Desi Porn Kahani काँच की हवेली
05-02-2020, 01:01 PM,
#11
RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
अचानक किसी की आवाज़ से वह चौंका. रवि आवाज़ की दिशा में पलटा. सामने एक बच्चा हैरानी से उसे देख रहा था. वो बच्चा ही सही पर इस तरह अपनी चोरी पकड़े जाने पर एक पल के लिए रवि काँप सा गया. फिर खुद को संभालते हुए बच्चे से बोला - "क्या नाम है तुम्हारा?"

"चिंटू" बच्चे ने उँची आवाज़ में बोला - "और तुम्हारा क्या नाम है?"

उसकी तेज आवाज़ से रवि बोखलाया. उसने झट से अपना पर्स निकाला और उसमे से 10 का नोट निकालकर चिंटू को पकड़ा दिया. नोट हाथ में आते ही चिंटू हंसा.

"क्या तुम मुझसे और पैसे लेना चाहते हो?" रवि ने घुटनो के बल बैठते हुए कहा.

"हां...!" बच्चे ने सहमति में सर हिलाया.

"तो फिर मैं तुमसे जो कुच्छ भी पुछुन्गा, क्या तुम मुझे सच सच बताओगे?" उसने वापस अपना पर्स निकालते हुए बच्चे से कहा.

चिंटू ने रवि का पर्स देखा और फिर अपने होठों पर जीभ घुमाई. - "हां."

"ठीक है तो फिर उस लड़की को देखो जो पीले रंग की पेटिकोट पहनी हुई है." रवि ने अपनी उंगली का इशारा कंचन की और किया - "क्या तुम उसे जानते हो?"

"हां." बच्चे ने गर्दन हिलाई.

"क्या नाम है उसका?" रवि ने पुछा.

"पहले पैसे दो. फिर बताउन्गा." बच्चा शातिर था. रवि ने 10 का नोट उसकी और बढ़ाया.

"वो मेरी कंचन दीदी है." बच्चा 10 का नोट अपनी जेब में रखता हुआ बोला.

"तुम्हारी कंचन दीदी?" रवि उसके शब्दों को दोहराया.

"हां. लेकिन तुम उनका नाम क्यों पुच्छ रहे थे?" बच्चे ने उल्टा प्रश्न किया.

"बस ऐसे ही, मॅन में आया तो पुच्छ लिया. जैसे तुमने पुछा."

चिंटू ने अजीब सी नज़रों से उसे देखा.

"अच्छा चिंटू, अब एक काम और करोगे?"

"पैसे मिलेंगे?" चिंटू ने वापस अपने होठों पर जीभ घुमाई.

रवि ने वापस 10 का नोट उसे थमाया. - "तुम अपनी दीदी के कपड़े मुझे लाकर दे सकते हो?"

"दीदी के कपड़े, नही.....दीदी मारेगी." चिंटू डरते हुए बोला.

"तो फिर मेरे सारे पैसे वापस करो." रवि ने अपनी आँखें दिखाई.

चिंटू कुच्छ देर अपनी मुट्ठी में बँधे नोट को देखता रहा और सोचता रहा. फिर बोला - "तुम दीदी के कपड़ों का क्या करोगे?"

"कुच्छ नही....बस हाथ में लेकर देखना चाहता हूँ कि तुम्हारी दीदी के कपड़े कैसे हैं."

चिंटू कुच्छ देर खड़ा रहा. उसके मन में एक तरफ रुपयों का लालच था तो दूसरी तरफ दीदी की डाँट का ख्याल. आख़िरकार उसने रुपयों को जेब में रखा और कपड़ों की तरफ बढ़ा. दूसरे मिनिट में वो कंचन के कपड़े लेकर वापस आया. रवि ने उसके हाथ से कपड़े लिए और बोला - "चिंटू महाराज, अब अगर तुम चाहते हो कि तुम्हारी दीदी तुम्हारी पिटाई ना करे, तो फिर यहाँ से खिस्को."

चिंटू सहमा. उसने भय से काँपते हुए रवि को देखा. - "अब तुम दीदी के कपड़े वापस दो."

"मैं ये कपड़े तुम्हारी दीदी के ही हाथों में दूँगा."

"लेकिन दीदी मुझे मारेगी." वह डरते हुए बोला. उसका चेहरा डर से पीला पड़ गया था.

"तुम्हारी दीदी को बताएगा कौन कि तुमने उसके कपड़े मुझे दिए हैं." रवि ने उसका भय दूर किया - "जब तुम यहाँ रहोगे ही नही तो वो तुम्हे मारेगी कैसे?"

"लेकिन तुम दीदी को मत बताना कि मैने उनके कपड़े तुम्हे दिए हैं."

"नही बताउन्गा. प्रॉमिस." रवि अपना गला छू कर बोला.

अगले ही पल चिंटू नौ दो ग्यारह हो गया. रवि कंचन के कपड़े हाथों में लिए पास की झाड़ियों में जा छुपा और कंचन के बाहर आने की प्रतीक्षा करने लगा.

क्रमशः.................
Reply
05-02-2020, 01:02 PM,
#12
RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
अपडेट 8

रवि झाड़ियों में छिप गया. उसके मन में बदले की भवना थी. इसी लड़की के कारण उसे हवेली में मज़ाक का पात्र बनना पड़ा था. उसने कंचन को सबक सिखाने का निश्चय कर लिया था. वो ये कैसे भूल सकता था कि बिना वजह इस लड़की ने उसके कपड़े जलाए थे. इसी की वजह से वो दो दिन तक जोकर बना हवेली में फिरता रहा. इन्ही विचारों के साथ वो झाड़ियों में छिपा रहा और कंचन के बाहर आने की राह देखता रहा.

कुच्छ देर बाद एक एक करके लड़कियाँ बाहर आती गयीं और अपने अपने कपड़े पहन कर अपने अपने घर को जाने लगी. रवि 1 घंटे से झाड़ियों की औट से ये सब देख रहा था. अब सूर्य भी अपने क्षितिज पर डूब चुका था. चारो तरफ सांझ की लालिमा फैल चुकी थी. अब नदी में केवल 2 ही लड़कियाँ रह गयी थी. उनमें एक कंचन थी दूसरी उसकी कोई सहेली. कुच्छ देर बाद उसकी सहेली भी नदी से बाहर निकली और अपने कपड़े पहनने लगी. अचानक उसे ये एहसास हुआ कि यहाँ कंचन के कपड़े नही हैं. उसने उसके कपड़ों की तलाश में इधर उधर नज़र दौड़ाई, पर कपड़े कहीं भी दिखाई नही दिए. उसने कंचन को पुकारा. - "कंचन, तुमने अपने कपड़े कहाँ रखे थे? यहाँ दिखाई नही दे रहे हैं."

"वहीं तो थे. शायद हवा से इधर उधर हो गये हों. मैं आकर देखती हूँ" कंचन बोली और पानी से बाहर निकली. वह उस स्थान पर आई जहाँ पर उसने अपने कपड़े रखे थे. वहाँ पर सिर्फ़ उसकी ब्रा और पैंटी थी. बाकी के कपड़े नदारद थे. वह अपने कपड़ों की तलाश में इधर उधर नज़र दौड़ने लगी. वो कभी झाड़ियों में ढूँढती तो कभी पत्थरों की औट पर. लेकिन कपड़े उसे कहीं भी दिखाई नही दिए. अब कंचन की चिंता बढ़ी. वो परेशानी में इधर उधर घूमती रही, फिर अपनी सहेली के पास गयी. "लता कपड़े सच मच में नही हैं."

"तो क्या मैं झूठ बोल रही थी." लता मुस्कुराइ.

"अब मैं घर कैसे जाउन्गि?."

"थोड़ी देर और रुक जा. उजाला ख़त्म होते ही घर को चली जाना. अंधेरे में तुम्हे कोई नही पहचान पाएगा."

"तू मेरे घर से कपड़े लेकर आ सकती है?" कंचन ने सवाल किया.

"मैं....! ना बाबा ना." लता ने इनकार किया - "तू तो जानती ही है मेरी मा मुझे आने नही देगी. फिर क्यों मुझे आने को कह रही है?"

"लता, तो फिर तू भी कुच्छ देर रुक जा. दोनो साथ चलेंगे. यहाँ अकेले में मैं नही रह सकूँगी." कंचन ने खुशामद की.

"कंचन, मैं अगर रुक सकती तो रुक ना जाती. ज़रा सी देर हो गयी तो मेरी सौतेली मा मेरी जान ले लेगी."

कंचन खामोश हो गयी. वो अच्छी तरह से जानती थी, लता की सौतेली मा उसे बात बात पर मारती है. एक काम को 10 बार करवाती है. वो तो अक्सर इसी ताक में रहती है कि लता कोई ग़लती करे और वो इस बेचारी की पिटाई करे. उसका बूढ़ा बाप भी अपनी बीवी के गुस्से से दूर ही रहता था.

"क्यों चिंता कर रही है मेरी सखी. मेरी माँ तो तू ऐसे ही मेरे साथ घर चल." लता ने उसे सुझाव दिया.

"ऐसी हालत में कोई देखेगा तो क्या कहेगा?" कंचन चिंतित स्वर में बोली.

"कोई कुच्छ नही कहेगा. उल्टे लोग तुम्हारी इस कंचन काया की प्रशंसा ही करेंगे." लता उसके पास आकर उसके कंधो पर हाथ रख कर बोली - "सच कहती हूँ, गाओं के सारे मजनू तुम्हे ऐसी दशा में देखकर जी भर कर सच्चे दिल से दुआएँ देंगे."

"लता तुम्हे मस्ती चढ़ि है और यहाँ मेरी जान निकली जा रही है." कंचन गंभीर स्वर में बोली.

"तुम्हारे पास और कोई चारा है?" लता उसकी आँखों में झाँकते हुए बोली - "या तो तू ऐसे ही मेरे साथ घर चल...या फिर कुच्छ देर रुक कर अंधेरा होने का इंतेज़ार कर. लेकिन मुझे इज़ाज़त दे. मैं चली." ये कहकर लता अपने रास्ते चल पड़ी. कंचन उसे जाते हुए देखती रही.

रवि झाड़ियों में छिपा ये सब देख रहा था. लता के जाते ही वो बाहर निकला. और धीमे कदमो से चलता हुआ कंचन की और बढ़ा. कंचन उसकी ओर पीठ किए खड़ी थी. रवि उसके निकट जाकर खड़ा हो गया और उसे देखने लगा. किसी नारी को इस अवस्था में देखने का ये उसका पहला अवसर था. कंचन गीले पेटिकोट में खड़ी थी. उसका गीला पेटिकोट उसके नितंबो से चिपक गया था. पेटिकोट गीला होने की वजह से पूरा पारदर्शी हो गया था. हल्की रोशनी में भी उसके भारी गोलाकार नितंब रवि को सॉफ दिखाई दे रहे थे. दोनो नितंबो के बीच की दरार में पेटिकोट फस सा गया था. वह विस्मित अवस्था में उसके लाजवाब हुश्न का दीदार करता रहा. अचानक से कंचन को ऐसा लगा कि उसके पिछे कोई है. वह तेज़ी से घूमी. जैसे ही वो पलटी चीखती हुई चार कदम पिछे हटी. वो आश्चर्य से रवि को देखने लगी. रवि ने उसकी चीख की परवाह ना करते हुए उसे उपर से नीचे तक घूरा. उसकी अर्धनग्न चूचियाँ रवि की आँखों में अनोखी चमक भरती चली गयी. उसकी नज़रें उन पहाड़ जैसे सख़्त चुचियों में जम गयी. गीले पेटिकोट में उसके तने हुए बूब्स और उसकी घुंडिया स्पस्ट दिखाई दे रही थी. रवि ने अपने होठों पर जीभ फेरी.
Reply
05-02-2020, 01:02 PM,
#13
RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
कंचन की हालत पतली थी. ऐसी हालत में अपने सामने किसी अजनबी मर्द को पाकर उसका दिल धाड़ धाड़ बज रहा था. सीना तेज़ी से उपर नीचे हो रहा था. उसे अपने बदन पर रवि के चुभती नज़रों का एहसास हुआ तो उसने अपने हाथों को कैंची का आकर देकर अपनी छाती को ढकने का प्रयास करने लगी. वो लाज की गठरी बनी सहमी से खड़ी रही. फिर साहस करके बोली - "आप यहाँ इस वक़्त....आपको इस तरह किसी लड़की को घूरते लज्जा नही आती?"

