Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
11-28-2020, 02:43 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा

“अब और सुन, क्षितिज नें भी मेरे साथ यही किया है। लेकिन मैं तो तेरी तरह रो नहीं रही? सच पूछो तो मुझे इस बात का तनिक भी मलाल नहीं है। मुझे तो खुशी है कि मैंने अपने बेटे पर ममता लुटाने के साथ साथ उसकी खुशी के लिए अपने तन को भी लुटाने में कोई गुरेज नहीं किया। उसकी खुशी देख कर मुझे तो बड़ा संतोष प्राप्त हुआ। सच कहूं तो इसमें मुझे आनंद भी बहुत मिला।” अब मैं उसके सामने नंगी हो चुकी थी। इसके अलावा उसका मुंह खुलवाने का और कोई दूसरा मार्ग नहीं सूझा। वह आंखे फाड़ कर अविश्वास से मुझे घूर रही थी। उसका रोना धोना एकाएक थम गया।

“तो तो…..तुम अपने बेटे क्षितिज के साथ….” इतना ही बोल पायी वह, चकित, अविश्वास से मुझे आंखेँ फाड़े देखती रह गयी।

“हां हां हां्आंआंआंआंआं, क्षितिज से चुद गयी मैं। मगर तेरी तरह रोयी नहीं, बल्कि खुश हुई, आनंदित हुई। उसनें जो किया, प्यार से किया और मैं भी पुत्र के प्यार में डूब कर खुद को उसके हवाले कर दिया, कसम से बड़ा आनंद मिला। काश तुम समझ पाती।” मैं बेशर्मी से बोली। रेखा के चेहरे का रंग बदलने लगा।

“तो तुम्हें जरा भी खेद नहीं है?’

“नहीं, जरा भी नहीं।”

“बड़ी बेशरम हो।”

“इसमें शरम कैसी? वह बेटा अवश्य है मेरा, किंतु है तो एक मर्द, जिसे औरत के प्यार की जरूरत है। मैं उसकी मां हूँ, लेकिन हूँ तो एक औरत। हां दिया मैंने प्यार, एक औरत होने के नाते, औरत होने का फर्ज निभाते हुए, एक औरत वाला भरपूर प्यार, पूरी शिद्दत से प्यार। खेलने दिया उसे मेरे तन से, पूर्ण समर्पिता बन कर। बुझाने दिया उसे अपनी वासना की भूख। काश तुम देख पाती उसके चेहरे पर खुशी, परम संतोष। उसके चेहरे की खुशी देखकर मैं कितनी गदगद थी। उसे एक नादान युवक से मर्द बनाया मैंने। एक बार मर्द बन गया, स्त्री सुख से परिचित हो गया, फिर उसने मुझे तो निहाल ही कर दिया, इतना सुख दिया कि मैं बता नहीं सकती। लेकिन यह सब मैं तुम जैसी तथाकथित शरीफजादी से क्यों कह रही हूं? तुमने तो देखा भी नहीं होगा कि तेरा बेटा कितना खुश हुआ होगा। छाती पीट पीट कर रोती रह शरीफजादी, कोसती रह खुद को और अपने बेटे को। एक बात और, यदि तेरा बेटा तेरे साथ यह सब कर सका तो इसमें कहीं न कहीं तुम भी कमजोर पड़ी होगी। तुम्हारे इनकार में दृढ़ता नहीं रही होगी, या खुल के बोलूं तो तेरे मन के किसी कोने में चुदास अवश्य थी, वरना यह संभव नहीं होता।” मैं बोलती जा रही थी और वह मंत्रमुग्ध सुनती जा रही थी। पता नहीं मेरी बात का असर हो रहा था या कुछ और चल रहा था उसके मन में। या शायद अंतर्द्वंद्व, उथल पुथल। मैने उसकी इस स्थिति का लाभ उठा कर बोलना जारी रखा,

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11-28-2020, 02:43 PM,
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कुछ देर के लिए सब कुछ भूलकर जरा कल्पना तो कर के देख, एक बच्चा, तेरी गोद में, तेरे स्तन से खेलता हुआ तेरे स्तन को चूसता रहता था। कैसा लगता था उस समय, बहुत अच्छा ना? ममत्व के साथ साथ भीतर ही भीतर कुछ और भी होता था ना? शायद कामोत्तेजना से धमनियों में रक्त प्रवाह बढ़ जाता था होगा, है ना? वही बच्चा बड़ा हो कर एक सुगठित, सुंदर युवक में तब्दील होता है और स्त्री संसर्ग हेतु सुलभ स्त्री के रूप में अपने सबसे करीबी अपनी मां की ओर आकर्षित होता है, अपनी मां में एक नारी को देखता है और मां में स्थित नारी के प्रति उसके अंदर प्राकृतिक तौर पर नर जनित काम भावना जागृत होती है। इसमें अस्वभाविक क्या है? यह तो स्वभाविक है ना। जरा सोच तो, जिस बच्चे को अपनी नग्न छाती से लगा कर तू दूध पिलाती रोमांचित होती थी, वही बच्चा खिल कर शारीरिक सौष्ठव से लैस आकर्षक युवा बन कर जब तेरी नग्न देह से चिपकता है, तो क्या वह रोमांचक नहीं रहा होगा? अवश्य रहा होगा। तुझे भी वह रोमांच हुआ होगा, जिसके आनंद से अपने अंदर के तथाकथित अनैतिक रिश्ते वाले अपराधबोध के कारण तू वंचित रह गयी। उस अपराधबोध को परे झटक कर जरा सोचकर देख।” मैं बोलती जा रही थी और वह मूक बने सुनती जा रही थी। उसकी जुबान मानो तालू से चिपक गयी थी। मेरी बातों का असर मैं साफ देख रही थी उसके चेहरे पर। चिंता और ग्लानी से मुक्त हो रही थी। मेरी बातें उसे आश्वस्त कर रही थी कि उसके साथ जो हुआ है वह गलत नहीं है। फिर भी मैं बोलती जा रही थी। मेरा इरादा था उसके मन के अंतर्द्वंद्व को समूल नष्ट करने का।

