Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
08-18-2019, 02:14 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
तब तक हम सबके हाथ मे चाय का कप भी आ चुका था .चाय बहुत गरम थी इसलिए अरुण ने चाय का कप साइड मे रखा ताकि थोड़ी ठंडी होने के बाद पी सके....इस बीच उस कल्लू ,कंघी चोर को पता नही क्या हुआ ,जो उसने अरुण का कप उठाया और पूरी चाय ज़मीन मे गिरा कर कप वापस पहले वाली जगह पर रखते हुए बोला"सॉरी...."
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उस कल्लू ,कंघी चोर की ये हरकत देखकर हम सबका दिल, मुँह को आ गया...आँखे जैसे यकीन ही नही कर पा रही थी कि कुच्छ देर पहले जो सीन उन्होने देखा वो सच था या फिर एक भ्रम था...उस कल्लू कंघी चोर ,पर गुस्सा तो हम सभी को आया था,लेकिन हम सब चाहते थे कि इसकी शुरुआत अरुण करे.....

"तेरी माँ की..."बोलते हुए अरुण ने आव ना देख ताव, और सीधा अपना हाथ कल्लू के कान पर छोड़ दिया....

"तुम लोग ग्रूप मे हो इसलिए मुझे मार रहे हो..."नम आवाज़ के साथ कल्लू ने कहा....

"साले ,कालीचरण...तेरी गान्ड मे इतनी हिम्मत कि तू मुझसे लड़ेगा...म्सी ,औकात मे रहा कर,वरना सारी हेकड़ी दो मिनिट मे निकाल दूँगा...बीसी हॉस्टिल मे कुच्छ बोलते नही है तो सोचता है कि तुझसे डरते है...दोबारा यदि कभी ऐसा किया तो जहाँ छेद दिखेगा वही लंड डालूँगा और आँख ,कान,नाक,मुँह ,गान्ड सब कुच्छ फाड़ डालूँगा...बीसी,चूतिया साला..."
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इस घटना के बाद हमारे कालीचरण साहब एक पल भी वहाँ नही रुके और बिना पैसे दिए ही वहाँ से चल दिए....दुकान वाले ने कल्लू को आवाज़ भी लगाई,लेकिन वो नही रुका....उस ठेले वाले से मैने आस-पास कही दारू की दुकान है या नही...ये पुछा, जिसके जवाब मे मुझे मालूम चला कि यहाँ से कुच्छ दूरी पर एक बार है...

"एक बार,इस जंगल मे...."

"बार मतलब वही ना जहाँ शराब बहुत महँगी मिलती है और बड़े-बड़े घरानो की लड़किया छोटे-छोटे कपड़े पहन कर अपनी इज़्ज़त दान करती है...."

"हां...उसी को बार कहते है..."उसकी बात का मतलब समझकर मैने कहा"यहाँ आस-पास कोई छ्होटी-मोटी दारू की दुकान नही है क्या..."

"इधर तो कुच्छ भी नही है ,बस वही एक बार है..."

"कितना दूर होगा यहाँ से..."

"यदि पैदल चले तो यही कोई 15-20 मिनिट लगेंगे...लेकिन अंदर नही जा पाओगे भाऊ..."

"अंदर क्यूँ नही जा पाउन्गा...."

"क्यूंकी उधर जाने के वास्ते लड़की साथ मे होना माँगता और अंदर जाने के लिए पैसा भी बहुत लगता है...."

"वो सब हमारी परेशानी है ,आप ये बताओ कि जाना किस डाइरेक्षन मे है..."

उस ठेले वाले ने हमे बार जाने का रास्ता बताया,जिसके बाद हम लोग वापस अपने कॅंप की तरफ बढ़ गये...
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"अभी से कॅंप जाकर क्या करेंगे ,अरमान भाई...अभी तो सिर्फ़ 1 बजे है और वॉर्डन ने 4 बजे तक आने को कहा है, यही कि अपने पास अभी फुल 3 घंटे है...."पुल पर चलते हुए राजश्री पांडे बोला....

"कॅंप कौन जा रहा है,हम लोग तो वापस लेफ्ट साइड जाकर ,एमबीबीएस कॉलेज की लड़कियो को ताडेन्गे...साली क्या माल दिखती है ,फिगर तो पुछो मत...देखते ही लंड खड़ा हो जाता है..."

"अरमान ,तूने बताया नही कि अब्दुल कलाम से तूने क्या बात की थी..."तुरंत टॉपिक चेंज करके अरुण ने पुछा...लेकिन मैं अरुण से कुच्छ कहता उससे पहले ही सौरभ बोल उठा कि मैं फेंक रहा हूँ और बाकियो ने भी उसका साथ दिया....

"अबे यदि यकीन नही आता तो जाकर खुद कलाम जी से पुच्छ लो... या फिर गूगल मे सर्च मार ले कि कलाम जी कभी न्लू(नॅशनल लॉ इन्स्टिट्यूट),भोपाल आए थे या नही...और जब यकीन हो जाए कि वो वहाँ आए थे तो फिर मेरे स्कूल जाना और मेरे प्रिन्सिपल से पुछ्ना...."

"चल बे,हमे सिर्फ़ इतना ही काम बचा है क्या जो तेरे स्कूल जाए..."

"फिर एक काम करो...तुम सब गान्ड मराओ...साले खुद की जितनी औकात है उतनी मेरी भी समझते हो..."

"ओ बीसी...अरमान उधर देख..."फिर से टॉपिक चेंज करते हुए अरुण बोला"तेरा गॉगल ,वो एमबीबीएस वाली आइटम पहन कर घूम रही है,लेकिन तेरा गॉगल उसके पास कैसे आया...साली चॉटी..."

"क्या बोला तू...."

"अबे यही कि तेरा गॉगल शायद आंजेलीना ने पहन रखा है...वो देख साइड मे मछलि मार रही है..बोले तो शी फिशिंग करिंग..."

मेरी रूह मेरे गॉगल मे बस्ती है और जब मेरी रूह का पता चल गया तो मैने तुरंत आंजेलीना की तरफ नज़र दौड़ाया....दूर से तो मुझे भी लग रहा था कि ये मेरा ही गॉगल है लेकिन एक बार कन्फर्म करना तो बनता ही है,क्यूंकी बिना मतलब सिल्वा डार्लिंग को छेड़ना मतलब अपनी पॅंट उतरवाना था....इसलिए मैने बाकियो को जहाँ खड़े थे वही रुकने के लिए कहा और आंजेलीना की तरफ धीरे-धीरे बढ़ने लगा,इस दौरान मेरी दोनो आँखे आंजेलीना के आँखो मे चढ़े चश्मे पर थी....जैसे-जैसे मैं आंजेलीना के करीब आता गया ,मुझे अरुण की कही गयी बात सच होती मालूम पड़ी और जब मैने कन्फर्म कर लिया कि ये गॉगल मेरा ही है तो मैने सबसे पहले अपने सर मे उंगलिया फिरा कर अपना बाल ठीक किया और फेस को रूमाल से एक बार सॉफ करके आंजेलीना के और करीब जाने लगा.....
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"और मछलि-मार, क्या हाल चाल है....कॉफी हाउस का बिल दिमाग़ से निकला या अभी तक भेजे मे है..."आंजेलीना को पहली ही लाइन से छेड़ते हुए मैने कहा....क्यूंकी हम दोनो के बीच 36 का आकड़ा पहली मुलाक़ात से ही चल रहा था इसलिए 'हाई..हेलो' जैसी नॉर्मल बातें तो हम दोनो के बीच हो ही नही सकती थी....

"बहुत रहीस घराने से हूँ मैं, इसलिए ये 5-10 हज़ार मेरे लिए कोई बड़ी बात नही..."फिशिंग रोड एक तरफ सरकाते हुए आंजेलीना खड़ी हुई और उसकी दोनो सहेलिया,चींकी और पिंकी...जो उधर ही टहल रही थी...मुझे वहाँ आंजेलीना के पास देखकर हमारे तरफ ही आने लगी.....

"यदि इतनी ही रहीस हो तो फिर ऐसी क्या ज़रूरत आन पड़ी जो तुमने मेरा गॉगल चुराया...."

"होश मे तो हो..."अपनी आवाज़ ज़रा उँची करके उसने गॉगल अपनी आँखो से उतारा और फिर मुझे घूरते हुए बोली" चोर नही हूँ मैं,समझे..."

"देखो सिल्वा जी, ये गॉगल तुम्हारा नही है इसके तीन प्रूफ मैं देता हूँ...फर्स्ट प्रूफ ये है कि ये गॉगल लड़कियो वाला नही बल्कि लड़को वाला है...सेकेंड प्रूफ ये कि तुम इसमे बिल्कुल भी...बिल्कुल भी अच्छी नही दिख रही और थर्ड आंड मोस्ट इंपॉर्टेंट प्रूफ ये है कि इस गॉगल के फ्रेम मे पीछे की तरफ 'ए' वर्ड डिज़ाइन किया हुआ है,जो मैने खुद व्हिटेनेर से किया है...जिसका मतलब है 'अरमान' जो कि मेरा नाम है...."विजयी मुस्कान देते हुए मैं आगे बोला"मैने ये साबित कर दिया की ये गॉगल तुम्हारा नही है और साथ मे ये भी साबित कर दिया कि ये गॉगल मेरा है...."

मैने आंजेलीना के हाथ से गॉगल छीना और वापस पलट कर अपने दोस्तो की तरफ आने लगा...वापस आते समय मैने गॉगल अपने दोस्तो को दिखाते हुए हवा मे ऐसे लहराया ,जैसे कोई बॅट्स्मन सेंचुरी मारने के बाद अपना बात हवा मे लहराता है और मेरे दोस्त मेरी इस जीत का जश्न ऐसे बनाने लगे,जैसे की वो उस सेंचुरी मारने वेल बॅट्स्मन के फॅन हो.....

"ओये हेलो..."आंजेलीना ने मुझे आवाज़ मारी जिसके बाद मैं बड़े शान से पीछे पलटा...

"क्या हुआ बेबी, एनी प्राब्लम "

"ज़रा सुन तो..."

आंजेलीना ने मुझे अपनी तरफ बुलाया और उसके हाव-भाव देखार यही लग रहा था कि वो अपने किए पर शर्मिंदा है और मेरे 1400 ग्राम के दिमाग़ का लोहा मान चुकी है...मैने अपने दोस्तो से कहा कि ' मैं थोड़ी देर मे आता हूँ' और अपने गॉगल को अपनी उंगलियो पर फिराते हुए आंजेलीना की तरफ बढ़ा....

"क्या है, जल्दी बोलो...अपुन के पास टाइम नही है..."

"तुमने ये कहा कि ये गॉगल लड़को वाला है..."

"हां..ऐसा ही कुच्छ कहा था.."

"तो एक बात बताऊ ,आज की तारीख मे लड़किया ,लड़को से कही आगे है...इसलिए तुम्हारे पहले प्रूफ मे कोई दम नही दिखता क्यूंकी ये ज़रूरी नही कि लड़किया,लड़को वाले गॉगल ना पहने .तुम्हारा दूसरा प्रूफ ये था कि मैं इस गॉगल मे अच्छी नही दिख रही और जनरली कोई बंदा या बंदी वही गॉगल लेता है/लेती है जो उसपर सूट करता है...लेकिन ये भी तो हो सकता है तुम्हारी आँखे खराब हो...या तुम्हारा टेस्ट मेरे टेस्ट से बिल्कुल अलग हो...इसलिए तुम्हारे दूसरे प्रूफ मे भी कोई दम नही है...और तुमने,अपने तीसरे प्रूफ मे ये कहा कि इस गॉगल के फ्रेम मे 'आ' लेटर डिज़ाइन किया गया हैं..जिसका मतलब 'अरमान' है...लेकिन अब यदि मैं ये कहूँ कि इस 'ए' लेटर का मतलब अरमान नही बल्कि 'आंजेलीना' है...तब तुम क्या कहोगे...."बोलते हुए आंजेलीना ने मेरे हाथ से गॉगल ठीक उसी तरह छीन लिया,जैसे कुच्छ देर पहले मैने उसके हाथ से छीना था.....
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आंजेलीना से पहली मुलाक़ात मे ही मैं भाँप गया था कि इस लौंडिया मे वो गट्स है,जिसके बलबूते ये मुझे पछाड़ सकती है...लेकिन इस समय आंजेलीना जिस तरह से मेरे तर्क को बे-तर्क कर रही थी...वो मुझे रास नही आया .दिल तो किया कि इसपर मानहानि का केस थोक दूं

पहले पड़ाव की लड़ाई मे चारो खाने चित होने के बाद मैने दूसरा पड़ाव शुरू किया और आंजेलीना का फ़ॉर्मूला उसी पर उल्टा आजमाना चाहा.....

"इस गॉगल के फ्रेम मे डिज़ाइन किए गये 'ए' का मतलब अंगेलिया हो सकता है...लेकिन यहाँ पर इसका मतलब 'थे ग्रेट अरमान ' है...क्यूंकी ये राइटिंग मेरी है.मैने खुद व्हिटेनेर से इसे गॉगल के फ्रेम मे बनाया था..."

"यदि मैं कहूँ कि इस फ्रेम पर 'आ' लेटर मैने बनाया था व्हिटेनेर से तब तुम क्या कहोगे..."अपने होंठो पर एक मुस्कान लाते हुए अंगेलिया बोली और उसकी ये मुस्कान मुझे अंदर से जलाने लगी....

"यदि ऐसा है तो फिर, जैसा 'आ' मैने फ्रेम पर बनाया है,वैसा ही 'ए' एक बार मे बना कर दिखा... "
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आंजेलीना से मैने ऐसा करने के लिए इसलिए कहा क्यूंकी वो 'ए' लेटर जो मैने फ्रेम मे डिज़ाइन किया था ,वो मैने अलग ही कर्सिव स्टाइल मे बनाया था और अभी तक कोई भी उसे एक बार मे मे एग्ज़ॅक्ट नही बना पाया था.

"लाओ पेन दो,अभी बना कर दिखाती हूँ..."

"मैं यहाँ क्या कोई क्लास अटेंड करने आया हूँ,जो पेन लेकर चलूँगा...."

"ये तुम्हारी प्राब्लम है ना की मेरी..."
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"ये ले बेटा,फिर फँसा दिया इस फुलझड़ी ने..."खुद से कहते हुए मैने सोचा...बहुत सोचा,तब जाकर मुझे एक आइडिया आया और मैने तुरंत आंजेलीना से कहा कि वो नीचे रेत मे 'आ' बनाकर दिखाए...

मेरे इस आइडिया से आंजेलीना थोड़ी देर तक खामोश रही और मैं अपनी सुनिश्चित हो चुकी जीत पर इतराने लगा...आंजेलीना ने कुच्छ देर तक फ्रेम को देखा और फिरे नीचे बैठकर एक ही बार मे सेम टू सेम वैसा ही 'ए' बना दिया जैसा कि मैने गॉगल के फ्रेम मे बनाया था.....

"इसकी तो...गया बेटा 2000 का गॉगल हाथ से..."आंजेलीना के द्वारा बनाए गये 'ए' को देखते हुए मैं बड़बड़ाया....अब मैं पूरी तरह पस्त था.
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एक तरफ आंजेलीना मुझपर चढ़ रही थी तो वही दूसरी तरफ मेरे दोस्त मुझे कयि बार आवाज़ दे चुके थे और ये तय था कि यदि अब मैं इस खेल को ख़त्म करके वापस नही लौटा तो वो सब यहाँ आ जाएँगे और मुझे हारता हुआ देखेंगे...जो कि मैं बिल्कुल भी नही चाहता था....दूसरी तरफ मेरा गॉगल-प्रेम भी मुझे मैदान छोड़ने की अनुमति नही दे रहा था......

"यदि अरुण और बाकी सब यहाँ आ गये तो ख़ामखा इज़्ज़त की वॉट लग जाएगी...एक काम करता हूँ ,अभी इसको बक्श देता हूँ...बाद मे देख लूँगा फुल प्लॅनिंग के साथ...लेकिन एंडिंग जोरदार करनी होगी...बोले तो जंग का मैदान भी ऐसे स्टाइल से छोड़ कर भागना है जिससे सामने वाला अहसानमंद रहे...."मैने सोचा और आंजेलीना की ओर दो कदम और बढ़ा कर बोला...

"लड़किया चाहे कितना भी बढ़ जाए, वो हमेशा लड़को के पीछे ही रहेगी..."

"ये ग़लतफहमी भी बहुत जल्द दूर कर दूँगी..."

"यदि ऐसा ही है तो चलो फिर एक मुक़ाबला हो जाए...तुम मुझे अपनी पूरी ताक़त के साथ एक मुक्का मारो और फिर मैं तुम्हे मारूँगा...फिर देखते है कि किसमे कितना दम है "
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मुझे अबकी बार पूरा यकीन था कि आंजेलीना अबकी बार हार जाएगी लेकिन साली ने इसका भी तोड़ निकाल लिया...वो बोली....

"मुझे मंजूर है..लेकिन तुम अपने मेन पॉइंट पर हाथ मत रखना..."

"तू है कौन रे..."अपने मेन पॉइंट पर हाथ रखते हुए मैं बोला..."अभी मेरे दोस्त बुला रहे है इसलिए जा रहा हूँ लेकिन बाद मे मिलूँगा ज़रूर..."

"हमे अपनी हार स्वीकार करनी चाहिए और ये मान लेना चाहिए कि सामने वाला हमसे बेहतर था....ये तुमने ही कहा था ना, फिर आज अपनी हार मानने की बजाय ये बहाने क्यूँ बना रहे हो..."

"बिना हारे,हार मानना तुम जैसो का काम होगा और मुझे अभी इसलिए जाना पड़ रहा है क्यूंकी तुम्हारे एमबीबीएस कॉलेज के लड़को को कल की तरह आज भी बत्ती देनी है, बहुत हवा मे उड़ रहे है....आज तो खून की नादिया बहा दूँगा...गुड बाइ, बाद मे मिलता हूँ,फिर तेरी भी लूँगा..."
इतना बोलने के बाद मैं वहाँ एक पल के लिए भी नही रुका...क्यूंकी मुझे मालूम था कि आंजेलीना फिर किसी ना किसी तरह मेरी बात का तोड़ खोज ही लेती, इसलिए मैने वहाँ से खिसकना ही बेहतर समझा..
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"क्या हुआ बे अरमान...तूने उससे गॉगल क्यूँ नही लिया..."जब मैं अपने दोस्तो के पास आया तो उन्होने पुछा...

