RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"चलो, अब जाती हूँ उसके पास देखूं क्या कहती है..." कहके सुहानी ने अपना हुलिया ठीक किया और धीरे से राजवीर के कमरे के बाहर झाँका तो वहाँ कोई नहीं था.. जल्दी से वो कमरे के बाहर आके कुछ कदम पीछे गयी, और फिर आगे बढ़ती हुई बोलने लगी..
"ज्योति, बेटी किधर हो... ज्योति..." सुहानी ज्योति के कमरे के पास पहुँची, तो ज्योति ने भी उसकी आवाज़ सुन के जल्दी से अपना कमरा खोला और सुहसनी को सामने खड़ा पाया
"क्या हुआ ज्योति बेटे... इतना जल्दी क्यूँ बुलाया हमे.." सुहसनी ने ज्योति के सर पे हाथ फेर के कहा
"अंदर आइए ताई जी प्लीज़...." ज्योति ने सुहसनी से कहा और दरवाज़ा बंद कर दिया ताकि कोई दूसरा उन्हे डिस्टर्ब ना कर सके...
"ह्म्म्म ,.... तो यह बात है... अब सब से पहले मुझे इस घर की सब कॅमरास निकलवानी पड़ेगी... मैं नहीं चाहती कि मेरे बच्चों के मन पे कोई बुरा असर पड़े, मैं नहीं ठुकराती इस बात को कि तुम्हारा पिता और मेरे बीच में अवेध संबंध है... लेकिन मैने कभी तुम्हारे ताऊ से प्यार नहीं किया, मुझे शादी के लिए जब रिश्ता आया था तब मुझे तुम्हारे पापा के लिए कहा गया था, लेकिन फिर कोई कारण था जिसकी वजह से तुम्हारे ताऊ जी के साथ मेरी शादी हुई..." सुहासिनी आगे कहती उससे पहले ज्योति फिर बोल पड़ी
"कैसे कारण थे, ताई जी... बताइए, मैं जानना चाहती हूँ.." ज्योति की यह बात सुन सुहसनी झेंप गयी, झूठ तो बोल दिया, लेकिन अब इसका क्या कारण दे, यह सोच सोच के वहीं खामोश बैठी रही और बस ज्योति को एक टक देखती रही
"हमारे वक़्त में हम घर वालों से इतने सवाल नहीं पूछते थे, उनका कही हुई बात हमारे लिए हुकुम होता था जिसका पालन बिना किसी आवाज़ के किया जाता था ज्योति.." सुहसनी ने जवाब और ताना, दोनो एक साथ दिया जिसे ज्योति समझ गयी और फिर खामोश हो गयी
"लेकिन इन सब से तुम्हे क्या फरक पड़ रहा है, तुम्हे कभी राजवीर ने एहसास दिलाया कि तुम उसकी अपनी बेटी नहीं हो... कभी उसने ऐसा महसूस करवाया, कुछ ऐसी हरकत की है, तो तुम बेझिझक हमे बताओ, अमर उसकी ऐसी खबर लेंगे के ज़िंदगी भर याद रखेगा वो..." सुहसनी ने जब देखा उसका पासा ठीक पड़ रहा है तो थोड़ा रुबाब दिखाने के चक्कर में उसे यह कहना पड़ा
"नही ताई जी, ऐसा कुछ नहीं, लेकिन एक आखरी सवाल है... आप बुरा नहीं मानेंगी अगर मैं पूछूँ तो..." ज्योति ने सुहसनी से कहा जिसका जवाब सुहसनी ने सिर्फ़ गर्दन हिला के हां में दिया
"ताई जी, आपके और पापा के फिज़िकल रिलेशन्षिप के बारे में है.. पक्का आप बुरा नहीं मानेंगी.." ज्योति ने डरते हुए पूछा, वो जानती थी शायद सुहसनी जवाब ना दे
"पूछो बेटी, मैने कोई ग़लत काम नहीं किया है तो डर कैसा, उल्टा मुझे खुशी है के इस बारे में घर की सबसे सुलझी हुई लड़की को पता चला है, अगर शीना को पता चलता तो वो बेवकूफ़ ना जाने क्या कर देती.. कभी कभी सोचती हूँ के काश शीना भी तेरे जैसी होती, सरल सीधी और सुलझी हुई... खैर, पूछो क्या पूछना चाहती हो..आज मैं नहीं रोकूंगी तुम्हे" सुहानी ने फिर ज्योति के बालों में हाथ घुमाया
"ताई जी, जब आप और पापा फिज़िकल हुए थे, तो पहल किसने की थी... मेरा मतलब, पापा और आप कैसे मिले... और क्या आप लोग पहली बार में ही मतलब, बेड पे... आइ मीन, कोई हिचकिचाहट नहीं थी, सब मर्यादायें तोड़ के आप को ज़रा भी ग़लत नहीं लगा..." ज्योति सॉफ पूछना चाहती थी इसलिए उसकी आवाज़ में किसी प्रकार की हिचकिचाहट नहीं थी, लेकिन शब्दों को ढूँढ नहीं पा रही थी, इसलिए बार बार अटकती, लेकिन उसकी आँखें सुहसनी पे ही टिकी रही..
