RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
"यह पढ़ना काफ़ी ज़रूरी है, अगर उस इंसान ने सामने से दिया है तो फिर तो पढ़ना चाहिए.. आइ नो तू कैसा महसूस कर रही है, लेकिन पढ़ के शायद तेरी राय बदल जाए.." ज्योति ने उसे आश्वासन देते हुए कहा
"तू क्यूँ बार बार मुझे उसके पास भेजने की कोशिश कर रही है.. क्या यह सब धोखा नहीं है, जो उसने मेरे साथ किया.. मेरे साथ फिज़िकल हुआ..." आखरी लाइन कहके शीना की आँख फिर भरने लगी
"फिज़िकल तू उसकी मर्ज़ी से हुई थी या अपनी मर्ज़ी से... कहाँ गया वो विश्वास जिससे तूने मुझे अपने रिश्ते के बारे में बताया था, और अगर उसका टारगेट सिर्फ़ फिज़िकल होना होता तो तू ग़लत सोच रही है.. मेरी आँखें कभी धोखा नहीं खा सकती, मैने जब जब उसकी आँखों में देखा तब तब मुझे सिर्फ़ तेरे लिए प्यार ही दिखा, और अगर तुझे उसपे विश्वास नहीं है तो मत कर, लेकिन उसके प्यार को ग़लत कहने का तेरा कोई अधिकार नहीं है.. और यह रिश्ता तुम दोनो की मर्ज़ी से हुआ था ना, क्या उसने कभी तुझे कहा था सामने आके, क्या कभी उसने तुझे यह महसूस करवाया कि तू अकेली है, जबसे वो यहाँ आया है, तब से बस तेरा ख़याल ही है उसके दिमाग़ में, प्रॉपर्टी के पेपर्स देखे बिना उसने सब तुझे लौटा दिया, इससे बड़ा सबूत कोई नहीं दे सकता.. और वैसे भी अब तक की डाइयरी पढ़ के लगा है उसे पैसों की कोई कमी नहीं है, उसकी ज़िंदगी में कमी है बस एक साथी की, वो साथी उसने तुझ में पाया है.." ज्योति ने शीना का हाथ पकड़ उसे समझाया
"मैने रिकी भाई से प्यार किया था हमेशा.. इससे नहीं.." शीना ने अपनी आँखों को झुका के कहा
"अगर यह कभी तुझे बताता ही नहीं कि यह रिकी नहीं है, फिर क्या करती.. ज़िंदगी भर तेरे साथ रिकी बनके रहता, और तू उस झूठ से हमेशा खुश रहती.. उसके लिए यह काफ़ी आसान होता, इसके बावजूद उसने आसान रास्ता नहीं चुना, आदमी कौनसी राह चुनता है उससे उसके चरित्र का पता लगता है.. उसके लिए काफ़ी आसान होता ताऊ जी की प्रॉपर्टी लेके तेरे साथ रहना, पर उसने ऐसा नहीं किया... मुझे लगा था तेरे प्यार में सचाई है.." ज्योति ने शीना से कहके अपना मूह फेर लिया.. काफ़ी देर तक शीना ने ज्योति की इस बात का कोई जवाब नहीं दिया और ज्योति भी उससे मूह फेर के बैठी रही.. एक अजीब सा तनाव था इस खामोशी में.. शीना के कमरे की खिड़की से बहती एक तेज़ हवा और समंदर की लहरों की आवाज़ उस तनाव को और बढ़ा रही थी
"अगर हम आए, तो क्या हमारी फॅमिली को कुछ नहीं होगा" ज्योति ने शीना से चुप के सन्नी को रिप्लाइ किया
"मैं नहीं जानता, शीना को कुछ नहीं होने दूँगा, बस यह जानता हूँ" सन्नी ने जवाब दिया
"आगे पढ़ना है मुझे..." शीना ने रूम में फेली खामोशी को चीरते हुए अपनी रुआंसी सी आवाज़ में कहा, ज्योति ने बिना कोई जवाब दिए मोबाइल छिपाया और डाइयरी की तरफ मूह किया और शीना से नज़रें चुरा के डाइयरी में आगे पढ़ने लगी
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"पॅसेंजर्स प्लीज़ टेक आ नोट दट वी आर लॅंडिंग इन लंडन.. करेंट्ली वी आर फ्लाइयिंग अट आ हाइट ऑफ 30000 फीट अबव सी लेवेल.. वी आर एक्सपेक्टेड तो लंड इन 10 मिन्स, दा करेंट टेंपरेचर इन लंडन इस 10 डिग्री सेल्सीयस.. थॅंक यू.." इस अनाउन्स्मेंट से जब मेरी नींद खुली तो पता चला कि बस कुछ ही देर में फ्लाइट लंड होने वाली है.. बिज़्नेस क्लास में फ्लाइ करने का सबसे मज़ेदार हिस्सा यह है कि अगर आप गेम खेलते खेलते सो भी गये तो एर होस्टेस्स बड़े ही प्यार से आपके उपर कंबल डाल के आपकी कॅबिन लाइट्स स्विच ऑफ भी कर देती है..