उत्तर में रवि मुस्कुराया. फिर व्यंग भरे शब्दों में बोला - "ये तो वही बात हो गयी. कृष्ण करे तो लीला. हम करे तो रासलीला."

"मैं समझी नही." कंचन रूखे स्वर में बोली.

रवि ने अपने हाथ आगे किए और उसके कपड़े दिखाए. कंचन रवि के हाथो में अपने कपड़े देखकर पहले तो चौंकी फिर आँखें चढ़ाकर बोली -"ओह्ह...तो आपने मेरे कपड़े चुराए थे. मुझे नही पता था आप शहरी लोग लड़कियों के कपड़े चुराने के भी आदि होते हैं. लेकिन ये बड़ी नीचता का काम है. लाइए मेरे कपड़े मुझे दीजिए."

रवि व्यंग से मुस्कुराया. -"मुझे भी नही पता था कि गाओं के सीधे साधे से दिखने वाले लोग, अपने घर आए मेहमान का स्वागत उसके कपड़े जलाकर करते हैं. क्या ये नीचता नही है."सहसा उसकी आवाज़ में कठोरता उभरी - "अब क्यों ना मैं अपने उस अपमान का बदला तुमसे लूँ. क्यों ना तुम्हारे बदन से ये आख़िरी कपड़ा भी नोच डालूं."

कंचन सकपकाई. उसकी आँखों से मारे डर के आँसू बह निकले. वो सहमी सी आवाज़ में बोली - "मैने आपके कपड़े नही जलाए थे साहेब. वो तो...वो तो...." कंचन कहते कहते रुकी. वह खुद तो लज्जित हो चुकी थी अब निक्की को शर्मसार करना ठीक नही समझा.

"वो तो क्या? कह दो कि वो काम किसी और ने किए थे. जो लड़की मेरे रूम में मेरे जले हुए कपड़े रख के गयी थी वो तुम नही कोई और थी."

"साहेब....मैं सच कहती हूँ, मैने आपके कपड़े नही जलाए."

"तुम्हारा कोई भी झूठ तुम्हारे किए पर परदा नही डाल सकता. तुम्हारे इस गोरे शरीर के अंदर का जो काला दिल है उसे मैं देख चुका हूँ."

कंचन रुआन्सि हो उठी, रवि के ताने उसके दिल को भेदते जा रहे थे. उसने सहायता हेतु चारो तरफ नज़र दौड़ाई पर उसे ऐसा कोई भी दिखाई नही दिया. जिससे वो मदद माँग सके. उसने उस पल निक्की को जी भर कोसा. काश कि वो उसकी बातों में ना आई होती. उसने एक बार फिर रवि के तरफ गर्दन उठाई और बोली - "साहेब, मेरे कपड़े दे दो. मेरे घर में सब परेशान होंगे." उसकी आवाज़ में करुणा थी और आँखें आँसुओं से डबडबा गयी थी. वो अब बस रोने ही वाली थी.

क्रमशः....................................
Reply
05-02-2020, 01:02 PM,
#14
RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
अपडेट 9



रवि ने उसके चेहरे को ध्यान से देखा. उसका चेहरा शर्म और भय से पीला पड़ गया था. उसकी खूबसूरत आँखों में आँसू की मोटी मोटी बूंदे चमक उठी थी. उसके होंठ कांप कंपा रहे थे. वो लाचारी से अपने सूखे होठों पर जीभ फ़ीरा रही थी. उसे उसकी हालत पर दया आ गयी. उसने अपने हाथ में पकड़ा कपड़ा उसकी ओर फेंका और बोला - "ये लो अपने कपड़े, पहनो और घर जाओ. मैं उन लोगों में से नही हूँ जो किसी की विवशता का फ़ायदा उठाने में अपनी शान समझते हों. लेकिन घर जाने के बाद अगर फ़ुर्सत मिले तो अपने मन के अंदर झाँकना और सोचना कि मैने तुम्हारे साथ जो किया वो क्यों किया. अब तो शायद तुम्हे ये समझ में आ गया होगा कि किसी के मन को ठेस पहुँचाने से सामने वाले के दिल पर क्या गुजरती है." रवि जाने के लिए मुड़ा, फिर रुका और पलटकर कंचन से बोला -"एक बात और.....अगर तुम किसी के दिल में अपने लिए प्यार ना भर सको तो कोशिश करना कि कोई तुमसे नफ़रत भी ना करे." ये कहकर रवि मुड़ा और अपनी बाइक की तरफ बढ़ गया.

कंचन उसे जाते हुए देखती रही. उसकी आँखों में अभी भी आँसू भरे हुए थे. उसके कानो में रवि के कहे अंतिम शब्द गूँज रहे थे.

"मुझे माफ़ कर दो साहेब." वह बड़बड़ाई - "मैं जानती हूँ मेरी वजह से आपका दिल टूटा है, भूलवश मैने आपके स्वाभिमान को ठेस पहुँचाई है. पर मुझसे नफ़रत मत करना साहेब....मैं बुरी लड़की नही हूँ....मैं बुरी लड़की नही हूँ साहेब."

कंचन भारी कदमो से झाड़ियों की ओर बढ़ी और अपने कपड़े पहनने लगी. कपड़े पहन लेने के बाद वो अपने घर के रास्ते चल पड़ी. पूरे रास्ते वो रवि के बारे में सोचती रही. कुच्छ देर बाद वो अपने घर पहुँची. कंचन ने जैसे ही अपने घर के आँगन में कदम रखा बुआ ने पुछा - "कंचन इतनी देर कैसे हो गयी आने में? कितनी बार तुझे समझाया. सांझ ढले बाहर मत रहा करो. तुम्हे अपनी कोई फिक़र रहती है कि नही?"

कंचन ने बुआ पर द्रष्टी डाली, बुआ इस वक़्त आँगन के चूल्‍हे में रोटियाँ बना रही थी. चूल्‍हे से थोड़ी दूर चारपाई पर उसका बाप सुगना बैठा हुआ था. कंचन उसे बाबा कहती थी. - "आज देर हो गयी बुआ, आगे से नही होगी." कंचन बुआ से बोली और अपने कमरे की ओर बढ़ गयी. उसके मिट्टी और खप्रेल के घर में केवल दो कमरे थे. एक कमरे में कंचन सोती थी, दूसरे में उसकी बुआ शांता, सुगना की चारपाई बरामदे में लगती थी. चिंटू के लिए अलग से चारपाई नही बिछती थी. उसकी मर्ज़ी जिसके साथ होती उसके साथ सो जाता. पर ज़्यादातर वो कंचन के साथ ही सोता था. कंचन अपने रूम के अंदर पहुँची. अंदर चिंटू पढ़ाई कर रहा था. कंचन को देखते ही वह घबराया. और किताब समेटकर बाहर जाने लगा.

"कहाँ जा रहा है?" कंचन ने उसे टोका.

"क....कहीं नही, बाहर मा....मामा के पास." वह हकलाया.

"मा के पास या मामा के पास?" कंचन ने घूरा - "और तू इतना हकला क्यों रहा है?"

चिंटू सकपकाया. उसके माथे पर पसीना छलक आया. चेहरा डर से पीला पड़ गया, उसने बोलने के लिए मूह खोला पर आवाज़ बाहर ना निकली.

कंचन के माथे पर बाल पड़ गये. वा उसे ध्यान से देखने लगी. "कुच्छ तो बात है?" कंचन मन में बोली - "इसकी घबराहट अकारण नही है."

चिंटू कंचन को ख्यालो में डूबा देख दबे कदमो से वहाँ से निकल लिया. कंचन सोचती रही. सहसा उसकी आँखें चमकी. जब वो नदी में स्नान कर रही थी तब उसने चिंटू की आवाज़ सुनी थी. पर देख नही पाई थी. -"कहीं ऐसा तो नही इसी ने मेरे कपड़े चुराकर साहेब को दिए हों." वह बड़बड़ाई - "ऐसा ही हुआ होगा. वरना साहेब को क्या मालूम मेरे कपड़े कौन से हैं?"

बात उसके समझ में आ चुकी थी. कंचन दाँत पीसती कमरे से बाहर निकली. चिंटू उसके बाबा की गोद में बैठा बाते कर रहा था. कंचन को गुस्से में अपनी ओर आते देख उसके होश उड़ गये. पर इससे पहले कि वो कुच्छ कर पाता, कंचन उसके सर पर सवार थी. कंचन ने उसका हाथ पकड़ा और खींचते हुए कमरे के अंदर ले गयी. कमरे में पहुँचकर कंचन ने चिंटू को चारपाई पर बिठाया और अंदर से दरवाज़े की कुण्डी लगाने लगी. चिंटू ये देखकर भय से काँप उठा. उसे समझते देर नही लगी कि आज उसकी पिटाई निश्चिंत है. उसने उस पल को कोसा जब पैसे के लालच में आकर उसने शहरी बाबू की बात मानी थी.

कंचन दरवाज़े की कुण्डी लगाकर उसके पास आकर खड़ी हो गयी. -"क्यूँ रे...तू मुझसे भागता क्यों फिर रहा है?"

"दीदी, क्या तुम सच-मुच मुझे मरोगी?" चिंटू ने डरते डरते पुछा.

कंचन ने चिंटू के पीले चेहरे को देखा तो उसका सारा क्रोध गायब हो गया. वह मुस्कुराइ, फिर उसके साथ चारपाई में बैठकर उसके गालो को चूमकर बोली -" नही रे, मैं भला तुम्हे मार सकती हूँ, पर तूने ही मेरे कपड़े साहेब को दिए थे ना? सच सच बता, नही तो अबकी ज़रूर मारूँगी"

चिंटू मुस्कुराया. उसने कंचन को देखा और शरमाते हुए बोला - "हां !"

"क्यों दिए थे?" कंचन फिर से उसके गालो को चूमते हुए बोली.

"नही बताउन्गा, तुम मारोगी." चिंटू हंसा.
Reply
05-02-2020, 01:03 PM,
#15
RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
"नही बतायेगा तो मारूँगी," कंचन ने आँखें दिखाई - "बता ना क्यों दिए थे मेरे कपड़े?"

