Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
12-13-2020, 03:02 PM,
RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
मेरी तो कुछ समझ नहीं आया पर जब अन्नू मेरे लंड को लोलीपोप की तरह से चूसकर चुप हो गयी तो मैंने जाना की सोनी ने अपनी छोटी बहन को चुप करने के लिए चुपा दिया है...ताकि वो ज्यादा चीखे ना.
मेरा क्या है...मुझे तो मजा आने लगा था..
मम्मी ने वो पूरा लंड एक दम से बाहर निकाल लिया, उसके सिरे पर खून लगा हुआ था, यानी वो अन्दर तक जाकर नए हिस्से को ड्रिल करके आया था...
मम्मी : "अब ठीक है, पापाजी का लंड अब तेरी चूत में आसानी से चला जाएगा..." और वो फिर से उसपर तेल लगाकर उसे अन्दर बाहर करने लगी...
फिर मम्मी ने उसे उठाकर कोने में रख दिया..और डब्बे में से हाथ डालकर एक और डिल्डो निकाला...
उसे देखते ही अन्नू फिर से चिल्लाने लगी..: " नहीं बीबीजी...ये नहीं....ये तो और भी मोटा है...ये नहीं जाएगा अन्दर..." और सच में वो काफी मोटा था..पहले वाले से भी ज्यादा मोटा पर साईज में छोटा और उसके ऊपर दाने दाने से बने हुए थे ताकि चूत के अन्दर जाकर वो मसाज भी करते रहे..
मम्मी : "तू क्यों चिल्ला रही है...ये तो इस रंडी..सोनी के लिए है..."
सोनी (हकलाते हुए) : "मेरे ..मेरे लिए...क्यों...?
मम्मी (खुन्कार हंसी हँसते हुए) : "वो इसलिए हरामजादी की तुने तो दद्दू का लंड ले ही लिया है...और अब इस काले डिल्डो से तेरा कुछ होगा नहीं...तेरी चूत की आग तो अब ये शेर का बच्चा ही बुझाएगा....चल लेट जा अब तू भी..."
मम्मी की आवाज में इतनी ऑथोरिटी थी की सोनी चू भी ना कर सकी और चुपचाप अपनी बहन की बगल में लेट गयी...
मम्मी ने तेल इस बार सीधा सोनी की चूत में डाला और लंड के सिरे पर मलकर उसे उसकी चूत पर टिकाया...अपनी बहन की तरह उसकी आँखें भी भय के मारे फेल सी गयी और मम्मी ने इस बार भी बिना कोई चेतावनी के उसकी चूत के अन्दर तेज धक्का मारा तो सोनी के तो तोते उड़ गए...
उसकी मोटी छाती इतनी जोर से ऊपर तक आई मानो दो पेराशूट ऊपर की तरफ उड़ने जा रहे हो..और उसकी हलक से निकली चीख पुरे घर में गूंज उठी...
"आआआअह्ह्ह ह्ह्ह्हह्ह्ह्ह ऊऊऊऊऊऊ हूऊऊऊओ उफ्फ्फ्फफ्फ्फ्फ़ फ्फफ्फ्फ्फ़ फ्फ्फफ्फ्फफ्म्म्म ......अह्ह्हह्ह्ह्ह मर्रर्रर्र गयीईईइ.......अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह फाड़ डाली.........मेरी चूत......अह्ह्हह्ह्ह्ह ...... उन ......हु......उन हु......" और वो भी रोने लगी...
पर ये क्या, अपनी बहन की ये हालत देखकर, अन्नू को अब मजा आने लगा था...उसने कोने में पड़ा हुआ वो काला लंड उठाया और उसे अपनी चूत में डालकर हिलाने लगी...अब उसे भी मजा आने लगा था उस काले भूत से....
उसकी बहन सोनी बिलखती जा रही थी पर मम्मी बड़ी बेरहमी से उसकी चूत का तिया-पांचा करने में लगी हुई थी.. उसकी आवाज सुनकर दादाजी कमरे में आ गए.
दादाजी : "बहु...ये क्या कर रही हो..."
मम्मी : "आओ बाबूजी...ये तो बस ऐसे ही...मैंने आपके लिए एक और चूत तैयार की है....इसकी.." उन्होंने अन्नू की तरफ इशारा किया..
दादाजी ने जब अन्नू को अपनी चूत में काले रंग का डिल्डो डालकर प्यासी नजरों से अपनी तरफ देखते हुए पाया तो वो सब समझ गए...और मुस्कुराते हुए उन्होंने कहा "बहु...तुम मेरा कितना ख़याल रखती हो....
अच्छा हुआ तुमने इसकी चूत को चोडा कर दिया , वर्ना मुझे तो इसकी बहन की मारते हुए भी डर लग रहा था की कहीं मेरा लंड लेने से उसकी चूत पूरी तरह से न फट जाए...पर ये दोनों को लंड लेने की इतनी प्यास है की बड़े मजे से ये सब करवा रही है...सच में रंडी है ये दोनों..."
दादाजी उन दोनों की "तारीफ" करते जा रहे थे और उनकी धोती में से एक और लम्बा "डिल्डो" अपने पुरे शबाब पर आने लगा था... तभी दरवाजे की घंटी बजी.
मम्मी : "ऋतू जाकर देख , कौन आया है...शायद तेरे पापा होंगे.."
ऋतू जाने लगी तो मम्मी ने उसे टोका : "अरी बेशरम, कुछ पहन तो ले..कोई और हुआ तो..."!!
ऋतू : "अरे पापा ही होंगे, और कोई और हुआ तो भी क्या...उसे भी मजे दे देंगे.." और वो मुस्कुराती हुई चली गयी...
साली कितनी बड़ी चुद्दकड़ हो चुकी है ये ऋतू.. बाहर पापा ही थे.
थोड़ी देर में ही पापा अन्दर आये, और नंगी ऋतू उनकी गोद में थी....
पापा : "अरे वाह...आज तो लगता है यहाँ चुदाई समारोह हो रहा है....सभी है इस वक़्त यहाँ....और वो भी नंगे..."
पापा आज पहली बार दादाजी के सामने इस तरह की बातें कर रहे थे...पहले तो दादाजी पापा को देखकर थोडा सकुचा गए...पर पापा की बात सुनकर उन्होंने अपनी धोती और कुरते को एक झटके में उतार दिया और नंगे खड़े हो गए..
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12-13-2020, 03:03 PM,
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पापा की लाडली ऋतू ने भी जल्दी से अपने पापा की हेल्प करते हुए उनके सारे कपडे नोच मारे...और जल्दी ही वो भी अपना लंड ताने सभी के सामने नंगे खड़े थे...
अन्नू ने जैसे ही दादाजी का लंड देखा, वो लपककर उनके पास आई और उसे मुंह में डालकर चूसने लगी... इस वक़्त कमरे में सबसे छोटी शायद अन्नू ही थी उम्र में...उसके बाद ऋतू और उससे बड़ी सोनी... इसलिए दादाजी ने नन्ही सी अन्नू को अपने लंड को चूसते देखा तो उनकी सिसकारी सी निकल गयी...." अह्ह्हह्ह्ह्हह्ह ऊऊऊओ बेटा.....शाबाश.....अह्ह्ह्हह्ह हां ऐसे ही....अह्ह्हह्ह......"
ऋतू भी पापा के सामने बैठ कर उनके लिंग की पूजा करने लगी अपने मुंह में लेकर...
सोनी ने घूम कर मेरे लंड को पकड़ा और उसे अपने मुंह के अन्दर धकेल दिया..
मम्मी अभी भी सोनी की चूत में वो मोटा डिल्डो डालने में लगी हुई थी...
अन्नू से अब सबर नहीं हो रहा था...वो उठी और उचक कर दादाजी की गोद में चढ़ गयी और अपनी टाँगे उनकी कमर में लपेट दी..
दादाजी ने उसके दोनों कुल्हे पकडे और अपना खड़ा हुआ लंड उसकी चूत के ऊपर अडजस्ट किया...और अन्नू को अपनी तरफ खींच लिया...
दादाजी का लंड अन्नू की चूत को चीरता हुआ अन्दर तक घुस गया...और इस बार अन्नू के मुंह से दर्द भरी नहीं बल्कि आनंदमयी चीख निकली... "आआअह्ह्ह म्मम्मम्मम्म ऊऊओह्ह ......दद्दू.....अह्ह्हह्ह ....मजा आ गया....अह्ह्हह्ह......" और उसने दादाजी के बड़े और लटके हुए होंठों को अपने मुंह में फंसाया और उन्हें चुसना शुरू कर दिया...और साथ ही साथ अपनी छातियों को उनपर रगड़ने भी लगी....
दादाजी ने उसे चूसते हुए नीचे से दनादन धक्के मारने शुरू कर दिए...
ऋतू भी पापा के लंड को चूसते -२ नीचे लेट गयी...और खड़े हुए पापा के ठीक नीचे लेटकर अपने दोनों पैर ऊपर की तरफ बढ़ा दिए, उसकी पीठ जमीन से लगी हुई थी...और अब ऊपर से पापा को ऋतू की चूत का पूरा नक्शा साफ़ दिखाई दे रहा था...उन्होंने ऋतू की टांगो को अपनी कंधे पर रखा और उसकी चूत की फांकी को ऊपर से ही फेलाकर अपने लंड को बड़ी मुश्किल से नीचे करके उसकी चूत में धकेल दिया...
बड़ा ही मुश्किल आसन था वो...पर ऋतू को तो आप जानते ही है, हर आसन में अपनी चूत मरवाने के लिए वो बेताब रहती है, कल ही उसने ये आसन एक मूवी में देखा था और आज वो उसे अपने पापा के साथ करने में लगी हुई थी..
