Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
10-18-2020, 01:09 PM,
#51
RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
रिंकी को घिमिरे की मौत की खबर इन्स्पेक्टर अठवले से लगी थी ।
वो खबर सुनते ही जो पहला खयाल उसके जेहन में आया था, वो थाः
अब रिजॉर्ट कौन चलायेगा ?
और अब खुद उसकी नौकरी का क्या होगा ?
‘सत्कार’ रेस्टोरेंट कोकोनट ग्रेव का ही हिस्सा था और खुद उसकी मैनेजरी घिमिरे के सदके थी जिसने कि उसे वो पोस्ट दिलवाई थी । भविष्य में रिजॉर्ट की मिल्कियत, मैनेजमेंट, बदलने पर उसकी नौकरी पर आंच आ सकती थी ।
हत्प्राण देवसरे की वसीयत के प्रावधानों की उसे खबर थी लेकिन उसे अभी तक भी मुकम्मल यकीन नहीं आया था कि हत्प्राण अपने वकील को ही अपना वारिस बना गया था - जो यकीन आया था, उसे खुद मुकेश माथुर ही अपनी बातों से हिला गया था - अलबत्ता इस बात से उसने संतोष का अनुभव किया था कि घिमिरे उस रिजॉर्ट का मैनेजर ही नहीं, उसके एक चौथाई हिस्से का मालिक भी था; आखिर वो उसका स्पांसर था, हितचिन्तक था ।
इन्स्पेक्टर उससे मिलने घिमिरे के कत्ल की वजह से आया था - खासतौर से ये क्रॉस चैक करने आया था कि उस कत्ल के सम्भावित वक्त क आसपास कौन कहां था ! - लेकिन ज्यादा सवाल उसने एक्सीडेंट की बाबत किये थे और इस बात पर उसने काफी हद तक अविश्वास जताया था कि वो एक्सीडेंट की कोशिश करने वाले की कार का नम्बर तो न सही, रंग और मेक भी नहीं देख सकी थी । बार बार उसने पूछा था कि क्या वो कार सफेद एम्बैसेडर थी लेकिन वो उस बाद के ऐन कील ठोक कर तरदीक नहीं कर सकी थी ।
अपनी मौजूदा जिन्दगी से वो मोटे तौर पर सन्तुष्ट थी । जो एक कमी उसे उसमें लगती थी वो उसे तब पूरी होती जान पड़ी थी जबकि मुकेश माथुर नाम के युवक के उस परिसर में कदम पड़े थे । बहुत जल्द उनमें दोस्ती हुई थी लेकिन ये उसके लिये हैरानी का विषय था कि वो दोस्ती किसी मुकाम पर क्यों नहीं पहुंच रही थी; पहुंच नहीं रही थी तो कम से कम किसी निश्चित मुकाम का रुख क्यों नहीं कर रही थी ! उसकी इस उलझन का जवाब इस तथ्य में छुपा था कि मुकेश माथुर विवाहित था लेकिन ये बात न उसे मालूम थी और न, सिवाय मुकेश के बताये, मालूम होने को कोई साधन था ।
रात को दस बजे के बाद किसी समय समुद्र स्नान के लिये जाना उसकी स्थापित रूटीन थी । उसके बाद उसने बिस्तर के ही हवाले होना था और यूं वो बड़ी चैन की नींद सोती थी ।
बावजूद घिमिरे के कत्ल की खौफनाक खबर के उसने उस रोज भी अपनी उस रूटीन पर अमल करने का इरादा बनाया । लेकिन उस रोज बीच पर उसके साथ चलने वाला कोई नहीं था ।
क्या वो मुकेश से बोले ?
क्या हर्ज था ।
वो अपने कॉटेज से मिकली और मुकेश के कॉटेज की ओर बढी ।
परिसर की पार्किंग में पुलिस की एक जीप तब भी खड़ी थी जिससे साबित होता था कि पुलिस अभी तक वहां से गयी नहीं थी ।
वो डबल कॉटेज के करीब पहुंची तो दायें विंग में बैठा, करनानी के साथ बतियाता, मुकेश उसे बाहर से ही दिखाई दे गया । दोनों के हाथ में ताजे बनाये ड्रिंक्स के गिलास थे जिससे लगता नहीं था कि वो उसके साथ बीच पर चलने की पेशकश पर गौर करता ।
वो वापिस लौट आयी ।
अपने कॉटेज मे पहुंच कर उसने अपने कपड़े उतारे और उसकी जगह स्विमिंग कास्ट्यूम पहन लिया । फिर उसने बड़ा तौलिया और बीच बैग सम्भाला और कॉटेज से निकलकर बीच की ओर चल दी ।
बीच उस घड़ी सुनसान था और समुद्र शान्त था ।
उस माहौल ने उसे तनिक त्रस्त किया ।
जैसा हमला उस पर होकर हटा था उसकी रू में - और घिमिरे के हालिये कत्ल की रू में - क्या उसे घड़ी वहां मौजूद होना चाहिये था !
क्या वान्दा था - फिर उसने हौसले से सोचा - अभी तो पुलिस ही वहां से नहीं गयी थी, ऐसे में उसको कोई नुकसान पहुंचाने की किसकी मजाल हीं सकती थी !
उस बात ने उसे बहुत आश्वस्त किया ।
उसने अपना तौलिया रेत पर एक जगह फैलाया और फिर आगे बढ कर समुद्र में कदम डाला ।
पन्द्रह बीस मिनट उसने समुद्र स्नान का आनन्द लिया, उसके बाद वो बाहर निकलकर अपने बीच टावल पर सुस्ताने बैठ गयी ।
फिर उसका ध्यान माधव घिमिरे की तरफ भटक गया ।
कितना अच्छा आदमी था !
मेहनती ! संजीदा !
कितनी दक्षता से वो रिजॉर्ट का निजाम चलाता था !
क्या दुश्मनी थी किसी की उससे जो किसी ने उसका खून कर दिया !
अब फौरन रिजॉर्ट का निजाम कौन सम्भालने वाला था !
हैरानी थी कि इस बाबत अभी कोई बात ही नहीं उठी थी ।
ऑफिस में पांच छः मुलाजिम थे जिनमें से अशोक अत्रे नाम का एक लड़का उसका खास सहायक था लेकिन वो इतना काबिल और जिम्मेदार कहां था कि मैनेजर की जगह ले पाता !
तब उसे अहसास हुआ कि रिजॉर्ट का मैनेजमेंट उसे भी सौंपा जा सकता था ।
क्या वो सब काम सम्भाल सकती थी ? - उसने अपने आपसे सवाल किया ।
यकीनन ।
वो पूरे परिसर के मैनेजर के तौर पर अपनी कल्पना करने लगी ।
फिर उस कल्पना से वो खुद ही शर्मिन्दा हो गयी ।
घिमिरे के मरते ही उसे ऐसा नहीं सोचने लगना चाहिये था ।
क्या वो बेचारा इसलिये जान से गया था कि उसकी जगह खाली हो जाती और उस पर वो अपना दावा पेश कर पाती !
एकाएक कहीं हल्की सी आहट हुई ।
उसने हड़बड़ाकर सिर उठाकर सामने देखा और फिर आजू बाजू निगाह दौड़ाई ।
कहीं कोई नहीं था ।
एक बाजू में रेत के टीले से थे जो कि बीच पर आम पाये जाते थे । वो जानती थी कि कभीकभार कोई आवारा कुत्ता उधर आ भटकता था और खा के फेंकी गयी किसी हड्डी की तलाश में रेत खोदने लगता था ।
वो नाहक डर रही थी ।
वो फिर अपने खयालों में खो गयी ।
एक बार फिर पहले जैसी आहट हुई लेकिन इस बार उसने उसे नजरअन्दाज कर दिया ।
फिर एकाएक उसे अहसास हुआ कि उसे ठण्ड लग रही थी । वो उठ कर खड़ी हुई और तौलिया उठा कर अपना बदन पोंछने लगी ।
इस बार आहट ऐन उसके पीछे हुई और आहट के साथ उसे ऐसा भी लगा जैसे पीछे कहीं कुछ हिला था ।
उसने जल्दी से घूम कर पीछे देखा तो उसके प्राण कांप गये ।
कोई ऐन उसके पीछे खड़ा था ।
Reply
10-18-2020, 01:09 PM,
#52
RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
दो हाथ उसकी तरफ लपके ।
उसने चिल्लाने के लिये मुंह खोला लेकिन आवाज उसके गले में ही घुटकर रह गयी । उसने फिर कोशिश की तो चीख की जगह एक कदरन तीखी कराह ही उसके मुंह से निकली ।
एक हाथ ने उसका गला दबोच लिया और दूसरे ने उसकी एक बांह थाम कर फिरकी की तरह उसे घुमा दिया । फिर एक हाथ ने उसकी दोनों कलाईयां उसकी पीठ पीछे जकड़ लीं और दूसरे की बांह सांप की तरह उसकी गर्दन से लिपट गयी ।
वो तड़पने लगी और मछली की तरह छटपटाने लगी ।
उसका गला यूं घुटता चला जा रहा था कि उसके लिये सांस ले पाना दूभर हो रहा था । उसकी आंखें कटोरियों से बाहर उबली पड़ रही थीं लेकिन उसकी कोई कोशिश उसे बन्धनमुक्त नहीं कर पा रही थी ।
उसने भरपूर जोर लगाकर कोशिश की तो उसकी एक कलाई बन्धनमुक्त हो गयी । यूं स्वतन्त्र हुआ उसका हाथ अपनी गर्दन से लिपटी बांह पर जाकर पड़ा और वो पूरी शक्ति से बांह की गिरफ्त तोड़ने की कोशिश करने लगी ।
उसकी कोशिश कामयाब न हुई ।
केवल एक क्षण को उसे लगा कि वो बन्धनमुक्त होने जा रही थी, जबकि उसके गले से कराह जैसी एक चीख निकली और फिर तत्काल बाद हमलावर की जकड़ मजबूत, मजबूततर होती चली गयी ।
फिर एकाएक उसका शरीर धनुष की तरह मुड़ा और उसके पांव जमीन छोड़ गये । कुछ क्षण उसने हवा में पांव चलाये फिर...
फिर सब शान्त हो गया ।

Chapter 4
केवल एक ड्रिंक लेकर करनानी चला गया ।
पीछे मुकेश ने घड़ी देखी और वहां की बत्तियां बुझाने लगा ।
अब उसे मुम्बई से कॉल आने की कोई उम्मीद नहीं रही थी ।
वो अपने विंग में लौट आया ।
वहां उसने कोई बत्ती जलाने की कोशिश न की और सोने की तैयारी करने की जगह खिड़की के करीब एक कुर्सी पर बैठ गया ।
इन्स्पेक्टर अठवले लौट के आने को बोल के गया था इसलिये उसका इन्तजार करना उसका फर्ज था ।
इन्तजार के उस वक्फे में घिमिरे की सूरत बार बार उसके जेहन पर उभरी, कई बार उसे लगा कि वो जानता था कि कौन उसका कातिल हो सकता था ।
लेकिन लगने से क्या होता था ! कोई सबूत भी तो होना चाहिये था । कहां था सबूत ?
कहीं तो था ।
भूसा हटे तो गेहूं दिखाई दे न ।
फिर उसका दिमाग जैसे गुजश्ता वाकयात पर से भूसा हटाने में मशगूल हो गया ।
उसे उस काम में कामयाबी के आसार दिखाई देने लगे थे जबकि एकाएक टेलीफोन की घन्टी बजी ।
घंटी यूं एकाएक बजी कि वो चिहुंक गया । फिर वो लपककर दूसरे यूनिट में पहुंचा । उसने कॉल रिसीव की ।
लाइन पर सुबीर पसारी था ।
“ये टाइम है फोन करने का ?” - मुकेश झुंझलाया ।
“भई, और भी काम होते हैं ।” - जवाब में पसारी का स्वर सुनायी दिया ।
“होते हैं । और हो जाते हैं अगर अच्छी नीयत से करो तो । अब बोलो, कुछ हुआ ?”
“हुआ । तभी तो फोन लगाया ।”
“जरूर पांच मिनट पहले ही हुआ होगा ।”
“अरे नहीं, भाई । पहले फोन करने का मौका न मिला, फिर फोन न मिला । इसलिये देर हुई ।”
“चलो, देर आयद दुरुस्त आयद । अब बोलो क्या हुआ ?”
पसारी ने बोलना शुरू किया ।
“यार, लाइन में गड़बड़ है ।” - मुकेश को बीच मे बोलना पड़ा - “आवाज ठीक से नहीं आ रही । ...क्या बोला ? ..बान्द्रा ईस्ट ! ..विरसे का मामला है ? वो तो होगा ही । रकम ट्रस्ट में है ? ...दस साल के लिये ? ..कितनी ? ..और नाम ? ...क्या ? तनु ! ...और तारीख क्या बताई ? ..उन्नीस अप्रैल ? ...आवाज अभी भी खराब है । ..ठीक है, मैं कल फोन करूंगा और कुछ बातें दोहरा के पूछूंगा । ओके, थैंक्यू । एण्ड गुड नाइट ।”
उसने रिसीवर रख दिया और घड़ी पर निगाह डाली ।
इन्स्पेक्टर का तब भी कहीं अता पता नहीं था ।
वो कॉटेज से बाहर निकला ।
पुलिस की जीप जो इतनी देर से कम्पाउन्ड में खड़ी दिखाई दे रही थी, अब वहां नहीं थी ।
वो ‘सत्कार’ में पहुंचा ।
रिंकी वहां नहीं थी ।
फिर उसे खुद अपनी नादानी का अहसास हुआ, उस वक्त तो वो वहां अपेक्षित भी नहीं होती थी ।
बाहर आकर उसने उसके कॉटेज पर निगाह डाली तो उसे अन्धेरे में डूबा पाया ।
यानी कि अभी वो बीच से वापिस नहीं लौटी थी ।
वो बीच पर पहुंचा ।
वहां कदम रखते ही उसे ऐसा लगा जैसे उसके कानों में घुटी हुई चीख की आवाज पड़ी हो । वो आवाज उसे एक दर्दनाक कराह जैसी लगी ।
उसने आंखें फाड़ फाड़कर सामने देखा ।
फिर उसे समुद्र के किनारे के करीब एक साया दिखाई दिया जो कि रिंकी का यकीनन नहीं था ।
“कौन है ?”
रात के सन्नाटे में उसकी आवाज जोर से गूंजी ।
साया ठिठका ।
Reply
10-18-2020, 01:10 PM,
#53
RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“कौन है उधर ?”
इस बार सामने जो हलचल हुई उससे उसे अहसास हुआ कि साया एक नहीं, दो थे । फिर एक साया नीचे को झुकते दूसरे साये से अलग हुआ और दायीं ओर दौड़ चला ।
पलक झपकते वो अन्धकार में विलीन हो गया ।
वो दौड़कर नीचे गिरे पड़े साये के करीब पहुंचा ।
साये की सूरत पर उसकी निगाह पड़ी तो उसके नेत्र फट पड़े ।
“रिंकी !”
कोई हरकत न हुई ।
“रिंकी !”
जवाब नदारद ।
उसने झुक कर उसे कन्धों से पकड़ कर झंझोड़ा तो वो हौले से कराही ।
उसकी जान में जान आयी । उसने उसे बड़े यत्न से अपनी बांहों में सम्भाल कर बिठाया और फिर हौले हौले उसकी पीठ थपथपाने लगा ।
कई क्षण रिंकी के गले से फंसी फंसी सांसें निकलती रहीं, आखिरकार उसके चेहरे की रंगत लौटने लगीं और सांसें व्यवस्थित होने लगीं । फिर जैसे पहली बार उसे अपनी खस्ता हालत का अहसास हुआ । उसका शरीर जोर से कांपा, वो कस कर उसके साथ लिपट गयी ।
“ईजी ! ईजी !” - उसे आश्वासन देता मुकेश मीठे स्वर में बोला ।
उसका शरीर फिर जोर से कांपा ।
“क्या हुआ था ?”
