Desi Porn Kahani विधवा का पति
05-18-2020, 02:28 PM,
#21
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
युवक जानता था कि जो कुछ वह करके आया है , यह बहुत देर तक लोगों की नजरों से छुपा नहीं रह सकेगा—मकान के अन्दर से उठता धुआं पड़ोंसियों को शीघ्र ही आकर्षित कर लेगा—मकान का मुख्य दरवाजा वह बाहर से बन्द करके आया है , अत: भगवतपुरे के निवासी शीघ्र ही उसके अन्दर दाखिल हो जाएंगे , तब उन्हें पता लगेगा की वहां दो लाशें भी हैं—फायर ब्रिगेड और पुलिस को फोन किया जाएगा।
पहले आग पर काबू पाया जाएगा—फिर शुरू होगी पुलिस कार्यवाही।
सम्भव है कि गजेन्द्र पुलिस को उसका हुलिया भी बता दे , बस—हुलिए और जॉनी नाम से ज्यादा वह कुछ नहीं बता सकेगा।
अत: यदि पुलिस के सक्रिय होने से पूर्व मैं गाजियाबाद से बाहर निकल जाता हूं तो फिर कानून की पकड़ से बहुत दूर हूं।
अपने इसी विचार के अन्तर्गत उसने भगवतपुरे से निकलते ही एक रिक्शा पकड़ा , सीधा रेलवे स्टेशन आया और हरिद्वार से जाकर देहली की तरफ जाने वाली गाड़ी में सवार हो गया—सेकंड क्लास का कम्पार्टमेंट भीड़ से खचाखच भरा हुआ था।
वह स्वयं भी उसी भीड़ में जा—मिल गया।
हर आदमी व्यस्त था , अपने में मस्त।
उसकी तरफ ध्यान तक नहीं दिया किसी ने—कौन जानता था कि वह कितना संगीन , घिनौना और भयानक अपराध करके इस ट्रेन से भाग रहा था ?
ट्रेन चल पड़ी।
एक बर्थ के कोने पर टिके युवक का दिमाग भी समानान्तर पटरियों पर दौड़ने लगा।
मन-ही-मन अपनी आगे तक की योजना तैयार कर चुका था वह , बल्कि कहना चाहिए कि योजना भी कुछ न थी , सिकन्दर बनकर न्यादर अली की कोठी पर छिप जाना ही उसकी योजना थी। कोई नहीं कह सकता था कि भगवतपुरे में रहने वाला , दो व्यक्तियों का हत्यारा जॉनी ही सिकन्दर है।
उस वक्त न्यादर अली को बताने के लिए वह अपने गायब होने के लिए उपयुक्त बहाने की तलाश कर रहा था , जब अचानक ही नजर कम्पार्टमेंट में मौजूद एक पुलिस इंस्पेक्टर और चार कांस्टेबलों पर पड़ी।
युवक का चेहरा एकदम फक्क पड़ गया।
क्या भगवतपुरे के मकान में लगी आग के सिलसिले में पुलिस इतनी जल्दी सक्रिय हो उठी है—क्या पुलिस को किन्हीं सूत्रों से पता लग गया है कि मैं इस ट्रेन से भागने की कोशिश कर रहा हूं ?
हां , गजेन्द्र और रिक्शा वाले के संयुक्त बयान से पुलिस यहां पहुंच सकती है—अगर वे दोनों पुलिस के हाथ लग गए होंगे तो उन्होंने एक ही हुलिया बताया होगा —रिक्शा वाले ने बता दिया होगा कि इस हुलिये की सवारी को उसने भगवतपुरे से हरिद्वार पैसेंजर पर छोड़ा है।
यहां पहुंचने के लिए पुलिस को इतना ही काफी है।
इस किस्म के सैकड़ों विचार नन्हें-नन्हें सर्प बनकर उसके मस्तिष्क में रेंगने लगे थे और शायद इन्हीं सर्पों के कारण युवक पर बौखलाहट-सी हावी होने लगी।
तेजी से धड़कता हुआ दिल पसलियों पर चोट करने लगा।
मस्तक पर पसीना उभरने लगा। उसका दिल चाह रहा था कि उठे , दरवाजे पर पहुंचे और चलती ट्रेन से ही बाहर जम्प लगा दे , मगर उसके विवेक ने कहा कि यह सबसे ज्यादा मूर्खतापूर्ण हरकत होगी।
यह भी तो सम्भव है कि यह पुलिस दल किसी दूसरे ही चक्कर में हो ?
अगर ऐसा हुआ तो वह व्यर्थ ही फंस जाएगा , अत: कनखियों से उसने पुलिस दल की तरफ देखा—हाथ में दबे रूल को घुमाता हुआ इंस्पेक्टर एक-एक यात्री को बहुत ध्यान से देख रहा था—इंस्पेक्टर के चेहरे पर क्रूरता थी , देखने मात्र से ही बहुत हिंसक-सा नजर आता था वह—युवक को महसूस हुआ कि यदि मैं इस इंस्पेक्टर के चंगुल में फंस गया तो यह इतनी बुरी तरह से टॉर्चर करेगा कि मुझे सब कुछ उगल देना पड़ेगा।
एक-एक यात्री को घूरता हुआ वह उसी तरफ बढ़ रहा था।
एकाएक युवक को लगा कि वह हर चेहरे को गजेन्द्र और रिक्शा वाले द्वारा बताए गए हुलिए से मिलाने की कोशिश कर रहा है—मेरे चेहरे पर आकर वह ठिठक जाएगा।
तब , मैं क्या करूंगा ?
बल्कि कहना चाहिए कि तब मैं कुछ भी कर पाने को स्थिति में नहीं रहूंगा।
एक यात्री पर इंस्पेक्टर को जाने क्या शक हुआ कि कांस्टेबलों से उसकी तलाशी लेने के लिए कहा —तलाशी में कुछ नहीं मिला तो वे कुछ इधर चले आए।
युवक नर्वस होने लगा।
पसीने से हथेलियां गीली हो गई महसूस हुईं उसे—बेचैनी के साथ हथेलियों को उसने अपनी पतलून पर रगड़ा , अपना चेहरा स्वयं ही उसे पसीने से तर -बतर महसूस हुआ।
दोनों हाथों से चेहरा साफ किया।
और उस वक्त तो उसके होश ही फाख्ता हो गए जब अपने हाथों में से उसे मिट्टी के तेल की दुर्गंध आई।
उफ्फ...कितनी बड़ी गलती कर बैठा है वह ?
उसे मकान से निकलने से पहले साबुन से हाथ धोने चाहिए थे।
क्या यह इंस्पेक्टर इस दुर्गन्ध को सूंघ लेगा—क्या इस दुर्गन्ध से ही वह अनुमान लगा लेगा कि मैं क्या करके आ रहा हूं ? हां , यदि हुलिए के साथ उसे मेरे हाथों में से यह बदबू भी मिल गई तो बन्टाधार।
इंस्पेक्टर उसके बिलकुल नजदीक आ खड़ा हुआ। न चाहते हुए भी युवक ने चेहरा उठाकर उसकी तरफ देख ही लिया। इंस्पेक्टर को अपनी ही तरफ घूरता पाकर वह सकपका गया। वह महसूस कर रहा था कि उसके अपने चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं—उस वक्त रूबी की लाश के समान निस्तेज था उसका चेहरा।
इंस्पेक्टर कई पल तक उसे कड़ी निगाहों से घूरता रहा।
युवक की सांसें तक रुक गई थीं।
अचानक ही इंस्पेक्टर ने उससे पूछा— “क्या नाम है तुम्हारा ?"
"स...सिकन्दर।" वह बड़ी कठिनाई से कह सका।
"कहां से आ रहे हो ?"
यह सवाल ऐसा था कि जिसने उसके तिरपन कंपा दिए। एकदम से उसके मुंह से 'गाजियाबाद ' निकलने वाला था , तभी दिमाग में विचार कौंधा कि—नहीं , मुझे गाजियाबाद नहीं कहना चाहिए , परन्तु तभी मस्तिष्क में यह विचार भी कौंधा कि , यदि वह 'गाजियाबाद ' नहीं कहेगा तो यहां बैठे यात्री चौंक पड़ेंगे।
इनमें से अधिकांश पीछे से आ रहे हैं। उन्होंने मुझे गाजियाबाद से चढ़ते देखा है—यह सारे विचार क्षणमात्र में ही उसके दिमाग में उभरे थे और अगले ही पल उसने जवाब दे दिया था— “ गाजियाबाद।"
"कहां जाना है ?"
“नई देहली।"
"क्यों ?”
“क.....क्यों से मतलब , देहली में मेरा घर है।"
"कहां ?"
“लारेंस रोड पर …सेठ न्यादर अली का लड़का हूं मैं।"
"गाजियाबाद क्यों गए थे ?"
"बिजनेस के सिलसिले में।"
"क्या बिजनेस है आपका ?"
“गत्ते की फैक्ट्री है मेरी।"
"हद है , गत्ते की फैक्ट्री लगाए बैठे हैं और यात्रा कर रहे हैं इस कम्पार्टमेंट में!" अजीब-से अन्दाज में बड़बड़ाते हुए इंस्पेक्टर ने मानो खुद ही से कहा और उसके यूं बड़बड़ाने पर युवक को भी अपनी गलती का अहसास हुआ , निश्चय ही सेठ न्यादर अली के बेटे और एक गत्ता फैक्ट्री के मालिक को कम-से-कम इस कम्पार्टमेंट में नहीं होना चाहिए मगर जो तीर कमान से निकल चुका था, अब वह वापस तो आना नहीं था। इसीलिए खामोश ही रहा।
इंस्पक्टर ने उसी से कहा— "प्लीज , अपना टिकट दिखाइए।”
और हड़बड़ाया-सा युवक जेब से टिकट निकालते वक्त सोच रहा था कि इसी क्षण फंस गया था , गाजियाबाद से देहली तक का टिकट निकालकर उसने इंस्पेक्टर को पकड़ा दिया।
टिकट को उलट-पुलटकर ध्यान से देखने के बाद उसे लौटाते हुए इंस्पेक्टर ने कहा— "प्लीज , स्टैण्डअप।"
युवक के तिरपन कांप गए।
आत्मा तक हिल उठी थी उसकी—समझ नहीं पा रहा था कि इंस्पेक्टर आखिर उसी के पीछे क्यों पड़ गया है-कम्पार्टमेंट में दूसरे यात्री भी तो हैं—क्या उस पर किसी किस्म का शक कर रहा है , क्या उसके हुलिए को वह पहचान गया है ?
