Gandi Sex kahani दस जनवरी की रात
12-09-2020, 12:26 PM,
#41
RE: Gandi Sex kahani दस जनवरी की रात
बारह बजते ही पटाखे छूटने लगे । नया साल शुरू हो गया था, आतिशबाजी और पटाखों के साथ युवक-युवतियों के झुंड सड़कों पर आ गये थे, रोमेश ने जू बीच से मोटर साइकिल स्टार्ट की, वह अब भी उसी गेटअप में था । एक टेलीफोन बूथ के सामने उसने मोटर साइकिल रोकी ।
बूथ में घुस गया और जनार्दन नागारेड्डी का फोन नम्बर डायल किया । फोन बजते ही उसने कोड बोला । कुछ क्षण बाद ही जे.एन. फोन पर था ।
"हैलो, जे.एन. स्पीकिंग ! कौन बोल रहा है ?"
"नया साल मुबारक ।"
"तुमको भी मुबारक ।" जे.एन. ने उत्तर दिया, "आवाज पहचानने में नहीं आ रही है, कौन हो भई ?"
"तुम्हारा होने वाला कातिल । "
"क्या बोला ?"
"तुम्हारा होने वाला कातिल ।"
दूसरी तरफ कुछ पल खामोशी छाई रही, फिर जे.एन. बोला, "मजाक छोड़ो भाई, अभी बहुत से लोगों की बधाई आ रही है, उनका भी तो फोन सुनना है ।"
"मैं ज्यादा वक्त नहीं लूंगा एक्स चीफ मिनिस्टर ! मैं यकीनी तौर पर तुम्हारा होने वाला कातिल ही बोल रहा हूँ । जल्दी ही मैं तुम्हें तुम्हारी मौत की तारीख भी बता दूँगा । अभी मैंने तुम्हारा कत्ल करने के लिए पोशाक खरीदी है, बस यही इत्तला देनी थी ।"
उसके बाद रोमेश ने फोन काट दिया ।
उसके बाद वह तेजी से अपने फ्लैट की तरफ रवाना हो गया ।
☐☐☐
नया साल शुरू हो गया था । रोमेश अब अपने फ्लैट पर तन्हा रहता था, वह अपने परिचितों में से किसी का फोन नहीं सुनता था । सुबह ही निकल जाता था और देर रात तक घर लौटता था । रोमेश ने फिर वही लिबास पहना और मोटर साइकिल लेकर सड़कों पर घूमने लगा । जहाँ वह रुकता, लोग हैरत से देखते, रास्ते में उससे परिचित भी टकरा जाते थे । मुम्बई में दिन तो गरम होता ही है, उस पर कोई ओवरकोट पहनकर निकले तो अजूबा ही होगा ।
रोमेश अजूबा ही बनता जा रहा था ।
दो जनवरी को वह विक्टोरिया टर्मिनल पर घूम रहा था । घूमते-घूमते वह फुटपाथ पर चाकू छुरी बेचने वाले की एक दुकान पर रुका ।
"ले लो भई, ले लो । रामपुरी से लेकर छप्पनछुरी तक सब माल मिलता है ।" चाकू छुरी बेचने वाला आवाज लगा रहा था ।
"ऐ !" रोमेश ने उसे आवाज़ दी ।
"आओ साहब, बोलो क्या मांगता ? किचन की छुरी या चाकू, छोटा बड़ा सब मिलेगा ।"
"रामपुरी बड़ा, तेरह इंच से ऊपर ।"
"समझा साहब ।" छुरी बेचने वाले ने पास खड़े एक लड़के को बुलाया, "करीम भाई के जाने का, बोलो राजा ने बढ़िया वाला रामपुरी मंगाया, भाग के जाना ।"
लड़का भागकर गया और पांच मिनट से पहले आ गया, उसने एक थैला छुरी बेचने वाले को थमा दिया ।
"बड़ा चाकू, असली रामपुरी ! यह देखो, पसन्द कर लो ।"
रोमेश ने एक रामपुरी पसन्द किया ।
"यह ठीक है, कितने का है ?"
"पच्चहत्तर का साहब ! सेवन्टी फाइव ओनली ! कम ज्यादा कुछ नहीं, एक दाम ।"
"ठीक है, एक बिल बनाओ । उस पर हमारा नाम पता लिखो, रोमेश सक्सेना ।"
"अरे साहब, हम फुटपाथ का धन्धा करने वाला आदमी । अपुन के पास बिल कहाँ साब, बिल तो बड़ी दुकान पर बनता है ।"
"देखो राजा, राजा है ना तुम्हारा नाम ।"
"बरोबर साहब ।"
"हम तुमको सौ रुपया देगा, चाहे सादा कागज पर डुप्लीकेट बनाओ, कार्बन लगा के । कार्बन कॉपी तुम अपने पास रखना, उस पर लिखो राजा फुटपाथ वाले ने सेवण्टी फाईव में चाकू रोमेश को आज की तारीख में बेचा । मैं पच्चीस रुपया फालतू दूंगा ।"
"ये बात है साहब, तो हम बना देगा । मगर कोई लफड़ा तो नहीं होगा साहब ।"
"नहीं ।"
अब राजा कागज और कार्बन ले आया । जो रोमेश सक्सेना बोलता रहा, वह लिखता रहा, फिर कार्बन कॉपी अपने पास रखकर बिल रोमेश को दे दिया ।
"एक बात समझ में नहीं आया साहब ।" सौ का नोट लेने के बाद राजा बोला ।
"क्या ?"
"कच्चा बिल लेने के लिए आपने पच्चीस रुपया खर्च किया, ऐसा तो आप खुद बना सकता था ।"
"हाँ, मगर उस सूरत में गवाही देने कौन आता ।"
"गवाही, कैसा गवाही ?"
"देखो राजा, तुम्हारा यह रामपुरी बहुत खुशनसीब है । क्योंकि इससे एक वी.आई.पी. का मर्डर होने वाला है ।"
"क्यों मजाक करता साहब, मेरे को डराता है क्या ? इधर गुण्डे-मवाली लोग भी चाकू खरीदते हैं, लेकिन इस तरह मर्डर की बात कोई नहीं बोलता ।"
"वह गुण्डे-मवाली होंगे, जो कत्ल की वारदात करके छुपाते हैं । लेकिन मैं उस तरह का गुण्डा नहीं हूँ, वैसे भी मुझे बस एक ही खून करना है और वह खून इस रामपुरी से होगा ।" रोमेश ने रामपुरी खोलते हुए कहा, "इसीलिये मैंने बिल लिखवाया है, रामपुरी बरामद करने के साथ पुलिस को यह बिल भी मिल जायेगा । तब उसे पता चलेगा कि रामपुरी तुम्हारे यहाँ से खरीदा गया ।"
राजा के चेहरे से हवाइयां उड़ने लगीं ।
"अदालत में यह रामपुरी तुझे दिखाया जायेगा, उस वक्त मैं कटघरे में खड़ा रहूँगा । तुम कहोगे, हाँ योर ऑनर, मैं इसे जानता हूँ, यह मशहूर वकील रोमेश सक्सेना है ।"
आसपास कुछ लोग जमा हो गये थे ।
"अरे यह तो मशहूर वकील रोमेश है ।" जमा होते लोगों में से कोई बोला ।
राजा के तो छक्के छूट रहे थे ।
"मेरे को पसीना मत दिलाओ साहब, कभी किसी वकील ने किसी का कत्ल किया है क्या ? यह तो फिल्म की स्टोरी है ।"
"नहीं, मैं तुम्हें अपने जुर्म का गवाह बनाने आया हूँ । दुकान छोड़कर भागेगा, तब भी पुलिस तुझे तलाश कर लेगी ।"
"पर मैंने किया क्या है ? "
"तूने वह चाकू मुझे बेचा है, जिससे मैं खून करूंगा । लेकिन तुझे कोई पनिशमेन्ट नहीं मिलेगा, तू सिर्फ गवाह बनकर अदालत में आयेगा ।"
"मुझे रामपुरी वापिस दे दो माई बाप, सौ के डेढ़ सौ ले लो ।" राजा गिड़गिड़ाने लगा ।
"नहीं, इससे ही मुझे खून करना है ।" रोमेश ने जोर से कहा, "तुम सब लोग भी सुन लो, मैं एडवोकेट रोमेश सक्सेना इस रामपुरी से कत्ल करने जा रहा हूँ ।"
"पागल हो गया, रास्ता छोड़ो भाई ।" भीड़ में से कोई बोला ।
"ओ आजू बाजू हो जाओ, कहीं तुममें से ही यह किसी का खून न कर दे ।"
रोमेश ने चाकू बन्द करके जेब में रखा, मोटर साइकिल पर किक लगा दी और फर्राटे के साथ आगे बढ़ गया ।
शाम ढल रही थी और फिर मुम्बई रात की बाहों में झिलमिलाने लगी ।
रोमेश घूमता रहा ।
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12-09-2020, 12:26 PM,
#42
RE: Gandi Sex kahani दस जनवरी की रात
फिर एक टेलीफोन बूथ से रोमेश ने जे.एन. को फ़ोन लगाया ।
कोड दोहराते ही उसका सीधे जे.एन.से सम्पर्क हो गया ।
"हैलो !” जे.एन. की आवाज़ आयी, "कौन बोल रहे हो ?"
"तुम्हारा होने वाला कातिल ।" रोमेश ने हल्का-सा कहकहा लगाते हुए कहा ।
"तू जो कोई भी है, सामने आ । मर्द का बच्चा है, तो सामने आकर दिखा । तब मैं तुझे बताऊंगा कि कत्ल कैसे होता है ? फोन पर मुझे डराता है साले ।"
"आज मैंने तुम्हारा कत्ल करने के लिए चाकू भी खरीद लिया है । अब तुम्हें जल्द ही तारीख भी पता लग जायेगी । मैं तुम्हें बताऊंगा कि मैं तुम्हें किस दिन मारने वाला हूँ । तुम्हारी मौत के दिन बहुत करीब आते जा रहे हैं मिस्टर जनार्दन नागारेड्डी, ठहरो । शायद तुमने यह जानने का भी प्रबन्ध किया है कि फोन कहाँ से आता है ? मैं तुम्हें खुद बता देता हूँ, मैं दादर स्टेशन के बाहर टेलीफोन बूथ से बोल रहा हूँ, अब करो अपनी पावर का इस्तेमाल और पकड़ लो मुझे ।"
रोमेश ने कहकहा लगाते हुए फोन काट दिया ।
फिर वह बड़े आराम से बूथ से बाहर निकला और घर चल पड़ा । उसने अपना काम कर दिया था ।
उसके बाद सारी रात वह सुकून से सोता रहा था । उसकी सेवा के लिए फ्लैट में न तो पत्नी थी न नौकर, नौकर को निकालने का उसे रंज अवश्य था । वह एक वफादार नौकर था । पता नहीं उसे कोई रोजगार मिला भी होगा या नहीं ? जाते-जाते वह यही कह रहा था कि वह गाँव चला जायेगा ।
रोमेश ने एक शिकायती पत्र पुलिस कमिश्नर के नाम टाइप किया, जिसमें उसने जे.एन. को अपनी पत्नी के दुर्व्यवहार के लिए आरोपित किया था और यह भी शिकायत की थी कि बान्द्रा पुलिस ने उसकी शिकायत पर किस तरह अमल किया था ।
उसकी प्रतिलिपि उसने एक अखबार को भी प्रसारित कर दी । उसे मालूम था कि अखबार वाले यह समाचार तब तक नहीं छापेंगे, जब तक जे.एन. पर मुकदमा कायम नहीं हो जाता । जे. एन. भले ही चीफ मिनिस्टर न रहा हो, लेकिन वह शक्तिशाली लीडर तो था ही और उसे केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल में लिए जाने की चर्चा गरम थी ।
परन्तु एक बात रोमेश अच्छी तरह जानता था कि जनार्दन नागारेड्डी की हत्या के बाद यह कहानी अवश्य प्रकाशित होगी । वह यह भी जानता था कि पुलिस कमिश्नर मुकदमा कायम नहीं होने देगा और मुकदमा रोमेश कायम करना भी नहीं चाहता था ।
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तीन जनवरी !
शनिवार का दिन था । रोमेश उस दिन एक ऐसी दुकान पर रुका, जहाँ बर्तनों पर नाम गोदे जाते थे या नक्काशी होती थी । जिस समय रोमेश दुकान में प्रविष्ट हुआ, उसकी नजर वैशाली पर पड़ गई ।
वह ठिठका ।
परन्तु वैशाली ने भी उसे देख लिया था ।
"नमस्ते सर आइए ।" वैशाली ने रोमेश का वेलकम किया ।
वैशाली एक प्रेशर कुकर पर कुछ लिखवा रही थी । कुछ और बर्तन भी थे, हर किसी पर वी.वी. लिखा जा रहा था ।
"यानि विजय-वैशाली, यही हुआ न वी.वी. का मतलब ?" रोमेश ने पूछा ।
"जी ।" वैशाली शरमा गयी ।
"मुबारक हो, शादी कब हो रही है ?"
