FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
06-13-2020, 01:08 PM,
#41
RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
नसीम ने कहा—"जो धमकी मैं महुआ को देकर आई थी, शायद वह वास्तव में उससे डर गया था। तभी तो उसने मुझसे मुलाकात का कोई जिक्र इंस्पेक्टर म्हात्रे से नहीं किया।"
"इसके बाद म्हात्रे तुम्हारे बयान लेने कोठे पर पहुंचा, उस वक्त तक क्योंकि हमारी आगे की रणनीति स्पष्ट नहीं थी, अतः तुमने साफ-साफ कुछ न कहकर घटना से अनभिज्ञता जाहिर करते हुए ऐसे गोल-मोल जवाब दिए कि म्हात्रे तुम्हारी तरफ से सन्देह की स्थिति में रहे।"
"करेक्ट।"
"इसके बाद हमारी रणनीति बनी और उस पर अमल शुरू हुआ।"
"वह रणनीती क्या थी?"
"सुरेश को चूंकि मालूम नहीं था—इसलिए अपने कमरे में एक पेन्टिंग टांगने के बहाने विनीता ने उस कील और हथौड़ी पर सुरेश की उंगलियों के निशान ले लिए जिनसे नाव की तली में छेद किए गए थे—इन दो चीजों को सुरक्षित तरीके से बड़कल लेक के किनारे ठीक उस स्थान पर जमीन में गाड़ दिया गया, जहां महुआ की नाव खड़ी रहती है—उधर, नाव में छेद करते मेरे फोटो पर ट्रिक फोटोग्राफी से सुरेश का चेहरा पेस्ट कर दिया गया—ये दोनों सुरेश को जानकीनाथ का हत्यारा साबित करने के पुख्ता सबूत थे।"
"मगर चूंकि हमें मालूम था। कि सुरेश हत्यारा नहीं है, अतः अपनी अप्रत्याशित गिरफ्तारी पर वह बुरी तरह चौंकेगा, साथ ही वह ऐसा कोई सबूत भी पेश कर सकता है जिससे हमारी सारी योजना धराशायी हो जाए।" नसीम बानो कहती चली गई—"इसलिए मैंने उसे फोन किया।"
"ये फोन की जरूरत स्पष्ट नहीं हुई।"
"दरअसल हम यह चाहते थे कि जब म्हात्रे सुरेश को गिरफ्तार करने पहुंचे तो वह इतने स्वाभाविक अंदाज में न चौंक सके, जिस देखकर म्हात्रे हमारी दी हुई लाइन से बाहर सोचने लगे।" नसीम ने कहा— "साथ ही फोन पर बात करके मैं ये भी जानना चाहती थी कि अपनी गिरफ्तारी के वक्त सुरेश अपने हक में म्हात्रे को क्या दलील या सबूत दे सकता है, ताकि उसकी काट सोचने के बाद ही हम म्हात्रे को उसके पास तक पहुंचाएं।"
विनीता बोली— "हमने योजना बनाई थी कि एक तरफ झूठे गवाहों और कील-हथौड़ी बरामद कराकर म्हात्रे के दिमाग में ठूंस-ठूंसकर सुरेश का नाम भर देंगे—दूसरी तरफ फोन कर-करके सुरेश को इतना प्रिपेयर कर लेंगे कि म्हात्रे के गिरफ्तार करने पर वह स्वाभाविक अंदाज में न चौंक सके—साथ ही अपने पक्ष में वह जो दलील और सबूत पेश करे, उसे काट सके।"
"मैंने यह सोचा था कि जब मैं फोन पर सुरेश से इस ढंग से बात करूंगी जैसे उसने मेरे साथ मिलकर जानकीनाथ की हत्या की है तो वह बुरी तरह चौंकेगा।" नसीम बानो ने कहना शुरू किया—"चीखेगा, चिल्लाएगा—कहेगा कि मैं ये क्या बेपर की उड़ा रही हूं—तब मैं उससे कहूंगी—कि इस तरह मुझसे धोखा करके वह बच नहीं सकता—मैं ये भी कहती कि मुझ अकेली को हत्या के जुर्म में फंसाने का उसका ख्वाब पूरा नहीं होगा—बौखलाकर वह चीखता-चिल्लाता ही रह जाता, जबकि मैं म्हात्रे को वादामाफ गवाह बनकर बयान देती कि सुरेश ने मेरे साथ मिलकर जानकीनाथ की हत्या की है और अब मुकर रहा है, मुझे पहचानने तक से इंकार कर रहा है—मेरी गवाही, फोटो और कील-हथौड़ी बरामद उसके फिंगर प्रिन्ट्स मुझे सच्ची और सुरेश को झूठा साबित करके मुकम्मल रूप से उसे हत्यारा साबित कर देते मगर.....।"
"मगर—?"
"ऐसा कुछ नहीं हुआ, उल्टे हम हैरत में फंस गए हैं, पूछो कैसे—पूछो।"
"कैसे?"
"जब मैंने सुरेश को फोन किया और ऐसी बातें कहीं जैसे उसने मेरे साथ मिलकर कोई अपराध किया है, तो चौंकने के स्थान पर हमारी समस्त आशाओं के विपरीत उसने भी इस तरह की बातें कीं जैसे सचमुच वह मेरे साथ किसी अपराध में शामिल रहा हो।" नसीम ने बताया—"अब चौंकने की बारी मेरी थी, मैं चौंकी ही नहीं, बल्कि यह सोचकर भौंचक्की रह गई कि जब मेरे साथ मिलकर उसने कुछ किया ही नहीं है तो इस ढंग से बातें क्यों कर रहा है?"
"बात थी ही हैरतअंगेज।"
"म्हात्रे के साथ ही काल्पनिक मनू और इला के नाम मैंने इस ढंग से लिए जैसे उनके सम्बन्ध में उससे मेरी बातचीत पहले भी हो चुकी हो, मुझे उम्मीद थी कि बुरी तरह चौंककर ढेर सारे सवाल करेगा, परन्तु उसने उल्टे इस तरह बात की मानो मेरे और उसके बीच सचमुच पहले से ही इस सम्बन्ध में बातचीत होती रही हो, उससे बात करने के बाद जब मैंने रिसीवर क्रेडिल पर रखा, तब मेरा बुरा हाल था, हाथ-पैर कांप रहे थे, चेहरे पर पसीना-ही-पसीना।"
"ऐसी हालत होना स्वाभाविक ही था।" विमल ने कहा— "सामने वाले से जब हम झूठ बोल रहे हैं और जानते हैं कि वह जानता है कि हम झूठ बोल रहे हैं तो यही उम्मीद करेंगे कि वह हमारे झूठ का प्रतिवाद करेगा—मगर जब वह झूठ का प्रतिवाद करने के स्थान पर उसे स्वीकार करने लगे तो कल्पना की जा सकती है कि झूठ बोलने वाले की हालत कितनी दयनीय हो जाएगी?"
"फोन रखने के बाद मुझे लगा कि कहीं मैं किसी भ्रम की शिकार तो नहीं हो गई हूं, अतः शाम के वक्त पुनः फोन किया—सुरेश ने सुबह की तरह ही सबकुछ स्वीकार करते हुए बातें कीं—मैंने मनू और इला का हवाला देकर बीस हजार रुपये के साथ बस अड्डे पर आने की दावत दी, इस उम्मीद में कि देखूं उस पर क्या प्रतिक्रिया होती है, मगर वह आने के लिए तैयार हो गया—सच बात तो ये है कि बस अड्डे पर उससे मिलने जाने पर मुझे डर लग रहा था, परन्तु यह सोचकर गई कि देखूं तो सही वह क्या बात करता है—बातें हुईं, आजमाने के लिए मैंने उससे कहा कि 'तुम मनू और इला से मिल चुके हो'—पट्ठा फौरन सहमत ही नहीं हो गया, बल्कि यह भी कहने लगा कि 'अब मैं ज्यादा दिन तक ब्लैकमेल होता नहीं रह सकता, अतः जल्दी ही मनू और इला का कोई इलाज सोचूंगा'—गजब की बात तो ये है कि मनू और इला से उसके मिलने की बात तो दूर, इस नाम के गुण्डे दुनिया में कहीं हैं भी, ये मैं नहीं जानती—मुझसे पांच लाख में सौदा और एक लाख बकाया की बात भी उसने स्वीकार कर ली—उल्टा आगे बढ़-बढ़कर इस तरह की बातें करने लगा जैसे सममुच उसने मेरे साथ मिलकर जानकीनाथ की हत्या की हो—इस वक्त कैफियत ये है कि जो झूठ हम बोलते हैं, उसे सुरेश हमसे भी दो-चार कदम आगे बढ़कर स्वीकार कर रहा है।"
"जबकि हम सीधे-सीधे उसे उसके बाप का हत्यारा कह रहे हैं।"
"और वह स्वीकार भी कर रहा है, जो उसने किया ही नहीं, उसे मान रहा है—सोचने वाली बात तो ये है कि आखिर क्यों है, क्या चक्कर है ये?"
विनीता ने कहा— "मेरी एक राय है।"
"क्या?" एक साथ दोनों के मुंह से निकला।
"हमारा उद्देश्य सुरेश को जानकीनाथ की हत्या के जुर्म में फंसाना ही तो है न?"
"बेशक।"
"और वह स्वयं फंसने के लिए तैयार है तो क्यों न फाइनल मोहरा आगे बढ़ा दें?"
"क्या मतलब?" विमल ने पूछा।
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06-13-2020, 01:08 PM,
#42
RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
"नसीम बस अड्डे पर सुरेश से हुई बातें जेबी टेपरिकॉर्डर के जरिये टेप कर चुकी है, वह टेप अभी कुछ देर पहले इसने हम दोनों को सुनाया—उससे सुरेश खुद को साफ-साफ जानकीनाथ का हत्यारा स्वीकार कर रहा है। क्यों न अपने पूर्व प्लान के मुताबिक नसीम म्हात्रे के पास जाकर वादामाफ गवाह बनकर यह टेप भी उसके हवाले कर दे, किस्सा ही खत्म हो जाएगा।"
"इससे बढ़कर बेवकूफी-भरी राय और क्या हो सकती है?"
"क्यों?"
"सबसे पहले हमें यह जानना है कि सुरेश स्वयं हमारे बेसिर-पैर के झूठ को आखिर क्यों स्वीकार कर रहा है?" नसीम ने कहा।
विनीता बोली— "इस ऊल-जलूल सवाल में उलझने की क्या जरूरत है?"
"जरूरत है विनीता, बेहद सख्त जरूरत है” , विमल ने एक-एक शब्द पर जोर देते हुए कहा— "इस सवाल का जवाब तलाश किए बिना हम एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा सकते।"
"क्यों?"
"मुमकिन है कि इस सवाल के पीछे सुरेश की कोई गहरी साजिश छुपी हो, कोई उससे भी जटिल और खतरनाक साजिश—जैसी हम उसके विरुद्ध रच रहे थे—सम्भव है कि उसकी कामयाबी पर उल्टे हम ही बुरी तरह फंस जाएं।"
"ऐसी क्या साजिश हो सकती है?"
"यह पता लगाना ही हमारा पहला कदम होना चाहिए।"
विनीता चुप रह गई।
नसीम ने कहा— "सुरेश की यह हैरतअंगेज स्वीकारोक्ति बेवजह नहीं हो सकती और जब तक हम उस वजह की तलाश नहीं कर लेंगे, तब तक ऊहापोह की इसी स्थिति में रहेंगे जिसमें इस वक्त हैं—आगे की कोई भी रणनीति हम तभी बना पाएंगे जब जान लेंगे कि वह हमारे झूठ को स्वीकार क्यों कर रहा है?"
"क्या यह जरूरी है कि ऐसी साजिश नहीं है तो ऐसा कर ही क्यों रहा हो?"
नसीम बोली— "अगर कोई साजिश नहीं है तो ऐसा कर ही क्यों रहा हैं?"
"साजिश है।" विमल ने कहा— "मेरे पास एक ऐसी दलील है, जिससे स्पष्ट हो जाएगा कि वह सबकुछ निश्चय ही किसी साजिश के तहत कर रहा है।"
"कैसी दलील?"
"उसने खुद कहा कि उंगलियों के जो निशान इंस्पेक्टर ले गया है, वे कील और हथौड़ी से बरामद निशानों से बिल्कुल मेल नहीं खाएंगे—सोचने वाली बात ये है कि ऐसा क्योंकर होगा—इतने विश्वासपूर्वक यह बात उसने किस आधार पर कही, जबकि दोनों स्थानों पर फिंगर प्रिन्ट्स उसी के हैं।"
"मुमकिन है कि इंस्पेक्टर को फिंगर प्रिन्ट्स देते वक्त उसने प्लास्टिक सर्जरी वाली नकली उंगलियों का इस्तेमाल किया हो?"