खड़ा हो जाना युवक की मजबूरी थी।
उसने महसूस किया कि टांगें बुरी तरह कांप रही थीं—बहुत ज्यादा देर तक वह खड़ा नहीं रह सकेगा , गिर पड़ेगा वह—अगर इंस्पेक्टर ने उसकी इस वक्त की अवस्था देखी होती तो किसी भी कीमत पर उसे गिरफ्तार किए बिना न रहता , क्योंकि युवक के दिलो-दिमाग पर छाई नर्वसनेस उसके जिस्म से बुरी तरह छलक रही थी।
मगर एक कांस्टेबल को उसकी तलाशी लेने का हुक्म देकर इंस्पेक्टर एक दूसरे यात्री की तरफ आकर्षित हो गया था और कांस्टेबल का ध्यान उसकी जेबें टटोलने के अलावा किसी तरफ नहीं था , तलाशी के बाद कांस्टेबल ने उसे बैठ जाने का इशारा किया।
युवक 'धम्म ' से बैठ गया।
सन्तोष की पहली सांस उसने अभी ली ही थी कि इंस्पेक्टर अपने नथुनों से लम्बी-लम्बी सांसें लेने लगा। एकाएक ही वह बोला— “मिट्टी के तेल की दुर्गन्ध कहां से आ रही है ?”
युवक के दिमाग में बिजली-सी कौंध गई।
बेहोश होते-होते बचा वह।
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05-18-2020, 02:28 PM,
#22
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इस कम्बख्त इंस्पेक्टर की नाक कितनी लम्बी है! इतनी दूर से भी उसे मिट्टी के तेल की बदबू आ रही है—युवक जड़वत्-सा बैठा उस इंस्पेक्टर को देखता रहा , जो अभी तक लम्बी-लम्बी सांसें लेने के साथ पता लगाने की कोशिश कर रहा था कि बदबू कहां से आ रही है।
अन्जाने ही में युवक ने अपनी दोनों हथेलियां भींच लीं।
ऊपर वाली बर्थ पर रखे इक्कीस लीटर के एक केन पर रूल मारते हुए इंसपेक्टर ने पूछा— “यह केन किसका है?"
कम्पार्टमेंट में सन्नाटा छाया रहा , किसी ने कोई जवाब नहीं दिया था।
इंस्पेक्टर ने बड़ी पैनी निगाहों से वहीं बैठे एक-एक यात्री को देखा। इस बार उसका लहजा कुछ कर्कश हो गया था—"बोलते क्यों नहीं , किसका है ये कैन ?"
सन्नाटा।
यात्री एक-दूसरे का मुंह देखने लगे।
अब युवक को पता लगा कि इंस्पेक्टर को मिट्टी के तेल की दुर्गन्ध उसके हाथों में से नहीं , इस केन से आ रही थी—कठोर दृष्टि से हर यात्री को घूरते हुए उसने कांस्टेबलों को केन उतारने का आदेश दिया —केन खोलकर देखने पर पाया कि वह मिट्टी के तेल से भरा था।
केन को घूरते हुए इंस्पेक्टर ने कहा— “हूं—सारे देश में मिट्टी के तेल की किल्लत है , जहां से एक बूंद भी मिलने की उम्मीद होती है तो वहां लाइन लग जाती है , मगर यहां इस केन में इक्कीस लीटर तेल यूपी से देहली जा रहा है।"
युवक को खुशी हुई कि मामला उससे सम्बन्धित नहीं था।
इंस्पेक्टर ने पुनः हरेक यात्री को घूरते हुए कहा— "मेरा नाम इंस्पेक्टर चटर्जी है , चुप रहकर इस केन का मालिक मुझसे बच नहीं सकेगा , या तो वह खुद ही बोल पड़े , अन्यथा पता लगाने के मुझे बहुत रास्ते मालूम हैं।"
सनसनी-सी फैल गई वहां , मगर सन्नाटा पूर्ववत् छाया रहा।
अब इंस्पेक्टर चटर्जी के चेहरे पर कठोरता के साथ-साथ गुस्से के भाव भी दृष्टिगोचर होने लगे। इस बार उसके मुंह से गुर्राहट निकली थी— “ आखरी बार वार्निंग देता हूं—या तो वह खुद बोल पड़े और अगर मैंने पता लगाया तो खाल खींचकर रख दूंगा।"
कम्पार्टमेंट में मौजूद सभी के चेहरे फक्क पड़ गए।
यह सोचकर युवक संतुष्ट था कि मामला मेरा नहीं है। इस मिट्टी के तेल का मालिक कोई और है—हुंह—मैं व्यर्थ में ही दुबला हुआ जा रहा था , भला इतनी जल्दी उस मामले में पुलिस यहां कैसे पहुंच सकती है ?
जब चटर्जी की इस चेतावनी के बाद भी कोई नहीं बोला तो वह चीख पड़ा— “ सभी यात्री अपने दोनों हाथ मिलाकर हवा में यूं फैला लें।"
सभी ने देखा कि कहने के बाद इंस्पेक्टर चटर्जी ने अपने दोनों हाथ खोलकर उसी अन्दाज में फैला दिए थे , जैसे मास्टर की कमची से पिटता बालक फैलाए रखता है।
सभी ने उस अन्दाज में हाथ फैला दिए।
और , सबको देखकर जब युवक ने भी हाथ फैलाए तो उसी क्षण उसके दिमाग को बहुत तेज झटका लगा—इसमें शक नहीं कि हार्टअटैक होते-होते बचा उसे।
एक क्रम में चटर्जी ने यात्रियों की फैली हुई हथेलियां सूंघनी शुरू कर दी थीं—युवक को अपनी आंखों के सामने अंधेरा-सा छाता महसूस हुआ—उफ्फ—क्या मैं इस केन को देहली ले जाने के जुर्म में पकड़ा जाऊंगा ?
ये क्या हो रहा है भगवान ?
दिमाग जाम हो गया युवक का—जी चाह रहा था कि वह चीख पड़े—केन के मालिक का पता लगाने के लिए यह कोई उपयुक्त तरीका नहीं है—मिट्टी के तेल की बदबू मेरे हाथ में भी है , मगर यह केन मेरा नहीं है।
परन्तु इस बात पर इंस्पेक्टर चटर्जी यकीन नहीं करेगा।
उससे हाथों में मौजूद बदबू का कारण पूछा जाएगा—क्या ज़वाब देगा वह ?
मगर कम्बख्त चटर्जी तो हर यात्री के हाथ सूंघता चला जा रहा है—मेरे हाथों पर वह ठिठक जाएगा—फिर वह मुझे पकड़ लेगा—ऐसे भी जान जाएगा कि मेरे हाथों में बदबू है। इससे अच्छा तो ये है कि मैं स्वयं ही चीखकर उसे बता दूं—मैं दूसरे यात्रियों की गवाही दिला सकता हूं—कई यात्री कह देंगे कि जब मैं यहां आया था तो मेरे हाथ में यह केन नहीं था।
हाथों में मौजूद बदबू का क्या जवाब दूंगा ?
इसका जवाब तो मुझे तब भी देना होगा , जब इंस्पेक्टर मेरे हाथों तक पहुंच जाएगा , अत: क्यों न पहले ही खुल जाऊं—शायद वैसा करने से मेरे पक्ष में माहौल बन सके ?
युवक का बुरा हाल था।
एक ऐसे अपराध में पकड़ा जाने वाला था वह , जिससे दूर-दूर तक भी उसका कोई सम्बन्ध नहीं था , यदि किसी जुर्म में पकड़कर उसे थाने ले जाया गया तो फिर सम्भव है कि गजेन्द्र और रिक्शा वाले द्वारा बताया गया हुलिया सत्यानाश ही कर दे।
व्यर्थ ही फंसने जा रहा था वह।
दिल चाहा कि अभी-अभी , दहाड़ें मार-मारकर रो पड़े।
जिस्म का रोयां-रोयां खड़ा हो गया। बड़े ही संवेदनशील क्षण थे—दिलो-दिमाग पर छाया आतंक सहना जब युवक के वश में न रहा तो सब कुछ कह देने के लिए उसने मुंह खोला ही था कि बुर्केवाली एक औरत के हाथ सूंघने के तुरन्त बाद ही इंस्पेक्टर ने अपनी पूरी ताकत से रूल उसके हाथों पर मारा।
औरत चीख पड़ी।
गुस्से में तमतमाते हुए चटर्जी ने एक झटके से उसका नकाब उलट दिया—दूसरे यात्रियों के साथ युवक ने भी तवे के पृष्ठ भाग के समान उस काली औरत को देखा , जिसके चेहरे पर उस वक्त वेदना और आतंक के भाव थे।
अच्छा-खासा काला चेहरा इस वक्त सफेद-सा लग रहा था।
"इसे गिरफ्तार कर लो।" औरत की बांह पकड़कर उसे कांस्टेबलों की तरफ धकेलते हुए चटर्जी ने कहर भरे स्वर में कहा—कांस्टेबलों ने औरत को पकड़ लिया।
बचे हुए यात्रियों की तरह युवक ने भी अपने हाथ नीचे गिरा लिए। मस्तक पर से स्वयं ही पसीना सूखता चला गया —धड़कनें अब नियन्त्रण में आ रही थीं।
चटर्जी ने जेब से सामान बरामदी का एक कागज निकालते हुए कहा—"शेष यात्रियों से मैं माफी चाहता हूं—दरअसल मुजरिम को पकड़ने के लिए कभी-कभी हमें शरीफ लोगों के साथ भी सख्ती बरतनी पड़ती है।"
खामोशी छाई रही।
चटर्जी ने फार्म भरा। बुर्के वाली औरत से पूछकर उसका नाम और पूरा पता लिखा—फार्म पर उसके अंगूठे का निशान लगवाया , तब बोला—“औरत पर केस दर्ज करने के लिए दो गवाहों की जरूरत पड़ेगी और वे आदमी पब्लिक के ही होने चाहिए—एक साइन आप कीजिए मिस्टर। ” चटर्जी ने युवक के सामने बैठे एक अधेड़ आयु के व्यक्ति से कहा था।
"म...मैं।" वह सकपका-सा गया।
"घबराइए नहीं , इसमें चिंता करने जैसी कोई बात नहीं है।" चटर्जी उसे समझाने के अन्दाज में बोला— "आप सिर्फ यह कह रहे हैं कि आपके सामने मिट्टी के तेल से भरा यह केन पुलिस ने इस औरत से बरामद किया है , जिसके अंगूठे का निशान फार्म पर है और यही बात अपने अदालत में कहनी होगी।"
"म...मगर अदालत के चक्कर कौन काटेगा, इंस्पेक्टर?”
"हम आपकी परेशानी समझते हैं।" चटर्जी ने हल्की-सी मुस्कान के साथ कहा— "मगर आपको भी हमारी दिक्कत समझनी चाहिए। हमारे लिए यह जरूरी होता है—एक बार से ज्यादा आपको अदालत में नहीं जाना पड़ेगा , और फिर सहयोग करना आपका फर्ज है।"
अनिच्छापूर्वक अधेड़ आयु के व्यक्ति को साइन करने ही पड़े।
"पूरा एड्रेस लिख दीजिए , ताकि आपसे सम्पर्क स्थापित करने में किसी तरह की प्रॉब्लम न आए।" चटर्जी ने कहा।
एड्रेस लिखते वक्त अधेड़ के चेहरे पर ऐसे भाव थे, जैसे वह अपनी मौत के परवाने पर साइन कर रहा हो—उसे देखकर युवक सोच रहा था कि पता नहीं वह बेवकूफ क्यों मरा जा रहा है ?
