Desi Porn Kahani विधवा का पति
05-18-2020, 02:30 PM,
#31
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
"शायद होश आने पर रूपेश नाम का वह नौजवान भी उसके बारे में कुछ बता सकेगा।"
"मैँने डॉक्टर से कह रखा है , रूपेश के होश में आते ही सूचना दी जाएगी। ”
"हालांकि इस केस की गुत्थियां अभी बुरी तरह उलझी हुई हैं—ऐसे ढेर सारे सवाल हैं , जिनमें से किसी का जवाब हमारे पास नहीं है—यह कि रूबी उसे जॉनी बनाने की कोशिश क्यों कर रही थी ? यह कि युवक ने उसी का कत्ल क्यों कर दिया ? वह अस्पताल से कैसे निकला और राजाराम की दुकान पर ही क्यों पहुंचा आदि?"
तभी कमरे में दाखिल होती हुई नर्स ने सूचना दी— "मिस्टर रूपेश होश में आ रहे हैं।"
दोनों ही इंस्पेक्टर एक साथ ऑन होने वाले बल्बों की तरह खड़े हो गए।
¶¶
विशेष को साथ लिए युवक ने धड़कते दिल से ऊपर वाले कमरे में कदम रखा और दरवाजे पर आकर रुक जाना पड़ा उसे—कमरे के , दरवाजे के ठीक सामने वाली दीवार पर एक बहुत बड़ा फोटो लगा हुआ था।
उसका अपना फोटो।
युवक की आंखें उस पर चिपककर रह गईं—दिल धक्...धक् कर रहा था—हालांकि फर्क था , परन्तु फोटो उसे अपना ही लगा-फर्क सिर्फ दाढ़ी-मूंछ , आंखों पर चढ़े सफेद लैंसों वाले चश्मे और हेयर स्टाइल का था , यानि युवक का चेहरा क्लीन शेव था , जबकि फोटो में यह गहरी मूंछों , घनी दाढ़ी में था—हेयर स्टाइल में मामूली फर्क—आंखों पर चश्मा।
युवक को याद नहीं आया कि उसने कभी इस ढंग की दाढ़ी-मूंछें रखी हैं या नहीं—दरवाजे पर ठिठका अभी वह यह सोच ही रहा था कि यदि एक महीने वह शेव न कराए तथा आंखों पर चश्मा पहन ले और फोटो खिंचवा ले तो उसमें और इस फोटो में कोई फर्क नहीं रहेगा।
फोटो के नीचे , स्टैंड पर अगरबत्तियां जल रही थीं , सारे कमरे में अगरबत्तियों की तीव्र खुशबू-सी की हुई थी—चाहकर भी युवक उस फोटो से नजर नहीं हटा पा रहा था...कि कमरे में रश्मि की आवाज गूंजी— "वह वीशू के पापा का फोटो है।"
युवक ने बौखलाकर रश्मि की तरफ देखा।
सफेद लिबास में वह बहुत पाक लग रही थी—कुरान या गीता की तरह।
युवक चाहकर भी कुछ नहीं कह सका , जबकि विशेष ने फौरन ही चटकारा लिया— “ वाह मम्मी—क्या मजे की बात है , आप पापा से ही कह रही हैं कि यह पापा का फोटो है। ”
"वीशू!" रश्मि का लहजा सख्त था— “तुम हमें डिस्टर्ब नहीं करोगे , और यदि किया तो हम तुम्हें यहाँ से बाहर निकाल देंगे।"
बड़े मासूम अन्दाज में विशेष ने युवक की तरफ देखा।
“ऐसा मत कहिए , बच्चों की तो आदत होती है।"
"आपको ऐसा कोई अधिकार नहीं मिला है मिस्टर , जिसके तहत आप मुझे विशेष को डांटने से रोक सकें।" रश्मि का लहजा पत्थर की तरह सख्त और खुरदरा था।
युवक सकपका गया।
पहले तो उसने कहा ही बहुत हिम्मत करके था , दूसरे—उसके वाक्य को बीच ही में काटकर रश्मि ने चेतावनी-सी दी थी , इस बार भी युवक ने बहुत हिम्मत करके कहा— “स....सॉरी।"
संगमरमर के मुखड़े पर मौजूद तनाव कुछ कम हुआ , वातावरण को सामान्य बनाने की गरज से ही युवक ने कहा— "निश्चय ही सर्वेश से मेरी शक्ल हू-ब-हू मिलती है। केवल दाढ़ी-मूंछ , चश्मे और हेयर स्टाइल में फर्क है , मगर कम-से-कम विशेष के लिए यह फर्क काफी है—कहने का मतलब यह कि मेरा चेहरा क्लीन शेव तथा चश्मे रहित होने पर भी विशेष का सड़क पर मुझे "पापा ' कहकर पुकारना आश्चर्यजनक है।"
"यदि वीशू ने अपने पिता का सिर्फ दीवार पर लगा यह चित्र ही देखा होता तो शायद इससे वह भूल नहीं होती , मगर इसने उनके दूसरे फोटो भी देखे हैं , जैसे यह।" कहकर रश्मि ने अपने हाथ में दबा पासपोर्ट साइज का फोटो उछाल दिया।
युवक ने फोटो को फर्श से उठाकर देखा।
वह दावे के साथ कह सकता था कि फोटो उसका अपना ही है—सर्वेश के इस फोटो में उसके चेहरे पर दाढ़ी-मूंछ और चश्मा नहीं था। हां—हेयर स्टाइल में अब भी फर्क था—इस फोटो पर युवक की नजर चिपककर रह गई। वह सोचने लगा कि क्या वास्तव में दो व्यक्तियों की शक्ल इस सीमा तक मिल सकती है ? कहीं मैं सर्वेश ही तो नहीं हूं ?
कहीं रश्मि मेरी पत्नी और विशेष मेरा बेटा ही तो नहीं है ?
"इस फोटो के अलावा विशेष ने अपने पापा को अनेक बार बिना दाढ़ी मूछों और चश्मे के देखा है , शायद इसीलिए सड़क पर आपको देखकर वह...। ”
"प....प्लीज मम्मी—पता नहीं पापा से आप कैसी बातें कर रही हैं , ये मेरे पापा.....।"
"गेट आउट!" अत्यधिक ही रश्मि गुस्से में चीख पड़ी। युवक ने उसके चेहरे को बुरी तरह सुर्ख होकर तमतमाते देखा। यह गुर्रा रही थी—“हमने तुम्हें डिस्टर्ब न करने के लिए कहा था वीशू आई से गेट आउट।"
विशेष ने सहमकर युवक को देखा।
युवक के मन में ममता उमड़ पड़ी , मगर फिर रश्मि का ख्याल आने पर वह कुछ बोला नहीं—युवक को अपना पक्ष न लेते देखकर विशेष मायूस हो गया। अनिच्छापूर्वक कमरे के दरवाजे की तरफ जाने लगा वह और यही क्षण था जब युवक के दिमाग में यह विचार बिजली की तरह कौंधा कि यदि विशेष बाहर चला गया तो इसके साथ वह इस कमरे में अकेला रह जाएगा।
अगर मेरे दिमाग पर पुन: उन्हीं भयानक विचारों ने कब्जा कर लिया तो ?
रूबी की लाश उसकी आँखों के सामने नाच उठी।
फिर मर्डर के बाद से शुरू हुए आतंक ने उसे त्रस्त कर दिया। अधीर-सा होकर अन्जाने ही में वह झपटा और विशेष को अपने से लिपटाकर बोला— “न...नहीँ , तुम बाहर मत जाओ।"
रश्मि ने गुर्राना चाहा—"म...मिस्टर...।"
" 'प...प्लीज रश्मि जी।" युवक एकदम गिड़गिड़ा-सा उठा— "इसे कमरे से बाहर जाने का हुक्म मत दो …म...मैँ अकेला तुम्हारे साथ यहां नहीं रहना चाहता।"
रश्मि की आंखों में उलझनयुक्त आश्चर्य उभर आया।
वह कह रहा था— "प्लीज , अब यह डिस्टर्ब नहीं करेगा—तुम बीच में नहीं बोलोगे बेटे। म...मगर हमें यहां अकेला मत छोड़ो।"
अच्छी खासी सर्दी के बावजूद युवक के मस्तक पर उभर आए पसीने को देखती रह गई रश्मि—युवक के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं—अचानक ही वह बेहद आतंकित-सा नजर आने लगा था—गहन उलझन भरे आश्चर्य के साथ रश्मि देखती रह गई उसे। युवक ने पुन: कहा था— “ मेरी बस यह एक बात मान लीजिए—अब वीशू हमें बिल्कुल डिस्टर्ब नहीं करेगा , प्लीज रश्मिजी।"
हैरत में डूबी रश्मि ने मौन स्वीकृति दे दी।
युवक ने विशेष को एक बार फिर हिदायत दी—बड़े ही मासूम अन्दाज में विशेष ने स्वीकृति में गर्दन हिलाई। रश्मि ने पूछा— "आपका नाम ?"
युवक गड़बड़ा गया। यह निश्चय नहीं कर सका कि खुद को सिकन्दर बताए , जॉनी या कुछ और , बोला— “मेरा जवाब सुनकर शायद आप चौंक पड़ेंगी।"
"मतलब ?" गम्भीर , कठोर और सौम्य लहजा।
“म …..मुझे अपना नाम मालूम नहीं है।"
रश्मि की आंखों के चारों तरफ का हिस्सा सिकुड़ गया। इस बार उसके मुंह से गुर्राहट-सी निकली—"बद्तमीजी से भरे आपके इस जवाब का अर्थ ?"
अपनी विवशता पर युवक कसमसा उठा। चेहरे पर हल्की-सी झुंझलाहट के भाव उभरे , बोला— “आप यकीन कीजिए रश्मि जी , मैं कोई बद्तमीजी नहीं कर रहा हूं—बहुत विवश हूं मैं—जाने भाग्य मेरे साथ क्या खिलवाड़ करना चाहता है। यह सच्चाई है कि मैं खुद को नहीं जानता—मेरा नाम क्या है , मैं कौन हूं …क्या हूं—ऐसे किसी भी सवाल का जवाब खुद मुझे नहीं मालूम है—दुनिया का कोई भी दूसरा आदमी शायद मेरी उलझन , कसमसाहट और विवशता को नहीं समझ सकेगा—स्वयं आपने किसी ऐसे आदमी की मानसिकता की कल्पना की है , जो खुद ही अपने लिए एक पहेली हो—जो खुद ही इनवेस्टिगेशन करके यह पता लगाने की कोशिश कर रहा हो कि वह कौन है ? शायद मेरी कसमसाहट को कोई नहीं समझ सकेगा रश्मि जी , क्योंकि मैं खुद ही वह आदमी हूं।"
उलझन के असीमित भाव रश्मि के मुखड़े पर उभर आए। कुछ देर तक विचित्र-सी नजरों से युवक को देखती रही वह , फिर बोली—“मैं आपकी पहेली जैसी बात का अर्थ नहीं समझी।"
"उसके लिए शायद मुझे अपने से सम्बन्धित वे सभी बातें आपको बतानी होंगी , जितनी मुझे मालूम हैं।"
रश्मि मौन रही , अर्थ था कि वह सुनने के लिए तैयार है।
इसके बाद युवक ने उसे अपनी याददाश्त गुम होने के बारे में बता दिया—युवक ने न्यादर अली या रूबी के बारे में कुछ नहीं बताया था—बस यही कहा था कि उसकी जानकारी के मुताबिक एक एक्सीडेंट के बाद उसकी याददाश्त गुम हो गई है और अब वह पागलों की तरह यह पता लगाने की कोशिश में घूम रहा है कि एक्सीडेण्ट के पहले वह कौन था।
रश्मि के मुखड़े पर उसकी विचित्र कहानी सुनने के बाद हैरत का समुद्र-सा उमड़ पड़ा—एकदम से चाहकर भी वह कुछ नहीं कह सकी , जबकि युवक ने कहा— “इसी वजह से वीशू के ‘पापा’ कहने पर , यह उम्मीद लेकर मैं यहां आ गया कि शायद मुझे मेरा अतीत मिल
जाए।"
"आप कुछ भी हों , मगर सर्वेश नहीं हो सकते।" रश्मि ने सपाट लहजे में कहा।
"हो सकता है मगर...।"
"मगर......?”
"अगर आप बुरा न मानें तो क्या मैं पूछ सकता हूं कि क्यों—आप यह बात इतने विश्वासपूर्वक किस आधार पर कह सकती हैं कि मैं सर्वेश नहीं हूं ?"
"बता चुकी हूं कि उनकी लाश मैंने अपनी आंखों से देखी है।"
“म....मगर दो इंसानों की शक्ल इस हद तक मिलना भी तो...।"
"यह शायद कुदरत का खेल है।"
"हो सकता है , लेकिन क्या ऐसा नहीं हो सकता कि वह लाश , जिसे आप अपने पति की समझीं , दरअसल किसी अन्य की हो ?"
"क्या आप खुद को मेरा पति साबित करना चाहते हैं ?"
"प...प्लीज रश्मि जी। मेरी बातों को इस ढंग से न लीजिए—मैं तो खुद ही उलझन में हूं—मेरी विवशता को समझने की कोशिश कीजिए—खुद ही को तलाश करना पड़ रहा है मुझे—मैँ ऐसे सबूत नहीं जुटाना चाहता कि जिससे सर्वेश साबित होऊं—मैं आपसे ऐसा ठोस प्रमाण चाहता हूं जिससे साबित हो सके कि मैं सर्वेश नहीं हूं।"
"पहला प्रमाण है यह।" कहने के साथ ही वह कमरे में रखी एक डाइटिंग टेबल की तरफ बढ़ गई , दराज खोलकर उसमें से एक फोटो निकाला उसने , फोटो को उसकी तरफ उछालत्ती हुई बोली— "यह मेरे पति की लाश का फोटो है।"
युवक ने फोटो उठाकर देखा।
फोटो को देखते ही वह चौंक पड़ा , यह फोटो दाढी-मूंछ वाले किसी युवक की लाश का जरूर था , मगर लाश का चेहरा बिल्कुल स्पष्ट नजर नहीं जा रहा था , चेहरा विकृत-सा था। अत: भले ही हेयर स्टाइल सर्वेश जैसा हो , मगर यह दावा पेश नहीं किया जा सकता था कि फोटो सर्वेश की लाश ही का है—और जब यह बात युवक ने रश्मि से कहीँ तो रश्मि ने कहा—
"दूसरा सबूत आपकी पीठ पर से मिल जाएगा।"
"प …पीठ से ?"
