RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
20-25 मिनिट तक चोदने के बाद शंकर को लगा, कि उसका वीर्य अब निकलने वाला है, सो हुंकार मारते हुए बोला – हहुउऊंम्म.. माआ..आहहा….मेरा निकल रहा है… क्या करूँ…?
पेलता रह बेटा.. निकलने दे…भर्दे अपनी माँ की चूत अपने बीज़ से… बनले अपनी माँ को अपनी रखैल…चोद बेटा…आअहह.. मे फिर से गायईयीई….रीए….
दो चार धक्कों के बाद दोनो ही पूरी शिद्दत के साथ झड़ने लगे.. शंकर लास्ट जोरदार धक्का लगा कर माँ की गान्ड से चिपक गया…!
रंगीली उसका भारी वजन झेल नही पाई और वो औंधे मुँह बिस्तर पर गिर पड़ी, शंकर उसकी पीठ पर पसर कर अपनी साँसें इकट्ठी करने लगा…!
10 मिनिट बाद दोनो अगल बगल में लेटे एक दूसरे को किस कर रहे थे, शंकर का लंड अभी भी खड़ा ही था, जो रंगीली की जांघों के बीच अठखेलिया कर रहा था..
रंगीली उसकी हलचल देख कर मुस्करा उठी, और मन ही मन अपने बेटे की मर्दानगी पर गद-गद हो रही थी, वो ये देख कर बड़ी खुश थी कि वो जैसा चाहती थी, उसका बेटा वैसा ही निकला…!
रंगीली अपने बेटे के माथे को चूमकर बोली – कैसा लगा बेटा अपनी माँ को चोदकर..? सपने में ज़्यादा मज़ा आया था, या अभी..?
वो अपनी माँ की गान्ड को अपने हाथ से भींचते हुए उसे अपनी तरफ खींच कर बोला – थॅंक यू माँ, मेरी अच्छी माँ, तूने आज मुझे इस सुख से रूबरू कराकर मुझे धन्य कर दिया…!
सपना सपना ही होता है, जिसका हक़ीकत से कोई मेल नही..! आज मे कसम लेता हूँ माँ, तेरी खुशी के लिए तेरा ये बेटा अपनी जान तक दे देगा…!
रंगीली ने उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए, बहुत देर तक दोनो एक दूसरे के होंठों को चूस्ते रहे…!
फिर वो उसके सोते जैसे लंड को मसल कर बोली – आआहह…बेटा मुझे तेरी जान ही तो प्यारी है, मे जो भी कर रही हूँ, उसी के लिए तो कर रही हूँ..!
तू बस अपनी माँ की बात मानता जा, और देखता जा अपनी माँ का कमाल..., फिर वो उसके लंड को आगे पीछे करते हुए बोली – और चोदना है अपनी माँ को..?
वो उसकी गोल-गोल चुचियों को सहलाते हुए बोला – हां माँ, एक बार और करने दे ना..!
रंगीली उसके लंड को अपनी गीली चूत की फांकों पर रगड़ते हुए बोली – क्या करने दूँ, खुलकर बोल ना…!
शंकर – वो अभी जैसा किया था, ववो.. चुदाई, करने दे ना…!
रंगीली ने कामुकता से मुस्कराते हुए उसे चित्त लिटा दिया,
उसके कड़क लंड को मुँह में लेकर कुछ देर चुस्कर अपनी लार से अच्छी तरह गीला करने लगी..
फिर खुद उसके उपर आकर उसके दोनो तरफ घुटने मोड़ कर लंड को अपने हाथ में पकड़ा और अपनी चूत के छेद पर रख कर खुद उसके खूँटे जैसे लंड पर बैठती चली गयी…..,
इस बार भी पूरा लंड एक साथ लेने में उसे नानी याद आ गई थी, आँखें बंद किए वो कुछ देर उसके सुपाडे को अपनी सुरंग के अंतिम सिरे पर महसूस करती रही,
बिना कुछ किए ही उसकी चूत अपना कामरस छोड़ने लगी, फिर धीरे-धीरे रंगीली ने लंड को सुपाडे तक बाहर निकाला, और अपनी आँखें बंद करके फिर से उसपर बैठती चली गयी….!
दूसरे दिन शंकर सलौनी को अपनी साइकल पर आगे बिठाकर स्कूल जा रहा था,
उसके अंगों में भी भराब आने लगा था, उसके कच्चे नीबू अब अमरूद बन चुके थे, गोल-गोल गान्ड भी 30 की हो गयी थी, जो 24 की कमर के नीचे बॉल जैसी थोड़ी पीछे को निकली हुई दिखने लगी थी…!
सहेलिओं के बीच छेड़-चाड और पुरुष आकर्षण की बातें वो सुनती ही रहती थी, लेकिन उसके मन-मस्तिष्क में अपने भाई के अलावा और किसी की एंट्री नही हो पाई थी…!
शंकर अपनी धुन में मगन साइकल भगाए जा रहा था…, वो साइकल चला ज़रूर रहा था, लेकिन उसका ध्यान तो बीती रात माँ के साथ बिताए हुए पलों में ही अटका हुआ था…
अपनी माँ की निवस्त्र छवि उसकी आँखों में घूम रही थी, उसकी गोल-गोल मस्त सुडौल चुचियाँ, जिन्हें वो कैसे मज़े लेकर चूस रहा था…
हल्के बालों वाली चिकनी फूली हुई मालपूए जैसी चूत उसके मन-मश्तिश्क में समाई हुई थी…
अपने ही ख़यालों में गुम शंकर को पता ही नही चला कि उसका लंड कब अकड़ कर सोटे में बदल गया है..
वो तो अच्छा था कि अब वो पॅंट के नीचे अंडरवेर पहनने लगा था, वरना ना जाने आगे बैठी सलौनी का क्या हाल होता…?
फिर भी जब वो पैडल पर ज़ोर देता, तब वो उसके बगल से टच हो जा रहा था, सलौनी को अपनी कमर में कुछ अटकता सा लगा, एक दो बार उसने उसे समझने की कोशिश की…!
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