Desi Porn Kahani विधवा का पति
05-18-2020, 02:26 PM,
#11
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
जब चारों तरफ छाई खामोशी युवक को बहुत ज्यादा चुभने लगी तो एक नजर उसने अपने पांयते पड़ी गद्देदार कुर्सी में धंसे सांवले रंग के परन्तु आकर्षक युवक को देखा।
वह उपन्यास पढ़ने में मशगूल था। एकाएक युवक ने उसे पुकारा—“सुनो।"
आवाज सुनते ही वह चौंक पड़ा , न केवल उपन्यास बन्द कर दिया उसने , बल्कि एकदम से खड़ा होकर ससम्मान बोला—“जी , हुक्म कीजिए।"
"क्या नाम है तुम्हारा ?" युवक ने पूछा।
“रू.....रूपेश , सर।"
"क्या तुम्हें हमेशा चुप रहना अच्छा लगता है?”
"ज..... ,जी मैं समझा नहीं, सर?"
"मुझे यहां आए चार दिन गुजर गए हैं और तुम्हें मेरे पास तीन दिन—लगभग चौबीस घंटे यहां मेरे पास रहते हो गए , लेकिन तुमने कभी कोई बात नहीं की—यहां तक कि तुम्हारा नाम भी मैं पिछले ही क्षण जान सका हूं।"
"म.....मुझे सेठजी ने आपकी सेवा के लिए रखा है।"
"कब ?”
"तीन दिन पहले ही , अखबार में उन्होंने इस आशय का विज्ञापन दिया था कि एक मरीज की सेवा करने के लिए ऐसे पढ़े-लिखे युवक की जरूरत है , जो कम -से-कम बीस घंटे की ड्यूटी दे सके।"
"क्या तुम मेरे बारे में कुछ जानते हो ?"
"सिर्फ इतना ही कि आपका नाम सिकन्दर बाबू है , आप सेठ जी के लड़के हैं—एक एक्सीडेण्ट में आपकी याददाश्त गुम हो गई है और सेठ जी उसे वापस लाने के लिए धरती-आकाश एक किए हुए हैं।"
"यह सब तुमसे किसने कहा ?"
"सेठ जी और यहां पहले से काम करने वाले नौकरों के अलावा मैं यह भी देखता-सुनता रहता हूं कि आपको देखने बम्बई तक से डाक्टर आ चुके हैं।"
"क्या मेरा कोई दोस्त नहीं है ?"
"क्या मतलब सर ?"
"अगर मैं सेठ जी का लड़का हूं तो इसका मतलब बहुत ज्यादा धनवान भी हूं—और धनवान आदमी का सामाजिक दायरा कुछ ज्यादा ही बड़ा बन जाता है। क्या यह आश्चर्य की बात नहीं है रूपेश कि मैं चार दिन से यहां पड़ा हूं—मगर मुझे देखने , मेरी खैरियत पूछने कोई नहीं आया है! "
"पता नहीं आप क्या कहना चाहते हैं, सर? सम्भव है कि आपके परिचित आते हों , लेकिन आपकी हालत देखकर बाहर ही से लौटा दिए जाते हों ?"
"क्या ऐसा है?”
"मैं भला विश्वासपूर्वक कैसे कह सकता हूं ?"
रूपेश के इस जवाब पर कुछ देर तक युवक खामोश रहा। बड़े ध्यान से वह रूपेश को देख रहा था , जैसे सोच रहा हो कि यह आदमी विश्वसनीय है या नहीं , फिर अचानक ही उसने सवाल कर दिया —“ क्या मैं तुम पर विश्वास कर सकता हूं, रूपेश ?"
"क्यों नहीं, सर।" रूपेश ने एक मुस्तैद नौकर की तरह ही कहा।
"सबसे पहले तुम मुझे 'सर ' कहना बन्द करो—मेरे हमउम्र हो तुम और मैं तुमसे दोस्ती करना चाहता हूं।"
रूपेश चाहकर भी कुछ कह नहीं सका—फिर युवक ने आगे कहा— “जानते हो इस वक्त मैं क्यों दोस्त की जरूरत महसूस कर रहा हूं ?"
"नहीं, सर।"
"मैं तुम्हें अपने दिल की बात बताना चाहता हूं। सच कहता हूं, रूपेश—एक्सीडेण्ट के बाद जब से होश में आया हूं, तब से सैंकड़ों विचार मेरे दिलो-दिमाग में उठ रहे हैं , मगर एक भी शख्स ऐसा नहीं मिला जिससे उन विचारों पर बात करके अपना मन हल्का कर सकूं—जाने क्यों मुझे लग रहा है कि तुम पर विश्वास किया जा सकता है।"
"जरूर।”
“तुम सेठ न्यादर अली के नौकर हो सकते हो , मेरे नहीं—मेरे केवल दोस्त हो—और इसी दोस्ती की कसम खाकर वादा करो कि मेरे और अपने बीच होने वाली बातों का जिक्र किसी से नहीं करोगे।"
"मैं वादा करता हूं।"
युवक के चेहरे पर पहली बार संतोष के भाव थे—ऐसे , जैसे उसे मनचाही मुराद मिल गई हो , और फिर अचानक ही युवक ने उस पर एक प्रश्न ठोक दिया— "अगर तुम मेरी जगह होते तो क्या करते ?"
"मैं समझा नहीं।”
"मेरे साथ जो हो रहा है , मुझे जो भी सुनाया जा रहा है—नहीं जानता कि वह सच है या झूठ—कैसे मान लूं रूपेश कि सच्चाई वही है , जो ये लोग कह रहे हैं—क्या मैं वही हूं जो ये बता रहे हैं या मुझे ऐसा परिचय दिया जा रहा है , जिसका मुझसे दूर-दूर तक भी सम्बन्ध नहीं है।"
"इन बातों का अर्थ तो यह निकलता है कि आपको अपने सिकन्दर होने पर शक है , आप समझते हैं कि आपको एक गलत नाम और परिचय दिया जा रहा है ?"
"क्यों नहीं हो सकता ?"
"आपको ऐसा क्यों लग रहा है?"
"कुछ सवाल बिल्कुल अनुत्तरित होते हैं।"
“जैसे ?”
"यदि मैँ सिकन्दर हूं और वहां से कैडलॉंक लेकर ऑफिस के लिए निकला था तो मैं फियेट में कैसे मिला? मेरी कैडलॉंक कहां गई , और यदि मैं इतना धनवान हूं तो किसी अमीचन्द की गैराज का ताला तोड़कर मुझे फियेट चुराने की क्या जरूरत थी ?”
"और ?"
"वह नेकलेस मैंने किसके लिए खरीदा था—यदि मैं सिकन्दर हूं तो मेरे दायरे के वे लोग कहां हैं , जो सिकन्दर जैसे व्यक्ति के होने ही चाहिए?"
"आप तो निगेटिव ढंग से सोच रहे हैं—पॉजिटिव ढंग से क्यों नहीं सोचते ?"
"पॉजिटिव से तुम्हारा मतलब यही है न कि मैं खुद को सिकन्दर मानकर सोचूं ?"
' “मेरे ख्याल से चारों तरफ इस पक्ष में सबूत कुछ ज्यादा ही बिखरे हुए हैं।"
"तुम्हारा इशारा किस किस्म के सबूतों की तरफ है ?”
“जैसे वह एलबम , इस कमरे की हर अलमारी में आपके कपड़े , जूते—हर नौकर आपको सिकन्दर बाबू कहकर पुकारता है—जोकि सामान्य अवस्था में लाने के लिए सेठजी सचमुच उस पिता की तरह ही प्रयत्नशील हैं, जैसे एक प्यार करने वाला पिता होता है।"
Top
Reply
05-18-2020, 02:26 PM,
#12
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
"यदि मैं सिकन्दर नहीं हूं और मुझे सिकन्दर बनाने की कोशिश की जा रही है तो निश्चय ही इसके पीछे कोई बड़ा मकसद होगा , अपने मकसद को पूरा करने के लिए इन्होंने वे सारे सबूत बिछाए होंगे जिनका तुम जिक्र कर रहे हो , उदाहरण के लिए , एलबम। किसी अन्य के फोटो पर मेरा चेहरा चिपकाकर यानि ट्रिक फोटोग्राफी से तैयार हो सकती है।”
"हो तो सकती है , मगर घूम-फिरकर बात वहीं आ जाती है—हमारे सामने प्रश्न यह खड़ा हो जाता है कि भला आपको सिकन्दर सिद्ध करने से लाभ क्या है?"
"यही तो पता लगाना है।"
"कैसे ?”
"उस तरकीब को निकालने के लिए ही तो तुमसे विचार-विमर्श कर रहा हूं।" युवक ने कहा—"हॉस्पिटल से निकालकर मुझे यहां ले आया गया है—लारेंस रोड पर स्थित इस विशाल बंगले में—जहां पचासों कमरे हैं , हॉल हैं , किसी मैदान जैसा लॉन है और कहा जा रहा है यह सब कुछ मेरा है—यह कोई सुनहरा जाल हो सकता है ?"
"अब आखिर आप चाहते क्या हैं ?"
"अब तक मैंने उस हर बात को स्वीकार किया है , जो डॉक्टर भारद्वाज , इंस्पेक्टर दीवान और सेठ न्यादर अली आदि कहते रहे हैं , मगर अब अपने बारे में थोड़ी-सी खोजबीन मैं खुद करना चाहता हूं।"
"मैं कुछ समझा नहीं?"
"एक अच्छा इन्वेस्टिगेटर वह होता है , जो छोटे-छोटे प्वॉइंट्स के आधार पर आगे बढ़कर किसी गुत्थीदार केस को सुलझाता है-स्वयं मैं ही अपने लिए एक रहस्य बन गया हूं—मेरा लक्ष्य है , यह पता लगाना कि मैं सिकन्दर हूं या नहीं—अगर हूं तो अनुत्तरित सवालों का जवाब खोजना है—य...यदि नहीं हूं तो पता लगाना है कि कौन हूं—और ये लोग मुझे सिकन्दर क्यों सिद्ध करना चाहते हैं? क्या तुम मुझे कोई ऐसा प्वॉइंट बता सकते हो रूपेश , जिसे पकड़कर मैं आगे बढ़ सकूं?"
“आपके जो कपड़े यहां हैं , उन पर टेलर की चिट जरूर लगी होगी , यदि उस टेलर से पूछताछ की जाए तो ?"
"उसे तो इन्होंने उसी तरह पढ़ा रखा होगा , जिस तरह इस घर के हर नौकर को पढ़ा रखा है।"
"वाह!" रूपेश एकदम चुटकी बजा उठा— “दिमाग में बड़ा अच्छा आइडिया आया है , हमें इस कमरे से पता लग सकता है कि आप सिकन्दर हैं कि नहीं।"
"कैसे ?" युवक ने अधीरतापूर्वक पूछा।
"वे कपड़े कहां हैं , जो होश में आने पर आपने अपने जिस्म पर देखे थे ?"
"उस सेफ में।"
"टेलर की चिट उन पर भी लगी होगी , अगर आप सिकन्दर हैं तो उन पर भी उसी टेलर की चिट होगी , जिसकी इस कमरे में मौजूद आपके ढेर सारे कपड़ों पर है—और अगर टेलर अलग है तो निश्चय ही आप सिकन्दर नहीं हैं।"
"वैरी गुड।" कहने के साथ ही युवक बिस्तर से उछल पड़ा , रूपेश द्वारा बताया गया प्वॉइंट उसे जंचा था। जल्दी से सेफ खोलते हुए उसने कहा—"तुम इस कमरे में मौजूद मेरे ढेर सारे कपड़ों पर लगी चिट देखो, रूपेश। मैं उन कपड़ों पर लगी चिट देखता हूं, जो होश में आने पर मेरे जिस्म पर थे।"
रूपेश ने उसकी आज्ञा का पालन किया।
कपड़े क्योंकि बहुत ज्यादा थे , इसीलिए उसे सभी को संभालने में तीस मिनट लग गए , जबकि गठरी-से बंधे वे कपड़े लेकर युवक पलंग पर आ बैठा था , जो सबसे पहले उसने अपने जिस्म पर देखे थे। रूपेश बोला— “सब एक ही टेलर द्वारा तैयार किए गए कपड़े हैं , कनाट प्लेस पर कोई टेलर है।"
युवक की आंखें अजीब-से अन्दाज में चमकने लगीं। अपने साथ में दबी गठरी की तरफ इशारा करके वह बोला— “ये कपड़े गाजियाबाद के किसी "बॉनटेक्स ' नामक टेलर ने तैयार किए हैं।"
Reply
05-18-2020, 02:26 PM,
#13
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
सुबह के सात बजे थे।
सेठ न्यादर अली नाइट गाउन की डोरी बांधते हुए अपने कमरे से बाहर निकले। उनके दांतों में एक मोटा सिगार दबा हुआ था—पैरों में पड़े स्लीपर्स को घसीटते-से वे उस कमरे की तरफ बढ़े जिसमें सिकन्दर था।
नजदीक पहुंचकर बड़े आराम से उन्होंने बन्द दरवाजे पर दबाव डाला , किन्तु दरवाजा खुला नहीं—उन्होंने चौंककर दरवाजे को देखा , उनके ख्याल से दरवाजे को केवल उढ़का हुआ होना चाहिए था , अन्दर से बन्द नहीं—उन्होंने इस बार जोर से धकेला—पाया कि दरवाजा अन्दर से बन्द था।
उन्होंने दरवाजे पर दस्तक दी , साथ ही पुकारा—"सिकन्दर बेटे।"
अन्दर कोई प्रतिक्रिया नहीं थी—जब वे दरवाजे को लगभग पीटने लगे और साथ ही चिल्ला-चिल्लाकर सिकन्दर को पुकारने लगे तो वहां उनके ढेर सारे नौकर इकट्ठे हो गए।
अचानक ही सेठ न्यादर अली बहुत विचलित और उत्तेजित नजर आने लगे , चीखकर अपने नौकरों को आदेश दिया—"दरवाजे को तोड़ दो।"
हड़बड़ाये-से नौकर उनके आदेश का पालन करने में जुट गए , जबकि स्वयं सेठ न्यादर अली उसके बराबर वाले कमरे को पीटते हुए चिल्लाए— "रूपेश—मिस्टर रूपेश।"
अजीब हड़कम्प-सा मच गया था वहां।
कुछ ही देर बाद हड़बड़ाए-से रूपेश ने अन्दर से दरवाजा खोला। चीखते हुए न्यादर अली ने सवाल ठोक दिया —“ सिकन्दर कहां है ?"