“क्या आप कपड़े उठाकर मुझे अपनी पीठ दिखाने का कष्ट करेंगे ?"
थोड़ा हिचकने के बाद युवक ने उसके आदेश का पालन किया , पीठ को देखते ही रश्मि कुछ और ज्यादा दृढ़तापूर्वक कह उठी— “आप सर्वेश नहीं हैं।"
कपड़ों को ठीक करते हुए युवक ने उसकी तरफ घूमकर पूछा—"आपने क्या देखा ?"
"यह।" रश्मि ने दराज से एक फोटो निकालकर उसकी तरफ उछाल दिया , बोली—“आपकी पीठ पर कहीं कोई मस्सा नहीं है।"
युवक ने देखा , इस फोटो में एक युवक की पीठ थी—पीठ पर एक काफी बड़ा मस्सा बिल्कुल स्पष्ट नजर जा रहा था—हालांकि फोटो पीठ का होने के कारण सर्वेश का चेहरा स्पष्ट नहीं था , किन्तु रश्मि उसे सर्वेश का फोटो कह रही थी , सो उसे मानना ही पड़ा।
युवक उस फोटो को अभी देख ही रहा था कि रश्मि ने कहा— "अब तो आपके दिमाग से अपने सर्वेश होने का वहम निकल गया होगा ?"
"ज......जी हां।" इसके अलावा युवक और कह भी क्या सकता था ?
युवक आश्वस्त हुआ हो या न हुआ हो , परन्तु रश्मि अवश्य आश्वस्त हो गई थी। शायद उसके अपने दिमाग में भी कहीं यह विचार कांटा बनकर चुभने लगा था कि कहीं यह सर्वेश ही न हो और उसे यहां बुलाकर रश्मि ने अपने उसी कांटे को साफ किया था , बोली— “वीशू बच्चा है , यह मुझसे ज्यादा अपने पापा को प्यार करता था—शायद इसीलिए मैंने इससे कह दिया था कि इसके पापा आकाश में गए हैं—एक दिन इसके लिए ढेर सारी टॉफियां लेकर जरूर लौटेंगे और शायद उसी भुलावे और आपकी शक्ल के चक्कर में यह भरी सड़क पर आपको ‘पापा ' कहकर पुकार बैठा—मेरे इस नादान बेटे की वजह से अगर आपको कोई मानसिक दुख पहुंचा हो तो मैं क्षमा मांगती हूं।" कहते-कहते रश्मि की आवाज भर्रा गई।
उसकी आंखों में डबडबाते नीर को युवक ने स्पष्ट देखा।
उस विधवा के दिल में उठ रही किसी टीस का एहसास करके युवक को अपने दिल में एक हूक-सी उठती महसूस हुई , वह बड़ी मुश्किल से कह सका— “ न.....नहीं , ऐसी कोई बात नहीं है, रश्मि जी। ”
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05-18-2020, 02:31 PM,
#32
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एकाएक ही उसने सपाट स्वर में कहा— "अब आप यहां से जा सकते हैं।"
जाने क्यों , रश्मि के इस वाक्य से उसके मन-मस्तिष्क को एक झटका-सा लगा—पता नहीं क्यों युवक को इस घर से कहीं जाने की कल्पना अच्छी नहीं लगी—विशेष और रश्मि से वह अदृश्य लगाव-सा हो गया महसूस कर रहा था , एक नजर उसने विशेष पर डाली। अपनी मासूम आंखों से वह उसी की तरफ देख रहा था। उसकी आँखों में यह डर था कि कहीं उसके पापा पुन: कहीं चले न जाएं—युवक ने अपने मनोभावों का गला घोंटते हुए कहा— "यहां से जाना तो होगा ही रश्मि जी , क्योंकि मैं सर्वेश नहीं हूँ और यह घर मेरा नहीं है , मगर जाने से पहले मैं जानना चाहता हूं कि...।"
युवक स्वयं ही रुक गया।
रश्मि ने उसे सवालिया नजरों से देखते हुए पूछा—"क्या जानना चाहते हैं ?"
"यह कि सर्वेश की मृत्यु कैसे हुई थी ?"
इस वाक्य की रश्मि के चेहरे पर बड़ी ही तीव्र प्रतिक्रिया हुई। एकाएक ही उसका मुखड़ा हीरे से भी कई गुना ज्यादा कठोर नजर आने लगा , आंखें अन्तरिक्ष में जा टिकीं और गुर्राहट भरे स्वर में उसने कहा—"यह मेरी कहानी है, मिस्टर—मेरी और मेरे पति की व्यक्तिगत कहानी—इसमें किसी का दखल मुझे पसन्द नहीं आएगा।"
युवक ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला , मगर कह नहीं सका , क्योंकि तेजी के साथ , हवा के झोंके की तरह रश्मि कमरे से बाहर चली गई थी—युवक मूर्ख-सा , मुंह फाड़े—आश्चर्य के सागर में डूबा, हिलते हुए पर्दे को देखता रहा।
¶¶
उस वक्त शाम के सात बजे थे जब यू oपी o पुलिस की एक जीप , टायरों की तेज चरमराहट के साथ देहली में उस थाने के पोर्च में रुकी , जहां का इंचार्ज इंस्पेक्टर दीवान था—पाठक समझ ही सकते हैं कि इस जीप में इंस्पेक्टर चटर्जी और आंग्रे थे।
लगभग साथ ही वे जीप से बाहर निकले।
वातावरण में अंधेरा छा चुका था। लाइटें ऑन थीं और ठिठुरन बढ़ गई थी—उनके जीप से बाहर निकलते ही एक सिपाही उनके नजदीक आया। चटर्जी ने कहा— “ हम गाजियाबाद से आए हैं और इंस्पेक्टर दीवान से मिलना चाहते हैं।"
"वे ऑफिस में हैं।" सिपाही ने बताया।
कुछ ही देर बाद वे आँफिस में इंस्पेक्टर दीवान के सामने थे—औपचारिक परिचय के आदान-प्रदान के उपरान्त दीवान ने उन्हें बैठने के लिए कहा , वे बैठ गए।
दीवान ने कहा— "फरमाइए , मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूं?"
"पिछले दिनों आपने अखबार में दो फोटो छपवाए थे , एक एक्सीडेंट के बाद याददाश्त खोए युवक का और दूसरा उसके पर्स से निकली युवती की तस्वीर का।"
दीवान एकदम से सतर्क नजर जाने लगा। कुछ इस प्रकार जैसे इस विषय में उसकी अपनी व्यक्तिगत दिलचस्पी भी पैदा हो गई हो , बोला— “ जी हां।"
"आपका पता हमने अखबार से ही लिया था और अब यहां याददाश्त खोए उस व्यक्ति के बारे में आपसे कुछ जानने आए हैं।"
"उसके बारे में क्या जानना चाहते हैं आप?”
जवाब में चटर्जी ने उसे हरिद्वार पैसेंजर की घटना समेत सारी घटना सुना दी। सुनकर हैरत के कारण दीवान का बुरा हाल हो गया— "उफ्फ! उसने इतना जघन्य काण्ड कर डाला?”
"उसी हत्याकाण्ड के सिलसिले में हमें उसकी तलाश है।" सिगरेट ऐश ट्रे में मसलते हुए चटर्जी ने कहा—"होश में आने पर रूपेश नामक व्यक्ति ने हमें बताया कि लारेंस रोड पर रहने वाले सेठ न्यादर अली ने उसे सिकन्दर की देखभाल करने के लिए रखा था—सिकन्दर ने मीठी-मीठी बातें बनाकर उसे अपने विश्वास में ले लिया—दोस्त बना लिया—रूपेश के अनुसार सिकन्दर को यकीन नहीं आ रहा था कि वह न्यादर अली का लड़का है—उसके इस सन्देह को होश में आने के वक्त पहने कपड़ों पर लगी टेलर की चिट ने बल दिया—इन कपड़ों पर गाजियाबाद के 'बॉनटेक्स ' टेलर की चिट थी , जबकि न्यादर अली के यहां मौजूद कपड़ों पर देहली के ही किसी टेलर की—सिकन्दर अपने अतीत के बारे में इनवेस्टिगेशन करने के लिए बेचैन हो गया—वह जानता था कि न्यादर अली उसे किसी भी कीमत पर बंगले से बाहर नहीं निकलने देगा , अत: उसने रात ही को गायब होने की स्कीम बनाई—रूपेश को विश्वास में लेकर उसने यह वादा करा लिया कि वह उसके गायब होने का रहस्य किसी को नहीं बताएगा-रूपेश ने उससे किए गए अपने वादे को पूरी तरह निभाया भी था कि आज शाम रूपेश भी टेलर की दुकान पर पहुंच जाएगा—सिकन्दर ने कहा था कि उसे टेलर से पता लग जाएगा कि मैं कहां मिलूंगा।"
"प्रोग्राम के मुताबिक रूपेश राजाराम की दुकान पर पहुंचा और वहां से राजाराम ने उसे भगवतपुरे के उस मकान में भेज दिया।" दीवान ने लिंक जोड़ा।
“हां। ”
"क्या रूपेश ने यह भी बताया कि उस मकान में उसके साथ क्या हुआ ?"
"उसका कहना था कि सिकन्दर ने उसे बातों में उलझाकर हथौड़ी की चोट से बेहोश कर दिया , कम-से-कम सिकन्दर से उसे ख्वाबों में भी ऐसी उम्मीद नहीं थी , अत: वह बिल्कुल भी सतर्क नहीं था—उसे तभी होश आया जब वह जल रहा था।"
"उसने पूरे विश्वास के साथ कहा है कि हमलावर सिकन्दर था ?"
"हां।"
इंस्पेक्टर दीवान जाने किस सोच में डूब गया।
चटर्जी कहता ही चला जा रहा था— "अब सिकन्दर द्वारा ट्रेन में बताए गए एड्रेस से रूपेश का बयान 'टेली ' कर रहा था , इसीलिए हमने लारेंस रोड पर स्थित न्यादर अली के बंगले पर छापा मारने की योजना बनाई , मगर उसके लिए हमारे साथ देहली पुलिस का होना जरूरी है , सो आपके पास आए हैं—सोचा था कि इस मामले में आप 'इनवाल्व ' भी हैं , अत: हो सकता है कि कोई नई जानकारी दे दें और केस पर विचार-विमर्श करने से नतीजे निकल आया करते हैं।"
दीवान की मुस्कान गहरी हो गई , बोला— "मेरे पास आकर आपने नि:सन्देह बड़ी होशियारी का काम किया है।"
"हम समझे नहीं।"
“ आपके मामले की सबसे महत्वपूर्ण गुत्थी यह है कि आखिर सिकन्दर ने यह हत्या क्यों की और इस सवाल का जवाब मेरे पास है।"
"कृपया पहेलियां न बुझाएं।"
गहरी मुस्कान के साथ दीवान ने बताया—"वह जब भी किसी युवा लड़की के साथ अकेला होगा , तभी उसकी हत्या कर देगा। फर्श पर पड़ी निर्वस्त्र लाश देखने और गर्दन दबाकर युवा लड़की को मार डालने का जुनून सवार होता है उस पर।"
"क्या कह रहे हैं आप ?"
"उसे यह बीमारी है , इस बात का प्रमाण-पत्र आपको देहली का एक प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉक्टर ब्रिगेंजा दे देगा और अदालत में यह एक ठोस वजह होगी।"
"क्या इस बारे में आप हमें विस्तार से बता सकते हैं ?"
दीवान ने उन्हें युवक के द्वारा गर्दन दबाकर नर्स को मार डालने की असफ़ल चेष्टा , डॉक्टर ब्रिगेजा का दृष्टिकोण और युवक के पुन: होश में आने के बाद के बयान के बारे में बता दिया। सुनकर जहां उनकी आंखों में हैरत की चमक उभर आई , वहीं सफलता के साए भी नाचने लगे।
कुछ देर तक चुप रहने के बाद चटर्जी ने कहा— “अब मैं इस सारे मामले के दूसरे ही पहलू पर सोच रहा हूं।"
"किस पहलू पर ?"
"रूबी के बारे में।" चटर्जी ने कहा— “सभी सवालों का जवाब मिल गया है—यूं कहना चाहिए कि एक प्रकार से यह समूचा केस पूर्णतया हल हो चुका है , केवल अपराधी की गिरफ्तारी बाकी है , सम्भावना है कि वह भी हो जाएगी , मगर यह सवाल अनुत्तरित है कि रूबी कौन थी—उस युवक को वह जॉनी क्यों बता रही थी.....और सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि रूबी को यह बात कैसे मालूम थी कि युवक अपने बारे में पूछताछ करने राजाराम की दुकान पर ही जाएगा?"
"सम्भव है कि रूबी को उसके कपड़ों पर लगी चिट की जानकारी हो ?"
"सारी कहानी हमारे सामने है , यह जानकारी उसे किस माध्यम से रही होगी?"
इस प्रश्न पर दीवान और आंग्रे बगलें झांकने लगे—जवाब शायद खुद चटर्जी के पास भी नहीं था , इसीलिए उसने एक नया ही सवाल खड़ा किया— "और वह प्रश्न भी विचाराधीन गये है , जिसकी तलाश में युवक न्यादर अली के बंगले से फरार हुआ।"
"हम समझे नहीं।"
“ अगर युवक सचमुच न्यादर अली का लड़का सिकन्दर ही है तो उसके तन पर मिले कपड़े ही अलग टेलर द्वारा तैयार किए हुए क्यों थे , उसी टेलर द्वारा तैयार किए गए क्यों नहीं थे , जिसके न्यादर अली के बंगले में मौजूद उसके अन्य कपड़े थे ?”
