Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
08-18-2019, 02:35 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
मेरे चारो प्लॅन्स मेरे साथ लगभग एक साल तक रहे ,जिसका नतीज़ा ये हुआ था कि मेरा सीपीआइ जो 4थ सेमेस्टर के बाद 7.6 था वो अब 7.9 तक आ पहुचा था और सेवेंत सेमेस्टर के रिज़ल्ट के बाद तो मुझे पूरी उम्मीद थी कि मेरा सीपीआइ 8.0 पायंटर टच कर जाएगा या फिर 8.ओ को क्रॉस कर जाएगा....5थ सेमेस्टर मे कॅंप के बाद मैने एक सिंपल ,शरीफ लाइफ गुज़ारी थी...जिसमे ना तो कोई मार-धाड़ थी और ना ही कोई लौंडियबाज़ी....मेरी उस सिंपल आंड शरीफ सी लाइफ मे सिर्फ़ एक बुराई थी जिसे मैं दूर नही कर पाया था और वो थी मेरी दारू पीने की आदत, जो अब भी बरकरार है.....

5थ सेमेस्टर से जहाँ मेरे सीपीआइ उपर चढ़ने शुरू हुए ,वही मेरे खास दोस्तो का हाल पहले जैसा ही रहा...अरुण ने थोड़ी ,बहुत प्रोग्रेस तो की लेकिन वो 7.5 तक ही अटका हुआ था..सौरभ 7.2 मे था और इस बीच एक साल मे सुलभ के पायंट्स पर जोरदार गिरावट हुई...पहले जहाँ उसका सीपीआइ 8.3 के करीब था वो अब नीचे लुढ़क कर 7.7 पर आ पहुचा था....हम लोग कभी आपस मे पढ़ाई की बात नही करते थे ,इसलिए मुझे सुलभ के इस घटिया परर्फमेन्स का एग्ज़ॅक्ट रीज़न तो नही मालूम...लेकिन जहाँ तक मेरी समझ जाती है,उसके अनुसार...मेघा से दिन ब दिन बढ़ता हुआ सुलभ का प्यार इसका रीज़न हो सकता था....जो भी हो अपने ग्रूप मे तो मैं ही टॉपर था
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मेरे प्लॅन्स मुझमे अच्छी-ख़ासी प्रोग्रेस कर रहे थे ,जिससे मेरी इमेज कॉलेज मे बहुत हद तक सुधर गयी थी...और तो और एक ही सेमेस्टर मे मेरे द्वारा 12 सब्जेक्ट्स क्लियर करने वाले कारनामे को कॉलेज के बिगड़े लड़के इन्स्पिरेशन के तौर पर लेते है . मेरे चारो प्लॅन्स के साथ मेरी बहुत अच्छी पट रही थी लेकिन कुच्छ दिनो पहले जब मैं सेवेंत सेमेस्टर की छुट्टी के बाद घर गया था तो मैने एक दिन ,रात के वक़्त सोचा कि मुझे 8थ सेमेस्टर के बाद क्या करना है....अपने फ्यूचर के इसी झमेले मे मैं उस रात लगभग कयि घंटे तक उलझता रहा....मेरे साथ गूगल महाराज भी थे ,लेकिन तब भी मुझे इस उलझन से निकलने मे कयि घंटे लग गये...जिसके बाद मैने अपना एक लक्ष्य डिसाइड किया ,जिसकी तैयारी मुझे 8थ सेमेस्टर के बाद करनी थी....इसलिए मैने तुरंत अपने सभी प्लॅन्स को अलविदा कहा और अपने पुराने जोश के साथ कॉलेज मे एंट्री मारी....
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वरुण और गौतम ,ये दो ऐसे लौन्डे थे...जो मेरे अतीत मे अपनी एक घटिया सी छाप छोड़ कर जा चुके थे...जब मैं फिफ्थ सेमेस्टर मे था तब वरुण कॉलेज से गया और मेरे सेवेंत सेमेस्टर मे आते-आते तक गौतम ने भी अपनी डिग्री पूरी कर ली और कॉलेज से चलता बना....वरुण और गौतम दोनो लोकल लौन्डे थे इसलिए महीने-दो महीने मे अपनी गान्ड मरवाने और रोला झाड़ने कॉलेज टपक ही पड़ते थे....इन दोनो के कॉलेज से जाने के बाद मुझे बहुत ही बेनेफिट हुआ..क्यूंकी कॉलेज मे अब मेरे सामने सर उठाने वाला कोई नही बचा था,सिवाय कुच्छ हफ्ते पहले बने एक नये ग्रूप को छोड़ कर....कुल-मिलाकर कहा जाए तो अब पूरे कॉलेज पर मेरी बादशाहत थी और फोर्त एअर मे आते ही मैने सबसे पहले रॅगिंग को रोका...शुरू मे प्लान तो था कि पूरे कॉलेज मे सीनियर लड़को को डरा-धमका कर रॅगिंग बंद करवा दूं...लेकिन बाद मे ये बड़ी आफ़त साबित हुई...इसलिए फिर मैने सिर्फ़ अपने मेकॅनिकल ब्रांच मे रॅगिंग रुकवाई....मैने सेकेंड एअर से लेकर फोर्त एअर तक के क्लास मे जाकर सबको सख़्त वॉर्निंग दी थी कि कोई भी लड़का या लड़की फर्स्ट एअर के स्टूडेंट्स को नही पकड़ेगा....और ऐसा हुआ भी....
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वरुण और गौतम के जाने के बाद सिर्फ़ एक काँटा ऐसा था जो मुझे चुभता था और वो काँटा थी आर.दिव्या...मुझे हमेशा से ही दिव्या को देखकर जाने क्यूँ ऐसा लगता था कि वो साली भूत्नि मेरे खिलाफ ज़रूर कोई ना कोई षड्यंत्र रच रही है....लेकिन 8थ सेमेस्टर के आते-आते तक अब मैं र.दिव्या को ज़्यादा सीरीयस नही लेता था...क्यूंकी यदि सच मे दिव्या मेरे खिलाफ कुच्छ सोच रही होती तो अब तक कोई ना कोई कांड हो ही जाता ,जो कि नही हुआ था....
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यूँ तो दिव्या कभी मेरे सामने कुच्छ नही बोलती थी लेकिन मुझे हमेशा से यही लगता कि वो एश को मेरे खिलाफ भड़का रही है...क्यूंकी पिछले एक साल मे मैं और एश फेरवेल और वेलकम पार्टी के दौरान कितनी ही बार आमने-सामने आए...लेकिन हर बार वो चंडालीं दिव्या उसके साथ रहती और उसके कान मे कुच्छ कहती...जिसके बाद एसा मुझे ऐसे इग्नोर मारती जैसे के रेलवे स्टेशन मे दो अंजान आदमी एक-दूसरे को इग्नोर मारते है....एसा और मेरे बीच मेरे द्वारा गौतम की ठुकाई से जो चुप्पी थी ,वो अब तक बनी हुई थी...रीज़न वही था कि...ना तो वो शुरुआत करती और मैं शुरुआत करूँ ,ये हो नही सकता.......
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एक और बड़ा चेंजस हमारे इस फाइनल सेमेस्टर के पहले हुआ ,वो ये कि हमारे हॉस्टिल का वॉर्डन बदल गया...और जो नया वॉर्डन हमारे हॉस्टिल मे आया वो अपनी तरह की फ़ितरत का था...मतलब कि वो पुराने वाले वॉर्डन की तरह हर वक़्त रूल्स आंड रेग्युलेशन्स की बात ना करके रूम और विस्की की बात करता था....कुल मिलाकर हमारी लाइफ मे पिछले एक साल से कुच्छ खास नही हुआ था...हमारे फ्रेंड्स सर्कल मे सिर्फ़ सुलभ ही ऐसा था जिसने माल पटा ली थी बाकी बचे हम चारो (मैं,अरुण,सौरभ और पांडे जी )
की रियल लाइफ और फ़ेसबुक प्रोफाइल पर अब भी सिंगल रिलेशन्षिप छपा हुआ था.....
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विभा से मिलकर मैं कॅंटीन की तरफ बढ़ा और वहाँ पहुचते ही मैने अरुण,सौरभ को ढूँढा लेकिन दोनो वहाँ से लापता थे...इसलिए मैं कॅंटीन मे जाकर एक टेबल पर चुप-चाप बैठ गया और भूख से तिलमिलाते अपने पेट को शांत करने के लिए कॅंटीन वाले को ऑर्डर दे दिया....

कॉलेज मे जिस नये गॅंग की बात राजश्री पांडे कर रहा था , यदि वो इस वक़्त कॅंटीन मे मौजूद होते तो उनसे मुलाक़ात करने का ये मेरा पहला मौका होता....मैं उन लौन्डो से इसलिए भी मिलना चाहता था क्यूंकी उन्होने पिछले हफ्ते ही सिटी मे रहने वाले फर्स्ट एअर के एक लड़के को मारा था,जिसकी इन्फर्मेशन मुझे पांडे जी ने ही दी थी....

मैं जब तक अपना पेट भरता रहा तब तक कॅंटीन मे सब कुच्छ नॉर्मल ही रहा लेकिन जब मैं अपना बिल पे करने काउंटर पर गया तो तभी पूरी कॅंटीन मे कुच्छ लड़के तालिया बजा-बजा कर ज़ोर से हँसने लगे....अब ये तो फॅक्ट है कि जब कोई ऐसी बक्चोदो वाली हरकत करेगा तो सबकी नज़र उसी पर जाएगी...इसलिए उस वक़्त मेरे साथ-साथ कॅंटीन मे मौज़ूद सभी स्टूडेंट्स की आँखे उन्ही लड़को पर टिक गयी...जो एक लड़की पर हंस रहे थे....बाद मे मुझे पता चला कि उन लौन्डो ने अपना झूठा पानी उस लड़की के ग्लास मे डाल दिया था और फिर उसका मज़ाक उड़ा रहे थे....
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"आप लोग कुच्छ बोलते क्यूँ नही इन्हे..."काउंटर पर बैठे हुए शाकस की तरफ अपने बिल के पैसे सरकाते हुए मैने कहा...

"अब एक दो बार की बात हो तो ,हम कुच्छ करे भी...लेकिन ये तो हर दिन का नाटक है...दो दिन पहले यही लड़के कॅंटीन मे काम करने वाले एक लड़के से लड़ पड़े थे और उसे दो-तीन हाथ भी जमा दिए..."

"प्रिन्सिपल के पास शिकायत क्यूँ नही की आपने..."

"अरे भाई...अपने को खाना-कमाना भी है...कौन पंगा ले इन लड़को से...गरम खून है ना जाने हमारा क्या नुकसान कर बैठे..."

"बिल भरते है वो लड़के या फिर ऐसे ही फ्री फोकट मे खाते है..."

"उनके बाप का राज़ है क्या...जो मुफ़्त मे खाएँगे..."काउंटर के पास कॅंटीन मे ही काम करने वाला एक आदमी खड़ा होते हुए झल्लाया...."तुमको तो चार साल से देख रहे है...कुच्छ बोलते क्यूँ नही इन्हे..."

"दुनिया बड़ी ज़ालिम है मेरे भाई...फ्री मे कोई कुच्छ नही करता...मेरे बिल के पैसे वापस करो तो मैं अभी एक मिनिट मे इन्हे ठीक कर दूं...."

"अब क्या पेट पे लात मारोगे भाई...चलो एक काम करना,कल पैसे मत देना...."

"ओके बेबी...."मैने गॉगल्स अपने आँखो मे लगाया और वही काउंटर के पास खड़ा होकर सोचने लगा कि मुझे क्या करना चाहिए....
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इस दौरान वहाँ उनके पास एक और लड़का आया , जिसने पास के एक लड़के को ज़मीन मे गिराकर उसकी चेयर खींच ली और शान से बैठ गया....जो लड़का ज़मीन पर गिरा था ,उसपर सब हंस रहे थे,सिवाय उस लड़की के ,जिसके ग्लास मे उन लौन्डो ने झूठा पानी डाला था....

.वो लड़का जो ज़मीन पर गिरा था वो दूसरे पल ही शर्मिंदगी के कारण अपना सर झुकाए हुए खड़ा हुआ और आँखो मे आँसू लिए कॅंटीन से बाहर गया...

गॉगल लगाए हुए मैं धीरे-धीरे उनकी तरफ बढ़ा और जिस लड़के ने अभी एक लड़के को नीचे गिराया था उसके सर पर पीछे से एक जोरदार चाँटा मारा और जब गुस्से से वो पीछे मुड़ा तो कॉलर पकड़ कर उसे मैने ज़मीन पर गिरा दिया....

"सॉरी दोस्तो....मुझे एक चेयर चाहिए थी,इसलिए ऐसा करना पड़ा...एनीवे माइसेल्फ अरमान........नाम तो सुना ही होगा

मैं उनके ही टेबल पर उन्ही मे से एक को नीचे ज़मीन पर गिरा कर बैठा...उस गिरे हुए लौन्डे को मिलाकर वो पाँच थे और अब कॅंटीन मे मौज़ूद सभी लोग उनकी बात पर हँसने की बजाय उनपर हंस रहे थे....जिस लड़के को मैने नीचे गिराया था वो गुस्से से उबलते हुए मेरे बगल मे ही खड़ा हो गया....बाकी बचे चार लौन्डे अपने क्रोध को दबाए हुए चुप-चाप बैठे थे....

मैने उनलोगो को मुझे अंदर ही अंदर गालियाँ देते हुए सोचा कि सालो को पेलकर सीधे वहाँ से भगा दूं लेकिन फिर ख़याल आया कि अपने ही कॉलेज के लौन्डे है इसलिए इस बार जाने देता हूँ...
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"तुम लोगो के ग्रूप मे सिर्फ़ पाँच ही है या कोई और भी पहलवान है..."पाँचो की तरफ देखते हुए मैने कहा"एक फाइनल एअर का है,एक थर्ड एअर का है...दो लौन्डे सेकेंड एअर के लग रहे है...और इस लुल्लू को पहली बार देख रहा हूँ...तू फर्स्ट एअर से है क्या बे..."

"ह...हां..."

"ये तेरे सामने प्लेट मे जो समोसा और चटनी रखा है वो झूठा है क्या..."

"नही..."पहले की तरह इस बार भी उस फर्स्ट एअर वाले ने एक वर्ड मे ही जवाब दिया....

"तो एक काम कर बेटा, चुप चाप निकल और फिर कभी कॅंटीन मे दिखा तो तुझे समोसा और चटनी बनाकर पूरे कॅंटीन मे बाटुंगा...अब चल भाग यहाँ से.."

मेरे कहने के बावजूद भी वो फर्स्ट एअर वाला लौंडा वही बैठा रहा और अपने गॅंग के बाकी मेंबर्ज़ की तरफ इस आस से देखने लगा कि उसके सीनियर्स मुझे कुच्छ जवाब देंगे.....

"कोई बात नही...आराम से बैठकर आपस मे सलाह मशवरा कर लो कि आगे क्या करना है...तब तक मैं समोसा ख़ाता हूँ...और एक दम रिलॅक्स होकर सोचना ,क्यूंकी समोसा डकारने के बाद मैं रिलॅक्स नही होने दूँगा...."बोलते हुए मैने सामने टेबल पर रखी प्लेट उठाकर अपने सामने रख ली.....
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कॅंटीन मे एका एक जबर्जस्त शांति छा गयी और सबकी नज़र हमारी तरफ आ टिकी...जिसके कारण यदि वो लड़के चुप चाप उठकर वहाँ से जाते तो उनकी घोर बेज़्जती होती...इसलिए उन्होने भी अपना थोड़ा दम दिखाना शुरू कर दिया....उनमे से फाइनल एअर मे जो था उसने मुझसे कहा कि मैं बात को आगे ना बढ़ाऊ और चुप चाप वहाँ से चला जाउ.....
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08-18-2019, 02:37 PM,
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मैं इस दौरान कुच्छ नही बोला और नाश्ता करने के बाद अपना मुँह सॉफ किया और फर्स्ट एअर का एक लड़का जो उनमे मौज़ूद था उसे घुमा के एक हाथ मारा....

"चल बेटा अब निकल...अभी तू फर्स्ट एअर मे है और अभी से इतने तेवर...चुप चाप काट ले इधर से वरना अगली बार सीधे जाइरोसकोप सर पर दे मारूँगा...."

अपनी इज़्ज़त सबके सामने नीलाम करवाकर फर्स्ट एअर का वो लौंडा उठा और वहाँ से चलते बना....उसके बाद मैने अपना गॉगल उतारकर टेबल पर रख दिया और बोला...

"मैने उसे वॉर्न किया था लेकिन उसने सोचा कि तुम अखंड चूतिए उसकी कोई हेल्प कर सकोगे.खैर कोई बात नही,होता है ऐसा...वैसे किसी महान आदमी ने कहा है कि सुअरो से लड़ने की बजाय उन्हे सीधे मार देना चाहिए क्यूंकी यदि आप उनसे लड़ोगे तो इसमे उसे मज़ा भी आएगा और आप बदनाम भी होंगे.....लेकिन मैं थोड़ा और महान हूँ इसलिए तुम सुअरो को एक और मौका देता हूँ ,चुप चाप यहाँ से निकल जाओ और कॉलेज मे शांति का वातावरण बनाए रखो वरना आज के बाद जिस दिन भी तुम मे से कोई अपनी औकात से बाहर आया तो उसी दिन तुम लोग कॉलेज से घर नही बल्कि हमारे वर्ल्ड फेमस खूनी ग्राउंड पर जाओगे....आगे तुम लोगो की मर्ज़ी ,क्यूंकी अगले 5 मिनिट मे हॉस्टिल से 100 लौन्डे यहाँ आने वाले है...."
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इसके बाद उनमे से कोई कुच्छ नही बोला और अपने जबड़ो के बीच फ्रिक्षन लाते हुए वहाँ से चले गये....उन लोगो के जाने के बाद मैं वापस उसी टेबल पर बैठा और जिस लड़की के ग्लास मे उन लौन्डो से झूठा पानी डाला था उसे अपने पास बुलाया....

वो लड़की फर्स्ट एअर की ही थी और जब मैने उसे अपने पास बुलाया तो उसके अंदर डर और झिझक का अद्भुत कॉंबिनेशन था....दिखने मे तो वो कोई आवरेज लड़की थी ,लेकिन उसके अंदर की डर और झिझक ने मुझे स्माइल करने पर मज़बूर कर दिया....
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"चल बैठ और अपना इंट्रो दे..."उस लड़की को बैठने का इशारा करते हुए मैने कहा...

"थ...थ...थॅंक्स ,सर...."बैठने के बाद वो बोली...

"ये शाहरुख वाली स्टाइल मुझे चिढ़ाने के लिए कर रही है या शाहरुख की फॅन है..."

"वो...वो तो बस..बस थोड़ा...थोड़ा..."

"रहने दे एक साल निकल जाएगा तेरे बोलते-बोलते तक...अपना इंट्रो दे..."

"इंट्रो...ओके...सर,माइसेल्फ आराधना शर्मा, सोन ऑफ मिस्टर. कृष्णबिहारी शर्मा आइ आम फ्रॉम सागर,एम.प. आअन्न्णन्द...."
"आराधना शर्मा..."उसे बीच मे ही मैने रोका और कहा"दोबारा यदि कभी कोई परेशान करे तो इस उम्मीद मे मत रहना कि अरमान सर,तुम्हे वापस बचाने आएँगे...गुड लक और ये तो सिर्फ़ शुरुआत है..."
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मिस. आराधना शर्मा पर अपना रौब झाड़ कर मैं वहाँ से उठा और कॅंटीन से बाहर जाने लगा कि तभी मैने देखा कि एश और दिव्या एक टेबल पर अपनी कुच्छ फ्रेंड्स के साथ बैठी हुई है...इसलिए मैने अपने कॉलर उपर किए और कॅंटीन वाले को हाथ दिखाकर ज़रा तेज़ आवाज़ मे बोला...

"कोई और प्राब्लम ,छोटू...यदि होगी तो मुझे मैल कर देना मैं देख लूँगा...."
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कॅंटीन से बाहर आते ही मेरी टक्कर कल्लू कंघी चोर से हुई...

"साला अपनी तो किस्मत ही खराब है...जहाँ बाकी लौन्डे लड़कियो से टकराते है,वहाँ मैं टकराया भी तो उस कल्लू से. अपनी तो किस्मत मे ही जैसे ग्रहण लगा हुआ है..."

मैने कल्लू को दो तीन गालियाँ बाकी और वहाँ से क्लास की तरफ बढ़ा....
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अब मुझे फुल आज़ादी मिल गयी थी और अपना नया वॉर्डन भी अपने ही किस्म का था ,इसलिए हमारा रूम हर रात बियर बार बन जाता था,जहाँ से शराब और बियर की नादिया..,सिगरेट के धुए के साथ बहती थी....जिसमे पूरा हॉस्टिल डुबकी लगाता था...उस रात बियर और शराब की नदी मे डुबकी मारने के चक्कर मे मैं ये भूल बैठा कि मुझे रात को 11 बजे रेलवे स्टेशन विभा माँ से मिलने जाना है...इसकी सुध मुझे तब हुई जब रात को 12 बजे विभा मॅम ने मुझे खुद फोन किया....अब जब मैं दारू पीकर टन था तो मेरे मुँह से अन्ट-शन्ट निकलना तो ज़रूरी ही था...लेकिन फिर भी मैने विभा की कॉल रिसीव की....

"मैं जानती थी कि तुम नही आओगे..."

"आइ लव यू, जानेमन...तू कह दे तो अभिच तेरे वास्ते अपना प्राइवेट प्लेन लेकर आ जाउ...बोल ,क्या बोलती है...आउ..."

"फक यू..."