"अ.....अपने कमरे में ही होंगे, सेठ जी।" बौखलाए हुए रूपेश ने कहा।
तभी ‘भड़ाक ' की एक जोरदार आवाज गूंजी..... 'सिकन्दर ' वाले कमरे का दरवाजा टूट चुका था—न्यादर अली और उनके पीछे भागता हुआ रूपेश भी कमरे में दाखिल हुआ।
कमरा बिल्कुल खाली था।
लॉन की तरफ खुलने वाली खिड़की खुली पड़ी थी। सेठ न्यादर अली उस तरफ लपके—वह कमरा दूसरी मंजिल पर था और खिड़की से लॉन तक कपड़ों से बनाई गई रस्सी लटक रही थी। दांत भींचकर न्यादर अली गुर्रा उठे— "उफ्फ—वह भाग गया है।"
दूसरे नौकरों की तरह रूपेश भी अवाक्-सा खड़ा था।
सेठ न्यादर अली बिजली की-सी फुर्ती से घूमे , रूपेश पर बरस पड़े—"कहां गया वह ?"
“म......मुझे नहीं पता सेठ, जी।"
"तुम्हें क्या झक मारने के लिए रखा था हमने ?"
"म...मैँ सुबह चार बजे इस कमरे से गया था सेठ जी—तब वे सो रहे थे—मैंने सोचा कि थोड़ी देर अपनी कमर मैं भी सीधी कर लूं।"
"उफ्फ—तुम भी हमारे दूसरे नौकरों की तरह बेवकूफ ही निकले—मेरे बेटे की याददाश्त गुम है , पता नहीं उसके दिमाग में क्या है—जाने कहां-कहां भटकता फिरेगा बाहर? पुलिस का नम्बर डायल करो बेवकूफ , जल्दी।"
दो मिनट बाद ही वे पुलिस को अपना बेटा गुम होने की रपट लिखवा रहे थे। काश—वे रूपेश के होंठों पर थिरक रही रहस्यमय मुस्कान को देख सकते।
¶¶
उस वक्त करीब ग्यारह बज रहे थे , जब युवक गाजियाबाद में घण्टाघर के आसपास घूम रहा था—वह बहुत ध्यान से हरेक दुकान के मस्तक पर लगे बोर्ड को पढ़ रहा था। ‘बॉनटेक्स ' टेलर की दुकान खोजने में उसे कोई विशेष परेशानी नहीं हुई।
मगर दुकान की तरफ बढ़ते समय अचानक ही उसका दिल धड़क उठा। शायद यह सोचकर कि अब अगले ही पल पता लग जाएगा कि मैं कौन हूं?
धड़कते दिल से वह तेजी के साथ दुकान की तरफ बढ़ गया—दुकान का मुख्य दरवाजा पारदर्शी शीशे का था और सजावट की दृष्टि से फर्नीचर भी अच्छा इस्तेमाल किया गया था—युवक ने हैंडिल पकड़कर दरवाजा खोला।
उसने अन्दर कदम रखा ही था कि एक स्वर उसके कानों से पड़ा— “ अरे, जॉनी साहब , आप? आइए , बहुत दिन बाद दर्शन दिए ?"
युवक के मस्तिष्क को एक तीव्र झटका लगा।
यहां तेजी से उसके दिमाग में यह विचार कौंधा कि क्या उस व्यक्ति ने 'जॉनी ' कहकर मुझे ही पुकारा है ? क्या मेरा नाम जॉनी है ?
अपने सवाल का जवाब पाने के लिए उसने पुकारने वाले की तरफ देखा—नि:सन्देह उपरोक्त वाक्य उसने उसी से कहा था। तेजी के साथ काउंटर के पीछे से निकलकर उसने एक स्टूल साफ करते हुए कहा—"इस पर बैठिए जॉनी साहब।"
अब युवक को कोई शक नहीं रहा कि वह जॉनी कहकर उसे पुकार रहा है—अजीब असमंजस में पड़ा युवक धड़कते दिल से आगे बढ़ा। पूरी खामोशी के साथ वह स्टूल पर बैठ गया। टेलर ने कहा— "क्या इस नाचीज की दुकान का रास्ता बिल्कुल ही भूल गए थे, जॉनी साहब—आज आप पूरे दो महीने में आए हैं।"
टेलर का बार-बार जॉनी साहब कहना , जाने क्यों दिमाग में किसी शूल के समान चुभने लगा , मगर उसने कोई विरोध प्रकट नहीं किया—दुकान के अन्दर पांच-छ: कारीगर अपने काम में व्यस्त थे। युवक को लगा कि जो बातें उसे करनी हैं , वे इन कारीगरों के सामने करना बहुत विचित्र लगेगा। अभी यह इस समस्या से छुटकारा पाने की कोई तरकीब सोच ही रहा था फि टेलर ने उनमें ते एक को दौड़कर 'कैम्पा ' लाने के लिए कहा।
युवक के बार-बार इन्कार करने पर भी वह नहीं माना और अंत में लड़का ‘केम्पा ' लेने चला गया। तब युवक ने टेलर से कहा—"मैं तुमसे बिल्कुल अकेले में कुछ बातें करना चाहता हूं।”
"आइए , अन्दर वाले केबिन में चलते हैं।" टेलर ने कहा—और फिर कुछ ही देर बाद वे उस छोटे-से केबिन में आमने-सामने स्टूलों पर बैठे थे , जो लेडीज के लिए बनाया गया था—लड़का कैम्पा देकर जा चुका था।
"और सुनाइए जॉनी साहब।" टेलर ने पूरी आत्मीयता के साथ पूछा— “भाभीजी ठीक हैं ?"
युवक के दिमाग को बड़ा ही जबरदस्त झटका लगा।
उसके दिमाग में बड़ी तेजी से विचार कौंधा— “क्या मैं शादीशुदा हूं ?"
इतने पर भी उसने बहुत धैर्य से काम लिया , फिर उसने पहला सवाल किया— “ क्या तुम ही इस दुकान के मालिक हो ?"
चौंक पड़ा टेलर , बोला— "कैसी बात कर रहे हैं साहब , आप ही की दुकान है।"
“क्या नाम है तुम्हारा ?"
इस बार उछल ही पड़ा वह। पूरी तरह से चौंककर युवक की तरफ देखने लगा , बोला— “ कैसी बात कर रहे हैं साहब , कहीं आप मुझसे मजाक तो नहीं कर रहे हैं ?”
"नहीं।" युवक ने पूरी गम्भीरता के साथ कहा— “ मैं सचमुच तुम्हारा नाम भूल गया हूं और अब उसे जानना चाहता हूं—प्लीज , अपना नाम बताओ।"
"राजाराम है, साहब।" आश्चर्य के सागर में डूबे टेलर ने कहा।
"क्या तुम मुझे जानते हो ?"
"म...मैं भला आपको क्यों नहीं जानूंगा?"
"कौन हूं मैं ?"
"प...पता नहीं आज आप कैसी बातें कर रहे हैं, साहब ?" एकाएक ही राजाराम उसे इस तरह देखने लगा था , जैसे उसके सिर पर सींग निकल आए हों— “ आपके सारे ही सवाल बड़े अजीब हैं! भला ये भी कोई बात हुई कि आप कौन हैं! जॉनी साहब हैं आप।"
युवक को लगा कि यदि राजाराम वाकई उसका कोई परिचित है तो निश्चय ही अब तक किए गए उसके हर प्रश्न से न केवल उसे हैरत हुई होगी , बल्कि मानसिक कष्ट भी हुआ होगा और आगे भी वह जो कुछ पूछेगा , वह सब भी ऐसा ही कुछ होगा—हैरत के कारण राजाराम का बुरा हाल हो जाएगा , अत: वह बोला— “ देखो राजाराम...।"
"आपको क्या हो गया है, जॉनी साहब ?" उसकी बात बीच में ही काटकर परेशान राजाराम कह उठा—"आप मुझे हमेशा 'राजा ' कहते हैं , आखिर बात क्या है ?"
"बात यह है राजा कि मैं अपनी याददाश्त गंवा बैठा हूं।"
"क...क्या ?” राजाराम के कण्ठ से चीख निकल गई। हैरतवश मुंह खुला रह गया था उसका। आंखें तो फट पड़ी थीं , जैसे सामने उसके किसी प्रिय की लाश पड़ी हो।
"मैं कौन हूं—क्या हूं मुझे कुछ याद नहीं है—तुम्हारी या किसी अन्य की बात ही छोड़ो , मुझे अपना नाम तक मालूम नहीं है—पहली बार तुम ही ने मुझे जॉनी कहकर पुकारा है , इसीलिए सोचता हूं कि शायद मेरा नाम जॉनी ही है। "
हैरत के कारण ही राजाराम का बुरा हाल था—उसे लग रहा था कि जो कुछ यह देख-सुन रहा है , वह सब ख्वाब की बात है—हकीकत नहीं हो सकती। बड़ी मुश्किल से खुद को नियंत्रित करके उसने पूछा— "आपको कुछ भी याद नहीं है ?”
"नहीं राजा , मेरा एक्सीडेण्ट हुआ था , जिसके परिणामस्वरूप मैं अपनी याददाश्त गंवा बैठा। अपने बारे में मालूम करने अस्पताल से सीधा यहां आया हूं। ”
"जब आपको कुछ भी याद नहीं है तो मेरी दुकान...।"
"अपने कपड़ों पर लगी तुम्हारी दुकान की चिट पढ़कर यहां आया हूं—यह सोचकर कि शायद तुम मुझे जानते हो ?"
"मैं आपको अच्छी तरह जानता हूं, साहब—आप जॉनी साहब हैं , मगर आपका एक्सीडेण्ट कब और कैसे हो गया—मुझे तो आपकी बातें बड़ी अजीब लग रही हैं।"
"उन्हें छोड़ो राजा। यह बताओ कि मेरे नाम से ज्यादा तुम मेरे बारे में क्या जानते हो ?"
"मैं समझ नहीं पा रहा हूं साहब कि क्या बताऊं? क्या आपको भाभीजी के बारे में भी कुछ याद नहीं है ?"
"क्या मैं शादीशुदा हूं ?"
चकित दृष्टि से उसे देखते हुए टेलर ने कहा— “जी हां , भाभी जी का नाम रूबी है।"
"क्या मेरे बच्चे भी हैं ?"
"जी नहीं , आपकी शादी को छ: महीने ही तो हुए हैं।"
"कहां रहता हूं मैं—क्या तुम्हें मेरा घर भी मालूम है ?"
“क्यों नहीं साहब , भाभीजी का नाप लेने कई बार जा चुका हूं—आप भगवतपुरे में रहते हैं , अच्छा-खासा मकान है आपका।"
"क्या तुम मुझे वहां ले चल सकते हो ?"
“क्यों नहीं, जॉनी साहब! अब मैं आपको अकेला नहीं छोड़ूंगा—वह तो अच्छा हुआ कि मेरी चिट देखकर आप यहां चले आए , वरना इस अवस्था में तो जाने आप कहां-कहां भटकते रहते , आपको तो सचमुच ही कुछ याद नहीं है।"
Reply
05-18-2020, 02:26 PM,
#14
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
'भगवतपुरा' में स्थित वह मकान न बहुत ज्यादा बड़ा था , न छोटा—जिसके बन्द दरवाजे पर राजाराम ठिठका , चौखट के ऊपरी भाग पर दाई तरफ साइड में कॉलबेल का बटन लगा था और राजाराम ने उसी बटन पर उंगली रख दी।
तभी एक आवाज ने उसकी विचार श्रृंखला भंग की। बहुत निकट से उभरने वाली इस आवाज ने कहा—"हैलो जॉनी …बहुत दिन बाद नजर आए—कहां थे ?"
बौखलाकर युवक ने उसकी तरफ देखा।
वह उसी की आयु का एक युवक था। हाथ मिलाने के लिए उसने अपना हाथ आगे बढ़ा रखा था। हड़बड़ाकर जल्दी से हाथ मिलाते हुए उसने कहा— “ जरा बाहर गया था.....।”
"अब तो आ गए हो ?" उसने आंख मारकर पूछा।
"हां।" युवक का बुरा हाल था।
बड़ी कातर दृष्टि से देखते हुए उसने पूछा— “फिर कब जम रहे हो ?"
युवक का दिल चाहा कि उससे इस बात का मतलब पूछ ले मगर फिर यह सोचकर रुक गया कि मतलब पूछना बड़ा अटपटा लगेगा। इसकी बातों से लग रहा है कि यह मेरा कोई घनिष्ट है , अत: उसने यूं ही कह दिया— “अभी तो आया हूं यार , जम जाएंगे।"
"आज शाम को हो जाए? "
"हां।" युवक ने बिना सोचे-समझे कह दिया।
"ओ oके o।" कहने के साथ ही उसने अपनी उंगली से युवक की हथेली खुजलाई और आगे बढ़ गया। युवक कुछ देर तक तो दूर जाते उस व्यक्ति को देखता रहा , फिर उसने राजाराम से पूछा— "यह कौन था, राजा ?”
