Desi Chudai Kahani मकसद
07-22-2021, 01:25 PM,
#61
RE: Desi Chudai Kahani मकसद
उसने कोई उत्तर न दिया ।
“सर, मैं ऐसे क्लायंट के लिए काम करना अफोर्ड नहीं कर सकता जो खुद ही नहीं चाहता कि मैं कामयाब होऊं ।”
“ऐसी बात नहीं है ।”
“तो फिर झूठ क्यों ? छुपाव क्यों ? पर्दादारी किस लिए ? जो बातें मैने कही, उन दोनों की हकीकत के सबूत हैं मेरे पास ।”
“क्या सबूत हैं ?”
“मैं अभी पेश करता हूं । पहले कौन-सी बात का सबूत चाहते हैं आप ?”
“पहले पहली बात की बाबत ही बोलो ।”
“जो मैं कहूंगा, वो अगर सच होगा तो आप हामी भरेंगें ?”
“जरूर ।”

“परसों शाम चार बजे आपने शशिकांत को उसकी कोठी पर फोन किया था ।”
“झूठ । हम कभी किसी ऐरे-गैरे को फोन नहीं करते ।”
“तो उसने आपको किया होगा ।”
वो फिर खामोश हो गया ।
“उस वार्तालाप का एक गवाह है ।” मैं बोला, “जिसने साफ शशिकांत को माथुर नाम लेते सुना था । वो माथुर या आप हो सकते हैं या आपके साहबजादे । कल मैंने ज्यादा दबाव देकर इस बाबत आपसे इसलिए नहीं पूछा था क्योंकि मैं पहले आपके साहबजादे से बात कर लेना चाहता था । आपके साहबजादे उस टेलीफोन कॉल से इन्कार करते हैं । चाहे तो बुलाकर खुद तसदीक कर लें ।”

“कोई जरूरत नहीं । वो माथुर हम ही थे जिनसे उस शख्स ने बात की थी । वो कई दिनों से हमसे बात करने को तड़प रहा था परसों उसकी कॉल आई थी तो हमने उस बेहूदगी को खत्म करने के लिए उससे बात करना गवारा कर लिया था ।”
“आई अंडरस्टेंड । बात क्या हुई ?”
“कुछ भी नहीं । वो घटिया आदमी फोन पर कुछ बताना ही नहीं चाहता था । वो तो बातचीत के लिए शाम साढ़े आठ बजे हमें अपनी कोठी पर आने को कह रहा था । यूं दबाव में आकर तो हम कभी किसी अमीर उमरा से मिलने नहीं गए । हम तो उसकी इस गुस्ताखी पर ही भड़क उठे थे कि वो हमें अपने यहां आने के लिए कह रहा था ।”

“नतीजतन आपने उससे कहा था कि अगर आपको उसके घर आना पड़ा तो आप उससे बात करने नहीं, उसे शूट करने आएंगें ।”
उसने हैरानी से मेरी तरफ देखा ।
“वो वार्तालाप किसी तीसरे शख्स ने सुना था । मैंने पहले ही अर्ज किया है ।”
“ओह ।”
“सर, आपको पहले मालूम नहीं था लेकिन क्या अभी भी नहीं मालूम कि शशिकांत आपसे क्या चाहता था ?”
“नहीं । अभी भी नहीं मालूम ।”
“जानना चाहते हैं ?”
“हां । जरूर ।”
“वो आपके सामने आपका दामाद होने का दावा पेश करना चाहता था ।”
“क्या !”
“और इस बिना पर आपको ब्लैकमेल करना चाहता था ।”

“क्या बकते हो ?”
“उसका कहना था कि उसने नेपाल में पिंकी से शादी की थी और उस शादी के सबूत के तौर पर उसके पास शादी की वीडियो फिल्म उपलब्ध थी ।”
“तुम्हें कैसे मालूम ?”
“सर, मेरी हर जानकारी पर सवालिया निशान न लगाइए । मालूमात से ही तो मेरा कारोबार चलता है ।”
“ऐसा नहीं हो सकता । हम पिंकी से बात करेंगे । हम अभी पिंकी से बात करेंगें ।”
“अब वो बातचीत बेमानी होगी ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि आपका दामाद होने का दावा करने वाला शख्स मर चुका है ।”
“लेकिन ....लेकिन...वो वीडियो फिल्म....”
“मेरे पास है ।”

“तु... तुम्हारे पास ?”
“जी हां ।”
“तुमने देखी वो फिल्म ?”
“जी हां ।”
“क्या वाकई उस आदमी ने.... पिंकी से.... शादी...”
“शादी तो दर्ज है उस कैसेट में लेकिन सर, पिंकी की हालात से साफ जाहिर होता था कि उसे तो खबर तक न थी कि उसके साथ क्या बीत रही थी । वो किसी तीखे नशे की गिरफ्त में मालूम होती थी और यंत्रचालित मानव की तरह उससे जो कहा जा रहा था, वो कर रही थी । कहने का मतलब ये है कि वो फिल्म धोखे से तैयार की गई थी आप पर दबाव बनाने के लिए ।”

“लेकिन जब तुम कहते हो कि साफ पता लग रहा था कि वो शादी फर्जी थी तो फिर दबाव कैसे बनता ? जब पिंकी को नशा कराके, उसे बेसुध करके वो सब कुछ .....”
“वही सब कुछ होता, सर, तो कोई बात नहीं थी लेकिन उस कैसेट में और भी कुछ था ।”
“और क्या था ?”
“और वही था जो शादी के बाद होता है । सुहागरात ।”
“ओह, माई गॉड ।”
“आप पर मेन प्रेशर पॉइंट तो वही साबित होता, सर ।”
“तुमने कहा कि वो कैसेट तुम्हारे पास है ?”
“जी हां ।”
“हमें दो ।”
“आप क्या करेंगें ?”

“हम खुद तसदीक करेंगे कि उस कैसेट में वो सब कुछ है जो कि तुम कह रहे हो कि है ।”
“बेटी की उरियानी देख सकेंगें ?”
वो खामोश हो गया । उसने जोर से थूक निगली ।
“वो...... वो कैसेट” कई क्षण बाद वो फंसे स्वर में बोला, “नष्ट होना चाहिए ।”
“हो जाएगा ।” मैं बोला ।
“हमें तसल्ली होनी चाहिए कि वो नष्ट हो गया है वरना हमें उम्र भर फिक्र लगी रहेगी कि किसी दिन कहीं तुम ही... तुम ही ....”
“कहीं मैं ही ब्लैकमेलिंग पर न उतर आऊं ? यही कहने जा रहे थे न आप ?”

उसने उत्तर न दिया ।
Reply
07-22-2021, 01:25 PM,
#62
RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“मेरा ऐसा इरादा होता तो मैं आइन्दा किसी दिन का इन्तजार क्यों करता ? आज के दिन में क्या खराबी है ?”
“हम शर्मिंदा हैं, बेटा लेकिन हम भी क्या करें ! हम सिर्फ कृष्ण बिहारी माथुर नहीं, एक बेटी के बाप भी हैं । औलाद कितनी ही नालायक क्यों न हो, उसकी फिक्र मां-बाप ने ही करनी होती है, उसके रास्ते के कांटे मां बाप ने ही बीनने होते हैं । अब पिंकी की मां तो है नहीं ....”
“आई अंडरस्टैंड, सर । वो कैसेट मैंने पिंकी को सौंप दिया है । इस वक्त अपने कमरे में बैठी वो उस कैसेट की फिल्म ही देख रही है । आप खुद ही कल्पना कर सकते हैं कि देख चुकने के बाद वो फिल्म की क्या गत बनाएगी ।”

“क्या गत बनाएगी ?”
“समझदार होगी तो फिल्म की राख तक का पता नहीं लगने देगी ।”
“होगी समझदार ?”
“क्यों नहीं होगी ? आखिर बेटी किस की है !”
उसने सहमति में सिर हिलाया । वो कुछ क्षण खामोश रहा और फिर बोला, “हम शर्मिंदा हैं कि हमने तुम्हारी नीयत पर, तुम्हारे कैरेक्टर पर शक किया ।”
“जाने दीजिए । मेरी नीयत बद है और कैरेक्टर खराब है ।”
“तुम मजाक कर रहे हो ।”
“यही समझ लीजिए ।”
“हम तुम्हारी फीस में कोई इजाफा......”
“फिर वो फीस नहीं, रिश्वत बन जाएगी ।”
“तुम हमारी समझ से बाहर हो ।”

“बात कुछ और हो रही थी । बात दूसरी बात की, शशिकांत से आपके मिलने जाने की, हो रही थी ।”
“दूसरी बात झूठ है ।” पलक झपकते ही वो फिर पहले वाला सर्वशक्तिमान माथुर बन गया, “हम उसके यहां कभी नहीं गए ।”
“लेकिन साढे आठ बजे की अपोइंटमेंट.....”
“वाट अपोइंटमेंट ?” वो झुंझलाया, “देयर वाज नो अपोइंटमेंट, मिस्टर कोहली । वो चाहता था हम उसके यहां जाएं । हम नहीं चाहते थे कि हम उसके यहां जाएं । हम ऐसे बिलो डिग्निटी आदमी की मेजबानी कबूल करते जिसकी हमें सूरत भी देखना गवारा नहीं था ?”
“तो आप नहीं गए थे ?”

“हमने ख्याल तक नहीं किया था जाने का ।”
“सच कह रहे हैं ?”
“वाट नानसेन्स !”
“आप एक बार झूठ बोल चुके हैं । कल आपने शशिकांत से वाकफियत होने से इन्कार किया था ।”
“क्या वाकफियत थी हमारी उस शख्स से? हमने कभी सूरत तक नहीं देखी उसकी ।”
“आपने नाम तक से नावाकफियत जाहिर की थी ।”
“हां, उस मामूली-सी गलतबयानी के खतावार हम हैं ।”
“लेकिन ये आप सच कह रहे हैं कि आप कल रात वहां नहीं गए थे ?”
“हां ।”
“चाहे तो जा सकते थे ? अकेले ?”
वो हिचकिचाया ।
“'मेरे को आपकी उस हैंडीकैपड पर्सन वाली होंडा अकॉर्ड की खबर है जिसके स्टीयरिंग के पीछे तक आपकी ये व्हील चेयर चढ़ जाती है और जिसके सारे कंट्रोल हाथों से आपरेट किए जाते हैं ।”

“कैसे जाना ?” वो मुंह बाए मुझे देखता हुआ बोला ।
“आई एम ए डिटेक्टिव । रिमेम्बर !”
“कैसे जाना ?”
“दैट इज बिसाइड दि पॉइंट , सर । कैसे भी जाना । जाना । पहले भी अर्ज किया है, फिर अर्ज करता हूं, सर कि मेरी हर जानकारी पर सवालिया निशान न लगाइए । बात सच नहीं है तो साफ कहिए ।”
“बात सच है और तुम्हारे सवाल का जवाब भी ये है कि हम चाहते तो बिना किसी की मदद के वहां जा सकते थे ।”
“आप गए थे ?”
“नहीं ।”
“मेरे पास सबूत है कि आप वहां गए थे ।”

“क्या सबूत है ?”
“आपकी व्हील चेयर के टायरों के निशान शशिकांत की कोठी के ड्राइव-वे में बने पाए गए हैं ।”
वो खामोश हो गया ।
“पुलिस ने तो” फिर वो बोला, “ऐसे निशानों का कोई जिक्र नहीं किया था ।”
“पुलिस की तवज्जो नहीं गयी होगी उन निशानों की तरफ ।”
“जब तुम्हारी गई थी तो उनकी तवज्जो....”
“न जाना कोई बड़ी बात नहीं । उन्हें केस की तफ्तीश की लाख रुपया फीस नहीं मिलती ।”
“वो निशान कहां पाए गए थे ?”
“बताया तो था । ड्राइव-वे पर ।”
“मेरा मतलब है कहां से कहां तक ?”

“पूरे ड्राइव-वे पर । बाउंड्री वाल में बने आयरन गेट से लेकर कोठी के प्रवेशद्वार तक । आगे भीतर पक्का फर्श था या कार्पेट था इसलिए वहां निशान नहीं बन पाए थे ।”
“आयरन गेट बंद नहीं रहता ?”
“नहीं । उसमें कोई नुक्स है । वो झूलकर अपने आप खुल जाता है और अमूमन खुला ही रहता है । भीतर से ताला ही लगाया जाए वो अपनी जगह पर टिकता है । और ताला सुना है कि रात में ही लगाया जाता है ।”
“और तुम कहते हो कि निशान हमारी व्हील चेयर से बने थे ।”
“क्या ऐसा नहीं है ?”