"मेरा भी कुच्छ यही इरादा है...डबल फक यू...अब फोन रख, नेक्स्ट पेग लेने का टाइम हो रेला है...साली बबूचड़ कही की,"

उस कॉल के दौरान मेरे और विभा के बीच जो बात-चीत हुई,वो हमारी आख़िरी बात-चीत थी...उसके बाद विभा राजस्थान गयी और मैने जब भी उसका नंबर ट्राइ किया तो उसका नंबर हर बार स्विच्ड ऑफ ही आया...
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उसके दूसरे दिन सुबह-सुबह मुझे एक और कॉल आया ,जिसने मेरी रातो की नींद नही,बल्कि दिन की नींद हराम कर दी....

"सुनो मिसटर...यदि इस नंबर पर दोबारा कॉल किया तो वन ज़ीरो ज़ीरो डाइयल करके तुम्हारे खिलाफ फ.आइ.आर. करवा दूँगी..."मेरे कॉल उठाते ही दूसरी तरफ से किसी लड़की ने मेरे सर पर डंडा मारा....

"एफ.आइ.आर. , ये क्या लफडा है यार..."कान से मोबाइल हटाकर मैने अपने आँखो के सामने किया , नंबर न्यू था...

"देखिए कहीं आपको कोई ग़लतफहमी तो नही हो रही...क्यूंकी मैने तो किसी को कॉल नही किया..."

"मुझे क्या अँधा समझ रखा है...कल रात से लेकर अभी तक मे दसियों कॉल आ चुके है तुम्हारे नंबर से....और हर बार तुमने रूबिश लॅंग्वेज का इस्तेमाल किया है..."दूसरी तरफ वाली लड़की मुझपर और भड़कते हुए बरसी....

"एक मिनिट....मैं ज़रा चेक करके बताता हूँ..."बोलते हुए मैने अपने मोबाइल की कॉल हिस्टरी चेक की,जिसके अनुसार मेरे मोबाइल से लास्ट कॉल कल का था ,जब मैने अपने घर पर बात की थी....मैने वापस मोबाइल को अपने कान मे लगाया और एक दम प्यार से बोला"देखिए ,मेरे मोबाइल की कॉल हिस्टरी मे तो आपका नंबर नही है...ज़रूर आपको ग़लतफहमी हुई होगी..."

"अरे मैने कहा ना...कि इस नंबर से डूस कॉल कल रात मेरे नंबर पर आए थे...मैं तो एफ.आइ.आर. करवाने जा रही हूँ...."
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08-18-2019, 02:38 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
"एक...एक मिनिट...रुकिये तो ज़रा..."एफ.ई.आर. का नाम सुनकर मेरी पूरी तरह फट पड़ी....
क्यूंकी ऐसा ही एक केस मेरे एक दोस्त के साथ हुआ था..हुआ कुच्छ ये था कि एक बार वो अपने किसी दोस्त का मोबाइल नंबर सेव कर रहा था तो ग़लती से अपने दोस्त के मोबाइल नंबर के कुच्छ डिजिट उससे ग़लत टाइप हो गये और फाइनली जो नंबर सेव हुआ वो उसके दोस्त का ना होकर किसी अननोन लड़की का था....अब बात यहाँ से शुरू हुई. मेरा वो दोस्त ,अपने मोबाइल पर सेव्ड उस नंबर पर अडल्ट मेसेज भेजा करता था,ये सोचकर कि ये मेसेज उसके दोस्त के पास जा रहे है...वो भी दिन मे तक़रीबन 10-12 मेसेज..और फिर एक दिन उसे पोलीस स्टेशन से फोन आया,जिसमे उसे पोलीस वालो ने धमकी दी कि वो पोलीस स्टेशन मे आए वरना उसके खिलाफ एफ.आइ.आर. दर्ज कर दी जाएगी....अब मेरे उस दोस्त की चारो तरफ से फटी ,जैसे अभी मेरी फटी पड़ी थी और मेरा वो दोस्त जहाँ रहता था,वहाँ से 200 कीलोमेटेर दूर ,दूसरे शहर के उस पोलीस स्टेशन मे गया...जहाँ उसके खिलाफ कंप्लेन हुई थी. जब मेरा दोस्त वहाँ पहुचा तो पोलीस वालो ने उस लड़की को भी बुलाया ,जिसके नंबर पर मेरे मासूम से दोस्त ने अडल्ट मेसेज भेजे थे....और फिर बाद मे ये खुलासा हुआ कि मेरे दोस्त ने नंबर सेव करते वक़्त कुच्छ डिजिट को टाइप करने मे ग़लती कर दी थी....उसने ये बात पोलीस को बताई लेकिन पोलीस नही मानी और मेरे उस दोस्त को खम्खा 10,000 का जुर्माना भरना पड़ा....
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और अब यही डर मुझे भी सता रहा था कि कही यही सब मेरे साथ ना हो जाए,वरना खम्खा मुझे भी फाइन भरनी पड़ेगी..लेकिन जब मैने कॉल किया ही नही किसी को तो फिर ये लौंडिया मुझपर क्यूँ भड़क रही है....कही कल दारू के नशे मे अरुण लोगो ने तो ये बक्लोलि नही की और फिर मुझे पता ना चले इसलिए नंबर मिटा दिया होगा.....या फिर ये लौंडिया मुझे चोदु तो नही बना रही...
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"हेलो...तो मैं क्या करूँ..."वो लड़की फिर मुझपर चीखी...

"दो मिनिट आप,होल्ड कर सकती है क्या...मैं अपने दोस्त से पुच्छ लेता हूँ कि कहीं उसने तो कॉल नही किया...प्लीज़..."

"ओके...ओके, "

"थॅंक्स..."

बोलकर मैने कस्टमर केयर को कॉल किया और अपने लास्ट थ्री कॉल्स की डीटेल्स माँगी और जो बात मेरे सामने आई ,वो ये कि मेरे नंबर से लास्ट कॉल कल का था...यानी ये लौंडिया जो बहुत देर से एफ.आइ.आर. -एफ.आइ.आर. कर रही थी...उसने या तो ग़लती से मेरा नंबर डाइयल कर दिया था,या फिर मेरे मज़े ले रही थी...इसकी माँ का
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"ओह ,हेलो...जानेमन..."

"ये क्या बदसलूकी है..."

"देखो बेब्स....आवाज़ नीचे करके बात कर,वरना मैं तेरे खिलाफ एफ.आइ.आर. दर्ज करवा दूँगा कि तू सुबह-सुबह एक रहीस, शरीफ और भावी इंजिनियर को कॉल करके धमका रही है...."

"ये तो उल्टी ही बात हुई की...पहले खुद रात भर कॉल करके रूबिश लॅंग्वेज मे बात करो और फिर सुबह उल्टा धमकिया दो..."

"मैने तुझे कॉल किया ? अबे मैं अपने बाप को कॉल नही करता तो फिर तुझे क्या खामखा कॉल करूँगा...चल फोन रख दे,वरना ऐसे बजाउन्गा कि ज़िंदगी भर बजती रहेगी...."अपना गला फाड़ते हुए मैने कॉल डिसकनेक्ट किया और मोबाइल दूर पटक दिया....
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"क्या हुआ ,अरमान भाई....ये सुबह-सुबह किसे बजा रहे हो..."मेरे कानो मे राजश्री पांडे की आवाज़ पड़ी....

मैने रूम मे चारो तरफ देखा ,लेकिन पांडे जी कहीं दिखाई नही दिए,

"ये कही मेरे कान तो नही बज रहे...मुझे अभी ऐसा लगा कि राजश्री ने मुझसे बात की..."

"अरे इत्थे देखो,अरमान भाई...इत्थे..."

"लवडा फिर मेरा कान बजा...."

"अरे कान नही बज रहा, मैं बिस्तर के नीचे पड़ा हूँ..."पांडे जी ने एक बार फिर मुझे आवाज़ लगाई...

"तू साले, पांडे...यहाँ मेरे बेड के नीचे क्या कर रहा है...निकल बाहर, बोसे ड्के...."

बोलने के साथ ही मैने पांडे जी का पैर पकड़ा और घसीट कर बिस्तर के नीचे से बाहर किया...

मेरा पूरा रूम बिखरा पड़ा था , मेरे रूम की हालत ऐसे थी ,जैसे कल रात यहाँ चोरी हो गयी हो...और तो और इस वक़्त अरुण ,सौरभ का भी कहीं अता-पता नही था....

राजश्री पांडे को बेड के नीचे से घसीट कर बाहर निकालने के बाद मैं वही उसके पास बैठ गया और उससे अरुण और सौरभ के बारे मे पुछा....
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"जब आप सो गये थे तब वो दोनो माल चोदने गये थे...लगता है वापस नही आए...और सूनाओ क्या हाल है..."

"एक दम घटिया हाल है और ये बता ये रूबिश लॅंग्वेज का मतलब क्या होता है..."

"अगर इतना ही पता होता तो मैं आज यहाँ नही बल्कि एमआइटी या ऑक्स्फर्ड यूनिवर्सिटी मे होता...आप भी ना अरमान भाई,कमाल करते हो..."

"चल ठीक है और यहाँ से जाने के पहले पूरा रूम सॉफ करके जाना वरना बहुत चोदुन्गा..."
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वहाँ से उठकर मैं नहाने पहुचा और नाल खोलकर अपना सर ठंडे पानी के नीचे किया, जिसके कारण मेरा सर कुच्छ हल्का हुआ....

"ये लौंडी कौन थी,इसकी माँ का...साली ने तो एक पल के लिए डरा ही दिया था....यदि मेरे कॉलेज की होती तो चूत फड़कर पूरा कॉलेज उसके अंदर घुसा देता...साली म्सी बीकेएल"

दारू का असर कॉलेज जाते वक़्त भी था...कॉलेज जाते वक़्त मेरा थोबड़ा ऐसे मुरझाया हुआ था जैसे अभी कुच्छ देर पहले किसी ने मुझे पकड़ कर दो चार हाथ जमा दिए हो...

"आज से दारू बंद..."एक सौ एक्किसवि बार झूठ बोलते हुए मैने खुद से कहा और क्लास के अंदर घुसा...

अब जब दिन की शुरुआत ही इतनी कन्फ्यूषन भरी रही हो तो बाकी का दिन कैसे अच्छा जाने वाला था...उपर से हमारे मेकॅनिकल डिपार्टमेंट की लड़कियो की शकल देखकर तो नोबेल पुरस्कार जीतने वाले बंदे का भी खुशी से झूम उठा हुआ मूड खराब हो जाए...साली एक तो अखंड काली उपर से किसी खून पीने वाले जानवर की तरह दाँत और जब वो मुझे देखकर मुस्कुराती थी तो दिल करता कि अपना सर अपनी डेस्क पर दे पटकु कि क्यूँ मैने उसकी तरफ देखा..क्यूँ
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शुरू के दो पीरियड मैने शांत गुज़रे और तीसरे पीरियड मे मेरे दोस्तो की एंट्री होने के बाद मैं कुच्छ रिलॅक्स हुआ....
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"क्यूँ बे अरुण, मुझे राजश्री पांडे ने बताया कि तुम लोग कल रात रंडी चोदने गये थे ,साले कुत्तो..."चलती हुई क्लास के बीच मे मैने खीस-पिश की....

"तो इसमे क्या बुरा किया...लेकिन साली कोई चोदने को मिली नही..."

"क्यूँ...सब सुधर गयी क्या.."

"सुधरी नही...म्सी ,सब दिन भर चूत मरवा-मरवा के थक कर सो गयी थी और जब रात के 1 बजे हम दोनो ने उनका दरवाजा खटखटाया तो सालियो ने माँ-बहन की गालियाँ देते हुए हमे वहाँ से भगा दिया..."

"इसीलिए....इसीलिए मैं रंडी चोदने नही जाता हूँ...सालो कुच्छ तो लेवेल रखो अपना..."

"काहे का लेवेल बे....सीधे-सीधे बोल ना कि तेरा लंड खड़ा नही होता है..."

"नो बेब्स...ऐसा नही है, मेरा लंड जब खड़ा होता है तो जितना बड़ा तू है,उतना बड़ा होता है...लेकिन वो क्या है ना कि ' आइ डॉन'ट लाइक दट चूत विच कनेक्ट वित माइ लंड ड्यू टू मनी'...."

"रहने दे...सब मालूम है मुझे, तभी दीपिका रंडी ने अच्छे से चूसाया था थर्ड सेमेस्टर मे...मुँह मत खुलवा मेरा,वरना..."
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"तुम दोनो खुद बाहर जाओगे या मैं धक्के मार कर बाहर निकालु..."हमारे पवर प्लांट इंजीनियरिंग. सब्जेक्ट के प्रोफेसर ने हमे देख कर बड़े ही शालीनता से कहा...जैसे वो हमे बाहर जाने के लिए नही बल्कि किसी बात पर हमे शाबाशी दे रहे हो.....खैर हम दोनो वहाँ से बाहर आए और 5थ, 6थ और 7थ सेमेस्टर के बाद ये पहला मौका था,जब मुझे क्लास से निकाल दिया गया था.....
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प्रोफेसर ने हम दोनो को क्लास से बाहर निकाल फेका और साथ मे ये भी कहा कि हम दोनो यही क्लास के बाहर ही खड़े रहे...फिर क्या था,हम दोनो पूरी पीरियड भर क्लास के सामने खड़े रहे...इस बीच जो भी वहाँ से गुज़रता उससे हम दोनो हाई..हेलो कहते और उसके पुछने पर कि हम दोनो यहाँ बाहर क्यूँ खड़े है,क्लास के अंदर क्यूँ नही जाते तो हमारा जवाब होता कि हम दोनो क्लास आने मे लेट हो गये थे, इसलिए नेक्स्ट क्लास से अंदर जाएँगे...

क्लास ख़तम होने के बाद वो प्रोफेसर बाहर निकला और हम दोनो से बोला कि रिसेस मे पूरी क्लास को लेकर ऑडिटोरियम मे हम लोग आ जाए, प्रिन्सिपल सर को कुच्छ कहना है.....

"क्या कहना है सर, प्रिन्सिपल सर को..."अरुण ने प्रोफेसर से पुछा...

"जितना बोला हूँ उतना करो...ज़्यादा चपड-चपड ज़ुबान मत चलाओ,वरना जीभ काट लूँगा...टाइम से पहुच जाना..."

"तेरी *** की चूत, तेरी *** का भोसड़ा...तेरी *** का लंड..."साइलेंट मोड मे अपनी आदत अनुसार अरुण ने अपना मुँह चलाया और क्लास के अंदर दाखिल हुआ.....
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रिसेस के वक़्त जैसा कि पवर प्लांट वाले सर ने कहा था उसका पालन करते हुए हम सब ऑडिटोरियम पहुँचे और जैसे ही ऑडिटोरियम मे पहुँचे तो...वहाँ कॉलेज के सभी ब्रांच के फाइनल एअर वाले स्टूडेंट्स मौज़ूद थे....बोले तो फुल महॉल.

"ब्रांच वाइज़ बैठने की कोई ज़रूरत नही है...सब लोग जहाँ चाहे,वहाँ बैठ सकते है...."स्टेज पर खड़ा हुआ एक आदमी बोला...

"चल बे अरुण, दूसरी साइड चलते है,वहाँ सीएस की लड़किया बैठी हुई है...उन्ही के पीछे बैठेंगे...."

सीएस की लौंडिया का नाम लेना तो सिर्फ़ मेरे लिए एक बहाना था, मेरा मूड तो एश के ठीक पीछे वाली सीट मे बैठने का था...ताकि हम दोनो के बीच की केमिस्ट्री मे कम से कम कोई रिक्षन तो हो....

एश के लिए मेरे धड़कते दिल मे हमेशा वही अहसास,वही खुमार बना रहा ,जो उसे पहली बार देखने से शुरू हुआ था...और हर दिन वो बढ़ता ही जा रहा था. जी तो करता की अपना दिल चीर कर उसे दिखा दूँ और उसे अपने प्यार का नज़राना पेश करू,लेकिन फिर सोचा की ज़्यादा शान-पट्टी नही झाड़ना चाहिए...वरना यदि अपना दिल चीर-फाड़ भी दिया तो क्या फ़ायदा...मरना तो मुझे ही होगा, इसलिए फिलहाल मैने ये दिल की चीरा-फाडी करने का प्रोग्राम कॅन्सल कर दिया .....

लड़कियो से कनेक्षन के मामले मे मैं एसा के सिवा अब तक र.दीपिका, विभा और आंजेलीना डार्लिंग के ही संपर्क मे रहा था....लेकिन जैसा उत्साह मेरे दिल मे एश को देखकर आता था ,वैसा उत्साह बाकी की तीनो हसीनाओ को देखकर नही आता था....जिसका कारण था कि बाकी तीनो लड़किया बहुत चालू थी लेकिन एश भोली-भाली प्यारी सी,सुंदर सी ,परी जैसे दिखने वाली एक बिना दिमाग़ की लड़की थी....जिसे कोई भी ,कभी भी बेवकूफ़ बना सकता था...वो तो शुक्र हो एश के बाप का जिसके रौब के कारण पूरे कॉलेज मे किसी लड़के के अंदर हिम्मत नही हुई कि वो कभी एश से जाकर बदतमीज़ी करे.....वरना कॉलेज तो वो 10 दिन मे ही छोड़ कर भाग जाती...
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मैं और मेरी मंडली ने एश और उसके फ्रेंड्स के ठीक पीछे वाली रो पर अपना तशरीफ़ रखा और फिर हमारे हेरलेस प्रिन्सिपल सर ने अंदर एंट्री मारी....

"मुझे बहुत खुशी हुई कि आप सब यहाँ आए...उसके लिए सभी को धन्यवाद...."

"कोई बात नही सर...ये आप पर एहसान रहा..."प्रिन्सिपल के भाषण का एक्स-रे करते हुए अरुण ऐसे ही कुच्छ भी बके जा रहा था.(और इस एक्स-रे का रिज़ल्ट नीचे रेड कलर मे शो होगा)

"आप सब यही सोच रहे होंगे कि मैने आपको यहाँ क्यूँ बुलाया,दरअसल बात ये है कि इस वर्ष हमारे कॉलेज के पचास वर्ष पूरे होने के उपलक्ष मे समिति ने स्वर्ण जयंती मनाने का फ़ैसला किया है.."

"ये सला बूढऊ, स्वर्ण जयंती मे सोने के सिक्के बाँटेगा क्या बे अरमान..."

अरुण को इस वक़्त मैने फुल्ली इग्नोर मारा क्यूंकी क्या पता प्रिन्सिपल सर सबके सामने खड़ा करके इन्सल्ट कर दे...इसलिए मैं बड़े ध्यान से उनकी बातें सुनने मे लगा हुआ था.....

"मेरे ख़याल से स्वर्ण जयंती शब्द से यहाँ सभी परिचित ही होंगे कि यह स्वर्ण जयंती समारोह किसी विद्यालय या महाविद्यालय या फिर किसी विश्वविद्यालय मे क्यूँ आयोजित किया जाता है....खैर ये सब तो हम सबके लिए पहली खुशी का विषय है कि लेकिन दूसरी खुशी का विषय जो है वो ये कि स्वर्ण जयंती समारोह का उद्घातटन और कोई नही बल्कि इस राज्य के मुख्यमंत्री महोदय करेंगे और वही हमारे स्वर्ण जयंती समारोह के मुख्य अतिथि भी रहेंगे...."

"ये एमसी टकला संस्कृत मे बात कर रहा है क्या बे, बीसी..."

"अभी कुच्छ देर पहले ही हमारी मुख्यमंत्री महोदय से बात हुई थी और तीसरी खुशख़बरी जो मैं आपको देने वाला हूँ वो ये है कि अगले वर्ष से हमारा ये इंजिनियरिंग कॉलेज, अटॉनमस बनने जा रहा है...."
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'अटॉनमस' वर्ड सुनते ही वहाँ ऑडिटोरियम मे बैठे सभी लौन्डो ने जोरदार तालिया बजानी शुरू कर दी और इधर ये वर्ड मैं पहली बार सुन रहा था, इसलिए मुझे कुच्छ पता ही नही चला कि आख़िर लौन्डे इतनी तालिया क्यूँ बजा रहे है...लेकिन जब सब बजा ही रहे थे ,तो हमने भी बजा दी ताकि किसी को शक़ ना हो कि हमे कुच्छ समझ नही आया है मैने अरुण की तरफ देखा और अरुण ने सौरभ की तरफ देखा...इस आस मे कि हम तीनो मे से किसी एक को तो उस 'अटॉनमस' बॉम्ब का मतलब मालूम ही होगा...

"तुम तीनो ठहरे बक्चोद लेकिन अभी चुप रहो ,बाहर सब कुच्छ समझा दूँगा..."सुलभ ने अपना सीना थोड़ा चौड़ा करके कहा....
"रहण दे...कोई ज़रूरत नही है , मेरे पास गूगल महाराज है ,मैं अभी चेक कर लेता हूँ..."

इधर एक तरफ मैं गूगल बाबा की छत्र-छाया मे पहुचा तो वही दूसरी तरफ प्रिन्सिपल सर ने अपना प्रवचन चालू रखा......