“मैं नहीं जानता साहब , आपका कोई दोस्त होगा।"
"मालूम पड़ता है कि यह मेरा कोई बहुत घनिष्ट दोस्त है , पता नहीं किस चीज के लिए 'जमने ' को कह रहा था?"
और ऐसा पहली बार नहीं हुआ था।
घण्टाघर से यहां तक वह राजाराम के साथ रिक्शा में आया था—रास्ते में बहुत-से लोगों ने उससे नमस्कार की थी—हालांकि उसके लिए हर चेहरा अजनबी था , मगर फिर भी वह सबकी नमस्कार कबूल करता गया था—भगवतपुरे में दाखिल होने के बाद नमस्कारों का दौर कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था।
कई ने उसे दूर से हाथ हिलाकर कहा था— "हैलो जॉनी , हाऊ आर यू?"
उलझे हुए युवक ने उन सभी को जवाब दिया था।
"शायद सो रहीं हैं, भाभीजी।" बड़बड़ाते हुए राजाराम ने पुन: कॉलबेल दबा दी—युवक पुन: चौंककर दरवाजे की तरफ देखने लगा , एकाएक ही यह सोचकर उसका दिल असामान्य गति से धड़कने लगा कि अब—अगले किसी भी क्षण दरवाजा खुलेगा।
एक स्त्री उसके सामने होगी।
यह उसे अपना पति कहेगी।
मगर क्या मैं सचमुच उसका पति हूं …क्या मैं जॉनी हूं ?
क्या में न्यादर अली का लड़का सिकन्दर नहीं हूं—यदि यह बात है तो फिर मुझे सिकन्दर साबित करके वह अपने किसी उद्देश्य की पूर्ति करना चाहता था …और यदि मैं सिकन्दर हूं तो फिर यहां लोग मुझे 'जॉनी ' क्यों कह रहे हैं ?
अगर यह षड्यन्त्र है तो क्या ?
दरवाजे के दूसरी तरफ से किसी के चलने की आवाज ने युवक की विचार श्रृंखला भंग की , वह सतर्क हो गया , जिस्म में जाने क्यों स्वयं ही तनाव उत्पन्न हो गया , मगर 'धक्-धक्' करता हुआ दिल अब किसी हथौड़े की तरह पसलियों पर चोट कर रहा था।
दूसरी तरफ से सांकल खुलने की आवाज उभरी। युवक के मस्तक पर पसीना उभर आया।
दरवाजा खुला—‘धक् ' की एक जोरदार आवाज के बाद मानो दिल ने धड़कना बंद कर दिया।
एक नारी की आवाज— “ अरे राजा भईया , तुम आए हो ?"
"हां भाभी , और देखो , किसे लाया हूं।" कहने के साथ ही राजाराम ने युवक की बांह पकड़कर उसे दरवाजे के सामने कर दिया। उस पर नजर पड़ते ही युवती के मुंह से चीख-सी निकल पड़ी— "अ...आप ?”
युवक कुछ बोल नहीं सका। उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं—और वह युवती जिसका नाम रूबी था , अवाक-सी उसे देख रही थी। उसके चेहरे पर वेदना थी—आंखें सूजी हुई थीं उसकी—जैसे पिछले हफ्ते से लगातार रोई हो।
वह सुन्दर थी—थोड़ा सांवला रंग , तीखे और आकर्षक नाक-नक्श वाली रूबी के उलझे हुए बालों के बीच सिन्दूर की रेखा नजर आ रही थी—छोटी-सी नथ पहने थी वह और इस नथ ने उसके सौन्दर्य को कुछ ज्यादा ही निखार दिया था।
"अ.....आ गए आप ?" उसने फंसी-सी आवाज में कहा था।
युवक किंकर्तव्यविमूढ़-सा खड़ा रहा।
अचानक ही उस वक्त वह बुरी तरह बौखला गया , जब रूबी ने बिजली की-सी तेजी से झुककर उसके चरण स्पर्श किए और फिर उसी तेजी के साथ फूट-फूटकर रोती हुई अन्दर की तरफ भाग गई—राजाराम ने युवक की तरफ देखा , युवक के चेहरे पर हैरत का सैलाब-सा उमड़ा पड़ा था। हक्का-बक्का-सा उसने राजाराम से पूछा— "ये क्या बात हुई ?"
"भाभी शायद आपसे नाराज हैं।"
"म...मगर क्यों ?"
"यह भला मैं कैसे जान सकता हूं, साहब , मगर आपके एक दोस्त ने कुछ ही देर पहले जो कुछ कहा था , उससे लगता है कि आप यहां बहुत दिन बाद आए हैं , भाभी शायद इतने दिन यहां से आपके दूर रहने की वजह से नाराज हैं।"
युवक कुछ बोला नहीं , उसे भी यही बात महसूस हो रही थी।
राजाराम ने कहा— "जाइए।"
"तुम नहीं चलोगे?" चौंकते हुए युवक ने पूछा।
"मैं आप पति-पत्नी के बीच क्या करूँगा ?"
"न...नहीं, राजा।" घबराकर युवक ने एकदम से उसकी बांह पकड़ ली और बोला— “तुम भी मेरे साथ अन्दर चलो , उसे मेरे साथ हुई दुर्घटना के बारे में बताना।"
“ओह , अच्छा चलिए। ” हालात की आवश्यकता को समझते हुए राजाराम ने कहा , और फिर वे दोनों एक साथ ही अन्दर दाखिल हो गए। एक छोटी-सी गैलरी को पार करके वे आंगन में पहुंचे—आंगन के ऊपर लोहे का मजबूत जाल पड़ा हुआ था।
एक तरफ बाथरूम और टायलेट था—दूसरी तरफ किचन।
एक कमरे के अन्दर से रूबी के हिचकियां ले-लेकर रोने की आवाज आ रही थी—युवक के दिल की हालत बड़ी अजीब हो गई—अपने हाथ-पैर सुन्न-से पड़ते महसूस हो रहे थे उसे। उसकी बांह पकड़े राजाराम कमरे में दाखिल हो गया।
डबलबेड पर उल्टी पड़ी रूबी रो रही थी।
युवक की दृष्टि डबलबेड की साइड ड्राज के ऊपर रखे पोस्टकार्ड साइज के एक फोटो पर चिपककर रह गई। खूबसूरत फ्रेम में जड़े उस फोटो में रूबी के साथ वह खुद भी था।
रूबी पूरे श्रृंगार में थी।
युवक का दिमाग जाम-सा हो गया।
वह समझ नहीं सका कि अपने आपको सिकन्दर माने या जॉनी—सच्चाई वह है जो यहां नजर आ रही है अथवा वह जो न्यादर अली के बंगले में थी ?
"भाभीजी.....भाभाजी।" राजाराम रह-रहकर रूबी को पुकार रहा था— “सुनिए तो सही …प्लीज , आपको एक बहुत जरूरी बात बतानी है।"
अचानक ही वह बिजली की तरह चमककर उठी। आंसुओं से सारा चेहरा तर था—बोली—“इनसे पूछो राजा भईया , मुझ अभागिन की याद कैसे आ गई इन्हें ?"
"ओफ्फो भाभी , तुम समझ नहीं रही हो। ”
"मैं सब समझती हूं—ये मुझसे शादी करके पछता रहे हैं , तभी तो इस तरह मुझे बिना बताए गुम हो गए , आज दो महीने बाद ही मेरी याद क्यों आई है ?"
"मैं...मैं कहां गुम हो गया था ?" बौखलाए-से युवक ने पूछा।
"मैं क्या जानूं? अब मालूम पड़ा कि आप मुझे कितना प्यार करते हैं ?"
युवक एकदम राजाराम की तरफ घूमकर बोला—“प्लीज राजा , इसे किसी दूसरे कमरे में ले जाओ और बताओ कि मैं किस अवस्था में हूं?"
रूबी रोती रही।
"यह लड़ने का वक्त नहीं है भाभी। जॉनी साहब के साथ एक बड़ी दुर्घटना घट गई है।" राजाराम ने रूबी की कलाई पकड़कर उसे एक अन्य कमरे में ले जाते हुए कहा— “ मेरी बात सुन लीजिए , उसके बाद यदि आप चाहें तो इनसे जी भरकर लड़ लेना।"
वे अन्दर वाले कमरे में चले गए।
युवक ने झपटकर खूबसूरत फ्रेम में जड़ा फोटो उठाया और उसे ध्यान से देखने लगा।
Reply
05-18-2020, 02:27 PM,
#15
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
काफी कोशिश के बावजूद भी वह फोटो में ऐसी कोई कमी तलाश नहीं कर पाया था , जिससे इस नतीजे पर पहुंचता कि फोटो ट्रिक फोटोग्राफी से तैयार किया गया है—उसे वापस दराज में रखते हुए उसने एक नजर उस कमरे पर डाली , जिसके अन्दर रूबी और राजाराम गए थे—फिर उसने जल्दी से ड्राज खोली।
ड्राज में अन्य घरेलू सामान के अतिरिक्त एक बैंक की पासबुक पड़ी थी। युवक ने फुर्ती से पढ़ा—वह मेरठ रोड पर स्थित पंजाब नेशनल बैंक की पासबुक थी और एकाउंट नम्बर था—सत्तावन सौ नौ। पढ़ने के बाद फुर्ती से उसने पासबुक ड्राज में रख दी—एक नजर पुन: उस कमरे की तरफ डालने के बाद कमरे के एक कोने में खड़ी सेफ की तरफ बढ़ा। सेफ की चाबी उसमें लगी हुई थी—युवक ने जल्दी से लॉक खोला।
फिर उसने देखा कि सेफ में जितने भी कपड़े थे , सब पर ‘बॉंनटेक्स ' की चिटें थीं—अभी वह सेफ को ही खंगाल रहा था कि रूबी और राजाराम उस कमरे में दाखिल हुए—युवक हड़बड़ाकर सेफ के नजदीक से हटा और उनकी तरफ देखने लगा।
चुपचाप , अवाक्-सी खड़ी रूबी उसे विचित्र दृष्टि से देख रही थी—उसके मुखड़े पर उलझन , आश्चर्य , अविश्वास और वेदना के संयुक्त भाव थे—वह एकटक युवक को देखे जा रही थी। युवक की दृष्टि भी सिर्फ उसी पर स्थिर हो गई।
"मैं चलता हूं, साहब।" एकाएक राजाराम ने कहा।
युवक की तन्द्रा भंग हुई , उसने जल्दी से कहा—"स.....सुनो राजा …तुम किसी से भी मेरे और मेरी अवस्था के बारे में जिक्र मत करना—शाम तक दुकान पर रूपेश नाम का एक युवक आएगा , उसे यहां भेज देना।"
"र...रूपेश कौन है, साहब ?"
"वह मेरा एक नया दोस्त है , दुकान पर आकर वह तुमसे केवल एक ही वाक्य कहेगा , यह कि मेरा नाम रूपेश है।"
"ठीक है, साहब।" कहकर राजाराम कमरे से बाहर निकल गया। रूबी भी उसके पीछे ही चली गई थी—युवक अवाक्-सा वहीं खड़ा रहा—कुछ देर बाद उसने मकान के मुख्य द्वार की सांकल अन्दर से बन्द होने की आवाज सुनी।
वह समझ सकता था कि राजाराम जा चुका है। दरवाजा बन्द करके रूबी अब यहीं आने वाली है। युवक रूबी का सामना करने और उससे बात करने के लिए खुद को तैयार करने लगा। अब यह विचार उसके दिमाग में हथौड़े की तरह चोट कर रहा था कि इस मकान में रूबी के साथ वह अकेला है।
क्या रूबी सचमुच मेरी पत्नी है ?
वह निश्चय ही मेरे साथ वही व्यवहार करेगी , जो एक पत्नी पति के साथ करती है , लेकिन यदि मैं जॉनी न हुआ—यदि वह वास्तव में मेरी पत्नी न हुई तो ?
यही सब सोचते-सोचते उसके मस्तक पर पसीना उभर आया और फिर अचानक ही उसके दिमाग में यह ख्याल जा टकराया कि यहां वह अकेली नारी के साथ है।
कहीं वे ही ख्याल दिमाग में न उभर आएं जो हॉस्पिटल के उस कमरे में अकेली नर्स को देखकर उभरे थे—यदि वैसा ही सब कुछ यहां हो गया तो यहां इस बन्द स्थान के अन्दर रूबी को कोई बचाने वाला भी नसीब नहीं होगा।
तो क्या मैं उसे मार डालूंगा ?
इन ख्यालों में ड़ूबे युवक के हाथ-पांव सर्द पड़ गए—जिस्म के सभी मसामों ने बर्फ के समान ठण्डा पसीना उगल दिया—अजीब-सी अवस्था में अभी वहीं खड़ा था कि …।
रूबी कमरे के अन्दर दाखिल हुई।
दरवाजे ही पर ठिठक गई वह—मुखड़े पर वही संयुक्त भाव थे—नजरें एक-दूसरे से चिपककर रह गईं—यह सोचकर युवक बुरी तरह घबरा रहा था कि दिलो-दिमाग में कहीं वे ही विचार न उठने लगें। एकाएक उसकी तरफ बढ़ती हुई रूबी ने बड़े प्यार से पूछा— "क्या राजा भाइया ठीक कह रहे थे, जॉनी , तुम्हें कुछ भी याद नहीं है ?"