“पहले यहां से चलो ।” - वो बड़ी मुश्किल से बोल पायी - “यहां मौत नाच रही है ।”
“घबराओ नहीं, मेरे होते कुछ नहीं होगा ।”
“हम दोनों मारे जायेंगे ।”
“अरे, कुछ नहीं होगा ।”
“यहां से चलो । प्लीज ।”
उसने सहारा देकर उसे उसके पैरों पर खड़ा किया और उसे वापिसी के रास्ते पर चलाने लगा ।
बीच से निकलकर वो रिजॉर्ट के रोशन माहौल में पहुंचे ।
“अब बोलो क्या हुआ था ?”
“क्या बताऊं क्या हुआ था ?” - वो बोली - “मैं वहां बीच पर थी, स्विमिंग के बाद जरा रिलैक्स कर रही थी कि पता नहीं कब कैसे कोई मेरे सिर पर आन पहुंचा, उसने मुझे दबोच लिया और गला घोंटकर मुझे मार डालने की कोशिश करने लगा ।”
“कौन था वो ?”
“पता नहीं कौन था ? लेकिन जो कोई भी था, उसका वन प्वायन्ट प्रोग्राम मुझे जान से मार डालना ही था ।”
“तौबा ! सूरत देखी उसकी ?”
“कहां देखी !”
“इतना अन्धेरा तो नहीं था !”
“मेरे खयाल से वो ...वो नकाब पहने था ।”
“हो सकता है । मुझे भी ऐसा ही लगा था ।”
“तुम कैसे पहुंच गये ?”
“तुम्हें ही देखने आया था । फिर घुटी हुई चीख की आवाज सुनी, फिर साया सा दिखा, जिसे मैंने ललकारा तो वो तुम्हें छोड़ के भाग गया ।”
“तुमने मेरी जान बचाई । एक मिनट भी लेट आये होते तो तुम्हें बीच पर मेरी लाश पड़ी मिलती ।”
“तुम्हारी जान लेने की किसी की ये दूसरी कोशिश है जो नाकाम हुई है । कौन है वो कमीना जो यूं हाथ धोकर तुम्हारे पीछे पड़ा है । और क्यों पड़ा है ?”
“क्यों पड़ा है ? कब पीछा छोड़ेगा ? जरूर तभी जब कामयाब हो जायेगा ।”
“तुम्हें भी अपना शिड्यूल बदलना चाहिये । इतनी रात गये सुनसान बीच पर तुम्हें अकेले नहीं जाना चाहिये था ।”
“मुझे क्या पता था बीच सुनसान होगा !”
“जब पता लग गया था, तब लौट आना था ।”
वो खामोश रही ।
वो रिजॉर्ट के कम्पाउन्ड में पहुंचे ।
उस वक्त घिमिरे के कॉटेज को छोड़ कर तमाम कॉटेज अन्धकार में डूबे हुए थे ।
पुलिस की जीप तब फिर कम्पाउन्ड में मौजूद थी ।
“कोई पुलिस वाला ही होगा वहां ।” - वो बोला ।
“कहां ?” - रिंकी बोली ।
“घिमिरे के कॉटेज में । और भला क्यों होगी रोशनी वहां !”
“इतनी रात गये ?”
“पुलिस वालों के लिये दिन क्या रात क्या !”
“परिसर में पुलिस की मौजूदगी में किसी की मेरे पर हाथ डालने की मजाल हुई ।”
“मेरे ख्याल से बीच में ये लोग वहां से चले गये थे । जब मैं अपने कॉटेज से बाहर निकला था तो कम्पाउन्ड में पुलिस की जीप नहीं थी ।”
“लेकिन तब थी जब मैं बीच की तरफ रवाना हुई थी ।”
“किसी को यहां पुलिस की मौजदूगी के बावजूद तुम पर वार करने की मजाल हुई ?”
“हां ।”
“इससे एक ही बात साबित होती है कि कातिल तुमसे कोई खास ही खतरा महसूस कर रहा है ।”
“कैसा खतरा ?”
“तुम बताओ । सोचो । जोर दो दिमाग पर । जाने अनजाने तुम यकीनन ऐसी कोई बात जानती हो जो कातिल को एक्सपोज कर सकती है ।”
उसके शरीर ने जोर की झुरझुरी ली लेकिन वो मुंह से कुछ न बोली ।
मुकेश उसके साथ उसके कॉटेज पर पहुंचा ।
“तुम भीतर जाओ” - वो बोला - “और जाकर कपड़े बदलो । मैं पुलिस वालों का पता करता हूं ।”
उसने सहमति में सिर हिलाया ।
“दरवाजा भीतर से बन्द रखना और किसी अनजान आदमी को न खोलना भले ही वो कोई हो । समझ गयी ?”
“हां ।”
“चलो ।”
अपने कॉटेज में दाखिल होकर उसने दरवाजा बन्द कर लिया तो मुकेश ने लम्बे डग भरते कम्पाउन्ड पार किया और घिमिरे के कॉटेज के दरवाजे पर पहुंचा । उसने दरवाजे पर दस्तक दी ।
दरवाजा सब-इन्स्पेक्टर सोनकर ने खोला ।
“इन्स्पेक्टर साहब कहां हैं ?” - मुकेश ने पूछा ।
“चले गये । क्यों पूछ रहे हो ?”
“यहां फिर एक वारदात हो गयी है ।”
“हो गयी है ?” - सब-इन्स्पेक्टर सकपकाया ।
“आई मीन होते होते बची है ।”
“क्या हुआ ?”
Reply
10-18-2020, 01:11 PM,
#54
RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
मुकेश ने बताया ।
“ये एक गम्भीर वाकया है” - अन्त में वो बोला - “मेरे खयाल से जिसकी इनवैस्टिगेटिंग ऑफिसर को फौरन खबर लगनी चाहिये ।”
“मैं करता हूं खबर ।”
“और इन्स्पेक्टर साहब को ये भी बोलना कि मैं उनसे बहुत जरूरी बात करना चाहता हूं ।”
“सुबह थाने आना ।”
“अभी । अभी बहुत जरूरी बात करना चाहता हूं ।”
“क्या जरूरी बात ? मुझे बताओ ।”
मुकेश खामोश रहा ।
“ठीक है ।”
सब-इन्स्पेक्टर ने उसके मुंह पर दरवाजा बन्द कर लिया ।
मुकेश कॉटेज के पिछवाड़े में पहुंचा । उसने एक उड़ती निगाह उस खाली सायबान पर डाली जहां कि घिमिरे की कार खड़ी होती थी और फिर अगले सायबान के करीब पहुंचा ।
नीमअन्धेरे में बड़ी मुश्किल से वो उसके नीचे खड़ी कार का नम्बर नोट कर पाया ।
वो वापिस कम्पाउन्ड में पहुंचा । उसने एक बार दायें बायें निगाह दौड़ाई और फिर करनानी के कॉटेज पर जाकर उसका दरवाजा खटखटाया ।
थोड़े इन्तजार के बाद दरवाजा खुला ।
“क्या है ?” - वो अनमने भाव से बोला ।
“मैं तुम्हें ये बताने आया था कि किसी ने रिंकी पर फिर जानलेवा हमला किया है ।”
“क्या !”
“वो बाल बाल बची ।”
“कब ?”
“अभी दस मिनट पहले ।”
“झूलेलाल ! कौन पड़ा है बेचारी पुटड़ी के पीछे ?”
“सोचो । आखिर जासूस हो ।”
“हूं ।”
“इसीलिये बताने आया कि शायद तुम्हें कुछ सूझे ।”
“मुझे ?”
“अपने प्रोफेशन की वजह से तुम्हारा दिमाग ऐसी बातों के लिये ज्यादा ट्रेंड जो है ।”
“ओह !”
“मैं चला ।”
मुकेश अपने कॉटेज में वापिस लौटा ।
दायें विंग में जाकर उसने फोन पर ट्रंक ऑपरेटर को लिया ।
“मैं दो लाइटनिंग कॉल बुक कराना चाहता हूं । नम्बर मुझे मालूम नहीं हैं इसलिये बरायमेहबानी उस बाबत आप ही मदद कीजियेगा । एक कॉल शिवाजी कार रेंटल एजेन्सी, पूना को लिये और दूसरी हर्णेर्इ में दिनेश पारेख के लिये । कितना टाइम लग जायेगा ? ...ठीक है, धन्यवाद ।”
वो फोन के पास एक कुर्सी पर ढेर हो गया ।
तभी रिंकी वहां पहुंची ।
उस घड़ी वो एक सलवार सूट पहने थी और बार बार अपनी एक उंगली सहला रही थी ।
मुकेश ने प्रश्नसूचक नेत्रों से उसकी तरफ देखा ।
“मुझे अपने केबिन में डर लग रहा है ।” - वो धीरे से बोली ।
“अभी ताजा ताजा वाकया है इसलिये डर लगना स्वभाविक है ।”
“मैं यहां आ गयी, तुम्हें कोई एतराज तो नहीं ?”
“नहीं, कोई एतराज नहीं ।”
“शुक्रिया ।”
“उंगली को क्या हुआ ?”
“एक नाखुन टूट गया हमलावर के साथ हाथापायी में । पहले पता ही नहीं लगा, लौट के पता लगा ।”
“दर्द अब जा के उठा चोट लगे देर हुई’ की माफिक ?”
वो हंसी ।
“बैठो ।”
वो उसके सामने एक कुर्सी पर बैठ गयी ।
तभी फोन की घन्टी बजी ।
मुकेश ने रिसीवर उठा कर कान में लगाया ।
“पूना बात कीजिये ।” - ट्रंक ऑपरेटर की आवाज आयी ।
“यस । थैंक्यू ।”
ऑपरेटर बीच में से हटी, माथुर को एक नयी आवाज सुनायी दी तो वो बोला - “मैं गणपतिपुले पुलिस स्टेशन से सब-इन्स्पेक्टर सोनकर बोल रहा हूं । हम आपकी कार रेंटल एजेन्सी से किराये पर उठाई गयी एक कार की बाबत जानकारी चाहते हैं । कार सफेद रंग की एम्बैसेडर है और रजिस्ट्रेशन नम्बर एम एच 7 सी 5103 है । हमें उस शख्स क नाम पता चाहिये जिसने आप लोगों से ये कार किराये पर ली है । ठीक है । होल्ड करता हूं ।”
कुछ क्षण लाइन खामोश रही ।
फिर दूसरी तरफ से जवाब मिला ।
“जी हां, बोलिये ।” - एक कागज कलम सम्भालाता मुकेश बोला - “नोट कराइये । थैंक्यू ।”
उसने रिसीवर रखा और कागज को दोहरा करके जेब के हवाले किया ।
रिंकी अपलक उसे देख रही थी ।
“क्या माजरा है ?” - वो बोली ।
“कुछ नहीं ।” - मुकेश बोला - “जरा ‘बटन बटन हू हैज गॉट दि बटन’ खेल रहा हूं ।”
रिंकी के चेहरे पर उलझन के भाव आये लेकिन वो मुंह से कुछ न बोली ।
तभी फिर फोन की घन्टी बजी ।
मुकेश ने फोन उठाया ।
“हर्णेई बात कीजिये ।” - ऑपरेटर की आवाज आयी - “पर्टीकुलर पर्सन लाइन पर है ।”
“थैंक्यू ।”
फिर उसे दिनेश पारेख की आवाज सुनाई दी ।
“मैं मुकेश माथुर ।” - वो बोला ।
“तुम” - आवाज आयी - “वही मुकेश माथुर हो न जो कल मेरे से मिलने आये थे ? जिसने मेरी स्टडी से एक पर्चा खिसका ले जाने की कोशिश की थी ?”
“वही हूं ।”
“कैसे फोन किया इतनी रात गये ?”
“आपकी मदद का तलबगार बन कर फोन किया, जनाब ।”
“मदद को लेन देन दोस्तों में होता है । हम दोस्त हैं ?”
“आप चाहें तो हो सकते हैं ।”
“बावजूद तुम्हारी उस हरकत के ?”
“जी हां ।”
“बड़े आशावादी शख्स हो ।”
“आशा पर तो सृष्टि कायम है ।”
“क्या चाहते हो ?”
“सबसे पहले तो आपसे एक आश्वासन चाहता हूं ।”
“क्या ?”
“ये कि हमारा ये वार्तालाप कोई सुन नहीं रहा, ये टेप नहीं किया जा रहा और ये हमारे और सिर्फ हमारे बीच हो रहा है ।”
“ऐसे आश्वासन की मांग तो मुझे करनी चाहिये । तुम एक खुराफाती आदमी हो जो कि....”
“सर, प्लीज ।”
“ठीक है । दिया आश्वासन । अब बोलो ।”
“जनाब, मेरा सवाल आपको नापसन्द आ सकता है, आपकी मंशा जवाब न देने की हो सकती है इसलिये दरख्वास्त है कि ऐसा रवैया अख्तियार न करें क्योंकि इसमें किसी की भलाई छुपी हुई है ।”
“अब कुछ कहो भी तो सही ।”
“जनाब, ये एक स्थापित बात है कि मिस्टर देवसरे के कत्ल की रात को आपके कदम यहां कोकोनट ग्रोव हॉलीडे रिजॉर्ट में पड़े थे । जो दो नग इस बात को साबित कर सकते थे उन दोनों को तो कल आपने फूंक कर ऐश-ट्रे में डाल दिया था । फिर भी ये हकीकत अपनी जगह कायम है, इससे आप भी वाकिफ हैं, मैं भी वाकिफ हूं, कि आप यहां आये थे । अलबत्ता आपको ये नहीं मालूम था कि उस रात कोई मुझे नींद की दवा खिलाकर बेहोश कर देगा और मिस्टर देवसरे रिजॉर्ट के अपने कॉटेज में अकेले होंगे । इसका मतलब है कि या तो आप किसी और सबब से इस इलाके में थे और आपने सोचा कि आप ये मालूम करते जा सकते थे कि मिस्टर देवसरे ने मेरे से बनवाया सेल डीड साइन कर दिया था या नहीं, या फिर आपकी मिस्टर देवसरे से मुलाकात मुकर्रर थी और खास मुलाकात के लिये ही आपका यहां आना हुआ था ।”
“मुलाकात तुम्हारी मौजूदगी में ?”
“मेरा मिस्टर देवसरे के साथ मौजूद होना तब मेरी नहीं, उनकी मर्जी पर मनहसर होता । अगर उन्होंने आपसे कारोबारी बातचीत करनी होती जिसे कि आप सीक्रेट रखने के तमन्नाई होते तो मिस्टर देवसरे मुझे डिसमिस कर सकते थे, वो जबरन मुझे कॉटेज के मेरे वाले हिस्से में जाने पर मजबूर कर सकते थे ।”
“हूं । चलो, फर्ज कर लो कि मेरी देवसरे से मुलाकात मुकर्रर थी । अब आगे बोलो ।”
“आगे जो दो लाख रुपया का सवाल है वो ये ही है कि हजार के नोटों की गड्डी और सेलडीड का कागज आपके कब्जे में क्यों और कैसे पहुंचा ?”
“फर्ज करो कि देवसरे ने वो दोनों चीजें खुद मुझे सौंपीं ।”
“ऐसा हो सकता है लेकिन फिर मुझे ये भी फर्ज करना होगा कि उस घड़ी मिस्टर देवसरे जिन्दा थे । यूं आपकी इस बात की जवाबदेही बनती है कि आप कातिल हैं या नहीं ?”
“काफी पहुंचे हुए आदमी हो । काफी बढिया सजा लेते हो अपने मन माफिक बात को । खैर, आगे बढो । और क्या कहती है तुम्हारी सूझबूझ ?”
