Desi Chudai Kahani मकसद
07-22-2021, 01:17 PM,
#31
RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“अरे कोई राम सलाम नहीं, कोई नमस्ते नहीं, कोई गुड मार्निंग नहीं । ईंट मार दी । बोलिए । मैं तुम्हारा एम्प्लायर हूं या तुम्हारा दूध वाला हूं ?”
“आप मेरे दूध वाले होते तो फिर मैं ऐसे थोड़े ही बोलती !”
“फिर कैसे बोलती ?”
“फिर मैं कहती नमस्ते चाचाजी ।”
“चाचाजी !”
“हां । आप मेरे चाचा जी बनना चाहते हैं ?”
“अरे, जहन्नुम में गया तेरा चाचा जी मूड खराब कर दिया ।”
“सारी ।”
“कहती है सारी ।”
“आप अगर इस वक्त अपने एम्प्लोयर की फोन कॉल रिसीव करने का मेरा पोज देख पाते तो खुश हो जाते । फिर न कहते कि ईंट मार दी ।

“देख पाता तो क्या देखता मैं ?”
“आप देखते कि मैं सावधान की मुद्रा में खडी हूं । मेरा दायां हाथ सैल्यूट की सूरत में मेरे माथे पर है और मैं थर-थर कांप रही हूं ।
“रजनी मैं जो सवेरे दफ्तर नहीं पहुंचा, तूने कोई फिक्र की इत बात की ?”
“बहुत फिक्र की ।”
“फिक्र की तो क्या किया ?”
“सारे बड़े अस्पतालों की केजुअलटी पर फोन किया आस-पास के सारे थानों से पूछताछ की । अभी डायरेक्ट्री में तिहाड़ जेल का नम्बर देख रही थी कि आपका फोन आ गया ।”
“लानत ! लानत !”
“अब आप कहां से बोल रहे हैं ? इन्ही जगहों में से किसी में से या कहीं और से ?”

“कहीं और से ।”
“शुक्र है भगवान का । जान मे जान आ गई ।”
“कम से कम ये तो पूछना था कहीं और से कहां से ।”
“होंगे आप किसी नई बहन जी के पहलू में । हफ्ता दस दिन तो अब दफ्तर क्या आ पाएंगे आप !”
“अहमक ! जानती नहीं कि मैं मरता-मरता बचा हूं ।”
“अच्छा !”
“हां । वो रात को ....”
“जरूर कोई विषकन्या पल्ले पड़ गई होगी इस बार ।”
“तौबा ! तेरे से तो बात करना भी गुनाह है । एक नंबर की कम्बख्त औरत है तू ।”
“करेक्शन । एक नंबर की नहीं हूं । औरत नहीं हूं ।”

“लेकिन कम्बख्त है ।”
“बन गई हूं कुछ-कुछ आपकी सोहबत में ।”
“अब ये बात अभी कितनी बार कहेगी ?”
“जितनी बार आप मुझे ये एक नम्बर की कम्बख्त औरत वाला फिकरा कहेंगे ।”
“ठीक है, मर ।”
“खड़े खड़े ? सावधान और सैल्यूट की मुद्रा में थर थर कांपते हुए ?”
“जैसे मुझे यकीन आ गया है कि तू ऐसे खड़ी है ।”
“आके तसदीक कर लीजिये ।”
“आना जैसे आसान है ।”
“जो बहन जी आने से रोके हुए हैं, वो इजाजत दे तो कोई दिव्यदृष्टि पैदा कीजिये अपने आपमें ।”
“क्या मुश्किल काम है ?” मैं व्यंगपूर्ण स्वर में बोला ।

“आपके लिये । आखिर इतने बड़े जासूस हैं आप ।”
तभी मुझे सीढियां उतरती सुजाता दिखाई दी ।
“ठीक है ।” मैं बोला, मैं आके खवर लेता हूं तेरी ।” मैंने फोन हुक पर टांग दिया ।
***
मैं फ्लैग स्टाफ रोड पहुंचा ।
कृष्णबिहारी माथुर की कोठी पर एक निगाह पड़ते ही मुझे कबूल करना पड़ा कि मदान ने उसके बारे में गलत नहीं कहा था । वो भव्य, विशाल कोठी जिसके सामने मैं उस घड़ी खड़ा था, यकीनन किसी बादशाह के आवास के ही काबिल हो सकती थी ।
गरीब आदमी के लिए पैसा भगवान है लेकिन दौलतमंद के लिए पैसे का रोल बड़ा सीमित होता है । दौलतमंद की जिदगी में दौलत की एक ऐसी स्टेज आ जाती है, जबकि बतौर दौलत वो यूजलेस शै बन जाती है, तब उसका कोई इस्तेमाल मुमकिन होता है तो यही कि उससे और दौलत कमाई जा सकती है । दौलतमंद को जरूर इस बात का अफसोस रहता होगा कि खुदा ने उसका दस मुंह और बीस पेट क्यों न दिए, वो चांदी घोल के क्यों नहीं पी सकता, सोने का निवाला क्यो नहीं खा सकता, हीरे जवाहरात क्यों नहीं चबा सकता ? शायद यही वजह है कि दौलतमंद आदमी अपनी दौलत का सबसे व्यापक और भौंडा प्रदर्शन इमारत बनाने और औलाद की शादी करने पर करता है ।

वल्गर डिस्पले ऑफ वेल्थ का एक नमूना माथुर की कोठी की सूरत में उस वक्त मेरे सामने मौजूद था । कोठी दोमंजिला थी और एक कोई पांच हजार गज के प्लाट के बीचों-बीच ताजमहल की तरह खड़ी थी । आयरन गेट से कोठी तक पहुचते ड्राइव-वे के दायें-बायें ऊचे-ऊचे पेड़ थे और मखमली घास था, खूबसूरत फूल थे, फव्वारे थे और संगमरमर की प्रस्तर प्रतिमाएं थीं । दिल्ली शहर में उस ढंग से उतनी जगह में बनी दूसरी इमारत जरूर राष्ट्रपति भवन ही होगा ।
आयरन गेट पर खड़े सशस्त्र गोरखे को मैंने अपना परिचय दिया ।
जैसा कि हुक्म हुआ था, आधे घंटे बाद मैं वहां फोन करके आया था और मेरी माथुर से मुलाकात की दरख्वास्त कबूल हो चुकी थी ।

चौकीदार ने मुझे भीतर दाखिल हो लेने दिया, एक वर्दीधारी नौकर को वहां तलब किया और मुझे उसके हवाले कर दिया । नौकर मुझे एक रेलवे प्लेटफार्म जितने बड़े ड्राइंगरूम में ले गया ।
“आप यहां बैठिए ।” वह बड़े अदब से बाला, “मैं भीतर खबर करता हूं ।”
मैने सहमति में सिर हिलाया लेकिन मैने बैठने का उपक्रम नहीं किया ।
नौकर वहां से विदा हो गया ।
मै सोचने लगा ।
हालात बड़े उम्मीद अफजाह थे । ये बड़ा सुखद संयोग था कि मर्डर वैपन का मालिक एक रईस आदमी निकला था । युअर्स ट्रूली को कोई अतिरिक्त चार पैसे हासिल होने की उम्मीद किसी रईस आदमी से ही हो सकती थी । कड़के से क्या हासिल होता !

मुझे सिगरेट की तलब लग रही थी लेकिन वहां कहीं ऐश-ट्रे न दिखाई दे रही होने की वजह से मुझे अपने पर जब्त करना पड़ रहा था इतनी शानदार जगह पर सिगरेट की राख बिखराने की जुर्रत आपके खादिम से नहीं हो रही थी ।
कुछ क्षण जब वही पहले वाला नौकर ट्रे पर कोल्ड ड्रिंक का एक गिलास रख वपिस लौटा ।
उसने ट्रे मुझे पेश की ।
मैंने गिलास उठा लिया ओर बोला, “ऐश ट्रे ।”
उसने एक सोफे के सामने पड़ी शीशे की मेज की तरफ इशारा किया ।
वहां कांसे का बना एक हाथी पड़ा था । हाथी का हौदा ऐश ट्रे की तरह इस्तेमाल होने के लिए बना था ।

तौबा । मैंने जिसे सजावटी मुजस्मा समझा था, वो ऐश ट्रे निकली थी ।
“मैंने नायर साहब को खबर कर दी है ।” नौकर बोला, “आगे वही आपसे बात करेंगे ।”
“नायर साहब कौन हैं ?” मैंने पूछा ।
“साहब के प्राइवेट सैक्रेट्री हैं ।”
“ओह ।”
नौकर फिर वहां से रुखसत हो गया ।
कोल्ड ड्रिंक का गिलास मैंने हाथीनुमा ऐश ट्रे वाली मेज पर रखा और उसके सामने एक सोफे पर ढेर हो गया । मैने अपना डनहिल का पैकेट निकालकर एक सिगरेट सुलगा लिया ।
सोफा किसी तजुर्बेकार कॉलगर्ल की आगोश जैसा आरामदेय था । मुझे डर लग रहा था कि उस पर बैठा-बैठा कहीं मैं ऊंघने न लगूं ।
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07-22-2021, 01:18 PM,
#32
RE: Desi Chudai Kahani मकसद
तभी वहां का भीतर की ओर एक दरवाजा खुला और भीतर एक सुन्दर युवती ने कदम रखा ।
मैं हड़बड़ाकर उठ खड़ा हुआ ।
मेरे पर निगाह पड़ते ही लड़की थमककर खड़ी हो गई । उसके चेहरे पर एकाएक हैरानी और बदहवासी के भाव प्रकट हुए । कुछ क्षण वह मुझे मुंह बाए देखती रही ।
मैंने देखा कि वह मर्दों जैसी खुले गले की लंबी धारियों वाली कमीज और डेनिम की जींस और जैकेट पहने थी । जींस इतनी टाईट थी कि ऐसा लगता था जैसे टखनों से कमर तक जिस्म पर डेनिम की रंगत का स्प्रे पेंट हुआ था । उसकी कमीज के तीन बटन खुले थे जिसकी वजह से उसके गले की मरमरी रंगत का मुझे बड़ा दिलकश नजारा हो रहा था । कमीज बड़ी-बड़ी जेबों वाली थी और वक्ष के उभार जेबों में भरे लगते थे ।

काबू में आ जाए - मन ही मन घुटनों तक लार टपकाते हुए मैंने सोचा - तो सबसे पहले जेब ही खाली करूं साली की ।
फिर उसके चेहरे के भाव बदले । मुझे लगा जैसे उसने चैन की गहरी सांस ली हो ।
मैंने देखा कि उसके बाल कटे हुए थे और मेकअप के नाम पर उसके होंठों पर बहुत सलीके से चढ़ी हुई सिर्फ लाल लिपस्टिक दिखाई दे रही थी ।
“हल्लो देयर ।” वह मुस्कराकर बोली ।
“हल्लो युअरसेल्फ ।” मैं बड़े अदब से बोला ।
गेंद की तरह फुदकती हुई वो मेरी तरफ बढ़ी । मैने उसकी उम्र का अंदाज बीस के आसपास का लगाया ।

वह मेरे विल्कुल सामने आ खड़ी हुई तो एकाएक मेरे जेहन में बिजली सी कौंधी !
वो वही लड़की थी जिसे मैंने शशिकांत की मेज की दराज से बरामद वीडियो कैसेट मैं देखा था । उस वक्त क्योंकि वो पूरी ढकी हुई थी इसलिए मुझे उसको पहचानने में वक्त लगा था । आखिर नंगी औरत में सूरत से कहीं बेहतर देखने लायक चीजें होती हैं ।
“जरूर कोई ममी के वाकिफ हो ।” वह बोली, “क्योंकि मैं तो तुम्हें जानती नहीं ।”
“ममी !” मेरे मुंह से निकला ।
“मेरे डैडी की बीवी । ममी ही हुई न मेरी ? मिसेज माथुर । मिसेज सुधा माथुर ।” उसके स्वर में व्यंग्य का स्पष्ट पुट था ।

