Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
05-19-2019, 01:21 PM,
#81
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
उधर दिल्ली में सोफिया और अमन अपने होटेल के रूम में बैठे हुये थे। 

अमन-“बेटा मैं फ्रेश हो जाता हूँ उसके बाद तुम भी फ्रेश हो जाना…” 

सोफिया-“जी अब्बू …” 

और अमन बाथरूम में चला जाता है। वो रात के थके हुये थे इसलिए आज सुबह देर तक सोए थे। अमन बाथरूम से सोफिया को आवाज़ देता है-“सोफिया बेटा, जरा तौलिया तो देना मैं लाना भूल गया…” 

सोफिया-“जी अब्बू …” और सोफिया तौलिया लेकर बाथरूम के पास जाती है-“ये लो अब्बू तौलिया…” 

अमन जैसे ही तौलिया लेने हाथ बाहर निकालता है उसका पैर स्लिप हो जाता है और दरवाजा खुल जाता है। अमन बिल्कुल नंगा अपनी बेटी सोफिया के सामने आ जाता है। सोफिया की नजर जैसे ही अमन के लण्ड पे पड़ती है, वो चीख पड़ती है। 

अमन बाथरूम में रज़िया को सोच-सोचकर लण्ड की मालिश कर रहा था, जिसकी वजह से उसका लण्ड एकदम खड़ा हुआ था। वही खड़ा लण्ड सोफिया ने देख लिया था। 

सोफिया भागकर बेड पे बैठ जाती है। 

कुछ देर बाद जब अमन बाहर आता है तो उसके चेहरे पे हल्की सी मुस्कान थी। वो सोफिया से नजरें नहीं मिला पाता और नाश्ता करने लगता है। 

सोफिया उठकर बाथरूम में घुस जाती है। वो अपने कपड़े उतारकर तौलिया जिस्म से लपेट लेती है। उसके दिल की धड़कनें आज उसका साथ नहीं दे रही थीं। जिंदगी में पहली बार उसने इतना मोटा, इतना लम्बा लण्ड देखा था। वो तौलिया निकालकर बाथटब में बैठ जाती है। जैसे ही जिस्म से पानी छूता है एक दिलफरेब सरसराहट पूरे जिस्म में दौड़ जाती है। उसके हाथ खुद-बा-खुद अपनी जाँघ की तरफ बढ़ जाते हैं, और धीरे-धीरे वो उंगलियाँ सोफिया की चिकनी कुँवारी चूत पे जाकर रुक जाती है। 

सोफिया के साँस अटक जाती है। धीरे-धीरे वो आँखें बंद कर लेती है, और उसे वही खड़ा लण्ड अपनी नजरों के सामने दिखने लगता है। चूत पे हाथ का दवाब बढ़ता जाता है और कुछ ही देर में सोफिया की चूत से अपने अब्बू के नाम का पानी बहने लगता है। सोफिया घबराकर बाथटब में बैठ जाती है। 

तभी बाहर से अमन की आवाज़ आती है-“सोफिया बेटा, मैं बाहर जा रहा हूँ दो घंटे में वापस आ जाऊूँगा…” 

सोफिया-“जी अब्बू …” सोफिया की चुचियाँ तन चुकी थी और हवा में झूल रही थीं। वो किसी तरह नहाकर बाहर आ जाती है। रूम बिल्कुल वाली था। वो दरवाजा बंद कर देती है। उसे घबराहट भी हो रही थी और दिल पता नहीं किस बात पे मचल भी रहा था। 

वो कुछ देर सोना चाहती थी। वो बेड पे लेट जाती है। और कुछ ही पलों में उसकी आँख भी लग जाती है। उसे बड़ी गहरी नींद लगी हुई थी। जिस्म बिल्कुल शांत था पर दिमाग़ में वही सब घूम रहा था। उसे एक ख्वाब दिखाई देता है। ख्वाब में वो खुद को सोता हुआ पाती है। वो देखती है कि उसके अब्बू उसके पास बैठे हुये हैं, और अपना लण्ड बाहर निकालकर सोफिया के मुँह के करीब ला रहे है। सोफिया का मुँह अपने आप खुल जाता है और वो लण्ड उसके मुँह में जाने लगता है। 

फिर वो देखती है कि उसके अब्बू उसके मुँह में अपना लण्ड अंदर-बाहर कर रहे हैं, और वो भी अपने अब्बू के लण्ड को बड़े प्यार से चूसरही है-“गलप्प्प गलप्प्प…” 

कुछ देर बाद उसके अब्बू उसे उल्टा करके उसकी पैंट नीचे खींच लेते हैं, और वो कुछ नहीं कह पाती। सोफिया की साँसें ख्वाब में तेज चलने लगती हैं। वो ऐसे महसूस करती है जैसे अमन उसकी गाण्ड में अपना लण्ड रगड़ रहा है और उसके पैर खुद-बा-खुद खुलते चले जाते हैं। वो देखती है कि अमन उसके पैर चौड़े करके अपना लण्ड उसकी चूत में डालकर उसे चोदने लगता है। 

और सोफिया हड़बड़ाकर उठ जाती है। पूरा जिस्म पसीने में नहा चुका था। उसका दिल इससे पहले कभी इतने जोरों से नहीं धड़का था। वो जल्द से उठकर बैठ जाती है और पानी पीने लगती है। उससे यकीन नहीं हो रहा था कि उसने ख्वाब में ये सब देखा। 
पर आज पहली बार सोफिया का दिल बहुत खुश था। एक अींजना सा एहसास उसे सता रहा था। वो गाना गुनगुनाती हुई अपने अब्बू का इंतजार करने लगती है। 

सोफिया अपने ख्यालों में वोई हुई थी। तकरीबन दो घंटे बाद जब अमन रूम में आता है तो वो बहुत खुश लग रहा था। सोफिया अपने अब्बू के पास जाती है। आज पहली बार वो अमन से नजरें नहीं मिला पा रही थी, बल्की आज उसकी आँखों में शर्म-ओ-हया के हल्के-हल्के भाव थे। 

सोफिया-“क्या बात है अब्बू , आप बहुत खुश लग रहे हैं?” 

अमन सोफिया को अपने पास खींच लेता है-“हाँ बेटा, आज मैं बहुत खुश हूँ । मैं जिस काम के लिए यहाँ आया था, वो गारमेंट्स का प्रॉजेक्ट मुझे मिल गया…” 

सोफिया उछलते हुये-“ओऊऊओि… ये तो बहुत अच्छी बात है। इस बात पे पार्टी तो बनती है…” दोनों बाप-बेटी हँसने लगते हैं। 

अमन-“हाँ ज़रूर… आज लंच के बाद हम शॉपिंग करने चलेंगे। उसके बाद किसी अच्छे से होटेल में डिनर ओके…” 


सोफिया अपने अब्बू के सीने से लग जाती है। आज ये सीने से लगना आम दिनों जैसा नहीं था, आज उसमें मोहब्बत थी, एक बाप-बेटी की नहीं बल्की इसमें कोई और ही रंग था। 

अमन-“एक सरप्राइज भी है तुम्हारे लिए…” 

सोफिया-“वो क्या अब्बू ? प्लीज़ प्लीज़ … जल्द बताइए ना…” 

अमन सोफिया का हाथ अपने हाथ में लेता है-“वो तो आपको डिनर के बाद ही पता चलेगा…” 

सोफिया बहुत खुश थी। वो अपने अब्बू से इतनी फ्री कभी नहीं हो पाई थी। आज वो जिंदगी जीना चाहती थी। लंच के बाद दोनों बाप-बेटी शॉपिंग करने निकल पड़ते हैं। सोफिया को जो ड्रेस पसंद आती अमन उससे वो खरीद लेता। अमन कुछ देर के लिए सोफिया को एक शाप में छोड़कर पास की शाप में चला जाता है और जब वो वापस आता है तो उसके पास एक पैकेट होता है। 

सोफिया वो पैकेट देख लेती है-अब्बू , क्या है इसमें? 

अमन-तुम्हारा सरप्राइज। 

सोफिया की आँखें चमक उठती हैं। पता नहीं अब्बू क्या लाए होंगे मेरे लिए? वो जल्द से जल्द उस पैकेट को खोलकर देखना चाहती थी। पर अमन उसे ऐसा करने नहीं देता। रात के 8:00 बज चुके थे और दोनों बाप-बेटी वापस होटेल आ जाते हैं। 
अमन ने खुद के लिए एक शर्ट-पैंट और उसपे कोट खरीदा था। जब वो उसे पहनकर रूम में आता है, जहाँ सोफिया तैयार खड़ी थी तो सोफिया अमन को देखती रह जाती है। अमन एक खूबसूरत शख्शियत का आदमी था। वो हर ड्रेस में किसी फिल्म स्टार से कम नहीं लगता था। ऊूँचा लंबा क़द उसपे मस्क्युलर बाडी, चेहरे पे हमेशा एक दिलकश मुस्कान लिए अमन अपनी बेटी के सामने खड़ा था, पूछा -कैसा लग रहा हूँ ? 

सोफिया दिल में सोचती है-“बिल्कुल मेरे सपनों का राजकुमार…” फिर बोल -“बहुत अच्छे लग रहे हैं आप अब्बू …” 

अमन अपने बेटी का हाथ पकड़कर उसे डांसिंग स्टेप करते हुये झुका देता है-तो डिनर के लिए चलें? 

सोफिया अपने अब्बू के हाथ में हाथ डाले एक फ़ाइव स्टार होटेल में डिनर के लिए चल देती है। जब वो होटेल में पहुँचते हैं तो सोफिया वहाँ की रौनके देखती ही रह जाती है। इससे पहले वो कभी इस तरह के होटेल में खाना खाने के लिए नहीं आई थी। 

बेहद डेकरेटेड होटेल था जिसमें एक तरफ कपल्स डिनर का मजा ले रहे थे और दूसरी तरफ कुछ कपल्स डान्स कर रहे थे। एक मुलाज़िम अमन और सोफिया को एक टेबल की तरफ ले जाता है जो पहले से अमन ने बुक की हुई थी। अमन और सोफिया चेयर पे बैठ जाते हैं। 

अमन-कैसा लग रहा है सोफिया? 

सोफिया-“बहुत खूबसूरत होटेल है अब्बू । थैंक यू सो मच, मुझे आपके साथ लाने के लिए…” 

अमन-“पर बेटा, तुमने ये शाल क्यों ओढ़ रखी है, इतने सारे ड्रेस तो खरी दे हैं हमने…” 

सोफिया-“आपको सरप्राइज देने के लिए…” और फिर सोफिया अपने जिस्म पे लिपटी हुई वो पतली सी शाल निकालकर पास की चेयर पे रख देती है। 

सफेद कलर के उस खूबसूरत ड्रेस में सोफिया को जब अमन देखता है तो देखता ही रह जाता है। कुछ पलों के लिए तो उसे ऐसे महसूस होता है, जैसे रज़िया उसके सामने बैठी हुई है। 

सोफिया इतराते हुये अमन की आँखों में देखते हुये पूछती है-कैसी ड्रेस है? 

अमन-ड्रेस तो फॉर्मल है, पर उसे पहनने वाली लड़की जन्नत की हूर से कम नहीं लग रही है। 

सोफिया का चेहरा इतने तारीफ़ सुनकर टमाटर के तरह लाल हो जाता है। और फिर सोफिया अमन से नजरें नहीं मिल पाती। वो बस चुपचाप डिनर करने लग जाती है। क्योंकी उसका दिल इतने जोरों से धड़क रहा था कि अगर अमन उसकी थोड़ी और तारीफ़ कर देता तो शायद वो धड़कना बंद कर देता। 

डिनर के बाद अमन सोफिया को उस डान्स फ्लोर पे ले जाता है। कोई भी आज उन दोनों को देखकर ये नहीं कह सकता था कि ये दोनों बाप-बेटी हैं। बल्की जिस किसी की भी नजर उनपे पड़ती वो यही समझता कि ये दोनों पति-पत्नी हैं और वो देख भी कुछ ऐसे ही रहे थे। 

अमन के मजबूत हाथों में जब सोफिया अपना हाथ देकर उसके पास खड़ी हो जाती है तो आस-पास के डान्स करने वालों के सीने जल के राख हो जाते है। सोफिया की खूबसूरती और अमन की पर्सनलटी जैसा कोई कपल उस वक्त वहाँ मौजूद नहीं था। 

दोनों एक दूसरे की आँखों में देखने लगते हैं। 

सोफिया-अब्बू , आपको अम्मी की याद आ रही होगी? है ना?” 

अमन-“बिल्कुल नहीं , क्योंकी मेरी प्यारी सी परी मेरे साथ है और सच कहूँ तो जब तू मेरे साथ होती है तो दुनियाँ का कोई शख्स मुझे याद नहीं रहता…” 

सोफिया-“अह्ह… आप बातें बड़ी रोमांटिक करते हैं। अम्मी तो आपकी फैन रही होंगी, जब आप उनसे पहली बार मिले होंगे?” 

