RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
"अच्च्छा!. कोई और लड़'की. वही में सोचूँ. के में तुम्हारा लंड हाथ में ले लू ऐसी 'इच्छा' तुम्हारे मन में क्यों होंगी?" अब में ऊर्मि दीदी को क्या बताऊ??. के मेरा लंड सिर्फ़ उसके हाथ में ही क्या.. और कहाँ कहाँ देने की, डाल'ने की 'इच्छा' कित'ने बरसो से मेरे मन में है. में चुप'चाप पड़ा रहा और वो मेरा लंड हाथ में लेकर उसे गौर से देख'ने लगी. उस'ने पह'ले मेरा लंड पकड़'कर उस'का आगे पिछे से परीक्षण किया.
फिर मेरा लंड मेरे पेट की तरफ दबाते मेरे लंड के नीचे के अंडकोष का परीक्षण किया. एक हाथ से मेरा लंड मुठ्ठी में पकड़'कर दूसरे हाथ से मेरी गोटीयों को सहलाया. उसके उप्पर के मेरे झान्ट के बाल अप'नी उंगली में पकड़'कर उन्हे खींच के देखा. बालों को खींच'ने से मेरी गोटीयों की चमड़ी का तनना और छोड़'ने के बाद चमड़ी का वापस पहेले जैसा होना. ये बात उसे काफ़ी दिलचस्प लगी.
मेरी गोटीयों की चमड़ी को उप्पर करके ऊर्मि दीदी उसके नीचे के भाग का परीक्षण कर'ने लगी. उसे मेरे गोटीयों के नीचे का भाग अच्छी तरह से देख'ने को मिले इस'लिए मेने मेरे पैर और फैलाए और उप्पर किए. वो अप'नी उंगली मेरी गोटीयों के निचले भाग पर घुमा रही थी. जब उसकी उंगली का स्पर्श मेरे गान्ड के हॉल को लगा तब में छिटक गया. उसे मेरी गान्ड का हॉल दिख रहा होगा इसका मुझे यकीन था लेकिन दीदी वहाँ पर उंगली लगाएगी ये मेने सोचा नही था. में आश्चर्य से उड़ गया ये देख'कर वो हंस दी और उस'ने मेरा लंड छोड़ दिया. जैसे ही उस'ने लंड छोड़ दिया वैसे ही वो तन के खड़ा हो गया.
फिर ऊर्मि दीदी ने वापस मेरा लंड सूपदे के नीचे मुठ्ठी में भर लिया और सूपदे की चमड़ी नीचे सरका के सूपड़ा खुला किया. सुपारी जैसा कड़ा और चिकना सूपड़ा देख'कर उसे रहा ना गया और उस'ने अप'नी उंगली उस'पर घुमाई. शुपाडे के उप्पर जो छेद था उस'पर भी उस'ने उंगली घुमाई. फिर दो उंगलीयो से उस'ने छेद को फैलाया और उस मूत के हॉल का परीक्षण किया. उस'ने उंगलीया हटाते ही छेद बंद हो गया और उस में से मेरे वीर्य की पानी जैसी बूँद बाहर आई.
उस बूँद को बाहर आते देख ऊर्मि दीदी खिल उठी और मेरी तरफ देख कर हंस दी. फिर नीचे देख'कर उस'ने हलके से उस बूँद को उंगली लगाई और वो बूँद उसकी उंगलीपर आया. उस'ने दोनो उंगली से उस बूँद को मसल दिया और उसके गाढ़ेपन का अंदाज लिया. पूरा समय में ऊर्मि दीदी क्या क्या कर रही थी वो में बड़े मज़े से देख रहा था. आख़िर उस'ने मेरा लंड छोड़ दिया और वो उठ के बैठ गयी.
"कुच्छ भी कहो, सागर. लेकिन. पुरुष का ये भाग कुच्छ अलग ही दिखता है!" ऊर्मि दीदी ने हंस'कर कहा.
"पुरुष का ही क्यों. तुम स्त्रियों का भी वो भाग कुच्छ अलग होता है. ना समझ'ने वाला. किसी पहेली जैसा.. उलझन जैसा."
"कौन सी स्त्री का देखा है तुम'ने, सागर? मेरा तो यक़ीनन देखा नही."
