Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
10-16-2019, 01:47 PM,
#41
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
उसे अब अपनी माँ को अपना लिंग दिखाने में शर्म महसूस होने लगी थी, सो बोला – रहने दे माँ, एक दो दिन में अपने आप ठीक हो जाएगा…!

रंगीली – बेकार की बहस मत किया कर मुझसे, चल उतार इसे, अपनी माँ को अंग दिखाने में शर्म नही करते.., ये कहकर उसने ज़बरदस्ती उसके पाजामे को उतरवा दिया…!

यहाँ पीठ जितना घाव तो नही था, लेकिन था तो सही, वो भी उसके लौडे के एकदम नज़दीक, हालाँकि अभी उसका लिंग सोया हुआ था,

अपनी माँ के लिए उसके मन में केवल और केवल श्रद्धा के भाव थे, सो बस एक थोड़ी सी झिझक के अलावा और कोई भावना नही थी जिसके कारण वो उत्तेजित होता..

शंकरा का मुरझाया हुआ लिंग भी रामू के खड़े लंड की बराबर लंबा था, रंगीली ने उसे अपनी टाँगें चौड़ी करके बैठने को कहा, फिर वो उसकी टाँगों के बीच अपने घुटने मोड़ कर बैठ गयी…

एक हाथ से उसने उसके लिंग और गोटियों को साइड में किया और दूसरे हाथ की उगलियों से उसके घाव पर तेल लगाने लगी,

ना जाने क्यों रंगीली जब भी अपने बेटे के लिंग को छूति थी, उसका शरीर उत्तेजित होने लगता था, और वो अपनी चूत में गीलापन महसूस करने लगती थी…!

अब भी जब उसने उसके लिंग और वाकी समान से हाथ लगाया, तो वो फिर से उत्तेजित होने लगी, जैसे तैसे करके उसके तेल लगाकर हल्दी लगाई, और उसे एक कपड़े की पट्टी से बाँध दिया…!

लेकिन इतनी देर वो अपने हाथ से उसके लिंग को सहलाती रही, जिससे शंकर का लिंग धीरे-धीरे अपना आकार बढ़ने लगा था, जिसे देख कर रंगीली की उत्तेजना और बढ़ गयी,

मलम पट्टी तो हो गयी, लेकिन रंगीली का मन उसके लिंग की सुंदरता को देखने से नही भरा, सो वो उसे प्यार से सहलाते हुए बोली – बेटा, तेरा ये इतना बड़ा कैसे हो जाता है…!

शंकर शरमाते हुए बोला – छोड़ ना माँ, ला अब मुझे पाजामा पहनने दे…!

रंगीली – नही थोड़ी देर हवा लगने दे घाव को…!

शंकर – लेकिन माँ, तूने तो पट्टी बाँध दी, फिर हवा कैसे लगेगी, शंकर के जबाब से वो लाजबाब हो गयी, लेकिन फिर अपनी बात को संभालते हुए बोली –

वही तो, एक तो ये मुई पट्टी, उपर से तू पाजामा और पहन लेगा तो और ज़्यादा गर्मी रहेगी और घाव सही नही हो पाएगा…!

शंकर – माँ ! पाजामा के अंदर पहनने को अंडरवेर दिला दे ना, बड़ा अजीब सा लगता है, स्कूल में सब लड़के-लड़कियाँ मेरी हिलती हुई सू सू देखकर हँसते हैं…!

रंगीली – अच्छा ठीक है, कल स्कूल से लौटते वखत ले आना, कितने के आते हैं..? पैसे ले जाना मेरे से…!

फिर जैसे उसे कुछ याद आया हो, सो वो बोली – अरे हां बेटा, मे तो भूल ही गयी थी, तू सुवह कुछ अपने सपने के बारे में कह रहा था…!

वो क्या सपना था, जिसकी वजह से तेरा पाजामा इतना ज़्यादा गीला हो गया था…?

अपनी माँ की बात सुनकर शंकर को एकदम से झटका सा लगा, वो जिस बात को लेकर स्कूल में अच्छे से पढ़ भी नही पाया था, उसी बात को छेड़कर माँ ने एक तरह सोए हुए नाग को फिर से जगा दिया…!

सपने में आई उस युवती के कामुक संगेमरमरी किसी अप्सरा जैसे बदन के एहसास से ही उसका लंड ठुमकने लगा, उपर से रंगीली ने उसे पाजामा भी नही पहनने दिया था….

उसके लंड को ठूमकते देख, रंगीली ने उसे फिर से उकसाया, बता ना.. क्या देखा था सपने में…?

शंकर – ऐसा कुछ नही था माँ, मुझे ठीक से याद भी नही रहा कि मेने क्या देखा था…, तू जा अब मुझे थोड़ा पढ़ाई करनी है…!

रंगीली उसके लिंग को हाथ में लेकर बोली – देख बेटा, सुवह तेरे इसके रस से तेरा इतना ज़्यादा पाजामा गीला हुआ ना, उसे देख कर मुझे बड़ी चिंता होने लगी है,

मे जो तेरी इतनी परवाह करके अच्छा-अच्छा खिलाती पिलाती हूँ, वो सब ऐसे ही बरवाद ना हो जाए, इसलिए जानना चाहती थी कि आख़िर ऐसा क्या देखा मेरे बेटे ने सपने में जिससे इतना सारा रस छोड़ दिया…!

लेकिन तुझे अगर मेरी चिंता की कोई परवाह नही है तो ठीक है, आज से तू खुद अपना ख़याल रखना, जो मिले खा लेना, पीना हो पी लेना, मे क्यों खम्खा अपना खून सुखाऊ तेरी चिंता में…

इतना कहकर वो उसके पास से उठ खड़ी हुई, और वहाँ से जाने के लिए जैसे ही पलटी, की शंकर ने उसकी कलाई थाम ली…………..!

शंकर ने अपनी माँ की कलाई थामकर उसे जाने से रोका.., जो उसे उलाहना देकर जाने लगी थी…, रंगीली ने प्रश्नसूचक निगाह उस पर डाली….

शंकर कहने लगा.. माँ तू तो जानती है, मेने आज तक तेरी किसी बात को नही टाला है, और मे ये भी जानता हूँ, कि मेरी माँ सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरे भले के लिए ही सोचती और करती है,

पर माँ, … ना जाने क्यों मुझे ये सपने वाली बात तुझे बताने में शर्म सी महसूस हो रही है, जो मेने सपने में देखा था उसे अपनी माँ के सामने कैसे बयान करूँ…?

रंगीली – अच्छा ठीक है तू अपनी माँ को नही बताना चाहता है तो मत बता, लेकिन ये तो बता सकता है कि इस बात का जिकर अपनी माँ के अलावा ऐसा कोई तो होगा जिसके सामने तू कर सकता है…?

शंकर कुछ देर चुप रहा फिर कुछ सोचकर बोला – हां अगर मेरा कोई दोस्त होता तो ये बात मे उसके साथ सांझा कर सकता था, लेकिन मेने अभी तक ऐसा कोई दोस्त बनाया ही नही जिसके साथ साझा कर सकूँ…!

रंगीली – तो क्या तू कभी भी कोई दोस्त बनाएगा ही नही…?

शंकर – अगर कोई मुझे समझने वाला मिल गया तो ज़रूर बनाउन्गा…!

रंगीली उसकी आँखों की भाषा पढ़ने की कोशिश करते हुए बोली – मे तुझे थोड़ा बहुत समझती हूँ…?

शंकर – हां माँ, तेरे अलावा और कॉन है जो मुझे समझता है…!

रंगीली – तो समझ ले आज से मे तेरी वो दोस्त हूँ,

शंकर अपनी माँ की तरफ देखता ही रह गया, उसे कोई जबाब देते नही बन रहा था, उसे चुप देख वो फिर से बोली – क्यों माँ एक दोस्त नही हो सकती…?

शंकर – क्यों नही, तू तो मेरी सबसे अच्छी और सच्ची दोस्त है माँ…!

रंगीली – तो फिर अपने सुख-दुख, ख्वाब, सपने अपने दोस्त के साथ भी सांझा नही कर सकता…?

अपनी माँ के तर्क सुनकर शंकर लाजबाब हो गया, उसके मुँह पर जैसे ताला लटक गया हो.. रंगीली खड़ी-खड़ी सिर्फ़ उसके चेहरे पर नज़र गढ़ाए देखती रही…!

शंकर उसका हाथ पकड़कर बोला – चल बैठ, अब जब हम दोनो दोस्त ही हैं तो मे बताता हूँ अपने सपने की बात की मेने क्या देखा था…

वो उसके बगल में पालती मारकर बैठ गयी, शंकर नज़र नीची करके अपने रात वाले सपने के बारे में बताने लगा…

वो जैसे-जैसे अपने सपने के बारे में बताता जा रहा था, रंगीली पर उत्तेजना का भूत सवार होता जा रहा था, उसकी चूत में चींटियाँ सी रेंगने लगी,

रस गागर छलक्ने लगी, उधर शंकर भी बताते बताते सपने में मानो खो ही गया, उत्तेजना में उसका लंड कड़क होकर सीधा भेलचा की तोप की तरह तन गया,
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10-16-2019, 01:47 PM,
#42
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भले ही उसने अपनी कमीज़ से उसे ढँक रखा था, लेकिन उसने उसकी कमीज़ को छप्पर की तरह अपने सिर पर उठा रखा था,

रंगीली की नज़र जैसे ही उसके कमीज़ के बाहर मुँह चम्काते खड़े लंड पर पड़ी, उसकी चूत की सुरसूराहट और तेज हो गयी, और उसकी सुरंग के स्रोत अपने आप खुलने लगे…!

उसने चुपके से अपने लहंगे से अपनी चूत के रस को बाहर बहने से पहले ही सोख लिया, ना जाने क्यों वो सपने में उस युवती की जगह अपने को रख कर सोच रही थी….

जब शंकर ने अपनी कहानी को विराम दिया, और अपनी माँ की तरफ देखा, वो तो जैसे अभी भी सपने में ही खोई हुई, शंकर की बाहों में अपने को महसूस कर रही थी…!

जब कुछ देर उसने कोई रिक्षन नही दिया, तो शंकर ने उसके कंधे को पकड़ कर हिलाया…माँ… क्या हुआ, कहाँ खो गयी…?

