Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
08-18-2019, 02:46 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
क्लास मे टोटल 12 लड़के हॉस्टिल वाले थे .उन सबको लेकर मैं आगे बढ़ा कि तभी किसी ने पीछे से पुछा...
"मारने किसको जा रहे है...कहीं हम कम ना पड़ जाए,तू कहे तो सामने वाली क्लास से 10-12 को और साथ ले लूं..."
"ले ले...अपना क्या जाता है...लेकिन बेटा ख़याल राखियो, किसी को पेलना नही है,बस हूल देने जा रहे है...."
"कौन है वो बीकेएल..."
"यशवंत...वरुण का शिश्य..."
"लेकिन वो तो अब एनएसयूआइ का प्रेसीडेंट बन चुका है, बीसी कही उसने भी लड़के लाकर खड़े कर दिए तो..."
"दाई छोड़ देंगे उसकी भी और उसके लड़को के भी..."अरुण ने कहा....
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कॉलेज से निकलकर हम लोग पैदल ही मेन गेट की तरफ चलने लगे कि मुझे कुच्छ याद आया....
"रूको बे, ऐसे पैदल जाने से इंप्रेशन खराब होगा, जाओ अपने क्लास के लौन्डो के बाइक की चाभी उधार माँग कर लाओ और जो मेच-8थ सें. मे जा रहा है,वो मेरे बॅग से मेरा गॉगल भी ले आना..."
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मेरे इतना बोलते ही कुच्छ लड़के भागकर गये और 5 मिनिट मे ही बाइक की चाभीया और मेरा गॉगल लेकर आ गये...मैने अपना गॉगल लगाया और एक बाइक की चाभी अपने हाथ मे ली...
"तू चला लेगा बे,या मैं चलाऊ...कही उस दिन की तरह ठोक मत देना"अरुण ने मुझसे कहा...
"तू बैठ पीछे, चलने को तो मैं एरोप्लेन चला लूँ,फिर ये बाइक क्या चीज़ है...."
"यशवंत कॉलेज के मेन गेट के बाहर अभी है ,पहले ये तो कन्फर्म कर ले...नही तो फालतू मे वहाँ जाकर चूस लेंगे..."
"गुड..."
मैने तुरंत अपना मोबाइल निकाला और मेन गेट के बाहर बने फोटोकॉपी के दुकान संभालने वाले लड़के को कॉल किया और उससे यशवंत के बारे मे पुछा....
"खुशख़बरी है बे...वो यश वही है,चलो चोदते है बीकेएल को..."
"चल्ल्ल्ल्लूऊ....."बाइक पर सवार होकर सब चिल्लाए....
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पार्किंग से कॉलेज के गेट तक पहुचने मे हमे चाँद मिनिट्स ही लगे.जैसा की फोटोकॉपी वाले ने बताया था, वैईसिच ही वहाँ का सीन था...यानी की यशवंत एक चाय-समोसे के दुकान पर बैठा सिगरेट पी रहा था और उसके साथ 6-7 लड़के थे.....
"अरुण,शूटिंग की शुरुआत कर..."उस चाय-समोसे के दुकान के पास पहुच कर मैने कहा...
"मूवी -यशवंत की चुदाई, टेक नंबर-1...आक्षन...."
"अबे ओये चुस्वन्त, इधर आ बे बीसी..."अरुण के आक्षन बोलने के बाद मेरी मुँह से पहली लाइन यही निकली....
यशवंत वैसे तो था बड़ा तगड़ा और जिस हिसाब से उसकी रेप्युटेशन कॉलेज मे थी उसके अनुसार उसे मुझे बिल्कुल नज़र-अंदाज़ कर देना चाहिए था...लेकिन वो उस वक़्त थोड़ा कन्फ्यूज़ दिखा और थोड़ी देर तक चारो तरफ देखने के बाद चाय का ग्लास दुकान मे रखकर हमारी तरफ बढ़ा.....

कॉलेज मे रेप्युटेशन बनाना बहुत आसान है लेकिन उसे बरकरार रखना उतना ही मुश्क़िल.इसके बहुत सारे एग्ज़ॅंपल मेरे पास है जैसे की वरुण, गौतम...दोनो की रेप्युटेशन शुरुआत मे एक दम फाडू थी लेकिन बाद मे जो हुआ ,वो सब जानते है...वही दूसरी तरफ सीडार भाई का जो दर्ज़ा कॉलेज मे उनके रहते हुए था वो उनके जाने के बाद भी था...सीडार भाई ,अब कहाँ होंगे ,ये कोई नही जानता लेकिन हर साल हॉस्टिल मे आने वाला हर बंदा उनके बारे मे ज़रूर जानेगा और ऐसा तब तक चलता रहेगा ,जब तक हमारा कॉलेज चलता रहेगा....और अगर मेरी बात की जाए तो, मेरी तो बात ही अलग है
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यशवंत के साथ उसके साथ के भी लड़के उसके पीछे-पीछे हमारे पास आ पहुँचे . बहुत देर तक हम मे से कोई कुच्छ नही बोला, सब अपने-अपने ऑपोसिशन को मौन व्रत धारण किए हुए निहारे जा रहे थे....

"अबे ओये, यहाँ एक-दूसरे को प्रपोज़ करने आए हो क्या जो कब से एक-दूसरे को देखे जा रहे हो...."सबका मौन व्रत तोड़ते हुए मैं चीखा....

"हां बोल ,क्या हुआ....और नाम ज़रा इज़्ज़त से ले..."छुस्वन्त ने अकड़ कर कहा...
"इज़्ज़त लायक कुच्छ किया होता तो मैं तेरे चरण धोता लेकिन हक़ीक़त ये नही है...तो फिर तूने ये कैसे सोच लिया कि मैं तुझसे अच्छे से बात करूँगा बे चुस्वन्त...चुस्सू..चूसैल...चूतिए..."
"रुक लवडा..."अपना मोबाइल निकालकर यशवंत बोला"यदि जिगर है तो दस मिनिट यही रुक..."
"देख बे अखंड चूतिए...यहाँ मॅटर ये नही है कि मैं यहाँ कब तक रुकुंगा, बल्कि मॅटर ये है कि तू यहाँ कब तक रुकेगा...."कहते हुए मैं बाइक से उतरा और यशवंत के कान पर जोरदार झापड़ मारा ,जिससे उसका मोबाइल नीचे गिरा और यशवंत सन्ना गया.....
"मारो बे ,लवडो इन पप्पू को..."बोलते हुए मैने यशवंत का बाल पकड़ा और उसका सर उपर अपनी तरफ करते हुए कहा"अभी समझा रहा हूँ ,सुधर जा...वरना अगली बार मारूँगा...कल से यदि किसी ने भी कंप्लेंट किया की तूने किसी भी लड़की पर कॉमेंट किया तो फिर ऐसा फोड़ूँगा की यहाँ बैठकर कॉमेंट करना तो दूर फ़ेसबुक मे भी कॉमेंट करने लायक नही रहेगा....अब चल जा.."

यशवंत को छोड़ कर मैं पीछे मुड़ा ,लेकिन मालूम नही मेरा क्या मूड हुआ ,जो मैं एक दम से पीछे पलटा और यशवंत के दूसरे कान को भी झन्ना दिया....

"साले अभी तक गया नही..."

मेरे इतना बोलते ही सौरभ एक डंडा लिए हुए आया और घुमा कर यशवंत के पीठ मे जड़ दिया.....
"अबे, मारना नही है...समझना है..."

"लाड मेरा समझना है...इस बीसी को तो फर्स्ट एअर से ताड़ रहा था मैं,..."बोलते हुए सौरभ ने एक बार फिर यशवंत को पेला.....
जब से मैने यशवंत को पहला झापड़ जड़ा था तब से वो बस खड़े होकर मुझे देखे जा रहा था...जब सौरभ ने उसको डंडे से ठोका तब भी वो वैसा ही खड़ा रहा...

"मदरलंड घूरता क्या है बे...मारेगा क्या, ले मार....बेटा जितने तेरे पास लड़के नही होंगे ना उससे अधिक तो मेरे पास बाइक है और हर बाइक मे मिनिमम तीन लड़के सवार रहते है...मॅग्ज़िमम तू कितने भी ले ले और इतना दुखी क्यूँ हो रहा है.तेरे आत्म-सम्मान को धक्का पहुचा क्या...अबे दिल पे मत ले, तेरे गुरु ,वरुण तक को चोद कर बैठा हूँ ..."

"चलो बे..आज टाइम खराब है..."इतनी देर मे पहली बार यशवंत कुच्छ बोला और अपने दोस्तो के साथ वहाँ से जाने लगा...लेकिन थोड़ी दूर जाकर वो बोला"अरमान, तेरा गेम मैं बजाउन्गा...बस कुच्छ दिन रुक जा.."
"म्सी...ज़्यादा बोलेगा तो शहीद कर दूँगा यही..."अरुण चिल्लाया....

"अरमान तू अपने दिन गिनने शुरू कर दे..."

"मेरे जैसे ही एक महान व्यक्ति ने कहा था कि 'डॉन'ट काउंट दा डेज़, मेक दा डेज़ काउंट'....दिन तुम जैसे चुसाद गिना करते है, हम जैसे लोग तो हर दिन को यादगार बनाते है और जा, जितने पप्पू इकट्ठा कर सकता है कर ले ,मेरा वादा है तुझसे,जिस दिन भी तू आएगा, पूरी तरह चुद के जाएगा....ऑल दा बेस्ट , चुषवंत"
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यशवंत और उसके दोस्तो के वहाँ से जाने के बाद हम लोग वापस कॉलेज की तरफ बढ़े....लंच के बाद वाली क्लास आधा निकल चुकी थी ,इसलिए पार्किंग मे बाइक खड़ी करके सब इधर-उधर चल दिए और मैं भी हॉस्टिल जाने के लिए अपने दोस्तो से विदा लेकर हॉस्टिल की तरफ चल दिया.....
"अरमान रुक..."पीछे से अरुण ने मुझे आवाज़ लगाई तो मैं रुका...
"क्या हुआ ,लंड चुसेगा क्या..."
"मॅटर क्या था ,यशवंत को मारने का..."
"कुच्छ खास नही ,ऐसे ही मूड हुआ तो ठोक दिया..."
"बेटा बिना भूक के तो इंसान खाना भी नही ख़ाता, फिर तुझ जैसे सेल्फिश और फटतू बिना किसी मतलब के ऐसे ही किसी को नही मार सकता, वो भी ये जानते हुए कि सामने वाला बाद मे तेरी ले भी सकता है...इसलिए मुँह खोल और सच-सच बक की मॅटर क्या था..."
"मॅटर...वेल मॅटर ईज़ दा ऑब्जेक्ट्स दट टेक अप स्पेस आंड हॅव मास आर कॉल्ड मॅटर. एवेरितिंग अराउंड यू ईज़ मेड अप ऑफ मॅटर. चॉक्लेट केक ईज़ मेड अप ऑफ मॅटर. यू आर मेड ऑफ मॅटर. "

"ये ले मुक्का, दिस पंच ईज़ ऑल्सो मेड अप ऑफ मॅटर ,नाउ टेल मी दा रियल मॅटर..."एक घुसा मेरे पेट मे जड़ कर अरुण बोला...
"कुच्छ नही बे...हूओ...वो आराधना को उल्टा -सीधा बोला था उसने....आहह, बोसे ड्के, थोड़ा धीरे मारा कर..."
"आराधना, मतलब लौंडिया...ये तो हॉस्टिल के नियमो के शख्त खिलाफ है...सीडार भाई ने कहा था कि लड़की के लफडे मे कोई किसी का साथ नही देगा..."
"देख अलुंड(अरुण ) ,मैं खुद भी सीडार की इज़्ज़त करता हूँ लेकिन वो रूल उनके जमाने का था और अब दूसरा जमाना है....वैसे भी तेरे सिवा किसको मालूम है कि मैने ये सब किसी लड़की के पीछे किया है..."आँख मारते हुए मैं बोला...
"अरमान,अपने लौन्डो से झूठ बोलना बुरी बात है..."
"नही रे अलुंड, झूठ बोलना बुरी बात नही है मतलब अच्छी तरह से झूठ ना बोलना बुरी बात है...अब तू ही देख, हॉस्टिल वाले इस वक़्त ये सोच रहे है कि मैने सज्जन पुरुष वाला काम किया है ,यशवंत को मारकर....क्यूंकी यशवंत से कॉलेज की सारी लड़किया परेशान थी...इनफॅक्ट अब तो वो लड़किया मुझे अपना भगवान बना लेंगी....बेटा ,अरुण...दुनिया मे महान बनने के सिर्फ़ दो रास्ते है, पहला या तो महानों वाला काम करो या फिर छोटा-मोटा काम करके उसे महान तरीके से सबके सामने पेश करो...अब निकलता हूँ, मेरी दारू की बोतल मेरा इंतज़ार कर रही होगी...."
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उस दिन पूरे हॉस्टिल मे सबसे 100-100 लेकर महोत्स्व का आयोजन किया गया था...हॉस्टिल मे पेल के दारू आई थी, जिसे जो ब्रांड जितनी भी चाहिए थी ,उसे दे दिया गया और सब को देने के बाद हम भी गला तर करने के लिए बैठे.....
"अरमान भाई,एक बात पुच्छू"राजश्री पांडे ने अपनी फरमाइश पेश की...
"पुच्छ...पुच्छ, धरती से लेकर आसमान तक कुच्छ भी पुच्छ डाल...सबका जवाब देगा रे तेरा फ़ाज़ल..."
"आराधना को आपने कैसे सेट किया..."
"आराधना...."पहले तो मैं जोरो से हंसा ,फिर अचानक सीरीयस हो गया और फिर कुछ देर तक सोचने के बाद बोला"इट'स आ लोंग स्टोरी ब्रो...सौ साल लग जाएँगे इसे बयान करने मे..."
"ठीक है कोई बात नही, अब मैं सोने जाता हूँ...बहुत चढ़ गयी है मुझे..."बोलकर पांडे जी लड़खड़ाते हुए उठे और दो कदम चलने के बाद धडाम से गिर पड़े...
"यहाँ ग्रॅविटी की वॅल्यू ज़्यादा कैसे है, जो मैं अपने आप गिर गया..."ज़मीन मे लेटे-लेटे पांडे जी बोले"अरमान भाई, कुच्छ ग्यान क़ी बाते बताओ, जिससे मुझे गिल्टी फील ना हो कि मैने इतनी ज़्यादा क्यूँ पी ली..."
"ग्यान की बाते...मैं बताता हूँ.."मेरे मुँह खोलने पहले अरुण बोल पड़ा"देख, कट..आइरन, आइरन..नही, आइरन कट आइरन, डाइमंड कट डाइमंड. अग्री..."
"अग्री..."
"ठीक इसी तरह दारू कट दारू, इसलिए यदि दारू का नशा हटाना है तो और पियो...बोले तो खूब पियो, खूब जीिइईयूऊऊऊ...."बोलते हुए अरुण भी लुढ़क गया....
राजश्री पांडे और अरुण के लुढ़कने के बाद मैने सौरभ को देखा, वो भी खर्राटे भर रहा था...
"आइ आम दा लास्ट मॅन ऑन दिस प्लॅनेट....साला ज़िंदगी बर्बाद कर दी मैने अपनी....लेकिन फिकर नोट , कल से दारू को हाथ तक नही लगाउन्गा....अबे उठो ना, मुझे बात करने का मन कर रहा है..."
मैने अरुण,सौरभ और राजश्री पांडे को बहुत उठाने की कोशिश की लेकिन वो तीनो उठे नही...थक हार कर मैं दीवार की टेक लेकर वापस बैठा और डाइरेक्ट बोतल को मुँह से लगा लिया...
"अमिताभ बच्चन कहता है कि दारू पीने से लिवर खराब होता है, लेकिन साला यहाँ तो लिवर ही खराब नही हो रहााआआ...जबकि...जबकि..जब....एश आइ लव यू, यार..पट जेया ना यार..छोड़ दे उस गौतम को,..साला बहुत बड़ा कमीना है, मुझसे प्यार कर फिर देख कि प्यार किस चीज़ का नाम है.साला मेरी तो किस्मत ही झंड है, मुझे प्यार भी उस लड़की से हुआ, जो दूसरे के प्यार मे जान देने की कोशिश कर चुकी है...आइ..लव यू, एश...लव यू...ल्ल्लूव्ववी यू..ल्लूव्वी...."इसी के साथ मेरा भी बँटा धार हो गया.....
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08-18-2019, 02:46 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
वैसे तो मेरे साथ बहुत सारी दिक्कते जुड़ी हुई है लेकिन जैसे सपने मुझे आते है ,उनकी तो बात ही अलग है...मैं ज़िंदगी मे सबसे ज़्यादा तीन बार डरा हूँ और तीनो बार मैं नींद मे था.यानी कि मेरे पास ऐसे तीन डरावने सपने है ,जो मेरी अब तक फाड़ कर रख देते है....अधिकतर सपने मे देखे गये इन्सिडेंट होश मे आने के बाद याद नही रहते ,लेकिन जिन तीन सपनो की बात मैं कर रहा हूँ, उनका हर एक पल जहाँ मे ऐसे बसा है जैसे वो आम सपना ना होकर (आ+ ब )²=आ²+ 2अब +ब² का फ़ॉर्मूला हो....बोले तो फुल याद है...

मेरे टॉप थ्री हॉरिबल ड्रीम मे थर्ड नंबर आता है 'ए डेड ड्रीम' का जिसके बारे मे आप सब जानते ही होगे...दूसरा नंबर आता है ,उस सपने का जिसमे मैं रात को अचानक किसी जंगल मे होता हूँ और बस भागता रहता हूँ, फिर अचानक मुझे एक मंदिर दिखता है ,जहाँ कुच्छ लोग आदमियो की बलि दे रहे थे....जब मैं भाग कर वहाँ पहुचता हूँ तो वो लोग मुझे देख लेते है और मुझे पकड़ कर रस्सी से बाँध देते है....उस वक़्त वहाँ उस मंदिर मे कुल चार लोग थे जिनके चेहरे मुझे आज तक याद है...उन चारो मे से एक , एक आदमी का गला हलाल करता है और मुझे कहता है कि "अगली बारी तेरी है ,तैयार हो जा...."और उसके बाद फटाक से मेरी नींद खुल जाती है और ये सब सपना था ,इसके लिए मैं उपरवाले का दिल ही दिल मे शुक्रिया अदा करता हूँ....थ्री हॉरिबल ड्रीम की इस लिस्ट मे फर्स्ट नंबर पर जो सपना है उसमे मैने खुद को मरते हुए देखा है और मैं बता नही सकता कि खुद को मरते हुए देखना कैसा लगता है...आइ थिंक आइ शुड स्टार्ट आ थ्रेड वित टाइटल'माइ हॉरिबल ड्रीम्स'

वेल, मैं ये बकवास इसलिए कर रहा हूँ क्यूंकी उस रात जब मैं पेलम-पेल दारू पीकर...दीवार का सहारा लेकर सोया था तो मुझे सपने मे आतिन्द्र दिखा....ये मेरे साथ ऐसा पहली बार हो रहा था कि जब कोई ड्रीम जो मैं पहले देख चुका हूँ , वो दोबारा से मुझे दिखाई दे रहा था...मतलब कि जिस सपने को मैने 5 साल पहले देखा था, वो रिपीट हो रहा था....सीन वही था, मैं नींद से उठा तो शाम हो चुकी थी और हॉस्टिल मे शोर मचा हुआ था, पहले की तरह मैने इस बार भी खुद को कोसा कि मैं इतनी देर तक कैसे सोता रहा और फिर जिस तरफ हल्ला मच रहा था उस तरफ भागा ,जहाँ बाथरूम मे आतिन्द्र की बॉडी लटकी हुई थी...उसके बाद मेरी नींद खुली और सीन अब भी बिल्कुल वैसा ही था ,जैसे की 5 साल पहले था...मेरे होश मे आते ही मेरा घुटना दीवार पर ज़ोर से टकराया था.

वैसे कहने को तो सब कुच्छ वैसा ही था और मेरी फट भी वैसी ही रही थी लेकिन इसमे एक बात जो नयी थी वो ये कि मुझे अबकी बार मालूम था कि ये एक सपना है और सिर्फ़ एक सपना....जैसा कि मेरे इस 'ए डेड ड्रीम' की एंडिंग 5 साल पहले हुई थी , वैसी अब भी हो रही थी ,यानी की जिस हॉल मे मैं खाना खा रहा था वहाँ से सभी लड़के अचानक ही एका-एक गायब हो गये और मेरा वो मरहूम दोस्त ज़मीन मे बिखरे हुए अनाज के दानो को अपने हाथो से बटोर रहा था.....
"अरमान..."अपनी लाल आँखो से उसने मुझे देखा....

"तंग आ चुका हूँ इस म्सी से, बीसी जब देखो तब टपक पड़ता है...."मेरा ये बोलना मेरे सपने मे ये दूसरी नयी चीज़ थी, जो 5 साल पहले नही हुआ था....

"तू आतिन्द्र...मैं तेरी माँ चोद दूँगा ,यदि दोबारा मुझे कभी दिखा तो...बीसी हर चीज़ की कोई लिमिट होती है .बेटा अभी हॉस्टिल के लौन्डो को बुलवाकर तेरी रूह का रेप कर दूँगा....और ये तू जो खाना बटोर रहा है उसे क्या अपने गान्ड मे भरेगा, चल निकल ,लवडा मुझे डराने आया है...."हँसते हुए मैने सपने मे कहा और इधर दूसरी तरफ नींद मे हँसते हुए मेरी नींद खुली.....

"अब कभी नही आएगा बीसी सपने मे, फाइनली आइ वॉन..."हाथ उठाते मैने खुद को शाबाशी दी और उठ कर खड़ा हुआ....
अभी सिर्फ़ 6 बजे थे ,इसलिए मैने जॅकेट ताना और एक सिगरेट जला कर हॉस्टिल के बाहर आ गया....हॉस्टिल के बाहर आकर मैं सड़क पर चलते हुए गर्ल्स हॉस्टिल की तरफ बढ़ा....

वैसे तो मेरी नींद 9 बजे के पहले कभी नही खुलती थी लेकिन आज जब मैं सुबह 6 बजे उठकर बाहर आया तो मुझे मेरे कॉलेज के बारे मे कुच्छ अलग ही चीज़े मालूम हुई, जैसे की हॉस्टिल की कुच्छ लड़किया ,शॉर्ट्स पहनकर सुबह-सुबह दौड़ने जाती है....कुच्छ लड़किया अपने स्पोर्ट की प्रॅक्टीस भी करती है ,जिनमे लड़के भी शामिल रहते है.....

"अब समझा साला कि ऐसे चूतिया लोग माल कैसे पटा लेते है...ये फले, सुबह-सुबह लड़कियो के हाथ मे अपना लंड थमा देते है जिसे लड़किया थाम भी लेती है....बीसी कल से मैं भी सुबह 6 बजे उठकर प्रॅक्टीस मे जाउन्गा...एक ना एक तो ज़रूर पटेगी..."
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हॉस्टिल के बाहर मैं तक़रीबन आधा घंटा तक टहलता रहा और फिर वापस हॉस्टिल आ गया...हॉस्टिल आकर मैने अरुण और सौरभ को भी अपना ये प्लान बताया ,लेकिन उन्होने सॉफ मना कर दिया की वो 6 बजे नही उठेंगे,,..
"बेटा ,यदि सुबह 6 बजे कटरीना कैफ़ अपना चूत भी दिखा रही हो ना तब भी मैं नही जाउन्गा....9 बजे उतना मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है,जिसे कोई नही छीन सकता "अरुण टूथपेस्ट उंगली से घिसते हुए बोला"और लवडे ,आज कॉलेज से आते टाइम याद दिलाना ब्रश लेना है..."
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कॉलेज मे सब कुच्छ बाकी दिन की तरह नॉर्मल ही हुआ सिवाय मेरी और आराधना की बात-चीत के अलावा...मतलब मैने उससे पहली बार छूट कहा कि मैं उसके साथ सेक्स करना चाहता हूँ और उसने भी फुल जोश के साथ हां कहा और फिर टाइम फिक्स हो गया....टाइम लंच के बाद का था और वेन्यू अवधेश का रूम था, अवधेश एक फ्लॅट लेकर कॉलेज के ही कुच्छ लड़को के साथ रहता था...अवधेश ने मुझे लंच मे ही अपने फ्लॅट का अड्रेस ,फ्लॅट की की के साथ दिया और कहा की कॉलेज ख़त्म होने के तक मैं अपना काम निपटा लूँ और ये बात मैं किसी को ना बताऊ, ख़ासकर के उसके फ्लॅट पार्ट्नर्स को......
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"तुझे एड्स वगेरह तो नही है ना..."अवधेश और उसके दोस्तो के फ्लॅट मे पहूचकर मैने आराधना से पुछा....
हम दोनो फ्लॅट के अंदर आए और मैने दरवाज़ा लॉक किया....
"तुम ये सब क्यूँ पुच्छ रहे हो..."
"क्यूंकी मैं कॉंडम नही लाया...."
"तो तुम्हे डर है कि यदि मेरे ज़रिए तुम्हे एड्स हुआ तो तुम मर जाओगे..."
"डर मुझे मरने का नही है जानेमन...डर मुझे एड्स होने के बाद की लाइफ का है...."अपना पॅंट उतारते हुए मैने कहा....
"मेरे कपड़े तुम उतारोगे या मैं खुद उतारू..."बिस्तर पर लेटे हुए आराधना बोली...
"उसकी फिकर तुम बिल्कुल मत करो ,वो तो मैं उतार ही लूँगा, लेकिन पहले ये बता की मुँह मे लेगी क्या....बहुत मज़ा आएगा.....मुझे और शायद तुझे भी..."
"मैने पहले ही कहा है सियइररर..."बिस्तर पर उठकर बैठते हुए आराधना बोली...

वैसे तो मैं कोई दरियादिल इंसान नही हूँ लेकिन ये बोलते हुए आराधना ने जैसे अपना मुँह बनाया उसे देखकर मैने सोचा हटाओ यार, अगली बार कर लेंगे वैसे भी अभी तो आधा 8थ सेमेस्टर बाकी है.....

"ओके..."बोलकर मैं भी उसके बराबर बिस्तर मे बैठा और आराधना को देखने लगा....

वैसे तो मेरे पास लॉजिक, ट्रिक्स का पिटारा है .लेकिन गूगल महाराज की कृपा से मैं थोड़ा बहुत आइ रीडिंग भी कर लेता हूँ,जो कि अधिकतर सही नही होती ,लेकिन कभी-कभी सच होती है....आराधना इस वक़्त मुझे देखकर काँप रही थी.मैने उसकी तरफ देखा वो थोड़ा सा घबराई हुई थी , जैसे की ये उसका फर्स्ट टाइम हो....
"इसके पहले किया है..."
"ना...म्म हां...एक बार..."
"ग्रेट..."थोड़ा ,पीछे हट कर मैने पुछा"कहा, कब ,किसके साथ..."
"वो...गाँव मे एक लड़के ने जबर्जस्ति की थी खेत मे...."काँपते हुए आराधना बोली...
"टू बॅड, उसके बाद क्या हुआ..."
"उसके बाद मैं सिर्फ़ बदनाम हुई और कुच्छ नही हुआ...."
"ऐसा क्या..."इसके बाद मैने आगे कुच्छ नही पुछा ,क्यूंकी मैने अंदाज़ा लगा लिया था कि जिस लड़के ने आराधना के साथ जबर्जस्ति चुदाई मचाई थी ,वो कोई बड़े बाप का लौंडा होगा और फिर या तो उन लोगो ने आराधना के बाप को धमकी दी होगी या फिर पैसे....फिलहाल मैं यहाँ आराधना का दिल बहलाने नही आया था इसलिए मैं इस टॉपिक मे और ना घुसते हुए ,आराधना की तरफ घुमा....