“आप माथुर साहब की बेटी हैं ?”
“हां । पिंकी कहते हैं मुझे ।”
मदान ने सुधा माधुर को अपनी बीवी से सिर्फ चार साल बड़ी बताया था । इस लिहाज से वो पिंकी, वो स्वनामधन्य बालिका, सुधा माथुर की बेटी तो नहीं हो सकती थी ।
“सौतेली मां की बेटी हैं आप ।” मैं बोला ।
“बेटी तो सगी मां की ही होती है ।”
“मेरा मतलब है ये....ये सुधा जी माथुर साहब की दूसरी बीवी हैं ?”
“हां । तुम सुधा से ही मिलने आए होगे लेकिन वो तो इस वक्त घर होती नहीं ।”
“वजह ।”
“इंटीरियर डेकोरेटर जो है । अपने एक्सटीरियर की डेकोरेशन की नुमायश करने के लिए इंटीरियर डेकोरेशन का सजावटी धंधा पकड़ा हुआ है पट्ठी ने ।”

“इतने रईस आदमी की बीवी ये धंधा ....”
“पैसा कमाने के लिए नहीं करती । शौक की खातिर करती है । पास्टाइम के लिए करती है और ...”
“और क्या ?”
“घर से अकेली निकलने का बहाना हासिल करने के लिए करती है ।”
“आई सी ।”
“इस वक्त कनाट प्लेस में होगी । अपने ऑफिस में । आई मीन होगी तो होगी, वैसे नहीं भी होगी ।”
“मैं उनसे मिलने नहीं आया ।”
“सच !”
“हां ।”
“वैल, दैट्स गुड न्यूज । मुझे तो गुस्सा ही आने लगा था ।”
“किस बात पर ?”
“इसी बात पर । जो भी खूबसूरत सजीला नौजवान इस घर में कदम रखता है, वो ममी से ही मिलने आया होता है । उसका क्लायंट बनके । अपना इटींरियर डैकोरेट कराने के लिये ।”

“ये खूबसूरत सजीला नौजवान आपने मुझे कहा ?”
“तुम्हें ‘ही’ कहा । और कौन है यहां ?”
“फिर तो तारीफ का शुक्रिया ।”
“सिर्फ थोबड़ा ही खूबसूरत है या हरामी भी हो ?”
“वो तो मैं एक नंबर का हूं ।”
“और कमीने ?”
“फुल ।”
“खास दिल्ली वाली किस्म के ?”
“हां ।”
“और फंदेबाज ? मतलबी ? हरजाई ?”
“एक्सपोर्ट क्वालिटी का ।”
“फिर तो तुम्हारी मेरी निभ जाएगी हफ्ता दस दिन । क्योंकि मैं खुद ऐसी ही हूं ।”
“कैसी ?”
“हरजाई । कमीनी । फ्लर्ट ।”
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07-22-2021, 01:18 PM,
#33
RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“और फ्रैंक । साफगो ।”
“वो भी । नाम क्या है तुम्हारा ?”

“सुधीर ।”
“कुम्भ राशि हो न ?”
“हां ।”
“कुम्भ राशि से मेरी खास पटती है । इसलिए तुम्हारे साथ हो सकता है हफ्ता-दस दिन की जगह महीना दो महीना चल जाए ।”
“जहेनसीब ।”
मैं समझ नहीं पा रहा था कि वो जो कुछ कह रही थी, दिल से कह रही थी या महज अपनी हाजिरजवाबी को धार दे रही थी ।
“आज मौसम बढ़िया है ।” वो बोली, “चलो कहीं ड्राइव पर चलें ।”
“मेरे पास कार नहीं है ।” मैं खेदपूर्ण स्वर में बोला ।
“नो प्राब्लम । मेरे पास है । कई हैं ।”
“लेकिन ।”

“खूब गुजरेगी जब मिल बैठेंगे हरामी दो ।”
“इस वक्त मेरा तुम्हारे डैडी से मिलना जरूरी है ।”
“मत मिलो ।”
“निहायत जरूरी है ।”
“सोच लो । ये मौका दोबारा हाथ नहीं आएगा ।”
“आएगा । जल्द आएगा ।”
“क्या ?”
“मौका । दोबारा तुम्हारे से मुलाकात का ।”
“मिस्टर सोच लो । नाओ ऑर नैवर ।”
“शाम को कहां पाई जाती हो ?”
“शाम किसने देखी है ।”
“ कहां पाई जाती हो ?”
“मेरी शामें ऐसे अहमक के लिए नहीं हैं जिसको मेरे से ज्यादा जरूरी मेरे बाप से मिलना लगता हो ।” उसने जोर से पांव पटके और रोषपूर्ण स्वर में बोली, “गुड बाई ।”

“ठहरो, ठहरो ।”
“इरादा बदल रहे हो ?” वो ठिठककर बोली ।
“वो तो मुमकिन नहीं लेकिन एक बात का जवाब दो ।”
“किस बात का ?”
“अभी जब तुम्हारी पहली निगाह मेरे ऊपर पड़ी थी तो तुम चौंक क्यों गई थी, बदहवास क्यों हो गई थीं ?”
“मैं तो नहीं चौंकी थी । मैं तो नहीं हुई थी बदहवास ...”
“क्या इसलिए क्योंकि मुझे शशि समझ बैठी थीं ?”
“शशि ?”
“सिर्फ हेयर स्टाइल और मूंछों का फर्क है ।”
“तुम क्या कह रहे हो मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा ।”
“तुम किसी शशि को नहीं जानती ?”

“नहीं जानती ।”
“यूं आनन-फानन बिना सोचे-समझे जवाब मत दो । कम से कम ये तो पूछ लो कि मैं किस शशि की बात कर रहा हूं । और नहीं तो उसका पूरा नाम तो पूछ लो ।”
“पूछ लिया । बोलो, क्या है पूरा नाम ? कौन है वो ?”
“पूरा नाम शशिकांत । घर मैटकाफ रोड पर । राजेन्द्र प्लेस में नाइट क्लब । कुछ याद आया ?”
“नहीं ।”
“फिर तो अभी जो अपनी खूबियां बयान करके हटी हो, उसमें एक खूबी और जोड़ लो ।”
“क्या ?”
“बड़ी ढीठ हो ।”
“शटअप ।”
“और भुलक्कड़ भी । मादरजात अल्फ नंगी होकर जिस मर्द को एंटरटेन कर रही थी, उसे चंद दिन भी याद न रख सकीं ।”

“क्या ।”
“मैंने सिर्फ दो मिनट फिल्म देखी थी तो तुम्हारे सांचे में ढले नंगे जिस्म को देख मुझे गश आने लगा था, पूरी फिल्म देखता तो मेरी हालत अस्पताल जाने वाली हो जाती । या शायद शमशान पहुंचने वाली ।”
“फिल्म ? कैसी फिल्म ?”
“वीडियो फिल्म, मेरे पास है । शाम को मिलना । दिखाऊंगा ।”
“क ...कहां ?”
“जहां तुम कहो ।”
“फोन करना ।”
“कहां ?”
“2511265 पर । ये मेरा प्राइवेट नंबर है । इसे मैं ही उठाती हूं । मैं नहीं उठाऊंगी तो कोई और भी नहीं उठाएगा ।”
“गुड ।”
वो लम्बे डग भरती वहां से विदा हो गई ।

मैं वापस सोफे पर बैठ गया ।
मैं अभी बैठा ही था कि वहां एक सूट-बूटधारी साउथ इंडियन ने कदम रखा । उम्र में वो कोई पचास साल का था और इतना काला था कि चमड़ी की और बालों की रंगत में फर्क मुश्किल से ही मालूम होता था । उसकी आंखें तीखी थीं और चेहरे पर बुद्धिमत्ता की छाप थी ।
“हल्लो ।” वह बोला “आई एम नायर । मैं मिस्टर माथुर का प्राइवेट सैक्रेट्री हूं ।”
“मैं सुधीर कोहली ।” मैं उठता हुआ बोला ।
“आई नो । वेलकम, मिस्टर कोहली । मिस्टर माथुर शूटिंग रेंज पर हैं....”

“शूटिंग रेंज पर हैं !” मैं सकपकाया, “लेकिन मुझे तो यहां मिलने आने को कहा गया था ।”
“मिस्टर कोहली ।” वो मुस्कराया, “शूटिंग रेंज यहीं है । मिस्टर माथुर को जिस चीज की जरूरत होती है, वो उनके लिये यहीं मुहैया की जाती है । वो चीज के पास नहीं जाते । चीज उनके पास आती है ।”
“कमाल है !”
“शूटिंग रेंज यहीं कोठी के पिछवाड़े में है । आप उनके पास जाना चाहते हैं तो तो अभी चल सकते हैं वर्ना अभी और इन्तजार कीजिए ।”
“मैं और इन्तजार नहीं करना चाहता ।”
“तो फिर तशरीफ लाइए ।”

मैं उसके साथ चलता हुआ कोठी के पिछवाड़े में पहुंचा । वहां एक बहुत बड़ा उद्यान था जिसके बीच में स्वीमिंग पूल था और जिसके आगे शूटिंग रेंज था ।
पिछवाड़े में पहुंचते ही शूटिंग की आवाज आने लगी थी । स्वीमिंग पूल से पार हो जाने के बाद मुझे एक उम्रदराज आदमी दिखाई दिया जो कि रायफल से दूर टंगे टारगेट पर गोलियों से निशाना साध रहा था । मैंने देखा कि वो आदमी खड़ा होकर रायफल चलाने की जगह बैठकर ऐसा कर रहा था और जिस कुर्सी पर वो बैठा था वो एक व्हील चेयर थी ।
“मिस्टर माथुर अपाहिज हैं ।” नायर धीरे से बोला, “दो साल पहले लकवे के शिकार हो गए थे । दोनों टांगे बेकार हो गई हैं । बस, कमर से ऊपर के ही अंग चलते हैं ।”

“ओह ! फिर तो कहीं आते-जाते तो क्या होंगे !”
“बहुत कम आते-जाते हैं । बहुत ही कम । तभी जब कहीं जाना इंतहाई जरूरी हो ।”
“कोई इलाज वगैरह....”
“कोई इलाज नहीं । इंग्लेंड अमरीका तक के डॉक्टर इन्हें लाइलाज घोपित कर चुके हैं ।”
“दैट्स टू बैड ।”
हम पीछे से उनकी ओर बढे ।
मेरे देखते-देखते माथुर ने रायफल से जितनी भी गोलियां चलाई वो तमाम की तमाम टार्गेट से कहीं-न-कहीं टकराई । निशाना खूब था उसका ।
हम करीब पहुंचे तो उसने रायफल रख दी ।
मैंने देखा कि अपाहिज होते हुए भी साठ साल की उम्र के लिहाज से उसकी तंदरुस्ती बुरी नहीं थी । उसके चेहरे पर चमक थी और बाल उस उम्र में भी आधे से ज्यादा काले थे ।

