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RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
ऊर्मि दीदी काफ़ी देर वैसे पड़ी थी और शायद थकान की वजह से उसकी आँख लग गयी थी. में उसके बाजू में सो गया और मेरा चेहरा उसकी बगल के नज़दीक आया. उसके बगल के पसीने की गंध मुझे महसूस हुई. मेरी बहन के पसीने की गंध मुझे बेहद पसंद है और वो अगर उसकी बगल से आ रहा हो तो उस'से मुझे वास'ना का एक अलग ही नशा चढ़ता है. मेरे दिल ने चाहा के उसकी पसीने से भरी बगल चाट लूँ लेकिन वैसा कर के में मुसीबत में नही पड़ना चाहता था इस'लिए मेने उसे उठाने के बारे में सोचा. उसे स्पर्श ना हो इस बात का ध्यान रख'कर में हो सके उतना उसके नज़दीक सरक गया. मेरे एक हाथ पर मेरा वजन देकर में थोड़ा उप्पर उठ गया और दूसरे हाथ से मेने ऊर्मि दीदी की छाती के नीचे छूकर उसे में उठाने लगा.
"ऊर्मि दीदी! उठो अभी!"
"अँ.? क्या.?" ऊर्मि दीदी बौखलाकर उठ गयी.
"मेने कहा. उठ जाओ अभी, रानी सहीबा!" मेने हंस'कर उसे कहा.
"सॉरी, सागर! मेरी आँख लग गयी थी" ऊर्मि दीदी ने अध खुली आँखों से हंस'कर जवाब दिया.
"अरे, दीदी! उस में सारी क्या कह'ना? में समझ सकता हूँ. इतना घूम'ने के बाद तुम थक गयी होगी."
"हाँ! थोड़ी थकान महसूस हो गयी मुझे लेकिन अब में ठीक हूँ" ऊर्मि दीदी ने अब अच्छी तराहा से आँखें खोल दी और मेरी तरफ देख'कर कहा, "आज में बहुत खूस हूँ, सागर. खंडाला जैसी खूबसूरत जगह देख'ने की मेरी बहुत दिन की 'इच्छा' आज पूरी हो गयी. और ये सब तुम्हारी वजह से हुआ, सागर! थॅंक्स, ब्रदर!"
"दीदी. इस में थॅंक्स कह'ने की क्या ज़रूरत? तुम्हें खूस कर'ने के लिए और तुम्हें सुख देने के लिए में हमेशा तैयार हूँ!"
"ओह ! सागर!. तुम बहन का कित'ना ध्यान कर'ते हो! मुझे तुम पर नाज़ है, ब्रदर!!" ऐसा कह'कर ऊर्मि दीदी ने मुझे अप'ने उप्पर खींच लिया और अप'नी बाँहों में भर'कर कहा,
"तुम'ने मुझे बहुत बहुत खुशियाँ दी है, सागर! और मुझे लग'ता है के में भी तुम्हें उतना ही खूस कर दूं. उसके लिए में कुच्छ भी कर'ने को तैयार हूँ. तो फिर बताओ मुझे. में क्या करूँ जिस'से तुम्हें उत'नी ही खूशी मिले जित'नी मुझे मिली है?"
थोड़ी देर हम दोनो भाई-बहेन वैसे ही चिपक के पड़े रहे. ऊर्मि दीदी मेरी बाँहों में सुरक्षा महसूस कर रही थी और में उसके गदराए बदन का स्पर्श महसूस कर रहा था. उस के मन में ममता थी, प्यार था और मेरे मन में काम वास'ना थी. मेरा लंड ज़्यादा ही कड़क होते जा रहा था और वो उसकी टाँगों को छू रहा था. उसकी समझ में वो ना आए इस'लिए मुझे उस'से दूर होना पड़ा.
"कम ऑन, दीदी! उठो अभी.. हम फ्रेश हो जाते है और आराम से सो जाते है." ऐसा कह'ते में बेड से उठ गया. मेने बॅग में से मेरा रात को पहन'ने का लिबास निकाला. फिर कमर पर टेवेल लपेट कर मेने मेरी जींस निकाल दी और टी-शर्ट भी निकाल'कर बाजू के चेअर पर डाल दिए. फिर में बाथरूम में नहाने के लिए गया. काफ़ी सम'य लेकर मेने जी भर के शावर के नीचे स्नान लिया और मेरा पूरा बदन अच्छी तरह से साफ किया. ख़ास कर के मेरा लंड और जाँघो का भाग मेने अच्छी तरह से घिस के साफ किया इस पागल ख़याल से के मेरी बहन उन भागों को चाट लेगी. मुझे मालूम था वैसे कुच्छ होनेवाला नही था लेकिन फिर भी मन में एक उम्मीद थी.
जब में बाथरूम से बाहर आया तब मेने देखा के ऊर्मि दीदी पूरे बदन'पर बेड शीट ओढ़ के चेर पर बैठी थी. वैसे बैठ के वो मेरी तरफ देख रही थी और शरार'ती अंदाज में हंस रही थी. मुझे थोड़ा अजीब सा लगा के वो ऐसी क्यों बैठी है और मेरी तरफ देख के ऐसे क्यों हंस रही है.
"क्या हुआ, दीदी? तुम्हें ठंड लग रही है क्या?" मेने परेशान होकर उसे पुछा.
"ना.. ही ..! !" उस'ने बड़े लाड से जवाब दिया.
"तो फिर तुम ऐसी बदन पर बेडशीट ओढ़ कर क्यों बैठी हो?" मेने आश्चर्य से पुछा.
"क्योंकी.. क्योंकी.." ऐसे कह'ते ऊर्मि दीदी उठ खड़ी हुई और अप'ने बदन से बेडशीट पिछे धकेल के खुद को मेरे साम'ने पेश कर'ते बोली,
"क्योंकी इस'लिए, सागर." जब मेने उसे देखा तो में दंग रहा गया. ऊर्मि दीदी ने मेरी जींस और टी-शर्ट पहन लिया था.
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RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
"कैसी लग रही हूँ में, सागर?" दोनो हाथ कमर'पर रख के, सीना तान के खड़ी होकर ऊर्मि दीदी ने मुझे पुछा, "अब में मॉडर्न लग'ती हूँ के नही, बोलो?" ऊर्मि दीदी गोल घूम के मुझे दिखा रही थी के वो कैसी लग रही थी. इस में कोई गुंजाइश नही थी के वो अलग और ख़ास नज़र आ रही थी क्योंकी आज तक मेने उसे सिर्फ़ पंजाबी लिबास और साऱी पह'ने हुए देखा था. उस'ने जींस और टी-शर्ट कभी नही पह'ने थे. उसके कॉलेज के दिनो में उस'ने ज़्यादा से ज़्यादा स्कर्ट और फूल टॉप पह'ने थे. इस'लिए पहिली बार में ऊर्मि दीदी को इन कपडो में देख रहा था और मुझे वो इन कप'डो में पसंद आई थी.
