08-02-2020, 01:01 PM,
|
|
desiaks
Administrator
|
Posts: 22,998
Threads: 1,134
Joined: Aug 2015
|
|
RE: Desi Porn Kahani नाइट क्लब
मैं जब शयनकक्ष में दाखिल हुई, तो वहां का माहौल बेहद सनसनीखेज था।
खासतौर पर तिलक राजकोटिया की सबसे बुरी हालत थी।
वह पसीनों में लथपथ था।
डरा हुआ।
मानो जिस्म का एक—एक रोआं खड़ा हो। फोन अभी भी उसकी गोद में रखा था और वह उस क्षण बैठा हुआ था।
“क्या हो गया?” मैंने शयनकक्ष में दाखिल होते ही अपनी नजरें उन सबके चेहरों पर घुमाईं—”आप लोग इतना परेशान क्यों हैं?”
कोई कुछ न बोला।
सब चुप!
“तिलक!” मैं, तिलक राजकोटिया के नजदीक पहुंची—”आखिर क्या हुआ है, बताते क्यों नहीं कुछ?”
“अ... अभी—अभी सावंत भाई के आदमी का फोन आया था।”
“फिर?”
“तुम्हारा अनुमान ठीक ही था शिनाया!” तिलक धीमे स्वर में बोला—”यह हरकत सावंत भाई के आदमी की ही है। उन्होंने ही मेरे ऊपर गोली चलाई थी।”
“लेकिन अब क्या कह रहे हैं वह लोग?”
“वह मेरे ऊपर पैंथ हाउस और होटल का कब्जा देने के लिए प्रेशर डाल रहे हैं। वह कह रहे हैं- अभी यह ट्रेलर था, जो दिखाया गया। आगे पूरी फिल्म भी दिखाई जा सकती है। वह मेरी खोपड़ी में भी गोली मार सकते हैं।”
“ओह!”
मैंने भी अब भयभीत होने का नाटक किया।
मेरे चेहरे पर भी आतंक के भाव दौड़े।
“मैं तो कहता हूं तिलक साहब!” तभी होटल का मैनेजर बोला—”आपको इस घटना की पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करानी चाहिए। बाकायदा सावंत भाई के नाम से रिपोर्ट दर्ज करानी चाहिए। वैसे भी आपको गोली लगी है, यह कोई छोटा मामला नहीं है।”
“नहीं।” मैंने फौरन कहा—”पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करानी उचित नहीं।”
“क्यों?” मैनेजर बोला—”उचित क्यों नहीं? रिपोर्ट दर्ज कराई जाएगी, तभी तो सावंत भाई को पता चलेगा कि इस तरह की हरकतों का क्या नतीजा होता है। अभी शहर में कोई जंगलराज कायम नहीं हो गया है, जहां उस जैसे गुण्डे—मवाली कुछ भी करते घूमें।”
“फिर भी मैं समझती हूं,” मैं अपनी बात पर दबाव बनाकर बोली—”पुलिस तक मामला पहुंचाना ठीक नहीं है। ज्यादातर ऐसे केसों में पुलिस कुछ नहीं करती, अलबत्ता रिपोर्ट दर्ज कराने से हमें एक नुकसान जरूर होगा।”
“क्या?”
“सावंत भाई से हमारी दुश्मनी और बढ़ जाएगी।”
मैनेजर अब खामोश हो गया।
“शिनाया ठीक कह रही है।” तिलक ने भी मेरी हां—में—हां मिलाई—”पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराना ठीक नहीं है। फिर रिपोर्ट दर्ज कराने में एक नुकसान और है, जिसकी तरफ अभी तुम लोगों का ध्यान नहीं गया है।”
“क्या?”
