Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
10-16-2019, 06:33 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
आगे से सुप्रिया अपनी उंगलियों से उसकी चूत और अंदर बाहर हो रहे शंकर के लंड को सहलाते हुए बोली---…उउन्न्नमम भाभी..ये तो चीटिंग है..,

आप हमेशा मेरे से पहले चढ़ जाती हैं इसके उपर.., अब मे अपनी चूत की खुजली का क्या करूँ…? इसमें आग लगी पड़ी है..,

शंकर ने उसकी गोल मटोल गान्ड को अपनी हथेलयों में जकड़कर उसे अपने मूह पर रख लिया और उसकी रस से सराबोर हो रही चूत को अपनी जीभ से चाटने लगा…!

सुप्रिया को मानो भगवान मिल गये.., वो सुषमा के होठों को चूस्ते हुए अपनी गान्ड को शंकर की नाक से घिसने लगी…!

बड़ा ही गरमा-गरम सीन था.., दोनो घोड़ियाँ जमकर बरस रही थी.., एक शंकर के मूह में तो दूसरी उसके लंड पर…!

कमरे में मादक कामरस की खुसभू व्याप्त होने लगी…, कुच्छ देर में सुषमा उपर से कमर चलाते चलाते थक गयी और अपनी चूत को शंकर के लंड पर दबाकर झड़ने लगी…!

शंकर का लंड आधे रास्ते में ही था.., जल्दी ही उसे भी मंज़िल की तलाश थी.., सो झटके से उसने सुप्रिया को पलंग पर घोड़ी बनाया और पीछे से अपना फन्फनाता सख़्त लंड उसकी प्यारी सी मुनिया में पेल दिया…!

चूत की दीवारों को चीरता हुआ लंड जब एक झटके में सुप्रिया की बच्चेदानी से जा टकराया तब, उसके मूह से एक दर्द युक्त मादक सिसकी फ़िज़ा में गूँज उठी…!

आअहह….म्माआ….उउउफफफ्फ़….मार..डल्लाअ…रे हरजाई….और अपना सिर हवा में उठाकर अपनी गान्ड को कसते हुए चुदाई का मज़ा लूटने लगी…!

तीनो प्रेमी वासना के खेल में गहरे और गहरे उतरते चले गये.., और तब तक डुबकियाँ लॅगेट रहे जब तक कि तीनों के तन और मन की प्यास पूरी तरह से बुझ नही गयी…!

ऐसे ही हसीन पलों को जीते हुए कुच्छ दिन और बीत गये, सुप्रिया अपने घर चली गयी.., देखते देखते शंकर के एग्ज़ॅम का समय भी आगया…!

दिन रात एक करके उसने अपनी परीक्षा समाप्त की.., और रिज़ल्ट का इंतेजार करते हुए घर की ज़िम्मेदारियों में लग गया..!

सेठानी जब भी शंकर या रंगीली के सामने पड़ती, प्रायश्चित में स्वतः ही उनकी गर्दन झुक जाती.., ख़ासकर शंकर से वो नज़रें नही मिला पाती..!

लाला जी शंकर की मेहनत से बहुत खुश थे.., कभी कभी उन्हें अपने खून पर गर्व महसूस होता तो कभी कभी ये सोचकर भयंकर ग्लानि होती कि काश वो उसे अपना बेटा कह पाते…!

भले ही कितना बिज़ी हो, 24 घंटे में एक बार शंकर कल्लू के हाल चाल जानने उसके पास ज़रूर जाता था, उसे देख कर कल्लू के चेहरे पर कई तरह के भावा आते-जाते..!

ऐसा लगता था, जैसे वो उससे कुच्छ कहना चाहता हो.., लेकिन कुच्छ कहने लायक था ही नही.., सो बस आँखों से पानी बहने लगता…!

शंकर कुच्छ देर उसके पास बैठकर उसे सांत्वना देकर फिर अपने काम में लग जाता, कई बार जब सुषमा भी साथ में होती तो उसकी नज़रें झुक जाया करती…!

उधर सलौनी के बोर्ड एग्ज़ॅम भी निबट गये.., एक हफ्ते बाद उसका जन्मदिन था.., जिसका उसे बड़ी बेसब्री से इंतेजार था..,

हो भी क्यों ना, उस दिन उसके जीवन का सबसे सुनहरा पल जो आने वाला था.., और एक-एक दिन गिनते गिनते वो दिन भी आ ही गया…..!

अब रंगीली और उसके बच्चे हवेली का ही हिस्सा बन चुके थे.., नौकरों वाले क्वॉर्टर से निकल कर वो तीनो हवेली में ही रहने लगे थे..,

सलौनी आज बेहद खुश थी, क्योंकि कल उसका जन्म दिन था., जिसका उसे कई महीनो से इंतेजार था.., शाम से ही वो अपने भाई से कुच्छ बात करना चाहती थी.., लेकिन शंकर का कहीं नामो-निशान नही था…!

वो तो सुबह खा-पीकर निकल जाता और देर रात लौटता.., आज भी वो देर से घर लौटा और सीधा जाकर लाला जी के पास पहुँचा जहाँ सुषमा भी मौजूद थी..,

नयी फसल के आने से लेन-देन का काम काफ़ी बढ़ गया था.., हिसाब-किताब देखते-देखते उनको काफ़ी रात हो गयी.., तब तक सलौनी बेचारी उसका इंतेजार करते-करते सोने चली गयी…!

काम निपटाकर उसने वहीं गद्दी पर ही खाना मँगवाकर खा लिया और सीधा छत पर जाकर सो गया..,

आजकल वो वहीं खुले आसमान के नीचे ही सोता था.., जहाँ बारी बारी से कभी सुषमा तो कभी रंगीली उसके पास चली जाती थी,

हां रंगीली ये सुनिश्चित करने के बाद ही जाती थी कि आज सुषमा तो चुदने नही गयी है.., वरना माँ-बेटे का भंडा फुट जाता.
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10-16-2019, 06:33 PM,
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आज भी काम निपटाने के बाद सुषमा सीधी शंकर के साथ ही उपर चली गयी और जल्दी से एक राउंड लगाकर वो नीचे आकर सो गयी..,

सलौनी को उस रात ठीक से नींद नही आई.., बेचारी सारी रात अपने भाई के सपने देखते देखते गीली होती रही, अपने नाज़ुक अंगों से खेलती रही..,

सुबहा जल्दी उठकर सलौनी जब अपनी माँ के पास पहुँची.., उसे विश्वास था कि उसकी माँ उसे देखते ही जन्म दिन की मुबारकबाद ज़रूर देगी जैसे हर बार देती थी..,

लेकिन रंगीली ने उसे देखकर भी अनदेखा सा करते हुए अपना व्यवहार सामान्य रखते हुए अपने रोजमर्रा के कामों में लगी रही..!

रसोई घर में काम कर रही अपनी माँ के गले से लटकते हुए सलौनी ने उसे याद दिलाने की गरज से कहा – माँ.., तुझे पता है आज क्या है,,?

रंगीली ने मुस्कराते हुए एक बार उसे प्यार से देखा.., उसके सिर पर हाथ फेर्कर बोली – हां.., आज एतवार है.., क्यों इसमें क्या खास बात है..?

फिर उसकी भारी भारी पलकों को देखते हुए बोली – अरे तुझे क्या हुआ सलौनी.., क्या रात को ठीक से सोई नही..? तेरी आँखें ऐसे सूजी-सूजी सी क्यों हैं..?

सलौनी तूनकते हुए बोली – उउहह..हहुऊन्ण..मे तो ठीक हूँ.., पर लगता है तू बहुत भुलक्कड़ होती जा रही है..!

रंगीली – क्यों..? मे क्या भूल रही हूँ भला…?

सलौनी मूह बनाते हुए बोली – तुझे सच में नही पता आज क्या है..?

रंगीली – अरी तो बता ना क्या है आज.., मुझे तो कुच्छ याद नही..!

सलौनी ने बिगड़ते हुए उसे छोड़ दिया.., और मूह बनाते हुए बोली – जा मे नही बताती.., मे भैया से पूछती हूँ, शायद उसे याद हो.., पर वो कल रात आया कि नही..?
रंगीली – आया तो होगा.., मुझे भी नही मिला, शायद उपर सो रहा होगा.., बेचारे के पास काम भी तो बहुत हैं करने को.., सोने दे उसे, जब जाग जाए तो पुच्छ लेना…,

पर जब तुझे पता ही है तो बताती क्यों नही कि आज क्या खास दिन है…?

सलौनी रूठते हुए बोली – नही बताउन्गी.., किसी को भी नही बताउन्गी.., और पैर पटकते हुए वो वहाँ से चली गयी.., उसके पीछे रंगीली के होठों पर एक शरारती मुस्कान खिल उठी..,

ना जाने क्यों आज उसे सलौनी को सताने में बड़ा मज़ा आया था..,

सलौनी भुन-भुनाती हुई सीधे उपर चली गयी.., जहाँ खुले आसमान के नीचे एक बनियान और लोवर में चादर ताने उसका प्यारा भाई गहरी नींद में सोया पड़ा था…!

