RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
वो लोग हद पार कर रहे थे और मैं उस वक़्त यही सोच रहा था कि क्या मैं कल का सूरज देख पाउन्गा ? और यदि मैं कल का सूरज देखूँगा भी तो किस हाल मे ? उस वक़्त मुझे ये भी नही मालूम था कि कल मैं कॉलेज मे रहूँगा
या किसी हॉस्पिटल मे अपने पूरे जिस्म मे पट्टी बँधवा कर पड़ा रहूँगा ?
मैने पुश अप करना शुरू कर दिया लेकिन तभी किसी ने मेरे पैंट का बेल्ट उतारने की कोशिश की और मैं वही रुक गया और खुद को ज़मीन से सटा दिया....
"ये आप लोग...."मैं कह भी नही पाया था कि मेरी कमर पर कसकर कई लात एक साथ पड़े , पूरा शरीर दर्द से कांप उठा और आख़िर मे मेरी आँख से आँसू निकले....धूल के कण मेरे पूरे जिस्म से चिपके हुए थे,...जब लड़को की लातों की बारिश थमी तो उन लड़कियो ने अपनी नोक वाली सॅंडल से मेरी कमर पर दस्तक की और वो पल ऐसा था जिसे मैं आज भी नही भुला सकता....उस दिन ना जाने कितने दिनो बाद मैं रोया था........
"चल फिर शुरू हो जा और याद रखना ,इस बार मत रुकना...."
मैने रोते हुए अपने हाथ ज़मीन से टिकाए और फिर पुश अप मारने लगा, इस बार एक लड़के ने अपने हाथ से मेरे पैंट मे लगी बेल्ट को निकाला और पैंट का बटन खोल दिया.....लेकिन मैं नही रुका क्यूंकी मुझे मालूम था कि रुकने का मतलब फिर से वही मार खाना....पूरे शरीर से बेतहासा पसीना निकल रहा था जिससे ज़मीन पर मेरी छाप बनी हुई थी.....जब मैं पुश अप कर रहा था तो उसी वक़्त विभा ने मेरी पैंट को नीचे खिसका दिया और खिलखिला के हँसने लगी.....
"रुकना मत बे..."
उसके बाद उन्होने मेरी कमर के नीचे के सारे कपड़े उतार दिए और मैं थक हार कर वही लेट कर रोने लगा....वो सब बहुत देर तक वही खड़े हँसते रहे ,मुझे गालियाँ देते रहे और फिर जब उनका मन भर गया तो वो वहाँ से चले गये........
यदि ये सब कॉलेज के अंदर होता तो शायद आज वो सब जैल मे होते,लेकिन ऐसा नही हुआ था....और कॉलेज के बाहर जो कुछ भी हुआ उसकी रेस्पॉन्सिबिलिटी कॉलेज की नही होती....मैं ग्राउंड से उठकर अपने हॉस्टिल की तरफ चला, उस वक़्त मैं अंदर से टूट चुका था...रोते-रोते आँसू ख़तम हो गये थे, आँखे सुर्ख लाल थी.....
ग्राउंड से निकलकर मैं सीधे हॉस्टिल की तरफ बढ़ा, रूम का दरवाज़ा पहले से ही आधा खुला हुआ था,जिसे पूरा खोलकर मैं अंदर घुसा....
"क्या हुआ...."घबराई हुई आवाज़ मे अरुण ने पुछा लेकिन मैं कुछ नही बोला या फिर कहे कि मुझमे कुछ बोलने की हिम्मत ही नही थी ,उस वक़्त यदि मैं कुछ बोलता तो यक़ीनन मैं रो पड़ता...इसलिए मैं उसी हालत मे सीधे जाकर अपने बेड पर लेट गया और अपनी आँखे बंद कर ली....पूरा शरीर दर्द और उन चुड़ेलों के सॅंडल की खरोचो से जल रहा था....
"ये क्या हो गया,...वो भी मेरे साथ...."उस वक़्त ना तो मुझे एश का ख़याल था और ना ही दीपिका मॅम का....उस वक़्त मैं ये भी भूल गया था मेरे भाई ने ये शहर छोड़ने से पहले कुछ नसीहत दी थी, दिल और दिमाग़ मे था तो सिर्फ़ बदला....मैं कुछ बड़ा धमाका करना चाहता था जिसकी चपेट मे आज ग्राउंड मे मौजूद सभी लोग आ जाए....