“ये जो तथाकथित नाते रिश्ते की मर्यादा मर्दों नें बनाई है हम औरतों को बंधन में रखने के लिए। खुद तो इधर उधर मुंह मारते रहते हैं, बाहर कोई न मिले तो, घर में ही रिश्ते नातों की मर्यादा को ताक पर रख कर अपनी मनमानी करते हैं, और उन्हें रोकने टोकने वाला कोई नहीं। उदाहरण दूं?”

“हां,” मंत्रमुग्ध सुनती वह बोली।

“सुन सकोगी”

“हां हां क्यों नहीं।”

“तो सुन, भाई बहन का रिश्ता पवित्र होता है ना?”

“हां।”

“रश्मि तुम्हारी कौन है?”

“ननद”

“मतलब, तेरे पति की बहन।”

“हां।”
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11-28-2020, 02:43 PM,
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“रश्मि यहां बार बार क्यों आती है, पता है?”

“हमसे मिलने, और क्या।”

“बड़ी भोली हो तुम।”

“क्या मतलब है तुम्हारा?”

“अरी पगली, अपने तन की भूख मिटाने।”

“हट, कुछ भी….”

“वह भी अपने भाई के साथ।” मानो धमाका कर दी मैं। अविश्वास से उसकी आंखें फटी की फटी रह गयीं।

“झूठ।”

“झूठ सच सब पता लग जाएगा। इस बार आएगी तो ध्यान देना।”

“लेकिन यह सब तुझे कैसे पता?”

“रश्मि नें बताया।”

“तुझे?”

“हां मुझे।”

“यह सब मेरी नाक के नीचे चल रहा था और मुझे भनक क्यों नहीं लगी?”

“क्योंकि तू भोली होने के साथ ही साथ बेवकूफ भी है।”

“तब तो तुझे यह भी पता होगा कि यह सब कब से चल रहा है।”

“हां।”

“कब से।”

“जब वह सोलह साल की थी तब से।”

“बाप रे। उस वक्त तो रश्मि को पता भी न था होगा, यह सेक्स वगैरह।”

“नहीं, वह तो बिल्कुल नादान बच्ची थी।”

“फिर?”

“फिर क्या, तेरा पति तो खेला खाया चुदक्कड़ है ना। उसनें उसे फंसाया अपने जाल में और नादान रश्मि अनजाने में चुद गयी, शील तुड़वा बैठी। एक हिसाब से वह बलात्कार था लेकिन एक बार चुदाई का मजा मिला तो उसी रात कुल मिलाकर तीन बार चुद गयी। और तो और, उस दिन के बाद से रश्मि को लंड का ऐसा चस्का लगा कि सिन्हा जी से चुदवाने का कोई मौका नहीं गंवाती थी। सिन्हा जी नें तो मानो सेक्स की गुड़िया ही बना डाला उसे। उसकी शादी के बाद भी यह सिलसिला जारी था। अब तो रश्मि तलाकशुदा भी है, अब तो वह पूरी तरह आजाद है।”

“ओ मां्आआ, ऐस्स्सा्आ्आ्आ्आ?” वह ताज्जुब से मुझे देख रही थी।

“ऐसे न देख मुझे। तुम्हारे सिन्हा जी नें मुझे भी नहीं छोड़ा। एक दिन घर बुलाकर मुझे भी जबर्दस्ती चोदा।”

“तू घर गयी क्यों?”

“ऑफिस से घर लौटते हुए उसने मुझे लिफ्ट दिया और घर के अंदर चाय पीने के लिए बुलाया और चढ़ गया मुझ पर।धोखे से मेरी इज्ज्त लूट ली, साला हरामी।”

“तुझे भी? मगर तू तो इतनी आसानी से किसी के काबू में आने वाली है नहीं। जरूर तेरी रजामंदी भी रही होगी।”

“मूल बात यह नहीं है कि मेरी रजामंदी थी या नहीं, मुख्य बात यह है कि सिन्हा जी एक औरतखोर मर्द हैं यह उन्होंने साबित किया। यही हाल सभी मर्दों का है। कल अखबार में दिया था ना, एक बाप अपनी बेटी का यौन शोषण करता पकड़ा गया। यही हाल सबका है। जो पकड़ा गया वह अपराधी और जो नहीं पकड़ा गया वह शरीफ। इसी लिए कहती हूं कि ये सामाजिक नियम कानून सिर्फ हम औरतों पर लगाम लगाने के लिए मर्दों द्वारा बनाए गये हैं। तुम खुद को देखो, सिन्हा जी तुम्हारे पति हैं लेकिन कभी पति का प्यार मिला उनसे? नहीं ना। क्या तुम शादी के बंधन में बंधकर पति के प्यार की हकदार नहीं हो? फिर? आखिर तुम्हारे तन की उस यौन क्षुधा का क्या? वो तो मैंने तुझे रास्ता दिखाया, बोल अब मजा आ रहा है की नहीं, जीने का?”