वो मानो नींद से जागी हो, हड़बड़ा कर बोली –आअंन्न…हां, कुछ नही, बस तेरे सपने के बारे में सोच रही थी,

फिर कुछ सोचकर बोली – वो सपने वाली युवती कॉन थी..? क्या तू उसे जानता है..?

शंकर ने अपनी नज़रें नीचे कर ली, लेकिन कुछ जबाब नही दे पा रहा था…

रंगीली ने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा – बता ना शंकर.. क्या तू उस युवती को पहचानता है..? कैसी थी वो…?

शंकरा – वो कहानियों में बताई हुई किसी इन्द्रलोक की अप्सरा जैसी थी, मे ठीक से उसे पहचान तो नही पाया था कि वो कॉन थी, लेकिन वो..वऊू..उूओ…,

इसके आगे वो कुछ बोल ना सका तो रंगीली बोली – बता ना वो..वो..क्या कर रहा है..

वो..वऊू.. बहुत सुंदर थी माँ, बिल्कुल तेरे जैसी………….!

अपने बेटे के मुँह से ये शब्द सुनते ही रंगीली सन्न रह गयी, कितनी ही देर वो अपने मुँह पर हाथ रखे हुए उसके चेहरे को ताक्ति रही, जबकि वो अपना मुँह नीचे किए हुए उसके सामने बैठा रहा…!

रंगीली ने उसके चेहरे के नीचे हाथ लगाकर उसे उपर किया, फिर उसकी आँखों में झाँकते हुए बोली – तू अपनी माँ के लिए ऐसी गंदी सोच रखता है नालयक, शर्म नही आई तुझे…!

शंकर झट से अपनी मा के पैरों में लोट गया, उसके पैर पकड़कर बोला – मुझे ग़लत मत समझ माँ, तेरा दर्जा मेरे जीवन में भगवान से भी उपर है…!

मेने तो तुझे पहले ही कहा था, कि मुझे उस युवती की धुंधली सी पहचान है, अब जब तूने पुछा की वो कैसी थी, तो उसकी सुंदरता की तुलना करने के लिए मुझे तुझसे सुंदर और कोई स्त्री नही दिखी आज तक…!

अपने बेटे के मुँह से अपने लिए भगवान से उपर का दर्जा, और सुंदरता में उसके लिए उससे बढ़कर कोई और नही है, ये सुनकर रंगीली का दिल मों की तरह पिघल गया,

वो उसे लेकर चारपाई पर बैठ गयी, और उसके सिर को अपनी गोद में रख कर उसके घुंघराले काले बालों में अपनी उंगलियों को पिरोते हुए बोली…

तुझे मे इतनी सुंदर लगती हूँ शंकर, कि कोई और औरत तुलना करने के लायक दिखी ही नही तुझे आज तक…? इतना कहकर उसने झुक कर अपने बेटे के माथे पर किस कर दिया…!

शंकर ने अपनी माँ की पतली सी लेकिन मांसल कमर में अपनी बाहें लपेट ली, और अपना मुँह उसके वक्षों में घुसाकर बोला – मेरी माँ किसी अप्सरा से कम नही है, तो किसी और की उपमा कैसे दे सकता था…!

लेकिन जैसे ही उसे अपने चेहरे पर दबे अपनी माँ के सुडौल और मक्खन जैसे मुलायम वक्षों का स्पर्श हुआ, उसे सपने में आई युवती के उभारों की याद आ गई,

उसपर उत्तेजना हावी होने लगी, और उसका लंड फिर से सिर उठाने लगा…! उसने उसकी कमीज़ को फिर उठा लिया जिसकी वजह से रंगीली की नज़र उसपर फिर पड़ गयी…!

वो सोचने लगी कि अगर इसके मान में अपनी माँ के लिए ग़लत भावना नही है, तो फिर इसका हथियार यूँ बार-बार खड़ा क्यों हो रहा है ?

उसकी सोचों पर विराम तब लगा, जब शंकर ने अपने मुँह का दबाब उसके उभारों पर बढ़ा दिया, वो भी उत्तेजना से भरने लगी, और धीरे-धीरे उसका हाथ अपने बेटे के फुल खड़े लंड पर पहुँच गया…

आहह…माआ…उसे मत छेड़… मुझे कुछ कुछ होने लगता है…वो एक साथ उन्माद में भरते हुए बोला..

रंगीली – लेकिन पहले तो तुझे कुछ नही होता था, फिर अब क्या हुआ ? और कैसा लगता है तुझे, उसके लंड को सहला कर पुछा उसने…

शंकर – आहह… बहुत अच्छा…स्ाआहह…थोडा ज़ोर्से मसल माँ इसको… हां.. जल्दी जल्दी.. प्लीज़ माँ, कुछ कर ना.. थोड़ा जल्दी जल्दी उपर नीचे कर…!

रंगीली बेकाबू होने लगी थी, शंकर के मूसल को हाथ में लेते ही वो उन्माद से भरने लगी, उसकी चूत को बहने पर मजबूर कर दिया उसके स्पर्श ने, वो सब कुछ भूल कर उसके लंड को मुत्ठियाने लगी...

वो ज़ोर-ज़ोर्से उसके लंड को हिलाकर एक तरह से उसकी मूठ ही मारने लगी…

जब उसका हाथ थक गया, तो उसने शंकर को चारपाई पर लिटा दिया, और बोली – ठहर, तुझे हाथ से भी ज़्यादा मज़ा देती हूँ, ये कहकर उसने उसके लंड को अपनी जीभ से चाट लिया…

शंकरा कराहते हुए बोला – हाए.. माँ ये क्या किया तूने… मेरी सू सू से जीभ लगा दी… च्चिि…च्चीी… बहुत गंदी है तू…

वो आगे कुछ और कहने ही जा रहा था कि तभी उसने उसके लंड को अपने होंठों में क़ैद कर लिया…, शंकर ये देख कर बुरी तरह से हैरान रह गया, कि मूतने वाले लंड को उसकी माँ ने अपने मुँह में ले लिया है…

लेकिन उसे एक तेज झटका तब लगा, जब उसके मुँह में जाते ही उसका लंड बुरी तरह से सख़्त होने लगा, उसे इतना ज़्यादा मज़ा आया कि वो सब कुछ भूलकर अपनी आँखें बंद करके माँ के सिर पर हाथ रखकर उसे अपने लंड पर दबाने लगा…!
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10-16-2019, 01:48 PM,
#43
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रंगीली अपने होंठों का दबाब उसके लंड के चारों तरफ बढ़ाती जा रही थी, इसी से उसने अनुमान लगा लिया, कि उसके बेटे के लंड के आगे लाला का लंड भी लुल्ली ही है…!

चूस्ते चूस्ते काफ़ी देर हो गयी, वो एक हाथ से उसके पेलरे भी सहलाती जा रही थी…लेकिन फिर भी शंकर का मक्खन निकलने का नाम ही नही ले रहा था,

लंड चूस्ते चूस्ते उसका मुँह भी दुखने लगा, लेकिन ना जाने उसपर क्या धुन सवार थी, आज अपने बेटे की क्रीम खाकर ही रहेगी…

वो आधे लंड को मुँह में लेकर आधे को मुट्ठी में कस कर मूठ भी मारती जा रही थी…

आख़िरकार उसकी मेहनत रंग लाई, और शंकर ने अपनी कमर हवा में उठाकर दे दनादन पिचकारियाँ अपनी माँ के मुँह में छ्चोड़ दी…

बाप रे इतना मक्खन, उसके मुँह में समा भी नही पाया, और उसके होंठों के किनारों से निकल कर बाहर बहने लगा…!

अच्छे से चाट-चुट कर उसने उसके लंड को सॉफ किया, और पूरी मलाई अपने पेट में पहुँचा दी…

फिर अपनी गीली हो चुकी चूत को लहँगे से रगड़ कर पोन्छा, और बिना कुछ बोले ही वो अपना मुँह चुनरी से पौछती हुई वहाँ से तेज कदमों से चली गयी…!

शंकर ताज्जुब भरी नज़रों से अपनी माँ को बिना कुछ कहे जाते हुए देखता ही रह गया………….!


आज उसे अपनी माँ के इस नये रूप को देख कर हैरत हो रही थी.., लेकिन जैसे ही उसे कुछ देर पहले की घटना का ध्यान आया, वो रोमांच से भर उठा.

अपनी माँ के द्वारा प्राप्त हुए इस अलौकिक आनंद के बारे में वो सोचने लगा, इससे बड़ा आनंद का क्षण आज तक उसकी अबतक की उम्र में कभी नही मिला था...,

लेकिन वो जानता था कि ये एक अनैतिक कार्य है, जिसे केवल वो स्त्री पुरुष ही कर सकते हैं जो सार्वजनिक जीवन में पति-पत्नी होते हैं, पर ये तो उसकी माँ के द्वारा…???

लेकिन जो भी हो, आज उसकी माँ ने एक नये और अलौकिक आनंद से उसका परिचय करा दिया था, इसके लिए उसके दिल में अपनी माँ के प्रति और ज़्यादा प्रेम और समर्पण के भाव पैदा हो गये…!

उधर अपनी हवस के हाथों बेवस रंगीली ये दुष्कर्म अपने बेटे के ही साथ कर बैठी थी, लेकिन उसके लंड की मलाई पीने के बाद जब उसे होश आया, तो बहुत देर हो चुकी थी…

पर थी तो वो भी एक भरपूर जवान नारी ही, उसकी वासना की आग अभी शांत कहाँ हुई थी, वो तो और बुरी तरह से भड़क चुकी थी, जिसे जल्दी ही शांत नही किया गया, तो ना जाने वो क्या कर बैठे…

कुछ और अनर्थ ना हो जाए इसलिए वो अपने बेटे के पास से तो चली गयी थी, लेकिन तन बदन में भड़की आग को बुझाने का तो कोई उपाय करना ही था, सो वो उसी को बुझाने का इंतज़ाम करने लाला जी की बैठक की तरफ बढ़ गयी…

आज उसकी रस गागर हद से ज़्यादा ही छलक रही थी, उसका लगातार छल्कना उसे परेशान किए दे रहा था, बार बार वो उसे अपने लहंगे में दबाकर सुखाने की कोशिश करती, लेकिन कुछ पलों बाद ही वो फिर से गीली होने लगती…

शायद ये उसके अपने बेटे के ताक़तवर लंड के एहसास और उसकी भर पेट मलाई का असर था…!