रात को सुषमा के साथ हुए आधे अधूरे सेक्स ने उसके लंड को ठीक से खाली भी नही होने दिया था, इस वजह से वो शॉर्ट के बावजूद भी अपनी जगह पर चादर को उठाए खड़ा आसमान को ताक रहा था…!

छत का नज़ारा देखते ही सलौनी का गुस्सा फुर्रर..हो गया.., ज़मीन पर पड़े लंबे चौड़े बिस्तर पर सो रहे शंकर के पास जाकर बैठ गयी और टक-टॅकी लगाकर उसके खड़े लंड को जो चादर को तंबू की तरह अपने सिर पर उठाए खड़ा था उसे निहारने लगी…!

उसकी जांघों के बीच कुच्छ कुच्छ होने लगा.., अपना हाथ वहाँ ले जाकर उसने सलवार के उपर से ही अपनी मुनिया को सहला दिया…!

शंकर के उपर पड़ी चादर को उसने अलग हटा दिया.., लोवर को वो सरका कर उसे जगाना नही चाहती थी.., सो धीरे से उसने शंकर के शॉर्ट के उपर से ही उसके खड़े लंड को अपनी मुट्ठी में पकड़ लिया…!

लंड को मुट्ठी में लेते ही सलौनी का पूरा बदन रोमांच से भर उठा.., उसे पता ही नही चला कब उसकी मुट्ठी उसके लंड पर कस गयी.., और वो उसे उपर नीचे करने लगी…!

नींद कितनी ही गहरी हो, जब इतने नाज़ुक हिस्से को कोई कसकर पकड़कर हिलाए तो खुलना स्वाभाविक है.., शंकर ने आँखें खोलकर जब देखा तो बगल में अपनी प्यारी गुड़िया को देख कर उसका दिल बाग बाग हो गया…!

अपनी अधखुली आँखों से ही उसने उसे अपनी बाहों में भरकर अपने उपर खींच लिया…!

सलौनी अरे..अरे ही करती रह गयी.., तब तक तो शंकर ने उसे अपने उपर खींच ही लिया.., और उसके सुंदर मुखड़े को अपने हाथों मे लेकर उसके माथे को चूम लिया…!

उसका लंड ठीक सलौनी की कच्ची कली के मूह पर अड़ा हुआ था जिसका एहसास होते ही सलौनी की साँसें फूलने लगी.., चूत गीली हो उठी..,

शंकर की बाहों में मचलते हुए उसके उपर से उठने का उपक्रम करने के बहाने उसने एक दो बार अपनी मुनिया को उसके सख़्त लंड से रगड़ दिया…!

उसकी हरकत इस पर शंकर मन ही मन मुस्करा उठा.., सलौनी उसकी गिरफ़्त से छूटने का निरर्थक प्रयास करते हुए बोली…, छोड़ ना भाई.., मुझे तेरी ये बात बिल्कुल अच्छी नही लगती…!

मे सामने दिख गयी तो कैसा झूठा लाड दिखा रहा है.., वैसे कल से जनाब के दर्शन ही नही हुए हैं.., वैसे तुझे तो याद होगा ना कि आज क्या है..?

उसकी बात सुनकर शंकर एक क्षण में ही समझ गया.., कि शायद माँ ने इसे सताया होगा.., तो क्यों ना मे भी इसे कुच्छ देर सताऊ.., ये विचार करते ही बोला…!

मुझे तो याद होगा मतलब.., क्या याद होगा मुझे..?, कहीं कुच्छ रखकर भूल गयी है तू जो याद नही आ रहा..?

सलौनी तुनक कर उसकी छाती पर मुक्का मारते हुए बोली..

उउहणन..उउहणन.., तू भी भूल गया कि आज क्या खास दिन है.., कोई मुझे प्यार नही करता.., माँ को भी याद नही है.., और तू भी…
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10-16-2019, 06:33 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
छोड़ मुझे.., झूठा लाड मत जता.., मे किसी की कुच्छ नही लगती.., जा मे तुझसे कभी बात नही करूँगी.., ये कहकर वो जबरन उसके बंधनों से मुक्त होने की कोशिश करने लगी…!

शंकर ने अपनी दोनो टाँगों को उसकी जाँघो पर लपेट कर उसे अपने लंड पर ज़ोर्से कस लिया.., और उसके पतले-पतले होठों को चूमते हुए बोला…

अली..अली..मेरी गुड़िया तो नाराज़ हो गयी.., मुझे पता है आज मेरी गुड़िया का जन्म दिन है.., और आज ही उसे अपने भाई से स्पेशल गिफ्ट भी मिलने वाला है…!

शंकर की ये बात सुनकर वो बुरी तरह उससे लिपटे हुए बोली – सच भैया.., तुझे याद था मेरा जन्म दिन.., पर माँ कैसे भूल गयी.., मेने बहुत पुछा लेकिन वो नही बता पाई…!

वो हमारी माँ है सलौनी.., शंकर ने उसके गोल-गोल चुतड़ों को सहलाते हुए कहा - भला कोई माँ अपने बच्चों के जन्म दिन को भूल सकती है.., तुझे सताने के लिए मना कर रही होगी…!

हां शायद तू सही कह रहा है भैया.., चल अब नीचे चलते हैं.., इतना कहकर सलौनी उसके उपर से उठने लगी.., उसकी कुँवारी चूत शंकर के लंड की धमक से गीली हो गयी थी…!

शंकर उसे लेते हुए ही उठ बैठा, अपनी गोद में बिठाकर उसकी चूत के गीलेपन को सहलाते हुए बोला – ये क्या गुड़िया.., इतनी बड़ी हो गयी है.., अभी तक कपड़े गीले कर देती है..,

सलौनी ने प्यार से उसके चौड़े सीने पर धौल जमाते हुए कहा – धत्त…गंदा कहीं का..,

शंकर ने बड़े ही नाज़ुक अंदाज से उसके कच्चे अनारों को अपनी मुट्ठी में दबाकर कहा – अच्छा मे गंदा हूँ.., फिर ठीक है, आज का तेरा वो स्पेशल गिफ्ट कॅन्सल..

सलौनी ने शरारत करते हुए उसके लंड को पकड़ लिया और ज़ोर्से दबाते हुए बोली.., ऐसा सोचना भी मत.., वरना इसे काटकर हमेशा के लिए अपने पास रख लूँगी..,

इतना कहकर वो खिल-खिलाकर उसकी गोद से उठकर भागती हुई सीढ़ियों की तरफ बढ़ गयी.., पीछे से शंकर भी उसकी इस अदा पर बिना मुस्कराए नही रह पाया…!

उस दिन शंकर को शहर जाना पड़ा, शहर में आढ़त (अनाज मॅंडी) का काम निपटा कर, सारा पेमेंट कलेक्ट किया और वहीं की बॅंक की शाखा में सारा पैसा जमा करके कोई 4 बजे फारिग हुआ..!

अभी भी समय था सो सलौनी के लिए उसने एक अच्छी सी ड्रेस खरीदी, लेकिन आज उसके लिए बहुत ही स्पेशल दिन था.., तो गिफ्ट भी कुच्छ स्पेशल ही होना चाहिए..,

खर्चे के लिए अब उसका हाथ रोकने वाला कोई नही था.., सो एक बड़ी सी ज्वेल्लेरी शॉप से एक बहुत ही प्यारी सी सोने की चैन जिसमें हीरे का नग बहुत ही सुन्दर आकृति में लगा हुआ था..!

सलौनी के हल्के साँवले सलौने बदन पर हीरे का वो चम-चमाता हुआ पेंडुलम बहुत जचने वाला है, ऐसा सोचकर उसने उसे खरीद लिया, साथ ही कुच्छ और पसंदीदा चीज़ लेकर ज्वेल्लारी शॉप से बाहर आया…!

एक बड़ा सा केक लेकर वो लगभग 7 बजे तक घर पहुँचा जहाँ घर को किसी फंक्षन के लिए सजाया जाता है ऐसे ही सजाया गया था..,


लाला जी की अनुमति से सुषमा और रंगीली ने सारे घर को अच्छे से सजाया था..!

सलौनी का जन्म दिन इतना धूम-धाम से मनाया जाएगा इसकी उन तीनों प्राणियों ने कल्पना भी नही की थी..,

खैर बड़ी धूम धाम से केक काट कर उसका जन्म दिन मनाया गया..,

रामू अपनी बेटी के भाग्य को देख कर गद-गद हो उठा था, उसके माँ-बापू भी शामिल हुए..!

ये सब शंकर की मेहनत और रंगीली की चालों से संभव हो पा रहा था..!