"कल सबकी माँ चोद दूँगा, फिर जो होगा देखा जाएगा....."कमर बहुत ज़ोर से दर्द कर रहा था,लेकिन फिर भी मैं उठकर बैठ गया....
" तू आराम कर अरमान..."
"बहुत सह लिया इन चूतियो को, तू देख मैं कल इनकी कैसे लेता हूँ...."खड़े होकर मैने कहा और अपना शर्ट उतारने लगा,...
"अबे किस चीज़ से मारा है तुझे..."
"वो पाँचो चुड़ैल सॅंडल पहन कर नाच रही थी ,साली रंडिया...."गुस्से से काँपते हुए मैं बोला और नहाने के लिए वहाँ से सीधे बाथरूम की तरफ की गया.....
उस रात कोई सीनियर हॉस्टिल मे नही आया और उस दिन मुझे हॉस्टिल मे सबसे अजीब जो बात लगी वो ये थी कि भू(बी-एच-यू)उस दिन रात भर किसी से फोन मे बात करता रहा ,वो किसी जुगाड़ की बात कर रहा था.....उस रात नींद मुझसे कोसो दूर थी, मैं बस यही चाह रहा था कि जल्दी से जल्दी सुबह हो और मैं एमकेएल से मिलू....
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"माँ कसम सुन कर दुख हुआ...."हर रोज़ की तरह वरुण आज भी मुझसे पहले उठा और चाय बनाने के लिए गॅस ऑन करते हुए बोला...."ला दूध की बोतल पकड़ा...."
"अरुण, उधर दूध की बोतल रखी हुई है, ला दे..."
अरुण से मैने दूध की बोतल माँगी थी लेकिन उसने मुझे दारू की बोतल पकड़ा दी और तो और वो बोला कि एक कप चाय मेरे लिए भी बना दे....
"अबे उल्लू , मुझे हनी सिंग समझ रखा है क्या, जो चिप्स मे दारू डालकर खाउन्गा और फिर दोनो हाथ उपर करके उपर-उपर वाला गाना गाउन्गा,..."
"मतलब..."सर खुजाता हुआ वो बोला...
"मतलब की चाय दूध से बनती है शराब से नही...."
"ओह सॉरी ! ध्यान ही नही रहा...."
इसके बाद अरुण ने दूध का बोतल मुझे पकड़ाया और मैने वरुण को,, चाय बनाते हुए वरुण ने मुझसे पुछा....
"तो फिर उसके अगले दिन कुछ धमाका किया ,या एक बार फिर उनसे मार खाया..."
"उसके अगले दिन..."मैं उस वक़्त थोड़ा और सोना चाहता था,लेकिन वरुण को कुछ ज़्यादा ही उत्सुकता थी आगे जानने की ,इसलिए मुझे अपने यादों के समुंदर मे एक बार फिर तैरना पड़ा......
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"आज क्या बोलेगा उनसे, वो सब तो हर दिन की तरह आज भी वहाँ खड़ी है...."
मैं और अरुण कॉलेज के पीछे वाले गेट से कुछ ही दूरी पर खड़े थे.....वैसे तो एक पढ़ने वाले स्टूडेंट को गालियाँ नही बकनी चाहिए ख़ासकर के लड़कियो को....लेकिन उस कल उन्होने जो कुछ भी मेरे साथ किया था उसने मेरे सारी अच्छी चीज़ो को ख़तम कर दिया था....
"सिगरेट कैसे पीते है, जल्दी से बता..."
"सिंपल...छोटा कश लेना और फिर धुए को अंदर खींच लेना....."
"ला सिगरेट दे, ट्राइ करता हूँ..."
"वो तो नही है...."
"चल कोई बात नही आजा..."कॉलर को मैने उपर किया और उन चुदैलो की तरफ बढ़ा.....पीठ और कमर मे बहुत दर्द था, इसलिए हॉस्टिल से निकलते वक़्त मैं थोड़ा झुक कर और लंगड़ा कर चल रहा था...लेकिन उस वक़्त मैने खुद को स्ट्रेट किया और बिंदास चल मे चलकर उनकी तरफ आया.....जैसे - जैसे मैं उनकी तरफ बढ़ रहा था बीते दिन ग्राउंड का हर एक मोमेंट मेरी आँखो के सामने छा रहा था......
