Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
07-03-2019, 03:41 PM,
#1
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वक्त का तमाशा

वर्ली इलाक़े में स्थित एक आलीशान बंगला, बिल्कुल फिल्मी स्टाइल में बनाया गया.. बंगले का गेट खुलते ही एक आलीशान ग्रीन लश गार्डेन, जिसको चारो तरफ बस हरियाली ही हरियाली थी... भिन्न भिन्न प्रकार के फूलों के साथ, महेंगी से महेंगी गाड़ियाँ भी पार्क की हुई थी... गार्डेन किसी गोल्फ कोर्स से छोटा नहीं था... गार्डेन के ठीक बीचों बीच एक फाउंटन बना हुवा था जिसमे लव क्यूपिड पत्थर से बनाया गया था.. गेट से कम से कम 50 कदमों की दूरी पर था घर के एंट्रेन्स का दरवाज़ा... दरवाज़ा खुलते ही,किसी की भी आँखों में चमक आ जाए... एक बड़ा सा हाल, हॉल के एक कोने में राउंड स्टेर्स बनी हुई जो ले जाती घर के उपरी हिस्से में.. हॉल के बीचो बीच छत पे लगा हुआ एक सोने का आलीशान झूमर.. पर्षिया का कालीन, इटली का फर्निचर और हॉल के दूसरे कोने में बना हुआ एक बार... महेंगी से महेंगी स्कॉच की बॉटल्स रखी हुई थी.. और बंगले के ठीक पीछे समंदर का किनारा.... बंगले को देखकर किसी को भी लगता कि यह शायद राज कपूर की किसी फिल्म का सेट है...




कहानी आगे जारी है................
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07-03-2019, 03:41 PM,
#2
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
24दिसंबर 1985 :-



"उम्म्म्म.. छोड़िए ना, आप तो बस हमारे मज़े ही लूट रहे हैं... पता नहीं कब बनाएँगे हमे इस घर की रानी...." नीतू ने बिस्तर पे एक अंगड़ाई लेके कहा



"अरे मेरी जान, इस दिल की रानी बन गयी है तू अब और क्या चाहिए तुझे... यह दिल इस घर से छोटा थोड़ी है..." उसके साथ के मर्द ने उसे अपने सीने से लगा के कहा.. नीतू उस आदमी की बाहों में ऐसी सिमटी जैसे चंदन के पेड़ से साँप.. नीतू का बदन उस वक़्त किसी भी मर्द के लंड को हिचकोले खिला देता.... नीतू ने नाम के लिए बस एक सफेद झीनी साड़ी पहनी थी जो उसके चुचों को ढक रही थी और नीचे से घुटनो तक थी, उसका सोने सा तराशा हुआ शफाक बदन उसके साथ के मर्द को पागल बनाए जा रहा था..



"छोड़िए जी.. आप तो बस बातें बना रहे हैं.... अगर बनाना होता तो कब का हम से शादी कर ली होती, और अपने बच्चे को अपना लेते.. पर अब तक ना ही आपने मुझे अपनाया है, ना ही आपके बच्चे को..." नीतू ने उस मर्द से अलग होते हुए कहा



"हाए मेरी जान.. ऐसे ना रूठ, तुझसे थोड़ा वक़्त ही तो माँगा है.. फिर तुझे और हमारे बच्चे को ऐसी शान से इस घर में लाउन्गा के दुनिया देखती रह जाएगी..." उस आदमी ने फिर नीतू को अपनी बाहों में जकड़ा और नीतू ने भी उसका साथ दिया..



"आहः सीईईई... हाए यह आपका सीना किसी भी औरत को आपकी गुलाम बना दे आहहूंम्म..." नीतू ने उस मर्द के सीने पे अपनी जीभ घूमाते हुए कहा



"उम्म्म आहाहा, तेरा सीना भी तो किसी भी मर्द को उसके घुटनो पे ला दे मेरी रानी..." कहके उस मर्द ने नीतू की साड़ी उसके जिस्म से अलग कर दी... नीतू के चुचे देख वो अपने होंठों पे जीभ घुमाने लगा..



"हाए मेरी रानी अहहहहा क्या चुचे हैं उफ़फ्फ़ अहहाहा" कहके उस मर्द ने नीतू के चुचों पे हाथ रखा और उन्हे धीरे धीरे दबाने लगा...



"अहाहहा.. जब से आप ऊवू अँग्रेज़ी फिल्म देखे हैं.. बहुत ही प्यासे हो गये हैं आहाहाहहा" नीतू ने सिसकारी लेते हुए कहा



"उम्म्म्म अहहाहा तू चीज़ ही ऐसी है मेरी जान आहा हाए..." कहके उस मर्द ने नीतू के चुचों को धीरे से भींच दिया और दूसरे चुचे को अपने मूह में लेके हल्के हल्के से चूसने लगा



"अहहाहा.... हां चुसिये ना अहहहहाआ..... ओह" नीतू बहकने लगी थी




"उम्म्म अहहाहः ऑश मेरी गरम रानी आहहहहा...." कहके उस आदमी ने उसके आम जैसे चुचों को छोड़ा और उसकी भीनी चूत में दो उंगलियाँ घुसा दी..




"अहहैयईईई माआ..... धीरे कीजिए अहाहाहहा..." नीतू ने बहकते हुए कहा




"आहहा क्या खुश्बू है तेरी जान अहहहहहा.." कहके उस आदमी ने दोनो उंगलियाँ निकाली और खुद सूंघने लगा और साथ में नीतू को भी उसकी महक दी..




"हटिए, गंदे कहीं के.. अँग्रेज़ी मूवी नहीं देखना आगे से..." नीतू ने हँसते हुए कहा



"हाए मेरी रानी.. अब ज़रा हमे भी खुश कर दे.. अँग्रेज़ी मूवी की हीरोइन बन जा अब मेरी रानी अहाआहा" कहके वो आदमी पलंग से उतरा और पलंग से लग के अपनी पॅंट खोलने लगा... जैसे ही उसने अपना पॅंट उतारा, उसका लंबा काला लंड जो आधा आकड़ा हुआ था नीतू की आँखों के सामने आ गया.... नीतू ने उसकी बात को अच्छे से समझ लिया था कि उसके लंड को मूह में लेना था... आज तक नीतू ने ऐसा कुछ नहीं किया था, पर क्यूँ कि वो उसे बेतहाशा प्यार करती थी, इसलिए उसे नाराज़ नहीं करना चाहती थी... नीतू ने अपने हाथों से धीरे धीरे उसके लंबे आधे खड़े लंड को पकड़ा और उसके टोपे के हिस्से को धीरे धीरे उपर नीचे करने लगी.. नीतू के हाथ को महसूस करते ही वो आदमी मस्ती में आ गया और उसके लंड में जान आने लगी... नीतू ने जब उसके लंड को हिलाने की स्पीड बढ़ाई, उसका लंड अपनी औकात पे आने लगा..






"अहहाहा हाए अहहहहा.. कितना बड़ा है आपका अहहहा..." नीतू ने उसके लंड को हिलाते हुए कहा




"हाए मेरी जाना अहहहा... तेरी चूत में जाके तो यह कहीं गायब ही अहहहाहा हो जाता है ना अहहहाहा..." कहके उस आदमी ने उसके लंड को नीतू के हाथ से छुड़ाया और लंड उसके मूह में घुसा डाला..




"हाए मेरी रानी अहहाहहा.. अँग्रेज़ी मूवी की हेरोइनिया लग री है अहहहहहहा.." कहके उस आदमी ने नीतू के मूह में अपने लंड से धक्के मारना चालू कर दिया और उसके मूह को चोदने लगा



"अहाहहाः उम्म्म गुणन्ं गन अहहहहा..... उम्म्म्म अहहहहहहा" नीतू कुछ बोल ही नहीं पा रही थी उसके लंड के धक्कों की वजह से




"अहाहहा.. अपनी चूत दे दे अब मेरी रानी अहहहहा..." लंड को निकाल के उस आदमी ने कहा
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07-03-2019, 03:42 PM,
#3
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"अहहाहा हाए अहहहहा.... कब से हम भी यही कह रहे हैं अहहहा.. अब चोद दीजिए ना इस मुनिया को अहाहहाअ, कब से रो रही है..." नीतू ने पलंग पे अपने पैर फेला के कहा.. नीतू की लाल चूत देख उस आदमी से रहा नहीं गया और एक ही झटके में अपने साँप को उसकी चूत में उतार डाला..



"हाए अहहाहा मर गयी अहहाहा माआआ... धीरे कीजिए अहाहा उफफफ्फ़....." नीतू ने उस आदमी की पीठ पे अपने नाख़ून गढ़ा के कहा और उस आदमी ने धक्के मारना जारी रखा...



"अहहहहा हाए अहाहहा उफ़फ्फ़... उम्म्म्म अहहहहाहा कितनी गरम है आआहहा मेरी रानी अहहहा..... हां अजाहहहा चोदिये ना मेरे सैयाँ अहहहहाहा....." कमरे में दोनो की आवाज़ें गूंजने लगी... वीरान बंगले मेंकोई भी उनकी आवाज़ सुन सकता था, लेकिन दोनो बिना किसी की परवाह के अपनी मस्ती में जुटे थे...




जैसे जैसे रात बढ़ती गयी, दोनो के जिस्म ठंडे होने लगे... 15 मिनट बाद जब उस आदमी ने अपना पानी नीतू की चूत में छोड़ा, बेजान होके नीतू की बाहों में गिर पड़ा, और नीतू भी उसके बालों में हाथ घुमाती घुमाती नींद की आगोश में चली गयी..... रात के करीब 1 बजे, बंगले का गेट खुला.. और एक साया धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा... आगे बढ़ते बढ़ते घर के एंट्रेन्स के दरवाज़े के पास पहुँचा... रात के 1 बजे, सिर्फ़ फाउंटन से पानी गिरने की आवाज़ और घर के पीछे से समंदर की लहरों की पत्थरों से टकराने की आवाज़.. उस साए ने इतमीनान से अपने आस पास देखा, और जब उसे यकीन हुआ कि उसके अलावा वहाँ कोई नहीं है, धीरे से उसने दरवाज़े को खोला, और उतनी ही शांति से उस दरवाज़े को अंदर से बंद भी कर दिया... दबे हुए कदमों से आगे बढ़ के उस साए ने सीडीयों की तरफ रुख़ किया.. हर एक सीधी पे कदम रखते ही, वो चोकन्ना होके इधर उधर देखता और फिर उपर की ओर बढ़ने लगता... सीडीया ख़तम होते ही, अपनी बाईं ओर घूम के एक कमरे के बाहर खड़ा हो गया... एक दम हल्के से उस दरवाज़े की नॉब को घुमाया और अंदर का नज़ारा देखने लगा.. अंदर नीतू और उस मर्द का नंगा जिस्म देख उस साए की एक मुस्कान निकल गयी.... उस कमरे के दरवाज़े पे खड़े रह के ही उस साए ने अपनी जेब से एक पिस्टल निकाली, और फाइरिंग कर दी... सुनसान रात में बंगला खौफनाक चीखों से गूँज उठा....