"प्रश्न नि:सन्देह विचारणीय है।"
"तो क्या तुम यह कहना चाहते हो चटर्जी कि वह युवक सिकन्दर नहीं था?" अजीब दुविधा में फंसे आंग्रे ने पूछा।
"जिन सवालों का फिलहाल हमारे पास जवाब नहीं है , उनकी तह में कुछ भी हो सकता है। राजाराम कहता है कि वह युवक पहले कभी उसकी दुकान पर नहीं आया—तब सवाल यह भी उठता है कि उसकी दुकान के सिले कपड़े युवक के तन पर कैसे मिले ?"
"सवाल वाकई गहरा है।"
"इन सबका जवाब रूबी का रहस्य खुलने पर ही मिलेगा कि वह कौन थी? किस चक्कर में थी और यह अकेली ही कोई षड्यन्त्र रच रही थी या उसका कोई साथी भी था?”
“यह सब पता लगाने के लिए हमारे पास कोई 'क्लू ' कहां है ?"
"तुम उसके द्वारा राजाराम को दिए गए दस हजार रुपयों को भूल रहे हो।"
“द...दस हजार रुपए , उससे क्या होगा ?"
"वे रुपए अपने आप में खुद एक बहुत बड़ा क्लू हैं।"
चकित आंग्रे बड़बड़ाया— “रुपये भला किस रूप में 'क्लू ' बन सकते हैँ ?"
जवाब में चटर्जी ने कुछ कहा नहीं , सिगरेट में लम्बे-लम्बे कश लगाने के साथ ही वह अजीब-से रहस्यमय अन्दाज में मुस्कराता रहा। दीवान उसकी इस मुस्कराहट में से तंत निकालने के लिए अपने दिमाग के कस-बल निकाले दे रहा था।
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05-18-2020, 02:31 PM,
#33
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
युवक अभी तक मुंह बाए कमरे के दरवाजे पर झूल रहे उस परदे को देख रहा था , जो रश्मि के तेजी से निकलने के कारण जोर-जोर से हिल रहा था।
एक बार फिर उसके दिमाग को ढेर सारे प्रश्नवाचक चिन्हों के जाल ने बुरी तरह जकड़ लिया था , हर कदम पर उसे उलझनों का सामना करना पड़ रहा था …किसी मूर्ति की तरह अवाक्-सा वह वहीं खड़ा रह गया।
उसे यह भी होश न रहा था कि नजदीक ही विशेष भी खड़ा है।
वह सोचने लगा कि न्यादर अली मुझे सिकन्दर साबित करना चाहता था और मैं खुद को सिकन्दर मानने के लिए तैयार न हुआ—रूबी मुझे जॉनी कह रही थी , पर्याप्त प्रमाण भी पेश किए थे उसने , मगर मैं फिर भी उस पर शक करता रहा—परन्तु यहां , इस छोटे-से घर में—छोटे-से परिवार के बीच हालात बिल्कुल उल्टे रहे—रश्मि सिद्ध कर रही थी कि मैं सर्वेश नहीं हूं और मैं खुद को सर्वेश ही साबित करने पर तुल गया।
पूर्णतया अभी तक मानने को तैयार नहीं हूं कि मैं सर्वेश नहीं हूं।
इसका कारण ?
वह उस तरीके से सोचने लगा।
युवक इन्हीं विचारों के बीहड़ जंगल में भटक रहा था कि विशेष ने पुकारा—"पापा-पापा!"
तंद्रा भंग हो गई युवक की—उसने चौंककर विशेष की तरफ देखा , किसी शंका से डरा-सा वह युवक की तरफ देख रहा था , बोला—"चुप क्यों हो पापा ?"
घुटनों के बल उसके समीप बैठ गया युवक , बोला— “नहीं तो बेटे , भला हम चुप क्यों होते ?"
"क्या आप हमारे पास से फिर चले जाएंगे, पापा ?"
"न...नहीं बेटे , बिल्कुल नहीं।" विशेष को खींचकर अपने कलेजे से लगाता हुआ युवक उठा , गला जाने कैसे रुंध गया था—आवाज खुद-ब-खुद भर्रा गई—उसे लगा कि आंखें बेवफाई करने वाली हैं , भावावेशवश विशेष को कसकर भींच लिया उसने।
"म...मम्मी तो कह रही थीं।" विशेष अब भी किसी शंका से आतंकित था।
"व...वे इस वक्त गुस्से में हैं, बेटे। ”
"तो आप नहीं जाएंगे ?" अलग होते हुए उत्साहित-से विशेष ने पूछा , इस बच्चे की नीली आंखों में जो चमक इस वक्त थी , उसे देखकर युवक का दिलो-दिमाग हाहाकार कर उठा , अपने दिल के हाथों विवश होकर उसने कहा— "बिल्कुल नहीं बेटे।"
"तो खाइए मेरी कसम।" कहने के साथ ही विशेष ने उसका हाथ उठाकर अपने सिर पर रख लिया—युवक का मात्र वह हाथ ही नहीं , बल्कि दिल तक कांप उठा—अवाक्-सा मासूम विशेष को देखता रहा वह , जुबान तालू से जा चिपकी थी , विशेष ने कहा— "अगर आप फिर गए तो मैं बापू की तरह खाना-पीना छोड़ दूंगा—पढ़ने के लिए स्कूल भी नहीं जाऊंगा।"
युवक के सारे शरीर में झुरझुरी-सी दौड़ गई।
अन्जाने ही में उसके सेब-से गाल पर एक चुम्बन अंकित करता हुआ वह बोला— “ हम तुम्हें छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे, बेटे। क्या अपने पापा पर तुम्हें यकीन नहीं है।"
"तो इसी बात पर मिलाइए हाथ।" जोश में भरे विशेष ने अपना नन्हां हाथ आगे बढा दिया —युवक ने हाथ मिलाया—विशेष के दमकते चेहरे को देखकर युवक के होंठों पर भी मुस्कान बिखर गई।
जैसे उनका दुख-सुख एक ही डोर से बंधा हो।
अचानक विशेष ने पूछा— “आपको मेरे लेटर मिल गए थे, पापा ?"
"लेटर ?"
“हां , मम्मी के कहने पर मैंने आपको डाले थे।"
"हमें लेटर डाले थे आपने.....किस एड्रेस पर भाई ?"
"आपका नाम , आकाशपुरी—तारा नम्बर फिफ्टीन।"
वेदना से लबालब भर गया युवक का हृदय। खुद को रोने से रोकने के लिए जबरदस्त श्रम करना पड़ा उसे , बोला—“अरे, हम तो तारा नम्बर फिफ्टीन में ही रहते थे।"
"फिर आपने हमारे इतने सारे लेटर्स का जवाब क्यों नहीं दिया ?"
"लेटर तो तभी मिलता है न बेटे , जब उसे लेटर बॉक्स में डाला जाए ?"
"मम्मी ने भी यही कहा था और हमारे सारे लेटर्स उन्होंने लेटर बॉक्स में ही डलवाए थे।"
"ल...लेटर बाक्स में—कौन-सा लेटर बॉक्स ?"
"देखिए , वह रहा।" कहने के साथ ही विशेष ने जल्दी से एक तरफ को इशारा कर दिया। युवक ने जब उस तरफ देखा तो दिल धक्क से रह गया।
कमरे में मौजूद एक सेफ की पुश्त पर लेटर बॉंक्सनुमा एक खिलौना रखा था। लाल रंग का एक छोटा-सा , गोल लेटर बाक्स—दरअसल यह 'गुल्लक ' थी , अत: अन्दर से खोखला था …पैसे डालने वाले स्थान से कोई भी कागज 'तह ' करके अन्दर आराम से डाला जा सकता था।
युवक के सारे शरीर में झुरझुरी-सी दौड़ गई।
"क्या तुमने सारे पत्र उसी में डाले थे ?"
"मम्मी ने कहा था कि उसमें डालने से पत्र आपको मिल जाएंगे।"
रोकने की काफी कोशिश के बाद भी आंखों ने विद्रोह कर ही दिया , जाने क्यों—युवक के दिल में उस लेटर बॉक्स को खोलने की तीव्र इच्छा उभरी-बॉक्स के खुलने वाले मुंह पर छोटा-सा ताला लटका हुआ था—एकाएक ही उसके दिल में यह सवाल उठा कि एक मां को , बिना पापा के बच्चे को पालने के लिए क्या-क्या करना पड़ता है!
वह खुद को रोक नहीं सका।
एक कुर्सी पर चढ़ाकर उसने बॉक्स उतार लिया—बॉक्स के समीप ही छोटी-सी चाबी रखी थी। विशेष के नजदीक आकर उसने ताला खोला , बॉक्स का ताला खोलते ही लुढ़ककर कई कागज फर्श पर गिर गए।
“अरे, ये सारे लेटर तो इसी में रखे हैं पापा—फिर आपको मिलते कैसे ?"
"इस तरफ का पोस्टमैन छुट्टी पर होगा, बेटे।" भर्राए स्वर में कहते हुए युवक ने उनमें से एक कागज उठा लिया , खोलकर पढ़ा , लिखा था—“मेरे प्यार पापा, मेरे लिए टॉफियां लेने गए आपको इतने ढेर सारे दिन हो गए हैं—मगर आप आते ही नहीँ—मैं हर समय आपके लिए रोता रहता हूं—जब मैं रोता हूं तो मम्मी भी रोती हैं, पापा—कहती हैं कि मैं हर समय आपसे टॉफियों के लिए जिद्द करता रहता था—इसीलिए आप चले गए हैं—अच्छा तो , मैं अपने कान पकड़ता हूं पापा—अब कभी टॉफी नहीं मांगूंगा, मगर आप आ तो जाओ—अब आओगे न पापा—टॉफी बहुत गंदी होती हैं—यस, पापा अच्छे होते हैं , सच है न पापा—देखो , अगर आप मेरा यह लेटर पढ़कर भी नहीं आए तो मैं रूठ जाऊंगा आपसे।
…आपका शैतान बेटा—विशेष।
‘टप-टप ' करके कई बूंदें उस कागज पर गिर पड़ीं।
"अरे, आप रो रहे हैं, पापा ?"
"ब...बेटे। " खींचकर उसने विशेष को अपने सीने से लगा लिया और बांध टूट चुका था—युवक की आंखों से आंसुओं का सैलाब-सा उमड़ पड़ा—फूट-फूटकर रो पड़ा वह—लाख चाहकर भी अपनी इस रुलाई को रोक नहीं सका था युवक।
विशेष की समझ में कुछ नहीं आ रहा था।
"नहीं पापा , रोते नहीं हैँ—मम्मी कहती हैं कि रोने वाले बच्चे कायर होते हैं—क्या आप कायर हैं पापा—कायर होना गन्दी बात है। "
विशेष का एक-एक शब्द उसके अन्तर में कहीं ज़बरदस्त खलबली मचा रहा था। तभी कमरे में रश्मि की आवाज गूंजी— “आप अभी तक यहीं हैं ?"
युवक एकदम से विशेष से अलग होकर खड़ा हो गया—बौखलाकर उसने अपने आंसू पौंछे और खुले पड़े लेटर बॉंक्स को देखकर रश्मि जैसे सब कुछ समझ गई—एक क्षण के लिए उसके मुखड़े पर असीम वेदना उभरी , अगले ही पल उसने सख्त स्वर में कहा— “यह लेटर बॉक्स यहां से उतारकर आपने किस अधिकार से खोल लिया है ?"
युवक चुप रहा , उसके पास कोई जवाब नहीं था।
"आप यहां से जाते हैं या मैं पुलिस को बुलाऊं ?"
खुद को नियंत्रित करके युवक ने कहा— "मैँ आपसे कुछ बातें करना चाहता हूं।"
"मुझे आपकी कोई बात नहीं सुननी है। ”
"प...प्लीज।" युवक गिड़गिड़ा उठा— "म.....मेरी सिर्फ एक बात सुन लीजिए। घर आपका है , अन्त में वही होगा , जो आप चाहेंगी।"
रश्मि खामोश रह गई , युवक की बात मान लेने के लिए यह उसकी मौन स्वीकृति थी। युवक ने विशेष को नीचे चले जाने के लिए कहा।
सहमे-से विशेष ने तुरंत ही उसके आदेश का पालन किया।
"कहिए।" विशेष के जाते ही रश्मि ने सपाट स्वर में कहा।
"द....दरअसल मैंने विशेष के द्वारा अपने पिता को लिखा गया पत्र पढ़कर ही वास्तव में अहसास किया है कि , विशेष को अपने पिता से बेइन्तहा मौहब्बत है …अपने पिता के लौटने का उसे बेसब्री से इंतजार था और वह मुझी को अपना पिता समझ बैठा है , अब अगर मैं यहां से इस तरह चला गया तो उसका दिल टूट जाएगा।"
"उसके बारे में चिन्तित होने का आपको कोई हक नहीं है।"
"जानता हूं लेकिन जज्जात नहीं जानते रश्मि जी कि हक क्या होता है—उन्हें तो दिल में खलबली मचाने से मतलब है.....वे जाने कब , किसके लिए , किसके दिल में मचल उठें …वीशू कहता है कि अगर मैं चला गया तो वह खाना नहीं खाएगा—स्कूल भी नहीं जाएगा। '"
"वे सब मेरी समस्याएं हैं , मैं जानूं …आपसे मतलब ?"
"अगर कुछ ज्यादा नहीं तब भी , इंसानियत का मतलब तो है ही—मुझे लगता है कि यदि मैं यहां से चला गया तो वीशू के विकसित होते दिमाग पर बहुत बुरा असर पड़ेगा। ”
"तो क्या मैं आपको इस घर में बसा लूं?"
"म...मैंने यह कब कहा ?"
"फिर क्या मतलब है आपका ?"
“अगर मैं किसी तरह वीशू के दिमाग में इस सच्चाई को भरने में सफल हो जाऊं कि मैं उसका पिता नहीं हूं तो शायद मेरे यहां से चले जाने का उसके दिमाग पर कोई असर नहीं होगा। "
"इस काम में कितना समय लगेगा आपको ?"
