Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
10-16-2019, 07:24 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
शाम को वो दोनो पास के ही थियेटर में मूवी देखने निकल गये, वापस आकर खाना रूम में ही मॅंगा लिया.., सुषमा का बेटा खाने के दौरान ही सो गया…!

खा पीकर वो दोनो कुछ देर लॉबी में टहलते रहे, फिर कमरे में आकर सुषमा कपड़े चेंज करने बाथरूम में चली गयी, शंकर ने भी उतनी देर में अपने कपड़े उतारकर मात्र एक शॉर्ट पहन लिया और सोफे पर बैठकर उसका इंतेज़ार करने लगा…!

जैसे ही बाथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज़ उसके कानों में पड़ी…, वैसे ही उसकी नज़र आवाज़ की दिशा में घूम गयी.., अपने सामने खड़ी सुषमा को देखकर शंकर का मूह खुला का खुला रह गया…, और वो उसे देख कर मंद मंद मुस्करा रही थी….!
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सुषमा इस समय मात्र एक झीने से गाउन में थी जो उसकी मोटी-मोटी जांघों तक ही पहुँच पा रहा था, उसके नीचे उसने ब्रा और शायद पैंटी भी नही पहन रखी थी.., हॉल के दूधिया लाइट में उस पारदर्शी गाउन के आर-पार सब कुछ दिखाई दे रहा था…!

लाइट कलर की गाउन में सुषमा का गुलाबी रंगत लिए दूधिया बदन साफ गोचर हो रहा था…, उपर से नीचे को फिसलती शंकर की नज़र से उसके सुर्ख कड़क किस्मिस के दाने भी नही छिप सके जो उसके गोल-सुडौल 34” के वक्षों की चोटियों पर चिपके हुए थे…,

शंकर की कामुक नज़रों के एहसास ने उन्हें और कड़क कर दिया और वो टाइट गाउन को चीरकर उसमें छेद करते दिखाई दे रहे थे…,

फिर जैसे ही शंकर की नज़र उसकी नाभि के नीचे दोनो मांसल जांघों के बीच की घाटी पर पड़ी जहाँ उसका गाउन कुछ परतों में थे जिससे उसका यौनी प्रदेश साफ साफ तो नही दिख रहा था लेकिन अनुमान लगाना कठिन नही था कि वहाँ कितनी गहराई मौजूद होनी चाहिए…!

सुषमा के इस मादक रूप को देख कर शंकर किसी स्वचालित यन्त्र की तरह सोफे से उठ खड़ा हुआ, उसके कामुक बदन के दर्शन मात्र से ही उसका 8” लंबा और ढाई इंच मोटा नाग उसके शॉर्ट के सॉफ्ट कपड़े में फुफ्कार उठा…

तबतक सुषमा भी अपने रूप की छटा बिखेरती हुई सधे हुए कदमों से चलकर उसके काफ़ी नज़दीक तक पहुँच चुकी थी…!

शंकर से रहा नही गया और उसने लपक कर सुषमा को अपनी बाहों में भर लिया…, उसके सुर्ख रसीले होठों को अपने होठों की गिरफ़्त में लेकर एक हाथ से उसके कलमी आमों को सहलाते हुए दूसरे हाथ से उसके मटके जैसी गान्ड की चोटियों को दबाते
हुए उसने सुषमा को अपने बदन से सटा लिया….!

शंकर का कड़क लंड मात्र दो पतले बारीक कपड़ों की परतों को दबाते हुए उसकी मल्लपुए जैसी गुदगुदी छूट की फांकों से जेया टकराया…!

लंड के कठोर टोपे की ठोकर अपनी चूत पर होते ही सुषमा के मूह से एक बहुत ही मादक सिसकी फुट पड़ी….!

आअहह….सस्स्सिईईई…शंकररर्र्र्ररर…मेरे राजा…कस्लो मुझे अपनी मजबूत बाहों के घेरे में…, इन बाहों का सहारा पाकर मे अपने आप को सेफ फील करती हूँ…, क्या तुम हमेशा मुझे ऐसी ही प्यार करते रहोगे….?

शंकर ने अपना दूसरा हाथ भी उसकी मुलायम गान्ड पर रख दिया.., दोनो मटकों को सहलाते हुए उसने सुषमा की चूत को कसकर अपने कड़क लंड पर दबा दिया…, सुषमा भी आवेश में आकर उसके गले से झूल गयी.., उसके दोनो पैर इस समय हवा में झूल गये….!

लंड का दबाब इतना ज्यदा बढ़ गया कि कपड़ों की दोनो परतों के साथ उसका लंड एक इंच तक उसकी चूत की मोटी-मोटी फांकों के बीच फँस गया…!

कपड़े को लंड के उपर अपनी चूत में इतने अंदर तक फील करके सुषमा की चूत में बुरी तरह से चींतियाँ सी काटने लगी…,
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10-16-2019, 07:24 PM,
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ये एक अलग सा ही अनुभव था उसके लिए…, उसकी एडियों का दबाब कुछ और बढ़ गया शंकर के पिच्छवाड़े पर…!

वो शंकर के लंड को और अंदर तक लेना चाह रही थी इसी कंडीशन में.., लेकिन कपड़ों की वजह से वो और अंदर तो नही हो सका लेकिन उसके बढ़ते दबाब ने उसकी चूत की खुजली और बढ़ा दी.., वो अब गीली होने लगी थी… जिसका अनुभव शंकर को अपने लंड पर भी होने लगा…!

सुषमा ने अपनी दोनो बाहें अभी भी शंकर की गर्दन में लपेट रखी थी, दोनो ही एक दूसरे के होठों का रस निचोड़ने में जुटे हुए थे…!

अब शंकर ने उसे नीचे उतारा और उसकी केले के तने जैसी गोल-सुडौल मक्खन जैसी चिकनी जांघों को सहलाते हुए उसके
गाउन की झीनी सी परत को भी उसके बदन से अलग कर दिया…!

सुषमा किसी संगेमरमर की मूर्ति की तरह उसके सामने थी…, शंकर उसके नंगे बदन को उपर से नीचे तक अपनी जीभ से चूमने चाटने लगा.., और खड़े खड़े ही उसने उसकी केले जैसी जांघों के बीच की सबसे सुंदर और सुखदायिनी जगह में अपना मूह डाल दिया…!

सुषमा की मुनिया लगातार खुशी से लार टपका रही थी.., कामरस की सौंधी सी खुश्बू पाकर शंकर और ज़्यादा उत्तेजित हो
उठा.., अब उसका नाग और ज़्यादा कठोर होकर 120 डिग्री पर पहुँच गया था…!

अपनी गीली योनि पर शंकर की जीभ के स्पर्श ने उसका हाल-बहाल कर दिया…, उसकी टाँगें काँपने लगी.., वो इस झटके को ज़्यादा देर तक सहन नही कर सकती थी..,

सो उसने जल्दी ही शंकर के कंधों को पकड़कर उठा लिया और उसके अंडर वेअर को नीचे खिसका दिया और उसके सख़्त
दहकते लंड को अपनी मुट्ठी में कसकर उसके सुर्ख सुपाडे को अपनी चूत की फांकों के बीच रगड़ने लगी….!

सस्स्सिईइ…आअहह…रजाअ…अब इसे डालकर मुझे चोदो…मेरे बलम…, अब सबर नही हो रहा…आआहह…..उउउन्न्नघ…..!

शंकर ने भी अब देर करना उचित नही समझा.., उसने सुषमा को सोफे पर धक्का दे दिया.., वो गान्ड के बल उसपर गिर
पड़ी.., अपनी टाँगों को चौड़ा कर उसने शंकर को भी अपने उपर खींच लिया…!

दोनो हाथों से अपनी फांकों के बीच शंकर के लंड के लिए रास्ता बनाती हुई बोली… अब डालो जल्दी…, शंकर ने भी अपना
दहकता सुर्ख लाल सुपाडा उसके छेद पर रखा और सरसराता हुआ उसका नाग अपनी मन पसंद सुरंग में समा गया…!

दोनो एक साथ मानो जन्नत में पहुँच गये हों.., कुछ सेकेंड के आनंद को फील करने के बाद उनके शरीर हरकत में आ गये और फिर वहाँ वासना का वो तांडव शुरू हुआ की कुछ दी देर में वो दोनो पसीने पसीने हो गये…!

एक बार सोफे पर ही घमासान मचाने के बाद वो दोनो साथ साथ ही झड़े, शंकर के झड़ने तक सुषमा दो बार अपना कामरस
छोड़ चुकी थी, कुछ देर बाद वो नंगे ही पलंग पर जा पहुँचे….!

सुषमा के मादक बदन की गर्मी ने शंकर को फिरसे उत्तेजित कर दिया.., उसने सुषमा को औंधा करके, खुद उसकी चिकनी
मुलायम गान्ड के शिखरों को अपने हाथों से सहलाने, मसल्ने लगा..,

इस पोज़िशन में सुषमा की गान्ड की दरार एक दम फैली हुई थी.., उसका सुरमई किसी फूल जैसा गान्ड का छेद सुरसूराहट के कारण फूलने पिचकने लगा…!

