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RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
मामी ने मेरे सुपाडे पर अपने होंठ लगा दिए और उसको पुच पच करते हुए चूसने लगी चाटने लगी मैने उनके सर को थोड़ा सा नीचे को दबाया तो मामी ने लंड का कुछ और हिस्सा अंदर ले लिया और अपने जलवे दिखाने लगी
मैने देखा बीच बीच मे उनका हाथ अपनी चूत पर जा रहा था तो मैं समझ गया कि मामी आज बहुत ज़्यादा गीली हुई पड़ी है पर मैने भी काफ़ी दिन से सेक्स नही किया था तो मैं चाहता था कि आज अच्छे से करू
करीब दस मिनिट बाद मैने अपने लंड को मामी के मूह से निकाला जिस पर मामी की लार लगी हुई थी मैने मामी को खड़ी किया और कच्छी को उतार दिया उफफफ्फ़ मामी की गान्ड क्या थी ज़्यादा भारी तो नही थी पर दिल धड़काने वाली ज़रूर थी
मामी के गोरे चुतड़ों पर जो हल्का सा गुलबीपन था वो बड़ा सेक्सी था और उपर से उनका पूरा शरीर गोरा था बस चूत ही काली थी और उसके वो झाट के बाल वहाँ से चूत की खूबसूरती और बढ़ गयी थी
मामी इस कदर गीली थी कि चूत से रिस्ता कामरस झान्ट के बालो को भी गीला करने लगा था जैसे की हरी घास मे कुछ शबनम की बूंदे सुबह सुबह कुछ ऐसी ही सुंदर मामी की चूत लग रही थी
मैने मामी को बेड पर पटक दिया और मामी ने खुद अपनी टाँगो को फैला लिया और अपनी गान्ड के नीचे तकिया लगा लिया ताकि चूतड़ थोड़े से उपर हो जाए
मामी- मनीष अब मत तडपा मुझे बहुत दिनो से तरस रही हूँ तुझसे प्यार करने के लिए
मैं- मैं भी मामी
मैने मामी की टाँगो को अपनी जाँघो पर चढ़ाया और मामी की चूत पर अपने गरम सुपाडे को रख दिया
मम्मी-अयाया
मैने हल्का सा झटका मारा तो लंड चूत मे जाने लगा मामी की चूत वक़्त के साथ थोड़ी मेच्यूर हो गयी थी तो चोदने मे और मज़ा आने वाला था धीरे धीरे मेरा पूरा लंड चूत मे जा चुका था और मैं मामी के उपर लेट गया
मामी ने अपने हाथ मेरी पीठ पर लगा दिए और मुझमे और अंदर तक समाने की कोशिश करने लगी मेरे गाल मामी के गालो से टकरा रहे थे और मैने अब अपनी कमर उचकानी शुरू की
मामी- आज तेरे साथ करके बहुत अच्छा लग रहा है बस ऐसे ही धीरे धीरे कर थोड़ा लंबा चलेंगे
मैं- हूंम्म
मामी का बाया गाल मेरे होंठो मे दबा हुआ था और मामी की चूत मे लंड फसा हुआ था कुछ देर बाद मामी ने अपने पैर एम शेप मे कर लिए जिस से लंड और गहराई तक अंदर को जाने लगा
मैं और मामी इस दौरान कुछ भी बात नही कर रहे थे बस धीरे धीरे अपनी चुदाई को आगे ले जा रहे थे मामी भी अपनी कमर उचका उचका कर मेरा साथ दे रही थी
कहने को तो ये सेक्स था पर हम अपने रिश्ते को थोड़ा और मजबूत कर रहे थे मामी के गुलाबी होंठो को मैं हल्के हल्के से चूम लेता था मामी की चुचिया मेरे सीने के बोझ तले दबी पड़ी थी और मामी की साँसे उफन रही थी
काफ़ी देर हो चुकी थी हम दोनो को पर वो चाहती थी कि मैं उसके उपर ही चढ़ा रहूं शायद वो दूसरी बार झड रही थी जब मेरा पानी उसकी चूत मे गिरने लगा मैने बहुत दिनो बाद सेक्स किया था तो जब मेरा हुआ तो मैं झेल नही पाया काफ़ी सारा पानी मामी की चूत मे गिरा जब मैने लंड को बाहर की तरफ खीचा तो वीर्य भी बाहर आकर गिरने लगा
कुछ देर तक हम दोनो एक दूसरे की बाहों मे पड़े रहे फिर मामी ने अपने कपड़े पहने मैं बाथरूम मे चला गया थोड़ी थकान भी हो रही थी तो मैं नहा धोके आया
मामी- खाने मे क्या खाओगे
मैं- खाना निशा के साथ खाउन्गा
मामी- मेरे साथ नही खाना क्या
मैं- खाउन्गा आपके साथ भी पर सुबह, अभी उसे पूछना तो पड़ेगा ना मेहमान है वो
मामी- हाँ, पूछना तो पड़ेगा वैसे बात कितनी आगे बढ़ी है उसके साथ
मैं- मामी, उसका मेरा ना थोड़ा अलग टाइप का है, मतलब हम साथ रहते है पर फिर भी बस ऐसे ही है
मामी- शादी कर ले उसके साथ
मैं- मामी, सोचता तो हूँ पर मिथ्लेश की यादे जो है उसकी याद आती है तो फिर दिल साला काबू मे नही रहता और उपर से मम्मी भी नाराज़ है तो देखू क्या होता है
मामी- तुम्हारी मम्मी कल आ रही है तो फिर करते है बात सारे परिवार के आगे वो मना थोड़ी ना करेगी
मैं- मम्मी तो बात भी नही करती है
वो- सब सही हो जाएगा
मैने रॉकी को फोन किया और बोला कि निशा को यहाँ ले आ मामी खाना बनाने रसोई मे चली गयी मैं टीवी देखने लगा करीब आधे घंटे बाद निशा आ गयी कपड़े चेंज कर लिए थे उसने बड़ी कमाल लग रही थी
मैं- आज तो जबर्जस्त दिख रही हो, किसपे बिजलिया गिराने का इरादा है