तभी , फार्म उसी की तरफ बढ़ाते हुए इंस्पेक्टर ने कहा— "दूसरे साइन आप कर दीजिए, मिस्टर सिकन्दर।"
सकपका गया युवक।
हिल तक नहीं सका वह , किंकर्तव्यविमूढ़-सा चटर्जी के चेहरे को देखता रहा , जबकि उसे इस अवस्था में देखकर इंस्पेक्टर धीमे-धीमे मुस्करा रहा था— “आप तो पढ़े-लिखे हैं, मिस्टर सिकन्दर—क्या आपको भी वे सब बातें समझानी पड़ेंगी , जो अभी-अभी …।"
“मु.....मुझे माफ ही कर दो इंस्पेक्टर तो ज्यादा अच्छा है।"
"क्यों ?”
"मैं देहली का रहने वाला हूं, यह केस शायद गाजियाबाद की अदालत में जाएगा—अगर गाजियाबाद के ही किसी आदमी को गवाह बना लें तो शायद ज्यादा मुनासिब रहे।"
"व्यापार के सिलसिले में आप आते ही रहते हैं और फिर भी भले ही प्रदेश अलग हैं , किन्तु देहली और गाजियाबाद में दूरी ही कितनी है ?"
"य...यह तो ठीक है , मगर फिर भी... ?"
"इस तरह तो हर आदमी पीछा छुड़ा सकता है मिस्टर सिकन्दर और यदि हम इस तरह करने लगे तो बस हो ली कानून की हिफाजत—प्लीज , साइन कीजिए।"
कैसी विवशता थी युवक के सामने!
'सिकन्दर ' के नाम से उसे साइन करने ही पड़े—पता भी लिखा—लारेंस रोड पर स्थित न्यादर अली के बंगले का नम्बर उसे मालूम नहीं था , मगर ऐसा कह नहीं सकता था , क्योंकि इस बात पर भला कोई कैसे यकीन कर लेगा कि किसी को अपने ही मकान का नम्बर मालूम न हो—उसने यूं ही एक काल्पनिक नम्बर लिख दिया।
सब कुछ सही लिखना इसीलिए जरूरी था , क्योंकि कुछ ही देर पहले चटर्जी के सवालों के जवाब में वह बता चुका था। फार्म उससे लेकर 'तह ' बनाते हुए इंस्पेक्टर ने कहा—
“थैंक्यू मिस्टर सिकन्दर , पहली बार मेरा अनुमान गलत निकला है।"
"क्या मतलब ?"
“जब यहां आते ही मैंने आपको घूरा तो आपके चेहरे पर जाने क्यों मैंने हवाइयां-सी उड़ती महसूस की …मेरा अनुमान था कि केन शायद आपकी है , मगर वह गलत निकला—मेरी जिन्दगी में ऐसा पहली बार ही हुआ है।"
"तो क्या इसीलिए आपने मुझसे इतने ढेर सारे सवाल किए थे ?"
“जी हां....खैर , आपको हुई असुविधा के लिए माफी चाहता हूं।" कहने के तुरन्त बाद ही वह कांस्टेबलों की तरफ घूम गया और उसने उन्हें उतर जाने का संकेत किया।
साहिबाबाद के प्लेटफार्म पर पहुंचने की कोशिश में ट्रेन की गति धीमी पड़ती जा रही थी—यहां उतरने वाले यात्री खड़े हो गए।
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05-18-2020, 02:28 PM,
#23
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
पुलिस टुकड़ी को जाते देख युवक ने एक लम्बी संतोष की सांस ली—वहां केवल दो मिनट ठहरने के बाद रेंगती हुई ट्रेन आगे बढ़ गई—गति पकड़ने लगी—युवक के आसपास बैठे लोग उसी घटना के बारे में चर्चा करने लगे।
युवक का दिमाग ट्रेन की-सी गति के साथ ही विचारों में गुम था।
उसे लग रहा था कि फिलहाल तो वह बच गया , मगर आनन-फानन में कुछ-न-कुछ गलत जरूर हो गया है—गवाह के रूप में चटर्जी उसके साइन और एड्रेस ले गया है—बंगले का नम्बर गलत होने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
लारेंस रोड पर पहुंचने के बाद किसी का भी न्यादर अली के बंगले पर जाना आसान है। अब इंस्पेक्टर के पास सबूत है कि आज की तारीख में हरिद्वार पैसेंजर से गाजियाबाद से देहली जा रहा था—भगवतपुरे में लगी आग से हरिद्वार पैसेंजर का टाइम सही टैली करेगा—यदि पुलिस के हाथ गजेन्द्र और रिक्शा वाला लग जाए तो पुलिस को मेरा हुलिया मिल जाएगा।
संयोग से यदि वह हुलिया इस काइयां इंस्पेक्टर के सामने आ गया तो मेरी याद आने में इसे एक पल भी नहीं लगेगा और उसी क्षण उसकी समझ में मेरे चेहरे पर उड़ती हवाइयों का अर्थ भी आ जाएगा—फिर उसे लारेंस रोड पहुंचने में देर नहीं लगेगी।
इन सब विचारों ने युवक को एक बार फिर उद्विग्न कर दिया।
आतंक की अधिकता के कारण एक बार फिर उसका दिल घबराने लगा—पुलिस कभी लारेंस रोड तक न पहुंच सके , एकमात्र इसी उद्देश्य से तो उसने जिन्दा रूपेश को जलाकर राख कर दिया था और अब , अपने पीछे वह खुद ही गाजियाबाद से लारेंस रोड तक की यात्रा के लिए पटरियां बिछाता जा रहा था।
इन सब विचारों में फंसकर अचानक ही उसे अपना लारेंस रोड जाना खतरनाक नजर आने लगा—यह बात उसके दिमाग में बैठती चली गई कि अब ‘सिकन्दर ' बनकर शेष जिन्दगी गुजारना उसके लिए बिल्कुल असम्भव है।
सारे सबूत बिछ चुके हैं , वह किसी भी क्षण पकड़ा जाएगा।
फिर कहां जाता?
एकाएक ही दिमाग में 'बस्ती ' का ख्याल उभर आया—फिर उसने जितना सोचा, यही बात जमी कि बस्ती चले जाना ही सुरक्षित है—यदि वह सचमुच जॉनी है , अगर वास्तव में रूबी ही उसकी पत्नी थी , तो बस्ती में उसके अपने मां-बाप हैं।
अपना घर है , छोटे भाई-बहन हैं।
अगर रूबी द्वारा सुनाई गई कहानी सही थी तो उसके बस्ती के पते का राज किसी को मालूम नहीं है। यह रहस्य अपनी पत्नी होने के नाते उसने केवल रूबी को ही बताया होगा , अतः बस्ती का ख्याल भी पुलिस के दिमाग में नहीं आ सकेगा।
मगर यदि रूबी द्वारा सुनाई गई कहानी काल्पनिक हुई ?
अगर वहाँ उसका कोई घर न हुआ तो ?
तो कम-से-कम वह यह तो समझ जाएगा कि रूबी झूठी थी। न्यादर अली नहीं—और फिर कम-से-कम यह बोझ तो उसके दिल पर से हट जाएगा कि उसने अपनी ही पत्नी की हत्या की है।
'लेकिन यदि ऐसा हुआ तो होगा क्या …फिर कहां जाऊंगा मैं ?'
'तब की तब देखूंगा , फिलहाल यहां से बहुत दूर निकल जाना ही जरूरी है और बस्ती यहां से काफी दूर है , इस चक्कर में अतीत की तलाश भी हो जाएगी।'
'मैं देहली से सीधा बस्ती चला जाऊंगा।'
'इस यात्रा के लिए बस ही ठीक रहेगी , ट्रेन मेरे लिए सुरक्षित नहीं है—भले ही देहली से बस्ती तक मुझे दो-बार बसें बदलनी पड़ें , मगर यह लम्बी यात्रा बस से करनी ही सब से ज्यादा सुरक्षित है।'
'और इस ट्रेन में ज्यादा देर रहना भी ठीक नहीं है।'
'सम्भव है कि इंस्पेक्टर चटर्जी को मेरा हुलिया मिल जाए और वह तुरन्त ही वायरलेस पर हरिद्वार पैसेंजर से मेरे देहली पहुंचने की सूचना देहली पुलिस को दे दे।'
'उस अवस्था में मैं स्टेशन पर ही पकड़ लिया जाऊंगा।'
इस ख्याल के दिमाग में जाते ही वह कुछ और घबरा गया।
उसने शाहदरे में ही उतर जाने का निश्चय किया —शाहदरे से टू-सीटर द्वारा वह सीधा कश्मीरी गेट जाएगा और वहीं से बस्ती की तरफ जाने वाली बस पकड़ लेगा।
यह सोच-सोचकर उसकी हालत अजीब होने लगी कि रूबी की हत्या के बाद से उसके दिलो-दिमाग को एक मिनट के लिए भी आराम नहीं मिला था—प्रत्येक मिनट , हरेक पल बहुत ही दहशतनाक , उत्तेजक और संवेदनशील बना रहा था।
शाहदरे में ट्रेन रुकी।
वह उतर पड़ा। बहुत ध्यान से उसने अपने चारों तरफ देखा—दूर , एक पुलिस वाला खड़ा था , हालांकि उसका ध्यान युवक की तरफ बिल्कुल नहीं था , फिर भी वह रास्ता काटता हुआ निकास द्वार की तरफ बढ़ा।
द्वार पर खड़ा एक टी oटी o गुजरने वालों से टिकट कलेक्ट कर रहा था।
जेब से अपना टिकट निकालकर युवक भी निकलने वालों की भीड़ में शामिल हो गया , अचानक ही उसके मन को यह सवाल परेशान करने लगा कि क्या टी oटी o देहली के टिकट पर , उसके शाहदरा पर उतरने पर चौंकेगा ?