उत्साहित-से होकर युवक ने कहा—“एक या ज्यादा-से-ज्यादा दो दिन।"
"दो दिन।" कहकर रश्मि किसी सोच में डूब गई महसूस हुई। शायद विशेष की मानसिक स्थिति का अंदाजा वह भी ठीक से लगा पा रही थी , बोली— “ठीक है , आप केवल दो दिन यहां रह सकते हैं , दो दिन से ज्यादा एक क्षण भी नहीं। "
"थ...थैंक्यू।" खुशी से लगभग कांपते हुए युवक ने कहा।
"और इन दो दिनों में मांजी को भी समझा दीजिएगा कि आप उनके बेटे नहीं हैँ—मैं जितनी देर नीचे उनके पास रही , वे आपको बेटा ही कहती रहीं। "
"म...मैँ समझा दूंगा। "
"आप सिर्फ नीचे रहेंगे—एक क्षण के लिए भी ऊपर आने की कोशिश नहीं करेंगे।"
“म....मुझे आपकी हर शर्त मंजूर है। " कहने के बाद युवक तेज और लम्बे-लम्बे कदमों के साथ कमरे से बाहर निकल गया। जाने क्यों वह बहुत खुश था।
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05-18-2020, 02:31 PM,
#34
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
दो जीपों में पूरी पुलिस फोर्स के साथ वे सर्च वारण्ट लेकर न्यादर अली के बंगले पर पहुंचे। पुलिस बल बंगले में दाखिल हो गया।
उन्हें देखते ही सेठ न्यादर अली अधीरतापूर्वक पूछ बैठे— “ क्....क्या मेरा बेटा मिल गया है ?"
दीवान ने बहुत ही कड़ी दृष्टि से न्यादर अली को घूरा , बोला— "हमें तो यह पता लगा है कि सिकन्दर यहां आया है।"
“य.....यहां—कहां है , कहां है सिकन्दर ?" न्यादर अली पागल-सा होकर चीख पड़ा।
"ज्यादा नाटक करने की कोशिश मत करो, मिस्टर न्यादर अली , हम जानते हैं कि उसे तुमने इसी बंगले में कहीं छुपा रखा है—उसे हमारे हवाले कर दो।"
"क...कैसी बात कर रहे हो, इंस्पेक्टर? हम भला उसे छुपाएंगे क्यों ?"
उसे आतंकित कर देने की मंशा से घूरते हुए दीवान ने पुन: कहा— “इस बात को अच्छी तरह समझ लो मिस्टर न्यादर अली कि मुजरिम को पनाह देने वाला भी मुजरिम होता है। भले ही पनाह देने वाला मुजरिम का पिता हो।"
"म.....मेरा सिकन्दर भला मुजरिम कैसे हो सकता है ?”
और फिर चटर्जी ने आगे बढ़कर संक्षेप में न्यादर अली को सारा किस्सा समझा दिया। सुनने के बाद न्यादर अली की आंखें हैरत से फटी-की-फटी रह गईं। वह पागलों की तरह चीख पड़ा— “न...नहीं …यह झूठ है …मेरा बेटा किसी की हत्या नहीं कर सकता—मेरा सिकन्दर तो एक चींटी को भी नहीं मार सकता—तुम झूठ बोल रहे हो—या तो वह कोई और होगा या पुलिस मेरे बेटे को किसी षड़्यंत्र का शिकार बना रही है।"
न्यादर अली चीखता ही रहा , जबकि फोर्स ने उसके बंगले की तलाशी लेनी शुरू कर दी।
परिणाम तो पाठक जानते ही हैं।
पूरा एक घण्टा व्यर्थ बरबाद किया गया। उसके बाद वह पुलिस बल न्यादर अली को रोता-पीटता छोड़कर वापस लौट गया—तीनों इंस्पेक्टर एक ही जीप में थे।
काफी देर तक जीप में खामोशी छाई रही।
"मेरे ख्याल से अब वह देहली से बाहर निकलने की चेष्टा करेगा।" अचानक दीवान ने शंका व्यक्त की।
धीमे से मुस्कराया चटर्जी , बोला—"भागकर जाएगा कहां , कल हम अखबार में उसकी फोटो छपवा देंगे। ऐसा होने पर उसे कोई भी पहचान सकता है …और फिर हर आदमी उसके लिए एक पुलिस कांस्टेबल से कम खतरनाक नहीं होगा।"
¶¶
ऊपर वाले कमरे में , पलंग पर अकेली पड़ी रश्मि सूने-सूने नेत्रों से कमरे की छत को निहार रही थी।
अभी , कुछ देर पहले तक नीचे से विशेष और उस अजनबी के खेलने , हंसने और बोलने की आवाजें आ रही थीं।
कुछ ही देर से तो खामोशी छाई है।
रात गहरा गई थी—चारों तरफ सन्नाटा छा गया।
रश्मि सोचने लगी कि क्या विशेष सो गया है ?
क्या उस शैतान को नींद आ गई है , जो कभी उसके बिना नहीं सोता है ? यही सोचते-सोचते उसे काफी देर हो गई। अचानक ही जाने उसके दिमाग में क्या विचार आया कि वह उठकर खड़ी हो गई—बड़े ध्यान से , बड़े प्यार से वह दीवार पर लगे सर्वेश के फोटो को देखने लगी। वह देखती रही—देखती रही और देखते-ही-देखते उसे जाने क्या याद आने लगा।
उसका चेहरा कठोर होता चला गया , आंखें पथरा-सी गईं—जाने किस भावना के वशीभूत जबड़े भिंच गए उसके।
कोमल मुट्ठियां कसती चली गईं।
नीली आंखों से आग लपलपाती-सी महसूस हुई। दांत भींचे किसी जुनून-से में फंसी वह कह उठी— “म...मैं बदला लेकर रहूंगी प्राणनाथ—आपके चरणों की कसम , अपने हत्यारे का खून पी जाऊंगी मैं—एक बार , बस एक बार रंगा-बिल्ला मेरे सामने आ जाएं।"
जज्बातों के झंझावात में फंसी , उत्तेजना के कारण अभी वह कांप ही रही थी कि कमरे के बन्द दरवाजे पर दस्तक हुई।
बुरी तरह चौंककर वह उछल पड़ी।
एक ही क्षण में उसके जिस्म के असंख्य मसामों ने बर्फ-सा ठंडा पसीना उगल दिया—दिल बहुत जोर-जोर से धड़कने लगा , आतंकित-सी वह कमरे के बन्द दरवाजे को देखने लगी। शायद दहशत के कारण ही जुबान तालू में कहीं जा चिपकी थी।
दस्तक पुन: उभरी।
रश्मि ऊपर से नीचे तक कांप गई। उसने अपनी सारी हिम्मत जुटाकर पलंग के सिरहाने से एक रिवॉल्वर निकाल लिया। डर के कारण भले ही उसका हाथ कांप रहा था , परन्तु रिवॉल्वर को बन्द दरवाजे की तरफ तानकर बोली—“क....कौन है ?"
"म...मैं हूं रश्मिजी।"
“त...तुम ?" कांपते लहजे को संतुलित करने की रश्मि ने भरपूर चेष्टा की— “तुम यहां क्यों आए हो ?"
"वीशू सो गया है , इसे ले लीजिए।"
रश्मि का कठोर स्वर—“अगर सो गया है तो नीचे ही सोने दीजिए।"
"यह नींद में मम्मी-मम्मी बड़बड़ा रहा था , इसीलिए मैं विवश हो गया।"
"मैंने कहा था कि तुम ऊपर नहीं आओगे।"
"मुझे याद है रश्मिजी , मैं वीशू को दरवाजे के इस तरफ लिटाए जा रहा हूं—जब मैं चला जाऊंगा तो इसे उठाकर ले जाइएगा।" युवक के इस वाक्य के जवाब में रश्मि चुप रही—कुछ देर बाद उसे किसी के द्वारा सीढ़ियां उतरने की आवाज सुनाई दी।
एक बोझ-सा उसके दिलो-दिमाग से उतर गया।
रिवॉल्वर को पलंग पर डालकर दरवाजे की तरफ अभी उसने पहला कदम बढ़ाया ही था कि मस्तिष्क से एक विचार टकराया—'कहीं यह उस बदमाश की कोई चाल तो नहीं है ?
'सम्भव है कि सीढ़ियां उतरने की आवाज सिर्फ पैदा की गई हों , असल में वह कमरे के बाहर ही अंधेरे में कहीं छिपा खडा हो , ऐसा हो सकता है।’
इस एकमात्र विचार ने उसे पुन: आतंकित कर दिया।
'उसकी नीयत में खोट हो सकता है—पराए मर्द का क्या भरोसा—बहुरूपिया कहीं छुपा पड़ा हो—मैं दरवाजा खोलूं और वह झपट पड़े , तब मैं उस दरिन्दे से अपनी रक्षा कैसे कर सकूंगी ?'
'बस— एकाएक ही कानों में उसके पति की आवाज गूंज गई—'रश्मि , क्या तुझमें इतना ही हौंसला है? अरे , अगर तू इतनी डरपोक बनी रही तो मेरे हत्यारों से बदला कैसे ले सकेगी—रिवॉल्वर तेरे पास है , उठा उसे और निकल बाहर—अगर वह तेरी इज्जत पर हमला करे तो गोली से उड़ा दे उसे। '
उसी आवाज की प्रेरणावश उसने रिवॉल्वर उठा लिया , चेहरे पर सख्ती के वही भाव उभर आए , जो कभी महारानी लक्ष्मीबाई के चेहरे पर रहे होंगे—अब वह बिना डरे आगे बढ़ी।
बेहिचक दरवाजा खोल दिया उसने।
रिवॉल्वर मजबूती के साथ पकड़े हुए थी रश्मि। रात चांदनी थी—सारी छत पर चांदनी पिघली हुई चांदी के समान बिखरी पड़ी थी। दरवाजे के पास जमीन पर सो रहे विशेष के अलावा वहां कोई नहीं था।
चारों तरफ खामोशी और छिटकी हुई चांदनी उसे अच्छी लगी।
सोते हुए विशेष को उठाकर उसने कमरे के अंदर, पलंग पर लिटाया , फिर दरवाजा बन्द किया —रिवॉल्वर सिरहाने रखा और इत्मीनान की एक सांस लेती हुई लेट गई।
वह पुन: छत को निहारने लगी।
मस्तिष्क में पुन: विचार रेंगने लगे—सोच रही थी कि मैंने व्यर्थ ही उस बेचारे की नीयत पर शक किया , यह सचमुच चला गया था और फिर विशेष तो सचमुच ही नींद में 'मम्मी-मम्मी' बड़बड़ाता रहता है—सुनकर उसने इसे यहां पहुंचाना जरूरी समझा होगा।
'किसी पर व्यर्थ ही शक करना भी तो पाप है—वह ऐसा नहीं है—म....मैं जब स्वयं विशेष को डांटकर कमरे से बाहर भेज रही थी , तब खुद उसी ने इसे यहां रोका था—यदि वह गिरे हुए चरित्र का होता तो ऐसा हरगिज नहीं करता—नहीं , युवक ऐसा नहीं है।'
'वह बेचारा तो खुद ही ऐसी उलझन में फंसा हुआ है , जो बड़ी अजीब है।'
युवक की उलझन का अहसास करती-करती वह जाने कब सो गई ?
जब आंख खुली तो दरवाजे को कोई जोर-जोर से पीट रहा था।
रश्मि हड़बड़ाकर उठी , रोशनदान के माध्यम से कमरे में धूप की ताजा रोशनीयों आ रही थी। बौखलाकर उसने पूछा— "क.....कौन है ?"
"अरी दरवाजा खोल, रश्मि...देख , वह चला गया है—मेरा बेटा चला गया , बस एक ही रात के लिए यहां आया था।"
रश्मि खुद नहीं जानती थी कि युवक के चले जाने की इस सूचना से उसे धक्का-सा क्यों लगा , वह लपकी-सी दरवाजे पर पहुंची।
विशेष भी जाग चुका था।
अपनी दोनों मुट्ठियों से आंखें भींचते हुए उसने पहला वाक्य यही कहा— "पापा कहां हैं ?"
दरवाजा खुलते ही पागल-सी रोती-पीटती बूढ़ी मां अंदर दाखिल हुई , बोली— “ देख ले—वह चला गया , तू उसे सर्वेश कहने के लिए तैयार नहीं थी न?”
"क...कहां चले गए ?"
"म....मैं क्या जानूं.....मैं उसके कमरे में गई तो वह वहां नहीं था—पलंग पर यह खत पड़ा था , शायद कुछ लिखकर छोड़ गया है—इसे जल्दी से पढ़।"
विशेष कुछ भी नहीं समझ पा रहा था , इसीलिए पलंग पर ही बैठा मासूम-सी नजरों से उनकी तरफ देखता रहा। रश्मि ने जल्दी से
मां के हाथ से कागज लिया।
लिखा था—
प्रिय रश्मिजी ,
अपने घर में रहने के लिए दो दिन की मौहलत देने के लिए बहुत धन्यवाद—दिल से चाहता तो था कि वे दो दिन पूरे करूं , अगर सच्चाई पूछें तो वह ये है कि यहां से जाने की इच्छा बिल्कुल नहीं थी—अतीत की तलाश में भटकते हुए यहां आकर मुझे कुछ ऐसा सकून मिला कि फिर से अतीत की तलाश में भटकने की मंशा ही खत्म हो गई थी—हां, लेकिन यकीनन मैं सर्वेश नहीं हूं, फिर भी जाने क्यों , इस चारदीवारी में मुझे ऐसा महसूस हुआ था कि मेरा अतीत मिल गया है।
मैँ वीशू के साथ खेला , हंसा—वह सब शायद मुझे तब तक याद रहेगा , जब तक कि प्रकृति एक बार पुन: मेरी याददाश्त न छीन ले— , बड़ी ही प्यारी लगने वाली शैतानियां करता है वीशू और यदि सच पूछें तो मैं वक्त से पहले उसी शैतान से डरकर जा रहा हूं—मुझे माफ करना रश्मि जी , वीशू और मांजी को जो कुछ समझाने का मैंने आप से वादा किया था , उसे पूरा करके नहीं जा रहा हूं—पूरा कर भी नहीं सकता—‘बेटा-बेटा ' करती मांजी और 'पापा-पापा ' करते वीशू को वास्तविकता बताना दुनिया का शायद सब से कठिन काम है।
वीशू को आपके कमरे के बाहर लिटाकर आने के बाद यहां आकर यह पत्र लिख रहा हूं—दुर्भाग्य से उस वक्त मैंने आपकी आवाज सुन ली थी , जब शायद आप अपने पति के फोटो से बातें कर रही थीं—यह सवाल तीर की तरह दिल में चुभता चला गया कि आखिर किस दरिन्दे में इतना कलेजा था , जिसने वीशू जैसे मासूम बच्चे के पिता की हत्या कर दी—खैर , जानता हूं कि इस सवाल का जवाब मुझे कभी नहीं मिलेगा , क्योंकि यह आपका अपना व्यक्तिगत मामला है और इस बारे में कुछ भी जानने का मुझे कोई हक नहीं है—दिल पर पत्थर रखकर इसीलिए जा रहा हूं क्योंकि जानता हूं कि अगर मैं पूरे दो दिन तक उस मासूम फरिश्ते के साथ खेलता रहा तो फिर जा ही नहीं सकूंगा और जाना तो मुझे पड़ेगा ही। मैं सर्वेश नहीं हूं—फिर भी मेरी तरफ से एक बार वीशू को चूम जरूर लेना , मांजी से चरण स्पर्श करना।
आपका कोई नहीं—एक अजनबी।
पूरा पत्र पढ़ने के बाद उसी स्थान पर खड़ी-खड़ी पथरा-सी गई रश्मि। मांजी अभी तक चीख-चीखकर पूछ रही थी कि पत्र में क्या लिखा है। विशेष ने केवल एक ही रट लगा रखी थी— "मम्मी , पापा कहां हैं—पापा कहां चले गए हैं, मम्मी ?"