“अभी मेरी कंगाली की जो बात सिर्फ चंद लोगों को मालूम है, रिपोर्ट दर्ज कराते ही फिर वो पूरे शहर को मालूम होगी। फिर पूरा शहर चटखारे ले—लेकर इस विषय पर चर्चा कर रहा होगा।”
बहरहाल पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने का मामला उसी क्षण ठण्डा पड़ गया।
जोकि मेरे लिए अच्छा ही था।
तभी अपना किट बैग लेकर डॉक्टर भी वहां आ पहुंचा।
आते ही वो गोली निकालने के अपने काम में जुट गया।
हालांकि वह भी बार—बार एफ.आई.आर. की बात कर रहा था। कह रहा था कि यह सब गैरकानूनी है।
|
|
08-02-2020, 01:02 PM,
|
|
desiaks
Administrator
|
Posts: 22,998
Threads: 1,134
Joined: Aug 2015
|
|
RE: Desi Porn Kahani नाइट क्लब
15
मौत से पहले खेल
वह रात मेरे लिए बड़ी हंगामें से भरी रात रही।
हंगामें से भरी थी और यादगार भी।
उस रात मैं गहरी नींद में थी- जब तिलक राजकोटिया ने मुझे झंझोड़कर जगाया और मुझसे कहा कि वो मेरे साथ सहवास करना चाहता है।
वह मेरे लिए बड़ी अद्भुत बात थी।
उस रात मुझे पहली बार अपने पत्नी होने का अहसास हुआ। क्योंकि एक पति ही पत्नी से इस तरह की बात कर सकता है। वरना एक कॉलगर्ल को तो जगाना ही नहीं पड़ता। वह तो अपने ग्राहक के लिए पहले ही रेडी होती है। एकदम चौकस। अगर ग्राहक सहवास करने के लिए उसे सोते से जगाएगा, तो फिर उसकी दुकान चल पड़ी। आखिर सैक्स उसका पेट पालने का बिल्कुल वैसा ही जरिया तो होता है, जैसे दूसरे लोगों के अलग—अलग जरिये होते हैं।
बहरहाल वह मेरे लिए एक दुर्लभ अवसर था।
उस रात तिलक मूड में भी बहुत था। उसका पूरा शरीर इस तरह भभक रहा था, जैसे उसके अंदर कई हजार वोल्ट का करण्ट प्रवाहित हो रहा हो।
कभी इतनी गर्मी मैंने सरदार करतार सिंह के शरीर में ही देखी थी।
“क्या बात है जनाब!” मैं उसे आलिंगनबद्ध करते हुए बोली—”आज बहुत मूड में नजर आ रहे हो।”
“हां।” तिलक बोला—”आज मैं बहुत मूड में हूं। आज मेरी इच्छा हो रही है कि मैं तुम्हें बुरी तरह पीस डालूं।”
“तो फिर मना किसने किया है?”
मैं हंसी।
मगर सच तो ये है- मैं रोमांस के उन मनोहारी क्षणों में भी उस झांपड़ को नहीं भूली थी, जो तिलक राजकोटिया ने मेरे मुंह पर मारा था। और... और उसी झांपड़ के कारण तब भी मेरे दिल में उसके लिये नफरत थी।
तिलक ने बारी—बारी से मेरे गुलाबी गालों को चूम लिया।
हम दोनों एक—दूसरे से कसकर चिपटे हुए थे।
उस क्षण हमें देखकर कोई नहीं कह सकता था, किसने किसे आलिंगबद्ध किया हुआ है।
अलबत्ता मेरे वक्ष उसके सीने से दबकर अजीब—सी शांति जरूर महसूस कर रहे थे।
मेरा अजीब हाल था।
जिस आदमी के लिए मेरे दिल में नफरत थी,जिसके मैं खून की प्यासी हो उठी थी, फिलहाल मैं उसी के साथ रतिक्रीड़ा कर रही थी।
“एक बात कहूं!” तिलक ने बड़े प्यार से मेरे गाल का एक और चुम्बन लिया।
“क्या?”