अमन-“नहीं , मैं तेरी अम्मी का बहुत बड़ा फैन हूँ …” 

दोस्तों, उस वक्त अमन के दिमाग़ में रज़िया के तस्वी”र थी और सोफिया के दिमाग़ में शीबा की। 

दोनों एक दूसरे से चिपक के डान्स करने में खो जाते हैं। तभी एक रोमांटिक गाना बजने लगता है और सभी रोशनियाँ कम कर दी जाती हैं। कोई एक दूसरे को नहीं देख पा रहा था बस हर कोई अपने साथी के साथ इस मौके का फायदा उठा रहा था, कोई किस करने में लगा हुआ, था तो कोई मसलने में। 

अमन और सोफिया भी इस माहौल का शिकार हो गये थे। वो डान्स करते-करते एक दूसरे के इतने करीब आ चुके थे कि उन दोनों की साँसे एक दूसरे से टकरा रही थीं। 

सोफिया के होंठ कंपकंपा रहे थे और अमन का एक हाथ नीचे सरकते-सरकते सोफिया की कमर तक पहुँच चुका था। अमन के होंठ धीरे-धीरे आगे की तरफ बढ़ते चले जाते हैं और कुछ पालों बाद वो सोफिया के नाजुक गुलाबी होंठों से चिपक जाते हैं। 

सोफिया का पहला किस अपने अब्बू के नाम। 
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05-19-2019, 01:22 PM,
#82
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
अमन की जुबान सोफिया का मुँह खोलकर उसके अंदर जाने ही वाली थी कि लाइटें फिर से रोशन हो जाती हैं और अमन सोफिया से अलग हो जाता है। दोनों इधर-उधर देखकर खुद को अड्जस्ट करने की कोशिश करने लगते हैं। 

सोफिया-अब्बू , अब चलते हैं। 

अमन-“ठीक है…” और दोनों वापस होटेल लौट जाते हैं। 

जब दोनों होटेल के रूम में पहुँचते हैं तो सबसे पहले सोफिया उस पैकेट को लेकर अमन के पास आती है। कहती है-“अब्बू , अब इसे वोलो ना…” 

अमन-तुम खुद खोल लो और उसे पहनकर यहाँ आओ। 

सोफिया-इसका मतलब इसमें एक और ड्रेस है? 

अमन-खुद देख लो। 

सोफिया वो पैकेट लेकर बाथरूम में घुस जाती है, और जब वो उसे खोलती है तो मारे शर्म के उसकी चूत के चिपके हुये होंठ एक दूसरे से अलग हो जाते है। जिस्म में एक अजीब सा एहसास होने लगता है। उसे यकीन नहीं होता कि उसके अब्बू उसके लिए ये लाए हैं। वो अपना ड्रेस उतार देती है। जब वो ब्रा खोलने लगती है तो उसके हाथ आज खुद-बा-खुद उसकी चुचियों को दबाने लगते हैं। जिस्म की वो भूक पहली बार बहुत शिद्दत से जागी थी। वो अमन के लाए हुये गिफ्ट को पहन तो लेती है, पर अमन का सामना करने से उसकी रूह तक घबरा रही थी। वो दरवाजे के पास रुक जाती है, और हल्के से बाथरूम का दरवाजा खोलकर रूम में आ जाती है। 
अमन उसे देखकर अपने होश वो बैठता है-“यहाँ आओ सोफिया…” 

सोफिया अपने अब्बू के पास आकर बैठ जाती है। अमन उसके लिए एक ब्लू कलर की लींगर लाया था और उसपे मेचिंग पारदर्शी पैंट और ब्रा। अमन अपनी बेटी का चेहरा उठाकर उसके गाल पे हल्के से किस कर देता है-“बहुत-बहुत-बहुत हसीन लग रही हो सोफिया…” 

सोफिया की आँखें खुद-बा-खुद बंद हो जाती हैं। 

***** ***** 

इधर अमन विला में सभी खाना खाकर अपने-अपने रूम में जा चुके थे। 

जीशान किचेन में बैठा चाय पी रहा था। शीबा नाइटी में उसके सामने आती है-“जीशान बेटा, मेरे रूम में पानी नहीं आ रहा है जरा चल के देखो ना कहीं कुछ अटक तो नहीं गया?” 

जीशान चुपचाप उठकर शीबा के रूम में चला जाता है। उसके पीछे-पीछे शीबा भी रूम में घुस जाती है और रूम का दरवाजा बंद कर देती है। 

जीशान-दरवाजा क्यों बंद किया आपने? 

शीबा-अपने बेटे से कुछ पर्सनल बातें करने थी इसलिए। 

जीशान का मूड पहले से आफ था। उसे इस बात पे और ज्यादा गुस्सा आ जाता है-“पीछे हटिए, मुझे जाने दीजिए…” 

शीबा-“क्या बच्चों जैसे डरते हो? मैं तुम्हारी अम्मी हूँ तुम्हें खा थोड़ी जाउन्गी? बस थोड़ी देर मेरे पास बैठो तो सही …” 

जीशान शीबा को घुरने लगता है-“मुझे बाहर जाना है, मुझे नींद आ रही है…” 

शीबा और इतराने लगती है। उसे पता नहीं था कि जीशान सब जान चुका है। उसे तो बस जीशान पे काबू पाना था-“दुध पीने जाना है? मेरा सोना बच्चा, छोटा सा प्यारा सा बेबी…” 

जीशान के लिए ये किसी टॉर्चर से कम नहीं था। एक बार फिर उसके अंदर का पठान जाग जाता है और वो शीबा को धकेलकर दीवार से चिपका देता है, और कहता है-“प्यार से बोलो तो साली तुम्हें समझ नहीं आता है ना?” 

शीबा-“अह्ह… छोड़ मुझे, अपनी अम्मी के साथ भला कोई ऐसा करता है क्या? अह्ह… छोड़ दर्द हो रहा है…” 

जीशान-“दर्द हो रहा है ना, तो होने दो अम्मी…” 

शीबा-“अह्ह… मैं चिल्लाउन्गी। जीशान अच्छा नहीं होगा, बोल देती हूँ ? तेरे अब्बू तुझे जान से मार देंगे, अगर उन्हें ये बात पता चली तो?” 

जीशान-“अच्छा… जान से मार देंगे। ठीक है मारने दो…” और जीशान गुस्से में आकर शीबा को झुका देता है। जो गाण्ड मटका-मटका के शीबा चलती थी और जिससे वो जीशान को फँसाना चाहती थी। जीशान उसी गाण्ड पे सटासट थप्पड़ बरसाने लगता है। 

शीबा-“अह्ह… तुझे शर्म है की नहीं ? अह्ह… छोड़ दे ना अह्ह…” 

जीशान-“जब अब्बू जान से मारने ही वाले हैं तो कुछ गुनाह मैं भी कर लूँ…” और जीशान शीबा की पैंट हटाकर अपनी दो उंगलियाँ शीबा की चूत में घुसा देता है। 

शीबा की आँखें बंद हो जाती हैं-“अह्ह… जीशान छोड़ मुझे। पागल तो नहीं हो गया ना तू ?” 

जीशान की उंगलियाँ शीबा की चूत के अंदर तक पहुँच चुकी थी। वो उन्हें वहीं झटके देने लगता है, जिससे शीबा की आवाज़ में नम़ी आने लगती है। 

शीबा-“मैं चिल्लाउन्गी, जीशान छोड़ दे मुझे…” 

जीशान-“चिल्ला, जितना चिल्लाना है चिल्ला, मैं आज आपको ऐसा सबक सिखाउन्गा अम्मी कि आप मेरे आस-पास भी नहीं फटकोगी…” 

शीबा जीशान की आँखों में देखने लगती है और जीशान शीबा को उठाकर बैठा देता है। दोनों एक दूसरे की आँखों में देख रहे थे। जीशान की उंगलियाँ अब भी शीबा की चूत में थी और अंदर-बाहर होने की वजह से शीबा के चेहरे के भाव बदलते जा रहे थे। गुस्से की जगह अब जोश उमड़ने लगा था। पर वो उसे जाहिर नहीं कर रही थी। 
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05-19-2019, 01:22 PM,
#83
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
शीबा-“ तू बहुत बड़ी मुशीबत में फँस जाएगा जीशान, बता देती हूँ , अपने अब्बू का गुस्सा तू जानता नहीं है अब भी कहती हूँ छोड़ दे मुझे वरना…” 

जीशान-“चेलेंज जीशान को चेलेंज? वरना क्या? हाँ वरना क्या?” वो अपनी पैंट नीचे सरका देता है और उसका खड़ा हुआ लण्ड बाहर नाचने लगता है। 

वो पूरी ताकत से शीबा को जकड़ लेता है। फिर कहता है-“नखरे तो बहुत दिखा रही हो अब। और इतने दिनों से जो मेरे आगे पीछे घूम रही थी वो किसलिए था? हाँ बोलो? 

शीबा-“कुत्ते, क्या ये सब करने के लिए मैंने तुझे पाल-पोसकर बड़ा किया था हरामी?” 

जीशान-“ गाली … मुझे गाली ? दिखा तो ऐसे रही हो, जैसे कुछ करना नहीं चाहती? फिर ये चूत से पानी क्यों बह रहा है तुम्हारे हाँ?” जीशान शीबा की चूत के पानी से गीली अपनी उंगलियाँ बाहर निकाल देता है। उसका पूरा हाथ गीला हो चुका था। जीशान ये साफ देख रहा था कि शीबा की चूत जीशान के इस हमले से गील होने लगी थी। 

शीबा-“घिन आती है मुझे तुझसे, जीशान तू मेरी औलाद हो ही नहीं सकता…” 

जीशान-“सच कहा आपने… अम्मी, मैं आपके औलाद हूँ ही नहीं । शायद और घिन आती है ना मुझसे? तो लो जरा अपनी चूत का पानी चाटकर बताओ कि ये कैसा है? क्या इसमें भी घिन आती है आपको?” और पूरा गीला हाथ शीबा के मुँह में था। वो घुन-घुन की आवाज़ निकाल रही थी और जीशान पूरी ताकत से शीबा के निपल्स मरोड़ रहा था-“आज मैं आपको अपने घिनौनेपन की इंतिहा बताता हूँ अम्मी जान…” और जीशान शीबा के जिस्म पे बचे हुई सारे कपड़े उतार देता है। 

शीबा-“मैं तुझे जान से मार दूँगी जीशान, अगर तूने मेरे साथ? अह्ह…” वो बोलते-बोलते रुक जाती है। क्योंकि जीशान उसे पकड़कर नीचे बैठा देता है और उसके चेहरे पे अपने लण्ड से मारने लगता है। 

जीशान-“मार दे ना जान से, जिंदा रहना भी कौन चाहता है अम्मी? अच्छा एक बात बताओ कि कभी मुँह में अब्बू का लिया है?” 

शीबा चुपचाप आँखें बंद किए हुये बैठे थी, ना आँखों में आँसू थे, और ना वो ज्यादा ऐतराज कर रही थी। 

जीशान फिर से उसकी गर्दन दबाते हुये बोलता है-“बोल्ल्ल… ली है कि नहीं ?” 

शीबा-“नहीं …” 

जीशान-“झूठ… तुम्हें पता है ना मुझे झूठ से कितनी नफरत है? चलो मैं सिखाता हूँ कैसे मुँह में लेकर चूसते हैं?” 

