Desi Chudai Kahani मकसद
07-22-2021, 01:22 PM,
#41
RE: Desi Chudai Kahani मकसद
कनाट प्लेस में सुधा माथुर का ऑफिस सुपर बाजार के ऐन सामने की एक इमारत के ग्राउंड फ्लोर पर था । ऑफिस क्या था इंटीरियर डेकोरेशन के आधुनिक कारोबार की दस्तावेज था । राजीव भैया के ले जाए देश भले ही इक्कीसवीं सदी में नहीं पहुंचा था, वो ऑफिस यकीनन पहुंच भी चुका था ।
बाहरी ऑफिस में दो सुंदरियां और एक सुन्दरलाल बैठा था । सुंदरलाल को नजरअंदाज करके एक सुंदरी को मैंने अपना विजिटिंग कार्ड थमाया और सुधा माधुर से मिलने की इच्छा व्यक्त की ।
उसके जरिये मेरा कार्ड भीतर ऑफिस में पहुंच गया ।

और दो मिनट बाद कार्ड के पीछे-पीछे मैं भी भीतरी ऑफिस में पहुंचा दिया गया ।
भीतरी ऑफिस पहले से भी ज्यादा शानदार था जहां कि सुधा माथुर बैठी थी । मैंने उसका अभिवादन किया और उसके इशारे पर उसके सामने एक कुर्सी पर बैठ गया ।
मैंनै आंख भरकर उसकी तरफ देखा ।
अपनी बहन मधु से चार साल बड़ी होने के बावजूद खूबसूरती और आकर्षण में वो उससे किसी कदर भी कम न थी । उल्टे कैरियर वुमैन होने की वजह से उसके चेहरे पर एक बहुत सजती-सी गंभीरता थी और खानदानी रईस की बीवी होने की वजह से हाव-भाव में एक सजती-सी शाइस्तगी थी ।

“मिस्टर कोहली ।” वो बड़े सरल स्वर में बोली - “आपकी शक्ल किसी से बहुत मिलती है । बहुत ही ज्यादा मिलती है ।”
और आपकी आवाज ! मैं मन-ही-मन बोला । दो मांजाई बहनों की सूरतें मिलती हो, ऐसा मैंने आम देखा था लेकिन दो बहनों की आवाज मिलती हो, ऐसा मेरे सामने पहली बार हो रहा था ।
सुधा की आवाज ऐन मधु जैसी थी अलबत्ता अन्दाजेबयां में फर्क था । सुधा का लहजा कुछ-कुछ अंग्रेजियत लिए हुए था और वह धाराप्रवाह बोलती थी जबकि मधु के लहजे से लगता था जैसे उसे अंग्रेजी आती ही नहीं थी और वो फिकरों के टुकड़े कर-करके वोलती थी ।

“ ...हद से ज्यादा मिलती है ।” वो कह रही थी, “ऐन एक ही सूरत वाले दो आदमी... ।”
“कभी होते थे दिल्ली शहर में ।” मैं मुस्करा कर बोला, “अब एक ही है । मैं अकेला । युअर्स ट्रूली । दि ओनली वन ।”
“क्या मतलब ?”
मैंने मतलब समझाया । उसे शशिकांत के कत्ल की खबर सुनाई ।
वह हकबकाई - सी मेरा मुंह देखने लगी ।
“हालात ऐसे पैदा हो गए हैं, मैडम” मैं बोला - “कि शशिकांत के कत्ल में आपकी फैमिली के किसी मेम्बर का दखल निकल सकता है ।”
“क्या ?”
“ऐसा कोई दखल है या नहीं, इसी बात की तसदीक के लिए आपके हसबेंड ने मुझे रिटेन किया है ।”

“मेरे हस...माथुर साहब ने ?”
“जी हां लेकिन बरायमेहरबानी ये बात अपने तक ही रखियेगा । वो ही ऐसा चाहते हैं ।”
“कब ? कब रिटेन किया ?”
“कुछ ही घंटे पहले । जबकि मैं फ्लैग स्टाफ रोड पर उनसे मिलने आपकी कोठी पर गया था ।”
“उ... उन्होंने... कबूल किया आपसे मिलना ?”
“बिल्कुल किया मुलाकात के सबूत के तौर पर ये देखिए रिटेनर का चैक ।”
मैंने उसे दस हजार की अग्रिम धनराशि का चैक दिखाया ।
“कमाल है ।” वो बोली ।
“आप कल शाम मकतूल की कोठी पर गई थीं ?”
“किसने कहा ?” वो तत्काल बोली ।

“आप गई थीं ?”
“नहीं ।”
“लेकिन आपने तो फोन पर पुनीत खेतान से वादा किया था कि आप प्रोपोजल के कागजात, जो कि मुकम्मल भी नहीं थे, लेकर मैटकाफ रोड शशिकांत की कोठी पर जाएंगी ।”
“आप खेतान से मिल भी आए ।”
“जी हां । तभी तो मुझे इस बात की खबर है ।”
“म... मैंने फोन पर हामी जरूर भर दी थी लेकिन असल में जा नहीं सकी थी ।”
“वजह ?”
“माथुर साहब की तबीयत ठीक नहीं थी । उनके पास मेरी हाजिरी जरूरी थी ।”
“ऐसा आपने फोन पर ही कहा होता खेतान को !”

“तब मेरा ख्याल था कि मैं जा सकूंगी लेकिन बाद में हालात कुछ ऐसे वन गए थे कि... कि... बस, नहीं ही गयी मैं ।”
“यही जवाब आप पुलिस को भी देंगीं ?”
“प... पुलिस !”
“जोकि देर सवेर पहुंचेगी ही आपके पास ।”
“वो किसलिए ?”
“जिसलिए मैं आपके पास पहुंचा हूं । अब जब मेरे सामने आपका वे जवाब नहीं चल पा रहा तो उनके सामने कैसे चलेगा ? मैं तो आपकी तरफ हूं । पुलिस तो नहीं होगी आपकी तरफ ।”
“आप तो मुझे डरा रहे है ।”
“मेरे सामने डर लीजिए, सुधा जी । निडर हो के डर लीजिए । मेरे सामने डरेंगी तो अपने डर से निजात पाने का कोई जरिया सोचने की तरफ आपकी तवज्जो जाएगी ।”

“कहना क्या चाहते हैं आप ? मैं झूठ बोल रही हूं ?”
“हां ।”
“आपके हां कहने से हां हो गई ?”
“सिर्फ मेरे कहने से नहीं हो गई लेकिन उस चश्मदीद गवाह के कहने से हो जायेगी जिसने कल शाम आपको एक टैक्सी पर मेटकाफ रोड पहुंचते देखा था ।”
उसके चेहरे की रंगत बदली ।
“मुझे लगता है” मैं सहज स्वर में बोला “कि शशिकांत के कत्ल की बात सुनकर आपने ये फैसला किया है कि आपका उससे कोई वास्ता स्थापित हो । अगर वो जिन्दा होता तो शायद आप ये झूठ बोलना जरूरी न समझती ।”
“मेरा उसके कत्ल से कुछ लेना-देना नहीं ।”

“अगर ऐसा है तो आप झूठ क्यों बोल रही हैं ?”
“उसी वजह से जो आपने अभी बयान की ।”
“हकीकतन आप वहां गई थीं ?”
“मिस्टर कोहली, जब आप हमारी फैमिली के लिए काम कर रहे हैं तो क्या मैं ये उम्मीद रखूं कि मेरे से हासिल जानकारी का आप कोई बेजा इस्तेमाल नहीं करेंगें ? आप उसे हमारे ही खिलाफ इस्तेमाल करने की कोई कोशिश नहीं करेंगे ?”
“बशर्ते कि वो जानकारी इतनी विस्फोटक न हो कि आप ये कहें कि आपने ही ने उसका कत्ल किया है ।”
“मैंने उसकी सूरत भी नहीं देखी ।”
“गई तो थी न आप वहां ?”

“मैटकाफ रोड पर किसने देखा था मुझे ?”
मैं केवल मुस्कराया ।
“छुपाना बेकार है, मिस्टर कोहली ।” वो तनिक अप्रसन्न स्वर में बोली, “क्योंकि जब एक जना दूसरे को देखता है तो दूसरा जना भी पहले को देखता है ।”
“यानी कि आपने भी पिंकी को वहां देखा था ?”
“हां । उसकी हैडलाइट्स मेरी आंखों को चोंधिया रही थी लेकिन फिर भी मैंने उसे साफ पहचाना था उसकी बड़ी पहचान तो उसकी लाल मारुति ही है जिस पर उसने सौ तरह के स्टिकर लगाए हुए हैं ।”
“ये बात नहीं सूझी थी उसे । वो अपनी हैडलाइट्स की हाई बीम को ही अपना खास प्राटेक्शन समझ रही थी ।”

वो खामोश रही ।
“यानी कि आप कबूल करती हैं कि आप वहां गयी थीं ?”
उसने सहमति में सिर हिलाया ।
“टैक्सी पर किसलिए ?”
”अपनी प्रोटेक्शन के लिए ।”
“जी !”
“रात के वक्त मैं आदमी के घर जाना नहीं चाहती थी । पुनीत खेतान की अपील पर मैं वहां जा रही थी । उस आदमी की शहर में जो रिप्युट है, उससे मैं नावाकिफ नहीं । इसलिए मैं अपने वाकिफकार टैक्सी ड्राइवर के साथ वहां गई थी । मैंनें उसे रास्ते में ही समझा दिया था कि अगर में पांच मिनट में कोठी से न निकलूं तो वो मुझे बुलाने के लिए निःसंकोच भीतर आ जाए ।”

“उसने ऐसा किया ?”
“नौबत ही न आई । मैं ही भीतर न गई ।”
“अच्छा !”
“हां । पहले तो मैं कंपाउंड में ही दाखिल नहीं हो रही थी । पहले तो मैंने बाहर सड़क से ही आयरन गेट के पहलू में लगी कॉलबैल बजाई थी । उसका कोई नतीजा सामने नहीं आया था तो बहुत डरती झिझकती मैं भीतर दाखिल हुई थी । भीतर कोठी के प्रवेशद्वार पर भी घंटी थी । मैंने वो भी बजाई थी और दरवाजे को खुला पाकर उसे नाम लेकर भी पुकारा था लेकिन नतीजा वही सिफर निकला था ।”
“आपने कोठी के भीतर कदम नहीं रखा था ?”

“बिल्कुल भी नहीं । भीतर तो अंधेरा था । मुझे तो उस तनहा और अंधेरी जगह में दाखिल होने के ख्याल से ही दहशत हो रही थी ।”
“फिर ?”
“फिर क्या ? एकाध मिनट और मैंने भीतर से किसी जवाब का इन्तजार किया और फिर वापस लौट आई ।”
“कागजात का क्या हुआ ?”
“वो मैं वापस ले आई । वहां किसके सुपुर्द करके आती मैं उन्हें ? ऐसे ही फेंक आती वहां ?”
“वो तो मुनासिब न होता ।”
“एग्जेक्टली ।”
“जैसे पिंकी ने आपको वहां देखा था, वैसे ही क्या आपको भी वहां कोई जानी पहचानी सूरत दिखाई दी थी ?”

उसने इन्कार में सिर हिलाया ।
“फिर से तो झूठ नहीं बोल रहीं ?”
उसने फिर इन्कार में सिर हिलाया ।
“कुल कितनी देर आप वहां थीं ?”
“चार-पांच मिनट । एक-दो मिनट बाहर आयरन गेट पर और एक-दो मिनट भीतर कोठी के प्रवेशद्वार पर ।”
“पहुंची कब भी आप वहां ?”
“साढ़े-आठ के बाद ही किसी वक्त पहुंची थी ।”
“आपका वो वाकिफकार टैक्सी ड्राइवर इस बात की तसदीक करेगा कि आप कोठी के भीतर दाखिल नहीं हुई थीं ?”
वो हिचकिचाई ।
मैं अपलक उसकी ओर देखता रहा ।
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07-22-2021, 01:22 PM,
#42
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“वो” फिर वह बोली - “वो...बात ये है कि मैं टैक्सी से शशिकांत की कोठी से थोड़ा परे उतरी थी ।”

“क्यों ?” मैं बोला ।
“मुझे उस की कोठी की कोई वाकफियत नहीं थी । सच पूछो तो मुझे उस इलाके की ही कोई वाकफियत नहीं थी । उसकी बाबत किसी से दरयाफ्त करने की नीयत से मैं टैक्सी से उतरी थी । तब मैंने पाया था कि जहां मैं खड़ी थी, दस नंबर कोठी उससे अगली ही थी । तब जरा से फासले के लिए मैंने टैक्सी में दोबारा बैठना जरूरी न समझा ।”
“आप वो जरा सा फासला पैदल तय करके आयरन गेट के सामने पहुंची ?”
“हां ।”
“ड्राइवर टैक्सी आपके पीछे वहां तक लेकर नहीं आया ?”