"उसने मुझे पैसे दिए और बोला क़ि वो जो कहेगा अगर मैं करूँगा तो वो मुझे और पैसे देगा." चिंटू ने कंचन को नदी का पूरा वृतांत सुना दिया.

"पैसे कहाँ है?" कंचन ने सब सुनने के बाद पुछा.

चिंटू ने अपने जेब से पैसे निकालकर कंचन को दिखाया फिर बोला -"दीदी मुझे लगा आप मुझे मरोगी. आज के बाद मैं फिर कभी ऐसा नही करूँगा...सच्ची.!"

कंचन मुस्कुराइ और उसे अपनी छाती से भींचती हुई मन में बोली - "तू नही जानता, तेरी वजह से आज मुझे क्या मिला है." अगले ही पल उसके मन में सवाल उभरा. "लेकिन ऐसा क्या मिला है मुझे जो मैं इतनी खुश हो रही हूँ? साहेब ने तो मुझसे कोई अच्छी बात भी नही की, उन्होने तो मेरा अपमान ही किया है. फिर क्यों मेरा मन मयूर बना हुआ है?"

"नही साहेब ने मेरा अपमान नही किया, उन्होने जो भी कहा मेरे भले के लिए कहा, वे तो अच्छे इंसान हैं, आज अगर वो चाहते तो मेरे साथ क्या नही कर सकते थे. लेकिन उन्होने कुच्छ नही किया. वे सच में अच्छे इंसान हैं."

"चलो मान लिया वे अच्छे इंसान हैं. लेकिन मैं क्यों उनके बारे में सोच रही हूँ. मुझे क्या अधिकार है उनके बारे में सोचने का. कहीं ऐसा तो नही कि मैं उनसे प्यार करने लगी हूँ."

"अगर मैं करती भी हूँ तो क्या बुरा है, प्यार करना कोई बुरा तो नही. प्यार तो एक ना एक दिन सभी को होता है, मुझे भी हो जाने दो."

कंचन का दिल धड़का. उसके सीने में मीठी मीठी कसक सी हुई. वह अपनी छाती को मसल्ने लगी. "ये क्या हो रहा है मुझे, मैं क्यों उनके बारे में इतना सोच रही हूँ. कुच्छ तो हुआ है मुझे, क्या सच में मुझे प्यार हो गया है?

कंचन के मन में प्रेम का अंकुर फुट चुका था. और उसकी वृधि बड़ी तेज़ी से हो रही थी. रवि से नदी में मुलाक़ात उसपर बहुत भारी पड़ी थी. उसे ना तो उगलते बन रहा था ना निगलते. वह पल प्रतिपल रवि के ख्यालो में डूबती जा रही थी. वो चाहकर भी उस विचार से पिछा नही छुड़ा पा रही थी.
Reply
05-02-2020, 01:03 PM,
#16
RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
अपडेट 10

.

चिंटू अपनी दीदी को खोया देख सोच में पड़ गया. कंचन विचारों में थी, कभी उसके होठ मुस्कुरा उठते, तो कभी सख़्त हो जाते. नन्हे चिंटू की समझ में कुच्छ भी नही आ रहा था. - "क्या हुआ दीदी, तुम चुप क्यों हो गयी?"

चिंटू की बातों से कंचन जागी, उसने चिंटू को देखा जो हैरानी से उसकी ओर ताक रहा था. - "बोलो दीदी, तुम क्यों मुस्कुरा रही थी?" चिंटू ने फिर से पुछा.

"तुम्हे क्या बताऊ चिंटू? मुझे तो खुद नही पता मुझे क्या हुआ है? क्या होता जा रहा है? क्यों मुझे हर चीज़ अच्छी लगने लगी है. वही तुम हो वही ये घर है वही आँगन है, फिर क्यों मुझे हर चीज़ नयी नयी सी लग रही है? काश कोई मेरे इन सवालों का जवाब बता दे." कंचन खोई खोई सी बोली, उसकी आवाज़ कहीं दूर से आती प्रतीत हुई.

चिंटू ने पलके झपकाई. उसकी समझ में अब भी कुच्छ ना आया - "मैं जाके मामा को बताऊ?" वो कंचन की गोद से उठता हुआ बोला.

कंचन सकपकाई. उसने झट से चिंटू का हाथ खींचा और उसे लिए बिस्तर पर फैल गयी. उसे बाहों में भर कर उसके गालो पर ताबड़तोड़ चुंबन धरती चली गयी. -"दीदी छ्चोड़ो मुझे." चिंटू छूटने के लिए मचला, पर कंचन की गिरफ़्त मजबूत थी -"मेरा गाल गीला करोगी तो मैं फिर कभी तुम्हारे पास नही आउन्गा."

"तो किसके गाल गीला करूँ...बता?" कंचन उसे लगातार चूमती हुई बोली.

"जाके उस शहरी बाबू के गाल गीले करो, जिसने तुम्हारे कपड़े ले लिए थे." चिंटू फिर से मचला.

"पर दिए तो तूने ही थे." कंचन उसे गुदगुदाते हुए बोली.

कुच्छ देर चिंटू को लाल पीला करने के बाद कंचन ने उसे छोड़ा. चिंटू उसके हाथ से निकलते ही बाहर भागा. कंचन बिस्तर पर गिरकर रवि के बारे में सोचने लगी. रवि के कहे अंतिम शब्द फिर से उसके कानो में गूँज उठे -"अगर तुम किसी के दिल में अपने लिए प्यार ना भर सको तो कोशिश करना की कोई तुमसे नफ़रत भी ना करे."

"साहेब, मैं आपके दिल में अपने लिए प्यार भर कर रहूंगी." वह बड़बड़ाई. -"एक दिन आएगा साहेब, जब आप इसी कंचन को अपनी बाहों में भर कर झुमोगे. मुझे प्यार करोगे. मैं आपके दिल में अपने लिए इतना प्यार भर दूँगी कि सात जन्म तक आप उस प्यार को निकाल नही पाओगे." कंचन के होंठ मुस्कुराए. वह तकिये में सर छुपाकर सपनो की दुनिया में खोती चली गयी.


*****

इस वक़्त रात के 12 बजने को हैं. निक्की अपने बिस्तर पर लेटी हुई है. पर उसकी आँखों से नींद गायब है. उसके ख्यालो में भी रवि बसा हुआ है. आप लोग शायद ये सोच रहे होंगे कि वो भी कंचन ही की तरह रवि से प्यार करने लगी है. लेकिन ऐसा नही है, उसके विचारों का आधार कुच्छ और है, निक्की को तो प्यार मोहब्बत से नफ़रत है, वो प्यार व्यार को बेवकूफ़ लोगो का विचार भर समझती है. उसका मानना है कि प्यार में इंसान की अक़ल कम हो जाती है. प्यार सिर्फ़ तनाव देता है और कुच्छ नही. प्यार करने के बाद इंसान अपनी आज़ादी खो देता है. इंसान दूसरे का दास बनकर रह जाता है. निक्की के दिल में सिर्फ़ दो लोगों के लिए प्यार था. एक उसके पिता ठाकुर जगत सिंग, दूजा - कंचन उसकी सहेली. इनके अतिरिक्त उसने किसी को भी अपने दिल में उतरने नही दिया. हां मा के लिए उसका दिल अभी भी खाली है. उसके विचारों में रवि के आने का कारण था कि वो अपने उस जीवन को याद कर रही थी जो उसने शहर में बीताए थे. उसे वहाँ हर चीज़ की आज़ादी थी कोई रोकने वाला नही कोई टोकने वाला नही. चाहें किसी के साथ घुमो, देर रात तक बाहर रहो, दोस्तो के साथ कुच्छ भी करो, कोई बंदिश नही थी. लेकिन यहाँ ठीक उसके उलटा था. यहाँ निक्की को वो सब आज़ादी नही मिलने वाली थी. उसने कॉलेज में बहुत मज़े किए थे. अनगिनत लड़कों के साथ शारीरिक संबंध बनाए थे. वो उन लड़कियों में से थी जो कपड़े कम, बिस्तर ज़्यादा बदलती हैं. उसके लिए पुरुषो से दोस्ती केवल शारीरिक संतुष्टि होती थी और कुच्छ नही. वह अपने शहरी जीवन में सेक्स की इतनी आदि हो चुकी थी कि, वो किसी के साथ भी सेक्स करने से नही हिचकिचाती थी. लेकिन उसने कभी भी अपने उपर किसी को हावी नही होने दिया. उसने कभी दूसरी नशीली चीज़ों को हाथ नही लगाया. शराब सिग्गरेट की वो कभी आदि नही हुई.

उसे शहर से आए 4 दिन हो चुके थे. पिच्छले 6 दिनो से वो शारीरिक सुख से वंचित थी. यहाँ आने के तीसरे दिन तक तो उसका मन उस ओर नही गया. लेकिन अब वो उसकी कमी महसूस करने लगी थी. आज बिस्तर में लेटे लेटे उसे वो पल याद आ रहे थे जो उसने आनंद के झूले में बीताए थे. उन पॅलो को याद करके उसका शरीर तप उठा था. शरीर में वासना की लहर तैर रही थी. उसे इस वक़्त सिर्फ़ एक ही चेहरा दिखाई दे रहा था जो उसकी काम वासना को शांत कर सकता था. और वो था रवि. लेकिन वो एक दुविधा में भी थी, वैसे तो वह काई लोगों से सेक्स कर चुकी थी, पर रवि उसे कुच्छ अलग किस्म का इंसान लगा था. उसे भय था कि कहीं रवि उसके प्रस्ताव को ठुकरा ना दें. लेकिन लाख चाहने पर भी वो अपने अंदर उठती काम वासना को नही दबा पा रही थी. मन पर शरीर का भूख हावी होती जा रही थी. वह उठी और आईने के सामने खड़ी हो गयी. उसके बदन पर इस वक़्त बेहद पारदर्शी नाइटी थी. वह आईने में खुद को देखने लगी. - "क्या मेरा ये हुश्न रवि को पिघला सकेगा?" उसने अपने तने हुए बूब्स को देखा. वो सर उठाए किसी भी चुनौती के लिए तैयार खड़े थे. निक्की अपने दोनो हाथों को दोनो बूब्स के उपर रखकर धीरे से सहलाई. ठीक ऐसे जैसे उन्हे शाबाशी दे रही हो. हाथ का स्पर्श पाकर उसके बूब्स और भी कड़क हो उठे. निक्की मुस्कुराइ. साथ ही उसका दाहिना हाथ नीचे फिसला और सीधे कमर तक पहुँच गया. कमर से होते हुए उसका हाथ उसकी पैंटी तक पहुँचा. उसने उंगली को पैंटी के एलास्टिक पर फसाया फिर धीरे से पैंटी को नीचे खिसकाती चली गयी. पैंटी जाँघो तक पहुँच गयी तो उसने अपने हाथ हटा लिए. उसके बाद आईने में अपनी नग्न सुंदरता को देखने लगी. कुच्छ देर अपनी ही आँखों से अपनी क़यामत ढाती सुंदरता का रस्पान करने के बाद निक्की ने पैंटी उपर कर ली. फिर पलट कर बिस्तर तक आई. कुछ देर बिस्तर पर बैठ कर सोचती रही कि उसे रवि के पास जाना चाहिए या नही. अंत में उसने रवि के पास जाने का निश्चय किया. निक्की नेसिरहाने में रखी चादर उठाई और अपने बदन से लपेट ली. फिर उसने घड़ी पर नज़र डाली 12:30 होने को थे. वह धीरे से कमरे से बाहर निकली. गॅलरी में आकर उसने नज़र दौड़ाई. गॅलरी सुनसान थी. वो अपने कमरे का दरवाज़ा भिड़ाया और दबे कदमों से रवि के रूम की तरफ बढ़ गयी. उसे पूरी उम्मीद थी कि रवि इस वक़्त जाग रहा होगा. उसने अपने बढ़ते कदम रवि के कमरे के बाहर रोके. फिर धीरे से दरवाज़े पर दस्तक दी. कुच्छ देर बाद अंदर से रवि की आवाज़ आई - "कौन है?"