मगर वैसा कुछ नहीं हुआ।
टी oटी o ने उसका टिकट बिना देखे गड्डी में रख लिया। वह तेजी से सीढ़ियां उतरता चला गया—सड़क पर पहुंचा—वहां कोई थ्री-व्हीलर वाला नहीं था।
रिक्शा वाले जरूर खड़े थे , मगर उनसे उसका कोई मतलब हल होने वाला नहीं था। उसे मालूम था कि कश्मीरी गेट के लिए थ्री-व्हीलर राधू सिनेमा के आसपास से मिल जाएंगे।
वह पैदल ही तेजी के साथ राधू के सामने खुलने वाले चौराहे की तरफ बढ़ रहा था कि स्कूल के बच्चों से भरी एक रिक्शा उसके बराबर से गुजरी और उस रिक्शा में बैठा एक बच्चा जोर-जोर से चिल्ला उठा— "प...पापा...पापा।"
बच्चा कुछ इस तरह चिल्लाया था कि दूसरे राहगीरों के साथ ही युवक का ध्यान उधर चला गया और उस वक्त तो वह भौंचक्का ही रह गया , जब उसने महसूस किया कि बच्चा उसे ही पुकार रहा है—युवक ने घबराकर अपने आसपास देखा।
इस उम्मीद में कि शायद यह मेरे आसपास खड़े किसी व्यक्ति को पुकार रहा हो , मगर वहां कोई नहीं था—युवक ने चौंककर ढलान पर लुढ़ककर दूर जाती हुई रिक्शा की तरफ देखा , बच्चा अभी तक पागलों की तरह उसी को पुकार रहा था।
युवक के होश उड़ गए।
करीब आठ साल की आयु का वह गोरा-चिट्टा खूब स्वस्थ और गोल चेहरे वाला लड़का था। उसकी पलकें भूरी और आंखें नीली थीं। नीले रंग की हाफ पैन्ट पर वह फुल बाजू की लाल स्वेटर पहने था , रिक्शा के साथ ही उसकी आवाज दूर होती जा रही थी , मगर वह बराबर चीख रहा था— "प...पापा...पापा।"
इस तमाशे को सैंकड़ों राहगीरों ने देखा।
खुद युवक की नजर भी उस रिक्शा पर टिकी हुई थी और फिर अगले पल तो जैसे कमाल ही हो गया —चीखते हुए बच्चे ने चलती रिक्शा में से ही सड़क पर छलांग लगा दी थी , सड़क पर वह बेचारा घुटनों के बल गिरा।
जाने क्यों युवक के दिल में एक टीस-सी उठी।
अन्जाने में ही वह बच्चे की तरफ दौड़ पड़ा—उसने देख लिया था कि बच्चे के घुटने छिल गए थे , वहां से खून बहने लगा था , मगर उसकी परवाह किए बिना वह दीवानों की तरह अपनी दोनों नन्हीं बाहें फैलाए—"पापा...पापा”—चिल्लाता हुआ युवक की तरफ ही दौड़ता चला आया।
वे मिले।
जाने किस भावना से प्रेरित होकर युवक ने उस मासूम बच्चे को अपनी बांहों में भर लिया और उससे किसी बेल के समान लिपटा बच्चा सुबक-सुबककर रो रहा था— "आप कहां चले गए थे, पापा? बहुत गन्दे हैं आप—आपको याद करके मैं हमेशा रोता रहा हूं …और मम्मी भी …दादी तो पागल ही हो गई हैं।"
युवक की आंखें भर आई—दिमाग सुन्न पड़ता जा रहा था।
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05-18-2020, 02:28 PM,
#24
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
रूपेश के कण्ठ से हृदय-विदारक चीखें निकल रही थीं , होश में आते ही सबसे पहले उसने यह महसूस किया कि उसका समूचा जिस्म बुरी तरह जल रहा था—जाने किस अज्ञात शक्ति से संचालित होकर वह उछलकर खड़ा हो गया।
नजर किसी होली के समान जलते एक नग्न जिस्म पर पड़ी—खुद उसके जिस्म से आग की लपटें लपलपा रही थीं , उसके कपड़ों में आग लगी हुई थी।
जिस्म भी जल रहा था।
मुंह से स्वयं ही चीखें निकल रही थीं , और फिर जाने किस शक्ति ने उसे इतनी बुद्धि दे दी कि वह कमरे के आगरहित फर्श पर लुढ़कता फिरने लगा।
उसके अवचेतन मस्तिष्क में एकमात्र यही विचार उभरा था कि उसके कपड़ों में आग लगी हुई था और इस आग से बचने का केवल एक ही रास्ता है , वही उसने किया भी—चीखता हुआ जाने वह कितनी देर तक फर्श पर लुढ़कता रहा।
तन के कपड़ों पर लगी आग काफी हद तक बुझ गई।
मुंह से अब भी चीखें निकल रही थीं , क्योंकि वह काफी बुरी तरह जल चुका था—शायद जिस्म में गर्मी होने के कारण ही वह उठकर खडा हो गया था—कमरे का दृश्य बहुत ही खौफनाक था—नग्न जिस्म से लपलपाने वाली आग डबलबेड को घेर चुकी थी।
अब वह शेष कमरे में फैलने जा रही थी।
कमरे में धुआं भी काफी था।
एकाएक ही रूपेश के दिमाग में यह ख्याल उठा कि कुछ ही देर में यह सारा कमरा आग की लपटों की भेंट चढ़ जाएगा—चीखता हुआ ही वह दरवाजे पर झपटा।
यह महसूस करते ही उसके होश उड़ गए कि दरवाजा बाहर से बन्द है।
मुंह से चीखें बराबर निकल रही थीं , मगर फिर भी वह पीछे हटा—किसी सांड की तरह दरवाजे की तरफ दौड़ा—दरवाजे पर उसके कंधे की चोट पड़ी।
दरवाजा बहुत ज्यादा मजबूत नहीं था , चरमरा उठा।
स्वयं उसके कण्ठ ते भी चीख निकली थी , क्योंकि यह कंधा भी शायद जला हुआ था , जिससे दरवाजे पर चोट की थी —प्राणों को बचाने की लालसा बड़ी तीव्र होती है। विशेष रूप से उन क्षणों में , जब व्यक्ति को मृत्यु सामने नजर आ रही हो। उसी लालसा से प्रेरित रूपेश ने
असहनीय टीस और जलन की परवाह किए बिना दरवाजे पर पुन: हमला किया।
आग निरन्तर अपने विकराल रूप की तरफ बढ़ती जा रही थी , धुआं इतना ज्यादा भर चुका था कि सांस लेने पर अब उसे पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल रही थी।
बुरी तरह खांस रहा था वह।
पांचवें प्रहार पर दरवाजा टूटकर भड़ाक्-से आंगन में गिरा और उस टूटे हुए दरवाजे पर ही गिरा रूपेश—वह गिरते ही उठा , संभलकर गैलरी की तरफ भागा , परन्तु मुख्य द्वार पर पहुंचने से पहले ही लड़खड़ाकर गिर पड़ा।
उसकी दुनिया में अंधेरा हो चुका था , दिमाग सुन्न पड़ता चला गया। जबकि आंगन में पहुंचने के बाद धुआं जाल की तरफ बढ़ा और उसे पार करके गगन की ओर।
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05-18-2020, 02:29 PM,
#25
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
फायर ब्रिगेड आग पर काबू पाने के लिए प्रयत्न करने लगी। रूपेश के बेहोश जिस्म को देख जीप में डालकर अस्पताल पहुंचाया जा चुका था—जिस समय इमरजेंसी रूम में डॉक्टर रूपेश के जिस्म से जूझ रहे थे , उसी समय फायर ब्रिगेड मकान में लगी आग से।
आग पर काबू पाने में पूरा एक घंटा लग गया।
तब काम शुरू हुआ वहां पहुंचने वाली पुलिस टुकड़ी का नेतृत्व करने वाले इंसपेक्टर आंग्रे का—अपने साथ वह पुलिस के फोटोग्राफर तथा कुछ कांस्टेबलों को साथ लिए अन्दर दाखिल हुआ—बुरी तरह जले हुए कमरे के दरवाजे पर ही उन्हें ठिठक जाना पड़ा। जहाँ से आग शुरू हुई थी—कमरे के बीचो-बीच फर्श पर एक इंसानी हड्डियों का ढांचा पड़ा था।
खाल पूरी तरह जल चुकी थी।
हड्डियां भी काली पड़ चुकी थीं—बड़ा ही डरावना दृश्य था वह—सारा कमरा फायर ब्रिगेड वालों के पानी से बुरी तरह गीला था , कदाचित् पानी की तीव्र धारा ने ही फर्श पर पड़े इंसानी जिस्म की हड्डियों को भी अव्यवस्थित कर दिया था।
इंस्पेक्टर आंग्रे समझ सकता था कि इस आग में कोई बुरी तरह जलकर खाक हो गया है—वह स्त्री थी या पुरुष , जानने के लिए आंग्रे आगे बढ़ा—हड्डियों के ढांचे , बल्कि कहना चाहिए कि इंसानी हड्डियों के ढेर या मलबे के नजदीक पहुंचा।
आंग्रे ने शीघ्र ही मलबे में से एक नथ , सोने की बालियां और चांदी की पाजेब बरामद कर लीं—जाहिर था कि वह मलबा किसी स्त्री का था।
आंग्रे के दिमाग में यह कहानी स्पष्ट हो गई कि—किसी ने इस मकान में रहने वाले स्त्री-पुरुष को जलाकर राख कर देने की कोशिश की है , स्त्री को मलबे के ढेर में बदलने में वह कामयाब हो गया , परन्तु पुरुष बच गया।
मकान के किसी भी हिस्से से उसे हत्यारे की उंगलियों के निशान या उसके सम्बन्ध में किसी सूत्र के मिलने की आशा कम ही थी , इसीलिए कमरे से बाहर निकल आया।
आंगन पार करने के बाद गैलरी में से गुजरते वक्त अचानक ही उसकी ठोकर किसी भारी वस्तु पर पड़ी। उसने चौंककर देखा—कोयला तोड़ने वाली लोहे की एक भारी हथौड़ी थोड़ी दूर तक लुढ़कती चली गई थी।
इस हथौड़ी को उठाने के लिए आंग्रे नीचे झुका।
मगर तभी जेहन में यह विचार कौंधा कि भला गैलरी में यह हथौड़ी क्या कर रही है, इसी विचार ने उसे ठिठका दिया। उसे लगा कि हथौड़ी का निश्चय ही इस काण्ड से कोई गहरा सम्बन्ध है—सम्भव है कि हत्यारे ने ही इसका प्रयोग किया हो।
यह महसूस करते ही उसकी आंखें चमक उठीं कि इस हथौड़ी पर से उसे इस काण्ड के जन्मदाता की उंगलियों के निशान मिल सकते हैं—उसने पलटकर देखा।
गैलरी के इस सिरे से शुरू होकर आंगन के फर्श से गुजरती खून की एक रेखा पर आंग्रे की दृष्टि पड़ती चली गई—खून की यह लकीर दुर्घटनाग्रस्त कमरे के दरवाजे तक चली गई थी—हां , आंगन में पड़े दरवाजे ने उसका कुछ भाग ढक जरूर लिया था—शायद उस दरवाजे और फायर ब्रिगेड के पानी से गीले हुए फर्श के कारण ही खून की उस लकीर पर पहले उसकी नजर नहीं पड़ी थी।
फोटोग्राफर को उसने हथौड़ी तथा खून की रेखा का फोटो लेने के लिए कहा और स्वयं रेखा को घूरता हुआ , आंगन से गुजरकर कमरे के दरवाजे पर पहुंच गया।
अपना काम निपटाकर कमरे में आ गए फोटोग्राफर से आंग्रे ने पूछा— “यदि किसी बेहोश जिस्म में आग लगा दी जाए तो क्या होगा मार्श ?"