"तो मैने आप सबको यहाँ इसलिए बुलाया है क्यूंकी स्वर्ण जयंती के उपलक्ष्य मे हम एक बहुत बड़ा कार्यक्रम रखेंगे, जिसकी जानकारी आप सभी को छत्रपाल जी देंगे....यहाँ आने के लिए सबका बहुत-बहुत धन्यवाद...आप सभी का दिन मंगलमय हो..."
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मंगलमय का आशीर्वाद देने के बाद हमारे प्रिन्सिपल सर वहाँ से हटे तो छत्रपाल सर ने माइक का टेटुआ पकड़ लिया...प्रिन्सिपल सर के ऑडिटोरियम से जाने के बाद सभी स्टूडेंट्स रिलॅक्स हुए, वरना अभी तक अपनी कमर ऐसे सीधी किए हुए थे ,जैसे पीछे कोई हंटर लेकर खड़ा हो और उसने वॉर्निंग दे के रखी हो कि यदि ज़रा सा भी पीछे टिके तो रगड़ के रख दूँगा...खैर ये सब तो चलता रहता है.
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एश , दिव्या और उसके पास बैठी हुई बाकी लौन्डियो को ये पता चल गया था कि इस कॉलेज का सबसे स्मार्ट बंदा उनके पीछे बैठा हुआ है और जब से उन्हे ये बात मालूम पड़ी उनमे से कोई ना कोई बीच-बीच मे पीछे पलट कर ये कन्फर्म करती कि ,मैं सच मे वहाँ बैठा हूँ या मेरा कोई प्रतिबिंब वहाँ है , मेरी आगे रो वाली लगभग सभी लड़कियो ने पीछे पलट कर हमे देखा और उस वक़्त हम सबको ऐसे अहसास हुआ जैसे इस दुनिया के सबसे खूबसूरत बंदे हमी लोग है लेकिन उनका बार-बार यूँ पीछे मुड़कर हमे देखना ,हमारे गाल पर तमाचे की तरह तब लगा...जब प्रिन्सिपल सर के जाने के बाद आगे वाली रो की सभी लड़किया वहाँ से उठकर पीछे चली गयी.....

"इनका माँ का..."अरुण आगे कुच्छ बोलता उससे पहले ही मैने उसका मुँह बंद कर दिया....

कुच्छ देर बाद वहाँ और भी कयि टीचर्स आ गये,जिसमे हमारे कॉलेज की बॅस्केटबॉल टीम का कोच भी था....जब सब आ गये तो छत्रपाल सर, ने बोलना शुरू किया....
छत्रपाल सर हमारे कॉलेज के सबसे चहेते टीचर्स मे से एक थे, मतलब कि वो ऐसे टीचर थे,जिनकी लौन्डे थोड़ी बहुत इज़्ज़त करते थे.....छत्रपाल जी ने हमे बताया की गोलडेन जुबिली के इस सुनहरे मौके पर कुल 7 दिन का फंक्षन होगा...जिसमे प्रॉजेक्ट्स, मॉडेल्स, सिंगिंग,डॅन्सिंग,स्पोर्ट्स एट्सेटरा. कॉंटेस्ट आयोजित किए जाएँगे और जिस स्टूडेंट को जिस फील्ड मे इंटेरेस्ट हो,वो उस फील्ड से रिलेटेड टीचर के पास जाए और तैयारी शुरू कर दे....इस बीच एक सवाल मेरे अंदर उठा वो ये कि अभी तक ऐसी कोई बात नही हुई थी,जिसमे कॉलेज के सिर्फ़ फाइनल एअर के स्टूडेंट्स को ही बुलाया जाए...लेकिन छत्रपाल सिंग ने मेरा डाउट कुच्छ देर मे ही दूर कर दिया....और जो बात हमे पता चली वो ये कि हम फाइनल एअर वालो को ऑडिटोरियम मे इसलिए बुलाया गया था ताकि हम गोलडेन जुबिली फंक्षन को सही ढंग से चलाए,बोले तो सारी ज़िम्मेदारी हम पर ही थी....जैसे कि कॉलेज के जूनियर्स के क्लास मे जाना और उनसे पुछ्ना कि क्या वो गोलडेन जुबिली फंक्षन मे पार्टिसिपेट करेंगे....

"मैं तो बिल्कुल भी ये चूतियापा नही करने वाला...साला नौकर समझ रखा है क्या..."अरुण फिर भड़क उठा...

"चिंता मत कर हम लोग ये सब नही करेंगे बोले तो हम लोग किसी चीज़ मे पार्टिसिपेट ही नही करेंगे...दे ताली"
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अब जब मैने और मेरे दोस्तो ने ये डिसाइड कर लिया कि हम लोग इस पूरे चका-चौंध से दूर रहेंगे तो तभी बॅस्केटबॉल का कोच सामने आया और उसने कहा कि जिस-जिस को भी बॅस्केटबॉल खेलना आता है,वो यहाँ आ जाए....और ये सुनते ही मेरे अंदर घंटी बजी...लेकिन मैं फिर भी नही उठा...

"अरमान जा बे, इंप्रेशन जमाने का सॉलिड मौका है..."अरुण ने मुझे कोहनी मारते हुए कहा...

"अबे कहा यार, अब तो बॅस्केटबॉल पकड़ना भी भूल गया हूँ....खम्खा फील्ड मे बेज़्जती हो जाएगी..."

"अबे,यदि शेर शिकार करना छोड़ दे तो इसका मतलब ये नही होता कि वो शिकार करना भूल गया है...इसलिए जा मेरे शेर जा....और अब तो गौतम भी नही है..."

"नो बेब्स...अब मेरे बस की नही रही..और वैसे भी बॅस्केटबॉल का खेल कोई चुदाई करने का खेल नही है,जहाँ तीन साल बाद भी चूत से दूर रहने के बाद जब अपना लंड चूत मे डालोगे तो परर्फमेन्स वही रहेगी.... "
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धीरे-धीरे जिन्हे गोलडेन जुबिली के फंक्षन मे पार्टिसिपेट करना था ,वो सब अपने-अपने ग्रूप मे बँट गये....लेकिन हम चारो मे से अभी तक कोई नही उठा था और फिर छत्रपाल सिंग ने आंकरिंग के लिए इंट्रेस्टेड स्टूडेंट्स को स्टेज पर बुलाया....

"वो देख तेरे सपनो की रानी ,आंकरिंग के लिए जा रही है..."एश को स्टेज की तरफ जाते देख सौरभ ने मेरी चुटकी ली...
और एक बार फिर मेरे अंदर घंटी बजी और इस बार वो घंटी रुकने के बजाय लगातार बजती ही रही....और मेरे दिल मे ख़याल आया कि मैं जाउ या नही.....
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"अरुण ,मैं आंकरिंग करने जाउ क्या....एश भी जा रेली है..."

"तू और आंकरिंग... अबे बक्चोद ,वहाँ स्टेज पर जाकर गालियाँ नही देनी है...तू रहने दे कक्के..."

"ऐसा क्या फिर तो पक्का मैं जाउन्गा...."बोलते हुए मैं अपनी जगह पर खड़ा हुआ लेकिन अरुण ने मुझे वापस बैठा दिया....

"चुदेगा बेटा...बैठ जा चुप चाप..."

"एक असली मर्द की पहचान उसकी बातो से नही बल्कि उसके कारनामो से होती है और मैं ये कारनामा करके के ही रहूँगा....छोड़ मुझे..."

"मुझे मालूम है कि तू अपनी उस आइटम को देखकर जा रहा है,लेकिन कुच्छ देर बाद जब तेरा जोश ठंडा होगा ना तब सबके सामने कुच्छ बोलने मे तेरी फटेगी...."

"एश मिल जाए तो मैं अपनी इंजिनियरिंग छोड़ दूं,फिर ये आंकरिंग क्या चीज़ है..."

आंकरिंग वाले मसले पर अरुण को मुझसे आर्ग्युमेंट करते देख सौरभ ने अरुण को चुप कराया और मुझसे बोला"जाइए, यहाँ बैठे क्यूँ हो...अपना शौक पूरा करो..."

"य्स्स...तू ही मेरा सच्चा दोस्त है, आइ लव यू..."

मैं अपनी जगह से उठा और स्लोली-स्लोली चारो तरफ का महॉल देखते हुए चलने लगा....मेरे स्टेज पर पहुचते तक वहाँ छत्रपाल सिंग के साथ एश को छोड़ कर दो लोग और थे, जिनमे से एक लड़की थी और एक लड़का.....

मैं जब छत्रपाल सिंग के सामने जाकर खड़ा हुआ तो उन्होने मुझसे पुछा" क्या बात है अरमान..."

"मैं सोच रहा था कि मैं आंकरिंग अच्छा कर सकता हूँ...."

"क्या..."मेरे मुँह से आंकरिंग करने की बात सुनकर छत्रपाल जैसे बेहोश होकर गिरने ही वाला था ,लेकिन फिर बाद मे उन्होने खुद को संभाल लिया....जो हाल इस वक़्त छत्रपाल सर का था ,वैसा ही कुच्छ हाल वहाँ मौज़ूद उन स्टूडेंट्स का भी था,जिन्होने मेरे आंकरिंग करने की बात सुनी थी....
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"आर यू श्योर ! ,क्यूंकी मुझे नही लगता कि तुम कर पाओगे...."

"यहाँ आते वक़्त तो श्योर ही था और अब भी श्योर ही हूँ...इसलिए जल्दी से प्रॅक्टीस शुरू करते है..."

"एक मिनिट, ज़रा रुकिये तो....पहले टेस्ट तो कर ले कि तुमसे कुच्छ बोला भी जाता है या ऐसे ही यहाँ स्टेज पर आ गये...."मेरे हाथ मे माइक पकड़ते हुए सिंग सर ने ऑडिटोरियम मे बैठे सभी स्टूडेंट्स को सामने देखने के लिए कहा और फिर मुझे देखकर बोले"एक-दो लाइन ज़रा बोलकर दिखाना तो..."

"बोलना क्या है...ये तो बताओ पहले..."दिल की तेज़ होती हुई धड़कनो को नॉर्मल करते हुए मैने पुछा....

"कुच्छ भी बोल दो, चाहे तो अपना इंट्रोडक्षन ही दे दो ,सबको...."

"ठीक है...फिर..."मैने माइक पर अपना एक हाथ मज़बूत किया और सिंग सर के पास से दो कदम आगे आकर अपना दूसरा हाथ उठाते हुए बोला"आर यू थिंकिंग अबाउट मी..."

इतना बोलकर मैं चुप हो गया और 'यस' के जवाब का इंतज़ार करता रहा,लेकिन ऑडिटोरियम मे बैठे हुए लोगो मे से किसी एक ने भी जवाब नही दिया....

"सर ,इन लोगो को इंग्लीश नही आती..."सिंग सर की तरफ पलटकर मैने मज़े लेते हुए कहा...जिसके बात पूरा ऑडिटोरियम हँसने लगा...और मैं खुद से पुछने लगा कि 'मैने अभी कोई जोक मारा क्या ?'

"आर यू थिंकिंग अबाउट मी...."

"यस...."अबकी बार पूरा ऑडिटोरियम गूंजा...

"इफ़ यू आर थिंकिंग अबाउट मी देन इट'स एनफ टू शो माइ पॉप्युलॅरिटी...लव यू ऑल..."बोलने के बाद मैने सिंग सर को माइक थमाया और उनसे पुछा"कैसा लगा सर..."

"कल सुबह 10 बजे यही पर आ जाना...."

"पहुच जाउन्गा सर..."
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स्टेज से अपने दोस्तो की तरफ आते हुए मैने अपना कॉलर खड़ा किया और अरुण के कंधे पर अपनी कोहनी रख कर बोला"अब बोल ,क्या बोलता है..."

"दिव्या की जल कर राख हो गयी थी, साली तुझे देखकर ऐसे मुँह बना रही थी जैसे दुनिया भर का गोबर उसके मुँह मे पेल दिया गया हो...साली छिनार"

"दिव्या... दिव्या से याद आया ,सुलभ तू अपना मोबाइल दे तो एक मिनट. "

मैने सुलभ से मोबाइल लिया और आज सुबह जिस नंबर. से मुझे कॉल आया था ,उसे डाइयल करने लगा...क्यूंकी मैं चेक करना चाहता था कि कही वो कॉल दिव्या का तो नही था...और अपने मोबाइल से कॉल ना करके सुलभ के मोबाइल से कॉल करने का भी एक लॉजिक था क्यूंकी यदि वो कॉल दिव्या की ही करामात थी तो उसके पास ज़रूर मेरा नंबर. होगा और वो इस वक़्त कॉल नही उठाएगी और अरुण का नंबर. तो उसके पास थर्ड सेमिस्टर. से ही है इसलिए मैने सुलभ का मोबाइल माँग कर उस नंबर. पर कॉल किया....

कॉल करते वक़्त मैं अपनी जगह पर खड़ा हुआ और पीछे की तरफ बैठी हुई दिव्या को देखने लगा....घंटी जाती रही लेकिन ना तो ऑडिटोरियम मे कोई रिंगटोन सुनाई नही दी और ना ही किसी ने कॉल रिसीव किया...

"कॉलेज मे तो सबका मोबाइल तो साइलेंट मे रहता है...ऐसे तो पता नही चलने वाला...लेकिन कोई बात नही नेक्स्ट टाइम देख लूँगा इसे...."

"क्या हुआ बे ये खड़ा होकर पीछे क्या देख रहा है,वो देख सामने माल है..."मुझे सामने स्टेज की तरफ मोडते हुए अरुण बोला...

लेकिन मेरा ध्यान अभी सामने वाली उस लड़की पर ना होकर पूरी तरह दिव्या पर था....मैने एक बार और वो नंबर ,सुलभ के मोबाइल से ट्राइ किया....लेकिन इस बार भी सिर्फ़ रिंग जाती रही...लेकिन किसी ने कॉल रिसीव नही किया...
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कोई कॉल रिसीव नही कर रहा था जिससे मुझे और भी शक़ होने लगा था कि सवेरे-सवेरे मुझे कॉल करने वाली लड़की ज़रूर यहाँ मौज़ूद है....इसलिए मैने तीसरी बार ट्राइ किया और पीछे मुड़कर दिव्या पर अपनी आँखे गढ़ाए रखा...

"अबे तू ये बार-बार चूतियो की तरह किसे फोन कर रहा है...वो सामने वाली माल देख..."

"चुप रहेगा दो मिनिट...कुच्छ काम कर रहा हूँ ना..."अरुण पर झल्लाते हुए मैं बरस पड़ा...इस बीच रिंग बराबर जा रही थी.....

"तू कही एश को तो फोन नही कर रहा,....वो देख उसके मोबाइल का स्क्रीन हर थोड़ी देर बाद लॅप-लप्प, लॅप-लप्प हो रहा है...."
" क्या बोला बे..."

"सामने देख तो...."

"एक सेकेंड...."मैने कॉल डिसकनेक्ट करके फिर से उस अननोन नंबर पर घंटी मारी और एश के स्क्रीन की लाइट मेरे मोबाइल से जाते हुए रिंग के साथ ,लॅप-लप्प होना शुरू हो गयी....इसके बाद मैने बॅक टू बॅक 2-3 कॉल किए और जो नतीज़ा मेरे सामने आया उसे देखकर मैं चक्कर भी खा गया और बहुत खुश भी हुआ...

मैं चक्कर क्यूँ खा गया, ये तो सभी जानते है और मैं बहुत खुश क्यूँ हुआ, मेरे ख़याल से ये भी बताने की ज़रूरत नही है

,लेकिन जैसा कि लड़कियो पर मेरा भरोशा नाम-मात्र का भी नही था ,इसलिए मेरे शक़ की उंगली सबसे पहले दिव्या की तरफ गयी.....

"ज़रूर ये उस बबूचड़ र.दिव्या की करामात होगी...वरना मेरी एशू जानेमन ऐसा कैसे करेगी... ,दिव्या...साली ,डायन...लेकिन यदि ये काम दिव्या का ना हुआ तो....फिर ? "

"बेटा ,ज़रूर कुच्छ लफडा होने वाला है...मैं तो शुरू से ही कहता था कि ये लड़की कुच्छ ठीक नही...पहले तो तूने मेरी बात नही मानी, अब भुगत..."

"तू ये बोल तो ऐसे रहा है ,जैसे तू बड़ा समझता है लड़कियो को...तभी दिव्या ने गान्ड दिखा दी..."

"अरे हो जाता है कभी-कभी...इट'स ओके बेबी....और वैसे भी मैने कम से कम दिव्या का दूध तो दबाया तूने क्या दबाया...."

"मैने....मैने...."सोचते हुए मैने कहा"मैं ऐसा -वैसा लड़का नही हूँ..."

"मेरा लंड है तू...अब भी मान जा, वरना तू एक दिन ऐसा ठुकेगा, ऐसा ठुकेगा कि फिर दोबारा कभी थूकने के लायक नही रहेगा...."

"जानेमन यही तो तुम जैसे छोटे आदमी और मुझ जैसे बड़े आदमी मे फ़र्क है कि तुम ख़तरो से घबराते हो और मैं ख़तरो से खेलता हूँ..."

"तुम दोनो अब शांत हो जाओ,वरना यही पर जूता मारूँगा...लवडे के बालो...जब देखो लौन्डियो की तरह एक-दूसरे से भिडते रहते हो..."मुझे और अरुण को एक-एक घुसा जमाकर सौरभ ने शांत कराया....
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जबसे मुझे पता चला था कि सवेरे-सवेरे मेरे मोबाइल पर कॉल एश के हाथ मे पकड़े मोबाइल से आया था तभी से मैं उस कॉल के आने की वजह को लेकर अपनी थियरी बना रहा था...जिसमे एक थियरी ये भी शामिल थी कि 'एश को मुझसे प्यार हो गया है....'

वैसे तो मेरे बहुत सारे अनुमान थे लेकिन सही कौन सा अनुमान था इसका जवाब सिर्फ़ एश दे सकती थी...लेकिन ऑडिटोरियम मे सबके सामने उससे इस बारे मे बात करना मुझे कुच्छ जँचा नही इसलिए मैं वहाँ से अपने दोस्तो के साथ बाहर आया और वैसे भी अब तो आंकरिंग की प्रॅक्टीस मे साथ ही रहना है ,इसलिए मैं जल्दबाज़ी क्यूँ करूँ......
Reply
08-18-2019, 02:38 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
हमारे रिसेस यानी लंच का पूरा टाइम प्रिन्सिपल सर और छत्रपाल जी खा गये थे और इधर हम लोग बिना कुच्छ खाए-पिए वापस क्लास मे पहुँचे....हमारे क्लास मे कुच्छ लोग ऐसे थे जो अपने घर से टिफिन लाते थे ,जिनमे लड़के-लड़किया दोनो शामिल थे....अब कॅंटीन जाने का टाइम नही था और नेक्स्ट क्लास बड़ी इंपॉर्टेंट भी थी ,इसलिए मैने उन्ही कुच्छ लोगो पर हमला करने का सोचा,जो रोजाना अपने साथ अपना लंच बॉक्स लाते थे...लेकिन यहाँ भी एक दिक्कत थी ,वो ये कि लौन्डो की टिफिन हमारे क्लास मे आते तक सॉफ हो चुकी थी ,इसलिए मैने लड़कियो पर अपना जाल फेका...
लड़किया सच मे बड़ी भोली होती है,उनसे मैने दो-चार अच्छी बाते क्या कर ली, उन्होने मुझे अपना टिफिन दे दिया, ये सोचकर कि अरमान से उनकी दोस्ती हो गयी है .लेकिन उन्हे ये पता नही कि कल से मैं फिर उन्हे बत्ती देने लगूंगा.....
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हर हफ्ते हमारी स्पोकन इंग्लीश जैसे ही एक, दो घंटे की क्लास लगा करती थी, जिसका टाइटल था'वॅल्यू एजुकेशन...' लास्ट वीक वीई के क्लास के टाइम मैं घर मे बैठा रोटिया तोड़ रहा था इसलिए आज की वीई की क्लास मेरी फर्स्ट क्लास थी...
वीई के टीचर छत्रपाल जी थे और लौन्डो ने बताया था कि वीई की क्लास वो एक दम फ्रेंड्ली मूड मे लेते है....बोले तो छत्रपाल सिंग हमारे लिए एक टीचर कम फ्रेंड थे.
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"यार मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा है कि छत्रपाल गुरुदेव ने हमे कुच्छ होमवर्क दिया था..."अपना सर पर ज़ोर डालते हुए अरुण बोला...

"होम वर्क नही हॉस्टिल वर्क बोल..."

"हां...वही समझ...."एक बार फिर अपने दिमाग़ पर ज़ोर डालते हुए अरुण ने कहा"मेरे ख़याल से कोई 2-3 टॉपिक दिया था उन्होने और कहा था कि नेक्स्ट क्लास मे प्रेज़ेंटेशन देना है..."

"तब तो आज मस्त बेज़्जती होगी...मैने तो बुक खोल कर भी नही देखा...."सौरभ थोड़ा घबराते हुए बोला और गेट की तरफ अपनी नज़र दौड़ाई की छत्रपाल सर आए या नही....

"डर मत...कोई ऐसा घिसा-पिटा टॉपिक ही मिलेगा...कुच्छ भी बक देना..."अपनी बाँहे उठाते हुए मैंने ताव मे कहा और इसी के साथ छत्रपाल जी ने क्लास मे एंट्री मारी....
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"मैने कल कुच्छ टॉपिक दिया था...सॉरी मेरा मतलब लास्ट क्लास मे मैने कुच्छ टॉपिक दिया था , जिसपर सबको एक-एक करके यहाँ सामने आकर प्रेज़ेंटेशन देना है और जो-जो फर्स्ट ,सेकेंड, थर्ड आएगा...उसे मेरी तरफ से स्पेशल प्राइज़ मिलेगा....तो शुरू करते है...."पूरी क्लास की तरफ एक बार देखकर उन्होने अपनी उंगली सुलभ पर अटकाई और बोले"सुलभ आ जाओ और इसके बाद सौरभ तुम तैयार रहना..."
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सुलभ ने एक दम भड़कते हुए फुल इंग्लीश मे प्रेज़ेंटेशन दिया और वापस लौटते वक़्त एक शेर भी मार दिया और यहाँ साला मुझे यही समझ नही आया कि टॉपिक क्या था

सुलभ के प्रेज़ेंटेशन के बाद सौरभ सामने गया लेकिन बिना कुच्छ बोले...जैसे गया था,वैसे ही वापस आ गया और यही कुच्छ हाल अरुण का भी हुआ और अब अगली बारी मेरी थी.....
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"शुरू हो जाओ...5 मिनिट है तुम्हारे पास...."छत्रपाल ने मेरी तरफ देखकर मुझे अपना प्रेज़ेंटेशन शुरू करने के लिए कहा....
"किस टॉपिक पर प्रेज़ेंटेशन देना है सर..."