"आपको पता चल ही जायेगा, अभी तो एंगेजमेन्ट हो रही है सर । आपने तो आना-जाना ही बन्द कर दिया, फोन भी नहीं सुनते ।" कुछ कहते-कहते वैशाली रुक गई । उसे महसूस हुआ कि वह पब्लिक प्लेस पर खड़ी है, "सॉरी सर, मैं तो शिकायत लेकर बैठ गई । आपका दुकान में कैसे आना हुआ ? कुछ काम था ?"
"हाँ ।"
"अरे पहले साहब का काम देखो, मेरा बाद में कर लेना ।" वैशाली ने नाम गोदने वाले से कहा ।
नाम गोदने वाला एक दिल बनाकर उसके बीच में वी.वी. लिख रहा था, वह बहुत खूबसूरत नक्काशी कर रहा था ।
"हाँ साहब ।" उसने काम रोककर रोमेश की तरफ देखा ।
रोमेश ने जेब से रामपुरी निकाला और उसका फल खोल डाला । रामपुरी देखकर पहले तो नाम गोदने वाला सकपका गया ।
"क्या नाम है तुम्हारा ?" रोमेश ने पूछा ।
"कासिम खान, साहब ।" वह बोला ।
"इस पर लिखना है ।" रोमेश के कुछ कहने से पहले ही वैशाली बोल पड़ी, "रोमेश सक्सेना ! सर का नाम रोमेश सक्सेना है, चलो मैं स्पेलिंग बताती हूँ ।"
"हाँ मेमसाहब, बताओ ।" उसने कागज पेन सम्भाल लिया ।
वैशाली उस नाम की स्पेलिंग बताने लगी । स्पेलिंग लिखने के बाद उसने वैशाली को दिखा दी ।
"हाँ ठीक है, यही है ।"
"किधर लिखूं साहब ?"
"ठहरो, इस पर दो नाम लिखे जायेंगे । दूसरा नाम भी लिखो ।"
"द…दो नाम !" कासिम चौंका ।
वैशाली भी हैरानी से कुछ परेशानी के आलम में रोमेश को देखने लगी । पहले तो वह रामपुरी देखकर ही चौंक पड़ी थी ।
"हाँ, दूसरा नाम है जनार्दन नागारेड्डी ! ब्रैकेट में जे.एन. लिखो ।" रोमेश ने खुद कागज पर वह नाम लिख डाला । यह नाम सुनकर वैशाली की धड़कनें भी तेज हो गयीं ।
"आप यह क्या… ?" वैशाली ने दबी जुबान में कुछ कहना चाहा, परन्तु रोमेश ने तुरन्त उसे रोक दिया ।
"प्लीज मुझे मेरा काम करने दो ।" फिर रोमेश, कासिम से मुखातिब हुआ, "यह जो दूसरा नाम है, वह चाकू के ब्लेड पर लिखा जायेगा । चाकू की मूठ पर मेरा नाम । ठीक है ? समझ में आया या नहीं ?"
"बरोबर आया साहब ! पण अपुन को यह तो बताइए साहब, इन दो नामों में मिस्टर कौन है और मिसेज कौन ?" कासिम ने शरारतपूर्ण अन्दाज में कहा ।
"इसमें न तो कोई मिस्टर है और न मिसेज, इसमें एक नाम मकतूल का है और दूसरा कातिल का । जिसका नाम चाकू के फल पर लिखा जा रहा है, वह मकतूल का नाम है यानि कि मरने वाले का । और जिसका नाम मूठ पर है, वह कातिल का नाम है, यानि मारने वाले का ।"
"ज… जी ।" वह झोंक में बोला और फिर उछल पड़ा, "जी क्या कहा, मकतूल और कातिल ?"
"हाँ, इस चाकू से मैं जे.एन. का कत्ल करने वाला हूँ, अखबार में पढ़ लेना ।"
कासिम खां हैरत से मुंह फाड़े रोमेश को देखने लगा ।
"घबराओ नहीं, मैं तुम्हारा कत्ल करने नहीं जा रहा हूँ, अब जरा यह नाम फटाफट लिख दो ।"
कासिम खान ने जल्दी-जल्दी दोनों नाम लिखे और फिर चाकू रोमेश को थमा दिया । रोमेश ने पेमेन्ट से पहले बिल बनाने के लिए कहा ।
"बिल !" चौंका कासिम ।
"हाँ भई ! मैं कोई दो नम्बर का आदमी नहीं हूँ, सब कुछ एकाउण्ट में लिखा जाता है । बिल पर मेरा नाम लिखना न भूलना ।"
"जल तू जलाल तू, आई बला को टाल तू ।" मन ही मन बड़बड़ाते हुए कासिम ने बिल बनाकर उसे दे दिया और उस पर नाम भी लिख दिया, "लीजिये ।"
रोमेश ने पेमेंट करना चाहा, तो वैशाली बोली, "मैं कर दूँगी ।"
"नहीं, यह खाता मेरा अपना है ।" रोमेश ने पेमेंट देते हुए कहा, "हाँ तो कासिम खान, अब जरा ख़ुदा को हाजिर नाजिर जानकर एक बात और सुन लीजिये ।"
"ज…जी फरमाइए ।"
"आपको जल्दी ही कोर्ट में गवाही के लिए तलब किया जायेगा । कटघरे में मैं खड़ा होऊंगा, क्योंकि मैंने इस चाकू से जनार्दन नागारेड्डी का कत्ल किया होगा । उस वक्त आपको खुद को हाजिर नाजिर जानकर कहना है, हुजूर यही वह आदमी है, जो मेरी दुकान पर इसी चाकू पर नाम गुदवाने आया था और इसने कहा था कि जनार्दन नागारेड्डी का कत्ल इसी चाकू से करेगा, इस पर मैंने ही दोनों नाम लिखे थे हुजूर ।"
इतना कहकर रोमेश मुड़ा और फिर वैशाली की तरफ घूमा, "किसी वजह से अगर मैं शादी में शरीक न हो सका, तो बुरा मत मानना । मेरी तरफ से एडवांस में बधाई ! अच्छा गुड बाय ।" उसने हैट उठाकर हल्के से सिर झुकाया । फिर हैट सिर पर रखी और दुकान से बाहर निकल आया ।
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#43
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एक बार फिर उसकी मोटर साइकिल मुम्बई की सड़कों पर घूम रही थी ।
रात के ग्यारह बजे उसने टेलीफोन बूथ से फिर एक नम्बर डायल किया । इस बार फोन पर दूसरी तरफ से किसी नारी का स्वर सुनाई दिया ।
"हैल्लो, कौन मांगता ?"
"माया ।" रोमेश ने मुस्कराकर कहा ।
"हाँ, मैं माया बोलती ।"
"जे.एन. को फोन दो, बोलो कि खास आदमी का फोन है ।"
"मगर आप हैं कौन ?"
"सुअर की बच्ची, मैं कहता हूँ जे.एन. को फोन दे, वह भारी मुसीबत में पड़ने वाला है ।"
"कौन बोलता ?" इस बार जे.एन. का भारी स्वर सुनाई दिया । उसके स्वर से ही पता चल जाता था कि वह नशे में है, रोमेश ने उसकी आवाज पहचानकर हल्का सा कहकहा लगाया ।
"नहीं पहचाना, वही तुम्हारा होने वाला कातिल ।"
"सुअर के बच्चे, तू यहाँ भी मर गया । मैं तुझे गोली मार दूँगा, तू हैं कौन हरामजादे ? तेरी इतनी हिम्मत, मैं तेरी बोटी-बोटी नोंचकर कुत्तों को खिला दूँगा ।"
"अगर मैं तुम्हारे हाथ आ गया, तो तुम ऐसा ही करोगे । क्योंकि तुमने पहले भी कईयों के साथ ऐसा ही सलूक किया होगा । सुन मेरे प्यारे मकतूल, मैं अब तुझे तेरी मौत की तारीख बताना चाहता हूँ । दस जनवरी की रात तेरी जिन्दगी की आखिरी रात होगी । मैं तुझे दस जनवरी की रात सरेआम कत्ल कर दूँगा ।"
"सरेआम ! मैं समझा नहीं ।"
"कुल सात दिन बाकी रह गये हैं तेरी जिन्दगी के । ऐश कर ले । यह घड़ी फिर नहीं आयेगी ।"
इतना कहकर रोमेश ने फोन काट दिया ।
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सुबह-सुबह विजय उसके फ्लैट पर आ धमका ।
"कहिये कैसे आना हुआ इंस्पेक्टर साहब ?"
"कुछ दिन से तो आपको भी फुर्सत नहीं मिल रही थी और कुछ हम भी व्यस्त थे । इसलिये चंद दिनों से आपकी हमारी मुलाकात नहीं हो पा रही थी और आजकल टेलीफोन डिपार्टमेंट भी कुछ नाकारा हो गया लगता है, आपका फोन मिलता ही नहीं ।"
"शायद आपको पता ही होगा कि मैं फ़िलहाल न तो किसी से मिलने के मूड में हूँ, न किसी की कॉल सुनना चाहता हूँ ।"
"कब तक ? " विजय ने पूछा ।
"ग्यारह जनवरी के बाद सब रूटीन में आ जायेगा ।"
"और, यानि दस जनवरी को तो आपकी मैरिज एनिवर्सरी है । क्या भाभी लौट रही हैं ?"
"नहीं, अपनी शादी की यह सालगिरह मैं कुछ दूसरे ही अंदाज में मनाने जा रहा हूँ ।"
"वह किस तरह, जरा हम भी तो सुनें ।"
"इंस्पेक्टर विजय, तुम अच्छी तरह जानते हो कि मैं जे.एन. का कत्ल करने जा रहा हूँ, ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि वैशाली ने तुम्हें न बताया हो । हाँ, उसने डेट नहीं बताई होगी । मैं जे.एन. का कत्ल 10 जनवरी की रात करूंगा, ठीक उस वक्त जब मैंने सुहागरात मनाई थी ।"
"ओह, तो शहर में जो चर्चायें हो रही है कि एक वकील पागल हो गया है, वह कहाँ तक ठीक है ?"
