RE: Desi Porn Stories बीबी की चाहत
तरुण की कहानी उसकी पराकाष्ठा पर पहुँच रही थी। मैं तो काफी गरम हो ही रहा था, पर दीपा भी काफी उत्तेजित लग रही थी। दीपा पर तरुण की कहानी का गहरा असर मैं अनुभव कर रहा था, क्यूंकि वह अपनी सिट पर अपने कूल्हों को इधर उधर सरका रही थी। अँधेरे में यह कहना मुश्किल था की क्या वही कारण था या फिर तरुण की कोई और शरारत? जरूर तरुण स्वयं भी काफी गरम लग रहा था। उसकी आवाज में मैं कम्पन सा महसूस कर रहा था।
तब हम शहर के प्रकाशित क्षेत्र में प्रवेश कर चुके थे। दीपा का एक हाथ मेरे हाथ में था और तब मेरे देखते हुए तरुण ने भी दीपा का एक हाथ पकड़ा और अपने हाथ के नीचे अपनी एक जांघ पर रखा। दूसरे हाथ से वह ड्राइविंग कर रहा था। दीपा ने मेरी तरफ देखा। मैं मुस्काया और उसे शांत रहने के लिए इशारा किया। लाचार दीपा वापस अपनी सीट पर पीठ लगाकर बैठ कर तरुण से आगेकी कहानी सुनने लगी। दीपा ने अपना हाथ जो तरुण की जाँघ पर था उसे वहीँ रहने दिया।
तरुण ने कहानी को आगे बढ़ाते हुए कहा, "रमेश की पत्नी अपने पति के प्रति बड़ी आभारी थी क्यूंकि उसके पति ने अपनी पत्नीको उसके मित्रके साथ सेक्स करनेको कहा। तब से उन पति पत्नी में खूब जमती है और वह कई बार रमेश के साथ थ्रीसम का आनंद ले चुके हैं। वैसे भी अब उन पति पत्नी को एक दूसरे के साथ सेक्स करने में भी बड़ा आनंद मिलता है, क्यूंकि उस समय वह अपने थ्रीसम के आनंद के बारेमें खुल कर बात करते हैं।" तरुण ने अपनी कहानी का समापन करते हुए एक जगह गाडी रोकी।
तरुण की कहानी सुनते हुए मेरे रोंगटे खड़े हो गए। मैं खासा उत्तेजित हो रहा था। मैंने दीपा के हाथ में हाथ डाला तो उसने भी मेरा हाथ जोरों से दबाया। मुझे लगा की वह भी काफी उत्तेजित होगयी है। कार में भी अँधेरा था। मैंने उसका हाथ मेरी टांगों के बिच रख दिया। दीपा धीरे धीरे मेरे टांगों के बिच से मेरी पतलून की ज़िप पर हाथ फ़ैलाने लगी। मैंने भी दीपा की टांगो के बिच अपना हाथ डाल दिया। दीपा ने अपनी टाँगे कसके दबायी और मेरे हाथ को टांगो के बिच दबा दिया।
मेरी पतलून में मेरा लण्ड तरुण की बात सुनकर खड़ा हो गया था। दीपा के मेरी टाँगों के बिच में हाथ रखने पर मैंने मेरे लण्ड ऊपर दीपा का हाथ रख दिया। दीपा उत्तेजित स्थिति में मेरे लण्ड को मेरी जिप के ऊपर से ही सहलाती रही। मैंने भी महसूस किया की जब मैंने दीपा की टांगों के बिच में मेरा हाथ रखा तो दीपा ने उसे अपनी टाँगों के बिच में दबाया। मुझे लगा की मेरी बीबी की चूत तरुण की नशीली बातें सुनकर काफी गीली हो चुकी थी।
मैंने देखा की मेरी रूढ़िवादी पत्नी भी तरुण की सेक्स से भरी कहानी सुनकर उत्तेजित हो गयी थी। तब तरुण ने पूछा, "दीपक, बताओ, क्या रमेश और उसके मित्र पति पत्नी ने जो किया वह सही था?"