मेरा टी-शर्ट बड़ी फिटींग का था और ऊर्मि दीदी का बदन मेरे से भारी था इस'लिए वो मेरा टी-शर्ट उस'को छोटा हो रहा था. अब बड़ी तो ठीक है लेकिन छाती का क्या?? मेरी छाती और उसकी छाती में ज़मीन-आसमान का फरक था. इस'लिए वो टी-शर्ट उसके बदन पर दूसरी चमड़ी की तरह चिपक गया था. उस'ने पह'नी हुई काली ब्रेसीयर उस क्रीम कलर के टी-शर्ट में से साफ साफ नज़र आ रही थी और ऐसा लग रहा था के उस'ने सिर्फ़ ब्रेसीयर पह'नी थी. टी-शर्ट की लंबाई छोटी थी इस'लिए वो बड़ी मुश्कील से जींस के बेल्ट तक आ रहा था. उस'ने अगर हाथ उपर किया तो उस'का गोरा गोरा चिकना पेट नज़र आ जाएगा.
"तुम्हें कुच्छ कर'ने की ज़रूरत नही है, दीदी!" मेने अपना चह'रा उपर किया और ऊर्मि दीदी की नज़र से नज़र मिलाकर कहा, "तुम खूस हो तो में खूस हूँ. तुम सुखी हो तो में सुखी हूँ. तुम हमेशा खूस रहो यही में चाहता हूँ, दीदी!"
"ओह ! सागर!. मेरे प्यारे भाई.!" ऐसा कह'कर ऊर्मि दीदी ने मुझे ज़ोर से आलींगन दिया. अचानक मुझे आह'सास हुआ के में ऊर्मि दीदी की बाँहों में तकरीबन उसके बदन पर लेट गया हूँ. मेरा सर उसकी भारी हुई छाती के दोनो उभारों के बीच था और मेरा दायां हाथ उसकी कमर पर था. मुझे उसकी कड़ी फिर भी उत'नी ही मुलायम छाती का स्पर्श महसूस हो रहा था. मेरी जाँघो का भाग और मेरा लंड उसके घुट'ने के उप्परी टाँगों पर सटा हुआ था.
जब मेने उसकी कमर के नीचे देखा तो मुझे हँसी आई. हमारी कमर में फरक होने की वजह से मेरी जींस उसे कमर पर हो नही रही थी. जींस के बटन की जगहा पर तकरीबन दो ढाई इंच का गॅप पड़ गया था और इस'लिए वो बटन नही लगा सकी. लेकिन जींस नीचे ना सरके इस'लिए उस'ने बेल्ट लगाया था. बटन की जगहा गॅप होने की वजह से वो ज़ीप पूरी ना लग के आधी ही लग स'की. इस वजह से आधी खुली ज़ीप के उपर और बेल्ट के नीचे एक त्रिकोण बन गया था जो खुला था. और उस खुले त्रिकोण में के उपर के आधे भाग में उसकी गोरी गोरी
चमड़ी नज़र आ रही थी और नीचे के आधे भाग में उसकी नीले रंग की पैंटी नज़र आ रही थी. काफ़ी देर तक में बिना जीझक मेरी बहन को उपर से नीचे निहार रहा था और वो आगे, पिछे से खुद को मुझे दिखा रही था.
"सिर्फ़ देख क्या रहे हो, सागर. कुच्छ बोलो भी तो. कैसी लग रही हूँ में?" ऊर्मि दीदी ने बेसब्री से कहा.
"एक'दम झकास, दीदी!! लेकिन मेरी जींस छोटी पड़ गयी आपको. वारना उस त्रिकोण का प्रदर्शन नही होता." उसके खुले त्रिकोण की तरफ बीना जीझक उंगली दिखा के मेने कहा.
"नालायक, लड़के! बेशरामी मत करो. और वहाँ पर देख'ना नही! सिर्फ़ मुझे इतना बता दे के में कैसी दिख'ती हूँ?" ऐसा कह'कर वो ड्रेसंग टेबल के साम'ने गई और खुद को आईने में निहार'ने लगी.
मेने सप'ने में तो कई बार कल्पना की थी के ऊर्मि दीदी ने जींस और टी-शर्ट पहना है लेकिन आज में पह'ली बार उसे हक़ीक़त में इन कप'डो में देख रहा था. अब में उसे क्या बताऊ के वो कैसी दिख रही थी?
मेने मन ही मन कहा के मेरे लंड को पुच्छ लो तुम कैसी दिख रही हो, जो तुम्हे देख'कर पागल हो रहा है और कड़ा होते जा रहा है. में ऊर्मि दीदी के पिछे जा के खड़ा हो गया और बिना शर'माए उसकी कमर पर हाथ रख दिए. फिर आईने में से उसकी तरफ देख'कर मेने कहा,
"तुम एक'दम आकर्षक लग रही हो, दीदी!"
"सिर्फ़ आकर्षक?. और कुच्छ नही??" ऊर्मि दीदी ने तिरछी नज़र से आईने से ही मुझे देख'कर वापस सवाल किया.
"और बोले तो. तुम आकर्षक दिख रही हो. और ग्रेट दिख रही हो. और. और." में आगे बोल ना सका और दीदी ने मुझे चुप कर'ते कहा,
"और. सेक्सी भी. बराबर ना, सागर?"
"ओह ! येस!!" मेने झट से कहा, "तुम सेक्सी भी दिख रही हो. उलटा इस लिबास में तुम किसी और लिबास से ज़्यादा सेक्सी दिख'ती हो!"
"ओह ! कम ऑन, सागर! कभी तुम कह'ते हो में साऱी में एक'दम सेक्सी दिख'ती हूँ तो कभी तुम कह'ते हो में पंजाबी लिबास में एक'दम सेक्सी दिख'ती हूँ. और अब तुम कह रहे हो में इस जींस, टी-शर्ट में एक'दम सेक्सी दिख रही हूँ. तुम अच्छी तरह से सोच'कर तय कर लो और मुझे बताओ के में कौन से लिबास में सेक्सी लग'ती हूँ." ऊर्मि दीदी ने शरारत से हंस'ते हुए मज़ाक में मुझ'से पुछा.
