Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
05-14-2019, 11:31 AM,
#31
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
'क्यों गर्मी आयी?' मैने पूछा!
'अभी कहाँ भैया, अभी तो ठँडी ही उतरी है...'
'एक और ले लूँ क्या?' मैने उसको एक और पेग दिया!
वो जब कुर्सी पर बैठा था तो उसकी सुडौल जाँघें फ़ैल गयी थीं और उसके लोअर से बाहर आयी जा रहीं थीं! उसके लँड के पास सलवटें पड गयी थीं और उसके टट्‍टे भी साफ़ पता चलने लगे थे! मेरी नज़र रह रह कर वहीं टिक रही थी! नशे में उसकी आँखें मस्त लगने लगीं थीं!. उसने मुझे अपना जिस्म निहारते हुए देखा! एक बार उसका हाथ नर्वसनेस में अपने आँडूओं पर गया और एक बार इंस्टिंक्टिली अपने लँड पर, मगर उसने कुछ देर में वहाँ से हाथ हटा लिया!

'आओ बेड पर बैठो ना आराम से...' मैने उसको इंवाइट किया!
'ठँड बहुत है भैया, कुछ ओढने का नहीं है...'
'आओ ना, रज़ाई ओढ कर साथ में बैठ जाओ...'
अब वो नशे में था! वो मेरे बगल में आ गया और मैने पैरों पर रज़ाई डाल ली! उसमें से पसीने की खुश्बू आ रही थी, तीखा मर्दाना देसी पसीना!
मैने बातों बातों में उसकी जाँघ पर हाथ रख कर हल्का सा सहलाया और फ़िर हाथ हटा लिया! उसकी जाँघ गर्म और मुलायम थी! कुछ देर में हमें एक दूसरे के बदन की गर्मी मिलने लगी तो रज़ाई कम्फ़र्टेबल हो गयी!
'ये किताबें कैसी हैं?'
'वहीं... लँड चूत वाली...' मैने डायरेक्टली कहा तो वो हल्का सा शरमाया! मगर लौंडा हरामी था!
'हाय... इस मौसम मे दारू के बाद गर्म गर्म चूत मिल जाती तो मज़ा आ जाता... खैर फ़ोटो ही दिखा दो भैया...' मैने एक पोर्न बुक उठा के उसका एक एक पेज उसको गोद में रख कर दिखाने लगा!
'अरे मेरी जान.. क्या आइटम है... साली की बुर देखो...' उसने एक नँगी लडकी की चूत देख के कहा! जब तक मैं दूसरी किताब पर पहुँचा वो कामातुर हो चुका था! मैं जब किताब उठाने के लिये उसके ऊपर से टेबल की तरफ़ झुका और उसकी जाँघ पर हाथ रख कर मज़ा लेने के लिये जैसे ही हाथ रखा तो वो हल्का सा ऊपर की तरफ़ हुआ और मेरा हाथ सीधा उसके लँड पर पडा जो उस समय तक पत्‍थर सा सख्त हो चुका था!

'अरे ये कहाँ थाम रहे हो?' उसने हरामीपने से कहा मगर मैने तब तक हाथ हटा लिया!
'अबे नशे में हाथ सरक गया...' मैने कहा!
'और साला सरक के सही निशाने पर पहुँच गया...'
'साला खडा है क्या?'
'और क्या, अब भी खडा नहीं होगा... तीर की तरह तना हुआ है... माल फ़ेंकने को तैयार...' उसकी बातें गर्म थी! मैने दूसरी किताब भी उसको दिखायी, इस वाली में चुदायी थी!
'बहनचोद, क्या चुदवा रही है साली...'
'इसका लौडा देखो, कितना मोटा है...'

फ़िर वो जब मूतने के लिये गया और वापस आया तो मेरी नज़र उसके खडे लँड पर पडी जो उसकी लोअर को तम्बू की तरह उठाये हुए था! मैं उसको देखता रहा, वो जब फ़िर मेरे बगल में बैठा तो मैं रज़ाई सही करने के बहाने एक बार फ़िर उसके लँड को सहला दिया और इस बार हल्का सा मसल दिया! मेरे ऐसा करने पर इस बार उसके चेहरे पर एक हरामी सी मुस्कुराहट आ गयी और आँखों में चमक!
'क्यों लँड खडा है क्या?'
'और क्या भैया, इतना भरपूर आइटम दिखाओगे तो साला ठनक ही जायेगा ना...'
वो मेरे बगल में था और जब हम एक दूसरे की तरफ़ मुह करके बातें करते तो उसकी गर्म साँसें मेरे चेहरे से टकराती!
'कोई लडकी वगैरह पटायी क्या?' मैने फ़िर पूछा!
'अरे ढाबे पर लडकी कहाँ मिलने वाली है... साले सब लडके होते हैं...'
'हाँ वो तो देखा है मैने...' मैने जवाब दिया!
'यहाँ तो लडकों के साथ ही रहना होता है... आप तो अकेले रहते हो, आप कोई लडकी नहीं लाये कभी?'
'मुझे तो मिलती ही नहीं यार...'

मैने अब रज़ाई के अंदर अपना हाथ आराम से उसकी चिकनी माँसल जाँघ पर रखा तो वो कुछ बोला नहीं!
'तो तुम अकेले सोते हो?'
'कहाँ भैया, आजकल तो एक रज़ाई में तीन लडके सोते हैं...'
मैने अब उसकी जाँघों को सहलाना शुरु किया!
'लडकों के साथ सोने में खतरा नहीं है?'
'कैसा खतरा... हमसे खतरनाक कौन हो सकता है?'
'अच्छा... कैसे?'
'बस लँड खडा हो जाता है कभी कभी... मगर किसी ने कुछ कोशिश की तो साले का छेद बंद कर दूँगा...'
'कैसे?'
'गाँड में लौडा डाल के... और कैसे...'
'मतलब लडको के साथ ही?'
'जब लडके ही मिलते हैं तो क्या करूँ?'
मैने अब अपना हाथ थोडा ऊपर खिसकाया!
'गाँड मार चुके हो क्या?'
'आप को क्या लगता है?'
'मुझे क्या लगेगा...'
'लौडे का साइज़ देख कर समझ नहीं आया?'
'लौडा कहाँ देखा?'
मेरा हाथ अब उसकी जाँघ को, लौडे के बहुत करीब और दोनो जाँघों के बीच के हिस्से की तरफ़ सहलाने लगा!
'ऊपर से दिखा तो होगा ना...'
'ऊपर से आइडिआ कहाँ लगता है?'
'तो क्या अंदर से आइडिआ लगाना चाहते हो?'
मैं अब गर्म हो रहा था और जल्द से जल्द उसकी बाहों में समा जाना चाहता था!
'अंदर से कैसे यार?'
'पजामे में हाथ डाल के और कैसे?'
'तुम बुरा मान जाओगे...'
'इसमें बुरा मानने की क्या बात है? आपको इतनी देर से सहलाने तो दे रहा हूँ...'
मैं थोडा झेंपा... लगता था लडका तैयार है!
'मगर लँड कहाँ सहलाया?'
'उसके पास तो पहुँच रहे हो...'
मैने अब और रास्ता नहीं देखा और अपनी हथेली उसके लँड पर रख दी तो उसका लँड उछला, साला गर्म और सख्त हो गया था! अच्छा मोटा और लम्बा लँड था!
'अआह भैया... सिउउहहआहह... ऐसे क्या मज़ा आयेगा... अंदर हाथ घुसाओ ना...'
'अबे तू तो बडा खिलाडी है...'
मेरे ये कहने पर वो हल्के से हँसा!
'हा हा हा... ये खेल तो अपने आप आ जाता है...'
मैने अब अपना हाथ उसकी लोअर की इलास्टिक पर फ़िराया!
'अंदर डाल के मसल दो ना...' जब उसने कहा तो मैने अपना हाथ उसकी लोअर के ऊपरी हिस्से से अंदर घुसा दिया! अंदर उसका लौडा उफ़ान पर था, मैने अपनी उँगलियों से उसकी नयी नयी झाँटें सहलायी, उनमें अपनी उँगलियों को नचाया तो उसने फ़िर सिसकारी भरी! फ़िर मैने उसके लँड को पकड लिया और उसके सुपाडे पर अपना अँगूठा फ़िराया तो पाया कि वो प्रीकम से भीगा हुआ था! मैने उसके प्रीकम को उसके लँड पर रगड दिया वो अब मेरे क़ाबू में आने लगा था! उसका लँड मेरे हाथ में नाच रहा था, तभी उसका हाथ मेरे लँड की तरफ़ आया!
'अपना भी दिखाइये ना...' कह कर उसने मेरे लँड पर अपना मुलायम और गर्म हाथ रखा तो मेरा लौडा भी मचल गया! मैने उसके कँधे पर सर रख के उसकी गर्दन को हल्के से अपने होंठों से छुआ! वो पसीने के कारण नमकीन सी थी और वहाँ उसके पसीने की खुश्बू भी बहुत तेज़ थी! मैने अब हाथ पूरा उसकी लोअर में घुसा दिया और वैसे ही उसकी पूरी जाँघें सहलाने लगा! बीच में मैं हाथ ऊपर तक लाकर उसके टट्‍टों को थाम के हल्के हल्के दबाता भी था और उसके लँड को पकड के दबा देता था!

वो भी अब मेरे ट्रैक के अंदर हाथ घुसा कर मेरे लँड को सहला रहा था, उसने जब मेरी अँडरवीअर के अंदर उँगलियाँ घुसायी तो मेरी सिसकारी निकल गयी! कुछ देर बाद हमने एक दूसरे को मुड के देखा और फ़िर एक दूसरे से लिपट के लेट गये और अपने लँड को आपस में भिडाने लगे! मैने उसकी एक जाँघ को अपनी जाँघों के बीच फ़ँसा के दबा लिया और उनसे ऐसे रगडने लगा कि मेरा घुटना उसके लँड तक जाने लगा! इस बीच मैने पहली बार उसकी कमर सहलाते हुये उसकी गाँड को सहलाना भी शुरु कर दिया तो वो भी मेरी गाँड सहलाने लगा!

'क्या करवायेगा?' मैने कामातुर होकर उससे पूछा!
'क्या करेंगें?' उसने पूछा!
'चूस लूँ क्या?'
'चूस लो...'

फ़िर हम धीरे धीरे नँगे हुए! उसने अपना लोअर उतार के मेरी ट्रैक और अँडरवीअर भी उतरवा दिये! मैं रज़ाई में नीचे सरका और फ़िर अपने होंठ उसकी झाँटों में लगा दिये तो मेरी नाक उसके पसीने की खुश्बू से मस्त हो गयी! उसने सिसकारी भरी 'सिउउहहह...' मैने अपना एक हाथ ऊपर करके उसका सीना सहलाया! उसके सीने पर कटावदार मसल्स थी, मैं एक एक करके अपने अँगूठे से उसकी चूचियाँ रगडी! वो और मस्त हो गया और दूसरे हाथ को उसकी जाँघों के बीच फ़ँसा के उसके टट्‍टे दबा के सहलाने लगा! और वैसे ही अपनी उँगलियों से उसकी गाँड के छेद के पास भी सहला देता! उसकी गाँड पर अभी बाल नहीं थे! गाँड चिकनी और गर्म थी! मैने उसके भीगे हुये सुपाडे पर अपने होंठ रखे तो उसकी साँस रुक गयी! मैने ज़बान निकाल के एक बार उसके सुपाडे पर फ़िरायी तो उसके प्रीकम का नमकीन टेस्ट महसूस हुआ! मैने अपने होंठों को हल्का सा खोल के उसके सुपाडे को उनसे भींचा, प्यार से पकड के दबाया तो उसकी सिसकारी से माहौल भर गया!
'हाय... इइइससस... उउउहहह... भैया...'
'क्यों, मज़ा आया?' मैने पूछा!
'बहु...त... मगर अभी तो आपने शुरु किया है...'
'हाँ बेटा, अब देखना... आगे आगे कितना मज़ा देता हूँ...'

उसने रज़ाई में हाथ घुसा के मेरा सर अपने दोनो हाथों से पकड लिया और मैने अपने मुह को खोल के उसके सुपाडे को चूसना शुरू कर दिया! मैने अब अपना एक हाथ उसकी गाँड पर आराम से रख के उसको दबा के रगडना शुरु कर दिया और उसके छेद तक अपनी उँगलियाँ प्यार से रगडने लगा! उसकी गाँड हल्के हल्के चुसवाने के मोशन में आने लगी! उसका लँड धीरे धीरे मेरे हलक तक घुसने और निकलने लगा और उसकी गाँड भिंच भिंच के आगे पीछे होने लगी!

अब रज़ाई के अंदर चुसायी की 'चप चप' गूँजने लगी और उसका लँड सधे हुये अँदाज़ में मेरा मुह चोदने लगा! कुछ देर में हमने रज़ाई हटा दी! अब वैसे ही गर्मी हो चुकी थी! उसका गोरा बदन नँगा होकर और ज़्यादा मस्त लग रहा था! मैं दूसरे हाथ से उसकी जाँघ और टट्‍टे सहला रहा था! उसने मेरा सर पकड रखा था! फ़िर उसके धक्‍के तेज़ होने लगे, वो मेरे दाँत हिला हिला के अपने लँड की मार से मेरे मुह को मस्त कर रहा था और साथ में सिसकारियाँ भरे जा रहा था!

फ़िर उसका लँड मेरे मुह में फ़ूलने लगा, और हिचक के दहाडने लगा! उसके धक्‍कों में अग्रेशन बढ गया! उसकी सिसकारी, मोनिंग में बदलने लगीं! वो सिसकरियाँ ले लेकर करहाने लगा!
'अआहहह... हा..ये... अआहहह...' तो मैं समझ गया कि अब किसी भी पल उसका माल झड जायेगा और फ़िर उसका सुपाडा उछला और उसने मेरे सर को अपने हाथ से भरपूर जकड के सिसकारी ली 'हाँ... अआहहह...' और फ़िर उसके लँड से बुलेट की तरह वीर्य की पहली धार सीधे मेरे हलक से टकरायी और उसके बाद सिसकारियों के साथ उसके लँड ने हिचकोले खाना शुरु किया और अपना गर्म गर्म वीर्य मेरे मुह में झाड दिया! जब वो थोडा शांत हुआ तो मैने वैसे ही लेटे लेटे उसका वीर्य हलक के अंदर निगल लिया और फ़िर जब उसके लँड पर ज़बान फ़ेरी तो उसके नमकीन और मर्दाने टेस्ट का अहसास हुआ! मैने उसके झडे हुये लँड को भी खूब चूसा!

उसके बाद वो उठा! अब वो थोडा डिस-इंट्रेस्टेड सा लगा और अपने कपडे पहनने लगा!
'यहीं सो जा ना...' मैने कहा तो वो कोल्डली बोला 'नहीं यार, लौंडे सोचेंगे कहाँ गया?'
'फ़िर आयेगा?'
'देखूँगा...'
'देखना क्या है... आ जाना ना... मज़ा नहीं आया क्या?'
'मज़ा तो ठीक है और भी सब देखना पढता है... चल दरवाज़ा बन्द कर ले, मैं चलता हूँ...'

वो चला तो गया मगर मुझे काफ़ी मस्त कर गया! उसके जाने के बाद मैने उसके नाम की मुठ मारी! अगले कुछ दिन वो मुझसे नज़रें बचा के कतराता रहा तो मैं समझ गया कि लौंडे को शायद शर्म और गिल्ट है इसलिये मैने भी ज़्यादा ज़ोर नहीं दिया! इस टाइप के लौंडे मुझे पहले भी बहुत मिल चुके थे!
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05-14-2019, 11:31 AM,
#32
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
2उसके करीब हफ़्ते भर बाद मेरे घर से लैटर आया जिसमें लिखा था कि वहाँ के मोहल्ले के एक भैया अपनी जॉब के इंटरव्यु के लिये आ रहे हैं और मेरे रूम पर 2-3 दिन रुकेंगे! राशिद भैया मुझे बहुत पसंद भी थे इसलिये मैं खुश हो गया! वो मुझसे 7 साल बडे थे और काफ़ी सुंदर और हैंडसम थे! रँग गोरा और कद लम्बा था, चेहरा सैक्सी, बदन गठीला और मस्क्युलर... टाइट कपडों में बडे लुभावने लगते थे! वो डिस्ट्रिक्ट लेवल के बॉलर थे और काफ़ी नॉर्मल से अग्रेसिव मर्द थे! मैने कभी उनके साथ कुछ ट्राई तो नहीं किया था मगर बस वो उनमें से थे जिनको मैं सिर्फ़ देख कर ही नज़रें गर्म कर लेता था! मैं लास्ट उनसे उनकी शादी के वक़्त चार साल पहले मिला था, उसके तुरन्त बाद पता चला कि उनको एक लडका भी हो गया और अब तो शायद उनको दो लडके थे और उनकी बीवी फ़िर प्रैगनेंट थी! वाह क्या मर्द था, साला शादी के बाद चूत का भरपूर इस्तेमाल कर रहा था! वैसे उसकी कसमसाती हुई मज़बूत जवानी से इससे कम की उम्मीद भी नहीं रखनी चाहिये थी!

वो लैटर पढते ही मैं खुश हो गया, उस दिन क्लास में भी बहुत दिल लगा और क्लास के लडके भी बहुत ज़्यादा अच्छे लगे... स्पेशिअली मर्दाना और अक्खड विनोद सिशोदिया, जो एक बडा हरामी जाट लडका था और कभी कभी ही क्लास में दिखता था! साले की भरपूर जवानी उससे संभाले नहीं संभलती थी! उस दिन वो बेइज़ कलर की टाइट सी पैंट में मेरे ही आगे बैठा अपने बगल वाले लडके से गन्दी गन्दी बातें कर रहा था! अचानक टीचर ने उसको खडा किया तो मेरी नज़र उसकी मज़बूत गाँड पर पडी! अचानक उठने के कारण उसकी गाँड पर पैंट की कुछ सलवटें थी, उसके गोल गोल चूतड गदराये और भरे हुये थे! उनके बीच उसकी पैंट की सिलाई सीधी उसके छेद के पास से घुसती हुई उसके आँडूओं के नीचे की तरफ़ जा रही थी! उसने एक हाथ से अपनी बैक पॉकेट सहलायी! उसका हाथ भी मस्क्युलर और बडा था! एक एक उँगली गदरायी हुई थी! जब वो सवाल का जवाब नहीं दे पाया तो टीचर ने उसको खडे रहने के लिये कहा! अब मेरा ध्यान क्लास में कहाँ लगता क्योंकि मुझसे कुछ ही दूर पर विनोद की जवानी खुल के मेरे सामने जो थी! मैने उस दिन उसकी गाँड और पिछली जाँघ की जवानी और कशिश को खूब जी भर के निहारा! फ़ाइनली लैक्चर के बाद सब बाहर आये तो विनोद टीचर को गन्दी गन्दी गालियाँ देता रहा! उस दिन वो मेरे साथ ही कैन्टीन में चाय पीने के लिये बैठ गया, साथ में कुछ और लडके भी आ गये मगर मैं सिर्फ़ विनोद की जवानी ही निहारता रहा क्योंकि वो कभी कभी ही मिलता था!

'यार, ये बहन का लौडा, सर मेरी गाँड मारता रहता है...' विनोद बोला तो कुणाल ने उसका साथ दिया!
'हाँ, लगता है... उसको 'तेरी' पसंद आ गयी है...' बाकी लडके हँसे!
'साला मूड घूम गया ना तो किसी दिन पलट के उसकी गाँड में लौडा दे दूँगा...' सब फ़िर हँसे!
'हाँ, साला जब देखो, गाँड मारता रहता है...' उसके मुह से वैसी बातें बडी सैक्सी लग रहीं थी, साथ में वो कभी कभी अपने आँडूए और लँड भी अड्जस्ट करता जा रहा था! बिल्कुल स्ट्रेट, मादक और अग्रेसिव जाट था! मैं बस मन मसोस कर उसको ही देखता रहा, और कभी कभी कुणाल को... जो था तो हरामी मगर उसमें मासूमियत और चिकनापन भी था! कुणाल विनोद के एरीये में ही कहीं रहता था इसलिये दोनो कुछ फ़्रैंक थे!
'साले ने ज़्यादा परेशान किया तो इसकी बेटी की चूत में लौडा दे दूँगा...'
'इसकी बेटी कहाँ मिलेगी?' मैने पूछा!
'अरे यहीं आगे स्कूल में पढती है... साली बडा कन्टाप माल है, स्कर्ट कमर मटका के जाती है...' मेरा मन और मचल गया! मैं ये सोचने लगा कि अगर विनोद जैसे गबरू मर्द ने अपने शेर जैसे लौडे से सर की नाज़ुक सी बेटी को चोदा तो उसका क्या हाल होगा! मुझे तो विनोद की गाँड उठती और गिरती हुई दिखने लगी!
कुणाल ने अपना एक हाथ विनोद की जाँघ पर रखा और बोला 'अबे, मैं चलता हूँ...'
'ठीक है मादरचोद, मगर ये जाँघ क्यों सहला रहा है साले... लौडा पकडेगा क्या?'
'अबे हट भोसडी के... अभी इतने बुरे दिन नहीं आये हैं...' सब फ़िर हँसने लगे!

मैं उनकी बातों से सिर्फ़ गर्म होता रहा, फ़िर जब लँड खडा हो गया तो सोचा, पिशाब कर लूँ तो शायद लँड थोडा बैठ जाये! मैं कैन्टीन के पीछे की तरफ़ ओपन एअर टॉयलेट के भी पीछे मूतने के लिये चल पडा! वहाँ मैं इसलिये जाता था कि वहाँ सूनसान में कोई होता नहीं था इसलिये मैं अपने लँड को आराम से खोल के उसकी ठनक कम कर सकता था! एक बार तो मैने वहाँ खडे खडे मुठ भी मारी थी मगर उसके बाद हिम्मत नहीं पडी थी! मैने वहाँ पहुँच कर अपनी पैंट से लौडा बाहर निकाला, जो उस समय पूरा मस्त ठनक के खडा था और मूतने के पहले विनोद की जवानी याद करके अपना लँड हल्के हल्के मसलने लगा! बिल्कुल ऐसा लगा कि विनोद मेरे सामने नँगा हो रहा है! मेरे लँड में उसके नाम की गुदगुदी हो रही थी! इतना मज़ा आया कि मेरी तो आँख एक दो बार बन्द सी होने लगी! अभी मज़ा मिलना ही शुरु हुआ ही था कि अचानक कुछ आहट हुई और एक और लडका उधर की तरफ़ आता दिखा!

मैं उसको जानता था, उसका नाम धर्मेन्द्र था और वो इलाहबाद का रहने वाला था जो मेरे साथ ही कोर्स करने वहाँ से आया था! धर्मेन्द्र मुझे देख के मुस्कुराया मगर कुछ पल में उसकी नज़र मेरे लँड पर पडी तो मैने देखा कि उसने कुछ ज़्यादा इंट्रेस्ट लेकर मेरे लँड को देखा! वैसे धर्मेन्द्र उस टाइप का लगता तो नहीं था, काफ़ी हट्‍टा कट्‍टा साँवला सा गदराया हुआ स्ट्रेट लौंडा लगता था जो नयी नयी जवानी में शायद किसी चूत की सील तोडने के सपने देखता होगा मगर शायद मेरे खडे लँड को देख के उसको कुछ अटपटा लगा! उसकी आँखों में एक झिलमिल सा नशा सा दिखा! उसके होंठ हल्की सी प्यास से थर्राये और फ़िर वो मुस्कुराते हुये मेरे कुछ ही दूर पर खडा होकर अपनी ज़िप खोल के जब मूतने लगा तो मुझ से भी ना रहा गया और मेरी नज़र भी उसके लँड पर पडी जो काफ़ी बडा और मोटा था!