"किस टॉपिक पर प्रेज़ेंटेशन दे सकते हो..."उन्होने पुछा...

"कोई सा भी टॉपिक दे दो..."जबर्जस्त कॉन्फिडेन्स के साथ मैने कहा...

"'एतिक्स इन बिज़्नेस आर जस्ट आ पासिंग फड़ ?'...इस पर शुरू हो जाओ..."
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"ये कैसा भयंकर टॉपिक है जिसका एक वर्ड भी फेमिलियर नही लगता...साले ने पूरा कॉन्फिडेन्स ही डाउन कर दिया..."क्लास मे चल रहे फॅन की तरफ देखते हुए मैने बहुत सोचा, इंग्लीश के वर्ड्स को तोड़-मरोड़ कर कुच्छ समझना चाहा लेकिन मेरा दिमाग़ हर बार आउट ऑफ सिलबस चिल्ला रहा था...

"सर कोई दूसरा टॉपिक नही मिल सकता क्या..."रहम भरी आँखो से मैं छत्रपाल की तरफ देखा....

"कोई बात नही...दूसरा टॉपिक चूज़ कर लो..."

"दूसरा टॉपिक बोलिए..."

"'कॅपिटलिज़म ईज़ वेरी फ्लॉड सिस्टम बट दा अदर्स आर मच वर्स ?'....इस पर शुरू हो जाओ..."
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प्रेज़ेंटेशन का दूसरा टॉपिक सुनकर अबकी मेरा हाल पहले से भी बदतर हो गया क्यूंकी छत्रपाल सिंग द्वारा पूरा टॉपिक बोलने से पहले ही मेरे 1400 ग्राम के दिमाग़ ने 'आउट ऑफ सिलबस' की बेल बजा दी और मैने तुरंत ना मे अपनी गर्दन हिलाई....

"क्या हुआ ,तीसरा टॉपिक चाहिए..."

"यस सर..."

"फिर ये लो तीसरा टॉपिक 'शुड दा पब्लिक सेक्टर बी प्राइवेटाइज़्ड ' "

"सर, दरअसल बात ये है कि मैं लास्ट वीक की क्लास मे आब्सेंट था..."तीसरे टॉपिक को सुनकर मैने तुरंत कहा"नेक्स्ट क्लास मे पक्का "

"वेरी गुड...ऐसे करोगे आंकरिंग..."

"आपके टॉपिक्स ही कुच्छ ज़्यादा ख़तरनाक थे...मुझे लगा कि कोई जनरल सा टॉपिक मिलेगा...वरना मैं प्रिपेर्ड होकर आता..."

"तुम्हे क्या लगा कि मैं यहाँ फ़ेसबुक वनाम. ट्विटर...अड्वॅंटेज आंड डिसड्वॅंटेज ऑफ फ़ेसबुक....जैसे बेहद ही बकवास टॉपिक पे डिस्कशन करवाउन्गा...बड़े भाई, इट'स वॅल्यू ईडक्षन विच ईज़ रिलेटेड टू और एकनॉमिक्स....इस सब्जेक्ट को ध्यान से पढ़ लो बेटा, ज़िंदगी सुधर जाएगी...चलो जाओ "
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छत्रपाल जी के शब्दो के तीर से घायल हुआ मैं अपनी जगह पर पहुचा और उदास होकर बैठ गया, लेकिन जैसे-जैसे कार्यक्रम आगे बढ़ता गया वहाँ मेरे जैसे 10-12 लड़के और निकल गये...इसलिए क्लास के ख़त्म होते तक छत्रपाल सिंग के शब्द रूपी बानो के ज़ख़्म भर गये और मैं खुशी-खुशी छुट्टी होने के बाद बाहर निकला.....
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"यार ये अटॉनमस का मतलब तो अभी तक पता नही चला....."कॉलेज से निकलते वक़्त सौरभ ने नोटीस बोर्ड मे नज़र मारते हुए कहा और वही रुक कर अटॉनमस का मतलब देखने लगा...

" अटॉनमस का मतलब अब एग्ज़ॅम के पेपर हमारे ही कॉलेज मे बनेंगे, आन्सर शीट भी यही चेक होगी हमारे बकलंड टीचर के हाथो...अब चल..."सौरभ का कॉलर पकड़ कर मैने उसे खीचते हुए कहा"तू एक काम कर सौरभ...अरुण को लेकर चुप चाप हॉस्टिल निकल...मैं तेरी भाभी से बात करके आता हूँ...."

"तो जाना , अरुण से क्यूँ डर रहा है..."

"अबे वो एक नंबर का झाटु है,यदि मैने उसे ये बात बताई तो बोलेगा कि वो भी मेरे साथ जाएगा...इसलिए उसको लेकर तुम जाओ, हम थोड़ी देर मे आओ...."
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सौरभ एक दम गऊ था और ऐसे मौको पर वो मेरे बहुत काम आता था...उस दिन सौरभ,अरुण को बहला-फुसलाकर मेरे बिना हॉस्टिल ले गया...लेकिन मुझे मालूम है कि अरुण ने कम से कम चार बार तो ज़रूर पुछा होगा कि 'अरमान कहाँ मरवा रहा है'

क्या याराना है हमारा
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सौरभ को अरुण के साथ भेजकर मैं सीधे पार्किंग मे पहुचा, जहाँ इस वक़्त बहुत भीड़ थी . उस भीड़ मे मेरे क्लास के कयि लौन्डे थे और उन्ही मे से मैने एक का मोबाइल लेकर एश के आने का इंतज़ार करने लगा....

एश पार्किंग प्लेस मे अकेले आई क्यूंकी दिव्या के ड्राइवर ने उसे पार्किंग से बाहर ही पिक अप कर लिया था और यही मेरे लिए एसा से बात करने का एक सुनहरा मौका था....एसा को कार की तरफ बढ़ते देख मैने एक बार फिर उस अननोन नंबर को अपने दोस्त के मोबाइल से डाइयल किया...

"हेलो...कौन..."कार से थोड़ी दूर रुक कर एश ने अपने ड्राइवर को 5 मिनिट रुकने का इशारा किया और मुझे बोली"हू आर यू..."

"कभी सोचा नही था कि आप जैसी इज़्ज़तदार लड़की मुझे सवेरे-सवेरे कॉल करके परेशान करेगी..."

"आप कौन..."

"आज सुबह ही की बात है...याददाश्त अच्छी हो तो फ्लॅशबॅक मे जाकर याद करो कि आज सुबह किसे फोन किया था..."

"अरमान..."घबराते हुए एश पार्किंग की भीड़ मे इधर-उधर देखने लगी और तभिच मैने हवा मे अपना हाथ उठकर उसका ध्यान अपनी तरफ खींचा.....

मुझे वहाँ पार्किंग मे दूर खड़ा देख एश की साँसे रुक गयी...उसके चेहरे का रंग अपनी चोरी पकड़े जाने का कारण और मुझे वहाँ देख कर अपना रंग बदल रहा था...किसी पल वो मुझे देखकर हँसने की कोशिश करती तो किसी पल वो एक दम सिन्सियर बनने की आक्टिंग करती थी ,इस बीच उसका मोबाइल उसके कान पर और उसकी आँखे मुझ पर कॉन्स्टेंट थी...
एश को ऐसे महा विलक्षद स्थिति मे देखकर मैने हल्की सी मुस्कान देकर उसे रिलॅक्स दिलाया कि वो इतना ना डरे...मैं उसकी जान नही लेने वाला हूँ और कमाल की बात है कि वो मेरे उस मुस्कान के पीछे के अर्थ को समझ गयी....
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"मैं वहाँ आउ..."मोबाइल के ज़रिए एश से बात करते हुए मैने पुछा....

"नही...मतलब क्यूँ..हां, आ जाओ..."हड़बड़ाते हुए, शब्दो को तोड़-मरोड़ कर वो बोली"आ जाओ..."

"येस्स्स..."अंदर ही अंदर मैं खुशी के मारे 5 फीट उपर कूद गया और मोबाइल जिसका था,उसे देकर एश की तरफ हँसते-मुस्कुराते हुए चल दिया....
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मुझे मेरे नेचर के हिसाब से इस वक़्त बिल्कुल भी नर्वस या हिचकिचाना नही चाहिए था, लेकिन मेरे कदम जैसे-जैसे एश की तरफ बढ़ रहे थे...वैसे-वैसे एश की तरह मुझपर भी शर्म की एक परत बैठती जा रही थी...जबकि इस वक़्त कही से भी मेरी ग़लती नही थी.

सुबह कॉल एश के मोबाइल से आया था,लेकिन चोरो की तरह शरमा मैं रहा था....उस वक़्त मेरी वैसी हालत का एग्ज़ॅक्ट रीज़न तो मुझे नही मालूम लेकिन मुझे जितना पल्ले पड़ा उसके हिसाब से एश और मेरी मुलाक़ात आज तक तकरार, लड़ाई,झगड़े के कारण हुई थी...लेकिन आज पहली बार मैं एश से बिना किसी तकरार ,बिना किसी लड़ाई-झगड़े के मिलने जा रहा था...इसीलिए आज, जब कॉलेज मे मेरे कुच्छ ही दिन बाकी थे ,तब मैं थोड़ा शरमा रहा था.
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एश के पास जाकर मैं कुच्छ देर तक चुप खड़ा रहा और वो भी मेरे पास आने से अपने होंठ भीच रही थी....

"हाई...आइ आम अरमान..."

"आइ नो दट हू आर यू..."

"तो...मैं ये कहना चाहता था कि.....क्या कहना चाहता था "एश को देखकर मैं बोला"एक मिनिट रुकना...मैं सोचकर बताता हूँ..."

मुझे बहुत अच्छे से मालूम था कि मुझे ,एश से क्या बात करनी है..लेकिन मैं इस वक़्त घबरा रहा था कि कही एश बुरा ना मान जाए...क्यूंकी एश के अपने लिए ऐसी सिचुयेशन का इंतज़ार मैं पिछले चार सालो से कर रहा था और अब जाकर जब मेरे वो अरमान पूरे हो रहे है तो मैं नही चाहता था कि मेरा एक सवाल मेरे अरमानो को बिखेर दे....लेकिन वो कॉल वाली बात करनी तो ज़रूरी थी,वरना हमारी आगे बात ही नही होती...इसलिए थोड़ा लजाते हुए, थोड़ा घबराते हुए कि वो मेरे इस सवाल पर नाराज़ या उदास ना हो जाए मैने उससे कहा....
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08-18-2019, 02:38 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
"सुबह ,तुम्हारे मोबाइल से एक कॉल आया था...जिसमे मेरे खिलाफ एफ.आइ.आर. करने की बात की जा रही थी..."

"हां...उसके लिए सॉरी..."

"सॉरी बोलने की कोई ज़रूरत नही है...ये सब हँसी मज़ाक तो चलता रहता है, मैं बुरा नही मानता...तुम चाहो तो रात को 1 बजे भी मुझे ऐसे धमकी भरे कॉल कर सकती हो...लेकिन मैं कुच्छ और ही पुच्छना चाहता हूँ..."

"पुछो..."

"मैं ये पुच्छना चाहता हूँ कि आज अचानक...इस तरह मुझे कॉल कैसे कर दिया...मतलब कि....ऐसे मुझे कॉल करके धमकी देने का खुरापाति ख़याल कैसे आया..."

"वो आक्च्युयली मेरी मामी की लड़की आई हुई है और आज सुबह उसी ने ऐसे ही मज़ाक मे तुम्हे कॉल कर दिया, फिर जब मैं कॉलेज आ रही थी तो उसने बताया कि उसने सुबह तुम्हे कॉल करके धमकी दी है...सॉरी अरमान..."

"तभी मैं सोचु कि तुम्हारी आवाज़ को क्या हो गया है...और सूनाओ, ज़िंदगी कैसे कट रही है..."मैने हमारे बीच चल रही बातचीत को सुबह वाले कॉल से आगे बढ़ते हुए कहा, इस आस मे कि एश की लाइफ के कुच्छ रीसेंट अपडेट्स मुझे जानने को मिल जाएँगे...लेकिन एश लेट होने का बहाना करके कार मे बैठ गयी...
.
एश के वहाँ से जाने के बाद भी मैं बहुत देर तक वहाँ किसी भटकती आत्मा की तरह खड़ा होकर एश के साथ वाले पल को रिमाइंड करके मुस्कुराता रहा....लेकिन तभिच मेरे 1400 ग्राम के ब्रेन ने मुझसे पुछा कि"यदि वो कॉल एश की मामी की लड़की ने किया था ,तो फिर उसे मेरे बारे मे कैसे मालूम चला...क्यूंकी कोई भी इंसान किसी दूसरे इंसान का मोबाइल उठाकर यूँ ही कोई नंबर डाइयल करके मज़ाक नही करता....इसका मतलब मुझे कॉल करने वाली लड़की को मेरे बारे मे मालूम था .एक और सवाल जो मेरे अंदर उठा वो ये कि इतने भयंकर कांड हो जाने के बाद भी एश के मोबाइल पर मेरा नंबर कैसे सेव था और उसने मेरा नंबर सवे करके क्यूँ रखा था...."

"कोई बात नही बीड़ू...अब तो हर दिन एक घंटे एश के साथ रिहर्सल करना है,वही पुच्छ लिया जाएगा...अरमान, यू आर सो स्मार्ट "खुद की तारीफ करते हुए मैं हॉस्टिल के अंदर घुसा और सीधे वॉर्डन के रूम मे जाकर आज रात के प्रोग्राम के बारे मे डिसकस करने गया....
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वॉर्डन के रूम मे इस वक़्त 2-3 लड़के घुसे हुए थे ,जो पीसी मे फ़ेसबुक चला रहा था...

"क्या कर रहे हो बे लवडो और सर कहाँ है..."

"प्रिन्सिपल सर राउंड पर आए थे अरमान भैया...उन्ही को बाहर तक छोड़ने गये है..."

"एक बात बताओ..."वहाँ बैठे लड़को मे से एक को उठाकर मैं उसकी चेयर पर बैठा और बोला"तुम लोगो को कोई काम-धंधा नही है क्या ,जो जब देखो तब फ़ेसबुक मे भिड़े रहते हो...लास्ट सेमेस्टर क्लियर है क्या..."

"अरे आप भी बैठो...चाइनीस लड़की से चॅट कर रहा हूँ..."

"चाइनीस लड़की से "

"ह्म ,कल ही मेरी फ्रेंड बनी है...एकतरफ़ा माल है..."

"फोटो दिखा उसकी..."अपनी चेयर पीसी की तरफ सरकते हुए मैने स्क्रीन पर नज़र मारी...

मैने उस लड़की की प्रोफाइल पिक देखी ,लौंडिया एक दम करेंट थी और ऑनलाइन भी थी.उस वक़्त जब मैं उस चाइनीस लड़की की फोटो देख रहा था तभी मेरे जूनियर्स मे से एक ने उसकी प्रोफाइल पिक मे चाइनीस लॅंग्वेज मे कुच्छ लिखा...जिसे कुच्छ देर बाद ही उस चाइनीस लड़की ने लाइक भी किया...

"तुझे चाइनीस आती है क्या बे "

"अरे खाक चाइनीस आएगी मुझे...मैं तो ढंग से हिन्दी भी नही लिख पाता..वो तो मैं उस लड़की के उपर वाले कॉमेंट को कॉपी किया और लास्ट मे मादरचोद लिख कर पोस्ट कर दिया..."

"धत्त तेरी की "हँसते हुए मैने कहा"मतलब तूने उस लड़की को गाली दी और उसने तेरे कॉमेंट को लाइक भी किया "

"इतना ही नही...कल मैने उसे कहा कि..क्या वो मेरा लंड चुसेगी...रिप्लाइ इन यस ऑर नो', और जानते हो उसका क्या जवाब था..."

"क्या..."

"वो बोली 'यस..' इसके बाद उसने भी मेरा मेस्सेज कॉपी करके मुझसे पुछा कि..'क्या मैं उसका लंड चुसूंगा'...साली बक्चोद "
"लगे रह..."हँसते हुए मैं खड़ा हुआ और बोला"जब सर आ जाए तो मुझे आवाज़ दे देना...."
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उस रात किसी कारण वश हमारा दारू प्रोग्राम जमा नही,इसलिए अगले दिन मैं एक दम करेक्ट टाइम पर कॉलेज पहुचा और बॅग क्लास मे पटक कर सीधे ऑडिटोरियम की तरफ भागा.....

ऑडिटोरियम मे इस वक़्त कुच्छ 5 लड़किया और इतने ही लड़के थे...अब जब मुझे अपने कॉलेज की गोल्डन जुबिली मे आंकरिंग करनी थी तो ये ज़रूरी था कि इन बक्चोदो को लात मारकर बाहर करना पड़ेगा...साथ मे ये डर भी था कि कही ये ही मुझे डिसक्वालिफाइ ना कर दे...उन स्टूडेंट्स मे से जो मेरे जूनियर थे उन्होने मुझे 'गुड मॉरिंग' विश किया और जो स्टूडेंट्स मेरे ही बॅच के थे उन्होने मेरी तरफ देखा तक नही, सिवाय एश के .

ऑडिटोरियम मे इस वक़्त छत्रपाल सर को छोड़ कर हम सिर्फ़ 11 ही थे,इसलिए जिसका जहाँ मन हो रहा था...वो वही बैठ रहा था, मैने भी कुच्छ देर इधर-उधर देखा और आख़िर मे हिम्मत करके अकेली बैठी एश के पास जाकर चुप-चाप बैठ गया...

"सब आ गये...तो फिर शुरू करते है"स्टेज से नीचे उतरकर छत्रपाल सर ने सबको एक साथ,एक तरफ बैठने के लिए कहा और फिर बोले"आंकरिंग किसी भी फंक्षन या शो की जान होती है ,इसलिए आप मे से मैं जिन्हे भी सेलेक्ट करूँगा,उन्हे अपनी जान लगा देनी है...क्यूंकी ऐसा बड़ा फंक्षन अब इस कॉलेज मे या तो 25 साल बाद होगा या 50 साल बाद...हमे तो खुश होना चाहिए कि हम सब इसका हिस्सा बने,इसलिए इस साल को यादगार बनाने का एक बेहतरीन अवसर आंकरिंग के थ्रू तुम लोगो के पास है...."

छत्रपाल जी कुच्छ देर के लिए रुके और तब तक हम सब एक तरफ, एक साथ बैठ गये थे....अपनी कुच्छ देर पहले वाली जगह छोड़ते वक़्त मुझे छत्रपाल सर पर बहुत गुस्सा आया था क्यूंकी मैं अच्छा-ख़ासा एश के पास बैठा था और उन्होने मुझे वहाँ से उठा दिया था...
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"मैं 6 स्टूडेंट्स को सेलेक्ट करूँगा,जिसमे तीन लड़के और तीन लड़किया रहेंगे...और उन 6 स्टूडेंट्स को लेकर 2-2 के 3 ग्रूप बनेंगे.हर ग्रूप मे एक लड़का और एक लड़की रहेगी...अभी आज मैं सबको एक पेज दूँगा, जिसमे अब्राहम लिंकन की लाइफ के कुच्छ पहलू है...उन्हे आप सब यहाँ स्टेज पर आकर एक-एक करके बोलेंगे...और एक बात जो आप सबको अपने दिमाग़ मे बोलते वक़्त बिठानी है कि ये ऑडिटोरियम खाली नही ,पूरा भरा हुआ और जितने भी लोग यहाँ मौज़ूद है...वो सिर्फ़ और सिर्फ़ आपको सुनने आए है...सो लेट'स स्टार्ट वित अरमान...अरमान स्टेज पर जाओ..."

"इसकी माँ का...मैं ही पहला लड़का दिखा था इसे "
.
अपनी जगह से उठकर मैने छत्रपाल के हाथ से वो पेज लिया और स्टेज पर चढ़ गया और एक दम नॉर्मल फ्लो मे जैसा कि मेरा स्टाइल था, अपनी नॉर्मल आवाज़ मे बोला....और छत्रपाल सर के दिए गये पूरे के पूरे टेक्स्ट को मैने वाय्स मे कॉनवर्ट करके अपनी जगह पर वापस बैठ गया....
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08-18-2019, 02:39 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
अपना काम करने के बाद मैं ये मानने लगा था कि मेरा सेलेक्षन तो पक्का है,लेकिन जब सबने उस पेज को पढ़ा तब उस एक घंटे के ख़तम होते-होते तक मेरी ये धारणा ग़लत साबित हुई क्यूंकी वहाँ एक से बढ़कर एक थे...
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"अब आप सब अपनी क्लास मे जाओ, कल फिर से मिलेंगे...और एक बात , जब गोल्डन जुबिली का फंक्षन होगा तो उसके स्टार्टिंग मे किसी को बहुत ही लंबी स्पीच देनी पड़ेगी,वो भी बिना देखे...जिसका टॉपिक मैं तुम लोगो को दे दूँगा....तो कोई तैयार है उसके लिए..."

वहाँ भले ही मुझसे काबिल लौन्डे बैठे थे ,जो स्टेज पर जाकर मुझसे अच्छा बोल लेते थे...लेकिन उनमे वक़्त-बेवक़्त डाइलॉग ठोकने की काबिलियत ज़रा सी भी नही थी और जब छत्रपाल के उस स्पीच वाले प्लान पर किसी ने अपना हाथ खड़ा नही किया तो मैने इस मौके को भुनाना चाहा क्यूंकी ये छत्रपाल पर अपना इंप्रेशन डालने का एक सॉलिड मौका था...
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"मैं तैयार हूँ ,सर..."बोलते हुए मैने पहले अपना हाथ खड़ा किया और फिर खुद खड़ा हो गया...

"श्योर...क्यूंकी कॉलेज के दिनो मे ऐसा ही कुच्छ करते वक़्त मैं बीच मे अटक गया था...सोच लो.."

"101 % श्योर हूँ...और आप बेफिकर रहिए मैं बीच मे कही भी नही रुकुंगा..."

