीले लंड का स्पर्श सुहावना लग रहा था पर वे कोई जोखिम नहीं लेना चाहती थीं. उन्होंने फ़ौरन उत्तर दिया, “मेरी चूत में!और यह कह कर वे शर्मा गईं.
चुदाई में उस्ताद कालू ने भांप लिया था कि गीली होने के बावजूद शर्मिला की संकड़ी चूत उसका लंड आसानी से नहीं ले पाएगी. उसने अपने हाथ से लंड पर अच्छी तरह थूक लगाया. फिर उसने झुक कर अपने मुंह से सीधे चूत पर थूक टपकाया. एक ऊँगली से थूक को चूत के अन्दर तक पहुँचा कर वो शर्मिला के ऊपर लेट गया. उसने अपनी उँगलियों से उनकी जांघों को टटोल कर अपना निशाना ढूंढा और अपने लंड को निशाने पर रख दिया. उसने अपने कूल्हों को हौले से आगे धकेला. शर्मिला के मुँह से एक सिसकारी निकल गई पर लंड को अभी प्रवेश नहीं मिला था. कालू ने कहा, “मेमसाहब, आपकी चूत बड़ी संकड़ी है! आपको थोडा दर्द हो सकता है.
कोई बात नहीं,” शर्मिला ने हौसला दिखाया. तुम घुसाओ.
कालू ने अपना मुँह उनके होठों पर रख दिया. कुछ देर वो उनके होंठों को चूमता रहा और फिर अचानक उसने पूरी ताक़त से एक धक्का मारा. उसका फौलादी लंड अपना निशाना भेदता हुआ पूरा अंदर घुस गया. शर्मिला का मुंह कालू के मुंह से छिटका और उससे एक लम्बी उईई…!’ निकल गई. साथ ही उनका शरीर बेसाख्ता लरज़ उठा. कमली ने कालू को लताड़ा, “ये क्या कर दिया, ज़ालिम! बीबीजी को दर्द हो रहा है!
कालू अपना लंड बाहर खींच पाता उससे पहले शर्मिला ने उसकी कमर को अपने हाथों से थामा और कहा, “नहीं कालू, बाहर मत निकालना. मैं ठीक हूँ.उन्हें थोड़ी तकलीफ हुई थी पर वे हार मानने को तैयार नहीं थी. उन्हें लगा कि जिस लंड को कमली रोज़ झेलती थी उसे वे नहीं झेल पायीं तो उनकी हार हो जाएगी.
कालू बहुत खुश था. जिस चूत को हासिल करने के सपने वो कई दिन से देख रहा था वो अब उसके कब्जे में थी. और अपने लंड पर उस टाईट चूत की कसावट उसे बहुत मज़ेदार लग रही थी. अब उसे कोई जल्दी नहीं थी. कुछ देर वो बिना हिले शर्मिला के होंठों का रस पीता रहा. जब शर्मिला का दर्द दूर हो गया तब उन्होंने अपनी कमर को हरक़त दी. कालू उनके इशारे को समझ गया. चुदाई-कला में एक्सपर्ट तो वो था ही. अब वो उन्हें पूरी महारत से चोदने लगा. उसके मोटे लंड ने शर्मिला की कसी हुई चूत को फैला दिया था और अब लंड का आवागमन बेरोकटोक हो रहा था. कालू ने धीरे-धीरे अपने धक्कों की ताक़त बढ़ा दी. शर्मिला ने अपनी टांगों से कालू की कमर को भींच रखा था. दर्द की जगह अब मस्ती ने ले ली थी और वे अब कालू के धक्कों का लुत्फ़ ले रही थीं. उनकी आँखें बंद थीं. कुछ देर बाद उनकी साँसें बेतरतीब हो गईं. चुदते हुए उन के मुँह से बराबर ऊंsssऊं…! ओह...! आहsss...!’ की ध्वनि निकल रही थीं.
कमली जान गई थी कि शर्मिला चुदाई का पूरा मज़ा ले रही थीं पर उन्हें छेड़ने के लिए उसने पूछा, “दर्द हो रहा है क्या, बीवीजी? इसे निकालने के लिए कहूं?”