खैर बड़ी धूम-धाम से सलौनी का जन्म दिन मनाया गया, जात बारादरी के लोगों का खाना खिलाया, इन सब कामों में रात के 10 बज गये,

सारे कामों से निपटकर शंकर भी खा-पीकर अपने कमरे में चला गया.., अपने पलंग पर बैठकर वो दिन भर के कामों का हिसाब किताब लगा रहा था..,

उसे इंतेजार था तो अपनी माँ और बेहन का जिनसे वो आज अपनी छोटी बेहन को कुच्छ स्पेशल तोहफे का वादा कर चुका था.., लगभग 11 बजे दरवाजे पर आहात हुई..,

सामने लाल सुर्ख लहंगे और चोली में, सिर पर ओढनी डाले सजी सन्वरि सलौनी को खड़े देख कर वो उसकी सुंदरता में एक पल के लिए खो गया..,

अर्जुन के निशाने की तरह उसे पास में खड़ी अपनी माँ भी नज़र नही आई..,

नये जोड़े में हल्के से मेक-अप के साथ सलौनी आज उसे आसमान से उतरी हुई कोई परी नज़र आ रही थी..,

रंगीली अपने बेटे की नज़र ताड़ते हुए उसके चेहरे पर एक कामुक स्माइल तैर गयी, सलौनी के कंधे पकड़कर वो उसे लेकर सधे हुए कदमों से उसके बिस्तर तक लेकर आई…,

इस दौरान शंकर की नज़र एक पल के लिए भी उससे नही हटी, वो लगातार उसके सनडर सलौने चेहरे को ही ताकता रहा..,

पास आकर रंगीली ने चुटकी लेते हुए कहा – अब देखता ही रहेगा या इसे अपने पास बिताएगा भी…?

अपनी माँ की आवाज़ सुनकर मानो वो नींद से जगा हो, हड़बड़ा कर उसने अपने हाथ में पकड़े कागजों को पास की टेबल पर रखा और पलंग से खड़ा होकर सलौनी के सुंदर सलौने चेहरे को अपनी हथेलियों में लेकर उसके ललाट को चूम लिया…!

अजीब सी उत्तेजना की लहर दोनो के बदन में दौड़ गयी.., सलौनी के होठ एक बार हल्के से काँपे, तभी रंगीली बोली – कैसी लग रही है हमारी गुड़िया..?

उसके कंधों को पकड़ कर पलंग पर बिठाते हुए बोला – बहुत सुंदर, इस जोड़े में मानो आसमान से कोई परी उतर आई हो मेरे कमरे में..,

अपनी गुड़िया बहुत सुंदर है मा.., ये जिसके घर भी जाएगी वो तो धन्य ही हो जाएगा..,

उसकी बात पर सलौनी तुनकते हुए बोली – क्या भैया.., आप दोनो मुझे अपने से अलग करना चाहते हो, मे कहीं नही जाने वाली.., यहीं रहूंगी अपनी माँ और भाई के पास.., मुझे आप लोगों को छोड़ कर कहीं नही जान है.., अभी से बताए देती हूँ.., हां…!
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10-16-2019, 06:34 PM,
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शंकर ने उसे कसकर अपने सीने से चिपका लिया, फिर उसे अपनी गोद में खींचकर उसके पतले-पतले रसीले होठों को चूमकर बोला – जाना तो पड़ेगा, याद है तूने क्या प्रॉमिस किया था…?

सलौनी अपने भाई के सीने को चूमते हुए बोली – वो तो ठीक है लेकिन उसके लिए ये ज़रूरी तो नही कि मे आप लोगों से दूर चली जाउ…!

तभी रंगीली बोल पड़ी – अरे ये तुम दोनो किस बहस में पड़ गये.., ये समय इन बातों का नही है.., रात बहुत हो गयी है, जल्दी से अपना कार्य क्रम शुरू करो..,

भाई मुझसे तो अब बिल्कुल सबर नही हो रहा.., मे देखना चाहती हूँ, कैसे एक भाई अपनी ही छोटी और प्यारी बेहन की सील तोड़कर उसे कमसिन कली से फूल बनता है.., ये कहते हुए उसने सलौनी के सिर से ओढनी उतारकर एक तरफ रख दी…!

रंगीली खुद भी आज मात्र लहंगे और चोली में ही थी.., उसके पुष्ट दूधिया उरोज कसी हुई चोली से बाहर उबले पड़ रहे थे..,

शंकर चोली के उपर से ही उसकी मद-मस्त भारी भारी चुचियों को मसल्ते हुए बोला – जो हुकुम मेरे आका, ये खाते हुए उसने अपने तपते हॉत सलौनी के होठों से चिपका दिए.., और बड़े प्यार से उनका रस्पान करने लगा..,

सलौनी भी अपने भाई का साथ देते हुए आज की रात को यादगार बनाने में उसका सहयोग देने लगी.., किसिंग करते हुए शंकर की उंगलियाँ उसकी चोली के बटनो में उलझ गयी.., और देखते ही देखते उसने सारे बटन खोल दिए…!

छोटी सी पिंक ब्रा में क़ैद उसके कच्चे अनारों को देख कर नीचे उसका लंड तुनकि लगाने लगा.., जो नीचे सलौनी की छोटी सी लेकिन उभरी हुई मुलायम गान्ड से दबा हुआ अपनी हरकतें दिखा रहा था…!

रंगीली ने शंकर की टीशर्ट को निकाल दिया, और अपनी चुचियों को उसकी सख़्त पीठ से रगड़ते हुए उसने सलौनी के लहंगे का नाडा खींच दिया..,

सलौनी ने अपनी गान्ड को हल्की सी जुम्बिश देकर उसने लहंगे को टाँगों से निकाल बाहर कर दिया.., अब वो मात्र एक छोटी सी ब्रा और उसी कलर की पैंटी में रह गयी..,

नीचे मात्र अकेले शॉर्ट में शंकर का 8” लॉडा उसकी गुद-गुदि गान्ड के बीच गदर मचाए हुए था…, फूलकर मुट्ठी भर साइज़ का हो चुका था…!

एक बार उसकी ब्रा में क़ैद कच्चे अनारों को अपनी मुत्ठियों में लेकर उसने ज़ोर्से सहला दिया.., सलौनी के मूह से एक सिसकारी निकल गयी.., फिर उसने उसकी ब्रा के हुक भी खोल दिए…!

उसकी गेंदें उच्छल कर आज़ाद हवा में लहरा उठी.., जीभ से उसके निपल सहला कर उसने उसे अपनी गोद से उतारकर पलंग पर बिठा दिया..!

सलौनी उसे सवलाया नज़रों से देखने लगी.., उसने आँखों के इशारे से रुकने को कहा.. और अपने तकिये के नीचे से एक छोटा था डिब्बा निकाला..,

डिब्बे में रखी सोने की चैन और और उसमें लटके हीरे के पेंडुलम को देख कर माँ-बेटी दोनो को आँखें हीरे के मानिंद चमक उठी..,


शंकर ने वो चैन अपनी उंगलियों मे फँसाकर उसे सलौनी के गले में पहना दिया…!

दोनो अनारों के बीच की घाटी में वो चम-चमाता हीरे का पेंडुलम उसकी सुंदरता में चार चाँद लगा रहा था…!

शंकर उसे अपने हाथ में लेकर दोनो को दिखाते हुए बोला – कैसा लगा ये तोहफा..?

जहाँ उस तोहफे को देख कर सलौनी की खुशी का कोई ठिकाना नही था, अपने भाई के नंगे बदन से चिपकते हुए अपनी कच्ची चुचियों को उसके बदन से रगड़ते हुए बोली –

थॅंक यू भैया.., बहुत अच्छा है..,

रंगीली ने भी उसे अपने हाथ में लेकर देखते हुए बोली – बहुत ही खूबसूरत है.., गुड़िया के गले में आकर और ज़्यादा खूबसूरत लग रहा है…,

फिर ना जाने क्यों अचानक ही उसके चेहरे के भाव बदलने लगे.., भले ही उसका बेटा अपनी बेहन के लिए जन्म दिन का तोहफा लेकर आया था.., लेकिन नारी सुलभ कहीं ना कहीं उसे अपनी बेटी से ही जलन का एहसास होने लगा…!

इतने दिनो से अपनी माँ के इतने अंतरंग रहने के कारण शंकर उसके मन की बात को भाँप गया.., और उसकी चुचियों को मसल्ते हुए बोला…

क्या हुआ माँ, लगता है तुझे ये तोहफा पसंद नही आया..?

रंगीली ने झेन्प्ते हुए कहा – नही..नही.. बहुत अच्छा है.., तू ऐसे क्यों बोल रहा है..?

शंकर – नही बस ऐसे ही पूछ लिया.., चल तू यहाँ बैठ, ये कहकर उसने उसे पलंग के एक सिरे पर बिठा दिया.., और सलौनी का दुपट्टा लेकर उसकी आँखें बाँधने लगा…!