"मैं हूँ निक्की....दरवाज़ा खोलो." निक्की धीरे से बोली.

कुच्छ देर बाद रवि ने दरवाज़ा खोला और हैरानी से निक्की को देखा - "तुम...मेरा मतलब आप.... इस वक़्त?"

"अंदर आने के लिए नही कहेंगे." निक्की मुस्कुराते हुए बोली.

"आइए." रवि दरवाज़े से एक ओर हट-ते हुए बोला.

निक्की कमरे के अंदर दाखिल हुई और सोफे पर जाकर बैठ गयी. रवि उसके सामने जाकर खड़ा हो गया और सवालिया नज़रों से निक्की की ओर देखने लगा. उसने अपने दिमाग़ की सारी खिड़कियाँ खोल दी और ये सोचने में लगा कि आख़िर निक्की इतनी रात गये उसके कमरे में ऐसा रूप धर कर क्यों आई है?. लेकिन लाख दिमागी घोड़े दौड़ाने के बाद भी उसके समझ में कुच्छ ना आया उसने निक्की को देखा. निक्की उसे ही देख रही थी, रवि को अपनी ओर आश्चर्य से देखते पाकर निक्की मुस्कुराते हुए बोली - "दरवाज़ा बंद कर लीजिए."

"आप ने गर्मी की रात में चादर क्यों ओढ़ रखी हैं?" रवि निक्की की बात को अनसुना करते हुए उससे पुछा.

"असल में मैने अंदर पारदर्शी नाइटी पहन रखी है. और उन कपड़ों में मेरा आपके पास आना शायद आपको अच्छा नही लगता. इसलिए मैं ये चादर ओढकर रखी है." ये कहकर निक्की मुस्कुराइ और रवि को देखने लगी.

"ऐसी क्या बात थी कि आपको ऐसी हालत में इस वक़्त आना पड़ा?" रवि ने आश्चर्य से पुछा. उसका चेहरा शांत था. हालाँकि निक्की के मूह से ये सुनकर की उसने पारदर्शी कपड़े पहन रखे हैं, वह अचंभीत था. उसके अंदर का युवा दिल ज़ोरों से धड़का था. पर उसने निक्की के सामने अपने भाव प्रकट नही होने दिए.

"कुच्छ खास नही, बस मुझे नींद नही आ रही थी तो सोचा थोड़ी देर आपसे बाते कर लूँ." निक्की धीरे से मुस्कुराकर बोली -"मुझे पता था कि आप भी जाग रहे होंगे."

"मैं जाग रहा हूँ ये आप कैसे जानती थी?" रवी ने सवाल किया.

"मेरा इस घर में जन्म हुआ है, बचपन भी यहीं बीता है, सभी लोग मुझे जानते हैं, मैं सबको पहचानती हूँ, फिर भी मेरा मन यहाँ नही लग रहा है. खुद को अकेली सी महसूस करती हूँ. दिन तो कैसे भी कट जाता है, पर रात मुश्किल हो जाती है, पूरी रात जागते में गुजरती है." वह कुच्छ देर के लिए रुकी, फिर मुस्कुराते हुए बोली -"जब मेरी ऐसी हालत है तो फिर आप तो यहाँ पर अजनबी हैं. आपको भला कैसे नींद आ सकती है."
Reply
05-02-2020, 01:03 PM,
#17
RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
अपडेट 11


"मेरे जागने का कारण कुच्छ और है निक्की जी." रवि घंभीर स्वर में बोला - "मैं आपकी माताजी के बारे में सोच रहा था."

"ओह्ह...!" मा के बारे में सुनकर निक्की का चेहरा लटक गया - "तो फिर शायद मैं आपको डिस्टर्ब कर रही हूँ."

"नही ऐसा भी नही है." रवि झेन्प्ते हुए बोला. और निक्की की ओर देखने लगा. उसकी समझ में नही आ रहा था कि वो निक्की से क्या कहे. उसका इस वक़्त उसके कमरे में होने से उसे बहुत घबराहट हो रही थी. वो एक शभ्य इंसान था, उसे अपना मान सम्मान बहुत प्यारा था. वो नही चाहता था कि कोई निक्की को इस वक़्त उसके कमरे में देखे और खा-मखा उसकी इज़्ज़त की धज्जिया उड़े. पर वो सीधे मूह निक्की को जाने के लिए भी नही कह सकता था. ऐसा करना आचरण के खिलाफ था.

निक्की सर झुकाए अपनी सोचों में गुम थी. उसे भी समझ में नही आ रहा था कि वो रवि से असली बात कैसे कहे. वैसे तो वो बहुत खुले स्वाभाव की थी, किसी को कुच्छ कहने में ज़रा भी नही हिचकिचाती थी. पर यहाँ बात और थी. एक तो वो रवि की शालीनता से डर रही थी, दूसरी ये कि वो इस वक़्त अपने ही घर में थी. उसकी एक ग़लती उसे उसी के घर में अपमानित कर सकती थी.

"आपके घर में कौन कौन हैं?" निक्की को कुच्छ ना सूझा तो उसके परिवार के बारे में पुच्छ बैठी.

"मेरी मा और मैं." रवि हौले से मुस्कुराया.

"और आपकी बीवी?" निक्की अपनी नज़रें उसके चेहरे पर गढ़ाती हुई बोली.

"बीवी अभी तक आई नही. अर्थात मैने अभी तक शादी नही की"

"ह्म्म्म....तो महाशय अभी तक गर्लफ्रेंड से ही काम चला रहे हैं." निक्की छेड़खानी वाले अंदाज़ में बोली, लेकिन उसकी बातों में कामुकता का मिश्रण था.

रवि निक्की की स्पास्टवदिता से चौंक उठा. उसे अंदाज़ा नही था कि निक्की इतनी फ्रॅंक बात कर सकती है. वो झेप्ते हुए बोला - "मेरी कोई गर्लफ्रेंड नही है."

"क...क्या?" निक्की का मूह भाड़ सा खुला. हालाँकि ये जानकार उसके मन में हज़ारों लड्डू फूटे थे. पर चौंकने का नाटक करती हुई बोली - "मैं नही मानती. आप इतने खूबसूरत है, आपकी कोई ना कोई गेर्ल फ्रेंड तो ज़रूर होगी. हां....आप मुझे ना बताना चाहें तो बात और है."

"भला आपसे झूठ बोलकर मुझे क्या मिलेगा?" रवि ने जवाब दिया.

"हो सकता है, आप इसी बहाने मुझसे बचना चाहते हों." निक्की असली विषय पर आती हुई बोली.

"म....मैं कुच्छ समझा नही." रवि हकलाया. - "मैं भला आप से क्योन्कर बचना चाहूँगा? और फिर...किस लिए?"

"तो आप मुझसे बचना नही चाहते?" निक्की उसकी आँखों में देखती हुई बोली -"तो फिर इतनी दूर क्यों खड़े हैं? यहाँ मेरे पास आकर बैठिए."

रवि का दिमाग़ चकरा गया. उसे कुच्छ भी जवाब देते नही बना. - "निक्की जी आप क्या बोल रही हैं मेरे समझ में कुच्छ भी नही आ रहा है. आप जो भी कहना चाहती हैं साफ साफ कहिए."

"इतने भोले मत बनिये रवि जी." निक्की खड़ी होती हुई बोली - "क्या आप इतना भी नही समझ सकते कि मैं इस वक़्त यहाँ क्यों आई हूँ? लेकिन अगर आप साफ साफ ही सुनना चाहते हैं तो सुनिए." निक्की ये बोलते हुए अपने तन पे लिपटी चादर एक झटके में उतार कर फेंकी दी - "मैं आपके साथ सेक्स करना चाहती हूँ."

रवि अवाक ! वो फटी फटी आँखों से निक्की को देखता रहा. उसने सपने में भी नही सोचा था कि ये लड़की इतनी बेशर्मी के साथ उसके साथ सेक्स करने की बात कर सकती है. उसकी नज़रें उसके चेहरे से फिसल कर नीचे उतरी. उसकी नज़रें निक्की के बूब्स पर पड़ी तो उसके बदन पर चींतियाँ सी रेंग उठी. निक्की के पारदर्शी लिबास में कुच्छ भी नही छीप रहा था. उपर का सारा हिस्सा स्पस्ट दिखाई दे रहा था. उसने अंदर ब्रा भी नही पहनी थी. उसके तने हुए बूब्स और उसके उपर भूरे रंग के चुचक सॉफ दिखाई दे रहे थे. नाइटी इतनी छोटी थी कि सिर्फ़ कमर को ढँक पा रही थी, पर वो ढँकना ना ढँकना एक जैसा ही था. उसकी पैंटी नाइटी के अंदर से भी सॉफ दिखाई दे रही थी. रवि की निगाहें उसकी फूली हुई चूत पर पड़ी तो मूह से "आहह" निकलते निकलते बची. उसकी भारी भारी जांघे रवि के अंदर छुपी उसकी युवा भावनाओ को हवा दे रही थी. उसने अपने अंदर कुच्छ पिघलता सा महसूस किया. उसके कानो की धमनियों से गरम धुआ सा निकलने लगा. उसे अपने पावं की शक्ति कम होती महसूस हुई. इससे पहले कि वो चक्कर खाकर गिर पड़े. उसने अपना चेहरा घुमा लिया. और धीरे से चलते हुए अपने बिस्तर तक पहुँचा और धम्म से बैठ गया.

"क्या हुआ रवि जी? निक्की उसके पास आकर बोली.

निक्की की आवाज़ से रवि ने गर्दन उठाई, उसकी नज़रें निक्की के नज़रों से मिली. उसकी आँखें नशे की खुमारी से भरी हुई थी. निक्की उसे देखती हुई अपने एक हाथ से अपनी जाँघो को सहलाने लगी तो दूसरी हाथ को अपने बूब्स पर फिराने लगी.

रवि के माथे से पसीना छूट पड़ा. उसका लंड पाजामे के अंदर से ही फुफ्करे मारने लगा. उसने अपनी निगाहें झुका ली.

"क्या हुआ रवि? क्यों मुझसे नज़रें चुरा रहे हो? क्या मैं अच्छी नही लगती आपको? आप ध्यान से देखो रवि, मेरे अंग अंग में हुश्न भरा हुआ है. मेरे बूब्स को देखो, ये कितने कड़क हैं. इन्हे छूकर हाथ लगाकर इसकी कठोरता को महसूस करो रवि." निक्की बोली और रवि का हाथ पकड़कर अपने बूब्स पर रखना चाही. पर रवि ने अपना हाथ झटक लिया.