नहीं,” शर्मिला ने सिसकारियों के बीच जवाब दिया.
कैसा लग रहा है अब?” कमली ने फिर पूछा.
बहुत अच्छा लग रहा है,” शर्मिला ने कहा. अब उतेजनावश उनके नितम्ब उछलने लगे थे. उनकी सक्रिय भागीदारी से कालू और भी खुश हो गया. वो पूरी तबीयत से धक्के लगाने लगा. शर्मिला उसकी ताल से ताल मिला कर उसके पुरजोर धक्कों का जवाब दे रही थीं.
कमली को अखिल बाबू की एक बात याद आई. उन्होंने कहा था कि बीवीजी सिर्फ नीचे लेटती हैं, बाकी सब उन्हें ही करना पड़ता है. उसने सोचा कि क्यों न आज इनसे कुछ नया करवाया जाए! उसने कालू से कहा, “ज़रा रुक तो. तू ही ऊपर चढ़ा रहेगा या बीवीजी को भी ऊपर आने देगा?”
ओह, मैं तो भूल ही गया था,” कालू ने रुक कर अपना लंड बाहर निकालने की कोशिश की.
नहीं,” शर्मिला ने अपनी चूत को भींचते हुए कहा. ऐसे ही ठीक है.
चूत की पकड़ मजबूत होने के कारण कालू का लंड अंदर ही फंसा रहा पर वो कमली की बात से सहमत था. वो जानता था कि जब शर्मिला उसके ऊपर होंगी तो वो चुदाई का मज़ा लेने के साथ-साथ उनके हुस्न का पूरा नज़ारा भी देख सकेगा. वो बोला, “कमली ठीक कहती है, मेमसाहब. आपको भी तो अपने सेवक सवारी करनी चाहिए.
वो उनके ऊपर से उतर कर पलंग पर लेट गया. उसने शर्मिला का हाथ पकड़ कर उन्हें अपने ऊपर खींचा. शर्मिला लजाते हुए उसके ऊपर आ गईं. उन्होंने उसके लंड को हाथ में पकड़ा और अपनी चूत को उस पर टिकाया. उन्होंने अपनी चूत को धीरे-धीरे नीचे धकेला. कुछ ही पलों में उन्होंने पूरा लंड अपने अंदर ले लिया. उन्होंने विजयी दृष्टि से कमली की ओर देखा तो कमली ने कहा, “बीवीजी, अब आपको जैसे धक्के पसंद हैं, वैसे लगा सकती हैं.
ज़िन्दगी में पहली बार चुदाई की कमान शर्मिला के हाथ में आई थी. उन्होंने हलके धक्कों से शुरुआत की. जब उनका आत्मविश्वास बढा तो उनके धक्कों में और ताक़त आने लगी. कालू ने उनकी कमर को अपने हाथों से थामा और वो भी उनका साथ देने लगा. उसकी नज़रें उनके फुदकते जिस्म पर जमी हुई थी. वो अपनी किस्मत पर इतरा रहा था कि आज उसे ऐसी हसीन औरत को चोदने का मौका मिला था. साथ ही वो उनकी कसी हुई चूत का पूरा लुत्फ़ उठा रहा था. लुत्फ़ शर्मिला भी उठा रही थीं. वे जान गयी थीं कि चुदाई का मज़ा पुरुष की शक्ल-सूरत पर नहीं बल्कि उसके काम-कौशल और उसके लंड की शक्ति और क्षमता पर निर्भर करता है. और कालू इन सब का स्वामी था. वे एक बार तो चुदने से पहले ही झड़ चुकी थीं और अब दूसरी बार झड़ने के कगार पर थीं.
कालू नीचे से अपनी ताक़तवर रानों से शर्मिला की चूत में पुरजोर धक्के मार रहा था. उसने उनकी कमर को कस के पकड़ लिया था ताकि लंड चूत से बाहर न निकल जाए. शर्मिला के गले से अजीब आवाजें निकल रही थीं. कालू उनके चेहरे के बदलते नक्श देख कर भांप गया था कि वे अब अपनी मंजिल के नज़दीक थीं. उसने उन्हे चोदने में अपनी पूरी ताक़त लगा दी.