कहते हैं वक़्त के साथ हर ज़ख़्म भर जाता है... और यह भी कहा जाता है कि वक़्त रेत की तरह होता है.. उसे जितना पकड़ने की कोशिश करो, वो उतना ही तेज़ी से फिसलता जाता है... लेकिन कितनी सच्चाई है इन वाक्यों में... यह निर्भर करता है उस वक़्त से गुज़रने वाले हर एक व्यक्ति पे... जब एक ज़ख़्म आपकी पूरी दुनिया ही बर्बाद कर देता है, तो उस ज़ख़्म को भर पाना वक़्त के लिए भी मुश्किल हो जाता है.. हर घड़ी, हर पल वो ज़ख़्म याद दिलाता है आपको, आपकी उजड़ी हुई दुनिए के बारे में.. और जब वक़्त भी आपके ज़ख़्मों को ना भर सके, तो वक़्त रेत की तरह फिसलने के बदले, आपके इशारे पे ही चलता है...



31स्ट दिसंबर 2013 :-



वक़्त रात के 11 बजे... एक घंटे में 2014 का आगमन होने वाला था.... साउत मुंबई, कोलाबा का एक आलीशान बंगला.. बंगले का नाम था "राइचंद'स....".. उस बंगले के मालिक का नाम था उमेर राइचंद, करीब 56 की एज होगी, लेकिन एज के हिसाब से काफ़ी हेल्ती इंसान थे.. रोज़ सुबह गोल्फ खेलना और गोल्फ कोर्स पे करीब आधे घंटे तक वॉक करना, यह दो कारण थे उनकी सेहत के... जवानी में काफ़ी शौकीन रहे थे और काफ़ी दिमाग़ वाले भी.. तभी तो उन्होने अपने पुश्तों की जायदाद का आज की तारीख में 15 गुना तक इज़ाफ़ा कर दिया था



अमर राइचंद की बीवी, सुहासनी देवी... सुहासनी रजवाड़े खानदान से थी, उसकी उमर 45 थी, 18 साल की उमर में ही सुहासनी की शादी करवाई गयी थी... इसलिए अमर और सुहासनी के बच्चे भी कुछ ज़्यादा बड़े नहीं थे.. अमर काफ़ी रंगीन मिजाज़ का था, तभी तो उन्होने शादी के 4 सालों में ही 3 बच्चे भी प्लान कर दिए..



अमर का सबसे बड़ा बेटा विक्रम... अपने बाप के नक्शे कदमों पे चलने वाला विक्रम भी काफ़ी रंगीन मिजाज़ का था, पढ़ाई लिखाई में सब से पीछे, लेकिन आवारा गार्दी और अयाशी में सब से आगे.. विक्रम सिर्फ़ अपने बाप के नाम की वजह से कॉलेज तक पढ़ा, लेकिन कॉलेज की सेकेंड एअर में आते ही उसे उसकी क्लास मेट से इश्क़ हो गया.. इसलिए उन्होने भाग के शादी भी कर ली.... अपनी इज़्ज़त की खातिर ऊमेर ने लड़की वालों से सीक्रेट मुलाक़ात करके एक अरेंज्ड मॅरेज का नाटक रचाया और अपनी इज़्ज़त को संभाल लिया..अमर को एक बात विक्रम की भाती तो वो था उसका बिज़्नेस करने का तरीका.. दुनिया की नज़रों में अमर की ट्रॅन्स्पोर्टेशन और टूरिज़्म कंपनीज़ थी,लेकिन असल में वो एक बुक्की था और काफ़ी पुराने और नये क्रिकेटर्स के साथ उठता बैठता.. जैसे जैसे अमर की उमर बढ़ती गयी, उसका नेटवर्क टूटने लगा, लेकिन विक्रम ने जैसे ही इस चीज़ में अपना ध्यान डाला, अमर की डूबती नैया को जैसे खिवैया मिल गया था.. मॅच फिक्सिंग, सट्टेबाज़ी के नेटवर्क को बढ़ा के विक्रम ने हवाला में भी हाथ बढ़ाया.. हवाला करने वाले लोग अभी काफ़ी कम लोग थे, लेकिन मुंबई जैसे शहर में अभी भी हवाला के नाम पे रोज़ कम से कम 200-300 करोड़ की हेर फेर होती है... इसी हवाला की वजह से विक्रम ने अमर की प्रॉपर्टी को ऐसे बढ़ाया कि अमर ने सब काम की बाग डोर उसे ही सौंप दी... अमर अब सिर्फ़ बड़े फ़ैसले ही लेता, मतलब किंग से अमर अब किंग मेकर बन गया था.



अमर का दूसरा बेटा रिकी... रिकी अमर की आँख का तारा था, 24 साल का रिकी काफ़ी स्मार्ट और डॅशिंग बंदा था... कॉलेज ख़तम करने के बाद रिकी मास्टर्स की पढ़ाई करने लंडन गया था.. अमर को रिकी पे काफ़ी गर्व था.. विक्रम उसका बड़ा भाई था, लेकिन विक्रम को उसकी क्लासी बातें और तौर तरीके ज़रा पसंद नहीं थे.. विक्रम जितना रफ था, रिकी उतना ही स्मूद था.. रिकी एक नज़र में किसी को भी पसंद आ जाता. चाहे वो कोई भी हो... अमर ने उसे मास्टर्स पढ़ने इसलिए भेजा ताकि वो इन दो नंबर के कामो से डोर ही रहे, क्यूँ अमर जानता था रिकी अगर इसमे फँस गया, तो कभी निकल नहीं पाएगा.. रिकी चंचल स्वाभाव का था.. दिल से बच्चा, लेकिन उतना ही सॉफ.. रात को प्लेस्टेशन पे गेम्स खेलना, हर 6 महीने में मोबाइल्स बदलना और हर 2 साल में गाड़ियाँ बदलना..लड़कियों के बारे में फिलहाल बात ना करे तो सही ही रहेगा, अपनी रईसी का फुल प्रदर्शन करना उसे अच्छा लगता, लेकिन उतना ही ज़मीन पे रहता.. दोस्तों पे जान छिड़कने वाला रिकी, आज राइचंद हाउस में न्यू ईयर मानने आया था फॅमिली के साथ



अमर की बेटी शीना.. शीना घर में सब से छोटी, दोनो भाइयों की प्यारी.. खूब मज़े करती लाइफ में.. ऐयाशी से एक कदम दूर, शीबा ने बस अपनी चूत किसी को नहीं दी थी, लेकिन लंड काफियों के शांत किए.. शीबा के चाहने वाले काफ़ी थे उसके कॉलेज में, लेकिन उसके क्लास के आगे कोई टिक नहीं पाता.. जब भी कोई शीबा को प्रपोज़ करता, या तो शीबा उसे सीधा मना कर देती, या तो उसके साथ फर्स्ट डेट पे जाके उसकी जेब खाली करवा कर उसे दूर करती.. शीबा का स्टाइल अलग था.. "मैं किसी झल्ले या फुकरे को अपना दिल नहीं देने वाली.. अगर मैं किसी को अपना दिल और अपनी चूत दूँगी, तो ही विल बी सम वन स्पेशल..." शीबा अपनी दोस्तों को हमेशा यह कहती... जाने अंजाने, पता नहीं कैसे.. लेकिन कोई था जिसने शीबा के दिल में अपना घर बना लिया था.. और शीबा का दिल हमेशा उसके लिए बेकरार रहता..




अमर की बहू स्नेहा... स्नेहा विक्रम के दिल की रानी थी, या यूँ कहा जाए कि उसकी रंडी थी... विक्रम से शादी स्नेहा ने पैसों की वजह से ही की थी... कॉलेज में अपने मदमस्त चुचे और अपना हसीन यौवन दिखा दिखा कर स्नेहा ने विक्रम को पागल कर दिया था.. नतीजा यह हुआ कि विक्रम ने घर वालों की मर्ज़ी के खिलाफ शादी कर ली.. अमर को अपनी इज़्ज़त और रुतबा काफ़ी प्यारा है, इसलिए उसने स्नेहा को घर की बहू स्वीकारा.. स्नेहा सुहासनी देवी को एक नज़र नही भाती थी .... स्नेहा को इस बात की बिल्कुल परवाह ना थी, वो बस पैसों का मज़ा लेती और दिन भर शॉपिंग करती या घूमती फिरती.. जब जब उसकी चूत में खुजली होती विक्रम की गेर हाज़री में वो बाज़ारू लंड से काम चलाती.. स्नेहा की यह बात अमर और सुहासनी अच्छी तरह जानते, लेकिन इस बात से उनकी ही बदनामी होगी, इसलिए उस बात को दबाए ही रखते... स्नेहा की शीना के साथ अच्छी बनती थी, फॅशन पार्ट्नर्स थे दोनो.. लेकिन शीना उसकी रंडियों वाली हरकतों से वाकिफ़ नहीं थी, और रिकी जितना स्नेहा को अवाय्ड करता, स्नेहा उसके उतने ही करीब जाने की कोशिश करती...



राइचंद'स में न्यू ईयर का काउंटडाउन स्टार्ट होता है.... 10...9...8....... 4.....3....2.....1............. सब लाइट्स गुल, एक दम अंधेरा और म्यूज़िक और डीजे की आवाज़ से सारा समा गूँज उठा... अंधेरे में रिकी अपना जाम पी ही रहा था, कि उसके पास एक लड़की आई और उसके बालों को ज़बरदस्ती पकड़ के उसके होंठों के रस को अपने मूह में लेने लगी.. जब तक रिकी को कुछ समझ आता, तब तक उस लड़की ने ज़ोर लगा कर उसके जाम को उसके हाथ से गिरा दिया, और उसका हाथ अपनी चूत पे उपर से ही रगड़ने लगी.... जैसे ही बतियां वापस आई, रिकी के सामने कोई नहीं खड़ा था. रिकी ने इधर उधर देखा, लेकिन उसे सब लोग अपनी अपनी सेलेब्रेशन में खोए हुए दिखे...उसे कुछ समझ नहीं आया, कि यह किसने किया...