भाग्यवस लाला जी उसे बैठक में अकेले ही मिल गये, जो उसी का इंतेज़ार कर रहे थे, उसे देखते ही लपक कर उन्होने उसे बाहों में भर लिया…!

दो प्यासे जिस्म इस कदर लिपट गये मानो बरसों के बिच्छड़े प्रेमी मिले हों…!

ना जाने क्यों आज लाला भी बहुत उत्तेजित दिखाई दे रहे थे, वक़्त बर्बाद ना करते हुए उन्होने रंगीली को गद्दी पर पटक दिया,

और बिना सारे कपड़े निकाले ही उन्होने उसका लहंगा कमर तक चढ़ाया, और अपना गरमा-गरम लंड उसकी पहले से ही गीली चूत में पेल दिया…!

आआहह….धरमजी, धीरे पेलो रजाअ….सस्सिईइ….माआ….इतने उतावले क्यों हो रहे हो आज…?

लाला जी ने पूरा लंड चेन्प्ते हुए कहा – अरे क्या बतायें रंगीली रानी, कुछ देर पहले ही हमने किसी को अपनी चूत में उंगली करते हुए देख लिया, बस तभी से हमारा लॉडा बैठने का नाम ही नही ले रहा…!

रंगीली सिसकते हुए बोली – सस्स्सिईइ…तो चोदो.. और ज़ोर्से, बुझालो अपने लंड की प्यास…आअहह…और तेज..हाईए… बड़ी चुदास चढ़ि है आपको…पर वो थी कॉन..?

हुउन्ण..हुउंम…मत पुछो…कॉन थी… हम बता नही पाएँगे… लाला धक्कों की रफ़्तार बढ़ाते हुए बोले…

रंगीली अपनी कमर को उचका-उचका कर पूरा लंड जड़ तक लेने की भरसक कोशिश कर रही थी, उसकी चूत में आज भयंकर आग लगी हुई थी…,

सो एक बार झड़ने के बाद भी उसके जोश में कोई अंतर नही आया…, फिर खुद ही उसने लाला को अपने नीचे ले लिया, और उनके लंड की सवारी करते हुए बोली –

कोई घर की ही औरत थी क्या..? लाला के मुँह से बस हुउऊन्ण..ही निकला, और वो नीचे से धक्कों का साथ देते हुए रंगीली की चूत में झड़ने लगे…!

उनके साथ ही वो भी अपना पानी फेंक कर उनके उपर पसर गयी…!
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10-16-2019, 01:48 PM,
#44
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
उपर लेटे लेटे ही, उसने लाला जी के खुरदुरे गाल से अपना मक्खन जैसा मुलायम गाल रगड़ दिया फिर अपने होंठ उनके होंठों पर रख कर बुद बुदाई, बहू थी कोई…?

लाला ये बात चलाकर फँस गये थे, लेकिन बंदूक से निकली गोली, और ज़ुबान से निकला शब्द कभी वापस नही आ सकते, इसलिए वो उसकी गान्ड सहलाते हुए बोले-

किसी से भूल कर भी इस बात का जिकर मत करना, कि हमारी छोटी बहू खुद ही अपनी चूत में उंगली डालकर अपनी गर्मी शांत कर रही थी…!

रंगीली – मुझ पर विश्वास रखिए आप, ये समझिए ये शब्द अब ताले में बंद हो गये हैं, अब तभी निकलेंगे जब आप खुद निकलवाना चाहेंगे…!

फिर हँसते हुए बोली – पर आपकी नज़र कैसे पड़ गयी उसपर…?

लाला – अरे कल्लू को देखने गये थे, आते में उसके कमरे से सिसकने की आवाज़ सुनाई दी, इतनी बेसहूर औरत गेट भी बंद नही किया और लगी थी टाँगें चौड़ी करके दो-दो उंगली करने…

रंगीली – धरमजी एक बात बोलूं..? कल्लू की दूसरी शादी करने में शायद आपने जल्दबाज़ी करदी, अब बेचारी जवान लड़की, लंड तो उसे भी चाहिए ना, आप अपने उपर से ही देखलो…!

लाला जी – हमें लगता है, कल्लू उसे ठीक से चोद नही पाता है, या शायद बड़ी बहू ज़्यादा सुंदर है, इसलिए वो उसी को ज़्यादा तबज्जो देता होगा…!

रंगीली मन ही मन मुस्कराते हुए सोच रही थी, कि वो नामर्द किसी को भी संतुष्ट नही कर पाता लाला, वे दोनो ही प्यासी हैं, कहीं ऐसा ना हो, किसी दिन बीच रास्ते पर बैठकर गाओं के लोगों से चुदवाने लगें…!

लाला ने उसे मौन देख कर कहा – क्या सोच रही हो, हमारी बात का कोई जबाब नही दिया तुमने..?

रंगीली अपनी सोचों को विराम देते हुए बोली – अब मे क्या जबाब दूं, आप खुद ही समझ दार हो, दोनो ही जवान हैं, एक को तबज्ज़ो दें तो दूसरी प्यासी रह ही जाएगी…!

लाला – शायद तुमने सही कहा – हमें कल्लू की दूसरी शादी नही करनी चाहिए थी, अब देखो ना इस बहू को भी आए 6 महीने से उपर हो गये, अभी तक तो कोई खुश खबरी नही है…

कहीं ऐसा तो नही कि कल्लू में ही कोई कमी हो…?

रंगीली – ऐसा क्यों सोचते हैं, कल्लू में कमी होती तो बड़ी बहू के एक बेटी कैसे हो गयी…?

लाला – तो फिर और क्या वजह है, जो अभी तक किसी को कोई बच्चा नही हो पाया…?

रंगीली – कभी कभी बच्चे दानी अपनी जगह छोड़ कर और गहरी चली जाती है, शायद कल्लू का हथियार छोटा पड़ जाता हो, और वो वहाँ तक नही पहुँच पाता हो…!

लाला – तो फिर इसका उपाय क्या है…?

रंगीली थोड़ा झिझकते हुए बोली – जाने दीजिए लाला जी… अब मे कुछ कहूँगी तो शायद आपको बुरा लग जाए, आख़िर में हूँ तो एक नौकर ही इस हवेली की…!

लाला जी ने उसके चेहरे को अपने हाथों के बीच लिया, और उसकी आँखों में देखते हुए बोले – तुम अपने आपको इस हवेली की सिर्फ़ नौकर ही समझती हो..?

तुम्हें पता है, जो बातें हम तुम्हारे साथ कर लेते हैं, वैसी बातें कभी हम सेठानी से भी नही करते.., अगर तुम्हारे पास कोई उपाय है तो निसंकोच कहो..

रंगीली ने उनके होंठों को चूम लिया, और बड़ी सोखि से लाला के हथियार को अपने पंजे में कसते हुए बोली –

ऐसा हथियार अगर किसी चूत में जाए, तो साली बच्चे दानी भले ही पटल में क्यों ना छुपि हो, खोज ही लेगा, और वहीं जाकर अपना बीज़ उडेल देगा…!

लाला जी उसकी बात का मतलब समझते हुए बोले – तुम कहना क्या चाहती हो..? क्या हम अपने बेटे की जगह… नही नही…ये कदापि नही हो सकता…!

रंगीली – अपने वंश की खातिर भी नही…!

रंगीली ने सही जगह चोट करदी थी…, लाला सोच में पड़ गये, धर्म संकट में फँसे लाला धरम दास को और कोई रास्ता दिखाई भी नही दे रहा था…तभी रंगीली ने फिर एक हथौड़ा मार दिया…

इसमें कुछ ग़लत भी तो नही, अपने घर की ही तो बात है, घर में ही रहेगी… और फिर आप पहले ऐसे ससुर तो नही हो जो अपने वंश के लिए अपनी बहू को वीर्यादान दे रहे हो,

भूतकाल में बहुत सी ऐसी कथायें हैं जहाँ संतान प्राप्ति के लिए बड़ी बड़ी महारानियों ने पर पुरुष से गर्भ धारण किया है…

इसका सबसे प्रसिद्ध उदाहरण तो महाभारत में ही है, महारानी शत्यवति ने अपनी बहुओं का अपने ही बड़े बेटे वेद व्यास से गर्भाधान कराया था…

लाला – लेकिन वो तो उन्होने अपने तप के तेज से नज़रों द्वारा ही गर्भाधान कर दिया था…!

रंगीली – आपने देखा था कि उन्होने नज़रों से किया था या अपने लंड से ? जो चीज़ जिस काम के लिए ईश्वर ने बनाई है, वो उसी के द्वारा संभव होता है…!

ये सब कहने की बातें हैं लाला जी, इतिहास में उनका नाम बदनाम ना हो इसलिए ये सब कथायें गढ़ दी गयी हैं…!

रंगीली के तर्क ने लाला को सोचने पर विवश कर दिया…, अब उन्हें भी यही एक मात्र रास्ता दिखाई दे रहा था अपनी वंशबेल को आगे बढ़ाने का…!


लाला ने रंगीली की बात से सहमत होते हुए कहा – लेकिन क्या कोई बहू इस बात के लिए सहमत होगी, हमारा मतलब है, कैसे हम उनको कहेंगे कि तुम हमसे संबंध बना लो…!

रंगीली – बड़ी बहू तो शायद इस बात के लिए कभी राज़ी होगी भी नही, हां छोटी बहू को पटाया जा सकता है, अगर आप कहें तो इसके लिए मे कुछ कोशिश कर सकती हूँ…

सीधे तौर पर तो उसको नही बोल सकते, लेकिन मौका देखकर उसे अपने इस हथियार के दर्शन कराते रहे तो शायद वो जल्दी ही आपके नीचे होगी…!

लाला को भी बात जमने लगी थी, और कहीं ना कहीं वो भी अब नयी चुत की चाहत में बोले – ठीक है, तुम कोशिश शुरू करो, हम तैयार हैं.., ये कहकर उन्होने उसकी मस्त मदमाती गान्ड को मसल दिया…!

नयी चूत मिलने की कल्पना मात्र से ही लाला का सोया हुआ सिपाही फिर से जंग लड़ने को उठ खड़ा हुआ…!

रंगीली ने कामुक कराह भरते हुए कहा – आआहह…लाला जी, देखा, बहू की चूत के नाम से ही आपका शेर गुर्राने लगा…!