“नहीं ।”
“उसने तब भी टैक्सी आयरन गेट तक पहुंचाने की कोशिश न की जबकि आप भीतर गई थीं ?”
“न ।”
“कमाल है ! जबकि उसे कोठी के भीतर चले आने की आपकी हिदायत थी ।”
“फौरन नहीं । पांच मिनट बाद ।”
“जाहिर है । फौरन का मतलब तो ये होता कि वो आपके साथ ही भीतर जाता ।”
वो खामोश रही ।
“बहरहाल” मैं बोला, “वो टैक्सी ड्राइवर इस बात की तसदीक नहीं कर सकता कि आप कोठी के मुख्य द्वार से ही वपिस लौट आई थीं या भीतर भी दाखिल हुई थीं ?”
“न...नहीं । नहीं कर सकता ।”

“दैट्स टू बैड ।”
“वाई ?”
“आप बड़ी आसानी से भीतर स्टडी में जाकर उसे शूट कर सकती थीं और फिर कह सकती थीं कि आपने तो कोठी में कदम ही नहीं रखा था । जैसा कि आप कह रही हैं ।”
“मैं क्या झूठ कह रही हूं ?” वो तमककर बोली ।
“आप ही को मालूम हो ।”
वो कुछ क्षण अपलक मुझे देखती रही और फिर बोली, “पिंकी भी तो वहां थी । वो क्या कहती है इस बाबत ?”
“वो कहती है कि जब वो भीतर दाखिल हुई थी तो उसने शशिकांत को अपनी स्टडी में मरा पड़ा पाया था ।”

“तो फिर ? तो फिर मैं उसकी कातिल कैसे हो सकती हूं ?”
“नहीं हो सकतीं । बशर्ते कि वो भी आप ही की तरह ...”
“क्या मेरी तरह ?”
“झूठ न बोल रही हो ।”
“वो क्यों झूठ बोलेगी ? उसे तो शशिकांत या जिन्दा मिला था या मुर्दा मिला था । अगर उसे मुर्दा मिला था तो वो कातिल कैसे हो सकती है । अगर उसे वो जिंदा मिला तो वो भला क्यों झूठ बोलकर जिंदा शख्स को मुर्दा बताएगी ?”
“कोई वजह तो दिखाई नहीं देती । मुर्दे को जिन्दा बताती तो कुछ बात भी थी ।”

“मिस्टर कोहली !” वो मुझे घूरते हुए बोली, “आई डोंट अंडरस्टैंड यू । लगता है आप मुझे खामखाह तपाने की कोशिश कर रहे हैं ।”
“आई एम सो सॉरी । मैं लाइन ही बदल लेता हूं । पहले मिली तो हुई ही होंगी आप उससे ! वर्ना आपको ये न मालूम होता कि मैं उसका हमशक्ल हूं ।”
“सिर्फ एक बार ।” वो बोली, “खेतान ही उसे यहां मेरे ऑफिस में लाया था । क्लब की रेनोवेशन का प्रोजेक्ट डिसकस करने के लिए ।”
“सिर्फ एक मुलाकात के सदके आपने ये जान लिया कि शहर में उसकी रिप्युट खराब थी ।”

“सिर्फ मुलाकात से नहीं जाना । कई सुनी-सुनाई बातों से जाना उसके नाइट क्लब के प्रोफेशन से जाना, इस बात से जाना कि वहां सरकारी ताला बंदी हुई हुई थी और .....”
वो एकाएक खामोश हो गई ।
“और” मैं अपलक उसे देखता हुआ बोला “उससे अपनी रिश्तेदारी की वजह से जाना ।”
“रिश्तेदारी !” उसके मुंह से निकला ।
“करीबी । आपकी सगी बहन का छोटा देवर जो था वो ! दिल्ली के टॉप के अंडरवर्ल्ड बॉस का सगा भाई जो था वो !”
वो फिर तनिक बद्हवास हुई ।
“मेरी बहन की मर्जी पर मेरा क्या जोर ?” फिर वो सख्ती से बोली, “वो किससे शादी करती है, मैं....”

“मैं आप पर कोई ब्लेम नहीं लगा रहा मैं सिर्फ ये कहने की कोशिश कर रहा हूं कि आप शशिकांत से महज इसलिए ही वाकिफ नहीं थीं क्योंकि वो आपका ताजा-ताजा क्लायंट बना था । आप ज्यादा वाकिफ इसलिए थीं क्योंकि वो आपका रिश्तेदार था ?”
“सरासर गलत । मुझे अपनी बहन के पति से उसकी इतनी करीबी रिश्तेदारी की कोई खबर नहीं थी । ऐसी किसी रिश्तेदारी की मुझे खबर होती तो क्या मैं आज तक उससे सिर्फ एक बार मिली होती ! और वो भी एक क्लायंट के तौर पर ।”
“सही फरमाया आपने । तो फिर इसका मतलब ये हुआ कि किसी और जरिए से, किसी और वजह से आप उसके काबिलेएतराज कैरेक्टर से वाकिफ हैं ।”

वो खामोश रही ।
“मैडम, ये न भूलिए कि मैं आपके पति के लिए काम कर रहा हूं । आप मेरे सवाल का माकूल जवाब नहीं देंगी तो यही सवाल मैं आपसे माथुर साहब के सामने पूछूंगा । मुझे यकीन है कि तब आप खामोश नहीं रह पाएंगी ।”
“तब खामोश रहने की जरूरत ही कहां रह जाएगी ! वो धीरे से बोली, जो बात माथुर साहब को भी मालूम है, उस बाबत मेरा खामोश रहना बेमानी होगा ।”
“सो देयर यू आर ।”
“मैं बताती हूं ।”
“खाकसार सुन रहा है ।”
“ये... ये शख्स... शशिकांत कई दिनों से हमारे यहां फोन कर रहा था कि वो माथुर साहब से बात करना चाहता था । माथुर साहब तो यूं ऐरे-गैरे लोगों से बात करते नहीं । उनका सैक्रेट्री नायर ऐसी काल्स रिसीव करता है । वो पूछता था कि शशिकांत क्या क्या बात करना चाहता था तो शशिकांत कुछ बताता नहीं था । कहता था बात ऐसी नहीं थी जो कि हर किसी के कानों में डाली जा सकती । कई कालों के बाद नायर ने माथुर साहब से बात की तो माथुर साहब ने बात करने से साफ इन्कार कर दिया । नायर ने माथुर साहब का फैसला आगे शशिकान्त को ट्रांसफर कर दिया लेकिन वो था कि फिर भी बाज न आया । फोन करता ही रहा, करता ही रहा । फिर एक रोज उससे मैंने बात की ।”

“कब ?”
“तीन दिन पहले । मिस्टर कोहली, जो बात वो नायर को नहीं बताना चाहता था, वो उसने मुझे बताई ।”
“क्या बात ?” मैं उत्सुक भाव से बोला ।
“बोला कि वह उस घर का दामाद था ।”
“क्या ?”
“बोला कि नेपाल में पिंकी ने उससे शादी की थी ।”
“य... ये बात सच थी ?”
“पिंकी के अलावा हमारे पास तसदीक का क्या जरिया था, मिस्टर कोहली ! उसी से सवाल किया गया । वो साफ मुकर गई ।”
“मुकर गई ! यानी कि आपके ख्याल से हो सकता है कि शशिकांत सच बोल रहा हो ।”

“मिस्टर कोहली, वो लड़की कुछ भी कर सकती है । कोई काम, कोई हरकत उसके लिए नामुमकिन नहीं । शी इज क्वाईट कैपेबल ऑफ डूइंग एनीथिंग । जस्ट एनीथिंग ।”
“ओह ! क्या बोली वो ?”
“बोली कि शादी की बात सरासर झूठ थी उसने ऐसी कोई शादी नहीं की थी । अलबत्ता काफी दबाव में उसने ये जरूर कबूल किया कि शशिकान्त से वो पुराना वाकिफ थी और वही वो शख्स था, सैर-सपाटे और तफरीह की नीयत से मुंबई में अपनी सहेलियों को डिच करके जिसके साथ वो मुम्बई से नेपाल गई थी ।”
“जहां कि वो बीस दिन रही थी. ..! हैरान न होइए । माथुर साहब ने खुद बताया था ।”

“ओह ! बहरहाल पिंकी ने चिल्ला-चिल्लाकर इस बात से इन्कार किया कि नेपाल में उसने शशिकांत से शादी की थी ।”
“शशिकांत चाहता क्या था ?”
“वो चाहता था कि माथुर साहब सार्वजनिक रूप से उसे अपना दामाद तसलीम करें और खूब धूमधाम के साथ पिंकी को उसके साथ विदा करें ।”
“माथुर साहब ऐसा करते ?”
“कभी भी न करते । मरते मर जाते, न करते । ठौर मरवा देते वो ऐसी ख्वाहिश करने वाले आदमी को । लाश का पता न लगने देते ।”
“पिंकी से ये जवाबतलबी माथुर साहब की मौजूदगी में हुई थी ?”
“नहीं । इस बाबत जो बातचीत उससे की गई थी, वो सिर्फ मैंने की थी ।”

“आपने बाद में तो सब कुछ बताया होगा माथुर साहब को ?”
“नहीं बताया था ।”
“क्यों ?”
“वो डिस्टर्ब होते ।”
“आखिरकार तो ये बात माथुर साहब की जानकारी में आनी ही थी ।”
“अपने आप आती तो आ जाती । बहरहाल मैंने बताना ठीक नहीं समझा था ।”
“पिंकी से कोई सीधे बात हुई हो उनकी ?”
“किसलिए ? उन्हें तो असल मसले की भनक तक नहीं थी ।”
“जब पिंकी शादी से इन्कार करती थी तो शशिकांत कैसे साबित कर सकता था कि वो शादी हुई थी ?”
“कहता था उसके पास शादी का सबूत था, पक्का सबूत था ।”

“क्या ?”
“उसके पास शादी की विडियो फिल्म थी जो कि वो माथुर साहब को, सिर्फ माथुर साहब को दिखाना चाहता था ।”
“विडियो फिल्म !” तुरंत मेरा ध्यान अपनी जेब में मौजूद विडियो कैसेट की ओर गया । मुझे बहुत जरूरी लगने लगा कि मैं जल्द से जल्द उस फिल्म को मुकम्मल देखूं ।
“मिस्टर कोहली” सुधा कह रही थी, “मुझे साफ लफ्जों में तो नहीं कहा था उसने लेकिन मुझे लगा था कि असल में वो उस कैसेट का ही माथुर साहब से कोई सौदा करना चाहता था । वो पिंकी को क्लेम करने का उतना ख्वाहिशमंद नहीं लगता था जितना कि माथुर साहब से कैसेट के बारे में बात करने का ।”

“ब्लैकमेल ?”
“मुझे भी कुछ ऐसा ही अहसास हुआ था । इस बाबत न सिर्फ वो माथुर साहब से बात करना चाहता था, जल्दी से जल्दी बात करना चाहता था । और बात करने की जल्दी भी पता नहीं क्यों उसे एकाएक हो गई थी ।”
वजह मुझे मालूम थी । अपनी जगह मेरी लाश छोड़कर वो हिन्दोस्तान से कूच जो कर जाने वाला था ।
“शशिकांत वीडियो कैसेट के जरिये अपना क्लेम साबित करने में कामयाव हो जाता तो, आपकी क्या राय है, माथुर साहब उसकी ब्लैकमेलिंग की डिमांड के आगे झुक जाते ?”
“झुकना माथुर साहब के कैरेक्टर से मेल नहीं खाता ।”

“यानी कि वो अपनी बेटी को उसके हाल पर छोड़ देते ।”
“ऐसा तो वो हरगिज न करते । उन्हें पिंकी से बहुत प्यार है । दिलोजान से चाहते हैं वो पिंकी को ।”
“फिर कैसे बात बनती ?”
“क्या पता कैसे बनती ? कुछ तो वो करते ही ।”
“माथुर साहब कल शाम घर पर थे ?”
“ये भी कोई पूछने की बात है ! हमेशा होते हैं ।”
“हमेशा ?”
“मेरा मतलब है अपने हैंडीकैप की वजह से रेयरली ही वो कहीं जाते हैं । बहुत कम, बहुत ही कम उनका कहीं आना-जाना होता है ।”
“यूं जाते हैं तो कैसे जाते हैं ? अपने आप ? अकेले ?”