"तुम यहाँ से जाओ निक्की. तुम इस वक़्त होश में नही हो. हम सुबह बात करेंगे." रवि उसकी ओर से मूह फेर्कर बोला.

निक्की को उसकी बेरूख़ी पर तेज गुस्सा आया पर वो अपने गुस्से को पी गयी. वो आगे बढ़ी और उसके पीठ से लिपट गयी. - "रवि मुझसे मूह ना मोडो, एक लड़की अपनी लोक लाज उतार कर जब किसी मर्द के पास आती है तब वो बहुत मजबूर होकर आती है. ऐसी दशा में उस मर्द के लिए ये ज़रूरी हो जाता है कि वो उसके भावनाओ की लाज रखे. क्या तुम मेरा प्रेम परस्ताव को ठुकराकर मेरा अपमान करना चाहते हो?"

"ये प्रेम नही वासना है." रवि एक झटके से अलग होता हुआ बोला -"तुम जिसे प्रेम कह रही हो वो प्रेम नही, प्रेम और वासना में बहुत अंतर है."

निक्की का पारा चढ़ा, वो बिफर कर बोली - "क्या अंतर है?"

"प्रेम और वासना में ये अंतर है कि प्रेम त्याग चाहता है और वासना पूर्ति." रवि ने जवाब दिया. "प्रेम दो शरीरों के मिलन के बिना भी पूरा होता है, लेकिन वासना दो शरीरों के मिलन के बाद पूरी होती है. पर शायद तुम इस फ़र्क को नही समझ सकोगी. लेकिन मैं इस फ़र्क को समझता हूँ. इसलिए मैं कोई भी ऐसा काम नही करूँगा. जिससे कि बाद में मुझे खुद से शर्मसार होना पड़े."

रवि की बातें निक्की को अपने दिल में शूल की तरह चुभती महसूस हुई. रवि के बातें उसके रोम रोम को सुलगाती चली गयी. उसका ऐसा अपमान आज तक किसी ने नही किया था. अपमान तो बहुत दूर की बात है, आज तक किसी में निक्की को इनकार करने की भी हिम्मत नही हुई थी.

निक्की कुच्छ ना बोली, रवि ने उसे कुच्छ भी बोलने लायक छोड़ा ही नही था. वो बस खड़ी खड़ी कुच्छ देर रवि को जलती आँखों से घुरती रही, फिर एकदम से पलटी और दरवाज़े से बाहर निकल गयी. उसने ज़मीन पर पड़ी अपनी चादर भी नही उठाई. उसे ऐसी हालत में बाहर निकलते देख रवि सकपकाया. पर वो कुच्छ कहता उससे पहले ही निक्की उसके कमरे से बाहर जा चुकी थी. वो उसी हालत में बेधड़क गलियारे से गुजरती हुई अपने रूम में पहुँची. रूम में घुसते ही वो बिस्तर पर गिरी और फुट फुट कर रोने लगी. उसका रोना भी लाजिमी था. उसने अपने जीवन में कभी भी हार नही देखी थी. लेकिन आज वह हारी थी. आज वो पहली बार अपनी मर्यादा से गिरकर किसी के आगे दामन फैलाई थी. पर उसे निराशा और अपमान के सिवा कुच्छ ना मिला था. वो अपमानित हुई थी. रवि ने उसके अंदर की औरत का अपमान किया था. वासना में जलती औरत का जब कोई निरादर करता है तो वो औरत घायल शेरनी से भी अधिक ख़तरनाक हो जाती है. वो उस साँप की तरह होती है जिसकी पूंच्छ पर किसी आदमी का पावं पड़ गया हो. वो जब तक अपनी पून्छ पर पावं धरने वाले को डस नही लेती उसे सुकून नही मिलता. ऐसी औरत बदले की भावना में जितना दूसरे का नुकसान करती है उससे कहीं ज़्यादा अपना नुकसान कर लेती है.

निक्की कुच्छ देर बिस्तर पर मूह छिपाये रोती रही. फिर अपना गम हल्का करने के बाद उठी और आईने के सामने जाकर खड़ी हो गयी. उसने आईने में खुद को देखा. सब कुच्छ वैसा ही था. वही सुंदर शरीर, पहाड़ की तरह सर उठाए उसके उन्नत शिखर, वही समतल चिकना पेट, वही हज़ारो दिलों को पर बिजलियाँ गिराने वाली कमर, वही पैंटी में फूली हुई चूत, वही गोरी गोरी सुडोल जांघे. पर इस वक़्त उसे उसकी सुंदरता, उसके एक एक अंग सब उसे मूह चिढ़ाती नज़र आई. उसकी आँखों से फिर से शोले बुलंद होने लगे. रवि की बातें फिर से उसकी कानो में ज़हर घोलने लगी. वह मुत्ठियाँ भिचती हुई अपने आप में बड़बड़ाई - "मिस्टर रवि, अगर मैने तुम्हे अपने कदमो में नही झुकाया तो मैं ठाकुर की बेटी नही. मैं तुम्हे इतना मजबूर कर दूँगी कि तुम खुद चलकर मेरी पनाह में आओगे. ये निक्की की ज़िद है. तुम्हे झुकना ही होगा." उसके इरादे फौलाद की तरह मजबूत थे. वह घूमी और बिस्तर पर पसर गयी. और चादर ओढकर सोने का प्रयास करने लगी.
Reply
05-02-2020, 01:03 PM,
#18
RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
अपडेट 12

निक्की के जाने के बाद रवि ने दरवाज़ा बंद किया और बिस्तर में घुस गया. फिर अपनी आँखें बंद करके सोने का प्रयास करने लगा. आँखें बंद होते ही आँखों के सामने निक्की का शोले बरसाता शरीर नाच उठा. उसके शरीर के अंगो से निकलती यौवन चिंगारियों की तपिश उसे फिर से झुलसाने लगी. उसके धमनियों में बहता लहू फिर से गरम होने लगा. रवि ने बेशक निक्की का परस्ताव ठुकरा दिया था पर वो उसकी सुंदरता के सम्मोहन से नही बच पाया था. वो मजबूत इरादो वाला व्यक्ति था. पर ये भी सच था कि आज उसने जो कुच्छ देखा था वो उसके लिए बिल्कुल नया था. रवि ने अपने पूरे जीवन में कामवासना में जलती ऐसी लड़की नही देखी थी. क्या वास्तव में आज की लड़कियाँ ऐसी ही होती है. जो माता पिता की परवाह किए बिना किसी के भी सामने अपने कपड़े उतारने में उतावली रहती हैं. वैसे तो रवि मनोचिकित्सक था पर लड़कियों के प्रति उसका ज्ञान कोरा था.
वजह थी उसका शर्मीला स्वाभाव....और मा की कड़ी नशिहत! उसकी मा की इच्छा थी कि वो डॉक्टर बने, वो एक साधारण परिवार का होने के बावज़ूद भी उसकी मा ने उसकी पढ़ाई में कोई कमी नही होने दी थी. उसके पिता....जब वो 5 साल का था तभी काम के सिलसिले में बेवतन हुए थे जो अभी तक लौटकर घर नही आए थे. ईश्वर जाने उसके पिता अब ज़िंदा भी हैं या नही. उसकी मा ने खुद लाख दुख उठाकर उसे किसी चीज़ की कमी नही होने दी थी. उसने भी बचपन से ही यह तय कर लिया था कि वो अपनी मा का सपना पूरा करेगा. यही वजह थी कि जब कभी उसके पास से कोई लड़की गुजरती तो वह अपनी आँखें फेर लेता था, कॉलेज की सेक्सी और दिलफेंक लड़कियों को देखकर अपनी निगाहें नीचे कर लेता था. किशोरवस्था तक पहुँचते पहुँचते वह इतना दब्बु स्वाभाव का हो गया था कि अगर कोई लड़की उसे पुकार लेती तो उसके पसीने छूट पड़ते थे. हाथ पावं ऐसे फूल जाते थे जैसे उसे किसी योद्धा ने युद्ध के लिए ललकारा हो. उसके इस स्वाभाव के कारण उसके दोस्त उसे बहुत चिढ़ाते थे, अपने प्रेम के रस भरे किस्से सुना सुना कर उसे छेड़ते थे. रवि जब अपने दोस्तों के मूह से उनके प्रेम के किस्से सुनता तो उसका मॅन भी किसी हसीन लड़की को अपना बना लेने का करता, तब उसका मॅन भी मचल कर उससे कहता कि तू भी कोई गर्लफ्रेंड बना ले. उस स्थिति में उसकी मा की बाते उसके पावं की बेड़िया बन जाती. वह अपने सीने में उठते अरमानो को अपनी मा के दुखों का ख्याल करके उनपर अंकुश लगा देता. वो किताबी कीड़ा था अपनी तन्हाई को किताबों से दूर करता वही उसकी महबूबा थी. उसने प्यार मोहब्बत के किस्से बहुत पढ़े थे, सेक्स और वासना के किस्से भी दोस्तों से सुन रखे थे. पर निक्की जैसी लड़की के बारे में ना तो उसने कहीं पढ़ा था और ना ही किसी दोस्त ने उसे बताया था. वो अलग थी.....सबसे अलग !

रवि अपने जीवन में कभी भी विचलित नही हुआ था, उसका दिमाग़ बहुत मजबूत था, पर आज निक्की ने उसे विचलित कर दिया था. अब उसके दिमाग़ में एक ही प्रश्न घूम रहा था. -"अब उसे क्या करना चाहिए? निक्की जैसी लड़की शांति से बैठने वाली लड़की नही है, वो फिर प्रयास करेगी, या फिर अपने अपमान का बदला उसे अपमानित करके लेगी. ऐसी स्थिति में उसके बचाव के दो ही विकल्प रह गये थे, या तो वो सारा सच ठाकुर को बता दे ये फिर वो चुप चाप यहाँ से काम छोड़ कर चला जाए. पहला विकल्प उसे घृणित जान पड़ा, निक्की की असलियत बताकर वो ठाकुर साहब को जीतेज़ी मारना नही चाहता था, वैसे भी राधा देवी के गम में वे आधे मर चुके थे, अब निक्की की करतूतों को जानकार तो उस भले इंसान का दम ही निकल जाएगा. अब दूसरा विकल्प था हवेली छोड़ कर जाने का. लेकिन यहाँ से जाने का अर्थ था अपनी डॉक्टरी पेशे का अपमान करना, उसने ठाकुर साहब को वचन दिया था कि वो उनकी पत्नी राधा को ठीक किए बिना यहाँ से नही जाएगा. ठाकुर साहब पिच्छले 20 वर्षो से इसी आस में जी रहे थे कि कोई डॉक्टर उनकी पत्नी को ठीक कर दे, कितने डॉक्टर्स आए और पैसे खाकर चले गये, वो अपनी गिनती उन डॉक्टर्स में नही करना चाहता था. ठाकुर साहब रवि पर बहुत आस लगाए बैठे थे. अब जो भी हो वो यहीं रहेगा, सिर्फ़ एक लड़की उसकी ज़िंदगी का फ़ैसला नही कर सकती, वो भी एक चरित्रहीन लड़की. हरगिज़ नही!वो हवेली छोड़ कर नही जाएगा, रही बात निक्की की तो चाहें वो अपने हुश्न की लाखो बिजलियाँ गिरा ले, चाहें वो निर्वस्त्र ही उसके सामने क्यों ना बिच्छ जाए, वो नही हिलेगा. उसने अपने इरादों को मजबूत किया और चादर तानकर सोने का असफल प्रयत्न करने लगा.