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11-28-2020, 02:44 PM,
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“आ रहा है।” सर झुका कर धीरे से बोली वह।

“फिर अब यह नैतिकता का ढोंग काहे। पंकज तेरा बेटा है तो क्या, मर्द है ना? बस नजरिया बदल, उसे मर्द समझ, फिर देख। तुझे तो अब पता चल ही चुका है कि क्षितिज मेरा बेटा होने के साथ साथ मेरा बेड पार्टनर भी है। मुझे तो कोई शरम झिझक नहीं, फिर तुझे क्या परेशानी है?”

“शायद तुम सही कह रही हो।” रेखा बुदबुदाई।

“शायद नहीं, शत प्रतिशत सही कह रही हूं।” मैं ने गरम लोहे पर हथौड़े का अंतिम प्रहार किया।

“ठीक है, तेरी बातें मेरी समझ में आ गयीं। अब मेरा भी नजरिया बदल गया।”

“कैसा नजरिया? किसका नजरिया?” तभी पंकज की आवाज सुनाई पड़ी। वह सोकर अभी ही उठा था शायद, और आखिरी शब्दों को सुनकर बोला था। मैंने देखा कितना सुंदर भरपूर मर्द सामने खड़ा था।

“तो तूने नजरिया बदल लिया।” मैं पंकज को ठगी सी देखती हुई बोली। उसे देखने मात्र से मेरी योनि थरथराने लगी और न चाहते हुए भी योनि रस का रिसाव आरंभ हो गया।

“ओह आंटी आप! हां, मैंने अपनी मम्मी के प्रति अपना नजरिया बदल लिया।” वह बेशर्मी के साथ अपनी मम्मी को देखता हुआ बोला।

“बहुत जल्दी नजरिया बदल लिया रे शैतान।” मैं शरारती लहजे में मुस्कुराते हुए बोली।

“आप ही नें तो कहा था, मम्मी के प्रति नजरिया बदलूं। बदल लिया और देखिए, हो गया।” पंकज रेखा की ओर बड़ी सेक्सी नजर से देखते हुए बोला।

“तो तो तो यह सब तेरा किया धरा है?” रेखा मुझे घूरती हुई बोली।

“आंटी को क्यों बोल रही हो मॉम, आप हो ही इतनी सेक्सी कि मुंह में पानी आ जाए, मगर कल तक तुझे मां की नजर से देखता, मन मसोस कर रह जाता था, आंटी नें तो सिर्फ नजरिया बदलने को कहा और देख लो, मैंने नजरिया क्या बदला, तुम्हें तथाकथित आदर्श मां से अपनी लंडरानी मां बना डाला। अच्छा हुआ कि नहीं?” पंकज अपनी औरतखोरी दिखा ही चुका था, अब अपनी मां का लिहाज भूल कर पूरी बेशरमी पर उतर आया था।

“हट बेशरम।” रेखा की झिड़क में अब तल्खी नहीं थी। चलो मामला निपट गया।

“अब इस तरह की बातें तो बेशरमी से ही की जाती हैं न।” पंकज शरारत से बोला।

“चुप बदमाश, किया सो किया, अब कामिनी के सामने तो कुछ लिहाज कर।” रेखा डांटने लगी।

“हा हा हा हा, गुस्सा क्यों करती हो मेरी छमिया माताश्री? मैंने कुछ गलत कहा क्या?” ढिठाई से हंसता हुआ बोला वह।

“पंकज अब तू मुंह बंद रख अपना। हां रेखा, अब बता, हुआ क्या था रात को? यह सब कैसे?” मैंने पंकज को रोक कर रेखा से सवाल किया।

“इस हरामी के सामने कैसे बताऊं?” रेखा झिझक उठी। चेहरा लाल हो गया उसका।

“पंकज, अब तू दफा हो जा यहां से।” मैंने पूरे अधिकार से हुक्म दिया।

“होता हूं होता ह़ू, दफा होता हूं, लेकिन एक शर्त पर।”

“कैसी शर्त?”

“देना होगा आपको आज।” हवस का पुजारी मुझसे मांग रहा था।

“क्या?” अनजान बन कर पूछी।

“वही, जो कल आपने दिया था।” एक नंबर का कामी बन चुका था वह।

“ठीक है, ठीक है, दफा हो जाओ अब हम औरतों के बीच से।” मैं नें पंकज को वहां से भगाया। उसकी बात सुनकर भीतर ही भीतर तो गनगना उठी थी। वह गया वहां से और अब हम दोनों अकेले थे। “हां अब बता, रात में कैसे हुआ ये सब?” मैं नें बेताबी से प्रश्न दागा।

“बताऊंगी, मगर पहले ये बता, क्या मांग रहा रहा था पंकज? क्या देने वाली हो उसे?” शशंकित दृष्टि से मुझे देखती रेखा नें पूछा।

“छोड़ो ये बात, तू अपनी बता।” मैं टालने लगी।

“टालो नहीं, बताओ।”

“अरे मैं दूंगी न, तुझे उससे क्या?”