लाला अपनी खीँसें निपोर्ते हुए बोले – हहहे..ऐसा नही है, वो तो तुम्हारी मुनिया की गर्मी पाकर खड़ा हो गया है…!

फिर उन्होने उसे नीचे पलट दिया, उसकी टाँगों को अपने कंधों पर रखकर उसकी चूत को उपर उठा लिया, और एक जोश से भरा धक्का रंगीली की चूत में जड़ दिया…

लाला का लंड एक ही झटके में सरसराता हुआ जड़ तक उसकी चूत में खो गया…!

उनके इस जोश को देख कर रंगीली मन ही मन मुस्करा उठी…, और कराह कर बोली –
आअहह…. राजाजी, लगता है बहू की चूत समझकर एक ही झटके में पूरा पेल दिए हो…,

आहह….सस्सिईईई….उउफ़फ्फ़ ….जो भी हो पर मज़ा आ गया.., अब पेलो मेरे राजाजीी… ज़ोर-ज़ोर से, फाड़ दो मेरी चूत.

दिखा दो अपने लंड की ताक़त निगोडी इस चूत को, कि आज भी इसमें दस बच्चे पैदा करने की ताक़त है…
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10-16-2019, 01:48 PM,
#45
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
रंगीली की कामुक बातों का इतना असर हुआ कि लाला अपना पूरी दम-खम लगाकर उसे चोदने लगे, ऐसे सुलेमानी धक्कों से रंगीली की मुनिया खुशी के आँसू बहाने लगी,

वो किसी जोंक की तरह लाला की गान्ड को अपने पैरों में कस कर जबरदस्त तरीक़े से झड़ने लगी….

लाला भी दो-चार तगड़े धक्के मार कर अपनी पिचकारी छोड़ते हुए हाँफने लगे और उसके उपर पड़े रह गये….!

कुछ देर बहू को पटाने का प्लान तय करके वो अपने काम काज में जुट गयी, और लाला अपनी नयी कमसिन बहू को चोदने के ख्वाबों में खो गये……………!

आज सनडे का दिन था, रंगीली चौक में बैठकर सील पर लाला जी के लिए ठंडाइ बना रही थी, बादाम, पिसता, काजू, किस्मीस, सौंफ, इलायची मिक्स ठंडाइ वो लाला के लिए रोज़ सुवह ही सुवह घोंटति थी…!

नज़र बचाकर उसी में से वो शंकर को भर ग्लास दूध मिक्स ठंडाइ का पिला देती थी, उसकी कसरत के बाद…!

तभी उसे छोटी बहू लाजो रसोई घर में घुसती हुई दिखाई दी,

उसने शंकर को आवाज़ दी, वो अपनी माँ की एक आवाज़ पर दौड़ा चला आया,

उसने उँची आवाज़ में उससे कहा जिससे लाजो भी सुन ले..- बेटा देख तो रसोई घर में ठंडाइ का समान रखा है, थोड़ा सा छोटी बहू से पुछ्कर ला तो, साथ में कल्लू भैया के लिए भी बना दूं…

अपनी माँ का आदेश सुनकर वो रसोई की तरफ चल दिया, पीछे से रंगीली के होंठों पर मुस्कान तैर गयी…!

रसोई में जाकर शंकर ने लाजो से कहा – छोटी भाभी माँ ने ठंडाइ का समान मँगाया है, कहाँ रखा है…!

अपने सामने शंकर को देख कर उसके बदन के रोंगटे खड़े हो गये, वो उसके एकदम पास जाकर धीमी आवाज़ में बोली –

एक बार मेरी ठंडाइ चख कर देखो राजा, बहुत स्वादिष्ट है…, बार बार चाटने का मन करेगा…

ये कहकर उसने उसकी कमर में अपनी बाहें लपेट दी, और उसके बदन से चिपक गयी,

वो एकदम से हड़बड़ा गया, और अपने बदन को हिलाते हुए बोला – ये क्या कर रही हो आप, छोड़ो मुझे वरना माँ आ गई तो बहुत मारेगी मुझे…!

वो – इतना क्यों डरते हो अपनी मा से, उसे मे संभाल लूँगी, तुम बोलो पीओगे मेरी ठंडाइ…, बहुत ज़ायकेदार है..!

ये कहकर उसने उसके चौड़े सीने को चूम लिया, और अपने आमों को उसके बदन से रगड़ने लगी,

शंकर की हालत खराब होने लगी, उसे ये डर सताने लगा कि अगर कहीं फिर से उसका लंड खड़ा हो गया, तो उसकी माँ खम्खा उसे डान्टेगी..

सो उसने उसके बाजू पकड़कर अपने से अलग किया, कि तभी उसकी नज़र दरवाजे पर खड़ी अपनी माँ पर गयी,

उसने फ़ौरन अपने आपको लाजो से अलग किया और अपनी माँ से बोला – तू ही देख ले माँ, मुझे कहीं नही मिला समान, ये कहकर वो तेज़ी से बाहर निकल गया…!

उधर जैसे ही लाजो ने सुना जो शंकर ने कहा था, वो फ़ौरन से पलटी, और सामने रंगीली को खड़े देखकर उसकी गान्ड फट गयी…!

वो हकलाते हुए बोली – अरे रंगीली काकी तूमम…वऊू मे…समान ढूँढ ही रही थी, मेने शंकर भैया को बोला कि रूको अभी देखती हूँ..पर वू…

रंगीली अपने चेहरे पर गुस्से वाले भाव लाकर बोली – वो तो मे देख ही रही हूँ छोटी बहू, तुम कॉन्सा समान ढूँढ रही थी..., भले ही आप इस हवेली की बहू हो, लेकिन मेरे बेटे से दूर रहो वरना….!

लाजो अपने अधिकार जताते हुए बोली – वरना… वरना क्या..? दो टके की नौकर ज़ुबान चलाती है, दो मिनिट नही लगेंगे हवेली से बाहर करवा दूँगी, बड़ी आई बेटे वाली…,

ऐसे क्या तेरे बेटे में सुरखाब के पर लगे हैं, जो मे उसके पास जाउन्गि, अरे वो ही मुझे पकड़ रहा था…!

रंगीली – अच्छा, वो पकड़ रहा था, कि आप उससे चिपकी हुई थी, और ये पहली बार नही है, पहले भी तुम्हारी वजह से उस बेचारे पर मार पड़ चुकी है,

सुनो छोटी बहू, तुम क्या मुझे इस हवेली से बाहर करवाओगी, अगर मेने तुम्हारी ये हरकतें मालिक और मालकिन को बता दी ना, तो जानती हो क्या होगा…?

धक्के मारकर कल्लू भैया खुद तुम्हें इस हवेली से बाहर कर देंगे, फिर जाकर रहना अपने उसी राजमहल में जहाँ से आई हो…

हमारा क्या है, हम तो पहले भी ग़रीब थे आज भी ग़रीब हैं…, मेहनत मज़दूरी करके हवेली के बाहर भी पेट भर ही लेंगे…!

पासा पलटे देख, लाजो फ़ौरन गिरगिट की तरह रंग बदलकर उसके सामने हाथ जोड़कर बोली – मुझे माफ़ करदो काकी, मे अपने आप पर काबू नही कर पाई,

पर मे भी क्या करूँ, मुझे जिस काम के लिए ब्याहकर इस हवेली में लाया गया है, वो काम मे कैसे करूँ..?

रंगीली – तुम कहना क्या चाहती हो छोटी बहू..? क्या कल्लू भैया आपको खुश नही रख पाते…?

लाजो – जाने भी दो काकी, मे कह नही पाउन्गि, और आप सुन नही पाओगि, बस गीली लकड़ी की तरह सुलग रही हूँ यहाँ, ये कहकर उसकी आँखें भीग गयी…!

रंगीली ने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा – खुलकर कहो क्या दुख है आपको यहाँ, सारी सुख सूबिधायें तो हैं, और क्या चाहिए…?

लाजो – आप एक औरत होकर इस तरह की बात कर रही हो, क्या एक औरत को सिर्फ़ धन-दौलत या महल तिबारे से ही खुशी मिलती है, और फिर धन दौलत से ही वारिस पैदा हो जाता तो इनकी दूसरी शादी क्यों की…?

रंगीली – मे आपकी बात समझ नही पा रही, आप कहना क्या चाहती हो…! साफ-साफ बताओ बात क्या है…?


लाजो – साफ-साफ सुनना चाहती हो तो सुनो, आपके मालिक के बेटे में बच्चे पैदा करने की क्षमता ही नही है………,

लाजो भभक्ते स्वर में आगे बोली - अरे जो मर्द किसी औरत को गरम तक ना कर पाए, वो बच्चे क्या खाक पैदा कर सकता है…

इसलिए मेने सोचा कि अगर इस घर को वारिस देना है, तो दूसरा रास्ता ही देखना पड़ेगा, इसलिए में शंकर भैया के साथ…..

अपनी बात अधूरी छ्चोड़कर लाजो चुप हो गयी…!

उसकी बात पर रंगीली चोन्कने की जबरदस्त आक्टिंग करते हुए बोली – हाए राम, ये आप क्या कह रही हैं छोटी बहू, नही..नही… ऐसा नही हो सकता,

अगर ऐसा होता, तो बड़ी बहू को एक बिटिया कैसे हो गयी..?

लाजो – यही सोचकर तो मे हैरान हूँ, लेकिन सच मानो काकी, पहली रात से ही वो मुझे आज तक वो सुख नही दे पाए जो एक औरत को मिलना चाहिए…!

रंगीली कुछ देर खड़ी उसके चेहरे को देखती रही, फिर उसने लाजो के कंधे पकड़ कर कहा – मे सब समझ गयी छोटी बहू…!

और ये भी जानती हूँ, कि अगर इस हवेली में आपको मान-सम्मान चाहिए तो वारिस पैदा करना ही पड़ेगा… लेकिन इसके लिए मे अपने बेटे की बलि नही दे सकती…

वो अभी बहुत मासूम है, अरे उसे तो अभी तक स्त्री-पुरुष के संबंधों के बारे में भी ज्ञान नही होगा, फिर वो भला आपको वो सब कैसे दे सकता है, जिसकी आपको ज़रूरत है…!