"गुड मॉर्निंग बंदरियो...."
"हुह...."उन पाँचो चुदैलो की नज़र मुझपर पड़ी और विभा बोली"कल का भूल गया क्या,जो आज आ गया..."
मुस्कुराते हुए मैने विभा के चेहरे को देखा और फिर जानबूझकर अपनी नज़र उसके सीने पर टिकाई और अपने होंठो पर जीभ फिराते हुए मैने विभा से कहा....
"साइज़ क्या है तेरे मम्मों को...."
"व्हाट..."उसने मुझे थप्पड़ मारने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया, तो मैने तुरंत उसका हाथ पकड़ लिया...
"बीसी, अपना हाथ संभाल..."उसे दूर झटका देते हुए मैने कहा....
मेरी इस हरकत से वहाँ सिगरेट पी रही एक लड़की के हाथ से सिगरेट छूट कर ज़मीन पर गिर गयी, जिसे उठाकर मैने एक छोटा सा खींचा जैसा कि अरुण ने बताया था और धुए को उसके फेस पर छोड़ते हुए बोला.....
"एक सिगरेट नही संभाल पा रही है तू , फिर मेरा लंड क्या पकड़ेगी....तुझे नही चोदुन्गा...तू रिजेक्ट...."
मैं जब उन पाँचो को बक रहा था तब शुरू -शुरू मे अरुण दूर खड़ा तमाशा देख रहा था, लेकिन बाद मे वो भी वही आ गया और विभा को देखकर बोला....
"एक बात बता तू, तुझे प्यार करने के लिए वो गधा ही मिला..."और हम दोनो हंस पड़े, अरुण ने बोलना जारी रखा"तेरे उस बाय्फ्रेंड को बेस्ट गधा ऑफ दा यूनिवर्स का अवॉर्ड मिलना चाहिए....साला 7 साल से इंजीनियरिंग. कर रहा है...."
हम दोनो एक बार फिर ज़ोर से हँसे, आज हँसने की बारी हमारी थी, कल जैसे मैं शांत खड़ा सह रहा था आज वही हालत उन पाँचो की थी.....
"सुनो बे रंडियो....दोबारा इधर दिखी तो यही पटक कर रेप कर दूँगा और चूत का भोसड़ा बना दूँगा....चल भाग यहा से...."
"रूको तुम दोनो , आने दो वरुण और उसके दोस्तो को..."एक लड़की ताव मे बोली.....
हम उन चूतिए सीनियर्स की माल को छेड़ा था ,जिससे मामला गरम तो होना ही था...लड़ाई तो होनी ही थी...तो फिर मेरे खास दोस्त अरुण ने सोचा कि जब युद्ध होना ही है तो क्यूँ ना फुल मज़ा ले लिया जाए और उसके बाद मैने ज़मीन से धूल उठाई और सबसे पहले विभा के चेहरे पर लगाया, वो गुस्से से पूरी लाल होकर मुझे घूरती रही,....
"ये उस दिन के समोसे का बदला और कल वाले कांड के लिए....."मैं बोलते-बोलते रुक गया, क्यूंकी हमे बचपन से यही सिखाया जाता है लड़कियो की इज़्ज़त करो उन्हे पूरा सम्मान करो....लेकिन जब लड़किया ही तुम्हारी मारने पर तुली हो तब क्या करना चाहिए ये किसी ने आज तक नही कहा था....
"छोड़ दे बे अरमान वरना यही रो पड़ेंगी ये..."
"जाओ, तुम पाँचो को मैने माफ़ किया, और जिसको बुलाना है बुला लेना....."
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वो पाँचो अपना पैर पटक कर वहाँ से रफ़ा दफ़ा हो गयी और उन पाँचो के जाने के बाद सबसे पहले मैने जो काम किया वो ये था कि खुद को थोड़ा झुका लिया, साला बहुत देर से दर्द सहते हुए स्ट्रेट खड़ा था और फिर कॉलेज के अंदर जाने के लिए जैसे ही मुड़ा तो देखा कि वहाँ आस-पास बहुत से स्टूडेंट्स खड़े होकर हम दोनो को अपनी आँखे बड़ी-बड़ी करके देख रहे है, वो सभी हॉस्टिल मे रहने वाले फर्स्ट एअर के स्टूडेंट्स थे और वहाँ उनमे कुछ लड़किया भी थी....