"निश्चय ही उसने ऐसा किया है।" विमल बोला— "और जब ऐसा किया है तो जाहिर है कि वह हर कदम सोच-समझकर किसी साजिश के तहत उठा रहा है।"
विनीता भी सहमत हुए बिना न रह सकी।
कुछ सोचती-सी नसीम ने कहा— "मेरे दिमाग में एक ख्याल आ रहा है।"
"क्या?" विमल ने पूछा।
"मान लो किसी सोर्स से सुरेश को यह पता लग गया हो कि म्हात्रे जानकीनाथ के मर्डर केस की इन्वेस्टिगेशन कर रहा है और उसने जो कील-हथौड़ी बरामद की हैं, वे वही हैं जिससे एक रोज विनीता ने उससे कील ठोकने में मदद ली थी, तो क्या उसके दिमाग में तुरन्त यह बात नहीं आ गई कि कील-हथौड़ी पर से उसी के फिंगर प्रिन्ट्स बरामद होने जा रहे हैं, और क्या इसी समझ के तहत उसने प्लास्टिक फिंगर प्रिन्ट्स का इस्तेमाल नहीं किया होगा?"
"हो सकता है।" विमल के मुंह से निकला।
"यह केवल एक सम्भावना है जो सही भी निकल सकती है और गलत भी—यदि यह सम्भावना सही है तो जाहिर है कि उसे पक्के तौर पर यह पता लग गया होगा कि उसकी बीवी उसे हत्या के जुर्म में फंसाने की कोशिश करने वाले षड्यंत्रकारियों से मिली हुई है।"
विनीता का चेहरा धुंआ-धुंआ।
नसीम कहती चली गई—"इसका मतलब ये हुआ कि षड्यंत्रकारी के रूप में वह मुझे भी जान गया है, बाकी रह जाता है—विमल—।"
विमल के शुष्क हलक से डरी हुई आवाज निकली—"यदि हम इसी तरह बेवकूफियां करते रहे तो एक दिन वह मेरे बारे में जान जाएगा।"
जवाब में कोई कुछ नहीं बोला।
सन्नाटा छा गया वहां।
इतना गहरा कि अपने ही नहीं बल्कि एक-दूसरे के धड़कते दिल की आवाज वे स्पष्ट सुन सकते थे—ये दिल आतंकित होकर धड़क रहे थे, चेहरे ही बता रहे थे कि उक्त विचारों ने उनके भीतर हड़कम्प मचा दिया है।
राहत नसीम ने पहुंचाई, बोली— "मैंने सिर्फ एक सम्भावना कही है, अत: जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि सम्भावना सही है तब तक हममें से किसी को नर्वस नहीं होना चाहिए।"
"मगर गौर तो किया जाना चाहिए कि अगर ये सम्भावना सही हुई तो हमारा अगला कदम क्या होगा?" विनीता ने कहा।
"उस हालत में सुरेश का मर्डर कर देने के अलावा हमारे पास कोई चारा नहीं रहेगा।"
"म.....मर्डर!" विनीता का हलक सूख गया।
"हां, इस बात पर याद आया।" विमल ने कहा— "कोई और है जो सुरेश के मर्डर की कोशिश कर रहा है, उसने मर्सडीज के ब्रेक फेल किए—ड्राइवर बेचारा तो मर ही गया—सुरेश तब भी बच गया तो एक सफेद एम्बेसडर ने उसे कुचलने की कोशिश की—सवाल उठता है कि सफेद एम्बेसडर किसकी थी, कौन है जो सुरेश का मर्डर करना चाहता है?"
दोनों चुप।
जवाब हो तो बोलें भी।
"यह एक और सवाल है जिसका हमें जवाब तलाश करना है।" विमल ने एक-एक शब्द पर जोर देते हुए कहा— "मेरे और विनीता के अलावा ऐसा कौन है जिसको सुरेश की मौत से कुछ फायदा हो सकता है?"
"किसी की हत्या करने की वजह केवल फायदा ही नहीं होता।" नसीम ने कहा— "दूसरी कई वजहें हो सकती हैं।"
"मसलन?"
"कोई किसी से बेइन्तहा नफरत या ईर्ष्या करता हो।"
"अगर वह कोशिश मिक्की की मौत से पहले हुई होती तो इस वक्त मैं फौरन कहती कि ऐसा एक आदमी मिक्की है।" विनीता ने कहा— "वह सुरेश से इतनी ईर्ष्या करता था कि मर्डर तक की बात सोच सकता था।"
"इसके अलावा कोई अन्य ऐसा है, जिस पर तुम्हें शक हो?"
"नहीं।"
"मगर ऐसी कोशिश हुई है, अतः जाहिर है कि कोई सुरेश की हत्या का तलबगार है, वह कौन है और सुरेश की हत्या क्यों करना चाहता है—यह पता लगाना भी उतना ही जरूरी है जितना सुरेश की स्वीकारोक्ति के बारे में पता लगाना।"
"मामला बहुत उलझ गया है नसीम।" विमल ने बहुत थके स्वर में कहा— "जब हमने सुरेश को फंसाने की स्कीम बनाई थी, तब किस्सा बिल्कुल सीधा-सादा और साफ था, मगर अब तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि मामला आखिर है क्या?"
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06-13-2020, 01:08 PM,
#43
RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
विनीता कह उठी—"मुझे लगता है कि हमने नसीम की बातों में आकर गलती की।"
"क्या मतलब?" नसीम गुर्राई।
"जानकीनाथ की हत्या तक का मामला ठीक-ठाक निपट गया था, तुम्हारी ही सलाह पर हमने सुरेश को फंसाने के लिए पुलिस को पत्र लिखकर इस दबे-दबाए मामले को पुनः उखड़वाया और आज हम मुसीबत में फंस गए हैं।"
"हां, दूध पीते बच्चे हो तुम लोग तो कि जो मैंने कहा, तुमने मान लिया।" नसीम बिगड़ गई—"अपने पति का मर्डर करके उसकी दौलत पर अपने यार के साथ रंगरेलियां मनाने का सपना तो तुमने देखा ही नहीं था।"
"यह सपना तुमने देखा, मैंने तो उसे पूरा करने का रास्ता दिखाया था।"
"जैसे उसमें तुम्हारा अपना कोई लालच ही नहीं था।"
नसीम गुर्राई—"मैंने कभी नहीं कहा कि मैं बिना किसी लालच के कभी कोई काम करती हूं—सुरेश को फंसाने के लिए वादामाफ गवाह के रूप में ही सही मगर मैंने खुद को पुलिस के सामने हत्यारिन के रूप में प्रस्तुत करने का फैसला किया तो क्या इसकी कोई कीमत भी न लेती, दस लाख इस काम के लिए ज्य़ादा नहीं थे।"
विनीता के कुछ कहने से पहले ही हस्तक्षेप करते हुए विमल ने कहा— "इन बेकार के मुद्दों पर हमें आपस में लड़ने की जगह आगे की रणनीति तैयार करनी चाहिए।"
कुछ देर खामोशी रही। फिर नसीम ने कहा— "मेरे ख्याल से जब तक सुरेश की स्वीकारोक्ति की सही वजह पता नहीं लग जाती, तब तक हमें वह नाटक जारी रखना चाहिए, जो सुरेश के साथ चल रहा है।"
विमल बोला— "इसके अलावा कोई चारा भी नहीं है।"
¶¶
अगले दिन।
शाम के वक्त।
ड्रेसिंग टेबल के सामने बैठी नसीम बानो मुजरे के लिए खुद को सजाने-संवारने में व्यस्त थी कि एक साजिन्दे ने आकर सूचना दी- "रहटू आया है मोहतरमा।"
"रहटू......रहटू?" वह हल्के से चौंकी।
"जी।"
"क्या तुम चांदनी चौक वाले रहटू की बात कर रहे हो.....वह गुट्टा?"
"जी हां।"
बुरा-सा मुंह बनाकर नसीम ने कहा— "फक्कड़ आदमियों के लिए मेरे पास टाइम नहीं है, तुमसे कह रखा है कि ऐसे लीचड़ लोगों को बगैर पूछे दरवाजे से टरका दिया करो।"
"मैंने कोशिश की थी मगर टला नहीं—कहता है कि बहुत जरूरी बात करनी है। आपसे मिलकर ही जाऊंगा।"
"हुंह.....कह दो हमारी तबीयत नासाज है, फिर कभी आए।"
"तुम भूल गईं नसीम बानो कि रहटू जहां जिस लिए जाता है, वहां से अपना काम किए बगैर लौटता नहीं है।" इन शब्दों के साथ
अत्यन्त नाटा रहटू कमरे के दरवाजे पर नजर आया, कुटिल मुस्कराहट के साथ वह कह रहा था—"मुझे सामने देखकर अच्छे-अच्छों की नासाज तबियत दुरुस्त हो जाती है।"
"अरे रहटू, तुम.....आओ.....आओ.....बैठो।" नसीम बानो ने गिरगिट की तरह रंग बदलकर उसका स्वागत करते हुए कहा—"बहुत दिनों बाद हमारी याद आई?"
रहटू अजीब ढंग से मुस्कराया।
आगे बढ़ते हुए उसने साजिन्दे की तरफ देखकर चुटकी बजाई, यह उसके लिए कमरे से बाहर चले जाने का हुक्म था।
यहां रहटू के खौफ का अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि साजिन्दा नसीम बानो की इजाजत लिए बिना ही कमरे से बाहर चला गया—उसकी अनुपस्थिति में भले ही नसीम बानो ने चाहे जो कहा हो, मगर फिलहाल वह भी बटरिंग कर रही थी, बोली— "बैठो रहटू।"
"मैं खड़ा हुआ भी उतना ही ऊंचा हूं, जितनी तुम बैठकर हो।"
नसीम ही-ही करके हंसने लगी।
उस पर ध्यान देने के स्थान पर रहटू ने कमरे का दरवाजा बन्द किया और उस वक्त सांकल लगा रहा था, जब नसीम ने पूछा—"ये क्या कर रहे हो, रहटू?"
"क्यों?" वह पलटकर बोला— "क्या मैं ऐसा कुछ कर रहा हूं जो यहां कोई नहीं करता?"
"न.....नहीं, ये बात नहीं है।"
"फिर क्यों कुंवारी कन्या की तरह मरी जा रही हो, दरवाजा बन्द कर लेना यहां कोई नई बात तो नहीं है—माना कि तुम्हें दरवाजा खुला रखने में भी कोई शर्म नहीं आती होगी, मगर यहां आने वालों को कम-से-कम इतनी शर्म तो होती है।"
"तुम गलत समझ रहे हो रहटू।" नसीम गिड़गिड़ा-सी उठी—"दरअसल तुम जानते हो....यह टाइम मुजरे का है।"
रहटू ने सपाट स्वर में कहा— "आज तुम मुजरा नहीं कर सकोगी।"
"क.....क्यों?" वह चिहुंक उठी।
"सबसे पहली बात ये कि दरवाजा मैंने उसके लिए बन्द नहीं किया है जिस लिए तुम समझ रही हो।" निरन्तर उसकी तरफ बढ़ रहे रहटू ने कहा— "दरअसल मैं तुमसे कुछ ऐसी बातें करने आया हूं, जिन्हें किसी अन्य ने सुन लिया तो शायद तुम्हारी सेहत के लिए ठीक नहीं होगा और वे बातें ऐसी भी हैं कि सुनने के बाद तुम्हारा मूड इतना उखड़ जाए कि आज के बाद मुजरा भी न कर सको।"
"ऐसी क्या बात है?"
"मैं सुरेश के बारे में बात करने आया हूं।"
"स.....सुरेश।" नसीम बानो उछल पड़ी—"क.....कौन सुरेश?"
"करोड़पति सेठ जानकीनाथ का लड़का सुरेश, मेरे मरहूम दोस्त मिक्की का भाई सुरेश, बल्कि यह कहूं तो ज्यादा उचित होगा कि मिक्की का हत्यारा सुरेश।"
"म.....मगर मेरा उस सुरेश से क्या संबंध?"
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06-13-2020, 01:08 PM,
#44
RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
"अच्छा!" रहटू ने उसकी आंखों में झांकते हुए कहा— "उससे तुम्हारा कोई संबंध नहीं है?"