उसने अपना लँड कुछ इस स्टाइल से पकडा हुआ था कि मुझे साफ़ दिख रहा था और जब उसने अपना लँड छुपाने की कोशिश नहीं की तो मैने भी उससे अपना लँड नहीं छुपाया! उसका लँड भी खडा सा होने लगा और कुछ देर में भरपूर खडा हो गया! हम एक दूसरे से कुछ बोले नहीं, बस चुपचाप प्यासी सी नज़रों से एक दूसरे का लँड देखते रहे! मस्ती इतनी छा गयी कि मूतने के बाद भी लँड अंदर करने का दिल नहीं कर रहा था! धर्मेन्द्र भी अपना लँड हाथ में लिये मुझे आराम से दिखा रहा था! तभी किसी और की आहट आयी तो हम दोनो ने ही अपने अपने लँड अपनी ज़िप में घुसा के बन्द किये और वहाँ से वापस हो लिये! जब मैं विनोद की तरफ़ जा रहा था तो धर्मेन्द्र मुझे गहरी नज़रों से देखता हुआ वहाँ से गुज़रा! उसकी आँखें मुझे कुछ इशारा कर रहीं थी! बस किसी तरह उसके साथ सैटिंग करनी थी, लगता था धर्मेन्द्र का काम तो हो गया था! एकदम अन-एक्स्पेक्टेड मगर सॉलिड लौंडा!

विनोद अब अकेला था, बाकी जा चुके थे!
'आजा बैठ ना... क्यों, तू जा नहीं रहा है क्या?'
'जाना तो है यार...'
'किस तरफ़ रहता है?' उसने पूछा तो मैने अपना एरीआ बताया!
'मुझे उसी तरफ़ जाना है, चल तुझे बाइक पर छोड दूँ...' उसने जब ऑफ़र दिया तो मैं तैयार हो गया! उसके पास बुलेट थी जो उसकी देसी जवानी को सूट कर रही थी, उसने किक मार के स्टार्ट की और जब टाँगें उठा के उस पर बैठा तो अचानक उसकी पैंट बहुत ज़्यादा टाइट हो गयी और टी-शर्ट भी पीछे से ऐसी उठी कि उसकी अँडरवीअर की इलास्टिक और कमर दिखने लगी! मैं जल्दी से उसके पीछे बैठ गया! मेरी जाँघ एक दो बार उसकी कमर से टच हुई और एक दो बार मैने बातों बातों में उसके कंधे और एक दो बार उसकी जाँघ पर भी हाथ रखा! ये पहला मौका था, जब मुझे वो सब करने को मिल रहा था!

उसने मेरी गली पर असद के ढाबे के सामने ही बाइक रोक दी तो मैने उसको चाय पीने के लिये रोक लिया! वो मेरे रूम पर आ गया!
'तू अकेला रहता है?'
'हाँ...'
'तब तो बढिया है... कभी अपने रूम की चाबी दे दियो यार...'
'क्यों क्या करेगा?' मैने मुस्कुरा के पूछा!
'रंडी लाऊँगा...'
'अच्छा यार, ले लेना चाबी...'
'अबे कभी दारू वारू का प्रोग्राम बना ना... यहाँ तो बढिया सैटिंग है...'
'हाँ यार, कभी भी बना ले...' वो भी एक्साइटेड हो गया!
'वाह यार, मज़ा आ जायेगा...' उस दिन हम थोडा फ़्रैंक हुये!
'चल तुझे किसी दिन अपना एरीआ दिखा दूँ... देख ले, जाटों का मोहल्ला कैसा होता है...'
'ठीक है यार, कभी भी बुला लेना... चल पडूँगा...'

अब तो मुझे विनोद और भी सैक्सी लगने लगा था! मेरे मन में तो कीडा घूमने लगा! अभी ढाबे से एक लडका चाय ले आया! वो नया सा था, मैने उसको पहले नहीं देखा था! कमसिन सा, गुलाबी, गोरा, नाज़ुक सा लौंडा था!

'क्यों, तू नया है क्या?'
'जी भैयाजी...'
'क्या नाम है?'
'विशम्भर...'
'कहाँ का रहने वाला है?'
'बीकानेर का...'
'ला बे, इधर रख दे चाय...' विनोद उससे बोला फ़िर जब वो चला गया तो वो अचानक बोला 'साला बडा चिकना सा था...'
'क्या मतलब यार... कौन चिकना था?' मेरे मन में तो उसकी बात से उमँग जग उठी!
'यही ढाबे वाला... साले के होंठ और कमर देखे थे लौंडिया की तरह थे...'
'अबे तू ये सब क्यों देख रहा था?'
'साले, जवान हूँ... देखने में क्या जाता है... हा हा हा हा...' फ़िर उसने बात पलट दी!

मुझे अँधेरे में उम्मीद की एक किरण दिखी! अब मुझे लगा उससे दोस्ती बढाने में फ़ायदा है! उससे जाते जाते मैने उसके घर जाने का प्रॉमिस किया और उससे भी अपने रूम में आते रहने के लिये कहा! उसके जाने के बाद विशम्भर ग्लास लेने आया तो मैने उसको तबियत से ऊपर से नीचे तक निहारा! वो एक टैरिकॉट की पुरानी सी व्हाइट पैंट पहने था और साथ में एक फ़ुल नैक का स्वेटर!
'क्यों, कब से आया है?'
'मैं यहाँ तो परसों से ही आया हूँ... पहले मालिक के घर पर काम करता था...'
'अच्छा, बढिया है... यहाँ आ जाया कर... बैठ के बातें करेंगे...'
'जी भैयाजी' वो सच में बिल्कुल मिश्री की डली की तरह मीठा और काजू की तरह मसालेदार लौंडा था! मैने उसकी नज़र के सामने ही उसको निहारा और अपने होंठों पर ज़बान फ़ेरी!
'रात में खाना ले आना...'
'कितने बजे?'
'कितने बजे सोता है तू?'
'जी आजकल तो 12 बजे...'
'ठीक है... उसके पहले जब टाइम हो, ले आना...'
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05-14-2019, 11:31 AM,
#33
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
जब मैने विशम्भर को भेज के दरवाज़ा बन्द कर रहा था तो सामने से एक बडा मादक लौंडा आता दिखा! वो कुछ नये से अन्दाज़ में इधर उधर देख रहा था और उसके कंधे पर एक बैग टंगा था! यही कोई 17-18 साल का चकाचक पीस था जो एक सुंदर सा मल्टी कलर्ड स्वेटर और ब्राउन कार्गो पहने था! मस्त सा देसी चिकना था जिसके चेहरे पर अभी बाल भी नहीं आये थे और आँखों मदमस्त भूरी थीं! उसने मुझसे गौरव के बारे में पूछा, जो मेरे रूम के ऊपर वाले रूम में सैकँड फ़्लोर पर रहता था! वो लडका चला गया मगर मैने उतनी सी देर में उसके जिस्म के हर कटाव को देख-पढ लिया!

अभी मैं दरवाज़ा बन्द करके लौटा ही था कि फ़िर नॉक हुआ! खोला तो पाया, वही लडका था!
'गौरव तो शायद है नहीं, क्या मैं कुछ देर यहाँ बैठ जाऊँ?' वो जब कमरे में आकर मेरी पलँग पर बैठा तो मैने पाया कि वो उससे कहीं ज़्यादा खूबसूरत था, जितना मुझे पहली नज़र में लगा था! मैने उसको जी भर के निहारा! काफ़ी देर होने पर भी गौरव नहीं आया!
'चिन्ता मत करो, यहीं सो जाना...' मैने उसको आश्‍वासन दिया!
'ये रह कहाँ गया?'
'पता नहीं, मुझे तो कभी कभी मिलता है...' उस नये लडके का नाम निशिकांत शुक्ला था और वो उन्‍नाव से इंजीनीरिंग डिप्लोमा के फ़ॉर्म्स लेने आया था मगर उसको ये नहीं मालूम था कि गौरव तो तीन दिन के लिये अपने कॉलेज के दोस्तों के साथ शिमला गया हुआ था! उसकी मौजूदगी में विशम्भर का आना भी बेकार था सो मैं उसके साथ ढाबे पर चला गया! वहाँ असद मिला तो मैने उससे हाथ मिलाया!
'कहाँ हो यार, तुम तो दिखे ही नहीं...'
'बस ऐसे ही काम में लगा हूँ...' ना उसकी बातों से और ना मेरी बातों से हमारे बीच बने उस नये सम्बन्ध की झलक दिखी!

मैने और निशिकांत ने साथ में खाना खाया! वो खाते हुये भी सुंदर लग रहा था! हमारी टेबल पर विशम्भर खाना ला रहा था! मैने धीरे धीरे निशी से सैक्सी बातें शुरु कर दी थीं और वो भी खुलने लगा था जिससे मुझे उसकी हरामी गहरायी का पता चलने लगा था! लौंडा शातिर था, तभी सामने से एक लडकी जीन्स पहन के निकली तो वो बोला!
'देखो साली की गाँड देखो... साली के छेद में सुपाडा भिडा देंगे तो साँस रुक जायेगी!'
'हाँ यार, बढिया माल है...'
'हाँ साली गाँड उठा उठा के चूत देगी... रात भर में ही साली को लोड कर देंगे...'
वो खूब मस्ती से सैक्सी बातें कर रहा था! फ़िर जब हम रूम पर आये तो हमने सिगरेट पी!
'यार लगता है, आज तुमको यहीं सोना पडेगा...'
'अब क्या करें यार... तुम्हें दिक्‍कत तो नहीं होगी?'
'नहीं साथ में सो जायेंगे...' मेरे ये कहने पर वो चँचलता से मुस्कुराया!
'ध्यान से सोना पडेगा...'
'जाडे में सही रहता है...'
'हाँ, मगर गर्मी चढती है तो डेंजर हो जाता है...'
'तो क्या हुआ?'
'अभी तो कुछ नहीं हुआ, मगर वॉर्निंग दे रहा हूँ...'
'बेटा डरायेगा तो सोयेगा कहाँ? बाहर सडक पर?' मैने हँसते हुए कहा!
'हाँ यार... सोना भी है... मजबूरी है..'

तेज़ ठँड थी! उसने बाथरूम में जाकर कपडे चेंज किये और ठिठुरते हुये शॉर्ट्स और टी-शर्ट पहन के आया और रज़ाई में घुस गया!
'यार, गाँड फ़ाडू सर्दी है आज...' मैने बाथरूम में चेंज करने गया और देखा कि उसकी कार्गो दरवाज़े के पीछे खूंटी पर टंगी है! उसके अंदर उसकी चड्‍डी थी, ब्लैक फ़्रैंची... मुझसे रहा ना गया और मैने उसकी चड्‍डी हाथ में लेकर उसमें मुह घुसा के उसकी जवानी की खुश्बू सूंघी और मस्त हो गया! लौंडों की चड्‍डियाँ सूंघना मेरा पुराना शौक़ है! शायद उसका लँड खडा भी हुआ था क्योंकि उसकी चड्‍डी पर एक दो हल्के सफ़ेद धब्बे भी थे! मैने उनको ज़बान से चाटा और फ़िर अपनी शॉर्ट्स और टी-शर्ट पहन के बाहर आ गया और सर्दी का ड्रामा करते हुए जब रज़ाई में घुसा जो उसकी जवानी की गर्मी से पहले ही गर्म हो चुकी थी! कुछ देर में हम दोनो ही गर्म हो गये और हमने रूम की लाइट ऑफ़ कर दी मगर फ़िर भी बाहर से काफ़ी लाइट आ रही थी!

कुछ देर तो हम सीधे लेटे रहे, फ़िर जब एक दूसरे की तरफ़ करवट ली तो एक दूसरे की साँसें एक दूसरे के चेहरे को छूने लगीं! उसकी साँस में मस्त खुश्बू थी, देसी जवानी की! वो मुझे बेक़ाबू कर रहा था! हमारे पैर भी आपस में टच कर रहे थे! निशिकांत का जिस्म गदराया और गर्म था! अभी मैं सम्भल भी नहीं पाया था कि उसने एक करवट ली और अपनी एक जाँघ मेरी कमर पर चढा के अपना एक हाथ मेरे पेट के अक्रॉस रख दिया! मुझे उस शाम पहली बार उसकी ताक़त का आभास हुआ! वो मेरे ऊपर अपना वज़न दिये हुए था! मैने उसको छेडा नहीं और उसकी उस पकड का मज़ा लेता रहा! मैं चित्त लेता था और वो करवट से! उसकी जाँघ मेरे लँड से कुछ ही दूर थी, मेरा लँड खडा होने की कगार पर था! मैं भी चुपचाप लेटा सोने का नाटक करता रहा! उस करवट में उसका मुह भी मेरी गर्दन पर साइड से बहुत नज़दीक आ गया था जिस से उसकी गर्म साँस मेरी गरदन से टकरा रही थी!

कुछ देर बाद निशिकांत ने अपना पैर मेरे ऊपर कुछ और चढाया! अब उसकी जाँघ सीधे मेरे लँड पर आ गयी और अब मैं लँड के ठनकने को नहीं रोक पाया! मैने सोचा सोने का ड्रामा करता रहता हूँ, अगर वो उठ के मेरे लँड को खडा पायेगा तो खुद ही पैर हटा लेगा! मगर मुझे तो अब नींद आ ही नहीं रही थी! अभी मैं कुछ समझ ही पाता कि अचानक निशी का पैर हिला और मेरे लँड पर उसकी जाँघ हल्के हल्के रगडी! मैने अभी सोचा वो नींद में है! मेरा लँड अब हुल्लाड मार रहा था! इसी बीच उसका हाथ मेरे पेट से नीचे की तरफ़ सरका! उसकी जाँघ हल्के से मेरे लँड से अलग हुई और देखते देखते निशिकांत की हथेली मेरे खडे हुये लँड के ऊपर रगडने लगी! जब उसने अगले कुछ पल में मेरे लँड को अपनी मुठ्‍ठी में पकड के हल्का सा दबाया तो मेरी समझ में आया कि वो एक्चुअली जागा हुआ है! क्योंकि तब मुझे अपनी कमर पर उसके लँड की गर्मी और सख्ती का भी आभास हुआ! उसने अब अपने लँड को हल्के हल्के धक्‍कों से मेरी कमर पर रगडना शुरू कर दिया! मैने इस बार अपना हाथ नीचे किया और पहली बार उसके लँड की सख्ती को अपनी हथेली की उलटी तरफ़ महसूस किया और देखते देखते मैने उसके लँड को थाम लिया! उसका लँड जवानी के जोश में हुल्लाड मार रहा था! ज़्यादा मोटा नहीं था मगर सख्त और लम्बा था! मैने कुछ उँगलियों से उसको पकड के नापा और उसके सुपाडे को अपनी उँगली और अँगूठे से दबाया! कुछ देर एक दूसरे का लँड सहलाने के बाद बिना कुछ कहे हम एक दूसरे की तरफ़ पलटे और एक दूसरे से चिपक के भिड गये!

अब माहौल गर्म था! हमने कुछ बात नहीं की मगर मैने सीधा अपने गालों से उसके चिकने गालों को सहलाया, और फ़िर जब मैने अपने होंठ उसके होंठ पर रख कर उनको सहलाया तो उसने मुह खोल दिया और हम एक दूसरे के होंठों को चूम कर चूसने लगे और हमारी ज़बान एक दूसरे से गुँथने लगीं! वो लपक लपक के मेरे होंठ चुस रहा था और भूखे शेर की तरह अपने मुह को मेरे मुह पर दबा रहा था! जब उसने अपना हाथ मेरी गाँड पर रख कर मेरे छेद के पास अपनी उँगलियाँ दबायी तो मैने अपना एक पैर उसके ऊपर चढा के अपनी गाँड उसके लिये सही से खोल दी!

मैने उसके लँड को उसकी शॉर्ट्स के निचले हिस्से से बाहर करके उसको थाम के दबाना शुरु कर दिया! उसने मेरी शॉर्ट्स थोडा नीचे खिसका दी और मेरी गाँड को अपने हाथों से नोचने लगा और मेरे छेद को अपनी उँगलियों से कुरेदने लगा! मेरा छेद तो फ़ौरन खुलने लगा! अब मैं नीचे हुआ और अपना सर उसकी जाँघों के बीच रख दिया! उसने मेरे सर को एक बार कस के जकड लिया! वहाँ उसके पसीने और बदन की मादक खुश्बू थी! मैने उसकी जाँघ पर किस किया और फ़िर ऊपर होकर सीधा उसके सुपाडे को मुह में ले लिया! उसका सुपाडा अपने आप खुल गया और वो मेरे मुह को चोदने लगा! इस बीच मैने उसकी शॉर्ट्स सरका के उतार दी और फ़िर खुद भी नँगा हो गया! फ़िर वो मेरी छाती पर चढ गया और मुझसे अपना लँड चुसवाने लगा! मैने वैसा करने में उसकी गाँड की दोनो फ़ाँको को पकड के दबाना शुरु कर दिया! फ़िर वो पलट के बैठ गया, अब उसकी गाँड मेरे मुह की तरफ़ थी! उसने उसी पोज़िशन में अपना लँड अड्जस्ट करके मेरे मुह में डाला और मेरे ऊपर झुक गया! कुछ देर में मुझे अपने सुपाडे पर जब उसके होंठ महसूस हुए तो मेरी गाँड भी उठने लगी और मैं उसके गर्म मुह का मज़ा लेने लगा! उसने अपने हाथों को मेरे चूतड के नीचे फ़ँसा के मेरी गाँड दबाना शुरू कर दी! फ़िर उसने मुझे पलट दिया और जब पहली बार मेरी गाँड को किस किया तो मैं मचल गया और मेरी गाँड बेतहाशा कुलबुला गयी!

उसने मेरी गाँड को फ़ैला रखा था और फ़िर उसने आराम से मेरी गाँड की फ़ाँकों के बीच की दरार में अपना मुह घुसा दिया और साथ में एक उँगली को मेरे छेद पर दबाने लगा! अब वो कभी मेरे छेद को किस करता कभी उसमें उँगली करता! उसकी उँगली धीरे धीरे मेरे छेद में घुसने लगी!
'तेल है?' उसने पहली बार कुछ कहा!
'हाँ सामने टेबल से ले ले...' उसने बस एक पैर नीचे उतार के टेबल से चमेली के तेल की बॉटल उठा ली! फ़िर तो उसकी उँगली सटासट मेरे छेद में घुसने लगी!
'चढ जाऊँ ऊपर?' वो कुछ देर बाद फ़िर बोला!
'हाँ चढ जा ना...' मैने कहा! उसने अपने लँड पर तेल लगाया और जब मैने उसको देखा तो उसका चिकना और गोरा शरीर दमक रहा था! उसकी छाती के और बाज़ुओं के कटाव साफ़ दिख रहे थे! फ़िर उसका सुपाडा सीधा मेरे छेद पर आकर टिका तो मैने कसमसा कर सिसकारी भरते हुए अपने छेद और गाँड को भींच लिया! उसने अपने लँड को हाथ में लेकर मेरी दरार पर एक दो बार दबा दबा के पूरा रगडा! वो कमर से शुरु होकर सीधा मेरे आँडूओं की जड तक अपना लँड रगडता! मेरी गाँड अपने आप ही मस्त होकर उचक जाती और जाँघें फ़ैल जाती! उसने रुक कर मेरी जाँघ का पिछला हिस्सा, चूतड और कमर रगड के दबाये!
'अआहहहह... नि...शी... अआहहह... सी.. उउउहहह...' मैं सिर्फ़ सिसकारी भरता!

उसने फ़िर अपने उलटे हाथ से अपने लँड को पकड के मेरे छेद पर लगाया और दूसरे हाथ की एक उँगली और अँगूठे से मेरे छेद को फ़ैलाया और जब दबाव दिया तो पहले से ही मस्त हो चुकी मेरी गाँड कुलबुला गयी और उसका सुपाडा मेरे छेद में समा गया! इस बार उसने भी मस्ती से भर के सिसकारी भरी!
'अआहहह... सु...उहहह... सु..हहह...' और अपने लँड पर ज़ोर बढा कर उसको धीरे धीरे करके तब तक दबाता रहा जब तक वो पूरा का पूरा मेरी गाँड के अंदर नहीं घुस गया! फ़िर उसने अपने दोनो हाथों से मेरे कंधे पकड लिये और अपने गालों को पीछे से मेरे गालों के बगल में लाकर चिपकाता रहा और हल्के हल्के धक्‍के देकर मेरी गाँड चोदना शुरु कर दी! उसके हर धक्‍के में अच्छी देसी ताक़त थी! मेरी गाँड तुरन्त भरपूर ठरक में आ गयी! मैं भी उससे गाँड उठा उठा के चुदवाने लगा! उससे धक्‍कों में इतनी ताक़त थी कि कुछ देर में कमरे में चुदायी की चपाचप चप चपाचप गूँजने लगी और साथ में हम दोनो की सिसकारियाँ...

वो जब थक जाता तो वैसे ही गाँड में लँड डाले डाले ही मेरे ऊपर पस्त होकर लेट जाता! वैसे ही लेटने में उसने कहा!
'मज़ा आ रहा है ना?'
'हाँ यार बहुत...'
'देख, कैसे किस्मत से मिल गये...'
'हाँ वो तो है...'
'ओए यार, किसी से ये सब बताना नहीं... पता चले कि तू गौरव से कह दे... साला पूरे में फ़ैला देगा... ये सब मैं बस चुपचाप करता हूँ...'
'कहूँगा क्यों यार... मैं भी चुपचाप करता हूँ और वैसे भी गौरव से ज़्यादा दोस्ती नहीं है...'

सुस्ताने के बाद उसने फ़िर मेरी गाँड मारना शुरु कर दिया!
'साली सारी थकान मिट गयी... थकान मिटाने का बेस्ट तरीका है...'
'हाँ, पूरी एक्सरसाइज़ हो जाती है...'
'चल राजा, थोडी गाँड ऊपर उठा... कुतिया की तरह...' मैने उसके ये कहने पर अपने घुटने मोड के गाँड पूरी ऊपर उठा दी! उसने फ़िर अपने एक हाथ से चप चप एक दो बार मेरी गाँड पर अपनी हथेली मारी!
'वैसे तेरी चिकनी है...'
'थैंक्स यार...' उसके बाद वो मेरी गाँड के पीछे घुटनो के बल बैठा और फ़िर लँड मेरी गाँड के अंदर बाहर करने लगा! उस रात उसने काफ़ी देर चोद चोद के मेरी गाँड को मस्त कर दिया! फ़िर वैसे ही चिपक के मेरे साथ नँगा सो गया! जब सुबह मेरी आँख खुली तो तो वो बाथरूम में नहा रहा था! उस सुबह हमने पिछली रात की कोई बात नहीं की, बस एक दो बार हसरत भरी नज़रों से एक दूसरे को देखा!

उस दिन हम साथ ही निकले! मैने उसको बस पकडवा दी और लौटने का टाइम फ़िक्स कर लिया और खुद अपनी क्लासेज़ के लिये चला गया! उस दिन कॉलेज के गेट पर घुसते ही धर्मेन्द्र मिल गया! उस दिन उसने जब मुस्कुरा के मुझसे हाथ मिलाया तो उसकी पकड और उसकी नज़रों में जानी पहचानी ठरक थी! इन्फ़ैक्ट वो अब मुझे भी बहुत ज़्यादा सैक्सी लग रहा था! उस दिन से धर्मेन्द्र और मैं भी ठरक के कारण क्लोज़ आने लगे थे! उसको देखते ही मेरा मन तो कर रहा था कि उसको नँगा करके उसके सामने नँगा हो जाऊँ मगर कॉलेज में बना के रखनी पडती है! बातों बातों में पता चला कि धर्मेन्द्र को उस दिन 11 बजे स्पोर्ट्स प्रैक्टिस के लिये जाना था! वो कॉलेज की वॉलीबॉल टीम में खेलता था! मैने फ़िर उसके मज़बूत हाथ देखे जो वॉलीबॉल खेल कर मस्त गदरा गये थे! बीच बीच में मुझे निशिकांत के साथ गुज़ारी हुई रात भी याद आती रही!
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05-14-2019, 11:32 AM,
#34
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
उस दिन विनोद थोडा दूर बैठा था मगर फ़िर भी मैं उसको देखता रहा! इन्फ़ैक्ट मेरा बस चलता तो मैं क्लास के हर लडके से गाँड मरवा लेता मगर मजबूरी थी! उस दिन क्लास के बाद कैन्टीन में विनोद फ़िर मिला वो अब मुझसे काफ़ी फ़्रैंक हो चुका था, मुझे बार बार उसकी विशम्भर के बारे में कही हुई बात याद आती रही और मैं अन्दाज़ लगाता रहा कि क्या वो सीरिअस था या बस ऐसे लडकों वाला मज़ाक किया था! असल में स्कूल - कॉलेज में हरामी लडकों की बातों से उनकी सैक्शुएलिटी का अन्दाज़ लगाना बहुत मुश्किल हो जाता है!

