Baap Beti Chudai बाप के रंग में रंग गई बेटी
09-21-2018, 01:47 PM,
#21
RE: Baap Beti Chudai बाप के रंग में रंग गई बेटी
मनिका को लेग्गिंग पहन कर बाहर आने में थोड़ा वक्त लग गया था. खड़े-खड़े इतनी पतली पजामी पैरों में पहनने में उसे थोड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी. तब तक जयसिंह ने भी अपनी सेफ साइड रख ली थी. मनिका ने ऊपर से एक टी-शर्ट डाली और इस बार बिना आईना देखे ही बाहर आ गई. जयसिंह, जो अभी उसकी गांड को अपने मन से निकालने की कोशिश करने में लगे ही थे, पर कहर बरप पड़ा था.

एक तो जयसिंह ने पहले ही लेग्गिंग दो साइज़ छोटी ले कर दी थी उस पर उसका कपड़ा बिल्कुल झीना था तिस पर उसका रंग भी लाइट-स्किन कलर जैसा था; और मनिका यह सब बिन देखे ही बाहर निकल आई थी.

जयसिंह के बदन में करंट दौड़ने लगा था, लेग्गिंग्स के रंग की वजह से उसके कुछ भी न पहने हुए होने का आभास होता था व मनिका के अधो-भाग का एक-एक उभार नज़र आ रहा था. जयसिंह को अभी तक तो अपनी बेटी के कपड़ों में से उसकी जाँघों और नितम्बों का ही दीदार अच्छे से होता आया था लेकिन यह लेग्गिंग्स इतनी ज्यादा टाइट कसी हुई थी कि उसकी टांगों के बीच का फासला 'ᴨ' भी नज़र आने लगा था. कपड़ा पूरी तरह से उसकी जाँघों और योनि पर चिपक गया था और मनिका की योनि का उभार साफ़ दिख रहा था.

'कैसी लग रहीं है पापा?' मनिका चहकते हुए बाहर आई थी.

'उह्ह ह...’ जयसिंह ने कुछ शब्द निकालने का प्रयास किया था पर सिर्फ आह ही निकल सकी.

मनिका उनके पास आ पहुंची थी. जयसिंह को इस बार पहले से ही इल्म था की कहाँ-कहाँ ध्यान से देखने पर मनिका के जिस्मानी जादू का लुत्फ़ उठाया जा सकता है. उनकी नज़र सीधी उसके प्राइवेट पार्ट्स (गुप्तांग) पर जा टिकीं थी और उसके करीब आते-आते उन्हें उसकी पहनी हुई पैंटी के रंग और साइज़ का पता चल चुका था. उसने आज अपनी स्काई-ब्लू रंग वाली अंडरवियर पहन रखी थी. मनिका की उभरी हुई योनि देख जयसिंह वैसे ही आपा खो रहे थे जब मनिका उनके ठीक सामने आ कर खड़ी हो गई थी,

'बताओ न पापा?'

'बहुत...बहुत अच्छी ल...लग रही है...’ जयसिंह ने तरस कर कहा. अपने लंड को काबू करने की उनकी सारी कोशिशें बेकार जा चुकीं थी.

मनिका उनकी गोद में आ बैठी, जयसिंह को अपनी बेटी की कच्ची सी योनि अपनी जांघ पर टिकती हुई महसूस हुई थी, उनकी रूह कांप गई थी.

'ओह मनिका यू आर सो ब्यूटीफुल...' उनके मुहँ से निकला.

'इश्श पापा. यू आर मेकिंग मी शाय (शरम)...’मनिका ने मुस्काते हुए जवाब दिया 'इतनी भी सुन्दर नहीं हूँ मैं...मुझे बहलाओ मत...’

'तुम्हें क्या पता?' जयसिंह ने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा और उस दिन ट्रेन वाली तरह अपना दूसरा हाथ उसकी जांघ पर रख लिया. मनिका की योनि का आभास उन्हें पागल किए जा रहा था. 'आज तो रेप होगा मुझसे लग रहा है..!' जयसिंह ने मन ही मन अपनी लाचारी व्यक्त की थी.

असल में मनिका को भी जयसिंह की तारीफ़ बहुत भायी थी. एक बात और थी जिसने आज मनिका को अपनी ये फैशन परेड करने के लिए उकसाया था लेकिन जिसका भान अभी उसके चेतन मन को नहीं हुआ था; पिछली रोज जब जयसिंह टी.वी. में दिखाई जा रही लडकियाँ ताड़ रहे थे तो मनिका ने नोटिस कर लिया था व उन्हें छेड़ा था. उस बात ने भी उसके आज के फैसले में कहीं ना कहीं एक भूमिका निभाई थी.

जयसिंह उसकी जांघ सहलाना शुरू कर चुके थे.

'पापा फ़ोन दो ना. पिक्स देखते हैं..’मनिका बोली.

जयसिंह ने उसकी जांघ से हाथ हटा अपने बाजू में रखा फ़ोन उठा कर उसे पकड़ा दिया और फिर से उसकी जाँघों पर हाथ ले गए. मनिका फ़ोन की फोटो-गैलरी खोल जयसिंह की ली हुई तस्वीरें देखने लगी. शुरुआत की कुछ फोटो देख वह बोली,

'पापा! कितनी अच्छी पिक्स क्लिक की है आपने...एंड ये ड्रेसेस कितनी अमेजिंग लग रही है ना?' उसने जयसिंह और अपनी, दोनों की ही तारीफ़ करते हुए पूछा था. जयसिंह ने तो हाँ कहना ही था, उनका खड़ा हुआ लिंग भी उनके अंडरवियर में कसमसा कर हाँ कह रहा था.

फिर आगे मनिका की पार्टी-ड्रेस वाले फोटो आने शुरू हो गए, इस बार वह झेंप गई. जयसिंह ने फोटो भी ज्यादा ले रखे थे सो उन्हें आगे कर-कर देखते हुए उसकी झेंप शरम में तब्दील होती जा रही थी. उसने एक फोटो पर रुकते हुए डिलीट-बटन दबाया था, जयसिंह ने तपाक से पूछा कि वह क्या कर रही है? तो उसने थोड़ा सकुचा कर कहा कि वे फोटोज़ ज्यादा अच्छे नहीं आए थे, उसका मतलब था कि उनमें उसके पहने अंडर-गारमेंट्स का पता चल रहा था.

मनिका ने एक दो फोटो ही डिलीट किए थे कि जयसिंह के फ़ोन पर एक बार फिर से रिंग आने लगी, ऑफिस से माथुर का फ़ोन था.

'ओहो आज तो कुछ ज्यादा ही कॉल्स आ रहीं है आपको..!' मनिका ने झुंझला कर कहा.

'बजने दो...अभी तो बात की थी...’ जयसिंह ने कहा, उनका चेहरा अब मनिका के बालों के पास था और वे उनकी भीनी-भीनी खुशबू में खोए थे. मनिका ने फ़ोन के अपने आप डिसकनेक्ट हो जाने तक इंतज़ार किया और फिर से उन पिक्स को डिलीट करने लगी जो उसे ज्यादा ही रिवीलिंग लगीं थी. बैक-अप ले चुके जयसिंह बेफिक्र थे. फ़ोन एक बार फिर से बजने लगा.

'हाँ माथुर बोलो?' जयसिंह ने तल्खी से पूछा. उन्होंने मनिका को एक बार फिर से कॉल न उठाने को कहा था लेकिन फ़ोन डिसकनेक्ट होते ही वापस रिंग आने लग गई थी.

उनके सेक्रेटरी ने उन्हें बताया की उनका एक बहुत बड़ा क्लाइंट जो पिछले कुछ दिनों से उनसे बात करने के लिए रोज कॉल कर रहा था, वह भी अभी दिल्ली में था. उसने जब आज फिर से कॉल किया तो उनके सेक्रेटरी ने उसको जयसिंह के दिल्ली गए होने की सूचना दी थी, जिस पर उसने उससे मीटिंग फिक्स करने के लिए कहा था और इसी बाबत उनका सेक्रेटरी उन्हें कॉल पर कॉल कर रहा था.

जयसिंह सोच में पड़ गए. यह क्लाइंट बहुत बड़ी आसामी थी और उनकी कंपनी की बैलेंस-शीट में मौजूद बड़े नामों में से एक था, मीटिंग करनी जरूरी थी; उन्होंने सेक्रेटरी से मीटिंग फिक्स कर उन्हें कॉल करने को कहा. अचानक घटनाक्रम में हुए परिवर्तन ने एक बार फिर उनके हवस के मीटर की सुई को चरम पर पहुँच कर टूटने से बचा लिया था,

'कुछ करना पड़ेगा...जल्द.' जयसिंह ने सोचा और मनिका से बोले,

'जाना पड़ेगा मुझे...एक क्लाइंट यहाँ आया हुआ है.' जयसिंह ने मनिका से कहा.

'बट पापा! वी आर ऑन अ हॉलिडे ना?' मनिका ने बेमन से कहा.

'येस डार्लिंग आई क्नॉ बट ये काफी मालदार क्लाइंट है...इसी जैसों से तो तुम्हारी शॉपिंग पूरी होती है.' जयसिंह ने उसके गाल सहला उसे बहलाया 'चलो गेट उप नाओ, मुझे रेडी भी होना है.' जयसिंह ने आगे कहा था और अभी भी काम-वासना के वशीभूत अपने हाथ से, उनकी जांघ पर बैठी हुई मनिका को उठाने के लिए, उसके नितम्ब पर हल्की सी थपकी दे दी थी.

'आउच...ओके-ओके पापा.' मनिका को उनके इस स्पर्श का अंदेशा नहीं था और वह उचक कर खड़ी हो गई थी, जयसिंह ने बिल्कुल भी ऐसा नहीं दर्शाया कि उन्होंने कोई गलत या अजीब हरकत कर दी हो और उठ कर मीटिंग के लिए तैयार होने चल दिए.

मनिका को अपनी गांड में एक हल्की सी तरंग उठती महसूस हुई थी और वह कुछ पल वैसे ही खड़ी उनको जाते हुए देखती रही थी.

***

जयसिंह रात को लेट वापस आए थे. उन्होंने मनिका को कॉल करके बता दिया था कि आज उन्हें आने में देर हो जाएगी, उनके क्लाइंट ने उन्हें अपने एक-दो जानकार इन्वेस्टर्स से मिलवाया था और निकट भविष्य में जयसिंह को उनसे एक बड़ी डील होती नज़र आ रही थी. मीटिंग से निकल उन्होंने माथुर को फ़ोन कर आज की अपनी मीटिंग का ब्यौरा दिया था और जल्द से जल्द अपने नए क्लाइंट्स के लिए एक पोर्टफोलियो तैयार करने को कहा था.

'अब तो दिल्ली चक्कर लगते रहेंगे...’ वे फ़ोन रखते हुए बोले थे.

जब तक जयसिंह अपने हॉटेल रूम में पहुँचे थे मनिका सो चुकीं थी. जयसिंह ने भी बाथरूम में जा कर चेंज किया और आकर लेट गए, 'हे भगवान् ये डील फाइनल हो जाए तो मजा आ जाए.' उन्होंने प्रार्थना की, उनके दीमाग में आज की उनकी बिज़नस मीटिंग के विचार उठ रहे थे. काफी पैसा आने की सम्भावना ने मनिका पर उनका ध्यान अभी जाने नहीं दिया था, पर फिर उन्होंने करवट बदली और उनके विचार भी बदल गए 'और ये डील हो जाए तो डबल मजा आ जाए...’उन्होंने अपनी बेटी के जिस्म की तरफ हाथ बढ़ाते हुए सोचा.

जयसिंह ने शुक्र मनाया कि उन्होंने हाथ मनिका के गाल पर रख उसे सहलाया था. मनिका अभी पूरी तरह से नींद में नहीं थी और उनका स्पर्श पाते ही उसने आँखें खोल लीं थी.

'आह...पापा? आ गए आप?' उसने अंगडाई लेते हुए पूछा.

'हाँ...सोई नहीं अभी तक?' जयसिंह उसे जागती हुई पा कर थोड़ा घबरा गए थे.

'उहूँ...बस नींद आने ही लगी थी आपका वेट करते-करते...’ मनिका ने नींद भरी आवाज़ से कहा.

'ह्म्म्म...वो मीटिंग जरा देर तक चलती रही सो लेट हो गया.' जयसिंह ने बताया.

उनींदी हुई मनिका से कुछ देर बात करने के बाद जयसिंह ने उसे सो जाने को कह और एक बार फिर से लाइट ऑफ कर दी थी. मनिका अभी सोई नहीं थी और आज वे भी थक चुके थे, सो उन्होंने भी अपने सिर उठाते लंड को हल्का सा दबा कर शांत करने का प्रयास किया था और कुछ ही देर में उनकी आँख लग गई थी.

जयसिंह सपना देख रहे थे; सपने में वे एक बिज़नस मीटिंग में बैठे थे और एक बेहद बड़ी डील साईन करने के लिए निगोशिएट कर रहे थे. उन्हें आभास हो रहा था जैसे उनके साथ उनका सेक्रेटरी और ऑफिस के कर्मचारी कागजात लेकर बैठे हुए हैं और काफी गहमा-गहमी का माहौल है लेकिन जयसिंह किसी का भी चेहरा साफ-साफ़ नहीं देख पा रहे थे. कुछ देर इसी तरह सपना चलता रहा जब आखिर सामने बैठा क्लाइंट डील साईन करने को राजी हो गया और उसने उठते हुए उनसे हाथ मिलाया. जयसिंह ने भी उठ कर हाथ आगे बढाया था लेकिन अब उनके सामने क्लाइंट की जगह मनिका खड़ी थी और मुस्का रही थी, 'आई अग्री (मान जाना) पापा..!’सपने वाली मनिका ने कहा, उसने एक छोटी सी काली ड्रेस पहन रखी थी. जयसिंह ने नीचे देखा और पाया कि वे खुद नंगे खड़े थे और उनका लंड खड़ा हो कर हिलोरे ले रहा था, तभी मनिका ने हाथ बढ़ा कर उसे पकड़ लिया; जयसिंह की आँख खुल गई, उनका हाथ पजामे के अन्दर लंड को थामे हुए था और उनके दिल की धड़कनें बढ़ी हुईं थी.

जयसिंह ने खिड़की की तरफ देखा और पाया कि बाहर अभी भी अँधेरा था, उन्होंने सिरहाने रखे फ़ोन में वक्त देखा. सुबह के ४ बजने वाले थे. उन्होंने मनिका की तरफ देखा, वह पेट के बल लेटी सो रही थी. उनका लंड अभी भी उनके हाथ में था पर मनिका को सोते हुए पा कर भी उन्होंने उसे छूने की कोशिश नहीं की थी. वे लेटे-लेटे सोचने लगे,
'उफ़...अब तो साली के सपने भी आने लगे हैं. बड़ी जालिम है इसकी जवानी...पर कुछ होता दिखाई नहीं देता, इसके सिर पर तो दोस्ती का भूत सवार है और मेरे लंड पर इसकी ठुकाई का. दोनों के बीच मेरी बैंड बजी रहती है. क्या करूँ समझ नहीं आता...आज आखिरी दिन है, कल तो चिनाल का इंटरव्यू होगा.' जयसिंह अपनी लाचारगी पर तरस खाते हुए मनिका की उभरी हुई गांड देख रहे थे. 'हर तरह से इसे बहला चुका हूँ...पर आगे दीमाग में कोई तरकीब आ ही नहीं रही है...' कुछ पल इसी तरह फ्रस्टरेट होते रहने के बाद उनके लंड ने एक जोरदार हिचकोला खाया. यकायक जयसिंह के चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी, 'आह ये मैंने पहले क्यूँ नहीं सोचा...दीमाग नहीं...अब लंड की बारी है...'

जयसिंह ख़ुशी-ख़ुशी सो गए, आर या पार की लड़ाई का वक्त आ चुका था.
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09-21-2018, 01:48 PM,
#22
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सूरज निकल आने के साथ ही जयसिंह और मनिका भी उठ गए थे. उन्होंने अपनी दिनचर्या के काम निपटाए और मनिका के कहने पर नाश्ता कमरे में ही मंगवा लिया. मनिका को भी अगले दिन का अपना इंटरव्यू नज़र आने लगा था और जयसिंह को अपनी बुद्धिमता के लाख उदाहरण देने के बावजूद अब वह भी कुछ नर्वस हो गई थी. उसने अपने पिता से कहा कि आज वह इंटरव्यू के लिए पढ़ कर थोड़ा रिवीजन करने का सोच रही थी सो अगर उन्हें भी अपने बिज़नस का कोई जरूरी काम हो तो वे बेफिक्र कर सकते हैं. जयसिंह ने मुहँ-अँधेरे आँख खुलने पर जो तरकीब सोची थी उसे इस्तेमाल करने की हिम्मत अभी तक नहीं बाँध सके थे. उस वक्त तो नींद में उन्होंने फैसला कर लिया था लेकिन सुबह मनिका के उठ जाने के बाद उनका असमंजस और व्याकुलता बढ़ गए थे. एक मौका आ कर हाथ से निकल भी चुका था. उन्होंने मनिका की बात पर सहमत होते हुए कहा कि वैसे तो आज वे फ्री थे और रूम में ही रहेंगे बट अगर कोई काम आन पड़ता है तो शायद उन्हें जाना पड़ जाए.

नाश्ता करने के बाद मनिका अपनी किताबें ले कर बैठ गई और जयसिंह कुछ देर कमरे में इधर-उधर होने के बाद उस से पूल खेलने जाने का बोल कर नीचे चले गए. कुछ घंटों बाद उन्होंने रूम में कॉल कर के मनिका को नीचे लंच के लिए बुलाया, जब वे खाना खत्म कर चुके तो जयसिंह के आग्रह के बाद भी मनिका उनके साथ पूल एरिया में न जा कर पढ़ने के लिए रूम में लौट गई थी.

जयसिंह शाम हुए रूम में लौट कर आए. वे बहुत खुश नज़र आ रहे थे, उनको इस कदर मुस्काते देख बेड पर किताब लिए बैठी मनिका ने उन्हें छेड़ते हुए पूछा,

'क्या हुआ पापा? बड़ा मुस्कुरा रहे हो आज तो...कोई गर्लफ्रेंड बना आए हो क्या?'

'हाहाहा...नहीं-नहीं कहाँ गर्लफ्रेंड...पर हाँ अपनी एक गर्लफ्रेंड की शॉपिंग का जुगाड़ कर आया हूँ...' जयसिंह ने भी हँस कर उसे आँख मार दी थी, उनका इशारा मनिका की तरफ ही था.

'हाहाहा...ये बात है? मुझे भी बताओ फिर तो...’मनिका ने किताब एक तरफ रखते हुए पूछा.

जयसिंह ने उसे बताया कि आज वे पूल में जीत कर आए हैं और जीत की राशि उनके हारे हुए अमाउंट के दोगुने से भी ज्यादा थी व उसे चेक दिखाया. मनिका भी खुश हो गई थी. मनिका ने बताया कि उसने तो बस पढाई ही करी थी दिन भर और अब उसे नींद आ रही थी. जयसिंह ने डिनर भी रूम में ही मंगवा लेने का सुझाव दिया.

खाना खा लेने के बाद मनिका नहाने चली गई और जयसिंह बेड पर बैठ सोच में डूब गए, 'क्या वे यह कर सकेंगे?' कुछ पल बैठे रहने के बाद वे उठे और जा कर सूटकेस में रखे अपने शेविंग-किट में से एक छोटी सी बोतल निकाल लाए.

उनका दिल जोरों से धड़क रहा था.

मनिका नहाते वक्त अगले दिन की टेंशन में डूबी थी. उसके पापा आज पूल में जीत कर आए थे इस बात से वह खुश भी थी लेकिन इतने दिन दिल्ली की हवा लग जाने के बाद अब उसे यह डर सता रहा था कि अगर उसका सेलेक्शन नहीं हुआ तो उसे वापस बाड़मेर जाना पड़ सकता है 'अगर कल मेरा सेलेक्शन नहीं हुआ तो पापा से बोलूंगी कि यहीं किसी और कॉलेज में एडमिशन लेना है मुझे...वापस तो मैं भी नहीं जाने वाली.' उसने सोचा था और नहा कर बाथरूम से बाहर निकली. जयसिंह रोज की तरह सामने काउच पर ही बैठे थे. टी.वी चल रहा था.

मनिका को जैसे काटो तो खून नहीं, उसका दिल, दीमाग और तन तीनों चक्कर खा गए थे.

