Desi Sex Kahani जलन
12-05-2020, 12:17 PM,
#11
RE: Desi Sex Kahani जलन
सलतान के पास ही पलंग पर तीन सुंदर युवतियां लेटी हुई है। सुलतान की तरह उन्हें भी आस-पास की कोई चिंता नहीं है। उनके वस्त्र अस्त-व्यस्त हो गए हैं, फिर भी वे आराम से खर्राटे ले रही हैं।

पलंग के पास ही चांदी की चौकी पर सुराही और प्याला रखा है, जिससे मालम होता है कि सोने से पहले वहां शरबते-अनार का खुलकर दौर-दौरा हुआ था। सबब यही हैं कि सुलतान और छोकरियां एक तरह से बेसुध और चिंतारहित होकर सो रही हैं। ख्वबगाह के एक कोने में पीतल का एक छोटा-सा घंटा टंगा हुआ है, जिसकी चमक सोने जैसी है।

घंटा हिला। टन-टन का शब्द हुआ।, फिर हिला, फिर शब्द हुआ-टन-टन!!

"यह बेवक्त घंटे की आवाज कैसी?"... कहते हुए सुलतान काशगर हडबड कर उठ बैठे। उनकी दृष्टि तत्क्षण कोने में हिलते हुए घंटे पर जा पड। घंटा अभी तक हिल रहा था। उसकी आवाज अभी तक ख्वाबगाह में गूंज रही थी।

सलतान ने शीघ्रता से तीनों युवतियों को जगाया। सुलतान की आंखों में आश्चर्य का भाव देखकर उनका सुख स्वप्न भंग हो गया और वे सोने की अवस्था में उठकर खड़ी हो गई।

"अपने वस्त्र सम्हाल लो और दरवाजा खोल दो। वजीरे आजम इस बेवक्त मिलने आए हैं, कोई पेचीदा मामला जान पड़ता है- जल्दी करो।" सुलतान ने गंभीरता से कहा। उनके ललाट पर व्याकुलता के चिह्न प्रकट हो आए थे। उन्हें आश्चर्य हो रहा था कि इतनी रात गए वजीर क्यों आए हैं उनके पास?

वजीर के अतिरिक्त और किसी को भी सुलतान से असमय में मिलने की आज्ञा न थी।

युवतियों ने अपने अस्त-व्यस्त कपड_f को यथास्थान कर लिया। एक ने सुलतान का शाही चोगा लाकर रख दिया। दूसरे ने वजीर के लिए एक चांदी की कुर्सी लाकर रख दी और तीसरे ने आगे बढकर मुख्य द्वार धीरे से खोल दिया।

घबराहट की अवस्था में वजीर अंदर आया और उसने अदब के साथ सुलतान का अभिवादन किया। युवतियां श्रेणीबद्ध होकर चुपचाप खडी हो गई।

“इतनी रात को तुमने क्यों तकलीफ की? तुम्हारी सूरत पर इतनी परेशानी क्यों?" सुलतान ने प्रश्न किया।

“जहाँपनाह ! बात बडी खौफनाक है-" वजीर ने उत्तर दिया।

"जाओ-" सुलतान ने युवतियों को आदेश दिया और गांव तकिये के सहारे उठकर वजीर से पूछा, “बताओ, किस बात ने तुम्हें इतना परेशान कर रखा है? मुझे सख्त ताज्जुब हो रहा है कि तुम...।"

"बात बड। हैरत की शहंशाह ! मैं वजीर हूं, अदना वजीर ! और आप हैं दीन-दुनिया के मालिक। मैं किस मुंह से वह हैरतअंगेज दास्तान आपको सुनाऊं? डर है मुझे कहीं वह बात कहकर मैं खुद जहाँपनाह के गुस्से का शिकार न हो जाऊं, फिर भी जहाँपनाह यकीन रखें अगर मेरे खून का एक-एक कतरा, मेरे मांस का एक-एक जर्रा भी आपके काम आ सके तो मैं जां-निसारी के लिए तहेदिल से तैयार रहंगा..." वजीर ने मिश्रित स्वर में कहा।
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12-05-2020, 12:17 PM,
#12
RE: Desi Sex Kahani जलन
उसका शरीर बेतरह कांप रहा था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह सुलतान के आगे किस तरह, किस साहस वह भयानक बात कहें, जिसे कहने के लिए वह इतनी रात गए यहाँ आया है।

"बात क्या है, मेरे बुजुर्ग वजीर? साफ-साफ कहो, मैं सब सुनने को तैयार हूं। कहर के अल्फाज भी मुझे मायूस नहीं कर सकेंगे। तुम कहो, दिल खोलकर कहो..." सुलतान ने वजीर को सांत्वना दी। उनकी भी उत्सुकता बढ़ती जा रही थीं।

"किस मुंह से कह, शहंशाह हजुर। आसमान फट पडगा , जमीन पर कहर मच जाएगा, चांद और तारे आसमान से टूट पड गे, मगर जहाँपनाह, सब कुछ कह दूंगा-सारा राज फाश कर दूंगा। आज तक अपनी आंखों से महल में जो-जो तमाशे देखे, उन्हें अब तक चुपचाप देखता रहा, मगर अब चुप न रहूंगा... सुनिए शहंशाह।" एक बार वजीर का शरीर रोमांचित होकर काप उठाए, धडकन बढ गई, होठ सूख गए।

जीभ से होंठ तार करता हआ वजीर बोला- “उफ! फरिश्ते जैसा खाविंद छोडकर जो बेगम, जो मल्का बुरे रास्ते पर कदम रखे, बदकारी करे-इससे बढ़ कर खौफनाक चीज और क्या हो सकती है।"

वजीर की अंतिम बात से सुलतान चौंक पड- वजीर! बात क्या है? जल्दी कहो, तूफान-सा मचा दिया है तुमने मेरे दिल में। मेरा वक्त जाया न करो। साफ-साफ बोलो, मेरे जईफ वजीर!"
"मेरे मालिक!
मेरे आका!" बजीर हांफता हुआ बोला, "मेरा कसूर माफ करेंगे, मगर आप यह बात सुनकर अपने दिल पर काबू न रख सकेंगे। जहाँपनाह, या इलाही। या खुदा। मुझे कहने की हिम्मत दें और शहंशाह को सुनने की ताकत दें।"

वजीर!" एकाएक सुलतान का स्वर कठोर हो गया। उनकी मुखाकृति पर क्रोध की लाली दौड आई।

"गुस्सा न कीजिए, मेरे आका!" कहते-कहते बुड्डा वजीर अदब से सुलतान के पैरों पर झुक गया।

इतने रजील न बनो, मेरे बुजुर्ग। दिल को काबू में रखो और कह डालो उस बात को, जिसने जिगर में तूफान बनकर तुम्हें और मुझे दोनों को परेशान कर दिया है।"

-सुलतान की आवाज में मुलामियत से ज्यादा कडाई थी। "शहंशाह ! दीन-दुनिया के मालिक। सुनिए, मल्काए-आलम की काली करतूत।"

"मल्काए-आलम की काली करतूत? वजीर, यह तुम क्या कह रहे हो?"