"उसे होश आ जाएगा।"
“क्यों ?” प्रश्न करने के बाद अपने आशय को और स्पष्ट करते हुए आंग्रे ने पूछा— "जब वह बेहोश है तो उसे पता कैसे लगेगा कि आग उसे जला रही है ?"
"बेहोश होना किसी की मृत्यु होना नहीं है , बेहोश व्यक्ति का सिर्फ चेतन मस्तिष्क निष्किय होता है , अवचेतन मस्तिष्क नहीं—जिस्म में होने वाली तीव्र जलन को अवचेतन मस्तिष्क महसूस करेगा और जलन जब असहनीय हो जाएगी, तो चेतन मस्तिष्क भी जाग्रत हो उठेगा और इस प्रक्रिया के होने को ही हम किसी को होश में आना कहते हैं।"
"मतलब यह कि जब आग लगाई गई , तब पुरुष बेहोश था और स्त्री बेहोश नहीं थी।"
"पुरुष के जीवित बचने से ही यह बात जाहिर है।"
चमकदार आंखों वाले आंग्रे ने कहा— "अब मेरे दिमाग में एक कहानी बन रही है, मार्श।" '
“कैसी कहानी ?"
"इरादतन मकान के अन्दर दाखिल होकर किसी ने इसकी हत्या की—हत्या के बाद हत्यारा लाश को ठिकाने लगाने की कोई तरकीब सोच ही रहा था कि पुरुष मकान में आ जाता है—घबराया हुआ हत्यारा हथौड़ी की चोट से उसे बेहोश कर देता है—पुरुष किसी को हत्यारे के बारे में न बता सके , इसीलिए हत्यारा पुरुष को भी खत्म कर लेने का निर्णय लेता है—बौखलाहट में एक ही तरकीब उसके दिमाग में आती है—बेहोश व्यक्ति को भी लाश के साथ ही राख कर देने की , क्योंकि इस तरह उसकी समझ के मुताबिक आग लगने के बाद यहां उसके विरुद्ध कोई सबूत भी बाकी रह जाने वाला नहीं था—किचन से मिट्टी के तेल की कनस्तरी लाकर वह ऐसा करता है , मगर इस फैक्ट को भूल जाता है कि बेहोश व्यक्ति आग लगाते ही होश में आ जाएगा।" कहने के बाद आंग्रे सेफ की तरफ बढ़ गया।
सेफ बुरी तरह काली पड़ी हुई और गीली थी।
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05-18-2020, 02:29 PM,
#26
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
उनके चारों तरफ अच्छी-खासी भीड़ लग चुकी थी।
लोग पिता और पुत्र के उस अजीब-से रोमांचक मिलन को देख रहे थे—देखने वाले उस लाल जर्सी वाले मासूम , प्यारे और खूबसूरत बच्चे की दीवानगी देखते ही रह गए थे , जिसके छिले हुए घुटनों से अभी तक खून बह रहा था। जाने किस भावना से प्रेरित युवक उसे अपने से लिपटाए कांप रहा था और साथ ही अपना दिमाग उसे अन्तरिक्ष में तैरता-सा महसूस हो रहा था।
उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह बच्चा उसे अपना पापा क्यों कह रहा है ?
अभी वह बच्चे से अलग होने और कोई सवाल करने का होश भी नहीं जुटा पाया था कि बच्चों की रिक्शा का चालक बेतहाशा भागता हुआ वहां पहुंचा—वह ‘विशेष....विशेष’ करके चिल्ला रहा था। भीड़ के साथ ही बच्चे और युवक ने भी उसकी तरफ देखा।
हांफता हुआ रिक्शा चालक बोला —“तुम्हें क्या हुआ विशेष ?"
"देखते नहीं रिक्शा वाले—मेरे पापा मिल गए हैं ?" लड़के ने मासूम आवाज में कहा।
"तुम्हारे पापा …मगर....।"
वह कुछ कहता-कहता रुक गया और आश्चर्य के साथ युवक की तरफ देखने लगा—युवक स्वयं हक्का-बक्का-सा उसकी तरफ देख रहा था। रिक्शा वाले ने पूछा — "भला आप विशेष के पिता कैसे हो सकते हैं ?"
"क्या इस बच्चे का नाम विशेष है ?" उसके इस प्रश्न पर चारों तरफ खड़ी भीड़ चौंकी थी , साथ ही बच्चे ने कहा — "आप कैसी बातें कर रहे हैं पापा , क्या आप मेरा नाम नहीं जानते हैं ?"
हैरत में डूबे युवक ने एक नजर विशेष पर डाली , फिर रिक्शा चालक से पूछा —"विशेष कहां रहता है।"
"गांधी नगर में।"
"क्या तुम इसके पापा को जानते हो ?"
"जी...जी।" रिक्शा चालक चकित-सा था— “ जानता तो नहीं हूं, मगर बीबीजी कहती हैं कि आज से तीन महीने पहले विशेष के पिता का इन्तकाल हो चुका है।"
"बीबीजी कौन ?"
"विशेष की मम्मी।" '
"तुम झूठ बोलते हो रिक्शा वाले।" विशेष ने एकदम प्रतिरोध किया—“मेरी मम्मी ने मुझसे कहा था कि पापा मेरे लिए ढेर सारी टॉफियां लेने आकाश में गए हैं—क्या मैं आपको जानता नहीं हूँ पापा—मेरे लिए टॉफी लेने गए थे न आप।"
"हां बेटे—हां।" कहकर युवक ने उसे गोद में उठा लिया। ऐसा शायद विशेष के भोले अन्दाज की वजह से हुआ था। बड़ी ही मासूमियत के साथ कहा था उसने और कहने के साथ ही उसकी झील-सी गहरी नीली और बड़ी-बड़ी आंखों में पानी था।
एकाएक युवक को ध्यान आया कि यहां , इतनी भीड़ के सामने ये अटपटी बातें करना उसके हित में नहीं है—उन अटपटी बातों को सुनकर कोई पुलिस को बुला सकता है या ड्यूटी पर तैनात कोई पुलिसमैन स्वयं भी यहां आ सकता है—इस वक्त किसी भी चक्कर में उलझकर उसका पुलिस के हत्थे चढ़ना खतरनाक है , अत: वहां से बच निकलने की गर्ज से बोला—“आओ बेटे , अब घर चलें।"
"चलो पापा , मम्मी आज बहुत खुश हो जाएंगी।" कहकर खुशी से लगभग झूमते हुए विशेष ने उसके गले में अपनी बांहें डाल दीं।
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05-18-2020, 02:29 PM,
#27
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
पहले तो राजाराम अपनी दुकान में दाखिल होते पुलिस इंस्पेक्टर को देखते ही हड़बड़ा गया था और उस वक्त तो उसके चेहरे पर हवाइयां ही उड़ने लगीं , जब एक कमीज काउण्टर पर डालते हुए इंस्पेक्टर ने सवाल किया —“ क्या तुम इसे पहचानते हो ?"
"ज...जी—मैं समझा नहीं, साहब।"
"याद करके बताओ , यह कमीज तुमने कब और किसके लिए सिली थी ?"
"ए...ऐसे कहीं याद रहता है साहब ?"
"बको मत—तुम्हें याद करना होगा , यह एक हत्या का मामला है।"
"ह.....हत्या.....किसकी हत्या हो गई है साहब ?" कहते हुए राजाराम का न केवल चेहरा ही फक्क पड़ गया था , बल्कि उसकी आवाज भी बुरी तरह कांप गई थी—कदाचित् इस वजह से आंग्रे को शक हो गया कि राजाराम कुछ छुपा रहा है , झपटकर उसने दोनों हाथों से राजाराम का गिरेबान पकड़ा और उसे आतंकित करने के उद्देश्य से दांत भींचकर गुर्राया— “अगर तुमने सब कुछ सच-सच नहीं उगल दिया तो इस हत्या के जुर्म में मैं तुम्हीं को फंसा दूंगा—बोलो।"
"व...वो साहब , बात ऐसी है कि एक औरत तीन दिन पहले मुझसे एक ही नाप के ढेर सारे कपड़े सिलवाकर ले गई थी , वे सभी कपड़े मर्दाना थे—यह कमीज उन्हीं में से एक है।"
इंस्पेक्टर आंग्रे की आंखें अजीब-से अन्दाज में सिकुड़ गईं , बोला— “क्या उसके साथ वह आदमी नहीं था , जिसके नाप के कपड़े सिले थे ?"
"जी नहीं।"
"उस औरत का हुलिया?”
जवाब में राजाराम ने जो बताया , वह वही हुलिया था , जो इंस्पेक्टर आंग्रे को भगवतपुरे में स्थित दुर्घटनाग्रस्त मकान के आस-पड़ोसियों ने बताया था। किसी गहरी सोच में ड़ूबते हुए आंग्रे ने पूछा— “क्या तुमने उससे यह नहीं पूछा कि एक साथ इतने कपड़े वह क्यों सिलवा रही है—और जिसके वे कपड़े हैं , वह कहां है ?"
"स...साहब...।"
"सब कुछ बिल्कुल साफ-साफ बताओ। अगर तुमने कुछ छुपाया और आगे चलकर मुझे इस बारे में कोई जानकारी मिली तो मुजरिम को बचाने के आरोप में मैं तुम्हें भी फंसा दूंगा।”
"स...साहब , कपड़ों की सिलाई के अलावा उसने मुझे दस हजार रुपए भी दिए थे।"
"दस हजार रुपए ?" आंग्रे की आंखें सिकुड़कर बिल्कुल गोल हो गईं। उत्सुकतापूर्वक उसने पूछा— "ये रुपए उसने तुम्हें किसलिए दिए थे ?"
"उसने कहा था साहब कि एक आदमी मेरी दुकान पर यह पूछता हुआ अएगा कि ‘मैं कौन हूं'—मैं उसे पहचानने का नाटक करूं , साथ ही जॉनी कहकर उसे पुकारूं—यानि मैं उसे यह बताऊं कि उसका नाम जॉनी है और वह भगवतपुरे के एक मकान में रहने वाली रूबी नामक एक स्त्री का पति है। उस औरत ने अपना नाम रूबी ही बताया था।"
"क्या बकवास कर रहे हो , दुनिया में ऐसा भला कौन होगा , जो खुद को न जानता हो ?"