"आःह्ह पापा.....अह्ह्हह्ह येस्स.....अह्ह्ह्ह .....म्मम्मम्म ...."
पापा तो जैसे उसकी चूत की कुर्सी बनाकर उसके ऊपर ही बैठ गए थे..उनका पूरा लंड अपनी बेटी की चूत के अन्दर तक घुस चूका था... उन्होंने उसे बाहर खींचा और फिर से अन्दर डाला...और यही करते हुए उन्होंने तेजी से ऋतू की चूत मारनी शुरू कर दी...
सोनी की चूत में तो मम्मी ने डिल्डो डाला हुआ था...इसलिए मैंने उसकी गांड को ऊपर किया और अपना लंड उसकी गांड के छेद पर लगाकर तेज धक्का मारकर उसे अन्दर कर दिया..
एक तो उसकी चूत में इतना मोटा डिल्डो था...और ऊपर से मैंने उसकी गांड में भी एक मोटा लंड डाल कर उसकी हालत और भी पतली कर दी... वो चिल्लाने लगी...पहले दर्द से और फिर मजे से...
"आआआआह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्हह्ह्ह्ह म्मम्मम्म ऊऊऊऊओ ....ह्ह्हह्ह्ह्ह ......ह्ह्हह्ह्हा .....ह्ह्ह .....मम्म...."
मैंने जितनी तेजी से उसकी गांड मारनी शुरु की, मम्मी ने उतनी ही तेजी से उसकी चूत में डिल्डो डालना शुरू कर दिया...
पूरा कमरे में सिस्कारियां और चीखे गूँज रही थी...
मम्मी ने भी एक और डिल्डो निकाला जिसके सिरे पर दो लंड बने हुए थे...उन्होंने एक अपनी चूत से सटाया तो दूसरा सिरा अपने आप उनकी गांड में चला गया...और वो उसे दुसरे हाथ से तेजी से हिलाने लगी...
दादाजी और पापा अब झड़ने के करीब थे...मेरा भी बस निकलने ही वाला था...
मम्मी ने चीख कर कहा..."कोई भी अन्दर मत निकालना...हम सभी के ऊपर डालो अपना रस...आज....अह्ह्हह्ह ....."
सबने उनकी बात मान ली..
दादाजी ने अन्नू को नीचे बेड पर पटक दिया...पापा ने भी अपना लंड वापिस खींच कर अपनी लाडली को बेड तक ले जाकर छोड़ दिया.. मम्मी और सोनी तो पहले से ही वहां पर थी.
और फिर पापा, मैं और दादाजी...उन चारों के पास जाकर हर तरफ से घेर कर खड़े हो गए और अपना लंड हिलाने लगे.. वो सारी रंडियों की तरह अपनी चूत को मसलते हुए ऊपर की तरफ देखने लगी और दुसरे हाथ से अपने स्तनों को मसलते हुए तेजी से सिस्कारियां मारने लगी...और फिर लगभग एक साथ ही हम तीनो के लंड से निकली रस की धाराएँ उनपर बारिश की तरह से पड़ने लगी...
पुरे बेड पर गीलापन छाने लगा...मेरे सामने खड़े दादाजी के लंड से निकली पिचकारियाँ तो मेरे पेट तक आ रही थी...
नीचे बैठी वो भूखी बिल्लियाँ हर बूँद को हवा में ही झपटकर पीने में लगी हुई थी...
सारे कमरे में रस की मिठास घुल चुकी थी..
आज पहली बार तीन पीढ़ियों ने एक साथ अपने हथियार एक दुसरे के सामने निकाले थे और जम कर चुदाई की थी..पर ये तो बस शुरुवात थी..क्योंकि उसके बाद तो जैसे ही मेरे या फिर पापा या फिर दादाजी जिसके लंड में भी जरा सा तनाव आता, सारी चूतें उस पर ही झपट पड़ती..और उस लंड को खाली करके ही छोडती..
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12-13-2020, 03:03 PM,
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अगले दो दिनों तक यही खेल चलता रहा..पापा भी ऑफिस नहीं जा पा रहे थे..चुदाई के खेल में उन्हें अब अपने बाप, बेटे, बेटी और पत्नी के साथ खेलने में काफी मजा आ रहा था.
आखिर वो दिन भी आ गया जब दादाजी को वापिस जाना था.. दादाजी ने मेरे साथ-२ ऋतू को भी बीस दिनों के लिए गाँव में जाने को राजी कर लिया था.. और हमारे प्लान के अनुसार पहले हम अजय चाचा और आरती चाची से मिलने उनके घर जायेंगे और वहीँ से उनके गाँव जो की लगभग 1 घंटे की दुरी पर है वहां से..
मुझे आरती चाची से मिलने के साथ-२ नेहा से भी मिलने की उत्सुक्ताता थी..हम ट्रेन से गए और अगले दिन हम इंदोर पहुँच गए..
स्टेशन पर चाचू हमें लेने के लिए आये थे..उनसे मिलकर सभी बहुत खुश हुए और उन्होंने तो ऋतू को अपने सीने से लगाकर लगभग मसल ही डाला..अगर उनके पिताजी वहां न होते तो शायद वो ऋतू की चूत मार लेते स्टेशन पर ही.. पर उन्हें क्या मालुम था की अब दादाजी के साथ हम सबकी क्या टयूनिंग हो गयी है...दादाजी का रोब उन पर बना रहे ये हमारी पहले से ही प्लानिंग थी..और जब मौका आएगा तभी उन्हें जाहिर करेंगे की अब दादाजी भी हमारी टीम में आ चुके हैं..
हमारा उनके घर पर एक-दो दिन रुकने का प्लान था..
रास्ते में चाचाजी सभी के बारे में पूछते रहे और अपने, नेहा और आरती चाची के बारे में भी बताते रहे..जल्दी ही उनका घर आ गया.
हम यहाँ लगभग चार साल के बाद आ रहे थे. उनका घर पूरा बदल चूका था, चाचू ने अपने फर्स्ट फ्लोर पर भी दो कमरे डाल दिए थे, जिन्हें गेस्ट रूम के लिए रखा हुआ था..
घर पहुँचने पर चाची ने दरवाजा खोला और अपने ससुर के पाँव छुए ..मेरा ध्यान दादाजी के ऊपर ही था..उनकी नजरें अपनी छोटी बहु के पुरे शरीर को नापने में लगी हुई थी..
जैसा की पहले से ही उन्होंने बताया था की उनके चूचों के वो शुरू से ही दीवाने है..इसलिए वो चाची की छाती को घूर-२ कर देख रहे थे..
चाची ने हम दोनों भाई बहन को भी एक साथ गले से लगाकर हमारा स्वागत किया..मैं जब उनके गले लगा तो मैंने हाथ पीछे ले जाकर उनकी गांड में ऊँगली डाल दी..जिसे पीछे खड़े हुए चाचू ने साफ़ देखा और मुस्कुरा दिए..
चाची तो मेरी ऊँगली गांड में पाकर ऐसी उछली जैसे मैंने लंड पेल दिया हो वहां...
ऋतू : "चाची, नेहा कहाँ है.."
चाची : "बेटा वो स्कूल गयी है...तुम बैठो, बस आने ही वाली होगी .."
हम बात कर ही रहे थे की बेल बजी और चाची ने दरवाजा खोला ..बाहर नेहा थी..
उसने हम सभी को देखा और भागकर मुझसे और ऋतू से गले मिली और फिर दादाजी के पास गयी तो दादाजी ने भी उसके सर पर हाथ रखने के बाद उसे अपनी छाती से लगा लिया... नेहा भी दादाजी से काफी डरती थी।
पर जब दादाजी ने उसे अपने कठोर से शरीर से रगड़ना शुरू किया तो उसे अजीब सा महसूस हुआ और उसने मेरी तरफ नजरे घुमाई और आँखों ही आँखों में मुझसे पूछा "ये आज बुड्ढे को क्या हो गया है...?
उसके बाद हम सभी अन्दर गए और फ्रेश होने के बाद चाय पी और फिर खाना खाया..
चाची : "बेटा नेहा, जाओ ऊपर जाकर तुम ऋतू को उसका कमरा दिखाओ..और पिताजी का सामान भी ऊपर ही दुसरे कमरे में रख देना.."
दादाजी अभी खाना खा रहे थे, इसलिए मैंने और ऋतू ने मिलकर सारा सामान उठा लिया और ऊपर की और चल दिए.. ऊपर जाकर मैंने जैसे ही अपना सामान नीचे रखा, नेहा उछल कर मेरी पीठ पर चढ़ गयी...और मेरे मुंह के पीछे से ही चूमने लगी..
नेहा : "ओह्ह..भाई...मैंने तुम्हे काफी मिस किया....अह्ह्ह...पुच...पुच...पुच..."
उसने तो मेरी गर्दन पर किस्सेस की झड़ी सी लगा दी..
मैंने अपनी ताकत का प्रदर्शन करते हुए उसे पीठ से घुमा कर हवा में ही उठाये हुए आगे की तरफ कर लिया ...और नेहा ने अपनी टाँगे मेरी कमर से किसी बेल की भाँती लपेट दी और मेरे होंठों को बुरी तरह से चूसने लगी...
ऋतू ये सब बड़े चाव से देख रही थी और अपनी चूत और निप्पल को एक साथ मसल कर हमारे अनोखे मिलन का मजा ले रही थी. मैंने अपने हाथ नेहा की कोमल सी गांड के नीचे रख दिए...वो पहले से ज्यादा भर चुकी थी ..
मैं : "क्या बात है नेहा, तुम्हारी गांड पर तो चर्बी कुछ ज्यादा ही चढ़ गयी है...पहले तो ऐसी नहीं थी.."
