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RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
रात इसी कश्मकश में बीत गयी सुबह जुम्मन काका आया तो मैं खेत में काम कर रहा था
मैं- आपकी ही राहः देख रहा था
वो- हुकुम करो
मैं- राजगढ़ का रास्ता बताओ
काका- तुम्हे क्या जरूरत पड़ गयी राजगढ़ जाने की बेटा
मैं- एक काम है काका जाना पड़ेगा
काका-पर बेटा,
मैं- पर वर कुछ नहीं काका रास्ता बताओ
काका- रास्ता तो मैं बता दूंगा बेटे पर वहां जाकर क्या करोगे राजगढ़ तो बरसो पहले बर्बाद हो गया अब तो शायद कुछ बचा ही न हो वहां
मैं- कैसे ,किसने किया क्यों किया
काका- दो महावीरों के गुरुर ने
मैं- साफ़ साफ़ बताओ काका
वो- जब तुम जा ही रहे हो तो क्या फायदा देख लेना
मैं- काका बताओ ना
काका- राजगढ़ किसी ज़माने में बंजारों का डेरा हुआ करता था लाल मंदिर से कोई 15 कोस दूर , थे बेशक बंजारे पर रुतबा था उनका ,मेलो में खेल तमाशे के अलावा वो जादू टोने में भी माहिर थे कहते है उनके डेरे से कोई कभी खाली हाथ नहीं आता था पर फिर पता नहीं क्या हुआ सब तबाह हो गया सब कुछ
मैं- किसने किया
काका- बस यु समझ लो दो पागल हाथी थे
मैं- समझाते बहुत हो काका खैर, ये काम जितना हो सके जल्दी करवाओ और थोड़ा खेत भी देख लेना ,ये कुछ पैसे है जरूरत हो तो खर्च लेना मैं किसी राजगढ़ जा रहा हु कोई भी पूछे तो साफ़ मना कर देना की तुम्हे कुछ नहीं पता
काका- ठीक है बेटा
उसके बाद मैं पूजा के घर आया और जैसे ही उसके ऊपर नजरे पड़ी दिल ठहर सा गया अभी अभी नाहा कर ही आयी थी गीले बाल बदन पर बस एक झीनी सी चुनरिया , इतनी मादकता जो किसी को भी पागल कर दे
पूजा- ऐसे क्या देख रहे हो
मैं- तुम्हे मेरी जान
वो- ना देखो
मैं- क्यों
मैंने पूजा की कमर में हाथ डाला और उसे अपनी बाहों के घेरे में कस लिया उसके चिकने नितम्बो को सहलाते हुए मैं बोला- बीवी है मेरी तुझे नहीं देखूंगा तो किसे देखूंगा
वो- पर अभी क्यों परेशां करते हो
मैं- हक़ है मेरा
वो- छोड़ो ना
मैं- छोड़ता हु पर पहले जरा ये शहद चख लू जरा
मैंने अपने होंठ उसके लबो पर रख दिए धीरे धीरे उसने भी अपने होंठ खोल दिए और हमारी चूमा चाटी शुरू हो गयी , दोनों के जिस्म गरमाने लगे थे उसके चुनरिया कब नीचे गिर गयी कहा होश था वो बस पिघल रही थी मेरी बाहों में,
मैं- तैयार हो जा कही चलना है
वो- कहा
मैं- राजगढ़
पूजा- इतनी दूर
मैं- गाड़ी से चलेंगे
वो- चल तो मैं पैदल भी पड़ूँगी पर क्यों ये बता
मैं- मिलना है किसी से
वो- कुछ खास काम है क्या
मैं- मिलना है एक आदमी से
वो- जरुरी है
मैं- बेहद जरुरी है
वो- मैं नहीं चल पाऊँगी
मैं-क्यों
वो- क्योंकि अब तुम मुझे छोड़ने वाले तो हो नहीं तो कैसे
मैं- जल्दी तैयार हो जा
एक बार और चूमाँ मैंने उसे और फिर थोड़ी देर बाद हम मेरे गाँव की तरफ जा रहे थे मैंने उसे गांव से कुछ दूर रुकने को कहा और फिर मैं घर से गाडी ले आया हम चल पड़े राजगढ़ की ओर
मैं- कुछ जानती हो राजगढ़ के बारे में
वो- नहीं,पर हमारे वहां जाने की वजह क्या है
मैं- बस मिलना है किसी से और घूम भी आएंगे
वो- तू इतना भोला भी नही है मेरे सरकार बात क्या है
मैं- वो तो वहाँ जाके ही पता लगेगा
पूजा- कुंदन, मैं देख रही हु तू पिछले कुछ दिनों से बुझा बुझा सा लग रहा है ऐसा लगता है जिस कुंदन को मैं जानती हु वो खो सा गया है
मैं- एक से एक परेशानियां है मेरे पास तेरे चाचा की लड़की से मेरे बापू ने मेरा रिश्ता तय कर दिया है बता क्या करूँ मैं
पूजा- ये कैसे हो सकता है
मैं- झूठ नहीं कह रहा हु
वो- जानती हु,
मैं- पर मुझे तेरे साथ रहना है
वो- तो मना कर दे
मैं- कौन सुनता है मेरी
पूजा- एक बेटा बन कर एक बाप के पास जा फिर देख
मैं- तुझे सच में ऐसा लगता है
वो- मैं कह रही हु ना
मैं- सिर्फ तू कह रही है ईसलिए
वो- चाचा का इस ब्याह के पीछे इतना उद्देश्य है कि रिश्तेदारी जुड़ेगी तो उसका कब्ज़ा बना रहेगा प्रॉपर्टी पर
मैं- मुझे क्या करना इन सब का बस तू मेरा हाथ थामें रखना उम्र भर
पूजा ने मेरे गाल पर हल्का सा चुम्बन लिया ।
मैं- मोहब्बत इम्तिहान क्यों लेती है
पूजा- मोहब्बत नहीं ज़िन्दगी बोल
मैं- ये भी सही है
वो- कुछ छुपा रहा है मुझसे तू
मैं- नहीं
वो- नजरे तो कुछ और बता रही है
मैं- नजरो का क्या इन्हें कौन समझ पाया है
वो- मैं समझती हूं बात क्या है
मैंने उसे सारी बात बता दी पूजा बस सुनती रही
मैं- तू ही बता मैं क्या करूँ
वो- तू बहुत नासमझ है कुंदन भाभी का अतीत खंगाल तभी बात बनेगी
मैं- तू भी तो अपना अतीत छुपाती है मुझसे
वो- मैंने क्या छुपाया तुझसे
मैं- छुपाया नहीं तो कसम क्यों दी
पूजा- क्योंकि दो वजह थी मेरे पास तुझे पहली बार अपने साथ ले गयी और तूने फसाद कर दिया तुझे कुछ हो जाता तो मैं कैसे बर्दाश्त कर पाती, और अब तो तुम पति हो मेरे और डर लगता है मुझे तुम्हारे उस जूनून से
और दूसरी मैं तुम्हे वहां जरूर ले जाऊंगी पर सही समय पर ,जब वो हवेली रोशन होगी जब सिर्फ तुम और मैं होंगे और हमारी दास्तान मुकम्मल होगी जब मैं अपना सब कुछ सौंप दूंगी तुम्हे और तुम्हारी हो जाऊंगी तब मैं ले जाऊंगी तुम्हे
खैर बातो बातो में हम राजगढ़ पहुच गए कुछ कच्चे छप्पर से थे जो अब उजाड़ थे रहे होंगे आबाद किसी ज़माने में, देखने से पता चलता था कि कभी रौनक होगी पर अब कुछ नहीं था
पूजा- ये क्या है
मैं- अतीत
पूजा- किसका
मैं- जिसका कर्ज है मुझ पर
पूजा- पहेलिया मत बुझाओ
मैं- सब्र, कर सब जान जायेगी मेरी रानी आ जरा
हम आगे बढे और आसपास देखने लगे पर लगता था कि अब कोई नहीं रहता था यहाँ पर ज्यादातर घर खाली थे पर हम चलते गए अब कोई तो मिले कुछ दूर जाकर मैंने देखा की एक नीम के नीचे एक आदमी बैठा है
मैंने उसे रामराम की और सूरज के बारे में पूछा उसने ऊपर से नीचे तक मुझे बार बार देखा और बोला- तुम कैसे जानते हो बाबा के बारे में
बाबा, क्या मैंने ठीक सुना क्या सूरज कोई बुजुर्ग है
आदमी- तुम कैसे जानते हो बाबा के बारे में
मैं- जानता हूं बस एक बार मिलने की हसरत है
आदमी- कहा से आये हो
पूजा जवाब देने वाली थी की मैंने उसका हाथ पकड़ा और बोला- अनपरा गाँव से
उसकी आँखे लगातार मुझे घूर रही थी जैसे उसे मेरी बात पे विश्वास नहीं था पर उसने अपना गाला खँखारा और बोला - मेरे साथ आओ
हम उसके पीछे चल दिए , बस्ती से दूर एक कच्चे रस्ते पर करीब आधा किलोमीटर चलने के बाद खेतो के एक किनारे पर मैंने एक बड़ी सी झोपडी थी हम उस आदमी के साथ अंदर गए तो देखा की एक पलँग पर एक बहुत ही बुजुर्ग व्यक्ति सोया हुआ था
जिसकी झुर्रिया उसकी उम्र से ज्यादा थी मांस हड्डियों का साथ पता नहीं कितने वक़्त पहले छोड़ गया था मैंने और पूजा ने एक दूसरे को देखा की वो आदमी बोल पड़ा
" लो मिल लो जिनकी तलाश में आप लोग यहाँ आये हो"
मैंने सोचा था कि कोई जवान होगा पर ये तो एक मरणसन्न बुजुर्ग था और अब मेरा दिमाग बुरी तरह से घूम गया था यक्ष प्रश्न था कि मेरा आखिर क्या औचित्य था यहाँ आने का
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RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
पूजा- अब क्या
मैं- सोने दो इंतज़ार करते है जब जागेंगे तभी कुछ बात बने
करीब दो घंटे बाद उस बुजुर्ग की आँख खुली उसने लेटे हुए ही हमारी तरफ देखा उसकी आँखों में जैसे कई सवाल थे, मैंने राम राम की और बस देखते रहा उनको
बाबा- कितने बरस बीत गए कोई ना आया ,तुम मुसाफिर कैसे इस ओर आ निकले
मैं- तक़दीर ले आयी बाबा
बाबा- तक़दीर के तो खेल ही निराले होवे है राजा को रँक बनादे, और भिखारी को राजा
मैं- एक आस लेकर आया हु बाबा
बाबा- मुझ फ़क़ीर के पास कुछ नहीं देने को
मैं- आशीर्वाद तो मिलेगा ना
बाबा- पर तुम्हारा प्रयोजन क्या है आने को
मैं- पता नहीं बाबा, बस चला आया
बाबा- बिन गरज के तो लोग भगवन को भी याद ना करते कोई ना कोई तो बात जरूर होगी वार्ना मुझ मरणसन्न के पास कोई क्यों आएगा जब सब छोड़ गए
मैं- अतीत के कुछ पन्नो की वजह से मेरा आज परेशां है बाबा, उलझन लेकर आया हु सुलझा दो
बाबा- कहा से आये हो
मैं- अनपरा गाँव से
बाबा- झूठ सरासर झूठ, यहाँ आस लेकर आने वाला केवल या तो अर्जुनगढ़ का होगा या देवगढ़ का