सुहसनी ने एक लंबी साँस छोड़ी...
"मर्यादा का क्या है बेटी, मर्यादा समाज बनाता है, कुछ खोखले विश्वासों पे, कुछ खोखले रीति रिवाज़ों पे... यह समाज कभी प्यार का मतलब नहीं समझ पाया है, इनके लिए तो प्यार बस एक ऐसी चीज़ है जो बिस्तर पे शुरू होती है, और 10 मिनट में ख़तम... इस समाज को कौन समझाए कि प्यार में दिल हमेशा उसके पास रहना चाहता है जो उसे अच्छा लगता है, प्यार की परिभाषा समाज के लिहाज़ से काफ़ी अलग है, लेकिन वो बस प्रेमी ही जानते हैं कि प्यार क्या है... मुझे आज तक दुख नहीं हुआ कि मैने ऐसा कदम उठाया, पहली नज़र में ही मैने राजवीर को दिल दे दिया था, लेकिन जब हम मिल नहीं पाए, तब राजवीर से ज़्यादा दुख मुझे हुआ था.. लेकिन हम फिर भी समाज की वजह से खामोश रहे, लेकिन किसी को पहेल करनी ही थी, आख़िर कब तक घुट घुट के जीते, एक घर में रह के भी हम अजनबीयों की तरह थे.. मैं ज़्यादा सह नही पाई और मैने राजवीर से इज़हार कर दिया.. लेकिन वो बेचारा मर्यादाओं के तले दबा हुआ हमेशा इस रिश्ते को नकार्ता रहा... जैसे जैसे वक़्त गुज़रा वैसे वैसे मेरा प्यार उसके लिए बढ़ता गया, और उसका मेरे लिए... एक दिन जब हम दोनो से सहा नहीं गया तब हम ने सब सीमायें पार कर दी... इसमे भी पहेल मैने ही की थी, नही तो वो कभी नहीं मानता, वो घुट घुट के जीता रहता लेकिन कभी अपनी भावनाए मुझे नहीं बताता.." सुहसनी ने थोड़ी सी नम आँखों के साथ कहा ताकि ज्योति इसे सच समझ ले.. उसके इस जवाब में एक बात यह थी कि उसने जान बुझ के ऐसा कहा के पहेल उसने की और राजवीर मना करता रहा, ताकि ज्योति उसे अपनी स्थिति से रिलेट कर सके... अब ज्योति के दिमाग़ में बिल्कुल वही ख़याल आया, कैसे उसने राजवीर को बहकने की कोशिश की लेकिन वो नहीं माना...