"जब रूबी नाम की औरत मुझे यह सब कुछ समझा रही थी , तब मैंने भी उससे यही पूछा था , जवाब में उसने बताया कि उसका पति अपनी याददाश्त गंवा बैठा है , वह उसे अपनी पत्नी मानने से ही इन्कार करता है , उसे विश्वास आ जाए , इसीलिए वह मुझे गवाह बना रही है और दस हजार रुपए इस बात के दे रही है कि मैं इस सारे मामले का जिक्र किसी अन्य से न करूंगा—मुझे लालच आ गया साहब , दस हजार के फेर में पड़ गया मैं—सोचा कि यदि मुझे दस हजार मिलते हैं और मेरी मदद से किसी को अपना खोया हुआ पति मिलता है तो इसमें बुराई क्या है, म...मुझे नहीं मालूम था साहब कि बात इतनी बढ़ जाएगी।"
"विस्तार से वह सब कुछ बताओ , जो तुमने उस औरत के कहने पर किया।"
राजाराम ने युवक के अपनी दुकान पर पूछने से लेकर उसे भगवतपुरे के मकान में पहुंचाने तक की सारी घटना विस्तारपूर्वक बता दी। सुनकर हालांकि खुद आंग्रे को अपना दिमाग किसी तेजी से घूमने वाली फिरकनी के समान महसूस हो रहा था , परन्तु फिर भी उसने सवाल क्रिया।
"क्या तुम उस युवक से दुआ-सलाम करने वालों में से किसी को जानते हो ?"
"नहीं साहब।"
इंस्पेक्टर आंग्रे बिखरी हुई कड़ियों को जोड़ने लगा , कुछ देर शांत रहने के बाद बोला—“मेरे साथ चलो।"
"क...कहां साहब ?" राजाराम का चेहरा एकदम सफेद पड़ गया।
"जॉनी या रूपेश में से एक अस्पताल में है , तुम्हें बताना है कि वह दोनों में से कौन है ?"
¶¶
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05-18-2020, 02:30 PM,
#28
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
विशेष उसे गांधीनगर की एक ऐसी बस्ती में ले गया , जहां अधिकांश मध्यम आय वर्ग के मकान थे …और जिस मकान को विशेष ने अपना मकान कहा , वह बस्ती से थोड़ा दूर हटकर एकान्त में था—उसके इर्द-गिर्द के प्लाट अभी खाली पड़े थे।
दो सौ गज के प्लाट पर खड़ा यह दो-मंजिता मकान था।
पूरी आत्मीयता के साथ नन्हां विशेष खींचकर उसे मकान के अन्दर ले गया और चिल्लाने लगा—“दादी, मम्मी.....कहां हो तुम , देखो …मैं किसको लाया हूं ?"
किंकर्तव्यविमूढ़-सा युवक उसके साथ आंगन में पहुंच गया।
आंगन काफी बड़ा था।
सामने वाले कमरे से एक बूढ़ी महिला बाहर निकलती हुई बोली—"अरे, तू जा गया , वीशू ?"
"हां दादी , देखो मैं किसे लाया हूं ?"
"कौन है बेटा ?" बढ़िया ने कम हो गई अपनी आंखों की ज्योति का प्रयोग करने की कोशिश करते हुए कहा और आंखों के ऊपर हाथ रखकर युवक को देखने लगी।
"मेरे पापा आए हैं, दादी। ”
"प...पापा ?” युवक को ध्यान से देखती हुई बुढ़िया ने कहा , वह कुछ आगे बढ़ी और फिर अचानक ही बांहें फैलाकर युवक की तरफ दौड़ती हुई चीखी—"अरे मेरा बेटा , मेरा सर्वेश—हां , तू मेरा सर्वेश ही है।"
आगे बढ़कर युवक ने बड़ी जल्दी से उसे संभाल न लिया होता तो खुशी और जोश की अधिकता के कारण शायद यह गिर ही पड़ती। युवक ने उसे बांहों में भर लिया और उससे लिपटी थर-थर कांप रही बुढ़िया चीख रही थी— “मेरा सर्वेश मिल गया है—हां , तू ही मेरा सर्वेश है—सब बकते थे , ये जन्मजले दुनिया वाले झूठ ही कहते थे कि मेरा बेटा मर गया है—हुं SS—मेरा सर्वेश कोई मर सकता है—देखो , ये रहा मेरा बेटा—हा-हा-हा—मेरा बेटा जिन्दा है , मेरा सर्वेश भला कभी मर सकता है—हा-हा-हा—मेरा बेटा जिन्दा है , मेरा सर्वेश भला कभी मर सकता है …हा-हा-हा।"
वह कुछ ऐसे वहशियाना ढंग से हंसने लगी थी कि युवक के जिस्म में झुरझुरी-सी दौड़ने लगी। उसे लगा कि यह बूढ़ी औरत शायद पागल है—वह पागलों की तरह ही हंसती चली जा रही थी—युवक ने उसे अपने से अलग करने को कोशिश की—मगर बुढ़िया ने बहुत ही कसकर पकड़ रखा था उसे।
जैसे डर हो कि वह कहीं भाग जाएगा।
युवक को लग रहा था कि उसके दिमाग की मशीनरी में अब जंग लग चुका है , जाम हो गई है वह—सोचने-समझने या किसी बात का सही अर्थ निकालने की क्षमता नहीं महसूस हो रही थी उसे , जबकि बुढ़िया ने उससे चीखकर पूछा— "तू सर्वेश ही है न , तू मेरा बेटा ही है न—बोल , तू रश्मि का पति है न ?"
"हां...हां मांजी।" अवाक्-से युवक के मुंह से निकल गया।
“खबरदार , जो तुमने खुद को रश्मि का पति कहा।" अचानक ही वहां एक कर्कश आवाज गूंजी। विशेष और बूढ़ी औरत के साथ पलटकर युवक ने भी आवाज की दिशा में देखा। आवाज मकान के मुख्य द्वार से उभरी थी और वहां खड़ी संगमरमर की एक प्रतिमा को देखता ही रह गया युवक , चाहकर भी दृष्टि उस पर से हटा न सका।
उधर , उस युवक पर नजर पड़ते ही संगमरमर की वह प्रतिमा भी बुरी तरह चीख पड़ी थी , जाने क्यों—युवक के चेहरे पर दृष्टि पड़ते ही उसका मुंह खुला-का-खुला रह गया।
सारे जहां की हैरत मानो सिर्फ और सिर्फ उसी मुखड़े पर सिमट आई थी।
युवक के चेहरे पर उसकी दृष्टि जमकर रह गई।
जबकि युवक खुद उस मुखड़े से दृष्टि नहीं हटा पा रहा था …उस मुखड़े से , जिसके लिए सारे जहां से शर्त लगाकर यह दावा पेश कर सकता था कि यह मुखड़ा दुनिया की सभी हसीनाओं से कई गुना ज्यादा खूबसूरत है—निहायत ही सुन्दर थी रश्मि।
छोटी-सी , मासूम—रुई की बनी गुड़िया जैसी।
मुखड़ा गोल था उसका , रंग वैसा ही जैसा एक चुटकी सिन्दूर मिले मक्खन का हो सकता है—सुतवां नाक , गुलाब की पंखड़ियों से कोमल और गुलाबी होंठ—चौड़े मस्तक और कमान के आकार की भौंहों वाली रश्मि की आंखें नीली थीं।
किसी फाइव स्टार होटल के 'स्विमिंग पूल ' में भरे स्वच्छ नीले जल-सी आंखें—तांबे के-से रंग के लम्बे बालों को बड़ी सख्ती के साथ सिमेटकर बांधे हुए थी वह—ऐसी अपूर्व सुन्दरी जिसे देखकर स्वयं सुन्दरता भी ईर्ष्या की लपटों की शिकार होकर राख में बदल जाए।
मगर जाने क्यों? उसे विधवा के लिबास में देखकर युवक की छाती पर एक घूंसा-सा लगा—सस्ती परन्तु धुली हुई बेदाग सफेद साड़ी पहने थी वह—कर्फ्यूग्रस्त सड़क-सी सूनी पड़ी थी उसकी मांग—गोरी , गोल , भरी-भरी बांहों में एक भी चूड़ी नहीं थी।
एक नन्हीं-सी गुड़िया को इस रूप में देखकर युवक को जाने क्यों धक्का-सा लगा। उसकी इच्छा हुई कि रश्मि को यह लिबास पहनाने वाले का मुंह नोंच ले , जबकि कुछ देर तक उसकी तरफ असीमित हैरत के साथ देखने के बाद एकाएक ही रश्मि की नीली आंखें सिकुड़ती चली गईं …चिंगारियां-सी बरसाने लगीं वे आंखें—मुखड़ा संगमरमर के किसी पत्थर की तरह ही साफ हो गया। युवक पर दृष्टि जमाए ही वह आगे बढ़ी।
उसके नजदीक पहुंची , मोतियों-से दांत भींचकर गुर्राई—"कौन हो तुम ?"
"मैं...मैँ।" युवक चीखता गया।
"अरे, क्या तूने इसे पहचाना नहीं रश्मि बेटी—यह मेरा बेटा है—तेरा सर्वेश।"
"प...प्लीज मां , आप खामोश रहिए—कितनी बार कह चुकी हूं कि आप चाहे जिसको अपना बेटा कहती फिरा करें , मगर मेरा पति न कहें किसी को।"
"ये कोई थोड़ी हैं, मम्मी-मेरे पापा...। ”
'चटाक्...। ' रश्मि का एक जोरदार चांटा विशेष के गाल पर पड़ा।
मासूम की चीख सारे आँगन में गूंज गई।
जाने क्यों युवक को यह सब कुछ अच्छा नहीं लगा—सहमे हुए विशेष को खींचकर अपने गले से लगा लेने की प्रबल आकांक्षा दिल में
उबल पड़ी। स्वयं को रोक नहीं सका वह।
विशेष को पकड़ने के लिए हाथ आगे बढ़ाया।
रश्मि ने पहले ही खींचकर उसे अपने अंगों से लिपटा लिया। नीले नेत्रों से चिंगारियां-सी बरसाती हुई वह गुर्राई—"तुम्हारे इस जाल में मां फंस सकती हैं …मासूम वीशू धोखा खा सकता है , मगर मैं नहीं—मैं जानती हूं कि तुम कोई बहरूपिये हो।"
"म.....मैँ।"
"निकल जाओ यहां से।"
युवक चकरा गया , बोला— "अगर मैं सर्वेश नहीं हूं तो यह मां मुझे …।"
"उन्होंने अपने बुढ़ापे का एकमात्र सहारा , अपना जवान बेटा खोया है—तब से वे पागल हो गई हैं—हर युवक को सर्वेश कहने लगती हैं , अपना बेटा कहकर हरेक से लिपट जाती , हैं।"
“ म …मगर विशेष ?"
"यह बच्चा है , तुम्हारी उस सूरत से धोखा खा गया है , जो बनाकर तुम यहां आए हो , मगर मैं इस किस्म के किसी धोखे का शिकार होने वाली नहीं हूं …मैं जानती हूं कि तुम सर्वेश नहीं हो सकते—तुम कोई बहुरूपिये हो—ऐसे बहुरूपिये जो चेहरे पर उनका मेकअप करके शायद हमें ठगने आया है।"
"मेकअप?”