मैं- क्या फर्क पड़ता है बाबा , अरदास लेकर आया हु खाली हाथ ना जाऊंगा
बाबा ने पास पड़ी लाठी पकड़ी और उसका सहारा लेकर उठ गए ,चलते चलते झोपडी से बाहर आये
बाबा- कुछ शेष नहीं अब , न यहाँ न वहां, तुम जिस रास्ते आये हो लौट जाओ
मैं- बाबा मेरे लिए इतिहास जानना बहुत जरुरी है
बाबा- और मेरे लिए दुःख दायीं
मैं- जानता हूं बाबा और मैं क्षमाप्रार्थी हु
बाबा- तुम्हारी माफ़ी से क्या होगा क्या सब ठीक हो जायेगा क्या वक़्त का पहिया फिर जायेगा
मैं- कम से कम आने वाले वक़्त का तो सलीका हो जायेगा बाबा
बाबा- बाते बहुत ऊँची करते हो पर तुम्हारे रक्त से एक जानी पहचानी बदबू आ रही है
मैं- आपसे क्या छुपा है बाबा
बाबा- सत्य कहा बेटा पर मेरे पास कुछ नहीं बताने को
पूजा- बाबा बड़ी आस लेकर आये है खाली न भेजिए
बाबा- बेटी, तू तो सामर्थ्यवान है , तेरा तेज सब कह रहा है फिर मुझसे कैसी आस
पूजा- आस अपनों से ही की जाती है बाबा, बड़े बुजुर्ग तो उस छायादार पेड़ की तरह होते है जो अपनी पीढ़ी को अपने तले सहेज लेते है, माना लाख गलतिया हुई है पर फिर भी हम आपकी सन्तान ही तो है ,बाबा समय का पहिया घूम रहा है कुछ चीज़ों को सही करने का वक़्त आ रहा है
बाबा- अपनी माँ के जैसे बात करती है तूझे देखते ही जान गया था तू पद्मिनी की बेटी है
पूजा- तो क्या पद्मिनी की बेटी आपके दर से खाली हाथ जायेगी
बाबा- नहीं मेरी बच्ची नहीं पर तुम किस विषय में आये हो यहाँ
पूजा- अधूरे रिश्तो की दास्तान पूरी करने
बाबा- डोर टूट गयी है बेटी
पूजा- जानती हूं बाबा
मैं- बाबा आप पद्मिनी को कैसे जानते है
बाबा- मैं गुरु हु उसका
बाबा की बात सुनकर मैं और पूजा एक दूसरे को देखने लगे
बाबा- बड़ी लगन थी उसको बड़ा मना करता था मैं की ये तेरे काम का नही पर एक बार जो ठान ली वो ठान ली
पूजा- और क्या जानते है आप माँ के बारे में
बाबा- यही की उसने जीवन में एक गलती की, तंतर मंत्रो को तो खूब परखा उसने पर इंसानो को परखने की कला न सीख पायी
पूजा- बाबा आखिर ये क्या भूल भुलैया है जिसमे हम सब की जिंदगियां आपस में उलझ गयी है
बाबा- बेटी, ये सब दो लोगो के झूठे अहंकार और शुद्ध रक्त की बेबुनियादी अकड़ का नतीजा है, ये इतिहास है दो दोस्तों की अटूट मित्रता का , ये दास्ताँ है एक राखी के बंधन को दिए वचन को निभाने की ये दास्तान है एक अधूरी रह गयी मोहब्बत की, और उन नफरतो की जो एक तूफ़ान बन कर सब तबाह कर गयी
मैं- कुछ समझा नहीं बाबा
बाबा ने एक गहरी सांस ली और फिर पास रखे गिलास से कुछ घूंट पानी पिया फिर बोले- कोई नहीं समझ पाया इस कहानी को, हज़ारो अनुमान है पर सच कोई नहीं समझ पाया सब गए अपने सीने में उस अनकहे राज़ को लिए और एक जो बचा है उसने अपने दिल को पत्थर का कर लिया है
मैं- कौन बाबा
बाबा- ठाकुर हुकुम सिंह, ऐसी कोई चाबी नहीं जो उसके कलेजे में छुपे राज़ को खोल सके
मैं- पर ये डेरा, इसकी क्या कहानी है और ये कैसे बर्बाद हुआ
बाबा- बरसो पहले एक तांडव हुआ था एक सैलाब आया था, जो अपने साथ सब बहा ले गया
पूजा- कैसा सैलाब बाबा
बाबा- हुकुम सिंह ने एक वचन लिया था डेरे से पर डेरा वो वचन निभा नहीं सका और उनके क्रोध की भीषण अग्नि ने सब तबाह कर दिया
मैं- कैसा वचन
बाबा- हिफाज़त करने का
पूजा- किसकी हिफाज़त बाबा
बाबा- थी कोई अनमोल चीज़ बेटी
पूजा- पर क्या
बाबा- था कुछ जो हुकुम सिंह के लिए बहुत महत्वपूर्ण था
मैं- क्या आप जानते है कि आखिर क्या वजह थी की दो दोस्तों को लाल मंदिर की परीक्षा देनी पड़ी
बाबा- क्या नाम बताया तुमने अपना
मैं- जी कुंदन
बाबा- कुंदन, सब नियति का खेल है सब उसकी लीला है हम सब तो कठपुतलियां है उसकी जैसे वो चाहे वैसे खेल करे
मैं- बाबा, पद्मिनी का खारी बावड़ी से क्या सम्बन्ध है
बाबा- कुछ नहीं जहाँ तक मैं जानता हूं
मैं- और लाल मंदिर से
बाबा- जो हम सबका है
मैं- जी कुछ समझा नहीं
बाबा- लाल मंदिर इस कहानी का सबसे महत्वपूर्ण किरदार है कुछ भी न होता अगर लाल मंदिर ना होता
पूजा- बाबा मेरे मन में एक प्रश्न है
बाबा- अवश्य होगा परन्तु उत्तर तुम स्वयं भी जानती हो बेटी
पूजा- मैं बस इतना जानती हूं की क्या ये संभव है बाबा
बाबा- तुम स्वयं इसका प्रमाण हो बेटी तो संशय क्यों
मैं- किस विषय में बात कर रहे है आप
बाबा- प्रेम के विषय में कुंदन, अगर इस धरा पर कुछ है तो बस प्रेम , प्रेम ही मूल है प्रेम ही शुरुआत और प्रेम ही अंत
पूजा- पर उन्होंने कैसे किया ये
बाबा- प्रेम पुत्री प्रेम , परन्तु अब मुझे लगता है कि तुम दोनों को चलना चाहिए , सांझ होने को है
मैं- पर बाबा
बाबा- जितना मैं जानता था बता चुका हूं
मैं- बाबा एक बात नही बतायी आपने
बाबा- क्या
मैं- मेनका, मेनका को टाल गए आप
जैसे ही बाबा ने मेनका सुना, उनके चेहरे के भाव बदलने लगे
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RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
मेरी नजरे लगातार बाबा के चेहरे पर टिकी हुई थी और बाबा की आँखे मुझ पर बस उस छोटे से लम्हे में उनकी आँखों में जो भाव आया था वो बताने के लिए काफी था की मेनका से बाबा का कोई ना कोई रिश्ता था पक्का , हमारे आस पास एक उदासी ही भर गयी थी बाबा की सांसे भारी सी हो चली थी
मैं- बताइए बाबा कौन थी मेनका
बाबा- एक अभागन.
मैं- तो कहानी यही से शुरू होती है ना बाबा
बाबा- पता नहीं , जिंदगी में बस इतना सीखा है की चाहते कभी पूरी नहीं होती चाहे वो हमारी हो या तुम्हारी हो, जो दौर बीत गया अब कुछ नहीं रखा उसके जिक्र में तुम लोग दूर से आये हो अब लौट जाओ .
मैं- ऐसे नहीं बाबा बात यहाँ बस हमारी ही नहीं बात हर उसकी है जिसको उसका हक़ नहीं मिला.
बाबा- अब क्या फायदा जब हक़दार ही नहीं रहा .
मैं- मैं मनका के बारे म सब कुछ जानना चाहता हु बाबा और उम्मीद करता हु आप कुछ भी नहीं छुपायेंगे.
बाबा- तो मानोगे नहीं
मैं- नहीं
बाबा- तो सुनो, ये कहानी है दोस्ती की, विश्वास की, प्रेम की और छल की , एक ज़माने में ठाकुर अर्जुन और हुकुम सिंह की दोस्ती थी , दोनों की जान एक दुसरे से जुडी थी ऐसी प्रगाढ़ दोस्ती जिसकी मिसाले दी जाती थी और ऐसी ही एक और दोस्ती थी पद्मिनी और मेनका की, पद्मिनी की ललक तंत्र के गूढ़ रहस्यों में थी और मेनका बंजारों की टोली की बंजारन एक जोगन सी शांत ,
मैं- अक्सर सोचता की भला एक ठकुराईन और बंजारन का क्या मेल पर दोस्ती कहा उंच नीच समझती है दोनों में सगी बहनों से भी बढ़ कर प्रेम और चढ़ती जवानी ह्रदय में कुछ कर गुजरने को इच्छा , ना जाने वो कौन सी घडी थी जब मेनका और हुकुम सिंह की नजरे मिल गयी अब वो तनहा होने लगे कब वो एक दुसरे के करीब आने लगे पर फिर कुछ ऐसा हुआ की जिसने सब कुछ टहह्स नहस करवा दिया
मैं- क्या हुआ था बाबा
बाबा- मेनका गर्भवती हो गयी उसके पेट में हुकुम सिंह का अंशआ गया और फिर ना जाने क्या हुआ की हुकुम सिंह ने मेनका को उसका सम्मान देने से मना कर दिया ये तो स्वाभाविक ही था एक ऊँचे कुल का ठाकुर एक बंजारन को अर्धांगी कैसे बनाता , मेनका इस झटके को सह नहीं पायी और फिर आखिर कब तक अपने पेट को छुपा पाती, बात खुली तो उस अभागन से सबने मुह मोड़ लिया एक कुंवारी लड़की जिसके पाँव भारी क्या गुजरी होगी उसके माँ-बाप पर ,
और सबसे ज्यादा क्या गुजरी होगी खुद उस पर जब उसे सपने दिखाने वाला ही उम्मीदों का दामन छोड़ गया . पर उसने हिम्मत नहीं हारी वो बड़ी हवेली गयी बड़े ठाकुर के आगे अपना दुखड़ा रोया पर उस मजलूम की आवाज कौन सुनता, डेरे से बहिष्कार के बाद मेनका की जिन्दगी बहुत बदतर हो गयी थी पर उसे सहारा दिया उसकी बहन समान मित्र पद्मिनी ने
पर कुछ समय बाद मेनका गायब हो गयी किसी को कुछ पता नहीं चला बस हवाओ में एक नाम रह गया जो धीरे हीरे वक़्त की रेत तले दब गया, पर जिंदगी बढती रही पद्मिनी का विवाह अर्जुन से हो गया और बड़ी हवली में भी हुकुम सिंह की ग्रहस्ती बस गयी,
मैं- पर डेरे को क्यों ख़तम किया गया
बाबा- एक रात नशे में चूर हुकुम सिंह आया था यहाँ मेनका में बारे में पूछने ठाकुर नशे में था और डेरा गुस्से में बाद तो बिगडनी थी ही फिर पर बीच बचाव हुआ जैसे तैसे, जब अर्जुन को पता चला तो उसने किसी की नहीं सुनी उसकी तलवार बिजली बनकर डेरे पर चली और सब खतम हो गया .