उसके सवाल से पह'ले तो में बौखला गया लेकिन उसे क्या जवाब देना है ये मुझे अच्छी तराहा से मालूम था. मन ही मन मेने खुद को वो जवाब हज़ारो बार कहा था.
"सच बताउ, दीदी?. सेक्सीनेस तुम्हारी साऱी में नही तुम्हारे पंजाबी ड्रेस में नही तुम्हारे कोई भी लिबास में नही है. अगर है तो. वो.. तुम्हारे अंदर है. तुम्हारे बदन में है. इस'लिए तुम'ने कोई भी लिबास पहन लिया तो तुम सेक्सी दिख'ती हो. और इसी वजह से कभी मुझे तुम साऱी में सुंदर नज़र लग'ती हो तो कभी पंजाबी लिबास में. और अभी तुम मुझे इस मॉडर्न जींस में अच्छी लग रही हो" मेने एक ही साँस में ये सब कह डाला.
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RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
बहन की इच्छा-6
गतान्क से आगे…………………………………..
उस सम'य मुझे लगा के में ऊर्मि दीदी को बता दूं. मेरी 'इच्छा'. मेरा सपना. मेरी कल्पना.. यानी एक ही!! 'ऊर्मि दीदी तुम्हें चोदना!!'.. लेकिन अगले ही पल मेने सोचा के 'नही' ये वक्त ठीक नही है इस'लिए मेने सिर्फ़ इतना कहा,
"फिलहाल तो मुझे याद नही आ रहा है मेरा कोई सपना. लेकिन जब याद आएगा तो तुम्हें ज़रूर बताउन्गा, दीदी!"
"ज़रूर बताना, सागर. में पूरी कोशीष करूँगी तुम्हारी 'इच्छा' पूरी कर'ने की."
"अच्च्छा! चलो अब. जा के फ्रेश होकर आ जाओ, दीदी!" मेने उसे ऐसा कहा लेकिन में उस से दूर नही हुआ.
"ओह ! सागर! मुझे ऐसा लग रहा है के ऐसे ही जिंदगी भर रहे. मेरा मतलब है ऐसे कपड़े पहन के.. लेकिन मुझे मालूम है ये संभव नही है" ऊर्मि दीदी ने थोड़े उदास स्वर में कहा.
"तुम उदास क्यों होती हो, दीदी? ठीक है, तुम ऐसे कपड़े घर में नही पहन सक'ती हो लेकिन अकेले में तो पहन सक'ती हो? जब हम दोनो अकेले होंगे तब तुम बेशक मेरे कपड़े पहन लिया करो."
"वो तो ठीक है, सागर. लेकिन तुम्हारे कपड़े मुझे कित'ने टाइट हो रहे है, देखो ना. हम! अगर तुम'ने अपना साइज बदल दिया तो फिर ठीक है. यानी में कह'ना चाह'ती हूँ के तुम'ने अगर तुम्हारी बॉडी बढ़ाई तो."
"दीदी!. मेरी बॉडी बढ़ा'ने के बजाय. तुम थोड़ी स्लीम क्यों नही बन जाती हो? सच कहूँ तो तुम्हें 'यहाँ की' थोड़ी चरबी कम कर'नी चाहिए." ऐसा कह'कर मेने मेरे दोनो हाथ उसकी कमर की चरबी पर रख दिए और उसे हलके से दबाया.
"ज़्यादा शरारत मत करो हाँ, सागर!" ऐसा कह'कर उस'ने अपना एक हाथ पिछे लिया और मेरा पेट पकड़'कर घुमा दिया. मेने झट से मेरे एक हाथ से ऊर्मि दीदी का हाथ पकड़ लिया और दूसरे हाथ से उसके मांसल चुत्तऱ को दबाकर कहा,
"या तो तुम्हें 'यहाँ' की चरबी काम कर'नी चाहिए, दीदी!"
"तुम ना. बहुत नालायक होते जा रहे हो, सागर!. ठहर!. तुम्हें ज़रा दो चार फटके देती हूँ." ऐसा कह'कर वो घूम गई और उस'ने मुझे हलके से चाटा मार दिया.
ऊर्मि दीदी ने मुझे चाटा मारा तो मेने भी उसे हलका सा चाटा मार दिया. उस'से वो झूठमूठ का गुस्सा दिखा'ती और मुझे फिर चाटा मार'ती थी. उस'ने फिर मारा तो मेने भी वापस मार दिया. ऐसा कई बार हुआ और हम काफ़ी बार एक दूसरे को चाटा मारते रहे, हंस'ते खेल'ते, यहाँ वहाँ भागते.. उसके चाटे से में अप'ने आप को बचाता था लेकिन वो मेरे चाटे से बच'ती नही थी. आखीर वो परेशान हो गई और मेरी छाती पर मुठ्ठी भर के मार'ने लगी. मेने हंस'ते हंस'ते उसके हाथ पकड़ लिए और वो भी हंस'ने लगी. हंस'ते हंस'ते उस'ने मुझे बाँहों में भर लिया. हमारा हँसना रुक'ने तक हम एक दूसरे की बाँहों में जकड़े हुए थे.
फिर ऊर्मि दीदी मुझ'से दूर हो गयी. उस'ने बॅग में से अपना नाइट गाउन निकाला और वो बाथरूम में फ्रेश होने के लिए गयी. मेने फिर टीवी का रिमोट कंट्रोल लिया और टीवी चालू कर के कुच्छ चॅनेल चैक किए. में एक म्यूज़िक चॅनेल पर रुक गया. बाद में में बेड'पर लेट गया और टीवी देख'ने लग. में टीवी तो देख रहा था लेकिन मेरे कान बाथरूम से आ रही आवाज़ पर थे. ऊर्मि दीदी ने टाय्लेट इस्तेमाल किया फिर शावर के नीचे स्नान किया वग़ैरा वग़ैरा सबका में आवाज़ से अंदाज़ा ले रहा था. थोड़ी देर बाद ऊर्मि दीदी बाहर आई. उस'ने गुलाबी रंग का नाइट गाउन पहना था. वो मेरी तरफ देख'कर हँसी और फिर जाकर उस'ने मेरी जींस और टी-शर्ट वॉर्डरोब में टाँग दिए.
"अरे, दीदी!! तुम'ने मेरी जींस और टी-शर्ट वापस नही पहनी??" मेने हंस'कर उसे पुछा.