“क्या दोगी? कल क्या दिया था तूने?” जिद पर उतर आई थी।

“उपहार।”

“क्या उपहार?”

“नहीं बताती।”

“बताना पड़ेगा।”

“जिद मत कर।”

“बताने में क्या जाता है तुम्हारा?”

“मत सुनो।”

“सुनूंगी, अब तो जरूर सुनूंगी।”

“तो सुन।”

“हां सुना।”

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11-28-2020, 02:44 PM,
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“चूत, मेरी चूत, साली मां की लौड़ी। कल उसनें नये सुनसान घर में मुझे चोदा, अब फिर मेरी चूत मांग रहा है हरामी।” मैं झटके में बोल पड़ी और रेखा आवाक, विस्फरित नेत्रों से मुझे देखती रह गयी। “अब हुई तसल्ली?”

“तो ये बात है। बाप बेटे दोनों एक ही थैले के चट्टे बट्टे हैं। जैसा बाप वैसा बेटा।” रेखा बोली।

“अब बता तू अपनी बात, कल रात वाली बात।”

अब रेखा बोलने लगी “तो सुन। कल रात को तुम्हारे यहां से लौट कर मैं किचन में खाना बना रही थी कि अचानक पंकज नें पीछे से आकर मुझे पकड़ लिया। मैं हड़बड़ा गयी। मुड़ कर देखा तो पंकज था।

“क्या बात हे बच्चे, बड़ा प्यार आ रहा है मम्मी पर?” मैं बोली।

“न जाने कब से प्यार आ रहा था तुम पर मॉम, पर हिम्मत नहीं हो रही थी।” वह मुझे पीछे से जकड़े हुए बोला।

“इसमें हिम्मत की क्या बात है? मां बेटे में प्यार तो होता ही है। मैं तो तो तेरे पैदा होने के बाद से ही तेरे प्यार में पागल हूं।” उसकी नीयत समझे बिना बेटे के प्रति ममता दिखाती हुई बोली।

“वाह मम्मी, मेरी स्वीट मम्मी।” मेरी कमर को कस के जकड़ रखा था उसनें और मेरे गाल पर एक जोर की पप्पी दे डाली।

“यह क्या हो गया आज तुम्हें।” मैं उसकी बांहों में मचल कर बोली।

“यह तो मेरे प्यार की शुरुआत है मेरी सेक्सी मॉम।” अब उसके हाथ मेरे स्तन की ओर बढ़े। मैं चौंक उठी, उसकी बात सुनकर और उसके हाथों की नाजायज हरकत अनुभव करके।

“यह क्या बोल रहे हो और और कर क्या रहे हो। हटो, छोड़ो मुझे।” मैं उसके मजबूत बाजुओं में तड़प कर बोली।

“छोड़ने के लिए थोड़ी न पकड़ा है। आज तो जी भर के प्यार करूंगा मेरी माताश्री।” मेरे कान के पास सरगोशी हुई।उसकी आवाज में न जाने क्या था कि किसी अनिष्ट की आशंका से कांप उठी मैं। मेरे नितंबों की दरार पर किसी कठोर वस्तु के दबाव को अनुभव कर रही थी। मेरी आशंका क्या सही थी? मैं उस आशंका को मन से झटक देने का प्रयास कर रही थी, सच को झुठलाने की नाकाम कोशिश थी वह।

“अपनी मां से प्यार करने का यह क्या तरीका है?” मैं छटपटाती हुई बोली।

“प्यार प्यार होता है, तरीका कोई भी हो।” वह बोला। अब उसकी हरकतें बढ़ती गयीं। बांए हाथ से मेरी कमर को अपनी गिरफ्त में लेकर दांए हाथ की हथेली मेरे स्तन पर धर दिया। हाय राम, चिहुंक ही तो उठी थी मैं। यह तो मां बेटे के बीच का प्यार कत्तई नहीं था। स्त्री पुरूष वाला प्यार था। प्यार भी कहां, यह तो, हे भगवान, यह तो वासना थी।

“पागल हो गये हो? यह मां बेटे वाला प्यार नहीं है। छोड़ो मुझे।” मैं उसकी गिरफ्त में छटपटाने लगी। उसकी पकड़ और सख्त हो गयी। अब वह मेरे स्तनों को मसलने लगा।

“हां पागल हो गया हूं। तेरे प्यार में पागल हो गया हूं मॉम।” हे भगवान, ऐसा लग रहा था कि बस धरती फट जाए और मैं उसमें समा जाऊं। यह कैसा प्यार? अकल्पनीय, सर्वथा अपवित्र, वर्जित प्यार। मां बेटे के बीच अनैतिक प्यार। मैं छटपटाती रही और उसकी ज्यादती बढ़ती गयी। अब वह मेरी नाईटी के ऊपर से ही मेरे स्तनों को दबाने लगा।

“आआआह्ह्ह छोड़ो मुझे शैतान। यह गलत है।” मैं बेबसी में गिड़गिड़ाने लगी।

“प्यार करना गलत कब से हो गया?”