उसकी सूरत से यूं लगता था जैसे जिंदगी की हर देखने लायक चीज कई-कई बार देख चुका था और पहली बार देखने पर भी किसी चीज का उस पर कोई खास रौब गालिब नहीं हुआ था ।
इसे कहते हैं खालिस बड़ा आदमी- मैंने मन ही मन सोचा ।
“सर” नायर ने आगे बढ़कर उसे बताया, “मिस्टर कोहली हैज अराइवड ।”
उसने पैनी निगाहों से मेरी तरफ देखा ।
मैंने हाथ जोड़कर उसका अभिवादन किया ।
मेरे अभिवादन पर उसने कोई खास गौर फरमाया हो, ऐसा न लगा । उसने अपने सैक्रेट्री को इशारा किया जो कि फौरन लम्बे डग भरता वहां से रुखसत हो गया ।
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07-22-2021, 01:19 PM,
#34
RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“सो” नायर बहुत दूर निकल गया तो वह मेरे से मुखातिब हुआ, “यु आर ए प्राइवेट डिटेक्टिव ।”
“आई हैव दि ऑनर, सर ।” मैं बड़े अदब से बोला ।
“यहां खड़े ही रहना पड़ेगा तुम्हें ।”
उसकी व्हील चेयर के करीब एक छोटी-सी टेबल पड़ी थी जिस पर कारतूस के कुछ डिब्बे और दो रिवॉल्वरें रखी हुई थीं । वो चाहता तो मुझे उस टेबल पर बैठने को कह सकता था लेकिन वो भला क्यों चाहता! उसे मेरी असुविधा से क्या लेना-देना था !
“आई डांट माइंड सर ।” प्रत्त्यक्षत: मैं बोला ।
“या भीतर चलें ?”
“मेरे लिए तो एक ही बात है । आप जैसा मुनासिब समझें ।”

“आज मौसम बढ़िया है । आउटडोर के काबिल ।”
“यहीं ठीक है सर ।”
“यू श्यॉर यू डोंट माइंड कीप स्टैंडिंग ।”
“नॉट एट आल, सर ।”
“सो नाइस आफ यू ।” वो एक क्षण ठिठका और फिर बोला ।
“तुम्हारा फोन आने और तुम्हारे यहां पहुंचने के बीच के वक्फे में हमने तुम्हारे बारे में तफ्तीश कराई है ।”
“कुछ अच्छा तो सुनने को नहीं मिला होगा सर !”
“अच्छा ही सुनने को मिला है । काफी फेमस प्राइवेट डिटेक्टिव बताये जाते हो । नो ?”
“अंधों में काना राजा जैसी कुछ पूछ है तो सही, सर, मेरी दिल्ली शहर में ।”

“रिवॉल्वर की क्या बात है ?”
“पहले आप ये बताइए कि सीरियल नंबर डी- 241436 वाली, हाथी दांत की मूठ बाली, बाइस केलीवर की रिवॉल्वर क्या वाकई आपकी मिलकियत है ?”
“है तो सही ।”
“आपके पास है ?”
“तुम्हें मालूम तो नहीं है । हमें पहले नहीं मालूम था लेकिन अब मालूम है । तुम्हारी पहली फोन कॉल के बाद हमने रिवॉल्वर को उसकी जगह पर चैक किया था । वो अपनी जगह पर मौजूद नहीं थी ।”
“सर वो मर्डर वैपन है ।”
“क्या ?”
“उससे कत्ल हुआ है ।”
“किसका ?”
“वो...तो मुझे नहीं मालूम ।”
“ये कैसे मालूम है कि कत्ल हुआ है ?”

“मुझे बताया गया है ?”
“किसने बताया है ? साफ-साफ बोलो । पहेलियां न बुझाओ ।”
“सर, बतौर प्राइवेट डिटेक्टिव मेरी खिदमात हासिल करने का ख्वाहिशमंद एक आदमी मेरे पास आया था उसी ने मुझे सब कुछ बताया है और उसी के अधिकार में इस वक्त वो रिवॉल्वर है ।”
“नाम क्या है उसका ?”
“नाम बताना मेरे पेशे के उसूलों के खिलाफ है ।”
“वो हमारी रिवॉल्वर, जिसे वो शख्स मर्डर वैपन बताता है, उसके अधिकार में है ?”
“जी हां ।”
“वो चाहता क्या है?”
“वो मुझे बिचोलिया बनाकर उस रिवॉल्वर के बदले में आप से चार पैसे खड़े करना चाहता है ।”

“चार पैसे किस रकम को कहता है ?”
“पचास हजार रुपयों को ।”
“और तुम” उसके स्वर में तिरस्कार का पुट आ गया, “हमें ये राय देने आए हो कि ये रकम दम उसे सौंप दें !”
“सर, मैं आपको ये राय देने आया हूं कि आप उसे कानी कौड़ी न दें !”
वो सकपकाया । वो कुछ क्षण अपलक मुझे देखता रहा और फिर बदले स्वर में बोला - “अच्छा !”
“जी हां ।”
“मिस्टर, अभी तुम कह रहे थे कि उस शख्स का नाम बताना तुम्हारे पेशे के उसूलों के खिलाफ है अब उसके हितों के खिलाफ हमें राय देते वक्त कोई उसूल नहीं टूट रहा तुम्हारे पेशे का ?”

मैं हड़बड़ाया । मैं उसे क्या बताता कि वो बात तो तब लागू होती जबकि ऐसे किसी क्लायंट का अस्तित्व होता ।
“वो सिर्फ प्रस्ताव है, सर” मैं बोला, “मेरा क्लायंट वो अभी बन नहीं गया है । और फिर मुझे उसकी बात की हकीकत को परखने का पूरा अख्तियार है । यू अंडरस्टेंड माई पॉइंट, सर ?”
उसने हिचकिचाते हुए सहमति में सिर हिलाया ।
“तो” एक क्षण बाद वह बोला, “तुम समझते हो कि हमें उस शख्स को खातिर में नहीं लाना चाहिए !”
“जी हां ।” मैं जोशभरे स्वर में बोला, “सर, वो क्या है कि जाती तौर पर मैं ब्लेकमेलिंग के सख्त खिलाफ हूं । ब्लेकमेलर की मांग तो, सर, जूते की तरह होती है जो एक बार फटना शुरू हो जाए तो फटता ही चला जाता है । ब्लेकमेलर अपने शिकार के साथ एक बार जोंक बनकर चिपट जाता है तो मुकम्मल खून निचोड़कर ही मानता है ।”

“लेकिन जब रकम के बदले में रिवॉल्वर हमें वापस मिल जायेगी तो ...”
“ब्लैकमेलर रिवॉल्वर की तस्वीरें रख सकता है, उसके बैलेस्टिक मार्क्स का रिकार्ड रख सकता है, दस्तावेज के तौर पर अदला-बदली की केस हिस्ट्री वनाकर अपने पास महफूज रख सकता है, वो सारे सिलसिले का कोई गवाह खड़ा कर सकता है ।”
“ओह !”
“और फिर मुझे पूरा यकीन है कि आप जैसे उच्चकोटि के श्रीमंत का या उनके परिवार के किसी सदस्य का कत्ल जैसे जघन्य अपराध से कोई रिश्ता तो हो ही नहीं सकता । सच पूछिए तो मेरा ये यकीन ही मुझे आप तक लाया है, न कि आपके और ब्लैकमेलर के बीच बिचौलिया वनने का इरादा ।”

“दैट्स वैरी नाइस ऑफ यू । वैरी नाइस ऑफ यू इनडीड । तुम तो बड़े कैरेक्टर वाले नौजवान मालूम होते हो ।”
“आपकी जर्रानवाजी है, सर, जो आपने मुझे ऐसा समझा ।”
“तुम तो हमारे बहुत काम आ सकते हो । वी मे नीड युअर प्रोफेशनल सर्विसिज ।”
“आई विल बी ओनली टू ग्लैड टु बी ऑफ एनी सर्विस टु यू सर ।”
“लेकिन सवाल ये है कि उस रिवॉल्वर की बरामदगी के सिलसिले में हमारे लिए काम करना क्या तुम्हें मंजूर होगा ?”
“जी !”
“भई, हमारा इंटरेस्ट तुम्हारे उस ब्लैकमेलर क्लायंट के इंटरेस्ट से ऐन उलट जो है ।”

“ऐसा तब होगा सर जबकि रिवॉल्वर वाकई मर्डर वैपन, कत्ल का हथियार साबित हो । और फिर मैंने अभी कहा है कि वो मेरा क्लायंट अभी बन नहीं गया है ।”
“ऐसा कैसे हो सकता है ? हमारा मतलब है वो रिवॉल्वर कैसे कत्ल का हथियार साबित हो सकती है ? या नहीं साबित हो सकती है ?”
“सर, इजाजत दें तो इस वाबत मैं आपसे एकाध सवाल करूं ?”
“करो ।”.
“वो रिवॉल्वर यहां कहां रखी जाती थी ?”
“मेरी स्टडी में । कोठी के ग्राउण्ड फ्लोर पर । उसी के एक कोने में मेरी गन की केबिनेट है जिसमें कई राइफलें, पिस्तौलें और रिवॉल्वरे हैं । उस कैबिनेट के एक दराज में ये रिवॉल्वर पड़ी होती थी ।”

“दराज को ताला ? “
“कभी जरूरी नहीं समझा गया ।”
“यहां के नौकर चाकर....”
“खानदानी हैं । वफादार हैं । स्वामिभक्त हैं ।”
“आजकल चांदी का जूता मार के किसी का ईमान खराब कर देना क्या मुश्किल है !”
“यहां यूं ईमान खो देने वाला नौकर कोई नहीं हमारी गारंटी ।”
“आई सी तब तो आपके फैमिली मेम्बर्स की ही उस रिवॉल्वर तक पहुंच थी ।”
“दो नानमेम्बर्स की भी पहुंच थी उस तक ।”
“वो कौन हुए ?”
“एक हमारा प्राइवेट सेक्रेट्री नायर जिससे तुम अभी मिले हो और दूसरा हमारा वकील । दोनों भरोसे के आदमी हैं । नायर तो, जब से मैं अपाहिज हुआ हूं हमारा हाथ पांव, दिमाग सब कुछ है ।”
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07-22-2021, 01:19 PM,
#35
RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“यहीं रहते हैं नायर साहब ?”
“रहता अशोक विहार में है लेकिन जरूरत पड़ने पर यहां भी रुक जाता है ।”
“अशोक विहार में कहां ?”
उसने एक पता बताया जो कि मैंने नोट कर लिया ।
“और वकील साहब ?”
“वो शालीमार बाग रहता है । लेकिन वो नायर की तरह रोज यहां नहीं होता । नायर तो नौ से छ: बजे तक लाजमी तौर पर यहां होता है वकील तभी आता है जब या तो बुलाया जाए या फिर उसका शूटिंग की प्रैक्टिस का दिल कर आए ।”
“वो भी आपकी तरह शूटिंग का शौक रखते हैं ?”

