Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
12-13-2020, 03:01 PM,
RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
वो वहां पहुंचे और पीछे मुढ़कर उन्होंने मेरी तरफ देखा, और फिर मम्मी को, ऋतू तो आँखें बंद करे लेटी हुई थी..
और फिर उन्होंने अपने कच्छे का नाड़ा खोला और उसे उतार दिया. हम दोनों की साँसे रुक सी गयी...खासकर मम्मी की. उनकी बेक हमारी तरफ थी, जिस वजह से मम्मी और मैं सिर्फ उनके काले चूतड ही देख पा रहे थे. और उनकी टांगो के बीच से उनका लटकता हुआ लंड दिखाई ही नहीं दे रहा था...दिखता भी कैसे, वो तो खड़ा होकर उनके पेट से ठोकरे मार रहा था. मम्मी सांस रोके, नंगी होकर, अपने ससुर को नहाते देख रही थी, उन्हें अंदाजा तो हो चूका था की उनका लंड काफी बड़ा है पर अपनी नंगी आँखों से देखने का लालच उन्हें उनपर नजरें गडाए रखने को मजबूर कर रहा था, वो बेशरम सी होकर उन्हें नहाते हुए देख रही थी..और मैंने नोट किया की ये पहला मौका था , इस कमरे में , जब हम सभी नंगे थे .और फिर थोड़ी देर नहाने के बाद दादाजी शर्माते हुए से घुमे और वापिस चलकर अपनी सीट, जहाँ वो पहले से बैठे हुए थे, जाने लगे.
उनके घूमते ही, मैं और मम्मी, दोनों के मुंह और आँखें खुली रह गयी...
उनके लंड जैसा मोंस्टर हमने आज तक नहीं देखा था..वो लगभग 9 इंच लम्बा और मोटे गन्ने जैसा काले रंग का था.. वो सच में मेरे बाप के बाप कहलाने लायक थे...मम्मी के तो मुंह और चूत में उनके लम्बे और मोटे लंड को देखकर पानी आ गया...और वो बेशर्मी से उसे देखती हुई अपनी चूत को मसलने लगी, पर दादाजी का ध्यान उनकी तरफ नहीं था, वो जाकर अपनी जगह पर बैठ गये और अपने बदन के सूखने का इन्तजार करने लगे..ताकि वो अपना कच्छा पहन सके. पर एक बात तो है, उन्होंने हम सभी की देखा देखी नंगे होकर नहा लिया था, कल की तरह नहीं , जब वो बिना कच्छा उतारे नहा लिए थे और लगभग एक घंटे तक उसी गीले कपडे को लपेटे बैठे रहे थे... यानी कुछ बात बन रही थी.मुझे इन हालात को कुछ और रोचक बनाना था..और जैसा मैंने मम्मी और ऋतू को सुबह समझाया था, वो सब अगर सही तरीके से हो जाए तो सभी को चुदाई में एक अलग ही मजा आने वाला था. ऋतू तो सो चुकी थी, मम्मी मटकती हुई अपनी ब्रा पेंटी तक गयी और उसे देखकर चेक करने लगी की वो सुख गयी है या नहीं...
दादाजी भी उनकी मटकती हुई गांड देखकर अपने लंड के उफान को छुपाने की कोशिश कर रहे थे..और मैं भी.
अचानक गीले फर्श पर मम्मी का पैर फिसल गया और वो लड़खड़ा कर नीचे गिर गयी...
"अह्ह्हह्ह्ह्ह मर गयी रे.....अह्ह्ह्हह्ह आशु....जल्दी आ..."
मैं और दादाजी भागकर उनके पास गए, लंड हिलाते हुए. मम्मी दर्द से कराह रही थी, उन्होंने अपना पैर पकड़ा हुआ था, वो बोली "शायद यहाँ मोच आ गयी है...आआह्ह्ह्ह मुझसे तो खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा...."
और अब आपको मैं बता दूँ की ये मेरी ही योजना का नतीजा था, मम्मी को मोच का बहाना बनाना था और फिर उनकी मालिश करवानी थी मुझे, दादाजी के हाथों से..
पर मैंने उस समय ये नहीं सोचा था की मम्मी नंगी होंगी मालिश करवाते हुए..पर जो हुआ.. अच्छा हुआ. मैंने मम्मी के नंगे शरीर को थामा और उन्हें उठाने की कोशिश करने लगा...पर वो उठ नहीं पा रही थी..दादाजी खड़े हुए थे, वो मम्मी के नंगे शरीर को हाथ लगाने से हिचकिचा रहे थे...
मैं मम्मी के पीछे गया और उनकी बगलों में हाथ डालकर, उन्हें उठाने की नाकाम कोशिश करने लगा..मेरे हाथ उनके उभरे हुए चुचों पर थे...जो नहाने के बाद ठन्डे तरबूज जैसे लग रहे थे... मैं उन्हें आसानी से उठा सकता था, पर उठा नहीं रहा था, मैं चाहता था की दादाजी आगे आये और अपनी शर्म को ताक पर रखकर अपनी बहु के नंगे जिस्म को छुए... और हुआ भी ऐसा ही...उन्होंने जब देखा की मम्मी तो मेरे से उठ नहीं रही है, तो उन्होंने मुझसे कहा..."तू हट बेटा...मैं उठाता हूँ..." और उन्होंने अपने फोलादी हाथ मम्मी की गर्दन में और दूसरा टांगों में लगाया और उन्हें किसी छोटे बच्चे की तरह गोद में उठा लिया...
मम्मी ने अपने बाहें उनकी गर्दन में फंसा ली, ताकि वो गिर ना जाये...और उनके चुचों की पैनी नोक, दादाजी की छाती से टकरा कर उन्हें गुदगुदाने लगी..
मैं तो बस खड़ा हुआ उन्हें देख रहा था..
वो मम्मी को लेकर बेड तक गए और उन्हें नंगी ऋतू के बाजू में लिटा दिया..
मम्मी अब दादाजी के सामने नंगी लेटी हुई , वो मोच की वजह से हुए दर्द का बहाना करके, मचल सी रही थी..और दादाजी असहाय से खड़े होकर अपने खड़े लंड को हाथ से छुपाने की चेष्ठा कर रहे थे..उनका मन मम्मी का झूठा दर्द देखकर पसीज रहा था.. उन्होंने ऊपर कैमरे की तरफ देखकर कहा की डॉक्टर को बुलाओ..पर कोई जवाब नहीं आया वहां से..फिर उन्होंने मेरी तरफ देखकर कहा "बेटा...बहु के पैर की मालिश करनी होगी..तू जरा देख, कोई तेल की शीशी है क्या यहाँ..."
मैं ढूंढने लगा, और सरसों के तेल की शीशी, जिसे चुदाई के काम के लिए ही रखा था मैंने कमरे में, उठा लाया..
दादाजी : "बहु....मुझे माफ़ करना, पर हालात ही ऐसे है की मुझे तेरे शरीर को हाथ लगाना पड़ेगा..तुम्हे आराम मिलेगा मालिश से...तुम बुरा मत मानना ..."
और ये कहकर उन्होंने हाथ में तेल डाला और उन्हें हथेलियों से मलकर मम्मी के दहकते हुए बदन पर अपने मोटे हाथ रख दिए.. जैसे दादाजी के कठोर हाथ मम्मी ने नर्म शरीर पर पड़े उनकी चीख ही निकल गयी (आनंद के मारे) अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह ह्ह्हह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्हह्ह्ह्ह पिताजी.......अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह .....म्मम्मम्मम
मम्मी तो ऐसे आवाजें निकलने लगी की जैसे पिताजी उनकी चुदाई कर रहे है...मैंने मम्मी को घूर के देखा तो वो समझी और झट से अपनी सिस्कारियों को दर्द भरी आवाज में बदल दिया..
"अयीईईईईईईईइ पिताजी.....बड़ा दर्द हो रहा है.....अह्ह्हह्ह्ह्ह....थोड़ा धीरे.....करो."
दादाजी जो मम्मी के पैरों के पास बैठे थे, उन्होंने सर ऊपर करके मम्मी को देखा, जो कोहनी के बल बेड पर लेती हुई दादाजी को ही देख रही थी, उनकी फैली हुई टांगो के बीच से मम्मी की चूत की फांके फ़ैल कर बड़ी ही दिलकश लग रही थी, उसमे से निकलती चाशनी की भीनी खुशबू मुझे साफ़ महसूस हो रही थी, दादाजी को भी हो रही थी या नहीं...मुझे नहीं मालुम.
दादाजी : "अरे बहु, लगता है तुम्हे मोच आई है, नस पे नस चढ़ गयी है कोई...मुझे मालिश करने दो, जल्दी ही ठीक हो जायेगी.."
मम्मी : "ठीक है पिताजी...पर थोडा आराम से करना."
मैंने देखा की दादाजी का लंड बैठने की वजह से उनके कच्छे में से निकल कर मम्मी को साफ़-२ दिखाई दे रहा है...मम्मी ने जैसे ही दादाजी के नाग को अपनी तरफ घूरते देखा उनका तो कलेजा मुंह को आ गया, उसकी शक्ल ही इतनी भयानक थी की उनकी चूत में हलचल सी मच गयी उसके विकराल रूप के बारे में सोचकर..और वो थोडा और सट कर बैठ गयी दादाजी के पास..
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12-13-2020, 03:02 PM,
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मैंने देखा की दादाजी का लंड बैठने की वजह से उनके कच्छे में से निकल कर मम्मी को साफ़-२ दिखाई दे रहा है...मम्मी ने जैसे ही दादाजी के नाग को अपनी तरफ घूरते देखा उनका तो कलेजा मुंह को आ गया, उसकी शक्ल ही इतनी भयानक थी की उनकी चूत में हलचल सी मच गयी उसके विकराल रूप के बारे में सोचकर..और वो थोडा और सट कर बैठ गयी दादाजी के पास..
दादाजी का ध्यान मम्मी की बगल में लेती हुई ऋतू की उभरी हुई गांड के ऊपर भी जा रहा था. वो अपना ध्यान एक जगह केन्द्रित ही नहीं कर पा रहे थे..कभी मम्मी के लटकते हुए खरबूजे देखते तो कभी उनकी चूत का झरना और कभी ऋतू के पीछे के तरबूज... उनकी हालत देखकर मुझे उनपर बड़ा तरस आ रहा था.
दादाजी : "देख बहु, घबराने की कोई जरुरत नहीं है...मैं अब पैर को हल्का सा झटका देता हूँ, इससे तुम्हारी मोच ठीक हो जायेगी..."
मम्मी ने हाँ में सर हिलाया.
दादाजी ने जब फिर से मम्मी के पैर को पकड़ा तो मम्मी ने दादाजी के बाजु को पकड़ लिया, जैसे उन्हें डर लग रहा हो..
दादाजी ने मम्मी के पैर को हल्का सा झटका दिया..मम्मी तो दर्द के मारे दोहरी सी हो गयी..और उन्होंने कब दादाजी के पुरे शरीर को दबोच लिया, मैं भी नहीं समझ पाया...