"अब क्या बताऊ यार...वो मुझसे सॉरी बोल रही थी और बोली कि आज के लिए मैं उसे गॉगल दे दूं,कल सुबह वो वापस कर देगी....अब तुम लोग तो जानते ही हो कि मेरा दिल कितना बड़ा है...दे दिया साली को...."

"दिस दा लौंडा'स रियल पॉवर...गुड"अरुण बोला"सिगरेट का एक पॅकेट मेरी तरफ से...."
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शाम ढली और रात भी चारो तरफ फैल गयी...हम सबने खाना भी खा लिया और अपने-अपने कॅंप मे वापस भी आ गये...अब सब आराम करने के मूड मे थे लेकिन मेरा मन मेरे गॉगल पर अटका हुआ था क्यूंकी जब मैं किसी के सामने कोई वज़नदार डाइलॉग्स मारता था तो मेरे गॉगल उसमे एक अहम रोल निभाते थे ,इसलिए मुझे कैसे भी करके आंजेलीना से अपना गॉगल वापस लेना था...जो मुझे बड़ी आसानी से वो नही देने वाली थी...मेरे पास एक और रास्ता था जिसके ज़रिए मैं अपना गॉगल ,आंजेलीना से वापस ले सकता था...लेकिन अब मैं आंजेलीना को हराकर उससे अपना गॉगल लेना चाहता था क्यूंकी बात अब मेरी इज़्ज़त पर आ गयी थी.....

"सब बाहर आओ..डिबेट शुरू होने वाला है..."एक लड़का हमारे कॅंप के बाहर से बोला और चलता बना....

"इनकी *** की चूत...नही देखना मुझे कोई डिबेट-वाइबेट...साले चूतिया,म्सी"सौरभ बोला...

"ये पक्का अपने वॉर्डन का आइडिया होगा...उसी की गान्ड मे इल्ली थी कि इंजिनियर वनाम. डॉक्टर खेले...साला ऐसे ही चूतिया है जो दो पक्षो मे लड़ाई करवाते है...मैं तो बोलता हूँ कि ऐसे लोग जहाँ दिखे वही इनकी गान्ड मे गोली मार देनी चाहिए..."अरुण भी सौरभ का पक्ष लेते हुए बोला...
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"असल मे तुम दोनो चूतिए हो..."सुलभ ने अरुण और सौरभ का विरोध किया"तुम दोनो को नही जाना तो मत जाओ,एटलिस्ट किसी को गाली तो मत दो...मैं तो जा रहा हूँ...भारी मज़ा आएगा...अरमान तू चलेगा क्या..."

"लवडा जाएगा मेरा..."मैने कहा..."
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पहले सुलभ कॅंप से निकला फिर नवीन और अंत मे पांडे जी भी इंजिनियर वनाम. डॉक्टर का मज़ा लेने बाहर चले गये....उनके जाने के बाद मैने,अरुण ने और सौरभ ने एक-दूसरे को देखा और ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे....

"क्या सॉलिड चोदु बनाया है तीनो को अब चलो भागकर प्लानीनम बार चलते है..."मैने कहा.....

ये आइडिया अरुण का ही था कि सुलभ, पांडे जी और नवीन को छोड़ कर बार चला जाए,,.क्यूंकी सभी लोग यदि साथ भागते तो वॉर्डन को किसी ना किसी तरह शक़ हो ही जाता और मुझे भी पक्का यकीन था कि जब बाहर डिबेट चलेगा तो वॉर्डन सबसे पहले हमे देखेगा कि हम लोग क्या कर रहे है ,ऐसे मे हमारे ग्रूप के तीन मेंबर का वहाँ होने से वॉर्डन ये सोचता कि बाकी के तीन भी यही-कही होंगे....एक और वजह जो उन तीनो को साथ ना ले जाने की थी वो ये कि सुलभ और नवीन थोड़े शरीफ किस्म के थे मतलब कि दारू को उन दोनो मे से कोई छूता तक नही था इसलिए उन दोनो को बार ले जाने का रिस्क फालतू मे कौन उठाए....राजश्री पांडे को हम लोग जानबूझकर नही ले गये,जिसका कारण था हर वक़्त उसके मुँह मे राजश्री का होना और बिना सोचे समझे किसी को भी,कुच्छ भी बक देना, जिससे दिक्कते पैदा हो सकती थी...या फिर सॉफ-सॉफ लफ़ज़ो मे कहे तो हम तीनो, उन तीनो को ले जाना ही नही चाहते थे
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"अबे अरमान ,कही पकड़े गये तो..."चोरी-छुपे सबसे नज़रें चुराकर हम तीनो कॅंप से भाग खड़े हुए और पुल पर चढ़ते ही अरुण की फटने लगी.....

"ये तो भागने से पहले सोचना चाहिए था ना...खैर अब भी कुच्छ नही बिगड़ा,तू वापस जा सकता है..."

"फट नही रही ,वो तो बस मैं ये जानना चाहता था कि यदि हम पकड़े गये तो आगे का तूने कुच्छ सोचा है या नही..."

"बोल देंगे की सूसू करने गये थे और किसी ने अंधेरे मे हम पर हमला कर दिया...."

"वॉर्डन इतना भी बड़ा चोदु नही है जो हमारी हर बात मान जाए.."

"वापस लौटते वक़्त थोड़ा मिट्टी लगा लेंगे अपने कपड़े और फेस पर...अब खुश..."

"आइडिया उतना सॉलिड नही है,पर काम चलाऊ है...."पुल पर आगे बढ़ते हुए अरुण बोला...
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हमने पुल पार किया और सड़क पर आ गये. इस बीच मैने उस दुकान पर नज़र डाली ,जिसके मालिक ने मुझे बार का रास्ता बताया था...मैं एक और बार बार का पता उस आदमी से पुछना चाहता था,लेकिन उसकी दुकान बंद थी इसलिए हम तीनो बिना कही रुके सीधे बार की तरफ चल दिए....

"किसी के मोबाइल मे टॉर्च नही है क्या...."अंधेरे मे आगे बढ़ते हुए मैने पुछा और जवाब ना मे मिला...

"इसीलिए बोलता हूँ बेटा कि नोकिया 1200 रखा करो...अब फ्लश लाइट से काम चलाना पड़ेगा..."बोलते हुए मैने अपने मोबाइल का फ्लश लाइट जलाया....

बार की तरफ जाने वाली सड़क पर इस वक़्त बहुत अंधेरा था.हालाँकि बीच-बीच मे उस रूट मे जाने वाली गाडियो की वजह से हमे सड़क का अंदाज़ा हो जा रहा था लेकिन जंगल बहुत घना था और रात के वक़्त बहुत ख़तरनाक भी दिख रहा था इसलिए मज़बूरन मुझे फ्लश लाइट जलानी पड़ी.....

बार तक पहुचने मे हमे तक़रीबन 20 मिनिट लगे और बार के सामने पहूचकर जैसे ही मैने बार पर नज़र डाली तो यकीन नही हुआ कि ऐसी जगह पर इतना शानदार बार हो सकता है....
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"बहुत बड़ा लग रहा है बे,कही अंदर चुदाई करने के लिए रूम वगेरह भी तो नही है..."बार के साइज़ का जायज़ा लेते हुए अरुण ने अपनी जीभ लपलापाई....

"वो सब तो बाद का काम है ,मुझे तो इस बात की फिक्र हो रही है कि साला कही अंदर घुसने के पैसे ना माँग ले बीसी...वरना दारू तो पी ही नही पाएँगे..."

"मेरे पास 2000 है,इतना तो सफिशियेंट होगा बे..."मुझे देखते हुए सौरभ बोला...

"मेरे पास ढाई हज़ार है ,इस वक़्त मैं तुम दोनो से ज़्यादा रहीस हूँ..."अपना वॉलेट निकालते हुए अरुण ने कहा"अरमान एक काम कर हम दोनो के पैसे तू रख ले...अंदर जाने की एंट्री फीस और दारू का बिल तू ही पे करना..."

"क्यूँ तुम दोनो के हाथ टूट गये है क्या..."

"अबे बक्चोद, अंदर जाकर हम तीनो अपनी जेब से पैसे निकालेंगे तो लड़कियो पर खराब इंप्रेशन जाएगा...दारू पीने के बाद तू पैसे सीधे फेक कर बार वालो के मुँह मे मारना...."

"ये भी ठीक है..."मैने कहा और अरुण के साथ-साथ सौरभ के पैसे भी अपने वॉलेट मे रख लिया....
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अभी तक तो सब कुच्छ हमारे प्लान के हिसाब से चल रहा था लेकिन बहुत बड़ी परेशानी तब आई जब बार के बाहर खड़े बौंसेर्स ने हमे अंदर बार की दहलीज पर कदम तक रखने नही दिया....

"भिखारी समझ रखा है क्या , अपुन लोग बहुत रहीस है और यदि मेरी खोपड़ी खिसक गयी तो इस बार के साथ-साथ तुझे भी खरीद लूँगा..."

जवाब मे बौंसेर्स ने अपनी उंगली से एक तरफ इशारा किया जहाँ लिखा हुआ था 'ओन्ली कपल्स अलोड'.

"ये तो हम तीनो मे से किसी ने सोचा ही नही ,अब क्या करे...."...'ओन्ली कपल्स अलोड' के टॅग को पढ़ते हुए सौरभ बोला...

"लवडे अरमान तुझे आज पेल-पेल के लाल कर दूँगा...बोसे ड्के यहाँ तक पैदल चलाया और इन मोटे भैंसो ने बाबाजी का घंटा थमा दिया...तू बेटा कुच्छ सोच,वरना आज तुझे शहीद कर दूँगा..."

"टेन्षन मत ले लवडे...मैने सोचा था कि ऐसा कुच्छ हो सकता है ,इसीलिए अंदर जाने के लिए हाथ-पैर चला सकते है..."अरुण को गुस्सा होते हुए देख मैं बोला"सौरभ तू अरुण से चिपक कर खड़ा हो जा और अरुण तू मेरी कमर मे अपना एक हाथ डाल और ऐसे बिहेव करो जैसे कि हम तीनो गे हो..."

मेरी बात सुनकर शुरू मे अरुण और सौरभ तो बहुत हँसे लेकिन फिर उन दोनो ने वैसा किया,जैसा कि मैने उन्हे करने के लिए कहा था....हम तीनो एक दूसरे से कसकर चिपके और एक बार फिर बार की तरफ बढ़े और बौंसेर्स को देखकर गे वाली हरकते करने लगे....

" ओन्ली फॉर कपल्स..."एक बौंसेर ने हम तीनो को एक बार फिर से टॅग दिखाया....

"हम लोग गे कपल है या फिर हम तीन है तो तुम हमे गे-ट्रिपल भी बोल सकते हो...क्यूँ चिकने..."अरुण के गाल को अपने हाथ से खीचते हुए मैने हवा मे उसे एक पप्पी दी, जिसके बाद अरुण ने यही हरकत सौरभ के साथ की....

"चल बाजू हट बहन..."बौंसेर्स को देखकर सौरभ ने अपना हाथ हिलाया....
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"एक बार बोला ना...यहाँ तुम जैसो का कोई काम नही,समझ नही आता क्या..."उन बौंसेर्स मे से एक हमारी तरफ बढ़ते हुए बोला और आगे उस पहलवान के हाथो अपनी ठुकाई की भविष्यवाणी जानकार हम तीनो उधर से खिसक लिए...
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08-18-2019, 02:14 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
प्लॅटिनम बार के अंदर ना जा पाने के कारण दिल दुखी तो था लेकिन मेरे दोनो खास दोस्त मुझसे कही ज़्यादा नाराज़ लग रहे थे,जिसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ,बार से वापस कॅंप की तरफ आते वक़्त उन दोनो ने मुझे नोन-स्टॉप गालियाँ बकि....

"यार ,यदि मेरे पास कोई सूपर पवर होती तो बाई चोद देता उन कल्लुओ की... साले बीसी"पुल पर चलते हुए मैने उदास मन से कहा.."सालो ने रोल मे होल कर दिया..."

"तू...तू चुप रह और यदि अगली बार से कुच्छ उल्टा-सीधा काम हमसे करवाया तो मुँह मे सीधे लवडा दे दूँगा...एक तो पहले कॅंप से भागवाया ,फिर पैदल चलवाया इतना ही नही तूने हमे गे भी बना दिया...लेकिन इन सबके बावजूद दारू की एक बूँद भी नसीब नही हुई...."बार के अंदर ना घुस पाने की सारी खुन्नस मुझपर उतारते हुए अरुण चीखा....

"मैने क्या तेरे सर मे बंदूक रख कर साथ चलने को बोला था ...तू खुद अपनी मर्ज़ी से आया था..."जब अरुण के ताने वित रेस्पेक्ट टू दा टाइम,लगातार बढ़ते गये तो मैं भी उसपर चिल्लाया"और अब यदि तूने ,मुझे कुच्छ भी कहा तो मैं..."

"तो मैं...क्या,...क्या उखाड़ लेगा बोल.."

"तो मैं...तो मैं...तो मैं...."

"रहने दे तेरे गान्ड मे इतना दम नही है,जो तू मुझे धमका सके..."

"तो मैं अपना वॉलेट नीचे पानी मे फेक दूँगा...जिसमे तेरे ढाई हज़ार रुपये है..."अपनी जेब से वॉलेट निकाल कर मैं पुल के किनारे की तरफ बढ़ा....

"अरे सॉरी यार...मैं तो मज़ाक कर रहा था.तू तो भाई है अपना...आइ लव यू यार...चल एक पप्पी दे इसी बात पे..."

"तेरे गाल को तो मैं अपने लंड से ना टच करू....फिर होंठ से छुने का तो सवाल ही पैदा नही होता..."
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इसके बाद एक-दूसरे को गालियाँ देने का जो सिलसिला चालू हुआ,वो बढ़ते समय के साथ बढ़ता ही गया ,हम तीनो के मन मे जो आता वो हम तीनो एक-दूसरे को पुल पर आगे बढ़ते हुए बके जा रहे थे....
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"अबे चुप..."हमारी सूपरफास्ट गालियों की बौछार को रोकते हुए अरुण बोला"अरमान लंड, मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा है कि...सामने से जो लड़किया आ रही है ,वो वही लड़किया है..जिनसे आज तू बात कर रहा था..."

"हां यार ये तो वही माल है,जिसे तूने अपना 2051 वाला चश्मा एक दिन के लिए उधार मे दिया है..."अरुण के सुर मे सुर मिलाते हुए सौरभ भी बोला....

मैने सामने नज़र मारी तो पाया कि आंजेलीना अपनी उन्ही दो बदसूरत सहेलियो के साथ हँसते-खेलते पुल पर हमारी तरफ चले आ रही थी...
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"कही तुम दोनो वो तो नही सोच रहे जो मैं सोच रहा हूँ... "अरुण और सौरभ को अपने दाँत दिखाते हुए मैने अपनी आँख मारी....

"वो तीनो मान जाएगी क्या..."सौरभ ने अपनी शंका जाहिर की...

"अबे मानेगी कैसे नही...मुझ जैसे स्मार्ट लड़के के साथ तो आंजेलीना जौली भी जोड़ी बना ले फिर तो ये आंजेलीना सिल्वा ही है और भूल मत कि मैने इसे गॉगल उधार मे दिया था..."मैने अरुण और सौरभ को जहाँ खड़े थे,वही खड़े रहने के लिए कहा और चींकी,पिंकी के साथ आ रही सिल्वा डार्लिंग की तरफ बढ़ा....
.
"कल की तरह आज फिर कॅंप से भाग गयी...एक लड़की को ये सब शोभा नही देता क्यूंकी आज कल जमाना बहुत खराब है...कौन ,कब पकड़ ले कुच्छ नही कह सकते..."आंजेलीना के ठीक सामने खड़े होकर मैने उसे छेड़ा"सारे लड़के मुझ जैसे शरीफ नही होते...वैसे जा किधर रही हो..."

"प्लॅटिनम बार..."

"फिर तो वापस अपने कॅंप का रास्ता नापो,क्यूंकी बिना कपल के साले अंदर नही जाने दे रहे...."

"तुम्हे कैसे पता चला और मैं तुम्हारी बात कैसे मान लूँ..."

"तुम्हे क्या लगता है कि मैं और मेरे दोस्त,नया शर्ट-पॅंट पहनकर...तेल-कंघी करके...क्रीम-पाउडर लगाकर ,पुल के दूसरी तरफ बीड़ी पीने गये थे... हम तीनो भी बार से ही आ रहे है और वैसे भी तुम तीनो कोई स्वर्ग की उतरी अप्सरा नही हो जो तुम्हारे साथ कपलिंग करने के लिए हम मर जाए....वो तो हमे बस बार के अंदर जाना है,इसलिए तुम तीनो से कह रहा हूँ..क्यूंकी इधर तुम तीन,उधर हम तीन...."

"मेरे पास बार के अंदर जाने का दूसरा तरीका है..."मुझे रास्ते से हटने का इशारा करते हुए आंजेलीना बोली....

मैं तुरंत सामने से हट गया और ये सोचने लगा कि आंजेलीना का दूसरा तरीका क्या हो सकता है....और जब मुझे कुच्छ-कुच्छ हिंट मिला तो मैं ज़ोर से चिल्लाया...

"गेज़ आंड लेज़्बियन्स आर ऑल्सो नोट अलोड... "

"तुम्हे कैसे क्या पता कि मैं ये सोच रही थी..."जबारजस्ट झटका खाते हुए आंजेलीना पीछे पलटी...

"मैं अंतर्यामी हूँ...मेरी बात मान लो और कपलिंग कर लो...एक बार बार मे एंट्री हो जाए...फिर तुम तीनो अपने रास्ते और हम तीनो अपने रास्ते..."
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आंजेलीना को डिसिशन लेने मे कुच्छ समय तो ज़रूर लगा लेकिन रिज़ल्ट हमारे फ़ेवर मे रहा...वो हां बोलने मे थोड़ा हिचकिचा रही थी और उसने हां बोलने के तुरंत बाद एक शर्त रखी की बार के अंदर जाने के बाद हम सब अलग-अलग हो जाएँगे....

"ऐज युवर विश..."आंजेलीना के पास जाकर मैने अपना फेस उसकी तरफ किया तो वो हड़बड़ा कर पीछे हो गयी...