"ठीक कह रहा है जहांपनाह! आप यहां रंग महल में मौज उडा रहे हैं और उधर अपने महल में मल्काए-आलम भी एक नौजवान गुलाम के साथ...।"

"गुलाम के साथ! यह तुम क्या कह रहे हो, वजीर? तुम्हें अपने सिर की परवाह है या नहीं? "मल्काए-आलम पर .."सुलतान गुस्से से कांपने लगे।
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12-05-2020, 12:18 PM,
#13
RE: Desi Sex Kahani जलन
“मैं सबूत भी दे सकता हूं हुजूर।"

“सबूत? तुम सबूत भी दे सकते हो। और उसके खिलाफ जो दीन-दुनिया के मालिक सुलतान काशगर के दिल की रानी है- उसकी करतूतों को तुम साबित कर सकते हो? या खुदा। कहने वाली जबान गल क्यों नहीं गईं? सुनने वाले के कान बहरे क्यों नहीं हो गए?" सुलतान का सिर एक ओर लटक गया। शायद उन्हें गश आ गया था?

"जहांपनाह !"

"मैं!... सुलतान की तबीयत धीर-धीरे ठीक हो गई, "मैं सबूत चाहता हूं। चलो, मैं मल्काए-आलम तक चलता है। वहां अगर तुम्हारी बातों का पूरा सबूत न मिला तो मेरी तलवार तुम्हारा सिर तराश लेगी!" -सुलतान ने अपनी तलवार कमर से लटकाते हुए कहा।

“हुजूर किस रास्ते से चलेंगे!"

"छिपे रास्ते से तुम मेरे पीछे-पीछे आओ..." कहते हुए सुलतान ने पास ही लगी हुई चांदी की एक मूठ धीरे से घुमा दी।

मूठ घुमाते ही दीवाल में थोड-सा कंपन्न हुआ और एक मनुष्य के जाने योग्य दरार हो गईं। सुलतान और वीर क्रमश: उस दरार में घुस गए। उनके भीतर प्रवेश करते ही वह दीवार पुन: आपस में जा मिली और वह स्थान पूर्ववत् बिल्कुल साफ दिखाई देने लगा।

वह हृदयग्राही विशाल उद्यान है जिसमें रंग-बिरंगे फूल खिलकर हवा में अपनी सुगंध फैला रहे हैं। स्थान-स्थान पर संगमरमर के फव्वारे से बने हुए हैं, जिससे इस आधी रात के समय भी पानी की फुवारें उठा रही है।

चंद्रमा की जोत्सना में उद्यान की शोभा दर्शनीय है। उद्यान के मध्य भाग में एक छोटा-सा महल बना हुआ है। छोटा होने पर भी महल की निर्माण-कला अद्वितीय है। सुंदर गुमटियां बनी हुई हैं। गुमटियां चतुर्दिक लताओं द्वारा आच्छादित हैं। लताओं के घनीभूत होने के कारण यहां कोई सहज ही अपने आपको छिपा सकता है।

वजीर और सुलतान ने उसी स्थान से सब कुछ देखने का निश्चय किया।

"गौर से देखिए हुजूर। वह दोनों है, मल्काए-आलम और वह गुलाम।” वजीर ने सुलतान के कान के पास मुह सटाकर कहा।।

सुलतान लताओं को हटाकर इधर-उधर देखने लगे, "मुझे तो कुछ दिखाई नहीं पड़ता।" उन्होंने थोडी देर के बाद कहा।

"कुछ दिखाई नहीं पड़ता?" वजीर आश्चर्य से बोला, “या इलाही! मेरी जईफ आंखों से भी आपकी आंखें कमजोर हैं? अच्छा और नजदीक आकर देखिए।"

वजीर और सुलतान पेड की ओट लेते हुए आगे बढ । एक पेड़ के नीचे पहुंचते ही सुलतान ठिठककर खडा हो गए।

उन्होंने देखा, साफ चांदनी में, दूध में धोई रात में, अपने दिल की रानी मल्काए-आलम का कपट व्यवहार कुत्सित प्रेम-लीला।

उन्होंने देखा- जलती हुई आँखों में, धडकते हुए हृदय से और खोलते हुए खून से विश्वासघात का वह दृश्य जिसका सीमा असीम है। मल्का अपने प्रेमी के साथ स्फटिक शीला पर बैठकर प्रेमालाप में इतनी तल्लीन थीं कि उन्हें अपने अस्त-व्यस्त कपड का तनिक भी ध्यान न था। प्रेमी युवक क्षुद्र अनुचर मात्र था। इतनी बड। सल्तनत के अधिपति सुलतान को छोड कर मल्का ने क्षुद्र गुलाम के हाथ अपनी प्रतिष्ठा अपनी मर्यादा और अपने सतीत्व का सौदा किया था। विश्वासघात का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है?

स्थिर एवं प्रस्तरवत नेत्रों से सुलतान सब-कुछ देख रहे थे। क्रोध से शरीर कांप रहा था। हाथ तलवार की मूठ पर था। थोडी देर तक सुलतान उनकी क्षण-क्षण परिवर्तन होने वाले क्रियाकलापों को खड। देखते रहे। सुलतान की जगह यदि कोई और मनुष्य होता, तो कदापि इस तरह चुपचाप वह दृश्य नहीं देख सकता था। वह क्रोधवश या तो मूर्च्छित होकर गिर पडता या दोनों का सिर धड़ से अलग कर देता।

परंतु सुलतान तो सुलतान थे। साधारण मनुष्य में और उनमें बहुत अंतर था। उन्होंने सब-कुछ शान्तचित्त से देखा, फिर एकाएक घूम पड । एक दीर्घ श्वास लेकर उन्होंने कहा- “तुम्हारा सिर बच गया मेरे बुजुर्ग। वाकई तुम्हारा कहना ठीक था।"

ऊपर से सुलतान बहुत शांत और गंभीर दिख पड रहें थे, परंतु उनकी आंतरिक अवस्था अत्यंत शोचनीय थी। उनके हृदय में दारुण ज्वाला धडक रही थी। औरतों के प्रेम में छिपी हई वासनात्मक प्रवृत्ति और उनके दुर्गम चरित्र को देखकर उन्हें बडी ही ग्लानि हो रही थी।

"तुम शहजादे परवेज के महल में चले जाओ इसी वक्त, और जल्द से जल्द लेकर मेरे पास आओ। मैं महल में जा रहा हूं।" सुलतान ने कहा। वजीर शहजादे परवेज को बुलाने चला गया।