मम्मी के दोनों मुम्मे दादाजी की बाजुओं के चारों तरफ पिस से रहे थे और उन्होंने अपनी टाँगे दादाजी के टांगो के दोनों तरफ लपेट ली, वो चीख भी रही थी और अपने शरीर को दादाजी के ऊपर रगड़ भी रही थी...
दादाजी की तो हालत ही पतली हो गयी, वो वैसे भी अपनी बहु के नंगे बदन को अपनी आँखों के इतने करीब पाकर काबू रखने की असफल कोशिश कर रहे थे ...और ये उनकी बहु है की उन्हें भड़काने में कोई कसर नहीं छोड़ रही थी ...
दादाजी : "बहु....अपने आप पर काबू रखो...थोडा दर्द तो होगा ही न....अब यहाँ ऐसी जगह पर तो यही एक उपाय है तुम्हारी मोच को ठीक करने का...थोडा धीरज रखो.."
मैंने मन ही मन सोचा, दादाजी धीरज तो आप रखे हुए है अपने आप पर....उसे छोड़ो और मजे लो...
दादाजी ने मम्मी के पैर की हलकी -२ मालिश करनी शुरू की, मम्मी के मुंह से अब आनंद भरी सिस्कारियां फूटने लगी..
"अह्ह्ह्हह्ह ओह्ह्हह्ह्ह्ह म्मम्मम्म......ह्न्न्नन्न .....ऐसी ही....पिताजी......अह्ह्हह्ह .....थोडा ऊपर....हा....और ऊपर........बस यही.......न न....यहाँ...."
मम्मी तो दादाजी से पैर को छोड़कर और ऊपर की तरफ आने को कह रही थी...और दादाजी के हाथ मम्मी के आदेशो का पीछा करते हुए उनकी पिंडलियों फिर घुटनों और फिर जैसे ही उनकी मोटी जाँघों के ऊपर आया...मम्मी ने उनके हाथ के ऊपर अपना हाथ रखकर जोर से दबा दिया... दादाजी के हाथ पर मम्मी की चूत से निकलती गर्म हवा की लपटे पड़ी तो उन्हें लगा की हाथ झुलस ना जाए...उन्होंने अपने हाथ वहां से हटा लिए...और फिर से उनके पैरों की तरफ लोट गए..
मम्मी : "पिताजी...आप बुरा मत मानो...पर मुझे यहाँ जाँघों में भी काफी दर्द हो रहा है....अगर आप यहाँ भी...." और उन्होंने बात बीच में ही छोड़ दी.. मुझे मालुम था की दादाजी मन ही मन खुश हो रहे होंगे मम्मी की ये बात सुनकर, पर फिर भी उन्होंने अनमने मन का भाव अपने चेहरे पर लाते हुए मम्मी की जाँघों पर फिर से हाथ रख दिए और उन्हें अपनी खुरदुरी उँगलियों से मसाज करने लगे..
"अह्ह्हह्ह्ह्ह पिताजी....म्मम्मम्म अब ठीक है.... अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह....... याआअ... ओह्ह्हह्ह्ह्ह...... म्मम्मम्मम......."
मम्मी की आँखें बंद थी, दादाजी ने मेरी तरफ देखा तो मैंने झट से दूसरी तरफ सर घुमा लिया , उन्हें लगा की मैं उनकी तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा हूँ....तो उन्होंने अपनी नजरें मम्मी के शरीर पर फिर से जमा दी..और उनकी जांघो की मालिश करने लगे...
अचानक मम्मी जो लेटी हुई थी, उन्होंने अपने कुल्हे उठाये और नीचे की तरफ खिसक गयी..दादाजी ने उनके खिसकने पर कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया, उनका पूरा ध्यान तो मम्मी के हिलते हुए चुचों पर था..
मम्मी ने एक-एक इंच करके नीचे की तरफ खिसकना शुरू कर दिया, फलस्वरूप दादाजी के हाथ उनकी जाँघों से होते हुए उनकी चूत के और नजदीक होते चले गए.. और जैसे ही दादाजी के हाथ मम्मी की चूत से टकराए उन दोनों के शरीर में झुरझुरी सी दौड़ गयी..
दादाजी : "माफ़ करना बहु....मेरा ध्यान कहीं और था.." पर उन्होंने देखा की आँखें बंद करके लेटी हुई मम्मी पर उनके हाथ और बात का कोई असर नहीं हुआ है, बल्कि मम्मी के कुल्हे हवा में उठकर दादाजी के हाथों का स्पर्श पाने को बेताब से दिखे...अब मुझे लगा की दादाजी की हिम्मत शायद जवाब दे जाए.
दादाजी के मोटे हाथों ने अब सीधा मम्मी की चूत के ऊपर हाथ रख दिया..
"अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह ......ओह्ह्ह्हह्ह्ह्ह.....ऊऊओ गोड..........अह्ह्हह्ह्ह्ह म्मम्मम्मम ....."
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12-13-2020, 03:02 PM,
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दादाजी समझ गए की मम्मी भी शायद यही चाहती है...उन्होंने उनकी गीली चूत को मसलना शुरू कर दिया. दादाजी के हाथों पर लगे तेल और मम्मी की चूत से निकलते तेल से दादाजी के हाथ पूरी तरह से गीले हो गए.. उन्होंने अपने पारखी हाथों से मम्मी की चूत के ऊपर मसाज करी शुरू कर दी, मम्मी तो दादाजी के इस हमले से बुरी तरह से छटपटाने लगी... "ओह्ह्ह्हह्ह पिताजी......म्मम्मम......मजा आ रहा है.....आह्ह......ओह्ह्ह्हह्ह्ह्ह......म्मम्मम .....अन्दर.....और अन्दर....से करो....अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह...". पिताजी समझ गए की उनकी बहु क्या चाहती है..
उन्होंने अपने बीच वाली मोटी ऊँगली मम्मी के चूत के छेद पर टिकाई और उसे अन्दर घुसेड दिया.. "अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह .....मर्र्र .....गयी......अह्ह्हह्ह्ह्ह ....."
उनकी ऊँगली भी किसी छोटे-मोटे लंड से कम नहीं थी....लगभग चार इंच लम्बी और काफी मोटी....मम्मी को तो ऐसे लग रहा था की कोई उनकी लंड से चुदाई कर रहा है.... उन्होंने अपनी आँखें खोली और दादाजी के हाथ को कस के पकड़ लिया...और उसे अपनी चूत में तेजी से अन्दर बाहर करने लगी..
मम्मी अपनी सुध बुध खो बैठी थी..वो शायद नहीं जानती थी की उन्हें अपनी तरफ से कोई पहल नहीं करनी थी... पर चूत की आग के आगे किसका बस चला है..उन्होंने किसी भी बात की परवाह किये बिना अपने ससुर के हाथों की उँगलियों को अपनी रसीली चूत के अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया...दादाजी भी किसी रोबोट की तरह मम्मी की आँखों में देखकर अपने हाथ को उन्हें सौपकर, किसी आज्ञाकारी नौकर की तरह उनकी तीमारदारी कर रहे थे.
अचानक मम्मी ने अपना एक हाथ आगे करके दादाजी के लंड के ऊपर रख दिया... दादाजी का लंड उनके कच्छे को फाड़कर बाहर आने को तैयार था, जैसे ही मम्मी ने उस पाईप को पकड़ा, दादाजी भोचक्के रह गए.. उन्होंने अपना हाथ मम्मी की चूत के अन्दर से वापिस बाहर खींच लिया...और गहरी साँसे लेते हुए दूसरी तरफ मुंह करके बैठ गए. मम्मी और मुझे लगा की अब तो सारा खेल गड़बड़ हो गया..मम्मी को इतनी जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए थी..वैसे भी दादाजी लाइन पर आ ही रहे थे.. वो अपनी आँखें बंद करे अपने ऊपर काबू पाने की एक और कोशिश कर रहे थे..
पर मम्मी भी हार मानने वालों में से नहीं थी..वो उठी और दादाजी के बिलकुल पास जाकर धीमी आवाज में बोली
मम्मी : "पिताजी...मैं जानती हूँ की आप क्या सोच रहे हैं...पर मैं भी क्या करूँ, हालात ही ऐसे हैं...और आप को इतने पास पाकर मैं अपने आप पर काबू नहीं रख पा रही हूँ....आप ...आप समझ रहे हैं ना....प्लीस पिताजी...आप....आप मेरे पास आइये.."
पर दादाजी कुछ ना बोले.
मम्मी : "मैंने हमेशा आपका आदर किया है...और आपकी सेवा की है...आज भी मैं आपकी सेवा करना चाहती हूँ...प्लीस मुझे करने दीजिये..आप मना मत करना.. और आप भी जानते है, की यही एक रास्ता है इस साईको की कैद से निकलने का.....मुझे कोई ऐतराज नहीं है...आप को जो करना चाहते हैं ..कर सकते हैं.."
मम्मी ने तो अपनी स्वीकृति दे दी..पर दादाजी शायद अभी भी अपनी हद्द को पार करने में हिचकिचा रहे थे... मम्मी ने आगे बढकर उनके कच्छे का नाड़ा पकड़ा और उसे खींच दिया..वो कुछ ना बोले..मम्मी ने किसी आज्ञाकारी नौकरानी की तरह उनका कच्चा उतार दिया...और अगले ही पल उनका लम्बा और मोटा लिंग फिर से सभी के सामने आ गया... मम्मी ने उसे अपने हाथ में पकड़ा और उसे ऊपर नीचे करने लगी...दादाजी ने मम्मी की तरफ देखा..दोनों की नजरें मिली...और अगले ही पल मम्मी ने उनके लम्बे और मोटे लंड को अपने मुंह में भर लिया...
दादाजी तो गाँव के रहने वाले थे, उनकी पूरी जिन्दगी में किसी ने भी उनके लिंग को मुंह में नहीं लिया था... आज पहला मौका था जब मम्मी ने उसे चूसा था...उनकी आँखें बंद सी होने लगी और उन्होंने आखिर समर्पण कर ही दिया अपनी गर्म बहु के सामने... मम्मी अब उठ कर उनके क़दमों के पास बैठ गयी...और पूरी तन्मन्यता से उनके लंड को चूसने लगी...पूरा लंड तो जा नहीं पा रहा था उनके मुंह में...इसलिए...उन्होंने अपनी जीभ निकाल कर नीचे के हिस्से को चाटना और कुरेदना शुरू कर दिया...दादाजी के मुंह से मजेदार सिसकियाँ निकल रही थी...
"अह्ह्हह्ह्ह्ह ऊऊओ बहु......अह्ह्ह्हह्ह ....रीईइ.......अह्ह्हह्ह......अह्ह्हह्ह......मेरा पहली बार चूसा है......किसी ने.....अह्ह्ह.......म्मम्मम्मम......"
और तभी ऋतू की आँख खुल गयी, उसने जब देखा की मम्मी तो दादाजी का लंड चूस रही है तो वो समझ गयी की अब तो खेल ख़त्म ही समझो....
ऋतू : "अरे वह ...मम्मी....दादाजी....आपने हम सभी को यहाँ से निकालने की खातिर...ये कर ही लिया..."