****

अगली सुबह रवि अपने नियमित टाइम पर सोकर उठा, वो नहाने के बाद लगभग 10 बजे राधा देवी के कमरे में जूस और दवाइयाँ लेकर गया. ये उसका रोज़ का काम था, उसे दिन में दो बार राधा देवी को दवाइयाँ और जूस देना रहता था, एक 10 बजे सुबह और दूसरी दफ़ा रात को 9 बजे. इस वक़्त निक्की भी उसके साथ होती थी. आज भी रवि और निक्की राधा देवी के कमरे में गये, पर दोनो इस बार एक दूसरे से दूर दूर ही रहे, हां राधा देवी के सामने रवि निक्की को अपने पास आने से नही रोक सका. वहाँ वह जब तक रहा निक्की उसके साथ चिपकी रही. राधा देवी के कमरे में निक्की कभी अपना सर रवि के कंधे पर रख देती तो कभी अपने बूब्स रवि की बाहों से रगड़ने लगती, तो कभी हस्ते हुए उसकी आँखों में ऐसी भूखी नज़रों से देखती कि रवि की रोंगटे खड़े हो जाते. किसी तरह से वह काम निपटा और रवि अपने कमरे में आया. उसका दिमाग़ भन्ना गया था. दिन भर अपने रूम में पड़ा पड़ा निक्की के बारे में ही सोचता रहा. पर वो जितना निक्की के बारे में सोचता उसका दिमाग़ और खराब होने लगता. लगभग 3 बजे वो हवेली से बाहर निकला. उस वक़्त धूप बहुत तेज़ थी, लेकिन रवि हवेली से बाहर रहकर निक्की के ख्यालों से पिछा छुड़ाना चाहता था. उसने अपनी बाइक संभाली और पहाड़ियों की ओर निकल गया. घाटियों में पहुँचकर उसने अपनी बाइक रोकी और पैदल ही झरने की तरफ बढ़ गया. कुच्छ ही मिनिट में वो एक विशाल झरने के निकट खड़ा था. वो खड़े खड़े झील में गिरते झरने को देखने लगा. उसने सोचा यहाँ इतना अधिक शोर होकर भी कितनी शांति है. और हवेली में कोई शोर ना होकर भी मॅन को शांति नही. वो थोडा और आगे बढ़ा, उसका इरादा झील में गिरते पानी को देखने का था. क्योंकि वो जिस जगह खड़ा था वहाँ से झील की सतह नही दिख रही थी. उसने अपने कदम बढ़ाए. अभी वो दो कदम ही चला था कि उसके दाहिने और उसे किसी के होने का एहसाह हुआ. उसने अपनी गर्दन घुमाई तो उसे एक लड़की पत्थर पर बैठी दिखाई दी. लड़की का आधा शरीर पत्थरों की ओट में छिपा हुआ था. लड़की का सिर्फ़ बायां कंधा ही बाहर था. लेकिन तेज़ हवाओं के झोके से उसके लंबे बाल बार-बार उड़कर वहाँ पर किसी लड़की के होने का प्रमाण दे रहे थे. रवि उस लड़की को देखने की चाह लिए थोड़ा और आगे बढ़ा. अब वो उस लड़की से सिर्फ़ दस कदम पिछे खड़ा था. वहाँ से वो उसे सॉफ सॉफ देख सकता था. ना केवल देख सकता था बल्कि अब तो रवि ने उसे पहचान भी लिया था. ये कंचन थी. वो आज भी उसी लिबास में थी जिसे रवि ने उसे सबक सिखाने के लिए, उसके भाई की मदद से चुरा लिए थे. वो कुच्छ देर उसे देखता रहा, उसे अंदेशा था कि वो उसे पलटकर देखेगी, लेकिन नही, वो किसी गहरी सोच में लग रही थी उसकी आँखें गिरते झरने पर टिकी हुई थी. सहसा रवि का माथा ठनका. कहीं ऐसा तो नही ये लड़की आत्महत्या करने आई हो. जिस तरह शहरों में बस और ट्रेन के नीचे लेटकर जान देने का रिवाज़ है, उसी तरह गाओं में पहाड़ों से छलाँग मारकर और कुएँ में कूद कर जान देने का चलन भी है. अगले ही पल उसके दिमाग़ में सवाल उभरा -"लेकिन ये मरना क्यों चाहती है? इस उमर में ऐसा क्या हो गया कि ये जान देने को तैयार हो गयी. कहीं ऐसा तो नही कि मैने कल जो इसको बुरा भला कहा था उसी से दुखी होकर अपनी जान दे रही हो? होने को कुच्छ भी हो सकता है? ये गाओं के लोग बड़े ज़ज़्बाती होते हैं. इससे पहले कि वो लड़की गहरी झील में समा जाए उसने पुकारा -"आए लड़की, तू मरना क्यों चाहती है?"

रवि की आवाज़ जैसे ही उसके कानो से टकराई, वो चौंकते हुए पलटी. उसके चेहरे पर गहरे दुख की परत चढ़ि हुई थी, आँखे इस क़दर लाल थी मानो वो रात भर सोई ही ना हो. रवि आश्चर्य से उसके चेहरे को देखता रहा.

"आप.....!" कंचन आश्चर्य से रवि को देखती हुई बोली, फिर धीरे से मुस्कुराइ, उसकी मुस्कुराहट भी दम तोड़ते इंसान की तरह थी. जिनमे पीड़ा के अतिरिक्त और कुच्छ भी ना था. वो आगे बोली - "मैं क्यों मरूँगी? और आप क्यों चाहते हैं कि मैं मरूं? क्या आप मुझसे इतनी घृणा करते हैं कि मुझे जीवित देखना भी पसंद नही करते?"

कंचना की बातें व्यंग से भरी हुई थी. रवि तिलमिला गया. उसे तत्काल कोई उत्तर देते ना बना. वह हकलाते हुए बोला - "मेरा ये मतलब नही था, तुम झरने के इतनी निकट खड़ी थी कि मुझे ऐसा भ्रम हुआ कि तुम अपनी जान देना चाहती हो. आइ'म सॉरी." रवि झेन्प्ते हुए बोला.

"मैं इतनी कमजोर लड़की नही हूँ साहेब की किसी के तिरसकार से दुखी होकर अपनी जान दे दूं. मुझे अपनी ज़िंदगी से प्यार है." कंचन दुखी मन से बोली और वहाँ से जान लगी.

रवि को कंचन की बातों में एक दर्द का एहसास हुआ, उसे ऐसा लगा जैसे वो अंदर ही अंदर सिसक रही हो. वैसे तो रवि निर्दोष था, पर जाने क्यों उसे ऐसा लगा कि कंचन के दुखों का वही ज़िम्मेदार है. उसे कंचन की बाते अपने दिल में चुभती सी लगी. वो कुच्छ देर खामोशी से उसे जाते हुए देखता रहा फिर पीछे से आवाज़ दिया - "सुनो..."

कंचन उसकी आवाज़ से रुकी, फिर धीरे से पलटी. रवि धीरे से चलकर उसके करीब पहुँचा. -"क्या हुआ? तुम इतनी उदास क्यों हो?"

रवि ने इतनी आत्मीयता से पुछा की कंचन भावुकता से भर गयी, जब किसी दुखी मन को कोई प्यार से दुलारता है तो उसके अपनेपन से उसके स्नेह से वो मन और भी भावुक हो जाता है. कंचन को रवि का यूँ आत्मीयता से पुछ्ना उसे और भी भावुक कर गया. वो अपनी भावनाओ पर काबू ना पा सकी और उसकी आँखें भर आई. वो कुच्छ भी जवाब देने के बजाए बस गीली आँखों से रवि को देखती रही. वो कहती भी तो क्या? वो खुद भी तो नही जानती थी कि उसे क्या हुआ है. क्यों अचानक से उसकी दुनिया बदल गयी है, क्यों अब वो पहले की तरह हस्ती बोलती नही है, क्यों अब वो अकेले रहने में सुकून महसूस करने लगी है. क्यों उसका मन हरदम यही चाहता है कि वो कहीं अकेले में बैठकर सिर्फ़ अपने साहेब के बारे में सोचती रहे.

"अरे.....ये क्या?" रवि उसकी आँखों की कोरो पर चमक आए आँसू की बूँदो को देखकर बोला - "तुम रो रही हो? अगर कोई समस्या है तो मुझे बताओ. क्या किसी ने कुच्छ कहा है?"

"आप जाओ साहेब, आपको इससे क्या कि मैं रो रही हूँ कि हंस रही हूँ. मुझ ग़रीब के हँसने रोने से आपके सम्मान को कोई ठेस नही पहुँचने वाली." कंचन रुन्वासि होकर बोली.

"अगर तुम कल की बात को लेकर दुखी हो तो प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो. लेकिन तुम खुद ही सोचो उस दिन हवेली में मेरे कपड़ों के साथ जो हुआ-क्या वो ठीक था?"
_____________
Reply
05-02-2020, 01:04 PM,
#19
RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
अपडेट 13

"अगर तुम कल की बात को लेकर दुखी हो तो मुझे माफ़ कर दो. लेकिन तुम खुद ही सोचो उस दिन हवेली में मेरे कपड़ों के साथ जो हुआ क्या वो ठीक था?"

कंचन कुच्छ ना बोली, बस भीगी पलकों से रवि को देखती रही और सोचती रही. - "साहेब मुझे ग़लत समझते हैं, उन्हे लगता है कि उनके कपड़े मैने जलाए हैं. मुझे अपराधिनी समझते हैं" कंचन के दिल में एक हुक सी उठी, इस एहसास से वो तड़प उठी, आख़िर कैसे बताए अपने साहेब को कि उस दिन हवेली में उसके कपड़े उसने नही जलाए थे. उसके कपड़ों को जलाने वाली निक्की थी, वो तो बस निक्की के दबाव में आकर उनके रूम में कपड़े रखने गयी थी. उसके होठ कुच्छ कहने के लिए हिले पर सिर्फ़ फड़फदा कर रह गये, बोल मूह से बाहर ना निकले.

"क्या तुम सच में इसी लिए दुखी हो कि कल नदी के किनारे मैने तुम्हे कुच्छ कड़वे बोल कहे थे?" रवि उसे खामोश देखकर फिर से पुछा.

"नही साहेब....उस दिन नदी में आपके मूह से निकले कड़वे बोल तो मुझे शहद से भी मीठे लगे थे, मैं तो इसलिए दुखी हूँ कि.....मैं....आप....से...!" वो इससे आगे ना बोल सकी, ये कहते कहते अचानक से उसके चेहरे का रंग तेज़ी से बदल गया था. जो चेहरा कुच्छ देर पहले दुख से पीला पड़ा हुआ था, वही चेहरा अब शर्म की लाली से लाल हो उठा था. वो फिर से ज़मीन ताकने लगी.

"मैं आप से क्या?" रवि थोड़ा हैरान परेशान सा पुछा.