सुलतान पलंग पर आकर अन्यमनस्क भाव से पड रहे। प्रतिक्षण उठते हुए विचारों ने उनके मस्तिष्क को उद्विग्न कर दिया। लाख प्रयत्न करने पर भी उन्हें शांति नहीं मिल रही थी। घबराहट की अवस्था में कभी-कभी बडबड ने लगते, कभी करवटें बदलते और कभी हृदय के अंत:प्रदेश से निश्वास छोडकर, अपनी आत्मा को सांत्वना देने का असफल प्रयास करते। अब तक तीन युवतियां वहां आ चुकी थीं। उनमें से एक ने उनके चेहरे पर बदमुश्क छिडकना आरंभ किया। बदमुश्क की शीतलता ने उन्हें कुछ राहत दी। __शरबते-अनार !" सुलतान का इशारा पाकर एक बांदी ने प्याले में थोड-सी शराब डालकर सुलतान के होठों से लगा दिया। सुलतान गटागट एक ही सांस में पी गए।, फिर वह प्याला उस युवती से छीनकर उसकी छाती पर इतने जोरों से खींच के मारा कि वह बेचारी चीख उठी।

"साकी! शराब! औरत!" सुलतान की आवाज कांप रही थी। औरत! फाहशी, दगाबाज! चली जाओ, तुम सब यहां से।"

और सुलतान ने अपना सिर थाम लिया। “सुलतान की हालत एकाएक ऐसी क्यों हो गई ?" एक ने दबी जबान से पूछा।

"जरूर कोई नई बात हुई है। दूसरी ने कहा और तीनों युवतियां थर-थर कांपती हुई प्रकोष्ठ से बाहर हो गईं।

“जिल्ले सुब्हानी।" एकाएक दरवाजे पर आवाज आई। सुलतान ने सिर उठाकर देखा, दरवाजे पर वजीर के साथ मुस्कराता हुआ परवेज खड था।

“तुम आ गए जीनते-ताज-शानहीं" सुलतान ने कहा- “आओ बैठो।"

परवेज आकर सुलतान के पलंग पर बैठ गया और बोला, "भाईजान ! इस बेवक्त कौन-सी जरूरत आन पड , जिसके लिए मुझे बुलाने की तकलीफ उठाई आपने?"
___ *परवेज!"... शहंशाह कहने लगे, "मुझे एक पेचीदा मामले में तुमसे मशविरा करना है। तुम मेरे भाई हो। मुझे उम्मीद है कि तुम मेरे फैसले को, मेरे हुक्म को लफ्ज-ब-लफ्ज बजा लाओगे। यों तो मैं वह काम किसी ओर के भी सुपुर्द कर सकता था, मर यह पोशिदा बात है, और इसमें बदनामी का डर है।"

"आखिर बात क्या है, आलिजाह?" परवेज ने पूछा। उसकी आंखों में उत्सुकता झांकने लगी थी।

"बात? क्या वजीर ने आज की दास्तान तुम्हें नहीं सुनाई?" ___

"नहीं जहाँपनाह ! मैंने शहजादे से वह शर्मनाक बात अपनी जबान से कहना जरूरी नहीं समझा।" वजीर ने अभिवादन करते हुए कहा।
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12-05-2020, 12:18 PM,
#14
RE: Desi Sex Kahani जलन
"मरहबा मेरे जईफ वजीर!" सुलतान के चेहरे पर एक फीकी मुस्कराहट खेल गईं, "परवेज! खुदा की पाक इज्जत पर, जो बदनामी का धब्बा लगा, उसके लिए उस बदनसीब के लिए तुम कौन-सी सजा तजबीज करोगे?"

"भाईजान ! इज्जत और अस्मत-ये दोनों चीजें जिस शख्स ने गवा दी, उसके लिए इस तख्त ए-दुनिया से नेस्तनाबूद हो जाना ही बेहतर है।" -परवेज ने कहा। ____

"आफरी शहजादे!" सुलतान के मुंह से शाबाशी के अल्फाज निकल पड], "तुमने बहुत ठीक जवाब दिया, मगर मैं उस शख्स को शहर से निकल जाने की सजा देता हूं।"

"वह शख्स है कौन, भाईजान?"

"सुनो!" सुलतान की आकृति गंभीर हो गईं। टूटे स्वर में उन्होंने कहा, “मल्का ! जिसे तुम अब तक इज्जतो-अस्मत की हूर समझते थे। वह फाहशा है, बदकार है समझे। मैं तुम्हें हुक्म देता है कि सुबह होते ही, किसी बहाने उसे किसी खौफनाक जंग में छोड आओ, जहां से वह लौटकर ना आ सके।" ___

भाईजान?"आश्चर्यचकित मुद्रा में परवेज उठ खडा हुआ, "मल्काए-आलम फाहशा!

यह कभी नहीं हो सकता भाईजान ! कभी नहीं हो सकता, आपका ख्याल गलत है।" ___

"मेरा ख्याल ठीक है।" सुलतान सक्रोध बोले, "कान से सुनी हुई बात गलत हो सकती है, शहाजादे! परंतु उसकी बदकारी खुद मैं अपनी आंखों से देख चुका हूं, उसको तुम गलत कैसे कह सकते हो? मेरा हवम है, सुलतान का हुक्म है कि तुम मल्का को ले जाकर ऐसी जगह छोड दो, जहाँ पीने को पानी और खाने को दाना भी नसीब न हो। दुनिया वाले, दी हुई सजा सुनकर कानों पर हाथ रख लें। जमीन-आसमान कांप उठे, हा-हां-हाँ।" सुलतान का विकट हास्य भयानक रूप से गूंज उठा, "मेरी हुकूमत के असमान पर सितारों का उलटफेर। कभी नहीं, कभी नहीं। जाओ, अभी जाओ।"

"मेरे आका! शहंशाह ! रहम। रहम। वजीर आर्तनाद कर उठा।

"हर्गिज नहीं।" शहंशाह गरज उठे, "जाओ तुम लोग, मुझे आराम की जरूरत है।"

वजीर और परवजे थर-थर कांपते हुए चले गए। उनके जाते ही शहंशाह चिल्ला उठे, "अंगूरी। शरबते-अनार। शराब! साकी!"