"न...नहीं।" युवक को अपनी ही आवाज फंसी-सी महसूस हुई।
रूबी उसके बहुत नजदीक आकर बोली— “ क्या तुम्हें मैं भी याद नहीं हूं ?"
इस बार युवक के कण्ठ से आवाज नहीं निकली , इन्कार में गर्दन हिलाकर रह गया वह।
“म....मुझे माफ कर दो, जॉनी।" बड़े प्यार से युवक के सीने पर हाथ रखती हुई रूबी ने कहा— “मुझे कुछ नहीं पता था , आते ही तुमसे लड़ने लगी , मगर क्या करती—मैं बहुत परेशान थी जॉनी , तुम उस जरा-से झगड़े की वजह से मुझे अचानक ही छोड़ गए।"
"झ......झगड़ा ?”
"हां।”
"कैसा झगड़ा ?"
"ओह , तुम्हें तो वह भी याद नहीं है , मगर तुम घबराना नहीं, जॉनी—फिक्र मत करना , मुझे चाहे जो करना पड़े—तुम्हारी याददाश्त वापस लाकर रहूंगी—अब इस दुनिया में ऐसी कोई बीमारी नहीं रही , जिसका इलाज न हो।"
"म.....मगर? "
"आओ , तुम आराम करो।" कहने के साथ ही उसने युवक को बेड की तरफ खींचा—युवक हिचकिचाया , रूबी ने उसकी एक न सुनी और फिर जिद भी उसने कुछ इतने प्यार से , अपनत्व के साथ की थी कि वह इन्कार न कर सका।
एक बहुत प्यार करने वाली पत्नी के समान ही उसने युवक को लिटाया , तकिए लगाए—उसकी अंगुलियों को सहलाती हुई बोली— “ कैसे और कहां हो गया तुम्हारा एक्सीडेण्ट?”
"सच्चाई तो यह है कि मैं विश्वासपूर्वक कुछ भी नहीं कह सकता , केवल वही जानता हूं और वही बात बता सकता हूं , जो औरों ने मुझे बताया है।"
"वही बताइए।"
"डॉक्टर और एक पुलिस इंस्पेक्टर ने मेरे होश में आने पर बताया कि मैं फियेट चला रहा था और एक ट्रक से , रोहतक रोड पर मेरी फियेट टकरा गई।"
"फ...फियेट आपके पास कहां से आ गई ?"
"पता लगा कि यह प्रीत विहार में रहने वाले किसी अमीचन्द जैन की थी।"
"ओह , इसका मतलब ये कि आपने फिर चोरी की ?"
"च...चोरी ?” युवक उछल पड़ा— "त...तुम्हें कैसे मालूम कि मैंने चोरी की थी ?"
"साफ जाहिर है , कार किसी अमीचन्द की थी—आप उसे चला रहे थे।"
"म...मगर तुमने एकदम से ही यह अनुमान कैसे लगा लिया कि यह कार मैंने चुराई ही होगी , सम्भव है कि अमीचन्द मेरा दोस्त रहा हो—किसी काम के लिए मैंने कार उससे मांगी हो ?"
"मैं जानती हूं कि प्रीत विहार में आपका कोई दोस्त नहीं है …और फिर क्या मैं आपकी चोरी की आदत से परिचित नहीं हूं ? एक इसी काम में तो आप एक्सपर्ट हैं।"
"क.....क्या मतलब?" युवक की खोपड़ी घूम गई—“क्या मैं चोर हूं ?"
"हो नहीं , थे—मगर मुझसे वादा करने के बाद भी चोरी करके आपने अच्छा नहीं किया।"
"म.....मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं? जाने क्या कह रही हो तुम? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि मेरे बारे में तुम मुझे सब कुछ विस्तार से बताओ , हो सकता है रूबी कि उसे सुनते-सुनते मेरी सोई हुई याददाश्त वापस लौट आए?"
"मैं वही कोशिश कर रही हूं।"
"तो बताओ , मैं कौन हूं—क्या हूं ?"
"मूल रूप से आप बस्ती जिले के रहने वाले हैं , आपके पिता का नाम जॉनसन है—और वहां आपके पिता की कपड़े की एक फैक्ट्री है , मगर आप बचपन से ही अपने घर से भाग आए थे , उस वक्त आपकी उम्र सिर्फ दस साल थी।"
हैरत में ड़ूबे युवक ने पूछा— "मैँ क्यों भाग आया था ?"
"आप बहुत खुद्दार किस्म के और विद्रोही प्रवृत्ति के थे—बचपन में आपका अपने ही छोटे भाई-बहनों से झगड़ा हो गया था—गलती आपकी नहीं थी , जबकि आपके पिता के सामने सारा झगड़ा कुछ इस तरह पेश हुआ था कि उन्होंने आप ही की पिटाई की थी और गुस्से में उसी रात आपने अपना घर छोड़ दिया था और आज तक पलटकर वहां नहीं गए हैं, क्योंकि कच्ची उम्र में ही आप चोर बन चुके थे—शुरू में तो विद्रोही होने के कारण आपने कुछ सोचा ही नहीं और जब यह विचार आपके दिमाग में आया तो अपराध के दलदल में इस कदर फंस चुके थे कि आप अपने घर जाने से कतराने लगे थे।"
"म...मगर मैं चोर कैसे बन गया ?"
"एक दस साल का बच्चा घर से भागकर और कर भी क्या सकता है—भूख ने आपको चोर बना दिया था , आप एक ऐसे गिरोह के साथ लग गए थे जो बच्चों से चोरी-चकारी और भीख मांगने का धंधा कराता था—जैसा वातावरण आपको मिला , वही आप बन गए।"
"तब फिर तुम मेरी जिन्दगी में कहां से आ गईं ?"
Reply
05-18-2020, 02:27 PM,
#16
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
"मैं अपने परिवार के साथ 'इण्डिया गेट' पर घूमने गई थी—वहीं आप भी बोटिंग कर रहे थे—यह आज से दो साल पहले की बात है , वहां मैं आपको देखती रह गई थी और आप मुझे—कहना चाहिए कि वहां हममें प्यार हो गया था—शाम को जब पिकनिक के बाद मैं अपने परिवार के साथ वहां से विदा हुई थी तो आपने महरौली स्थित हमारे घर तक पीछा किया था , फिर आपने यह भी पता लगा लिया था कि मैं कौन से कॉलेज में पढ़ती हूं—आप हर रोज मुझे मेरे कॉलिज के बाहर खड़े मिलने लगे थे , फिर एक दिन आपने मुझे पत्र दिया था—इस तरह हमारा प्यार परवान चढ़ने लगा था और हम अक्सर मिलने लगे थे।"
"फिर?”
बड़ी उम्मीद के साथ युवक की आंखों में झांकती हुई रूबी ने पूछा— “क्या आपको कुछ याद आ रहा है ?"
"न.....नहीं।"
रूबी के मुखड़े पर निराशा के बादल मंडराते नजर आए , फिर भी स्वयं को नियंत्रित करके उसने आगे कहा— "एक दिन मेरे पिता के किसी परिचित ने हमें 'कनॉट प्लेस' में घूमते देख लिया था—घर पर मुझ पर सख्ती की गई थी तो मैंने कह दिया था कि तुम्हीं से शादी करूंगी—उसके बाद तुमसे मिलने पर जब मैंने वे सब बातें बताई थीं तो तुम उदास हो गए थे—मेरे पूछने पर तुमने बताया था कि तुम मुझसे शादी नहीं कर सकते हो—तुमने कहा था कि तुम खुद को मेरे काबिल नहीं समझते—मेरे कारण पूछने पर ही तुमने अपने बचपन से लेकर चोर बनने तक के बारे में बताया था।"
"फिर क्या हुआ?"
"मैं सुनकर अवाक् रह गई थी , जानती थी कि मेरे घर वालों को अगर यह हकीकत पता लग गई तो वे हरगिज भी हमारी शादी नहीं करेंगे , जबकि तुम बहुत उदास और गमगीन हो गए थे। तब तक मैं तुमसे इतना प्यार करने लगी थी कि तुम्हारे बिना जीवित रहने की कल्पना तक नहीं कर सकती थी—सो , उस दिन की हमारी मुलाकात के बाद तय हुआ था कि तुम अपराधियों के उस दल से सम्बन्ध तोड़ लोगे , जिसके सदस्य के रूप में चोरी करते हो—सो तय हुआ कि तुम एक शराफत की जिन्दगी शुरू करोगे—उसी के तहत तुमने देहली से बाहर , यहीं यह मकान खरीदा था—आज से छ: महीने पहले मैं अपना घर छोड़ आई थी , गाजियाबाद कोर्ट में हमने शादी की थी और यहां रहने लगे थे—यहां हमारी इस कहानी को कोई नहीं जानता है।"
“म...मैंने यह मकान कैसे खरीद लिया—और जब मैंने चोरी छोड़ दी थी तो छ: महीने तक हमारा खर्चा कैसे चला ?"
"जब आपने उस गिरोह से सम्बन्ध विच्छेद किया था , तब आपके पास अपने पांच लाख रुपए थे , जिसमें से चार लाख का आपने यह मकान खरीद लिया था और बाकी एक लाख मेरी सलाह से ब्याज पर चला दिया था—हमें प्रति महीने उनसे छ: हजार ब्याज प्राप्त होता है , उसमें हमारा खर्च बहुत आराम से चलता है—उस एक लाख में से बीस इजार तो छ: परसेंट पर राजा भाइया पर ही हैं।"
"बाकी अस्सी हजार ?"
"इसी तरह बंटा हुआ है , आप फिक्र न करें—मुझे सब मालूम है।"
"क्या उस गिरोह के लोगों ने मेरा पीछा नहीं किया , जिसका मैं सदस्य था?"
"किया होगा , मगर कम-से-कम आज तक वे यहां नहीं पहुंचे हैं।"
"अगर यहां हमारी लाइफ इतनी सैट हो गई थी तो फिर मैं तुम्हें यहां छोड़कर दो महीने पहले भाग क्यों गया था?" युवक ने पूछा।
"मेरी ही बेवकूफी से—मैं अपनी गलती स्वीकार करती हूं, जॉनी।"
चौंकते हुए युवक ने पूछा —“मैं कुछ समझा नहीं?"
"ओह , मैं बार-बार क्यों भूल जाती हूं जॉनी कि तुम्हें कुछ भी याद नहीं आ रहा है—याद करने की कोशिश करो , प्लीज—दिमाग पर जोर डालो—याद करो कि मैंने कितनी मुश्किल से तुम्हें तुम्हारे माता-पिता के घर यानि बस्ती चलने के लिए राजी किया था। तुम तैयार हो गए थे—हम वहां जाने के लिए बाजार में शॉपिंग करने गए—सर्राफे में मेरी नजर एक नेकलेस पर पड़ी।"
"न...नेकलेस ?” युवक उछल पड़ा।
“हां , यह कम्बख्त नेकलेस ही तो सारे कलह की जड़ था।"
“कैसे ?”
"जाने ऐसा क्या हुआ कि वह नेकलेस मेरे दिमाग पर बहुत ज्यादा चढ़ गया और मैं तुमसे उसे खरीद लेने की जिद करने लगी , उसकी कीमत दो लाख थी—तुमने कहा कि उसे खरीदने की फिलहाल हमारी पोजीशन नहीं है। तुम्हें कुछ याद आ रहा है, जॉनी ?"
"फिर क्या हुआ ?"
"तुम्हारा इन्कार करना मुझे बुरा लगा था—वहां से तो गुस्से में भरी मैं चुपचाप चली आई थी , मगर यहां आकर झगड़ने लगी थी—तुम मुझे समझाने की कोशिश करने लगे थे , पता नहीं मुझे क्या हो गया था कि तुम्हारी एक न सुनी थी—गुस्से में जाने क्या-क्या कहने लगी थी , अन्त में तुम्हें भी गुस्सा आ गया था और गुस्से में ही तुम यहां से यह कहकर चले गए थे कि अब मुझे तभी शक्ल दिखाओगे जब वह नेकलेस तुम्हारे पास होगा—मेरे दिमाग में तब भी यह बात नहीं आई थी कि जो शख्स दस साल की आयु में एक छोटी-सी बात के कारण घर से ऐसा निकला कि चोर बन गया , मगर घर नहीं लौटा , वह सचमुच मुझे भी छोड़ सकता है—यह बात तो दिमाग में तब आई थी जब उस सारी रात तुम नहीं आए—फिर ज्यों-ज्यों समय गुजरता गया था , मुझे लगने लगा था कि अब तुम कभी नहीं आओगे , अपने घर वालों ही तरह ही हमेशा के लिए मुझे भी छोड़ गए हो , मगर मैं यहां से निकलकर कहीं जा भी तो नहीं सकती थी, जॉनी—इस उम्मीद में यहीं पड़ी-पड़ी रोती रहती थी कि शायद तुम्हें कभी मेरी याद आए , मुझ पर तरस आए तुम्हें।"
युवक ने जेब से वही नेकलेस निकाला , जो दीवान ने न्यादर अली को और न्यादर अली ने पुन: उसे दे दिया था। बिना कुछ कहे उसने नेकलेस रूबी की तरफ बढ़ा दिया।
"अरे , यह तो वही नेकलेस है—तु.....तुम इसे लेकर ही आए हो ?"
"श...शायद।"
"क......क्या तुम्हें सब कुछ याद आ रहा है, जॉनी? सच बोलो।" बड़ी ही अधीरता के साथ रूबी ने पूछा— “तुम्हें कुछ याद आया है न ?"
सपाट और निर्भाव चेहरे वाले युवक ने कहा— “ नहीं।"
रूबी का चेहरा एकदम इस तरह फक्क पड़ गया , जैसे उसे कोई जबरदस्त आघात लगा हो। घोर निराशा में डूबे स्वर में उसने कहा— "फ.....फिर यह नेकलेस ?”