मैं इठलाई।
मैं उसके ऊपर जरा भी यह जाहिर नहीं होने दे रही थी कि मेरे दिल में उसके लिए क्या है।
“डार्लिंग!” वह मेरे सुनहरी बालों की लटों से खेलता हुआ बोला—”किसी खूबसूरत औरत को काबू में रखने का बस एक ही तरीका है।”
“क्या?” मैं थोड़ी चौकन्नी हुई।
“अफसोस!” तिलक ने बड़ी गहरी सांस लेकर कहा—”वह तरीका कोई मर्द नहीं जानता। मैं भी नहीं जानता।”
मैं हंसे बिना न रह सकी।
वाकई उसने वह बात बड़े दिलचस्प अंदाज में कही थी।
उसके हाथ उस वक्त मेरी पीठ पर सरसरा रहे थे।
मैं अपने जिस्म में अजीब—सी बेचैनी, अजीब—सा रोमांच अनुभव करने लगी।
तभी तिलक ने मेरे गाउन की डोरी पकड़कर खींच दी।
तुरन्त गाउन खुलकर नीचे जा पड़ा।
अब मैं सिर्फ ब्रा और पैंटी में थी।
मेरी सांसें तेज होने लगीं।
फिर तिलक ने हाथ बढ़ाकर मेरी ब्रा भी उतार डाली।
एक क्षण के लिए मेरे हाथ अपनी ब्रा के कप्स पर जाकर ठिठके थे, लेकिन शीघ्र ही मेरा विरोध समाप्त हो गया।
मैंने अपने हाथ पीछे हटा लिये।
ब्रा उतरकर अलग जा गिरी।
“न जाने क्या बात है!” वो बड़े अनुरागपूर्ण ढंग से मुझे देखता हुआ बोला—”जब भी मैं तुम्हें इस रूप में देखता हूं, तुम मुझे पहले से कहीं ज्यादा खूबसूरत नजर आती हो।”
“औरत वही है डियर!” मैंने भी उसके गाल का एक प्रगाढ़ चुम्बन लिया—”जो मर्द को हमेशा खूबसूरत नजर आये। जो हमेशा उसकी दिलकशी का सामना बनी रहे।”
“यह तो है।”
उसके हाथ सरसराते हुए अब मेरी बांहों पर आ गये थे।
फिर उसके होंठ मेरे सुर्ख कपोलों और कण्ठस्थल पर अपना रोमांचक स्पर्श प्रदान करने लगे।
उसकी गर्म सांसों का स्पर्श मेरे जिस्म को झुलसा—सा रहा था।
मैं दुनिया—जहान से बेखबर थी।
सच तो ये है, मैं आंखें बंद करके प्यार के उन लम्हों का भरपूर लुत्फ उठा रही थी। उसकी प्यार भरी हरकतों ने मेरे दिल की धड़कनें बढ़ा दी थीं।
तिलक राजकोटिया के सब्र का प्याला भी अब छलकने लगा था।
उसके हाथ सरसराते हुए नीचे की तरफ बढ़ गये।
जल्द ही उसने मेरी पैंटी भी उतार डाली।
•••
|
|
08-02-2020, 01:02 PM,
|
|
desiaks
Administrator
|
Posts: 22,998
Threads: 1,134
Joined: Aug 2015
|
|
RE: Desi Porn Kahani नाइट क्लब
मैंने पिछले कई दिन से सैक्स नहीं किया था।
इसीलिए मैं आज खुलकर खेलने के मूड में थी।
वैसे भी कम उम्र से ही बेतहाशा सैक्स करने के कारण मेरे शरीर में एक भयंकर कमजोरी आ चुकी थी। अगर मैं दो—तीन दिन भी पुरुष के साथ सहवास नहीं करती थी, तो मैं इस प्रकार तड़पने लगती थी, जैसे कोई अल्कोहोलिक तड़पता है, ड्रग—एडिक्ट तड़पता है। पिछले दो दिन से मेरी अल्कोहोलिक जैसी ही हालत थी और तिलक के जरा—सा छूते ही मेरे संयम का बांध टूट गया था।
तभी एकाएक मैंने अपने घुटने मोड़ लिये और मैं झपटकर तिलक के ऊपर सवार हो गयी।
“आखिर आज क्या करने का इरादा है डार्लिंग?” तिलक राजकोटिया हंसकर बोला।
“तुम्हें कत्ल कर देना चाहती हूं।”
“वह तो तुम पहले ही कर चुकी हो।”
“नहीं।” मैं दृढ़तापूर्वक बोली—”मैं तुम्हें सचमुच में ही कत्ल कर देना चाहती हूं।”
तिलक राजकोटिया फिर हंस पड़ा।
वह मेरी बात को तब भी मजाक में ले रहा था।
“जानती हो डार्लिंग!” वह बोला—”सैक्स के दौरान ऐसी बातें निम्फोमनियाक औरतें करती हैं। मालूम है, निम्फोमैनियाक किसे कहते हैं?”