वो- कौन हो सकता है तुम्हारे सिवा
मैं- बोर तो ना हो रही
वो- ना
मैं- बढ़िया
मैं- चल एक एक बियर पीते है
वो- ना यार, तुझे तो पता है मुझे झिलती नही है और फिर खम्खा तमाशा होगा
मैं- अरे कुछ नही होता थोड़ी थोड़ी लेते है तू छत पे आ मैं लेके आता हूँ
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RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
पहले तो वो मना करती रही पर फिर मान गयी और हम दोनो छत पर आ गये, मामी ने अपना घर खेतो मे बनाया था पहले तो ये एकलौता घर था पर अब बस्ती हो गयी थी हम दोनो छत की मुंडेर पर बैठ गये
और खोल ली बियर की बोटले, कुछ घूंठ लिए थे फिर बाते शुरू हो गयी
निशा- एक बात कहूँ
मैं- वो कैसी थी
मैं- कौन
वो- मिथ्लेश
मैं- तेरे जैसी
वो- बता ना
मैं- कहा ना तेरे जैसी
वो- सच मे
मैं- हां
वो- कैसे मिले थे तुम
मैं- बस ऐसे ही गाँव मे मेला था तो मैं भी गया था उसका पाँव भीड़ मे मेरे पाँव पर पड़ गया था तो तभी पहली बार उसको देखा था और तभी दिल मे कुछ कुछ हो गया था
वो- फिल्मी स्टाइल मे
मैं- हूंम्म
वो- फिर आगे
मैं- बस वो रोज आती थी मंदिर मे और मैं भी तो बस दिल ने उसके दिल तक पैगाम पहुचा दिया
वो- ऐसे ही तूने मुझे पटाया था
मैं- दोस्त है यार तू अपनी बल्कि दोस्त से बढ़ कर तूने मेरे लिए जो किया मैं कभी नही चुका सकता तू भी क्या पूछने लगी तुझे तो सब पता ही है
वो- अच्छा लगता है, उन लम्हो को याद करना कितने अजीब दिन थे तब लाइफ मे एक सुकून सा था आज देख सब कुछ है पर फिर भी कम लगता है
मैं- सही कहा यार अब तो सब बदल गया है अपने गाँव की मिट्टी भी बदल गयी यार, पहले हसी-मज़ाक था शराराते थी वो झोड़ मे नहाना पार्क मे पड़े रहना क्या दिन थे यार
वो- पता है जब तू नही था तेरी बहुत याद आती थी
मैं- मुझे भी बहुत मेहनत की यार तुझे ढूँढने मे पर तू इतनी दूर क्यो चली गयी थी
वो-पास ही तो हूँ , तुझसे दूर हो सकती हूँ क्या
मैं- निशा, मैं मर जाता अगर तू ना होती तो मेरी ज़िंदगी मे
वो- ऐसे मत बोल
मैं- पता है या कभी कभी दिल करता है तुझे अपने सीने से लगा लूँ थाम लूँ तुझे अपनी बहो मे तुझे ना बहुत प्यार करू किस करू तुझे
वो- कर ले तो उसमे क्या है
मैं- सच मे
वो- हाँ
उसके होंठो के नीचे एक तिल था जो मुझे बहुत प्यारा लगता था मैने बोतल को साइड मे रखा और निशा का हाथ पकड़ लिया
वो मेरे करीब आने लगी इतनी करीब की उसकी गरम साँसे मेरे चेहरे को छुने लगी, उसने अपने होंठो को आगे किया और ऐसा ही मैने किया जैसे ही हमारे होंठ टकराए उसका बदन हल्के हल्के से काँपने लगा
एक बार जो होंठो से होंठ मिले तो बस मिलते ही गये मैने दोनो हाथो से उसके चेहरे को थाम लिया और उसको स्मूच करने लगा निशा ने अपनी बाहों मे कस लिया और मेरा साथ देने लगी
एक फिर दो फिर पता नही कितने किस हम करते रहे फिर भाई-बहन आ गये छत पर तो और बाते होने लगी
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RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
रॉकी- आप भी पीती हो
निशा- नही, बस कभी कभी तुम्हारे भाई ज़िद कर लेते है तो
सुषमा- वैसे आप क्या करते हो
निशा- लोन मॅनेजर हूँ बॅंक मे
रोकके- भाई मैं भी इस साल एनडीए का एग्ज़ॅम दे रहा हूँ
मैं- मत दे यार, लाइफ मुश्किल हो जाएगी
वो- क्या भाई आप भी मुझे भी आपकी तरफ बन ना है
मुझे हँसी आ गयी – मैं- ना भाई मेरी तरह मत बन ना , कुछ नही हासिल होगा जो लाइफ मैं जीता हूँ दूर से बहुत अच्छी लगती है तू भी सोचता होगा भाई के पास पैसा है रुतबा है पर मेरे भाई ये सब शोऑफ है अंदर से खाली हूँ मैं
रोकके- भाई आप बताते भी नही कि क्या हुआ था
मैं- कुछ नही यार बस इतना समझ ले,ये इश्क़ नही आसां एक आग का दरिया और डूब के जाना है
रोकके – भाई मैं जानता तो हूँ कि आप किसी के साथ लव मे थे पर क्या हुआ वो नही पता
मैं- मुझे भी नही पता
मैं उठा और छत से घरो को देखने लगा जिनमे अब रोशनी होने लगी थी मामी रसोई मे खाना बना रही थी हम लोग उपर छत पर बैठे बाते कर रहे थे
रोकके- सोल्जर बन ना चाहता था अच्छी बात थी , सबके अपने अपने सपने होते है और एक कोशिश तो होनी ही चाहिए सपनो को पूरा करने की बाकी का कुछ टाइम खाने- पीने मे गया
उसके बाद निशा सुषमा के साथ रीना भाभी के पास चली गयी रॉकी भी उनके ही साथ था रह गये मैं और मामी…………………..