"पागल मैं नहीं, पागल तो जे.एन. होगा, दस तारीख की रात तक । वह जहाँ भी रहेगा, मैं भी वहीं उसे फोन करता रहूँगा और वह यह सोचकर पागल हो जायेगा कि दुनिया के किसी भी कोने में वह सुरक्षित नहीं है । फिर दस जनवरी की रात मैं उसे जहाँ ले जाना चाहूँगा, वह वहीं पहुंचेगा और मैं उसका कत्ल कर दूँगा । मेरा यह काम खत्म होने के बाद पुलिस का काम शुरू होना है, इसलिये कहता हूँ दोस्त कि 11 जनवरी को यहाँ आना, यहाँ सब ठीक मिलेगा ।"
"जहाँ तक पुलिस की तरफ से आने का प्रश्न है, मैं पहले भी आ सकता हूँ । तुम्हारी जानकारी के लिए मैं इतना बता दूँ कि जे.एन. ने रिपोर्ट दर्ज करा दी है, उसने कमिश्नर से सीधा सम्पर्क किया है और पुलिस डिपार्टमेंट की ओर से मुझे दो काम सौंपे गये हैं । एक तो मुझे होने वाले कातिल से जे.एन. की हिफाजत करनी है, दूसरे उस होने वाले कातिल का पता लगाकर उसे सलाखों के पीछे पहुँचाना है ।"
"वंडरफुल यह तो तुम्हारी बहुत बड़ी तरक्की हुई । सावंत के हत्यारे को पकड़ तो न सके, उल्टे उसकी हिफाजत करने चले हो ।"
"यह कानूनी प्रक्रिया है, ऐसा नहीं है कि मैं जे.एन. के खिलाफ सबूत नहीं जुटा रहा हूँ और मैंने यह चैप्टर क्लोज कर दिया है, लेकिन यह मेरी सिर्फ डिपार्टमेंटल ड्यूटी है, किसी कातिल को इस तरह कत्ल करने की छूट पुलिस नहीं देती, चाहे वह डाकू ही क्यों न हो । जे.एन. पर वैसे भी कोई जिन्दा या मुर्दा का इनाम नहीं है और न ही वह वांटेड है, अभी भी वह वी.आई.पी. ही है । "
"ठीक है, तो तुम अपना कर्तव्य निभाओ, अगर तुम्हारा इरादा मुझे गिरफ्तार करके सलाखों के पीछे पहुचाने का है, तो शायद तुम यह भूल रहे हो कि मैं कानून का ज्ञाता भी हूँ । किसी को धमकी देने के जुर्म में तुम मुझे कितनी देर अन्दर रख सकोगे, यह तुम खुद जान सकते हो ।"
"रोमेश प्लीज, मेरी बात मानो ।" विजय का अन्दाज बदल गया, "मैं जानता हूँ कि तुम ऐसा कुछ नहीं कर सकते, क्योंकि तुम तो खुद कानून के रक्षक हो, आदर्श वकील हो । फिर यह सब पागलपन वाली हरकतें कहाँ तक अच्छी लगती हैं । देखो, मैं यकीन से कहता हूँ कि जे.एन. एक दिन पकड़ा जायेगा और फिर उसे कानून सजा देगा । "
"मर गया तुम्हारा वह कानून जो उसे सजा दे सकता है । अरे तुम उसके चमचे बटाला को ही सजा करके दिखा दो, तो जानूं । विजय मुझे नसीहत देने की कौशिश मत करो, मैं जो कर रहा हूँ, ठीक कर रहा हूँ । जे.एन. के मामले में एक बात ध्यान से सुनो विजय । कानून और कानून की किताबें भूल जाओ, अपनी यह वर्दी भी भूल जाओ । अब जे.एन. का मुकदमा मेरी अदालत में है, इस अदालत का ज्यूरी भी मैं हूँ और जज भी मैं हूँ और जल्लाद भी मैं हूँ । अब तुम जा सकते हो ।"
"भगवान तुम्हें सबुद्धि दे ।" विजय सिर झटककर बाहर निकल गया ।
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जनार्दन नागारेड्डी के सामने बटाला खड़ा था ।
"चप्पे-चप्पे पर अपने आदमी फैला दो, दूर के स्टेशनों के बूथ और दूसरे बूथों के आसपास रात के वक्त तुम्हारे आदमी होने चाहिये । जैसे भी हो इस आदमी का पता लगाओ कि यह है कौन, इसे हमारे कोड्स का पता कैसे लग गया ? यह मेरे गुप्त ठिकानों के बारे में कैसे जानता है ? वैसे तो इस काम में पुलिस भी जुट गई है. लेकिन तुम्हें अपने ढंग से पता लगाना है ।"
"यस सर ! आप समझ लें, दो दिन में हम उसका पता लगा लेगा और साले को खलास कर देगा ।"
"जाओ काम पर लग जाओ ।"
बटाला सलाम मारकर चला बना ।
जे.एन. आज इसलिये फिक्रमंद था, क्योंकि विगत रात माया के फ्लैट पर उसे अज्ञात आदमी का फोन आया था । यह बात उसे कैसे पता थी कि उस वक्त जे.एन. मायारानी के फ्लैट पर होगा ? उसने पुलिस कमिश्नर को फोन मिलाया । थोड़ी देर तक उधर बात करता रहा । पुलिस की तरफ से पूरी सुरक्षा की गारंटी दी जा रही थी । वैसे तो सिक्योरिटी गार्ड्स अभी भी उसकी सेफ्टी के लिए थे ।
"चार स्पेशल ब्लैक कैट कमांडो आपके साथ हर समय रहेंगे ।" कमिश्नर ने कहा, "वैसे लगता तो यही है कि कोई सिरफिरा आदमी आपको बेकार में तंग कर रहा है, फिर भी हम पूरे मामले पर नजर रखे हैं ।"
"थैंक्यू कमिश्नर ।" जनार्दन नागारेड्डी ने फोन के बाद अपने पी.ए. को बुलाया ।
"यस सर ।" मायादास हाज़िर हो गया, "क्या हुक्म है ?"
"मायादास जी, आप मेरे सबसे नजदीकी आदमी हैं । मैं चाहता हूँ कि फ़िलहाल अब कुछ वक्त मुम्बई से बाहर गुजार लिया जाये, कौन सी जगह बेहतर रहेगी ?"
"मेरे ख्याल से आप दूर न जायें, तो बेहतर है । हम आपको अपनी सुरक्षा टीम के दायरे से बाहर नहीं भेजना चाहते ।"
"क्या सचमुच मुझे कोई खतरा हो सकता है ? पुलिस कमिश्नर तो कह रहा था कि यह किसी सिरफिरे का काम है, बस दिमाग में कुछ टेंशन सी रहती है, इसलिये जाना चाहता हूँ ।"
"सुनो आप खंडाला चले जाइए, वहाँ आपकी एक विला तो है ही । हमारे लोग वहाँ उसकी हिफाजत भी करते रहेंगे । बात ये भी तो है कि कभी भी आपको दिल्ली बुलाया जा सकता है, इसलिये मुम्बई से ज्यादा दूर रहना तो वैसे भी आपके लिए ठीक नहीं होगा ।"
"आप ठीक कहते हैं, मैं खंडाला चला जाता हूँ । किसी को मत बताना, कोई ख़ास बात हो, तो मुझे फोन कर देना ।"
"ठीक है ।"
"मैं वहाँ बिलकुल अकेला रहना चाहता हूँ, समझ गये ना ।"
"बेशक ।"
जनार्दन नागारेड्डी उसी दिन खंडाला के लिए रवाना हो गया ।
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शाम तक वह विला में पहुँच गया । उसके पहुंचने से पहले वहाँ दो स्टेनगन धारी कमांडो चौकसी पर लग चुके थे, उन्होंने जे.एन. को सैल्यूट किया ।
जे.एन. विला में चला गया ।
विला में खाने-पीने का सब सामान मौजूद था ।
रात को नौ बजे मायादास का फ़ोन आया, उसने कुशल पूछी और थोड़ी देर तक औपचारिक बातों के बाद फोन बंद कर दिया ।
जे.एन. बियर पीता रहा,फिर वह कुछ पत्रिकायें पलटता रहा । इसी तरह रात के ग्यारह बज गये । वह सोने की तैयारी करने लगा ।
अचानक फोन की घंटी बजने लगी । अभी वह बिस्तर पर पूरी तरह लेट भी नहीं पाया था कि चिहुंककर उठ बैठा । वह फोन को घूरने लगा । क्या मायादास का फोन हो सकता है ? किन्तु मायादास तो फोन कर चुका है, वह दोबारा तो तभी फोन करेगा जब कोई ख़ास बात हो । रात के ग्यारह और बारह के बीच तो उसी कातिल का फोन आता है । तो क्या उसी का फोन है ?
घंटी बजती रही ।
आखिर जे.एन. को फोन का रिसीवर उठाना ही पड़ा । किन्तु वह कुछ बोला नहीं, वह तब तक बोलना ही नहीं चाहता था, जब तक मायादास की आवाज न सुन ले ।
किन्तु दूसरी तरफ से बोलने वाला मायादास नहीं था ।
"मैं तेरा होने वाला कातिल बोल रहा हूँ बे ! क्यों अब बोलती भी बंद हो गई, अभी तो छ: दिन बाकी है । यहाँ खंडाला क्या करने आ गया तू, वैसे तेरा कत्ल करने के लिए इससे बेहतर जगह तो कोई हो भी नहीं सकती ।"
जे.एन. ने फोन पर कोई जवाब नहीं दिया और रिसीवर क्रेडिल पर रख कर फ़ोन काट दिया । दोबारा फोन की घंटी न बजे इसलिये उसने रिसीवर क्रेडिल से उठाकर एक तरफ रख दिया । इतनी सी देर में उसके माथे पर पसीना भरभरा आया था । पहली बार जे.एन. को खतरे का अहसास हुआ ।
उसे लगा वह कोई सिरफिरा नहीं है ।
या तो कोई शख्स उसे भयभीत कर रहा है या फिर सचमुच कोई हत्यारा उसके पीछे लग गया है । लेकिन कोई हत्यारा इस तरह चैलेंज करके तो कत्ल नहीं करता । अगली सुबह ही जनार्दन नागारेड्डी ने खंडाला की विला भी छोड़ दी और वह वापिस अपनी कोठी पर आ गया । जनार्दन ने अंधेरी में एक नया बंगला बनाया था, वह सरकारी आवास की बजाय इस बंगले में आ गया । मायादास को भी उसने वहीं बुला लिया ।
शाम को इंस्पेक्टर विजय उससे मिलने आया । उसके साथ चार ब्लैक कैट कमांडो भी थे ।
"कमिश्नर साहब ने आपकी हिफाजत के लिए मेरी ड्यूटी लगाई है ।" विजय ने कहा, "यह चार शानदार कमांडो हर समय आपके साथ रहेंगे । हमारी कौशिश यह भी है कि हम उस अज्ञात व्यक्ति का पता लगायें, इसके लिए हमने टेलीफोन एक्सचेंज से मदद ली है । जिन-जिन फोन नम्बरों पर आप उपलब्ध रहते हैं, वह सब हमें नोट करा दें, वैसे तो यह शख्स कोई सिरफिरा है जो… ।"
"नहीं वह सिरफिरा नहीं है इंस्पेक्टर ! वह मेरे इर्द-गिर्द जाल कसता जा रहा है । तुम फौरन उसका पता लगाओ । मैं तुम्हें अपने फोन नम्बर नोट करवा देता हूँ और अगर मैं कहीं बाहर गया, तो वह नंबर भी तुम्हें नोट करवा दूँगा ।"
इस पहली मुलाकात में न तो मायादास ने विजय का नाम पूछा, न जे.एन. ने ! संयोग से दोनों ने इंस्पेक्टर विजय का नाम तो सुना था, परन्तु आमना-सामना कभी नहीं हुआ था । उस रात रोमेश ने एक सिनेमा हॉल के बाहर बूथ से जे.एन. को फोन किया । उस वक्त नाईट शो का इंटरवल चल रहा था । पास ही पान सिगरेट की एक दुकान थी । फोन करने के बाद रोमेश उसी तरफ बढ़ गया, मोटर साइकिल पार्किंग पर खड़ी थी ।
"अरे साहब, फ़िल्म वाला साहब आप ।" पान की दुकान पर डिपार्टमेंटल स्टोर का सेल्समैन खड़ा था, "क्या नाम बताया था, ध्यान से उतर गया ?"
"रोमेश सक्सेना ।" तभी एक और ग्राहक ने पलटकर कहा, "एडवोकेट रोमेश सक्सेना ।"
यह दूसरा शख्स राजा था ।
राजा ने अगला सवाल दागा, "वह कत्ल हुआ की नहीं ?"
"अभी नहीं, दस जनवरी की रात होना है ।"
"मेरे कू अदालत वाला डायलॉग अभी तक याद है, बोल के दिखाऊं ।" चन्दू ने कहा ।
"पर यह तो बताइये जनाब कि आखिर आप किसका खून करना चाहते हैं ?" राजा ने मजाकिया अंदाज में कहा ।
आसपास कुछ लोग भी जमा हो गये थे । चर्चा ही ऐसी थी ।
"अब तुम लोग जानना ही चाहते हो तो… ।"
"मैं बताता हूँ ।" रोमेश की बात किसी ने बीच में ही काट दी । पीछे से जो शख्सियत सामने आई, वह कासिम खान था ।
संयोग से तीनों ही फ़िल्म देखने आये थे, नई फ़िल्म थी और हिट जा रही थी । हाउसफुल चल रहा था । इंटरवल होने के कारण बाहर भीड़ थी ।
"यह जनाब जिस शख्स का कत्ल करने वाले हैं, उसका नाम जनार्दन नागारेड्डी है ।"
"जनार्दन नागारेड्डी ।" चन्दू उछल पड़ा, "क्या बोलता है बे ? वो चीफ मिनिस्टर तो नहीं अरे ? अपना लीडर जे.एन. ?"
"कासिम ठीक कह रहा है, बात उसी जे.एन. की है । और यह कोई फ़िल्मी कहानी नहीं है, एक दिन तुम अख़बार में उसके कत्ल की खबर पढ़ लेना । ग्यारह जनवरी को छप जायेगी ।"
रोमेश इतना कहकर आगे बढ़ गया ।
भीड़ में से एक व्यक्ति तीर की तरह निकला और टेलीफोन बूथ में घुस गया । वह बटाला को फोन मिला रहा था ।
"हैलो ।" फोन मिलते ही उसने कहा, "उस आदमी का पता चल गया है, जो जे.एन. साहब को फोन पर धमकी देता है ।"
"कौन है ? " बटाला ने पूछा ।
"उसका नाम रोमेश सक्सेना है, एडवोकेट रोमेश सक्सेना ।"
"ओह, तो यह बात है । रस्सी जल गई, मगर बल अभी बाकी है, ठीक है ।"
दूसरी तरफ से बिना किसी निर्देश के फोन कट गया ।
उसी वक्त बटाला का फोन जे.एन. को भी पहुँच गया ।
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12-09-2020, 12:26 PM,
#44
RE: Gandi Sex kahani दस जनवरी की रात
"रोमेश सक्सेना ।" जे.एन. मुट्ठियाँ भींचे अपने ड्राइंगरूम में चहलकदमी कर रहा था, "उसकी ये मजाल !"