लाजो – मे आपके आयेज हाथ जोड़ती हूँ काकी, शंकर भैया को मे सब कुछ सिखा दूँगी, बस आप एक बार हां करदो…!

रंगीली – कैसे हां कर दूं छोटी बहू, वो अभी नादान है, भूल से भी ये बात किसी को पता चल गयी, तो…ना..ना…कल्लू भैया मेरे बेटे की जान ही ले लेंगे…, उसे तो आप माफ़ ही कर दो…!

लाजो – तो फिर मे क्या करूँ ? आप ही कुछ रास्ता दिखाइए मुझे,

कहीं ऐसा ना हो कि नादान सासुमा, पोते की चाह में इनकी एक और शादी करदें, और फिर एक और बेचारी बेबस नारी हवेली में आकर तड़पति रहे…!
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10-16-2019, 01:48 PM,
#46
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
रंगीली सोचने लगी, कि यही सही समय है इसे वो रास्ता सुझाने का जिसपर इसे ले जाने का मेने सोचा है, वो मन ही मन अपनी कामयाबी पर खुश होते हुए बोली –

रास्ते बनाने पड़ते हैं बहू रानी, चलना चाहो तो तुम्हारे तो बिल्कुल सामने ही एक शानदार सड़क है, अगर चल सको तो…

लाजो तपाक से रंगीली के हाथों को अपने हाथों में लेकर बोली – बताओ ना काकी किस सड़क की बात कर रही हो, मे हर वो रास्ता अख्तियार करने को राज़ी हूँ, जिससे इस हवेली को वारिस दे सकूँ…!

रंगीली उसका उतावला पन देख कर मंद-मंद मुस्कराते हुए बोली – मालिक के बारे में क्या ख़याल है आपका…?

लाजो विश्मय से उसके चेहरे की तरफ देखते हुए बोली – आपका मतलब ससुरजी से है..?

रंगीली – हां ! क्यों क्या कमी है उनमें ? देखा नही आज भी उनके चेहरे का तेज, किसी जवान मर्द से ज़्यादा चमकता है उनका ललाट…,

अरे अभी उनकी उमर ही क्या है, मर्द तो 60 साल में भी बच्चे पैदा कर देते हैं…, वो तो अभी इससे बहुत कम हैं…!

लाजो – ऐसा आपने सोच भी कैसे लिया, कि मे अपने पिता समान ससुर से संबंध बना लूँगी,

रंगीली – क्यों ? अपने पिता समान ससुर से संबंध नही बना सकती और मेरा बेटा तो एक नौकरानी का बेटा है उससे संबंध बना सकती हो…!

सोच लो, मेने रास्ता बता दिया है, चलना ना चलना आपके उपर है, वैसे आप पहली औरत नही हो जो ऐसा कर रही हो, बहुत से उदाहरण मे दे सकती हूँ,

महाभारत में महारानी कुंती के पाँचों पुत्रों में से एक भी राजा पांडु के अंश से पैदा नही था… सबके सब पिता तुल्य देवो से ही पैदा हुए थे…

लाजो – वो तो उनके आशीर्वाद मात्र से ही पैदा हो गये थे…!

रंगीली – सब कहने की बातें हैं, किसी ने देखा था क्या…, जो काम जिस तरीक़े सो होता है उसी से होगा ना…!

अगर ऐसा ही संभव होता, तो परमात्मा ये चीज़ें बनाता ही क्यों..?

लाजो उसके तर्क सुनकर सोच में पड़ गयी, उसे सोचते देख कर रंगीली बोली – आप सोचो, मे चली बहुत काम पड़े हैं मेरे लिए…!

फिर वो जैसे ही चलने को मूडी, लाजो ने फ़ौरन उसका हाथ पकड़ लिया और बोली – लेकिन काकी, मे ससुरजी के सामने तक नही पड़ी अभीतक, फिर ये कैसे संभव होगा…!

रंगीली – तो सामने पड़ना शुरू करो, नयी-नयी जवान लड़की हो, थोड़ा बहुत अपनी जवानी के जलवे बिखेरो उनके सामने…

औरत अगर अपनी पे आजाए तो अच्छे-अच्छों का ताप भंग कर देती है, मालिक तो फिर भी आम इंसान ही हैं, आओ मेरे साथ, उनकी ठंडाइ तैयार है, लेके जाओ उनके पास…

पुच्छे तो कह देना, रंगीली काकी उनके लिए (कल्लू) ठंडाइ बना रही हैं, इसलिए मे ही ले आई , कुछ देर उनके साथ समय बिताओगी तो अपने आप झिझक कम होगी..

लाजो को ठंडाइ का ग्लास थामकर उसका कंधा दबाते हुए रंगीली ने उसे हौसला देकर बैठक की तरफ भेज दिया..

उसे जाते हुए देखकर वो कुछ देर वहीं खड़ी खड़ी अपनी कामयाबी पर मुस्कुराती रही…., और फिर कुछ देर बाद खुद भी उसी तरफ चल दी…!

सेठ धरमदास इस वखत अपने बही खातों में उलझे थे, अभी कुछ देर पहले ही मुनीम जी, सारा हिसाब किताब समझाकर गये थे..., जिसे वो फिर से चेक कर रहे थे…!

तभी उन्हें बैठक में पायल की झणकार सुनाई दी, उन्होने अपना सिर उठाकर दरवाजे की तरफ देखा, सिर पर पल्लू डाले, उनकी छोटी बहू हाथ में ठंडाइ का ग्लास पकड़े उनकी तरफ आ रही थी…

थोड़े से घूँघट जो कि उसकी नाक तक ही था, उसमें से उसके लाल-लाल लिपीसटिक से पुते मोटे-मोटे होंठ और उसकी गोरी गोरी थोड़ी दिखाई दे रही थी…!

धीरे – धीरे अपनी पायल छन्काति हुई वो उनके पास आकर खड़ी हो गयी, और ग्लास उनकी तरफ बढ़ाती हुई बड़ी मधुर आवाज़ में बोली – पिताजी आपकी ठंडाइ…!

लाला जी ने कुछ देर उसके घूँघट में छुपे चेहरे पर नज़र डाली, फिर उसके हाथ से ठंडाइ का ग्लास लेते हुए उन्होने अपनी नज़र घूमकर अपने खातों पर कर ली,

ग्लास पकड़ने के बहाने उनकी उंगलियाँ लाजो के हाथ से छू गयी…

लाला के गरम-गरम हाथ का स्पर्श पाकर लाजो अंदर तक सिहर गयी, ग्लास को उसके हाथ से लेते हुए वो बोले – अरे बहू तुमने क्यों कष्ट किया, रंगीली कहाँ गयी…?

लाजो – वो पिताजी रंगीली काकी उनके लिए भी ठंडाइ बना रही हैं, इसलिए मे ही ले आई, अगर आपको अच्छा ना लगा हो तो आइन्दा नही लाउन्गि…!

लाला – अरे..अरे.. नही बेटा ऐसी कोई बात नही है, हम तो बस ऐसे ही बोले, की तुमने आने की तक़लीफ़ क्यों कि किसी और नौकर के हाथ भिजवा देती,

अगर तुम्हारा मन करता है यहाँ हमारे पास आने का तो ज़रूर आओ, तुम्हारा अपना घर है, कहीं भी आने जाने के लिए तुम्हें किसी की इज़ाज़त की ज़रूरत नही है…!

आओ थोड़ी देर बैठो हमारे पास, हम अभी ग्लास खाली करके देते हैं…, लाजो घुटने टेक कर उनके सामने बैठ गयी, और उन्हें अपने पैर आगे करने को कहा –

पिताजी अपने पैर दीजिए, हमें आपके पैर पड़ना है,

लाला ने अपने पैर आगे करते हुए कहा – अरे बहू इसकी क्या ज़रूरत है, हमारा आशीर्वाद तो वैसे ही हमेशा तुम्हारे साथ है…!

लाजो ने अपने ससुर के पैर छुने के लिए जैसे ही अपने हाथ आगे किए, उसका आँचल धलक गया, चौड़े गले से उसके 34” की गोरी-गोरी मोटी चुचियाँ कसे हुए ब्लाउस से बाहर को छलक पड़ी…

दोनो आमों के बीच की खाई पर नज़र पड़ते ही, लाला का लंड धोती में सिर उठाने लगा, उन्होने अपनी टाँगें जान बूझकर फैला रखी थी,
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10-16-2019, 01:48 PM,
#47
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
लाजो ने अपने ससुर के पैर छुने के लिए जैसे ही अपने हाथ आगे किए, उसका आँचल धलक गया, चौड़े गले से उसके 34” की गोरी-गोरी मोटी चुचियाँ कसे हुए ब्लाउस से बाहर को छलक पड़ी…

दोनो आमों के बीच की खाई पर नज़र पड़ते ही, लाला का लंड धोती में सिर उठाने लगा, उन्होने अपनी टाँगें जान बूझकर फैला रखी थी,

लाजो हिल-हिलकर उनकी पिंदलियों तक अपने मुलायम हाथों से पैर अच्छे से दबाते हुए छू रही थी…, जिससे उसकी भारी-भरकम छातियों का उपरी भाग भी हिलोरे लेने लगा…!

लाला के लंड को ज़्यादा सबर नही हुआ, और वो जल्दी ही खड़ा होकर उनकी धोती से मुँह चमकाने लगा,

अपने ससुर के शानदार लंड के दर्शन मात्र से ही लाजो की चूत गीली होने लगी, वो मन ही मन सोचने लगी, रंगीली काकी ठीक ही कहती थी, इनका हथियार मुझे ज़रूर ग्याभन कर देगा…!

वो जान बूझ कर ज़्यादा देर तक उनके पैर दबाती रही…, फिर लाला ने उसके सिर पर आशीर्वाद स्वरूप हाथ फेरा, और उसकी पीठ सहलाते हुए उसके कंधे पकड़ कर बोले…

बस करो बेटा, अब बहुत हुआ, खुश रहो, भगवान करे चाँद सा टुकड़ा जल्दी ही तुम्हारी गोद में खेले…!

ससुर के ये शब्द सुनते ही उसने जानबूझकर एक लंबी सी हिचकी ली,

उसके होंठ इस तरह काँपने लगे, मानो वो किसी गम में हो और अपनी रुलाई को रोकने की कोशिश कर रही हो……!