धाड़-धाड़ करते दिल पर काबू पाने का प्रयास करती नसीम ने कहा— "सेठ जानकीनाथ तो मेरे पास आता था, एक दिन हम बड़कल लेक में नौका विहार कर रहे थे कि नाव डूबने से उसकी मृत्यु हो गई—उस दौरान एक-दो बार सुरेश से मुलाकात हुई थी, इससे ज्यादा मेरा उससे कोई सम्बन्ध नहीं है।"
उसे घूरते हुए रहटू ने अजीब स्वर में कहा— "सच?"
"स...सच।" नसीम बानो बड़ी मुश्किल से कह पाई।
“ ये है कि तुम अपने रसभरी गुलाबी होंठों से कुछ और बता रही हो और तुम्हारा ये हसीन चेहरा, नशीली आंखें और सुर्ख गाल कुछ और ही कह रहे हैं।"
"क.....क्या मतलब?"
"शीशे के सामने बैठी हो, जरा पलटकर गौर से अपना अक्स देखो—अपने हसीन मुखड़े पर तुम्हें हवाइयां उड़ती नजर आएंगी, आंखें शेर की मांद में फंसी हिरनी-की-सी लग रही हैं—और ये सब लक्षण इस बात के गवाह हैं कि मुझसे सरासर झूठ बोलते वक्त तुम बेहद डरी हुई हो।"
"न.....नहीं तो।" वह कुछ और ज्यादा बौखला गई।
"खैर.....न सही, थोड़ी देर के लिए उसी को सच मान लेता हूं—जो तुम होंठों से कह रही हो।" रहटू अपने एक-एक शब्द पर इतना जोर डालता हुआ कह रहा था कि नसीम के होश उड़े जा रहे थे—"यह तो मानती हो कि सेठ जानकीनाथ के लड़के सुरेश से तुम अपरिचित नहीं हो?"
"हां।" नसीम बानो का हलक सूख गया था।
"मुझे उसका मर्डर करना है।"
"क्या!" नसीम अन्दर तक हिल उठी।
"हां।"
नसीम बानो हक्की-बक्की रह गई।
बोले भी तो क्या?
जबकि रहटू ने पुनः कहा— "तुमने पूछा नहीं, पूछो.....क्यों?"
"क.....क्यों?" उसके मुंह से मानो जबरदस्ती निकला।
"क्योंकि वह मेरे यार का हत्यारा है, मिक्की की मौत का जिम्मेदार वही है—अगर उस कमीने ने मिक्की को दस हजार रुपये दे दिए होते तो मेरे यार ने आत्महत्या न की होती....दस हजार रुपये लोग उसके हाथ के मैल के दे सकते हैं।"
"म.....मगर इन सब बातों का मुझसे क्या मतलब?"
रहटू ने साफ शब्दों में कहा— "इस मर्डर में मुझे तुम्हारी मदद चाहिए।"
"म.....मेरी मदद?" नसीम बानो के छक्के छूटे जा रहे थे, काटो तो खून नहीं, इतनी ज्यादा नर्वस हो चुकी थी वह कि बड़ी मुश्किल से
कह पाई—"भला मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकती हूं?"
"क्यों, जब जानकीनाथ के मर्डर में तुम उस हरामजादे की मदद कर सकती हो तो उसके मर्डर में मेरी मदद क्यों नहीं कर सकतीं?"
नसीम बानो हतप्रभ।
जैसे लकवा मार गया हो उसे।
होश उड़ गए, मस्तिष्क में धमाके से हो रहे थे—नसों में दौड़ता समूचा खून जैसे पानी में तब्दील होता चला गया—सामने खड़े अत्यन्त नाटे रहटू को वह ऐसी नजरों से देख रही थी मानों वह उसे कुतुबमीनार से कई गुना ज्यादा लम्बा नजर आ रहा हो, उसके मुंह से बोल न फूटा, जबकि उस अत्यन्त नाटे शैतान ने कहा— "यह कहकर टाइम बर्बाद करने की चेष्टा मत करना नसीम बानो कि मैं गलत कह रहा हूं।"
"क.....क्या मतलब?" बुत बनी खड़ी नसीम बानो के मुंह से निकला।
"मैं जानता हूं कि वह दुर्घटना नहीं, बल्कि सुरेश और तुम्हारी साजिश थी, जानकीनाथ क्योंकि तैरना नहीं जानता था, अतः सुरेश ने पहले ही उस नाव की तली में छेद कर दिए थे जिसमें तेरह नवम्बर को तुम्हें नौका-विहार करना था।"
"य.....ये झूठ है, गलत है।" तंद्रा टूटते ही नसीम चीख पड़ी—"तुम्हें किसी ने गलत इन्फॉरमेशन दी है, रहटू, इस बात में रत्ती बराबर भी सच्चाई नहीं है।"
"तुम्हारी ये कोशिश बिल्कुल बेकार है।" रहटू ने आराम से कहा।
"क्यों?"
"क्योंकि सच्चाई मुझे ठीक उसी तरह पता है जिस तरह तुम्हें.....इस काम के सुरेश से तुमने पांच लाख तय किए थे, चार मिल चुके थे—एक अभी बाकी है—मनू और इला का नाम लेकर जो रुपये तुम उससे ऐंठ रही हो, वह इस हिसाब से अलग है।"
"क.....कहना क्या चाहते हो?"
"सुरेश भले ही तुम्हारे झांसे में आया हुआ हो मगर मैं नहीं आ सकता। जानता हूं कि दिल्ली के इस छोर से उस छोर तक मनू और इला नाम के बदमाश कहीं नहीं पाए जाते और यदि बाहर से बदमाश दिल्ली में कदम रखता है तो उसका नाम रहटू को सबसे पहले पता
लगता है—मनू और इला वास्तव में तुम्हारे दिमाग की कल्पनाओं से पैदा हुए ऐसे बदमाश हैं, जिनका नाम लेकर तुम अपने गुर्गों से खिंचवाए हुए एक फोटो के जरिए सुरेश से नम्बर दो की कमाई करती हो।"
नसीम बानो को सांप सूंघ गया।
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06-13-2020, 01:08 PM,
#45
RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
एक बात भी तो ऐसी नहीं थी जो रहटू को पता न हो, मगर ये सब वे बातें थीं, जो पट्टी सुरेश को पढ़ाई जा रही थी—इस वास्तविकता की जानकारी रहटू को भी नहीं थी कि वास्तव में उसके साथी विनीता और विमल हैं, सुरेश नहीं।
मगर।
यह ख्याल नसीम बानो के होश उड़ाए दे रहा था कि इतनी सब जानकारियां थर्ड ग्रेड के बदमाश, इस रहटू को मिल कहां से और कैसे गईं? सो, अपनी इसी जिज्ञासा को शान्त करने के लिए उसने पूछा—"य.....सब तुम्हें किससे पता चला?"
बड़ी ही गहरी मुस्कराहट के साथ रहटू ने कहा— "मतलब ये कि तुम स्वीकार कर रही हो कि जो कुछ मैं कह रहा हूं, वह सच है?"
नसीम सोच में पड़ गई।
तुरन्त नतीजे पर न पहुंच सकी कि स्वीकार करे या नहीं और उसकी दुविधा भांपकर रहटू ने पुनः कहा— "मैं फिर कहूंगा जानेमन कि इंकार करने से समय बर्बाद करने के अलावा और कुछ नहीं होगा—मैं इतना सब और इतनी अच्छी तरह जानता हूं कि अन्ततः मेरे सामने तुम्हें घुटने टेकने ही पड़ेंगे—और फिर मैं कोई पुलिस वाला तो हूं नहीं, जो तुम्हारे 'हां' कहते ही हथकड़ियां डालकर घसीटता हुआ थाने ले जाऊंगा—मैं स्वयं भी एक मुजरिम हूं और यदि एक मुजरिम दूसरे को कुछ बता भी दे तो दूसरा मुजरिम अपनी भलाई के लिए उसे पचाना खूब जानता है।"
मजबूरी थी।
हथियार डाल देने में ही नसीम ने भलाई समझी। विवशता-भरी एक लम्बी—सांस लेने के बाद उसने कहा— "समझ लो कि मैं वह सब स्वीकार कर रही हूं, जो तुमने कहा।"
"गुड।" रहटू की आंखें चमक उठीं।
"अब यह बताओ कि तुम्हें ये सब जानकारियां कहां से मिलीं?"
पूरी योजना बनाकर आए रहटू ने बताया—"मिक्की की जलती चिता पर मैंने कसम खाई थी कि सुरेश से उसकी मौत का बदला हर हालत में लूंगा—तभी से मैं सुरेश के पीछे था, कल रात जब वह कोठी से निकला तो मैंने उसका पीछा किया और बस अड्डे पर एक थम्ब के पीछे छुपकर मैंने तुम्हारी एक-एक बात सुनी।"
"ओह!" नसीम के मुंह से निकला, फिर अचानक उसे कोई बात याद आई और उसने सवाल कर दिया—"क्या सुरेश की मर्सडीज के ब्रेक फेल करके और उसके बाद सफेद एम्बेसेडर से तुम्हीं ने उसके मर्डर की कोशिश की थी?"
"हां।" उस पर अपना प्रभाव जमाने के लिए रहटू ने झूठ बोला— "इतने इन्तजाम के बावजूद साला बच गया, मगर बचेगा कब तक.....मैं जब तक उस स्थान पर सुरेश के जिस्म के टुकड़े नहीं बिखेर दूंगा, जहां मिक्की की चिता जली थी—तब तक चैन से नहीं बैठूंगा।"
नसीम बानो चुप रही।
रहटू ने पुनः कहा— "कल बस अड्डे पर तुम लोगों की बातें सुनने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि सुरेश का मर्डर करने में तुम मेरी मदद कर सकती हो, खासतौर से उस स्थिति में जबकि मर्डर करने के बाद मैं पकड़ा भी नहीं जाना चाहता।"
"मगर मैं समझी नहीं कि तुम किस किस्म की मदद मांग रहे हो?"
"वैसी ही जैसी जानकीनाथ के मर्डर में सुरेश की की थी, जिस तरह तुम जानकीनाथ को कहीं भी ले जाने की सहूलियत की वजह से तेरह नवम्बर को बड़कल लेक ले गईं और उसी नाव में बैठीं जिसमें योजनानुसार सुरेश छेद कर चुका था, ठीक उसी तरह तुम्हारा पास यह सहूलियत है कि जहां चाहो सुरेश को ला सकती हो, बोलो.....तुम्हारे पास यह सहूलियत है न?"
नसीम को कहना पड़ा—"हां।"
"बस.....जब वह मेरी इच्छित जगह आ जाएगा तो मर्डर करने में क्या दिक्कत होगी?"
"अभी तुम कह रहे थे कि मर्डर करने के बाद पकड़े जाना नहीं चाहते।"
"करेक्ट?"
"कत्ल की कोई सॉलिड स्कीम सोची?"
"वह भी तुम ही सोचोगी।"
"म.....मैं?" वह हकला गई।
"क्यों.....क्या जानकीनाथ मर्डर की स्कीम तुम्हारे दिमाग की उपज नहीं थी?"
"बिल्कुल नहीं, स्कीम तो सुरेश की ही थी—मैंने तो सिर्फ उस पर अमल किया था।"
"फिर ठीक है।" रहटू ने कहा— "स्कीम बनाने का काम मेरा सही।"
"क्या अभी तक इस बारे में तुमने कुछ नहीं सोचा है?"
"मैं सीढ़ी-दर-सीढ़ी सोचना पसन्द करता हूं, जानेमन—यहां आने से पहले सिर्फ यह सोचता था कि तुम्हें मर्डर के लिए किस तरह तैयार
करना है—यह काम हो चुका है, अब एकाध दिन में मर्डर की स्कीम भी सोच लूंगा।"
"ठीक है।"
"ओ. के.।" कहकर रहटू खड़ा होता हुआ बोला— "अब स्कीम सोचने के बाद ही तुमसे मिलूंगा और याद रखना, सुरेश से तुम्हारा सौदा भले ही पांच लाख में हुआ हो, मगर मैं पांच टके भी देने वाला नहीं हूं।"
¶¶
विमल और विनीता के चेहरे ठीक उन गन्नों की तरह नजर आ रहे थे, जिन्हें कोल्हू के पाटों के बीच से इतनी बार गुजारा जा चुका हो कि एक बूंद भी रस न बचे।
उनके चेहरों का निरीक्षण करती हुई नसीम बानो ने अनुमान लगाया कि जब यही सब रहटू ने उससे कहा था, तब उसका अपना चेहरा भी कुछ ऐसा ही रहा होगा। कमरे में छाई खामोशी को खुद नसीम ने तोड़ा—"क्या सोचने लगे तुम लोग?"
"य.....ये बहुत गलत हो गया है।" विमल के मुंह से बोल फूटा।
"क्या गलत हो गया है?"