कुछ देर में कुणाल भी आ गया और उसके साथ एक और क्लासमेट था! बातें करते करते विनोद बोला
"बहनचोद, अब चलता हूँ... बहुत थक गया यार..."
"ऐसा क्या किया साले, जो थक गया..."
"बहनचोद रात में तीन बार मुठ मारी यार... बहन का लौडा, मेरा लँड मुरझा ही नहीं रहा था..."
"अपने घर वालों से कह दे, तेरी शादी करवा दें..." उस दिन फ़िर विनोद ने गे बात कही!
"शादी क्यों कर लूँ साले... तू चिकना है ना, चल तेरी गाँड मार दूँ..."
"बेटा मेरी गाँड में घुसने की ताक़त नहीं होगी तेरे लँड में..." कुणाल ने कहा!
"बेटा ताक़त तो एक बार में दिखा दूँगा... साले, सुबह तक फ़ाड के रख दूँगा..."
"रहने दे गाँडू, जा कोई लौंडिया पटा ले..."
"लौंडिया ही तो नहीं मिलती है साले... तभी तो तुझे डार्लिंग बनने को कह रहा हूँ..."
"कहा ना, मेरी नहीं ले पायेगा..."
"बेटा दे तो एक बार..."
"साले, जा इसकी ले ले..."
"अबे रहने दे, मुझे क्यों इस में शामिल कर रहे हो..." कुणाल ने मेरी तरफ़ इशारा करते हुये कहा तो मैने नाटक में कहा!
"देखा, साला डर गया..."
"डर वर तो एक बार में निकल जायेगा..." विनोद बोला!
"रहने दे, तू इसकी ही ले ले..." मैने कुणाल की तरफ़ इशारा करते हुये कहा!
"हाय... चिकने... बात करने में ही फ़ट गयी तेरी?" कुणाल बोला!
"हाँ साला चिकना है... चिकने डर जाते हैं..." विनोद ने कहा!
"हा हा हा हा हा..."

कुछ भी हो, मुझे विनोद का आइडिआ लगने लगा था! मैं उस दिन धर्मेन्द्र को मिस कर रहा था! फ़िर कुणाल और विनोद ने पास के कम्युनिटी सेन्टर पर जाकर बीअर पीने का प्रोग्राम बनाया तो मैं सिर्फ़ इसलिये तैयार हो गया कि मैं उन दोनो को नशे में देखना चाहता था! फ़्रैंड्स कॉलोनी का कम्युनिटी सेन्टर काफ़ी भीड भाड वाला है, मगर वहाँ बहुत सी जगहें ऐसी हैं जहाँ चुपचाप अँधेरे में बैठा जा सकता है! हमारे कॉलेज के बहुत लडके वहीं जाते थे! वहाँ जामिया के बहुत लौंडे घूमते रहते थे, सब एक से एक करारे और जवान... टाइट पैंट्स और जीन्स पहने, वहाँ लडकियाँ देखते थे और अपने लँड मसलते थे!

हमने बीअर ली और एक कोने में चुपचाप बैठ गये! वो ऐसी जगह थी जहाँ से हम सब देख सकते थे, पर हमें कोई नहीं! एक बीअर के बाद विनोद बहकने लगा! मैने उतनी देर में कुछ ही घूँट पिये मगर कुणाल भी काफ़ी गटक गया! तभी पास से एक लडकी गुज़री तो विनोद ने मेरे सामने ही अपना लँड पकड के मसल डाला और बोला
"हाय... अब चढने के बाद किसी पर 'चढने' का दिल करता है यार... लौडा अपने आप फ़नफ़नाने लगता है..."
"क्यों, 'तेरा' खडा हो गया क्या?" मुझसे ना रहा गया और मैने पूछ ही लिया!
"'इसका' तो साला, किसी को भी देख के खडा हो जाता है... इसके सामने झुकना मत, वरना तेरी गाँड देख के भी खडा कर लेगा..." कुणाल बोला!
"मेरी देख के क्या करेगा यार..." मैने कहा!
"बेटा अगर करने पर आऊँ तो देख लियो... फ़िर हिलने नहीं दूँगा और टट्‍टे तक तेरी गाँड में डाल दूँगा..." इस पर विनोद बोला! कुणाल हँसा... मुझे कोई जवाब नहीं सूझा!

मगर मैं गर्म तो हो ही गया! अब मेरी गाँड विनोद के लँड के लिये कुलबुलाने लगी!
"अबे मैं होमो नहीं हूँ..." मैने कहा!
"होमो तो हम बना देते हैं बेटा... जब करने पर आते हैं..."
"तू इसकी ही मार..." मैने कुणाल की तरफ़ इशारा करके कहा! अब ना जाने क्यों मुझे लगने लगा था कि विनोद और कुणाल मिलकर मुझे फ़ँसाने की कोशिश कर रहे थे!
"किसी दिन अपने रूम में बुला तो दिखा दूँगा" विनोद बोला!
"तू अकेला रहता है क्या?" कुणाल ने पूछा!
"हाँ" मैने जवाब दिया!
"तो इससे बच के रहियो, साला बडा हरामी है..."
"रहने दे यार, इतना आसान नहीं है..." अभी मैने कहा ही था कि सामने से धर्मेन्द्र आता दिखा! उसने सिगरेट जला रखी थी! उसको देखते ही मैं मस्त हो गया!

"ओए, ये कहाँ से आ गया?" कुणाल बोला और उतनी देर में विनोद ने धर्मेन्द्र को आवाज़ लगा दी! धर्मेन्द्र का चेहरा भी मुझे देख के खिल गया, वो भी हमारे साथ बीअर पीने को तैयार हो गया! अब तो मैं मस्त हो चुका था! कुछ देर में धर्मेन्द्र को भी चढ गयी! फ़िर वहाँ से जाने की बारी आयी तो कुणाल बोला!
"अबे मैं तो चलता हूँ... तुम्हारा क्या प्रोग्राम है?"
कुणाल के जाने के बाद विनोद मुझे और धर्मेन्द्र को अपनी बाइक पर छोडने के लिये तैयार हो गया, मगर ट्रिपल राइडिंग के कारण वो बोला कि गलियों से चलेगा! विनोद के गाडी स्टार्ट की और धर्मेन्द्र उसके पीछे बैठ गया और मैं उसके पीछे! पहली बार धर्मेन्द्र और मेरे बदन आपस में टच हुये तो बदन में एक सनसनी दौड गयी! मेरी जाँघें, धर्मेन्द्र की जाँघों से बिल्कुल चिपकी हुई थी! थोडा आगे बढे तो उसने अपने दोनो हाथ मेरी दोनो जाँघों पर रख दिये! उसकी हथेलियों की गर्मी से मेरा लँड तुरन्त खडा हो गया, जिसको मैं बहुत कोशिश करके उसकी कमर से दूर रखे हुये था! फ़िर धर्मेन्द्र ने कुछ पलट के मुझसे कुछ पूछा जो मैं बाइक की आवाज़ के कारण सुन नहीं पाया! इस बार उसने अपना मुह मेरे कान के पास लाकर जब मेरे कान के पास बोला तो मेरे चेहरे पर उसकी गर्म साँस टकरायी और तभी बाइक एक गढ्‍ढे से गुज़री तो उसकी जर्क से उसके होंठ ऑल्मोस्ट मेरे होंठों से छू गये! जर्क से बचने के लिये उसने मेरी जाँघ को भी दबा के पकड लिया!

मैं श्योर था, धर्मेन्द्र मेरे साथ कुछ करने में ज़रुर इंट्रेस्टेड है! बैठने बैठने में मैने इस बात का ध्यान नहीं दिया कि मेरा लँड अब उसकी कमर से चिपक गया था! मगर उसने इस बात पर ज़रा भी ध्यान नहीं दिया हुआ था! शायद उसको मज़ा आ रहा था! फ़िर मेरा एरीआ आ गया, मगर फ़िर भी वहाँ से लगभग 15 मिनिट की वॉक तो थी ही!
"यार, यहीं उतर जा... मेरा सर घूम रहा है... यहाँ से चले जाना... मैं जल्दी घर पहुँचना चाहता हूँ..." साला विनोद बोला!
"चल कोई बात नहीं..." मगर जब उतरा तो धर्मेन्द्र भी उतर गया!
"मैं भी उतर लेता हूँ, यहीं से चला जाऊँगा..." उसने कहा तो विनोद ने नशे के मारे ज़्यादा ध्यान नहीं दिया! उसके जाने के बाद मैं और धर्मेन्द्र साथ चल पडे! सडक पर अँधेरा था और ज़्यादा लोग नहीं थे! मैं उसके साथ एक अँधेरे कच्चे रास्ते से चला, जो शॉर्ट-कट भी था और मस्त भी! कुछ दूर पर ही धर्मेन्द्र ने मेरा हाथ पकड लिया!
"यार, अँधेरा बहुत है..."
"सही है यार... हाथ पकड के चलते हैं दोनो भाई..." मैने उसकी उँगलियों में उँगलियाँ फ़ँसा के उसकी हथेली से अपनी हथेली चिपका के उसका हाथ पकड लिया! कुछ देर के बाद वो मेरी हथेली पर अपनी उँगलियों से सहलाने लगा तो मैने भी अपनी उँगलियों से उसका हाथ और हथेली दबाना और सहलाना शुरु कर दिया!
"तू अकेला रहता है?"
"हाँ..."
"साथ चलूँ क्या? थोडी देर बातें करेंगे..."
"चल, मगर तुझे देर नहीं हो जायेगी?" मेरा दिल अब धडक रहा था! वो काफ़ी मस्त देसी आइटम था और लगातार मेरा हाथ दबाये और सहलाये जा रहा था! उसने बीअर के साथ साथ मुझे अपनी जवानी का नशा भी चढा दिया था!
"लेट तो हो गया है... थोडी देर में चला जाऊँगा..."
"चल, साथ बैठेंगे... मज़ा आयेगा..." मैने कहा!
"हाँ, थोडा नशे का मज़ा लेंगे..."

अब हम बिन्दास एक दूसरे का हाथ सहला रहे थे! थोडा आगे जाने पर उसने पहली बार मेरी कमर में हाथ डाल दिया और मुझे अपने करीब पकड के चलने लगा! उसने मेरी कमर को सिर्फ़ पकडा नहीं था बल्कि उसको हल्के हल्के सहलाना भी शुरु कर दिया था! शायद वो मेरा इरादा और रज़ामन्दी नाप रहा था! मैने भी बदले में उसके कंधे पर हाथ रख दिया! उसके कंधे अच्छे गदराये और मस्क्युलर थे! मैने उसकी बाज़ू और एक कंधा सहलाना और दबाना शुरु कर दिया!
"और कोई तो नहीं होता तेरे रूम पे?"
"नहीं यार..." उसका हाथ थोडा नीचे मेरी गाँड के पास सरका! वो बहुत फ़ूँक फ़ूँक के कदम रख रहा था!

उसने चुपचाप मेरे चूतडों की गोलायी को अपनी उँगलियों से तराशा! मुझे उसका हर टच मदहोश कर रहा था! थोडा बीअर का नशा भी था, थोडी मेरी ठरक और थोडी उसकी कशिश का! फ़िर उसने मेरी पीछे की पॉकेट पर हथेली लगायी!
"क्या कर रहा है?" मैने कहा!
"डर मत, पॉकेट नहीं मारूँगा..."
"वैसे भी पर्स में कुछ नहीं है..."
"तुझे सिर्फ़ पॉकेट मारे जाने का डर रहता है क्या?"
"हाँ..."
"उसके अलावा चाहे कुछ मार ली जाये?"
"उसके अलावा है ही क्या?"
"बहुत कुछ..." उसने मेरी एक फ़ाँक को हल्के से दबाया!
"उसकी चिन्ता नहीं है..."
"सही है... तब तो हमारी दोस्ती लम्बी चलेगी..."
"हाँ" कहकर मैने इस बार उसकी कमर में हाथ दे दिया! अब मेरी गली आने लगी थी! हम वहाँ तक पहुँचते पहुँचते काफ़ी ठरक चुके थे!
"ओह शिट यार... आज तो मेरे रूम पर एक गेस्ट आने वाला है..." और तब मुझे याद आया!
"क्या यार... क्या बात करता है... तूने तो कहा था कि..."
"यार बिल्कुल दिमाग से उतर गया यार... मेरे पडौसी..." मैने उसको निशिकांत के बारे में वो सब बताया जो मैं बता सकता था! धर्मेन्द्र का तो जैसे सारा मूड ही चौपट हो गया! फ़िर भी एक उम्मीद थी, शायद निशी अभी वापस ना आया हो!

मूड तो मेरा भी खराब हो गया कि एक नया लौंडा इतनी नज़दीक आने के बाद हाथ से निकल ना जाये! मैने उसकी गाँड और उसने मेरी गाँड अब लगभग दबाना शुरु कर दिया था! हम दोनो ही डेस्परेट हो चुके थे!
"यार के.एल.पी.डी. हो गयी यार..." धर्मेन्द्र ने जैसे अपना इरादा साफ़ कर दिया!
मैने कहा "एक जगह है..."
"कहाँ?"
"सीदियों पर..."
"नहीं यार, वहाँ कोई देख सकता है..." वैसे वो सही कह रहा था!
"फ़िर किसी दिन का रख लेते हैं..."
"अब तो रखना ही पडेगा... आज मुठ मार लूँगा..."
"आ साइड में आजा... मुठ तो मार ही दूँ तेरी..." ये वो अनकही बातें थी जो अब हम एक दूसरे से कह रहे थे!
"ले पकड के देख ले... मगर यहाँ सेफ़ है?" उसने कहा!
"किसको पता चलेगा यार?"
"लोग बडे हरामी होते हैं अँधेरे होने में दो लडकों को देख के समझ जायेंगे..." मैने अब अपना हाथ उसकी गाँड से हटा के आगे उसकी ज़िप पर रखा! अंदर उसका लँड ठनक के हुलाड मार रहा था! मैने उसको कुछ बार दबाया!
"वैसे भी साला इतनी देर से खडा है... चड्‍डी तो भीग ही चुकी है... चल आजा..."

मेरी गली से थोडी दूर एक छोटा सा मैदान था, जहाँ शादी वगैरह के टैंट लगते थे! एक दिन पहले ही किसी की शादी हुई थी जिसकी टेबल्स वगैरह पीछे पडी थी! उनके पीछे बॉउंड्री वॉल थी और उससे पूरी आड हो गयी थी! वहाँ लोग पिशाब भी करते थे मैने उसको वो जगह दिखायी जहाँ उस समय अँधेरा था!
"चल पिशाब करने के बहाने वहाँ चलते हैं... पहले मैं जाता हूँ, पीछे से तू आजा..." मैने धर्मेन्द्र से कहा!
"चल तू जा.."
मैं नर्वसनेस और ठरक से विभोर होकर वहाँ गया! उस जगह से ही पिशाब की बदबू आ रही थी मगर मुझे उस समय सब अच्छा लग रहा था! कुछ ही देर में धर्मेन्द्र आ गया तो मैं उससे लिपट गया मगर वो बोला "आज बस मुठ मार दे, फ़िर किसी दिन सही से लिपट के मज़ा करेंगे..." मैने उसके पैरों के बीच अपना हाथ फ़ँसा दिया और सहलाने लगा मगर उसने टाइम खराब ना करते हुये तुरन्त अपनी ज़िप खोल के अपना मोटा काला नाग खोल दिया तो मैने प्यार से उसको पकड लिया और अपनी मुठ्‍ठी से हल्के हल्के दबाने लगा, हम दोनो सिसकारियाँ भरने लगे!

मैं उसके बगल में उसकी कमर से अपना लँड भिडा के खडा था और एक तरह से उसकी कमर चोद रहा था और साथ में उसके लँड को मसल रहा था!
"उस दिन देखा था ना तूने?"
"हाँ..."
"पसन्द आया मेरा?"
"हाँ बहुत" उसने एक हाथ मेरी कमर में फ़ँसा के मेरी गाँड के छेद और फ़ाँकों को दबाना शुरु कर दिया! उसके हाथ में लँड की ताक़त थी, वो अपनी उँगली कसमसा कसमसा के मेरी दरार में फ़ँसा रहा था! मेरा छेद खुल चुका था, मेरे अंदर चुदने की चपास जग चुकी थी!
"राजा, तेरी गाँड मारूँगा..."
"हाँ राजा मार लेना" उसके बोलने का अन्दाज़ बिल्कुल देसी यू.पी. वाला था!
"तुझे डार्लिंग बना लूँगा..."
"हाँ बना ले ना मुझे डार्लिंग..."
"यही लौडा तेरी गाँड में घपाघप अंदर बाहर दूँगा राजा... पूरा चैन दे दूँगा तेरी गाँड को..." उसका लँड अब पूरे शबाब में आकर दहक रहा था! मेरी हथेली उसकी गर्मी से जलने लगी थी! उसका सुपाडा प्रीकम से भीगा हुआ था! मैं कभी उसको पकड के दबाता कभी उसके आँडूए पकड लेता और फ़िर उसकी मुठ मारता!
"चूसेगा?" उसने अचानक पूछा!
"ठीक है..." मैने कहा और उसके सामने घुटने के बल बैठ कर जब मैने अपने होंठ उसके लौडे पर लगाये और मुह खोल के उसके लौडे को चूसना शुरू किया तो वो घुटने मोड के मेरे मुह में अपना लँड धकेलने लगा और फ़िर कुछ देर बाद उससे ना रहा गया और उसके लँड का गर्म गर्म भयँकर नमकीन माल मेरे मुह में भरता चला गया! जिसको मैं प्रेम से पुचकार पुचकार के पी गया!

"अआह... राजा... अब थोडी ठँड पडी..."
"बस थोडी?"
"हाँ राजा, जिस दिन तेरी गाँड के अंदर माल डालूँगा ना... उस दिन पूरी चपास मिटेगी... स्वाद कैसा लगा?"
"उँहह... बढिया है..."
"चल अगली बार तक यही याद रहेगा... मगर यार, बात अपने तक रखना..."
"हाँ यार..."
"वरना साले इन लौंडों को तू जानता ही है..."
"हाँ यार जानता हूँ..."

हम जब वहाँ से ढाबे की तरफ़ आये तो निशिकांत वहाँ बैठा था!
"देख, वो बैठा है..." मैने उसको बैठा देख के दूर से धर्मेन्द्र को बताया!
"साला चिकना माल है... इसका भी चूस डाल..."
"नहीं यार, इज़्ज़त की बात होती है..."
"हाँ सही बात है, अब सबसे फ़्रैंक थोडी हो जाते हैं..." उसने मुझसे सहमती दिखायी!

वो फ़िर वहाँ से चला गया! मैने और निशी ने खाना खाया! इस बीच मैने फ़िर मौका निकाल के असद से बात कर ली!
"किसी दिन रूम पर आ ना यार..."
"हाँ, आऊँगा... देखते हो ना, दिन भर यहीं रहता हूँ..."
"हाँ मगर चाहे तो थोडा टाइम निकल ले यार..."
"ठीक है देखूँगा..."
"कब तक देखेगा यार?"
"क्या करूँ..." वो उस दिन के बाद फ़िर ऐसे बहाने कर रहा था जैसे हमारे बीच कुछ हुआ ही नहीं और मैं उस पर लाइन मार रहा था! उस दिन खाने के बाद मैने एक दस का नोट निकाल के विशम्भर को दे दिया तो वो खुश हो गया! ये तो चिडिया फ़ँसाने के लिये पहला दाना था! मुझे पता था विशम्भर की गाँड गुलाब जामुन की तरह मुलायम होगी! मैं बस दो दिन तक उसकी गाँड में नाक घुसा कर उसको सूंघना और उसको किस करके चूसना चाहता था!
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05-14-2019, 11:32 AM,
#35
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
क्या यार... अकेले ही पीकर आ गया?" मैने जब निशिकांत को बीअर के बारे में बताया तो वो बोला!
"अच्छा, तू पीता है क्या?"
"हाँ पिलायेगा तो पी लेंगे..."
"मेरे पास व्हिस्की है..."
"वो भी चलेगी..."
वैसे निशिकांत भी रात के बारे में ना कुछ बोल रहा था ना उसके हाव-भाव से कुछ पता चल रहा था! वो मुझे बहुत सुंदर लग रहा था! उसकी आँखों में चंचल सी चमक थी, चेहरा गोरा था! मैं उसको निहारता रहा और रात में एक्स्पीरिएंस किये उसके स्टेमिना को याद करता रहा! उसकी गाँड की गोल फ़ाँकों को अपने हाथों पर महसूस करता रहा! धर्मेन्द्र के साथ हुए काँड के बाद मेरी ठरक जगी हुई थी! मैं उस रात निशिकांत की गाँड मारना चाहता था! मगर मुझे पता नहीं था कि वो मुझे 'अपनी' मारने देगा या नहीं...

रूम पर वापस आकर उसने व्हिस्की पीना शुरु कर दी! मैने बस एक पैग में उसका साथ दिया मगर वो काफ़ी शातिर पियक्‍कड लगा क्योंकि साला काफ़ी पी गया था!
"बेटा देसी हूँ... पूरी बॉटल अकेले गटक जाऊँगा और सीधा खडा रहूँगा..."
"आज क्या पहन के सोयेगा?" मैने पहली बार सैक्स का टॉपिक शुरु किया!
"वही जो कल पहना था..."
"अब तो तुझे नींद आ जायेगी..."
"पहले थोडी थकान मिटाऊँगा... नींद किसे आ रही है... तुझे आ रही है क्या?"
"कैसे मिटायेगा?"
"जैसे कल मिटायी थी... क्यों आज तू डर गया क्या?"
"नहीं, मतलब तूने कुछ कहा नहीं... इसलिये मैने समझा..."
"बेटा हर काम कह के नहीं होता... और हम उनमें से हैं जो कहते नहीं, सिर्फ़ करते हैं... तू तो देख ही चुका है..."
"हाँ..."

उसने मुझे पकडा और सीधा अपने होंठ मेरे होंठ पर चिपका दिये और कसमसा के मेरा मुह चूसने लगा और मेरी छाती सहलाने लगा!
"चल तेरी शिकायत दूर कर देते हैं... लगता है तू इग्नोर्‍ड फ़ील कर रहा है..." वो बोला और हम गुँथ के पलँग पर लेट गये!
"आज सर्दी का पूरा जुगाड हो गया है... शराब के साथ साथ चुदायी की सम्पूर्ण व्यवस्था है और वो भी अकेले कमरे में..."
"हाँ अआहहह... नि..शी..."

हम देखते देखते फ़िर नंगे हो गये और रज़ाई में घुस गये! फ़िर हमने 69 पोजिशन बना ली और अगल बगल लेट कर एक दूसरे का लँड चूसने लगे! उस दिन मैं उसके आँडूओं को चूसने लगा और उसके साथ नीचे उसकी इनर थाईज़ में मुह घुसा कर उसकी गाँड के छेद तक अपनी ज़बान फ़िराने लगा! फ़िर उसने भी मेरी तरह अपनी जाँघें फ़ैला दीं! उसकी गाँड के बाल रेशमी और मुलायम थे, पर हल्के हल्के थे और जाँघें चिकनी! उस दिन हमने लाइट जला रखी थी इसलिये आराम से एक दूसरे का जिस्म देख रहे थे!