"शायद इसे तुम्हें देने की धुन में ही मैंने अमीचन्द के गैराज से कार और फिर खरीदने की हैसियत न होने के कारण दुकान से यह नेकलेस चुराया था—वह पुलिस इंस्पेक्टर कहता था कि मेरी जेब में इसे खरीदने से सम्बन्धित कोई रसीद नहीं निकली थी।"
"म...मगर आप रोहतक रोड पर कैसे पहुंच गए ?"
"एक चोर कहीं भी पहुंच सकता है।"
"ऐसा मत कहिए , आप चोर नहीं हैं—अब मैं आपको कभी चोरी नहीं करने दूंगी।"
"खैर।" युवक ने गम्भीरतापूर्वक सोचते हुए पूछा— "क्या तुम बता सकती हो रूबी कि जब मैँ यहां से गया था तो मेरी जेब में कितने पैसे थे ?”
"तीस हजार के करीब।"
"मगर मेरी जेब में कुल बाइस हजार....ओह , बाकी के रुपए शायद मैं एक्सीडेण्ट होने से पहले खर्च कर चुका था। खैर...क्या मेरी जेब में कोई पर्स रहता था रूबी ?"
“हां , वही पर्स जिसमें आपकी मां का फोटो है।"
"म...मां का फोटो ?" युवक भौंचक्का रह गया।
"जी हां , कहां है वह पर्स ?"
“ले......लेकिन वह मेरी मां कैसे हो सकती है—वह तो किसी युवती का फोटो है।"
"वह आपका नहीं , आपके पिता का पर्स है—जब आप घर से भागे थे तो उनकी जेब से यह पर्स निकालकर भागे थे—वह आपकी मां की शादी से पहले का फोटो है , उस पर्स को पिता की और फोटो को मां की निशानी समझकर आपने हमेशा अपने साथ रखा , कभी मिस नहीं किया उसे—क्या आपको यह भी याद नहीं है कि आप अक्सर दीवानों की तरह अपनी मां के फोटो से बातें किया करते हैं ?"
आश्चर्य के कारण युवक का बुरा हाल था। उसने जेब से पर्स निकाला—खोलकर ध्यान से उस युवती के फोटो को देखने लगा—उस फोटो को जिसे न्यादर अली ने उसकी बहन सायरा का फोटो बताया था , अब—यह रूबी इसी फोटो को उसकी मां का फोटो कह रही है।
बुरी तरह उलझ गया युवक।
उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि सच्चाई क्या है ?
सेठ न्यादर अली के बंगले से वह यह सोचकर भागा था कि शायद अपने अतीत की गुत्थी को सुलझा सके—खुद ही को शायद वह तलाश कर सके , मगर यहां आकर तो गुत्थी कुछ और ज्यादा उलझ गई थी। युवक का दिमाग बुरी तरह झनझना रहा था।
"हां , यही पर्स है वह और यही मांजी हैं।" रूबी की आवाज ने उसकी विचार श्रखंला तोड़ दी , उसने चौंककर रूबी की तरफ देखा—हैरत और उलझन की रस्सियों से बंधा कुछ देर तक वह शान्त भाव से रूबी को देखता रहा , फिर बोला— “यह फोटो और साथ में मेरा फोटो भी पुलिस ने अखबार में छपवाया था , उसे देखकर तुम मेडिकल इंस्टीट्यूट में क्यों नहीं आईं ?"
"क.....कौन-से अखबार में , मैंने तो नहीं देखा।"
"नहीं देखा ?"
"कैसी बात कर रहे हैं आप? यदि देखा होता तो क्या मैं आती नहीं ?"
Reply
05-18-2020, 02:27 PM,
#17
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
युवक चुप रह गया , फिर वह अपने दिमाग को संभालने लगा। शायद सोच रहा था कि अब उसे रूबी से क्या पूछना है और एकाएक ही उसने पूछा— "अच्छा , ये बताओ रूबी कि क्या मैंने अपनी पिछली जिन्दगी में कभी किसी नग्न लड़की की लाश देखी है ?"
“हां , आपने मुझे बताया था कि उस लाश को आप लाख चेष्टाओं के बावजूद भी कभी भुला नहीं सके—आपको वह लाश ख्वाब में चमक आया करती है—जब भी वह ख्याब आपको चमकता है , आप डर जाते हैं और चीखकर उठ बैठते हैं।"
"किसकी लाश थी वह ?"
"आपने बताया था कि एक रात आप सम्बन्धित गिरोह के एक दूसरे चोर के साथ किसी सेठ की तिजोरी साफ करने गए थे। तिजोरी उसके लड़के और बहू के कमरे में थी
आप दोनों कमरे में पहुंच गए थे , सर्दी के दिन थे—डबलबेड पर लिहाफ के अन्दर सेठ का लड़का और उसकी पत्नी , नग्न अवस्था में एक-दूसरे की बांहों में समाए मीठी नींद सो रहे थे—आप अपना काम करने लगे थे—किसी खटके की आवाज से पत्नी की नींद खुल गई थी और वह चीख पड़ी थी—आपके साथी ने झपटकर उसकी गर्दन दबोच ली थी—पत्नी की चीख सुनकर सेठ का लड़का भी जाग गया था , जिसे आपने दबोच लिया था—आपने उसके मुंह पर हाथ रख लिया था—आप उसे दबोचे खड़े थे , जबकि आपके साथी ने बहू की हत्या कर दी थी—उस हत्या का सारा मंजर आपने अपनी आंखों से देखा था , बहू की जीभ और आंखें बाहर उबल पड़ी थीं—उसकी भयानक और निर्वस्त्र लाश कमरे के फर्श पर गिर गई थी—आपकी गिरफ्त में फंसा युवक दहशत के कारण बेहोश हो चुका था—आप और आपका साथी आंखें फाड़े उस नग्न लाश को देखते रहे थे और फिर बिना उनकी सेफ पर हाथ साथ किए ही आप दोनों वहां से भाग खड़े हुए थे।"
सुनते-सुनते युवक को लगा कि उसका जिस्म ही नहीं , बल्कि दिलो-दिमाग तक सुन्न हो गया है। कानों के समीप उसे वैसी ही आवाज गूंजती महसूस हुई , जैसे गहरे सन्नाटे की होती है—सांय-सांय , चेहरा फक्क पड़ गया था उसका , हथेलियां तक ठण्डे पसीने से बुरी तरह भीग गईं , उसे इस अवस्था में देखकर रूबी घबरा गई। उसके दोनों कंधे पकड़कर झंझोड़ती हुई चीखी—"क्या हुआ , क्या हो गया है आपको?"
"म...मतलब ये कि मैं हत्यारा भी हूं।" अपनी ही आवाज उसे किसी अंधकूप से निकलती-सी महसूस हुई।
"न...नहीं।" रूबी ने सख्ती के साथ विरोध किया— "आप भला हत्यारे क्यों होते , हत्या आपके साथी ने की थी।"
“हत्यारे की मदद करने वाला भी हत्यारा होता है रूबी , मैंने अपने साथी की पूरी मदद की थी , यदि मैं उसके पति को छोड़ देता तो वह कभी न मरती।"
"इसी विचार को तो किसी घुन की तरह अपनी जिन्दगी से चिपका लिया है आपने , तभी तो वह सपना आपको आज भी चमकता है , आप सोते-सोते डर जाते हैं—इस वक्त भी आपके विचार बिल्कुल वैसे ही हैं , जैसे याददाश्त गुम हो जाने से पहले थे—आप हमेशा खुद को उसका हत्यारा कहते हैं , जबकि मैं कहती हूं कि आप हत्यारे नहीं हैं—एक भयानक दुःस्वप्न समझकर आप अपनी जिन्दगी से उसे निकाल फेंकिए।"
एकाएक युवक ने उससे उस युवक के बारे में पूछा , जिसने उससे 'जमाने' के लिए कहा था। पहले तो रूबी कुछ समझी ही नहीं—उसने ऐसा कहने वाले का हुलिया पूछा और जब युवक ने बताया तो रूबी बोली— "ओह , वह शायद गजेन्द्र होगा।"
“गजेन्द्र कौन ?"
"भगवतपुरे में बने आपके दोस्तों को मंडली का एक सदस्य।"
"क्या तुम बता सकती हो कि वह क्या जमाने के लिए कह रहा था?"
"शायद जुए की महफिल जमाने के लिए कह रहा हो ?"
"ज...जुआ—क्या मैं जुआ भी खेलता हूं ?"
“हां , मेरे बार-बार मना करने के बावजूद जब आप उनके बीच फंस जाते हैं तो खेल ही लेते हैं। ”
“खैर , धीरे-धीरे आपकी यह लत भी छूट जाएगी।"
युवक ने फीकी-सी मुस्कान के साथ कहा—“दुनिया का शायद एक भी ऐसा बुरा काम नहीं है , जो मैंने न किया हो।"
“ऐसा मत कहिए , जो शाम को लौट आए उसे भूला नहीं कहते—अब आपने सब काम छोड़ दिए हैं , कोई भी गलत काम न करने के लिए आपने मेरी कसम खाई है।" कहने के साथ ही उसने ऐसी हरकत की कि युवक के रोंगटे खड़े हो गए।
बड़े प्यार से , उसके होंठों का चुम्बन लिया था रूबी ने।
युवक सकपका गया।
रूबी का मुखड़ा उसके बेहद करीब था। बड़े प्यार से उसकी आंखों में झांक रही थी वह। रूबी की सांसों की गर्मी युवक ने अपने चेहरे पर महसूस की और अनायास ही उसकी अपनी सांसें भी धौंकनी की तरह चलने लगीं।
दिल बेकाबू होकर धड़कने लगा।
शायद लापरवाही के कारण ही रूबी के वक्षस्थल से साड़ी का पल्लू ढलक गया। वक्ष प्रदेश का ऊपरी भाग युवक को साफ नजर आने लगा। रूबी की सांसों के साथ ही उनमें कम्पन हो रहा था—उस वक्त तो युवक बौखला ही गया जब रूबी ने बड़े प्यार से न केवल उसके गले में बांहें डाल दीं , बल्कि अपना सिर धीमें से उसके सीने पर रखकर बोली— "मुझे तो बस इस बात की खुशी है कि आप आ गए हैं , अब हम बस्ती चलेंगे—सम्भव है कि अपने माता-पिता और छोटे भाई-बहनों से मिलकर बाकी याददाश्त भी वापस आ जाए।”
"म...मगर रूबी।" स्वर बौखलाया हुआ था।
रूबी का प्यार से सराबोर लहजा—"कहिए।"
अब वह कुछ सोचने के लिए एकान्त चाहता था , अत: बोला— “ मैं सुबह से भूखा हूं, क्या तुम मुझे कुछ बनाकर खिला सकती हो ?"
"क्यों नहीं , ओह—सॉरी जॉनी—मैं तुम्हारी कहानी में कुछ इतनी बुरी तरह उलझ गई कि इस बात का ध्यान ही न रहा।” वह बोली—“क्या खाओगे ?"
"जो तुम खिला दो।"
"मैं नमकीन चावल बनाती हूं, तुम्हें बहुत पसन्द हैं।"
दिमाग पर काफी जोर डालने के बाबजूद भी युवक यह तो न जान सका कि उसे नमकीन चावल पसन्द हैं या नहीं , मगर रूबी को उसने वही बनाने के लिए कह दिया।
Reply
05-18-2020, 02:27 PM,
#18
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
अब उस कमरे में युवक अकेला था।
बेड की पुश्त के साथ रखे डनलप के तकियों पर सिर रखे वह बेड पर लगभग लेटा हुआ था , किचन की तरफ से आवाजें आ रही थीं—कमरे की छत को घूरता हुआ वह न्यादर अली और रूबी द्वारा सुनाई गई कहानियों का तुलनात्मक अध्ययन कर रहा था।
थोड़ा सोचने के बाद उसे लगा कि—रूबी की कहानी ज्यादा सशक्त है और आत्मविश्वास से भरी है—इसने जो कुछ कहा है, उसमें ऐसे 'छिद्र ' हैं , जिनके जरिए सुनाई गई कहानी की पुष्टि की जा सकती है।
रूबी के बताए अनुसार वह महरौली स्थित उसके घर जा सकता है—वह बस्ती भी जा सकता है , जहां रूबी के कथनानुसार उसके माता-पिता और छोटे भाई-बहन रहते हैं—यहां , यानि भगवतपुरे में उसे बहुत-से लोग जॉनी के नाम से जानते हैं—उसके दोस्त भी हैं।
पुष्टि बड़ी सरलता से हो सकती है।
सबसे विशेष बात यह थी कि नेकलेस , पर्स और फोटो आदि का सम्बन्ध स्वयं ही रूबी की कहानी से जुड़ गया था , जबकि रूबी को यह मालूम भी नहीं था कि यह सब सामान उसकी जेब से निकला है।
न्यादर अली की कहानी में ऐसे छिद्र या तो थे ही नहीं या बहुत कम थे , जिनके जरिए वह अपने सिकन्दर होने की पुष्टि कर सके—इन्वेस्टिगेशन करके अब उसे पहले इस नतीजे पर पहुंचना था कि जॉनी और सिकन्दर में से वह क्या है ?