"इस'लिए तो कह रहा हूँ. किसी पहेली जैसा. क्योंकी तुम्हारा 'वो' भाग मेने सिर्फ़ उप्पर ही उप्पर देखा है. लेकिन उसे अच्छी तरह से देख'कर ये पहेली सुलझाने की कोशीष मुझे कर'नी है."
"ना बाबा ना.. में नही अप'नी पहेली सुलझाने दूँगी तुम्हें."
"वो तो देख लेंगे हम बाद में, दीदी. चलो अभी. ज़रा मेरे लंड को चूस के मुझे जन्नत की सैर करा दो." मेने हंस'ते हुए उसे कहा.
"तो फिर बताओ मुझे. में कैसे कैसे. क्या क्या कारू. मेरे 'गाइड', वत्सायन!!" उस'ने 'गाइड' शब्द पर ज़ोर देते हुए हंस'ते हंस'ते कहा.
"ओके, दीदी! अब तुम पह'ले जैसी मेरे पैरो के बीच लेट जाओ. हाँ.. ऐसे ही.. अब मेरा लंड ऐसे सीधा पकड़ लो. ऐसेच. अब. धीरे से तुम्हारे होंठो से मेरे लंड के सुपाडे को चूम लो. अहहाहा!!. ऐसेही. आहा!. थोड़ी देर ऐसे ही मेरे लंड को चूम'ती रहो.. यस!. यस!!. अब तुम्हारी जीभ बाहर निकाल'कर मेरे सुपाडे को चाट लो. ऐसे ही. यस!. बिल'कुल लालीपोप चाटते है वैसे. ऐसेही. राइट!. बिल'कुल ऐसेही. अहहा. अब मेरे लंड के सुपाडे का जो छेद है ना.. उसे अप'नी जीभ से चाटो. और खुरेद दो.. आहा!. बिलाकूल ऐसेही, दीदी!. तुम बिल'कुल सही तरह से कर रही हो. ऐसे ही कर'ती रहो. अहहा!!."
मेरे साम'ने का नज़ारा मुझे पागल कर देने वाला था. ऊर्मि दीदी, मेरी सग़ी बड़ी बहन, मेरे पैरो में लेटी थी और में उसे बता रहा था के मेरा लंड कैसे चूसे. वो मेरे लंड का सुपाडा चाट रही थी और बीच बीच में उसके उप्पर के मूत के छेद को जीभ से खुरेद रही थी. मुझे तो कुच्छ अलग ही सेंसेशन अनुभव हो रहा था. मेने मेरे लंड को अंदर से एक झटका दिया और अचानक सुपाडे के छेद से मेरे वीर्य की पतली बूँद उप्पर आई. ऊर्मि दीदी ने शरारती नज़र से मुझे देखा. और वैसे ही मेरी नज़र से नज़र मिलाकर उस'ने अप'नी जीभ से वो बूँद चाट ली. फिर जीभ अप'ने मूँ'ह में लेकर उस'ने मेरे वीर्य का स्वाद चख लिया और झट से मुझे आँख मारी.
में धन्य हो गया!!. मेरा जीवन जैसे सफल हो गया!! मेरी बहन ने मेरे वीर्य का पानी चाट लिया. और उसे उस'का स्वाद पसंद भी आया!!. इस बात से मुझे यकीन हो गया के अगर में उसके मूँ'ह में झाड़ जाउ तो वो मेरा पूरा वीर्य निगल लेगी. इस ख़याल से में खूस हो गया और उत्साह से उसे आगे क्या कर'ना है ये बताने लगा.
"अब, दीदी. तुम अपना मूँ'ह खोल दो और मेरे लंड का सिर्फ़ सुपाडा अप'ने मूँ'ह में ले लो. हाँ. ऐसेही. ओहा. अब. अप'ने होठों से सुपाडे के बेस को जाकड़ लो. और फिर अप'नी जीभ और मूँ'ह के अंदर का उप्परी भाग. इस'के बीच पकड़ा के सुपाडे को ज़ोर से चूसो. अहहाहा!. ऐसेही. ग्रेट!.. ऐसे ही कर'ते रहो. ज़्यादा ज़ोर से मत चूसो. धीरे धीरे.. हाँ. इतना ही. बराबर. चूसो. दीदी. चूसो मेरा लंड.." यकायका मेरा लंड चुसते चुसते ऊर्मि दीदी हंस'ने लगी. वो क्यों हंस रही है ये मेरी समझ में नही आया इस'लिए मेने उसे पुछा,
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