"ओके, लेट'स स्टार्ट अरमान, चोद दे इसको अब..."मैने खुद से कहा और आराधना के होंठ की तरफ अपने होंठ स्लोली मोशन मे बढ़ाए...कि तभी आराधना ने अपना चेहरा उपर किया....
मैने आराधना को देखा और फिर वो सोच क्या रही है ये जानने के लिए मैने उसकी आँखो मे देखा....आराधना इस वक़्त किसी उलझन मे नही थी कि वो मुझे रोके या नही ,बल्कि वो तो पूरी तरह तैयार थी और ना ही उसे किसी भी तरह की झिझक थी...लेकिन एक घबराहट उसकी आँखो को ढक कर बैठी हुई थी...और मेरा ये समझ पाना कि आराधना क्या सोच रही है, बहुत मुश्क़िल हो गया,इसलिए मैने थोड़े देर के लिए अपने दिमाग़ को आराम दिया और वापस आराधना के होंठो की तरफ बढ़ा...इस बार मैं सफल हुआ और कुच्छ देर की शांति के बाद आराधना के होंठ भी हरकत करने लगे,फिर मेरी तरह एक दम से तेज़ हो गये....
आराधना के होंठो को अपने होंठो से मसल्ते हुए ही मैने उसे बिस्तर पर नीचे लिटाया और मैं खुद उसके उपर आ गया...हम दोनो की ये लीप किस्सिंग का प्रोग्राम बीच-बीच मे रुकता और फिर थोड़ी देर तक एक-दूसरे को देखकर फिर शुरू हो जाता....
अब मैं आराधना के उपर पूरी तरह से समा गया और अपने हाथ से कभी उसकी छातियों को मसलता तो कभी उसकी चूत को...मैं जब भी आराधना की चूत को उसके जीन्स के उपर से सहलाता तो वो थोड़ा उच्छल जाती थी और अपने जाँघो को इधर-उधर करके अपनी चूत को छिपाने की कोशिश करती....लेकिन जब मैने उसके जीन्स के हुक को खोला तो वो शांत हो गयी. उसने किस का रिप्लाइ देना भी बंद कर दिया और फिर से अपनी अजीब नॅज़ारो से मुझे देखने लगी....
"व्हाट..."आराधना को इस तरह देखता हुआ पाकर मैने पुछा...
"कुच्छ नही..."
"मुझे मालूम था..."बोलकर मैने आराधना की जीन्स उसके घुटनो तक नीचे खिसका दी और उसकी पैंटी के अंदर हाथ डाल कर उसकी चूत सहलाने लगा....साथ मे वो वर्ल्ड फेमस काम भी किया जिसे लोग 'उंगली करना ' कहते है
.
आराधना की जीन्स घुटनो तक नीचे खिसका कर और पैंटी के अंदर हाथ डालकर उसकी चूत सहलाते हुए, उसकी चूत मे उंगली करते हुए मैने अपने दूसरे हाथ से उसके टॉप को उपर गर्दन तक चढ़ा दिया और ब्रा के उपर से ही उसके बूब्स पर मुँह फेरने लगा....
आराधना की चूत से पहले सिर्फ़ दीपिका मॅम की चूत मे मैने उंगली की थी और उस वक़्त मुझे अचानक उसकी याद आने लगी थी....आराधना भले ही ,दीपिका की तरह हॉट माल ना हो लेकिन आराधना की चूत,दीपिका की चूत से काई गुना मस्त थी, ये मैने उंगली करते वक़्त ही जान लिया था....

आराधना के उपर से मैं एक बार फिर उठा और उसकी जीन्स जो कि घुटनो मे अटकी थी उसे पैरो के बीच से पूरा निकाला...यही काम मैने उसकी पैंटी के साथ भी किया, और आराधना को पीछे पलटा कर उसकी ब्रा भी उतार कर फेक दिया और आराधना के उपर अबकी बार नंगा चढ़ गया...अब हम दोनो ही बिना कपड़े के थी और आराधना को स्मूचिंग करते वक़्त मेरा लंड कभी उसकी चूत से टच होता तो कभी उसकी जाँघो से...कुच्छ देर तक ऐसा ही करते रहने के बाद आराधना ने अपने हाथ से अपनी चूत को फैलाया और मुझे इशारा किया....
"थॅंक यू..."कहते हुए मैने अपना लंड आराधना की चूत के मुंहाने के पास टीकाया .
सच बताऊ तो उस वक़्त मैं बहुत खुश था, पता नही क्यूँ पर मैं था....मुझे आराधना से प्यार नही था लेकिन फिर भी मैं खुश था...बहुत खुश था...

"डू यू रियली लव मी अरमान....सर.."जब मैं अपना लंड,आराधना की चूत मे पेलने वाला था ,तभी उसने पुछा...
"यॅ, ओफ़कौर्स, आइ लव यू..."बोलते हुए मैने अपना लंड आराधना की चूत मे घुसा दिया और अपनी आँखे बंद कर ली...उसके बाद मेरी स्पीड बढ़ते समय के साथ बढ़ती गयी और जब मैने अपनी आँखे खोली तो देखा कि आराधना की भी आँखे बंद थी...वो अपने दोनो हाथो से मुझे कसकर पकड़े हुए थे और मैं लगातार अपना लंड उसके छूट के अंदर-बाहर करे जेया रहा था......हमारे इस पूरे खेल के दौरान आराधना ने अपनी आँखे बंद करके रखी हुई थी और उसने अपनी आँखे तभी खोली, जब ये खेल ख़त्म हुआ...और उसने एक बार फिर मुझसे पुछा...
"डू यू रियली लव मी,अरमान....सर.."
मुझे इस तरह के देखने के उसके अंदाज़ ने जैसे पहली बार मुझे ये अहसास कराया कि मैने अभी कुच्छ ग़लत किया, कुच्छ ऐसा जो कि मुझे नही करना चाहिए था.लेकिन फिर भी मैने किया.....यही सवाल जब आराधना ने मुझसे पहली बार पुछा था,तब भी बहुत देर नही हुई थी...यदि मैं खुद पर कंट्रोल करता और रुक जाता तो शायद वो कुच्छ नही होता, जो कि होने वाला था....
.
"अपनी ब्रा,पैंटी पहन और चल...5 बजे के पहले हमे पहुचना है..."
"लेकिन अभी तो सिर्फ़ 3 बजे है..."अपनी पैंटी को अपने जाँघो के बीच फँसा कर आराधना बोली...
"तो क्या पूरे 4:59 मे ही इस रूम को छोड़ेगी....चल जल्दी, मुझे कुच्छ काम है..."
"ओके..चिल्लाते क्यूँ हो..."
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अवधेश के रूम से निकलकर मैने आराधना को हॉस्टिल के पास छोड़ा और कॉलेज पहूचकर बाइक और रूम की कीस उनके मालिको को ट्रान्स्फर करके ,हॉस्टिल की तरफ बढ़ा....

इतने दिनो बाद अपनी प्यास शांत करके मैं जैसे खुश के मारे फूला नही समा रहा था...दिल कर रहा था कि नाचते हुए हॉस्टिल जाउ, पूरे रास्ते भर पटाखे फोड़ू...लेकिन फिलहाल मैने ऐसा कुच्छ नही किया क्यूंकी इस वक़्त मैं कॉलेज मे था, जहाँ मेरी बहुत इज़्ज़त थी....
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"मुझको हिलाने दे,दो बूँद टपकाने दे...
अपनी चूत मे मुझे लॉडा घुसाने दे...
यो..
चुद रही है ना तू, चोद रहा हूँ मैं....
चुद रही है ना तू...तू..तू..."एश को सामने देखकर मैं रुका....
एश को सामने देखकर एक पल मे तो मुझे जैसे हार्ट अटॅक ही आ गया कि ये मैने क्या कह दिया ,लेकिन फिर याद आया कि मैं तो गुनगुना रहा था, उसे कहाँ से सुनाई देगा...एसस्स...चल बेटा ,अरमान...रोल मे आजा...

"तूमम्म...शायद मेरी दिए हार्ड फन होगी, जो कि मेरा ऑटओग्रॅफ लेने के लिए कल से इस रास्ते पर खड़ी होगी...पता नही लोग मेरा एक ऑटओग्रॅफ पाने के लिए ना जाने क्या-क्या करते है...लाओ ,पेन...कॉपी दो..."
"हो गयी नौटंकी...अब चले, छत्रपाल सर ने बुलाया है..."
"वाइ ? आइ'म नोट इंट्रेस्टेड..."
"लुक..."
"लुकिंग..."
"सीधे से चलते हो या मैं जाकर छत्रपाल सर को बोल दूं कि अरमान को फेरवेल पार्टी की आंकरिंग करने मे कोई इंटेरेस्ट नही है..."
"एक मिनिट...पता नही मेरे कान क्यूँ बज रहे है...मुझे अभी आंकरिंग वर्ड सुनाई दिया...वो क्या है ना कि गोल्डन जुबिली के फंक्षन मे आंकरिंग ना कर पाने का सदमा जो मुझे लगा था, उसका असर अभी तक है...खैर तुम बोलो, क्या बोल रही थी..."
"हे भगवान....अब इसे कैसे समझाऊ..."

"क्यूँ खाली-फोकट मे भगवान का गला दबा रही हो...ये लो मेरा नंबर 7415****** . और जब भी कोई प्राब्लम हो,मुझे कॉल कर लेना...अभी मैं चलता हूँ ,क्यूंकी आधे घंटे बाद मेरी अमेरिका के लिए फ्लाइट है...."एश के दिमाग़ का भरता बनाकर मैं आगे बढ़ा ,लेकिन फिर सोचा कि एक पंच और मारा जाए ,इसलिए मैं पीछे पलटकर तेज़ आवाज़ मे बोला"डॉन'ट वरी, मैं कल ऑटओग्रॅफ दे दूँगा....इसलिए अब यहाँ खड़ी मत रहो,घर जाओ,तुम्हारे मम्मी-डॅडी परेशान हो रहे होंगे..."
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एश को पूरी तरह धराशायी करके गाना मैने जहाँ छोड़ा था ,उसे वही से स्टार्ट किया...
"चुद रही है ना तू, चोद रहा हूँ मैं...."

"ले बताना बे ,तूने कल आराधना को चोदा क्या...."भारी उत्सुकता के साथ अरुण ने तीसरी बार पुछा और मैने उसी उत्सुकता के साथ तीसरी बार भी अरुण को टाल दिया.
"ले बताना बे, गान्ड मरा क्या....मुझे भी दिलाना..."
"तू बोसे ड्के ,खाना खाने देगा मुझे...."
"इतना झल्लाता क्यूँ है, नही बताना तो मत बता..."
"जब तीन बार मना कर दिया तो समझ जाना चाहिए ना कि मैं नही बताना चाहता ,अब क्या लवडा मैं तेरे सामने अपने लंड की कथा बांचू...बाकलोल..."
"तू गान्ड मरा और तू..."डाइनिंग टेबल मे दूर बैठे एक लड़के पर बरसते हुए अरुण चिल्लाया"तू लवडे रोटी पास करेगा या सारी गान्ड मे भरेगा...."
"तो आकर ले जा ना, तेवर किसको दिखाता है..."
"चुप चाप ,रोटी लेकर इधर आ,वरना जो हाल तेरे रूम पार्ट्नर कलिए का है,वही हाल तेरा भी करूँगा....."
अरुण के इन अल्फाज़ो ने उस लड़के पर जबर्जस्त असर किया और उस लड़के ने ठीक वैसा ही किया जैसा कि अरुण ने करने को कहा था.....
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"अरमान भाई, मैं हॉस्टिल छोड़ रहा हूँ...सोचा कि आपसे मिलता चलूं...."सेकेंड एअर का एक लड़का मेरे सामने खड़े होकर बोला....
"क्यूँ बे, तुझे क्या हुआ...."
"बहुत कुच्छ हुआ है अरमान भाई, ये साले सीनियर्स....जब भी इनका मूड होता है सेकेंड एअर वालो को लाइन मे खड़ा कर देते है और फिर जानवरो की तरह मारते है...ग़लती हमारे बॅच से किसी ने भी की हो, मार सबको पड़ती है...किसी भी सीनियर का मूड खराब हो ,तो मार पड़ती है, किसी म्सी की म्सी गर्लफ्रेंड ने उसे कुच्छ कह दिया तो वो बीकेएल आ जाता है अपनी *** चुदाने....यदि इनको नींद नही आ रही हो तो तब भी भुगतना हमे ही पड़ता है और ये साले तब तक हमे ठोकते है,जब तक इन्हे नींद ना आ जाए.बीसी उल्लू की औलाद है, दो दिन से कुत्तो ने सोने नही दिया....अब रात भर जागकर लड़का क्लास जाएगा तो क्लास मे नींद आना लाज़िमी है और यदि बाइ चान्स क्लास मे झपकी मारते हुए किसी टीचर ने देख लिया तो फिर उसकी राम-कहानी अलग......अभी कल की ही बात है ,आज मिडट्म था तो मैं 1 बजे तक पढ़कर सो रहा था कि 2 बजे वो चूतिया महंत आकर मुझे मारने लगा और जब मैने उससे पुछा कि क्यूँ मार रहा है तो बोलता है कि ऐसे ही मार रहा हूँ...बीसी ये क्या तमाशा है, हमलोग भी इंसान है ,कोई रंडी की चूत नही जो कोई भी आए और चोद के चला जाए.....मेरे बाप ने बहुत कहा था कि मत मत ले, मत ले...लेकिन नही लवडा हमको ही रामानुजन बनने का बड़ा शौक था ,और आज वो शौक,बड़े शान से उतर रहा है..."
Reply
08-18-2019, 02:46 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
पहले तो मैं उसकी बात सुनकर बहुत हंसा लेकिन जब अरुण ने इशारा करके चुप रहने को कहा तो मैं ऐसे सीरीयस हुआ जैसे कि मुझपर किसी ने गन तान के रखी हो और बोल रहा हो कि"ले बेटा अब हंस कर दिखा...."

"तू कहना क्या चाहता है....तू कहीं का तुर्रमखाँ है क्या...सबको ये झेलना पड़ता है ,बीसी क्या हमने नही झेला ये सब...बेटा हमारा टाइम पर तो नंगा करके छत पर ले जाते थे और लाइन मे खड़ा करके एक-दूसरे के लुल्ली हाथ मे पकड़वा कर बोलते थे...लो बेटा ट्रेन चलाओ...."उसको बैठाकर अरुण बड़े शान से बोला, जबकि इसमे शान वाली कोई बात नही थी....
"बात वो नही है कि उसने मुझे मारा....लेकिन उसने मुझे नींद से उठाकर मारा ,बात ये है....सामान मेरा सब पॅक है, बस आपको बताने आया था...."
"ना दिल पे ले ,ना मुँह मे ले...लंड मे ले और जाकर अपना सामान वापस रख दे..."
"फ़ायदा क्या, आज रात फिर कोई दूसरा आएगा और फिर मारेगा..."
"तो हमलोग मर गये है क्या...अब से कोई भी आए तो बोल देना कि मिस्टर.अरमान से मिल ले..."
"तू क्या कही का तोपचंद है जो तेरा नाम ले...मेरा नाम लेना बे...बोल देना कि'यदि तुम लोगो ने मुझे छुआ भी तो अरुण तुमलोगो की मदर फक्किंग कर देगा...."
"अरमान बोलना बे, ज़्यादा पवर है इस नाम मे....इस झाटुए को तो कोई पहचानता भी नही..."
"यदि तूने इसका नाम लिया,तो अगले दिन से मैं तुझे मारूँगा..."
"इधर सुन बे..."अरुण का हाथ मरोड़ कर मैने कहा"ए आर यू एन= 4 लेटर और आ र म आ न=5 लेटर...मेरे नाम मे ज़्यादा दम है...तू जा अपना सामान वापस वही रख दे जहाँ से उठाया था....बाकी मैं देख लूँगा...."
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उस लड़के के जाने के बाद अरुण ने फिर से आराधना का टॉपिक छेड़ा...
"यार आराधना की चूत दिलाना, एक खंबा दूँगा...."
" दुनिया चाँद पर पहुच गयी और तू अबतक चूत पर अटका हुआ है....चल जल्दी ,कॉलेज के लिए लेट हो रहे है..."
हमलोग एक दम टाइम पर कॉलेज पहुँचे थे या फिर कहे कि थोड़ा पहले ही पहुच गये थे...टीचर लापता था इसलिए टाइम पास करने के लिए इधर-उधर की फालतू बाते कर रहे थे...जैसे कि'अबे उस लड़की की गान्ड देख चोद-चोद कर चूतड़ का चबूतरा बना दिया है...रंडी है लावदि..माँ-बाप ने यहाँ बी.टेक करने भेजा है और ये यहाँ सी.टेक कर रही है....."

मेरी नज़र एक दूसरी लड़की की गान्ड पर जा टिकी और मेरे मुँह से अनमोल वचन निकालने ही वाले थे कि दरवाजे पर दस्तक हुई और किसी ने मेरा नाम पुकारा.....मैं उस समय फुल जोश मे था इसलिए बिना दरवाजे की तरफ देखे मैं ये बोल गया कि'बाद मे आना टाइम नही है' लेकिन फिर मुझे लगा कि ये आवाज़ किसी लड़की की है और फिर मेरे सिक्स्त सेन्स ने मुझे उस आवाज़ की पहचान एश के रूप मे करती,तब मेरी फटी और मैं धीरे-धीरे, स्लो मोशन मे अपना प्यारा सा मुखड़ा दरवाजे की तरफ किया और खड़ा होकर अरुण पर चिल्लाया...

"बोला ना बे तुझे कि बाद मे ये सब बताना ,अभी मेरे पास टाइम नही है...एश तुम एक मिनट. रूको,मैं अभी आया...."
(ये पक्का आज मुझे आइ लव यू बोलेगी, आइ नो शी लव्स मी, लेकिन कहने मे शरमाती है...हाउ स्वीट

जब एक कसाई के बकरे को अच्छा खाना मिलने लगता है तो वो बकरा बहुत खुश होता है और सोचता है कि उसका मालिक कितना अच्छा है ,जबकि कहानी इसके ठीक उलट होती है जिसका अंदाज़ा उस बकरे को थोड़े दिनो बाद लगता है,जब उसके काटने की बारी आती है....

कॉलेज के उन अंतिम दिनो मे मेरा भी हाल कुच्छ उसी बकरे की तरह था जिसे भरपूर खाना मिल रहा था.मेरे जैसे लौन्डो की सबसे बड़ी डिमॅंड होती है चूत...बीसी रात यही सोचते-सोचते गुज़ार देते है कि कहीं से चोदने को मिल जाए .लेकिन मेरी डिमॅंड थी रूम और मेरी रात ये सोचते-सोचते गुजरती थी कि बीसी अब किसका रूम जुगाड़ किया जाए ताकि आराधना को चोद सकूँ.....खैर कहानी मे आते है....

उस टाइम जब मैं एश के साथ बाहर आया तो मुझे ये तो पक्का यकीन था कि कुच्छ ना कुच्छ लफडा है इसलिए मैं फ्लॅशबॅक मे गया और याद करने लगा कि अबकी बार मैने क्या किया ,जो एश जानेमन मेरा पता ढूंढते-ढूंढते मेरे क्लास तक पहुच गयी.....

"कुच्छ बकेगी भी ,सॉरी मेरा मतलब कुच्छ बोलेगी भी कि ऐसे ही साइलेंट मोड मे रहेगी....कहीं तू मेरा खून तो नही करने वाली ना..."

"मन तो मेरा यही करने का कर रहा है, लेकिन प्राब्लम ये है कि मेरे पास चाकू नही है,वरना खून तो कब का हो चुका होता..."

"ओये चाकू मार के बेज़्ज़ती करेगी मेरी, पूरा का पूरा तलवार घुसेड़ना...फला कोई इज़्ज़त ही नही रखी...खैर,वो सब छोड़ और टॉपिक मे आ, "
"फेरवेल फंक्षन मे आंकरिंग करने के लिए जो-जो इंट्रेस्टेड है,उसे छत्रपाल सर ने बुलाया है...."
"तो मैने कब कहा कि मैं इंट्रेस्टेड हूँ...भाड़ मे जाए छत्रपाल और भाड़ मे जा तू,उूुुुउउ.....तुषार कपूर "
"छत्रपाल सर ने कहा है कि जिन्होने गोल्डन जुबिली मे आंकरिंग की थी ,उनमे से दो ग्रूप को सेलेक्ट करना है...और कसम से मुझे तुम पर इतना गुस्सा आ रहा है कि बता नही सकती....इसलिए अब सारी ज़िम्मेदारी तुम्हारी है , जाओ और कुच्छ भी करके हमारी टीम का सेलेक्षन कर्वाओ....वरना..."
"क्यूँ दिल पे ले रही है इतना और आंकरिंग नही करेगी तो मर नही जाएगी...इसलिए तू अपनी क्लास मे जा और मैं अपनी क्लास मे जाता हूँ...खम्खा मेरा कीमती वक़्त बर्बाद कर दिया..."वहाँ से अपनी क्लास की तरफ चलते हुए मैने कहा....
"यदि तुमने ऐसा किया तो मैं तुमसे बात नही करूँगी..."
"तो मत कर , कौनसा तू मुझे दारू खरीद के देती है..."अपना को-ओर्डीनटेस ज़रा सा भी चेंज किए बिना मैं क्लास की तरफ बढ़ता रहा.....
"अरमान, आइ लव यू..."
"ये क्या था बीसी ...".डाइनमिक सिचुयेशन से डाइरेक्ट स्टॅटिक सिचुयेशन मे आते हुए मैने खुद से पुछा....एश के होंठो से निकले ये चार शब्द'अरमान ,आइ लव यू' मुझ पर हाइड्रोजन बॉम्ब की तरह फटे और मेरे अंदर त्राहि-त्राहि मच गयी....अचानक से मेरे बॉडी मे ब्लड सर्क्युलेशन इतना बढ़ गया कि पूरा शरीर लाल हो गया और साथ मे टेंपरेचर जो बढ़ा वो अलग....मुझे ऐसा लगने लगा जैसे मैं धीरे-धीरे कोमा मे जा रहा हूँ.मेरे सोचने समझने की सारी क्षमता एक पल मे जवाब दे गयी,कुच्छ समझ मे ही नही आ रहा था कि किधर देखु ,किधर ना देखु...पीछे मुड़ु या ना मुड़ु...एश से कुच्छ बोलू या ऐसे ही मूर्ति की तरह खड़े होकर उसका इंतज़ार करू....हालत तो ये थी कि लवडा अपना नाम भी लेते हुए जीभ लड़खड़ा रही थी...हालत तो ये थी कि मैं बीच-बीच मे साँस लेना भी भूल जा रहा था और जब एका-एक पेल के साँस लेता तो ऐसी आवाज़ आती जैसे मैं अस्थमा का मरीज हूँ और खुशी तो पुछो मत...दिल कर रहा था कि होड़ को बाहर निकाल कर खूब पेलू और उससे बोलू की "बोल लवडे ,और असाइनमेंट देने के लिए टीचर्स को बोलेगा...तेरी माँ का...."

आइ,एल,ओ,वी,ई,Y,ओ,यू आल्फबेट से बने जिन शब्दो को सुनने के लिए मैने चार साल बिता दिए थे और जिन शब्दो को सुनने की मुझे अब उम्मीद तक नही थी ,आज वो शब्द मेरे कान के रास्ते सीधे दिल तक पहुच गये थे, जिसके कारण मेरी हार्टबीट इतनी ज़्यादा तेज़ हो गयी की मुझे लगने लगा कि अब मेरा हार्ट फैल हो जाएगा, अब मरा.....लेकिन जब अगले 5 मिनिट तक मैं ज़िंदा रहा तो मैने खुद के सिस्टम को वापस ऑन किया,जो कि एश के कारण कुच्छ देर पहले शट डाउन हो गया था.....

मुझे उस वक्त कुच्छ भी समझ नही आ रहा था कि क्या बोलू,क्या पुच्छू ,क्या करू,क्या सोचु और आप सभी सज्जन पुरुष और महिला कह सकते हो कि अट लास्ट मैं भी शरमाने लगा.....
"मुझे कुच्छ समझ नही आ रहा कि क्या जवाब दूं..."दिल से हँसते-मुस्कुराते और चेहरे से गंभीर होते हुए मैं बोला....
"इसमे कहना क्या है,जो सच है वो कह दो..."
"सच...."(बीसी आज मालूम चला कि सच मीठा भी होता है,वरना लोग तो सच को कड़वा बोल-बोल कर सच की माँ-बहन करते है...")
"तुम्हे देखकर नही लगता कि तुम मुझसे प्यार करते हो..."अब एश सीरीयस होते हुए बोली...
"माँ कसम ,बहुत प्यार करता हूँ...यकीन ना हो....अम्म यकीन ना हो तो......"(कोई डाइलॉग क्यूँ नही सूझ रहा )
"यकीन दिलाने की ज़रूरत नही,मुझे पता है...."
"ओके...अब चल,छत्रपाल के पास चलते है...आंकरिंग तो हम दोनो ही करेंगे,फिर चाहे मुझे बाकी ग्रूप वालो का खून ही क्यूँ ना करना पड़े...लेट'स गो बेबी "
.
रास्ते भर मैं एश के सामने कुच्छ भी आंट-शन्ट बकता रहा और हम दोनो हँसते-खिलखिलाते हुए ऑडिटोरियम पहुँचे,जहाँ छत्रपाल बेसब्री से हमारा इंतज़ार नही कर रहा था
"तुम दोनो..."हमे देखते ही छत्रपाल बोला...
"तू इधारीच रुक,अपुन अभिच आया..."
.
"गुड मॉर्निंग सर, "(तेरी *** की चूत)
"गुड मॉर्निंग"
"सर,मैने सुना की फेरवेल मे आंकरिंग के लिए आप कॅंडिडेट ढूँढ रहे है..."
"ग़लत सुना है...जिन्होने गोल्डन जुबिली मे पर्फॉर्म किया था उनमे से बेस्ट फोर को मैने सेलेक्ट कर लिया है...."
"लेकिन उस टाइम तो मैं नही था और बेस्ट मैं हूँ, यकीन ना हो तो आडिशन करवा लो अभी..."
"रियली ,तुम्हे लगता है कि मुझे इसकी ज़रूरत है....मुझे और भी बहुत से काम है..."
"क्या सर, एक चान्स तो दो..."
"सर जी,चान्स तो आपने खुद मिस किया था..."
"फिर भी एक बार....."आख़िरी बार पुछते हुए मैने कहा...
"ओके...अभी आडिशन ले लेते है...तुम अगले 5 मिनिट मे अपना दिमाग़ दौड़ा कर ऐसी 5 लाइन स्टेज मे बोलो जिसे सुनकर मैं अंदर से हिल जाऊ..."
"5 लाइन ? "
"हां..."
"डॉन'ट वरी सर, 5 से कम मे ही हिला दूँगा...."बोलकर मैं स्टेज की तरफ बढ़ा....

मैने मईक हाथ मे लिया और उपर की तरफ देखकर याद करने लगा कि अब क्या बोलू,जिससे कि इन सबकी गान्ड फट जाए...5 मिनिट बाद मैं बोला...

"मार्क ट्वेन जी ने एक बार कहा था कि एक इंसान की ज़िंदगी मे सिर्फ़ दो दिन सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण होते है, पहला दिन वो जब आप पैदा होते है और दूसरा दिन वो जब आप ये जान जाते है कि आप पैदा क्यूँ हुए और आज मेरी ज़िंदगी का वही दूसरा महत्वपूर्ण दिन है, मैने जान लिया कि मैं पैदा क्यूँ हुआ...मैं आंकरिंग करने के लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ आंकरिंग करने के लिए पैदा हुआ हूँ...."सॉफ झूठ बोलते हुए मैने कहा....