लाला ने उसके कंधे सहलाते हुए कहा – अरे बहू क्या हुआ, तुम रो क्यों रही हो ?..., हमने कुछ ग़लत कह दिया क्या…?

लाजो बिना कोई जबाब दिए ज़ोर ज़ोर्से सुबकने लगी…, लाला ने उसी पोज़िशन में उसके कंधे पकड़ कर अपनी ओर खींचा, और उसे अपने सीने से सटाते हुए बोले –

क्या पार्वती ने कुछ कहा तुमसे, हमें बताओ बहू, क्या बात है…?

लाला के अपनी ओर खींचने से उसके मोटे-मोटे मुलायम दशहरी आम उनकी छाती से जा लगे, और उनका आधा खड़ा जंग बहादुर उसकी रामप्यारी के नीचे सेट हो गया…!

लाजो ने अपनी रुलाई को और तेज करते हुए अपने ससुर की पीठ पर अपनी बाहें कस दी…और उनके गले से लग कर रोने लगी…!

लाला का लंड उसकी गान्ड और चूत के बीच वाले रिस्ट्रिक्टेड एरिया में अपने जलवे बिखेर रहा था, बहू की चूत की गर्मी पाकर वो अपने पूरे शबाब में आने लगा था..

लाजो ऐसे कड़क लंड को अपनी चूत और गान्ड के बीच महसूस करके गन्गना उठी, उसकी प्यासी चूत में मानो ज्वालामुखी फट पड़ा हो, वो किसी भट्टी के मानिंद दहक उठी…

उसकी प्यासी चूत गीली हो उठी और जल्दी ही उसमें से टप-तप रस टपक कर उसकी पैंटी को गीला करने लगी…

लाला के हाथ उसकी पीठ को सहला रहे थे, जब उनकी उंगलिया उसकी ब्रा की स्ट्रीप से टकराई, तो वो उनसे और ज़ोर्से चिपक गयी…!

एक हाथ से पीठ सहलाते हुए, दूसरे हाथ को उसकी नंगी कमर पर रखकर लाला बोले – कुछ बताओगी भी बहू बात क्या है, ऐसे क्यों रो रही हो…!

लाजो सुबक्ते हुए बोली – व.वो..वो…आपने चाँद से टुकड़े को गोद में खेलने वाली बात कही ना…

लाला – हां.. हां.. तो क्या तुम नही चाहती, कि इस घर में एक नन्हा मुन्ना वारिस आए, और वो तुम्हारी गोद में खेले…!

लाजो – हम तो बहुत चाहते हैं पिताजी…पर…, उसने अपनी बात अधूरी छोड़ दी..

लाला – पर..! पर क्या बहू.., क्या कल्लू तुमसे प्यार नही करता..? क्या वो तुम्हारे पास नही आता..?

लाजो – वो बात नही है… वो तो आते भी हैं, और प्यार भी करते हैं.., पर…

लाला जी – तो फिर क्या बात है बहू, साफ-साफ कहो बेटा, देखो हम तुम्हारे पिता समान हैं, हमसे कुछ मत छिपाओ, बोलो फिर क्या बात है…!

लाजो – कैसे कहें, हमें बहुत शर्म आरहि है, बोलते हुए…!

लाला – शरमाओ नही बहू, खुल कर कहो…

लाजो – वो..वो..कुछ कर नही पाते हैं…!

लाला – क्या..???? क्या कहा तुमने..? कल्लू तुम्हें चो… मतलब बिस्तर पर खुश नही कर पाता…?
अपने सुसर के मुँह से आधा अधूरा शब्द सुनकर उसके कान गरम हो गये…

वो वासना में नहाई हुई आवाज़ में उनके बालों भरे चौड़े सीने को सहलाते हुए बोली –

हां पिताजी, हम सारी रात अपने बदन की आग में जलते रहते हैं, और वो शराब के नसे में दो मिनिट में अपना ….. छोड़ कर.. हाँफने लगते हैं, और सो जाते हैं…

अब बताइए, हम कैसे आपकी इच्छा पूरी करें…?

अपनी बहू के खुले शब्दों में स्वीकार करने के बाद, कि उनका बेटा किसी काम का नही है, वो उसके कूल्हे पर अपना हाथ ले जाकर उसे सहलाते हुए बोले – तो अब तुम क्या चाहती हो बहू..?

हमें माफ़ करदो, बिना अपने बेटे की कमज़ोरी जाने हम तुम्हें ब्याहकर इस घर में ले आए, इस आस में कि शायद तुम वो खुशी दे सको जो बड़ी बहू नही दे पाई…

खैर अब तुम बोलो, क्या चाहती हो, चाहो तो इस घर से जा सकती हो, हम तुम्हारी दूसरी शादी किसी अच्छे घर में करवा देंगे…!

लाजो – हम तो इसी घर में रहना चाहते हैं, पर किसी तरह इस घर को वारिस दे पायें, बस यही इच्छा है…!

लाला अब अपना हाथ उसकी गान्ड की दरार तक ले आए थे, उसमें अपनी उंगली से सहलाते हुए बोले – तुम चाहो तो हम कोशिश कर सकते हैं, बोलो लोगि हमारा बीज़…

वो उनके चौड़े सीने में अपनी मोटी-मोटी चुचियों को दबाते हुए बोली – इस घर की खुशी के लिए हम कुछ भी करने को तैयार हैं पिताजी…!

उसके मुँह से ये सुनते ही लाला की बान्छे खिल उठी, वो सोचने लगे, कि रंगीली की तरक़ीब तो बड़ा जल्दी काम कर गयी, लगता है उसने पहले से ही इसको भी ऐसा ही कुछ पाठ पढ़ाकर भेजा है…

वो मन ही मन उसे दाद देते हुए बुद्बुदाये… वाह.. मेरी जान, मान गये तुम्हें, क्या चाल चली है…!

उन्होने उसके कंधे पकड़कर उसे अपने सीने से अलग किया, और अपने हाथों को उसकी चुचियों पर ले जाकर उसकी आँखों में देखते हुए बोले – हमसे संबंध बनाने में तुम्हें कोई एतराज तो नही बेटा…?

लाजो ने अपने मुँह से जबाब देने की वजाय, अपने लाल-लाल लिपीसटिक से पुते होंठों को ससुर के होंठों से जोड़ दिया, लाला के हाथ उसकी चुचियों पर कसते चले गये…

दरवाजे से आँख और कान सटाये खड़ी रंगीली ये देख कर मन ही मन मुस्करा उठी, वो तो सोच रही थी, कि एक-दो दिन में वो इन दोनो को पास ले आएगी,

पर यहाँ तो कुछ मिनटों में ही 20-20 मॅच शुरू होने लगा था…! लगता है साली नंबरी छिनाल औरत है ये…!

लाला ने अपनी बहू को वहीं गद्दी पर लिटा दिया, उसके ब्लाउस के बटन खोलते हुए बोले -

एक बार और सोचलो बहू, अगर तुम्हारा दिल गवाही ना दे रहा हो तो, जा सकती हो…
वो अपने ससुर के लंड को अपनी मुट्ठी में लेकर बोली – आअहह… ससुरजी, अब इस हथियार को छोड़ कर कहाँ जाउ, हो सकता है यही मेरी कोख हरी कर्दे,

लाला उसकी चुचियों को नंगा करके उन्हें मसल्ते हुए बोले – तुम बहुत समझदार हो बहू, बस अब तुम देखती जाओ, कितनी जल्दी तुम्हारी गोद हरी-भरी करते हैं हम..

ये कहकर उन्होने उसकी साड़ी को कमर तक चढ़ा दिया, पैंटी के उपर से से उसकी गीली चूत को सहलाते हुए बोले…

आअहह…बहू तुम तो पूरी गीली हो रही हो..,

लाजो ने अपने ससुर ले लौडे को मुठियाते हुए कहा – ससिईइ…ससुरजी, आपका ये मतवाला हथियार देखते ही ये आँसू बहाने लगी…, अब डाल दो इसे इसमें…

लाला ने उसकी पैंटी भी निकाल दी और अपने लौडे पर थूक लगाकर बहू की रसीली सुरंग में अपना गरम लॉडा सरका दिया…

चुदैल बहू, अपनी आँखें बंद करके सिसकारी लेती हुई पूरा लॉडा बड़े आराम से अपनी सुरंग में ले गयी…!
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10-16-2019, 01:48 PM,
#48
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
चुदैल बहू, अपनी आँखें बंद करके सिसकारी लेती हुई पूरा लॉडा बड़े आराम से अपनी सुरंग में ले गयी…!

लाला अपनी बहू की गरम चूत मारकर खुशी से फूले नही समाए.., उसके आमों को चूस्ते हुए वो उसे हुमच-हुमच कर चोदने लगे....!

चुदाई की मास्टरनि लाजो अपनी कमर उच्छाल-उच्छाल कर ससुर का लंड जड़ तक अपनी चूत में लेने लगी..,

आज मुद्दतो बाद उसकी चूत की मन मुताविक कुटाइ हो रही थी.., अपने ससुर का मतवाला लंड लेकर वो मन ही मन खुश होकर चुदाई का आनंद लूटने लगी…

जब दोनो का ज्वालामुखी शांत हो गया, तो वो अपने कपड़े पहनकर ससुर के मतवाले लंड को चूमकर अपनी गान्ड मटकाती हुई बैठक से बाहर जाने लगी…

पीछे लाला अपने लंड को शाबासी देते हुए बोले – वाह मेरे शेर, अब जल्दी से अपना कमाल दिखा, और बहू को ग्यभन कर्दे…,

उधर जब रंगीली को लगा कि अब इनकी रासलीला ख़तम हो गयी, और ये पायल छन्काति हुई बाहर आ रही है, वो लपक कर वहाँ से हट गयी, और अपने काम में लग गयी….!

उसने जैसा सोचा था वैसा ही हो रहा था, छोटी बहू को अपने ससुर से चुदवा कर वो बड़ी खुश थी, अब लाला उससे कभी ऊँची आवाज़ में बात नही कर सकता था…

बाहर आकर जैसे ही उसका सामना रंगीली से हुआ, उसने छेड़ते हुए कहा – क्या बात है छोटी बहू, बहुत देर लगा दी ससुरजी को ठंडाइ पिलाने में…!