पूजा- बाबा आपने कहा था की हुकुम सिंह की कोई अमानत थी डेरे पर
बाबा- प्रेम समझती हो बेटी , अगर समझती हो तो इस सवाल के जवाब की जरुरत नहीं पड़ती.
मैं- तो राणाजी भी प्रेम करते थे मेनका से हैं ना बाबा.
बाबा-बस यही एक बात मेरी समझ से परे है बेटे.
मैं- तो अगर प्रेम था तो फिर को मेनका को नहीं अपनाया
बाबा-इसका जवाब बस हुकुम सिंह ही दे सकता है
पूजा- कही ऐसा तो नहीं की बाद में दोनों दोस्तों ने मिलकर मार दिया हो मेनका को और माँ को जब इसका पता चला तो फिर सबके सम्बन्ध बिगड़े
मैं- नहीं दोनों ठाकुरों का मेनका की मौत में की हाथ नहीं है
पूजा- तुम्हे यकीन है
मैं- हां, क्योंकि मेनका की मौत प्रसव अवस्था में हो गयी थी
बाबा की आँखों से आंसू गिरते देखे मैंने, बेशक होंठो से एक भी शब्द नहीं निकला पर उनके दिल से निकली सदा को अपने कलेजे पर महसूस किया मैंने .
मैं- बाबा आपकी बेटी थी ना वो .
बाबा की आँखों से आंसू झरते रहे बस उसके बाद कहने और सुनने की की गुन्जायिश थी ही नहीं जिंदगी कभी कभी इतनी भारी लगने लगती है की उसके बोझ को उठा कर चलना आसान नहीं होता ये भी कुछ ऐसा ही पल था ,अब जब गड़े मुर्दे उखाड़ ही रहे थे तो उनकी बदबू भी झेलनी थी ही .
पूजा- बाबा हमारे पुरखो ने जो भी ज़ख्म दिए है हम इस लायक नहीं की उन पर मरहम लगा सके क्योंकि कुछ ज़ख्म कभी नहीं भरते वो सदा हरे ही रहते है पर फिर भी मैं हाथ जोड़ कर आपसे माफ़ी मांगती हु
बाबा ने बस दूर से अपने हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में उठा दिए जिस काम के लिए मैं यहाँ आया था वो पूरा हो गया था , हम गाडी में बैठे और वापिस मुड गए
मैं- क्या सोच रही हो पूजा
पूजा- अगर तुम्हारे पिता भी मेनका को चाहते थे तो क्या वजह रही होगी की उसका साथ छोड़ना पड़ा
मैं- पता करूँगा,
वो- कैसे
मैं- इसका जवाब खुद राणाजी देंगे.
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RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
पूजा- क्या तुम जल्दी नहीं कर रहे हो मेरा मतलब मेनका उनके लिए बेहद निजी विषय है
मैं- पर इन सब में मैं उलझ गया हूं पूजा और मैं इन सब से दूर जीना चाहता हु बस तुम्हारे साथ ,बीते कुछ महीनों में मैं मानसिक रूप से बहुत टूट चुका हूं हर रिश्ते के मुखोटे को उतरते हुए देखा है पर अब नहीं
पूजा ने मेरा हाथ थाम लिया और बोली- मुझे भी कुछ बात करनी है तुमसे
मैं- क्या
वो- दो पल गले लगालो मुझे
मैंने गाडी रोकी और उसकी तरफ देखते हुए बोला- क्या बात है
पूजा बस चुपचाप मेरे गले लग गयी और जैसे दुनिया ठहर सी गयी मैं बस उसकी पीठ थपथपाता रहा
पूजा- समय नजदीक है कुंदन
मैं- किस चीज़ का
वो- जब तेरे मेरे फेरे होंगे, जब मैं दुल्हन के जोडे में तेरे सामने आउंगी मेरा ये ख्वाब पूरा करेगा ना
मैं- कोई शक है तुझे
वो- एक तुझ पर ही तो भरोसा है मुझे
मैं- फेरे लेने है ना तुझे, बता कब लेगी जब जिस पल तू कहेगी तभी मैं तैयार हूं
पूजा- तीन दिन बाद करवा चौथ का व्रत है उस रात को
मैं- कहाँ न जब तू चाहे और कुछ
वो- कुछ नही मैं- तो मुद्दे की बात करते है
वो- दो दोस्त जो एक दूसरे की जान के प्यासे बन जाते है आखिर क्या वजह होगी
मैं- पता नहीं पर बात जो भी रही होगी कुछ ऐसा हुआ होगा जो दोनों मजबूर हो गए हो
पूजा- सवाल पे सवाल है जिस भी तरफ देखो
मैं- तुम्हारी माँ की मौत कैसे हुई बता सकती हो
पूजा - मैं तब छोटी थी लोग कहते है कि हादसा था कोई कहता है कि आत्महत्या थी पर मैं नहीं मानती
मैं- देखो जिसे हम अपनी दास्ताँ समझ रहे है वो दरअसल हमारी नहीं बल्कि चार लोगो की कहानी है जिसमे हमे हमारी तक़दीर ने जोड़ा है
पूजा- समझ रही हु इस कहानी के चार पात्र है हमारे पिता माँ और मेनका
मैं- जो भी था इनके ही बीच हुआ
पूजा- ये सब कैसे पता करे
मैं- अतीत को खंगालने की कोशिश कर रहे है
पूजा- चार में से तीन लोग रहे नहीं बचे सिर्फ तुम्हारे पिता और उनसे कुछ भी उगलवाना टेढ़ी खीर है
मैं- एक उपाय है अगर काम कर गया तो
पूजा- क्या
मैं- है कुछ
वो- तूने कुछ सोचा है तो ठीक ही सोचा होगा
मैं- राणाजी बहुत घाघ है अब इतनी आसानी से कुछ नहीं बताएँगे पर एक बात बता, तू तेरे चाचा से बात कब करेगी
वो- किस बारे में
मैं- तेरे हिस्से के बारे में
वो- मेरा हिस्सा बस तू है , तुझे पा लिया अब किसी और की चाहत नहीं पर मैंने तुझे वचन दिया है कि तुझे मेरे साथ अर्जुनगढ़ जरूर ले जाउंगी, तेरे मेरे विवाहित जीवन की पहली रात उसी हवेली में गुजरेगी जब मैं खुद को तुझे सौंप दूंगी
मैं- सब पहले ही सोच रखा है तूने
वो- अब तेरी इतनी हसरत भी पूरी ना कर सकी तो क्या फायदा मेरे होने का
मैं- इसी बात पे थोड़ा प्यार करे
पूजा- यही गाडी में
मैं- चलती गाड़ी में मजा आएगा
पूजा- देख ले कही दे मत मारियो गाड़ी को दाए बाये
मैं- डर लगता है मरने से
पूजा- नहीं पगले,
पूजा ने हाथ आगे बढ़ा कर मेरी चेन खोली और मेरे लण्ड को बाहर निकाल लिया उसकी नर्म उंगलियो को महसूस करते ही बदन में एक रूमानी अहसास होने लगा
कुछ देर वो बस उसे सहलाती रही और फिर उसने अपने चेहरे को मेरी टांगो पर झुका लिया उसके नर्म रसीले होंठो का स्पर्श मेरे सुपाड़े पर आते ही मेरे तन बदन में जैसे आग लग गयी और पूजा ने भी जुल्म करते हुए अपने दांत मेरे सुपाड़े की खाल में धँसा दिए
मैं- मत करना
वो- क्यों क्या हुआ, अभी तो कुछ और बोल रहे थे
मैं- बर्दाश्त नहीं होती तेरे लबो की गर्मी
पूजा- आदत डाल लो सरकार
थूक में लिपटी उसकी जीभ का जादू मेरे बदन को कामुकता की ऊंचाइयों की तरफ ले जा रहा था मेरी आँखों में उन्माद छाने लगा था स्टेयरिंग पर पकड़ कमजोर होने लगी थी
वैसे हम लाल मंदिर से कुछ ही दूर थे , इधर पूजा के होंठो का दवाब मेरे लण्ड पर बढ़ते ही जा रहा था मस्ती में हिचकोले खाते हुए मैंने गाडी की रफ्तार थोड़ी सी और बढ़ा दी की तभी मेरी नजर जगन ठाकुर और मंदिर के पुजारी पर पड़ी वो लोग हमसे थोड़ी दूरी पर ही थे मैंने ब्रेक लगा दिये
पूजा- क्या हुआ
मैं उसे हटाते हुए- इसे छोड़ और सामने देख तेरा चाचा मंदिर के पुजारी के साथ है
पूजा- ये यहाँ क्या कर रहा है
मैं- देखते है
पर कुछ ही देर में जगन चला गया और पुजारी पैदल ही मंदिर की ओर जाने लगा मैंने गाड़ी भगाई और उसके पास रोकी
मैं- रामराम पंडित जी
पंडित- अरे छोटे ठाकुर आप इस तरफ
मैं- मनाही है क्या
पंडित- नहीं जी ऐसी बात नहीं
पूजा- पंडित जी, घुमा फिरा के नहीं पूछूँगी और जवाब भी सीधा लुंगी
पंडित ने हाँ में सर हिलाया
पूजा- जगन ठाकुर किसलिए मिलने आया था आपसे
पंडित- वो चाहता है कि मैं उसकी बेटी की ऐसी कुंडली बनाऊ जिसमे से उसके और छोटे ठाकुर के सारे गुण मिल जाये और विवाह का भी अति शीघ्र मुहूर्त निकालू
पूजा- तो तुमने क्या जवाब दिया
पंडित- जी अब ठाकुर साहब का दवाब है तो ना तो नहीं कह सकता ना
पूजा- और अगर मैं अभी इसी समय तेरी जिंदगी का मुहूर्त बदल दू तो
मैं- गुस्सा नहीं , मैं बात करता हु, हाँ तो पंडित जी बात ये है कि आपको इस झमेले से दूर रहना है चाहे जगन का दवाब हो या राणाजी का आपको बस हमारा कहा करना है
पंडित- आप लोग आपस में ही सुलटा लो ना मैं तो हर तरफ से मरूँगा
पूजा- उनका तो पता नहीं पर अगर मुझे पता चला की विवाह मुहूर्त निकला है तो तेरी अर्थी का जुगाड़ मैं करुँगी समझ ले
पूजा ने जिस तरह से पंडित को धमकी दी थी मेरे मन ने उसी पल चेतावनी दे दी की कुछ अनिष्ट होने वाला है दूर कही रोते मोर भी शायद यही संकेत दे रहे थे
जिंदगी में पहली बार मैंने पूजा की आँखों में कुछ अलग सा देखा था जिस तरीके से उसने पंडित को धमकाया था मुझे लगा ही नहीं था की वो मेरी पूजा है , मेरी पूजा बेहद शांत और समझदार थी और उसका यु बौखलाना सा मुझे समझ नही आया जबकि उसे पहले से ही पता था की ये सब बात चल रही है , खैर मैं बस खिड़की की तरफ देख रहा था गाड़ी वो चला रही थी.