"कौन थी यह भैनचोद...." कहके रिकी ने अपने बालों को ठीक किया और दूसरा पेग लेने चला गया.....
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07-03-2019, 03:42 PM,
#4
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
न्यू ईयर की पहली सुबह.. राइचंद'स में, सब लोग देर सुबह तक सो रहे थे, बस जो सुबह जल्दी उठा था वो था रिकी.. रिकी सुबह सुबह अपना वर्काउट कभी मिस नहीं करता.. लंडन में रिकी ने पर्सनल इन्स्ट्रक्टर रखा हुआ था, जिसकी वजह से उसकी लीन बॉडी देख के कॉलेज की गोरियाँ भी उसपे फिदा थी... इधर उसे गाइड करने वाला कोई नहीं था, पर फिर भी बॉडी को आक्टिव रखने के लिए रिकी लाइट एक्सर्साइज़ कर ही लेता... सुबह सुबह जब रिकी अपनी एक्सर्साइज़ ख़तम कर के अपने रूम की तरफ बढ़ा, रास्ते में उसे शीना आती हुई दिखी..



"हाई सिस... हॅपी न्यू एअर स्वीटहार्ट.." कहके रिकी शीना के गले लगा. और शीना ने भी अच्छी तरह रिकी को रेस्पॉन्स दिया



"हॅपी न्यू एअर भाई... उम्म्म, आइ लव दिस बॉडी ओडर ऑफ मेन.." शीना ने रिकी के बालों में हाथ घुमा के कहा



"में ? कितनो को स्मेल किया है आज तक.." रिकी ने आँख टेढ़ी कर के हंस के कहा



"लीव इट ना भाई.. बताओ, व्हाट्स युवर प्लान फॉर टुडे... कहीं घूमने चलते हैं.." शीना ने रिकी के हाथों में हाथ डाल के कहा और आगे बढ़ने लगी



"प्लान तो कुछ नहीं यार.. घूमने कहाँ चलें.. नीड टू लीव फॉर लंडन इन आ वीक वैसे.." रिकी ने शीना को अपने पास खींच के कहा



"उम्म्म.. चलो गोआ चलते हैं.." शीना ने एग्ज़ाइट होके कहा



"नो वे... गोआ टू क्राउडेड, आंड जस्ट बीचस हैं.. व्हाट एल्स.." रिकी ने जवाब दिया



"तो फिर महाबालेश्वर.. अपना वीकेंड फार्म भी है उधर.. मस्त मज़ा आएगा..." शीना ने फिर उछल के कहा



"वीकेंड फार्म.. आइ नेवेर न्यू दिस.... चलो डन.. जब सब लोग जाग जायें तो सब को पूछ लेते हैं..." रिकी ने जवाब दिया



"ओह यस... चलो सी यू सून, फ्रेश होते हैं अभी.. बाय.." कहके रिकी और शीना दोनो अपने अपने कमरे में चले गये



कमरे में घुसते ही शीना ने अपना नाइट सूट पलंग पे उतार फेंका और अपनी विक्टोरीया सीक्रेट्स की लाइनाये में आईने के सामने जाके खड़ी हो गयी.. आईने के सामने जाते ही शीना ने खुद को एक मॉडेल के पोज़ देके देखा, और अपने हाथ उँचे करके अपने बालों को पोनी में बाँध दिया... फिर एक साइड से, और दूसरे साइड से अपने फिगर को निहारने लगी.... धीरे धीरे करके अपने हाथों को नीचे सरकाने लगी... हाथ सरकाते सरकाते उसने अपने ब्रा के उपर से ही चुचों पे हाथ फेरने लगी और निपल कसने लगी..



"उम्म्म्म.... तुम्हे इस तरह कड़क होने का कोई हक़ नहीं है, जब तक मैं तुम्हे ना कहूँ.." शीना ने अपने आपको आईने में देखा अपने निपल्स को उंगलियों में लेके, और एक हँसी के साथ बाथरूम में फ्रेश होने चली गयी... शीना के बाथरूम में जाते ही, उसके रूम के कीहोल पे से किसी की आँखें भी हट गयी.. उधर रिकी अपने रूम में सुबह सुबह न्यूज़ चॅनेल देख रहा था के न्यूज़ देख के उसके दिमाग़ में कुछ बिज़्नेस आइडिया आया...



"डॅड के साथ डिसकस कर लेता हूँ आज, शायद यहाँ काम बन जाए.." रिकी ने टीवी बंद कर के कहा... जैसे ही रिकी ने टवल उठाया बाथरूम में जाने को, उसके रूम का दरवाज़ा नॉक हुआ "खट..खट.."



"कम इन प्लीज़..." रिकी को लगा शायद कोई घर के स्टाफ मेंबर में से उसके लिए चाइ या जूस लाया हो



ब्लॅक डिज़ाइनर साड़ी के साथ लो कट डिज़ाइनर ब्लाउस में रिकी के रूम में स्नेहा आई.... स्नेहा का नेन नक्श देख के आज भी काफ़ी लोगों के लंड पे तलवार चल जाए ऐसा उसने खुद को मेनटेन किया था.. 36 के चुचों के साथ उसकी 26 की कमर और साड़ी में उसकी कमर जैसे फ्लॉंट होती थी, वैसे रूप में अगर कोई उसे देख ले, तो मार काट मच जाए उसके लिए.... रिकी स्नेहा को अपने कमरे में देख काफ़ी सर्प्राइज़ था.. वैसे तो वो जानता था कि उसके माँ बाप को वो लड़की पसंद नहीं है, बट घर से दूर होते हुए, रिकी इन सब बातों को इतना महत्व नहीं देता.. स्नेहा उसके लिए उसकी भाभी थी, वो इसलिए उसको जितनी इज़्ज़त मिलनी चाहिए, उतनी इज़्ज़त देता था..



"अरे भाभी...आप उठ गये.." रिकी ने अपने सीने पे टवल डाल के कहा



"हां देवर जी.... सोचा मेरे देवर से थोड़ी बात कर लूँ, आज तो फिर आप अपने दोस्तों के साथ व्यस्त रहेंगे, फिर हमारे लिए कहाँ टाइम रहेगा " स्नेहा ने बेड पे बैठ के कहा... स्नेहा के बेड पे बैठते ही सामने खड़े रिकी को उसके आधे से ज़्यादा नंगे चुचों के दर्शन हुए.. स्नेहा ने शायद अपना बदन नहाने के बाद अच्छी तरह सुखाया नहीं था, तभी तो उसके चुचों पे अभी पानी की कुछ बूँदें थी, जो नीचे फिसल कर उसके चुचों की घाटियों में इकट्ठी हो रही थी.. रिकी ने एक नज़र उसके चुचों को देखा और फिर स्नेहा से नज़र मिला ली, स्नेहा ने यह देखा और अंदर ही अंदर हँसने लगी



"नहीं भाभी ऐसा कुछ नहीं है.. इनफॅक्ट मैने और शीना ने आज प्रोग्राम बनाया है कि पूरी फॅमिली एक दो दिन कहीं घूमने जायें.." रिकी ने हल्की स्माइल के साथ कहा



"कहाँ देवर जी.. आपके भाई हमसे अलग हों तब तो हम बाहर की दुनिया देख पाएँगे.. हमारे नसीब में तो बस इस घर के हर कमरे की सीलिंग देखना ही लिखा है" स्नेहा ने एक ठंडी साँस लेते हुए कहा



रिकी को पहले कुछ समझ नहीं आया, लेकिन फिर तुरंत ही उसने स्नेहा की बात को डिकोड किया और बात घुमा के बोला



"भाभी, भैया को मना लीजिएगा आप प्लीज़... काफ़ी मज़ा आएगा.." रिकी ने नॉर्मली कहा



"वैसे जाना कहाँ है... जगह तो बताइए, फिर मज़े भी उसके हिसाब से ही करेंगे ना.." स्नेहा ने आँख मारते हुए कहा... यह सुन रिकी शरम से पानी पानी होने लगा.. ऐसा नहीं था कि रिकी ने कभी ऐसी बातें नहीं की थी किसी के साथ, लेकिन स्नेहा के साथ वो उस कंफर्ट ज़ोन में नहीं था जिससे उसको ऐसी बातें करने में आसानी हो..



"ओह हो. देवर जी, आप तो ऐसे शरमा रहे हो, जैसे लंडन में आप ने कभी किसी गोरी को घोड़ी ना बनाया हो हाँ" स्नेहा ने हंस के कहा
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07-03-2019, 03:42 PM,
#5
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"भाभी... ओके , कट दिस क्रॅप... चलिए आप जाके भैया से इस प्लान का डिस्कशन करें, मैं तब तक फ्रेश हो लेता हूँ.." कहके रिकी जल्दी से बाथरूम में चला गया.. रिकी के बाथरूम जाते ही स्नेहा बाहर जाने के लिए खड़ी ही हुई थी, कि बेड के एक कोने में उसे रिकी के कपड़े दिखे.. स्नेहा आगे बढ़ी और उसके कपड़े देखने लगी... जीन्स के ठीक नीचे था रिकी का कॅलविन क्लाइन का अंडरवेर.... ब्लॅक अंडरवेर देख के ही स्नेहा की आँखों में चमक आने लगी.... स्नेहा ने हल्के हाथों से अंडरवेर के फ्रंट पार्ट को हथेली पे रखा, और ठीक जहाँ रिकी का लंड होगा, उस जगह को सूंघने लगी...



"उम्म्म्म सस्सन्न्नुफफफ्फ़ आअहह..... क्या हथियार होगा आपका देवर जी... कब अनलोड करेंगे आप अपनी राइफल को मेरी इस मुनिया के अंदर..." स्नेहा ने साड़ी से धकि हुई अपनी चूत पे हाथ फेर के कहा... धीरे धीरे जब स्नेहा गरम होने लगी, उसने रिकी के कपड़ों को ठीक कर के रखा और झट से अपने कमरे की तरफ निकल गयी....



रिकी और शीना तैयार होके जैसे ही नीचे आए, सामने डाइनिंग टेबल पे सब लोग पहले से ही बैठे थे.... रिकी और शीना ने एक दूसरे को सवालिया नज़रों से देखा और फिर नीचे की तरफ बढ़ने लगे...



"मॉर्निंग माँ, मॉर्निंग पा..." शीना ने अमर और सुहासनी देवी के गालों पे एक पेक दिया और नाश्ता करने बैठ गयी, और सेम चीज़ रिकी ने भी की...