नेहा : " ये सब तो पापा का कमाल है, वो रोज रात को जब तक मेरी गांड न मार ले उन्हें नींद ही नहीं आती...जानते हो, हम लोग जब से दिल्ली से वापिस आये हैं, मैं मम्मी और पापा के कमरे में ही सोती हूँ...और वो भी बिलकुल नंगी..."
मैं : "वाव...रोज सोती हो उनके साथ..."
नेहा : "नहीं रोज तो नहीं...जब कभी मेरा बोय्फ्रेंड मेरे साथ ऊपर इसी कमरे में सोता है तो उस दिन नहीं...."
ऋतू : "यानी तुम्हारा बॉय फ्रेंड भी यहाँ आता है...और चाची अब कुछ नहीं कहती तुम्हे..."
नेहा : "वो कहती तो हैं...पर यही की 'बेटा, अपने फ्रेंड से मजे लेने के बाद उसे मेरे कमरे में भी भेज देना'..हा हा.."
उसकी बात सुनकर सभी हंसने लगे..
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12-13-2020, 03:03 PM,
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उसने हँसते हुए अपनी सारी बातें बताना शुरू कर दी...उनकी जिन्दगी में आये इस खुलेपन के लिए उसने मुझे और ऋतू को थेंक्स कहा..
बाते करते-२ ही उसने अपने कपडे उतरना शुरू कर दिए और जल्दी ही उसका वही नंगा बदन फिर से मेरी और ऋतू की आँखों के सामने आ गया.. जैसा की मैंने उसकी गांड पर हाथ लगाकर महसूस किया था, वही हाल उसके मुम्मो का भी था, वो भी पहले से ज्यादा भर चुके थे या फिर ये कह लो की अब उनकी सुन्दरता में चार चाँद लग चुके थे, उसके निप्पल तो पहले से ही सेंसेटिव थे, सो जैसे ही मैंने उन्हें अपनी उँगलियों में लेकर मसलना शुरू किया तो उसकी सिस्कारियां पुरे कमरे में गूंजने लगी..
"अह्ह्हह्ह ओगग्ग्ग्ग.....ओह्ह्हह्ह्ह्ह म्मम्म......मसलो......काटो.....चबा जाओ...इन्हें.....अह्ह्हह्ह ऊऊओ माय गोड....उम्म्मम्म..........स्सस्सस्सस ........ अह्ह्हह्ह ...
मैंने कमरे के बीचो बीच नंगी खड़ी हुई नेहा के पुरे शरीर पर अपने दांतों से टेटू बनाने शुरू कर दिए....
ऋतू भी अब नंगी हो चुकी थी और वो नेहा के पीछे से जाकर उसकी कमर से लिपट गयी, और इस तरह से हम भाई बहन ने उस बेचारी नेहा को अपने बीच में सेंडविच की तरह से पीस डाला और अपने -२ बदन को उसके साथ रगड़ना शुरू कर दिया...
ऋतू की चूत से निकलते पानी ने नेहा की गांड पर चिकनाहट की चादर सी बिछा दी...मेरे हाथ जब घूम फिर कर उसकी गांड पर वापिस गए तो वहां का चिकनापन देखकर मेरे दिल में उसकी गांड मारने का ख़याल आया....
मैंने उसे घोड़ी बनाया और उसकी गांड को सहलाकर अपने लंड को वहां रगड़ने लगा.... उसे मालुम तो चल ही गया था की आज उसका आशु भाई उसकी गांड मारेगा, ये सोचते ही उसकी चूत से रस की धार बह निकली...
नेहा : "अह्ह्हह्ह.....ऋतू.....जल्दी से नीचे आओ.....मेरी चूत को चुसो....अह्ह्ह...."
ऋतू उसके नीचे आकर अपनी पीठ के बल लेट गयी और अपना मुंह उसने ऊपर की तरफ करके नीचे गिरते हुए नेहा की चूत के झरने के नीचे लगा दिया...
फिर उसने हाथ ऊपर करके नेहा की कमर को पकड़ा और अपना मुंह ऊपर उठाकर उसकी चूत तक ले गयी अपनी जीभ की नोक बनाकर सीधा उसकी चूत में दाखिल हो गयी...
"अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह.......स्सस्सस्स.......ऊऊओ.....म्मम्म......"
ऋतू ने तेजी से अपनी कजिन की चूत का रस पीना शुरू कर दिया... मैंने भी मौका देखकर चोका मार दिया और अपना लंड उसकी गांड के छेद पर रखकर एक तेज धक्का मारा और मेरा लंड रास्ते की सभी बाधा तोड़ता हुआ बोऊंड्री के पार चला गया...
"आआआआआअह्ह्ह ....... म्मम्म .....मार डाला.........भाई......बता तो देते.....की डाल रहा हूँ.....अह्ह्हह्ह..........."
कुछ देर तक तो वो सुन्न सी होकर मेरे लंड को महसूस करती रही और फिर चूत में ऋतू की जीभ और गांड में मेरे लंड की सनसनाहट को महसूस करते हुए उसने भी अपनी फुलझड़ियाँ छोडनी शुरू कर दी....
"अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह.......म्मम्मम्म..... ऊऊओ...... भयीईईई.......... अह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह........ ऋतू......जोर से..... कुतिया.. काट मत... कमीनी.....अह्ह्ह्ह......उम्म्म्मम्म....हाँ......ऐसे ही.....आउच......धीरे बाबा......ऊऊह्ह्ह या...ओ या......ऊऊ येस्स........म्मम्मम.....आई एम् कमिंग......अह्ह्ह्हू..........ऊऊ....."
और फिर बड़ी ही अजीब आवाजें निकालते हुए उसने झड़ना शुरू कर दिया....
मेरा लंड तो उसकी गांड की सुरंग में किसी पिस्टन की तरह आ जा रहा था....नीचे से ऋतू भी उसकी चूत पर किसी जोंक की तरह से चिपकी हुई थी....और वहां से निकलता अमृत पीने में लगी हुई थी....
तभी बाहर से दादाजी के ऊपर आने की आहट आई....
दादाजी : "अरे भाई....कौनसे कमरे में हो तुम लोग....मेरा कौनसा है...दांये वाला ...या बाँए वाला...." वो बोलते हुए हमारे ही कमरे की तरफ चले आ रहे थे... उनकी आवाज सुनने के बावजूद मैंने और ऋतू ने नेहा को नहीं छोड़ा....पर दादाजी की आवाज सुनते ही उसकी तो सिट्टी पिट्टी ही गुम हो गयी.... वो जल्दी से अपनी चूत को ऋतू के मुंह के चुंगल से और अपनी गांड को मेरे लंड के पंजे से छुड़ाकर अपने कपडे उठाकर बाथरूम में घुस गयी...उसने ऋतू को भी चलने को कहा ताकि दादाजी उसे और मुझे एक साथ नंगा न देख पाए...पर ना तो मैंने और ना ही ऋतू ने किसी तरह की जल्दबाजी दिखाई....और जैसे ही नेहा बाथरूम में घुसी, दादाजी कमरे में दाखिल हो गए...
अब अन्दर का नजारा बदल चूका था...
नेहा की जगह अब ऋतू ने ले ली थी और घोड़ी बनकर अब मेरा लंड उसकी गांड में था....
दादाजी (अन्दर आते हुए) : "अरे वाह...तुम दोनों तो आते ही शुरू हो गए....शाबाश..."
ऋतू ने पीछे गर्दन करके दादाजी को देखा जो अपनी धोती में से लंड को ढूंढकर मसलने में लगे हुए थे...
दादाजी : "पर...वो नेहा भी तो आई थी न तुम्हारे साथ ऊपर...वो कहाँ है..?"
मैंने ऋतू की गांड के छेद में अपने लंड से धक्के मारते हुए कहा : "वो...वो ...तो कब की चली गयी नीचे....अह्ह्ह....और फिर ...फिर मैंने ...और इसने सोचा...की अह्ह्ह....थोड़ी...थोड़ी थकान उतार ली जाए....थोड़ी ताजगी आ जायेगी...अह्ह्ह्ह....ठीक है न ...दादाजी...."
दादाजी : "हाँ बेटा....थक तो मैं भी गया हूँ...मुझे भी तो थोड़ी सुफुर्ती दे दे ऋतू बेटा....."
उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया ताकि कोई नीचे से न आ जाए...और वो ऋतू के सामने जाकर खड़े हो गए....और उन्होंने अपनी धोती को एक तरफ उतार फेंका...नीचे से उनका वही धारीवाला कच्छा निकला , उसे भी उन्होंने उतार दिया...और फिर ऊपर से कुरता भी.... ऋतू ने किसी पालतू कुतिया की तरह से अपने मालिक का लंड जीभ से चाटना शुरू कर दिया...और जल्दी ही दादाजी का कुतुबमीनार ऋतू की आँखों के सामने खड़ा होने लगा....
मैंने दादाजी के पीछे की तरफ बाथरूम के दरवाजे की तरफ देखा, जिसे नेहा थोडा सा खोलकर बाहर की तरफ देख रही थी... उसने जब देखा की दादाजी नंगे होकर खड़े हैं और ऋतू उनका लंड चूसने में लगी हुई है तो उसे समझते देर नहीं लगी की हमने दादाजी को भी टीम में शामिल कर लिया है....वो चिल्लाती हुई नंगी ही बाहर की और चली आई...
नेहा : "वाह.....भाई......तो दादाजी भी अब आ ही गए अपनी पार्टी में...."
दादाजी ने जब नेहा को एकदम से अपने सामने नंगे खड़े देखा तो वो बोखला से गए....उन्होंने जल्दी से अपनी धोती उठाई और अपने लंड के आगे करके उसे छुपा लिया.... पर फिर उन्हें याद आया की वो तो सब हमारे बारे में जानते ही हैं और वैसे भी अब दादाजी को भी नेहा ने ऋतू से लंड चुसवाते हुए देख लिया है...सो कुछ भी और छुपाना बेकार है...और उन्होंने अपनी धोती फिर से नीचे गिरा दी...