आअहह….रानी.., तेरी गान्ड….कितनी सुंदर है…, ये कहते हुए उसने उसके सुराख को अपनी जीभ से कुरेद दिया…, इसकी वजह से उसका छेद और तेज़ी से खुलने बंद होने लगा…!

अपनी बीच की उंगली मूह में डालकर शंकर ने गीला किया और फिर बड़े प्यार से उसने उस उंगली को उसके छेद के उपर
फिराया.., और जैसे ही इस बार सुषमा के गान्ड का छेद खुला.., उसने अपनी उंगली उसके छेद में उतार दी…!

सिसकते हुए सुषमा ने अपना हाथ पीछे ले जाकर उसकी कलाई थाम ली….., सस्सिईई…हाई…ये क्या कर रहे हो शंकर…?

शंकर उसकी गान्ड के पाटों को चूमते हुए बोला – आआहह…भाभी…कितनी सुंदर गान्ड हैं तुम्हारी…, मन कर रहा है एक बार
इसी में अपना लंड ठोक दूं…!

सुषमा वासना के वशीभूत होते हुए बोली – आअहह…तो ठोक दो ना.., आज कर्लो अपने मंन की राजा…, नही रोकूंगी में तुम्हें..,
आज अपनी सारी इच्छायें पूरी कर्लो…!

सच…! शंकर किसी बच्चे की तरह खुश होते हुए बोला – डाल दूं इसमें..?

आअहह…डाल दो.., लेकिन थोड़ा आराम से…, मेरी गान्ड अभी तक कुँवारी है.., मलाई समझकर फाड़ मत देना हैं…., सुषमा ने
एकदम चुदासी होते हुए कहा…!
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10-16-2019, 07:24 PM,
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शंकर – तुम चिंता मत करो मेरी जान.., मे एकदम प्यार से तुम्हारी गान्ड में डालूँगा.., ये कहते हुए उसने अपने लंड और सुषमा की गान्ड पर ढेर सारा थूक लगाकर तर कर लिया और अपना मोटा सा खूँटा उसकी गान्ड के सुरमई छेद पर टिका दिया…!

हल्का सा दबाब पड़ते ही सुषमा को ये आभास हो गया कि आगे की राह इतनी सरल नही है.., एक बार गान्ड भींचकर उसने
शंकर के सुपाडे को गान्ड की दीवारों के बीच दबा लिया.., आराम..से शंकर…!

शंकर ने उसकी गान्ड सहलाते हुए उसे गान्ड ढीली छोड़ने के लिए कहा.., जैसे ही सुषमा ने अपनी गान्ड पर कसाव कम किया, शंकर ने एक झटके से आधा लंड उसकी गान्ड के संकरे से सुराख में उतार दिया…!

आधे लंड ने ही सुषमा को चीखने पर मजबूर कर दिया.., अपने मूह के नीचे रखे तकिये को कसकर अपनी मुट्ठी में दबा
लिया…उसे अपनी गान्ड में कोई खूँटा सा ठूकता महसूस हुआ…, उसके मूह से एक दर्द भरी लेकिन मादक कराह निकल गयी…!

कुछ देर ठहर कर शंकर से धीरे धीरे कोशिश करते हुए अपना रास्ता तय कर लिया…, उपर से उसने सुषमा की चुचियों को
सहलाकर और फिर उसकी चूत को अपने हाथ से सहलाते हुए उसके गान्ड के दर्द को भूलने में मदद की…!

धीरे धीरे हल्के हल्के मूव्मेंट से गान्ड का सुराख शंकर के लंड के आकार के हिसाब से सेट होने लगा.., एक बार लंड बाहर निकलकर उसने उसके सुराख को और अच्छे से थूक लगाकर चिकना किया.., और दोबारा से अपना लंड पेलकर उसने सुषमा की गान्ड कूटना शुरू कर दिया…,

शुरुआती तकलीफ़ के बाद सुषमा को भी अपनी गान्ड मराने में एक अलग ही तरह का आनंद आने लगा…!

उस रात दोनो प्रेमियों ने जी भरकर अपने मंन की हसरतें पूरी की.., और थक हारकर जब वो गहरी नींद में डूबे तो सीधे सुबह के 9 ही बजे..,

दोपहर होते होते वो होटेल से निकल लिए और समय पर अपने घर जा पहुँचे….!
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10-16-2019, 07:24 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
उस रात दोनो प्रेमियों ने जी भरकर अपने मंन की हसरतें पूरी की.., और थक हारकर जब वो गहरी नींद में डूबे तो सीधे सुबह के 9 ही बजे..,

दोपहर होते होते वो होटेल से निकल लिए और समय पर अपने घर जा पहुँचे….!

दिन ढलते तकरीबन शाम 4 बजे शंकर और सुषमा अपने घर पहुँच गये, सुषमा का समान उसके यहाँ देकर शंकर अपने परिवार के लिए लाए हुए कपड़े बगैरह के बॅग लेकर अपने घर पहुँचा जो कि हवेली का ही एक हिस्सा था..

उसकी माँ सेठानी के साथ उसके कमरे में थी…, अब सेठानी भी रंगीली के साथ छोटी बेहन जैसा बर्ताव रखती थी.., हर काम
रंगीली के उपर ही छोड़ रखा था…, एक तरह से लाला जी का परिवार इन दोनो माँ-बेटों पर निर्भर हो चुका था…!


सेठ धरम दास तो चाहते ही थे कि शंकर उनके घर को संभाल ले.., प्रत्यच्छ में ना सही, अप्रत्यक्ष रूप से वो भी तो उनका
बेटा ही था…, उपर से ढलती उम्र और समय समय पर रंगीली का मादक जिस्म भोगने को मिल जाता था…!

शंकर जब अपने घर पहुँचा उस समय सलौनी किसी कपड़े पर कसीदे से कपड़े पर कोई डिज़ाइन बना रही थी…, कॉलेज तो बंद ही थे.., गाओं में मनोरंजन का उस समय कोई साधन तो था नही…,

टेलिविषन उस समय पर आए ही आए थे, उनपर भी गाओं में एंटीना लगाकर दूरदर्शन के ही एक दो चॅनेल ही आते थे…, जिसका उपयोग गाओं के लोग बस उस समय के महाभारत सीरियल को देखने में ही यूज़ करते थे…, या फिर एक आध कोई न्यूज़ बगैरह देख लेता था…!

एग्ज़ॅम के बाद सलौनी बेकार बैठी थी…, कभी-कभार गौरी के साथ खेल लेती या फिर सुबह शाम अपनी किसी सहेली के घर
चली जाती…, सो रंगीली ने ही उसे प्रेरित करके कढ़ाई-बुनाई के कुछ गुण सिखा दिए थे…!

सलौनी बारॅंडा में चारपाई डालकर उसपर पैर सिकोडकर अपने घुटने जोड़कर उनपर एक सर्क्युलर छल्ले में सफेद कपड़े को कसकर रंग बिरंगे धागे से कोई डिज़ाइन बना रही थी… जब शंकर वहाँ पहुँचा…!

शंकर को देखते ही उसका मंन मयूर होकर नाच उठा…, अंदर से वो इतनी खुश हुई, कि भाग कर जाए और अपने प्यारे भाई के गले से लिपट जाए…,

लेकिन वो अपना मंन मसोस कर रह गयी…, जबसे शंकर ने उसके चाँटा जड़ा था उस दिन से फिर दोबारा उसकी हिम्मत नही
हुई कि वो उस’से बात भी कर सके.., उसे शंकर से डर लगने लगा था…, उपर से माँ ने भी भाई का ही पक्ष लिया था…!

उधर शंकर के मंन में भी ये डर था कि उसके चाँटा मारने से सलौनी अभी तक उससे नाराज़ है…, लेकिन उसका दिल ही
जानता था कि वो अपनी छोटी बेहन से कितना प्यार करता था..,

एक पल को दोनो की नज़र आपस में टकराई, दूसरे ही पल सलौनी ने डर से अपनी नज़र झुका ली और अपने काम में लग गयी…, शंकर को पक्का यकीन हो गया की अभी तक गुड़िया का गुस्सा शांत नही हुआ है…!

लेकिन ये हमेशा तो चलने वाला नही है.., कभी ना कभी तो उसे उसके गुस्से का सामना करना ही है.., तो आज क्यों नही और फिर वो उसके लिए अच्छे अच्छे कपड़े भी लाया है तो अपनी प्यारी बेहन का गुस्सा शांत करने के लिए इससे बढ़िया मौका और क्या होगा…?

सो बड़े शांत भाव से उसकी चारपाई की पाटी पर बैठते हुए शंकर ने उसके कपड़ों वाला बॅग उसकी गोद में रख दिया….!