"कैसे पहन लेती, सागर? और वो भी सोते सम'य? कित'ने टाइट हो रहे थे तुम्हारे वो कपड़े मुझे. जैसे किसी ने जाकड़ लिया हो. मुझे तो ऐसे कपड़े पहन'कर सोना अच्छा लग'ता है." ऐसा कह'कर उस'ने अपना गाउन दोनो बाजू से उठाया और आजू बाजू में हिला'कर दिखाते कहा, "ढीले ढाले.. बीना बंधन के. खुले खुले. हवा जानेवाले."
"अच्च्छा? इसका मतलब इस गाउन के नीचे तुम'ने कुच्छ नही पहना है, दीदी?. खुला खुला लग'ने के लिए??"
"नालायक! बेशरमा!!. तेरी ज़बान बहुत ही तेज चल रही है." ऐसा कह'कर उस'ने मुझे एक चाटा मारा. मेने हंस'ते हंस'ते उस'का चाटा झेल लिया. भले ही मेने वैसे मज़ाक में कहा था लेकिन मुझे अच्छी तरह से मालूम था के अंदर ब्रेसीयर और पैंटी पहनी थी. उस'का गुलाबी झीना गाउन कुच्छ छुपा नही रहा था. आम तौर पर वो अगर घर में होती और उस'ने ये गाउन पहना होता तो उसके अंदर वो पेटीकोट और स्लीप पहन लेती जिस'से अंदर का कुच्छ दिखाई नही देता. लेकिन इस सम'य यहाँ पर उस'ने अंदर वैसे कुच्छ पहना नही था इस'लिए मुझे उसकी ब्रेसीयर और पैंटी नज़र आ रही थी. जब वो बॅग में कपड़े रख'ने के लिए नीचे झुक गयी तब पिछे से मेने उसके चुत्तऱ को देखा तो मुझे उसके अंदर पह'नी हुई काले रंग की पैंटी नज़र आई.
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RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
फिर ऊर्मि दीदी बेड'पर बैठ गयी. मेने खिसक के उसे जगहा दे दी और वो मेरे दाईं तरफ बेड'पर लेट गई. हमारे बीच मुश्कील से एक दो इंच का फासला था. हम'ने तकिये बेड 'पर तिरछे रखे थे और उस'पर हम पड़े थे और टीवी देख'ने लगे. हम दोनो दिन भर हुई घटनाएँ के बारे में बातें कर'ने लगे. बीच बीच में में टीवी का चॅनेल चेंज कर रहा था और अलग अलग प्रोग्राम देख रहा था. एक चॅनेल पर एक इंग़लीश मूवी चल रही थी. मेने झट से पहेचान लिया के वो कौन सी मूवी थी. उस मूवी में एक दो एरॉटिक बेड सीन भी थे. में वो चॅनेल रख'कर मूवी देख'ने लगा.
ऊर्मि दीदी भी मेरे साथ बातें कर'ते कर'ते मूवी देख'ने लगी. बीच बीच में वो मुझे मूवी के बारे में पुच्छ रही थी और में उत्साह से उसे क्या हो रहा है ये बता रहा था. जल्दी ही एक बेड सीन चालू हुआ, जिस'की में राह देख रहा था. स्क्रीन'पर हीरो ने हीरोइन का चुंबन लेना चालू किया और वो देख'कर ऊर्मि दीदी बेचैन होने लगी.
उसकी बेचैनी मुझे तूरंत महेसूस हुई लेकिन मेने उसकी तरफ ध्यान नही दिया और गौर से सीन देख'ने का नाटक कर'ने लगा. जैसे हीरो ने हीरोइन के कपड़े निकालना चालू किया वैसे ऊर्मि दीदी कुच्छ ज़्यादा ही बेचैन हो गयी.
"सागर! चॅनेल बदल!" उस'ने बेचैनी से कहा.
"क्यों, दीदी? आच्छी मूवी है ये.."
"हाँ!. मुझे दिख रही है कित'नी अच्छी मूवी है ये. जल्दी बदल दे चॅनेल!" उस'ने मुझे डान्ट'ते हुए कहा.
"तुम्हें इस सीन की वजह से खराब लग रहा है क्या, दीदी? ये सीन तो अभी ख़त्म हो जाएगा" मेने स्क्रीन से नज़र ना हिलाते कहा. जाहिर है के वैसा कामुक सीन अप'ने भाई के साथ देख'ते हुए उसे अजीबसा लग रहा था. और वो भी उसके साथ होटेल के कमरे में अकेले होते सम'य? जैसे ही हीरो ने हेरोइन का टॉप निकाल दिया और पिछे से ब्रेसीयर खोल'ने लगा तो वैसे ही ऊर्मि दीदी की सह'ने की शक्ती ख़त्म हो गयी. उस'ने मेरे हाथ से रिमोट कंट्रोल छीन लिया और झट से चॅनेल चेंज किया. उस'से में मायूस हो गया. उस सम'य में किसी को नंगी या अध नंगी देख'ने के लिए तरस रहा था भले ही वो टीवी स्क्रीन पर क्यों ना हो लेकिन ऊर्मि दीदी ने चॅनेल बदल दिया और सब मज़ा किर'कीरा हो गया.
"चॅनेल क्यों बदल दिया, दीदी? वो अच्छी मूवी थी" मेने थोड़ी नाराज़गी दिखाकर कहा.
"होगी अच्छी.. लेकिन तुम्हें ऐसे गंदे सीन अप'नी बहन के साथ होते हुवे देख'ने नही चाहिए."
"उसमें क्या गंदा था??"
"अच्च्छा भी क्या था उस सीन में? वो दोनो किसींग कर रहे थे और क्या क्या हरकते कर रहे थे. और तुम कह रहे हो उस में गंदा क्या था?" ऊर्मि दीदी ने हैरानगी से पुछा.
"कमाल है, दीदी! आज कल मूवी में ऐसे सीन होना तो आम बात हो गयी है तो फिर उस में इतना स्ट्रेंज क्या है?"
"कमाल तो तुम्हारी है, सागर. तुम्हें शरम नही आती बहन के साम'ने ऐसे गंदे सीन देख'ते हुए?"
"अब उस में शरमाना क्या, दीदी? तुम्हें मालूम है वो क्या कर'नेवाले थे. मुझे मालूम है वो क्या कर'नेवाले थे. हम दोनो भी उम्र से बड़े है तो फिर ऐसे सीन देख'ने में बुराई क्या है?"
"कोई बुराई नही है, सागर! लेकिन तुम्हें क्या मालूम वो दोनो क्या कर'नेवाले थे?"