“बात को समझो । वो निशान व्हील चेयर के थे, कबूल । लेकिन वो हमारी ही व्हील चेयर के थे, ये कैसे कह सकते हो ?”
“क्योंकि व्हील चेयर इस्तेमाल करने वाले इस केस से ताल्लुक रखते वाहिद शख्स आप हैं ।”
उसने अट्टहास किया ।
मैंने सकपकाकर उसकी तरफ देखा ।
“मिस्टर” वो पूर्ववत हंसता हुआ बोला, “जैसे हम टांगों से लाचार हैं, वैसे ही तुम हमें दिमाग से भी लाचार तो नहीं समझ रहे हो ?”
“मैं कुछ समझा नहीं ।”
“फर्ज करो हम वहां गए । अपनी हैंडीकैपड पर्सन वाली होंडा अकार्ड खुद चलाते हुए हम वहां गए । अब वहां आयरन गेट या बंद रहा होगा या खुला रहा होगा । बंद वो तभी रह सकता है जबकि उसे ताला लगा होगा । ओ के ?”

“यस सर ।”
“अपनी आमद की तरफ उसकी तवज्जो दिलाने के लिए हम क्या करेंगे ?”
“आप घंटी बजाएंगें ।”
“वहां आयरन गेट पर घंटी भी है ?”
“जी हां । वहां भी और भीतर भी ।”
“हमें नहीं मालूम था । हम तो कार के हार्न की बाबत सोच रहे थे । बहरहाल चाहे होर्न बजा हो, चाहे घंटी बजी हो, वो कोठी से निकलकर आयरन गेट तक जरूर आएगा ।”
“जाहिर है । फाटक खुलेगा तो आप भीतर दाखिल होंगें ।”
“वो ही आएगा । क्योंकि अखबार में भी छपा है कि वो उस वक्त घर में अकेला था ।”

“जी हां ।”
“तो फिर हमने उसे आयरन गेट पर ही गोली क्यों नहीं मार दी ?”
“सड़क पर आवाजाही होगी ।”
“पागल हुए हो ! हम क्या मैटकाफ रोड को जानते नहीं । इस मौसम में उधर अंधेरा होने के बाद वहां सड़क पर बंदा नहीं दिखाई देता ।”
मैं खामोश रहा ।
“वैसे हमारे पास आवाजाही का भी जवाब है । वहां ऐसा कोई माहौल होता तो चलने-फिरने से लाचार होने की दुहाई देकर हम शशिकांत को कार में अपने साथ बिठाते, उसे कार में ही शूट करते और रात में किसी सुनसान जगह पर लाश को धकेल कर घर आ जाते । अब बोलो, मिस्टर डिटेक्टिव ?”

“गेट खुला होगा ।”
“उस सूरत में हम कार बाहर छोडकर अपनी कुर्सी लुढ़काते हुए अंदर तक क्यों जाते, व्हील चेयर पर लुढकते फिरने का क्या हमें शौक है? तब कार को ही कोठी के भीतर ऐन प्रवेश द्वार तक ले जाना आसान काम न होता ?”
“होता ।” मैंने कबूल किया ।
“और फिर सौ बातों की एक बात । फोन पर हम कह नहीं सकते थे कि हम अपाहिज थे, आ जा नहीं सकते थे, इसलिए मुलाकात के लिए वो आए ।”
“मुलाकात के लिए उसे यहां आने को कहा जा रुकता था लेकिन कत्ल के लिए तो जाना पड़ता है न, सर !”

“बाईस कैलिबर की खिलौना रिवॉल्वर साथ ले के, कुल जहान के फायर आर्म हमारे यहां उपलब्ध हैं । शूटिंग हमारी हॉबी है और कत्ल के लिए हम चुनते हैं एक मामूली, नाकाबिलेएतबार, जनाना हथियार । और उससे भी अपने मकसद में कामयाब होने के लिए हमें छः गोलियां चलानी पड़ी तो लानत है हमारी मार्क्समैनशिप पर ।”
“मैं आपसे सहमत हूं सर, लेकिन ये हकीकत फिर भी अपनी जगह पर कायम है कि मौकाएवारदात पर व्हील चेयर के पहियों के निशान थे ।”
“वो जरूर किसी ने हमें फसाने के लिए बनाए थे ।”
“किसने ?”
“जिस किसी ने भी हमारा और शशिकांत का टेलीफोन पर हुआ वार्तालाप सुना होगा । मसलन तम्हारे उस गवाह ने जिसने तुम्हें बताया है कि हमने फोन पर कहा था कि अगर हमें शशिकांत के घर जाना पड़ा तो हम उससे बात करने नहीं, उसे शूट करने जाएंगे । तुम्हारा वो गवाह क्या कोई औरत है ?”

“है तो औरत ही ।”
“तो फिर ये जरूर उसी की करतूत है । उसी ने घटनास्थल पर व्हील चेयर के निशान बनाकर हमें फंसाने की कोशिश की है । उसी ने ये स्थापित करने की कोशिश की है कि हम सच में ही शशिकांत को गोली मार देने के लिए उसकी कोठी पर पहुंच गए थे ।”
“आई सी ।”
“हमें वैसे भी पुलिस की इस थ्योरी पर एतबार है कि ये काम किसी औरत का है जिसने कि रिवॉल्वर का रुख मरने वाले की और किया और आखें बंद करके उसका घोड़ा खींचना शुरू कर दिया ।”
“यूं खौफ खाकर रिवॉल्वर चलाने वाली औरत से आप उम्मीद करते हैं कि कत्ल के बाद भी घटनास्थल पर व्हील चेयर के पहियों के निशान प्लांट करने के लिए ठहरी होगी वो । वो क्या गोलियां खत्म होते ही रिवॉल्वर फेंककर भाग न खड़ी हुई होगी ?”

“अब हम क्या कहें, भई ! डिटेक्टिव तुम हो, हम तो नहीं ।”
“आप को मालूम है कि कत्ल के संभावित वक्त पर मिसेज माथुर घर पर नहीं थी ?”
वो कुछ क्षण हिचकिचाया और फिर उसने सहमति में सिर हिलाया ।
“कैसे मालूम हुआ ? पुनीत खेतान के बयान के बाद पुलिस के मिसेज माथुर से पूछताछ करने आने से ?”
“नहीं । हमें तो परसों से मालूम था । तभी मालूम था जबकि वो कोठी से गई थी ।”
“तब आप जाग रहे थे ?”
“हां ।”
“आपने मिसेज माथुर का दिया सिडेटिव नहीं खाया था ?”
“खाया था । फिर भी जाग रहे थे । हमारे दिमाग पर फिक्र का बोझ हो तो सिडेटिव हमारे पर असर नहीं करता । परसों उस आदमी की फोन कॉल ने हम बहुत डिस्टर्ब किया था । सिडेटिव खाने के बावजूद हमें नींद नहीं आई थी ।”

“या शायद आपने सिडेटिव खाया ही नहीं था ।” मैं अपलक उसे देखता हुआ बोला, “इसलिए क्योंकि मिसेज माथुर के लिए आई फोन कॉल के बाद ही वो आपको सिडेटिव देने पहुंच गई थीं ।”
उसने उत्तर न दिया । वो परे देखने लगा ।
“खैर छोड़िये ।” मैं बोला, “तो परसों रात आपने मिसेज माथुर को यहां से निकलकर चुपचाप कहीं जाते देखा था ?”
“हां ।”
“लौटते भी देखा था ?”
“हां ।”
“आपने पूछा था कि वो कहां गई थी ?”
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि वो मेरी उम्मीद से बहुत जल्दी लौट आई थी । किसी फाश इरादे से वो घर से निकली होती तो इतनी जल्दी न लौटी होती ।”

“फौरन न सही, बाद में भी कुछ नहीं पूछा था आपने इस बाबत ? शक की बिना पर नहीं तो उत्सुकतावश ही सही ।”
“बाद में भी नहीं पूछा था ।” वो धीरे से बोला ।
“आपके कहने के ढंग से लगता है कि बाद में भी न पूछने की कोई जुदा वजह थी ।”
“हां । वजह तो जुदा ही थी ।”
“क्या ?”
“अब क्या बताऊं ?”
“मैं बताता हूं । तब तक आपको शशिकांत के कत्ल की खबर लग चुकी थी और उस बाबत जो बातें मालूम हुई थीं, उन्होंने आपको ये सोचने पर मजबूर कर दिया था कि शायद मिसेज माथुर ने ही कत्ल किया था । देखिए न, रिवॉल्वर उन्हें आसानी से उपलब्ध । ऐन कत्ल के वक्त वो मौकाएवारदात पर उपलब्ध । हालात का इशारा कातिल किसी औरत के होने की तरफ । आपने ऐसा सोचा हो तो क्या बड़ी बात थी ?”

“यही बात थी । हमने इसीलिए सुधा से कोई सवाल नहीं किया था । इसीलिए हमने उस पर ये भी जाहिर नहीं होने दिया था कि हमें मालूम था कि वह परसों शाम को चुपचाप घर से निकली थीं ।”
“मिसेज माथुर के पास कत्ल का क्या उद्देश्य रहा होगा ?”
“शायद पिंकी की खातिर उसने ऐसा किया हो ।”
“कमाल है, सर ! एक तरफ आप बीवी के कैरेक्टर पर शक करते हैं और दूसरी तरफ आप उसके कैरेक्टर को इतना ऊंचा उठा रहे हैं कि समझते हैं कि वो आपकी औलाद की खातिर, जो कि उसकी कुछ भी नहीं लगती, अपनी जान जोखिम में डालकर किसी का कत्ल कर सकती है । एक ही औरत बीवी के रोल में तो हर्राफा और सौतेली मां के रोल में सती सावित्री !”

वो खामोश रहा । एकाएक वो कुछ विचलित दिखाई देने लगा ।
Reply
07-22-2021, 01:25 PM,
#63
RE: Desi Chudai Kahani मकसद
वो खामोश रहा । एकाएक वो कुछ विचलित दिखाई देने लगा ।
“ये तो आप मानते हैं न कि जिस किसी ने भी कत्ल किया होगा, मौकाएवारदात पर व्हील चेयर के पहिये के निशान भी उसी ने बनाए होंगे ?”
“और कौन बनाएगा ?”
“एग्जेक्टली । अब आप ये बताइये कि ऐसा क्योंकर मुमकिन है कि कोई औरत बेटी को बचाने के लिए कत्ल करे और उसी कत्ल में बाप को फंसाने का सामान कर दे ?”
“हो तो नहीं सकता ऐसा ।
“कबूल करते हैं फिर भी बीवी पर कातिल होने का शक करते हैं ।”
वो खामोश रहा । उसने बेचैनी से व्हील चेयर पर पहलू बदला ।

“मुझे लगता है कि आपको तो खुशी होगी कि अगर आपकी बेटी किसी स्कैंडल का शिकार होने से बच जाए और आपकी बीवी कत्ल के इलजाम में पकड़ी जाए, बीवी का क्या है, वो तो और आ जाती है । लेकिन औलाद और वो भी पली-पलाई ......”
“ओह, शटअप ।” वो चिढकर बोला “अब इतने भी कमीने नहीं हैं हम ।”
“जरूर नहीं होंगे । दरअसल मैं इतना ही कमीना हूं । कमीने आदमी को कमीनी बात जरा जल्दी सूझती है न ।”
“मिस्टर कोहली, तुम हमारी समझ से बाहर हो ।”
“सर, आप जरा शशिकांत वाली टेलीफोन कॉल को फिर अपनी तवज्जो में लाइए । हर टेलीफोन कॉल के दो सिरे होते हैं । शशिकान्त वाले सिरे की बाबत मैंने आपको बताया । अब अपने सिरे की बाबत आप मुझे बताइए ।”

“क्या बताऊं ?”
“उस फोन कॉल के दौरान आपके करीब कौन था ?”
“कई जने थे । सुधा थी, जिसने कि फोन मुझे दिया ही था । नायर था जो कि होता ही है यहां । खेतान था । मनोज भी था शायद । हां, था ।”
“इन सबको मालूम था कि आप शशिकांत से बात कर रहे थे और इन सब ने आपको फोन पर ये कहते सुना था कि अगर आपको शशिकांत के घर जाना पड़ा तो आप उससे बात करने नहीं, उसे शूट करने जाएंगें ?”
“हां ।”
“मिसेज माथुर और मनोज शाम चार बजे घर होते हैं ?”