नेहा ने जब सामने आकर दादाजी के लंड को देखा तो उसकी आँखे फटी की फटी रह गयी....
नेहा : "दादाजी....ये ...ये क्या है....ओ माय गोड ......इतना लम्बा लंड........दादाजी आप तो छुपे रुस्तम निकले....."
नेहा दादाजी के लम्बे लंड की तारीफ करती जा रही थी और दादाजी थे की अपनी पोती ने नंगे जिस्म को आँखों से चूमने में लगे हुए थे....नेहा के मोटे ताजे निप्पल और उभरी हुई गांड देखकर दादाजी के बैठते हुए लंड ने फिर से उठना शुरू कर दिया.....
नेहा : "वाव....दादाजी...इतना लम्बा और मोटा तो मैंने...मैंने आज तक नहीं देखा....मुझे तो कुछ होने लगा है....अभी से...." वो किसी सम्मोहन में बंधी हुई सी दादाजी के पास गयी और अपनी पतली-२ उंगलियों से दादाजी के काले नाग को बाँधने की कोशिश करने लगी... मैंने ऋतू की गांड में लंड की स्पीड पहले जैसी बनायीं रखी...
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12-13-2020, 03:03 PM,
RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
नेहा दादाजी के लम्बे लंड की तारीफ करती जा रही थी और दादाजी थे की अपनी पोती ने नंगे जिस्म को आँखों से चूमने में लगे हुए थे....नेहा के मोटे ताजे निप्पल और उभरी हुई गांड देखकर दादाजी के बैठते हुए लंड ने फिर से उठना शुरू कर दिया.....
नेहा : "वाव....दादाजी...इतना लम्बा और मोटा तो मैंने...मैंने आज तक नहीं देखा....मुझे तो कुछ होने लगा है....अभी से...." वो किसी सम्मोहन में बंधी हुई सी दादाजी के पास गयी और अपनी पतली-२ उंगलियों से दादाजी के काले नाग को बाँधने की कोशिश करने लगी... मैंने ऋतू की गांड में लंड की स्पीड पहले जैसी बनायीं रखी...
दादाजी के मन में न जाने क्या आया की उन्होंने अपनी फूल जैसी पोती को एक झटके से उठाया और उसकी जांघे पकड़कर हवा में ही चौडा करके उसकी चूत को फेलाया और अपने खड़े हुए लंड के ऊपर उसकी चूत के होंठों को फिट करके उसे भींच लिया.... नेहा कुछ न समझ पायी, सिवाए अपने हाथों को दादाजी के गले में बांधकर अपने आप को गिराने से बचने के अलावा वो कुछ और सोच ही नहीं पायी...और दादाजी के लंड का बाजुका उसकी चूत की सुरंग की कई परते उधेड़ता हुआ अन्दर तक समाता चला गया....
"आआअह्ह......ऊऊऊ......माय........गोड.......ऊऊऊ........माआआ..........मार डाल......आआ... ....आआआअह्ह्ह.... ....दादाज.....ईई...........म्मम्मम............म........" उसने अपनी गर्दन दादाजी के कंधे पर रख दी और गहरी साँसे लेने लगी....
दादाजी का लंड एक ही बार में उस मासूम की चूत को फाड़ता हुआ अन्दर तक चला गया था...
फिर दादाजी ने धीरे-२ उसकी चूत में धक्के मारने शुरू किये...अब नेहा का सुबकना भी सिस्कारियों में बदल चूका था.... "अह्ह्हह्ह.....दादाजी......क्या लंड है...आपके पास....म्मम्मम.....ऊह्ह्ह......मजा आ गया......आज मेरी चूत पूरी तरह से भर गयी है.....अह्ह्ह.......म्मम्म.........मारो....मेरी .....चूत....को....दादाजी....और तेजी से......और तेज......दादाजी....."
और फिर तो दादाजी ने अपनी छोटी पोती नेहा की चूत के अन्दर अपने लंड से जो फायरिंग करनी शुरू की तो उसकी चूत में हर कोने में बैठे हुए मीठे दर्द , बिलख -२ कर बाहर की और आने लगे...
उसकी चूत से इतना रस निकल रहा था की नीचे घोड़ी बन कर गांड मरवा रही ऋतू के ऊपर मानो चिपचिपी सी बारिश हो रही थी.... और जल्दी ही दोनों बहने झड़ने के करीब पहुँच गयी.....
मैंने भी स्पीड तेज कर दी...और दादाजी ने भी.... हम सभी लोग लगभग एक साथ ही झड़ने लगे....
"अह्ह्ह्हह्ह........ऊओह्ह्ह्ह ....दादाजी.....मैं तो गयी...."
दादाजी ने भी अपना कंटेनर नेहा की चूत में खाली कर दिया...."आह्ह्ह्ह....बिटिया......ले.....ले मेरा रस......अपनी चूत में....अह्ह्ह......" मेरे लंड से भी रसीला रस निकल कर ऋतू की गांड में दाखिल होने लगा जिसकी गर्माहट पाकर उसकी चूत ने भी आग उगलनी शरू कर दी....
"अह्ह्हह्ह.....भैय्या......अह्ह्ह्ह.....म्मम्म.......ऊऊ.....ऊऊऊओ.......मजा आ गया......"
ऊपर से जैसे ही दादाजी ने नेहा को अपनी गोंद से उतरा, उसकी चूत से जैसे कोई बाँध सा टूट गया, जिसे नीचे घोड़ी बनी हुई ऋतू ने अपना मुंह लगाकर पीना शुरू कर दिया....वर्ना कमरे में बाड़ ही आ जाती नेहा की चूत के रस की और दादाजी के वीर्य की....
अपना रस ऋतू को पिलाने के बाद नेहा पीछे आई और ऋतू की गांड में मुंह लगाकर वहां से मेरे लंड से निकला कोल्ड ड्रिंक बिना स्ट्रा के पीने लग गयी... उसके बाद ऋतू ने दादाजी का और नेहा ने मेरा लंड चूसकर साफ़ कर दिया... बाद में नेहा ने आराम से दादाजी की गोंद में बैठकर, ऋतू और मेरे मुंह से सारी कहानी सुनी...और सुनते हुए ही उसने दो बार और चुदाई भी करा ली...
अब हमने रात का कुछ ऐसा प्रोग्राम बनाया की नीचे बैठे अजय चाचू और आरती चाची को अपने खेल में किसी मनोरंजक तरीके से शामिल किया जाए...ताकि सभी को मजा आये...
अब तो बस रात का इन्तजार था...
*****

नेहा की चुदाई करने के बाद तो दादाजी के लंड में चार चाँद लग गए थे, वो ऐसे खुश हो रहे थे मानो दुनिया जीत ली हो उन्होंने..
दादाजी : "बेटा आशु, अजय और बहु के साथ करने में मुझे थोडा डर लग रहा है...
मैं : "क्यों दादाजी, अब तक तो आप काफी खुल चुके हैं..इनके साथ ही डर क्यों लग रहा है आपको..
आपने वहां मोम के साथ किया, ऋतू के साथ भी और आज तो नेहा को भी चोद दिया...अब किसलिए डर रहे हैं..."??
मैं समझ गया की अपने बेटे के सामने एकदम से अपनी बहु को तो नहीं चोद सकते न वो , वहां दिल्ली में भी उन्होंने फार्म हॉउस पर मम्मी को जब चोदा था तो पापा नहीं थे..
अगर वो होते तो शायद दादाजी मम्मी को कभी न चोदते...बाद में भी जब दादाजी मम्मी को पापा के सामने चोद रहे थे तो भी वो थोडा कतरा रहे थे..पापा के कहने पर ही दादाजी थोडा खुले थे.
वहां पापा को तो मालुम था की दादाजी पहले से ही मम्मी और ऋतू की चुदाई कर चुके हैं फार्म हॉउस में पर यहाँ तो अजय चाचू को अभी तक पता भी नहीं था की दादाजी इतने बड़े चुतमार हो चुके हैं की अपनी बहु और पोती को भी चोदने से बाज नहीं आ रहे..इसलिए शायद दादाजी को थोड़ी सी हिचक हो रही थी.. पर मैं ये जरुर जानता था की आरती चाची को अगर दादाजी अकेले में फंसाए तो वो ज्यादा ना नुकुर नहीं करेगी..
इसके लिए मुझे जल्दी ही कुछ सोचना होगा..और अगले ही पल मेरे दिमाग में एक आईडिया आया.
मैंने उन सभी को प्लान समझाया और मैं नीचे गया और अजय चाचू और आरती चाची के साथ जाकर बैठ गया..
आरती चाची : आशु, बड़ी देर लगा दी तुमने तो ऊपर...क्या हो रहा था...
मैं : कुछ नहीं, वो दादाजी तो अपने कमरे में सो रहे हैं, तो हम तीनो भाई बहन जरा थोड़ी सी मस्ती कर रहे थे..नेहा कह रही थी की उसे हमारी बड़ी याद आती है, तो मैं और ऋतू मिलकर उसकी उदासी दूर कर रहे थे.
चाची : अरे वाह, आते ही शुरू हो गए तुम तो..वैसे नेहा के साथ-२ मुझे भी तुम्हारी चुदाई बड़ी याद आती है.. उनके ये कहने की देर थी की मैंने उन्हें अपनी तरफ खींचा और अपनी गोद में बिठा कर उनके होंठ चूसने लगा..
अजय चाचू बड़े गौर से मुझे अपनी बीबी से मजे लेते देख रहे थे..उन्होंने अपना लंड बाहर निकाला और उसे हिलाना शुरू कर दिया..