वहाँ मौज़ूद सभी स्टूडेंट्स को ,वहाँ मौज़ूद छत्रपाल तक को भी मालूम था कि मैं सॉफ झूठ बोल रहा हूँ ,लेकिन फिर भी उन सबने तालिया बजाई....क्यूंकी हम सब हमेशा अच्छा सुनना चाहते है ,फिर चाहे वो सच हो या झूठ ,इसकी परवाह किसको है और वैसे भी इंग्लीश मे एक कहावत है कि 'गुड माइंड ,गुड फाइंड' मतलब की जो खुद अच्छा है ,उसके लिए सबकुछ अच्छा है....
"एक्सलेंट...कल मैं तुमको क्लास मे बता दूँगा कि ,मैने क्या डिसाइड किया है...अब तुम जाओ..."छत्रपाल ने कहा
ओवरडोस किसी भी चीज़ का ठीक नही होता और खुशी का ओवरडोस तो बिल्कुल भी नही , या फिर रामचंद्रा शुक्ला के शब्दो मे कहे तो अति किसी भी चीज़ की हानिकारक होती है.
"क्या बात है बेटा ,आज इतनी भयंकर पार्टी दे रहा है...इतना खर्चा तो तूने अपने बर्तडे मे भी नही किया था...."सौरभ ने पुछा....
"आज मैं बहुत खुश हूँ,इतना खुश की दिल कर रहा अरुण को आज लंड चूसा ही दूं...काब्से मेरे लंड की फरमाइश कर रहा है...."
"अच्छा बेटा तो तेरे पास लंड भी है...."दारू का ग्लास हाथ मे लेकर अरुण डगमगाते हुए खड़ा हुआ...
"एक साल पहले बाथरूम मे जो चूसाया था भूल गया क्या और तू जा किधर रहा है..."
"मैं मूत के आता हूँ...."
"तो बोसे ड्के ,ग्लास ले जाने की क्या ज़रूरत है, यदि ग्लास फूटा ना तो....तो...कुच्छ नही"अचानक से अपने तेवर बदलते हुए मैने कहा,क्यूंकी अरुण ग्लास को फर्श मे पटकने ही वाला था,मैं आगे बोला"तो कुच्छ नही, अरे पगले तू प्यार है मेरा...."
"मुझे डर है कि यदि मैं अपने हिस्से की मदिरा यहाँ छोड़ कर गया तो तुम लोग उसका पान कर लोगे...मैं आता हूँ ,दो मिनिट मे..."
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"तुझे क्या लगता है,वापस आएगा ये बाथरूम से ,या मैं इसके पीछे जाउ..."घड़ी मे टाइम देखते हुए सौरभ बोला..
"तू क्यूँ इतनी परवाह कर रहा है बे गे और तू इतनी देर से घड़ी मे क्यूँ देख रहा है,जबकि तेरी घड़ी तो एक साल से बंद है...."
"वो तो मैं फीलिंग ले रहा हूँ..."
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आज हमारी दारू पार्टी मे हमेशा की तरह राजश्री पांडे भी शामिल हुआ था, लेकिन एक मेंबर नया था.उसका नाम उमेश था और ये वही लड़का था,जो सुबह सीनियर्स के मौके-बेमौके रॅगिंग की वजह से परेशान होकर हॉस्टिल छोड़ने की बात कर रहा था....
"अरमान भाई, ये बेहन का लवडा कुर्रे अपने आपको न्यूटन,आइनस्टाइन की औलाद समझता है...जब भी कुच्छ पुछो तो बोल देता है कि'आप फिज़िक्स के खिलाफ नही जा सकते और फिर भी पुछो तो बोलता है कि 'अब आप मेरे खिलाफ नही जा सकते...इसलिए आप क्लास से दफ़ा हो जाइए' बीसी ने मुझे फर्स्ट एअर मे बहुत चोदा है...इसकी माँ का,चलो इसको मार के आते है..."

"ना बेटा ना, ऐसी ग़लती कभी ना करियो,...वरना अग्रिगेट के लिए तरसा देंगे ये लोग और अब तो कॉलेज भी अटॉनमस होने वाला है, ऐसी गान्ड मारेंगे तेरी की ज़िंदगी भर पिछवाड़ा दर्द करेगा..."

"अरे अग्रिगेट ही तो बिगड़ दिए बीसी ने...लॅब मे भी नंबर काटा, टेस्ट मे भी चोदा....उपर से म्सी का सब्जेक्ट भी पूरा थियरी वाला था और थियरी देख कर मुझे तो पहले ही कॅन्सर की बीमारी हो जाती है..."

"अबे अब तो नही पढ़ता ना वो, फिर कहे इतनी टेन्षन ले रहा है...दो साल तो झेल ही लिए तूने अब दो साल और झेल ले...और जिस दिन हाथ मे सर्टिफिकेट आ जाए उस दिन कुर्रे का कॉलर पकड़ कर दो तमाचा मारना और बोलना कि'क्यूँ बे लवडे ,बहुत उचक रहा था फर्स्ट एअर मे...बेटा मुझे ज़िंदगी भर बाहर किसी भी देश मे,किसी भी शहर मे,किसी भी गली मे मत दिखना वरना जहाँ दिखेगा वही चोदुन्गा और आज के बाद यदि तू फिज़िक्स के खिलाफ गया तो तेरी *** चोद दूँगा'....ऐसिच बोलने का उसको फाइनल एअर कंप्लीट होने के बाद...मैं तो यही करूँगा और वैसे भी थियरी सब्जेक्ट क्या है यार...कुच्छ भी लिखो ,कुच्छ भी नंबर पाओ...."

"कैसे कुच्छ भी लिखो ,कुच्छ भी नंबर पाओ...मैने तो मुकेश जी का 'मेरे महबूब कयामत होगी' वाला गाना पिछले साल ये सोचकर चिपकाया था कि बीसी कुर्रे खुश हो जाएगा लेकिन लवडे ने उस आन्सर को तो काटा ही ,साथ मे बाकी आन्सर को भी ,जो की सही थे...उनको काट दिया..."

"अब चूतिया जैसे हरक़त करोगे तो ऐसा ही होगा....थियरी सब्जेक्ट मे क्या रखा है, बस जिस यूनिट का क्वेस्चन है उसके 4-5 फमिलिएर वर्ड्स याद कर लो और एक-दो डेफ़िनेशन और फिर जाकर लिख मारो...पांडे जाकर बाथरूम मे देख तो अरुण कहाँ गया..."
पांडे जी उठे और बिना एक पल गँवाए बाथरूम की तरफ चल दिए और इधर मैने प्रवचन जारी रखा..
"अब इतनी मेहनत कौन करे अरमान भाई..."
"वाह बेटा,ये तो वही बात हो गयी कि'स्वर्ग तो सभी चाहते है,लेकिन मारना कोई नही चाहता',झान्ट के बाल कुच्छ ना लिखने से अच्छा कुच्छ लिखना ही सही है और जब कुच्छ लिख ही रहे हो तो कुच्छ अच्छा ही लिख दो..."

"ठीक है फिर,कल वाला टेस्ट भी महा-थियरी सब्जेक्ट का है,उसी पर ट्राइ करता हूँ...लेकिन आपको लगता है कि ये काम करेगा..."
"सात सेमेस्टर तुझे क्या लगता है मैने पढ़कर पास किए है ,सब ऐसे ही लंगर मे निकल गये..डॉन'ट वरी ये काम करेगा,बहुत बढ़िया करेगा....देखो बेटा, ऐसा है कि टीचर तुमको नंबर देना चाहता है,ये मानकर चलो.. लेकिन बदले मे टीचर को तुम खाली कॉपी देते हो या बढ़िया राइटिंग से लिखी हुई कॉपी,ये तुमपर डिपेंड करता है...चल अब पैर छु मेरे ,साले फ्री की टिप्स ले रहा है.."बोलकर मैने एक पेग और मारा....
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"ज़्यादा ज्ञान मत छोड़ और चल उस लवडे महंत को मारकर आते है, साले ने बाथरूम मे धक्का दे दिया मुझे..."रूम के अंदर पांडे जी के कंधे के सहारे आते हुए अरुण बोला...
"महंत ये तो वही है,जिसकी मैं सुबह बात कर रहा था..."अरुण के मुँह से महंत का नाम सुनते ही उमेश फाटक से बोला...
"ये बीसी है कौन,जो इतना उड़ रहा है...इसकी माँ का, चलो बे, इसको ठीक करके आते है....पांडे तू अरुण को लेकर पीछे-पीछे आ ,मैं और सौरभ हीरो की तरह आगे जाएँगे...मेरा गॉगल निकालो बे..."

राजश्री पांडे ने अरुण को संभाला और सौरभ ने तीन हॉकी स्टिक, जो कि हमने दूसरो के रूम से चुराया था...उसे बाहर निकाला...
"तीन किसलिए...पांडे को मत देना...वरना मैने सीनियर को जूनियर के हाथो पेल्वा दिया...ये सोचकर हॉस्टिल के लड़के मेरे खिलाफ हो सकते है..."

"एक्सट्रा हॉकी स्टिक पांडे जी के लिए नही बल्कि ,उमेश के लिए है...उमेश टवल लपेट ले मुँह मे और वहाँ रॅगिंग की बात बिल्कुल मत करना...कुच्छ बोलना नही सिर्फ़ मारना..."

उमेश ने हां मे अपना सर हिलाया और हमलोग महंत के रूम मे पहुँचे...उसके रूम का दरवाजा खुला हुआ था और लाइट बंद करके वो सब खर्राटे भर रहे थे....मैने लाइट ऑन की और महंत का बेड कौन सा है उसकी प्रॉबबिलिटी लगाकर चादर तान के सो रहे एक लड़के के पैर मे हॉकी स्टिक से मारा और बोला...

"BCओ ,माँ-बाप ने यहाँ पढ़ाई करने भेजा है या सोने के लिए...
तू यहाँ सो रहा है,
वहाँ तेरा बाप रो रहा है...उठ "
"कौन है बे म्सी,..."दर्द और गुस्से के भयंकर कंबो के साथ चादर तानकर सो रहा वो लड़का उठा...लेकिन वो लड़का महंत नही था,बल्कि उसका रूम पार्ट्नर और आराधना का दूर का भाई कालिया था....

"सॉरी यार, पता नही मेरा अंदाज़ा कैसे ग़लत हो गया...प्रॉबबिलिटी तो मेरे से ज़्यादा अच्छी पूरे स्कूल मे किसी से नही बनती थी...कोई बात नही सॉरी..."

"ये क्या चूतियापा लगा रखा है बीसी..."अपने जाँघ सहलाते हुए ,कालिया मुझ पर चीखा...

"आँख दिखाता है मदरजात..."दूसरा वॉर मैने उसके छाती मे किया और कालिया वही फ्लॅट हो गया...तब तक उसके रूम के बाकी के दो लड़के भी जाग चुके थे...जिसमे से एक महंत था और दूसरा पता नही कौन चूतिया था....
"सौरभ ,इस कल्लू को चेक कर की ज़िंदा है या मर गया...."
"ज़िंदा है और रो रहा है..."
"कोई बात नही...वापस मिशन मे आओ..."बोलकर मैं महंत के पास गया.."क्या है भाई...बहुत हवा मे उड़ रहा आजकल,ज़मीन मे लाउ क्या...."
"बात क्या कर रहा है,मार बहिन्चोद को..."कहते हुए सौरभ ने महंत के सीने मे एक लात जमा दिया...

महंत अभी उठकर बैठा ही था और सौरभ के यूँ लात मारने से बीसी बेड के दूसरी ओर उलट गया....इसके बाद मैं कोई डाइलॉग सोच रहा था कि टवल लपेटे उमेश पीछे से सामने आया और बेड के दूसरी तरफ ,जहाँ महंत गिरा पड़ा था...उसपर दनादन होककी स्टिक बरसाने लगा...लवडा हमे तो मारने का मौका ही नही मिला....

"उस लवडे को रोक, वरना कही महंत उपर की टिकेट ना कटा ले..."सौरभ को देखकर मैं चिल्लाया.
सौरभ ने उमेश को महंत से दूर किया और रूम के बाहर जाने के लिए कहा...
"क्यूँ बे,अब बोल अरुण को धक्का क्यूँ दिया था...ज़्यादा दम आ गया है या भूल गया है कि मैं कौन हूँ..."
ज़मीन पर पड़ा महंत मेरी तरफ देखकर लंबी-लंबी साँसे भर रहा था लेकिन कुच्छ बोल नही पा रहा था....
"क्या हुआ बे, मरने वाला है क्या..."
"कहाँ धक्का दिया मैने..."खाँसते हुए महंत थोड़ी देर बाद बोला"आज सुबह से बीमार हूँ, दिन भर से रूम से निकला भी नही हूँ..."
"हाऐईिईन्न्न....फिर अरुण को धक्का किसने दिया..."
"एक मिनिट...."लड़खड़ाती ज़ुबान मे पीछे से अरुण बोला"मुझे लगता है मुझे महंत ने धक्का नही दिया था...वो कोई दूसरा लड़का था शायद,लेकिन याद नही कौन था...."

"अबे अखंड चूतिए...तो फिर फालतू मे क्यूँ पेल्वा दिया इसको...अब चलो लवडा यहाँ से....सौरभ तू मेरे साथ चल और तू , पांडे अरुण को गिराकर महंत को बिस्तर पर वापस लिटा दे.., गुड नाइट गाइस,स्वीट ड्रीम...हालाँकि वो स्वीट ड्रीम अब तुम्हे आने नही वाली..."
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08-18-2019, 02:46 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
महंत के रूम से निकलकर मैं वापस रूम मे आया, एक तो वैसे ही दारू का कुच्छ खास नशा नही था उपर से जो था,वो अरुण के इस चूतियापे ने भगा दिया था और तब मुझे याद आया कि एश मुझसे पट चुकी है और मुझे अब एक फाडू लवर बनना है...लेकिन कैसे ये मुझे नही पता था...बोले तो मैं इस मामले मे बिल्कुल वर्जिन था....वैसे मैने बहुत सुना था कि लवर बॉय क्या-क्या करते है...जैसे की सुबह,दोपहर,शाम,रात को गुड मॉर्निंग, गुड आफ्टरनून, गुड ईव्निंग, गुड नाइट बोलना...दिन भर मोबाइल पर चिपके रहना और जानू-जानू कहकर एक-दूसरे को महा-बोर करना और जब फिर भी दिल ना भरे तो मोबाइल को किस करना....अब ये सब तो मुझसे होने से रहा ,इसलिए मैने गूगल महाराज की हेल्प लेने का सोचा और मोबाइल का ब्राउज़र खोलकर गूगल महाराज के दरबार मे गया और टाइप किया'हाउ टू बी आ गुड लवर

लड़कियों से मेरा कनेक्षन हमेशा से ही वीक रहा था.स्कूल लाइफ मे अपने घमंड के कारण तो कॉलेज लाइफ मे अपनी हरकत के कारण...स्कूल लाइफ मे मुझे जो आख़िरी लड़की याद आती है ,वो एक ऐसी लड़की थी ,जिसने मुझे अपना नंबर तक दे दिया था...हुआ ये था कि 12थ के एग्ज़ॅम के दौरान जिस क्लास मे मेरा रोल नंबर था उसके राइट साइड वाले कॉलम मे मेरे ठीक बगल मे किसी दूसरे स्कूल की लड़की बैठी थी. उसके स्कूल का नाम तो मुझे याद नही लेकिन वो लड़की और उसके ब्लू कलर की ड्रेस याद है...एग्ज़ॅम के पहले दिन जब पेपर दिया गया तो मैने बिना इधर-उधर देखे जब तक पूरे क्वेस्चन के आन्सर कॉपी मे उतार नही दिए,तब तक मेरी आँखे सिर्फ़ दो चीज़ो पर पड़ी, पहली चीज़ थी मेरा क्वेस्चन पेपर और दूसरी चीज़ थी मेरी आन्सर शीट और वैसे भी जिसे पूरे क्वेस्चन के आन्सर पता हो ,उसे अगल-बगल झाँकने की क्या ज़रूरत....ढाई घंटे के बाद ,जब मैने अपना पेपर सॉल्व कर लिया तो अपनी अकड़ चुकी गर्दन को गोल-गोल घुमाया और तब क्वेस्चन पेपर और आन्सर शीट के आलवा जिस तीसरी चीज़ पर मेरी नज़र पड़ी ,वो, वो लड़की थी...उसका नाम पता नही अपना नाम क्या बताया था उसने ,खैर कोई बात नही.....

वो लड़की टीचर से नज़रें चुराकर अपने सामने बैठे लड़के से बार-बार ऑब्जेक्टिव्स के आन्सर पुच्छ रही थी,लेकिन उसके स्कूल का वो लड़का था कि पीछे पलटने का नाम ही नही ले रहा था....
"फर्स्ट ऑब्जेक्टिव का आन्सर सी है क्या..."उस लड़की ने एक और बार उस लड़के से पुछा....लेकिन नतीज़ा पहले के माफ़िक़ ही नेगेटिव रहा...तब मैने घड़ी मे टाइम देखा और सोचा कि इसपर रहम कर देते है...और मैने दबी हुई आवाज़ मे उसको इशारा करके पहले ऑब्जेक्टिव का आन्सर बताया....
"पहले का आन्सर ए है, 15 केएन "
"15 केएन तो हो ही नही सकता..."उसने मेरी तरफ देखते हुए तुरंत कहा...
"तेरी *** की चूत...गान्ड मरा बीसी...लवडा यहाँ मुझे पेज नंबर. तक याद है कि किस पेज का ये क्वेस्चन है और ये मुझे ही चोदना सीखा रही है..."उसे देखकर मैने मन मे कहा....
उसके बाद मैं अपने आन्सर्स रीचेक करने लगा कि कही कोई चूतियापा तो नही कर दिया है कि तभिच उस लड़की ने खीस-पिश करते हुए मुझसे दूसरे ऑब्जेक्टिव का आन्सर इशारा करके पुछा और मैने फटाक से बेंच के नीचे उंगलियो से उसको आन्सर बता दिया...इसके बाद उसको आन्सर बताने का जो सिलसिला मैने चालू किया ,वो पूरे आधे घंटे तक चलता रहा...मैने कयि क्वेस्चन के आन्सर्स अपनी कॉपी खोलकर उस लौंडिया को तपाए...इसलिए नही कि मैं बहुत दयावान था ,या फिर मुझे उस लड़की की चूत चाहिए थी...बल्कि इसलिए कि मेरा पेपर सॉल्व हो चुका था और टीचर अधिक से अधिक मेरी कॉपी छीनकर मुझे बाहर ही भगा सकता था...

उसके बाद जब दूसरा पेपर आया ,तब उस लड़की ने मुझे शुरुआत मे ही स्माइल दी और तभिच मैने बेधड़क,बेझिझक बोला कि जबतक अपुन सारे क्वेस्चन के आन्सर नही लिख लेता ,तब तक अपुन को डिस्टर्ब नही करने का....उसके बाद यदि टाइम बचा तो अपुन खुद ही तेरे को आन्सर बता देगा....
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इसके बाद उस लड़की से जितना बन सका उसने लिखा और फिर जब तक मैने पूरा नही लिख लिया ,तब तक वो मेरी तरफ ही देखती रही...वो ऐसा हर एग्ज़ॅम मे करती थी और कभी-कभी तो वो दो घंटे मेरी तरफ देखते रहती थी...लेकिन खुदा गवाह है की मैने जब तक 30 क्वेस्चन के आन्सर अपनी कॉपी मे छाप नही दिए तब तक उसकी तरफ देखा तक नही और लास्ट के आधे-एक घंटे मे उसको पेलम पेल आन्सर बताता था....
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हमारी किस्मत अच्छी थी कि आज तक हमे नकल मारते हुए कोई टीचर नही धर पाया या फिर कहे कि मेरे ट्रिक को टीचर समझ ही नही पाते थे..
जिस दिन हमारा आख़िरी पेपर था ,उस दिन भी मैने उस लड़की को पेल के आन्सर बताए और जब कॉपी सब्मिट करके जाने लगा तो मैने एक बार भी उसकी तरफ नही देखा...जबकि वो एक झक्कास माल थी.उन दिनो मेरे कुच्छ सिद्धांत हुआ करते थे कि अपने नालेज का कभी फ़ायदा नही उठाना चाहिए,लेकिन आज मुझे वो सब कुच्छ महज एक चूतियापा लगता है और मैं खुद को आज भी कोस्ता हूँ कि ,जब बाहर वो लड़की मेरे पास दौड़ते हुए आई और एक कागज पर मुझे अपना नंबर लिखकर दिया तो मैने उस कागज को उसी की आँखो के सामने फाड़ क्यूँ दिया...मुझे वो कागज चुप-चाप अपनी जेब मे रख लेना चाहिए था...लेकिन मैने ऐसा बिल्कुल भी नही किया और उसके नंबर लिखे कागज के टुकड़े-टुकड़े करके वही सड़क के किनारे फेक दिया ये बोलते हुए कि"जाओ,तुम भी क्या याद रखोगी "
उसको कितना बुरा लगा होगा उस टाइम, फली मुझपर मरती थी
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स्कूल के दिनो मे तो मैं अपने घमंड के कारण लड़कियो से दूर रहा लेकिन कॉलेज मे अपनी हरकतों के कारण....मुझे मालूम था कि रोज सुबह 5-6 बजे के करीब हॉस्टिल की लड़किया शॉर्ट्स वगेरह पहन कर बॅस्केटबॉल की प्रॅक्टीस मे जाती है और यदि मैं भी रोज सुबह उठकर बॅस्केटबॉल कोर्ट मे जाउ तो एक-दो तो ज़रूर मुझपर फ्लॅट होगी...मैने ऐसे करने का सोचा भी था यहाँ तक की 6 बजे का अलार्म तक अपने मोबाइल मे सेट कर दिया था...लेकिन जब दूसरे दिन सुबह 6 बजे अलार्म बजा तो मैने मोबाइल पकड़ा और स्विच ऑफ करके वापस सो गया....
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मुझे जब भी हेल्प चाहिए था ,फिर चाहे वो ज़मीन से लेकर आसमान तक कोई भी टॉपिक हो, गूगल महाराज ने मेरी हमेशा सहायता की थी, लेकिन मेरे उस एक लाइन 'हाउ टू बी आ गुड लवर' ने गूगल महाराज और मेरे बीच के रिश्तो मे ख़टाश पैदा कर दी...क्यूंकी गूगल महाराज भी मुझे वही सब कुच्छ करने को कह रहे थे ,जो मुझे पता था और मुझे ज़रा सा भी रास नही आता था...यानी कि गुड मॉर्निंग, गुड नाइट विशस से पहले शुरुआत करो, फिर गिफ्ट वगेरह दो और फिर डेट पर ले जाओ....अब बीसी अपनी गुड मॉर्निंग तो कॉलेज के पहले पीरियड मे होती है और गुड नाइट ,तब होती है...जब सबके गुड मॉर्निंग का टाइम होता है...इसलिए गूगल महाराज के विशस वेल अड्वाइज़ को मैने दरकिनार किया और गिफ्ट के बारे मे सोचने लगा......

"नही...ऐसे मे तो मैं दारू नही पी पाउन्गा...अब मैं या तो गिफ्ट मे पैसे बर्बाद करू या फिर दारू मे....गान्ड मरा गिफ्ट-विफ़्ट,मैं तो दारू पियुंगा"इस तरह गूगल महाराज की दूसरी अड्वाइज़ भी मैने उपर से निकाल दी और तीसरी अड्वाइज़ पर आया ,जो कि डेट थी और फिर कॉलेज फ्रेंड्स के साथ कही घूमने जाने की बात थी....

"गूगल बाबा सठिया गये है, जो ये सब बकवास आइडियास दे रहे है...लवडा कोई इंजिनियर वाला आइडिया माँगता अपुन को..."
फिर मैने सोचा कि मेरा सवाल ही ग़लत था ,इसलिए मैने अपने पहले सवाल को एडिट किया और दोबारा टाइप किया"हाउ टू डू लव" लेकिन अबकी बार रिज़ल्ट पहली बार से भी बदतर रहा....क्यूंकी मेरे'हाउ टू डू लोवे" क्वेस्चन के जवाब मे गूगल महाराज ने मेरे सामने चुदाई के कयि स्टेप्स रख दिए थे.....

"फाइनली गूगल महराह ऑल्सो हॅव लिमिट..."मोबाइल दूर फेक कर मैं बोला और घड़ी मे टाइम देखा तो चौथा पहर शुरू हो चुका था और अंत मे तक हारकर मैने डिसाइड किया कि कोई अंदू-गान्डु हरकत नही करनी है एश के सामने बस....
जिस दिन एश ने मुझे आइ लव यू कहा था, उसके बाद कयि दिन तक वो कॉलेज नही आई...वो ना तो मेरे किसी मेस्सेज का जवाब देती थी और ना ही मेरे किसी कॉल का...मैं एश के बारे मे जहाँ से जितना मालूम कर सकता था , सब मालूम किया...लेकिन एश कॉलेज क्यूँ नही आ रही,इसकी जानकारी मुझे कहीं से भी नसीब नही हुई...मैं हर दिन कॉलेज जाते वक़्त पार्किंग मे एश की कार को तलाशता लेकिन उसकी कार उन दिनो पार्किंग मे नही रहती थी,उसके बाद मैं अवधेश को कॉल करता और उससे पुछ्ता कि' एश आज आई है क्या' और वो हर बार यही कहता कि'नही यार, वो तो नही आई...लेकिन दिव्या आई है'

एश पूरे एक हफ्ते कॉलेज से गायब थी और उसका कोई अता-पता नही था...उसके बारे मे सिर्फ़ एक ही ऐसी लड़की थी ,जो मुझे कुच्छ बता सकती थी और वो थी'दिव्या'....लेकिन उससे एश के बारे मे पुच्छना मतलब अपनी गर्दन पर खुद ही छुरि रखने के बराबर था, इसलिए मैने दिव्या से कुच्छ नही पुछा और फिर एक दिन जब मैं कॉलेज की तरफ आ रहा था तो मुझे पार्किंग मे एश अपनी कार से निकलते हुए दिखाई दी....

"एश...."खुशी से मैं अपना एक हाथ हवा मे लहराकार चिल्लाया लेकिन एश ने मुझे फुल तो इग्नोर मारकर मेरे सामने से गेट के अंदर चली गयी...वो तो भला हो कि मैं अकेले था...वरना अरुण ,सौरभ होते तो खम्खा बेज़्ज़ती हो जाती
एश के ऐसे बर्ताव से मुझे गुस्सा तो बहुत आया लेकिन फिर सोचा कि शायद उसका मूड खराब हो...इसलिए मैने खुद्पर काबू किया और कॉलेज के अंदर घुसा...कॉलेज के अंदर घुसते ही मुझे लड़कियो का एक ग्रूप अपनी तरफ आता हुआ दिखा, जो खि-खि करते हुए मेरे सामने से पार हो गयी...

"कोई इज़्ज़त ही नही है यार ,यहाँ तो "जब उस ग्रूप की एक लड़की ने भी मुझे नही देखा तो मैने खुद से कहा और जिस गुस्से को मैने कुच्छ देर पहले काबू मे किया था, वो उफान मारकर बाहर आ गया...जिसका असर ये हुआ कि मैं पीछे मुड़ा और खि-खि करती हुई उन लड़कियो के सामने जाकर खड़ा हो गया.....

"ये क्या खि-खि करते हुए चली जा रही हो तुम सब. कॉलेज मे हो या किसी गार्डन मे घूम रही हो और ये क्या , मैं सामने से निकला तो मुझे 'गुड मॉर्निंग सर' बोलना चाहिए ना..मॅनर्स नही है क्या...चलो सब लाइन मे लगो...अभी बताता हूँ तुम सबको और एक बात, मन मे कोई मुझे गाली नही देगा,जैसा कि ये हरे सलवार-कमीज़ वाली दे रही है....तुम सबको शायद पता नही ,लेकिन मेरे पास कुच्छ अधभूत शक्तिया है,जिससे मैं सामने वाला मन मे क्या सोच रहा है,वो मालूम कर लेता हूँ....दा ग्रेट मेजीशियन अरमान का नाम सुना है ना...वो मैं ही हूँ...अब चुप-चाप,बिना आवाज़ किया सीधे निकल लो ,चलने की आवाज़ तक नही आनी चाहिए..वरना मैं अपने जादू से तुम सबको मुर्गी मे बदल दूँगा और हां अगली बार से यदि मैं कही भी दिखू, यदि मेरी परच्छाई भी दिखे ईवन मेरा फोटो भी दिखे तो हाथ जोड़कर प्रणाम करना....अब चलो,फुट लो इधर से,इसके पहले की महान जादूगर अरमान,अपना जादू दिखाए...हुर्र्रर..."