"रहटू को यह सब पता लगना।"
"अगर ध्यान से सोचोगे तो समझ में आएगा कि उतना गलत भी नहीं हुआ, जितना तुम लोगों को लग रहा है।"
"क्या मतलब?"
"वास्तविकता की रहटू को भनक तक नहीं है, अगर होती तो उसे पता होता कि मुझे पांच लाख देने और नाव की तली में छेद करने वाले तुम थे, सुरेश नहीं—उसे सिर्फ वह 'झूठ' पता है, जो पट्टी हम सुरेश को पढ़ा रहे हैं या सुरेश की स्वीकारोक्ति की गुत्थी सुलझ जाने के बाद पुलिस को बताने जा रहे हैं।"
"म...मगर फिर भी, रहटू जैसे थर्ड ग्रेड बदमाश को समय से पहले यह सब पता लग जाना ठीक नहीं है, वह कभी भी कोई ऐसा उल्टा-सीधा कदम उठा सकता है—जिससे हमारी सारी योजना मिट्टी में मिल जाए।"
"इसमे कोई शक नहीं, लेकिन थम्ब के पीछे छुपाकर जब उसने हमारी बातें सुन लीं तो किया क्या जा सकता है?" नसीम बानो ने कहा— "अब इसके अलावा कोई चारा भी नहीं कि हम उसे किसी तरह नियंत्रण में रखें।"
विमल चुप रह गया।
अपने मुंह से आवाज निकालने के लिए काफी देर से जोर लगा रही विनीता ने कहा— "तो तुमने सुरेश के मर्डर में उसकी मदद करना स्वीकार कर लिया?"
"यह वादा लिए बगैर वह मेरे पास से टलने वाला नहीं था, सो—जो वह चाहता था, उसके लिए तैयार होना पड़ा—अगर न होती तो वह किसी भी किस्म का कोई बखेड़ा खड़ा कर सकता था।"
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06-13-2020, 01:08 PM,
#46
RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
"म.....मगर अब.....जब वह किसी स्कीम के साथ तुम्हारे पास आएगा तो क्या करोगी?"
"इसी पर विचार-विमर्श करने के लिए तो तुम्हें बुलाया है।"
नसीम के इस जवाब पर वहां खामोशी छा गई। किसी जवाब की उम्मीद में वे एक-दूसरे का चेहरा देखने लगे और अचानक विनीता ने कहा— "अगर वह कोई उतनी ही सॉलिड स्कीम लेकर आए जितनी हमारे पास जानकीनाथ के मर्डर की थी, तो उसकी मदद करने में क्या बुराई है?"
"अच्छाई क्या है?"
"हमारा उद्देश्य सुरेश को अपने रास्ते से हटाना ही तो है, जानकीनाथ की हत्या के जुर्म में फंसाकर न हटाया तो इस तरह ही सही और इससे बेहतर क्या होगा कि यदि कहीं कोई गड़बड़ हुई भी तो उसकी हत्या के जुर्म में रहटू ही फंसेगा।"
"सोच तो तुम ठीक रही हो, मगर इस तरह स्कीम बदलने से एक बहुत बड़ी गड़बड़ हो जाएगी।"
"वह क्या?"
"इंस्पेक्टर म्हात्रे की इन्वेस्टिगेशन का क्या होगा?"
"मैं समझी नहीं।"
"इतना स्पष्ट हो चुका है कि म्हात्रे एक बेहद कांइया पुलिसिया है, फिंगर प्रिन्ट्स के मामले में सुरेश ने भले ही उसे चाहे जितना बड़ा धोखा देने की कोशिश की हो, मगर वह धोखे में आने वाला नहीं है और जितने 'क्लू' हम छोड़ चुके हैं, उनके आधार पर एक दिन वह निश्चय ही इस नतीजे पर पहुंचने वाला है कि मैंने और सुरेश ने मिलकर जानकीनाथ की हत्या की थी।"
"ऐसे कौन से क्लू हैं?"
"सबसे पहला सुरेश के फिंगर प्रिन्ट्सयुक्त कील-हथौड़ी को बरामद कराया जाना—दूसरा, महुआ को दी गई मेरी चेतावनी—भले ही महुआ ने इस सम्बन्ध में अभी तक उससे कुछ न कहा हो, मगर कुछ कहा नहीं जा सकता कि म्हात्रे के दबाव में आकर वह कब सारी हकीकत उसे बता दे, जिस दिन ऐसा हो गया उस दिन म्हात्रे ठीक उसी नतीजे पर पहुंच जाएगा जिस पर हम पहुंचाना चाहते हैं।"
"मान लीजिए, पहुंच भी गया।" विमल ने कहा— "इससे हमें क्या नुकसान होने जा रहा है?"
"कल्पना करो कि हम रहटू से सुरेश को कत्ल करा देते हैं।"
"करेक्ट।"
"उसके बाद म्हात्रे इस नतीजे पर पहुंचता है कि मैंने और सुरेश ने मिलकर सेठ जानकीनाथ की हत्या की थी।"
"फिर?"
नसीम ने उल्टा सवाल किया—"इसके बाद वह क्या करेगा?"
"वही, जो हमने पहले से सोच रखा है।" विमल बोला— "महुआ के बयान के बाद सीधा तुम्हारे पास आएगा।"
"उस वक्त मेरा बयान क्या होगा?"
"वही जो पूर्वनिर्धारित है और जिसके लिए हमने तुम्हें दस लाख रुपये दिए हैं, यानी तुम स्वीकार करोगी कि हां, तुमने और सुरेश ने मिलकर जानकीनाथ की हत्या की थी।"
“ना, मैं नहीं करूंगी।”
"क.....क्या मतलब?" विमल बुरी तरह चौंका।
नसीम ने बात स्पष्ट की—"अगर यह सब सुरेश के जीते-जी होता है तो मैं वादामाफ गवाह के रूप में यह बयान इसीलिए देने के तैयार हूं, क्योंकि मुझे कानून से वादामाफ गवाह की फैसेलिटी हासिल होगी—जरा कल्पना करो, सुरेश मर चुका है और तब ये बयान देती हूं तो वादामाफ गवाह किसके विरुद्ध बनूंगी—पुलिस को दिए जाने वाले मेरे बयान के अनुसार जानकीनाथ के दो हत्यारे होंगे—सुरेश और मैं—सुरेश उस वक्त दुनिया में होगा नहीं—सो, कानून उसे कोई सजा नहीं दे सकता—बाकी रहती हूं मैं—जाहिर है कि कानून का सारा कहर मुझ पर ही टूट पड़ेगा और वह कहर फांसी की सजा से कम नहीं होगा।"
"ओह।" विमल के दिमाग के तन्तु खुल गए, बोला— "म.....मगर बदली हुई परिस्थितियों में तुम अपना बयान बदल सकती हो।"
"उस बदलाव को जरा स्पष्ट कर दो।"
कुछ देर सोचने के बाद विमल ने कहा— "तुम साफ-साफ मुकर सकती हो, कह सकती हो कि महुआ से मिलकर तुमने वह बात कभी कही नहीं जो महुआ कह रहा है यानी तुम और सुरेश ने मिलकर जानकीनाथ की हत्या नहीं की।"
"यह सबसे बड़ी बेवकूफी होगी।"
"क्यों?"
"सबसे पहले तो म्हात्रे के सामने यह झूठ चलेगा नहीं, क्योंकि महुआ के बयान के अलावा भी बहुत से सबूत होंगे जो हम खुद छोड़ चुके हैं—फिर भी यदि मान लिया जाए कि किसी तरह मैं उसे यह धोखा देने में कामयाब हो गई तो.....।"
"तो म्हात्रे इस लाइन पर चल पड़ेगा कि अगर जानकीनाथ के हत्यारे सुरेश और नसीम नहीं हैं तो कौन हैं और यदि उसकी इन्वेस्टिगेशन इस लाइन पर आ गई तो जितना खुर्राट वह है, उससे मुझे पूरा यकीन है कि एक-न-एक दिन वह मुझ अकेली तक नहीं, बल्कि हम तीनों तक पहुंच जाएगा।"
दोनों के चेहरे फक्क।
नसीम ने कहा— "आज के डिस्कशन का कम-से-कम ये फायदा जरूर हुआ है कि हमारी समझ में यह बात आ गई कि हमारी स्कीम की कामयाबी तक सुरेश का जीवित रहना बेहद जरूरी है, अगर वह नहीं रहा तो मेरे वादामाफ गवाह बनने की वजह खत्म हो जाएगी और यदि वह वजह खत्म हो गई तो मैं इतनी बेवकूफ नहीं हूं कि अकेली फांसी के फंदे पर झूल जाऊं, उस हालत में तुम दोनों के नाम के साथ पुलिस को सारी हकीकत बता देना मेरी मजबूरी होगी।"
विनीता और विमल को काटो तो खून नहीं।
एकाएक विनीता ने पूछा—"तो दस लाख तुमने यह सोचकर लिए थे कि कानून से वादामाफ की फैसेलिटी तो तुम्हें मिल ही जाएगी।"
"जाहिर है।"
"हत्यारिन के रूप में फांसी के फंदे पर झूल जाने की क्या कीमत लोगी?"
नसीम की भृकुटी तन गई, बोली— "कहना क्या चाहती हो?"
"बाजार में बैठी हो, बिकाऊ तो तुम हो ही—जब दस लाख के लिए अपने दामन पर हमेशा के लिए हत्यारिन का दाग लगाने के लिए तैयार हो गईं, भले ही वादामाफ गवाह वाली फैसेलिटी गेन करने वाली बात तुम्हारे जेहन में रही हो—तो हत्यारिन करार होकर फांसी पर झूल जाने की भी तो कोई कीमत होगी—बोलो, नए सिरे से सौदा करो.....समझ लो कि जानकीनाथ की हत्या के जुर्म में तुम्हें फांसी पर झूलना है, इस काम की तुम क्या कीमत लोगी?"
कटु मुस्कान के साथ नसीम ने कहा— "ये सौदा जाकर किसी कैंसर के मरीज से करो।"
"क्या मतलब?"
"तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं सती-सीवित्री जी कि शायद वह भी इस सौदे के लिए तैयार नहीं होगा—वह बुड्ढा भी किसी की हत्या के जुर्म में फांसी पर झूलने के लिए सहमत नहीं होगा, जिसे मालूम हो कि दो घण्टे बाद निश्चित रूप से उसके प्राण निकलने वाले हैं—अपने ही नहीं, भले ही उसके सामने तुम टाटा और बिड़ला की संयुक्त दौलत भी डाल देना।"
विनीता बौखलाकर रह गई।
"विनीता।" बात संभालने के लिए विमल ने उसे डांटा—"कहने से पहले तुम्हें सोचना चाहिए कि क्या कहने जा रही हो।"
विनीता के शब्दों ने नसीम के भीतर कहां आग-सी भड़का दी थी। वह कहती चली गई—"रही बाजार में बैठने और बिकाऊ होने की बात.....तो तुम्हें मैं ये बता दूं विनीता देवी कि इस बाजार में बैठकर मैं उससे ज्यादा कुछ नहीं करती तो तुम शानदार कोठी के बेडरूम में करती हो—मेरी तो फिर भी मजबूरी है, पैसा और इस पेट की, मगर तुम्हारी क्या मजबूरी है.....जिस्म की आग ही न.....उसी के लिए तुम पति के अलावा किसी और के साथ हमबिस्तर होती हो, इतना ही नहीं—पहले ससुर के मर्डर में हिस्सेदार थीं, अब पति को मारने में भी कोई हिचक नहीं है, यकीन मानो.....ऐसे संगीन गुनाह करके तो मैं भी इस कोठे पर नहीं पहुंची।"
विनीता का चेहरा लाल-भभूका हो गया।
एक ही झटके में नसीम ने उसे पूरी तरह नग्न कर दिया था।
उनके बीच बिगड़ती स्थिति को देखकर विमल बौखला गया। मध्यस्थता करता हुआ बोला— "बस करो, प्लीज—चुप हो जाओ नसीम.....तुम तो जानती हो कि विनीता सोच-समझकर कुछ नहीं बोलती, तुम तो बचपना मत करो।"
नसीम कुछ बोली नहीं, सिर्फ विनीता को घूरती रही।
घूर विनीता भी रही थी, किन्तु नसीम ने उसे कुछ कहने के लायक नहीं छोड़ा था और विमल अपनी पुरजोर कोशिश के बाद उनके बीच छाए तनाव को दूर करने में कामयाब हो सका—जब तनाव कुछ कम हो गया तो बोला— "हम सब इस बात पर गौर कर रहे थे कि यदि रहटू से सुरेश का कत्ल करा दें तो म्हात्रे की इन्वेस्टिगेशन हमारे लिए मौत का पैगाम बन जाएगी।"
"जाहिर है कि हम सुरेश को नहीं मरने दे सकते।"
"तो अब समस्या ये खड़ी होती है कि जब रहटू तुम्हारे पास सुरेश के मर्डर का प्लान लेकर आएगा तो तुम क्या करोगी?"