“नहीं।”
“निम्फोमैनियाक का अर्थ है- ए वूमैन हैविंग एब्नार्मल एण्ड अनकन्ट्रोलेबल सेक्सुअल डिजायर! यानि अति काम वासना, कामोन्माद से प्रताड़ित स्त्री। हर समय सैक्स की उत्कट इच्छा रखने वाली स्त्री। ऐसी स्त्रियां ही सैक्स के दौरान इस प्रकार की जुनूनी बातें करती हैं।”
मैं चौंक पड़ी।
मैंने विस्मयपूर्ण निगाहों से तिलक राजकोटिया की तरफ देखा।
कभी ऐन वही बात सरदार ने भी मेरे लिये कही थी।
उसने भी मुझे कामोन्माद से प्रताड़ित स्त्री बताया था।
क्या मैं वाकई ऐसी थी?
निम्फोमैनियाक!
सैक्स की उत्कट इच्छा रखने वाली। जरूर मैं वैसी थी। मैंने सोचा, दो—दो आदमियों का जजमेंट गलत नहीं हो सकता।
और इसमें मेरी गलती भी क्या थी।
जिस लड़की का शील मात्र तेरह वर्ष की अल्प आयु में ही भंग कर दिया गया हो- वह सैक्स की उत्कट इच्छा रखने वाली स्त्री नहीं बनेगी, तो क्या बनेगी?
“इस तरह क्या देख रही हो मेरी तरफ?” तिलक बोला।
“कुछ नहीं।”
मैं पुनः उसकी बांहों में समां गयी।
कुछ क्षण के लिये वह खेल जो रुक गया था- वह फिर चल निकला।
बल्कि पहले से भी ज्यादा स्पीड के साथ चल निकला।
काफी देर बाद वो खेल अपने चर्मोत्कर्ष पर पहुंचने के बाद ही रुका।
•••
|
|
08-02-2020, 01:02 PM,
|
|
desiaks
Administrator
|
Posts: 22,998
Threads: 1,134
Joined: Aug 2015
|
|
RE: Desi Porn Kahani नाइट क्लब
अब मैं, तिलक राजकोटिया और होटल का मैनेजर- तीनों ऑफिस में सन्न—सी हालत में बैठे थे।
सबके चेहरों पर जबरदस्त आतंक की प्रतिछाया थी।
“मैं सोच भी नहीं सकता था तिलक साहब!” मैनेजर शुष्क लहजे में बोल रहा था—”कि आज फिर ऐसी घटना घट जाएगी। आखिर सावंत भाई के आदमियों ने कल ही तो आप पर हमला किया था। आज फिर दूसरा हमला। नहीं-नहीं, हालात बहुत खतरनाक रूप धारण करते जा रहे हैं।”
मैं कुर्सी पर थोड़ा आगे को झुक गयी।
भयभीत होने का अभिनय मैं भी परफैक्ट कर रही थी।
“इस बार कितनी गोलियां चलाई गयी थीं?”