मायादास सामने हाथ बांधे खड़ा था ।
"वैसे तो जो आप कहेंगे, वह हो जायेगा ।" मायादास ने कहा, "मगर हमें जल्दीबाजी में कुछ नहीं करना चाहिये, हमें हर काम का नकारात्मक रुख भी तो देखना चाहिये । अगर रोमेश सक्सेना सारे शहर में यह गाता फिर रहा है कि वह आपका कत्ल करेगा, तो यकीनन आपका कत्ल नहीं होने वाला । हाँ, इससे वह आपको उत्तेजित करके कोई ऐसा कदम उठवा सकता है कि आप कानून के दायरे में आ जायें ।"
"कानून ! कानून हमारे लिए है क्या ? कानून तो हम बनाते हैं मायादास ।"
"ठीक है, यह सब ठीक है । मगर जरा यह तो सोचिये कि सावंत के कत्ल का मामला गर्मी न पकड़े, इसलिये आपको थोड़े दिन के लिए चीफ मिनिस्टर की सीट छोड़नी पड़ी । अब अगर हम सब वकील के क़त्ल का बीड़ा उठाते हैं और किसी वजह से वह बच गया, तब क्या होगा ? पूरा कानून का जमावड़ा, अख़बार वाले हमारे पीछे पड़ जायेंगे, हालाँकि पकड़े तो आप तब भी नहीं जायेंगे, मगर मंत्रीपद तो खतरे में पड़ ही सकता है ।"
"देखिये, यह तो आप भी महसूस कर रहे होंगे कि कातिल का नाम जानने के बाद आप रिलैक्स महसूस कर रहे हैं । क्योंकि यह बात आप भी समझते हैं कि रोमेश जैसा व्यक्ति आपका कत्ल नहीं कर सकता, आपको तो क्या वह किसी को भी नहीं मार सकता, वह कानून का एक ईमानदार प्रतीक माना जाता है, ऐसा शख्स कत्ल कैसे कर सकता है ? वो भी इस तरह कि सारे शहर को बताकर चले । तारीख मुकर्रर कर दे ।"
"हाँ, यह तो है, मगर धमकी देकर मुझे तो परेशान किया ही न उसने ।"
"अब पुलिस को उससे निपटने दें और अगर ऐसी कोई आशंका होगी भी, तो हम साले को नौ जनवरी को ही ठिकाने लगा देंगे, मगर अभी उसको कुछ नहीं कहना ।"
"बटाला से कहो कि वह उसके फ्लैट की घेराबंदी हटा दे ।"
"घेराबन्दी तो चलने दे, अब हम भी तो उस पर कड़ी नजर रखेंगे । उसकी बीवी उसे छोड़कर चली गई है, इसी वजह से हो सकता है कि वह कुछ पगला गया हो ।"
"उसकी बीवी कहाँ है ?"
"यह हमें भी नहीं मालूम, हमने जरूरत भी नहीं समझी, हम उसे सबक तो पढ़ाना चाहते थे पर सबक का मतलब यह तो नहीं कि उसे कत्ल कर डालें, कत्ल तो अंतिम स्टेज है । जब सारे फ़ॉर्मूले फेल हो जायें और पानी सर से ऊपर चला जाये, अभी तो पानी घुटनों में भी नहीं है ।"
"मायादास तुम वाकई अक्लमंद आदमी हो, हम तो गुस्से में उसे मरवा ही देते ।"
"अब आप माफिया किंग नहीं, एक लीडर हैं । सियासी लोग हर चाल सोच-समझकर चलते हैं ।"
जनार्दन नागारेड्डी अब नॉर्मल था । वह रात के फोन का इन्तजार करने लगा । वह जानता था कि रोमेश का फोन फिर आयेगा, आज जे.एन. उसका जमकर उपहास उड़ाना चाहता था ।
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माया देवी की नौकरानी ने फ्लैट का दरवाजा खोला ।
"कहिये आपको किससे मिलना है ? "
रोमेश ने अपना विजिटिंग कार्ड देते हुए कहा, "मैडम माया देवी से कहिये, मैं उनसे एक केस के सिलसिले में मिलना चाहता हूँ, उनके फायदे की बात है ।"
नौकरानी द्वार बंद करके अन्दर चली गई । कुछ देर बाद वह आई और उसने रोमेश को अंदर आने का संकेत किया । रोमेश सिटिंग रूम में बैठ गया । थोड़ी देर बाद माया देवी प्रकट हुई, वह लम्बे छरहरे कद की खूबसूरत महिला थी । नीली बिल्लौरी आँखें, गोरा रंग, गदराया हुआ यौवन, सचमुच जे.एन की पसंद चोरी की थी ।
कुछ देर तक तो रोमेश उसे ठगा-सा देखता रह गया ।
"नौकरानी पानी लेकर आ गई ।"
"लीजिये !" माया देवी ने कहा, "पानी ।"
"हाँ ।" रोमेश ने गिलास लिया और फिर पानी पी गया, "मुझे रोमेश कहते हैं ।" पानी पीने के बाद उसने कहा ।
"नाम सुना है अख़बारों में । कहिये कैसे आना हुआ मेरे यहाँ ?"
रोमेश सीधा हो गया । उसने नौकरानी की तरफ देखा । रोमेश का आशय समझ कर माया ने नौकरानी को किचन में भेज दिया ।
"अब बोलिये ।"
"मैं आपको एक मुकदमे में गवाह बनाने आया हूँ ।"
"इंटरेस्टिंग, किस किस्म का मुकदमा है ?"
"मर्डर केस ! कोल्ड ब्लडेड मर्डर केस ।"
"ओह माई गॉड ! मैं किसी मर्डर केस में गवाह… ।"
"हाँ, चश्मदीद गवाह ! यानि आई विटनेस !"
"आप कुछ पहेली बुझा रहे हैं, मैंने तो आज तक कोई मर्डर होते हुए नहीं देखा ।"
"अब देख लेंगी ।" रोमेश ने सिगरेट सुलगाते हुए कहा, "आप एक मर्डर की चश्मदीद गवाह बनेंगी, डेम श्योर ! आप घबराना मत ।"
"आप तो पहेली बुझा रहे हैं ?"
"दस तारीख की रात यह पहेली खुद हल हो जायेगी, बस आप मुझे पहचानकर रखें ।" रोमेश ने उठते हुए कहा, "मेरा यह गेटअप पसंद आया आपको, इसी को पहन कर मैंने एक कत्ल करना है और उसी वक्त की आप चश्मदीद गवाह बनेंगी । अदालत में मुलजिम के कटघरे में, मैं खड़ा होऊंगा और तब आप कहेंगी, योर ऑनर यही वह शख्स है, जो पांच जनवरी को मेरे पास आकर बोला कि मैं तुम्हारे सामने ही एक आदमी का कत्ल करूंगा और इसने कर दिया ।"
"इंटरेस्टिंग स्टोरी, अब आप जाने का क्या लेंगे ?"
"मैं जा ही रहा हूँ, लेकिन मेरी बात याद रखना मैडम माया देवी ! आप जैसी हसीन बला को आई विटनेस बनाते हुए मुझे बड़ी ख़ुशी होगी, गुडलक । "
रोमेश ने मफलर चेहरे पर लपेटा और सीटी बजाता बाहर निकल गया । माया देवी ने फ्लैट की खिड़की से उसे मोटर साइकिल पर बैठकर जाते देखा और फिर बड़बड़ाई, "शायद पागल हो गया है ।"
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12-09-2020, 12:27 PM,
#45
RE: Gandi Sex kahani दस जनवरी की रात
रात को रोमेश ने फिर जनार्दन को फोन किया । इस बार जनार्दन जैसे पहले से तैयार बैठा था ।
"हैल्लो, जे.एन. स्पीकिंग ।" जनार्दन ने बड़े संयत स्वर में कहा ।
"मैं रोमेश बोल रहा हूँ ।" रोमेश ने मुस्कुराकर कहा, "एडवोकेट रोमेश सक्सेना तुम्हारा… । "
"होने वाला कातिल ।" बाकी जुमला जे.एन. ने पूरा किया ।
"तो तुम्हें मालूम हो चुका है ?" रोमेश ने कहा ।
"हाँ, मैं तो तुम्हारे फोन का ही इंतजार कर रहा था । मैं सोच रहा था कि इस बार हमारा पाला किसी खतरनाक आदमी से पड़ गया है, मगर यह तो वह कहावत हुई- खोदा पहाड़ निकली चुहिया ।"
"इस बात का पता तो तुम्हें दस जनवरी को लगेगा जे.एन. ।"
"अरे दस किसने देखी, तू अभी आ जा ! जितने चाकू तूने हमें मारने के लिए खरीदे हैं, सब लेकर आ जा । तेरे लिए तो मैं गार्ड भी हटा दूँगा ।"
"हर काम शुभ मुहूर्त में अच्छा होता है । तुम्हारी जन्म कुंडली में दस जनवरी का दिन बड़ा मनहूस दिन है और मेरी जन्म कुंडली का सबसे खुशनसीब दिन, इस दिन मैं कातिल बन जाऊंगा और तुम दुनिया से कूच कर चुके होंगे ।"
"खैर मना कि तू अभी तक जिन्दा है साले ! जे.एन. को गुस्सा आ गया होता, तो जहाँ तू है, वहीं गोली लग जाती और इतनी गोलियां लगतीं कि तेरी पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी धुआं उठता नजर आता । "
"मालूम है । चार आदमी अभी भी मेरी निगरानी कर रहे हैं । जाहिर है कि हथियारों से लैस होंगे । मेरी तरफ से पूरी छूट है, चाहे जितनी गोलियां चला सकते हो । ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा । तुम चूकना चाहो, तो चूक जाओ जे.एन. ! मगर मैं चूकने वाला नहीं ।"
इतना कहकर रोमेश ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया ।
रोमेश ने वहीं से एक नंबर और मिलाया । दूसरी तरफ से कुछ देर बाद एक लड़की बोली ।
"हाजी बशीर को लाइन दो मैडम !"
"कौन बोलता ? " मैडम ने पूछा ।
"बोलो एडवोकेट रोमेश सक्सेना का फोन है । "
"होल्ड ऑन प्लीज । "
रोमेश ने होल्ड किये रखा । कुछ देर बाद ही बशीर की आवाज फोन पर सुनाई दी
"कहो बिरादर, हम बशीर बोल रहे हैं ।"
"हाजी बशीर, मैंने फैसला किया है कि आइन्दा आपके सभी केस लडूँगा ।"
"वाह जी, वाह ! क्या बात है ? यह हुई न बात । अब तो हम दनादन ठिकाने लगायेंगे अपने दुश्मनों को । आ जाओ, दावत हो जाये इसी बात पर ।"
"मेरे पीछे कुछ गुंडे लगे हैं ।"
"गुण्डे, लानत है । साला मुम्बई में हमसे बड़ा गुंडा कौन है, कहाँ से बोल रहे हो ?"
"माहिम स्टेशन के पास ।"
"गुण्डों की पहचान बताओ और एक गाड़ी का नंबर नोट करो । MD 9972 ये हमारा गाड़ी है, अभी माहिम स्टेशन के लिए रवाना होगा । तुम अभी स्टेशन से बाहर मत निकलना, हमारा गाड़ी देखकर निकलना, हमारा आदमी की पहचान नोट करो, वो कार से उतरकर स्टेशन पर टहलेगा । बस उसको बता देना कि गुंडा किधर है, उसका लम्बी-लम्बी मूंछें हैं, दाढ़ी रखता है, काले रंग का पहलवान, गले में लाल रुमाल होगा । वो तुमको जानता है, सीधा तुम्हारे पास पहुँचेगा और फिर जैसा वो कहे, वैसा करना । ओ.के. ?"