"अबे ये लोग तो मुझे हीरो समझ रही होंगी...."सिगरेट को दूर फेक कर मैं बोला....
"चल बे, ये मुझे हीरो समझ रही होंगी...क्यूंकी जो किया मैने किया, तूने क्या किया...."
"वैसे एक बात बता..."सहारे के लिए मैने अरुण के कंधे पर हाथ रखा और कॉलेज के अंदर घुसा"वरुण और उसकी दानव सेना से कैसे निपटेंगे...."
"एक कट्टा खरीद लेते है साला और जब जब वो सब हमारी लेने आएँगे हम कट्टा दिखाकर उन्ही की ले लेंगे....क्या बोलता है..."
"कुछ ज़्यादा नही फेंक दिया..."बोलते - बोलते मैं रुका, और क्लास के अंदर चलने के लिए इशारा किया और लंगड़ाते हुए मैं सीएस क्लास के अंदर गया , आज भी अरुण का दोस्त हमसे पहले पहुच चुका था और मुझे देखकर उसने एक झटके मे कह दिया कि "वो नही आई है.."
"साला चूतिया..."मैने उसे गालियाँ बकि,...अरुण का दोस्त था इसलिए सिर्फ़ गालियाँ बकि यदि मेरा दोस्त होता तो जान से मार देता, साला स्लोली-स्लोली भी तो बोल सकता था कि एसा आज भी नही आई, ऐसे एक झटके मे बोल कर हार्ट अटॅक दे दिया साले ने
अपने क्लास मे आकर मैं चुप-चाप बैठ कर सामने क्लीन बोर्ड की तरफ देखने लगा, उस वक़्त जोश-जोश मे तो मैने उन पाँचो को बत्ती दे दी, लेकिन अब मुझे डर लगने लगा था....लेकिन उन सबकी कल की हरक़त से मुझमे इतनी हिम्मत तो आ ही गयी थी कि अब मैं चुप-चाप होकर मार नही खाउन्गा....
"एक मुक्का तो ज़रूर किसी को मारूँगा और वो भी पूरी ताक़त लगाकर...."
"क्या हुआ बे, किसको मारेगा..."
"कुछ नही ,सामने देख सर आ गये है..."
सामने सर को देखकर अरुण जमहाई लेते हुए बोला"ये फिर पकाएगा..."
वो पीरियड बीएमई का था और जो सर उस सब्जेक्ट को पढ़ाते थे उनका नाम मुझे आज तक नही मालूम, बाकी हम लोग उसे किसी भी नाम से बुला लेते थे जैसे कि लोडू, बक्चोद,चोदु,गन्दू एट्सेटरा. वो जब भी क्लास लेने आता तो एक चीज़ जो हमेशा मेरे साथ होती और वो ये थी कि मैं हमेशा गहरी नींद मे चला जाता भले ही मैं 12 घंटे ही सो कर क्यूँ ना आया हूँ......उस दिन भी मैं नींद की आगोश मे सो चक्कर लगा रहा था कि अरुण ने मुझे जगाया....
"क्या हुआ..."अपना मुँह फड़ते हुए मैने पुछा...
"वो लोडू क्वेस्चन कर रहा है, जाग जा..."
"मेरी बारी आएगी तो जगा देना..."
"अबे उठ..."मेरे पैर पर ज़ोर से लात मारते हुए अरुण ने कहा....."थोड़ा बहुत तो रेस्पेक्ट दे बे टीचर्स को..."
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"इसोतीनल प्रोसेस समझ मे आया किसी को..."उस लोडू ने हम सबसे पुछा और आधी क्लास ने ना मे जवाब दिया....
"कोई बात नही , आगे देखो"
" सर...."एक लड़का खड़ा हुआ "जब यही समझ नही आया तो आगे क्या देखे..."
"घर मे बुक खोल कर पढ़ना यार ,ईज़ी है सब समझ मे आ जाएगा...."
उस लड़के को बैठा कर उस चूतिए ने अपना चूतियापा जारी रखा और मैं फिर लुढ़क गया....जिस लड़के ने अभी कहा था कि "जब यही समझ नही आया तो आगे क्या समझ मे आएगा..."वो ब्रांच ओपनर था, और उसका नाम मैने तो कभी किसी से नही पुछा लेकिन अक्सर डिस्कशन करते समय कुछ लोग उसका नाम शुभम बताते थे......