ये जो कभी कभी ख़ामोशी सी होती थी हमारे बीच ये मुझे गुस्सा दिलाती थी ना वो कुछ कह रही थी ना मैं कुछ कह रहा था पता नहीं कब रास्ता कट गया और हम उसके घर पहुच गए मैं गाड़ी उसे ही रखने को कहा और मैं अपनी झोपडी की तरफ चल दिया वहा जाके देखा तो चाची बैठी थी .
मैं- चाची कब आई
चाची- मैं तो दोपहर से ही तेरी बाट जोह रही हु पर तू ही आजकल महंगा हो गया है
मैं- कुछ काम से बाहर था और बताओ
चाची- बस तेरी याद आ रही थी तो मिलने आ गयी
मैं- अच्छा किया मैं भी सोच रहा था की चाची से मिलु
चाची- कुंदन तू कुछ ऐसा तो नहीं कर रहा ना जिससे राणाजी नाराज हो
मैं- ये पूछने आई हो
चाची- नहीं, पर ना जाने क्यों मुझे कुछ ठीक नहीं लगता है
मैं- मैं तो बस जीने की कोशिश कर रहा हु
चाची- तेरे चाचा की खबर आई है जल्दी ही लौटेंगे वो
मैं- बढ़िया, तब तो मौज हो जाएगी
वो- मौज तो अब भी है बस तू ही देखता नहीं मेरी तरफ
मैं- आज रुको फिर मेरे पास सारी शिकायते दूर कर दूंगा
चाची- तू कहेगा तो रुक जाती हु पर एक बात और करनी है
मैं- बताओ
चाची- तू जगन सिंह की लड़की से शादी करेगा क्या
मैं- नहीं
चाची- पर राणाजी ने जुबान दी है
मैं- मैंने तो नहीं दी ना
वो- बाप की पगड़ी उच्लेगी कुंदन
मैं- चाची, इस बारे में कोई बात नहीं करना चाहता मैं
चाची- कोई बात नहीं
चाची ने मेरा हाथ अपनी चुचियो पर रख दिया और मेरे पास सरक गयी मैंने भी कई दिन से चूत नहीं मारी थी तो सोचा की थोडा मजा कर लेता हु,जैसे ही मैंने चाची की चुचियो को मसलना शुरू किया चाची लिपट गयी मुझसे जैसे पता नहीं कबकी प्यासी हो हमारे होंठ एक होने लगे उसके बदन की जानी पहचानी खुशबु मुझे उत्तेजित करने लगी
धीरे धीरे चाची के बदन के कपडे कम होते जा रहे थे और जल्दी ही वो पूरी नंगी मेरी आँखों के सामने थी चाची ने बड़ी अदा से अपने पैरो क फैलाया और अपनी बिना बालो की चूत को हाथ से रगड़ते हुए मुझे दिखाने लगी मैं भी अपने कपडे उतारने लगा
चाची- कुंदन बड़ी आग लगी है रे आज तोड़ दे मुझे दब के रगड डाल मुझे
मैं- चाची तू हर समय प्यासी ही रहती है
चाची- क्या करू मैं बिना चुदे रहा ही नहीं जाता
मैं- अपने जेठ को बोला कर
चाची- मुझे तो तेरे हथियार की प्यास है
चाची पलंग पर चढ़ कर घोड़ी बन गयी और अपनी गांड हिलाने लगी , उसकी मदमस्त गांड को देखते ही मेरे गले का पानी सूखने लगा , चाची की गांड पर तो मैं हमेशा से ही फ़िदा रहा था मैंने चाची की चूत पर पप्पी ली और फिर अपने लंड पर थोडा सा थूक लगाते हुए सुपाडे को सटा दिया
चाची- ओह कुंदन! जल्दी से डाल दे अन्दर
मैं- इतनी भी क्या जल्दी है मेरी रानी आज अब पूरी रात तुझे चुदना ही है
मैंने चाची के चूतडो पर हाथ रखे और लंड अन्दर सरकाने लगा चाची ने भी अपनी गांड को पीछे किया और उसके गोरे चूतडो पर मेरी पकड़ मजबूत होने लगी, जल्दी ही झोपडी में थप्प थप्प की आवाज गूंजने लगी और साथ ही चाची की गर्म सिस्कारिया
मैं- चाची, तेरे जैसी चूत कीसी की नहीं है इसकी गर्मी की बात ही अलग है
चाची- फिर भी तू मेरी तरफ देखता नहीं है
मैं- आज तेरी सारी शिकायत दूर कर देता हु आज पूरी रात तुझे लंड पे बिठाऊंगा मेरी रानी
चाची- बिठा ले , बहुत खुजली मची है इसको आज सारी खुजली मिटा दे इसकी , अआहा थोडा धीरे ..
मैंने अपने हाथ चाची की चुचियो पर रखे और उसके अगले हिस्से को थोडा सा ऊपर उठा लिया जिससे उसके चुतड निचे हो गए और अब अपने बोबो को मसल्वाते हुए चुदाई का पूरा लुत्फ़ उठा रही थी वो चूत की चिकनाई से लथपथ मेरा लंड गरम चूत में दबा के घर्षण कर रहा था चाची भी बार बार अपनी गांड को पीछे पटक रही थी मस्ती में चूर दो बदन चुदाई के सुख को भोग रहे थे
अब मैंने चाची को लिटा दिया और उसके ऊपर आ गया चाची ने अपनी टांगे उठा कर मेरे कंधो पर रख दी और खुद अपनी छातियो को मसलते हुए चुदने लगी , धीरे धीरे हम पर खुमारी छाती जा रही थी चाची की रसीली चूत और भरपूर यौवन मेरे लंड का मजा ले रहा था चाची की आँखे मस्ती के मारे बंद हो चुकी थी मेरे धक्के लगातार उसको झडने के करीब ले जा रहे थे
तभी चाची ने अपने पैर मेरे कंधो से हटा लिए और मुझे पूरी तरह से अपने ऊपर खीच लिया, एक बार फिर से हम लोगो के होंठ आपस में कैद हो गए थे चाची का बदन बार बार अकड़ कर संकेत दे रहा था और कुछ ही पलो बाद चाची झड़ने लगी मेरा लंड उसके रस कीगर्म बौछर में नाहा गया और साथ ही मेरा पानी भी गिर गया अपनी सांसो को संभालते हुए मैं उसके ऊपर ही गिर गया .
कुछ देर हम बस पड़े रहे, फिर वो मेरे बगल में आ गयी
मैं- एक बात कहू
वो-हाँ
मैं- कविता जीजी का पता चाहिए लन्दन का मुझे
चाची- क्यों
मैं- कितने बरस हुए वो एक बार भी मिलने ना आई , नकाभी कोई चिट्ठी न कोई तार वो हमे भूल गयी पर मुझे जीजी की याद आती है सोचता हु एक चिट्ठी लिख दू और फिर मिलने भी चला जाऊ
चाची- याद तो मुझे भी उसकी आती है पर वो तो जैसे हम सबको भूल ही गयी है गयी तो पढने थी पर फिर लौट के आई ही नहीं कहती थी इस घर में दम घुटता है उसका
मैं- पता तो होगा उसका
चाची- मेरे पास तो नहीं पर राणाजी के पास जरुर होगा
मैं- कल पता करता हु तब तक जरा इसे संभालो
मैंने चाची के हाथ में अपना लंड दे दिया और खुद उसकी चुचियो को पीने लगा आज की रात मैं बस चाची के साथ ही मजे करना चाहता था पर शायद अपना नसीब इसकी इजाजत नहीं देता था लंड में दुबारा तनाव आना शुरु हुआ ही था की एक तेज चीख ने जैसे कानो के परदे ही फाड दिए
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RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
चीख बेशक किसी इंसान की थी पर जिस तरह से वो चीख रहा था लगा की जैसे किसी पशु को काटा जा रहा हो एक पल में ही बदन पसीने पसीने हो गया , मैंने चाची को परे धकेला और अपने कपडे पहनते हुए बाहर आया पर अब चारो तरफ अँधेरे में घोर सन्नाटा पसरा हुआ था , ख़ामोशी ऐसी की मैं अपनी सांसो की आवाज दूर से भी सुन सकता था .
“क्या हुआ कुंदन,” चाची ने हाँफते हुए कहा
मैं- पता नहीं पर कोई तो चीखा था
चाची- मैं टोर्च लाती हु
जैसे ही चाची टोर्च लेके आई हम आस पास देखने लगे और फिर कुछ ऐसा मंजर देखा मैंने की रीढ़ की हड्डी तक सिहर गयी मेरे खेत के डोले पर ठाकुर जगन सिंह का कटा हुआ सर पड़ा था आँखे जैसे बाहर को ही आ निकली थी पूरी तरह गर्म खून में सना हुआ चाची की तो घिग्घी ही बांध गयी ऐसा हाल देख कर पर अब इतनी रात को वो कही और जा भी तो नहीं सकती थी .
जगन सिंह का कटा हुआ सर मेरी जमीन पर मिलना टेंशन वाली बात थी मुझे अपनी फ़िक्र नहीं थी पर इससे दोनों गाँवों के हालत बिगड़ जाने थे , अब ऐसे कटे हुए सर को देख कर एक बार तो मैं भी सिहर गया था, मैं ही क्या अच्छे से अच्छे जिगर वाले भी घबरा जाए तभी मुझे कुछ सुझा चीख यही से आई थी तो इसको यही मारा गया है.
मैंने बाकि की धड की तलाश शुरू की तो कुछ ही दुरी पर मुझे खूब टुकड़े मिले बड़ी बेरहमी दिखाई थी कातिल ने जैसे कोई पुराणी खुन्नस निकाली हो, खून ताज़ा हुआ था एक बात तो साफ़ थी की कातिल ज्यादा दूर नहीं गया होगा पर इस खुली जगह और अँधेरे में वो किसी भी दिशा में जा सकता था , कभी मैं जगन सिंह के शारीर के टुकडो को देखता तो कभी उसके सर को जिसकी आँखे जैसे मुझे ही घुर रही हो.
चाची- कुंदन तुम्हारे तो लग गए, अब एक ही रास्ता है की सुबह होने से पहले इस लाश को ठिकाने लगा दो , अगर लोगो को मालूम हुआ की जगन सिंह का खून यहाँ हुआ है तो ये ठीक नहीं होगा.
मैं- बात तो सही है चाची पर बात ज्यादा दिन छुपेगी नहीं.
चाची- बाद की बाद में देखना, कल को लाश तुम्हारी जमीन पर मिलेगी तो सबसे पहले सवालो के घेरे में तुम आओगे
मैं- उसकी फ़िक्र नहीं है चाची, पर दोनों गाँवो में तनाव हो जायेगा वैसे ही मैंने थोड़ी ना मारा है इसको .
चाची- मैं जानती हु पर दुनिया
मैं- दुनिया की किसे पड़ी है
चाची- मेरी बात मान कुंदन, इतनी बड़ी जगह है कही भी गाड दे इसको
मैं- एक मिनट, देखो इसके कातिल की तलाश तो करनी ही होगी उससे पहले सवाल ये है की आखिर इस वक़्त ये अर्जुन्गढ़ से इतनी दूर अकेला कर क्या रहा था और वो भी पैदल .