¶¶
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05-18-2020, 02:32 PM,
#35
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
हालांकि उस वक्त वातावरण में दिन का प्रकाश फैल चुका था जब युवक ने गांधीनगर में स्थित मकान से बाहर कदम रखा , किन्तु लोग सड़क पर नहीं आए थे—इतनी सुबह उसे कहीं से कोई सवारी भी नहीं मिली थी , अतः विचारों में गुम वह पैदल ही बढ़ता चला जा रहा था—सड़क पर इक्का-दुक्का व्यक्ति ही नजर आ रहे थे।
वे जो मॉर्निंग वॉक ' के शौकीन थे। वे जो सड़क साफ कर रहे थे या वे जो साइकिल के हैण्डिल पर अखबारों का पुलिन्दा रखे थे।
वे साइकिल को काफी तेज चलाते हुए उसके समीप से गुजर जाते थे।
शायद अपने ग्राहकों तक अखबार पहुंचाने की जल्दी में थे वे।
अचानक ही बिजली की तरह युवक के दिमाग में यह विचार कौंध गया कि—सम्भव है आज के अखबारों में गाजियाबाद के भगवतपुरा मौहल्ले में हुए हत्याकांड के बारे में कुछ छपा हो ?
जरूर छपा होगा।
मगर क्या ?
मन में अखबार देखने की तीव्र इच्छा जाग्रत हो उठी—बहुत ही जबरदस्त बेचैनी के साथ उसने अपने चारों तरफ नजर दौड़ाई। एक अखबार विक्रेता जाता नजर आया , युवक ने उसे रोक लिया।
उसने एक अखबार खरीदा।
अखबार विक्रेता साइकिल दौड़ाता चला गया और इधर अखबार के मुख्य पृष्ठ पर नजर पड़ते ही युवक का दिल 'धक्क ' से किसी गेंद के समान उछलकर कण्ठ में जा अटका।
सारा शरीर पसीने से भरभरा उठा उसका।
आंखों के सामने अंधेरा छा गया और यह सच है कि चलना तो दूर , अपनी टांगों पर खड़ा रहना असम्भव हो गया—इस डर से कि कहीं गिर न पड़े , वह वहीं—फुटपाथ पर बैठ गया।
अपनी बिगड़ी हुई स्थिति पर काबू पाने के लिए उसे काफी मेहनत करनी पड़ी—उसका इस प्रकार फुटपाथ पर बैठना अजीब था—इक्का-दुक्का राहगीर उसे विचित्र निगाहों से देखकर गुजरे थे , इसीलिए साहस जुटाकर पुन: खड़ा हो गया।
उसकी ऐसी अवस्था अखबार में अपने फोटो को देखकर हुई थी , उस फोटो को देखकर, जिसके नीचे लिखा था—इस हत्यारे से विशेष रूप से युवा लड़कियों को दूर रहना चाहिए , क्योंकि उन्हें देखते ही यह गर्दन दबाकर उन्हें मार डालने के लिए मचल उठता है। '
'उफ्फ—अखबार ने ऐसा खतरनाक परिचय दिया है मुझे ?'
कुछ ही देर में ये अखबार सारी देहली और उसके आसपास फैल जाएंगे-शाम तक लगभग सारे ही भारत में—हर व्यक्ति इस फोटो को घूर रहा होगा।
अब वह ज्यादा-से-ज्यादा आधे घण्टे तक सड़क पर सुरक्षित है—केवल तब तक जब तक कि सड़कें वीरान हैं—कुछ ही देर में भीड़ बढ़ने लगेगी—आधा घण्टे बाद हर सड़क पर मेला-सा लग जाएगा और फिर लाखों-करोड़ों उन व्यक्तियों में से कोई भी उसे पहचान लेगा , अतः उसे जल्दी से किसी ऐसे स्थान पर पहुंच जाना चाहिए जहां उसके अलावा कभी कोई न जा सके।
यहां आसपास ऐसा कौन-सा स्थान हो सकता है ?
बौखलाकर उसने अपने चारों तरफ देखा।
कहीं कोई स्थान नहीं था , सड़क के दोनों तरफ लोगों के मकान—ज्यादातर मुख्य द्वार अभी तक बन्द थे—युवक पर घबराहट पूरी तरह हावी हो गई—जेहन में रह-रहकर यह सवाल भी उठ रहा था कि पुलिस को आखिर मेरा फोटो कहां से मिल गया ?
बौखलाकर वह सड़क पर भाग पड़ा।
उसे किसी ऐसे स्थान की तलाश थी , जहां दुनिया के हर व्यक्ति की नजर से बच सके—हालांकि ऐसा कोई स्थान उसकी समझ में नहीं आ रहा था। फिर भी—पागलों की तरह वह एक से दूसरी गली में भागता फिरने लगा।
भागते हुए अचानक ही उसकी दृष्टि एक ऐसे मकान पर पड़ी जो मकान नहीं , सिर्फ मलबे का ढेर नजर आ रहा था—वह कोई पुराना मकान था , जो अपनी उम्र पूरी करने के बाद गिर चुका था और किसी वजह से जिसके मालिक ने मलबा हटाकर उसका पुन: निर्माण नहीं कराया था—मलबे के ढेर से दबा होने के बावजूद भारी मुख्य द्वार अभी गिरा नहीं था , अटका पड़ा था।
द्वार पर एक बहुत पुराना ताला भी झूल रहा था , किन्तु उसका कोई महत्व नहीं था , क्योंकि साइड में से कोई भी मलबे के ऊपर से गुजरकर अंदर जा सकता था।
इस तरफ मलबे का एक छोटा-सा पहाड़ बन गया था।
वह भागता-हांफता मलबे पर चढ़ गया।
सामान्य अवस्था में हालांकि किसी के उस मलबे के पार जाने की कोई वजह नहीं थी , परन्तु ऐसी गारंटी कोई नहीं थी कि यहां कोई पहुंचेगा ही नहीं , मगर इस वक्त युवक को किसी गारंटी की जरूरत नहीं थी , अतः दूसरी तरफ मलबे के ढेर से नीचे उतर गया।
खण्डहर ही बता रहा था कि अपने समय में मकान काफी बड़ा रहा होगा—चारों तरफ मलबा-ही-मलबा पड़ा था। दाएं कोने में एक ऐसा कमरा था जिसकी आधी दीवारें खड़ी थीं—छत का एक कोना भी जाने कैसे लटका रह गया था।
वह वहां पहुंच गया।
गन्दे कोने में एक व्यक्ति के लेटने जितनी जगह पर उसकी नजर पड़ी—इस कोने में छिपे व्यक्ति को कोई इस कमरे में आए बिना नहीं देख सकता था , अतः युवक को छिपने के लिए वही स्थान उपयुक्त लगा।
कपड़ों की परवाह किए बिना वह धम्म से उस कोने में जा गिरा।
मलबे के ढेर पर बैठा वह दो गन्दी और आधी दीवारों से पीठ टिकाए बुरी तरह हांफ रहा था—स्वयं को नियंत्रित करने में उसे काफी समय लगा।
थोड़ा संभलने के बाद उसने अखबार में छपा खुद से सम्बन्धित समाचार पढ़ा।
मोटे-मोटे शब्दों में हैडिंग बनाया गया था—‘सनसनीखेज हत्याकाण्ड।‘
युवक पढ़ता चला गया , सारी वारदात विवरण सहित लिखी थी—आंग्रे की खोजबीन पढ़कर वह चकित रह गया—आंग्रे और चटर्जी के मिलने तथा उनकी वार्ता के निष्कर्ष ने उसके होश उड़ा दिए—राजाराम के बयान ने उसके दिमाग की समस्त नसों को हिला दिया।
तात्पर्य यह कि पूरा समाचार पढ़ने के बाद उसकी घबराहट चरम सीमा पर पहुंच गई , इन सबसे जहां यह बात स्पष्ट होती थी कि रूबी किसी वजह से व्यर्थ ही उसे जॉनी सिद्ध करना चाहती थी , वहां इस समाचार ने उसे थरथराकर रख दिया कि रूपेश जीवित बच गया है और तीनों इंस्पेक्टर न्यादर अली के बंगले तक पहुंच गए।
वह उस क्षण को धन्यवाद देने लगा जिस क्षण उसके दिमाग में न्यादर अली के बंगले के लिए देहली जाने के स्थान पर शाहदरा में ही उतर जाने का विचार आया था।
मगर इस तरह कब तक बचा रह सकूंगा मैं ?
युवक का मनोबल कमजोर पड़ने लगा—उसे महसूस हो रहा था कि—कानून से भागते रहने की मेरी हर कोशिश अब बेकार जाएगी। अंतत: इन काइया इंस्पेक्टरों के चंगुल में फंस जाना ही मेरा भाग्य है।
युवक को अपने चारों तरफ अंधेरा-ही-अंधेरा नजर आने लगा—ऐसा घनघोर अंधेरा कि जिसमें हाथ को हाथ सुझाई न दे और इस अंधेरे में हल्की-सी प्रकाश की किरण बनकर उभरा—सर्वेश।
रश्मि के कमरे की दीवार पर लगा सर्वेश का वह फोटो।
'हां।' दिमाग के उसी शैतान कोने ने सलाह दी—'तुम सर्वेश बन सकते हो। पूरी तरह सर्वेश बनकर बचे रह सकते हो—फिलहाल तुम्हारा कोई परिचय नहीं है—कोई चोला नहीं है तुम पर—सर्वेश का चोला ओढ़ लो—तब शायद पुलिस भी धोखा खा जाए।'
यह बात युवक के दिमाग में बैठती चली गई कि अब केवल उस छोटे-से घर की चारदीवारी ही उसके लिए एक सुदृढ़ किला साबित हो सकती है।
'मगर अब वहां जाऊं किस मुंह से ?'
छोड़े हुए पत्र में लिखा अपना एक-एक शब्द उसे याद आने लगा—दिलो-दिमाग में एक द्वन्द-सा छिड़ गया।
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05-18-2020, 02:32 PM,
#36
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
पंजाब नेशनल बैंक की मेरठ रोड पर स्थित शाखा के मैनेजर की मेज पर सौ-सौ के नए नोटों की एक गड़्डी धीमे से रखते हुए इंस्पेक्टर चटर्जी ने कहा , "मैं यह जानना चाहता हूं कि नोटों की यह गड्डी आपके बैंक ने कब और अपने किस ग्राहक को दी थी।"
"य...यह सब बताना तो बहुत कठिन है, इंस्पेक्टर।"
"जानता हूं मगर यह एक संगीन मामला है मिस्टर मेहता , जुर्म की तह तक पहुंचने के लिए हमारे पास इस गड़्डी के अलावा कोई दूसरा सूत्र नहीं है—जितना कठिन काम आपको करना पड़ेगा , उतना ही रिजर्व बैंक को भी करना पड़ता है—वहीं से यह पता लगाना भी आसान काम नहीं था कि यह गड्डी आपकी शाखा को इशू की गई थी।"
मैनेजर दुविधा में फंस गया।
"प.....प्लीज मिस्टर मेहता—ऐसा करके आप कानून की बहुत बड़ी मदद करेंगे—दरअसल यह मर्डर का मामला है—शायद आपके उसी खातेदार का मर्डर हुआ है , जिसे यह गड्डी दी गई—हमें मरने वाले का नाम-पता आपके बैंक से मालूम करना है।"
"कमाल है—लोग हत्यारे को तलाश करते हैं और आप उसके ठीक विपरीत यह मालूम करने के लिए घूम रहे हैं कि हत्या किसकी हुई है ?"