"यह हम तीनों को सोचना है।"
एक पल सोचने के बाद विमल ने कहा— "मेरे दिमाग में एक शंका है नसीम, अगर बुरा न मानने का वादा करो तो उसे व्यक्त करूं?"
"करो।"
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06-13-2020, 01:08 PM,
#47
RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
थोड़ा हिचकिचाते हुए विमल ने कहा— "कहीं रहटू भी मनू और इला की तरह तुम्हारे दिमाग की कल्पनाओं से उपजा कैरेक्टर तो नहीं है?"
"ओह!"
"स.....सॉरी.....बुरा न मानना, अगर तुमने हमें आतंकित करने के लिए उसी तरह रहटू का आविष्कार किया है जिस तरह सुरेश के लिए मनू और इला का रखा है तो प्लीज.....हमें इस चक्कर में मत फांसो, उलझनें पहले ही और वास्तविक कम नहीं हैं, जो काल्पनिक की जरूरत पड़े।"
नसीम मुस्कराई, बोली— "नए कैरेक्टर की मौजूदगी में तुम्हारी यह शंका अप्रत्याशित नहीं है इसलिए बुरा नहीं मानूंगी—मैं पहले ही मनू और इला का नाम लेकर तुम्हें धोखा देती रही हूं—मगर रहटू काल्पनिक नहीं है, तुम मालूम कर सकते हो कि इस नाम का एक गुण्डा मिक्की का दोस्त है और आजकल वह सुरेश के विरुद्ध इंतकाम की आग में सुलग रहा है।"
"मुमकिन है कि रहटू नाम की शख्सियत वास्तव में हो—मगर यह सब काल्पनिक हो सकता है।"
"इसका सबूत तो मैं सिर्फ यही दे सकती हूं कि जब वह मुझसे अगली मुलाकात करने आए तो तुम भी मौजूद रहो।"
"म.....मैं भला उसके सामने कैसे आ सकता हूं?"
"यह सोचना तुम्हारा काम है।"
अचानक विनीता पुनः बीच में टपकी—"जब वह आए तो तुम रहटू की नजरों से छुपकर उस मीटिंग में मौजूद रह सकते हो विमल।"
"करेक्ट।" विमल ने कहा— "यह ठीक रहेगा।"
नसीम ने कंधे उचका कर कहा— "मुझे कोई आपत्ति नहीं है।"
"मनू और इला के काल्पनिक होने से मेरे दिमाग में एक पॉइंट आ रहा है।" विमल के मस्तिष्क पर ऐसे बल पड़ गए थे, जैसे किसी पॉइंट पर बहुत बारीकी से सोच रहा हो, बोला— "बस अड्डे पर तुमने सुरेश से यह भी तो कहा था न कि तुम दो बार मनू और इला से मिल चुके हो?"
"हां.....और उसने इस सफेद झूठ को भी स्वीकार कर लिया था।"
"रहटू जानता है कि मनू और इला काल्पनिक हैं।"
"बेशक।"
"तो क्या उस वक्त रहटू ने यह नहीं सोचा होगा कि जब मनू और इला कहीं हैं ही नहीं तो सुरेश स्वीकार कैसे कर रहा है कि वह उनसे मिल चुका है?"
"म.....मार्वलस।" नसीम के मुंह से निकला—"निश्चय ही यह एक बहुत दिलचस्प पॉइंट है, तुमने खूब सोचा विमल—यह बात रहटू के दिमाग में आनी स्वाभाविक है, मगर फिर भी, वह मुझसे यह कहने की हिम्मत कर सका कि मनू और इला काल्पनिक हैं, इस बारे में रहटू ने मुझसे कुछ पूछा भी नहीं—इस पर हमें सोचना पड़ेगा विमल, क्या पेंच है ये?"
"मुझे तो एक बात नजर आती है।"
"क्या?"
"उसने बस अड्डे पर तुम्हारे और सुरेश के बीच होने वाली बातें नहीं सुनीं, बल्कि इस सारी कहानी की जानकारी का स्रोत कोई और है, यदि उसने बस अड्डे पर बातें सुनी होतीं तो उक्त बात उसके जेहन में जरूर अटकती और वह तुमसे जिक्र करता।"
"तुम्हारी दलील में दम है।"
"इसका मतलब ये है हमें उस सही स्रोत का पता लगाना होगा जिससे रहटू को जानकारी मिली क्योंकि अंधेरे में रहने की वजह से हम कोई ऐसी पटकी खा सकते हैं जिसके बाद उठकर खड़े भी न हो सकें।"
"मैं तुमसे शत-प्रतिशत सहमत हूं।"
¶¶
"मेरे दांए-बांए से निकल जाने की नसीम बानो ने पुरजोर कोशिश की, मगर मैं भी पक्का था।" रहटू ने एक-एक शब्द का लुत्फ लेते हुए मिक्की को बताया—"मैंने उसे चारों ओर से इस तरह घेरा कि अन्त में वह धराशायी हो गई, घुटने टेककर मेरे सम्मुख उसे सबकुछ स्वीकार करना पड़ा।"
"डर यह है कि कहीं किसी दिन वह इंस्पेक्टर म्हात्रे के घेरे में फंसकर भी इस तरह घुटने न टेक दे, उस हालत में मुझे जानकीनाथ की हत्या के जुर्म की सजा भुगतने से भगवान भी नहीं बचा सकेगा—बचने का केवल एक ही रास्ता बाकी बचेगा, यह कि मैं अपना राज खोल दूं.....पुलिस को बता दूं कि मैं सुरेश हूं ही नहीं, मिक्की हूं।"
"उस हालत में सुरेश की हत्या के जुर्म में भी वही सजा मिलेगी जो सुरेश बने रहकर जानकीनाथ की हत्या के जुर्म में मिल सकती है।"
"यही तो मुसीबत है, मेरे तो एक तरफ खाई, दूसरी तरफ कुआं—चाहे जिस तरफ बढूं.....रास्ता मौत तक ही जाता है।"
"और ये खाई और कुंआ अपने दोनों तरफ भी तुमने खुद खोदा है।"
"जाने-अनजाने मुजरिम से हमेशा ऐसा ही होता है।"
"फिर भी, तू फिक्र मत कर मिक्की—दांए-बांए कुआं भले ही सही, मगर तेरे आगे-पीछे मैं हूं—तेरा यार इन सारी मुसीबतों से तुझे निकालकर साफ ले जाएगा।"
"तू करेगा क्या?"
"जरा कल्पना कर, सोच कि नसीम बानो नाम की कोई शख्सियत इस दुनिया में नहीं है, उस हालत में म्हात्रे तुझ तक किस तरह पहुंच सकता है?"
मिक्की की आंखें गोल हो गईं, बोला— "क्या तू नसीम बानो के कत्ल की बात सोच रहा है?"
"क्यों, जब तू सुरेश का कत्ल कर सकता है तो क्या मैं एक औरत का भी कत्ल नहीं कर सकता—औरत भी निहायत घटिया किस्म की?"
"म.....मगर.....।"
"अगर-मगर कुछ नहीं मिक्की, तू उसमें टांग नहीं अड़ाएगा। जो मैं कहना चाहता हूं, सिर्फ उन्हीं सवालों का जवाब देगा—सोचकर बता कि नसीम न रहे तो क्या तू फिर भी जानकीनाथ की हत्या के जुर्म में पकड़ा जाने वाला है?"
"शायद नहीं।"
"तेरे वाक्य में ये 'शायद' क्यों है, इसे हटा।"
"अभी मैं पूरी तरह इस बारे में कुछ सोच नहीं पाया हूं।"
"तो इतनी जल्दी जवाब किस चोटी वाले ने मांगा था—बहुत टाइम है—पहले अच्छी तरह सोच ले—जवाब उसके बाद देना।"
"एक बीड़ी दे।"
"बीड़ी?"
"हां।"
"तेरी जेब में तो सोने का केस है, उसमें ट्रिपल फाइव की सिगरेट—।"
"हुंह।" मिक्की ने ऐसा मुंह बनाया जैसे हलक में कुनैन की गोली फंस गई हो, बोला— "दुनिया-भर से ज्यादा रद्दी इस सिगरेट को पीते-पीते मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है, बीड़ी दे, यार—अपुन तो उसी के गुलाम हैं।"
रहटू ने उसे बीड़ी का बण्डल देते हुए कहा— "सुरेश के पास इस सिगरेट को देखकर तो तेरी जीभ बहुत ललचाती थी?"
"ऐसी तो बहुत-सी बातें थीं और उनकी वजह से ही मैं उसके नसीब से बहुत रश्क करता था, परन्तु अब लगता है कि मेरा नसीब उससे कई गुना ज्यादा अच्छा था, शायद इसीलिए बुजुर्गों ने कहावत बनाई है कि दूर के ढोल हमेशा सुहाने लगते हैं।"
रहटू ने कहा— "जैसे इस वक्त मुझे लग रहे हैं।"
"क्या मतलब?"
"मैं ट्रिपल फाइव पीना चाहता हूं।" हंसते हुए रहटू ने कहा।
अनायास की मिक्की ठहाका लगाकर हंस पड़ा, जेब से सोने का केस निकालकर उसने रहटू को दिया और फिर सोने के जिस लाइटर से उसने अपनी बीड़ी सुलगाई, उसी से रहटू की सिगरेट भी।
रहटू ट्रिपल फाइव के धुएं का आनंद लेने में जुट गया और मिक्की इस बात पर गौर करने में कि नसीम बानो का अंत उसे जानकीनाथ के हत्यारे के रूप में बचा सकता है या नहीं और बचा सकता है तो किस हद तक?
काफी देर तक सोचते रहने और हर पहलू पर अच्छी तरह गौर करने के बाद वह बोला— "सोचा तो तूने ठीक है रहटू मगर.....।" मगर.....मेरी नजर में म्हात्रे के मुझ तक पहुंचने के केवल तीन रास्ते हैं—पहला, कील और हथौड़ी, जो फिंगर प्रिंन्ट्स का मिलान न होने की वजह से स्वतः बेकार हो चुके हैं—दूसरा, नाव की तली में छेद करता मेरा फोटो, जो नसीम के पास है—तीसरा, नसीम की गवाही।"
"नसीम खत्म तो उसकी गवाही भी खत्म।"
"मगर ऐसा करने से पहले तुझे उस फोटो की समस्त कॉपियां ही नहीं, बल्कि निगेटिव भी अपने कब्जे में करने होंगे, नसीम की मौत के बाद अगर उनमें कोई पुलिस के हाथ लग गया तो कत्ल बेकार हो जाएगा।"
"बस।"
"इसके अलावा भी नसीम के पास ऐसा कोई सबूत हो सकता है, जो उसके बाद पुलिस को बता दे कि हत्यारा सुरेश है—तुम्हें बड़ी बारीकी के साथ ऐसे हर सबूत को अपने कब्जे में लेने के बाद नसीम का कत्ल करना होगा।"
"समझ लो हो गया, फिर—?"
"फिर से मतलब?"
"क्या उसके बाद भी तेरे फंसने की कोई सम्भावना बाकी रह जाएगी?"
"नहीं—मुख्य मुद्दा नसीम ही है क्योंकि अब तक जो सामने आया है, उसके मुताबिक सुरेश ने नसीम के साथ मिलकर जानकीनाथ की
हत्या की और इस जुर्म में इनका राजदार कोई तीसरा नहीं था—सो, यदि नसीम के साथ उसके पास मौजूद सारे सबूत भी नष्ट हो जाएं तो किसी तरह साबित नहीं हो सकेगा कि सुरेश यानी मैंने किसी षड्यन्त्र के तहत जानकीनाथ की हत्या की थी।"
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06-13-2020, 01:09 PM,
#48
RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
"यानी उसके बाद तू आराम से सुरेश की दौलत को भोग सकेगा?"
"उसमें तेरा हक भी मेरे बराबर ही होगा रहटू।" मिक्की ने भावुक स्वर में कहा— "असल में तो यह तेरी जीत होगी दोस्त, किन्तु
नसीम के अलावा एक और व्यक्ति है, जिसका इलाज किए बगैर शायद हमें चैन न मिलेगा।"
"वह कौन?"
