RE: Desi Porn Stories अलफांसे की शादी
अलफांसे हॉल के दरवाजे पर ही ठिठक गया।
वे चारों उसे एक कमरे के दरवाजे पर बातें करते नजर आ रहे थे, वहीं ठिठककर उसने उनकी बातें सुनीं और उन्हें सुनकर इस नतीजे पर पहुंचा कि उस कमरे में से कोई लाश गायब हो गई है—उसी ने इन सबको हैरान-परेशान कर रखा है।
अलफांसे ने अनुमान लगा लिया कि वह लाश चैम्बूर की रही होगी—उनकी तरफ बढ़ने के लिए अभी अलफांसे ने पहला कदम हॉल में रखा ही था कि फोन की घण्टी बज उठी।
बिजली की-सी फुर्ती के साथ अलफांसे ने खुद को दरवाजे के पीछे सरका लिया—इस बात ने उसे भी हैरान कर दिया था कि इन चारों को किसी ने यहां फोन किया है।
फोन पर होने वाली बातें अलफांसे सुनना चाहता था, इसीलिए सांस रोककर दरवाजे के पीछे वाली दीवार से चिपक गया, यहां से वह उन चारों को स्पष्ट देख सकता था।
और उन चारों की स्थिति तो आप न ही पूछें तो बेहतर है।
टेलीफन के घनघनाने की आवाज सुनते ही वे चारों फिरकनी की-सी तेजी के साथ एक ही धागे से बंधी चार कठपुतलियों की तरह पलट गए, वहीं—जड़वत-से होकर वे हक्के-बक्के-से फोन को घूरने लगे—इसमें शक नहीं कि उन चारों की शक्ल इस वक्त देखने लायक थी। टेलीफोन की घण्टी बन्द होने का नाम ही न ले रही थी।
अचानक आगे बढ़ते हुए विजय ने कहा—“इस बार हम बात करते हैं प्यारे!” वे तीनों भी उसके पीछे लपक-से पड़े थे।
“हैलो!” विजय ने रिसीवर उठाते ही कहा।
“ही....ही....ही!” वही व्यंग्य में डूबी डरावनी हंसी—“तो इस बार बड़े साहब बोल रहे हैं विजय बाबू।”
“हां प्यारे, हम ही बोल रहे हैं।”
“ही...ही....ही...बोलिए हुजूर, जरूर बोलिए—बन्दे की क्या बिसात है जो आपके बोलने पर पाबन्दी लगाए, वैसे मेरा ख्याल ये है कि जनाब कि आप इस वक्त चैम्बूर की लाश के लिए परेशान होंगे।”
“ओह, तो लाश तुमने गायब की है, प्यारे?”
“बन्दे की क्या बिसात है सरकार, बस आपकी जर्रानवाजी है—वैसे इस खाकसार ने लाश केवल उस कमरे से हटाई है, जहां आप लोगों ने रखी थी—पीटर हाउस से नहीं।”
“इस हरकत का मतलब?”
“मेरी हर हरकत का एक ही मतलब है जनाब, आपके दिमाग में यह जंचा देना कि ये नाचीज भी अगर पूरी रोटी का नहीं तो एक टुकड़े का हकदार जरूर है—मैं बहुत सब्र वाला जीव हूं सरकार—सिर्फ एक परसेंट पर ही खुश हो लूंगा।”
“क्या तुम जानते हो कि कोहिनूर की पूरी कीमत की एक परसेंट रकम ही कितनी बैठेगी?”
“मैं क्या जानूं साहब, आप बड़े आदमी हैं—आप ही को मालूम होगा, ईमानदारी से आप खुद ही कोहिनूर की कीमत आंक लीजिए और फिर उसका एक परसेंट मुजे दे दीजिए।”
“अगर हम तुम्हारी इस ऑफऱ को ठुकरा दें?”
“ठुकरा दीजिए साहब, यो कोई नई बात नहीं होगी—आप जैसे बड़े लोग, हम जैसे गरीबों के पेट पर तो सदियों से लात मारते आए हैं—लेकिन भले ही लात मारना न सीखा हो, चिल्लाना हमने भी सीख लिया है हुजूर—लाश पीटर हाउस में ही कहीं है, जी तोड़ कोशिश के बावजूद तलाश करने पर आपको मिलेगी नहीं और सूरज निकलते-निकलते उसमें से बदबू उठने लगेगी।”
“तुम हमें धमकी दे रहे हो?”
“धमकी देने जैसी हमारी औकात ही कहां है, सरकार?”
“अच्छा ठीक है, तुम्हें जो सौदा करना है—सामने आकर करो।”
“ही...ही...ही..शुक्रिया हुजूर, मैं आपकी हुकमउदूली नहीं कर सकता—कल रात मैं पीटर हाउस में ही आपके दर्शन करने हाजिर हो रहा हूं।”
“अब बताओ, लाश कहां है?”