रंगीली – ये अब तू क्या करने वाला है मेरे साथ..हां..?

शंकर – कुच्छ नही बस तू कुच्छ देर अपनी आँखें बंद रख.., फिर उसने उसकी आँखों पर दुपट्टा बाँधकर.., एक और डिब्बा अपने तकिये के नीचे से निकाला जिसमें एक जोड़ी सुन्दर सी सोने की पायल थी…!

उनपर नज़र पड़ते ही सलौनी की आँखें खुशी से चमक उठी.., अभी वो चीख कर अपनी खुशी का इज़हार करने ही वाली थी थी शंकर ने उसे चुप रहने का इशारा किया और अपनी माँ के दोनो पैर पकड़कर पलंग के नीचे लटका दिए…!

खुद नीचे बैठकर उसके एक पैर को अपने घुटने पर रखा.., लहंगे को उसने रंगीली की जांघों तक चढ़ा दिया.., जिन जांघों की सुंदरता का वो दीवाना था, उन्हें नंगा देख कर उसका लंड बुरी तरह से हीन-हीनाने लगा…!

शंकर ने अपनी माँ की मांसल गोरी-गोरी जांघों को चूम लिया.., अपनी जीभ से उसकी सुडौल मांसल जांघों से चाटते हुए वो नीचे तक उसके पैरों तक चूमता चला गया..,

रंगीली बस इस कामुक एहसास को अनुभव करते हुए सोचने लगी कि आख़िर ये शैतान आज उसके साथ करने क्या वाला है.., तभी शंकर ने अपनी माँ के सुन्दर पैरों को बारी-बारी से चूम लिया..,

रंगीली के पैरों में पहले से ही चाँदी की पुरानी सी पायल पड़ी हुई थी जो कभी लाला जी ने उसे पहनाई थी.., उन्हें उसने खोल कर एक तरफ रख दिया.., और अपने हाथों से दोनो नयी सोने की पायलों को पहनाकर उन्हें चूम लिया…!

रंगीली के गोरे-गोरे मुलायम पैर उन सुंदर सोने की पायल पाकर चम-चमा उठे…, फिर उसने सलौनी को माँ की आँखों की पट्टी हटाने का इशारा किया…!
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10-16-2019, 06:34 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
आँखों से पट्टियाँ खुलते ही जैसे ही रंगीली की नज़र अपने पैरों पर गयी.., एक अजीब सा मिश्रित एहसास जिसमें खुशी, ममता, उत्तेजना और सबसे बढ़कर माँ का दुलार शामिल था…!

अनायास ही उसकी आँखें नम हो उठी, जो माँ एक पल पहले अपनी बेटी की खुशी से जलने लगी थी.., वही अब खुशी के मारे अपने आँसुओं को रोक नही पाई..,

उसने झुक कर अपने बेटे को अपनी छाती से लगा लिया.., माँ बेटे के मिलन में चार चाँद लगाते हुए सलौनी भी आकर उन दोनो से चिपक गयी…..!

अपने बच्चों का प्यार पाकर रंगीली भावुक हो उठी, उसकी आँखें छलक आई.., शंकर ने अपनी माँ की पलकों का खारा पानी पोन्छते हुए कहा – क्या हुआ माँ, अपने बेटे का तोहफा पसंद नही आया..?

रंगीली ने अपने प्यारे बेटे का माथा चूमते हुए कहा – नही बेटा, तेरा तोहफा तो लाखों में एक है भला पसंद क्यों नही आएगा,

शंकर – फिर तेरी आँखों में आँसू क्यों हैं..?

रंगीली – ये खुशी के आँसू हैं मेरे लाल.., आज तक इतना अच्छा तोहफा मुझे किसी ने भी नही दिया..,

तेरे बापू ने तो कभी चाँदी की पायल तक भी लाकर नही दी.., और आज मेरे बेटे ने सोने की पायल पहनाई हैं, मे अपनी खुशी सहन नही कर पाई इसलिए मेरे आँसू निकल आए…,

सलौनी ने महसूस किया क़ि मामला सेंटिमेंटल होता जा रहा है, उसे आज जो स्पेशल तोहफा अपने भाई से मिलने वाला है उसमें खलल पड़ता जा रहा है.., सो फ़ौरन उसने शंकर का शॉर्ट खींचकर निकाल दिया…!

वातावरण चेंज होने से शंकर का नाग अपना फन सिकोडता जा रहा था उसे उसने अपनी मुट्ठी में जकड लिया और उसे सहलाते हुए बोली – छोड़ ना भाई, तुम दोनो ये क्या बातें लेकर बैठ गये..,

दोनो माँ-बेटे उसकी मनसा समझकर मुस्करा उठे, शंकर ने हँसते हुए उसे अपनी गोद में बिठा लिया और उसके कच्चे अनारों को मसल डाला…!

दर्द और आनंद की अनुभूति में सलौनी के मूह से एक मादक कराह फुट पड़ी…सस्सिईईई..आआहह…भाई…दर्द होता है.., धीरे कर ना…!

शंकर ने उसे बिस्तर पे लिटा दिया और उसके बदन पर मात्र बची हुई उसकी पिंक कच्छी को भी निकाल बाहर कर दिया..,

अपनी बेहन की कोमल पतले-पतले होठों वाली हल्के-हल्के बालों से युक्त कुँवारी कमसिन योनि जिसके दोनो होठ आपस में जुड़े हुए थे.., बस 2 इंच लंबी एक पतली सी लकीर जैसी बनी हुई थी को देखकर शंकर का मन बाबला हो उठा…!

उसने उसे उसके होठों से चूमना शुरू करते हुए वो नीचे की तरफ आने लगा.., उधर रंगीली अपनी बेटी के साँचे में ढले हुए बदन को देख कर अपनी जवानी के दिनो में पहुँच गयी.., जब पहली बार लाला जी ने उसे इसी तरह नंगा करके भोगा था…!

वो उसकी चिकनी जांघों को सहलाते हुए अपना हाथ उसकी मुनिया की तरफ ले जाने लगी.., उधर चूमते चाटते हुए शंकर उसके मम्मों तक जा पहुँचा..,

जैसे ही उसकी जीभ ने उसके कंचे जैसे कड़क बादामी निपल को छुआ.., ठीक उसी समय रंगीली की उंगलियों ने भी उसकी कुँवारी चूत के होठों को सहला दिया…!

दोनो अंगों पर एक साथ अटॅक होने से सलौनी आनंद से झूम उठी.., उसकी आँखें आनंद की वजह से बंद हो गयी.., अनायास ही उसका हाथ रंगीली के हाथ पर जा पहुँचा और बुरी तरह सिसकते हुए बोली….

सस्सिईईई….आआहह…म्माआ….ये क्याअ..किया..तूने.., तभी शंकर ने दोहरा अटॅक करते हुए एक हाथ उसके दूसरे अनार पर रखकर उसे ज़ोर से दबा दिया..,

सलौनी तो जैसे आसमानों में उड़ने लगी…, उसे दीन दुनिया की कोई फिकर नही रही.., उसका मन कह रहा था मानो ये लम्हा कभी ख़तम ही ना हो…!

लेकिन उस बेचारी अल्हड़ जवान छोकरी को क्या पता था कि ये तो अभी शुरुआत है.., आगे आगे और ना जाने कितने पड़ाव आने वाले हैं इस राह में….!

शंकर ने बारी-बारी से उसके निप्प्लो को जीब से चुभालाया, रंगीली निरंतर उसकी कच्ची कली की दरार को अपनी उंगली से खोलने की कोशिश कर रही थी.., दोनो माँ-बेटे के प्रयासों ने सलौनी के बदन को थरथराने पर मजबूर कर दिया…!

उसकी कमर ऑटोमॅटिकली उपर को उठने लगी.., और बंद आँखों से अपने मूह से मादक सिसकियाँ निकलने लगी…!

धीरे धीरे शंकर उसके पेट को चूमता हुआ उसके अद्वितीय योनि प्रदेश तक जा पहुँचा.., रंगीली ने उसका रास्ता सॉफ करते हुए अपना हाथ वहाँ से हटा लिया..और खुद शंकर के पिच्छवाड़े की तरफ पहुँच गयी…!
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10-16-2019, 06:34 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
धीरे धीरे शंकर उसके पेट को चूमता हुआ उसके अद्वितीय योनि प्रदेश तक जा पहुँचा.., रंगीली ने उसका रास्ता सॉफ करते हुए अपना हाथ वहाँ से हटा लिया..और खुद शंकर के पिच्छवाड़े की तरफ पहुँच गयी…!