"डरो मत, किस नही कर रहा...बस कान मे कुच्छ कहना है"

"क्या कहना है..."मुझसे दो कदम और पीछे जाते हुए आंजेलीना घबराई..

"कहा ना कान मे कहना है,और तुम इतनी घबरा क्यूँ रही हो...."

"देखो अरमान ऐसा है कि..."

"कैसा है..."

"तुम तीनो हम तीनो से दस कदम आगे चलना और हम लोग पीछे..नही तो.."आंजेलीना ने अपना हाथ पीछे किया और एक बड़ा सा चाकू मुझे दिखाते हुए बोली"सीधे सीने मे गाड़ दूँगी..."

"तुम मे इतनी हिम्मत नही है..."

"लॅब मे मैने बहुत चीरा-फाडी की है...मैं इन सब कामो मे बहुत एक्सपर्ट हूँ..."

"ठीक है...ठीक है..मैं आगे जा रहा हूँ ,मैं तो बस ये कहना चाहता था कि मेरे दोस्तो को भूल से भी ये मत बताना कि तुमने मुझे आज गॉगल वाले मामले मे मुझे हरा दिया था...वरना मेरे रोल मे होल हो जाएगा..."बोलते हुए मैं आगे बढ़ा"और चाकू जहाँ से निकाला है ,वही घुसा लो..."
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स्कूल मे जब मैं पूरी क्लास मे फर्स्ट आता था तो रिपब्लिक डे के दिन मुझे स्टेज पर बुलाकर मेरे स्कूल का प्रिन्सिपल हमेशा यही कहता कि "मैं पढ़ने वाला स्टूडेंट बिल्कुल भी नही लगता...मतलब कि ना तो मेरी आँखो मे बड़े-बड़े गोल मटोल चश्मे कभी लगे और ना ही कभी मेरी हरकते एक पढ़ने वाले स्टूडेंट की तरह थी....और इसका अश्चर्य मेरे स्कूल का प्रिन्सिपल हमेशा प्रकट करता ,वो भी सबके सामने.....उस समय मैं सबके सामने स्टेज मे खड़ा होकर मुस्कुराता रहता और प्रिन्सिपल के पैर छुकर वापस आ जाता था...लेकिन अक्सर रात को मैं सोने से पहले आईने मे अपनी शकल ज़रूर देखता कि मुझे लोग मेरी शकल देखकर पढ़ने वाला लड़का क्यूँ नही समझते....?

और ऐसा ही कुच्छ अभी-अभी हुआ था...जब मैं आंजेलीना की तरफ बढ़ा तो उसने मुझे मारने के लिए सीधे चाकू ऐसे निकाल लिया, जैसा साला मैं कोई साइको रेपिस्ट हूँ . खैर ,आंजेलीना की इस हरकत से मुझे इतना तो पता चल ही गया था कि वो भी मेरी तरह हमेशा प्लान के साथ चलती है और उसके साथ ग़लत बात करना मतलब अपने पेट मे साढ़े सात इंच का चाकू घुस्वाना है...इसलिए मैं चुप चाप आगे अपने दोस्तो के पास आया और मोबाइल की फ्लश लाइट जलाकर आंजेलीना आंड ग्रूप ,से दस कदम आगे चलने लगा....पुल से बार तक के इस पैदल सफ़र मे मैं एक बार भी पीछे नही मुड़ा,क्या पता साली कब चाकू फेक कर मार दे...लड़कियो का क्या भरोसा......
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"अब पास आउ या यूँ 10 कदम की डिस्टेन्स मे रहकर ही बार मे एंट्री करवानी है...."उखड़े-उखड़े अंदाज मे मैं पीछे मुड़कर आंजेलीना से बोला...

"ओके...आ जाओ.."

आंजेलीना की तरफ से ग्रीन सिग्नल मिलने के बाद मैं अरुण और सौरभ के साथ उन तीनो की तरफ बढ़ा....

"कान खोलकर सुन लो बे लवडो..आंजेलीना के साथ मैं रहूँगा."उन तीनो की तरफ आगे बढ़ते हुए अरुण धीरे से बोला...

"तू रहने दे, वो बहुत तेज़ आइटम है...रेप कर देगी तेरा.उसे मेरे साथ रहने दे..."मैने कहा

"तू चुप कर बे, मेरे सामने सब कम है...तू देखना आज रात बार मे ही वो मुझे आइ लव यू बोल देगी..."

"ठीक है,जैसी तेरी मर्ज़ी...लेकिन क्यूँ ना ये फ़ैसला आंजेलीना डार्लिंग पर छोड़ दिया जाए कि वो किसके साथ जाना पसंद करती है..."मुस्कुराते हुए मैने अरुण की तरफ देखा...

अरुण को भी शायद ये लगने लगा था कि आंजेलीना, उसके साथ ना जाकर मेरे साथ बार के अंदर आएगी...इसीलिए वो अगले पल ही मुझे धिक्कारने लगा...

"साले तू एक एमबीबीएस वाली के लिए अपने दोस्त को धोखा देगा..."

"हां...वो भी एक बार नही सौर बार धोखा दूँगा..."

"तू आज के बाद बात मत करना मुझसे...बोसे ड्के..."
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आंजेलीना की तरफ जाते हुए मैने ये सोच लिया था कि मेरी जोड़ी तो उसी के साथ बनेगी और अरुण, सौरभ उसकी बदसूरत सहेलियो चींकी और पिंकी के साथ रहेंगे....अपनी इसी सोच को सच का रूप देने के लिए मैं आंजेलीना के ठीक सामने खड़ा हो गया इस आस मे कि अब वो अपना कदम आगे बढ़ाएगी और मेरे हाथ मे हाथ डालकर बार की तरफ बढ़ेगी....लेकिन उसने ऐसा नही किया, वो मेरी तरफ आने के बजाय ,सीधे अरुण के तरफ बढ़ गयी और बोली"चलो..."
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08-18-2019, 02:14 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
"तेरी माँ की फिल इन दा ब्लॅंक्स..."जब मेरी अरमानो को ज़ोर का झटका लगा तो मैं खुद पर चीखा...चिल्लाया.लेकिन अब खुद पर चीखने,चिल्लाने से कुच्छ नही हो सकता था,क्यूंकी लड़की तो अरुण ले गया था...और मेरी फूटी किस्मत मे आंजेलीना की बदसूरत फ्रेंड पिंकी फँसी थी.....

आंजेलीना के साथ बार की तरफ जाते वक़्त अरुण बीच-बीच मे पीछे पलट कर मुझ पर हँसता और साइलेंट मोड मे अपना मुँह चलाकर मुझसे कहता कि"मैं,तुझसे ज़्यादा हॅंडसम और स्मार्ट हूँ..."

आंजेलीना ने सच कहा था कि कभी-कभी लंगूर के हाथ मे भी अंगूर लग जाते है .
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"तुम्हारा नाम अरमान है ना..."मेरे हाथ मे अपना हाथ फसाते हुए पिंकी ने अपना मुँह फाडा...

"हां..."दूसरी तरफ देखकर मैने पहले हज़ार गालियाँ उसे दी और फिर हां मे जवाब दिया...

"मेरा नाम पिंकी..."

"कोई फ़र्क नही पड़ता..."

"फ़र्क पड़ता है..ये बताओ मैं तुम्हे कैसे लगती हूँ..."

शुरू मे दिल किया कि उसे अपना गला फाड़-फाड़ कर बताऊ कि वो मुझे एक नंबर की चोदु लगती है..लेकिन इस समय मुझे बार के अंदर जाना था ,जिसके लिए उसका मेरा साथ रहना ज़रूरी था..इसलिए मैने अपने दिल पर हज़ार टन का पत्थर रखकर उसकी बढ़ाई कर दी कि'उससे खूबसूरत लड़की मैने आज तक कही नही देखी...'
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"ओह सच मे..."शरमाते हुए पिंकी ने मेरा दिल और दिमाग़ खाना जारी रखा.वो आगे बोली"लेकिन तुम तो आवरेज दिखते हो..."

"आवरेज... "मैं जहाँ था वही रुक गया और पिंकी की तरफ देखकर उसे बोला"शुक्रिया..."(म्सी ,मुझे आवरेज कहती है..लवडी पहले खुद को देख...मेरे कॉलेज की मेकॅनिकल डिपार्टमेंट की लड़कियो के झान्ट जैसी दिखती है तू...चेहरा तो ऐसे है जैसे अभी-अभी किसी ने मूठ मार कर गिरा दिया हो..बीसी अब चुप हो जा वरना बाल पकड़ कर 360 डिग्री पर घुमा दूँगा...बकल...रंडी..)

"क्या हुआ ,रुक क्यूँ गये...तुम मुझे लाइन तो नही मार रहे ना.."
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"ये ले...अब यही कसर बाकी थी...बोसे ड्के अरुण... ,तू मिल बेटा आज मुझे..."

आर.पिंकी की बकवास सुनते-सुनते आख़िरकार हम लोग एंट्री गेट के पास पहुँचे और मैने चैन की साँस ली कि अब इस आर.पिंकी से छुटकारा मिलेगा...जो बआउनसर्स एंट्री गेट के पास खड़े थे उन्होने अबकी बार हमे नही रोका और 'वेलकम टू प्लॅटिनम बार...' बोलते हुए अंदर जाने का इशारा किया....
.
प्लॅटिनम बार के अंदर आते ही मैने आर.पिंकी का हाथ डोर झटका और वहाँ से तुरंत दूसरी तरफ भागा...ताकि आर.पिंकी मेरे पीछे ना पड़ जाए...आंजेलीना की उस बदसूरत फ्रेंड से छुटकारा पाने के बाद मैने पूरे प्लॅटिनम बार पर नज़र डाली...साला क्या महॉल था..तेज आवाज़ मे बज रहे ड्ज और ड्ज के साउंड पर नाच रही लड़कियो को देखकर दिल झूम उठा....एक पल मे वो सारी परेशानी मेरे जेहन से उतर गयी,जो कि मुझे यहाँ तक आने के लिए झेलनी पड़ी थी और सबसे ज़्यादा खुशी मुझे जिससे हो रही थी वो ये कि बार मे आने का कोई एंट्री फीस नही था

उस बार का रंग ही कुच्छ अलग था..मैने देखा कि वहाँ हर सेकेंड कितने बदलाव हो रहे थे...कयि प्रेमी जोड़े जब तक कर डॅन्स फ्लोर से उतर जाते तो उनकी जगह तुरंत अभी-अभी जोश मे आए दूसरे कपल ले रहे थे...कभी किसी थप्पड़ की गूँज सुनाई देती तो कभी किसी के प्यार के बोल सुनाई पड़ते...दारू के काउंटर भी इस बीच काफ़ी भरा पड़ा था...जब एक टल्ली होकर वहाँ से उठ कर जाता तो दूसरा उसकी जगह टल्ली होने आ जाता और इन सबके बीच ड्ज का मदमस्त म्यूज़िक लगातार मेरे अंदर जोश भर रहा था कि मैं भी वो सब कुच्छ करू ,जो बाकी लोग रहे थे....

और इसकी शुरुआत मैने दारू से शुरू करने का सोचा...
.
"ला भाई कुच्छ पॅक बना..."शराब के काउंटर पर बैठकर मैं बोला...

"जी बोलिए..."

"प्लॅटिनम के 10-12 पेग सीधे बना के दे.."

मेरे द्वारा डाइरेक्ट 10-12 पेग का ऑर्डर मिलने के बाद वहाँ ,मेरे सामने खड़ा वेटर कुच्छ देर तक मेरा मुँह तकने लगा और फिर थोड़ी देर बाद बोला..

"मिक्स क्या करू..."

"थोड़ा सा ठंडा पानी डालना और हर पेग मे दो बर्फ के टुकड़े..."

"ओके सर.."

"और हां...पेग ना तो ज़्यादा हार्ड होना चाहिए और ना ही ज़्यादा लाइट...एक दम पर्फेक्ट होना चाहिए, और यदि तुमसे ना बने तो मुझे दारू देना ,मैं अपना पेग खुद बना लूँगा...."
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"क्या पी रहा है बे..ज़रा मुझे भी तो टेस्ट करा..."मेरे एक साइड बैठकर अरुण बोला...

"तू लवडे चुप ही रह...तेरे कारण उस झट बराबर लौंडी ने मेरा दिमाग़ का दारू बनाकर पी गयी ,साली रंडी...दिल तो कर रहा था कि वही उठा के पटक दूं उसको..."

"ह्म्म...सेम टू सेम फ्लेवर मेरे लिए भी..."वेटर को अरुण ने ऑर्डर दिया...

"अबे तू ,मेरी बात नही सुन रहा..."

"बोल ना,सुन रहा हूँ..."

"घंटा सुन रहा है...चल निकल यहाँ से..."

"चढ़ गयी क्या बे...इधर ढंग से रह,वरना पेलाइ होगी.उन बौंसेर्स के हाथ देखे है ना...साला जितना हमारा थाइ है उतना तो उनका बाइसेप्स है..."मेरी दूसरी साइड मे बैठकर सौरभ ने वेटर से कहा"मेरा भी सेम फ्लेवर रहेगा..."
.
"बिल कितना हुआ..."जब हम तीनो ने पेट भर दारू पी ली तो मैने वेटर से कहा ,जिसके बाद उसने एक सफेद कलर की पर्ची मेरी हाथो मे थमा दी....

"अबे सौरभ...तुझे दिख रहा है क्या की इसमे कितने रुपये लिखे है...मुझे तो दिखना बंद हो गया,ऐसा लगता है..."सौरभ के हाथ मे पर्ची थमा कर मैं बोला"साला ,कुच्छ दिख क्यूँ नही रहा...वापस कॅंप भी जाना है.."

"1860.61 "

"साले चोदु बनाते है कुत्ते, 300 रुपये की दारू 600 रुपये मे बेचते है ये...खैर कोई बात नही,अभी मैं बहुत रहीस हूँ...मेरे पास बहुत पैसा है...तुम तीनो बिल की फिक्र बिल्कुल मत करना,मैं भर दूँगा...भर दूँगा मैं.."कहते हुए मैने अपने पीछे की तरफ लेफ्ट साइड वाली पॉकेट मे हाथ डाला तो मेरा वॉलेट उसमे नही था...

"कमाल है यार...मेरा वॉलेट नही मिल रहा...एक काम करो,तुम लोग मेरे दारू के पैसे दे देना...मैं कल सुबह होते ही दस गुने वापस करूँगा..."

"तेरा वॉलेट तेरे राइट साइड वाले पॉकेट मे है,अकल के अंधे..."

"ओह..सॉरी...सॉरी.."
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मैने वेटर को डाइरेक्ट 2000 रुपये दिए और वहाँ से चलता बना...जिस काउंटर पर बैठकर मैं अरुण और सौरभ के साथ टल्ली हो रहा था,उसी के ठीक सामने बैठने का इंतज़ाम था...

"सिगरेट पिएगा..."अरुण ने मुझसे पुछा...

"अब तो एक बूँद पानी की जगह नही बची है...तुम दोनो पी लो,लेकिन..यहाँ नही...मुझे सिगरेट से आलर्जी है..आइ हेट सिगरेट्स...कुत्तो तुम लोग भी मत पिया करो,वरना तुम लोगो के माँ-बाप क्या सोचेंगे"

"तू बेटा मत पिया कर इतनी और इधर ही रहना ,हम दोनो 5 मिनिट मे आते है..."

"जाओ...जाओ, मैं अभी होश मे हूँ...बस साला आँख बंद हो रही है और किसी को चोदने का मन कर रहा है...एक काम करो तुम दोनो अपना काम निपटा कर आओ फिर मैं तुम दोनो को ठोकुन्गा..."
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08-18-2019, 02:34 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
अरुण और सौरभ के जाने के बाद मैने अपने दोनो हाथ पीछे किए और आराम से बैठकर अपने आस-पास वालो को देखने लगा....

"ये तो आंजेलीना जानेमन जैसी दिख रेली है...पक्का वही होगी, बीसी बहुत उड़ रही है आज कल,अभी इसके पर काटकर आता हूँ.."बोलते हुए मैं अपनी जगह से उठा और जिस जगह आंजेलीना बैठी थी...ठीक उसी टेबल पर उसके सामने जाकर बैठ गया...

दारू पीने से बहुत सारे नुकसान होते है ये मैने कही पढ़ा था ,लेकिन दारू पीने से फ़ायदा क्या होता है ये मुझे मालूम था.दारू पीने के बाद सबसे बड़ा फ़ायदा जो मुझे होता है वो ये कि मुझे फिर किसी का डर नही रहता चाहे वो मेरे थाइ के बराबर बाइसेप्स रखने वाले बार के बाउन्सर ही क्यूँ ना हो....

मैं बेखौफ़ आंजेलीना की तरफ बढ़ा और वहाँ पहूचकर मैने सबसे पहले जो कहा वो ये था कि''क्या मैं यहाँ बैठ सकता हूँ''

"बिल्कुल नही..."

"मैं पुछ थोड़े ही रहा हूँ,मैं तो बता रहा हूँ..."कहते हुए मैने एक चेयर खींची और उसपर बैठकर अपने लड़खड़ाते-डगमगाते शरीर को आराम दिया....
.
"यदि यहाँ एक पल भी और रुके तो मैं तुम्हारी शिकायत कर दूँगी और मेरी शिकायत के बाद तुम्हारा जो हाल होगा...उसकी कल्पना तुम खुद कर सकते हो...इसलिए बेटर यही रहेगा कि तुम...."

"अरे चुप चाप बैठ ना...बाकी लड़कियो के माफ़िक़ बोर क्यूँ कर रही है...."आंजेलीना अपनी धमकी पूरी दे पाती उससे पहले ही मैं उसपर टूट पड़ा...
.
"यहाँ आने की कोई खास वजह...तुम ज़रूर अपना गॉगल लेने आए होगे..."

"ये ले,फिर से पुरानी बातों को लेकर बैठ गयी...गॉगल तू ही रख ले,मेरी तरफ से गिफ्ट समझ कर...."