इसके बाद वो लड़किया वहाँ से ऐसे अपना चेहरा गिराकर गयी,जैसे उनके सेमेस्टर एग्ज़ॅम का रिज़ल्ट आ गया है और सबका ऑल बॅक हो.....
उन लड़कियो को झाड़ने के बाद मेरा मूड कुच्छ ठीक हुआ और मैं अपनी क्लास की तरफ वापस बढ़ा....लेकिन सामने से मुझे यशवंत आता हुआ दिख गया जिससे मेरा गुस्सा वापस उफान मारने लगा.....
यशवंत अपने हाथ मे कोई फॉर्म पकड़े हुए अकेले मेरी तरफ आ रहा था और उसकी नज़र पूरी तरह से उसके फॉर्म मे ही थी....
"सुन बे चुसवान्त..."उसे रोक कर मैं बोला"चल जल्दी से विश कर..."
जवाब मे यशवंत मुझे सिर्फ़ घूरता रहा .
"घूरता क्या है बे,खा जाएगा क्या और ये तेरे हाथ मे क्या है..."उसके हाथ से फॉर्म छीनकर मैं फॉर्म देखने लगा....
यशवंत से मैने जो फॉर्म छीना था वो बॅक एग्ज़ॅम का फॉर्म था और इसी के साथ यशवंत ने मुझे उसकी बेज़्ज़ती करने का मौका दे दिया जिसे भला मैं कैसे हाथ से जाने देता और तो और जब मुझे ये भी मालूम हो कि वो मुझे सिर्फ़ घूर्ने के अलावा कुच्छ नही कर सकता.....
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"बॅक के फॉर्म भरने जा रहा है..."अपना पेट पकड़कर जबर्जस्ति हँसते हुए मैने कहा"क्या फ़ायदा बे फैल तो तू फिर से ही होगा, फिर क्यूँ माँ-बाप के पैसे बर्बाद कर रहा है और बेटा, कॉलेज के बाहर अपना चूतियापा बंद किया या नही...मुझसे तो बेटा तू बच के रहियो,वरना अपने कॉलेज के मशहूर खूनी ग्राउंड के दर्शन कराउन्गा...अब चल निकल यहाँ से..."बोलते हुए मैने यशवंत का फॉर्म उसके मुँह मे फेक के मारा और क्लास की तरफ प्रस्थान किया.....
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मशीन-डिज़ाइन के सब्जेक्ट मे एक शब्द आता है 'टिरिंग' ,जिसके कारण कोई भी डिज़ाइन एलिमेंट वहाँ से बहुत जल्दी फैल होता है,जहाँ पर टिरिंग मौज़ूद होती है....एग्ज़ॅंपल के तौर पर एक पेपर एक हाथ मे थामो और दूसरे हाथ मे पेन को धर लो ,फिर उस पेपर को चूत समझकर पेन को उसके अंदर ऐसे घुसाओ,जैसे चूत मे लंड घुसता है और टिरिंग के कारण पेपर का वो पोर्षन कमजोर हो जाता है...ऐसा ही कुच्छ मैं अपने साथ उन दिनो कर रहा था...मैं हर तरफ से हर आंगल से खुद के लिए टिरिंग का निर्माण कर रहा था....उन दिनो मैं खुद को कॉलेज का सुपीरियर समझने लगा था और सोचने लगा था कि मैं जब चाहू,जिसे चाहू चोद सकता हूँ,फिर चाहे वो चुदाई मेरे शब्दो से हो या फिर मेरे हाथ से या फिर मेरे लंड से....

उन दिनो मैं हवा मे उड़ रहा था ,लेकिन शायद मैं भूल गया था कि जो चीज़ उपर जाती है ,वो ग्रॅविटी के कारण नीचे भी आती है.ये मैने फिज़िक्स मे पढ़ा था और कोई भी फिज़िक्स के खिलाफ नही जा सकता.....फिर चाहे वो मैं ही क्यूँ ना हो, यानी कि मुझे एक दिन ज़मीन पर आना ही था.

जिस दिन मैने महंत को ठोका था, उसके अगले दिन हॉस्टिल मे बहुत हंगामा हुआ...महंत मेरे जितना तो फेमस नही था, लेकिन इतना फेमस ज़रूर था कि हॉस्टिल के लड़के उसके लिए मेरे खिलाफ चले जाए...कुच्छ लड़के मेरे खिलाफ खड़े भी हो गये लेकिन सीडार भाई के करीबी होने के कारण मेरे सपोर्ट मे इतने ज़्यादा लड़के खड़े हो गये कि ,महंत,कालिया और उनके दोस्त झान्ट बराबर लगने लगे और मैने उन्हे ऐसे ही इग्नोर कर दिया कि...ये 20-30 लौन्डे मेरा क्या उखाड़ लेंगे.....
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"दिल नही लग रहा यार क्लास मे ,कुछ टाइम पास करना..."चलती हुई क्लास के बीच मे जब सीसी के फॉर्मुलास हम पर अटॅक कर रहे थे तो अरुण ने मेरी कॉपी मे लिखा"कोई लेटेस्ट जोक सुना ना..."
"मैं फेरवेल मे आंकरिंग करूँगा...."मैने अरुण की कॉपी मे लिखा...
"नोट बॅड...नोट बॅड...और सुना..."
"एश मुझसे पट गयी है..."
"और सुना..."
"उसने खुद मुझे एक हफ्ते पहले प्रपोज़ किया था..."
"ये तो बहुत ही बढ़िया जोक है...जा हॉस्टिल जाकर मेरे पॅंट से चिल्लर पैसे निकाल कर बीड़ी पीने के लिए रख लेना...ऐश कर,तू भी क्या याद रखेगा कि किस दौलतमंद आदमी से पाला पड़ा था...."
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08-18-2019, 02:47 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
लंच के टाइम, कॅंटीन मे हम लोग बैठकर टेबल तोड़ रहे थे कि लौन्डे अचानक किसी कार्ड गेम की बात करने लगे और आपस मे एक दूसरे से लड़ने लगे....मेरा मूड कुच्छ डाउन था इसलिए मैने उनकी लड़ाई मे इंटर्फियर नही किया और मन मे सोचा कि"लड़ने-मरने दो ,सालो को...एक-दो टपक जाएँगे तब बीच मे बोलूँगा..."
लेकिन एक-दो के मरने से पहले ही मुझे उनकी बीच की लड़ाई मे कूदना पड़ा, जिसका रीज़न ये था कि वो साले जानवरो की तरह एक-दूसरे पर चिल्लाने लगे थे.....
"सबको मालूम है कि तुम लोग इंसान नही जानवर हो,लेकिन फिर भी थोड़ी शांति बनाए रखो...."
"लवडा तू ही बता अरमान कि, टेक्सस होल्ड'एम गेम कैसे खेलते है..."सुलभ ने ज़ोर से सबके सामने कहा...
अब तो बीसी इज़्ज़त पर बन गयी ,क्यूंकी अब कॅंटीन मे मौज़ूद लगभग हर लड़का-लड़की मेरे तरफ देखने लगे थे....
"अबे ये...ये तो वही गेम है, जो कसीनो राइल मे जेम्ज़ बॉन्ड ने खेला था...बहुत ही ईज़ी है, रूम मे पत्ते लेकर आना, दो मिनिट मे सिखा दूँगा...."
"तुझे आता है वो गेम"अरुण ने पुछा...
"बेटा,समझ के क्या रखा है....लास वेगास मे पैदा हुआ हूँ मैं और जब तू दूध की बोतल मुँह से लगाता था ना तब मैं एक हाथ मे पत्ते और मुँह मे बीड़ी दबाए लास वेगास के कसीनोस पर राज़ किया करता था....जिसके बाद वहाँ के लोग मुझसे इतने ज़्यादा प्रभावित हुए कि मुझे नोबल प्राइज़ देने लगे थे...वो तो मेरा मूड नही था नोबल प्राइज़ लेने का ,इसलिए अपुन ने मना कर दिया...."
"चलो बे, चलो यहाँ से...वरना कुच्छ देर और यहाँ रुके तो ये फिर बोलेगा कि ग्रॅविटी की खोज इसी ने किया था...."अरुण ने सबको उठाया और वहाँ से चलता बना....
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अरुण और बाकी सबके जाने के बाद मैं कुच्छ देर तक वैसे ही टेबल पर चुप-चाप बैठा रहा कि कही ये लोग वापस ना आ जाए और जब मुझे कन्फर्म हो गया कि वो लोग अब इस जनम मे वापस नही आने वाले तो मैने कॅंटीन वाले की तरफ हाथ दिखाकर कहा...
"चार समोसे भेजवा दे इधर..."
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"हाई, हाउ आर यू..."समोसे और मेरे बीच के स्ट्रॉंग बॉन्ड को तोड़ते हुए एक आवाज़ मेरे कान मे गूँजी और मैने एक दम से उपर देखा....
"एश....क्या लेने आई है, बाहर तो बहुत भाव खा रही थी...मुझे देखा तक नही..."
"कब...कहाँ और कैसे...."
"अब ज़्यादा मत बन..."
"एक मिनिट,मुझे याद करने दो..."बोलते हुए एश अपने दिमाग़ मे ज़ोर डालने लगी....
और उसकी इस हरकत से मैं खुद हैरान रह गया कि 'क्या सच मे इसने मुझे नही देखा था ,या फिर मेरे सामने नाटक कर रही है....'
"मुझे तो कुच्छ भी याद नही,अरमान..."
"रुक...समोसा खा लूँ,फिर तुझे फ्लॅशबॅक मे ले चलता हूँ...तुझे पता नही होगा,पर मैं एक इंजिनियर होने के साथ-साथ एक साइकिट्रिस्ट भी हूँ....."
"हां,याद आ गया...आज सुबह तुम मुझे कॉलेज के बाहर दिखे थे...उस वक़्त मेरा मूड खराब था और मैं किसी से बात नही करना चाहती थी..."
"तो फिर ,इस वक़्त मेरा मूड खराब है और मैं किसी से बात नही करना चाहता."(एल.एच.स.=आर.एच.स. -हेन्स प्रूव्ड)
"कामन अरमान, आइ लव यू...."
"हे भगवान,क्यूँ हूँ मैं इतना दयालु....क्यूँ..."उपर कॅंटीन की छत पर भगवान को ढूंढते हुए मैं एश से बोला"जा माफ़ किया, लेकिन अगली बार से मुझे कभी ऐसे इग्नोर मत करना...क्यूंकी ये हरकत सीधे मेरे दिल मे लगती है, वैसे ये बता इतने दिनो से तू किधर मयाऊ-मयाऊ कर रही थी..."
"वो सब छोड़ो, आइ हॅव आ गुड न्यूज़ फॉर यू....गौतम डाइड..."खुशी से एश बोली.
ये सुनते ही जैसे मेरे शरीर से मेरी निकल गयी और मैं एक बेजान सा प्राणी हूँ....मुझे ऐसा लगा,क्यूंकी मैं जिस पोज़िशन मे पहले था उसी मे किसी स्टॅच्यू की तरह बैठा बिना पालक झपकाए एश की तरफ देखे जा रहा था....
"दिल पे मत लो, आइ वाज़ जस्ट किडिंग..."
"ये जोक था क्या ,कुच्छ तो लिहाज किया कर.ऐसे जोक तो मैं भी नही मारता...."
"ओके..."अचानक से सीरीयस होते हुए एश पीछे मूडी और दो कोल्ड ड्रिंक का ऑर्डर दिया....
"दो कोल्ड ड्रिंक कौन पिएगा..."एश के ऑर्डर देने के तुरंत बाद ही मैं बोला....
"एक मेरे लिए और एक मेरे भूत के लिए....अरे कुच्छ तो दिमाग़ लगाया करो,जब दो कोल्ड ड्रिंक ऑर्डर किए है तो एक तुम्हारे लिए होगा और एक मेरे लिए ही होगा ना...तुम ना,मुझसे ऐसे सिल्ली क्वेस्चन मत पुछा करो...."
"मैं कोल्ड ड्रिंक नही पीता, कोल्ड ड्रिंक पीने से सेहत खराब होती है.तू भी मत पिया कर..."
"अच्छा तो फिर इतने सारे लोग जो यहाँ बैठकर कोल्ड ड्रिंक पी रहे है ,वो बेवकूफ़ है क्या..."मुझपर आँख गढ़ाते हुए एश ने पुछा...
"ये सब है ही बेवकूफ़...इनमे से तू किसी एक को भी ,जो मेरी तरह होशियार हो...बता दे...."मैं कहाँ पीछे हटने वालो मे से था ,मैने भी आँख गढ़ाते हुए कहा...
"सो तो है...तुम्हारे जैसा इनमे कोई है...."
"अरे गजब,पहली बार मेरे सिवा किसी दूसरे ने मेरी तारीफ की है इसलिए तुझे एक अड्वाइज़ दे रहा हूँ...तू ना ये कोल्ड-ड्रिंक..वोल्ड-ड्रिंक मत पिया कर....दारू पिया कर...हेल्त एक दम सॉलिड बनी रहती है...अब मुझे ही देख ले"अपने बाइसेप्स की तरफ इशारा करते हुए मैने कहा"तू कहे तो जुगाड़ करू...हो जाए दो-दो पेग..."
"कर दो जुगाड़..."
"सच बोल,जैसे फिर चखने का जुगाड़ करूँ "
"मैं कभी झूठ नही बोलती..."
"मेरे साथ रहने का असर तुझपर होने लगा है....और बता कहाँ थी इतने दिन..."
मेरे ये पुछने तक कॅंटीन वाले ने स्ट्रॉ डालकर दो कोल्ड ड्रिंक की बॉटल टेबल पर रख दिया था और दोनो बॉटल मे एक-एक स्ट्रॉ देखकर शुरू मे मेरा दिल किया कि हम दोनो थोड़ा रोमॅंटिक बनते हुए एक ही कोल्ड ड्रिंक की बॉटल मे स्ट्रॉ डालकर पीते है...लेकिन फिर मुझे ये महा-बोरिंग लगा और मैने ये ख़याल अपने दिल से निकाल दिया.....
"वो एक रिलेटिव के यहाँ शादी थी तो वही गयी थी और अनफॉर्चुनेट्ली मेरा मोबाइल घर मे ही छूट गया था...इसलिए तुम्हारे किसी भी कॉल या मेस्सेज का रिप्लाइ नही कर पाई...."
"तो आने के बाद रिप्लाइ कर देती,मैं कौन सा तेरे सर पर बंदूक ताने खड़ा था...."(जब मोबाइल घर पर छूट गया था तो 9-10 दिन तक कैसे ऑन रह सकता है...झूठी )
"यू नो, ये सब मुझे बहुत बोरिंग लगता है कि कही भी जाओ तो बताकर जाओ और फिर जब वापस आ जाओ ,तब भी बताओ....आइ...आइ हेट दिस..."
"तू तो सच मच मेरे टाइप की होते जा रही है...."
"मैं जानती हूँ कि तुम इस वक़्त क्या सोच रहे होगे....कहो तो बताओ.आज कल मेरा सिक्स्त सेन्स भी काम करने लगा है..."
"अच्छा....तू तो झटके पे झटके दिए जा रही है..चल बता..."
"तुम ये सोच रहे हो कि मैं तुमसे सच मे प्यार करती हूँ या नही...."कोल्ड ड्रिंक पीना बंद करके मुझे फिर से घूरते हुए एश बोली....
"हां...मेरा मतलब ना...मतलब हां.....एक मिनिट,मुझे पहले सोचने दो कि कुच्छ देर पहले मैं क्या सोच रहा था....."थोड़े देर चुप्पी धारण करने के बाद मैने कहा"एक दम करेक्ट है, मैं यहिच सोच रेला था...तेरा सिक्स्त सेन्स तो एक दम फाडू काम करता है बीड़ू..."
"मतलब तुम्हे शक़ है मुझपर..."
"हल्का-हल्का....मतलब एक दम थोड़ा सा शक़ है, नेग्लिजिबल के बराबर..."
"आइ लव यू सो मच, अरमान...."मेरी आँखो मे आँखे डालते हुए एश बोली....
" "मेरे गाल लाल हो गये और ज़ुबान बंद हो गयी...
वैसे तो मैं कोई शर्मिला लौंडा नही था ,लेकिन एश के मामले मे मालूम नही दुनिया के किस कोने से शरमीला पन मेरे अंदर घुस जाता था...मतलब ऐसे सिचुयेशन मे मेरी सारी अकड़,मेरा सारा जोश धरा का धरा रह जाता था.अब इसी सिचुयेशन को ले लो...मेरा बहुत दिल कर रहा था कि एश को स्मूच कर लू या फिर कॉम्प्लेमेंट्री मे एक चुम्मि के लिए उसे कहूँ...लेकिन मेरी हिम्मत ही नही हुई ये सब कहने की....लवडा ,उस वक़्त मैं इतना घबरा रहा था जितना की मैं तब ना घबराऊ जब मैं बाइ चान्स अर्त की ऑरबिट से नीचे गिरु....
.
एश और मेरे बीच मे सब कुच्छ बढ़िया ही चल रहा था,लेकिन फिर भी हम दोनो एक आम कपल की तरह नही थे....हम दोनो एक-दूसरे से सिर्फ़ कॉलेज मे मिलते और फिर अचानक ही किसी टॉपिक पर बहस करने लगते....जीतता तो हर बार मैं ही था,लेकिन कभी-कभार मैं जान-बूझकर हार भी जाता था और मुझे हराने के बाद एश खुशी से ऐसे उच्छलती जैसे ओलिंपिक मे 10-12 गोल्ड मेडल जीत लिए हो....एश से ना तो मैने कभी बाहर चलने के लिए पुछा और ना ही कभी उसने मुझे कहा...ये काम हम दोनो को ही बोरिंग लगता था.हमारे कॉलेज से कुछ किलोमेटेर की दूरी पर एक धांसु पार्क था,वैसे पार्क तो नॉर्मल ही था,लेकिन वहाँ का महॉल धांसु रहता था...धांसु महॉल मतलब वहाँ जब भी जाओ दो दर्जन प्रेमी जोड़े लीप-लॉक...चूत,दूध,गान्ड दबाते हुए दिख ही जाते थे और ताज़्ज़ूब की बात ये है कि इन्हे आज तक किसी ने रोका भी नही था और उपर से पार्क वालो ने दो-तीन गार्ड वहाँ उनकी हरकत मे कोई रुकावट ना डाले ,इसलिए लगा रखे थे....मतलब कि कोई आपको आकर कहे की"तू बेफिकर होकर सार्वजनिक रूप से इसको चोद,दूध दबा...गान्ड मसल डाल इसकी...मैं देखता हूँ तुझे कौन डिस्टर्ब करता है...."

यही सब वजह थी कि मेरा एश के साथ कही जाने का मूड नही होता था और एश को कुच्छ किलोमेटेर दूर किसी पार्क मे ले जाना तो दूर की बात मैं कभी उसके साथ कॉलेज के गार्डन तक मे नही बैठा और वैसे भी किसी पहुँचे हुए व्यंगकार ने कहा है कि "प्यार दर्शन का विषय है प्रदर्शन का नही" उपर से जहाँ दिव्या जैसी चुगलखोर लौंडिया हो,वहाँ थोड़ा दब कर ही रहना पड़ता है...

एश मेरे कॉलेज लाइफ का एकलौता ऐसा सब्जेक्ट था ,जिसके बारे मे मैने ज़्यादा फ्यूचर प्लान नही बनाए...एश के मुझे प्रपोज़ करने के बाद ही मुझे ये हवा तो लग चुकी थी, इसका अंत इतना सरल तो नही होगा.लेकिन फिर मैने एश के मामले को किस्मत पर छोड़ दिया की जो होगा बाद मे देखा जाएगा और अभी जैसा चल रहा है उसे वैसा ही चलने दिया जाए.....
मेरे उस 8थ सेमेस्टर मे सबसे भयानक पहलू जो था वो ना तो एश थी और ना ही यशवंत-महंत का गुप्त रूप से साथ-गत ..8थ सेमेस्टर का सबसे भयानक पहलू वो था ,जिसे मैं शुरुआत से ही बाए हाथ का खेल समझ रहा था यानी कि आराधना....

" अरमान सुन ना बे...एक काम था तुझसे...."
"चल हट टाइम नही है मेरे पास.तेरी माल आराधना से मिलने जा रहा हूँ..."अरुण की परवाह किए बिना मैं जिस स्पीड से सीढ़िया उतर रहा था ,उसी स्पीड से सीढ़िया उतर कर हॉस्टिल के मेन गेट की तरफ बढ़ा....
"अबे रुक..."मेरी तरफ दौड़ते हुए अरुण ने मुझे आवाज़ दी...

वैसे तो मुझे एक दोस्त होने के नाते रुक जाना चाहिए था,लेकिन पता नही मेरा क्या मूड हुआ जो मैं अचानक से दौड़ने लगा और मेरे पीछे अरुण भी दौड़ने लगा.....
"आजा लवडे, गान्ड मे दम है तो छु के दिखा...."आगे-आगे भागते हुए मैने कहा....
"तू बेटा ,रुक जा...नही तो जहाँ पाकडूँगा ना वही लंड थमाउन्गा...."
"आजा....फिर..."बोलकर मैं और तेज़ी से भागने लगा.....
उस दिन मैने अरुण को बहुत दौड़ाया...कभी हॉस्टिल के सामने वाली रोड पर तो कभी हॉस्टिल के पीछे वाली रोड पर और फिर झाड़ियो के बीच घुसकर कॉलेज के पीछे वाले गेट की तरफ मैं भागा....जहाँ से फर्स्ट एअर के लौन्डे रॅगिंग से बचने के लिए कॉलेज जाते थे...कॉलेज के उस पीछे वाले गेट के पास पहूचकर मैं रुका और एक जगह जहाँ अक्सर विभा खड़ी होकर फर्स्ट एअर के लड़को की गान्ड लाल करती थी,मैं वहाँ देखने लगा और मुझे वो सीन याद आया,जब मैने विभा की यहाँ पर घोर बेज़्ज़ती की थी. उस टाइम लवडा किसको पता था कि एक सीधा-साधा पढ़ने वाला लौंडा इतना कुच्छ कर सकता है....ठीक उसी तरह जैसे आज मुझे यकीन नही होता कि ,एक जमाने मे मैं भी शरीफ हुआ करता था....ये वही जगह थी ,जहाँ मैने विभा को अपना स्पर्म, बर्नूली के ईकूशन मे घोंट कर पिलाया था.मैं पक्का यकीन के साथ कह सकता हूँ कि यदि उस वक़्त वरुण और उसके चूतिए दोस्तो को ये मालूम होता कि मेरी रॅगिंग बाद मैं उनकी माँ-बहन एक कर दूँगा तो कसम से वो मुझे कभी छेड़ते ही नही....उस वक़्त ना जाने क्यूँ मैं वहाँ खड़ा होकर अतीत के पन्नो को उलट रहा था और उसी वक़्त मेरे अंदर एक ख़याल आया कि यदि मेरी रॅगिंग ना हुई होती और मैं इन सब मार-पीट मे इन्वॉल्व ना हुआ होता तो मेरी लाइफ कैसे होती....
"वेल...जहाँ तक मेरा अंदाज़ा जाता है..."खुद ही से बात करते हुए मैने कहा"उसके हिसाब से मैं जितना आज हाइलाइट हूँ ,उसका शायद 1 % भी नही रहता...मुझे सिर्फ़ मेरे क्लास के लोग जानते और दीपिका मॅम के साथ मेरी चुदाई तो दूर की बात मैं उसे छु तक नही पाता....और तो और बीसी मैं हर सेमेस्टर मे टॉप मारता ...बीसी मालूम ही नही चला कि कॉलेज के दिन कैसे गुज़र गये...."
"अभी मैं तेरे मुँह मे लंड डालूँगा ना तो तुझे सब मालूम चल जाएगा कि ये दिन कैसे बीत गये...."झाड़ियो के पीछे से हान्फते हुए अरुण मेरे सामने आया और बोला"गान्ड फट गयी बे....हूओ...हाा..."
"एक....दो...."
"नही...अब जान नही बची है,भाई...अब मत दौड़ना...प्लीज़..."
"तीन,...."बोलकर मैं फिर से वहाँ से भाग निकला और भागते-भागते कॉलेज के ग्राउंड की तरफ भागा(प्ले ग्राउंड...ना कि खूनी ग्राउंड ).ग्राउंड की तरफ भागते हुए मैने सोचा कि अब अरुण मेरे पीछे नही आएगा...लेकिन पता नही लवडे को मुझसे क्या ज़रूरी काम था जो मेरे पीछे कछुए की चाल मे दौड़ते हुए आने लगा....
"क्या कााअँ हाईईइ बे...."आख़िर कर मैं रुका और अरुण को आवाज़ दी....
"तू बोसे ड्के...आज हॉस्टिल मत आना...वरना जैसे उस दिन महंत को भरा था, आज तुझे भरुन्गा...."अरुण मुझसे थोड़ी दूर मे रुका और वॉर्निंग देकर जाने लगा...
"ओये चूतिए रुक...वो काम तो बता जा..जिसके लिए इतना दौड़ाया मुझे..."
"बोसे ड्के, तूने मुझे इतना दौड़ाया कि मैं भूल ही गया...आज के बाद यदि तू मेरे सामने भी आया ना बेटा, तो तू मर गया समझ....साले साँस लेते नही बन रहा है,लगता है कि कलेजा मुँह से बाहर निकल जाएगा....."
"यही तो प्यार है पगले..."
"लाड प्यार है ये...ये गे-यापा है तेरा...फले लंड-लवर...."बोलकर अरुण वहाँ से चला गया....
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अरुण के वहाँ से जाने के बाद मैने ग्राउंड के चारो तरफ नज़र डाली तो पाया कि काफ़ी लोग ,ग्राउंड मे मौज़ूद थे....फिर मैने बॅस्केटबॉल कोर्ट के तरफ नज़रें घमायी ,वहाँ भी मेल-फीमेल का सॉलिड कॉंबिनेशन बॅस्केटबॉल की प्रॅक्टीस मे लगा हुआ था.....
"जाता हूँ,थोड़ा रोला जमाकर आता हूँ..."बॅस्केटबॉल कोर्ट की तरफ देखकर मैने सोचा....
"नही, पहले जिस काम के लिए निकला हूँ...वो काम कर के वापस आता हूँ....आराधना डार्लिंग अपनी चूत खुली रखना....आइ'म कमिंग/कुमिंग "
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ग्राउंड से निकल कर मैं हॉस्टिल को हाइवे से कनेक्ट करने वाली सड़क पर आया और गर्ल्स हॉस्टिल के पास पहूचकर रुक गया....
"अभी तो 6:30 बजे है, 7 बजे तक लड़कियो को बाहर रहने की पर्मिशन होती है..."
मैने मोबाइल निकाला और तुरंत ही आराधना को कॉल करके बाहर आने के लिए कहा....
आराधना को अब अपनी गर्ल फ्रेंड बोलने मे मुझे कुच्छ खास अच्छा नही लगता था .एक तो वो आवरेज लड़की थी,उपर से मैं उसको कयि बार दोस्तो के रूम मे लेजा कर चोद चुका था...इसलिए अब उसपर मुझे कोई खास इंटेरेस्ट नही था ,हालाँकि उसकी बड़ी-बड़ी गान्ड मे अब भी इतना दम था कि वो मेरा लवडा खड़ा कर दे...लेकिन अब साला मूड नही होता था ,आराधना के साथ वो सब करने को....और वैसे भी जिसकी गर्ल फ्रेंड एश जैसी लड़की बन जाए तो फिर आराधना जैसी एक आवरेज गाँव की लड़की के साथ रिलेशन्षिप बनाकर कौन अपनी दुर्गति कराए....इसलिए मैं उस वक़्त आराधना से मिलने गया था....हालाकी उस वक़्त मुझे आराधना से सहानुभूति तो हो रही थी की उसको बुरा लगेगा...लेकिन मैं कर भी क्या सकता था...मैं नही चाहता था कि मैं किसी दिन कॉलेज मे एश के साथ कही घूम रहा हूँ और आराधना वहाँ आकर बोले कि"कल रात की चुदाई का असर अभी तक है,ऐसा मत चोदा करो...." इसलिए मैं आज इधर सब कुच्छ ख़तम करने आया था.
Reply
08-18-2019, 02:47 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
मेरा ऐसा मानना था कि आराधना मुझसे नाराज़ होगी ,मुझपर चीखेगी,चिल्लाएगी...यहाँ तक कि गुस्से मे हाथ भी उठा सकती है इसलिए आराधना को हॉस्टिल से बाहर आते देख मैने अपने हाथो को किसी भी अचानक हमले से निपटने के लिए तैयार कर लिया और डाइलॉग्स का तो जानते ही हो कि ,मैं लंबी-लंबी दे सकता हूँ....
"क्या हुआ सर, इतनी रात को...क्या विचार है..."हमेशा की तरह चुदने के मूड मे आते हुए आराधना बोली...
"बस ऐसे ही..."(थोड़े देर रुक हवासी, ऐसा लवडा घुसाउन्गा की ज़िंदगी भर दर्द नही जाएगा)
"फिर कहिए...क्यूँ कष्ट किया यहाँ तक आने का..."
"मुझे कुच्छ कहना है तेरे को..."
"नर्वस क्यूँ हो रहे हो..."मेरा मज़ाक उड़ाते हुए आराधना हँसी...
"मैं नर्वस नही हूँ, नर्वस होने की आक्टिंग कर रहा हूँ ,ताकि जो मैं आगे कहने वाला हूँ, उसे सुनकर तेरा दर्द कुच्छ कम हो और मैं ये कहना चाहता हूँ कि मैं तुझसे प्यार नही करता...वो सब तो ऐसे ही बस टाइम पास करने के लिए मैने ये सब नाटक किया...."
मैने सोचा कि अभिच...अभिच आराधना रोएगी, मुझपर हाथ उठाएगी...लेकिन उसने वैसा कुच्छ नही किया .वो रोने की बजाय ऐसे हँसने लगी जैसे मैने उसकी चूत मे गुदगुदी की हो.....
"तू हँस क्यूँ रही है...मैं सच बोल रहा हूँ "
"मुझे यही बताने के लिए हॉस्टिल से बाहर बुलाए हो..."आराधना ने थोड़े देर के लिए अपनी हँसी रोकी और फिर हँसने लगी.....
"हंस ले,मेरा क्या है...लेकिन मैं कुच्छ चीज़े क्लियर कर दिए देता हूँ...अब से ना तो तू मुझे कॉल करना और ना ही मेस्सेज...वैसे भी अगर तू ये सब फूटियापा करना भी चाहेगी तो कर नही पाएगी ,क्यूंकी मैं कल अपना नंबर चेंज कर लूँगा और अपना पुराना नंबर हॉस्टिल के किसी लौन्डे को दे दूँगा...इसलिए सोच-समझकर ही मेस्सेज करना..."
"ह्म्म्म...."ये सुनकर आराधना की हँसी अबकी रुक गयी...."मैं समझी नही कुच्छ...आप कहना क्या चाहते हो..."
"मैं डाइरेक्ट्ली जो कहना चाहता हूँ,उसे इनडाइरेक्ट्ली ही समझ ले ना...तुझे ही फ़ायदा होगा..."
"हुह...."
"इनडाइरेक्ट्ली नही समझी ना...तो फिर डाइरेक्ट्ली सुन .मैने तेरे दूर के भाई कालिए से शर्त लगाई थी कि मैने तुझे पटा के छोड़ूँगा...जिसमे मैं कामयाब रहा. लेकिन अब मेरा मन भर गया है,इसलिए...आज से हम कभी नही मिलेंगे और यदि कभी मिले तो बात नही करेंगे और यदि कभी बात भी करनी पड़ी तो ,इस बारे मे तो बिल्कुल भी बात नही करेंगे...."थोड़े देर के लिए मैं रुका ,क्यूंकी जैसे-जैसे मैं बोलते जा रहा था,आराधना की आँखे धीरे-धीरे बड़ी होती जा रही थी...वो रोना चाहती थी,या फिर कहे कि वो बस रो ही देती ,यदि मैं उस वक़्त चुप ना हुआ होता तो....इसलिए मैं थोड़ी देर के लिए रुका और जब मुझे यकीन हो गया की ,आराधना अब थोड़ा नॉर्मल हो गयी है तो मैने आगे बोलना शुरू किया....