उस दिन उसने मुझे चित्त लिटा दिया और फ़िर मेरे घुटनो को मुडवा के मेरी छाती के पास करवा दिया और फ़िर मेरी खुली गाँड के फ़ैले हुये छेद को सहलाया और वहाँ बीच में बैठ कर उसने अपना लँड हाथ मे पकड के मेरे छेद पर दबाना शुरु कर दिया!
"अआहहह...सी...उहहह..." मैने सिसकारी भरी! उसने फ़िर तेल से अपने लँड को भिगा लिया और फ़िर देखते देखते मेरी गाँड के छेद को फ़ैलाते हुये सीधा अपना लँड मेरी गाँड में घुसाते हुये मेरे घुटनो को पकड लिया और फ़िर धक्‍के दे दे कर चोदने लगा!

"लौंडिया बना के चोद रहा हूँ जानेमन..."
"हाँ राजा... चोद दे, कैसे भी चोद दे..."
"हाय मेरी लैला... मेरी छमिया... तेरी गाँड में बहुत मज़ा है डार्लिंग..."
"हाँ... निशी..." वो कुछ देर में सटीक धक्‍के देने लगा और पूरा ठरक गया!
"शराब के बाद चोदने में ज़्यादा मज़ा आता है..."
"हाँ वो तो है..."
"बिल्कुल लग रहा है... स्वर्ग में हूँ... तू बढिया चिकना है..."
"हाँ... मैं भी... स्वर्ग में हूँ यार..."
"कल सैटिस्फ़ाई हुआ था ना?"
"हाँ पूरा..."
"आज भी... तुझे... पूरा सैटिस्फ़ाई कर दूँगा..."
"हाँ निशिकांत... कर दे..."

काफ़ी देर तक चोदने के बाद वो मूतने के लिये चला गया और मैने बिस्तर में लेट कर उसका वेट करने लगा! जब वो आया तो हम फ़िर एक दूसरे से लिपट के अपने लँड भिडा भिडा के एक दूसरे का जिस्म सहलाने लगे! इस बार जब वो अपना लँड चुसवाने के लिये मेरे सामने करवट लेकर लेटा तो मैने कहा!
"थोडा पलट के लेट ना..."
"क्यों?"
"गाँड चाटूँगा..."
"ले चाट ले..." वो जब करवट लेकर पलटा तो उसकी जाँघें सटी हुई थीं जिस से उसकी पतली कमर और गाँड का गोल उभार बहुत बढिया लग रहे थे! मैने हल्के से उसके चूतडों को फ़ैलाया और उसका गुलाबी छेद देखा! पहले सीधा अपनी नाक उस पर रख कर सूंघा! उसकी गाँड की बेहतरीन खुश्बू सूँघ कर मैं मस्त हो गया और मैने अपने होंठ उसकी गाँड पर रख दिये और फ़िर अपनी ज़बान से उसको चाटा और देखते देखते मैं उसकी गाँड के गहरे चुम्बन लेने लगा तो उसकी गाँड खुल गयी!
तब मेरी भी ठरक जग गयी और मैने बेड के नीचे पडी तेल की शीशी उठायी!
"अबे क्या कर रहा है?"
"थोडा सा... बस थोडा सा... ऊपर ऊपर से..."
"नहीं यार..."
"अबे प्लीज... यार प्लीज..."
"ठीक है... मगर... बस ऊपर से..."
"ठीक है..."
वो अब पलट के लेट गया और अपनी टाँगें थोडी सी फ़ैला लीं! उसकी गाँड की चिकनी दरार बडी खूबसूरत थी और उसके बीच उसका सुंदर सा चुन्‍नटदार छेद... मैने कुछ देर उसकी दरार में लँड रगडा तो वो रिलैक्स्ड हुआ! फ़िर मैने उसके छेद पर सुपाडा रगडा, वो शुरु में चिंहुका, मगर फ़िर धीरे धीरे एन्जॉय करने लगा! मुझे उसकी गाँड रिलैक्स्ड लगी! मैने हल्का सा लँड उसकी गाँड पर दबाया तो उसकी गाँड की चुन्‍नटें थोडा खुलीं! उसने हल्की सी सिसकारी भरी!
"तेरा बहुत मोटा है यार... कुछ करना मत..."
"पता नहीं चलेगा यार..."
"नहीं यार बडा मोटा है... हो नहीं पायेगा..."
"होने तो दे... सब हो जाता है..." मैने थोडा दबाव दिया तो उसका छेद फ़ैल गया!
"आई...अआह... नहीं बे... नहीं... नहीं..." मैने कुछ और दबाव दिया! उसकी गाँड शायद मेरे लँड के दबाव से मचल रही थी!
"अच्छा जितना जाता है... जाने दे..."
"नहीं जा पायेगा... बहुत.. मोटा.. है..."
"मोटे का.. भी.. तो.. मज़ा... ले ले..." इस बार मैने दबाया तो उसका छेद और फ़ैला!
"सी...उउ..उहहह..."
"देख.. मज़ा आया... ना..."
"अभी.. आह... कुछ गया... कहाँ.. आह.. है... इसलिये मज़ा...अआहहह... आ रहा... है... अआई..."
मैने और दबाव दिया तो मेरा सुपाडा उसकी गाँड में घुसा और उसने साँस रोक ली!
"उउहहह.."
"बस.. बस... बस..." मैने कहा और धक्‍का दिया तो लँड थोडा और अंदर गया! उसकी गाँड कुछ ऊपर उठी
"उउउहहह..."
"अच्छा.. मज़ा तो ले... जब दर्द होगा... तो बोल देना... मगर.. मज़ा तो.. ले..." मैने कहा और अगले धक्‍के में लँड को और अंदर घुसाया तो उसका छेद चरमराता हुआ महसूस हुआ! मैं एकदम आराम से लँड अंदर घुसा रहा था कि उसको तकलीफ़ ना हो!
"उउहहह... अम्बर प्लीज...."
"बस.. निशी बस..." बातों बातों में लँड पूरा उसकी गाँड में डाल दिया और उसके कंधे पकड के उसके ऊपर लेट गया!
"देखा... कहा था ना... चला जायेगा..."
"हाँ यार..." फ़िर मैने उसकी गाँड में धक्‍के देने शुरु कर दिये!
"क्यों? पहले ले चुका है ना..."
"हाँ..."
"कितने आसामी फ़ँसा रखे हैं?"
"अबे... एक कज़िन के साथ करता हूँ... बस..."
"अच्छा?"
"चल, अब मैं भी तेरा भाई हो गया..."
"हाँ..." उसने कहा!
"वैसे भी दो लडकों के बीच ये रिश्ता सबसे बढिया होता है..."
"हाँ..." मेरा लँड दोपहर से ही उफ़न रहा था इसलिये कुछ देर में ही मैने अपना माल उसकी गाँड की गहराईयों में भर दिया और फ़िर कुछ देर के ब्रेक के बाद अब वो मेरे ऊपर चढ गया!
"ले डार्लिंग... ले ले.. अब मेरा लौडा ले ले..."
"हाँ निशी दे दे... ला घुसा..."
"ले ना जानेमन... तेरी गाँड की माँ चोद दूँगा..."
"हाँ चोद दे... माँ बहन... सब चोद दे..."
"जानेमन मेरी जान... तेरी गाँड बडी रसीली है..." और फ़िर उसका लँड भी मेरी गाँड की गहराई में घुस कर झड गया! हम दोनो तृप्त हो गये थे और नशे के कारण उस रात जल्दी नींद आ गयी!
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05-14-2019, 11:32 AM,
#36
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
5

!अगली सुबह गौरव वापस आ गया! इस बार उससे आराम से बात-चीत हुई! वो भी यू.पी. का सैक्सी सा देसी लौंडा था जो बातों और हुलिये से काफ़ी स्मार्ट और हरामी लगा! मुझे शक़ सा होने लगा कि शायद उसके और निशिकांत के बीच भी कुछ है!

अगले दिन जब कॉलेज में धर्मेन्द्र मिला तो उसने और लडकों की तरह नाटक नहीं किया और हाथ मिलाते ही मेरा हाथ दबाया और बोला! "क्यों डार्लिंग रात में याद आयी?"
"हाँ बहुत" मैने कहा!
"बस अब कभी साथ में रात गुज़ार भी ले जानेमन... तो मज़ा आ जाये..."
"ठीक है" उस साले ने मुझे सुबह सुबह ही ठरका दिया!
"आज आजा... आज वो लडका नहीं है..."
"नहीं यार, आज मेरे मामा आये हुए है... उनके जाते ही..."

उस दिन विनोद नहीं आया था, बस कुणाल था! उस दिन हम जब कैन्टीन में बैठे तो लडकों की बातों से सैंट्रल पार्क के बारे में पता चला और मैने सोचा कि वहाँ भी जाकर देखूँगा! कुणाल भी काफ़ी चुदायी की बातें करता था! मगर मैं उससे और विनोद से सिर्फ़ बदनामी के डर से डरता था! वो मुह फ़ट टाइप के थे!
उस रात का खाना मैने निशिकांत और गौरव के साथ खाया! विशम्भर अब बहुत खुश होकर खाना लगाता था और मैं मस्ती से उसकी कमसिन चिकनाहट निहारता था! जब गौरव इधर उधर हुआ तो निशी बोला!
"यार आज तेरी याद आयेगी..."
"हाँ यार... मुझे भी..." मैने असद को देखा वो काम में लगा था! उस दिन भी मैने विशम्भर को दस रुपये दिये! वो अब मेरा फ़ैन हो गया था! मैने मौका निकाल के कहा "रूम पर आया करो ना... आराम से बैठेंगे..."
"जी, आऊँगा..." उसने कहा और जब मुडा तो उसकी पैंट के ऊपर से उसकी गाँड देखकर मैं मस्त हो गया... उसके गुलाबी रसीले होंठ, मादक मुस्कुराहट और नशीला चेहरा... खैर इसी बहाने मेरी गौरव से भी जान पहचान हो गयी और दोस्ती फ़्रैंकनेस की तरफ़ बढने लगी!

फ़िर राशिद भाई के आने का दिन आने लगा! उनके आने के दो दिन पहले फ़िर लैटर आया कि मैं टैक्सी लेकर जाऊँ क्योंकि शायद उनके पास ज़्यादा सामान है! अब मुझे इसका आइडिआ तो बिल्कुल नहीं था कि वहाँ टैक्सी कहाँ से मिलेगी! टैक्सी की तलाश में विनोद ने मुझे प्रदीप नाम के एक लडके से मिलवाया और उसको देखते ही मैं तो बस देखता ही रह गया! जब वो मिला था वो व्हाइट जीन्स और स्वेटर पहने हुये था और उसका स्लिम ट्रिम जिस्म बडा सैक्सी लग रहा था! वैसे उसका चेहरा भी बडा सुंदर और प्यासा सा था! उससे सैटिंग हो गयी! उसने कहा कि वो जाने वाले दिन शाम के 7 बजे मेरे रूम पर आ जायेगा क्योंकि भैया की ट्रेन रात में पहुँचने वाली थी! जब मैने विनोद से 'थैंक यू' कहा तो वो बोला!
"मेरी कटारी... तू 'थैंक यू' क्यों बोलता है... एक बार अपनी बुँड दे दे..."
"अबे रहने दे यार..." मैने हल्के से शरमाते हुये कहा तो देखा कि प्रदीप भी मुस्कुरा रहा था! प्रदीप ओरिजिनली विनोद के घर के आसपास कहीं रहता था! बडा हरामी सा कमीना लडका था, जो रह रह कर अपना लँड खुजा और सहला रहा था! जब मैने एक दो बार उसकी ज़िप पर नज़र डाली तो देखा वहाँ उसका उभार अच्छा खासा था मगर तब तक मैं उस टाइप के मुह फ़ट लडकों से दूर ही रहता था!

"बोल, रूम पर दारू पिलायेगा क्या? चलूँ?" जब वहाँ से चले तो विनोद बोला! मैं चाहता भी था और नहीं भी!
"साले तू पीकर हरामीपना करेगा..."
"अरे मेरी मक्खन... एक बार हमारे हरामीपने का भी मज़ा ले ले..."
"देख... इसीलिये मना कर रहा हूँ..."
"अच्छा चल, कुछ नहीं करूँगा चल..." मैं धडकते दिल से रास्ते से दारू लेकर उसके साथ अपने रूम पर पहुँच गया! वहाँ वो जब जूते उतार के पलँग पर बैठा तो उसके सॉक्स की बदबू आयी जिस से मैं मस्त सा होने लगा!
"साले, तेरे पैरों से कितनी बदबू आ रही है..."
"बदबू नहीं बेटा... मर्द की खुश्बू है... बहुत से गाँडू तो पैरों पर नाक रगड के इसको सूंघते हैं..." हम अब पी रहे थे!
"क्यों, तुझे कहाँ मिले ऐसे लोग?"
"सालों को फ़ँसाना पडता है... वो तो हमारे जैसे नये लौंडों को ढूँढते रहते हैं..."
"क्यों?"
"सालों को नया नया लँड चाहिये होता है..."
"क्या बात करता है यार? तू उस टाइप का है?"
"उस टाइप का नहीं हूँ... जवान हूँ... थोडा मज़ा कर लेता हूँ..."

उस दिन वो क्रीम कलर की टैरीकॉट की पैंट पहने था और हमेशा की तरह वो इतनी चुस्त थी कि उसकी जाँघें और लँड उसमें समा ही नहीं पा रहे थे! आदत से मजबूर, मैं अक्सर उसकी जाँघों और उसके बीच के पहाड को देख रहा था! उसके आँडूओं के आसपास से ही पैंट में सलवटें पड रहीं थीं और ठीक उसके आँडूओ के नीचे उसकी पैंट की सिलायी बडी खूबसूरत लग रही थी! उसने दूसरा पेग बनाते हुये मुझे बताया!
"बहनचोद, एक दो तो पैसे भी देते हैं... पहले दारू पिला कर गाँड मरवाते हैं फ़िर गाँड मारने के पैसे देते हैं..."
"वाह यार... मुझे नहीं मिला कोई..."
"चलियो मेरे साथ किसी दिन..."
"अबे नहीं..."
"बहनचोद... फ़ट गयी तेरी? वो साले कुणाल की भी फ़टी थी पहली बार..."
"मतलब वो बाद में गया तेरे साथ?"
"अब तो हम साथ जाते हैं... अपना अपना आसामी पकड के वहाँ से निकल लेते हैं..." बातों में उसका लँड खडा हो गया था और अब टाइट पैंट के कारण साफ़ उभरा हुआ दिख रहा था!
"तूने मारी है कभी किसी की गाँड?"
"नहीं यार" ऐसे मामलों में साफ़ मुकर जाता हूँ!
"एक बार मार ले... ऐसा चस्का लगेगा कि डेली ढूँढेगा..." उसको क्या पता था कि मुझे वो चस्का लग चुका था!

थोडी और शराब नीचे उतरी तो वो अपने दोनो पैर मोड कर दीवार से टेक लगाकर बैठ गया! अब मुझे उसकी जाँघ का निचला हिस्सा और गाँड साफ़ दिखने लगी जिस कारण मैं अब वहाँ से नज़र हटाने में मुश्किल महसूस कर रहा था! साला था ही बडा ज़बर्दस्त!
"मुझे आती ही नहीं है यार मारनी..."
"मैं सिखा दूँगा राजा..."
"नहीं यार..."
"मुठ तो मारता है ना?"
"हाँ"
"कितनी बार?"
"एक बार... कभी कभी दो बार..."
"मतलब लौडा खुराक तो ढूँढने लगा है तेरा..."
"हाँ खडा हो जाता है तो बैठता ही नहीं है..."
"मेरा तो अभी भी खडा हो गया..."
"अभी कैसे खडा हो गया?" मैने पूछा!
"बस..."
"मतलब कोई लडकी वडकी भी नहीं है... क्या तू लडकी के बारे में सोच रहा था?"
"लडकी नहीं है तो क्या हुआ... तू तो है..." विनोद बोला!
वैसे तब तक मुझे भी चढ चुकी थी!
"मुझे देख के ही खडा हो गया??? क्या बात करता है यार..."
"तू मुझे हमेशा से बडा चिकना लगता है... बस एक बार तेरी मारने का दिल है..."
"क्या बोलता है यार... मैं कोई लौंडिया थोडी हूँ?"
"अरे यार... लौंडिया में ऐसा क्या है जो तुझ में नहीं है... तू वैसा ही गोरा, नमकीन और चिकना तो है..." मुझे उसकी बातें अच्छी लग रही थीं!
"अबे रहने दे, क्यों बकवास कर रहा है... तूने मना किया था ना कि इस टाइप की बातें नहीं करेगा..." उसकी बातें अच्छी लगने के बावज़ूद भी मैने कहा!
"तू बुरा क्यों मान रहा है... मैं तो तुझे सच्चाई बता रहा हूँ... बस एक बार गाँड दे दे जानेमन... तो मज़ा आ जायेगा... अब चढ भी गयी है, गाँड मारने में बहुत मज़ा आयेगा..."
"पहले कितनों की मार चुका है?"
"काफ़ी एक्स्पीरिएन्स है... सैटिस्फ़ाई करके मारूँगा..."
"अबे गाँड मरवाने में क्या मज़ा आता होगा किसी को?"
"बेटा जब सरक के बुँड के छेद में घुसता है तो ऐसा मज़ा देता है कि पूछ मत..."
"तू क्या पूरा लँड घुसा देता है?"
"पूरा का पूरा... साले, जड तक... एक बार मरवा... दिखा दूँगा..."

कहते हुए उसने मज़बूती से मेरा हाथ पकड लिया तो मैं थोडा और मस्त हो गया!
"एक बार लँड सहला दे ना अपने चिकने हाथ से..."
"अबे...." मैं मना कर पाता, उसके पहले ही उसने मेरा हाथ पकड के अपने लँड पर घुमा दिया! उसका लँड वास्तव में फ़ुँकार मार रहा था!
"देख देख... कैसा लगा... देख..." वो मेरा हाथ अपने लँड पर दबा के कह रहा था!
"अबे कैसा क्या?"
"खोल के थमा दूँ क्या?"
"नहीं यार..."
"अच्छा चल एक चुम्मा दे दे... एक किस अपने गाल पे..." और फ़िर इसके पहले कि मैं फ़िर उसे मना कर पाता, उसने मेरा चेहरा अपनी तरफ़ घुमाया और मेरे सर के पीछे के बालों में हाथ फ़ँसा के अपने होंठ मेरे गालों पर रख दिये!
"उँहु... विनोद... अबे ये क्या... अबे पागल है?" मगर उसने कसमसा के मेरे गालों को अपने हाथ से पकड के अपने होंठों से चूस डाला! उसकी मज़बूत पकड के कारण मैं हिल नहीं पाया और कुछ मैने भी हिलना नहीं चाहा! और फ़िर अभी वो हटता, उसने वैसे ही मुझे थोडा और घुमाया और देखते देखते अपने होंठ मेरे होंठों पर रख के दबा दिये तो उसके होंठों की मज़बूती के कारण मेरे होंठों मेरे दाँत पर दबे! इससे दर्द हुआ और मेरे होंठ हल्का सा खुल गया तो उसने मेरे मुह को अपने मुह से पूरा सील कर के चूसना शुरु कर दिया!
"उंहु... उहहह... उंहु..." उसने करीब दो मिनिट तक लगातार मुझे किस किया!
"अआहहह... मज़ा आया ना बेटा?" मैं अब काफ़ी कमज़ोर पड चुका था!
"आह... आज दिली इच्छा पूरी हो गयी यार... तेरे होंठों का रस बडा शराबी है..."
"अबे तू बडा कमीना है..."
"अच्छा चल अब चलता हूँ..." जब उसने कहा तो अंदर ही अंदर मेरा दिल टूट गया!
"ज़रा मूत लूँ... फ़िर निकलता हूँ..." उसने ऐसा कहते हुये मेरा रिएक्शन देखा क्योंकि अपने डिस-अपॉइंट्मेंट को मैं छुपा नहीं पाया था!

वो जब बाथरूम में मूतने के लिये गया तो उसने दरवाज़ा बन्द नहीं किया और अंदर से आती उसके मूतने की आवाज़ से मैं मस्त हो गया! फ़िर जब वो बाहर आया को मैने देखा कि उसने सिर्फ़ चड्‍डी पहन रखी थी और उसके निचले हिस्से से लँड बाहर खींच के हाथ में लेकर सहला रहा था! उसका लँड देख कर मेरी रही सही ना नुकुर गायब हो गयी! उसका लँड लम्बा और मोटा था और साँवला, उसने अपना सुपाडा खोल रखा था, काफ़ी सुंदर लौडा था!
"अरे यार... ये क्या?"
"तू भी खोल ले ना... तेरी किस ने खडा करवा दिया..."
"अरे यार किसी को पता चलेगा तो हँसेगा..."
"किसी बहन के लौडे को यहाँ अकेले मे हुई बात का कैसे पता चलेगा?" वो मेरे करीब आ गया था! मैं बैठा था, उसका लँड मेरे मुह के पास आ चुका था, मैं ठरक चुका था!
"चुप रह ना... अब देख, बहुत मज़ा आयेगा..." कहकर उसने मुझे पलँग पर धक्‍का दे दिया! मेरे पैर नीचे लटके थे और सर तकिये पर था! उसने मेरी पैंट खोल दी तो मैने बस हल्के से उसका हाथ पकडा!
"मत कर ना..."
"बेटा तुझे मज़ा दूँगा..."
उसने मेरी पैंट नीचे सरका के मेरे लँड पर हाथ रख के मसल दिया!
"तेरा तो काफ़ी बडा दिखता है..." कहते हुये उसने मेरी अँडरवीअर भी नीचे सरकाई तो मेरा लँड हवा में खडा हो गया!
"यार प्लीज..."
उसने मेरे सामने ही अपनी चड्‍डी भी उतार दी तो मैने देखा कि उसने झाँटें शेव की हुयीं थी! नँगा होकर उसका बदन और ज़्यादा मादक लग रहा था! उसकी जाँघें मस्क्युलर और हल्के हल्के बालों वाली थी! उसका रँग ऊपर से साँवला लगता था मगर अंदर से गोरा था! वो फ़िर मेरी तरफ़ आया और मेरे कंधों पर हाथ रख कर मेरे ऊपर झुक गया जिससे उसका लँड मेरे लँड से टकराया! इस बार मेरी साँस उस मस्ती से रुक ही गयी! उसने मेरी कमर के दोनो तरफ़ अपने घुटने मोड लिये और मेरे लँड पर अपनी गाँड रख के अपना वेट अपने हाथों पर डालते हुए बैठ गया और अपनी मज़बूत गाँड की दिलचस्प दरार को हल्के हल्के से मेरे लँड की लम्बाई पर रगडने लगा!
"अआह..." मेरी हल्की सी सिसकारी निकली! उसकी सुडौल जाँघें मेरी कमर को दोनो तरफ़ से अपनी गिरफ़्त में लिये हुई थीं!
"अआह..."
"देखा यार... मज़ा आया ना?" मैने पहली बार अपने दोनो हाथ से उसकी कमर पकड के उसकी रिदम के साथ उसको पकड लिया और फ़िर हाथ पीछे करके उसकी कमर और गाँड का उभार सहलाया!
"कैसी है?"
"क्या चीज़?"
"मेरी गाँड..."
"अच्छी है..."
मेरे समझ में नहीं आया कि वो जब, अभी तक मेरी गाँड मारने की बात कर रहा था तो अब मेरे लँड पर अपनी गाँड क्यों रगडने लगा था! शायद वो मुझे सेड्‍यूस करके कम्फ़र्टेबल करना चाहता था ताकि जब मैं भी मज़ा लेने लगूँ तो उसका काम आसान हो जाये! वो अब हल्के हल्के मेरे लँड पर बैठ कर अपनी फ़ाँकों को भींच कर मेरे लँड को उनके बीच दबाने लगा था! मैने इस बार उसके छेद के पास उँगलियाँ लगायी तो पाया कि वहाँ एक भी बाल नहीं था!
"वहाँ भी शेव कर दिया..."
"क्यों?"
"बस ऐसे ही..."
"कैसे करता है?"
"करवाता हूँ किसी से... तू भी करवायेगा क्या?"
"कर देना..."
"तेरी तो ऐसे ही चिकनी है..."
मेरा सुपाडा अब प्रीकम से भीग चुका था!
"मज़ा आ रहा है ना?"
"हाँ थोडा थोडा..."
"हाँ राजा मज़ा ले..." अब वो ऐसी पोजिशन बना रहा था कि मेरा, प्रीकम से भीगा हुआ, ल्युब्रिकेटेड सुपाडा अक्सर उसके छेद पर फ़ँसने लगा था! वैसे ही एक बार मैने हल्का सा चूतड ऊपर उठा के उसके छेद पर ज़ोर बनाया तो उसने सिसकारी भरी!
"अआहहह... घुसेगा बेटा अंदर भी घुसेगा..." उसने कहा! फ़िर उसने एक बार इधर उधर देखा!
"क्या देख रहा है?" मैने पूछा!
"तेल है तेरे पास?"
"सामने है..." उसने भी ठीक वैसे ही तेल की बॉटल उठायी जैसे निशिकांत ने उठायी थी और मेरे लँड को तेल से भिगा के फ़िर अपनी गाँड को उस पर रगडने लगा!
"गाँड मरवाना चाहता है क्या?"
"तुझे क्या लगता है?"
अब मुझे वो सेफ़ लगने लगा था, अगर वो मुझसे गाँड मरवायेगा तो किसी से ये सब बतायेगा नहीं!
अब जब मेरा सुपाडा उसके छेद पर फ़ँसा तो मैने एक हाथ से अपने लँड को पोजिशन में बना कर रखा! वो भी हल्का सा उठ गया और जब मैने अपनी गाँड ऊपर करके ज़ोर लगाया तो उसने भी अपनी गाँड को ढीला छोड कर मेरे लँड पर अड्जस्ट कर दिया और नीचे की तरफ़ दबाया जिससे मेरा लँड सडसडाता हुआ उसकी गाँड के अंदर घुस गया! उसकी गर्म मज़बूत गाँड ने मेरे लँड को कस के जकड लिया और मुझे मज़ा आ गया! मैने लँड को और अंदर घुसाया और कुछ ही देर में वो मेरा पूरा लँड अपनी गाँड में घुसवा के मज़ा ले ले कर मेरे ऊपर, ऊपर नीचे होने लगा! मैने अब उसकी कमर कस के पकड ली और उसको अपने ऊपर झुका कर फ़िर उसके होंठों पर अपने होंठ रख कर उसके साथ किसिंग शुरु कर दी! उसकी गाँड खुली हुई थी! मेरे एक्स्पीरिएन्स के हिसाब से उसने काफ़ी गाँड मरवायी हुई थी!