“हां पक्का निशानेबाज है वो । क्रैक शॉट । सारी दिल्ली में नाम है ।”
“क्या नाम है उनका ?”
“पुनीत खेतान ।”
“जी !”
“तुम्हारे जैसा ही खूबसूरत और होनहार नौजवान है । कारोबारी मशवरे के लिए तो हमारे पास फौज है वकीलों की लेकिन खेतान मेरा पर्सनल लीगल एडवाइजर है । फैमिली मेम्बर जैसा दर्जा है उसका यहां !”
खुशकिस्मत है पट्ठा ! - मैं मन ही मन भुनभुनाया - हर जगह फिट है ।
“आपकी फैमिली में कौन-कौन है,” प्रत्यक्षत: मैं बोला ।
“मेरे अलावा मेरी बीवी सुधा है, नौजवान बेटी पिंकी है और उससे कोई दस साल बड़ा नौजवान बेटा मनोज है ।” वह एक क्षण ठिठका और फिर बोला “मिस्टर कोहली, जब तुम्हें हमने कांफिडेंस में लिया है और तुम हमारे लिए काम भी करने वाले हो तो एक बात हम तुमसे छुपाकर नहीं रखना चाहते ।”

“कौन-सी बात ?”
“पिंकी की बात । लेकिन वादा करो कि इस बाबत तुम कहीं मुंह नहीं फाड़ोगे ?”
“मैं वादा करता हूं ।”
“गुड । हमारे साथ वफादारी दिखा कर घाटे में नहीं रहोगे, मिस्टर कोहली । हमारा काम करो, वो रिवॉल्वर हमें वापस दिलाओ, बतौर फीस हम तुम्हारी कल्पना से बाहरी रकम तुम्हें देंगे ।”
“कि.... कितनी !”
“तुम्हारा वो ब्लैकमेलर क्लायंट उस रिवॉल्वर के बदले में हमसे पचास हजार रुपए हासिल करना चाहता है । कोहली उसे पचास हजार रुपए देने की जगह हम तुम्हें एक लाख रुपया देना पसंद करेंगे ।”
मेरा दिल जोर से धड़का । मेरा जी चाहा कि मैं वार्तालाप को वहीं विराम लगाकर आंधी की तरह मंदिर मार्ग पहुंचूं और तूफान की तरह रिवॉल्वर लेकर वापस लौटूं ।”

बड़ी मुश्किल से आपके खादिम ने अपने लालच पर जब्त किया ।
“सर” मैं बोला, “अगर वो रिवॉल्वर मर्डर वेपन निकला तो उसकी जगह पुलिस की कस्टडी होगी ।”
“उस सूरत में तुम्हारा काम ये साबित करना होगा”, वह बोला, “कि हमारा या हमारी फैमिली का किसी मर्डर से कोई लेना-देना नहीं ।”
“आपको पूरा एतबार है इस बात ?”
वो खामोश हो गया ।
“आप पिंकी की वावत कुछ कहने जा रहे थे ।”
“हां ।” वो तनिक चिंतित भाव से बोला, “सच पूछो तो वो हमारे एतबार को डगमगा रही है ।”
“जी !”
“बहुत उच्छ्र्न्खल लड़की है । मां-बाप के हाथों से निकली हुई । जितनी उसकी उम्र है, उससे दस गुणा ज्यादा गुल खिला चुकी है । शुरू से ही प्राब्लम चाइल्ड रही है वो । दस साल की थी जबकि उसकी मां मर गई थी । तब हम अपनी आज की हालत में नहीं थे और अपने कारोबार में बहुत मसरूफ रहते थे । पिंकी के लिए वक्त निकालते थे अपने बिजी विजनेस शेड्यूल में से लेकिन शायद वो काफी नहीं होता था । गवर्नेस थी उसके लिए लेकिन वो उसके काबू में नहीं आती थी । छ साल यूं ही कटे । फिर उसने बचपन की बेहूदा और काबिले एतराज हरकतें छोड़कर नौजवानी वाली बेहूदा और काबिले एतराज हरकतें शुरू कर दीं । कहते शर्म आती है लेकिन मौजूदा हालात में बताना जरूरी हो गया है कि जब वो दसवीं जमात में थी तो प्रेगनेंट हो गई थी । बड़ी मुश्किल से हालात को काबू में किया । स्कूल छुड़ा दिया । घर पर ही उसकी पढाई-लिखाई का इंतजाम किया तो अपने से तीन गुणा उम्र के टीचर पर ही डोरे डालने लगी । लेडी टीचर रखी तो उसे पीटकर भगा दिया । उस विकट स्थिति का हल शुभचिंतकों ने ये सुझाया कि हम फिर से शादी कर लें । तब छब्बीस साल का मनोज था और शादी शर्म की बात थी लेकिन औलाद की खातिर शादी की । बीवी तकदीर से समझदार और फर्माबरदार मिल गई । उसने हमारी प्रॉब्लम को अपनी प्रॉब्लम माना और बड़े यत्न से पिंकी को काबू करना शुरू किया ।”

“वो कामयाब हुई ?”
“किसी हद तक । अगले दो साल बहुत ही चैन से गुजरे । हमें लगा कि पिंकी पर कोई नामुराद साया था जो टल गया था लेकिन तकदीर की मार कि फिर हमें फालिज मार गया । हमारी उस दुश्वारी की घड़ी में बीवी की तवज्जो हमारी तरफ हुई तो बेटी फिर हाथों से निकल गई । इस बार और भी बड़ा गुल खिलाया । ड्रग एडिक्ट बन गई । गनीमत समझो कि जल्द पता लग गया । दो महीने सेनिटोरियम में रखा । सुधर कर घर आई तो मरी मां और अपाहिज बाप का सदका देकर वादा लिया कि फिर वो नशे का नाम नहीं लगी । बदले में उसने शर्त लगाई कि उसकी आजादी में खलल न डाला जाए, उसकी जरूरतों पर अंकुश न लगाया जाए, उस पर जासूसी न कराई जाए और उसका मुकम्मल एतबार किया जाए । मजबूरन उसकी वे शर्त मानीं । तब तक उन्नीस से ऊपर की हो चुकी थी वो । उस उम्र में लड़की को बेड़ियां पहनाकर तो नहीं रखा जा सकता था न ?”

“जी हां बजा फरमाया आपने ।”
“बीवी राय देती थी कि शादी कर दें लेकिन वो अपनी बला दूजे के सिर मढ़ने जैसा काम होता । फिलहाल हमने ये ही उचित समझा कि हम भगवान से उसे सुबुद्धि देने की प्रार्थना करें और कुछ अरसा सिलसिला यूं ही चलता रहने दें ।”
“ठीक से चला सिलसिला ?”
उसने अवसादपूर्ण ढंग से इनकार में गर्दन हिलाई और फिर बोला, “चार महीने पहले अपनी दस सहेलियों के साथ हफ्ते के लिए मुंबई गई । सहेलियां आंठवें दिन लौट आई, पिंकी न लौटी । सहेलियों से पूछताछ की बिना पर मुंबई पड़ताल करवाई तो वो वहां थी ही नहीं । पुलिस में रिपोर्ट लिखवाई । कुछ पता न चला । बीस दिन बाद किसी ने बताया कि उसने पिंकी को नेपाल में देखा था । फौरन मनोज को नेपाल जाने के लिए तैयार किया । लेकिन उसके रवाना होने से पहले ही वो घर लौट आई । पूरे एक महीने बाद । पूछने पर कुछ बताने को तैयार नहीं । पूछताछ को अपनी आजादी में खलल का दर्जा देने लगी । हमारे ऊपर इल्जाम लगाने लगी कि हम अपने वादे से फिर रहे थे । साथ ही यकीन दिलाने लगी कि उसने सैर करने के अलावा कोई बेजा हरकत नहीं की थी । बता कर सैर क्यों नहीं की ? क्योंकि उसे अंदेशा था कि हम यूं अकेले सैर की इजाजत न देते । बहरहाल पिंकी घर लौट आई थी और हमारे पास खामोश रह जाने के अलावा कोई चारा नहीं था ।”

“था सब कुछ ठीक-ठाक ?”
“कहां था ठीक-ठाक ! अभी पिछले ही महीने बीवी ने अंदेशा जाहिर किया कि वो शायद फिर नशा करने लगी थी । फिर ड्रग एडिक्ट बन गई थी !”
“ओह !”
“अब वो बड़ी हो गई थी तो चालाक भी हो गई थी । ऐसी बातें छुपाकर रखने की कला जान गई थी । पूछे जाने पर साफ मुकर गई । रो-रोकर चिल्ला-चिल्लाकर आसमान सिर पर उठा लिया । हमें ही खामोश हो जाना पड़ा ।”
“अब आप लोग क्या कर रहे हैं ?”
“फिलहाल तो उसे वॉच ही कर रहे हैं ।”
“आई सी ।”

“मिस्टर कोहली, तुम्हें पिंकी की केस हिस्ट्री से वाकिफ कराने का मकसद ये था कि उस रिवॉल्वर को लेकर अगर इस हाउसहोल्ड में कोई बन्दा कोई गुल खिला सकने मे सक्षम था तो वो पिंकी थी ।”
“अगर आप उससे रिवॉल्वर की बाबत सीधे सवाल करें तो ?”
“तो वो साफ मुकर जाएगी । रिवॉल्वर की कभी सूरत भी देखी होने से इंकार कर देगी । हम क्या जानते नहीं उसके कम्बख्त मिजाज को ! ऊपर से सालों-साल झूठ बोलते रहने की वजह से झूठ बोलने का इतना तजुर्बा जो हो गया है उसे ।”
“उसकी आजादी बरकरार है ?”

“फिलहाल तो बरकरार है फिलहाल तो जब, जिसके साथ चाहती है आती-जाती है ।”
“घर में किसी से भीगती है ?”
“क्या मतलब ?”
“सर, डज शी कनफाइइ इन एनीबोडी ?”
“ओह । दैट ! देखो, हमारे से तो उसकी भरपूर कोशिश होती है कि वो न्यारी-न्यारी ही रहे । भाई से भी कुछ यूं ही पेश आती है । सुधा से कुछ खुलती है लेकिन उसका हमें कोई खास फायदा नहीं होता ।”
“क्यों ?”
“तीन चौथाई बातें तो सुधा हमसे छुपा लेती है । हमारी नाजुक तंदरुस्ती की खातिर ।”
“फिर भी ये शक मिसेज माथुर ने आप पर जाहिर किया कि पिंकी शायद फिर नशा करने लगी थी ?”

“हां । ये गम्भीर मसला जो था । ये भी वो छुपाती तो उसे बीवी और मां दोनों के रोल में फेल माना जाता ।”
“हूं । आपके ख्याल से पिंकी कत्ल कर सकती है ?”
“वो प्रॉब्लम चाइल्ड है । बोला न । शी इज नॉट ए नॉर्मल किड । वो कुछ भी कर सकती है ।”
“आपकी निगाह में कोई कैंडीडेट है जिसके कत्ल का वो इरादा कर सकती हो । अपने इरादे पर चाहे वो अमल न कर पाई हो लेकिन जिसकी वजह से उसने आपकी रिवॉल्वर चुराई हो ?”
वह कुछ क्षण सोचता रहा, फिर उसने पहले हौले हौले और फिर जोर-जोर से इनकार में सिर हिलाया ।

आपके खादिम को उसका इनकार सरासर फर्जी लगा ।
“एक बात आप समझते हैं न, सर ?” मैं बोला, “अगर वो कत्ल की गुनहगार निकली तो उसके गुनाह पर पर्दा डालना मेरे बूते से बाहर की बात होगा ।”
“इतनी मोटी फीस लेकर भी ।”
“जी हां ।” मैं दृढ स्वर में बोला, “कत्ल के केस में पुलिस हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठी रहती । वो मुजरिम को पकड़ने के लिए जमीन आसमान के कुलाबे मिला देती है । उनके सामने मेरे जैसा एक अदना प्राइवेट डिटेक्टिव....”
“नैवर माइंड । आई अंडरस्टैंड युअर लिमिटेशंस । तुम वही करो जो कर सकते हो ।”

“क्या ?”
“असलियत का पता लगाओ । मालूम करो कि पिंकी ने ऐसा-वैसा तो कुछ नहीं कर डाला ! मालूम करो और पुलिस से पहले, किसी से भी पहले, मालूम करो ।”
“उससे आपको क्या फायदा होगा ?”
“बहुत फायदा होगा । फोरवार्नड इज फोरआर्म्ड । यू नो ?”
“'यस सर ।”
“फिर जहां पर्दा डालना होगा वो हम डालेंगे । जो बात तुम्हारे बूते से बाहर है, वो जरूरी नहीं कि हमारे बूते से भी बाहर हो ।”
मैने हैरानी से उसकी तरफ देखा । उस घड़ी वो क्षीण-सा फालिज का मारा वृद्ध मुझे किसी फौलादी इन्सान से कम न लगा ।
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07-22-2021, 01:19 PM,
#36
RE: Desi Chudai Kahani मकसद
उसी घड़ी मुझे लगा कि पैसे के लालच में मैं कुछ ज्यादा ही पंगा लिए जा रहा था । मेरा एक क्लायंट था जिसके लिए मैंने कातिल का पता लगाना था और उसे हर हाल में गिरफ्तार करवाना था । अब मैं दूसरा क्लायंट पकड़ रहा था जो कातिल की खवर इसलिए चाहता था ता कि अगर वो उसके परिवार का कोई सदस्य निकले तो वो उसके गुनाह पर पर्दा डाल सके । मैं दोनों क्लायंटो को कैसे राजी कर सकता था । ये तो चित्त भी मेरी पट भी मेरी जैसी बात होती ।”
लेकिन वो पंगा लेना जरूरी भी तो था - मैंने खुद अपने आपको समझाया - मदान के लिए कातिल का पता लगाने की खातिर पूछताछ के लिए मेरा वहां पहुंचना और वहां से सहयोग हासिल करना जरूरी था । बाकी जो कुछ हो रहा था, इत्तफाकिया हो रहा था ।