चाची- जासूस बाद में बन लेना मेरी बात मान पहले तू मामले की गंभीरता को समझ नहीं रहा है, अर्जुन गढ़ के ठाकुर की लाश देव गढ़ के ठाकुर की जमीन पर मिलना मामूली बात नहीं है , तलवारे खींच जाएँगी और खून की नदिया बह जाएँगी , लाश मिलने और गायब होने में फरक होता है कुंदन.
चाची की बात सोलह आने सच थी पर ये साला कौन था जो इस मुसीबत को मुझे चिपका गया था इतना तो पक्का था की जगन सिंह की मौत सुनियोजित तरीके से की गयी थी और कातिल कोई करीबी था , जिसके साथ वो अकेला ही चला आया था चाची की बात मान लेने में ही मुझे फायदा लगा और कुवे के पीछे जो जगह पूजा ने साफ़ की थी वहा पर मैंने लाश के टुकडो को गाड दिया.
पर काम अभी खतम नहीं हुआ था बल्कि बढ़ गया था आखिर कौन होगा और जो भी था उसे ये जरुर पता होगा की मैं झोपडी में हु और जिस तरीके से उसने बदन के टुकड़े किये थे ये बात मुझे खटक गयी थी घुप्प अँधेरे में मैं कुवे की मुंडेर पर बैठा गहरी सोच में डूबा था, ये क्या स्यापा आ गया था जिन्दगी ने जैसे सोच ही ली थी की कुंदन की ही मारनी है हर पल.
बेशक लाश को छुपा दिया था पर बात नहीं छुप्नी थी एक एक सेकंड भारी हो रहा था आखिर इतनी बेरहमी और इतनी जल्दी कौन मान सकता था इसको और सबसे जरुरी बात इतनी बड़ी दुनिया थी फिर मेरी चौखट पर ही क्यों क्या कोई मुझे फ़साना चाहता था या फिर बस इतिफाक ही था पर जो भी था मेरे लिए परेशानी बढ़ गयी थी, सुबह हलके अँधेरे में ही मैं चाची को हमारे कुवे तक छोड़ने गया .
जब तक मैं वापिस आया तो भोर हो गयी थी दिन हल्का हल्का निकल आया था मैं खेत में आया और अब पूरी जगह का अवलोकन करने लगा , जगन का खून कई जगह पर बिखरा था अब उसको साफ़ करना जरुरी था पर तरीका कैसे क्या हो समझ नहीं आ रहा था मैं घूमते घूमते उस जगह पर आ गया जहा से चार रस्ते अलग अलग दिशाओ में जाते थे एक देवगढ़ और अर्जुन्गढ़ की तरफ और एक पूजा के घर की तरफ और मेरी जमीन की तरफ और उस चौराहे के बीच में खड़ा था मैं .
तभी जैसे किसी चीज़ की चमक पड़ी मुझ पर तो मैंने देखा देखा और कसम से मुझे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हु आखिर ये यहाँ कैसे हो सकती थी इसको मैं हज़ारो में भी पहचान सकता था ये ठाकुर अर्जुन सिंह की तलवार थी मैं दौड़ते हुए उस तक पंहुचा , तलवार को फेंका नहीं गया था बल्कि इस तरह जमीन में धंसाया गया था की नोक धरती में और बाकि हिस्स शान से ऊपर खड़ा था कायदे से तलवार को लाल मंदिर के मैदान में होना चाहिए था क्योंकि बरसो से इसकी जगह वही पर थी हैरत से मुह खोले मैं मामले को समझने की कोशिश कर ही रहा था की तभी मुझे मिटटी में कुछ गिरा हुआ दिखा
और जैसे ही मैंने वो चीज़ उठाई एक पल को मुझे कुछ भी समझ नहीं आया आँखों की बात दिल ने मानने से इनकार कर दिया मेरे एक हाथ में तलवार थी और दुसरे में.
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RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
मेरे एक हाथ में ठाकुर अर्जुन सिंह की तलवार थी और दूसरे हाथ में सुनहरी घडी थी, मेरे भाई की घडी जिसे शायद इस जगह पर नहीं होना चाहिए था ,इंद्र की घडी का यहाँ होना साला सर ही घूम गया मेरा जो इंसान मर चुका है उसकी घडी यहाँ कैसे हो सकती है
मैंने घडी को उल्ट पलट के देखा भाई की घडी ही थी ये , पर अब सब कुछ और उलझ गया था खैर मैंने घडी अपनी जेब में डाली और तलवार को संभाल कर रख लिया मैं पूजा से मिलना चाहता था पर पहले आस पास के इलाके में चेक करना जरुरी था कि कही जगन सिंह की गाड़ी तो नहीं है
करीब दो घंटे मैंने जितना हो सका ढूंढा पर गाड़ी क्या टायरो के निशान भी ना मिले मतलब साफ था कि वो पैदल ही आया होगा , मैं जबतक वापिस आया दोपहर होने को थी सो मैं पूजा के घर की ओर चल दिया
जाकर देखा तो दरवाजा खुला था और मेमसाब सो रही थी मैंने झिंझोड़ कर जगाया उसको
पूजा- हां, क्या हुआ डरा ही दिया तूने
मैं- ये टाइम है सोने का
वो- आँख लग गयी थी
मैं- उठ और ये देख
मैंने उसके पिता की तलवार उसके सामने कर दी
पूजा- ये , ये तो
मैं- इसे लाल मंदिर में होना चाहिए था ना
पूजा- तेरे पास कैसे
मैं- एक गड़बड़ हो गयी है पूजा
वो- साफ़ साफ़ बोलना
मैंने उसे पूरी बात बताई रात की
पूजा- ये ठीक ना हुआ , न हुआ ये ठीक
मैं- पर मारा किसने
वो- आ साथ मेरे
मैं- कहा
वो- खेत में
मैं और पूजा दौड़ते हुए खेत में आये और मैं उसे कुवे के पीछे ले गया जहाँ मैंने जगन को गाड़ा था पर वहाँ जाते ही मेरे होश उड़ गए , गड्ढा खुला पड़ा था और लाश के टुकड़े गायब थे मैंने अपना माथा पीट लिया
मैं- पूजा अभी निकल यहाँ से हम सुरक्षित नहीं है यहाँ
पूजा- एक मिनट मुझे समझने दे जरा, रात को यहाँ कत्ल होता है लाश के टुकड़े किये जाते है फिर तू उनको गाड़ देता है सुबह मेरे पिता की तलवार मिलती है और अब लाश गायब
मैं- कोई खेल खेल रहा है हमारे साथ
पूजा- तलवार यहाँ होना क्या दर्शाता है,
मैं- पूजा मैं तेरी बात समझ रहा हु पर मामला गंभीर है किसी को भी लाश मिली तो दोनों गाँव सुलग जायेंगे
पूजा- गाँव की चिंता नहीं है मुझे तेरी फ़िक्र है और तुझ पर कोई आंच आये ये मैं होने नहीं दूंगी एक काम करते है अभी लाल मंदिर चलते है और रास्ते में जुम्मन को कहते चलेंगे की यहाँ कुछ आदमियो का पहरा लगा दे
तो करीब घंटे भर बाद हम जब लाल मंदिर पहुचे तो कुछ लोगो की भीड़ जमा थी हम भीड़ हटाते अंदर पहुचे तो पता चला की पुजारी को मार गया कोई, मेरे तो जैसे घुटने ही टूट गए दिमाग का दही हो गया नसे जैसे फटने को हो आया
पूजा मुझे वहां से थोड़ी दूर ले आयी
मैं- एक ही रात में दो दो कत्ल वो भी जब
पूजा मेरी आँखों में आँखे डालते हुए- वो भी जब , जब मैंने पुजारी को धमकी दी थी
मैं- पागल हुई है क्या ये महज एक इत्तेफाक है तुझे क्या आन पड़ी इनको मारने की
वो- जानती हूं कुंदन पर शक तो मुझ पर भी होगा ना
मैं- सिर्फ तू और मैं ही जानते है कि धमकी दी थी और पुजारी तो रहा नहीं और क्या फर्क पड़ता है
पूजा-पर
मैं- रहने दे मैं जानता हूं तूने नहीं मारा इनको
पूजा- मामला पेचीदा हो गया है कुंदन
मैं- मुझे अब तेरी चिंता हो रही है क्योंकि जो गड्ढे से लाश लेके गया उसे पक्का तेरे बारे में भी पता होगा और मैं हर वक़्त तेरे साथ होता नहीं पर अगर तेरे साथ कुछ हुआ तो
पूजा- मुझे कुछ नहीं होगा कुंदन मैं समर्थ हु अपनी रक्षा में
मैं- पहले की बात और थी पर अब तू मेरी है इसलिए मुझे कुछ सोचना होगा
पूजा- क्या
मैं- आज से तू देवगढ़ में रहेगी
पूजा- पर कुंदन
मैं- कहा न मैं आज से तू देवगढ में रहेगी
पूजा- बात को समझ
मैं- पूजा तुझे सुरक्षित रखना सबसे जरुरी है मेरे लिए दुश्मन कौन है मैं नहीं जानता पर वो शायद जानता हो की मेरी कमजोरी तू है ,
पूजा- पर मैं तो तेरी ताकत हु ना
मैं- मेरा सबकुछ तू है तू है तो मैं हु तू नहीं तो कुछ नहीं
पूजा-अब ऐसे भी ना देख की पिघल ही जाऊ मैं
मैं- मुद्दे की बात ये है कि कौन पेल गया इनको
पूजा- ऐसा हो सकता है कि पुजारी ने हमसे झूठ बोला हो चक्कर कुछ और हो , जिसमे इनकी जान गयी हो
मैं- होने को तो कुछ भी हो सके है पर जवाब कौन देगा
पूजा- कोई तो मिलेगा ही वैसे लगता है एक चक्कर अर्जुनगढ़ का लगा लेना चाहिए चाचा के गायब होने का पता तो चल ही गया होगा
मैं- अगर मैं गया तो वैसे ही दिक्कत हो जानी है
पूजा- तुझे कौन ले जायेगा मैं अकेली जाउंगी
मैं-पागल हुई क्या
पूजा- भरोसा नहीं मुझ पर
मैं- खुद से ज्यादा
पूजा- तो जाने दे
मैं- पर
पूजा- कहा न जाने दे
अब पता नहीं क्यों मैं पूजा को मना नहीं कर सका उसने मुझे गांव छोड़ा और अर्जुनगढ़ की तरफ निकल गयी मैं घर के बाहर खड़ा सोच रहा था कि कौन होगा इनसब के पीछे तभी भाभी आ गयी
भाभी- आज यहाँ
मैं- न आ सकु के
भाभी- आओ तुम्हारा ही घर है
मैं- कोई दिख न रहा
भाभी- राणाजी माँ सा को लेकर अपने सहर गए है वापसी के एक मित्र से मिलते हुए रात तक आएंगे
मैं- क्यों
भाभी- माँ सा की तबियत ठीक न थी तो सहर जाना ही था डॉक्टर को भी दिखा देंगे और घुमाई भी हो जायेगी
मैं- अकेली हो
भाभी- ना जी अब तुम जो आ गए
मैंने हवेली का दरवाजा बन्द किया और भाभी के पीछे उनके कमरे में आ गया भाभी मेरी ओर पीठ किये थी मैं उनके पीछे खड़ा हो गया और धीरे से उनके कंधे को चूमा