जयसिंह ने अपने किट से तेल की शीशी निकाली थी और बेड पर आ बैठे थे. फिर उन्होंने अपनी पेंट और अंडरवियर निकाल दिए व हाथों में तेल लेकर अपने काले लंड पर लगाने लगे, लंड तो पहले से ही खड़ा था, अब तेल की मालिश से चमकने लगा था. उस सुबह नहाते वक़्त जयसिंह ने अपने अंतरंग भाग पर से बाल भी साफ़ कर लिए थे, सो उनके लंड के नीचे उनके अंडकोष भी साफ नज़र आ रहे थे. कुछ देर अपने लंड को इसी तरह तेल पिलाने के बाद जयसिंह ने उठ कर अलमारी में रखे एक्स्ट्रा तौलियों में से एक निकाल कर लपेट लिया और अपनी उतारी हुई पेंट और चड्डी को सूटकेस में रख दिया. तेल की शीशी को भी यथास्थान रखने के बाद वे काउच पर जा जमे और मनिका के बाहर आने का इंतज़ार करने लगे थे.

मनिका जब नहा कर बाहर आई तो अपने पिता को काउच पर बैठ टी.वी देखते पाया. वे ऊपर तो शर्ट ही पहने हुए थे लेकिन नीचे उन्होंने एक टॉवल लपेट रखा था और पैर पर पैर रख कर बैठे थे. टॉवल बीच से ऊपर उठा हुआ था और उनकी टांगों के बीच उनका 'डिक!' नज़र आ रहा था. मनिका की आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा.

मनिका ने अपनी सहेलियों के साथ गुपचुप खिखीयाते हुए एक दो पोर्न फ़िल्में देखीं हुई थी लेकिन असली लंड से उसका सामना पहली बार हुआ था और वह भी उसके पिता का था. जयसिंह के भीषण काले लंड को देख उसका बदन शरम और घबराहट से तपने लगा था.

'बस अभी नहाता हूँ...' जयसिंह ने मनिका की तरफ एक नज़र देख कर कहा. उनका हाल भी मनिका से कोई बेहतर नहीं था, दिल की धड़कने रेलगाड़ी सी दौड़ रहीं थी. लेकिन उन्होंने अपनी पूरी इछाश्क्ति से अपने चेहरे के भाव नॉर्मल बनाए रखे थे. मनिका के चेहरे का उड़ा रंग देख उन्होंने झूठी आशंका व्यक्त की, 'क्या हुआ मनिका?'

'क...क...कुछ...कुछ नहीं...पापा...’ मनिका ने हकलाते हुए कहा और पलट कर बेड की तरफ चल दी.

जयसिंह उसे जाते हुए देखते रहे, उसकी पीठ उनकी तरफ थी और उसने अपना सूटकेस खोल रखा था, जयसिंह ने अपनी नज़रें टी.वी पर गड़ा लीं, उसी वक्त मनिका ने एक बार फिर उन्हें पलट कर देखा. जयसिंह अपनी बेटी के सामने अपने आप को यूँ एक्सपोस (दिखाना) करने के बाद थोड़े और बोल्ड हो गए थे, हालाँकि डर उन्हें भी लग रहा था कि कहीं कुछ उल्टा रिएक्शन ना हो जाए उसकी तरफ से,

'मनिका!?' उन्होंने पुकारा.

'ज...जी पापा?' मनिका ने थोड़ा सा मुहँ पीछे कर के पूछा. उसकी आवाज़ भर्रा रही थी.

'ये मेरा फ़ोन चार्ज में लगा दो जरा...' जयसिंह ने अपना फ़ोन हाथ में ले उसकी तरफ बढ़ाया.

'जी...हाँ अभी...अभी लगाती हूँ...पापा...’ मनिका ने उनकी तरफ देखा और एक बार फिर से सिहर उठी.

थोड़ी हिम्मत कर मनिका पलटी और बिना जयसिंह की टांगों के बीच नज़र ले जाए उनके पास आने लगी, जयसिंह को हाथ में फ़ोन उठाए कुछ पल बीत चुके थे, जैसे ही उन्हें मनिका पास आती दिखी उन्होंने फ़ोन अपने आगे रखे एक छोटे टेबल पर रख दिया था. मनिका की नज़र भी उनके नीचे जाते हाथ के साथ नीची हो गईं, वह जयसिंह से चार फुट की दूरी पर खड़ी थी और उसने झुक कर फ़ोन उठाया, ना चाहते हुए भी उसकी नज़र एक बार फिर से जयसिंह के चमकते लंड और आंडों पर जा टिकी. जयसिंह भी उत्तेजित तो थे ही, मनिका की नज़र कहाँ है इसका आभास उन्हें कनखियों से हो गया था. उन्होंने अपने उत्तेजित हुए लंड की माश्पेशियाँ कसते हुए उसे एक हुलारा दिला दिया, मनिका झट से उछल कर सीधी हुई और लघभग भागती हुई बेड के पास जा कर उनका फ़ोन चार्जर में लगाने की कोशिश करने लगी, उसके हाथ कांप रहे थे.

जयसिंह के बाथरूम में जाने की आहट होते ही मनिका औंधे मुहँ बिस्तर पर जा गिरी. उसे बुखार सा हो आया था, 'ओह शिट ओह शिट ओह शिट!' मनिका ने अपने दोनों हाथों से मुहँ ढंकते हुए सोचा, 'आइ सॉ पापाज़...ओह गॉड!' अपने पिता के लंड की कल्पना करते ही मनिका का बदन कांप उठा था. 'पापा को रियलाईज़ भी नहीं हो रहा था कि...टॉवल ऊपर हो गया है...और उनका...हाय...ओह गॉड...हाओ कैन दिस हैपन?' मनिका के दीमाग में भूचाल उठ रहा था. वह सरक कर बिस्तर में अपनी साइड पर हुई और बेड के सिरहाने लगे स्विच से कमरे की लाइट बुझा दी व अपने पैर सिकोड़ कर कम्बल ओढ़ लेट गई. बार-बार उसके सामने जयसिंह के लंड और आंड आ-जा रहे थे और उसका जिस्म शरम और ग्लानी (हालाँकि उसकी कोई गलती नहीं थी) की आग में तप रहा था.

मनिका एक और खौफ यह भी सता रहा था कि वह अब जयसिंह से नज़र कैसे मिला पाएगी? इसी डर से उसने कमरे की लाइट बुझा दी थी और नाईट-लैंप भी नहीं जलाया था और जब एक बार फिर से बाथरूम के दरवाज़े के खुलने की आहट हुई थी तो उसका बेचैन दिल धौंकनी सा धड़कने लगा था.

जयसिंह बाहर निकले तो कमरे में घुप्प अँधेरा पा कर अचकचा गए.

नहाते हुए उनका भी मन अपने किए इस दुस्साहसी कृत्य से विचलित रहा था 'पता नहीं क्या सोच रही होगी...लंड ने तो खून जमा दिया उसका, कैसे उठ कर भागी थी साली...कहीं मैंने ज्यादा बड़ा कदम तो नहीं उठा लिया? अब तो पीछे हटने का भी कोई रास्ता नहीं है...कहीं उसे शक हो गया होगा तो..? की यह मैंने जान-बूझकर किया था...मारे जाएँगे फिर तो...’अब जयसिंह भी अपने दुस्साहस को लेकर असमंजस में फंसते जा रहे थे. लेकिन आखिर में उन्होंने सोचा कि 'अब जब ओखली में सिर दे ही दिया है तो मूसलों का क्या डर...देखा जाएगा जो होगा, जो योजना बनाई थी उसे तो अब पूरा अंजाम देना ही है...’और नहा कर बाहर निकले थे.

'मनिका?' जयसिंह ने कमरे के अँधेरे में आवाज़ दी. बाथरूम की लाइट जल रही थी और अब उनकी आँखें भी अँधेरे के अनुरूप ढलने लगी थी. 'सो गई?'

'ज...जी पापा.' बिस्तर में से दबी सी आवाज़ आई.

'नाईट-लैंप तो ऑन कर देती...कुछ दिखाई ही नहीं पड़ रहा.' जयसिंह ने कहा.

'ओह सॉरी पापा...’ मनिका ने माफ़ी मांगी और हाथ बढ़ा कर नाईट-लैंप का स्विच ऑन कर दिया.

कुछ ही देर में जयसिंह भी बिस्तर में आ पहुँचे, मनिका की करवट उनसे दूसरी तरफ थी. जयसिंह ने कुछ पल रुक कर सोचा और फिर अपने प्लान के मुताबिक ही चलने का फैसला करते हुए मनिका के कंधे पर हाथ रख उसे हौले से खींचा, मनिका ने उनके इस इशारे पर करवट बदल ली और उनकी तरफ मुहँ कर लिया, उसने एक पल के लिए उनसे नज़र मिलाई थी और फिर आँखें मींच लीं थी.

'क्या हुआ मनिका? आज इतना जल्दी सो गई?' जयसिंह ने छेड़ की.

'म्मम्म...वो पापा...आज पढ़ते-पढ़ते थक गई...और सुबह इंटरव्यू के लिए भी जाना है सो...' मनिका पहले से ही जानती थी कि उसके पापा यह सवाल पूछ सकते हैं और इसलिए उसने जवाब सोच कर रखा हुआ था. उसने एक पल जयसिंह की तरफ आँख खोल कर देखा था और उसकी आँखों में अचरज का भाव आ गया था.

'ह्म्म्म...चलो फिर सो जाओ.' जयसिंह ने हौले से उसका गाल थपथपा कर कहा.

'पापा? आपने बरमूडा-शॉर्ट्स कब ली?' मनिका ने पूछा. दरअसल जयसिंह आज पायजामा-कुरता नहीं बल्कि बरमूडा-शॉर्ट्स और टी-शर्ट पहन कर आए थे.

'अरे पहले से ही हैं मेरे पास यह तो...' जयसिंह ने बिल्कुल नॉर्मल एक्ट करते हुए कहा.

'पर पहले तो आपने नहीं पहना...' मनिका ने कहा था पर बात पूरी नहीं की थी.

'हाँ...वो बाथरूम के फर्श पर पानी होता है न तो पायजामा पहनते वक्त नीचे लग कर गीला हो जाता है रोज-रोज सो आज यह पहन लिया. वैसे भी पायजामा-कुरता लॉन्ड्री से धुल कर आया हुआ था तो सीधा सूटकेस में ही रख दिया, आज और कल की ही तो बात है अब...’ जयसिंह ने तर्क देते हुए सफाई पेश की थी. लेकिन उनके मन में तो लडडू फूट रहे थे.

आज मनिका की बेड-साइड वाला नाईट-लैंप जल रहा था सो रौशनी के दायरे में जयसिंह थे. बरमूडा-शॉर्ट्स का कपड़ा ज्यादा मोटा नहीं हुआ करता है और वे अंदर कुछ नहीं पहन कर आए थे सो उनके लंड का उठाव नज़र आ रहा था. उन्होंने देखा कि उनके बोलते-बोलते ही मनिका की नज़र दो-तीन बार उनकी टांगों के बीच चली गईं थी और हर नज़र के साथ वह सहम कर आँख बंद कर लेती थी.

जयसिंह अब सोने का नाटक करने लगे, उन दोनों की करवटें एक-दूसरे की ओर ही थी. मनिका को नींद नहीं आ रही थी व वह थोड़ी-थोड़ी देर में आँखें खोल जयसिंह को देख रही थी. जयसिंह भी आँखें मूंदे पड़े थे, वे भी कुछ-कुछ देर बाद हल्की सी आँख खोल अपनी पलकों के बीच से मनिका की बेचैनी देख कर मन ही मन मस्त हो रहे थे. उधर मनिका चाहकर भी अपना ध्यान अपने पिता के लंड पर से नहीं हटा पा रही थी, ऊपर से उनके पहने बरमूडा-शॉर्ट्स ने उसकी मुसीबत और ज्यादा बढ़ा दी थी.

'शिट पापा को कैसे एक्सपोस होता देख लिया मैंने...अगर उन्हें पता चल जाता तो...? गॉड इट्स सो एम्बैरेसिंग...और ये शॉर्ट्स जो पापा आज पहन आएं हैं..! इज़ दैट हिज़..? हाय ये मैं क्या सोच रही हूँ...' जयसिंह की शॉर्ट्स में बने उठाव को देख कर मनिका के मन में विचार उठने लगा था जब उसने झटपट अपनी सोच पर लगाम कसी और पलट कर करवट बदल ली, लेकिन बैरी मन था के थामे नहीं थम रहा था 'कितना बड़ा था...है...ओह नो नो नो ऐसा मत सोचो...एंड काला...शिट...पर वो ऐसे चमक क्यूँ रहा...इश्श...' मनिका ने शरम से अपने हाथों से अपने-आप को बाँहों में कसते हुए ऐसे विचारों को दूर झटकने की कोशिश की 'ब्लू फिल्म्स में जैसा दिखाते हैं...वैसा...नो...और पापा की बॉल्स (आंड)...गॉड नो...स्टॉप इट डैम इट...' मनिका ने अपने मन की निर्लज्जता पर गुस्सा होते हुए अपने आप को धिक्कारा.

मनिका की नींद उस रात बार-बार टूटती रही, जयसिंह के नंगेपन का ख्याल रह-रह कर उसके मन में कौंध जाता था और अब उसकी अपने इंटरव्यू को लेकर टेंशन भी बढ़ गई थी. उसे ऐसा लग रहा था कि वह सब पढ़ी हुई बातें भूल चुकी है. 'ओह गॉड अब क्या होगा...जब से पापा का...देखा है...गॉड...क्या प्रिपरेशन की थी सब भूल रही हूँ...शिट अब क्या करूँगी मैं कल..?' किसी तरह सुबह होते-होते मनिका की आँख लगी थी जबकि जयसिंह मनिका के उहापोह को ताड़ते हुए कब के मीठी नींद सो चुके थे.

अगली सुबह जब मनिका सो कर उठी तो उसका मन अजीब सा हो रखा था, उसे ऐसा लग रहा था मानो वह कोई बहुत बड़ी दुर्घटना घटने के बाद की पहली सुबह हो. फिर जैसे-जैसे उसकी नींद उड़ने लगी उसे पिछली रात देखा नज़ारा याद आने लगा. रात को तो अचानक इस तरह अपने पिता के गुप्तांग देख लेने ने से वह सन्न रह गई थी और उस वाकये के भुलाने की कोशिश करते-करते सो गई थी लेकिन अब सुबह को उसे वही बात हज़ार गुना ज्यादा झटके के साथ याद आ रही थी. जब तक वे दोनों उठ कर नहा-धो तैयार हुए और कैब बुक कराने के बाद नीचे रेस्टोरेंट में नाश्ते के लिए पहुँचे थे, मनिका अनगिनत बार हँसते-मुस्कुराते अपने पिता की तरफ देख कर शरम और अपराधबोध से भर चुकी थी.
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09-21-2018, 01:48 PM,
#23
RE: Baap Beti Chudai बाप के रंग में रंग गई बेटी
उधर जयसिंह को अब पूरा विश्वास हो चुका था की उनकी हरमजदगी का भान मनिका को नहीं हुआ था और वे आज कुछ ज्यादा ही चहक रहे थे. वे लोग ब्रेक-फ़ास्ट करने के बाद कैब से कॉलेज पहुँचे, वहाँ काफी भीड़-भाड़ थी, जयसिंह ने गेट पर शीशा नीचे कर एम.बी.ए. इंटरव्यूज़ का वेन्यु (जगह) पता किया था और अन्दर पहुँच ड्राईवर को पार्किंग में वेट करने का बोल मनिका के साथ मेन-बिल्डिंग की तरफ चल दिए.

बिल्डिंग में बने कॉलेज के एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक से उन्होंने इंटरव्यू के लिए निर्धारित ऑफिस का पता किया और उनके बताए रास्ते के मुताबिक मैनेजमेंट ब्लॉक में जा पहुँचे, वहाँ बहुत से लड़के-लड़कियाँ अपने अभिभावकों के साथ आए हुए अपना नंबर आने का इंतजार कर रहे थे. जयसिंह और मनिका भी एक तरफ बने वेटिंग एरिया में बैठ गए और मनिका का नाम बुलाए जाने की प्रतीक्षा करने लगे.

'पापा आई एम् सो नर्वस..!' मनिका ने जयसिंह से अपना भय व्यक्त किया.

'अरे व्हाए? तुम्हें तो सब आता है. ऐसा मत सोचो बिल्कुल भी, तुम्हारा सेलेक्शन पक्का होगा, मुझे पूरा यकीन है अपनी...गर्लफ्रेंड पर...’ जयसिंह ने मुस्कुरा कर उसकी हिम्मत बँधाई. वे मनिका को अपनी बेटी कहते-कहते रुक गए थे.

'ओह पापा. हाहाहा...आप भी ना!' मनिका ने भी उनकी बात पर हँसते हुए उलाहना दिया और बोली 'आई क्नॉ की मेरी प्रिपरेशन अच्छी है बट कल से माइंड थोड़ा डाइवर्ट (ध्यान-भंग) हो रखा है...’ यह कहते हुए मनिका के मन में एक बार फिर जयसिंह के लिंग की आकृतियां बनने लगीं और उसकी नजर जयसिंह की पैंट की ज़िप पर चली गईं थी.

'कोई बात नहीं तुम टेंशन मत लो, जो होगा अच्छे के लिए ही होगा.' जयसिंह ने पास बैठी मनिका के कँधे पर हाथ रखते हुए कहा. मनिका भी थोड़ा मुस्का दी पर कुछ नहीं बोली 'पापा को क्या पता की मैंने इनका डिक देख लिया...गॉड फिर से वही गंदे ख्याल...’ उसके मन में उठा और वह भीतर ही भीतर शर्मसार हो गई. अब जयसिंह का हाथ उसके कँधे पर उसे एक तपिश सी देता हुआ महसूस हो रहा था.

कुछ वक्त बाद इंटरव्यू के लिए मनिका का नंबर भी आ गया. जयसिंह ने उसे मुस्का कर गुड-लक कहा और मनिका धड़कते दिल से अपना पहला इंटरव्यू देने के लिए चल दी. जयसिंह वहीं बैठे उसका इंतज़ार करने लगे.

'ह्म्म्म माइंड तो डाइवर्ट हुआ हरामज़ादी का चलो...बस अब माइंड डाइवर्ट ही रहना चाहिए...हाहाहा... क्या गांड है यार...' उन्होंने इंटरव्यू रूम में घुसती हुई मनिका को देखते हुए सोचा था.

मनिका का इंटरव्यू करीब २५ मिनट तक चला. अंदर पहुँच कर उसने देखा कि इंटरव्यू के लिए तीन जनों का पैनल बैठा था. उसके अभिवादन करने के बाद उसे बैठने को कहा गया और फिर एक-एक कर के तीनों इंटरव्यूअर उससे सवाल करने लगे. पहले सवाल पर मनिका एक क्षण के लिए तो सकपका गई थी लेकिन फिर उसके दीमाग ने धीरे-धीरे एक बार फिर सही दिशा में काम करना चालू कर दिया और जवाब उसकी जुबान पर आने लगे. हर सवाल के बाद उसका आत्मविश्वास लौटता जा रहा था.

जब मनिका इंटरव्यू देकर बाहर आई तो जयसिंह को जस के तस बैठे हुए पाया, उससे नज़र मिलते ही जयसिंह उठ खड़े हुए और उसकी तरफ आने लगे, उनके चेहरे पर एक सवालिया भाव था.

'कैसा हुआ?' जयसिंह ने करीब आ कर पूछा.

'अच्छा हुआ पापा...मतलब आई थिंक सो...पहले मैं थोड़ा नर्वस थी बट फिर आई गॉट कॉन्फिडेंट...' मनिका हल्की सी मुस्काई थी 'मे-बी मेरा हो जाएगा...ओह पापा मुझे फिर से डर लग रहा है अब..' उसने आगे कहा.

'कितनी देर में आएगा रिजल्ट?' जयसिंह ने पूछा.

'बस १०-१५ मिनट्स में ही, आई गैस अपना नंबर सबसे लास्ट में ही आया है...'

'ह्म्म्म...कोई बात नहीं घबराओ मत...' जयसिंह ने उसे फिर से ढांढस बँधाया.

कुछ देर बाद ही मनिका के कहे मुताबिक रिजल्ट डिक्लेअर हो गया. ऑफिस से एक इंटरव्यूअर बाहर आया था और उसने बाहर लगे सॉफ़्ट-बोर्ड पर एक कागज पिन कर दिया था जिसपर सेलेक्ट हुए लोगों के नाम थे. काँपते कदमों से मनिका अपना रिजल्ट देखने के लिए बढ़ी, बोर्ड के चारों तरफ जमघट लग गया था. कुछ पल बाद मनिका को कागज सही से दिखा, पर नर्वसनेस में एक पल के लिए उसे कुछ नज़र नहीं आया, फिर उसने अपने-आप को सँभालते हुए गौर से देखा तो पाया कि ऊपर से चौथे नंबर पर लिखा था 'मनिका सिंह'.

मनिका ख़ुशी से झूम उठी.

'पापाआआआ...आई गॉट सेलेक्टेड..!' उसने पीछे मुड़ते हुए जयसिंह को आवाज़ दी और खिलखिलाते हुए उनकी तरफ बढ़ी.