शर्मिला अब पूरी दुनिया से बेखबर थीं. उनकी आँखें बंद थी, सांसें उखड रही थीं और जिस्म बेकाबू था. उनका पूरा ध्यान अब उन मदमस्त तरंगों पर केन्द्रित था जो एक के बाद एक उनकी चूत से उठ रही थीं. कमली ने उनसे पूछा, ‘बीवीजी, ये ठीक तरह से चोद रहा है कि नहीं?’
शर्मिला बरबस बोल उठीं, “बहुत अच्छी तरह चोद रहा है, कमली ... बहुत अच्छी तरह!
और इन शब्दों के साथ ही उनका शरीर अकड़ने लगा. उनकी तनावग्रस्त चूत फड़कने लगी. कालू उनको चोदते हुए बोला, “निकाल दीजिये, मेमसाहब! निकाल दीजिये अपनी चूत का पानी!
और वही हुआ. शर्मिला बड़े जोर से उसके लंड पर झड़ीं. और ऐसे झड़ीं कि वे अपनी सुधबुध खो बैठीं. उन्हें ब्रह्माण्ड अपने चारों तरफ घूमता हुआ प्रतीत हुआ. उन्हें पता ही नहीं चला कि वे कब आनन्द के अतिरेक में कालू के ऊपर गिर गईं.
जब शर्मिला की चेतना लौटी तब उन्होंने देखा कि उनकी बाँहें कालू के गिर्द कसी हुई थीं, कालू अपने हाथों से उनकी पीठ और नितम्बों को सहला रहा था. उसका लंड अब भी उनकी अलसाई चूत में तना हुआ खड़ा था. कालू ने उनकी आँखों में देखते हुए पूछा, “मज़ा आया, मेमसाहब?”
हां कालू, बहुत मज़ा आया,” उन्होंने बेझिझक कहा. पर तुम्हारा अभी नहीं हुआ?”
अब ज्यादा देर नहीं है,” कालू ने जवाब दिया. अगर आप मुझे दो मिनट और चोदने दें तो मेरा भी हो जाएगा.
ठीक है,” उन्होंने कहा. तुम मुझे अपने नीचे ले कर चोद लो!
शर्मिला कालू के ऊपर से उतर कर चित लेट गईं. इस बार कालू ने देर नहीं की. वह जानता था कि उनकी चूत तैय्यार है. वह उनके ऊपर सवार हो गया. उसने उनकी चूत में अपना लंड घुसाया और फिर से चुदाई शुरू कर दी. कमली ने ताकीद की, “देख, प्रेम से लेना और ज्यादा देर न लगाना.
उसे जवाब शर्मिला ने दिया, “कोई जल्दी नहीं है, कमली. इसे जी भर कर लेने दे.उन्हें फिर से मज़ा आने लगा था.
मज़ा कालू को भी आ रहा था और वो वास्तव में शर्मिला की चूत बहुत प्रेम से ले रहा था. धीरे-धीरे उसका मज़ा बढ़ा तो उसके धक्कों ने रफ़्तार पकड़ ली. शर्मिला भी उसी लय में अपने चूतड़ उठा-उठा कर चुदवाने लगीं. उनके गले से फिर मस्ती भरी आहें और सिसकियां निकल रही थीं. कमली विस्मय से उन्हें देख रही थी. अब उसे वे एक बड़े घर की शालीन स्त्री नहीं बल्कि खुद जैसी आम औरत दिख रही थीं, ऐसी औरत जो खुल कर चुदाई का मज़ा लेती है. कमली यह भी देख रही थी कि कालू उन्हें पूरी मस्ती से चोद रहा था. हर धक्के के साथ उसके चूतड़ संकुचित हो रहे थे. उसने शर्मिला के कन्धों को कस के पकड़ रखा था ताकि वे उसकी गिरफ्त से निकल न जाएँ. उसका लंड तेज़ी से उनकी चूत में प्रहार कर रहा था. कुछ देर बाद उसके गले से गुर्राने जैसी आवाज निकलने लगी. शर्मिला को लगा कि अब वो झड़ने वाला था. वे खुद भी फिर से झड़ने को आतुर थीं. तभी गुर्राहट के बीच कालू बोला, “मेमसाहब, मेरा निकलने वाला है ... आsssह!