तीनों युवतियां वहां तुरंत आ पहुंची। एक ने शराब का प्याला भरकर कांपते हुए हाथों से सुलतान के होंठों से लगा दिया। सुलतान एक ही सांस में उसे पी गए।
दुसरा, तीसर, चौथा और पांचवा। सुलतान शराब पीते गए और दीन-दुनिया की सुध भूलते गए। इसी समय कोने में लटका हुआ घंटा बज उठा जोरों से।

"हैं! किसने पुकारा?" ...नशे में झूमते हुए सुलतान दरवाजे की ओर बढतीनों सुंदरियां विस्फरित नेत्रों से सुलतान के अव्यवस्थित कार्यों को देख रही थीं।
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12-05-2020, 12:18 PM,
#15
RE: Desi Sex Kahani जलन
सुनसान भयानक जंगल। इतना बीहड कि दिन में भी मार्ग पर चलना कभी-कभी कठिन हो जाता है। ऐसी ही भयानक जंगल की पगडंडी से दो प्राणी, एक पुरुष और एक स्त्री, शीघ्रता से आगे और आगे बढ़ते चले जा रहे हैं। दोनों के वस्त्रादि राजकीय है, जिससे मालूम होता है कि उन दोनों का किसी शाही खानादान से अवश्य कुछ संबंध है। ___

"मैं तो थक गईं परवेज!..." औरत कहने लगी, तुम न जाने कहां जंगल-जंगल मुझे घुमा रहे हो। कुछ मुंह से बोलते भी नहीं। देखती हूं, तुम्हारा चेहरा जर्द है, आंखें नम है, आखिर इसकी वजह क्या है ?"

"मल्काए-आलम!" परवेज ने कहा, "खुदा की पनाह! आज कहर होने वाला है। उफ्फ्। मैं क्या करूं मल्का! आइए, इस चट्टान पर बैठकर आराम कर लीजिए। अभी हमें बहुत बड़ी मंजिल तय करनी है। सुलतान का हुक्म है कि आपको ऐसी जगह छोड आऊं, जहां पीने को पानी और खाने को दाना भी न मिले।"

"तुम्हारा क्या मतलब है, शहजादे!"- मल्का की मुखाकृति मलीन पड गईं।

"मेरा मतलब बहुत साफ है मल्का ! शहंशाह आपकी सारी बेवफाई से वाकिफ हो चुके हैं। आपका सारा राज फाश हो गया है। मुझे आपको शहर-बेदखल करने का हुक्म हुआ है..."

"या रब! यह मैंने क्या सुना?..." मल्का अपनी अवस्था पर विचार कर रो पड। "परवेज, माना कि मैं कसूरवार हूं, मगर सुलतान भी तो कम कसूरवार नहीं है? रात-दिन नई नई छोकरियों की जवानियों के साथ अठखेलियां करना और मुझसे दूर रहना। क्या तुम्हारी निगाह में ठीक है? मैं औरत हूं परवेज ! मेरे पास भी दिल है, दिल में अरमान हैं, तमन्ना है, हलिस है, मगर सिवाय तडपन के मुझे क्या नसीब हुआ है?"

"मल्का! बादशाह की जिंदगी ऐशो-इशरत परस्त होती है, किसकी मजाल कि सुलतान के आगे सिर उठा सके? वे दीन-दनिया के मालिक हैं, किसमें इतनी हिम्मत है कि उनकी कारगुजारी में दखल दे सके? मगर सच कहूंगा मल्का? आपसे कहीं अच्छी वे गरीब औरतें हैं जिनकी जिस्मानी भूख हंसी-खुशी से मिट जाती है..."

"ठीक कहते हो शहजादे! बदनसीब औरत ही शहंशाह की मल्का हो सकती है।" मल्का ने कहा।

थोडी देर तक सन्नाटा रहा, तत्पश्चात् परवेज कहने लगा। "मुझे सख्त अफसोस है, मल्का-ए-आलम, मगर क्या करू, शाही हुक्म से लाचार हूं।"

"आजकल सुलतान शराब और साकी के पीछे दीवाने हो रहे हैं। उन्हें सल्तनत की कोई फिक्र नहीं। सल्तनत की हालत बदतर हो रही है। जरा अपनी हालत पर गौर करो, तुम सुलतान के भाई हो, सगे भाई, मगर हो तुम गुलाम से भी बदतर। तुम्हें कुछ खर्च मिल जाता है, उसी पर तुम गुजर करते हो और उधर शहंशाह दरियाए-शराब में तैरते हुए ऐश करते हैं, अगर यही हालत रही तो थोड ही दिनों में सल्तनत खाक में मिल जाएगी।

परवेज के हृदय पर मल्का की बातों ने पर्याप्त प्रभाव डाला। वह बोला-"मल्का! मैं इन सारी बातों को बहुत पहले से ही सोचता चला आ रहा हूं। सोचता हूं कि...।" ___

सोचा ही चाहिए, शहजादे! तुम दोनों भाई हो, फिर सुलतान को क्या हक है कि सारी सल्तनत को अपनी ही मिल्कियत समझें और तुम एक गुलाम की तरह उनके हुक्म को आंख बंद करके मानते जाओ। तुम्हें हुकूमत की मुखालफत करनी चाहिए। तुम बगावत करके सुलतान से अपना हक मांगो। मैं तुम्हें इस काम में मदद दूंगी-" मल्का ने कहा।

"मगर आपको तो शहर-बेदखल करने का हुक्म है।"

"तुम पागल हो गए हो शहजादे! इस वक्त मेरी जान तुम्हारे हाथों में है। अगर मुझे अकेली ही इस जंगल में छोड़ कर चले जाओगे तो मुझे जंगली जानवर चीर-फाड कर खा जाएंगे!... शहजादे, मैं तुमसे अपनी जान की भीख मांगती हूं और चाहती हूं तुम्हारी जिंदगी में उलट-फेर करके एसी बना दूंगी कि तुम आराम की जिंदगी बसर कर सको। तुम तैयार हो जाओ,मुंह से हा कह दो। तब, देखो में किस खुबसूरती के साथ सुलतान से अपना बदला लेती हूं और तुम्हें सल्तनत काशगर का ताज पहनाकर दीन-दुनिया का मालिक बनाती हूं।"

मल्का की बातों से परवेज के अंत:प्रदेश में एक भयंकर महत्त्वाकांक्षा का उदय हुआ। काशगर का सुलतान बनने की अभिलाषा ने उसे अपने भाई का प्रभुत्व भूल जाने के लिए बाध्य कर दिया। उसके हृदय में इस समय विचारों का संघर्ष हो रहा था। ____

“जब तुम ताजवर बन जाओगे, तब मेरी मुराद वर आएगी। तुम सुलतान होंगे और मैं मल्का! तुम मेरे दिल के मालिक होंगे और मैं तुम्हारी बांदी..." कहती हुई मल्का ने आवेश में परवेज को अपनी फूल सी बाहों में कस लिया। यह बांहों का कसाव परवेज के लिए नवीन अनुभूति थी। रोमांचित होकर उसने मल्का के होंठों पर अपने होंठ रख दिए।, फिर अलग होता हुआ बोला

"मैं तैयार हूं मल्का, मगर यह सब कैसे हो सकता है ?"