“मेरी तुच्छ राय में जब आप यहां पहुंचे थे, तब आपको मिस्टर देवसरे मरे पड़े मिले थे । आपको उनके कत्ल का कोई इल्म नहीं था । इत्तफाक से किसी ने आपको यहां पहुंचते देखा नहीं था और आप वैसे ही बिना देखे जाते यहां से रुख्सत भी हो सकते थे । यूं आपका कत्ल से कोई लेना देना न बनता । आपकी यहां आमद को जो चीज उजागर कर सकती थी वो या तो मेरा बनाया सेल डीड था जिसमें आपका नाम दर्ज हो सकता था - हालांकि नहीं था लेकिन उसकी बारीक पड़ताल का तब आपके पास वक्त नहीं था - या फिर हजार के नोटों की गड्डी थी लेकिन क्योंकि वो थी ही आपकी - आपने बयाने के तौर पर मिस्टर देवसरे को सौंपी थी - इसीलिये आपकी निगाह में उसको वापिस कब्जे में कर लेने का आपको अख्तियार था । आप जानते थे कि उस रकम की वाल सेफ में से बरामदी उसे मिस्टर देवसरे की एस्टेट का - उनकी चल-अचल सम्पति का - हिस्सा बना देगी और तदोपरान्त उसे वापिस हासिल करने के लिये आपको साबित करना पड़ता कि वो रकम आपके बयाने के तौर पर आद की थी लेकिन साबित कर न पाते क्योंकि आपके पास उसका कोई रसीद या पर्चा नहीं था, इसलिये नहीं था क्योंकि मिस्टर देवसरे की जिन्दगी में आपने उसकी जरूरत नहीं समझी थी क्योंकि उनकी जुबान टकसाली सिक्के जैसी चौकस मानी जाती थी । कहने का मतलब ये है कि मिस्टर देवसरे की मौत के बाद वो रकम आपको वापिस मिल पाना नामुमकिन था लेकिन ये खयाल भी जाहिर है कि, आपके जेहन से नहीं निकलता था कि - भले ही कोई खास बड़ी नहीं थी - वो रकम आपकी थी और अब जब सौदे की कोई गुंजायश नहीं रही थी तो वो रकम आपको वापिस मिलनी चाहिये थी । यहां आगे मेरा ख्याल ये है कि वाल सेफ का बाहरी दरवाजा क्योंकि एक कोड नम्बर से खुलता था और वो कोड नम्बर आपको मालूम नहीं हो सकता था इसलिये वो, बाहरी दरवाजा, पहले से ही खुला था और भीतरी दरवाजा आपने मिस्टर देवसरे की जेब से चाबी निकालकर खुद खोला था । यूं आपने वो सेल डीड और नोटों की गड्डी हथियायी थी, दरवाजा वापिस बन्द किया था और चाबी वापिस मृत मिस्टर देवसरे की जेब में डाल दी थी । ये मुश्किल से एक मिनट में हो जाने वाला काम था जिसको अंजाम देने में आपने उस घड़ी कोई हर्ज नहीं माना था । मैं ठीक कह रहा हूं जनाब ?”
Reply
10-18-2020, 01:11 PM,
#55
RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“मैं पहले ही तसदीक कर चुका हूं कि तुम होशियार आदमी हो । अभी इतने ही जवाब से तसल्ली करो । और अपनी बात मुकम्मल करो, रात खोटी हो रही है ।”
“बात तो मुकम्मल ही है अगर आप एकाध मामूली सवाल का सीधा सच्चा जवाब दे दें ।”
“किसी मामूली सवाल का जवाब देने से मुझे क्या एतराज होगा ?”
“परसों रात मिस्टर देवसरे के कॉटेज में आपने पीछे से मेरी खोपड़ी पर वार किया था ?”
“मैं पीठ पीछे वार नहीं करता ।”
“बवक्तेजरूरत भी नहीं ?”
“नहीं ।”
“बवक्तेजरूरत क्या करते हैं ?”
“पीठ पीछे से वार नहीं करता । खलास करता हूं ।”
“मुझे आप पर यकीन है, फिर भी पूछना, तसदीक करना, जरूरी समझा ।”
“यकीन क्योंकर है ?”
“मैंने रिजॉर्ट के परिसर में कदम रखते ही सलेटी रंग की फोर्ड आइकान को तेज रफ्तार से वहां से कूच करते देखा था । अगर वो कार आपकी थी और आप चला रहे थे तो बाद में आप मेरी खोपड़ी पर वार करने के लिये पीछे मिस्टर देवसरे के कॉटेज में मौजूद नहीं हो सकते थे ।”
“बढिया । बढिया ।”
“मेरा आगे सवाल ये है, जरा याद करके जवाब दीजिये आपकी यहां मौजदूगी में क्या टी.वी. चल रहा था ?”
“हां ।”
“क्या हां ?”
“चल रहा था ।”
“उस पर क्या आ रहा था ?”
“क्या आ रहा था ?”
“क्या टेलीकास्ट हो रहा था ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“आपने तवज्जो नहीं दी होगी । हो जाता है ऐसा । लेकिन एक बात बिना तवज्जो दिये भी तवज्जो में आ गयी हो सकती है ।”
“क्या ?”
“टेलीकास्ट हिन्दी में था या इंगलिश में ?”
“हिन्दी में ।”
“आप टी.वी. को चलता ही छोड़ कर यहां से रुख्सत हुए थे या आप उसे ऑफ करते गये थे ?”
“ओहो ! तो यूं मुझसे ये कहलवाना चाहते हो कि मैं वहां मौजूद था ।”
“जनाब, मौजूद तो आप थे । अब इतनी बात की हामी भरना...”
“एक आखिरी बात कह कर मैं फोन बन्द कर रहा हूं । कभी वकालत से उकता जाओ तो मेरे पास आ जाना । जिन्दगी बना दूंगा ।”
लाइन कट गयी ।
मुकेश ने भी रिसीवर वापिस क्रेडल पर रख दिया ।
रिंकी, जो नेत्र फैलाये सब सुन रही थी, बोली - “क्या किस्सा है ?”
“कोई किस्सा नहीं । कुछ सुना है तो भूल जाओ । इसी में तुम्हारी भलाई है ।”
तभी दरवाजे पर दस्तक पड़ी ।
“कम इन ।” - मुकेश उच्च स्वर में बोला ।
करनानी ने भीतर कदम रखा ।
रिंकी को देख कर वो ठिठका । फिर करीब आकर वो उसका कन्धा थपथपाने लगा ।
“मुझे पता चला ।” - वो चिन्तित भाव से बोला - “शुक्र है कि झूलेलाल ने मेहर की हमारी पुटड़ी पर । जान बच गयी ।”
रिंकी जबरन मुस्कराई ।
“अब क्या हो रहा है ?” - करनानी बोला ।
“इन्स्पेक्टर का इन्तजार ।” - मुकेश बोला ।
इन्स्पेक्टर अठवले वहां पहुंचा ।
उसके साथ सब-इन्स्पेक्टर सोनकर के अलावा अनन्त महाडिक और मीनू सावन्त भी थे ।
“मैं क्लब में इन लोगों के साथ था “ - इन्स्पेक्टर बोला - “जबकि सब-इन्सपेक्टर सोनकर का फोन आया । मेरी बात अभी मुकम्मल नहीं हुई थी इसलिये मैं इन लोगों को साथ ही यहां ले आया ।”
कोई कुछ न बोला ।
“अब बोलो क्या हुआ ?” - इन्स्पेक्टर बोला ।
“मैंने सब-इन्स्पेक्टर को बोला था ।” - मुकेश बोला ।
“बोला कुछ नहीं था, वारदात की महज खबर दी थी । मैं तफसील से सुनना चाहता हूं और ऐसा तुम कैसे कर सकते हो ? तुम तो उस हमले के शिकार नहीं थे ?”
असहाय भाव से गर्दन हिलाते हुए मुकेश ने रिंकी की ओर देखा ।
रिंकी ने सहमति में सिर हिलाया और फिर सविस्तार अपनी आपबीती सुनाई ।
वो खामोश हुई तो महाडिक एकाएक हंसा ।
उस घड़ी के माहौल में उसकी हंसी सबको अखरी ।
“ये कब का वाकया है ?” - वो बोला ।
“यही कोई आधे घन्टे पहले का ।” - मुकेश बोला ।
“यानी कि इलजाम मेरे पर आयद नहीं हो सकता । मैं तब भी इन्स्पेक्टर साहब के रूबरू था । लिहाजा ये ही मेरे गवाह हैं कि मैं रिंकी का हमलावर नहीं हो सकता था । मैं एक ही वक्त में दो जगह - अपनी क्लब में भी और रिजॉर्ट के प्राइवेट बीच पर भी - मौजूद नहीं हो सकता था ।”
मीनू सावन्त ने मुस्कराते हुए यूं आंखों में उसे शाबाशी दी जैसे दलील से उसने कोई बहुत बड़ा किला फतह किया हो ।
इन्स्पेक्टर अठवले के चेहने पर अप्रसन्नता के भाव आये ।
“मतलब क्या हुआ इसका ?” - फिर वो मुकेश की तरफ घूम कर बोला - “क्या मैडम पर हुए हमले का कत्ल से कोई रिश्ता हो सकता है ?”
“हो सकता है ।” - मुकेश बोला ।
“बड़े यकीन से कह रहे हो ! कुछ जानते मालूम होते हो !”
“नहीं भी हो सकता ।”
“ये क्या बात हुई ?”
“कुछ बताने से पहले मैं कुछ पूछना चहता हूं ।”
“क्या ? किससे ?”
“बात रिंकी से ताल्लुक रखती है लेकिन मेरे खयाल से उसका जवाब करनानी के पास है ।”
करनानी हड़बड़ाया ।
“तुम एक गुमशुदा वारिस की तलाश में हो ।” - मुकेश करनानी से सम्बोधित हुआ - “इस सिलसिले में आनन्द बोध पंडित तुम्हारा क्लायन्ट था जो कि अब इस दुनिया में नहीं है । जिस गुमशुदा की तुम्हें तलाश है वो मरहूम आनन्द बोध पंडित की इकलौती बेटी है जिसका नाम तनु है । मैंने ठीक कहा ?”
करनानी एक क्षण हिचकिचाया और फिर बोला - “हां ।”
“कल मीनू से मेरा कुछ व्यक्तिगत वार्तालाप हुआ था । उसके बाद मुझे लगा था कि जिस गुमशुदा लड़की की तुम्हें तलाश थी वो मीनू थी ।”
“मीनू ?”
“मैं ?” - मीनू सावन्त हैरानी से बोली - “मैं ?”
“मुझे तुम्हारी लाइफ स्टोरी गुमशुदा वारिस की स्टोरी से मैच करती लगी थी । तुम कहती हो कि तुम अपने पिता को नहीं जानती क्योंकि कई साल हुए वो तुम्हारी मां को छोड़ के भाग गया था और तुम्हें ये भी मालूम था कि वो जिन्दा था कि मर गया था । तुम अभाव को जिन्दगी जीती अपनी मां के साथ पली बढी हुई हो । तुम्हारी बातों से मुझे लगा था कि तुम आनन्द बोध पंडित की गुमशुदा संतान हो सकती थीं । नतीजतन मैंने अपने ऑफिस के एक कुलीग की मार्फत आनन्द बोध पंडित की वसीयत चैक करवाई थी । अभी थोड़ी देर पहले टेलीफोन पर वसीयत की बाबत जानकारी मेरे तक पहुंची थी । वो जानकारी हासिल होने के बाद अब मेरा खयाल बदल गया है ।”
“अच्छा !” - करनानी बोला ।
“हां ।” - मुकेश रिंकी की तरफ घूमा - “रिंकी तुम्हारी असली नाम है ?”
“क्या मतलब ?” - वो हड़बड़ाई सी बोली ।
“बच्चों के कुछ प्यार के नाम होते हैं जो इतने मकबूल हो जाते हैं कि उनका असली नाम रिकार्ड में दर्ज कराने के काम का ही रह जाता है । जैसे कि टीनू, चंकी, लवली, पिंकी वगैरह । रिंकी मुझे ऐसा ही नाम जान पड़ता है । प्यार का नाम जो कि मकबूल हो गया है । नो ?”
“यस ।”
“तुम्हारा असली, स्कूल सर्टिफिकेट वाला, नाम क्या है ?”
“तनुप्रिया ।”
“पंडित ?”
“हां ।”
“शर्मा किस लिये ।”
“एक बी बात है । पंडित मुझे अच्छा नहीं लगता था इसलिये ।”
“बहरहाल तुम्हारा असली और पूरा नाम तनुप्रिया पंडित है ?”
“हां ।”
“और तुम आनन्द बोध पंडित की गुमशुदा बेटी हो !”
“नहीं हो सकता । मेरे पिता को मरे एक जमाना गुजर चुका है । मैं छः साल की थी जबकि वो एक सिनेमा हॉल में लगी आग में जल कर मर गये थे ।”
“इस बाबात तुम्हें कोई मुगालता है ।”
रिंकी ने बड़ी मजबूती से इनकार में सिर हिलाया ।
Reply
10-18-2020, 01:11 PM,
#56
RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“परसों रात हंसी मजाक के माहौल में क्लब में तुमने तुझे बताया था कि तुम्हारा जन्म पंजाब में अमृतसर में हुआ था और पंजाब सरकार तुम्हारे जन्मदिन में छुट्टी करती थी । तुम्हारा जन्मदिन, यानी कि बैसाखी, जो कि हमेशा तेरह अप्रैल को होती है । साथ ही तुमने कहा था कि अभी तक तुम तेईस बैसाखियां देख चुकी थीं । इस लिहाज से जो पहली बैसाखी, तुमने देखी वो सन् 1980 में देखी और इस लिहाज से तुम्हारा जन्मदिन तेरह अप्रैल सन् 1980 हुआ । आनन्द बोध पंडित की खोई बेटी का यही जन्मदिन और जन्म स्थान वसीयत में दर्ज है । किन्हीं दो लड़कियों का नाम और उम्र एक हो, ऐसा इत्तफाक हुआ होना मैं मान सकता हूं लेकिन उनकी जन्म तिथि भी एक हो और जन्म स्थान भी एक हो, इतना बड़ा इत्तफाक कम से कम मुझे तो नहीं हज्म होने वाला । “
“मुझे तुम्हारी बात से इत्तफाक है ।” - इन्स्पेक्टर बोला ।
“मुझे नहीं है ।” - रिंकी बोली - “इसलिये नहीं है क्योंकि मेरे पिता को मरे एक जमाना गुजर चुका है ।”
“लेकिन...” - मुकेश ने कहना चाहा ।
“नो लेकिन । माई फादर इज डैड... डैड सिंस ए लांग लांग टाइम । इसलिये अब खत्म करो ये बात ।”
मुकेश हकबकाया सा खामोश हुआ ।
“तुम भी तो कुछ बोलो इस बाबत ।” - इन्स्पेक्टर करनानी से बोला - “आखिर छः महीने से गुमशुदा वारिस की तलाश में मशगूल हो, तुम भी तो इस बाबत अपनी कोई राय जाहिर करो ।”
करनानी ने बड़ी संजीदगी से सहमति में सिर हिलाया ।
“ये बात कैसे मालूम है तुम्हें ?” - फिर उसने पूछा ।
“कौन सी बात कैसे मालूम है ?” - रिंकी बोली ।
“यही कि जब तुम छः साल की थी तब तुम्हारे पिता सिनेमा हॉल में लगी एक आग में जल मरे थे ?”
“बस, मालूम है ।”
“कैसे मालूम है ? इलहाम तो न हुआ होगा ! किसी के बताये कि मालूम हुई होगी वर्ना छः साल की बच्ची को क्या मालूम होता है ओर क्या याद रहता है !”