"पापा... हम सोच रहे हैं कि सब लोग एक साथ घूमने जायें.. भाई भी नेक्स्ट वीक लंडन चले जाएँगे, फिर ऐसे चान्स के लिए नेक्स्ट ईयर तक वेट करना पड़ेगा..." शीना ने कुर्सी पे बैठ के कहा



"बहुत अच्छी बात है बेटे, पर मैं और विक्रम जाय्न नहीं कर पाएँगे... " अमर ने शीना को निराश करते हुए कहा



"क्यूँ.. चलिए ना पापा प्लीज़.." शीना ने ज़ोर देके कहा



"आइ वुड हॅव लव्ड टू जाय्न बेटे.. बट कल एक पार्टी से मिलना है, कुछ प्रॉपर्टी के सिलसिले में.... इसलिए हमारा रहना बहुत ज़रूरी है..." अमर ने अपना जूस ख़तम करते हुए कहा



अमर की बात सुन रिकी थोड़ा हक्का बक्का रह गया... मन में सोचने लगा, आख़िर कितनी प्रॉपर्टी है उसके बाप के पास.. काफ़ी पैसे वाले हैं वो तो पता था , लेकिन प्रॉपर्टी कहाँ कहाँ है वो उसे कभी पता नहीं चला था, ना ही अमर ने किसी से कभी इसके बारे में डिसकस किया था, सिवाय विक्रम के... अमर का जवाब सुन जब शीना अपसेट हुई, तो सुहासनी देवी ने उससे कहा



"निराश ना हो बच्ची, बाकी के लोग चलेंगे ना.. रिकी और मैं चलेंगे बस.. डोंट वरी.." सुहासनी ने शीना के सर पे हाथ फेरते कहा



"अरे माँ, मैं और पापा भी बिज़ी होंगे, तो स्नेहा भी यहाँ रहके क्या करेगी... बहेन, तेरी भाभी भी जाय्न करेगी तुमको...." विक्रम ने बीच में कूद के कहा.. स्नेहा का नाम सुन के जहाँ शीना खुश हुई, वहीं सुहासनी देवी के चेहरे का रंग फीका पड़ गया, और रिकी तो एक अलग दुविधा में ही फँस गया था.. आज सुबह स्नेहा की बातें सुन, वो ज़रा अनकंफर्टबल हो गया स्नेहा का नाम सुनके... लेकिन उसने कुछ नहीं कहा और चुप चाप नाश्ता ख़ाता रहा..



"रिकी, तुम क्यूँ इतने गुम्सुम हो भाई... क्या हुआ.." अमर ने उससे पूछा



"कुछ नहीं डॅड... इनफॅक्ट मैं आपके और भैया के साथ एक बिज़्नेस के बारे में डिसकस करना चाहता था, आप के पास अगर टाइम हो डिस्कशन के लिए तो.." रिकी ने सरलता से कहा



"इसमे टाइम क्या बेटे.. नाश्ता फिनिश करो, और चलो बात करते हैं..." अमर ने अपनी जगह से उठ के कहा, और घर के एक कोने में एक बड़ा सा रूम बना हुआ था, वहाँ जाके कुछ पेपर्स देखने लगा और इशारे से विक्रम को भी बुला लिया.. शीना और रिकी एक दूसरे से बातों में लगे रहे, और सुहासनी भी स्नेहा को इग्नोर करके अपने काम में लग गयी.....



"विक्रम... इस प्रॉपर्टी का बिकना मेरे लिए बहुत ज़रूरी है.... " अमर ने उसके आगे पेपर्स रख के कहा



"पापा, मुझे अब तक समझ नहीं आया आख़िर क्यूँ बेच रहे हैं इसको... मतलब, हमें पैसों की कोई ज़रूरत नहीं है फिलहाल, तो फिर मैं क्यूँ बनी बनाई प्रॉपर्टी बेचु...." विक्रम ने पेपर्स देखते हुए कहा



"वो सब सोचना मेरा काम है विक्रम... तुमसे कल पुणे की एक पार्टी मिलेगी , उसे प्रॉपर्टी दिखा देना, और पॉज़िटिव रिज़ल्ट चाहिए मुझे इसका.." अमर ने बड़े ही कड़क अंदाज़ में कहा



"ठीक है पापा... और एक बात थी, परसों चेन्नई जाना है मुझे.. कुछ टाइम में आइपीएल की ऑक्षन भी स्टार्ट हो जाएगी... तो उसी सिलसिले में कुछ टीम ओनर्स और क्रिकेटर्स से मिलके कुछ सेट्टिंग्स करनी हैं.. तकरीबन 3 दिन वहाँ लग जाएँगे..." विक्रम ने अपना नोट देख के कहा



"हहहा.. हां वो भी है, जब तक ऐसी क्रिकेट हमारे देश में चलती रहेगी विक्रम.. तब तक हमारे क्रिकेटर्स और हम , काफ़ी खुश और अमीर रहेंगे..." अमर ने ठहाका लगा के कहा और विक्रम भी उसकी बात सुन के मुस्कुरा दिया



"पापा, कॅन आइ कम इन.." रिकी ने उसी वक़्त दरवाज़ा नॉक करते कहा..



"अरे हां बेटा, तुम इतने फॉर्मल क्यूँ हो. आ जाओ, बताओ क्या बिज़्नेस है.." अमर और विक्रम उसके सामने बैठ गये
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07-03-2019, 03:45 PM,
#6
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
ठीक है रिकी... तुम्हारा यह बिज़्नेस आइडिया है तो बड़ा यूनीक, आइ मीन वॉटर रिज़ॉर्ट महाबालेश्वर में किसी ने सोचा नहीं होगा.. पर उसके लिए पहले एक पूरा कॉन्सेप्ट बनाना पड़ेगा , फिर उसका अच्छे से प्रेज़ेंटेशन बनाना पड़ेगा, रिसोर्सस की अवेलबिलिटी.. इन सब में काफ़ी वक़्त लगेगा.. तुम एक काम करो, यह तुम्हारा ही आइडिया है, तुम लंडन से पढ़ाई पूरी करके आके इस काम में लग जाओ... " अमर ने रिकी की पीठ थपथपा के कहा... रिकी ने सोचा भी नहीं था, कि अमर इतनी जल्दी मान जाएगा, और उसे खुद इतनी फ्रीडम देगा कि अपने प्रॉजेक्ट पे वो काम खुद कर सके... रिकी को काफ़ी अच्छा लगा सुनके...



"ओके डॅड.. फिलहाल अभी तो महाबालेश्वर के लिए निकलते हैं, नहीं तो शीना नाराज़ हो जाएगी... और हां डॅड, मैं आपकी लॅंड क्रूज़र ले जाउ प्लीज़.." रिकी ने हँस के कहा



"रिकी... इस घर की हर चीज़ तुम्हारी है, बेटे हो तुम हमारे... इतनी फ़ॉर्मलटी से मुझसे बात करोगे तो फिर मुझे अच्छा नहीं लगेगा..."



"सॉरी डॅड... चलिए, बाइ भैया, बाइ पापा.." रिकी वहाँ से निकल गया



"पापा, रिज़ॉर्ट के लिए कम से कम इनवेस्टमेंट तो 50 करोड़ चाहिए... इतना बड़ा रिस्क लेना सही रहेगा.." विक्रम ने धीरे से अमर से पूछा



"सोच तो मैं भी वही रहा हूँ बेटे, लेकिन रिकी की आँखों में आज जो चीज़ दिखी मुझे, वो कभी पहले नहीं दिखी... मैं यह रिस्क उठाने के लिए तैयार हूँ.." अमर ने अपना फ़ैसला सुनाया और वो भी वहाँ से निकल गया.. पीछे अकेला खड़ा विक्रम, अपने दाँत पीसते रह गया..



उधर रिकी के साथ सुहासनी देवी और स्नेहा घर के कॉंपाउंड में खड़े शीना का वेट कर रहे थे.. शीना को सामने आते देख वहाँ खड़े तीनो के तीनो हक्के बक्के रह गये.. शीना ने बाल खुले रखे थे, एक मिड साइज़ टॉप पहना था जो उसके चुचों से काफ़ी टाइट था, लेकिन कमर से उतना ही लूस., और उसमे से उसकी पतली कमर पे बँधी चैन भी सॉफ दिख रही थी... जितना सेक्सी ब्लॅक और रेड कलर का टॉप था, उसके नीचे उतना ही सेक्सी उसका लेदर का फिश कट स्कर्ट था, जो उसकी लेफ्ट जांघों को एक दम सही कोणों से दिखा रहा था, लाल लिपस्टिक वाले होंठ देख किसी के मूह में भी पानी आ जाए.. रिकी उसे देख हक्का बक्का रह गया, और स्नेहा के तो मानो जैसे खुशी के पर निकल आए हो...



"यह क्या पहना है... फॅमिली के साथ घर के नौकर भी हैं, यह ख़याल तो रखो कम से कम.." सुहासनी देवी ने दबे स्वर में शीना से कहा



"चिल मोम... चलिए, आप आगे बैठिए, मैं और भाभी पीछे बैठते हैं... और नौकर तो दूसरी गाड़ी में हैं ना, फिर कैसी चिंता... चलिए अब देर नही करें.." शीना ने पीछे बैठते कहा, और चारो वहाँ से महाबालेश्वर चल दिए... रास्ते में सुहासनी और रिकी की काफ़ी बातें हुई और स्नेहा ने भी शीना की काफ़ी तारीफ़ की..



"कातिल लग रही हो आज तो, महाबालेश्वर के टूरिस्ट्स कहीं जान ही ना दे दे तुम्हारे लिए" स्नेहा ने चुप के से शीना को मसेज किया, क्यूँ कि यह बात वो सुहासनी देवी के आगे नहीं बोल सकती थी..



"हहहहहा.. क्या भाभी, यह 1 महीना पहले का स्कर्ट है.. नॉर्मल ही है अब..." शीना ने जवाब दिया



"हाए मेरी ननद, भोली मत बनो, मैं तो तुम्हारे कबूतरों की बात कर रही हूँ.." स्नेहा ने फिर मसेज किया... स्नेहा अक्सर ऐसी बातें करती शीना के साथ, लेकिन शीना अपने मूड के हिसाब से उसे जवाब देती... आज शीना भी फुल मूड में थी , उसने फिर जवाब दिया



"अरे नहीं भाभी, मेरे पंछी तो बस हमेशा की तरह ही हैं... आम तो आपके रसीले हो रहे हैं, भैया ठीक से निचोड़ नहीं रहे लगता है..."



"अरे नहीं मेरी ननद, तुम्हारे भैया तो आम को अच्छी तरह चूस ही लेते हैं... लेकिन अब यह आम भी गदराए पपाया होने लगे हैं.. लगता है अब इनका ख़याल ज़्यादा ही रखवाना पड़ेगा.." स्नेहा ने भी आज बेशर्मी की हद पार करने की ठान ली थी..



"ओह हो... कितने लोगों ने मेहनत की है भाभी इस आम को पपाइया बनाने में... आप की गुफा का दरवाज़ा भी काफ़ी खुल चुका होगा अब तो शायद..." शीना आज फुल मूड में थी..



"असली मर्द बहुत कम रह गये हैं इस दुनिया में अब मेरी ननद.... किसी में मेरी प्यास भुजाने की हिम्मत ही नहीं रही... लगता है अब तो बस कोई और ही देखनी पड़ेगी.." स्नेहा ने जान बुझ के देखनी पड़ेगी लिखा.. यह देख शीना भी चौंक गयी, कुछ देर तक उसने भी जवाब नहीं दिया...