"मुझे सब मालूम है, दीदी! में अभी छोटा नही रहा. मुझे अच्छी तरह से मालूम है वो दोनो क्या कर रहे थे और क्या कर'नेवाले थे. ठीक है!. मेने खुद कभी वैसा कुच्छ नही किया है ना तो मुझे कुच्छ प्रॅक्टिकल अनुभव है लेकिन मुझे इस बारे में अच्छी तराहा से मलूमात है."
"ठीक है! ठीक है! लेकिन इत'नी जल्दी तुम्हें इन बातों में इंटरेस्ट नही लेना चाहिए."
"क्यों नही, दीदी? में अब बड़ा हो गया हूँ. अब मुझे हक है ये सब जान लेने का. मेरे मन में बहुत उत्सुकता है के लड़किया कप'डो में इत'नी सेक्सी दिख'ती है तो फिर बीना कपड़े वो कैसे दिख'ती होंगी? मेरे मन में हमेशा ये ख़याल आता है के क्या में किसी लड़'की को बीना कपड़े देख सकता हूँ क्या? बीना कपड़े यानी. पूरी तरह से नग्न!"
"देख सकते हो, सागर! किसी लड़'की के साथ तुम्हारी शादी होने के बाद" ऊर्मि दीदी ने चुपके से जवाब दिया.
"शादी के बाद??"
"हाँ! शादी के बाद. तुम तुम्हारी पत्नी को पुछ सकते हो!" ऊर्मि दीदी ने हँसके जवाब दिया.
"पत्नी??. शादी?. उसके लिए तो काफ़ी साल लगेंगे, दीदी! में तब तक रुक नही सकता!"
"नही रुक सकते हो. तो फिर. पुच्छ लो तुम्हारी गर्ल फ्रेंड को."
"गर्ल फ्रेंड? मेरी कोई गर्ल फ्रेंड नही है, दीदी."
"क्या कह रहे हो, सागर? तुम इत'ने हॅंड'सम और तुम्हारी कोई गर्ल फ्रेंड नही?? में विश्वास ही नही करूँगी!"
"में झूठ थोड़ी बोल रहा हूँ, दीदी! मेरी कोई गर्ल फ्रेंड नही है" में उसकी तरफ घूम गया और चुपचाप बोला.
"क्या कह'ते हो, सागर? ऐसी कोई लड़'की तुम्हारी दोस्त नही जो तुम्हारे दिल के बिल'कुल करीब हो. जिसे तुम चाहते हो, प्यार कर'ते हो. ऐसी कोई लड़'की नही?" ऊर्मि दीदी ने हैरान होकर पुछा.
"सच्ची, दीदी! ऐसी कोई लड़'की नही जो मेरे दिल के करीब है या जिसे में प्यार करता हू.. सिर्फ़.."
"सिर्फ़ क्या, सागर?." ऊर्मि दीदी ने उत्सुकता से पुचछा.
"सिर्फ़ तुम, दीदी!!. तुम ही हो. जो मेरे दिल के करीब है. जिसे में चाहता हूँ.. जिसे में प्यार करता हूँ."
"कौन में??" ऊर्मि दीदी आश्चर्य से चीख पड़ी और बोली, "लेकिन में तुम्हारी बहन हूँ, सागर! तुम्हारी गर्ल फ्रेंड नही.."
"ठीक है, दीदी! माना के तुम मेरी गर्ल फ्रेंड नही हो लेकिन तुम मेरी दोस्त तो हो? तुम ही एक ऐसी हो जिसे में बीना जीझक पुच्छ सकता हूँ!"
"पुच्छ सकता हूँ?. क्या??" ऊर्मि दीदी की आवाज़ चढ़ गयी.
"यानी मुझे ये कह'ना है के.. जैसे तुम'ने कहा के जो लड़'की मेरे दिल के करीब है उसे में पुच्छ सकता हूँ और तुम ही हो जो मेरे दिल के करीब हो. इस'लिए में तुम्हें ही पुछता हूँ. क्या तुम मुझे दिखा सक'ती हो के बीना कप'डो के तुम कैसी दिख'ती हो?? यानी पूरी नग्न!!"
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RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
"क्या??" ऊर्मि दीदी चिल्लाई, "तुम पागल तो नही हो गये हो?? में कैसे दिखा सक'ती हूँ, सागर? में तुम्हारी बहन हूँ."
"लेकिन हम दोनो दोस्त भी है ना, दीदी?"
"हा! लेकिन में ये कैसे भूलू के हम दोनो भाई-बहेन है, सागर?"
"ओह ! कम ऑन, दीदी!. तुम'ने वैसा किया तो तुम्हारा कोई नुकसान नही होगा. उलटा तुम मेरी मदद कर रही हो, मेरी जिग्यासा पूरी कर'ने के लिए."
"जिग्यासा पूरी कर'ने के लिए???. तुम्हारी ये जिग्यासा बहुत ही अजीब है, सागर!. एक बहन को पूरी कर'ने के लिए!" इसके बाद ऊर्मि दीदी बिल'कुल सिरीयस हो गयी. में उस'से बिन'ती कर रहा था, उस'को मनाने की कोशीष कर रहा था और वो मेरा विरोध कर'ती रही और मुझे ना कह'ती रही. आखीर मायूस होकर मेने कहा,
"ये देखो, दीदी! तुम्हें खूस कर'ने के लिए मेने क्या क्या किया. तुम इत'नी खूस थी के थोड़ी देर पह'ले तुम ही कह रही थी मेरे लिए तुम कुच्छ भी कर'ने के लिए तैयार हो. और अब जब में तुम्हें कुच्छ कर'ने के लिए कह रहा हूँ तो तुम ना बोल रही हो."
"में कैसे करू, सागर? तुम मुझे जो कर'ने के लिए कह रहे हो ये दुनिया की कोई बहन नही कर सक'ती."
"तो ठीक है, दीदी! भूल जाओ जो कुच्छ मेने तुम्हें कहा वो! मुझे लगा तुम मुझे बहुत प्यार कर'ती हो इस'लिए तुम मुझे नाराज़ नही करोगी. लेकिन अब मुझे मालूम पड़ गया के तुम मुझे कित'ना प्यार कर'ती हो."
ऐसा कह'कर ऊर्मि दीदी की तरफ पीठ करके में घूम गया. उस'ने मुझे वापस अप'नी ओर घुमाने की कोशीस की लेकिन में अप'नी जगह से नही हिला. फिर उस'ने कहा,
"ऐसे क्या कर रहे हो, सागर? नाराज़ क्यों होते हो जल्दी? ज़रा मेरे बारे में तो सोचो.. मेरे से कैसे होगा वो? अपना नाता में कैसे भूल जाउ?"