कंचन ने, रवि के पुच्छे जाने पर अपनी नज़रें उठकर उसके चेहरे पर टिका दी. वो एकटक अपनी बड़ी बड़ी आँखों से रवि को देखती रही. एक बार मन किया कि वो कह दे - "साहेब मैं आपसे प्यार करती हूँ, आपसे शादी करना चाहती हूँ. क्या आप मुझे अपनी दुल्हन बनाओगे? मैं दिन रात आपकी सेवा करूँगी, कभी कोई शिकायत का मौक़ा नही दूँगी. जैसे रखोगे मैं वैसी रह लूँगी. कभी कोई चीज़ नही माँगूंगी. जो दोगे वो रख लूँगी, जो पहनओगे पहन लूँगी. बस आप मेरे हो जाओ और मुझे अपना बना लो." लेकिन वो कह ना सकी -"जाइए...मैं नही बताती, आप बड़े वो हो." कंचन मचलकर बोली और तेज़ी से अपने घर के रास्ते मूड गयी और सरपट भागती चली गयी.

रवि ठगा सा उसे जाते हुए देखता रहा. उसके समझ में अब भी कुच्छ ना आया था. वो कुच्छ देर यूँही खड़े खड़े उसकी कही बातों पर सोचता रहा. फिर अपना सर खुजाता हुआ अपनी बाइक की ओर बढ़ गया. उसके दिमाग़ में अब निक्की की जगह कंचन आ बसी थी.

कुच्छ देर में वो उस जगह पर आ गया जहाँ पर उसने अपनी बाइक खड़ी की थी, अभी वो बाइक से कुच्छ दूर ही था कि उसकी नज़र जैसे ही बाइक की ओर गयी उसके बढ़ते हुए कदम थम गये. उसके चेहरे पर उलझन की लकीरे खिंच गयी. उसकी बाइक पर एक देहाती आदमी बैठा हुआ था. उसके बदन पर काले रंग का कुर्ता था और कमर पर लूँगी लिपटी हुई थी. कद कोई 6 फीट के आस-पास होगा. छाती चौड़ी और बदन कसरती था, चेहरे पर बड़ी और घनी मूँछे थी. उसकी आयु कोई 32-33 साल के आस-पास रही होगी. वो बाइक पर बैठा हुआ था और उसकी नज़रें गाओं के रास्ते पर टिकी हुई थी जैसे किसी की राह देख रहा हो या फिर किसी को जाते हुए देख रहा हो. उसने मूह में पान दबा रखा था. वो रास्ते की ओर देखते हुए बार बार ज़मीन पर पिचकारी छोड़ रहा था. ये बिरजू था. गाओं का सबसे छटा हुआ बदमाश, पैसे लेकर किसी के हाथ पावं तोड़ना, कमज़ोरो को धमकना, उसका पेशा था. वैसे वो औरतों का रसिया था. 18 साल की उमर से ही वो गाओं की कुँवारी लड़कियों का रस चूस्ता आया था. गाओं की कितनी ही लड़कियों और औरतों को वो अपनी टाँगो के नीचे लिटा चुका था. किसी को सपने दिखाकर तो किसी को बल पूर्वक, तो किसी को इतना मजबूर कर देता था कि वो खुद ही उसकी झोली में आ गिरती थी. गाओं के लोग उससे दूर ही रहते थे, उसकी दोस्ती और दुश्मनी दोनो ही दूसरे लोगों के लिए नुकसानदेह थी. इसीलिए कोई उसके खिलाफ बोलने से कतराता था. और फिर उसके सर पर गाओं के मुखिया का हाथ भी था. बिरजू उसके लिए काम करता था. वैसे तो मुखिया जी बहुत अच्छे इंसान थे, गाओं में सभी से उनके मधुर संबंध थे, पर जाने क्यों वो बिरजू के खिलाफ कुच्छ भी सुनना पसंद नही करते थे. जब कभी वो बिरजू के खिलाफ गाओं के किसी भी इंसान से कुच्छ सुनते तो उसी पर बरस पड़ते. गाओं वाले अपना सा मूह लेकर रह जाते.

बिरजू पिछ्ले 15 सालों में अनगिनत लड़कियों और औरतों का भोग लगा चुका था. लेकिन कुच्छ सालो से उसकी नज़र एक ही लड़की पर टिकी हुई थी, वो थी कंचन...! जब कभी वो उसके भरे-पूरे शरीर को झटके लेकर अपने पास से गुज़रते देखता, उसके अंदर का जानवर जाग उठता. उस वक़्त उसके मन में बस एक ही विचार आता - किसी भी तरह एक बार वो कंचन की सवारी कर ले. एक बार उसका गदराया शरीर भी भोग लगाने को मिल जाए. लेकिन कंचन के सपने देखना जितना आसान था उसे हासिल करना उतना ही मुश्किल था. कंचन बहुत ही अच्छी लड़की थी, वो जानता था कि राज़ी खुशी से वो कभी भी कंचन की जवानी का रस नही चूस सकता, और ज़बरदस्ती करने का मतलब था अपनी मौत को दावत देना. उसका बाप सुगना अपने ज़माने में बिरजू से भी बड़ा गुंडा हुआ करता था. बिरजू ने तो अभी तक लोगों के सिर्फ़ हाथ पावं तोड़े थे, पर सुगना ना जाने कितनी लाशे गिरा चुका था. लेकिन बिरजू के लिए कंचन तक पहुचने के रास्ते में यही एक काँटा नही था. अगर वो किसी तरह सुगना को रास्ते से हटा भी देता तब भी उसका कंचन तक पहुँचना लगभग नामुमकिन था. वजह थी निक्की, निक्की की दोस्ती कंचन की ढाल थी. पूरे गाओं के औरत मर्द में एक कंचन ही अकेली ऐसी थी जिसे हवेली में हर तरह का अधिकार हासिल था. वो नौकरों को आदेश दे सकती थी, जब तक चाहे हवेली में रह सकती थी, ठाकुर साहब उसे अपनी बेटी जैसी ही समझते थे. बिरजू जानता था कि कंचन के उपर हाथ धरने का सीधा सा अर्थ है ठाकुर के गिरेबान पर हाथ डालना. और ठाकुर के गिरेबान पर हाथ डालने का मतलब था उसकी मौत ! यही कारण था कि वो कंचन को बस दूर से ही देखकर अपनी प्यास बुझा लेता था. और फिर वो ये भी नही चाहता था कि ठाकुर उसकी असलियत जाने. अभी तक उसकी शिकायत ठाकुर साहब तक नही पहुँची थी. बिरजू के सताए लोग ये सोचकर की ठाकुर साहब 20 वर्षो से खुद दुखों में जी रहे हैं, उन्हे अपने दुख सुनकर उनके दुखों को और बढ़ाना ठीक नही है वे लोग खामोश होकर घर में बैठ जाते.

बिरजू वो मगरमच्छ बन गया था जो धीरे धीरे पूरे गाँव को चाट करता जा रहा था. लेकिन जो बात कंचन में थी वो किसी में ना थी. वो हर रोज़ उसे हासिल करने का कोई ना कोई मंसूबा बनाता पर ठाकुर का विचार आते ही उसके सारे मंसूबे धरे के धरे रह जाते. आज जब उसने कंचन को अकेले इस तरह भटकते देखा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ. कंचन कभी भी अकेले इस तरह नही घूमती थी. लेकिन जब उसकी नज़र रवि की बाइक पर पड़ी तो उसकी जिग्यासा और बढ़ गयी कि कंचन किसी से तो मिलने आई थी. वो वहीं बाइक पर बैठकर उस आदमी का इंतेज़ार करने लगा था. वो अभी भी उसी रास्ते की और देख रहा था जिस और से कंचन गयी थी.

जैसे ही उसकी गर्दन सीधी हुई उसकी दृष्टि रवि पर पड़ी. रवि को देखते ही वो अपने काले दाँत दिखा कर हंसा.

रवि लापरवाही से अपनी बाइक के पास पहुँचा. उसने एक सरसरी निगाह से बिरजू को उपर से नीचे तक देखा फिर बोला - "मैने आपको पहचाना नही. आपका परिचय?"

बिरजू अब भी उसकी बाइक पर बैठा रहा, उसने उतना ज़रूरी नही समझा. उसने रवि को देखा और पान की पिचकारी ज़मीन पर मारी, उसका अंदाज़ ऐसा था जैसे उसने रवि पर थुका हो. फिर बोला - "बाबू जी बिरजू नाम है मेरा." उसने मूच्छों को ताव दिया - "रायपुर का बच्चा बच्चा मुझे जानता है. तीन गाओं में मेरे जैसा कोई पहलवान नही."

"बहुत खुशी हुई आपसे मिलकर" रवि ने उत्तर दिया - "अब कृपया करके मेरी बाइक से उठेंगे?"

"जी बिल्कुल....ये लीजिए उठ गये." वह मुस्कुराकर बोला - "मैं तो आपकी बाइक की रखवाली कर रहा था."

"रखवाली?" रवि ने आश्चर्य से उसे देखा.

"इस गाओं में कुच्छ लुच्चे घूमते रहते हैं, मौक़ा मिलते ही दूसरो की चीज़ पर हाथ साफ कर देते हैं. आपको इस लिए बता रहा हूँ क्योंकि आप हवेली के मेहमान हो."

"आपको कैसे मालूम कि मैं हवेली का मेहमान हूँ?" रवि अपनी बाइक पर बैठते हुए बोला.

"क्या कहते हो बाबूजी, अरे इस गाओं में कौन है जो आपको नही जानता." उसकी बातों में हँसी थी. -"हवेली में कोई आदमी आए और लोगों को मालूम ना हो ऐसा कभी नही हुआ. इस गाओं का हर इंसान जानता है कि आप डॉक्टर हो और ठकुराइन का इलाज़ करने आए हो."

"ओह्ह्ह....!" रवि के मूह से निकला.

"पर एक बात समझ में नही आई बाबूजी." बिरजू ने रवि को चुभती नज़रों से घूरते हुए बोला - "आप हवेली में ठकुराइन का इलाज़ करने आए हो, पर यहाँ अकेले में हमारी गाओं की लड़की के साथ क्या कर रहे थे?"

रवि सकपकाया. उसकी समझ में नही आया कि वो क्या कहे, अचानक पुछे गये इस सवाल से उसके हाथ पावं फूल गये. -"देखिए मेरा कंचन से कोई वास्ता नही, मैं घूमने के लिए इधर आया हुआ था, सयोगवश मेरी उससे मुलाक़ात हो गयी."

"आपको कैसे मालूम कि उसका नाम कंचन है." बिरजू की आवाज़ में पैनापन था.

रवि हड़बड़ा गया. दार की एक चिंगारी उसके शरीर में फैल गयी. उसका डर इसलिए नही था कि वो बिरजू से डर गया था. वो इस बात से डर रहा था कि कहीं उसकी वजह से कंचन गाओं में बदनाम ना हो जाए. - "वह खुद बताई थी." रवि हकलाते हुए बोला.

"अरे साहेब आप ज़्यादा टेन्षन मत लो, मैं तो मज़ाक कर रहा था." बिरजू ने फिर से अपने गंदे दाँत दिखा दिए.

रवि भी उत्तर में मुस्कुराकर रह गया. फिर अपनी बाइक स्टार्ट करके हवेली के रास्ते मूड गया.