“पिंकी कल शाम को कहां थी ?” प्रत्यक्षत: मैंने पूछा ।
“क्या पता कहां थी” वो तिक्त स्वर में बोला, “शाम को घर में थोड़े ही टिकती है ।”
“कोई अंदाजा ?”
“तुम्हारा सवाल शाम के किसी खास वक्त की बाबत है ?”
“कह लीजिए कि साढ़े आठ बजे के करीब !”
“उस वक्त का तो हमें कतई कुछ नहीं पता कि वो कहां थी ।”
“आपके साहबजादे “
“उसका भी पता नहीं ।”
“वैसे अमूमन वो कहां पाए जाते हैं ?”
“भई, दिन भर तो वो मेरी कम्पनी के आसफ अली रोड पर स्थित कॉर्पोरेट आफिस में पाया जाता है । एग्जीक्युटीव डायरेक्टर है वो । शाम को तफरीह के लिए कहां कहां जाता है, मुझे नहीं मालूम ।”

“आपकी पत्नी ?”
“सुधा यहीं थी कल शाम को ।”
“और आप ?”
उसने घूरकर मेरी तरफ देखा ।
मैंने उसके घूरने की परवाह न की
“हमने कहां जाना है, भई ! हम तो यहीं होते हैं ।”
“पक्की बात ?”
“इसमें कच्ची-पक्की वाली कौन-सी बात हो गई ?”
“देखिए, क्लायंट और प्राइवेट डिटेक्टिव का रिश्ता मरीज और डॉक्टर जैसा होता हैं । जैसे मरीज का डॉक्टर से कुछ छुपाना मरीज के लिए अहितकर साबित हो सकता है वैसे ही आपका मेरे से कुछ छुपाना अहितकर साबित हो सकता है । आपके लिए । आपके परिवार के किसी सदस्य के लिए । मौजूदा केस के लिए ।”

“भई, कहा न, हम यहीं थे कल शाम ।”
“आपकी बीवी आपके पास थी ?”
“सुधा यहीं थी लेकिन अपने कमरे में थी । उसे अपने ऑफिस का कुछ काम था जो कि वो अपने कमरे में बैठी कर रही थी ।”
“उसका और आपका कमरा एक ही नहीं हैं ? जैसे पति-पत्नी का होता हैं ।”
“नहीं । हमारे कमरे अगल-बगल में हैं ।”
मैं तत्काल फैसला न कर पाया कि शशिकांत की कोठी के ड्राइव-वे में पाए गए व्हील चेयर के निशानों की बाबत मैं उससे दो टूक सवाल करूं या न करूं । फिर मैंने फिलहाल खामोश ही रहना जरुरी समझा ।

“कल शाम आप यहां से बाहर कहीं गए थे ?” अपना पहले वाला सवाल ही मैंने दूसरे तरीके से पूछा ।
“नहीं ।”
“अब आखिरी सवाल । आप शशिकांत को जानते हैं ?”
“कौन शशिकांत ?”
“कोई भी । आप इस नाम के किसी शख्स से वाकिफ हैं ?”
“नहीं ।”
“शशिकांत ऑर नो शशिकांत, आप मैटकाफ रोड की दस नंबर कोठी के किसी बाशिंदे से वाकिफ हैं ?”
“नहीं ।”
“नावाकफियत में भी आप कभी उस कोठी में गए हैं ?”
“वॉट नॉनसेंस !” वो झल्लाया, “अरे जब हम वहां किसी को जानते ही नहीं तो वहां क्या हम झक मारने जाएंगे ?”

“आप वहां कभी नहीं गए ?” मैंने जिद की ।
“नैवर ।”
“सर, डू आई हैव युअर सालम वर्ड फार इट ?”
“यस, यू डू ।”
“थैंक्यू, सर । अब एक आखिरी बात ।”
“वो भी बोलो ।”
“प्राइवेट डिटेक्टिव को क्लायंट से कोई ट्रेडिशनल रिटेनर मिलना होता है ।”
“अभी मिलता है । कोठी में जाकर नायर से दस हजार का चैक ले लो ।”
“थैंक्यू, सर । मैं आपको फिर रिपोर्ट करूंगा, बशर्ते कि.....”
मैं जानबूझ कर खामोश हो गया ।
“क्या बशर्ते कि ?” वो बोला ।
“आप तक पहुंचने में या आपसे फोन पर बात करने में मुझे पहले जैसी ही पाबंदियों और दुश्वारियों का सामना न करना पड़े ।”

“ओह ! तुम फिक्र न करो । तुम्हारी बाबत सबको खबर कर दी जाएगी ।”
“थैंक्यू, सर । गुड डे, सर ।”
माथुर की कोठी से निकलकर फ्लैग स्टाफ रोड पर किसी सवारी की तलाश में मैं पैदल चला जा रहा था कि मुझे एक हॉर्न की आवाज सुनाई दी । मैंने सर उठाया तो सड़क पर सिर्फ एक लाल मारुती कार दिखाई दी ।
तभी हॉर्न फिर बजा ।
मैं कार के करीब पहुंचा । कार पर चारो तरफ कुल जहान के स्टिकर लगे हुए थे । उसकी ड्राइविंग सीट पर पिंकी बैठी थी और बड़े तजुर्बेकार अंदाज से सिगरेट फूंक रही थी । मेरे से निगाह मिलते ही उसने सिगरेट फेंक दिया और बोली- “आओ, कार में बैठो ।”

मैं कार का घेरा काटकर परली तरफ पहुंचा और उसके साथ कार में सवार हो गया ।
“तब से यहीं हो ?” मैं हैरानी से बोला ।
“हां ।” वो चिंतित भाव से बोली, “तुम्हारे इंतजार में बैठी हूं ।”
“क्यों ?”
“फिक्र जो लगा दी तुमने ? वो फिल्म का क्या किस्सा है ?”
“बताऊंगा । जरुर बताऊंगा । लेकिन पहले तुम कबूल करो कि तुम शशिकांत से वाकिफ हो । न सिर्फ वाकिफ हो, खूब अच्छी तरह से वाकिफ हो । इतनी अच्छी तरह से वाकिफ हो कि इंटिमेसी कि तमाम हदें पार कर चुकी हो ।”
उत्तर देने के स्थान पर उसने गाड़ी चला दी ।

“क्या हुआ ?”
“कुछ नहीं ।” वो बोली, “कोठी से थोड़ा दूर चलते हैं । यहां कोई नौकर-चाकर देख लेगा ।”
बड़ी दक्षता से कार चलाती हुई वह उसे राजपुर रोड पर ले आई । वहां उसने कार को किनारे लगाकर एक पेड़ की छांव में रोक दिया ।
“अब बोलो क्या कहते हो ?” वह बोली, “नहीं, पहले ये बताओ कि तुम चीज क्या हो ?”
मैंने बताया ।
“ओह ! प्राइवेट डिटेक्टिव ! जरुर डैडी ने मेरी वजह से ही बुलाया होगा तुम्हें !”
मैंने इन्कार में सिर हिलाया ।
“और काहे को जरुरत होगी उन्हें किसी प्राइवेट डिटेक्टिव की !”

“कोई इंडस्ट्रियल मामला है । मोटी रकम के घोटाले का ।”
“झूठ बोल रहे हो ।”
“छोड़ो । शशिकांत की बात करो ।”
“क्या बात करूं ?”
“कबूल करो कि उसे खूब जानती हो ।”
“ओके । किया कबूल ।”
“उससे फिट हो ।”
“ये कैसे कहा ?”
“उस फिल्म की वजह से कहा ।”
“है भी कोई ऐसी फिल्म ?”
“है ।”
“है तो मुझे दिखाओ ।”
“दिखा दूंगा । लेकिन और बातों में मुझे उलझाकर शशिकांत की बात ना टालो । वो बात फिल्म से ज्यादा अहम है । बोलो, फिट हो उससे ?”
“फिट से क्या मतलब है तुम्हारा ?”

“उसके हाथ से चुग्गा चुगती हो ?”
“चुग्गा चुगती हूं ! क्या जुबान है ये, भई ! मेरी समझ से तो बाहर है एकदम ।”
“फुल फंसी हुई हो उससे ?” मैंने सरल जुबान बोली ।
“फुल नहीं ।” वो बड़ी सादगी से बोली, “उतनी ही जितनी कि किसी से भी फंस सकती हूं । तुम्हारे से भी ।”
“जहेनसीब ।”
“वो क्या होता है ? पहले कोठी में भी ऐसा कुछ कहा था तुमने ।”
“मेरा मतलब है कि मेरी खुशकिस्मती । माई गुड फारचून ।”
“ओह, दैट ।”
“तुम्हे मालूम है कि वो मर चुका है ।”
“क....क्या ?”

“उसका कत्ल हो चुका है । एक्टिंग न करो । झूठ न बोलो । मुझे नादान बनकर ना दिखाओ ।”
“लेकिन...”
“सुनो । कोठी में एकाएक मुझे देखकर तुम बदहवास इसलिए हो गई थी क्योंकि तुम सच में ही मुझे शशिकांत समझ बैठी थी । और तुम्हारी बद्हवासी की असली वजह ये थी कि जिस आदमी की बाबत तुम जानती थी कि वो मर चुका था, वो एकाएक तुम्हारे सामने जिन्दा कैसे आन खड़ा हुआ था । तुम्हारी जान में जान तभी आई थी जबकि तुम्हें ये अहसास हुआ था कि मैं शशिकांत नहीं था । अब बोलो कि मैं गलत कह रहा हूं ।”

“तुम वाकई जासूस हो । किसी के अंतर्मन में गहरा झांक लेने वाले मनोवैज्ञानिक भी ।”
“अब बोलो कैसे है तुम्हें शशिकांत के कत्ल की खबर ?”
“सच बता दूं ?”
“हां ।”
“तुम पर ऐतबार करके ?”
“हां ।”
“मुझे मरवा तो नहीं दोगे ?”
“हरगिज नहीं ।”
“मैंने उसे अपनी आंखों से मरा हुआ देखा था ।”
“मेरा भी यही ख्याल था ।”
“तुम्हारी सूरत पर पहली बार निगाह पड़ते ही वाकई मेरे छक्के छूट गए थे ।”
“अब वो किस्सा खत्म करो । तो कल शाम तुम शशिकांत की कोठी पर गई थी ?”
“हां ।”
“किस वक्त ?”