"क्यों, काफ़ी मरवा चुका है ना?" मैने पूछा!
"हाँ..." उसने कहा!
"कुणाल से भी मरवायी है क्या?"
"रहने दे यार... नाम क्यों लें किसी का..."
"ऐसे ही पूछ रहा हूँ यार... दोस्ती यारी में..."
"हाँ उससे भी..."
"उसकी मारी भी?"
"हाँ... तुझे मारनी है क्या उसकी?"
"देगा क्या?"
"दे देगा..."
"तो देखूँगा यार... अभी तो अपनी लेने दे..." कहकर मैं उसकी गाँड का मज़ा लेता रहा!
फ़िर मैने उसको सीधा करके लिटाया और उसके घुटने फ़ैला के आगे से उसकी गाँड बजाने लगा! अब मेरे धक्‍कों में ताक़त आ गयी थी!

कुछ देर बाद मैं रुक गया!
"क्या हुआ?"
"थक गया यार... तूने एकदम से शुरु करवा दिया ना..."
"हा हा हा..."
"लँड मुह में लेगा?"
"जा धोकर आ..."
"अपना नहीं चुसवायेगा?"
"आजा चुस ले..." 'अपना' धोने के पहले मैं उसके ऊपर झुका और उसका 'हथौडा' अपने मुह में भर लिया और उसको चूसने लगा!
"साले तू भी एक्स्पर्ट है..."
"अगर एक्स्पर्ट नहीं होता तो तुझे लँड की सवारी कैसे कराता?"
"तू मरवाता है?"
"हाँ..."
"वाह यार मैं समझता था कि तू इस लाइन का नहीं होगा इसीलिये तुझे पटाने में इतना टाइम लगाया..."
"होता है... होता है..." मैने कहा!

उसका लँड मर्दाना, भयन्कर और खुश्बूदार था! उसमें पसीने की खुश्बू और नमक था! उसकी बॉडी ओडर ज़बर्दस्त थी! फ़िर मैं उसकी छाती पर चढने लगा!
"अबे धो तो ले..."
"अबे क्या धोना... तेरी गाँड का ही गू तो है... चल मुह खोल..." मैने कहा और अपना लँड उसके मुह में घुसा के उसका मुह चोदने लगा!
"अब अपनी गाँड दे दे ना..." उसने कहा तो इस बार मैं पलट के लेट गया! उसका लँड मेरे छेद पर एक दो बार टिका और फ़िर सीधा अंदर घुसता चला गया! उसके साइज़ ने मेरा छेद फ़ैला दिया और मेरे मुह से आवाज़ निकल गयी!
"अआहह... ई... धीरे डाल यार..." उसका मज़बूत जिस्म मेरे चिकने बदन को ज़बर्दस्त थपेडे लगा रहा था! मैं उसके वज़न के नीचे दबा हुआ था!

"तेरी गाँड गुलाबी है यार... साली को चोद चोद के लाल कर दूँगा..." उसने कहा और तेज़ धक्‍के लगाता रहा!

अगले ब्रेक के बाद मैने फ़िर उसकी गाँड मारी! इस बार उसको पलट के लिटा दिया और मैं उसके ऊपर चढ गया! उसकी गाँड मस्क्युलर और गोल थी, उसके बीच लँड फ़ँसाने में बडा मज़ा आ रहा था! फ़िर मैं रुक नहीं पाया और मेरा माल झड गया! उसके बाद मेरे कहने पर उसने अपना माल मेरे मुह में झाड के मुझे पिलाया!
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05-14-2019, 11:32 AM,
#37
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
6
उसके बाद जब वो (विनोद) गया तो मैं गौरव के रूम में गया और उन दोनो (गौरव और निशिकांत) के साथ खाना खाने चला गया, जहाँ मैं उन दोनो के साथ साथ विशम्भर और असद को भी निहारता रहा! निशिकांत अब मुझे बडी प्यासी नज़रों से देखता था! हम इतने पास होकर भी चुदायी नहीं कर पा रहे थे! और इसी दूरी के कारण, वो साला भी मुझे और भी हसीन और चिकना लगने लगा था!
उस दिन जब मैने 500 का नोट निकाल के ढाबे वाले को दिया तो उसके पास चेंज नहीं था! मैने उससे कहा कि वो चेंज करवा के किसी लडके से भिजवा दे! वहाँ से लौटने में गौरव और निशिकांत मेरे रूम में ही बैठ गये!

"यार किसी दिन चलो, घूमने चलते हैं..." गौरव ने कहा!
"ठीक है यार, चलो, जब दिल हो चलो..." तो मैने भी कहा!
"हाँ, भाई को थोडा घुमा देते हैं... वरना वापस जाकर कहेगा कि सालों ने गाँड मार दी.. हा हा हा हा..."
गौरव के ये कहने पर मैने निशिकांत को देखा, वो हल्का सा शरमा सा गया था! वैसे गौरव हरामी था और निशी चिकना... मुझे फ़िर शक़ सा हुआ कि कहीं उन दोनो के बीच भी कुछ है तो नहीं!
"नहीं शिक़ायत नहीं करूँगा, मगर चलो कहीं चलेंगे..." निशिकांत बोला!

गौरव भी काफ़ी टाइट पैंट पहनता था और बडा रोचक सा लडका था! मैं तो उसके भी सपने देखने लगा था! उनके जाने के बाद मैं रज़ाई में घुस के लेट गया! फ़िर कुछ ही देर बाद अचानक दरवाज़े पर नॉक हुआ! मेरी समझ नहीं आया कि कौन हो सकता था! मुझे लगा कहीं निशिकांत ही तो नहीं है! दरवाज़ा खोला तो देखा, असद खडा था!
"क्या हुआ?" मैने खुश होते हुये पूछा!
"ये आपके पैसे..."
मैं तो भूल ही गया था कि ढाबे वाले से पैसे रूम पर भेजने को कहा था!
"आओ ना, अंदर तो आओ..." मैने असद का हाथ हल्के से सहलाते हुये उससे पैसे लिये और कहा!
"नहीं जाना है... अभी सफ़ाई करनी है!"
"अरे क्या हुआ? थोडी देर तो रुको... चले जाना..." कहकर मैने उसका हाथ पकड के उसको रूम में खींच लिया!
"तुम तो अब भाव ही नहीं देते हो, आओ तो..."
"अरे भैया, काम बहुत रहता है..." एक ही लडके को दूसरी बार सेड्‍यूस करने का अपना ही मज़ा था!
"थोडा बैठो, चले जाना..." वो पलँग पर बैठ गया तो मैने प्यार से उसक बदन देखा! उसका बदन इस बीच और निखर गया था! जाँघें और सुडौल हो गयी थी और चेहरे पर और लाली और चमक आ गयी थी!
"थोडा आराम करोगे क्या?"
"नहीं भैया जी.." मगर ये कहते हुये भी उसने एक बार अपनी ज़िप पर अपनी उँगलियाँ फ़ेरी! शायद उसका लँड कुलबुला रहा था! वो उनमें से था जो ठरक चढने पर चुदायी कर लेते थे और बाद मैं अवॉइड करते थे और फ़िर ठरक चढती तो फ़िर आ जाते थे! इन सब के बीच उन्हें शायद गे सैक्स का गिल्ट भी होता था!

मैं शॉर्ट्स में था! "ठँड है यार" कहते हुए मैने सामने पडी तेल की बॉटल देखी! फ़िर उसके काँपते हुये होंठ और एंग्क्शस सी चितवन! वो रह रह कर कभी अपने हाथों से अपने बाल सही कर रहा था और कभी अपने होंठ अपने दाँतों से काट रहा था और कभी अपने होंठों पर ज़बान फ़ेर रहा था! मैने उसकी जाँघ पर हाथ रखा!
"आज नहीं..." वो बोला!
"क्यों क्या हुआ?"
"आज मूड नहीं है..."
"अरे मूड तो बन जाता है..." कहते हुये मैने उसकी जाँघ पर हाथ फ़ेरा और ऊपर उसकी ज़िप की तरफ़ ले जाना लगा!
"टाइम भी नहीं है, जाना है..."
"चले जाना... थोडा जल्दी जल्दी कर लेना! तुम तो उस दिन के बाद से गायब ही हो गये..."
"ऐसा... नहीं है..."
मैने उसकी ज़िप पर हाथ रखा तो उसका लँड खडा हो चुका था! उसके लँड की कुलबुलाहट मुझे पसंद आयी! मैने उसके लँड को दबा के सहलाना शुरु कर दिया तो उसका मूड बनते टाइम नहीं लगा!
"भैया यार, आदत पड जायेगी..."
"तो क्या हुआ यार? मज़ा ले ना..." कहकर मैने उसकी ज़िप खोल कर उसका लँड बाहर किया और थाम के सहलाने लगा तो वो टाँगें फ़ैला के रिलैक्स्ड हो गया और जब मैने पसीने की खुश्बू से तर उसका लँड चूसना चालू किया तो वो बिल्कुल आराम से हो गया! थोडी देर चूसने के बाद मैं उसके बगल में लेट गया और उसके लँड को अपनी जाँघों पर रगडने लगा और फ़िर उसके सुपाडे को अपनी शॉर्ट्स के नीचे की तरफ़ से अंदर घुसा कर अपने फ़ाँकों पर उसकी गर्मी का मज़ा लेने लगा तो उसने मेरी कमर में हाथ डाल दिया और सहलाने लगा! वो शायद समझ गया था कि मैं गाँड मरवाने के मूड में हूँ! वो भी धक्‍के लगा लगा कर अपने लँड को मेरे शॉर्ट्स के अंदर सरका रहा था और इसमें जब उसका सुपाडा मेरी दरार में घुस के मेरे छेद के आसपास टकराता तो मज़ा आ जाता था!

मैने कुछ देर में अपनी शॉर्ट्स उतार दी तो वो बिना कुछ कहे मेरे ऊपर चढ गया और अपने लँड को मेरे चूतडों के बीच दबा के रगडने लगा! इससे अब उसका सुपाडा सीधा मेरे छेद से दब के टकरा रहा था और बहुत मज़ा दे रहा था! इस कारण मैं अपनी गाँड कभी ऊपर उठाता कभी बीच मे उसके लँड को फ़ाँकों के बीच दबा लेता और कभी अपनी जाँघें फ़ैला लेता! मुझे अपने छेद पर उसका प्रीकम भी महसूस होने लगा था! उसने मेरी गाँड गीली कर दी थी जिस वजह से उसका लँड आराम से फ़िसलने लगा था! प्रीकम के सहारे ही उसने अपना लँड मेरी गाँड में घुसाने की कोशिश की! उसका सुपाडा एक दो बार हल्का सा मेरे छेद में फ़ँसा, एक बार थोडा घुसा भी! फ़िर उसने कस के मेरे कंधे पकड के सिसकारी भरी और उसको और अंदर घुसाने की कोशिश की! लँड में जान तो थी मगर लौंडे को शायद एक्स्पीरिएंस नहीं था!
"रुक, तेल लगा ले..."
"लाओ, तेल कहाँ है?" मैने तेल उठा के बडे प्यार से उसके लँड की मालिश की तो उसने मेरे कंधे पर हाथ रखकर कहा!
"अब सही से घुस जायेगा..."
"हाँ बेटा, अब सटासट जायेगा... आजा..." कहकर मैं पलट के लेटा तो वो फ़िर मेरे ऊपर आकर सीधा अपने लँड को मेरे छेद पर दबाने लगा! मैने एक दो धक्‍के के बाद छेद को रिलैक्स्ड कर के ढीला किया और जब उसने साँस रोक के निशाना साध कर ज़ोर लगाया तो मेरी गाँड का सुराख फ़ैलता गया और उसका लँड सीधा अंदर की गहरायी में घुसता चला गया! उस पर वो मस्त हो गया!

"हाँ... अब घुसा अंदर... सीधा अंदर है... पूरा घुस गया..." उसने कहा और मस्ती से अपने गाँड को उठा उठा के मेरी गाँड में अपने लँड के धक्‍के देने लगा! कुछ देर में उसका लँड पूरा का पूरा मेरी गाँड में घुस गया और मैने भींच भींच के उसकी मस्ती बढाना शुरु कर दी! मैं गाँड उठा उठा के उसका लँड अपने अंदर लेने लगा! उसका लँड मेरे छेद पर जो फ़्रिक्शन पैदा कर रहा था उससे मुझे बहुत मज़ा आ रहा था! उसके धक्‍कों में नयी जवानी के जोश की जान थी! उसका हर धक्‍का, उसके लँड को काफ़ी ताक़त से मेरी गाँड की गहराईयों में धकेल रहा था! मुझे अपने छेद की रिम पर उसके लँड की सरसराहट का अहसास अच्छा लग रहा था! शाम में विनोद के लँड ने मेरी गाँड खोली थी और अब ये जोशिला नौजवान मेरे ऊपर चढा हुआ था! मेरी गाँड के मस्ती की दिन थे! बडा मज़ा आ रहा था!

फ़िर जब उसकी पकड मज़बूत, धक्‍के तेज़ और साँसें उखडने लगीं तो मैं समझ गया कि लौंडे का माल झडने वाला है! इसलिये मैने उसका मज़ा बढाने के लिये अपनी गाँड खूब उठा उठा के भींचनी शुरु कर दी! उसका लँड अब सटासट अंदर बाहर हो रहा था! फ़िर उसने दो तीन गहरे धक्‍के दिये और दूसरे धक्‍के के बीच में ही उसका लँड मेरी गाँड में फ़ूला और साथ में उसकी सिसकारी निकली!
"हाश... उउउहहह... साला... आहहह..." माल झडते समय वो बडी तेज़ धक्‍के दे रहा था! उसका लँड कई बार मेरी गाँड में फ़ूला और हुल्लाड मारने लगा!
"बहन... चोद... झड गया... साला..आह.. मज़ा.. आ.. आ.. गया यार...." उसने कहा और जब उसका लँड उछलना बंद हो गया तो वो मेरे ऊपर पस्त होकर गिर गया! उसका लँड अभी भी मेरी गाँड में ही था और कभी कभी वो भिंचता तो लँड हिचकोले खा जाता! मैने भी छेद भींच कर उसके लँड को अपनी गाँड से थाम रखा था! कुछ देर बाद वो हिला! पहले उसका आगे का बदन ऊपर उठा और फ़िर उसने धीरे धीरे अपना लँड बाहर खींचा! फ़िर उसका सुपाडा 'छपाक' की आवाज़ के साथ बाहर आ गया!
"कोई कपडा दो..." उसने कहा तो मैने पास पडी मेरी बनियान उठा के दे दी! उसने उससे अपना लँड पोछा और फ़िर मैने उसी से अपनी गाँड पोछ ली! उसका माल हल्का हल्का मेरी गाँड से रिस रहा था! मैने सही से गाँड में उँगली करके उसका माल गाँड से साफ़ किया!
"इसमें ज़्यादा मज़ा आया!" इस बीच वो बोला!
"अच्छा चुसवाने से ज़्यादा चोदने में आया मज़ा तुझे?"
"हाँ"
"तो आ जाया कर ना... मैं तो बुलाता ही रहता हूँ..."
"हाँ आ जाऊँगा..." फ़िर जब वो चला गया तो मैं फ़ाइनली उस दिन बडा खुश खुश सो गया!
जब मैं टैक्सी लेकर राशिद भैया को लेने जा रहा था तो मुझे काफ़ी देर तक आराम से प्रदीप को देखने का टाइम मिल गया! उसने भी मुझे कई बार अपना जिस्म और चेहरा निहारते हुए देख लिया! साला जब एक पैर ब्रेक पर और एक अक्सेलरेटर पे रख के गाडी चला रहा था तो मैं सिर्फ़ उसकी ज़िप और थाईज़ का मूवमेंट देख कर चकरा रहा था! टाइट पैंट में उसका वो एरीआ बडा सुंदर लग रहा था! उसके हाथ स्टीअरिंग पर ऐसे घूम रहे थे जैसे किसी चिकने से कमसिन लौंडे के जिस्म पर!
उस दिन शाम से ही कोहरा हो गया था!
"बहनचोद कोहरे में मा चुद जाती है..." प्रदीप बोला!
"हाँ मुश्किल तो हो जाती है..."
"साला इतना कोहरा है कि ऊपर चढूँ तो चूत का छेद ना दिखायी दे..." मुझे उसकी अब्यूसिव बातें मदहोश करने लगीं थी! उसने एक हाथ में कडा पहन रखा था और एक हाथ में पूजा के धागे थे! गले में लॉकेट था और ऊपर एक मरून जैकेट! लडका गोरा था और स्लिम भी! शायद लम्बाई के कारण उसके मसल्स छुप गये थे क्योंकि उसकी कलायी चौडी थी और कंधे भी काफ़ी चौडे थे!

फ़ाइनली हम स्टेशन पहुँचे तो वहाँ सर्दी के मारे सन्‍नाटा था! कुछ लोग इधर उधर आग जलाये बैठे थे! उसने पार्किंग में गाडी खडी कर दी! 9 बजे थे!
"ट्रेन का टाइम देख कर बताता हूँ कहीं साली लेट ना हो..." मैने कहा!
मगर जब पता किया तो पता चला कि सारी ट्रेन्स कोहरे के कारण लेट हैं और भैया की ट्रेन तो 11 बजे आयेगी!
"लो गाँड मर गयी ना... अब बोलो वापस चलें या यहीं बैठोगे?" जब मैने वापस आकर प्रदीप को बताया तो वो बोला! मुझे वहाँ बैठने में फ़ायदा लगा!

पहले तो कुछ देर मैं पीछे और प्रदीप आगे बैठा! उसने गाने लगा दिये थे! मगर उसके बाद वो भी पीछे आ गया!
"पीछे आराम से बैठता हूँ..." पीछे बैठने में उसने अपने घुटने मोड के सामने के सीट पर टिका लिये! इससे उसकी गाँड थोडा आगे हो गयी और जाँघें टाइट हो गयी और मैं उनको देखता रहा! उसने अपना एक हाथ बगल में रखा जिसपे कई बार मेरा हाथ पडा!
"मौसम बढिया है... क्यों है ना?" फ़िर वो बोला!
"हाँ बढिया है यार..."
"मज़ा लेने वाला मौसम है..."
"कैसा मज़ा?"
"यारों दोस्तों के साथ..."
"हाँ वो तो है..."
"साला क्वॉर्टर लिया था, वो भी स्टैण्ड पर रखा है... सोचा था फ़ौरन लौट जाऊँगा..."
"ये तो बुरा हुआ... अब तो मिलेगा भी नहीं..."
"साली इतनी सर्दी है, रज़ाई भी एक घंटे में गर्म होती है... ऐसे में शादीशुदा बन्दों की मस्ती है..."
"हाँ यार, रज़ाई में चूत का हीटर रहता है ना..." मैने कहा!
"हाँ बस चूत खोलो और गर्मी ले लो..." उसकी बातें बढिया थीं!
"यहाँ हम छडे साले मुठ मारते रह जाते हैं..."
"हा हा... हाँ, मुठ मार कर ही काम चलता है..."
इस बार जब मेरा हाथ उसके हाथ से टच हुआ तो मैने अपनी उँगलियाँ वहीं रहने दीं! इन्फ़ैक्ट अब मैने भी वैसे ही आगे घुटने मोड कर पैर रख लिये थे और हमारी जाँघें भी आपस में कई बार टकरा जा रहीं थी! उसका जिस्म गर्म था और काफ़ी गदराया हुआ लग रहा था! उसकी आँखों में कशिश थी उसने मेरे हाथ के पास से अपने हाथ को हटाने की कोई कोशिश नहीं की! इन्फ़ैक्ट अब वो मेरा हाथ पकड पकड के बातें करने लगा!
"साला जब रात में घूँट्‍टा गर्म होता है ना, तो दिल करता है किसी चूत को ऊपर बिठा के उछाल उछाल के, साली की चोदूँ..." उसने कहा और मेरी जाँघ पर हाथ रख कर कस के दबाया!
"क्यों यार, क्या बोलता है?" उसने पूछा!
"हाँ दिल तो करता है, मगर मिलती कहाँ है?"
"यही तो अफ़सोस है... साली चूत नहीं मिलती... तेरा गुज़ारा कैसे चलता है?" अब हम आराम से चुदायी की बातें कर रहे थे! उसने, जो हाथ मेरी जाँघ पर रखा था, अब तक नहीं हटाया था! मुझे उसकी हथेली की गर्मी मिल रही थी! शायद साला ठरक रहा था मगर अभी तक मेरी कुछ करने की हिम्मत नहीं पडी थी!
11 बजे फ़िर पता चला कि गाडी और एक घंटे बाद आयेगी!

"यार एक नींद मार लेता हूँ..." प्रदीप ने उसी पोजिशन में बैठे बैठे अपनी आँखें बन्द कर लीं! "जब जाना हो तो उठा देना..." उसने मुझसे कहा!
वो कुछ देर वैसे ही बैठा रहा! उसका हाथ मेरे घुटने पर था और कुछ देर में उसने मेरे कंधे पर सर रख लिया तो मेरा लँड तुरन्त खडा हो गया और मज़ा भी आने लगा! मैने एक हाथ पीछे फ़ैला दिया और कार की सीट पर रख दिया और वो वैसे ही बैठ कर सोता रहा! कुछ देर में नींद में उसका हाथ मेरे घुटने से सरक के मेरी जाँघ पर आ गया और वो मेरे ऊपर थोडा और झुक के लेट गया! उसका एक हाथ अपनी टाँगों के बीच था! सर्दी और अँधेरा बहुत था! मुझे बस उसके बदन और उसके साँसों की गर्मी अच्छी लग रही थी! मैने अपना फ़ैला हुआ हाथ उअके कंधे पर रख दिया! वो थोडा और नीचे हो गया और ऑल्मोस्ट मेरी छाती के पास अपना मुह रख कर लेटा रहा! मैं उसका इरादा भाँप नहीं पा रहा था!
एक घंटे के बाद फ़िर पता चला कि गाडी डेढ घंटा और लेट हो गयी!

