RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
सेठ अपने चेहरे पर मक्कारी भरी हँसी लाकर, अपने आधे खड़े लंड को धोती के उपर से मसल्ते हुए मूह ही मूह में बुद्बुदाया…
कब तक बचेगी रंगीली, तेरी इस मदभरी कमसिन जवानी का स्वाद तो हम चख कर ही रहेंगे, भले ही इसके लिए हमें कुच्छ भी करना पड़े,
तुझे पाने के लिए ही तो हमने इतना बड़ा खेल खेला है, अब अगर तू ऐसे ही निकल गयी तो थू है मेरी जवानी पर ………
बात 70 के दसक की है, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक गाओं, जहाँ के सेठ धरम दास जो इस गाओं के ही नही आस-पास के तमाम गाँव में सबसे धनी व्यक्ति थे…
वैसे तो इनके पिता की छोड़ी हुई काफ़ी धन दौलत थी इनके पास फिर भी ये गाओं और आस पास के सभी वर्गों के लोगों को सूद पर धन देकर, उससे सूद इकट्ठा करके अपने धन में और दिनो-दिन बढ़ोत्तरी करते जा रहे थे.
ब्याज दर ब्याज, जो एक बार इनके लपेटे में आ गया, समझो कंगाल ही हो गया..
घर, ज़मीन गिरबी रख कर भी उसे छुटकारा नही मिला और आख़िरकार वो उसे गँवा देनी ही पड़ी…
इस तरह से ना जाने कितनी ही एकर ज़मीन सेठ धरमदास अपने नाम कर चुके थे.
धर्म दास की पत्नी पार्वती देवी, एक मध्यम रंग रूप की छोटे से कद की मोटी सी, बड़ी ही खुर्राट किस्म की औरत थी.
किसी तरह से इनके 3 बच्चे पैदा हो गये थे, जिनमें सबसे बड़ा बेटा कल्लू था.
उसके बाद दो लड़कियाँ पैदा हुई, क्रमशः कल्लू से 4 और 6 साल छोटी थी…
माँ का दुलारा कल्लू, पढ़ने लिखने में बस काम चलाऊ ही था, किसी तरह से पास हो जाता था… लेकिन लड़कियाँ काफ़ी तेज थीं.
सेठ का मन अपनी सेठानी से तो कब का ऊब चुका था, अब तो वो अपने पैसे के दम पर बाहर ही अपनी मलाई निकालते रहते थे…
कभी कभी तो किसी बेचारी ग़रीब दुखियारी औरत को ही, इनका सूद पटाने के चक्कर में इनके लंड के नीचे आना पड़ जाता था…
सूद तो खैर क्या पटना था, बदले में उसे आए दिन किस्त जमा करने आना ही पड़ता था…और अगर वो सेठ को ज़्यादा दिन तक नज़र नही आई, तो उनके मुस्टंडे जा धमकते उसके घर बसूली के बहाने…
अब थोड़ा सेठ धरमदास के व्यक्तित्व का भी जिकर हो जाए…
38 वर्स के सेठ धरम दास, गोरा लाल सुर्ख रंग, 5’8” की मध्यम हाइट, पेट थोड़ा सा बाहर को निकला हुआ, लेकिन इतना नही कि खराब दिखे…
हल्की-हल्की मूँछे रखते थे, हर समय एक फक्क सफेद धोती, के नीचे एक घुटने तक का पट्टे का घुटन्ना (अंडरवेर) ज़रूर पहनते थे..
उपर एक सफेद रंग की हाथ की सिली हुई फातूरी (वेस्ट) जिसमें पेट पर एक बड़ी सी जेब होती थी…
घर पर वो ज़्यादा तर इसी वेश-भूसा में पाए जाते थे, लेकिन कहीं बाहर जाना हो तो, उपर एक हल्के रंग का कुर्ता डाल लेते थे.
इतनी सारी खूबियों के बावजूद उनका सुबह-2 का नित्य करम था, कि नहा धोकर लक्ष्मी मैया की पूजा करके, माथे पर इनके सफेद चंदन का तिलक अवश्य पाया जाता था…
देखने भर से ही सेठ बड़े भजनानंदी दिखाई देते थे, लेकिन थे नंबरी लंपट बोले तो ठरकी...
जहाँ सुंदर नारी दिखी नही कि, इनकी लार टपकना शुरू हो जाती थी…
सेठ की तीन मंज़िला लंबी चौड़ी हवेली, गाओं के बीचो बीच गाओं की शोभा बढ़ाती थी…
मेन फाटक से बहुत सारा लंबा चौड़ा खुला मैदान, उसके बाद आगे बारादरी, जिसके बीचो-बीच से एक गॅलरी से होते हुए अंदर फिर एक बड़ा सा चौक, जिसके चारों तरफ बहुत सारे कमरे…
सेठ की गद्दी (बैठक) हवेली के बाहरी हिस्से में थी, एक बड़े से हॉल नुमा कमरे के बीचो-बीच, एक बड़े से तखत के उपर मोटे-मोटे गद्दे, जिसपर हर समय एक दूध जैसी सफेद चादर बिछि होती थी,
तीन तरफ मसंद लगे हुए, और तखत के आगे की तरफ एक 3-4 फीट लंबी, 1फीट उँची, डेस्क नुमा लकड़ी की पेटी, जिसके उपर उनके बही खाते रखे होते थे…!
अपनी बसूली की श्रंखला में ही एक दिन दूर के गाओं में इनकी नज़र रंगीली पर पड़ गयी…
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