"माँ कसम, आराधना...मैं तुझसे बिल्कुल भी प्यार नही करता.मैं किसी और से प्यार करता हूँ लेकिन सेक्यूरिटी रीज़न के कारण मैं तुझे उसका नाम नही बताउन्गा.मैं जानता हूँ कि तुझे बहुत बुरा लग रहा होगा,लेकिन मैं क्या करू....वैसे भी तुझे सोचना चाहिए था कि मुझ जैसे लड़का कॉलेज की बाकी लड़कियो को छोड़ कर तेरे पीछे क्यूँ पड़ेगा .मैं जानता हूँ कि मैं बहुत बुरा कह रहा हूँ लेकिन मुझे इस वक़्त बिल्कुल भी बुरा नही लग रहा है ,जो इस बात की गवाह है कि मेरे कलेजे मे तेरे लिए ज़ीरो पॉइंट ज़ीरो ज़ीरो ज़ीरो ज़ीरो वन(0.00001) के बराबर भी कोई फीलिंग नही है और गूगल मे जाकर ये सर्च ज़रूर करना कि 'हाउ टू फर्गेट एक्स-बाय्फ्रेंड'. उम्मीद है,कुच्छ काम की चीज़ मिल जाएगी...."बोलकर मैं चुप हुआ और याद करने लगा कि और कुच्छ बोलना बाकी है या फिर खीसकू यहाँ से....

"एक और बात....आज के बाद किसी से भी पंगे मत लेना और यदि कोई सीनियर इंट्रो वगेरह ले तो शांति से दे देना...क्यूंकी अब मैं तुझे बचाने नही आने वाला...अब चलता हूँ.ऑल दा बेस्ट..."

इसके बाद मैं वहाँ एक सेकेंड के लिए भी नही रुका और वापस तेज़ कदमो के साथ हॉस्टिल की तरफ बढ़ा....क्यूंकी मैं नही चाहता था कि आराधना मेरे पीछे आ जाए....

"वाउ ! आराधना का मॅटर तो बड़ी आसानी से सुलझ गया....उसने तो कोई रिक्ट ही नही किया. मुझे ऐसे ही लड़किया पसंद है,जो मेरी बात सुने और बस सुने...कोई जवाब या सवाल ना करे...."

"क्यूँ बे अरमान ,सुना है कि फेरवेल के दिन तेरा और एश का कुच्छ प्रोग्राम है...."रात को सोते समय सौरभ ने पुछा....
वैसे तो हॉस्टिल मे बहुत कम ही ऐसी रातें गुज़रती थी,जो कि बिना पिए गुज़रे...और वो रात उन्ही रातों मे से एक थी.यानी कि मैं बिल्कुल होश-ओ-हवास मे था और मेरे रूम मे उस वक़्त सिर्फ़ हम तीनो ही थे.
"क्या..."सौरभ की बात सुनकर अरुण ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगा और हँसते-हँसते बिस्तर से नीचे गिर गया.....
"इतना क्यूँ मुँह फाड़ रहा है बे..."
"लवडा, ऐसे इंपॉसिबल बात करोगे तो हँसी तो आनी ही है ना..."बिस्तर पर वापस लेट कर अरुण बोला"मुझे ये तो मालूम था कि अरमान, हवा मे सारी बातें करता है,लेकिन सौरभ...तू...तू कब्से इसकी तरह नीच प्राणी बन गया. आइ हेट बोत ऑफ यू.निकल जाओ लवडो मेरे रूम से.मैं तुम्हारी बदसूरत शकल तक नही देखना चाहता..."
"अबे सच है ये....खाने के टाइम पर उमेश बता रहा था..."
उन दोनो की बातें सुनकर मुझे ऐसा अंदाज़ा हो रहा था कि अब ये दोनो मुझसे पुछेन्गे कि सच क्या है और इसीलिए वो दोनो मेरी तरफ देखते उसके पहले ही मैने अपनी आँखे बंद कर ली...ताकि उनको लगे कि मैं सो गया हूँ...
"अरमान...अरमान लंड...अरमान-चूत...सो गया क्या बे..."सौरभ ने अपने बिस्तर पर पड़े-पड़े ही मुझे आवाज़ दी और मैं यथावत सोने की आक्टिंग करता रहा.
"रुक लवडा...ये ऐसे नही उठेगा.अभी मैं इसका मोबाइल खिड़की से बाहर फेक्ता हूँ..."
"चोद दूँगा ,यदि किसी ने ऐसा किया भी तो...."भकाभक कर मैं उठा और चीखा.
"तू आंकरिंग मे कैसे सेलेक्ट हुआ इसका सचित्र वर्णन कर..."मेरी आँख खुलते ही सौरभ ने पुछा...
"चल बे, पुछ तो ऐसे रहा है ,जैसे मैं बता ही दूँगा...,रास्ता नाप अपना..."
"अरुण...उठा इसका मोबाइल और फेक दे खिड़की के बाहर..."
"ओययए....किसी ने मेरे मोबाइल की तरफ अपनी नज़र भी डाली तो....तो तुम दोनो का लंड काट कर तुम दोनो के गान्ड मे घुसा दूँगा...."
"देखो...ज़्यादा बोलो मत और सिर्फ़ काम की ही बात करो.क्यूंकी एक तो वैसे भी कुच्छ देर बाद सुबह होने वाली है ,उपर से सुबह जल्दी उठकर प्रेज़ेंटेशन की तैयारी भी करनी है.इसलिए....."
"वो अपुन ने छत्रपाल को धमकी दी कि यदि उसने मुझे सेलेक्ट नही किया तो उसको पेल्वा दूँगा...और उसने मुझे सेलेक्ट कर लिया..."
"ऐसा क्या...हमे जो जानना था ,वो तो तूने बता दिया.लेकिन फिर भी मैं तेरा मोबाइल खिड़की से बाहर फेकुंगा...."बोलकर अरुण उठा और मैं समझ गया कि लवडे को मालूम है कि मैं झूठ बोल रहा था.इसलिए अरुण खिड़की के पास पहुचता उससे पहले ही मैने एक दम सौ प्रतिशत शुद्ध कारण बताया ,जो कि मेरे और एसा के सेलेक्षन की वजह थी....मैं बोला.

"तूने अंग्रेज़ो के शासन करने वाली उस नीति के बारे मे तो सुना ही होगा ना कि 'फुट डालो और शासन करो'....उसी को मैने थोड़ा मॉडिफाइ किया और अपना एक अलग नियम बनाया,जो ये था कि'फोड़ डालो और शासन करो' और मेरे इसी नीति पर चलते हुए मैने अपना और एश का सेलेक्षन करवाया..."
"सब उपर से गया..."
"वेल,अब जब तूने मुझे नींद से उठाया ही है तो मैं अब तुम दोनो की लिए बगैर तो रहूँगा नही इसलिए एक बात बताओ कि यदि किसी रेस मे 5 लोग पार्टिसिपेट करने वाले है और उन पाँचो मे से एक तू भी है तो रेस जीतने के लिए तू क्या करेगा...."
"मैं अपनी पूरी जान लगा दूँगा "अरुण तेवर चढ़ाते हुए बोला...
"लेकिन मैं अपना दिमाग़ लगाउन्गा और यही....बस यही तुम जैसे छोटे लोग और मेरे जैसे बड़े, महान ,पुरुषार्थी लोगो मे फरक होता है की तुम लोग गान्ड से सोचते हो और हमलोग दिमाग़ से...मैं उन चारो को रेस मे उतरने ही नही दूँगा और बड़े आराम से गॉगल लगाकर, सिगरेट के छल्ले उड़ाकर, दारू पीते हुए...रेस जीतूँगा..."

"अब तेरी सेल्फ़-प्रेज़िंग बंद हो गयी तो अब पॉइंट पर आए..."अपने हाथ बंद करके मुक्के का रूप देकर सौरभ बोला...
"अपुन ने बाकी लड़को को धमकाया कि वो छत्रपाल से कोई भी बहाना करके आंकरिंग से हट जाए, वरना मैं उनकी खटिया खड़ी कर दूँगा और दूसरे दिन से उन्होने ऑडिटोरियम मे जाना बंद कर दिया,जिसके परिणाम स्वरूप तुम लोगो के आइडल यानी कि मेरा सेलेक्षन हुआ..."
"हाउ बॅड आर यू ..."
"बट आइ लाइक इट...गुड नाइट वित बॅड ड्रीम्स..."
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आराधना का चॅप्टर क्लोज़ करके मैं आगे बढ़ा और ऐसे आगे बढ़ा,जैसे आराधना को मैं जानता ही नही हूँ,कभी उससे बात भी ना की हो...उसके साथ इतने दिन रहकर मैं ये तो जान ही चुका था कि वो कितने टाइम कहाँ रहती है...इसलिए उतने टाइम वहाँ भटकना तो दूर मैं उस जगह के बारे मे सोचता भी नही था.मैं नही चाहता था कि आराधना मेरे सामने आए और कोई एमोशनल ड्रामा हो...

मुझे आराधना के क्लासमेट ,आराधना के आस-पास रहने वालो से उसकी खबर लेते रहना चाहिए था कि मेरे उस बर्ताव का उसपर क्या असर हुआ है...मुझे उसकी फिकर करनी चाहिए थी.लेकिन सच तो ये था कि मुझे उसकी परवाह ही नही थी, उसकी छोड़ो...मुझे तो उन दिनो किसी की भी परवाह नही थी.

अक्सर मैं जो करता हूँ ,उसका कुच्छ पर बहुत बुरा असर पड़ता है तो कुच्छ इतना खुश होते है कि उनका बस चले तो मुझे 'भारत-रत्न' दे दे...लेकिन अबकी बार मैं जो होशियारी छोड़ रहा था वो सिर्फ़ मुझे ही अच्छा लगने वाला था यानी कि कोई दिल पर लेने वाला था ,तो कोई मुँह मे और ले भी क्यूँ ना, मैने आराधना के रूप मे उस सुलगती चिंगारी को छोड़ दिया था जो या तो खुद को जला कर शांत होती है या फिर सबको जला कर रख कर देती है,लेकिन फिर भी वो नही भुझती....लेकिन इन सबसे अंजान मैं उन दिनो फेरवेल मे मगन था और मगन भी क्यूँ ना होता...बीसी तीन साल से फेरवेल दे-दे कर जेब खाली हो चुकी थी और अबकी बार मौका मिला था कि कुच्छ वसूल किया जाए.....
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मैने कितने अच्छे काम किए ,ये तो मुझे याद नही लेकिन मेरी नज़र मे जो एक अच्छा काम याद आता है ,वो ये कि उस साल पहली बार सिटी वाले और हॉस्टिल वालो ने मिलकर वेलकम पार्टी और फेरवेल का मज़ा लिया...लेकिन मेरे इस अच्छे काम मे बुराई की परत तब चढ़ जाती है,जब मैं देखता हूँ कि मैने इसकी शुरुआत क्यूँ की थी.

सिटी वाले और हॉस्टिल वालो का एक साथ मिलकर इन दो एवरग्रीन सूपर ड्यूपर हिट रहने वाले प्रोग्राम की शुरुआत करने के पीछे सिर्फ़ एक वजह थी और वो ये कि मेरी तरह हॉस्टिल के बाकी लड़के भी यही चाहते थे कि लौंडिया उनके उस सुनहरे दिन मे साथ रहे और ऐसा तभी हो सकता था जब पूरे कॉलेज वाले मिलकर किसी प्रोग्राम का आयोजन करे....क्यूंकी एक इंसान को सिर्फ़ दो बार खुश होना चाहिए,पहले, जब वो इस दुनिया मे आता है और दूसरा तब ,जब वो इस दुनिया से जाता है....अब इन दोनो टाइम मे किसी को होश तो रहता नही,इसलिए इन दोनो को मैं फ्रेम ऑफ रेफरेन्स का फेनोमेनन इस्तेमाल करके वेलकम और फेरवेल पार्टी से रीप्लेस कर दिया....और वैसे भी बीसी ,हम गे तो है नही,जो सिर्फ़ लड़को के साथ पार्टी करे.कुल मिलकर कहे तो मेरी नियत खराब थी लेकिन काम जबरदस्त था.
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"तुम्हारा बेस्ट फ्रेंड कौन है..."कॉलेज मे घूमते हुए एसा ने मुझसे पुछा...
"तुम उसे नही जानती..."अगल-बगल देख कर मैं बोला...वैसे मैं तो था एसा के साथ लेकिन मेरा ध्यान सिर्फ़ इसी पर था कि कही से आराधना ना टपक पड़े....
"किसे नही जानती...अरुण को या सौरभ को..."
"मेरे बेस्ट फ्रेंड तो वो दोनो है ही लेकिन एक और है,जो इस कॉलेज मे नही है..."
"तीन-तीन बेस्ट फ्रेंड...लगता है तुम्हे ग्रॅमर की नालेज नही है.बेस्ट तो सिर्फ़ एक होता है..."
"मुझे ग्रॅमर की इतनी नालेज है,जितनी की ग्रॅमर बनाने वाले को भी नही होगी और बेस्ट सिर्फ़ एक हो या हज़ार ये तुम पर निर्भर करता है ना की ग्रॅमर बनाने वाले पर..."
"फिर तो रहने दो, जब मैं उस तीसरे को जानती नही तो उसके बारे मे बात करके क्या फ़ायदा....तुम ये बताओ कि अरुण और सौरभ तुम्हारे बेस्ट फ्रेंड क्यूँ है..."
"और मैं ये क्यूँ बताऊ...प्राइवसी नाम की भी कोई चिड़िया होती है और मैं उस चिड़िया को मारना नही चाहता..."
"मैं तुम्हे फोर्स नही कर रही बताने को, वो तो मैं इसलिए पुछ रही थी क्यूंकी मेरा आज तक कोई बेस्ट फ्रेंड नही बना...शुरू मे लगा कि गौतम बेस्ट फ्रेंड है ,लेकिन फिर लगा कि दिव्या...लेकिन अब लगता है कि मेरा कोई फ्रेंड ही नही है...मैने तुम्हे कभी तुम्हे ,अपने दोस्तो से लड़ते हुए नही देखा और ना ही इसके बारे मे कभी सुना...जबकि हॉस्टिल के हर एक मूव्मेंट की खबर पूरे कॉलेज मे किसी वाइरस के तरह फैलती है...आक्च्युयली मैं ये जानना चाहती हूँ कि तुम अपने दोस्तो मे क्या देखते हो..."

"अपुन का एक सिंपल फंडा है..."अगल-बगल फिर से इसकी जाँच करते हुए की आराधना कही है तो नही, मैं बोला"और वो सिंपल फंडा ये है की मुझे जब भी मेरे दोस्तो की ज़रूरत पड़े तो वो मुझे अच्छे-बुरे का नसीहत दिए बगैर पहले मेरा साथ दे बाकी सवाल-जवाब बाद मे करे या ना भी करे...और अरुण-सौरभ दोनो ऐसे ही है...उनको बस मेरे मुँह से लड़ाई, मार-पीट,पंगा,लफडा सुनने की देरी है....अरुण तो फिर भी कभी कुच्छ नही पुछ्ता ,वो हमेशा यही सोचता है कि ग़लती मेरी नही बल्कि सामने वाले की होगी और सौरभ ,वो बाद मे अकेले मे मुझसे सब कुच्छ जान लेता है कि लफडा क्यूँ और किसलिए हुआ था..."

"ये बेस्ट फ्रेंड कैसे हो सकते है...हुह...मतलब कि मैने कही पढ़ा था कि एक दोस्त वो होता है जो आपके साथ सिगरेट ना पिए बल्कि आपकी सिगरेट छुड़ाए..."
"ऐसे फ्रेंड ,गुड फ्रेंड होते है,बेस्ट नही और फिलहाल मेरे पास ऐसा एक भी नही है..."
"आइ लव यू, अरमान...जैसे-जैसे तुम्हारे साथ दिन बीत रहे है...तुम्हारा उतना ज़्यादा ही एफेक्ट मुझपर पड़ रहा है..."
"ये अब फिर से बोर करेगी "एश को 'आइ लव यू टू'बोलकर मैने मन मे सोचा....
सिटी और हॉस्टिल के स्टूडेंट्स का वेलकम और फेरवेल एक ही साथ एक ही दिन होगा, ये सुनकर पहले तो बहुत से सिटी मे रहने वाले भड़क गये थे...आक्च्युयली बहुत से नही बल्कि मेकॅनिकल फोर्त एअर के लड़को को छोड़ दिया जाए तो सब ही भड़क गये थे और जिसकी जितनी पहुच थी ,उसने अपनी पहुच का इस्तेमाल करके मेरे एजेंडा को मेरी पहुच से दूर करने की कोशिश की...ख़ासकर के सीयेस, इट ब्रांच के लड़को ने...क्यूंकी वो नही चाहते थे कि उनकी प्राइवेट प्रॉपर्टी पर कोई और हाथ डाले....लेकिन मैं हाथ डालने का नही सीधा लंड डालने का सोच रहा था ,इसलिए मैने उन लड़को को प्यार से धमकाया...जिसका नतीज़ा ये हुआ कि वो सूपर सीनियर्स(डिटॅनर्स) को बीच मे घसीट लाए और मामले को और बिगड़ दिया....

वैसे एक हिसाब से देखा जाए तो वहाँ के लोकल लौन्डो का सोचना सही थी,क्यूंकी हमारे कॉलेज के हॉस्टिल मे स्टूडेंट्स नही जानवर रहते थे और कोई भी नही चाहेगा कि उसकी मनपसंद शाम किसी दूसरे के कारण बर्बाद हो ,उपर से जब दोनो टोलिया एक साथ बैठेगी तो किसी ना किसी टॉपिक पर वाद-विवाद तो होगा ही और फिर मार-पीट....और मार-पीट मे तो हम ही जीतने वाले थे,इसलिए जैसे-जैसे फेरवेल का दिन करीब आ रहा था, कॉलेज की आधी आबादी का गला सूखता जा रहा था और मैं हॉस्टिल की छत पर खड़ा होकर यही सोच रहा था कि "बीसी ,क्या पवर पाई है...जो बोला,मतलब वो होना ही माँगता..."
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स्कूल के दिनो मे मॅतमॅटिक्स के सिर ने एक बार सारी क्लास से एक सवाल पुछा था कि"तुम्हे पैसा चाहिए या पवर..." तब मैने हर एक की तरह पैसे के नाम पर अपना हाथ खड़ा कर दिया था, लेकिन अब मुझे समझ मे आ रहा था कि पैसा तो सच मे हाथो की मैल है, मायने रखता है तो सिर्फ़ पवर....मेरा ऐसा मानना है की पवर से हम जितना चाहे उतना पैसा बना सकते हो ,लेकिन पैसे से जितना चाहे उतनी पवर नही पा सकते...अब ज़्यादा दूर ना जाते हुए मेरे कॉलेज का ही एग्ज़ॅंपल ले लो...मेरे कॉलेज मे बहुत से रहीस लौन्डे थे, लेकिन उनकी इतनी अओकात नही थी कि वो मुझसे आँख मे आँख डाल कर बात कर सके...

पवर और पैसे के इस खेल का सबसे बड़ा एग्ज़ॅंपल ये है कि एक करोड़-पति ,जिसके पास सौ ट्रक है...वो, कुच्छ हज़ार की तनख़्वाह लेने वाले एस.आइ. को सर कहकर बोलता है यदि किसी कारणवश उस एस.आइ. ने उस करोड़-पति के ट्रक को रोक लिया हो तो....इसलिए पवर और पैसे के इस खेल मे मेरी तरफ से फर्स्ट प्राइयारिटी पवर को थी, है और रहेगी.
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कॉलेज के दूसरे ब्रांच वालो ने जब डिटॅनर्स को मेरी धमकी के बारे मे बताया तो ,खून उनका भी जला और उन्होने मुझसे बात करने के लिए पार्किंग मे मीटिंग फिक्स की....
"समझ ना बे...तेरे से सीनियर हूँ ना."
"तुझ जैसे सीनियर मेरे यहाँ रहते है...यहाँ..."अपने लवडे की तरफ उंगली दिखाते हुए मैने कहा...
"हॉस्टिल का सपोर्ट है ,इसलिए ज़्यादा उड़ी मे रहता है...लेकिन मैं इतने साल से इस कॉलेज मे पढ़ रहा हूँ और तुझ जैसे बहुत को आते-जाते देखा है...."
"देखा होगा...वैसे भी जो इतने साल से फैल हो रहा है, वो देखने के सिवा कर भी क्या सकता है....मैने कह दिया ना कि सब साथ मिलकर मज़ा लूटेन्गे..."
"तू होता कौन है बे, ये सब डिसाइड करने वाला...बोसे ड्के..."
"देख लो...जो सही लगे वही करो.लेकिन यदि इस साल फेरवेल होगा तो सबका एक साथ होगा नही तो इस साल फेरवेल ही नही होगा और यदि तुम जैसे यूनिवर्सल चूतियो ने ये सब करना चाहा तो मैं तुम पाँचो को तुम्हारी ही पार्टी से निकाल कर मारूँगा और ऐसा घसीटुन्गा की अग्वाडा कौन सा है,पिछवाड़ा कौन सा है,पहचान नही पाओगे...चलता हूँ"वहाँ से चलते हुए मैने कहा..

बहुत से लोगो ने बहुत चाहा कि मैने जो सोचा है, वो ना हो...लेकिन फाइनली हुआ वही ,जो मैने चाहा और मेरी इस चाहत का हॉस्टिल के लौन्डो पर इतना असर पड़ा की उनकी खुशी का ठिकाना ना रहा...वैसे मैने ये सब हॉस्टिल के किसी भी एक बंदे से पुछ कर नही किया था,लेकिन फिर भी हॉस्टिल का एक भी बंदा इस मामले मे मेरे खिलाड़ नही गया...फिर चाहे वो महंत हो या कालिया या फिर उनके बाकलोल सपोर्टर्स...
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"अबे बोसे ड्के...आराधना ने हॉस्टिल आते वक़्त मेरा रास्ता रोक लिया था..."रूम के अंदर आते ही अरुण बोला"क्या चल रहा है तुम दोनो के बीच..."

"कुच्छ नही चल रहा बे...दर-असल मेरी आँखे अभी कुच्छ दिन पहले खुली तो मुझे अहसास हुआ कि मेरे बेंच-पार्ट्नर्स...मेरे क्लास पार्ट्नर्स...मेरे रूम पार्ट्नर्स...मेरे गे-पार्ट्नर्स यानी कि तेरे और सौरभ के पास कोई लड़की नही है और मैं ये सब कर रहा हूँ....मेरी आत्मा ने मुझे उस दिन बहुत धिक्कारा और कहा कि'आराधना को छोड़ दे ,वरना तेरा लंड कभी खड़ा नही होगा'....इसलिए मैने आराधना से ब्रेक अप कर लिया..."

"अपनी आत्मा की बात सुनकर तूने ब्रेक अप किया या फिर उसे चोद-चोद कर तेरा मन भर गया था,इसलिए..."

"आँड मत खा अब तू...मेरे कहने का मतलब है मूठ चाहे बाए हाथ से मारो या दाए हाथ से, निकलेगा तो मूठ ही ना...."
"देख भाई, मैं तो कबीर के घर से हूँ ,मुझे इन सब मोह-माया से कोई मतलब नही...लेकिन लड़की कुच्छ ज़्यादा ही परेशान थी..."

"दुनिया मे सब कबिर्दास नही होते ,कुच्छ सूरदास भी होते है...वो सब छोड़ और ये बता कि क्या बोल रही थी वो..."
"वो मुझे बोल रही थी कि मैं तुझे समझाऊ कि तू वापस उसके पास चला जाए और वो सब कुच्छ भूल जाएगी...."
"लवडा जाएगा मेरा...और यदि वो ,वो सब भूलेगी भी नही तो मेरा क्या उखाड़ लेगी....अब तू इस टॉपिक से रिलेटेड एक शब्द भी मत बोलना ,एक शब्द भी क्या एक अक्षर भी नही...."