"यह सब तुमने क्यूँ पूछा मैं नहीं जानती...लेकिन मुझे खुशी है तुमने मुझसे यह सब पूछा.. दिल पर से एक बोझ हल्का हुआ है, हम हमेशा सोचते थे कि कभी अगर हमारे बारे में हमारे बच्चों को पता चला तो वो क्या सोचेंगे, लेकिन तुम्हारी प्रतिक्रिया देख के मैं खुश हूँ कि तुम भले ही हमारे खानदान में नहीं जन्मी, लेकिन राजवीर के संस्कार और उसके जैसे सोचने की काबिलियत है... गर्व है मुझे तुम पे... तुम जितनी राजवीर की बेटी हो, उतनी ही मेरी भी हो..." सुहसनी ने ज्योति का हाथ पकड़ के कहा और कुछ देर बैठ के फिर अपने कमरे की ओर चली गयी...
"अगर मैं पापा से प्यार नहीं करती इसका यह मतलब नहीं कि मैं फिज़िकल नहीं हो सकती... अब मैं जान गयी हूँ के पापा का स्वाभाव ही ऐसा है और मेरी वजह से ही उन्होने झूठ कहा मुझसे, लेकिन जब जब मैने उन्हे अपनी बॉडी दिखाई तब तब उनकी बॉडी ने भी रिएक्ट किया, मतलब ज़रूरत तो उन्हे भी है मेरी, लेकिन कह नहीं पाते बस एक रिश्ते की वजह से.. मैं कभी इस रिश्ते को मजबूरी नहीं बनने दूँगी, चाहे मुझे जो भी करना पड़े, मैं पापा को जिस्मानी तौर पे खुश करना चाहती हूँ अब, चाहे कुछ भी हो जाए,.. और उनकी स्थिति भी ऐसी है, उनके जीवन में कोई औरत भी नहीं है, उनका शरीर देख के लगता है ताई जी उन्हे सॅटिस्फाइ नहीं कर पाती होंगी.. राजस्थान में भी कभी मैने नहीं देखा कि वो किसी औरत को बुरी नज़र से देखते हो... मैं अब उनके करीब जाउन्गी... चाहे कुछ भी हो जाए" सुहसनी के जाते ही ज्योति ने खुद से यह कहा और यह वक़्त था, जब ज्योति के दिल में कोई दो राहे नहीं थी, उसके मन में कोई ग़लत सही की भावनाए नहीं थी... इस वक़्त ज्योति अपने दिल को काफ़ी हल्का महसूस कर रही थी,
इतने दिन से जो ख़याल उसके मन को झींझोड़ रहा था, शायद आज उसका रास्ता उसे मिल गया...
"रिकी, आज मैं तुमसे हमारे क्लाइंट को मिलाना चाहता हूँ, इनकी बेट्टिंग करोड़ से शुरू होती है.. तो हमे यह ख़याल रखना पड़ता है कि यह जीते भी और हारे भी.. समझ गये तुम..." राजवीर और रिकी दोनो बोरीवली जा रहे थे जहाँ उन्हे एक व्यापारी से मिलना था...
"अरे अरे राजवीर सेठ, आइए, और आपके साथ यह कौन.." उस आदमी ने रिकी की तरफ देखते हुए कहा... रिकी और राजवीर बोरीवली के एक जेवेलरी शोरुम में बैठे थे, शोरुम कुछ ज़्यादा बड़ा नहीं था, लेकिन जैसा राजवीर ने कहा, ज़्यादा पैसा ब्लॅक का था इसलिए यह सब दिखाना पड़ता था...
"यह विक्रम का भाई है सेठ जी.. रिकी राइचंद" राजवीर ने रिकी की तरफ इशारा कर के कहा
"आओ आओ भाया, काफ़ी दुख हुआ विकी सेठ के बारे में सुन के... खैर ज़िंदगी चलती का नाम है, बताइए, क्या लाए हैं आज मेरे लिए..... राजवीर बाबू पिछली दो तीन मॅच में काफ़ी हारा है, इस बार कुछ मज़बूत बताइए, तो थोड़ा निकाल सकूँ" सेठ ने उन्हे पानी का ग्लास देते हुए कहा
"क्या सेठ जी, इतना जीते भी तो हैं, हार जीत चलती रहती है, मैने देखी है आप की पोथि, आज तक जितना आप जीते हैं उतना कोई नहीं जीता..." राजवीर ने अपना चश्मा उतार के कहा
"भाया लगाता भी इतनी बड़ी रकम हूँ.. खैर, बताइए, कल किसपे लगाना है, सुना है ऑस्ट्रेलिया मज़बूत नहीं रही अभी, इंग्लेंड पे लगा देते हैं, क्या ख़याल है आपका..." सेठ ने राजवीर की तरफ देख पूछा, राजवीर कुछ कहता उससे पहले रिकी बोल पड़ा..