"गुड ईव्निंग सर.. होप यू हॅड आ प्लेज़ेंट फ्लाइट वित अस.." एर होस्टेस्स ने मुझे जैसे ही देखा तो ग्रीट करने आई
"ओह.. यस, इट वाज़ वंडरफुल.. बाइ दा वे, कॅन आइ प्लीज़ गेट आ कप ऑफ कॉफी.." मैने आँखें सॉफ कर के कहा
"आम अफ्रेड सर, वी आर नोट सर्विंग एनितिंग नाउ.. वी आर अबाउट टू लॅंड..."
"ओह... नो इश्यूस देन, " मैने एयिर्हसटेस्स से कहा और वॉलेट निकाल के पैसे देखे तो एग्ज़ॅक्ट 297 पाउंड्स थे मेरे पास.. मैने नोट गिने और सोचने लगा, पता नहीं कॉफी साली कितने की होगी.. होशयारी मार के साला आ तो गये, लेकिन फीस कैसे भरुन्गा, उपर से अभी कॉलेज भी दो दिन बाद है, तब तक हॉस्टिल में रहने का जुगाड़ भी बिठाना है...
"सर..." एयिर्हसटेस्स ने धीरे से कहा , मैने उसकी तरफ देखा तो उसके हाथ में हॉट चॉक्लेट देख आँखों में चमक आ गयी
"थॅंक्स, आइ थॉट यू वर नोट सर्विंग.."
"नो प्राब्लम, आइ सॉ यू गोयिंग थ्रू युवर वॉलेट.. हॅव आ गुड स्टे हियर.." एयिर्हसटेस्स ने स्माइल कर कहा और अपने काम में लग गयी..
"थॅंक्स आ लॉट..." मेरी बात सुनने से पहले वो निकल गयी और मैं आराम से अपनी कॉफी पीने लगा.. 2 मिनिट हुए थे कि फ्लाइट लॅंड हो गयी..
वर्ल्ड'स मोस्ट बिज़ियेस्ट एरपोर्ट.. हीतरो लंडन.. एरपोर्ट पे कदम रखते ही एक अलग किस्म की एनर्जी शरीर में पैदा हुई, दुनिया के हर कोने के लोग दिखने लगे, इंडियन्स, पाकिस्तानी, अमेरिकन्स, आइरिश.. जितने भी देश दिमाग़ में आ सकते हैं, वो सब.. इस टर्मिनल से उस टर्मिनल, तो कभी उस टर्मिनल से इस टर्मिनल.. मैं तो टर्मिनल 4 पे था लेकिन सोच रहा था कि कॉलेज अभी जाउ या तोड़ा टाइम इधर नज़दीक में घूम लूँ.. भीड़ इतनी के पैर रखने की जगह नहीं थी, एरपोर्ट नहीं , ऐसा लग रहा था मानो बोरीवली स्टेशन पे खड़ा हूँ..
"फ्लाइट नंबर आक्स 321 गोयिंग टू आइयर्लॅंड.... फ्लाइट नंबर आई671 गोयिंग टू देल्ही इंडिया... फ्लाइट नंबर आ212 गॉईज्ञ टू केप टाउन..." इन सब अनाउन्स्मेंट्स को सुन सुन के दिमाग़ भी खराब होने लगा था, आस पास देखा तो कोई गाज़ेटेड ऑफीसर भी नहीं दिख रहा था.. मैं लगेज बेल्ट के पास गया और अपने समान का वेट करने लगा, जैसे जैसे बॅग्स स्टार्ट हुए, वैसे वैसे मेरे आस पास खड़े लोग भी कम होने लगे.. लगेज बेल्ट के उपर लगी घड़ी में वक़्त देखा तो शाम के 6 बज रहे थे
"बॅग आ जाए तो सबसे पहले बाबा और ऋतु को फोन कर दूं, अभी तो वहाँ 11.30 ही हुए होंगे.." मैने खुद से कहा और बॅग्स देखने लगा
"एक्सक्यूस मी..." मेरे पीछे से किसी ने कंधे पे हाथ रखा तो बॅग उठा के उसकी तरफ मुड़ा
"प्लीज़ कम वित अस, वी नीड टू चेक यू आंड युवर बॅग्स.." उस ऑफीसर ने कहा और अपने साथ 2 लोगों को इशारा कर मुझे लाने को कहा.. पहली बार बाहर आया और आते ही चेकिंग.. मैने खुद से कहा और चेहरे पे आया पसीना पोंछ के उनके पीछे चलने लगा..