वह इन्हीं ख्यालों में भटकता रहा और रूबी उसके लिए चावल बना लाई—स्टील की प्लेट में चावल लिए जब उसने कमरे में प्रवेश किया तो पीले रंग के गर्म चावलों में से भांप उठ रही थी , किन्तु भूख के बावजूद वह तश्तरी की अपेक्षा रूबी की तरफ ज्यादा आकर्षित हुआ।
इस वक्त रूबी बेहद खूबसूरत लग रही थी।
चावल बनाने के बीच ही या तो वह नहाई थी या मुंह-हाथ धोए थे—मुखड़े पर पूरा मेकअप था। उसके मस्तक पर लगी सिन्दूरी बिन्दिया को देखता ही रह गया वह—बाल संवरे हुए थे—सिन्दूर से लबालब भरी मांग—साड़ी के स्थान पर नाइट गाउन पहना था उसने।
अपने होंठों के समान ही गुलाबी रंग का झीना गाउन—ऐसा कि युवक को उसकी ब्रेजरी और अण्डरवियर साफ नजर आए—युवक ने पहली बार ही महसूस किया कि रूबी का जिस्म सख्त और गठा हुआ है—टांगें लम्बी और गोल थीं , पुष्ट वक्ष कसी हुई ब्रेजरी से मानो निकल पड़ने के लिए बेताब हों।
युवक देखता ही रह गया उसे।
जाने कहां से यह विचार उसके दिमाग में जा टकराया कि अगर रूबी सचमुच मेरी पत्नी है तो यह मुझे पसन्द है—वह वाकई खूबसूरत थी—एकटक युवक उसे देखता ही रह गया , वह स्वयं भी तो उसे प्यार से , आंखों में चमक लिए उसे निहार रही थी।
युवक की सांसें तेज हो गईं—दिल के धड़कने की गति बढ़ गईं—मस्तक पर पसीना उभर आया और अपना हलक सूखता-सा महसूस किया उसने—बिल्कुल नजदीक आकर रूबी ने उसे कातर दृष्टि से देखते हुए पूछा—"इस तरह क्या देख रहे हैं ?"
"क...कुछ नहीं।" युवक हड़बड़ा गया।
"कुछ तो ?" कहती हुई रूबी ने झुककर चावलों की प्लेट बेड पर रखी तो युवक की नज़रें ब्रेजरी से झांकते उसके पुष्ट वक्ष पर स्वयं ही पड़ गईं।
"त...तुम बहुत सुन्दर लग रही हो।" कहीं सोया-सा युवक कह उठा।
धीमें से बैठती हुई रूबी ने कहा— “जब भी मैं यह लिबास पहनती हूं, आप तभी यह कहते हैं—स्वयं आपको इस लिबास के बारे में भी कुछ याद नहीं है ?"
“न.....नहीं तो ?"
"इसे आप मेरे लिए विशेष रूप से लाए थे , सुहागरात के लिए।"
हक्का-बक्का-सा वह केवल रूबी के दमकते मुखड़े को देखता रहा। एकाएक ही उसे अपने होंठ तक सूखते महसूस हुए , बोला— “क्या मुझे एक गिलास पानी मिलेगा ?"
"क्यों नहीं , मैं अभी लाई।" कहकर वह उठी , घूमी और फिर तेजी के साथ दरवाजे की तरफ बढ़ गई—युवक की दृष्टि उसके नितम्बों पर चिपककर रह गई। तेजी से चलने के कारण उनमें कुछ ऐसा लोच उत्पन्न हुआ था कि युवक के मन में गुदगुदी-सी हुई।
एक ही पल में वह नजर आनी बन्द हो गई।
एकाएक उसके दिमाग में विचार उठा कि क्या रूबी इस उत्तेजक लिबास को पहनकर मुझे किसी जाल में फंसा रही है या एक पत्नी दो महीने से गुम अपने पति का स्वागत कर रही है ? वह ठीक से निर्णय नहीं कर सका कि सच्चाई क्या है?
एक जग में पानी और दूसरे हाथ में खाली गिलास लिए वह आ गई—गिलास में पानी भरकर उसने युवक को दिया , युवक एक ही सांस में गिलास खाली कर गया —पानी पीने के बाद उसने गिलास के ऊपरी सिरे पर लिखा 'जॉनी ' देखा।
हलक अब भी सूखा-सा महसूस हो रहा था।
"एक गिलास और...।" युवक ने कहा।
"पानी से ही पेट भर लेंगे तो चावल क्या खाएंगे ?" कहती हुई रूबी ने उसके हाथ से गिलास लिया और उसे जग के समीप रखती हुई बोली— “ चावल खाइए।"
युवक ने चुपचाप प्लेट में रखी एक चम्मच उठा ली।
रूबी ने दूसरी चम्मच संभाल ली थी और अब वे चावल खाने लगे—युवक अपने मन-मस्तिष्क को नियंत्रण में रखने की भरपूर चेष्टा कर रहा था , परन्तु फिर भी रह-रहकर उसका ध्यान गाउन के अन्दर चमक रहे उसके गदराए जिस्म की तरफ चला ही जाता था।
उसे डर था कि दिलो-दिमाग में कहीं वे ही विचार न उठने लगें , जो नर्स को देखकर उठे थे—वे चावल खा चुके तो रूबी सारे बर्तन किचन में रख आई। उसके नजदीक बेड पर बैठती वह बोली—“अभी तक आपका वह नया दोस्त नहीं आया , क्या नाम बताया था आपने ?"
"रूपेश—वह शायद शाम तक ही आएगा।"
"आप नहा लीजिए , मैं आपके लिए कपड़े निकाल देती हूं।" कहने के साथ ही रूबी उठी और सेफ की तरफ बढ़ गई—युवक की दृष्टि उसके जिस्म ही पर थिरक रही थी।
वह सेफ के कपड़ों को खंगालने में व्यस्त थी।
युवक की दृष्टि उसकी गर्दन पर चिपक गई।
बड़े ही विस्फोटक ढंग से उसके दिमाग में विचार टकराया— "यदि रूबी के तन से गाउन , ब्रेजरी और अण्डरवियर उतार दिये जाएं तो वह कैसी लगेगी ?"
खूबसूरत।
एक नग्न युवती उसके सामने आ खड़ी हुई।
युवक रोमांचित हो उठा।
उसकी मुट्ठियां कस गईं—दिल चाहा कि अपनी सभी उंगलियां फैलाकर हाथ बढ़ाए और रूबी की गर्दन दबोच ले— “ अगर ऐसा कर दूं तो क्या होगा ?”
रूबी मर जाएगी।
पहले इसका चेहरा लाल-सुर्ख होगा , बन्धनों से निकलने के लिए छटपटाएगी , मगर मैँ इसे छोडूंगा नहीं—इसके मुंह से गूं-गूं की आवाज निकलने लगेगी—इसकी आंखें और जीभ बाहर निकल आएंगी—कुतिया की तरह जीभ बाहर लटका देगी वह।
तब , मैं इसकी गर्दन और जोर से दबा दूंगा।
मुश्किल से दो ही मिनट में यह फर्श पर गिर जाएगी—चेहरा बिल्कुल निस्तेज होगा —सफेद कागज-सा....उस अवस्था में कितनी खूबसूरत लगेगी वह—हां , इसे मार ही डालना चाहिए—उस अवस्था में यह कुछ ज्यादा ही खूबसूरत लगेगी।
उन भयानक विचारों से पूरी तरह अनभिज्ञ रूबी सेफ में से उसके पहनने के लिए कपड़ों का 'सलेक्शन ' कर रही थी—वह क्या जानती थी कि एक दरिन्दा उसे अपनी खूनी आंखों से घूर रहा है—मौत उस पर झपटने ही वाली है।
युवक के दिमाग में रह-रहकर कोई चीख रहा था— “ इसे मार डालो—मारने के बाद फर्श पर पड़ी वह बेहद खूबसूरत लगेगी—इसकी गर्दन दबा दो , जल्दी।
आंखों में बेहद हिंसक भाव उभर आए। चेहरा खून पीने के लिए किसी आदमखोर पशु के समान क्रूर और वीभत्स हो गया—आंखों में—अजीब-सा जुनून सवार हो गया उस पर। सारा जिस्म कांप रहा था....मुंह खून के प्यासे भेड़िए की तरह खुल गया—लार टपकने लगी-उंगलियां किसी लाश की उंगलियों के समान फैलकर अकड़ गईं।
बहुत ही डरावना नजर आने लगा वह।
अचानक ही वह उठा , किसी दरिन्दे की तरह फर्श पर खड़ा-खड़ा वह खूनी आंखों से रूबी को घूरने लगा। मुंह से लार टपककर उसके कपड़ों पर गिर रही थी—पंजे खोलकर उसने अपनी दोनों बांहें फैला रखी थीं।
बिल्कुल अनभिज्ञ , सेफ ही में मुंह गड़ाए मासूम रूबी ने पूछा—"आज आप ब्राउन सूट पहन लीजिए।"
एकाएक ही युवक के मुंह से किसी भेड़िये की-सी गुर्राहट निकली— “ कपड़े उतारो।"
रूबी एकदम चौंककर उसकी तरफ घूमी।
युवक की अवस्था देखकर बरबस ही उसके कण्ठ से चीख उबल पड़ी—डरकर पीछे हटी , चेहरा सफेद पड़ चुका था , बोली— “ क्....क्या हुआ—क्या हो गया है आपको ?"
"हूं-हूं-हूं-।" की डरावनी आवाज अपने मुंह से निकालता हुआ वह बांहें फैलाए रूबी की तरफ बढ़ा। लार टपके जा रही थी , वह चीखा— "मैं कहता हूं कपड़े उतारो। "
“ज.....जॉनी....जॉनी।" दहशतनाक अन्दाज में रूबी चीख पड़ी— "क...क्या हो गया है तुम्हें ? प...प्लीज़ , मुझे इस तरह मत ड़राओ।"
“हरामजादी—सुनती नहीं मैंने क्या कहा , कपड़े उतार!"
और अब , हलक फाड़कर रूबी चिल्ला उठी— “ बचाओ.....ब.....बचाओ।"
मगर इस बन्द स्थान के अन्दर से उसकी चीखें शायद बाहर नहीं जा सकीं—युवक झपटा—रूबी चीख पड़ी...और वह खूबसूरत झीना गाउन फटता चला गया —रूबी चीखती रही—किसी पागल कुत्ते की तरह वह बार-बार गाउन पर झपटता रहा।
गाउन के टुकड़े फर्श पर बिखर गए।
ब्रेजरी और अण्डरवियर में ही चीखती हुई रूबी दरवाजे की तरफ भागी।
दरिन्दे ने झपटकर पीछे से उसे दबोच लिया। लगातार चीखती हुई रूबी उसकी गिरफ्त से निकलने के लिए छटपटाई—युवक ने अपना खुला मुंह उसकी पीठ की तरफ बढ़ाया और इस वक्त बहुत पैने-से नजर आने वाले दांत उसकी ब्रेजरी के हुक में फंसाए।
भेड़िए की तरह उसने एक झटका दिया।
ब्रेजरी फर्श पर गिर गई।
बंधनों में जकड़ी रूबी को घुमाकर उसने बेड की तरफ फेंका , चीखती हुई रूबी बेड पर जा गिरी—युवक घूमकर उसी खूनी अन्दाज में पंजे फैलाए बेड की तरफ बढ़ा।
उससे बुरी तरह आतंकित रूबी हाथ जोड़कर रोती हुई गिड़गिड़ा उठी— “ म.....मुझे माफ कर दो—म-मुझे मत मारो—म...मैं..।"
युवक पुन: उस पर झपट पड़ा।
इस बार कपड़े का वह आखिरी रेशा भी जिस्म से अलग हो गया। निर्वस्त्र रूबी बेड से कूदकर दरवाजे की तरफ भागी—हड़बड़ाहट के कारण गिरी , फिर उठी , मगर इस बार उठते ही युवक के हाथ उसने अपनी गर्दन पर महसूस किए।
हलक से अभी तक की सबसे जोरदार चीख निकली।
मगर दांत भींचे युवक उसकी गर्दन दबाता ही चला गया—उसकी गिरफ्त से मुक्त होने की रूबी की हर कोशिश नाकाम रही। श्वांस क्रिया रुकने लगी—युवक का वीभत्स और डरावना चेहरा उसकी आंखों के बहुत नजदीक था। मुंह से टपकती हुई लार रूबी के मुंह में गिर रही थी—रूबी की जीभ बाहर निकलने लगी—चेहरा लाल-सुर्ख पड़ गया।
बोलने के प्रयास में गूं-गूं कर रही थी वह।
आंखें पलकों के किनारे से बाहर उबलने लगीं।
Top
Reply
05-18-2020, 02:27 PM,
#19
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
हाथ-पैर ढीले और सुन्न पड़ गए—प्रतिरोध करने की उसकी क्षमता कम होती चली गई …उसे इस अवस्था में देखकर युवक किसी राक्षस के समान ठहाका लगाकर हंस पड़ा।
हाथों का दबाव गर्दन पर बढ़ता ही चला गया।
रूबी के कण्ठ से एक हिचकी-सी निकली और गर्दन एक तरफ लुढ़क गई , सारा जिस्म ढीला पड़ गया। बर्फ के समान सर्द—जीभ बाहर लटकी हुई थी—उबली आंखों से वह अभी तक युवक को देखती-सी महसूस हो रही थी—उसके सफेद चेहरे पर हर तरफ आतंक
था …दहशत।
अपने हाथों में दबी उस लाश को देखकर युवक काफी देर तक पागलों की तरह ठहाके लगाता रहा , फिर रूबी की गर्दन से अपने हाथ हटा लिए उसने।
लाश 'धड़ाम् ' से फर्श पर गिरी।
¶¶
किसी स्टेचू के समान युवक भी फटी आंखों से फर्श पर चित्त अवस्था में पड़ी रूबी की निर्वस्त्र लाश को देख रहा था—वह लाश अब उसे बड़ी ही भयानक लग रही थी।
फटी आंखों से छत को घूरती लाश—सफेद कागज-सा निस्तेज चेहरा।
सिकुड़े चमड़े की तरह लटकी हुई जीभ।
फर्श पर चिपककर रह गया था युवक—क्रूरता और दरिन्दगी से भरे भाव धीरे-धीरे उसके चेहरे से गायब होने लगे—जिस्म में छाया अजीब-सा तनाव जाने कहां चला गया।
आंखों में खौफ उभरने लगा। टांगें कांपने लगीं।
चेहरा सफेद पड़ता चला गया। रूबी के मुर्दा शरीर की तरह ही सफेद।
आतंकित-सा वह बड़बड़ाया— "म...मैंने इसे मार डाला है—ये क्या किया मैंने—मैँ हत्यारा हूं—मैंने खून किया है—म.....मगर इसे क्यों मार डाला मैंने ?"