शंकर ने जैसे ही अपनी जीभ की नोक से उसकी योनि के मुलायम पतले पतले होठों को छुआ.., सलौनी ने सिसकते हुए अपनी कमर उपर कर दी..,

फिर जैसे ही उसकी जीभ की ठोकर उसके अंदर छुपे हुए क्लिट पर पड़ी.., सलौनी से रहा नही गया और बुरी तरह से सिसकने लगी..,

सस्सिईईई….आअहह….भाइईइ…ज़रा अच्छे से चाट मेरी मुनिया को.., उउउफ़फ्फ़…बहुत सुरसूराहट हो रही हाई…
उउउम्म्मंणणन्….म्म्माआ..मार्रीि…!

अपनी बेटी को मज़े में मस्त देखकर रंगीली भी मस्ती में झूमने लगी.., उसने खुद से अपने चोली के सारे बटन्स तोड़ डाले, लहंगे को उपर चढ़ा कर अपनी चूत की मोटी-मोटी फांकों को उंगलियों से रगड़ते हुए शंकर के लंड को मूह में लेकर चूसने लगी…!

बड़ा ही कामुक नज़ारा था कमरे की मध्यम रोशनी में.., इस मंज़र को अगर कोई बड़े से बड़ा तपस्वी भी देख ले तो गॅरेंटी से अपनी सारी तपस्या त्याग कर उस खेल में शामिल होने पर मजबूर हो जाए…!

कुच्छ ही देर में सलौनी की कोरी गागर से मीठा पानी छलक्ने लगा, जिसे शंकर ने बड़े प्यार से सारा चट कर लिया…!

सलौनी इस वासना के खुमार को सहन नही कर पाई और बहुत देर तक अपनी आँखें बंद किए पड़ी रही.., तब तक शंकर भी उसके बगल में लेट गया और रंगीली निरंतर उसके लंड का स्वाद लेती रही…!

लंड चूस्ते हुए उसका एक हाथ सलौनी की कच्ची चुचियों पर जा पहुँचा.., और शरारत करते हुए उसने अपनी उंगलियों के बीच दबाकर उसके एक निपल को मसल दिया…!

ऊओऊउककचह….चिहुन्क कर सलौनी ने अपनी आँखें खोल दी.., माँ को भाई का लंड चूस्ते देख कर उसके ठंडे बदन में फिरसे गर्मी भरने लगी…!

रंगीली ने आँख के इशारे से उसे अपनी बगल में बुलाया और शंकर का लंड अपने मूह से निकालकर उसके मूह में ठेल दिया..,

सलौनी पहली बार लंड मूह में ली थी.., तो शुरू में उसे कुच्छ अजीब सा लगा लेकिन इतनी देर से लंड गरम लावे की तरह दहक रहा था.., तो स्वाभाविक है उसका प्री-कम भी रिसने लगा था.., जिसका अजीब सा स्वाद अपनी जीभ पर पाकर सलौनी जल्दी ही कामुक हो उठी…!

काफ़ी देर से शंकर अपने आप पर काबू रखे हुए था.., अब उसे लगने लगा कि अब और ज़्यादा देर वो अपने आप को रोक नही पाएगा सो उसने सलौनी के सिर पर हाथ रख कर उसे हटने का इशारा किया…!

रंगीली ने सलौनी का सिर अपनी नंगी जाँघ पर रख लिया.., और हल्के हल्के हाथों से उसके अनारों को सहलाते हुए झुक कर उसके होठ चूम लिए..

इतने में शंकर ने एक मोटा सा तकिया सलौनी की कमर के नीचे रखा जिससे उसकी योनि उपर को उभर आई.., फिर एक दो बार अपनी जीभ से उसकी मुनिया को चाटा...

हथेली पर थूक लेकर अपने लोहे जैसे कड़क 8” के लंड को अच्छे से गीला करके उसने उसका दहक्ता गरम लाल टमाटर जैसा सुपाडा सलौनी के मिलीमेटेरी छेद पर टिका दिया…!

अपनी चूत के छोटे से छेद पर गरम दहक्ते लंड का स्पर्श पाकर सलौनी अंदर तक सिहर उठी.., उसके बदन ने एक झूर-झूरी सी ली और कसकर आँखें बंद करके आने वाले अनूठे पल का इंतेजार करने लगी…!

शंकर ने अपने लंड पर जैसे ही दबाब डाला.., वो स्लिप होकर उसके पतले होठों को रगड़ता हुआ उपर चला गया…!

रंगीली ने उसे रुकने का इशारा किया.., फिर खुद ने झुक कर दोनो हाथों की उंगलियों से उसके बंद होठों को खोला, शंकर ने अपने लॉड को हाथ में लेकर सही जगह पर फिट किया और एक हल्का सा दबाब अपनी कमर में दिया…!

लंड का सुपाडा सलौनी के बारीक छेद में फिट हो गया.., अब उसके इधर उधर होने के चान्स कम थे.., लेकिन इतने से ही दबाब ने सलौनी को सोचने पर मजबूर कर दिया कि आने वाला लम्हा इतना आसान नही है उसके लिए…!

शंकर ने एक बार फिर अपने लंड को दबाया.., इस बार उसका सुपाडा सलौनी की कच्ची चूत की फांकों के बीच अच्छे से फँस गया.., एक मीठे दर्द की लहर सलौनी के पूरे शरीर में दौड़ गयी.., और… और उसके मूह से एक आनंद मिश्रित कराह निकल गयी…!

उसकी परवाह ना करते हुए रंगीली ने शंकर को आगे बढ़ने का इशारा किया.., उसका लंड इस समय उसकी पतली से झिल्ली की परत पर टिका हुआ था..,

चुदाई का चॅंपियन बन चुका शंकर भली भाँति जानता था कि अब एक जोरदार धक्का ही आगे का सफ़र तय कर पाएगा., सो उसने एक लंबी साँस खींची, लंड को थोड़ा सा बाहर किया और एक करारा सा धक्का अपनी कमर में लगा दिया……!
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10-16-2019, 06:34 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
अपनी चूत के छोटे से छेद पर शंकर के लोहे जैसे सख़्त दहक्ते लंड का स्पर्श पाकर सलौनी अंदर तक सिहर उठी.., उसके बदन ने एक झूर-झूरी सी ली और कसकर अपनी आँखें बंद करके आने वाले कष्टदायी एवं अनूठे पल का इंतेजार करने लगी…!

शंकर ने अपने लंड पर जैसे ही दबाब डाला.., वो स्लिप होकर उसकी मुनिया की पतली पतली संतरे जैसी फांकों को रगड़ता हुआ उपर को चला गया, क्लिट पर सुपाडे की रगड़ होते ही सलौनी के मूह से एक अत्यंत ही कामुक अह्ह्ह्ह.. निकल गयी…!

रंगीली ने उसे रुकने का इशारा किया.., फिर खुद ने झुक कर दोनो हाथों की उंगलियों से उसकी कोरी करारी मुनिया के बंद होठों को खोला,

शंकर ने अपने लौडे को हाथ में लेकर उसके छोटे से छेद पर फिट किया और एक हल्का सा दबाब अपनी कमर में दिया…!

लंड का सुपाडा सलौनी की सन्करि गली के मूह को चौड़ाते हुए फिट हो गया.., अब उसके इधर उधर होने के चान्स कम थे.., आधा सुर्ख सुपाडा अर्ध चंद्र ग्रहण की तरह उसके संकरे छेद में विलुप्त हो गया,

लेकिन इतने से ही दबाब ने सलौनी को सोचने पर मजबूर कर दिया कि आने वाला लम्हा इतना आसान नही है उसके लिए…!

शंकर ने एक बार फिर अपने लंड को दबाया.., इस बार उसका सुपाडा सलौनी की कच्ची चूत की फांकों के बीच अच्छे से समा गया.., एक मीठे से दर्द की लहर सलौनी के पूरे शरीर में दौड़ गयी.., और… और उसके मूह से एक आनंद मिश्रित कराह निकल गयी…!

उसकी कराह की परवाह ना करते हुए रंगीली ने आँख के इशारे से शंकर को आगे बढ़ने को कहा.., उसका लंड इस समय उसकी पतली सी झिल्ली की परत पर जा टिका था..,

खेला खाया शंकर भली भाँति जानता था कि अब एक जोरदार धक्का ही आगे का सफ़र तय करने में मदद कर पाएगा., उसने एक लंबी साँस खींची, लंड को थोड़ा सा बाहर किया और एक करारा सा धक्का अपनी कमर में लगा दिया……!

माआआअ…… सलौनी के मूह से जिब्बह होते बकरे की तरह चीख निकल गयी…, लगभग आधा लंड उसके छोटे छेद में समा चुका था, ताजे खून की गर्मी शंकर को अपने लंड पर महसूस हुई.…!

उसने प्रश्नवचक निगाहों से रंगीली की तरफ देखा जो बड़े प्यार से अपनी बेटी के कच्चे अमरूदो को सहलाते हुए मुस्करा रही थी.