अचानक से अपनी गोद में रखे बॅग को देख कर सलौनी ने एक बार शंकर की तरफ देखा जो उसी पर अपनी नज़रें गढ़ाए उसके बगल में इस आशा में बैठा था कि क्या उसकी गुड़िया उसके गिफ्ट को स्वीकार करेगी या आज भी वो नाराज़ ही बनी रहेगी…!

उसकी सोच के उलट सलौनी ने कुछ डरने के अंदाज में शंकर से पुछा – ये.ए.ईए.. इसस्स..इसमें क्या है भाई..?

शंकर को उसके बोलने के अंदाज से ये समझते देर नही लगी कि वो नाराज़गी की बजाय कुछ और ही भाव हैं इसके मंन में.., सो उसने बड़े प्यार से अपने दोनो हाथ उसकी तरफ बढ़ाए….!

डरी सहमी सी सलौनी ने अपना चेहरा थोड़ा पीछे को हटाया लेकिन वो शंकर के हाथों की जड़ से दूर ना कर सकी.., और देखते ही देखते शंकर ने अपने दोनो हाथों के बीच अपनी लाडो के गोल चेहरे को ले लिया…!

शंकर ने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा – शहर से अपनी गुड़िया के लिए कुछ कपड़े लाया था…, फिर एक हाथ से उसकी नाक को पकड़ते हुए बोला – इस तोते जैसी नाक पर रखा हुआ ढेर सारा गुस्सा अगर ख़तम हो जाए तो देख कर बताना कपड़े कैसे हैं…????

शंकर के इन प्यार भरे शब्दों ने सलौनी के अंदर का सारा डर निचोड़कर बाहर फेंक दिया…, कुछ देर वो उसकी आँखों में अपने लिए भाव तलाश करती रही जहाँ उसे अपनी बेहन के लिए सिर्फ़ और सिर्फ़ प्यार ही प्यार दिख रहा था…!

कोमल मंन एक झटके में पिघल गया.., अंदर छुपि हुई अपने भाई की इतने दिनो की जुदाई को वो और नही सह पाई.., उसकी चंचल कजरारी आँखों में दो बूँद मोतियों की उमड़ पड़ी…!

अपनी रुलाई पर काबू रखने के प्रयास में उसका चेहरा बनने-बिगड़ने लगा और भर्राये हुए भावुक स्वर में बोली – मे कब गुस्सा
हुई भाई…, तूने ही तो मुझे थप्पड़ मारा था.., तो मे डर गयी थी तुमसे….!

शंकर को उसकी बात सुनकर एक तेज धक्का सा लगा…उसका दिल अपनी बेहन के लिए रो उठा…, क्या मेरी गुड़िया मुझसे डर
रही थी अबतक और में साला गधा…उल्लू का पट्ठा उसे नाराज़ समझ रहा था…!

लाख कोशिशों के बावजूद शंकर अपने आँसुओं को बाहर आने से रोक ना सका और उसने अपनी बेहन को, अपनी गुड़िया को खींचकर अपने सीने से लगा लिया…!

उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोला – मेरी गुड़िया मुझे माफ़ कर दे…, तू मुझसे इसलिए दूर रही कि तुझे मुझसे डर
लग रहा था…,, और..और…मे गधा ये समझता रहा कि मेरी प्यारी बेहन मुझसे नाराज़ है….!

सलौनी उसके सीने में लगी सुबक्ते हुए बोली – तूने ये सोच भी कैसे लिया भाई कि मे तुझसे कभी नाराज़ भी हो सकती हूँ..,
वो भी इतने दिनो तक…?

जब माँ ने भी मुझे ही डांटा तो मे बहुत डर गयी थी.., ना जाने मुझसे कितनी बड़ी ग़लती हुई है इस बजह से मुझे इतना
प्यार करने वाला भाई गुस्सा हो गया, आइ आम सॉरी भैया….!

शंकर ने उसे खीचकर अपनी गोद में बिठा लिया और उसके माथे को चूमते हुए बोला – सॉरी तो मुझे कहना चाहिए लाडो…, मुझे घर आते ही उसी दिन तुझसे बात करनी चाहिए थी… तो आज तक हम दोनो के बीच ये भ्रम की दीवार ही नही रहती…!

चलो खैर अब जो हुआ सो हुआ, अब वादा करो कि हम दोनो में से कोई भी ऐसा काम नही करेगा जिससे फिरसे ऐसी दीवार
खड़ी हो.., ये कहकर शंकर ने सलौनी के गालों पर लुढ़क आए उसके खारे पानी को चूम लिया…!

सलौनी अपने भाई का प्यार पाकर फिरसे खिल उठी.., उसने शरारत भरे लहजे में अपने होठों पर उंगली रखते हुए कहा – और
यहाँ कॉन चूमेगा…?

शंकर ने मुस्कराते हुए उसके होठों को भी चूम लिया…, शंकर के ढकते होठों का स्पर्श पाकर उसके होठ लरज उठे…, एक अनूठे आनद की लहर सलौनी के समूचे बदन में दौड़ गयी…, उसने शंकर के दोनो हाथों को अपने हाथों में लेकर अपने अनारों पर रख दिए…!

शंकर ने उसकी आँखों में झाँका.., सलौनी की आवाज़ किसी गहरे पानी से आती हुई निकली….मुझे प्यार करो भैया…, मे तेरे प्यार के लिए कब से तड़प रही हूँ.., इतना कहकर उसने अपनी आँखें बंद करके शंकर के होठों को किस करना शुरू कर दिया…!

शंकर के हाथ भी उसके कठोरे गेंद जैसे उभारों पर चलने लगे और वो उन्हें बड़े प्यार से सहलाने लगा…!

सलौनी की जांघों के बीच सुरसूराहट होने लगी…, इधर शंकर का घोड़ा भी पॅंट के अंदर हिन-हिनाने लगा.., और अपने जागने
का सबूत सलौनी की मुलायम गान्ड को दबाकर देने लगा…!

भाई के गरम लंड को अपनी गान्ड की दरार के उपर महसूस करके सलौनी की मुनिया खुशी से लार टपकाने लगी…! लेकिन…..

इससे पहले कि वो दोनो कुछ और आगे बढ़ते.., उन्हें किसी के कदमों की आहट सुनाई दी.., पलटकर बाहर के दरवाजे की
तरफ दोनो की नज़र एक साथ पहुँची जहाँ अपनी कमर पर हाथ रखे उनकी माँ मंद-मंद मुस्करा रही थी…!

पास आते हुए बोली – तो तोता-मैना में सुलह हो गयी…, हां भाई…, एक दूसरे से मिलने की आग कब तक दूर रहने देती…??

सलौनी – हां..हां…तू तो यही चाहती है ना कि मेरा भाई मुझसे दूर रहे…!

शंकर ने प्यार से उसे झिड़कते हुए कहा – ये तू माँ से किस तरह बात कर रही है गुड़िया…?

रंगीली – बोलने दे बेटा…, तेरी बेहन अपनी माँ की सबसे बड़ी सौत है…, रंगीली के ये शब्द सुनकर तीनो के चेहरे खिल-खिला उठे…, अगले ही पल वो तीनों उसी चारपाई पर एक दूसरे की बाहों में लिपटे पड़े थे….!
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10-16-2019, 07:24 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
कुछ देर तीनो माँ-बेटा-बेटी एक ही चारपाई पर गुथम-गुत्था पड़े रहे.., शंकर दोनो के बीच में था.., माँ की मोटी केले जैसी जाघ इस समय उसके जंग बहादुर की मसाज करने में व्यस्त थी तो वहीं बेहन के अनार दाने शंकर की बगल से सटे हुए अपने कड़कपन का एहसास करा रहे थे…!

कुछ देर बाद रंगीली ने लेटे ही लेटे पहले अपने बेटे के माथे का चुंबन लिया और उसके बाद वो शंकर की छाती से अपने बड़े बड़े दशहरी आमों को रगड़ते हुए सलौनी के चेहरे की तरफ अपने मूह को ले गयी…!

इतने से ही शंकर का जंग बहादुर सलामी देने के अंदाज में आने लगा था.., जवान दिल की उमंग सलौनी के अंदर भी अंगड़ाई लेने लगी थी…!

रंगीली ने उठते हुए कहा – चलो अच्छा है तुम दोनो की सारी ग़लत-फहमी दूर हो गयी.., तुम दोनो बातें करो मे तब तक शाम के खाने पीने
का इतेजाम करती हूँ…!

रंगीली के जाने के बाद सलौनी ने भी खड़े होते हुए कहा – भाई मुझे तुझसे एक शिकायत है…, तू सारी दुनिया को अपनी जीप में घुमाता
फिरता है.., लेकिन आज तक अपनी बेहन को कभी नही बिठाया…!

शंकर उठते हुए बोला – चल बोल कहाँ चलना है…?