“नहीं । साथ मैं होती हूं या मनोज होता है । दो आर्डरली होते हैं ।”
“कहीं अकेले कभी नहीं जाते ?”
“अकेले ? क्यों जाएंगें ? जरूरत क्या है ?”
“जवाब दीजिए । जाते हैं या नहीं ?”
“नहीं ?”
“चाहे तो जा सकते हैं ?”
“जब कभी गए नहीं तो... ”
“चाहें तो” मैंने जिद की “जा सकते हैं ?”
“नहीं ।”
“पक्की बात ?”
“हां ।”
“आपने अभी थोड़ी देर पहले बताया था कि कल शाम माथुर साहब की तबीयत ठीक नहीं थी । ये बात आपके बोले झूठ का ही हिस्सा थी या वाकई तबीयत ठीक नहीं थी ?”

“वाकई तबीयत ठीक नहीं थी । कल वो आठ बजे से भी पहले बिस्तर के हवाले हो गए थे । मैंने खुद उन्हें सिडेटिव दिया था ताकि वो आराम की नींद सो सकें ।”
“फिर उनके पास आपकी हाजिरी तो क्या जरूरी रह गई होगी ?”
“जाहिर है ।”
“फिर तो उन्हें इस बात की खबर नहीं लगी होगी कि आप कल शाम घर से बाहर गयी थीं !”
“हां ।”
“अब, क्योंकि आप खुद घर से बाहर थीं इसलिये आपको क्या खबर लगी होगी कि वो पीछे घर पर ही थे या कहीं चले गये थे !”
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07-22-2021, 01:22 PM,
#43
RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“डांट टाक नानसेंस । वो सिडेटिव के असर में थे, वो...”

“आपने अपनी आंखों से उन्हें गोली खाते देखा था ? अपनी आंखों से उन्हें गोली हाथ से मुंह में हस्तांतरित करते देखा था ?”
“इतना ध्यान कौन करता है ! मैंने तो उन्हें गोली थमाई थी, पानी का गिलास थमाया था और फिर बैडरूम की फालतू बत्तियां बुझाने लगी और खिड़कियों के परदे ठीक करने लगी थी ।”
“यानी कि वो चाहते तो गोली खाए बिना गोली खा ली होने का बहाना कर सकते थे ।”
“लेकिन उन्हें जरूरत क्या थी वैसा करने की ?”
“उन्हें सिडेटिव आपने खेतान की फोन कॉल आने से पहले दिया था या बाद में ?”

“बाद में ।”
“उन्हें खेतान की फोन कॉल की खबर लगी होगी ?”
“घंटी तो जरूर सुनी होगी । आखिर बगल का ही तो कमरा है उनका ।”
“कॉल से निपटते ही आप उन्हें सिडेटिव देने पहुंच गई ?”
“हां ।”
“उन्होंने पूछा था कॉल किसकी थी ?”
“नहीं ।”
“वो आप पर शक करते हैं ?”
“हर उम्रदराज हसबैंड अपनी नौजवान बीवी पर शक करता है लेकिन अगर आप ये समझते हैं कि माथुर साहब सिडेटिव की गोली न खाकर पहले नींद का बहाना करने लगे होंगे और फिर मेरे कोठी से निकलने के बाद व्हील चेयर पर सवार होकर मेरे पीछे लग गए होंगे तो जरूर आपका दिमाग खराब है ।”

“कोठी से निकलने के वाद” मैं अपनी ही झोंक में बोलता रहा, “आपको अपने वाकिफकार ड्राइवर वाली टैक्सी तलाश करने में कितना टाइम लगा था ?”
“मेरी उम्मीद से बहुत ज्यादा । पूरे दस मिनट बल्कि उस से भी ज्यादा ।”
“फ्लैगस्टाफ रोड से मैटकाफ रोड का फासला तो कुछ खास नहीं है । पांच मिनट में टैक्सी पहुंच गई होगी वहां रात के वक्त !”
“हां ।”
“पहुंची आप साढ़े आठ के बाद वहां ।”
“मिस्टर कोहली, फार गाड सेक, कम क्लीन क्या कहना चाहते हो ?”
“यही कि माथुर साहब के पास मैटकाफ रोड जाकर लौट आने के लिए बहुतेरा वक्त था ।”

“ब्रेवो !” वो व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली, “माथुर साहब मिल्खासिंह हैं न जो वो लपककर वहां पहुंचे, वहां शशिकांत पर गोलियां बरसाईं और लपककर वापस लौट आए ! फाइन डिटेक्टिव यू आर, मिस्टर कोहली ।”
मैं बहुत धृष्टता से मुस्कुराया ।
“अभी आप खुद कह रहे हैं कि मरने वाले पर जो छ: गोलियां चलाई गई थीं, उनमें से सिर्फ एक उसको लगी थी और बाकी पांच इधर-उधर छिटक गई थीं । मिस्टर कोहली, वो गोलियां अगर माथुर साहब ने चलाई होतीं तो छ: की छ: मरने वाले की छाती में धंसी पाई गई होतीं ।”
“बिल्कुल ठीक फरमा रही हैं आप ।”

“मेरी बात को ठीक मानते हैं फिर भी ऐसी वाहियात बात कह रहे हैं कि कत्ल माथुर साहब ने किया हो सकता है ।”
“आई एम सॉरी ! आई एम टेरीबली सॉरी, मैडम । वो क्या है कि कभी कभी मुझे खुद पता नहीं लगता कि मैं क्या कर रहा हूं । आई एम सॉरी ऑल ओवर अगेन ।”
उसने संदिग्ध भाव से मेरी तरफ देखा ।
“तो फिर अब मैं” मैंने उठने का उपक्रम किया, “इजाजत चाहता हूं ।”
“एक मिनट रुकिये ।”
मैं फिर कुर्सी पर पसर गया और प्रश्नसूचक नेत्रों से उसकी तरफ देखने लगा ।
“एक बात सच-सच बताइएगा, मिस्टर कोहली ।” वो बहुत धीमे किंतु निहायत संजीदा स्वर में बोली ।

“पूछिए ।” मैं भी पूरी तरह संजीदगी से बोला ।
“क्या वाकई माथुर साहब ने आपकी सेवाएं ये मालूम करने के लिए प्राप्त की हैं कि किसी फैमिली मैम्बर का तो कत्ल में दखल नहीं ?”
“और क्या वजह होगी ?”
“आप बताइए ।”
“आप ही बताइए ।”
“कहीं....कहीं उन्होंने आपको मेरे पीछे तो नहीं लगाया ?”
मैं हंसा ।
“हंसिए मत । जवाब दीजिए ।”
“आपको अपने पति से ऐसी उम्मीद है ?”
“है तो नहीं लेकिन क्या पता लगता है किसी के मिजाज का !”
“अगर वो ऐसा कोई कदम उठाएं तो कोई नतीजा हासिल होगा ?”
वह कुछ क्षण खामोश रही, फिर उसने इन्कार में सिर हिलाया ।

“फिर क्या बात है !” मैं उठता हुआ बोला, “आप खातिर जमा रखिये मैडम, ऐसी कोई बात नहीं ।”
“डू आई हैव युअर वर्ड फार इट?” वो भी उठती हुई बोली ।
“यस । यू डू ।”
मैंने वहां से विदा ली ।
***
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07-22-2021, 01:22 PM,
#44
RE: Desi Chudai Kahani मकसद
मैं पंडारा रोड पहुंचा ।
डिसूजा के घर को ताला लगा हुआ था ।
उसके मकान मालिक से पूछताछ करने पर मालूम हुआ कि कल शाम का वहां से गया अभी तक नहीं लौटा था ।
कहां गायब हो गया था कम्बख्त !
मैंने मंदिर मार्ग सुजाता मेहरा के हॉस्टल में फोन किया ।
मालूम हुआ वो कमरे में नहीं थी ।

मैंने पुलिस हैडक्वार्टर फोन किया और इंस्पेक्टर देवेंद्र कुमार यादव के बारे में पूछा ।
मालूम हुआ कि वो एक केस की तफ्तीश के लिए मैटकाफ रोड गए हुए थे ।
इंस्पेक्टर यादव फ्लाइंग स्क्वाड के उस दस्ते से सम्बद्ध था जो केवल कत्ल के केसों की तफ्तीश के लिए भेजा जाता था ।
वो अभी भी मैटकाफ रोड पर था तो जाहिर था कि मदान भी अभी वहीं था । मुझे मदान की बीवी से मुलाकात करने का वो बहुत मुनासिब वक्त था ।
मैं तत्काल बाराखम्बा रोड रवाना हो गया ।
मदान के पैन्थाउस अपार्टमेंट के मुख्यद्वार के झरोखे में से पहले की तरह हिरणी जैसी एक जोड़ी आंखों ने मेरा मुआयना किया ।

“मदान साहब घर में नहीं हैं ।” मेरे मुंह खोल पाने से भी पहले मुझे दरवाजे के पार से मधु का स्वर सुनाई दिया !
“बहुत अच्छी खबर है ।” मैं बोला ।
“क्या ?”
“मैं उनसे मिलने नहीं आया । इसीलिए ऐसे वक्त पर आया हूं जबकि मुझे जानकारी थी कि वो घर पर नहीं होंगे ।”
“तो और किससे मिलने आए हो ?”
“सोचो । कोई सौ पचास जने तो रहते नहीं इस अपार्टमेंट में ।”
“तुम मुझसे मिलने आए हो ?”
“जवाब तो ऐसे दिया जैसे बहुत मुश्किल सवाल था ।”
“मैं तो तुमसे नहीं मिलना चाहती ।”

“अभी नहीं चाहती हो । दरवाजा खोल के भीतर आने दोगी तो चाहने लगोगी ।”
“पागल हुए हो ! बातों में सुबह थोड़ी छूट दे दी तो पसर ही गए । सपने देखने लगे ।”
“तो क्या ह्रुआ ! सपने देखना तो इंसान के बच्चे का जन्मसिद्ध अधिकार है ।”
“सपने कभी सच्चे नहीं होते ।”
“इस पंजाबी पुत्तर के सपने सच्चे होते हैं । हमेशा हुए हैं । आज भी होंगे ।”
“बकवास बंद करो । उनकी मौजूदगी में आना ।”
“सुनो, सुनो ।” उसे झरोखा बंद करने को तत्पर पाकर मैं जल्दी से बोला ।
“अब क्या है ?” वो झुंझलाई ।

“तुम्हारी एक खास चीज मेरे पास है । अगर तुम चाहती हो कि वो चीज मैं मदान के सामने तुम्हें सौपूं तो ठीक है, मैं उसकी मौजूदगी में आ जाऊंगा ।”
“ऐसी क्या चीज है ?”
मैंने जेब से हीरा निकाला और अपने दाएं हाथ की पहली उंगली और अंगूठे में थामकर उसे झरोखे के सामने किया ।
“ये क्या है ?” वो बोली ।
“वही जो दिखाई दे रहा है ।” मैं बड़े इत्मीनान से बोला ।
“मुझे क्यों दिखा रहे हो ?”
“तुम्हारी चीज तुम्हें न दिखाऊं तो किसे दिखाऊं ?”
“मेरी चीज ?”
“ये तुम्हारे टोप्स से निकला हीरा है । तुम्हें नहीं मालूम ये कहां गिरा था ! मालूम होता तो उठा लाती । लेकिन मुझे मालूम है कि ये कहां गिरा था !”