"वक्त की बात है, मिस्टर मेहता।"
"खैर—आप 'वेट ' कीजिए , मैं कोशिश करता हूं।" कहने के बाद मेज से गड्डी उठाकर मैनेजर अपने ऑफिस से बाहर चला गया—चटर्जी ने जेब से एक सिगरेट निकालकर सुलगा ली और कुर्सी की पुश्त से पीठ टिकाकर धुएं के छल्ले उछालने लगा।
दस मिनट बाद मेहता ने जाकर बताया कि गड्डी के नोटों का सीरियल नम्बर वह हेड-कैशियर को लिखवा आया है। वह कोशिश कर रहा है—सफलता मिलते ही सूचना देगा।
"आप बेशक अपना काम कर सकते हैं—मैं इंतजार कर रहा हूं।" चटर्जी ने कहा और इस वाक्य के एक घण्टे बाद हैड-कैशियर ऑफिस में आया। एक कागज पर उसने खाता नम्बर , खातेदार का नाम , पता और वह तारीख नोट कर रखी थी , जिसमें यह दस हजार की गड्डी बैंक से निकाली गई।
“थैंक्यू।" कहने के बाद चटर्जी ने उस कागज पर नजर डाली और खातेदार का नाम पढ़ते ही उछल पड़ा। लिखा था— "रूपेश सान्याल।”
चटर्जी के जेहन में एकदम अस्पताल के बिस्तर पर पड़ा बुरी तरह जला हुआ व्यक्ति नाच उठा और यह सोचकर उसकी खोपड़ी उलट गई कि वे दस हजार रुपए रूपेश के खाते में से निकले थे।
रूपेश के खाते में से निकले रुपए राजाराम को रूबी देती है।
स्पष्ट है कि रूपेश और रूबी मिले हुए हैं।
जोश की अधिकता के कारण अन्जाने में ही चटर्जी ने एक जोरदार मुक्का मैनेजर की मेज पर जमा दिया। मेज पर भूचाल-सा आ गया।
"क्या हुआ, इंस्पेक्टर ?" मैनेजर ने पूछा।
“थैंक्यू वेरी मच मिस्टर मेहता और तुम्हें भी बहुत-बहुत धन्यवाद मिस्टर।" चटर्जी ने सफलतावश झूमते हुए हेड-कैशियर से कहा— "तुम लोगों की वजह से मेरी एक ऐसी गुत्थी सुलझ गई है , जो कभी सुलझती नजर ही न आ रही थी।"
"यदि आपको कोई सफलता मिली है तो हम उसके लिए आप को बधाई देते हैं।" मैनेजर ने उससे हाथ मिलाते हुए कहा और उन दोनों के प्रति आभार व्यक्त करके चटर्जी बैंक से बाहर निकल आया। बाहर निकलते वक्त उसने चिट पर लिखा एड्रेस भी पढ़ लिया था। बैंक
के बाहर उसकी मोटरसाइकिल खड़ी थी।
अगले कुछ ही पलों बाद मोटरसाइकिल उस एड्रेस की तरफ उड़ी चली जा रही थी—पन्द्रह मिनट बाद ही वह 'सुभाष नगर ' मौहल्ले में मकान नम्बर बावन पूछ रहा था।
फिर मकान नम्बर बावन के सामने उसने अपनी मोटरसाइकिल रोक दी।
बैल बजाने पर बीस-इक्कीस की आयु के युवक ने दरवाजा खोला , चटर्जी ने उससे प्रश्न किया— “क्या यहां कोई रूपेश सान्याल रहते हैं ?"
"जी हां , वे हमारे किराएदार हैं।"
"क्या वे घर पर हैं ?"
"जीं नहीं , वे तो पिछले एक हफ्ते से कहीं बाहर गए हुए हैं।"
"बाहर कहां ?"
"म...मुझे नहीं मालूम , शायद अम्माजी को मालूम हो। मगर बात क्या है ?"
"पुलिस को ऐसा डाउट है कि शायद मिस्टर रूपेश किसी दुर्घटना के शिकार हो गए हैं , तुम थोड़ी देर के लिए अपनी माताजी को चुला दो।"
एक मिनट बाद ही एक अधेड़ आयु की महिला चटर्जी से कह रही थी— “ रूपेश तो बहू को लेकर बस्ती गया है।"
"ब...बहू …क्या मिस्टर रूपेश शादीशुदा हैं ?"
"हां.....।"
"मगर वे बस्ती क्यों गए हैं ?"
"बस्ती में रूपेश का अपना घर है—उसके मां-बाप आदि।”
"क्या आप मुझे रूपेश की पत्नी का नाम बता सकेंगी ?"
"माला।"
"मैं मकान का वह हिस्सा देखना चाहता हूं—जहां वे रहते हैं।"
"म...मगर बात क्या है—रूपेश को आखिर हुआ क्या है ?"
"मेरा नाम इंस्पेक्टर चटर्जी है और यह मेरा परिचय-पत्र है।" चटर्जी ने जेब से परिचय-पत्र निकालकर युवक को दिया , बोला—“कल गाजियाबाद के ही भगवतपुरे मोहल्ले में , एक मकान में आग लगा दी गई थी। मिस्टर रूपेश बुरी तरह जली हुई अवस्था में वहां पाए गए।"
"र...रूपेश वहां क्या कर रहा था—वह तो बस्ती गया हुआ है ?"
"यह पहेली अभी मुझे सुलझानी है।"
एकदम चौंकते हुए युवक ने कहा—"कहीं आप उस हत्याकांड की बात तो नहीं कर रहे हैं , जिसमें एक याददाश्त खोए व्यक्ति ने एक औरत को मार डाला और फिर उसके साथ ही एक जीवित व्यक्ति को भी जला डालने की कोशिश की—जी , हां , उस जले हुए व्यक्ति का नाम अखबार में रूपेश ही लिखा था , मगर वह रूपेश भला ये कैसे हो सकते हैं ?"
"मैं यही पुष्टि करना चाहता हूं कि वह रूपेश यहां रहने वाला रूपेश है या नहीं—इसीलिए आपसे उनके रहने का स्थान देखने की रिक्वेस्ट कर रहा हूं।"
“आइए।" युवक और महिला ने उसे एक कमरे के सामने ले जाकर खड़ा कर दिया। कमरे का दरवाजा बन्द था और उस पर गोदरेज का एक ताला लटक रहा था , चटर्जी ने पूछा— “क्या उनके पास किराए पर यही एकमात्र कमरा था ?"
"जी हां।" युवक ने बताया और आंगन में ही एक तरफ को उंगली उठाकर बोला—"उधर उनका किचन और बाथरूम हैं।"
"इस कमरे की चाबी कहां है ?"
"म...माला मुझे दे गई है , मगर उनमें से किसी के बिना हम इसे खोल नहीं सकते।"
"मैँ मानता हूं—किसी का कमरा इस तरह खोलना ठीक नहीं है—मगर इस वक्त मजबूरी हो गई है—आप कहती हैं कि वे बस्ती गए थे , जबकि मिस्टर रूपेश रहस्यमय ढंग से बुरी तरह जली हुई अवस्था में हमें गाजियाबाद से ही मिले हैं—अब सवाल यह उठता है कि उसकी पत्नी माला कहां गई , शायद उनके कमरे से बरामद किसी चीज के जरिए उसका पता लग सके।"
महिला अपने कमरे से जाकर चाबी निकाल लाई।
ताला खोलकर चटर्जी युवक और महिला के साथ कमरे में दाखिल हुआ। वहां कोई ज्यादा सामान नहीं था—एक रैक पर रखे पति-पत्नी के फोटो पर चटर्जी की नजर टिक गई।
चटर्जी ने पूछा—"वह फोटो रूपेश का ही है न ?"
"जी हां।" कहने के बाद युवक ने पूछा— "क्या वहां से ये जले हुए मिले हैं ?"
"हां।”
"ओह माई गॉड!"
"क्या फोटो में रूपेश के साथ उसकी पत्नी है ?"
"जी हां।"
बहुत ही ध्यान से चटर्जी ने उस युवती के फोटो को देखा और मन-ही-मन राजाराम द्वारा बताए गए रूबी के हुलिए से मिलाने पर उसने काफी समानता महसूस की।
अब यह बात उसे जंच रही थी कि रूबी माला ही थी।
चटर्जी ने कमरे की तलाशी लेनी शुरू की। पलंग के गद्दे से उसे 'पंजाब नेशनल बैंक' से सम्बन्धित वही पास बुक मिली—उसे कुछ देर देखने के बाद चटर्जी ने जाना कि पिछले चार साल में रूपेश ने बहुत ही छोटी-छोटी रकम जोड़कर चौदह हजार रुपए बना लिए थे और पिछले हफ्ते उसमें से तेरह हजार निकाल लिए गए।
तीन एक बार , दस एक बार।
एकाएक ही युवक की तरफ पलटता हुआ वह बोला— “लगता है कि मिस्टर रूपेश की आय बहुत ज्यादा नहीं है—क्या काम करता है वह ?”
"उनकी फोटोग्राफी की एक दुकान है—दुकान अच्छी मार्किट में न होने की वजह से ग्राहक वहां कम ही आते हैं—फिर भी—गुजारे लायक आमदनी उन्हें हो जाती है।"
चटर्जी करीब पन्द्रह मिनट तक कमरे की तलाशी लेता रहा—अन्य कोई उल्लेखनीय चीज उसके हाथ नहीं लगी। अन्त में उसने फ्रेम से रूपेश और उसकी पत्नी का फोटो निकालते हुए कहा— “इस फोटो को मैं ले जा रहा हूं—माला को ढूंढने में मदद करेगा।"
"और यह पास-बुक?"
"इसे भी , केस में शायद इसकी भी जरूरत पड़े।"
"अगर आप अस्पताल जा रहे हैं इंस्पेक्टर साहब—तो क्या रूपेश भाई को देखने मैं आपके साथ चल सकता हूं ?" युवक ने पूछा।
एक क्षण सोचने के बाद चटर्जी ने कहा— “ चलो।"
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05-18-2020, 02:32 PM,
#37
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उस वक्त रात के साढ़े ग्यारह बजे थे , जब युवक ने सर्वेश के मकान के मुख्य द्वार पर धड़कते दिल से दस्तक दी—उसका ख्याल था कि रात के इस समय तक वे तीनों सो चुके होंगे , परन्तु आशा के विपरीत मकान में जाग थी।
पहली ही दस्तक के बाद अन्दर से पूछा गया—“कौन है ?”
आवाज रश्मि की थी।
इस विचारमात्र से उसके रोंगटे खड़े हो गए कि उसे पुन: यहां देखकर रश्मि क्या सोचेगी , क्या व्यवहार करेगी—फिर भी उसने जल्दी से कहा—“म...मैं हूं। ”
"मैं कौन ?"
"म...म …मुझे अपना नाम नहीं मालूम है।"
इस वाक्य के तुरन्त बाद ही एकदम कुछ इतने तीव्र झटके के साथ दरवाजा खुला कि युवक हड़बड़ा गया। सामने ही रश्मि खड़ी थी—इतना प्रकाश वहां नहीं था कि उसके चेहरे के भावों को ठीक से देख सकता।
"त...तुम फिर आ गए ?” बड़ा ही सपाट स्वर।
सकपका गया युवक। यह सच्चाई है कि इस सीधे प्रश्न का उसके पास कोई जवाब नहीं था , अत: वहां खड़ा वह सिर्फ—"मैं...मैं ” ही करता रहा।
“ आज सुबह ही तुम यहां से चले गए थे—ऐसा पत्र भी छोड़ गए थे जैसे जीवन में फिर कभी यहां नहीं आओगे और अभी ही आ गए हो—पूरे चौबीस घण्टे भी नहीं गुजरे हैं—जब आना ही था तो वह लम्बा-चौड़ा पत्र लिखकर गए क्यों थे ?"
"क...क्या बताऊं रश्मि जी , मैंने बहुत चाहा कि यहां न लौटूं मगर...।"
"फिर क्या आफत आ गई ?"
"दिल के हाथों विवश होकर आया हूं—सारे दिन वीशू का ख्याल जेहन से लिपटा रहा—म...मैँ उसके बिना नहीं रह सकता रश्मि जी।"
"तुम कोई बहुत बड़े जालसाज हो।"
"र...रश्मि जी।"
"वीशू कौन लगता है तुम्हारा? उससे क्या सम्बन्ध है? क्यों उसके लिए मरे जाने का नाटक कर रहे हो ?"
"प...प्लीज रश्मि जी , नाटक मत कहिए—उफ्फ , मैं अपने किसी अजीज को नहीं जानता , जिसकी कसम खाकर आपको यकीन दिला सकूं कि मैं नाटक नहीं कर रहा हूं—काश , मैं अपना सीना चीरकर दिखा सकता—जानता हूं कि वीशू मेरा कोई नहीं है , फिर भी जाने क्यों—पता नहीं क्यों—दीवानों की तरह यहां चला आया हूं ?"
कुछ देर शांत खड़ी रश्मि उसे देखती रही। जैसे समझने की कोशिश कर रही थी कि युवक झूठ बोल रहा है या सच? जबकि यह जानने के बाद युवक के जेहन से बहुत बड़ा बोझ उतर गया था कि रश्मि को अखबार में छपे उसके फोटो के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
एकाएक रश्मि ने कहा— "अन्दर जा जाओ।"
धड़कते दिल से युवक ने चौखट पार की।
दरवाजे को पुन: बन्द करने के बाद घूमती हुई रश्मि ने कहा— "यदि सच पूछो तो इस वक्त इस घर को तुम्हारी बहुत जरूरत थी।"
"म...मेरी जरूरत!" युवक लगभग उछल ही पड़ा।
“वीशू ने सुबह से कुछ भी नहीं खाया है—आज वह स्कूल भी नहीं गया—सिर्फ तुम्हें ही याद कर रहा है—उधर मांजी ने भी आपके जाने पर मुझे न जाने क्या-क्या कहा है।”
“क...क्या कहा …वीशू ने कुछ भी खाया-पिया नहीं है ?"
"इस वक्त वह बेहोशी की-सी अवस्था में है। "
"क...कहां है वीशू ?"
"स...सामने वाले कमरे में।"
युवक गन से निकली गोली के समान कमरे की तरफ भागा। उसे भागता देखकर रश्मि सोचने लगी कि क्या बिना खून का रिश्ता जुड़े ही दो व्यक्ति एक-दूसरे के लिए इतने पागल हो सकते हैँ ?
कमरे के दरवाजे पर ही ठिठक गया युवक।
पलंग पर वह प्यारा बच्चा लेटा था। सिरहाने बूढ़ी मां बैठी आँसू बहा रही थी। आहट सुनकर उसने दरवाजे की तरफ देखा , बोली —“कौन है ?"