“ही...ही...ही...माफ करना साहब, सौदा होने से पहले तो मैं इस मसले में आपकी कोई खिदमत नहीं कर सकूंगा, मगर डरिए नहीं—मैंने लाश को ऐसे इन्तजाम से रखा है कि अगले छत्तीस घण्टे तक उसमें से न कोई बदबू उठेगी, न खुशबू—ही...ही...ही!” रिसीवर रख दिया गया।
विजय ने बिना उनमें से किसी के पूछे ही टेलीफोन पर हुई सारी वार्ता उन्हें समझा दी, बोला—“ये जो भी कोई है प्यारे, पहुंची हुई चीज है—हम सबकी आवाज तक पहचानता है।”
“इसका मतबल ये हुआ जासूस प्यारे कि मेरे अलावा भी ऐसा कोई है, जो ये जानता है कि तुम यहां बशीर, मार्गरेट, डिसूजा, चक्रम और ब्यूटी बनकर कोहिनूर के चक्कर मे आए हो और यह भी कि इस वक्त पीटर हाउस पर लगी अदालती सील का भरपूर फायदा उठा रहे हो।” कहता हुआ अलफांसे हॉल में दाखिल हुआ तो वे चारों ही इस तरह उछल पड़े जैसे अचानक ही कमरे का फर्श गर्म तवे में बदल गया हो।
सन्नाटे की अवस्था में रह गए वे—गुमसुम, जड़वत-से।
ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की नीचे रह गई।
कई क्षण तक उनमें से किसी के मुंह से कोई आवाज नहीं निकली थी—अलफांसे की शक्ल यहां देखने की कल्पना तो शायद विजय ने भी नहीं की थी, इसीलिए उसके दिमाग की समस्त नसें बुरी तरह झनझना गईं और वह अवाक्-सा अलफांसे को देखता रह गया। अपनी सदाबहार, चिर-परिचित मुस्कान के साथ अलफांसे उनकी तरफ बढ़ रहा था और एक ही क्षण में विजय ने यह निर्णय ले लिया कि अब अलफांसे से अपनी हकीकत छुपाने का कोई औचित्य नहीं है, इसलिए बोला—“तुम जिन्न की तरह यहां कहां से प्रकट हो गए लूमड़ प्यारे?”
“तुम शायद भूल गए कि कहीं भी पहुंच जाना अलफांसे की खूबी है।”
अब, विकास ने आगे बढ़कर पूरी श्रद्धा के साथ अलफांसे के चरण स्पर्श कर लिए—जब वह झुका हुआ था, तब अलफांसे ने उसका कान पकड़ा और उमेंठकर उसे ऊपर उठाता हुआ बोला—“बहुत शैतान हो गया है बेटे, सामने पड़ने पर पैर छूता है और बाद में गुरु के खिलाफ योजना बनाता है।”
“जब आप क्राइम करेंगे गुरु, तब मैं आपको बख्शूंगा नहीं।”
अलफांसे ने बड़ी ही गहरी मुस्कान के साथ कहा—“कम-से-कम इस बार क्राइम हम नहीं बेटे तुम कर रहे हो।”
“मुझे सब मालूम है गुरु कि कौन क्या कर रहा है!”
“तुम्हें कुछ मालूम नहीं है बेटे, सिवाय उसके जो इस झकझकिए ने तुम्हारे दिमाग में भरा है।”
आगे बढ़कर विजय ने कहा—“ये कौन-सा पैंतरा है लूमड़ मियां?”
“मुसीबत की जड़ तो यही है कि तुम मेरी हर बात, हर एक्टिविटी में कोई-न-कोई पैंतरा ढूंढने लगते हो और इस बार सच ये है कि तुम ज्यादा चतुर होने की वजह से धोखा खा रहे हो।”
“क्या मतलब?”
“एक पुरानी कहावत है विजय, यह कि 'बद अच्छा, बदनाम बुरा'—मुकद्दर से इस वक्त मैं इसी कहावत में कसा हुआ हूं—बदनाम न होता तो तुम शायद मेरी बात का यकीन कर लेते—मगर, दरअसल गलती तुम्हारी भी नहीं है—मेरा पिछला कैरेक्टर ही ऐसा रहा है कि कम-से-कम तुम चाहकर भी विश्वास नहीं कर सकते कि अलफांसे इस बार कोई चाल नहीं चल रहा है, उसका कोई पैंतरा नहीं है।”
“तुम ये बकरे की तीन टांग वाला राग अलापना बन्द करोगे या नहीं?”
“यदि सच पूछो विजय तो वो ये है कि बकरे की तीन टांग मैं नहीं, तुम साबित करना चाहते हो।”
“मतलब ये कि तुम कोहिनूर के चक्कर में नहीं हो?”
अलफांसे ने वजनदार स्वर में कहा—“बिल्कुल नहीं हूं।”
“और तुम ये भी चाहते हो कि हम तुम्हारी इस बकवास पर यकीन कर लें?”
“बेशक यही चाहता हूं।”
“क्यों—मेरा मतलब यदि तुम सचमुच दूध में धुल चुके हो तो हमारे सक्रिय रहने से तुम्हारे पेट में दर्द क्यों हो रहा है? हम शक कर रहे हैं तो करने दो—जब तुम किसी चक्कर में हो ही नहीं तो तुम्हारा बिगाड़ क्या लेंगे, क्यों तुम्हें बार-बार हमें सन्तुष्ट करने की आवश्यकता पड़ती है?”