“दो।” तिलक राजकोटिया बोला—”दोनों गोलियां मेरे बिल्कुल सिर को छूते हुए गुजरीं। दोनों गोलियों और मेरे सिर के बीच में मुश्किल से तीन इंच का फासला था।”
“ओह माई गॉड!”
“बस यूं समझो, आज बाल—बाल बचा हूं।” तिलक राजकोटिया बोला—”अगर जरा भी कोई गोली इधर—उधर हो जाती, तो मेरी इहलीला यहीं समाप्त हो जानी थी।”
“दोनों गोलियां सामने दीवार में जाकर लगी थीं?” मैनेजर ने पूछा।
“हां- दीवार में ही लगी थीं।”
मैनेजर अब दीवार की तरफ देखने लगा।
तभी उसे एक गोली नजर आ गयी, जो दीवार के प्लास्टर में आधी से ज्यादा धंसी हुई थी।
“एक गोली तो वह रही।”
मैनेजर तुरन्त कुर्सी छोड़कर खड़ा हुआ और उसने आगे बढ़कर प्लास्टर में धंसी हुई वह गोली बाहर निकाली।
“शुक्र है।” मैं बोली—”जो अंदर घुस आये किसी आदमी की निगाह इस गोली पर नहीं पड़ गयी, वरना अभी यह रहस्य खुल जाता कि यह गोलियों की आवाजें थीं।”
तभी दूसरी गोली भी मिल गयी।
वो वहीं नीचे फर्श पर पड़ी हुई थी।
मैनेजर ने वह गोली भी उठा ली।
“तिलक साहब!” मैनेजर चिंतित मुद्रा में बोला—”मैं आपको एक नेक सलाह देना चाहता हूं।”
“क्या?”
“हालात जितनी तेजी से खतरनाक मोड़ लेते जा रहे हैं, उस हिसाब से आपने जल्द—से—जल्द कोई सख्त कदम उठाने की जरूरत है।”
“लेकिन मैं क्या कदम उठा सकता हूं?”
“फिलहाल यही सोचना है। लेकिन इतनी बात आप जरूर समझ लें, अगर जल्द ही कोई कदम न उठाया गया, तो कोई बड़ी बात नहीं कि आप किसी खतरनाक हादसे से भी दो—चार हो जाएं।”
मैनेजर के अंतिम शब्दों ने तिलक के शरीर में और भी ज्यादा खौफ की लहर पैदा कर दी।
वह कुर्सी छोड़कर खड़ा हो गया।
फिर बेचैनीपूर्वक इधर—से—उधर टहलने लगा।
सच बात तो ये है- इस बात का अहसास उसे भी हो रहा था कि उसे जल्दी कुछ करने की जरूरत है।
मगर वो करे क्या- यही समझ नहीं पा रहा था।
•••
|
|
08-02-2020, 01:02 PM,
|
|
desiaks
Administrator
|
Posts: 22,998
Threads: 1,134
Joined: Aug 2015
|
|
RE: Desi Porn Kahani नाइट क्लब
तिलक राजकोटिया ने चाय का कप खाली करके सामने टेबिल पर रखा।
दहशत के भाव अभी भी उसके चेहरे पर साफ—साफ दृष्टिगोचर हो रहे थे।
उस समय मैं वहीं तिलक के सामने बैठी थी और हम दोनों के बीच ठण्डी रहस्यमयी—सी खामोशी व्याप्त थी।
“लेकिन तुम्हारे पास यह फोन आया कब?” मैंने भी अपना चाय का कप खाली करके सामने रखा।
“तुम शायद तब किचन में थी।” तिलक राजकोटिया बोला—”और चाय बना रही थीं, तभी फोन की घण्टी बजी।”
“ओह!”