वो खामोश रही ।
“तुम्हारी मां ने बताई तुम्हें ये बात । मां ने बताई इसलिये तुमने उस पर यकीन किया । उसने क्यों ऐसा कहा, मैं नहीं जानता लेकिन ये हकीकत नहीं है । इसलिये हकीकत नहीं है क्योंकि मैं तुम्हारे पिता के लिये काम करता था और कहानी के दूसरे छोर से वाकिफ था । वाकिफ हूं ।”
“दूसरा छोर ?”
“जिस पर की कुछ बातें मैंने तुम्हारे पिता से जानी और कुछ अपनी तफ्तीश से खोद के निकालीं । कुल जमा जो कुछ मैं जानता हूं, उसका लुब्बोलुआब ये है कि आनन्द बोध पंडित की बीवी का नाम अनुराधा था जो अपने पति को तब छोड़ के चली गयी थी जब उसकी इकलौती बेटी तनुप्रिया छः साल की थी । उन दिनों मिस्टर पंडित एक मामूली बिजनेसमैन थे जो कि महीने में पच्चीस पच्चीस दिन घर से बाहर रहते थे और जिन कई बातों की वजह से अनुराधा का उनसे मनमुटाव रहता था उनमें से मेजर बात ये थी । बहरहाल जो बात उनके बताये मुझे मालूम है वो ये है कि अपने दो हफ्ते के एक टूर से जब वो वापिस घर लौटे थे तो उन्होंने पाया था कि उनकी बीवी उनकी बेटी के साथ हमेशा के लिये घर छोड़ के जा चुकी थी । पहले वो यही उम्मीद करते रहे थे कि अनुराधा का गुस्सा उतरेगा तो वो वापिस लौट आयेगी लेकिन हकीकतन वो कभी न लौटी । न ही उन्हें कभी ये मालूम हो पाया कि वो घर छोड़ गयी थी तो कहां गयी थी ? अपनी आइन्दा बाकी जिन्दगी में उन्हें अपनी बीवी और औलाद की कभी कोई खोज खबर न लगी । फिर उन्होंने भी अपना शहर छोड़ दिया और आइन्दा पन्द्रह सालों में उन्होंने इतना धन कमाया कि धनकुबेर कहलाने लगे । एक मामूली बिजनेसमैन से वो बड़े व्यापारी बन गये । एक बीवी और औलाद का सुख न नसीब हुआ वर्ना दुनिया की हर नयामत उन पर बरसी । छः साल पहले उन्होंने दोबारा शादी कर ली लेकिन औलाद का मुंह उन्हें दूसरी बीवी भी न दिखा सकी । फिर इस साल की शुरुआत में एकाएक उन्हें पता लगा कि वो टर्मिनल कैंसर के शिकार थे और उनकी जिन्दगी के सिर्फ तीन महीने बाकी थे । तब उनके दिल में अपनी इकलौती औलाद अपनी बेटी तनुप्रिया को तलाश करने की इच्छा बलवती हुई जिसके नतीजे के तौर पर उन्होंने मुझे - एक प्राइवेट डिटेक्टिव को - एंगेज किया । उन्हें नहीं मालूम था कि उनकी बीवी और बेटी जिन्दा भी थीं या नहीं लेकिन मरने से पहले वो इस बात की भी तसदीक चाहते थे । कहते थे मरने से पहले बेटी मिल जाती तो अपना सब कुछ उसे सौंपकर वो चैन से मर पाते । कितने अफसोस की बात है कि आखिकार बेटी मिली लेकिन वक्त रहते न मिली ।”
“दूसरी बीवी का क्या नाम है ?” - मुकेश ने पूछा ।
“सुशीला पंडित । क्यों ?”
“कुछ नहीं । आगे बढो ।”
“आगे ये कि जनवरी से मैं इस काम पर लगा हुआ हूं और मेरा जोर बेटी की जगह मां को तलाश करने में था क्योंकि बच्चे के मुकाबले में बालिग को ढूंढना आसान होता है । अपनी मेहनत से तुम्हारी मां की केस हिस्ट्री से मैच खाती चार अनुराधा मैंने तलाश की लेकिन दो की उम्र मैच नहीं करती थी - एक पैंसठ साल की थी और एक तीस साल की थी - बाकी दो में से एक डिपार्टमेंट स्टोर में नौकरी करती थी और दूसरी बुटीक चलाती थी । मेरा एतबार दूसरी पर था क्योंकि बकौल मिस्टर पंडित, उनकी बीवी को ड्रैस डिजाइनिंग का शौक था । उस अनुराधा शर्मा से मैं मिला तो वो ये कुबूल करने को तैयार न हुई कि कभी वो अनुराधा पंडित थी और उसकी तनुप्रिया नाम की एक नौजवान बेटी थी ।”
“बेटी की शिनाख्त का कोई जरिया नहीं था ?” - मुकेश ने पूछा ।
“था । बल्कि दो थे । एक उसकी पांच साल की उम्र की एक तसवीर थी और एक गुड़िया थी जिसकी ड्रैस की पीठ पर उसकी स्याही में डूबी दायें हाथ की तीन उंगलियों के निशान थे । बच्चे ने कभी अपनी उंगलियों स्याही में डुबो ली थीं और फिर उन्हीं से गुड़िया को उठा लिया था ।”
“उंगलियों के निशानों से पुख्ता शिनाख्त हो सकती है ।”
“हां, भले ही वो सत्तरह साल पुराने हैं लेकिन हो सकती है । तसवीर से भी हो सकती है लेकिन उंगलियों के निशानों से बेहतर हो सकती है ।”
“फिर क्या प्राब्लम है ?”
“कोई प्राब्लम नहीं । दस लाख के बोनस के लालच में मैंने इस केस पर अपना दिन रात एक किया हुआ है लेकिन अब लगता है कि बोनस क्लैक्ट करने का वक्त आ गया है । अब मैं तुम्हें” - वो रिंकी से सम्बोधित हुआ - “वापिस मुम्बई साथ लेकर जाऊंगा और अपना बोनस क्लैक्ट करूंगा ।”
“मैं नहीं जाऊंगी ।” - रिंकी दृढता से बोली ।
“क्यों भला ? पैसा काटता है तुम्हें ?”
“वो बात नहीं ।”
“तो क्या बात है ?”
“मुझे तुम्हारी कहानी पर विश्वास नहीं ।”
“विश्वास हो जायेगा । जब तुम्हारी उंगलियों के निशान सब दूध का दूध और पानी का पानी कर देंगे तो विश्वास हो जायेगा ।”
“नो ।”
“बचकानी बातें कर रही हो । तुमने करना क्या है ? बस इतना ही तो करना है कि मेरे साथ अपने पिता के वकीलों के ऑफिस में पेश होना है जो कि तसल्ली करेंगे कि तुम ही उनके क्लायन्ट की गुमशुदा वारिस हो, उनके बात तुम जो चाहे करना, जहां चाहे जाना । तब मेरा काम खत्म होगा, तब जो होगा तुम्हारे और वकीलों के बीच हो होगा ।”
“कहानी बढिया है ।” - इन्स्पेक्टर एकाएक वार्तालाप का सूत्र अपने हाथ में लेता हुआ बोला - “थियेट्रिकल इफैक्ट्स की भी कोई कमी नहीं इसमें । लेकिन इससे पुलिस के हाथ क्या लगा ? दो दिन में जो दो कत्ल यहां हो गये उन पर इससे क्या रोशनी पड़ी ?”
“मेरा काम पुलिस का केस हल करना नहीं” - करनानी बोला - “अपना केस हल करना था । अगर पुलिस अपना केस मेरे से हल कराना चाहती है तो वो मेरी फीस अदा करके मेरी खिदमात हासिल कर सकती है ।”
“क्या कहने ?”
“मैं भी यही सोच रहा था” - मुकेश बोला - “कि किसी गुमशुदा वारिस की यहां से बरामदी का आखिर दो कत्लों से क्या रिश्ता हुआ ? लगता है कोई रिश्ता है जरूर लेकिन उस पर से पर्दा सरकाना मुहाल है । पहले मुझे अन्दाजा था कि मिस्टर देवसरे का कातिल कौन हो सकता था लेकिन...”
“अन्दाजा था” - इन्स्पेक्टर तनिक व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला - “या शुरु से मालूम था ?”
“शुरु से मालूम होता तो अब तक वो जेल के खींखचों के पीछे न होता ! जिस शख्स ने मिस्टर देवसरे का कत्ल करके मुझे अपने एम्पलायर्स की मुंह दिखाने के काबिल नहीं छोड़ा था, उसका छुट्टा घूमना भला मैं कैसे अफोर्ड कर सकता था । नहीं, पहले कुछ मालूम नहीं था मुझे । मुझे कुछ सूझा तो आज शाम ही सूझा । और जो सूझा उसको पुख्ता वसीयत की बाबत अभी थोड़ी देर पहले मुम्बई से आयी ट्रंककॉल ने किया । इन्स्पेक्टर साहब, आपकी जानकारी के लिए आनन्द बोध पंडित अपने पीछे साठ करोड़ की जायदाद छोड़ के मरा है जिसका एक तिहाई उसकी विधवा यानी कि दूसरी बीवी के लिये है और दो तिहाई उसकी गुमशुदा बेटी को सौंप देने के लिये इस हिदायत के साथ एक ट्रस्ट के हवाले है कि अगर दस साल के वक्फे में उसकी बेटी को कोई अता पता नहीं मिलता तो ट्रस्ट भंग कर दिया जाये और वो रकम भी दूसरी बीवी के हवाले कर दी जाये । अगर ये सिद्ध किया जा सके कि गुमशुदा बेटी मर चुकी थी तो वो बाकी की रकम तत्काल दूसरी बीवी के हवाले की जा सकती थी ।”
“आई सी ।”
“इस दूसरे प्रावधान की वजह से मुझे करनानी पर एक शक होता है ।”
करनानी से सकपका कर सिर उठाया और कुछ बोलने के लिये मुंह खोला लेकिन इन्स्पेक्टर ने हाथ के इशारे से उसे खामोश रहने को कहा ।
“क्या ?” - वो बोला - “क्या शक होता है ?”
“ये कि ये गुमशुदा वारिस की तलाश करना ही नहीं चाहता था ।”
“क्या कहने !” - करनानी व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला - “और अभी जो मैंने रिंकी के माता पिता की लाइफ स्टोरी बयान की, अभी जो मैं रिंकी को उनका वारिस होने की बाबत कहा, वो सब खामखाह कहा ?”
“खामखाह नहीं कहा, वक्त की जरूरत देख कर, वक्त की नजाकत पहचान कर कहा ।”
“नानसैंस ।”
“और मैंने ये नहीं कहा कि तुम्हें गुमशुदा वारिस की खबर नहीं थी, मैंने ये कहा कि तुम वो खबर आम नहीं होने देना चाहते थे । अपने निहित स्वार्थों की वजह से तुम उसकी बरामदगी के तमन्नाई नहीं थे ।”
करनानी हंसा ।
“क्यों ?” - इन्स्पेक्टर ने पूछा ।
“इन्स्पेक्टर साहब, वारिस को तलाश करके वकीलों तक पहुंचाने के बदले में इसे दस लाख रुपया मिलेगा लेकिन अगर ये वारिस को मृत घोषित कर दिखाये तो आनन्द बोध पंडित की नयी विधवा को तत्काल - दस साल बाद नहीं - चालीस करोड़ रुपये की अतिरिक्त धनराशि मिलेगी जिसमें मोटी हिस्सेदारी की - क्या पता फिफ्टी फिफ्टी की - कोई खिचड़ी ये विधवा से पहले ही पका चुका हो सकता है । इसी को कहते हैं कि हाथी जिन्दा एक लाख का और मुर्दा सवा सवा लाख का ।”
“क्या बक रहे हो ?” - करनानी आवेश से बोला - “तुम ये कहना चाहते हो कि इसलिये मैंने... मैंने रिंकी के कत्ल की कोशिश की ?”
“क्या ऐसा नहीं हो सकता ?”
“हो सकने में और होने में फर्क होता है ।”
“अच्छा ! होता है ?”
“ये एक बेजा इलजाम है जो तुम मुझ पर थोप रहे हो । में तुम्हें वार्न कर रहा हूं, अगर इस बाबत दोबारा एक लफ्ज तुमने अपने मुंह से निकाला तो मैं...”
“तुम एक मिनट चुप करो ।” - इन्स्पेक्टर बोला ।
“लेकिन...”
“और नहीं तो इसलिये चुप करो कि पुलिस के सामने किसी को धमकी देना अपने आप में जुर्म होता है ।”
Reply
10-18-2020, 01:11 PM,
#57
RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“और नहीं तो इसलिये चुप करो कि पुलिस के सामने किसी को धमकी देना अपने आप में जुर्म होता है ।”
करनानी गुड़बड़ाया, उसने जोर से थूक निगली ।
“और तुम इधर मेरी तरफ देखो ।”
मुकेश ने इन्स्पेक्टर की तरफ निगाह उठाई ।
“तुम ये कहना चाहते हो कि पिछली रात रिंकी के साथ बीते कार एक्सीडेंट के लिये करनानी जिम्मेदार है ? इसने अपनी कार से वो एक्सीडेंट स्टेज करके रिंकी को जान से मार डालने की कोशिश की ?”
“हां ।”
“साबित कर सकते हो ?”
“नहीं ।”
“फिक क्या बात बनी ?”
मुकेश खामोश रहा ।
“और अभी जो इस लड़की के साथ बीच पर बीती...”
“इसलिये बीती क्योंकि पिछली बार इसका दांव न चला । इसने रिंकी को मार डालने की दोबारा कोशिश की ।”
“दूसरी कोशिश साबित कर सकते हो ?”
“कोशिश कर सकता हूं ।”
“करो ।”
“अपने हमलावर से हुई हाथापायी में रिंकी की एक उंगली का नाखून टूट गया था । ये हमलावर के हाथ से अपनी गर्दन छुड़ाने की कोशिश कर रही थी । उस कोशिश में इसका नाखून टूटने का मतलब है कि हमलावर को हाथ या बांह पर कहीं खरोंचे लगी होंगी और बांकी बचे नाखून के नीचे हमलावर के खून और चमड़ी के अवशेष मौजूद होंगे । इन दोनों सूत्रों को पुलिस तरीके से हैंडल करे तो मालूम पड़ सकता है कि करनानी रिंकी का हमलवार था या नहीं था ।”
“फेंक रहा है ।” - करनानी बोला ।
“पिछले एक हफ्ते में मैंने एक बार भी तुम्हें पूरी बांह की कमीज पहने नहीं देखा । लेकिन आज तुम ऐसी कमीज पहने हुए हो । मैं दरख्वास्त करता हूं कि तुम कफ खोलो और कमीज की दोनों आस्तीन कोहनियों तक ऊपर चढाओ ।”
“झूलेलाल ! ये तो पागल हो गया है । इन्स्पेक्टर साहब तुम्हारी मौजूदगी में ये इंसान वाहीतबाही बक रहा है, तुम इसे चुप नहीं करा सकते ?”
“आस्तीनें ऊपर चढाओ ।” - इन्स्पेक्टर गम्भीरता से बोला ।
“अरे, ये तो चड़या हुआ है , क्यों तुम इसकी बकवास को...”
“आस्तीनें चढाते हो या मैं चढाऊं ?”
“मेरी बायीं कलाई पर एक खरोंच है” - करनानी धीरे से बोला - “लेकिन वो इसका नाखून लगने से नहीं बनी ।”
“दिखाओ । बायीं आस्तीन चढाओ ।”
असहाय भाव से कन्धे हिलाते हुए और तीव्र अनिच्छा दिखाते हुए उसने उस काम को अंजाम दिया ।
उसकी बायीं कलाई पर एक कोई तीन इंच लम्बी, गहरी, तब तक सुर्ख हो चुकी खरोंच मौजूद थी ।
“आई रैस्ट माई केस ।” - मुकेश संतोषपूर्ण स्वर में बोला ।
“वाट केस ?” - करनानी कलपकर बोला - “देयर इज नो केस । मैंने बोला तो कि खरोंच....”