लाजो ने शरमा कर अपनी नज़रें झुका ली और उसके नज़दीक आकर बोली – थॅंक यू काकी, आपने रास्ता बताकर मेरी समस्या का समाधान करवा दिया…!

रंगीली अपने मुँह पर हाथ रख कर बोली – हाए दैया…इसका मतलब पहली मुलाकात में ही सब काम हो गयी..?

तुम तो बड़ी तेज निकली बहू रानी.., जाते ही ससुरजी के हथियार पर धाबा बोल दिया क्या..?

लाजो ने शर्म से अपना सिर झुका लिया और मुस्कराते हुए उसने रंगीली को सारी बातें कह सुनाई, जिन्हें वो पहले से ही जानती थी…..!

रंगीली को पूरा विश्वास था, कि अब लाला के बीज़ में वो बात नही रही कि वो किसी के बच्चा पैदा कर सके, किसी को ग्याभन कर सके.., और ये हक़ीक़त जल्दी ही उनके सामने आने वाली थी…,

लेकिन अब बहू और ससुर उसके इशारों पर नाचने वाले ज़रूर थे…!

वो इन दोनो के संबंध की चश्मदीद गवाह ही नही, इस नाटक की पटकथा भी खुद उसी ने लिखी थी……!

लाला और छोटी बहू एक बार शुरू क्या हुए, अब तो वो हर संभव अपने ससुर के लंड पर चढ़ि रहना चाहती थी, इस वजह से अब रगीली और लाला की चुदाई में ब्रेक सा लग गया…!

इसकी भरपाई वो अपने पति रामू से करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन वो उतना मज़ा नही ले पा रही थी, जो उसे अब तक लाला के साथ मिलता था…!

दिन महीनो में और महीने साल में बदल गये, लेकिन लाला को लाजो की तरफ से अभी तक कोई खुश खबरी सुनने को नही मिली, वो दोनो अब हताश होने लगे थे !

लाला को अपनी औकात जल्दी ही पता चल गयी, अब उन्हें समझ में आ गया था, कि वो अब इस काबिल नही रहे कि किसी को ग्याभन कर सकें,

लेकिन लाजो को इस बात का कोई टेन्षन नही था, उसे कम से कम एक भरपूर लंड से चुदाई का साधन तो मिल गया था, जिसे अब वो किसी कीमत पे छोड़ना नही चाहती थी…,

लाला ने एक दो बार उसे मना भी किया, बहू अब कोशिश करना बेकार है तुम अब हमारे पास मत आया करो…,

लेकिन वो कहाँ मानने वाली थी, ज़बरदस्ती उनके लंड को पकड़ कर बोल देती, ससुर जी अब आप ही बताओ मे अब कहाँ जाउ अपनी प्यास बुझाने…?

इस डर से की जवान बहू कहीं बाहर जाकर हर किसी से ना चुदवाने लगे, वो बेचारे उसकी प्यास बुझाने की कोशिश करते रहते………….!

उधर शंकर को जबसे उसकी माँ ने उस अलौकिक आनंद से उसका परिचय कराया था, वो उसे फिर से पाने के लिए ललायत रहने लगा…,

गाहे बगाहे वो अपनी माँ के बदन से लिपट जाता, पीछे से लिपटकर उसके गले को चूम लेता…उसे ये एहसास दिलाने की कोशिश करता कि वो फिर से ऐसा कोई चमत्कार करे जैसा उस दिन किया था उसका लंड चुस्कर…,

लेकिन रंगीली तो कुछ और ही सोच रही थी, जिसका अंदाज़ा शंकर जैसे नादान नव-युवक को कभी नही हो सकता था…!
कई बार वो ऐसा दिखाती कि वो भी उसे लिफ्ट दे रही है, लेकिन वो जैसे ही कुछ आगे बढ़ने की कोशिश करता कि वो उसे झिड़क कर अपने से दूर कर देती…!

इसके पीछे रंगीली का एक ही मक़सद था, कि शंकर अपने आप पर काबू करना सीखे, और दूसरा कारण उसकी कम उम्र, वो नही चाहती थी इस कच्ची उम्र में ही वो अपने वीर्य को यौंही बेकार जाया करता रहे………………..!


आज दोपहर से ही हल्की-हल्की बूँदा-बाँदी हो रही थी, स्कूल से छूटने के बाद शंकर ने अपना और सलौनी का स्कूल बॅग एक बरसाती बॅग में पॅक करके साइकल के कॅरियर पर कसा जिससे उनकी किताबें गीली ना हो और छोटी बेहन को आगे बिठाकर वो घर की तरफ चल दिया…!

थोड़ी ही देर में उनके कपड़े गीले होकर बदन से चिपक गये, सलौनी ने अपना सिर भाई की चौड़ी छाती से सटा लिया, और आँखें बंद करके चेहरे पर पड़ रही ठंडी-ठंडी बूँदों का मज़ा लेने लगी…!

भाई के शरीर की गर्मी पाकर उसके बदन में हलचल शुरू हो गयी, वो अपने भाई के स्पर्श को महसूस करके उत्तेजित होने लगी…!

सफेद स्कूल शर्ट भीगने से उसके बदन से चिपक गयी थी, जिसमें से उसकी हरे रंग की समीज़ साफ-साफ दिखाई दे रही थी, ब्रा अभी तक उसे पहनने को नही मिली थी..

गीली समीज़ में उत्तेजना के कारण उसके नन्हे-मुन्ने किस्मिस के दाने जैसे निपल कड़क होकर सामने से अपना इंप्रेशन दिखाने लगे, जिन्हें उपर से शंकर साफ देख पा रहा था…!

माँ के साथ हुए उस दिन के घटनाक्रम के बाद से अब उसके मन में भी नारी शरीर के प्रति उत्सुकता बढ़ती जा रही थी,

वो उसके नुकीले निप्प्लो को देख-देखकर उत्तेजना से भरने लगा.., इसी वजह से अंडरवेर में उसका नाग अपना फन फैलने लगा…!

उसके लंड के उभार को सलौनी ने अपनी पीठ पर महसूस किया, वो मन ही मंन खुश होने लगी, उसे पूरा विश्वास था, कि उसकी तरह उसका भाई भी उत्तेजित हो रहा है..

उसने अपने कच्चे अमरूदो की झलक अपने भाई को दिखाने का निश्चय कर लिया,

सलौनी ने थोड़ा सा अपना सिर हॅंडल की तरफ झुकाया, अपने एक हाथ की उंगलियों से अपनी शर्ट के उपर के दो बटन खोल दिए और समीज़ को थोड़ा नीचे की तरफ खींचकर खिसका दिया…!

फिर खुद ने ही झाँक कर अपने बदले हुए सीन का जायज़ा लिया, अब उसकी छोटी-छोटी चुचियों का उपरी हिस्सा दिखने लगा, ये सीन बनाकर उसने अपना सिर पीछे को फिर से अपने भाई के सीने से सटा दिया…!

जैसे ही शंकर की नज़र सलौनी के सीने पर पड़ी, दो बटन खुले होने की वजह से उसके नन्हे मुन्ने गेंदों के बीच बने छोटे से ढलान और उपर के उभारों को देखकर जिनके उपर बारिश के पानी की बूँदें मोतियों की तरह चमक रही थी…
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10-16-2019, 01:48 PM,
#49
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
शंकर का नाग बेलगाम घोड़े की तरह थुनक उठा, जिसकी हलचल महसूस करते ही सलौनी ने अपनी पीठ को और पीछे खिसक कर उसके उपर दबा दिया..,

साथ ही वो 20-30 डिग्री और साइड को घूम गयी और उसने एक हाथ को शंकर के बाजू पर रखकर अपने एक नीबू को उसकी बाजू पर दबा दिया…!

अपने गाल को उसकी थोड़ी से सटाते हुए बोली – भैया.. साइकल उस जामुन के पेड़ के पास रोक देना, मुझे जामुन खानी है…!

शंकर ने भी मौके का फ़ायदा लेकर अपने उसी बाजू को उसके सीने के दोनो उभारों पर दबाकर भींचते हुए कहा – ऐसी बारिश में जामुन कैसे तोड़ेंगे...

शंकर ने उत्तेजना में आकर उसे कुछ ज़्यादा ही ज़ोर्से भींच दिया था, उसकी दोनो नन्ही मुन्नी गेंदें बुरी तरह से दब गयी,

हल्के से दर्द की अनुभूति में वो कराह कर बोली – आअहह…भैया…इतनी ज़ोर्से मत भींच मुझे…दर्द होता है…

शंकर को अपनी ग़लती का एहसास होते ही उसने अपने बाजू को हटाना चाहा, तभी सलौनी ने उसके बाजू को वहीं थामकर वो उससे और ज़ोर्से चिपट गयी..

फिर उसने भाई के हाथ को अपने हाथ में लेकर अपने एक अमरूद पर रखकर उसे दबाते हुए बोली..

हमें कॉन्सा उपर चढ़कर जामुन तोड़ना है, देख वो पेड़ आ गया रोक साइकल,

वाअहह…क्या काले-काले, मोटे-मोटे जामुन लगे हैं, थोड़ी कोशिश करेंगे तो नीचे से भी हमारे लायक मिल जाएँगे…

पेड़ रास्ते से थोड़ा सा ही हटकर था, सच में ही बहुत मस्त जामुन लदे हुए थे, बारिस में कोई रोकने वाला भी नही था,

शंकर ने उसके दूसरे अमरूद को भी धीरे से सहला कर अपनी साइकल पेड़ के नीचे ले जाकर खड़ी कर दी…!

शंकर की हाइट चूँकि अच्छी थी, सबसे नीचे की डाली के अंतिम छोर तक उसका हाथ आसानी से पहुँच गया, लेकिन जैसे ही उसने उसे पकड़कर झुकाने की कोशिश की,

वो पडाक से टूट गयी, हाथ में रह गये कुछ पत्तों समेत एक छोटा सा डाली का टुकड़ा, जिसमें दो-चार कच्चे-पके जामुन थे…!

ओह्ह्ह…भैया, ये तूने क्या किया, इससे क्या होगा..? चल वो डाली नीची है, उसपे कोशिश करते हैं.

शंकर ने दूसरी डाली को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन हाथ नही आई, अपनी जगह उच्छल कर डाली को पकड़ा, लेकिन कुछ पत्तों के अलावा कुछ हाथ नही लगा…!