"लगता है आज महाबालेश्वर में आप ही आग लगाओगी... इतना जल जो रही हो नीचे से..." शीना ने हिम्मत करके जवाब दिया



"इतनी चिंता है महाबालेश्वर की, तो मेरी ननद होने के नाते भुजा दो मेरी यह आग.. कुछ प्रबंध कर लो अब तुम ही.. हमे तो कोई मिलने से रहा...." स्नेहा खुल के आज अपनी बेशर्मी का प्रदर्शन कर रही थी...



"कम ऑन भाभी.. इट्स एनुफ्फ ओके..." कहके शीना ने फाइनली कॉन्वर्सेशन को बंद किया और अपना फोन क्लच में रख दिया...
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07-03-2019, 03:45 PM,
#7
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
फोन रखते ही शीना और स्नेहा के बीच की वार्तालाप भी कम हो गयी.... जहाँ स्नेहा ने सोचा था कि आज वो शीना को अपनी असली रूप दिखा के ही रहेगी , वहीं शीना दुविधा में पड़ गयी थी.. शीना के मन में एक अजीब सी जिग्यासा जागने लगी... भाभी ऐसी बात क्यूँ कर रही थी, क्या वो लेज़्बीयन भी है.. क्या वो सही में बाहर के मर्दों के साथ सोती है, क्या वो सही में एक बाज़ारू औरत जैसी है... शीना के मन में ऐसे सवालों की भीड़ सी लग गयी, इसलिए बाकी के पूरे रास्ते वो खामोश रही... रिकी भी कहीं और ही खोया हुआ था, वो ड्राइव तो कर रहा था, लेकिन उसका ध्यान कहीं और ही था.. शायद आज सुबह हुए स्नेहा के उस किस्से की वजह से वो भी काफ़ी अनकंफर्टबल था... सुहासनी देवी मन ही मन स्नेहा को गालियाँ दे रही थी जो उसका रोज़ का काम था.... एक अजीब सी खामोशी छाई हुई थी उस वक़्त गाड़ी में... देखते देखते रास्ता कैसे कट गया पता ही नहीं चला, जब टाइयर स्क्रीच होने की आवाज़ हुई, तभी सब को होश आया कि वो लोग अपनी मंज़िल पहुँच गये... दोपहर के 12 बजे शुरू किया गया सफ़र, दोपहर के 3 बजे जाके ख़तम हुआ.. चारो लोग गाड़ी से उतरते, उससे पहले उनके नौकर बाहर आ गये उनका समान उठाने के लिए



"हाए बेटा, तू तो कहीं खो ही गया था. रास्ते पे कहीं रुका ही नहीं खाने के लिए... " सुहासनी ने उतर के रिकी से कहा



"कहीं नहीं माँ, मंज़िल पे आ गये हैं, अब दो दिन तो आराम ही है... चलिए अंदर... " कहके दोनो माँ बेटे बातें करते हुए अंदर गये और पीछे शीना और स्नेहा धीमे धीमे कदमों से आगे बढ़ रहे थे... शीना अभी तक खोई हुई थी अपने विचारों में, और स्नेहा उसे देख के समझ गयी थी कि उसका तीर ठीक निशाने पे लगा है.. यह देख स्नेहा ने अपने कदमों की रफ़्तार बढ़ाई और जल्दी से घर के अंदर जाने लगी.. अमर राइचंद के हर घर की तरह, यहाँ के मेन गेट पे भी एक सोने के अक्षरों से सजी नेम प्लाट लगी थी 'राइचंदस....'... घर के अंदर हर एक लग्षूरीयस चीज़ पड़ी थी, चाहे हो बेडरूम के अंदर छोटा सा पूल है या हर बेडरूम में प्राइवेट जक्यूज़ी..... जहाँ तीनो औरतों ने अपने अपने रूम में जाके आराम करना ठीक समझा, वहीं रिकी घर के पीछे की बाल्कनी में जाके खड़ा हो गया.. बाल्कनी से खूबसूरत व्यू देख वो अचंभित हो गया, पहाड़ों से घिरा हुआ चारों तरफ का माहॉल, अमर का वीकेंड होम वहाँ की आलीशान प्रॉपर्टी थी... बाल्कनी में रखी एक लंबी रेक्लीनेर पे बैठ के रिकी वहाँ के मौसम में कहीं खो गया.. सर्दी ऐसी थी, के दोपहर के 3 बजे भी रिकी को अपने जॅकेट पहनना सही लगा.. हल्का सा धुन्ध छाया हुआ था घर के चारो ओर... बैठे बैठे वहीं रिकी की आँख लग गयी और एक लंबी नींद में चला गया...

शीना जैसे ही अपने कमरे में गयी, बेड पे जाके बस लंबी होके सो ही गयी.... उसको सोता हुआ देख किसी का भी लंड जागने लगे.. शीना जैसे ही बिस्तर पे गिरी, उसके चुचे उसके लो कट टॉप से बाहर आने के लिए कूदने लगे, उसका फिश कट स्कर्ट था, उसकी कट उसकी नंगी जांघों को एक्सपोज़ करने लगी, और साइड से उसकी पैंटी लाइन दिखने लगी... बिस्तर पे सर रखते ही शीना कार में हुई स्नेहा की बातों के ख़याल में खो गयी... उसको समझ नहीं आ रहा था, कि स्नेहा आज अचानक ऐसी बातें क्यूँ कर रही थी.. स्नेहा और शीना करीब तो शुरू से ही थे, लेकिन इससे पहले कभी ऐसी बात नहीं हुई थी उन दोनो के बीच.. स्नेहा की बातों के बारे में सोच सोच के शीना की साँसें भारी होने लगी, इतनी ठंड में भी उसके बदन में गर्मी आने लगी थी.. शीना ने जब यह देखा तो उसे खुद यकीन नहीं हो रहा था कि वो स्नेहा की ऐसी बातों से गरम हो सकती है.. शीना ने जल्दी से अपने कपड़े उतार फेंके…स्कर्ट और टॉप को अपने शीशे से भी सॉफ शरीर से अलग कर दिया, अब वो सिर्फ़ ब्रा पैंटी में थी जो ट्रॅन्स्परेंट थे, शीना के निपल्स सॉफ उसकी ब्रा से देखे जा सकते थे. शीना रूम में अटॅच्ड जक्यूज़ी में जल्दी से कूद गयी और अपनी चूत में लगी आग को ठंडा करने लगी… यह पहली बार था जब शीना किसी औरत से इतनी गरम हुई थी… उधर रिकी की बाल्कनी से पहाड़ी नज़ारे देखते देखते आँख लगी ही थी, कि अचानक एक तेज़ हवा का झोंका चला जिससे उसकी आँखें खुल गयी, उस एक पल उसको ऐसा लगा कि उस हवा में शायद किसी की आवाज़ थी जो रिकी से कुछ कह के निकली…. रिकी ने अपने ख़यालों को झटका और अंदर चला गया… वक़्त देख के रिकी ने सोचा के रात का खाना ही होगा अब तो डाइरेक्ट, तो क्यूँ ना पहले कुछ सैर की जाए लोकल मार्केट की… रिकी ने एक एक कर घर के सब मेंबर्ज़ को देखा लेकिन शीना और सुहासनी के कमरे अंदर से ही लॉक थे, सफ़र से थक के सो गये होंगे यह सोच के रिकी ने दरवाज़ा नॉक तक नहीं किया…स्नेहा के कमरे में जाते जाते रिकी रुक सा गया, स्नेहा के साथ अकेले जाना रिकी को सही नहीं लग रहा था, इसलिए वो दबे पावं सीडीया उतर के घर से बाहर पैदल ही निकल गया…शाम के 5 बजे थे और मौसम बहुत ठंडा था, धीरे धीरे सूरज पहाड़ों के बीच डूबने को था, लोकल मार्केट देखते देखते रिकी को 2 घंटे हो गये थे…वक़्त देख के उसने जैसे ही घर जाने का रास्ता पकड़ा तभी अचानक रिकी की जॅकेट पे पीछे से एक बड़ा पत्थर आके लगा…. जैसे ही रिकी को हल्के दर्द का एहसास हुआ, वो पीछे मुड़ा तो उसके पैर पे वो पत्थर एक काग़ज़ में लपेटा हुआ पड़ा था.. पत्थर उठा के रिकी अपनी नज़रें फिराने लगा कि किसने यह हरकत की…भीड़ में थोड़ा दूर उसे एक इंसान दिखा जिसने अपने पूरे बदन को एक ब्लॅक शॉल में लपेटा हुआ था और बड़ी तेज़ी से भाग रहा था, रिकी ने पत्थर उठाया और उसके पीछे दौड़ पड़ा..


“हे यू… रुक जाओ”…. चिल्लाता हुआ रिकी उसके पीछे भागने लगा... कुछ ही सेकेंड्स में रिकी जब भीड़ को चीरता हुआ मार्केट के एक छोर पे आया तो वहाँ कोई नही था, और अचंभे की बात यह थी कि एक छोर से लेके दूसरे छोर तक मार्केट की सड़क सीधी ही थी, बीच में कोई गलियारा या खोपचा नहीं था…. रिकी ने हर जगह अपनी नज़रें घुमाई लेकिन उसे कोई नहीं दिखा…तक के रिकी ने पत्थर फेंका और उस काग़ज़ को देखा…काग़ज़ में जो लिखा था उसे देख उसकी आँखें बड़ी हो गयी और दिल में एक अंजान डर लगा… उस काग़ज़ पे लिखा था



“मुंबई छोड़ के कहीं मत जाना…. यहीं रहके तुम अपने जीवन के मकसद को पूरा करो…”



यह पढ़ के रिकी कुछ देर जैसे वहीं बरफ समान जम गया था…. रात के 7 बजे पहाड़ी की ठंडी हवायें चल रही थी, उसमे भी रिकी पसीना पसीना हो गया था…अचानक किसी ने पीछे से आके रिकी के कंधों पे हाथ रखा तो वो और घबरा गया.. धीरे धीरे जब उसने पीछे मूड के देखा तो शीना को उसके सामने पाकर उसकी साँस में साँस आई..



“भाई… यहाँ क्या कर रहे हो.. और इतनी ठंड में भी पसीना.. “ शीना ने घबरा के पूछा,




शीना को देख के रिकी ने तुरंत अपने दोनो हाथ जीन के पॉकेट में डाले ताकि शीना की नज़र उस काग़ज़ पे ना पड़े…




“नतिंग…भीड़ की वजह से शायद पसीना आया है... यह सब छोड़ो, तुम बताओ.. मुझे लगा तुम आराम कर रही हो तभी मैने तुम्हे नहीं उठाया नींद से.." रिकी आगे बढ़ने लगा और शीना भी उसके साथ चलने लगी



"नींद खुल गई भाई, थकावट काफ़ी थी लेकिन ज़्यादा नींद नहीं आई.. चलो ना भाई, कुछ शॉपिंग करते हैं.. आपकी तरफ से गिफ्ट मेरे लिए.." शीना ने खिलखिला के कहा और दोनो दुकान की तरफ बढ़ने लगे...