"सुरेश की हत्या का तलबगार।"
"ओह हां।”
“मगर मुझे लगता है अभी हमें अपने ध्यान को नसीम पर केन्द्रित रखना चाहिए।"
"हत्या ऐसे ढंग से हो कि हममें से कोई पकड़ा न जाए और यदि हत्या दुर्घटना या स्वाभाविक मौत नजर आए तो निहायत ही बेहतर होगा।"
"नसीम को वहां लाना मेरा काम है जहां तू कहेगा, यह सोचना तेरा काम है कि हत्या कैसे होनी चाहिए—करूंगा मैं, मौजूद तू भी वहां
रहेगा और नसीम के साथ ही आएगा, क्योंकि मैं तो नियत स्थान पर उसे यह कहकर पहुंचाऊंगा कि तुम्हें लेकर वहां पहुंचे—उसकी नजर में तो मैं तेरा ही कत्ल करने वाला होऊंगा न?"
¶¶
मिक्की ने विजयी मुस्कान के साथ कहा— "अब भी आपका सन्देह दूर हुआ या नहीं, इंस्पेक्टर म्हात्रे?"
"नहीं।" उसे घूरते हुए गोविन्द म्हात्रे ने शुष्क स्वर में कहा।
"अब भी नहीं, क्यों?" मिक्की के मस्तक पर बल पड़ गए।
"क्योंकि यह बात मेरी समझ में अब आ रही है कि तुम इतनी आसानी से अपने फिंगर प्रिन्ट्स देने के लिए तैयार हो गए थे?"
"क्यों भला?"
"कील-हथौड़ी से नाव में छेद करते वक्त तुमने प्लास्टिक फिंगर प्रिन्ट्स का इस्तेमाल किया होगा, तुम जानते थे कि वे निशान तुम्हारी उंगलियों के निशान से नहीं मिलेंगे, सो बिना हुज्जत किए अपने फिंगर प्रिन्ट्स देने के लिए तैयार हो गए।"
"तुम मेरी उंगलियों के निशान इसलिए ले गए थे न कि उन्हें कील-हथौड़ी से बरामद निशानों से मिलाने पर दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा?"
"सोचा तो यही था।"
"वे निशान एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न हैं?"
"आपको यही बताने तो मैं यहां आया था।"
"तो फिर?" मिक्की गुर्रा उठा—"मुझ ही पर सन्देह करते रहने की आपके पास अब आखिर क्या वजह रह गई?"
"मजे की बात ही यह है मिस्टर सुरेश कि इस सारे मामले में तुमने फिंगर प्रिन्ट्स को जरूरत से ज्यादा अहमियत दे दी, जबकि
आधुनिक अपराध-जगत में फिंगर प्रिन्ट्स को इतनी अहमियत नहीं दी जा सकती।"
"क्यों?"
"क्योंकि अपराध-जगत में अब प्लास्टिक सर्जरी वाले फिंगर प्रिन्ट्स का इस्तेमाल बढ़ गया है, पहले जुर्म करते वक्त मुजरिम इसलिए हाथों में दस्ताने का इस्तेमाल करते थे ताकि घटनास्थल पर उंगलियों के निशान न छूटें—और अब जब से मुजरिम जुर्म करते वक्त उन्हें पहनने लगे हैं ताकि वहां डुप्लीकेट निशान छूटें, पुलिस किसी तरह यदि असली मुजरिम तक पहुंच भी जाए तो वह अपने वास्तविक निशान देकर साफ चकमा दे दे, क्योंकि वे निशान आपस में मेल तो खाएंगे नहीं।"
"और मैंने ऐसा किया है?" मिक्की गुर्राया।
"यकीनन।"
मिक्की झुंझला उठा—"कोई सबूत है तुम्हारे पास?"
"सबूत होता तो आपसे बात न कर रहा होता।"
"तो क्यों मेरे पीछे पड़े हो, मेरे पीछे पड़ने का हक तुम्हें किसने दिया है—या किसी से पैसे खाकर मेरे पीछे पड़े हो?"
म्हात्रे ने मोहक मुस्कराहट के साथ कहा— "किसी पर रिश्वत का आरोप लगाने से पहले बेहतर है कि आप उसका सर्विस रिकॉर्ड देख लें और मेरे सर्विस रिकॉर्ड में ये पंक्तियां अण्डरलाइन हैं कि इंस्पेक्टर गोविन्द म्हात्रे एक ऐसी शख्सियत है जिसे कम-से-कम खरीदा नहीं जा सकता।"
"अगर वे लाइन सच होती तो.....।"
"तो?"
"बगैर किसी सबूत के आप बार-बार मुझे ही हत्यारा न मान रहे होते।"
"मैं फिर कहूंगा मिस्टर सुरेश कि हत्यारे आप ही हैं—मेरे इस विश्वास का आधार वे गवाह हैं जिन्होंने तेरह नवम्बर से पहले आपको नसीम बानो से मिलते देखा है। उस वक्त तक बेशक आप सड़कों पर दनदनाते रहिए, जब तक मैं सबूत नहीं जुटा लेता, क्योंकि उसके बाद आपको यह मौका नहीं मिलेगा।" कहने के बाद मिक्की के जवाब का इन्तजार किए बगैर गोविन्द म्हात्रे फुर्ती के साथ अपनी एड़ियों पर घूमा और टक्-टक् करता हुआ कमरे के बाहर निकल गया।
अपने बेड पर मिक्की अवाक्-सा बैठा रह गया था।
म्हात्रे के अन्तिम शब्द हथौड़े की शक्ल अख्तियार करके उसके जेहन पर जोरदार चोट कर रहे थे—अब मिक्की को लग रहा था कि गोविन्द म्हात्रे नाम का ये इंस्पेक्टर बेहद खतरनाक है—अगर उसे न रोका गया तो किसी-न-किसी मामले में वह उसे फंसा ही लेगा—फिंगर प्रिन्ट्स पृथक होने के बावजूद कम्बख्त उस लाइन से नहीं भटक रहा, जिस पर मिक्की उसे नहीं चाहता था।
जाने कितनी देर तक मिक्की उसके बारे में सोचता रहा। चौंका तब जब फोन की घंटी ने घनघनाकर तंद्रा भंग की, रिसीवर उठाकर उसने कहा— "हैलो।"
"यस माई डियर, मिक्की, मैं रहटू बोल रहा हूं।"
"कहो, क्या रिपोर्ट है?"
"रिपोर्ट बड़ी धांसू है प्यारे, क्या अभी तक नसीम बानो ने तुमसे सम्पर्क करके कल का प्रोग्राम सेट नहीं किया?"
"नहीं तो।"
"कर लेगी।"
"वहां हुआ क्या, कुछ तो बता।"
"मैं कुछ देर पहले उसके कोठे से लौटा हूं।" रहटू ने बताया, "जाते ही मैंने उसे वह प्लान सुनाया जो तूने सैट किया था—पहले तो आनाकानी करती रही, फिर मेरे दबाव के सामने उसे घुटने टेकने ही पड़े—तेरे कत्ल की कल्पना से शायद उसे डर लग रहा है।"
"कत्ल की कल्पना से डर लगता ही है, रहटू।"
"क्या तुझे भी उसके कत्ल की कल्पना से डर लग रहा है?"
“मुझे....?” मिक्की हंसा—“नहीं तो।”
"हां, तुझे क्यों डर लगने लगा......पक्का जो हो चुका है।"
मिक्की हंसा और इस हंसी में दूसरी तरफ से रहटू ने भी साथ दिया। हंसी के बाद वह बोला— "मैं सोच-सोचकर हैरान हूं कि अगर नसीम बानो को यह पता लग जाए कि कल बुद्धा गार्डन में जहरयुक्त आइसक्रीम तेरे नहीं, उसके हिस्से में आनी है तो उसकी क्या हालत हो?"
"बुद्धा गार्डन पहुंचने से पहले ही मर जाएगी।"
"खैर।" रहटू ने कहा— "आज रात तक किसी समय तेरे पास नसीम बानो का ये पैगाम पहुंच जाएगा कि कल वह तेरे साथ बुद्धा गार्डन की सैर करना चाहती है—जाहिर है कि थोड़ी बनावटी ना-नुकुर के बाद तुझे यह ऑफर स्वीकार कर लेनी है—उसके बाद, कल बुद्धा गार्ड़न में तेरे रास्ते का सबसे बड़ा कांटा साफ हो जाएगा—उसके बाद न तुझे कोई जानकीनाथ का हत्यारा साबित कर सकेगा और न ही यह जान सकेगा कि तू वास्तव में सुरेश है ही नहीं—ये राज सिर्फ हम दोनों तक ही सीमित रहेगा कि सुरेश का कत्ल तो मिक्की के हाथों उसी दिन हो चुका था जिस दिन दुनिया ने मिक्की को मृत मान लिया—वाकई तेरे दिमाग में जबरदस्त प्लानिंग आई दोस्त.....कोई सोच भी नहीं सकता कि जो मर चुका है, वह सुरेश बना घूम रहा है और जो घूम रहा है, वह मर चुका है।"
"ये बातें फोन पर करने की नहीं हैं, रहटू।"
"सॉरी यार, खैर......कल बुद्धा गार्डन में मिलेंगे।"
"फिक्र मत कर, नसीम की लाश पुलिस को तब मिलेगी जब मैं अच्छी तरह उसी की नहीं, बल्कि उसके कोठे की भी तलाशी ले चुका हूंगा।"
"ध्यान से।"
"ओ.के.।" इन शब्दों के साथ रहटू ने रिसीवर रख दिया।
¶¶
Reply
06-13-2020, 01:09 PM,
#49
RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
रहटू के वहां से जाते ही बेड के नीचे छुपा विमल बाहर निकल आया। उस वक्त वह संभलकर पलंग पर बैठ रहा था जब नसीम ने पूछा—"अब तो तुम्हें यकीन हुआ कि रहटू न काल्पनिक है और न ही वे बातें मेरे दिमाग की उपज थीं, जो कह रही थी।"
"वह तो जाहिर हो ही गया, मगर.....।"
"मगर—?"
"वह हरामजादा तो सुरेश का कत्ल करने पर पूरी तरह आमादा है—तुमने ना-नुकुर की—इधर-उधर के बहाने भी मिलाए, परन्तु वह टस-से-मस न हुआ—जो स्कीम लेकर आया था, अंततः तुम्हें उस पर काम करने के लिए तैयार कर ही लिया।"
"बहुत कांइया है वह।" नसीम बोली— "पट्ठा कल ही अपनी स्कीम को अंजाम देना चाहता है, परसों तक टलने के लिए तैयार नहीं।"
"अब तुम क्या करोगी?"
"किस बारे में?"
"उसी बारे में जो अभी-अभी रहटू से तय हुआ है, उसकी योजना के मुताबिक कल शाम तुम्हें सुरेश को लेकर बुद्धा गार्डन पहुंचना है—वहां वह भेष बदले आइसक्रीम बेच रहा होगा—तुम्हें उससे आइसक्रीम के दो कप लेने हैं, सुरेश वाले कप में जहर होगा और बस, खेल खत्म।"
"उससे पीछा छुड़ाने की कोई तरकीब हम सबको मिल-बैठकर सोचनी चाहिए।"
और।
वे रहटू नाम की आफत से छुटकारा पाने की तरकीब सोचने में मशगूल हो गए—इस कदर कि टाइम का होश ही न रहा। एक-दूसरे को उन्होंने अनेक मशवरे दिए, मगर कोई जंच न रहा था।
अभी तक किसी एक मशवरे पर सहमत नहीं हुए थे कि साजिन्दे ने आकर खबर दी—"विनीता मेम साहब आई हैं।"
"व.....विनीता?" विमल उछल पड़ा।
चकित नसीम बुदबुदाई, "ऐसा कोई प्रोग्राम तो था नहीं, फिर इस वक्त विनीता क्यों आई?"
कुछ देर तक सवालिया नजरों से दोनों एक-दूसरे को देखते रहे, फिर विमल ने आहिस्ता से साजिन्दे से कहा— "उन्हें अन्दर भेज दो।"
साजिन्दा वापस चला गया।
कुछ देर बाद, कमरे में विनीता को दाखिल होते देख वे दोनों कुछ और चौंक पड़े। विनीता के समूचे चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं—गालों की सुर्खी का तो जिक्र ही बेकार है, होंठ तक सफेद नजर आ रहे थे।
ऐसी हालत थी उसकी जैसे रास्ते में कहीं अपने किसी बहुत प्रिय की लाश देखकर सीधी दौड़ी चली आ रही हो।
सांस बुरी तरह फूली हुई थी।
होश गायब।
"क्या बात है विनीता, तुम इतनी घबराई हुई क्यों हो?" विमल से रहा न गया।
उसके होंठ कांपे, ऐसा लगा जैसे कुछ कहने के लिए पूरी ताकत लगा रही हो और फिर वह कामयाब हो गई। होंठों के बीच में से कमजोर आवाज निकली—मैं.....मैं एक ऐसी खबर लाई हूं जो तुम्हारे छक्के छुड़ा देगी।"
दोनों के दिल बुरी तरह धड़के।
नसीम ने पूछा—"ऐसी क्या खबर है?"