“मनोज नहीं होता । वो तो इत्तफाक से ही उस रोज, उस वक्त घर था । सुधा का कोई नियमित कार्यक्रम नहीं होता । कई बार तो वो ऑफिस जाती ही नहीं । जाती है तो जल्दी लौट आती है । दरअसल इंटीरियर डेकोरेटर का कारोबार उसका कैरियर नहीं, हॉबी है । वक्त गुजारी का शगल है ।”
“आई अंडरस्टैंड । और खेतान साहब उस रोज....”
मैं बोलता-बोलता रुक गया ।
मेरी निगाह पुनीत खेतान पर पड़ी जो कि उधर ही चला आ रहा था ।
वो करीब पहुंचा । उसने माथुर का अभिवादन किया और मेरे से हाथ मिलाया ।

“बड़े बेमुरब्बत हो, यार ।” वो शिकायतभरे स्वर में बोला, “कल चुपचाप ही खिसक आए ।”
“सॉरी ।” मैं खेदपूर्ण स्वर में बोला ।
“मैं तो इंतजार करता रहा । घर चले गए थे या मैडम ने रोक लिया था ?”
“घर चला गया था ।”
“केस की क्या प्रोग्रेस है ?”
“अभी तफ्तीश जारी है ।”
“सर” वो माथुर से सम्बोधित हुआ, “डिटेक्टिव आपने स्मार्ट चुना है ।”
माथुर ने मुस्कराते हुए सहमति में सिर हिलाया ।
“मुजरिम की खैर नहीं ।” खेतान बोला ।
“मुजरिम की खैर तो कभी भी नहीं होती ।” मैं बोला ।
“मेरा मतलब है तुम्हारे सदके मुजरिम की खैर नहीं ।”

“वो भी कभी नहीं होती ।”
खेतान हंसा ।
“आदमी दिलचस्प हो ।”
“पुलिस से आपकी बात हुई ?”
“हां । तुम्हारे सामने ही तो मैं गया था मैटकाफ रोड शक्ति नगर से ।”
“मेरा मतलब है उसके बाद ?”
“उसके बाद और तो कोई बात नहीं हुई ।”
“आई सी ।”
“सर !” वो माथुर से सम्बोधित हुआ, “यहां भी तो आए थे वो ?”
“हां ।” माथुर बोला, “एक यादव करके इंस्पेक्टर आया था । बहुत कान खा के गया । पिंकी और मनोज से भी बात करना चाहता था लेकिन वो कल घर पर नहीं थे । आज फिर आने को कह कर गया था । अभी तक तो आया नहीं ।”

“वक्त ही खराब करेगा अपना ।”
“उसकी ड्यूटी है । उसे बजाने दो ।”
“आज शूटिंग कैसी चली, सर ?”
“वैसी ही जैसी हमेशा चलती है । नथिंग अनयूजल ।”
“मैं ट्राई करूं जरा ?”
“हां, हां । क्यों नहीं ।”
खेतान ने मुझे आंख मारी और रायफल उठा ली ।
अगले पांच मिनट में उसने टारगेट पर दस फायर किए जिसमें से चार, एन सेंटर में लगे, पाच सेंटर से अगले दायरे में लगे और सिर्फ एक टारगेट के बिल्कुल बाहरले दायरे में लगा ।
“आप ट्राई कीजिए सर ।” फिर वह माथुर से बोला ।
“मिस्टर डिटेक्टिव को दो ।” माथुर बोला ।

“ओह, नो, सर ।” मैंने तत्काल प्रतिवाद किया, “मैंने कभी रायफल नहीं चलाई, सर ।”
“कोई बात नहीं । अब चला लो ।”
“सर, सुना है अनाड़ी पहली वार रायफल चलाए तो रिकायल से कंधा तोड़ बैठता है ।”
दोनों ने बड़ा फरमायशी अट्टहास किया ।
“किससे सुना है ?” खेतान बोला ।
“ये तो ध्यान नहीं लेकिन बात तो सच है न ?”
“भई, बट का धक्का तो लगता है लेकिन यूं किसी का कंधा टूट गया हो, ये तो तुम्हारे से ही सुन रहे हैं ।”
मैं हंसा ।
खेतान ने रायफल माथुर को दी ।
माथुर ने भी दस फायर टारगेट पर किए ।
Reply
07-22-2021, 01:26 PM,
#64
RE: Desi Chudai Kahani मकसद
उसकी तीन गोलियां तो टारगेट से टकराई ही नहीं, पांच बाहरले रिंग में लगीं और दो उससे अगले रिंग में ।
“आज आपका मूड नहीं मालूम होता, सर ।” खेतान बड़े अदब से बोला ।
“ऐसा ही है कुछ ।”
“रिवॉल्वर ट्राई करें सर ?”
माथुर ने सहमति में सिर हिलाया और मेज पर से एक रिवॉल्वर उठाकर उसमें गोलियां भरने लगा । मैंने नोट किया कि वो जर्मन मोजर रिवॉल्वर थी जो कि दस फायर करती थी ।
“मैं मूविंग टारगेट चालू करता हूं । खेतान बोला और एक तरफ बढा ।
उधर एक ऊंची दीवार थी जिसके दाएं-बाएं एक-दूसरे से कोई बीस फुट के फासले पर दो केबिन थे और उनके बीच में एक कोई चार फुट ऊंचा संकरा-सा प्लेटफार्म था । उस प्लेटफार्म पर कन्वेयर बैल्ट चलती थी जिस पर कि एक-एक फुट के फासले पर चीनी मिट्टी की बनी बत्तखें लगी हुई थीं । खेतान ने बाएं केबिन में जाकर एक स्विच आन किया तो कनवेयर बैल्ट तत्काल बाएं से दाएं चलने लगी और यूं उन पर लगी मिट्टी की बत्तखें भी भी बाएं से दाएं गुजरती दिखाई देने लगीं ।

माथुर अपनी व्हील चेयर उस मूविंग टारगेट से तीस फुट की दूरी पर ले आया ।
खेतान ने दूसरी रिवॉल्वर उठा ली, उसमें गोलियां भरी और माथुर के करीब पहुंचा ।
मैं भी उत्सुकतावश उनके पास जा खड़ा हुआ ।
“सर, पहले आप ।” खेतान खास मुसाहिबी वाले स्वर में बोला ।
माथुर ने सहमति में सिर हिलाया ।
उसने अपना रिवॉल्वर वाला हाथ मूविंग टारगेट की तरफ किया और एक के बाद एक दस फायर किए ।
केवल तीन बत्तखें उड़ीं ।
फिर वही क्रिया अपने हाथ में थमी रिवॉल्वर से खेतान ने दोहराई ।
उससे केवल दो फायर मिस हुए, आठ गोलियां बत्तखों से टकराई ।

“वंडरफुल ।” माथुर बोला ।
“थैंक्यू सर ।” खेतान सिर नवाकर बड़े अदब से बोला ।
“मैं” एकाएक मैं बोला, “इजाजत चाहूंगा ।”
“मिस्टर कोहली !” माथुर बोला, “एक बार तुम भी रिवॉल्वर चलाओ ।”
“सर...”
“फिक्र मत करो । इससे कंधा नहीं टूटता ।”
खेतान हंसा ।
“कभी रिवॉल्वर भी नहीं चलाई ?” वो बोला ।
“चलाई है । लेकिन मजबूरन ।”
“अच्छे डिटेक्टिव हो !”
“वो तो मैं हूं ही मैं । तभी तो यहां मौजूद हूं ।”
“मेरा मतलब है रिवॉल्वर चलानी तो एक डिटेक्टिव को आनी चाहिए, यार ।”
“खेतान साहब, मैं दिमाग से लड़ता हूं, हथियार से नहीं ।”

“वो ठीक है । लेकिन फिर भी आज एक बार यहां रिवॉल्वर से टारगेट प्रैक्टिस करो । माथुर साहब की ख्वाहिश है । वाट डू यु से, सर ।”
“हां । जरूर ।” माथुर बोला, “ये पकड़ो ।”
उसने जबरन अपनी भरी हुई रिवॉल्वर मुझे थमा दी ।
मैंने उन महारथियों के ही अंदाज से अपनी बांह मूविंग टारगेट की ओर तानी और और ताक ताक दस फायर किए ।
“वंडरफुल !” खेतान बोला “परफेक्ट स्कोर ।”
“क्या ?”
“दस फायर । दस मिस ।”
“घिस रहे हो, यार ।” मैं झुंझलाकर बोला, “खिल्ली उड़ा रहे हो । मैंने कहा तो है कि मुझे फायर आर्म्स का कोई तजुर्बा नहीं ।”

“नहीं है तो हो जाएगा । लो, एक बार फिर ट्राई करो ।”
उसने माथुर वाली रिवॉल्वर मेरे हाथ से ले ली और भरी हुई रिवॉल्वर जबरन मेरे हाथ में थमा दी ।
“लेकिन ......”
“सब्र करो मैं टार्गेट बढाता हूं ।”
वो लपककर फिर बाएं केबिन के करीव पहुंचा । इस बार उसने बिजली के दो तीन स्विच ऑन किए ।
तत्काल पहली कनवेयर बैल्ट के पीछे लेकिन उससे कोई दो ढाई फुट की ऊंचाई पर एक और कनवेयर बैल्ट उभरी । उस पर भी बत्तख लगी थीं लेकिन उनकी रंगत काली थी ।
प्लेटफार्म के नीचे से बीसेक डंडे से प्रकट हुए जिन पर कि चीनी मिट्टी के छोटे-छोटे कबूतर टंगे हुए थे । वो डंडे भी प्लेटफार्म की ओट में से किसी कनवेयर बैल्ट से ही जुड़े हुए थे जोकि जरूर ऊंचे-नीचे फिट किए गए रोलरों से गुजर रही थी जिसकी वजह से कबूतर विपरीत दिशा में चलती बत्तखों की कतारों के बीच में ऊपर नीचे फुदकते मालूम हो रहे थे ।

वो वापस लौटा ।
“अब तो टार्गेट तीन गुणा हो गए हैं ।” वो बोला ।
मैंने सहमति में सिर हिलाया और उधर रिवॉल्वर तानी । अब मेरे सामने तीन तरह के टार्गेट थे । एक, बाएं से दाएं चलती सफेद बत्तखें । दो, दाएं से बाएं चलती काली बत्तखें । और तीन, उनके बीच में नीचे ऊपर फुदकते सफेद कबूतर ।
मैं फायरिंग शुरू करने ही वाला था कि ठिठक गया । मेरा रिवॉल्वर वाला हाथ नीचे झुका ।
“क्या हुआ ?” खेतान बोला ।
“कुछ नहीं ।” मैं बोला । मैंने हाथ फिर सीधा किया और आखें मीचकर आनन-फानन सारे फायर सामने झोंक दिए । मैंने आंखें खोलीं ।

नतीजा फिर वो ही निकला था । सारी गोलियां पीछे दीवार से टकराई थीं । एक भी गोली निशाने पर नहीं लगी थी । लेकिन इस बार मैं मायूस होने की जगह खुश था । इस बार मुझे अपने जीरो स्कोर का जीरो अफसोस था । मुझे ये जो सूझ गया था कि हत्यारा कौन था ।
मैंने रिवॉल्वर टेबल पर रख दी और बोला, “मैं अब इजाजत चाहता हूं । मुझे एक बहुत जरूरी काम याद आ गया है । मैं फिर हाजिर होउंगा ।”
मेरे बदले तेवरों को दोनों ने नोट किया ।
उनका अभिवादन करके मैंने वापसी के लिए कदम बढाया ही था कि माथुर बोल पड़ा, “अपना चैक तो लेते जाओ ।”

“अब इसकी जरूरत नहीं ।” मैं बोला ।
“क्या मतलब ?” माथुर सकपकाया ।
“अब मैं पूरी फीस का चैक लेने आऊंगा ।”
“कब ?”
“बहुत जल्द । शायद आज ही ।”
लम्बे डग भरता हुआ मैं वहां से रुखसत हो गया
Reply
07-22-2021, 01:26 PM,
#65
RE: Desi Chudai Kahani मकसद
Chapter 6

मैं मंदिर मार्ग पहुंचा ।
शुक्र था खुदा का कि सुजाता मेहरा अपने कमरे में थी । मुझे वो शीशे के आगे खड़ी बाल संवारती दिखाई दी ।
“मैं बस जा ही रही थी ।” वो बोली ।
“दिखाई दे रहा है । शुक्र है चली नहीं गई ।”
“कैसे आए ?”
“तुम्हारी बरसाती मांगने आया हूं ।”
“क्या ?”
“तुम्हारी वार्डरोब में एक बरसाती टंगी हुई है । वो शाम तक के लिए मुझे चाहिए ।”
“तुम्हें क्या पता वहां बरसाती टंगी है ?” वो हैरानी से बोली ।
“कल जब आया था तो देखी थी ।”
“तब वार्डरोब तो बंद थी ।”