"म....मैँ हूं, मां। " युवक खुद नहीं जानता था कि उसकी आवाज क्यों भर्रा गई।
"क.....कौ....न....स.....सर्वेश ?" वह एकदम उछल पड़ी।
विवश युवक को कहना ही पड़ा—“हां मां।"
"अरे, तू कहां चला गया था मेरे लाल—देख , तेरे बेटे ने अपनी क्या हालत बनाई है—सुबह से पानी की एक बूंद तक नहीं पी है मरदूद ने। " चीखती हुई पागलों की तरह वह युवक की तरफ दौड़ी।
युवक ने आगे बढ़कर उसे संभाला।
आलिंगनबद्ध हो गए वे। बुढ़िया फूट-फूटकर रो पड़ी। सांत्वना देने के प्रयास में खुद युवक की आंखें बरस पड़ीं। काफी देर तक उनकी यही स्थिति रही। अपने गम से उबरते ही बुढ़िया ने कहा— "उस मरदूद को तो देख, जालिम—कहीं वह अपनी जान ही न ले ले। ”
युवक बुढ़िया से अलग हुआ।
नजर बरबस ही दरवाजे की तरफ उठ गई। चौखट के बीचो-बीच संगमरमर की प्रतिमा के समान खड़ी थी वह विधवा—हैरत के साथ वह युवक को ही देख रही थी। विशेष रूप से उसके धूल से अटे पड़े कपड़ों को।
रश्मि की आंखें सूजी हुई थीं।
युवक को समझने में देर नहीं लगी कि अपने बेटे के गम में वह भी सारे दिन रोती रही है। वह तेजी के साथ पलंग की तरफ बढ़ा—नजदीक पहुंचकर विशेष पर झुका।
विशेष अर्ध-मूर्छित अवस्था में था।
रह-रहकर उसके होंठ कांप रहे थे और उनके बीच से आवाज निकल रही थी—‘पापा-पापा’—बस यही एक शब्द निकल रहा था उसके मुंह से।
"वीशू-वीशू।" युवक ने दोनों हाथों से उसके गाल थपथपाते हुए पुकारा—कई बार पुकारने पर कराह-सी विशेष के मुंह से निकली। युवक ने कहा— "देखो बेटे …हम आ गए हैं—आंखें खोलो। "
धीमे-धीमे उसने आंखें खोल दी। बहुत ही कमजोर आवाज उसके मुंह से निकली-"पापा। "
"हां बेटे—हम ही हैं—देखो , हम आ गए हैं। "
"प...पापा। " जोर से चीखकर विशेष अपनी नन्हें बांहें फैलाकर उससे लिपट गया और फूट-फूटकर रोने लगा—युवक का हृदय भयानक अंदाज में कांप उठा। कुछ उसी तरह , जिस तरह उस क्षण कांपा था, जब पहली बार उसे अहसास हुआ था कि उसने रूबी की हत्या की है।
युवक रो पड़ा।
बुढ़िया और रश्मि भी , मगर रश्मि ने किसी को पता नहीं लगने दिया था कि वह रो रही है—भले ही वह युवक चाहे जो सही , परन्तु फिलहाल यहां फरिश्ता बनकर ही आया था।
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05-18-2020, 02:32 PM,
#38
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
"दोपहर के वक्त हमने एक डॉक्टर को बुलाया था।" रश्मि ने बताया— “ चैक करने के बाद उसने कहा कि वीशू को कोई बीमारी नहीं है , इस बच्चे के दिल में कोई बात बहुत गहरे तक बैठ गई है—इसे दवा या डॉक्टर की नहीं , उसकी जरूरत है जिसे यह याद कर रहा है।”
युवक चुपचाप सुन रहा था।
"डॉक्टर जानता था कि उन्हें गुजरे तीन महीने के करीब हो गए हैं , इसीलिए उसने पूछा कि आखिर आज ही बच्चे को इतना गहरा शॉक क्यों लगा है—मैँ डॉक्टर के इस सवाल का कोई उत्तर नहीं दे सकी , कहती भी क्या ?"
युवक अब भी चुप ही रहा।
ऊपर वाले कमरे में उस वक्त वे दोनों अकेले थे—रश्मि ने कुछ जरूरी बातें करने के लिए उसे वहां बलाया था। युवक आ तो गया था , मगर प्रत्येक पल यह सोचकर उसका दिल कांप रहा था कि कहीं इस अकेले कमरे में पुन: वे ही भयानक विचार उसके जेहन में न उठने
लगें।
कहीं वह जुनूनी न बन जाए।
अपने दिमाग पर नियंत्रण रखने की पूरी चेष्टा कर रहा था वह।
रश्मि ने आगे कहा— “डॉक्टर वाली यह बात मैंने तुम्हें इसीलिए बताई है , ताकि तुम समझ सको कि मैँ तुम्हें इस घर में सहन करने के लिए कितनी विवश हूं।"
युवक अब भी खामोश रहा।
"अगर तुम कोई जालसाज हो तो निश्चय ही बहुत खतरनाक हो। तुम जानते हो कि पति की मृत्यु के बाद एक नारी की सबसे बड़ी कमजोरी उसका बेटा होती है और इसीलिए तुमने वीशू को अपने वश में कर लिया है। "
"ऐ...ऐसा मत कहिए रश्मि जी—म...मैं...। "
"मुझे कहने दो।" आंखों से युवक पर ढेर सारी चिंगारियां बरसाती हुई रश्मि ने बहुत ही साफ और सपाट स्वर में कहा— "तुमने जाल ही ऐसा फेंका है कि तुम्हारे जालसाज होने की शंका के बावजूद भी , मुझे तुम्हें सहन करना ही होगा—मेरे बच्चे के प्राण अपनी मुट्ठी में कैद कर लिए हैं तुमने। "
"यह बिल्कुल झूठ है—गलत है। " युवक चीख पड़ा।
"अगर तुम सच कह रहे हो , तब भी अपने बेटे की जिन्दगी एक अजनबी के हाथ में चले जाने का दु:ख है मुझे—कोशिश करूंगी , कि उसे तुम्हारे मोहजाल से मुक्त कर सकूं। ”
"म...मेरी कोशिश भी यही होगी। "
"यह कहना मेरी विवशता है कि अगर चाहो तो वीशू के मोहजाल से मुक्त होने तक तुम यहीं रह सकते हो। "
"ध...धन्यवाद।" खुशी के कारण युवक का लहजा कांप गया। उसे लगा कि वह बच गया है। वह छोटा-सा घर—वह चारदीवारी कानून के लम्बे कहे जाने वाले हाथों से बहुत दूर है। वह छोटा-सा घर उसे बहुत ही सुदृढ़ किला महसूस हुआ।
अचानक ही रश्मि ने प्रश्न किया— “ क्या मैं तुम्हारे कपड़ों पर लगी इस बेशुमार धूल का कारण जान सकती हूं ? यहां से जाने के बाद सारे दिन कहां रहे ?”
"जिसका कोई घर न हो , वह रह भी कहां सकता है? सारा दिन एक खण्डहर हुए मकान के मलबे पर पड़ा रहा , यह धुल वही मलबा है।"
"अब तुम नीचे जा सकते हो—मगर सुनो—यहां तुम केवल तब तक रहोगे , जब तक कि वीशू तुम्हारे मोहजाल से मुक्त न हो जाए , तुम उसे मुक्त करने की कोशिश करोगे—बांधने की नहीं—यहां तुम वीशू के पापा और मांजी के पुत्र बनकर ही रहना , रश्मि का पति बनने की कोशिश कभी मत करना। "
"ऐ...ऐसा गन्दा विचार मेरे दिमाग में कभी नहीं जाएगा।"
"हमेशा याद रखना कि मैं तुमसे नफ़रत करती हूं।"
युवक विचित्र नजरों से उसे देखता रहा। सचमुच उसकी आंखों से नफरत की चिंगारियां निकल रही थीं। युवक कुछ बोल नहीं सका , जबकि रश्मि ने कहा— "यहां से बाहर निकल जाओ।"
कमरे से निकलता , सीढ़ियां उतरता युवक 'मां ' की महानता के बारे में सोच रहा था— 'उफ—एक मां अपनी औलाद के लिए ऐसे जालसाज को भी सहन कर सकती है , जिससे बेइन्तहा नफरत करती हो—सिर्फ नफरत।
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05-18-2020, 02:32 PM,
#39
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
“हैलो आंग्रे प्यारे।"
अपने ऑफिस में बैठा आंग्रे इंस्पेक्टर चटर्जी की आवाज सुनकर चौंक पड़ा , स्वागत के लिए खड़ा हो गया वह और हाथ बढ़ाता हुआ बोला— “ हैलो—तुम नोटों की वह गड्डी ले गए थे—क्या तीर मारकर आए हो?"
"उसे छोड़ो प्यारे।" हाथ मिलाने के बाद 'धम्म' से एक कुर्सी पर बैठता हुआ चटर्जी बोला— "तुम कहो , आज का अखबार पढ़ने के बाद सिकन्दर का सुराग देने वाला कोई मुर्गा यहां आया भी या यूं ही बैठे मक्खियां मार रहे हो ?"
"कोई नहीं आया।" आंग्रे के लहजे में निराशा थी।
"यानि मक्खियाँ मार रहे हो , कितनी मार चुके हो—पूरी तीस हुईं या नहीं ?" इस वाक्य के बीच ही में उसने जेब से निकालकर एक सिगरेट सुलगा ली थी—आंग्रे ने देखा कि चटर्जी का चेहरा सफलता की वजह से चमक रहा था। उससे रहा न गया तो पूछ लिया— "तुम्हारे चेहरे से लग रहा है कि तुम किसी मामले में सफल होकर लौटे हो , क्या मुझे अपनी उपलब्धि नहीं बताओगे।"
"इस बारे में पांच मिनट बाद बात करेंगे—पहले यह बताओ कि राजाराम को जेल भेजा या नहीं ?"
"बस , तैयारी ही कर रहा था।"
"यानि अभी वह हवालात में है ?"
"हां।"
"मैं पांच मिनट में उससे बात करके आता हूं—तब तक अपनी गड्डी के इन नोटों को गिनो , चोरी की आदत है—कहीं बीच में से मैंने एकाध सरका न लिया हो।" कहने के साथ ही उसने गड्डी मेज पर डाली और तेजी के साथ उस तरफ चला गया जिधर इस थाने की हवालात थी।
चटर्जी के अंतिम शब्दों पर हौले से मुस्कराते हुए आंग्रे ने गड्डी उठाकर दराज में डाल ली और व्यग्रतापूर्वक चटर्जी के लौटने का इंतजार करने लगा—वह नहीं समझ पा रहा था कि चटर्जी राजाराम से क्यों मिलने गया है।
वह पांच मिनट से पहले ही लौट आया। आंग्रे ने देखा कि इस बार चटर्जी की आंखें ठीक कीमती हीरों की तरह चमक रही थीं। कुर्सी पर बैठते हुए चटर्जी ने कहा— "रूबी की लाश का मलबा यहीं है ?"
“उस अलमारी में , मगर उसका तुम क्या करोगे ?"
"निकालो प्यारे , अचार डालना है।"
आंग्रे उठा , अलमारी के समीप पहुंचा—जेब से चाबी निकालकर अलमारी पर लगा लॉक खोला और फिर एक लाल कपड़े की छोटी-सी गठरी उसने मेज पर लाकर रख दी—इस गठरी में घटनास्थल से बरामद रूबी की हड्डियां थीं। बैठते हुए आंग्रे ने कहा— "यह मेरी जिन्दगी का ही नहीं , बल्कि शायद क्राइम की दुनिया का पहला ही केस होगा , जिसके अन्तर्गत अदालत में मकतूल की डैडबॉडी शब्द कहकर ये हड्डियां पेश की जाएंगी—शायद ही कभी किसी को किसी की डैडबॉडी इस रूप में मिली हो—ये हड्डियां न तो यह बता सकती हैं कि ये किसके जिस्म की हैं और न ही इस लाश का पोस्टमार्टम आदि कुछ हो सकता है।"
चटर्जी ने जेब से एक फोटो निकाला , इस फोटो को उसने बीच में से मोड़ रखा था—यानि केवल माला का फोटो ही सामने था। रूपेश का नहीं—फोटो को उसी स्थिति में मेज पर रखते हुए चटर्जी ने कहा— “ जरा देखो प्यारे , इस कन्या को देखो।"
"देख रहा हूं।"
“कैसी है?"
"ठीक है , सुन्दर ही कही जाएगी—मगर इसे तुम मुझे क्यों दिखा रहे हो ?"
"अब जरा यह कल्पना करो कि उस पोटली में रखी हड्डियों को अगर 'सिस्टेमेटिक ‘ ढंग से फिट करके उन पर गोश्त और खाल का लेप कर दिया जाए तो इतनी सुन्दर कन्या बन सकती है या नहीं ?"
" 'क...क्या यह रूबी की फोटो है ?" आंग्रे उछल पड़ा।
चटर्जी ने बड़े प्यार से कहा— "राजाराम यही कहता है , अखबारों में इसका नाम गलत छप गया है—असल में इसका नाम माला है।"
"म....माला ?”
"हां।"
"म....मगर तुम यह कैसे कह सकते हो ?"
चटर्जी ने फोटो की तह खोल दी। युवती के साथ बैठे युवक को देखते ही वह सचमुच उछल पड़ा , मुंह से निकला--“रूपेश ?”
"तुमने ठीक पहचाना किबला।"
"म...मगर रूपेश और यह! ” आंग्रे अपने आश्चर्य पर काबू नहीं कर पा रहा था— "क......क्या ये दोनों पति-पत्नि हैं ?"
"तुम्हारे होने वाले बच्चे जिएं।"
"ल...लेकिन ये सब चक्कर क्या है ?" बेचैन होते हुए आंग्रे ने पूछा—"प...प्लीज चटर्जी , मुझे विस्तार से सब कुछ बताओ।"
चटर्जी ने नोटों की गड्डी के आधार पर रूपेश के कमरे तक पहुंचने की कहानी सुनाने के बाद कहा— “हम वहां से मकान मालिक के लड़के को लेकर अस्पताल पहुंचे—मेरे साथ अपने मकान मालिक के लड़के को देखकर रूपेश समझ गया कि मैं कहानी की उस तह तक पहुंच गया हूं , जिसे वह छुपा रहा था , अत: मेरे सवालों के उत्तर उसने बिना किसी हील-हुज्जत के दे दिए।"
"क्या बताया उसने ?"