मेने कुच्छ नही कहा और चुप'चाप पड़ा रहा. मेरे हाथ को पकड़'कर वो मुझे हिलाने लगी और मुझे समझाने लगी लेकिन में अप'नी जगहा से हिला भी नही और मेने उस'का कहा सुना भी नही. आखीर हताश होकर उस'ने कहा,
"सागर. मेरे प्यारे भाई! सुबह से अब तक हम कित'ना मज़ा कर रहे है और अब आखरी सम'य उस मज़े को में किर'कीरा नही कर'ना चाह'ती हूँ. तुम'ने दिन भर मुझे खूस रखा इस'लिए अब में तुम्हें नाराज़ नही कर'ना चाह'ती. ठीक है! अगर तुम्हें यही चाहिए तो में तैयार हूँ!!"
ऊर्मि दीदी के शब्द सुन'कर में खिल उठा लेकिन में अप'नी जगहा से नही हिला और मेने उसे कहा,
"नही, दीदी! अगर तुम्हारे दिल में नही है तो तुम मत करो कुच्छ.. तुम्हारे मन के खिलाफ तुम कुच्छ करो ऐसा में नही चाहता."
मेरे मन में तो खुशीयों के लड्डू फूट रहे थे. अगर ऊर्मि दीदी सचमुच नंगी होने के लिए तैयार हो रही होगी तो सुबह से मेने की हुई मेहनत और खर्च किया हुआ पैसा सब वसूल होनेवाला था. लेकिन मेरी वो खुशी मेने अप'ने चह'रे पर नही दिखाई और घूम के मेने उसकी तरफ देखा. ऊर्मि दीदी को सीरीयस देख'कर मेने कहा,
"ये देखो, दीदी! इत'नी सिरीयस मत हो जाओ. इसमें भी तो मज़ा है. थोड़ा अलग. दिन भर कैसे हम मज़ा मज़ा कर रहे थे?.. दोस्त बन'कर. ये भी उसी मज़ा का एक भाग है ऐसा समझ लो. तो ही तुम्हें अजीब नही लगेगा. और फिर तुम्हें भी मज़ा आएगा इस में."
"ठीक है. ठीक है! मुझे नही लग रहा है अट'पटा अभी." ऊर्मि दीदी ने मुश्कील से हंस'ते हुए कहा, " आखीर क्या. में मेरे लाडले भाई को खूस कर रही हूँ. उस'ने मुझे दिन भर खूस रखा अब मेरी बारी है उसे खूस कर'ने की" ऐसा कह'कर वो अच्छी तरह से हँसी. उसकी अच्छी हँसी देख'कर में भी दिल से हंसा.
मुझे मेरा सपना पूरा होते नज़र आ रहा था. मेरे बहन को जी भर के पूरी नंगी देख'ने के लिए में मर रहा था और वो घड़ी अब आ गई थी. सिर्फ़ उस ख़याल से में हद के बाहर उत्तेजीत होने लगा. मेरे लंड में कुच्छ अलग ही काम संवेदना उठ'ने लगी और वो गल'ने लगा. मुझे ऐसा लग'ने लगा के किसी भी समय मेरा वीर्य पतन हो जाएगा. मेने सोचा के झट से बाथरूम में जा के ठंडा होकर आना ही चाहिए.
क्रमशः……………………………
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RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
"यानी, दीदी.. में तुम्हारे कपड़े निकालू???" मेने बड़े उत्साह से उसे पुछा और उस'ने अपना सर हिलाके मुझे 'हां' कहा.
"ठीक है, दीदी.. तुम अगर यही चाह'ती हो तो में करता हूँ ये काम!"
"अरे नालायक!. ये में नही. तुम चाहते हो."
"हां, दीदी. हां !! में चाहता हूँ. तो फिर में चालू करू अभी??"
"अगर तुम्हें चाहिए तो. कर चालू!!." ऐसा कह'कर ऊर्मि दीदी ने रिमोट से टीवी बंद किया और नीचे सरक के वो अप'नी पीठ'पर सीधा लेट गयी. उसके चह'रे पर शरारती हँसी थी. में थोड़ा आगे सरक गया और मेरे दोनो हाथ मेने उसके पाँव के पंजो के आगे, उसके गाउन'पर रख दिए. धीरे धीरे दोनो हाथों से में ऊर्मि दीदी का गाउन उप्पर सरकाने लगा.
मेने गाउन ऊर्मि दीदी के घुट'ने तक उप्पर किया. आगे का गाउन उसके पैरो तले अटका हुआ था इस'लिए उस'ने अप'ने घुट'ने थोड़े उप्पर लिए और मेने गाउन उसके घुटनो के उप्पर सर'काया. फिर में उठा के उसकी कमर के यहाँ बैठ गया. में ऊर्मि दीदी का गाउन उप्पर कर रहा था और वो आँखें बंद करके पड़ी थी. मेने उसे कहा,
"दीदी! तुम'ने अप'नी आँखें क्यों बंद रखी है?"
"क्योंकी.. में तुम्हारी तरह बेशरम नही हूँ." उस'ने आँखें बंद रख के ही जवाब दिया.
"यानी क्या, दीदी?"
"यानी ये के.. में कैसे देख सकूँगी के मेरा छोटा भाई मुझे नंगी कर रहा है? मुझे ये बात बिल'कुल शर्मनाक लग रही है."
"ओह ! दीदी! अगर ऐसा है तो मुझे नही कुच्छ देख'ना." ऐसे कह'ते मेने मेरे हाथ पिछे लिए. उस पर ऊर्मि दीदी ने आँखें खोल'कर मेरी तरफ देख'कर कहा,
"तुम चालू रखो, सागर!. अब मुझे थोड़ा बहुत अट'पटा तो लगेगा ही ना?. इस'लिए मेने आँखें बंद रखी है. तुम अपना काम चालू रखो." ऐसा कह'कर ऊर्मि दीदी ने अप'नी आँखें वापस बंद कर ली. मेने मेरे हाथ वापस उसके गाउन के उप्पर रख दिए और में उसे और उप्पर सरकाने लगा.
मेने जान बूझ'कर मेरे पूरे पंजे उसकी टाँगों पर फैलाए थे जिस'से गाउन सरकाते सम'य में उसकी मुलायम टाँगों का स्पर्शसूख ले सकू. फिर मेने उप्पर सर'काया पूरा गाउन उसकी कमर के उप्पर धकेल दिया.