"हां हां .... वोही करने की कर रही हूँ, पता नही कौनसी मिट्टी का बना हुआ है यह, जाल में आ ही नहीं रहा..." उधर स्नेहा किसी के साथ फोन पे बात कर रही थी... इतना बोलके फिर स्नेहा खामोश हो गयी और ध्यान से दूसरी तरफ की बातें सुनने लगी...




"हां वो सब ठीक है, पर आज ही बात कर रहा था कि महाबालेश्वर में कुछ रिज़ॉर्ट बनाएगा, पर उसकी पढ़ाई के बाद... लंडन चला जाएगा दो तीन दिन में.." स्नेहा ने फिर धीरे से कहा, और यह सब कहते वक़्त वो बार बार रूम के दरवाज़े तक पहुँचती अंदाज़ा लगाने के लिए के कहीं कोई उसकी बातें सुन तो नहीं रहा... फिर कुछ देर खामोशी से सामने की बातें सुनके उसने जवाब में कहा




"हां ठीक है...मैं कुछ करती हूँ.. अब एका एक नंगी तो नहीं हो सकती ना इसके सामने...ठीक है, "कहके स्नेहा ने फोन रख दिया... फोन रख के स्नेहा अपने रूम में धीरे धीरे टहलने लगी.. कुछ सोच रही थी पर उसे रास्ता मिल नहीं रहा था.. कुछ देर सोच के उसने धीरे से खुद से कहा... "ह्म्म्मग.. ननद जी...आपकी भाभी की आग से बच के रहना आज.."





मार्केट से जब रिकी और शीना शॉपिंग करके लौटे, तब तक सुहासनी देवी भी उठ चुकी थी और गार्डेन में बैठ के चाइ पी रही थी.. रिकी और शीना भी उसके साथ बैठ गये और गुपशुप करने लगे..कुछ ही देर में स्नेहा ने भी उन्हे जाय्न किया और चारों अपनी बातों में मशगूल हो गये...




"भाई, कल क्या करेंगे इधर..व्हाट्स दा प्लान..." शीना ने बीच में पूछा..

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07-03-2019, 03:45 PM,
#8
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"यार यहाँ कुछ ख़ास नहीं लगा मुझे, आइ मीन स्ट्रॉबेरी फार्मिंग है, सम बी हाइव्स आंड दो तीन पायंट्स हैं ऑन हिल्स.. तो आइ थिंक तुम माँ और भाभी के साथ कल यह आस पास की तीन चार जगह देख लो, तब तक मैं भी एक दो लोकेशन्स देख के आता हूँ नये प्रॉजेक्ट के लिए.." रिकी ने शीना से कहा





"तुम भी चलो ना बेटा, हम तीन अकेले जाके क्या करेंगे..." सुहासनी ने रिकी को ज़ोर दिया





"माँ.. तीन लोग अकेले कैसे हुए.. और कोई बात नहीं है, स्टाफ तो होगा ना.. आंड मैं जल्दी से कामनिपटा के आप लोगों को जाय्न करूँगा.." रिकी ने सुहासनी देवी से कहा और तीनो फिर बातें करते करते डिन्नर करने चले गये... खाना ख़ाके और फिर कुछ देर इधर उधर की बातें करके, सब लोग अपने अपने कमरे में चले गये.. तीनो औरतों ने शाम को नींद की थी, इसलिए अभी तीनो अपने अपने कमरे में जाग रही थी.. सुहासनी देवी टीवी देखने में मशगूल थी, लेकिन शीना और स्नेहा के दिमाग़ किसी और तरफ ही थे.. फोन पे हुई बात के बाद स्नेहा आने वाले वक़्त में रिकी को अपने जाल में कैसे फसाए उस सोच में डूबी हुई थी, और शीना के खाली दिमाग़ में बार बार स्नेहा की बातें दौड़ रही थी.. स्नेहा की बातों ने शीना को थोड़ा अनीज़ी कर दिया था.. वो बार बार इग्नोर करती और हर बार यही बातें उसके दिमाग़ में आती.. जैसे जैसे रात निकलती गयी वैसे वैसे घर में एक दम शांति पसर गयी.. मालिक और नौकर दोनो अपनी नींद में डूब चुके थे, सर्द माहॉल में घर पे एक दम अंधेरा और उस पर यह सन्नाटा.. रिकी नींद में तो था लेकिन उसके दिमाग़ में अभी भी मार्केट वाली बात घूम रही थी, आख़िर कौन था वो जिसने पत्थर फेंका और उसपे लपेटा हुआ काग़ज़...यह सब किन चीज़ों की ओर इशारा कर रहा था.. यह सोच सोच के रिकी का दिमाग़ थक सा गया और वो नींद में जाने ही वाला था कि अचानक किसी के कदमों की आहट उसके कान में पड़ी जिसे सुनके रिकी अचानक से उठ के अपने बेड पे बैठ गया.. अपने बेड के पास रखा लॅंप ऑन करके रिकी धीरे धीरे अपने कमरे के दरवाज़े की ओर बढ़ा और दरवाज़ा खोलके देखा तो स्नेहा शीना के रूम की ओर बढ़ रही थी.. स्नेहा को नींद नहीं आ रही होगी तभी शायद वो शीना से गप्पे लड़ाने जा रही है, यह सोच के रिकी ने दरवाज़ा बंद किया और सोने चला गया...





शीना बेड पे आँखें बंद करके बैठी थी, शायद कुछ सोचते सोचते नींद आने लगी थी कि तभी दरवाज़ा खुलने की आवाज़ से उसकी सोच में खलल पड़ा.. सामने देखा तो स्नेहा खड़ी थी, स्नेहा को देख के फिर से उसके दिमाग़ में स्नेहा की बातें आ गयी क्यूँ कि स्नेहा खड़ी ही ऐसे रूप में थी..ब्लॅक सिल्क के बाथरोब को स्नेहा ने अपने शरीर पे कस्के बाँधा हुआ था और उसके बाल खुले थे और चेहरे पे एक दम लाइट मेक अप...वो धीरे धीरे शीना की ओर बढ़ रही थी




"भाभी.. आप यहाँ, इस वक़्त.." शीना ने अपनी नज़रें उसके चेहरे से हटा के कहा




"क्या करूँ मेरी ननद रानी, नींद ही नहीं आ रही, सोचा तुमसे थोड़ी गप शप कर लूँ.. अच्छा है तुम भी नहीं सोई अब तक.." स्नेहा ने बेड के पास अपना मोबाइल फोन रखा और बाथरोब खोल दिया.. बाथरोब खोलते ही स्नेहा शीना के सामने सिर्फ़ ब्रा पैंटी में आ गई.. स्नेहा के सफेद बेदाग बदन पे डार्क ब्लू कलर की लाइनाये देख शीना की हलक सूखने लगी...




"ऐसे मत देखो मेरी ननद रानी, बाथरोब गीला है, खमखाँ बेड गीला करूँ उससे अच्छा है ऐसे ही बैठ जाउ.." स्नेहा ने शीना के पास बैठ के कहा




"और बताओ, क्या चल रहा है लाइफ में.. ऐश करती हो कि नहीं" स्नेहा ने अपने उपर ब्लंकेट ओढ़ दिया और उसके अंदर शीना को भी ले लिया.. शीना ने भी एक छोटा वन पीस ही पहना था जिसकी वजह से उसकी जांघें नंगी थी...




"लीव इट भाभी.. फिर वोही बात नहीं करनी मुझे..." शीना ने एक दम धीमी आवाज़ में कहा... शीना दुविधा में थी कि इस बात में वो स्नेहा के साथ आगे बढ़े या नहीं इसलिए यह कहते वक़्त भी वो खुद पक्का नहीं थी, जिसे स्नेहा ने पकड़ लिया




"अरे मेरी ननद रानी, तुम्हारा दिल और दिमाग़ साथ तो नहीं दे रहा. फिर क्यूँ इतनी मेहनत कर रही हो.." स्नेहा ने जवाब दिया.. इससे पहले शीना खुद इस बात का कुछ जवाब देती, फिर स्नेहा ने कहा




"ऐश करना कोई बुरी बात नहीं है.. और नाहीं उसके बारे में बात करना..." स्नेहा ने कंबल के अंदर ही शीना की जांघों पे उंगली फेरते हुए कहा... स्नेहा की उंगली का स्पर्श पाते ही शीना के रोंगटे खड़े हो गये और वो एक दम बहुत सी बनी रह गयी.. यह देख स्नेहा ने अपना काम जारी रखा और धीरे धीरे अपनी उंगलियाँ उपर लाती गयी..




"ऐसी कुछ बात नहीं है भाभी..." शीना ने फाइनली जवाब दिया और अपना गला सॉफ किया, साथ ही उसने अपनी जाँघ से स्नेहा की उंगलियों को भी धीरे से हटा दिया




"ओफफो... लगता है मेरी ननद रानी को इन सब की ट्रैनिंग मुझे ही देनी पड़ेगी अब...." कहके स्नेहा बेड से उठ खड़ी हुई... स्नेहा को खड़ा होते देख शीना की दिल की धड़कने तेज़ होने लगी और उसके मन में हज़ार ख़याल दौड़ने लगे... स्नेहा धीरे से शीना की तरफ झुकी और अपने होंठ शीना के होंठों की तरफ ले गयी.... डर के मारे शीना ने आँखें बंद कर ली....वो आने वाले पल के बारे में सोच के एग्ज़ाइट्मेंट के साथ साथ डरने भी लगी थी... उसकी बंद आँखें देख स्नेहा की हल्की सी हँसी छूट गयी




"ह्म्म्म ... मेरी ननद रानी, सब होगा, पर धीरे धीरे.. फिलहाल सो जाओ.. गुड नाइट.." स्नेहा ने हल्के से उसे कहा और वो अपना बाथरोब पहेन के बाहर निकलने लगी




शीना ने आँखें खोल के चैन की साँस ली, पर उसे अपनी इस हरकत पे काफ़ी घिन होने लगी...जाते जाते स्नेहा के शब्द एक बार फिर उसके कानो में गूंजने लगे.."सब होगा, पर धीरे धीरे....." यह सोच के शीना फिर ख़यालों में खोने लगी के तभी उसकी नज़र बेड के पास वाली टेबल पे पड़े मोबाइल पे गयी...