“थोड़ी सी खुली थी । भीतर नजर पड़ गई थी मेरी ।”
“लेकिन.....”
“अब छोड़ो भी !” मैं झुंझलाया “क्यों हुज्जत कर रही हो जरा-सी चीज पर ?”
“लेकिन बिन बारिश के मौसम में जनाना बरसाती का तुम करोगे क्या ?”
“उबाल के खाऊंगा । हद है तुम्हारी भी । कल तो पता नहीं क्या कुछ देने को तैयार थीं, आज बरसाती नहीं दे सकती । ऐसा ही है तो कीमत ले लो ।”
“तुम तो जलील कर रहे हो मुझे ।”
“क्यों होती हो ? बरसाती निकाल के मेरे मत्थे मारो और दफा करो मुझे ।”
“ठीक है ।” वो पांव पटकती वार्डरोब की ओर बढती हुई बोली, “यही करती हूं ।”

उसने वार्डरोब से बरसाती निकाली और मेरे ऊपर फेंक के मारी ।
उसे गुस्सा दिलाने के पीछे मेरा जो मकसद था वो पूरा हो गया था । वो सीधे-सीधे वहां से बरसाती निकालती तो हो सकता था उसे सौंपने से पहले उसकी जेब टटोलकर देखती जो कि उस घड़ी वांछित न होता ।
“शुक्रिया ।” बरसाती लपकता हुआ मैं बोला, “बहुत जल्दी लौटा जाऊंगा ।”
“जरूरत नहीं ।” वो भुनभुनाई, “अब उबाल के ही खाना ।”
“मैं शाम को ही.....”
“अब जा भी चुको ।”
मैं पुलिस हैडक्वार्टर पहुंचा ।
अरने भैंसे की तरह बिफरा हुआ और ड्रम की तरह लुढकता हुआ लेखराज मदान मुझे हैडक्वार्टर की सीढ़ियों पर मिला । मुझे देखकर वो ठिठका ।

“क्या हुआ ?” उसका रौद्र रूप देखकर मैं हैरानी से बोला ।
“एन्ना दी मां दी !” कहर बरपाती आवाज में वो बोला ।
“अरे, क्या हुआ ?”
“मेरी बीवी को पकड़ के ले आए । चिट्ठी देने के बहाने उस कुत्ती दे पुत्तर इंस्पेक्टर ने मुझे यहां अटकाए रखा और होटल जा के मेरी बीवी को गिरफ्तार कर लिया ।”
“क्यों ?”
“कत्ल के जुर्म में ।”
“क्या !”
“हां ।”
“उनकी तवज्जो कैसे गई तुम्हारी बीवी की तरफ ?”
“कोई गुमनाम कॉल आई बता रहा था उस इंस्पेक्टर का मातहत एक हवलदार ।”
“वो वही कॉल होगी हमारे बैठे ही इंस्पेक्टर यादव के पास आई थी ।”

“मुझे भी यही शक है । उस कॉल के बाद से ही उसने मुझे एक घंटा यहीं अटकाए रखा था । फिर कह दिया था मैं ऐसे ही मोर्ग चला जाऊं, चिट्ठी की जरूरत नहीं थी । वहां गया था तो पता लगा कि मोर्ग का इंचार्ज खाना खाने चला गया था । ढाई बजे आएगा । दस्सो । सवा बारह बजे माईयवा लंच करने चला गया । मैं होटल वापस गया तो पता लगा कि मधु को पुलिस पकड़कर ले गई थी । दौड़ा-दौड़ा यहां आया तो पता चला वो माईयवा इंस्पेक्टर उसे मैटकाफ रोड ले गया है ।”

“वहां किसलिए ?”
“उसे तोड़ने के लिए । विलायत से जो सीख के आया है इंस्पेक्टरी । मुजरिम को मौकाएवारदात पर वापस ले जाया जाए तो उसके कस बल निकल जाते हैं । दुर फिट्टे मूं ।”
“तुम खामखाह भड़क रहे हो । अरे, उन्होंने वैसे ही उसे पूछताछ के लिए तलब किया होगा ।”
“अब क्या पता क्या किया है ! वो इंस्पेक्टर मिले तो पता लगे न ?”
“अब तुम कहां भागे जा रहे थे ?”
“मैटकाफ रोड ही जा रहा था । वहां जाके कहीं ये पता न लगे कि इंस्पेक्टर उसे तिहाड़ ले गया ।”
“ऐसा कहीं होता है ?”

“होता है । जब किस्मत ने बजाई हुई हो तो सब कुछ होता है । आजकल लेखराज मदान माईयवे के साथ तो खास तौर से सब कुछ होता है ।
“अरे, घबराओ नहीं । कुछ नहीं होता । चलो मैं भी चलता हूं मैटकाफ रोड । वो इंस्पेक्टर मेरा यार है । मेरे से कुछ नहीं छुपाएगा । अभी मालूम हो जाता है क्या किस्सा है ! चलो ।”
आगे-पीछे गाड़ी चलाते हम मैटकाफ रोड पहुंचे ।
शशिकांत की कोठी के सामने एक पुलिस की जीप खड़ी थी जिसकी ड्राइविंग सीट पर एक सिपाही बैठा था । उसने संदिग्ध भाव से हमारी तरफ देखा लेकिन जीप से बाहर न निकला ।

कोठी का आयरन गेट बदस्तूर पूरा खुला था ।
“तुम चलो, मैं आता हूं ।” मैं मदान से बोला ।
वो सहमति में सिर हिलाता भीतर दाखिल हो गया ।
मैंने बरसाती की जेब में से रुमाल समेत रिवॉल्वर निकाली जो और उसे अपने कोट की जेब में हाथ समेत डाल लिया ।
मैं भीतर दाखिल हुआ ।
ड्राइव-वे के मध्य में पहुंचकर मैं ठिठका मैंने सामने कोठी के प्रवेशद्बार की ओर देखा । द्वार बंद था । मैने पीछे देखा । पुलिस जीप में बैठा सिपाही मुझे वहां से दिखाई नहीं दे रहा था । मैंने हाथ जेब से निकाला और अपनी दाईं ओर लहराया । रिवॉल्वर रूमाल से निकल पेड़ों के पीछे झाडियों से पार कहीं जाकर गिरी । एक हल्की-सी धप्प की आवाज हुई लेकिन उसकी कोई प्रतिक्रिया मेरे सामने न आई ।

मैं संतुष्टिपूर्ण भाव से गरदन हिलाता आगे बढ़ा । रिवॉल्वर से मेरा पीछा छूट चुका था और अब उसके बरामद होने या न होने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था ।
हत्यारे को भी नहीं ।
मैं कोठी के भीतर पहुंचा । वहां मदान इंस्पेक्टर यादव के सामने खड़ा था और गरज-गरज के उसे पता नहीं क्या कुछ कह रहा था । प्रत्युत्तर में यादव की शक्ल पर ऐसे भाव थे जैसे उसे कुछ सुनाई तक नहीं दे रहा था । वो बड़े इत्मीनान से एक सोफे पर बैठी जार-जार रोती मधु की उंगलियों के निशान लेते अपने फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट को देख रहा था । उसके अलावा वहां दो और वर्दीधारी पुलिसिए मौजूद थे जो एक ओर चुपचाप खड़े थे ।

यादव ने मेरी तरफ निगाह उठाई ।
“वक्त जाया कर रहे हो ।” मैं बोला ।
“क्या ?” यादव बोला, “इसे चुप कराओ तो तुम्हारी सुनूं ।”
“मदान साहब ।” मैं बोला, “खामोश हो जाओ । प्लीज ।”
उसके कहर को ब्रेक लगी ।
'हां, तो” यादव बोला, “क्या कह रहे हो तुम ?”
“मैं कह रहा था वक्त जाया कर रहे हो ।” मैं बोला ।
“क्या मतलब ?”
“मदान की बीवी मुजरिम नहीं है ।”
“इसने कबूल किया है कि परसों रात ये यहां आई थी ।”
“जरूर किया होगा । एसे जद्दोजलाल वाले इंस्पेक्टर के सामने जुबान बंद रख पाना कोई मजाक है ।”

“बकवास मत करो ।”
“मैं साबित कर सकता हूं कि ये हत्यारी नहीं है ।”
“अच्छा !”
“मैं इसी के बयान के जरिए ये साबित कर सकता हूं कि असल में कातिल कौन है ।”
“तुम” यादव के नेत्र सिकुड़े, “जानते हो असल में कातिल कौन है ।”
“हां ।”
“ग्यारह बजे तुम मेरे पास आए थे । इस वक्त” उसने घड़ी देखी, “डेढ़ बजा है । ढाई घंटे में ऐसा कुछ हो गया है जिससे तुम कातिल को पहचान गए हो ?”
“हां ।”
“बताओ क्या जानते हो ?”
“अभी बताता हूं । पहले अपने आदमी को कहो कि मधु का पीछा छोड़े ।”

यादव ने इशारा किया । फिगरप्रिंट एक्सपर्ट तत्काल मधु के पास से हट गया ।
मैं मधु के करीब पहुंचा ।
“तुम बिल्कुल नहीं घबराओ ।” मैं आश्वासनपूर्ण स्वर में बोला, “मैं यकीनी तौर से जानता हूं कि तुम बेगुनाह हो । अभी इंस्पैक्टर साहब भी जान जाएंगें और तुम्हें हलकान करने के लिए बाकायदा तुमसे माफी मांगेंगे ।”
यादव ने आंखें तरेर कर मेरी तरफ देखा ।
“तुमने इन्हें सब कुछ बता दिया ?” यादव की निगाह की परवाह किए बिना मैंने मधु से पूछा ।
“और क्या करती !” वो रुआसे स्वर में बोली, “इनकी घुड़कियां सुन-सुनकर मेरा तो हार्टफेल हुआ जा रहा था ।”

“पुलिस वालों की जुबान ही ऐसी होती है । रिवॉल्वर के बारे में भी बताया ?”
“बताना पड़ा ।”
“अपने इरादे के बारे में भी ?”
“हां ।”
“यानी कि जो कुछ मुझे बताया था वो सब यहां इंस्पेक्टर साहब के सामने दोहरा चुकी हो ?”
“हां ।”
“तुम्हें” मैंने यादव से पूछा, “इसके बयान पर एतबार है ?”
“हां ।” वो बोला, “इसलिए एतबार है क्योंकि झूठ बोलने के काबिल मैंने इसे छोड़ा ही नहीं था ।”
तत्काल मदान के चेहरे पर कहर बरपा । वो दांत पीसकर बोला, “ठहर जा, सालया ।”
मैं लपककर उसके सामने जा खड़ा हुआ ।

“मदान साहब” मैं सख्त लहजे में बोला, “अक्ल से काम लो । यूं भड़कोगे तो पछताओगे ।”
“लेकिन....”
“शटअप ।” मैं गला फाड़कर चिल्लाया ।
वो सकपकाकर चुप हो गया ।
“यूं चिल्ला-चिल्लाकर और आपे से बाहर होकर दिखाना है तो मैं चलता हूं ।”
“मैं चुप हूं ।”
“चुप ही रहना । समझे !”
उसका केवल सिर ही सहमति में हिला । तत्काल ही वो परे देखने लगा ।
“तो फिर....”
“मैं... मैं.... मैं अपने वकील को फोन करता हूं ।”
“जरूर करो । माथुर साहब के यहां मिलेगा वो ।”
वो तत्काल कोने में रखे फोन की ओर झपटा ।
Reply
07-22-2021, 01:26 PM,
#66
RE: Desi Chudai Kahani मकसद
किसी पुलिसिए ने उसे रोकने का उपक्रम न किया ।
“क्या बात हो रही थी ?” मैं यादव की ओर घूमकर बोला ।
“इसके बयान की बात हो रही थी ।” यादव मधु की ओर इशारा करता हुआ बोला, “मैं कह रहा था कि मुझे इसके बयान पर एतबार है ।” वो एक क्षण ठिठका और फिर सख्ती से बोला, “सिवाय एक बात के ।”
“वो क्या बात हुई ?”
“सिवाय इस बात के कि कत्ल इसने नहीं किया । मेरा कहना ये है कि जो रिवॉल्वर इसने वजीराबाद के पुल से जमना में फैंकी है, वो ही मर्डर वैपन था ।”

