04-27-2019, 12:32 PM,
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RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
किसी ने मेरी पीठ पर धौल सी जमाई और मैं आगे को गिर पड़ा पीठ में वैसे ही चोट लगी हुई थी तो गुस्सा सा आ गया कुछ कठोर शब्द बोलते हुए मैंने पीछे देखा और पल में ही मेरा गुस्सा गायब सा हो गया मैंने देखा पीछे पूजा मुस्कुरा रही थी
“तुम यहाँ , यहाँ क्या कर रही वो ”
“ढोर चराने निकली थी तो तुमको देखा तुम् बताओ यहाँ कैसे ”
“कुछ नहीं बस ऐसे ही ”
“ऐसे ही कोई कही नहीं जाता और खास कर इन बियाबान में ”
“अब क्या बताऊ पूजा एक आफत सी मोल ले ली है तो उसी सिलसिले में आना पड़ा ” और फिर मैंने पूजा को पूरी बात बता दी
“इस जमीन पर खेती करना तो बहुत ही मुश्किल है कुंदन इसको समतल करने में ही बहुत समय जायेगा तो फसल कब होगी ”
“अब जो भी हो कोशिश तो करूँगा ही वैसे तू कहा चली गयी थी सुबह ”
“काम करने पड़ते है अब तेरी तरह तो हु नहीं ”
“मेरी तरह से क्या मतलब तेरा ”
“कुछ नहीं ”
“तू सारा दिन ऐसे ही घुमती रहती है वो भी अकेले मेरा मतलब ”
“अब कोई है नहीं तो अकेले ही रहूंगी ना और तेरे मतलब की बात ये है की इस इलाके में सब लोग पह्चानते है तो कोई परेशानी नहीं होती और मैं चोधरियो की बेटी हु इतना सामर्थ्य तो है मुझमे ”
“पूजा, पता नहीं क्यों तेरी बातो से ऐसा लगता है की बरसो की पहचान है तुझसे ”
“ऐसा क्यों कुंदन ”
“पता नहीं पर बस लगता है ”
“चल बाते ना बना ढोर दूर चले गए होंगे मैं चलती हु ”
“रुक मैं भी आता हु वैसे भी मुझे अब घर ही जाना है ”
पूजा से बात करते करते हम वहा से चलते चलते उसके घर की तरफ आ गए उसने अपने जानवरों को बाँधा और फिर मैं उसके साथ उस तरफ आ गया जहा पर एक बहुत बड़ा बड का पेड़ था
“कुंदन, ये पेड़ मेरे दादा का लगाया हुआ है ”
“क्या बात कर रहा रही है ”
“सच में ”
“आजा तुझे चाय पिलाती हु ”
मैं और वो घर में उस तरफ आ गए जहा चूल्हा था उसने आग जलाई मैं पास ही बैठ गया थोड़ी देर में ही उसने चाय बना ली एक गिलास में मुझको दी और एक में खुद डाल ली
मैं – पूजा भूख सी लग आई है तो अगर एक रोटी मिल जाती तो
वो- हा, रुक अभी लाती हु
वो एक छाबड़ी सी ली और उसमे से कपडे में लपेटी हुई रोटिया निकाली और एक रोटी मेरे हाथ में रख दी वो रोटी मेरे घर जैसी घी में चुपड़ी हुई नहीं थी पर उसमे जो महक थी वो अलग थी मैंने बस एक निवाला खाया और मैं जान गया की स्वाद किसे कहते है
चाय की चुस्की लेते हुए मेरे होंठो पर एक मुस्कान सी आ गयी थी थोड़ी और बातो के बाद मैंने पूजा से विदा ली और गाँव की तरफ चल पड़ा पर मेरे कंधे झुके हुए थे राणाजी ने अपने बेटे को हराने की तयारी कर ली थी मेरे दिमाग में बस एक ही बात घूम रही थी की मैं कैसे उगा पाउँगा फसल इस जमीन पर सोचते विचारते मैं कब घर आ गया पता नहीं चला
मैं चौबारे में जाकर बिस्तर पर लेट गया सांझ ढलने को ही थी मैं सोच विचार में मगन था की भाभी आ गयी हरी सलवार और सफ़ेद सूट में क्या गजब लग रही थी ऊपर से फिटिंग जोरदार होंठो पर लाल सुर्ख लिपस्टिक मांग में सिंदूर हाथो में कई सारी चुडिया जैसे आसमान से कोई सुन्दरी ही उतर आई हो
“आज तो क्या गजब लग रही हो भाभी इतनी भी बिजलिया ना गिराया करो ”
“अच्छा जी मुझे तो कही नहीं दिख रहे झुलसे हुए पता है मैं कब से राह देख रही हु तुम्हारी ”