"सेठ जी, टीम को छोड़िए, खिलाड़ी पे लगाइए... एक रन एक लाख रुपया, चाहे कोई भी टीम जीते, अगर खिलाड़ी मज़बूत आते हैं आपके पास तो आप पक्का जीतेंगे..." रिकी ने राजवीर को रोकते हुए कहा, रिकी की बात सुन राजवीर चोंक गया, वो जानता था कि यह एक किस्म की बेट्टिंग है लेकिन वो लोग इसमे ज़्यादा नहीं पड़ते थे, क्यूँ कि छोटी रकम होती थी.. लेकिन एक रन का एक लाख कर के रिकी ने इसे बड़ा बना दिया...
"भाया, जानता हूँ, बचपन में हम यही खेला करते थे, नो कट करेंगे तब तो फ़ायदा होगा... लेकिन एक लाख की बेट्टिंग मेरे सामने लेगा कौन, आप लोग तो नहीं ले सकते, और आपके क्लाइंट भी काफ़ी बड़े हैं, यह टूची चीज़ों में कौन आएगा.." सेठ ने ऐसी पॉइंट रखी जो एक दम बराबर थी, लेकिन रिकी इसके लिए तैयार था..
"मिस्टर ओबेरॉय सेठ जी.. वो ले लेंगे, मैने उनसे बात की, लेकिन वो यहाँ आ नहीं सकते, इसलिए हम यह काम फोन पे ही कर लेंगे... और क्यूँ कि आपका पहली बार है यह, तो ओबेरॉय जी ने कहा है उन्हे कोई दिक्कत नहीं कि पहला खिलाड़ी आप लें तो.." रिकी ने ऐसी गाजर सेठ को दिखाई जो वो कभी मना नहीं कर सकता था.. इस खेल में रूल बड़ा सिंपल था, दो लोग एक एक कर के खिलाड़ी लेंगे, उन खिलाड़ियों की रन्स को जोड़ लिया जाएगा, जिस की रन्स का टोटल ज़्यादा होगा, उतनी रन्स को लाख गुना बढ़ा दिया जाएगा., जैसे 100 रन तो एक करोड़... और नो कट में अगर एक का टोटल 99 और एक का टोटल 100 हुआ, तो भी 100 रन के ही पैसे मिलेंगे, ना कि एक रन के जो दोनो का डिफरेन्स है... उसपे पहला खिलाड़ी लेने का फ़ायदा देख के सेठ से रहा नहीं गया और उसने हां कर दी.. रिकी ने अपनी जेब से फोन निकाला और ओबेरॉय को फोन कर के सौदा डन किया.. क्यूँ कि सेठ को पहले चान्स मिला था, उसने तीन खिलाड़ी ऑस्ट्रेलिया के और दो इंग्लेंड के लिए थे.. सामने ओबेरॉय ने तीन इंग्लेंड के और दो ऑस्ट्रेलिया के..
"ठीक है सेठ जी, अब आप दोनो राज़ी हैं तो इसमे मैं क्या बोलूं," राजवीर ने फाइनली कहा और रिकी को देखने लगा.. तीनो में कुछ देर और बात हुई और राजवीर और रिकी दोनो निकल गये...