"हे कबीरा...तेरे इस जगत मे हज़ारो पापी...एक निर्दोष मैं अकेला...मेरी रक्षा करना इन दुष्ट पापियों से..."बोलकर अरुण अपने खातिर पर कूड़ा और मोबाइल निकालकर फ़ेसबुक मे अपनी विदेशी गर्ल फ्रेंड से चाटिंग करने लगा.....
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08-18-2019, 02:47 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
"क्या दिन भर लगा रहता है बे उस चुदर्रि के साथ...गान्ड के जैसी तो शकल है उसकी और सर के बाल इतने बेकार कि यदि रियल मे छु लूँ तू मुझे मिर्गी मार जाए और लावा तू उससे बात क्या करता है, मैं तो किसी भी लड़की से तीन-चार मेस्सेज के बाद बात ही नही कर पाता..."

"चुप रह लवडा...इंग्लीश मे सेंटेन्स बनाने मे दिक्कत हो रही है..."

"पता नही लवडा क्या बात करते रहते हो तुम लोग...लवडा मुझे तो 'हाई'..'व्हेयर डू यू लिव' 'व्हाट आर यू डूयिंग' पुछने के बाद समझ ही नही आता कि आयेज क्या बात करूँ और फिर खम्खा ,उससे चूत की माँग कर देता हूँ,जिसके बाद वो मुझे ब्लॉक देती है....पता नही मेरा क्या होगा..."

"जो होगा ,बहुत ही...बहुत ही बुरा होगा....लवडा इश्क़ तुम फर्माओ और नाम हमारा खराब हो..."रूम मे गुस्से से तमतमाते हुए सौरभ घुसा और सीधे मेरे सामने आकर खड़ा हो गया"क्या चूतियापा मचा रखा है बे तूने...वो कल की लौंडी आराधना मुझे मेरे दोस्तो के सामने रोक कर कहती है कि मैने ,तुझे भड़काया है कि तू उसे छोड़ दे..."

"चल बे...ऐसा वो बोल ही नही सकती...उसमे इतनी हिम्मत ही कहाँ."

"बेटा,खिड़की से नीचे झाँक...हॉस्टिल के बाहर वाली रोड पर खड़ी थी,जब मैं अंदर आ रहा था तो...अब पता नही है या नही..."

"इसकी माँ की जय...इसे दौरा तो नही पड़ रहा...."आराधना को रोड से हॉस्टिल की तरफ आते देख मैं भौचक्का रह गया....क्यूंकी जहाँ तक मेरी याददाश्त जाती है,उसके हिसाब से इस हॉस्टिल मे 20-22 साल पहले सिर्फ़ एक ही लड़की आई थी और बुरी तरह चुद कर गयी थी....लेकिन अभी फिलहाल मैं इसलिए नही घबरा रहा था कि आराधना के साथ मुझे वही सब कुच्छ होने का डर था, जो 20-22 साल पहले उस लड़की के साथ हुआ था...बल्कि इसलिए क्यूंकी यदि आराधना बाइ चान्स हॉस्टिल मे घुस गयी तो बहुत बड़ा हंगामा खड़ा हो जाएगा....इसलिए मैने सौरभ से कहा...

"तू जा और उसे वापस भेज दे..."

"अपुन नही जाने वाला ,किसी और को पकड़..."

"अरुण ,तू जा..."

"चूस..."

"जा ना बे जल्दी...वरना वो अंदर घुस जाएगी..."

"चूस..."

"जल्दी जा...यदि तू अभी गया तो फिर मैं फेरवेल के दिन तुझे अपना दूँगा.....मतलब ब्लेज़र दूँगा..."

"घुस... लेकिन तू अब इतना बोल रहा है तो चला जाता हूँ..."बोलकर अरुण उठा और ब्लेज़र के बदले मेरा काम करने के लिए मान गया....

"उससे बोलेगा क्या..."

"नो आइडिया...तू बता क्या बोलने का है उसको..."

"तू....ह्म्म्मक...."सोचते हुए मैने कहा "तू उसे बोल देना कि हम दोनो गे है और एक-दूसरे के साथ ज़िंदगी भर साथ रहने का फ़ैसला कर चुके है...इसलिए अब वो हमारी गे-लाइफ मे इंटर्फियर ना करे....ये सही रहेगा...जा बोल दे,जल्दी जा...लवडे के बाल जाना ,यहाँ खड़ा क्यूँ है..."

"वाह बेटा...यदि ये गे वाली बात...जो मैं उसे अभी कहूँगा...वो उसने कॉलेज मे किसी के सामने बक दिया तो...."

"तो किसी और का नाम ले लेना...किसी का भी..."

"कालिया का नाम ले लूँ..."

"बहुत मज़ाक सूझ रहा है ,तुझे इस वक़्त.... "

"तो फिर तू ही बता क्या बोलू...."

"तू एक काम कर तू उसे जाकर बोल दे कि अरमान खुद से खुद की मार रहा है...मतलब वो सेल्फ़-गे है....बोसे ड्के, तुझसे होना-वोना कुच्छ नही फालतू मे मेरा टाइम खोटी कर रहा है....गान्ड मरा तू,सौरभ से ,इसी के लायक है तू और आज के बाद यदि तूने मेरा ब्लेज़र की तरफ आँख उठाकर भी देखा तो तेरे आँख मे मूठ मार दूँगा....मैं ही जाता हूँ और उसे खदेड़ कर आता हूँ..."

"तू तो दिल पे ले गया...मैं तो मज़ाक कर रहा था.तू ब्लेज़र निकाल के रख...मैं दो मिनिट मे उसका काम तमाम करके आता हूँ..."

पूरे कॉलेज की फेरवेल पार्टी एक साथ होने के कारण काई डिटॅनर्स और सिटी के लौन्डो ने इसका बहिस्कार कर दिया था...फेरवेल पार्टी का बहिस्कार करने वाले लौन्डो ने अपने करीबी दोस्तो को भी इस खेल से बाहर निकलवा दिया था...जिसके कारण बहुत सारे हाइलाइट लौन्डे,जिनके साथ हॉस्टिल वालो का पंगा हो सकता था...वो उस दिन के चमकती-दमकती शाम मे नही पहुँचे. उन चूतियो के ना आने का अफ़सोस बहुत लोगो को हुआ होगा, लेकिन सबसे ज़्यादा अफ़सोस जिसे हुआ वो मैं था...क्यूंकी उन सबको सबके सामने शब्दो से चोदने का एक बेहतरीन मौका मैने गँवा दिया था....

फर्स्ट एअर वालो की वेलकम और हम लोगो का फेरवेल एक ही दिन था,इसलिए कुच्छ बुद्धि-जीवियो ने टाइम मॅनेज करने के लिए अपना सारा तन-मन-धन इस पर झोक दिया और फाइनली जो शेडूल बना उसके अनुसार दोपहर 2 बजे से फ्रेशर्ज़ का प्रोग्राम और उसके बाद हमलोगो का...प्रिन्सिपल, सारे होड़ , प्रोफेस्सर्स डाइरेक्ट शाम को कुच्छ देर के लिए आने वाले थे, इसलिए दोपहर भर मैं जिसके साथ जो चाहे कर सकता था.

वैसे तो वेलकम मुझे और एश डार्लिंग दोनो को मिलकर करना था ,लेकिन उस दिन वो एक तो जिस क्लब मे फंक्षन था ,वहाँ आई नही,उपर से उसका मोबाइल ऑफ बता रहा था.कुच्छ लौन्डो ने कहा कि किसी दूसरी लड़की को मैं धर लूँ ,उन्होने तो कुच्छ के नाम भी सजेस्ट कर दिए थे,जिन्होने गोल्डन जुबिली के प्रोग्राम मे आंकरिंग की थी....

"तुझे क्या लगता है, मैं यहाँ रोला झाड़ने के लिए आंकरिंग कर रहा हूँ...लवडे, एश थी,इसलिए मैं आया और अब तू किसी भी ऐरी गैरी को उठाकर लाएगा और बोलेगा कि ले, शादी कर ले इसके साथ तो मैं कर लूँगा क्या...."

"लेकिन मैं तो शादी के लिए नही आंकरिंग के लिए बोल...."

"चुप...बिल्कुल चुप..."मिक अपने चेहरे पर फिट करते हुए मैं बोला"ले पहले फोटो खींच भाई का और यदि तूने फोटो डेलीट मारा, तो तुझे दुनिया से डेलीट कर दूँगा..."
"3 बजने वाले है यार...कब तक उसका इंतज़ार करेंगे...तू कहे तो सोना को बोलू.एक नंबर. की माल है..."फोटो खींच कर उस लड़के ने कहा...

"सोना हो या चाँदी हो...चाहे हीरा ही क्यूँ ना हो...."

"फिर क्या करे..."

"अकेले जाता हूँ मैं..."

"लेकिन..."

"टेन्षन मत ले...मैं सब संभाल लूँगा...बहुत एक्सपीरियेन्स है मुझे इन सबका..."स्टेज की सीढ़िया चढ़ते हुए मैने कहा....
"इसके पहले भी कभी मंच संचालन किया था क्या..."

"किया था ना,बहुत बार कर चुका हूँ, सपने मे..."

"बेस्ट ऑफ लक..."

"गान्ड मे डाल ले अपना लक..."

स्टेज मे जाते ही सामने मौज़ूद सभी लड़के-लड़कियाँ मेरी तरफ देखने लगे....वैसे मैने आज तक किसी को बताया नही,लेकिन मुझे उस दिन सुबह से ही घबराहट हो रही थी,इसलिए बिना किसी को बताए मैने दो पेग मार लिए थे,ताकि जब सबके सामने जाउ तो मेरी फट के हाथ मे ना आ जाए.

वेल,जब आंकर मैं रहूं तो 'मेरे भाइयो और बहनों....गुड आफ्टरनून फ्रेंड्स...थॅंक्स टू कमिंग हियर....एट्सेटरा. एट्सेटरा.' जैसी लाइन्स का इस्तेमाल तो मैं करने से रहा उपर से दारू चढ़ा लेने के कारण मेरी ज़ुबान थोड़ी सी स्लिप हो गयी और मेरे मुँह से पहली लाइन जो निकली वो ये थी....
"मुझे ,क्यूँ देख रहे हो बे...इधर-उधर देखो..बढ़िया महॉल है..."

इसपर यकीन करना थोड़ा मुश्किल है,लेकिन उस दिन यहिच हुआ ,. वैसे तो मुझे स्टेज पर आते वक़्त कयियो ने कयि बार मुझे स्टेज पर जाकर क्या बोलना है ये रटवाया था, लेकिन स्टेज पर पहुच कर मुझे मालूम चला कि बीसी स्क्रिप्ट तो स्टेज के पिछवाड़े मे छूट गयी,अब क्या जाए.....इस बीच सामने बैठी पब्लिक की उत्सुकता लगातार बढ़ती ही जा रही थी कि मैं इतना शांत क्यूँ हूँ,कुच्छ बोलता क्यूँ नही....वैसे उत्सुक तो मैं भी था कि बिना स्क्रिप्ट के मैं क्या बोलूँगा .

मैं कुच्छ मिनिट्स माइक को इधर-उधर करके सोचता रहा कि क्या बोलना है, वैसे मैं चाहता तो वापस जाकर स्क्रिप्ट ला सकता था...लेकिन नही, पब्लिक को ऐसे गान्ड दिखा कर जाना मतलब घोर बेज़्ज़ती...इसलिए मैने बोलना शुरूकिया.....
"जेंटल्मेन आंड जेंटलविमन....तुम लोग सोच रहे होगे कि मैं अब एक शालीन भरा, स्वच्छ भाषण प्रस्तुत करूँगा...जिसमे मैं तुम लोगो का आभार व्यक्त करूँगा कि आप लोग यहाँ आए, इसलिए धन्यवाद....यदि तुम सब ऐसा सोचते हो तो ,भूल जाओ, क्यूंकी मैं ऐसा कुच्छ भी नही बोलने वाला और मैं काहे तुम को लोगो थॅंक्स बोलू बे....एक तो फ्री का खाना खाओगे, सीटिया मारोगे, लंगर डॅन्स करके पूरे कार्यक्रम की ऐसी-तैसी करोगे...उपर से तुम सब ये अपेक्षा रखते हो कि मैं तुम लोगो का शुक्रिया अदा करू....लड़कियो का तो खैर मैं बहुत आदर करता हूँ इसलिए सबके सामने उन्हे कुच्छ नही बोलूँगा ,लेकिन लड़को...तुम लोग अपना कान खोल कर सुन लो और यदि ज़रूरत हो तो कुच्छ और भी खोल कर सुन सकते हो...लेकिन ध्यान से सुनना....तुम मे से बहुत ऐसे होंगे, जो खुद को बहुत बड़ा कूल ड्यूड, फन्नी समझते है ,जो प्रोग्राम के बीच-बीच मे मुँह मे दोनो हाथ रखकर चिल्लाते है, कॉमेंट्स पास करते है, उन लोगो ने यदि ऐसा कुच्छ भी किया...तो बेटा, मुझे जहाँ दिखोगे ,वही पर मारूँगा और लंगर डॅन्स तो बिल्कुल ही बॅन है...आइ हटे लंगर डॅन्स. ये आज के फंक्षन के टर्म्ज़ & कंडीशन्स है , यदि मंज़ूर हो तो आइ अग्री का बटन दबा कर जाय्न कर लो...वरना खिसक लो....नही तो मैं बाल पकड़ कर घसीटते-घसीटते ले जाउन्गा....."

बोलकर मैं रुका और देखा कि सब मुझे ऐसे देख रहे थे, जैसे मैने उनके चेहरे पर मूत दिया हूँ,मतलब वहाँ घोर चुप्पी छाइ हुई थी....

"लगता है, तुम लोगो ने दिल पे लिया...मैं तो ऐसे ही मज़ाक कर रहा था, दर-असल ये स्क्रिप्ट मे था....और मुझे कहा गया था कि मैं एक दम तेवर मे तुम लोग को धमकाऊ....तो कैसी लगी मेरी आक्टिंग"

मेरे ऐसा बोलते ही महफ़िल मे वापस रंगत लौट आई और सब हँसने-मुस्कुराने लगे......तभिच पीछे से एक लड़की एक हाथ मे स्क्रिप्ट और एक हाथ मे मिक लेकर मेरे पास आई.....

"इसे कही देखा है...कहाँ देखा है, याद नही आ रहा..."माइक को ऑफ किए बिना ही मैने कहा और सामने बैठी जनता को लगा कि मैं स्क्रिप्ट के अकॉरडिंग ही बोल रहा रहा हूँ, इसलिए वो इस बात पर भी हँस लिए....

"क्या कर रहे हो, अरमान..."मेरा मिक ऑफ करके ,वो लड़की बोली"लगता है सत्यानाश कर दोगे ,पूरे फंक्षन का..."
"तुझे कही देखा है..."

"बिल्ले..."
"ओह तेरी एश....आज तो माल लग रही है एक दम..."
"शट अप आंड कॉन्सेंट्रेट ऑन युवर वर्क"
"ओके बेबी...."
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एश के आने के बाद सब कुच्छ वैसा ही हुआ,जैसा कि स्क्रिप्ट मे लिखा था...मतलब की कुच्छ फर्स्ट एअर के लौन्डे-लौन्डियो ने स्टेज पर आकर अपना इंट्रो दिया और अपनी एक-एक खूबी का प्रदर्शन किया...एश के आने के बाद मैने कुच्छ भी अन्ट-शन्ट नही बोला यहाँ तक कि जो स्क्रिप्ट मे लिखा था, एश को देखने के चक्कर मे मैं वो भी बार-बार भूल जा रहा था और मैं जब भी अपनी लाइन्स बोलने की बजाय ,एश को देखने लगता तो वो कभी अपने नाख़ून मेरे हाथ मे गढ़ा देती तो कभी मेरी उंगली पकड़ कर मरोड़ देती....एक बार तो उसने सीधे एक मुक्का ही मार दिया.
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08-18-2019, 02:48 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
"माल है माल...पकड़ ले..."एक लड़की जब स्टेज की तरफ आ रही थी तो भीड़ मे से एक लड़के की आवाज़ आई और तब मुझे मालूम चला कि मैने जो बक्चोदि फर्स्ट एअर मे की थी वो सामने से देखने मे कैसी लगती है और मैं शॉक तब हुआ, जब किसी एक ने भी उसकी तरफ ध्यान नही दिया, इसलिए मैने सोचा कि जब सब झेल रहे है तो मुझे क्या...इसलिए मैं भी चुप रहा....लेकिन अब हर बार जब भी कोई लड़की स्टेज की तरफ बढ़ती तो मुझे उसका कॉमेंट सुनाई देता.....

"अपने आम थमा दे स्टेज वाले को..."एक बार वो लड़का फिर चिल्लाया और मेरा माथा अबकी बार घूम गया....

"ओये तू बाजू हट तो थोड़ा..."स्टेज पर अपना इंट्रो देनी आई लड़की को साइड करके मैं उस लड़के की तरफ इशारा किया"खड़े हो बे..."

"क्या हुआ....लड़की को देखते ही उड़ने लगे क्या...

"ये है कौन बे...."उस लौन्डे को मुझसे इस तरह बात करते देख मैं चकराया"फर्स्ट एअर का लगता नही और फाइनल एअर का ये है नही...पक्का बीच का होगा...."

"बेटा, सम्भल जाओ.. जितने तुझे नाम याद नही होंगे ना उससे ज़्यादा मुझे क़ुतोएस याद है...ऐसा लगा-लगा कर तुझ पर चिप्काउन्गा कि कल से आवाज़ नही निकलेगी...बाइ दा वे, तू है कौन..."

"मैं....मैं कलेक्टर का बेटा हूँ..."

"कलेक्टर....टिकेट कलेक्टर ? या फिर कबाड़ी कलेक्टर."

उस लौन्डे के कलेक्टर बोलते ही मैं समझ गया था कि वो किस कलेक्टर की बात कर रहा है, लेकिन उसको उसी की लॅंग्वेज मे जवाब देते हुए मैने कहा

"मैं तुझसे पुछा कि तू कौन है...ना कि तेरा बाप कौन है."
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मेरे ऐसा कहने के साथ ही कुच्छ देर पहले तक हँसी-खुशी वाला महॉल अब सन्नाटे मे समाने लगा....मेरा क्या था, मैं तो स्टेज मे खड़ा था लेकिन दिक्कत उस लड़के को हुई, जब सब उसकी तरफ देखने लगे.....एश ने मेरी उंगली मरोड़ कर मुझे इनडाइरेक्ट्ली समझाया कि मैं रुक जाउ...लेकिन पाला अब खिच चुका था, इसलिए वापस आने का तो सवाल ही पैदा नही होता और वैसे भी वो बीसी कुच्छ ज़्यादा ही हवा मे उड़ रहा था,जो कि मुझे बिल्कुल भी पसंद नही था और वैसे भी जब मैं सामने रहूं तो सामने वाली की पसंद - नापसंद कोई मायने नही रखती...उसे वही स्वीकारना पड़ता है, जो मुझे पसंद हो.....
"वॉल्टार का एक सिद्धांत है' ये हो सकता है कि मैं तुम्हारी बात से असहमत रहूं, लेकिन तुम्हे अपनी बात कहने का अवसर मिले...उस अवसर के लिए मैं अपनी गर्दन कटा सकता हूँ'....इसलिए तू अभी के लिए मुझे वॉल्टार मान ले और मैं तुझे स्टेज पर आकर सबके सामने अपनी बात रखने का तुझे सॉलिड अवसर देता हूँ....चल आजा..."

मेरे स्टेज पर आने के इन्विटेशन से वो लड़का सकपका गया और मुझे आँखे दिखाते हुए वापस अपनी जगह पर बैठ गया....
"क्यूँ ,फट गयी क्या....अबकी बार यही छोड़ दे रहा हूँ लेकिन अब तू शांत नही हुआ तो नेक्स्ट टाइम बाहर तक छोड़ कर आउन्गा..."

प्रोग्राम फिर से शुरू हुआ और वो लड़का कुच्छ देर तक शांत रहा...लेकिन फिर पता नही उसकी ,उसके आस-पास बैठे लड़को से क्या बात हुई...जो वो फिर से भौकने लगा....एश ने मुझे इशारो से कहा कि मैं उसे इग्नोर करू....लेकिन मुझसे ये ज़्यादा देर तक नही हुआ और मैने फिर से उसे खड़ा किया...लेकिन अबकी बार नज़ारा पहली बार से कुच्छ अलग था, क्यूंकी इस बार उस लड़के के साथ उसके 4-5 दोस्त भी खड़े हो गये थे....

"देखो...मैने तुम्हारा नाम बहुत सुना है, लेकिन मैं ना तो तुम्हारी इज़्ज़त करता हूँ और ना ही तुमसे डरता हूँ...वैसे भी डरना किस बात का...जो कभी खुद अकेले ना आकर अपनी पूरी पल्टन को लेकर आता है....अब कुच्छ बोल, यदि दम है तो...."

पहले तो मेरा दिल की किया कि लवडे के मुँह मे लवडा दे दूं...लेकिन फिर ख़याल आया कि मैं अभी स्टेज पर आंकरिंग कर रहा हूँ और पब्लिक भी मेरी साइड है...इसलिए गंदे शब्दो का इस्तेमाल तो बिल्कुल भी नही......

"तुझे मैने पहले भी कहा था कि मुझसे तू नही जीत सकता...क्यूंकी जितने तुझे नाम याद नही होंगे उससे ज़्यादा मुझे कोट्स याद है और तूने अभी क्या कहा कि तू ना तो मेरी इज़्ज़त नही करता है और ना ही मुझसे डरता है...तो सुन बे चुन्निलाल, मेरी पॉप्युलॅरिटी ,तेरी इज़्ज़त की मोहताज़ नही है और अब जो मैं तेरे साथ करने वाला हूँ, उससे मेरा डर अपने आप तेरे अंदर पैदा हो जाएगा....खड़े हो जाओ बे..."

आँखो से इशारा करते हुए मैने अरुण को कुच्छ कहा, जिसके बाद भक-भका के लगभग वहाँ मौज़ूद लड़को मे से एक तिहाई लड़के खड़े हो गये.....

"इतने लड़को के साथ तो कोई भी वहाँ दूर स्टेज मे रहकर ऐसे डींगे मार सकता है....इससे मेरे अंदर डर कैसे पैदा होगा..."

"वॉल्टार का मैने तुझे एक सिद्धांत तो सुना दिया लेकिन मार खाने से पहले वॉल्टार का दूसरा सिद्धांत भी सुनता जा और वो ये है कि' हम सभी ने अपनी कामयाबी की कीमत चुकाई है'....मायने ये नही रखता कि तुम कैसे करते हो, मायने ये रखता है कि तुम क्या करते हो...निकालो सालो को यहाँ से और दो-दो झापड़ मारकर घर वापस भेज दो और इनके चेहरे पर एक निशान ज़रूर देना, कॉम्प्लेमेंट्री के तौर पर....."
.
कंट्री क्लब मे इतना बड़ा हंगामा खड़ा होगा, ये किसी ने नही सोचा था और ना ही मैने....क्यूंकी जितने हंगामा खड़ा करने वाले लड़के थे, उन्होने तो इस फंक्षन का बहिस्कार कर दिया था....ये कलेक्टर का लौंडा इस कहानी मे नया ट्विस्ट था...फिलहाल तो मैने उस ट्विस्ट का ट्विस्टी बनाया और खा गया, लेकिन इसकी डकार मुझपर बहुत भारी पड़ने वाली थी और पड़ी भी.....

उन चारो-पाँचो को बाहर खदेड़ कर मेरे लौन्डे वापस अपनी जगह पर बैठ गये, तब मैं आगे बोला....
"मैं कुच्छ बोलता नही ,इसका मतलब ये नही कि मैं कुच्छ जानता नही.मैं इसलिए कुच्छ नही बोलता क्यूंकी मैं कुच्छ बोलने की अपेक्षा कुच्छ करने मे यकीन रखता हूँ...इसलिए यदि उस जैसा कोई और है तो सविनय नम्र निवेदन है कि यहाँ से जाने की महान कृपा करे !
आपका आग्यकारी सहपाठी
-अरमान "
.
फ्रेशर्ज़ के इंट्रोडक्षन चॅप्टर के क्लोज़ होने के बाद मुझे और एश को कुच्छ समय के लिए आराम मिला और स्टेज दूसरो से संभाला...

"आज कॉलेज के सारे स्टूडेंट्स छत्रपाल सर को बुरा-भला कह रहे होंगे कि उन्होने तुम्हे आंकरिंग क्यूँ करने के लिए कहा..."स्टेज से बाहर आकर जब मैं पानी पी रहा था तो एश ने कहा...

"बुरा-भला.... बल्कि सब तो छत्रपाल को सौ साल जीने की दुआ दे रहे होंगे कि उसने ज़िंदगी मे पहली बार कोई फाडू काम किया....अभी तो ये शुरुआत है, आगे देखना रात को मेरी पर्फॉर्मेन्स के बाद ये सब मेरे फॅन ना हो जाए तो कहना और फंक्षन ख़तम होते तक ये सारे मेरे एक ऑटोग्राफ के लिए आपस मे मारा-मारी करेंगे"बोलकर मैं पानी वाले बॉटल का मुँह रोटेट करते हुए अपने मुँह के सामने लाया और पूरी बॉटल गटक गया......

"जानेमन, चेक करके बता तो...मेरे मुँह से दारू की बू आ रही है क्या...."अपना मुँह फाड़ते हुए मैने पुछा....
"कुच्छ तो शरम करो...तुम मुझसे ऐसी बात कैसे कर सकते हो..."

"क्यूंकी मैं ऐसी ही बात करता हूँ..."

"मुझे आज नही आना चाहिए था, पूरा मन उतार गया यहाँ आकर..."एश मायूस होते हुए बोली और अपना सर पकड़कर एक चेयर पर बैठ गयी....

"चल फिर तुझे घर छोड़ कर आता हूँ..."मैने एश का हाथ पकड़ा और उसे खड़ा करते हुए बोला...

"हाथ छोड़ो मेरा....ज़रा सी भी अकल नही है क्या, मैं तो ऐसे ही मज़ाक मे कह रही थी..."

"तो मैं कौन सा सीरीयस था "

"फाइन....अब ना तो तुम मुझसे बात करना और ना ही मैं तुमसे बात करूँगी....ओके..."मुझे आँखे दिखाते हुए एश खड़ी हुई और वहाँ से जाने लगी...
"ओके....काहे का ओके, अरे रुक...हुआ क्या, ये तो बता जा...."लेकिन एश नही रुकी और स्टेज के पिछवाड़े से स्टेज के अग्वाडे मे बैठे अपने फ्रेंड्स के साथ खो गयी और मैं स्टेज के पिछवाड़े मे खड़ा होकर यही सोचता रहा कि 'अब,मैने क्या किया '
.
"हट बीसी, पूरा मूड खराब हो गया...अब जाकर अरुण के साथ दारू पीता हूँ. लेकिन लवडा वो दिख नही रहा कही....ज़रूर किसी लड़की को सोचकर किसी कोने मे मूठ मार रहा होगा... "

ये सोचकर एश की तरह मैं भी स्टेज के पिछवाड़े से अग्वाडे मे आया और लड़को के बीच नज़र मारने लगा कि अरुण-सौरभ कहाँ बैठे है....लेकिन वो दोनो कही नही दिखे. मैने एक बार फिर सारे लौन्डो को स्कॅन किया तब मुझे, सुलभ जूनियर्स के बीच ज्ञान बताता हुआ मिल गया.....

"होशियारी बाद मे छोड़ना पहले ये बता की आलन्ड कहाँ है..."
"आलन्ड...कौन आलन्ड बे..."
"तेरा गे पार्ट्नर...अरुण."
"अरुण...वो तो सौरभ के साथ कही गया है..."
"बोसे ड्के ,वो तो मुझे भी मालूम है कि अरुण, सौरभ के साथ कहीं गया है....लेकिन कहाँ गया है, ये बता..."
"मुझे क्या मालूम लवडा...कॉल करके देख..."
"तू बेटा किसी काम का नही है...ज़िंदा क्यूँ है बे तू, कही जाकर खुद्खुशि क्यूँ नही कर लेता..."
सुलभ पर चौके-छक्के जमाकर मैं कंट्री क्लब मे जहाँ प्रोग्राम हो रहा था, वहाँ से बाहर निकला और अरुण को कॉल किया....लेकिन उसने कॉल रिसीव नही किया ,मैने फिर सौरभ को कॉल किया और अरुण की तरह सौरभ ने भी कॉल रिसीव नही किया....