“कहां गिरा था ?”
“शशिकांत की कोठी के कम्पाउंड में ।”
“इस पर मेरा नाम लिखा है ?”
“सारी बातचीत यूं झरोखे के आरपार से ही होगी ?”
“नाम लिखा है इस पर मेरा ?”
“नाम तो नहीं लिखा लेकिन मैं कनॉट प्लेस में मेहरासंस से, जहां कि तुम्हारा पति तुम्हारे टोप्स सुबह देकर आया था, इस बात की तसदीक करके आया हूं कि ये हीरा ऐन बाकी हीरों जैसा है जोकि तुम्हारे टोप्स में जड़े हुए हैं । ज्वेलर्स अपनी कारीगरी को बखूबी पहचानते हैं । उन्होंने इस हीरे को देखते ही कह दिया था कि ये तुम्हारे ही टोप्स से निकला हुआ हीरा था ।”

“और ये तुम्हें शशिकांत की कोठी के कंपाउड में पड़ा मिला था ?”
“हां । जहां कि तुम्हारा पति भी मेरे साथ गया था । तुम अपने आपको खुशकिस्मत समझो कि हीरे पर मेरी निगाह पड़ी, उसकी नहीं ।”
“उसकी पड़ती तो क्या होता?”
“मुझे भीतर आने दो, बताता हूं ।”
“तो क्या होता ?”
“तो उसे मालूम हो जाता कि कल तुम शशिकान्त की कोठी पर गई थीं ।”
“इस पर कल की तारीख पड़ी हुई है ?”
“स्वीटहार्ट, ये जो फैंसी बातें तुम कर रही हो, ये मुझे सुनाने के लिये ठीक है, किसी गैर को सुनाओगी तो मुश्किल में पड़ जाओगी ।”

“मदान मेरी सुनेगा ।” वो बड़े कुटिल स्वर में बोली, “उसे अपने आगोश में लेकर और उसका सिर अपने सीने से लगाकर जब मैं उसे कहूंगी तुम मेरे पर लार टपका रहे हो और मुझे हासिल करुने के लिए यूं मुझ पर दबाव डाल रहे हो, कि तुमने हीरा यहीं ड्राइंगरूम से आज सुबह तब उठाया था जब तुम यहां आए थे और अब कह रहे हो कि हीरा शशिकांत की कोठी के कंपाउंड में पड़ा मिला था तो वो मेरी बात मानेगा न कि तुम्हारी ।”
“जानेमन, तुम्हारा पति एक इकलौता इंसान है लेकिन पुलिस के महकमे में मुलाजिम सैकड़ों की तादाद में हैं । किस किसको आगोश में लोगी, किस-किसका सिर अपने सीने से लगाओगी यूं अपनी बात समझाने के लिए ?”

“तुम पुलिस के पास जाओगे ?”
“मैं मैटकाफ रोड जाऊंगा और चुपचाप हीरा कंपाउंड में वहीं डाल दूंगा जहां से कि मैंने इसे उठाया था । फिर जब ये पुलिस के हाथ लग जाएगा तो बड़ी मासूमियत से मैं ये भी इशारा कर दूंगा कि इसकी मालकिन तुम हो । उसके बाद पुलिस ही तुम्हें बताएगी कि इस पर तुम्हारा नाम लिखा हुआ है या कल की तारीख पड़ी हुई है । तब तक के लिए जयहिन्द ।”
“ठहरो ।”
मैं ठिठका । मेरी उससे निगाह मिली । तब पहली बार मुझे उसकी निगाहें व्याकुल दिखाई दीं ।
“क्या चाहते हो ?” वह बोली ।

“ये भी कोई पूछने की बात है ?”
“हां । है पूछने की बात ।”
“'तो सुनो । सबसे पहले तो मैं ये ही चाहता हूं कि तुम मुझे शरबते-दीदार छान के देना बंद करो ।”
“मतलब ?”
“दरवाजा खोलो ।”
“अच्छा ।”
उसने दरवाजा खोला । मैंने भीतर कदम रखा । उसने तत्काल मेरे पीछे दरवाजा बंद कर दिया जो कि खाकसार के लिए बहुत अच्छी घटना थी ।
फिर मैंने आंख भरकर सिर से पांव तक उसे देखा ।
वो फिरोजी रंग की शिफौन की साड़ी और उसी रंग का स्लीवलेस ब्लाउज पहने थी और उस घड़ी श्रीदेवी से भी कहीं ज्यादा हसीन लग रही थी ।

“मुंह पोंछ लो । वो बोली ।
“क..क्या !” मैं हड़बड़ाकर बोला ।
“लार ठोडी तक टपक आई है ।”
“अच्छा वो ! वो तो अभी घुटनों तक टपकेगी । टखनों तक टकपेगी । छप्पन व्यंजनों से सजी थाली सामने देखकर भूखे का यही हाल होता है ।”
“भूखे हो ?” वो कुटिल स्वर में बोली ।
“हां । प्यासा भी ।”
“हीरा मुझे दो ।”
“जरूर ! आया ही लेनदेन के लिए हूं ।”
“क्या मतलब ?”
“मैं अभी समझाता हूं ।”
मैंने उसे अपनी बांहों में भर लिया उसने मुझे परे धकेलने की कोशिश की तो मैंने उसे और कस के दबोच लिया । फिर उसने अपना शरीर मेरे आलिंगन में ढीला छोड़ दिया और मेरे कान में फुसफुसाई, “वो आ जाएगा ।”

“नहीं आ जाएगा ।” मैं बोला, “इतनी जल्दी उसकी मैटकाफ रोड से खलासी नहीं होने वाली ।”
“पक्की बात ?”
“हां ।”
“तो फिर भीतर चलो ।”
मैंने उसे गोद में उठा लिया और उसके निर्देश पर फ्लैट के भीतर को चल दिया ।
भीतर एक ड्राइंगरूम से भी ज्यादा सजा हुआ बैडरूम था जहां विशाल डबल बैड के करीब पहुंचकर मैंने उसे उसके पैरों पर खड़ा किया और फिर उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए ।
तत्काल वांछित प्रतिक्रिया पेश हुई ! वो लता की तरह मेरे से लिपट गई । कुछ क्षण बाद मैं उसके नहीं, वो मेरे होंठ चूस रही थी । फिर अपना निचला होंठ मैंने उसके तीखे दांतों के बीच महसूस किया । फिर एकाएक मुझे यूं लगा जैसे बिच्छु ने काट खाया हो । मैंने उसे जोर से अपने से परे धकेला और अपने निचले होंठ को एक उंगली से छुआ ।

मुझे अपनी उंगली पर खून की एक मोटी बूंद दिखाई दी । मेरे धक्के से वो पलंग पर जाकर गिरी थी और खिलखिलाकर हंस रही थी ।
मैंने कहर बरपाती निगाहों से उसकी तरफ देखा ।
“घूर क्यों रहे हो ?” फिर वो बोली, “जानते नहीं जहां शहद होता है वहां डंक भी होता है ।”
“जरूर तुम्हारा पूरा नाम मधु मक्खी होगा ।”
“यही समझ लो ।”
“शहद चाटने के लिए डंक खाना जरूरी है ?”
“हां ।” वो इठलाकर बोली ।
“डंक तो मैं खा चुका ।”
“तो शहद भी चाट लो ।”
“जहेनसीब ।”
मैं बाज की तरह उस पर झपटा ।

फिर अगला आधा घंटा वहां वो द्वंद्व युद्ध हुआ जिसमें जीत हमेशा औरत की होती है ।
“बाहर जाओ ।” मेरे शरीर के नीचे दबी आखिरकार वो बोली ।
“क्या !”
“बाहर जा के बैठो । आती हूं ।”
“ओह !”
मैं बाहर ड्राइंगरूम में जा बैठा । मैंने एक सिगरेट सुलगा लिया और बड़े संतुष्टिपूर्ण ढंग से सिगरेट के कश लगाता हुआ हबीब बकरे की भविष्यवाणी को याद करने लगा जो कि बिल्कुल गलत निकली थी। मैंने न गश खाई थी, न पछाड़ खाकर उसके कदमों में गिरा था और न उसकी आगोश में पहुंचते ही इस फानी दुनिया से रुखसत हुआ था ।

सुधीर कोहली ! - मैंने खुद अपनी पीठ थपथपाई - दि लक्की बास्टर्ड !”
मेरा सिगरेट खत्म होने तक वो वहां पहुंची । उसने साड़ी बदल ली थी, बाल व्यवस्थित कर लिए थे और चेहरे पर नया मेकअप लगा लिया था ।
वह करीब आकर मेरे सामने बैठ गई ।
“लाओ ।” उसने मेरी तरफ हाथ बढ़ाया ।
मैंने बिना हुज्जत किए जेब से हीरा निकालकर उसकी हथेली पर रख दिया । उसने मुट्ठी बंद करके हाथ वापस खींचने की कोशिश की तो मैंने उसकी मुट्ठी थाम ली ।”
“अभी” मैं बोला, “तुमने मुझे ये बताना है कि हीरा मैटकाफ रोड कैसे पहुंच गया ।”

उसने सहमति से सिर हिलाया ।
मैंने उसका हाथ छोड़ दिया ।
“अब ये बताओ कि कब गई थीं तुम वहां ?” मैं बोला, “या ठहरो । पहले ये बताओ कि क्यों गई थीं ? वजह ज्यादा अहम है ।”
“भयानक भी बहुत ज्यादा है ।” वह धीरे से बोली ।
मैं सुन रहा हूं ।”
“वो तो मुझे दिखाई दे रहा है, लेकिन साथ ही ये भी दिखाई दे रहा है कि जो सुनोगे, उसे मेरे ही खिलाफ इस्तेमाल करने की कोशिश करोगे ।”
“हरगिज नहीं ।”
“अभी हीरे को मेरे खिलाफ इस्तेमाल करके नहीं हटे हो ?”
“पहले बात और थी । पहले अभी मैं परीचेहरा हुस्न की रहमतों से नवाजा नहीं गया था । जानेमन, ये नाचीज हरामी है, कमीना भी है लेकिन नाशुक्रा नहीं है ।”

उसके चेहरे पर आश्वासन के भाव आए ।
“एक बात सच-सच बताओ ।” मैं बोला ।
“पूछो ।”
“तुमने शशिकांत का कत्ल किया है ?”
“नहीं ।” वो निःसंकोच बोली ।
“फिर यकीन जानो कि जो कुछ भी तुम मुझे बताओगी, वो कम-से-कम मेरी जुबानी किसी तीसरे शख्स को सुनना नसीब नहीं होगा ।”
“मुझे यकीन है तुम्हारी बात पर ।”
“शुक्रिया । अब बोलो क्या है वो भयानक वजह जो कल तुम्हें शशिकांत की कोठी पर लेकर गई थी ।”
“बोलती हूं । कलेजा थाम के सुनो ।”
“थाम लिया ।”
“मैं उसका कत्ल करने की नीयत से वहां गई थी ।”

मैं कोई भी अप्रत्याशित बात सुनने के लिए तैयार था, लेकिन फिर भी बुरी से चौंका ।
“सच कह रही हो ?” मैं हकबकाया सा उसका मुंह देखता हुआ बोला ।
“हां ।” वो बेखौफ बोली ।
“ऐसी क्या अदावत थी तुम्हारी शशिकान्त से । मेरे तो सुनने में आया है कि तुम उससे ठीक से वाकिफ तक नहीं थीं ।”
“ठीक सुना है तुमने ।”
“तो फिर ये कत्ल का इरादा ....”
“मुझे इसलिए करना पड़ा क्योंकि उसकी मौत से मुझे फायदा था । उसकी मौत से मेरा धुंधलाया जा रहा भविष्य फिर से रोशन हो सकता था । सुख सुविधा और ऐशो-आराम की जो जिंदगी मुझे अपने से छिनती मालूम हो रही थी, वो फिर से महफूज हो सकती थी ।”

“ओह ! कहीं तुम्हारी भी घात शशिकांत की पचास लाख की इंश्योरेंस पर तो नहीं थी ?”
“उसी पर थी ।” मदान की माली हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही थी । सब कारोबार ठप्प थे, हर चीज गिरवी थी । ऊपर से किसी भी दिन वो जेल का मेहमान बन सकता था । इन नाजुक हालात में शशिकांत की मौत हमारे लिए वरदान साबित हो सकती थी ।”
“लेकिन कत्ल ! तुम तो कत्ल का जिक्र यूं कर रही हो, जैसे कोई चींटी मसल देने जैसा काम हो !”
वो हंसी । उस हंसी के साथ उसकी आंखों में बड़े क्रूर, बड़े वहशी भाव झलके ।

उस घड़ी मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे वो कोई खून पीने वाली मकड़ी थी और मैं एक भुनगा था जो पता नहीं कैसे उसके जले में फंसकर भी सलामत बाहर निकल आया था ।
“कत्ल करती तो कैसे करती ?” मैंने पूछा ।
उसने अपने दाएं हाथ की तीन उंगलियां हथेली की तरफ मोड़कर अपनी पहली उंगली मेरी तरफ तानी और यूं एक्शन किया, जैसे गोलियां चला रही हों ।
“'हथियार था ?”
“था । खास इंतजाम किया था मैंने एक पिस्तौल का ।”
“खुद ?”
“हां ।”
“कहां से ?'
“क्या करोगे जान के ?”
“वो पिस्तौल अब कहां है ?”