"आज कौन सा लॅब है..."मैने अरुण से पुछा....
कॉलेज शुरू हुए अभी ज़्यादा दिन नही हुए थे लेकिन इतने ही दिनो मे मुझमे बहुत ज़्यादा बदलाव आ गया था, जहा पहले मैं स्कूल मे टीचर्स की हर बात को बड़े ध्यान से सुनता था वही अब मैं टीचर्स को गालियाँ बकता और हर क्लास मे टाइम पास करता....कॉलेज लगे हुए यूँ तो बहुत दिन नही हुए थे लेकिन इन दिनो मे मैने एक बार भी हॉस्टिल जाकर बुक नही खोला था....मुझे सुबह उठकर फाइल ना ढूँढनी पड़े इसलिए मैने सब सब्जेक्ट की लॅब फाइल अपने बॅग मे डाल कर रखी हुई थी, आलम तो ये था कि जो बॅग मैं कॉलेज से जाकर हॉस्टिल मे फैंकता था वैसा ही बॅग सुबह उठाकर कॉलेज आ जाता और जब भी घर से या बड़े भाई का कॉल आता तो मैं अक्सर यही बोलता था कि स्टडी बढ़िया चल रही है.......
"असाइनमेंट जमा करो...."दीपिका मॅम अपने हाथ मे पेन लेकर चेयर पर सवार हो चुकी थी....
"पहले ये बताओ कि किसने किसने असाइनमेंट खुद से बनाया है...."
ये एक ऐसा सवाल था जिसमे सभी ने अपना हाथ खड़ा किया जबकि एक दो को छोड़ कर शायद ही कोई ऐसा रहा होगा जिसने असाइनमेंट खुद से बनाया होगा.....
"वेरी गुड..."अपने चेहरे पर आए बालो को पीछे करते हुए दीपिका मॅम फिर बोली"अब ये बताओ ,किसने असाइनमेंट नही बनाया...."
मैने पूरी क्लास की तरफ देखा, किसी ने भी अपना हाथ नही उठाया , दीपिका मॅम ने अपना दूसरा सवाल फिर दोहराया और इस बार सिर्फ़ एक हाथ खड़ा हुआ और वो हाथ मेरा था......
"क्यूँ...तुमने असाइनमेंट क्यूँ नही किया...."
"भूल गया मॅम..."मैने सीधा सा जवाब दिया.....
"रिसेस मे तुम मुझसे कंप्यूटर लॅब मे मिलना..."
मैने गर्दन हाँ मे हिला दी और बैठ गया , इस वक़्त मुझे सबसे ज़्यादा गुस्सा अरुण पर आ रहा था क्यूंकी उसने असाइनमेंट कंप्लीट कर लिया और मुझे बताया तक नही......
"क्यूँ बे मुझे क्यूँ नही बताया तूने..."उसके पैर पर जोरदार लात मार कर मैने पुछा....
"मुझे लगा कि तूने कर लिया होगा..."अपने पैर को सहलाते हुए उसने कहा..."अगली बार से बता दूँगा..."
उस दिन दीपिका मॅम का पूरा पीरियड असाइनमेंट जमा करने और चेक करने मे बीत गया, असाइनमेंट चेक करते समय दीपिका मॅम बीच-बीच मे मुझे देखती और कभी-कभी हमारी नज़रें भी टकरा जाती.....जब पीरियड ख़तम हुआ तो दीपिका मॅम ने जाते हुए मुझे एक बार फिर रिमाइंड कराया कि मुझे रिसेस मे उनसे मिलना है......
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"आज तो बेटा दीपिका मॅम तुझे चोद के रहेगी..."अरुण मेरे मज़े लेते हुए बोला...3र्ड पीरियड शुरू हो चुका था लेकिन टीचर लापता था और तभी मैने अपनी अकल दौड़ाई और नवीन से उसकी बाइक की चाबी माँगी......
"अबे बाहर सीनियर्स होंगे..."अरुण ने कहा और जिसे समझ कर मैं बैठ गया.....
मैने सोचा था कि एक असाइनमेंट कॉपी खरीद कर इस खाली पीरियड मे ही अस्सिगमेंट पूरा कर लूँ और रिसेस मे दीपिका मॅम के मुँह पर असाइनमेंट दे मारू, लेकिन सीनियर्स का नाम सुनकर मेरा पूरा प्लान चौपट हो गया.....