जयसिंह ने भी आगे बढ़ते हुए अपनी बाँहें खोल दीं व मनिका आ कर उनके आगोश में समा गई, उन्होंने मनिका को अपनी छाती पर भींच लिया था. मनिका का वक्ष अब उनकी छाती से लगा हुआ था और उनके हाथ उसकी पीठ और कमर पर कसे हुए थे. मनिका के जवान होने के बाद ये पहली बार थी जब उन्होंने उसे इस तरह गले लगाया था. उनके बदन में जैसै करन्ट दौड़ने लगा और उन्होंने अपनी बाँहें और ज्यादा कस लीं थी.

उधर कुछ एक क्षण के उन्माद के बाद मनिका को भी एक पुरुष के जिस्म की संरचना और ताकत का एहसास होने लगा, जयसिंह की छाती उसके स्तनों का मर्दन कर रही थी, उसका बदन उनकी बाजूओं में इस तरह जकड़ा हुआ था कि वह चाहकर भी उनसे अलग नहीं हो पा रही थी.

'पापा...!' जयसिंह की कसती चली जा रही पकड़ से आजाद होने की कोशिश करते हुए मनिका ने कहा.

'मैंने कहा था ना तुम सेलेक्ट हो जाओगी...' जयसिंह भी मनिका का प्रतिरोध भाँप गए थे और उन्होंने उसे अपनी गिरफ्त से थोड़ा आजाद करते हुए कहा.

'हाँ पापा...ओह गॉड. आई एम् सो हैप्पी!' मनिका ने कहा.

रिजल्ट वाले नोटिस में सेलेक्ट हुए कैंडिडेट्स को एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक में जा कर एडमिशन फॉर्म भरने के निर्देश दिए गए थे, सो जयसिंह और मनिका एक बार फिर से वहाँ गए और कॉलेज का फॉर्म और प्रॉस्पेक्टस ख़रीदा. वहाँ एक और खुशखबरी जयसिंह का इंतज़ार कर रही थी, कॉलेज की फीस अगले तीन दिनों में जमा कराने पर ही पहली कट-ऑफ लिस्ट में सेलेक्ट हुए लोगों का एडमिशन कन्फर्म हो सकता था वरना फिर कॉलेज से दूसरी लिस्ट जारी की जाती और क्रमवार अगले कैंडिडेट्स को मौका दिया जाता. जयसिंह ने बाहर आते ही पहला फोन अपने घर पर किया था और मनिका के सेलेक्ट हो जाने की खबर सुनाई थी और कहा था कि उनकी वापसी में एक-दो दिन और लगने वाले थे, उनकी बीवी मधु ने इस पर कोई खासी उत्साहजनक प्रतिक्रिया नहीं दी थी (क्योंकि अभी भी अपनी बेटी के बर्ताव व उससे हुई अनबन की गाँठ उसके मन में थी). उधर एडमिशन हो जाने की ख़ुशी के मारे मनिका भी अपने पिता के लिंग-दर्शन को भूल गई थी और वहाँ एक-दो दिन और बिताने के ख्याल ने उसे और ज्यादा उत्साहित कर दिया था.

जयसिंह ने मनिका से कहा कि वे अगले दिन आ कर उसके एडमिशन की फॉर्मलिटीज़ पूरी कर जाएँगे, मनिका को भला क्या एतराज़ हो सकता था, और वे दोनों वापिस अपने हॉटेल लौट आए.

अपने कमरे में आ कर मनिका ने एडमिशन-फॉर्म निकाला और उसे भरने बैठ गई. दोपहर के खाने का वक़्त भी हो चुका था और जयसिंह भी उसके पास ही बैठे मेन्यू देख रहे थे. आज जयसिंह ने अपनी मर्जी से ही खाना ऑर्डर कर दिया था क्यूँकि मनिका का पूरा ध्यान अपने फॉर्म में लगा हुआ था. जयसिंह के ऑर्डर कर के हटने की कुछ देर बाद मनिका ने भी फॉर्म पूरा भर लिया,

'ऑल डन पापा...' मनिका ने फॉर्म में लिखी सभी डिटेल्स को एक बार फिर चेक करते हुए कहा.

'हम्म चलो एक काम तो पूरा हुआ...अब तो खुश हो तुम?' जयसिंह ने पास बैठी मनिका को अपने पास खीँचते हुए कहा.

'हाँ पापा.' मनिका भी बिना प्रतिरोध के उनसे सटते हुए बोली.

'और बताओ फिर...दिल्ली भी देख ली, शॉपिंग भी हो गई और एडमिशन भी हो गया अब क्या करने का इरादा है?' जयसिंह ने मुस्कुराते हुए सवाल किया.

'हाहाहाहा...बस पापा इतना बहुत है...अब आप जल्दी-जल्दी डेल्ही आते रहना.' मनिका ने हँसते हुए कहा.

'हाँ भई अब मेरी गर्लफ्रेंड यहाँ है तो आना ही पड़ेगा.' जयसिंह ने शरारत से कहा.

'हाहा…क्या बोलते रहते हो पापा.' मनिका बोली.

'वैसे कॉलेज में लड़के काफ़ी हैं...' जयसिंह की बात में कुछ अंदेशा था.

'तो..?' मनिका भी उनके कहने का मतलब समझ गई थी पर उसने अनजान बनते हुए पूछा.

'तो क्या? कल को कोई पसंद आ गया तुम्हें तो ये पुराना बॉयफ्रेंड थोड़े ही याद रहेगा...’ जयसिंह ने झूठी उदासी दिखाते हुए कहा.

'हेहेहे...पापा कुछ भी...' मनिका ने उनकी बात को मजाक में ही लिया था 'और वैसे भी मुझे कोई बॉयफ्रेंड नहीं चाहिए...' उसने कहा.

'हाहाहा...' जयसिंह ने भी दाँत दिखा दिए 'वैसे क्यों नहीं चाहिए तुम्हें बॉयफ्रेंड?' उन्होंने पूछा.

'अरे भई नहीं चाहिए तो नहीं चाहिए...क्या करना है बॉयफ्रेंड-वोयफ़्रेंड का...' मनिका अपने पिता से ऐसी बातें करने में झिझक रही थी.

'वैसे बॉयफ्रेंड तो होना ही चाहिए जो ख्याल रखे तुम्हारा...' जयसिंह भी कहाँ मानने वाले थे.

'अच्छा? तो आप बना लो...हीही.' मनिका ने कहा और अपने ही मजाक पर हँसी.

'तो मुझे तो गर्लफ्रेंड बनानी होगी ना..?' जयसिंह मुस्काए.

'हाँ तो बना लो न जा के...' मनिका भी अब उनके कहे को मजाक समझ बोली.

'हाहाहा...हाँ तो इसीलिए तो तुम्हारा एडमिशन यहाँ करवाया है, कोई सुंदर सी सहेली बना कर मुझसे दोस्ती करवा देना...' जयसिंह ने हँसते हुए उसे आँख मारी.

'हाआआ...! पापा कितने ख़राब निकले आप...बड़े आए, बूढ़े हो गए हो और अरमान तो देखो. मम्मी से बोलूंगी ना तो गर्लफ्रेंड का भूत एक मिनट में उतार जाएगा...हाहाहा.' मनिका ने उन्हें झूठ-मूठ धमकाया.

'इतना भी बूढ़ा नहीं हूँ...तुम्हें क्या पता? बस अपनी मम्मी के नाम से डराती हो मुझे...’ जयसिंह भी पीछे नहीं हटे थे.

'रहने दो आप...हाहाहा...मेरी फ्रेंड आपसे कितनी छोटी होगी पता है..? कुछ तो शरम करो...’ मनिका ने उन्हें उलाहना दिया.

'तो क्या हुआ...होगी तो लड़की ही ना और हम भी तो मर्द हैं...' जयसिंह ने उसे चिढ़ाया.

'हाहाहा...जाओ-जाओ रहन दो आप...' मनिका ने उनका मखौल उड़ाते हुए कहा.

'हंस लो हंस लो तुम भी कोई बात नहीं...लेकिन एक असली मर्द लड़की का जितना ख्याल रख सकता है उतना तुम्हारे ये नए-नवेले बॉयफ्रेंड कभी नहीं रख सकते...' जयसिंह ने मनिका की हंसी का जवाब देते हुए कहा.

'हाहाहा पापा बस भई मान लिया...और मेरे कोई नए-नवेले बॉयफ्रेंड है भी नहीं...हीहीही.' मनिका फिर भी हंसती रही.

थोड़ी देर में उनका लंच आ गया और वे दोनों खाना खाने लगे. आज एक बार फिर वही वेटर खाना दे गया था जिसने मनिका को एक बार अर्ध-नंग आवस्था में देख लिया था. पर आज जयसिंह वहीँ बैठे थे सो उसने कोई उद्दंडता नहीं दिखाई थी. खाना खाने के बाद जयसिंह बेड पर लेट सुस्ताने लगे और मनिका टी.वी. देखने लगी.

मनिका ने टेलीविजन में एम्. टी.वी. चैनल चला रखा था जिसमे बॉलीवुड के लेटेस्ट अपडेट्स आ रहे थे. कुछ देर देखते रहने के बाद मनिका का ध्यान टी.वी पर से हट गया. वह जो प्रोग्राम देख रही थी उसमे बॉलीवुड के स्टार्स की लव-लाइफ इत्यादि के बारे में भी कयास लगाए गए थे और मनिका ने रियलाईज़ किया कि ज्यादातर हीरो अधेड़ उम्र के थे और उनका नाम नई आई हीरोइनों के साथ जोड़ा जा रहा था. यह बात तो उसे पहले से भी पता थी कि अक्सर ४०-४५ पार के हीरो अपने से आधी उम्र की हिरोइन्स को डेट करते हैं लेकिन उसने इस बारे में कभी गहराई से नहीं सोचा था, 'बॉलीवुड में ऐसा ही चलता है' यह एक सामान्य सोच थी. पर अब उसे एहसास हुआ कि इस बात से उसके पिता के उस दावे को भी पुष्टि मिल रही थी के मर्द लड़कियों का ख्याल रखने में माहिर होते हैं, 'क्या सच में..?’ मनिका ने मन ही मन सोचा.

'पापा जो कह रहे थे क्या सच में वैसा ही है? पहले कभी सोचा ही नहीं बट ये हिरोइन्स को हमेशा बूढ़े-बूढ़े हीरो ही क्यों पसंद आते हैं..? पैसा होता है क्यूंकि उनके पास...पर पैसा तो वो भी कमाती ही हैं और नए हीरो भी तो कम पैसेवाले नहीं होते...?’ मनिका सोचती जा रही थी 'और बड़े-बड़े बिजनेसमैन भी तो कैसे रोज नई गर्लफ्रेंड घुमा रहे होते हैं...बात सिर्फ पैसे की तो नहीं हो सकती...ह्म्म्म. हाथ तो पापा का भी कितना खुल्ला है, खर्चा करते रुकते ही नहीं...पर उनकी तो कोई गर्लफ्रेंड नहीं है...' और फिर उसे अपनी सहेलियों की ठिठोली याद आई 'मणि तुम्हारे डैड तो हमारे बॉयफ्रेंडज़ से भी ज्यादा ख्याल रखते हैं तुम्हारा..!'

'ओह पागल लड़कियां हैं मेरी फ्रेंड्स भी.' मनिका सोचते हुए उठी व टी.वी. ऑफ कर और बिस्तर की तरफ चल दी. अब वह भी जा कर बेड के सिरहाने से टेक लगा कर बैठ गई और अपने सोते हुए पिता की तरफ देखा. 'पर पापा के साथ जब भी होती हूँ अक्सर लोग मुझे उनकी गर्लफ्रेंड ही मान बैठते हैं...बाड़मेर में तो फिर भी लोग हमें जानते हैं बट यहाँ तो कोई सोचता ही नहीं की हम बाप-बेटी हैं...कैसे लोग हैं पता नहीं..? पर हम दोनों भी तो एक-दूसरे से कुछ ज्यादा ही फ्रैंक हो गए हैं...तो क्या हुआ..? सो लोग तो उल्टा सोचेंगे ही न! आज भी पापा ने कैसे मुझे हग (गले लगाना) किया था सब के सामने...उह...कितने पावरफुल हैं पापा...मेरी तो जान ही निकाल देते अगर कुछ देर और नहीं छोड़ा होता तो...’ मनिका जयसिंह की बलिष्ठ पकड़ को याद कर मचल उठी और उसके बदन में एक अजीब सी कशिश दौड़ गई थी. अब उसकी नज़र जयसिंह की पैंट के अगले हिस्से पर चली गई 'पापा का डि...ओह शिट फिर से नहीं...’ मनिका ने अपने आप को संभाला, लेकिन वह विचार जो उसके मन में कौंध गया था उससे छुटकारा पाना इतना आसान भी नहीं था.
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09-21-2018, 01:49 PM,
#24
RE: Baap Beti Chudai बाप के रंग में रंग गई बेटी
जब जयसिंह सो कर उठे तब तक शाम ढल आई थी, उन्होंने पाया कि मनिका भी सोई पड़ी थी. उन्होंने उठ कर रूम-सर्विस से चाय मंगवाई, इतने में मनिका भी आँखें मलती हुई उठ बैठी.

'पापा!' मनिका ने अपने हमेशा के अंदाज में जयसिंह को पुकारा.

'हेय मनिका! उठ गईं तुम? कब से सो रही हो..?’ जयसिंह ने उसकी ओर देखते हुए सवाल किया.

'बस पापा आपके सोने के कुछ देर बाद ही बेड पर आ गई थी...' मनिका ने कहा.

'हम्म...'

थोड़ी देर बाद उनकी चाय आ गई. मनिका भी बेड से उतर कर जयसिंह के पास आ गई. जब उन्होंने अपनी चाय ख़तम कर ली तो मनिका ने कहा,

'पापा चलो ना कहीं बाहर चलते हैं, कितने दिन से रूम में रुके हैं हम.'

जयसिंह भी राजी हो गए और वे दोनों कैब ले कर गुडगाँव के ही एक मॉल में घूमने जा पहुंचे. कुछ देर तक यूँही विन्डो-शॉपिंग करते घूमते रहने के बाद जयसिंह ने सुझाया,

'मनिका यहाँ भी मल्टीप्लेक्स-थिएटर है, क्यूँ ना कोई मूवी ही देख लें...?' मनिका झटपट मान गई.

वहां एक तो 'जाने तू या जाने ना' ही लगी थी, जो वे पहले देख आए थे और दूसरी फिल्म थी 'जन्नत'. जयसिंह जा कर उसी के टिकट्स ले कर आए थे. मनिका को इल्म था की उस फिल्म के हीरो को बॉलीवुड में 'सीरियल-किसर' के नाम से जाना जाता था और अब वह थोड़ी विचलित हो गई थी, 'ओह शिट ये तो इमरान की मूवी है...कुछ गलत-सलत ना हो भगवान इसमें...'

जयसिंह और मनिका मूवी हॉल में जा पहुंचे, वहां ज्यादातर क्राउड (भीड़) आदमियों का ही था. कुछ देर में फिल्म शुरू हो गई, फिल्म की कहानी में हीरो को एक बुकी (सट्टोरिया) के किरदार में दिखाया था जिसे एक लड़की से प्यार हो जाता है. इंटरवेल के बाद भी कुछ देर तक फिल्म में कोई आपतिजनक सीन नहीं आया था और मनिका भी अब सहज हो गई थी. उधर आज एक बार फिर जयसिंह मनिका के साथ कोल्ड-ड्रिंक शेयर कर के पी रहे थे. उनका एक हाथ भी कुर्सी के हैण्ड-रेस्ट पर रखे मनिका के हाथ पर था जब अचानक फिल्म में एक किसिंग-सीन आ ही गया. हीरो बहुत ही प्यार से हीरोइन के होंठों को चूम रहा था. अगले ही पल जयसिंह को अपने हाथ के नीचे मनिका के हाथ के अकड़ जाने का एहसास हो गया.

सीन कुछ ही सेकंड चला होगा लेकिन तब तक मनिका ने अपना हाथ हौले से खींच कर जयसिंह के हाथ से हटा लिया था. उधर पूरे थिएटर में ठहाके और गंदे कमेंट्स आने चालू हो गए. 'चूस ले चूस ले...ओओओओ...मसल-मसल...हाहाहा हाहाहा' 'वाह सीरियल किसर...आहाहाहा...' की आवाजें आने लगी, एक आदमी ने तो बेशर्मी की हद ही पार कर दी थी, 'डाल दे साली के..डाल डाल...’मनिका का सिर पास बैठे अपने पिता के सामने ऐसे कमेंट सुन शर्म से झुक गया था और उसका बदन गुस्से से तमतमा रहा था 'कैसे जाहिल लोग हैं यहाँ पर...बेशर्म...हुह.' बाकी की फिल्म कब ख़त्म हुई उसे आभास भी नहीं हुआ, उसका पूरा समय वहां आए मर्दों को कोसने में ही बीत गया था.

फिल्म देखने के बाद जयसिंह और मनिका ने वहीं मॉल के फ़ूड-कोर्ट में खाना खाया था और रात हुए वापस अपने हॉटेल पहुंचे थे. मनिका नहा कर बाहर निकली तो एक बार फिर जयसिंह को सामने काउच पर तौलिया लपेटे बैठे हुए पाया. आज उन्होंने ऊपर कुरता भी नहीं पहना हुआ था.

जयसिंह उसे देख कर मुस्कुराए और उठ खड़े हुए. मनिका बाथरूम से बाहर आ चुकी थी और उसने एक तरफ हट कर अपने पिता को बाथरूम में जाने के रास्ता दिया था. जयसिंह ने बाथरूम में घुस दरवाज़ा बंद कर लिया. उधर मनिका भी जा कर बेड पर बैठ गई थी.

बाथरूम से बाहर आने से पहले मनिका ने एकबारगी सोचा था कि अगर आज भी उसके पिता पिछली रात की भाँती सामने नंगे बैठे हुए तो वह क्या करेगी? पर फिर उसने यह सोचकर अपने मन से वह बात निकाल दी थी कि वो सिर्फ एक बार अनजाने में हुई घटना थी. लेकिन बाथरूम से बाहर निकलते ही जयसिंह से रूबरू हो जाने पर मनिका की नज़र सीधा उनकी टांगों के बीच गई थी. आज भी जयसिंह ने टांगें इस तरह खोल रखीं थी के उनके गुप्तांग प्रदर्शित हो रहे हों लेकिन आज जयसिंह ने एक सफ़ेद अंडरवियर पहन रखा था. मनिका की धड़कन बढ़ गई थी. अंडरवियर पहने होने के बावजूद जयसिंह के लंड का उठाव साफ़ नज़र आ रहा था. अंडरवियर में खड़े उनके लिंग ने उसके कपड़े को पूरा खींच कर ऊपर उठा दिया था, मनिका ने झट से अपनी नज़र ऊपर उठा कर अपने पिता की आँखों में देखा था, वे मुस्कुराते हुए उठे थे और बाथरूम में जाने लगे थे. उनके करीब आने पर मनिका की साँस जैसे रुक सी गई थी, बिना शर्ट के जयसिंह के बदन का ऊपरी भाग पूरी तरह से उघड़ा हुआ था, उन्होंने बनियान भी नहीं पहन रखी थी. जयसिंह का चौड़ा सीना और बलिष्ठ बाँहे देख हया से मनिका की नज़र नीचे हो गई थी और उसने एक तरफ हो उन्हें बाथरूम में जाने दिया व आ कर बेड पर बैठी थी,

'ओह्ह...थैंक गॉड आज पापा अंडरवियर पहने हुए थे...बट फिर से मैंने उनके प्राइवेट पार्ट्स को एक्सपोस होते देख लिया...मतलब अंडरवियर में से भी उनका बड़ा सा डिक...हे राम मैं फिर से ऐसा-वैसा सोचने लगी...' ब्लू-फिल्म में देखने से मनिका को यह तो पता था कि मर्द जब उत्तेजित होते हैं तो उनका लिंग सख्त हो जाता है पर उसने कभी बैठे हुए लिंग का दीदार तो किया नहीं था सो उसे उनके बीच के अंतर का पता नहीं था. एक बार फिर उसका बदन तमतमा गया था और वह सोचने लगी थी 'पता नहीं पापा कैसे इतना बड़ा...पैंट में डाल के रखते हैं? नहीं-नहीं...ऐसा मत सोच...अनकम्फर्टेबल फील नहीं होता क्या उन्हें..? हाय...ये मैं क्या-क्या सोच रही हूँ...पापा को पता चला तो क्या सोचेंगे?'

जब जयसिंह नहा कर बाहर आए तो मनिका को टी.वी देखते हुए पाया. मनिका ने ध्यान बंटाने के लिए टेलीविज़न चला रखा था. जयसिंह भी आकर उसके पास बैठ गए. मनिका ने कनखियों से उनकी तरफ देखा था वे आज भी बरमूडा और टी-शर्ट पहने हुए थे.

