RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
वर्दीधारी गार्ड्स समेत सिकन्दर इस तहखाने से गैंग के सभी व्यक्तियों को अलविदा कहकर विदा कर चुका था। लूट की दौलत तहखाने में थी , उसने उसे सभी लोगों में बराबर बांट दिया।
अब तहखाने में वह था या बेहोश विशेष।
जेहन में उत्तेजित अन्दाज में अपने ही द्वारा कहे गए शब्द गूंज रहे थे—'मुझे पूरा हक है रश्मिजी—अगर सच्चाई पूछें तो सर्वेश के हत्यारों से बदला लेने का आपसे ज्यादा हक मुझे है , क्योंकि सर्वेश के नाम और परिचय ने मुझे शरण दी है—म...मैं जिसे यह नहीं मालूम कि मैं कौन हूं—मैं दर-दर भटक रहा था—दुनिया में कहीं मेरी कोई मंजिल नहीं थी—तब मुझे इस घर में , इस छोटी-सी चारदीवारी में शरण मिली। शरण ही नहीं , यहाँ मुझे बेटे का स्नेह मिला है—मां की ममता गरज-गरजकर बरसी है मुझ पर …और आप …आप कहती हैं कि इस घर की नींव रखने वाले के लिए मेरा कोई हक नहीं है—अरे कच्चा चबा जाऊंगा उन्हें जिन्होंने मेरे भाई को मारा है—वीशू को यतीम करने वालों की बोटी-बोटी नोच डालूंगा मैं—एक बूढ़ी मां से उसका जवान बेटा छीनने की सजा उन्हें भोगनी होगी।
मैं वीशू की कसम खाकर कह चुका हूं कि हत्यारों को आपने कदमों में लाकर डाल देना ही मेरा मकसद है—बदला आप खुद अपने हाथों से लेंगी।
अपने ही इन वाक्यों ने उसे इस कदर झिंझोड़ डाला कि—
'नहीं।' हलक फाड़कर चिल्लाता हुआ वह एक झटके से खड़ा हो गया और फिर फटी-फटी आंखों से चारों तरफ देखने लगा—कमरे की खूबसूरत दीवारें उसे मुंह चिढ़ाती-सी महसूस हुईं।
पसीने-पसीने हो गया सिकन्दर।
दृष्टि पुन: मासूम विशेष पर जम गई।
' पापा-पापा ' —कहकर उसका लिपट जाना याद आया।
तभी उसके अन्दर छुपी आत्मा कहकहा लगाकर हंस पड़ी—'क्यों , क्या अपने ही कहे शब्दों पर आज़ तुम्हें शर्म आ रही है?'
' न...नहीं। ' वह सचमुच बड़बड़ा उठा।
'तो फिर सोच क्या रहा है—उठ—वीशू को लेकर उस बेवा के पास जा—अपनी कसम पूरी कर—जो तूने किया है उसका प्रायश्चित तो करना ही होगा—खुद को उसके कदमों में डाल दे। '
' म...मैं जा रहा हूं। ' पागलों की तरह बड़बड़ाते हुए उसने विशेष को उठाने के लिए हाथ बढ़ाए। फिर जाने क्या सोचकर बिना विशेष को लिए ही हाथ खींच लिए , तेजी के साथ बाहर वाले कमरे में अया। डैस्क के सामने पड़ी कुर्सी पर बैठकर उसने पुश बटन दबाए। परिणामस्वरूप एक टी oवी o स्क्रीन पर 'मुगल महल ' के रिसेप्शन का दृश्य उभर आया।
वहां ढेर सारी पुलिस , इंस्पेक्टर दीवान और चटर्जी को देखकर सिकन्दर के मस्तक पर बल पड़ गए। वे डॉली के स्थान पर रखी गई नई काउण्टर गर्ल से कुछ बातें कर रहे थे। सिकन्दर ने जल्दी से एक अन्य स्विच बंद कर दिया।
अब वह काउंटर पर होने वाली बातें सुन सकता था।
काउंटर गर्ल कह रही थी— “ मै आपसे कह चुकी हूं कि मुझे नहीं मालूम है कि इस वक्त मैनेजर साहब कहां हैं।"
"हमें कमरा नम्बर पांच-सौ-पांच चेक करना है।" चटर्जी ने कहा।
"क्यों?”