भाभी- कितनी बार कहा है तुमसे न हो पायेगा
मैं- कभी तो होगा , मैंने चूचियो को दबाते हुए कहा
भाभी- आह, आराम से
मैं- एक बात करनी है
भाभी- कहो, आजकल तो तुम अपनी गर्ज़ से ही आते हो मेरा कहा ध्यान है तुम्हे
मैं- सुनो तो सही
भाभी- क्या
मैंने जेब से भाई की घड़ी निकाल कर उनके हाथ में दे दी
भाभी की आँखे हैरत से खुल गयी
भाभी- ये तुम्हारे पास कैसे आयी, इसे तो
मैं- इसे तो
भाभी- इसे तो ।।।।।।।।।।।।।।
मैं- इसे तो भाई के सारे सामान के साथ स्टोर में होना चाहिए था
भाभी- तुम्हे कहा से मिली ये
मैं- सवाल ये नहीं की मुझे कहा मिली सवाल ये है कि घर से ये गायब कैसे हुई
भाभी- मुझे नहीं पता
मैं- भाभी सब चीज़े उलझ गयी है और मैं आँख बंद करके आप पर भरोसा करता हु क्योंकि एक आप ही हो मेरी
भाभी- मुझे सच में नहीं पता इसके बारे में
मैं- स्टोर की चाभी कहा है
भाभी- राणाजी के कमरे में हमेशा की तरह
मैं सीधा राणाजी के कमरे में आया और चाबियों का गुच्छा लेके स्टोर की ओर आ गया ताला खोला तो धुल ने स्वागत किया स्टोर का हाल देख कर लगता नहीं था की इसे हाल फिलहाल खोला गया हो
हर तरफ धुल की मोटी चादर बिछी थी ढेरो जाले लगे थे खांसते हुए मैं अंदर गया भाभी भी मेरे पीछे आ गयी
मैं- लास्ट टाइम इसे कब खोला था
भाभी- तुम्हारे भाई का सामान रखने को
मैं- लगता है क्या आपकी बात सच है
भाभी- राणाजी में तो ऐसा ही कहा था
मैं- देखता हूं
स्टोर में खूब सामान था पर घंटे भर की मेहनत के बाद ये स्पष्ट था कि भाई का सामान यहाँ पर नहीं था मैंने भाभी से बाहर निकलने को कहा और खुद भी निकल रहा था कि मेरा घुटना एक मेज से टकरा गया और उस पे रक्खा एक बैग गिर गया
मैंने बैग को उठाया और वापिस मेज पर रख ही रहा था कि तभी उसमे से कुछ निकल कर गिरा मैंने उसे वापस रखा और लगभग स्टोर से बाहर आ गया ही था की,,,
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RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
मेरे दिमाग में जैसे धमाका हुआ मेरे अंतर्मन में जैसे हलचल मच गयी मैं जल्दी से वापिस हुआ और उस बैग को अपने कांपते हुए हाथो से खोला और जैसा की मैं मन ही मन दुआ कर रहा था कि ये वो चीज़ न हो,
पर हमेशा की तरह ये दुआ भी कहा कबूल होनी थी मेरी आँखे साफ़ साफ़ उस चीज़ को देख रही थी जिसे शायद यहाँ नहीं होना चाहिए था बल्कि यहाँ क्या उस देश में ही नहीं होना चाहिए था ,
मेरे हाथों में कविता जीजी का पासपोर्ट था , या मैं यु कहु की ये पासपोर्ट नहीं था बल्कि ये हमारे परिवार के ताबूत में शायद अंतिम कील था मैंने उस पुराने हो चुके पासपोर्ट को उलट पलट कर देखा ,
उसकी हालत कुछ खस्ता सी थी पर ये साफ़ पता चलता था की जीजी ने कभी भी इसके जरिये कोई यात्रा नहीं की थी , पर अब यक्ष प्रश्न मेरे सामने था की अगर जीजी कभी देश से बाहर गयी ही नहीं तो फिर वो कहा है ,
मैं पासपोर्ट को बड़े गौर से देखते हुए गहन सोच में डूब गया था कि भाभी की आवाज सुनी
भाभी- अब कहा रह गये देवरजी , आ जाओ
मैं- हां, आता हूं भाभी
मैंने पासपोर्ट अपनी जेब में डाला और बाहर निकल आया पर दिमाग अब हद से ज्यादा खराब हो गया था जीजी मैं बहुत छोटा था तब से ही विदेश चली गयी ये ही सुनता आया था मैं दिल तड़प गया था अपनी बहन को देखने को अपनी बहन को गले लगाने को,
अपने आप से जूझते हुए मैं बाहर आके बैठ गया कुछ देर में भाभी चाय ले आयी और मेरे पास ही बैठ गयी
भाभी- क्या सोच रहे हो
मैं- भाभी मैं जीजी के पास जाना चाहता हु
भाभी- उसमे क्या है राणाजी से ले लो उनका पता और मिल आओ
मैं- हाँ,
मैंने भाभी की आँखों में एक गहरायी देखि जब उन्होने ये बात कही , कही न कही मैं समझ गया कि भाभी को भी पता होगा की जीजी कभी देश से बाहर गयी ही नहीं तो बात एक बार फिर से घूम फिर कर वही आ गयी की जीजी है तो कहा है
इधर चाय की चुस्कियां लेते हुए भाभी की नजरें बराबर मुझ पर जमी हुई थी जैसे की स्कैनिंग कर रही हो मेरी, पर मैंने एक बात पे बहुत गौर किया दरसअल मैं अब तक इस सारे घटनाक्रम को खुद के जीवन का हिस्सा मान रहा था पर सच्चाई ये थी की मेरे घर के हर एक इंसान अपने आप में कहानी था और हम रिश्तो की ड़ोर से आपस में जुड़े थे,
तो क्या जीजी की भी कोई कहानी रही होगी ,हां शायद,
मैं- भाभी आप कह रही थी की पीहर जाओगी
भाभी- सोच तो रही हु बस थोड़ी सी फुर्सत आ जाये तो
मैं- फुर्सत ही है, कहो तो कल चले मैं भी घूम आऊंगा
भाभी- विचार करती हु
मैं- राणाजी वैसे किस मित्र से मिलने गए है
भाभी- वो तो मुझे नहीं पता
मैं- झूठ तो नहीं बोल रही
भाभी- सच सुनना चाहते हो तो सीधे प्रश्न करो, बातो को घुमाना क्या
मैं- ये भी सही है, तो बताओ की भाई की घडी अर्जुनगढ़ के रास्ते पर क्या कर रही थी
भाभी- मैं जवाब दे चुकी हूं पहले और बातो को दोहराने की आदत नहीं मेरी
मैं- क्या ये अजीब नहीं लगता की एक मरे हुए इंसान की घड़ी ,वो घड़ी जो उसे सबसे प्यारी थी कही ओर मिलती है, और घर में उसका सामान भी नहीं मिलता और कहा गया किसी को पता नहीं चलता ,
इस घर में हर कोई चोर है और सबने साहूकारी का नकाब ओढ़ रखा है और मेरी समझ में ये नहीं आ रहा की आखिर क्यों, अब ऐसा भी क्या है कि हर कोई बस अपने आप में जीता है,
भाभी- मानती हूं हमाम में हम सब नँगे है, पर कुंदन तुम चाहो तो आराम से सुकून की ज़िंदगी जी सकते हो
मैं- सच में भाभी
भाभी- बिलकुल, क्या पहले तुम मौज से नहीं रहते थे
मैं- तब मुझे कुछ भी नहीं पता था भाभी
भाभी- तुम्हे अब भी कुछ नहीं पता
मैं- तो बताती क्यों नहीं
भाभी- क्या बताऊँ तुम्हे
मैं- वही राज जो सब छुपा रहे है
भाभी- आँखे खोल कर देखो कोई राज़ है ही नहीं
मैं- तो इतनी बेताबी किसलिए
भाभी- मोह माया
मैं- किसकी
भाभी- प्रेम ,
मैं- किसका प्रेम
भाभी- मेरा, तुम्हारा, हम सबका
मैं- पहेलिया क्यों बुझाती हो
भाभी- महाभारत पढ़ी है कभी, एक चक्रव्यूह था उसमें एक हम सबकी ज़िन्दगी में है एक अभिमन्यु था वो जो अंतिम द्वार पार न कर सका, एक अभिमन्यु तुम हो
मैं- समझा नहीं
भाभी- यही तो कमी है तुम्हारी कुछ समय के लिए दिल को भूल जाओ और दिमाग को लगाओ विचार करो कही तुम बस किसी की कठपुतली तो नहीं बन गए हो
मैं- किस्मे इतना सामर्थ्य जो कुंदन को इशारे पे नचा सके
भाभी- अक्सर सामर्थ्यवान मर्दो को मैंने ढेर होते देखा है
मैं- आप सब जानती है ना
भाभी- इसका जवाब देने की जरुरत नहीं मुझे क्योंकि इससे सच में ही कोई फर्क पड़ता नहीं है पर इतना अवश्य कहूँगी की एक बार फिर से इतिहास जरूर दोहराया जायेगा एक बार फिर से प्रेम की कसौटी होगी और प्रीत की आजमाइश होगी बाकि रक्त तब भी था नादिया इस बार भी बहेंगी
मैं- साफ़ साफ़ क्यों नहीं कहती हो
भाभी- क्या कहूं साफ़ साफ़ वो जो तुम सुनना चाहते हो या फिर वो जो मैंने महसूस किया है
मैं- क्या महसूस किया है आपने
भाभी- दर्द, द्वेष, घृणा, तड़प और प्रेम , वो प्रेम जिसकी छाया को लोग तरसते रहते है
मैं- हारने लगा हु भाभी थाम क्यों नहीं लेती हो आखिर क्यों पनाह नहीं देती हो
भाभी- क्योंकि मोहब्बत भी अपनी और नफरते भी अपनी, अब क्या फर्क पड़ता है जब कातिल भी हम और क़त्ल होने वाले भी हम
मैं- एक सवाल और पूछुंगा और आप इंकार नहीं करेंगी है ना,
भाभी बिना पलके झपकाये मुझे घूरती रही
मैं- ठाकुर जगन सिंह और लाल मंदिर के पुजारी को किसने मारा
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RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
भाभी- ये क्या कह रहे हो तुम
मैं- वही, जो आपके कानो ने सुना
भाभी- पर ऐसा कैसे हो सकता है
मैं- क्यों नहीं हो सकता है
भाभी- तुम नहीं समझ रहे हो जगन सिंह की मौत का शक सीधा अपने परिवार पर आएगा और दोनों गाँवो को झुलसते देर न लगेगी
मैं- गांव वालों को बड़ी चिंता है पर अपने घरवालों की नहीं,
भाभी- कहना क्या चाहते हो
मैं- यही की आप ढोंग करती हो की इस घर के लिए ये करती हो वो करती हो असल में आपको जरा भी फ़िक्र नहीं है इस घर की और ना इस घर में रहने वालों की
भाभी- यदि ऐसा है तो क्यों हो मेरे पास जाओ निकल जाओ
मैं- निकल तो चूका हूँ इस घर से पर कुछ सवाल बल्कि खोज है मेरी
भाभी- तो हर बार घूम फिर कर मुझ पर ही क्यों आ जाते हो तुम