मामी ने बिस्तर छत पर ही लगा दिया था मौसम मे हल्की सी ठंडक सी थी एक खुशमिजाजी सी थी और फिर मामी ने अपने कपड़े उतारे और बस पैंटी पैंटी मे ही मेरे पास आ लेटी मामी ने एक काली कच्छी पहनी हुई थी जिसमे से आधे से ज़्यादा चूतड़ दिख रहे थे
और आगे से भी बस चूत वाला हिस्सा ही ढका हुआ था ऐसा लग रहा था कि उसने अपने साइज़ से छोटी पैंटी पहनी हुई थी मामी मुझसे लिपट गयी तो मैने भी उसे अपनी बाहों मे ले लिया और मामी की नंगी पीठ पर हाथ फेरते हुए उसको किस करने लगा
मामी की चुचिया मेरे सीने मे घुसने को मचल रही थी और फिर मैने मामी के होंठ चूस्ते हुए उसकी गान्ड को सहलाना शुरू किया तो वो और मस्त होने लगी, मैने मामी की कच्छी को नीचे सरकाया और मामी की फूली हुई गान्ड को मसल्ने लगा
मामी ने अपनी जीभ मेरे मूह मे डाल दी मस्ती हम दोनो पर असर कर रही थी मैने अपना हाथ मामी की गान्ड की दरार मे डाला और उसको सहलाने लगा मेरी इस हरकत से मामी को मज़ा आने लगा तो उसने मेरे लंड को अपने हाथ मे लिया और ऊपर नीचे करने लगी
मामी की नाज़ुक उंगलिया मेरे सुपाडे के छेद को सहला रही थी मैने अपनी उंगली पर थोड़ा सा थूक लगाया और मामी की गान्ड मे घुसा दी उसने अपने चुतड़ों को भीच लिया तो मैने चूतड़ पर एक थप्पड़ मारा मामी ने चूतड़ ढीले कर दिए
और मैं उसकी गान्ड मे उंगली अंदर बाहर करने लगा मामी तो एक्सपर्ट थी गान्ड मरवाने मे
मैं – कितनी गरम है तू कितना नशा है तुझमे जब जब तुझे चलते देखता हूँ दिल करता है वही पटक कर चोद दूं तुझे उम्र बढ़ गयी पर तुम्हारा नशा कम नही हुआ कौन कहेगा कि तुम तीन जवान बच्चों की माँ हो कितनी गदर गान्ड है तुम्हारी
मामी- ठुकाई भी तो खूब होती है जब तुम्हारे मामा होते है तो दिन रात खूब दबा के पेलते है मुझे तो ये चूतड़ उन्होने ही फूला दिए है
मैं- मामी आज की रात खूब चुदोगि ना
वो- हां मेरे प्यारे तेरा लंड लेने को तो तरस ही गयी हूँ मैं आज अपनी मामी की चूत को खूब रगड़ ना
मैं- मूह मे लेले
मामी ने तुरंत मेरा कहा माना उसने अपनी लंबी जीभ बाहर निकाली और मेरे सुपाडे पर फेरने लगी “आह मामी क्या बात है आआआअहह”
मुझ पर एक दम से मस्ती चढ़ गयी थी मामी अपनी जीभ का जलवा बस मेरे सुपाडे पर ही दिखा रही थी मामी की आँखो मे एक नशा था मैने अपना हाथ पीछे किया और मामी की चोटी को खोल दिया मुझे हमेशा से खुले बालो वाली औरते ही सुंदर लगती थी
और कौशल्या मामी तो गजब औरत थी गोरा रंग पतला शरीर एक नाज़ुक गुड़िया सी पर सेक्सी बहुत थी एक आग थी उनमे और मैं उस आग मे झुलसना चाहता था मैं बार बार और क्योकि मेरे जिस्म को चाह थी तो बस चूत की मेरे लिए तो हर रिस्ता ख़तम था अगर कुछ था तो भूक मेरे जिस्म की
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RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
मामी ने अपनी चूत को टाइट कर लिया अपनी जाँघो को आपस मे चिपका कर तो मैं भी तेज तेज स्टॉक लगाने लगा मैं भी चाहता था कि उसके साथ ही झड जाउ ताकि उसके पानी को फील कर सकूँ
अगले कुछ मिनिट बस मैं बेरहमी से धक्के लगाता रहा और फिर मामी की चूत जैस ही अपना रस बहाने लगी मैने भी अपना वीर्य छोड़ दिया और मामी के उपर ही ढह गया
करीब दस पंद्रह मिनिट हम दोनो एक दूसरे से लिपटे पड़े रहे फिर मामी उठी और कोने मे जाकर मूतने लगी चूत से जो सुर्र्र्ररर सुर्र्र्र्र्र्ररर की आवाज़ आ रही थी बड़ी मस्त लग रही थी मैने पास रखे जग से थोड़ा पानी पिया और फिर मैं भी मूतने चला गया
तब तक मामी भी चूत सॉफ करके वापिस बिस्तर पर आ गयी थी मैं आते ही उसके पास लेट गया और बाते करने लगे
मामी- तूने बड़ी मामी के साथ कर लिया
मैं- कहाँ , आप सीधा यहाँ जो ले आई
वो- तो क्या करती, मुझे पता है एक बार उसकी चूत ले ली तो फिर तुम उसके पीछे ही घुमोगे
मैं- ऐसी बात नही है डार्लिंग, वैसे कहो तो तुम दोनो को साथ चोद दूं
वो- ना, अकेले मे मस्त लगता है
मैं- तो अकेले मे चुद लो मेरी रानी आज की रात तो अपनी ही है आज तुम्हारे दोनो छेद चौड़े कर दूँगा
वो- गंदी बाते करना सीख गये हो तुम
मैं- तुमसे ही सीखाया है मेरी रानी
मैने मामी की चुचि चूसना शुरू किया और बारी बारी दोनो चुचियो का मज़ा लेने लगा मामी आहे भरने लगी जल्दी ही मामी की चुचिया कठोर होने लगी और मामी के चेहरे का रंग बदलने लगा
बहुत देर तक मैने उसकी चुचिया चूसी मामी की आँखो मे फिर से हवस के लाल डोरे तैरने लगे थे मैने मामी को बिस्तर पर औंधी लिटा दिया और उसके चुतड़ों को थोड़ा सा फैलाया जिस से उसकी गान्ड का छेद सामने हो गया