"यही कॉन्फिडेन्स मैने तुम्हारा कल वीई की क्लास मे देखा था...लेकिन बाद मे हुआ क्या तुम बखूबी जानते है. मैने तुम्हारे बारे मे बहुत-कुच्छ सुना है जिससे मैं इस निष्कर्स पर पहुचता हूँ कि आप खुद को बहुत स्पेशल मानते हो..."

"ये छेत्रू, हर वक़्त मेरी लेने मे क्यूँ लगा रहता है..."छत्रपाल सर की बाते जब मुझे काँटे की तरह चुभी तो मैने खुद से कहा और फिर वो काँटा निकालकर सीधे छत्रपाल के सीने मे घुसाते हुए बोला"सर, दरअसल बात ये है कि लोग आपको स्पेशल तभी मानते है ,जब आप कोई ऐसा काम कर देते हो..जो वो नही कर पाते...चलता हूँ सर, टॉपिक आपसे क्लास मे ले लूँगा, हॅव आ नाइस डे "

छत्रपाल को अपना आटिट्यूड दिखा कर मैं ऑडिटोरियम से निकला और क्लास की तरफ बढ़ा....

मैने छत्रपाल को आख़िर मे जो जवाब दिया ,उसे सुनकर छत्रपाल जी मुस्कुराए तो ज़रूर लेकिन खुन्नस मे....छत्रपाल के प्रति मेरे इस रवैये से वहाँ मौज़ूद सभी स्टूडेंट्स मुझे ऐसे देखने लगे जैसे वो बहुत दिनो से भूखे हो और मैं उनका खाना हूँ....लेकिन किसी ने एक लफ्ज़ भी मुझसे नही कहा, क्यूंकी वो जानते थे कि अरमान को छेड़ने का मतलब खुद को घायल करना है....

ऑडिटोरियम से बाहर निकल कर जब मैं अपनी क्लास की तरफ आ रहा था तभी मुझे इसका अंदाज़ा हो गया था छेत्रू से मैने ऑडी. मे अकड़ कर जो बात की उसकी खबर बहुत जल्द पूरे कॉलेज मे फैल जाएगी और उस खबर को सुनने के बाद ये भी हो सकता था कि मुझसे जलने वालो की लिस्ट मे छत्रपाल के कयि दिए हार्ड फॅन भी जुड़ जाएँगे....क्यूंकी छत्रपाल सर, हमारे कॉलेज के मोस्ट लविंग टीचर थे और मेरी तरह उनकी भी एक लंबी-चौड़ी फॅन फॉलोयिंग थी
.
जब मैं क्लास पहुचा तब तक दूसरा पीरियड चालू हो चुका था इसलिए मैने अंदर आने की पर्मिशन माँगी....

"कहाँ गये थे..."

"आंकरिंग की प्रॅक्टीस करने ऑडिटोरियम मे गया था..."

"सच, झूठ तो नही बोल रहे..."पवर प्लांट सब्जेक्ट के टीचर ने मुझपर अपना ख़ौफ्फ प्लांट करने की कोशिश करते हुए बोले"मैं छत्रपाल जी से क्लास के बाद पुछुन्गा और यदि उन्होने मना किया तो तुम्हारी खैर नही...कम इन..."

"बक्चोद, म्सी...लवडे का बाल..."बड़बड़ाते हुए मैं क्लास के अंदर आया ही था कि पवर प्लांट एंगग. वाले सर ने मुझे फिर रोका...

"क्या कहा तुमने...हुह"

"कुच्छ नही...थॅंक्स कहा आपको...थॅंक यू सर..."

"ओके..ओके..जाओ अपनी जगह पर बैठो..."
.
मैं जाकर अपनी जगह पर विराजमान हो गया और हमेशा की तरह आज भी अरुण मेरे साइड,सौरभ...अरुण के साइड मे और सुलभ...सौरभ के साइड मे बैठा हुआ था....इस वक़्त मेरी इज़्ज़त मेरे दोस्तो की नज़र मे अचानक ही बढ़ गयी थी और वो चारो मुझे ऐसे देख रहे थे जैसे मैं बॉर्डर पर बड़ी ही घमासान लड़ाई लड़कर आया हूँ....

"क्या हुआ आज..."पी के सर,जब कुच्छ लिखने के लिए दीवार की तरफ मुड़े तो अरुण ने पुछा...

"कहाँ क्या हुआ..."

"अबे वही...ऑडिटोरियम मे क्या हुआ..."

"कुच्छ खास नही हुआ...जब वहाँ पहुचा तो छेत्रु ने एक पन्ना हाथ मे थमा दिया और बोला कि स्टेज मे जाकर बको....उसने ये भी कहा कि ऑडिटोरियम पूरा भरा पड़ा है हमे ऐसा इमॅजिनेशन करना होगा...साला क्या बकवास ट्रिक है...एक दम फ्लॉप :"
"फिर..."
"फिर क्या...बक दिया सब कुच्छ. "
.
पीपीई वाले सर बोर्ड मे एक लंबा-चौड़ा डाइयग्रॅम बना रहे थे,जिसके चलते उनका अग्वाडा बोर्ड की तरफ था और इधर हम दोनो पूरे वक़्त बात करते रहे .

रिसेस के वक़्त हम लोग क्लास से बाहर आ रहे थे कि कल जिस लड़की का टिफिन मैने खाया था उसने मुझे आवाज़ देकर कहा कि "मैं ,उसके साथ उसका टिफिन शेयर कर सकता हूँ" लेकिन उस लड़की का चेहरा देखकर मेरा पेट बिना खाए ही भर गया....कल की बात कुच्छ और थी,जो मैने उसके साथ उसी की जगह पर बैठकर उसका लंच शेयर किया था.

"मुझे भूख नही है और मेरी तबीयत भी कुच्छ ठीक नही लग रही...इसलिए तुम अकेले ठूंस लो,मेरा मतलब अकेले खा लो..."

"क्या हुआ...बुखार है क्या.."

"नही कॅन्सर है..."(अपने काम से काम रख बे )

उस लड़की से भूख ना होने का बहाना करके मैं क्लास से बाहर निकला तो पाया कि मेरे दोस्त मुझे अकेले छोड़ कर कॅंटीन चले गये थे...बक्चोद कही के .खैर कोई बात नही, होता है कभी-कभी...इसमे बुरा मानने वाली कौन सी बात है...

खुद को कंट्रोल करते हुए मैं भी कॅंटीन की तरफ बढ़ा ये सोचकर कि आज तो पेल के खाउन्गा क्यूंकी आज तो कॅंटीन का सारा समान मेरे लिए फ्री था....

कॅंटीन के अंदर घुसकर मैने अरुण और बाकी सब कहाँ बैठे है ,ये देखने के लिए सबसे पहले आँखो से पूरी कॅंटीन छान मारी...लेकिन वो सब कही नही दिखे...

"ये लोग किधर कट लिए ,आए तो इधर ही थे..."हैरान-परेशान होते हुए मैने सोचा और जाकर एक ऐसी टेबल की तरफ बढ़ा...जो एक दम खाली था .वहाँ बैठकर मैने कॅंटीन वाले को चार समोसे, एक फुल प्लेट चोव में, एक एग रोल के साथ आधा लीटेर वाला एक कोल्ड ड्रिंक माँगाया और ये सोचते हुए मैं खुशी-खुशी खाने लगा कि इन सबका बिल मुझे नही देना पड़ेगा....

इस बीच वहाँ एश भी अपने फ्रेंड्स के साथ आई.एश को देखकर मेरा दिल किया कि मैं अभिच आधे लीटेर वाले कोल्ड ड्रिंक की बॉटल लेकर अपनी जगह से उठु और उसकी फ्रेंड्स को वहाँ से भगाकर एश के सामने वाली चेयर पर बैठ जाउ और हम दोनो एक ही कोल्ड ड्रिंक मे दो स्ट्रॉ डालकर एक साथ पूरी बॉटल खाली कर दे....हाउ रोमॅंटिक : लेकिन मैं ये नही कर पाया क्यूंकी वहाँ एश के साथ आर.दिव्या भी विराजमान थी....कुल मिलकर कहे तो मेरी लव स्टोरी से गौतम के चले जाने के बाद ये र.दिव्या ही एकमात्र काँटा था जो मुझे एसा के करीब आने से रोक रहा था....

जब मैने सब कुच्छ खा-पीकर ख़तम कर दिया तो मैने एक डकार ली और कॅंटीन के काउंटर पर बैठे हुए आदमी को हाथ दिखाया ,जिसके जवाब मे काउंटर वाले ने भी हाथ दिखाया.जिसका मतलब था कि मेरा बिल पे हो गया है....इसके बाद मैने टाइम देखा.

"लंच ख़तम होने मे अभी भी आधा घंटा बाकी है, तब तक क्या पकड़ कर हिलाऊ...साले ये लोग भी कहाँ मर गये..."कॅंटीन के गेट की तरफ देखते हुए मैने कहा...

वहाँ खाली बैठकर मैने 10 मिनिट और खुद को बोर किया और मौका मिलते ही आँखे चुराकर एश को देख लेता था....मेरी इसी लूका-छिपि के खेल मे मेरी नज़र कल वाली लड़की पर पड़ी,जिसका नाम आराधना था.....

"क्यूँ ना 20 मिनिट इसी के साथ बिताया जाए..."आराधना को देखकर मैने एक पल के लिए सोचा और फिर दूसरे ही पल आराधना के पास गया. वहाँ आराधना के साथ दो लड़किया और भी थी...जो मेरे इस तरह अचानक से वहाँ आ जाने पर थोड़ा घबरा गयी....

"आप लोगो को बुरा ना लगे तो क्या मैं इनसे 2 मिनिट बात कर सकता हूँ..."शरीफो वाली स्टाइल मे मैने आराधना की दोनो फ्रेंड्स से कहा...

"हू आर यू ,हुउऊउ...और क्या बात करनी है तुम्हे...हुउऊ"वहाँ आराधना के साथ बैठी दोनो लड़कियो मे से एक ने मुझसे ऐसे पुछा जैसे उनका सीनियर मैं नही ,बल्कि वो मेरी सीनियर है....

"तुम मुझे नही जानती... "

"वही तो पुछा ,हू आर यू...हुउऊ...और तुम क्या कोई सूपरस्टार हो जो मैं तुम्हे जानूँगी...हुउऊ"

" तू पहले अपना ये हूउ-पुउ बंद कर वरना यह्िच पर तेरा सारा हूउ-पुउ निकाल दूँगा...चश्मिश कही की..."

"अरे अजीब गुंडा गर्दि है...."

"ओये चल उठ यहाँ, दिमाग़ खराब मत कर...बहुत हो गया ये तेरा हूउ-पुउ...अब यदि तूने एक शब्द भी आगे कहा तो....."

"तुम दोनो जाओ ना यहाँ से, क्यूँ सीनियर से ज़ुबान लड़ा रही हो...मैं इन्हे जानती हूँ ये बहुत अच्छे है..."मैं अपनी बात पूरी करता उससे पहले ही आराधना बोल पड़ी....

"ऊओह ,तो ये हमारे सीनियर है...तुझे पहले बताना था ना ये...बेवकूफ़ कही की..."आराधना पर भड़कते हुए उस चश्मिश ने मुझे सॉरी कहा और फिर अपनी दूसरी चश्मिश दोस्त को लेकर वहाँ से उठकर दूसरे टेबल पर चली गयी....
.
"हाई, सर..."मेरे वहाँ बैठते ही आराधना ने बड़े प्यार से कहा....

और सच कहूँ तो ये सुनकर मुझे एक पल के लिए रोना आ गया क्यूंकी ये पहली बार था,जब किसी लड़की ने मुझसे इतने प्यार से बात की थी वरना आज तक मेरे कॉलेज की लगभग सभी लड़कियो ने मुझे फ़ेसबुक मे ब्लॉक मार के रखा हुआ है....

"एनी प्राब्लम सर..."मुझे अपनी तरफ एकटक देखता हुआ पाकर आराधना ने पुछा...

"कोई प्राब्लम नही है और ये तू मुझे सर मत बोला कर..."

"क्यूँ सर..."

"क्यूंकी सर, वर्ड सुनकर मुझे ऐसा लगता है जैसे मेरी उम्र 35 + हो..."

"ओके सर..."

"बोला ना, सर मत बोल..."

"ठीक है सर..."

"फिर बोली तू...एक बार मे समझ नही आता क्या..."

"ठीक है ,अब नही बोलती...तो फिर आपको भैया बोलू..."

"भैया.... , एक बात बताओ ,तुम लड़कियो को भैया बोलने की इतनी जल्दी क्या रहती है और खबरदार जो मुझे भैया बोला तो...."

"तो फिर क्या आपको ,आपका नाम लेकर पुकारू..."

"बिल्कुल नही....और सुन..."उसकी तरफ थोड़ा झुकते हुए मैने कहा ,लेकिन वो मेरी तरफ झुकने के बजाय वापस और पीछे हो गयी...

"ये आप क्या कर रहे हो..."

"इसकी माँ का....अबे मैं तुझे किस नही कर रहा,बल्कि कुच्छ कहना चाहता हूँ...इसलिए अपना कान इधर ला..."

"पर क्यूँ..."

"अरे आना पास..."मैने ज़ोर देते हुए कहा.

मेरे इतना अधिक ज़ोर देने पर आराधना थोड़ा सा मेरे नज़दीक आई तब मैने उससे कहा...

"वो मेरे पीछे एक लड़की ग्रीन कलर की ड्रेस पहने हुए बैठी है... दिखी तुझे.."

"कौन...एश मॅम.."

"हां वही...तू कैसी जानती है उसे..."

"कल मुलाक़ात हुई थी उनसे...तभी उनसे जान-पहचान हुई थी..."

"चल ठीक है,अब ये बता कि वो किधर देख रही है..."

"वो तो अपने मोबाइल मे देख रही है..."

" ,चल कोई बात नही..चलता हूँ...थॅंक्स"उदास होते हुए मैने उससे कहा और वहाँ से उठने के लिए तैयार ही हुआ था कि आराधना ने मुझे पकड़ कर वापस बैठा लिया....
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08-18-2019, 02:39 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
आराधना की ये हरक़त मुझे कुच्छ ऑड सी लगी क्यूंकी जहाँ कुच्छ देर पहले मेरे सामने उसकी ज़ुबान ढंग से नही खुल रही थी ,वही अब एका एक उसने मेरा हाथ पकड़ा और बैठने के लिए कहा....
"क्या हुआ "
"वो कल वाले लड़के कॅंटीन मे आए है...मुझे उनसे दर लगता है..."
"डर मत,मेरा नाम बता देना..."
"मतलब ? मैं कुच्छ समझी नही..."
"इतना ही समझती तो फिर लड़की ही क्यूँ होती...उनसे बोल देना कि तू मेरी गर्ल फ्रेंड है...फिर वो तुझे कुच्छ नही करेंगे...और सुन..."फिर से आराधना के करीब जाकर मैने कहा"और जब तू उन्हे ये बताएगी कि तू मेरी गर्ल फ्रेंड है तो ये देखना कि तेरी उस एश मॅम का रिक्षन क्या होता है... अब चलता हूँ,बाइ"

ऑडिटोरियम मे मैने भले ही छत्रु के सामने लंबी-लंबी हांक दी थी लेकिन रिसेस के बाद मैं छत्रु को दिए गये अपने ही चॅलेंज से घबराने लगा था...और जैसे-जैसे छत्रु का पीरियड आ रहा था, मेरी हालत और भी ख़स्ता हो रही थी...

छत्रपाल सर हमे दो सब्जेक्ट पढ़ाते थे ,पहला सब्जेक्ट था 'वॅल्यू एजुकेशन' ,जिसमे हर हफ्ते उनकी सिर्फ़ एक क्लास रहती थी और दूसरा सब्जेक्ट था इंजिनियरिंग एकनामिक ,जिसमे वो हफ्ते भर मे 5 बार अपने दर्शन दे देते थे...एक तो छत्रु खुद बोरिंग था ,उपर से उसके दोनो बोरिंग सब्जेक्ट....उनके पीरियड लेने के बाद पूरे क्लास की हालत ऐसी हो जाती थी ,जैसे कि सब अभी-अभी अपने शरीर का आधा ब्लड डोनेट करके आए हो....बोले तो थकान मे एक दम डूबे हुए.

इंजिनियरिंग एकनामिक का आज सेकेंड लास्ट पीरियड था और मैं चाह रहा था कि छत्रु अपनी क्लास लेने ना आए,वरना वो मुझे टॉपिक देकर ,कल तक याद करने को कहेगा...

"और उचक...ऑडिटोरियम मे तो बड़े शान से बोल रहा था कि ,सर क्लास मे टॉपिक दे देना...अब क्या हुआ..."जैसे ही ईई का पीरियड शुरू हुआ, मैने सोचा"एक काम करता हूँ, सर को क्लास के बाद खोपचे मे ले जाकर बोल दूँगा कि सर, ये सब मेरे से नही होगा...आप किसी और को देख लो....लेकिन फिर तो घोर बेज़्ज़ती होगी...कहाँ फँस गया यार..."
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और फिर उस दिन छत्रु के क्लास मे ना आने की मेरी रिक्वेस्ट को भगवान ने आक्सेप्ट कर लिया ,क्यूंकी छत्रु उस दिन अपनी क्लास लेने नही आया....छत्रु के क्लास मे ना आने से उसे चाहने वाले जहाँ दुखी थे,वही कुच्छ लोग मेरे जैसे भी थे ,जिन्हे अत्यंत प्रसन्नता हुई थी...लेकिन सबसे ज़्यादा खुश तो मैं था...
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अब जब छत्रपाल सर जी ने क्लास बंक किया तो मेरा सारा डर दूर हुआ और मैं एश पर पूरे मन से कॉन्सेंट्रेट करने लगा..तब मेरे सामने कल वाले सवाल फिर से पैदा हो गये ,जिन्हे मैने कल पार्किंग मे एश के जाने के बाद सोचा था....
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"इतना चुप क्यूँ है बे, कही चड्डी गीली तो नही कर दी तूने..."मेरी तपस्या मे रुकावट डालते हुए अरुण ने खाली क्लास मे मेरे इतना चुप रहने का कारण पुछा....

"अब यदि इसे कहूँगा कि बस ऐवे ही...तो ये लवडा दिमाग़ चाट जाएगा और फिर मुझे चैन से बैठने नही देगा..."अरुण की तरफ देखते हुए मैने कहा"मैं सोच रहा था कि 'व्हाई ईज़ दा अर्त आन एल्लिपसड'...इसलिए प्लीज़ चुप रह..."
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अरुण को चुप कराकर मैं वापस अपनी तपस्या मे लीन हो गया और एश की अजीब हरक़तो का स्मरण करने लगा....लेकिन मुझे कोई ऐसा ढंग का जवाब नही मिला,जो मेरे अंदर उठे मेरे उन दो सवालो का जवाब देती हो....लेकिन मैने हार नही मानी और एक बार फिर से अपनी साधना मे लीन हो गया....
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"अबे इतना मत सोच...गूगल मे देख ले कि अर्त एल्लिपसड क्यूँ है..."
"थॅंक्स...अब चुप रह..."
"यार तुझसे एक बात कहनी थी..."
"सुन रहा हूँ बोल..."
"पहले मेरी तरफ तो देख..."मेरा थोबड़ा पकड़ कर अरुण ने अपनी तरफ घुमाया और बोला"मैं आजकल कुच्छ ज़्यादा ही स्पर्म डोनेट कर रहा हूँ....कोई तरीका है क्या ,जिससे मैं अपनी इस डोनेशन मे कटौती कर सकूँ..."

अरुण ने जब मेरा थोबड़ा अपनी तरफ घुमाया तभिच मेरा दिल किया कि घुमा के एक हाथ उसे जड़ दूं और उसका थोबड़ा बिगाड़ दूं...लेकिन फिर मैने खुद पर कंट्रोल किया और उसपर भड़कते हुए बोला...
"इसे रोकने का सिर्फ़ एक ही तरीका है, तू अपना लंड काट दे...और मुझे अब डिस्टर्ब मत करना ,वरना ये काम मैं खुद कर दूँगा..."
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अरुण इसके बाद कुच्छ नही बोला ,यहाँ तक कि उसने मुझे फिर मुड़कर देखा भी नही...जिसका फ़ायदा मुझे ये हुआ कि मैं बड़े इतमीनान से अपना जवाब ढूँढने मे लगा रहा...लेकिन मुझे दूर-दूर तक जवाब नही मिला....तब मैने सोचा कि आज फिर पार्किंग मे एश से मिलते है, जिसमे दिव्या का ,एश के साथ ना होना...कंडीशन अप्लाइ होगा....

कल की तरह मैने आज भी कॉलेज के ऑफ होते ही सौरभ को पटाया ताकि वो कुच्छ बहाना मारकर अरुण को अपने साथ ले जा सके और आज मेरा बहाना बना 'छत्रु के साथ इंपॉर्टेंट टॉकिंग '

अरुण और सौरभ तो कल की तरह हॉस्टिल चले गये लेकिन आर.दिव्या कल की तरह आज पहले नही निकली....आज दोनो साथ मे ही अपने घर के लिए रवाना हुए,जिससे कॉलेज के बाद एश से पार्किंग मे बात करने के मेरे प्लान ने वही दम तोड़ दिया....
" मा दी लाडली दिव्या ,लवडी जब देखो तब बीच मे अपनी गान्ड फसाती रहती है...रंडी ,छिनार कही की...ये मर क्यूँ नही जाती, म्सी...एक दिन इन दोनो भाई बहनो का कत्ल मेरे हाथो ज़रूर होगा..."दिव्या के तारीफो के पुल बाँधते हुए मैं हॉस्टिल चला गया....
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आंकरिंग मे पार्टिसिपेट करने का एक बड़ा फ़ायदा मुझे हुआ था,वो ये कि अब रात को मैं लिमिट मे दारू पीने लगा था, ताकि सुबह मैं नशे मे सोता ना रहूं...क्यूंकी आंकरिंग की प्रॅक्टीस हर दिन फर्स्ट पीरियड के टाइम ही होती थी...