अब ऊर्मि दीदी कमर के नीचे खुली पड़ी थी. उस'ने आँखें बंद की थी इस'लिए में उसे अच्छी तराहा से आँखें भर के (कह'ने की बजाए आँखें फाड़'कर) देख सकता था. मुझे उसकी गोरी गोरी टाँगे और टाँगों के बीच का त्रिकोण भाग दिख रहा था. उस'ने डार्क नीले रंग की पॅंटीस पहनी थी जो कुच्छ देर पह'ले मुझे उसके गाउन के उपर से काली नज़र आई थी. उसकी चूत का उभार उसके पॅंटीस के उपर से साफ दिखाई दे रहा था. चूत के बीच के छेद में पॅंटीस थोड़ी घुसी थी जिस'से उसकी चूत का छेद भी समझ में आ रहा था. पॅंटीस के साइड से चूत के भूरे रंग के बाल बाहर आए थे. में उसे और थोड़ी देर निहारना चाहता था लेकिन मेरा अन्तीम 'लक्ष्य' और ही था.
मेने गाउन और उप्पर सर'काने की कोशीष की लेकिन वो ऊर्मि दीदी के चुत्तऱ के नीचे अटका हुआ था. इस'लिए मेने सिर्फ़
"दीदी" इतना कहा और उसकी समझ में आया.! उस'ने अप'नी कमर थोड़ी उप्पर उठाई और मेने झट से गाउन उसके चुत्तऱ के नीचे से सर'काया. फिर वैसे ही में गाउन उसके नाभी और पेट से उप्पर करता गया. अब तक में उस'का गाउन सरका रहा था और वो लेटी हुई थी लेकिन अब बाकी गाउन उठा'ने के लिए उसे उठ के बैठना ज़रूरी था. ये बात उसके भी ध्यान में आई क्योंकी उस'ने अप'ने दोनो हाथ उप्पर मेरी तरफ किए. उसकी आँखें बंद थी और चह'रे पर लज्जा मिश्रीत, शरारती हँसी थी. मेने भी हंस'ते हुए उसके हाथ पकड़ लिए और उसे उप्पर खींच लिया.
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RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
अब ऊर्मि दीदी पाँव पसारे बैठी थी और गाउन उसके कमर'पर गिर गया था. मेने दोनो बाजू से गाउन पकड़ लिया और उसके छाती के उभारों से उप्पर खींच लिया. उस'ने अप'ने दोनो हाथ उप्पर किए और एक झटके में मेने उसके सरीर से गाउन निकाल दिया और बाजू के कुर्सी'पर डाल दिया.
अप'नी आँखें बंद रख के वो वापस पिछे लेट गयी. अब ऊर्मि दीदी सिर्फ़ ब्रेसीयर और पॅंटीस में मेरे साम'ने पड़ी थी. उसके गोरे गोरे बदन पर वो काले रंग की ब्रेसीयर और नीले रंग की पॅंटीस खुल के दिख रही थी. इस तरह से बीना रोक टोक उसे देख'ने का ये मेरा पह'ला मौका था और इस मौके का में पूरी तरह से फ़ायदा ले रहा था. काफ़ी देर में मेरी बहन के अध नंगे बदन को वासानभारी निगाह से देख रहा था.
"क्या हुआ, सागर?. तुम रुक क्यों गये??" ऊर्मि दीदी ने बंद आँखों से मुझे पुछा.
"कुच्छ नही, दीदी! तुम्हें इन अंतर्वस्त्रो में थोड़ा निहार रहा हूँ. इस काली ब्रेसीयर और नीली पॅंटीस में तुम बहुत सेक्सी दिख'ती हो!"
"मुझे लग'ता है. इन अंतर्वस्त्रो के नीचे 'क्या' छुपा है उसे देख'ने में तुम्हें ज़्यादा दिलचस्पी है. है ना, सागर?"
"हाँ. हाँ. दीदी! ज़रूर!"
"तो फिर टाईमपास क्यों कर रहे हो, सागर? निकाल दो उन्हे. और पूरी कर लो अप'नी 'जिग्यासा'!" ऐसा कह'कर ऊर्मि दीदी घूम गयी और अप'ने पेट'पर लेट गयी. अब मुझे उसके पिछले भाग का दर्शन हो रहा था. वो पिछे से भी काफ़ी सेक्सी नज़र आ रही थी. उसके दूध जैसे गोरी गोरी पीठ पर उसके ब्रेसीयर की तीन काली पट्टी नज़र आ रही थी. दो पट्टी उसके कंधे से आकर एक आधी पट्टी पर रुक रही थी. उसकी ब्रेसीयर काफ़ी टाइट थी जिस'से उसकी ब्रा की पट्टी के बाजू से उसकी त्वचा उभर'कर आई थी. नीचे उसके गोल गोल मांसल चुत्तऱ उसके पॅंटीस में से बिल'कुल भरे हुए नज़र आ रहे थे. और उसके नीचे उसकी गोरी लंबी टाँगें और भी बेहतरीन नज़र आ रही थी.
मेने मेरा हाथ ऊर्मि दीदी की पीठ'पर, ब्रा के हुक'पर रख दिया. जैसे ही मेरी उंगलीयों का स्पर्श उसे हुआ वैसे उसके बदन'पर रोंगटे खड़े हो गये. मेने मेरे दोनो हाथों की उंगलीया उसके ब्रा के हुक के दोनो बाजू से पट्टी के नीचे घुसा दी और में उस'का हुक निकाल'ने लगा. ब्रेसीयर टाइट थी इस'लिए मुझे हुक निकाल'ने में परेशानी हो रही थी लेकिन फिर भी में हुक निकाल'ने में काम'याब हो गया. हुक खुलते ही ब्रा की पट्टी छिटक गयी और उसकी बगल में जाकर गीर गई.
फिर में उठ गया और वापस ऊर्मि दीदी के पैरो तले बैठ गया. मेने मेरी उंगलीया उसकी कमर'पर पॅंटीस के इलास्टीक में घुसा दी और में उसकी पॅंटीस नीचे खींच'ने लगा. जैसे जैसे में पॅंटीस नीचे खींच रहा था वैसे वैसे उसके चुत्तऱ मेरी आँखों को नज़र आते गये. वो! क्या मस्त दिख रहे थे मेरी बहन के भरे हुए चुत्तऱ!! में जल्दी जल्दी पॅंटीस नीचे खींचता गया और फिर उसके पैरो से मेने उसे निकल दिया.
अब ऊर्मि दीदी. मेरी लाडली बड़ी बहन. मेरे साम'ने. पूरी नंगी. अप'ने पेट'पर लेटी हुई थी..