“यह मां बेटे वाला प्यार नहीं है।”

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11-28-2020, 02:44 PM,
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“मॉम, तू औरत और मैं मर्द, इसमें मां बेटे वाले प्यार की बेतुकी बात कहां से आ गयी।” वह अब मेरी नाईटी उठाने लगा। मेरी लाख कोशिशों के बावजूद उसे रोक पाने में बेबस थी। उसकी चेष्टाओं से साफ साफ ज्ञात हो गया था कि उसका उद्देश्य क्या है। बेबसी से मेरी आंखों में आंसू आ गये, आज रिश्तों में निषिद्ध संबंध, रिश्ते की पाकीजगी, मर्यादाओं का बंधन भंग होना तय था, हालांकि मेरा विरोध बदस्तूर जारी था। मेरे विरोध को बिल्कुल खारिज कर दिया था उसनें। जबर्दस्ती उसनें मेरी नाईटी को उतार फेंका फर्श पर। अब मैं सिर्फ पैंटी और ब्रा में थी।

“ओह भगवान, ऐसा मत करो, हाय राम, बेशरम, गलीज, कमीने, छोड़ मुझे।” गुस्सा भी था और अपनी बेबसी पर खीझ भी।

“ऐसा न करूं तो कैसा करूँ?” बेहयाई की पराकाष्ठा थी यह। मुझे अर्धनग्न कर चुका था लेकिन अपनी गिरफ्त में जरा भी ढील नहीं दी उसनें। “मॉम तेरी ऐसी काया पर तो कामदेव भी फिदा हो जाएगा, फिर मैं क्या चीज हूं। चुपचाप करने दे जो मैं करने जा रहा हूं। आखिर प्यार ही तो कर रहा हूं, कोई गलत तो नहीं कर रहा।”

“चुप बेशरम, ये प्यार है? सूअर का बच्चा।”

“ठीक मैं सूअर, और तू सूअर की मां।” मेरे नितंबों के बीच उसके पैजामे के अंदर का लिंग धंसा चला जा रहा था। मैं हलकान थी। कैसे बचूं? क्या करूं? कुछ सूझ नहीं रहा था। आज मां बेटे के बीच के पवित्र रिश्ते को कलंकित होने से सिर्फ भगवान ही बचा सकता था, लेकिन वह भी मौन तमाशबीन बना बैठा था। एक कामांध पुत्र के हाथों एक अबला असहाय मां की अस्मत तार तार होने को थी। पंकज तो मुझ पर छा गया। मैं किचन के स्लैब पर औंधी हो चुकी थी। सर्वथा बेबस। मेरी अनुनय विनय, विरोध, क्रोध, सब व्यर्थ हो रहा था। उसनें पीछे से ही मेरी ब्रा का हुक खोल दिया और लो, पलक झपकते मेरे स्तन ब्रा के बंधन से मुक्त, मोटे ताजे कबूतरियों की तरह फड़फड़ा उठे थे। हाय राम, ओह भगवान, यह क्या हो रहा था मेरे साथ।

“आ्आ्आ्आ्आह्ह्ह्ह ओ्ओ्ओ्ओह्ह्ह, हर्र्र्र्र्रा्आ्आ्आम्म्म्मीई्ई्ई्ई कुत्ते कमीने सूअर के बच्चे, छोड़ मुझे, ऐस्स्सा्आ्आ्आ्आ अनर्थ न कर।” हिलने डुलने में असमर्थ सिर्फ मौखिक विरोध कर रही थी, जिसके लिए मैं स्वतंत्र थी और यह विरोध भी वहां की हवा में विलीन होता जा रहा था।

“देख मॉम, अब मेरे सब्र का इम्तिहान न ले, नहीं तो।” अब उसनें मेरे नंगे स्तनों को सहलाना आरंभ कर दिया।

“नहीं तो? नहीं तो क्या?” मैं थरथराते हुए बोली। मैं झूठ नहीं बोलूंगी मैं भी सनसना उठी थी। मां हूं तो क्या, आखिर स्त्री जो ठहरी।

“जबर्दस्ती करूंगा।” अब उसनें मेरे स्तनों पर अपनी हथेलियों का दबाव बढ़ा दिया था। “वाह वाह इतनी बड़ी बड़ी मस्त चूचियां, वाह मम्मी वाह, इस उम्र में भी जवान लड़कियां फेल।”

“आ्आआह्ह्ह्ह” अब मेरे शरीर में रक्त का प्रवाह तीव्र हो उठा था लेकिन फिर भी इस अनैतिक कृत्य में शामिल होने के लिए मेरा दिल गवाही नहीं दे रहा था। “जबर्दस्ती क्या करेगा जलील इन्सान?”