शंकर ने सलौनी के कच्चे अमरूद जो उसके शर्ट के उपर से झाँक रहे थे, उनपर नज़र डालते हुए कहा – जामुन खाने हैं तो चल घोड़ी बन जा…!


सलौनी ने चोन्क्ते हुए कहा – क्या..? लेकिन क्यों..?

शंकर ने मुस्कराते हुए कहा – अरे तेरी पीठ पर खड़ा होकर जामुन तोड़ूँगा और क्या..? वैसे तू क्या समझी थी..?

सलौनी – पागल हो गया है तू, वजन देखा है अपना, सांड़ जैसा है, तेरा वजन झेल पाउन्गि में..? मेरी पीठ ही चटक जाएगी…!

शंकर – तो फिर रहने दे, चल चलते हैं घर, खा ली जामुन…!

सलौनी ज़मीन पर पैर पटकते हुए थुनक कर बोली – हुन्न्ह..हुन्न्ह…मुझे जामुन खाने हैं…, फिर अपना दिमाग़ चलाते हुए बोली –

भैया तू एक काम कर मुझे उपर उठा ले, मे तोड़ लूँगी खूब सारी, चल उठा मुझे, ये कहकर वो उसके सामने मुँह करके खड़ी हो गयी…

शंकर – तो घूम तो जा, पीछे से ही तो उठाउंगा तुझे…

सलौनी – नही ऐसे ही आगे से उठा, तुझे पता तो रहेगा और कितना उठाना है..

शंकर ने थोड़ा झुक कर उसके छोटे-छोटे चुतड़ों के नीचे अपनी बाजू मोड़ कर उसे अपने बाजुओं पर बिठा लिया और खड़ा हो गया..!

अब सलौनी के कच्चे अमरूद उसकी आँखों के ठीक सामने थे, जो गीली समीज़ में होते हुए बेआवरण जैसे ही लग रहे थे,

शंकर का मन किया की वो उन्हें अपने मुँह में लेकर चूसे, उधर सलौनी अपने अमरुदो पर शंकर के मुँह की भाप महसूस करके गन्गना उठी..

बारिश के ठंडे पानी की वजह से उसके कड़क हो चुके निपल शंकर के मुँह की गरम भाप से मचल उठे, उनमें सुर-सुराहट और तेज होने लगी…

सलौनी का मन कर रहा था की कोई उन्हें काट खाए, या फिर मसल दे जिससे उनमें हो रही चुन-चुनाहट कम हो सके…

वो सोचने लगी कि काश भैया मेरे अमरुदो को खा जाए, उन्हें चूसे.., ये विचार आते ही उसकी कुँवारी मुनिया में चींतियाँ सी रेंगने लगी…!

इधर शंकर के दिल में भी ऐसा ही कुछ चल रहा था, उसका मन काबू से बाहर होने लगा, और उसने अपनी छोटी बेहन के कच्चे अमरुदो के बीच की खाई पर अपने तपते होंठ रख दिए…!

सलौनी की मस्ती में आँखें बंद हो गयी, वो मन ही मन प्रार्थना करने लगी, हे भगवान भाई का मुँह थोड़ा इधर-उधर को करदो…,

लेकिन भगवान ने ऐसी बातों का कोई ठेका थोड़ी नही ले रखा था…, जब कुछ देर शंकर ने आगे और कोई हरकत नही की , तो सलौनी बोली –

भैया, यहाँ तक की जामुन तो मेने तोड़ ली, इसके थोड़ा उपर एक बड़ा सा गुच्छा लगा है, थोड़ा और उपर कर ना…!

शंकर ने उसे ताक़त से किसी गुड़िया की तरह उसे उपर उच्छाल दिया, फूल जैसी सलौनी उसके सिर के उपर तक उच्छल गयी, उसी पल उसने एक हाथ से अपनी स्कर्ट को उपर उठा लिया,
और जैसे ही नीचे आने लगी, तभी उसने अपने दोनो पैर शंकर के कंधों से होकर पीछे की तरफ कर दिए…

अब सलौनी आगे से शंकर की पीठ की तरफ पैर लटकाए उसके मुँह के सामने आराम से बैठी थी, उसकी स्कर्ट शंकर के सिर पर थी, छोटी सी सफेद कच्छी में क़ैद उसकी मुनिया ठीक शंकर की आँखों के सामने थी…!
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10-16-2019, 01:49 PM,
#50
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
स्कर्ट के अंदर मुँह डाले शंकर की नज़र जैसे ही उसकी कच्छी में क़ैद छोटी सी मुनिया के उपर पड़ी, जिसकी पतली-पतली फांकों के बीच शंकर की नाक सटी हुई थी…!

पेशाब मिश्रित सलौनी के कामरस से भीगी कच्छी की खुसबु उसकी नाक में घुसने लगी जिसे सूँघकर वो मदहोश होने लगा,

आँख बंद करके लंबी-लंबी साँस लेकर उसकी चूत की खुसबु की मदहोशी में स्वतः ही उसके होंठ उसकी मुनिया के उपर पहुँच गये और उसने उसे कच्छी के उपर से ही चूम लिया…!

शंकर अपने होंठों को उसकी मुनिया के उपर ले जाने के लिए जैसे ही उसने अपने मुँह को थोड़ा उपर किया, उसकी नाक की नोक सलौनी की फांकों के बीच दबाब डालती चली गयी…

फिर जैसे ही शंकर ने उसकी मुनिया के होंठों को चूमा, सलौनी का पूरा शरीर, बिजली के झटके की तरह झन-झना उठा.., उसकी टाँगें शंकर के गले से लिपट गयी…,

शंकर ने अपने होंठों का दबाव कच्छी के उपर से ही उसकी मुनिया पर बढ़ा दिया और उसे एक बार ज़ोर्से चूस लिया…!

ना चाहते हुए सलौनी के मुँह से एक मादक सिसकी निकल पड़ी…सस्स्सिईईई…
आअहह….भैयाअ… साथ ही उसने अपने हाथ से उसका सिर और दबा दिया…

शंकर भी सब कुछ भूलकर उसकी पैंटी को अपनी जीभ से चाटने लगा, जो उसके कामरस से भीगति जा रही थी…

वो कहते हैं ना कि, आदमी को जितना मिलता है, उसे उससे आगे और ज़्यादा पाने की इच्छा होने लगती है..,

ऐसा ही कुछ शंकर के साथ हो रहा था, अब उसे अपनी बेहन की प्यारी मुनिया के दीदार करने की इच्छा होने लगी…, लेकिन उसके दोनो हाथ तो उसकी पीठ पर सहारा दे रहे थे…,

तभी उसके दिमाग़ में एक विचार आया, और उसने अपनी नाक उसकी कच्छी के किनारे फसाई, और उसे एक तरफ को कर दिया…!

टाँगें चौड़ी होने के कारण सलौनी की मुनिया के पतले-पतले होंठ, थोड़े से खुले हुए थे…, बालों के नाम पर तो अभी उसके रोंगटे ही थे,

चिकनी मुनिया के पतले होंठों के बीच की लालमी देखकर शंकर बौरा उठा, और उसने अपनी जीभ की नोक से उसकी मुनिया की अंदरूनी लालमी को कुरेद दिया…

अपनी बेहन के कुंवारे रस का स्वाद उसकी जीभ को भा गया, और वो उसे उपर से नीचे अच्छी तरह से जीभ से रगड़कर चाटने लगा…!
जैसे ही सलौनी को अपनी मुनिया के अंदर तक अपने भाई की जीभ का एहसास हुआ…उसकी गान्ड बुरी तरह से थिरकने लगी,

वो सिसकते हुए पीछे को दोहरी होगयि, और अपनी चूत को उसके मुँह पर चिपका दिया.. वो ज़ोर-ज़ोर्से साँस लेती हुई अपने भाई के मुँह पर झड़ने लगी…,

शंकर उसके सारे रस को चाट गया..,

जब वो पूरी तरह झड गयी, कुछ देर तक उसका शरीर झन-झनाता रहा, फिर कुछ सामान्य होते हुए बोली – भैया, अब मुझे नीचे उतार ले…

शंकर भी होश में आ चुका था, सो लंबी-लंबी साँस लेकर अपने आपको संयत करते हुए बोला – सारी जामुन तोड़ ली…

सलौनी के मुँह से बस हूंम्म..ही निकला…

उसने सलौनी को आराम से नीचे सरकाया, शंकर के कठोर बदन से रगड़ पाकर उसके अनार फिर से फड़कने लगे…,

शंकर ने उसे ज़मीन पर खड़ा किया और आवेश में उसने अपनी बेहन को अपने बदन से चिपका लिया…!

कुछ देर वो उसी सुखद एहसास में एक दूसरे से चिपके खड़े रहे, शंकर का लंड सलौनी की नाभि में घुसने लगा…!

सलौनी मन ही मन अपने भाई के लंड को अपनी नाभि की जगह अपनी मुनिया में फील करने लगी, ये सोचकर उसकी मुनिया फिर एकबार गीली हो उठी.. और वो गुदगुदी से भर उठी…!

उसने अपने भाई को कस कर अपनी बाहों में जकड लिया, और उसकी छाती पर अपने दहक्ते होंठ रखकर बोली – मेरा प्यारा भैया…!

सलौनी के मुँह से ये शब्द सुनते ही मानो शंकर होश में आ गया, उसने फ़ौरन सलौनी को अपने से अलग किया और बोला – ला कहाँ हैं जामुन…!

लेकिन जो जामुन उसने तोड़ी थी, वो भी इस खेल में ज़मीन पर गिर पड़ी थी, वो अपनी खाली झोली टटोलकर बोली –

सॉरी भैया, वो तो गिर पड़ी…, उसकी बात सुनकर शंकर को हसी आ गई, सलौनी झेंप गयी, और फिर वो भी मुस्करा उठी…!

मन में भाई – बेहन का भाव आते ही दोनो की नज़रें स्वतः ही झुक गयी, उन्होने मिलकर नीचे पड़े जामुन उठाए, और बिना कुछ बोले चुप-चाप साइकल उठाकर घर की तरफ चल दिए…..,

शंकर अब एकदम शांत गुम-सूम साइकल चला रहा था, उसके मन में कुछ देर पहले अपनी छोटी बेहन के अंगों के साथ खेलने और छेड़-छाड़ करने से उसका मन ग्लानि से भर उठा…
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