दादाजी और मम्मी ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया, ऋतू उठकर मेरे पास आकर बैठ गयी और हम दोनों उनका खेल देखने लगे.. अचानक दादाजी ने मम्मी को ऊपर खींचा और उनके होंठ चूसने शुरू कर दिए, मम्मी ने भी उस अधीर बुढ्ढे का साथ देते हुए अपने होंठ उन्हें समर्पित कर दिए...दादाजी के हाथ मम्मी के मुम्मे दबाने लगे...ये सब देखकर ऋतू भी मेरे लंड को अपने हाथों से मसलने लगी... दादाजी ने मम्मी को किसी गुड्डी की तरह उठाया और उन्हें बेड पर पटक दिया.. उन्होंने अपना लंड हाथ में पकड़ा और उसे मम्मी की चूत से सटाया ही था की ऊपर से स्पीकर से फिर से तेज आवाज गूंजी...
आवाज : "रुको........"
दादाजी के साथ-२ सभी सकते में आ गए..
आवाज : "मैंने तुमसे कहा था की चुदाई करने से पहले तुम्हे बताना होगा की तुमने अपना इरादा क्यों बदला...क्या ये सही है...तुम्हारे हिसाब से...तभी तुम चुदाई कर सकते हो.."
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12-13-2020, 03:02 PM,
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दादाजी कुछ देर सोचते रहे और फिर धीरे से बोले
दादाजी : "मैं हार गया....अपने खोखले रिवाजों के आगे...मैंने अपनी पत्नी के आलावा पूरी जिन्दगी किसी और से संबंध नहीं बनाया...पर ऐसे हालात में , मैं अपने पर काबू नहीं रख पाया....
आज मैंने जाना की रिश्ते - नाते अपने शरीर की आवाज नहीं समझते, मेरा दिमाग मुझे कुछ और कहता था और मेरा शरीर कुछ और...और अंत में मेरा दिमाग हार गया, और मैंने जाना की यही सच्चा आनंद है, शारीरिक सुख से बढकर कोई सुख नहीं है...बाकी सब ढकोसले हैं..."
आवाज : "हा हा हा....यही तो मैं भी तुम्हे समझाने की कोशिश कर रहा था...अगर तुम मेरी बात पहले मान लेते तो इतनी परेशानी नहीं झेलनी पड़ती...पर क्या तुम्हारी बहु भी यही सोचती है..."
मम्मी : "हाँ...मेरा भी यही विश्वास है की तन की शान्ति जहाँ से मिले, ले लेनी चाहिए, हमें आपस की रिश्तेदारी की दुहाई नहीं देनी चाहिए, क्योंकि जो तन का प्यार आपको करीबी लोग दे सकते हैं, वो कोई और नहीं...जहाँ से भी शारीरिक सुख मिले , ले लेना चाहिए..."
आवाज : "बहुत खूब...और क्या आपके दोनों बच्चे भी इस बात से सहमत है..."
ऋतू और मैंने अपनी सहमति एक अलग अंदाज में दी, ऋतू ने मेरा लंड पकड़ कर सीधा चुसना शुरू कर दिया..
वो साईको (विशाल) फिर से हंसने लगा : "आजकल की पिदियाँ ये सब बातें बड़ो से ज्यादा समझती है......अब तुम सभी एक दुसरे की चुदाई कर सकते हो...और उसके बाद सभी आजाद हो...हा हा ....हैप्पी चुदाई...."
उसकी बात सुनकर सभी मुस्कुरा दिया...मेरा लंड काफी गीला हो चूका था...ऋतू की चूत में होती खुजली ने उसे लंड के ऊपर आने पर मजबूर कर दिया...और अगले ही पल उसने मेरे लंड का निशाना बना कर अपनी चूत को लंड के ऊपर गिरा दिया..
अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह .....भैया......अह्ह्हह्ह.......
दादाजी ऋतू के होसले को देखकर भोचाक्के रह गए...वो बेचारे क्या जानते थे की वो पहली बार नहीं था जब मेरा लंड उसकी चूत में जा रहा था... मम्मी ने दादाजी का ध्यान अपनी तरफ किया और बोली : "पिताजी...अब तड़पा क्यों रहे हो...उन्हें अपना काम करने दो...आप यहाँ ध्यान दो...चोदो मुझे..अपने मोटे मुसल जैसे लंड से..."
दादाजी को किसी और इनविटेशन की जरुरत नहीं थी, उन्होंने मम्मी की चूत के होंठों में अपना लंड फंसाया और एक तेज झटका मारा....
मम्मी की आँखें बाहर की और निकल आई और वो जोर से चीखी... अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह ऊऊऊऊओ मार्र्र्र डाला.....अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह .....ऊ.......ऊऊऊ...........पर दादाजी को तो जैसे घर जाने की जल्दी थी...उन्होंने लंड बाहर खींचा और एक और तेज झटका मारकर उसे अन्दर तक धकेल दिया...अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह पिताजी......मैं तो गयी.......अह्ह्हह्ह......मम्मी तो झड़ने लगी....पर दादाजी तो अभी शुरू ही हुए थे....
अगले १५ मिनट तक उन्होंने मम्मी की ऐसी चुदाई की जो शायद वो जिन्दगी भर याद रखेंगी...उनकी चूत में लंड उस गहराई तक गया, जहाँ और कोई आज तक नहीं गया था...वो ना जाने कितनी बार झड़ी....उसकी कोई गिनती नहीं थी...
पुरे कमरे में मम्मी और ऋतू की चीखें गूंज रही थी...दुसरे कमरे में भी शायद इतना कामुक दृश्य देखकर पापा, सन्नी और विशाल , सोनी और अन्नू की बुरी तरह से चुदाई कर रहे होंगे....
जल्दी ही दादाजी झड़ने के करीब थे और मैं भी ....
मेरे और दादाजी के लंड से एक साथ रस की बोछार मम्मी और ऋतू की चूत के अन्दर पड़ी ....
अह्ह्हह्ह्ह्ह ऊऊऊओ ह्ह्ह्हह्ह्ह्ह ,....... मजा आ गया.....पिताजी.....अह्ह्ह्ह.......म्मम्मम.......
थोड़ी देर गहरी साँसे लेने के बाद सभी अलग हुए और ऊपर से हमारे कपडे एक थैले में नीचे आये, हम सभी ने कपडे पहने और हमें अपनी आँखों पर पट्टी बांधकर बाहर आने को कहा और ये हिदायत भी दी की इस बात का जिक्र किसी से भी ना करे...
बाहर आकर हमें गाडी में बिठाया गया ...और आधे घंटे बाद गाडी एक जगह रुकी...काफी देर तक जब कोई आवाज नहीं आई तो दादाजी ने अपनी पट्टी खोली, वो हमारी ही गाडी थी पर चलाने वाला गायब हो चूका था...उन्होंने सभी को पट्टी खोलने को कहा..हम घर के काफी करीब थे. हम सभी घर वापिस चल दिए.
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12-13-2020, 03:02 PM,
RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
हम जैसे ही घर के अन्दर आये, पापा ने बदहवासी भरे स्वर में सवाल पूछने शुरू कर दिए..
कैसे हो....ठीक तो हो ना...कुछ हुआ तो नहीं....मैं तो घबरा गया था....वगेरह...वगेरह...
उन्होंने बताया की उन्हें फोन आया था की सभी लोग किडनेप कर लिए गए हैं और अगर पोलिस को बताया तो कोई भी जिन्दा नहीं आ पायेगा, इसलिए वो कुछ कर नहीं पा रहे थे, सिवाए इन्तजार के..,
दादाजी" घबराने की कोई जरुरत नहीं है, कोई सिरफिरा था, जो फिरोती न चाह कर सिर्फ यातना देने में लगा हुआ था, पर हम सभी ने बड़ी हिम्मत से काम लिया वहां...और इसलिए जल्दी छूट भी गए..
अब इस बात का जिक्र करने की कोई भी जरुरत नहीं है, वो लोग खतरनाक है, उन्होंने हिदायत दी है की कोई भी बाहर जाकर कुछ ना बोले, वर्ना कुछ भी हो सकता है..
पापा भी उनकी हाँ में हाँ मिलायी..
पापा "कैसी यातना....मुझे साफ़-२ बताइए...आखिर चाहता क्या था वो सिरफिरा... किसी को कुछ हुआ क्या....बोलो न पिताजी...तुम ही बोलो पूर्णिमा...क्या हुआ वहां..."
मम्मीकुछ न बोली....और जब पापा ने दादाजी को दुबारा कहा तो वो भी सोच में पड़ गए...क्योंकि दादाजी ने आज तक कोई झूठ नहीं बोला था, उनके संस्कार ही ऐसे थे शुरू से, गांधीवादी जो थे वो, वैसे भी अगर वो झूठ बोलना भी चाहते तो हमें तो पता चल ही जाता, फिर चाहे पापा के आगे तो शायद वो शर्मिंदा होने से बच जाते पर हम सभी के सामने उनकी जो छवि थी, एक सच्चे पुरुष की, वो धूमिल हो जाती, जो शायद वो कभी नहीं चाहते थे...
दादाजी"वो ...वो ...बेटा...बात ही कुछ ऐसी है की तू सुन नहीं पायेगा...."
पापा- "ऐसा क्या है पिताजी, आप सभी लोग सही सलामत वापिस आ गए, मुझे इसकी सबसे ज्यादा ख़ुशी है, इसके आगे कोई भी और बात मायने नहीं रखती...आप प्लीस मुझे बताओ की हुआ क्या वहां पर..."
(दादाजी सकुचाते हुए) : "वो दरअसल....वो एक साईको था...जो चाहता था...की मैं बहु के साथ...बहु के साथ..सेक्स करूँ...और आशु अपनी बहन ऋतू के साथ भी सेक्स करे...तभी हम लोग वहां से निकल सकते हैं..."
पापा (आश्चर्य वाला चेहरा बनाने की एक्टिंग करते हुए) : "फिर....फिर क्या ...क्या आप लोगो ने....उसकी बात मान ली.."
(दादाजी गुस्से से) : "और कोई चारा भी नहीं था...बेटा....अब परिस्थितियां ही ऐसी थी की मैं...और कुछ नहीं कर पाया वहां...हमने उसकी बात का विरोध करने की बहुत कोशिश की, पुरे दो दिनों तक हम अपनी बातों पर अड़े रहे की हम ऐसा हरगिज़ नहीं कर सकते...
और अंत में जब लगा की वो करे बिना बाहर निकलना संभव नहीं है तो..तो..हमने उसकी बात मानते हुए वही किया जो वो चाहता था....मुझे माफ़ कर दे बेटा...अगर तू चाहे तो मैं अभी यहाँ से चला जाता हूँ..और कभी तुम्हारे घर नहीं आऊंगा..."
ये कहकर दादाजी ने दूसरी तरफ मुंह घुमा लिया, वो अपने बेटे से आँख नहीं मिला पा रहे थे..
पापा ने बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी दबाई और फिर से सिरियस चेहरा बनाते हुए कहा : "ये आप क्या कह रहे हैं पिताजी... आपने वही किया जो परिस्थितियों की डिमांड थी...मैं आपको कोई दोष नहीं दूंगा...