मैने ढेर सारा थूक लगाया उसकी गान्ड पर फिर अपना लंड अंदर डालने लगा मामी की गान्ड काफ़ी खुली हुई थी तो ज़्यादा परेशानी नही हुई मुझे धीरे धीरे करके मैने पूरा लंड अंदर डाल दिया
मेरी गोलिया मामी के चुतड़ों से टकरा रही थी कुछ देर मैं उसके उपर ऐसे ही पड़ा रहा फिर मैने मामी की गान्ड मारनी शुरू की साथ ही मैं उसके गोरे गालो को चूम ने लगा मामी की गान्ड अंदर से बहुत ही गरम थी और मेरे लंड पर काफ़ी टाइट हो रही थी
मामी के उपर मेरा पूरा बोझ पड़ रहा था पर मामी एक्सपर्ट थी गान्ड मरवाने मे जल्दी ही वो भी अपने चूतड़ पटकने लगी और पूरी मस्ती मे आकर मज़ा लेने लगी हम दोनो पसीना पसीना हो रहे थे
काफ़ी देर तक हम ऐसे ही करते रहे फिर मैने मामी को टेढ़ी किया और पीछे से उसकी गान्ड मारने लगा मैं अपने हाथ से उसकी चुचि दबा रहा था उसको किस कर रहा था और मामी भी मेरा पूरा साथ दे रही थी
करीब आधे घंटे तक उसकी गान्ड मारी मैने तब कही जाके मेरा पानी छूटा, उसके बाद हम ने एक राउंड और लिया और फिर सो गये, सुबह मैं जल्दी ही उठ गया तो थोड़ा खेतो की तरफ घूमने निकल गया तो रास्ते मे मुझे सरोज मिल गयी
सरोज- अरे तुम बड़े दिनो बाद रुख़ किया इस तरफ का
मैं- टाइम नही मिलता आपको तो पता है लाइफ चेंज हो गयी है
वो- फिर भी पुराने लोगो से मिलते रहना चाहिए
मैं मुस्कुरा दिया , सरोज को भी खूब पेला था पुरानी सेट्टिंग थी मैं उसके हाव भाव से ही जान गया था कि तैयार है पर मैने उसको कहा की जल्दी ही मिलूँगा उस से घूम फिर के आया नहाने धोने मे ही दोपहर हो गयी थी
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10-07-2019, 01:25 PM,
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RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
मैने बस उसे अपने आगोश मे समेट लिया और उसके नर्म होंठो को खुद से जोड़ लिया इस से पहले वो मुझे कुछ कहती मैने जाकड़ लिया उसको ये हमारा दूसरा किस था मैं बस उसके होंठो को फील कर रहा था मैं उसकी सांसो की गहराई मे उतर जाना चाहता था उसको अपने दिल से महसूस करना चाहता था
ना जाने क्या सोच कर उसने खुद को मेरी बहो मे ढीला छोड़ दिया थोड़ी देर तक ऐसे ही चलता रहा फिर वो हट गयी
“सांस तो लेने दो मनीष ”
मैं- निशा मैं कुछ कहना चाहता हूँ
निशा- मैं जानती हूँ …….
मैं- निशा …………..
वो- मैं जानती हूँ तुम क्या कहना चाहते हो पर इतना जान लेना कि मैं तुम्हारी ज़रूरत ना बन जाऊ
“तुम मेरी ज़रूरत नही हो निशा ”
“तो कौन हूँ मैं क्या हूँ मैं क्या मैं ख्वाब हूँ या तस्सवुर हूँ या मैं कुछ भी नही ”
“पहली तो पता नही पर आज तुम मेरी ख्वाहिश हो तुम वो डर हो जहाँ मैं बार बार आना चाहूँगा , तुम हो तो मैं हूँ बस इतना जानता हूँ ”
“वो क्या करोगे मुझे अपनी ख्वाहिश बना कर जब तुम खुद किसी का ख्वाब हो और ख्वाब अक्सर आँख खोलते ही बिखर जाया करते है ”
“मैं किसी का ख्वाब नही बल्कि शतरंज के खेल का हारा हुआ राजा हूँ ”
“तुम तुम हो तो क्या तुम हुए ”
“तुम्हे तो सब पता है ना ”
“तभी तो कह रही हूँ कि मैं तुम्हारी ज़रूरत नही हूँ ”
“हाँ, तुम मेरी ज़रूरत नही हो ”
“तो क्या हूँ मैं तुम्हारी बता क्यो नही देते ”
“क्या सुन ना चाहती हो तुम निशा ”
“कुछ नही बस ढूँढ रही हूँ खुद को अंधेरी गलियों मे और रोशनी है कि कुछ दिखाई देता नही ”
“अगर मैं कहूँ मुझे तुमसे ……… ’
“मनीष, तुम बहुत कच्चे हो मैं जब भी तुम्हारे बारे मे सोचती हूँ मेरी आँखो के सामने जैसे एक बच्चा आ जाता है पर किसी पतंग की डोर की तरह उलझे हो तुम ”
“और कौन सुलझाएगा इस डोर को ”
“कोई तो होगा जिसे तुम्हारी नज़रें देख नही पा रही है ”
“मैं क्या बताऊ क्या मेरे दिल मे है आँसू भी मेरा है और दिल भी मेरा है मैं कैसे जीता हूँ निशा बस मैं जानता हूँ मेरा कोई वजूद नही उसके बिना मैं जानता हूँ कि तुम भी मेरी हो पर निशा वो भी तो ………. ”
“मैं समझती हूँ मनीष, पर जीना तो होगा ना मैने पहले भी कहा है कि तुम उसको भी दुख दे रहे हो वो क्या सोचती होगी जब तुम्हे यूँ देखती होगी मैं जानती हूँ कि तुम कभी उसको नही भूल पाओगे और उसको भूल जाना भी नही पर मैं फस गयी हूँ ”
“तुम ही तो हो मेरे पास ”
“कुछ बातों को तुम नही समझते हो ”
“तुम समझाती भी तो नही हो ना ”
“इतने नासमझ भी नही हो तुम ”
“निशा मैं इशारे नही समझ पाता हूँ ”
“ तुम मुझे भी कहाँ समझ पाते हो ”ये बोल कर वो नीचे चली गयी मुझे छोड़ गयी अब कैसे कहे हम हाल-ए-दिल अपना सनम से जब उसको हमारी धड़कने सुनाई देती हो