चाची ने साडी पहनी हुई थी. मैंने उनके पल्लू को साईड किया और उनके बड़े-२ पपीते अपने हाथो से दबाने शुरू कर दिए. तभी ऊपर से नेहा और ऋतू नीचे आई और हमें मजे लेते देखा और अजय चाचू को अपने हाथ से मेहनत करते देखकर वो सीधा उनके पास गयी और ऋतू ने अपना मुंह उनके लंड के ऊपर करके उनके लम्बे लंड को चूसने लगी..
"आआआअह्ह्ह्ह ऋतू......तेरे जैसा लंड चूसने वाला कोई नहीं है...अह्ह्हह्ह.....जरा अपनी छोटी बहन को भी सिखा, ये तो मेरा लंड चूसती कम और काटती ज्यादा है..."
नेहा :"पापा...आप भी न..मुझे टाईम ही कितना हुआ है लंड चूसते हुए...सीख लुंगी जल्दी ही..." और फिर वो ऋतू को गौर से देखते हुए लंड चूसने के "गुर" सीखने लगी.. नेहा ने अपने सारे कपडे उतार दिए...चाचू ने भी अपनी टी शर्ट उतारी और ऊपर से नंगे हो गए, ऋतू ने नीचे से उनकी पेंट खींच कर नीचे कर दी और उन्हें पूरा नंगा कर दिया.
नेहा ने नंगी होने के बाद ऋतू को भी खड़ा किया और उसके कपडे उतारकर उसे भी नंगे गेंग में शामिल कर लिया.
चाचू : "अरे यहाँ ये सब करना ठीक नहीं है...चलो मेरे कमरे में चलते हैं."
उन्हें शायद ऊपर सो रहे अपने बाप का डर था , कहीं वो नीचे न आ जाए..पर उन्हें क्या मालुम था , वो ऊपर से, दरवाजे के पीछे खड़े हुए, नीचे का सारा नजारा देखकर अपने भीमा को मसल रहे हैं. वैसे अन्दर जाने की बात अगर चाचू न करते तो ऋतू या नेहा उनसे कहने ही वाली थी, जैसा की मैंने उन्हें कहने को कहा था. वो तीनो उठ कर अन्दर चले गए.
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12-13-2020, 03:03 PM,
RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
उनके जाते ही चाची ने किस तोड़ी और मुझसे बोली : "बेटा...चलो, हम भी अन्दर चलते हैं..."
मैं : "क्यों चाची...आप क्यों डर रही है...अपने ससुर के आने का डर है क्या..?"
चाची- "हाँ...और किसलिए मैं तुझे अन्दर जाने को कह रही हूँ..चल न...देख मेरी चूत में से कितना पानी निकल रहा है...जल्दी से अन्दर चल और इसे चाटकर अन्दर अपना लंड पेल दे..."
मैं : "अरे चाची, आप घबराओ मत..ऊपर दादाजी गहरी नींद में सो रहे हैं...वो दो घंटे से पहले नहीं उठेंगे..."
चाची : "पर फिर भी...कोई रिस्क क्यों ले हम...."
मैं : "चिल चाची...चिल..आप घबराओ मत...अगर वो आ भी गए तो क्या हुआ..तुम्हे नंगा देखकर तो कोई भी पागल हो जाएगा, वो गुस्सा क्या ख़ाक होंगे...जब तुम्हारे ये मोटे-२ तरबूज देखेंगे न, तो ससुर-बहु का सारा रिश्ता भूल जायेंगे...देखना..."
मेरी बात सुनकर चाची के शरीर में रोंगटे खड़े हो गए, शायद वो इमेजिन करके देख रही थी की अगर असली में ऐसा हो जाए तो क्या होगा...
मैं : "वैसे, दादाजी का लंड है बड़ा ही लम्बा और मोटा..."
चाची मेरी तरफ हेरानी भरी निगाहों से देखने लगी...
चाची : "तुने...तुने कब देख लिया उनका...उन्हें...ऐसे ही..."
वो जब ये बात कर रही थी तो उनकी जांघो की पकड़ मेरी टांगो पर मजबूत होने लगी थी...और उन्होंने अपनी चूत को साडी के ऊपर से ही मेरी टांगो पर रगड़ना शुरू कर दिया था..
मैं समझ गया की अपने ससुर के लंड के बारे में सुनकर उन्हें उत्तेजना फील हो रही है..
मैं : "वो क्या है न, जब वो हमारे घर पर थे तो एक दिन मैंने उन्हें बाथरूम में पेशाब करते हुए देख लिया, उन्होंने दरवाजा बंद नहीं किया था..और जब मैं अन्दर गया तो मेरे तो होश ही उड़ गए..उनके हाथ में उनका लंड देखकर ... वो पुरे दस इंच का था, और बड़ा ही मोटा भी...मैंने उन्हें सॉरी बोला और जल्दी से बाहर निकल गया ...पर सच कहूँ, मैंने इतना बड़ा लंड आज तक नहीं देखा.."
उम्म्म्म.........सस्स्स्स......
चाची ने अपनी साडी ऊपर की और मेरी पेंट की जिप खोली और लंड निकाल कर सीधा अपनी रस टपकाती हुई चूत उस पर रख दी और बैठ गयी मेरे लंड महाराज के ऊपर....
"अह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह .......हाय........स्सस्सस्सस.........क्या लंड है ......म्मम्मम........."
उन्होंने अपने पुरे कपडे उतारने की भी ज़हमत नहीं उठाई...मैंने उनका एक मुम्मा बड़ी मुश्किल से ब्लाउस से बाहर निकाला और उसे चूसते हुए मैंने नीचे से धक्के मारने शुरू कर दिए.... पर उनकी चूत अपने ससुर के लंड की लम्बाई के बारे में सुनकर ही इतनी गीली हो चुकी थी की उन्हें झड़ने में दो मिनट भी नहीं लगे...
"अह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह ......ओह्ह्हह्ह्ह्ह.......मैं तो गयी रे....अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह..........आआअग्ग......."
मैंने उनकी गांड को पकड़कर जल्दी-२ धक्के मारने शुरू कर दिए और अगले पांच मिनट में मेरा रस भी उनकी रस भरी चूत के अन्दर जाकर डिपोजि़ट हो गया.
मैं : "वाह चाची...इतनी गरम तो आप आज तक नहीं हुई...क्या बात है...दादाजी के लंड के बारे में सोच रही थी. न..."
चाची : "चल हट...तू भी न...सोचने से क्या होता है...चल अब बेकार की बाते न कर, कपडे उतार और एक बार और मेरी चूत मार...मुझे अभी और मजे लेने है..."
मैं :"ठीक है...ऐसा करते हैं, बाथरूम में चलते हैं...वहीँ करेंगे और नहा भी लेंगे एक साथ..."
चाची : "हाँ...ये ठीक है...चलो..."
और फिर मैं और चाची बाथरूम की तरफ चल दिए..
मैंने ऊपर खड़े दादाजी को इशारा करके नीचे आने को कहा...
अन्दर जाते ही चाची पूरी नंगी होकर खड़ी हो गयी...मैंने भी सारे कपडे उतारे और उनके साथ शावर के नीचे खड़ा होकर नहाने लगा... मैंने उनके पुरे जिस्म पर साबुन लगाना शुरू कर दिया...उनके चिकने शरीर पर मेरे साबुन वाले हाथ फिसल रहे थे.. मैंने उनके पीछे खड़े होकर अपने हाथ आगे किये और उनके टेंकर पकड़कर उन्हें साबुन लगाना शुरू कर दिया..मेरा लंड उनकी मखमली गांड से घिस्से लगाकर पुरे शबाब पर आने लगा था...
मैं :"चाची...सच बताना...दादाजी के लंड के बारे में ही सोच रही थी ना आप बाहर..."
चाची : "हूँ..."
मैं :"अगर मिले तो ले लोगी क्या..."??
चाची: "म्मम्मम....."
मैं : "उनका लंड तुम्हारी चूत फाड़ देगा चाची...."
चाची : "ऊऊ........म्मम्मम......."
उन्होंने हाथ पीछे करके मेरे लंड को बुरी तरह से पकड़ा और उसे हिलाने लगी...और अपनी गांड पीछे करके उसके छेद में डालने की कोशिश करने लगी..
मैं : "ना चाची...इतनी आसानी से नहीं...पहले आप मुझे बताओ की क्या सोच रही थी दादाजी के बारे में.."
चाची तो किसी सम्मोहन में बंधी हुई थी जैसे...
चाची :"ओह्ह्ह्ह......मेरी चूत में ससुर जी...अपना...पूरा...लंड ...एक ही बार में...डाल कर....मुझे कुत्ती की तरह से चोद रहे हैं....अह्ह्ह्हह्ह .."
मैं :"तो तुम मुझे अपना ससुर समझो और मुझसे उसी तरह से चुदवाओ..."
चाची : "हाँ....म्मम्म......चोदो न......मुझे...पिताजी.....ऊऊ गोड....चोदो मुझे अपने मोटे लंड से..... अह्ह्हह्ह......"
मैं अब दादाजी का रोल प्ले कर रहा था..
मैंने पीछे मुंह करके दादाजी को अन्दर आने का इशारा किया....
वो तो पहले से ही नंगे होकर अन्दर झाँक कर सब कुछ देख रहे थे...मैं पीछे हुआ और अगले ही पल दादाजी ने मेरी जगह ले ली...
चाची : "ओह्ह्ह....पिताजी.......अपना लंड .....मेरी चूत में डालो न.....चोदो अपनी बहु को....तुम्हारे लंड की प्यासी हूँ मैं....फाड़ डालो आज मेरी चूत और गांड अपने दमदार और मोटे लंड से....अह्ह्हह्ह..... मम्म......"