हर दिन ऑडिटोरियम मे छत्रु ,हमे अब्राहम लिंकन के जीवन के वही पन्ने रोज पकड़ा देता और स्टेज पर एक-एक करके सबसे बुलवाता था...जब कयि दिन तक ऐसे ही बीत गये तो मुझे छत्रु के आंकरिंग के इस मेतड से नफ़रत होने लगी, लेकिन मैं छत्रु को कभी कुच्छ बोल नही पाया...मैं स्टेज पर जाता ज़रूर था लेकिन छत्रपाल के प्रति एक खुन्नस मे सब कुच्छ बोलता था....यदि छत्रपाल को मुझे नीचा दिखाने का कोई एक मौका मिलता तो वो उस एक मौके को दो मौको मे तब्दील करके मुझपर वॉर करता और मैं....मुझे तो जानते ही होगे ,मैं भी उसपर अपने डाइलॉग्स की फाइरिंग करता था...
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पिछले कुच्छ दिनो से आराधना भी ऑडिटोरियम मे प्रॅक्टीस करने के लिए आने लगी थी...वो इस कॉलेज मे और हम सबके के बीच नयी थी...इसलिए वो शुरू मे थोड़ा-थोड़ा घबराती थी लेकिन फिर बाद मे उसने अपने अंदर बहुत हद तक सुधार ला लिया था....ऑडिटोरियम मे मेरे और आराधना के बीच बहुत बातें होती, वो धीरे-धीरे मुझसे खुलती जा रही थी और बीच-बीच मे जब उसका मुझे चिढ़ाने का मान होता तो मुझे 'अरमान सर' कहकर बुलाती...
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जहाँ कल की आई लौंडी ,आराधना मुझसे धीरे-धीरे खुल रही थी,वही एश अब भी मुझसे बात करने मे कतराती थी...वो मुझसे जब भी बात करती तो उसके अंदर एक घबराहट हमेशा रहती थी....

वैसे तो मैं पिछले हफ्ते ही एश से बात करने की सोच रहा था ,लेकिन अभी तक ऐन वक़्त आने पर टालने के कारण अभी तक एश से बात नही कर पाया था, इसलिए मैने सोचा कि आज एश से अपने उन दो सवालो का जवाब माँग ही लूँ....

मेरा पहला सवाल ये था कि 'एश ने मेरा नंबर. अपने मोबाइल पर क्यूँ सेव करके रखा हुआ है...' और दूसरा सवाल ये कि ' एश की मामी की लड़की को मेरे बारे मे पता कैसे चला'

वैसे मेरे ये दोनो सवाल ज़्यादा अहमियत तो नही रखते थे लेकिन इन्ही दो सवालो के कारण मुझे एक आस दिखाई दे रही थी कि शायद... एसा के लेफ्ट साइड मे मैं भी हूँ. मेरे ये दोनो सस्पेक्ट भले ही मेरे उम्मीद के मुताबिक़ मुझे परिणाम ना दे लेकिन मुझे कोशिश तो करनी ही थी क्यूंकी मेरा पर्सनली ऐसा मानना है कि ज़िंदगी के सफ़र मे सक्सेस वही होता है ,जो घने अंधेरे मे भी एक चिंगारी की बुनियाद पर उस अंधेरे को दूर कर दे, ना कि वो जो उस भयंकर अंधेरे से डरकर लौट जाए...
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ऑडिटोरियम मे मैं आज 10 मिनिट पहले ही पहुचा.उस वक़्त वहाँ छत्रपाल सर को छोड़ कर सभी आ चुके थे यानी की 10 मिनिट पहले आने पर भी मैं हर दिन की तरह आज भी लेट था....
"हाई...गुड मॉर्निंग."एश के साइड वाली सीट पर बैठकर मैने कहा...
"हाई..."
"तुम लोग यहाँ इतना पहले आकर क्या करते हो...कहीं ऐसा तो नही की तुमलोग रात को घर जाते ही नही..."
"तुम्हारा क्या मतलब कि मैं रात को यहाँ रुकी थी..."मुझसे बहस करने के मूड मे एश बोली...

"कुच्छ नही यार, मज़ाक कर रहा था..."बहस शुरू होती ,उससे पहले ही बहस को ख़त्म करते हुए मैने कहा...
"मुझे मज़ाक बिल्कुल भी पसंद नही..."

"मुझे भी मज़ाक नही पसंद...वैसे मेरा एक सवाल है..." अगाल-बगल देखते हुए पहले मैने ये कन्फर्म किया कि हमारी बात कोई सुन तो नही रहा और जब ये कन्फर्म हो गया तो मैने धीरे से कहा..."तुम्हारे मोबाइल मे मेरा नंबर क्यूँ है.."

"तुम्हारा नंबर क्यूँ है का क्या मतलब "अपनी आँखे बड़ी-बड़ी करते हुए एश ने उल्टा मुझसे ही सवाल किया....

"दरअसल मैं ये पुछना चाहता हूँ कि...हम दोनो के बीच एक समय काफ़ी घमासान तकरार हुई थी और एक लड़की को जहाँ तक मैं जानता हूँ उसके अकॉरडिंग तुम्हारे पास मेरा नंबर नही होना चाहिए..."

"तुम्हारा नंबर. मेरे मोबाइल मे उस घमासान लड़ाई के पहले से ही सेव था...और मुझे याद भी नही रहा कि तुम्हारा नंबर. मेरे मोबाइल मे सेव है,वो तो उस दिन देविका ने ना जाने कहाँ से तुम्हे कॉल कर दिया...दट'स ऑल "
"ये डेविका कौन ? "
"डेविका मेरी मामी की लड़की है ,जिसने तुम्हे कॉल करके धमकी दी थी...."

"ऐसा क्या....खम्खा मैं कुच्छ और समझ बैठा था , लेकिन फिर यहाँ एक और सवाल पैदा होता है कि तुमने मेरा नंबर. पहले क्यूँ सेव किया था...मतलब कि जब मैं अपने मोबाइल पर किसी का नंबर. सेव करता हूँ तो कुच्छ सोचकर ही करता हूँ...तुमने क्या सोचा था "एश को लपेटे मे लेते हुए मैने उसी के जवाब मे उसी को फँसा दिया...खुद को बहुत होशियार समझ रेली थी

"तुम्हारा मैने क्यूँ सेव किया था..."स्टेज की तरफ एश देखकर सोचने लगी...और मैं इधर अपनी चालाकी पर खुद को शाबाशी दे रहा था....

"मुझे याद नही..."

"ये तो कोई जवाब नही हुआ..."

"अब मुझे याद नही तो क्या करूँ...वैसे भी तुम कितनी पुरानी बात पुच्छ रहे हो और मैं भूल गयी कि मैने तुम्हारा नंबर क्यूँ अपने मोबाइल मे सेव किया था..."
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बोल ले झूठ, बिल्ली....मेरे पहले सस्पेक्ट को चारो तरफ से धराशायी करने के बाद मैं एश पर अपने दूसरे सवाल का प्रहार करता ,उससे पहले मैने एश से कहा"एक और सवाल है मेरा...दिल पे तो नही लोगि.."

"यदि तुम्हारा दूसरा सवाल भी पहले वाले की तरह वाहियात रहा तो बेहतर ही रहेगा कि मत पुछो...क्यूंकी मैं अब कोई जवाब नही देने वाली..."

"ठीक है....मैं अब ये पुच्छना चाहता हूँ कि तुम्हारी मामी की लड़की डेविका को मेरे बारे मे कैसे पता चला,जिसके बाद उसने मुझे कॉल किया..."

"मैने पहले ही कहा था कि उसने शरारत करने के लिए मेरा मोबाइल उठाया और अचानक ही तुम्हारे नंबर. पर कॉल कर दिया..."

"डेविका की एज क्या होगी..."

"क्य्ाआ...."

"एज...मतलब उम्र, डेविका की उम्र कितनी होगी..."

"20 , लेकिन तुम ये क्यूँ पुच्छ रहे हो.."

"वो बाद मे बताउन्गा...पहले ये बताओ कि क्या वो साइको है या फिर थोड़ी सी सटकी हुई है...."

"वो मेरी कज़िन है ,ज़रा ढंग से उसके बारे मे बात करो...ये सटकी हुई का क्या मतलब होता है..."

"सॉरी...पर तुम्हे अजीब नही लगता कि एक 20 साल की पढ़ी-लिखी लड़की ,जिसे कोई दिमागी बीमारी नही है...वो तुम्हारे मोबाइल से ऐसे ही किसी का नंबर. डाइयल कर देती है और फिर बाद मे तुम्हे अपनी उस करतूत की जानकारी भी दे देती है...ये बात कही से हजम नही होती एश...सच बताओ..."

"मुझसे अब बात मत करना...."वहाँ से उठकर एश जाते हुए बोली...

"जिसका डर था, वही हुआ....ये तो बुरा मान गयी..."वहाँ पर चुप-चाप बैठकर मैं एश को वहाँ से जाते हुए देखता रहा.
मेरे पहले सवाल का जो जवाब एश ने दिया था, मुझे उसके उस जवाब पर भी शक़ था...लेकिन अब तो वो बात करने को भी तैयार नही थी. लेकिन आज मैं ठान के ही आया था कि अपने ये दोनो संदेह दूर करके ही रहूँगा, इसलिए मैं अपनी जगह से उठकर एश के दाए तरफ फिर से बैठ गया....

"तू तो भड़क गयी,इसीलिए मैं तुझे बिल्ली कहता हूँ...और सुन ज़्यादा गुस्सा होने की ज़रूरत नही है,वरना अभिच अपुन पूरे कॉलेज मे ये बात फैला देगा कि तूने मुझे सुबह कॉल करके ब्लॅक मैल किया...ब्लॅक मैल मतलब मैं अपनी तरफ से कोई भी कहानी जोड़ दूँगा और तू तो जानती ही है कि मैं कहानी बनाने मे कितना माहिर हूँ...इसलिए एश जी आपसे नम्र निवेदन है कि आप मुझे मेरे दूसरे प्रश्न का स्पष्ट उत्तर दे...."

"तुम मुझे धमकी देने की कोशिश कर रहे हो...."अपनी आवाज़ तेज़ करते हुए एश बोली...

"मैं धमकी देने की कोशिश नही कर रहा...मैं तो धमकी दे रहा हूँ और आवाज़ थोड़ा नीचे रखो, वरना शुरुआत यही से हो जाएगी..."
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ऑडिटोरियम मे बैठे सभी स्टूडेंट्स जब हमारी तरफ ही देखने लगे तो एश का मुझपर उफान मारता हुआ गुस्सा थोड़ा ठंडा हुआ और वो अपने दाँत चबाते हुए धीरे से बोली....
"कॉलेज ख़त्म होने के बाद पार्किंग मे मिलना ,अभी छत्रपाल सर ऑडिटोरियम मे आ गये है, समझे...."

"इस छत्रु की तो...."मैं पीछे पलटा तो देखा कि छत्रु अपनी कलाई मे बँधी घड़ी मे टाइम देखते हुए सामने स्टेज की तरफ आ रहा था....
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छत्रपाल जी हर दिन की तरह आज भी सामने खड़े हो गये और सबसे वही करवाया ,जो पिछले एक हफ्ते से हो रहा था...पहले-पहल तो मैने छत्रपाल के द्वारा एक पेज पकड़ा कर माइक मे बुलवाने की टेक्नीक पर मैने कुच्छ खास गौर नही किया...लेकिन बाद मे मैने ध्यान देना शुरू किया और जो बात मुझे पता चली वो ये कि छत्रु हमारी प्रॅक्टीस के पहले दिन से ही सेलेक्षन करने लगा था....

छत्रपाल सर स्पीच के दौरान एक दम सामने वाली रो पर बैठ जाते और सामने वाली की टोन ,बोलने की स्टाइल और इंटेरेस्ट पर गौर करते थे. सभी स्टूडेंट्स प्रॅक्टीस के पहले दिन से ही उस दिन का इंतज़ार कर रहे थे कि कब छत्रपाल सर उनमे से 6 को सेलेक्ट करे और 2-2 की टीम बना कर 3 ग्रूप बनाए और वो अपनी फाइनल प्रॅक्टीस शुरू कर सके....लेकिन जैसा मेरा मानना था उसके अनुसार वो 6 लोग तो आज से 2-3 पहले ही सेलेक्ट हो चुके थे.....जिसकी जानकारी सिर्फ़ और सिर्फ़ छत्रु को थी....
Reply
08-18-2019, 02:39 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
इसकी भनक मुझे तब लगी जब छत्रपाल सर डेली हमसे अब्राहम लिंकन की जीवनी हमे स्टेज मे बुलाकर पढ़वाते थे .क्यूंकी ना तो लिंकन जी के उपर हमे कोई एसे लिखना था और ना ही गोल्डन जुबिली के मौके पर लिंकन जी का कोई टॉपिक था....आक्च्युयली छत्रपाल इन 7 दिनो मे ये अब्ज़र्व कर रहा था कि किस स्टूडेंट्स का इंटेरेस्ट कितना है और यदि मेरी सोच सही है तो वो उन्ही स्टूडेंट्स को सेलेक्ट करेगा जिन्होने पूरे हफ्ते फुल इंटेरेस्ट के साथ अपनी स्पीच दी हो....

मैं छत्रपाल के इस ट्रिक को भाँप गया था या फिर दूसरे शब्दो मे कहूँ तो ऐसी ही सेम टू सेम ट्रिक मेरे स्कूल मे भी मेरे टीचर अप्लाइ करते थे और यदि तीसरे शब्दो मे कहूँ तो ' आंकरिंग करने का ये महा फेमस तरीका है' जो हर उस बंदे को मालूम होगा ,जिसने गूगल मे थोड़ी सी मेहनत की होगी.....
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आराधना को काउंट करके अब टोटल 12 स्टूडेंट्स हो गये थे,जिनमे से 6 को सेलेक्ट करना था और 6 को ऑडिटोरियम से बाहर का रास्ता दिखाना था...कुच्छ लड़के जो खुद को ओवरस्मार्ट दिखाते थे वो पिछले एक-दो दिनो से लिंकन जी के बारे मे बोलते वक़्त जमहाई ले लेते थे तो कभी-कभी अपना हाथ-पैर खुजलाने लगते थे. उन ओवर-स्मार्ट लड़को मे कुच्छ लड़के ऐसे भी थे,जो एक-दो दिनों से छत्रपाल सर से ये पुछने लगे थे कि ,वो उन्हे 2-2 के ग्रूप मे डिवाइड क्यूँ नही करते....मतलब सॉफ था कि इन सबको छत्रपाल बट्किक करने वाला था.


जिस दिन मैने एश से सवाल पुछा उस दिन भी तक़रीबन 4-5 स्टूडेंट्स ने लिंकन जी के बारे मे वही पुरानी स्पीच देने मे आना कानी की...कुच्छ ने तो बोरिंग तक का दर्जा दे डाला...लेकिन उनमे कुच्छ ऐसे भी स्टूडेंट्स थे जो छत्रपाल के दिए-हार्ड फॅन थे और उन्होने ऑडिटोरियम मे कभी अपना मुँह नही खोला और उनमे मैं भी शामिल था....
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उस दिन लास्ट पीरियड मे मेरे मोबाइल मे एश ने एक मेस्सेज टपकाया कि वो छुट्टी के बाद पार्किंग मे मेरा इंतज़ार करेगी...एश के इस मेस्सेज के तुरंत बाद मैं ये समझ गया कि मुझे पिछले कयि दिन की तरह आज भी अरुण को चोदु बनाकर ,सौरभ के साथ भेजना है....

"अरुण, तेरे मोबाइल मे मेस्सेज पॅक है क्या..."

"ये मेस्सेज तुम जैसे गीदड़ करते है, भाई शेर है इसलिए डाइरेक्ट कॉल करता है...."
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अरुण से ना मे जवाब मिलने के बाद मैने अपने ही मोबाइल से एश को मेस्सेज सेंड करने का सोचा और लिखा कि 'दिव्या को अपने साथ मत रखना,वरना मैं वापस लौट जाउन्गा...'

कॉलेज ख़त्म होने बाद मैं पार्किंग की तरफ बढ़ा ,जहाँ एश अपनी कार के बाहर खड़े होकर मुझे इधर-उधर ढूँढ रही थी और दिव्या जा चुकी थी....
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"हेलो..."एक प्यारी सी स्माइल मारते हुए मैने कहा"तो बिना समय गँवाए सीधे पॉइंट पर आ जाओ..."

"एक मिनिट....मुझे सोचने दो....हां, याद आ गया. यू नो अरमान ,यू आर आ हॉट टॉपिक ऑफ डिस्कशन इन और कॉलेज ऐज वेल ऐज इन और होम....."

"मेरी इंग्लीश उतनी बुरी भी नही है लेकिन कसम से कुच्छ भी समझ नही आया...."

"तुम मेरे घर मे और गौतम के घर मे डिसकस करने का एक हॉट टॉपिक हो...और जिस दिन देविका ने तुम्हे कॉल किया उसके एक दिन पहले ही मैं तुम्हारे बारे मे उससे बात कर रही थी...इस तरह से वो तुम्हारे बारे मे जान गयी..."

"सच...."मैं बस इतना कह पाया क्यूंकी जो बात एश ने मुझे बताई थी ,वो मेरे लिए बिल्कुल नयी थी.इसलिए उसपर यकीन करना मुश्किल हो रहा था.

ए ~लंगर~ फुटबॉल मॅच

मुझे इतना तो मालूम था कि मैं अपने बुरे करमो के चलते कॉलेज मे बहुत फेमस हूँ लेकिन मैं इतना फेमस हूँ कि इस शहर के सबसे रहीस घरो मे मेरे बारे मे बात होती है ,ये मैं नही जानता था.....एश के उस जवाब पर मैने यकीन तो नही किया था,लेकिन अंदर ही अंदर खुद पर गर्व भी कर रहा था....

एश की बात सुनकर मेरा सीना तुरंत दो इंच चौड़ा हो गया और दिल किया की गॉगल लगाकर कोई डाइलॉग मारू लेकिन फिर कुच्छ सोचकर मैने अपना ये गॉगल लाकर डाइलॉग मारने का विचार छोड़ दिया और एसा से आगे पुछा....
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"मैं इतना ज़्यादा पॉपुलर हूँ ,जानकार खुशी हुई....वैसे मेरे बारे मे क्या डिसकस करते हो तुम लोग...."

"मेरे और गौतम के घर मे ऐसा कोई दिन नही होता,जब तुम्हे बुरा-भला ना कहा गया हो...तुम यकीन नही करोगे पर सब लोग तुमसे बे-इंतेहा नफ़रत करते है..."

"मुझे भी कुच्छ ऐसी ही उम्मीद थी... "

उस दिन पार्किंग प्लेस मे एश को अपने शब्दो के जाल मे फँसा कर मैने बहुत कुच्छ जान लिया.जैसे कि बीच-बीच मे एश की मॉम एश से पूछती है कि 'वो लफंगा सुधरा या अब भी वैसी मार-पीट करता है....'

मुझे लेकर एश और गौतम के घर मे सेम सिचुयेशन रहती है ,बोले तो मेरा नाम जेहन मे आते ही उनके मुँह से मेरे लिए गालियाँ बरसती है....खैर ये सब दिल पे लेनी की बात नही है और ना ही बुरा मानने की बात है क्यूंकी ये सब तो हमान नेचर की प्रॉपर्टीस है....
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"वो सब तो ठीक है एश, लेकिन क्या तुम्हे नही लगता कि ऐसे ही किसी के भी सामने अपने घर की प्राइवेट बातें शेयर करना ग़लत है...."

जब मैं अपनी बुराई सुनकर पक गया तो मैने एश को रोकने के लिए कहा,क्यूंकी वो नोन-स्टॉप मेरे दिल पर डंडे पे डंडे मारे जा रही थी.मेरे टोकने के बाद एश को जैसे अपनी ग़लती का अहसास हुआ और उसने अपना हाथ अपने होंठो पर रख लिया.....

"तुम्हारे घरवालो के मेरे प्रति उच्च विचारो की जानकारी तो मुझे हो गयी, लेकिन अब ये बताओ कि मेरे बारे मे तुम्हारा क्या सोचना है...मतलब कि क्या तुम भी अपना दिल खोलकर मुझे बुरा-भला कहती हो..."

"मैं नही बताउन्गी...अब मैं एक लफ्ज़ भी आगे नही बोलूँगी..."

"बता दे बिल्ली, वरना मैं.....मैं...."

"वरना क्या...तुम मुझे फिर से धमकी दे रहे हो..."

"चल ठीक है जा..."

"मैं क्यूँ जाउ, तुम जाओ..."

"अरे जा ना..."

"पहले तुम जाओ..."

"ऐसा क्या, ले फिर मैं नही जाता,बोल क्या करेगी बिल्ली..."

"फिर मैं भी नही जाउन्गी, बिल्लू,बिलाव,बिल्ला...."

"खिसक ले इधर से ,ये मैं लास्ट वॉर्निंग दे रहा हूँ....वरना "

"वरना क्या...हाआन्ं ,बोलो वरना क्या...क्या कर लोगे तुम..."मुझे चॅलेंज करते हुए एश एक कदम आगे बढ़ी.....

"कमाल है यार,इसे तो मुझसे डर ही नही लगता..."एश के एक कदम आगे बढ़ने के बाद मैने खुद से कहा और एश की'वरना क्या...' का जवाब सोचने लगा....

"एश ,देख अब तो चुप-चाप यहाँ से जाती है या मैं अपनी सूपर पवर दिखाऊ..."

"जब तक तुम नही जाओगे, तब तक मैं भी नही जाउन्गी..."

"तू जा यहाँ से नही तो मैं तुझे किस कर लूँगा...फिर मत बोलना कि मैने ऐसा क्यूँ किया...."
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मेरे किस करने वाले जवाब का एश के अंदर जबरदस्त रिक्षन हुआ और वो तुरंत अपनी कार मे बैठकर वहाँ से चली गयी.....