शीबा अपना चेहरा इधर-उधर करने लगती है। पर जीशान की ताकत उसके सामने कुछ भी नहीं थी। वो अपनी दो उंगलियाँ शीबा के मुँह में डाल देता है और उसकी जुबान को बाहर खींचने लगता है, जिससे शीबा अपना मुँह खोल देती है और मुँह खुलते ही जीशान अपने लण्ड को शीबा के मुँह में घुसा देता है। शीबा की आँखें फटी की फटी रह जाती हैं। वो साँस नहीं ले पा रही थी, क्योंकि जीशान का लण्ड अमन के लण्ड से भी बड़ा और मोटा था, और ना वो उसे चूसरही थी। बस मुँह में से सलाइवा बाहर गिर रहा था। 

जीशान एक थप्पड़ शीबा के मुँह पे जड़ देता है-“चूस… वरना मुझसे बुरा कोई नहीं …” 

शीबा डर जाती है और-“गलप्प्प गलप्प्प गलप्प्प…” जीशान के लण्ड को अपने मुँह में चूसती चली जाती है। 

जीशान-“अह्ह… बहुत अच्छे अह्ह…” फिर जीशान के हाथ शीबा के बाल पकड़ लेता हैं। 

और शीबा की आँखें बंद हो जाती हैं। शीबा लण्ड चूसने में तो एक्सपर्ट थी। वो पल भर में जीशान के लण्ड को तेज धारदार चाकू की तरह तेज कर देती है। जीशान एक जोरदार झटका देता है और उसका लण्ड पूरा का पूरा शीबा के गले के अंदर चला जाता है। शीबा जीशान के नीचे से भागने के लिए खड़ी हो जाती है और वो जैसे ही दरवाजे के पास पहुँचती है जीशान पीछे से उसे झपट लेता है, और उसे दीवार से खड़ा करके पीछे से चिपक जाता है। 

जीशान-“अभी नहीं ना अम्मी जान… अभी तो एक बेटा अपनी अम्मी के दूध का कर्ज़ चुकाएगा…” वो अपने लण्ड को शीबा की गाण्ड की दरार में फँसा देता है। 

शीबा-“हरामी कहीं के अह्ह… कितना घटिया इंसान है तू ? अह्ह…” 

जीशान-“हाँ, मैं घटिया हूँ अम्मी बहुत बड़ा घटिया इंसान…” वो खड़े-खड़े अपनी अम्मी की चूत के मुँह पे अपने लण्ड को लगा देता है। 

लण्ड के चूत पे लगते ही शीबा अपनी आँखें बंद कर लेती है। वो जानते थी आगे क्या होगा? और वही हुआ। जीशान का लण्ड पहली बार अपने अम्मी शीबा की चूत को चीरता हुआ अंदर तक चला जाता है। शीबा गालियाँ देती जाती है और जीशान सटासट अपने लण्ड को शीबा के चूत में घुसाता जाता है। 


शीबा-“अह्ह… निकाल हरामी, मुझे दर्द हो रहा है अह्ह… माँ…” 

जीशान-“कर लो माँ को याद, अगर वो यहाँ होती तो मैं उसे भी चोद देता…” 

शीबा-“कुत्ते के औलाद अह्ह… नहीं छोड़ूँगी मैं तुझे अह्ह…” 

जीशान-“बहुत गालियाँ दे रही है साली अह्ह…” कहकर वो शीबा को एक टाँग पे खड़ा करके इतने तेजी से झटके मारने लगता है कि शीबा को आज सच में अपनी माँ याद आ जाती है। दो-तीन झटकों के बाद ही जीशान अपना पानी शीबा की चूत में छोड़ने लगता है आह्ह… अह्ह…” 

शीबा की चूत तो पहले ही वाली हो चुकी थी। 

जीशान बेड पे बैठ जाता है और अपना सर पकड़ लेता है। शीबा गाण्ड हिलाती हुई उसके पास आकर बैठ जाती है। दोनों एक दूसरे से नजरें नहीं मिला रहे थे। जीशान को अपने किए पे पछतावा होने लगता है। वो अनुम का गुस्सा शीबा पे निकाल चुका था। 

शीबा उसे चुपचाप देखने लगती है। 

जीशान सर उठाकर शीबा की तरफ देखता है। उसके आँखों में पछतावे के आँसू थे-“मुझे माफ कर दो अम्मी, जो कुछ हुआ वो सब नहीं होना चाहिए था। मैंने किसी और का गुस्सा आप पे निकाल दिया…” 

शीबा मुश्कुराती हुई उसे अपने सीने से चिपका लेती है-“मत रो जीशान , मैं जानती हूँ कि जो हुआ वो गलत हुआ। पर मैं खुद ये चाहती थी बेटा…” 

जीशान सर उठाकर शीबा की तरफ देखने लगता है। 

शीबा-“हाँ जीशान, मैं खुद चाहती थी कि तू मेरे साथ करे । अगर मैं तुझे नहीं भड़काती तो शायद तू ये कभी नहीं कर पाता। इसीलिए मैंने तुझे गालियाँ भी दी , ये जानते हुये कि तू गालियाँ नहीं सुन सकता…” 

जीशान के चेहरे पे हल्की-हल्की मुस्कान लौट आती है और वो शीबा को अपने से चिपका लेता है-“सच अम्मी, थैंक यू … वरना मैं खुद को कभी नहीं माफ कर पाता। पर अपने ऐसा क्यों किया?” 

शीबा-“कुछ बातें बोलने जैसी नहीं होती, मेरे सोना… अब ऐसे ही रात भर बैठा रहेगा या कुछ करेगा भी? जोर जबरदस्ती से कर लिया, अब जरा प्यार से भी करके दिखा तो मानूं …” 

जीशान शीबा को बिना कुछ काहे नीचे लेटा देता है और उसकी चूत पे झुक जाता है। देखते ही देखते जीशान की जीभ शीबा की चूत को अंदर तक चाटने लगता है-“गलप्प्प गलप्प्प…” 

शीबा-“अह्ह… मेरा राजा बेटा… चूसले… अपनी अम्मी की चूत को खा जा रे अह्ह…” 

जीशान शीबा को उल्टा कर देता है और चूत के साथ-साथ गाण्ड भी चाटने लगता है। 

शीबा की साँसें रुक-रुक के चलने लगती हैं वो बहुत-बहुत-बहुत ज्यादा उत्तेजित हो जाती है, जो उसके चेहरे से पता चल रहा था-“अह्ह… मुझे भी चूसने दे जीशान अह्ह…” 

जीशान शीबा को अपने लण्ड की तरफ घुमा देता है और दोनों एक दूसरे के नाजुक अंगों को बड़े चाव से चाटने लगते हैं-“गलप्प्प गलप्प्प…” 

जीशान का लण्ड जब तन जाता था तो अमन के लण्ड को भी मात दे देता था। तीनों माँ का दूध पीकर बड़ा हुआ था जीशान। उसके लण्ड में बला की ताकत थी। पर अभी उसे चुदाई के गुर सीखने थे। वो शीबा की चूत को चाट-चाटकर लाल कर देता है खारा-खारा पानी शीबा की चूत से बहता हुआ जीशान के मुँह में गिरने लगता है, जिसे जीशान चटखारे मार-मार के चाटने लगता है। 

ना शीबा की चूत से अब बर्दाश्त हो रहा था और ना जीशान के लण्ड से। जीशान शीबा को सीधा लेटा देता है और अपने लण्ड को उसकी चूत पे घिसता हुआ शीबा की आँखों में देखते हुये अंदर तक पेल देता है। 
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05-19-2019, 01:22 PM,
#84
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
शीबा-“अह्ह… तेरे अब्बू का भी इतने अंदर तक नहीं गया आज तक, जितने अंदर तूने टक्कर मारा है जीशान अह्ह…” 

जीशान ये सुनकर और ताकत से चूत की गहराईयों में लण्ड को पहुँचाने लगता है। 
शीबा मस्ती में इतना चूर हो चुकी थी कि वो कमर को ऊपर उठा-उठाकर जीशान को और अंदर जाने की जगह देने लगती है। 

जीशान-“अम्मी, आपकी चूत इतनी टाइट क्यों है? अह्ह…” 

शीबा-“अह्ह… अब तू मिल गया है ना… खुल जाएगी… रोज करेगा ना अपनी अम्मी को? अह्ह…” 

जीशान-“हाँ अम्मी रोज…”

दोनों एक दूसरे को चूमते हुई चुदाई के नशे में डूब जाते हैं। रात सुबह की तरफ बढ़ती रहती है और जीशान शीबा की चूत में। सुबह के 4:00 बजे तक जीशान शीबा को थोड़ी-थोड़ी देर गैप देकर चोदता रहा। जब वो थक जाता, तब शीबा लण्ड मुँह में लेकर लो बैटरी को फिर से चार्ज कर देती और जीशान अपने काम में लग जाता। 

सुबह 4:30 बजे-

जीशान शीबा के पास लेटा हुआ था। वो शीबा को चूम लेता है-“गुडनाइट अम्मी…” 

शीबा भी जीशान के होंठों को कुछ देर अपने काबू में रखती है और फिर आजाद कर देती है-“गुडनाइट बेटा…” 

रात जब जीशान अपनी अम्मी शीबा की चूत पे कहर बरसा रहा था। उसी रात दिल्ली के होटेल के रूम में अमन सोफिया के गालों पे किस करता है और सोफिया की आँखें बंद हो जाती हैं। 

दिल्ली होटेल रूम रात 9:00 बजे-
अमन का सोफिया के गाल पर किस करना था कि सोफिया की मारे शर्म के आँखें बंद हो जाती हैं। उसका दिल बेकाबू होने लगा था। हाथों में पशीना इसका प्रमाण था। 

सोफिया-“अब्बू …” 

अमन ने जिंदगी में कभी किसी औरत की जबरदस्ती नहीं लिया था। वो सामने वाली को पूरा मोका देता था संभलने के लिये, अगर वो फिर भी फिसललती तो अमन उसे अपनी मजबूत बाजुओं में थाम लेता और फिर कभी नहीं छोड़ता। 

सोफिया काँपते होंठों से अमन से कहती है-“अब्बू , मुझे नींद आ रही है…” 

अमन-“ठीक है बेटा, तुम चेंज करके सो जाओ। मैं जरा बाहर से घूमकर आता हूँ …” 
फिर अमन उठकर रूम के बाहर निकल जाता है। उसकी आँखों में नींद नहीं थी। 
वो शीबा को फोन लगाता है पर उसका मोबाइल स्विच आफ आ रहा था। आधे घंटे बाद जब अमन अपने रूम में पहुँचता है तो हैरान रह जाता है। सोफिया ने अपनी वो नाइटी चेंज नहीं की थी। वो उसी तरह सो गई थी। उसके चेहरे पे सकून साफ नजर आ रहा था। जिस्म एकदम मखमली , अपनी अम्मी रज़िया की तरह था। 
अमन पिछले कुछ दिनों से रज़िया को बहुत मिस कर रहा था। एक पल को तो उसे ऐसे लगा कि सामने सोफिया नहीं रज़िया सोई हुई है। 

अमन के कदम सोफिया की तरफ बढ़ने लगते हैं वो बेड पे बैठ जाता है। शेर 3 दिन से भूका था। सामने नाजुक शिकार था, पर अमन एक पफेक्ट मर्द था। जितनी ताकत से वो औरत को ठोंकता था उतना ही उसमें अपने जज़्बातों को काबू में रखने की ताकत थी। 

पर आज ना जाने क्यों दिल बार-बार सोफिया को छूने को कह रहा था। वो अपने दिल को कल से समझा रहा था, पर वो था कि अपने मालिक की एक नहीं सुन रहा था। अमन सोफिया के नाजुक होंठों को अपनी उंगलियों से छूता है। 

एक करेंट सोफिया के जिस्म में दौड़ जाता है वो सोई नहीं थी। सोफिया आँखें नहीं खोलती बस उसी तरह चुपचाप पड़ी रहती है। 

अमन फिर से उसके होंठों को छूता है, इस बार दवाब थोड़ा ज्यादा था। अमन धीरे-धीरे अपना हाथ सोफिया की गर्दन से होता हुआ नीचे उसकी चुची के बस थोड़ा ऊपर रख देता है। उसे सोफिया के दिल की धड़कन साफ महसूस हो रही थी। ना जाने कैसे अमन सोफिया की नाइटी को नीचे कर देता है और सफेद दूध की तरह वो नरम मुलायम सोफिया की चुचियाँ अमन के सामने मुँह दिखाने लगती हैं। थोड़ा और नीचे खींचने पर वो पूरी तरह अपना हुश्न अमन पे बरपा करने को तैयार थी । 

सोफिया आँखें बंद किए अपने दिल की धड़कन और जिस्म की थरथराहट को काबू में करने की नाकाम कोशिश कर रही थी। 

अमन को अब सोफिया नहीं बल्की सामने रज़िया दिखाई दे रही थी। वो ये भूल गया था कि सोफिया उसकी अपनी सगी बेटी है, जो उसपे दिल से भरोसा करती है। पर मर्द की फ़ितरत भी उस चिड़िया की तरह होती है। जहाँ भी शख्स-ए-गुल देखी झूला डाल देती है। 

वो सोफिया के निपल्स को हल्के से हिलाता है, ये सोचकर कि सोफिया उठ जाए, या ऐसी कोई हरकत करे जो आज रात गुजारने की राह आसान कर दे। 

पर सोफिया अपने अब्बू की इंतिहा देखना चाहती थी। पहली बार कोई मर्द उसके निपल्स को इस तरह छू रहा था और वो थी की ऐतराज भी नहीं कर सकती थी। 

कुछ देर की खामोशी के बाद अमन दुबारा सोफिया की वो नाइट अपनी जगह कर देता है और बेड के दूसरी तरफ लेट जाता है। 

सोफिया बहुत खुश थी। उसे अपने अब्बू पर बहुत फख्र महसूस होता है। पर उसके जवान दिल के किसी कोने में एक गम भी होता है, दिल का वो हिस्सा जो सिर्फ़ मर्द को अपने जिस्म पे देखना चाहता है। रात अपने-अपने ख्वाबों में कटने वाली थी। 
जहाँ अमन अपनी और रज़िया की बातें सोच-सोचकर नींद के आगोश में चला जाता है। वहीं सोफिया जैसे ही नींद की खाई में गिरती है तो उसे अमन नजर आता है। वो खुद को अमन से चुदती हुई देखकर हड़बड़ाकर उठ जाती है। 