जयसिंह ने मनिका की बाँह पकड़ कर उसे अपनी तरफ खींचा, वह उनका इशारा समझ गई थी और उनकी तरफ देखा, जिस पर जयसिंह ने उसे उठ कर गोद में आने का इशारा किया. मनिका थोडा सकुचा गई थी पर फिर भी उठ कर उनकी गोद में आ बैठी. आज वह उनकी जाँघ पर बैठी थी.

'क्या कुछ चल रहा है टी.वी में..?' जयसिंह ने पूछा.

'कुछ नहीं पापा...वैसे ही चैनल चेंज कर रही थी बैठी हुई. आज दिन में सो लिए थे तो नींद भी कम आ रही है.' मनिका ने बताया.

'हम्म...' जयसिंह ने टी.वी की स्क्रीन पर देखते हुए कहा.

कुछ देर वे दोनों वैसे ही बैठे टेलीविज़न देखते रहे, मनिका थोड़ी-थोड़ी देर में चैनल बदल दे रही थी. कुछ पल बाद जब मनिका ने एक बार फिर चैनल चेंज किया तो 'ईटीसी' चल पड़ा और उस पर 'जन्नत' फिल्म का ही ट्रेलर आ रहा था. जयसिंह को बात छेड़ने का मौका मिल चुका था.

आज जयसिंह ने जानबूझकर अंडरवियर पहने रखा था ताकि मनिका को शक न हो जाए कि वे उसे अपना नंगापन इरादतन दिखा रहे थे. लेकिन फिर कुछ सोच कर उन्होंने अपन शर्ट और बनियान निकाल दिए थे, आखिर मनिका को सामान्य हो जाने का मौका देना भी तो खतरे से खाली नहीं था. बाथरूम से निकलते ही मनिका की प्रतिक्रिया को वे एक क्षण में ही ताड़ गए थे और मुस्कुराते हुए नहाने घुस गए थे. लेकिन नहाने के बाद उन्होंने अपना अंडरवियर धो कर सुखा दिया था और अब बरमूडे के अन्दर कुछ नहीं पहने हुए थे. उन्होंने बात शुरू की,

'अरे मनिका! बताया नहीं तुमने कि मूवी कैसी लगी तुम्हें? पिछली बार तो फिल्म की बातों का रट्टा लगा कर हॉल से बाहर निकली थी तुम...'

'हेहे...ठीक थी पापा...' मनिका ने फिल्म के दौरान हुई घटनाओं को याद किया तो और झेंप गई थी.

'हम्म...मतलब जंची नहीं फिल्म आज..?’जयसिंह ने मनिका से नजर मिलाई.

'हेह...नहीं पापा ऐसा नहीं है...बस वैसे ही, मूवी की कास्ट (हीरो-हीरोइन) कुछ खास नहीं थी...और क्राउड भी गंवार था एकदम...सो...आपको कैसी लगी?' मनिका ने धीरे-धीरे अपने मन की बात कही और पूछा.

'मुझे तो बिलकुल पसंद नहीं आई.' जयसिंह ने कहा.

'हैं? क्या सच में..?’मनिका ने आश्चर्य से पूछा.

'और क्या जो चीज़ तुम्हें नहीं पसंद वो मुझे भी नहीं पसंद...' जयसिंह ने डायलॉग मारा.

'हाहाहा पापा...कितने नौटंकी हो आप भी...बताओ ना सच-सच..?' मनिका हंस पड़ी.

'हाह...मुझे तो ठीक लगी...' जयसिंह ने कहा, 'और क्राउड तो अब हमारे देश का जैसा है वैसा है.'

'हुह...फिर भी बदतमीजी की कोई हद होती है. पब्लिक प्लेस का कुछ तो ख्याल होना चाहिए लोगों को...’मनिका ने नाखुशी जाहिर करते हुए कहा.

'हाहाहा...अरे भई तुम क्यूँ खून जला रही हो अपना?' जयसिंह ने मनिका की पीठ थपथपाते हुए कहा.

'और क्या तो पापा...गुस्सा नहीं आएगा क्या आप ही बताओ?' मनिका का आशय थिएटर में हुए अश्लील कमेंट्स से था.

'अरे अब क्या बताऊँ...हाहाहा.' जयसिंह बोले 'माना कि कुछ लोग ज्यादा ही एक्साइटेड हो जाते हैं...'

'एक्साइटेड? बेशर्म हो जाते हैं पापा...और सब के सब आदमी ही थे...आपने देखा किसी लड़की या लेडी को एक्साइटेड होते हुए?' मनिका ने जयसिंह के ढुल-मुल जवाब को काटते हुए कहा.

'हाहाहा भई तुम तो मेरे ही पीछे पड़ गई...मैं कहाँ कह रहा हूँ के लडकियाँ एक्साइटेड हो रहीं थी.' जयसिंह को एक सुनहरा मौका दिखाई देने लगा था और उन्होंने अब मनिका को उकसाना शुरू किया 'अब हो जाते हैं बेचारे मर्द थोड़ा उत्साहित क्या करें...'

'हाँ तो पापा और भी लोग होते है वहाँ जिनको बुरा लगता है...और ये वही मर्द हैं आपके जिनका आप कह रहे थे कि बड़ा ख्याल रखते हैं गर्ल्स का...' मनिका ने मर्द जात को लताड़ते हुए कहा.

'अच्छा भई...ठीक है सॉरी सब मर्दों की तरफ से...अब तो गुस्सा छोड़ दो.' जयसिंह ने मामला सीरियस होते देख मजाक किया.

'हेहे...पापा आप क्यूँ सॉरी बोल रहे हो...आप उनकी तरह नहीं हो.' मनिका ने भी अपने आवेश को नियंत्रित करते हुए मुस्का कर कहा.

इस पर जयसिंह कुछ पल के लिए चुप हो गए. मनिका ने उनकी तरफ से कोई जवाब ना मिलने पर धीरे से कहा,
'पापा?'

'देखो मनिका ये बात तुम्हारे या मेरे सही-गलत होने की नहीं है. हमारे समाज में बहुत सी ऐसी पाबंदियां हैं जिनकी वजह से हम अपनी लाइफ के बहुत से आस्पेक्ट्स (पहलु) अपने हिसाब से ना जी कर सोसाइटी के नियम-कानूनों से बंध कर फॉलो करते हैं और यह भी उसी का एक एक्साम्प्ल (उदहारण) है.' जयसिंह ने कुछ गंभीरता अख्तियार कर समझाने के अंदाज़ में मनिका से कहा. चुप हो जाने की बारी अब मनिका की थी.

'पर पापा...ये आप कैसे कह सकते हो? दोज़ पीपल वर एब्यूजिंग सो बैडली...’मनिका ने कुछ पल जयसिंह की बात पर विचार करने के बाद कहा.

'हम्म...वेल लुक एट इट लाइक दिस...जिस तरह का सीन फिल्म में आ रहा था...' जयसिंह का मतलब फिल्म में आए उस किसिंग सीन से था, मनिका की नज़र झुक गई 'क्या वह हमारे समाज में एक्सेप्टेड है..? मेरा मतलब है कुछ साल पहले तक तो इस तरह की फिल्मों की कल्पना तक नहीं कर सकते थे.'
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09-21-2018, 01:50 PM,
#25
RE: Baap Beti Chudai बाप के रंग में रंग गई बेटी
'हम्म...वेल लुक एट इट लाइक दिस...जिस तरह का सीन फिल्म में आ रहा था...' जयसिंह का मतलब फिल्म में आए उस किसिंग सीन से था, मनिका की नज़र झुक गई 'क्या वह हमारे समाज में एक्सेप्टेड है..? मेरा मतलब है कुछ साल पहले तक तो इस तरह की फिल्मों की कल्पना तक नहीं कर सकते थे.'

'इह...हाँ पापा बट इसका मतलब ये थोड़े ही है की आप ऐसा बिहेव करो सबके सामने...' मनिका ने तर्क रखा.

'नहीं इसका यह मतलब नहीं है...पर पता नहीं कितने ही हज़ार सालों से चली आ रही परम्परा के नाम पर जो दबी हुई इच्छाएँ...और मेरा मतलब सिर्फ लड़कों या मर्दों से नहीं है, औरत की इच्छाओं का दमन तो हमसे कहीं ज्यादा हुआ है...लेकिन जो मैं कहना चाह रहा हूँ वह यह है कि जब सोसाइटी के बनाए नियम टूटते हैं तो इंसान अपनी आज़ादी के जोश में कभी-कभी कुछ हदें पार कर ही जाता है.' जयसिंह ने ज्ञान की गगरी उड़ेलते हुए मनिका को निरुत्तर कर दिया था 'अब तुम ही सोचो अगर आज जब लड़कियों को सामाज में बराबर का दर्जा मिल रहा है तो भी क्या उन लड़कियों को बिगडैल और ख़राब नहीं कहा जाता जो अपनी आजादी का पूरा इस्तेमाल करना चाहती हैं...जिनके बॉयफ्रेंड होते हैं या जो शराब-सिगरेट पीती हैं..?'

'हाँ...बट...वो भी तो गलत है ना..? आई मीन अल्कोहोल पीना...’ मनिका ने तर्क से ज्यादा सवाल किया था.

'कौन कहता है?' जयसिंह ने पूछा.

'सभी कहते हैं पापा...सबको पता है इट्स हार्मफुल.' मनिका बोली.

'सभी कौन..? लोग-समाज-सोसाइटी यही सब ना? अब शराब अगर आपके लिए ख़राब है तो यह बात उनको भी तो पता है...अगर उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता तो समाज कौन होता है उनहें रोकनेवाला?' जयसिंह अब टॉप-गियर में आ चुके थे. 'अगर उन्हें अपने पसंद के लड़के के साथ रहना है तो तुम और मैं कौन होते हैं कुछ कहने वाले..? सोचो...सही और गलत की डेफिनिशन भी तो समाज ने ही बना कर हम पर थोपी है.'

'अब मैं क्या बोलूँ पापा..? आप के आइडियाज तो कुछ ज्यादा ही एडवांस्ड हैं.' मनिका ने हल्का सा मुस्का कर कहा. 'बट हमें रहना भी तो इसी सोसाइटी में है ना.' उसने एक और तर्क रखते हुए कहा.

'हाँ रहना है...' जयसिंह बोलने लगे.

'तो फिर हमें रूल्स भी तो फॉलो करने ही पड़ेंगे ना..?' अपना तर्क सिद्ध होते देख मनिका ने उनकी बात काटी.

'हाहाहा...कोई जरूरी तो नहीं है.' जयसिंह ने कहा.

'वो कैसे?' मनिका ने सवालिया निगाहें उनके चेहरे पर टिकाते हुए पूछा.

'वो ऐसे कि रूल्स को तो तोड़ा भी जा सकता है...बशर्ते यह समझदारी से किया जाए.' जयसिंह ने कहा.

'मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा पापा...क्या कहना चाहते हो आप?' मनिका ने उलझन में पड़ते हुए सवाल किया.

'देखो...आज जब हॉल में वे लोग हूटिंग कर रहे थे तो कोई एक आदमी अकेला नहीं कर रहा था बल्कि चारों तरफ से आवाजें आ रही थी. अब सोचो अगर सिर्फ कोई एक अकेला होता तो तुम जैसे समाज के ठेकेदार उसे वहाँ से भगाने में देर नहीं लगाते पर क्यूंकि वे ज्यादा थे तो कोई कुछ नहीं बोला...अगर वे इतने ही ज्यादा गलत थे तो किसी ने आवाज़ क्यूँ नहीं उठाई?' जयसिंह का एक हाथ अब मनिका की कमर पर आ गया था 'मैं बताऊँ क्यूँ..? क्यूंकि असल में उस हॉल में ज्यादातर लोग उसी तरह के सीन देखने आए थे. पर बाकी सबने सभ्यता का नकाब ओढ़ रखा था और उन लोगों पर नाक-भौं सिकोड़ रहे थे जिन्होंने अपनी इच्छाओं को व्यक्त करने की हिम्मत दिखाई थी. सो एकजुट होकर अपनी इच्छा मुताबिक करना पहला तरीका है जिससे समाज के नियमों को तोड़ नहीं तो मोड़ तो सकते ही हैं.'

जयसिंह के तर्क मनिका के आज तक के आत्मसात किए सभी मूल्यों के इतर जा रहे थे लेकिन उनका प्रतिरोध करने के लिए भी उसे कोई जवाब नहीं सूझ रहा था.

'पर पापा वो इतना रुडली बोल रहे थे उसका क्या? किसी को तो उन्हें रोकना चाहिए था...और आपका पता नहीं मैं तो वहां कोई सीन देखने नहीं गई थी.' मनिका ने सफाई देते हुए कहा.

'हाँ जरूर समाज का तो काम ही है रोकना. पहले दिन से ही समाज रोकना ही तो सिखाता है कभी लड़का-लड़की के नाम पर तो कभी घर-परिवार के नाम पर तो कभी धर्म-आचरण के नाम पर...अब तुम बताओ क्या फिर भी तुम रुकी?' जयसिंह का बात की आखिर में किया सवाल मनिका के समझ नहीं आया.

'क्या मतलब पापा...मैंने क्या किया?' उसने हैरानी से पूछा.

'क्या मधु से तुम्हारी लड़ाई नहीं होती? वो तुम्हारी माँ है...क्या उनके सामने बोलना तुम्हें शोभा देता है? और फिर समाज भी यही कहता है कि अपने माता-पिता का आदर करो...नहीं कहता तो बताओ?' जयसिंह ने कहा.

'पर पापा मम्मी हमेशा बिना बात के मुझे डांट देती है तो गुस्सा नहीं आएगा क्या? मेरी कोई गलती भी नहीं होती...और मैं कोई हमेशा उनके सामने नहीं बोलती पर जब वो ओवर-रियेक्ट करने लगती है तो क्या करूँ..? अब आप भी मुझे ही दोष दे रहे हो.' मनिका जयसिंह की बात से आहत होते हुए बोली.

'अरे!' जयसिंह ने अब अपना हाथ मनिका की कमर से पीठ तक फिरा कर उसे बहलाया 'मैं तो हमेशा तुम्हारा साथ देता आया हूँ...'

'तो आप ऐसा क्यूँ कह रहे हो कि मैं मम्मी से बिना बात के लड़ती हूँ?' मनिका ने मुहं बनाते हुए अपना सिर उनके कंधे पर टिकाया.

'मैंने ऐसा कब कहा...मैं जो कह रहा हूँ वो तुम समझ नहीं रही हो. तुम मधु से लड़ाई इसीलिए तो करती हो ना क्यूंकि वो गलत होती है और तुम सही...फिर भी तुम्हे उसके ताने सहने पड़ते हैं क्यूंकि वो तुम्हारी माँ है. लेकिन इस बारे में अगर सोसाइटी में चार जानो के सामने तुम अपना पक्ष रखोगी तो वे तुम्हें ही गलत मानेंगे कि नहीं?' जयसिंह ने इस बार प्यार से उसे समझाया.

'हाँ पापा.' मनिका को भी उनका आशय समझ आ गया था.

'सो अब तुम अपनी माँ से हर बात शेयर नहीं करती क्यूंकि तुम्हें उसके एटीटयुड का पता है और यही तुम्हारी समझदारी है व वह दूसरा तरीका है जिस से समाज में रह कर भी हम अपनी इच्छा मुताबिक जी सकते हैं.'

'मतलब...पापा?' मनिका को उनकी बात कुछ-कुछ समझ आने लगी थी.

'मतलब समाज और लोगों को सिर्फ उतना ही दिखाओ जितना उनकी नज़र में ठीक हो, जैसे तुम अपनी माँ के साथ करती हो...लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि तुम गलत हो और तुम्हारी माँ या समाज के लोग सही हैं. कुछ समझी?'

'हेहे...हाँ पापा कुछ-कुछ...' मनिका अब मुस्का रही थी.

'और ये बात मैंने तुम्हें पहले भी समझाई थी के अगर मैं भी समाज के हिसाब से चलने लगता तो क्या हम यहाँ इतना वक्त बिताते? हम दोनों ही घर से झूठ बोल कर ही तो यहाँ रुके हुए हैं...’जयसिंह ने आगे कहा.

'हाँ पापा आई क्नॉ...आई थिंक आई एम् गेटिंग व्हाट यू आर ट्राइंग टू से...कि सोसाइटी इज नॉट ऑलवेज राईट...और ना ही हम हमेशा सही होते हैं...है ना?' मनिका ने जयसिंह की बात के बीच में ही कहा.

'हाँ...फाइनली.' जयसिंह बोले.

'हीहीही. इतनी भी बेवकूफ नहीं हूँ मैं पापा...’ मनिका हँसी.

'हाहाहा. बस समझाने वाला होना चाहिए.' जयसिंह ने हौले से मनिका को अपनी बाजू में भींच कर कहा.

'तो आप हो ना पापा...' मनिका भी उनसे करीबी जता कर बोली.

'हाहाहा...हाँ मैं तो हूँ ही पर मुझे लगा था तुम अपने आप ही समझ गई होगी दिल्ली आने के बाद.' जयसिंह ने बात ख़त्म नहीं होने दी थी.

'वो कैसे?' मनिका ने फिर से कौतुहलवश पूछा.

'अरे वही हमारी बात...कुछ नहीं चलो छोड़ो अब...' जयसिंह आधी सी बात कह रुक गए.

'बताओ ना पापा!? कौनसी बात..?’मनिका ने हठ किया.

'अरे कुछ नहीं...कब से बक-बक कर रहा हूँ मैं भी...' जयसिंह ने फिर से टाला.

'नहीं पापा बताओ ना...प्लीज.' मनिका ने भी जिद नहीं छोड़ी. सो जयसिंह ने एक पल उसकी नज़र से नज़र मिलाए रखी और फिर हौले से बोले,

'भूल गई जब तुम्हें ब्रा-पैंटी लेने के लिए कहा था?' मनिका के चेहरे पर लाली फ़ैल गई थी.

'क्या हुआ मनिका?' मनिका के चुप हो जाने पर जयसिंह ने पूछा था.

'कुछ नहीं पापा...' मनिका ने धीमी आवाज़ में कहा.

'बुरा मान गई क्या?' जयसिंह बोले 'मैंने तो पहले ही कहा था रहने दो...'

'उह...हाँ पापा. मुझे क्या पता था कि...आप उस बात का कह रहे हो.' मनिका ने संकोच के साथ कहा. इतने दिन बीत जाने के बाद उस घटना के जिक्र ने उसे फिर से शर्मिंदा कर दिया था.

'हाहा अरे तुम न कहती थीं के कपड़े ही तो हैं..?' जयसिंह ने मनिका की झेंप कम करने के उद्देश्य से हंस कर कहा.

'हेहे...हाँ पापा.' मनिका बोली 'बट पापा उस बात का हमारे डिस्कशन से क्या लेना-देना?' मनिका ने सवाल उठाया.

'लेना-देना क्यूँ नहीं है? तुमने उस दिन जब मुझसे माफ़ी मांगी थी तब तुम्हारे मन में यही बात तो थी ना कि तुमने ओवर-रियेक्ट कर दिया था और तुम्हारा वो बर्ताव इसीलिए तो रहा था कि तुमने सिर्फ हमारे सामाजिक रिश्ते के बारे में सोचा और आग-बबूला हो उठी थी.' जयसिंह ने उसे याद दिलाते हुए कहा 'अगर वही मेरी जगह तुम्हारा कोई मेल-फ्रेंड (लड़का) होता तो शायद तुम्हारी प्रतिक्रिया वह नहीं होती जो मेरे साथ तुमने की थी...और जब तुमने सॉरी बोला था तो मुझे लगा तुम्हें इस बात का एहसास हो गया है...अब तुमने क्या सोच कर माफ़ी मांगी थी यह तो तुम ही बता सकती हो...’ जयसिंह ने बात-बात में सवाल पूछ लिया था.

मनिका एक और दफा कुछ पल के लिए खामोश हो गई थी.

'वो पापा...आपसे बात नहीं हो रही थी और आप रूम में भी नहीं रुकते थे तब मैंने टी.वी पर एक इंग्लिश-मूवी देखी थी जिसमें...एक फैमिली को दिखाया था और उसमे जो लड़की थी वो बीच (समुद्र-किनारे) पर अपने घरवालों के सामने बिकिनी पहने हुए थी...सो आई थॉट कि उसके पेरेंट्स उसे एन्जॉय करने से नहीं रोक रहे तो आपने भी तो डेल्ही में मुझे इतना फन (मजा) करने दिया...एंड मैंने आपसे थोड़ी सी बात पर इतना झगडा कर लिया...' मनिका ने धीरे-धीरे कर अपने पिता को बताया.

'ह्म्म्म...मैंने कहा वो सच है ना फिर?' जयसिंह ने मुस्का कर मनिका से पूछा, उनके दिल में ख़ुशी की लहर दौड़ गई थी.

'हाँ पापा...' मनिका ने सहमति जताई.