सलौनी – क्यों ना आज जीप से खेतों का चक्कर लगायें…?

शंकर – ठीक है.., मुझे वैसे भी खेतों की तरफ जाना भी था.., इसी बहाने दोनो काम हो जाएँगे…!

रंगीली का प्लान एक दम सही मंज़िल की तरफ उसे लगभग उड़ाए ही ले जा रहा था.. लाला जी की इकलौती करोड़पति बहू उसकी मुट्ठी में है…, उसके लिए बस मानो शंकर ही भगवान है…!

बिना माँगे उसने शंकर के लिए अपनी तमाम ज़मीन जयदाद के खजाने खोल दिए थे…, और क्यों ना खोले…, आज जिस मर्यादा और सम्मान
के साथ वो इस हवेली में जी रही है, उसका श्रेय कहीं ना कहीं शंकर की कृपा से ही तो था…!

वरना तो इस खानदान ने अपनी झूठी मान मर्यादा के चलते उसके सिर पर एक सौत ला के रख दी थी…,

उसी बहू की कृपा से आज शंकर एक चमचमाती हुई जीप में सवार अपनी छोटी बेहन को खेत घुमाने ले जा रहा था…!

क्या शान थी उसके नूर की.., थोड़ी सी सुर्ख रगत लिए उसका गोरापन.., भरा हुआ शख्त चेहरा जिसपर हल्की हल्की दाढ़ी मुन्छे..बहुत फॅब रही थी..,

किसी फिल्मी हीरो जैसा…, कसा हुआ बदन, चौड़ा शेर जैसा सीना, बाहों के मसल्स क़ाबिले तारीफ़ पतला पेट कमर के नीचे तो जैसे कोई
\ आदिमानव खड़ा हो….!

एक बॉडी फिट टीशर्ट और होजरी के सॉफ्ट कपड़े के ट्राउज़र में वो इस समय धर्मेंदर जैसा लग रहा था.., और उसके साथ वाली सीट पर
बैठी उसकी छोटी बेहन.., जो शंकर के शहर से लाए हुए कपड़ों में से एक जोड़ी लिवास, जिसमें शहर की झलक साफ साफ दिखाई दे रही थी…!

बॉडी फिट शॉर्ट कुर्ता के नीचे टाँगों से चिपकी लेंगिग, गाढ़े कॉफी कलर का सूट जिसका कपड़ा इतना सॉफ्ट कि दोनो इकट्ठा एक मुट्ठी में समा जाए…!

गाओं की गलियों से गुज़रते हुए शंकर की जीप खेतों की तरफ निकल पड़ी…, इन दोनो के भाग्य से गाओं के दूसरे लड़के लड़कियाँ जलने लगे थे.., लोगों की परवाह किए बिना दोनो भाई बेहन चक्रॉड से होते हुए लाला जी की तमाम ज़मीन के बोचो बीच बने हुए फार्म हाउस नुमा\
मकान पर जा पहुँचे…!

यहाँ कई एकर के बीच बाउंड्री देकर अंदर कुछ बाग बगीचा भी था कई बड़े बड़े हॉल नुमा कमरे जो कि अनाज इत्यादि फसल की आवक के साथ साथ फार्मिंग से संबंधित बहुत सारी मशीनरी ट्रॅक्टर, हल इत्यादि रखे रहते थे….!

फार्म हाउस के अंदर जीप खड़ी करते ही सलौनी बगीचे में घूमने लगी.., पेड़ों पर उड़ रही रंग बिरंगी तितलियों के पीछे पागलों की तरह उन्हें पकड़ने दौड़ पड़ी..,

जो हाथ आ जाती, उसे अपने हाथ पर रख कर उसकी सुंदर पंखों को उंगलियों के पोरों से सहलाती.., कुछ देर उसके साथ मस्ती करती और
फिर छोड़ देती.., फिर किसी दूसरे रंग की तितली को पकड़ने लगती…!

सलौनी इन सब में मस्त हो गयी.., शंकर एक नज़र उसकी मस्ती पर डालकर हँसते हुए लाइन से बने कमरों में से एक की तरफ बढ़ गया…!

एक के बाद एक कमरे में रखे गल्ले की बोरियों की गिनती करके, एक छोटे से ऑफीस नुमा कमरे में आया जहाँ लेखा जोखा रखने के लिए रिजिस्टर रखा हुआ था उसको चेक किया…!

अभी वो ये सब काम में बिज़ी ही था कि तभी उसे सलौनी के चीखने की आवाज़ सुनाई दी…, भैया….बचाओ मुझे…., माआ…बचाओ….

सलौनी की आवाज़ सुनकर शंकर फ़ौरन कमरे से बाहर आया, सलौनी बगीचे की तरफ से बेत-हाशा भागती हुई उसकी तरफ आ रही थी..,
शंकर भी तेज-तेज कदम रखता हुआ उसकी तरफ बढ़ा.., जब उसने सलौनी के पीछे देखा तो उसे कुछ भी नही दिखा…!

फिर ये किससे डर कर चिल्लाते हुए भागती आ रही है.., वो ये सब सोचते हुए सलौनी की तरफ बढ़ा.., तबतक वो भी भागती हुई उस तक पहुँच गयी.., और देखते ही देखते भाई बचा मुझे कहती हुई दौड़कर उसके गले में झूल गयी..!

बक़ायदा उसने किसी छोटी बच्ची की तरह अपने दोनो पैर शंकर की कमर के इर्द-गिर्द लपेट लिए और मुन्डी घुमा कर उस तरफ देखने लगी जिधर से भागती हुई आ रही थी…!

सलौनी की साँसें बुरी तरह से फूली हुई थी.., उसके पतले कपड़े पसीने की बजह से और ज़्यादा बदन से चिपक गये थे…!

एक बार पीछे देखकर वो शंकर के सीने से जोंक की तरह चिपक गयी और अपना मूह उसके कंधे में छुपाकर तेज तेज साँसें भरने लगी…!

शंकर ने एक बार उस तरफ देखा जिधर से सलौनी भागकर आई थी…,

करीब 50 मीटर दूर गेन्दा की क्यारी में उसे पेड़ों के हिलने के साथ साथ सरसराहट सी सुनाई दी.., फिर उसने सलौनी की स्थिति पर गौर
किया जो इस समय उससे ऐसी चिपकी थी की दोनों के बीच से हवा का एक कतरा भी पास ना हो सके…!

सलौनी का दिल धड़-धड़ कर रहा था.., जिसकी धड़कन साफ-साफ शंकर के कानों में पड़ रही थी, उसके दोनो कच्चे-पके कठोर अनार
उसके सीने से दबे पड़े थे, उसकी हल्की सी फूली हुई मुनिया ठीक उसके लंड के आगे सटी हुई थी…,

दोनो के शरीर की वस्तुस्थिति का ज्ञान होते ही शंकर के बदन में अजीब सी उत्तेजना पैदा होने लगी…, और अपनी बेहन की मुनिया की इतने पास से खुश्बू सूँघकर तो उसका बाबूराव अपना सिर उठाने पर मजबूर ही होने लगा…!

शंकर ने सलौनी की पीठ सहलाते हुए पुछा – क्या हुआ गुड़िया…, किससे डर गयी तू…, यहाँ तो कोई भी नही है…?

सलौनी ने उसके गले से चिपके हुए ही.., बिना उस तरफ देखे.., अपने एक हाथ को उसके गले से निकालकर उस गेंदे की क्यारी की तरफ
इशारा करते हुए डर से कांपति हुई आवाज़ में कहा… वहाँ एक बहुत बड़ा काला भुजंग नाग है…!

मे जैसे ही उस क्यारी के पास पहुँची, अपना पंजा चौड़ा करके बताते हुए बोली – ये चौड़ा सा अपना फन फैलाए वो एक दम से मेरे सामने खड़ा होकर मेरी तरफ अपनी जीभ लॅप लपा रहा था…!

उसे देखते ही मेरी तो एकदम से जान ही सूख गयी.., मूह से आवाज़ ही नही निकल पा रही थी…, फिर जैसे ही उसने मेरी तरफ फुसकार
मारी में डर के मारे पीछे ज़मीन पर गिर पड़ी…!

फिर उसने एकदम से अपना फन सिकोडा और मेरी तरफ रेंगने लगा.., मे जैसे तैसे हिम्मत करके खड़ी हुई और बिना उसकी तरफ देखे इधर को भाग पड़ी…!

इतना कुछ बताते बताते सलौनी हाँफने लगी…, शंकर ने उसके कंधे को पकड़ कर अपने से अलग करने की कोशिश करते हुए कहा – अरे अब वो यहाँ नही है.., चला गया.. चल अब तो अलग हो मुझसे…!