पास में अमन खामोशी से लेटा हुआ था। वो एक नजर अमन के चेहरे पे डालती है और फिर सर झटक के दुबारा सोने की कोशिश करती है। 
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05-19-2019, 01:22 PM,
#85
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
सुबह 7:00 बजे-

जीशान और शीबा को सोए हुये अभी सिर्फ़ 3 घंटे हुये थे। शीबा जीशान के जिस्म से चिपके हुई थी। वो जल्दी उठती थी। उसकी आँख जब खुलती है तो पहली बार वो खुद को किसी दूसरे मर्द की बाहो में नंगी पाकर शरमा जाती है। जिस्म पे एक भी कपड़ा नहीं था, ना जीशान के और ना खुद उसके। वो जब थोड़ा कसमसाकर उठने की कोशिश करती है तो जीशान उसका हाथ पकड़ लेता है। 

जीशान-गुड मॉर्निंग अम्मी। 

शीबा शरमाते हुये जीशान के गाल को जोर से काट लेती है-“गुड मॉर्निंग… अच्छा चलो तुम अपने रूम में जाओ, वरना कोई हमें एक साथ देख सकता है…” 

जीशान शीबा को अपनी बाहो में दबाते हुये-“इतनी जल्द क्या है? अम्मी जान…” 

शीबा-“हटो भी जीशान, रात भर सोने नहीं दिया तुमने मुझे और अब सुबह-सुबह फिर से शुरू हो गये…” 

जीशान-“क्या करूँ? जिसकी अम्मी इतनी जवान, इतनी खूबसूरत हो, वो भला कैसे चुप रह सकता है…” ये कहते हुये वो शीबा के होंठों पे सब्बा-खैर लिख देता है। 

शीबा किसी तरह जीशान के नीचे से निकलकर बाथरूम में घुस जाती है। वो बाथटब में पानी भरकर जैसे ही उसमें बैठती है, जिस्म से ठंडा पानी छूते ही रात का सारा मंज़र एक बार फिर से दिमाग़ में रोशन हो जाता है। शीबा के हाथ अपनी चूत की तरफ बढ़ जाते हैं और दिल में बस एक चाहत जाग जाती है। वो जब अपनी आँखें खोलती है तो बाथटब के सामने जीशान उसे खड़ा दिखाई देता है। 
उसे शर्म आ जाती है 

जीशान का मोटा लंबा लण्ड ढीला था और लटक रहा था, उसे सहारे की ज़रूरत थी, जो सिर्फ़ शीबा दे सकती थी। अपने होंठों से। 

जीशान के बाथटब में बैठते ही शीबा उसके लण्ड पे टूट पड़ती है और उसे अपने मुँह में खींच लेती है-“गलप्प्प गलप्प्प…” 

गीले हाथों से जीशान कभी शीबा की चुची मसलता तो कभी कमर को दबाने लगता शीबा अपने काम में मसरूफ़ थी। वो जीशान के लण्ड को जल्द से जल्द खड़ा करना चाहती थी उसकी चूत में आज से पहले इतना खिंचाव कभी नहीं आया था वो खुद हैरान थी कि जो चूत अमन के लण्ड के लिए इतनी नहीं तरसी आज वो अपने बेटे के लण्ड को लेने के लिए क्यों इतने जोर से चिल्ला रही है।

जीशान शीबा को अपने आगे करके पीछे से उसकी चूत को सहलाने लगता है। 

शीबा-“अह्ह… बेटा वो तो कब से तैयार है, तुम देर कर रहे हो आ जाओ ना अंदर…” 

जीशान के लिये ये शब्द मदहोश करने के लिए काफी थे। वो नीचे से अपने लण्ड को शीबा की चूत पे लगा देता है, और पच्च की आवाज़ के साथ वो शीबा की चूत में घुस जाता है। 

शीबा-“अह्ह… क्या जादू कर दिया है जीशान तूने अपनी अम्मी के जिस्म पर अह्ह… ये मेरी सुनता क्यों नहीं है? अह्ह…” 

जीशान-“अह्ह… अम्मी आपके जिस्म पे आज से मेरा कब्जा है… इसलिए नहीं सुनता वो आपकी अह्ह…” 

शीबा-“हाँ बेटा हाँ अह्ह… ऐसे अंदर तक नहीं जा रहा है, मुझे पूरा चाहिए… नीचे कर ले मुझे…” 

जीशान शीबा को बाथटब की ऊपर लेटा देता है और उसके पेट पर अपना लण्ड रख कर कहता है-“यहाँ ठीक है ना?”

शीबा कुछ नहीं कहती और जीशान के लण्ड को पकड़कर अपनी चूत के मुँह पे रख देती है-“यहाँ ठीक है…” 

जीशान मुस्कुराता हुआ अंदर पेल देता है। दोनों माँ बेटे फिर से अपनी मोहब्बत को कामयाब करने में जुट जाते हैं। 20 मिनट की इस दमदार चुदाई के बाद शीबा खुद को आसमान की परी की तरह महसूस करने लगती है। उसका जिस्म एकदम हल्का हो चुका था, पैर जमीन पे टिकना नहीं चाहते थे। 

सुबह के नाश्ते के वक्त भी जीशान और शीबा की आँख मिचोली चलती रहती है, जिस पर अभी तक किसी की नजर नहीं गई थी। जीशान शीबा के रूम में जाकर उसे गुड-बाइ वाली किस करता है और लुबना के साथ कालेज के लिए निकल जाता है। 

रज़िया अपने रूम में बैठी हुई थी। उसे अमन के बहुत याद आ रही थी। वो अमन को काल करती है पर बैटरी डिस्चार्ज होने की वजह से उसका फोन नहीं लग पाता। वो बोझिल दिल से दुबारा ट्राइ करती है मगर अमन का सेल बंद था। कुछ देर इधर-उधर टहलने के बाद वो कुछ सोचती हुई सोफिया को काल करती है। 

सोफिया काल रिसीव करती हुई-“अस्सलाम आलेकुम… दादी जान कैसे हैं आप?” 

रज़िया-“मैं ठीक हूँ , बेटी आप कैसे हैं?” 

सोफिया-मैं भी ठीक हूँ दादी । 

रज़िया-“अमन कहाँ है? उसका सेल क्यों बंद आ रहा है?” 

सोफिया-“अब्बू तो बाहर किसी से मिलने गए हैं दादी । सेल यहीं रूम में है…” 

रज़िया-“ओह्ह… अच्छा कैसी तबीयत है अमन की? सब ठीक तो है ना? तुम ख्याल तो रख रही हो ना अमन का?” 

रज़िया ने एकदम से इतने सारे सवाल पूछ लिए थे कि सोफिया दिल ही दिल में हँसने लगती है-“ दादी आप बिल्कुल फिकर ना करें। अब्बू बिल्कुल ठीक हैं वो आएँगे तो मैं आपसे बात करवाती हूँ …” 

रज़िया-“ठीक है बेटी …” और रज़िया सेल बंद कर देती है। वो अपनी सोचों में गुम थी कि तभी उसके रूम में अनुम आती है। 
अनुम के चेहरे पे गम के बदल छाये हुये थे। 

रज़िया-क्या हुआ अनुम? परेशान लग रही है। 

अनुम रज़िया के बेड पे बैठ जाती है-“अम्मी बात परेशानी की ही है…” 

रज़िया-क्या हुआ? 

अनुम-“अम्मी वो जीशान …” 

रज़िया-जीशान को क्या? 

अनुम-“अम्मी, जेशु हमारा राज जान चुका है…” 

रज़िया-“क्याआअ? क्या कह रही है तू ? कैसे? किसने कहा उससे?” 

अनुम की आँखों में आँसू आ जाते है-“उसे हमारे निकाह के सर्टिफिकेट हाथ लग गये। मुझसे वो पूछने आया था कि हमने ऐसा क्यों किया? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा अम्मी। वो मेरी तरफ देख भी नहीं रहा था। एक अजीब सा खौफ होने लगा है मुझे। जब भी वो मेरे सामने आता है मेरी नजरें उसका सामना करने से डरती हैं। अम्मी अब आप ही बताओ मैं कैसे उसे समझाऊ?” 

रज़िया अनुम को अपने सीने की गर्मी देती है जिसकी इस वक्त अनुम को बेहद ज़रूरत थी-“चुप हो जा बेटी , वक्त का पहिया एक बार फिर घूम रहा है, और इस बार उस पहिये के नीचे पता नहीं कितने पिसने वाले हैं?” 

अनुम-क्या मतलब अम्मी? 

रज़िया-“कुछ नहीं … तू जीशान से कोई बात मत करना, मैं वक्त आने पे उसे सारी बातें बता दूँगी और मुझे उम्मीद है कि वो समझ जाएगा। 

अनुम-सच अम्मी, वो मुझे माफ कर देगा ना?” 

रज़िया-“तूने कोई गलती नहीं की मेरे बच्चे। क्यों अपना दिल छोटा करती है। तूने प्यार किया था, सच्ची मोहब्बत, बस फ़र्क इतना था कि ये मोहब्बत अपने सगे भाई के लिए थी। अगर तू गुनहगार है तो मैं भी हूँ । क्योंकि एक माँ होने के नाते मुझे ये गुनाह नहीं करना चाहिए था। पर बेटी जब इंसान किसी से बेपनाह मोहब्बत करता है ना तो दुनियाँ के सारे रस्म-ओ-रिवाज भूल जाता है…” 

अनुम अपनी अम्मी के सीने से चिपकी सारे बातें गौर से सुन रही थी। उसके दिल में कहीं ना कहीं सकून उतर आया था। बस वो परेशान थी तो इस बात को लेकर कि उसका अपना बेटा उससे कहीं इतना खफा ना हो जाये कि वो अपनी अम्मी से नफरत करने लगे। 
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05-19-2019, 01:22 PM,
#86
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
दूसरी तरफ कालेज में जीशान अपने क्लासरूम में बैठा कुछ सोच रहा था। वो जो चाहता था वो उससे बहुत दूर थी। जिस खूबसूरत बला को देख-देखकर उसने अपनी जवानी को संभाला था, वो उसकी सगी माँ निकली थी। उसे इस बात से बेहद खुशी भी हुई थी कि अनुम उसकी अम्मी है, ना कि शीबा। वो अनुम को पाने के लिए हर जायेज नाजायेज काम करने को तैयार था। चाहे उसके लिए उसे अपने अब्बू अमन ख़ान से ही क्यों ना लड़ना पड़े। बस वो अनुम की मोहब्बत चाहता था। वो मोहब्बत जो उसके दिल में एक कोने में दफन थी, जिसे उसने आज तक किसी पर भी जाहिर नहीं किया था। 

वो शीबा के साथ रात गुजार चुका था। पर जो उलफत उसे अनुम के पास बैठने से महसूस होती थी, वो शीबा को चोदने से भी महसूस नहीं हुई थी। वो क्या वजह थी कि वो अनुम को जितना इग्नोर कर रहा था, अनुम उतना ही उसके दिल में घर करती जा रही थी। 

क्लास रूम में टीचर दाखिल होते हैं और जीशान अपनी सोच के दायरे से बाहर आ जाता है। टीचर ये अनाउन्स करने आए थे कि 3 दिन के बाद कालेज से समर कैम्प के लिए ट्रिप जाने वाला है। जो लोग जाना चाहते हैं वो जल्द से जल्द फीस जमा करवा दें। 

सभी खुशी के मारे तालिया बजाने लगते हैं। जीशान भी बहुत खुश था कि चलो इसी बहाने कुछ वक्त घर से बाहर तो रह लेगा। मूड फ्रेश करने का ये बेहतर मौका था। बस उसे एक चीज की टेंशन थी कि कहीं लुबना भी आने की ज़िद ना कर बैठे। 
क्योंकि फिर उसे लुबना की चौकीदार की नौकर मिल जाती घर वालों की तरफ से। 
हुआ भी वही … जब क्लासेस ख़तम हुईं तो जीशान गेट के पास खड़ा लुबना का इंतजार कर रहा था कि तभी उसे अपनी पीठ पे किसी का हाथ महसूस होता है। जब वो पीछे पलटकर देखता है तो रूबी मुश्कुराते हुये उसे दिखाई देती है। 

रूबी-हाई जीशान। 

जीशान-हाय रूबी कैसी हो? 

रूबी-मैं ठीक हूँ । असल में मुझे तुमसे कुछ काम था। 

जीशान-हाँ बोलो। 

रूबी-वो मैं समर कैम्प जाना चाहती हूँ । 

जीशान-हाँ तो… इसमें मैं क्या कर सकता हूँ ? 