'लेकिन एक बात और जो मैं पहले भी कह चुका हूँ, और जैसा की तुमने अभी कहा कि न ही सोसाइटी और न हम हमेशा सही होते हैं, उसका भी ध्यान तुम्हें रखना होगा.' जयसिंह ने कहा. अभी तक तो जयसिंह समाज और आदमी-औरत के उदाहरण देकर मनिका से बात कर रहे थे लेकिन इस बार जयसिंह ने सीधा मनिका को संबोधित करते हुए यह बात कही थी.

'वो क्या पापा..?' मनिका ने पूछा.

'वो यही कि हर वह बात जो हमारे लिए सही नहीं है और समाज के लिए सही है या समाज के लिए सही नहीं है पर हमारे लिए सही है उसे जग-जाहिर ना करना ही अच्छा रहता है. जैसे तुम अपनी मम्मी से झूठ बोलने लगी हो...उस बात का भी ध्यान रखना बहुत जरूरी है.' जयसिंह ने कहा.

'हाहाहा...हाँ पापा डोन्ट वरी (चिंता) इसका ध्यान तो मैं आपसे भी ज्यादा रखने लगी हूँ...' मनिका ने हंस कर कहा.

'वैरी-गुड गर्ल..!' जयसिंह ने मनिका का गाल थपथपाते हुए कहा. मनिका भी इठला कर मुस्कुरा दी थी. 'चलो अब सोयें रात काफी हो गई है. कल काफी काम बाकी पड़ा है तुम्हारे एडमिशन का...’कहते हुए जयसिंह ने अपना दूसरा हाथ, जो अभी तक मनिका की कमर पर था, और नीचे ले जा कर उसके नितम्बों पर दो हल्की-हल्की चपत लगा कर उसे उठने का इशारा किया था.

'बट पापा! नींद नहीं आ रही आज...कुछ देर और बैठते हैं ना?' मनिका बोली.

'ह्म्म्म...ठीक है, वैसे भी एक-दो दिन की ही बात और है फिर तो हम अलग-अलग हो जाएंगे.' जयसिंह ने कुछ सोच कर कहा.

'ओह पापा ऐसे तो मत कहा करो. हमने प्रॉमिस किया था ना कि नथिंग विल चेंज बिटवीन अस..?’मनिका ने उदासी से कहा.

'अरे हाँ भई मुझे याद है पर फिर भी घर जाने के बाद कहाँ हम इस तरह साथ रह पाएंगे? और फिर कुछ दिन बाद तुम्हें वापिस भी तो आना है यहाँ...’जयसिंह मनिका को भावुक करने में लग गए थे.

'हाँ पापा...वो भी है.' मनिका बोली 'कुछ और बात करते हैं ना पापा...ऐसी सैड बातें मत करो.'

'ह्म्म्म. मैं तो कबसे बातें कर रहा हूँ...अब बोलने की बारी तुम्हारी है.' जयसिंह ने पासा पलटते हुए कहा.

'मैं क्या बोलूँ..?' मनिका ने उलझते हुए कहा.

'कुछ भी...जो तुम्हारा मन हो...' जयसिंह बोले. तभी मनिका को एक और बात याद आ गई जो उसके पिता ने कही थी और जिसका सच उसने बाद में महसूस किया था.

'पापा! एक बात बोलूँ?' मनिका ने कहा 'आप सही थे आज...’ उसने उनके जवाब का इन्तजार किए बिना ही आगे कहा.

'किस बात के लिए?' जयसिंह ने कौतुहल से पूछा.

'वही जो आप कह रहे थे ना कि लड़कों से ज्यादा...वो मेन (आदमी)...मर्द या जो कुछ भी अपनी गर्लफ्रेंडस का ज्यादा ख्याल रख सकते हैं.' मनिका ने बताया.

'हाहाहा. हाँ पर ये तुमने कैसे जाना?' जयसिंह ने मजाक में पूछा था पर अपने दिल की हालत तो वे ही समझ सकते थे.

'फिर वही टी.वी. से पापा...हाहाहा!' मनिका ने हँसते हुए बताया 'आप सो गए थे तब टी.वी में देखा मैंने कि ज्यादातर हीरो-हिरोइन्स में ऐज डिफरेंस बहुत होता है फिर भी वे एक-दूसरे को डेट करते हैं. आई मीन कुछ तो लिटरली (ज्यों के त्यों) आपकी और मेरी ऐज के होते हैं. सो आई रियलाईज्ड कि मे-बी आप सही थे...'

'हाहाहा...धन्य है ये टी.वी. अगर इसके चरण होते तो अभी छू लेता...’जयसिंह ने मजाक किया.

'हहहहाहा...हेहेहे...' मनिका एक बार फिर से उनकी बात पर लोटपोट होते हुए हँस दी थी 'क्या पापा कितना ड्रामा करते हो आप हर वक्त…हाहाहा!'

'अरे भई मेरी कही हर बात टी.वी. पर दिखाते हैं तो मैं क्या करूँ..?’जयसिंह बोले.

'हाहाहा...तो आप भी किसी सेलेब्रिटी से कम थोड़े ही हो.' मनिका ने हँसते हुए कहा.

'हाहा...और मेरी गर्लफ्रेंड भी है किसी सेलेब्रिटी जैसी ही...' जयसिंह ने मौका न चूकते हुए कहा.

'हेहेहे...पापा आप फिर शुरू हो गए.' मनिका बोली.

'लो इसमें शुरू होने वाली क्या बात है?' जयसिंह बोले 'खूबसूरती की तारीफ़ भी ना करूँ..?'

'हाहा...पापा! इतनी भी कोई हूर नहीं हूँ मैं...’मनिका ने कहा. लेकिन मन ही मन उसे जयसिंह की तारीफ़ ने आनंदित कर दिया था और वह मंद-मंद मुस्का रही थी.

'अब तुम्हें क्या पता इस बात का के हूर हो की नहीं?' जयसिंह भी मुस्काते हुए बोले 'हीरे की कीमत का अंदाज़ा तो जौहरी को ही होता है...'

'हहहहाहा...क्या पापा..? क्या बोलते जा रहे हो...बड़े आए जौहरी...हीही!' मनिका ने मचल कर कहा 'क्या बात है आपने बड़े हीरे देख रखें हैं..हूँ?' और जयसिंह को छेड़ते हुए बोली.

'भई अपने टाइम में तो देखें ही हैं...' जयसिंह शरारत भरी आवाज़ में बोले.

'हा..!' मनिका ने झूठा अचरज जता कर कहा 'मतलब आपकी भी गर्लफ्रेंडस होती थी?'

'हाहाहा अरे ये गर्लफ्रेंड-बॉयफ्रेंड का चलन तो अब आया है. हमारे जमाने में तो कहाँ इतनी आजादी मिलती थी सब कुछ लुका-छिपा और ढंका-ढंका होता था.' जयसिंह ने बताया.

'हेहेहे! हाँ बेचारे आप...’मनिका ने मजाक करते हुए कहा 'तभी अब कसर पूरी कर रहे थे उस दिन टी.वी. में हीरोइनों को देख-देख कर...है ना?' उसने जयसिंह को याद कराया.

'हाहाहा..!' जयसिंह बस हंस कर रह गए.

'देखा उस दिन भी जब चोरी पकड़ी गई थी तो जवाब नहीं निकल रहा था मुहं से...बोलो-बोलो?' मनिका ने छेड़ की.
'अरे भई क्या बोलूँ अब...मैं भी इन्सान ही हूँ.' जयसिंह ने बनावटी लाचारी से कहा.

'हाहाहा!' मनिका हंस-हंस कर लोटपोट होती जा रही थी.
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09-21-2018, 01:50 PM,
#26
RE: Baap Beti Chudai बाप के रंग में रंग गई बेटी
उधर उसकी करीबी ने जयसिंह के लिंग को तान रखा था. जयसिंह को भी इस बात का एहसास नहीं हुआ था कि उनका लंड खड़ा है क्यूंकि दिल्ली आने के बाद से उनके लिए यह एक रोजमर्रा की बात हो गई थी. बरमूडे के आगे के हिस्से को उनके लंड ने पूरा ऊपर उठा दिया था.

'तो मतलब आप मेरी झूठी तारीफ़ कर रहे थे ना? आपको तो वो कटरीना-करीना ही पसंद आती है...जिनका सब कुछ ढंका-ढंका नहीं होता है!' मनिका ने आगे कहा. वह उत्साह के मारे कुछ ज्यादा ही खुल कर बोल गई थी.

जयसिंह ने मन ही मन विचार किया 'आज तो किस्मत कुछ ज्यादा ही तेज़ चल रही है...क्या करूँ? बोल दूँ के नहीं?' फिर उन्हें अपना निश्चय याद आया कि दीमाग से ज्यादा वे अपनी काम-इच्छा का पक्ष लेंगे और वे बोले,

'हाहाहा. कुछ भी कह लो मनिका पर तुम भी कोई कटरीना-करीना से कम तो नहीं हो..! फैशन में तो तुम भी काफी आगे हो...'

'हीहीही...क्या बोल रहे हो पापा? आपको क्या पता?' मनिका ने थोड़ा आश्चर्य से पूछा.

'पता तो मुझे दिल्ली आते ही लग गया था...' जयसिंह ने मनिका की आँखों में झांकते हुए कहा. उनकी आवाज़ में एक बात छिपी थी.

'हैं? वो कैसे पापा?' मनिका ने पहले की भाँती ही मुस्कुराते हुए पूछा. उसे अभी भी जयसिंह की बातें मजाक लग रहीं थी.

'याद करो वो नाईट-ड्रेस जो तुमने पहली रात को पहनी हुई थी...' जयसिंह ने मुस्कुरा कर कहा.

मनिका ने अभी भी उनसे नज़र मिला रखी थी. उनकी बात सुनते ही उसके चेहरे पर एक पल के लिए खौफ भरा भाव आ गया था और फिर उसकी नज़र नीची हो गई और चेहरे पर एक बार फिर से लाली आ गई.

'क्या हुआ?' जयसिंह ने मनिका का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा.

'कुछ नहीं...' मनिका ने हौले से कहा. एक ही पल में पासा पलट गया था और उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई थी.

'पापा ने सब नोटिस किया था मतलब..! ओह गॉड!' उसके मन में उथल-पुथल मच चुकी थी. आज यह दूसरी बार था जब जयसिंह ने मनिका को धर्म-संकट में डाल फिर से वही सवाल दोहराया था.

मनिका और जयसिंह के बीच चुप्पी छा गई थी.

कुछ पल बीतने के बाद मनिका रुक ना सकी और भर्राई आवाज में बोली,

'पापा? आई एम् सॉरी..!'

'अरे किस बात के लिए?' जयसिंह ने झूठी हैरानी व्यक्त की.

'वो...वो पापा उस रात है ना मुझे ध्यान नहीं रहा...वो मैं अपने घर वाले कपड़े ले कर बाथरूम में घुस गई थी और फिर...फिर पहले वाली ड्रेस शावर में भीग गई सो...आई हैड टू वियर दोज़ क्लॉथस एंड कम आउट...' उसने उन्हें बताया 'मैंने सोचा भी था की आप क्या सोचोगे मेरे बारे में कि कैसी बिगड़ैल हूँ मैं...बट आपने जैसे रियेक्ट किया उससे मुझे लगा कि आप भी एम्बैरेस हो तभी मुझे डांटा नहीं...आई एम् सो सॉरी...' मनिका ने एक्सप्लेनेशन दिया.

'अरे! पागल हो तुम...ऐसा क्यूँ सोच रही हो? मैं तो यहाँ तुम्हारी तारीफ़ कर रहा था और तुम कुछ भी सोचती चली जा रही हो..!’जयसिंह ने मनिका की ठुड्डी पकड़ उसका चेहरा ऊपर उठाते हुए कहा.

'पापा?' मनिका की नज़र में अचरज था. 'क्या कह रहे हैं पापा?' उसने सोचा. जयसिंह ने उसके चेहरे से उसके मन की बात पढ़ ली थी.

'और नहीं तो क्या...मैं तुम्हें डांटूंगा ऐसा क्यूँ लगा तुम्हें?' जयसिंह धीमे-धीमे बोलने लगे थे ताकि मनिका को पता रहे कि वे मजाक नहीं कर रहे थे और उनकी आवाज़ में एक अंतरंगता भी आ गई थी.

'वो मैं...' मनिका को कुछ नहीं सूझा था और वह फिर से चुप हो गई थी.

'तुम्हें लगा कि मैं तुम्हें इतना खूबसूरत लगने के लिए डांटने वाला हूँ?' मनिका की चुप्पी का फायदा उठा कर जयसिंह बोलते जा रहे थे 'भई मुझे तो इस बात का पता ही नहीं लगता कि तुम इतनी बड़ी हो गई हो अगर उस रात तुम कुछ और पहन कर आ जाती तो के जिसे मैं छोटी बच्ची समझता था वह इतनी बड़ी हो गई है. इन-फैक्ट (दरअसल) तुम्हें तो शुक्रगुजार होना चाहिए कि तुमने वो ड्रेस पहनी हुई थी...'

'क…क्या मतलब पापा?' मनिका के कानों में जयसिंह की आवाज़ गूँज सी रही थी.

'अरे भई तभी से तो मैंने तुम्हें एक एडल्ट-समझदार लड़की की तरह ट्रीट करना शुरू किया बिकॉज़ आई क्न्यु कि इंटरव्यू कैंसिल होने के बाद तुम इतना जल्दी वापस नहीं जाना चाहोगी और हम यहाँ रुके रहे.' जयसिंह ने शब्द-जाल बुनना शुरू कर दिया था.

'ओह...' मनिका ने हौले से कहा.

'क्या हुआ मनिका तुम कुछ बोल नहीं रही हो?' जयसिंह ने मनिका को कुरेदते हुए कहा.

'कुछ नहीं ना पापा. वो मैं थोडा एम्बैरेसड फील कर रही हूँ...आपके सामने ऐसे...आई मीन वो ड्रेस इनडिसेंट (अभद्र) सा था ना थोड़ा?' मनिका ने अंत में आते-आते अपने जवाब को सवाल बना दिया था और एक पल जयसिंह से नज़र मिलाई थी.

'ओहो...अभी दो घंटे के डिस्कशन के बाद हम फिर वहीँ आ खड़े हुए जहाँ से चले थे!' जयसिंह उत्साहविहीन आवाज़ में बोले 'मनिका डोन्ट फील एम्बैरेसड ओके? अब मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ...लुक एट मी...’उन्होंने मनिका के एक बार फिर नज़र झुका लेने पर कहा.

'जी...' मनिका ने उन्हें देखते हुए कहा.

'देखो मनिका अभी हम क्या बातें कर रहे थे..? यही ना कि सोसाइटी के नॉर्म्स (नियम) एक हद तक ही फॉलो करने चाहिएं...अब देखो वही बात तो यहाँ अप्लाई हो रही है.' वे उसे समझाते हुए बोले 'तुम सिर्फ इसलिए एम्बैरेस हो रही हो कि मैं तुम्हारे साथ था. पर मैंने तो तुम्हें सपोर्ट ही किया था, डिड आई मेक यू फील अनकम्फ़र्टेबल?'

'नो पापा...बट...' मनिका एक-दो शब्दों में ही जवाब दिए जा रही थी.

'बट क्या मनिका?' जयसिंह बोले 'तुम इतनी खूबसूरत लग रही थी अब इज़ दैट ए क्राइम? नहीं ना...एंड आई एडमायरड (प्रशंशा) यू फॉर इट...एंड वो भी कोई जुर्म तो है नहीं. पर तुम ये सोच रही हो कि मैंने तुम्हें बिगड़ा हुआ समझ लिया और जाने क्या-क्या?'

'हूँ...आपने नहीं सोचा ऐसा?' मनिका ने हौले से उनसे पूछा.

'बिलकुल नहीं...क्या मैं तुम्हें जानता नहीं हूँ? यू आर इनसल्टिंग (अपमान) मी बाय सेयिंग दैट..?’ वे बोले.

'सॉरी पापा आई डिड नॉट मीन टू हर्ट यू..!' मनिका बोली.

'आई क्नॉ आई क्नॉ...अरे भई मुझे तो बहुत अच्छा लगा कि मेरी मनिका इतनी ब्यूटीफुल हो गई है...हम्म?' जयसिंह ने मनिका का गाल सहलाते हुए कहा.

जयसिंह ने देखा की मनिका के झेंप भरे चेहरे पर एक पल के लिए छोटी सी मुस्कान आई और चली गई थी.

'इतनी खूबसूरत तो मधु भी कभी नहीं थी...वो फ़िल्मी हिरोइन्स भी तुम्हारे सामने कुछ नहीं लगती सच कहूँ तो.' जयसिंह ने मख्खन लगाते हुए कहा.

'इश्श पापा...बस करो इतना भी हवा में मत उड़ाओ मुझे...' मनिका ने काफी देर बाद एक वाक्य पूरा किया था.

'सच कह रहा हूँ...हाहा.' जयसिंह ने टेंशन थोड़ी कम करने के उद्देश्य से हंस कर कहा.

'हीही पापा...' मनिका की झेंप कुछ मिटी थी.

अब जयसिंह ने मनिका को थोड़ा और करीब खींचा जिससे वह उनकी जाँघ पर खिसक कर उनसे सट गई, ऐसा करते ही उसकी एक जाँघ जयसिंह के खड़े लिंग से जा टकराई. मनिका को कुछ पल तो पता नहीं चला था, पर फिर उसे अपनी जाँघ के साथ लगे जयसिंह के ठोस लंड का आभास होने लगा और उसने नज़र नीचे घुमा जयसिंह की गोद में देखा था व मनिका एक बार फिर से होश खोने के कागार पर आ खड़ी हुई थी.

जयसिंह के बरमूडे के अन्दर से तन कर उनका लंड उनकी गोद में किसी डंडे सी आकृति बना रहा था और उसकी जाँघ से सटा हुआ था. यह देखते ही मनिका चिहुँक कर थोड़ा पीछे हट गई. उधर जयसिंह को भी मनिका की जाँघ के अपने लंड से हुए स्पर्श का पता चल चुका था और वे उसके चेहरे पर ही नज़र गड़ाए हुए थे जब उसने उनकी गोद में झाँक कर अनायास ही अपने-आप को पीछे हटाया था.

मनिका ने भी झट नज़र उठा कर जयसिंह की तरफ देखा था कि उनकी क्या प्रतिक्रिया होती है पर उन्हें बिल्कुल सामान्य पाया, उन्होंने उसका गाल फिर से थपथपाया और पूछा,

'नींद नहीं आ रही आज?'

'हाँ...हाँ पापा...स्स...सोते हैं चलो.' मनिका ने थर्राते हुए कहा.

जयसिंह के लंड का आभास होने के बाद से मनिका की इन्द्रियां जैसे पहली बार जाग उठी थी, उसे अब अपने पिता के बदन के हर स्पर्श का एहसास साफ़-साफ़ हो रहा था. उसके गाल पर रखा हाथ उन्होंने नीचे कर के उसकी गर्दन पर रखा हुआ था वहीं उनके दूसरे हाथ की पोजीशन ने उसकी हया को और ज्यादा बढ़ा दिया था, उसने पाया कि जब से जयसिंह ने उसकी बम्स (कूल्हे) पर थपकी दे कर उसे उठने को बोला था तब से उनका हाथ उन्होंने वहाँ से हटाया नहीं था. जयसिंह ने हाथ पूरी तरह से तो उसके अधो-भाग पर नहीं रखा हुआ था बल्कि उसे एक हल्के से टच (स्पर्श) की अनुभूति हो रही थी. अपने नीचे दबी जयसिंह की माँसल जाँघ की कसावट भी वह महसूस कर रही थी. उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके और उनके बीच हर पॉइंट ऑफ़ कांटेक्ट (मिलन-बिंदु) से एक गर्माहट सी प्रज्ज्वलित हो रही हो. वह सोने का बोल कर उनकी गोद से उठने लगी.

'पट्ट' की आवाज आई. जयसिंह ने हल्के से उसके कूल्हे पर एक और चपत लगा दी थी लेकिन इस बार मनिका को उनका ऐसा करना पहली-दूसरी बार से ज्यादा इंटेंसिटी (प्रवेग) से महसूस हुआ था व उसकी आवाज़ भी उसके कानों में आन पड़ी थी.

'चलो फिर सोते हैं...' वे भी मुस्काते हुए उठ गए थे.