“वो तो मैंने कल ही जमना में फेंक दी थी । अब उसकी क्या जरूरत रह गई थी मुझे ! मेरा काम तो किसी और ने ही कर दिया था ।”
“शशिकांत की कोठी पर तुम कितने बजे गई थी ?”
“वक्त का मुझे पता नहीं । मैं घड़ी नहीं पहनती ।”
“अंदाजा ?”
“वो भी लगाना मुहाल है । मैं पहले करोल बाग अपने टेलर के पास गई थी । पता नहीं वहां मुझे कितना टाइम लगा था । वहां से रवाना तो मैं सीधी मैटकाफ रोड के लिए हुई थी लेकिन दो बार भारी ट्रैफिक जाम में फंसी थी ।”

“तुम खुद चाहे घड़ी नहीं लगातीं । लेकिन कभी तो, कहीं तो घड़ी पर निगाह पड़ी होगी ।”
“एक जगह पड़ी थी ।” वो धीरे से बोली ।
“कहां ?'
“शशिकांत की स्टडी में । उसकी स्टडी में उसकी पीठ पीछे दीवार के साथ फिट वाल केबिनेट पर एक यूनानी बुत-सा रखा था जिसके सिर पर एक बड़े दकियानूसी स्टाइल की घड़ी लगी हुई थी । मेरी जब उस घड़ी पर निगाह पड़ी थी तो उसमें साढ़े सात बजने वाले थे । बस एकाध मिनट ही कम था ।”
“घड़ी चल रही थी ?”
“चल ही रही होगी !”
“टूटी तो नहीं पड़ी थी वो ?”

“अब किसी टूट-फूट की तरफ तो ध्यान दिया नहीं था मैंने । क्योंकि तभी तो मैंने कुर्सी पर मरे पड़े शशिकांत को देखा था । मेरी तो बस एक उचटती-सी नजर घड़ी पर पड़ी थी । तुम खास टाइम के बारे में ही सवाल न करते तो मुझे तो घड़ी का जिक्र करना तक न सूझता ।”
“शशिकांत तब कुर्सी पर मरा पड़ा था ?”
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07-22-2021, 01:22 PM,
#45
RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“हां ।”
“कमरे में रोशनी थी ?”
“नहीं । मैंने जाकर की थी ।”
“कैसे ?”
“कैसे क्या ? स्विचबोर्ड पर लगा एक स्विच आन किया था, रोशनी हो गई थी ।”
“क्या रोशन हुआ था । ट्यूब लाइट या वाल लैंप ।”

“ट्यूब लाइट ।”
“वाल लैंप तब सलामत था ?”
“मुझे क्या पता ! मुझे तो ये ही नहीं पता कि वहां कोई वाल लैंप भी था ।”
“मेज पर कोई अस्तव्यस्तता नोट की हो जैसे कोई होल्डर कलमदान में अपनी जगह न हो, या टूटा पड़ा हो ?”
“मेरा ध्यान उधर नहीं गया था ।”
“पीछे वाल कैबिनेट पर जैसे दाएं कोने में घड़ी वाला बुत था, वैसे दाएं कोने में एक घुड़सवार का बुत था...”
“था तो मैंने नहीं देखा था । दरअसल एक तो मैंने वहां अंधेरे में कदम रखकर खुद रोशनी की थी इसलिए मेरी आंखें चौंधियां गई थीं, दूसरे शशिकांत की हालत ने मुझे हकबका दिया था, उन हालात में मेरी निगाह तो मरे हुए शशिकांत पर से ही नहीं हट रही थी, वो घड़ी ऐन उसके पीछे न होती तो शायद मेरी उस पर भी निगाह न पड़ती ।”

“मुझे लगता है अपनी उस हालत में तुम्हारे से टाइम देखने में गलती हुई । जरूर घड़ी तब साढ़े आठ के करीब का टाइम दर्शा रही थी जिसे कि तुमने साढ़े सात के करीब का टाइम समझ लिया था ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि साढ़े सात बजे तो शशिकांत जिन्दा था । इस बात का एक चश्मदीद गवाह मौजूद है । उसके घर में एक मेहमान था उस वक्त जोकि सात पचास पर उसे सही सलामत पीछे छोड़कर वहां से रुखसत हुआ था । मौकाएवारदात के हालात बताते हैं कि कत्ल आठ अट्ठाइस पर हुआ था ! एक गोली तो वक्त दर्शाती घड़ी को भी लगी थी जोकि उसी टाइम पर रुक गई थी । तुमने जरूर ये ही वक्त देखा था जिसे तुम सात अट्ठाइस का वक्त समझ बैठी थीं ।”

वो सोचने लगी ।
“क्या नहीं हो सकता ऐसा ?”
“हो तो सकता है ।”
“जब तुम वहां पहुंची थीं तो बाहर कंपाउंड में रोशनी थी ?”
“हां ।”
“ड्राइंगरूम में ?'
“वहां भी थी ।”
“काफी या किसी कोने खुदरे में रखे छोटे मोटे टेबल लैंप की ?”
“काफी । ट्यूब लाइट की रोशनी थी वहां ।”
“तुमने भीतर दाखिल होते वक्त बारहली - जो आयरन गेट पर है - या भीतरली - जो कोठी के प्रवेशद्बार पर है - कोई घंटी बजाई थी ?”
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“दोनों दरवाजे खुले जो थे ।”
“आवाज तो लगाई होगी भीतर पहुंचने के बाद । नाम लेकर तो पुकारा होगा शशिकांत को ?”

“नहीं ।”
“वो भी नहीं ?”
“नहीं । तुम भूल रहे हो कि वहां मैं उसका हाल-चाल जानने के लिए नहीं, उसका कत्ल करने के लिए गई थी । मेरा मकसद उस तक पहुंचना था, ऐसा मैं चुपचाप कर पाती तो वो मेरे लिए फायदे की बात होती । मुझे तो वो जहां दिखाई देता, मैंने उसे शूट कर देना था ।”
“वो घर में अकेला न होता तो ?”
“वो अकेला ही होता था । मैंने मालूम किया था चुपचाप ।”
“इत्तफाक से उस वक्त उसके साथ घर में कोई मेहमान होता तो ?”
जवाब में वो बड़े कुटिल भाव से होंठ बिचकाकर हंसी ।

“ओह माई गॉड !” मेरे मुंह से निकला, “तुम उसे भी शूट कर देती ?”
इस बार हंसी के साथ-साथ मुझे एक नागिन जैसी फुंफकार भी सुनाई दी ।
आखिर ऐसे ही तो औरत को ‘डैडलियर देन दी मेल’ नहीं कहा गया ।
“फिर ?” प्रत्यक्षत: मैं बोला ।
“फिर क्या ? मैं फौरन वहां से वापस लौट पड़ी ।”
“वापसी में तुमने स्टडी की या ड्राइंगरूम की या कम्पाउंड की कोई बत्ती बुझाई ?”
“नहीं ।”
“वहां पहुंचते वक्त या लौटते वक्त तुम्हें सड़क पर कोई जाना-पहचाना बंदा या बंदी मिली ?”
“नहीं ।”
उसका वो जवाब सच झूठ के नपने से नापने लायक था । उसने अपनी बहन सुधा को या पिंकी माथुर को वहां आता-जाता देखा हो सकता था । पिंकी की खातिर नहीं तो अपनी बहन की खातिर तो इस बाबत वो यकीनन झूठ बोल सकती थी ।

“आज सुबह” वो कह रही थी, “जब तुम यहां पहुंचे थे तो यकीन जानो मुझे हार्ट अटैक होते-होते बचा था ।”
“तुमने समझा होगा कि मुर्दा जिंदा हो गया ।” मैं बोला ।
“हां । तब तुम मेरी सूरत देख पाते तो यही समझते कि मैने भूत देख लिया था ।”
“सूरत कैसे देख पाता ? वो तुम्हारे उस फैंसी झरोखे में से मेजबान की सिर्फ आंखें जो दिखाई देतीं हैं आने वाले को ।”
“हां । फिर तुमने अपना परिचय दिया तो मेरी जान में जान आई । फिर मुझे ये भी सूझा कि तुम्हारी मूंछें नहीं थीं ।”

“हेयर स्टाइल में भी फर्क है ।”
“अब दिखाई दे रहा है । तब तुम्हारे हेयर स्टाइल की तरफ मेरी तवज्जो नहीं गई थी ।”
“हूं । अब जैसी छक्के छुड़ा देने वाली बात तुमने मुझे सुनाई, वैसी ही एक मेरे से भी सुनो ।”
“क्या ?”
“तुम शशिकांत का कत्ल करती तो ये गुनाहबेलज्जत वाला काम होता ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि इस बाबत जो लाइन आफ एक्शन तुमने सोची थी, वो ही तुम्हारे खाविंद ने पकड़ी हुई थी ।”
“वो भी उसका कत्ल करने पर आमादा था ?”
“हां ।”
“नहीं हो सकता ।”
“क्यों ?”
“वो अपने सगे भाई के कत्ल का ख्याल भी नहीं कर सकता था । इसीलिए तो ये नामुराद कदम मुझे उठाना पड़ रहा था ।”

“तुम्हारी सोच में दो नुक्स हैं ।”
“क्या ?”
“एक तो ये कि उसका शशिकांत का कत्ल करने का कोई इरादा ही नहीं था .....”
“लेकिन अभी तो तुमने कहा, कि वो....”
“वो कत्ल मेरा करता और जाहिर करता कि शशिकांत मर गया था । मेरे शशिकांत का हमशक्ल होने का वो ये फायदा उठाना चाहता था ।”
“ओह ! ओह !”
“मैं तो तकदीर से ही बच गया वरना ये बलि का बकरा अपने क्लायंट की अप्सरा जैसी बीवी के मरमरी जिस्म का भोग लगाये बिना ही जहन्नुमरसीद हो गया होता ।”
“अब तो भोग लग चुका” उसने बहुत नशीली आंखों से मुझे देखा - “अब तो जन्न्तनशीन होवोगे न ?”

“हो भी चुका । वहीं तो विचर रहा हूं मैं इस वक्त । मेरा तो नश्वर शरीर ही इस वक्त तुम्हारे सामने मौजूद है, आत्मा तो कब की...”
“बातें मत बनाओ और बोलो दूसरा नुक्स क्या है मेरी सोच में ?”
“शशिकांत तुम्हारे पति का भाई नहीं । शशिकांत तुम्हारे पति का कुछ भी नहीं लगता ।”
उसके चेहरे पर हैरानी के बड़े सच्चे भाव आए ।
“तुम्हें किसने कहा ?” वो बोली ।
“खुद तुम्हारे पति ने ।”
“कमाल है ! क्या किस्सा है, भई ? साफ बताओ ।”
मैंने उस बाबत जो कुछ मदान से सुना था, दोहरा दिया ।

“हद हो गई ।” सारी बात सुन चुकने के बाद वो बोली, “यानी कि मैं तो बाल-बाल बची खून से अपने हाथ रंगने से ।”
“मदान भी ।” मैं बोला ।
“तुम्हें यकीन है कि खून मदान ने नहीं किया ?”
“लगता है तुम्हें यकीन नहीं है ।”
“वो मुझे पट्टी पढा रहा था कि पूछे जाने पर मैं यही कहूं कि कल शाम से वो घर पर ही था ।”
“मैंने ही उसे ऐसा करने की राय दी थी लेकिन तब मुझे ये नहीं सूझा था कि उस पट्टी को पढ़ने में तुम्हारा भी फायदा है ।”
“मेरा क्या फायदा है ? मुझे तो उल्टे सफेद झूठ बोलना पड़ेगा कि ....”