सलौनी ने उसे और ज़ोर्से कस लिया और डरते हुए बोली – नही भैया प्लीज़ मुझे नीचे मत उतार.., मुझे बहुत डर लग रहा है.., ऐसा लग रहा
जासे वो अभी भी मेरे पीछे ही है…, इतना कहकर उसने शंकर को और ज़ोर्से भींच लिया…!

उसके अनारों की चुभन शंकर के सीने में महसूस हो रही थी…, अब सलौनी ने अपनी कमर को भी शंकर के साथ और सटा दिया.., जिससे उसकी मुनिया उसके लंड पर दबने लगी…, जो अब धीरे-धीरे उसी नाग की तरह अपना फन फैलाने लगा था…!

लेकिन बेचारा था तो पिटारे में ही क़ैद.., तो इससे ज़्यादा कुछ नही कर सकता था कि बस अपनी मन पसंद सुरंग की सुगंध को सूंघ कर अंदर ही अंदर फडफडा कर रह गया…!
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10-16-2019, 07:25 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
लेकिन पिटारे के अंदर से ही उसकी फुसकार कोई कम नही थी..,

सलौनी को जैसे ही अपनी मुनिया की फांकों पर शंकर के सख़्त लंड का दबाब महसूस हुआ अब वो उस नाग के डर को भूलकर इस पिटारे में बंद नाग की तरफ आकर्षित होने लगी…….!

सलौनी का वास्तविक डर तो कब कर गायब हो चुका था.., लेकिन अब वो इस डर के माहौल को थोड़ा लंबा खींचने का मन बना चुकी थी…!

शंकर के नाग का पिटारा इतना भी मजबूत नही था कि उसको फुफ्कारने से रोक लेता.., दोनो के कपड़े थे तो बहुत ही सॉफ्ट.., गनीमत ये थी की शंकर पाजामा के अंदर एक फ्रेंची भी पहने था.., वरना तो उन कपड़ों का भगवान ही मालिक था…!

उसकी राइफल के निशाने पर उसकी खुद की प्यारी बेहन की मुनिया है…, इसी एहसास ने शंकर की उत्तेजना को और भड़का दिया.., और
उसका घोड़ा पछाड़ कुछ ज़्यादा ही भड़क उठा…!

वो इतना सख़्त हो गया की सलौनी को लगने लगा था कि भैया का लंड उसकी चूत की फांकों को चौड़ाता हुआ अभी अंदर घुस जाएगा…,

भैयाअ….कहते हुए उसने उपर को संभलकर गोद में बैठने के बहाने अपनी मुनिया को उसके लंड से रगड़ दिया…!

एक ही जगह दबने से इतना फरक नही पड़ता जितना उसी दबाब में कोई चीज़ चूत को रगड़ने लगे तो फिर कहना ही क्या…, हल्का सा ही घिस्सा लगने से सलौनी की मुनिया के ही नही अपितु उसके पूरे बदन के रोंगटे खड़े हो गये…!

घबराकर उसकी मुनिया ने अपनी लार टपका दी….!

शंकर अपनी बेहन की इक्षा अच्छे से समझ पा रहा था…, उसने भी उसे अपनी गोद से उतारने की फिर कोई कोशिश नही की और उसके
गोल-गोल बोलीबॉल के आकर के गान्ड की गोलाईयो को अपने पंजों में भरकर भींच दिया…!

शंकर के इश्स प्रयास ने सलौनी को और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया…, और अब वो धीरे-धीरे इस तरह से अपनी मुनिया को उसके कड़क लंड पर घिसने लगी जिससे शंकर को ये ना लगे की वो अपने मज़े में ऐसा कर रही है…!

5-7 मिनिट तक शंकर उसे ऐसे ही गोद में लिए वही खड़ा रहा…, वो अपने मूह से सलौनी को चुदने के लिए नही बोलना चाहता था…!

उधर सलौनी भी अपनी तरफ से पहल करने में हिच किचा रही थी…, कहीं उसका भाई फिरसे उससे नाराज़ ना हो जाए…, सो वो जितना इस बहाने से मज़ा ले सकती है लेटी रहे…!

इतनी ही देर में सलौनी की चूत पानी छोड़ने लगी थी…, उसकी कच्छि गीली होकर चिपचिपाने लगी थी…,


लंड पर दबे होने के कारण उसकी चूत का गीलापन अब शंकर अपने लंड पर महसूस करने लगा था…, और इसी गीलेपन के एहसास ने
उसके लौडे को और भड़का दिया…!

उसका बाबूराव अंदर ही अंदर फड़-फडा रहा था – मानो अपने मालिक से कह रहा हो.., माँ चुदा गया तेरा प्रण…, भोसड़ी के जल्दी से मुझे
बाहर कर.., देख मादरचोद उसकी सुरंग ने मेरे लिए छिड़काव भी कर दिया है अब तो.., अब क्या देखता ही रहेगा भेन्चोद….!

लंड की भाषा समझ कर शंकर मन ही मन मुस्करा उठा…, वो सलौनी की गान्ड के नीचे अपनी हथेलियों का दबाब बढ़ते हुए ऑफीस वाले कमरे की तरफ चल दिया…!

उसे कमरे की तरफ बढ़ता देख सलौनी का मन मयूर होकर नाचने लगा…, उसे पूरा विश्वास हो गया कि अब अंदर ले जाकर उसका भाई
उसको चोदने वाला है….!

अंदर जाकर शंकर ने सलौनी को टेबल पर बिठा दिया… और उसके कंधों को पकड़ कर अपने से अलग करते हुए बोला – ले इस टेबल पर
बैठ जा.., फिर तो तुझे उस काले नाग से कोई डर नही रहेगा ना…!

एक सेकेंड पहले सोचे गये सलौनी के सुनहरे सपने पर… उसके दिल की खुशी पर शंकर के इन शब्दों ने बाल्टी भरकर पानी डाल दिया…!

इससे पहले की शंकर उससे अलग हो पाता… उसने लपक कर शंकर की कमर को पकड़ लिया और बनावटी डर भरे स्वर में बोली – नही
भैया…प्लीज़ मुझे छोड़ कर दूर मत जा.., वरना वो नाग मुझे काट लेगा…!

शंकर उसके मन की बात अचे से समझ रहा था कि नाग तो एक बहाना है.., उसे तो बस मज़ा करना है उसके साथ.., लेकिन खुलकर कह नही पा रही है.., चलो देखते हैं.., कब तक नही कहेगी..,

सो उसने उसके हाथ पकड़ कर अपनी कमर से अलग किए और कहा – अरे तू डर मत लाडो, मे तुझे छोड़ कर कहीं नही जा रहा.., यहीं तेरे
पास बैठकर कुछ काम-काज देख लूँ…?

बेचारी सलौनी…, अब क्या बहाना बनाए…? उसे शंकर को बेमन से छोड़ना ही पड़ा.., शंकर घूम कर उसी टेबल के दूसरी तरफ पड़ी चेयर पर बैठ गया…!

लेकिन अब सलौनी की गीली मुनिया उसे चैन से बैठने नही दे रही थी…, वो टेबल पर बैठे ही बैठे शंकर की तरफ घूम गयी…, अपने पैर

शंकर की मजबूत मोटी-मोटी जांघों पर रख लिए.., और उसके हाथ पकड़ कर अपने गालों पर रख दिए…!

शंकर ने उसकी आँखों में झाँका…, जिनमें निमंत्रण देती हुई याचना भरी हुई थी…, कुछ कहने के लिए सलौनी के होठ फड़-फडा रहे थे लेकिन उनसे कोई शब्द बाहर नही आ पा रहा था…!

शंकर को अपनी लाडली बेहन की ये बैचानी सहन नही हो रही थी…, उसने उसके सुन्दर चाँद जैसे मुखड़े को अपनी हथेलियों में लेकर
उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा –

मे जानता हूँ सलौनी तू मुझसे क्या चाहती है…? ये कहकर उसने अपना मूह आगे बढ़कर उसके लज़्जत से लबरेज रसीले होठों पर अपनी
प्यार भरी रज़ामंदी की मुहर लगा दी….!

सलौनी की तो जैसे लॉटरी ही निकल पड़ी…, शंकर के चेहरे के हटते ही वो उसकी गोद में समा गयी.., और बाबली मस्तानी होकर उसके चेहरे पर अपने प्यार के चिन्ह अंकित करने लगी…!

बेतहाशा होकर उसने शंकर के चेहरे को चुंबनों से भर दिया…,

शंकर अपनी बेहन का उतबलापन देख कर मन ही मन मुस्करा उठा.., उसने उसकी पतली कमर को अपने बड़े बड़े हाथों में जकड़ा और
अपनी गोद से उठाकर उसे फिरसे टेबल पर बिठा दिया…!

एक हाथ उसके कठोर उभार पर रखा और दूसरे से उसकी गीली मुनिया को आगे से पंजे में दबा कर प्यार से मसल डाला…..!