आपने जो कुछ भी मेरे परिवार को बचाने के लिए किया वो सही था...मैं भी अगर आपकी जगह होता तो यही करता. आप शर्मिंदा न हो..आपने अपनी बहु को चोदा ..इससे मुझे कोई प्रोब्लम नहीं है...और आशु ने भी अपनी बहन को चोदा, वो भी सही है...मुझे इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता..."
पापा ने साफ़-२ चुदाई के वर्डस युज़ करे ताकि दादाजी भी खुल कर सामने आ जाए..
दादाजी अपने बेटे के खुले विचार सुने और खुश हो गए, उन्होंने आगे बढकर अपने बेटे को गले लगा लिया..
अब दादाजी को क्या मालूम था की ये सब हमारा ही किया धरा है, पापा तो सिर्फ वो ही बोल रहे थे जो मैंने उन्हें बोलने को कहा था वापिस आने के बाद..
हम सभी बैठ कर बातें कर रहे थे की सोनी हाथ में पानी की ट्रे लेकर अन्दर आई..मुझे देखकर वो मुस्कुराने लगी और एक आँख मारकर मुझे अपने मिशन की बधाई दी...और फिर उसने सभी को पानी दिया,
जैसे ही वो दादाजी को पानी देने के लिए झुकी उसकी नजर तो दद्दू की धोती पर ही अटक कर रह गयी...वहां से उठता हुआ विशाल खम्बा उसे साफ़ दिखाई दे रहा था, पर कपड़ों के अन्दर से ही...उसकी चूत में सुरसुरी सी होने लगी...ये देखकर...और वो झुकी की झुकी रह गयी... दादाजी ने भी जब देखा की पानी लेने के बाद भी सोनी झुक कर अपनी फूटबाल को ढकने का कोई प्रयत्न नहीं कर रही है तो उनकी नजरों में भी हरामीपन उतरने लगा..जिसे देखकर पापा ने एक और पासा फेंका..

पापा : "पिताजी...आप थक गए होंगे, आप जाकर आराम कर लो...मैं ऑफिस जा रहा हूँ...पिछले दो दिनों से जा ही नहीं पा रहा था...अगर आप चाहो तो ये सोनी आपकी मालिश कर देगी...बड़ी अच्छी मालिश करनी आती है इसे....मेरी भी की है इसने कई बार....आप करवा कर देखो, अपनी सारी थकान उतर जाएगी....."
और ये कहकर वो ऑफिस के लिए निकल गए..
उनके जाते ही ऋतू उछल कर मेरे पास आ गयी और बोली : "भैय्या.....तुमने सुना , पापा को हमारे सेक्स करने से कोई प्रोब्लम नहीं है...वाव.....मजा आएगा अब तो...दादाजी...मम्मी...आप भी अब परेशान मत होना, जो आपकी मर्जी हो वो करो...और मेरी जो मर्जी होगी...वो मैं करुँगी..." और ये कहते हुए ऋतू उठकर दादाजी की गोद में आकर बैठ गयी...
दादाजी उसकी इस बात से और हरकत से सकते में आ गए, मुझे मालुम था की जब वहां फार्म हॉउस में दादाजी की नजरें पहले भी थी ऋतू के ऊपर और जब वो मुझसे चुद रही थी, तब भी उसके ऊपर थी... और अब , जब सभी कुछ साफ़ हो चूका है, और किसी को भी चुदाई से कोई परेशानी नहीं है, तो दादाजी के लंड में फिर से तनाव आने लगा, पहले तो उस सोनी ने अपने फल दिखा कर दादाजी को परेशान कर दिया था और अब उनकी पोती खुद ही उनसे चुदने के लिए तैयार बैठी है...
वो कुछ न बोले, और मेरी और मम्मी की तरफ देखने लगे..
मम्मी : "पिताजी, ये सही कह रही है, अब हमें घर पर किसी से भी कोई पर्दा करने की कोई जरुरत नहीं है, मैं तो आपके बेटे के बारे में पहले से ही जानती थी की उन्हें जब ये सब पता चलेगा तो वो कुछ नहीं कहेंगे... क्योंकि वो कई बार मुझे अपने दोस्तों से चुदवा चुके है...और तो और, आपके दुसरे बेटे, राकेश ने भी मुझे कई बार चोदा है..और इन्होने आपकी दूसरी बहु आरती को भी.."
मम्मी की बात सुनकर दादाजी का मुंह खुला का खुला रह गया...उनके सामने नए-२ राज जो खुल रहे थे.
इसी बीच ऋतू ने अपनी टी शर्ट को उतार दिया और अपनी ब्रा भी खोल कर नीचे गिरा दी..दादाजी की आँखों के सामने ऋतू के चुचे लहलहाने लगे..जिन्हें देखकर किसी के मुंह में भी पानी आ जाए...
ऋतू ने दादाजी का चेहरा अपनी छाती पर दबाया और बोली : "प्लीस दादाजी...चुसो न इन्हें...जब से मैंने आपका वो लम्बा लंड देखा है, मेरी तो हालत ही खराब है, मुझे वो किसी भी कीमत पर चाहिए दादाजी...प्लीस...दोगे न..बोलो दादाजी...दोगे न अपनी ऋतू को अपना लम्बा लंड....."
ऋतू दादाजी का चेहरा अपनी छाती पर रगड़ रही थी और अपनी गांड उनके लंड पर...और उसकी रसीली बातें सुनकर एक दम से दादाजी जैसे फट से पड़े....
दादाजी : "अह्ह्हह्ह......ऋतू.....मेरी बच्ची.....मैंने तुझे अपनी गोद में खिलाया है...और आज तो जवान होकर मेरी गोद में नंगी बैठी है...मैंने इस दिन के बारे में कभी सपने में भी नहीं सोचा था..... पर सच कहूँ तो तेरी नंगी जवानी देखकर मैंने अपने आप पर किस तरह काबू पाया था वहां उस कमरे में...ये मैं ही बता सकता हूँ.....
मुझे था की मुझे बहु की चूत तो मारनी ही पड़ेगी वहां से निकलने के लिए...और वो मैंने मारी भी...पर मेरी आँखों के सामने हमेशा तेरा नंगा शरीर था, जिसे देखकर मेरा मन कई बार डोला...और आज तू खुद ही मुझसे चुदना चाहती है....ऊऊओ .....बेटी.......आज मैं तुझे ऐसे मजे दूंगा की तू भी याद रखेगी..."
मैंने मन ही मन सोचा की ऋतू के लिए इससे अच्छा हो भी क्या सकता है...उसके तो मजे आ गए..
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12-13-2020, 03:02 PM,
RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
उन्होंने ऋतू को किसी फुल की तरह से उठाया और उसकी जींस उतार दी, जींस के साथ उसकी पेंटी भी उतर गयी...और नीचे उसकी नंगी चूत एक बार फिर अपनी आँखों के सामने देखकर दादाजी के मुंह में फिर से पानी आ गया, उन्होंने पानी अपनी हथेली पर निकाला और ऋतू की गीली सी चूत के ऊपर अपनी थूक मलने लगे....
दादाजी के सामने खड़ी हुई ऋतू उनके खुरदुरे हाथ अपनी चूत के ऊपर पाकर लम्बी-२ सिस्कारियां लेने लगी...
"आआआआआह्ह्ह्ह दादाजी......ये क्या.....ये क्या...कर रहे हो.....अह्ह्हह्ह......म्मम्मम्मम " और फिर दादाजी ने अपनी ताकत का प्रदर्शन करते हुए ऋतू की दोनों टांगो को उठाया और उसे किसी खिलोने की भाँती उठाकर अपने मुंह के ऊपर बिठा लिया....और उसकी चूत को बुरी तरह से खाने लगे...
हम सभी दादाजी के इस खुन्कार रूप को देखकर सकते में आ गए..
ऋतू का चेहरा दादाजी की तरफ ही था, उसने दादाजी के सर के बाल पकड़ लिए और अपने पैर उनकी पीठ के ऊपर जमा लिए, वो सिर्फ उनके बालों के सहारे उनके चेहरे पर बैठी थी, दादाजी और मोटी जीभ ऋतू की चूत के अन्दर से सारा नेक्टर पीने में लगी हुई थी....
"अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह दादाजी.....अह्ह्हह्ह......ऊऊऊओ.....मर गयी....अह्ह्हह्ह......म्मम्मम....मैं ....आई.....दादाजी....आःह्ह............ऊऊओ गोड......ऊऊ गोड......ओ गोड.....अह्ह्हह्ह......आई एम् कमिंग......."
और फिर जैसे ऋतू की चूत में से गर्म पानी का बाँध सा टूट पड़ा....और दादाजी के पुरे चेहरे को भिगोता हुआ, उनके पेट से होता हुआ...नीचे आने लगा...
मम्मी और मैं दादाजी और ऋतू की इस शानदार चुदाई को देखकर गर्म होने लगे,,,मैंने अपना लंड बाहर निकाला और उसे हिलाने लगा,
मम्मी ने जब मुझे ऐसा करते देखा तो वो मेरे पास आकर बैठ गयी और अपनी साडी और ब्लाउस को खोलकर नंगी हो गयी, मेरा ध्यान तो दादाजी के ऊपर था, मैंने लंड पर मम्मी के होंठों को महसूस किया तो देखा की वो मेरे सामने नंगी बैठी हुई हैं ...मैंने भी अपने जींस उतार दी और ऊपर से टी शर्ट...अब मम्मी अपने मोटे मुम्मे मेरी टांगों के ऊपर रखकर आराम से मेरे लंड को चूसने लगी...और मैं बैठ कर दादाजी का शो देखने लगा...
झड़ने के बाद ऋतू को दादाजी ने नीचे उतारा और सोफे पर लिटा दिया...वो ऑंखें बंद किये गहरी साँसे ले रही थी, वो शायद आज से पहले इस तरह से नहीं झड़ी थी...
दादाजी ने अपनी लुंगी खोली और फिर अपना कच्छा उतार दिया और वो भी नंगे हो गए...उन्होंने मेरी तरफ देखा और अपनी बहु को अपने ही बेटे यानी मेरा लंड चूसते देखा तो वो भी मुस्कुराने लगे, जैसे अब उन्हें इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता....और फिर उन्होंने अपनी छाती पर लगा ऋतू की चूत का रसीला रस अपने लंड पर मला और सामने लेटी हुई ऋतू की चूत के ऊपर अपना लंड लगाकर एक तेज धक्का मारा....
"आआआआआआह्ह्ह्ह .........ऊऊऊओ दादाजी.........दर्द हो रहा है.....अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह धीरे......धीरे डालो......"
मुझे ऋतू की दर्द भरी चीख सुनकर वो दिन याद आ गया जब मैंने पहली बार उसकी चूत मारी थी...दादाजी का लंड उसकी खेली खायी चूत में जा रहा था...पर उसे आज भी उस दिन जैसा दर्द हो रहा था, इससे आप दादाजी के मोटे लंड का अंदाजा लगा सकते हैं....
दादाजी ने धीरे-2 धक्के मार मारकर अपना लंड ऋतू की चूत में डाला और फिर जब पूरा अन्दर तक समा गया तो उन्होंने धक्को की स्पीड बड़ा दी ...हर धक्के से ऋतू के मुम्मे ऊपर नीचे हिल हिलकर नाच रहे थे...