“जैसे ये कहता है” - इन्स्पेक्टर बोला - “वैसे नहीं बनी ?”
“नहीं बनी । खरोंच पर दर्ज है कि ये कैसी बनी ?”
“नहीं । लेकिन ये भी दर्ज नहीं है कि ये कैसे नहीं बनी । इसलिये फिलहाल मेरा एतबार इसके वैसे बनी होने पर है जैसे बनी होना माथुर बताता है । इसलिये चुप करो ।”
वो खामोश हो गया ।
“तो तुम्हारा कयास है” - इन्स्पेक्टर मुकेश से बोला - “कि इस शख्स ने इस लड़की का कत्ल करने की कोशिश इसलिये की क्योंकि इसका आनन्द बोध पंडित की विधवा से कोई चोखा माली कौल करार हो गया था ?”
“हां ।”
“लेकिन ये महज तुम्हारा अन्दाजा है ।”
“है तो अन्दाजा ही लेकिन इस अन्दाजे को मैंने हवा में से नहीं पकड़ लिया है, कोई बुनियाद थी, बुनियाद थी मेरे पास इस अन्दाजे की ।”
“कैसी बुनियाद ?”
“कौल करार की भागीदर यहां मौजूद है ।”
“क्या !”
“आनन्द बोध पंडित की दूसरी बीवी, उसकी लेटेस्ट बेवा सुशीला पंडित कल से यहां पहुंची हुई है और मिसेज सुलक्षणा घटके नाम से कॉटेज नम्बर दो में रजिस्टर्ड हैं ।”
“क्या ?”
“इतना हैरान होकर दिखाने की क्या बात है ? मैंने सब कुछ तो बोल दिया, अब जा के तसदीक ही तो करनी है तुमने ।”
“तुम्हें कैसे मालूम है ये बात ?”
“जिस कार पर वो यहां यहां पहुंची है, वो किराये की है और वो पूना की शिवाजी कार रेंटल एजेन्सी से किराये पर ली गयी है । जैसे वो औरत इस रिजार्ट मे फर्जी नाम से रह रही है । वैसे फर्जी नाम से वो किराये पर कार हासिल नहीं कर सकती थी क्योंकि ऐसा करने के लिये ड्राइविंग लाइसेंस दिखाना पड़ता है जिस पर कि कार किराये पर लेने वाले का नाम पता दर्ज होता हैं । मैंने पूना की उस एजेन्सी को फोन लगाया था तो मुझे मालूम हुआ था कि उन्होंने वो कार किसी सुलक्षणा घटके को नहीं, सुशीला पंडित को किराये पर दी थी ।”
“हूं । हूं ।” - फिर वो करनानी की तरफ घूमा - “तुम फिलहाल अपने आपको हिरासत में समझो ।”
“लेकिन...” - करनानी ने प्रतिवाद करना चाहा ।
“शटअप ।”
करनानी सहम कर चुह हो गया ।
“सुलक्षण घटके ।” - फिर वो अपने सब-इन्स्पेक्टर से सम्बोधित हुआ - “उर्फ सुशीला पंडित । कॉटेज नम्बर दो । अभी पकड़ के यहां लाओ ।”
“यस, सर ।” - सब-इन्स्पेक्टर तत्पर स्वर में बोला ।
***
सुलक्षणा घटके उर्फ सुशीला पंडित वहां पहुंची ।
बकौल सब-इन्सपेक्टर सोनकर, वो उसे सोते से जगा कर लाया था फिर भी उसने बाल संवार लिये हुए थे चेहरे पर फ्रैश मेकअप लगा लिया हुआ था । वो खूब भड़की हुई थी और पांव पटकती वहां पहुंची थी ।
“कौन है मुझे यहां यूं तलब करने वाला ?” - आते ही वो कड़क कर बोली ।
“मैं हूं ।” - इन्स्पेक्टर शान्ति से बोला - “इन्स्पेक्टर सदा अठवले ।”
“नौकरी से बेजार जान पड़ते हो ।”
“ऐसी तो कोई बात नहीं ।”
“ऐसी ही बात है । तभी तो इतनी रात गये मुझे यहां पकड़ मंगवाने की तुम्हारी मजाल हुई ।”
“तफ्तीश के लिये ऐसा करना पड़ता है । और आप बात को बढा चढा कर कह रही हैं । आपको पकड़ नहीं मंगवाया गया, आपको सिर्फ यहां बुलाया गया है ।”
“आधी रात को किसलिये ? सोते से जगाकर किसलिये ?”
“अर्जेंट तहकीकात है ।”
“जो कि सुबह नहीं हो सकती थी ?”
“नहीं हो सकती थी ।”
“हो नहीं सकती थी या करना नहीं चाहते थे ?”
“एक ही बात है ।”
“तुम्हारे लिये एक ही बात है, मेरे लिये....”
“तशरीफ रखिये ।”
“क्या ?”
“बिराजिये । आसन ग्रहण कीजिये । प्लीज हैव ए सीट ।”
“जो बोलना है, ऐसे ही बोलो ।”
“आपकी असुविधा होगी, बात दो सैकैंड में खत्म होने वाली नहीं है ।”
“जो कहना है जल्दी कहोगे तो...”
“ठीक है, खड़ी रहिये ।”
वो धम्म से एक कुर्सी पर बैठी ।
“तुम मुझे जानते नहीं हो ।” - वो भुनभुनाई ।
“अब जान जाऊंगा ।”
“जानते होते तो यूं पेश न आते ।”
“कौन हैं आप ? चीफ मिनिस्टर के खानदान से हैं आप या सीधे प्राइम मिनिस्टर की करीबी हैं ?”
वो सकपकाई ।
“आपका नाम सुशीला पंडित है लेकिन यहां आप सुलक्षणा घटके के नाम से रजिस्टर्ड हैं । वजह बयान कीजिये ।”
तब उसके तेवर बदले । एकाएक वो बेहद खामोश हो गयी ।
“आप मुम्बई से हैं लेकिन पूना से यहां आयी हैं । जिस कार पर आप यहां पहुंची हैं, उसे पूना की शिवाजी कार रेंटल एजेन्सी से किराये पर लेते समय वहां आपने अपना वो नाम दर्ज नहीं कराया था जो कि यहां दर्ज है । इस डबल आइडेन्टिडी की वजह बयान कीजिये ।”
वो खामोश रही ।
“चुप रहने से काम नहीं चलेगा, मैडम ।”
“आपको इससे क्या मतलब है ?” - वो हिम्मत करके बोली ।
“है । तभी तो सवाल किया जा रहा है । आपकी जानकारी के लिये मैं एक कत्ल के केस की तफ्तीश कर रहा हूं, इसलिये मुझे हर बात से मतलब है ।”
उसने जोर से थूक निगली ।
“आपके अपने हित में आपको राय दी जाती है कि आपसे जो पूछा जाये, उसका आप सीधा, सच्चा, साफ जवाब दें । आप ऐसा करेंगी तो पांच मिनट में यहां से फारिग हो जायेंगी । गोलमोल, लाग लपेट वाला जवाब देंगी या नहीं जवाब दंगी तो रात हवालात में कटेगी ।”
“क... क्या ?”
“और सवाल यूं अदब से नहीं पूछे जायेंगे, जैसे इस वक्त पूछे जा रहे हैं । अब फैसला जल्दी कीजिये कि आप क्या रुख अख्तियार करेंगी ।”
जवाब देने से पहले उसकी निगाह पैन होती हुई वहां मौजूद सूरतों पर घूमी और करनानी पर आकर अटकी ।
तत्काल करनानी परे देखने लगा ।
“मिस्टर करनानी की वजह से कोई पंगा है ?” - फिर उसने पूछा ।
“मेरी वजह से कोई पंगा नहीं है ।” - करनानी भड़के स्वर में बोला - “ये पुलिस वाला आपको खामखाह हड़का रहा है । ये आपसे जबरिया कोई पूछताछ नहीं कर सकता । ये आपको कुछ कहने के लिये मजबूर नहीं कर सकता ।”
“ये ऐसा इसलिये कह रहे हैं” - इन्स्पेक्टर बोला - “क्योंकि आपका कुछ कहना इनके खिलाफ जा सकता है ।”
“नानसेंस ।” - करनानी मुंह बिगाड़कर बोला ।
“आपकी जानकारी के लिये ये इस वक्त गिरफ्तार हैं ।”
“गिरफ्तार हैं ?” - वो हैरानी से बोली ।
“इरादायेकत्ल के जुर्म में । जिसके साथ इरादायेजबरजिना का जुर्म भी जोड़ा जा सकता है । दस साल के लिये नपेंगे ।”
“ओह, नो ।”
“अब बोलिये, आप इनकी राय पर अमल करके खामोश रहेंगी या अपना बयान देंगी ।”
“बयान ! किस बाबत ?”
“किसी भी बाबत ।”
“ये चोर बहका रहे हैं ।” - करनानी बोला ।
“मैं क्या जानती हूं ?”
“आप कुछ नहीं जानतीं ?”
“नहीं ।”
“तो मैं आपको कुछ जनवाता हूं । उसके बाद आप नहीं कह पायेंगी कि आप कुछ नहीं जानतीं । जरा इनकी तरफ गौर कीजिये ?”
उसने रिंकी की तरफ देखा ।
“क्या गौर करूं ? मेरे खयाल से रिजार्ट के रेस्टोरेंट की मैनेजर है । नाम... नाम ध्यान में नहीं आ रहा । किसी ने बताया तो था लेकिन....”
“रिंकी । रिंकी नाम है इनका ।”
“हां । रिंकी । क्या गौर करूं मैं इसकी तरफ ?”
“ये आपके जन्नतनशीन खाविंद की बेटी है ।”
सुलक्षणा का चेहरा फक् पड़ गया ।
“क... क्या ?”
“मिस्टर आनन्द बोध पंडित की ये वो गुमशुदा वारिस है जिसकी अपनी जिन्दगी में उन्हें बड़ी शिद्दत से तलाश थी ।”
“ये... ये नहीं हो सकता । कैसे हो सकता है ? आप झूठ बोल रहे हैं ।”
“मेरे झूठ बोलने की कोई वजह ?”
“कोई तो होगी ।”
“कोई वजह नहीं । ये मिस्टर पंडित की गुमशुदा बेटी है और यहां दो बार मिस्टर करनानी इसको जान से मार डालने की कोशिश कर चुके हैं ।”
“ओह, नो ।”
Reply
10-18-2020, 01:11 PM,
#58
RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“ये झूठ है ।” - करनानी चिल्लाया ।
“हर मुजरिम यही कहता है । मैडम, आप अपनी तवज्जो मेरी तरफ रखिये । और बताइये कि आप यहां क्यों आयी ?”
“इसके बुलावे पर आयी ।”
“इसके, यानी कि मिस्टर करनानी के ?”
“हां ।”
“कहां मिला बुलावा ? कैसे मिला !”
“इसने मुम्बई फोन किया था । मैं वहां नहीं थी लेकिन मुझे पूना में मैसेज मिल गया था । मैंने वापिस इसके लिये मैसेज छोड़ा कि ये मुझे पूना में फोन करे । अगले रोज मेरे पास पूना में इसका फोन आ गया । इसने मुझे कहा कि मैं पूना से एक कार किराये पर ले लूं और किसी फर्जी नाम से यहां आकर ठहरूं ।”
“फर्जी नाम किसलिये ? किराये की कार पर किसलिये ?”
“मैंने पूछा था । जवाब में इसने कहा था कि ये जरूरी था कि किसी को यहां मेरी असलियत मालूम न हो ।”
“क्यों ?”
“वजह इसने बाद में बताने को बोला था ।”
“बाद में क्या वजह बतायी ?”
वो खामोश हो गयी ।
“और बुलावे की क्या वजह बतायी थी ?”
“वो तो मेरे पति की जायदाद ही बतायी थी ।”
“जिसमें कि ये शेयर होल्डर बनना चाहते थे ? जिसमें कि ये आपसे पार्टनरशिप की पेशकश करना चाहते थे ? या पेशकश ही कर चुके थे, अब उस बाबत आपकी याददाश्त तरोताजा करना चाहते थे ?”
“जवाब मत देना ।” - करनानी चेतावनीभरे स्वर में बोला - “फंस जाओगी ।”
“अब और क्या फंस जायेंगी ? तुम्हारी नामुराद सोहबत की वजह से फंसी तो पहले ही हुई हैं । मैडम, आपकी जानकारी के लिये इस शख्स का जेल जाना निश्चित है । अब ये आपकी मर्जी पर मुनहसर है कि आप इसके साथ जेल जाना चाहती हैं या...”
“ये लोग तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते ।”
“आखिरकार... आखिरकार शायद कुछ न बिगाड़ सकें लेकिन ये रात तो आपकी जेल में ही गुजरेगी । अब जो फैसला आप सारी रात जेल में बैठ कर करेंगी, वो अभी क्यों नहीं कर लेतीं ?”
“क्या करूं ?” - इस बार वो बोली तो उसकी आवाज कांप रही थी ।
“इसकी गुमराह करने वाली सलाह को दरकिनार कीजिये और अपनी जुबानी कूबूल कीजिये कि इसने शीराजे में हिस्सा बंटाने जैसी कोई पेशकश आपसे की थी ।”
“खबरदार ।” - करनानी जल्दी से बोला - “मैं तुम्हें फिर चेतवनी दै रहा हूं कि...”
“की थी ।” - वो बोली ।
“क्या कहा था ?”
“कहा था कि इसने मिस्टर पंडित की बेटी का सुराग पा लिया था । इसने कहा था कि काफी सम्भावना थी कि वो मर चुकी थी लेकिन इस बात को साबित करना बहुत टेढ़ी खीर था ।”
“टेढी खीर !”
“एक नामुमकिन काम था अपनी मेहनत और मशक्कत से जिसे ये ही मुमकिन बना सकता था । और इतनी मेहनत का जो सिला ये चाहता था वो ये था कि दूसरे, मिस्टर पंडित की बेटी के दो तिहाई हिस्से में इसको शरीक करती ।”
“आपने क्या कहा ?”
“पहले तो मैंने यही कहा कि मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि ‘हिस्से में शरीक करूं’ से इसका क्या मतलब था । तब ये साफ बोला कि ये दूसरे हिस्से में फिफ्टी पर्सेंट की पार्टनरशिप चाहता था ।”
“यानी कि बीस करोड़ रुपया चाहता था ?”
“हां । इसने कहा कि मरहूम लड़की की शिनाख्त का इसके अलावा किसी के पास कोई जरिया नहीं था । अगर इस बाबत ये अपने होंठ सी लेता तो वो रकम मुझे हासिल होने में कम से कम साढे नौ साल लग जाते ।”
“फिर ?”
“मैंने इतनी बड़ी रकम इसके हवाले करने से इंकार कर दिया । मैंने कहा कि मैं इसके सहयोग की वाजिब कीमत दने को तैयार थी और बीस करोड़ रुपये वाजिब कीमत नहीं थी । तब भाव ताव करता ये पांच करोड़ पर आ गया और वो रकम इसे अदा करना मैंने कुबूल कर लिया ।”
“इसने ये नहीं कहा था कि लड़की को मुर्दा भी ये ही बनाने वाला था ?”
“नहीं, नहीं कहा । बाई गाड, ये नहीं कहा था । इसने यही कहा था कि लड़की पहले ही मर चुकी थी लेकिन वो ही मरहूम लड़की गुमशुदा वारिस थी, इस बात को सिर्फ ये साबित कर सकता था और इसी बात की ये उजरत चाहता था ।”
“जो कि पांच करोड़ पर मुकरर्र हुई ?”
“हां ।”
“जुबानी जुबानी ?”
“नहीं । इसने मेरे से करारनामा लिखवाया और उसे मुझे साथ ले जाकर कोर्ट में रजिस्टर्ड करवाया ।”
“आपके पास कापी है करारनामे की ?”