मैं- क्यों भाभी
भाभी- अरे आज, वो पीर साहब की मजार पर दिया जलाने चलना है तू भूल गया क्या
मैं-ओह आज जुम्में की शाम है क्या
भाभी- तुझे इतना भी याद नहीं क्या
जुम्मे की शाम तभी मुझे कुछ याद आया उसने कहा था की वो जुम्मे की शाम पीर साहब की मजार पर जाती है तो मैं एक दम से उछल सा पड़ा “भाभी एक मिनट रुको मैं अभी आता हु ”
मैंने जल्दी से अपने नए वाले कपडे पहने और बालो में कंघी मार कर भाभी के सामने तैयार था
भाभी- हम मजार पे ही जा रहे है न सजे तो ऐसे हो की तुम्हारे लिए बिन्द्नी देखने जा रहे है
मैं- क्या भाभी आप भी आओ देर हो रही है
चूँकि भाभी साथ थी तो मैंने जीप स्टार्ट की और फिर चल दिए पीर साहब की तरफ जो की गाँव की बनी में थी हम जल्दी ही वहा पहुच गए भाभी दिया जलाने को अन्दर चली गयी मैं रुक गया दरअसल मेरी आँखे बस तलाशने लगी उसको जिससे मिलने की बहुत आस थी और जो दूर से देखा जो उसे दिल झूम सा गया सफ़ेद सूट सलवार में सर पर हमेशा की तरह ओढा हुआ वो सलीकेदार दुपट्टा
होंठ उसके हलके हलके कांप रहे थे जैसे की खुद से बाते कर रही हो मैंने सर पर कपडा बाँधा और उसकी तरफ चल पड़ा फेरी लगा रही थी वो और जल्दी ही आमना सामना हुआ उस से जिसकी एक झलक के लिए हम कुर्बान तक हो जाने को मंजूर थे नजरो को झुका कर सबसे नजरे बचा कर उसने इस्तकबाल किया हमारा तो हमने भी हलके से मुस्कुरा कर जवाब दिया
सुना तो बहुत था की बातो के लिए जुबान का होना जरुरी नहीं पर समझ आज आया था की क्यों फेरी लगाते हुए बार बार आमने सामने आये हम फिर वो बढ़ गयी धागा बाँधने को तो मैं उसके पास खड़ा हो गया पर कुछ बोलने की हिम्मत नहीं हुई वो बहुत धीमे से बोली “”परिंदों के दाना खाने पे “ और उस तरफबढ़ गयी
मैं दो पल रुका और फिर चला तो देखा की वो अकेली ही थी उस तरफ बिखरे दानो को समेट रही थी तो मैं भी समेटने लगा
वो- आज आये क्यों नहीं
मैं- जी वो कुछ कम हो गया था
वो- हम राह देख रहे थे आपकी
मैं- वो क्यों भला
वो- बस उसी तरह जैसे आप आते जाते हमारे छज्जे को तकते है
मैं- वो तो बस ऐसे ही
वो- तो हम भी बस ऐसे ही
और हम दोनों मुस्कुरा पड़े , कसम से उसको ऐसे हँसते देखा तो ऐसे लगा की जैसे दुनिया कही है तो यही है
वो- आप ऐसे बार बार हमारी कक्षा में चक्कर ना लगाया करे हमारी सहेलिया मजाक उड़ा रही थी
मैं- पता नहीं मेरा मन बार बार क्यों ले जाता है उस और
वो- मन तो बावरा है उसकी ना सुना करे
मैं- तो आप ही बता दे किसकी सुनु
वो मेरे पास आई और बोली- किसी की भी नहीं
मैं- एक बात कहू
वो- हां,
मैं- क्या आपको भी कुछ ऐसा ही महसूस होता है
वो- कैसा जनाब
मैं- जो मुझे महसूस होता है
वो- मैं जैसे जानू, आपको क्या महसूस होता है
मैं- वो मुझे वो मुझे पर . बात अधूरी ही रह गयी
“तो यहाँ हो तुम ....................... ”
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04-27-2019, 12:33 PM,
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RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
कुछ देर मैं वही खड़ा रहा पर पूजा दिखी नहीं ऊपर से आसमान काला होने लगा था जो साफ़ बता रहा था मेह पड़ेगा तगड़े वाला मैंने आसपास का जायजा लिया ये अलग सी जगह थी इस तरफ घर वगैरह नहीं थे आसपास ये डाकखाना था और एक दो तिबारे से थे बाकि रास्ता सामने की और जा रहा था शायद ये गाँव का छोर था कुछ सोच कर मैं आगे को बढ़ गया