“दुख की बात है कि तुम मेरी हर बात का अर्थ उल्टा ही निकाल रहे हो—मगर फिर जब मैं गहराई से सोचता हूं तो इस नतीजे पर पहुंचता हूं कि तुम गलत नहीं हो—गलत था मेरा अतीत—अपने विगत में अलफांसे कभी एक सरल रेखा में नहीं चला, हमेशा आड़ा-तिरछा ही रहा—अलफांसे की हर बात में चाल, हर एक्टिविटी में साजिश होती थी—और अब यदि वही अलफांसे सरल रेखा में चले तो तुम यकीन करो भी तो क्यों—मगर सच मानो दोस्त—आज से साढ़े तीन महीन पहले वह अलफांसे इर्विन की झील-सी नीली गहरी आंखों में डूब चुका है—मैं रैना बहन की कसम खाकर कहता हूं कि मैं अब वो अलफांसे नहीं हूं....व....विकास, हां—शायद तुम मेरे द्वारा खाई गई इसकी कसम पर विश्वास कर सको—इधर देखो दोस्त, ये विकास है, तुम जानते हो कि अपराधी जीवन में मैंने यदि किसी से प्यार किया है तो वह ये है, विकास—मेरा बच्चा—मैं इसके सिर पर हाथ रखकर कसम खाता हूं कि इर्विन से शादी मैंने कोहिनूर के चक्कर में नहीं की है।”
यह सब कुछ अलफांसे ने कुछ ऐसे सशक्त ढंग से कहा था कि एक बार को तो विजय जैसे व्यक्ति का विश्वास भी डगमगा गया—अशरफ, विक्रम और विकास, विजय की तरफ देखने लगे थे—विकास के सिर पर अलफांसे ने अभी भी हाथ रखा था, स्वयं को संभालकर विजय ने कहा—“तुम कब चाहते हो प्यारे कि हममें से कोई या दिलजला जिन्दा रहे—मगर किसी की झूठी कसम खाकर उसे मार देने का यह भारतीय शस्त्र, दरअसल अब खट्टल हो चुका है, अपने दिलजले को बुखार भी नहीं चढ़ेगा।”
बड़े दुखी भाव से अलफांसे ने विकास के सिर से हाथ हटा लिया, बोला—“किसी ने सच कहा है कि वेश्या यदि सचमुच जोगन बनकर मन्दिर में बैठ जाए—भगवान की भक्ति में लीन हो जाए तो उसे जोगन वे तो मान सकते हैं, जो उसके अतीत को नहीं जानते—जो अतीत को जानते हैं यानी अपनी समझ में बहुत ज्यादा बुद्धिमान होते हैं, वे उस बेचारी को उसी दृष्टि से देखेंगे—वेश्या की दृष्टि से।”
“लगता है लूमड़ मियां कि तुम डायलॉग अच्छी तरह रटकर आए हो।”
“कोई भी वस्तु या व्यक्ति हमें ठीक वैसी ही नजर आती है जैसा उसे देखते वक्त हमारा दृष्टिकोण है, यदि पीतल के भाव में सोना बिक रहा हो तो, भले ही आप सोने के चाहे जितने बड़े पारखी हों—उस वक्त उस सोने को पीतल ही समझेंगे—यदि कोई वस्तु मैं तुम्हें अभी जेब से निकालकर दूं और कहूं कि वह विदेशी है, कीमत है दस हजार डॉलर—तो तुम्हें उस साधारण-सी चीज में अपनी दृष्टि द्वारा पैदा किए गए गुण नजर आने लगेंगे—उसी चीज को यदि में तुम्हें यह कहकर दूं कि वह फुटपाथ से एक डालर में खरीदी गई है तो तुम्हें उसमें अपनी दृष्टि के पैदा किए हुए अवगुण नजर आएंगे—एक सुन्दर लड़की सामने खड़ी है, तुम उस पर आसक्त हो—तभी तुम्हारा कोई विश्वसनीय बताता है कि वह दरअसल वेश्या है—उसी क्षण से वह तुम्हें गन्दी और बदसूरत नजर आने लगेगी—यह सब क्या है? दृष्टि भ्रम ही न—सब कुछ वैसा नजर आता है जैसे नजरिए से आप देख रहे हैं—तुम भी इस वक्त उसी दृष्टि-भ्रम के शिकार हो विजय, मेरे अतीत को पचा नहीं पा रहे हो तुम—उससे उभरकर मेरी तरफ देख ही नहीं रहे हो क्योंकि—इसके तीन कारण हैं, मेरा अतीत—तुम्हारा दृष्टि-भ्रम और सबसे बढ़कर तुम्हारे अन्तर में कहीं छुपा ये डर या तर्क कि—कहीं कल को लोग ये न कहें कि विजय, तुम भी धोखा खा गए—तुम तो अलफांसे को सबसे ज्यादा समझने का दावा किया करते थे?”
|