"रिकी, यह ओबेरॉय कौन है, पहले कभी नहीं सुना.." राजवीर ने गाड़ी में बैठ के कहा
"ओबेरोई कोई नहीं है चाचू, हमारे नेटवर्क का एक बुक्की ही था.. बेट ओबेरॉय ने नहीं हम ने खुद ली है" रिकी ने गाड़ी स्टार्ट कर के कहा
"तुम जानते हो, अगर उसकी 300 रन भी हुई, तो कम से कम 3 करोड़ का घाटा होगा, और टेस्ट मॅच में 300 होना कोई बड़ी बात नहीं है..." राजवीर ने इतना कहा ही था कि उसके फोन पे सेठ का फोन आ गया
"भाया, कल भाव खुलते ही 3 करोड़ में ऑस्ट्रेलिया भी खा लेना.. गोरे जीतेंगे..." कहके उस सेठ ने फोन रखा
"ही ईज़ ऑलरेडी हेड्जिंग इट... खिलाड़ी ऑस्ट्रेलिया के और टीम इंग्लेंड.. कहीं ना कहीं तो मुझे देने ही पड़ेंगे रिकी" राजवीर ने धीमी आवाज़ में कहा
"चाचू, उसके खिलाड़ी टॉप 3 बॅट्समेन है ऑस्ट्रेलिया के, तीसरा नंबर नाइट वॉचमन आएगा.. इंग्लेंड पहले बॅटिंग करेगी, करीब 250 पे ऑल आउट होगी जिसमे टॉप 3 बॅट्समेन हमारे हैं.. टॉप 3 का स्कोर करीब 150 होगा, उसके बाद पूरी टीम 100 और करेगी... ऑस्ट्रेलिया बॅटिंग करने आएगी तो टॉप ऑर्डर के दोनो बॅट्समेन 30 के अंदर निपट जाएँगे, तीसरा नाइट वॉचमन आएगा जो 10 से ज़्यादा नहीं करेगा, उसके बाद इन्निंग्स 4त और 5त बॅट्समेन संभालेंगे, वो दोनो करीब 150 करेंगे... स्कोर 180 पे 3, उन दोनो के आउट होते ही टीम 260 पे निपट जाएगी... दूसरी इन्निंग्स में इंग्लेंड 180-190 का टारगेट देगी जिसे ऑस्ट्रेलिया चेस करेगी.. इस लिहाज़ में 300+ रन और 3 करोड़ दूसरे हमे मिलेंगे... और यह खिलाड़ी
हमारे सिर्फ़ पहली इन्निंग्स के हैं, दूसरी इन्निंग में मुझे कुछ नहीं लेना देना... और रही बात सेठ के पैसों की... उसे दूसरी टेस्ट मॅच में 1 करोड़ जितवा देंगे, जिससे वो फिर खिचा हुआ हमारे पास आ जाएगा.." रिकी ने बिना झिझक के अपनी बात कही और नज़रें आगे रखी और गाड़ी दौड़ाता रहा
"तुमने यह सब कब सेट किया, और आगे से मुझे बता देना पहले ..." राजवीर ने रिकी से कहा और उसे घूरता रहा
"चाचू, कल रात ही हुआ यह सब.. और आज सुबह आपको बता दिया, अब से उसी वक़्त बता दूँगा..." रिकी ने फिर जवाब दिया और दोनो खामोशी से आगे चलते रहे...
"आख़िर रिकी ने दो दिन में इतना सब कैसे सीख लिया, अब तक तो उसे इतना किसी ने बताया भी नहीं है... और जहाँ तक मेरा ख़याल है वो क्रिकेट देखता है.. लेकिन उससे आगे कभी कुछ नहीं किया, ना ही मैने या विक्रम ने कभी उसे कुछ कहा, फिर अचानक कैसे..." रात को राजवीर अपने कमरे में बैठे बैठे यह सब सोच रहा था और दारू पी रहा था कि तभी उसके दरवाज़े पे नॉक हुआ
"पापा... कॅन आइ प्लीज़ कम इन.." ज्योति की आवाज़ सुन राजवीर का दिमाग़ फिर आज सुबह हुई बातों में लगा जो उसको सुहसनी ने बताई थी..
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