"ये लवडे...कही भगवान को तो प्यारे नही हो गये...दोनो कॉल नही उठा रहे मतलब लवडे साथ मे ही है...लेकिन है कहाँ...कंट्री क्लब मे होते तो यही होते...ज़रूर कहीं दारू पी रहे होंगे..."सोचते हुए मैं सीसी के बाहर आया और दोनो को देखने लगा.....
वो दोनो मुझे सीसी के बाहर एक लड़के को मारते हुए दिखे...शुरू मे देखने से लगा कि वो उनका प्यार है लेकिन जब उन दोनो ने उसे ज़मीन पर धकेल कर पेलना शुरू किया तब मुझे पहली बार अहसास हुआ कि ये उनका प्यार नही बल्कि प्यार से कुच्छ ज़्यादा है....इसलिए मैं दौड़ते-भागते हुए उनके पास पहुचा...

"छोड़ो बे इसको, क्यूँ पेल रहे हो इसे और ये है कौन.... "

अरुण को पीछे से पकड़ कर खींचते हुए मैने पुछा...
"ये ,लवडा...रोड के राइट साइड मे चल रहा था और जब मैने इससे जुर्माना माँगा तो इसने मुझे आँख दिखाई....छोड़ लवडा, मारने दे इसे..."

"मतलब तूने इसे इसलिए मार दिया ,क्यूंकी ये राइट साइड मे चल रहा था... "
"ह्म..."
"तुम लोगो को मेरा बिना दारू हजम नही होती...अच्छा हुआ, ज़्यादा हल्ला नही हुआ, वरना पास मे पोलीस स्टेशन है...भूल गये क्या,जैल मे बिताई वो रात...जब गान्ड जैसी शकल हो गयी थी और बेटा एस.पी. हर बार बचाने नही आने वाला...."सौरभ को भी उस लड़के से दूर करके ,जिसको वो दोनो मार रहे थे...मैने उसे वहाँ से विदा किया और लगा अरुण-सौरभ को बत्ती देने......
"ये कौन है बे,सौरभ...एक काम कर, पैर पकड़ इसका,ठोकते है इसको....इसने भी तो ट्रॅफिक रूल को तोड़ा है....उठा लवडे को..."

"अबे ओये, पागला गये हो क्या बे..."दूर भागते हुए मैने कहा
"सौरभ ये मुझे आँख दिखा रहा है...अटॅक..."
"गान्ड तोड़ दूँगा,तुम दोनो की....यदि मुझे छुआ भी तो...."
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वैसे दारू पीने के बाद मेरी हालत भी कुच्छ ऐसी ही रहती थी, जैसी कि उन दोनो की उस वक़्त थी और तब मुझे रियलाइज़ हुआ कि दारू पीने के बाद आदमी शेर नही बल्कि कुत्ता हो जाता है, जो हर किसी पर भौंकता है और हर किसी को काट-ता है....वैसे तो मेरे पास उन दोनो को सुनने के लिए रेडीमेड स्पीच तैयार थी, लेकिन ना तो वो वक़्त सही था और ना ही वो दोनो....
सालो का क्या भरोसा....मुझे ही पेल देते.इसलिए मैने फिलहाल वहाँ से खिसकने मे ही अपनी भलाई समझी और वापस स्टेज के पिछवाड़े मे आकर चुप-चाप बैठ गया.....
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"साला ,दारू पीकर मैं भी ऐसी हरकत करता होऊँगा...कितना चूतिया लगता है ये सब.अब समझा कि कॉलेज की लड़किया क्यूँ मुझसे दूर भागती है....वरना मुझ जैसा हॅंडसम लौंडा एक सौ एक लड़किया पटा चुका होता...लेकिन बेटा नही ,मुझे तो लड़कियो से ज़्यादा दारू से प्यार है और बोलो 'आइ लव दारू मोर दॅन गर्ल्स'...."अकेले मे खुद पर चिल्लाते हुए मैं बोला"बोला तो बोला, लेकिन आज मुझे आत्म-ज्ञान की प्राप्ति हुई है...अमिताभ भाऊ सही कहते है कि दारू पीने से लिवर खराब होता है, दारू नही पीना चाहिए...लेकिन बेटा ऐसा है तो फिर उसका क्या जो तू बकता रहता है कि ' आइ लव दारू मोर दॅन एनितिंग'....अब यदि अपनी बात से पलटा तो बेटा घोर बेज़्ज़ती....."

"ये तो बड़ी क्रिटिकल सिचुयेशन हो गयी यार....अब या तो अपनी बात से पलटो या फिर पहले की तरह दारू पियो..."

"किससे बात कर रहे हो..."मेरे और मेरी अंतर-आत्मा के बीच मे दखलंदाज़ी करते हुए एश ना जाने कहा से टपक पड़ी और सिर्फ़ वो टपकी नही बल्कि मेरे सामने भी बैठ गयी....जिसके कारण कुच्छ देर पहले अपनी अंतर-आत्मा से जो वार्तालाप मैं चिल्ला-चिल्लाकर...कर रहा था ,अब बिना कुच्छ बोले,अपने अंदर कर रहा था....
उस वक़्त मैं जंग अपने आप से कर रहा था,लेकिन मुझसे ज़्यादा असर एश पर हो रहा था....
"तुम मुझे इग्नोर कर रहे हो ,ना..."
"ह्म..."
"ये सही नही है..."
"रुक जा दो मिनिट....मैं अपने ज़मीर से बात कर रहा हूँ, दरअसल मैं अपने सोए हुए ज़मीर को जगा रहा था....इसलिए कुच्छ देर के लिए मुझे अकेला छोड़ दो..."

"ग्रेट , नाउ यू फाउंड आ वे तो......."
"स्टॉप...."एश का मुँह बंद करते हुए मैने एक उंगली उसकी तरफ की और कुच्छ बोलना चाहा...लेकिन वो शब्द मेरे मुँह से निकल ही नही रहे थे....कुच्छ देर तक ऐसा ही चला ,यानी कि मेरा मुँह खुलता और बंद हो जाता और फिर आख़िरकार मैने वो बोल ही दिया ,जो मैं बोलना चाहता था.....

"डॉन'ट लव दारू मोर दॅन एनितिंग....लीव दारू, लिव लाइफ.....यॅ...लीव दारू, लिव लाइफ..आइ गॉट इट...आइ गॉट इट....लीव दारू, लिव लाइफ....लीव दारू...लिव लाइफ...."यही मैं बहुत देर तक बोलता रहा और तब तक बोलता रहा, जब तक कि एश ने मेरा मुँह बंद नही किया....

"दिमाग़ तो सही जगह पर है...."
"लीव दारू...लिव लाइफ, इट विल बी माइ न्यू सिग्नेचर...लीव दारू...लिव लाइफ. और तू भी बहुत दारू पीती है, मत पिया कर इतना...."

"हे भगवान...."फाइनली अपना माथा पकड़ कर एश चुप-चाप बैठ गयी.
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"ओये..सुन...सुन ना, सुनती क्यूँ नही...सो गयी क्या..."एश को पकड़ कर हिलाते हुए मैने कहा....
"अरमान, यू आर इरिटेटिंग मी..."
"यही तो प्यार है पगली..."
"प्यार...हुहम, क्या तुम्हे प्यार की डेफिनेशन भी मालूम है..."
"मालूम है ना...एक नही चार-चार डेफिनेशन मालूम है....लव ईज़ आ स्ट्रॉंग फीलिंग ऑफ अफेक्षन ऑर ए ग्रेट इंटेरेस्ट आंड प्लेषर इन सम्तिंग ऑर आ पर्सन ऑर थिंग दट वन लव्स.

ऑर लोवे ईज़ आ फील डीप अफेक्षन आंड...आंड सेक्षुयल लव फॉर सम्वन.... "
"सेक्षुयल...."
"उम्म..हां..."
"ओके..लेट'स हॅव सेक्स..."
"पागल है क्या...मैं बहुत शरीफ हूँ "
"लेट'स हॅव सेक्स ऑर शट युवर माउत..."तेज़ आवाज़ मे एश बोली...
"देख एश ,तू मुझसे ऐसे बात मत कर नही तो...."
"नही तो....नही तो क्या...."
"नही तो....देख मैं कह रहा हूँ..."
"नही तो क्या...."
"नही तो....देख मैं फिर से कह रहा हूँ कि मुझसे ऐसे बात मत कर...."
"लेट'स हॅव सेक्स ऑर शट युवर माउत..."
"तेरी तो..."काँपते हुए हाथ से मैने एश को पकड़ा और बिना एक पल गँवाए उसके होंठो को अपने होंठो मे जकड लिया....
हमारी वो किस ज़्यादा देर तक तो नही चली और जब हम दोनो अलग हुए तो मैं तुरंत खड़ा हुआ और वहाँ से भाग गया....क्यूंकी मुझे अंदाज़ा हो गया था कि यदि मैं वहाँ कुच्छ देर और रुकता तो मेरा सर किसी ना किसी चीज़ से ज़रूर फुट जाता....
Reply
08-18-2019, 02:57 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
वेलकम के बाद एक घंटे का समय हम लोगो का खाली बीता था और उसी मे ये सब कुच्छ हुआ...यानी कि अरुण-सौरभ का दारू पीकर ट्रॅफिक रूल्स तोड़ने वाले उस शक्स को मारना....लीव दारू, लिव लाइफ...का मेरे द्वारा इन्वेन्षन करना और फाइनली एश को किस करना......

एश को किस करने के बाद उससे,मैं सीधे शाम को आंकरिंग के वक़्त मिला....स्टेज पर तो वो अपने चेहरे पर मुस्कान धारण किए हुए आई लेकिन मुझे देखा तक नही और पूरे प्रोग्राम के दौरान उसने मुझसे बात नही की....अब एश का ऐसा बर्ताव देखकर लवडा मेरे अंदर वाला भी अरमान जाग गया और मैं उससे एक मीटर दूर खिसक कर खड़ा हो गया और फिर मैने भी पूरे प्रोग्राम के दौरान एश से बात नही की....

"बहुत बोल रही थी कि लेट'स हॅव सेक्स...लेट'स हॅव सेक्स...ले कर लिया सेक्स तो अब क्यूँ गाल फूला रही है....गूगल महाराज , कोई तो ऐसा फ़ॉर्मूला दो, जिसके कारण मैं इन लड़कियो को समझ सकूँ ...पता नही मेरा क्या होगा..."
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और फिर उस फेरवेल पार्टी का अंत हुआ.ये मेरे कॉलेज लाइफ की एकलौती ऐसी जश्न वाली रात थी, जिसमे अरुण और सौरभ मेरे साथ नही थे और अजीब बात ये कि मैने उन दोनो को मिस भी नही किया...ज़रा सा भी नही. वो दोनो मुझे उस रात आख़िरी बार कंट्री क्लब के बाहर ही दिखे थे और उसके बाद मैने उन्हे नही देखा....हालाँकि सुलभ जूनियर्स के बीच हमेशा मुझे दिखा,पता नही वो जूनियर्स को उस पूरे दिन क्या बताता रहा लेकिन अक्सर वो उनसे बात करते हुए मेरी तरफ उंगली दिखाता, जिससे मैं समझ जाता कि वो ज़रूर जूनियर्स को मेरे बहादुरी के किस्से सुना रहा होगा.....

रात को खाने के वक़्त भी मैने अरुण और सौरभ को मिस नही किया...क्यूंकी अक्सर बीच-बीच मे कोई क्लासमेट कोई जूनियर आता और मेरे साथ फोटो खिंचवाता....फिर हमारा क्लास का ग्रूप फोटो भी हुआ और उस फोटो को मैने अपने दस हज़ार के मोबाइल मे कॅप्चर भी किया....

मुझे मेरी क्लास की लड़किया बिल्कुल भी पसंद नही थी लेकिन उस दिन की उनकी फोटो ना जाने क्यूँ डेलीट करने का मेरा दिल नही किया.....

"अरमान भाई....एक फोटो मेरे साथ भी..."राजश्री पांडे ने मेरे खाने की प्लेट से रसगुल्ला उठा कर कहा"मुझे भी आंकरिंग सिख़ाओ ना, नेक्स्ट एअर मैं भी करूँगा...."

"ले खा ले पूरा..."अपने खाने की प्लेट राजश्री पांडे के हाथ मे थमाते हुए मैने कहा....
"ये क्या, अरमान भाई...खुद ही कहते हो कि दिल पे नही मुँह मे लो और खुद दिल पे ले रहे हो..."
"अबे, मैं लंड पे ले रहा हूँ...वो देख कुच्छ लौन्डे इधर आ रहे है और जैसा की कुच्छ देर से मैं देख रहा हूँ उसके अनुसार वो बीसी फोटो खिंचवाने के लिए आ रहे है...."
"तो इसीलिए आपने प्लेट मेरे हाथ मे रख दी..."
"अब लिख कर दूं क्या... जब तक मैं आ नही जाता ,बेटा यही पर रहियो वरना...."
"ओके अरमान भाई..."
"ये क्या अरमान भाई...अरमान भाई लगा रखा है बे...श्री अरमान भाई बोल..."
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पांडे जी को खाने की प्लेट धारकर मैं उससे थोड़ी दूर खड़ा हो गया और जैसा मैने सोचा था, वैसे ही वो लौन्डे मुझे पकड़ कर फोटो खिंचवाने के लिए ले गये....मन तो बहुत कर रहा था की ,सालो को बहुत गालियाँ बकुँ...लेकिन फिर सोचा कि जाते-जाते क्यूँ किसी के भीतर विरोधाभास अलंकार पैदा करके जाउ, इसलिए मैं उनके साथ चला गया....

"वहाँ क्या कर रहे थे, सर..."

"कुच्छ खास नही ,बस पढ़ाई कर रहा था....15 दिन बाद एग्ज़ॅम जो है...."

"जाते-जाते कुच्छ टिप्स या अड्वाइज़ देते जाओ ना सर...ताकि हम लौन्डो का कुच्छ भला हो..."एक जूनियर ने फोटो सेशन के बाद मुझसे पुछा...

उस लड़के के ऐसा बोलते ही वहाँ मौज़ूद बाकी लड़को ने भी हाउ-हाउ करना शुरू कर दिया.....
"टिप्स....ह्म्म....'सी' ईज़ दा मोस्ट अडल्ट/बॅड लेटर इन दा आल्फबेट...फॉर एग्ज़ॅंपल....चूत,चूतिया, चूतड़, चूस ,चूची ,चॅट ,चोदु,चुदाई एट्सेटरा. एट्सेटरा. "

"अरे हम इस तरह के टिप्स की बात नही कर रहे है...हमारा मतलब करियर..फ्यूचर से था...कुच्छ अड्वाइज़ दो ना..."

"ले...ये तो वही बात हो गयी कि प्यासे से कुए का पता पुछ्ना...चोदु साले..."उस जूनियर को देखकर मैने गला फाड़-फाड़ कर खुद से कहा ,लेकिन जब उसने पुछा था तो मुझे कुच्छ ना कुच्छ तो कहना ही था और मेरे ख़याल से मैने आगे जो कहा ,वो शायद किसी भी सवाल के लिए मेरा बेस्ट आन्सर था....

"तुमसे बेहतर तुम्हारे करियर...तुम्हारे फ्यूचर के बारे मे कोई नही सोच सकता.एक महान पुरुष थे ,उन्होने कहा था कि 'आप हमेशा वैसे ही बनते हो ,जैसा कि आप सोचते हो ना की जैसा दूसरे सोचते है.....बेस्ट ऑफ लक..सॉरी मेरा मतलब ऑल दा बेस्ट...चोद दो दुनिया"

वहाँ से निकलकर मैं वापस खाने की टेबल की तरफ भागा , जहाँ पांडे जी मेरी प्लेट हाथ मे लिए हुए अब तक खड़े थे....
उस वक़्त मुझे जैसे यकीन नही हो रहा था कि आज के बाद मैं कभी क्लास नही जाउन्गा, पता नही मुझे ये यकीन करने मे मुश्किल क्यूँ हो रही थी कि आज से मैं बोरिंग लेक्चर्स अटेंड नही कर पाउन्गा....वैसे इस बात से मुझे खुश होना चाहिए था क्यूंकी अब ना तो कोई असाइनमेंट पूरा करना था और ना ही कोई प्रेज़ेंटेशन देना था...अब ना तो सुबह 9 बजे उठने की ज़रूरत थी और ना ही रात को जल्दी सोने की मज़बूरी...इन सबसे मुझे बहुत खुश होना चाहिए था,क्यूंकी वास्तव मे ये वही चीज़े थी...जिनकी मुझे हमेशा से चाह थी...लेकिन मैं खुश नही था ,ज़रा सा भी नही...बल्कि इस वक़्त मेरे दिमाग़ के बॅकग्राउंड मे एक म्यूज़िक स्लोली-स्लोली बज रहा था और हाथ मे खाने की प्लेट लिए मैं स्लोली-स्लोली कयि लोगो के बारे मे सोच रहा था.... सबसे पहले मैने जिसके बारे मे सोचा वो मेरा दोस्त अरुण था....

अरुण : कॉलेज मे मुझसे मिलने वाला पहला इंसान...जो बिल्कुल मेरे टाइप का है. बस लौन्डे की याददाश्त थोड़ी कम है , जैसे कि इसे कुच्छ बोला जाए कि 'चोदु, ये बात किसी को मत बताना...तो अक्सर ये वो बात जोश-जोश मे दूसरो के सामने बक देता है...और फिर मुझसे गालियाँ ख़ाता है....'
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नवीन : शुरुआत मे ये मेरे बहुत करीब रहा ,लेकिन जब थर्ड सेमेस्टर से हम लोग ब्रांच वाइज़ डिवाइड हुए तो इसका कनेक्षन मुझसे थोड़ा टूट गया और जब एस.पी. के बंग्लॉ मे पांडे जी ने इसकी बाइक ठोकी तो उसके बाद मुझसे इसका कनेक्षन पूरी तरह ही टूट गया....ईवन हाई, हेलो की फॉरमॅलिटी तक हम दोनो अब नही निभाते.
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भूपेश(बी.एच.यू.) : इससे मेरी दोस्ती अरुण के कारण हुई थी और अरुण के कारण ही ये हमारे साथ एक साल तक रहा.वैसे ये लौंडा मुझे कुच्छ खास पसंद तो नही था, लेकिन अरुण और सौरभ इसके बारे मे बहुत बाते करते थे, जिसके कारण मुझे भी ऐसा दिखावा करना पड़ता था कि वो मेरा बहुत अच्छा दोस्त था. भू की मुझे सिर्फ़ एक क्वालिटी पसंद थी और वो ये कि भू को हमेशा सारे खबर की जानकारी रहती थी ,फिर चाहे वो खबर कॉलेज की हो या फिर दुनिया की....
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विभा : कॉलेज मे मुझसे मिली पहली लड़की...दरअसल मैं जो बाद मे बना उसकी नीव इसने और इसके बाय्फ्रेंड-वरुण ने मिलकर रखी थी....बाद मे ये एक साल तक हमारे यहाँ टीचर रही और मुझे हमेशा अपने सब्जेक्ट मे अच्छा नंबर दिया...विभा को मैं दो कारण से कभी नही भूल सकता ,पहला'ए वॉक टू जंगल' और दूसरा इसके लास्ट वर्ड्स(फक यू) जो इसने जाते-जाते मुझसे कहे थे....
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दीपिका मॅम : इसके बारे मे क्या कहना...एक तरफ इसने मुझसे अपनी गान्ड मरवाई और दूसरी तरफ मेरी खुद भी मारी....कॉलेज मे अब तक की बेस्ट माल. आइ होप की जो मैने उसके साथ किया ,उसके बाद वो मुझे ज़िंदगी भर ना भूले और मेरे लंड को हमेशा याद रखे.
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वरुण : इस दुनिया मे मैं सबसे ज़्यादा जिन लोगो से नफ़रत करता हूँ, ये चूतिया उनमे से एक है...कॉलेज मे इसकी बादशाहत कयि सालो तक रही लेकिन जब सीडार भाई ने हॉस्टिल वालो को एक किया तो वरुण का पतन होना शुरू किया और आख़िर मे मैने इसकी कब्र बनाई और इसे गाढ दिया....अपने कॉलेज के आख़िरी दीनो मे वरुण की हालत एक कुत्ते की तरह थी और ये 8 साल तक इंजिनियरिंग करने के बावज़ूद इंजिनियरिंग की डिग्री हासिल नही कर पाया और कॉलेज वालो ने इसकी गान्ड पर लात मार इसे बाहर कर दिया....
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एश : एश....माइ लव. जो मेरी ज़िंदगी मे अपने बाय्फ्रेंड के साथ आई, लेकिन कॉलेज के आख़िरी दिनो मे मेरी गर्ल-फ्रेंड बनी....ये एक ऐसी लड़की थी ,जो मुझे बोर करे या मुझसे घिसी-पिटी बातें करे तो भी मुझे बहुत मज़ा आता था...वैसे इसने तो मुझे 8थ सेमेस्टर मे प्रपोज़ किया था लेकिन मैने तो इसे तीन-तीन लॅंग्वेज मे फर्स्ट सेमेस्टर मे ही आइ लव यू बोल दिया था...जिसका पता इसे अभी तक नही है...
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गौतम : एश के साथ मिला एक गिफ्ट...एक ऐसा गिफ्ट जो अच्छा होते हुए भी मुझे कभी पसंद नही आया. यदि ये एश का बाय्फ्रेंड नही होता और मेरे सामने ज़्यादा होशियारी नही छोड़ता तो ज़रूर मैं इसकी इज़्ज़त करता ,पर फिलहाल ऐसा कुच्छ भी नही था और हम दोनो एक-दूसरे की सूरत तक से नफ़रते करते थे, करते है और करते रहेंगे.....
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सीडार : सीडार के कॉलेज मे आने से पहले अक्सर ये होता था कि सिटी के लौन्डे हॉस्टिल मे घुसते और हॉस्टिल वालो को मार-पीट कर चले जाते थे...लेकिन फिर इस लौन्डे ने सभी हॉस्टिल वालो को एक साथ किया और सिटी वालो की वो हालत की....कि अब सिटी वाले या लोकल लौन्डे हॉस्टिल का नाम सुनकर ही काँप जाते है और पूरी दुनिया का एकमात्र ऐसा इंसान जिसकी बातें मैं माना करता था.फिलहाल तो वो इस दुनिया मे नही है, लेकिन उनकी यादें हमेशा मेरे साथ इस दुनिया मे रहेगी और कॉलेज मे मेरा नाम सालो तक चले या ना चले इनका नाम ज़रूर चलेगा, ऐसा मेरा मानना था.
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दिव्या : एश के साथ ये भी एक गिफ्ट के रूप मे मेरी ज़िंदगी मे आई थी...वैसे तो शुरू-शुरू मे ये मेरी फॅन थी लेकिन बाद मे जैसे-जैसे मेरा और गौतम का प्यार परवान चढ़ा,वैसे-वैसे इसका बिहेवियर बदलता गया...ये मुझे शुरुआत से ही पसंद नही थी ,लेकिन अरुण अक्सर बोला करता था कि इसका दूध बहुत मस्त है,पर अफ़सोस कि मैं कभी देख नही पाया
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सौरभ : वेल, इसकी एंट्री मेरी लाइफ मे एक साल बाद हुई लेकिन जोरदार हुई और इसी ने मुझे ये मानने पर मजबूर कर दिया कि बेस्ट फ्रेंड एक नही ,दो भी हो सकते है या फिर दो से भी ज़्यादा...
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सुलभ : मेरी तरह महा-घमंडी और पूरे कॉलेज मे इसे सिवाय इसकी गर्ल फ्रेंड के कोई दूसरी लड़की पसंद नही थी....कभी-कभी ये आँड खा जाता है लेकिन यदि दोस्तो को मदद की ज़रूरत हो तो कभी अपने हाथ खड़े नही करता...फिर चाहे वो मदद का समय एग्ज़ॅम के एक रात पहले किसी को पूरा टॉपिक पढ़ने का क्यूँ ना हो....
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मेघा : सुलभ की गर्ल फ्रेंड और कॉलेज का एकमात्र ऐसा कपल जिसके बारे मे मैने कभी उल्टी बात नही की...
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राजश्री पांडे : पांडे जी से मेरी पहचान ,सीडार भाई के कारण हुई थी....दिल का सॉफ और मेरा सबसे बड़ा चेला...हमारे कॉलेज मे गुटखे का ब्रांड अंबासडर.
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आंजेलीना : इसकी एंट्री मेरी लाइफ मे किसी तूफान की तरह हुई थी और यदि ये मेरे कॉलेज मे पढ़ती तो मैं यकीन के साथ कह सकता हूँ कि मुझे इससे प्यार हो जाता...मैं आंजेलीना के साथ मुश्किल से तीन दिन रहा था, पर वो तीन दिन मेरी लाइफ के सबसे यादगार तीन दिनो मे से थे...कुल-मिलकर मैं कहूँ तो यदि मुझे ये अब मिल जाए तो मैं एश को छोड़ कर इससे डाइरेक्ट शादी कर लूँ...आइ रियली लाइक हर
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छत्रपाल : छत्रपाल यानी की छत्रु...ये मुझे सिर्फ़ इसलिए नही पसंद था क्यूंकी ये भी मेरी तरह फिलॉसोफी झाड़ता था और मौके बेमौके बिना माँगे मुझे सलाह दिया करता था...वो तो टीचर होने के कारण मैने लिहाज किया ,वरना इसको अपने शब्दो से ऐसा चोदता कि मेरे पैर पकड़ कर मुझसे माँफी माँगते हुए कहता"गुरु जी माफी दे दो, हमसे ग़लती होई गवा..."
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आराधना : मेरी ज़िंदगी की पहली गर्लफ्रेंड...जो कि ठीक एक नॉर्मल लड़की की तरह थी...दूसरी लड़किया जहाँ मेरे पास तक नही भटकती थी वही ये मेरे साथ तांडव करने मे लगी रहती थी....आराधना खुद को बहुत फन्नी समझती थी और अक्सर फ़ेसबुक, मागज़िने ,नाना-नानी की कहानिया किताब के ऐसे सड़े हुए जोक्स मारती थी, जिससे बेटर जोक तो मैं तब मारता था जब मैं केजी-1 मे था....मैने इसका दिल तोड़ा लेकिन मुझे कभी बुरा नही लगा और ना ही मुझे ऐसा करते वक़्त मुझे आराधना से कोई सिंपती थी...बस दिल किया और मैने उसका दिल तोड़ दिया....
Reply
08-18-2019, 02:57 PM,
RE: Desi Sex Kahani दिल दोस्ती और दारू
उस दिन फेरवेल मे दिमाग़ के बॅकग्राउंड मे बज रहे म्यूज़िक के दौरान मुझे अपने बारे मे एक और बात पता चली ,जो ये कि यदि मेरे दोस्त ख़ासकर के अरुण और सौरभ मेरे साथ ना हो तो मैं भी एक नॉर्मल लड़के की तरह एमोशनल हो सकता हूँ...क्यूंकी एसा मुझसे दूर भाग रही थी और मुझे मेरे दोस्तो के बिना वहाँ पार्टी मे बिल्कुल भी मज़ा नही आ रहा था....मेरे साथ राजश्री पांडे ज़रूर था, लेकिन उसके होने का कुच्छ खास असर मुझपर नही हुआ....

"अबे मैं निकलता हूँ...मुझे नींद आ रही है...."बहाना मारते हुए मैं बोला...

"लेकिन अरमान भाई...अभी तो लौन्डो की दारू पार्टी और लंगर डॅन्स बाकी है...इतनी जल्दी सोकर क्या करोगे और वैसे भी कल से कॉलेज थोड़े ही जाना है आपको...."

"अब कॉलेज नही जाना तो क्या मैं रात को सोना बंद कर दूं....तू साथ चलता है तो चल,मुझसे फालतू की बकवास मत कर...."