“वाह मेरी भोली बेगम !”
“क्या हुआ ?”
“अरे, तुम उसकी यूं गवाह बनीं तो वो तुम्हारा गवाह न बना ! तुम्हारे ये कहने से कि वो कल शाम से घर पर था, क्या अपने आप ही स्थापित न हो गया कि तुम भी कल शाम घर पर ही थीं ? ऐसी गवाही की जितनी उसे जरूरत है, उससे कहीं ज्यादा तुम्हें जरूरत है । कहने को पति पर अहसान किया कि उसकी खातिर कुर्बान होकर झूठ बोल रही हो, असल में अपनी पोजीशन मजबूत की । मैटकाफ रोड की अपनी कल की विजिट की बाबत जो कुछ तुमने अभी मुझे बताया है, वो अगर मदान को पता लग जाए तो उसे अपने बचाव के लिए तुम्हारी गवाही की जरूरत ही नहीं रह जाएगी ।”

“तुम्हारा मतलब है कि मैं फंस जाऊं तो वो खुश होगा ?”
“बहुत ज्यादा ।”
“वो मेरा दीवाना है ।”
“अपनी जिंदगी का भी तो दीवाना होगा । जब जिंदगी ही न रही तो ऐसी दीवानगी किस काम की ! जान है तो जहान है, मेमसाहब ।”
“तुम ठीक कह रहे हो । ..तुम.. .तुम उसे कह तो नहीं दोगे कुछ ?”
“हरगिज नहीं ।”
“शुक्रिया ।”
“जुबानी ?”
“ज्यादा खाने से बद्हजमी हो जाती है ।”
“चलो, मान ली तुम्हारी बात । तुम भी क्या याद करोगी कि किसी संतोषी जीव से पाला पड़ा था । अब ये बताओ कि शशिकांत की कोठी से रुखसत होने के बाद तुमने क्या किया था ?”

“मैंने पिस्तौल से पीछा छुड़ाया था ।”
“कहां ? कैसे ?”
“पहले मैं बस अड्डे वाले जमना के नए पुल पर गई थी लेकिन उस दर बहुत आवाजाही थी । जमना के पुराने पुल का रुख किया तो पाया कि वहां तो उससे भी ज्यादा रश था । आखिर में मैं वजीराबाद के पुल पर पहुंची थी जो कि काफी हद तक सुनसान था । वहां मैंने पिस्तौल को जमना में फेंका था और वापस लौट आई थी ।”
“कहां ?”
“फ्लैगस्टाफ रोड वहां मेरी बहन सुधा माथुर रहती है । यहां से मैं यही कह कर गई थी कि मैं बहन से मिलने जा रही थी । वहां मेरी हाजिरी जरूरी थी । वहां से मैंने मालूम करना था कि मेरे पीछे मेरे पति ने वहां फोन तो नहीं किया था, जैसे कि वो अक्सर करता था । ऐसा फोन आया होने पर मैं कहती कि मैं सुधा के साथ बाजार गई थी और पूछे जाने पर वो भी यही कहती ।”

“फोन आया था ?”
“नहीं । जो कि मेरे लिये सहूलियत की बात थी । मैंने सुधा को समझा दिया था कि पूछे जाने पर वो यही कहे कि मैं शाम से वहीं थी ।”
“मदान, सुधा की बात पर एतबार करता है ?”
“अभी तक तो करता है । इसका सबूत ये है कि सुधा के यहां जाने से उसने मुझे कभी नहीं रोका । और कहीं मैं अकेले जाने की कहूं तो जरूर हुज्जत करता है और अमूमन नहीं जाने देता ।”
“लेकिन सुधा के यहां जाने के बहाने, या वहां जाकर, तुम कहीं भी जा सकती हो !”

उसने बड़ी अनमने भाव से सहमति में गर्दन हिलाई ।
“तुम्हारी बहन की आवाज तुम्हारे से मिलती है । सिर्फ अंदाजेबयां का फर्क है । खास जरूरत आन पड़ने पर वो तुम्हारे अंदाज में बोलकर मदान को यकीन दिला सकती है वो तुमसे ही बात कर रहा है । ठीक ?”
उसने आंखें तरेरकर मेरी तरफ देखा ।
“अपनी बहन के सदके मदान को धोखा देने का तुम्हारा ये सिलसिला आम चलता होगा ।”
“इसमें धोखे की कौन-सी बात है ?”
“जिस बात को छुपाने की जरूरत हो वो धोखे की ही होती है । नंबर दो सृष्टि में कोई उम्रदराज खाविंद पैदा नहीं हुआ जो अपनी नौजवान बीवी पर शक न करता हो । नंबर तीन, सृष्टि में कोई ऐसी नौजवान बीवी पैदा नहीं हुई जो अपने उम्रदराज खाविंद को धोखा न देती हो ।”

“ओह शटअप !”
“आपस की बात है, स्वीटहार्ट, कोई नुक्स नहीं निकाल रहा मैं तुम्हारे में । जहां तक मेरा सवाल है, मुझे तो हरजाई किस्म की औरतें खास पसंद आती हैं ।”
“क्यों ? दूसरी किस्म की औरतें नहीं पसंद आती ?”
“इसके अलावा कोई दूसरी किस्म भी होती है औरतों की ?”
“फिर लगे बहकने ।”
“खैर ! बात ये हो रही थी कि बहन के सदके मौज-मेले का तुम्हारा सिलसिला आम चलता होगा ।”
उसने उत्तर न दिया ।
“और तुम्हारे सदके बहन का सिलसिला ?”
“आई सैड, शटअप ।”
“वैसे कौन है वो खुशनसीब ? कौन है वो मुकद्दर का सिकंदर जिसे बहन के सदके मदान की खीर में चम्मच मारने का मौका देती हो ?”

“अभी तुम क्या करके हटे हो ?”
“मेरा मतलब है स्टेडी कौन है ? मैं तो कैजुअल लेबर हुआ न ! तुम्हारी खिदमत बजा लाने की पक्की नौकरी किसकी लगी हुई है ?”
“ऐसा कोई नहीं है ।”
“यानी कि बताना नहीं चाहतीं ?”
“अरे, कहा न, ऐसा कोई नहीं है ।”
“ओ के । वो किस्सा फिर कभी सही । अब तुम ये बताओ कि जब तुम फ्लैग-स्टाफ रोड पहुंची थी तो तुम्हारी बहन घर पर थी ?”
“नहीं । लेकिन वो मेरे सामने ही वहां पहुंच गई थी ।”
“कहां से ?”
“जहां कहीं भी वो गई थी । न मैंने उससे इस बाबत सवाल किया था और न उसने खुद बताया था । हां, इतना उसने जरूर कहा था कि एकाएक ही उसे बहुत जरूरी काम पड़ गया था, जिसकी वजह से वो थोड़ी देर के लिए करीब ही कहीं गई थी ।”

“बहन के पास कितनी देर ठहरी तुम ?”
“यही कोई पंद्रह-बीस मिनट ।”
“और कहां गई थीं ?”
“कहीं भी नहीं ? वहां से उठी तो सीधे यहां आई थी ।”
“कब पहुंची यहां ?”
“मुझे टाइम का कोई अंदाजा नहीं ।”
“मदान कहता है तुम साढ़े नौ बजे लौटी थीं ।”
“उसने घड़ी देखी होगी ।”
“पुनीत खेतान से वाकिफ हो ?”
“वो मदान का लीगल एडवाइजर है, फाइनांशल एडवाइजर भी है । टैक्स भरने के लिए आडिट-वाडिट का काम भी वही देखता है ।”
“यानी कि वाकिफ हो ।”
“हां । वो यहां आता रहता है ।”
“क्योंकि मदान उसका क्लायंट है ?”

“हां ।”
“बस इसी वजह से तुम्हारी उससे वाकफियत है ?”
“और क्या वजह होगी ?”
“तुम बताओ ।”
“और कोई वजह नहीं ।”
“यानी कि मदान से शादी के बाद ही तुम्हारी पुनीत खेतान से वाकफियत हुई ?”
“जाहिर है ।”
“फिर तो” मैं बड़े सहज स्वर में बोला, “जरूर वो लड़की तुम्हारी हमनाम और हमशक्ल होगी जो इसी पुनीत खेतान के ऑफिस में टाइपिस्ट हुआ करती थी ।”
वो सकपकाई ।
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07-22-2021, 01:23 PM,
#46
RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“कोई बड़ी बात नहीं ।” मैं बोला, “हो जाते हैं ऐसे इत्तफाक । आखिर मैं भी तो हूं शशिकांत का हमशक्ल । अलबत्ता हमनाम नहीं हूं ।”

“मिस्टर, ये तुम क्या....”
“अब एक लाख रुपए का सवाल । सोच के जवाब देना । हो सके तो सच्चा जवाब देना । न हो सके तो भी चलेगा । पहले की तरह ।”
“प..पहले की तरह ?”
“हां झूठ बोलने का तुम्हें पूरा अख्तियार है ।”
“मैं भला खामखाह क्यों झूठ बोलूंगी ?”
“हां । ये भी एक गहरी रिसर्च का मुद्दा है ।”
“क्या पूछना चाहते हो ?”
“लाख रुपए का सवाल ।”
“वो तो हुआ लेकिन सवाल क्या है ?”
“इंश्योरेंस की जानकारी तुम्हें कैसे है ?”
“क्या मतलब ?”
“मैं शशिकांत के पचास लाख रुपए के जीवन बीमे की बात कर रहा हूं । उस बीमे की बाबत मदान से मेरी बात हुई थी । उसने कहा था कि उस बीमे के बारे में उसके, शशिकांत के, बीमा कंपनी के और उसके वकील पुनीत खेतान के अलावा और कोई नहीं जानता था । तुम्हारे बारे में मैंने मदान से खास तौर से सवाल किया था । जवाब मिला था कि तुम्हें इंश्योरेंस की कोई वाक्फियत नहीं थी । अब वोलो कैसे है तुम्हें इंश्योरेंस की जानकारी ?”

उसने उत्तर न दिया । वो निगाहें चुराने लगी ।
“जवाब जल्दी दो” मैं चेतावनी भरे स्वर में बोला “वरना गब्बर आ जाएगा ।”
“क..कौन ?”
“तुम्हारा हसबैंड । मदान ।”
तभी कॉलबैल बजी ।
“लो !” मैं असहाय भाव से कंधे झटकाता हुआ बोला, “शैतान को याद करो, शैतान हाजिर ।”
वो उठकर दरवाजे के पास पहुंची । वहां पहले उसने दरवाजे का झरोखा खोलकर बाहर झांका और फिर दरवाजा खोल दिया । आगंतुक पुनीत खेतान था । मैं फैसला न कर सका कि फ्लैट में उसका कदम पहले पड़ा था या मधु की नंगी कमर में उसका हाथ पहले पड़ा या उसके मुंह से ‘हल्लो माई लव’ पहले निकला । वो यकीनन अभी उसे आलिंगनबद्ध भी करता लेकिन मधु उससे छिटककर परे हट गई और अपनी तरफ से बड़े गोपनीय ढंग से मेरी तरफ इशारा करने लगी ।

खेतान सकपकाया, उसकी निगाह मेरी तरफ उठी ।
“ओह, हल्लो !” फिर वह जबरन मुस्कुराता हुआ बोला ।
“हल्लो !” मैं उठता हुआ बोला, “बड़ी जल्दी दोबारा मुलाकात हो गई, खेतान साहब ।”
साफ जाहिर हो रहा था कि वो मधु के वहां अकेले होने की अपेक्षा कर रहा था । मदान को वो जरूर कहीं पीछे ऐसी जगह छोड़ के आया था जहां से उसके जल्दी न लौट पाने की उसे गारंटी थी मसलन - मौकाएवारदात या पुलिस स्टेशन या ऐसी ही किसी और जगह - और वो बाखूबी जानता था कि मदान की गैर हाजिरी में वहां और कोई नहीं होता था ।

“तुम यहां कैसे ?” वो बोला ।
“वैसे ही “ मैं बोला “जैसे आप ।”
“क...क्या ?”
“अपने क्लायंट से मिलने आया था । आप भी अपने क्लायंट से ही मिलने आए होंगे ?”
“क्या ! ओह, हां । हां । आई मीन, जाहिर है ।”
“जी हां ।” मैने एक नकली जम्हाई ली, “बिल्कुल जाहिर है । बहरहाल, आप बैठकर मदान साहब का इन्तजार कीजिए । बंदा चला ।”
“बैठो, मैं भी चलता हूं ।”
“नहीं, नहीं । आप तो अभी पहुंचे हैं । मैं बहुत देर का आया हुआ हूं । और फिर मेरी खातिर तो हो भी चुकी है । मैं फिर आऊंगा ।”

उसका सिर स्वयंमेव ही सहमति में हिला ।
“और मधु जी” मैं मधु की तरफ घूमकर इन्तेहाई मीठे स्वर में बोला ।, “जो लाख रुपए का सवाल अभी मैं आपसे पूछ रहा था, उसके जवाब पर बरायमेहरबानी, अब सिर न धुनिएगा । मुझे अपने सवाल का उत्तर मिल गया है ।”
और फिर मधु के कुछ बोल पाने से पहले ही मैं वहां से कूच कर गया ।
***
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07-22-2021, 01:23 PM,
#47
RE: Desi Chudai Kahani मकसद
लॉबी से मैंने मंदिर मार्ग फोन किया ।
सुजाता मेहरा होस्टल में मौजूद थी । मालूम हुआ कि बस वो वहां पहुंची ही थी । मैंने उससे दरखास्त की कि वो वहीं रहे, मैं तुरंत मंदिर के लिये रवाना हो रहा था ।