इस बार उसने कहा कि वो पैर फ़ैला के लेटना चाहता है! मगर जब मैने अपने आगे बैठने का आइडिआ दिया तो उसने मना कर दिया!
"ऐसे ही बैठ जा ना, तेरे ऊपर सर रख के लेट जाता हूँ!" अब वो मेरी गोद में सर रख कर लेट गया और अपने पैर मोड के सीट पर रख लिये! मैने इस बार हिम्मत कर के एक हाथ उसकी कमर पर रख दिया वो कुछ नहीं बोला! उसकी साँसें मेरी जाँघ से टकरा रहीं थी! मेरा लँड अब हुल्लाड भर रहा था और जब वो अड्जस्ट हुआ तो उसका गाल सीधा मेरे लँड पर आ गया! मुझे लगा कि वो लँड को खडा पाकर शायद अपना मुह हटा ले! मगर जब वो मेरे लँड को तकिया बना के लेटा रहा तो मैने अपने हाथ से उसकी कमर सहलाना शुरु कर दी! मुझे तो मज़ा आना शुरु हो चुका था! फ़िर उसने करवट ली और अपना मुह मेरी टाँगों के बीच घुसा के लेट गया! अब उसका मुह मेरे लँड पर था! अब मेरा लँड बिन्दास उछलने लगा था! उसकी साँसों ने 'उसको' गर्म कर दिया था! मैने एक दो बार कमर से होते हुये उसकी गाँड की गदरायी गोल और मुलायम फ़ाँक को भी सहलाया! माहौल पूरा रोमेंटिक था, मगर फ़िर भी मुझे ये पता नहीं था कि वो सच में सोया था या नाटक कर रहा था! मगर जितना हो सकता था, मैं मज़ा लेता रहा!

फ़िर गाडी आने का टाइम हुआ तो मैने उसको उठाया और जब एन्क्वाइअरी पर गया तो पता चला कि एक घंटा और लगेगा! डेढ तो बज ही चुके थे! इस बार प्रदीप ने कहा कि मैं थोडा आराम कर लूँ!
"लेट जा यार, तू भी लेट जा... आजा सर रख ले..." उसकी आवाज़ कामतुर हो चुकी थी! वो मुझे सैक्सी सी नज़रों से देख रहा था! इस बार वो बैठ गया और जब मैने उसकी जाँघों पर सर रखा तो उसकी देसी जवानी की गर्मी और मुलायम मसल्स के स्पर्श से मैं मस्त हो गया! मैं कुछ देर बाद सोने का नाटक करता हुआ उसकी ज़िप की तरफ़ करवट लेकर लेट गया और ऐसा करते ही मुझे भी गालों पर उसके खडे लँड का स्पर्श मिला! उसका लँड बिल्कुल हुल्लाड मार कर शायद बाहर निकलने को तैयार था! साला पत्थर सा सख्त था! मैने उसका खूब मज़ा लिया! प्रदीप टाँगों के बीच दहक रहा था! किसी तंदूर की तरह गर्म था वहाँ! मैने अपने होंठों पर उसके लँड को मचलते हुये महसूस किया तो मैं ठरक गया! उसने अपना एक हाथ मेरे सर पर रख दिया!

अब वो हरकत में आने लगा था! उसका लँड ठनक के मस्त हो चुका था! मेरे कुछ देर लेटने के बाद उसने अपनी एक टाँग आगे सीट पर टिका ली मगर मैं फ़िर भी उसकी फ़ैली जाँघों के बीच मुह उसके लँड पर घुसा कर लेटा रहा! उसने एक बार वैसे ही अपने आँडूए अड्जस्ट किये फ़िर मेरी बाज़ू सहलायी और एक हाथ की उँगलियों से मेरे गालों को सहलाया! उसका लँड अब उफ़न रहा था!
"रुक, थोडा पैंट सरका दूँ..." फ़ाइनली वो अचानक बोला! मतलब उसको मालूम था कि मैं जगा हुआ हूँ! मैं हल्का सा ऊपर उठा तो उसने अपनी पैंट के बटन और ज़िप को खोल के अपनी चड्‍डी समेत उसको अपनी जाँघ पर सरका दिया! मुझे उसके मर्दाने लँड की खुश्बू सूंघने को मिली और मैं मदहोश हो गया!
"अब ठीक रहेगा, अब लेट जा..."
मैने अपने गालों को उसके लँड के बगल रखा और उनसे ही उसके लँड को सहलाते हुये मज़ा लेने लगा! उसका लँड लाल लोहे की तरह खडा और गर्म था! उसका सुपाडा तो भीग चुका था, उसका कुछ वीर्य मेरे गाल पर लग गया! मैने उसकी झाँटों में मुह घुसा के तेज़ तेज़ साँसें लेना शुरु कर दिया! उसने मेरा सर पकड लिया और अपनी जाँघें फ़ैला दीं! मैने एक हाथ की हथेली उसकी जाँघों के बीच उसके आँडूओं के नीचे घुसा के उसके आँडूये पकड के सहलाना शुरु कर दिये और उसकी गाँड और वहाँ के बालों को भी सहलाने लगा! उसकी खुश्बू बढिया थी! फ़िर मैने उसके सुपाडे को अपने होंठों से सहलाया तो उसने सिसकारी भरी!
"आह... शाबाश... आह..." मैने उसके लँड के छेद को ज़बान से सहलाया! उसका सुपाडा फ़ूला हुआ था! मैने उसके सुपाडे के निचले हिस्से को चाटा! वो उसके प्रीकम से नमकीन हो चुका था!

"पूरा मुह खोल ले ना..." उसने कहा तो मैने अपना मुह खोला और फ़िर उसका लँड पूरा अपने मुह में भर लिया! उसका सुपाडा मेरे मुह में टकरा टकरा के घुसने लगा! उसके लँड की गर्मी से मेरा मुह भी गर्म हो गया और होंठ उसके फ़्रिक्शन से फ़टने लगे! मैं उसका लँड चूसने लगा तो वो गाँड उचका उचका के मुझे अपना लँड चुसवाने लगा! साले में बडी जान थी! देसी गदरायी और कसावदार जान!

फ़ाइनली गाडी के आने के दो मिनिट पहले उसने अपने वीर्य की पहली धार मेरे मुह में मार दी!
"वाह... इन्तज़ार का फल मिल गया... क्यों मज़ा आया ना तुझे भी?"
"हाँ बहुत..."
"सर्दी में यही सब हो जाये तो बढिया रहता है... क्यों?"
"हाँ..." मुझे अभी भी उसके वीर्य का टेस्ट मिल रहा था! इस बार फ़ाइनली पता चला कि दस मिनिट बाद गाडी आ जायेगी!
मैं अपने होंठों से प्रदीप के गर्म नमकीन वीर्य का स्वाद चखता हुआ प्लेटफ़ॉर्म की तरफ़ बढ गया!
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05-14-2019, 11:32 AM,
#38
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
मस्त कर गया पार्ट --07

राशिद भैया का ख्याल आने पर मैं अपनी कमसिन जवानी के दिनों की एक बात नहीं भूल पाता था! वैसे अब वो बात पुरानी हो चुकी थी मगर मुझे अभी भी उनकी बीसवीं बर्थ-डे भली भांति याद थी! मानों बस अभी कल ही की बात हो! मैं तब स्कूल की कच्ची कमसिन कली की तरह चिकना और मासूम हुआ करता था! राशिद की बर्थ-डे हमेशा धूम-धाम से मनायी जाती थी! उस बार भी वही हुआ था! उनके घर के सामने टैंट हाउस की कुर्सियाँ वगैरह पडीं थीं और छत पर शामियाना लगा था जिसमें मैं और लडकों के साथ खेल रहा था! हालाँकि तब तक मेरी सील नहीं टूटी थी मगर मैं दो-तीन लँड चूस चुका था और तीन चार लडकों से ऊपर ऊपर अपनी गाँड की दरार में लँड रगडवा चुका था! उनमें से एक लडका तो राशिद भैया का कजिन सनी भी था!

उस दिन राशिद भैया के फ़ादर ने मुझे सिगरेट लाने के लिये पैसे दिये! मैं अक्सर उनके लिये सिगरेट लाया करता था! उस दिन भी मैं एक लडके के साथ बाज़ार से सिगरेट लाने चला गया मगर जब लौटा तो राशिद भैया के फ़ादर यानी हुमेर चाचा नहीं दिखे! मैने उनको इधर उधर ढूँढा और फ़िर सिगरेट पॉकेट में रखकर खेलने लगा! कुछ देर बाद राशिद भैया वहाँ आये!
"क्यों, तुम पापा की सिगरेट लाने गये थे क्या?" उन्होने पूछा!
"जी भैया" तो मैने कहा!
"जाओ वो ऊपर कमरे में हैं, उनको दे दो, वो तुम्हारा वेट कर रहे हैं..."
ऊपर वाले कमरे का मतलब उनकी तीसरी मन्ज़िल पर बना एक छोटा सा कमरा था, जहाँ हुमेर चाचा अक्सर बैठा करते थे और सामने की छत पर पडे गमलों में पानी डाला करते थे! उस दिन राशिद भैया नयी नयी टाइट सी पैंट पहने थे जिसमें उनका जिस्म बडा खूबसूरत लग रहा था!

मैं और लडकों के साथ खेल रहा था इसलिये बडा मन मार के ऊपर की तरफ़ गया! दोपहर का समय था, ऊपर कमरे में कूलर चल रहा था, लाइट ऑफ़ थी! मैं सिर्फ़ एक छोटी सी निक्‍कर और टी-शर्ट पहने था, जो तब शायद मेरे कमसिन बदन और चिकनी गोल गाँड पर टाइट हुआ करती थी! जब मैने दरवाज़ा खोला तो कुछ नहीं दिखा! कुछ देर में जब आँखें अँधेरे में अड्जस्ट हुयीं तो देखा कि हुमेर चाचा सिर्फ़ एक लुँगी पहने चारपायी पर लेटे थे! उनके पैर मेरी तरफ़ थे और सर दूसरी तरफ़! उनकी जाँघें फ़ैली हुई थी! उनका जिस्म भी राशिद की तरह मज़बूत और गोरा था, उस समय उनकी उम्र कोई 42-45 के करीब रही होगी क्योंकि उनके घर में शादियाँ जल्दी हो जाती थी!

मैने अँधेरे में और आँखें गडा के देखा! हुमेर चाचा की लुँगी उनकी जाँघों तक उठी हुई थी, एक तरफ़ उनकी जाँघ के बीच तक और दूसरी टाँग पर उनकी जाँघ के ऊपरी हिस्से तक! मेरी साँसें और दिल की धडकनें तेज़ चलने लगीं! एक मन हुआ की उल्टे पैर वहाँ से वापस आ जाऊँ, मगर फ़िर भी अँधेरे में देखता रहा और जब मेरी आँखें अँधेरे की पूरी "यूज़्ड-टू" हुयीं तो फ़टी की फ़टी रह गयी क्योंकि मैने देखा कि हुमेर चाचा का एक हाथ तो उनकी आँखों के ऊपर मुडा हुआ था, मगर दूसरी अपनी नँगी जाँघ पर ऊपर की तरफ़ था और वो ना सिर्फ़ अपने आँडूए को हल्के हल्के सहला रहे थे बल्कि उनका लँड भी पूरा खडा हुआ हवा में लहरा रहा था! उन्होने लुँगी के नीचे कुछ नहीं पहन रखा था और उतनी सी रोशनी में भी मैं उनके मज़बूत भयावान लँड के साइज़ को साफ़ देख सकता था! मैने तब तक किसी मर्द का उतना बडा मज़बूत और पूरा खडा हुआ लँड नहीं देखा था! मैं उनके हथौडे जैसे भयन्कर लँड को देख के एकदम से पैनिक हो गया और जैसे ही वहाँ से मुडना चाहा हुमेर चाचा ने मुस्कुराते हुये अपनी आँखों से हाथ हटाया और कहा!
"अरे, अम्बर सिगरेट ले आये क्या? लाओ... मैं कब से इन्तज़ार कर रहा था... लाओ सिगरेट दे दो..."

मैने उनका वो रूप पहली बार देखा था इसलिये शरमा के हकला गया!
"जी हुमेर... चाचा... जी ले आया... लीजिये..." कहकर मैं जब उनके पास पैकेट लेकर गया तो भी ना जाने क्यों उनके मज़बूत लँड पर से, जिसको छुपाने की उन्होने कोई कोशिश नहीं की थी, नज़र नहीं हटा पा रहा था! जैसे जैसे मैं उनके पास जाता गया उनके लँड का असली भयन्कर साइज़ मेरे सामने आता गया! उस दौर में भी और ना जाने कितनी चुदायी के बाद भी उनके लँड में भरपूर फ़्रेशनेस और सख्ती थी! मैने काँपते हुये हाथों से सिगरेट का पैकेट उनकी तरफ़ बढाया तो उन्होने पैकेट के बजाये मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया और उनकी मर्दानी उँगलियाँ मेरे चिकने और मुलायम और काँपते हुये हाथ को सहलाने लगीं!
मेरा हलक सूखा जा रहा था और मैं बार बार अपना थूक निगल रहा था!

"डर गये क्या?" उन्होने पूछा तो मैने फ़िर थूक निगला!
"...नहीं... जी.. जी.. हाँ..."
"अरे डरो नहीं, इसमें डरने की क्या बात है?" कहकर उन्होने लेटे लेटे ही मुझे अपने करीब खींचा और अपने हाथ को मेरी कमर में डाल दिया!
"लो ज़रा पकड के तो देखो..." अब तो मैं बिल्कुल डर के हकला गया और मेरा गला कांटे की तरह सूख गया "जी... चाचा.. जी.. मतलब नहीं... मुझे खेलना है.. जी नहीं... जाना है..."
"अरे खेल लेना... ये भी तो खेल है... देखो बिल्कुल बैट की तरह है... लो, मैं किसी से पकडवाता नहीं हूँ, तुम बहुत अच्छे हो इसलिये तुमको पकडवा रहा हूँ... लो पकड के तो देखो... आओ, डरो नहीं..."
वैसे इतनी सब बात हो जाने के बाद मेरे बदन में भी आग सी लगने लगी थी! मेरे अंदर गे सैक्स का कीडा कुलबुलाने लगा था! तब तक मैने बस मोहल्ले के लडकों, नौकर और कजिन्स के साथ ही किया था मगर यहाँ इतने बडे मर्द के सामने मैं घबरा गया था!

उन्होने खुद ही मेरा काँपता हुआ हाथ पकडा और बडे प्यार से उसको अपने लँड पर रखा तो मैं उनके लँड की सख्ती और गर्मी से दँग रह गया...
"अआह शाबाश..." उन्होने सिसकारी भरते हुये कहा!
"हाँ ज़रा उँगलियों से पकड लो... डरो मत, पकड लो ना... डरते नहीं है..." कहकर उन्होने ना सिर्फ़ मुझे अपना लँड पकडा दिया बल्कि मेरी कमर को रगड के सहलाने लगे और बीच बीच में अब उनका हाथ सीधा मेरी गोल गाँड की चिकनी गाँड की फ़ाँकों पर जाने लगा!

"बढिया है... शाबाश, ऐसे ही पकड के ज़रा सहलाओ ना..." हुमेर चाचा का लँड अब मेरी हथेली की गिरफ़्त में मेरी मुलायम उँगलियों के स्पर्श से उछल उछल के हुल्लाड मार रहा था! मुझे उनका लँड किसी बन्दूक की गर्म नाल की तरह लग रहा था! मैने पहली बार थोडा सहम के और थोडा शरमा के उनके लँड को पकड के हल्के से सहलाते हुये रगडा तो उनकी सिसकारी निकल गयी!
"सी... अआहहह... बेटा अआह... वाह... शाबाश... वाह..." कहते हुये उन्होने अपनी लुँगी पूरी ऊपर उठा के अपनी जाँघें काफ़ी फ़ैला दीं!

उनका नँगा बदन, उसकी उभरती बल खाती मसल्स और जिस्म के कटाव अब मुझे साफ़ दिख रहे थे! उनकी जाँघें भी गदरायी हुई माँसल थी और उनके बीच उनके बडे बडे काले आँडूए थे! उन्होने एक झटके से मेरी निक्‍कर को कमर से सरका के मेरे घुटनों के नीचे कर दिया! मैं इम्पल्ज़ पर उसको पकडने के लिये झुका मगर तब तक देर हो चुकी थी! उनका हाथ मेरी झुकी हुई नँगी गाँड की मदमस्त फ़ाँकों पर आ चुका था और वो मेरी गाँड मसलने लगे थे! मैने अपने एक हाथ से उनके हाथ को पकड के हटाना चाहा मगर उन्होने जवाब में मुझे ही अपने ऊपर गिरा लिया और बिस्तर में खींच के मुझे अपने आप से लिपटा लिया! इस लिपटा लिपटी में मेरी जाँघें उनकी जाँघों के बीच घुस गयी और उन्होने मुझे वहाँ दबा के दबोच लिया और फ़िर अपने एक हाथ से मेरी गाँड को दबा के रगडना जारी रखा!

उनकी उँगलियाँ मेरे छेद के पास और मेरी चिकनी दरार के दर्मियाँ बडे ही एक्स्पर्ट तरीके से घूम रही थीं जिससे मेरा गाँडू सुराख और मेरा गे जिस्म कुछ ही देर की रगड में उनकी रगड से रेस्पॉंड करने लगा! उनके ऊपर खींचने के दर्मियाँ मेरी निक्‍कर मेरे बदन से पूरी तरह अलग हो चुकी थी! अब मेरी शरम थोडी कम हुई मगर बिल्कुल खत्म नहीं हुई थी जिस कारण मैं डायरेक्टली उनकी आँखों में नहीं देख पा रहा था! उन्होने अचानक मुझे अपने तरफ़ खींचा, जिससे मेरा मुह सीधा उनके मुह से चिपक गया और उन्होने तुरन्त मेरे होंठ चूसना शुरु कर दिये! ये मेरी पहली किस थी! उसके पहले मैने गालों में दाँत कटवाये थे!

उन्होने मेरी पीठ पर हाथ रख कर मुझे अपने करीब जकड लिया था! और फ़िर दूसरे हाथ से मेरे पैर फ़ैला के अपने बदन के दोनो तरफ़ करवा दिये! अब मैं अपनी गाँड पूरी फ़ैलाये उनके जिस्म की सवारी कर रहा था! मुझे तब तक ये तो पता था कि गाँड मरवाने में बहुत दर्द होता है क्योंकि एक दो बार जब लडको ने अपना लँड मेरी गाँड के सुराख में घुसाना चाहा था तो मैं दर्द से चिहुँक गया था और उन्होने वैसा नहीं किया था! मगर यहाँ तो मैं किसी खरगोश की तरह एक चीते की गिरफ़्त में था, जो शायद मेरे साथ हर वो काम करने वाला था जो वो करना चाहता था!

ये हुमेर चाचा का वो रूप था जो मैने पहले कभी नहीं देखा था! पर सच्चाई तो ये थी कि लौंडेय्बाज़ हुमेर चाचा बहुत दिन से मेरी ताक में थे और सही मौका ढूँढ रहे थे! उसके पहले भी बिना समझे हुये मैं उनके चँगुल से कई बार बच चुका था मगर उस दिन मैं उनके बिछाये जाल में फ़ँस ही गया! उनके हाथ अब मेरी पहले से फ़ैली हुई गाँड को और ज़्यादा फ़ैला के मेरे छेद पर आ रहे थे! उनके मज़बूत गदराये जिस्म के दोनो तरफ़ फ़ैलने के कारण मेरी जाँघें तो दुखने भी लगी थी!

"अब जाना है चाचा... अब जाने दीजिये" मैने कहा!
"अरे चले जाना... ऐसी भी क्या जल्दी है... कह देना, चाचा ने सोने के लिये कह दिया था..." उन्होने मुझे थोडा हिला डुला के ऐसा अड्जस्ट किया कि अब मेरी गाँड सीधा उनके लँड से रगडने लगी और वो अपना बदन हल्का हल्का ऊपर उठाने लगे और मेरी गाँड का भीना भीना आनन्द लेने लगे!

"वाह बेटा वाह... बिल्कुल जैसा सोचा था वैसा पाया..."
"क्या चाचा?" मैने मासूमियत से पूछा!
"तेरा चिकना बदन बेटा... और क्या?" उन्होने कहा और इस बार अपने एक हाथ से अपने लँड को पकड के अपने सुपाडे को मेरे गुलाबी छेद पर रगडा!
"अआई... नहीं... चाचा नहीं..." अब मैं थोडा घबराया!
"डरो मत..." कह कर उन्होने अपने सुपाडे को प्रीकम के साथ मेरे छेद पर हक्ला सा दबाया मगर उसकी टक्‍कर मेरी सीलबन्द गाँड के टाइट चुन्‍नटदार सुराख से हुई!
"साली कसी हुई सील बन्द है... क्यों कभी किसी से करवाया नहीं?"
"क्या चीज़?" मैने समझते हुये भी उनसे नासमझ सा सवाल पूछा!
"यही बेटा... गाँड में लँड और क्या?"
"जी नहीं..." और कहते कहते जब मैने उनका इरादा समझा तो मैं पैनिक हो कर बोला "नहीं चाचा... और कुछ मत करियेगा प्लीज... बस ऐसे ही..."
"हाँ हाँ, ऐसे ही ऊपर ऊपर करूँगा... डरो नहीं... वरना तुम्हारी फ़ट जायेगी.... बस थोडा तेल लगा लूँ तो रगडने में आराम रहेगा...." कहकर उन्होने पास रखा नारियल के तेल का डिब्बा उठाया और काफ़ी सारा तेल अपने लँड पर चुपड लिया और वही हाथ आराम से मेरी गाँड पर रगड के साफ़ करते हुये इस बार जब अपनी तेल लगी उँगली मेरे छेद पर रखी तो मेरी गाँड उतनी टाइटनेस से उसका मुकाबला नहीं कर पायी और उन्होने उँगली से मेरी कुछ चुन्‍नटें फ़ैला दीं!
"आई... चाचा नहीं... नहीं..." मैं घबराया!
"डरो मत बेटा, डरो मत..." इस बार उनका तेल में डूबा हुआ सुपाडा आराम से मेरे सुराख पर और मेरी दरार में फ़िसलने लगा! उनके लँड की मज़बूती से मेरी गाँड कुछ तो नेचुरली ढीली पड के कुलबुलाने लगी मगर मैं बार बार अपनी गाँड बचाने के लिये भींच लेता था!

"चलो डरो मत... ऐसा करो, तुम अपने आप ही अपनी गाँड को मेरे लौडे पर रगडो..." मैने पहली बार उनके मुह से इतने नँगे शब्द सुने थे! उनसे मैं थोडा उत्तेजित भी हुआ! मैने अपने आप अपने घुटने मोड के अपनी गाँड थोडा आराम से उठा ली और हल्का सा बैठ के अपनी गाँड को उनके लँड पर रख कर रगडने लगा! अब मुझे मज़ा भी आने लगा था क्योंकि मैं ऊपर था इसलिये मैं जानता था कि जब तक मैं नहीं चाहूँगा वो मेरी गाँड में लँड नहीं घुसा पायेंगे! मैं मज़ा ले ले कर अपनी गाँड पर उनके लँड का मज़ा लेने लगा! फ़िर कुछ देर बाद उन्होने मेरे हाथ अपनी छाती पर रखवा लिये! मैं उनके ऊपर उखडू बैठ के मज़ा लेता रहा! उन्होने इस बीच जब अपना लँड ऊपर को खडा किया तो उसको अंदर घुसने से बचाने के लिये मैं भी थोडा और उचक गया!