"ओ.के. ।"
"डोंट वरी यार, हाजी बशीर को यार बनाया है, तो देखो कैसा मज़ा आता है जिन्दगी का ।"
रोमेश ने फोन काट दिया । उसकी मोटर साइकिल पार्किंग पर खड़ी थी, एक गुंडा तो स्टेशन पर टहल रहा था, दो पार्किंग में अपनी कार में बैठे थे, चौथा एक रेस्टोरेंट के शेड में खड़ा था । रोमेश ने उस कार का नम्बर भी नोट कर लिया था ।
वो स्टेशन पर ही टहलता रहा ।
कुछ देर बाद ही बशीर द्वारा बताये नंबर की कार स्टेशन के बाहर रुकी । उससे काला भुजंग पहलवान सरीखा व्यक्ति बाहर निकला । उसने इधर-उधर देखा, फिर उसकी निगाह रोमेश पर ठहर गई । वह स्टेशन में दाखिल हुआ, कार आगे बढ़ गई ।
रोमेश प्लेटफार्म नंबर एक पर आ गया । वह व्यक्ति भी रोमेश के पास आकर इस तरह खड़ा हो गया, जैसे गाड़ी की प्रतीक्षा में हो ।
"हुलिया नोट करो ।" रोमेश ने कहा, "एक बाहर ही खड़ा है दुबला-पतला, काली पतलून लाल कमीज पहने, देखो प्लेटफार्म पर इधर ही आ रहा है ।"
"आगे बोलो ।"
"बाकि तीन बाहर है, दो गाड़ी में, गाड़ी नंबर ।" रोमेश ने नंबर बताया ।
"अब हम जो बोलेगा, वो सुनो ।"
"बोलो ।"
"इधर से तुम होटल अमर पैलेस पहुँचो, उधर तुम डिस्को क्लब में चले जाना । उसके बाद सब हम पर छोड़ दो, वो होटल अपुन के बशीर भाई का है ।"
रोमेश स्टेशन से बाहर निकला और फिर पार्किंग से अपनी मोटर साइकिल उठाकर चलता बना । अब उसकी मंजिल होटल अमर पैलेस था । वरसोवा के एक चौक पर यह होटल था । रोमेश ने जैसे ही मोटर साइकिल रोकी, उसे पीछे एक धमाका-सा सुनाई दिया, उसने पलटकर देखा, तो नाके पर दो गाड़ियाँ आपस में टकरा गई थी । उनमें से एक कार पलटा खा गई थी । पलटा खाने वाली वह कार थी, जिसमें उसका पीछा करने वाले सवार थे ।
उस कार में एक तो कार में फंसा रह गया । तीन बाहर निकले । उधर बशीर के आदमी भी बाहर निकल आए थे । दोनों पार्टियों में मारपीट शुरू हो गई । देखते-देखते वहाँ पुलिस भी आ गई, परन्तु तब तक बशीर के आदमियों ने पीछा करने वालों की अच्छी खासी मरम्मत कर दी थी । जाहिर था कि आगे का मामला पुलिस को निपटाना था । आश्चर्यजनक रूप से पुलिस ने उन्हीं लोगों को पकड़ा, जो पिटे थे और पीछा कर रहे थे ।
बशीर के आदमी धूल झाड़ते हुए अपनी कार में सवार हुए और आगे बढ़ गये । लोग दूर से तमाशा जरुर देखते रहे, लेकिन कोई करीब नहीं आया ।
रोमेश अमर पैलेस में मजे से डिनर कर रहा था ।
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12-09-2020, 12:27 PM,
#46
RE: Gandi Sex kahani दस जनवरी की रात
पिटने वाले बटाला के आदमी थे और पीटने वाले बशीर के आदमी थे । रोमेश ने अपनी चाल से इन दोनों गैंगों को भिड़वा दिया था । बटाला को अभी यह समझ नहीं आ रहा था कि बशीर के आदमी उसके आदमियों से क्यों भिड़ गये ?
"यह इत्तफाक भी हो सकता है ।" मायादास ने कहा- "तुम्हारे लोगों की गाड़ी उनसे टकरा गई । वह इलाका बशीर का था । इसलिये उसका पाला भी भारी था ।"
"मेरे लोग बोलते हैं, नाके पर आते ही खुद उन लोगों ने टक्कर मारी थी ।" बटाला बोला, "फोन पे भी जब तक हम छुड़ाते, उनको पीटा पुलिस वालों ने ।"
"काहे को पीटा, तुम किस मर्ज की दवा है ? साले का होटल बंद काहे नहीं करवा दिया ? अपुन को अब बशीर से पिटना होगा क्या ? इस साले बशीर को ही खल्लास कर देने का ।"
"अरे यार तुम तो हर वक्त खल्लास करने की सोचते हो । अभी नहीं करने का ना बटाला बाबा ।"
"बशीर से बोलो, हमसे माफ़ी मांगे । नहीं तो हम गैंगवार छेड़ देगा ।"
"हम बशीर से बात करेंगे ।"
"अबी करो, अपुन के सामने ।" बटाला अड़ गया, "उधर घाटकोपर में साला हमारा थू-थू होता, अपुन का आदमी पिटेगा तो पूरी मुम्बई को खल्लास कर देगा अपुन । "
"अजीब अहमक है ।" मायादास बड़बड़ाया ।
बटाला ने पास रखा फोन उठाया और मायादास के पास आ गया । उसने फोन स्टूल पर रखकर बशीर का नंबर डायल किया । रिंग जाते ही उसने मायादास की तरफ सिर किया था ।
"तुम्हारा आदमी पुलिस स्टेशन से तो छुड़वा ही दिया ना ।" मायादास ने कहा ।
बटाला ने कोई उत्तर नहीं दिया ।
फिर फोन पर बोला, "लाइन दो हाजी बशीर को ।" कुछ रुककर बोला, "जे.एन. साहब के पी.ए. मायादास बोलते हैं इधर से ।"
फिर उसने फोन का रिसीवर मायादास को थमा दिया ।
"बात करो इससे । बोलो इधर हमसे माफ़ी मांगेगा, नहीं तो आज वो मरेगा । "
मायादास ने सिर हिलाया और बटाला को चुप रहने का इशारा किया ।
"हाँ, हम मायादास ।" मायादास ने कहा, "बटाला के लोगों से तुम्हारे लोगों का क्या लफड़ा हुआ भई ?" मायादास ने पूछा ।
"कुछ खास नहीं ।" फोन पर बशीर ने कहा, "इस किस्म के झगड़े तो इन लोगों में होते ही रहते हैं, सब दारु पिये हुए थे । मेरे को तो बाद में पता चला कि वह बटाला के लोग है, सॉरी भाई ।"
"बटाला बहुत गुस्से में है ।"
"क्या इधर ही बैठा है ?"
"हाँ, इधर ही है ।"
"उसको फोन दो, हम खुद उससे माफ़ी मांग लेते हैं ।"
मायादास ने फोन बटाला को दिया ।
"अ…अपुन बटाला दादा बोलता, काहे को मारा तेरे लोगों ने ?"
"दारू पियेला वो लोग । "
"अगर हम दारु पीके तुम्हारा होटल पर आ गया तो ?"
"देखो बटाला, तुम्हारी हमसे तो कोई दुश्मनी है नहीं, यह जो हुआ उसके लिए तो हम माफ़ी मांग लेते है । मगर आगे तुमको भी एक बात का ख्याल रखना होगा । "
"किस बात का ख्याल ?"
"एडवोकेट रोमेश मेरा दोस्त है, उसके पीछे तेरे लोग क्यों पड़े हैं ?"
बटाला सुनकर ही चुप हो गया, उसने मायादास की तरफ देखा ।
"जवाब नहीं मिला मुझे ।"
"इस बारे में मायादास जी से बात करो । मगर याद रहे, ऐसा गलती फिर नहीं होने को मांगता । तुम्हारे दोस्त का पंगा हमसे नहीं है । उसका पंगा जे.एन. साहब से है । बात करो मायादास जी से, वह बोलेगा तो अपुन वो काम नहीं करेगा । "
रिसीवर मायादास को दे दिया बटाला ने ।
"कनेक्शन रोमेश से अटैच है ।" बटाला ने कहा ।
"हाँ ।" मायादास ने फोन पर कहा, "पूरा मामला बताओ बशीर मियां ।"
"रोमेश मेरा दोस्त है, बटाला के आदमी उसकी चौकसी क्यों कर रहे हैं ?"
"अगर बात रोमेश की है बशीर, तो यूँ समझो कि तुम बटाला से नहीं हमसे पंगा ले रहे हो । लड़ना चाहते हो हमसे ? यह मत सोच लेना कि जे.एन. चीफ मिनिस्टर नहीं है, सीट पर न होते हुए भी वे चीफ मिनिस्टर ही हैं और तीन चार महीने बाद फिर इसी सीट पर होंगे, हम तुम्हें बर्बाद कर देंगे ।"
"मैं समझा यह मामला बटाला तक ही है ।"
"नहीं, बटाला को हमने लगाया है काम पर ।"
"मगर मैं भी तो उसकी हिफाजत का वादा कर चुका हूँ, फिर कैसे होगा ?" बशीर बिना किसी दबाव के बोला ।
"गैंगवार चाहते हो क्या ?"
"मैं उसकी हिफाजत की बात कर रहा हूँ, गैंगवार की नहीं । सेंट्रल मिनिस्टर पोद्दार से बात करा दूँ आपकी, अगर वो कहेंगे गैंगवार होनी है तो… !"
पोद्दार का नाम सुनकर मायादास कुछ नरम पड़ गया, "देखो हम तुम्हें एक गारंटी तो दे सकते हैं, रोमेश की जान को किसी तरह का खतरा तब तक नहीं है, जब तक वह खुद कोई गलत कदम नहीं उठाता । वह तुम्हारा दोस्त है तो उसको बोलो, जे.एन. साहब को फोन पर धमकाना बंद करे और अपने काम-से-काम रखे, वही उसकी हिफाजत की गारंटी है ।"
"जे.एन. साहब को क्या कहता है वह ?"
"जान से मारने की धमकी देता है ।"
"क्या बोलते हो मायादास जी ? वह तो वकील है, किसी बदमाश तक का मुकदमा तो लड़ता नहीं और आप कह रहे हैं ।"
"हम बिलकुल सही बोल रहे हैं । उससे बोलो जे.एन. साहब को फोन न किया करे, बस उसे कुछ नहीं होने का । "
"ऐसा है तो फिर हम बोलेगा । "
"इसी शर्त पर हमारा तुम्हारा कॉम्प्रोमाइज हो सकता है, वरना गैंगवार की तैयारी करो ।" इतना कहकर मायादास ने फोन काट दिया ।
रोमेश के विरुद्ध अब जे.एन. की तरफ से नामजद रिपोर्ट दर्ज हो चुकी थी । उसी समय नौकर ने इंस्पेक्टर के आने की खबर दी ।
"बुला लाओ अंदर ।" मायादास ने कहा और फिर बटाला से बोला, "बशीर के अगले फोन का इन्तजार करना होगा, उसके बाद सोचेंगे कि क्या करना है । अब मामला सीधा हमसे आ जुड़ा है, तुम भी गैंगवार की तैयारी शुरू कर दो । "
तभी विजय अंदर आया ।
बटाला को देखकर वह ठिठका ।
"आओ इंस्पेक्टर विजय ।" बटाला ने दांत चमकाते हुए कहा ।
अब मायादास चौंका और फिर स्थिति भांपकर बोला, "बटाला अब तुम जाओ ।"
"बड़ा तीसमारखां दरोगा है यह मायादास जी ! एक प्राइवेट बिल्डिंग में अपुन की सारी रात ठुकाई करता रहा, अपुन को इससे भी हिसाब चुकाना है ।"
"ऐ !" विजय ने अपना रूल उसके सीने पर रखते हुए ठकठकाया, "तुमको अपनी चौड़ी छाती पर नाज है न, कल मैं तेरे बार में प्राइवेट कपड़े पहनके आऊँगा और अगर तू वहाँ भी हमसे पिट गया तो घाटकोपर ही नहीं, मुम्बई छोड़ देना । नहीं तो जीना हराम कर दूँगा तेरा और तू यह मत समझना कि तू जमानत करवाकर बच गया, तुझे फांसी तक ले जाऊँगा ।"
"अरे यह क्या हो रहा है बटाला, निकलो यहाँ से ।"
"कल रात अपने बार में मिलना ।" बटाला का कंधा ठकठकाकर विजय ने फिर से याद दिलाया ।
"मिलेगा अपुन, जरूर मिलेगा ।" बटाला गुर्राता हुआ बाहर निकल गया ।
"यह बटाला ऐसे ही इधर आ गया था, तुम तो जानते ही हो इंस्पेक्टर चुनाव में ऐसे लोगों की जरूरत पड़ती है, सबको फिट रखना पड़ता है । नेता बनने के लिए क्या नहीं करना पड़ता ।"
"लीडर की परिभाषा समझाने की जरूरत नहीं । महात्मा गांधी भी लीडर थे, सुभाष भी लीडर थे, इन लोगों से पूरी ब्रिटिश हुकूमत घबरा गई थी और उन्हें यह देश छोड़ना पड़ा । लेकिन मुझे यह तो बता दो कि इनके पास कितने गुंडे थे, कितने कातिल थे ? खैर इस बात से कुछ हासिल नहीं होना, बटाला जैसे लोगों की मेरी निगाह में कोई अहमियत नहीं हुआ करती, मुझे सिर्फ अपनी ड्यूटी से मतलब है । आपने एफ़.आई.आर. में रोमेश सक्सेना को नामजद किया है ?"
"हाँ, वही फोन पर धमकी देता था ।"
"कोई सबूत है इसका ?" विजय ने पूछा ।
"हमारे लोगों ने उसे फोन करते देखा है और फिर हमारे पास उसकी आवाज भी टेप है । इसके अलावा उसने खुद कहा था कि वह रोमेश सक्सेना है ।"
"टेप की आवाज सबूत नहीं होती, कोई भी किसी की आवाज बना सकता है । फिल्मों में डबिंग आर्टिस्टों का कमाल तो आपने देखा सुना होगा ।"
"यहाँ कोई फ़िल्म नहीं बन रही इंस्पेक्टर । यहाँ हमने किसी को नामजद किया है । इन्क्वारी तुम्हारे पास है, उसको गिरफ्तार करना तुम्हारी ड्यूटी है और उसे दस जनवरी तक जमानत पर न छूटने देना भी तुम्हारा काम है ।"
"शायद आप यह भूल गये हैं कि वह एक चोटी का वकील है । वह ऐसा शख्स है, जो आज तक कोई मुकदमा नहीं हारा । उसे दुनिया की कोई पुलिस केवल शक के आधार पर अंदर नहीं रोक सकती । हम उसे अरेस्ट तो कर सकते हैं, मगर जमानत पर हमारा वश नहीं चलेगा और अरेस्ट करके भी मैं अपनी नौकरी खतरे में नहीं डाल सकता ।"
"या तुम अपने दोस्त को गिरफ्तार नहीं करना चाहते ?"