जवाब देने वाला वहां कोई नहीं था। फिर भी जवाब उसे मालूम था— “रूबी को मैंने उसी दौरे के दौरान मार डाला है , जिसे डॉक्टर ब्रिगेंजा ने जुनून कहा था …मेरे दिमाग में यही विचार उभरे थे।"
"म.......मगर।" युवक बड़बड़ाया— “ये भयानक विचार मेरे दिमाग में उभरे ही क्यों थे—क्या हो गया था मुझे—मैंने क्यों मार डाला इस मासूम को—हे भगवान—ये मुझसे क्या करा दिया?" बड़बड़ाता हुआ वह वहीं फर्श पर बैठ गया।
अपने दोनों हाथों से चेहरा ढांप लिया उसने , बुरी तरह से डरे हुए मासूम बच्चे की तरह फूट-फूटकर रो पड़ा। चीखकर वह स्वयं ही से कहने लगा— "म.....मैँ हत्यारा हूं—मैंने कत्ल किया है—एक बेगुनाह और मासूम नारी का खून किया है मैंने ………आह।"
युवक रोता रहा।
अचानक ही उसे ख्याल आया कि क्या रूबी मेरी पत्नी थी—क्या वाकई मैं जॉनी हूं—क्या मैंने अपनी ही पत्नी को मार डाला है ?
रोना भूल गया वह।
चौंककर रूबी की उस लाश को देखने लगा , जो समय के साथ-साथ अब अकड़ती जा रही थी। इस लाश से अब उसे डर लगने लगा—पहली बार उसने महसूस किया कि सारे घर में सन्नाटा छाया हुआ है—उसके कानों के इर्दगिर्द सांय-सांय की आवाज गूंजने लगी।
घबराकर उसने चारों तरफ देखा।
सभी कुछ उसे डरावना-सा लगा।
कमरे के सारे फर्श पर बिखरे रूबी के कपड़ों के टुकड़े उसे मजबूत रस्सी के फन्दे -से नजर आए।
घबराकर वह खड़ा हो गया। उसके दिमाग में यह विचार चकराने लगा था कि हत्या की सजा फांसी है। मैंने हत्या की है और अब फांसी से मुझे कोई नहीं बचा सकेगा—चारों तरफ छाया सन्नाटा उसे कुछ और ज्यादा गहराता-सा महसूस हुआ।
तभी किचन की तरफ से उसे बरतनों के खड़कने की आवाज सुनाई दी।
उसका दिल ‘धक्क ' से उछलकर कण्ठ में जा फंसा। क्षणमात्र में जिस्म के सारे रोएं खड़े हो गए और मसामों ने ठण्डा पसीना उगल दिया—चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी थीं।
उसके मन में एकमात्र विचार उभरा था—'क्या किचन में कोई है ?'
सांस रोके वह पुन: उभरने वाली किसी आहट को सुनने की कोशिश करने लगा और उस वक्त तो उसके होश ही उड़ गए जब कमरे के बाहर से किसी के दबे पांव चलने की आवाज उभरी। सन्नाटे में इस आवाज को वह स्पष्ट सुन सकता था।
"क.....कौन है?" डरी हुई आवाज में वह चीख पड़ा।
किसी के चलने की आवाज गुम हो गई।
युवक दहशत के कारण रो पड़ने के लिए बिल्कुल तैयार था—फिर किचन की तरफ से ऐसी आवाज उभरी जैसे कोई 'चप्प-चप्प ' कर रहा हो।
युवक एकदम भागा , आंगन में पहुंचा।
किचन के दरवाजे पर ही रखी प्लेट को एक बिल्ली चाट रही थी—आहट सुनकर बिल्ली ने उसकी तरफ देखा—युवक का दिल बुरी तरह धक्-धक् कर रहा था—सफेद बिल्ली की कंजी आंखों में झांकते ही युवक के हाथ-पैर कांप उठे।
किसी स्टेचू के समान खड़ा रह गया था वह।
"म्याऊं...म्याऊं...।" बिल्ली की आवाज मकान में छाए मौत के-से सन्नाटे को चीरती चली गई। पसलियों पर होने वाली दिल की चोट वह स्पष्ट महसूस कर रहा था …उस पर से नजरें हटाकर बिल्ली पुन: प्लेट में लगे चावल चाटने लगी—'चप्प...चप्प...।'
बिल्ली की जीभ और उसके नुकीले दांत देखकर युवक के जिस्म में झुरझुरी-सी दौड़ गई—उसने पैर पटका , बिल्ली ने उसकी तरफ देखा जरूर , मगर भागी नहीं—जाने युवक को उसे वहां से भगाना इतना जरूरी क्यों लगा कि वह बिल्ली की तरफ दौड़ पड़ा।
बिल्ली भागी।
उसका पैर शायद प्लेट में लग गया था , इसीलिए प्लेट उलट गई—प्लेट के खनखनाने की आवाज सारे मकान में गूंज गई......आंगन में एक चक्कर लगाने के बाद बिल्ली झट से उस कमरे में घुस गई , जिसमें रूबी की लाश थी—मूर्ख की तरह उसके पीछे आता हुआ युवक जब कमरे में पहुंचा तो वहीं ठिठककर खड़ा रह गया।
हार्ट अटैक होते-होते बचा था उसे।
रूबी के वक्षों पर खड़ी बिल्ली अपनी कंजी आंखों से उसे घूर रही थी—युवक सहम गया। बिल्ली ने दो बार "म्याऊं...म्याऊं ' की.....उसके नुकीले दांत युवक को अपनी आंखों में गड़ाते महसूस हुए—एकाएक ही दिमाग में एक ख्याल उठा कि बिल्ली झपटने वाली है , अपने पंजों से वह उसकी आंखें निकाल ले जाएगी।
अचानक ही छत की तरफ मुंह उठाकर बिल्ली रो पड़ी।
युवक को काटो तो खून नहीं।
बिल्ली यूं रो रही थी जैसे उसे मालूम हो कि वह एक लाश पर खड़ी है....मकान में गूंजने वाली बिल्ली के रोने की आवाज़ ने युवक के रहे-सहे हौंसले भी पस्त कर दिए।
बड़ी ही डरावनी और भयानक आवाज थी वह।
फिर , बिल्ली रूबी की नाक से अपनी नाक सटाकर जाने क्या सूंघने लगी—आतंक के कारण युवक का बुरा हाल था , बौखलाकर वह बिल्ली की तरफ दौड़ा—रोती हुई बिल्ली उछलकर पलंग के नीचे घुस गई—युवक भी पलंग के नीचे—कमरे के कई चक्कर लगाने के बाद बिल्ली उसे आंगन में ले आई। युवक की सांस बुरी तरह फूल रही थी।
तभी किचन से निकलकर आंगन में एक चूहा भागा।
बिल्ली झट से चूहे पर झपट पड़ी।
चूहे की चीं-चीं के साथ मकान में युवक की चीख भी गूंज उठी—जाने क्यों चूहे पर झपटती बिल्ली को देखकर वह चीख पड़ा था , मुंह में चूहा दबाए बिल्ली ने उसे घूरा।
दहशत के कारण वहां ढेर होते-होते बचा युवक।
बिल्ली दौड़कर बाथरूम में घुस गई—जाने किस भावना से प्रेरित युवक भी उधर लपका और फिर उसने बिल्ली को बाथरूम की नाली के जरिए मकान से बाहर निकलते देखा।
हक्का-बक्का-सा युवक वहीं खड़ा हांफता रहा।
अपने दिमाग पर छाए आतंक और भय के भूत से मुक्त होने की असफल कोशिश करता रहा—जब थोड़ा संभला तो बाथरूम का दरवाजा कसकर बन्द कर दिया उसने।
यह सोचता हुआ वह आंगन पार करने लगा कि भला बिल्ली से वह क्यों डर रहा था ?
कमरे के दरवाजे पर पहुंचते ही उसकी नजर पुन: रूबी की लाश पर पड़ी और अपनी गर्दन के आसपास झूलता फांसी का मजबूत फन्दा उसे तत्काल नजर आने लगा।
Reply
05-18-2020, 02:28 PM,
#20
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
उसे महसूस हो रहा था कि रूबी की हत्या करके उसने शायद अपनी जिन्दगी का सबसे ज्यादा मूर्खतापूर्ण काम किया है—यह उसकी पत्नी हो या न हो , मगर इसकी हत्या के जुर्म से बचना एकदम नामुमकिन है , कानून उसे फांसी पर लटका देगा।
तो क्या अब वह खुद को कानून के हवाले कर दे ?
सजा का ख्याल आते ही उसके समूचे जिस्म में झुरझुरी-सी दौड़ गई—उसके दिमाग ने कहा कि—“नहीं , तुझे रूबी का खून करने से भी बड़ी यह मूर्खता नहीं करनी चाहिए।
फिर क्या करूं मैं ?
इस हत्या के जुर्म से बचने की कोशिश!
कैसे ?
दिल के अन्दर छुपे किसी शैतान ने कहा—हत्या करते तुझे देखा ही किसने है , सिर्फ एक बिल्ली ने और वह किसी को कुछ नहीं बता सकती—इस राज को भी केवल दो ही व्यक्ति जानते हैं कि तू यहां आया है—रूपेश और राजाराम।
'ग.....गजेन्द्र भी तो जानता है ? वह बड़बड़ाया।'
'चलो मान लिया। उसी शैतान ने कहा …म...मगर वे तेरा कर क्या सकेंगे—तू खुद अपने आपको नहीं जानता , फिर वे तेरे बारे में पुलिस को क्या बता सकेंगे-वे केवल तुझे जॉनी के नाम से जानते हैं , तू यहां से भाग जा।'
'क.......कहां?'
'कहीं भी , दुनिया बहुत बड़ी है—तू किसी दूसरे नाम से रह सकता है।'
'म....मगर—रूपेश तो आने ही वाला होगा ?'
'इसीलिए तो कहता हूं कि जल्दी से भाग जा यहां से , अगर वह आ गया तो फिर बच निकलने का यह आखिरी मौका भी तेरे हाथ से जाता रहेगा।'
'पुलिस मेरा फोटो अखवार में छपवा देगी।'
'अभी समय है , यहां मौजूद अपने सभी फोटुओं को जलाकर राख कर दे बेवकूफ।'
ऐसे संवेदनशील समय में इंसान के दिमाग में जब भी द्वन्द होता है , तब उसके अन्दर छुपे शैतान की ही जीत होती है—ऐसे हर क्षण में इंसान की आत्मा मर जाया करती है और वैसा ही इस युवक के साथ भी हुआ—वह अपने अतीत की तलाश में निकला था और शायद अतीत की ही किसी गुत्थी के कारण रूबी की हत्या कर बैठा।
अब उसके लिए अपने अतीत को तलाश करना उतना महत्वपूर्ण नहीं था , जितना इस हत्या के जुर्म में गिरफ्तार होने से खुद को बचाना—अतीत की तलाश में भटकते जो गुत्थियां उसके सामने पेश आई थीं , वे गुत्थियां ही रह गईं और दिलो-दिमाग से पूरी तरह चौकन्ना होकर अब वह खुद को बचाने की कोशिश में जुट गया।
उसने निश्चय कर लिया था कि इस मकान में वह अपना एक भी फोटो नहीं छोड़ेगा , इसीलिए सारे मकान की तलाशी ले डाली—अपने और रूबी के ढेर सारे फोटुओं से भरी एक एलबम मिली उसे—इस एलबम के चन्द फोटुओं को देखकर उसे विश्वास-सा होने लगा कि मैं सचमुच जॉनी ही हूं और रूबी मेरी पत्नी थी।
मगर इस विषय में अब विस्तारपूर्वक सोचने के लिए उसके पास समय नहीं था। एलबम को फर्श पर डालकर उसने आग लगा दी और उस क्षण उसके दिमाग में एक बहुत ही भयानक ख्याल उभरा।
यह कि क्यों न वह रूबी की लाश को भी जलाकर राख कर दे ?
अब उसे अपने इन भयानक ख्यालों से डर नहीं लग रहा था। दौड़कर किचन में पहुंचा—थोड़ी-सी कोशिश के बाद ही उसे तेल से भरी एक कनस्तरी मिल गई।
कनस्तरी को उठाकर वह कमरे में ले आया।
फर्श पर बिखरे रूबी के सारे कपड़े समेटकर उसने लाश के ऊपर डाले। कनस्तरी खोलकर मिट्टी का तेल लाश के ऊपर—सारे कमरे में मिट्टी के तेल की दुर्गन्ध फैल गई।
उसने माचिस के मसाले पर रगड़कर तीली जलाई।
अभी उसे लाश की तरफ उछालने ही वाला था कि स्वयं ही उछल पड़ा—सारे मकान में कॉलबेल के बजने की आवाज़ बड़े जोर से गूंजी थी।
युवक थरथरा उठा। तीली बुझ गई।
बिजली की-सी तेजी से उसके दिमाग में यह विचार कौंधा था कि कौन हो सकता है ?