यह सुन कर शर्मिला की चूत स्वतः ही लंड पर भिंच गई और उनके नितम्ब बेकाबू हो कर उछलने लगे. कालू भी अब धुआंधार धक्के मार रहा था. दोनों दुनिया से बेखबर थे. दोनों का ध्यान अब सिर्फ उनके संधि-स्थल पर केन्द्रित था जहां लंड और चूत एक-दूसरे को पछाड़ने की होड़ में जुटे थे. कोई हार मानने को तैयार न था और इस मुकाबले में किसी की हार होनी भी न थी. एक मिनट की घमासान टक्कर के बाद कालू किसी जख्मी शेर की तरह गुर्राया. उसका जिस्म अकड़ गया और उसका लंड शर्मिला की चूत में दनादन पिचकारियां मारने लगा. जब पहली बौछार चूत में पड़ी तो शर्मिला का शरीर भी तन गया. उनकी कमर ऊपर उठ गई. तीव्र सिसकारियों के बीच उनकी चूत भी पानी छोड़ने लगी. लंड से पानी की आखिरी बूँद निकलने के बाद कालू शर्मिला के ऊपर बेसुध हो कर गिर पड़ा.
थोड़ी देर बाद जब कालू की सांसें सामान्य हुईं तो वो शर्मिला के ऊपर से उतरा और उनके पास लेट गया. शर्मिला ने उसकी तरफ करवट ले कर अपना सर उसके कंधे पर रख दिया. कालू के दूसरी तरफ लेट कर कमली ने भी यही किया. शर्मिला ने अपना हाथ कमली के हाथ पर रखा और उससे नज़रें मिला कर वे कृतज्ञता से मुस्कुराई. जिस अभूतपूर्व आनन्द का उन्होंने आज अनुभव किया था उसका श्रेय वे कालू के साथ-साथ कमली को भी दे रही थीं. वे सोच रही थीं कि उनके पति के सामने कमली ने वो अजीब शर्त न रखी होती तो वे इस आनंद से वंचित रह जातीं. अपने खयालों में डूबी वे न जाने कब नींद की गोद में चली गयी.
 
क्रमशः
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08-28-2021, 06:28 PM,
#7
RE: वासना का नशा
शर्मिला को अपने सीने पर एक गीले स्पर्श का अनुभव हुआ. वे गहरी नींद में डूबी इस मीठे सपने का आनन्द ले रही थीं. स्पर्श एक गीली जीभ का था जो उनके निप्पल से कामुक छेड़छाड़ कर रही थी. जब उन्हें अपने दूसरे स्तन पर एक मुट्ठी का दबाव महसूस हुआ तो उनकी आँखें खुलीं. उन्होंने पाया कि ये सपना नहीं था. कालू ने उनके एक उरोज पर अपने हाथ से और दूसरे पर अपने मुंह से कब्ज़ा किया हुआ था. पता नहीं यह कब से चल रहा था. शर्मिला का तन उनके वश में नहीं था. कालू अपने काम-कौशल से उनकी वासना को भड़का चुका था. तभी उनकी अधखुली आंखें खिड़की पर पड़ीं. परदे से छन कर हल्का प्रकाश अन्दर आ रहा था. उन्होंने अपनी घडी पर नज़र डाली. पांच बजने वाले थे. गर्मी के मौसम में सुबह पांच बजे थोड़ी आवाजाही शुरू हो जाती है. उनका अचेतन मन उन्हें यहां रुकने को कह रहा था ताकि वे बीती रात वाला मज़ा फिर से ले सकें. पर उनका मष्तिष्क कह रहा था कि अब एक मिनट भी रुकना ठीक नहीं था. उन्होंने मष्तिष्क की बात मानी और कालू को धकेलते हुए कहा, “नहीं कालू, अब मुझे जाना होगा.