"वर्दी पहनने के बाद मेरा कोई दोस्त नहीं होता । और यकीन मानिए, पुलिस कमिश्नर भी अगर खुद चाहें तो उसे गिरफ्तार नहीं कर सकते । अगर यह साबित हो जाये कि उसने आपको फोन पर धमकी दी, तो भी नहीं । "
"आई.सी. ! लेकिन आपने हमारे बचाव के लिए क्या व्यवस्था की है ? केवल कमांडो या कुछ और भी ? हम यह चाहते हैं कि रोमेश सक्सेना उस दिन जे.एन. तक किसी कीमत पर न पहुंचने पाये, उसका क्या प्रबंध है ?"
"है, मैंने सोच लिया है । अगर वाकई इस शख्स से जे.एन. साहब को खतरा है, जबकि मैं समझता हूँ, उससे किसी को कोई खतरा हो ही नहीं सकता । वह खुद कानून का बड़ा आदर करता है ।"
"उसके बावजूद भी हम चुप तो नहीं बैठेंगे ।"
"हाँ, वही बता रहा हूँ । मैं उसे नौ तारीख को रात राजधानी से दिल्ली रवाना कर दूँगा । मेरे पास तगड़ा आधार है ।"
"क्या ? "
"सीमा भाभी इन दिनों दिल्ली में रह रही हैं । दस जनवरी को रोमेश की शादी की सालगिरह है । देखिये, वह इस वक्त बहुत टूटा हुआ है । लेकिन वह अपनी बीवी को बहुत प्यार करता है। मैं वह अंगूठी उसे दूँगा, जो वह अपनी पत्नी को शादी की सालगिरह पर देना चाहता है । मैं कहूँगा कि मैं सीमा भाभी से बात कर चुका हूँ और अंगूठी का उपहार पाते ही उनका गुस्सा ठन्डा हो जायेगा, रोमेश सब कुछ भूलकर दिल्ली चला जायेगा ।"
"और दिल्ली में उसकी पत्नी से मुलाकात न हो पायी तो ? "
"यह बाद की बात है, बहरहाल वह दस तारीख को दिल्ली पहुँचेगा । मैंने उसे जो जगह बताई है, वह एक क्लब है, जहाँ सीमा भाभी रात को दस बजे के आसपास पहुंचती हैं । रोमेश उसी क्लब में अपनी पत्नी का इन्तजार करेगा और मैं समझता हूँ, उसी समय उनका झगड़ा भी खत्म हो लेगा । वहाँ रात को जो भी हो, वह फिलहाल विषय नहीं है । विषय ये है कि रोमेश दस तारीख की रात यहाँ मुम्बई में नहीं होगा । जे.एन. साहब से कह दें कि वह चाहें तो स्वयं मुम्बई सेन्ट्रल पर नौ तारीख को पहुंचकर राजधानी से उसे जाते देख सकते हैं ।"
"हम इस प्लान से सन्तुष्ट हैं इंस्पेक्टर !"
"वैसे हमारे चार कमाण्डो तो आपके साथ हैं ही ।"
"ओ. के. ! कुछ लेंगे ?"
"नो थैंक्यू ।"
वहाँ से विजय सीधा रोमेश के फ्लैट पर पहुँचा । रोमेश उस समय अपने फ्लैट पर ही था ।
"मैंने तुम्हें कहा था कि ग्यारह जनवरी से पहले इधर मत आना । अगर तुम जे.एन. की नामजद रिपोर्ट पर कार्यवाही करने आये हो, तो मैं तुम्हें बता दूँ कि इस सिलसिले में मैं अग्रिम जमानत करवा चुका हूँ । अगर तुम पेपर देखना चाहते हो, तो देख सकते हो ।"
"नहीं, मैं किसी सरकारी काम से नहीं आया । मैं कुछ देने आया हूँ ।"
"क्या ? "
"तुम्हें ध्यान होगा रोमेश, तुमने मुझे तीस हजार रुपये दिये थे, बदले में मैंने साठ हजार देने का वादा किया था ।”
"मैं जानता हूँ, तुम ऐसा कोई धन्धा नहीं कर सकते, जहाँ रुपया एक महीने में दुगना हो जाता हो । तुम्हें जरूरत थी, मैंने दे दिया, क्या रुपया लौटाने आये हो ?"
"नहीं, यह गिफ्ट देने आया हूँ ।" विजय ने अंगूठी निकाली और रोमेश के हाथ में रख दी, रोमेश ने पैक खोलकर देखा ।
"ओह, तो यह बात है । लेकिन विजय हम बहुत लेट हो चुके हैं, अब कोई फायदा नहीं ।"
"कुछ लेट नहीं हुए, भाभी दिल्ली में हैं । मैंने पता निकाल लिया है । 10 जनवरी का दिन तुम्हारी जिन्दगी का सबसे महत्वपूर्ण दिन है । भाभी को पछतावा तो है पर वह आत्मसम्मान की वजह से लौट नहीं सकती । तुम जाओ रोमेश ! वह चित्रा क्लब में जाती हैं । वहाँ जब तुम्हें दस जनवरी की रात देखेगी, तो सारे गिले-शिकवे दूर हो जायेंगे । यह अंगूठी देना भाभी को और फिर सब ठीक हो जायेगा ।”
"ऐसा तो नहीं हैं विजय, तुमने 10 जनवरी को मुझे बाहर भेजने का प्लान बना लिया हो ?"
"नहीं, ऐसा मेरा कोई प्लान नहीं । मैं इसकी जरूरत भी नहीं समझता, क्योंकि मैं जानता हूँ कि तुम किसी का कत्ल नहीं कर सकते । मैं तो तुम्हारी जिन्दगी में एक बार फिर वही खुशियां लौटाना चाहता हूँ और ये रहा तुम्हारा रिजर्वेशन टिकट ।"
विजय ने राजधानी का टिकट रोमेश को पकड़ा दिया ।
"नौ तारीख का है, दस जनवरी को तुम अपनी शादी की सालगिरह भाभी के साथ मनाओगे । विश यू गुडलक ! मैं तुम्हें नौ को मुम्बई सेन्ट्रल पर मिलूँगा ।"
"अगर सचमुच ऐसा ही है, तो मैं जरूर जाऊंगा ।"
विजय ने हाथ मिलाया और बाहर आ गया ।
विजय के दिमाग का बोझ अब काफी हल्का हो गया था । हालांकि उसने अपनी तरफ से जे.एन. को सुरक्षित कर दिया था, परन्तु वह खुद भी जे.एन. को कटघरे में खड़ा करने के लिए लालायित था ।
चाहकर भी वह सावंत मर्डर केस में अभी तक जे. एन. का वारंट हासिल नहीं कर पाया था ।
फिर उसे बटाला का ख्याल आया ।
वह बटाला का गुरुर तोड़ना चाहता था । जे.एन. भले ही उसकी पकड़ से दूर था, परन्तु बटाला को उसकी बद्तमीजी का सबक वह पढ़ाना चाहता था । उसकी पुलिसिया जिन्दगी इन दिनों अजीब कशमकश से गुजर रही थी, एक तरफ तो वह जे.एन. की हिफाजत कर रहा था और दूसरी तरफ जे.एन. को सावंत मर्डर केस में बांधना चाहता था ।
सावंत के पक्ष में जो सियासी लोग पहले उसका साथ दे रहे थे, अचानक सब शांत हो गये थे ।
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12-09-2020, 12:27 PM,
#47
RE: Gandi Sex kahani दस जनवरी की रात
रोमेश ने सात जनवरी को पुनः जे. एन. को फोन किया ।
"जनार्दन नागारेड्डी, तुम्हें पता लग ही चुका होगा कि मैं दस तारीख को मुम्बई से बाहर रहूँगा । लेकिन तुम्हारे लिए यह कोई खुश होने की बात नहीं है । मैं चाहे दूर रहूँ या करीब, मौत तो तुम्हारी आनी ही है । दो दिन और काट लो, फिर सब खत्म हो जायेगा ।"
"तेरे को मैं दस तारीख के बाद पागलखाने भिजवाऊंगा ।" जे.एन. बोला, "इतनी बकवास करने पर भी तू जिन्दा है, यह शुक्र कर ।"
"तू सावंत का हत्यारा है ।"
"तू सावंत का मामा लगता है या कोई रिश्ते नाते वाला ?"
"तूने और भी न जाने कितने लोगों को मरवाया होगा ? "
"तू बस अपनी खैर मना, अभी तो तू मुझे चेतावनी देता फिर रहा है, मैंने अगर आँख भी घुमा दी न तेरी तरफ, तो तू दुनिया में नहीं रहेगा । बस बहुत हो गया, अब मेरे को फोन मत करना, वरना मेरा पारा सिर से गुजर जायेगा ।"
जे.एन. ने फोन काट दिया ।
"साला मुझे मारेगा, पागल हो गया है ।" जे. एन. ने अपने चारों सरकारी कमाण्डो को बुलाया, "यहाँ तुम चारों का क्या काम है ?"
"दस तारीख की रात तक आपकी हिफाजत करना ।" कमाण्डो में से एक बोला ।
"हाँ, हिफाजत करना । मगर यह मत समझना कि सिर्फ तुम चार ही मेरी हिफाजत पर हो । तुम्हारे पीछे मेरे आदमी भी रहेंगे और अगर मुझे कुछ हो गया, तो मेरे आदमी तुम चारों को भूनकर रख देंगे, समझे कि नहीं ?"
"अपनी जान बचानी है, तो मैं सलामत रह । हमेशा साये की तरह मेरे साथ लगे रहना ।"
"ओ.के. सर ! हमारे रहते परिन्दा भी आपको पर नहीं मार सकता । "
"हूँ ।" जे.एन. आगे बढ़ गया और फिर सीधा अपने बैडरूम में चला गया ।
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आठ तारीख को वह एकदम तरोताजा था । चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी । उसके बैडरूम के बाहर दो कमाण्डो चौकसी करते रहे । सुबह सोने वाले पहरेदार उठ गये और रात वाले सो गये ।
यूँ तो जे.एन. के बंगले में जबरदस्त सिक्योरिटी थी । उसके प्राइवेट गार्ड्स भी थे, बंगले में किसी का घुसना एकदम असम्भव था ।
फोन रोमेश ने आठ जनवरी को भी किया, लेकिन जे.एन. अब उसके फोनों को ज्यादा ध्यान नहीं देता था । नौ तारीख को जरुर उसके दिमाग में हलचल थी, कहीं सचमुच उस वकील ने कोई प्लान तो नहीं बना रखा है ।
"वह अपने हाथों से मेरा कत्ल करेगा । क्या यह सम्भव है ?" अपने आपसे जे.एन. ने सवाल किया, "वह भी तारीख बताकर, नामुमकिन । इतना बड़ा बेवकूफ तो नहीं था वो ।"
"मगर वह तो नौ को ही दिल्ली जाने वाला है ।" जे.एन. के मन ने उत्तर दिया ।
जनार्दन नागारेड्डी ने फैसला किया कि वह रोमेश को मुम्बई से बाहर जाते हुए जरूर देखेगा । अतः वह राजधानी के समय मुम्बई सेन्ट्रल पहुंच गया । राजधानी एक्सप्रेस कुल चार स्टेशनों पर रुकती थी । अठारह घंटे बाद वह दिल्ली पहुंच जाती थी । ग्यारह-बारह बजे दिल्ली पहुंचेगा, फिर रात को चित्रा क्लब में अपनी बीवी से मिलेगा । नामुमकिन ! फिर वह मुम्बई कैसे पहुंच सकता था ?
और अगर वह मुम्बई में होगा भी, तो क्या बिगाड़ लेगा ?