“हां , मैं जानती हूं कि तुम्हारे चेहरे पर मेकअप है।"
"आप यकीन कीजिए , मेरे चेहरे पर कोई मेकअप नहीं है।"
नीली आँखों में नफरत के चिन्ह उभर आए। खूबसूरत मुखड़ा कुछ और ज्यादा सख्त हो गया। बोली— “ क्या तुम यह कहना चाहते हो कि तुम सर्वेश हो ?”
“नहीं।”
"फिर ?”
"केवल यह कि आप कैसे कह रही हैं कि मैं सर्वेश नहीं हो सकता ?"
"इसीलिए क्योंकि उनकी लाश मैंने अपनी आंखों से देखी है—उनकी लाश के मस्तक पर इन कलाइयों को पटककर सारी चूड़ियां तोड़ी हैं मैंने—उनके मफलर से अपने मस्तक की बिंदिया , अपनी भांग का सिन्दूर पोंछा है।"
कहते-कहते उसका गला रुंध गया। नीली आंखें भर आईं।
कुछ देर तक अवाक्-सा युवक उसे देखता रहा। फिर बोला— "तो क्या मेरी शक्ल सर्वेश से मिलती है ?"
"म...मैं फिर कहती हूं कि यह नाटक बन्द करो—तुम मुझे ठग नहीं सकते , बाहर निकल जाओ इस घर से , वरना मैं पुलिस को बुला लूंगी।"
पुलिस का नाम बीच में आते ही युवक के तिरपन कांप गए—उसकी इच्छा हुई कि वहां से भाग खड़ा हो , मगर वहां आने के बाद जो नई गुत्थियां उसके जेहन में चकराने लगी थीं—वह उनका जवाब चाहता था। अत: बोला—"इस वक्त आप गुस्से में हैं , यकीन मानिए , मैं कोई बहुरूपिया नहीं हूं …शायद बचपन ही से यह मेरी असली शक्ल है—शायद इस शक्ल को देखकर ही विशेष रिक्शा में से कूद पड़ा था।"
"त...तुम रिक्शा में से कूद पड़े थे वीशू ?"
"हां मम्मी—पापा को देखकर।"
"अरे—तुझे तो चोट लगी है वीशू—घुटनों से खून बह रहा है—चल मेरे साथ।" उसकी चोट देखकर एकदम से बेचैन हो उठी रश्मि—सब कुछ भूल गई वह और विशेष को लेकर आंगन से ही शुरू होकर दूसरी मंजिल तक जा रही सीढ़ियों पर बढ़ती चली गई।
ढेर सारे प्रश्नों से घिरा युवक किंककर्तव्यविमूढ़-सा खड़ा उसे देख रहा था कि बूढ़ी मां उसके समीप सरक आई। धीमे से रहस्यमय अन्दाज में बोली— "रश्मि की किसी बात का बुरा मत मानना बेटा , पता नहीं किस कलमुंहे की लाश को सर्वेश की लाश समझकर बेचारी ने अपनी सारी चूड़ियां तोड़ डाली हैं—खुद को विधवा समझने लगी है यह—दिमाग में खराबी आ गई है , बेचारी रश्मि। सुहागिन बनने की उम्र में विधवा बन जाने पर भला किसका दिमाग ठिकाने रह सकता है ?"
युवक चौंककर बूढ़ी मां की तरफ देखने लगा।
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05-18-2020, 02:30 PM,
#29
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
अस्पताल के कमरे में , लोहे के बेड पर पड़े व्यक्ति पर नजर पड़ते ही राजाराम के कण्ठ से ऐसी ह्रदय विदारक चीख निकल पड़ी कि जिसने अस्पताल की नींव में रखी अंतिम ईंट को भी शायद झंझोड़कर रख दिया होगा।
बुरी तरह डर गया था वह। सहमकर पीछे हट गया।
अपनी आंखों पर हाथ रख लिया था उसने।
सचमुच रूपेश का चेहरा इतना भयानक हो गया था कि उसे देखकर किसी के भी कण्ठ से चीख निकल सकती थी। चेहरा अत्यन्त ही वीभत्स हो गया था—डरावना।
उसके सारे बाल जल चुके थे। काली जली हुई गंजी खोपड़ी नजर जा रही थी—जलकर चेहरे की खाल झुलस गई थी—ऐसी नजर आ रही थी जैसे चमगादड़ की खाल हो। दायां गाल पूरी तरह जल गया था—वहीं से रूपेश का जबड़ा साफ नजर आ रहा था , ज़बड़े के लम्बे-लम्बे भयानक दांत , फफोलेदार मोटे होंठ , जलने के बाद जाने कैसे नाक एक तरफ को मुड़-सी गई थी।
बुरी तरह भयभीत होकर कांपते हुए राजाराम ने कहा— "म...मुझे यहां से ले चलो साहब , मुझसे देखा नहीं जाता—म....मुझे डर लग रहा है।"
"ध्यान से देखो उसे और पहचानने की कोशिश करो कि वह जॉनी है या रूपेश ?" इंस्पेक्टर आंग्रे ने गुर्राहट भरे स्वर में उसे आदेश दिया।
कांपते हुए विवश राजाराम को ध्यान से वह डरावना चेहरा देखना ही पड़ा , बोला— "'यह तो रूपेश बाबू हैं साहब।"
"गुड।" कहने के बाद आंग्रे नर्स की तरफ मुखातिब होकर बोला— “थैंक्यू सिस्टर , अब आप इसके चेहरे को पट्टियों से ढक सकती हैं।"
“ मेन्शन नॉट।” कहती हुई नर्स ने वे पट्टियां पुन: रूपेश के जख्मी चेहरे और सिर पर लपेटनी शुरू कर दीं—जिन्हें इंस्पेक्टर आंग्रे की प्रार्थना पर ही उसने हटाया था।
राजाराम को साथ लिए आंग्रे बाहर निकल गया—गैलरी में उसकी टुकड़ी के कांस्टेबल खड़े थे। राजाराम को उनमें से दो के हवाले करता हुआ आंग्रे बोला— “ और सुनो, इस वक्त युवती द्वारा दिए गए दस हजार इसके घर पर हैं—इसे साथ लेकर उन्हें बरामद कर लो—और सुनो , इस वक्त यह पुलिस का मेहमान है।"
"स...साहब …म...मुझे गिरफ्तार क्यों कर रहे हैं आप ? मैंने कुछ नहीं किया है।" राजाराम चीखता ही रह गया , जबकि उसके किसी शब्द पर ध्यान दिए बिना इंस्पेक्टर आंग्रे तेजी के साथ वहां से चला गया।
दो मिनट बाद अस्पताल के ड्यूटी-रूम में खड़ा वह फोन पर कह रहा था— “जरा चटर्जी को बुला दीजिए—कहिए कि आंग्रे बात करना चाहता है।"
दूसरी तरफ से शायद होल्ड करने के लिए कहा गया था , क्योंकि ये कहने के बाद आंग्रे कुछ देर तक रिसीवर कान से लगाए खड़ा रहा और कुछ देर बाद एकदम बोला—"हां चटर्जी—क्या करू रहे हो ?"
"मजे कर रहे हैं।" दूसरी तरफ से आवाज उभरी।
"क्या तुम्हारे पास इस वक्त कोई केस नहीं है ?"
“ऐसा ही समझो।"
“तो तुम फौरन यहां , अस्पताल में चले आओ।" '
"आता हूं, मगर मामला क्या है ?”
"मेरे क्षेत्र में हत्या का बहुत ही जघन्य काण्ड हो गया है—बहुत ही उलझा हुआ मामला है चटर्जी , इसीलिए यहां सारे मामले पर तुम्हारे साथ बैठकर डिस्कस करना चाहता हूं। शायद कोई नतीजा निकल आये।"
"मैं आ रहा हूं प्यारे , दिमाग की नसों को झनझनाकर रख देने वाले मामलों की तो चटर्जी को तलाश रहती है—साली इनवेस्टिगेशन करने में मजा तो आए।"
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05-18-2020, 02:30 PM,
#30
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
युवक नहीं जानता था कि मां का प्यार क्या होता है। यह भी मालूम नहीं था कि यह प्यार उसे कभी मिला है या नहीं , मगर उस बूढ़ी मां ने जो कुछ किया , जितना प्यार उस पर बरसाया , उसे महसूस करके कई बार उसकी आंखें भर आईं।
इच्छा हुई कि उस बूढ़ी के कलेजे में मुखड़ा छुपाकर फूट-फूटकर रो पड़े।
वह उसे अपने कमरे में ले आई थी—छोटी-छोटी कनस्तरियों से निकाल-निकालकर वह उसे जाने क्या-क्या खिलाने लगी—उसने बहुत इन्कार किया , मगर एक न चली—आखिर वह एक मां के हत्थे चढ़ गया था और उसे अपने हाथों से जाने कब की रखी सूखी मिठाइयां खिलाईं।
इतना प्यार पाने के बावजूद भी युवक का दिमाग बुरी तरह उलझा हुआ था—कहना चाहिए कि वहीं जाकर , इन नई उलझनों में फंसने के बाद यह भूल गया था कि आज हमें दिन में वह कितना जघन्य हत्याकांड कर चुका है।
इस वक्त तो उसके दिमाग में तीन ही नाम कौंध रहे थे।
सिकन्दर , जॉनी और सर्वेश।
इनमें से कौन है वह ?
कहीं इस बूढ़ी मां की बात ही तो ठीक नहीं हैं—कहीं सचमुच ऐसा ही तो नहीं है कि उस नन्हीं-सी अभागिन ने किसी अन्य की लाश को ही सर्वेश की लाश समझकर अपनी चूड़ियां तोड़ डाली हों—कहीं मैं सचमुच सर्वेश ही तो नहीं हूं ?
सोचते-सोचते युवक का दिमाग थक गया।
एकाएक ही कमरे में विशेष आया , उसके दोनों घुटनों पर पट्टी बंधी हुई थी। उसे देखते ही युवक खड़ा हो गया —उसके नजदीक जाते हुए विशेष के सुर्ख होंठों पर ऐसी प्यारी मुस्कान थी कि युवक के दिल में गुदगुदी-सी होने लगी।
उसके नजदीक आकर विशेष ने कहा—"पापा।"
"हां...हां बेटे।" दिल में कहीं संगीत-सा बज उठा।
“ आपको मम्मी ने ऊपर बुलाया है।"
एक बार को धक् से रह गया युवक का दिल.....फिर असामान्य गति से धड़कने लगा , कुछ वैसी ही घबराहट उसके दिलो-दिमाग पर हावी हो गई जैसी तब हुई थी , जब इंस्पेक्टर चटर्जी सबके हाथ सूंघ रहा था.....मस्तक पर कुछ ऐसी ही अवस्था में पसीना छलछला उठा , जैसा बन्द मकान में रूपेश के जाने पर छलछलाया था—हालांकि वह स्वयं रश्मि से बातें करने का इच्छुक था , परन्तु जाने क्यों रश्मि के इस सन्देश को पाकर घबरा-सा उठा—मुंह से स्वयं ही निकल गया—"क...क्यों ?"