“साढ़े आठ के करीब । दो-चार मिनट आगे या पीछे ।”
“क्या देखा वहां ?”
“बताया तो ।”
“तफसील से बताओ ।”
“इसी कार पर मैं वहां पहुंची थी । कार को बाहर सड़क पर ही खडी करके मैं पैदल अन्दर गई थी ।”
“बाहर का फाटक खुला था ?”
“हां । और कोठी का प्रवेशद्वार भी खुला था । कोठी में सन्नाटा था । मैंने उसे आवाज लगाई थी । कोई जवाब नहीं मिला था तो मैं ड्राइंगरूम पार करके उसकी स्टडी में पहुंची थी । वहां वह अपनी टेबल के पीछे कुर्सी पर मरा पड़ा था । उसकी छाती में गोली का सुराख साफ दिखाई दे रहा था ।”

“फिर ?”
“फिर क्या ? मेरे तो छक्के छूट गए थे । मैं तो फौरन यूं वहां से भागी थी जैसे भूत देख लिया हो ।”
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07-22-2021, 01:19 PM,
#37
RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“तुम्हें कैसे मालूम है कि वो तब मरा पड़ा था ? तुमने उसकी कोई नब्ज-वब्ज टटोली थी ?”
“मैं तो उसके पास भी नहीं फटकी थी लेकिन मुझे पूरा यकीन है कि वो मरा पड़ा था । अब तुम कुछ भी कहो लेकिन मुझे मौत की सूंघ लग रही थी उस जगह से ?”
“स्टडी में और क्या देखा था तुमने ?”
“कुछ भी नहीं । सिवाए इसके कि वहां ट्यूब जल रही थी लेकिन दीवार पर लगा सजावटी वॉल लैंप टूटा हुआ था और....और शायद मेज पर रखा कलमदान उलटा पड़ा था ।”

“बाहर कंपाउंड में रोशनी थी ?”
“नहीं ।”
“भीतर ?”
“भीतर ड्राइंगरूम में तो अंधेरा-सा ही था । शायद एक कोने में एक टेबल पर रखा एक टेबल लैंप जल रहा था वहां । दरअसल स्टडी की तरफ मेरी तवज्जो गई ही इसलिए थी कि क्योंकि वहां के खुले दरवाजे में से ट्यूब लाइट की रोशनी बाहर निकल रही थी ।”
“आई सी । अब एक बड़ा अहम् सवाल । गई क्यों थी तुम वहां ?”
“ये मैं नहीं बता सकती ।”
“ये क्या बात हुई ! ये कोई बात हुई ! ये तो यूं हुआ की पहले बांधा, फिर ताना, फिर खींचा और फिर खींच के छोड़ दिया कि जाओ बेटा लटके रहो ।”

“ये क्या जुबान बोलते हो तुम ?”
“बोलो, क्यों गई थी वहां ?”
“वजह मैं अपनी जुबान से नहीं बता सकती ।”
“वजह का अगर अंदाजा मैं लगाऊं तो उसकी बाबत कुछ हां या न तो कर दोगी या वो भी नहीं ?”
“क...क्या कहते हो ?”
“तुम ड्रग एडिक्ट हो । तुम ड्रग के चक्कर में उसके पास गई थी ।”
वो गैस निकले गुब्बारे की तरह पिचक गई ।
“बोलो हां या न ?”
“ह..ह..हां ।”
“दैट्स लाइक ए गुड गर्ल ।”
“किसी से कहना नहीं । खास तौर से डैडी से ।”
“नशेड़ियों का एतबार बड़ा बेएतबारा होता है । जब नशे की तलब लगती है तो दीवाने हो जाते हैं । नशे का इंतजाम न हो तो उसे हासिल करने के लिए खून तक करने पर उतारू हो जाते हैं । तुम्हीं ने तो नहीं कर डाला उसका खून ?”

“नहीं ।”
“पहले ही मरा पड़ा था ?”
“हां । बोला तो ।”
“अक्सर जाती रहती थीं तुम वहां ?”
“पहली बार गई थी ।”
“पहले कभी ऐसी जरूरत पेश नहीं आई ?”
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“पहले उसकी राजेंद्रा प्लेस वाली क्लब जो चलती थी । वहीं मेरा काम बन जाता था । क्लब पर ताला पड़ गया था तो फोन करने भर से काम चल जाता था ।”
“कल फोन पर काम नहीं बना ?”
“फोन लगा ही नहीं । तभी तो मैं वहां गई ।”
“तुम उसकी नाईट क्लब में भी आती जाती थी, इस लिहाज से तो तुम्हारी वाकफियत पुरानी हुई ।”

वो खामोश रही ।
“इतनी पुरानी हुई कि विडियो कैमरे की शहादत में तुम उसके सामने अलफ नंगी पेश हो सकती थी ।”
“मुझे अभी भी यकीन नहीं कि ऐसी कोई फिल्म है ।”
“यानी कि तुम्हारा इनकार फिल्म के अस्तित्व की बाबत है, अपनी करतूत की बाबत नहीं ।”
“उसकी बाबत भी है ।”
“वो मर गया है । जहां कत्ल से मौत होती है, वहां पुलिस पहुंचती है । जहां पुलिस पहुंचती है, वहां की भरपूर तलाशी होती है । यूं तुम्हारी कोई ब्लू फिल्म मकतूल के यहां से बरामद होने पर कितनी जय-जयकार हो सकती है तुम्हारी दिल्ली शहर में, कभी सोचा !”

“वो...वो फिल्म” वो कंपित स्वर में बोली- “नहीं बरामद होनी चाहिए ।”
“यानी मानती हो कि ऐसी फिल्म है ?”
“नहीं । लेकिन अगर है तो नहीं बरामद होनी चाहिए ।”
“नेक ख्वाहिशात से ही नेक काम नहीं होते, मैडम ।”
“तुम कुछ करो न ?”
“मैं करूं ?”
“आखिर डिटेक्टिव हो ।”
“वालंटियर नहीं ।”
“डैडी के लिए भी तो काम कर रहे हो ?”
“फीस ले के ।”
“मैं भी फीस दे दूंगी ।”
“क्या ?”
“जो तुम चाहो ।”
“जो मैं चाहूं ?”
“हां ।”
“मुकर न जाना ।”
“नहीं मुकरुंगी ।”
“डाउन पेमेंट अभी करो ।”

“कैसे ?”
“शीशा चढाओ ।”
उसने कार का अपनी ओर का और मैंने अपनी ओर का शीशा चढ़ाया । शीशे उस प्रकार के थे जिनमें से बाहर से भीतर नहीं झांका जा सकता था ।
“मेरी तरफ देखो ।” मैं बोला ।
उसने घूमकर मेरी तरफ देखा ।
मैंने अपनी बांहे उसकी गर्दन के गिर्द डाल दी और उसे अपनी तरफ खींचा ।
“अरे, अरे !” उसने तत्काल मुझे परे धकेला, “चलती सड़क है ।”
“लेकिन चल कोई नहीं रहा ।” मैं बोला, “सुनसान पड़ी है सड़क ।”
“अरे, आते-जाते का पता लगता है !”
“तो क्या हुआ ?”
“तो क्या हुआ ! सामने से सब दिखाई देता है ।”

“उसका भी इंतजाम हो सकता है ।”
“क्या ?”
“विंड स्क्रीन पर पानी का जैट छोडो और वाईपर चला दो ।”
चेहरे पर असमंजस के भाव लिए उसने ऐसा किया ।
“बस, बस ।”
उसने पानी और वाईपर दोनों बंद किए ।
अब सामने का शीशा धुंधला गया था ।
“वाकई टॉप के हरामी हो ।” वो प्रशंसात्मक स्वर में बोली ।
“तारीफ का शुक्रिया ।” मैं बोला । मैंने फिर उसे अपनी बांहों में दबोच लिया और उसके होठों पर अपने होठ रख दिए । मेरे तजुर्बेकार हाथ उसके जिस्म की गोलाइयों पर दस्तक देने लगे । उसने कोई ऐतराज क्या, काफी हद तक सहयोग दिया ।

सुधीर कोहली - मैंने मन-ही-मन अपनी पीठ थपथपाई - दी लक्की बास्टर्ड ।
मेरा फ्यूज उड़ने को हो गया तो मैंने उसे अपने से अलग किया ।
“मारुती कार” मैं हांफता हुआ बोला, “इन कामों के हिसाब से नहीं बनी ।”
“मैं वापस जाके कोई बड़ी गाड़ी ले आती हूं ।” वो स्वप्निल स्वर में बोली ।
“गाड़ी फिर गाड़ी है ।”
“तो ?”
“किसी ऐसी जगह चलते है जहां टीवी हो और विडियो हो ताकि तुम्हें ऐतबार दिलाया जा सके कि जैसी फिल्म का मैं जिक्र कर रहा था, वैसी का अस्तित्व है ।”
“ऐसी जगह कहां ?”
“मेरा फ्लैट । ग्रेटर कैलाश में ।”

“वो तो बहुत दूर है । वहां तो मैं इस वक्त नहीं जा सकती ।”
“क्यों ?”
“मैंने कहीं और जाना है । तुम्हारे कोठी से बाहर निकलने के इंतजार में पहले ही बहुत देर हो चुकी है ।”
“कहीं फिक्स के इंतजाम में जाना हैं ?”
उसने उत्तर न दिया ।
“तो फिर कैसे बात बने ?” मैं बोला ।
“फिल्म कहां है ?” उसने पूछा ।
“मेरे पास ।” मैंने कोट की जेब से निकालकर उसे कैसेट दिखाई ।
“फिर क्या बात है !” वो हर्षित स्वर में बोली, “फिर तो फिल्म मुझे दो । मुझे जब फुर्सत लगेगी, मैं घर पर ही इसे देख लूंगी ।”

“और मैं ?”
“तुम क्या ?”
“मैं कब देखूंगा ?”
“तुम तो देख ही चुके होंगे । तभी तो तुम्हें मालूम है कि इसमें क्या हैं ।”
“सिर्फ दो मिनट । इससे ज्यादा ड्यूरेशन का तो ट्रेलर ही होता है ।”
“तुम देखना क्यों चाहते हो इसे ? ट्रेलर से फिल्म का अंदाजा तो हो ही जाता है ।”
“देखो । मैंने जान जोखिम में डालकर ये फिल्म मौकाएवारदात से निकाली है । पुलिस को खबर लग जाए तो सीधे तिहाड़ में बोरिया बिस्तर हो । इस लिहाज से मुझे कम से कम ये देखने का मौका मिलना चाहिए कि तुम किन कारनामों में माहिर हो ।”

“वो मैं तुम्हें लाइव दिखा दूंगी ।”
“जहेनसीब । लेकिन फिल्म देखना फिर भी मेरे लिए जरुरी है । इसमें ऐसा कुछ और भी हो सकता है जो कि शशिकांत के कत्ल के राज पर रोशनी डाल सकता हो ।”
“तो फिर क्या किया जाए ?”
“जिस काम से जा रही हो, उससे फ्री होकर मेरे फ्लैट पर आ जाना ।”
“मुझे तो उस काम में ही रात पड़ जायेगी ।”
“क्या हर्ज है ! मैं भी अंधेरा होने से पहले घर नहीं पहुंच पाने वाला । तुम ऐसा करो । आठ बजे का टाइम फिक्स कर लो ।”
“ठीक है ।” वो बोली, “आठ बजे ।”

“अब तुम जाओगी कहां ?”
“मॉडल टाउन ।”
“बढ़िया । मुझे शक्तिनगर उतार देना ।”
“उतार दूंगी । अब जरा उतरकर शीशा साफ करो ।”
“शीशा !”
“धुंधलाना ही जानते हो ? साफ करना नहीं जानते । मैं विंडस्क्रीन की बात कर रही हूं । बाहर कुछ दिखाई देगा तो चलाउंगी न !”
“ओह ! ओह !”
उसने मुझे एक डस्टर थमा दिया । मैंने बाहर निकलकर विंडस्क्रीन साफ की और वापस कार में सवार हो गया ।
तत्काल उसने कार सड़क पर दौड़ा दी ।
“अब जरा” मैं बोला, “कल शाम की बात की ओर जरा तवज्जो दो । शशिकांत की कोठी में, पक्की बात है कि, कोई नहीं था ?”
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07-22-2021, 01:19 PM,
#38
RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“था तो कम से कम मुझे दिखाई नहीं दिया था ।” वो बोली, “मैं सारी कोठी तो घूमी नहीं थी । मैं तो बस स्टडी और ड्राइंग रूम में गई थी ।”
“स्टडी के साथ अटैच्ड बाथरूम में भी नहीं झांका था ?”
“नहीं ।”
“जैसे तुम कहती हो कि तुम्हें वहां मौत की सूंघ लग गई थी, वैसे तुम्हें वहां किसी की मौजूदगी की सूंघ नहीं लगी थी ?”
“नहीं लगी थी । तभी तो कहती हूं कि शायद वहां कोई था ही नहीं ।”
“या बाहर ?”
“बाहर कहां ?”
“कहीं भी । ड्राइव वे पर । कम्पाउंड में । बाहर सड़क पर । कहीं कोई नहीं दिखाई दिया तुम्हें ?”