"आप जाओ, मैं आता हूँ थोड़ी देर मे..."
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पांडे जी से विदा लेकर मैं कंट्री क्लब से बाहर जाने लगा लेकिन उस वक़्त मुझे क्या मालूम था कि आराधना के रूप मे एक धमाका कंट्री क्लब से बाहर जाने वाले रास्ते मे मेरा इंतज़ार कर रहा था....आराधना अकेले वहाँ खड़ी थी.शुरू मे तो उसपर मेरी नज़र नही पड़ी...लेकिन जब नज़र पड़ी तब तक पीछे हटने का रास्ता ही नही बचा...इसलिए मज़बूर होकर मुझे आराधना के पास जाना पड़ा....

"हाई...हाउ आर यू...."

"अरमान सर...आइ लव यू...प्लीज़ मेरे साथ...."

"रुक...प्लीज़ ऐसी बातें मत कर....वरना खम्खा दो-चार बातें सुन लेगी मुझसे.एक बात बता...कॉलेज के इतने सारे लड़को को छोड़ कर तुझे मैं एक अकेला ही मिला क्या , जाना अपना रास्ता नाप क्यूँ मेरा मूड खराब कर रही है और वैसे भी अब मैं इस कॉलेज मे दो-चार दिनो का मेहमान हूँ तो उसके बाद तो ये सब होता ही ना, जो कुच्छ दिन पहले मैने कर दिया....ज़रा सोच मैं कितना अच्छा हूँ जो तुझे लटका कर नही रखा...मेरी तरफ से फ्री छूट है तुझे,किसी भी लड़के को पकड़ ले...."

"इसका मतलब आपकी पहले से ही प्लॅनिंग थी कि जब तक कॉलेज मे रहोगे मेरे मज़े लुटोगे और फिर चले जाओगे..."
"और नही तो क्या....तूने क्या सोचा मैं तुझसे शादी करूँगा...अपने दिमाग़ का इलाज़ करवा और लाइफ मे आगे बढ़.वैसे भी डार्विन चाचा का एक सिद्धांत है कि 'इस दुनिया मे वही जीने के लायक है, जो सिचुयेशन के अकॉरडिंग खुद को ढाल ले...वरना तुझे जैसी लड़की की दुनिया तरह-तरह से लेगी...बी आ मर्द.गुड बाइ "

"लेकिन...सर..."रोते हुए आराधना इतना ही बोली...

"सॉरी बेब्स...मैं एमोशनल प्रूफ हूँ.इसलिए तुम चाहे अपनी आँखो से आँसू बहाओ या फिर अपनी दोनो आँखे ही निकाल कर मेरे सामने रख दो.मुझे कोई फ़र्क नही पड़ने वाला और आइन्दा मेरे सामने मत आना, वरना मैं क्या कर सकता हूँ ,ये अपने दूर के भाई...कल्लू से पुच्छ लेना..."आराधना के आँसुओ ने तो फिर भी मुझपर कोई असर नही किया...लेकिन जब वो रोने लगी तो मेरी फटी और मैं वहाँ से भागा.....
.
आंकरिंग करने के दौरान घंटो खड़े होने के कारण मैं बहुत थक गया था ,इसलिए हॉस्टिल की तरफ आते हुए मैने सीधा प्लान बनाया था कि अभी जाकर मस्त सोना है और सुबह एश को कॉल करके दो-चार लंबे-चौड़े डाइलॉग देना है....

"आ गया लवडे...कितना सेल्फिश है बे, अकेले-अकेले दारू पी ली और हमे पुछा तक नही...देख कैसे गला सुख रहा है मेरा और सौरभ तो प्यास से तड़प्ते-तड़प्ते भगवान को प्यार हो गया...."मुझे देख अरुण बोला...

अरुण इस वक़्त अपने बेड पर ऐसे बैठा था ,जैसे बाबा रामदेव सुबह-सुबह योगा करते वक़्त बैठते है....मैं चुप-चाप अंदर आया तो अरुण उपर छत की तरफ देखते हुए बोला....

"हे उपरवाले...सौरभ को नरक मे ही भेजना,बहुत बदमाश लौंडा है....उसे गरम तेल की कढ़ाई मे डालकर तलना और पकोडे बनाकर सबको खिला देना....अरमान ,चल पालती मारकर बैठ जा,योगा करते है..."

मुझे मालूम था कि इस वक़्त बंदा दारू पीकर टॅन है ,इसलिए इसकी किसी भी बात का विरोध करना यहाँ तक कि इससे बात भी करना मतलब पूरी रात उल्लू की तरह जागना था.इसलिए मैं अबकी बार भी कुच्छ नही बोला और चुप-चाप अपने बिस्तर पर लेट गया... नींद तो मुझे गान्ड फाड़ लगी थी, लेकिन मच्छरो ने सोना हराम कर रखा था.

"अरमान लंड...मुझे वो लॉडी आराधना मिली थी....साली पागला गयी है, बोल रही थी की....याद नही क्या बोल रही थी.लेकिन इतना ज़रूर याद है कि कुच्छ ख़तरनाक बोल रही थी,जिसे सुनकर मेरी और सौरभ की गान्ड फट गयी थी...."

"अरे कुच्छ नही लवडा...ऐसिच एमोशनल ब्लॅकमेल कर रही है...अपने आपको बहुत तुर्रमखाँ समझती है.बोलती है कि लवडा शादी करो...जैसे दुनिया की बाकी लौंडिया मर गयी है..."

"कर ले शादी... कर ले...मस्त गान्ड है. "

"इतनी ही पसंद है तो तू ही घुस जा उसके गान्ड मे...मुझे क्यूँ बोल रहा है.बीसी ने जीना हराम करके रखा है.हर कही टपक पड़ती है...तू देखना यदि अगली बार मुझे कही दिखी ना तो...तो....मैं सीधे उसके मु मे लंड दूँगा."

"मैने तो पहले ही कहा था बेटा की मत जाओ उसके करीब...लेकिन तुझे ही झंडा फ़ाहराने का बड़ा शौक था..."नींद से जागते हुए सौरभ बोला....

"तू तो सो रहा था ना बे..."

"लाड मेरा सो रहा था...अरुण चूतियापा कर रहा था ,इसलिए सोने का नाटक किया....ये अलुंड बोल रहा था कि चल आज रात भर ना सोकर योगा करते है...."

"सौरभ तू कुच्छ भी बोल ,लेकिन ये अरमान लंड है बड़ा घमंडी...साला दूसरे की कोई परवाह नही.मैं क्या बोलता हूँ,साले का खून करके थोड़ा पुन्य कमाते है..."

"बात तो सही है...ज़िंदगी मे घमंड करना ठीक नही है"

"यदि तुम्हारी ज़िंदगी मे घमंड करने लायक कुच्छ भी नही तो फिर तुम्हारी ज़िंदगी ठीक नही..."मैने कहा...

"तुम लोडू, मरने के बाद नरक मे ही जाओगे और यदि नरक जाने से बचना चाहते हो तो बाबा अरुण के साथ योगा का अभ्यास करो.बाबा अरुण तुम्हारे सारे पापों को ,जो तुमने अब तक किए है...उन्हे माफ़ कर देंगे और तुम्हे अपनी शरण मे लेकर तुम्हारी रोज गान्ड मारेंगे...आओ बालक अरमान...बाबा अरुण के लंड को प्रणाम करो..."

"ज़्यादा बोलेगा ना तो मैं पंखे का तार निकाल दूँगा,फिर गर्मी मे करना योगा....और लवडा नरक मे जाने की धमकी किसे दे रहा...मैं तो नरक मे ही जाउन्गा, भले मुझे स्वर्ग ही ऑफर क्यूँ ना हो..."

पंखे के तार निकाल देने की मेरी धमकी से और गान्ड-फाड़ गर्मी मे मच्छरो के साथ रात बिताने के डर ने अरुण का तो मुँह बंद कर दिया...लेकिन दूसरी तरफ सौरभ का मुँह अब भी खुला था.
.
"तो तू स्वर्ग नही जाना चाहता..."

"एक शर्त पर..."

"एक शर्त पर....बोल तो ऐसे रहा है ,जैसे बहुत बड़ा महापुरुष हो.वैसे शर्त क्या है..."

"शर्त...शर्त ये है कि मैं स्वर्ग तभी जाउन्गा जब मुझे वहाँ का राजा बनाएँगे और चोदने के लिए हर दिन नयी माल देंगे...वरना मैं नरक की राह पकड़ लूँगा...."

"और नरक मे राक्षस जब तेरी लेंगे ,तब क्या करेगा..."

"लंड...कुच्छ नही उखाड़ पाएँगे मेरा...जब मुझे तेल की गरम कढ़ाई मे डालेंगे तब मैं उसमे तैरुन्गा और तैर-तैर कर...तैर-तैर कर सूनामी ला दूँगा.जब कोई आग मे पेल के तपि सरिया मेरी तरफ करेगा तो मैं उस सरिया को मुँह मे ले लूँगा और ठंडा करके स्टीम जेनरेट करूँगा और फिर उस स्टीम से टर्बाइन+जेनरेटर कनेक्ट करके एलेक्ट्रिकल एनर्जी पैदा करूँगा और सालो को एलेक्ट्रिसिटी का ऐसा झटका दूँगा कि गान्ड से मूत और लंड से से गू निकलेगा....."

"चुप कर रे लवडा....कान से ब्लड निकल जाएगा यदि और कुच्छ कहा था...भैया आप महान ,आपकी ज़ुबान महान...मैं चला सोने..."
.
नरक-स्वर्ग को लेकर मैने सौरभ की जो फाडी,उसके बाद वो सीधा सोकर ही रहा.
दूसरा दिन मेरे लिए बहुत सी सर्प्राइज़ लेकर आया.मैं उन दिनो सपने मे भी नही सोच सकता था कि कोई मुझपर हमला कर सकता है या मेरे खिलाफ कोई प्लॅनिंग कर सकता है....फेरवेल की रात की अगली सुबह मुझे बिल्कुल भी पसंद नही आ रही थी...दिल किया कि दारू पी लूँ,लेकिन कल रात के मेरे इन्वेन्षन 'लीव दारू...लिव लाइफ ' के कारण मैं रुक गया और सिगरेट लेने के लिए हॉस्टिल के एक लड़के के साथ दुकान की तरफ निकल पड़ा....

"अरमान भाई...चलो ना एक जगह से होकर आते है..5-10 मिनिट लगेंगे बस..."

"कहाँ...पहले बोला होता तो गाड़ी लेकर आते...."उस लौन्डे को सॉफ मना करते हुए मैने दुकानदार से कहा"लवडे ,खराब सिगरेट दी ना तो चोदुन्गा यही पर...एक दम फ्रेश माल देना..."

"अरे बस यहीं...एक दोस्त से मिलकर आते है...हॉस्टिल के पीछे ,पास मे जो कॉलोनी है ना...वहाँ रहता है.."

"वहाँ तो बिल्कुल नही जाउन्गा....उस मोहल्ले की लड़किया,साली बुरी नज़र से मुझे देखती है...उपर से 15-20 मिनिट का रास्ता है..."

" अरे चलो ना अरमान भाई...आप चलोगे तो थोड़ा रोला रहेगा.आपके रहते हुए वहाँ की लड़किया मेरी तरफ भी एक-दो बार देख लेंगी..."

"कैसा गे आदमी है बे,...जबर्जस्ति चलने के लिए फोर्स कर रहा है..."

"अरे चलो ना अरमान भाई...5 मिनिट तो लगेगा बस...कितना पैसा हुआ यार..."

उस लौन्डे ने तुरंत सिगरेट के पैसे दिए और मुझे अपनी साथ उस कॉलोनी की तरफ ले जाने लगा,जहाँ उसका दोस्त रहता था....

"पूरा आँड कहाँ गया तू ,सुबह-सुबह...ये 5 मिनिट का रास्ता है...10 मिनिट ऑलरेडी हो चुके है और लवडा अभी तो सिर्फ़ आधा रास्ता पार हुआ है..."

"एक शॉर्टकट से ले चलता हूँ...जल्दी पहुच जाएँगे..."बोलकर वो लौंडा झाड़ियो के बीच मे से घुस गया और उसके पीछे-पीछे मैं भी घुस गया....लेकिन जब बाहर निकले तो सामने कोई कॉलोनी नही बल्कि हमारा खूनी ग्राउंड था...जहाँ 20-25 लड़के अपना चेहरा स्कार्फ से ढके हुए खड़े थे....शुरू मे तो मुझे समझ नही आया ,लेकिन वहाँ क्या हो रहा है और क्या होने वाला है ,ये मैं तुरंत समझ गया....

"मदर्चोद..."हॉस्टिल के जिस लौन्डे ने मुझे यहाँ तक लाया था ,उसके मुँह मे ज़ोर से एक मुक्का मारते हुए मैने कहा....
मेरा मुक्का सीधे उसके होंठ पर पड़ा, जिससे उसका होंठ तो फटा ही साथ मे खून की बौछार उसके मुँह से निकलने लगी.....

"बीसी ,मुझे पेलने का प्लान बना रहे थे तो कुच्छ अच्छा प्लान बनाते...ये भी कोई प्लान है....लवडा इससे अच्छा प्लान तो मैं तब बना लेता था...जब मैं प्लान की स्पेलिंग तक नही जानता था....हुह. बीसी एक सूपरहीरो को ऐसे चूतिए प्लान से मारोगे...."

"एक काम करता हूँ,पूरी ताक़त लगाकर भागता हूँ और यदि 5 मिनिट भी भागता रहा तो हॉस्टिल पहुच जाउन्गा....लेकिन इससे तो मेरी इज़्ज़त पर ठप्पा लग जाएगा.यदि मैने ऐसा किया तो इन कुत्तो और मुझमे क्या अंतर रह जाएगा....लेकिन लवडा मार खाने मे कौनसी इज़्ज़त बढ़ती है, उसमे तो और भी नाम खराब होगा..."

ऐन वक़्त पर मेरा दिमाग़ अपने ऐन से डाइवर्ट हो गया था क्यूंकी जहाँ मुझे खुद को बचाने के आइडियास सोचने चाहिए थे वहाँ मैं सोच रहा था कि भागने मे ज़्यादा इज़्ज़त रहेगी या फिर दो-चार को मारकर मार खाने मे ज़्यादा इज़्ज़त रहेगी.साला अजीब सिचुयेशन थी वहाँ पर...एक तरफ वो मुझे किस-किस तरह मारना चाहिए ये सोच रहे थे वही दूसरी तरफ मैं भाग जाउ या यही खड़ा रहूं ये सोच रहा था......

"अभी एग्ज़ॅम को 15 दिन बाकी है...तब तक तो ठीक ही हो जाउन्गा...फिर इनमे से हर एक को ज़िंदा यही पर गाढ दूँगा...तो फाइनली फिक्स हुआ कि किसी एक का स्कार्फ अपुन को लड़ाई के वक़्त निकाल कर उसे पहचान लेना है और फिर उससे यहाँ मौज़ूद एक-एक की आइडेंटिटी लेकर इन सबकी गान्ड मारनी है...."

ये सब सोचकर मैने उन सभी स्कार्फ बँधे हुए लड़को से कहा"मारो ना बे, क्या देख रहे हो...जल्दी मारो ठीक होने मे भी तो टाइम लगेगा ना...वरना फिर मैं तुम लोगो को ज़िंदा कैसे गाढ़ुंगा और एक बात मुझे मारते वक़्त याद रखना कि जो मुझे जितना मारेगा उसे मैं उतना रिटर्न भी करूँगा और बेटा,जो हॉस्टिल से है...वो तो अपनी खैर मनाए क्यूंकी हॉस्टिल के लौन्डे उन्हे ज़िंदा जला देंगे...पता नही क्या होगा तुम लोगो का...वैसे यहाँ आते वक़्त मैने उन्हे खबर कर दी थी और मेरी मॅतमॅटिक्स कहती है कि वो बस 5 मिनिट मे यहाँ आ जाएँगे...."

"इसके पास मोबाइल नही है, चोदु बना रहा है हमे...आते वक़्त ही मैने सब चेक कर लिया था..."हॉस्टिल का जो लौंडा मुझे यहाँ तक लाया था,अपना होंठ सहलाते-सहलाते खड़ा हुआ.....

"अबे तो ज़रूरी है क्या कि मैं मोबाइल से ही उन्हे खबर दूं...शक्तिमान नही देखा क्या, जिसमे शक्तिमान...गीता विश्वास से आँख बंद करके बात करता था....लेट मी ट्राइ वन मोर टाइम...वो क्या है ना कि कल दारू नही पी तो सिग्नल पकड़ नही रहा"आँखे बंद करके मैने ऐसे ही हॉस्टिल वाले लौन्डो को बुलाया....

"अरे मारो ना इसको...क्यूँ खड़े हो ऐसे..."एक लड़का स्कार्फ उतार कर मुझसे बोला

"तू तो कलेक्टर का लौंडा है ना...तू इन सबमे कब शामिल हो गया.....साले धोखेबाज़ो,..."

"कोई धोखा नही है और तूने ही उस दिन सबके सामने कहा था ना कि'मायने ये नही रखता कि तुम कैसे करते हो...मायने ये रखता है कि तुम क्या करते हो'...इसलिए अब हमने कैसे किया इसपर कोई ध्यान नही देगा बल्कि हमने तुझे बुरी तरह से मारा इसपर सब....."

"कंप्लीट युवर सेंटेन्स प्लीज़...."कलेक्टर के लौन्डे की बोलती अचानक बीच मे बंद होते हुए देख मैं बोला....

"ये सब कहाँ से आ गये...."गान्ड फटी मे एक और ने अपना स्कार्फ नीचे किया और वो लड़का महंत था....

"सला...कैसे दिन आ गये है मेरे..अब कोई भी...वैसे इनकी अचानक फट क्यूँ गयी..."उन सबको हक्का-बक्का देखकर मैने खुद से कहा और जिस तरफ देखकर वो सब अपना मुँह फाडे खड़े थे ,मैने उस तरफ देखा....

"ओये बीसी हॉस्टिल के लड़को को कैसे खबर हुई...कहीं सच मे तो मेरे अंदर शक्तिमान वाली पॉवर नही आ गयी और जो मैने थोड़ी देर पहले आँख बंद करके अपना डर कम करने के लिए कहा था,वो इन सबने सुन लिया हो....."

वो नज़ारा देखने लायक था, जब हॉस्टिल के सारे लड़के झाड़ियो से कूद-कूद कर ग्राउंड की तरफ दौड़ रहे थे...कयि तो वहाँ से भाग निकले ,लेकिन ज़्यादा दूर तक नही भाग पाए...क्यूंकी जिस तरफ वो भागे थे,उधर से भी हॉस्टिल के लड़के आ रहे थे.....

"शाबाश...अब इन लवडो को बताता हूँ कि मारते कैसे है...."
.
"तुझे पेला तो नही ,इन कुत्तो ने..."उपर से नीचे तक मुझे देखकर अरुण ने पुछा और फिर तुरंत ही सामने खड़े महंत को पकड़ कर मारने लगा....

"साला ,इतना बुरा तो मुझे भी नही लगा....इसे क्यूँ लग रहा है खैर,पहले इनको पेलता हूँ...."महंत को अरुण से छुड़ाकर मैने कहा"मेरा गॉगल लाया है बे..."

"कैसा बक्चोद आदमी है बे...हमलोग की गान्ड फटी मे थी कि तू मार ना खा जाए और...."

"रहने दे...ऐसे बोरिंग सीन मत क्रियेट कर अब..."अरुण को बीच मे ही रोक कर मैने राजश्री पांडे से कहा"जा बे भागकर पानी लेकर आ..."

"पानी...लेकिन क्यूँ..."

"इनका गला काटने से पहले इन सबको पानी पिला देता हूँ...ताकि गला आसानी से कटे...जा भागकर ले आ..."

"लेकिन मैं ही क्यूँ,...किसी और को बोलो "

"तू जाएगा या नही..."

"जब गर्दन ही कटनी है तो पानी क्यूँ पिलाना...मूत पिलाएँगे एमसी को..."

"जा ना ,इनाम दूँगा..."

"तू कही मत जा बे...यही रह."पांडे जी के बढ़ते कदम रोकते हुए सौरभ ने मुझसे कहा"और तू थोड़ा सीरीयस हो जा...मैने पहले भी कहा था और अब भी कह रहा हूँ..."

"सीरीयस हो जाउ...लवडा एग्ज़ॅम चल रहे है क्या..."
.
मेरा मन था कि मैं पहले इंडिविजुयली सब पर डाइलॉग्स मारू ,लेकिन सौरभ के विरोध और गुस्से ने मुझे ऐसा नही करने दिया और फिर हॉस्टिल के सभी लड़के मिलकर उन सबको मारने लगे...सिवाय कलेक्टर के लड़के को छोड़ कर....महंत,यशवंत का तो मैने सोच लिया था कि वो दोनो वहाँ होंगे, लेकिन मैं हैरान तब हुआ जब वहाँ मैने कालिया, वरुण और नौशाद को देखा......

"इसको छोड़...मैं देखता हूँ इसे"कालिया के बाल पकड़ते हुए मैने ज़ोर से उसका सर घुमाया"क्यूँ बे इन्सेस्ट लवर....तू भी. इसको सबसे ज़्यादा मारना..."

और जब एक और स्कार्फ हटा और मुझे वरुण दिखा तो मैं और चौका....

"हट साले ,फेल्यूर से तो मैं बात ही नही करता...इसके मुँह मे डंडा डालकर ,गान्ड से निकाल दो..."

फिर मैं नौशाद की तरफ बढ़ा...

"तू भी...बीसी ,तुम सब ये बताओ...कब से प्लान बना रहे थे मुझे मारने का...मुँह मे शरम भी नही है.तुम सबके...छोड़ना मत किसी को.*** चोद दो इनकी..."

हॉस्टिल के लगभग पूरे लड़के वहाँ ग्राउंड मे पहुच चुके थे और जो पहले नही पहुँचे थे वो धीरे-धीरे इंस्टल्लमेंट के रूप मे वहाँ आ रहे थे.जीतने लौन्डे मिलकर उन 30 लड़को की पिटाई कर रहे थे,उससे ज़्यादा वहाँ खड़े होकर उस सबका मज़ा ले रहे थे.कुच्छ वीडियो बना रहे थे तो कुच्छ चिल्ला-चिल्ला कर बता रहे थे कि कैसे मारे...कोई कहता कि ये फाड़ दो,कोई कहता वो फाड़ दो...कोई कहता यहाँ लंड दो तो कोई कहता वहाँ लंड दो....कोई कहता इनके उपर मूत देते है तो कोई कहता नंगा करके इन सबको घर भेजेंगे...कुल-मिलकर जितने लोग वहाँ थे,उतने टाइप के आइडियास मिल रहे थे....
.
"कलेक्टर के लौन्डे का क्या करना है..."मेरे पास आकर अरुण ने पुछा...

"करना क्या है...उसे भी मार,लवडा कहीं का तोपचंद है क्या...बल्कि उसे सबसे ज़्यादा मार..."

"कोई लड़का उसपर हाथ नही उठा रहा...सबको डर है की कलेक्टर कहीं उसकी बजा ना दे..."

मैने बहुत सोचा...पेल के सोचा कि उस कलेक्टर के लड़के को मारा जाए या यूँ ही जाने दिया जाए...एक आम आदमी कहेगा कि छोड़ दो लेकिन मुझ जैसा एक महान आदमी कहेगा कि चोद दो....वैसे मेरा दिमाग़ कलेक्टर के लड़को को देखकर मुझे कह रहा था कि वो डेंजर ज़ोन है और मुझे वहाँ एंट्री नही करनी चाहिए लेकिन उसको मैं ऐसे नही जाने दे सकता था...

"ला हॉकी स्टिक दे मुझे...."अरुण से मैने कहा...

"पागल है क्या...जाने दे उसे..."

"अबे मैं मारने नही जा रहा ,मैं तो बस ऐसिच डाइलॉग-बाज़ी करने जा रहा है..."

"सच..."

"तेरी कसम..."

अरुण से हॉकी स्टिक लेकर मैं कलेक्टर के लड़के के पास गया.उसकी हालत इस वक़्त बहुत ही नाज़ुक होनी चाहिए थी...लेकिन बीसी शान से ऐसे खड़ा था,जैसे वो अरमान हो और हॉस्टिल के लड़के मेरे गॅंग को धो रहे हो.

"क्यूँ पे भोसड़ी के...गान्ड फट गयी ना..."

"मैने तुझसे पहले भी कहा है कि मैं तुझसे नही डरता और अब तो और भी नही डरूँगा ,जब मुझे मालूम हो कि इनमे से एक भी बंदा मुझे हाथ तक नही लगाएगा..."

"तुझसे ऐसा किसने कहा..."

"मुझे मालूम है...मैने अक्सर अपने दोस्तो को ऐसे खड़े रहकर मार खाते हुए देखा है, लेकिन आज तक किसी ने छुआ नही..."

"मेरे पैर छु..."

"इतना बड़ा फट्टू नही हूँ मैं..."

"ओके...फिर.मुझे मत कहना कि मैने तुझे क्यूँ........मारा."एक थप्पड़ मारते हुए मैं बोला और फिर हॉकी स्टिक से हेड टू फुट उसकी मसाज करने लगा...

अभी मेरा मन भी नही भरा था की अरुण और बाकी लड़को ने मुझे पकड़ लिया.

"लवडे...बोला था,उसे हाथ मत लगाना...कैसा झान्ट है बे...अब गान्ड मराना अपनी..."

"अब जब इसे मार दिया है तो,जो होना है वो तो होगा ही ना...तो क्यूँ ना थोड़ा और अच्छे से मार लूँ.ताकि बाद मे मुझे तसल्ली तो रहे कि मेरी तरफ से भी कोई कमी नही हुई थी"

मैने जो कहा था वो उन सबका खून जलाने के लिए काफ़ी था...लेकिन वो मैने सही ही कहा था.इसलिए जिन लड़को ने मुझे पकड़ा था,उन्होने छोड़ दिया और अरुण गालियाँ बकता हुआ,वहाँ से चला गया...

"मायने ये नही रखता कि तुम कैसे करते हो, मायने ये रखता है कि तुम क्या करते हो....ये तुझे याद था ना, तो फिर तुझे वो भी याद होगा जो मैने इसके बाद कहा था कि'हमने हर उस चीज़ की कीमत चुकाई है...जो हमे मिला है' तो तू जानना चाहेगा कि ये सब मुझे किस कीमत मे मिला....अब जो भी मैं तेरे साथ करूँगा,वो तुझे ज़िंदगी भर ये अहसास दिलाएगा कि अपने बाप के दम पर कभी नही उड़ना चाहिए...."उसका पैर पकड़ कर चारो तरफ घसीटते हुए मैने कहा...

कलेक्टर के लड़को को घसीटते वक़्त मेरा जब भी मन करता मैं उसे रुक कर मारने लगता और जब मेरा मन भरा तब मैने उसे वैसे छोड़ा और हाथ झाड़ते हुए सबको वहाँ से चलने के लिए कहा......

मुझे छोड़ कर सब आपस मे बात कर रहे थे कि मुझे, कलेक्टर के लड़के को नही मारना चाहिए था.तभी राजश्री पांडे पीछे से दौड़ता हुआ आया और मुझसे बोला...

"अरुण का फोन है..."

"तू इतना फटी मे क्यूँ है,मेरे द्वारा झूठी कसम खाने से मर गया क्या अरुण...."

"आराधना ने स्यूयिसाइड करने की कोशिश की है..."

"धत्त तेरी...ज़िंदा तो है ना..."

"ज़िंदा है...अभी आधे घंटे पहले की खबर है ,जिसकी खबर अरुण भाई को वॉर्डन ने अभी हॉस्टिल जाने पर दी."

"अच्छा हुआ ,ज़िंदा हैं...ये लवडा स्यूयिसाइड करना आजकल का फॅशन बन गया है...अब तो उससे कभी बात तक नही करूँगा...अरुण को बोल,वॉर्डन से पुच्छे कि वो किस हॉस्पिटल मे है और वॉर्डन से पुछने के बाद बाइक लेकर ग्राउंड की तरफ आए..."
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