वो मेरी ज़रूरत नही थी सच कहा था उसने पर मेरी ख्वाहिश भी तो नही थी मुझे बहुत गुस्सा आता था कभी कभी कि क्यो छोड़ गयी मुझे वो इस बीच राह मे मंदिर- मस्जिद जहाँ भी मैने सर झुकाया बस एक दुआ माँगी कि जी सकूँ उसके साथ उसकी बाहों मे सोना चाहता था – उसके साथ हसना उसके साथ रोना चाहता था
कोई बहुत बड़ी चीज़ नही माँगी थी मैने दुआ मे और ऐसी भी ना थी कि जो पूरी ना होसके फिर क्या कमी रही मेरी मुहब्बत मे या मेरी दुआ मे जो किसी ने भी कबूल नही किया मैं दोष नही दे रहा किसी को पर साला अजीब लगता है जब खुद को अपनो के बीच अकेला पाता हूँ कहने को तो मेरे होंठो पर एक मुस्कान है फिर क्यो मेरे सीने मे आग लगी है
मितलेश मेरा नूर थी तो निशा मेरी परछाई थी उसका कहना कुछ भी ग़लत नही था पर हम करे तो क्या करे वो भी अपनी और दर्द भी अपना वो लाख कोशिश करती थी मेरे दिल पर मरहम लगाने की पर मैं खुद कुरेदता था अपने जख़्मो को
खैर, नीचे आया तो रोनक लगी थी महफ़िल सजी थी आज तो जम के धमाल होना था तभी मैने देखा कि रुक्मणी भी आई थी ओह उसको तो आना ही था
मैं उस से मिला
रुक्मणी- मनीष, कैसे हो तुम हमें तो भूल ही गये हो कितना टाइम हुआ ना कोई फोन ना कुछ
मैं- थोड़ा सा बिज़ी था अब तुम्हे तो सब पता ही है
वो- एक मिनिट किसी से मिलावाती हूँ
मैं- कौन
वो- आओ तो सही इनसे मिलो मेरे हब्बी सुधीर
हम ने हेलो किया कुछ बाते हुई अच्छा इंसान लगा मुझे
मैं- तुमने शादी कब की
वो- तुम कॉंटॅक्ट रखो तो कुछ पता चले तुम्हे
मैं- वैसे अच्छा ही है लाइफ मे सेट्ल तो होना ही है
वो- हाँ पर तुम कब सेट्ल हो रहे हो
मैं- जल्दी ही हो जाउन्गा और बताओ
वो- बस बढ़िया जयपुर मे हूँ अभी
मैं- क्या बात कर रही हो मैं अभी तो आया जयपुर से
वो- कब
मैं- जस्ट कुछ दिन पहले
वो- तो फिर आओ हम सिविल लाइन्स मे रहते है
मैं- पक्का
तभी निशा भी आ गई
रुक्मणी- कौन है
मैं- दोस्त है
वो- गर्लफ्रेंड
मैं- उस से ज़्यादा
वो- वाउ मनीष तुम तो छुपे रुस्तम निकले
मैने निशा को रुक्मणी से मिलवाया
तभी निशा को मामी ने बुला लिया
रुक्मणी- चूक मत शादी कर ले
मैं- सोच तो रहा हूँ
वो- सोच मत पगले कब तक भागता रहेगा अपने आप से अब तो रुक जा
मैं- डर लगता है
वो- डर कैसा
मैं- पता नही
वो- कुछ ना होता अच्छा मैं मिलती हूँ थोड़ा कपड़े वग़ैरा चेंज कर लूँ
मैं-ओके
उसके बाद मैं बड़े लोगो के कमरे मे गया पेग सेग लग रहे थे तो मैने भी एक बॉटल उठा ली और बाहर आ गया
मामी- शुरू हो गया तुम लोगो का
मैं- वो तो किसी को देनी थी
वो- रहने दे सब समझती हूँ मैं
मैं- भाई कहाँ है
वो- होगा यही कही
मैं- मिले तो बोलना मैं उधर हूँ
मैं एक कुर्सी पर बैठ गया और गिलास मे थोड़ी दारू डाली और पीने लगा तभी पापा आ निकले उस साइड तो मेरे लिए थोड़ी शर्मिंदगी हो गयी मैने बॉटल को छुपाया तो बोले- रहने दे बेटा शरम तो आँखो की होती है फ़ौजी पेग नही लगाएग तो कौन लगाएगा चल मेरा भी मूड है एक मेरा भी बना
मैने उनको सीप दिया
पापा- आज कल दारू भी पहले जैसी नही रही
मैं हुम्म
वो-यार एक बात बोलनी थी तुझसे बुरा ना माने तो बोलू
मैं- जी
वो- यार तेरे बिना ना घर मे रोनक नही लगती
मैं- मैं, जानता हूँ आप क्या कहना चाहते है , मैं हर चीज़ समझता हूँ , वहाँ से घर जाते ही मैं मम्मी से बात करूँगा और पूरी कोशिश करूँगा कि सब ठीक हो जाए.
पापा- मेरी भी ये ही चाहत है.
रत करीब दो बजे मैं निशा के साथ चौबारे की छत पर लेटा हुआ था. आँखो मे नींद का नामो निशान नही था. दिल निशा से कुछ कहना चाहता था पर समझ नही आ रहा था कि कैसे कहूँ, क्या कहूँ क्योंकि हमारी हर बात आजकल अधूरी ही रह जाती थी
निशा- नींद नही आ रही क्या
मैं- तुम भी तो नही सोई
निशा- मेरा क्या है और वैसे भी नींद पर किसी का ज़ोर तो है नही, ये तो जब आए तब आए.
मैं- सुबह होते ही हम गाँव के लिए निकल रहे है.
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RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
निशा मेरे थोड़ा पास आते हुए – मैने सोचा तुम और रुकोगे यहाँ.
मैं- नही, अभी चलते है दो तीन दिन गाँव रुक कर फिर देल्ही निकल लेंगे.
निशा- कभी कभी मैं तुमको समझ नही पाती हूँ.
मैं- मैं भी.
मैने निशा के माथे पर एक किस किया और बोला- सो जा निशा.
उसने अपना सर मेरे सीने पर रखा और आँखो को बंद कर लिया , चाँदनी रात मे निशा आज कुछ अलग सी ही लग रही थी , क्या ये जिस्म की ज़रूरत थी या मैं सच मे ही उसकी ओर खींचा चला जा रहा था , पर जो भी था अब निशा के सिवा मेरा और था भी तो कौन. कुछ ठंड सी लग रही थी तो मैने एक चादर हम दोनो के उपर डाल ली और सो गया.