“और कत्ल आठ अट्ठाईस पर हुआ था ।”
“जाहिर है । टूटी घड़ी इस बात की गवाह है । ये कहती है कि ये साढ़े सात बजे यहां आई थी जो कि नहीं हो सकता । ये जरूर यहां साढ़े आठ के आसपास आई थी जबकि इसने मकतूल पर गोलियां बरसाई थीं और रिवॉल्वर वजीराबाद के पुल पर जाकर नदी में फेंक दी थी ।”
“करीब के बस अड्डे वाले नए पुल पर जाकर क्यों नहीं ? जरा और आगे जमना बाजार वाले पुराने पुल पर जाकर क्यों नहीं ?”
“गई थी ये उन दोनों जगहों पर लेकिन क्योंकि वहां रश था इसलिए इसे वजीराबाद वाले सुनसान पुल पर जाना पड़ा था ।”

“वजीराबाद से ये फ्लैग स्टाफ रोड अपनी बहन के घर गई थी जहां कि ये पन्द्रह-बीस मिनट ठहरी थी । वहां से से चलकर साढ़े नौ बजे ये बाराखम्बा अपने होटल में पहुंच गई थी । कबूल ?”
“हां । हम तसदीक कर चुके हैं इन बातों की ।”
“बढ़िया । तो अब । तुम मुझे ये बताओ, इंस्पेक्टर साहब, कि साढ़े आठ बजे यहां कत्ल करने के वक्त से लेकर साढ़े नौ अपने घर भी पहुंच गई होने वाली ये लड़की इतने ढेर सारे कामों को एक घंटे में कैसे अंजाम दे पाई ? यहां से कत्ल करके, उसके बाद दो पुलों को आजमाकर वजीराबाद के तीसरे पुल पर पहुंचने में ही इसे घंटा लग गया होता । साढ़े नौ बजे तो ये यूं अभी वजीराबाद के पुल पर ही होती । उस वक्त तो ये वहां से मीलों दूर अपने होटल के अपार्टमेंट में पहुंची हुई थी । और अभी पन्द्रह-बीस मिनट इसने रास्ते में अपनी बहन के घर भी गुजारे थे ?”

यादव सोच में पड़ गया ।
“इसका साफ मतलब ये है” मैं बोला, “कि या तो कत्ल इसने नहीं किया, या फिर कत्ल साढे आठ बजे नहीं हुआ ।”
“कत्ल तो साढे आठ बजे ही हुआ है ।” यादव सिर हिलाता हुआ बोला, “वो घड़ी की शहादत बहुत मजबूत है ।”
“तो फिर ये बेकसूर है ।”
“जितना कुछ इसने किया, कैसे किया ?”
“वैसे ही जैसे ये कहती है कि किया ।”
“लेकिन.....”
“यादव, इस बाबत बात करने से पहले मैं तुम्हारे से शूटिंग का पैट्रन डिसकस करना चाहता हूं जिसे कि तुम इस केस का बेसिक क्लू मानते हो ।”

“उस बारे में क्या कहना चाहते तो ?”
“इजाजत दो तो उसके लिए हम स्टडी में चलें । मौकाएवारदात पर तुम मेरी बात बेहतर समझ पाओगे ।”
यादव कुछ क्षण मुझे घूरता रहा, फिर उसने सहमति में सिर हिलाया ।
हम सब स्टडी में पहुंचे ।
“तुमने मर्डर वैपन के लिए यहां की तलाशी ली थी ?” मैं बोला ।
“यहां की क्या, पूरी कोठी की तलाशी ली थी ।” यादव बोला ।
“कम्पाउंड की भी ?”
यादव खामोश रहा ।
“यानी कि नहीं ली । मेरे ख्याल से तो तुम्हें कम्पाउंड क्या क्या इमारत के आसपास सड़क और गलियों को भी मर्डर वैपन के लिए खंगालना चाहिए था । कम्पाउंड की तलाशी तो जरूर ही लेनी चाहिए थी । पेड़ों से और सौ तरह के झाड़-झखाड़ से भरा इतना बड़ा कम्पाउंड है वो....”

“जा के सारे कम्पाउंड को खंगालो ।” यादव ने तत्काल दोनों सिपाहियों को आदेश दिया, “जीप में बैठे हवालदार को भी बुला लो । मैटल डिटेक्टर लेकर कम्पाउंड के चप्पे-चप्पे की तलाशी लो । चलो ।”
दोनों सिपाही तत्काल बाहर को दौड़े ।
“वो सामने” फिर यादव बोला, “उस एग्जिक्यूटिव चेयर पर लाश पड़ी पाई गई थी । यहां से बस सिर्फ लाश ही हटाई गई है । बाकी सब कुछ वैसे का वैसा ही है । उस एटलस वाली घड़ी तक को नहीं छेड़ा गया है । कलमदान का टूटा होल्डर, घुडसवार का उड़ा सिर, वो भागते घोड़ों वाली बाईं दीवार पर टंगी तस्वीर, वो टूटा हुआ वाल लैम्प, सब जस के तस हैं । हमारे बैलिस्टिक एक्सपर्ट का कहना है कि शूटिंग के वक्त कातिल यहां, इस जगह खड़ा था जहां कि इस वक्त मैं खड़ा हूं । शूटिंग का पैट्रन साफ जाहिर कर रहा है कि ये किसी औरत का काम है ।”

“महज इसलिए क्योंकि गोलियां बहुत बिखरे-बिखरे अंदाज में चली हैं ?”
“हां ।”
“यूं गोलियां कोई ऐसा शख्स भी तो चला सकता है जो कि डोप एडिक्ट हो और उस घड़ी किसी नामुराद माडर्न नशे की तरंग में हो ! ऐसा शख्स भी तो चला सकता है जो टुन्न हो । ऐसा शख्स भी तो चला सकता है जो अपाहिज हो और जिसे अपनी मूवमेंट्स पर मुकम्मल कंट्रोल न हो !”
“मेरा एतबार औरत पर है ।” यादव जिद-भरे स्वर में बोला, “बाईस कैलीबर की रिवॉल्वर पर है जो कि जनाना हथियार है ।”
“कोल्ली” दरवाजे के पास से मदान चिढे स्वर में बोला, “इसे समझा कि जनाना हथियार अगर मर्द इस्तेमाल करे तो उस पर बिजली नहीं गिर पड़ती ।”

“फोन हो गया ?” मैं उसकी तरफ घूमकर बोला ।
“हां ।” वो भन्नाया ।
“माथुर साहब के यहां ही था वो ?”
“हां ।”
“आ रहा है ?”
“हां ।”
“गुड ।” मैं फिर यादव की तरफ आकर्षित हुआ, “तुम्हारे ख्याल से चलाई गई छ: गोलियों में से कौन-सी मकतूल को लगी होगी ?”
“कोई भी लगी हो सकती है ।” यादव लापरवाही से बोला, “जब तमाम की तमाम गोलियां एक के बाद एक आनन-फानन चलाई गई थीं तो क्या पता कौन-सी गोली मकतूल को लगी !”
“हो सकता है पहली ही लगी हो ?” मैं सहज स्वर में बोला ।

“हो सकता है ।”
“और कातिल को बखूबी मालूम हो कि उस पहली ही गोली ने उसका काम भी तमाम कर दिया था !”
“ये कैसे हो सकता है ? फिर उसने बाकी गालियां क्यों चलाई ?”
“कोई तो वजह होगी । मसलन हो सकता है कि वाल लैम्प को गोली उसने इसलिए मारी हो ताकि यहां अंधेरा हो जाए और कोई उसे देख न सके ।”
यादव ने यूं अट्ठहास किया जैसे उसे मेरी अक्ल पर तरस आ रहा हो ।
“इस काम के लिए गोली चलाने की क्या जरूरत थी, मेरे भाई” वो बोला, “ये काम तो स्विच बोर्ड से पर से वाल लैम्प का स्विच ऑफ करने से भी हो सकता था ।”

मैं खामोश रहा ।
“यूं तो” यादव बोला, “बाकी गोलियां चलाई जाने की भी ऐसी वाहियात वजह सोच सकते हो तुम । कलमदान पर गोली उसने इसलिए चलाई क्योंकि उसे तालीम से नफरत थी । घुड़सवार का सिर इसलिए उड़ा दिया क्योंकि रेसकोर्स में कभी उसका घोड़ा नहीं लगता था इसलिए उसे घोड़ों से खुंदक थी ।”
“घड़ी के बारे में कुछ नहीं कहा ?”
“वो तुम कह लो, भई ।”
“मुमकिन है घड़ी को कातिल ने अपना गवाह बनाने के लिए शूट किया हो ।”
“क्या मतलब ?” यादव तीखे स्वर में बोला ।
“उसने घड़ी की सुइयां पहले आगे सरका दी हों और फिर घड़ी को गोली मारके इसलिए तोड़ दिया हो ताकि वो उस आगे सरकाए गए वक्त पर रुक जाए । हमेशा के लिए ।”

यादव ने मुझे घूरकर देखा । मैंने उसके घूरने की परवाह नहीं की ।
“तुम्हारा मतलब है” फिर वो संजीदगी से बोला, “कि जो वक्त घड़ी बता रही है, कत्ल उस वक्त नहीं हुआ ?”
“क्या ऐसा नहीं हो सकता ? टूटी घड़ी आठ अट्ठाईस पर खड़ी पाई गई तो समझ लिया गया कि कत्ल उसी वक्त हुआ । तुम्हारा मैडिकल एक्सपर्ट कत्ल का वक्त सात और नौ के बीच में बताता है । ये क्यों नहीं हो सकता कि कत्ल सात बजे हुआ हो या साढ़े सात बजे हुआ हो और किसी ने अपनी प्रोटेक्शन के लिए घड़ी को आगे बढाकर उसे उस वक्त पर तोड़ दिया हो ताकि उसे अपनी हिफाजत के लिए एलिबाई हासिल हो सके ।”

“यूं तो तुम कहोगे कि कातिल ने घड़ी जानबूझकर तोड़ी ।”
“मैं जरूर कहूंगा ।”
“बाकायदा निशाना ताक कर ?”
“हां ।”
“लेकिन शूटिंग का बिखरा-बिखरा पैटर्न....”
“बिखेरा-बिखेरा कहो, यादव साहब ।”
“क्या मतलब ?”
“एक बात बताओ । पुलिस की नौकरी में सब-इन्स्पेक्टरी की ट्रेनिंग के दौरान शूटिंग भी तो सिखाई जाती होगी ?”
“हां ।”
“तुम्हें भी सिखाई गई होगी ?”
“जाहिर है ।”
“यानी रिवॉल्वर से शूटिंग का इत्तफाक आम हुआ होगा ?”
“हां । कहना क्या चाहते हो ?”
“कभी आंख बंद करके रिवॉल्वर चलाई ?”
“वो किसलिए ?”
“जवाब दो । चलाई ?”
“नहीं । मैं क्या पागल हूं ?”

“मैंने चलाई । आज ही चलाई ।”
“आंखें बंद करके रिवॉल्वर ?” वो सकपकाया ।
“हां । आंखें बंद करके दस गोलियां मैने शूटिंग टार्गेट्स पर चलाई तो मेरी एक भी निशाने पर नहीं लगी ।”
“कहां ? कब ?”
मैंने हालात बयान किए ।
“मतलब क्या हुआ इसका ?” यादव माथे पर बल डाल कर बोला ।
“मेरा तुम्हारे से जो सवाल है वो ये है यादव साहब कि जब मैंने आखें बंद करके गोलियां चलाई तो मेरी एक भी गोली किसी टारगेट से नहीं टकराई तो फिर तुम्हारा वो कथित हत्यारा, वो आंखें मींचकर फायर करने वाली कोई औरत क्योंकर इतनी खुशकिस्मत निकली कि उसकी हर गोली, ध्यान रहे हर गोली, किसी न किसी टारगेट से जाकर टकराई ?”