बिस्तर की तरफ बढती हुई मनिका के क़दमों में एक तेज़ी थी. जयसिंह भी पीछे-पीछे ही आ रहे थे. बेड पर चढ़ कर मनिका ने दूसरी तरफ से बिस्तर पर चढ़ते हुए अपने पिता की तरफ देखा, उसको जैसे ताव आ गया था, पहली रात जब जयसिंह ने बरमूडा-शॉर्ट्स पहनी थी तो उनमें से उनके लिंग के उठाव का पता मनिका को इसलिए चला था कि वह पहले से ही उनकी नग्नता के दर्शन कर चुकी थी और उसकी नज़र सीधा वहीं गई थी. लेकिन आज तो जयसिंह का लंड पूरी तरह से तना हुआ था और शॉर्ट्स के आगे के भाग को पूरा ऊपर उठाए इस तरह खड़ा हुआ था की मनिका की नज़र ना चाहते हुए भी उस पर चली गई थी. जयसिंह मुस्कुराते हुए बिस्तर में घुस कर उसकी ओर करवट लिए लेट गए.
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09-21-2018, 01:51 PM,
#27
RE: Baap Beti Chudai बाप के रंग में रंग गई बेटी
उन दोनों की नज़रें मिली. जयसिंह उसकी निगाहों को ताड़ चुके थे और मुस्काए, मनिका भी क्या करती सो वह भी मुस्का दी. जयसिंह को जैसे कोई छिपा हुआ इशारा मिल गया था, वे खिसक कर मनिका के बिलकुल करीब आ गए. इस तरह उनके अचानक पास आ जाने से मनिका असहज सी हो गई पर उसका शरीर उस एक पल के लिए जड़ हो गया था. जयसिंह ने उसके करीब आ कर अपना हाथ उसकी कमर में डाल लिया और अपना चेहरा उसके चेहरे के बिलकुल पास ले आए, उधर मनिका से हिलते-डुलते भी नहीं बन रहा था.

'गुड-नाईट डार्लिंग!' जयसिंह ने धीरे से कहा.

'ओह...गुड-नाईट पापा...' मनिका उनकी इस हरकत का आशय समझ थोड़ी सहज होने लगी.

जयसिंह ने मुस्का कर उसकी कमर पर रखा हाथ उठा कर एक बार फिर उसकी ठुड्डी पकड़ी और अगले ही पल अपना मुहँ उसके चेहरे की तरफ बढ़ा दिया; 'पुच्च' मनिका कुछ समझ पाती उस से पहले ही उन्होंने उसके गाल पर एक छोटा सा किस्स कर दिया था और पीछे हो कर लेट गए.

मनिका की नज़रें उठाए नहीं उठ रहीं थी. जयसिंह के यकायक किए इस बर्ताव ने उसे स्तब्ध कर दिया था. किसी तरह उसने एक पल को उनकी तरफ देखा था और झट-पट नज़र झुका ली, जयसिंह को इतना इशारा काफी था,

'वैसे तुमसे एक शिकायत भी है मुझे अब...' वे बोले.

'क्या पापा?' मनिका ने हैरानी से पूछा, उसकी नज़र फिर से उठ गई थी.

'यही कि मैंने तुमसे ये एक्स्पेक्ट नहीं किया था कि तुम मुझे इतना पराया और गलत समझोगी...' जयसिंह के चेहरे से मुस्कुराहट हट चुकी थी.

'पापा! मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती...कभी नहीं...आप ऐसा क्यूँ बोल रहे हो?' मनिका ने भावुक हो कर कहा और उठ बैठी.

'वैसे ही कह रहा हूँ, हो सकता है मैं गलत होऊं पर जब से तुमने बताया है तब से सोच रहा हूँ अगर तुम्हें मुझ पर भरोसा होता तो पहली रात के बाद तुम नाईट-ड्रेस चेंज करके रोज यह अभी वाले कपड़े न पहन कर सोती.' जयसिंह ने चेहरे पर ऐसा भाव प्रकट किया जैसे वे बहुत दुखी व विचलित हों.

'नहीं ना पापा ऐसा मत कहो...ऐसा बिल्कुल नहीं है!' मनिका ने अपने तर्क की सच्चाई जताने के लिए थोड़ा सा उनकी तरफ झुकते हुए कहा 'वो तो...मुझे शर्म...शर्म आती है इसलिए नहीं पहनती...प्लीज़ ना पापा आप मुझे मिसअंडरस्टैंड मत करो...'

'हम्म...' जयसिंह ने सोचते हुए प्रतिक्रिया की.

'पापा! प्लीज..?’मनिका ने हाथ बढ़ा कर उनका हाथ थाम कर मिन्नत की.

'ओके ओके...मान ली तुम्हारी बात भई.' जयसिंह ने मुस्का कर उसकी तरफ देखा.

'ओह पापा.' मनिका ने राहत की साँस ली 'ऐसा मत सोचा करो आप...'

'ठीक है...' जयसिंह बोले 'चलो अब यहाँ आओ और मुझे मेरी गुड-नाईट किस्स दो...'

मनिका एक पल के लिए ठिठकी और उसकी नज़र फिर से जयसिंह के लिंग पर चली गई फिर उसने धीरे से आगे झुक कर जयसिंह के गाल पर पप्पी दे दी 'पुच्च'.

अब मनिका पीछे हट कर फिर से अपनी जगह पर लेट गई. जयसिंह ने लाइट बुझा कर नाईट-लैंप जला दिया और वे दोनों एक-दूसरे की तरफ करवट लिए सोने लगे. पर कुछ-कुछ पल में ही कभी मनिका तो कभी जयसिंह आँख खोल कर देख रहे थे और जब कभी दोनों की आँखें साथ में खुल जाती थी तो दोनों झट से आँखें मींच लेते थे.

यूँ तो जब से वे दोनों दिल्ली आए थे मनिका और जयसिंह दुनिया-जहान की बातें कर चुके थे और कभी-कभी जयसिंह की चालाकी से उनके बीच की बातचीत ने कुछ रोचक मोड़ भी ले लिए थे परन्तु अभी तक उन्होंने अपने रिश्ते के दायरों का उलंघन नहीं किया था. लेकिन आज जिस तरह से जयसिंह ने बात घुमाते-घुमाते मनिका के सामने हर रिश्ते की परिभाषा को एक मर्द और औरत के बीच समाज की खड़ी की दीवारों के रूप में पेश किया था उसने मनिका के मन को अशांत और आतंकित कर दिया था. मनिका लेटी हुई सोच रही थी,

'ओह पापा भी कैसी अजीब बातें सोचते हैं...सबसे डिफरेंट...मर्द-औरत...लड़की...सोसाइटी के बनाए हर रूल से उलट..! वैसे वे भी कुछ गलत तो नहीं कह रहे थे...आई मीन (मेरा मतलब) अगर हम अपनी लाइफ अपने हिसाब से जीना चाहते हैं तो उससे सोसाइटी और लोगों को क्यूँ दिक्कत होती है? एंड उन फूहड़ लोगों का भी अपना लाइफ स्टाइल है वो चाहें मूवी में हूटिंग करें या कुछ और...बात तो तब गलत होगी जब वे किसी और को जान-बूझ कर परेशान करें या छेड़ें.' मनिका ने अब आँख खोल-खोल कर जयसिंह की ओर देखना बंद कर दिया था 'एंड पापा ने कहा कि मैं भी तो मम्मी से बातें छुपाने लगी हूँ...हाँ क्यूंकि वे हमेशा मुझसे चिढती रहती हैं...पापा ने भी तो कहा कि सब बातें हर किसी को बताने की नहीं होती...पहले भी तो मैंने यह सोचा था कि अगर मम्मी को पता चले कि हम यहाँ दिल्ली में ऐश कर रहे थे तो कितना बखेड़ा खड़ा हो जाएगा...हमें तो ज़िन्दगी भर ताने सुनने पड़ें शायद...और अगर...ओह गॉड! अगर किसी तरह मम्मी को हमारे बीच होने वाली इंटरेक्शन (मेल-जोल, बातें) का पता चल गया तो फिर तो गए समझो...कैसे हम दोनों एक ही रूम में इतने दिनों से रह रहे हैं और...वो अंडरर्गार्मेंट्स वाली बात पर हुई लड़ाई...पापा ने कहा कि अगर उनकी जगह कोई और होता तो मैं शायद इतना रियेक्ट नहीं करती...क्या सच में? कभी किसी ने ऐसी बात तो कही नहीं है मुझसे...पर हाँ शायद इतना बड़ा इशू (बतंगड़) नहीं बनता...आखिर मूवीज में ये सब कॉमन है. पर पापा थे इसलिए...सुबह उनसे फिर से सॉरी कहूँगी...पापा कितने मैच्योर (समझदार) हैं और कितने कूल भी...उन्होंने कहा कि वे सच में मुझे एक एडल्ट की तरह ट्रीट करते हैं...हाँ वो तो है!' सोचते हुए मनिका ने करवट बदल ली.

उधर जयसिंह लेटे हुए उसे देख रहे थे, उसके करवट बदलने पर उन्होंने अच्छे से आँखें खोल कर उसकी तरफ देखा था, 'आज तो पता नहीं क्या-क्या बोल गया मैं...पर कुतिया ने ज्यादा विरोध नहीं किया...साली के मन में पता नहीं क्या चल रहा होगा. कैसी मचकी थी चिनाल जब पैर पे लंड महसूस हुआ था...पर फिर भी सब लग तो सही ही रहा है वरना चुम्मा ना देती इतने आराम से...देखो कल कितना काम आता है ये ज्ञान...’जयसिंह ने सोचते हुए मनिका की तरफ एक नज़र और डाली; वे जानते थे कि आज उनके बीच जिस तरह की बातें हुई थी वे आज से पंद्रह दिन पहले तक नामुमकिन थी और ये उनके रचे चक्रव्यूह का ही कमाल था कि मनिका अब उनके चंगुल में फंसती चली जा रही थी. उन्होंने पूरे समय मनिका के साथ एक कदम आगे बढ़ने के बाद दो कदम पीछे खींचे थे और उनकी यह स्ट्रेटेजी कामयाब रही थी. एक पल तो वे मनिका को शर्मिंदगी के कागार पर पहुंचा देते और फिर अगले ही पल खुद ही उसे आश्वस्त कर देते कि उनके बीच होनेवाली बातों में कुछ भी गलत नहीं था और मनिका उनकी और ज्यादा कायल हो जाती थी. वैसे भी २२ साल की मनिका जयसिंह जैसे मंझे हुए व्यापारी के साथ क्या होड़ कर सकती थी? उन्होंने देखा कि मनिका ने अपना हाथ उठा कर अपने नितम्ब पर रखा हुआ था और एक बार उसे हल्के से सहलाया था. उनके चेहरे पर एक लम्बी मुस्कान तैर गई और ख़ुशी से उन्होंने एक पल को आँखें बंद कर ली थी.

'और मम्मी ने मुझे आज तक इस तरह अच्छे से ट्रीट नहीं किया है...छोड़ो मम्मी की किसे जरूरत है?' मनिका के विचार भी अभी बराबर चल रहे थे 'अगर उन्हें पता चले कि पापा ने मेरी ब्रा-पैंटी देख ली थी तो...हाहाहा हाय! पापा ने कैसा सताया था...और मैंने जो उनका डिक...देख लिया था? पापा बार-बार कहते हैं कि हमें घर पर सावधान रहना होगा...और ये बात तो किसी से शेयर भी नहीं कर सकती...कितना बड़ा है पापा का! हाय...कैसे खिसिया जाते हैं जब उनको सताती हूँ उन मूवी वाली हिरोइन्स के नाम पर...क्या उनके छोटे-छोटे कपड़े देख कर पापा टर्न-ऑन (उत्तेजित) हो जाते हैं..? और उनका डिक इरेक्ट (खड़ा)...हाय... बोल रहे थे कि उन्होंने उस रात मुझे नोटिस किया था...शॉर्ट्स में...पर कुछ कहा नहीं था ताकि मुझे बुरा ना लग जाए...कितने केयरिंग है पापा...बट कितना अडौर (तारीफ) कर रहे थे आज मुझे...कि आई वास् लुकिंग वैरी ब्यूटीफुल...सब कुछ देख लिया था उन्होंने सुबह-सुबह मतलब...शॉर्ट्स तो पूरी ऊपर हुई पड़ी थी...ही सॉ माय नेकेड बम्स (नंगी गांड)...ओह गॉड और बोले की मैं मम्मी से भी ज्यादा खूबसूरत हूँ...तो क्या उनको इरेक्शन हुआ होगा मुझे देखने के...नहीं-नहीं वो तो पापा हैं मेरे ऐसा थोड़े ही सोचेंगे...पर पापा तो कहते हैं कि सब रिश्ते समाज ने बनाए हैं! मैंने भी तो उन्हें बताया था कि सब मुझे उनकी गर्लफ्रेंड समझते हैं...कैसे मजाक बनाते हैं उस बात का भी वे...यहाँ आने से पहले तो कभी मैं उनकी गोद में नहीं बैठी...आई मीन बड़ी होने के बाद से...पर अब तो मुझे अपने लैप में ही बिठाए रखते हैं...और दो-तीन बार तो मुझे डार्लिंग भी कह चुके हैं...मनिका डार्लिंग...ये तो मैंने सोचा ही नहीं था...और जो मेरे बम्स पर उन्होंने हाथ से...पहले किसी ने नहीं टच किया मुझे वहाँ पर...पापा ने...कैसी आवाज़ आई थी उनके स्लैप (थपकी) की...हे भगवान मैं क्या सोचती जा रही हूँ आज ये..?’मनिका याद कर-कर के सम्मोहित होती जा रही थी, उसे अचानक अपनी गांड में एक स्पंदन का एहसास होने लगा था और उसने हाथ से वहाँ पर सहलाया था जहाँ उसके पिता ने उसे छुआ था. यही देख जयसिंह की बाँछें खिल उठी थीं. उधर मनिका के मन में लगी आग ने ज्वाला का रूप धारण कर लिया था.

'घर जाने के बाद तो मैं और पापा यह सब नहीं कर पाएंगे...सिर्फ एक-दो दिन और हैं हम यहाँ फिर तो जाना ही पड़ेगा...तब देखती हूँ कितना डार्लिंग-डार्लिंग करके बुलाते हैं मुझे...पर वो तो वे प्यार से कहते होंगे...मैं भी गलत-सलत सोच रही हूँ बेफालतू...' मनिका ने अपने ख्यालों को विराम देने की कोशिश की पर विफल रही 'और आज तो गुड-नाईट किस्स...मुझे तो एक बार लगा कि पापा इज गोइंग टू किस्स माय लिप्स (होंठ)...जैसा उस मूवी में था...उनकी पकड़ कितनी मजबूत है, चेहरा घुमा तक नहीं सकी थी मैं...उस दिन भी तो उनकी बाहों में...सबके सामने मुझे अपनी बाहों में भर लिया था...उह्ह.'

इसी तरह के विचारों में उलझी मनिका की आँख लग गई थी पर जयसिंह सोए न थे.

जयसिंह जानते थे कि आज मनिका इतनी जल्दी नहीं सो पाएगी सो वे देर तक आँखें मूँदे पड़े रहे थे. 'आहा आज तो मजा आ गया. साली का दीमाग पलटने में अगर कामयाबी मिल जाती है तो उसके बाद तो कुतिया के बचने का सवाल ही पैदा नहीं होता...जल्दी से सो जाए तो थोड़ा मजा कर लूँ काफी दिन हो गए...उम्म्म...अब तो वापसी का वक़्त भी करीब आ गया है.' करीब दो घंटे तक जयसिंह ने कोई हरकत नहीं की थी. जब उन्हें लगा कि अब तो मनिका गहरी नींद सो ही चुकी होगी तो उन्होंने अपनी आँखें खोलीं और अपनी बेटी की तरफ देखा.

मनिका की करवट उनकी तरफ थी. कमरे में हमेशां की तरह नाईट-लैंप की रौशनी फैली हुई थी. मनिका बेफिक्र नींद के आँचल में समाई हुई थी. एक पल के लिए उसके मासूम-खूबसूरत चेहरे को देख जयसिंह को अपने इरादों पर शर्मिंदगी का एहसास हो आया था पर फिर हवस का राक्षस उन पर दोगुनी गति से सवार हो गया 'रांड चिनाल कुतिया...छोटी-छोटी कच्छियाँ पहनती है मेरे पैसों से! ऐश करती है मेरे पैसों से...और मजे लेगा कोई और? हँह!'
'मनिका!' जयसिंह ने उसे पुकारा. उन्होंने अपनी आवाज़ भी नीची नहीं की थी. मनिका सोती रही.

जयसिंह की हिमाकत अब इस हद तक बढ़ चुकी थी कि वे अब बेख़ौफ़ खिसक कर मनिका के करीब हो लेट गए और अपने हाथ से उसके गाल को एक दो पल सहलाने के बाद अपने हाथ का अँगूठा मनिका के गुलाबी होंठों पर रख कर उन्हें मसलने लगे. मनिका के रसीले होंठों को मसलते-मसलते उन्होंने अपना अँगूठा उसके मुंह में डाल दिया, मनिका के होंठों पर लगे लिप-ग्लॉस की खुशबू उसकी साँसों के बाहर आने पर जयसिंह तक पहुँच रही थी. उनकी उत्तेजना बढ़ने लगी, परन्तु जयसिंह का इरादा सिर्फ मजे लेने का नहीं था.

मनिका जयसिंह की तरफ करवट लिए इस तरह लेटी थी कि उसका एक हाथ उसने मोड़ कर अपने सिर के नीचे रखा हुआ था और दूसरा उसकी छाती के आगे से मोड़ कर बेड पर रखा हुआ था. अब जयसिंह ने मनिका के बेड पर रखे हाथ को पकड़ कर धीरे-धीरे सहलाया, फिर जब वे थोड़ा आश्वस्त हो गए तो उन्होंने उसका हाथ धीरे से उठाया और खिसक कर उसके बिलकुल करीब हो गए व उसका हाथ अपनी कमर पर रख लिया. जयसिंह और मनिका के बीच अब सिर्फ कुछ ही इंच की दूरी थी. एक बार फिर जयसिंह ने कुछ पल का विराम लिया.
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09-21-2018, 01:51 PM,
#28
RE: Baap Beti Chudai बाप के रंग में रंग गई बेटी
थोड़ा वक्त गुजरने के बाद जयसिंह ने अब अपना हाथ भी मनिका की कमर पर रख लिया था और धीरे से अपना दूसरा हाथ नीचे से मनिका की कमर और बेड के बीच घुसाने लगे. कुछ पल की कोशिश के बाद उन्हें सफलता मिल गई, वे फिर थोड़ा रुक गए. अब उन्होंने मनिका की कमर पे रखे अपने हाथ को उसकी पीठ पर ले जा कर हौले से दबाया और उसके नीचे दबे अपने हाथ से उसकी कमर को थाम लिया. जब मनिका की तरफ से उनकी इन हरकतों की कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली तो वे खिसक कर उसके साथ चिपक गए और फिर एकदम से बेड पर पीछे हो करवट बदल कर सीधे लेट गए.

जयसिंह ने मनिका को कस कर थामे रखा था और उनके सीधे होते ही वह भी उनके साथ ही खिंच कर बेड पर उनकी साइड पर आ गई थी. मनिका के थोड़ा ऊपर होते ही उन्होंने उसके नीचे दबा अपना हाथ ऊपर ले जा कर उसकी बगल में डाल लिया था. अब मनिका आधी उनकी बगल में और आधी उनकी छाती पर लगी हुई सो रही थी. जयसिंह के इस कारनामे ने मनिका की नींद को थोड़ा कच्चा कर दिया था और वह थोड़ा हिलने-डुलने लगी. जयसिंह ने जड़वत हो आँखें मींच ली थी ताकि उसके उठ जाने की स्थिति में बचा जा सके लेकिन मनिका ने थोड़ा सा हिलने के बाद अपना सिर उनकी छाती पर एडजस्ट किया और अपनी एक टांग उठा कर उनकी जांघ पर रख कर सोने लगी. जयसिंह को अपनी जांघ की साइड पर सटी अपनी बेटी की उभरी हुई योनि का आभास मिलने लगा था और वे दहक उठे थे.

***

अब जयसिंह ने अपना हाथ, जो मनिका की पीठ पर था, उसे नीचे ले जा कर उसकी टी-शर्ट का छोर पकड़ा और ऊपर उठाने लगे. क्यूंकि उनका एक हाथ आज मनिका के नीचे था, सो टी-शर्ट ऊपर करने में उन्हें ज्यादा वक्त नहीं लगा, और कुछ ही देर में वे अपनी बेटी की टी-शर्ट उसकी कमर से ऊपर कर उसकी पीठ तक उघाड़ चुके थे, पीछे से ऊपर होती टी-शर्ट आगे से भी ऊपर हो गई थी और मनिका की नाभी से भी ऊपर तक उसका बदन अब नग्न था. जब जयसिंह के हाथ पे मनिका की ऊपर हुई टी-शर्ट के नीचे उसकी ब्रा का एहसास हुआ तो वे एक पल के लिए रुक गए. उनकी धड़कनें उनका साथ छोड़ने को हो रहीं थी, उन्होंने अब मनिका की टी-शर्ट को छोड़ा और धीरे-धीरे उसकी नंगी कमर और पीठ सहलाने लगे.