सुबह हम तैयार हो चुके थे, तो मैं बस सबको बाइ बोल रहा था कि अशोक भाई और रीना भाभी मेरे पास आए .
भाभी- मनीष, उस बात पे गौर करना जो मैने तुमसे कही थी.
मैं- किस बारे मे भाभी.
भाभी- निशा के बारे मे , स्टुपिड. तुम चाहे मानो या ना मानो पर मैं जानती हूँ निशा ही वो लड़की है जो तुम्हे थाम सकेगी, क्योंकि उस से बेहतर तुम्हे कोई नही समझता , जैसे तुम्हे महसूस कर लेती है वो और सबसे बड़ी बात तुमसे प्यार करती है वो.
भाई- देखो, कुछ चीज़ो से हम लाख कॉसिश कर ले लेकिन भाग नही सकते हमे बस जीना होता है , वैसे तो हम फ़ौज़ियो की ज़िंदगी की डोर का कुछ पता नही पर जितना भी जीने को मिले राज़ी खुशी जी लो यार, चलो अपना मत सोचो पर जब भी तुम्हारी रूह मिथ्लेश से मिलेगी वो बस तुमसे एक सवाल पूछेगी- कि मैं तो अपनी तमाम मुस्कुराहटें तुम्हे सौंप गयी थी , तब क्या कहोगे उस से. नियती से कब तक भगॉगे और फिर निशा जैसी सुलझी हुई लड़की तुम्हे कहाँ मिलेगी, बाकी करो जो करना है हम होते ही कौन है .
मैं- ऐसा क्यो कहते हो भाई, मैं कोशिश तो कर रहा हूँ ना.
भाई- एक बार निशा के दिल को टटोल कर देखो, तुम्हे कोशिश नही करनी पड़ेगी.
भाई और भाभी बहुत देर तक मुझे समझाते रहे, वो ये भी चाहते थे कि मैं कुछ दिन और रुक जाउ पर मुझे तो जाना ही था तो सब लोगो से विदा लेकर मैं और निशा गाँव के लिए चल दिए. पहुचते पहुचते शाम हो गयी थी. चाय-नाश्ता किया निशा घर पर ही रुक गयी और मैं चाची के साथ खेतो की तरफ आ गया.
चाची ने कमरे का ताला खोला और चारपाई बाहर निकाल ली.
मैं- टाइम कितना बदल गया ना.
चाची- हाँ, ऐसे लगता है जैसे बस कल ही की बात है. जैसे कल तक तुम ऐसे ही बेफ़िक्रे इन खेत खलिहानो मे घुमा करते थे, शराराते किया करते थे.
मैं- हाँ, चाची मुझे सब की बहुत याद आती है, अब अपने पैरो पे खड़ा तो हो गया हूँ पर फिर भी सच कहूँ तो काश एक बार फिर वो वक़्त आ जाए तो , मैं एक बार फिर से उसी वक़्त को , उसी अंदाज को , उसी बेफकरी मे जीना चाहता हूँ.
चाची- वक़्त बदल गया है मनीष अब कुछ नही पहले जैसा यहाँ तक कि हम भी तो बदल गये है, खैर मैं कुछ काम निपटा लूँ, तुम चाहो तो थोड़ा आराम करो या फिर आस पास घूम लो .
मैं भी उठ कर थोड़ा आगे को चल दिया, जैसे एक मुद्दत ही हो गयी थी मैं इस तरफ आया ही नही था. हमारे खेतो से थोड़ा आगे सेर मे एक बड़ा सा नीम का पेड़ होता था जिस की छाया मे बहुत समय गुज़रा था मेरा, एक बार फिर से उस नीम को देख कर बहुत अच्छा लगा मुझे. पास ही एक पानी की टंकी होती थी जो अब नही थी, शायद रोड को पक्का करने मे उसे यहाँ से हटा दिया गया था. ऐसा लगता था कि जैसे जमाना एक तेज रफ़्तार से आगे बढ़ गया था और मैं आज भी अपनी उसी बारहवी क्लास वाले साल मे अटका हुआ था.
वो दिन भी क्या दिन थे, मेरा अतीत मुझ पर हावी होने लगा था. मेरे अंदर का जो आवारापन था , जैसे मैं कोई बंजारा था जो बस भटक रहा था इधर उधर. पर मैने सोचा कि एक बार फिर अपने पुराने दिनो की याद को ताज़ा करना है, मैने सोचा कि कल सुबह ही निशा को लेकर निकल जाउन्गा और पूरा दिन बस घूमना है, तमाम उन चीज़ो को एक बार फिर से देखना है जो आज भी मेरा इंतज़ार कर रही थी.
उसके बाद मैं वापिस कुँए पर आ गया. चाची मेरा इंतज़ार कर रही थी.
चाची- कहाँ चले गये थे.
मैं- बस थोड़ा आगे तक.
मैं- चाची, एक बात कहूँ.
चाची- हाँ,
मैं- दोगि क्या.
चाची- अच्छा तो अब तुझे चाची की याद आई है, मैं तो सोची कि अब मुझे भूल ही गया है तू तो.
मैं- ऐसी बात नही है बस उलझा हूँ अपनेआप मे उसी का असर है और कुछ नही.
चाची- रात को चुप चाप मैं छत पे आ जाउन्गी.
मैं- यही करते है ना, वैसे भी मैने अरसे से खेत मे सेक्स नही किया है. वैसे भी घर पर निशा होगी उसके सामने मैं ये सब नही करना चाहता.
चाची- चोरी छिपे क्यो करते हो फिर, बेटा माना कि तुम्हारे और मेरे जिस्मानी रिश्ते है पर मैं फिर भी कहूँगी कि अब तुम्हारी ज़िंदगी मे हम नही बल्कि सिर्फ़ और सिर्फ़ है , तू करना चाहता है तो कर ले मैं मना नही करूँगी पर बेटा, वो तुझे बहुत चाहती है , उसकी आँखो मे तेरे लिए बेशुमार चाहत है , उसके दिल को समझ, सिर्फ़ वो ही है जो तुम्हे सब से ज़्यादा जानती है, उसका हाथ थाम लो. यही सही होगा तुम्हारे लिए.