“है ।”
“न भी हो तो क्या है !” - मुकेश बोला - जब रजिस्टर्ड है तो कोर्ट से निकलवाई जो सकती है ।”
“ये भी ठीक है ।” - इन्स्पेक्टर बोला - “बहरहाल कत्ल का एक बड़ा सजता हुआ उद्देश्य हमारे सामने है । थैंक्यू, मैडम । अब आप जा सकती हैं ।”
“जी !” - वो यूं बोली जैसे उसे अपने कानों पर विश्वास न हुआ हो ।
“अपने कॉटेज में पहुंचिये और चैन की नींद सोइये । अलबत्ता अपना बयान दर्ज और मोहरबन्द कराने के लिये कल सुबह आपको थाने में हाजिर होने की जहमत उठानी होगी ।”
“कोई जहमत नहीं ।” - चैन की लम्बी सांस लेती वो बोली - “मैं हाजिर हो जाऊंगी ।”
“दस बजे ।”
“ठीक है ।”
“गुड नाइट, मैडम । स्वीट ड्रीम्स ।”
वो उठ कर दरवाजे की ओर बढी, चौखट पर ठिठकी, वापिस घूमी, उसने रिंकी की तरफ देखा ।
“बेटी !” - फिर वो बांहे फैलाये रिंकी की ओर लपकी ।
“ऐसे जाली जज्बात के जरिये” - मुकेश धीरे से बोला - “चालीस करोड़ की गठड़ी आपकी नहीं हो सकती ।”
वो ठिठकी ।
“वो कहानी करनानी की गिरफ्तार के साथ खत्म हुई ।”
उसके होंठ भिंचे, उसने आग्नेय नेत्रों से मुकेश की तरफ देखा और फिर रिंकी पर निगाह डाली ।
रिंकी ने तत्काल मुंह फेर लिया ।
“मां एक ही होती है ।” - रिंकी बोली - “अभी है ईश्वर की कृपा से ।”
भारी कदमों से सुलक्षणा उर्फ सुशीला वहां से रुख्सत हो गयी ।
“बधाई ।” - पीछे मुकेश बोला ।
रिंकी ने सिर उठाया ।
“ईश्वर की ऐसी एक्सप्रैस सर्विस पहले कभी न देखी होगी । एक करोड़ की ख्वाहिश किये अभी बारह घन्टे पूरे नहीं हुए कि उसने ख्वाहिश चालीस गुणा करके पूरी कर दी ।”
“मुझे” - वो बोली - “अभी भी यकीन नहीं कि....”
“अब मेरे वाली जुबान मत बोलो ।”
वो खामोश रही ।
“अब मुझे महसूस करने दो कि मल्टी-मल्टी-मिलियनेर के रूबरू बैठना कैसा लगता है ।”
“बस करो ।”
“ओके, मिस मनी बैग्स ।”
“बस भी करो ।”
“ओके, मदाम रिची रिच ।”
“गो टु हैल ।”
मुकेश हंसा ।
इन्स्पेक्टर करनानी की तरफ घूमा और बोला - “पांच करोड़ ! बहुत ही ऊंचा उड़ना चाहते थे, सिन्धी भाई ।”
करनानी खामोश रहा ।
“अपनी सफाई में कुछ कहना चाहते हो ?”
उसने इंकार करने को भी जहमत न उठाई ।
“कल रात” - मुकेश बोला - “जयगढ से लौटते समय जिस कार ने रिंकी की कार को टक्कर मारी थी, वो शिवाजी कार एजेन्सी से हासिल की गयी किराये की सफेद एम्बैसेडर थी, ये बात अब सेफली अज्यूम की जा सकती है । इन्स्पेक्टर साहब, आपने खुद कहा था कि माइक्रोस्कोपिक एग्जामिनेशन से कई ऐसे टैलटेल साइन सामने आ जाते हैं जो कि नंगी आंखों को नहीं दिखाई देते । आप किराये की कार का ऐसा एग्जामिनेशन करायेंगे तो, टच वुड, उसके बायें पहलू के हाल ही में किसी लाल रंग की कार से भिड़े होने के लक्षण जरूर सामने आयेंगे ।”
इन्स्पेक्टर ने सहमति में सिर हिलाया ।
“घिमिरे अमूमन अपनी एम्बैसेडर को लॉक करके नहीं रखता था और चाबियां भी अन्दर ही भूल जाता था । पहले मेरा खयाल था कि एक्सीडेंट घिमिरे ने किया था, फिर मुझे लगा था कि एक्सीडेंट उसकी कार से हुआ था लेकिन ड्राइवर कोई और था ।”
“यानी कि किसी ने खास उस नापाक काम के लिये घिमिरे की कार चोरी कर ली थी ?”
“हां । लेकिन अब मैं ये भी सेफली अज्यूम कर सकता हूं कि एक्सीडेंट में वो कार शरीक थी जो कि पूना की शिवाजी कार रेन्टल एजेन्सी से किराये पर ली गयी थी ।”
“साबित हो जायेगा ।”
“और कहना न होगा कि कराये की कार और फर्जी नाम के साथ मिसेज पंडित को यहां बुलाते वक्त इसके जेहन में वो एक्सीडेंट ही था जिसके जरिये ये रिंकी को खत्म कर देना चाहता था । इसका खयाल था कि किराये की कार अव्वल तो ट्रेस ही नहीं होगी, होगी तो ये स्थापित करना नामुमकिन होगा कि असल में उसे किराये पर लेने वाला कौन था ।”
“किराये की कार उसे लेने वाले को अपना आइडेन्टिटी स्थापित करने के बाद मिलती है, ये बात एक वकील को सूझी, एक प्राइवेट डिटेक्टिव को न सूझी ?”
“नहीं ही सूझी ।”
“और ?”
“ये कल एक्सीडेंट को कामयाबी से अंजाम दे चुका होता तो अब तक न यहां कार होती और न कार को किराये पर लेने वाली होती । कामयाब एक्सीडेंट के बाद इसने कल ही गुमशुदा वारिस को मुर्दा साबित कर दिखाया होता और मिसेज पंडित को यहां से रुख्सत कर दिया होता । वो अभी भी यहीं है तो सिर्फ इसलिये क्योंकि आज इसका दूसरा वार भी खाली गया ।”
“आई सी ।” - इन्स्पेक्टर फिर करनानी की तरफ घूमा - “अब कुछ कहना चाहते हो ?”
जवाब में करनानी ने मुंह फेर लिया ।
“ठीक है ।” - वो अपने मातहत की तरफ घूमा - “इसे थाने लेकर जाओ और लॉकअप में बन्द करके यहां वापिस आओ ।”
“चलो, भई ।” - सोनकर बोला ।
मुंह न खोलने को दृढप्रतिज्ञ, मजबूती से जबड़े भींचे करनानी उसके साथ हो लिया ।
पीछे काफी देर सन्नाटा छाया रहा ।
“मैडम” - फिर इन्स्पेक्टर अठवले रिंकी से बोला - “मुझे खुशी है कि आपका हमलावर पकड़ा गया ।”
रिंकी ने संजीदगी से सहमति में सिर हिलाया ।
“बहुत तकलीफ पायी आपने । बहुत जहमत भी उठाई । आप चाहें तो अपने कॉटेज में जा सकती हैं ।”
“नहीं । अभी मैं यहीं ठीक हूं ।”
“मर्जी आपकी ।” - फिर वो मुकेश की तरफ घूमा - “सहयोग की शुक्रिया ।”
“मेरे ऑफिस ने आनन्द बोध पंडित की वसीयत को बहुत जल्द खोद निकाला” - मुकेश बोला - “और फौरन मुझे उसकी खबर की । उसी से कब कमाल हुआ ।”
“इस बाबत कुछ करना पहले क्यों न सूझा ?”
“बस, नहीं सूझा । इतना कुछ था सोचने को कि ये एक बात जल्दी न सूझी ।”
“लेकन एक सवाल तो अभी भी अपनी जगह कायम है । इसका कत्ल से, बल्कि कत्लों से, क्या रिश्ता हुआ ?”
“कोई रिश्ता दिखाई नहीं देता । यही बात तो हैरान कर रही है । वैसे दिल ये ही गवाही देता है कि रिंकी के सन्दर्भ में ही कोई रिश्ता निकलना चाहिये । मेरी ऐसी सोच थी इसलिये बार बार मेरा खयाल रिंकी की तरफ जाता था क्योंकि इसने मिस्टर देवसरे के कत्ल की रात को महाडिक को यहां देखा था...”
“मैंने पहले भी कहा था” - महाडिक बीच में बोल पड़ा - “और फिर कहता हूं कि इसे मेरी बाबत मुगालता लगा था ।”
“करनानी एक काईयां आदमी है ।” - महाडिक की ओर ध्यान दिये बिना मुकेश आगे बढा - “हमेशा दूर की सोचने वाला और एक तीर से कई शिकार करने की कोशिश करने वाला । जैसे उसने दो बार रिंकी को खत्म करने की कोशिश की उससे लगता था कि कत्ल उसके लिये कोई बड़ी बात नहीं थी । उसकी इस फितरत की वजह से मुझे एक बात सूझी है ।”
“क्या ?” - इन्स्पेक्टर बोला ।
“करनानी के पास मिस्टर देवसरे के कत्ल को कोई उद्देश्य नहीं दिखाई देता था । क्या पता उसने इसी वजह से मिस्टर देवसरे का कत्ल किया हो कि अगर वो रंगे हाथों ही न पकड़ा जाता तो उसे तो कातिल माना जा ही नहीं सकता था ।”
“क्या मतलब ?”
“उसके पास रिंकी के कत्ल का तगड़ा उद्देश्य था जो कि अभी उजागर हुआ । अगर ये उद्देशय न उजागर होता - जिसकी कि पूरी पूरी सम्भावना थी - तो क्या रिंकी के कत्ल के बाद यही न समझा जाता कि जिस किसी ने भी मिस्टर देवसरे का कत्ल किया था, उसी ने रिंकी का कत्ल किया था ! क्या ये न समझा जाता - जैसा कि उसके कत्ल की पहली कोशिश के वक्त समझा गया था - कि जाने अनजाने रिंकी कातिल के बारे में कुछ जानता थी, वो कातिल के लिये खतरा थी, इसलिये कातिल के लिये हमेशा के लिये इसका मुंह बन्द कर देना जरुरी था ! अब करनानी क्योंकि मिस्टर देवसरे के कत्ल मामले में सस्पैक्ट नहीं था - क्योंकि उसके पास उस कत्ल का कोई उद्देश्य नहीं था - इसलिये वो रिंकी का कातिल भी नहीं हो सकता था ।”
“तुम ये कहना चाहते हो” - इन्सपेक्टर हैरानी से बोला - “कि उसका ओरीजिनल निशाना रिंकी ही थी, उसने उसके कत्ल का शक अपने पर न होने देने के लिये नाहक देवसरे का खून कर दिया !”
Reply
10-18-2020, 01:17 PM,
#59
RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“मैं ये कहना नहीं चाहता । मैंने महज एक थ्योरी के तौर पर इस बात का जिक्र किया है । इस एक थ्योरी ने बहुत देर तक मुझे मुतमईन किये रखा था लेकिन अब मुझे नहीं लगता कि करनानी का मिस्टर देवसरे के कत्ल से कोई लेना देला था । करनानी का किरदार, आपने देखा ही है कि, एक मौकापरस्त आदमी का था इसलिये जब मिस्टर देवसरे का कत्ल हुआ था तो उसकी सूरत का अक्स मेरे जेहन में बराबर उभरा था लेकिन लाख सिर पटकने पर भी मैं उसके पास मिस्टर देवसरे के कत्ल के किसी उद्देश्य की कल्पना नहीं कर सका था । फिर जब रिंकी पर पहला हमला हुआ था तो कत्ल की उस थ्योरी ने मुझे बहुत लुभाया था जो कि मैंने अभी बयान की । यानी कि उसका निशाना रिंकी ही थी लेकिन मिस्टर देवसरे का कत्ल उसने रिंकी के कत्ल की भूमिका के तौर पर कर दिया था ताकि ये समझ जाता कि जो कोई भी मिस्टर देवसरे का कातिल था, वो ही रिंकी का कातिल था । लिहाजा क्योंकि करनानी मिस्टर देवसरे का कातिल नहीं हो सकता था इसलिये वो रिंकी का कातिल नहीं हो सकता था ।”
“एक ही बात को बार बार दोहरा रहे हो ।”
“सॉरी ।”
“आगे बढ़ो ।”
“मैं ये कहना चाहता था कि करनानी ने मिस्टर देवसरे का कत्ल नहीं किया था लेकिल वो कत्ल हो चुकने के बाद उसको अपने हक में इस्तेमाल करने की वो ही तरकीब उसने सोची थी जो कि मैंने अपनी थ्योरी में बयान की ।”
“ये कि जब रिंकी का कत्ल हो जाता तो वो भी देवसरे के कातिल का ही काम समझा जाता जो कि वो नहीं था ?”
“हां । रिंकी के कत्ल की कोशिश अगर जेनुईन एक्सीडेंट मान ली जाती तो बात ही क्या थी, उसे कत्ल समझा जाता तो वो मिस्टर देवसरे के कातिल का नया कारनामा समझा जाता ।”
“हूं ।”
“दस लाख का बोनस कमाने की ललक में वो शख्स अपने तमाम काम छोड़े बैठा था और गुमशुदा वारिस की तलाश के वाहिद केस के पीछे पड़ा हुआ था । आखिरकार यहां उसकी तलाश कामयाब हुई थी । उस कामयाबी के शिखर पर पहुंचने में उसका धन्धा चौपट हो गया था और पल्ले का ढेरों पैसा खर्च हो गया था । नतीजतन अब बोनस का दस लाख उसे कोई बहुत बड़ी रकम नहीं लग रही थी । तब एक बहुत ही बड़ी रकम का खुद को हकदार बनाने की उसे तरकीब सूझी । वो गुमशुदा वारिस के विरसे के हिस्से में अपनी बराबर की शिरकत के सपने देखन लगा ।”
“बीस करोड़ रुपये के ?”
“कितनी बड़ी रकम होती है ये ! जिस रकम पर - पांच करोड़ पर - आखिर में सौदा पटा वो भी कोई कम बड़ी रकम नहीं होती । इससे कहीं छोटी रकमों पर बड़े खूनखराबे हो चुके हैं, परिवार के परिवार मिटाये जा चुके हैं ।”
“ठीक । लेकिन फिर भी तुम ये कहना चाहते हो कि उसने देवसरे का कत्ल नहीं किया था ?”
“हां ।”
“घिमिरे का ?”
“उसका भी नहीं । मिस्टर देवसरे के कत्ल के वक्त की तो बाकायदा उसके पास एलीबाई थी लेकिन आज रात से पहले मुझे उसकी खबर नहीं थी ।”
“तो फिर कातिल कौन हुआ ?”
“कहना मुहाल है लेकिन मैं ये कह सकता हूं कि कातिल कौन नहीं है ।”
“बमय सबूत ?”
“ऐसा पुख्ता सबूत मेरे पास कोई नहीं है जो कि अदालत में ठहर सके लेकिन जो सबूत मेरे पास है वो आपको मुतमईन कर सकता है ।”
“देखें ।”
“इन्स्पेक्टर साहब, ये बात जगविदित है कि मिस्टर देवसरे टी.वी. के रसिया नहीं थे, वो खबरों के अलावा टी.वी. का कोई प्रोग्राम नहीं देखते थे इसलिये टी.वी. सिर्फ दो चैनलों पर टयून करके रखते थे । एक आजतक चैनल पर और दूसरे स्टार-न्यूज चैनल पर । मिस्टर देवसरे की मौत के बाद से इस टी.वी. पर वही चैनल सैट हैं जो वो हमेशा देखते थे । आप इसे अभी ऑन करेंगे तो इसे आजतक पर सैट पायेंगे ।”
“आगे ?”