"फिर यहाँ क्या मुझसे इश्क़ लड़ने आए हो..."रोलिंग आइज़ डालते हुए आंजेलीना बोली..."मैं तुम्हे जानती हूँ ,तुम ज़रूर कुच्छ सोच कर ही आए होगे..."
"सोचकर तो आया हूँ...वो तुम्हारी काली कलूटी फ्रेंड पिंकी कहाँ..."
"ज़रा संभाल कर...वो फ्रेंड है मेरी...वरना..."
"तू फिर धमकी देना शुरू हो गयी...ये सब बद-दिमाग़ लड़कियो की निशानी है..."मैने कहा...
आंजेलीना को बाद-दिमाग़,बोरिंग लड़कियो का एग्ज़ॅंपल देकर मैं इसलिए शांत करा रहा था क्यूंकी अभी वो लड़कियो वाले घिसे-पिटे लहजे मे बात कर रही थी और जब मैने उसे ये सब कहकर रोकता तो वो तुरंत चुप हो जाती और फिर मुझे देखकर कुच्छ सोचने लगती....
"वो दोनो कही गयी है...लेकिन तुम्हे उन दोनो से क्या काम है..."आंजेलीना ने अबकी बार धीरे से कहा....
"ऐसिच लड़किया मुझे बहुत पसंद है ,जो हर काम मे कॉर्पोरेट करती है"बोलते हुए मैने आंजेलीना के सामने टेबल पर रखा पानी का ग्लास उठाया और पूरा गले के नीचे गटक गया....
"बड़ा अजीब टेस्ट है यहाँ के पानी का..."ग्लास वापस टेबल पर रखते हुए मैने अपना मुँह टेढ़ा किया...
"यूवउुुुउउ स्टुपिड...वो मैने झूठा किया था..."
"ऐसा क्या...तभिच मैं सोचु कि पानी का टेस्ट इतना खराब कैसे हो गया...यार कभी-काभ ब्रश भी कर लिया कर और यदि तेरे पास ब्रश खरीदने के लिए पैसे नही है तो मुझसे ले ले...बहुत रहीस हूँ मैं..."

"स्टूऊवप्प्प....वो पानी नही बियर था और बहुत महनगा भी...इसलिए टेस्ट उसका नही तुम्हारे मुँह का खराब है..."आंजेलीना अपने दांतो के बीच जबर्जस्त फ्रिक्षन लाते हुए बोली...

"वो क्या है ना कि अपुन बियर-शियर नही डाइरेक्ट दारू पीता हूँ...इसलिए इन सॉफ्ट ड्रिंक का टेस्ट मुझे नही मालूम....मैने तेरी बियर पी उसके लिए सॉरी...लेकिन फिकर नोट ,मैं एक दूसरी बियर मागाता हूँ...उसका बिल मैं भरुन्गा"
.
"मुझे नही चाहिए बियर...तुम चुप हो जाओ और यहाँ से दफ़ा हो जाओ..."

"इतना गुस्सा क्यूँ होती है..."आंजेलीना के सामने वाली चेयर से उठकर मैं सीधे उसके लेफ्ट साइड मे रखे हुए चेयर पर बैठ गया और बोला"इस बार पक्का बिल मैं भरुन्गा...टेन्षन कैकु लेती है..."

"वो मुझे अच्छी तरह से मालूम है कि बिल मुझे ही देना पड़ेगा,अरमान मैं तुम्हारे तिकड़म से बहुत अच्छी तरह वाकिफ़ हो चुकी हूँ...यू कॅन'ट फूल्ड मी अगेन..."

"सच मे बिल मैं दूँगा...तू चाहे तो मेरा दस हज़ार का मोबाइल सेक्यूरिटी के लिए रख ले,या फिर मेरा वॉलेट..."
.
बोलने के साथ ही मैने अपना मोबाइल, वॉलेट निकाल कर टेबल के उपर रख दिया और वो पहला मौका था जब आंजेलीना मुझे देखकर दिल से मुस्कुराइ थी....मेरी वो हरकत शायद उसे अच्छी लगी थी, खैर ये तो वही बता सकती है कि वो उस वक़्त मुस्कुराइ क्यूँ थी
.
"अंदर रख लो..."वॉलेट और मोबाइल मुझे जेब के अंदर रखने को बोलकर आंजेलीना ने एक बियर माँगाया और हमारी बात-चीत आगे बढ़ी.....
.
शुरू मे आंजेलीना ने एक बियर माँगाया लेकिन बाद मे एक के बाद एक ,तीन बियर की बोतल हम दोनो ने मिलकर खाली कर दी...इस बीच मैं तो नशे के मॅग्ज़िमम लेवेल पर जा पहुँचा था लेकिन आंजेलीना पर थोड़ा ही असर हुआ था, क्यूंकी वो अब भी पूरी तरह खोलकर (दिल ) मेरे सामने नही आ रही थी....

"एक और मँगाऊ क्या..."मैने पुछा...
"नही..अब हो गया...यदि एक बोतल और चढ़ाई तो चल भी नही पाउन्गी..."
"अरे कुच्छ नही होगा...."ज़ोर देते हुए मैने कहा...
"आइ नो माइ लिमिट्स बेटर दॅन यू..सो प्लीज़ कीप क्वाइट..."मुझे घूरते हुए उसने अपने दांतो के बीच फिर से जोरो का फ्रिक्षन फोर्स लगाया....
"तो मत पी ना..इतना भड़क क्यूँ रही है...और एक बात बताऊ..."
"नही...मुझे घर जाना है...आइ मीन कॅंप ."खड़े होते हुए वो बोली...
"मेरे पास बिल पे करने के लिए पैसे नही है...वॉलेट खाली है और मोबाइल मेरे दोस्त का है..."
"व्हाआटतत्त.... "
"सॉरी...लेकिन यहिच सच है "
"अब मुझसे एक लफ्ज़ भी बात मत करना ,मैं सोच रही थी कि यहाँ से जाने के बाद तुम्हारा गॉगल तुम्हे लौटा दूँगी...लेकिन अब सीधे जाकर तोड़ दूँगी..."
"अरे सुन तो...वो गॉगल भी मेरा नही है..."एक और ट्रिक अपनाते हुए मैने आंजेलीना से कहा....लेकिन इस बार उसने मेरी एक भी नही सुनी और वहाँ से सीधे चलती बनी....
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जहाँ मैं बैठा था वो वहाँ से थोड़ी दूर खड़ी होकर चींकी,पिंकी को ढूँढने लगी और जब वो दोनो उसे कही नही दिखी तो उसने अपना मोबाइल निकाला....
"यहाँ क्या कर रहा है बे लोडू..."मेरे अगल-बगल वाली कुर्सियो पर अरुण और सौरभ ने अपना स्थान ग्रहण करके मुझसे कहा"अब बेटा सीधे से कॅंप चलते है...इससे पहले कि कोई लफडा हो जाए..."
"मैं नही जा रहा तुम दोनो जाओ...मैं आ जाउन्गा..."
"ये तो वही बात हो गयी कि लंड खड़ा नही होता और दुनिया का सर्वश्रेष्ट्रा चुदक्कद बनना है...चल बेटा ,चल...वरना अकेले तू आज रात तो कॅंप नही पहुच पाएगा..."
"पहले एक काम करो,तुम दोनो किसको यहाँ से बिना कोई सवाल किए हुए..."
"ऐसे कैसे हम लोग खिसक जाए..."
"अबे जाओ,वरना अभिच मैं सामने वाले मोटू को एक झापड़ मारकर लफडा कर दूँगा...."
"हम दोनो जा रहे है...लेकिन तू कोई लफडा मत करना "अरुण और सौरभ ने मेरे हाथ जोड़े और वहाँ से उठकर दूर एक टेबल पर बैठ गये....
मैने सौरभ और अरुण को वहाँ से खिसकने के लिए इसलिए कहा था क्यूंकी आंजेलीना वापस मेरी तरफ आ रही थी और मैं नही चाहता था कि मेरे खास दोस्त उस खास मौके पर मेरे साथ रहे....
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"क्या हुआ..."आंजेलीना को अपने सामने बैठते देख मैने पुछा....
"चींकी और पिंकी का कही कोई पता नही चल रहा....मोबाइल नोट रीचबल बता रहा है..."
"बजा रहा होगा उनकी कोई...लेकिन साली बड़ी बदसूरत है ,कपड़े ढक कर भी कोई नही बजा पाएगा...फिर...फिर पक्का दारू पीकर कही पड़ी होंगी..."
"यू आर आ बॅड बॉय...किसी के बारे मे इतना बुरा नही कहना चाहिए..."

"दिल पे ना लो सिल्वा जी....."(मुँह मे ले लो...)
.
"अरमान,चल ना लेट हो रहे है..."अरुण फिर से मेरे पास आया और जेंटलमेन वाली स्टाइल मे बोला...

"तू कौन है बे..."

"तेरा बाप..."साइलेंट मोड मे अरुण बोला...

"तू एक काम कर, तू निकल इधर से..मैं 5 मिनिट मे आता हूँ..."

जब अरुण वहाँ से गया तो आंजेलीना की दोनो सहेलिया चींकी और पिंकी ना जाने कहाँ से टपक पड़ी.....

आंजेलीना ने जब उनसे पुछा कि वो दोनो कहाँ थे तो पिंकी ने कहा कि चींकी को वॉमिट हो रही थी इसलिए वो दोनो अभी तक वॉशरूम मे थे....

"अब चलते है...वरना कल की तरह पकड़े जाएँगे..."चींकी का हाथ पकड़ कर आंजेलीना बोली...

"5 मिनिट और रुक जाओ और अपने केयरटेकर से बचने का आइडिया मुझसे लेते जाओ..."मैने बीच मे कहा...."लेकिन वो आइडिया सिर्फ़ मैं सिल्वा जी के साथ शेयर करूँगा ,तब तक तुम दोनो...वो दूर बैठकर मक्खिया मार रहे मेरे दोस्तो के साथ बैठ जाओ...."

"हमे कोई ज़रूरत नही तुम्हारे आइडिया की...भगवान ने हमे भी दिमाग़ दिया है,हम भी सोच सकते है..."

"पहले दिन ही पकड़ा गयी थी तू...याद है...यकीन मान, मैं इस काम मे माहिर हूँ..."

आंजेलीना ने मुझे देखा और फिर मेरे दोस्तो के तरफ इशारा करके चींकी,पिंकी को उधर भेज दिया...
.
आंजेलीना को मैने एक तरक़ीब सुझाई जिसके बाद उसने मुझसे हाथ मिलाया और बाइ कहकर जाने लगी...

"मोर जर्म्ज़ आर ट्रॅन्स्फर्ड शेकिंग हॅंड्ज़ दॅन किस्सिंग...."आंजेलीना जब वहाँ से जाने के लिए पलटी तो मैने विज्ञान का सहारा लिया....जिसके बाद वो वापस मेरी तरफ पलटने को तैयार हो गयी....

"अरमान...तुम बहुत परेशान करते हो, पता नही तुम्हारे दोस्त तुम्हारे साथ कैसे रह लेते है....तुम क्या एक सेकेंड भी चुप नही रह सकते..."

"मैने ग़लत क्या कहा...ठीक ही तो कहा है और तुम मेडिकल फील्ड वाली हो तो तुम्हे ये पता होगा ऐसा मैं सोचता हूँ..."

"तो क्या अब मैं तुम्हे किस करू..."

"इरादा तो मेरा वही था...आगे तुम्हारी मर्ज़ी..."

"क्या तुम्हे पता है कि तुम बहुत बुरे हो..."वापस बैठकर आंजेलीना बोली"मतलब कि तुम एक लड़की को कॉफी हाउस मे ये कहकर खूब खिलाते-पिलाते हो कि तुम बिल पे करोगे...लेकिन बाद मे बिना किसी परवाह के तुम भाग जाते है...क्या वहाँ से भागते वक़्त तुम्हे एक पल भी ख़याल नही आया कि यदि मेरे पास पैसे नही होते तो हमारा क्या अंजाम होता....कहने को तो ये बहुत छोटी सी मज़ाक-मस्ती थी लेकिन हमारी इतने लोगो के सामने बेज़्जती भी हो सकती थी और एक बात कहूँ...टॅलेंट की कद्र हमेशा अच्छाई की राह पर होती है क्यूंकी बुराई के साथ जो टॅलेंट होता है उसे सिर्फ़ धिक्कारा जाता है..."
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आंजेलीना ने काफ़ी अच्छा लेक्चर दिया था ,उसका 'टॅलेंट' वाला डाइलॉग भी सॉलिड था...लेकिन हमारे इरादे तो कुच्छ और ही थे....

"गाँधी जी ने कहा है कि ,हेट दा सीन...नोट दा सिन्नर...और इस हिसाब से तुम्हे मुझसे नफ़रत नही करनी चाहिए और एक किस देकर गुडबाइ बोलना चाहिए..."

"यू नो व्हाट...मैं तुम्हे अब कभी नही भूलूंगी...भले ही तुम्हारी अहमियत मेरी लाइफ मे कुच्छ ना हो,लेकिन इतना तो श्योर है कि मैं तुम जैसे एक लापरवाह लड़के को कभी नही भूलूंगी..."परेशान होते हुए आंजेलीना ने अपना सर पकड़ लिया और अपनी फ्रेंड्स को 5 मिनिट और रुकने के लिए कहा....

"अपना तो एक ही फंडा है सिल्वा जी कि आज के पल को जी लो वरना कल आगे जाकर जब आप पीछे मुड़ो तो इसका पछ्तावा नही होना चाहिए कि जीने के पल तो पीछे छूट गये...."
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"ठीक है,मैं हार गयी...तो अब मैं चलूं..."एक बार फिर से आंजेलीना खड़ी हुई,ताकि वो अपने कॅंप जा सके...लेकिन मैने फिर ऐसा कुच्छ कह दिया,जिसकी उम्मीद ना तो उसे थी और ना ही मुझे.....

"दारू पिया हूँ जानेमन...झूठ नही बोलूँगा. आइ वान्ट टू हॅव सेक्स वित यू "

मेरे साथ सेक्स करने के मेरे प्रपोज़ल ने आंजेलीना के दिल-ओ-दिमाग़ पर गहरा आघात पहुचाया था ,जिसका अंदाज़ा मैं ,मेरे सामने पहली बार नर्वस हो रही आंजेलीना को देखकर लगा सकता था....बीते दिनो जब आंजेलीना से मेरी मुलाक़ात हुई थी ,तब से अभी तक मे वो सिर्फ़ अभी बेज़ुबान लग रही थी....

मेरे उस डिज़ाइर ने आंजेलीना को वापस बैठने के लिए मजबूर कर दिया था. वो कभी मेरे तरफ अपनी उंगली पॉइंट आउट करके मुझे कुच्छ कहना चाहती थी, वो मुझपर जबर्जस्त तरीके से भौकना चाहती थी...यदि उस वक़्त उसके शरीर मे मेरे जितनी पॉवर होती तो मैं जिस टेबल पर बैठा था,वो उसी टेबल को उठाकर सीधे मेरे उपर दे मारती...लेकिन हर बार वो कुच्छ करने का सोचती और फिर शांत हो जाती...इस बीच मैने एक चीज़ जो नोटीस कि वो ये थी कि उसके दांतो के बीच फ्रिक्षन फोर्स वित रेस्पेक्ट टू टाइम इनक्रीस हो रहा था और मुझे डर लगने लगा था कि कही उसके जबड़ो मे लगातार बढ़ते फ्रिक्षन के कारण आग ना लग जाए....
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08-18-2019, 02:34 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
"यू....यू...अरमान...आइ नेवेर...आइ डॉन'ट नो...हाउ डेर यू...रेस्पेक्ट...."ऐसी ही आधे-अधूरे अल्फ़ाज़ अपने गुलाबी होंठो से निकलते हुए वो कभी गुस्से से मुझपर अपनी उंगली पॉइंट आउट करती ,या फिर अपना सर पकड़ लेती...
आंजेलीना बहुत कुच्छ कहना चाहती थी, वो बहुत कुच्छ करना चाहती थी...लेकिन मेरे प्रपोज़ल और मैं इतने दमदार थे कि ना तो वो सही ढंग से कुच्छ कह पा रही थी और ना ही कुच्छ कर पा रही थी....
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उन तनाव भरे पल मे उसकी हालत देखकर मैं भी थोड़ा सा डर गया कि कही वो अपना चाकू निकाल कर मेरा सीना खून से लाल ना कर दे, या फिर अपना सॅंडल उतार कर मेरा सर ना लाल कर दे....प्रॉबबिलिटी तो ये भी थी कि वो बाउन्सर्स के ज़रिए मुझे लाल करवा सकती थी...लेकिन उसने ना तो अपना चाकू निकाला और ना ही अपना सॅंडल...उसने बाउन्सर्स को भी नही बुलाया...वो कुच्छ पल शांत रही और फिर अपनी मस्त-मस्त आँखो मे नरक की अग्नि का मुझे अहसास करते हुए बोली...
"सेक्स और तुम्हारे साथ...कभी नही...यदि तुम मेरे हज़्बेंड भी होते तब भी मैं तुम जैसे चीप लड़के के साथ सेक्स नही करती...."

"श्योर..."मैने आँख मारते हुए पुछा....

"श्योर...इसमे श्योर का क्या मतलब....एक बात तुम अपना नाक,कान,आँख,मुँह...सब खोलकर ध्यान से सुन लो कि मैं तुम्हारे साथ सेक्स नही करूँगी...चाहे तुम अमेरिका के प्रेसीडेंट ही क्यूँ ना बन जाओ...गेट लॉस्ट... "
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20 मिनिट्स लेटर.....
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"ये जगह ठीक रहेगी, यहाँ हमे कोई सात जनम तक नही ढूँढ पाएगा....तुम्हे क्या लगता है..."अंधेरे मे जंगल के अंदर एक जगह पर रुक कर आंजेलीना बोली..."मुझे अब भी खुद पर यकीन नही हो रहा है कि मैने तुम्हारी बात कैसे मान ली..."
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आंजेलीना और मैं इस वक़्त बार से निकालकर घनघोर अंधेरे मे डूबे जंगल के अंदर आ गये थे...आंजेलीना को अपने साथ करने के लिए मनाना बड़ा मुश्किल काम था...लेकिन जब मैने बार मे देखा कि मेरे साथ तीन बोतल पी हुई बियर उसपर असर करने लगी है तो मैने एक से बढ़कर एक डाइलॉग छोड़ा...कुच्छ महापुरषो के कोट्स भी आंजेलीना पर दे मारा...और अंत मे कहा कि' वो आज नही तो कल,किसी ना किसी के साथ सेक्स तो करेगी ही...फिर मेरे साथ करने मे क्या दिक्कत है...'
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आंजेलीना उस समय बार के अंदर मेरी बात तो मान गयी लेकिन मुझे पक्का यकीन था कि यदि उसने पेलमपेल बियर ना चढ़ाया होता तो वो इस वक़्त मेरे साथ इस जंगल मे नही बल्कि अपने दोनो सहेलियो चींकी और पिंकी के साथ अपने कॅंप मे होती....