तिलक कुर्सी छोड़कर खड़ा हो गया और इधर—से—उधर टहलते हुए उसने एक सिगरेट सुलगा ली।
बेचैनी उसके चेहरे से साफ जाहिर हो रही थी।
“शिनाया!” वह बिल्कुल मेरे सामने आकर ठिठका।
फिर उसने बड़े अनाड़ीपन से धुएं के गोल—गोल छल्ले बनाकर छत की तरफ उछाले।
“क्या बात है?”
“मैंने एक फैसला किया है।”
“क्या?”
“मैं होटल और पैंथ हाउस का कब्जा सावंत भाई को देने के लिए तैयार हूं। मैंने खूब सोच लिया है शिनाया- अब इसके अलावा दूसरा कोई हल नहीं है। अब बात बिल्कुल किनारे पर पहुंच चुकी है। मैं जानता हूं, सावंत भाई बहुत डेन्जर आदमी है। अगर मैंने उसकी बात नहीं मानी, अगर मैंने उसे कब्जा नहीं दिया, तो वह बेधड़क मुझे शूट करा देगा।”
“लेकिन... ।”
“नहीं-नहीं।” तिलक राजकोटिया बोला—”अब सोचने के लिए कुछ नहीं बचा है। यह मेरा अंतिम निर्णय है। मैं अभी सावंत भाई को फोन करता हूं और उसे अपना यह फैसला सुनाता हूं।”
तिलक बड़ी तेजी के साथ मोबाइल की तरफ बढ़ा।
“यह क्या पागलपन है?” मैं एकदम कुर्सी छोड़कर उसकी तरफ झपटी—”यह तुम क्या कर रहे हो तिलक?”
मैं जानती थी- अगर उसने सावंत भाई को फोन कर दिया, तो उसका क्या नतीजा होगा।
एक ही सैकेण्ड में सारी हकीकत तिलक को मालूम चल जाएगी।
“लेकिन जब मैंने यह फैसला कर ही लिया है शिनाया!” तिलक बोला—”तो मुझे इस सम्बन्ध में सावंत भाई को भी तो बताना चाहिए।”
“मगर इतनी जल्दी भी क्या है!”
“क्यों?”
“तुम शायद भूल रहे हो तिलक।” मैं एक—एक शब्द पर जोर देते हुए बोली—”उसने तुम्हें तीन दिन का समय दिया है- तीन दिन! तुम्हें तीन दिन तो इंतजार करना चाहिए।”
“उससे क्या होगा?”
“शायद कुछ हो। शायद इस बीच तुम्हें कोई ऐसा तरीका सूझ जाए, जो होटल और पेंथ हाउस का सावंत भाई को कब्जा भी न देना पड़े और जान भी बची रहे।”
तिलक राजकोटिया ने बड़ी कौतुहलतापूर्ण निगाहों से मेरी तरफ देखा।
उसने सिगरेट का एक कश और लगाया।
“क्या ऐसा मुमकिन है?”
“क्यों नहीं है मुमकिन। फिर तुम एक बात भूल रहे हो।” मैं बोली—”अगर तुम्हें ऐसा कोई तरीका नहीं भी सूझा तिलक, तब भी क्या फर्क पड़ता है। उस हालत में तुम तीन दिन बाद सावंत भाई को अपने इन फैसले से परिचित करा देना। इस बीच तुम्हारे ऊपर कोई आफत तो नहीं आ जाएगी। तुम्हारे ऊपर कोई नया हमला तो नहीं हो जाएगा,आखिर उन्होंने खुद तुम्हें तीन दिन का समय दिया है।”
मेरी बात में दम था।
तिलक धीरे—धीरे गर्दन हिलाने लगा।
“कह तो तुम ठीक रही हो शिनाया!” तिलक बोला—”तीन दिन हमें वाकई इंतजार करना चाहिए, शायद कोई तरीका सूझ ही जाए।”
मैंने शांति की गहरी सांस ली।
एक बड़ा संकट टल गया था।
|
|
|