अपनी माँ की मुस्कराहट देख कर शंकर को राहत मिली, लेकिन सलौनी लगातार कराहते हुए अपने भाई को लंड बाहर निकालने के लिए बोल रही थी..,

रंगीली ने प्यार से उसके बालों में उंगलियाँ डालते हुए कहा – बस मेरी लाडो सब ठीक हो गया.., थोड़ा सा तो पहली बार में सभी को सहन करना पड़ता है, भाई अभी सब ठीक कर देगा…,

इधर शंकर ने इशारा पाकर अपना हथियार थोड़ा बाहर निकाला, सलौनी अभी माँ की राहत भरी बातें सुनकर संयत होने का प्रयास ही कर रही थी कि एक बार फिरसे उसकी संकरी गली को चीरता हुआ भाई का सुलेमानी लंड 2” और अंदर चला गया…

दर्द की लहर एक बार फिर सलौनी से अंदर समा उठी, उसे लगा जैसे कोई मोटी सी रोड उसकी चूत को फाड़ते हुए अंदर गयी हो. वो शंकर की छाती पर ज़ोर्से हाथ मारते हुए बोली – क्या खाक ठीक कर रहा है ये, कसाई की तरह मेरी चूत को चीर डाला इसने..,

निकाल बाहर, मुझे नही चुदना तुझसे.., माँ ने ना जाने क्या क्या लगा लगा कर सोट जैसा कर दिया है मुए को…हुउन्न्नह…!

सलौनी की मासूमियत भरी बात सुनकर माँ बेटे दोनो मुस्करा उठे.., उसके दर्द को समझते हुए रंगीली ने उसके होठों को चूसना शुरू कर दिया और शंकर अपने लंड को उतना ही चेन्प्कर उसकी छोटी-छोटी गेंदों के साथ जीभ और उंगलियों से खेलने लगा.

जल्दी ही सलौनी का दर्द गायब हो गया, अब उसके चेहरे पर फिरसे मादकता के लक्षण दिखाई देने लगे.

सलौनी को सामान्य होते देख शंकर ने एक लास्ट करारा सा धक्का लगाकर अपना रहा सहा लॉडा उसकी संकरी गुफा में फँसा दिया.., सलौनी की धड़कनें तेज तेज चलने लगी..,

रंगीली के होठों के बीच दबे उसके होठों से चीख मूह के अंदर ही दब कर रह गयी.., चुदाई के एक्सपर्ट माँ बेटे ने उसे एक बार फिर संभाल लिया और कुच्छ ही देर में शंकर के धक्के एक लयबद्ध तरीक़े से जारी हो गये…!

अब सलौनी को दर्द के साथ साथ मज़े का भी एहसास होने लगा, रंगीली ने उसके होठ आज़ाद कर दिए, और उसकी चुचियों से खेलने लगी….

आअहह…भाई.. बहुत मज़ा आरहा है…, ऐसे ही चोद अपनी बेहन को मेरा राजा भैया..,..हाए माँ…, चूस इन्हें ज़ोर्से चूस ना….आअहह…

सलौनी की कामुक सिसकियों को सुनकर शंकर का जोश सातवे आसमान पर पहुँच गया.., अपनी सग़ी छोटी बेहन को अपनी माँ के सामने चोदने के एहसास ने उसपर और ज़्यादा असर किया, उसका लंड और ज़्यादा कड़क होकर सलौनी की कुँवारी चूत को फाड़ने लगा…!

बाजू में घोड़ी बनी हुई अपनी माँ की गुदाज गान्ड पर हाथ फेरते हुए वो पूरे पूरे शॉट लगाने लगा. लंड को सुपाडे तक बाहर लाता और सत्त्त.. से फिर अंदर कर देता.

कड़क दमदार लंड की ठोकरें चूत की लास्ट गहराई तक पड़ने से सलौनी अपना आपा खो बैठी.., और एक लंबी सी चीख मारते हुए भल-भलाकर झड़ने लगी…

ऐसा नशा उसने जिंदगी में पहली बार महसूस किया था, वो तन-मन की सुध खो बैठी और अपनी एडियों को शंकर की कमर से कसकर, बाहों को उसके गले में लपेटकर उसके बदन से जोंक की तरह चिपक गयी…..!

ना जाने वो कितनी देर तक ऐसे ही चिपकी रहती लेकिन रंगीली ने उसकी पीठ सहलाते हुए कहा – क्यों लाडो, मज़ा आया भाई का लंड लेकर…??

सलौनी मानो नींद से जागी हो.., अपने प्यारे भैया को और ज़्यादा कसते हुए बोली – थॅंक्स माँ, आज मेरे मन की मुराद पूरी कर्वादी तूने…!

रंगीली ने उसकी गान्ड के उभारों पर चपत मारते हुए कहा.., तो अब ऐसे ही चिपकी रहेगी, तेरा भाई अभी खाली नही हो पाया है, अब उसे खाली करवाएगी या दम-खम निकल गया…!

सलौनी शंकर से अलग होते हुए बोली – इतना कमजोर समझ रखा है क्या..? तेरी ही बेटी हूँ, अपने भाई से हार कैसे सकती हूँ, ये कहकर उसने एक बार फिर उसके लौडे को मूह में ले लिया और उसपर लगे अपनी चूत के रस को चपर शॅपर चाटने लगी…!

दो मिनिट बाद शंकर ने उसे घोड़ी बना लिया और पीछे से उसकी नयी चुदि चूत में धीरे धीरे अपना पूरा लंड डाल दिया…!

ताज़ा ताज़ा चुदि चूत में इस बार भी लंड लेने में दर्द हुआ लेकिन उससे मिलने वाले मज़े को वो पहचान चुकी थी सो दाँत पर दाँत दबाकर वो सारे दर्द को भूल गयी और कुच्छ ही धक्कों के बाद वो भी उसका पूरा सहयोग देने लगी.

कमरे में दोनो भाई बेहन की आहों कराहों और धक्कों की आवाज़ें गूंजने लगी, रंगीली ने अपनी माल पूवे जैसी चूत को सलौनी के मूह के सामने परोस दिया जिसे वो धक्कों की लय के साथ हिलते हुए अपनी जीभ से उसे चाटने लगी.

15-20 मिनिट की दमदार चुदाई के बाद शंकर ने हुंकार भरते हुए अपना सारा वीर्य अपनी बेहन की चूत में उडेल दिया…,

पहली बरसात पाकर उसकी चूत खुशी से फूलने पिचकने लगी और वो भी तीसरी बार झड गयी…!

कुच्छ देर के अंतराल के बाद शंकर ने अपनी माँ को घोड़ी बना लिया और उसकी भी चूत की आग बुझाने लगा…..!

सुबह पौ फटने तक तीनो जमकर चुदाई के रंग में रंगे रहे…..!
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10-16-2019, 07:20 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
एक बार सलौनी की सील क्या टूटी, अब तो उसकी आँखों के सामने दिन रात अपने भाई का लंड ही दिखाई देता रहता था, यहाँ तक कि कॉलेज जाते वक़्त भी उसकी बाइक पर पीछे बैठकर उसे छेड़ती जाती थी.

अब वो भी कॉलेज से ही ग्रॅजुयेशन कर रही थी, शंकर का ये फाइनल एअर था…!

एक दिन ऐसे ही कॉलेज से लौटते वक़्त तो उसने हद ही करदी, अपने दोनो अनार जो अब काफ़ी बड़े हो चुके थे उन्हें उसकी पीठ से रगड़ते हुए उससे पूरी तरह चिपक गयी.

दोनो हाथों को आगे ले जाकर उसने शंकर के लंड पर रख लिए और उसे पॅंट के उपर से ही सहलाने लगी.

शंकर का लंड पहले ही उसकी चुचियों की नोके की रगड़ से सनसना उठा था, उपर से उसके मुलायम हाथों की सुगंध मिलते ही वो और फन-फ़ना उठा.

बाइक चलाते हुए शंकर ने उसे ऐसा ना करने को कहा, लेकिन सलौनी पर भला इस बात का क्या असर होता, वो भी तब जबकि अब वो उसके लंड की औथराइज्ड मालकिन हो चुकी थी.

उसकी माँ ने खुद उसपर मुहर लगवा दी थी.., शंकर ना नुकर करता ही रह गया.., उल्टा सलौनी ने थोड़ा उचक कर उसके कान की लौ को अपने दाँतों में दबा लिया..

जवान शंकर ये सब कहाँ सहन कर पाता, लिहाजा उसने भी अपना एक हाथ पीछे घूमकर सलौनी के गले में डाला और उसके होठों का रस्पान करने लगा.

लेकिन ये सब ज़्यादा देर लंबा नही चल सकता था वरना दोनो किसी झाड़ी में पड़े होते.

शंकर ने उसे छोड़ते हुए कहा – बस अब ज़्यादा शरारत नही, वरना मे तेरी चोटी काट कर हाथ में पकड़ा दूँगा समझी…!