होटल से निकलकर मैं मंदिर मार्ग के लिए एक ऑटो में सवार हो गया ।
अपनी कार मुझे सुबह से ही याद आ रही थी लेकिन उसे लाने के लिए ग्रेटर कैलाश जा पाने लायक फुरसत मुझे सुबह से ही नहीं लगी थी । दूसरी बात सुबह से कोई पेट पूजा कर पाने की भी फुर्सत नहीं लगी थी । दूसरी बात ने मुझे रास्ते में गोल मार्केट रुकने के लिए प्रेरित किया जहां से कि मैंने कुछ कबाब और टिक्के खरीदे ।
मैं मंदिर मार्ग सुजाता मेहरा के होस्टल के कमरे में पहुंचा ।
“नान वेज खाती हो ?” जाते ही मैंने पहला सवाल किया ।

“हां ।” वो तनिक हड़बड़ाकर बोली, “क्यों ?”
“लाया हूं । सुबह से कुछ खाना नसीब नहीं हुआ । तुम खाओगी न ?”
“वाह ! नेकी और पूछ-पूछ । मेरे अपने पेट में चूहे कूद रहे हैं ।”
मैंने पैकेट उस थमा दिया । उसने कहीं से एक बड़ी प्लेट बरामद की और उसमें कबाब सजा दिए । उसने प्लेट मेज पर रख दी और फिर दोपहर की तरह एन आमने-सामने वो पलंग पर, मैं कुर्सी पर-बैठ गए ।
“क्या हुआ मैटकाफ रोड पर ?” मैंने पूछा ।
“सब ठीक-ठीक हुआ ।” वो बड़े इत्मीनान से बोली, “मैंने वहां जाकर वही कुछ किया जो कुछ तुमने मुझे करने को कहा था । मैने शोर मचाया, लोग इकट्ठे हो गए, फिर एक पड़ोसी ने ही पुलिस को फोन किया । सुधीर, पुलिस ने मेरे ऊपर जरा भी शक नहीं किया ।”

“बढिया । पुलिस के अलावा और कौन था वहां ?”
“पहले मरने वाले का भाई लेखराज मदान वहां आया था, फिर चार बजे के करीब वो वकील पुनीत खेतान वहां आया था । बस और तो कोई नहीं आया था वहां ।”
“तुम कब आई वहां से ?”
“बताया तो था फोन पर ! तुम्हारा फोन आने के वक्त बस पहुंची ही थी यहां ।”
“खेतान कब तक ठहरा था वहां ?”
“तभी तक जब तक मैं ठहरी थी । हम दोनों इकट्ठे ही वहां से रुखसत हुए थे उसने तो मंडी हाउस तक मुझे अपनी गाड़ी में लिफ्ट भी दी थी । एकदम नई टयोटा कार है उसके पास । मजा आ गया ड्राइव का ।”

“वो तो आना ही था । तब मदान अभी वहीं था ?”
“न सिर्फ था, अभी काफी देर तक वहीं रहने वाला भी था ।”
“वो किसलिए ?”
“पुलिस उससे और पूछताछ करना चाहती थी । फिर पोस्टमार्टम की भी कोई बात थी ।”
यानी कि मेरा अंदाजा गलत नहीं था । मदान को फ्लैग स्टाफ रोड पर लंबा फंसा पाकर ही वो बीवी का यार लपकता-झपकता बाराखम्बा पहुंचा था ।
“कल रात की कोई और बात याद आई तुम्हें ?” मैंने पूछा ।
“हां ।” वो तत्काल बोली, “याद आई तो है एक बात ।”
“क्या ?”
“कल शाम चार बजे मुझे शशिकान्त की एक फोन कॉल सुनने का इत्तफाक हुआ था ।”

“अच्छा !”
“हां । वो उस वक्त अपनी स्टडी में था और मैं पिछले बैडरूम में थी । वहां कोठी में एक ही टेलीफोन कनेक्शन है जिसके तीन चार जगह पैरेलल फोन हैं । मैंने एक सहेली को फोन करने के लिए फोन उठाया था तो पाया था कि फोन पर पहले ही बातचीत हो रही थी । यूं बातचीत बीच में सुनने की मेरी कोई नीयत नहीं थी, मैंने तो यूं ही थोड़ी देर रिसीवर कान से लगे रखा था और यूं .....”
“आई अंडरस्टैंड । हो जाता है ऐसा । मेरे साथ भी कई बार हुआ है । क्या सुना तुमने ?”

“फोन पर शशिकांत किसी माथुर नाम के आदमी से बात कर रहा था । दोनों में किसी बात पर तकरार हो रही थी । दूसरी ओर से बोलने वाला माथुर नाम का वो आदमी बहुत भड़क रहा था । आपे से बाहर हुआ जा रहा था । शशिकांत फोन पर उसे शान्ति बरतने को कह रहा था और उसे राय दे रहा था कि फोन पर गरजने बरसने की जगह वो शाम साढ़े आठ बजे उसके घर पर आकर उससे बात करे । जवाब में उसने गरजकर कहा था कि अगर उसे उसके घर आना पड़ा तो वो उससे बात करने नहीं, उसे शूट करने आएगा ।”

“ऐन यही कहा था उसने ?”
“शब्द जुदा रहे हो सकते हैं लेकिन कहा यही था उसने ।”
“माथुर नाम ठीक से सुना था ?”
“हां । साफ सुना था ।”
“सिर्फ माथुर पूरा नाम नहीं ?”
“न ।”
“वो फोन शशिकान्त ने किया था या उसे आया था ?”
“मालूम नहीं ।”
“फोन आए तो घंटी बजती है । सारे पैरेलल टेलीफोनों पर ।”
“बैडरूम के फोन की नहीं बजती । वहां के फोन में घंटी को आन ऑफ करने का बटन है जो कि दिन में ऑफ रहता है ।”
“था कौन वो माथुर ?”
मुझे क्या पता ?”

“शशिकांत को तो पता होगा ?”
“जाहिर है । लेकिन मैं उससे पूछ थोड़े ही सकती थी ! पूछती तो उसे पता न लग जाता कि मैं कॉल बीच में सुन रही थी ! और फिर मैंने क्या लेना देना था किसी माथुर से या शशिकांत से उसके झगड़े से ?”
“ये महज इतफाक था कि कल शशिकांत के साथ झगड़े फसाद ज्यादा हो रहे थे या वो था ही ऐसा आदमी ?”
“क्या मतलब ?”
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07-22-2021, 01:23 PM,
#48
RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“देखो न, कल तीन-चार घंटे के वक्फे में ही पहले वो फोन पर माथुर नाम के उस आदमी से झगड़ा, फिर उसकी अपने वकील से तकरार हुई, फिर तुम्हारे से जुबानी जंग छिड़ी ।”

“अब मैं क्या कहूं ! बाज वक्त आदमी का मूड ही कुछ ऐसा होता है ।”
“तुमने ये माथुर वाले टेलीफोन वार्तालाप की बाबत पुलिस को बताया था ?”
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“तब मुझे ध्यान ही नहीं आया था इस बात का ।”
“कत्ल साढ़े आठ बजे हुआ था ।” मैं अर्थपूर्ण स्वर में बोला - “मैंने भी बताया था और मैटकाफ रोड से भी खबर लगी होगी तुम्हें ।”
“फिर तो उसी ने किया होगा कत्ल ।” वो तनिक उत्तेजित स्वर में बोली ।
“किसने ?”
“माथुर नाम के उस शख्स ने जिसने चार बजे शशिकांत को फोन किया था...”

“या जिसे शशिकांत ने फोन किया था ।”
“.....जिससे शशिकांत ने फोन पर साढ़े आठ बजे की अप्वाइंटमेंट फिक्स की थी और जो फोन पर ही उसे शूट कर देने की धमकी दे रहा था ।”
“अगर वो अपनी धमकी पर खरा उतरने का ख्वाहिशमंद होता तो बाईस कैलीबर की कोई खिलौना-सी रिवॉल्वर साथ न लिए होता ।”
“शॉर्ट नोटिस पर उसे वही रिवॉल्वर उपलब्ध होगी ।”
“एकाएक बड़ी सयानी बातें करने लगी हो !”
“क्या गलत बात कही मैंने ?”
“कोई नहीं । डिसूजा से तुम्हारी बात हुई ?”
“नहीं ।”
“पुलिस को उसकी खबर लग गई ?”
“पुलिस को ?”

“हां । आखिर वो भी तो कत्ल के इस ड्रामे का अहम किरदार है ।”
“ओह !”
“पुनीत खेतान ने उसका जिक्र पुलिस से किया था ?”
“मालूम नहीं । किया था तो मेरे सामने नहीं किया था ।”
“और तुमने ?”
“मैंने नहीं किया था । खामखाह क्यों मुंह फाड़ती मैं ? मेरे से इस बाबत कुछ पूछा जाता तो मैं कह देती ।”
“अब तुम क्या करोगी ?”
“मैं क्या करूंगी क्या मतलब ?”
“भई, तुम्हारा एम्पलायर, तुम्हारा प्रास्पेक्टिव गॉडफादर तो मर गया ।”
“वो !” वो लापरवाही से बोली, “उसका क्या है, कोई और मिल जाएगा ।”

“ये भी ठीक है । यानी कि इस फ्रन्ट पर कोई प्रॉब्लम नहीं !
उसने बड़े आत्मविश्वास के साथ इन्कार में सिर हिलाया ।
उस घड़ी मुझे अपना एक बड़ा पसंदीदा चुटकला याद आया जो था तो चुटकला लेकिन उस घड़ी की हकीकत को बड़ी खूबी से चरितार्थ कर रहा था । सात-आठ साल की एक लड़की ने अपनी मां से पूछा कि खसम क्या होता था । मां ने बेटी को समझाया, कि बेटी जब तू बड़ी होगी; अच्छी लड़की बनेगी, तो तुझे एक मिल जाएगा । ‘अगर मैं अच्छी लड़की न बनी’, बेटी ने पूछा । तो कई मिल जायेंगे । मां का जवाब था ।

वाकई दिल्ली शहर में बिगड़ी हुई, खूबसूरत, नौजवान लड़की के लिए इस फ्रन्ट पर कोई प्रॉब्लम नहीं थी ।
फिर उससे फिर मिलने का वादा करके मैं वहां से रुखसत हुआ ।
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07-22-2021, 01:23 PM,
#49
RE: Desi Chudai Kahani मकसद
Chapter 5

होस्टल के पी सी ओ से मैंने फ्लैग स्टाफ रोड फोन किया और अपना नाम बताकर कृष्ण बिहारी माथुर से बात करने की इच्छा व्यक्त की । मेरे नाम ने इस बार जादुई असर दिखाया ! किसी ने मुझे टरकाने की कोशिश न की और न ही गैरजरूरी सवाल पूछे । मुझे बड़े अदब से बताया गया कि तबीयत ठीक न होने की वजह से साहब जल्दी सोने चले गए थे ।
मैंने मनोज माथुर का नाम लिया ।
मालूम हुआ कि छोटे मालिक घर पर नहीं थे ।
आखिर में मैंने सुधा माथुर से बात करनी चाही तो मुझे एक और नंबर बता दिया गया ।

मैंने वो नया नंबर डायल किया तो सुधा माथुर से मेरी बात हुई ।
“सुधा जी ।” अपना परिचय देने के बाद मैं बोला, “मैं दरअसल मनोज से बात करना चाहता था । आप बता सकती हैं कि वो इस वक्त कहां मिल सकता है ?”
“किसी डिस्को में होगा ।” जवाब मिला, “शाम को तकरीबन ऐसी ही जगहों पर जाता है वो ।”
“डिस्को तो शहर में कई हैं । सबका चक्कर लगाने में तो रात बीत जाएगी ।”
“शुरूआत अब्बा से कर के देखो । उसके वहां होने के ज्यादा चांसेज हैं । अब्बा डिफेंस कालीनी में...”
“मुझे मालूम है कहां है । घर कब लौटता है वो ?”