तत्काल यादव के चेहरे पर सोच के भाव उभरे ।
“मैंने इस बाबत बहुत सोचा ।” मैं बोला, “मेरी सोच का यही नतीजा निकला कि निशाना लगाना मुश्किल होता है, निशाना चूकना आसान होता है । ऐसा इसलिए होता है क्योंकि निशाना लगाने के लिए उपलब्ध जगह बहुत सीमित होती है लेकिन निशाना चूकने के लिए उपलब्ध जगह बहुत ढेर सारी होती है । जिन बत्तखों, कबूतरों का का निशाना मैं लगाने की कोशिश मैं माथुर के शूटिंग रेंज पर कर रहा था, वो नन्हें-नन्हें थे लेकिन उनके पीछे दीवार पर ढेरों जगह उपलब्ध थी जहां कि कहीं भी जाकर गोली धंस सकती थी इसीलिए आंखें खोलकर या बगैर खोले, मेरी चलाई हर गोली टारगेट को मिस करके पीछे दीवार में जाकर धंसी । कहने का मतलब ये है कि अगर कातिल ने, फर्ज करो मधु ने ही, आखं मींचकर रिवॉल्वर का रुख मकतूल की तरफ करके गोलियां चलाई होतीं तो क्या तमाम की तमाम गोलियां पीछे दीवार में या छत में न जा धंसी होती । इतना दक्ष निशाना, इतना परफेक्ट निशाना, वो भी एक बार नहीं, पूरे छ: बार इतने छोटे-छोटे टारगेट कैसे बींध सकता है ।”

“दीवार पर टंगी घोड़ों वाली तस्वीर छोटी नहीं है ।”
“कबूल, लेकिन गोली देखो तस्वीर में कहां लगी है ? फ्रेम में नहीं । तस्वीर के किसी कोने खुदरे में नहीं । बल्कि ग्रुप में दौड़ते सबसे अगले घोड़े के ऐन माथे के बीच !”
“ओह !”
“बाकी निशानों की बानगी देखो । चार होल्डरों में से एक होल्डर । घुड़सवार का सिर । वाल लैम्प । घड़ी का फेस । मकतूल का दिल ! ये सब बेमिसाल निशानेबाजी के नमूने हैं यादव साहब । ऐसी शूटिंग कोई अनाड़ी, और वो भी आंख बंद करके, कर ही नहीं सकता । तुम कहोगे इत्तफाक । लेकिन ऐसा इत्तफाक एकाध बार होना कबूल किया जा सकता है, आधी दर्जन बार नहीं । छ: में से छ: बार ऐसा सच्चा निशाना लगाना इत्तफाक नहीं, करिश्मा है और ऐसा कोई करिश्मा कोई पक्का निशानेबाज, कोई क्रैक शॉट ही कर सकता है ।”

कोई कुछ न बोला ।
Reply
07-22-2021, 01:26 PM,
#67
RE: Desi Chudai Kahani मकसद
कोई कुछ न बोला ।
“गोलियों का मौजूदा पैट्रन देखकर पहले मैं भी ये ही समझा था कि वो आनन-फानन अंधाधुंध चलाई गई थीं, लेकिन अब मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि एक-एक गोली सोच-सोचकर ताक-ताक कर दागी गई थी और ये कि......”
मैं एकाएक खामोश हो गया । मैंने नोट किया कि यादव अपलक मुझे देख रहा था ।
“क्या हुआ ?” मैं हड़बड़ाया ।
“पहले कब ?” वो सख्ती से बोला ।
“क्या पहले कब ?”
“पहले कब देखा तुमने गोलियों का ये पैट्रन ? तुम तो यहां अब पहली बार मेरे सामने कदम रख रहे हो ?”

“वो..... क्या है कि....मैंने अखबार में पढ़ा था ।”
“अखबार में ऐसा कुछ नहीं छपा ।”
“तो फिर मुझे मदान ने बताया होगा । या शायद......”
“रिवॉल्वर मिल गई, साहब ।”
मैं दरवाजे की तरफ घूमा ।
रिवॉल्वर की तलाश में गए दोनों पुलिसिए वापस लौट आए थे । एक के हाथ में रुमाल में लिपटी रिवॉल्वर थी जो वो हाथ आगे करके यादव को दिखा रहा था ।
यादव ने करीब आकर रिवॉल्वर का मुआयना किया ।
“यही” कुछ क्षण बाद वो बोला, “मालूम होता है मर्डर वैपन ।”
“यानी कि” बात का रुख बदलने की गरज से मैं बोला, “तुम अब कबूल करते हो कि मधु ने जो रिवॉल्वर नदी में फेंकी थी, वो मर्डर वैपन नहीं हो सकती ।”

“तो क्या हुआ ?” वो बोला, “इरादाएकत्ल का इल्जाम इस पर अभी भी आयद होता है । इसने खुद ये इकबालिया बयान दिया है कि ये घातक हथियार से लैस होकर शशिकांत के कत्ल की गरज से यहां आई थी ।”
“यार, अगर असली कातिल पकड़ा जाए तो इसके उस बयान की क्या अहमियत रह गई ! क्यों खामख्वाह गरीबमार करते हो ? ये क्या छोटी बात है कि सिर्फ चौबीस घंटे में तुमने कत्ल के इतने पेचीदा केस को हल कर दिखाया !”
“अभी कहां हल कर दिखाया ? कातिल कहां है ?’
“उसने कहां जाना है ! उसका पकड़ा जाना तो महज वक्त की बात है ।”

“लेकिन.....”
“सुनो । मौजूदा हालात में पहले ये बात कबूल करो कि मधु ने अपने बयान में जो कुछ भी कहा है, वो बिल्कुल सच कहा है ।”
“चलो, बहस के लिए किया कबूल । आगे ?”
“इसका कहना है कि जब ये यहां पहुंची तो शशिकांत मरा पड़ा था और एटलस वाली उस एंटीक घड़ी में, जोकि टूटकर अभी भी आठ अट्ठाईस पर खड़ी है, साढ़े सात बजने वाले थे । इस घड़ी की शहादत का मेरे ऊपर भी, बहुत रौब गालिब था, इसलिए मैंने यही समझा था कि मधु से टाइम देखने में गलती हुई थी । मैंने समझा था कि घड़ी में बजे साढ़े आठ के करीब थे लेकिन ये टाइम साढ़े सात के करीब का समझ बैठी थी । उस वक्त घड़ी टूटी भी नहीं थी । टूटी होती तो ये असाधारण बात इसकी तवज्जो में आई होती । घड़ी ही नहीं, उस वक्त कुछ भी टूटा फूटा नहीं था यहां । होता तो टूट-फूट वाली किसी न किसी चीज ने इसकी तवज्जो अपनी तरफ जरूर खींची होती । अब अगर इसकी बात पर एतबार किया जाए कि उस वक्त शशिकांत मरा पड़ा था तो इसका साफ मतलब है कि तब तक यहां सिर्फ एक गोली चली थी । वही एक गोली चली थी जो शशिकांत का दिल बींध गई थी । अगर ऐसा था तो ये अपने आपमें सबूत हुई कि बाकी की पांच गोलियां बाद में, एक खास मकसद से, यहां एक खास तरह की स्टेज सैट करने के लिए, बहुत सोच-समझकर और भारी सूझबूझ के साथ चलाई गई थीं । मैं तो यहां तक कहता हूं कि मधु की यहां इस स्टडी में आमद के वक्त कातिल यहीं मौजूद था ।”

सब चौंकें ।
“मधु यहां एकाएक पहुंच गई थी ।” मैं आगे बढा, “तब पहुंच गई थी जबकि कातिल यहां अपनी कारगुजारी करके बस हटा ही था । इसकी आहट सुनकर ही कातिल ने यहां की ट्यूब लाहट बंद कर दी थी ताकि यहां अंधेरा पाकर मधु यहां न आती । बाकी बत्तियां बंद करने का उसे मौका नहीं मिला था इसलिए मधु जब यहां पहुंची थी तो उसे बाहर कम्पाउंड में और ड्राइंगरूम में जगमग-जगमग मिली थी जबकि औरों को यहां अंधेरा....”
मैने एकाएक होंठ काटे ।
“आगे बढ़ो ।” यादव अपनी झोंक में बोला ।
“'लेकिन मधु यहां भी आई” मैं तत्काल आगे बढ़ा, “ये क्योंकि खुद शशिकांत के कत्ल के इरादे से यहां पहुंची थी इसलिए इसने तो उसकी तलाश में कोठी में हर जगह जाना ही था । इसके कदम जब यहां पड़े थे तो कातिल निश्चय ही सामने” मैंने अटैचड बाथरूम के दरवाजे की ओर संकेत किया, “उस दरवाजे के पीछे जा छुपा था । मधु ने ही आकर यहां की ट्यूब लाईट जलाई थी । यहां पहुंचकर उसने बाथरूम में झांकने की कोशिश की होती तो यकीनन शशिकांत के साथ-साथ यहां इसकी भी लाश मिलती । क्योंकि कातिल को यूं रंगे हाथों पकड़े जाना कबूल न होता । शशिकांत की लाश देखते ही आतंकित होकर इसके यहां से भाग खड़ा होने ने ही परसों रात इसकी जान बचा दी ।”

मैंने देखा मधु के शरीर ने जोर की झुरझुरी ली ।
हालात को नाटकीयता का पुट देने के लिए कुछ क्षण मैं मुस्कुराता हुआ खामोश खड़ा रहा ।
“अब जरा शूटिंग की तरफ दोबारा लौटकर आओ ।” मैं बोला - “इस बाबत मैं पहले एक मिसाल देना चाहता हूं । फर्ज करो कोई अपने पक्का निशानेबाज होने का, आई मीन क्रैक शॉट होने का रोब गालिब करना चाहता है लेकिन हकीकत में उसका निशाना ऐसा नहीं है । वो एक दीवार पर कहीं भी छ: गोलियां दागता है और जहां-जहां गोलियां लगी हैं वहां-वहां गोली के बेस के गिर्द गोल दायरे लगा लगा देता है और फिर उस दीवार को अपनी निशानेबाजी के कमाल के तौर पर पेश करता है । देखने वाला यही समझता है कि उसने दायरे में गोली मारी जबकि उसने गोली के गिर्द दायरा बनाया । यूं वो ये साबित करने में कामयाब हुआ कि वो क्रैक शॉट है । ओ के ?”

यादव ने सहमति में सिर हिलाया ।
“लेकिन यहां ऐन इससे उलटी नीयत का दखल है । यहां हमारा कातिल हकीकत में क्रैकशॉट है लेकिन वो ये स्थापित करना चाहता है कि गोलियां अनाड़ी ने चलाई । अब जाहिर है कि जो कुछ पहले निशानेबाज ने किया इसने उससे ऐन उलट करना है । ये निशानेबाज दीवार पर छ: दायरे खींचता है, बड़ी दक्षता से छ: के छ: दायरों को अपनी आला निशानेबाजी से बींधता लेकिन पांच के गिर्द से दायरे मिटा देता है । अब जब कोई निशानेबाजी के ‘इस’ नमूने को देखता है तो वो सहज ही ये सोच लेता है कि वो किसी अनाड़ी निशानेबाज का काम था और जो एक निशाना दायरे में लग गया था वो महज तुक्के से लग गया था । क्या समझे ?”

“तुम्हारा मतलब है कि यहां कातिल ने बड़े इत्मीनान से पहले इकलौती गोली से मकतूल का काम-तमाम कर दिया और फिर बाकी की पांच गोलियां उस पहले शॉट की अक्युरेसी को कवर करने के लिए इधर-उधर दाग दीं ?”
“पहले की नहीं दूसरे की ।”
“दूसरे की ।”
“जो उसने उस एटलस वाली घड़ी पर चलाया । उसको अपने लिए एलीबाई गढनी थी । इसलिए उसने पहले घड़ी की सुइयां घुमाकर उन्हें आगे किया, आठ बजकर अट्ठाइस मिनट पर पहुंचाया और फिर उसनसे परे खड़े होकर उसे गोली मारकर तोड़ दिया ताकि घड़ी उस वक्त पर रुक जाए और समझा जाए - जैसा कि समझा गया कि कत्ल उसी वक्त हुआ था ।”

“ओह !”
“वो बस ये दो गोलियां चलाकर ही यहां से रुखसत हो जाता तो, यादव साहब, तुम हालात पर शक जरूर करते । इसलिए उन गोलियों के अंजाम को कवर करने के लिए उसने रिवॉल्वर की बाकी चार गोलियां भी यहां दाग दीं । फिर वो बड़े इत्मीनान से यहां से रुखसत हो गया । अब उसने सिर्फ इतना करना था कि ये स्थापित करना था कि साढ़े आठ बजे वो मौकाए वारदात से बहुत दूर कहीं और मौजूद था ।”
“कौन था वो ?”
“ये जानना अब क्या मुश्किल रह गया, यादव साहब ! कौन है वो शख्स जो ये कहता है कि शशिकांत साढ़े सात बजे जिन्दा था ? जबकि मधु की गवाही कहती है कि वो उस वक्त मरा पड़ा था ?”