“प्यार करूंगा।” बड़े ही गंदे तरीके से बोला वह। अब तक संघर्ष करते करते मैं थक चुकी थी और वह मुझ पर पूरी तरह हावी हुआ जा रहा था।
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11-28-2020, 02:44 PM,
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“यह प्यार नहीं है, प्यार जबर्दस्ती नहीं होता है।” कांपते हुए बोली मैं लेकिन मेरे होशोहवास अब मेरा साथ छोड़ रहे थे। मेरी अनिच्छा के बावजूद मेरा शरीर अवश होता जा रहा था। छि:, यह मुझे क्या हो रहा था। मन ग्लानि से भरा था किंतु तन? इस पापी तन का क्या करूं मैं? तन में तो मादकता भरी तरंगें हिलोरें ले रही थीं।

“अगर कोई माने नहीं तो?” बेहयाई से बोला वह।

“यह बलात्कार है, वासना में अंधे हर्र्र्र्र्रा्आ्आ्आम्म्म्मीई्ई्ई्ई, यह तेरी कामक्षुधा है, कामपिपाशा है।” मैं रोकने के क्रम में समझाने का व्यर्थ प्रयास कर रही थी।

“जो भी है, मैं तो करूंगा।” ढिठाई से बोला। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती, उसने अब मेरी पैंटी को पीछे से पकड़कर नीचे खींच दिया एक ही झटके में घुटनों तक। खुल गयी पैंटी, उतर गया आखिरी अंत:वस्त्र। अब मैं सर्वथा नंगी थी। मारे शर्म और अपनी विवशता की खीझ के मैं हलकान हो उठी।

“ओह जंगली जानवर, छोड़ मुझे, उफ्फ भगवान इस जलील कमीने से बचा मुझे ओह।” मैं तो बोल ही सकती थी। चीखना चिल्लाना खुद की बदनामी को आमंत्रण देना था। जो मैं कर सकती थी, विरोध, क्रोध, शारीरिक संघर्ष (हालांकि उसकी शारीरिक शक्ति के आगे नगण्य था), सब कुछ कर चुकी थी, कर रही थी, मगर नतीजा वही, ढाक के तीन पात। वह तो पूरी तरह मुझ पर हावी हो चुका था। तभी मैं चौंक उठी। मेरे बड़े बड़े नग्न नितंबों के मध्य दरार पर किसी मूसलाकार सख्त, गर्म सलाख के दबाव को साफ साफ महसूस कर रही थी। हिलने डुलने से लाचार थी, किंतु हाथ मेरा तो आजाद था, मैं बांये हाथ को अपने नितंबों की तरफ ले गयी और ज्योंहि उस सलाख से मेरे हाथ का संपर्क हुआ, ओह मेरे भगवान, मानो मुझे 440 वॉल्ट का करंट लगा। यह तो कठोर, गरमागरम गधे सरीखा विशालकाय लिंग था। हे भगवान, न जाने कब उसने अपने पैजामे को नीचे खिसका कर लिंग को मुक्त हवा में आजाद कर चुका था। उफ्फ, अब मैं क्या करूं? जल्लाद मुझे हलाल करने की पूरी तैयारी में था। पहले ही नैतिकता अनैतिकता के झंझावत से हलकान थी, अब यह दूसरी मुसीबत। देख तो नहीं सकी किंतु मेरे हाथ नें उसके अमानवीय लिंग के आकार का बखूबी आंकलन कर लिया था। असामान्य रूप से विशाल था उसका लिंग। पूरी उत्तेजना की अवस्था में दस इंच लंबाई से कत्तई कम न था। या फिर उससे भी ज्यादा। मोटाई का तो कहना ही क्या, पूरा मूसल था मूसल। उस लिंग से संभोग की कल्पना मात्र से मेरे शरीर में भय के मारे झुरझुरी दौड़ गयी।

“देख मॉम, अब मान भी जा।” प्रणय निवेदन था।

“नहीं।”

“प्यार ही तो करूंगा।”

“छि: जंगली, यह प्यार है?”

“खुशी से दो तो प्यार से करूंगा।”

“नहीं तो?”
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11-28-2020, 02:44 PM,
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“यह प्यार नहीं है, प्यार जबर्दस्ती नहीं होता है।” कांपते हुए बोली मैं लेकिन मेरे होशोहवास अब मेरा साथ छोड़ रहे थे। मेरी अनिच्छा के बावजूद मेरा शरीर अवश होता जा रहा था। छि:, यह मुझे क्या हो रहा था। मन ग्लानि से भरा था किंतु तन? इस पापी तन का क्या करूं मैं? तन में तो मादकता भरी तरंगें हिलोरें ले रही थीं।

“अगर कोई माने नहीं तो?” बेहयाई से बोला वह।

“यह बलात्कार है, वासना में अंधे हर्र्र्र्र्रा्आ्आ्आम्म्म्मीई्ई्ई्ई, यह तेरी कामक्षुधा है, कामपिपाशा है।” मैं रोकने के क्रम में समझाने का व्यर्थ प्रयास कर रही थी।

“जो भी है, मैं तो करूंगा।” ढिठाई से बोला। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती, उसने अब मेरी पैंटी को पीछे से पकड़कर नीचे खींच दिया एक ही झटके में घुटनों तक। खुल गयी पैंटी, उतर गया आखिरी अंत:वस्त्र। अब मैं सर्वथा नंगी थी। मारे शर्म और अपनी विवशता की खीझ के मैं हलकान हो उठी।