बिरजू उसे जाते हुए देखता रहा. उसे रवि पर संदेह सा हो रहा था. उसे इस बात की चिंता हो रही थी कि, जिस लड़की को हासिल करने के लिए वो सालो से तड़प रहा है, उसे एक परदेशी ना हासिल कर ले. इस एहसास ने उसके मन का सुकून छीन लिया था कि कुच्छ देर पहले कंचन इस सुनसान जगह में उस शहरी के साथ अकेली थी. उसका मन तरह तरह की कल्पनाएं करके उसे डराए जा रहा था. उस डॉक्टर ने कचन के साथ क्या क्या किया होगा, कहीं ऐसा तो नही की कंचन उसके झाँसे में आ गयी हो और अपना जिस्म उसे भोगने के लिए दे दिया हो. इन गाओं की भोली लड़कियों का भरोसा नही, शहर के चिकने लोगो को बहुत जल्दी अपना दिल दे देती है. अगर ऐसा हुआ होगा तो मैं उन दोनो को जान से मार डालूँगा, मेरे होते कंचन की जवानी का रस कोई दूसरा नही पी सकता. मुझे तत्काल कुच्छ करना होगा.

वह सोचता रहा. रवि के बारे में अभी वो कुच्छ नही कर सकता था. हो सकता है कि रवि ठीक कह रहा हो, बिना सबूत के वो रवि पर हाथ नही धर सकता था. वो कुच्छ देर सोचता रहा फिर तेज़ी से मुखिया के घर की तरफ बढ़ गया. उसने सोच लिया था कि उसे क्या करना है. अब चाहें कुच्छ भी हो जाए. वो कंचन को हासिल करके रहेगा.

कुच्छ ही देर में बिरजू मुखिया के घर में था. इस वक़्त घर में सिर्फ़ मुखिया धनपत राई की पत्नी सुंदरी थी. उसकी अमर 35 साल के आस-पास होगी. सुंदरी बेहद आकर्षक और खूबसूरत महिला थी. 35 की उमर में भी वो 30 से अधिक की नही लगती थी. बस शरीर थोड़ा भारी था. बिरजू को देखते ही उसकी आँखों की चमक बढ़ गयी. - "आओ राजा....आज पूरे चार दिन बाद आए हो, कहाँ कहाँ मूह मारते फिर रहे हो आजकल?"

बिरजू ने सुंदरी के करीब जाकर उसे अपने गोद में उठा लिया और सीधा बेडरूम में घुस गया. बिस्तर पर पटकते ही उसके बड़े बड़े बूब्स को मसलना शुरू कर दिया. -"क्या कर रहे हो ज़ालिम? क्या आज जान लेने के इरादे से आए हो?" सुंदरी कराह कर बोली.

पर बिरजू के मन में गुस्सा सवार था. उसे ऐसा लग रहा था कि उसके सामने सुंदरी ना होकर कंचन लेटी हुई है, और वो उसे इस बात की सज़ा दे रहा है कि उसने किसी शहरी को अपना यार क्यों बनाया.
Reply
05-02-2020, 01:04 PM,
#20
RE: Desi Porn Kahani काँच की हवेली
अपडेट 14



वह तेज़ी से सुंदरी को नंगा करता चला गया. उसके बदन से एक एक कपड़ा नोचने के बाद बिरजू उसके बूब्स पर टूट पड़ा वो उसके बूब्स को बुरी तरह चूसने मसल्ने लगा. सुंदरी को शुरू शुरू में दर्द हुआ पर अब धीरे धीरे उसे अच्छा लगने लगा. उसे बिरजू की आक्रामकता आज एक अलग ही मज़ा दे रही थी. उसकी एक एक हरकत से वो चीख उठती थी. उसका बदन बड़ी तेज़ी से पिघलता जा रहा था. उसकी योनि पानी छोड़ने लगी थी. बिरजू उसके बूब्स को चूसना छोड़ उसकी जाँघो तक आया और उसकी जाँघ को चुम्मने चाटने लगा. सुंदरी के मूह से कामुक आहें निकलने लगी. - "उफ़फ्फ़....आहह क्या कर रहे हो बिरजू? क्या हो गया है तुम्हे?"

बिरजू कुच्छ ना बोला अब उसने अपनी जीभ उसकी रस बरसाती योनि पर रख दी, और उसकी मलाई चाटने लगा. सुंदरी का शरीर धू-धू करके जलने लगा. सुंदरी भी आज कुच्छ ज़्यादा ही कामुक सिसकारियाँ निकाल रही थी. बिरजू कुच्छ देर उसकी योनि चाट लेने के बाद खड़ा हुआ और अपने कपड़े उतारने लगा.

सुंदरी बिस्तर पर उठ बैठी, और बलिहारी हो जाने वाली नज़रों से बिरजू को देखती रही, उसका फौलादी शरीर देखकर वो हमेशा ऐसी ही मस्त हो जाया करती थी. बिरजू के कपड़े उतरते ही उसने उसका लंड पकड़ लिया और सहलाने लगी. नर्म गर्म हाथों का स्पर्श पाकर उसका मर्दाना अंग फड़कने लगा. बिरजू देर ना करते हुए सुंदरी को बिस्तर पर गिराया, फिर उसकी टांगे चौड़ी करके अपना अंग-प्रहरी उसकी योनि द्वार पर टिका कर एक तेज़ धक्के के साथ उसकी गहराइयों में उतार दिया.

"आअहह....." सुंदरी के मूह से दबी दबी सी चीख निकली.

बिरजू ने उसकी दोनो टाँगो को पकड़ा और अपनी कमर का तेज़ धक्का देना शुरू कर दिया. उसका हर धक्का इतना शक्तिशाली होता था कि सुंदरी उसके हर धक्के से उपर सरक जाती थी.

लगभग 15 मिनिट उसकी सवारी करने के बाद बिरजू हाफ्ता हुआ उसके उपर गिरा.

सुंदरी उसे अपनी बाहों में भिचकर चूमने लगी. यूँ तो उसका और बिरजू का 15 वर्षों का संबंध था. पर आज जो उसने मज़ा दिया था, ऐसा मज़ा उसे आज से पहले कभी नही मिला था. वो बिरजू के बालों पर हाथ फेरते हुए उन पलो में खो गयी, जब वो दुल्हन बनकर इस घर में आई थी. उस वक़्त वो 20 साल की थी.शादी से पहले ही वो अनेको मर्दो से जवानी के मज़े लूट चुकी थी.

धनपत जी की ये दूसरी शादी थी, उस वक़्त उनकी उमर 35 के आस-पास होगी, पहली पत्नी से उनको एक लड़की थी. जिसका नाम धनपत जी ने अनिता रखा था. तब वो 5 साल की थी.

धनपत जी के घर में आते ही पहली ही रात को सुंदरी को ये एहसास हो गया था कि उसके पति में वो दम नही है जिसकी वो आदि हो चुकी थी, कुच्छ दिन तक तो वो शांत रही फिर अपनी नज़रें इधक़र उधर दौड़ने लगी. और एक दिन बिरजू पर ठहर गयी. बिरजू उस वक़्त 18 साल का था. उसका कसरती बदन शुरू से ही महिलाओं को आकर्षित करता था. सुंदरी ने उसे देखा तो उसके उपर डोरे डालने लगी, और एक दिन अकेले अपने घर में पाकर उसपर चढ़ बैठी. बिरजू को तो जैसे मूह माँगी मुराद मिल गयी हो, उसने जमकर उसकी चुदाई की, उस एक चुदाई ने सुंदरी को बिरजू का गुलाम बना दिया. उस दिन के बाद ये सिलसिला चल पड़ा.

एक दिन इन दोनो को मुखिया ने रंगे हाथों पकड़ लिया. बिरजू तो डर गया , पर सुंदरी उल्टे मुखिया पर बरस पड़ी. उसे धमकी दी कि अगर उसने बिरजू को यहाँ आने से रोका तो वो पूर गाओं में हल्ला कर देगी कि वो नामार्द है. उसकी बाते सुनकर मुखिया के होश उड़ गये. उन्होने सोचा भी नही था कि जिस औरत को अपना मान सम्मान बनाकर अपने घर ले जा रहे हैं वही औरत एक दिन उनके साथ ऐसा भी कर सकती है. वो विवशता के आँसू पीकर रह गये. वो नारी स्वाभाव से परिचीत हो गये थे, वो जान गये थे कि ये औरत अपनी काम वासना शांत करने के लिए कुच्छ भी कर सकती है. कुच्छ लोगों को अपनी इज़्ज़त अपनी जान से प्यारी होती है, मुखिया भी उन्ही लोगों में से एक थे. उन्होने उस दिन से उसे उसके हाल पर छ्चोड़ दिया. तब से लेकर आज तक बिरजू उनकी पत्नी के साथ चिपका हुआ था. और सुंदरी के ज़रिए ना जाने कितनी औरतों को लूट चुका था.

सुंदरी कुच्छ देर बिरजू के बालों को सहलाती रही फिर बोली - "आज तुम्हे क्या हो गया था रे? एक दम जानवर बन गये थे."

बिरजू बिस्तर पर उठ बैठा और उसके चेहरे को दोनो हाथों से भरकर चूम लिया - "तुम्हे बुरा लगा क्या? अगर ऐसी बात है तो फिर ऐसा नही करूँगा."

सुंदरी को आश्चर्या हुआ. उसने कभी बिरजू को इतना मीठा बोलते नही सुना था. वो बिरजू को चूमती हुई बोली - "नही राजा मुझे बुरा नही लगा. बल्कि आज तो मुझे वो मज़ा मिला है जो आज से पहले कभी ना मिला था."

"तू चाहती है कि मैं तुम्हे रोज़ ऐसे ही मज़ा दूँ?" बिरजू उसके बूब्स सहलाता हुआ बोला.

"ये भी पुच्छने की बात है? मैं तो इस मज़े के लिए कुच्छ भी कर सकती हूँ."

"सच कह रही है?" बिरजू ने उसे टटोला. -"कहीं मुकर गयी तो?

"जान दे दूँगी, पर इनकार नही करूँगी, बोल के तो देख." सुंदरी मचल कर बोली.

"तो फिर सुन....मुझे कंचन को अपने नीचे लेना है, लेकिन वो प्यार से मानने वाली लड़की नही है, हमें चालाकी और धोखे से काम करना होगा. लेकिन इसके साथ एक और काम हमें करना पड़ेगा. कंचन की बुआ शांता को अपने झाँसे में लेना होगा. अगर वो हमारे हाथ लग गयी तो समझ लो मुझे कंचन मिल गयी. तुम्हे शांता को अपने झाँसे में लेना है.....कैसे ये तुम जानो. मैं सिर्फ़ इतना बता दूं इस काम के लिए तुम्हारे पास समय बहुत कम है."

"कंचन का ख्याल छोड़ दे बिरजू, वो तेरे हाथ आने वाली नही है."

"तू वो कर जो मैने कहा है" बिरजू गुस्से में बोला - "मैं उसे किसी भी कीमत में हासिल करके रहूँगा. मेरे होते कोई और उसका रस पीए....ये मुझे मंज़ूर नही. अगर वो मेरी ना हुई तो किसी की भी ना होगी."

"ठीक है राजा, मैं अपना काम कर दूँगी." वो मुस्कुराकर बोली. और बिरजू को अपने उपर खींचकर गिरा दी.

वे दोनो फिर से एक दूसरे में समाते चले गये.
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,443,723 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 537,986 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,209,157 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 914,147 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,620,392 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,053,466 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,905,427 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 13,905,032 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 3,973,215 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 279,545 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 2 Guest(s)