"इसकी तरकीब बड़ी आसान है।" कहकर मल्का परवेज के पास खिसक आई और धीरे धीरे कुछ कहने लगी। परवेज ध्यानपूर्वक सुनने लगा। सुलतान को सिंहासनाच्युत करने की नींव डाली जाने लगी।
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12-05-2020, 12:18 PM,
#16
RE: Desi Sex Kahani जलन
“उफ ! मैं कहाँ हूँ? सिर में दर्द, बदन में दर्द, यह सब क्या है ?*- रोगी ने कराहते हुए अपनी आंखें खोली।

चारपाई के सिराहने खडी हुई लड़की को देखकर वह चौंक पड। बोला- मेहर तुम? मेरे पास? या खुदा, क्या यह सच है?"

मेहर उसके काले-काले बालों पर हाथ फेरती हुई बोली- “जहूर! तुम्हारी तबीयत खराब है। आठ घंटे बाद तुम होश में आए हो। ज्यादा बोलने की कोशिश मत करो।'

___"मगर मैं तुम्हारी झोंपड में कैसे आया? मेरे बदन में इतना दर्द क्यों है? सिर में चक्कर आने की वजह से मुझे बीती बातें भी याद नहीं आ रही हैं। तुम मुझे बताने की मेहरबानी करो, मेहर!" -जहूर ने उठकर बैठने का प्रयत्न करे हुए कहा। ___

मेहर ने कहा- "लेटे रहो। उठने की कोशिश न करो। ...या खुदा ! तुम तो जैसे सुनते ही नहीं। सुनो, मेरे अब्बा तुम्हें तुम्हारे कबीले से पकड़ लाए हैं। तुम इस वक्त हमारे कैदी हो..." ___

कैदी हूँ?... ओह ! याद आ गई सारी बातें। मेहर, मैं कैदी होने पर भी खुश हूं। जहां तुम हो, वहां कैदी की हालत में रहना, मैं अपनी खुशकिस्मती समझता हूं, लेकिन मेहर! तुमने अब्बा से कहकर यह सब तूफान क्यों खड किया?"

"मैं शरमिंदा हूं जहूर ! मुझे इस बात का दिली अफसोस है, मगर तुम भी तो हमेशा मुहब्बत मुहब्बत रटा करते हो। मुहब्बत क्या बला है- मैं यह जानती भी नहीं?"

"तुम अभी नादान हो, मेहर! मुहब्बत के फौलादी पंजों में तुम अभी गिरफ्तार नहीं हुई हो। जिस दिन तुम्हारे दिल पर मुहब्बत की छाया पड गी उस दिन तुम महसूस करोगी कि उसमें कितनी दाह, कितनी जलन होती है। मेहर ! मुहब्बत वह छाया है जो हैवान को इंसान और इंसान को शैतान बना देती है। उफ, यह कैसी बुरी बला है?" -कहते-कहते कमजोर जहर ने मेहर का हाथ अपने हाथ में ले लिया। ___

"तुम, फिर वही हरकत करने लगे न? मैं तुमसे नफरत करती हूं -नफरत!" -मेहर ने गुस्से में कहा और तुनक कर दूर जा बैठी। ____

"मेहर, मैं जानता है जो तुम्हारे दिल में है, मगर तुम मुझे परेशान करने की अपनी आदत से बाज नहीं आती..." जहूर ने कहा और मुंह फेरकर लेटा रहा। झोंपड की खिड़की से मंद मंद हवा आ रही थी- "बादल घिरे आ रहे है मेहर!" जहर ने खिडकी की राह बाहर देखते हए कहा। मेहर उठकर खिडकी के पास आई। उसकी दृष्टि एक बार सूर्य की और जा पड , जिसे एक बड़ा सा बादल का टुकड आत्मसात करने के लिए आतुरता से बढ आ रहा था।

हवा में कुछ नमी आ गई थी, जिससे मालूम होता था कि वर्षा शीघ्र ही आने वाली है। "खुदा मुश्किल आसान करे !" झोंपड के दरवाजे पर से आवाज आई।

मेहर बोली- “यह नया फकीर कौन आ गया? देखू तो!" मेहर बाहर आई देखा-एक फकीर द्वार पर खड़ा है।
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12-05-2020, 12:18 PM,
#17
RE: Desi Sex Kahani जलन
"खुदा मुश्किल आसान करेगा, बेटा! कुछ फकीर को देने की मेहरबानी करो..." बुड्डा फकीर बोला। मेहर खिलखिलाकर हंस पड। बोली- "बाबा हम भी तो फकीर ही हैं। हमारे पास सोना-चांदी नहीं, महज गरीबी है। ___

"बेटी!.." फकीर कहने लगा, गरीबों के दरवाजे पर खुदा साया रहता है। खुदा का तेरी सब मुरादे पूरी करेगा, बेटी! ला, फकीर को मायूस न कर। एक मुट्ठी भीख देकर फकीर की दुआ ले।"

तुम दुआ दोगे ?..." मेहर अपनी हंसी को न रोक सकी और खिलखिला पड। -इन्सान होकर इंसान को दुआ दोगे? इतनी ताकत है तुममें?"

"फकीरों की ताकत त् नहीं जान सकती, बेटी ! तेरी जिंदगी हंसी-खुशी में बीत रही है। खुदा के फजल से, फकीरों की जुबान से निकली हुई दुआ हमेशा बर आया करती है, बेटी! मांग जो तेरी मुराद हो..." ‘

फकीर ने कहा और पत्थर के चबूतरे पर जमकर बैठ गया- "बेटी! तु हंस रही है। तुझे इस फकीर पर यकीन नहीं आ रहा है। तु सोच रही है कि हाड-मांस का यह पुतला, तुम जैसी हर को क्या दुआ सकेगा? यही सोच रही है न तू?... मगर तेरा ख्याल गलत है... ____

बाबा!..." मेहर अविश्वासयुक्त स्वर में बोली- "तुम मुझे दुआ देना चाहते हो? अच्छा, मैं भी तुम्हारी ताकत देखना चाहती हूं, जईफ फकीर! बोलो तुम मुझे क्या दुआ दोगे?"

"दूंगा बेटी ! खुदा की कसम खाकर कहता हूं कि मैं तुझे दुआ दूंगा। तेरी मुराद पूरी करने के लिए खदा से मिन्नत करूंगा।" -फकीर बोला। लम्बी-लम्बी सफेद दाढ़ी वाले उस बयोवृद्ध के चेहरे से गंभीरता टपक रही थी।

"मैं जानना चाहती हूं कि मेरी किस्मत में क्या लिखा है।" मेहर ने पूछा।

"बस, इतनी-सी बात!..." फकीर बोला और पत्थर के चबूतरे पर घुटने के बल बैठ गया। जमीन पर सिर टेककर उसने न जाने क्या पड। उसके अंतिम शब्द थे- “या रब, या खुदा। इस नादान छोकरी की सब ख्वाहिशें पूरी कर। फकीर की मिन्नत है, तेरे फरिश्ते की आरजू है।"

मिन्नतें करते-करते एकाएक फकीर चौंक पड_T। उसके मुंह से कांपती हुई आवाज निकली- “यह क्या? कहर ! खुदा का कहर ! गजब!"