मैं- क्योंकि भरोसा है आप पर
भाभी- झूठ, झूठ कहते हो तुम, क्योंकि तुम डरते हो असल में , चाहे तुम कितनी भी बाते बना लो पर कुंदन ठाकुर असल में तुम्हारी हैसियत एक कायर से ज्यादा कुछ नहीं है जो मुझ पर भी ठीक से जोर नहीं चला पाता , अगर दम है तो पकड़ लो गिरेबां राणाजी का और पूछ लो
भाभी की आँखों में मैंने एक बार फिर से वो ही अजीब सी चमक देखि मैंने,
मैं- पूछुंगा उनसे भी पूछुंगा बस एक बार सहर से आ जाये वो
भाभी- नहीं तब भी तुम दुबक जाओगे क्योंकि आज तक तुम जिए ही हो दुसरो के साए तले अपने आप से क्या उखाड़ लिया तुमने कुछ नहीं, कुछ भी नहीं , दबंग बाहुबली राणाजी के बेटे और राक्षष इंद्रर के भाई के अलावा औकात ही क्या है तुम्हारी इस घर में, एक नौकर की भी ऊँची हैसियत है तुमसे
भाभी के शब्द रूपी बाण मेरे अंतर्मन को बुरी तरह से घायल कर गए पर इसी यथार्थ से तो भाग रहा था मैं,
भाभी- मुझे समझ नहीं आता की आखिर हर बार मेरे सामने आकर खड़े क्यों हो जाते हो किसी भिखारी की तरह , अरे दम है तो अपने बाप से सवाल करो, ले दे कर मुझ पर जोर चलाने में मर्दानगी समझते है
मैं- ज्यादा हो रहा है भाभी
भाभी- अजी छोड़िये, क्या कम क्या ज्यादा तुम्हे क्या लगता है की मुझे हर राज़ का पता होगा कुछ सुनी सुनाई बाते है तुम्हे क्या बता दी ऊँगली पकड़ कर पहुँचा पकड़ लिया और ऊपर से अकड़, इन्दर की घडी , अरे नहीं है उसका सामान स्टोर में कभी रखा ही नहीं गया तो क्या घंटा मिलेगा तुम्हे,
तीस मार खान बने फिरते है , इनके खेत में कोई क़त्ल कर जाता है और फिर लाश भी गायब हो जाती है इनकी नाक के ठीक नीचे से पर ये कुछ नहीं कर पाते पर मर्दानगी देखिये मुझ पर जोर पूरा है
मैं- आपको कैसे पता ये सब
भाभी- क्योंकि हम ठकुराइन जसप्रीत है ,
मैं- कही आपने ही तो
भाभी- इन छोटे मोटे कामो के लिए हमे अपने हाथ गंदे करने की जरूरत नहीं है
मैं- मैं सिर्फ इतना पूछना चाहता हु की
भाभी- वकील लगे हो क्या जो बस पूछते ही जाओगे असल में तुमसे कुछ नहीं हो पायेगा अब भी तुम मुद्दे से भटक रहे हो , जबकि असल में तुम्हे अपनी बहन के बारे में पूछना चाहिए था पर वो तुम करोगे नही
मैं- तो आपको पता चल गया
भाभी- मुर्ख वो पासपोर्ट वाला बैग मैंने ही वहाँ रखा था ये मेरी ही चाहत थी की तुम्हे वो पासपोर्ट मिले वार्ना तुम सात जनम में भी कविता के बारे में सुराग नहीं लगा सकते थे
मैं- जब पता ही था तो क्यों छुपाया आपने
भाभी- क्योंकि तुम्हे टूटता हुआ नहीं देख सकती, तुम चाहे जो समझो पर जबसे तुम्हे देखा मैंने परवाह की है तुम्हारी, क्योंकि भोले हो तुम समझते नहीं ही दुनियादारी को पर जिद तुम्हारी
मैं- कहा है मेरी जीजी
भाभी- पता नहीं
मैं- भाभी इस बार ये नहीं चलेगा
भाभी- कहा ना नहीं पता,
मैं- भाभी, मैं जानता हूं अब इतना भी मत खेलो की सब्र टूट जाये जीजी के बारे में बता दो कही ऐसा न हो की मेरा हाथ उठ जाये
भाभी- क्या कहा तुमने, हाथ उठ जाये, थू है तुमपे और तुम्हारी मर्दानगी पे एक औरत पे हाथ उठाके खुद को मर्द साबित करोगे, जाओ जाकर चेक करवालो रगों में ठाकुरो का खून ही दौड़ रहा है या नहीं
मैं चिल्लाते हुए - भाभी
भाभी- क्या हुआ, उफ्फ्फ ये अहंकार तुम्हारा गौर से मेरी आँखों में देखो क्या तुम्हे इनमे डर दिखाई देता है , नहीं न
मैं- इस वक़्त मेरे लिए कुछ भी महत्वपूर्ण है तो मेरी बहन बस
भाभी- एकाएक बहन के प्रति प्यार उमड़ आया कारण क्या है
मैं- यही की कही उसके साथ कुछ गलत न हुआ हो
भाभी- तो उसमें तुम क्या कर सकते हो समय की धार का पहिया मोड़ सकते हो क्या तुम
मैं- आखिर बता क्यों नहीं देती जीजी के बारे में
भाभी- जितनी मदद कर सकती थी कर चुकी हूं अब माफ़ करो
मैं समझ गया था की एक बार फिर से खाली हाथ ही जाना पड़ेगा पर जाते जाते भी मैंने एक सवाल और पुछने की सोची
मैं- भाभी आप मेनका की बेटी है ना
भाभी मेरे पास आई और अपनी सर्द आवाज में लरजते हर बोली- नहीं, मैं,,,,,,,,,,,,,,,,,,, मैं।
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RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
मैं- क्या भाभी
भाभी- मेरा मेनका से कोई सम्बन्ध नहीं है
मैं- झूठ नहीं भाभी
भाभी- मैं सच कह रही हु
मैं- तो सारे समीकरण बदल जाते है ना भाभी
भाभी- नहीं, मैंने कहा न मेरा मेनका से कोई रिश्ता नहीं है
मैं- बहुत हुआ भाभी, मुझे लगता है कि बेहतर होगा अगर हम अब आमने सामने की बात करे , अब कुछ छुपाने को रहा नहीं आपके पास , अब मैं आपसे शुरू करके राणाजी पे खत्म करूँगा
भाभी- जल्दबाज़ी तुम्हारी
मैं- अब इन उलझी बातो से मुझे नहीं टरका सकोगी, कोई नहीं है यहाँ सिवाय आपके और मेरे , आपने बहुत कुछ कहा मेरे बारे में, मेरे चरित्र के बारे में , पर आज बल्कि इसी वक़्त मैं फिर से इतिहास को ज़िंदा करने की कोशिश करूँगा अब मैं कोई रिश्ता, कोई नाता नहीं देखूंगा अगर अब कुछ है तो सिर्फ मेरी बहन की तलाश और अर्जुनगढ़ की हवेली को फिर से आबाद करना और जैसा मैंने कहा शुरुआत आपसे करूँगा
भाभी- न जाने क्यों मुझे लग रहा है की आज समय रुकने वाला है तो चलो शुरू करते है पर इजाजत हो तो थोड़ा पानी पी लू
मैंने पास रखे जग से गिलास भरा और भाभी को पकड़ाया, एक ही घूंट में पूरा गिलास गटक गयी
भाभी- तो तुमने तलाश की मेरे अतीत की मेरे पीहर तक गए तुम यहाँ तक कामिनी की भी मदद ली तुमने
मैं- तो क्या करता मैं जरुरी लगा वो किया मैंने
भाभी- मैं भी करती पर क्या मिला तुम्हे
मैं- एक बंद हवेली के दरवाजे और सूनापन
भाभी- आसपास नहीं पूछा किसी से
मैं- पता किया मैंने ठाकुर त्रिलोक जी के बारे में
भाभी- तो जान गए होंगे की वो अब इस दुनिया में नहीं रहे
मैं चुप रहा
भाभी- वो हवेली मिरर ब्याह के साल भर बाद से ही बंद पड़ी है ठाकुर साहब
जब भाभी ने ठाकुर साहब कहा तो बुरा बहुत लगा पर स्तिथि ही कुछ ऐसी थी विश्वास को त्याग कर शायद हम आज अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ रहे थे
भाभी- तो तुम्हे वहां से कुछ जानकारी नहीं मिली मेरे अतीत की, है ना
मैं- मुझे एक बात पता चली थी
भाभी- ओह! अब समझी शायद इसीलिए तुमने समझा की मैं मेनका की बेटी हु, कसम से मैं मैं तुम्हे बहुत ही समझदार समझती थी पर मैं गलत थी, माना की त्रिलोक जी ने मुझे गोद लिया था पर मेनका की बेटी नहीं हूं मैं
मैं- तो कौन है आप और इस चक्रव्यू में आपका किरदार क्या है
भाभी- वही जो तुम्हारा है ,वही जो हर एक उस इंसान का है जो इन सब से जुड़ा है
मैं- पहेलिया नहीं भाभी, आज जो भी बात होगी सीधे होगी
भाभी- चलो समझाती हु, आखिर राणाजी की ऐसी क्या वजह रही होगी की जिस शुद्ध खून की वो इतनी दुहाई देते है, जिस रुतबे से वो जीते है आखिर क्या वजह रही होगी की उन्होंने मुझे अपने घर की बहू के लिए चुना
मैं- शायद आपकी सुंदरता आपको पाने की चाह
भाभी- मूर्ख, तुम कभी जिस्म से आगे बढ़ ही नहीं सके
मैं- आप ही बताओ
भाभी- ताकि राणाजी पल पल खुद को मरते हुए महसूस कर सके , ताकि हर लम्हा वो खुद को कोसे वो गिड़गिड़ाए मेरे सामने भीख मांगे अपनी मौत की पर जानते हो उनकी सजा उनकी मौत नहीं बल्कि उनकी ये ज़िन्दगानी होगी, जो वो आज जी रहे है और आगे जियेंगे
भाभी को आवाज एकाएक तेज हो गयी थी जैसे की उनके मन में पिघल रहा लावा आज फूट गया था , उनकी आँखों में सुलगती नफरत की आँख से मैंने अपने आप को झुलसता महसूस किया
मैं- आपकी नफरत को हमेशा जायज ठहराया मैने भाभी कितनी बार आपको कहा की मेरे साथ चलो पर आपने नहीं माना , जब जब मेरा हाथ थामना चाहिए था आपको आपने मेरी जगह राणाजी को चुना क्यों मैं पूछता हूं क्यों
भाभी- क्योंकि अगर मैं कही महफूज़ हु तो बस इस घर में
मैं- और इस हिफाज़त की कीमत आपका जिस्म चुकाता है , है ना।
भाभी- क्या हमने तुम्हे कहा नहीं था कि हमारे नाड़े की गांठ इतनी भी ढीली नहीं है
मैं- इस बात को ना ही कहो भाभी, जब चाहे वो आपको बिस्तर पर घिसट लेते है और आप चू तक नहीं करती मेरे आगे बाते बड़ी बड़ी
भाभी- सीता नहीं हूं मैं, न कभी तुमसे छुपाया क्या हुआ जो मेरा जिस्म हार जाता है राणाजी के आगे पर मैं हर बार जीत जाती हूं,
मैं- मैं समझ नहीं पा रहा