"व.....वह सुरेश नहीं है।"
"क.....क्या?" दोनों उछल पड़े—"कौन सुरेश नहीं है?"
"व.....वही, जो कोठी में रह रहा है, जिसे अब तक हम सुरेश समझ रहे थे।"
"क्या बक रही हो तुम?" विमल दहाड़ उठा।
"म.....मैं सच कह रही हूं—वह सुरेश नहीं है—वह सुरेश नहीं है।"
"फिर कौन है?"
"म......मिक्की.....वह मिक्की है, सुरेश का बड़ा भाई।"
"म.....मिक्की?" दोनों के हलक से चीख-सी निकल गई। सारा ब्रह्माण्ड अपने सिर के चारों ओर सुदर्शन चक्र के मानिन्द घूमता नजर आया और वह नसीम थी जिसने खुद को विमल से पहले होश में लाते हुए पूछा—"य.....यह कैसे हो सकता है, मिक्की कैसे हो सकता है वह.....मिक्की ने तो अपने कमरे में आत्म.....!"
"व.....वह सुरेश की लाश थी, मिक्की ने सुरेश का कत्ल उसी दिन कर दिया था—सुरेश की लाश को अपनी लाश शो करके मिक्की ने डायरी आदि से ऐसा षड्यन्त्र रचा जैसे उसने आत्महत्या कर ली हो—वास्तव में मिक्की उसी दिन से सुरेश बना कोठी में रह रहा है।"
"ओह!" नसीम के मुंह से निकला।
फिर विनीता ने दूसरा धमाका किया—"रहटू मिक्की का दोस्त है, वह मिक्की के सुरेश बन जाने से वाकिफ ही नहीं है, बल्कि उसकी मदद भी कर रहा है—रहटू का यहां आना, सुरेश के मर्डर की बात करना आदि सब एक चाल है, एक साजिश।"
"कैसी साजिश?" नसीम ने पूछा।
"तुम्हारी हत्या की साजिश।"
"म.....मेरी हत्या?" नसीम बानो के होश उड़ गए।
"हां।" विनीता कहती चली गई—"कुछ देर पहले यहां से रहटू यह प्रोग्राम सेट करके गया होगा कि कल तुम्हें सुरेश को साथ लेकर
बुद्धा गार्डन जाना है और वहां वह जहरयुक्त आइसक्रीम खिलाकर सुरेश का मर्डर कर देगा।"
"हां—।"
"मगर नहीं, वह मर्डर सुरेश का नहीं, बल्कि तुम्हारा करने वाला है—असल में जहरयुक्त आइसक्रीम तुम्हें दी जाएगी।"
"क्यों?"
"उनकी नजर में एकमात्र तुम ही हो जो सुरेश बने मिक्की को जानकीनाथ की हत्या के जुर्म में फंसवा सकती हो, अतः वे तुम्हें ठिकाने लगा देना चाहते हैं।"
"ओह!" अपनी हत्या का प्लान सुनकर नसीम के रोंगटे खड़े हो गए थे।
बहुत देर से चुप विमल ने पूछा—"ये सब विस्फोटक जानकारियां तुम्हें कहां से मिलीं?"
"हमारे बीच तय हुआ था न कि सुरेश की स्वीकारोक्ति के रहस्य को जानने के लिए उसकी हर एक्टिविटी पर नजर रखनी होगी, सो मैं ऐसा किए हुए थी और इसी के तहत मैंने नीचे वाले फोन पर, रहटू और मिक्की के बीच होने वाला सारा वार्तालाप सुना है—दोनों की आवाज मुझे बिल्कुल साफ-साफ सुनाई दे रही थी।"
"विस्तार से बताओ, फोन पर उनकी क्या बातें हुईं?"
बिना हिचके विनीता एक सांस में बताती चली गई—सुनते-सुनते नसीम और विमल के रोंगटे खड़े हो गए—उन्होंने तो कल्पना भी नहीं थी वे स्वयं इतने बड़े, गहरे और जबरदस्त षड्यंत्र के बीच फंसे हुए हैं और फोन पर हुई लगभग पूरी वार्ता सुनाने के बाद विनीता ने कहा— "फोन के बाद मेरे छक्के छूट गए, दिमाग में सिर्फ एक ही बात आई, यह कि इस वक्त तुम दोनों यहां होगे, सो सारा राज बताने गाड़ी उठाकर सीधी भागी चली आई, परन्तु......।"
"परन्तु—?"
"रास्ते में मेरे साथ एक और रहस्यमय बात हुई, निश्चय नहीं कर पा रही हूं कि उस बारे में तुम्हें कुछ बताने की जरूरत है या नहीं।"
"ऐसी क्या बात है?" विमल का लहजा कांप रहा था।
"स.....सोच रही हूं कि सुनाने के बाद कहीं तुम मेरा मजाक न उड़ाओ।"
नसीम ने कहा—"तुम बोलो, यह वक्त सस्पैंस बनाने का नहीं है।"
"जब गाड़ी ड्राइव करती हुई आ रही थी तो रास्ते में एक स्थान पर मुझे ऐसा लगा जैसे गर्दन पर किसी चींटी ने बहुत जोर से काटा हो—यह कहकर मजाक न उड़ाना कि भला चींटी के काटने की बात भी जिक्र लायक है, क्योंकि.....।"
"क्योंकि?" उसे ध्यान से देखती हुई नसीम ने सवाल किया।
"उस वक्त से मैं अपना सिर चकराता महसूस कर रही हूं, नींद-सी आ रही है मुझे—आंखें बन्द हुई जा रही हैं, जाने कैसी चींटी थी वह कि आंखें खुली रखने के लिए मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ी रही है।"
नसीम और विमल के दिल की धड़कनें मानो रुक गईं।
दोनो की नजरें मिलीं।
आंखो में एक अजीब खौफ था।
विनीता ने पूछा—"तुम एक-दूसरे को इस तरह क्यों देख रहे हो?"
नसीम और विमल की नजरें पुनः मिलीं, विनीता के सवाल का जवाब उनमें से किसी ने नहीं दिया, बल्कि विमल ने उल्टा सवाल किया—"चींटी ने कहां काटा था?"
"यहां।" उसने अपनी गर्दन पर उंगली रखी।
नसीम ने झुककर उस स्थान को देखा, विमल तब विनीता की आंखों में झांक रहा था—उन आंखों में, जिनमें उसे हमेशा सात समन्दर नजर आया करते थे, इस वक्त वीरानी नजर आई।
दूर-दूर तक.....सिर्फ वीरान ही वीरानी।
उधर।
नसीम के हलक से एक डरावनी चीख निकल गई।
"क.....क्या हुआ?" विनीता ने बौखलाकर पूछा।
विमल स्वयं भौंचक्का नसीम को देख रहा था और नसीम की हालत आजाद शेर के सामने बंधी बकरी से भी बद्तर थी—जाने क्या सूझा उसे कि झपटकर उठी।
छलांग लगाकर कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया।
विमल ने लगभग चीखकर पूछा—"बात क्या है नसीम?"
"विनीता मरने वाली है।" उसके मुंह से वहशियाना अंदाज में निकला।
"क.....क्या?"
"इसे किसी ने जहर बुझी सुई चुभोई है, गर्दन पर एक बहुत छोटा-सा धब्बा है, ठीक नीले थोथे की तरह नीला।"
"न.....नहीं।" विमल के हलक से चीख निकल गई।
और विनीता।
उसे तो मानो लकवा मार गया।
किसी महापुरुष के श्राप से जैसे वह तत्काल पत्थर की शिला में बदल गई थी।
अवाक्.....हतप्रभ.....भौंचक्की।
मारे आतंक के नसीम और विमल के चेहरे निस्तेज नजर आ रहे थे।
कई मिनट तक सन्नाटा छाया रहा।
फिर।
"विनीता.....विनीता।" उसके दोनों कंधे पकड़कर विमल ने झंझोड़ा।
"आं।" जैसे समाधि टूटी हो।
"याद करके बताओ, जिस वक्त सुईं चुभी थी, उस वक्त तुमने अपने आस-पास किसी आदमी को देखा था क्या.....यदि 'हां' तो वह कौन था विनीता, कौन था वह?"
"व.....विमल।" विनीता की आवाज मुंह से नहीं, किसी अंधकूप से निकलती महसूस हुई—"मुझे बचा लो, मैं मरने वाली हूं विमल.....मुझे बचा लो।"
वातावरण में सनसनी दौड़ गई।
जहर का तो जो असर विनीता पर था, वह था ही—उससे ज्यादा असर था इस अहसास का कि उसके जिस्म में जहर पहुंच चुका है और वह मरने वाली है।
इस आतंक ने उसे समय से पहले ही मौत के करीब ला दिया था।
विमल उससे अपने सवाल के जवाब की अपेक्षा कर रहा था, जबकि उसने दोनों हाथों को बढ़ाकर विमल का गिरेबान पकड़ लिया। दांत भींचकर उसे झंझोड़ती हुई हिस्टीरियाई अंदाज में चिल्लाई—"मैं मरने वाली हूं विमल, तुम कुछ करते क्यों नहीं—मैं कहती हूं कुछ करो, मुझे बचा लो, बचा लो मुझे।"
"म...मैं।" विमल बौखला गया—"क्या करुं मैं?"
अचानक नसीम ने आगे बढ़कर पूछा—"ये बताओ विनीता....उस वक्त अपने आस-पास तुमने किसे देखा था—शायद अंदाजा हो कि तुम्हारे खून में मिलाया गया जहर किस किस्म का है—तब, वैसा ही इलाज किया जाए।"
विनीता ने जवाब देने के लिए मुंह खोला और यह प्रथम अवसर था जब विमल और नसीम ने उसके मुंह में नीले झाग देखे। वह कहती चली गई—"मैंने किसी को नहीं देखा, वहां कोई नहीं था—सिर्फ चींटी के काटने का अहसास हुआ था, मगर तुम लोग कुछ करते क्यों नहीं, मेरा सिर चकरा रहा हैं—आंखें बन्द हुई जा रही हैं—मुझ पर खड़ा नहीं हुआ जा रहा विमल.....कुछ करो।"
विमल किंकर्त्तव्यविमूढ़।
"यह हादसा तुम्हारे साथ कहां हुआ था?" नसीम ने पूछा।
"ग.....गाड़ी में, जब मैं ड्राइव कर रही थी।"
नसीम ने पुनः पूछा—"क्या उस वक्त गाड़ी में तुमने अपने अलावा किसी को.....?"
"यही बात बार-बार पूछकर तू समय बर्बाद क्यों कर रही है?" विनीता पागलों की तरह आंखें बाहर निकालकर गुर्राईं—"एक बार कह चुकी हूं कि मैंने किसी को नहीं देखा, कान खोलकर सुन ले वहां कोई नहीं था—अब कुछ कर, अगर मैं मर गई तो सुरेश की दौलत का जर्रा भी तुम दोनों में से किसी को नहीं मिलेगा, मुझे बचा लो—तुम कुछ करो विमल।"
"क.....क्या करूं?"
झाग उसके होठों से बाहर आने लगे थे, आंखें पुतलियों की चारदीवारी पार करने लगीं और मरने से पहले ही निस्तेज पड़े चेहरे वाली विनीता ने पुनः कहा— "किसी डॉक्टर को बुलाओ, वह मुझे बचा सकता है—मेरे मरने के बाद तुम दोनों कंगाल हो जाओगे—किसी को एक फूटी कौड़ी भी नहीं मिलेगी।"
विमल ने नसीम की तरफ देखा
उसका आशय समझकर नसीम बोला— "अगर यहां कोई डॉक्टर आया, खासतौर से विनीता के लिए—तो सारे भेद खुल जाएंगे, लोग जान जाएंगे कि हमारे क्या सम्बन्ध हैं।"
"हरामजादी!" विनीता विमल का गिरेबान छोड़कर उसकी तरफ झपटती-सी गुर्राई—"यहां मैं मरने वाली हूं और तुझे भेद खुलने का डर सता रहा है!"