"यह तो भाभी का फोन है.." शीना ने खुद से कहा और स्नेहा का फोन उठा लिया.. फोन लॉक तो था पर स्वाइप करने से अनलॉक हो गया.. जैसे ही फोन अनलॉक हुआ और शीना की नज़रें स्क्रीन पे पड़ी, उसकी आँखें फटी की फटी रह गयी...
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07-03-2019, 03:46 PM,
#9
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
स्नेहा के मोबाइल को स्वाइप करके शीना की नज़रें उसकी स्क्रीन पर ही टिकी रही.. स्क्रीन पे देख के वो पलक झपकाना तक भूल गयी थी.. रात के 1 बज रहे थे, कमरे मे एसी चल रहा था और शीना की चूत किसी भट्टी की तरह तप रही थी.. एक तो स्नेहा की बातों ने उसे गरम कर रखा था उपर से स्नेहा के जिस्म के दर्शन हुए, इस बात से उसकी चूत में चीटियाँ रेंगने लगी..शीना लेज़्बीयन नहीं थी, लेकिन मॉडर्न ख़यालात की एक लड़की थी जो अगर लेज़्बीयन ट्राइ करे तो उसे कोई अफ़सोस नहीं होगा.. उपर से स्नेहा के मोबाइल पे राजशर्मास्टॉरीजडॉटकॉम परइन्सेस्ट स्टोरी का पेज खुला हुआ था.. वेब पेज देख के शीना को कुछ समझ नहीं आया, लेकिन स्टोरी का टाइटल "कैसे मैने अपनी बहेन को चोदा" पढ़ के शीना की आँखें बाहर आ गयी... शीना को समझ नहीं आया वो क्या करे.. जब शीना को होश आया तब उसने सब से पहले जाके अपने कमरे का दरवाज़ा बंद किया और दौड़ के अपने बेड पे कूद के बैठ गयी.. एक कशमकश में शीना फँस गयी थी के वो स्नेहा का फोन उठा के देखे या नहीं... शीना को लगा कुछ न्यू पढ़ने के ट्राइ में क्या जाएगा, यह सोच के शीना ने स्नेहा का फोन उठाया और स्टोरी के खुले हुए पेज को पढ़ने लगी... जैसे जैसे शीना पेज पे लिखे शब्दों को पढ़ने लगी, वैसे वैसे उसकी तपती हुई चूत में से आग निकलने लगी.. एक पेज पढ़ के जब शीना की एग्ज़ाइट्मेंट बढ़ी, तभी शीना ने पीछे मूड के नहीं देखा और एक एक करके उस स्टोरी के सब पेजस पढ़ने लगी... अब आलम यह था कि शीना ने पढ़ते पढ़ते अपना वन पीस उतार फेंका था और अपनी ही चुत की गरमाइश में तपती हुई अपने कंबल को भी उतार दिया, बेड के बीच में शीना पूरी नंगी लेटी हुई एक हाथ से मोबाइल पकड़े हुई थी और एक हाथ से अपनी चूत सहला रही थी... जैसे जैसे शीना कहानी पढ़ती जाती, वैसे वैसे उसकी चूत रगड़ने की गति भी बढ़ जाती... शीना काफ़ी गरम हो चुकी थी.. जब उससे गर्मी बर्दाश्त नहीं हुई तब उसने मोबाइल को एक ओर फेंका और अपनी चूत को दोनो हाथों से सहलाने लगी, मसल्ने लगी अपनी उंगली अंदर बाहर करने लगी...




"अहहहहा एस अहहहहह उफ़फ्फ़ उम्म्म्मम अहहहहा....अहहा यॅ अहहहहाहा" शीना सिसकने लगी , उसकी आवाज़ धीमी नहीं थी, कमरे में खुल के वो अपनी मुनिया को रगड़ रही थी.... शीना के कमरे के कीहोल से बाहर स्नेहा खड़ी अंदर के नज़ारे को देख रही थी और मंद मंद मुस्कुराने लगी के उसकी चाल कामयाब होने वाली है, लेकिन अगले ही पल शीना के मूह से कुछ सुनके स्नेहा को एक पल के लिए मानो झटका लगा पर फिर वापस उसके मूह पे मुस्कुराहट बढ़ गयी



" अहहहहहः रिकी अहहाहा यस भैया अहहहहा फक मी ना अहहहहहाहा... ओह बेबी अहहहहहाः...... यस आइ म कमिंग भैया आआहह.. आआहहा ओह..." चीखते हुए शीना के पर अकड़ गयी और वो झड़ने लगी... आज शीना को खुद भी यकीन नहीं हुआ कि उसके दिल की बात उसके ज़बान पे आ गयी... रिकी के नाम से झड़ने के बाद शीना नंगी ही बेड पर लेट गयी और न्यू ईयर की रात के बारे में सोचने लगी जब उसने अंधेरे में रिकी के होंठों को चूमा था.. वो पहली बार था कि शीना ने रिकी के हाथों का स्पर्श अपने जिस्म पे पाया था.. रिकी के होंठों से अपने होंठों का मिलना, जैसे ही उसे याद आया, उसकी चूत फिर से कसमसाने लगी और एक बार फिर वो अपनी चूत को सहलाने लगी....




"उम्म्म्म भैया.... आइ लव यू आ लॉट.... आहह... यूआर सो सेक्सी अहहहः.... प्लीज़ मॅरी मी ना भैया आ अहहहाहा... यॅ भैया अहहहाहा. ऐसे ही मेरी चूत रागडो ना अहहहाहा... दिन रात मुझे उूउउइ अहहहहा आपके नीचे रखना आहहहा.. मेक लव टू मी अहहहा... उम्म्म्मफ़ अहहहहहा ओह्ह्ह ईससस्स अहाहाआ मैं आ रही हूँ भैया अहहहः अहहहः..." शीना की चीख फिर निकली और वो फिर एक बार झाड़ गयी.... झड़ने के बाद शीना ने स्नेहा के फोन को लॉक करके फिर अपने ड्रॉयर में रखा और अपना फोन निकाल के उसमे रिकी के फोटो को देखने लगी... स्नेहा अभी तक बाहर खड़े की होल से झाँक रही थी कि शायद उसे कुछ और भी सुनने मिल जाए...




रिकी के फोटो को देखते देखते शीना जाने कहाँ खो गयी....बस एक टक रिकी के फोटो को निहारने लगी.. ज़ूम कर के कभी उसके होंठ देखती तो कभी उसकी आँखें तो कभी उसके बाइसेप्स... शीना ने फोन को अपने होंठों के पास किया और रिकी के फोटो को चूमने लगी...




"अब कुछ दिन में फिर तुम दूर चले जाओगे मुझसे... मैं क्या करूँगी तुम्हारे बिना इधर... मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ रिकी, मैं यह भी जानती हूँ कि ज़माने की नज़रों में यह रिश्ता सॉफ नहीं है, पर मैं क्या करूँ... मैं जब भी तुमको देखती हूँ बस मेरा दिल तुम्हारे साथ ही रहने के लिए आवाज़ देता है, मेरी साँसें अब तुम्हारी ही हैं.... लव यू आ लॉट रिकी भाई...." शीना ने एक बार फिर रिकी के फोटो को चूमा और बत्ती बुझा के सोने लगी... बाहर खड़ी स्नेहा ने यह सब देखा और कुछ कुछ बातें ही सुन पाई.. लेकिन उसको यह पता चल गया था कि शीना को रिकी से प्यार है..




"अब तो हमारा काम और भी आसान हो जाएगा... " स्नेहा ने खुद से धीरे से कहा और वहाँ से अपने कमरे की तरफ प्रस्थान कर ही रही थी, कि अचानक उसके दिमाग़ में कुछ आया और वो वापस पलटी, लेकिन इस बार शीना के कमरे की तरफ नहीं बल्कि रिकी के कमरे की तरफ.. धीरे धीरे कर स्नेहा रिकी के कमरे की तरफ बढ़ी और बाहर जाके खड़ी हो गयी कुछ देर तक... जैसे ही स्नेहा कीहोल के पास झुकने वाली थी, कि तभी ही कमरे का दरवाज़ा खुला और रिकी आँख मल्ता बाहर आया.. रिकी के ऐसे अचानक आने से स्नेहा थोड़ी डर गयी और दो कदम पीछे हो गयी.. रिकी ने जब आँखें अच्छी तरह खोली तो स्नेहा उसके सामने खड़ी थी जिसको देख वो भी चौंका




"भाभी.. आप यहाँ, इतनी रात को.. सब ठीक है ना..." रिकी ने घड़ी की तरफ देखते हुए कहा




"नहीं रिकी, सब ठीक है... आउह्ह त्त तुउत तुउंम्म तुम.. कैसे उठे" स्नेहा ने अटक अटक के कहा




"भाभी मेरी तो नींद खुल गयी थी कि तभी मेरी नज़र दरवाज़े पे पड़ रही परछाई की तरफ गयी, तो मैं खुद उठके आ गया" रिकी ने जवाब में कहा




"ओह... हान्ं.. कुछ नहीं, गुड नाइट.." कहके स्नेहा बिना दूसरा कुछ कहे वहीं से भाग गयी.. स्नेहा ने अपने कमरे की तरफ जल्दी जल्दी कदम बढ़ाए और एक ही पल में रिकी की नज़रों के सामने से गायब हो गयी.... रिकी इतनी रात गये कुछ सोचने के मूड में नहीं था, दिन का अगर कोई और वक़्त होता तो वो ज़रूर इस अजीब बात के बारे में सोचता, लेकिन रात के ऑलमोस्ट 2 बजे वो कुछ भी नहीं सोचना चाहता था... लेकिन अभी नींद भी तो खुल गयी, अब क्या करें... रिकी ने खुद से कहा और फ्लोर की कामन बाल्कनी के पास जाके खड़ा हुआ और पहाड़ों की ठंडी बहती हवा को महसूस करके खुश होने लगा... ऐसा मौसम अक्सर रिकी को भाता था, रिकी को गर्मियों से सख़्त नफ़रत थी, तभी तो वो इंडिया हमेशा नवेंबर दिसंबर आता जब मौसम खुश नुमा हो.. और बाकिके महीने लंडन की बारिश और सर्द हवाओं में गुज़ारता...




"अब क्या करें...." रिकी ने खुद से कहा और अपने आस पास देखने लगा के कोई आस पास खड़ा तो नहीं... इधर उधर नज़र घुमा के जब उसे इतमीनान हो गया के वहाँ उसके अलावा कोई नहीं, तो रिकी धीरे से अपने कमरे में गया और अपनी फेवोवरिट ब्रांड "बेनसन आंड हेड्जस" की सिगरेट का पॅकेट लेके आया और सुलघाने लगा... रिकी सिगरेट तो लेता था, लेकिन घर वालों के आगे उसकी इमेज अच्छी थी इसलिए उनके सामने स्मोकिंग, ड्रिंकिंग जैसी कोई बात नई... वैसे रिकी भी इन मामलों में विक्रम या अमर से कम नहीं था, लेकिन उसकी यह बात अच्छी थी कि वो अपनी हद जानता था और उसे अपने यह काम छुपाने भी आते थे... इसलिए सिगरेट जलाने से पहले उसने फिर इधर उधर नज़र घुमाई और आराम से स्मोकिंग करने लगा... इतनी सर्द हवा में उसको सिगरेट सुलगाने का मज़ा आ रहा था... रिकी बाल्कनी ग्रिल के सहारे खड़ा बाहर के नज़ारे में इतना खो गया था कि उसे ध्यान ही नहीं रहा कि पिछले 5 मिनट से कोई उसके पीछे खड़ा है... रिकी की तरफ से कोई रियेक्शन ना देख के दो हाथ उसके कंधों की तरफ बढ़ने लगे जैसे कि उसे धक्का देने की कोशिश हो.. वो हाथ जब रिकी के कंधों पे पड़े रिकी डर के मूड गया और उसका चेहरा पूरा पसीने से भीग गया...