“पुनीत खेतान !”
तभी पुनीत खेतान ने वहां कदम रखा ।
Reply
07-22-2021, 01:26 PM,
#68
RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“पुनीत खेतान !”
तभी पुनीत खेतान ने वहां कदम रखा ।
“कौन याद कर रहा था मुझे ?” वो मुस्कराता हुआ बोला ।
“अभी तो हम ही याद कर रहे थे, वकील साहब ।” मैं बोला, “लेकिन आगे-आगे सारा शहर याद करेगा, बल्कि सारा मुल्क याद करेगा ।”
“क्या मतलब ?” वो हकबकाया ।
“मैं इंस्पेक्टर साहब के सामने आपकी अचूक निशानेबाजी के कसीदे पढ़ रहा था । इन्हें बता रहा था कि कितने नामी-गिरामी क्रैक-शॉट हैं आप राजधानी के ।”
“इस चर्चा की वजह ?”
“यहां आपकी शूटिंग के इतने नमूने जो मौजूद हैं ।”
“मेरी शूटिंग के ?”

“अलबत्ता एक नमूना घट गया है ।”
“कौन-सा ?”
“शशिकांत । मकतूल जिसका कि परसों शाम आपने यहां कत्ल किया ।”
“क्या बकते हो ?” वो भड़ककर बोला, मैं...मैं.....”
“आप” यादव सख्ती से बोला, “बड़े मुनासिब वक्त पर आए हैं । आ ही गए हैं तो थोड़ी देर खामोश रहिये ।”
“लेकिन....”
“कहना मानिए ।”
खेतान ने मदान की तरफ देखा ।
“थोड़ी देर खामोश ही रह, खेतान ।” मदान बोला, “और सुन कोल्ली क्या कहता है ?”
“पहले क्या कह चुका है ?” खेतान सशंक स्वर में बोला ।
“वो मैं बताऊंगा आपको ।” यादव बोला, “तुम आगे बढ़ो ।”

“क्या आगे बढूं ?” मैं बोला ।
“जहां तक एलीबाई स्थापित करने का सवाल है तो इसका ये मतलब तो इतने से ही हल हो जाता था कि ऐन साढ़े आठ बजे यहां से मीलों दूर ये अब्बा में था । फिर इसने दिल्ली गेट से मिसेज माथुर को फोन करने का खटराग क्यों फैलाया ?”
“क्योंकि किन्हीं कागजात को लेकर इसकी और मकतूल की भीषण तकरार हुई थी और उस तकरार का एक गवाह था ।”
“कौन ?”
“सुजाता मेहरा । उस तकरार के दौरान वो यहां मौजूद थी और उसने किन्हीं कागजात को लेकर खेतान और शशिकांत को बुरी तरह लड़ते-झगड़ते सुना था । खेतान के लिए उस पॉइंट को कवर करना जरूरी था वर्ना वो तकरार ही पुलिस की तफ्तीश का रुख इसके लिए बड़े फंसने वाले विषय की ओर मोड़ देती ।”

“क्या मतलब ?”
“मेरा अंदाजा है कि जो कागजात परसों रात तकरार का मुद्दा थे वो शशिकांत के शेयर और सिक्योरिटीज थे जिसका एक काफी बड़ा भाग खेतान ने बेच खाया हुआ है ।”
“क्या बकते हो ।” खेतान चिल्लाया, “मैं.....”
“चुप रहिये, मिस्टर खेतान ।” यादव बोला ।
“लेकिन ...... ये हो क्या रहा है, ये क्या ड्रामेबाजी है ? मैं यहां अपने क्लायंट के बुलावे पर आया हूं लेकिन यहां तो....”
“आई सैड शटअप ।” यादव गला फाड़कर चिल्लाया ।
खेतान सहमकर चुप हो गया ।
“आगे बढ़ो ।” यादव मेरे से बोला, “कैसे जानते हो कि इसने मकतूल शेयर और सिक्योरिटीज बेच खाई हुई है ?”

“मैं नहीं जानता ।” मैं बोला, “ये महज मेरा अंदाजा है और इस अंदाजे की बुनियाद है शशिकांत का कत्ल और इसके बादशाही ठाठ-बाट । ऐश पर, मौज-मेले पर, दोनों हाथों से पैसा लुटाने वाला शख्स है ये । दस पैसे से होने वाले काम पर दस रूपये खर्च करना इसका पसंदीदा शगल है । खूबसूरत औरतों का रसिया है । किसी खास हसीना को हासिल करने के लिए पानी की तरह पैसा बहा सकता है । कल रात अब्बा में मैंने अपनी आंखों से इसे अंधाधुंध पैसा फूंकते देखा था । इसकी पोशाक देखो । इसका रख-रखाव देखो । सोने का ब्रेसलेट । नीलम की अंगूठी । राडो की घड़ी । एयर कंडीशंड ऑफिस । टयोटा कार । अभी मैंने इसका घर नहीं देखा । लेकिन वो भी यकीनन बाकी ऐय्याशियों से मैच करता ही होगा । इतने ठाठ-बाट को मेनटेन करने के लिए पैसा हलाल की कमाई से नहीं आता । इसकी ऐश यकीनन किसी की अमानत में खयानत का नतीजा है ।”

“हूं ।”
“ये कहता है कि बीस-बाईस लाख रूपये शशिकांत का स्टॉक अभी भी इसके अधिकार में है । इसके ऑफिस से बड़ी आसानी से चैक किया जा सकता है कि मूलरूप से इसके पास शशिकांत के कितनी रकम के शेयर वगैरह थे और उनमे से बीस-बाईस लाख के शेयर सलामत हैं भी या नहीं ।”
“यूं किया घोटाला इसे कभी तो फंसा ही देता ?”
“इसे ऐसी उम्मीद नहीं होगी । ये शेयर बाजार की समझ रखने वाला आदमी है । कई शेयर ऐसे होते हैं जिनके रेट वक्ती तौर पर एकाएक ऊंचे उठ जाते है और फिर चंद दिनों में ही नीचे गिर जाते हैं । ये शेयरों को ऊंची कीमत पर बेचकर उनके नीचे गिरने पर वापस खरीद लेता होगा और अपने क्लायंट को बिना बताए मुनाफा डकार जाता होगा ।”

“क्लायंट ही कीमत उठने पर शेयर बेचने का ख्वाहिशमंद निकल आए तो ?”
“तो उसे ये पुड़िया देता होगा कि भाव तो अभी और ऊंचा, कहीं ज्यादा ऊंचा, जाने वाला था ।”
“क्लायंट को इसकी राय न मंजूर हो तो ?”
“किसी को मंजूर होगी । अकेला शशिकांत ही तो इसका क्लायंट नहीं ।”
“यानी कि कहीं-न-कहीं तो इसका दांव चल ही जाता होगा ?”
“इंस्पेक्टर साहब ।” पुनीत खेतान चिल्लाया, “ये मुझ पर बेजा इल्जाम है । मैं ये बकवास नहीं सुन सकता । मैं....मैं...”
“क्या मैं मैं ?” यादव उसे घूरता हुआ बोला ।
“मैं अभी पुलिस कमिश्नर के पास जाता हूं ।”

“आप यहां से हिलेंगे भी नहीं ।”
“क्यों ? मैं क्या यहां गिरफ्तार हूं ?”
“जाने की कोशिश करके देखिये । मालूम पड़ जाएगा ।”
“ये धांधली है । गुंडागर्दी है । मैं एक इज्जतदार आदमी हूं ....”
“इसीलिए आपको मेरी राय है कि अपनी इज्जत बना के रखिये । जो कहा जा रहा है उस पर अमल कीजिए वरना इज्जत का जनाजा यहीं से निकलना शुरू हो जाएगा और निकलता ही चला जाएगा । समझे !”
“लेकिन मैंने किया क्या......”
“हवलदार !” यादव कड़ककर बोला, “साहब के मुंह से दुबारा आवाज निकले तो अपनी टोपी उतार के इनके मुंह में ठूंस देना । अपनी जगह से हिलने की कोशिश करें तो ये फर्श पर लम्बे लेटे नजर आने चाहिए ।”

दोनों हवलदार आगे बढे और मजबूती से खेतान के दाएं-बाएं आन खड़े हुए ।
Reply
07-22-2021, 01:26 PM,
#69
RE: Desi Chudai Kahani मकसद
बदहवास खेतान ने हाथ-पांव ढीले छोड़ दिए ।
संतुष्टिपूर्ण ढंग से सिर हिलाते हुए यादव मेरी तरफ घूमा ।
“शशिकांत को” मैं बोला, “कभी पता न लगता कि उसका ब्रोकर ही उसके साथ घोटाला कर रहा था अगर उसके लिए अपना सारा स्टॉक तत्काल कैश कर लेना जरूरी न हो गया होता ।”
“ऐसा क्यों जरूरी हो गया था ?” यादव बोला ।
“वो ये मुल्क छोड़कर जा रहा था । मदान से पूछ लो ।”
यादव ने मदान की तरफ देखा । मदान ने सहमति में सिर हिलाया ।

“यानी कि” यादव बोला, “शशिकांत के स्टॉक में किये घोटाले को छुपाने के लिए इसने उसका कत्ल किया ?”
“जाहिर है । जरूर शशिकांत ने इसे ये अल्टीमेटम दिया हुआ था कि परसों रात पूरे हिसाब-किताब के साथ उसका सारा माल ये उसे सौंप दे । इसके लिए ऐसा कर पाना संभव नहीं था, इसलिए ये पहले ही कत्ल की तैयारी करके आया था । एडवांस तैयारी की चुगली ये रिवॉल्वर ही करती है जो कि इसने अपने दूसरे क्लायंट माथुर के यहां से चुराई । यहां मकतूल से इसकी तकरार होनी थी, ये तो इसे मालूम था, लेकिन ये शायद इसके लिए अप्रत्याशित था कि यहां सुजाता मेहरा की सूरत में एक गवाह भी मौजूद था । उस तकरार का कोई गवाह न होता तो इसके लिए सुधा माथुर को फोन करने की कोई जरूरत नहीं थी । तकरार का मुद्दा जो कागजात थे, वो क्लब की रेनोवेशन के कागजात नहीं थे, इसका ये भी सबूत है कि जो शख्स अगले रोज मुल्क ही छोड़कर जा रहा था, उसने क्लब की रेनोवेशन से क्या लेना-देना था ! ऐसे अधूरे या मुकम्मल कागजात देखकर उसे क्या हासिल होना था ! ऐसी बेमानी चीज के लिए मकतूल क्यों ये जिद करता कि तारीख बदलने से पहले वो कागजात उसे दिखाए जाए ।”

“मान लिया । आगे बढ़ो ।”
“बहरहाल खेतान ने अब्बा जाते वक्त रास्ते में दिल्ली गेट पेट्रोल पम्प पर रूककर सुधा माथुर को फोन किया और उससे इसरार किया कि वो कागजात अभी जाकर मकतूल को दिखा आए । सुधा ने कहा कि कागजात अभी मुकम्मल नहीं थे तो इसने कहा कि शशिकांत को फर्क पता नहीं लगने वाला था ।”
“क्यों नहीं लगने वाला था ? वो क्या अहमक था ?”
“नहीं था । ये बात भी अपने आपमें इस बात की तरफ इशारा है कि उस फोन काल की घड़ी से पहले ही शशिकांत पीछे अपनी कोठी में मरा पड़ा था । खेतान जानता था कि सुधा माथुर जब यहां पहुंचती तो उसे यहां कागजात का मुआयना करने वाला कोई नहीं मिलने वाला था ।”

“वो कागजात सुधा माथुर के पास घर पर उपलब्ध थे ?”
“हां । वो उन्हें घर पर मुकम्मल करने के लिऐ ऑफिस से घर ले आई थी । मैंने दरयाफ्त किया था ।”
“उसने ऐसा न किया होता तो ?”
“क्या न किया होता तो ?”
“वो कागजात घर न लाई होती तो क्या वो खेतान की फरमायश पूरी करने के लिए पहले फ्लैग स्टॉफ रोड से कनाट प्लेस अपने ऑफिस में जाती ?”
मैं गड़बड़ाया ।
खेतान विजेता के से भाव से मुस्कराया ।
“इसे” एकाएक मधु बोल पड़ी, “मालूम था कि सुधा वो कागजात ऑफिस से घर लेकर जा रही थी ।”

“कैसे ?” यादव बोला ।
“परसों दोपहर को सुधा हमारे अपार्टमेंट में थी । तब खेतान भी वहां था । खेतान ने मेरे सामने रेनोवेशन के बारे में सुधा से सवाल किया था तो सुधा ने कहा था कि उसका उन कागजात को घर ले जाकर मुकम्मल करने का इरादा था ।”
“सो” अब मैं विजेता के से स्वर में बोला, “देयर यू आर ।”
खेतान का चेहरा फिर बुझ गया ।
“इसने” यादव बोला, “कत्ल के लिए बाइस कैलिबर की रिवॉल्वर क्यों चुनी ?”
“क्योंकि ये मरने वाले की औरतों में बनी साख से वाकिफ था । दूसरे, इसे अपने अचूक निशाने पर पूरा एतबार था ।”