अरुण ,सौरभ,चींकी और पिंकी को चोदु बनाने मे हम दोनो को कोई खास दिक्कतो का सामना करना नही पड़ा....सबसे पहले मैं अरुण और सौरभ के पास जाकर बोला कि 'आंजेलीना ने ज़्यादा चढ़ा ली है,तुम दोनो निकल जाओ ,मैं आधे एक घंटे मे उसे उसके कॅंप तक छोड़ कर आ जाउन्गा..."

अरुण और सौरभ शुरू मे तो नही माने...लेकिन फिर मैने कहा कि उनका आज का सारा खर्च मैं दूँगा तो वो दोनो तुरंत खुशी के साथ उछल पड़े और बिना समय गँवाए बार से निकल गये....
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अरुण और सौरभ के जाने के बाद आंजेलीना चींकी,पिंकी के पास गयी और उसने उन दोनो से कुच्छ कहा...जिसके बाद वो दोनो भी खुशी से उछल पड़ी और अरुण,सौरभ के पीछे-पीछे चल पड़ी.....
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"सुनकर तुझे अजीब लगेगा पर मुझे शरम आ रही है... "पीछे पलटकर मैने आंजेलीना के फेस पर लाइट मारते हुए बोला...
"नौटंकी कही का..."बोलते हुए वो मेरे पास आने लगी...
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वैसे तो हम दोनो यहाँ चुदाई मचाने आए थे लेकिन अभी तक हम दोनो के बीच गंदे शब्द जैसे की 'लंड ,चूत,गान्ड,दूध...'इन सबका का इस्तेमाल नही हुआ था....बोले तो हम दोनो के बीच मर्यादा की दीवार अब तक कायम थी...पूरे रास्ते भर मैं आंजेलीना से सिर्फ़ उसके बारे मे पुछता रहा ,जिसके बाद मुझे पता चला कि वो 24 साल की है...वो कहाँ रहती है उसने ये भी बताया...
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"कितनी लड़कियो को बर्बाद कर चुके हो इस तरह..."मुझे कसकर पकड़ते हुए आंजेलीना ने पुछा....

"तुम शायद पहली हो..."

"शायद...."

"शायद से मेरा मतलब है कि...एक मिनिट सोचकर बताता हूँ..."कुच्छ देर के लिए मैं फ्लश बॅक मे गया '9थ क्लास मे गाँव की एक लड़की का दूध दबाया था...लेकिन चोद नही पाया...फिर 10थ मे भी एक लड़की की चूत पर हाथ फेरा था...लेकिन इसे उस लड़की को बर्बाद करना नही बोल सकते...उसके बाद 11थ, 12थ मे शरीफी की ज़िंदगी गुज़ारी...और फर्स्ट एअर मे दीपिका मॅम को छोड़ा...लेकिन साली ने मुझे बर्बाद किया ना कि मैने उसे...तो कुल मिलाकर....."

जब सभी आकड़े मेरे सामने आ गये तो मैने अपने हाथ आंजेलीना की कमर से धीरे-धीरे नीचे सरकते हुए उसके सवाल का जवाब दिया"तुम पहली हो..."

"और शायद आख़िरी भी..."अपनी आवाज़ मे परिवर्तन लाते हुए आंजेलीना बोली...

"आख़िरी मतलब...? "

"आख़िरी मतलब ये भी कि आज मैं कुच्छ ऐसा करने वाली हूँ,जिसके बाद तुम ऐसा किसी के साथ नही करोगे...."

इधर आंजेलीना ने अपनी लाइन पूरी की तो वही दूसरी तरफ मेरी कमर मे कुच्छ जोरदार चुभा....और मैं दर्द से चिल्लाते हुए आंजेलीना को दूर झटक कर उसे दूर किया....
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"खून..."मोबाइल की रोशनी अपने कमर पर डालते हुए मैं बड़बड़ाया और फिर आंजेलीना की तरफ मोबाइल की रोशनी डाली..."तेरा दिमाग़ खराब है क्या...चाकू क्यूँ घुसाया ,मर जाता तो..."

"मरे तो नही ना...वैसे भी मुझे अच्छी तरह मालूम है कि किधर चाकू घुसने से इंसान मरता है...मैं तो सिर्फ़ तुम्हे लड़कियो की पॉवर शो कराना चाहती थी...तुमने क्या सोचा कि तुम मुझपर अपनी वो बड़ी-बड़ी फिलॉसोफी झाडोगे और मैं तुम्हारे साथ सोने के लिए तैयार हो जाउन्गी...एक बात गाँठ बाँध लो मिस्टर. अरमान कि लड़किया उतनी भी बेबस या कमजोर नही...जितना तुम उन्हे मानकर चलते हो...मैने तुम्हारे कॉलेज की लड़कियो से तुम्हारे बारे मे पुछा था और तुम क्या हो,उन्होने मुझे अच्छी तरह से बताया....नाउ गेट लॉस्ट और दोबारा मुझसे बात करने की कोशिश भी मत करना...."
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08-18-2019, 02:34 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
शुरू मे तो मैने सबसे पहले अपना शर्ट उतारा और शर्ट को कमर पर बाँधा...फिर सोचा कि अब इस लौंडिया को इसकी करनी की सज़ा दी जाए....मैने आंजेलीना का थोबड़ा पकड़ा और उसके हाथ से चाकू छीन कर दूर फेक दिया....उस दौरान एक बार मेरे मन मे ये भी ख़याल आया कि साली को यही पटक कर जबर्जस्ति चोद दूं...लेकिन अब ना तो मुझे वो पसंद थी और ना ही उसकी खूबसूरती मुझे रास आ रही थी...

मैने उसका थोबड़ा अपने हाथ से दबाया और बोला....

"एक झापड़ मारकर तेरी सारी होशियारी वही घुसा दूँगा ,जहाँ से तू निकली है...सेक्स नही करना था तो सीधा सॉफ मना कर देती ,यहाँ लाकर चाकू घुसाने की क्या ज़रूरत थी...और तूने अपने आप को समझ क्या रखा है बे...जो ऐसा करने का सोचा...शुक्र मना कि मैं हूँ वरना कोई दूसरा होता तो तुझे पटक-पटक कर यही चोदता... यदि तेरा ये चाकू थोड़ा और अंदर घुसता तो मेरा तो उपर का टिकेट कट गया होता...,तुझे क्या,तू तो यहाँ से चुप चाप खिसक लेती... और तू मुझे लड़कियो की पॉवर दिखाना चाहती है तो सुन...यदि मेरा दिमाग़ सटक गया तो तेरे पेट मे घूमा के ऐसा घुसा मारूँगा कि सारी दवाई फिर तेरे पेट का इलाज नही करा पाएगी....और तूने क्या कहा कि मैं आज के बाद तुझसे बात ना करूँ...अरे लवडा आज के बाद यदि मेरी आँखो ने तुझे भूल से भी देख लिया तो मैं अपनी आँखे फोड़ लूँगा....पता नही कहाँ-कहाँ से चली आती है,सौरभ सही कहता है कि इन लड़कियों को हमेशा चोदते रहना चाहिए तभी साली औकात मे रहती है..."बोलकर मैने आंजेलीना को पूरी ताक़त से पीछे धकेला .जिसके बाद उसके नीचे गिरने की आवाज़ आई और साथ मे एक चीख भी सुनाई दी....आंजेलीना ज़ोर से चीखी थी लेकिन फिर भी मैं नही रुका और अपने मोबाइल की रोशनी मे आगे बढ़ने लगा......
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मेरा माथा बहुत गरम था और मैं बिना कुच्छ सोचे समझे आंजेलीना को गालियाँ बकते हुए आगे बढ़ता चला जा रहा था कि ,तभी मुझे आंजेलीना की आवाज़ सुनाई दी....

"क्या हुआ...साली कहीं मरने वाली तो नही...मरने दो ,एमसी इसी लायक है ,बकल..."बड़बड़ाते हुए मैं फिर आगे बढ़ा...

"हेल्प....हेल्प...अरमान..."

"इसकी तो...मरवाएगी ये लवडी इतनी ज़ोर से चीखकर...एक बार देखकर आता हूँ कि क्यूँ ये अपना गला फाड़ रही है..."

जब आंजेलीना की चीखे और तेज़ होने लगी तो मैने वापस जंगल की तरफ टर्न मारा...क्यूंकी मुझे डर था कि यदि उसे कुच्छ हुआ तो लवडा फसूँगा तो मैं ही

"क्या हुआ...क्यूँ इतना भौक रही है..."आंजेलीना के पास पहूचकर मैने रूखी आवाज़ मे उससे पुछा....

"तुम्हे शरम नही आती,एक लड़की को इतनी ज़ोर से धक्का देते हुए...मैं इतनी ज़ोर से गिरी हूँ कि अब खड़ी तक नही हो पा रही..."

"यही बात मुझे चाकू मारते समय सोचा होता तो ऐसा नही होता...अब समझ मे आया कि मुझे कितना दर्द हुआ होगा..."

"आइ'म सॉरी...लेकिन अब मुझे जल्दी से उठाओ...मुझे कॅंप पहुचना होगा...वरना बहुत बड़ी आफ़त हो जाएगी..."
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पहले मैने सोचा कि उसे उसके ही हाल पर छोड़ दूं लेकिन बाद मे ध्यान आया कि अगर इसे कुच्छ हुआ तो जान मेरी ही जाएगी...इसलिए मैने ना चाहते हुए भी अपने दिल पर हज़ार टन का पत्थर रखा और उसे उठाकर कर चुप चाप कॅंप की तरफ बढ़ा....
.
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"आगे बोल बे...रुक क्यूँ गया..."जब मैं रुका तो वरुण बोला...

"थक गया यार ,कहानी सुनते-सुनते...अब नींद आ रही है..."मैं वहाँ से उठा और सीधे बाल्कनी पर पहुच गया....

"मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा है कि तू मुझे एडा बना रहा है..."मुझपर शक़ करते हुए वरुण भी मेरे पीछे-पीछे बाल्कनी पर आ गया...

"अरुण से पुछ ले...यदि तुझे यकीन ना हो तो..."

"अरुण से क्या पुच्छू...वो तो तेरी हां मे हां मिला देगा...साले गे-पार्ट्नर जो ठहरे तुम दोनो...."

"फिर तो एक ही तरीका है ,तुझे यकीन दिलाने का..."बोलते हुए मैने अपना शर्ट उतरा और कमर पर बना हुआ सिल्वा जी के चाकू का निशान वरुण को दिखाया.....

"कमाल है यार...मतलब सच मे उस एमबीबीएस वाली ने तेरे अंदर चाकू पेल दिया था...बहुत डेरिंग लड़की थी वो...यदि वो तेरे कॉलेज मे रहती तो पक्का तुझे सुधार देती. फिलहाल तो ये बता कि फिर आगे क्या हुआ..."

"आगे क्या हुआ ,वो कल...मेरा मुँह दुख रहा है बोलते-बोलते...जा एक पेग दारू ला "

"कॅंप वाला चॅप्टर ख़त्म तो कर दे...प्लीज़ "

"उसके बाद कुच्छ खास नही हुआ...मैं और आंजेलीना साथ-साथ कॅंप मे तो आए ,लेकिन हमने फिर एक-दूसरे से एक शब्द भी नही कहा...कभी-कभी वो मुझे देखती...लेकिन मैने उसे पलट कर देखा तक नही....जिस वक़्त वो अपने कॅंप जा रही थी उस वक़्त उसने मुझसे कहा था कि मैं अपने घर पहूचकर इंजेक्षन लगवा लूँ ताकि घाव सूख जाए...और फिर..."
"और फिर...क्या "
"और फिर वो अपने कॅंप मे लन्गडाते हुए चली गयी...वो आख़िरी बार था जब मैने उसे देखा था...उसके बाद वो मुझे कभी नही दिखी..."
"कभी नही दिखी का क्या मतलब...उसके अगले दिन क्या वो कॅंप से बाहर नही निकली थी क्या..."

"अगले दिन...."बाल्कनी से बाहर देखते हुए मैने कहा"अगले दिन जब मेरी आँख खुली तो उसका कॅंप हट चुका था...मतलब कि एमबीबीएस वाले मेरे आँख खुलने से पहले सुबह-सुबह ही वहाँ से चले गये थे...हमे भी उसी दिन वापस लौटना था...लेकिन हमारे प्लान के मुताबिक़ हम लोगो ने दोपहर को वो जगह छोड़ी और रात के 11 बजते तक वापस कॉलेज पहुच गये....इस दौरान मेरे दिमाग़ मे पूरी तरह से सिर्फ़ और सिर्फ़ आंजेलीना छाइ रही...जिसकी सबसे बड़ी वजह मेरे कमर का घाव तो जो जाते वक़्त आंजेलीना ने मुझे दे दिया था....उस वक़्त भले ही मुझे उसपर गुस्सा आया था लेकिन अब जब भी उस पल को ,उस 24 साल की लड़की को याद करता हूँ तो एक मुस्कान दिल पर छा जाती है और दिल से सिर्फ़ एक ही आवाज़ निकलती है कि 'काश...वो लड़की मेरे कॉलेज मे पढ़ती'..."

चॅप्टर-43:प्लॅन्स आक्टिव अगेन

आंजेलीना के द्वारा दिए हुए ज़ख़्म ने मुझे कुच्छ दिनो तक अपनी चपेट मे पकड़े रखा ,लेकिन घाव ज़्यादा गहरा नही था इसलिए मैं एक हफ्ते के अंदर ही फिट-फट हो गया था...आंजेलीना ने मेरी कमर मे जो चाकू घुसेड़ा था उसकी वजह से मैं कुच्छ दिनो तक बुखार से परेशान रहा...जिसके कारण मैं नेक्स्ट वीक मे कयि दिन कॉलेज तक नही जा सका....मेरे खास दोस्तो ने उस ज़ख़्म के बारे मे पुछा कि मेरी कमर मे ये चोट कैसे लगी...उस वक़्त यदि मैं उनको सच बता देता तो मुझे पूरा यकीन है कि वो सब मुझे धिक्कार्ते इसलिए मैने झूठ बोल दिया कि ' आंजेलीना को अंधेरे जंगल मे पेड़ के सहारे चोद्ते वक़्त पीछे वाले पेड़ का नुकीला हिस्सा चुभ गया था...'
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मेरे इस जवाब के बाद तो मेरे और भी फॅन बन गये और अब तो जूनियर्स अक्सर मुझसे लड़की पटाने की टिप्स भी लेने के लिए आने लगे थे...लेकिन उन फलो को कौन बताए कि मेरा काम तो मेरे हाथ से ही चल रहा है.....
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आंजेलीना के द्वारा दिए गये घाव को पूरी तरह भरने मे कयि हफ्ते लग गये और खुद आंजेलीना मेरे दिल-ओ-दिमाग़ मे कयि महीनो तक छाइ रही...लेकिन फिर जैसे-जैसे दिन बीतता गया आंजेलीना पुरानी किताब की तरह हो गयी थी ,जो अक्सर एक किनारे पर पड़े-पड़े धूल खाती रहती है...ठीक उस धूल खाती किताब की तरह मैने भी आंजेलीना और आंजेलीना की यादों को अपने अंदर दफ़न कर दिया,क्यूंकी आंजेलीना की यादो को ज़िंदा रखने की कोई खास वजह मेरे पास नही थी....
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कॅंप मे जो कुच्छ भी हुआ...उसकी चर्चा पूरे कॉलेज मे तो कुच्छ दिनो तक हुई,लेकिन फिर बाद मे सभी ,सब कुच्छ भूलकर अपने वर्तमान मे जीने लगे...

कॉलेज वापस आकर मैं भी बहुत खुश हुआ था, वैसे तो हमलोग सिर्फ़ तीन दिन के लिए कॉलेज से दूर गये थे,लेकिन मैं खुश इतना था जैसे कि तीन जनम के बाद आज मैं वापस अपने कॉलेज मे आया हूँ...मैं खुश इसलिए भी था क्यूंकी कल से अपनी ज़िंदगी फिर उसी जानी पहचानी नापी-तुली ट्रॅक पर चलने वाली थी और तीन तीनो के बाद फाइनली मैं अपने कॉलेज ठीक-तक तरीके से पहुच ही गया था ,जहाँ 'अरमान' शब्द सिर्फ़ मेरा नाम नही, बल्कि एक ब्रांड था...वो भी नंबर.1 ब्रांड
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फोर्त सेमेस्टर मे मैं 12 सब्जेक्ट्स के एग्ज़ॅम देकर थर्ड एअर मे आया था. इसलिए मेरा विचार तो यही था कि जैसे मस्ती भरी ज़िंदगी मैने शुरू के दो साल मे बिताए थे ,वैसे ही बाकी के दो साल भी गुज़ारुँगा...लेकिन थर्ड एअर मे आते ही मुझे खुद लगने लगा कि 'लवडा इसके बाद सिर्फ़ एक साल और बचा है और यदि अब सीरीयस नही हुए तो फिर पूरी ज़िंदगी सीरीयस रहना पड़ेगा...इसलिए बाकी सब चुतियापे को साइड करके सिर्फ़ और सिर्फ़ पढ़ाई पर ध्यान देते है....'
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अपने इसी सोच को सच की शक्ल देने के लिए मैने थर्ड एअर की शुरुआत मे कुच्छ प्लॅन्स बनाए थे लेकिन तीन दिनो की कॅंप की मस्ती और एश के करीब आने की चाह मे मैने अपने ही प्लॅन्स की गान्ड मार ली थी...

कॅंप मे जाने का मेरा जो प्रमुख उद्देश्य था,वो तो पूरा नही हुआ...उल्टा लेने के देने पड़ गये,वो अलग....