ऋतू ने उन्हें अपने हाथों से पकड़कर शांत करने की कोशिश करी पर दादाजी ने उसके हाथ हटा दिए, वो ऋतू को चोदते हुए उसके हिलते हुए मुम्मे देखना चाहते थे... ऋतू की चूत में दादाजी का पूरा लंड था, उसे भी अब मजे आने लगे थे....उसकी दर्द भरी चीख अब लम्बी सिस्कारियों में बदल चुकी थी...
अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह......अयीई.....दादाजी....मजा आ रहा है.....अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह.....कितना मोटा है...आपका लंड.....आः.....चोदो मुझे दद्दू....चोदो अपनी ऋतू को.....अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह हान्न्न्न और तेज....ऐसे ही....अह्ह्ह्ह........मेरे अन्दर छोडो अपना रस ....अह्ह्ह्ह...........जल्दी करो....अह्ह्हह्ह......मैं आई.....आःह्ह दादाजी.....अह्ह्ह्ह.....ऊ ऊ हो हो हो हो हो हो हो हो हो ......." और एक तेज हुंकार भरते हुए दादाजी भी ऋतू की चूत में ही झड़ने लगे....और उनके लंड से निकलता प्रेशर अपनी चूत पर पाकर ऋतू भी दोबारा झड़ने लगी...
उनकी चुदाई देखकर मम्मी भी मेरे लंड पर आ बैठी और अगले पांच मिनट तक वो भी मेरे लंड के ऊपर नाच नाचकर अपनी चूत से मेरे लंड को रगडती रही...और अंत में, मेरा रस भी उनकी चूत के अन्दर जाकर वहां से निकलते रस से मिलकर, बाहर आने लगा....
पुरे कमरे में सेक्स की स्मेल आ रही थी....सोनी और अन्नू तो अपना मुंह फाड़े सभी को चुदाई करते हुए देख रही थी... और सोनी..जो दद्दू के लंड को अपने सामने पाकर ये सोच रही थी की वो मालिश के लिए उसे कब बुलाएँगे...
सभी लोग चुदाई से इतने थक गए थे की कपडे पहनने की भी हिम्मत नहीं थी अब..इसलिए हम सभी नंगे ही वहां बैठे रहे ..
दादाजी इस घमासान चुदाई से थक चुके थे, वो उठ कर अपने कमरे में गए , उनके जाते ही सोनी मेरे पास आई और बोली : "ओ बाबु...दो दिनों से सिर्फ कैमरे में से तुम लोगो को नंगा देख रही थी वहां, मेरा तो मन कर रहा था की मैं भी उस कमरे में आ जाऊ पर तुमने अपने पापा और दोस्तों की सेवा में जो लगा रखा था हम दोनों बहनों को...
पर अब सबर नहीं होता मुझसे...आज किसी भी हालत में मुझे दद्दू का घोड़े जैसा लंड चाहिए ही चाहिए...कुछ करो न बाबु... मैं पूरी जिन्दगी तुम्हारी दासी बनकर रहूंगी, जो बोलोगे, वो करुँगी, जिससे कहोगे उससे चुदुंगी...पर मुझे आज दद्दू का लंड दिलवा दो..बड़े साब ने भी कहा था की मैं उनकी मालिश कर दूं, पर ऋतू बेबी ने पहले ही दद्दू का लंड अपनी चुत में पिलवाकर उनका सारा रस निकाल दिया, अब पता नहीं वो चुदाई के लिए कब तैयार होंगे..प्लीस....साब...कुछ करो न.." और सोनी मेरे सामने खड़ी होकर एक हाथ से अपनी चुत और दुसरे से अपनी चूची को मसलने लगी..वो सच में काफी गर्म हो चुकी थी, वो दद्दू का लंड लेने के लिए कुछ भी करने को तैयार थी,
मैंने मन में एक प्लान बनाया, था तो थोडा रिस्की पर सोनी की हालत देखकर मुझे मालुम था की वो मुझे मना नहीं करेगी उस काम के लिए..
और ये सोनी तो ये सोच रही थी की दादाजी की उम्र की वजह से अब उनका लंड पुरे दिन खड़ा ही नहीं होगा या वो अब पता नहीं एकदम से दूसरी चुदाई के लिए तैयार हो भी पाएंगे या नहीं..पर सोनी ये नहीं जानती थी की दादाजी गाँव के रहने वाले हैं, वो दिन में दस चूतें चोद सकते हैं, और अभी तो सिर्फ एक ही हुई थी...
मैं : "ठीक है...मैं दादाजी को मनाता हूँ तुम्हारे लिए, तुम एक काम करना.."
और फिर मैंने उसे आगे का प्लान समझाया की कैसे दादाजी से चुदाई करवानी है..वो समझ गयी और ख़ुशी से उछल कर मुझसे लिपट गयी..और मुझे चूम लिया.
मैं दादाजी के कमरे में गया , वो नहा रहे थे, मैंने सोचा की उनका वेट कर लेता हूँ..मैं बैठा हुआ था की मुझे बाथरूम से दादाजी की हलकी-फुलकी आवाजें आई, मैं दरवाजे के पास गया, वो खुला हुआ था, मैंने धीरे से उसे खोला,
दादाजी अन्दर शावर के नीचे खड़े होकर नहा रहे थे, उनके पुरे बदन पर साबुन लगा था और वही साबुन वो लंड पर भी लगा रहे थे और मुठ मार रहे थे ,साथ ही साथ वो बुदबुदा भी रहे थे...अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह ऋतू.......क्या चुत थी तेरी.....मजा आ गया.....अह्ह्हह्ह.....ओऊ....आह्ह्ह पूर्णिमा (मेरी माँ) .........तेरी चूचियां बड़ी रसीली थी.....अह्ह्ह्हह्ह तेरी चुत की तरह....अह्ह्ह्ह.......आरती (मेरी चाची) तुझे भी चोदुंगा एक दिन....बड़ी मोटी छाती है तेरी भी....साली की गांड में लंड पेलकर उन्हें चुसुंगा ...अह्ह्ह्ह तब पता चलेगा..ऊऊऊ......"
तो दादाजी यहाँ सभी के बारे में सोच सोचकर मुठ मार रहे हैं...मम्मी और ऋतू की तो वो मार ही चुके हैं, अब उनकी नजर आरती चाची के ऊपर है, मुझे पक्का विश्वास था की वो जल्दी ही आरती चाची की चुत मारकर रहेंगे...पर अभी तो मुझे दादाजी से सोनी को चुदवाना है, ताकि वो आगे मेरा काम करने के लिए राजी हो सके... पर इसके लिए मुझे दादाजी को मुठ मारने से रोकना होगा, नहीं तो सोनी अगले एक घंटे तक फिर से तड़पती रहेगी...ये सोचकर मैंने जोर से दादाजी को आवाज लगायी : "दादाजी....दादाजी....कहाँ है आप...."
दादाजी ने हडबडाकर जल्दी से अपने ऊपर पानी डाला और लंड को बड़ी मुश्किल से बिठाकर बाहर निकले..
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12-13-2020, 03:02 PM,
RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
दादाजी : "बोल आशु बेटा...क्या बात है."
मैं : "दादाजी, मैं सोच रहा था की क्यों न मैं भी इस बार आपके साथ गाँव चलूँ, बड़ा टाईम हो गया वहां गए हुए, वो धनिया काका अभी भी आपके खेतों में काम करते हैं ना..उनकी भी काफी याद आती है.."
दादाजी : "अरे सीधा-२ बोल न की तुझे उनकी बेटी रूपा से मिलना है, मुझे सब मालुम है, तुम दोनों सारा दिन खेलते रहते थे, और ये जवानी के खेल हमने भी बहुत खेले हैं, हा हा.."
मैं तो दादाजी से ऐसे ही इधर उधर की बात का बहाना करके सोनी की चुदाई की बात करने आया था, पर दादाजी ने रूपा की बात छेड़कर मुझे अतीत में जाने को मजबूर कर दिया..
रूपा, धनिया काका की बेटी थी, मैं पिछली बार जब उसे मिला था तो मेरी उम्र 16 साल और उसकी शायद मुझसे एक-दो साल कम थी, पर अब तो काफी साल बीत चुके हैं, वो भी बड़ी हो चुकी होगी, हम खेतों में छुपन छुपायी खेलते थे और खेतों की लम्बी झाड़ियों में अक्सर मैं उसे गिराकर कुश्ती जैसा खेल भी खेलता था.., ताकि मुझे उसके गदराये हुए बदन को छुने का मौका मिल सके, इसके अलावा कुछ और नहीं हुआ था हमारे बीच...
वो टाईम कुछ और था, अब कुछ और है, वो भी शायद समझदार हो चुकी होगी और मैं तो आप जानते ही हैं की चुत के नाम से ही मेरे लंड में खुजली होने लगती है..
मैं : "अरे नहीं दादाजी...आप कैसी बात कर रहे है, मुझे तो उसके बारे में कुछ याद भी नहीं है...तीन-चार साल हो चुके हैं मुझे गाँव गए हुए...आप भी न...और हमारे बीच ऐसा कुछ हुआ भी नहीं था, जैसा आप सोच रहे है...आप मुझे नहीं ले जाना चाहते तो बता दो.." और मैंने रूठने का बहाना किया...
दादाजी : "अरे बेटा...मैं तो मजाक कर रहा था...ठीक है, तुम भी चलना मेरे साथ, और रूपा को देखोगे तो तुम उसे पहचान भी नहीं पाओगे, अपने नाम की तरह है वो भी, तुम्हे बड़ा याद करती है वो, चलो जरा उसे भी दिखाओ की शहर के लोंडे का लंड कैसा होता है... और मैं तो कहता हूँ की तुम ऋतू को भी कहो साथ चलने में, मजा आएगा..मेरा भी मन लगा रहेगा...है. हे हे..."
मैं दादाजी की बात का मतलब समझ गया, वो मुझे रूपा के नाम का चारा खिला रहे थे और अपना उल्लू सीधा करने के लिए ऋतू को भी साथ ले जाना चाहते थे..
मैं : "ठीक है दादाजी, मैं चलने के लिए तैयार हूँ, और ऋतू भी शायद मना नहीं करेगी, पर अभी के लिए आपके लिए मेरे पास एक और काम है.."
दादाजी : कैसा काम ?
मैं : चुदाई का..
दादाजी चुदाई का नाम सुनते ही खिल उठे, उनके लंड ने फिर से अंगडाई लेनी शुरू कर दी..
दादाजी : "बोल बेटा, किसको चोदना है, अब जब मेरा शेर दस साल के बाद खड़ा हो ही गया है तो इसे हर पल सिर्फ चूत ही दिखाई देती है..."
मैं : "वो आपने देखा न बाहर हमारी नौकरानी को, सोनी, उसको...वो तो आपके लंड को देखकर कब से तड़प रही है, और पापा ने जब से उसे आपकी मालिश करने को कहा है वो यही इन्तजार कर रही है की कब आप उसे बुलाये और कब वो आकर आपसे चुदे.."
दादाजी : "अरे, पागल है क्या, वो तो काफी छोटी लगती है, बेचारी मेरा लंड ले भी नहीं पाएगी.."