“ओह !”
“लेकिन ये इतना कमीना है कि इसने शक की सुई शशिकांत की वाकफियात के दायरे में आने वाली औरतों तक ही सीमित नहीं रखी । इसने एक और शख्स को भी शक के दायरे में लपेटने का मामान किया ।”
“किसे ?”
“कृष्ण बिहारी माथुर को । परसों शाम चार बजे मकतूल की माथुर से टेलीफोन पर बात हुई थी जिसमें मकतूल ने शाम साढ़े आठ बजे यहां माथुर से मुलाकात की पेशकश की थी । जवाब में माथुर ने कहा था कि अगर उसे यहां आना पड़ा तो वो शशिकांत से बात करने नहीं, उसे शूट करने आएगा । माथुर के मुंह से निकली ये बात खेतान ने भी सुनी थी, इस बात की तसदीक मैं कर चुका हूं । अपनी इस जानकारी को कैश करने के लिए इसने क्या किया ? परसों रात ये यहां अपने साथ एक व्हील चेयर भी लेकर आया जो कि इस बात का अतिरिक्त सबूत है कि कत्ल का इरादा ये पहले से किए हुए था । कत्ल के बाद इसने उस व्हील चेयर के निशान बाहर आयरन गेट से कोठी तक बनाए जिससे ये लगे कि माथुर अपनी साढ़े आठ बजे की अप्वायंटमेंट पर पूरा खरा उतरा था और वो ही यहां आकर कत्ल करके गया था । इत्तफाक से निशानेबाजी में वो भी खेतान से कम नहीं ।”

“ऐसे कोई निशान” यादव हैरानी से बोला, “बाहर ड्राइव-वे में हैं ?”
“कल तक तो थे ।” मैं झोंक में बोला । साथ ही मैंने होंठ काटे ।
यादव ने कहरभरी निगाहों से मुझे देखा ।
“कोहली” वो दांत पीसता हुआ बोला, “तेरी खैर नहीं ।”
“यादव साहब” मैं मीठे स्वर में बोला, “ये वक्त बड़े मगरमच्छ की तरफ तवज्जो देने का है जो कि खेतान की सूरत में तुम्हारे सामने खड़ा है ! मेरे जैसी छोटी-मोटी मछली पर वक्त बरबाद करने का ये वक्त थोड़े ही है ! मेरे जैसी छोटी-मोटी मछली की तो आप कभी फुरसत में भी दुक्की पीट लेंगे ।”

चेहरे पर वैसे ही सख्त भाव लिए यादव ने सहमति में सिर हिलाया ।
“अब हमारे वकील साहब के तरकश के तीसरे तीर पर आइये ।” मैं बोला ।
“अभी तीसरा भी ?” यादव बोला ।
“वो गुमनाम टेलीफोन कॉल जो तुमने अपने ऑफिस में हमारे सामने सुनी थी जिसकी वजह से तुमने मधु को हिरासत में लिया था ।”
“वो भी इसने की थी ?”
“और कौन करता ? ये ही तो था चश्मदीद गवाह मधु की यहां आमद का । अपनी इस जानकारी को इसने उस गुमनाम टेलीफोन कॉल की सूरत में कैश किया ।”
“ओए, पुनीत दया पुत्तरा ।” एकाएक मदान कहर बरपाता खेतान की ओर लपका, “तेरी ते मैं भैन दी...”

खेतान सहमकर दोनों हवलदारों की ओट में हो गया ।
यादव झपटकर उसके सामने आन खड़ा हुआ ।
“काबू में रहो ।” वो सख्ती से बोला, “इसे अपनी हर करतूत की सजा मिलेगी ।”
“हद हो गई जी कमीनेपन दी ।” मदान भुनभुनाया, “कंजरीदा गोद में बैठ कर दाढ़ी मूंडता है ।”
“चुप करो ।” यादव डपटकर बोला ।
निगाहों से खेतान पर भाले बर्छिया बरसाता, दांत किटकिटाता मदान खामोश हो गया ।
“और ?” यादव मेरे से बोला ।
“और क्या ?” मैं बोला, “बस ।”
“शशिकांत माथुर से क्यों मिलना चाहता था ?”
Reply
07-22-2021, 01:26 PM,
#70
RE: Desi Chudai Kahani मकसद
“मुझे क्या मालूम ?”
“क्यों नहीं मालूम ? बाकी हर बात मालूम है तो ये क्यों नहीं मालूम ?”

“बस, नहीं मालूम । जरुरी थोड़े ही है कि हर बात मुझे ही मालूम हो ? तुम इस बाबत माथुर से भी तो सवाल कर सकते हो ।”
“वो जरुर ही बताएगा मुझे कुछ ।”
“तुम्हारा भाई” यादव मदान से संबोधित हुआ, “मुल्क से कूच की तैयारी क्यों कर रहा था ?”
मदान परे देखने लगा ।
यादव ने एक गहरी सांस ली और बड़े असहाय भाव से गर्दन हिलाई । फिर वो खेतान के करीब पहुंचा ।
“तुम” वो बोला, “अपना जुर्म कबूल करते हो ?”
“कौन-सा जुर्म ?” खेतान बड़े दबंग स्वर में बोला, “कैसा जुर्म ? मैंने कोई जुर्म नहीं किया ।”

“तुमने शशिकांत का कत्ल किया है ?”
“बिलकुल झूठ । मैं उसे जीता-जागता, सही सलामत यहां छोडकर गया था । इस आदमी की” उसने खंजर की तरह एक उंगली मेरी तरफ भौंकी, “बकवास से आप मुझे खूनी साबित नहीं कर सकते । सिवाए बेहूदा थ्योरियों के और अटकलबाजियों के क्या है आपके पास मेरे खिलाफ ? कोई सबूत है ? है कोई सबूत ?”
“घड़ी पर” मैं धीरे-से बोला, “इसकी उंगलियों के निशान हो सकते हैं ।”
यादव को बात जंची । तत्काल उसने अपने फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट को तलब किया ।
एक्सपर्ट ने घड़ी को चैक किया ।
“घड़ी पर” वो बोला, “या बुत पर, कहीं भी उंगलियों के कैसे भी कोई निशान नहीं हैं ।”

“ओह ।” यादव बोला ।
“लेकिन इंस्पेक्टर साहब” मैं बोला, “ये भी तो अपने आप में भारी संदेहजनक बात है । इसके न सही, किसी के तो उंगलियों के निशान होने चाहिए बुत पर ।”
“शशिकांत के तो होने चाहिए” मदान बोला, “जो कि रोज इस घड़ी में चाबी भरता था ।”
“चाबी !” फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट बोला, “चाबी तो इस घड़ी में कोई लगी ही नहीं हुई ।”
“वो चाबी अलग से लगती है ।” मदान बोला, “एक लम्बी-सी चाबी है जिसके दोनों सिरों पर मुंह है । एक ओर का बड़ा मुंह घड़ी में चाबी भरने वाले लीवर को पकड़ता है और दूसरा एकदम छोटा मुंह वो लीवर पकड़ता है जिससे घड़ी की सुइयां आगे-पीछे सरकती हैं ।”

“कहां है चाबी ?”
“यहीं कहीं होगी ।”
दो मुंही चाबी घड़ी वाले बुत के पीछे से बरामद हुई ।
फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट ने उस पर से उंगलियों के निशान उठाए ।
चाबी पर पुनीत खेतान के बाएं हाथ के अंगूठे का स्पष्ट निशान मिला ।
यादव की बांछे खिल गई ।
पुनीत खेतान के तमाम कस बल निकल गए ।
“मैंने तुम्हारी काबलियत को कम करके आंका ।” पुनीत खेतान बोला ।
मैं उसके साथ ड्राईंगरूम में बैठा था । मुस्तैद पुलिसिए ड्राईंगरूम के बाहर के दरवाजे पर खड़े थे । यादव भीतर स्टडी में मदान और उसकी बीवी के साथ था । उसी ने बाकी लोगों को स्टडी से बाहर निकाला था ।

“मेरी काबलियत को” मैं बोला, “ठीक से आंकते तो क्या हो जाता ?”
“तो जो कुछ तुमने पुलिस को बताया, उसका ग्राहक मैं होता ।”
“ग्राहक ?” मेरी भंवे उठी ।
“हां ।”
“इतना बिकाऊ तो नहीं मैं !”
वो हंसा । प्रत्यक्षतः उसकी निगाह में मैं ‘इतना ही बिकाऊ’ था ।
“वैसे मानते हो” फिर वह संजीदगी से बोला, “कि निशाना कुछ है मेरा !”
मैंने हैरानी से उसकी तरफ देखा । कैसा आदमी था वो ! कदम फांसी के फंदे की ओर बढ़ रहे थे और वो अपनी निशानेबाजी की आइडेंटिटी का ख्वाहिशमंद था ।
“घड़ी की तरफ तवज्जो कैसे गई ?” वो बोला ।

“मधु के बयान की वजह से ।” मैं बोला, “मुझे यकीन था कि वो झूठ नहीं बोल रही थी । अब अगर मैंने उसके बयान पर एतबार करना था तो घड़ी की शहादत को झूठा और फर्जी करार देना मेरे लिए जरुरी था ।”
“हूं । और ?”
“और मेरे ज्ञानचक्षु माथुर साहब के शूटिंग रेंज पर खुले जहां कि मेरा हर निशाना खाली गया । तभी मुझे पहली बार महसूस हुआ कि ये शूटिंग किसी अनाड़ी का काम नहीं था । ये शूटिंग किसी अनाड़ी का काम हो ही नहीं सकता था ।”
“ओह ।”
“कैसी अजीब बात है कि एक अकेला, अनपढ़, नादान मदान ही था जिसने कि शूटिंग के मामले में कोई काबलियत की बात कही थी । उसने लाश और लाश के इर्द-गिर्द एक निगाह डालते ही कहा था कि वो किसी पक्के निशानेबाज का काम था ।”

“मदान ने कहा था ऐसा ?”
“हां । और दूसरी गौरतलब बात उसने ये कही थी कि किसी औरत की मजाल नहीं हो सकती थी शशिकांत पर गोलियां चलाने की । इन दोनों बातों की अहमियत को मैंने फौरन समझा होता तो परसों ही केस का तीया-पांचा एक हो जाता ।”
वो खामोश रहा ।
“अब एक बात तो बता दो ।” मैं बोला ।
“क्या ?”
“शशिकांत की मां कौशल्या के तुम्हें सौंपे कोई कागजात तुम्हारे पास हैं ?”
वो कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बोला, “देखो, कौशल्या का वकील मेरा बाप था । मेरे बाप के पास कौशल्या का सौंपा एक सीलबंद लिफाफा था जोकि मेरे बाप की मौत के बाद मुझे हस्तांतरित हो गया था । मुझे नहीं पता कि उस लिफाफे में क्या है लेकिन अब लगता है की उसमे जरुर वो ही कागजात हैं जिनको हासिल करने के लिए मदान मरा जा रहा है ।”

“उस लिफाफे का तुम क्या करोगे ?”
“तुम बताओ क्या करूं ?”
“उसे मदान को सौंप दो । उसका भला हो जाएगा ।”
“बदले में मेरा क्या भला होगा ?”
“तुम क्या भला चाहते हो ?”
“उसे कहो, मुझे छुड़वाए ।”
“पागल हो ! ऐसे कैसे छूट जाओगे ! खुद वकील हो, फिर भी ऐसी बाते कर रहे हो ।”
“पैसे से केस को हल्का किया जा सकता है । पैसे की बिना पर मेरी खलासी दो-चार साल की सजा से ही हो सकती है । संदेह लाभ पाकर छूट भी जाऊं तो कोई बड़ी बात नहीं । और सवाल उस सीलबंद लिफाफे का नहीं, शशिकांत की विरासत का भी है । वो लिफाफा शशिकांत की विरासत से, इंश्योरंस क्लेम से, हर क्लेम से मदान को बेदखल करा सकता है । वो मदान को जेल में मेरा नेक्स्ट डोर नेबर बना सकता है । तुम बिचौलिया बनकर इस बाबत मदान से मेरा कोई सौदा पटवा दो, लिफाफा मैं तुम्हें दे दूंगा ।”
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,444,531 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 538,040 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,209,491 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 914,325 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,620,760 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,053,759 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,906,246 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 13,907,109 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 3,973,918 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 279,623 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 1 Guest(s)