वो मुझे देख नही रही थी इस'लिए मेने उसकी पॅंटीस, जो पैरो से निकालते सम'य लपेट के उल'टी हुई थी, उसे सीधी की और में उस'को गौर से देख'ने लगा. जब मेने पॅंटीस का चूत का भाग देखा तो वहाँ मुझे गीला स्पॉट नज़र आया. वो स्पॉट देख'कर मुझे आश्चर्य लगा. क्योंकी थोड़ी देर पह'ले जब मेने देखा था तब वो स्पॉट वहाँ पर नही था. मेने उस स्पॉट को उंगली लगा'कर चेक किया तो मुझे पता चला के वो ऊर्मि दीदी की चूत का रस था. इसका मतलब ये था के वो उत्तेजीत हो गयी थी.
में ऊर्मि दीदी को नंगी कर रहा था और उस'से अगर वो उत्तेजीट हो रही थी तो मेरा आगे का काम आसान था. अगर मेने कोशीष की तो उसकी उत्तेजना का फ़ायदा उठाकर में उसके साथ बहुत कुच्छ कर सकता था ये जान'कर में खूस हो गया. एक पल के लिए मुझे लगा के में उसकी चूत रस का वो गीला स्पॉट चाट लू लेकिन फिर मेने सोचा के उस'का चूत रस उसकी पॅंटीस से चाट'ने की क्या ज़रूरत है अगर वो 'सोमरस' सीधा मुझे जहाँ से पैदा हुआ है वहाँ से पीने को मिले तो?? यानी के ऊर्मि दीदी की चूत अगर मुझे चाट'ने को मिल'नेवाली होगी तो..??
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03-22-2019, 12:23 PM,
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RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
ऊर्मि दीदी के नंगे बदन को आगे से देख'ने के लिए मेने धीरे से उसे पेट से पीठ'पर घुमा लिया. वो घूम गयी और मेने देखा के उस'ने अप'नी आँखें ज़ोर से बंद की थी. जैसे ही वो घूम गई उस'ने अपना एक हाथ अप'नी चूत'पर रख'कर उसे छुपाने की कोशीष की. उसके ब्रा के पत्ते अब भी उसके कन्धोपर थे इस'लिए घूम'ने के बाद भी वो ढीली ब्रेसीयर उसके छाती के उभारो पर थी. और फिर भी उस'ने अपना दूसरा हाथ अप'ने उभारोपर आढा रख'कर उन्हे मेरी नज़ारो से च्छुपाने की कोशीष की.
ऊर्मि दीदी की ब्रेसीयर निकाल'ने के लिए मेने उसके पत्ते दीदी के कंधो से खींच लिए. उसे अप'ने हाथ उठाने पड़े और फिर मेने पूरी ब्रेसीयर निकाल के बाजू में डाल दी. उस'ने वापस अपना हाथ अप'नी छाती पर आढा रख दिया. मेने उस'का हाथ पकड़ा और खींचा लेकिन वो ज़ोर से अपना हाथ छाती पर रखे हुए थी. मेने दो तीन बार खींच'ने की कोशीष की लेकिन उस'का हाथ हटा नही. आखीर मेने ज़ोर लगा के उस'का हाथ खींचा और उसकी छाती से हटा दिया. बड़ी मुश्कील से उस'ने हाथ हटाया और ले जाकर अप'नी चूत पर रख'कर दोनो हाथों से चूत छुपा ली.
अब मुझे ऊर्मि दीदी के गदराई छाती के उभार साफ साफ नज़र आ रहे थे. वो लेटी थी इस'लिए वो बाजू में थोड़े गिरे हुए थे लेकिन फिर भी उनमें अच्च्छा ख़ासा उभार था. उसके छाती पर डार्क चाकलेटी रंग का गोल अरोला और उसके बीच में उस'का निप्पल उभर के दिख रहा था. उस'का निप्पल तकरीबन एक सेंटीमीटर लंबा हो गया था और अच्छा ख़ासा कड़ा हो गया था. उसे देख'कर मुझे तो यकीन हो गया के मेरी बहन उत्तेजीत हो गयी थी. आखीर क्यों नही होंगी?? किसी मर्द के साम'ने नंगी होने के बाद कौन उत्तेजीत नही होंगी? भले वो मर्द खुद का सगा भाई क्यों ना हो.!
अब मेने मेरा ध्यान ऊर्मि दीदी की जांघों के बीच लाया. मेने उसके हाथ उसकी चूत से निकाल'ने की कोशीष की लेकिन यहाँ भी उस'ने ज़ोर से पकड़ के रखे थे. एक दो बार उसके हाथ निकाल'ने की कोशीष कर'ने के बाद मेने उसे कहा,
"कम ऑन, दीदी! देख'ने दो ना. मुझे ये तुम्हारा 'मुख्य' भाग.. औरत का यही तो 'ख़ास' भाग देख'ने के लिए में तरस रहा हूँ." उस'पर ऊर्मि दीदी मूँ'ह से कुच्छ ना बोली लेकिन उस'ने अपना सर हिला के 'नही' का इशारा किया. उस'का चेह'रा शरम से लाल हो गया था और होंठो पर शरारती हँसी थी. मेने फिर ज़ोर लगा के उस'का हाथ चूत से हटा दिया. इस बार उस'ने चूत को च्छुपाया नही और वैसे ही पड़ी रही. फिर मेरी बहन के नंगे बदन पर में अप'नी वास'ना से भरी नज़र उप्पर नीचे घुमाने लगा और उसे निहार'ने लगा. उसके जवाना अंगो को देख'कर अप'ने आप मेरे मूँ'ह से निकल गया,
"वो.! ब्यूटीफूल.! बिल'कुल सेक्सी..!"
"नालायक, कही का!! " ऊर्मि दीदी ने झुटे गुस्से से कहा, "तुम्हें शरम नही आती अप'नी सग़ी बहन को नंगी देख'ते हुए??"
"उस में शरमाना क्या, दीदी?" मेने बेशरामी से हंस के जवाब दिया, "अगर तुम्हें शरम नही आ रही है अप'ने भाई के साम'ने नंगी होने में तो फिर भाई को क्यों शरम आएगी बहन को नंगी देख'ने में??"
"छी, सागर! तुम'ने तो मुझे बिल'कुल निर्लज्ज और बेशरम बना दिया." ऐसा कह'कर ऊर्मि दीदी लज्जा के मारे घूम गयी और मेरी तरफ पीठ करके लेट गयी.
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