"मम्मी पूछने लगीं कि आप मुझे कहां मिले थे …मैंने बता दिया —सुनकर मालूम नहीं क्या सोचने लगीं , फिर बोलीं कि मैं आपको ऊपर बुला लाऊं।"
युवक चुप रह गया।
वह पुनः विचारों के जंगल में भटकने लगा था। उसे लगा— “ शायद विशेष की बात सुनकर रश्मि ने यह महसूस किया है कि मैं यहाँ जानबूझकर नहीं आया हूं—मैं उलझन में हूं तो क्या मेरी शक्ल ने उसे भी उलझन में डाल रखा होगा ?'
'मुझसे बात करके शायद वह उस उलझन से निकलना चाहती है—मैं भी तो यही चाहता हूं—पता तो लगे कि आखिर ये सर्वेश का चक्कर क्या है ?'
'म...मगर अकेले में कहीं मुझ पर पुन: वही जुनून सवार न हो जाए।'
इस एकमात्र विचार ने उसे अन्दर तक हिलाकर रख दिया—रूबी की लाश आंखों के सामने चकरा उठी और घबराकर बोला— "त...तुम भी चलो बेटे।"
"मम्मी ने भी तो यही कहा था कि मैं आपके साथ आऊं।" विशेष ने कहा।
¶¶
"जिस मकान में दुर्घटना घटी है , उसके मालिक का कहना है कि उस औरत ने , जिसने अपना नाम रूबी बताया था , मकान चार दिन पहले ही किराए पर लिया था।"
"केवल चार दिन पहले ही ?"
"हां।" आंग्रे ने बताया— “ पड़ोसियों के बयान से भी यही स्पष्ट हुआ है—उनका कहना है कि तीन दिन पहले ही यह औरत मकान में जाकर बसी थी—कोई उसका नाम तक नहीं जानता है। जब से वह मकान में आई थी , तब से मकान में ही रही—मजे की बात ये है कि खुद मकान मालिक भी औरत का नाम बताने से ज्यादा और कुछ नहीं बता सका।”
"यानि मकतूल खुद एक अत्यन्त रहस्यमय व्यक्तित्व की है। खैर , आगे बढ़ो।"
"इसके बाद मैं घंटाघर पर स्थित राजाराम की दुकान पर पहुंचा।" कहने के बाद आंग्रे ने उसे राजाराम से हुई बातें , रूपेश की शिनाख्त आदि सभी बातें बता दीं।
चटर्जी ने एक सिगरेट सुलगाई , धुआं छोड़ता हुआ बोला— “अब पूछो प्यारे , ऐसी क्या बात है , जो तुम्हारी बुद्धि के किसी भी 'खांचे' में 'फिक्स ' नहीं हो रही है ?"
"अगर भगवतपुरे में रूबी और जॉनी को कोई भी नहीं जानता था तो रास्ते में जॉनी से दुआ-सलाम किन लोगों ने की थी......जॉनी से 'जमने ' के लिए किस युवक ने कैसे कह दिया था ?"
"वे सभी राजाराम की तरह के लोग थे—रूबी से पैसे लेकर अभिनयकर्ता।"
"इस सबका मतलब तो यह हुआ कि कथित रूबी एक याददाश्त खोए व्यक्ति के दिमाग में यह बात बैठाना चाहती थी कि वह उसका पति जॉनी है।"
“करेक्ट।"
"जाहिर है कि रूबी एक खतरनाक षड़्यन्त्र रच रही थी—फिलहाल नजर आता है कि हत्यारा याददाश्त भूला व्यक्ति ही है.......वह कौन है—कहां गया —उसने हत्या क्यों की ?"
"तुम जरा याददाश्त खोए व्यक्ति का वह हुलिया बयान करो जो राजाराम ने तुम्हें बताया होगा।"
आंग्रे हुलिया बयान करता चला गया और चटर्जी की आंखें दो बहुत ही कीमती हीरों की तरह चमकने लगी थीं , आंग्रे के चुप होने पर वह बहुत ही उत्तेजित अवस्था में चीख पड़ा—“ओह! माई गॉड!”
"आखिर बात क्या है ?"
"इस काण्ड के मुजरिम से शायद मैं मिल चुका हूं।"
"क.....क्या कह रहे हो तुम? वह तुम्हें भला कहां मिल गया ?"
"हरिद्वार पैसेंजर में।""
"व...वह भला वहां क्या कर रहा था ?"
"इस जघन्य हत्याकाण्ड को करने के बाद शायद भाग रहा था वह।" चटर्जी ने कहा और फिर खुद ही से बड़बड़ाकर बोला—"अब मेरी समझ में उसके फक्क चेहरे , हड़बड़ाहट और नर्वसनेस का अर्थ आ रहा है। अपना नाम उसने सिकन्दर बताया था—लारेंस रोड पर रहता है , पिता का नाम क्या बताया था उसने—याद नहीं आ रहा है , खैर—उस कागज में सब कुछ दर्ज है—हम उसके घर तक पहुंच सकते हैं आंग्रे।"
"मैँ कुछ नहीं समझ पा रहा हूं चटर्जी—क्या बड़बड़ा रहे हो तुम ?"
“म.....मगर उसकी याददाश्त गुम तो नहीं लगती थी।" चटर्जी किसी पागल के समान बड़बड़ाता ही चला गया—"याददाश्त गुम—अभी कुछ दिन पहले कहां पढ़ा था मैंने—कहीं पढ़ा था कि एक युवक की याददाश्त गुम है—शायद अखबार में।"
“तुम क्या बड़बड़ा रहे हो चटर्जी ?"
"आंग्रे—प्लीज़ , अस्पताल में अखबार तो आता ही होगा —जरा पिछले दस दिन के अखबार मंगा लो , मुझे लगता है कि तुम्हारे मुजरिम की तस्वीर अखबार में मिल जाएगी।"
हालांकि आंग्रे ठीक से कुछ समझ नहीं सका था , फिर भी पिछले दस दिन के अखबार उसने मंगवा लिए—अखबार आने के बीच में चटर्जी ने उसे हरिद्वार पैसेंजर में हुई घटना विस्तारपूर्वक सुना दी। सुनकर आंग्रे के चेहरे पर हर तरफ उत्साह नजर जाने लगा।
उसे लग रहा था कि वह आज ही इस हत्याकांड के दोषी को पकड़ लेगा।
जो मामला उसे कुछ ही देर पहले बहुत चक्करदार और उलझा हुआ नजर आ रहा था , वह अचानक ही सचमुच बेहद सीधा-सादा नजर आने लगा—अखबारों को खंगालता चटर्जी एकदम उछल पड़ा— “य....यही है.....यही है, आंग्रे। ”
"ये देखो , अखबार में दो फोटो छपी हैं—एक युवक की , दूसरी उसकी जेब से निकले पर्स में से किसी युवती की—यह उसी युवक की फोटो है , जो मुझे हरिद्वार पैसेंजर में मिला था , जरा इन फोटुओं के साथ छपे मैटर को पढ़ो।"
आंग्रे ध्यान से फोटो को देखने के बाद इंस्पेक्टर दीवान द्वारा छपवाए मैटर को पढ़ने लगा , पढ़ने के बाद बोला— “अब इसमें कोई शक नहीं रह गया है कि यही हत्यारा है।"
"अभी शक है आंग्रे प्यारे , अन्तिम शिनाख्त बाकी है।"
"क्या मतलब ?"
"राजाराम को ये फोटो दिखाए जाने चाहिए।"
"ठीक है , मैं देखता हूं कि फोर्स राजाराम के साथ वापस लौटी है या नहीं।" कहने के साथ ही उत्साहित आंग्रे उठकर खड़ा हो गया। कमरे से बाहर गया और पांच मिनट बाद ही राजाराम को लिए कमरे में दाखिल हुआ।
इंस्पेक्टर चटर्जी को समझने में देर नहीं लगी कि साथ वाला व्यक्ति राजाराम है—वह सहमा हुआ था—चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं , जब चटर्जी ने पुलिसिए अन्दाज में उसे ऊपर से नीचे तक घूरा तो बेचारे राजाराम की सिट्टी-पिट्टी ही गुम हो गई। आंग्रे ने अखबार उसके सामने फेंककर कहा— "इन दोनों फोटुओं को पहचानो।"
युवक के फोटो पर दृष्टि पड़ते ही राजाराम उछल पड़ा , बोला , "अ...अरे …यह तो वही युवक है साहब , जिसकी याददाश्त गुम थी—जॉनी।"
आंग्रे सफलता की जबरदस्त खुशी के कारण अपने जिस्म के सारे रोयें खड़े महसूस कर रहा था , जबकि चटर्जी ने राजाराम से पूछा—“और वह युवती का फोटो ?"
"मैं...मैं इसे नहीं जानता साहब।"
"ध्यान से देखकर बताओ , कहीं यह वही औरत तो नहीं है , जिसने तुम्हें रुपये दिए थे ?"
राजाराम ने पूरे विश्वास के साथ कहा—"यह वह नहीं है साहब। ”
"तुम जा सकते हो।" कहने के बाद चटर्जी ने कुर्सी की पुश्त से पीठ टिका दी , राजाराम चुपचाप कमरे से बाहर चला गया , आंग्रे ने पूछा— "किसी नतीजे पर पहुंचे चटर्जी ?"
"सारा मामला हल हो चुका है।"
“कैसे ?”
"जिस हत्यारे का तुम्हारे पास नामो-निशान नहीं था , उसका फोटो सामने है , नाम और एड्रेस मैं बता रहा हूं—जाकर गिरफ्तार कर लो , अब इस केस में रखा ही क्या है ?"
"अगर यह नाम-पता गलत हुआ तो ?"
"गलत!" चटर्जी उछल पड़ा—"हां , यह बात जमती है, आंग्रे—वह नाम-पता आदि सब कुछ गलत हो सकता है और फिर जिसकी याददाश्त गुम है , वह भला अपना नाम बता ही कैसे सकता है ?"
"उसने यूं ही , जो मुंह में आया नाम बक दिया होगा।"
“ऐसा हो सकता है।" चटर्जी उससे पूरी तरह सहमत था और शायद इसीलिए वह अचानक दुबारा सतर्क नजर आने लगा था , बोला—“मेडिकल इंस्टीट्यूट अथवा इंस्पेक्टर दीवान से यह मालूम कर सकते हैं कि वह याददाश्त खोया व्यक्ति कब , किन परिस्थितियों में अस्पताल से बाहर निकला।"
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