मनिका के नीचे दबे होने की वजह से वे अपना सिर उठा कर उसका नंगापन तो पूरी तरह से नहीं देख सकते थे, लेकिन अब उनके हाथ ही उनकी आँखें बने हुए थे. उन्होंने अब एक कदम और आगे बढ़ते हुए, मनिका का लोअर (पजामी) भी नीचे करना शुरू कर दिया. लेकिन कुछ पल बाद उन्हें रुकना पड़ा क्यूंकि पजामी मनिका के नीचे दबी हुई थी. फिर भी उन्होंने अपनी सोती हुई बेटी की गांड का उपरी हिस्सा उसके लोअर से बाहर निकाल ही लिया था. मनिका की पैंटी का इलास्टिक और उसके नितम्बों के बीच फंसा पैंटी का डोरीनुमा पिछला भाग अब उघड़ चुके थे. जयसिंह हौले-हौले मनिका की गांड से लेकर पीठ तक हाथ चला रहे थे. मनिका के मखमली स्पर्श ने उनके लंड को तान दिया था और वह अब मनिका के जांघ के नीचे दबा हुआ कसमसा रहा था.

जयसिंह ने अपना हाथ मनिका की अपने ऊपर रखी जांघ के नीचे डाला और अपने लंड को सीधा कर थोड़ा आज़ाद किया. वे अपना हाथ वापस ऊपर निकालने लगे पर उनकी उत्तेजना चरम पर थी, और उन्होंने अपना हाथ बाहर न खींच कर, मनिका की टांगों के बीच दे दिया और उसकी जवान योनि पर रख लिया. उनके बदन में गर्माहट का एक सैलाब सा उठने लगा था. मनिका की योनि उनके हाथ में किसी तपते अंगारे सी महसूस हो रही थी, कुछ ही पल में आनन्द से वे निढाल हो गए, और बरबस ही अपनी बेटी की कसी हुई चूत को दबाने लगे.

मनिका को उनकी हरकतों का आभास होने लगा था, परन्तु वह जागी नहीं थी, यह ठीक वैसा ही था जैसा हमें कभी-कभी सपने में अपने आस-पास की चीज़ों का आभास होने लगता है और जग जाने पर हम उन्हें वास्तविक पाते हैं.

"मनिका एक अँधेरे कमरे में थी, और उसके मन में एक अजीब से भय और उत्तेजना का मिलाजुला रूप उठ रहा था, वह अंधेरे में इधर-उधर टटोलते हुए आगे बढ़ रही थी कि उसका पैर किसी सख्त चीज़ से टकराया, मनिका ने हाथ बढ़ा कर देखा तो पाया कि वह एक पलंग था, कमरे में जैसे हल्की सी रौशनी हो गई थी, उसे पलंग का एक हिस्सा नज़र आने लगा था. तभी जैसे आवाज़ आई, 'मनिका, आओ बिस्तर में आ जाओ.' मनिका ने गौर से देखा तो पाया के उसके पापा बेड की दूसरी ओर लेटे हुए थे. वह मुस्कुरा कर बेड पर चढ़ गई, लेकिन उसका दिल जैसे जोरों से धड़कने लगा था. उसके पापा ने एक कम्बल ओढ़ रखा था, 'पापा.' मनिका ने कहा, 'हाँ डार्लिंग?' उसके पापा मुस्कुरा कर बोले, मनिका से उसके पापा ने हमेशा प्यार से बात की थी, उनका ख्याल आते ही उसके मन में उनका वह प्यार भरी मुस्कान वाला चेहरा आ जाता था. लेकिन अब जो मुस्कान उसके पिता ने उसे दी थी उसमें कुछ अलग था, एक ऐसा भाव जिसने उसके मन में स्नेह की जगह एक अजीब सी सनसनी पैदा कर दी थी. जयसिंह ने अब हाथ बढ़ा कर उसका हाथ पकड़ लिया था, उनकी पकड़ में भी एक मजबूती थी, एक ऐसी पकड़ जिसमें आक्रमकता थी, एक किस्म की जबरदस्ती. वे अभी भी मुस्कुरा रहे थे, मनिका भी मुस्का कर उन्हें देख रही थी, फिर उन्होंने मनिका को अपनी ओर खींचा. मनिका अपने डर और आशंकाओं के बावजूद उनका प्रतिरोध नहीं कर सकी और उनके करीब हो गई. आचानक से उसे आभास हुआ के उसके पापा ने ऊपर कुछ भी नहीं पहन रखा था. मनिका का मन और अशांत हो उठा, उधर जयसिंह अभी भी वही अजीब सी मुस्कान लिए थे, मनिका ने अपना हाथ पीछे खींचना चाहा लेकिन उसके पापा ने उसे कसकर थाम रखा था. उनकी आँखों में एक चमक थी, जिसमें प्यार नहीं, एक भूख झलक रही थी. 'पापा, छोड़ो ना मुझे...' मनिका ने मिन्नत की. 'क्यूँ?' जयसिंह ने पूछा, मनिका के पास कोई जवाब न था. 'रात हो गई है, सोना नहीं है?' उसके पापा ने आगे कहा. 'हाँ पापा, मैं सोने जा रही हूँ अपने रूम में.' मनिका ने फिर से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की. 'लेकिन जानेमन, यह तुम्हारा ही तो रूम है.' जयसिंह बोले. मनिका ठिठक गई, क्या पापा ने उसे अभी 'जानेमन' कहा था, उसने गौर से आस-पास देखा तो पाया कि जयसिंह सही कह रहे थे, कमरे में जैसे और रौशनी हो गई थी, यह तो उसी का कमरा था. 'पर पापा आप यहाँ क्यूँ सो रहे हो?' मनिका ने उपाह्पोह भरी आवाज़ में पूछा. 'मैं तो यहीं सोता हूँ रोज़, तुम्हारे साथ.' जयसिंह मुस्का के बोले. 'पर मम्मी..?' मनिका ने अचम्भे से कहा. 'वह अपने कमरे में है. बहुत बातें हो गईं चलो अब आ भी जाओ...' कह उसके पापा ने कम्बल एक तरफ कर दिया. 'पापाआआअह्हह्हह...आप...!' मनिका की कंपकंपी छूट गई, उसके पापा कम्बल के अन्दर पूरे नंगे थे. उनका काला लंड खड़ा हो कर मचल रहा था. उसने एक झटके से जयसिंह से हाथ छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन जयसिंह ने मनिका को दोगुनी ताकत से अपने साथ कम्बल में खींच लिया. मनिका सिहर उठी, उसने अपने आप को छुड़ाने की कोशिश में कहा 'पापा, ये गलत है, आप ये क्या कर रहे हो? मैं आपकी बेटी हूँ, आपने कुछ नहीं पहना हुआ! आप...आप...नंगे हो.' जयसिंह ने मनिका को अपनी गिरफ्त से थोड़ा आज़ाद किया, पर वे अब भी उसे कस कर अपने बदन से लगाए हुए थे और मनिका उनके बलिष्ठ शरीर की ताकत के आगे बेबस थी. 'पर तुम भी तो नंगी हो मेरी जान...' जयसिंह ने उसी कुटिल मुस्कान के साथ कहा. 'ह्म्म्प...मैं...मैं भी!' मनिका को यकायक एहसास हुआ कि उसके पिता सही कह रहे थे, वह भी पूरी तरह से नंगी थी, अगले ही पल उसका कलेजा मुहं में आने को हो गया, उसने पाया कि उसने अपने हाथ से अपने पापा का लंड कस कर पकड़ रखा था."

'आह्ह्ह्हह्ह...नाआआअ...' मनिका की आँखें एक झटके से खुल गईं, उसके माथे पर पसीने की बूँदें छलक आईं थी. एक पल के लिए उसे समझ नहीं आया कि वह कहाँ है. कुछ पल बाद उसे याद आया कि वे लोग डेल्ही में थे और एहसास हुआ कि वह एक डरावना सपना देख रही थी, और फिर अगले ही पल उस पर एक और गाज गिरी. वह अपने पिता से लिपट कर सो रही थी.

मनिका ने जयसिंह से अलग होने के लिए पीछे हटने की कोशिश की, लेकिन पाया कि उनका एक हाथ उसकी कमर में था, और इस से भी ज्यादा भयावह यह था कि उसकी टी-शर्ट ऊपर हो रखी थी. इस से वह उबर पाती उस से पहले ही उसे अपने लोअर की स्थिति का भी एह्सास हो गया, मनिका का बदन अब सचमुच कांपने लगा था, उसने फिर से हिलने की कोशिश की और इस बार तो जैसे उसका खून ही सूख गया, उसके हिलने पर उसे आभास हुआ की उसके पापा का हाथ उसकी योनि पर स्पर्श कर रहा था.

अब निढाल होने की बारी मनिका की थी, हर एक पल के साथ उसे अपने पिता के स्पर्श का एक और पहलू नज़र आ रहा था, अब उसे अपनी जांघ के नीचे दबे जयसिंह के लंड का भी आभास हो गया था, 'पपाज़ डिक!! इट इज़ अंडर माय थाईज़!' यह सोचते ही मनिका ने अपना पैर पीछे हटाया, पर उसके पैर पीछे करते ही जयसिंह का हाथ जो उसकी योनि पर रखा था, पूरी तरह से उसकी टांगों के दबाव में आ कर भिंच गया. मनिका की आँखों के आगे अँधेरा छा गया था, उसके पापा का हाथ अब उसकी योनि पर कसा हुआ था. 'पापाज हैंड इज़ ऑन माय पुसी (योनि)!!!'

मनिका ने सिहरते हुए हिम्मत की और अपने हाथ से जयसिंह के हाथ को अपनी नंगी कमर से निकाला, और तेज़ी से उनसे अलग हो कर बिस्तर की दूसरी ओर पहुँची. उसके कांपते हाथ बड़ी ही तीव्रता से अपने कपड़ों को सही कर रहे थे पर उसकी नज़र सोते हुए जयसिंह पर ही गड़ी थी. जयसिंह उसके अलग होने पर थोड़ा हिले-डुले थे, पर फिर शांत हो गए थे. 'क्या पापा उठ गए? और मैं उनकी तरफ कैसे पहुँच गई?' सोच-सोच कर मनिका का दिल दहल रहा था. अब उसे वह सपना भी याद आने लगा था जिसकी वजह से उसकी आँख खुल गई थी. 'तो क्या मैं उस ड्रीम की वजह से पापा के पास पहुँच गई थी? ओह गॉड...पापा वाज़ नेकेड (नंगे थे)...एंड मी टू (और मैं भी)...एंड वी वर स्लीपिंग टोगेदर (हम साथ में सो रहे थे)...और हम सच में भी साथ ही सो रहे थे! पापा का हाथ...हाय...' मनिका की नज़र अब जयसिंह के लंड पर चली गई, उनका बरमुडा अभी भी तम्बू बना हुआ था. 'इतना बड़ा डिक है पापा का...और मैंने उसे पकड़ रखा था...नहीं-नहीं इट वाज़ अ ड्रीम (वो एक सपना था)...' मनिका ने अपने आप को भींचते हुए सोचा. 'पर उस दिन तो मैंने पापा का डिक सच में देखा था, इट इज़ सो बिग! (वह कितना बड़ा है!)' मनिका ने बरबस ही आँखें मींच ली थी.

अब उसे वह सपना रह-रह कर याद आ रहा था, 'पापा मुझे कैसे देख रहे थे, जैसे मैं उनकी बेटी नहीं बल्कि...जैसे ही वांटेड मी टू बी हिज़ गर्लफ्रेंड (कि वे मुझे अपने गर्लफ्रेंड बनाना चाहते हों)...नहीं, उनकी आँखों में वैसा प्यार भी नहीं था, इट वाज़ लस्ट...ओह गॉड (उनकी नज़रों में हवस थी)...' मनिका अपने विचारों को रोकने में असमर्थ थी, उसने एक बार फिर आँखें खोल अपने पिता की तरफ देखा, जयसिंह की साइड का नाईट-लैंप जल रहा था इसलिए वह उन्हें साफ़ देख पा रही थी. उनके चेहरे को देखते ही मनिका की जैसे आँखें खुल गईं, 'ओह गॉड, पापा...जब से हम यहाँ आए हैं, पापा सिर्फ मुझे उसी नज़र से तो देखते हैं...' मनिका का गला भर आया था. फिर उसे सपने में उनका जबरदस्ती उसका हाथ पकड़ना भी याद आ गया, 'और अब भी तो पापा मुझे अपनी गोद में इशारा कर के बैठने को कहते हैं...यहाँ आने के बाद से मैं हमेशा उनके लैप में ही बैठती हूँ...ओह शिट...ही इज़ ऑलवेज टचिंग मी (वे हमेशा मुझे छूते भी रहते हैं)...और वो मेरे बम्स (नितम्बों) पर स्लैप (चपत) लगाना...! आई ऍम ग्रोन अप नाउ (मैं बड़ी हो गई हूँ)...और पापा मुझे इस तरह हाथ लगाते रहते हैं...मैं ये सब पहले क्यूँ नहीं देख पाई!?'

मनिका की अंतरात्मा जैसे एक पल में ही जाग उठी थी, उसे जयसिंह की हर वो हरकत याद आने लगी थी जिसके बहाने से उन्होंन उस के साथ अमर्यादित व्यवहार किया था और उसने उनकी नादानी समझ कर अनदेखा कर दिया था. और फिर तो उन्होंने उसे मर्द-औरत के रिश्तों और ऐसी ही बातों में लगा कर किस तरह यह एहसास भी नहीं होने दिया था कि उनके मन में क्या है.
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09-21-2018, 01:53 PM,
#29
RE: Baap Beti Chudai बाप के रंग में रंग गई बेटी
मनिका के दिल की धड़कने अपना वेग कम करने का नाम ही नहीं ले रहीं थी. पर अब उसे हौले-हौले एक और आभास भी होने लगा था, 'क्या सच में मुझे पापा के बिहेवियर (बर्ताव) में बदलाव का पता नहीं चला?' वह सोचने लगी, 'पर मैंने भी तो सब बातें नोटिस की थीं, लेकिन फिर भी कभी पापा को ना नहीं किया...पापा...ओह. उनको पापा कहने पर आई फील सो गुड (कितना अच्छा लगता है उन्हें पापा कहना)...एंड इट्स नॉट लाइक हाउ आई फेल्ट बिफोर (और उस तरह नहीं जैसे पहले लगता था)...बट लाइक ही इज़...पता नहीं कैसे एक्सप्लेन करूँ...ऐसा पहले कभी नहीं लगता था. पर जब वो मुझे देखते हैं, क्या मुझे पता रहता है कि वो मुझे...क्या वो मुझे अपनी डॉटर समझते हैं?' मनिका के रोंगटे खड़े हो गए थे. 'और क्या सचमुच मैं उन्हें अपने पापा समझती हूँ..? उनकी बॉडी कितनी पावरफुल है...और वे कहते हैं कि सिर्फ मर्द ही लड़कियों को खुश...उनका डिक...पापा का डिक...ओह इतना बड़ा डिक है...पापा का...पापा...' मनिका ने अपने आप को रोकने की कोशिश की लेकिन उसके ख्याल थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. 'पापा ने कहा किसी को न बताने को...ओह गॉड, अगर किसी को पता चल जाए तो..? ये सब गलत है...पाप है, अब ऐसा नहीं होने दूँगी...' मनिका ने करवट बदल ली और अपने मन से विचारों को निकालने की कोशिश करने लगी. उसके पूरे बदन में एक करंट सा दौड़ रहा था, एक पल के लिए उसे अपने पिता का हाथ अपनी योनि पर महसूस हुआ, और उसने सिसक कर आँखें मींच ली.

उधर जयसिंह मनिका के मन में मची उथल-पुथल से अनजान घोड़े बेच कर सो रहे थे. दरअसल जब तक मनिका की आँख खुली थी, उसके पिता उसके जिस्म से खेलते-खेलते सो चुके थे. मनिका के आतंकित-आशंकित मन ने उसे थकाने का का काम किया था और थोड़ी देर बाद उसकी भी आँख लग गई.

उस दिन जब जयसिंह की आँख खुली तो उन्होंने पाया कि मनिका उनसे पहले उठ चुकी है. वह सोफे पर बैठी थी और उसकी पीठ उनकी तरफ थी. वे तकिये से टेक लगा कर उठ बैठे और बोले,

'अरे, आज तो तुम बड़ी जल्दी उठ गई.'

'हूँ.' मनिका की तरफ से जवाब आया.

जयसिंह ने मनिका से ऐसी प्रतिक्रिया की उम्मीद नहीं की थी, और उनसे कुछ बोलते न बना. फिर उन्हें याद आया कि पिछली रात उन्होंने किस तरह मनिका को अपने साथ ले कर उसकी मर्यादा पर हाथ डाला था. वे सतर्क हो गए 'क्या आज आखिरी दिन पर आकर बात बिगड़ गई है? मैंने भी सब्र नहीं किया कल...' जयसिंह कुछ पल सोचते रहे फिर बिस्तर से बाहर निकल, अपना तौलिया उठा कर बाथरूम की तरफ बढे.

'मनिका, मैं बाथरूम हो कर आता हूँ, जरा कुछ ब्रेकफास्ट ऑर्डर कर लो.' जयसिंह ने एक नज़र अपनी बेटी पर डालते हुए कहा. मनिका ने उनके उठने की आहट होते ही अपना चेहरा फिर एक बार घुमा लिया था और जयसिंह ने जब उसकी तरफ देखा था तो पाया कि उसका मुहं दूसरी तरफ था. मनिका ने कोई जवाब नहीं दिया.

जयसिंह भी बिना कुछ बोले बाथरूम में घुस गए.

जब जयसिंह नहा कर बाहर आए तो देखा की मेज़ पर ब्रेकफास्ट लगा था और मनिका अभी भी वहीँ बैठी थी, जयसिंह ने अपने कपड़े वगरह अटैची में रखे और आ कर मनिका के सामने सोफे पे बैठ गए. उनके बैठते ही मनिका उठ खड़ी हुई और बेड की तरफ जाने लगी.

'क्या हुआ मनिका? ब्रेकफास्ट नहीं करना..?' जयसिंह ने पूछा. वे नार्मल एक्ट कर रहे थे लेकिन मनिका का बर्ताव पल-पल उनकी बेचैनी बढ़ाता जा रहा था.

'मैंने कर लिया.' बोल कर मनिका बेड पर जा बैठी. उसका चेहरा अब झुका हुआ था और उसके बालों की ओट में छुपा हुआ था.

जयसिंह ने जैसे-तैसे नाश्ता ख़तम किया. उन्होंने उठ कर रूम-सर्विस को कॉल कर टेबल साफ़ करने को बोला. मनिका ने उनके उठ जाने पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी, उन्होंने एक बार फिर से बात करने की कोशिश की.

'तो फिर क्या प्लान है आज का?' उन्होंने मनिका से मुखातिब हो पूछा.

'कुछ नहीं...' मनिका की आवाज में कोई भाव न था.

'अरे आज हमारा लास्ट डे है डेल्ही में...भूल गईं? और तुम कह रही हो के कुछ नहीं?' जयसिंह ने आवाज में झूठा उत्साह लाते हुए कहा.

'नहीं.' मनिका ने सिर्फ एक शब्द का जवाब दिया.

जयसिंह समझ गए की गड़बड़ शायद हो चुकी है. फिर भी उन्होंने चुप रहना मुनासिब नहीं समझा. वे चल कर मनिका के पास पहुंचे और उसकी बगल में बैठ गए. मनिका ने एक पल के लिए ऐसे रियेक्ट किया था मानो वह उठ खड़ी हो रही हो, लेकिन बैठी रही.

'क्या हुआ मनिका? आज मूड ऑफ लग रहा है तुम्हारा..?'

'नहीं.' मनिका ने फिर से एक ही लफ्ज़ में जवाब दिया था.

जयसिंह ने अब अपना हाथ बढ़ा कर मनिका के झुके हुए चेहरे को ठुड्डी से पकड़ कर अपनी तरफ घुमाया, मनिका ने हल्का सा प्रतिरोध किया था. जयसिंह ने उसका चेहरा देखा तो पाया कि उसकी नज़रें झुकी हुईं थी.

'क्या हुआ मनिका?' जयसिंह ने फिर पूछा.

'कुछ भी नहीं...' मनिका बोली.

'कहीं आज हमारा यहाँ आखिरी दिन है इसलिए तो मेरी जान उदास नहीं है?' जयसिंह ने फैसला कर लिया था कि जब तक मनिका उनका साफ़-साफ़ प्रतिरोध नहीं करेगी वे भी पीछे नहीं हटेंगे. उन्होंने अब मनिका का गाल सहलाते हुए आगे कहा, 'डोंट वरी डार्लिंग, वापस जा कर भी वी विल हैव फन.'

उनके ऐसे कहने पर मनिका की नज़र एक पल के लिए उनसे मिली और फिर से झुक गई, पर उसने कुछ नहीं कहा.

'अरे भई, अभी भी उदासी?' जयसिंह ने झूठा व्यंग्य करते हुए कहा, 'कम हियर (इधर आओ).' और मनिका का हाथ पकड़ उसे रोज़ की तरह अपनी गोद में लेने का प्रयास किया.