उनका सुपाडा अब मेरी इनर थाईज़ के बीच फ़ँस गया था और मेरे सुराख पर दस्तक दे रहा था! मैं अपने पैर उनके दोनो तरफ़ मोडे हुये था! तभी उन्होने बडी ज़ोर से मेरे घुटनों पर हाथ मारा! उनके वैसा करने से मैं डिस-बैलेंस्ड हुआ, मेरे घुटने हिले और मैं उनके ऊपर ऑल्मोस्ट बैठ सा गया जिससे मेरी गाँड पर रखा उनका सुपाडा बडे ज़ालिम तरीके से, निसंकोच, एक झटके से मेरे गुलाबी सुराख को फ़ाडता हुआ, मेरी चुन्‍नटों को फ़ैलाता हुआ, सीधा मेरी गाँड की गहरायी में घुस गया! दर्द के मारे मेरी चीख निकल गयी और मैं फ़ौरन उठना चाहता था! मगर मुझे अपना बैलेंस नहीं मिला और उन्होने भी ना सिर्फ़ एक हाथ से मेरा मुह बन्द करके मेरी चीख का गला घोंट दिया, बल्कि दूसरे से मुझे जकड के अपने लँड पर बिठाये रखा और अपनी गाँड झटके से ऊपर ऐसी उठायी कि उनका बचा खुचा लँड भी मेरी गाँड में समाता चला गया और मेरी जाँघें उनके जिस्म से चिपक गयी! मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने एक तलवार मेरी गाँड में घुसा दी हो! मेरी गाँड दर्द से गर्म हो गयी! तुरन्त बाद उन्होने मुझे लपेट के बेड पर लिटाया के पलट दिया और वैसे ही गाँड में लँड दिये दिये मेरे ऊपर चढ गये और मेरी गाँड मारने लगे! अब मेरा मुह उनकी तकिया में घुस गया! मेरी आँख से दर्द के मारे आँसू आने लगे! मैं रोने लगा! लग रहा था कि मेरी गाँड, मेरे जिस्म से फ़ट के अलग हो जायेगी! कुछ देर में उनके धक्‍के तेज़ हो गये!
"अआह बेटा... किसके... लिये बचा... के रख रहा... था... आज... तेरा जीवन सफ़ल... कर दिया... मर्द के हाथ... तेरी सील... टूटी है... अब जीवन भर... लँड की चाहत... लगी रहेगी..." उन्होने चोदते चोदते कहा और कुछ देर में उन्होने मेरी गाँड में अपना वीर्य भर दिया!

जब उन्होने अपना लँड मेरी गाँड से बाहर खींचा तो "फ़च्चाक" से आवाज़ आयी और एक बार फ़िर उनके लँड के फ़्रिक्शन से मेरी गाँड दुख गयी! एक बार को तो मुझे लगा, जैसे टट्‍टी निकल जायेगी!

"जा, वहाँ कोने में गाँड धो ले..." उन्होने मुझ से कहा और मुझे एक ग्लास पानी दे दिया! जब मैने गाँड धोयी तो वो बुरी तरह से चरमरा गयी!
"अआह..." मैं करहाया! चुदायी के बाद अब मेरी गाँड ज़्यादा दुख रही थी! मुझसे चला भी नहीं जा रहा था! वहाँ से जाते जाते उन्होने मुझे 20 रुपये दिये!
"ये ले लो और ये सब किसी से कहना मत..." वो सब किसी से कहने का तो मेरा इरादा भी नहीं था! मैने चुप-चाप 20 रुपये ले लिये मगर जब सीढियों से उतरने में मेरे पैर हिले तो गाँड फ़ट के दुखने लगी! उस दिन मैं पैर फ़ैला के किसी तरह चला और ना उस दिन, ना उसके अगले दिन किसी के साथ खेला! तब कहीं जाकर मेरी गाँड थोडा ठीक हुई!अभी ट्रेन रुकी भी नहीं थी कि मुझे कम्पार्ट्मेंट के दरवाज़े पर ही राशिद भैया खडे दिख गये और मैने हाथ हिलाने के बाद जब उनको देखा तो पाया कि पिछले कुछ सालों में उनकी जवानी पर नमक की ज़बर्दस्त परत चढ चुकी थी! उनका जिस्म और जवानी पूरी तरह निखर चुके थे! वो मुस्कुराये तो मेरा मन मचल गया! उन्होने जब ट्रेन से उतर के मुझे गले लगाया तो उनकी जवानी के स्पर्श से मैं मस्त हो गया! मैने गले मिलने के बहाने उनका जिस्म और उनकी पीठ सहलायी और उनके मसल्स का मज़ा लिया!
"चलो, यार एक कुली कर लेते हैं, बहुत सामान है..." जब वो एक कुली से बात करने लगे तो मैं सिर्फ़ उनको देखता रहा और सोचता रहा कि काश उनके अंदर भी अपने बाप की आदत आ गयी हो तो मज़ा आ जाये! शादी के बाद तो शायद चूत लेकर सारा खुमार राशिद भैया की जवानी पर आ गया था!

मगर एक और सर्प्राइज़ अभी बाकी था! मैं जब कुली के साथ अंदर गया तो वहाँ एक ऐसा लडका बैठा दिखा कि मानो चाशनी में डूबा हुई रसमलाई हो! एक-दम कमसिन, नर्म, मुलायम, गोरा, चिकना, नमकीन और रसीला सा काशिफ़! काशिफ़, राशिद भैया के साले का बेटा था जो उसको अलीगढ से लेने आने वाले थे! इसलिये वो राशिद भैया के साथ वहाँ आया था! उस समय वो लाइट ब्लू कलर की डेनिम की कैपरी पहने था जो उसके घुटने के कुछ नीचे तक थी! ऊपर एक पिंक कलर की शर्ट, एक ब्लैक स्वेटर, एक कैप और एक सुंदर सी ब्लू जैकेट पहनी हुई थी! उसके होंठ गुलाब की पँखुडी की तरह थर्रा रहे थे! डार्क ब्राउन बाल, बिना किसी पार्टिंग के उड रहे थे! उससे हाथ मिलाने में ऐसा झटका लगा कि मुझे लगा कहीं मेरा लौडा चड्‍डी के अंदर ही ना झड जाये!

जब हम वहाँ से चले तो मैं आगे आगे कुली के साथ था और राशिद भैया एक सूटकेस लिये, हमसे पीछे चल रहे थे! मैने काशिफ़ के साथ मिलकर एक बैग पकडा हुआ था और लगातार उसको ही देखे जा रहा था! काशिफ़ को ठँड लग रही थी!
"क्यों पूरी पैंट नहीं है तुम्हारे पास?"
"जी है..."
"तो पहन के आते ना... यहाँ इतनी ठँड है..."
"जी पता नहीं था..." वो सर्दी से कंपकपा रहा था!
मैने सामान रखते समय प्रदीप को भी तरसी हुई नज़रों से काशिफ़ को काफ़ी देर तक घूरते हुये देखा! सामान रख कर राशिद भैया आगे बैठे! हमने कुछ सामान पीछे सीट पर भी रख लिया था जिस कारण मेरे और काशिफ़ के बैठने के लिये बहुत कम जगह बची! वो जब मुझसे चिपक के बैठा तो मज़ा आ गया! मैं उसे पहली ही नज़र में दिल दे बैठा! जैसे ही गाडी रोड पर आयी मैने हल्के से अपना हाथ काशिफ़ की जाँघ पर रख दिया! साला बडा नर्म और गर्म था! वैसे भी उसकी जाँघ काफ़ी देर से मेरी जाँघ से चिपक के मेरे अंदर ठरक पैदा कर चुकी थी! रास्ते में राशिद भैया इधर उधर की बातें करने लगे और प्रदीप और मैं उनकी बातों का जवाब देते रहे! मेरा दिल तो कर रहा था कि वहीं काशिफ़ के साथ चालू हो जाऊँ! मैने अपना एक हाथ उसके कंधे पर रख दिया था! उसको शायद सर्दी में मेरे बदन की गर्मी अच्छी लग रही थी!

मैने रूम पर राशिद भैया के लिये गौरव से लेकर एक फ़ोल्डिंग कोट का इन्तज़ाम कर दिया था! मगर मुझे उनके साथ काशिफ़ के आने का बिल्कुल आइडिआ नहीं था! प्रदीप हमें छोड के चला गया! उसने रूम तक सामान पहुँचाने में भी मदद की और जब राशिद भैया उसको पैसे देने लगे तो वो बोला!
"जी पैसे बाद में ले लूँगा... अम्बर मेरा पुराना फ़्रैंड है, इतनी जल्दी भी क्या है?"
रूम में राशिद भैया ने चेंज किया! उन्होने जल्दी से एक लुँगी पहन ली... अआह... लुँगी देख कर मुझे उनके बाप के साथ गुरज़े हुये दिन याद आ गये! वो जल्दी से एक रज़ाई में घुस गये!

"भैया, मैं और काशिफ़ साथ में सो जायेंगे..." हम लोगों के सामने उस समय और कोई चारा भी नहीं था! लुँगी और स्वेटर में राशिद भैया तो कामदेव लग रहे थे! मेरी नज़र बार बार लुँगी में झूलते हुये उनके लँड पर जा रही थी! फ़िर काशिफ़ जब बाथरूम से लाल रँग का पजामा पहन के निकला तो मैं तो मस्त हो गया! फ़िर जब मैं बाथरूम में घुसा तो समझ नहीं आया कि क्या करूँ! मेरा लँड पूरा खडा था! मैने पहले राशिद भैया की पैंट टँगी देखी और उसके अंदर उनकी फ़्रैंची की ब्लू चड्‍डी... तो उसको लेकर मैने उसमें मुह घुसा के उनकी मर्दानगी की खुश्बू सूंघी! फ़िर मैने काशिफ़ की कैपरी को सूंघा और फ़िर उसकी लाइनिंग को चाटा, जहाँ शायद उसकी गाँड आती होगी!
अब मेरी ठरक पूरी बेक़ाबू हो चुकी थी! किसी तरह मैं एक लोअर और टी-शर्ट पहन के बाहर निकला! तब तक राशिद भैया ने काशिफ़ के लिये एक कम्बल निकाल दिया था! मैं अपनी पलँग पर रज़ाई में लेटा और वो कम्बल ओढ के! सोते सोते साढे तीन बज गये! कुछ देर बाद काशिफ़ ने मेरी तरफ़ मुह कर लिया तो उसकी साँसें सीधा मेरे चेहरे से टकराने लगीं! उसकी गर्म साँसों में गुलाब सी खुश्बू थी! कुछ देर में हम सब सो गये!

उसके करीब घंटे भर बाद मुझे काशिफ़ करवट बदलता महसूस हुआ! उसका कम्बल, दिल्ली की सर्दी के सामने कुछ नहीं था! राशिद भैया तब तक सो चुके थे!
"क्या हुआ?" मैने पूछा!
"जी, सर्दी लग रही है..."
"अच्छा आओ, कम्बल और रज़ाई मिला के ओढ लेते हैं..." कहकर मैने उसको अपनी रज़ाई में सुला लिया! जब वो मेरे बगल में आया तो उसका गर्म जिस्म महसूस करके मुझसे ना रहा गया और मैने अपनी एक जाँघ सोने के बहाने उसकी जाँघ पर चढा दी! मैं तो साले की उसी समय गाँड मार देना चाहता था, मगर बगल में भैया सो रहे थे! इसलिये वैसे ही मज़ा लेता रहा और कुछ देर अपना लँड उसकी कमर से रगड के सो गया! अगले दिन से साला मुझे बडा सुंदर लगने लगा! अब मेरा दिल उस पर पूरी तरह से आ गया! उस दिन जब राशिद भैया अपने काम से गये तो वो काशिफ़ को भी अपने साथ ले गये! वैसे दोनो की जोडी बडी सैक्सी थी! एक मज़बूत लोहे का खम्बा... दूसरा मक्खन सा, गुलाबी नाज़ुक सी फ़ुलझडी...

कॉलेज में मेरी दोस्ती एक और ग्रुप से भी होने लगी क्योंकि उसमें एक लडका था आकाश गौड जिसको देखते ही मैं उसका आशिक़ हो गया था! उस दिन आकाश एक व्हाइट पैंट पहने था और ऊपर एक ग्रे स्वेटर! वो लम्बा और गोरा था और बडा सुंदर और चँचल सा मर्दाना चिकना लौंडा! उसके चक्‍कर में उसके बाकी ग्रुप से भी जान पहचान हो गयी!

उसमें अभिषेक त्यागी था, मॄत्युंजय, सूर्यकांत, इमरान और नफ़ीस! मेरा अगला निशाना आकाश था... मगर उसको फ़ँसाना मुश्किल था क्योंकि वो पूरा ग्रुप ही साला स्ट्रेट था! वो सब हमेशा लडकियों की बातें करते, बीअर पीते और गाली गलौच करते, मगर मैने भी अपना जाल डालना शुरु कर दिया! आकाश क्लासेज के बाद ग्राउँड पर क्रिकेट प्रैक्टिस करता था! आकाश के चेहरे पर लडकपन वाली चँचल सी कशिश थी और साथ में हल्का हल्का गुलाबी मर्दानापन, उसके बदन हाथ कटावदार और सुडौल थे! वो जब बॉलिंग करने के लिये रन-अप लेता तो मैं बस उसकी गाँड की फ़ाँकों को ही निहारता रहता! उसकी गाँड बडी मस्त होकर कभी टाइट होती कभी ललचाते हुये हिलती थी और साथ में उसकी मस्त जाँघें मुझ पर जादू करतीं!

मैं उस दिन आकाश को निहार ही रहा था कि पीछे से आवाज़ आयी "इसको मत देख, ये तेरे काम नहीं आयेगा.. हा हा हा हा..."
मैने जब पलट के देखा तो देखा, वहाँ धर्मेन्द्र था... उसके कमेंट से मैं झेंप गया!
"मैं तो बस..."
"हाँ हाँ बेटा, तेरे जैसों को खूब जानता हूँ... साले, चिकने को देख कर सपने देख रहा होगा हा हा हा हा... चल आज मेरी ठरक चढी हुई है, चल रूम पर ले चल... तेरी गाँड में लँड डाल दूँ जानेमन..." धर्मेन्द्र के सीधे प्रपोज़ल से मैं मस्त तो हो गया!
"अरे यार, आज भी कोई आया हुआ है..."
"बहन के लौडे, तू कमरे पर क्या गाँड मरवाने के लिये लौंडों को बुलाता रहता है?" धर्मेन्द्र हल्का सा इरिटेट हुआ!
"नहीं यार, घर से कोई ना कोई आ जाता है..."
"बेटा, गाँड कब देगा? साला लँड अब तेरे नाम से फ़नफ़नाता है... एक बार तो तेरी मारने का दिल है अब... साले, वैसे चूसता तो तू बढिया है... अब ज़रा तेरी गाँड की गहरायी में घुसने का मन है..."
"क्या बताऊँ यार..." अभी हमारी बात हो ही रही थी कि विनोद उधर आ गया और हमने टॉपिक चेंज कर दिया और उसके कुछ देर बाद इमरान और आकाश भी आ गये! इमरान भी पटना का खूबसूरत सा चिकना लडका था जिसमें काफ़ी नमक और सैक्स था!
Reply
05-14-2019, 11:32 AM,
#39
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
जब आकाश आया तो प्रैक्टिस के कारण वो, इतनी सर्दी में भी पसीने में था! उसका किट बैग, जहाँ हम खडे थे, वहीं रखा था! उसने उसमें से टॉवल निकाली और अपना चेहरा पोछा फ़िर उसी में से अपनी पैंट निकाली और हमसे थोडा साइड होकर अपना लोअर चेंज करने लगा! मैने बस एक दो नज़र ही उस पर डालीं, साले की जाँघ मस्क्युलर और गोल थी... सुडौल चिकनी गोरी! मैने पकडे जाने के डर से उसको ज़्यादा देर नहीं देखा! सब साले हमेशा की तरह नॉर्मल स्ट्रेट बातें करने लगे! 15-20 दिन के बाद कालका में कोई क्रिकेट टूर्नामेंट था, जिसके लिये तैयारी चल रही थी!

अगले दिन मुझे राशिद भैया का नया रूप दिखा! वो मुझे ज़बरदस्ती अपने और काशिफ़ के साथ नॉर्थ कैम्पस के एक हॉस्टल में अपने एक दोस्त से मिलाने ले गये! वहाँ वो और उनके दोस्त के साथ कुछ और लडके भी थे! कुछ देर में सब गन्दी गन्दी बातें करने लगे और मैने पहली बार राशिद भैया को पोर्न बातें करते हुये सुना! वो मेरी और काशिफ़ की मौजूदगी से भी नहीं शरमाये! फ़िर जब उनके एक दोस्त विक्रान्त ने शराब का ज़िक्र किया तो सबका पीने का प्रोग्राम बन गया! उनमें से एक लडका जाकर व्हिस्की की दो बॉटल्स ले आया! उसके पहले मुझे नहीं पता था कि राशिद भैया पीते हैं! मैं और काशिफ़ एक बेड पर पीछे की तरफ़ होकर बैठ गये और वहाँ होने वाले एक्शन का मज़ा लेते रहे! कमरे में सिगरेट का धुआँ था, फ़िर शराब की खुश्बू फ़ैल गयी... उसके बाद नँगी बातें होने लगीं!
"लो, पियोगे क्या?" राशिद भैया ने मुझसे पूछा!
"जी... जी नहीं, मैं नहीं पीता..."
"अबे रहने दे, बच्चों को क्यों खराब कर रहा है?" उनके एक दोस्त ने कहा!
"अरे, हमारा काम इनको सिखाना है ना... वरना बच्चे बडे कैसे होंगे? हा हा हा..." सब हँसे!
काशिफ़ अक्सर मुझे देख रहा था! उसके साथ चिपक के सोने में मुझे बडा मज़ा आया था! साले की गर्मी मुझे करेंट लगाती थी!
"और बेटा, वैवाहिक जीवन कैसा चल रहा है?" विक्रान्त भैया ने राशिद भैया से पूछा!
"आजकल सूखा पडा है..."
"क्यों यार, बीवी ने देना बन्द कर दिया क्या? हा हा..." हेमन्त भैया ने कहा और हँसने लगे!
"अबे उसकी कहाँ मजाल कि ना दे.. असल में आजकल साली लोडेड है..."
"वाह, अच्छा मतलब शेर ने शिकार कर डाला..."
"तीसरा बच्चा है, अब तो जब से शादी हुई है बस शिकार ही कर रहा हूँ..." वो कहकर हँसे!
"और क्या यार, दिल भरके प्रयोग करना चाहिये... सही जा रहे हो... कब से नहीं ली?"
"अब तो दो महीने के ऊपर हो गये..."
"तो कोई आसपास और फ़ँसायी नहीं?"
"कहाँ यार, अब तो मुठ मारने की नौबत आ गयी है..."
काशिफ़ अब शरम से तमतमा रहा था! मैने उसको देखा तो वो मुझे देख के और शरमा सा गया मगर उसको भी बडे लोगों की बातों में मज़ा आ रहा था!
"वैसे बात तो सही है, अगर डेली रात में टाँगें ना फ़ैलाओ तो भी बीवी मानती नहीं है..."
"हाँ यार, मेरी वाली भी डेली चुदना चाहती है" राशिद भैया बोले!
"अरे तेरी तो बीवी है, मेरी तो साली काम वाली को भी मेरे लौडे का चस्का लग गया था... डेली आ जाती थी... हा हा हा हा..."
फ़िर विक्रान्त ने राशिद भैया से पूछा "क्यों, अब भी चाटता है उसकी बुर?"
"हाँ यार, मज़ा आता है... अब तो वो भी चटवाने के लिये उतावली रहती है..."
"ये क्या कहानी है?" एक और लडका बोला!
"अरे इसने सुहागरात में बुर में मुह दे दिया था... साला बडा हरामी है" विक्रान्त बोला!
कुछ देर में उन सभी को काफ़ी चढने लगी! मुझे सिगरेट की तलब लगी तो काशिफ़ भी मेरे साथ हॉस्टल के गेट तक आ गया! ना जाने क्यों मुझे उसकी पैंट में ज़िप के अंदर कुछ हलचल महसूस हो रही थी!

"क्यों, अंदर की बातें कुछ समझ आयीं?" सिगरेट पीते हुये मैने उससे पूछा!
"जी, अब इतना तो समझ आता है..." वो शरमाया और लाल हो गया!
"तब तो बाकी भी सब समझते होगें?"
"हाँ जितना समझना चाहिये, उतना समझ लेता हूँ... वैसे ये सब गन्दी बातें होती हैं भैया..."
"कौन सी बातें?"
"वही जो फ़ूफ़ा कर रहे थे..."
"बात कहाँ कर रहे थे, वो तो वो बता रहे थे जो उन्होने एक्चुअली किया है..."
"जी मतलब वही"
"क्यों अब तो तुम्हारा भी खडा होना शुरु हो गया होगा?" वो मेरे इस सवाल से एकदम सकपका गया!
"आह... हाँ.. ना.. जी..."
"जब खडा होना शुरु हो जाये ना, तो शरमाना बन्द कर देते हैं..."
"जी" वो कामुक सा हो गया था और तमतमा के काफ़ी लाल भी!
"वैसे तुम जैसे खूबसूरत लडकों को ये सब मालूम होना चाहिये..."
"क्यों, ऐसा क्यों?"
"सही रहता है... पहले से प्रैक्टिस हो जाती है, फ़िर राशिद भैया की तरह सुहागरात में तरह तरह के करतब दिखा सकते हो..."
"क्यों, सुहागरात में सब करना ज़रूरी होता है?"
"और क्या..."
"मानो दिल ना करे?"
"दिल तो सबका करने लगता है... जब सामने चूत दिखती है ना, तो बडे से बडा महात्मा लँड निकाल के चुदायी के मूड में आ जाता है बेटा..."
"आपको सब कैसे मालूम है?"
"क्यों, तू मुझे सीधा समझता है क्या?"
"मैं आपको जानता ही कहाँ हूँ..."
"मौका दो तो जान लोगे..."
"कैसा मौका भैया?"
"अकेले में किसी दिन साथ रहो तो समझा दूँगा..."

हम जब वापस लौटे तो रूम का माहौल गर्म हो चुका था! राशिद भैया ने लुँगी बाँध ली थी और विक्रान्त भैया ने निक्‍कर पहन ली थी! सब पैरों पर रज़ाई डाल के बैठे थे!
"भैया, चलना नहीं है क्या?"
"अरे अब ये कहाँ जा पायेगा साला पियक्‍कड" उनका एक दोस्त बोला!
"आज तुम सब यहीं सो जाओ" विक्रान्त बोले!
"जी यहाँ कैसे?"
"अरे डरो मत, यहाँ इस अड्‍डे पर नहीं सुलायेंगे... लो मेरे रूम की चाबी ले लो और ये लो... आधी बची है इस बॉटल में... चुपचाप गटक लो और आज दोनो यहीं सो जाओ..." विक्रान्त ने मुझे एक बॉटल दी और अपने रूम की चाबी भी! मैने काशिफ़ की तरफ़ देखा और उसको देखते ही मेरी ठरक जग गयी!