"सो यूआर ट्रॅवेलिंग फ्रॉम इंडिया फॉर युवर स्टडीस..." ऑफीसर ने मुझसे पूछा जब उसके हाथ में मेरा पासपोर्ट और दूसरे कुछ डॉक्युमेंट्स थे जो मुझे कॅरी करने ज़रूरी थे
"यस सर.." मैने सिर्फ़ इतना कहा और उसकी कॅबिन से बाहर की भीड़ को देखने लगा, लोग अभी भी भाग रहे थे, कोई फ्लाइट पकड़ने को, तो कोई अपनी टॅक्सी के लिए.. कॅबिन से बाहर देखते देखते मेरी नज़र टीवी पे आ रही एक आड़ पे पड़ी जिससे पढ़ के मेरी आँखें बड़ी हो गयी
"ओके.. यू कॅन गो.." ऑफीसर ने एक घंटे बाद मुझे मेरा पासपोर्ट पकड़ाया और बॅग वापस किया
"उः... थॅंक यू, बाइ दा वे, हाउ डू आइ रीच ओल्ड ट्रॅफर्ड फ्रॉम हियर.." मैने अपने पासपोर्ट को बॅग में रख कर कहा
"बट युवर कॉलेज ईज़ वॉटरलू, 17 माइल्स फ्रॉम हियर.. व्हाई डू यू वॉंट टू गो ओल्ड ट्रॅफर्ड.." ऑफीसर ने फिर बड़ी आँखें कर पूछा
"ओह, आइ आम आ कीन फॉलोवर ऑफ एमयू सिटी, आंड दे हॅव आ मॅच वित आर्सेनल टुनाइट.. सो आइ वॉंट टू . तट.." मैने टीवी की तरफ इशारा कर कहा
"ओके, यू टेक आ एग्ज़िट फ्रॉम टर्मिनल 4, गेट आउट, कॅच आ टॅक्सी आंड मूव टू दा लोकल स्टेशन.. कॅच ट्रेन टू ओल्ड ट्रॅफर्ड आंड मूव टू स्टेडियम.." ऑफीसर ने यह कहके फिर एक मॅप पकड़ाया जिसमे ट्रेन के हर रूट और हर टॅक्सी का गाइडेन्स था
"थॅंक्स आ लॉट.. फॉर दिस.." मैने मॅप को पकड़ा और टर्मिनल 4 से एग्ज़िट ले ही रहा था कि एग्ज़िट के पास फोन बूथ था
"ऋतु को कॉल करता हूँ.." मैने खुद से कहा और कुछ चेंज डाल के ऋतु को फोन किया
"सन्नी, तुम ठीक ठाक पहुँच गये.." ऋतु ने एक ही रिंग में फोन उठा के कहा
"हां जी मैं पहुँच गया, " मैने बस इतना ही कहा कि सामने से फिर बाबा की आवाज़ आई
"ठंड कितनी है उधर, और तेरे पास जॅकेट है ना.." बाबा चिल्ला चिल्ला के पूछ रहा था. एक तो आज तक यह समझ नहीं आया कि इंटरनॅशनल कॉल में हमारी आवाज़ खुद ब खुद उँची क्यूँ हो जाती है,
"अरे धीरे बोलो ना, हां ठंड है, टेंपरेचर शायद 10-11 के पास है, जॅकेट तो..." मैने बस इतना ही कहा तो याद आया, जॅकेट तो ली ही नहीं
"जॅकेट नहीं है ना तेरे पास... मैं जानता था तू कुछ भी नहीं ले गया.. अब क्या करेगा, इतनी ठंड में कुलफी हो जाएगी, उपर से पैसे भी नहीं हैं.. एक काम कर, अभी एरपोर्ट से निकल और साउत लंडन की तरफ जा.. वेंबले, अभी वहाँ के वेस्टर्न यूनियन से पैसे ले लेना, मैं भेज रहा हूँ कुछ देर में.." बाबा ने फिर चिल्ला के कहा
"ओफफो... चिल्लओ नहीं कहा ना, और अभी आपके वहाँ 12 बज रहे हैं, अभी कैसे पैसे दोगे, आंड एनीवेस, मुझे आपके पैसे नहीं चाहिए... मैं खुद कर लूँगा कुच्छ.. आप फिलहाल अम्मी को फोन दो.." मैने फोन का रिसीवर दूर कर कहा
"हां बेटे बोलो, सब ठीक है ना.." ऋतु ने प्यार से कहा
"हाश, आप ने नहीं चिल्लाया, हां जी सब ठीक है, चिंता ना करें.. अच्छा अब सुनिए, मेरे पास ना कुल 294 पाउंड्स बचे हैं, तो मैं कॉलेज जाने के पहले फुटबॉल मॅच देखने जा रहा हूँ.. आप प्लीज़ यह अपने पति को नहीं बताना, और पैसों का बंदोबस्त मैं कुछ कर लूँगा... मैं आपको आपके टाइम के हिसाब से सुबह 8 बजे फोन करूँगा अब, ओके ना.."
"हां बेटे आराम से जाओ, पैसों की चिंता नहीं करो, बस ख़याल रखना.. और कल तुम्हारे मम्मी पापा के पास हम जाएँगे, तो तुम 10 बजे फोन करना, उनसे भी बात कर लेना.." ऋतु ने बड़े प्यार से समझाते हुए कहा लेकिन अनाउन्स्मेंट्स की वजह से मुझे कुछ सुनाई नई दे रहा था, इसलिए सिर्फ़ हां हां बोलके फोन रख दिया और टर्मिनल से एग्ज़िट ले लिया..
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