जे.एन. खुद रिवॉल्वर रखता था और अच्छा निशानेबाज भी था ।
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रेलवे स्टेशन पर वैशाली और विजय, रोमेश को विदा करने आये थे ।
राजधानी प्लेटफार्म पर आ गई थी और यात्री चढ़ रहे थे । रोमेश भी अपनी सीट पर जा बैठा । रस्मी बातें होती रही ।
"कुछ भी हो, मैं तुम दोनों की शादी में जरूर शामिल होऊंगा ।" रोमेश काफी खुश था ।
दूर खड़ा जे.एन. यह सब देख रहा था ।
जे.एन. के पास ही मायादास भी खड़ा था और उनके गार्ड्स भी मौजूद थे । रोमेश की दृष्टि प्लेटफार्म पर दूर तक दौड़ती चली गई । फिर उसकी निगाह जे.एन. पर ठहर गई ।
"अपना ख्याल रखना ।" ट्रेन का ग्रीन सिग्नल होते ही विजय ने कहा ।
"हाँ, तुम भी मेरी बातों का ध्यान रखना । हमेशा एक ईमानदार होनहार पुलिस ऑफिसर की तरह काम करना । अगर कभी मुझे कत्ल के जुर्म में गिरफ्तार करना पड़े, तो संकोच मत करना । कर्तव्य के आगे रिश्ते नातों का कोई महत्व नहीं रहता ।"
रोमेश ने उस पर एक अजीब-सी मुस्कराहट डाली ।
गाड़ी चल पड़ी ।
रोमेश ने हाथ हिलाया, गाड़ी सरकती हुई आहिस्ता-आहिस्ताउस तरफ बढ़ी, जिधर जे.एन. खड़ा था ।
रोमेश ने हाथ हिलाकर उसे भी बाय किया और फिर ए.सी. डोर में दाखिल हो गया ।
गाड़ी धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ती जा रही थी ।
विजय ने गहरी सांस ली और फिर सीधा जे.एन. के पास पहुँचा ।
"सब ठीक है ?" विजय ने कहा ।
"गुड !" जे.एन. की बजाय मायादास ने उत्तर दिया और फिर वह लोग मुड़ गये ।
राजधानी ने तब तक पूरी रफ्तार पकड़ ली थी ।
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12-09-2020, 12:27 PM,
#48
RE: Gandi Sex kahani दस जनवरी की रात
दस जनवरी, शनिवार का दिन ।
यह वह दिन था, जो बहुत से लोगों के लिए बड़ा महत्वपूर्ण था ।
सबसे अधिक महत्वपूर्ण दिन था जनार्दन नागारेड्डी के लिए । जो सवेरे-सवेरे मन्दिर इसलिये गया था, ताकि उसके ऊपर जो शनि की ग्रह दशा चढ़ी हुई है, वह शांत रहे । शनि ने उसे अब तक कई झटके दे दिये थे, उसे मुख्यमंत्री पद से हटवाया था, सावंत की हत्या करवाई थी और अब एक शख्स ने उसे शनिवार को ही मार डालने का ऐलान कर दिया था ।
जनार्दन नागारेड्डी वैसे तो हर कार्य अपने तांत्रिक गुरु से पूछकर ही किया करता था । तांत्रिक गुरु स्वामी करुणानन्द ने ही उस पर शनि की दशा बताई थी और ग्रह को शांत करने के लिए उपाय भी बताए थे । जे.एन. इन उपायों को निरंतर करता रहा था । इसके अतिरिक्त स्वयं तांत्रिक भी ग्रह शांत करने के लिए अनुष्ठान कर रहा था ।
मन्दिर से लौटते हुये भी जे.एन. के दिलो-दिमाग से यह बात नहीं निकल पा रही थी कि आज शनिवार का दिन है ।
घर पहुंच कर उसने मायादास को बुलाया ।
मायादास तुरन्त हाजिर हो गया ।
"मायादास जी, जरा देखना तो हमें आज किस-किससे मिलना है ?" जे.एन. ने पूछा ।
मायादास ने मिलने वालों की सूची बना दी ।
"ऐसा करिये, सारी मुलाकातें कैंसिल कर दीजिये ।" जे.एन. बोला ।
"क्यों श्रीमान जी ? " मायादास ने हैरानी से पूछा ।
"भई आपको कम से कम यह तो देख लेना चाहिये था कि आज शनिवार है ।"
"तो शनिवार होने से क्या फर्क पड़ता है ?"
"क्या आपको मालूम नहीं कि हम पर शनि की दशा सवार है ?"
"लेकिन उससे इन मुलाकातों पर क्या असर पड़ता है, यह सारे लोग तो आपके पूर्व परिचित हैं । साथ में आपको फायदा भी पहुंचाने वाले हैं ।"
"कुछ भी हो, हम आज किसी से नहीं मिलेंगे ।"
"जैसी आपकी मर्जी ।" मायादास ने कहा, "वैसे आपकी तबियत तो ठीक है ?"
"बैठो, यहाँ हमारे पास बैठो ।" जे.एन. बोला ।
मायादास पास बैठ गया ।
"देखो मायादास जी, तुम्हें याद है कि पिछले कई शनिवारों से हमें तगड़े झटके लगे हैं । जिस दिन सावन्त का चार्ज हमारे आदमी पर लगा, वह भी शनिवार का दिन था । जिस दिन मैंने सी.एम. की सीट छोड़ी, वह भी शनिवार का दिन था । और इस रोमेश के बच्चे ने भी मुझे मारने का दिन शनिवार ही चुना ।"
"ओह, तो यह टेंशन है आपके दिमाग में । लेकिन मुझे यकीन है, यह टेंशन कल तक दूर हो जायेगी । अब आप चाहें तो दिन भर आराम कर सकते हैं । मैं आप तक किसी का टेलीफोन भी नहीं पहुंचने दूँगा । कोई खास फोन हुआ, तो बात अलग है । वरना मैं कोड वाले फोन भी नहीं पहुंचने दूँगा ।"
"हाँ, ठीक है । मुझे आराम करना चाहिये । "
जे.एन. अपने बैडरूम में चला गया, लेकिन आराम कहाँ ? बन्द कमरे में तो उसकी बैचेनी और बढ़ ही रही थी । बार-बार रोमेश की धमकी का ख्याल आता ।
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उधर दस जनवरी का दिन रोमेश के लिए भी महत्वपूर्ण था । उसको एक चैलेंजिग मर्डर करना था, लोग चाहे जो अनुमान लगायें, परन्तु रोमेश ने इस कत्ल का ठेका पच्चीस लाख में लिया था और उसने कत्ल की तारीख भी तय कर ली थी । अगर वह कामयाब हो जाता, तो उसका भविष्य क्या होता ?
क्या उसे सीमा वापिस मिल जानी थी ?
क्या वह कानून के प्रति इंसाफ कर रहा था ?
इंस्पेक्टर विजय के लिए भी यह दिन महत्वपूर्ण था । उसे एक ऐसे शख्स की हिफाजत करनी थी, जो अपराधी था और जिसने बहुत से बेगुनाहों का कत्ल किया था । वह एक माफिया था और जो चीफ मिनिस्टर बन गया था । वह इस शख्स को नहीं बचा पाता, तो उसकी सर्विस बुक में एक बैडएंट्री होनी थी और इतना ही नहीं उसे रोमेश को गिरफ्तार करने पर भी मजबूर होना पड़ता ।
हालांकि वह अब अधिक चिन्तित नहीं था । फिर भी यह दिन उसके लिए महत्वपूर्ण था और इसी दिन शंकर नागारेड्डी के मुकद्दर का भी फैसला होने वाला था ।
अखबार वालों को भी सुनगुन थी कि कहीं कोई जबरदस्त न्यूज तो नहीं मिलने वाली । शहर में बहुत-सी जगह यह चर्चाएं थी । पुलिस डिपार्टमेंट से लेकर आम लोगों तक ।
दस जनवरी की रात आने तक कुछ नहीं हुआ।
विजय एक गश्त लगाकर चला गया ।
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रात के नौ बजे मायादास ने जे.एन. से मुलाकात की ।
"मैडम माया तीन बार फोन कर चुकी हैं ।" मायादास ने कहा, "उन्हें क्या जवाब दिया जाये ?"
"ओह, मुझे तो ध्यान नहीं रहा, आज शनिवार है ।"
"तुम तो जानते ही हो मायादास ! मैं हर शनिवार डिनर उसके साथ उसी के फ्लैट पर लेता हूँ । वैसे भी यहाँ सुबह से दम-सा घुटा जा रहा है । उससे कहो कि हम आ रहे हैं, क्या हमारा जाना ठीक है ?"
"आप तो बेकार में टेंशन पाले हुये हैं । आपको सब काम अपनी रुटीन के अनुसार करना चाहिये, अब तो शनि का प्रकोप भी खत्म हो गया । सारे ग्रह रात होते ही डूब जाते हैं । मेरा ख्याल है, वहाँ आप सारे तनाव से छुटकारा पा लेंगे । वैसे भी आपके साथ गार्ड तो रहेंगे ही । लोग कहेंगे कि आप बड़े डरपोक हैं । आपकी निडरता की साख है पूरे शहर में और आप हैं कि चूहे की तरह बिल में घुसे हुये हैं ।"
"अरे नहीं हम किसी से नहीं डरने वाले । हम वहाँ जाकर आयेंगे । ड्राइवर से कहो कि गाड़ी तैयार रखे ।"
"ठीक है, श्रीमान जी !" मायादास बाहर निकल गया ।
जे.एन. तैयार होने लगा ।
वह अब सब कुछ भूल चुका था और माया का हसीन फिगर उसके दिलों-दिमाग पर छाता जा रहा था ।
☐☐☐
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12-09-2020, 12:27 PM,
#49
RE: Gandi Sex kahani दस जनवरी की रात
माया ने एक बार और कौशिश की, कि जे.एन. से सम्पर्क हो जाये । वह आज रात के लिए जे. एन. को अपने यहाँ आने से रोकना चाहती थी, उसे ख्याल आया कि रोमेश ने उसे किसी कत्ल की चश्मदीद गवाह बनने के लिए कहा था और वह जान चुकी थी कि रोमेश ने जे.एन. को दस जनवरी को कत्ल करने की धमकी भी दी है । कहीं वह मेरे फ्लैट पर तो कुछ नहीं करने वाला ?

यह ख्याल बार-बार उसके मन में आता और इसीलिये वह शाम से ही जे. एन. को फोन मिला रही थी, परन्तु जे.एन. से सम्पर्क नहीं हो पाया, तो उसने मायादास से संपर्क किया । उसने मायादास से ही कह दिया कि जे.एन. को वहाँ न आने दे ।

किन्तु सवा नौ बजे मायादास का फोन आया ।

"जे.एन. साहब आपके यहाँ आने वाले हैं ।"

''मगर !"

"आप उस सबकी फिक्र न करे, जे.एन. साहब बड़े ही शेर दिल आदमी हैं । उन्हें इस तरह डरा देना भी ठीक बात नहीं प्लीज ! उनका वैसा ही वेलकम करें, जैसा करती हैं । तनावमुक्त हो जायेंगे और ठीक से रात भी कट जायेगी ।'' मायादास ने फोन काट दिया ।
करीब पांच मिनट बाद ही एक फोन और आया ।
"हैलो ।"
"हम जसलोक से बोल रहे हैं, आपके अंकल मिस्टर जेठानी का एक्सीडेन्ट हो गया है । प्लीज कम इमीजियेटली !"
इस सूचना के बाद फोन कट गया ।
"ओ माई गॉड, अंकल जेठानी का एक्सीडेन्ट ।''
माया जल्द से तैयार हो गई । उसने अपनी नौकरानी से कहा, ''जे. एन. साहब भी आने वाले हैं । अगर कोई हॉस्पिटल से आये, तो उसे हैंडल कर लेना । कहना मैं हॉस्पिटल ही गई हूँ और जे.एन. साहब को भी समझा देना ।"
माया फ्लैट से रवाना हो गई । वह अपनी फिएट कार दौड़ाती हुई हॉस्पिटल की तरफ बढ़ रही थी ।
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उसके फ्लैट से निकलने के लगभग दस मिनट बाद बेल बजी । नौकरानी ने समझा या तो जे.एन. है या कोई हॉस्पिटल से आया है या खुद माया देवी ? नौकरानी ने तुरन्त द्वार खोल दिया । जैसे ही नौकरानी ने द्वार खोला, उसके मुंह से हल्की-सी चीख निकली और तभी एक दस्ताने वाला हाथ उसके मुंह पर छा गया । आने वाले ने दूसरे हाथ से फ्लैट का दरवाजा बन्द किया और नौकरानी को घसीटता हुआ स्टोर रूम में ले गया, भय से नौकरानी की आंखें फटी पड़ रही थीं ।
शीघ्र ही उसके हाथ पाँव बाँध दिये गये और मारे भय के वह बेहोश हो गई ।
स्टोर बन्द करके वह शख्स बाहर आया, उसने फ्लैट का मुख्य द्वार का बोल्ट अन्दर से खोल दिया और चुपचाप फ्लैट के बैडरूम में पहुंचकर उसने दस्ताने उतारे, फिर फ्रिज खोला और फ्रिज से एक बियर और गिलास लेकर बैठ गया ।
उसने गिलास में बियर डाली और बियर पीने लगा ।
कुछ ही देर में माया बड़बड़ाती हुई अन्दर दाखिल हुई । वह नौकरानी को आवाज देती बड़बड़ा रही थी, "पता नहीं किसने मूर्ख बनाया ? आज कोई फर्स्ट अप्रैल तो है नहीं ? मेरी भी मति मारी गई, यहाँ से अंकल के घर फोन किये बिना ही चल पड़ी हॉस्पिटल ।"
बड़बड़ाती माया बैडरूम में पहुंची ।
बैडरूम में किसी की मौजूदगी देखते ही चीख पड़ी, "तुम एडवोकेट रोमेश !"