“जिन दो चैनलों का मैंने नाम लिया, उन पर खबरें चौबीस घन्टे आती हैं लेकिन शाम सात बजे ‘आजतक’ पर और रात ग्यारह बजे स्टार-न्यूज पर खबरों के विशेष बुलेटिन प्रसारित होते हैं । मिस्टर देवसरे इन दोनों चैनलों को टी.वी. पर यूं सैट रखते थे कि रिमोट पर ‘प्रिवियस चैनल’ का बटन दबाने पर टी.वी. एक चैनल से बदल कर दूसरी पर पहुंच जाता था और फिर दबाने पर दूसरी चैनल से पहली चैनल पर आ जाता था । सौ चैनलों वाले इस टी. वी. पर सिर्फ दो ही चैनलें देखनी हों ये उसके लिये बड़ी अच्छी और सुविधाजनक प्रोग्रामिंग थी ।”
“गुड ।”
“शाम सात बजे और रात ग्यारह बजे इन दो चैनलों को देखना मिस्टर देवसरे की यहां की दिनचर्या का निश्चित हिस्सा था, वो आसपास कहीं भी हों, सात बजे और ग्यारह बजे अपने कॉटेज में लौट आते थे । मैं जब से यहां उनके साथ हूं तब से ऐसा कभी नहीं हुआ कि इन दो वक्तों पर वो यहां अपने टी.वी. के सामने मौजूद न‍ रहे हों । कत्ल की रात को भी ऐसा ही हुआ था । हम ‘आजतक’ पर सात बजे की न्यूज देख चुकने के काफी देर बाद यहां से निकले थे, थौड़ी देर ‘सत्कार’ में बैठे थे और फिर ब्लैक पर्ल क्लब पहुंच गये थे । फिर वहां जो हुआ - खासतौर से जो मेरे साथ बीती - वो जगेविदित है । अपनी बेहोशी से उबरकर जब मैं यहां लौटा था तो मिस्टर देवसरे की लाश के सामने तब भी टी.वी. ऑन था और उस पर फिल्मों से सम्बन्धित कोई फीचर स्टोरी आ रही थी । फिर किसी ने मेरे पर हमला किया, हमले से उबरकर मैं हमलावर के पीछे बीच की तरफ भागा लेकिन वो मुझे न मिला । बीच पर से तब रिंकी और करनानी लौट रहे थे, मैं उनके साथ यहां वापिस लौटा तो टी.वी. पर अभी तब भी फीचर स्टोरी जारी थी ।” - मुकेश ने रिंकी की तरफ देखा - “मैंने ठीक कहा ?”
“हां ।” - रिंकी बोली ।
“तब मैंने टी.वी. ऑफ कर दिया था और पुलिस को फोन किया था । लेकिन जो एक अहमतरीन बात मुझे तब नहीं सूझी थी - बहुत बाद में सूझी थी - वो ये थी कि उस फीचर स्टोरी की भाषा हिन्दी थी, हिन्दी थी इसलिये आजतक चैनल पर आ रही थी । अगले रोज जब मैंने टी.वी. चलाया था तो ये आजतक चैनल पर ऑन हुआ था लेकिन अफसोस है मुझे अपनी अक्ल पर कि तब भी मुझे इस बात की अहमियत नहीं सूझी थी । उस बाबत अक्ल आयी तो आज शाम को आयी, दिमाग पर जमी मोम पिघली तो आज शाम को पिघली ।”
“कैसे ? क्या हुआ ?”
“इन्स्पेक्टर साहब, कत्ल की रात को यहां टी.वी. ऑन देखने पर क्या आप क्या मैं, क्या हर कोई कूद कर जिस नतीजे पर पहुंचा था वो ये था कि टी.वी. ऑन था इसका मतलब था किे अपनी स्थापित रूटीन के मुताबिक मिस्टर देवसरे रात ग्यारह बजे यहां लौट आये थे और खबरें देखने बैठ गये थे । यानी कि ग्यारह बजे वो जिन्दा थे । थाने में ऐसा आपने भी कहा था और इसी बिना पर ये नतीजा निकाला था कि कत्ल ग्यारह और साढे ग्यारह बजे के बीच के किसी वक्त हुआ था ।”
इन्स्पेक्टर ने सहतति में सिर हिलाया ।
“लेकिन, गुस्ताखी माफ, जनाब, ये नतीजा गलत है । इसलिये गलत है क्योंकि ये नतीजा निकलते वक्त आपने ये बात नोट न कि टी.वी. स्टार न्यूज पर सैट नहीं था जैसे कि वो मिस्टर देवसरे द्वारा ग्यारह बजे ऑन किया गया होता तो होता । टी.वी. आजतक चैनल पर सैट था, मिस्टर देवसरे की मौत के बाद टी.वी. आजतक चैनल पर चलता पाया गया था और अपनी रूटीन के मुताबिक उस चैनल पर उन्होंने उसे सात बजे चलाया था । आई रिपीट सर, मिस्टर देवसरे अगर ग्यारह बजे जिन्दा होते तो टी.वी. स्टार-न्यूज पर चल रहा होता और टेलीकास्ट इंगलिश में होता पाया गया होता । ये इकलौती बात अपने आप में सबूत है कि कत्ल ग्यारह के बाद नहीं, उससे पहले किसी वक्त हुआ था और ग्यारह बजे से पहले टी.वी. ऑन होने का कोई मतलब नहीं था ।”
“तो फिर टी.वी. किसने ऑन किया ?”
“जाहिर है कि कातिल ने । और इसलिये किया ताकि टी.वी. की आवाज में गोली की आवाज दब जाती । उसे टी.वी. के किसी प्रोग्राम से कुछ लेना देना नहीं था, उसे सिर्फ टी.वी. की आवाज से मतलब था इसलिये टी.वी. पहले से जिस चैनल पर सैट था, उसी पर ऑन हो गया था । और पहले वो आजतक चैनल पर सैट था क्योंकि सात बजे मिस्टर देवसरे उस चैनल पर खबरें सुन कर गये थे । इन्स्पेक्टर साहब, ये कनक्लूसिव प्रूफ है कि मिस्टर देवसरे का कत्ल ग्यारह बजे से पहले किसी वक्त हुआ था । इसलिये किसी के पास ग्यारह के बाद के वक्त की एलीबाई होने की कोई कीमत नहीं रह जाती । आपके पास सब सस्पैक्ट्स की उस रात की मूवमेंट्स का ब्यौरा है इसलिये अब उसके तहत नये सिरे से विचार कीजिये कि ग्यारह से पहले कौन कहां था और कहां नहीं था ।”
इन्स्पेक्टर ने महाडिक की तरह देखा ।
“इसकी तरफ देखना बेकार है” - मुकेश बोला - “क्योंकि पौने ग्यारह बजे ये अपनी क्लब के कैसीनों में था जहां ये एक ऐसे गैम्बलर से मगज मार रहा था जो कि विनिंग स्ट्रीक पर था इसलिये रॉलेट पर बिना लिमिट का खेल खेलना चाहता था ।”
“ओह !”
महाडिक ने चैन की सांस ली ।
“कत्ल का जो नया टाइम मैं सुझा रहा हूं, उसके दौरान मैं क्लब के एक बूथ में बेसुध पड़ा था, इस बात की तसदीक करने वाले वहां दर्जनों गवाह मौजूद हैं । ये भी स्थापित तथ्य है कि रिंकी और करनानी ग्यारह बजे क्लब में थे । पाटिल भी तब क्लब में था और सवा ग्यारह बजे रिजॉर्ट में लौटता देखा गया था । घिमिरे शुरु से रिजॉर्ट में था लेकिन वो इसलिये कातिल नहीं हो सकता क्योंकि खुद उसका कत्ल हो गया है । दिनेश पारेख ने गोलमोल तरीके से कुबूल किया है लेकिन किया है कि वो कत्ल के बाद यहां पहुंचा था । अब बाकी कौन बचा ?”
“कौन बचा ?” - इन्पेक्टर के मुंह से निकला ।
“वो बचा जिसने मुझे कहा था कि कैप्सूलों के खोल बूथ से उठाकर मैंने उस पर मेहरबानी की थी तो मैं उस मेहरबानी को जारी क्यों नहीं रख रहा था और यूं जिसने एक तरह से उस वाकये का आर्कीटेक्ट होना कुबूल किया था जो कि पहले कत्ल की बुनियाद बना था, जिसने मुझे ये पट्टी पढाने की कोशिश की थी कि जिस पर मेहरबान होते हैं, उस पर एतबार लाते हैं; शक नहीं करते, गिरफ्तार करा देने की धमकी नहीं देते ।”
इस्पेक्टर सकपकाया ।
“और वो बचा जो मिस्टर देवसरे के साथ था, वो बचा जो मिस्टर देवसरे को उनकी कार पर यहां ड्रॉप करने आया था ।” - मुकेश एक क्षण ठिठका और फिर बोला - “आयी थी ।”
मुकेश को नाम लेने की जरूरत ही न पड़ी । तमाम निगाहें पहले ही मीनू सावन्त की तरफ उठ गयीं ।
एक बार फिर सन्नाटा छा गया ।
फिर खुद मीनू ने ही उस सन्नाटे को ताड़ा । वो मुस्काराई और बड़ी अदा से बोली - “आप तो ऐसे न थे ।”
“तुम बात को मजाक में ले रही हो ।” - मुकेश बोला ।
“और तुम खुद मजाक हो ।” - महाडिक गुस्से से बोला - “मीनू पर कत्ल का इलजाम लगा रहे हो ? शर्म करो ।”
मुकेश खामोश रहा ।
“टी.वी. इस चैनल पर नहीं उस चैनल पर था, उस चैनल पर नहीं इस चैनल पर था । ये कोई सबूत हुआ ! तुम जिस चैनल पर चाहते उसे सैट कर सकते थे ।”
“मुझे क्या जरूरत पड़ी थी ऐसा करने की ?” - मुकेश बोला ।
“तुम्हारी जरूरत तुम्हें मालूम हो ।”
“सिर्फ इसलिये मैं कातिल हो गयी” - मीनू बोली - “कि मिस्टर देवसरे की दरख्वास्त पर मैं उन्हें यहां छोड़ने आयी थी ? उनकी दरख्वास्त कुबूल करना ही मेरा गुनाह हो गया ?”
“मुझे सफाई मत दो । जो कहना है, इन्स्पेक्टर साहब को कहो ।”
“तुमने भी जो कहना है इन्स्पेक्टर साहब को कहो ।”
“उन्हीं को कहता हूं । इन्हीं को याद दिलाता हूं कि नींद के कैप्सूलों की शीशी, इन्स्पेक्टर साहब, इसके पास थी । इसके सामने मिस्टर देवसरे ने मुझे जाकर रिंकी के साथ डांस करने के लिये प्रेरित किया था । डांस से जब मैं अपने केबिन में वापिस लौटा था तो ये वहां अकेली थी और पहले से मेरे लिये ड्रिंक मंगा के बैठी हुई थी । क्यों ड्रिंक पहले से टेबल पर मौजूद था ? क्योंकि इसने नींद की दवा मिलाकर खास मेरे लिये तैयार करके रखा हुआ था । बाद में कोई बड़ी बात नहीं कि मिस्टर देवसरे को ये आइडिया भी इसी ने सरकाया था कि मुझे बूथ में सोता पड़ा रहने देना मेरे साथ अच्छा मजाक होता । इसे पता था कि मिस्टर देवसरे तब मेरे से बेजार थे इसलिये उन्हें ये बात जंच जानी थी । फिर इसने ही पेशकश की थी उनकी कार पर उन्हें वापिस रिजॉर्ट में छोड़ आने की और कार वापिस ले आने की ।”
Reply
10-18-2020, 01:17 PM,
#60
RE: Desi Sex Kahani वारिस (थ्रिलर)
“नानसेंस ।” - महाडिक बोला ।
“मिस्टर देवसरे के साथ ये यहां पहुंची । तब किसी वजह से मिस्टर देवसरे ने वाल सेफ खोली ।”
“किस वजह से ?”
“वक्ती तौर पर इसकी तवज्जो कत्ल की तरफ से हटाना एक वजह हो सकती है अगरचे कि हम ये मान के चलें कि उस घड़ी तक ये मिस्टर देवसरे पर गन तान चुकी थी । जरूर उनके पास कोई स्कीम होगी इससे गन हथिया लेने की...”
“ये सब लिफाफेबाजी है । जब कुछ साबित कर दिखाने की जिम्मेदारी आयद न होती हो तो ऐसी कितनी ही कहानियां कितने भी लोगों के खिलाफ गढी जा सकती हैं ।”
“लेकिन...”
“तुम दायें की बातें छोड़ कर पहले असल और अहम बात पर क्यों नहीं आते हो ?”
“असल बात ?”
“जो ये है कि कत्ल के लिये कातिल के पास कोई उद्देश्य होना चाहिये । तुम्हें इसके पास कत्ल का क्या उद्देश्य दिखाई देता है ? तुमने कत्ल मेरे सिर थोपने की कोशिश की होती तो कोई बात भी थी । मैं देवसरे को मुद्दत से जानता था और मेरे पास उसके कत्ल का जो उद्देश्य था, वो जगजाहिर है । मेरे कहने का मतलब ये न लगाना कि कत्ल मैंने किया है । मेरा मतलब सिर्फ इतना है कि अगर कत्ल तुमने किसी पर थोपना ही था तो ये कोशिश मेरे पर की होती । मीनू तो देवसरे को ठीक से जानती तक नहीं थी सिर्फ एक हफ्ते की मुलाकात थी दोनों की । ये भला क्यों उसका कत्ल करती ?”
“वजह है ।”
“क्या वजह है ?”
“इन्स्पेक्टर साहब, आप तजुर्बेकार पुलिस अधिकारी हैं, आपके तजुर्बे के मुताबिक औरतों के पास कत्ल का बेहतरीन उद्देश्य क्या होता है ?”
“क्या होता है ?” - इन्स्पेक्टर बोला - “हसद ? नफरत ?”
“प्यार । जिसकी कि हसद और नफरत ब्रांच लाइनें हैं । ये एक ऐसी लड़की है जिसकी फैमिली बैकग्राउन्ड बहुत मामूली है, हैसियत बहुत मामूली है, सलाहियात बहुत मामूली हैं । लेकिन हर नौजवान लड़की की तरह ख्वाब आसमान छूने के देखती है । ये खुद अपनी जुबानी कुबूल करती है कि अपना और अपनी मां का पेट भरने के लिये ये पॉप सिंगर बनी वर्ना ये तो कोई ऐसा करिश्मा होने का इन्तजार करती जो सीधा इसे सातवें आसमान पर पहुंचा देता । महाडिक में इसे अपना फ्यूचर दिखाई दिया तो ये मुम्बई छोड़ कर इसकी क्लब की मुलाजमत में आ गयी । अपनी आइन्दा जिन्दगी की सिक्योरिटी के लिये ये महाडिक से शादी तक करने को तैयार थी जबकि महाडिक उम्र में इससे इतना बड़ा था और एक शादी पहले कर चुका था । इसकी खुद की बातों से लगता था कि महाडिक भी इसे बराबर चाहता था और उसे इसके साथ नया विवाहित जीवन शुरु करने से गुरेज नहीं था । इसने पाटिल की जो गत बनायी इसकी मंशा की उससे भी तसदीक होती है ।”
“पाटिल का क्या किस्सा है ?”
मुकेश ने किस्सा बयान किया । कि कैसे वो मीनू पर दबाव डालकर उसे डरा धमकाकर उससे कोई रकम झटकने की कोशिश में था ।
“ओह !”