इतना कहकर उन्होंने पीछे हाथ करके फिर से मेरे यानी दादाजी के लंड को पकड़ लिया...और उसकी लम्बाई देखकर वो अचरज में पड़ गयी... वो पलटकर देखना चाहती थी की तभी दादाजी ने बड़ी चालाकी से उनके चेहरे पर साबुन लगा दिया...
चाची : "हम्म....ओह्ह....ये क्या...."
वो अपना चेहरा साफ़ करने लगी पर फिर भी कुछ साबुन लगा रहने की वजह से वो अपनी आँखे नहीं खोल पा रही थी... तभी दादाजी ने मौका पाकर अपना लंड उनकी चूत के ऊपर लगाया और पीछे से एक तेज धक्का मारा...
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12-13-2020, 03:03 PM,
RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
चाची अपने सामने की दिवार पर हाथ लगाकर खड़ी थी..धक्का इतना तेज था की वो लगभग उस दिवार की टाईल्स के ऊपर चिपक सी गयी...उनके मोटे मुम्मे दिवार के ऊपर फिसल से रहे थे.. "अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह .....धीरे.......करो....अह्ह्ह्ह.......पिताजी..."
मैं : "आप ने ही तो कहा था न की आप कुतिया की तरह से चुदना चाहती हैं....तो अब चुदो...."
चाची : "हाँ....चोदो मुझे....पिताजी....चोदो अपनी बहु को...."
वो रोल प्ले करने में अभी तक लगी हुई थी, उन्हें क्या मालुम था की अपना रोल अब दादाजी खुद निभा रहे हैं, अपना लंड उनकी चूत के अन्दर डालकर... अभी तक तो आधा ही लंड गया था चाची की चूत में, जब पूरा जाएगा तब उन्हें मालुम चलेगा की उनकी चुदाई कौन कर रहा है..
दादाजी ने हाथ आगे करके चाची के लटकते हुए खरबूजे अपने हाथो में मसले और उनकी कमर से अपनी छाती को चिपका कर एक और तेज धक्का मारा.. दादाजी को अपना लम्बा लंड चाची की चूत में डालने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ रही थी..दादाजी के इस झटके से तो चाची के दोनों पैर हवा में उठ गए और वो दादाजी के हाथो में झूल सी गयी...और दादाजी ने अपना लम्बा लंड उनकी चूत में थोडा और अन्दर डाल दिया...
"अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह म्मम्मम्म........ येस्स्स्सस्स्स्स ......."
दादाजी के आगे चाची किसी बकरी की तरह से लग रही थी और दादाजी उसे किसी शेर की तरह से दबोच कर उसका शिकार कर रहे थे...चाची ने अपना सर पीछे किया और उसे दादाजी के कंधे पर रख दिया... दादाजी ने अब अपने मजबूत हाथो से चाची को हवा में उठा रखा था और अब उनके लंड को चाची की चूत साफ़ दिखाई दे रही थी , उन्होंने अपनी कमर को कमान की तरह पीछे की और टेड़ा किया और चाची को लगभग अपने पेट पर लिटा सा लिया..और फिर उन्होंने एक और करार शोट मारा..
"अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह.......ओह्ह्ह्हह्ह्ह्ह ....मर्र्र्रर्र्र गयी......अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह ....."
अब शायद उन्हें एहसास होने लगा था की वो मेरा लंड नहीं है... उन्होंने पीछे मुड़ने की कोशिश की...पर दादाजी ने अपने मजबूत हाथो से उनके कंधे पकडे हुए थे इसलिए वो मुड़ न पायी...दादाजी ने अब चाची को नीचे जमीन पर उतार दिया..
उनके उतारते ही चाची ने जबरदस्ती अपनी चूत से उनका लंड बाहर निकाल दिया और एकदम से पीछे की तरफ मुड़ी..उनके मुड़ते ही दादाजी ने ग़जब की फुर्ती दिखाई और चाची की गांड में हाथ डालकर उन्हें ऊपर अपनी गोद में उठा लिया..
चाची ने जैसे ही दादाजी को अपने पीछे देखा तो उनका चेहरा फक्क पड़ गया..दादाजी के पीछे मैं नंगा खड़ा होकर अपने लंड को मसल रहा था..
चाची का मुंह खुला का खुला रह गया, वो कुछ कहना चाहती थी पर उनके मुंह से कुछ नहीं निकल रहा था..वो कभी मुझे और कभी दादाजी को देख रही थी..और फिर उनके मुंह से निकला : "पिताजी......आआआप्प्प.......यहाँ.......ये सब....कैसे......क्या हो रहा हैईईईईईईईईईई.....अह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह .."
उनके आखिरी अल्फाज मुंह में ही अटक कर रह गए...क्योंकि दादाजी ने चाची की टाँगे अपनी कमर पर लपेट कर उन्हें अपने खड़े हुए लंड के ऊपर विराजमान करवा लिया था...
चूत और लंड तो पहले से ही मिल चुके थे..इसलिए ज्यादा कठिनाई नहीं हुई..पर उनके लंड के सुपाड़े ने अन्दर जाकर चाची की चूत के तहखाने के वो दरवाजे भी खोल डाले जहाँ आज तक कोई नहीं गया था...असल मायने में दादाजी का लंड अब जाकर पूरा उनकी चूत में घुसा था..
चाची तो दर्द के मारे दोहरी सी होकर अपने ससुर से लिपट गयी, और उनकी गर्दन के चारों तरफ अपनी मोटी बाहें लपेट कर अपने मुम्मे उनकी छाती से रगड़ने लगी...उनकी आँखों से आंसू बहने लगे थे..
दादाजी : "बस बहु....हो गया....सब ठीक हो जाएगा बेटा...चुप हो जा....चुप हो जा...बहु..पुच पुच..." और उन्होंने अपनी बहु के कानो वाले हिस्से पर अपनी मोटे और लटके हुए होंठो से चूमना शुरू कर दिया..
लम्बे लंड की चुभन भी अब मीठे एहसास में बदलती जा रही थी और ऊपर से दादाजी ने शायद उनके सेंसेटिव हिस्से यानी कानो के ऊपर जब चूमा तो उन्होंने अपनी कमर को हवा में ही हिला हिलाकर दादाजी के लंड को अपनी चूत के ऊपर अच्छी तरह से रगड़ना शुरू कर दिया..
उनकी बहु पर भी अब दादाजी के लंड का नशा चढ़ चूका था, वो तो पहले से ही उनके लंड से चुदने के सपने देख रही थी पर उन्हें क्या मालुम था की मैं ऐसी प्लानिंग करके उन्हें दादाजी के लंड के ऊपर बिठा दूंगा...
उनकी आँखों में देखकर और उनके चेहरे पर आ रहे भाव को देखकर साफ़ पता चल रहा था की उन्हें बड़ा मजा आ रहा है..बस शर्म के मारे वो बोल नहीं पा रही है...
आज शायद पहली बार वो अपने ससुर के सामने बिना सर पर पल्लू डाले खड़ी थी..पल्लू तो क्या आज उनके पास कुछ भी नहीं था अपने नंगे बदन को छुपाने के लिए...उन्होंने सर झुका रखा था पर अन्दर से उठ रही तरंगो की वजह से अपने मुंह से निकलने वाली गर्म आँहें नहीं दबा पा रही थी.. "अह्ह्हह्ह....ओऊ .....म्मम्मम्म.....म्मम्मम....ओह्ह्ह्ह .ओह्ह ..ओफ्फ्फ ....म्मम्म..."
दादाजी : "बहु ...बोल मजा आ रहा है...ना....अहह...बोल न...बेटा....मजा आ रहा है...अपने ससुर के लंड से चुदकर....बोल...."
दादाजी की बात का जवाब उनकी बहु ने कुछ इस तरह से दिया की मैं भी हैरान रह गया की एक ही बार में कैसे उनकी शर्म उतर गयी.. उन्होंने दादाजी के चेहरे को अपने नाजुक हाथों से पकड़ा...और उनके मोटे और भद्दे होंठो पर अपने नाजुक और गुलाबी होंठ रखकर रगड़ सा दिया...मेरा लंड तो उनकी इस रंडी वाली हरकत को देखकर फटने वाली हालत में हो गया..
उन्होंने अपने जीभ निकाली और हवा में ऊपर उठ गयी, जिसकी वजह से चाची की चूत से दादाजी का लंड बाहर निकल गया ..और उनका चेहरा ऊपर से नीचे की और चाटते हुए आई और उनके लंड को अपनी चूत में फिर से ले गयी..
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12-13-2020, 03:03 PM,
RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
उन्होंने ये कसरत लगभग 8 -10 बार की और हर बार नीचे जाते हुए जब उनकी चूत दादाजी के लंड को निगलती तो उनके मुंह से अजीब सी आवाजें फूटने लगती.. "अह्ह्हह्ह... पिताजी.... म्मम्म..... चो....चोदो,....... अह्ह्ह....ह्म्म्मम्म.......उग्ग्ग्गग्ग .....इफ्फफ्फ्फ्फ़......ऊऊऊ... ..म्मम्मम्म......अह्ह्हह्ह्ह्ह ....हन्न्न्नन्न ....अह्ह्ह्ह.....येस्सस्सस्स.....ऐसे ही........और.......और अन्दर.....पिताजी........और अन्दर..... तक" और उनके पिताजी यानि ससुर साहब अपनी छोटी बहु की बात कैसे टालते, अब तो उन्होंने भी नीचे से अपने लंड को ऊपर की तरफ उछालना शुरू कर दिया...