वो खामोश रही ।
“मैं ये बात जानने के लिए पूछ रहा हूं कि क्या तुम्हारे वहां गए होने का राज खुल सकता है ? क्या किसी ने तुम्हें कोठी में या उसके आसपास देखा हो सकता है ?”
वह कुछ क्षण खामोश रही और फिर बहुत दबे स्वर में बोली, “सुधीर”
“बोलो ।” मैं आशापूर्ण स्वर मैं बोला ।
“जब मैं बाहर आकर अपनी कार में बैठी थी और उसे यू टर्न देकर बापस लौटने लगी थी तो उसी वक्त मुझे सामने से आती एक टैक्सी दिखाई दी थी । सुधीर, उस टैक्सी में सुधा सवार थी ।”
“सुधा ! तुम्हारी सौतेली मां !”

“हां ।”
“तुमने साफ पहचाना था उसे ?”
“हां । वो ही पिछली सीट पर बैठी थी और जैसे टैक्सी की रफ्तार घटने लगी थी, उससे लगता था कि वो वहीं आ रही थी ।”
“अगर तुमने उसे देखा था तो उसने भी तुम्हें देखा होगा ?”
“शायद न देखा हो । मेरी कार की हैडलाईट्स हाई बीम पर थीं जिससे कि सामने से आने वाले की आंखें चौंधियां जाती हैं और उसे ठीक से कुछ दिखाई नहीं देता ।”
“ऐसी ही हालत तुम्हारी नहीं थी ?”
“नहीं । टैक्सी की हैडलाइट्स हाई बीम पर नहीं थी ।”
“यानी कि हो सकता है कि उसने तुम्हें न देखा हो, देखा हो तो पहचाना न हो ।”

“हां ।”
“वो शशिकान्त की कोठी पर ही गई थी ?”
“मैं ये देखने के लिए वहां नहीं रुकी थी लेकिन और कहां गई होगी वो ?”
“हूं । तुम्हारी बनती कैसी है अपनी सौतेली मां से ?”
“क्या बननी है सौतेली मां से ?” वो वितृष्णापूर्ण स्वर में बोली, “वो भी नौजवान सौतेली मां !”
“अब जो रिश्ता कायम हो गया है, वो तो हो ही गया है ।”
“रिश्ते दिल से बनते हैं । खून से बनते हैं ।”
“ठीक कहा । पेश कैसे आती है तुम्हारी सौतेली मां तुम्हारे से ?”
“मां-मां मत करो” वो चिड़कर के बोली, “सुधा बोलो ।”

“पेश कैसे आती है सुधा तुम्हारे से ?”
“पुचपुच तो बहुत करती है । सच में ही मेरी मां बनके दिखाने की कोशिश करती है लेकिन मैं जानती हूं कि सब दिखावा है ।”
“दिखावा किसलिए ?”
“डैडी को खुश करने के लिए । उन्हें आदर्श और नेकबख्त बीवी बनके दिखाने के लिए ।”
“आई सी । उसके कैरेक्टर के बारे में कोई राय जाहिर करो ।”
“मैं क्या राय जाहिर करूं, तुम खुद सोचो । साठ साल उम्र के, पति का फर्ज निभा सकने में नाकाम मर्द की हसीन, नौजवान, बीवी, जोकि उसकी व्हील चेयर के हत्थे से बंधी भी नहीं रहती, संन्यास धारण कर लेने की इच्छुक तो होगी नहीं ।”

“उसकी नवाजिशों का हकदार, तलबगार, कोई कैंडीडेट है तुम्हारी निगाह में ?”
“मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहती ।”
“यानी कि है ।”
“कहा न, मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहती ।”
नाम न लेना चाहने का एक मतलब ये भी हो सकता था कि नाम लेने लायक कोई नाम उसके जेहन में था ही नहीं । उस लड़की पर मेरा ऐतबार कतई नहीं बैठ रहा था । कल शाम हत्या के वक्त के आसपास मैटकाफ रोड पर सुधा माधुर की मौजूदगी की बात भी उसकी गढी हुई हो सकती थी । उसकी एक-एक बात साफ जाहिर करती थी कि वो अपनी सौतेली मां को सख्त नापसंद करती थी । वो उसकी कल्पना एक चरित्रहीन, दौलत की दीवानी औरत के तौर पर करती थी, उससे खुंदक खाती थी और उसे किसी जहमत मे फंसाकर कोई निहायत भ्रष्ट किस्म का आत्मिक संतोष प्राप्त करना चाहती थी ।

सुधा से रात हो जाने तक मैंने उस बाबत खामोश रहना ही उचित समझा ।
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07-22-2021, 01:19 PM,
#39
RE: Desi Chudai Kahani मकसद
Chapter 4

पुनीत खेतान से बहुत कठिनाई से मेरी मुलाकात हो पाई । शक्तिनगर में स्थित अपने ऑफिस से वो आनन-फानन कहीं कूच की तैयारी कर रहा था कि मैं वहां पहुंचा था ।
मैंने उसे अपना कार्ड दिया ।
“मदान साहब ने फोन पर तुम्हारा जिक्र किया ।” वो कार्ड पर एक सरसरी निगाह डालकर उसे मेज पर एक ओर रखता हुआ बोला ।
“मदान साहब से बात हो गई आपकी ?” मैं बोला ।
“अभी हुई है । मैंने फौरन मैटकाफ रोड पहुंचना है, इसलिए तुम अगर फिर कभी.....”
“यानी कि कत्ल की खबर आपको हो चुकी है ।”
उसने सकपकाकर मेरी तरफ देखा ।

“आप पुलिस के बुलावे पर मैटकाफ रोड जा रहे हैं या अपने क्लायंट की हिमायत के लिए उसके बुलावे पर ?”
“क्लायंट के आई मीन मदान साहब के बुलावे पर ।”
“कत्ल की बाबत कुछ मालूम तो अभी होगा नहीं आपको !”
“अभी नहीं मालूम । फोन पर मदान साहब ने इतना ही कहा था कि शशिकांत का कत्ल हो गया था और मैं फौरन मैटकाफ रोड पहुंचूं ।”
“फिर तो आप बैठ जाइए । कत्ल के बारे में कुछ जानकर जाएंगे तो आप और आपका क्लायंट - जो कि मेरा भी क्लायंट है - दोनों फायदे में रहेंगे ।”

“मदान साहब तुम्हारे भी क्लायंट हैं ?”
“हां । उन्होंने मुझे शशिकांत के कातिल का पता लगाने का कार्यभार सौंपा है ।”
“आई सी । यहां क्यों आए ?”
“इसी काम से । अपनी इन्वेस्टिगेशन के सन्दर्भ में आपसे चंद सवाल करने ।”
“मेरा कत्ल से क्या लेना देना है ?”
“कत्ल से न सही, उस शख्स से तो लेना-देना था जिसका कि कत्ल हुआ है ।”
“ही वाज ओनली ए क्लायंट । लाइक एनी अदर क्लायंट ।”
“अग्रीड । लेकिन इत्तेफाक से अपने कत्ल से थोड़ी देर पहले वो आपकी सोहवत में था ।”
“तुम क्या चाहते हो ?”

“पहले तो यही चाहता हूं कि बैठ जाइए और मुझे भी बैठने को कहिये ।”
“ठीक है ।” वह अपनी एग्जीक्यूटिव चेयर पर ढेर हो गया और बोला, “प्लीज सिट डाउन लेकिन ज्यादा वक्त न लगाना वर्ना साहब खफा हो जायेंगे ।”
“जब आप ये बतायेंगें कि आप मेरी वजह से लेट हुए थे खफा नहीं होंगें ।”
“ओके । ओके । एज यू विश ।”
“थैंक्यु ।” मैं बोला और मैंने ऑफिस में चारों ओर निगाह डाली । वो बहुत ही शानदार ऑफिस था । उसका वो निजी कक्ष ही नहीं बाकी का सारा ऑफिस, जहां कि सात-आठ मुलाजिम काम कर रहे थे, भी उतना ही शानदार और सुसज्जित था ।

और उससे भी ज्यादा शानदार और सुसज्जित वो खुद था । आयु में वो पैंतीस और चालीस के बीच में कहीं था । फैशन पर उसकी हद से ज्यादा आस्था मालूम होती थी । वो निहायत शानदार सूट पहने था, उसके बाल आधुनिकतम स्टाइल से कटे हुए थे और बड़े करीने से सिर पर सजे हुए थे । आईब्रोज औरतों की तरह बनी हुई थीं और चेहरे की थ्रेडिंग हुई थी । अपनी दायीं कलाई में वो भैंस के गले में बांधने वाली सांकल जितना मोटा आईडेंटीटी ब्रेसलेट पहने था । अपने बायें हाथ की एक उंगली में वो नीलम की अंगूठी पहने था और कलाई पर कम-से-कम पचास हजार रुपए कीमत की राडो की घड़ी बांधे था । कहने का तात्पर्य ये था कि वो सिर्फ रईस ही नहीं, रईसमिजाज भी था ।

“कुछ पियोगे ?” वो बोला ।
“सिगरेट ।” मैंने जेब से अपना डनहिल का पैकेट निकाला, “बस । और कुछ फिर कभी । यूं टाइम बचेगा ।”
मैंने एक सिगरेट उसे दिया और एक खुद लिया । उसने जेब से सोने का सिगरेट लाइटर निकालकर दोनों सिगरेट सुलगाए ।
“शूट ।” फिर वो बोला ।
प्रत्युत्तर में सबसे पहले मैंने संक्षेप में उसके सामने वारदात का और मौकाएवारदात का खाका खींचा ।
“हूं ।” वो बोला ।
“कल आप वहां किस सिलसिले में गए थे ?” मैंने पूछा ।
“भई, क्लायंट ने बुलाया था सो गया था । और सिलसिला क्या होना था ?”