“ओह जंगली जानवर, छोड़ मुझे, उफ्फ भगवान इस जलील कमीने से बचा मुझे ओह।” मैं तो बोल ही सकती थी। चीखना चिल्लाना खुद की बदनामी को आमंत्रण देना था। जो मैं कर सकती थी, विरोध, क्रोध, शारीरिक संघर्ष (हालांकि उसकी शारीरिक शक्ति के आगे नगण्य था), सब कुछ कर चुकी थी, कर रही थी, मगर नतीजा वही, ढाक के तीन पात। वह तो पूरी तरह मुझ पर हावी हो चुका था। तभी मैं चौंक उठी। मेरे बड़े बड़े नग्न नितंबों के मध्य दरार पर किसी मूसलाकार सख्त, गर्म सलाख के दबाव को साफ साफ महसूस कर रही थी। हिलने डुलने से लाचार थी, किंतु हाथ मेरा तो आजाद था, मैं बांये हाथ को अपने नितंबों की तरफ ले गयी और ज्योंहि उस सलाख से मेरे हाथ का संपर्क हुआ, ओह मेरे भगवान, मानो मुझे 440 वॉल्ट का करंट लगा। यह तो कठोर, गरमागरम गधे सरीखा विशालकाय लिंग था। हे भगवान, न जाने कब उसने अपने पैजामे को नीचे खिसका कर लिंग को मुक्त हवा में आजाद कर चुका था। उफ्फ, अब मैं क्या करूं? जल्लाद मुझे हलाल करने की पूरी तैयारी में था। पहले ही नैतिकता अनैतिकता के झंझावत से हलकान थी, अब यह दूसरी मुसीबत। देख तो नहीं सकी किंतु मेरे हाथ नें उसके अमानवीय लिंग के आकार का बखूबी आंकलन कर लिया था। असामान्य रूप से विशाल था उसका लिंग। पूरी उत्तेजना की अवस्था में दस इंच लंबाई से कत्तई कम न था। या फिर उससे भी ज्यादा। मोटाई का तो कहना ही क्या, पूरा मूसल था मूसल। उस लिंग से संभोग की कल्पना मात्र से मेरे शरीर में भय के मारे झुरझुरी दौड़ गयी।

“देख मॉम, अब मान भी जा।” प्रणय निवेदन था।

“नहीं।”

“प्यार ही तो करूंगा।”

“छि: जंगली, यह प्यार है?”

“खुशी से दो तो प्यार से करूंगा।”

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11-28-2020, 02:44 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा
“नहीं तो?”हीं तो जबर्दस्ती।” वहशी दरिंदे की गुर्राहट थी यह। समझ गयी, अब कुछ नहीं हो सकता था। मैं नंगी, वह नंगा। किचन के स्लैब पर औंधी पड़ी एक कमजोर, बेबस नंगी औरत पर एक उत्तेजना के मारे पगलाया सांढ़ सरीखा नंगा मर्द। अब उसनें मेरे नितंबों को मसलना आरंभ कर दिया था। बीच बीच में उसके हाथ की उंगलियों से मेरी योनि को सहलाता जा रहा था और मैं? मेरा क्या हाल हो रहा था बता नहीं सकती। मन में वितृष्णा मगर तन में? इस कमीनी देह का क्या करती जिसमें वासना की लहरें हिलोरें मारना आरंभ कर चुकीं थीं। जैसे ही उसकी उंगलियों का स्पर्श मेरी योनि पर होता, झनझना उठती थी मैं।

“ऐसा अनर्थ मत कर प्लीज। तू दरिंदा बन चुका है। कामांध दरिंदा। होश में आ पागल।” मैं गिड़गिड़ाने लगी थी।

“हां, होश में आया तभी तो तेरी खूबसूरत काया मुझे दिखाई दी, वरना इतने दिन तो मैं अंधा था। अपने घर में ही इतनी मदमस्त जुगाड़ पड़ी है और मैं यहां वहां मुंह मार रहा था। वाह मॉम वाह। तू तो डायमंड है डायमंड, ब्लैक डायमंड। मेरी तो लॉटरी निकल पड़ी मॉम।” वह अब पूरी तरह अपने असली रंग में आ चुका था। पंकज के इस रूप की तो मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी। सारी मासूमियत न जाने कहां खो गयी थी उसकी। वह विशुद्ध औरतखोर मर्द की तरह व्यवहार कर रहा था। अब वह खुल कर खेलने लगा मेरे तन से। एक हाथ से जहां वह मेरे स्तनों को मसल रहा था वहीं दूसरे हाथ से मेरे चूतड़ों को मसलते हुए मेरी योनि को सहलाता जा रहा था। बीच बीच में मेरी योनि के भगनासे को भी उंगली से छेड़ता जा रहा था, जो कि किसी स्त्री का सबसे संवेनशील और कामोत्तेजक हिस्सा होता है और मेरे तन रुपी सितार के तार तरंगित होते जा रहे थे। उसकी गरम गरम सांसें और होंठों का स्पर्श मेरी गर्दन पर, मेरे अंदर की कामना को जगा रहा था। न चाहते हुए भी मेरे अंदर वासना का सैलाब अंगड़ाई लेने लगा। धीरे धीरे मेरे विरोध की हवा निकलती जा रही थी। अब मेरा विरोध कमजोर पड़ चुका था और इसका आभास शायद पंकज को हो चुका था। मौका ताड़ा उसनें और मेरी नग्न देह को गोद में उठा लिया।