कालू जैसे आसमान से गिरा. उसने याचनापूर्ण स्वर में कहा, “मेमसाहब, बस एक बार और चोद लेने दीजिये! आप थोड़ी देर और रुक जायेंगी तो क्या बिगड़ जाएगा?”
सुबह हो रही है, कालू.शर्मिला अब पूरे होश में थीं. उन्होंने कमली से कहा, “कमली, इसे समझाओ कि किसी ने जाते हुए मुझे पहचान लिया तो ठीक नहीं होगा.
कालू यह सुन कर रुआंसा सा हो गया. वो अटकता हुआ बोला, “मेमसाहब, मुझे आप जैसी अप्सरा फिर कभी नहीं मिलेगी. अगर एक बार और आपकी कृपा हो जाये ...
तुम ऐसा क्यों सोच रहे हो,” शर्मिला ने कहा. तुम्हारा जब मन करे, कमली से कहला भेजना. मैं आ जाऊंगी.
कालू को अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था. उसने आश्चर्य से पूछा, “क्या? आप सच में आ जायेंगी?”
हाँ, जब तुम चाहोगे.शर्मिला स्वयं आश्चर्यचकित थीं कि उन्होंने ऐसा किस तरह कह दिया. बहरहाल कालू उनकी बात सुन कर खुश हो गया.
मेमसाहब, आप भी बाबूजी को कह देना कि वे जब चाहें तब कमली को चोद सकते हैं.कालू ने कहा. कमली ने तो पहले ही उनसे अदला-बदली की बात की थी.
 
*****************************************************************************************
 
 
कुछ मिनट बाद शर्मिला कमली के साथ बाहर निकलीं और अपने घर की तरफ चल दीं. चलते-चलते उनका दिमाग स्वतः ही पिछले कुछ घंटों में घटी घटनाओं पर जा रहा था. वे सोच रही थीं कि फिर से आने की बात कह कर उन्होंने कुछ गलती तो नहीं कर दी! उनके मन ने उनसे कहा, “तुम्हारे पति ने कमली के साथ जो किया, वो सिर्फ अपनी वासना की पूर्ती के लिए किया. उन्होंने तुम्हारी भावनाओं के बारे में एक बार भी सोचा? और कालू वो फिल्म न बनाता तो क्या होता? अखिल तुम्हे बताते कि उन्होंने कमली के साथ क्या किया था? अगर कालू को एतराज़ न होता तो वे कमली को फिर से भोगने का कोई मौका छोड़ते? वे तुम्हे कालू के पास भेजने के लिए तैयार हुए तो खुद को बचाने के लिए. वे तो अपने स्वार्थ के लिए तुम्हारी बलि चढ़ा रहे थे. अब कालू औरत को मज़ा देने में माहिर निकला तो इसका श्रेय तुम्हारे पति को नहीं जाता! तुम्हारा पति तो सजा के काबिल है जो उसे तुम ही दे सकती हो. ... और हां, कालू ने अदला-बदली की बात की थी ना. अदला-बदली में क्या होता है? किसी ने तुम्हे कुछ दिया है वो उसे लौटाना. तुम्हारे पति ने तुम्हे दी है बेवफाई, सिर्फ अपने मज़े के लिए. अब यही तुम्हे लौटानी है, ब्याज के साथ. तुम्हारा लौटाना तो अभी शुरू हुआ है!
ये सब सोचते-सोचते उनका घर आ गया. कमली उन्हें पहुंचा कर वापस चली गई. अखिल बेसब्री से उनका इंतजार कर रहे थे. उनकी रात करवटें बदलते गुजरी थी. रात भर वे यही सोचते रहे थे कि लम्पट कालू उनकी पत्नी की कैसी दुर्गति कर रहा होगा! शर्मिला के घर पहुँचते ही उन्होंने उसे अपनी बांहों में भींच लिया. उन्होंने व्यग्रता से पूछा, “तुम ठीक तो हो?”