मैं : "अरे दादाजी, उसकी आप फिकर मत करो, वो जैसी दिखाई देती है, वैसी है नहीं, उसकी चूत में इतनी जगह है की वो हम दोनों का एक साथ ले सकती है..."
दादाजी : "तो ठीक है, बुला उसको.."
मैंने सोनी को आवाज दी, वो अन्दर आई, उसके हाथ में तेल की शीशी थी..
मैं : "सोनी, देख दादाजी थोडा थक गए हैं, उनकी अच्छी तरह से मालिश कर दे.."
दादाजी सामने लेट गए उन्होंने अपने सारे कपडे उतार दिए, जैसा की मैंने उन्हें कहा था, क्योंकि अब ज्यादा देर तक रुकने का न ही उनका मन था और न ही सोनी रुक पाती..
सोनी ने जब दादाजी को नंगे लेटे हुए देखा तो उसके होश ही उड़ गए, उसके सामने दादाजी का क़ुतुब मीनार अपने पुरे शबाब में खड़ा हुआ था..सोनी ने कांपते हाथों से अपने हाथ में तेल डाला और और दादाजी की छाती पर लगाने लगी.
मैं : "अरे सोनी, तेरे कपडे खराब हो जायेंगे, इन्हें उतार दे.."
सोनी (शर्माते हुए) : "पर बाबु मैंने नीचे कुछ नहीं पहना हुआ "
मैं : "अरे तो क्या हुआ, दादाजी अपने ही तो है, कोई बात नहीं, उतार दे."
और फिर सोनी ने अपने सारे कपडे उतार कर एक तरफ रख दिए.
दादाजी तो नंगी होती सोनी को देखते हुए अपनी मुठ ही मारने लगे.
सोनी की चूत टप टप बह रही थी, दादाजी के लंड के बारे में सोचकर..
उसने जैसे ही दादाजी को फिर से छाती पर तेल लगाना चाहा तो उन्होंने उसे रोक दिया..और कहा : "अरी, मेरे तो लंड के ऊपर लगा ये तेल, कल से काफी वर्जिश कर रहा है ये.."
सोनी ने शर्माते हुए उनके लंड के ऊपर तेल लगाना शुरू कर दिया..अपने हाथों में उस मोटे लंड की गर्माहट पाकर वो अपने आप को रोक नहीं पा रही थी..और दादाजी के साथ वो लगभग, अपने मुम्मो को उनपर रगड़ते हुए, लेटी सी हुई थी...
दादाजी ने सोनी की टांगो को अपनी तरफ खींचा और उसकी चूत में एक ऊँगली दाल दी..
"आःह्ह्ह दद्दू......क्या करते हो...."
सोनी की चूत में से इतना पानी निकल रहा था की बेड के ऊपर भी गिला धब्बा सा बन गया था..
दादाजी ने भी अपने हाथ में ढेर सारा तेल निकाला और सोनी की चूत के अन्दर तक ऊँगली डालकर उसकी गीली चूत को तेल पिलाने लगे..सोनी भी दादाजी के लंड को तेल पिला रही थी..
मैं सोफे पर टेक लगाकर आराम से उनकी चुदाई की तय्यारी को देख रहा था.
दादाजी : "अरे सोनी बेटा, तू कब तक अपने हाथों से मेरे लंड की मालिश करेगी, तू थक जायेगी...ऐसा कर मैंने तेरी चूत के अन्दर काफी तेल डाल दिया है, तू इसे मेरे लंड के चारों तरफ लपेट दे और फिर इससे मालिश कर, ठीक है न बेटा.."
सोनी (मन ही मन खुश होते हुए) : "ठीक है दादाजी.."
और फिर वो लेटे हुए दादाजी के ऊपर सवार हो गयी और अपनी तेल और रस के मिश्रण से लबालब चूत को उनके लंड के ऊपर लाकर टिका दिया.. मैं सोनी के पीछे की तरफ बैठा था..और उस एंगल से ऐसे लग रहा था की सोनी किसी लम्बे से डंडे के ऊपर बैठने का करतब दिखा रही है..
दादाजी ने सोनी के मोटे ताजे मुम्मो को दबाया और उन्हें पकड़ कर नीचे खींच दिया, उनका दबाव इतना तेज था की सोनी का पूरा शरीर नीचे की तरफ आता चला गया और उसकी चूत में दादाजी का मोटा लंड, सरसों के तेल में सना हुआ, उसकी चूत को ककड़ी की तरह चीरता हुआ अन्दर तक चलता चला गया... "आआआआह्ह अय्य्यिओईई ऊऊऊह....मर्र्र्रर....गयी.....रे.....दद्दू..... लंड है या.... मोटा डंडा...... अह्ह्ह्हह्ह...... बड़ा दर्द हो रहा है.... ऊऊऊओ .....मम्मी..........."

उसकी हालत देखकर मुझे भी तरस आ गया, अभी कुछ ही दिन पहले मैंने ही उसकी चूत को फाड़ा था तब भी उसे इतना ही दर्द हुआ था, पर उसके बाद कई लंडो से चुदने के बाद आज जब दादाजी ने अपना लंड डाला तो उसे फिर से दर्द होने लगा, दादाजी का लंड था ही इतना मोटा...
उसकी मोटी गांड धीरे से आकर दादाजी की जांघों पर लेंड कर गयी....दादाजी ने अपना पूरा मुसल उसकी कमसिन सी चूत में उतार दिया था...उसकी आँखों से आंसू भी निकल रहे थे...
दादाजी ने उसे अपने ऊपर झुका लिया और उसके होंठ चूसने लगे..अब उसकी चूत में घुसा हुआ लंड मुझे साफ़ दिखाई दे रहा था..और मैंने जब ध्यान दिया तो उसकी चूत में से भी खून निकल रहा था, जो दादाजी के दोनों टांगो के बीच में गिर रहा था...बेचारी की चूत फट गयी थी...
थोड़ी ही देर में दादाजी ने उसकी चूत में हलके धक्के देने शुरू कर दिए..
पहले तो वो लेटी रही और फिर वो भी उनका साथ देने लगी, अब उसे भी मजा आने लगा था..
"अह्ह्ह्ह दद्दू...क्या चीज है...मजा आ गया....जितना मोटा...उतना ही खरा....अह्ह्ह्हह्ह.....चोदो मुझे.....और तेज चोदो......अह्ह्ह्ह.......दाल दो....फाड़ दो मेरी चूत आज.... ह्ह्ह्हह्ह...... ओह्ह्ह्ह..... म्मम्म......यो ..... मैं तो आई....आयी.....ई............" और ये कहते हुए उसने बाल्टी भर कर अपना रस बाहर की तरफ फेंक दिया..
पर दादाजी तो किसी हब्शी की तरह उसे चोदने में लगे हुए थे, वैसे भी वो अभी थोड़ी देर पहले ही झडे थे, वो उसे चोदते रहे और सोनी ना जाने कितनी बार झड गयी दादाजी के लंड की सवारी करते हुए...
और अंत में दादाजी ने उसकी चूत में अपने लंड से होली खेलनी शुरू की तो उनकी पिचकारी से पानी ख़तम होने का नाम ही नहीं ले रहा था...सारा माल बहकर उनकी टांगो पर वापिस गिर रहा था..
और जब सोनी उनके ऊपर से उठी तो चद्दर के ऊपर का गीलापन देखकर वो भी शर्मा गयी की कितना बही है आज उसकी चूत... वो उठी और बाथरूम में जाकर साफ़ होने लगी, दादाजी भी साफ़ सुथरे होकर मेरे पास आकर बैठ गए, उसके बाद सोनी ने चद्दर को उतारा और ठीक किया और कपडे पहनकर वो वापिस बाहर चली गयी.
मैं और दादाजी गाँव जाने की योजना बनाने लगे..
*****
सोनी जब बाहर गयी तो उससे सही तरह से चला भी नहीं जा रहा था, उसकी टेढी चाल देखकर उसकी बहन अन्नू दौड़ कर उसके पास आई और उससे बोली "अरे सोनी, लगता है आज तेरी चूत अच्छी तरह से ली है दद्दू ने, बता न, कैसा लगा उनका लंड तेरी चूत में...बता ना..तेरी चीखों की आवाजें तो बाहर तक आ रही थी, लगता है आज उन्होंने तेरी अच्छी तरह से मारी है.."
सोनी (मंद मंद मुस्कुराते हुए) : "यार अन्नू, लंड से इतने मजे आते हैं, ये मुझे आज सही मायनो में पता चला, दद्दू तो कमाल के हैं, उनके लंड ने तो मेरी चूत के धागे खोल दिए,
पता है, आज मेरी चूत से फिर से खून निकला, मैंने तो सुना था की पहली बार में ही ऐसा होता है, पर दद्दू का लंड आज मेरी चूत की गुफा के उस कोने तक भी गया , जहाँ कोई और नहीं जा सका था अभी तक, शायद इसलिए वहां तक जाने में जो लंड ने जगह बनायीं थी, उसका ही खून था वो...पर मजा बहुत आया, मैं तो कहती हूँ की तू भी चुदवा ले दद्दू के लंड से.."
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12-13-2020, 03:02 PM,
RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
अन्नू मुंह फाड़े अपनी छोटी बहन की बातें सुनती जा रही थी, उसकी चूत में से खड़े-२ ही पानी टपकने लगा था, दद्दू के लंड के बारे में सोचकर, और उस कमीनी ने अन्दर कच्ची भी नहीं पहनी हुई थी, इसलिए उसका रस टप-२ करके बूंदों के रूप में सीधा नीचे जमीं पर गिर रहा था, उसके घाघरे में से..
सोनी : "पर अभी तो दद्दू थक गए हैं, उनके लिए खाना भी बनाना है, तू एक काम कर अभी सबके लिए खाना बना, मैं घर की सफाई कर लेती हूँ, फिर शाम को मैं छोटे साब से कहकर तुझे भी दद्दू के लंड के कारनामे दिखा दूंगी..."
अन्नू ने झट से अपनी बहन को गले से लगा लिया और उसके होंठों को चूम लिया, आज पहली बार ऐसा हुआ था की सोनी के होंठों को किसी लड़की ने चूमा था और वो भी उसकी सगी बहन ने... पर उसे मजा बहुत ही आया, वैसे वो अभी-२ चुदवा कर आई थी पर अन्नू ने जब उसके होंठो को चुसना शुरू किया और अपनी चूत वाले हिस्से को उसकी चूत के ऊपर से गर्मी देनी शुरू की तो उसे भी मजा आने लगा..तभी पीछे से मम्मी की आवाज आई "ये क्या हो रहा है..."
दोनों घबरा कर अलग हो गयी, मम्मी उनके पास आई और सोनी की आँखों में देखकर बोली : " तेरी आवाजें तो अभी थोड़ी देर पहले ही अन्दर से आ रही थी, और बाहर आते ही तेरी चूत में फिर से खुजली होने लगी..हूँ.."