सस्स्सिईईईईई……आआहबहह……भाईईईई….. बहुत प्यसीईई..है..तेरी गुड़िया…, इसे अपने मर्दाने हाथों से मसल दे मेरे रजाअ…भैयाअ…..!

रुक…, इतना बोलकर शंकर चेयर से उठा और जाकर गेट बंद कर दिया.., जिससे कोई कमरा खुला देख कर झाँकने ना लगे…!

वापस आकर उसने सलौनी का कुर्ता उठा दिया, छोटी सी ब्रा में क़ैद उसके कड़क अनार उसके हाथों में आने को मचल रहे थे.., शंकर ने भी उनकी इक्षा पूरी करते हुए अपने हाथों में लेकर हल्के से मसल दिया….!

सलौनी तड़प उठी.., और उसने भी अपने सामने खड़े भाई के फुफ्कार्ते हुए लौडे को अपनी मुट्ठी में लेकर दबा दिया…!

आहह…गुड़ीयाअ…कहकर शंकर ने झुक कर उसके होठों पर हमला बोल दिया.., दोनो के होठ आपस में जुड़ गये और हाथों ने अपना काम
जारी रखते हुए एक दूसरे के वाकई के कपड़ों को बदन से जुदा कर दिया…!

सलौनी की दो बार की चुदि मुनिया…, पतले-पतले होठों के बीच लस-लसे रस से सराबोर…शंकर की चटोरी जीभ देखते ही उस पर झपट पड़ी…,

जीभ के चूत पर लगते ही सलौनी के मूह से एक बेहद कामुक सिसकी निकल पड़ी…, शंकर गहराई तक उसकी मुनिया को अपनी जीभ से
खोदने लगा…, सलौनी की गान्ड स्वतः ही आगे पीछे होने लगी…!

उसे अब लगने लगा कि वो अब अपने आप को रोक नही पाएगी…, सो उसने शंकर के घुंघराले बालों को अपनी मुट्ठी में कसकर उसका
चेहरा अपनी चूत से अलग किया.., उसके होठों को चूम कर बोली –

अब सबर नही हो रहा भाई…, अपने इस हथियार से मेरी कुटाई कर दे प्लीज़… ये कहकर उसने शंकर के 120 डिग्री पर खड़े सुलेमानी लंड
को अपनी मुट्ठी में जकड कर उसके दहक्ते सुपाडे को अपनी चूत की फांकों पर रगड़ने लगी…!

सलौनी का उतबलापन देख कर शंकर ने भी देर नही की…, सलौनी को टेबल पर ही लिटा दिया.., अपनी तरफ खींचकर उसकी गान्ड को
टेबल के किनारे पर रखा और टाँगें फैलाकर अपने दहकते सुर्ख सुपाडे को उसकी मुनिया के छोटे से छेद पर टिका दिया…!

सलौनी के मन मे दबी मनोकामना पूरी होने का समय आगया था.., उसने अपनी तरफ से अपनी गान्ड को उचका कर शंकर के लंड का
स्वागत किया.., लेकिन जैसे ही उसका सुपाडा उसकी चूत की फांकों को चौड़ा कर अंदर घुसा…..!

उसकी मुनिया लंड की गर्मी सहन नही कर पाई और खुशी के मारे उसने अपना रुका हुआ कामरस छोड़ दिया…..!

बिना चुदे ही सलौनी एक बार झड चुकी थी…, उसकी कमर कंप-कँपाने लगी थी.., शंकर उसकी स्थिति समझ चुका था.., सो उसने अपने
लौडे को उसी पोज़िशन में रख कर उसके उभारों को सहलाते हुए सलौनी के होठों को पीने लगा…!

थोड़ी ही देर में सलौनी की वासना फिरसे उफान लेने लगी.., और उसने अपनी गान्ड उचका दी…, ये सिग्नल था अपनी तैयारी का और ये
बताने का की बस अब वो भी इस मलल्ल्ल-युद्ध के लिए तैयार है…!

सही मौका देख कर शंकर ने एक करारा धक्का लगा दिया.., एक बार की झड़ी.., पानी से लबालब चूत में उसका मूसल जैसा लंड सर
-सरा कर तीन-चौथाई तक सलौनी की छोटी सी चूत में समा गया…!

सलौनी को अपनी चूत में खूँटा सा ठुका महसूस हुआ.., मज़े की प्यासी लौंडिया.., दाँत पर दाँत जमाकर उस झटके को झेल गयी…, और फिर शुरू हुआ वहाँ घमासान.., जो एक घंटा तक बदस्तूर जारी रहा.., कोई भी पहलवान कम पड़ने का नाम नही ले रहा था….!

जब दोनो पूरी तरह से संतुष्ट हो गये तभी अलग हुए.., कपड़े पहन कर जब बाहर निकले तो शाम का धूंधुलका वातावरण में व्याप्त हो चुका था…..!!!!
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10-16-2019, 07:25 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
उसी रात काम धंधा निपटा कर रंगीली शंकर के कमरे में पहुँची…, दिनभर का हारा थका शंकर जो कुच्छ घंटा पहले ही अपनी बेहन की मनोकामना भी पूरी करके आया था.., सोने की कोशिश कर रहा था….!

माँ के आने की आहट पाकर उसने अपनी आँखें खोल दी और कुहनी के बल अढ़लेटा सा होते हुए बोला – आ जा माँ.., मे तेरी ही बाट देख रहा था…!

रंगीली भी उसके बगल में बैठ कर अपने पैर लंबे करते हुए अपने बेटे के बालों में उंगलियाँ डालते हुए बोली – हो गयी सुलह बेहन भाई में…?

शंकर – हां माँ, हो गयी.., दरअसल वो उस वाकिये से डरी हुई थी.., और हम समझ रहे थे वो रूठ गयी है..,

रंगीली उसकी आँखों में देखते हुए अपने होठों पर मुस्कान लाते हुए बोली – हुउऊंम्म….तो शाम को खेतों में सारे गीले शिकवे दूर कर लिए होंगे तुम दोनो ने…,

शंकर ने अपना सिर माँ की चुचियों पर रखते हुए उसके मांसल नंगे पेट को सहलाते हुए बोला – हां माँ.., बहुत उतावली हो रही थी मेरे लिए,

वहाँ बगीचे में उसने एक साँप देख लिया था…, उससे डरकर वो मेरे साथ चिपक गयी.., उसी का डर दूर करने के चक्कर में मुझे उसके साथ वो सब करना पड़ा…!

रंगीली ने उसके बालों को मुट्ठी में कसते हुए उसके सिर को अपने आँचल से उठाया और उसकी आँखों में झाँकते हुए बोली – अरे तू तो ऐसे ऐसे सफाई दे रहा है जैसे मेने कभी कोई एतराज किया हो तुम दोनो के मिलने पर..,

फिर वो शंकर के लंड को उसके बरमूडा के उपर से दबाते हुए बोली - मुझे पता है अब उस’से ज़्यादा दिन तेरे इस नाग से दूर नही रहा
जाएगा.., और फिर मे होती कॉन हूँ तुम दोनो को रोकने वाली..,

जब मुझसे ही ज़्यादा दिन दूर नही रहा जाता तो वो तो बेचारी अभी नयी नयी जवान हुई है.., वैसे तेरा क्या रहा वहाँ शहर में…?

शंकर अपनी माँ से लिपटते हुए बोला – अड्मिशन तो हो गया है.., दो महीने बाद रिज़ल्ट आते ही मुझे शहर जाना पड़ेगा…, मे तुम लोगों से
दूर कैसे रह पाउन्गा माँ…?

रंगीली ने लाड से उसके बालों में अपनी उंगलियाँ घुमाते हुए कहा – बेटा हम लोग कहाँ भागे जा रहे हैं.., दो साल की ही तो बात है उसके
बाद तेरी जिंदगी तो संवर जाएगी…, और फिर शहर कॉन सा लंदन में है, हर महीने आ जाया करना…!

वैसे मेरी सुषमा बहू से बात हुई थी…, उसके मामा-मामी बहुत अच्छे इंशन हैं.., कह रही थी कि मामी तुझे अपने साथ ही रखने की ज़िद कर रही थी…!

मामी का जिकर आते ही शंकर के लंड में करेंट सा दौड़ गया.., एक पल में ही मामी के गोरे चिट्टे खरबूजे उसकी आँखों के सामने घूमने लगे…,

रंगीली की गहरी गुदाज नाभि में अपनी उंगली घूमाते हुए बोला – हां माँ बहुत अच्छे लोग हैं.., मामा जी ने सुनते ही कह दिया था कि मेरा अड्मिशन समझो हो गया.., कॉलेज जाकर खाना-पूर्ति ही की बस….!

रंगीली – मे मामी के बारे में बोल रही थी, जिनका नाम सुनते ही तेरा ये लॉडा हिलने लगा था…, कोई खास चीज़ है उनके पास…!