पर मनिका ने इस बार उनका प्रतिरोध किया और बैठी रही. 'नो पापा!' उसने थोड़ा उचक कर कहा था.

जयसिंह भी कहाँ हार मानने वाले थे, आज उनके लिए आर या पार की लड़ाई थी. वे उठ खड़े हुए, उन्होंने अभी भी मनिका का हाथ पकड़ रखा था, लेकिन अब उन्होंने उसका हाथ छोड़ते हुए उसकी बगल में हाथ डाला और दूसरा हाथ उसकी जाँघों के नीचे डाल कर एक ही पल में उसे उठा लिया.

'पापाआआअ..! व्हाट आर यु डूइंग?' मनिका ने तीखी आवाज़ में कहा, 'छोड़िये मुझे!'

लेकिन जयसिंह ने उसकी एक न सुनी और उसे लेकर सोफे की तरफ चल दिए. मनिका कसमसा रही थी. जयसिंह सोफे पे बैठ गए और मनिका को अपनी गोद में ले लिया. मनिका ने उठने की कोशिश की थी लेकिन जयसिंह ने उसे कस कर पकड़ रखा था.

'पहले बताओ क्या हुआ?' जयसिंह ने उसे पूछा.

'कुछ नहीं...लेट मी गो (मुझे जाने दो).' मनिका ने दबी सी जुबान में कहा.

'नो.' जयसिंह की आवाज़ में एक सख्ती थी. 'व्हाट हैपनड मनिका?'

'नथिंग...हाउ मैनि टाइम्स शुड आई टेल यू?' मनिका बोली. उसने नज़र झुका ली थी और अब जयसिंह का प्रतिरोध भी नहीं कर रही थी.

'तो फिर ठीक है जब तक तुम नहीं बताओगी, मैं भी तुम्हें जाने नहीं दूंगा.' जयसिंह बोले. मनिका चुप रही.

अब जयसिंह ने एक बार फिर मनिका के चेहरे पर हाथ रख लिया था और उसका गाल सहला रहे थे. रोजाना तो जयसिंह की गोद में बैठने पर उसके पैर ज़मीन पर होते थे लेकिन आज जयसिंह ने उसे अपनी गोद में इस तरह रखा था की उसकी दोनों टांगें सोफे के ऊपर थी और अपने एक हाथ से जयसिंह ने उसे जकड़ रखा था. मनिका ने अपने पिता की ताकत के आगे घुटने टेक दिए थे और चुपचाप नज़र झुकाए उनकी गोद में लेटी रही. जयसिंह हौले-हौले उसका गाल सहलाते-सहलाते अब उसकी गर्दन पर भी हाथ फिरा रहे थे और कभी-कभी हाथ के अंगूठे से उसके गुलाबी होंठों को भी धीरे से मसल दे रहे थे.

'पापाआआअ..!' मनिका ने कुछ देर बाद एक लम्बी आह के साथ कहा. 'प्लीज मुझे छोड़ दीजिए...'

'पहले बताओ क्या बात है, तुम इस तरह क्यूँ बिहेव कर रही हो?' जयसिंह ने पूछा. वे मनिका के ऊपर झुके हुए थे.

'कुछ नहीं पापा...ऐसे ही पापा...' मनिका थोड़ा अटकते हुए बोली.

'देन स्माइल फॉर मी डार्लिंग...' जयसिंह ने मनिका से कहा.

मनिका की नज़र उनसे मिली, उसके चेहरे पर एक अंतर्द्वंद झलक रहा था. एक पल के लिए उसने अपनी आँखें मींच ली, और फिर आँखें खोलते हुए मुस्का दी. जयसिंह ने उसके मुस्काते ही उसे खींच कर अपनी बाहों में भर लिया था. मनिका भी उनसे लिपट गई.

मनिका को जयसिंह के आगोश में समाए दस मिनट से भी ज्यादा हो गए थे, जयसिंह ने उसे कस कर सीने से लगा रखा था, हर एक दो पल में वे उसे अपने शक्तिशाली बाजुओं में भींच लेते थे. मनिका भी उनसे लिपट कर उनकी पीठ को अपने दोनों हाथों से जकड़े हुए थी.

सुबह जब मनिका उठी थी तो उसने तय किया था कि वह अब अपने पिता के जाल में नहीं आएगी. इसीलिए उसने उन्हें सुबह से ही इग्नोर (नज़रंदाज़) करना चालु कर दिया था. उसे लगा कि जयसिंह भी उसकी तल्खी की वजह अपने आप समझ कर उस से दूर हो जाएँगे. लेकिन जैसे-जैसे उसने उन्हें निराश करने की कोशिश की थी, जयसिंह बार-बार उसके करीब आते रहे. अभी-अभी जवान हुई मनिका का यह जयसिंह जैसे मर्द से पहला सामना था और उस को यह नहीं मालूम था कि भय और प्रतिबंधित सीमाओं के उल्लंघन का पुराना वास्ता है. जितना अधिक एक व्यक्ति अपने-आप को नियम-कायदों में बांधता जाता है और उनको तोड़ने से डरता है, उसकी उन्हें तोड़ने की इच्छा भी उसी अनुपात में बढती भी जाती है.

जब जयसिंह उसके रोकने से भी नहीं रुके और उसे उठा कर अपनी गोद में बिठा लिया, तो मनिका भी उनके गंदे मंसूबों को भांप कर उत्तेजित होने लगी थी. अपने बदन में पिछली रात हुए उस सनसनीखेज़ एहसास को वह भूली नहीं थी, और अब जब उसके पिता उसे इस तरह अपनी गोद में जकड़ कर बैठे थे तो उसके मन में प्रतिरोध की जगह कुछ और ही ख्याल चल रहे थे, 'ओह्ह गॉड...पापा तो रुक ही नहीं रहे...कितने गंदे हैं पापा...मुझे जबरदस्ती पकड़ कर अपनी लैप में बिठा लिया है...अपने डिक (लंड) पर...ओह्ह, कितना बड़ा डिक है पापा का...ओह गॉड! आई कैन फील इट अंडर मीईईई...' उधर जयसिंह के उसके गाल और गर्दन पर चलते हाथ ने उसे और अधिक उत्तेजित करने का काम किया था, और आखिर में न चाहते हुए भी मनिका ने समाज के बनाए नियमों को ताक पर रख दिया था, वह अपने पिता की कामेच्छा के आगे बेबस हो कर उनसे लिपट गई थी.
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09-21-2018, 01:53 PM,
#30
RE: Baap Beti Chudai बाप के रंग में रंग गई बेटी
इस तरह अपनी गोद में जकड़ कर बैठे थे तो उसके मन में प्रतिरोध की जगह कुछ और ही ख्याल चल रहे थे, 'ओह्ह गॉड...पापा तो रुक ही नहीं रहे...कितने गंदे हैं पापा...मुझे जबरदस्ती पकड़ कर अपनी लैप में बिठा लिया है...अपने डिक (लंड) पर...ओह्ह, कितना बड़ा डिक है पापा का...ओह गॉड! आई कैन फील इट अंडर मीईईई...' उधर जयसिंह के उसके गाल और गर्दन पर चलते हाथ ने उसे और अधिक उत्तेजित करने का काम किया था, और आखिर में न चाहते हुए भी मनिका ने समाज के बनाए नियमों को ताक पर रख दिया था, वह अपने पिता की कामेच्छा के आगे बेबस हो कर उनसे लिपट गई थी.

अपने पिता के साथ आलिंगनब्ध मनिका गरम-गरम साँसें भर रही थी. जयसिंह अपनी छाती से लगा कर उसके वक्ष का मर्दन जारी रखे हुए थे, और उनकी जकड़ की तीव्रता के बढ़ने के साथ ही मनिका के बदन में जैसे एक तड़पा देने वाली सी चुभन उठ रही थी. उसका मुहं जयसिंह के कान के पास था,

'पापाआआआअह्हह्हह्ह...पापाआआआअम्मम्मम्मम...' वह हौले-हौले उनके कान में फुसफुसाती जा रही थी. जयसिंह ने भी अब उसकी पीठ और कमर को सहलाना शुरू कर दिया था. पर इस से पहले की दोनों बाप-बेटी अपने रिश्ते कि देहलीज़ लांघने की गलती कर पाते, उनके कमरे के दरवाज़े पर दस्तक हुई और आवाज़ आई,

'रूम सर्विस, सर.'

जयसिंह ने मनिका को एक आखिरी बार अपनी छाती से भींचा और फिर धीरे से उसे अपनी गिरफ्त से आज़ाद कर दिया. उनकी नज़र मिली और मनिका के चेहरे पर लाली फ़ैल गई. जयसिंह ने आवाज़ दी,

'येस, कम इन...'

मनिका उनकी गोद से उठने को हुई पर जयसिंह ने उसे हल्के से पकड़ कर बैठे रहने का इशारा किया. तब तक रूम सर्विस वाला वेटर अन्दर आ चुका था. जयसिंह ने अपना एक हाथ तो पहले ही मनिका की कमर में डाल रखा था, अब उन्होंने अपना दूसरा हाथ मनिका की जांघ पर रख लिया. मनिका शर्म से तार-तार हो रही थी. उसने आज जानबूझकर एक सूट पहना था, लेकिन उनके आवेश भरे आलिंगन के दौरान मनिका की कुर्ती ऊपर हो गई थी और उसकी चूड़ीदार पजामी में लिपटी मांसल टांगें नज़र आने लगी थी. जयसिंह उन्हें सहलाने लगे.

वेटर टेबल साफ़ करके जाने में काफी वक्त लगा रहा था. आखिर वह भी कितनी देर बहाना करता, उसने टेबल से नाश्ते का बचा-खुचा सामान लिया और चलता बना. जयसिंह ने उसे कहा था की वे टिप अगली बार देंगे, अभी थोड़े बिजी हैं, और मनिका को देख मुस्का दिए थे. मनिका ने उनकी छाती में मुहं छुपा लिया था, और वेटर भी एक कुटिल मुस्कान के साथ चला गया था.

गेट बंद होने के बाद जयसिंह और मनिका कुछ देर उसी तरह बैठे रहे, मनिका का दिल धौंकनी सा धड़क रहा था. उसे एहसास हुआ कि उसके पापा उसे ही निहार रहे हैं, उसने हिम्मत कर के उनकी तरफ देखा, लेकिन उनकी नज़रों के आवेग के आगे न टिक सकी और शरमाते हुए फिर से नज़र झुका ली. जयसिंह उसे ही देखते रहे.

जब काफी देर हो गई और जयसिंह ने उसपर से नज़र नहीं हटाई और न ही कुछ बोले, तो मनिका ने खिसिया कर हौले से कहा,

'पापाआआ...'

'क्या हुआ मेरी जान...' जयसिंह ने मनिका के बोलते ही अपने हाथ से उसका हाथ पकड़ लिया और उसकी अँगुलियों में अपनी अंगुलियाँ डाल सहलाने लगे.

'उन्हह...' मनिका कुछ न बोल पाने की स्थिति में थी.

'लुक एट मी डार्लिंग.' जयसिंह ने कहा.

मनिका ने किसी तरह उनसे नज़र मिलाई, पर ज्यादा देर तक उनसे नज़रें बाँध कर न रख सकी और एक बार फिर शर्म से लाल होते हुए सर झुका लिया. जयसिंह तो जैसे स्वर्ग में थे.

पर उनका ये स्वर्ग ज्यादा देर नहीं टिक सका, अबकी बार उनका फोन बज उठा था. उन्होंने देखा की माथुर का कॉल आ रहा था. बात करने पर पता चला कि उन्हें फिर एक मीटिंग में बुलाया गया है. उनके बात करने के लहजे से मनिका को भी आभास हो गया था के वे बाहर जा रहे हैं. फोन रख चुकने के बाद जयसिंह कुछ पल चुप रहे, फिर उन्होंने कहा,

'जाना पड़ेगा, कुछ जरूरी काम आ गया है.'

'जी.' मनिका ने धीरे से उठते हुए कहा, जयसिंह ने भी उसे नहीं रोका. मनिका उठ कर उनके पास ही खड़ी थी. जयसिंह भी उठने लगे, 'आह...' वे अचानक कराह उठे.

उनका लंड अपने प्रचंड रूप में खड़ा था और उसके पेंट और अंडरवियर में कैद होने की वजह से उनकी आह निकल गई थी. मनिका के चेहरे पर एक पल के लिए चिंता का भाव आया था, लेकिन जयसिंह ने अपना हाथ मनिका की नज़रों के सामने ही अपनी पेंट के अगले हिस्से पर रख कर अपने लंड को थोड़ा सीधा कर दिया था, मनिका शर्म के मारे पलट गई.

'हाहाहा...' जयसिंह ठहाका लगा कर हंस दिए.

'ठक्क', दरवाजा बंद होने की आवाज़ आई. जयसिंह तैयार होकर मीटिंग के लिए चले गए थे. जाने से पहले उन्होंने मनिका को एक बार फिर बाहों में भर लिया था और कहा था,

'आई विल ट्राई तो कम बैक एज सून एज पॉसिबल.' मनिका शरमा गई थी.

उनके जाते ही मनिका भाग कर औंधे मुहं बेड पर जा गिरी. 'ओह शिट, ओह गॉड...पापाआआअ...पापा एंड मी...हमने अभी ये सब क्या किया! पापा ने मुझे अपनी बाहों में लेकर...उह्ह ही इज़ सो स्ट्रांग...वी वर हग्गिंग (गले मिलना) लाइक लवर्स...और उस वेटर के सामने पापा मेरी थाईज़ पर हाथ फिरा रहे थे...ओह गॉड...मुझे डार्लिंग और जान कह रहे थे...हाय...' मनिका ने तकिए को बाहों में कसते हुए सोचा. 'और पापा का डिक...उनसे तो खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था...क्यूंकि...इश्श...क्यूंकि उनका डिक खड़ा था...ईहिहिही...आई कुड फील इट अंडर माय बम्स...हाय राम...पापा कितने गंदे हैं...और मैं भी...ओह गॉड, पर कितना अच्छा लग रहा था...उफ्फ्फ, ये क्या हो रहा है मेरे साथ.' मनिका उत्तेजना से कांपती हुयी बिस्तर पर पड़ी-पड़ी यही सब सोचती रही.

उधर जयसिंह का मन शांत था. जयसिंह ने अपनी हर कामयाबी को बहुत ही शांत तरीके से स्वीकार किया था और यही उनकी लम्बी सफलता का राज़ था. और अभी मनिका के साथ उन्हें सफलता पूरी तरह से मिली भी कहाँ थी. पर फिर भी आज की सुबह ने उनके चेहरे पर एक मंद मुस्कुराहट ला दी थी और वे हल्के मन से अपनी मीटिंग अटेंड करने जा रहे थे.

एक ही पल में मनिका के जीवन में आया यह सबसे बड़ा बदलाव था. मनिका ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि फ़िल्में और कहानियों में देख-देख कर जो उसने अपने होने वाले प्रियतम के सपने संजोए थे, वे इस तरह चकनाचूर हो जाएंगे. रह-रह कर उसे अपने पिता जयसिंह की गन्दी हरकतें याद आ रहीं थी, और जितना वह उनसे नफरत करने का सोचती, उतना ही अधिक उसका आकर्षण उनकी तरफ बढ़ता जा रहा था. मनिका का दिल और दीमाग दोनों ही मानो जल रहे थे, एक बार फिर उसे सुबह-सुबह हुई अपनी मानसिक जागृति का ध्यान आने लगा, कि किस तरह उसके पिता ने उसे अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों से साध लिया था.

लेकिन उसे हैरानी इस बात पर हो रही थी कि अब जब वह सब कुछ जान चुकी थी फिर भी उसका पापा के सामने कोई बस नहीं चल रहा था. उसने बेड पर पड़े-पड़े भी दो-तीन बार सोचा था कि वह अपने आप को जयसिंह से दूर रखेगी, लेकिन मानो कुछ ही पलों में वह अपने प्रण को भूल कर फिर से अपने पिता के सम्मोहन ने फंस जाती थी. जहाँ जयसिंह ने मनिका को 'जान' और 'डार्लिंग' जैसे संबोधनों से पुकारना शुरू कर दिया था, वहीँ मनिका के लिए उसके ख्यालों में भी उनका एक ही नाम था, 'पापा'. न जाने क्यूँ उन्हें 'पापा' कहना उसके पूरे बदन को गुदगुदा देता था. शायद यह शब्द उसे उन दोनों के बीच के पावन रिश्ते की याद दिलाता था, और समाज से छुप कर यूँ अपने पिता के साथ बन रहे इस नापाक सम्बन्ध के बारे में सोचने पर वह उत्तेजित हो उठती थी. इसीलिए जब जयसिंह ने उसे अपनी बाहों में भींच रखा था तब भी वह मदहोश सी होकर सिर्फ 'पापाआआ-पापा' कह कर ही पुकारती रही थी. इसी तरह मदहोश पड़ी मनिका को वक्त बीतने का एहसास ही नहीं हुआ था, अपने फ़ोन की रिंगटोन सुन आखिर उसकी तन्द्रा टूटी.

'पापा' का ही फोन था. मनिका की तो जैसे साँस गले में ही अटक गई थी.

'हेल्लो.' उसने फोन उठा हौले से कहा.

'क्या कर रही हो जानेमन?' उसके पिता ने चहक कर पूछा.

'कुछ नहीं पापा...उह्ह.' मनिका के चेहरे पर उनको पापा कहते ही लालिमा छा गई थी और उसकी आह निकल गई. 'देखो तो मुए, कैसे मुझे जानेमन बुला रहे हैं...' उसने मन ही मन सोचा.

'हम्म...मुझे मिस (याद) नहीं कर रही?' जयसिंह ने नाटकीय अंदाज़ में पूछा.

'इह...' मनिका के मुहं से इतना ही निकल सका था.

'बोलो न डार्लिंग, मुझे मिस कर रही हो या मैं चला जाऊं...' जयसिंह तो किसी मनचले लड़के की तरह रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

'मत जाओ...' मनिका ने धीमे से कहा.

'हाहाहा...मतलब मिस तो कर रही है मुझे मेरी मनिका...' जयसिंह खिलखिलाकर बोले.

'हूँ...' मनिका ने धीमे से कहा.

'चलो फिर रेडी हो कर नीचे आ जाओ लंच करने. मैं भी १० मिनट में पहुँच रहा हूँ.' जयसिंह ने बताया.

फोन रखने से पहले जयसिंह ने एक बार फिर उस से पूछा था कि क्या वह आ रही है, और मनिका ने हौले से कहा था, 'हाँ पापा...' और सिहर गई थी. अब वह उठी, घड़ी में देखा तो शाम के पांच बजने को थे, 'हे भगवान, टाइम का पता ही नहीं चला...' उसने अपने कपड़े जरा ठीक किए, और फिर हल्का सा मेकअप कर, नीचे होटल के रेस्टोरेंट में पहुँची. जयसिंह अभी आए नहीं थे, धड़कते दिल से मनिका ने एक कार्नर सीट पर बैठ अपने पिता के आने का इंतज़ार शुरू किया.

'पापा ऐसे मत देखो ना.' मनिका ने मन ही मन कहा. उसके पिता जयसिंह आ चुके थे और वे आमने-सामने बैठ कर लंच कर रहे थे. मीटिंग में बिजी होने के कारण जयसिंह ने भी खाना नहीं खाया था. जयसिंह और मनिका की नज़र बार-बार मिल रही थी और, जहाँ जयसिंह के चेहरे पर एक उन्माद भरी कुटिल मुस्कान तैर रही थी वहीँ उनकी बेटी मनिका ह्या से बोझिल उनकी मुस्कान का जवाब दे रही थी.

जब शर्म की मारी मनिका ने कुछ देर उनकी तरफ नहीं देखा था तो जयसिंह ने टेबल के नीचे उसकी टांग पर अपने पैर से हल्का सा छुआ था. मनिका ने घबरा कर अपनी बड़ी-बड़ी आँखें उनसे मिलाई और एक बार फिर शर्म से लाल होते हुए मुस्का दी.

जब वे खाना खा चुके तो जयसिंह ने सुझाया कि कुछ देर होटल में ही बने पार्क में घूमा जाए, और फिर मनिका का हाथ अपने हाथ में ले उसके साथ बाहर चल दिए. मनिका को उनके स्पर्श से ही जैसे करंट लग रहा था, और वह यंत्रवत उनके साथ चल दी थी. कुछ देर पार्क में टहलते रहने के बाद जयसिंह और मनिका अपने रूम में आ गए थे, उन दोनों के बीच कोई बात भी नहीं हुयी थी, वे बस मंद-मंद मुस्काते घूमते रहे थे. उस वक्त शाम के करीब सात ही बजे थे.

कमरे में आने के बाद मनिका थोड़ी असहज हो गई थी, और जयसिंह आगे क्या करने वाले हैं यह सोच-सोच कर उसका दिल जोरों से धड़क रहा था.
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