कॅंप से वापस आने के बाद मैने अपने बॅच के लौन्डे-लौंदियो मे एक जबरदस्त उत्साह देखा...और वो उत्साह 'गेट' के एग्ज़ॅम के लिए था...साला जिसे देखो वही गेट के लास्ट एअर के कटफ ,कॉलेजस के बारे मे बात करता था...कोई 'मेड ईज़ी' के गाते के नोट्स खरीद रहा था तो कोई इंटरनेट से सिर्फ़ और सिर्फ़ स्टडी मेटीरियल डाउनलोड कर रहा था....जिधर देखो ,उधर कॉंपिटेटिव एग्ज़ॅम्स का साया दिखता था...तब मुझे अहसास हुआ कि इन सबमे मैं कही पीछे छूट रहा हूँ...क्यूंकी ना तो मैने दूसरो की तरह किसी नामी-गिरामी कोचिंग क्लासस के नोट्स लिए और ना ही मैने गेट , कॅट की कोचैंग क्लासस जाय्न की....इन सबके आलवा मैं जब भी गूगल महाराज के दर्शन करता तो सिर्फ़ और सिर्फ़ पॉर्न वीडियोस और मूवी डाउनलोड करता....कॅंप के बाद की कॉलेज लाइफ ने मुझे बहुत डरा दिया था...मुझे अब सपने मे एश के साथ-साथ ,गेट एग्ज़ॅम के मनगढ़त एग्ज़ॅम सेंटर दिखने लगे थे...और जब ये डर मेरे अंदर बढ़ता गया तो मैने भी देल्ही से गेट के नोट्स मॅंगा लिया और नेक्स्ट सेमेस्टर से गेट की कोचैंग जाय्न करने का फ़ैसला किया.....
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08-18-2019, 02:34 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
मेरा डर मुझपर इस्कदर हावी नही होता यदि हमे मोटीवेट करने के लिए तरह-तरह के सेमिनार आयोजित नही किए जाते तो...सेमिनार मे लेक्चर देने वालो को कॉलेज मे इसलिए बुलाया जाता था ताकि स्टूडेंट्स मोटीवेट हो...लेकिन साला मुझपर तो उन सेमिनार्ज़ का उल्टा ही असर हो रहा था क्यूंकी पहले पूरे टाइम सिर्फ़ और सिर्फ़ टॉपर्स की बाते करते थे...एग्ज़ॅम मे धक्के-मुक्के लगाकर पास होने वाले मुझ जैसे स्टूडेंट्स के लिए सेमिनार मे लेक्चर देने वालो के पास कुच्छ नही था ,इस कारण जब भी कोई सेमिनार ख़त्म होता तो एक सवाल मैं हर बार खुद से पुछ्ता कि'एक साल बाद मेरा क्या होगा ?'
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मेरा दिमाग़ पूरे सेमिनार बस उन महापुरषो को गाली देने मे गुज़रता ,जो बीसी हम जैसे स्टूडेंट्स की बात ही नही कर रहे थे....हर सेमिनार की शुरुआत कुच्छ जाने-पहचाने या फिर कहे कि कुच्छ बेहद ही घिसे-पिटे सवाल से शुरू होती थी....जैसे कि 'आपने इंजिनियरिंग फील्ड क्यूँ चुना'
.
और एक सेमिनार के दौरानी यही सवाल तलवार बनकर मेरा गला काटने को तैयार हुआ. आक्च्युयली हुआ कुच्छ यूँ था कि एक सेमिनार की स्टार्टिंग मे बढ़िया सूट-बूट पहने एक आदमी ने मेरी तरफ इशारा किया और मुझसे पुछा कि'तुमने अपने करियर के लिए इंजिनियरिंग फील्ड ही क्यूँ चुना '
.
अब बीसी ,मेरी फट के हाथ मे आ गयी ,क्यूंकी क्लास मे खड़े होकर बक्चोदि भरे जवाब देना अलग बात थी और यहाँ इतने लोगो के बीच कुच्छ बोलना अलग बात थी...शुरू-शुरू मे मैने सोचा कि रनछोड़ दास छान्छड की तरह मैं भी ये कह दूं कि'सर,मुझे बचपन से मशीनो से प्यार था...........' .लेकिन फिर बाद मे सोचा कि इस साले ने भी तो '3 ईडियट्स' देखी होगी...कही लवडा इन्सल्ट ना कर दे....
.
"कमोन, सबको बताओ कि तुमने इंजिनियरिंग करने का फ़ैसला क्यूँ किया...घरवालो ने मैथ दिला दिया इसलिए इस लाइन पर आए या फिर बाइयालजी पल्ले नही पड़ती थी...इसलिए इधर टपक पड़े..."जब मैं चुप-चाप खड़ा था तो सेमिनार के प्रमुख वक्ता ने मेरी खीचाई की....

"मैने इंजिनियरिंग को एक अच्छी नौकरी के लिए चुना, एक अच्छी लाइफ के लिए चुना, अच्छे पैसे के लिए चुना और इन सबसे बड़ी वजह मैने इंजिनियरिंग, एक अच्छी लड़की के लिए चुना...."मुझे उस वक़्त जो सूझा वो मैने फटाफट बोल दिया...

"गुड...यही एम मेरा भी था ,सिट डाउन.."
और फिर मैं पूरे शान-ओ-शौकत के साथ बैठा....एक बात जो बतानी ज़रूरी है वो ये कि मेरा डर सिर्फ़ मेरे तक ही सीमित था ,बाकियो के लिए मैं पहले वाला ही घमंडी और मार धाड करने वाला अरमान था...यानी कि मेरा आटिट्यूड, मेरा रुतबा जो कॉलेज मे पहले था वो मेरे अंदर डर के इस घने भूचाल के बाद भी कायम था....क्यूंकी मेरे कॉलेज मे 'अरमान' शब्द सिर्फ़ एक नाम नही बल्कि एक ब्रांड था ,वो भी नंबर.1 ब्रांड
.
इस बीच हमारे लास्ट सेमेस्टर के रिज़ल्ट आए और हर बार की तरह इस बार भी यूनिवर्सिटी मुझपर मेहरबान दिखी...लेकिन हद तो तब हो गयी,जब मैने देखा कि मैं पूरे के पूरे 12 सब्जेक्ट्स मे पास हो गया था...बोले तो आइ वाज़ वेरी हॅपी
मेरे इस रिज़ल्ट से सबको बहुत जोरदार झटका लगा, मेरे चाहने वाले जहाँ इस जोरदार झटके से अति-प्रसन्न थे वही मुझसे नफ़रत करने वालो को मेरे एग्ज़ॅम के रिज़ल्ट ने ऐसा झटका दिया था कि उनकी सिट्टी पिटी गुम हो गयी थी और कॉलेज मे मेरी टीआरपी मे जबर्जस्त बढ़ोतरी हुई थी....और मैं...मैं तो खुश ही होऊँगा ना,भला पास होकर कोई दुखी होता है क्या
.
मेरे सीपीआइ अब चार सेमेस्टर के बाद 7.5 टच कर चुका था और मेरे रिज़ल्ट ने मुझे दोबारा से अपने प्लॅन्स को आक्टीवेट करने के लिए मजबूर किया...और मैने बिना किसी देरी के अपने प्लॅन्स ,जो कि कॅंप मे जाने के कारण टूट कर बिखर गये थे, उन्हे दोबारा जोड़ा और आक्टीवेट किया....उस सेमेस्टर मैने पेलाम पेल पढ़ाई तो नही की लेकिन फिफ्थ सेमेस्टर के एग्ज़ॅम मेरे अब तक के इंजिनियरिंग लाइफ मे सबसे अच्छे बीते थे और ये फर्स्ट टाइम था,जब मैं अपना सीना ठोक कर बोल सकता था कि 'किसी का बाप भी मुझे फैल नही कर सकता...चाहे कोई कितना भी हार्ड कॉपी चेक करे '
.
"अरमान ,लंच के बाद क्लास बंक करके मूवी देखने चलेंगे..."चलती क्लास के बीच मे अरुण ने एक कागज पर ये लिखा और मेरी तरफ कागज का टुकड़ा सरकाया....
मन तो मेरा भी था कि मूवी देखने चला जाए ,क्यूंकी ये तो 6थ सेमेस्टर की शुरुआत है और थोड़ी बहुत मस्ती तो चलती रहती है...लेकिन तभी मेरे 1400 ग्राम के दिमाग़ ने प्लान नंबर.4 का

अरुण से पहली बार मेरी दोस्ती कॉलेज मे हुई थी और दूसरी बार यहाँ नागपुर मे...अरुण जिस दिन से नागपुर आया था,उसी दिन से मुझे मालूम था कि एक दिन वो हँसते-मुस्कुराते मुझे 'गुड बाइ' कहेगा और चला जाएगा.

और आज 7 दिन तक नागपुर मे रहने के बाद अरुण जा रहा था,लेकिन उसने अभी तक मुझे 'गुड बाइ' नही कहा था.जब मैं मैं और वरुण ,अरुण को रेलवे स्टेशन तक छोड़ने जा रहे थे तब वो पूरे रास्ते खुद को बहुत कूल,बिंदास दिखा रहा था.वो ऐसा बर्ताव कर रहा था,जैसे की उसे मुझसे दूर जाने मे कोई फ़र्क नही पड़ रहा है....लेकिन हक़ीक़त तो कुच्छ और थी..........
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"वरुण ,तू एक काम कर,जाकर टीसी को पकड़ और मथुरा तक की टिकेट जुगाड़ कर...."जिस प्लॅटफॉर्म पर ट्रेन खड़ी थी वहाँ पहुचते ही मैने वरुण से कहा...

"मैं भी यही सोच रहा था..."मुझे दाँत दिखाते हुए वरुण टिकेट का जुगाड़ करने चला गया....

वरुण के जाने के बाद मैने अरुण की तरफ देखा और बोला"दुआ कर लवडे कि टिकेट का जुगाड़ हो जाए,वरना जनरल डिब्बे मे तो तू चुदा...."

"ट्रेन मे भीड़ देखकर मुझे अब ऐसा लग रहा है कि मुझे यहाँ आना ही नही चाहिए था...साला मैं दो ही चीज़ो से डरता हूँ ,पहला एग्ज़ॅम के रिज़ल्ट से और दूसरा ट्रेन की भीड़ से...."

"रो मत,जुगाड़ हो जाएगा...वैसे तूने सही कहा कि तुझे यहाँ नही आना चाहिए था..पूरे 7 दिन तक तूने मुझे बोर किया...मेरा दिमाग़ खाया..अब जब तू जा रहा है तो आइ आम वेरी हॅपी...."

"ज़्यादा बोलेगा तो यही पर शाहिद कर दूँगा....."

"मज़ाक कर रहा था जानेमन...दिल पे मत ले, कही और ले..."

"घुमा के अपने पिछवाड़े मे ले ले...ये डाइलॉग बाज़ी अपुन से नही.... "ये बोलते वक़्त अरुण को अचानक कुच्छ याद आया और वो टपक से बोला"जानता है बे, मैं जहाँ काम करता हूँ...वहाँ अपने साथ वालो को कॉलेज के दिनो के डाइलॉग मार-मार कर छोड़ देता हूँ....अभी कुच्छ हफ़्तो पहले की बात है, मेरे साथ जाय्न हुए एक लौंडा मुझसे किसी टॉपिक पर बहस कर रहा था तो मैने उसे कहा कि 'म्सी, दिमाग़ खराब मत कर...वरना एक बार लंड फेक के मारूँगा तो तेरा पूरा खानदान चुद जाएगा तेरा'....जानता है उसके बाद क्या हुआ..."

मैने अपनी गर्दन दो बार ना मे हिला दी और जमहाई लेकर अरुण को इनडाइरेक्ट्ली बताने लगा कि मैं उसकी बकवास मे इंट्रेस्टेड नही हूँ.....

"उसके बाद से साला मुझसे बात ही नही करता...बीसी ,चूतिया "
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इसके बाद मैं चुप ही रहा लेकिन अरुण को हर दो मिनिट के बाद एक दौरा पड़ता और वो ऐसी ही घिसी-पिटी कहानी मुझे सुना रहा था....
मैं वैसे तो उसकी बकवास सुनना नही चाह रहा था लेकिन साथ मे मैं ये भी चाहता था कि वो ऐसी ही बाते करके चला जाए...मैं चाहता था कि वो , वो सब बाते ना करे जिसके बारे मे मैं उससे बात नही करना चाहता था....लेकिन साले ने जाते हुए आख़िरकार मेरी दुखती नस को दबा ही दिया....
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"अरमान,याद है तूने एक बार कहा था कि तू मूवी इसलिए देखता है ताकि यदि तेरी लाइफ मे कभी वैसी प्राब्लम आए तो तू वैसी ग़लती ना करे जो मूवी के कॅरेक्टर्स ने की थी...."

"कहा था...तो ? "

"फिर तूने वैसी ग़लती क्यूँ की..."

"मैं कुच्छ समझा नही..."दूसरी तरफ देखते हुए मैने कहा ....

"तुझसे अच्छा कौन समझ सकता है इस बारे मे....मैं एश के बारे मे बात कर रहा हूँ..."

"डेड टॉपिक्स पर मैं फालतू की डिस्कशन नही करता..."अरुण की तरफ देख कर मैने कहा"और तुझे ये बात जितनी जल्दी समझ मे आएगी उतना ही ठीक रहेगा...."

"किसी को नज़र अंदाज़ करने से वो ख़त्म नही हो जाती...और यदि एश तेरे लिए डेड टॉपिक ही है तो आज तक तेरे मोबाइल मे उसके द्वारा तीन-तीन डिफरेंट लॅंग्वेज मे बोले गये ,आइ लव यू...वाला वीडियो अभी तक क्यूँ है..."

अरुण ने मेरा मुँह बंद कर दिया था ,मुझे अब कुच्छ नही सूझ रहा था कि उससे क्या कहूँ और मैं अपने होंठो के भीतरी भागो को अपने दाँत से चबाने लगा....

"तू मुझसे गले मिलकर जाएगा या फिर मुझसे लात-घुसे खाकर...."मैने हँसते हुए कहा....

"तू वक़्त बेवक़्त सिचुयेशन के अकॉरडिंग आक्टिंग बहुत अच्छी कर लेता है...लेकिन मेरे सामने नही...इसलिए अब हसना छोड़ और जवाब दे"

"अरुण....."कुच्छ देर रुक कर मैने आगे कहा"लड़कियो को लेकर,मेरा फंडा हमेशा क्लियर था कि यदि लड़की दूर जा रही है तो फिर उसे पाने के लिए अपना जी-जान लगा दो या फिर उसे भूल जाओ....8थ सेमेस्टर के बाद ,जब एश मेरी ज़िंदगी से चली गयी तो मैने दूसरा रास्ता चुना...क्यूंकी वही रास्ता मुझे आसान लगा...लेकिन....बाद मे मुझे पता चला कि मैं 8थ सेमेस्टर के बाद चाहे कोई सा भी रास्ता चुनता ,वो ग़लत ही होता क्यूंकी मेरी मंज़िल ही ग़लत थी....और यही हुआ..."

"कोई रास्ता ग़लत नही होता,अरमान..हर रास्ता हमे किसी ना किसी मंज़िल से जोड़ता ही है...अब तू अपने दूसरे रास्ते को ही देख ले, एश की जगह तुझे निशा मिल गयी..."
"निशा....लेकिन..."
"लेकिन-वेकीन कुच्छ नही...बस तू अपने दिल मे निशा को एश की जगह रीप्लेस्मेंट कर दे...और हमारा प्रोफेशन भी तो वही है कि जब किसी मशीन मे कोई पार्ट खराब हो जाता है तो हम उस खराब पार्ट का शोक मनाने की बजाय ,दूसरे पार्ट से रीप्लेस्मेंट कर देते है...."

"पर मैं कोई मशीन नही..."

"अबे मान ले ना की तू मशीन है..ठीक उसी तरह जैसे ज़िंदगी भर हम हर सवाल मे 'X' को मानते आए है...."

"काफ़ी अच्छे-अच्छे डाइलॉग्स मारने लगा है तू...."अरुण के सामने अपने हथियार डालते हुए मैने कहा...
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"तू जानता है...आज मैं बहुत खुश हूँ, क्यूंकी मैने पहली बार तुझे मुँह-चोदि मे हरा दिया लेकिन मैं दुखी भी हूँ क्यूंकी वरुण अभी तक नही आया और ट्रेन की भीड़ देखकर मेरा खून सूख रहा है...."

"चिंता मत कर मैं यूनिवर्सल डोनर हूँ....ब्लड डोनेट कर दूँगा तुझे...."
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अरुण ने घड़ी मे टाइम देखा और उदास भरी निगाह मुझपर डाली. ट्रेन को छूटने मे अब सिर्फ़ 20 मिनिट्स ही बाकी थे कि तभी पसीने से नाहया हुआ मेरा रहीस दोस्त वरुण मुझे प्लॅटफॉर्म पर आते हुए दिखाई दिया...

मुझे नही पता कि वरुण ने इतनी भाग दौड़ कभी खुद के लिए भी की होगी या नही...लेकिन वो आज मेरे सबसे खास दोस्त के लिए इधर से उधर भाग रहा था...तब मुझे लगा कि ज़िंदगी की यही छोटी-छोटी घटनाए वास्तव मे हमारी संपत्ति होती है,जिसे हमे कभी नही खोना चाहिए.....

अरुण के लिए टिकेट का जुगाड़ हो गया था और उसके जाने के बाद जब मैं और वरुण वापस अपने रूम की तरफ आ रहे थे...तो वरुण ने कार ड्राइव करते हुए मुझसे पुछा....

"यार, सेवेंत सेमेस्टर तक की कहानी तो तूने सुना दी...लेकिन विभा मॅम को तो तूने अभी तक नही चोदा ....साले कितना आलसी था तू "

"पर यही सच है...किसी के पसंद करने या ना करने से मैं अपनी कहानी नही बदलने वाला..."

"ओके बेबी...8त सेमेस्टर का थोड़ा इंट्रोडक्षन दे दे...बोले तो ट्रेलर दिखा दे थोड़ा..."