"भैया... क्या हुआ इतना पसीना क्यूँ.." पीछे खड़ी शीना ने अपने रुमाल से रिकी के माथे का पसीना पोछते हुए कहा, लेकिन रिकी की साँसें अभी भी काफ़ी तेज़ चल रही थी, वो अब तक डरा हुआ था.. ऐसा रिकी के साथ अक्सर होता, जब भी वो किसी चीज़ के बारे में सोचते हुए खो जाता और कोई उसे पीछे से आके हाथ लगाता, तब रिकी डर जाता... उसके सभी दोस्त यह जानते थे इसलिए कभी रिकी को डिस्टर्ब नहीं करते जब वो कहीं या किसी सोच में खोया हुआ होता...
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07-03-2019, 03:46 PM,
#10
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा

"ओह.. तो सिगरेट..." शीना ने रिकी के हाथ से सिगरेट छीनते हुए कहा



"माँ को नही बताना प्लीज़..." रिकी ने धीरे से कहा



"ऑफ कोर्स नही भैया... मुझे भी दो ना एक, काफ़ी दिन से नहीं ली है.." शीने ने रिकी के सामने खड़े होके कहा.. रिकी ग्रिल के भरोसे सामने बाहर की तरफ देख रहा था और शीना ठीक उल्टे होके पेर ग्रिल पे किए रिकी के चेहरे पे देख रही थी... रिकी ने कुछ रिएक्ट नहीं किया और शीना को भी उसकी सिगरेट दे दी... दोनो भाई बहेन जानते थे कि कौनसी चीज़ कब और कितनी लिमिट में करनी चाहिए. इसलिए दोनो आराम से बातें कर रहे थे और सिगरेट के कश पे कश लगाए जा रहे थे... सर्द हवा में रिकी के साथ सिगरेट पीके शीना बहुत रोमांचित हो रही थी.. ठंडी ठंडी हवा, सिगरेट का धुआँ और सामने खड़े महबूब के जिस्म से आती उसकी महक.. शीना ने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा भी टाइम वो रिकी के साथ बिता पाएगी....




"क्या हुआ.... कुछ तो बोलो, कब से मैं बोले जा रहा हूँ.." रिकी ने शीना के ध्यान में भंग डालते हुए कहा




"भैया, आप लंडन नही जाओ ना.. मैं यहाँ बहुत अकेली हो जाती हूँ प्लीज़..." शीना ने अचानक भावुक होके कहा और रिकी से गले लग गयी



"अरे.. क्या हुआ अचानक स्वीटहार्ट... आज इतना प्यार क्यूँ भाई पे... कुछ चाहिए क्या लंडन से...." कहके रिकी ने शीना को अलग किया लेकिन उससे दूर नहीं हुआ, बल्कि उसे सट के खड़ा हो गया और दोनो भाई बहेन अब बाल्कनी के बाहर ही देख रहे थे... शीना कुछ देर तक खामोश रही, लेकिन फिर सिगरेट का कश खीचते हुए बोली




"नोट दट भाई.. बट आप होते हो तो लगता है कोई है जिसके साथ मैं सब कुछ शेअर कर सकती हूँ, लेकिन आप के जाने के बाद फिर अकेली.. पापा और भैया पूरा दिन काम में होते हैं, मम्मी और भाभी के अलग तेवर देखो.. यह सब देख के मैं अब थक गयी हूँ..पूरा दिन खुद को बिज़ी रखने के लिए फ्रेंड्स के साथ घूमती रहूं, इसके अलावा कुछ करती ही नहीं हूँ.. अब आप बताओ, ऐसे में मैं क्या करूँ..." कहके शीना ने फिर रिकी की तरफ हाथ बढ़ाया और अपने लिए दूसरी सिगरेट सुलघा ली




"शीना, तुम आगे क्यूँ नहीं पढ़ाई करती, मतलब बॅच्लर्स तो तुमने किया है, तो मास्टर्स भी कर लो.. वैसे भी शादी वादी का प्रेशर तो कुछ है नहीं तुम्हारे उपर, और अगर वो कभी आया भी तो मैं डॅड से बात कर लूँगा..." रिकी ने भी अपने लिए दूसरी सिगरेट सुलघा ली...





रिकी की बात में दम तो था और शीना के लिए इससे अच्छा मौका नहीं हो सकता था कि वो रिकी के साथ टाइम स्पेंड करे सबसे दूर और बिना किसी डिस्टर्बेन्स के.. लेकिन फिर भी शीना को पता नहीं कौनसी बात डिस्टर्ब कर रही थी के वो इस प्लान के लिए भी नहीं मानी...




"नही भैया, मैं नहीं आउन्गि वहाँ.. आप ही रहो ना इधर, आप यहाँ कंटिन्यू करो अपनी स्टडीस... नतिंग लाइक आमची मुंबई.. राइट" कहके शीना ने रिकी को हाई फाइ का इशारा किया




दोनो भाई बहेन दो घंटे तक एक दूसरे को कन्विन्स करते रहे लेकिन दोनो अपनी बातों पे अड़े रहे और देखते देखते सिगरेट के पॅकेट के साथ 4 कप कॉफी भी ख़तम कर चुके थे.. दोनो ने ढेर सारी बातें की और दोनो में से किसी को वक़्त का होश नहीं रहा.. यह पहली बार था कि जब दोनो ने घंटों एक दूसरे के दिल की बातें जानी हो.. ऐसा नहीं था कि यह दोनो पहली बार बात कर रहे थे, जब कभी भी शीना को किसी अड्वाइज़ की ज़रूरत पड़ती तो वो अपने माँ बाप के बदले रिकी की सलाह लेती.. शीना के लिए रिकी एक शांत ठहरे पानी जैसा था, जो स्थिर था और उसके पास जाने से किसी को ख़तरा नहीं था, लेकिन वो यह भी जानती थी कि पानी जितना शांत होता है उतना ही गहरा भी होता है.. इसलिए जब भी रिकी लंडन से शीना को दो दिन तक कॉल नहीं करता तब वो सामने से कॉल करती और उससे कुरेद कुरेद के बातें पूछती.. अभी भी दो घंटे में जब भी दोनो के बीच कुछ खामोशी रहती तो रिकी किसी सोच में डूब जाता..




"भाई, एक बात बताओ, पर सच बताना प्लीज़ हाँ..." शीना ने दोनो के लिए एक एक सिगरेट सुलगाई और उसके हाथ में पकड़ा दी




"शीना, तुमसे मैं झूठ कब बोलता हूँ.. पूछो, क्या बात है.." रिकी ने घड़ी में समय देखते हुए कहा जिसमे अब सुबह के 4.30 होने वाले थे




"भाई, आप हमेशा किस सोच में खोए रहते हैं.. इतनी देर से देख रही हूँ आपका दिमाग़ रुकने का नाम ही नहीं ले रहा, देखते देखते आप ने 7 सिगरेट ख़तम की और साथ में मुझे भी दी.. ऐसे तो कभी नहीं हुआ, ना ही आप ने मुझे रोका.. अब सीधे सीधे बताओ क्या बात है, झूठ नही कहना.." शीना ने सिगरेट का एक कश लिया और उसके धुएँ का छल्ला बना के हवा मे उड़ाते हुए कहा... शीना की बात सुनकर रिकी फिर यह सोचने लगा कि अब इसे क्या कहे, ना तो वो शीना से झूठ बोल सकता था, और ना ही वो उसे सच बता सकता था.. कुछ देर खामोश रहने के बाद जैसे ही उसने कुछ कहना चाहा के तभी फिर शीना बोल पड़ी




"अब बोलो भी, मार्केट में भी आज खोए हुए थे , और जैसे ही मैने पीछे से आपको टच किया, आप डर गये...." शीना ने बीती शाम की बात रिकी से कही...



"शीना.. आज एक अजीब हादसा हुआ मेरे साथ मार्केट में..." रिकी ने शीना की आँखों में देखते हुए उसे कहा और उसने फ़ैसला कर लिया कि शीना को वो अपना हमराज बनाएगा.. रिकी ने शीना को मार्केट में हुई बात के बारे में बताया. रिकी की बात सुन शीना डरने लगी, क्यूँ कि रिकी को मुंबई में कम लोग जानते थे, तो महाबालेश्वर में भला कोई कैसे जान सकता है... शीना भी रिकी की बात सुन पसीना पसीना होने लगी... उसने जल्दी से अपने और रिकी के लिए सिगरेट जलाई और रिकी की बाहों में समा गयी जैसे एक प्रेमिका अपने प्रेमी की बाहों में जाती है... बिना कुछ कहे, शीना धीरे धीरे रिकी के साथ आगे बढ़ने लगी और नीचे की सीढ़ियों की तरफ चलने लगी.. अभी सुबह के 5 बजे थे, लेकिन ठंड की वजह से अंधेरा काफ़ी था और स्नेहा और सुहासनी भी अपने कमरे से निकले नहीं थे... शीना और रिकी जैसे ही नीचे पहुँचे, शीना ने रिकी को सोफे पे बिठाया और खुद किचन की तरफ बढ़ गयी... करीब 15 मिनट बाद शीना अपने दोनो हाथों में कॉफी के कप और अपनी सिगर्रेट को मूह में दबाए रिकी की तरफ बढ़ी... सोफे पे बैठ के शीना ने अपनी सिगरेट ख़तम की और कॉफी पीने लगी... रिकी ने भी कुछ नहीं कहा, वो भी बस सिगरेट और कॉफी में खोया हुआ था...



"भाई... कोई ऐसा मज़ाक नहीं कर सकता, आइ मीन आपको यहाँ कोई जानता नहीं,यहाँ क्या, मुंबई में भी नहीं जानते काफ़ी लोग तो.. तो फिर यह कैसे हो सकता है..." शीना ने फाइनली सिगरेट का पॅकेट रिकी के हाथ से छीना और उसे अपने हाथ में ले लिया... " अब नो मोरे सिगरेट फॉर आ मंथ.." कहके शीना ने फिर रिकी की आँखों में जवाब पाने की उम्मीद से देखा
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