चाची की बात बिल्कुल सही थी. मुझे अब आगे बढ़ कर निशा का हाथ थामना चाहिए था, निशा जो जैसे मेरी सोचों पर छाई थी, मेरा हमदम थी. मेरा जो भी थी अब वो ही थी. मैने फिर चाची के साथ सेक्स नही किया और कुछ देर बाद हम घर आ गये. और आते ही मैं सीधा निशा के पास गया जो बस अभी सो कर उठी थी, अलसाया सा उसका चेहरा, बिखरे बार उसके चेहरे पर बेतारीब बिखरे हुए .
निशा- ऐसे क्या देख रहे हो.
मैं- बस तुम्हे.
निशा- पर मुझे तो रोज ही देखते हो.
मैं- मेरी जितनी मर्ज़ी होगी उतना देखूँगा.
निशा- ओके बाबा, देख लेना पर अभी ज़रा हाथ मूह धो लूँ.
मैं रसोई मे गया और दो कप चाय बनाने लगा कुछ देर मे निशा भी वही पर आ गयी.
निशा- मनीष, आख़िर तुम खुद को कैसे इतना सिंपल रख पाते हो, देखो जमाना कितना बदल गया और तुम आज भी जैसे बचपन मे ही अटके हुए हो, आज भी तुम सिर्फ़ डबल डाइमंड चाय पीते हो, कहने को तो ऑफीसर हो पर फिर भी स्टॅंडर्ड के हिसाब से तुम्हे कॉफी पीना चाहिए या कुछ ऑर.
मैं- सिंपल होना ही सबसे बड़ी मुश्किल है मेडम आज की इस भागती ज़िंदगी मे, दुनिया चाहे कुछ भी समझे पर आज के इस सेल्फिश जमाने के साथ चलना मुझे पसंद नही, मैं बस अपने आप मे ही जीना चाहता हूँ, और सही कहा तुमने मैं जान बुझ कर ही आगे नही बढ़ना चाहता, क्योंकि उस दौर मे जब हम छोटे थे जीना तभी सीखा था मैने और सच तो ये है कि मैं उस दौर मे ही जी चुका अब तो बस साँसे है.
मैने निशा के हाथ मे चाय का कप दिया और बोला- कल सुबह जल्दी उठ जाना
निशा- क्यो
मैं- खुद जान लेना .
निशा- चलो ठीक है पर अभी खाने मे क्या खाओगे, बता दो मैं जल्दी से बना देती हूँ.
मैं- अभी तो बस मेगि ही बना दो , पर सुबह मेरे लिए राबड़ी बना देना बहुत दिन हुए मैने राबड़ी नही पी है और हाँ दो रात की रोटी भी रख देना,
निशा- जो हुकम सरकार.
जब तक निशा बिज़ी थी मैं अनिता भाभी से मिलने चला गया पर हमेशा की तरह मेरी शक्की ताई की वजह से मैं भाभी से कुछ बात नही कर पाया , सो डिन्नर किया और अपना बिस्तर छत पर लगा दिया रात के करीब 11 बजे , मेरा रेडियो बज रहा था हमेशा की तरह 90’स के शानदार गाने स्लो आवाज़ मे उस ठंडी सी हवा के साथ मेरे दिल को धड़का रहे थे. और ना जाने कब मेरी बगल मे निशा आकर लेट गयी.
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10-07-2019, 01:25 PM,
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RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
निशा मेरे थोड़ा पास आते हुए – मैने सोचा तुम और रुकोगे यहाँ.
मैं- नही, अभी चलते है दो तीन दिन गाँव रुक कर फिर देल्ही निकल लेंगे.
निशा- कभी कभी मैं तुमको समझ नही पाती हूँ.
मैं- मैं भी.
मैने निशा के माथे पर एक किस किया और बोला- सो जा निशा.
उसने अपना सर मेरे सीने पर रखा और आँखो को बंद कर लिया , चाँदनी रात मे निशा आज कुछ अलग सी ही लग रही थी , क्या ये जिस्म की ज़रूरत थी या मैं सच मे ही उसकी ओर खींचा चला जा रहा था , पर जो भी था अब निशा के सिवा मेरा और था भी तो कौन. कुछ ठंड सी लग रही थी तो मैने एक चादर हम दोनो के उपर डाल ली और सो गया.
सुबह हम तैयार हो चुके थे, तो मैं बस सबको बाइ बोल रहा था कि अशोक भाई और रीना भाभी मेरे पास आए .
भाभी- मनीष, उस बात पे गौर करना जो मैने तुमसे कही थी.
मैं- किस बारे मे भाभी.
भाभी- निशा के बारे मे , स्टुपिड. तुम चाहे मानो या ना मानो पर मैं जानती हूँ निशा ही वो लड़की है जो तुम्हे थाम सकेगी, क्योंकि उस से बेहतर तुम्हे कोई नही समझता , जैसे तुम्हे महसूस कर लेती है वो और सबसे बड़ी बात तुमसे प्यार करती है वो.
भाई- देखो, कुछ चीज़ो से हम लाख कॉसिश कर ले लेकिन भाग नही सकते हमे बस जीना होता है , वैसे तो हम फ़ौज़ियो की ज़िंदगी की डोर का कुछ पता नही पर जितना भी जीने को मिले राज़ी खुशी जी लो यार, चलो अपना मत सोचो पर जब भी तुम्हारी रूह मिथ्लेश से मिलेगी वो बस तुमसे एक सवाल पूछेगी- कि मैं तो अपनी तमाम मुस्कुराहटें तुम्हे सौंप गयी थी , तब क्या कहोगे उस से. नियती से कब तक भगॉगे और फिर निशा जैसी सुलझी हुई लड़की तुम्हे कहाँ मिलेगी, बाकी करो जो करना है हम होते ही कौन है .
मैं- ऐसा क्यो कहते हो भाई, मैं कोशिश तो कर रहा हूँ ना.
भाई- एक बार निशा के दिल को टटोल कर देखो, तुम्हे कोशिश नही करनी पड़ेगी.
भाई और भाभी बहुत देर तक मुझे समझाते रहे, वो ये भी चाहते थे कि मैं कुछ दिन और रुक जाउ पर मुझे तो जाना ही था तो सब लोगो से विदा लेकर मैं और निशा गाँव के लिए चल दिए. पहुचते पहुचते शाम हो गयी थी. चाय-नाश्ता किया निशा घर पर ही रुक गयी और मैं चाची के साथ खेतो की तरफ आ गया.
