Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 02:10 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मैने उनको बोल तो दिया था, लेकिन सच कहूँ तो अभी तक मेरे दिमाग़ में वहाँ तक पहुँचने की कोई योजना नही थी. 

दो दिन थे मेरे पास, तो सोचा कि इन दो दिनों में कोई ना कोई रास्ता निकल ही आएगा.

दूसरे दिन मैने मार्केट जाकर कुछ ज़रूरत की चीज़ें खरीदी, और थोड़ा बहुत मेक-अप का सामान लिया, 

रूम में आकर हल्का सा मेक-अप करके अपने को थोड़ा चेंज किया, अब मे पहली नज़र में एक मुस्लिम युवक ही लग रहा था, 

रूम से बाहर आया और इमारत के आस-पास मंढराने लगा, जिससे कोई ऐसा रास्ता निकल सके कि मे उसके अंदर तक पहुँच सकूँ…

मैने उस इमारत के आस-पास की भगौलिक स्थिति को दिमाग़ में बिठाया, एक घनी लेकिन स्लम बस्ती से घिरी वो इमारत काफ़ी जगह में फैली हुई थी, 

उसका मेन गेट बस्ती के रोड की तरफ था, उसके पीछे की ओर घनी बस्ती थी, जहाँ तमाम लकड़ी के खोखों मे लाइन से गंदी और बदबूदार वातावरण में मीट की दुकानें एक-दो पान की दुकानें, 

चाइ के तपरे, और एक बड़ी सी लकड़ी की टाल, जिससे धूल सी उड़ती रहती थी दिन में हमेशा.

इमारत के चारों ओर एक 10 फीट उँची चारदीवारी थी, उसके टॉप पर काँच के टुकड़े लगे हुए थे, जिससे उसको कूद कर अंदर जाना आसान नही था.

मे इस समय एक पान की दुकान पर खड़ा था, मैने उससे एक सादा पान बनवाया, और उससे बात-चीत करने लगा. 

मेरा इंटेन्षन था, उस इमारत से जुड़े लोगों की जानकारी निकालना.

पान वाला खुश मिज़ाज आदमी था, सो बातें करने में उसको भी इंटेरेस्ट रहता था, जैसा कि ज़्यादातर पान वाले होते ही हैं. 

जितनी इन्फर्मेशन चाइ और पान की दुकानों से मिल सकती है उतनी कहीं और जगह से नही मिलती.

बातों-2 में मैने ये भी जान लिया कि इस इमारत के करता-धर्ताओं से लोकल लोग खुश नही थे, 

कुछ-2 लोगों को ये भी आभास था कि यहाँ कुछ ना कुछ देश विरोधी गतिविधियाँ इसमें पनप रही हैं, 

चूँकि रहमान और उसके गुर्गे बहुत पवरफुल थे, इस वजह से किसी की हिम्मत नही होती थी, उनके खिलाफ कुछ भी बोलने की. 

यहाँ तक कि इनकी पहुँच पोलीस के आला ऑफिसर्स तक थी और वो लोग इनको सपोर्ट करते थे जैसा कि मुझे शक था..

दो दिन मैने इन्ही सब जानकारियों में निकाल दिए, चूँकि रात को पिछले हिस्से में स्ट्रीट लाइट वग़ैरह की भी कोई सुविधा नही थी वहाँ पर.. 

तो मैने उधर से ही घुसने का प्लान बनाया वो भी एक लंबे बाँस के ज़रिए जंप लगा कर. 

ये सब एक्सर्साइज़ मैने बचपन में ही बहुत की थी खेल खेल में जो अब काम आने वाली थी.

मेरा प्लान तैयार था, एक रिस्क ये था कि मेरे अंदर कूदते ही अगर कोई वहाँ मौजूद हुआ तो..? पर इतना रिस्क तो लेना ही पड़ेगा.

एक्शन लेने का समय आ चुका था और कोई रास्ता भी तो नही था, अगर अभी नही तो हो सकता है कभी नही, 

पक्का इरादा करके मे अपने होटेल रूम से 8:15 पीएम पर निकला, दिन वाले ही मेक-अप में और 15 मिनट में ही उस इमारत के गेट के पास एक सेफ जगह पर बैठकर आने जाने वालों पर नज़र रखने लगा.