खुद को बाजीराव सिंघम और उसके साथ रहने वाला उसका एक और दोस्त अक्सर फर्स्ट एअर की क्लास के कॉरिडर मे चक्कर मारते रहते थे और जो क्लास भी खाली दिखी वो उसमे घुसकर अपना रोला झाड़ते, उस दिन जब हमारी क्लास खाली जा रही थी तो उसी वक़्त वो दोनो टपक पड़े......उनमे से एक जो खुद को बाजीराव सिंघम कहता था वो अंदर आया और उसके साथ हमेशा कॉलेज के चक्कर काटने वाला उसका दोस्त गेट पर खड़ा होकर निगरानी करने लगा.....बाजीराव सिंघम लड़कियो की तरफ जाकर गप्पे मारने लगा, इसी बीच सब नॉर्मल हो गये और आपस मे बात करने लगे....तभी वो चीखा और सब शांत हो गये....
"क्या है बे ये...सीनियर क्लास मे है और तुम लोग दिमाग़ की माँ-बहन किए जा रहे हो...."लड़को की तरफ आता हुआ वो बोला और फिर उसने मुझे देख लिया"तू खड़े हो, क्या नाम बताया था तूने अपना..."
"अरमान....."
"अरमान...."मुझे उपर से नीचे तक देखते हुए उसने वही कहा जिसकी मुझे आशंका थी"ज़्यादा उड़ी-उड़ी मे रहना बंद कर दे ,वरना....."गेट पर खड़े अपने दोस्त को पास बुलाकर उसने अपने दोस्त के कंधे पर हाथ रखा और फिर बोला....
"ये जो तुम्हारा सीनियर है ना मैं इसका भी बाप हूँ...."उसका इशारा गेट पर खड़े रहने वाले सीनियर की तरफ था...."तो अब सोच ले कि मैं तेरा भी बाप हूँ...."
उसका ये कहना था कि मेरा खून हज़ार डिग्री सेल्सीयस पर खौला, मैने उसे घूर कर देखा....एक बार फिर वही हुआ जो मैने सोच कर रखा है, वो मेरे पास आया और मेरा कॉलर पकड़ कर बोला..
"क्या घूर रहा है , मैं हूँ तेरा बाप..."
"बाप के कॉलर से हाथ हटा..."
ये सबके लिए एक धमाके की तरह था, मेरे मुँह से वो लफ्ज़ सुनकर खुद बाजीराव सिंघम और उसका दोस्त भी धमाके के चपेट मे आ गये....मैने बाजीराव सिंघम के शरीर को देखा और अंदाज़ा लगाया कि यदि हमारी लड़ाई हुई तो रिज़ल्ट बहुत देर तक मे आएगा, मतलब कि हम दोनो बराबर थे......
"तू जानता है कौन हूँ मैं...मैं हूँ बाजीराव सिंघम..."अपना सीना ठोक कर फिल्मी स्टाइल मे वो बोला....
"तू अगर बाजीराव सिंघम है तो मैं हूँ चुलबुल पांडे...अब बोल."
वो शांत हो गया ,और कुछ देर तक मेरी आँखो मे आँखे डाल कर आ जाने क्या सोचता रहा, उसके बाद उसने अपने दोस्त को बुलाया....और मैने अरुण को खड़ा होने के लिए कहा.....उस वक़्त दोनो तरफ दो लोग थे और दोनो ही बराबर लेकिन पलड़ा हमारा भारी था क्यूंकी मैने इसी बीच उन दोनो से कह दिया था कि जब हमारी लड़ाई चलेगी तो उसी समय हमारे क्लास का कोई एक स्टूडेंट जाकर प्रिन्सिपल ऑफीस मे ये न्यूज़ देके आएगा कि मेकॅनिकल फर्स्ट एअर मे कुछ सीनियर्स , जूनियर्स को बुरी तरह पीट रहे है, और प्रिन्सिपल सर मान भी लेंगे....उसके बाद तुम दोनो को कॉलेज से निकाल दिया जाएगा.....तो बेहतर यही है कि अभी क्लास से बाहर चले जाओ वरना कॉलेज से बाहर जाना पड़ेगा........
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