“महाडिक की हालिया प्राब्लम उसका मिस्टर देवसरे से कान्ट्रैक्ट था जो कि खत्म होने वाला था और जो उसे फिक्रमन्द किये था । ये जानता था कि मिस्टर देवसरे जिस कीमत पर दिनेश पारेख को क्लब बेचना चाहते थे वो कीमत खुद ये भरने में असमर्थ था । ऊपर से इसके कैसीनो में आकर एक ही रात में ग्यारह लाख रूपये जीत कर वो इसकी माली हालत में एक बड़ा छेद कर गया था । और यूं इसके क्लब खरीद पाने की सम्भावना बिलकुल ही खत्म हो गयी थी । ये इसकी भारी ट्रेजेडी थी कि अपनी तीन साल की अनथक मेहनत से जो मुनाफे का बिजनेस इसने अपने लिये खड़ा किया था, मिस्टर देवसरे के एक ही फैसले से - क्लब बेच देने के फैसले से - उसकी बुनियाद खिसकी जा रही थी । तकदीर का वो एक ही झटका इसे सड़क पर ला सकता था और उस निश्चित बर्बादी से इसे कोई बात बचा सकती थी तो वो ये थी कि कान्ट्रैक्ट खत्म होने से पहले वो शख्स खत्म हो जाता जिसके साथ कि कान्टैक्ट था । इस बात को दूसरे लफ्जों में कहा जाये तो मिस्टर देवसरे की जिन्दगी इसके लिये मौत थी और उनकी मौत इसके लिये जिन्दगी थी ।”
“मैं... मैं कुबूल करता हूं कि ऐसा था ।” - महाडिक बोला - “लेकिन ये मेरा उद्देश्य हुआ न कि मीनू का ।”
“उसका भी हुआ । इसलिये हुआ क्योंकि तुम्हारे में उसका फ्यूचर था, वो तो पहले ही फैसला कर चुकी हुई थी कि उसकी और तुम्हारी जिन्दगी एक थी । तुम बर्बाद होते तो उसका भविष्य साथ बर्बाद हुआ होता । तुम तो आबाद हो चुकने के बाद बर्बाद हुए होते ये तो आबाद होने से पहले ही बर्बाद हो जाती । ये कहती है कि तुम बस इससे शादी करने ही वाले थे - इस बात का सबूत इसके हाथ में तुम्हारी पहनाई अंगूठी है - अब क्लब तुम्हारे हाथ से निकल जाती तो या तो शादी अनिश्चित काल के लिये मुल्तवी हो जाती या होती ही नहीं । ऐसा होता तो तुम्हारी बर्बादी से कहीं बड़ी ये इसकी बर्बादी होती । इस बर्बादी को रोकने का एक ही तरीका था कि इसकी वजह पर चोट की जाती । वजह मिस्टर देवसरे थे । जरूर इसे अहसास था कि उस वजह को खत्म करने की बाबत तुम कोई कदम उठाने वाले नहीं थे इसलिये जरूरी था कि वो कदम ये उठाती । इस बार इसके ये फैसला कर चुकने के बाद बाकी सब आसान था । इसने बडी चतुराई से मुझे मिस्टर देवसरे से अलहदा किया और फिर उनका कत्ल कर दिया । महाडिक, हो सकता है कि पहले तुम्हें ये बात न मालूम हो कि कत्ल तुम्हारी होने वाली बीवी ने किया था लेकिन अब बराबर मालूम है ।”
महाडिक के मुंह से बोल न फूटा, उसने मुंह बाये मीनू की तरफ देखा ।
“मेरा जाती खयाल ये है मीनू के खतरनाक इरादे और इसके डेयरडेविल कारनामे की बाबत तुम्हें कुछ मालूम नहीं था । मालूम होता तो परसों रात कत्ल के वक्त के आसपास तुमने रिजॉर्ट में कदम रखने की हिमाकत न की होती... न न । अब ये कहना बेकार होगा कि परसों रात तुम यहां नहीं थे और रिंकी को तुम्हें यहां देखा होने की बाबत मुगालता लगा था । तुम यकीनन यहां थे अलबत्ता तुम्हारे यहां आने का मकसद एकदम निर्दोष था । तुमने मुझे क्लब में बेहोश पड़े देखा था, तो इसे मिस्टर देवसरे के साथ तनहाई में बात कर पाने का सुनहरा मौका समझा था । तुम यहां मिस्टर देवसरे से क्लब की बिक्री के सन्दर्भ में अपने उजड़ते भविष्य की बाबत बात करने आये थे लेकिन तुमने उन्हें यहां मरे पड़े पाया । ये वो वक्त था जब कि दिनेश पारेख तभी यहां से गया था । उसके बाद तुम यहां पहुंचे और, जैसा कि होना ही था, तुमने मिस्टर देवसरे को यहां पड़े पाया । तुम्हारे चुपचाप खिसक पाने से पहले ऊपर से मैं आ गया । तुम जानते थे कि तुम यहां लाश के पास मौजूद पाये जाते तो तुम्हें ही कातिल समझा जाता । तुम्हारा अपने को मेरी निगाह में न आने देने की हर चन्द कोशिश करना स्वाभाविक था । लिहाजा पहले तुम कहीं छुप गये और फिर मौका ताड़ कर मेरे पर पीठ पीछे से वार करके यहां से भाग गये ।”
महाडिक से विरोध करते न बना ।
“कत्ल के बाद दो ही जनों ने यहां कदम रखा था और उन दो में से ही किसी ने मेरे पर वार किया हो सकता था । अब जबकि मुझे यकीन है कि मेरे पर वार करने वाला शख्स पारेख नहीं था तो, महाडिक, यकीनन वो तुम थे । कुबूल करो कि वो तुम थे । मुझ पर वार करना तुम्हारा एक छोटा गुनाह है जिसे मैं बख्श दूंगा तो बात मुकम्मल तौर से खत्म हो जायेगी । तुम्हें तो खुश होना चाहिये कि यूं मैं तुम्हें कत्ल के इल्जाम से पूरी तरह से बरी करके दिखा रहा हूं ।”
महाडिक ने जोर से थूक निगली ।
“ले.. लेकिन” - फिर बड़ी मुश्किल से वो कह पाया - “मीनू.. मीनू...”
“यही कातिल है । इसी ने कत्ल किया है । ये मिस्टर देवसरे को यहां ड्रॉप करने के बहाने उनके साथ आयी, यहां भीतर पहुंची और फिर उन्हें शूट कर दिया । अपने कारनामे को अंजाम दे चुकने के बाद जब ये यहां से बाहर निकली तो सीधे माधव घिमिरे से जा टकराई और फिर इसके लिये उसका भी कत्ल करना जरूरी हो गया ।”
“वो खामोश क्यों रहा ?” - इन्स्पेक्टर बोला ।
“अपनी खामोशी की असल वजह तो वो ही जाने, वो दब्बू और डरपोक किस्म का आदमी था, वो इसी बात का खौफ खा गया होगा कि ये उसे भी मार डालेगी लेकिन उसकी खामोशी की असल वजह ये हो सकती है कि मिस्टर देवसरे की मौत में उसका भी फायदा था और इसने उसका कत्ल करके एक तरह से उस पर भी उपकार किया था । मिस्टर देवसरे की जिन्दगी में वो रिजॉर्ट के मुनाफे में हिस्से से भी हाथ धोने जा रहा था जबकि उनकी मौत से किसी रिजॉर्ट का - भले ही वो बहार विला जैसा छोटा और मामूली हो - सोल प्रोप्राइटर बनने का उसका सपना पूरा हो सकता था ।”
“हूं ।”
“घिमिरे का खेल विनोद पाटिल के एकाएक यहां आ धमकने ने बिगाड़ा था । पाटिल के यहां कदम न पड़े होते तो यहां रिजॉर्ट में सब के लिये सब कुछ ठीक ठीक चल रहा था । पाटिल की वजह से मिस्टर देवसरे ने इस जगह को गिरवी रखने का फैसला किया ताकि मुनाफा मिट्टी हो जाता और पाटिल के पल्ले कुछ न पड़ता लेकिन तब उन्होंने ये न सोचा कि यूं उनके वफादार और कर्मठ मैनेजर घिमिरे के पल्ले भी कुछ न पड़ता । लेकिन मिस्टर देवसरे की मौत ने घिमिरे के लिये तमाम नक्शा बदल दिया, उस बात से वो इतना आन्दोलित हुआ कि बहार विला की बिक्री की बाबत मधुकर बहार से बात करने के लिये उससे सवेरे होने का भी इन्तजार न हुआ ।”
“ये बात उसने अपनी जुबानी कुबूल की थी । मैंने उसे ऐसा डराया था कि वो झट बक पड़ा था कि हमारे यहां से जाते ही उसने मधुकर बहार को फोन लगा दिया था ।”
“बाकी कसर मैंने पूरी कर दी थी । मैंने उसे बोला था कि पुलिस उसकी बाबत मधुकर बहार का बयान भी दर्ज करने वाली थी । जमा उसने मुझे अपनी कार का मुआयना करते देखा था । इस अपराधबोध से ग्रस्त तो वो पहले ही था कि वो मीनू की बाबत खामोश रहा था, जब उसे लगा कि रिंकी के एक्सीडेंट का इलजाम उस पर आयद हो सकता था तो वो बिलकुल ही घबरा गया । तब उसे लगने लगा कि उसकी गति इसी में थी कि वो पुलिस को सब कुछ सच सच कह सुनाता । यहां उस मूढ आदमी ने जरूर ये हिमाकत की कि मीनू पर अपना इरादा जाहिर कर दिया ताकि उसे अपना बचाव सोचने का या, बचाव न सूझने पर, भाग निकलने का मौका मिल जाता और यूं अपने डैथ वारन्ट पर खुद साइन कर लिये ।”
“इसने किसी बहाने से घिमिरे को मौकायवारदात पर बुलाया और उसे वहां शूट कर दिया ?”
“हां । आपने खुद कहा था कि कातिल बीच की तरफ से आया था और यहां के प्राइवेट बीच के रास्ते उस पब्लिक बीच पर पहुंच जाना इसके लिये मामूली बात थी । ये स्विमिंग कास्ट्यूम में रही होगी । इसलिये किसी की इसकी तरफ तवज्जो भी नहीं गयी होगी । बाकी रही रिवॉल्वर की बात जो आप कहते थे कि स्विमिंग कास्ट्यूम में नहीं छुपाई जा सकती थी लेकिन इस बात में दम तब था जबकि कातिल मर्द होता । औरतें बीच पर बीच बैग लेकर जाती हैं जिसमें कि गन बड़े आराम से छुपाई जा सकती थी । कोई नौजवान लड़की स्विमिंग कास्ट्यूम पहने बीच बैग झुलाती बीच पर विचरे तो कौन उसकी तरफ या उसके बीच बैग की तरफ ध्यान देता है ?”
“ठीक ।”
“लिहाजा बीच की तरफ से ये बड़े आराम से घिमिरे की कार तक पहुंची, जाकर उसकी बगल में पैसेंजर सीट पर बैठी, उसको बातों में लगाकर चुपचाप बीच बैग में से गन निकाली और उसकी नाल उसके पहलू से सटाकर गोली चला दी । यूं चश्मदीद गवाह खत्म । खतरा खत्म । और कहानी खत्म ।”
“कहानी ही है ये ।” - महाडिक बोला - “क्योंकि तुम इसे साबित नहीं कर सकते ।”
“नहीं कर सकता । क्योंकि ये पुलिस का काम है । लेकिन एक बात मैं फिर भी कहता हूं ।”
“क्या ?” - सबाल इन्स्पेक्टर ने किया ।
“पहले मेरा एक सवाल । क्या दोनों कत्ल एक ही गन से हुए हैं ?”
“हां । बैलेस्टिक एक्सपर्ट की रिपोर्ट निर्विवाद रूप से इस बात की तसदीक करती है ।”
“गुड । कातिल से आम उम्मीद यही होती है कि कत्ल करने के बाद वो आलायकत्ल से किनारा कर लेता है लेकिन जब दोनों कत्ल एक ही गन से हुए बताये जा रहे हैं तो जाहिर है कि मीनू ने ऐसा नहीं किया था, मिस्टर देवसरे के कत्ल के बाद इसने गन से किनारा नहीं किया था इसीलिये दूसरे कत्ल के लिये वही गन इसके पास उपलब्ध थी । अब क्या पता जो काम इसने पहले कत्ल के बाद नहीं किया था वो दूसरे कत्ल के बाद भी न किया हो !”
“मतलब ?”
“अब क्या खाका खींचकर समझाऊं ?”
“गन अभी भी इसके पास हो सकती है ?”
“हो सकती है नहीं, है ।”
“कैसे मालूम ?”
“उसकी तरफ देखो, सवाल जरूरी नहीं रह जायेगा ।”
इन्स्पेक्टर ने घूम कर मीनू की तरफ निगाह उठाई तो वो सन्न रह गया ।
गन उसके हाथ में थी और उसने बड़ी मजबूती से उसे अपने सामने ताना हुआ था ।
अब किसी को सबूत मांगने की जरूरत नहीं थी ।
अब मीनू सावन्त का गुनाह उसके मुंह पर लिखा दिखाई दे रहा था । उसकी आंखों में एक बिल्लौरी चमक थी और खूबसूरत होंठ भिंचकर एक बारीक लकीर की सूरत अख्तियार कर चुके थे । उसकी सांस ऐसी तेजी से चलने लगी थी कि कमरे में उसकी आवाज सुनायी देने लगी थी ।
सबसे ज्यादा हकबकाया हुआ महाडिक था, वो मुंह बाये उस औरत का मुंह देखा रहा था जिससे वो मुहब्बत करता था और जिसने उसकी खातिर खून से हाथ रंगने से गुरेज नहीं किया था ।
“मीनू ।” - फिर वो धीरे से बोला - “गोली न चलाना । ऐसी गलती हरगिज न करना ।”
“गलती !” - वो एक खोखली हंसी हंसी - “गलती तो हो चुकी ।”
“ये लोग कुछ साबित नहीं कर सकते । इनके पास ऐसा कुछ नहीं है जिसे कोर्ट में धराशायी न किया जा सकता हो । तुम्हें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिये जिससे इनके हाथ मजबूत होते हों ।”
मीनू की सूरत से न लगा जैसे वो महाडिक की बातों की तरफ कोई तवज्जो दे रही हो । उसका ध्यान मुकेश की तरफ था और अब उसके हाथ में थमी गन की नाल का रुख भी उसी की तरफ स्थिर था ।
इन्स्पेक्टर उठ कर खड़ा हुआ ।
“खबरदार !” - वो सांप की तरह फुंफकारी ।
“मिस्टर महाडिक ने आपको माकूल राय दी है, मैडम ।” - इन्स्पेक्टर शान्ति से बोला - “गन मुझे सौंप दीजिये और मुल्क के कायदे कानून को अपना फैसला करने दीजिये । क्या पता सच में ही आपके खिलाफ कोर्ट में कुछ साबित न किया जा सके ।”
“बैठ जाइये ।”
“आप यहां गोली चलायेंगी तो खुद अपने ताबूत में कील ठोकेंगी ।”
“बैठ जाइये वर्ना पहली गोली के शिकार आप होंगे ।”
“मै बैठ जाता हूं । लेकिन जो आप कर रही हैं वो एक तरह से अपना गुनाह कुबूल करना ही है ।”
“मैंने कोई गुनाह नहीं किया । मैंने सिर्फ एक बेहिस, बेरहम शख्स को मिस्टर महाडिक का भविष्य बिगाड़ने से रोका ।”
“मीनू !” - महाडिक फिर चेतावनीभरे स्वर में बोला ।
“जिस पौधे को अपनी और सिर्फ अपनी मेहनत से मिस्टर महाडिक ने पेड़ बनाया उसे वो कम्बख्त बूढा काट डालने पर आमादा था ।”
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,408,818 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 534,104 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,194,966 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 903,260 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,602,936 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,036,945 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,878,661 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 13,812,572 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 3,940,081 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 276,441 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 1 Guest(s)