RE: Desikahani हालत की मारी औरत की कहानी
गतान्क से आगे.....................3
नेहा: ऐसे क्या देख रही हो मा….
मे: कुछ नही तू यूनिफॉर्म चेंज कर ले…मे खाना लाती हूँ….
और मे उठ कर किचन मे आ गयी….और नेहा के लिए खाना डालने लगी…इतने मे फिर से गेट पर दस्तक हुई….मेने नेहा को किचन से गेट खोलने के लिए आवाज़ लगाई….और नेहा ने उठ कर गेट खोला तो, मेरे सास ससुर भी खेतों से आ गये थे…मेने सब के लिए खाना डाला और, हम सब ने साथ मिल कर दोपहर का खाना खाया…खाने खाने के बाद हम सब अपने अपने रूम मे जाकर लेट गये…नेहा मेरे साथ ही सोती थी…जब गोपाल घर पर थे….तब वो मेरी सास के साथ ही सोती थी…पर जब से गोपाल लुधियाना गये थे…वो मेरे साथ ही सोती थी…वो मेरे साथ आकर चारपाई पर लेट गयी…मे उसके बालों को सहलाने लगी…मुझे पता नही चला मुझे कब नींद आ गयी…शाम के 6 बजे मुझे मेरी सास ने मुझे उठाया…वो फिर से खेतों मे जाने के तैयारी कर रहे थे…मेने उठ कर सब के लिए चाइ बनाई…जब मे चाइ देने अपने सास ससुर के पास गयी तो मेरे सास ने मुझे बोला
सास: बेटा सुन विजय को भी चाइ दे आ…उसकी घरवाली तो अपने मयके गये है…पता नही उसने कुछ खाया भी है या नही
मे: पर मा जी चाइ तो ख़तम हो गयी….
सास: तो क्या हुआ बेटा चाइ पीकर दोबारा बना देना
मे: ठीक है मा जी
जब मेरे सास ससुर चाइ पीकर खेतों मे जाने लगे…तो नेहा भी साथ चली गयी…मेने उसे रोकने की बहुत कॉसिश की…पर उनके साथ जाने की ज़िद्द करने लगी…
सब के जाने के बाद मे सोच मे पड़ गयी….अब मे क्या करूँ…अगर मे चाइ लेकर गयी तो जेठ जी कहीं ये ना सोच लें के मे जान बूझ कर उनके पास आई हूँ…. फिर मेने सोचा के मे चाइ उन्हे गेट के बाहर से ही पकड़ा दूँगी…और ये सोच कर मे किचन के तरफ जाने लगी…पर फिर गेट पर किसी ने दस्तक दी…मे इस बात से अंजान थी… कि बाहर जेठ जी भी हो सकतें हैं…मेने जैसे ही गेट खोला मेरे दिल के धड़कन बढ़ गयी…बाहर जेठ जी खड़े थे…
विजय: वो मा कह गयी थी… मे जाकर चाइ पी आउ…भला मे ऐसा मोका कैसे जाने देता….
वो मेरे बिना कहें घर के अंदर आ गये….मे गेट पर सहमी से खड़ी देख रही थी…मुझे समझ मे नही आ रहा था कि आख़िर मे क्या करूँ
विजय: अब गेट पर ही खड़े रहो गी क्या यहीं चुदवाने का इरादा है….
मे उनके मुँह से ऐसे बात सुन कर एक दम सकपका गयी….और अपने सर को नीचे झुका लिया…मे ऐसे खुलम खुल्ला चुदवाने जैसी बात सुन कर शर्मा गयी…जेठ जी ने आगे बढ़ कर गेट को बंद कर दिया….और मेरे कमरे के तरफ जाते हुए बोले….
विजय: जल्दी कर मुझे खेतों मे भी जाना है…बच्चे भी बाहर खेलने गये हैं…कहीं ढूँढते हुए इधर ना आ जाए….
मे वहीं गेट पर खड़ी थी…मुझे समझ मे नही आ रहा था…अब मे क्या करूँ…तभी अंदर से जेठ जी की आवाज़ आई….
विजय: क्या कर रही हो जानेमन…जल्दी करो ना, देख मेरा लौदा कैसे अकड़ कर झटके खा रहा है…
उनकी ऐसी गंदी बातें सुन कर मेरे दिल की धड़कन तेज होने लगी…मुझे ये भी डर था कि कहीं कोई आ ना जाए….मे कंम्पाते पैरो के साथ रूम के तरफ बढ़ने लगी….मे रूम के डोर पर जाकर खड़ी हो गयी…जेठ जी चारपाई पर लेटे हुए थे…उन्होने अपने कमीज़ उतारी हुई थी…उनकी चौड़ी छाती देख मे अपने आप पर से अपना काबू खोने लगी…
विजय: अब वहाँ खड़ी क्या देख रही है…जल्दी कर कहीं कोई आ ना जाए…
मे धड़कते दिल के साथ रूम के अंदर आ गयी…मे अपने नज़रें झुका ली थी…और धीरे-2 चल रही थी
विजय: डोर बंद कर दे
मे: (एक दम चोन्क्ते हुए) जी क्या
विजय: मेने कहा दरवाजा बंद कर दे…
मे डोर बंद करने के लिए वापिस मूडी….सुबह की चुदाई के बाद मे एक दम चुदासी हो चुकी थी…मेरी चूत फिर से लंड लेने के लिए तड़प रही थी…चूत से पानी बह कर मेरी चूत के फांकों तक आ गया था…मेने डोर लॉक किया…और वापिस मूडी…तो मुझे एक और झटका लगा…जेठ जी चारपाई पर से उठ कर खड़े हो गये थे…उन्होने ने अपनी धोती भी उतार दी थी…उनका काला मोटा लंड हवा मे झटके खा रहा था….
विजय: (मुझे देखते हुए) देख ना रचना तूने क्या कर दिया इस बेचारे को, तुम्हारे बारे मे जब भी सोचता हूँ… साला तन कर खड़ा हो जाता है….अब इस बेचारे को अपनी चूत के रस से ठंडा कर दे….
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