मगर।
विमल और नसीम के बीच का फासला वह तय न कर सकी और रास्ते में ही बुरी तरह लड़खड़ाने के बाद 'धड़ाम' से फर्श पर गिरी।
आंखें उलट चुकी थीं।
मुंह से झागों का अम्बार निकल रहा था।
हाथ-पांव ढीले पड़ते चले गए, कोशिश करने के बावजूद वह फर्श से उठने में कामयाब न हो सकी—चेहरा नीला पड़ता चला गया और फिर वह बार-बार यही कहती हुई कि 'मैं मरने वाली हूं' रोने लगी।
फूट-फूट कर।
नसीम और विमल ठगे से खड़े थे।
ये सच्चाई है कि विनीता को अपनी आंखों के सामने मरती देख उनकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था, जिस्म मानो दिमागरहित थे।
उधर.....।
रोती हुई विनीता अचानक हंसने लगी।
खिलखिलाकर।
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06-13-2020, 01:09 PM,
#50
RE: FreeSexkahani नसीब मेरा दुश्मन
विमल और नसीम के रोंगटे खड़े हो गए।
हंसती हुई भी वह बार-बार कह रही थी कि 'मैं मरने वाली हूं' और यही कहते-कहते अचानक उसके जिस्म को एक तीव्र झटका लगा।
और फिर।
सब कुछ शांत।
मुंह से झाग उगलती हुई वह फटी-फटी आंखों से कमरे की छत को घूरती रह गई। इस दहशत से ग्रस्त कि वह मरने वाली है, अपने जीवन के अंतिम क्षण से विनीता शायद पागल हो गई थी। जहर और दहशत ने मिलकर उसके प्राण हर लिए थे।
नसीम और विमल अभी तक हतप्रभ खड़े थे।
किंकर्त्तव्यविमूढ़।
विनीता की मौत के भयानक मंजर ने उन्हें इस कदर अपने शिकंजे में कस लिया था कि उन्हें स्वयं यह अहसास नहीं हो रहा था कि उनका अपना भी इस दुनिया में कोई अस्तित्व है या नहीं।
फर्श पर पड़ी लाश उनकी टांगें कंपकंपाए दे रही थी।
¶¶
काफी देर बाद, बचपन से आज तक की सारी शक्ति समेटकर विमल ने कहा— "ये क्या हो गया नसीम, हमारे देखते-ही-देखते क्या हो गया ये?"
"सारे पासे उलट गए हैं।" नसीम बड़बड़ाई।
"किसने किया है यह, विनीता का हत्यारा कौन हो सकता है?"
"श.....शायद मिक्की, सुरेश बना मिक्की।"
"म.....मगर—?"
"मेरे ख्याल से उसने ताड़ लिया होगा कि विनीता ने रहटू और उसकी बातें सुन ली हैं, इसका मर्डर कर देने के अलावा उसके पास कोई चारा न रहा होगा।"
"क्या वह यह भी जान गया होगा कि विनीता हमसे मिली हुई थी?"
"न.....नहीं, इस बारे में उसे कोई इल्म नहीं हुआ होगा, क्योंकि ऐसी कोई बात ही कहीं नहीं हुई—इसके मर्डर की जरूरत तो मिक्की को इसलिए पड़ी होगी क्योंकि यह उसका भेद जान गई थी, जाहिर है कि अपना भेद जानने वाले को वह जीवित नहीं छोड़ सकता था।"
"म.....मगर सुईं इसे कार में चुभोई गई और कार को यह कोठे की तरफ लाई है, वह अभी भी नीचे खड़ी होगी, अगर वह कार के साथ यहां तक आया हो तो?"
नसीम अवाक् रह गई।
फिर एकाएक वह फोन पर झपटी।
सुरेश की कोठी का नम्बर डायल किया, मुश्किल से एक बार बैल बजने के बाद रिसीवर उठा लिया गया। दूसरी तरफ से सुरेश की आवाज उभरी—"हैलो, सुरेश हियर।"
"मैं बोल रही हूं, सुरेश।" नसीम ने संतुलित स्वर में कहा।
"ओह, हां, बोलो।"
"तुम्हारे आस-पास कहीं विनीता या काशीराम तो नहीं हैं?"
"नहीं।"
"अच्छी तरह चैक करके बताओ, मुमकिन है कि उनमें से कोई तुम्हारे पास हो।"
"नहीं हो सकते, काशीराम शॉपिंग के लिए बाजार गया है और विनीता कुछ देर पहले जल्दी-जल्दी तैयार होकर जाने अपनी गाड़ी में कहां गई है?"
"जल्दी-जल्दी तैयार होकर!"
"हां, काशीराम ने बताया कि वह बहुत जल्दी में थी, खैर.....छोड़ो उसे—ये बताओ कि फोन तुमने कैसे किया—क्या इंस्पेक्टर फिर आया था?"
"नहीं।"
"फिर?"
"मनू और इला ने कल शाम को तुमसे बुद्धा गार्डन में मिलने के लिए कहा है।"
"अब क्या परेशानी है उन्हें?"
"मैं समझ न सकी, पूछा भी, मगर कहते हैं कि बुद्धा गार्डन में ही बात होगी—तुम्हारे साथ उन्होंने मुझे भी बुलाया है।"
"क्या वे फिर कोई नई मांग रखने वाले हैं?"
"कह नहीं सकती।"
"कल मेरे पास टाइम नहीं है, एक बेहद जरूरी काम है मुझे।"
"ल.....लेकिन वहां जाना पड़ेगा सुरेश—मनू और इला ने धमकी दी है कि यदि हम उनसे मिलने नहीं पहुंचे तो वे.....।"
"इंस्पेक्टर म्हात्रे को सबकुछ बता देंगे, यही ना?"
"हां।"
"अब सचमुच इनका कोई इलाज सोचना पड़ेगा, नसीम, ये उतने ही सिर पर चढ़ रहे हैं जितनी इनकी मांगें मानी जा रही हैं—आज पैसा लेते हैं, कल फिर धमकी देने लगते हैं—ऐसी स्थिति में इन्हें कब तक बर्दाश्त किया जा सकता है?"
"बात तो ठीक है किन्तु मजबूरी है सुरेश, हमारी उंगली दबा हुई है।"
सुरेश की आवाज में उधर से मिक्की ने गुर्राकर कहा— "ठीक है, ये उंगली हमें निकालनी पड़ेगी—शायद मैं कल ही सबकुछ ठीक कर
दूं।"
"तो कल शाम ठीक छः बजे बुद्धा गार्डन के मुख्य गेट पर मिलो।"
“ ओ. के.।”
नसीम ने रिसीवर रख दिया।
अभी तक हक्का-बक्का विमल उसे फोन पर बात करते देख रहा था। नसीम के मुंह से निकलने वाली एक-एक बात उसने बहुत ध्यानपूर्वक सुनी थी। उसकी तरफ पलटती हुई नसीम ने कहा— "विनीता का हत्यारा मिक्की नहीं है।”
"क्या मतलब?" वह उछल पड़ा।
"विनीता को सुईं चलती कार में चुभी, जाहिर है कि सुईं चुभाने वाला उस वक्त कार में रहा होगा और यदि कार में था तो कोठे के नीचे पहुंचने से पहले वह कार से निकल नहीं सका होगा, क्योंकि विनीता ने कार बीच में कहीं नहीं रोकी और यहां से सुरेश इतनी जल्दी अपनी कोठी पर नहीं पहुंच सकता।"
"मुमकिन है कि यह काम उसने रहटू से कराया हो?"
"तुम भूल गए कि फोन पर रहटू और मिक्की की बात सुनते ही विनीता गाड़ी लेकर यहां के लिए दौड़ पड़ी—रहटू फोन पर मिक्की से कुछ दूर तो रहा ही होगा—मेरे ख्याल से इतना समय बीच में नहीं था कि रहटू गाड़ी में पहुंच सके—सिचुएशन से जाहिर है कि हत्यारा विनीता से पहले ही गाड़ी में छुपा हुआ था।"
नसीम के वजनदार तर्कों के सामने विमल चुप रह गया।
नसीम कहती चली गई—"जो बातें अभी-अभी मिक्की ने फोन पर की हैं, उनसे भी यह ध्वनित होता है कि हत्या से सम्बन्ध तो दूर की बात, अभी तक उसे इल्म भी नहीं है कि विनीता मर चुकी है।"
"ऐसा क्या कहा उसने?"
"मनू और इला के मसले पर बात करते वक्त उसने छुपे शब्दों में कल बुद्धा गार्डन में मेरे होने वाले अंत की धमकी दी है—अगर उसे यह इल्म होता कि विनीता ने रहटू से उसकी बातें सुनी हैं या विनीता का हमसे कोई सम्बन्ध है तो छुपे शब्दों में यह धमकी कदापि न दी होती—यह धमकी उसने ऐसे शब्दों में दी है कि यदि हम हकीकत न जानते तो मैं ताड़ नहीं सकती थी कि वह धमकी है कि हम हकीकत नहीं जानते, सो समझ में तो मेरी कुछ आएगा नहीं।"
"तुम भूल रही हो नसीम कि वह जबरदस्त अभिनेता है, विनीता के बताने से पहले हमें अहसास तक न हो सका कि वह सुरेश नहीं मिक्की है—मुमकिन है कि इस मामले में भी वह अपने सफल अभिनेता होने का परिचय दे रहा हो।"
"अभिनय अलग होता है और किसी बात के जवाब में कही गई स्वाभाविक बात अलग—मैं फोन पर बात करने के बाद गारन्टी से कह सकती हूं कि सुरेश न तो विनीता का हत्यारा है और न ही विनीता के मरने की फिलहाल उसे खबर है।"
"फिर विनीता का हत्यारा कौन है?"
"ये जरूर सोचने वाली बात है, सोचने के लिए हमारे पास और भी बहुत कुछ है—बल्कि अगर यह कहा जाए तो गलत न होगा कि हमें जो कुछ करना है, बहुत तेजी से करना है—अगर ढीले पड़े तो मुमकिन है कि सारी डोरियां हमारे हाथ से निकल जाएं, मगर अब सबसे पहले विनीता की लाश और नीचे खड़ी उसकी गाड़ी के बारे में सोचना जरूरी है।"
"म.....मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है नसीम।"
"खुद को होश में रखो विमल, यदि इस वक्त हमने दिमाग से काम नहीं लिया तो हालात ऐसे बन जाएंगे कि फिर जिन्दगी-भर दिमाग से काम लेने के बावजूद हम अपने चारों ओर फैले निराशा के जाल को नहीं काट सकेंगे।"
"मैं समझा नहीं।"
"कोठे पर इस वक्त हमारे अलावा सिर्फ वह साजिन्दा है जो विनीता के आगमन की खबर लाया था, उसने विनीता की चींखें सुनी थीं और अपने पैरों से विनीता को यहां से निकलते न देखेगा तो जाने क्या—क्या ऊट-पटांग सोचने लगेगा, अतः उसे किसी काम के बहाने कहीं दूर भेजती हूं।"
"ठीक है।"
नसीम तेजी से दरवाजे की तरफ बढ़ी। सांकल खोलकर बाहर निकलते वक्त उसने किवाड़ ढुलका दिये थे।
विमल की समझ में कुछ नहीं आ रहा था।
अपना सिर पकड़कर वह पलंग पर बैठ गया और नेत्र मूंद कर हवा में तैरते मस्तिष्क को सही स्थान पर फिट करने की चेष्टा करने लगा।
तब तक वह अपने प्रयास में काफी सफल हो चुका था जब तक कि नसीम बानो वापस कमरे में आई। आते ही उसने कहा— "मैंने उसे ऐसे काम से भेज दिया है कि एक घण्टे से पहले नहीं लौटेगा, उसके वापस आने पर कह दूंगी कि तुम दोनों चले गए, मगर उससे पहले लाश और कार को किसी उचित स्थान पर ठिकाने लगाना है।"
"दिन-दहाड़े भला हम लाश को कहां ले जा सकते हैं?"
"ये भी सही है, मगर रात शुरू होने पर तो यहां दिन से भी ज्यादा चहल-पहल शुरू हो जाती है—और तीन बजे के बाद ही कहीं सन्नाटा होता है।"
"लाश बाहर निकालने के लिए वही टाइम उचित रहेगा।"
"म.....मगर तब तक क्या लाश यहीं रहेगी?"
"मजबूरी है।"
नसीम बानो ने एक पल कुछ सोचा, मुद्रा से जाहिर था कि लाश के यहां रहने पर वह चिंतित है, मगर विवशता थी, बोली—"ठीक है, तुम कार को कहीं ठिकाने लगाकर आओ—तब तक मैं लाश को इस सेफ के अन्दर ठूंसती हूं।"
विमल ने गाड़ी की चाबी उठा ली।
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