"मुझसे आर्ग्युमेंट करती है,अब आ गयी ना लाइन पे... "
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गोलडेन जुबिली के फंक्षन के लिए अब तैयारिया जोरो से चल रही थी.सिंगगिंग,डॅन्सिंग एट्सेटरा. जैसे प्रोग्राम की प्रॅक्टीस तो कॉलेज के समय ही हो जाती थी ,लेकिन स्पोर्ट्स वगेरह की प्रॅक्टीस कॉलेज के बाद शुरू होती थी...हर ब्रांच की एक-एक टीम बना दी गयी थी, जो कि एक तय किए हुए दिन मे दूसरे ब्रांच से भिड़ने वाली थी...इन शॉर्ट कहे तो कॉलेज मे इस समय कॉंपिटेटिव महॉल था, जिसमे कॉलेज के लगभग आधे से अधिक स्टूडेंट्स झुलस रहे थे....कॉलेज के उस कॉंपिटेटिव महॉल से मेरे खास दोस्त अरुण,सौरभ की तरह सिर्फ़ वो ही लोग बचे थे,जो गोल्डन जुबिली के इस गोल्डन मौके पर किसी भी फील्ड मे आक्टिव नही थे....

8त सेमिस्टर. मे आते तक मुझे और हॉस्टिल मे रहने वाले मेरे कुच्छ दोस्तो को शाम के वक़्त कोई सा गेम खेलने की आदत लग चुकी थी,जिससे हमारे शरीर मे एक नयी एनर्जी घुस जाती थी और फिर रात को हम लोग पेल के दारू पीते थे....लेकिन आजकल हम जिस भी ग्राउंड मे शाम के वक़्त एनर्जी लेने जाते वहाँ ब्रांच वाइज़ लौन्डे प्रॅक्टीस करते हुए मिलते थे,इसलिए अब हमारा ग्राउंड हमारे हॉस्टिल का कॉरिडर बना....जहाँ हम लोग क्रिकेट,फुटबॉल बड़े आराम से खेलते थे......
.
"मैं,अरमान भाई की टीम मे रहूँगा..."पांडे जी को जब अरुण ने अपनी टीम मे लिया तो राजश्री पांडे एक दम से चिल्ला उठा....

"मर म्सी, जा चूस ले अरमान का..."पांडे जी का कॉलर पकड़ कर उसे अरुण ने मेरी तरफ धकेला और बोला"भाग लवडे मेरी टीम से...."

"सौरभ डार्लिंग मेरी तरफ..."मैने अपनी टीम के अगले खिलाड़ी को सेलेक्ट किया...

"तो फिर ये कल्लू कन्घिचोर मेरी तरफ..."कल्लू को हाथ दिखाते हुए अरुण ने कहा"आ जा बे कालिए..."
.
मैने और अरुण ने 4-4 लौन्डो की टीम बनाई और कॉरिडर मे फुटबॉल खेलने के लिए आ पहुँचे....इस बीच एक और लौंडा वहाँ आया और उसने भी खेलने की इच्छा प्रकट की....

"जा पहले अपने लिए कोई जोड़ीदार लेकर आ...ऐसे मे तो एक तरफ 5 और एक तरफ 4 लौन्डे रहेंगे..."उस लड़के से अरुण ने कहा...

"सुन बे अरुण...तू रख ले इसे, तुम जैसे गान्डुल 5 क्या 50 भी हो जाए तब भी मुझे कोई फ़र्क नही पड़ता..."

"मैं क्यूँ रखू, तू ही रख ले और बेटा गान्डुल कौन है ये तो मॅच के बाद ही पता चलेगा,जब मैं तेरे हाथ-पैर तोड़ दूँगा..."

"ठीक है फिर...आजा बे,इधर खड़ा हो जा..."उस नये लौन्डे को अपनी तरफ आने का इशारा करते हुए मैने खुद से कहा"एक बार फिर से अरुण को चोदु बना दिया , आइ'म सो स्मार्ट...अब तो 100 मैं जीत के ही रहूँगा...."

जब कॉरिडर मे दोनो टीम तैनात हो गयी तो मैं सबसे पहले राजश्री के पास गया और बोला.."तू जा के गोलकीपिंग कर बे लोडू और बेटा यदि एक बार भी फुटबॉल इस पार से उस पार गयी तो सोच लेना..."

"अरमान भाई..आप फिक्र मत करो...एक बार मैं राजश्री खा लूँ,उसके बाद तो कोई माई का लाल मुझे हरा नही सकता..."

पांडे जी को गोलकीपर बनाने के बाद मैं सौरभ के पास गया और बोला"सुन बे, तू डिफेन्स करना और जो कोई भी फुटबॉल लेकर तेरे पास आए, साले का हाथ-पैर तोड़ देना....मैं फॉर्वर्ड खेलूँगा..."
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वैसे तो मुझे फुटबॉल खेलना नही आता था लेकिन जैसे हमलोग लंगर डॅन्स करते थे,वैसे ही हम लोग लंगर फुटबॉल खेल रहे थे,जहाँ कोई रूल्स नही...बस फुटबॉल गोल होनी चाहिए ,उसके लिए चाहे कोई सा भी तरीका अपनाया जाए....जब मैं अपनी टीम की तरफ से फॉर्वर्ड खेलने आया तो मुझे देखकर अरुण भी फॉर्वर्ड खेलने के लिए आगे आ गया....कल्लू कंघीचोर मुझे कवर करने के लिए मेरे पास ही खड़ा था और अरुण मेरे ठीक सामने मुझे गालियाँ दे रहा था.....

"थ्री....टू....वन...स्टार्ट"

तीन तक की गिनती समाप्त होने के बाद मैने फुटबॉल को अपनी पहली ही किक मे अरुण के थोब्डे को निशाना बनाना चाहा, लेकिन फुटबॉल से मेरा पैर ही टच नही हुआ बोले तो अरुण के थोबडे को बिगाड़ने का मैने एक सुनहरा अवसर मिस कर दिया और कल्लू फुटबॉल लेकर आगे बढ़ा...

"सौराअभ....आगे मत जाने देना, मुँह मे लात मारना इस कालिए के..." अपना पूरा दम लगाकर मैं चीखा...जिसके बाद कल्लू डर के मारे जहाँ था ,उसने फुटबॉल को वही छोड़ा और वापस लौट आया....

"ऐसे तुमलोग मार-पीट करोगे तो मैं नही खेलूँगा... "कल्लू अरुण के पास जाकर मुझसे बोला...

"अबे अरमान, 100 के लिए तू इतना नीचे गिर जाएगा...मैने कभी सोचा नही था, थू है तुझपर..."

"अभी कल के मॅच मे जब तू मेरी तरफ था ,तब तो बहुत बोल रहा था कि मार उस कालिए को....इसलिए अब अपनी ये नौटंकी बंद कर और गेम शुरू कर...."मैने कहा और पलट कर सौरभ को आवाज़ दिया "थाम ले बे फुटबॉल और यदि अब कल्लू इस एरिया मे आया तो उचकर उसके मुँह मे जूता घुसा देना...."
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08-18-2019, 02:40 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
असलियत मे मैं और मेरी टीम ऐसा कुच्छ भी नही करने वाली थी ,ये तो सिर्फ़ हमारा मॅच जीतने का प्लान था,जो मैने अभी-अभी बनाया था...जिससे सामने वाली टीम के लौन्डे हमारी तरफ डर के मारे ना आ सके....लेकिन मॅच के शुरुआती हालत देखकर मुझे अंदाज़ा हो चला था कि आज तो यहाँ वर्ल्ड वॉर ३र्ड होने वाला है.

कल्लू को डरा हुआ पाकर अरुण ने उससे अपनी पोज़िशन चेंज की और खेल फिर से शुरू हुआ....

मैं फुटबॉल लेकर आगे बढ़ा तो डिफेन्स करने के लिए कल्लू मेरे सामने आ गया और मैने फुटबॉल को मारने के बहाने उसके पैर मे एक किक जड़ दी जिसके बाद वो लन्गडाते हुए सामने से हट गया....अरुण मेरे पीछे था ,इसलिए मैं तूफान की तरह सामने वाली टीम की धज्जिया उड़ाते हुए आगे बढ़ता गया लेकिन मेरे आख़िरी शॉट को उनके गोलकीपर ने रोक लिया....
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"तुझे बोला था ना बे कालिए कि बीच मे मत आना, लेकिन तू माना नही...अब चूस..."पीछे अपनी टीम की तरफ जाते हुए मैने कल्लू से कहा,जो अपने पैर सहला रहा था....

अरुण की टीम से अरुण ही फुटबॉल को इधर-उधर नचाते हुए हमारी तरफ ला रहा था . अरुण को पेलने का मेरा कोई प्लान नही था लेकिन दिक्कत ये भी थी कि मुझे ढंग से फुटबॉल खेलना भी नही आता था कि मैं उसे बिना चोट पहुचाए उससे फुटबॉल छीन लूँ, इसलिए अरुण को पेलने के बहाने से मैं आगे बढ़ा और सीधे जाकर उसे अपने दोनो हाथो से पकड़ लिया...

"सौराअभ ,फुटबॉल छीन कर आगे बढ़ और यदि कल्लू बीच मे आया तो जूता उतारकर सीधे मुँह मे मारना लवडे के..."चीखते हुए मैने सौरभ को आवाज़ दी....

"ये तो गद्दारी है बे, छोड़ मुझे...ये तो नियम के खिलाफ है"आँखे दिखाते हुए अरुण बोला...

"अच्छा बेटा, आज ये नियम के खिलाफ हो गया...कल तू जब मेरी टीम मे था,तब तो तू ही ऐसे फ़ॉर्मूला यूज़ कर रहा था...."

"कल की बात कुच्छ और थी...आज ये सब नही चलेगा..."

"ऐसे-कैसे नही चलेगा...पापा जी का राज़ है क्या...चल खिसक इधर से..."जब सौरभ ने गोल कर दिया तो अरुण को छोड़ते हुए मैने कहा...

"अब देख बेटा,अरमान अपुन क्या कहर ढाता है..."

कहर ढाने की धमकी देकर अरुण अपनी टीम के पास गया और उनसे कुच्छ बाते करने लगा.हम लोग 1-0 से लीड कर रहे थे,जिसे देखकर अरुण की गान्ड फटने लगी और उसने कल्लू से जाकर कहा कि यदि तुझे कोई मारे तो तू भी उसे मारना....

अरुण की टीम ने लगभग 5 मिनिट तक अपनी प्लॅनिंग बनाई ,जिसके बाद कल्लू एक बार फिर मेरे पास आकर खड़ा हो गया और तो और उनका गोलकीपर भी किक मारने के बाद हमारी तरफ बढ़ा....अरुण की टीम का ये कदम एक तरह से हैरतअंगेज़ कारनामा था और जब तक मैं कुच्छ समझता उसके पहले ही कल्लू ने मुझे ज़ोर से पकड़ कर दीवार से सटा दिया और उधर अरुण ने पीछे से सौरभ की गर्दन पकड़ ली ,जिससे सौरभ अपनी जगह से हिल तक नही पाया....हमारे बाकी दो प्लेयर्स को भी ऐसे ही पकड़ कर गिरा दिया गया और अरुण के टीम के गोलकीपर ने अपने गोल पोस्ट से फुटबॉल लाकर हमारे गोल पोस्ट मे डाल दी
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"इसकी माँ का...ये तो फुटबॉल के नियम की धज्जिया उड़ा दी बे तुमने...तुम्हारा गोलकीपर कैसे इतना अंदर आ सकता है..."हैरान-परेशन सा कुच्छ सेकेंड्स के लिए मैं जैसे कोमा मे चला गया था...

"अब बोल लवडे अरमान,क्या बोलता है...तुझे लगता है कि सिर्फ़ तू ही एकलौता ऐसा है...जो प्लान बना सकता है...अब तो तू गया काम से..."

अरुण के इन भयंकर वाक़्यो को सुनकर मेरा खून खौल उठा और मैने अपनी टीम के चारो मेंबर को अपने पास बुलाया और उन्हे समझाया कि हमे क्या करना है...हमारे 5 मिनिट के ब्रेक के बाद हमारे प्लान के मुताबिक़ पांडे जी ने फुटबॉल को पैर से किक करने की बजाय हाथ मे पकड़ा और तेज़ी से सामने वाले पाले की तरफ भागा...अब हमारा ये फुटबॉल मॅच फुटबॉल मॅच ना होकर रग्बी मॅच बन गया था, जिसमे बॉल को हाथ मे लेकर भागना होता है...पांडे जी की इस हरक़त से अरुण और उसकी पूरी टीम के होश उड़ गये और वो पांडे जी को रोकने के लिए तुरंत दौड़ पड़े...लेकिन तभिच पांडे जी ने बॉल मेरी तरफ फेका,जिसे मैने बिना देर किया लपक लिया और अरुण की टीम के गोलकेपर को हाथो से घसीट कर फुटबॉल के साथ गोल कर दिया.....
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"अरुण लंड, अब बोल...कैसा लगा मेरा प्लान...अब तू गया बेटा..."

"अब देख मैं क्या करता हूँ..."बोलकर अरुण ने फिर से अपनी टीम को अपने पास बुलाया और 5 मिनिट तक उनसे डिसकस करता रहा....
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डिस्कशन के बाद जब गेम शुरू हुआ तो अब फुटबॉल का गेम हॅंडबॉल का गेम बन गया. अरुण और उसके टीम वाले पांडे जी के रग्बी गेम की तरह फुटबॉल को लेकर दौड़े नही बल्कि उन्होने दूर-दूर मे खड़े अपने टीम के लौन्डो को फुटबॉल फेक कर फुटबॉल पास किया और हमारे निकम्मे गोलकीपर सर राजश्री पांडे जी की बदौलत हमने भी दूसरा गोल खा लिया.....जिसके बाद अरुण ने फिर मुझे हेकड़ी दिखाई....
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मेरे और अरुण की टीम के बीच खेला गया वो फुटबॉल मॅच ,एक फुटबॉल मॅच ना होकर यूनिवर्सल मॅच हो गया था, जिसमे कभी कोई फुटबॉल खेलता ,तो कोई रग्बी खेलता और जिसका दिल करता वो हमारे उस फुटबॉल मॅच को हॅंडबॉल का गेम भी बना देता था. बोले तो ~लंगर~ फुटबॉल मॅच...जिसमे कोई रूल्स नही ,बस फुटबॉल गोल होनी चाहिए ,जिसके लिए चाहे कोई सा भी साम दाम दंड भेद अपनाना पड़े...
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"अबकी बार गोल होने के बाद जिसके अधिक पॉइंट रहेंगे,वो मॅच जीतेगा...क्या बोलता है..."हान्फते हुए अरुण ने मुझसे कहा...

"ठीक है...ये लास्ट गोल..अब तक का स्कोर बराबर है, इसलिए जो इस बार गोल दागेगा मॅच और 100 उसके..."मैने भी हान्फते हुए कहा..."लेकिन उसके पहले 5 मिनिट का ब्रेक लेते है...क्या बोलता है "

"मैं भी यही सोच रहा था..."

हमारा वो लंगर फुटबॉल मॅच तक़रीबन एक घंटे तक चला ,जिसमे दोनो टीम ने हाथ-पैर से 10-10 गोल दागे थे....इसलिए 5 मिनिट के ब्रेक के बाद जो भी टीम गोल करती वो एक पॉइंट की लीड लेकर विन्नर रहती.

अपने रूम मे आकर मैने पानी का बॉटल खोला और पूरा बॉटल खाली कर दिया....लेकिन तब भी आधी प्यास बाकी थी...मेरे जैसा हाल वहाँ बैठे अरुण, सौरभ ,पांडे जी और उन सभी का था जो मॅच खेल रहे थे....पांडे जी इतने थक गये कि ज़ोर-ज़ोर से हान्फते हुए ज़मीन पर औधे लेट गये और बोले की 'अरमान भाई...अब मेरे मे हिम्मत नही बची है...आप संभाल लो...'

'एक तो गया काम से...सौरभ तेरे मे कुच्छ दम बाकी है या तू भी तेल लेने जाएगा..."

"मैं खेलूँगा...."

"चल फिर बाहर आ, प्लान बनाते है..."

पांडे जी को वही ज़मीन मे छोड़ कर मैं, सौरभ और बाकी दो के साथ बाहर आया और प्लान बनाने लगा....

आख़िरी गोल हमारी तरफ हुआ था, इसलिए फुटबॉल लेकर हमलोग मॅच स्टार्ट करने वाले थे...जब अरुण की टीम सामने तैनात हो गयी तो मैने सौरभ को उनके बीच भेजा और अपने टीम के एक लौन्डे के हाथ मे फुटबॉल देकर रग्बी वाले गेम की तरह भागने के लिए कहा....उस लौन्डे ने ठीक वैसा ही किया लेकिन हाफ पिच पर अरुण ने मेरी टीम के उस लौन्डे को पकड़ लिया जिसके तुरंत बाद प्लान के मुताबिक़ सौरभ, जो पीछे खड़ा था...उसने अरुण की गर्दन को ठीक वैसे ही दबोच लिया ,जैसे की अरुण ने पहले सौरभ की गर्दन को दबोचा था....

अरुण की टीम का गोलकीपर अबकी बार अपनी ही जगह पर खड़ा रहा लेकिन अरुण को सौरभ के चंगुल से छुड़ाने के लिए कालिया आगे आया और तभिच मैने अपना बदला पूरा करने के उद्देश्य से घुमा कर एक लात कालिए को दे मारी और कालिया सीधे दीवार से जा भिड़ा ,जिसके बाद दीवार ने सर आइज़ॅक न्यूटन के थर्ड लॉ का पालन करते हुए कालिए को नीचे ज़मीन पर गिरा दिया....

"मुझसे भिड़ता है बोसे ड्के..अब जा के इलाज़ करवा लेना..."कालिए के शरीर को जगह-जगह से तोड़ने के बाद मैने उससे कहा....

अरुण को सौरभ ने फँसा रखा था और कालिया नीचे ज़मीन पर लेटा कराह रहा था. अब अरुण की टीम मे सिर्फ़ दो लोग बचे थे और वो दोनो गोल पोस्ट मे जाकर अपना हाथ फैला कर खड़े हो गये....

"तुम दोनो को मालूम नही क्या कि मैं बॅस्केटबॉल मे माहिर हूँ...बेटा जब मैं उस छोटे से छेद मे(रिंग) बॅस्केटबॉल घुसा देता हूँ तो फिर यहाँ मुझे गोल करने से कैसे रोकोगे बे..."

मेरा इतना कॉन्फिडेन्स देखकर उन लड़को का डर और भी बढ़ गया और वो दोनो अपने दोनो हाथ फैला कर एक-दूसरे के बगल मे खड़े हो गये....
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08-18-2019, 02:40 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
हमारे हॉस्टिल का कॉरिडर ज़्यादा चौड़ा नही था ,इसलिए जब वो दोनो अपने हाथ फैला कर खड़े हो गये तो पूरा का पूरा गोल पोस्ट उन दोनो के बॉडी से ढक गया....इसलिए गोल करने मे मुझे अब बड़ी दिक्कत हो रही थी...लेकिन ज़्यादा देर तक नही...मैने फुटबॉल को अपने हाथ मे लिया और घुमाकर उन दोनो मे से एक के पेट मे दे मारा.....

"आआययययीीई.....गान्ड फट गयी बे..."बोलते हुए वो लड़का,जिसके पेट मे मैने अभी-अभी फुटबॉल तना था,वो वही अपना पेट पकड़ कर बैठ गया...

अब जब एक घायल हो चुका था तो मेरे लिए गोल करने का काम बेहद आसान हो गया था और फिर मैने बिना समय गँवाए आख़िरी गोल दाग दिया....
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"ला दे 100 "आख़िरी गोल करने के बाद मैं अरुण के पास गया और उससे बेट के पैसे माँगे....

"ले लेना ना बाद मे...कही भागे जा रहा हूँ क्या...."

"चल बाद मे दे देना..."अपने रूम की तरफ आते हुए मैने विन्नर वाली स्माइल अरुण को दी...लेकिन मेरे रूम मे घुसने से पहले ही कालिया मुझे कुच्छ बोलने लगा...

"क्या हुआ बे, मैने तो तुझे पहले ही वॉर्न किया था कि मेरे रास्ते मे मत आना...लेकिन नही,...तेरी ही गान्ड मे बड़ी खुजली थी..."

"लवडे, मुझे कल अपनी बहन को लेकर हॉस्पिटल जाना था...लेकिन अब नही जा पाउन्गा...आआअहह"

"अबे तो दर्द से कराह रहा है या चुदाई कर रहा है...दर्द मे भी कोई ऐसे कराहता है क्या..आआअहह "

"बात मत पलट अरमान...तूने ये सही नही किया...."

"अब ज़्यादा नौटंकी मत कर बे कल्लू..."कालिए को सहारा देकर उठाते हुए मैने कहा "वैसे तेरी बहन कॉलेज मे पढ़ती है,ये मुझे आज ही पता चला...कौन है वो..."

"फर्स्ट एअर मे है...नाम है आराधना शर्मा..."

"आराधना शर्मा... खा माँ कसम "जबरदस्त तरीके से चौुक्ते हुए मैने कल्लू से पुछा....

मुझे इस तरह से शॉक्ड होता देख कल्लू भी बुरी तरह चौका और डरने लगा कि कही मैं उसे फिर ना पेल दूं . मैं इसलिए इतनी बुरी तरह चौका था क्यूंकी आराधना और कल्लू के फेस मे कोई मेल-जोल नही था.

आराधना उतनी गोरी भी नही थी, लेकिन कल्लू जैसे निहायत काली भी नही थी...आराधना एवन माल भले ना हो लेकिन ऐसी तो थी ही कि यदि वो चोदने का प्रपोज़ल दे तो मैं मना ना करूँ वही कल्लू एक दम बदसूरत मेंढक के जैसे मुँह वाला था और तो और साला कंघी भी चुराता था....