“हमें इन्फॉरमेशन मिली है कि इस होटल के नीचे कोई तहखाना है और वह तहखाना ही कुख्यात तस्कर 'शाही कोबरा ' का हेडक्वार्टर है।"
“क्या बात कह रहे हैं आप?” काउन्टर गर्ल हकला गई।
उसकी आंखों में झांकते हुए चटर्जी ने कहा—“और वहां के लिए रास्ता कमरा नम्बर पांच-सौ-पांच से जाता है।"
"क...कमाल की बात कर रहे हैं आप—वह कमरा तो हमेशा इस होटल के मालिक न्यादर अली के नाम बुक रहता है।"
"उस कमरे को चैक करना इसीलिए और जरूरी हो जाता है।"
"ठ...ठहरिए …मैँ आपके जाने की सूचना मालिक को देती हूं।" कहने के साथ काउण्टर गर्ल ने रिसीवर उठाया ही था कि क्रेडिल पर हाथ रखते हुए चटर्जी ने अपनी चिर-परिचित मुस्कान के साथ कहा—“कोई फायदा नहीं होगा , क्योंकि पिछली रात सेठ न्यादर अली की हत्या हो चुकी है।"
"क...क्या ?" काउण्टर गर्ल मुंह फाड़े चटर्जी का चेहरा देखती रह गई।
इससे ज्यादा बातें सुनने की सिकन्दर ने कोई कोशिश नहीं की , वह यह तो नहीं समझ सका कि पुलिस यहां तक कैसे पहुंच गई थी , परन्तु जानता था कि चटर्जी बहुत काईयां था—कमरा नम्बर पांच-सौ-पांच चैक किए बिना अब वह लौटने वाला नहीं था और कमरे में पहुंचने के बाद रास्ता खोज लेने में भी उसे कोई दिक्कत नहीं होगी—अतः कोई खतरनाक निश्चय करके वह कुर्सी से उठा।
कमरे में मौजूद एक मजबूत सेफ के नम्बर सैट करके उसे खोला और एक टाइम बम हाथ में लिए , संकरी गैलरी से गुजरकर हॉल में पहुंचा। हॉल सूना पड़ा था।
सिकन्दर ने बम को एक थम्ब पर सेट किया , उसमें टाइम भरा और वापस स्क्रीन वाले कमरे में लौट आया—इस सारे काम में उसे करीब बीस मिनट लग गए थे—स्क्रीन पर रिसेप्शन का दृश्य अब भी मौजूद था , परन्तु वहां अब पुलिस नजर नहीं आ रही थी। कुर्सी पर बैठकर सिकन्दर स्क्रीन पर मौजूद दृश्य में परिवर्तन करने लगा—कुछ ही देर बाद कमरा नम्बर पांच-सौ-पांच का दृश्य उसके सामने था।
कमरा पुलिस और होटल के स्टाफ से भरा हुआ था। चटर्जी अपनी पैनी आंखों से फर्श को घूरता फिर रहा था। अचानक ही सिकन्दर ने एक बटन ऑन किया और भर्राहटदार आवाज में बोला— “हैलो इंस्पेक्टरा!"
चटर्जी सहित सभी चौंककर कमरे की दीवारों को घूरते नजर आए। शायद उन्हें उस स्थान की तलाश थी , जहां से आवाज आई थी। उनकी मनःस्थिति की परवाह किए बिना सिकन्दर ने कहा— “मैं 'शाही कोबरा ' बोल रहा हूं।"
अचानक चटर्जी ने कहा— “क्या तुम हमारी आवाज भी सुन सकते हो ?"
"जो कहना चाहते हो , कहो।"
"अब हम यहां से तुम्हें गिरफ्तार किए बिना लौटने वाले नहीं हैं।"
"यह जानकर तुम्हें हैरत होगी इंस्पेक्टर कि कुछ देर पहले ही यह गैंग हमेशा के लिए खत्म हो चुका है , जो 'शाही कोबरा ' के नाम से तुम्हारी फाइलों में दर्ज था—अब तुम्हें कभी इस गैंग की तरफ से किसी वारदात की सूचना नहीं मिलेगी—रही मेरी बात—यानि 'शाही कोबरा ' की बात सुनो , पन्द्रह मिनट बाद एक धमाका होगा और इस धमाके के साथ ही 'शाही कोबरा ' हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।"
"अगर ये बचकाना चालें चलने के स्थान पर तुम खुद को हमारे हवाले कर दो तो शायद ज्यादा फायदे में रहोगे।"
"अगर तुमने मेरे शब्दों को 'बात ' समझने की भूल की तो अपने साथ इन बेचारे ढेर सारे बेकसूर पुलिस वालों को भी ले मरोगे।"
“क्या मतलब ?"
"तहखाने में मैंने एक टाइम बम फिक्स कर दिया है , अब उसके फटने में केवल तेरह मिनट बाकी रह गए हैं , टाइम बम बहुत शक्तिशाली है—इतना ज्यादा कि जिस कमरे में तुम खड़े हो , शायद उसकी दीवारों में भी दरारें जा जाएं।"
"तुम बकते हो।"
"अपनी कसम इंस्पेक्टर , यह सच है। कसम इसीलिए खा रहा हूं ताकि तुम विश्वास कर लो और विश्वास इसीलिए दिलाना चाहता हूं के क्योंकि मैं बेकसूरों का खून बहाना नहीं चाहता—प्लीज , उस कमरे से बाहर निकल जाओ।" कहने के बाद वह उठा और तेजी से अन्दर वाले कमरे में पहुंचा—एक हैंगर पर लटके काले कपड़े उसने सूटकेस में रखे , दो मिनट बाद ही गोद में विशेष और सूटकेस को लिए वह कमरे से बाहर निकला , स्क्रीन पर उसने देखा कि चटर्जी आदि कमरा खाली कर रहे थे।
बम के फटने से पहले ही गुप्त गैराज वाले रास्ते से सिकन्दर को निकल जाना था और यह विश्वास भी उसे था कि गैराज में अभी तक उसकी कैडलॉंक खड़ी होगी।
¶¶
|