रूबी-वो मुझे तुम्हारी हेल्प चाहिए थी। 

जीशान-कैसी हेल्प रूबी? प्लीज़ … साफ-साफ कहो जो कहना चाहती हो। 

रूबी-मैं चाहती हूँ कि तुम मेरी अम्मी से बात करो कि मुझे समर कैम्प जाने दें। अगर मैं बात करूँगी तो वो मुझे कभी जाने नहीं देंगी। अगर तुम कहोगे तो वो मान जाएगी। क्योंकि उन्हें ये यकीन रहेगा कि तुम वहाँ मेरे साथ रहोगे और अगर कोई प्राब्लम आए तो यू नो व्हाट आई मीन। 

जीशान-अच्छा तो ये बात है। ठीक है, मैं आंटी से बात करने शाम में आ जाऊूँगा तुम्हारे घर पे। 

रूबी खुशी के मारे जीशान के गले में बाहें डालकर चिपक जाती है। जीशान दिल ही दिल में-“ साली , माँ-बेटी दोनों दिल-फेंक हैं। चलो इसी बहाने हाथ सेंकने को तो मिल ही जाएगा। पर किसी की नजरें ये सीन देखकर लाल हो गई थीं।

लुबना-क्या हो रहा है ये सब? 

रूबी झट से जीशान से अलग हो जाती है। 

जीशान-अरे कुछ नहीं , ये तो बस ऐसे ही । चलो-चलो घर चलते हैं। 

लुबना रूबी को खा जा ने वाली नजरों से देखती हुई कार में बैठ जाती है। जब कार अमन विला की तरफ बढ़ती है तो लुबना का पारा भी बढ़ने लगता है। लुबना कहती है-“भाई ये सब ठीक नहीं है…” 

जीशान-क्या इतनी से बात को लेकर बैठी हो लुबु? 

लुबना-अच्छा, इतनी सी बात… ठीक है, मैं भी किसी लड़के के गले मिलती हूँ कल कालेज में। 

जीशान कार झटके से रोक देता है और लुबना की तरफ देखकर उसकी गर्दन को हाथ में दबोच लेता है-क्या कहा तूने ? फिर से बोल? 

लुबना की साँस घुटने लगती है-“ सारी सारी , मैं तो मजाक कर रही थी…” 

जीशान उसे छोड़ देता है-“आइन्दा ऐसी वैसी बात की ना तो जान से मार दूँगा…” 

लुबना कुछ नहीं कहती। उसे जीशान की यही अदा तो सबसे प्यारी लगती थी। वो लुबना के आस-पास भी किसी को फटकने नहीं देता है। टिपिकल मर्द जो था जीशान। खुद यहाँ वहाँ मुँह मारता फिरे पर कोई उसकी माँ बहन की तरफ आँख उठाकर भी देख ले तो गाण्ड में दर्द होने लगता है। 

लुबना-भाई मैं बहुत खुश हूँ । 

जीशान-क्यों? 

लुबना-“अरे खुशी की तो बात है, मैं समर कैम्प जो जा रही हूँ …” 

वो जानती थी कि घर वाले उसे अकेले जाने देने से रहे। अगर वो जाएगी तो साथ में जीशान को भी जाना पड़ेगा। और वो यही तो चाहती थी। जीशान के साथ बाहर घूमना। 

जीशान दिल में खुद को गालियाँ देने लगता है-“साला अपनी किस्मत ही खराब है। रूबी के साथ मजा मारने को मिलने वाला था की … अब संभालो इसे भी…” किसी तरह कार अमन विला पे पहुँच जाती है। 

जब जीशान अपने रूम में कपड़े उतारकर बाथरूम में जाने ही वाला था कि रूम में शीबा आ जाती है। और आते ही जीशान की छाती से चिपक जाती है। 

जीशान-“अरे अम्मी, मुझे फ्रेश होने जाना है…” 

शीबा-“मुझे अभी कुछ मत बोल। जब से तू कालेज गया है तब से आग में जल रही हूँ , जरा मुझे पिघलने दे…” 

जीशान शीबा की कमर को दोनों हाथों में पकड़कर मसलने लगता है। 

शीबा-“अह्ह… अभी नहीं रात में मेरे रूम में आ जाना…” 

जीशान-“थोड़ा रस तो पीने दो…” और ये कहते हुये दोनों के होंठ एक दूसरे से मिल जाते हैं। 

शीबा कुछ देर बाद अपने होंठों को जीशान की कैद से आजाद करके अपने रूम में चली जाती है और जीशान जुबान होंठों पे फेरकर रह जाता है। 

उधर लुबना रज़िया को मसका मारने में लगी हुई थी। वो किसी भी कीमत पे समर कैम्प जाना चाहती थी इसके लिए रज़िया की इजाजत ज़रूरी थी। लुबना ने कहा-“ दादी , बस कुछ दिनों की तो बात है और वैसे भी मैं कौन सी अकेले जा रही हूँ भाई भी तो साथ होंगे ना…” 

रज़िया-“बेटा क्या ज़रूरत है ये कैम्प वेम्प में जाने की। घर का काम सीखो, आगे चलकर वही सब तो करना है…” 

लुबना बुरा सा मुँह बना लेती है-“कोई मुझसे प्यार नहीं करता, सब जीशान को चाहते हैं। मैं लड़की हूँ , इसका मतलब घर में कैद हो जाओ। अब्बू यहाँ होते तो मुझे फौरन हाँ कह देते…” 

रज़िया मुश्कुरा देती है और लुबना के सर पे थप्पड़ मारके उसे अपने गले लगा लेती है-“बदमाश कहीं की… खूब जानती हूँ तेरी ये सब होशियारी । पहले मुझे जीशान से बात करने दे…” 

लुबना-“भाई से मैंने बात कर ली है। वो तो बहुत खुश हैं मुझे साथ ले जाने के लिए…” 

रज़िया-“चल हट झूठी… भला वो क्यों खुश होने लगा? कोई अपने गले में घंटी बाँधना पसंद करेगा? हेहेहेहे…” और रज़िया हँसती हुई जीशान के रूम की तरफ चल जाती है। 

लुबना-“ दादी , आप भी ना…” उसका मुँह फूल जाता है। वो दिल ही दिल में दुआ करने लगती है कि जीशान मान जाए, उसे साथ ले जाने के लिए। वो जानती थी जीशान मान जाएगा और अगर नहीं माना तो उसे मनाना आता है। 

जीशान अपने रूम में लेटा हुआ था। वो अभी-अभी नहाकर आया था। रज़िया पहले नॉक करती है और फिर जीशान के रूम में आ जाती है। जीशान बेड पे उठकर बैठ जाता है-“अरे दादी आप? क्या बात है कुछ काम था?” 

रज़िया सामने रखे सोफे पे आकर बैठ जाती है। वो बेहद खूबसूरत लग रही थी। अमन की मोहब्बत उसके जिस्म पे साफ नजर आती थी। रज़िया का हँसना। उसका बात करना हर एक चीज में अमन झलकता था। रज़िया जीशान को अपने पास बुला लेती है। जीशान चुपचाप रज़िया के पास आकर बैठ जाता है। 
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05-19-2019, 01:23 PM,
#87
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
रज़िया-“जीशान मुझे तुमसे कुछ बात करनी थी। सोचा तुम फ्रेश हो तो चली आई…” 

जीशान का चेहरा गंभीर हो जाता है। उससे पता था कि रज़िया क्या बात करने आई है। कमाल की बात तो ये थी कि जीशान को पता था कि ना सिर्फ़ अनुम ने बल्की उसकी दादी रज़िया भी अमन से शादी कर चुकी है। पर उसे इस बात पर बिल्कुल गुस्सा नहीं था। वो सिर्फ़ अनुम और अमन के रिश्ते को लेकर नाराज था। 

जीशान कहता है-“हाँ दादी बोलिये, मैं सुन रहा हूँ …” 

रज़िया-“मुझे पता है जीशान कि तुम भी समझ गये होगे कि मैं क्या बात करने आई हूँ …” 

जीशान-“नहीं , मुझे नहीं पता…” 

रज़िया कुछ देर चुप रहने के बाद खामोशी तोड़ती है-“अनुम तुम्हारी अम्मी है…” 

जीशान-“जानता हूँ और आपके बारे में भी जान चुका हूँ आगे बोलिये?” 

रज़िया-“देखो जीशान, मैं जानती हूँ कि तुम बहुत गुस्सा हो और तुम्हारा गुस्सा जायज़ भी है। पर अगर तुम एक बार मेरी बात सुन लोगे तो शायद तुम्हारे रवैये में कुछ बदलाव आ जाए, और तुम अनुम को और मुझे हमारी गलती के लिए माफ कर दो…” 

जीशान सर झुकाए चुपचाप बैठा रहता है। 

रज़िया-“आज से 20 साल पहले ये घर एक आम घर की तरह था। हर कोई खुश था मगर सिर्फ़ ऊपरी तौर पर। दिल का हाल तो सिर्फ़ ऊपर वाला जानता था। उस वक्त अमन ने मुझे समझा। तुम्हारे दादा तो हमेशा सऊदी में रहते थे। उनके पास किसी के लिए वक्त नहीं था। दुनियाँ में इंसान कुछ वक्त के लिए तो आया है जीशान और इस छोटी सी जिंदगी में इंसान हर चीज जीना चाहता है। मैं भी इंसान हूँ , मेरी भी कुछ ख्वाहिशें थीं, जो दिन-बा-दिन दफन होती जा रही थीं। उस वक्त अगर अमन मुझे नहीं संभालता तो शायद हम में से कोई यहाँ नहीं होता। 

अमन ने ना सिर्फ़ मुझे संभाला, बल्की मेरी सोइ हुई तमाम ख्वाहिशों को भी पूरा किया। मुझे उसपे बहुत नाज़ है। ये दुनियाँ की नजर में गुनाह है। पर मैं इसे गुनाह नहीं मानती। तुम्हारी अम्मी अनुम एक बहुत समझदार औरत है बेटा। वो जब किसी से मोहब्बत करती है ना तो उसके लिए जान भी दे सकती है, ये मैं देख चुकी हूँ । वो पागल ने सिर्फ़ एक गलती की कि अपने भाई से मोहब्बत कर ली । जिस तरह मैंने अमन से की थी। अमन भी तुम्हारी अम्मी से बेपनाह प्यार करता है। 

जीशान बेटा, दुनियाँ में हर कोई गुनाह करता है, कोई छुपकर करता है, कोई खुले आम करता है। अरे उस पागल को अमन से इतनी मोहब्बत थी कि उसने शादी नहीं की, ये जानते हुये भी कि अमन की शादी शीबा से होने वाली है। क्योंकी वो अमन के बगैर नहीं जिंदा रह पाती। बेटा वो रो-रोकर मर जाएगी। त ह तो उसकी मोहब्बत की निशानी है और अगर तू उससे ऐसे नाराज रहेगा तो कहीं वो खुद को कुछ कर ना बैठे। 

जीशान सर उठाकर रज़िया की तरफ देखता है-“नहीं दादी , ऐसा नहीं होगा…” 

रज़िया-“मुझे तुझसे यही उम्मीद थी जीशान…” 

जीशान रज़िया के गले लग जाता है। दोनों दादी पोते एक दूसरे की बाहो में ऐसे चिपकते हैं जैसे आख़िरी बार मिल रहे हो। दोनों की आँखों से आँसू बह रहे थे, कोई पछतावे के आँसू बहा रहा था, तो कोई खुशी के। पर इस सब में कुछ ऐसा हुआ जो नहीं होना चाहिए थे। 

रज़िया पिछले कुछ दिनों से अमन को बहुत मिस कर रही थी। जीशान के गले लगने के बाद वो कुछ पल के लिए ये भूल जाती है कि जीशान कौन है? और वो जीशान की गर्दन को चूम लेती है। अपनी जुबान से वो जीशान की गर्दन को चाट लेती है। 
जीशान के जिस्म में भी कुछ होता है और वो रज़िया को और जोर से कस लेता है। 

रज़िया-“अह्ह… जीशान मुझे अब चलना चाहिए…” 

जीशान रज़िया को छोड़ देता है। दोनों एक दूसरे की आँखों में देखने लगते हैं। 
रज़िया जीशान की पेशानी चूम लेती है, वो ऐसा हमेशा करती थी। पर आज जीशान को ऐसे लगा जैसे रज़िया ने उसकी पेशानी को चूमा नहीं बल्की अपनी जुबान से चाटा भी। 

रज़िया जाते-जाते जीशान से लुबना के बारे में पूछ लेती है और जीशान हँसता हुआ उससे कहता है-“मैं नहीं ले जाउन्गा तो, वो तो मेरा जीना मोहाल कर देगी…” 

रज़िया धड़कते दिल के साथ अपने रूम में चली जाती है। जहाँ लुबना उसी का इंतजार कर रही थी। लुबना फौरन उठकर रज़िया के पास आ जाती है। 

लुबना- दादी , क्या कहा भाई ने? 

रज़िया-हाँ वो ले जाएगा तुझे। 

लुबना खुशी के मारे उछल पड़ती है। 

कि तभी वहाँ नग़मा आती है-क्या हुआ बाजी, बड़ी खुश नजर आ रही हो? 

लुबना-“अरे नग़मा खुशी की तो बात ही है। मैं समर कैम्प जा रही हूँ । हुरतरर…”

नग़मा-“अरे वाह… ये तो बड़ी अच्छी बात है। काश मैं भी जा पाती?” 