“आधी रात के बाद । कभीर कभार तो सुबह चार बजे । यहां आके उसका इंतजार करना बेकार होगा ।”
“ओह !”
“बात क्या है ? क्यों मिलना चाहते हो उससे ?”
“कोई खास वजह नहीं । यूं ही मालूमात की खातिर । तकलीफ माफ सुधा जी । गुड़ नाइट ।”
मैंने एक ऑटो पकड़ा और डिफेंस कालोनी के लिए रवाना हो गया ।
मैं पहुंचा पडारा रोड ।
मंदिर मार्ग से रवाना मैं डिफेंस कालोनी जाने के लिए हुआ था लेकिन इण्डिया गेट के राउंड अबाउट पर पहुंचने पर ही मेरा इरादा डिसूजा के घर झांकने का बना था ।

वो अपने घर पर मौजूद था ।
मैंनै भाड़ा चुकाकर ऑटो को विदा कर दिया ।
डिसूजा कोई तीस-बत्तीस साल का विलायती पाप सिंगरों जैसे रख-रखाव वाला नौजवान था, जो एक कान में बाली पहनता था और माइकल जैक्सन की तरह अपने झबेदार बालों में से एक कुंडल अपने माथे पर लटका के रखता था । मुझे उसकी आंखों में काजल और होंठों पर लिपस्टिक की हल्की-सी परत तक दिखाई दी । अपनी दोनों नंगी बांहों पर उसने छत्तीस तरह के गोदने गुदवाए हुए थे ।
मैंने उसे अपना परिचय दिया ।
उसने खामोशी से मेरे से हाथ मिलाया और एक फोल्डिंग चेयर खोलकर उस पर मुझे बिठाया ।

“कहां गायब रहे सारा दिन ?” मैंने बड़े आत्मीयतापूर्ण स्वर में पूछा, “सुजाता भी तुम्हारी फिक्र कर रही थी ।”
“लाकअप में बंद था ।” वो बोला, “अभी छूटा एक घंटा पहले ।”
“लाकअप में ।” मैं हैरानी से बोला, “कहां ?”
“तिलक मार्ग पुलिस स्टेशन ।”
“क्या किया था ?”
“पी के गाड़ी चलाता था । ड्रंकन ड्राइविंग । बलडी होल नाइट लाकअप में कटा । आज भी पैसा देकर छूटा । बहुत डिफीकल्टी हुआ ।”
“कितनी पी ली थी ?”
“वन बाटल । देट्स आल । ज्यास्ती नहीं ।”
“पकडे क्यों गए ?”
“ट्रैफिक पोलीस वाला पकड़ा । बोला गाड़ी ठीक नहीं चलाता । एक्सीडेंट करना मागता ।”

“ट्रैफिक पुलिस वाले तो चालान करके छोड़ देते हैं ।”
“नशे में मैं कुछ लफड़ा किया ।”
“ओह ! तुम्हें मालूम है शशिकांत का कत्ल हो गया है ?”
उसके चेहरे पर हैरानी के बड़े जेनुइन भाव आए ।
“कब !” - उसके मुंह से निकला ।
“कल रात को । कोई साढ़े आठ बजे ।”
“कौन किया ?”
“अभी पता नहीं चला । पुलिस की तफ्तीश जारी है । मेरी असाइनमेंट भी कातिल का पता लगाने की ही है ।”
“ओह !”
“पुलिस को ये खबर लगे बिना नहीं रहने वाली कि कल शाम तुम भी शशिकांत की कोठी पर गए थे । उनका बुलावा भी बस आता ही होगा तुम्हें । इसलिए बेहतर यही होगा कि अपने बयान का मेरे साथ रिहर्सल कर लो ।”

“बयान !”
“जो तुम्हें पुलिस को देना होगा ।”
“ओह !”
“तुम्हारी सुजाता से सात बजे की अपोइंटमेंट थी, लेट कैसे हो गए थे ?”
“कार की वजह से ।”
“क्या मतलब ?”
“मेरे पास मोटरसाइकल है । कल मैं एक फ्रेंड का कार उधारी मांगा । फ्रेंड शाम को कार तो दिया - प्रॉमिस था - पर उसमें पैट्रोल कम था । पंप पर पेट्रोल डलवाने में बीस मिनट वेस्ट द्रुआ । क्लोजिंग का टाइम था । कुछ रश था । पैट्रोल ही लेट किया मेरे को । सात बजे उधर मैटकाफ रोड़ पहुंचने का था बट शाम सात बजे से पंदरह मिनट ज्यास्ती पर पहुंचा । मैं उधर उसकी कोठी के कम्पाउंड में क्या घुस गया, ब्लडी वास्टर्ड मेरा फुल इनसल्ट करके रख दिया । मैं ब्लडी कोठी में तो कदम भी न रखा । बोला, कम्पाउंड भी काहे एंट्री किया । बहुत इन्सल्ट हुआ मेरा । वो तो मिस्टर खेतान मेरे को बोला कि सुजाता उधर से चली गई थी और मेरे को उसे बाहर रोड पर कहीं देखने का था ।”

“तुम खेतान को, पुनीत खेतान को जानते हो ?”
“यस ।”
“कैसे ?”
“मैन, वो शशिकांत का लीगल एडवाइजर है । जब नाईट क्लब ओपन था तो वो उधर राजेंद्र प्लेस में आता था । सैवरल टाइम्स ।”
“फिर आगे क्या हुआ ?”
“मैं उधर कोठी से बाहर निकलकर रोड पर आया । मैं रोड पर देखा, बस स्टैंड पर देखा, रोड के दोनों कॉर्नर तक देखा बट, यू सी, सुजाता उधर किधर भी मेरे को नहीं मिली । या मेरे को दिखाई नहीं दी ।”
“उसे मालूम था तुम आने वाले हो । वो तो सात बजे ही कोठी से बाहर निकल आई थी । अगर वो तुम्हारी ही राह तकती वहां मौजूद थी तो उसे तो तुम आते दिखाई देने चाहिए थे ?”
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07-22-2021, 01:23 PM,
#50
RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“मैं भी ऐसा सोचा । मेरे को ऐसा फीलिंग है कि वो मेरे को कार पर एक्सपेक्ट नहीं करती थी । उसको मेरी मोटर बाइक मालूम । शी मस्ट बी आन दि लुक आउट फार ए मोटर बाइक । मैं उधर कार में गया । सो, कन्फ्यूजन ।”
“हो सकता है । सुजाता तुम्हें मैटकाफ रोड पर न मिली तो फिर तुमने क्या किया ?”
“मेरे को ब्लडी बहुत एजिटेशन हुआ । ब्लडी खुद बुलाया मेरे को और वेट नहीं किया ।”
“तुम टाइम पर जो नहीं आए थे ।”
“ओनली फिफटीन मिनट्स लेट था मैं ।”
“ऊपर से शशिकांत से उसका तीखा झगड़ा हो गया था । वैसा कुछ न हुआ होता तो तुम और भी लेट आते तो वो वहीं होती । झगड़े की वजह से ही गुस्से से आग-बबूला होकर वो एकाएक वहां से चली गई थी ।”

“आई अंडरस्टैंड नाओ । बट ऐट दैट टाइम आई वाज वैरी अपसेट ।”
“फिर जब वो मैटकाफ रोड पर न मिली तो तुमने क्या किया ?”
“मै सोचा कि उधर से वो किधर जाएगी तो अपना होस्टल में जाएगी । मैं मंदिर मार्ग पहुंचा । वो उधर पहुंची ही नहीं थी ।”
“तो ?”
“मैन, आई वाज गेटिंग मैड ।”
“वाई ?”
“आई वाज स्टुड अप ।”
“तुमने ऐसा सोचा कि शायद वो जानबूझकर तुम्हें अवायड कर रही थी, वो तुम्हारे साथ डेट फिक्स कर बैठी थी और फिर ऐन मौके पर तुम्हारे साथ शाम बिताने का उसका इरादा बदल गया था ?”

“एग्जेक्टली । यू सैड इट, मैन । मैं ऐग्जेक्टली ये ही सोचा । तब मेरे को लगा कि वो उधर कोठी में ही थी और उसी के बोलने पर शशि मेरे को उलटा-सीधा बोलकर उधर से भगाया और वो खेतान मेरे को बोला कि वो बाहर रोड पर कहीं होगी ।”
“फिर ?”
“फिर मैं कार में ही बैठकर व्हिस्की का बाटल खोला और दो-तीन ड्रिंक लिया । फिर मैं बैक मैटकाफ रोड गया ।”
“क्यों ?”
“मेरे को कनफर्म होना मांगता था कि सुजाता उधर थी या नहीं । मैन आई वांटिड टु क्रियेट ए सीन देयर । मैं उधर जबरदस्ती घुसना मांगता था और सुजाता को उधर देखना मांगता था ।”

“किया ऐसा तुमने ? घुसे तुम जबरन भीतर ?”
उसने इंकार में सिर हिलाया ।
“क्यों ?”
“मेरे से पहले उधर अपनी फेमस लाल मारुति पर पिंकी माथुर पहुंच गई ।”
“फेमस लाल मारुति ?”
“यस, मैन । ब्लडी जितने का कार, उससे ज्यादा का असेसरी । ऐवरीबॉडी नोज ।”
“तुम पिंकी माथुर को जानते हो ?”
“मैं पहचानता ।”
“कैसे ?”
“शशि का नाइट क्लब जब ओपन तो वो उधर रेगुलर आती । हर कोई पहचानता उसे । फेबुलस फैमिली बैकग्राउंड । रोटन हैबिट्स । बैग्ज ऑफ मनी टु स्पेंड । यु नो दि टाइप ।”
“यस ।”
“ऐवरी बॉडी इज आफ्टर सच चिक्स ।”

“आई नो । वो अपनी लाल मारुति पर वहां पहुंची । फिर ?”
“वो कार बाहर पार्क किया और कम्पाउंड में एंटर किया । फिर वो कोठी के मेन गेट पर पहुंची, डोर को ओपन किया और इनसाइड एंटर कर गया । मैं समझ गया कि सुजाता भीतर नहीं थी ।”
“वो कैसे ?”
“मैन, शशि एक छोकरी की प्रेजेंस में दूसरी छोकरी को नहीं बुलाना सकता ।”
“दूसरी छोकरी बिन-बुलाए आई हो सकती थी !”
“ऐसा होता तो वो बैल करती । आयरन गेट से नहीं तो इन साईड कोठी के मेन गेट से बैल करती । होस्ट दरवाजा खोलता, कम इन बोलता तो एंट्री लेती । पिंकी तो ऐसा कुछ नहीं किया ।”

ये महज इत्तफाक था कि पिंकी ने ऐसा कुछ नहीं किया था लेकिन जो कुछ डिसूजा ने देखा था, उसके मुताबिक उसने जो नतीजा निकाला था वो गलत नहीं था ।
“फिर ?” प्रत्यक्षत: मैं बोला ।
“फिर मै उधर से मूव कर गया” वो बोला, “और बैंगलो रोड पहुंचा जिधर मेरी एक और लेडी फ्रेंड होती । ब्लडी बैड लक कि वो भी नहीं मिली । फिर मैं ब्लडी व्हिस्की बाटल को ओपन किया और फुल बाटल कंज्यूम किया । बैक इधर आ रहा था तो तिलक मार्ग पर पुलिस पकड़ लिया । ड्रंकन ड्राइविंग में होल नाइट लाकअप में ब्लडी होल डे लाकअप में । पैसा दिया तो छूटा । वाट लक ! वाट लाउजी लक !”

“च.. .च ।” मैंने हमदर्दी जताई ।
“एंड नाओ मैन” उसने जोर से जम्हाई ली, “इफ यू डोंट माइंड ।”
“ओह नो । नाट ऐट आल ।आई एम थैंकफुल टू यू फॉर युअर कोआपरेशन ।”
“नैवर माइंड । मेक दि सीन सम अदर टाइम । यू आर मोस्ट वेलकम ।”
वो मुझे दरवाजे तक छोड़ने आया ।
“मैन ।” वहां एकाएक वह बोला, “युअर फेस...”
“क्या हुआ मेरे चेहरे को ?” मैं अपने मुंह पर हाथ फेरता हुआ बोला ।
“हुआ कुछ नहीं । बट... यू नो...एकदम शशि का माफिक लगता है । लाइक डबल-रोल ।”
“ओह !” मैं हंसा, “तो आखिरकार सूझ गया तुम्हें !”

“सूझा तो पहले भी बट...बोला अब ।”
“इत्तफाक की बात है ।” मैं बोला और उससे हाथ मिलाकर वहां से विदा हो गया ।
***
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