"रूपेश बस्ती जिले में रहने वाले एक निर्धन परिवार का लड़का है , जो किसी वजह से गाजियाबाद में जा बसा—वह बचपन से ही महत्वाकांक्षी रहा है—बस्ती में जहां उसका घर है , वहां एक करोड़पति परिवार भी रहता है—उनके ठाट-बाट , शानो-शौकत आदि देखकर वह ईर्ष्या करता रहा है—करोड़पति का एक विद्रोही लड़का दस साल की उम्र में ही भाग गया था। जो काफी तलाश करने के बावजूद आज बीस साल गुजरने के बाद भी नहीं मिला है—पिछले तीन साल पहले वहां बाढ़ आई और वह बाढ़ सैंकड़ों अन्य लोगों के साथ उस करोड़पति परिवार के सभी बच्चों को अपने साथ बहा ले गई—ठूंठ की तरह रह गए वह करोड़पति सेठ और उनकी पत्नी—पड़ोसी होने के नाते रूपेश का वहां आना-जाना था , अत: उनके कोई भी बच्चा न रहने के कारण उनकी दौलत को हासिल करने की उसके मन में और प्रबल इच्छा हो गई। ”
"मगर सवाल था—कैसे?"
“इधर रूपेश एक दिन घूमने-फिरने देहली गया —वहां कनॉट प्लेस पर जिस लड़की से उसका आंख-मट्क्का हुआ , वह महरौली में रहने वाले एक परिवार की लड़की थी—अपने परिवार के साथ वह पिकनिक पर यहां आई हुई थी—सारे दिन की अठखेलियों के बाद उनके दिल की अदला-बदली हो गई थी—अतः रूपेश महाराज उन्हें उनके महरौली स्थित मकान तक छोड़ने गए—इस रहस्य को केवल माला ही जानती थी , उसके परिवार के अन्य लोग नहीं। "
"अब तो मुलाकातों का सिलसिला चालू हो गया—इश्क की पेंगें बढ़ने लगीं—झोंटे ऊंचे और ऊंचे होते चले गए—रूपेश ने गाजियाबाद से देहली तक का पास बनवा लिया , जिसके जरिए वह सर्विस करने वाले दूसरे 'डेली पैसेंजर्स ' की तरह आने-जाने लगा—इस तरह खर्चा भी कम पड़ता था। "
"खैर—इश्क इस मुकाम पर पहुंचा कि माला के घर भण्डाफोड़ हो गया , डांट-फटकार पड़ी—प्रेम दीवानी ने विद्रोह कर दिया—मां-बाप कम्बख्त होते क्या चीज हैं—उन्हें क्या हक है कि दो प्यार करने वालों के बीच चीन की दीवार बनें—देहली के किसी अंधेरे कोने में माला ने यह सारी रामायण रूपेश को सुनाई—अब रूपेश ने बता दिया कि वह कोई बहुत मोटी हस्ती नहीं है—गाजियाबाद में फोटोग्राफी की एक दुकान है जिस पर ग्राहक तभी जाता है जब शहर की दूसरी दुकान पर उसकी दाल न गलती हो।"
"र...रूपेश फोटोग्राफर है ?”
"सुनते रहो, प्यारे। वैसे तुमने प्वाइंट ठीक पकड़ा है—हां, तो हम कह रहे थे कि रूपेश ने अपनी हकीकत माला को बता दी—माता के सिर पर प्रेम-भूत सवार था , उसे भला इन बातों से क्या फर्क पड़ना था—टी oवी o पर देख-देखकर उसने ढेर सारे फिल्मी डायलॉग रट रखे थे , सब उगल दिए—उनमें प्यार की महिमा थी और यह था कि भला प्यार का दौलत से क्या सम्बन्ध , दौलत होती ही क्या है—हुंह—चांदी के चन्द सिक्के। उस वक्त माला को यकीन था कि अगर तराजू के एक पलड़े में उनका प्यार और दूसरे में सारे जहां से इकट्ठी करके दौलत रख दी जाए तो नीचे प्यार वाला पलड़ा ही रहेगा।"
“तुम तो उनके प्यार ही पर अटक गए , आगे बढ़ो।"
"माला और रूपेश भी आगे बढ़े और इतने आगे बढ़ आए कि उन्होंने कोर्ट में शादी कर ली—पैदा करने वाले आएं भाड़ में—न रूपेश के मां-बाप को पता था , न ही माला के घर वाले इन्वाइट किए गए , क्योंकि उस घर को हमेशा के लिए छोड़ने के बाद ही वह शादी हुई थी—अब वे पति-पत्नि बन गए।
साथ रहने लगे।
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05-18-2020, 02:32 PM,
#40
RE: Desi Porn Kahani विधवा का पति
"कुछ दिन तक ठीक चला , मगर शीघ्र ही माला की समझ में यह बात आ गई कि उनके प्यार के मुकाबले पर तराजू के दूसरे पलड़े में अगर एक सौ का नोट भी रख दिया जाए तो प्यार वाला पलड़ा हवा में डगर-डगर नाचेगा।
"कहना चाहिए कि फांकों की झाडू ने माला के सिर से प्रेम-भूत उतार दिया और तब उसने जाना कि वह खुद दौलत के मामले में रूपेश से कहीं प्यादा महत्वाकांक्षी है—अब ये पति-पत्नी किसी ऐसी तिकड़म के जुगाड़ में लग गए , जिससे एक ही दांव में मालामाल हो जाएं। रूपेश के जेहन में बस्ती में रहने वाला करोड़पति सेठ खटक ही रहा था।
"ऐसे समय में इन लोगों ने इंस्पेक्टर दीवान द्वारा अखबारों में दिया गया विज्ञापन देखा और उसे देखते ही रूपेश के दिमाग में एक साफ-सुथरी स्कीम चकरा गई—फोटोग्राफर होने के नाते रूपेश यह समझ गया कि याददाश्त गंवाए व्यक्ति के दिमाग की प्लेट ताजा फोटो रील के समान है , जिस पर चाहे जो फोटो उतारा जा सकता है , अतः उसने उसे बस्ती के करोडपति सेठ का बचपन में भागा हुआ लड़का साबित करने की ठान ली—पति-पत्नी में मंत्रणा हुई , इस बात पर गौर किया गया कि उनकी स्कीम कितनी मजबूत रहेगी—इसी विचार-विमर्श में इन्हें देर हो गई और रूपेश से पहले मेडिकल इंस्टीट्यूट में सेठ न्यादर अली न केवल पहुंच गया , बल्कि युवक को अपने साथ भी ले गया—यह बात रूपेश को डॉक्टर भारद्वाज से पता लगी और इस प्रथम चरण में ही उनकी योजना पर पानी फिर गया।
"जब गाजियाबाद लौटकर रूपेश ने यह सब माला को बताया तो माला के वे सारे सपने चूर-चूर हो गए , जो उसने बनी हुई स्कीम की सफलता पर देखे थे …उसने रूपेश को ताने दिए कि वह सिर्फ बातें मिला सकता है , कर कुछ नहीं सकता।
"फिर रूपेश ने सेठ न्यादर अली द्वारा अखबारों में दिया गया विज्ञापन देखा—अब , अपनी उसी स्कीम को कार्यान्वित करने का उनके सामने एक और मौका था।
"इस बार रूपेश चूका नहीं।
“उसने न्यादर अली के यहां सर्विस कर ली—पहले ही दिन उसने जान लिया कि युवक को अपने सिकन्दर होने का पूरा यकीन नहीं है और वह स्वयं अपने अतीत को तलाश करना चाहता है। युवक की यह मानसिकता रूपेश के लिए लाभदायक ही थी —युवक कपड़े बदल चुका था , यानि वे कपड़े यह उतार चुका था जो एक्सीडेंट के समय उसके तन पर पाए गए थे। उन कपड़ों को साथ लिए रूपेश समय निकालकर गाजियाबाद आया। स्कीम के मुताबिक उन्हीं कपड़ों के नाप के न केवल ढेर सारे कपड़े सिलवाए गए , बल्कि इन कपड़ों पर भी ‘बॉनटेक्स’ की चिट लगवाई गई—उसी दिन रूपेश ने अपने खाते से रुपए निकाले और माला को सब कुछ समझाने के बाद देहली लौट आया , क्योंकि सर्विस की शर्तों के मुताबिक वह ज्यादा देर तक न्यादर अली की कोठी से बाहर नहीं रह सकता था।
"उधर योजना के अनुसार माला ने रूबी के नाम से दस हजार राजाराम को दिए। सौ-सौ रुपए उन्हें, जिन्होंने युवक को दुआ-सलाम की थी—वे पैसे केवल सलाम करने के ही थे—उस युवक को पांच-सौ रुपए दिए गए , जिसने सिकन्दर से 'जमने' के लिए कहा था , भगवतपुरे वाला मकान किराए पर लिया गया—इतना सब काम निपटने के बाद माला रात के वक्त देहली जाकर रूपेश से मिली—स्कीम के मुताबिक यह ट्रिक फोटोग्राफी से ऐसी एलबम तैयार कर चुका था , जिससे सिकन्दर और माला पति-पत्नी नजर आएं—वह एलबम देते वक्त रूपेश ने उसे बाकी बातें भी समझा दीं।
“माला भगवतपुरे वाले मकान में लौट आई।
"उसी रात रूपेश ने बातों में फंसाकर सिकन्दर की नॉलिज में यह बात ला दी कि उसके तन से मिले कपड़ों पर गाजियाबाद के बॉंनटेक्स टेलर की चिट है और वहीं से उसका सही अतीत पता लग सकता है। "
"बेचारा सिकन्दर रूपेश को सचमुच अपना दोस्त और शुभचिन्तक समझ बैठा। रूपेश की जानकारी में वह उसी रात न्यादर अली की कोठी से भाग निकला—रूपेश को वह समझा चुका था कि दिन में 'बॉंनटेक्स ' टेलर से मालूम कर ले कि यह कहां गया है—वह क्या जानता था कि सब कुछ रूपेश का ही किया-धरा है।
"सोच-समझकर फैलाए गए जाल में से गुजरता सिकन्दर भगवतपुरे के मकान में पहुंच गया। उसे सुनाने के लिए जो कहानी तैयार की गई थी , उसमें उन सभी सवालों के जवाब थे , जो सिकन्दर के जेहन में चकरा रहे थे—रूबी बनी माला ने अपनी और रूपेश की प्रेम कहानी ज्यों-की-त्यों सिकन्दर को सुना दी—उनके जेहन में यह भर दिया कि वह बस्ती में रहने वाले सेठ का भागा हुआ लड़का है—उसे यह बताया कि वह अपराधी प्रवृत्ति का है , ताकि अपने बारे में और ज्यादा खोजबीन करने का साहस न कर सके।"
आंग्रे की आंखों में हैरत के साए लहरा उठे , बोला—"बड़ी खतरनाक और साफ-सुथरी स्कीम थी इनकी—बस्ती में रहने वाले सेठ के समक्ष ये सिकन्दर को उसका बेटा सिद्ध कर देते और माला को उसकी पत्नी—फिर समय आने पर सिकन्दर को रास्ते से हटा दिया जाता और सेठ की सारी दौलत की एकमात्र अधिकारिणी रूबी या माला। "
"मगर—सिकन्दर के जुनून ने सारे हालात उलट दिए—अपनी स्कीम के जोश में वे 'जुनून ' के बारे में भूल गए थे—इसी जुनून ने न केवल इनकी सारी स्कीम खाक में मिला दी , बल्कि माला चल बसी , रूपेश भी एक प्रकार से चल ही बसा—अंजाम वही हुआ आंग्रे प्यारे , जो अक्सर ऐसे खतरनाक ‘प्लानर्स ' का होता है। "
"क्या मरने से पहले माला सिकन्दर को यकीन दिला चुकी थी कि....?"
"इस बारे में कौन जानता है!"
"ल...लेकिन …रूपेश माला को उसकी पत्नी साबित कर रहा था , जबकि असल में वह रूपेश की पत्नी थी , इस स्कीम के आगे बढ़ने पर क्या माला की पवित्रता कायम रह पाती ?”
"किस किस्म की पवित्रता की बात कर रहे हो, प्यारे?”
"तुम समझ रहे हो।"
"हुंह।" व्यंग्यपूर्वक मुस्कराते हुए चटर्जी ने कहा—"अपराध करने वाले यदि इस किस्म की पवित्रता-अपवित्रता का ख्याल करने लगे तो अपराध ही न हों—दौलत हासिल करने की ललक इन बातों को नगण्य कर देती है, आंग्रे भाई—जिस बात की चिंता तुम कर रहे हो , उसकी चिंता न रूपेश को थी, न माला को।"
आंग्रे चुप रह गया , इस बारे में पूछने के लिए अब जैसे उसके दिमाग में कोई सवाल नहीं रहा था , बोला—“मान गए चटर्जी—नोटों की गड्डी को क्लू बनाकर तुमने इस मामले की अंतिम गुत्थी भी सुलझा दी।"
"यह केस तुम्हारा है , फिर मैंने इतनी भाग-दौड़ क्यों की ?"
"दोस्ती के नाते।"
"बिल्कुल नहीं।"
"फिर?”
"उलझी हुई गुत्थियों को सुलझाने की बीमारी है मुझे , गुत्थी मेरे सामने आई और फिर मैं खुद को रोक नहीं सका।"
मुस्कराते हुए आंग्रे ने कहा— "चलो यूं ही सही , मगर सारा मामला सुलझने के बाद भी अपराधी अभी तक गायब है , उस तक पहुंचने का भी तो कोई रास्ता निकालो।"
"लगता है कि वह किसी बिल में छुपकर बैठ गया है प्यारे मगर कब तक छुपा रहेगा? जब चटर्जी हरकत में आएगा तो उस बिल को भी खोज निकालेगा—कम-से-कम आज मैं हरकत में आने वाला नहीं हूं प्यारे , बहुत थक गया हूं—आराम करूंगा।"
¶¶
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