और फिर वो अन्नू की तरफ मुड़ी और बोली : "और तुझे भी मेरे ससुर का मुसल चाहिए लगता है, अब सिर्फ तू ही बची है इस घर में जिसने उनसे नहीं चुदवाया...तू एक काम कर, खाना बनाने के बाद तू मेरे कमरे में आना , मैं इंतजाम करती हूँ तुझे दद्दू के लंड से चुदवाने का.."
अन्नू के चेहरे पर पहले तो डर के भाव थे पर मम्मी की बात सुनकर वो फूली न समायी और भाग कर किचन में गयी और खाना बनाने लगी, सोनी भी झाड़ू पोछा लगाने में लग गयी..
मैं जब बाहर आया तो खाना लग चूका था, मैंने दादाजी को आवाज लगायी और उन्हें बाहर आकर खाने को कहा, ऋतू भी आकर बैठ गयी और हम सभी ने मिलकर खाना खाया, आज अन्नू ने खाना काफी स्वादिष्ट बनाया था, दादाजी ने उसकी बड़ी तारीफ की..
खाना खाने के बाद जैसा मम्मी ने कहा था, अन्नू और सोनी उनके कमरे में गयी..उन दोनों को एक साथ मम्मी के कमरे में जाते देखकर मेरा भी माथा ठनका, मैंने ऋतू को इशारा किया और हम दोनों छुपकर उन्हें खिड़की से देखने लगे..
मम्मी अन्दर बेड के ऊपर जाकर लेट गयी.
मम्मी : "सुन अन्नू, तेरी दद्दू के लंड से चुदने की इच्छा तो मैं पूरी करवा दूंगी, इसके लिए तुम दोनों बहनों को मेरी अच्छी तरह से सेवा करनी होगी...और जो मैं कहूँगी वो करना होगा.."
उन दोनों को समझ तो आ ही गया था की मम्मी उनसे क्या चाहती है, पर फिर भी वो उनके मुंह से सुनना चाहती थी.
मम्मी ने अन्नू को इशारा करके अपने पास बुलाया और सीधा उसकी चूत वाले हिस्से पर हाथ रख दिया.. आआह्ह्ह्ह ...... ऊऊऊओ ........म्मम्म ......
अन्नू की तो चीख ही निकल गयी पर मम्मी ने जब घाघरे के ऊपर से ही उसकी चूत के अन्दर ऊँगली डालने की कोशिश की तो वोही चीख सिस्कारियों में बदलती चली गयी..
मम्मी ने जब महसूस किया की उसने अन्दर चड्डी नहीं पहनी हुई है तो वो बोली : "साली कुतिया...यहाँ तुझे चूत मरवाने की इतनी आदत बन चुकी है की अन्दर कच्छी भी नहीं पहनी...साली रंडी की औलाद...उतार अपना ये भांग भोंसडा ...नंगी होकर खड़ी हो जा मेरे सामने..."
मैं और ऋतू मम्मी का ये रूप देखकर हैरान रह गए, मम्मी तो जानती थी की इन दोनों बहनों को मैंने और पापा ने कितना चोदा है, और कई बार तो मम्मी के सामने भी, और मम्मी जो भी उनसे करवाना चाहती है, वो अगर प्यार से भी कहे तो वो दोनों मना नहीं करेंगी, पर अभी वो जिस तरह से उन दोनों पर अपना रोब चला कर और गालियां देकर बात कर रही थी, ऐसा तो मैंने उनसे कभी एक्स्पेक्ट ही नहीं किया था, पता नहीं मम्मी आज किस मूड में थी, शायद डोमिनेट करने वाले मुड में...
पर जो भी था, उनका ये रूप देखकर मुझे और ऋतू को बड़ा मजा आ रहा था...और शायद अन्दर खड़ी हुई उन दोनों बहनों को भी आ रहा होगा.. मम्मी के कहने पर अन्नू ने अपना घाघरा उतार दिया ..
मम्मी : "और ये ऊपर वाले कपडे क्या तेरा बाप आकर उतरेगा हरामजादी....खोल इसे भी और नंगी खड़ी हो जा यहाँ..."
अन्नू को शायद डर लग रहा था मम्मी के इस रूप को देखकर, उसने कांपते हाथों से अपना ब्लाउस और ब्रा भी निकाल दिए और नंगी खड़ी हो गयी...
मम्मी (सोनी की तरफ देखकर) : "और तेरे लिए क्या मोहल्ले वालों को बुलाऊ ...जो अन्दर आकर तुझे नंगा करेंगे साली कुतिया..उतार तू भी और यहाँ आकर नंगी खड़ी हो जा.."
सोनी को मम्मी के इस रूप को देखकर शायद मजा आ रहा था, उसने मुस्कुराते हुए अपने सारे कपडे उतार दिए और अब वो दोनों बहने एक साथ नंगी खड़ी थी महारानी यानी हमारी मम्मी के सामने किसी दासी की तरह..
मम्मी ने उन दोनों के शरीर को ऊपर से नीचे तक घुरा और सोनी से बोली : "जा उधर अलमारी से मेरा वो डब्बा निकाल कर ला.."
वो ले आई, मैंने वो डब्बा पहली बार देखा था, मम्मी ने उसे बेड पर रखवाया और उसे खोला...उसके अन्दर हाथ डाला और एक लम्बा सा रबड़ का लंड निकला, काले रंग का.. तब मैं और बाकी सब समझे की ये तो उनका खजाना है, जिसमे उन्होंने तरह-२ के डिल्डो रखे हुए हैं...
मम्मी : "सुन रंडी...तेरी चूत के अन्दर मैं ये नकली लंड डालकर देखूंगी...और तब बताउंगी की तू मेरे ससुर का लंड लेने में सक्षम है या नहीं..."
अन्नू ने डरते हुए सर हिलाया..उसे तो मोटे और काले रंग के डिल्डो को देखकर पसीना आ रहा था..
मम्मी : "पर उससे पहले तुम दोनों आओ और मुझे मजा दो..चलो जल्दी से..."
मम्मी की बात सुनकर वो दोनों बहने ऊपर आई और एक एक करके मम्मी के सारे कपडे उतार कर नीचे रख दिए, अब मम्मी का खुबसूरत जिस्म अपने पुरे शबाब पर कमरे में उन दोनों के नंगे शरीर से कम्पीटीशन कर रहा था, उन दोनों के काले शरीर के आगे, मम्मी का दुधिया बदन अलग ही लग रहा था...और उसमे से आती खुश्बू भी बड़ी मादक सी थी...मम्मी ने इशारा किया और अन्नू ने मम्मी की चूत के ऊपर मुंह लगा दिया...और सोनी ने उनके एक निप्पल को मुंह में भरकर चुसना शुरू कर दिया...
"अह्ह्ह्हह्ह ..... म्मम्मम्मम ...मजा आ गया.....चुसो....साली...रंडियों......चुसो अच्छी तरह से...अपनी मालकिन को आज तुम दोनों खुश कर दो....तभी तुम्हे भी लंड की ख़ुशी मिलेगी.....अह्ह्हह्ह हाण ऐसे ही.....ऊऊओ मेरी बच्ची......अह्ह्ह .....मम्म..."
उस बेड पर उन तीनो के नंगे जिस्म देखकर मेरा तो लंड फटने को हो गया...मैंने ऋतू को देखा, उसकी भी हालत बड़ी खराब थी...
ये कोई पहला मौका नहीं था जब हम दोनों छुपकर किसी के कमरे में देख रहे थे...हर बार की तरह हम दोनों आज भी गर्म हो चुके थे, मैंने इशारा किया और ऋतू ने अपनी जींस और टॉप एक ही झटके में उतार दिए और नंगी हो गयी, और मुझे भी अपने कपडे उतारने में ज्यादा समय नहीं लगा...
अब हम दोनों खिड़की पर खड़े हुए अन्दर का नजारा देख रहे थे, ऋतू मेरे आगे आकर खड़ी हो चुकी थी और उसने हाथ पीछे करके मेरे लंड को होले-२ दबाना शुरू कर दिया और मैंने हाथ आगे करके उसके रसीले आमों को अपने हाथों से तोलना शुरू कर दिया...
मम्मी तो सच में अपने को किसी महारानी से कम नहीं समझ रही थी, उन दोनों दासियों से अपनी चूत की और छाती की मालिश करवाते हुए वो बेड पर मछली की तरह तड़प रही थी...
फिर वो उठ कर बैठ गयी और सोनी को नीचे लेटने को कहा..सोनी के लेटते ही वो उसके मुंह के ऊपर , उसकी टांगो की तरफ मुंह करके, अपनी गांड के छेद के बल आ बैठी और उसे बोली : "चल छिनाल , शुरू हो जा, मेरी गांड के छेद को अपनी जीभ से चाट और उसे अन्दर तक चाट-कर साफ़ कर..."
सोनी बुरा सा मुंह बनती हुई मम्मी की बात का पालन करने लगी...और फिर उन्होंने अन्नू को बुलाया और उसे सोनी के ऊपर ही लेटने को कहा जिससे उसका मुंह उनकी चूत के ऊपर आ लगा, और उसे भी अपनी चूत को चाटने के लिए कहा..
अब नीचे लेटी हुई सोनी मम्मी की गांड को चाट रही थी और उसके ऊपर लेती हुई अन्नू मम्मी की चूत का रस पी रही थी...ऐसा आसन तो मैंने पहली बार देखा था...पर मम्मी के दोनों छेदों पर लगे उन दोनों के गीले होंठों के स्पर्श के एहसास को सोचते ही ऋतू की चूत में से तो रस की धारा सी बहने लगी...
उसने भी शायद सोच लिया था की जैसे ही उसे मौका मिलेगा, वो भी उन दोनों बहनों से अपनी चूत और गांड , इसी तरह से चुस्वाएगी...ये सोचते हुए वो अपनी गांड को मेरे लंड के ऊपर बुरी तरह से रगड़ने लगी थी...
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12-13-2020, 03:02 PM,
RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
अन्दर सोनी के मुंह पर बैठी हुई महारानी पूर्णिमा के तो ठाठ ही निराले थे, वो मजे भी ले रही थी और उन दोनों को गालियां भी देती जा रही थी...
"आआअह्ह्ह्ह......चुसो....मेरी चूत और गांड...भेन की लोडियों...तुम्हारी माँ की चूत.... साली अपने मुंह में बाप का लंड लेकर आई हो क्या....और तेज चुसो...अह्ह्ह......पूरा मुंह खोलकर खा जाओ आज मेरी गांड और चूत को....
साली, गटर की पैदाईश....देखो कितनी सुन्दर चूत चूसने को मिल रही है तुम्हे यहाँ....अह्ह्हह्ह....चुसो इसे....खा जाओ...और तेज कर....और तेज....अह्ह्ह......"
मम्मी के दोनों छेदों पर होते हमले और भी ताकतवर होते जा रहे थे...उन्होंने नीचे लेटी हुई सोनी के बारे में ये भी नहीं सोचा की उनकी फेली हुई गद्देदार गांड से उसका दम ही न घुट जाए और उसके ऊपर लेटी हुई अन्नू के बालों को वो इतनी बुरी तरह से पकड़कर उसका चेहरा अपनी चूत पर रगड़ रही थी की उसके कुछ बाल तो शायद टूट ही गए थे उनके हिंसक प्रहार से... पर वो दोनों मम्मी के सामने कुछ नहीं बोल पा रही थी...एक तो वो मालकिन थी और दूसरा दद्दू के लंड को लेने का लालच भी...