लुबना-“मेरी जान, तू भी चले जाना। पहले 12 वीं के एग्जाम तो पास कर ले…” 

नग़मा-“अरे, मैं तो भूल ही गई । प्लीज़… मुझे वो मेथ के प्राब्लम सॉल्व करवा दो ना, एग्जाम सर पे हैं बाजी…” 

लुबना नग़मा का हाथ पकड़कर उसके रूम में चली जाती है। नग़मा 12 वीं के एग्जाम की तैयार करने में इतनी बिजी थी कि अपने रूम से कम ही बाहर निकलती थी। 

जीशान घड़ी की तरफ देखता है। उससे कुछ याद आता है और वो उठकर बाहर निकल जाता है। 

उसके जाने के बाद अनुम रज़िया के रूम में जाती है। जीशान और रज़िया के बीच जो बातें हुई, वो जानने के लिए। 

जीशान का मूड कुछ हद तक ठीक हो चुका था। वो एक पढ़ा-लिखा लड़का था। जब वो खुद शीबा के साथ वो सब कर चुका था, जो बहुत कम घरों में होता है तो उसे अमन और अनुम के रिश्ते को समझने में देर नहीं लगी। पर दिल अब भी एक चीज चाहता था कि अनुम अमन की ना होकर उसकी हो जाये। वो दिल में एक पक्का इरादा कर लेता है। और बाइक से डाक्टर सोनिया के घर पर पहुँच जाता है। 

रूबी बाहर गार्डन में बैठी चाय पी रही थी। जब वो जीशान को देखती है तो उठकर उसे अपने पास बुला लेती है और कहती है-“बड़े अच्छे लग रहे हो…” 

जीशान-क्यों पहले नहीं लगता था क्या?” 

रूबी-“नहीं नहीं ऐसे बात नहीं है। मेरा मतलब है बड़े खुश लग रहे हो…” 

जीशान-“तुम्हें देखने के बाद चेहरे पे हँसे आ ही जाती है…” 

रूबी-क्यों, क्या मैं तुम्हें जोकर लगती हूँ ? 

दोनों एक दूसरे को देखकर हँसने लगते हैं कि तभी वहाँ सोनिया भी आ जाती है। सामने बैठे जीशान को देखकर उसके चूत और आँखों में चमक आ जाती है। 
सोनिया-अरे जीशान तुम कब आए? 

जीशान-बस अभी आया आंटी । 

सोनिया-ह्म्म्म्म… ये तो तुमने बहुत अच्छा किया जो चले आए। 

जीशान सोनिया को और उसकी चुची को घुरने लगता है। 

रूबी-अम्मी, जीशान आपसे कुछ बात करने आए हैं। 


जीशान-“जी आंटी … वो बात दरअसल ये है कि हमारे कालेज से समर कैम्प पे ट्रिप जा रही है, मैं भी जा रहा हूँ तो सोचा रूबी भी अगर साथ चले तो…” 

सोनिया-नहीं जीशान, रूबी कहीं नहीं जाएगी वो यहीं ठीक है। 

जीशान चुप रह जाता है। 

रूबी-मगर क्यों अम्मी? आखिर मैं क्यों नहीं जा सकती? 

सोनिया-“मैंने कहा ना नहीं … मतलब नहीं …” 

रूबी गुस्से से खड़ी हो जाती है-“आप हमेशा ऐसा करते हैं। ठीक है कहीं नहीं जाउन्गी। मैं कालेज भी नहीं जाउन्गी…” और वो पैर पटकते हुये अपनी स्कटी निकालकर घर से बाहर चली जाती है। 

जीशान-आपको ऐसा नहीं । 

सोनिया-तुम उसे नहीं जानते जीशान चलो हम अंदर चलकर बात करते हैं। 

जीशान-“नहीं , मुझे चलना चाहिए…” 

पर सोनिया जीशान का हाथ पकड़कर उससे घर के अंदर ले जाती है-“क्यूँ तुम्हें मेरी याद नहीं आती है ना जीशान कितने काल किए पर जनाब के पास फ़ुर्सत नहीं हमारे लिए…” 

जीशान-ऐसे बात नहीं है आंटी । 

सोनिया-क्या आंटी आंटी लगा रखा है सोनिया बोलो सिर्फ़ सोनिया। 

जीशान-सोनिया। 

जीशान का किस करने का तरीका ऐसा था कि सामने वाली लरज जाती थी। 
जीशान सोनिया की जीभ को अपने मुँह में खींच के चूसने लगता है-“गलप्प्प गलप्प्प…” 

सोनिया नीचे बैठ जाती है और जीशान की पैंट में बने तंबू को अपनी जीभ से कुरेदने लगती है। सोनिया जिप खोलकर जीशान का लण्ड बाहर निकाल लेती है-“गलप्प्प गलप्प्प…” 

जीशान-“सोनिया रूबी को मेरे साथ जाने दे…” 

सोनिया-नहीं , वो नहीं जाएगी। 

जीशान-मैं कह रहा हूँ तुझे। 

सोनिया-“कुछ नहीं कहते गलप्प्प…” और चूसती रहती है। 

जीशान अपनी टीशर्ट और पैंट नीचे खिसका के चेयर पर बैठ जाता है और सोनिया के बाल पकड़कर अपने लण्ड पे उसका चेहरा झुका देता है- तू मेरी बात नहीं सुन रही । 

सोनिया-“वो नहीं जाएगी कहीं गलप्प्प…” 

जीशान-“ तू ऐसे हाँ नहीं कहेगी। मैं जानता हूँ तुझसे कैसे हाँ करवाना है? चल चूसजोर से…” वो अब सोनिया पे जुल्म करने लगता है। एक झटके में वो सोनिया के कपड़े जिस्म से अलग कर देता है और उसकी गर्दन को दोनों हाथों से पकड़कर अपना लण्ड पूरा का पूरा गले के अंदर घुसा देता है। 

सोनिया साँस नहीं ले पाती, दम घुटने लगता है उसका। पर जीशान लण्ड बाहर नहीं निकालता। जीशानने कहा-“बोल जाने देगी की नहीं उसे?” 

सोनिया-“घ गोंगों -घ गोंगों नहीं …” 

जीशान सोनिया को बेड पे पटक देता है और अपने लण्ड को उसकी चूत पे घिसने लगता है-“अह्ह… बोल साली जाने देगी या नहीं ? अह्ह…” 

सोनिया-“नहीं … एक बार कहा ना मैंने नहीं , मतलब नहीं …” 

जीशान-“तो ठीक है। ये भी तेरी चूत में नहीं जाएगा…” और जीशान अपनी अंडरवेअर पहनने लगता है। 

सोनिया उठकर बैठ जाती है और जीशान का अंडरवेअर नीचे खींच लेती है। इससे पहले जीशान कुछ कर पाता वो जीशान को बेड पे धकेल देती है, और कहती है-“जालिम इतने बड़ी सजा… अरे इसे अंदर लेने के लिए तो मैं कुछ भी कर लूँ । जा ले जा उसे अपने साथ। मगर आइन्दा ऐसी हरकत किया ना तो मुझसे बुरा कोई नहीं समझा…” 

जीशान सोनिया को अपने नीचे दबा लेता है और लण्ड को उसकी चिकनी चूत में एक झटके में घुसाकर सटासट चोदने लगता है-“अह्ह… मुझे पता था, तू साली कैसे मानेगी अह्ह…” 

सोनिया-“मर्द हो ना… औरत की कमज़ोरी पता है तुम्हें उम्ह्ह… आराम से ना… फाड़ देते हो तुम अह्ह… माँ…” 

जीशान-“ तेरी चूत इतनी टाइट है कि मैं क्या करूँ मेरे रानी अह्ह…” 

सोनिया-“रोज चोदने आ जाया करो ना… पूरा खोलकर रख दो अह्ह…” 

जीशान अपनी पूरी ताकत से सोनिया को चोदने लगता है। इस बात से अंजान कि रूबी खिड़की में से ये सब देख रही है। 


सोनिया कमर उछालने लगती है-“अह्ह… जल्द -जल्द करो जीशान रूबी आ जाएगी अह्ह…” 

जीशान सोनिया के होंठों को अपने मुँह में लेकर चूसने लगता है। वो अपने आख़िरी मुकाम पे था, किसी भी वक्त सोनिया की चूत जीशान के पानी से लबरेज हो सकती थी। 

बाहर खड़ी रूबी ये नजारा देखकर सकते में पड़ जाती है। वो जिसे पहली नजर में अपना दिल दे बैठी थी, आज वो शख्स उसी की अम्मी को चोद रहा था। 

जीशान दो तीन जोरदार धक्कों के बाद सोनिया पे गिर जाता है। पसीने में लथफथ दोनों एक दूसरे के जिस्म में लगी आग को बुझाने लगते हैं। 

सोनिया-“जीशान, तुम रोज भी तो आ सकते हो ना यहाँ?” 

जीशान-“मेरी जान, रूबी घर पे रहती है और अगर उसे पता चल गया तो?” 

सोनिया-“ह्म्म्म्म… बात तो सही है। मेरा एक फ्लेट शहर के बाहर भी है, हम वहाँ मिला करेंगे…” 

जीशान सोनिया के मखमली होंठ चूम लेता है। कुछ देर बाद जीशान अपने कपड़े पहनकर घर चला जाता है। और सोनिया नहाने चली जाती है। जब सोनिया नहाकर वापस बेडरूम में आती है तो उसे रूबी बेड पे बैठी मिलती है। 

रूबी सोनिया की तरफ देखती है। 

सोनिया-“क्या हुआ, नाराज है मुझसे? मैंने जीशान से बात कर ली है। तू समर कैम्प जा सकती है। पर ध्यान रखना यहाँ वहाँ घूमने मत निकल जाना…” 

रूबी-“अरे वाह… मैंने कहा तो आपने मना कर दिया था और जीशान की बात झट से मान गये…” 

रूबी के ताने वाले शब्द कहीं ना कहीं सोनिया समझ गई थी। पर वो खुद को नॉर्मल करके कपड़े पहनने लगती है। रूबी वहाँ से उठकर अपने रूम में चली जाती है और अपने रुके हुये आँसू बहाने लगती है। 
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05-19-2019, 01:23 PM,
#88
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
***** *****उधर दिल्ली में-
अमन बेड पे लेटा हुआ था। वो अभी-अभी बाहर से आया था। सामने बैठी सोफिया अपने मोबाइल से अपनी सहेल को मेसेज कर रही थी। पिंक कलर के ड्रेस में सोफिया का जिस्म गुलाब की तरह चमक रहा था। अमन बड़े गौर से सोफिया को देख रहा था। उसे आज सोफिया में रज़िया का अक्स नजर आ रहा था। कितने दिन गुजर चुके थे उसे यहाँ आए हुये, आज शिद्दत से उसे अपनी तीनों बीवियों की याद सता रही थी। 

सोफिया नजरों की आड़ से अमन को देखती है और हैरान रह जाती है। अमन का हाथ उसके लण्ड को पैंट के ऊपर से हल्के-हल्के दबा रहा था। उसके जिस्म पे कम्बल था पर देखने से साफ पता लग रहा था कि कम्बल के अंदर क्या चल रहा है। 

सोफिया-अरे अब्बू , मैं आपको बताना ह भूल गई। आज सुबह दादी और अम्मी का काल आया था, आपसे बात करना चाहती थीं वो। 

अमन-“अच्छा, पहले तुम्हारी अम्मी से बात करता हूँ …” अमन फौरन रज़िया को काल करता है। 

रज़िया-“अस्सलाम आलेकुम कैसे हैं आप? 

अमन-मैं ठीक हूँ , तुम कैसी हो? 

रज़िया-“बस ठीक हूँ । जिस्म की आग जीने नहीं देती और आप हैं कि दूर जाकर बैठे हो…” 

अमन-“बस कुछ दिनों की तो बात है…” 

रज़िया-“एक-एक पल काटना मुहाल है, और आप हैं कि दिनों की बात कर रहे हो…” 

अमन धीमी आवाज़ में-“क्या बात है जान, लगता है बहुत याद सता रही है, छोटी रज़िया को छोटे अमन की…” 

रज़िया खिलखिलाकर हँसने लगती है। कुछ देर इधर-उधर की बातें करने के बाद अमन काल डिसकनेक्ट कर देता है।

अमन-“सोफिया बेटा, सर दर्द कर रहा है जरा बाल्म लगा दो…” 

सोफिया झट से बाल्म लेकर बेड पे बैठ जाती है। और अमन अपना सर सोफिया की गोद में रख देता है। सोफिया थोड़ा झिझक रही थी। वो धड़कते दिल और काँपते हाथों के साथ अमन की पेशानी पे बाल्म लगाने लगती है। 

अमन-“तुम यहाँ बोर तो नहीं हो रही हो ना सोफिया?” 