वह शख्स एकदम मायादेवी पर झपटा और उसने चाकू की नोंक माया की गर्दन पर रख दी ।
''शोर मत मचाना, चलो इधर ।" वह माया को चाकू से कवर करता एक बार द्वार तक आया और फिर से फ्लैट का डोर अनबोल्ट किया ।
फिर द्वार का मुआयना किया और माया को खींचता हुआ बैडरूम से अटैच बाथरूम में ले गया । उसने बैडरूम का शावर चला दिया और बाथरूम का दरवाजा भी बन्द कर दिया ।
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जनार्दन नागारेड्डी की कार फ्लैट के पोर्च में रुकी ।
पीछे कमाण्डो की कार थी । वह कार बाहर सड़क के किनारे खड़ी हो गई । जे.एन. अपनी कार से उतरा ।
"इन कमाण्डो से कहना, बाहर ही रहें ।" उसने अपने ड्राइवर से कहा, ''और तुम गाड़ी में रहना, ठीक ?"
"जी साहब !" ड्राइवर ने कहा ।
जे.एन. फ्लैट के द्वार पर पहुँचा । द्वार को आधा खुला देखकर जे.एन. मुस्कराया, "शायद इंतजार करते-करते दरवाजा खोलकर ही सो गई ।"
अन्दर दाखिल होकर जे.एन. ने द्वार बोल्ट किया और सीधा बैडरूम की तरफ बढ़ गया । बैडरूम में रोशनी थी और बाथरूम में शावर चलने की आवाज आ रही थी ।
"ओह तो इसलिये दरवाजा खुला था, स्नान हो रहा है ।"
"जी हाँ, आप बैठिए ।" बाथरुम से आवाज आई ।
जनार्दन नागारेड्डी आराम से बैठ गया । फिर उसने फ्रीज खोला, एक बियर निकाल ली और उसके साथ ही एक गिलास भी । मेज पर पहले से एक गिलास और बियर की तीन चौथाई खाली बोतल रखी थी । जे. एन. ने उस पर कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया । उसने अपनी बियर खोली और गिलास में डालने लगा, उसके बाद उसने गिलास होंठों की तरफ बढ़ाया ।
बाथरूम का दरवाजा खुलने की हल्की आवाज सुनाई दी ।
जे.एन. मुस्कराया । वह जानता था कि माया दबे कदम उसके करीब आयेगी और फिर पीछे से गले में बाँहें डाल देगी ।
वह इन्तजार करता रहा ।
किसी ने धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखा । जे.एन. को एकाएक वह स्पर्श अजनबी लगा । उसका हाथ रुक गया, जाम लबों पर ही ठहर गया । फिर हाथ धीरे-धीरे नीचे आया और मेज के ऊपर ठहर गया ।
"जनार्दन नागारेड्डी !" किसी ने फुसफुसाकर कहा ।
जे.एन. का हाथ गिलास पर से छूट गया । उसका हाथ तेजी के साथ रिवॉल्वर की तरफ बढ़ा, परन्तु तब तक पीछे से जोरदार झटका लगा । जे.एन. कुर्सी सहित घूम गया ।
एक क्षण के लिए उसे चाकू का ब्लेड चमकता दिखाई दिया । उसने चीखना चाहा । वह चीखा भी । परन्तु वह चीख घुटी-घुटी थी । तब तक चाकू उसके जिस्म में पैवस्त हो चुका था ।
उसकी आंख फटी-की-फटी रह गई ।
खून सना जिस्म कालीन पर लुढ़कता चला गया ।
जनार्दन की चीख शायद बाहर तक पहुंच गई थी और बेल बजने लगी थी । फिर दरवाजा इस तरह बजने लगा, जैसे कोई उसे तोड़ने की कौशिश कर रहा हो । बैडरूम की रोशनी बुझ चुकी थी । वह शख्स पीछे खुलने वाली बालकनी पर पहुँचा । फिर उसने बालकनी पर डोरी बाँधी और फिर डोरी द्वारा तीव्रता के साथ नीचे जा कूदा । उस वक्त सबका ध्यान फ्लैट के मुख्य द्वार की तरफ था ।
फिर किसी ने चीखकर कहा, "देखो वह कौन कूदा है ?"
''लगता है, अन्दर कुछ गड़बड़ हो गई है ।"
कूदने वाला बेतहाशा सड़क पर दौड़ता चला गया ।
इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, एक गाड़ी के पीछे खड़ी मोटर साइकिल स्टार्ट हुई और फिर मोटर साइकिल सड़क पर दौड़ने लगी । कमाण्डो जे.एन. को छोड़कर नहीं जा सकते थे ।
जैसे ही कमांडो को पता चला कि जे.एन. का कत्ल हो गया है, वह सकपका गये ।
''क्या करें ?" एक ने कहा ।
"उसने कहा था कि अगर उसकी जान को कुछ हो गया, तो उसके आदमी हमें मार डालेंगे । जो कभी भी यहाँ आ सकते हैं ।"
"मेरे ख्याल से भागने में ही भलाई है ।"
"नौकरी चली जायेगी ।" दूसरा बोला ।
"नौकरी तो वैसे भी जानी है, जे.एन. तो मर गया । अब तो जान बचाओ ।" पहले वाले ने कहा ।
चारों कार लेकर वहाँ से भाग खड़े हुए ।
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12-09-2020, 12:27 PM,
#50
RE: Gandi Sex kahani दस जनवरी की रात
इंस्पेक्टर विजय के अतिरिक्त बहुत से वरिष्ठ पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच चुके थे । टेलीफोन वायरलेस, टेलेक्स, फैक्स न जाने कितने माध्यमों से यह न्यूज बाहर जा रही थी ।
सबसे पहले घटनास्थल पर पहुंचने वाला शख्स विजय ही था ।
माया रो रही थी । पास ही जे.एन. का ड्राइवर और नौकरानी खड़ी थी ।
बाहर कुछ लोग जमा थे, जिन्हें अन्दर नहीं जाने दिया जा रहा था । फ्लैट के दरवाजे पर भी सिपाही तैनात थे ।
"कैसे हुआ ?"
"उसने पहले मुझे मेरे अंकल के एक्सीडेन्ट के फोन का धोखा दिया ।" माया बताती जा रही थी । नौकरानी भी बीच-बीच में बोल रही थी ।
"वही था, तुम अच्छी तरह पहचानती हो ।"
"वही था, रोमेश सक्सेना एडवोकेट ! ओह गॉड ! उसने मुझे बैडरूम के बाथरूम में बांधकर डाल दिया । किसी तरह मैं घिसटती बाहर तक आई, मगर तब तक जे.एन. साहब का कत्ल हो चुका था । उसने जाते-जाते मेरे हाथ खोले और बालकनी के रास्ते भाग गया । फिर मैंने मुँह का टेप हटाया और शोर मचाया । उसके बाद दरवाजा खोलकर पुलिस को फोन किया ।"
"रोमेश, तुमने बहुत बुरा किया ।" विजय ने अपने मातहत को घटनास्थल पर तैनात किया ।
तब तक दूसरे अधिकारी भी आ चुके थे ।
कुछ ही देर में उसकी जीप रोमेश के फ्लैट की ओर भागी चली जा रही थी । वह एक हाथ से स्टेयरिंग कंट्रोल कर रहा था और उसके दूसरे हाथ में सर्विस रिवॉल्वर थी । रोमेश के फ्लैट पर पहुंचते ही उसकी जीप रुक गई । फ्लैट के एक कमरे में रोशनी हो रही थी ।
विजय जीप से नीचे कूदा और जैसे ही उसने आगे बढ़ना चाहा, फ्लैट की खिड़की से एक फायर हुआ । गोली उसके करीब से सनसनाती गुजर गई, विजय ने तुरन्त जीप की आड़ ले ली थी ।
"इंस्पेक्टर विजय ।" रोमेश की आवाज सुनाई दी, "अभी ग्यारह जनवरी शुरू नहीं हुई है । मैंने कहा था कि तुम मुझे गिरफ्तार करने ग्यारह जनवरी को आना । इस वक्त मैं जल्दी में हूँ, अगर तुमने मुझ पर हाथ डालने की कौशिश की, तो मैं भूनकर रख दूँगा ।"
"अपने आपको कानून के हवाले कर दो रोमेश ।" विजय ने चेतावनी दी और साथ ही धीरे-धीरे आगे सरकना शुरू कर दिया ।
विजय उस वक्त अकेला ही था ।
उसी क्षण फ्लैट की रोशनी गुल हो गई । इस अंधेरे का लाभ उठाकर विजय तेजी से आगे बढ़ा । वह रोमेश को भागने का अवसर नहीं देना चाहता था । वह फ्लैट के दरवाजे पर पहुँचा ।
उसे हैरानी हुई कि फ्लैट का दरवाजा अन्दर से खुला है । वह तेजी के साथ अंदर गया और जल्दी ही उस कमरे में पहुँचा, जिसकी खिड़की से उस पर फायर किया गया था । वह उस फ्लैट के चप्पे-चप्पे से वाकिफ था । थोड़ी देर तक वह आहट लेता रहा कि कहीं रोमेश उस पर फायर न कर दे ।
तभी वह चौंका, उसने मोटर साइकिल स्टार्ट होने की आवाज सुनी । विजय ने कमरे की रोशनी जलाई, कमरा खाली था । वह तीव्रता के साथ खिड़की पर झपटा और फिर उसकी निगाह सड़क पर दौड़ती मोटर साइकिल पर पड़ी ।
"रुक जाओ रोमेश !" वह चीखा ।
उसने मोटर साइकिल की तरफ एक फायर भी किया, परन्तु बेकार ! खिड़की पर बंधी रस्सी देखकर वह समझ गया कि अंधेरा इसलिये किया गया था, ताकि कोई उसे रस्सी से उतरते न देखे । संयोग से विजय उस समय फ्लैट के दरवाजे से अन्दर आ रहा था ।
विजय तीव्रता के साथ बाहर आ गया ।
उसने अपनी जीप तक पहुंचने में अधिक देर नहीं की । उसके बाद जीप को टर्न किया और उसी दिशा में दौड़ा दी, जिधर मोटर साइकिल गई थी ।
रिवॉल्वर अब भी उसके हाथ में थी । काफी दौड़-भाग के बाद मोटर साइकिल एक पुल पर खड़ी मिली । विजय ने वहीं से वायरलेस किया, शीघ्र ही एक फियेट कार वहाँ पहुंच गई ।
मोटर साइकिल कस्टडी में ले ली गई ।
रोमेश का कहीं पता न था ।
"फरार होकर जायेगा कहाँ ?" विजय बड़बड़ाया ।
एक बार फिर वह रोमेश के फ़्लैट पर जा पहुँचा ।
☐☐☐
फ्लैट से जो वस्तुएं बरामद हुईं, वह सील कर दी गयीं । खून से सना ओवरकोट, पैंट, जूते, हैट, मफलर, कमीज, यह सारा सामान सील किया गया ।
रोमेश का फ्लैट भी सील कर दिया गया था ।
सुबह तक सारे शहर में हलचल मच चुकी थी । यह समाचार चारों तरफ फैल चुका था कि एडवोकेट रोमेश सक्सेना ने जे.एन. का मर्डर कर दिया है ।
मीडिया अभी भी इस खबर की अधिक-से-अधिक गहराई तलाश करने में लग गया था । रोमेश से जे.एन. की शत्रुता के कारण भी अब खुल गये थे । मीडिया साफ-साफ ऐसे पेश करता था कि सावंत का मर्डर जे.एन. ने करवाया था ।
कातिल होते हुए भी रोमेश हीरो बन गया था ।
घटनास्थल पर पुलिस ने मृतक के पेट में धंसा चाकू, मेज पर रखी दोनों बियर की बोतलें बरामद कर लीं ।
माया ने बताया था कि उनमें से एक बोतल रोमेश ने पी थी ।
फिंगर प्रिंट वालों ने सभी जगह की उंगलियों के निशान उठा लिए थे ।
रोमेश ने जिन तीन गवाहों को पहले ही तैयार किया था, वह खबर पाते ही खुद भागे-भागे पुलिस स्टेशन पहुंच गये ।
"मुझे बचा लो साहब ! मैंने कुछ नहीं किया बस कपड़े दिये थे, मुझे क्या पता था कि वह सचमुच कत्ल कर देगा । नहीं तो मैं उसे काले कपड़ों के बजाय सफेद कपड़े देता । कम-से-कम रात को दूर से चमक तो जाता ।"
''अब जो कुछ कहना, अदालत में कहना ।" विजय ने कहा ।
"वो तो मेरे को याद है, क्या बोलना है । मगर मैंने कुछ नहीं किया ।"
"हाँ-हाँ ! तुमने कुछ नहीं किया ।"
राजा और कासिम का भी यही हाल था । कासिम तो रो रहा था कि उसे पहले ही पुलिस को बता देना चाहिये था कि रोमेश, जे.एन. का कत्ल करने वाला है ।
उधर रोमेश फरार था । दिन प्रतिदिन जे.एन. मर्डर कांड के बारे में तरह-तरह के समाचार छप रहे थे । इन समाचारों ने रोमेश को हीरो बना दिया था ।
☐☐☐
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