भाभी- क्योंकि तुम कही हो ही नहीं तुम अपने हठ से इनसब में पड़े हो, क्योंकि तुम एक बात पकड़ के बैठे हो की अर्जुन सिंह की वसीयत तुम्हारे लिए लिखी गयी है जबकि तुम्हे आदत है भृम में जीने की
मैं- मोह माया का लालच नहीं किया कभी मैंने
भाभी- जानती हूं तुम्हे ,कद्र करती हूं तुम्हारी सादगी की इसी लिए चाहती हूं कि आवेश में आके ऐसा कुछ नहीं करना जिसके कारण सारी जिंदगी अपने दिल पर बोझ लेकर जीना हो
मैं- वो जिंदगी ही क्या जिसमे आप मेरे साथ ना हो
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RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
मैंने भाभी के होंठो पर एक फीकी हंसी देखि, एक पल को लगा की वो गले लगाएंगी पर मैं गलत था वो उठी और खिड़की से डूबते सूरज को देखने लगी
भाभी- क्या तुम्हे सच में कविता की फ़िक्र है
मैं- क्या लगता है
भाभी- कभी तुमने जिक्र नहीं किया उसका यहाँ तक की इतने रक्षाबंधन आये गए अचानक ही क्यों
मैं- क्योंकि पहले मैं समझता था जीजी विदेश में है
भाभी- हम्म, पर कभी कोई चिट्ठी न कोई खबर कभी कोई टेलीफोन अरे पंछी भी घरौंदे को नहीं भूलते कविता तो फिर भी इंसान ही है, और आज जब तुम्हे पता चला की वो कभी विदेश गयी ही नहीं
मैं- इसीलिए तो मेरा मन घबराता है
भाभी- क्यों
मैं- क्योंकि वो बहन है मेरी
मैं- और मैं, मैं भी किसी की बहन बेटी हु ना
मैं- ये सवाल ही गलत है भाभी, आप की मर्ज़ी भी शामिल है कही न कही
भाभी- मेरी अर्ज़ी, हाहाहा, मेरी मर्ज़ी, मतलब अगर मैं अभी कपडे उतार दू तो चोद दोगे तुम भी
मैं- इज्जत करता हु आपकी
भाभी- पर मौका लगा तो चोद दोगे ना
मैं चुप रहा
भाभी- एक बात पुछु, अगर मेरी तरह तुम्हारी बहन को ये सब सहना पड़ता तो
मैं- जुबान को लगाम दो भाभी ,
भाभी- क्यों कविता के चूत नहीं है क्या , या उसकी सुंदरता के कायल नहीं होंगे तुम्हारी बहन है तो क्या चुदेगी नहीं
तड़ाक ना जाने क्यों मैं खुद पर काबू नहीं रख पाया मेरा थप्पड़ भाभी के गाल को लाल कर गया बेशक मुझे गुस्सा आ गया था पर अगले ही पल समझ भी आ गया की मैंने गलत किया
भाभी- निकल जाओ कमरे से
मैं- चला जाऊंगा बस इतना बता दो मेरी बहन कहा है
भाभी- हमने कहा न चले जाओ कुंदन, अगर हमारा सब्र टूट गया तो हमे ताउम्र अफ़सोस रहेगा
मैं- आप चाहे तो मार लीजिये या जो चाहे कर लीजिए आज मैं हर सवाल का जवाब लेकर ही जाऊंगा
भाभी ने गुस्से से मुझे देखा और कमरे से बाहर निकल गयी कुछ देर बाद मैंने गाड़ी स्टार्ट होने की आवाज सुनी और जब तक मैं नीचे आया गाड़ी जा चुकी थी
अब ये कहा चली गयी, घर पर मैं अकेला था तभी मैंने सोचा की यही मौका है घर में तलाशी ली जाये और सबसे पहले भाभी के कमरे की मैंने बड़े दरवाजे को अच्छे से बंद किया और सीधे भाभी के कमरे में पहुच गया ।
मैंने सबसे पहले उनकी अलमारी खोली हर सामान सलीके से रखा था मैंने हर एक दराज देखि पर वहां कपड़ो और गहनों के अलावा कुछ नहीं था ,दूसरी अलमारी में श्रृंगार का सामान था बिस्तर के गद्दे उल्ट पलट दिए पर सब क्लीन था ऐसा कुछ भी नहीं था जिससे संदेह हो ,
पर तभी मेरी नजर बेड के नीचे रखे एक पुराने संदूक पर पड़ी मैंने उसे वहां से निकाल कर खोला तो उसमें कुछ पुराणी कतरने और एक तस्वीर थी जो शायद वक़्त के साथ धुंधला सी गयी थी , मैंने बहुत गौर किया तो पाया कि ये तो शायद कविता जीजी की तस्वीर थी,
पर ये यहाँ कैसे फिर सोचा की किसी ने फालतू समझ कर रख दिया होगा संदूक, बाकि कुछ मिला नहीं तो मैंने कमरे को सलीके से किया और एक बार फिर से स्टोर में आ गया हल्का अँधेरा होने लगा था इसलिए लालटेन भी ले आया था,
चूँकि भाभी ने कहा था की स्टोर में बैग उन्होंने ही रखा था इसलिए मुझे उम्मीद थी की शायद कुछ और भी जरूर मिलेगा करीब घंटे भर की मेहनत के बाद मुझे एक पुराना बैग मिला जिसमे कुछ खस्ता कपडे थे जो अब चीथड़े से ही बचे थे
पर मैं पहचान गया कि हो न हो ये जीजी के ही कपडे होंगे पर ये यहाँ क्यों, मेरे दिल की धड़कनों की रफ्तार इस आशंका ने बढा दी की हो न हो जीजी के साथ कुछ तो गलत हुआ है, पर अब वो किस हाल में होंगी शायद जिन्दा भी होंगी या नहीं,
मेरे हाथ पाँव डर के मारे कांपने से लगे थे ,बाकी मुझे और कुछ नहीं मिला स्टोर में धूल मिट्टी से सना हुआ मैं बाहर आया ,आंगन में हल्के पर हाथ पांव धो ही रहा था कि मेरी नजर उस कमरे पर पड़ी जिसके दरवाजे पर मैंने हमेशा ताला ही पड़ा देखा था
मैं दरवाजे के पास गया और गौर से ताले को देखा इस तरह जंग खाया हुआ था कि अब शायद चाबी से भी न खुले, मैं हथौड़ा लाया और दो तीन चोट में ही ताला जवाब दे गया जैसे ही दरवाजा खुला एक बार फिर से धूल के गुबार और जालो ने मेरा स्वागत किया ,
लालटेन की रौशनी में मैंने देखा की सामने की दिवार पर बहुत सी तस्वीरे लगी है जिनपर अब धूल और गर्दे ने कब्ज़ा जमा लिया है मैंने एक कपडे से साफ़ की, दीदी का मुस्कुराता हुआ चेहरा मेरे सामने था जैसे अभी बोल पड़ेंगी
कुछ देर मैं बस उन तस्वीरो को निहारता रहा , पता नहीं कब आँखों से कुछ बूंदे गिर पड़ी पास में ही एक पलंग पड़ा था और बस एक अल्मारी जिसके ज्यादातर हिस्से को दीमक चाट गयी थी पहली नजर में ऐसा कुछ खास था नहीं कमरे में
पर आज मैंने ठान लिया था की चाहे जो भी हो बस अब इनसब का अंत करके एक नयी शुरआत करनी थी मुझे , पर जल्दी ही अहसास हो गया की शायद यहाँ से सब हटा दिया गया होगा कुछ सोच कर मैं राणाजी के कमरे की तरफ बढ़ा , हमेशा की तरह दरवाजा खुला ही था
राणाजी अपने ज्यादातर काम इसी कमरे से निपटाते थे तो उम्मीद थी की यहाँ कुछ न कुछ मिलेगा ही पर भोर का उजाला हो गया मुझे ऐसा वैसा कुछ नहीं मिला , ऐसा लगता था कि मैं हार ही गया था
हार कर मैं राणाजी के बिस्तर पर बैठ गया और सोचने लगा की हो न हो इस घर में मुझे कुछ न कुछ जरूर मिलेगा क्योंकि घर किसी भी इंसान का गढ़ होता है और राणाजी का ठिकाना भी ये घर ही था
अगर यहाँ भी मैं खाली हाथ रहा तो इसके दो मतलब होंगे की यहाँ कुछ नहीं तो राणाजी के राज़ कही और है ,पर दिल से एक आवाज आ रही थी की मैं इस गुत्थी को सुलझाने के बहुत करीब हु , बस जरा सी दूर,
बिस्तर पर बैठे बैठे सोच विचार करते हुए मैं अपने पैर जमीन पर पटकने लगा और तभी मेरा पैर फर्श पर ऐसी जगह लगा की अजीब सी आवाज आई, जैसे की फर्श में कोई थोथ हो, कुछ खोखला सा हो,
मुझे कोतुहल हुआ और मैं अब अपने हाथों से हलके हलके थपथपा के फर्श की उस आवाज को समझने की कोशिश करने लगा और जल्दी ही फर्श की टाइल एक तरफ सरक गयी नीचे जाने को कुछ सीढिया दिखी
तो पता नहीं क्यों, मेरे चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी मैंने पास पड़ी लालटेन ली और नीचे उतर गया टाइल अपने आप वापिस सरक गयी जैसे जैसे मैं नीचे उतर रहा था अँधेरा घना होने लगा था ,इतना घाना की लालटेन की रौशनी भी मंदी पड़ने लगी
पर मैं नीचे उतरता गया पर सीढिया जैसे खत्म ही न होने को थी पर इस इंतज़ार का फल भी मिला मुझे जल्दी ही मैं एक ऐसे कमरे में था जिसे कमरा कहना शायद गुनाह होगा , कुछ लोगो के लिए जिंदगी था ये,
पहली बार लगा की हमारी तो कोई ज़िन्दगी नहीं होगी इन लोगो के आगे हम तो कुछ जिये ही नहीं , जी तो ये लोग गए दीवारों पर चारो तरफ तस्वीरे लगी थी हस्ते मुस्कराते हुए जैसे लम्हो लम्हो की ज़िंदगी को मैंने उन तस्वीरो में देख लिया
राणाजी, अर्जुन सिंह पद्मिनी की तस्वीरें जगह जगह लगी थी कुछ स्वेत श्याम कुछ रंगीन पर क्या मजाल जो धूल जरा भी छू जाये कोई लगातार आता जाता था कुछ तो मोह था उन तस्वीरों में , नजर जो पड़ी हट ना सकी
वहां कुछ तस्वीरें भी थी एक औरत की जिसको मैं नहीं पहचान पाया पर उसके पहनावे से अंदाजा लगाया की ये मेनका होगी , शायद ये तस्वीरें अपने आप में बहुत कुछ बयां करती थी जिसे समझने की औकात नहीं थी मेरी
पास में ही एक छोटी सी टेबल रखी थी जिसमे चार लोगो की तस्वीरें थे और एक खाली फ्रेम था जिसमे अभी तक किसी की फोटो लगायी नहीं गयी थी पर यहाँ भी एक पहेली थी क्योंकि चार लोगो में एक तस्वीर यहाँ बिलकुल नहीं होनी चाहिए थी , इन्दर, भाभी, मेरी और चौथी तस्वीर पूजा की थी , हां पूजा की और इसके क्या मायने थे मै नहीं जानता था
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