“अब यह ककककक्या कर रहे हो?” अकचका कर मैं बोली।

“उचित जगह पर ले चल रहा हूं मेरी प्यारी मॉम।” वह मुझे लेकर बेडरूम में ले आया।

“छोड़ो मुझे बेशरम।” मैं छटपटा रही थी।
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11-28-2020, 02:44 PM,
RE: Desi Sex Kahani कामिनी की कामुक गाथा


“लो छोड़ दिया।” सच में उसनें मुझे छोड़ दिया और मैं धड़ाम से बिस्तर पर गिर पड़ी। अब मैं आजाद थी। मगर शिकारी ठीक सामने खड़ा था, पूर्ण नंग धड़ंग, मादरजात। कद्दावर शरीर, मानो किसी कुशल शिल्पकार के हाथों तराशा गया सुगठित देह, कामदेव सरीखा आकर्षक चेहरा (हालांकि इस वक्त किसी भूखे भेड़िए की तरह कुछ हद तक विकृत हो चुका था) का दीदार करती कुछ पलों तक खो सी गयी थी, अपनी नग्न देह से बेखबर। ज्यों ही मेरी नजर उसके विकराल लिंग पर पड़ी, भय से मेरी रूह फना हो गयी। हे भगवान, यह तो किसी दानव का लिंग था। तना हुआ, कड़क, अमानवीय, भयावह रूप से ताकरीबन ग्यारह इंच लंबा और उसी के अनुपात में करीब तीन चार इंच मोटा, काले नाग की तरह फनफनाता हुआ। उसके लिंग के अग्रभाग में विशालकाय गुलाबी खुला सुपाड़ा, सुपाड़े के ऊपर का आवरण, चमड़ा, न जाने कब पलट गया था, मेरे सम्मुख पूरे जलाल के साथ भीमकाय लिंग के साथ झूम रहा था। उसका विशाल अंडकोश, न जाने कितनी मात्रा में वीर्य संजोए, लिंग के नीचे लटक रहा। भय से मेरी घिग्घी बंध गयी। बदन में झुरझुरी दौड़ गयी। जितनी देर मैं निश्चल, अवाक उसे निर्निमेष देखती रही, उतनी ही देर वह भी आंखें फाड़े, मेरी नग्न देह के हर उतार चढ़ाओं का भूखी नजरों से दीदार करता रहा। अचानक जैसे मेरी चेतना जागी, मैं हड़बड़ा कर बिस्तर से उठने लगी लेकिन पंकज ठहरा एक नंबर का चतुर शिकारी। बाज की तरह झपटा मुझ पर और मैं एक बेबस पंछी की तरह उसके चंगुल में पुनः फंस कर फड़फड़ा उठी।

“उफ्फ, छोड़ मुझे।”

“न न न न, मेरी सेक्सी मॉम, अब यहां तक पहुंच कर ऐसे कैसे छोड़ दूं। इतनी मदमस्त जुगाड़ को बिना चोदे छोड़ दूं? इतना बेवकूफ नहीं हूं मैं। इतने सालों बाद पहली बार तेरे इतने मर्दमार बदन को देखने के बाद देखो मेरे लंड की हालत क्या हो गयी।” अपने लिंग को हिलाता हुआ यह हवस का पुजारी बोला। अपने एक हाथ से मेरे दोनों हाथों को एक साथ मेरे सर से ऊपर की ओर करके मुझे सर्वथा असहाय कर चुका था।

“तुम गलत कर रहे हो।” मैं बोली।

“गलत क्या है इसमें?” बेहयाई से वह बोला।

“मां के साथ बेटे का यह सब करना पाप है, अनर्थ है।”

“पाप पुण्य, अर्थ अनर्थ, सब अभी मेरे लंड के साथ तेरी चूत में घुस जाएगी मॉम।” ऐसा बोल रहा था, एकदम सड़क छाप भाषा, एक मंजे हुए चुदक्कड़ की तरह। सन्न रह गयी मैं।

“और तू यह सब मुझे क्यों समझा रही हो मॉम। तेरी चूत देखकर कोई भी बता सकता है कि अच्छी खासी चुदाई हो रही है इसकी, वह भी एक मर्द से नहीं, कई मर्दों से। फूली हुई, इत्ती बड़ी, पावरोटी सी। कितने लंड खा चुकी हो मॉम? बताओ तो और अब यह देखो, तेरी चूत कैसे फकफका फकफका कर पानी छोड़ रही है। साफ है कि तू एक नंबर की लंडखोर है और अभी भी तुझे चुदवाने का मन कर रहा है लेकिन मेरे सामने नाटक कर रही है। सच है ना?” उसकी बातें सुनकर मैं अवाक रह गयी। निरुत्तर हो गयी। मेरे सारे तर्क व्यर्थ हो रहे थे।

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