मैंने कलाई में बंधी घडी पर एक नजर देखा शाम के साढ़े चार हो रहे थे पर मोसम की वजह से लग रहा था की सांझ जल्दी ढल गयी है तो वो रास्ता गाँव से बाहर की तरफ जाता था मैं साइकिल लियी थोड़ी दूर गया तो देखा की पूजा सड़क के एक किनारे खड़ी सामने की तरफ देख रही थी मैंने उसकी नजरो का पीछा किया तो समझ गया वो क्या देख रही थी और मुझे समझ नहीं आया की मैं क्या कहू
जहा वो खड़ी थी वहा से करीब ढाई-तीन सो मीटर दूर एक हवेली थी जो रही होगी किसी ज़माने में बहुत शानदार पर आज भी अपने दम पर खड़ी इठला रही थी आसपास के बाकि इलाके में बस खेत खलिहान से ही थे पर कुछ तो बात थी उसको देखने पर ऐसे लगता था की जैसे नजर हटाये ही ना
जैसे किसी चकोर की निगाह बस चंद्रमा पर रहती है वैसे ही पूजा बस उस हवेली को देख रही थी मेरे मन में था कुछ कहने को पर उसने पहले ही कहा था की मैं कुछ न पुछु तो मैं वापिस उलटे कदम आकर डाकघर के पास ही खड़ा हो गया ऊपर मेघो ने तैयारी कर ली थी की बस अब न्रत्य शुरू करेंगे और दो- चार मिनट में हलकी हलकी बुँदे पड़ने लगी
मैंने अपने बालो में हाथ फेरा और उस रस्ते की और देखा कर भी क्या सकता था सिवाय इंतजार के खैर, कुछ देर बाद पूजा तेज तेज कदमो से चलती हुई आई और मुझे चलने का इशारा किया ख़ामोशी से हम दोनों वापिस चलने लगे
मैं- बैठ जा
वो- गाँव से बाहर निकलते ही
हम अभी उस बाज़ार की तरफ आये थे की तभी एक जीप हमारे पास से आई और उसमे से किसी ने कहा- हाय क्या चाल है
दूसरा –सही कहा भाई, माल तो चोखा है और गाड़ी से उतरने लगे
मेरा दिमाग पल भर में ही घूम गया मैंने साइकिल स्टैंड पर लगायी पर पूजा ने मेरा हाथ कस के पकड़ लिया
मैं- हाथ छोड़
पर वो पकडे रही , तभी एक छोरा मेरे बिलकुल पास आया और बोला- इतना क्यों तमक गया अब माल की तारीफ तो करनी ही पड़ती है उसने पान थूकते हुए कहा
मैं-दुबारा अगर एक शब्द भी तेरे मुह से निकला तो ठीक नहीं होगा
दुसरे ने मेरा कालर पकड़ लिया और बोला- जाने है किसके सामने जुबान खोल रहा है ये अंगार ठाकुर है
मैंने उसका हाथ अपने कालर सी हटाते हुए कहाः- बुझा दूंगा अंगार को दो मिनट में अगर अपनी सीमा लांघी तो
बरसात कुछ तेज सी पड़ने लगी थी और साथ मेरा गुस्सा भी पता नहीं वो दोनों हसने लगे फिर वो अंगार बोला- छोरे खून घना गरम हो रहा हो तो ठंडा कर दू मेरे ही गाँव में मुझसे ऊँची आवाज में बात करेगा तू
मैं- और तू किसीको भी ऐसे गंदे शब्द बोलेगा
वो- तू कहे तो उठा लू वैसे भी आज मोसम मस्ताना हो रहा है
उसकी बात मेरे सीने को ही चीर सी गयी जैसे और मैंने अपना हाथ उठाया ही था उसको मारने को पर पूजा की आवाज ने मुझे रोक लिया “नहीं रुक जाओ ” पूजा आगे बढ़ी और अंगार के सामने खड़ी हो गयी बरसात के बावजूद बाज़ार में भीड़ सी इकठ्ठा होने लगी थी
पूजा ने अपने हाथ जोड़े और बोली- इस से गलती हो गयी हुकुम, माफ़ कर दीजिये आप बड़े लोग है
अंगार पान की पीक थूकते हुए- माफ़ तो कर दूंगा जानेमन पर इसको बोल की मेरे जूते पर सर रखे
उसकी ये बात सुनते ही मेरे खून में जो अहंकार दौड़ रहा था वो जोर मारने लगा खून उबलने लगा मैं गुस्से से चिल्लाया-कुंदन तेरे जूते पे सर रखेगा उस से पहले मैं तेरा सर................