करीब 10 मिनट ही गुज़रे होंगे कि उन युवकों का आना शुरू हो गया, वो दो-2 के हिसाब से बाइक पर बैठ कर आए और उस इमारत में एंटर हो गये, 

तकरीबन 8:55 पर एक काले रंग की स्कॉर्पियो गेट में दाखिल हुई, जिसमें शायद वो लीडर और रहमान के साथ-2 वो बॉम्ब एक्सपर्ट भी था.

मेरी धड़कने तेज होने लगी, चाहे कैसा ही मैने पास्ट में कुछ भी किया हो, लेकिन इतना रिसकी कभी नही था, और फिर इस समय मे अकेला भी था, 

जो भी करना था मुझे ही करना था. मैने 4-6 लंबी-2 साँस खीची और टहलते हुए इमारत के पीछे की साइड पहुँच गया.
उधर इक्का-दुक्का कोई बल्ब किसी-किसी खोके के माथे पर टिमटिमा रहा था, वाकी ज़्यादातर इलाक़ा अंधेरे में ही डूबा था, 

उस लकड़ी की टाल पर भी कोई खास उजाला नही था. 

एक लंबा मजबूत बॅमबू, जो मे आज शाम को ही एक साइड में रख गया था अपने काम के मतलब का, जो मेरा भार सहन कर सके.

उस स्कॉर्पियो को अंदर गये 15 मिनट से उपर हो गये थे, अब मुझे जल्दी-से- जल्दी अंदर जाना ही था, 

सो उस बॅमबू को हाथों में कस लिया और बाउंड्री वॉल से करीब 15-20 कदम पीछे गया साँस रोकी और दौड़ता हुआ दीवार की तरफ आया,

दीवार से 3-4 फुट दूर बॅमबू को टीकाया और उसके फोर्स के साथ ही उपर उठता चला गया, उपर पहुँचते ही बॅमबू को पीछे की ओर छोड़ा और अंदर कूद गया.

हल्की सी धप्प की आवाज़ मेरे जूतों से निकली, मानो कोई बिल्ली कूदी हो..और इसी के साथ अब में अंदर की घास पर बैठा था.

चारों ओर की स्थिति का जायज़ा लेकर मे फ़ौरन उठा और बिल्डिंग की दीवार से सट कर खड़ा हो गया और किसी भी प्रकार की हलचल का इंतजार करने लगा. 

जब 5 मिनट तक भी कोई हलचल सुनाई नही दी तो मैने अपने पास की एक खिड़की पर कान लगाए और अंदर का जायज़ा लेने लगा.

मेरी खुशकिश्मति समझो या उन लोगों की बदक़िस्मती, जिस कमरे की खिड़की पीछे को खुलती थी वो लोग उसी कमरे में मौजूद थे जिनकी हल्की हल्की आवाज़ उस खिड़की का सीना चीर कर बाहर आ रही थी.

मैने खिड़की को पकड़ कर हल्के से खींच कर खोलने का ट्राइ किया लेकिन शायद वो अंदर से बंद थी. 

विंडो काफ़ी पुरानी थी, तो संभावना ये भी थी कि कुछ ना कुछ तो ऐसा रास्ता होगा जिससे अंदर को झाँकने का ज़रिया मिल सके..! 

जल्दी ही मुझे एक खिड़की की लकड़ी का टूटा हुआ हिस्सा जो बिल्कुल उसके नीचे की किनारी पर उसकी चौखट पर टिका हुआ मिल गया, मैने हल्का सा अपनी उंगली में फँसाया अपनी ओर खींचा तो वो खिचता चला आया, 

अब उसमें अच्छा ख़ासा एक रेक्टॅंग्युलर झरोखा सा बन गया था.

मैने उसमें से झाँका तो अंदर का नज़ारा पूरी तरह सॉफ दिखाई देने लगा.
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RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा... - by sexstories - 12-19-2018, 02:10 AM

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