“किस सिलसिले में बुलाया था ?”
“यही बिजनेस डिस्कशंस ।”
“कितने बजे पहुंचे थे आप ?”
“छ: पांच पर । छ: बजे की अप्वाइंटमेंट थी । पांच मिनट लेट हो गया था ।”
“तब मूड कैसा था आपके मेजबान का ?”
“अच्छा नहीं था । खराब था । खराब मूड से मेरे पहुंचते ही नवाज किया था उसने मुझे ।”
वो तनिक हंसा ।
“कैसे ?” मैंने पूछा ।
“इसी बात पर गले पड़ने को कोशिश करने लगा कि मैं पांच मिनट लेट क्यों आया था ! पहले तो मैंने बात को ये कहकर टालने की कोशिश की कि उसकी घड़ी गलत होगी लेकिन वो बोला कि पीछे वाल केबिनट पर पड़ी एटलस के सूरत वाली उसकी घड़ी गलत हो ही नहीं सकती थी । पांच मिनट की देरी के लिए दस बार सॉरी कहलवा कर पट्ठे ने जान छोड़ी ।”

“आई सी । किसी और बात को भी लेकर आप दोनों में तकरार हुई थी ?”
उसने घूर के मुझे देखा ।
“किन्हीं कागजात के मामले को लेकर ?” अपलक उसकी निगाह से निगाह मिलाए मैं बोला ।
“तुम्हें कैसे मालूम ?” वो बोला, फिर तत्काल उसने जोड़ा, “ओहो, तो उस लड़की से तुम्हारी बात हो चुकी है । उसी ने बताया होगा ।”
“किसने ?”
“उसकी सेल्फ अपोइंटेड हाउसकीपर सुजाता मेहरा ने ।”
“उसी ने बताया था ।”
“बेचारी से बहुत बुरी तरह पेश आया था शशिकांत । मेरे सामने ही मिट्टी झाड़ के रख दी उसकी । इतनी सी बात पर काटने को दौड़ रहा था उसे कि उसका ब्वाय फ्रेंड उसे डेट पर ले जाने के लिए वहां क्यों आ रहा था । इतना जलील नहीं करना चाहिये किसी को । और वो भी किसी के सामने । मैं वहां मौजूद न होता तो लड़की शायद उसकी बकबक झेल भी लेती । मेरे सामने नहीं बर्दाश्त हुई उसे अपनी जिल्लत । कोठी की चाबी मुंह पर मार के गई वो वहां से ।”

“शशिकान्त पर इस बात का क्या असर हुआ ?”
“कुछ भी नहीं ।”
“वो कितने बजे गई थी ?”
“पूरे सात बजे ।”
“उसका ब्वाय फ्रेंड डिसूजा जो वहां आने वाला था और उस फसाद की जड़ था, वहां आया था ?”
“हां । सवा सात बजे आया था वो वहां । शशिकांत उस पर भी फट पड़ा था कि उसने उसके घर में घुसने की जुर्रत कैसे की थी जबकि घर में वो घुसा ही नहीं था । वो तो बेचारा दरवाजे पर ही खड़ा सुजाता के बारे में पूछ रहा था । शशिकांत गर्जने लगा कि वो कंपाउंड में भी क्यों दाखिल हुआ ! बोला, दफा हो जा वरना गोली मार दूंगा । बेचारे की शक्ल देखने वाली थी तब । तब मैंने ही उसे कहा था कि सुजाता को एकाएक वहां से चले जाना पड़ा था और वो जरूर उसके इन्तजार में बाहर सड़क पर या करीब के बस स्टैंड पर ही कहीं होगी । वो फौरन वहां से चला गया था ।”
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07-22-2021, 01:22 PM,
#40
RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“आई सी । बहरहाल बात किन्हीं कागजात के मसले को लेकर आपकी और मरने वाले की तकरार की हो रही थी ।”
“वो मसला कुछ भी नहीं था । वो पहले से ही बेहद उखड़े हुए मूड में न होता तो सवाल ही नहीं था तकरार का ।”
“थे क्या वो कागजात ?”
“उसकी राजेंद्रा प्लेस में जो नाइट क्लब है और जो आजकल बंद है, उसके खुलने के आसार दिखाई दे रहे हैं । इस मुद्दे पर अपने क्लायंट की तरफ से मैं कई बार लेफ्टीनेंट गवर्नर और पुलिस कमिश्नर से मिला हूं । उम्मीद थी कि क्लब को कुछ दिनों में फिर से खोलने की इजाजत मिल जाने वाली थी । दोबारा क्लब खुलने से पहले शशिकान्त उसकी रेनोवेशन कराना चाहता था और इस काम के लिए एक इंटीरियर डेकोरेटर की खिदमात हासिल की गई थीं ।”

“किसकी ?”
“इंटीरियर डेकोरेटर की । आंतरिक साज-सज्जा विशेषज्ञ की ।”
“आई मीन कौन से इंटीरियर डेकोरेटर की ?”
“वो क्या है कि मेरे एक और क्लायंट हैं, उनकी मिसेज शहर की फेमस इंटीरियर डेकोरेटर है । वो ही..”
“सुधा माधुर !”
उसने हैरानी से मेरी और देखा ।
“से यस ऑर नो ।” मैं तनिक शुष्क स्वर में बोला, ड्रामेटिक इफेक्ट्स लेटर । यू आर इन ए हरी । रिमेम्बर !”
“हां । वही ।” वो तनिक हकबकाया सा बोला, “मिसेज सुधा माथुर ही नाइट क्लब की रेनोवेशन का प्लान तैयार कर रही थीं ।”
“आगे ।”
“प्लान के स्कैच वगैरह और प्रोपोजल के सारे कागजात कल शशिकांत को दिखाए जाने का मेरा वादा था लेकिन किन्हीं वजहात से कागजात वक्त पर तैयार नहीं ही हो सके थे । एकाध दिन की अतिरिक्त देरी का मसला था, लेकिन वो देरी को यूं उछाल रहा था जैसे अगले रोज प्रलय आ जाने वाली थी । बात नाजायज थी, गैरजरूरी थी इसलिए मैं भी ताव खा गया था । नतीजतन पहले बात तकरार तक पहुंची और फिर तकरार झगड़े तक । उस घड़ी इतना अनरीजनेबल हो उठा शशिकांत कहने लगा कि कैलेंडर की तारीख बदलने से पहले अगर वो कागजात उस तक न पहुंचे, जो कि नामुमकिन था, तो प्रोपोजल को कैंसल समझा जाए ।”

“यानी कि वो अगले रोज तक भी इत्तंजार करने को तैयार नहीं था ।”
“नहीं था । बाद में तो माहौल कुछ शांत भी हो गया था और मैंने उसे नए सिरे से समझाया था कि आज ही होने वाला काम वो नहीं था और उससे दरख्वास्त की था कि कम-से-कम चौबीस घंटे की तो मोहलत दे लेकिन उसने तो ऐसी जिद पकड़ ली थी कि वो टस-से-मस न हुआ । आखिरकार अपना सा मुंह ले के मैं वहां से लौट आया ।”
“कितने बजे रुखसत हुए थे आप मकतूल की कोठी से ?”
“आठ बजने वाले थे । दसेक मिनट रहे होंगे बाकी ।”

“यानी कि सात पचास पर ।”
“हां ।”
“वहां से कहां गए आप ?”
“डिफेंस कालोनी ।”
“वहां कहां ?”
“वहां अब्बा नाम का एक डिस्कोथेक है जहां कि मैं तफरीह के लिये अक्सर जाता हूं ।”
“आई सी । मैटकाफ रोड से रवाना हुए तो सीधे वहीं पहुंचे आप ?”
“न..नहीं । सीधा तो नहीं पहुंचा था । रुका तो था मैं रास्ते में एक जगह ।”
“कहां ?”
“दिल्ली गेट । पैट्रोल पम्प पर ।”
“पेट्रोल पम्प पर । पेट्रोल पम्प तो आजकल सात बजे बंद हो जाते हैं ?”
“हां । लेकिन ये सिलसिला अभी नया-नया ही शुरू हुआ है न इसलिए मुझे अक्सर भूल जाता है । ऊपर से पम्प के ऑफिस में रोशनी थी । मैंने सोचा पम्प वाले कोई कनस्तरों में पेट्रोल रखकर बैठै रहते होंगे और ब्लैक में बेचते होंगे इसी चक्कर में मैंने गाड़ी वहां ले जा खडी की थी ।”

“पैट्रोल बहुत कम था आपकी गाड़ी में ?”
“नहीं, कम तो नहीं था । था गुजारे लायक । दरअसल पम्प पर जाने की एक और भी वजह थी ।”
“और क्या वजह थी ?”
“मैं एक फोन कॉल करना चाहता था । उस पम्प से क्योंकि मैं रेगुलर पैट्रोल डलवाता हूं इसलिए वहां लोग मुझे पहचानते हैं ।”
“हूं । फोन किसे करना चाहते थे आप ?”
“सुधा माथुर को । वो क्या है शशिकांत से जो गरमा-गरमी हुई थी, वो मुझे परेशान कर रही थी । वो भले ही बहुत अनरीजनेबल हो उठा था, लेकिन मुझे भी ये नहीं भूलना चाहिए था कि कस्टमर इज आलवेज राइट । तब मुझे लगा था कि प्रोपोजन कैंसल न हो, इसके लिए मुझे कोई जुगाड़ करना चाहिए था आखिर उसने आधी रात तक का तो वक्त दिया ही था । आन दि रोड मुझे ये ख्याल आया था कि उस पेचीदा मसले पर मुझे सुधा माथुर से बात करनी चाहिए थी ।”

“जो कि आपने की ? पम्प से टेलीफोन करके ?”
“हां । मुझे उम्मीद थी कि जैसा शशिकांत मेरे से भड़का था, वैसा शायद वो सुधा से न भड़कता । सुधा उससे बात करती तो शायद वो अपनी रात बारह बजे तक की डैड लाइन में कोई ढील दे देता या उसे खारिज ही कर देता ।”
“आई सी ।”
“मैंने सुधा से इस बाबत बात की तो उसने बताया कि वो उस प्रोपोजल के कागजात को आफिस से घर ले आई थी और घर पर भी वो उसी प्रोजेक्ट पर काम कर रही थी, लेकिन कागजात मुकम्मल होने में अभी बहुत काम बाकी था । तब मैंने उससे प्रार्थना की थी कि वो आधे-अधूरे कागजात ही जा के शशिकांत को दिखा आए । मैंनै कहा कि शशिकांत को कौन-सा पता लगने वाला था कि कागजात आधे-अधूरे थे !”

“उसने कबूल किया यूं अधूरे कागजात को ले के यूं शशिकांत की कोठी पर जाना ?”
“हां, किया । थोड़ी टालमटोल की लेकिन किया ।”
“वो गई वहां ?”
“जब हामी भरी थी तो गई ही होगी ।”
“आपने दरयाफ्त नहीं किया ?”
“मौका नहीं लगा । वो क्या है कि रात को मैं एक-डेढ़ बजे घर पहुंचता हूं इसलिए सुबह देर से सो के उठता हूं । यहां ऑफिस में मैं दोपहर के बाद ही पहुंच पाता हूं । आज आते ही काम-काज में मसरूफ हो गया । फिर जब सुधा को फोन करने की फुर्सत लगी तो मदान का फोन आ गया और फिर ...”

“अब कीजिए ।”
“क्या ?”
“सुधा को फोन ।”
उसने फोन अपनी तरफ घसीटा और एक नम्बर डायल किया ।
“बिजी मिल रहा है ।” कुछ क्षण बाद वह बोला ।
“जाने दीजिए ।”
उसने फोन वापस क्रेडल पर रख दिया ।
“सुधा से आपकी कितने बजे बात हुई थी ?” मैंने सवाल किया ।
“भई, अब घड़ी तो देखी नहीं थी मैंने ।”
“अंदाजन बताइए ।”
“अंदाजन !” वो सोचने लगा, “देखो, मैटकाफ रोड से दिल्ली गेट का कोई दस-बारह मिनट का रास्ता है । सात पचास पर मैं शशिकांत की कोठी से निकला था । इस लिहाज से आठ पांच और आठ दस के बीच मेरी बात हुई होगी सुधा से ।”

“पेट्रोल पम्प से आप सीधे डिफेंस कॉलोनी गए ?”
“हां ।”
“अब्बा में कब पहुंचे ?”
“साढ़े आठ बजे ।”
“यानी कि जिस वक्त मैटकाफ रोड पर शशिकांत का कत्ल हो रहा था, एन उस वक्त आप अब्बा में दाखिल हो रहे थे ।”
“कत्ल साढ़े आठ बजे हुआ था ?”
“आठ अट्ठाइस पर । हालात का इशारा तो इसी तरफ है । बाकी आप वहां मौकाएवारदात पर जा ही रहे हैं ।”
“ओह, यस ।” वो तत्काल उठ खड़ा हुआ, “तो मैं चलूं ?”
“जरुर । मैं आपसे फिर मिलूंगा ।”
“एनी टाइम । यू आर मोस्ट वेलकम ।”

“थैंक । थैंक्यू सर ।”
***
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