मैं तेज़ चलती साँसों के साथ अँधेरे कॉरीडोर में विक्रान्त भैया के सैकँड फ़्लोर के रूम की तरफ़ रूम नम्बर चेक करता हुआ, अपना लँड सम्भालते हुये काशिफ़ के साथ बढा! जब रूम की लाइट जलायी तो वहाँ हर तरफ़ गन्दे कपडे थे, बेड पर गन्दा सा बिस्तर, कहीं चड्‍डी पडी थी कहीं मोज़ा, कहीं जूता तो कहीं शॉर्ट्स! बस एक बेड था और एक रज़ाई...
"आओ, आज साथ में सोना पडेगा..."
"इसका क्या करेंगे?" काशिफ़ ने मेरे हाथ की बॉटल की तरफ़ देख के कहा!
"पियूँगा..."
"आप भी पीते हैं क्या?"
"अब उन्होने दी है तो पी लूँगा..."
"वो कुछ और कहते तो?"
"अब कौन सा उन्होने मेरी गाँड मारने के लिये कह दिया... बॉटल ही तो दी है..." कहकर मैने सामने रखे ग्लास में एक बडा सा पेग डाला और उसकी तरफ़ देखा!
"लो पियोगे?"
"मैने कभी नहीं पी... कडवी होती है..."
"जब पी नहीं तो कैसे पता? बेटा काफ़ी चालू चीज़ लगते हो..."
"लो घूँट लगा के देख लो" मैने कहा तो उसने मना नहीं किया मगर एक घूँट पीकर बडा बुरा सा मुह बनाया और उसके बाद दो छोटे छोटे घूँट पी गया!
"क्या पहन के सोते हो?"
"जी पजामा..."
"यहाँ पजामा तो है नहीं और विक्रान्त भैया का कोई भरोसा नहीं अपने पजामे में भी मुठ मार रखी हो..."
"मुठ क्या???"
"अरे यार, जब कुछ पता ही नहीं तो क्या बताऊँ..."
"जी मतलब वो क्यों मारेंगे?"
"क्यों जब उनका खडा होगा..."
"वो तो कह रहे थे कि वो किसी काम वाली की लेते हैं..."
"हाये मेरी जान... सब सुन लिया तूने? आजा लिपट के लेट जा, आज तेरा स्वाद चख लूँ..." मेरे ये कहने पर वो शरमाया!
"क्या बात करते हैं भैया..."
"अरे चल ना लेट तो... फ़िर पता चलेगा..."
"ऐसा कहोगे तो नहीं लेटूँगा..." उसकी आँखों में नशा सा आ गया था! मैने दो पेग और पी लिये!
"आप को चढ जायेगी"
"हाँ यार, जब तेरे जैसा चिकना साथ सोयेगा तो शराब अच्छा काम करेगी!"
हम फ़ाइनली लेटे तो मैने लेटते ही उसकी छाती पर हाथ रख दिया जिसको उसने हटा दिया!
"अरे भैया मैं कोई लडकी थोडी हूँ..."
"बेटा तू तो लडकी से कहीं ज़्यादा मालामाल आइटम है मेरी जान..." मैने कहा!
"आप क्या मेरे ही साथ कुछ करना चाहते हो?"
"और क्या..."
"छी... शरम नहीं आयेगी?"
"एक बार अपनी गाँड में मुह घुसाने दे, तेरी भी शरम खत्म हो जायेगी..."
"गाँड में मुह... मतलब? मुह कैसे??" उसने पूछा!
"बेटा तेरी जैसी चिकनी गाँड का स्वाद सीधा पहले मुह घुसा के चखा जाता है..."
"धत भैया, कितना गन्दा लगेगा..."
"जानेमन चुदायी और प्यार में कुछ गन्दा नहीं होता... तूने सुना नहीं, तेरे फ़ूफ़ा ने भी तो चूत में मुह दिया था..."
"चूत की बात और होती है..."
"मेरे लिये गाँड भी चूत ही होती है..." कहते हुए मैने उसको अपने पास खींचा और उसकी जाँघों पर अपना पैर चढा के उसको पकड लिया!
"आपका खडा है क्या?"
"हाँ तुझे देखते ही खडा हो जाता है यार..." मैने उसकी गर्दन पर मुह लगाया!
"ही..ही.. गुदगुदी मत करिये ना..." मैने उसकी गर्दन की स्किन को अपने दाँतों से पकडा वो बडा चिकना था और वहाँ उसके बदन की खुश्बू थी! मैने कसकर उसको वहाँ चूसा तो लाल निशान पड गया! मैने फ़िर चूसा तो उसने मेरा सर पकड लिया!
"आई... भैया... प्लीज मत करिये ना..."
"क्यों ना करूँ? क्यों तुझे कुछ होता है क्या?" कहकर मैने उसको कसके दोनो हाथों से बाहों में लेकर लिपटा लिया और एक हाथ सीधा उसकी कमर में घुसा दिया और वहाँ ज़ोर से सहलाया!
"उउउह... भैया... आह... नहीं..."
"क्यों तेरा भी खडा हुआ क्या?"
"जी..."
"कब से खडा है?"
"थोडी देर हुई..."
"दिखा..."
"नहीं भैया" मगर तब तक मैने एक हाथ नीचे कर दिया था और उसकी पैंट के ऊपर से जब उसका लँड पकड के रगडा तो मैने पाया कि उसकी एज के हिसाब से उसका लँड अच्छा था! साले में काफ़ी जान थी और उछल रहा था!
"भैया मत पकडो..."
"क्यों?"
"अजीब सी गुदगुदी होती है..."

अब मैं उसको लिपटा के उसका बदन मसल रहा था! मेरा एक हाथ उसकी शर्ट के अंदर उसकी कमर पर था, उसकी पतली कमर चिकनी और गर्म थी! मेरे हाथ उस पर फ़िसल रहे थे! मैने दूसरे हाथ से उसका लँड सहलाना जारी रखा! उसका लँड अब पूरा खडा था! मैने अपना मुह फ़िर उसकी गर्दन में, इस बार उसकी छाती के ऊपर की तरफ़ घुसाया और वहाँ मैं उसको अपनी ज़बान से चाटने लगा और अपने होंठों से उसको चूमने लगा!
"उहूँ... उउउह... भैया... आप क्या... क्या कर रहे... हैं... बिल्कुल फ़ूफ़ा वाली सब बातें..."
"अभी उनकी वाली सब बात कहाँ कर रहा हूँ यार..."
"आप वो सब भी करने के मूड में लगते हैं..."
"हाँ सही पहचाना तुमने..."
कहकर मैने पहली बार उसकी नाज़ुक सी गाँड को उसकी पैंट के ऊपर से पकड के सहलाया और अपने हाथ को उसकी दरार में घुसा के मसला तो मैं खुद भी मस्ती से विभोर हो उठा!
"हाये जानेमन..."
"क्या हुआ भैया?"
"आग लगा दी तूने और क्या हुआ..."
इस बार उसने भी मुझे अपने हाथों से पकडा और हमने अपने अपने लँड एक दूसरे पर दबा दिये!
"तू मेरा सहला के देख ना..." मैने उससे कहा!
"शरम आयेगी"
"अब कैसी शरम... देख, देख ना... कितना बडा है..." जब उसका हाथ मेरे लँड पर आया तो मैने इस बीच उसकी पैंट का हुक और बटन खोल दिये!
"उहूँ... उतारो नहीं ना... शरम आयेगी"
"जब तक उतरेगी नहीं शरम जायेगी कैसे?" मैने कहा और फ़िर उसकी ज़िप खोल कर अपना हाथ उसकी जाँघों पर घुसा दिया! अंदर तो साला बिल्कुल साफ़ चिकना और मलाईदार था! बिल्कुल मक्खन सा चिकना...

मैने उसकी एक एक फ़ाँक को प्यार से फ़ैला फ़ैला के दबोचा और सहलाया! उसकी गाँड का जादू मेरे ऊपर चलने लगा! मैने उसके छेद को अपनी एक उँगली से टटोला!
"यार, जब से तुझे देखा था ना... बस तेरा दिवाना हो गया था..."
"धत... आप तो बिल्कुल ऐसे बोल रहे हो जैसे मैं लडकी हूँ..."
"जी वो फ़ूफ़ा जी मुह... " फ़िर वो खुद बोला!
"हाँ मेरी जान, पहले पूरा नँगा तो हो जा... तेरी गाँड में ऐसा मुह घुसाऊँगा ना... ऐसा मज़ा तुझे कोई नहीं दे पायेगा कभी..." जब मैने उसको नँगा किया तो कुछ कुछ मचला और एक बार उसकी सिसकारी निकल गयी! अब उसका नँगा, पतला सा चिकना फ़नफ़नाता हुआ लँड मेरे हाथ में हुल्लाड मार रहा था मैं उसको भी सहलाता रहा और फ़िर उसको अपनी तरफ़ पीठ करवा के करवट दिलवा दी और फ़िर उसकी पीठ को सहलाते हुये जब उसकी कमर पर मैने मुह रखा और वहाँ चूमा तो वो गुदगुदी की सिरहन से उछलने लगा!
"अआहहह... भैया मत करो..." मगर तभी मैने उसकी गाँड की फ़ाँकें फ़ैला के उसकी दरार में अपनी नाक घुसा दी वहाँ की खुश्बू ने मुझे मतवाला कर दिया! मैने कई बार वहाँ अपनी नाक रगड के सीधा अपनी नाक उसके छेद पर रख दी! उसका छेद टाइट था! मैने तेज़ साँसें लेकर उसकी खुश्बू सूंघी और फ़िर उसके सुराख की चुन्‍नटों पर अपने होंठ रख दिये!
वो कुलबुलाया और उसकी कमर मचली मैने उसका जिस्म सहलाना जारी रखा और फ़िर उसके छेद पर अपनी ज़बान फ़िरायी! इस बार वो पहले भिंचा और फ़िर ढीला हुआ और मैने उसकी पूरी दरार को उसकी कमर से लेकर उसकी जाँघों तक चाटना और चूमना शुरु कर दिया! फ़िर मैने जब उसके छेद पर ज़बान टिकायी तो वो मचला और खुला और फ़िर मैं आराम से उसका छेद चाटने लगा! उसका गुलाबी छेद बडा रसीला था!
"आह... सिउ..ह... भैया..अआहह..." उसने सिसकारी भरी! मैने उसको वैसे ही करवट लेकर लिटाये रखा और उसके दोनो घुटने आगे मुडवा दिये जिससे उसकी गाँड गोल गोल मेरे सामने आ गयी और अब जब मैं उसकी दरार चाटने लगा तो उसकी जाँघें, यानि गाँड के ठीक नीचे की कोमल निर्मल जाँघें भी मुझे चूमने को साफ़ मिलने लगीं!

अब मैने अपना सुपाडा उसके छेद पर रखा और उससे उसका छेद रगडने लगा तो वो बोला!
"आपका बहुत गर्म है भैया..."
"हाँ जानेमन, मर्द का लँड गर्म होता है... वो भी तेरे जैसी चिकने गाँड मिलने पर..." मैं तबियत से उसकी गाँड और कमर पर अपना लँड रगडने लगा! फ़िर मैने उसके पैर अपने कंधे पर रखे और वैसे ही रगडता रहा!
"अंदर लेगा क्या?"
"नहीं... नहीं जायेगा..."
"ट्राई करूँ क्या?"
"कर के देख लो..." उसने कहा मैने जब सुपाडा उसके छेद पर दबाया तो उसका छेद काफ़ी टाइट लगा फ़िर जब उसका छेद थोडा फ़ैलाया तो वो चिहुँक उठा!
"नहीं भैया... नहीं... दर्द होता है..."
"चल आ... तू लेगा क्या 'मेरी'?" मैने सोचा, वहाँ नयी जगह अगर उसकी फ़ट गयी और वो चिल्ला दिया तो प्रॉब्लम हो जायेगी! वो खुशी खुशी मेरी लेने को तैयार हो गया! मैने उसको अपने ऊपर चढाया तो वो खुद ही अपना लँड मेरी गाँड पर रगडने लगा! फ़िर देखते देखते मैने उससे थूक लगवा के खुद ही उसका लँड अपनी गाँड में घुसवा लिया और उसको मज़ा देने लगा! उसने काफ़ी देर मेरी गाँड का मज़ा लिया और जब थक गया तो बोला!
"भैया, अब सोते हैं... फ़िर कभी करेंगे..."
"ठीक है जानेमन..."
मैं काशिफ़ के नँगे बदन को चिपका के लेटा तो, मगर मुझे नींद नहीं आयी! मैं काफ़ी देर अपने लँड को उसकी दरार से रगडता रहा!
Reply
05-14-2019, 11:32 AM,
#40
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
फ़िर जब मुझे पिशाब लगा तो देखा कि अभी तो 11 ही बजे थे! मैं मूतने के बाद नीचे भैया लोगों के कमरे की तरफ़ बढ गया! ना जाने क्यों मुझे वहाँ बैठे जवान मर्दों को देखने का दिल कर रहा था! कमरा अन-लॉक्ड था! मैने हल्के से दरवाज़ा खोला तो पाया कि उनका एक दोस्त बेड पर पलट के सो चुका था! राशिद भैया अपनी लुँगी मोड के बैठे थे और विक्रान्त भैया सिर्फ़ निक्‍कर में अपने घुटने मोड कर दीवार से टेक लगा के बैठे थे! बाकी दोनो दोस्त शायद जा चुके थे! दोनो भारी नशे में धुत्त थे! मैं अभी कुछ बोल ही पाता कि विक्रान्त भैया बोले!
"लो, अम्बर आ गया... इसके साथ चला जा, जा..."
"जी भैया, कहाँ जाना है?"
"अरे, इस गाँडू को मूतने जाना है... साला कब से बैठा है, नशे के कारण चल नहीं पा रहा है..." मैं राशिद भैया को मुतवाने के ख्याल से ही सिहर गया! नशा तो मुझे भी था, जिस कारण मेरा सन्कोच भी कम हो चुका था!
"क्यों भाई, इसको ले जा पायेगा?" जब राशिद भैया खडे हुए तो मैने उनका हाथ अपने कंधे पर रखवा लिया! वो पूरी तरह नशे में चूर थे! उनको कुछ भी होश नहीं था! वैसे विक्रान्त भैया की हालत भी खासी अच्छी नहीं थी! मैने जब सहारा देने के बहाने अपना एक हाथ राशिद भैया की कमर में लगाया तो उनका मज़बूत जिस्म छूकर मैं मस्त हो गया! उनका गदराया जिस्म मज़बूत और गर्म था! और जहाँ मेरा हाथ था, उसके ठीक नीचे उनकी गाँड की गोल फ़ाँकें शुरु हो रहीं थी! मैने बहाने से उनको भी हल्के से छुआ! हम बाहर निकले तो देखा कि कॉरीडोर में दूर.. सिर्फ़ एक बल्ब जल रहा था, बाकी सब अँधेरा था! वो पूरी तरह मेरे ऊपर अपना वज़न डाल कर चल रहे थे!

हम जब बाथरूम पहुँचे तो वहाँ भी कोने में दो बल्ब टिमटिमा रहे थे! इन्फ़ैक्ट जिस तरफ़ खडे होकर मूतने के कमोड थे, उधर तो अँधेरा सा ही था! मगर फ़िर भी रोशनी थी! मैने भैया को वहाँ खडा किया और जब हटने लगा तो वो गिरने लगे और मैं खडा रह गया! मेरा दिल तेज़ी से धडक रहा था! उनके जिस्म की गर्मी मुझे मदहोश कर रही थी!
"पिशाब कर लीजिये भैया..." मैने कहा तो वो नशे में अपनी लुँगी मे लडखडाये!
"सम्भाल के भैया..."
"हाँ... उँहू... हाँ..." उन्होने मेरी तरफ़ देख के मेरे मुह के बहुत पास अपना मुह रख कर कहा तो मैं शराब में डूबी उनकी साँसें सूंघ के और मस्त हो गया!

फ़िर उन्होने मेरे सामने ही अपनी लुँगी उठायी तो मेरी नज़र वहीं जम गयी! उन्होने हाथ से अपना लँड सामने करके थामा तो मैं उनके मुर्झाये हुये लँड का भी साइज़ देख कर मस्त हो गया! उनका सुपाडा गोल और चिकना था, और लँड भी सुंदर और लम्बा लग रहा था! बिल्कुल अपने बाप के साइज़ का हथौडा पाया था उन्होने भी! वो लँड थामे खडे रहे मगर मूता नहीं और इस बीच उनके लँड का साइज़ बढने लगा! अब उसमें थोडी जान आने लगी! मैं सिर्फ़ उनके लँड को ही देखता रहा जिसके कारण मैं खुद भी दहक के ठरक गया!

"पिशाब करिये ना भैया... " मैने अपना थूक निगलते हुये कहा मगर तभी वो फ़िर लडखडाये और उन्होने अपना लँड छोड कर सामने का पत्थर थाम लिया और आगे झुक गये!
"अरे भैया... सम्भाल के" कहकर मैने उनकी कमर में हाथ डाल लिया!
"मैं मुतवा दूँ क्या?" अब उनकी लुँगी के ऊपर से ही उनका लँड तम्बू की तरह उठता हुआ दिखने लगा!
"हाँ... साला, खडा नहीं हुआ जा रहा है..." मैने इस बार काँपते हाथों से उनकी लुँगी ऊपर उठायी!
"आप.. ज़रा लुँगी पकडिये..." कहकर मैने उनको लुँगी पकडवा दी! तब तक उनका लँड ना जाने कैसे काफ़ी उठ गया था! अब उसमें गर्मी आ गयी थी! वो लम्बा और मोटा दोनो हो चुका था! उनका सुपाडा भी फ़ूल गया था! उसके नीचे उनके बडे काले आँडूए थिरक रहे थे! उनकी झाँटें बडी और घुँघराली थी! मैं नशे में तो था ही, इतना कुछ होने के बाद मैने भी अपना हाथ नीचे किया और ना आव देखा ना ताव, सीधा उनका लँड अपने हाथ में जब थाम लिया, पर थामा तो मेरी साँस उनकी गर्मी और मज़बूती से रुक गयी!

बिल्कुल मर्द का लौडा था... जानदार... और कामुकता से विचलित उन्होने इस सब में कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी और अपने लँड को मेरी मुठ्‍ठी में समा जाने दिया! मैने अभी उनका लँड एक दो बार ही सहलाया था कि अचानक उनके लँड से मूत की धार निकली और सामने कमोड के ऊपरी हिस्से पर पडी, जिससे पिशाब की एक बौछार मेरे हाथ पर वापस आ गयी! मैने उनके सुपाडे की दिशा नीचे की तरफ़ कर दी जिसमें से निकलते सुनहरे गर्म पिशाब की तेज़ धार आवाज़ के साथ सामने के कमोड पर सुन्दरता से बहने लगी! उसको देख कर मेरी तो हालत ही खराब हो गयी! मेरी गाँड और मुह दोनो ही उनकी जवानी का सेवन करने के लिये कुलबुलाने लगे! मैने उनके लँड पर अपनी मुठ्‍ठी की गिरफ़्त मज़बूत कर दी! अब मुझे उसमें होते हर भाव का अहसास होने लगा था! उन्होने अभी भी सामने का पत्थर पकडा हुआ था और दूसरे हाथ से अपनी लुँगी! उनका चेहरा नशे के कारण बिल्कुल भावहीन था! आँखें बस हल्की हल्की खुली थी! होंठ भीगे हुये थे और सर धँगल रहा था मगर बस उनका लँड शायद जगा हुआ और पूरे होश में था!

जब उन्होने मूत लिया तो उनका लँड छोडने का मेरा मन ही नहीं किया और शायद ना उनका! मैं हल्के हल्के उनका लँड मसल के दबाने लगा और मैने अपना सर उनकी बाज़ू पर रख लिया!
"चलिये भैया..." जब मैने कहा तो उनकी तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई!
"क्या हुआ भैया, नशा हो गया है क्या?" उन्होने फ़िर भी कुछ नहीं कहा!
"लाईये, आपकी लुँगी सही कर दूँ..." कह कर मैने उनकी लुँगी और ऊपर उठा दी और पाया कि उनका लँड पूरा सामने हवा में उठके हिल रहा था! अब मुझसे ना रहा गया!
"इधर आईये..." मैने उनको सहारा दे कर सामने के नहाने वाले क्यूबिकल में ले गया और वहाँ उनके सामने बैठ कर मैने उनके लँड को अपने चेहरे से टकरा जाने दिया तो मेरी तो जान ही निकल गयी! फ़िर मैने प्यार से जब उनके सुपाडे को मुह में लिया तो उनका लँड उछला और मैने उनके सुपाडे पर ज़बान फ़ेरी मगर मैं और मज़ा लेना चाहता ही था कि दूर से विक्रान्त भैया की आवाज़ आयी!
"अबे, कहाँ रह गये दोनो... सो गये क्या?" मैने हडबडी में राशिद भैया को सहारा दे कर वापस रूम की तरफ़ का रुख कर लिया! फ़िर वहाँ उनको छोड कर वापस फ़ुर्ती के साथ काशिफ़ को रगड के उसके साथ सो गया! वो रात मेरे लिये बडी लाभदायक साबित हुई!
अगली सुबह, मुझे क्लास के लिये जाना था इसलिये मैं उन दोनो को सोता छोड के वहाँ से निकल लिया! मगर उनके साथ बिताये वो प्यार के लम्हे रास्ते भर याद करता रहा! विक्रान्त भैया उठ गये थे! उन्होने कहा कि वो दोपहर में उनको अपने साथ मेरे रूम तक ले आयेंगे!

उस दिन मैं आकाश की जवानी देख कर मस्ती लेता रहा! वो व्हाइट पैंट में जानलेवा लगता था! उसके अंदर एक चँचल सा कामुक लडकपन था और साथ में देसी गदरायी जवानी जो उसे बडा मस्त बनाती थी! मैं तो रात-दिन बस नये नये लडकों के साथ चुदायी चाहता था मगर ऐसा शायद प्रैक्टिकली मुमकिन नहीं था! फ़िर मेरे टच में एक स्कूली लौंडों का ग्रुप आया, वो मेरे रूम के आसपास ही रहते थे! उनमें से दीपयान उणियाल, जो एक पहाडी लडका था, उसके साथ राजेश उर्फ़ राजू रहा करता था और एक और लडका दीपक उर्फ़ दीपू था, जिसके बाप की एक सिगरेट की दुकान थी जहाँ से मैं सिगरेट लिया करता था! अपनी उम्र से ज़्यादा लम्बा और चौडा, दीपू, अक्सर वहाँ मिलता था जिसके कारण मेरी दोस्ती दीपयान और राजू से भी हो गयी थी!

तीनों पास के गवर्न्मेंट स्कूल में पढने वाले, अव्वल दर्जे के हरामी और चँचल लडके थे, जिनको फ़ँसाना मेरे लिये मुश्किल नहीं था! बशर्ते वो इस लाइन में इंट्रेस्टेड हों! तीनों अक्सर अपनी स्कूल की टाइट नेवी ब्लू घिसी हुई पैंट्स में ही मिलते! मैं उनके उस हल्के कपडे की पैंट के अंदर दबी उनकी कसमसाती चँचल जवानियों को निहारता!

दीपयान गोरा था, लम्बा और मस्क्युलर! राजू साँवला था, ज़्यादा लम्बा नहीं था मगर उसके चेहरे पर नमक और आँखों में हरामी सी ठरक थी! जबकि दीपू स्लिम और लम्बा था, उसकी कमर पतली, गाँड गोल, होंठ और आँखें सुंदर और कामुक थी! अब मैं असद और विशम्भर के अलावा अक्सर इन तीनों को भी मिल लेता था! तीनों मेरे अच्छे, फ़्रैंडली सम्भाव से इम्प्रेस्ड होकर मेरी तरफ़ खिंचे हुये थे और उधर आकाश मेरे ऊपर अपनी जवानी की छुरियाँ चला रहा था! अब तो मुझे कॉलेज के और भी लडके पसन्द आने लगे थे! उन सब के साथ उस रात काशिफ़ का मिलना और राशिद भैया के साथ वो हल्का सा प्रेम प्रसँग मुझे उबाल रहा था!

मौसम अभी भी काफ़ी सर्द था, जिस कारण मुझे लडकों के बदन की गर्मी की और ज़्यादा चाहत थी! उस दिन मैं और आकाश बैठे बातें करने में लगे हुये थे! हमारे साथ कुणाल भी था! आकाश उस दिन अपने क्रिकेट के लोअर और जर्सी में था! बैठे बैठे जब उसने कहा कि उसको पास की मार्केट से किट का कुछ सामान लेने जाना है तो हम दोनो भी उसके साथ जाने को तैयार हो गये! और फ़िर उस दिन उस भीड-भाड वाली बस में जो हुआ उससे मैं और आकाश बहुत ज़्यादा फ़्रैंक हो गये! बस में हम साथ साथ खडे थे और बहुत ज़्यादा भीड थी! मैं खडा खडा आकाश का चेहरा निहार रहा था और उसकी वो गोरी मस्क्युलर बाज़ू भी, जिससे उसने बस का पोल पकडा हुआ था! उसके चेहरे पर एक प्यास सी थी! उसकी आँखों में कामुकता का नशा था, वो कभी मुझे देखता कभी इधर उधर देखने लगता!
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