फकीर की आंखें मेहर पर आकर रुक गईं- "बेटी ! मैं तेरी किस्मत पढ़ रहा हूं, मैं देख रहा हूं कि तेरी ख्वाहिश पूरी होगी- जरूर होगी। तू सुलतान काशगर की महबूबा बनेगी, मगर खुश न रह सकेगी। तेरी जिंदगी उलट-फेर की जिंदगी है। शहंशाह को पाकर दुनिया के सारे ऐश व इशरत पाकर भी, तेरा दिल हमेशा जलता रहेगा। तेरी ही वजह से सुलतान पर भी- खुदा न करे आफत आएगी, मगर खैर। खुदा यही चाहता है और यही होगा भी..." कहता हुआ फकीर उठ खडा हुआ।

इसके बाद फकीर ने मेहर के चेहरे को ध्यानपूर्वक देखा। मेहर की मुखाकृति इस समय पीतवर्ण धारण करती जा रही थी।

उफ! बुड्डा फकीर पागल हो गया है क्या? कहां यह एक मामूली कबीले के सरदार की लडकी और कहां दीन-दुनिया के बादशाह सुलतान काशगर। फिर वह उन्हें कैसे पा सकती है? क्या सिर्फ फकीर की दुआ से, एक इंसान के कहने से ऐसा है सकता है?

"खुदाई खिदमतगार ने जो कुछ देना था, दे दिया..." फकीर बोला- “अब उसका सवाल पूरा कर।"

मगर मेहर ने मानो सुना ही नहीं। वह तो मूर्तिवत् विस्फरित नेत्रों से देखती खडा थी एकदम मौन।
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12-05-2020, 12:18 PM,
#18
RE: Desi Sex Kahani जलन
शहजादा परवेज का महल भी बहुत सुंदर और विशाल बना हुआ है। आराम की सभी आवश्यक चीजें एकत्रित करने में कोई कमी नहीं की गई थी।

परवेज अपने महल में अकेला ही रहता था। न तो उसकी अभी शादी हुई है और न उसका शादी की ओर झुकाव ही हैं।

इस समय शहजादा परवेज अपने प्रकोष्ठ में गावतकिए के सहारे एक पलंग पर बैठा है। उसके सामने ही चांदी की एक सुंदर चौकी पर एक नवयुवक बैठा है। इस नवयुवक के चेहरे पर की बारीक मछे उसके कम उम्न होने की साक्षी है। सिर पर बहमुल्य पगडा बंधी है। हाथ की उंगलियों में हीरे की अंगूठियां चमक रही हैं। मुखाकृति का विशेष रूप से निरीक्षण करने पर,यह भी स्पष्ट हो जाता है कि युवक का आचरण ठीक नहीं है।

"शहजादे साहब ! देखना, मेरा असली राज किसी पर जाहिर न होने पाए। जो कुछ कहना या करना, समझ-बूझकर करना- नहीं तो राज फाश होने पर हम और तुम कहीं के नहीं रहेंगे-" उस नवयुवक ने कहा।

"नहीं-नहीं दोस्त, कमर। तुम इत्मीनान रखो। तुम्हारा राज कोई नहीं जान सकेगा..." परवेज ने कहा- "हां तो तुम्हारा यह कहना है कि मैं बहुत ही बदकिस्मत हूं और किस्मत बनाने के लिए मुझे तुम्हारी सलाह लेनी चाहिए, यहीं न।।

"तुम ठीक समझे, शहजादे ! .." कमर ने कहा- "तुम दुनिया के सबसे बदकिस्मत आदमी हो। सुलतान का भाई होकर भी तुम्हें कुछ भी इख्तियार हासिल नहीं। तुम सुलतान और वजीर के हाथ की कठपुतली हो। तुम्हें तो अच्छे सल्तनत के वे अदने अहलकार हैं, जो मौजमस्ती में जिंदगी बसर करते हैं, यह कितने शर्म की बात है। तुम्हें चाहिए कि सुलतान को शिकारे-शमशीर बनाकर इस परदा-ए-दुनिया से हमेशा के लिए उठा दो और खुद सुलतान बनकर ऐश करो।"

"दोस्त।" परवेज बोला- "आपने वर्षों से सोई हुई ख्वाहिश जगा दी है। सालों तक मैं भी यही सोचता रहा कि किसी तरह मैं बादशाह बन जाऊं, मगर मेरी बह ख्वाहिश अंदर ही अंदर घुटकर दम तोड देती थी! आज जबकि मुझे तुम जैसा हमदर्द मददगार मिल गया है, जो सल्तनत के हर राज से वाकिफ है, तो में सल्तनत पाने की पूरी कोशिश करूंगा। भाई के साथ दगा करूंगा सब कुछ करूंगा। सल्तनत पाने के लिए, बस तुम मेरी जी-जान से मदद करना।"

"सुलतान का क्या हाल है ?" कमर ने पूछा।

"भाईजान की हालत बदतर होती जा रही है। सभी औरतों से नफरत करने लगे हैं और अपने ख्वाबगाह में पड हुए न जाने नया-नया बडबडया करते हैं। सिर्फ अजूरी नाम की बांदी उनके साथ रहती है, मगर उससे भी वे खुश नहीं रहते। सल्तनत के कामों से उन्होंने एकदम हाथ खींच लिया है। सिर्फ बुड्ढा वजीर ही सल्तनत की देखरेख कर रहा है।"

"अभी तक तुम्हें सारी बातों का पता नहीं है, शहजादे! मुझसे सुनो। मैंने छिपे तौर पर पता लगाया है कि सुलतान की तबीयत अब यहां से एकदम ऊब गई है। वे इस सल्तनत को छोड कर एक ऐसी जगह चले जाना चाहते है, जहां जाकर उनके तडपते दिल को राहत मिल सके।"

यह बात तो हम लोगों के हक में अच्छी ही होगी। कमर ने कहा। दोनों उठ खडा हुए। शहजादे ने कहा, “आधी रात होने को आई-"अब आराम करना जरूरी है।
दोनों पास के कमरे में चले गए।
Nnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn

औरत
औरत.
"त मेरे सामने क्यों आती है? क्यों आती है त यहां। उफ! औरत! औरत! औरत... सुलतान ने अपना माथा ठोक लिया। क्रोध से मस्तिष्क की सिराएं तन गई- “जब देखो, तब साकी। शराब, औरत।

बेचारी अजुरी हाथ में प्याला लिये हुए थर-थर कांपती खड़ी थी। उसे सुलतान के गुस्से का डर था, मगर वह उन्हें अकेला नहीं छोडना चाहती थी। ऐसी हालत में सुलतान न जाने क्या कर बैठे। “पी लीजिए मेरे मालिक।* अजूरी ने दबी जबान से कहा।