चाची नीचे आती और दादाजी के लंड के प्रहार से फिर से ऊपर उछल जाती....फिर नीचे आती और फिर ऊपर उछल जाती.... "ओह्ह्ह पिताजी.......अह्ह्ह्ह.....मजा आ रहा है......कहाँ थे आप पहले......क्यों नहीं चोदा मुझे पहले....आपने.....अह्ह्ह्ह. ....मेरी चूत में आपका लंड कितना मजा दे रहा है.... म्मम्मम...... ओह्ह्ह........मर्र्र्रर गयी रे....अह्ह्ह..... अपनी बहु को कितना तरसाया है आपने.........अब चोदो मुझे ....अच्छी तरह से चोदो .........तेज.....और तेज.....हाsssss हाsssss हा स्सस्सस्स हाssssss हाssssss हाsssssss ..आआह्ह्ह्ह ....मैं तो गयी......मैं गयी पिताजी....मैं तो गयी...."
अपनी बहु की करुण पुकार सुनकर दादाजी के लंड ने भी बहु के साथ-२ झड़ना शुरू कर दिया...अपनी छोटी बहु को हवा में ही चोद डाला था आज दादाजी ने... उनकी बाजुओं का बल देखकर चाची काफी प्रभावित सी दिख रही थी...चाची उनकी गोद ने नीचे उतर गयी...उनके उतरते ही चाची की चूत से दादाजी का रस निकल कर दादाजी की टांगो पर लिपटकर नीचे की और बहने लगा...
चाची ने नीचे उतर कर बड़े आदर के साथ अपने ससुर के पैर छुए और उनके घुटनों के ऊपर अपनी जीभ लगाकर वहां से बहकर नीचे की और जा रहा अमृत पीने लगी...
दादाजी के बुडढे़ शरीर में सिहरन सी दौड़ गयी..चाची अपनी जीभ से उनका रस चाटती हुई ऊपर की और आ रही थी...और अंत में जैसे ही उनके लंड तक पहुंची उन्होंने बिना किसी चेतावनी के उसे किसी बिल्ली की तरह से दबोच लिया और पूरा निगल गयी..
दादाजी के मुंह से दर्द भरी सिसकारी सी निकल गयी...
"अह्ह्ह्हह्ह ....बहु......धीरे....धीरे....करो...."
पर बहु कहाँ माने वाली थी, उसके हाथ तो जैसे अलादीन का लंड आ गया हो, जिसे वो जब चाहे और जैसे चाहे ले सकती है...उसने उसे बड़ी तेजी से चाटना शुरू कर दिया....
अपनी बहु का अथाह प्यार पाकर दादाजी के लंड ने फिर से अंगडाई लेनी शुरू कर दी....जिसे देखकर चाची की नजरों में फिर से चमक आने लगी..और वो और तेजी से उसे चूसने लगी..
फिर वो खड़ी हो गयी...और दाजी के लंड को खींच कर उनसे बोली : "चलो पिताजी...अन्दर चले...यहाँ ज्यादा मजा नहीं आ रहा..."
दादाजी: "अन्दर...पर बेटा वो...अन्दर तो...अजय...होगा न.."
चाची : "तो क्या हुआ...वो कोनसा अन्दर पूजा पाठ कर रहे हैं...अपनी बेटी और भतीजी को ही चोद रहे हैं वो....मैं भी अब उनके सामने उनके पिताजी से चुदकर दिखाउंगी....चलो न...पिताजी...आशु तू ही बोल न पिताजी को..."
मैं क्या कहता, मेरा लंड तो पहले से ही सूज कर पर्पल कलर का हो चूका था...
मैं : "चलो दादाजी...कुछ नहीं होता...एक दिन तो आपको चाचू के सामने ये सब करना ही है...जैसा पापा के सामने आपने मम्मी को चोदा , अब चाचू के सामने आप चाची को चोदो..."
चाची मेरी और दादाजी की बात सुनकर समझ गयी की हमारे घर पर दादाजी पहले ही अपने लंड के कारनामे दिखा चुके हैं..
अब दादाजी कुछ न बोले और चाची ने एक हाथ से दादाजी का लंड और दुसरे हाथ से मेरा लंड पकड़ा और हमें घसीटते हुए अन्दर बेडरूम की और ले गयी.
अन्दर का नजारा बड़ा ही गर्म था...
नेहा नीचे लेटी हुई थी और अजय चाचू उसकी चूत को चाटने में इतने मशगूल थे की उन्हें हमारे अन्दर आने का एहसास ही नहीं हुआ...और ऋतू नेहा के मुंह के ऊपर बैठी हुई उससे अपनी चूत चुसवा रही थी..पुरे कमरे में सिर्फ ऋतू की लम्बी सिस्कारियों की आवाज आ रही थी..
ऋतू ने हमें अन्दर आते हुए देख लिया और मुस्कुरा कर और तेजी से सिस्कारिया मारने लगी. "अह्ह्ह्हह्ह्ह्ह......नेहा......चूस साली.....मेरी चूत के रस को पीजा हरामजादी....साली रंडी कहीं की...अपने बाप से चूत चुसवा रही है....वैसे ही चूस जैसे तेरा बाप तेरी चूत चूस रहा है...अह्ह्ह्ह......पी जा.....अह्ह्ह....."
अपनी दोनों पोतियों को अपने छोटे बेटे के साथ मजे लेता देखकर दादाजी को भी जोश आ गया, उन्होंने बहु को अपने बेटे के साथ ही बेड के ऊपर पटका ...और उसकी दोनों टाँगे हवा में उठाकर अपना बल खाता हुआ पाईप जैसा लंड उनकी चूत के ऊपर रखकर अन्दर पेल दिया..
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12-13-2020, 03:03 PM,
RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
अब चीखने की बारी चाची की थी...वो अभी -२ दादाजी के लंड से चुदकर आई थी...और उनकी चूत के अन्दर अभी भी दादाजी के रस के कुछ निशान थे... पर दादाजी के लंड का प्रहार इतना जोरदार था की वो मोटा लंड उनकी चूत की दीवारों से टकराकर उन्हें तकलीफ पहुंचाता हुआ फिर से अन्दर जाकर उनके गर्भ से जा टकराया और चाची के मुंह से इतनी भयानक चीख निकली मानो किसी ने उनकी चूत में पेट्रोल डालकर आग लगा दी हो...
"आआआआआआह्ह ......पिताजी........मार डाला.....धीरे......धीरे करो....पिताजी.....मर जाउंगी मैं.....प्लीईईईएस्स... .पिताजी...."
अपनी पत्नी की आवाज सुनकर अजय चाचू ने अपनी बेटी की चूत से मुंह निकला और साथ में चुद रही अपनी पत्नी को देखा...और उसके मुंह से पिताजी सुनकर उन्होंने पीछे की तरफ देखा...
अपने बाप को सामने देखकर उनके चेहरे की रंगत ही बदल गयी...उनके खड़े हुए लंड का कडकपन एक ही पल में गायब हो गया..उनका सगा बाप, उनके ही सामने, अजय चाचू की पत्नी यानी आरती चाची को चोद रहा था.....
ये क्या हो रहा है...पर वो कुछ कहने की हालत में नहीं थे...क्योंकि वो भी तो अपनी बेटी की चूत चाट रहे थे...और उनकी भतीजी भी नंगी होकर उनके साथ मजे ले रही थी... पर आरती चाची , अपनी दोनों छातियों को पकड़कर, अपने पति की आँखों में देखते हुए, और मुस्कुराते हुए, चीखने लगी..
"अह्ह्हह्ह.....चोदो....पिताजी....अपने लम्बे लंड से आज अपनी बहु को चोदो.......अह्ह्ह्ह....क्या लंड है आपका....मजा आ गया....
आपके दोनों बेटो का लंड भी काफी दमदार है....और आपके पोते का भी....म्मम्म.....क्या खाकर आपने इतने शानदार लंड पैदा करे पिताजी....आपके लंड से निकले हैं ये सब.....अह्ह्ह......ओघ्ह्ह्हह्ह....."
अपनी पत्नी की बाते सुनकर चाचू के मुरझाये हुए लंड में फिर से तनाव आने लगा ..अपनी बेटी, भतीजी और भाभी की तो वो पहले ही मार चुके थे...सिर्फ दादाजी के अलावा पुरे खानदान में सभी एक दुसरे के साथ चुदाई कर चुके थे... और अब दादाजी को भी अपने खेल में शामिल पाकर अजय चाचू का डर निकलने लगा...और अपनी पत्नी को अपने ससुर की सेवा करते देखकर उनके लंड ने भी मचलना शुरू कर दिया... और उन्होंने सामने लेटी हुई अपनी प्यारी बेटी नेहा की टांगो को पकड़ा और अपने पिताजी के साथ ही कंधे से कन्धा मिलकर खड़े होकर उन्होंने भी नेहा की चूत के अन्दर अपना लंड पेल दिया....
नेहा के मुंह के ऊपर बैठी हुई ऋतू भी उतर कर चाची की बगल में लेट गयी और मैं भी लंड के बल उसकी चूत में डुबकी लगा गया.... अब बीच में दादाजी और उनके दोनों तरफ मैं और चाचू, नीचे लेटी हुई ऋतू, चाची और नेहा को बुरी तरह से चोद रहे थे...
उन तीनो के हिलते हुए मुम्मे हर झटके से ऊपर नीचे होते ....और सभी के मुंह से मस्ती भरी सिस्कारियां निकल रही थी...