फिर उतनी ही तेजी से यह कि—रूपेश—शायद वह रूपेश ही होगा।
उफ्! यह कम्बख्त दस-पन्द्रह मिनट बाद नहीं आ सकता था। युवक बुरी तरह हड़बड़ा गया। एकदम से वह कुछ फैसला नहीं कर सका—अभी हक्का-बक्का-सा वह यथास्थान खड़ा ही था कि कॉलबेल पुन: घनघना उठी।
युवक की सिट्टी-पिट्टी गुम।
बौखलाकर उसने अपने चारों तरफ देखा और फिर दौड़ता हुआ किचन में आया—कुछ सोचकर ठिठका , दबे पांव गैलरी पार की। दरवाजे के समीप पहुंचकर धीमे से बोला—“कौन है ?"
"मैं रूपेश हूं, दरवाजा खोलो।"
युवक की खोपड़ी रूपेश की आवाज को सुनने के बाद हवा में नाच उठी।
उसके दिमाग में बिजली के समान कौंध-कौंधकर ये सवाल उठ रहे थे कि एकमात्र रूपेश ही वह व्यक्ति है , जो यह जानता है कि मैं ही सिकन्दर भी हूं—वह पुलिस को बता सकता है कि मैं यहां कहां से , कैसे और क्यों आया था ?
उसके बयान के आधार पर पुलिस न्यादर अली के यहां से मेरा फोटो हासिल कर लेगी और फिर मेरा वह फोटो एक हत्यारा कहकर अखबारों में छाप दिया जाएगा।
दुनिया के किसी भी कोने में , किसी भी नाम से मेरा सुरक्षित रहना दूभर हो जाएगा।
यदि रूपेश न हो , तब मैं बिल्कुल सुरक्षित हूं।
बाहर से पुन: रूपेश की आवाज उभरी— "क्या बात है जॉनी , दरवाजा खोलो।"
"ए....एक मिनट ठहरो , अभी खोलता हूं।" युवक ने जल्दी से कहा और फिर दबे पांव तेजी से गैलरी पार करके आंगन में पहुंच गया।
अचानक ही उसे लगने लगा था कि एकमात्र रूपेश ही है , जो मेरा सम्पूर्ण रहस्य जानता है। जब तक यह रहेगा , कानून नाम की धारदार तलवार मेरी गर्दन पर लटकती रहेगी और यही न रहे तो फिर मैं सुरक्षित हूं।
दुनिया का कोई भी कानून मुझ तक नहीं पहुंच सकेगा।
“ उसे मार दो—अगर खुद इस दुनिया में रहना चाहते हो तो उसे मारना तुम्हारे लिए बहुत जरूरी है। ” शैतान उसके कान में फुसफुसाया।
"म...मतलब एक कत्ल और ?" बड़बड़ाकर युवक ने चारों तरफ देखा , रसोई के एक कोने में पड़ी पत्थर के कोयलों को तोड़ने के काम में आने वाली लोहे की एक भारी हथौड़ी पर उसकी नजर स्थिर हो गई।
शैतान फुसफुसाया— “यह कत्ल करे बिना तुम पहले कत्ल की सजा से बच नहीं सकोगे , बचने के लिए यह एक और हत्या तुम्हें करनी ही होगी।"
झपटकर वह रसोई में पहुंचा। हथौड़ी उठा ली उसने।
इस वक्त युवक बहुत ही खूंखार नजर आ रहा था। हथौड़ी संभाले आंगन पार करके वह गैलरी में पहुंचा। दरवाजे से थोड़ा इधर ही गैलरी की दीवार में एक आला था—युवक ने हथौड़ी उसी में रख दी।
दरवाजे पर दस्तक हुई , साथ ही रूपेश की आवाज—“इतनी देर से तुम क्या कर रहे हो जॉनी , दरवाजा खोलो।"
"खोलता हूं।" युवक के मुंह से अजीब-सी आवाज निकली और आगे बढ़कर उसने सांकल खोल दी—दरवाजा खोलते ही उसका दिल जोर से धड़का।
"धक्क्!”
बस , अन्तिम बार धड़ककर दिल मानो शान्त हो गया।
हक्का-बक्का—किसी मूर्ति के समान खड़ा रह गया था वह , और उसकी ऐसी हालत रूपेश के साथ गजेन्द्र को देखकर हुई थी।
रूपेश के साथ गजेन्द्र भी दरवाजे पर खड़ा था।
युवक का चेहरा एकदम फक्क पड़ गया—हवाइयां उड़ने लगीं—जुबान तालू में चिपक गई। लाख चाहकर भी मुंह से वह कोई आवाज नहीं निकाल सका।
"हैलो जॉनी।" गजेन्द्र ने कहा।
"ह......हैलो।" अपनी ही आवाज उसे कहीं बहुत दूर से आती महसूस हो रही थी। होश फाख्ता थे उसके—रूपेश उसे देखकर मुस्करा रहा था।
युवक के होठों पर अजीब मूर्खता-भरी मुस्कान थिरक गई।
"क्या बात है ?" रूपेश ने पूछा— “दरवाजा खोलने में इतनी देर कैसे लग गई?"
कुछ अटपटा-सा जवाब देने के लिए युवक ने अभी मुंह खोला ही था कि उसकी बगल में खड़े गजेन्द्र ने कहा— "भाभी से दो महीने बाद मिला है , व्यस्त होगा …क्यों जॉनी ?”
रूपेश धीमे से हंस दिया।
बौखलाकर युवक ने भी खीसें निपोर दीं , जबकि रूपेश के साथ खड़े गजेन्द्र ने बताया , "तुम्हारे यह दोस्त सारे भगवतपुरे में तुम्हारा मकान तलाशते फिर रहे थे जॉनी , मुझे टकरा गए और मैं इन्हें यहां ले आया।"
"थ...थैंक्यू। ” यह शब्द उसके मुंह से बड़ी कठिनाई से निकल सका।
“ओ oके o जॉनी, चलता हूं। ” कहने के साथ ही उसने हाथ आगे बढ़ा दिया। युवक ने जल्दी से हाथ मिलाया। जाते हुए गजेन्द्र ने कहा— "तो शाम को जम रहे हो न ?"
"हां...हां—क्यों नहीं!"
"अपने इस दोस्त को भी लाना।" कहता हुआ गजेन्द्र एक तरफ को चला गया—हक्का-बक्का-सा खड़ा युवक अभी उसे जाता देख ही रहा था कि रूपेश ने कहा— "क्या बात है दोस्त , तुम कुछ 'एबनॉर्मल ' से लग रहे हो ?"
"न...नहीं तो …ऐसी कोई बात नहीं है , मगर तुम उसे यहां क्यों ले आए?"
“राजाराम ने मुझे यहीं का पता दिया था , भगवतपुरे में पहुंचने के बाद इस मकान के नम्बर के बारे में पूछने लगा तो वह मेरे साथ हो लिया।"
“खैर—आओ।" कहता हुआ युवक दरवाजे के बीच से हटा तो रूपेश गैलरी में आ गया। युवक ने जल्दी से दरवाजा बन्द करके सांकल चढ़ाई , रूपेश ने पूछा— "कहो , यहां आने के बाद किस नतीजे पर पहुंचे ?"
"वह सब मैं तुम्हें बाद में बताऊंगा रूपेश , पहले तुम बताओ कि वहां क्या हुआ—मेरे गायब होने की सेठ न्यादर अली पर क्या प्रतिक्रिया हुई थी ?"
"वह बुरी तरह परेशान हो गया था , चीखने-चिल्लाने लगा—नौकरों पर और सबसे ज्यादा मुझ पर बरस पड़ा—कहने लगा कि मैंने तुम्हें रखा किसलिए था—अपना बेटा गुम होने की रपट भी लिखवा दी है उसने।"
"तुमने राजाराम को तो सिकन्दर वाली कहानी नहीं बताई है ?"
"मेरा दिमाग खराब था क्या ?"
"गुड़ , अन्दर चलो …मैं तुम्हें रूबी से मिलाता हूँ।"
रूपेश आगे बढ़ गया। युवक उसके पीछे था—इस वक्त उसका दिल बहुत जोर-जोर से धड़क रहा था , किन्तु निश्चय कर चुका था कि रूपेश के आला पार करते ही वह आले के समीप पहुंचेगा , हथौड़ी उठाएगा और उसके सिर पर दे मारेगा।
उस वक्त युवक ने अपनी नसों में दौड़ता खून एकदम रुक गया-सा महसूस किया , जब आले के समीप पहुंचकर रूपेश खुद ही रुक गया—वह लम्बी-लम्बी सांसें लेता हुआ बोला— “क्या बात है , यहां मिट्टी के तेल की बदबू क्यों फैली हुई है ?"
सुन्न पड़ गया युवक का दिमाग।
हड़बड़ाकर बोला—“क.....कोई विशेष बात नहीं है , स्टोव में डालते वक्त रूबी से ही थोड़ा तेल बिखर गया था।"
एकाएक ही चौंकते हुए रूपेश ने पूछा— "क्या बात है—तुम इतने घबराए हुए क्यों हो ?"
"भ.....भगवान के लिए चुप रहो—अगर रूबी ने कुछ सुन लिया तो सब गड़बड़ हो जाएगा—प्लीज , चुपचाप अन्दर चलो रूपेश।"
वह आगे बढ़ गया।
आले के समीप पहुंचते ही युवक ने हथौड़ी उठा ली।
रूपेश कह रहा था—“राजाराम की बात सुनने के बाद तो मैं कुछ ज्यादा ही , आह...।"
सिर पर भारी हथौड़ी की ऐसी जोरदार चोट पड़ी कि हलक से एक चीख निकल पड़ी। आंखों के सामने रंग-बिरंगे तारे नाचे और फिर उसकी आंखों के सामने घना काला अंधेरा छाता चला गया।
युवक हथौड़ी वाला हाथ ऊपर उठाए दूसरा वार करने के लिए तैयार खड़ा था , जबकि दोनों हाथों से अपना सिर पकड़े रूपेश किसी शराबी के समान लड़खड़ाने के बाद कटे वृक्ष-सा युवक के पैरों के नजदीक गिर गया।
दांत पर दांत जमाए युवक अपने स्थान पर खड़ा कांपता रहा।
फिर उसने हथौड़ी एक तरफ फेंकी , जल्दी से नीचे बैठकर रूपेश की नब्ज देखी, नब्ज चल रही थी , मतलब यह कि वह केवल बेहोश हुआ था।
युवक ने जल्दी से उसकी दोनों टांगें पकड़ीं और फिर पूरी बेरहमी के साथ उसके जिस्म को घसीटता हुआ आंगन में से गुजरकर उसी कमरे में ले आया , जिसमें रूबी की लाश पड़ी थी।
युवक ने रूपेश के बेहोश जिस्म को उठाकर रूबी की लाश के ऊपर डाला और जेब से माचिस निकाल ली।
तीली को मसाले पर रगड़ते वक्त उसके चेहरे पर बहुत सख्त भाव थे। चेहरा किसी खुरदरे पत्थर-सा महसूस हो रहा था—ढ़ूंढने पर भी उसके चेहरे पर से इस वक्त दया अथवा वेदना का कोई चिन्ह नहीं मिल सकता था—फर्...र्र...र्र...से तीली के सिरे पर मौजूद मसाला जला।
युवक की आंखों में हिंसक भाव थे।
सच ही कहा है किसी ने—अपने प्राण हर व्यक्ति को हर कीमत से कहीं ज्यादा प्यारे होते हैं …अगर किसी को यह पता लग जाए कि सारी दुनिया में आग लगाने से उसके अपने प्राण बच सकते हैं तो वह सारी दुनिया को जलाकर राख करने में एक पल के लिए भी नहीं हिचकेगा।
और फिर इस युवक को तो सिर्फ एक लाश और दूसरे जिन्दा शरीर को आग के हवाले करना था। अगर मैं यह लिखूं कि वह हिचका था तो वह गलत होगा—एक पल के लिए भी तो नहीं हिचका वह। हां …यह सोचकर दिल जरूर कांपा था कि वह कितना भयानक काम कर रहा है , मगर दिमाग में इस ख्याल के उठते ही कि उसके जीवित रहने के लिए इन दोनों का राख होना जरूरी है , उसने तीली उछाल दी।
मिट्टी के तेल से तर रूबी की लाश ने 'फक्क' से आग पकड़ ली—चेहरे पर हिंसक भाव लिए युवक दरवाजे के समीप खड़ा सब कुछ देखता रहा—आधे मिनट में ही उन दोनों जिस्मों ने एक छोटी-सी होली का रूप ले लिया।
कमरे में गोश्त के जलने की दुर्गन्ध फैलने लगी।
युवक तब चौंका जब उसने रूपेश के जिस्म में हल्की-सी हरकत महसूस की—उस वक्त तो उसके रोंगटे ही खड़े हो गए , जब रूपेश के कण्ठ से घुटी-घुटी-सी चीख निकली—जिस्म के आग में जलने से शायद उसकी चेतना लौट रही थी।
लपलपाती आग ने बेड का किनारा पकड़ लिया।
चेहरे पर वही कठोरता लिए युवक तेजी से घूमा , कमरे से बाहर निकला और दरवाजा भड़ाक से बन्द करके उसने सांकल चढ़ा दी।
बहुत तेजी के साथ उसने आंगन और गैलरी पार की।
¶¶
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,443,025 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 537,901 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,208,890 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 913,889 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,620,027 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,053,214 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,904,904 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 13,903,275 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 3,972,604 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 279,491 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 1 Guest(s)