"पी लं? जहर पी लं?" सुलतान एकाएक उठकर खड हो गए। आगे बढ कर उन्होंने अजुरी का गला पकड लिया, "शैतान की बच्ची।" उन्होंने कहा और फूल-सी मुलायम अजूरी को दूर धकेल दिया। हांफते हुए पलंग पर बैठ गए। न जाने क्या स्वत: बोलते रहे। अजूरी जमीन पर पड सिसकती रही। कुछ देर बाद वह उठी और आकर सुलतान के पलंग के पास आकर खड़ी हो गईं।

"मेरे आका!" नम्र स्वर में उसने पुकारा।

"अजूरी।" एकाएक सुलतद्रन ने अजूरी को अपने पास खींच लिया और उसके अधरोष्ठ पर प्रेम की मुहर लगा दी। -"मुझे माफ करना, मेरी तितली। मुझे अपने नाजुक हाथों से शरबते अनार पिलाओ।"

सुलतान की मीठी बातों से बजरी अपना दर्द भूल गईं। वह मुस्कराती हई उठी, प्याला उठाकर उसमें शरबते-अनार भरा।

“अजूरी, तू जा।" एकाएक सुलतान का पारा, फिर चढ गया, “काली नागिन!... तू जा यहाँ से। साकी, शराब। औरत! उफ। मेरा दम घुटता जा रहा है। में इस महल से, इस सल्तनत से, इस मक्कार दुनिया से ऊब गया है। में जाऊंगा। तु जाती है या नहीं। जा शहजादे को भेज। वजीर को भेज। सबको भेज दे- कह दे मैं जा रहा हूं। मैं इस दुनिया को छोड कर जा रहा हूं- यह ले।" कहते हुए शहंशाह ने अपना शाही चोगा फाडकर चिथड-चिथड कर डाला। उनकी आंखें क्रोध से लाल हो गई। अजरी धीरे-धीरे कमरे से बाहर हो गईं।
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12-05-2020, 12:18 PM,
#19
RE: Desi Sex Kahani जलन
सुलतान बदहवास से पलंग पर लेट गए। सांस जोरों से चलने लगी। दिल की धडकन तेज हो गईं। संसार की विश्वासघातिनी स्त्रियों की दुश्चरित्रता देखकर उनका मसितष्क चक्कर खा रहा था। भयानक चिंता उन्हें सता रही थी। वे दिन-रात यही सोचते रहते कि उफ! फूल सी कोमल सित्रयां भी कितनी कठोर एवं भयंकर होती हैं। अपनी मल्का का दृष्टाचरण देखकर उन्हें संसार की सभी औरतों से घृणा हो गई थी। औरतों की छाया से भी घबरा उठते थे। अजूरी द्वारा सुलतान की अवस्था की बात सुनकर थोडी ही देर में वजीर और परवेज आ पहुंचे।

वजीर ने कहा- “जहाँपनाह, किसलिए याद फरमाया है ? "

"मेरे बुजुर्ग वजीर!" शहंशाह बोले- “अब मैं जा रहा हूं।"

“कहाँ जा रहे हैं, भाईजान?" परवेज ने पूछा।

*पता नहीं कहा जाऊंगा शहजादे !* सुलतान बोले। इस समय वे इस प्रकार बातें कर रहे थे मानो एकदम स्वस्थ हों- मगर जाऊंगा जरूर। रोने की कोशिश बेकार है। मेरे लौटने की भी कोई उम्मीद नहीं, यही मुलाकात आखिरी होगी। तुम बजीर ! अपनी आंखें पोंछ लो। तुम्हें रोना नहीं चाहिए।"

"मगर शहंशाह! सल्तनत का क्या होगा। मेरा क्या होगा? रियाया का क्या होगा? " बुड्डा वजीर सुबक रहा था। ___

“तुम और शहजादा परवेज मिलकर सल्तनत की देखभाल करना। अब मुझसे कोई उम्मीद न रखो। जिस शख्स का दिलों-दिमाग बेकाबू हो गया हो, वह रियाया का- सल्तनत का, क्या भला कर सकेगा? मुझे दिन-रात ये दुनियादारी खटका करती है। यह महल,यह सल्तनत,यह दुनिया सब मेरे दिल की जलन को बढ़ा रहे हैं। अब मैं इन सबसे दूर, बहुत दूर भाग जाना चाहता है। तुम शहजादे गमगीन क्यों हो? दुनिया में कोई हमेशा नहीं रहता। आजतक मैंने तुम्हें कलेजे से लगाकर रखा, तुम्हें अपनी जान से बढ़ कर प्यार किया...! मगर अफसोस न करना!... और अजुरी। इधर आओ। छिपी क्यों हो? तुमने मुझे आराम से रखने की बहुत कोशिश की। मैं तुम पर बहुत खुश हूँ अजूरी। अब मैं तुम्हें हमेशा के लिए छोड़कर जा रहा है। ना-ना! आंसू न गिराओं, अजूरी। मैं जानता है कि तुम मुझे बहुत चाहती हो, मगर मैं अपने दिल से मजबूर हूं। मुझे जाना ही होगा। मैं तुम्हें आजाद करता हूँ। तुम जाकर बाहरी दुनिया में आराम की जिंदगी बसर करो। वजीर, इस छोकरी को इतनी रकम दो, जो इसकी जिंदगी से काफी ज्यादा हो।" कहते हुए सुलतान आगे बढ़।।

वजीर, अजरी और परवेज ने जाते हुए सुलतान को अंतिम बार क्रमश: तीन बार अभिवादन किया। सुलतान बाहर आकर पैदल ही चल पड़। जो एक दिन फूलों की शय्या पर सोता था,हीरों और जवाहरात से खेला करता था, वही शहंशाह सारे सुखों पर लात मारकर सबको रोता हुआ छोडकर, सबके देखते-देखते आंखों से ओझल हो गया। समय परिवर्तनशील होता है न।

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पाच
कबीले वालों में भयानक कोलाहल मचा हुआ था। स्त्री-पुरुष, बाल-बद्ध सभी भय से अर्तनाद कर रहे थे। अर्धरात्रि की बेला में भयावह वातावरण उपस्थित हो गया था।

झोपडी में सोई हुई मेहर की निद्रा इस कोलाहल से भंग हो गईं। उसने सुना कबीले वालों का अर्तनाद।

मेहर का वृद्ध पिता अब्दुल्ला एक कोने में पड़ा हुआ आराम से खरटि ले रहा था। दूसरे कोने में एक टूटी चारपाई पर जहूर बंदी की अवस्था में सोया पड़ा हुआ था, परंतु कुछ-कुछ जाग चुका था।