सोफिया-“बिल्कुल नहीं अब्बू , मुझे तो बहुत मजा आ रहा है…” 

अमन अपनी आँखें बंद कर लेता है। 15 मिनट बाद सोफिया को लगता है जैसे अमन गहर नींद में सो चुका है। वो बड़े गौर से अमन के चेहरे को देखने लगती है और किसी जज़्बात के तहत वो अमन पे झुकती चली जाती है। उसके हाथ अमन के घने बालों को सहला रहे थे और होंठ अमन के गालों के पास टिके हुये थे। एक बिजली सी जिस्म में दौड़ जाती है और जवान दिल फिर से उसे अंजान रास्ते पे चलने लगता है। सोफिया अमन के गाल को चूम लेती है। 

अमन के आँखें खुल जाती हैं और सोफिया की आँखें शर्म के मारे झुक जाती हैं। 

***** *****इधर अमन विला में-
जीशान अपने बेड पे लेटा हुआ था। लुबना दरवाजा नाक करके अंदर आ जाती है और धड़ाम से बेड पे बैठ जाती है। 

लुबना-भाई आपने पेकिंग कर लिया? 

जीशान-“तू किसलिए है? कल पहला काम यही है तेरा, मेरे कपड़ों के प्रेस करके पेकिंग करना…” 

लुबना-“ओहो… वाह नवाब साहब, आपने मुझे क्या आपकी नौकरानी समझ रखा हैं मैं नहीं करने वाली …” 

जीशान-“चल चल, ये मुँह और मसूर की दाल… नौकरानी भी तुझसे अच्छी लगती है…” 

लुबना को गुस्सा आ जाता है और वो जीशान को तकिये से मारने लगती है। जीशान लुबना की चोटी पकड़कर बेड पे गिरा देता है और उसके पेट पे बैठ जाता है-“मुझे तकिये से मारती है अब देख मैं क्या करता हूँ ?” 

लुबना-“अह्ह… छोड़ो भाई दर्द हो रहा है…” 

जीशान-“अभी नहीं हुआ, अब होगा…” और जीशान लुबना के गाल पे जोर से काट लेता है। 

लुबना-“आअह्ह… अम्मीईई…” 

जीशान ने सच में बहुत जोर से काटा था। बचपन में जब ये दोनों लड़ते थे तो जीशान इसी तरह कभी लुबना के गाल पे, कभी गर्दन पे काट लिया करता था। 

लुबना गाल मलते हुई खड़ी हो जाती है-“भूखा कहीं का… मुझे कितना दर्द हो रहा है। मैं अभी अम्मी को जाकर बताती हूँ की आपने मुझे काटा…” 

जीशान-“ जल्दी जा, अभी जा देर मत कर…” 

लुबना दिल ही दिल में जीशान को बुरा भला कहती हुई अपने रूम की तरफ चली जाती है। वो कभी जीशान की शिकायत नहीं करती थी। अगर उससे बदला लेना होता तो खुद लिया करती थी। 

रज़िया, अनुम और शीबा तीनों के रूम एक दूसरे से अटैच्ड थे। और तीनों के रूम से एक कामन बालकनी अटैच्ड थी जिसमें तीनों के दरवाजे खुलते थे। 

रज़िया और अनुम उसी बालकनी में खड़ी कुछ बातें कर रही थीं। शीबा रूम के अंदर आईने के सामने बाल सँवार रही थी। रात का खाना हो चुका था। सभी अपने-अपने रूम में जा चुके थे। 

जीशान दबे पाँव शीबा के रूम में दाखिल होता है और शीबा के पीछे जाकर खड़ा हो जाता है। सामने आईने में जब शीबा जीशान का अक्स देखती है तो उसके तन बदन में सरसराहट होने लगती है। वो खड़ी होकर मुख्य दरवाजा बंद कर देती है। 

जीशान फौरन शीबा को अपनी बाहो में भर लेता है और अपने होंठ शीबा के होंठों पे रख कर चूसने लगता है-“गलप्प्प गलप्प्प…” 

शीबा-“अह्ह… नहीं , आज नहीं …” 

जीशान-“आज कैसे नहीं ? हर रोज का वादा किया हुआ है अम्मी आपने …” 

शीबा का मूड जीशान को तरसा के देने का था। वो रूम में इधर-उधर भागने लगती है। 

उसकी इस हरकत से बालकनी में खड़ी रज़िया और अनुम बालकनी के दरवाजे के पास आ जाती हैं। 

शीबा- इतनी आसानी से नहीं मिलने वाली आज तुम्हें जीशान बेटा। 

जीशान शीबा को देखते हुये अपनी पैंट उतारने लगता है और फिर अपनी अंडरवेअर भी नीचे कर लेता है। जीशान का लण्ड देखकर शीबा अपने सारे नखरे भूल जाती है और वो भी चुपचाप अपनी नाइटी गर्दन से निकालकर बेड पे फेंक देती है। जीशान भागता हुआ बालकनी के दरवाजे के पास आ जाता है। अब उसका दिल शीबा को तरसाने का था। 

शीबा घुटनों के बल बैठकर जीशान के पैर पकड़ लेती है और जीशान के लण्ड को हाथ में लेकर सहलाने लगती है-अह्ह… जीशान बेटा, अपनी अम्मी को मत सता, मुँह में डाल दे तेरा ये मोटा-मोटा लौड़ा अह्ह… चूसने दे मुझे, चाटने दे ताकी तू रात भर चोद सके मुझे…” 

जीशान शीबा के बाल पकड़कर उसके होंठों पे अपना लण्ड घिसते हुये मुँह में डाल देता है और शीबा बड़े प्यार से उसे चुसती चली जाती है-“गलप्प्प गलप्प्प…” शीबा की चूत सुबह से पानी छोड़ रही थी उसे भी जीशान के लण्ड की आदत सी हो गई थी। 

जीशान शीबा को खड़ी कर देता है और खुद नीचे बैठकर उसकी चूत चाटने लगता है-“गलप्प्प गलप्प्प…” 

शीबा-“अह्ह… चाट मत चोद… चाटने से तो और जल उठेगी ये अह्ह…” 

जीशान-“पहले थोड़ा गीला तो कर लूँ अम्मी। उसके बाद रगड़ के देता हूँ ना-“गलप्प्प गलप्प्प…” 

दरवाजे के उस पार खड़ी रज़िया और अनुम के होश उड़े हुये थे ये सब बातें सुनकर। 
अनुम रूम में जाकर उन दोनों को रंगे हाथों पकड़ना चाहती थी। पर रज़िया उसका हाथ पकड़कर उसे रोक लेती है। 


जीशान उसी बालकनी के दरवाजे से शीबा को खड़ी कर देता है और पीछे से उसकी चूत पे लण्ड को रगड़ते हुये धीरे-धीरे चूत खोलने लगता है। 

शीबा-“अह्ह… और जोर से जीशान बेटा। आज बहुत सताया मुझे तेरी इस चूत ने। इसे बता दे कि तू मेरा बेटा है अह्ह… चोद रे ईई अह्ह…” 

दरवाजे के इस तरफ शीबा जीशान से चुद रही थी और उस तरफ रज़िया और अनुम जल रही थी। लगातार 20 मिनट तक चोदने के बाद जीशान शीबा को गोद में उठाकर बेड पे लेटा देता है और वहाँ भी उसका जुल्म-ओ-सितम शीबा पे चलता रहता है। 

रात अपने पूरे शबाब पे थी पर आज पहली बार अनुम का दिल जोर-जोर से रोने को कर रहा था। आज उसे एहसास हो रहा था कि शीबा ने शायद जीशान को उससे छीन लिया है। वो और रज़िया एक दूसरे का हाथ पकड़कर रज़िया के रूम में आ जाते हैं। 

***** ***** 
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05-19-2019, 01:23 PM,
#89
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
सोफिया और अमन एक दूसरे की आँखों में देखने लगते हैं। 

अमन-क्या हुआ सोफिया? 

सोफिया-कुछ नहीं अब्बू घर की याद आ रही है। 

अमन-“अरे मेरी गुड़िया बेटी , आ जा अब्बू के पास…” अमन सोफिया को अपनी छाती से चिपका लेता है जैसे वो बचपन में सोफिया के किसी चीज पे नाराज हो जाने पे उससे मनाने के लिए अपनी गोद में उठाकर सीने से चिपका लिया करता था। 

पर आज सोफिया के दिल के जज़्बात अमन समझ नहीं सकता था। आज उन जज़्बातों पे तो खुद सोफिया का कंट्रोल नहीं था। सोफिया अमन की छाती में सिमट ती चली जाती है। 

अमन-“बस कुछ दिन की बात है सोफिया हम घर चले जाएँगे…” 

सोफिया दिल में सोचने लगती है-“घर कौन काफिर जाना चाहता है अब्बू …” 

अमन-“अम्मी से बात करवा दूं तुम्हारी ?” 

सोफिया-उन्हुहु । 

अमन-“क्या बात है सोफिया मुझे नहीं बताओगी? बचपन में तो हार बात आकर सबसे पहले मुझे बताया करती थी…” 

सोफिया-“कोई बात नहीं है अब्बू । बस थोड़ा डर लग रहा था अकेलेपन से, अब ठीक हूँ …” वो अपने आपसे बातें करने लगती है। क्या बताऊँ अब्बू आपको कि आपकी बेटी गुनाह के दहलीज पे खड़ी है, आगे भी बढ़ना चाहती है। पर दिमाग़ साथ नहीं दे रहा। 

अमन सोफिया का चेहरा अपने हाथ से ऊपर उठाता है और उसकी झील से आँखों में कुछ ढूँढने के कोशिश करने लगता है। 

सोफिया-क्या देख रहे हैं अब्बू ? 

अमन-देख रहा हूँ मेरी बिटिया कितनी खूबसूरत हो गई है। तेरी अम्मी भी बिल्कुल तेरी तरह लगती थी। 

सोफिया-“अब्बू , आप अम्मी से बहुत प्यार करते हैं?” 

अमन-“बहुत… एक वही तो वजह है मेरे जीने की, वरना मैं शायद आज जिस मुकाम पे खड़ा हूँ वहाँ नहीं होता। बेटी इंसान हमेशा किसी चीज को पाने के लिए मेहनत करता है…” 

सोफिया-“तो आपने अम्मी के लिए ये सब किया?” 

अमन-“नहीं , सिर्फ़ तेरी अम्मी के लिए नहीं , बल्की मेरी बाग के इन प्यारे-प्यारे फूलों के लिए भी…” 

सोफिया-“अब्बू , अम्मी के बाद आप सबसे ज्यादा किससे प्यार करते हैं?” 

अमन-“ह्म्म्म्मम… तुझसे…” ये अमन ने भले ही सोफिया का दिल रखने के लिए कहा था। पर इस बात का सोफिया पे इस कदर असर हुआ कि वो अमन की छाती में खुद को छुपा लेती है। 

अमन के हाथ सोफिया की पीठ पे घूम जाते हैं और एक जज़्बा-ए- जुनून जो सिर्फ़ अमन रज़िया के साथ होने पे महसूस करता था, आज अमन को होने लगता है। 

सोफिया के होंठ अमन की गर्दन को चूम लेते हैं। गरम थरथराती हुई साँसे अमन की गर्दन से होती हुई रूह तक को मुनावर करने लगती हैं। 

अमन सोफिया के चेहरे को अपने हाथ में थाम लेता है। सोफिया की आँखें बंद थीं, होंठ लरज रहे थे एक जुम्बिश के लिए। अमन रज़िया का धुँधला सा अक्स सोफिया के चेहरे पे महसूस करता है और बेसाख्ता उसके होंठ सोफिया के काँपते हुये होंठों से टकरा जाते हैं। 

सोफिया के मुँह से बस अब्बू की एक हल्की सी आवाज़ निकलती है। उसका दिल बहुत जोर से धड़कने लगता है और वो खुद को इस तूफान से बचने के लिए उठकर बैठ जाती है। पर शायद तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अमन का दिल उसके बस में नहीं था, उसकी आँखें लाल हो चुकी थीं, और कई दिन का भूका शेर आज इस कुँवारी कली को शायद महकता हुआ गुलाब बनाने की सोच चुका था। 

अमन सोफिया की पीठ पे चूमता है, फिर गर्दन पे, फिर अपने दोनों हाथों से सोफिया की नाजुक अनछुई चुची को पहली बार अपने हाथ में लेकर हल्के से मसल देता है। 

सोफिया-“अह्ह… अब्बू नहीं ना…” 

अमन-“रज़िया, आज मत रोक मुझे अह्ह…” 

सोफिया इश्क़-ए-जुनून में इस कदर खोई हुई थी कि वो अमन के मुँह से निकले हुई शब्द ठीक तरह से सुन भी नहीं पाती। 

अमन को सोफिया नहीं बल्की रज़िया नजर आ रही थी। और सोफिया अपने आपसे लड़ रही थी कि वो क्या करे? अमन सोफिया को लेटा देता है और जो पतली से नाइटी सोफिया पहने हुई थी वो निकाल देता है। 

सोफिया-“नहीं अब्बू अह्ह…” 