ऋतू ने मेरे लंड को अपनी गांड के छेद पर लगाया और पीछे की तरफ एक जोर से धक्का दिया और अगले ही पल मेरा पूरा लंड सुरसुराता हुआ उसकी गांड की तंग सी गली में अन्दर तक समां गया..
"अह्ह्हह्ह्ह्ह........ऊऊऊ.......ऊऊऊओ .......भाई.........मारो....मेरी गांड को..."
मैंने उसकी गांड के दोनों हिस्से पर अपने हाथ रखे और अन्दर देखते हुए उसकी गांड को मारना शुरू कर दिया... अन्दर तो जैसे मम्मी उन दोनों की जान लेने में लगी हुई थी....
मम्मी ने जिस तरह से बेदर्दी से अन्नू के बाल पकडे हुए थे उसकी आँखों से आंसू निकलने लगे थे...
"अह्ह्हह्ह .....बीबीजी.......दर्द हो रहा है.....बाल छोड़ दो....अह्ह्हह्ह......."
मम्मी : "चुप कर साली.....तुझे बोलने को किसने कहा....तू मेरी चूत को चूस और अपनी जीभ अन्दर तक डाल....अह्ह्ह्हह्ह हाँ.....ऐसे ही.....और मेरे दाने को भी चूस अच्छी तरह से...ऊऊऊओ कमीनी.....हरामखोर....दांत मत मार....कुतिया की औलाद....जीभ और होंठों से ही चूस बस....अह्ह्हह्ह्ह्ह.......म्मम्मम......"
मम्मी के इस डोमीनेटिंग रवय्ये को देखकर तो मुझे भी एक बार डर सा लगने लगा...मैं सोचने लगा की अगर कभी मम्मी का मूड हुआ तो शायद मुझे और पापा को भी वो इसी तरह से अपने सामने पालतू कुत्ते की तरह हमारी ऐसी तेसी कर देगी...ये सोचते ही मेरे बदन में सिहरन सो दौड़ गयी...
मम्मी की चूत को लगातार चूसने की वजह से वो झड़ने के काफी करीब आ गयी थी...उन्होंने अपनी चूत और गांड को उन दोनों बेचारियों के मुंह पर और तेजी से रगड़ना शुरू कर दिया....
"अह्ह्हह्ह्ह्ह .........चुसो....अह्ह्ह्ह......मेरी चूत और गांड को और तेज चुसो.... अह्ह्ह्ह...... म्मम्मम्म...... ऊऊह्ह्ह. .....गोड.... अह्ह्ह...... ऊऊ य़ा........ ओऊ य़ा......फक फक फक फक......मम्म.....आई एम् कमिंग.....अह्ह्हह्ह्ह्ह ...ऊऊऊ..."
और फिर जो झरना मम्मी की चूत में से बहना शुरू हुआ, उसे देखकर तो मैं और ऋतू भी हैरान रह गए...इतना पानी निकला उनकी चूत में से मानो अन्दर कोई गुब्बारा फट गया हो....
वो लम्बी -२ सिस्कारियां लेती जा रही थी और उन दोनों के मुंह को अपनी चूत और गांड पर दबाकर उन्हें अपना अमृत पान कराती चली जा रही थी...
उन दोनों के ऊपर से उठने के बाद जब मैंने अन्नू और सोनी के चेहरे देखे तो दंग रह गया, उनके पुरे चेहरे पर मम्मी के रस का गीलापन और उन दोनों की आँखों में लगे काजल के बाहर आ जाने की वजह से उन दोनों का चेहरा बड़ा भयानक सा हो गया था,
काले रंग की लकीरें सी खिंच गयी थी उन दोनों के चेहरे पर...और वो दोनों बड़ी मुश्किल से सांस ले पा रही थी....उनकी हालत देखकर मुझे उन दोनों पर बड़ा तरस आ गया...
मैंने भी ऋतू की गांड में अपनी गति को तेज कर दिया....और ऋतू ने अपने सामने की खिड़की के जंगले को अपने हाथों से जोरों से पकड़ कर जोरों से चीखना शुरू कर दिया...
"आःह्ह्ह भाई....ऊऊऊ......माआअ.........चोदो.....और तेज.....अह्ह्ह्ह..........और अन्दर तक डालो....अपना लंड....अह्ह्ह्ह......."
उसकी आवाज सुनकर अन्दर लेटी हुई उन तीनो ने जब खिड़की की तरफ देखा तो वो सब समझ गयी और मम्मी ने मुस्कुराते हुए हम दोनों भाई बहन की गांड मराई को वहीँ से देखना शुरू कर दिया..
मेरे झटकों से ऋतू की हालत पतली होती जा रही थी, वो अपनी चूत के अन्दर अपनी चार उँगलियाँ डाले उसे बुरी तरह से रगड़ रही थी...
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12-13-2020, 03:02 PM,
RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
मेरे झटकों से ऋतू की हालत पतली होती जा रही थी, वो अपनी चूत के अन्दर अपनी चार उँगलियाँ डाले उसे बुरी तरह से रगड़ रही थी...
जल्दी ही मेरी मेहनत और ऋतू की रगडाहट रंग लायी और उसने अपनी चूत के अन्दर से लावा उगलना शुरू कर दिया...मैंने भी अपना दूध उसकी गांड के तालाब में भर दिया...
"आआआआह्ह्ह्ह ,,,,,भाई .......ऊऊओ .....मम्मी........अह्ह्ह्ह......मजा आ गया......अह्ह्ह्ह......"
मम्मी ने जब देखा की उनकी लाडली झड चुकी है तो उन्होंने इशारा करके हम दोनों को अन्दर आने को कहा...
हम अन्दर चले गए..
मम्मी : "तुम दोनों को बाहर खड़ा होने की क्या जरुरत थी...तुम्हे अगर मेरा ये खेल देखना ही था तो अन्दर आ जाते..तुम दोनों से क्या पर्दा...."
मैं और ऋतू मम्मी की बात को सुनकर मुस्कुराने लगे...
मम्मी : "चलो अब वहां सोफे पर बैठ जाओ...क्योंकि असली खेल तो अब शुरू होगा...इन दोनों रंडियों के साथ..."
मम्मी ने ये बात अपने दांतों को चबाते हुए कुछ इस अंदाज में कही थी की मुझे और उन दोनों के शरीर में फिर से एक सिहरन सी दौड़ गयी...
मम्मी ने बेड पर पड़ा हुआ वो बड़ा वाला काला डिल्डो उठाया और अपनी गीली चूत के ऊपर रगड़ने लगी...और फिर उसे चाटने भी लगी...
ऐसा करते हुए वो किसी ब्लू फिल्मो की हिरोईन लग रही थी..वो रबर का लम्बा और काला लंड उनके हाथ में थिरकन के साथ हिल रहा था और उसके ऊपर चमकती हुई प्लास्टिक की नसे इतनी ज्यादा थी की अगर किसी की चूत में जाए तो अन्दर जाकर चूत की दीवारों पर उनसे होने वाली रगड़ाई का एहसास कैसा होगा ये मैं सोचकर ही घबराने लगा..क्योंकि एक तो उस रबर के डिल्डो की मोटाई भी लगभग 6 इंच थी जो मेरे, पापा और दादाजी के लंड से भी कही ज्यादा थी और उपर से उसपर नसे भी काफी थी, जिससे चूत के अन्दर काफी मुश्किलें पैदा होने वाली थी..
मम्मी ने अन्नू को अपने पास बुलाया और बोली : "तो तू दादाजी का लंड लेना चाहती है..."
अन्नू : "जी...जी बीबीजी.."
मम्मी : "उसके लिए मुझे तेरी चूत को तैयार करना पड़ेगा...चल जाकर वो तेल की शीशी उठा ला."
अन्नू जाकर कोने में रखी तेल की शीशी उठा लायी.
मम्मी ने उसका ढक्कन खोलकर तेल की धार लंड के ऊपर गिरानी शुरू कर दी...जो उसके ऊपर से बहता हुआ नीचे जमीन पर गिरने लगा... मम्मी ने फिर हाथ से पुरे डिल्डो पर अच्छी तरह से तेल लगा दिया और अब तेल लगने की वजह से वो काला लंड और भी ज्यादा चमकने लगा.
अन्नू की तो हालत खराब होने लगी..वो शायद ऋतू और सोनी से ज्यादा चुद चुकी थी पर आज से पहले उसने इतना बड़ा लंड या इतनी मोटी कोई भी चीज अपनी चूत में नहीं ली थी जैसी ये थी..
मम्मी ने उसे बेड पर लेटने को कहा...सोनी और ऋतू उठ कर उसके पास जाकर बैठ गए, मैं भी उठकर बेड के पास जाकर खड़ा हो गया, मेरा लंड सोनी की नंगी पीठ को छु रहा था..
मम्मी ने अन्नू की टाँगे चौड़ी की और उसकी चूत के होंठ खोलकर उसके ऊपर लंड को टिकाया..मैंने देखा की अन्नू की टाँगे कांप रही थी आने वाले पल की कल्पना से..
अन्नू : "बीबीजी...थोडा धीरे..दाआआआआआअल्ल्ल्ल .......आआआआअह्ह्ह्ह ह्ह्ह्हह्ह ऊऊऊग माआआ माआर्र्र्र गयी.......अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह " वो अपनी बात पूरी भी ना कर पायी थी की मम्मी ने अपनी हथेली का तेज धक्का मारकर वो डिल्डो उसकी चूत में धकेल दिया...अन्नू की टांगो को मम्मी और ऋतू ने दोनों तरफ से पकड़ा हुआ था, इसलिए वो उन्हें खींच भी नहीं पायी.. दर्द इतना था की उसके मुंह से आवाज निकलनी ही बंद हो गयी और उसकी दोनों आँखों से आंसू झर-२ बहने लगे..
मम्मी ने उसे थोडा बाहर खींचा और एक और तेज धक्का मारा....इस बार तो अन्नू उठ कर बैठ गयी....और सामने बैठी हुई अपनी बहन को भींच लिया अपनी बाँहों में...
मम्मी तब भी रुकी नहीं और एक के बाद एक कई बार धक्के मार मारकर वो काला लंड जबरदस्ती उसकी चूत के अन्दर तक पहुंचा दिया...उसकी चूत के दूसरी तरफ की दिवार से ठोकर लगी तब मम्मी ने उसे और अन्दर धकेलना बंद किया .. पर अभी भी वो लगभग 8 इंच के आसपास बाहर ही था..और लगभग उतना ही अन्दर..पर लंड की मोटाई ज्यादा होने की वजह से अन्नू को ज्यादा तकलीफ हो रही थी..
"अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह ऊऊऊओ मार डाला.....अह्ह्ह्हह्ह सोनी......दीदी......निकालो.....इसे बाहर....अह्ह्ह्ह.......मेरी चूत फट गयी रे.....अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह " वो किसी बच्चे की तरह से रो रही थी..
अचानक सोनी पलटी और मेरी तरफ घूमकर मेरे लंड को हाथ में पकड़ा और अन्नू के मुंह में डाल दिया...
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