माआअ….कहकर शंकर शर्मीले बच्चे की तरह अपनी माँ की कमर से लिपट गया.., और उसके मुलायम गुदाज पेट से अपना गाल सटाते हुए
बोला - वैसे हैं तो बहुत सुन्दर, और पता है मामा जी से तो वो बहुत छोटी हैं वो….!


रंगीली – तब तो वो तुझे अपने पास ज़रूर रखेंगी कहकर रंगीली ने शंकर के लौडे को मसल दिया और बोली – लगता है उनकी नज़र तेरे
इस हलब्बी लंड पर ज़रूर पड़ गयी होगी…अब वो इससे ज़्यादा दूर नही रह पाएँगी.

चल कोई ना…, तुझे तो चूत से मतलब.., लेकिन बेटा ये दो महीने अपनी माँ की चूत की आग ठंडी करते रहना.., फिर दो साल तो ये कम ही मिलेगा.., ये कहकर उसने शंकर को अपनी टाँगों के बीच जाने का इशारा कर दिया…!

शंकर अपनी माँ के लहँगे को कमर तक चढ़कर उसकी पाव रोटी जैसी फूली हुई चूत को अपने हाथ से मसलने लगा…!

रंगीली अपने होठ का कोना अपने दाँतों में दबाते हुए आहें भरने लगी, उसने अपनी चोली के सारे बटन खोल डाले, उसकी मस्त मांसल
खरबूजे जैसी चुचियाँ उछल्कर हवा में लहरा उठी…,

अपने निप्प्लो को अपने अनुगूठे में दबाते हुए बोली- आअहह…अपनी जीभ से चाट मोरे राजा बेटा…, आआययईीीई…हुउम्म्मन्णन…निगोडे…जीभ अंदर डाल ना….!

शंकर ने उसकी चूत के मोटे से दाने को अपनी उंगलियों के बीच में दबा लिया और उसकी गुलाबी चूत के छेद में अंदर तक जीभ घुसाकर
जीभ से ही अपनी मस्त मलन्द माँ की चूत को चोदने लगा…!

रंगीली की मज़े की अधिकता में साँसें उखड़ने लगी.., वो अपनी गान्ड को हवा में लहराकार शंकर की जीभ को और ज़्यादा अंदर तक लेने की कोशिश करने लगी…

लेकिन हर चीज़ की अपनी एक सीमा होती है.., अब उसकी चूत को जीभ से भी बड़ी और कड़क चीज़ की ज़रूरत महसूस हो रही थी.., सो उसने बड़ी बेदर्दी से शंकर के बालों को अपनी मुट्ठी में भरकर उसे अपने उपर खींच लिया….!

शंकर उसके उपर आकर दोनो हाथों से उसकी मस्त गुदाज चुचियों को बेदर्दी से दबाते हुए उसके रसीले होठों का रस्पान करने लगा…,
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10-16-2019, 07:25 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
रंगीली ने अपना हाथ नीचे ले जाकर उसके घुटन्ने (बरमूडा) को नीचे सरका दिया.., शंकर के सख़्त कड़क रोड जैसे गरम लंड को पकड़कर
अपनी चूत की मोटी-मोटी फांकों पर रगड़ते हुए सिसकने लगी…!

रंगीली की चूत उसके ही कामरस से लिथड चुकी थी.., उसको अब एक सेकेंड का भी इंतेजार सहन नही हो रहा था.., कयि दीनो के बाद उसे अपने बेटे का कड़क सुलेमानी लंड लेने का मौका मिल रहा था…!

लंड को अपनी चूत के मुहाने पर टिका कर उसने अपनी दोनो टाँगें शंकर की कमर में लपेट ली और नीचे से अपनी गान्ड उचका कर उसके
लंड को अपनी चूत में निगलने लगी..,

ठीक उसी पल शंकर ने भी एक झटका अपनी कमर को लगाया.., दोनो के प्रयास से उसका समुचा लंड एक झटके में ही रंगीली की गीली
चूत में समा गया….!

पूरा लंड जाते ही रंगीली की चूत ने शंकर के लंड को अपने अंदर मानो कस लिया.., उसकी पंखुड़ियाँ उसके मोटे लंड पर कस गयी.., और
दोनो के मूह से एक साथ आनंद भरी किल्कारी निकल पड़ी….!

कुच्छ देर वो इस पल का मौन आनंद लेते रहे फिर जैसे ही शंकर ने अपना लंड सुपाडे तक अपनी माँ की कसी हुई चूत से बाहर खींचा,
रंगीली को अपनी चूत खाली खाली सी लगने लगी…,

उस ख़ालीपन को भरने के लिए उसने फिरसे अपनी गान्ड उपर उठा दी.., तभी शंकर ने भी अपनी कमर नीचे की, नतीजा फिर एक बार
उसका खूँटा जड़ तक उसकी चूत में समा गया…!

शुरू शुरू में आहिस्ता आहिस्ता पूरी लंबाई से शंकर अपनी माँ की ओखली में अपना मूसल डालता निकालता रहा.., लेकिन जल्दी ही वासना का ज्वर तेज़ी से दोनो को जकड़ने लगा और उन दोनो की गति समान रूप से तेज़ी पकड़ने लगी….!

आअहह…बेटयाया…पेल अपनी मा को…और तेज..आययईीीई…म्माआ…बहुत मज़ा देता है रे तेरा ये मूसल मुझीए….!

ले माआ… मेरी चुड़क्कड़ माँ…लेले…अपने बेटे का लॉडा अपनी रसभरी चूत में..आअहह… कितना रस छोड़ती है तू…

ऐसी ही आहों कराहो और वासना के बसीभुत दोनो माँ बेटे तूफ़ानी चुदाई में लीन हो गये.., और जब ये ज्वार थमा तो दोनो ही एक दूसरे की बाहों में लिपटे लंबी लंबी साँसें लेते हुए अपर सुख की अनुभूति में डूब गये….!

शंकर के लंड ने ढेर सारे अपने गाढ़े रस से अपनी माँ की ओखली को भर दिया.., जिसको वो अपने अंदर फील करके आँखें मुन्दे आनंद सागर में डूब गयी…..!!!!

दो महीने कैसे गुजर गये..पता ही नही चला, कभी रंगीली का रस भरा अधेड़ बदन, तो कभी सलौनी की कमसिन जवानी, तो कभी सुषमा का
भरा पूरा जवान बदन भोगते भोगते शंकर के दो महीने यौंही बीत गये….!

फिर वो समय भी आ गया जब उसे उन लोगों से विदा लेना था…, रिज़ल्ट अच्छा रहा, उसने ग्रॅजुयेशन अच्छे नंबरों से किया था…!

रिज़ल्ट के एक हफ्ते बाद ही कॉलेज खुलने वाले थे सो निश्चित समय पर वो अपना भविष्य सँवारने के लिए एमबीए की पढ़ाई करने शहर चला गया, जहाँ कुच्छ और भी हसीन पल उसका बेसब्री से इंतेज़ार कर रहे थे…….!!!!
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10-16-2019, 07:25 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
शंकर कॉलेज खुलने से दो दिन पहले ही शहर पहुँच गया, जहाँ एक ओर उसे आया देखकर मामी का मन मयूर होकेर नाच उठा, वहीं चारू
लता के चेहरे के एक्सप्रेशन बता रहे थे कि उसे उसके आने से कोई खास खुशी नही हुई…!

वो भी उसी कॉलेज से बी.कॉम कर रही थी.., ये उसका फाइनल एअर था, और सुंदरता के मामले में वो इस कॉलेज की नाक थी..,

एक तो कॉलेज के सबसे बड़े ट्रस्टी की इकलौती बेटी, उपर इतनी हसीन, ग़ज़ब का फिगर और नाक नक्श से उसे नबाज़ा था उपर वाले ने…,

जिसके पास दौलत भी हो और मर्दों की लार टपकाने लायक सुंदरता भी हो तो स्वाभाविक है ऐसी लड़की में घमंड आना भी लाजिमी था..,
उपर से कॉलेज में मेल और फीमेल मित्रों की लाइन लगी हो..., उसके पाँव तो ज़मीन पर टिकेंगे ही नही…!

बस उसी घमंड की एक झलक उसके चेहरे पर शंकर के प्रति भी दिखाई दी.., जिसे वो गाओं का गँवार समझती थी.., जिस लड़के को शहर के तौर तरीक़े सही से पता ना हों उसे भला वो कैसे अपना फ्रेंड बना ले…..???

लेकिन शंकर को लेकर वर्षा देवी का नज़रिया दूसरा ही था.., एक भरपूर जवान, सुंदरता का खजाना लिए हुए एक औरत जिसकी समय से पहले ही सारी इच्छायें जो एक औरत की होती हैं की उसका पति उसे बिस्तर पर भी उतना ही सुख दे जितना उसे आर्थिक तौर पर मिल रहा था…!