चाची : "अह्ह्हह्ह्ह्ह .....मम्म ...पिताजी......मार डालोगे आप तो....अह्ह्ह्ह.....धीरे करो न.....अह्ह्हह्ह.......अन्दर हां....तक.....अह्ह्ह.....ऐसे ही.....म्मम्मम्म "
ऋतू : "भैय्या......चोदो मुझे.......बड़ी देर से मेरी चूत को चाटकर नेहा ने उसमे आग लगा दी है....अह्ह्ह......चोदो अपने मुसल लंड से....अह्ह्ह.......भेन चोद ...डाल अपना मोटा लंड....मेरी चूत में.....अह्ह्ह.....येस्स्स्स येस्स्स्स....येस्स्स्स....मम्म "
नेहा : "ओह्ह्हह्ह पापा.....म्मम्मम........मेरी चूत को चाटकर आपने जो आग लगायी है...उसे जल्दी बुझाओ....प्लीईस.... ..अभी दादाजी ने चोदा है मुझे.....उनका रस भी वही है मेरी चूत में......अपने लंड को और अन्दर डालकर उनके रस में भिगोकर चोदो मुझे.....और तेज चोदो......अह्ह्ह्ह.....अह्ह्ह्ह ...हां.....ऐसे ही......अह्ह्ह्ह..पापा....ओह पापा.....आई लव यु पापा.....,,,,"
उन सबकी प्यार भरी बाते सुनकर हम तीनो के लंड से एक साथ रस की बारिश सी होने लगी..
अपने नीचे पड़ी हुई चूतों के अन्दर आने वाले सेलाब की वजह से पुरे पलंग के ऊपर गिलापन आ गया....
उसके बाद तीनो ने हमारे लंड को चूसकर और चाटकर साफ़ किया...और फिर रात भर और अगले दिन भी चुदाई का ऐसा दोर चला की ऋतू, चाची और नेहा की चूत के सारे स्प्रिंग ढीले करने के बाद ही हमने दम लिया...
अगले दिन, शाम को हम सभी चाचू, चाची और नेहा से विदा लेकर गाँव की और चल दिए...गाँव का रास्ता 3 घंटे का था वहां से..हम लगभग रात के 11 बजे वहां पहुंचे.
*****
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12-13-2020, 03:03 PM,
RE: Free Sex Kahani लंड के कारनामे - फॅमिली सागा
गाँव में पहुँच कर मुझे एक अलग तरह की हवा की खुशबू आ रही थी, हो भी क्यों न, आस-पास के खेतो से आती मिटटी की खुशबू और पेड़ो और पोधो पर लगे फल-फुल तरह-२ की खुशबू बिखेरकर मौसम को बड़ा मजेदार बना रहे थे.
दादाजी का घर गाँव के बीचो-बीच था, और काफी बड़ा था, उनके बड़े से घर में 3 कमरे नीचे और दो ऊपर थे, घर के पीछे वाला हिस्सा गाये और मुर्गियों के लिए रखा हुआ था.
दरवाजा खडकाने के थोड़ी ही देर बाद एक चालीस साल की औरत ने दरवाजा खोला
दादाजी : "आओ बेटा...ये दुलारी है , घर और गायों की देखभाल के लिए.. और दुलारी ये है मेरा पोता और पोती..मेरे दिल्ली वाले बड़े बेटे के बच्चे.."
दुलारी : "हाय..दैया...कितने बड़े हो गए है...पांच साल पहले देखा था इन्हें...लालाजी तुम भी न, पहले बता तो देते की बच्चे भी आ रहे है, कमरा साफ़ करवा देती..अब कैसे करेंगे..कहाँ सोयेंगे ये दोनों..."
दादाजी : "अरी , तू फिकर मत मर, आज ये मेरे कमरे में सो जायेंगे, तो इनके कमरे सुबह साफ़ कर देना..चल अब खाना लगा , बड़ी भूख लगी है.."
हम सभी अन्दर आये, दादाजी का कमरा काफी बड़ा था, बीच में एक बड़ा सा लकड़ी का बेड था और कोने में काफी जगह थी, जहाँ आराम से सोया जा सकता था...
हमने खाना खाया.
दादाजी : "अरी दुलारी..रूपा कहा है..सो गयी क्या.."
दुलारी : " हा लालाजी..कहो तो उठा दू.."
दादाजी : "नहीं रहने दे..ये बच्चे मिलने को उतावले हो रहे थे बस.."
दादाजी मेरी तरफ देखकर मुस्कुरा दिए..
मैं भी दादाजी की बात सुनकर , ऋतू की तरफ देखकर, मुस्कुराने लगा.
मैंने नीचे बिस्तर लगा लिया, काफी थक गया था..ऋतू भी मेरे पास आकर सो गयी, पर थके होने की वजह से सिर्फ एक दो किस करी और लिपट कर सो गए.
*****
सुबह मेरी नींद 6 बजे खुल गयी..ऋतू मेरे पास नहीं थी..मैंने ऊपर पलंग पर देखा, वो दादाजी के साथ लिपट कर सो रही थी..और वो भी पूरी नंगी..
यानी रात को मेरे सोने के बाद उसकी चूत में खुजली हुई होगी..और वो दादाजी से चुदकर सो गयी होगी.
मेरी नींद तो खुल ही चुकी थी, मैंने सोचा की सुबह-२ गाँव की सेर करी जाए, और ये सोचकर मैं बाहर निकल गया.
हमारे दादाजी का काफी बड़ा आम का बगीचा है, और आम का सीजन अभी चल ही रहा है, इसलिए काफी ज्यादा आम लगे हुए थे.
मैं बगीचे में टहलने लगा.
मैंने देखा एक लड़की बगीचे के आम इकठ्ठा कर रही है..
मैं : "ऐ..क्या कर रही है तू.."
और जैसे ही वो मेरी तरफ पलती, मैं आँख झपकाना भूल गया..इतनी सुन्दर लड़की, हमारे गाँव में हो सकती है, मैंने कल्पना भी नहीं की थी..
मैं : "ऐ...आम चुरा रही है क्या.."
लड़की : "तू कोन होता है पूछने वाला.."
मैं : "मैं यहाँ के मालिक का पोता हु..अशोक नाम है मेरा."
लड़की (ख़ुशी से..) : अरे आशु साब...आप..मैंने तो आपको पहचाना ही नहीं...अम्मा ने बताया तो था सुबह की आप और ऋतू दीदी भी आये है, लालाजी के साथ, ...कैसे हो आप...मुझे भूल गए क्या..मैं रूपा..वो दुलारी काकी की बेटी..."
मैं : "अरे रूपा तू...कितनी सुन्दर हो गयी है तू अब..."
मेरी बात सुनकर वो शर्मा कर रह गयी.. और मैंने उसे ऊपर से नीचे तक देखते हुए उसके हुस्न का रसपान करना शुरू कर दिया.
उसने लाल रंग का घाघरा और सफ़ेद रंग का टॉप पहना हुआ था, कमर वाला हिस्सा अन्दर की और, बाकी ऊपर से छाती और नीचे से गांड दोनों बाहर की और निकले हुए थे.
उसके होंठो के ऊपर एक मोटा सा तिल था, जिसके बारे मैं ये सोचकर की इसे चूसने में कितना मजा आएगा, मेरा मुंह भर आया..
रूपा : "क्या देख रहे हो साब...मुझे माफ़ कर दो...मैंने आपको उल्टा सीधा बोल दिया...वैसे मैं ये आम इकठ्ठा कर रही थी.. रोज रात को जो आम नीचे गिरते हैं, वो वहां कोठरी में जमा कर देती हु, और शाम को मण्डी वाले आकर ले जाते हैं...लालाजी के पास सारा हिस्साब रोज पहुंचा देती हु मैं...आप पूछ लेना उनसे..
मैं : "अरे नहीं...मैं भी शायद तुम्हे गलत समझ बैठा था..वैसे तुमसे मिलकर अच्छा लगा."
रूपा : "चलो फिर इसी बात पर आम पार्टी हो जाए...आपको याद है न की हम पहले कितने आम खाया करते थे."
मैं याद करने लगा, रूपा और मैं, आम इकठ्ठा करके, उन्हें खाते थे और फिर पास के तालाब में जाकर नहाते थे..बड़े मजे के दिन थे वो भी.
मैं : "हाँ याद है रूपा...चल शुरू करते हैं.."
रूपा ने पास की चारपाई पर पके हुए आम का ढेर लगा दिया और हम दोनों पानी से धोकर, आम खाने लगे..जो जितने ज्यादा आम खायेगा, वही जीतेगा, यही होता था पहले तो..
मैं आम खाता जा रहा था और मेरी नजर रूपा के पके हुए आमो पर थी...यानी उसके मोटे-ताजे मुम्मो पर..जिन पर आम का रस गिरकर अपना गीलापन छोड़ रहा था..मन तो कर रहा था की इसी चारपाई पर उसे लिटा दू और उसके आम चूस लू..
पर वो अल्हड सी लड़की मेरी कामुक नजरो से बेखबर, आम चूसने में लगी हुई थी, मानो ये आम चुसो प्रतियोगता जीतकर वो गोल्ड मेडल लेना चाहती हो.. और आखिर में वो जीत ही गयी..
रूपा : "हुररेईsssssssssssssssss........................... मैं जीत गयी..."
मैं मुस्कुरा कर रह गया.
मेरी नजर अभी भी उसके आम रस से सने हुए टॉप पर थी..
उसने मेरी नजरो का पीछा किया और कपडे पर आम गिरा देखकर वो बोली : "हाय दैय्या...मर गयी...अम्मा मारेगी आज भी..कल भी डांट पड़ी थी, कह रही थी की इतनी बड़ी हो गयी है, पर आम खाने की अक्ल अभी तक नहीं आई."
मैं : "चलो फिर, तालाब में जाकर साफ़ कर लो इसे.."
रूपा : "हाँ चलो...जल्दी चलो."
वो उठ कर तालाब की तरफ भागने लगी.. मैं भी उसके पीछे की और चल दिया.
तालाब हमारे बगीचे के साथ ही है, उसके दूसरी तरफ घना जंगल शुरू हो जाता है.
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