मैंने कहा, "मैं क्या बताऊँ? भाई ऐसे मसले में पत्नी की राय सबसे ज्यादा आवश्यक है। दीपा से पूछो।"
तरुण ने दीपा की और प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा। तब दीपा ने कुछ हिचकिचाते हुए मुझे कहा, "मैं क्या कहूं? तुम दोनों के बिच में मुझे क्यों फँसाते हो?"
मैंने कहा, "आज तुम हम दोनों के बिच में फँसी हुई हो इसमें क्या तुम्हें कोई शक है?"
दीपा ने अपनी असहायता दिखाते हुए जो कहा वह तो मैंने सोचा भी नहीं था। दीपा ने कहा, "ठीक है भाई अगर तुम ज़िद कर रहे हो तो कहती हूँ की तरुण के दोस्त कपल ने सही किया या गलत, ये कहने वाले हम कौन होते हैं? अरे वह पति पत्नी ने अपने बारें में सब तरह सोच कर यदि ये फैसला लिया तो सही किया। अगर रमेश के दोस्त ने अपनी मर्जी से रमेश को अपनी बीबी के साथ सेक्स करने के लिए कहा और रमेश की बीबी अगर रमेश से सेक्स करने के लिए राजी थी और उसके साथ सेक्स किया तो उसमें मुझे कोई बुराई नजर नहीं आती। वह थ्रीसम मतलब अगर दोनों मर्द मिलकर रमेश की बीबी के साथ सेक्स करते हैं तो उससे क्या फर्क पड़ता है? मर्द और औरत का सम्भोग यह भगवान की देन है। सेक्स करने में शर्म की कोई बात नहीं है।"
इतना कह कर दीपा रुक गयी और मेरी और देखने लगी। मेरी पत्नी की इतनी सरसरी बात सुनकर मैं हैरान रह गया। मैंने पूछा, "क्या इसका मतलब यह है की पति अथवा पत्नी जिस किसी के साथ भी चाहें सेक्स कर सकते हैं?"
दीपा ने कहा, "बिलकुल नहीं। हमारे समाज ने सोच समझ कर उसमें कुछ रोक लगाई है और कुछ मर्यादाएं स्थापित की हैं। वह पति और पत्नी दोनों के पालन के लिए हैं। जब पति पत्नी एक साथ हो तो जो उन दोनों को मंजूर हो वह ठीक है और बात तो गलत नहीं है। शादी के कुछ सालों बाद हम सब पति पत्नी में एक दूसरे से सेक्स करने की उत्सुकता, रस और उत्तेजना जो पहले थी वह नहीं रहती । इसका कारण यह है की सेक्स में जो नवीनता पहले थी वह नहीं रही। एक ही खाना, भले ही वह कितना ही स्वादिष्ट क्यों ना हो; रोज खा खा कर हम बोर नहीं जाते क्या? अगर कुछ और तरह से खाना बनाया जाए या कभी कबार बाहर खाना खाया जाए तो अच्छा तो लगेगा ही। इन हालात में रमेश के मित्र और उसकी पत्नी ने जो किया वह उनके लिए सही साबित हुआ, तो सही है। और फिर उसका फायदा भी तो मिला उनको। उनका वैवाहिक जीवन सुधर जो गया।"
क्यों दीपक, मैंने गलत तो नहीं कहा?" दीपा ने मेरी और देखा और कुछ मुस्करा कर मेरा हाथ थामा। मेरा क्या मत है यह जानने के लिए शायद दीपा उत्सुक थी। वह चिंतित थी की कहीं मैं उसकी बात का गलत मतलब तो नहीं निकालूंगा।
मैं क्या बोलता? मैंने अपनी मुंडी हिला कर दीपा का समर्थन किया। मैं मेरी पत्नी का एक नया रूप देख रहा था। अबतक जो पत्नी मुझ से आगे सोचती नहीं थी वह आज थ्रीसम का समर्थन कर रही थी। तब मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी मंशा सफल हो सकती है।
|