शर्मिला ने शांत स्वर में उत्तर दिया, “हां, मुझे भला क्या होगा?”
अखिल ने पूछा, “मैं कह रहा था कि वो तुम्हारे साथ सख्ती से तो पेश नहीं आया?”
अब ऐसे काम में मर्द का सख्त होना तो जरूरी होता है,” शर्मिला ने कहा.
अखिल के समझ में नहीं आया कि शर्मिला क्या कहना चाहती थी. उन्होंने फिर पूछा, “मेरा मतलब था कि उसने तुम्हे चोट तो नहीं पहुंचाई?”
शर्मिला ने सोचा, ‘इन्हें मेरी शारीरिक चोट की तो इतनी फ़िक्र है पर कमली का मज़े लेने से पहले इन्होने मेरी मानसिक चोट के बारे में सोचा था? अब इन्हें सबक सिखाने का समय आ गया है.उन्होंने कहा, “अगर यह काम स्त्री कि सहमति से किया जाए तो मर्द उसे चोट नहीं पहुंचा सकता, फिर चाहे वो कालू जैसा मुश्टंडा ही क्यों न हो!
भगवान का शुक्र है कि तुम ठीक हो ... और यह मामला सुलझ गया है!अखिल ने कहा. वे मन ही मन खुश थे कि वे खुद दुर्गति से बच गए थे.
सुनो जी, वे लोग कह रहे थे कि कमली ने तुम से अदला-बदली जारी रखने की बात की थी!शर्मिला ने पत्ता फेंका.
हां, पर मैंने उसी वक़्त मना कर दिया था.अखिल थोड़े चिंचित थे कि यह बातचीत किसी ग़लत दिशा में न चली जाये!
पर कालू का बहुत मन है,” शर्मिला ने बाज़ी को आगे बढाया. बेचारा गिड़गिड़ा रहा था कि यह काम आगे भी चलता रहना चाहिए. मुझे तो उस पर दया आ रही थी.
क्या?” अखिल ने अचम्भे से कहा. उन्हें यह कतई गवारा नहीं था कि कालू जैसा बदमाश उनकी पत्नी का मज़ा लूटे! ... एक बार तो चलो मजबूरी थी, पर बार बार? ... फिर उन्हें खयाल आया कि बात अदला-बदली की हो रही है! अगर अपनी पत्नी के बदले में उन्हें कमली मिल जाये तो कैसा रहेगा? एक तरफ पुरानी पत्नी और दूसरी तरफ नई कमली! ... उनका मन डोलने लगा! ... आखिर जीत पुरुष की कमज़ोरी की हुई; परायी स्त्री का आकर्षण होता ही ऐसा है! उन्होंने अपनी ख़ुशी छिपाते हुए पूछा, “तो तुमने हां कर दी?”
उस बेचारे की हालत देख कर मेरा दिल पिघल गया,” शर्मिला ने कहा. मैंने उसे कह दिया कि जब उसका मन करे, वो कमली को बता दे. मैं कल रात की तरह उनके घर चली जाऊंगी. ठीक किया न मैंने?”
अखिल तपाक से बोले, “हां, इसमें क्या गलत है?”
मुझे पता था कि तुम्हे भी कालू पर दया आएगी,” शर्मिला ने आखिरी पत्ता फेंका. मुझे सिर्फ एक बात का अफ़सोस है! पता नहीं क्यों तुमने भगवान की कसम खा ली कि तुम पराई स्त्री की तरफ देखोगे भी नहीं! कमली तो तुम्हारी इच्छा पूरी करने को तैयार है पर तुमसे भगवान की कसम तुड़वाने का पाप मैं नहीं करूंगी! अब तो कालू की ही इच्छा पूरी हो पायेगी.
अखिल खुद को कोस रहे थे कि उन्हें इतनी ज्यादा एक्टिंग करने की क्या जरूरत थी? भगवान की कसम के बिना भी काम चल जाता. अब कालू के तो मज़े हो गए और बदले में उन्हें कुछ नहीं मिला.
 
समाप्त
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