सलौनी – अच्छा ! अरे जा-जा तू क्या मेरी छोटी काटेगा, मे देख तेरे इस घोड़े को ही काबू में करके अपने पास रख लूँगी, ये कहते हुए उसने शंकर के पॅंट की जीप खोलकर उसके लंड को बाहर निकाल लिया और उसे मुठियाने लगी.

हर पल के साथ शंकर का बुरा हाल होता जा रहा था.., पीठ पर अनारों की चुभन और उसके कोमल हाथों में लंड, वो बार बार उसे ऐसा करने से मना करता रहा लेकिन वो बिगड़ैल घोड़ी उसकी कहाँ सुनने वाली थी.

चलती बाइक पर ही वो थोड़ा पीछे को खिसकी और लगभग आगे को लंबी होकर शंकर के एक बगल से अपनी मुन्डी घुसाकर उसने उसके लौडे को अपने मूह में ले लिया.

शंकर को उससे इतने दुस्साहस की उम्मीद कतई नही थी…, एक हाथ से वो उसकी चोटी पकड़ कर उसे उठाने की कोशिश करते हुए बोला – अरे ये क्या कर रही सलौनी, मान जा किसी ने राह चलते देख लिया तो पता है क्या होगा..?

सलौनी अपना मूह हटाते हुए बोली – तो तू बाइक साइड में करके रोक.
शंकर – क्यों ?

सलौनी – मुझे अभी के अभी चुदना है तेरे इस मूसल से..,

शंकर – तेरा दिमाग़ तो खराब नही हो गया, जानती भी है तू क्या कह रही है..?

सलौनी – मे जो भी कह रही हूँ, सही कह रही हूँ… अब मेरे से सबर नही हो रहा..,

शणक्र – लगता है तेरा दिमाग़ ठिकाने पर नही है.., राह चलते हुए किसी ने हमें देख लिया तो कहीं मूह दिखाने के लायक नही रहेंगे समझी तू.

सलौनी – मुझे कुच्छ नही पता, बाइक रोक वरना मे कूद पड़ूँगी.

उसकी ये बात सुन शंकर की खोपड़ी सनक गयी, उसने साइड बाइक रोक कर साइड स्टॅंड पर खड़ी कर दी. बाइक रुकते ही सलौनी तुरंत कूद गयी,

शंकर बाइक खड़ी करके उसकी तरफ मुड़ा ही था कि वो उसके साथ लिपट गयी.

शंकर ने उसे गुस्से से अपने से अलग किया और एक झन्नाटे दार तमाचा उसके गाल पर रसीद कर दिया…!

कुच्छ देर तो सकते की हालत में वो खड़ी खड़ी उसका मूह तकती रह गयी, उसे ये अंदाज़ा कतई नही था कि उसका भाई अपनी प्यारी गुड़िया पर हाथ भी उठा देगा…!

शंकर ने फिरसे बाइक स्टार्ट की, कुच्छ देर उसका इंतजार किया.., लेकिन वो अभी भी सकते से बाहर नही निकल पा रही थी, उसने उसकी कलाई थाम कर अपने पीछे बिठाया और बाइक दौड़ा दी गाओं की तरफ.

सलौनी गुम-सूम उसके पीछे बैठी सोचने पर मजबूर हो गयी कि आख़िर भाई को इतना गुस्सा आया क्यों ? जबकि अब तो वो उसको चोदने भी लगा है तो फिर उसने आज ऐसा क्यों किया उसके साथ…?
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10-16-2019, 07:20 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
घर पहुँचने तक उन दोनो के बीच कोई बात नही हुई.., पीछे बैठी सलौनी सोचते सोचते उसकी आँखों में आँसू आगये, इधर शंकर के अंदर भी बबन्डर सा चल रहा था….,

क्या उसने अपनी प्यारी बेहन पर हाथ उठाकर अच्छा किया..? नही शायद ये अच्छा नही हुआ.., उसे उसको प्यार से समझाना चाहिए था…!

लेकिन मेने उसे बहुत मना किया, ऐसे खुलेआम ये सब ठीक नही है, लेकिन उसपर आज इतना चुदाई का भूत सवार था जिसे उतारना ज़रूरी था… वरना वो इसके लिए हर रोज़ ज़िद करती और खुदा न ख़स्ता किसी रोज़ किसी पहचान वाले को ये पता चल जाता कि देखो सगे भाई बेहन आपस में ये सब करते हैं, तो समाज में हमारे परिवार की क्या इज़्ज़त रह जाती…!

आज उसे ये सबक मिलना ज़रूरी था, कभी कभी अपने प्यार से प्यारे को भी दंडित करना पड़ता है…!

खैर वो दोनो घर भी पहुँच गये, दोनो को गुम सूम देखकर रंगीली समझ गयी कि आज इन दोनो के बीच कुच्छ तो हुआ है..? लेकिन उसने इस समय दोनो से कोई बात करना सही नही समझा.

अकेला होते ही शंकर ने खुद से ही उसे सब कुच्छ बता दिया…, जिसे रंगीली ने भी सही ठहराया और अकेले में सलौनी को समझाने का सोचा.

दिन बीतते गये, लेकिन अब सलौनी ने शंकर के साथ छेड़-छाड़ बिल्कुल बंद कर दी, वो चुपचाप उसके पीछे बैठ जाती, कभी कभार शंकर उससे बात करने की कोशिश करता तो वो बस उसे हां या ना में जबाब दे देती.

खैर इसी तरह से शंकर का फाइनल एअर भी ख़तम हो गया, कॉलेज कुच्छ दिनो के लिए बंद हो गया…!

एक दिन सुषमा को शहर जाना था, उसने शंकर को पहले ही बता दिया था.., तैयार होकर जाने से पहले वो कल्लू को देखने उसके कमरे में गयी.., उसकी बेटी गौरी जो अब कुच्छ समझदार सी होने लगी थी…

वो अपने पापा के पास बैठी उससे बातें कर रही थी.., कल्लू कुच्छ बोल तो पाता नही था, बस अपनी बेटी की प्यारी प्यारी बातें सुनकर कभी मुस्करा देता तो कभी सीरीयस हो जाता.

सुषमा के आते ही गौरी उसके पास से उठी और दौड़कर अपनी मम्मी से लिपट गयी.., और अपनी उसी मासूमियत के साथ शिकायत करने लगी…

गौरी – मम्मी देखो ना मे कब से पापा से बातें कर रही हूँ, लेकिन ये कुच्छ बोलते ही नही…!

सुषमा – बेटा ! पापा बीमार हैं ना, इसलिए कुच्छ बोल नही पाते.., अब तू जा, रंगीली काकी को बोल वो तेरे को नहला कर खाना दे देगी, और हां ज़्यादा शरारत मत करना और भैया के साथ अच्छे से खेलना, ये तेरी ज़िम्मेदारी है कि वो रोए नही…!

गौरी – आप कहीं जा रहे हो..?

सुषमा – हां मेरा बच्चा मामा किसी काम से शहर जा रही है, जल्दी आ जाएगी ठीक है, अब जाओ…

गौरी मुन्डी हिलाकर किसी चंचल तितली की तरह उस कमरे से बाहर भाग गयी, तभी शंकर भी तैयार होकर वहाँ पहुँचा, उसने भी कल्लू का हाल जाना…!

सुषमा, शंकर के बिल्कुल पास जाकर उससे सट्ते हुए खड़ी हो गयी और कल्लू को संबोधित करते हुए बोली- क्यों पतिदेव, मे अकेली शंकर के साथ शहर जा रही हूँ, तुम्हें बुरा तो नही लग रहा…..?

इतने महीनो ही नही सालों से कल्लू बिस्तर पकड़े हुए था, कुच्छ बोल तो नही सकता था लेकिन उसकी आँखों के इशारों को सब समझने लगे थे,

सुषमा की बात सुनकर उसने आँखों के इशारे से बताया कि उसे कुच्छ बुरा नही लगा…!

सुषमा उसके इशारे को समझते हुए शंकर की बाजू में अपनी बाजू डालते हुए बोली – चलो अच्छा है तुम्हें बुरा नही लगा, हालातों से समझौता कर लेना ही बुद्धिमानी है..,

अच्छा तो शायद ये भी पता होगा कि हम दोनो के आपस में संबंध किस हद तक हैं…?

कल्लू ने फिर एक बार अपनी पलकें झपका कर ये जता दिया कि उसे इस बारे में भी सब पता है…, उसके इस इशारे पर वो दोनो एक बार को चोंक गये फिर संभालते हुए सुषमा ने फिर कहा…

इसका मतलब तुम्हें हमारे संबंधों से भी कोई एतराज नही है..?

कल्लू ने फिर एकबार इशारे से जताया कि उसे अब कोई शिकायत नही है..,

क्योंकि शायद उसे कहीं ना कहीं ये विश्वास हो चुका था कि अब वो दुबारा कभी भी इस लायक नही हो पाएगा कि घर को संभाल सके…!