"अभी नही...पहले मैं निशा से मिलिंगा और फिर बाद मे 8थ सेमेस्टर पर पहुचूँगा....साला दिल बहुत उदास है,अरुण के जाने से..."
"वरुण एक काम कर..."जब कार कॉलोनी के अंदर घुसी तो मैने वरुण से कहा....
"बोलो मालिक..."
"तू अपना मोबाइल मुझे दे...कुच्छ इंपॉर्टेंट काम है..."
"घंटा इंपॉर्टेंट काम है...तू ज़रूर उसे कॉल करने के लिए मुझसे मोबाइल माँग रहा है..."
मैने सोचा कि वरुण मज़ाक मे घंटा-वंता कर रहा है ,इसलिए मोबाइल लेने के लिए मैने अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाया ,लेकिन वरुण ने मुझे अपना मोबाइल देने की बजाय...मेरे हाथ को दूर झड़क दिया....
"चोदु है क्या..."
"मुझे एक आर्तिकल लिख कर कुच्छ दिनो मे सब्मिट करना है, और मुझे मेरे मोबाइल की ज़रूरत पड़ सकती है..."
"मैं लिख दूँगा...लेकिन अभी मुझे अपना मोबाइल दे..."
"शकल देखी है, बड़ा आया आर्टिकल लिखने वाला....बेटा वहाँ म्सी, बीसी ,बकल,मकल नही लिखना होता,जिसमे तू माहिर है..."
"आइ कॅन डू एवेरितिंग इन एवेरी फील्ड "
"समझा कर...नही तो मुझे मोबाइल देने मे क्या प्राब्लम होती...."
"प्राब्लम ये है कि मेरा दिल उदास है...जो तू नही समझ रहा...मोबाइल दे दे वरना यही पर शाहिद कर दूँगा...."
"सॉरी...."
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"यदि तू मुझे अपना मोबाइल देगा तो तुझे मैं ये बताउन्गा कि दीपिका मॅम अभी कहाँ है...और वैसे भी तू अपना काम आधे घंटे बाद शुरू करेगा तो तुझपर कोई आसमान नही गिरेगा....."

रंडी.दीपिका का सहारा लेते हुए मैने वरुण से कहा,क्यूंकी जब दीपिका का टॉपिक चल रहा था तो वरुण दीपिका मॅम पर कुच्छ ज़्यादा लार टपका रहा था....इसलिए मैने सोचा कि शायद दीपिका के बारे मे आगे जानने की उत्सुकता उससे मेरा काम करा दे...साला मैं इतना होशियार कैसे हूँ

"मुझे कोई फ़र्क नही पड़ता कि र.दीपिका इस वक़्त कहाँ मरवा रही है...और वैसे भी आइ लव माइ प्रोफेशन मोर दॅन गर्ल्स... "
"ठीक है प्रोफेशन लवर, फिर कार यही रोक मैं कुच्छ चहल कदमी करके आता हूँ....लेकिन एक बात याद रखना कि दीपिका के बारे मे तुझे कभी कुच्छ नही मालूम चलेगा.मैने सोचा था कि तू ये जानने के लिए बेकरार होगा कि कॉलेज से बट्किक करके निकली गयी दीपिका के साथ क्या-क्या हुआ...वो किस-किस से मिली, उसने कैसे-कैसे काम किए...ईवन मैं तुझे उसकी बिकनी मे फोटो तक दिखा सकता हूँ...खैर जब तू इंट्रेस्टेड ही नही है तो कोई बात नही,अपना क्या...कही ना कही से जुगाड़ कर ही लूँगा.तू नही तो कोई और सही..."कार से निकलते वक़्त बेरूख़ी से मैने कहा....
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08-18-2019, 02:35 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
मेरी बेरूख़ी और दीपिका मॅम को देखने की वरुण की चाह काम कर गयी....मैं अभी थोड़ी ही दूर आगे आया था कि वरुण ने कार आगे बढ़ा कर मेरे बगल मे रोक दी...

"अब जा ना लवडे,अपना आर्टिकल पूरा कर...यहाँ क्या मरवाने आया है..."वरुण को धिक्कार्ते हुए मैने अपना सीना ताना और बड़बड़ाते हुए आगे बढ़ा"जब मोबाइल नही था तब भी लौन्डे ,लौन्डियो से मिलने जाते थे...जब उन्हे कोई डर नही था तो फिर मुझे काहे का दर...दाई चोद दूँगा निशा के बाप की यदि साला बीच मे आया तो..."

"ओये रुक...."

"चूस..."

"अरमान रुक बे..."

"मन तो नही है तेरा मोबाइल लेने का लेकिन जब तू मुझसे इतनी मिन्नतें कर ही रहा है तो...ला दे मोबाइल,तू भी क्या याद रखेगा कि किस महान पुरुष से पाला पड़ा था..."

"मैने कब कहा कि मैं तुझे मोबाइल देने के लिए रोक रहा हूँ...और साले मैने मिन्नत कब की तेरे सामने...."कार से निकल कर वरुण मुझे धक्का देते हुए बोला....

"बेटा,मैं आसमान मे उड़ती हुई चिड़िया को देखकर ये बता सकता हूँ कि वो अब किस तरफ मुडेगी...फिर तू चीज़ ही क्या है...और यदि तुझे मुझे मोबाइल नही देना होता तो ,मोबाइल तेरे जेब मे होता ना कि तेरे हाथ मे..."

मेरे इस वर्ड वॉर से वरुण ने अपना मोबाइल वाला हाथ पीछे करते मुझसे कहा कि उसने मोबाइल टाइम देखने के लिए निकाला था....

"ये ले...इसका मतलब तो यही हुआ कि तू न्यूटन को ग्रॅविटी और आइनस्टाइन महोदय को रेलेटिविटी पढ़ा रहा है,वो भी कॉमर्स का होकर....तेरे हाथ मे बँधी घड़ी क्या खराब हो गयी है जो तूने टाइम देखने के लिए मोबाइल निकालने का कष्ट किया....अब सीधे से मोबाइल मुझे दे और यहाँ से चलता बन...बोर मत कर..."
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इसके बाद वरुण की और कुच्छ बोलने की हिम्मत नही हुई, वो मेरे द्वारा अपनी इस घोर बेज़्जती पर गुस्सा तो बहुत था...लेकिन वो अब जान गया था कि आगे कुच्छ बोलने का मतलब ,खुद की और भी बेज़्जती कराना था...इसलिए वरुण अपने सारे गुस्से को दारू की तरह पी गया और चुप चाप मोबाइल मुझे देकर कार के अंदर गया, कार स्टार्ट की और स्लोली-स्लोली वहाँ से जाने लगा.....तभिच मैने सोचा कि जब लपेटे मे इसे ले ही लिया है तो पूरा नंगा किया जाए...क्यूंकी क्या पता दोबारा ऐसा मौका कब आए, इसलिए मैने वरुण के अंदर की आग भड़काने के लिए ज़ोर से चिल्लाया....
"सुन बे, खाना बना कर रखना...वरना इस महीने की पगार नही दूँगा..."

मेरे इन शब्दो ने वरुण के तपते जिस्म मे घी का काम किया और वरुण तुरंत जल उठा...उसने अपनी कार रोकी और बाहर निकल कर दौड़ते हुए मेरे पास आया....

"गान्ड मे बॅमबू डालकर एक लाख आर.पी.एम. की स्पीड से घुमाउन्गा...."

"ऐसा क्या...ले फिर आर.पी.एम. का फुल फॉर्म बता ,बेटा इंजिनियर के साथ रहकर कोई इंजिनियर नही बन जाता...इंजिनियर बनने के लिए चार साल तक टापना पड़ता है,तब ये काबिलियत आती है...तेरे जैसा कॉमर्स सब्जेक्ट का लौंडा ये नही समझ सकता"बोलते ही मैं वहाँ से भाग खड़ा हुआ,क्यूंकी मुझे मालूम था कि यदि एक पल और मैं वहाँ खड़ा रहता तो मेरा मर्डर हो जाता....
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वरुण के पास से खिसकने के बाद मैं निशा के घर से थोड़ी दूर पर आकर रुक गया और नंबर. डाइयल किया.....
मैने कयि बार कोशिश की ,लेकिन निशा थी कि फोन उठाने का नाम ही नही ले रही थी,...

"इसकी तो...फिर इसे मोबाइल देने का फ़ायदा ही क्या हुआ,जब टाइम पे बात ही नही होनी है तो...."मोबाइल से बात करते हुए मैने कहा और कॉल लोग मे जाकर निशा के नंबर के नंबर पर मोबाइल की हरी बत्ती दबा दी....लेकिन नतीजा इस बार भी पहले वाला ही रहा...घंटी तो जा रही थी लेकिन मेरी घंटी(निशा ) कॉल रिसीव ही नही कर रही थी...इसके बाद मैने 5-6 बार और ट्राइ मारा और जब कोई कामयाबी नही मिली तो किसी थके -हारे हुए इंसान की तरह निशा के घर की तरफ देखा...तो मुझे निशा के घर के बाहर दो कार खड़ी दिखाई दी और जहाँ तक मैं जानता था ,वो दोनो कार मेरे ससुराल वालो की नही थी...यानी कि निशा के घर मे कोई बाहरी आदमी आया हुआ था और कार देखकर ही लग रहा था कि साला बहुत रहीस होगा.....
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अब जब ये क्लियर हो गया की निशा के घर मे कयि बाहरी लोग है तो दिमाग़ ने ये भी थियरी बना डाली कि निशा ,ज़रूर उन्ही लोगो के सामने होगी ,इसीलिए वो मेरा कॉल रिसीव नही कर रही है....लेकिन अब सवाल ये पैदा हुआ कि निशा के घर आया कौन है....

शुरू मे सोचा कि चलकर निशा के घर की रखवाली करने वाले गार्ड से बातो ही बातो मे पुच्छ लिया जाए,लेकिन फिर जब ढंग का कुच्छ नही सूझा तो मैने अपना इरादा टाल दिया....

"कही साला डेविड और उसकी फॅमिली तो नही आई है..."एका-एक मेरे 1400 ग्राम के भेजे मे ये ख़याल कौधा और फिर ये ख़याल बीत रहे हर सेकेंड्स के साथ प्रबल होता गया...

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निशा के घर के बाहर खड़ा मैं ,यही सोच रहा था कि यदि सच मे डेविड और उसके परिवार वाले ही अंदर होंगे तो फिर मुझे जल्द से जल्द कुच्छ सोचना पड़ेगा...वरना निशा हाथ से निकल जाएगी...

"हां बोल डायन...किस पर जादू टोना कर रही थी...जो मेरा फोन नही उठाया..."निशा ने कुच्छ समय बाद खुद मुझे कॉल किया ,तब मैं उसपर भड़कते हुए बोला"कहाँ है..."

"बाथरूम मे हूँ...बड़ी मुश्किल से कॉल कर पाई हूँ..."

"बाथरूम मे क्या कर रेली है ,ह्म्म"

"शट अप..."

"चल ठीक है,नही बताना तो मत बता ,वो तेरा पर्सनल मॅटर है...लेकिन ये बता कि अभी कौन आया हुआ है तेरे घर मे..."

"तुम्हे कैसे पता चला कि मेरे घर मे कोई आया हुआ है..."अचानक चौुक्ते हुए उसने अपनी आवाज़ तेज़ करके पुछा..

"बस ऐसे ही अंदाज़ा लगाया...क्या सच मे कोई आया है क्या..."

"हां...डेविड आया हुआ है और लंच के बाद वो मुझे शॉपिंग के लिए ले जाने वाला है...."

"डेविड....इसकी माँ का फिल इन दा ब्लॅंक्स...."फोन रखते हुए मैने आख़िरी लफ्ज़ निशा से कहे"विशिंग यू आ हॅपी मॅरीड लाइफ..."
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मैने मोबाइल गुस्से से जेब मे घुसाया और सीधे अपने रूम की तरफ बढ़ा....मुझे गुस्सा इसलिए आ रहा था क्यूंकी जिस खुशी के साथ निशा ने डेविड के उसके घर आने और उसके साथ शॉपिंग पर जाने की बात कही थी...उससे मुझे यकीन नही हो रहा था कि ये वही निशा है,जो कुच्छ दिन पहले डेविड का नाम लेकर परेशान हो रही थी....उसकी आवाज़ मे ज़रा सा भी रूखापन नही था यानी कि डेविड के आने से वो बहुत ज़्यादा खुश थी....ऐसा मैने सोचा, लेकिन हक़ीक़त कुच्छ और हो सकती थी,यदि निशा ने मेरे कॉल डिसकनेक्ट करने के बाद मुझे रिटर्न कॉल किया होता तो लेकिन उसने ऐसा नही किया....

मैं पूरे रास्ते भर निशा के रिटर्न कॉल का वेट करते हुए अपने रूम की तरफ बढ़ रहा था और अपने रूम पर भी पहुच गया,लेकिन अभी तक निशा ने एक भी रिटर्न कॉल नही की थी....

वक़्त को बदलते हुए सबने देखा होगा लेकिन कभी-कभी वक़्त नही इंसान बदल जाते है,उनकी चाह बदल जाती है,जीने की वजह बदल जाती है....और ये सीधे हमारे लेफ्ट साइड यानी की दिल पर हमले के बराबर होता है और जब आपके दिल के सबसे करीबी शक्स ऐसा करे तो मानो दिल पर किसी ने परमाणु हमला कर दिया हो.....ऐसा लगता है.

एक बार तो ये परमाणु हमला मैं झेल चुका था और आगे भी झेल सकता था....लेकिन ,साला अबकी बार चूतिया बनने का मूड नही है.
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रूम पर आया तो आज पिछले कुच्छ दिनो की तरह अरुण भी नही था ,जो गाली देकर पुच्छे कि 'कहाँ गया था लवडे...दारू लाया या ऐसे ही मुँह उठाकर आ गया ' .
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08-18-2019, 02:35 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
अकेला वरुण ही था और वो भी इस वक़्त अपना लॅप टॉप पकड़े मरवा रहा था इसलिए वरुण को डिस्टर्ब किए हुए बिना मैं सीधे बाल्कनी पर जा पहुचा.सिगरेट की पॅकेट उलट-पुलट की लेकिन पॅकेट खाली निकली...इसलिए अब चुप-चाप होकर बाल्कनी मे खड़े रहने के सिवा मेरे पास कोई दूसरा रास्ता नही था....

जब कुच्छ ठंडा हुआ तो सोचा कि कही मैं निशा को परखने मे जल्दबाज़ी तो नही कर रहा हूँ....हो सकता है वो किसी और बात से उस वक़्त खुश रही होगी....

"लेकिन उसे कम से कम एक रिटर्न कॉल तो करना ही चाहिए....मैं होता तो एक नही डूस रिटर्न कॉल करता...."मोबाइल पर निशा का नंबर देखते हुए मैं झल्लाया....

"ये लौन्डियो वाली हरकत मत कर, बी आ मर्द...."मैने तुरंत अपना ही विरोध किया.....
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जब कुच्छ और समय गुज़रा तो मुझे खुद की ग़लती दिखने लगी और मुझे मेरे अंदर की वो बुराई नज़र आई ,जो मुझमे नही होनी चाहिए थी.....मैं हमेशा से कबीर दास का फॅन था और उनके एक ऑल टाइम फेवोवरिट डाइलॉग"काल करे सो आज कर, आज करे सो अब" पर चलता था...और इसी कारण मेरे अंदर सब्र नाम की चीज़ नही थी...अपनी आदत के विपरीत मैने एक बार सब्र किया...वो भी एक दिन, दो दिन नही...एक हफ्ते, दो हफ्ते नही...एक महीने ,दो महीने नही...यहाँ तक कि एक साल ,दो साल भी मेरे उस सब्र के समय सीमा के आगे कम पड़ गये....मैने पूरे चार साल तक सब्र किया लेकिन उस सब्र ने ही मेरी अच्छी तरह से मार ली....तब से शब्र नाम की चिड़िया मेरे आस-पास भी नही उड़ती.....
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अपने हाथ मे मोबाइल पकड़े हुए मैं निशा के मोबाइल नंबर को देख रहा था और उस बात को आधा घंटा बीत जाने के बावजूद अभी तक इंतज़ार ही कर रहा था कि वो मुझे अब कॉल करेगी...अब कॉल करेगी...

दिल ने कहा कि वो नही करती तो तू खुद कर ले और मेरी बेचैनी को ख़तम कर्दे,लेकिन दिमाग़ ने कहा कि 'बेटा एक बार लौंडिया के चक्कर मे चुद चुके हो और अबकी बार वाला सीन भी कुच्छ वैसा ही बन रहा है...इसलिए ज़रा संभाल कर और उसे ही कॉल करने दो...."

ईच्छा तो बहुत हो रही थी कि अभिच मोबाइल की हरी बत्ती दो बार दबा दूं ,लेकिन फिर सोचा"जाने दो,साला अपनी भी कोई औकात है...खुद कॉल करेगी तो करे...मैं तो अब कॉल ही नही करूँगा...."
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जैसे जैसे वक़्त बीत रहा था वैसे-वैसे मेरा दिमाग़ भी सटक रहा था और जब पूरे दो घंटे तक बाल्कनी मे खड़े रहकर निशा की कॉल का इंतज़ार करते रहने के बाद भी जब उधर से कोई कॉल नही आया तो मैने गुस्से मे वरुण के मोबाइल को ही स्विच ऑफ कर दिया.....

"अरमान सर, ज़रा मेरा मोबाइल देने की कृपा करेंगे क्या...."

"ओह तेरी...गुस्से मे तो मैं ये भी भूल गया कि ये मोबाइल मेरा नही बल्कि वरुण का मोबाइल है..."फटाफट मोबाइल ऑन करते हुए मैने वरुण से दो मिनिट रुकने के लिए कहा और फिर जाकर बिस्तर पर उसका मोबाइल पटक दिया.....

"बड़े क्रोधित लग रहे हो महाशय...निशा से कुच्छ बात हुई क्या..."मेरे इस रवैये पर वरुण ने चुटकी ली....

"बात ही तो नही हुई...."इतना बोलकर मैं चुप हो गया...

वरुण ने बिस्तर से अपना मोबाइल उठाया और किसी को कॉल करके कहा कि उसने फलाना आर्टिकल भेज दिया है...वो जाकर चेक कर ले.....उसके बाद वरुण कुच्छ देर तक अपनी आँख मलता रहा और फिर आँख खोलकर बोला"चल बता दीपिका के बारे मे..."

"मूड नही है उस आर.दीपिका के बारे मे बात करने का..."

"तो मूड बनाओ श्रीमान...वरना हम तुम्हारी खटिया खड़ी कर देंगे..."

"अबे...पहले तो तू ये बक्चोद लॅंग्वेज मे बोलना छोड़..."

"चल अब नही बोलता....लेकिन एक बात बता, तुझे कभी अंदर से फीलिंग नही आई कि तूने अपने बदले की खातिर दीपिका का करियर बर्बाद कर दिया...मतलब कि उसने जो किया वो ग़लत था,मैं मानता हूँ...लेकिन दीपिका को कॉलेज से निकालने के आलवा भी तो कोई दूसरा रास्ता निकाल सकता था...इस तरह उसे बदनाम करना और फिर उसकी रोज़ी-रोटी पर लात मारना ,ये तो एक तरह से ग़लत हुआ ना...."

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वरुण का सवाल जायज़ था लेकिन मेरे अंदर से कभी ये ख़याल ही नही आया कि मैने दीपिका मॅम के साथ जो किया ,वो ग़लत था....मैं बोला...