"ऐसे क्या देख रहा है बे, फिर से मारेगा क्या..."

"आराधना तेरी सग़ी बहन है या फिर तेरे चाचा,मामा,काका,फूफा,तौजी....एट्सेटरा. एट्सेटरा. की बेटी है..."

मेरे द्वारा ऐसा सवाल करने पर पहले तू कल्लू मुझे खा जाने वाली नज़रों से देखने लगा लेकिन जब उसे ऐसा लगा कि वो मेरा कुच्छ नही उखाड़ सकता तो वो थोड़ा मायूस और थोड़े गुस्से के साथ बोला...

"आराधना मेरी दूर की बहन है...तुझे उससे क्या..."

"तभी मैं सोचु कि तुझ जैसे कालिया की बहन आराधना कैसे हो सकती है..." आराधना ,कल्लू की दूर के रिश्ते की बहन है ये जानकार मैं बड़बड़ाया और वहाँ से अपने रूम मे आया....
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मेरे रूम मे इस वक़्त सौरभ, अरुण के साथ पांडे जी भी मौज़ूद थे,जो फुटबॉल मॅच के दौरान लगी चोट को सहला रहे थे...अरुण के हाथ और गर्दन के पास की थोड़ी सी चमड़ी घिस गयी थी,वही सौरभ सही-सलामत था......

"देख लिया बे,मुझे चॅलेंज करने का नतीजा, अब अगली बार से औकात मे रहना..वरना इस बार गर्दन के पास की थोड़ी सी चमड़ी उखड़ी है,अगली बार पूरा गर्दन उखाड़ दूँगा...."शहन्शाहो वाली स्टाइल मे मैं अपने बेड पर बैठते हुए बोला"मुझे देख ,मैं कैसे मॅच के बाद भी रिलॅक्स फील कर रहा हूँ..."

"ज़्यादा बोलेगा तो 100 के बदले मे मैं लंड के 100 बाल थमाउन्गा..."आईने मे देखकर अपनी गर्दन को सहलाते हुए अरुण ने कहा"और बेटा, आईने मे देख ,तेरा माथा फोड़ दिया है मैने..."

अरुण के इतना बोलने के साथ ही मेरा हाथ खुद ब खुद मेरे सर पर गया और जैसे ही मैने अपना हाथ अपने माथे पर फिराया तो थोड़ी सी जलन हुई....

"खून निकल रहा है क्या बे सौरभ..."

"थोड़ी सी खरॉच है बे...बस और कुच्छ नही...और ये बता तू उस कन्घिचोर से किस लौंडिया के बारे मे बात कर रहा था..."

"ऐसिच है एक आइटम...उसी के बारे मे बात कर रहा था..."बात को टालते हुए मैने कहा...क्यूंकी यदि मैं उन्हे आराधना के बारे मे बताता तो फिर उन्हे पूरी कहानी बतानी पड़ती कि मैं कैसे कॅंटीन मे आराधना से मिला और वो आंकरिंग की प्रॅक्टीस करने भी आती है...ब्लाह..ब्लाह.
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अगले दिन जब मैं कॉलेज के लिए हॉस्टिल से निकल रहा था तो जो बात मेरे दिमाग़ मे थी ,वो ये कि एश का मुझे देखकर क्या रियेक्शन होगा, वो मुझसे बिहेव कैसे करेगी...मुझसे बात भी करेगी या नही...क्यूंकी कल शाम के वक़्त पार्किंग मे मैने उसे कहा था कि 'यदि वो मुझसे पहले नही जाएगी तो मैं उसकी पप्पी ले लूँगा' . उस वक़्त तो मैने ये कह दिया था लेकिन बाद मे जब मैने इसपर गौर किया और इतमीनान से सोचा तो मुझे ऐसा लगा कि मुझे एश को वो नही बोलना चाहिए था....इसलिए मैं ऑडिटोरियम की तरफ जाते वक़्त थोड़ा घबरा भी रहा था .

"एक काम करता हूँ, ऑडिटोरियम मे जाते ही एश को बोल दूँगा कि वो कल वाली बात का बुरा ना माने...वो तो मैने ऐसे ही मज़ाक मे कह दिया था....एसस्स..यह्िच बोलूँगा,तब वो मान जाएगी..."

ऑडिटोरियम की तरफ जाते वक़्त मैने बाक़ायदा वो लाइन्स भी बना डाली, जो मुझे एश से बोलना था.उस दिन एश मुझे ऑडिटोरियम के बाहर अकेली खड़ी मिली और मैने दिल ही दिल मे उपरवाले का शुक्रिया अदा किया क्यूंकी यदि इस वक़्त एश मुझे कुच्छ उल्टा सीधा भी कह देती तो कोई और नही सुनता....वरना यदि एश किसी तीसरे के सामने मुझपर चिल्लाती तो मेरा अहंकार जो मुझमे कूट-कूट कर भरा हुआ है...वो अपनी इन्सल्ट होते हुए देख तुरंत बाहर आता और जिसका नतीज़ा एश की सबके सामने घोर बेज़्जती के रूप मे निकलता....

"गुड मॉर्निंग, यहाँ खड़ी मेरा इंतज़ार कर रही थी क्या "हमेशा की तरह हँसते-मुस्कुराते हुए मैने कहा....इस उम्मीद मे कि एश भी हँसते-मुस्कुराते हुए जवाब देगी...

"तुमसे कोई मतलब कि मैं यहाँ खड़ी होकर क्या कर रही हूँ...अपने काम से मतलब रखो..."चिड़चिड़ेपन के साथ एश ने मेरा स्वागत किया....

कसम से यदि उस वक़्त वहाँ एश की जगह कोई और लड़की होती ,यहाँ तक की आंजेलीना सिल्वा की जगह आंजेलीना जोली भी होती और वो मेरे गुड मॉर्निंग का ऐसा चिड़चिड़ा जवाब देती तो मैं सीधे घुमा के एक लाफा मारता ,लेकिन वो लड़की एश थी इसलिए मैं शांत ही रहा....ये सोचकर की शायद उसका मूड खराब होगा.
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"पक्का ,आज अंकल जी ने किराए के पैसे नही दिए होंगे...इसीलिए इतना भड़क रही है. लेकिन टेन्षन मत ले ,मैं बहुत रहीस हूँ....बोल कितना रोक्डा दूँ...तू कहे तो ब्लॅंक चेक साइन करके दे दूं..."एसा का मूड ठीक करने के इरादे से मैने ऐसा कहा....लेकिन एश पर इसका उल्टा ही असर हुआ.

एश और भी ज़्यादा मुझपर भड़क गयी और उसने कुच्छ ऐसे बाते बोल दी ,जो सीधे तीर के माफ़िक़ मेरे दिल मे चुभि, वो बोली...
"तुम्हे लगता है कि मैं तुमसे बात भी करना पसंद करती हूँ...हाआंन्न , तुम जैसे लड़को को मैं अच्छी तरह से जानती हूँ, जहाँ कोई रहीस लड़की दिखी नही कि उसके पीछे पड़ गये....गौतम के साथ तुमने जो किया ,उसके बाद तो मुझे तुम्हारी नाम से भी घिन आती है...और जितना रुपये तुम्हारे ग़रीब माँ-बाप तुम्हे एक महीने मे भिजवते है ना उतना तो मैं हर दिन बार,पब वगेरह मे टिप दे देती हूँ...ब्लडी नॉनसेन्स...पता नही कहा-कहा से चले आते है,भिखारी..."
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एश के मुँह से ऐसे-ऐसे लफ्ज़ सुनकर मुझे पहली बार मे तो यकीन ही नही हुआ कि एश ने मुझसे ही वो सब कहा है...मेरा कान ऐसे सन्न हुआ जैसे किसी ने ज़ोर से मेरे कान मे झापड़ दे मारा हो....एकपल के लिए मुझे समझ ही नही आया कि मैं क्या करूँ, लेकिन एश ने ऐसे-ऐसे शब्द बोल दिए थे कि मेरे अहंकार ने मेरे प्यार को तुरंत मात दे दी और मैं बोला...
"देखो, मेरे मोबाइल मे कॉल तेरी तरफ से आया था ना कि मैने तुझे कॉल किया था...इसलिए ऐसा सोचना भी मत कि मुझे तुझ जैसी लड़की से बात करने मे रत्ती भर की भी दिलचस्पी है...वो तो ऑडिटोरियम मे देखा कि तुझसे बाकी लड़कियाँ बात नही करती इसलिए तरस खाकर तेरे पास दो दिन क्या बैठ गया, दो चार बाते क्या कर ली...तूने तो उसका उल्टा-सीधा ही मतलब निकल लिया...फूल कही की...और तूने मेरे माँ-बाप को ग़रीब कहाँ ? तेरी तो...अबे जितने पैसा तेरी पूरी ग़रीब फॅमिली एक महीने मे उड़ाती है है ना उतना तो मेरा सिर्फ़ दारू का बिल रहता है....और तू खुद को बहुत रिच समझती है..."जेब से गॉगल निकाल कर पहनते हुए मैने कहा"जितनी कि तू नही होगी,उतने का तो सिर्फ़ मेरा गॉगल है..अब चल साइड दे, अंदर वो छत्रु मुझसे आंकरिंग की टिप्स लेने के लिए मेरा इंतज़ार कर रहा होगा..."

मैने तुरंत एश को पकड़ कर एकतरफ खिसकाया . मेरे द्वारा अपनी इन्सल्ट होते देख एश की आग और भी भड़क गयी और जब मैने उसे छुआ तो वो चीखते हुए बोली"डॉन'ट टच मीईई...."

"सॉरी कि मैने तुझ जैसी को छुकर अपना हाथ गंदा कर लिया और सुन ,अगली बार मुझसे ज़ुबान संभाल कर बात करना वरना ऐसी बेज़्जती करूँगा कि 24 अवर्स मेरे लफ्ज़ झापड़ की तरह कान मे बज़ेंगे...अब मुझे घूर्ना बंद कर,वरना मेरा मूड खराब हुआ तो एक-दो झापड़ यही लगा दूँगा....साली आटिट्यूड दिखाती है..."
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एश के साथ घमासान लड़ाई करके मैं ऑडिटोरियम मे घुसा और पहली बार मुझे एश के साथ मिस्बेहेव करने का कोई मलाल नही था, बल्कि मेरा दिल कर रहा था,अभिच बाहर जाकर उसपर म्सी,बीसी,बीकेएल,एमकेएल...की भी वर्षा कर दूं...लेकिन मैने जैसे-तैसे खुद को कंट्रोल किया और ऑडिटोरियम मे एक कोने मे चुप-चाप बैठकर खुद को ठंडा करने लगा....


"साली खुद को समझती क्या है, अभी मूड खराब हुआ तो दाई चोद दूँगा, लवडा समझ के क्या रखी है मुझे..."

मैं बहुत देर तक एक कोने मे अकेले बैठ कर एश को बुरा-भला कहता रहा लेकिन मेरा गुस्सा था कि ठंडा होने का नाम ही नही ले रहा था...ऑडिटोरियम मे बाकी स्टूडेंट्स भी आ गये थे बस छत्रपाल किसी कोने मरवा रहा था....

"आज उस बीसी छत्रपाल ने ज़्यादा होशियारी छोड़ी तो मारूँगा म्सी को...फिर लवडे की सारी आंकरिंग गान्ड मे घुस जाएगी दयिचोद साला..."मेरा गुस्सा एसा से डाइवर्ट होकर छत्रपाल पर आ गया .

"गुड मॉर्निंग...सर, इतने अकेले क्यूँ बैठे हो..."

आवाज़ सुनकर मैने आवाज़ की तरफ अपना चेहरा किया तो देखा कि आराधना खड़ी थी और मंद-मंद मुस्कान के साथ अपने हाथ मे एक पेपर लिए खड़ी थी....

"क्या है..."मैने चहक कर कहा, जिससे वो थोड़ा पीछे हो गयी...

"गुस्सा क्यूँ होते हो सर, बस इतना ही तो पुछा कि आप अकेले क्यूँ बैठे हो..."

"तुझसे कोई मतलब कि मैं यहाँ कोने मे बैठू या सामने स्टेज पर लेटा रहूं...मेरा मन मैं चाहे तो ऑडिटोरियम के छत पर जाकर बैठू, तुझे क्या...और यदि तूने अगली बार मुझे सर कहा तो तेरा गला दबा दूँगा...अब भाग यहाँ से..."

जो गुस्सा एश या फिर छत्रपाल पर उतारना चाहिए था, वो उस बेचारी आराधना पर उतर गया...किसी महान आदमी ने सही ही कहा है कि हर वक़्त उंगली नही करनी चाहिए...और आराधना ने वही उंगली करने वाला काम कर दिया था. मेरा ऐसा रौद्र रूप देखकर आराधना वहाँ से तुरंत भाग खड़ी हुई और मैं वही तब तक बैठा रहा जब तक छत्रपाल ने मेरा नाम लेकर मुझे स्टेज पर नही बुला लिया.....

आज छत्रपाल ने अपने उन 6 स्टूडेंट्स को सेलेक्ट कर लिया था, जो गोल्डन जुबिली के फंक्षन मे आंकरिंग करने वाले थे और उन 6 स्टूडेंट्स मे से मैं और एश भी थे...आराधना को छत्रपाल ने अडीशनल के तौर पर सेलेक्ट किया था,ताकि बाइ चान्स यदि कोई किसी कारणवश फंक्षन मे ना आ पाए तो आराधना उसकी भरपाई कर दे.....
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जिन 6 स्टूडेंट्स को छत्रपाल ने सेलेक्ट किया था, उनमे से 3 लड़के और 3 लड़किया थी और अब 2-2 के ग्रूप बनने वाले थे.
अकॉरडिंग तो छत्रु, हर ग्रूप मे एक लड़का और एक लड़की रहने वाले थे ,इसलिए मैं इस समय स्टेज पर खड़ा होकर यही दुआ कर रहा था कि एश मेरे साथ ना फँसे वरना मेरे हाथो उसका खून हो जाएगा....लेकिन उस म्सी छत्रपाल ने वही किया, जो मैं नही चाहता था...साले ने मुझे एश के साथ जोड़ दिया और हाथ मे दो पेज पकड़ा कर माइक के पास जाने के लिए कहा....

मेरी किस्मत भी एक दम झंड है. जो मैं चाहता था, छत्रपाल ने सेम टू सेम वैसा ही किया था...मतलब कि मैं सेलेक्ट भी हो गया था और मेरी जोड़ीदार एश बनी थी...लेकिन मुझे अब ये पसंद नही आ रहा था....जब छत्रपाल ने 7 को सेलेक्ट करके बाकियो को ऑडिटोरियम से बाहर का रास्ता दिखाया तो मैने सोचा कि छत्रु के पास जाकर ये कहा जाए कि 'सर, मुझे एश के आलवा किसी और के साथ रख दीजिए' लेकिन फिर मैने ऐसा नही किया...

मैने ऐसा इसलिए नही किया क्यूंकी मेरा प्यार एश के लिए उमड़ आया था बल्कि इसलिए क्यूंकी मुझे पूरा यकीन था कि एश ,छत्रपाल सर के इस सेलेक्षन पर ऑब्जेक्षन ज़रूर उठाएगी...और जब एश ये काम करने ही वाली थी तो फिर मैं क्यूँ अपना नाम खराब करू क्यूंकी वैसे भी मेरा नाम बहुत ज़्यादा खराब है.
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मैं छत्रपाल के पास ही स्टेज पर खड़ा था और जब एश को स्टेज पर अपनी तरफ आते देखा तो मेरा पारा फिर चढ़ने लगा....जहाँ एक ओर मैं इतना गरम हो रहा था,वही दूसरी तरफ एश ऐसे शांत थी...जैसे हमारी लड़ाई कुच्छ देर पहले ना होकर एक साल पहले हुई हो....एश के शांत बर्ताव के बाद भी मुझे उम्मीद थी कि वो च्छत्रु के पास जाएगी और मेरे साथ आंकरिंग करने को मना कर देगी, लेकिन वो चुप-चाप स्टेज पर आई और मेरे बगल मे आकर खड़ी हो गयी.....

"जाना...जाती क्यूँ नही छत्रु के पास और जाकर बोल दे कि तुझे मेरे साथ रहना पसंद नही..."एश जब मेरे बगल मे खड़ी हुई तो मैने चीखे मार-मार कर खुद से कहा....

छत्रपाल ने हम दोनो की तरफ हाथ किया और स्टेज पर थोड़ा आगे आने के लिए कहा...फिर वो हम दोनो से बोला...
"स्टार्टिंग के थर्टी मिनिट्स तुम दोनो आंकरिंग करोगे , ओके...उसके बाद 20-20 मिनिट्स तक बाकी के दो ग्रूप आएँगे जिसके बाद तुम दोनो फिर से आंकरिंग करोगे...."एश के हाथ मे एक पेज पकड़ाते हुए छत्रपाल ने कहा"ये मेरा इनिशियल प्लान है ,बाकी का बाद मे बताउन्गा....अब तुम दोनो, अरमान और एश..शुरू हो जाओ..."
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छत्रपाल ने 'शुरू हो जाओ' ऐसे बड़े आराम से कह दिया ,जैसे उसके बाप का राज़ हो. एश का तो पता नही लेकिन मैं इस वक़्त बिल्कुल भी मूड मे नही था और सबसे अधिक हैरानी मुझे इस बात से थी कि एश हम दोनो के सेलेक्षन पर कोई ऑब्जेक्षन क्यूँ नही उठा रही, क्यूंकी जितना मैने एश को समझा है उसके अनुसार वो एक नकचड़ी लड़की है....लेकिन इस वक़्त वो एक दम शांत थी और मेरे साथ ऐसे खड़ी थी,जैसे कि हम दोनो के बीच कुच्छ हुआ ही ना हो...साला सच मे लौन्डियोन को समझने की कोशिश करना मतलब खुद के गले मे फाँसी लगाने के बराबर है....
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मुझे नही पता कि एश उस समय स्टेज पर क्या सोचकर छत्रपाल के सेलेक्षन का विरोध करने के बजाय चुप-चाप खड़ी थी लेकिन मेरे लिए अब समय के साथ बीत रहा हर पल, हर सेकेंड मुझे जैसे धिक्कार रहा था और जब ये असहनिय हो गया तो मैं खुद छत्रपाल के पास गया....

"सर, मेरी उस लड़की से थोड़ी सी भी नही बनती...क्या आप मुझे किसी और के साथ फिट कर सकते है ? "धीमे स्वर मे मैने छत्रपाल से कहा...

"बकवास बंद करो और जाकर उसके साथ खड़े रहो...मैं यहाँ तुम्हारी पसंद की लड़की के साथ तुम्हारी जोड़ी बनाने का काम नही कर रहा हूँ...समझे,.."दाँत चबाते हुए छत्रपाल ने मुझसे कहा...

"लेकिन सर, वो लड़की मुझे ज़रा भी पसंद नही है... मतलब कि वो गौतम की करीबी है और आपको तो पता ही होगा कि हमारे बीच क्या हुआ था..."पुरानी कब्र खोदते हुए मैने अपना पक्ष मज़बूत करना चाहा...ताकि छत्रपाल मान जाए.

"मुझे कोई फ़र्क नही पड़ता कि तुम कौन हो और वो कौन है...यदि गोल्डन जुबिली के फन्शन मे आंकरिंग करनी है तो उसी के साथ करो...नही तो गेट उधर है,वहाँ से बाहर जाओ और फिर दोबारा कभी मत आना..."
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मैने आज तक कॉलेज मे सिर्फ़ ऐसे ही काम किए थे, जिससे मेरा नाम सिर्फ़ खराब हुआ था लेकिन गोल्डन जुबिली के फंक्षन मे आंकरिंग करके मैं थोड़ा नाम कामना चाहता था ताकि मेरे यहाँ से जाने के बाद लोग मुझे सिर्फ़ मेरी बुराइयो के कारण याद ना रखे....वो जब भी गोल्डन जुबिली के फंक्षन का वीडियो देखेंगे तब-तब वो मुझे याद करेंगे और मेरे कॉलेज की लड़किया जो यदि 10 साल बाद भी मेरे कॉलेज मे आएँगी वो गोल्डन जुबिली के उस सुनहरी शाम के वीडियो मे मुझे आंकरिंग करता देख ,आपस मे ज़रूर पुछेन्गि कि' यार ये हॅंडसम बॉय कौन है ' . ये सब, जैसे मेरा दिमाग़ मे बैठ चुका था और मुझे यकीन था कि फ्यूचर मे ऐसा ही होगा....इसलिए मैने उस दिन ऑडिटोरियम मे छत्रपाल की बात मान ली और उसके कहे अनुसार चुप-चाप एश के पास जाकर खड़ा हो गया.....लेकिन मैं तब भी हैरान हुआ था और आज भी हैरान हूँ कि आख़िर एश ने उस दिन कोई ऑब्जेक्षन क्यूँ नही उठाया ?
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"वेट...वेट...वेट..."वरुण ने मेरा मुँह दबाकर मुझे रोकते हुए बोला"बस एक मिनिट रुक, मैं मूत कर आता हूँ..."

"ये ले...सालाअ...चूतिया.."

"बहुत देर से कंट्रोल करके बैठा था,लेकिन अब और कंट्रोल नही होता...बस एक मिनिट मे आया..."बोलते हुए वरुण अपना लंड दबाते हुए बाथरूम की तरफ भागा....
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"मतलब कि तू ये कहना चाहता है कि एश तेरे ही ग्रूप मे रही...हाऐईिईन्न्न..."

"अब तू ए.सी.पी. प्रद्दूमन जैसे फालतू सवाल करेगा तो मैं तेरी जान ले लूँगा, समझा..."सिगरेट को होंठो के बीच फसाते हुए मैने आगे की कहानी बयान करनी शुरू की...
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