अमन के होंठ दुबारा सोफिया के होंठों से मिलते हैं और इस बार सोफिया भी फैसला कर लेती है कि वो दिल का साथ देगी। 

दोनों एक दूसरे के होंठों के बड़ी शिद्दत से चूमने लगते हैं। अमन के हाथ सोफिया की ब्रा के हुक को खोलना चाहते थे, पर ब्रा बहुत टाइट थी, बिना सोफिया की मदद के उसे निकालना नामुमकिन था। 
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05-19-2019, 01:23 PM,
#90
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
सोफिया अपने जिस्म को थोड़ा आगे की तरफ मोड़ देती है और अमन हाथ पीछे ले जाकर हुक खोलने लगता है। सोफिया की आँखें बंद हो जाती हैं। उसकी गोरी -गोरी चुची पहली बार किसी मर्द की गिरफ़्त में थी। अपने अब्बू के नीचे इस हालत में लेटने के ख्याल से ही सोफिया की चूत हल्का सा झटका मारती है और पानी के कुछ कतरे चूत के बाहर छलक जाते हैं। 

अमन सोफिया की चुची को दोनों हाथों में पकड़कर हल्के-हल्के दबाने लगता है। 

सोफिया-“अह्ह… अब्बू ओह्ह… अम्मी ज्ज्जी…” 

अमन उसकी गर्दन को चूमते हुये उसके निप्पल के पास अपने होंठों ले आता है और फिर वो होता है जिसका हर कुँवारी लड़की को बेसब्री से इंतजार रहता है कि कोई उनकी कुँवारी चुची को मुँह में ले। सोफिया के होंठ से लेकर गले तक सूख चुका था, ना शब्द बाहर आ रहे थे, और ना साँस बाहर ठीक से निकल रही थी। 

अमन के मुँह में सोफिया की चुची थी और वो एक माहिर खिलाड़ी की तरह दूसरे निप्पल को मरोड़ता हुआ पहले वाले को चूसरहा था। 

सोफिया जल्दी से जल्दी नंगी होना चाहती थी। आज वो कयामत को झेलना चाहती थी, उस तूफान में खेलना चाहती थी, जो उसे पिछले कई दिनों से परेशान कर रहा था। 

अमन के इस कदर चुची मसलने से उसका जिस्म रह-रहकर झटके मारने लगता है। वो मुँह से तो कुछ नहीं कह पा रही थी पर दिल शोर मचा रहा था कि अब्बू अब और सहा नहीं जाता मुझसे, कुछ करो ना अब्बू , वरना मैं मर जाउन्गी। 

अमन सोफिया के कानों को चूमते हुये धीरे से कहता है-“आइ लव यू रज़िया…” 

ये तीन शब्द उस बवंडर को एक झटके में शांत कर देते है। सोफिया अपनी आँखें खोल देती है और अमन भी अर्श से फर्श पे आ जाता है। दोनों एक दूसरे की गिरफ़्त से एक झटके से अलग हो जाते हैं। 

अमन-“मुझे माफ कर दो बेटी …” अमन को अपनी गलती का एहसास होता है जो वो सोफिया के साथ रज़िया समझकर करने जा रहा था। 

सोफिया भागकर बाथरूम में घुस जाती है। उससे यकीन नहीं हो रहा था कि कुछ देर पहले एक बाप-बेटी का रिश्ता अचानक क्या से क्या हो गया था और क्या होने जा रहा था? दिमाग़ सोफिया को कोस रहा था पर दिल खुशियाँ मना रहा था। कुछ पल के लिए जज़्बात जिस्म पे हावी हो गये थे। 

सोफिया खुद को सामने लगे हुये आईने में देखती है। उसकी नजर अपनी चुची पे जाती है जिसे कुछ देर पहले अमन अपने मुँह में लेकर चूसरहा था। वो हल्के से निप्पल को छूती है और फिर मजबूती से पकड़कर मसलने लगती है। आँखें बंद करके वो अमन और अपने बीच हुई कुछ देर पहले हुये हालात को सोचने लगती है। और जो नहीं हुआ, अगर वो हो जाता तो कैसा होता? 

बस यही ख्यालात उसके जिस्म को अकड़ाने के लिए काफी थे और उस कुँवारी चूत से दूध बहाने के लिए भी। चिपचचपे दूध की तरह गाढ़ा पानी सोफिया की चूत से बहने लगता है। और होंठों पे सिर्फ़ एक नाम बार-बार आने लगता है-अब्बू उ अब्बू । 

काफी देर के बाद जब सोफिया बेडरूम में आती है तो उसे अमन सोया हुआ मिलता है। वो भी चुपचाप अमन के पास लेट जाती है। उससे पता था, नींद तो रात भर नहीं आएगी। पर उसके ख्यालात इतने खूबसूरत थे कि वो नींद की परवाह भी नहीं करती और जागती आँखों से सपने देखने लगती है। 

सुबह 8:00 बजे-अमन विला। 

अनुम और रज़िया नाश्ता कर रहे थे। शीबा अपनी नाइटी में रूम से निकलती है। उसे देखकर लगा कि अच्छे से रात में सोई होगी। 

शीबा रज़िया को सलाम करती है। 

रज़िया जवाब तो दे देती है। पर उस जवाब में जो तल्ख़पन था वो शीबा भाँप लेती है। 

अनुम उठकर शीबा का हाथ पकड़ लेती है और उसे अपने रूम में ले जाती है। उसके पीछे-पीछे रज़िया भी चली जाती है। 

शीबा-“ये क्या बदतमीजी है अनुम? हाथ छोड़ो मेरा…” 

अनुम ने रात कैसे गुजारी थी ये सिर्फ़ रज़िया जानती थी। सूजी हुई आँखों में अंगारे देखकर शीबा पहले ही समझ गई थी कि बात गम्भीर है। 

शीबा-आखिरकार बात क्या है? 

अनुम शीबा का मुँह अपने हाथ में पकड़ते हुये-“बदजात औरत, तुझे मेरा बेटा ही मिला ये सब करने के लिए?” 

शीबा-“ओह्ह… तो इसका मतलब आपको सब पता चल गया है? तो इसमें बुरा क्या किया मैंने? जो आपने किया वही मैंने भी किया। जब एक माँ अपने बेटे और एक बहन अपने भाई के साथ रंगरेलियाँ मना सकते हैं तो एक माँ अपने बेटे के साथ क्यों नहीं ?” 

रज़िया-“बदतमीज तू जानती भी है क्या कह रही है? निकाह किया है हमने अमन से…” 

शीबा-गुनाह किया है आपने । 

अनुम एक थप्पड़ शीबा के मुँह पे जड़ देती है-“दुबारा तेरे मुँह से इस तरह की वाहियात बात अगर निकली ना शीबा तो याद रख मैं तेरी जीभ खीच लूँगी…” 

शीबा-“अपने बेटे को मेरी बाहों में देखकर जलन हो रही है अनुम? यही हाल मेरा भी होता था जब मैं अपने शौहर को तुम दोनों की बाहो में देखती हूँ । पर वक्त और हालात अब मेरे साथ हैं। मेरे जो मर्ज़ी आएगी मैं वो करूँगी और अगर तुम दोनों ने उसमें अपनी टाँग अड़ाने की कोशिश भी की ना तो दुनियाँ वालों को मैं चीख-चीखकर बता दूँगी कि तुम्हारे और मेरे शौहर के बीच कौन सा रिश्ता है? तुम लोग घर की रहोगी ना घाट की सोच लेना…” शीबा वहाँ रुकती नहीं बल्की अपने रूम में वापस चली जाती है। 

कुछ देर बाद जब जीशान नीचे आता है तो उसका सामना अनुम और उसके गुस्से से होता है। बिना कुछ कहे, बिना कोई सवाल किये अनुम सटासट-सटासट चार-पाँच थप्पड़ जीशान के गाल पे जड़ देती है और रोती हुई अपने रूम में भाग जाती है। 

जीशान भौचक्का सा मुँह सुजाए दरवाजे की तरफ देखता रह जाता है। 
जीशान अपने गाल पे हाथ लगाकर अपने रूम में आ जाता है। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर अनुम ने उससे क्यों मारा। 

***** ***** 

उधर दिल्ली में रात भर जागने की वजह से सोफिया को हल्का सा बुखार आ गया था। अमन फौरन वहाँ डाक्टर को बुलाकर सोफिया का चेकअप करवाता है। 

डाक्टर अमन को सलाह देता है कि ठंडे पानी की पट्टियाँ सोफिया की पेशानी पे रखते रहें कुछ देर बाद फीवर कम हो जाएगा। डाक्टर के जाने के बाद अमन सोफिया के पास बेड पे बैठ जाता है और थोड़ी-थोड़ी देर बाद उसकी पेशानी पे ठंडे पानी की पट्टियाँ रखता जाता है। 

तकरीबन एक घंटे बाद सोफिया का जिस्म नॉर्मल होता है। अमन सोफिया की पेशानी चूमते हुये-“अब कैसा लग रहा है हमारी जान को…” 

सोफिया-“अब ठीक हूँ मैं अब्बू । आप तो किसी से मिलने जाने वाले थे ना काम के सिलसिले में?” 

अमन-“मेरी गुड़िया को ऐसे हालत में छोदकर मैं कैसे जा सकता था? कुछ खाओगी?” 

सोफिया-दिल नहीं कह रहा है अब्बू । 

अमन-“मैंने तुम्हारे लिए सूप मँगाया था। चलो आज मैं तुम्हें अपने हाथों से पिलाता हूँ …” और अमन सोफिया के सर के नीचे दो और तकिये लगा देता है, और अपने हाथों से सोफिया को सूप पिलाने लगता है। सोफिया तो अमन को कल रात ही अपना सब कुछ मान बैठी थी। बस उसे इंतजार था उन अल्फाज़ों का जो अमन की मोहब्बत को जाहिर करें। 

हर लड़की की तरह सोफिया भी यही चाहती थी कि पहला कदम अमन आगे बढ़ाए। अमन बड़ी प्यार भरी नजरों से सोफिया के चेहरे को देख रहा था। 

सोफिया-“अब्बू , आप मुझसे कितना प्यार करते हैं?” 

अमन सोफिया की पेशानी को चूम लेता है-इतना। 

सोफिया-बस इतना? 

अमन दुबारा सोफिया की पेशानी को चूमता है पर इस बार उसके होंठ कुछ देर के लिए सोफिया की पेशानी पे चिपके रहते हैं-इतना। 

सोफिया-“बस? मुझे लगा था आप मुझसे बहुत प्यार करते हैं पर आप…” वो आगे नहीं बोल पाती क्योंकि अमन इस बार अपने होंठ सोफिया के होंठों पे रख देता है। 

कुछ देर बाद जब अमन अपने होंठ सोफिया के होंठों से हटाता है-“इतना प्यार करता हूँ , बस अब खुश?” 

सोफिया-“नहीं , अभी नहीं …” और सोफिया ये कहती हुई अमन को अपने ऊपर झुका लेती है और अपनी जीभ को अमन के होंठों पे लगाकर चाटने लगती है-“आप मुझसे बहुत कम प्यार करते हैं। अब्बू , मैं आपको बताती हूँ कि मैं आपसे कितनी मोहब्बत करती हूँ …” 

फिर सोफिया के होंठ अमन के होंठों से चिपक जाते हैं। उसकी जीभ अमन के मुँह में घुसकर अमन की जीभ को तलाश करने लगती है और जब सोफिया को अमन की जीभ मिल जाती है तो सोफिया उसे अपने मुँह में लेकर चूसने लगती है-“गलप्प्प गलप्प्प…” 

अमन के लिए अब सोचना मुश्किल नहीं था कि सोफिया उससे मोहब्बत करने लगी है और हकीकत तो यही थी की अमन भी जवान बेटी के प्यार में गिरफ्तार हो चुका था। वो सोफिया को अपने ऊपर खींच लेता है और सोफिया के चेहरे के एक-एक इंच हिस्से को चूमने लगता है। 

सोफिया अपनी आँखें बंद कर लेती है और अमन की मोहब्बत की शिद्दत को महसूस करने लगती है। 

अमन का लण्ड सोफिया की जाँघ में फँसा हुआ था और हर बढ़ते वक्त के साथ अमन के लण्ड में भी तनाव आने लगता है और ये तनाव सोफिया को चुभने भी लगता है। पहली बार लण्ड को अपनी जाँघ में महसूस करके सोफिया पागल सी हो जाती है। 
वो अमन के चेहरे को अपने हाथों में लेकर चूमने चाटने लगती है-“गलप्प्प अब्बू , आइ लव यू अब्बू … मैं आपसे बेपनाह मोहब्बत करती हूँ । आपके बिना मैं कुछ भी नहीं । अब्भ, मुझे अपना बना लो… अब्बू बस एक बार मुझे अपनी मोहब्बत, अपनी उलफत दे दो… मेरे अब्बू अपनी सोफिया को प्यार करो ना अब्बू …”
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