बल्कि उम्र के जिस दौर पर वो थी उस दौर में एक औरत की सेक्षुयल डिमॅंड और बढ़ जाती है, भले ही वो एक टाइम भूखे पेट रह सकती है लेकिन हर रात वो यही कामना करती है की उसका मर्द उसे भरपूर शरीरक सुख दे…!

लेकिन उनके साथ ऐसा नही हुआ, पति की बढ़ती उम्र, पैसे कमाने का जुनून के चलते उनके शारीरिक संबंधों में सालों पहले ही नीरस्ता आने लगी थी..,

अब तो कुच्छ सालों से आलम ये था कि सेक्स होता क्या है उसके बारे में भी वो लगभग भूल चुकी थी.., और धीरे धीरे उनका झुकाव पूजा-पाठ की तरफ बढ़ता गया…!

लेकिन दो महीने पहले जब उनकी भांजी सुषमा और शंकर उनके यहाँ आए थे, और उन दोनो की कामलीला का चलचित्र जब से उन्हें देखने का सौभाग्य मिला, तब से उनकी नीचे वाली सहेली ने साफ साफ इनकार कर दिया की अब मुझे भी दूसरियों की तरह एक मजबूत और
टिकाऊ औजार चाहिए…बस.

उसी समय उन्होने ये तय कर लिया था कि वो भी अब शंकर के उस हलब्बी लंड को अपनी सहेली में लेकर ही मानेंगी.., और शायद इसलिए
उन्होने ज़िद करके शंकर को अपने घर में रहने के लिए मना भी लिया था…!

तो आज जब शंकर को उसके बॅग के साथ दरवाजे पर खड़ा देखा तो मानो जैसे उनके पूरे बदन में पंख ही लग गये हों.., उनके मुरझाए चेहरे पर बसंत की हरियाली फैल गयी…!

जब शंकर उनके घर पहुँचा उस समय वो अपने विशालकाय ड्रॉयिंग हॉल में लगा टीवी देख रही थी.., जो कि कलरफूल था.., जिसकी कल्पना उस जमाने में गाओं देहात में कहानी क़िस्सों जैसी थी…!

शंकर को देखकर वो उसकी तरफ लपकी.., नौकर से उसका बॅग लेने को कहा और जो कमरा उसके लिए उन्होने तैयार करवाया था वो उनके बेडरूम के ठीक बगल में ही था उसमें रखने को बोलकर उन्होने उसका हाथ पकड़ कर हॉल में लेकर आईं…!

अपने विशाल सोफे पर उसे बैठने का इशारा करते हुए बोली - आओ शंकर…, बैठो, कैसा रहा सफ़र..? आने में कोई तकलीफ़ तो नही हुई…? मुझे पहले खबर कर देते तो मे अपने ड्राइवर को भेजकर तुम्हें स्टेशन से बुलवा लेती…!
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10-16-2019, 07:25 PM,
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
शंकर मूह बाए एक तक बस मामी को ही देखे जा रहा था जो सीधे पल्लू में गुजराती स्टाइल में पिंक कलर की सिल्क साड़ी में थी.., पल्लू
उन्होने ऐसे ही अपने कंधे पर बस टाँग रखा था जो उनकी एक तरफ की चुची से होता हुआ कंधे पर पड़ा था…!

व शेप गले का स्लीव्लेस्स कसा हुआ ब्लाउस जिसमें से उनकी 34डी की मस्त सुडौल कसी हुई चुचियाँ बाहर उबलने को तैयार थी..,

वक्षों की सुडौलता इस बात से आँकी जा सकती थी कि इतने कसे हुए ब्लाउस के बावजूद भी उनके बीच की गहरी घाटी काफ़ी चौड़ी थी.., वरना तो अमूमन इस उमर की औरतों की चुचियों के बीच कसे हुए ब्लाउस में पिलपिले वक्ष आपस में जुड़कर मात्र एक दरार जैसी बनाते हैं…!

शंकर सोफे पर बैठते हुए बोला – अरे मामी जी आपने तो इतने सारे सवाल एक साथ पुच्छ लिए.., मे तो ये भी भूल गया कि आपका पहला सवाल क्या था..?

पर हां मे किसी ट्रेन व्रैन से नही आया, अपनी जीप से ही आया हूँ, और अच्छे से सही सलामत आपके सामने हूँ….!

ऊहह…मे समझी अकेले की वजह से ट्रेन से ही आए होगे…, खैर और सूनाओ वहाँ पर सब ठीक से हैं…? तुम्हारे आने से लोग दुखी तो हुए होंगे.. है ना…?

उनका इशारा सुषमा की तरफ था…, लेकिन शंकर इस बात से अंजान था सो बोला – हां थे तो सभी.., मेरी माँ, लाला जी.., क्योंकि उनके सारे काम मेरे ही ज़िम्मे थे ना.., पर दो साल के बाद फिर से सही कर लूँगा…!

मामी ने अपना पल्लू सही करते हुए एक नौकरानी को आवाज़ लगाई – अरी चंपा…ज़रा इधर आ तो…!

अगले ही पल उस महल जैसी कोठी के ना जाने कों से कोने से दौड़ती हुई चंपा नाम की नौकरानी उनके सामने हाज़िर हो गयी.., और सिर झुका कर बोली – जी मालकिन..

उसने सिर झुकाए हुए ही अपनी तिर्छि नज़र शंकर पर डाली जो उसे किसी हिन्दी फिल्मों के हीरो जैसा लगा.., शंकर को देखकर चंपा के मूह
में पानी आगया…!

शंकर ने भी चंपा का सरसरी नज़र से मुआयना कर डाला.., 25-26 साल की गठीले बदन की चंपा हल्के साँवले रंग की बड़ी बड़ी छाती.., मोटे
मोटे चूतड़.., और सबसे खास बात उसकी थोड़ी (चिन) पर 5 काले बिंदु गूदे हुए थे…!

वो कुच्छ कुच्छ सुनील शेट्टी की फिल्म गोपी किशन की चंदा (गोपी की वाइफ शीबा) जैसी थी.., सॉरी.., ये फिल्म उस जमाने की नही है सो ये शंकर का आंकलन नही मेरा है…हहहे…

कुल मिलकर अगर शंकर की जगह मेरे जैसा चोदु भुक्कड़ होता तो उस चंपा पर हाथ सॉफ…सॉरी लंड साफ करने की ज़रूर सोच लेता..,
लेकिन शंकर के लिए तो छप्पन भोग सजे हुए रहते थे हर जगह तो उसने बस उसे सरसरी तौर पर ही देखा…!

वर्षा देवी – अरी चंपा.., ये शंकर है, आज से हमारे साथ ही रहेंगे.., इनके खाने पीने और सभी तरह का ख्याल रखने की ज़िम्मेदारी तेरी है..,
अब ज़रा इनके लिए अच्छा सा नाश्ता बनाके ला…!

चंपा ने नज़र भर शंकर को देखा और उसकी तरफ मुस्कान बिखेरती हुई जी मालकिन कहकर रसोई घर की तरफ चली गयी….!

अभी वो रसोई तक पहुँची भी नही थी कि मामी बोली – रुक मे भी आती हूँ.., आज अपने हाथों से शंकर के लिए नाश्ता मे बनाती हूँ, बर्ना ये कहेगा की मामी को मेहमान नवाज़ी करना भी नही आता है…,

शंकर उन्हें रोकते हुए बोला – अरे मामी जी आप बैठिए.., मे कोई ऐसा वीआइपी नही हूँ, गाओं का गँवार आदमी हूँ, चंपा जो बनाएगी ख लूँगा, प्लीज़ आप मेरे लिए तकलीफ़ मत करिए…!

लेकिन मामी ने शंकर की एक नही सुनी…, उनका बस चलता तो वो उसके एक इशारे पर उसके नीचे बिच्छने को भी तैयार थी…, सो उठकर रसोई की तरफ चल दी…!

इस तरह की सारी में पहली बार शंकर की नज़र मामी के पिच्छवाड़े पर पड़ी.., और बस उसका मूह फटा का फटा रह गया…!

सच में क्या जीयोमॅट्रिकल शेप थी मामी के बदन की.., जितना आगे से सीना निकला हुआ था उससे कहीं ज़्यादा मामी की गान्ड का उभार था..,

सामने से जो कर्ब नीचे से उपर को बनता था, पीछे से जस्ट उसका उल्टा.., चौड़ी सपाट पीठ उसके बाद कमर का ढलान, पीठ हल्की सी
अंदर, उसके ठीक नीचे एक कर्ब पीछे को उठता चला गया और एक परफेक्ट गोलाई लिए हुए जंगों के जोड़ पर जा मिला…!

सीधे पल्लू की जो की नाभि के नीचे कस्के बँधी हुई साड़ी में मामी का कर्ब एकदम से उजागर हो रहा था..,


जिसे देखकर शंकर का लॉडा भी तारीफ किए बिना नही रह सका और अपने पिटारे में ही उसने मामी की गान्ड को सलामी दे डाली….!!!!
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