चाची ने कमरे का ताला खोला और चारपाई बाहर निकाल ली.
मैं- टाइम कितना बदल गया ना.
चाची- हाँ, ऐसे लगता है जैसे बस कल ही की बात है. जैसे कल तक तुम ऐसे ही बेफ़िक्रे इन खेत खलिहानो मे घुमा करते थे, शराराते किया करते थे.
मैं- हाँ, चाची मुझे सब की बहुत याद आती है, अब अपने पैरो पे खड़ा तो हो गया हूँ पर फिर भी सच कहूँ तो काश एक बार फिर वो वक़्त आ जाए तो , मैं एक बार फिर से उसी वक़्त को , उसी अंदाज को , उसी बेफकरी मे जीना चाहता हूँ.
चाची- वक़्त बदल गया है मनीष अब कुछ नही पहले जैसा यहाँ तक कि हम भी तो बदल गये है, खैर मैं कुछ काम निपटा लूँ, तुम चाहो तो थोड़ा आराम करो या फिर आस पास घूम लो .
मैं भी उठ कर थोड़ा आगे को चल दिया, जैसे एक मुद्दत ही हो गयी थी मैं इस तरफ आया ही नही था. हमारे खेतो से थोड़ा आगे सेर मे एक बड़ा सा नीम का पेड़ होता था जिस की छाया मे बहुत समय गुज़रा था मेरा, एक बार फिर से उस नीम को देख कर बहुत अच्छा लगा मुझे. पास ही एक पानी की टंकी होती थी जो अब नही थी, शायद रोड को पक्का करने मे उसे यहाँ से हटा दिया गया था. ऐसा लगता था कि जैसे जमाना एक तेज रफ़्तार से आगे बढ़ गया था और मैं आज भी अपनी उसी बारहवी क्लास वाले साल मे अटका हुआ था.
वो दिन भी क्या दिन थे, मेरा अतीत मुझ पर हावी होने लगा था. मेरे अंदर का जो आवारापन था , जैसे मैं कोई बंजारा था जो बस भटक रहा था इधर उधर. पर मैने सोचा कि एक बार फिर अपने पुराने दिनो की याद को ताज़ा करना है, मैने सोचा कि कल सुबह ही निशा को लेकर निकल जाउन्गा और पूरा दिन बस घूमना है, तमाम उन चीज़ो को एक बार फिर से देखना है जो आज भी मेरा इंतज़ार कर रही थी.
उसके बाद मैं वापिस कुँए पर आ गया. चाची मेरा इंतज़ार कर रही थी.
चाची- कहाँ चले गये थे.
मैं- बस थोड़ा आगे तक.
मैं- चाची, एक बात कहूँ.
चाची- हाँ,
मैं- दोगि क्या.
चाची- अच्छा तो अब तुझे चाची की याद आई है, मैं तो सोची कि अब मुझे भूल ही गया है तू तो.
मैं- ऐसी बात नही है बस उलझा हूँ अपनेआप मे उसी का असर है और कुछ नही.
चाची- रात को चुप चाप मैं छत पे आ जाउन्गी.
मैं- यही करते है ना, वैसे भी मैने अरसे से खेत मे सेक्स नही किया है. वैसे भी घर पर निशा होगी उसके सामने मैं ये सब नही करना चाहता.
चाची- चोरी छिपे क्यो करते हो फिर, बेटा माना कि तुम्हारे और मेरे जिस्मानी रिश्ते है पर मैं फिर भी कहूँगी कि अब तुम्हारी ज़िंदगी मे हम नही बल्कि सिर्फ़ और सिर्फ़ है , तू करना चाहता है तो कर ले मैं मना नही करूँगी पर बेटा, वो तुझे बहुत चाहती है , उसकी आँखो मे तेरे लिए बेशुमार चाहत है , उसके दिल को समझ, सिर्फ़ वो ही है जो तुम्हे सब से ज़्यादा जानती है, उसका हाथ थाम लो. यही सही होगा तुम्हारे लिए.
चाची की बात बिल्कुल सही थी. मुझे अब आगे बढ़ कर निशा का हाथ थामना चाहिए था, निशा जो जैसे मेरी सोचों पर छाई थी, मेरा हमदम थी. मेरा जो भी थी अब वो ही थी. मैने फिर चाची के साथ सेक्स नही किया और कुछ देर बाद हम घर आ गये. और आते ही मैं सीधा निशा के पास गया जो बस अभी सो कर उठी थी, अलसाया सा उसका चेहरा, बिखरे बार उसके चेहरे पर बेतारीब बिखरे हुए .
निशा- ऐसे क्या देख रहे हो.
मैं- बस तुम्हे.
निशा- पर मुझे तो रोज ही देखते हो.
मैं- मेरी जितनी मर्ज़ी होगी उतना देखूँगा.
निशा- ओके बाबा, देख लेना पर अभी ज़रा हाथ मूह धो लूँ.
मैं रसोई मे गया और दो कप चाय बनाने लगा कुछ देर मे निशा भी वही पर आ गयी.
निशा- मनीष, आख़िर तुम खुद को कैसे इतना सिंपल रख पाते हो, देखो जमाना कितना बदल गया और तुम आज भी जैसे बचपन मे ही अटके हुए हो, आज भी तुम सिर्फ़ डबल डाइमंड चाय पीते हो, कहने को तो ऑफीसर हो पर फिर भी स्टॅंडर्ड के हिसाब से तुम्हे कॉफी पीना चाहिए या कुछ ऑर.
मैं- सिंपल होना ही सबसे बड़ी मुश्किल है मेडम आज की इस भागती ज़िंदगी मे, दुनिया चाहे कुछ भी समझे पर आज के इस सेल्फिश जमाने के साथ चलना मुझे पसंद नही, मैं बस अपने आप मे ही जीना चाहता हूँ, और सही कहा तुमने मैं जान बुझ कर ही आगे नही बढ़ना चाहता, क्योंकि उस दौर मे जब हम छोटे थे जीना तभी सीखा था मैने और सच तो ये है कि मैं उस दौर मे ही जी चुका अब तो बस साँसे है.
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