"तुझे पता है, फीमेल ब्लॅक स्पाइडर की एक ख़ासियत होती है कि वो संभोग के बाद मेल स्पाइडर को खा जाती है और दीपिका मॅम भी उसी ब्लॅक स्पाइडर की तरह थी ,जो किसी भी लड़के से चुदने के बाद उसे निगल जाती थी....यानी कि उस लड़के का करियर बर्बाद कर देती थी, इसलिए मुझे कभी इस बात पर पछ्तावा नही हुआ कि मैने उसे बुरी तरह बदनाम करके कॉलेज से निकाला....मेरे बर्बाद होने की बेशक ही कयि वजह रही हो, लेकिन सबसे पहली वजह दीपिका मॅम खुद थी..."थोड़ी देर रुक कर मैं आगे बोला"और वैसे भी दीपिका मॅम को मेरी इस हरकत से फ़ायदा ही हुआ,क्यूंकी आज कल वो एक मॉडेल है...."

"मॉडेल कहाँ....."

मैने पास मे रखी हुई एक मेग्ज़ीन को उठाया और कयि पन्ने पलटने के बाद एक लड़की का फोटो वरुण को दिखाया ,जो किसी बिकनी ब्रांड का अड्वरटाइज़ करने के लिए पोज़ दिए हुए थी.....

"यही है आर.दीपिका..."

"क्या..."मेरे हाथ से वो मेग्ज़ीन तुरंत छीन्कर वरुण ने अपने हाथ मे लिया और दीपिका मॅम की फोटो को उपर से लेकर नीचे तक अपनी आँखो से स्कॅन मारने के बाद बोला"बड़ी धाँसू आइटम है बे ये तो..."

"कॉलेज की नंबर. 1 माल ये पहले भी थी और अब भी है..."

"तब तो तू इसकी फ़ेसबुक आइडी भी जानता होगा..."

"जिस दिन इसने कॉलेज छोड़ा ,उसी दिन इसने अपनी फ़ेसबुक आइडी डीक्टिवेट कर दी...."
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वरुण बहुत देर तक दीपिका मॅम की फोटो को ताकता रहा...और फिर लंबी साँस लेकर बोला"चल आगे बता..."

मैं अब वरुण को अपने कॉलेज की स्टोरी सुना-सुना कर बोर हुआ जा रहा था, इसलिए मैने डिसाइड किया कि...आज चाहे जो हो जाए.8थ सेमेस्टर की पूरी कहानी सुनाकर ही दम लूँगा...भले ही रात भर जागना क्यूँ ना पड़े और कल सुबह से अपने काम पर जाना शुरू कर दूँगा...क्यूंकी मुझे डर था कि कही इंडस्ट्री वाले मुझे निकाल ना दे...इसलिए मैने पहले ही वरुण से शर्त रखी कि जब तक 8थ सेमेस्टर ख़तम नही हो जाएगा ,वो सोएगा नही और मेरी इस शर्त पर उसने हामी भरी .....
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"8थ सेमेस्टर की शुरुआत जैसे हुई ,उसके दो-तीन दिन बाद ही हमे पता चला कि विभा जानेमन...कॉलेज छोड़ रही है...और ये मेरे विभा को चोदने के अरमानो पर जबर्जस्त प्रहार था....जिसे मैं बर्दाश्त नही कर सकता था...."

जब ये खबर मुझे मिली तब मैं अपने दोस्तो के साथ हॉस्टिल मे था और जैसे ही ये खबर सुनी तो दिल किया कि खबर सुनाने वाले को अपने हॉस्टिल की छत से उल्टा लटका दूं या फिर डाइरेक्ट नीचे फेक दूं....

कयि साल पहले मैने ये पढ़ा था कि किसी चीज़ को 11.2 किलोमेटेर पर सेकेंड की वेलोसिटी से उपर फेकने पर वो चीज़ अर्त से पलायन कर जाती है और फिर कभी अर्त पर लौट कर नही आती...इसलिए इस वक़्त दिल तो ये भी किया कि खबर सुनाने वाले उस लौन्डे को 11.2किमी पर सेकेंड की रफ़्तार से आसमान मे फेक दूं ,जिससे वो अर्त से सीधे पलायन कर जाए और कभी लौटकर ना आ पाए....लेकिन मैं ऐसा नही कर पाया क्यूंकी ये खबर किसी और ने नही बल्कि हमारे पांडे जी ने सुनाई थी....

"खुद तो है ही मनहूस और खबर भी वैसी मनहूसो वाली लाता है...साले तू मर क्यूँ नही जाता और कितना जिएगा...."विभा से जुदाई के गम मे मैने कहा..

"क्या अरमान भाई...मैं तो सोचा था कि विभा के जाने से आप बहुत खुश होगे...लेकिन ये खबर सुनकर तो आप उल्टा मुझपर ही बरस पड़े..."

"इसे तू खुशख़बरी कहता है...साले पूरे कॉलेज मे ये एकलौती लड़की थी ,जो मुझसे बात करती थी...वैसे तू खुश क्यूँ है विभा के जाने से, उसने तेरी गान्ड मारी थी क्या..."

"गान्ड ही तो मार रही है...साली सेक्षनल मे चोद देती है मेरे को..."

"अब उसके क्लास मे राजश्री खाकर बैठेगा तो यही होगा...और बता भी रहा है तो अब, पहले बताया होता तो कुच्छ जुगाड़ भी जमाता, अब तो वो जा रही है..."

"अरे हटाओ विभा को और आज रात के दारू प्रोग्राम के बारे मे बात करते है...."
.
विभा इस पूरे कॉलेज की एकलौती ऐसी लड़की थी ,जो मुझसे ढंग से मुस्कुरा कर बात करती थी...मैं कितना बिगड़ा हुआ हूँ, कितना बदमाश हूँ...इससे उसे कभी कोई फ़र्क नही पड़ा...क्लास टेस्ट, मिडट्म मे मेरे कितने भी नंबर हो...उसके सब्जेक्ट मे सेक्षनल हमेशा मुझे बढ़िया ही मिला,इसलिए विभा से मेरी कभी कोई बहस नही हुई...बाकी लड़के जहाँ असाइनमेंट लिख-लिख कर अपने हाथ पकड़ लेते थे ,वही मैं हर बार सिर्फ़ अपना नाम लिखकर कॉपी जमा करता ,लेकिन एक बार भी वो कुच्छ नही बोली....और तो और फ़ेसबुक मे मैं उससे डबल मीनिंग वाली हज़ारो बाते करता था,क्यूंकी मेरा दिली इच्छा थी कि एक दिन वो बिस्तर पर मेरे नीचे हो....लेकिन मेरे ये इंटेन्षन इनकंप्लीट ही रह गये....

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08-18-2019, 02:35 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
दूसरे दिन मैं कॉलेज तो पहुचा लेकिन थर्ड पीरियड मे और तब तक विभा की क्लास जा चुकी थी और ये क्लास उसकी आख़िरी क्लास थी....जब कॉलेज पहुचा तो दोस्तो ने बताया कि आज विभा मॅम की क्लास मे कोई पढ़ाई नही हुई...वो लोग पूरे एक घंटे विभा मॅम से सिर्फ़ हँसी मज़ाक करते रहे और क्लास के एंड मे सभी लौन्डो-लौन्डियो ने विभा मॅम को उनकी आगे की लाइफ के लिए ऑल दा बेस्ट कहा ,जिसके बाद विभा ने भी पूरी क्लास को ऑल दा बेस्ट कहा.....साला मैं ही इस मौके पे चौका मारने से रह गया, यदि कल रात दारू नही पी होती तो....खैर अब पछ्ताये हॉट क्या ,जब चिड़िया चुग गयी खेत और वैसे भी आइ लव दारू मोर दॅन गर्ल्स....
.
"क्या सोच रहा है बे अरमान...चल कॅंटीन से आते है..."लंच होने के बाद भी जब मैं अपनी जगह पर बैठा रहा तो अरुण बोला...
"कुच्छ नही,बस विभा जानेमन के बारे मे सोच रहा हूँ....मेरे पास फुल मौका था उसे पटाने का,लेकिन मैं तो लंड हिलाता रहा...कभी ट्राइ ही नही किया और आज जब वो जा रही है तो एक दम खराब लग रहा है...अब क्लास मे वही बदसूरत टीचर रहेंगे,जिनकी सूरत देखते ही पढ़ने का मन नही करता..."

"चल कॅंटीन मे फर्स्ट एअर की लौन्डियो को ताड़ते है...इस बार तो पूरी मिस इंडिया आ गयी है कॉलेज मे..."

"वो सब छोड़ और ये बता कि विभा इस वक़्त कहाँ होगी ,तेरे हिसाब से..."

"इस वक़्त...."अंदाज़ा लगाते हुए अरुण बोला"मेकॅनिकल डिपार्टमेंट मे होगी और कहाँ होगी..."

"एक काम कर तू जा, मैं आज कॅंटीन नही जा रहा....विभा से मिलकर आता हूँ..."विभा से मिलने का इरादा करके मैं अपनी जगह से उठा ,तो अरुण ने मेरा कंधा पकड़ कर मुझे वापस बैठा दिया...

"तुझे लगता है कि वो तुझसे मिलेगी...अबे लोडू ,वो इस वक़्त मेकॅनिकल डिपार्टमेंट मे होगी...और वहाँ अपने सारे खड़ूस टीचर होंगे..."

"तो क्या हुआ..."

"तो क्या हुआ.....बेटा तू मेकॅनिक्लल डिपार्टमेंट मे तो उससे बात कर नही पाएगा इसलिए तू उसे बाहर आने के लिए ही कहेगा...ऐसे मे वो साले ,म्सी टीचर्स पक्का कुच्छ ना कुच्छ ग़लत समझ लेंगे....जाते-जाते तो उसे बदनाम मत कर..."

"तू होशियारी मत छोड़ और जा अपना काम कर...मुझे मालूम है कि क्या करना है, बड़ा आया मुझे सलाह देने वाला..."

"मरवा फिर...मुझे क्या..."बोलकर अरुण तुरंत क्लास से बाहर निकल गया...और मैं मेकॅनिकल डिपार्टमेंट की तरफ बढ़ा....
.
वैसे तो कुच्छ देर पहले मैने अरुण को गाली देकर भगा दिया था,लेकिन उसने सही ही कहा था कि डिपार्टमेंट मे जाकर विभा को सीधे बाहर बुलाना ,ख़तरनाक साबित हो सकता था...इसलिए मैं अपने डिपार्टमेंट के बाहर जाकर रुक गया और विभा के मोबाइल पर एक मेस्सेज टपका दिया कि मुझे उससे मिलना है....

मेरे मेस्सेज करने के 10 मिनिट बाद तक जब विभा मेकॅनिकल डिपार्टमेंट से बाहर नही निकली तो मैने ये मान लिया कि अब वो बाहर नही आएगी ,इसलिए मैं वापस जाने के लिए मुड़ा...लेकिन तभी पीछे से विभा जानेमन ने मुझे आवाज़ दी....
.
"मुझे लगा नही कि आप आओगी...इसलिए वापस जा रहा था..."विभा को बाहर देख मैं उसकी तरफ बढ़ा...

"लंच मे बिज़ी थी...अब फ्री हूँ,बोलो क्या बात है..."

"आज बड़ी धाँसू लग रही हो....बोले तो यू आर लुकिंग ब्यूटिफुल..."

मेरी इस तारीफ भरे शब्दो का विभा ने कोई जवाब नही दिया जबकि आम तौर पर लड़किया अपने लिए ऐसे वर्ड सुनकर सामने वाले को स्माइल के साथ थॅंक्स कहती है...लेकिन विभा मॅम की अपनी ही एक खास आदत है ,जो ये कि मैं जब भी उसे खूबसूरत कहता था तो उसका मुँह ऐसे बन जाता था जैसे मैने उसकी तारीफ नही बल्कि बेज़्जती की है...खैर ये हमारा पर्सनल मॅटर है...तुम लोगो को इन्वॉल्व होने की ज़रूरत नही

"दिल से बोल रहा हूँ मॅम कि यू आर लुकिंग सो ब्यूटिफुल...अब तो जा रही हो ,कम से कम जाते-जाते तो थॅंक्स बोल जाओ...."

"थॅंक्स...लेकिन तुमने अभी तक ये नही बताया कि मुझसे ,तुम्हे ऐसी कौन सी बात करनी थी..."

विभा के ये कहते ही मैं सोच मे पड़ गया...क्यूंकी मैं ये सोच के ही नही आया था कि विभा से मुझे क्या बात करनी है...इसलिए मैं वहाँ खड़ा रहकर कुच्छ देर तक तो इधर-उधर झाँकता रहा और फिर बोला "यहाँ से कही दूर चले "

"चलो..."

"क्या..."मेरे साथ चलने के उसके जवाब से मैं थोड़ा नर्वस सा हो गया...क्यूंकी मुझे अभी तक समझ नही आया था कि विभा से आक्च्युयली मैं बात क्या करूँ ?

हम दोनो वहाँ से दूर आए और फिर एक जगह जाकर विभा रुक गयी और मेरी तरफ देखने लगी....जिससे मैं और भी नर्वस हो गया...मेरे अंदर इस वक़्त तूफान उठा हुआ था ,जो शब्दो के रूप मे मेरे अंदर से बाहर निकलकर विभा के कानो तक जाना चाहता था....इस वक़्त मेरे अंदर काई ख़यालात आ रहे थे, जैसे कि विभा को 'आइ लव यू' कहना या फिर 'आइ वॉंट टू फक यू' कहना....लेकिन इन सभी के बीच मैने वो टॉपिक छेड़ा जिसकी उम्मीद ना तो विभा को थी और ना ही मुझे....वो तो बस एक सेकेंड के अंदर ही मेरे दिल मे आया और मैने कह दिया....
"सीडार को तो जानती ही होंगी...बोले तो वही अपने एमटीएल भाई..."बोलने के साथ ही मेरे अंदर एक दुख का अनुभव हुआ...और ऐसा ही कुच्छ-कुच्छ रिक्षन विभा का भी था...

"उसे कौन नही जानता...लेकिन सीडार के बारे मे मुझसे क्या बात करनी है...हम दोनो तो कभी दोस्त तक नही थे...."

"एग्ज़ॅक्ट्ली...इसी के बारे मे तो बात करनी है...."विभा की आँखो मे आँखे गढ़ाते हुए मैं बोला"उन्होने मुझसे कहा था कि वो आपसे...मतलब...वो ,आपसे..."

"प्यार करता था...."मेरे आधूरे वाक्य को पूरा करते हुए विभा ने कहा"लेकिन मैने तो उससे कभी प्यार नही किया...."

"वही तो पुछने आया हूँ कि क्यूँ नही किया...कोई खास दुश्मनी थी क्या उनसे..."

"जिससे दुश्मनी ना हो ,इसका मतलब ये तो नही होता कि उससे प्यार किया जाए....और वैसे भी अब वो नही है तो इस बारे मे बात करने का कोई फ़ायदा नही....मैं चलती हूँ..."
.
"ये क्या कर दिया मैने... ये तो नाराज़ हो गयी..."विभा को वहाँ से जाते देख मैं खुद पर चीखा और तेज कदमो के साथ आगे बढ़ते हुए विभा के ठीक सामने खड़ा हो गया....

"सॉरी...वैसे मैं ये पुछने आया था कि यहाँ से जा कब रही हो...मेरा मतलब ट्रेन कितने बजे की है..."

"तुम्हे कैसे पता कि मैं ट्रेन से जाउन्गी.... "

"अब प्लेन से तो जाओगी नही और राजस्थान तक यहाँ से कोई बस जाती नही...इसलिए जाओगी तो ट्रेन से ही...अब बताओ कितने बजे की ट्रेन है..."

"11:30 पीएम....लेकिन ये क्यूँ पुच्छ रहे हो..."

"बस ऐसिच जनरल नालेज के लिए...क्या पता इंडियन इंजिनियरिंग सर्विस(आइस) के एग्ज़ॅम मे ये क्वेस्चन आ जाए "
"तो मैं चलूं..."

"जा ऐश कर..."

"सुधरोगे नही तुम..."

"कोई सुधारने वाली मिली नही...वरना बंदे हम उतने बिगड़े हुए भी नही थे...आप ट्राइ मार सकती हो "

"अपना ये जादू उसपर चलाया करो,जिसपर चलता हो....और हां ,यदि रात को रेलवे स्टेशन आ रहे हो तो 11 बजे पहुच जाना....कुच्छ इंपॉर्टेंट काम है...मुझे आने मे थोड़ा बहुत लेट हो जाएगा तो वहाँ से भाग मत जाना,मेरा इंतज़ार करना....अब सामने से हटो..."

"जानेमन, इंतज़ार तो हम सिर्फ़ दो चीज़ का करते है...पहला 'पाइरेट्स ऑफ दा क्रिब्बीयन' के नेक्स्ट पार्ट का और दूसरा सचिन की बॅटिंग का...."गॉगल्स लगाते हुए मैने कहा"इसलिए टाइम पर पहुच जाना "
.
विभा से मिलने के बाद मैने टाइम देखा तो मालूम हुआ कि रिसेस ख़तम होने मे अब भी 20 मिनिट बाकी थे और पेट मे भूख के मारे जो खलबली मची हुई थी उसके बाद तो सिर्फ़ कॅंटीन ही एकमात्र सहारा था...इसलिए मैं कॅंटीन की ओर चल पड़ा...पेट मे भूख के कारण मची खलबली के अलावा एक और कारण था,जिसकी वजह से मैं कॅंटीन जा रहा था...वो कारण ये था कि लास्ट सेमेस्टर से कॉलेज के कुच्छ लड़को ने अपना एक अलग ग्रूप बना लिया था...जो आए दिन किसी ना किसी को पेलते रहते थे...मुझे पांडे जी ने इसकी इन्फर्मेशन कुच्छ दिन पहले ही दी थी और ये भी कहा था कि वो रिसेस के वक़्त पूरा टाइम कॅंटीन मे रहते है....इसलिए कॅंटीन मे जाकर उस ग्रूप को ठीक करना था और वैसे भी जब से मैने अपने चारो प्लान को डीक्टिवेट किया है,तब से मैं जब चाहू,जिसे चाहू, जहाँ चाहू...ठोक सकता हूँ...

चॅप्टर-45:ए कॉर्नर ऑफ दा पास्ट
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