झोंपड़ी में घना अंधेरा छाया हुआ था। मेहर टटोलती हुई जहर की चारपाई की और बढ, क्योंकि वहीं ताक पर मशाल रखी हुई थी, जो आवश्यकता के समय पर प्रकाश का काम देती थी।

मेहर जहर की चारपाई के पास आकर रुकी। जहर जाग गया था, परंतु उसने सोने का बहाना कर लिया। बाहर अभी तक कोलाहल हो रहा था। ज्योहि मेहर ने मशाल लेने के लिए हाथ बढ या कि झोंपड के द्वार पर किसी जंगली जानवर के गरजने का स्वर सुनाई पड़ाI महा आपाद मस्तक सिहर उठी और 'या खुदा' कहती हुई जहर की चारपाई पर धड़ाम से गिर पड । जहर ने लपककर उसे अपने अंकपाश में ले लिया और धीरे से बोला-मेहर! मेरी मल्का! डरो नहीं, मालूम होता है कोई जंगली जानवर आ घुसा है।"

जहर ने मेहर को अपने अंक में कस लिया था। मेहर को उसका यह व्यवहार अरुचिकर प्रतीत हुआ। उसने अंक से अपने को छुडने का बहुत प्रयत्न किया, मगर जहूर ने उसे नहीं छोड।

"काफिर कहीं का...!" मेहर ने कसकर एक तमाचा जहूर के मुंह पर जड दिया।

उसी समय अकस्मात् वृद्ध अब्दुल्ला की निद्रा भंग हो गईं। बाहर का कोलाहल सुनकर वह उठ बैठा-"यह शोरगुल कैसा, बेटी! जरा मशाल तो जला।"

अब्दल्ला को जगा देखकर जहर ने मेहर को छोड़ दिया। मेहर ने आगे बढ़ कर मशाल जलाई। इतने में कबीले का एक आदमी दौडता हुआ झोपडी के द्वार पर आया और चिल्लाकर बोला—"सरदार। सरदार।"

"क्या है?" -कहते हुए अब्दुल्ला ने द्वार खोल दिया। वह आदमी डर से बुरी तरह कांप रहा था। उसके मुंह से शब्द नहीं निकल पा रहे थे। ___

"बोल! बोल इस तरह कांप क्यों रहा है? क्या बात है? क्यों शोर हो रहा है. अपने पैर जरा देख। इस तरह कांप रहे हैं, जैसे पेड की टहनियां हवा का झोंका खाकर कांपने लगती हैं। सम्हाल अपने को।" ___

अब्दुल्ला की घुड की सुनकर उस आदमी का होश कुछ ठिकाने आया, “सरदार।" वह कहने लगा— एक जंगली जानवर कबीले में घुस आया है और इधर-उधर लोगों को चीरता फाडता हुआ दौड रहा है! वह लीजिये!—या खुदा !" जानवर की आवाज सुनकर वह आदमी गिरते-गिरते बचा—“वह अब तक दस आदमियों को शिकार बना चुका है, और कई घायल पड] हैं।"

"मैं देखता हूं। सरदार अब्दुल्ला बोला— “ला मेरी तलवार ...ला मेरी बोतल ! "

मेहर ने बुद्धे को तलवार दी और शराब की बोतल भी। बुड्डा बोतल को मुंह से लगाते ही एक सांस में पी गया और उस ओर झपटा, जिधर से जानवर के दहाडने का स्वर सुनाई पड़ रहा था।

*अब क्या होगा?" मेहर ने कांपते हुए कहा।

"घबड ओ नहीं मेहर!" जहूर ने उसको सांत्वना देने का प्रयत्न किया- "फिक्र न करो, खुदा हाफिज !"

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12-05-2020, 12:18 PM,
#20
RE: Desi Sex Kahani जलन
"रात बीत गई, दिन हुआ, दोपहर होने को आयी, लेकिन अब्बा अभी नहीं लौटे....!" मेहर ने कहा। जहूर और मेहर झोपड़ी में बैठे हुए बात कर रहे थे। कबीले वालों से पूछने पर मालूम हुआ कि अब्बा चार आदमियों को साथ लेकर उस जानवर के पीछे-पीछे गये हैं, मगर ताज्जुब है कि अभी तक नहीं लौटे- या खुदा ! मेरे अब्बा को क्या हुआ?" ___

घबराओ नहीं मेहर...।" जहूर ने कहा- तुम्हारे अब्बाजान, शायद शिकार की खोज में रास्ता भूल गये हैं, इसलिए लौटने में देर हो रही है।"

"हाय? न जाने उन पर क्या बीत रही होगी? — कहकर मेहर ने एक ठण्डी सांस ली।

"मेहर! हमें उनकी खोज करनी चाहिये! अगर तुम मुझे इस कैद से थोडी देर के लिए आजाद कर दो और एक हाथ में एक तलवार दे दो, तो मैं तुम्हारे अब्बा को जल्द-से-जल्द सही सलामत ले आऊंगा। अगर चाहो तो तुम भी चल सकती हो। जहूर ने कुछ सोचकर कहा।

"मगर तुम्हें आजाद कर देने से अब्बा नाराज होंगे।" मेहर ने कहा।

जहूर बोला-"तुम नाहक आगा-पीछा कर रही हो मेहर! खुदा न करे कि तुम्हारे अब्बा की जान खतरे में पड़ जाय। मेहर! मैं तुम्हारी मदद करना चाहता हूं।"

"अच्छा चलो! मैं भी चलूंगी। अब्बा की खबर लेना जरूरी है, मगर घोड़े IT तो एक ही है।"

"एकही से काम चल जाएगा...!" जहर ने कहा- हम दोनों एक ही घोड़े पर चलेंगे। तुम फिक्र न करो। तुम्हारे अब्बा का घोड़ेLIT काफी मजबूत है।"

"मगर एक ही घोड़े पर।"

"पागलपन की बातें न करो, मेहर ! वक्त कीमती है। जहूर ने कहा।

लाचार मेहर तैयार हो गई। जहर ने खंटी से लटकती हई तलवार लेकर अपनी कमर में खोंस ली और मेहर को सहारा देकर घोड़े पर चढ दिया, फिर स्वयं चढ गया। ___ मेहर इस समय अपने अब्बा के लिए बहुत घबरा उठी थी। यही कारण था कि उसने जहूर के आगे, जहूर की गोद में बैठना मंजूर कर लिया। घोडा दोनों को लेकर हवा से बातें करने लगा।

नदी-नाले पार करता हुआ घोड़े सरपट दौड चला जा रहा था। मैहर और जहूर मौनावस्था में घोड़े पर बैठे थे। दोनों में से कोई भी एक शब्द नहीं बोल रहा था। केवल शून्य वातावरण में घोड़े के टापों की आवाज सुनाई पड रही थी! पगडण्डी के दोनों ओर घना जंगल था।
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