पर मेरी बात अधूरी ही रह गयी थी पूजा ने अपना हाथ मेरे मेरे मुह पर रखा और बोली – कुंदन तुझे मेरी कसम चुप रह बस
पता नहीं क्यों उसकी बात मान ली मैंने पर दिल कर रहा था की अभी इसकी गांड तोड़ दू बारिश बहुत तेज पड़ने लगी थी
पूजा- मैं आपसे फिर माफ़ी मांगती हु हुकुम माफ़ कर दीजिये
पर उस अंगारे को पता नहीं क्या गुमान था वो बेशर्मी से फिर बोला- माफ़ कर दूंगा जानेमन पर अगर तू एक बार अपना हसीं चेहरा दिखा दे तो जितनी तू पीछे से मस्त है चेहरा भी उतना ही मस्त है या नहीं
मुझे हद से ज्यादा शर्मिंदगी महसूस हो रही थी जी कर रहा था की अभी मर जाऊ या मार दू पर पूजा ने मेरे पैरो में अपनी कसम की बेडिया डाल दी थी अंगार की वो हसी मेरे कलेजे को चीर रही थी पूजा बस शांत खड़ी थी उसने अपना हाथ पूजा के चेहरे पर लिपटे दुपट्टे की और किआ मैं बीच में आ गया
मैं- अंगार मैं तुझे चुनोती देता हु लाल मंदिर में बलि चढाने की और तू चुनोती पार कर गया तो ये तुझे अपना चेहरा जरुर दिखाएगी
अंगार के हाथ अपने आप रुक गए उसने घुर के मुझे देखा और बोला- कौन है तू
मैं- अगर तुझे चुनोती दी है तो तू समझ जा
अंगार- लाल मंदिर की चुनोती नहीं देनी थी छोरे पर तूने मेरी दिलचस्पी जगा दी क्योंकि बरसो से बलि नहीं दी गयी और जयसिंह गढ़ में आके ठाकुर अंगार चंद को चुनोती देने वाला कोई आम इन्सान ना हो सके वैसे भी मन्ने तुझे गाँव में नहीं देखा कभी पहले कहा का है तू अब तो पता करना पड़ेगा
उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी की तभी वहा पर एक के बाद एक कई गाड़िया आकार रुकी और उस सफ़ेद गाड़ी से जो रोबीला इन्सान उतरा तो आसपास सभी ने हाथ जोड़ लिए अंगार ने भी एक आदमी ने फ़ौरन छतरी तान दी उसके चेहरे पर वैसा ही रौब था जैसा की मैंने राणाजी के चेहरे पर देखा था
“क्या हो रहा है यहाँ ” उसकी आवाज में जैसे एक गर्जना सी थी
मैंने भी अपने हाथ जोड़े और उसको पूरी बात बता दी की कैसे हम जा रहे थे और कैसे अंगार ने पूजा के बारे में क्या कहा तो उस रोबीले इन्सान ने वही पर अंगार को फटकारा और उसे पूजा से माफ़ी मांगने को कहा पर तभी अंगार बोल पड़ा- ठाकुर साब इसने मुझे लाल मंदिर में बलि चढाने की चुनोती दी है
और उस ठाकुर की आँखे आश्चर्य में फैलती चली गयी
बारिश अब बहुत तेज पड़ने लगी थी उस ठाकुर ने मुझे बुरी तरह से घुरा और बोला – लाल मंदिर में बलि की चुनोती
मैं खड़ा रहा
ठाकुर- छोरे मेरा नाम ठाकुर जगन सिंह है ये जो तूने लाल मंदिर की चुनोती दी है के सोच के दी बता जरा
मैं- इसने जो बात बोली बोली ठाकुर साहब आग लगा गयी ये इसे उठा लेगा दबंग है तो किसी को भी उठा लेगा के सच कहू तो चैन ना मिल रहा सोचु हु की धरती फट जाये और मैं समा जाऊ शर्मिंदी इस बात की है की मेरे रहते ये इतना बोल गया कैसे
ठाकुर- क्या लगती है छोरी तेरी
मैं- सबकुछ लगती है पता नहीं कैसे मेरे मुह से निकल गया और ना भी कुछ लगती ना तो भी मेरे सामने कोई किसी औरत लड़की को ऐसे भद्दे शब्द बोलता तो मैं ये ही करता
ठाकुर- तेरी बात सही है छोरे पर जवान खून है जोर मार जाता है कभी कभी , पर तू खुद को देख और अंगार को देख क्या सोच के चुनोती दी तूने जान गयी समझ तेरी
मैं- जान तो कभी ना कभी जानी है ठाकुर साब, आज मेरे हाथ बंधे है पर उस दिन नहीं होंगे छटी का दूध याद न दिला दू तो नाम बदल देना
मैंने ठाकुर की आँखों में गुस्सा देखा शायद उसे मेरी बात चुभ गयी थी
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