सुषमा के मन से मानो एक बोझ हल्का हो गया हो.., उसे ना जाने क्यों आज पहली बार कल्लू पर दया आई, वो शंकर को साथ लिए उसके नज़दीक तक गयी, उसके बालों को सहलाते हुए उसने उसे इस रज़ामंदी के लिए धन्यवाद किया…!

उसके बालों में उंगलियाँ घूमाते हुए वो फिर बोली – अच्छा ये बताओ, अगर तुम्हें ये पता चले कि अंशुल (बेटा) शंकर का अंश है तो ???

सुषमा के ये शब्द सुनकर पहले तो कल्लू को हल्का सा आघात लगा, वैसे तो उसे शक़ तो था ही, लेकिन आज सुषमा ने खुद अपने मूह से बताया तो उसे थोड़ा दुख हुआ फिर एक फीकी सी मुस्कान उसके होठों पर आ गयी…,

जिसे देखकर सुषमा के साथ साथ शंकर भी चोन्के बिना ना रह सका……!

………………………

कल्लू के कमरे से निकलते ही वो दोनो अहाते में खड़ी जीप की तरफ बढ़ गये जो प्रिया ने शंकर को गिफ्ट में दी थी,

चलते-चलते शंकर ने सुषमा से पुछा – वैसे हम जा कहाँ रहे हैं भाभी…?

सुषमा ने अपने चेहरे पर एक मनमोहक मुस्कान बिखेरते हुए कहा – अब तुम्हारे भविष्य को बदलने का समय आगया है, हम सीधे शहर अपने मामा जी के यहाँ जा रहे हैं जहाँ उनके कॉलेज से तुम्हें एमबीए की डिग्री लेनी है जिससे तुम बिज़्नेस की सारी बारीक़ियाँ समझ सको…!

शंकर – लेकिन हो सकता है हमें आने में देर हो जाए, ये भी हो सकता है वो हमें ज़बरदस्ती आज की रात रोक लें, तो ऐसे में अंशुल को यहाँ छोड़ना क्या सही होगा..?

शंकर की बात सुनकर सुषमा को भी लगा कि उसकी बात सही है, फिर भी वजाय सीरीयस होने के उसे छेड़ते हुए बोली – वाह बच्चू वाह, अब बेटे की माँ से ज़्यादा अपने बेटे की चिंता होने लगी…!

शंकर अपनी झेंप मिटाने की कोशिश करते हुए बोला – ऐसी बात नही है, मे तो बस इसलिए बोल….

सुषमा उसकी बात बीच में ही काटते हुए बोली…मज़ाक कर रही थी, वैसे तुम्हारी बात सही है, 5 मिनिट रूको मे उसे अभी लेकर आती हूँ.

कहते ही वो तुरंत पलटी और अपने सुडौल कसे हुए गोल-मटोल फुटबॉल जैसे नितंबों को मटकाते हुए हवेली के अंदर की तरफ बढ़ गयी…!

सिल्क की कसी हुई साड़ी में लिपटे हुए उसके लयबद्ध तरीक़े से थिरकते हुए सुडौल नितंबों को देखकर शंकर के लौडे ने एक मस्त अंगड़ाई ली.

सुषमा तो घर के अंदर चली गयी, शंकर उसकी थिरकति गान्ड को तब तक देखता रहा जब तक वो उसकी आँखों से ओझल नही हो गयी.., काफ़ी दिनो से वो सुषमा को चोद नही पा रहा था, इसलिए वो आज उसे स्वर्ग से उतरी किसी अप्सरा जैसी लग रही थी…!

लंड के मचलने का असर उसके दिमाग़ तक चढ़ने लगा, मन बहलाने की गरज से वो कॉंपाउंड में टहलने लगा.., टहलते टहलते वो फाटक से बाहर निकल गया..,
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10-16-2019, 07:20 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
अभी उसने अपना कदम बाहर रखा ही था कि तभी उसके कानों में जोरदार सीटी जैसी आवाज़ पड़ी.., उसने जैसे ही आवाज़ की तरफ मुड़कर देखा..,

पड़ौस की एक 60 साल की औरत जो उसकी दादी लगती थी, अपन लहंगा कमर तक चढ़ाए नाली में मूत रही थी…!

वो नीचे मुन्डी करके अपने भोसड़े से निकल रहे मूत की मोटी सी धार को देखने में मशगूल थी इसलिए उसकी नज़र शंकर पर नही पड़ी..,

शंकर को उसका काले काले मोटे मोटे मालपुए जैसे होठों वाला भोसड़ा पूरी तरह दिख रहा था.., जिसके बीच में काफ़ी मोटी सी खाई जैसी थी. ये देखकर शंकर का लंड पॅंट के अंदर तुनकि मारने लगा..,

लेकिन उसे उस बूढ़ी काकी की चूत उन सभी औरतों से अलग सी लगी जिनको वो अब तक चोद चुका था, उसे बड़ा ताज्जुब हुआ ये देख कर कि चूत चूत में भी इतना फ़र्क हो सकता है…!

शंकर को ध्यान ही नही रहा कि वो कहाँ खड़ा है और क्या देख रहा है, तभी उसके कानों में पड़ने वाली सीटी की मधुर धुन सुनाई देनी बंद हो गयी.., उसने नाली पर मूत रही दादी को देखा जो अपना कुलाबा बंद करके उठने वाली थी,

शंकर फाटक से उल्टे पैर फाटक के अंदर चला गया.., जहाँ अपने बेटे की उंगली पकड़े सुषमा जीप के पास खड़ी उसकी राह देख रही थी….!

पास आते ही सुषमा ने सवाल किया – कहाँ चले गये थे..?

शंकर ने अंशुल को गोद में उठाते हुए उसके मुलायम गाल पर एक प्यारी सी पप्पी लेते हुए कहा- बस ऐसे ही टहलते-2 फाटक तक निकल गया था…!

शंकर ने अपने बेटे को अपनी बगल में बिठाया और खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गया, दूसरी तरफ से आकर सुषमा भी अगली सीट पर बैठ गयी..,


शंकर ने एक नज़र सुषमा के सुंदर चेहरे पर डाली, फिर बच्चे के गाल को सहलाते हुए जीप स्टार्ट की….चलें…कहकर उसने गाड़ी आगे बढ़ा दी…!

गाओं से बाहर निकते ही उसने सुषमा की तरफ देखा, जो एक तक उसी को देख रही थी, होठों पर मुस्कान लाकर शंकर बोला – आज तो आप कयामत लग रही हो भाभी…!

सुषमा ने शिकायत भरे लहजे में कहा – अकेले में ये मुझे भाभी कहना ज़रूरी है..? नाम नही ले सकते..?

शंकर – पता नही क्यों, आपका नाम लेते हुए मुझे ऐसा लगता है कि मे आपको इज़्ज़त नही दे रहा, जबकि मेरे दिल में आपके लिए जितनी इज़्ज़त है उतनी शायद माँ के अलावा और किसी के लिए नही होगी…!

सुषमा ने अपने बेटे को सीट से उठाकर अपनी जांघों पर बिठा लिया और खुद खिसक कर शंकर से सटते हुए बोली – ये तुमसे किसने कहा कि किसी का नाम लेने से उसकी इज़्ज़त कम हो जाती है, बल्कि नाम ही नही आप की जगह तुम कहो तो अपनापन और बढ़ता है…

उसने शंकर की जाँघ को अपने हाथ से सहलाते हुए आगे कहा – अब से तुम कम से कम अकेले में मुझे नाम लेकर और तुम कह कर ही बुलाया करो… क्या समझे..?

शंकर ने मुस्करा कर उसकी कमर में हाथ डालकर अपने से सटाते हुए कहा – मे कोशिश करूँगा भाभी…!

सुषमा ने उसकी बगल में चुन्टी काटते हुए मूह बीसूरते हुए कहा – फिर भाभी…, इतना कह कर वो उससे अलग होते हुए नाराज़गी भरे स्वर में बोली – जाओ मे तुमसे बात नही करती….!

शंकर ने फिरसे उसे अपनी तरफ खींचते हुए कहा – नाराज़ मत हो जानेमन.., तुम बात नही करोगी तो रास्ता कैसे कटेगा…?

अच्छा एक बात तो बताओ, अभी चलने से पहले मे फाटक से बाहर चला गया था, वहीं बाजू वाली दादी लहंगा उपर करके मूत रही थी.., मेरी नज़र उसके उसपर पड़ गयी…

सुषमा अपने मूह पर हाथ रखते हुए बोली – हाए राम ! मुझे नही पता था कि तुम इतने बड़े गुंडे हो, दूसरी औरतों को मुतते हुए देखते हो…?

शंकर ने हँसते हुए कहा – ऐसा नही है यार, वो ग़लती से मेरी नज़र उसके मूत की सीटी की आवाज़ सुनकर वहाँ चली गयी…!

सुषमा भी हँस पड़ी और बोली – कहाँ चली गयी तुम्हारी नज़र….?
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